''कैसे हो जवान?’’

सौरभ ने सिर उठाकर सामने देखा।

सलाखों के पार से ऋषभ उसकी ओर ही देख रहा था।

''ठीक हूं।’’-वो बोला।

''लेकिन, सुना है, वो कैदी ठीक नहीं है, जिसने तुम पर हमला किया था।’’

''हां। वो कल से ही मुझसे जबर्दस्ती झगड़ा करने की फिराक में घूम रहा था। मैं उसे मारना नहीं चाहता था लेकिन जब उसने मुझ पर हमला किया तो मेरे पास कोई रास्ता भी नहीं बचा।’’

''तुम्हें पता है, मर्डर वैपन बरामद हो चुका है। और उस पर से तुम्हारी उंगलियों के निशान भी मिले हैं।’’

सौरभ के चेहरे का रंग बदल गया।

''क्या?’’-वो अविश्वास भरे स्वर में बोला-''ऐसा...ऐसा नहीं हो सकता।’’

''ऐसा ही हुआ है।’’

''मर्डर वैपन...क्या है?’’

''प्रताप को गोली मारी गई थी। तो गन ही होगा न? और तुम तो ऐसे अंजान बन रहे हो, जैसे तुम्हें कुछ पता ही नहीं है।’’

''मुझे सचमुच कुछ नहीं पता।’’

''फिर गन पर तुम्हारी उंगलियों के निशान कहां से आ गए? हवा से?’’

''मुझे...मुझे नहीं मालूम।’’-सौरभ अचानक बेहद परेशान दिखने लगा-''ये सब मेरे साथ क्या हो रहा है? मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है।’’

''लेकिन मेरी समझ में आ रहा है।’’

''क्या?’’

''यही कि कोई तुम्हें फंसाने की कोशिश कर रहा है। इतनी पक्की वाली कोशिश कि तुम बुरी तरह फंस चुके हो। लेकिन दिक्कत ये नहीं है। दिक्कत ये है कि तुम भी खुद को फंसाने की कोशिश कर रहे हो।’’

''मैं? मैं खुद को फंसाने की कोशिश क्यों करूंगा?’’

''उस रात जब तुम रूपाली से मिलने सनशाइन अपार्टमेंट्स गए थे, उस रात जो कुछ भी हुआ था, सब बताओ। बिना कोई भी बात छोड़े।’’

''सब? सब कुछ तो बता चुका हूं।’’

''नहीं। सब कुछ नहीं बताया है। तुम अब भी कुछ छिपाने की कोशिश कर रहे हो।’’

''मैं कुछ नहीं छिपा रहा।’’

''तुमने कहा कि तुम रूपाली से मिलने बिल्डिंग में गए थे। ठीक। लेकिन तुम प्रताप के फ्लैट में भी गए थे।’’

''नहीं।’’

''तुम गए थे। और फ्लैट नंबर 24 में रहने वाले बुजुर्ग निरूपम शास्त्री जी ने तुम्हें देखा भी था। हालांकि उन्होंने चश्मा नहीं पहना हुआ था और कमजोर नजर होने के कारण वे साफ-साफ तुम्हारा चेहरा नहीं देख सके थे लेकिन उन्होंने तुम्हें कद-काठी और कपड़ों से पहचान लिया था।’’

सौरभ ने शुष्क होंठों पर जीभ फेरी।

''गन भी बरामद हो चुकी है।’’-ऋषभ ने कहा-''उस पर तुम्हारी उंगलियों के निशान भी पुलिस को मिल चुके हैं। ये तुम क्या कर रहे हो, सौरभ? क्या तुम्हें अपने भविष्य की कोई चिंता नहीं? मैंने तुम्हें बिल्डिंग से बाहर निकलते देखा था लेकिन अगले दिन प्रताप का खून होने की खबर पता चलने के बाद भी मुझे तब से लेकर अब तक एक पल के लिए भी विश्वास नहीं हुआ था कि उसका खून तुमने किया है। लेकिन तुम जिस तरह झूठ पर झूठ बोले जा रहे हो, सच पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हो, उससे अब तो मुझे भी लगने लगा है कि प्रताप को तुमने ही मारा है।’’

''नहीं। मैंने प्रताप का खून नहीं किया। मैंने किसी का खून नहीं किया।’’

''मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था कि तुम मुझसे झूठ बोल रहे थे। तुम जब बिल्डिंग से निकल रहे थे, उसी वक्त तुम्हारे चेहरे पर घबराहट के भाव थे। तुम घबराए हुए थे, क्योंकि तुम प्रताप की, अपने रूम पार्टनर की लाश देखकर आ रहे थे। फिर भी तुमने मुझसे झूठ बोला।’’

''हां। मैंने झूठ बोला। क्योंकि...क्योंकि मुझे लगा था तुम मेरा विश्वास नहीं करोगे।’’

''अच्छा? तो बात अब विश्वास करने या न करने की है? तुम्हें यही खेल खेलना है तो पहले ही बता देना चाहिए था। मैं तुम्हारे साथ यहां सिर मारने आता ही नहीं। शायद तुम्हें और पलक को पुलिस के साथ ये जो 'सच छुपाओ, झूठ बोलो’ का खेल तुम दोनों खेल रहे हो, उसमें बहुत मजा आ रहा है। मैं बेकार में 'सच बताओ, सच बताओ’ चीखते हुए तुम्हें परेशान करने यहां आ जाता हूं। जब तुम पुलिस को ही नहीं बता रहे हो कि सच क्या है तो भईया मैं किस खेत की मूली हूं? अच्छा चलता हूं भाई। राम राम।’’

कहते हुए ऋषभ उठ खड़ा हुआ।

''रूको।’’-सौरभ ने व्याकुल स्वर में कहा-''रूको।’’

''क्यों? मेरे पास तुम दोनों के इस रोमांचक खेल में सिर पर झूठ का पिटारा लेकर इधर-उधर दौड़ते रहने की हिम्मत और नहीं है। ये साहसिक यात्रा तुम दोनों को ही मुबारक हो।’’

''मैं...मैं सच बताता हूं।’’

''मुझे टुकड़ों में सच नहीं जानना है। ईएमआई पर मोबाइल, कार मिलते हैं, ये तो पता था। सच भी ईएमआई में मिलने लगा है, ये जानने का सौभाग्य तुमसे मिलने के बाद ही प्राप्त हुआ है।’’

''मैं पूरा सच बताऊंगा। पिछली बार मैंने जो भी नहीं बताया था, वो भी बताता हूं।’’

ऋषभ वापस बैठ गया।

''सबसे पहले मुझे एक सवाल का सच-सच जवाब दो? जिससे मैं तस्दीक कर सकूं कि तुम सचमुच मुझे सब सच बताने वाले हो।’’

''पूछो।’’

''प्रताप के कत्ल की रात उसके फ्लैट से जिस व्यक्ति को निकलते हुए शास्त्री ने देखा था, वो कौन था?’’

वो एक पल खामोश रहा, फिर बोला-''तुम्हें क्या लगता है?’’

''मेरे ख्याल से वो कमलकांत था। दूर से दिखने पर वो भी तुम्हारे जैसा ही दिखता है। शास्त्री की नजर वैसे भी कमजोर है और उस रात उसने चश्मा भी नहीं पहना हुआ था।’’

''नहीं। वो मैं ही था। मैं ही प्रताप के फ्लैट से बाहर निकला था।’’

ऋषभ के होंठ भिंच गए।

''फिर ये बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताई?’’

''क्योंकि...।’’

ऋषभ पुलिस स्टेशन पहुंचा।

प्रधान ने उसे कमलकांत के बारे में प्राप्त लेटेस्ट न्यूज की जानकारी दी।

''काफी पुराना खिलाड़ी है।’’-ऋषभ ने कहा।

''जेल में सौरभ से क्या बात हुई?’’-प्रधान ने पूछा।

''वही जो होनी चाहिए थी। उसने जो कुछ आज बताया है, वो पहले बता दिया होता तो शायद हमें इतना सिर मारने की जरूरत नहीं पड़ती।’’

''ऐसा क्या बता दिया उसने? मैं भी तो सुनूं।’’

''जरूर सुनाऊंगा इंस्पैक्टर साहब। आपको तो एक्सक्लूसिवली सुनाना है। लेकिन सनशाइन अपार्टमेंट्स की ओर जाते हुए रास्ते में।’’

वे दोनों पुलिस स्टेशन की पार्किंग में पहुंचकर पुलिस कार में बैठने ही वाले थे, जब ऋषभ की नजर पुलिस स्टेशन के गेट से स्कूटी से अंदर आ रही पलक पर पड़ी।

"रूकिए।"-उसने प्रधान से कहा और इशारे से पलक को बुलाया।

वो स्कूटी पार्क करके उसके पास पहुंची।

''आओ, आओ।’’-ऋषभ ने कहा-''सही वक्त पर आई हों।’’

"मैं ऑफिस जा रही थी। तुम्हें यहां देखकर सोचा कि...।"

''ठीक सोचा।’’-ऋषभ ने बीच में ही उसकी बात काटते हुए कहा-''अच्छा हुआ, तुम यहां आ गईं। वरना मैं इंस्पैक्टर साहब के साथ तुम्हारे घर ही आने वाला था।’’

पलक को दिल डूबता महसूस हुआ।

''इंस्पैक्टर साहब के साथ मेरे घर? क्यों?’’

''इस सवाल का जवाब तो तुम्हें भी अच्छे से पता है। अब जल्दी से अंदर आ जाओ। तुम्हें कुछ दिखाना है।’’

''मुझे कुछ जरूरी काम था...।’’

''इस वक्त जो हम करने जा रहे हैं, उससे ज्यादा जरूरी काम नहंी हो सकता।’’-इंस्पैक्टर ने कड़ी निगाहों से पलक को घूरते हुए कहा-अंदर आइए।

पलक की इनकार करने की हिम्मत नहीं हुई। वो खामोशी से कार के अंदर बैठ गई।

अगले ही पल वे सनशाइन अपार्टमेंट्स की ओर उड़ जा रहे थे।


सनशाइन अपार्टमेंट्स पहुंचने के बाद लिफ्ट से वे पांचवी मंजिल पर पहुंचे।

ऋषभ और इंस्पैक्टर लिफ्ट से निकलकर गैलरी में आगे बढ़े। पलक भी ऐसे जैसे मजबूरी में चलना पड़ रहा हो, उनके पीछे थी।

वे लोग रूपाली के फ्लैट के दरवाजे के सामने आकर रूके।

''एक शादी में जाना चाहोंगीं?’’-ऋषभ ने मुस्कुराते हुए कहा।

''किसकी शादी?’’-पलक बोली।

''है किसी की। बैंड-बाजा शायद न हो। लेकिन धूम-धड़ाके की मैं गारंटी देता हूं। बोलो। आना है या नहीं?’’

पलक हिचकिचाई, फिर बोली-''ठीक है।’’

ऋषभ ने डोरबेल बजाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि तभी दरवाजा अपने-आप ही खुल गया।

अंदर रूपाली नजर आई।

''तुम?’’-ऋषभ को देखकर उसके मुंह से निकला।

''और हम भी।’’-पीछे से इंस्पैक्टर ने कहा।

उसने तीनों के चेहरे पर नजर मारी, फिर बोली-''कहिए?’’

''आप किसी जरूरी काम से जा रहीं हैं?’’-ऋषभ ने कहा।

''मेरे सब काम जरूरी ही होते हैं। आप ये बताइए, आप यहां किस काम से आए हैं?’’

''सब काम जरूरी होते हैं? वाह। आपकी आइडियोलॉजी तो जबर्दस्त है। फिर भी अभी किस जरूरी काम से जाने वाली थीं आप?’’

''थीं नहीं हूं। आप लोग जल्दी से बताइए कि आपको मुझसे क्या काम है, जिससे मैं जा सकूं। मुझे देर हो रही है।’’

''जान सकता हूं’’-इंस्पैक्टर ने कहा-''आप ऐसे कौन-से जरूरी काम से जा रहीं हैं, जो बैठकर बात करने के लिए भी समय नहीं निकाल सकतीं?’’

वो एक पल के लिए हिचकिचाई, फिर बोली-''मुझे कोर्ट जाना है।’’

''कोर्ट? आप जैसी विदुषी महिला को कोर्ट-कचहरी का क्या काम पड़ गया?’’

''एक किराएदार के किराएनामे से संबंधित काम है।’’

''कहीं वो किराएदार’’-ऋषभ ने कहा-''कमलकांत तो नहीं?’’

उसने घूरकर ऋषभ को देखा।

ऋषभ ने अपलक उससे नजर मिलाई।

''आपको कैसे पता?’’-रूपाली ने तीखे स्वर में कहा।

''अब सारी बातें यहां खड़े-खड़े ही होंगीं?’’-इंस्पैक्टर ने कड़े स्वर में कहा-''या आप हमें अंदर आने के लिए भी कहेंगीं?’’

उसने इंस्पैक्टर की ओर देखा, फिर दरवाजे के सामने से हट गई।

तीनों ने रूम में प्रवेश किया।

वहां पहले से एक शख्स मौजूद था।

वो कमलकांत था।

''अरे।’’-ऋषभ ने हर्षित स्वर में कहा-''आप जिस किराएदार से मिलने कोर्ट जाने वाली थीं, वो तो यहीं बैठा है। कोर्ट का काम घर पर ही निबटाए ले रहे हैं क्या आप लोग?’’

''कोर्ट का काम कोर्ट में ही होगा।’’-रूपाली ने सख्त स्वर में कहा-''आपको जो काम है, वो बताइए।’’

''हम तो बताएंगें ही। क्योंकि हम तो आए ही बताने के लिए हैं, बल्कि बताने के लिए भी आए हैं और बचाने के लिए भी आए हैं।’’

''बचाने के लिए? किसे?’’

''आपको।’’

''किससे?’’

''वो भी पता चल जाएगा। लेकिन जब हम आपके लिए इतनी तकलीफ उठा रहे हैं, तो बरायमेहरबानी आप भी हम लोगों के प्रति थोड़ा दोस्ताना रवैया अपनाने की कृपा करिए। इतना भी नहीं कर सकतीं तो कम से कम सच बोलिए।’३

''सच? मैंने क्या झूठ बोला?’’

''आप कोर्ट तो जा रही हैं, कमलकांत के साथ ही जा रहीं हैं लेकिन उसमें किराएनामा का कोई दखल नहीं है।’’

''तो आप ही बता दीजिए, मैं किस काम से जा रही हूं?’’

''इनसे शादी करने। विवाह बंधन में बंधने।’’

एक पल के लिए वो ऋषभ को घूरती रही, फिर उसने तीखे स्वर में कहा-''तो? शादी करना कोई गुनाह है क्या?’’

''नहीं। बिल्कुल कोई गुनाह नहीं है। बल्कि बहुत अच्छी बात है। बल्कि हमारा इरादा भी आपकी शादी में बाराती बनकर शामिल होने का है।’’

''ये बारात वाली शादी नहीं है।’’

''ओह। कोर्ट मैरिज।’’-ऋषभ ने मायूस होने का दिखावा किया-''मतलब फ्री के खाने को भूल जाएं हम तीनों?’’

''रिसेप्शन पार्टी में आप सबको जरूरी बुलाऊंगीं।’’

''बुलाएंगीं तो तब, जब ऐसी कोई पार्टी होगी।’’

''क्या?’’

''मैं चलता हूं।’’-तभी कमलकांत उठकर व्यस्तता का प्रदर्शन करते हुए बोला-''मुझे एक जरूरी काम याद आ गया।’’

''बैठ जाइए।’’-ऋषभ ने कहा।

''मैंने कहा न मुझे जरूरी काम...।’’

''चुपचाप वहीं बैठ जा, जहां बैठा था।’’-प्रधान इतनी जोर से गरजा कि कमरे में उपस्थित लगभग सभी लोग सहम गए।

कमलकांत सदमे की सी हालत में मुंह खोलकर कुछ देर तक प्रधान को देखता रहा, फिर चुपचाप वापस सोफे पर बैठ गया।

प्रधान खुद भी एक सोफे पर बैठ गया और उसने रूपाली की ओर देखा।

उसका इशारा समझकर वो भी खामोशी के साथ सोफे पर बैठ गई।

सब लोग बैठ गए।

''हां, तो रूपाली जी’’-ऋषभ ने नाटकीय स्वर में कहा-''ये बेहद खुशी की बात है कि आपने नई जिंदगी की शुरूआत करने का फैसला तो कर लिया। लेकिन मुझे बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि दोबारा जीवनसाथी चुनने में आपने बड़ी गलती कर दी। और अगर हमें वक्त रहते इस गड़बड़झाले का पता नहीं चल जाता तो शायद आपके लिए बहुत देर हो चुकी होती।’’

''क्या मतलब? आप बात को इतना घुमा-फिराकर क्यों कह रहे हैं? साफ-साफ क्यों नहीं कहते?’’

''साफ-साफ यही है कि सुनीता के नाम से सोशल मीडिया पर आपने जो एकाउंट बना रखा है और उस पर पार्टी गर्ल के नाम से जो प्रसिद्धी प्राप्त कर रखी है, वो काबिलेतारीफ है। लेकिन कहते हुए दुख हो रहा है कि आप जैसी बुद्धिमान, तेजतर्रार औरत भी सोशल मीडिया को हल्के में लेने की गलती कर बैठी। जिस आदमी से सोशल मीडिया पर दोस्ती करके आप उस दोस्ती को शादी का मुकाम देना चाहती हैं, वो एक नंबर का धोखेबाज इंसान है। एक ऐसा शख्स है, जिसका धंधा ही औरतों को अपने जाल में फंसाने और फिर उन्हें बर्बाद कर देने का है।’’

रूपाली ने कमलकांत की ओर देखा।

''क्या बकवास कर रहे हो?’’-कमलकांत ने दिलेरी से कहा-''मैं यहां चुपचाप बैठकर सुन रहा हूं तो इसका ये मतलब नहीं है कि तुम कुछ भी बके जाओगे। जो मन में आएगा, वो घिनौना आरोप मुझ पर लगा दोगे। मैं एक इज्जतदार आदमी हूं। मेरी बहुत ऊंचे लोगों तक पहुंच है।’’

प्रधान ने उसे घूरते हुए अपनी जेब से एक लिफाफा निकाला, उसे खोला फिर उसमें से एक लड़की की तस्वीर निकालकर बीच में रखी टेबल पर कमलकांत के सामने रख दी।

तस्वीर पर नजर पड़ते ही कमलकांत का चेहरा भय से पीला पड़ गया।

प्रधान ने उसके चेहरे पर से नजरें हटाए बिना लिफाफे से दूसरी लड़की की तस्वीर निकाली और उसे भी उस तस्वीर के बगल में रख दिया।

कमलकांत के होश और भी फाख्ता हो गए।

तीसरी तस्वीर...।

चौथी तस्वीर...।

प्रधान उसे देखता जा रहा था और तस्वीरें टेबल पर उसके सामने सजाता जा रहा था।

देखते ही देखते टेबल पर पूरी 6 तस्वीरें सज चुकी थीं।

उनमें से दो तस्वीरें कम उम्र लड़कियों की थीं, वहीं चार अधिक उम्र की-लेकिन फिर भी दिखने में सुंदर-महिलाओं की थीं।

''कुछ याद आया?’’-प्रधान ने विषैले स्वर में कहा।

कमलकांत की सूरत पर बारह बजे हुए थे।

''ये वे लड़कियां हैं’’-फिर प्रधान ने कहा-''जिनसे तूने अलग-अलग नामों से सोशल मीडिया पर दोस्ती, उन्हें अपने प्यार के जाल में फंसाया और उसके बाद इनके साथ क्या हुआ, ये कहां गईं, इसका कोई पता नहीं चल पाया।’’

''और ऐसा ही आपके साथ भी होने वाला था’’-ऋषभ ने रूपाली से कहा-''शादी तक तो मामला पहुंच ही गया था।’’

रूपाली चेहरे पर अविश्वास के भाव लिए कभी उन तस्वीरों को देख रही थी तो कभी कमलकांत को।

''नहीं।’’-वो धीमे से बुदबुदाई-''ये नहीं हो सकता।’’

''ये हो चुका है। और ये फिर होने वाला था। आपके नजदीक बैठा ये सूरत से ही भोला भाला दिखने वाला शख्स नौजवान युवतियों को अपने प्यार के झूठे जाल में फंसाता है। इसका निशाना ऐसी लड़कियां या महिलाएं ही होती हैं, जो अमीर परिवार से होती हैं लेकिन या तो अकेली होती हैं या उनके परिवार वालों ने उन्हें पूरी छूट दे रखी होती है। अपने शिकार को चिह्नांकित करने के बाद ये सोशल मीडिया पर उससे दोस्ती बढ़ाता है। फिर उन्हें ऑनलाइन गिफ्ट भेजने लगता है। लड़कियों का दिल जीतने के सारे तरीके इसे आते हैं। लड़कियों को अपने जाल में फंसाने के बाद ये उन्हें बहकाकर सारा पैसा-सारा नहीं तो ढेर सारा तो जरूर-लेकर अपने साथ भाग चलने के लिए राजी कर लेता है। पुलिस की जानकारी में ये अब तक 6 लड़कियों को अपना शिकार बना चुका है। उन सभी का कहीं कोई पता नहीं चल पाया। इसने या तो उन्हें मार दिया। या फिर कहीं ले जाकर बेच दिया। ये इतना चालाक है कि काम पूरा होने के बाद अपने सोशल मीडिया एकाउंट तक को डिलीट कर देता है। सारी फोटुएं, सारी पोस्ट्स मिटा देता है, जिससे पुलिस को इसका सुराग न मिल सके। अपना एकाउंट ही नहीं, बल्कि ये लड़की को भी बहला-फुसलाकर अपनी निगरानी में ही उससे उसके एकाउंट से भी इससे संबंधित सारी पोस्ट्स डिलीट करवा देता था। बल्कि एक लड़की का तो पूरा एकाउंट ही डिलीट करवा दिया था। जिससे पुलिस को इसका कोई सुराग न मिल सके। पुलिस लंबे अरसे से उन लड़कियों के मामले में इसकी तलाश कर रही थी। लेकिन पुलिस के पास इसकी कोई पहचान नहीं थी। जिसके चलते वो इसे नहीं ढूंढ पा रहीं थीं। संयोग से एक केस में लड़की की एक पोस्ट में पुलिस को इसकी फोटो मिल गई थी। लेकिन उस केस में लड़की को ये अपना शिकार नहीं बना पाया था। उस लड़की से नजदीकियां थोड़ी-सी बढ़ाने के बाद इसे लगने लगा था कि वो लड़की एक अच्छे, जागरूक घराने से थी और वहां जाल फैलाने के चक्कर में ये खुद ही फंस जाता। इसलिए इसने थोड़ी कोशिश करने के बाद खुद ही उस लड़की से संबंध तोड़ लिए। चूंकि उस मामले में इसने कोई अपराध ही नहीं किया था, ऊपरी तौर पर देखने से वो एक साधारण ब्रेकअप जैसा ही मामला था इसलिए किसी को शक भी नहीं होता। लेकिन इस तरह के और भी केस सामने आ चुके होने के कारण पुलिस ऐसे ही किसी मामले की तलाश कर रही थी। इस पर शक होने पर पुलिस उन पुराने केसेज से इसका कनेक्शन जोडऩे की कोशिश कर रही थी। इसी दौरान हमें भी इसके यहां होने और इस बार किसी पार्टी गर्ल को फंसाने की भनक लग गई, जिसने सुनीता नाम से सोशल मीडिया पर एकाउंट बनाया हुआ था। लेकिन असल में वो’’-उसने रूपाली की ओर देखा-''आप थीं।’’

इंस्पैक्टर ने रूपाली की ओर देखा।

रूपाली कुछ बोली नहीं। वो बस जलती आंखों से कमलकांत को घूर रही थी, जो अपनी जगह बैठा हुआ पसीना-पसीना हो रहा था।

''आप इससे सबसे पहले कहां मिली थीं?’’-प्रधान ने पूछा।

''मेरी इससे मुलाकात सोशल मीडिया पर ही हुई थी।’’-रूपाली ने नजरों से ही भाले-बर्छियां बरसाते हुए कमलकांत की ओर देखा।

''जिनकी तस्वीरें आप टेबल पर देख रहीं हैं, उन्हें भी इसने सोशल मीडिया पर ही अपने जाल में फंसाया था। प्रताप के मर्डर के सिलसिले में संदेहियों की जांच पड़ताल में जब हमने इसका अपराधिक रिकॉर्ड पता करने की कोशिश की तो ऐसा कोई रिकॉर्ड सामने नहीं आया। लेकिन ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इसने जो भी कारनामे अंजाम दिए थे, वो अपने असली नाम से नहीं किए थे। ये नकली नामों से महिलाओं, युवतियों को अपने जाल में फंसाता था।’’

''अगर इसने बाकी अपराधों में अपने असली नाम का इस्तेमाल नहीं किया था’’-पलक ने कहा-''तो इस बार क्यों किया?’’

''ऐसा नहीं था कि इसने सारे अपराध ही नकली नामों से किए थे। एक-दो मामलों में इसने अपनी असली आईडेंटिटी का भी उपयोग किया था। लेकिन वे ऐसे ही मामले थे, जिनमें उसे लगा था कि असली आईडेंटिटी का उपयोग किए बिना गुजारा नहीं था। जहां शिकार तगड़ा था। उससे मोटा पैसा मिलने की उम्मीद थी। और उसे विश्वास में लेने के लिए भी नकली नाम का चक्कर चलाना मुश्किल था।’’

''आप भी इसके लिए तगड़ा शिकार हैं।’’-प्रधान ने रूपाली से कहा-''करोड़ों की संपत्ति की मालकिन हैं। इस बार शायद ये बड़ा दांव खेल रहा था। इस बार इसका इरादा अपने शिकार को उल्टी सीधी पट्टी पढ़ाकर उससे मंगाई हुई कुछ लाख रूपए की रकम पर ही संतोष करने का नहीं था। बल्कि ये आपकी पूरी जायदाद पर ही कब्जा करना चाहता था। इसीलिए इतनी मेहनत कर रहा था। अपने असली नाम से ऑपरेट कर रहा था।’’

''वैसे असली नाम से ऑपरेट करने का इसे फायदा भी हुआ।’’-ऋषभ ने कहा-''अगर ये अपने पुराने ज्यादातर केसों की तरह कोई नकली नाम चुनता तो प्रताप मर्डर केस की जांच के दौरान इसके नकली नाम की पोल खुल जाती। इसके वीजा, पासपोर्ट सब पर इसका असली नाम है। संयोग से इस बार असली आईडेंटिटी यूज करने के कारण ये अब तक बचा रहा।’’

''ये सब झूठ है।’’-कमलकांत ने प्रतिवाद किया-''मैंने...मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है। मैं इन लड़कियों में से किसी को जानता भी नहीं। मैं सचमुच कैनेडा की एक कंपनी में जॉब करता हूं...।’’

''कैनेडा की वो कंपनी भी तुम्हारी बनाई हुई है। और वो कोई कंपनी नहीं, बस एक फ्रंट है। वहां कोई काम नहीं होता। केवल एक नाम है, जो कंपनी के रूप में रजिस्टर्ड है। एक छोटा सा ऑफिस है, जो तुमने दुनिया की आंखों में धूल झोंकने के लिए खोला हुआ है।’’

उसका चेहरा पीला पड़ गया।

''अपनी लच्छेदार बातों में तुमने रूपाली जी को फंसाया, उन्हें अपने सच्चे प्यार का भरोसा दिलाया। और कोर्ट मैरिज करने के लिए राजी कर लिया। वैसे तुम्हारा आगे का प्लान क्या था? शादी के बाद इन्हें भी मार देने का? या कहीं ले जाकर बेच देने का? या फिर कुछ समय इंतजार करके इन्हें किसी तरह मार कर इनकी पूरी जायदाद पर कब्जा करने का?’’

प्रधान उठा और उसने कमलकांत के बगल में रखा बैग उठाने के लिए पकड़ा। वो वही बैग था, जिसमें ऋषभ ने कमलकांत के फ्लैट की तलाशी के दौरान कोर्ट मैरिज के कागजात देखे थे।

कमलकांत ने बैग को कसकर पकड़ लिया।

प्रधान ने उसे सर्द निगाहों से देखा।

कमलकांत ने बैग छोड़ दिया।

प्रधान बैग को लेकर वापस सोफे पर जा बैठा। उसने चैन खोलकर उसमें रखे कोर्ट मैरिज के कागजात निकालकर उन्हें चैक किया।

पति-पत्नी के नामों की जगह कमलकांत और रूपाली के नाम लिखे हुए थे।

उसने व्यंग्यात्मक निगाहों से कमलकांत और रूपाली की ओर देखा।

''अगर ये कोर्ट मैरिज हो जाती’’-प्रधान ने रूपाली से कहा-''तो आपकी सारी दौलत इसके पर्स में होती। और आपकी लाश किसी गटर में होती।’’

''कमीने’’-रूपाली ने गुस्से से थर-थर कांपते हुए कमलकांत की ओर देखा-''कु्रत्ते। मैं तेरा खून पी जाऊंगीं।’’

वो उस पर झपटने को हुई लेकिन इंस्पैक्टर ने उसे पकड़ लिया।

''मैडम।’’-वो बोला-''अपने-आप को संभालिए। इसको सजा कानून देगा।’’

''तू...तू मुझे मारने के सपने देख रहा था? मुझे लूटने के? रूपाली माधवन को? अब देख मैं तेरा क्या हाल करती हूं।’’

''इसका जो भी हाल करना है, वो पुलिस करेगी।’’

''नहीं।’’-रूपाली ने इनकार में सिर दांये-बांये हिलाया-''पुलिस इसका वो हाल नहीं कर पाएगी, जो मैं करना चाहती हूं। मैं जेल में भी इसका पीछा नहीं छोड़ूंगीं। वहां भी इसकी वो हालत करवाऊंगीं कि ये उस दिन को याद करके रोएगा, जब इसने अपने शिकार के तौर पर रूपाली माधवन को चुना था।’’

''शांत हो जाइए, मैडम।’’-ऋषभ ने कहा-''मुझे आपकी बात का भरोसा है।’’

दो पुलिस वाले अंदर आए और कमलकांत को पकड़कर अपने साथ ले गए। उन्हें प्रधान अपने साथ ही लाया था लेकिन थोड़ी देर में रूपाली के फ्लैट में आने के निर्देश देकर उसने उन्हें बाहर ही रोक दिया था।

''आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।’’-कमलकांत को गिरफ्तार कर ले जाए जाने के बाद रूपाली ने कृतज्ञ स्वर में कहा-''मुझे इस दरिंदे से बचाने के लिए।’’

''इतनी जल्दी जश्र मत मनाइए।’’-ऋषभ ने मुस्कुराते हुए कहा।

''मतलब?’’-उसने ऋषभ की ओर देखा।

''यहां तो हम यही डिसाइड नहीं कर पाए हैं कि हमने किस दरिंदे को किस दरिंदे से बचाया है? आपको कमलकांत से। या...।’’-वो एक पल के लिए ठहरकर बोला-''कमलकांत को आपसे।’’

''व्हाट डू यू मीन?’’-वो तमककर बोली।

''मैं अपना मीन भी आपको जरूर बताऊंगा लेकिन आपको इतना मीन होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि मीनव्हाइल होने वाला है प्रताप मर्डर केस का खुलासा। यू नो व्हाट आई मीन?’’

''मैं समझी नहीं।’’

''समझ जाएंगीं। वैसे सच कहूं तो पार्टी गर्ल के रूप में आप पहचान में ही नहीं आतीं। सोशल मीडिया पर आपकी तस्वीरें-जिनमें आपने स्कूल ड्रैस पहनी होती है, बाल खुले हुए होते हैं-आप अपनी उम्र से 10-15 साल कम ही लगतीं हैं।

''दिन भर अकेली घर में रहती हूं’’-रूपाली ने कहा-''मन बहलाने के लिए कुछ तो चाहिए।’’

''मैं आपको पार्टी गर्ल के रूप में पॉपुलर होने के लिए कुछ थोड़े ही कह रहा हूं...।’’

''अपने-अपने तौर पर, हर कोई बहलाता है दिल।’’-प्रधान ने कहा।

''...मैं तो आप पर आपके ही भाई प्रताप का खून करने का इल्जाम लगा रहा हूं।’’

कमरे में सन्नाटा छा गया।

''क्या बक रहे हो?’’-'पार्टी गर्ल' हिस्टीरिया के मरीज की तरह चीख उठी-''तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या?’’

"दिमाग तो मैंने सुना है, उन लोगों का खराब होता है, जो अपने स्वार्थ के लिए किसी निर्दोष की जान तक ले लेते हैं। और कुछ का दिमाग तो इतना ज्यादा खराब होता है कि वे अपने स्वार्थ के आगे खून के रिश्तों की भी परवाह नहीं करते।"

''हाउ डेयर यू।’’-वो बिफरकर बोली-''तुम्हारी...तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर मेरे ही भाई के खून का इल्जाम लगाने की?’’

''मेरी हिम्मत कैसे हुई?’’-ऋषभ ने सोचने का नाटक किया, फिर चुटकी बजाकर बोला-''वैसे ही, जैसे आपकी हिम्मत हुई थी, एक सीधे-सादे, अपनी पुरानी गमगीन जिंदगी से पीछा छुड़ा चुके नौजवान को वापस उसी स्याह अतीत में घसीटने की। न सिर्फ घसीटने की, बल्कि उसे हत्या के इल्जाम में जेल भेजकर उसकी जिंदगी पूरी तरह बर्बाद करने की। उस हत्या के इल्जाम में, जो आपने की थी। जब आप इतनी हिम्मत कर सकतीं हैं, तो मैं आपके काले कारनामों पर से पर्दा उठाने की हिम्मत नहीं कर सकता? सारी हिम्मत करने का ठेका अकेली आपने ले रक्खा है?’’

''गेट आउट। आई सेड गेट आउट।’’

''आपका ये गेट आउट अकेले मेरे लिए है या मेरे साथ आपको गिरफ्तार करने आए इंस्पैक्टर साहब के लिए भी है?’’

''तुम्हारे लिए ही है। दफा हो जाओ यहां से।’’

''शांत हो जाइए, मैडम।’’-प्रधान ने कहा।

''मैं शांत नहीं होऊंगीं। मैं इस बेहूदा आदमी को अब अपने घर में एक सेकेंड के लिए भी बर्दाश्त नहीं करूंगीं।’’

''ये जो कहेगा, इसे साबित करना पड़ेगा। और अगर आप निर्दोष हैं तो आपको साबित करना पड़ेगा कि ये जो कह रहा है, वो गलत है।’’

''मुझे अपने घर में कोई अदालत नहीं लगवानी। अब आप भी इसके साथ ही बाहर जाइए।’’

प्रधान उठा।

''क्या कहा आपने?’’-वो बोला।

उसके स्वर में कुछ ऐसी धमक थी कि रूपाली की जबान न खुली।

''बैठिए।’’-इंस्पैक्टर ने कहा।

वो बैठ गई।

प्रधान भी सोफे पर वापस बैठ गया।

''आपके घर में अदालत नहीं लगेगी।’’-प्रधान ने कहा-''लेकिन यहां ऋषभ प्रताप मर्डर केस के बारे में जो बताना चाह रहा है, वो जरूर सुना जाएगा। उसके बाद आप अपने पक्ष में कुछ कहना चाहें तो कह सकतीं हैं। नहीं कहना चाहतीं हैं तो आपको पुलिस स्टेशन चलना होगा। कह कर भी आप खुद को निर्दोष साबित नहीं कर पाईं तो भी आपको पुलिस स्टेेशन चलना पड़ेगा। ये जो आरोप आप पर लगा रहे हैं, उन्हें आप नहीं सुनना चाहतीं, तब तो आपको तुरंत, इसी वक्त पुलिस स्टेशन चलना पड़ेगा। यानि हर स्थिति में मंजिल आपकी पुलिस स्टेशन ही है। तो ये फैसला अब आपको करना है। आप तुरंत पुलिस स्टेशन चलना चाहतीं हैं या थोड़ा रूक कर? इनकी बात सुनने के बाद?’’

''मैं अपने वकील से बात करना चाहती हूं।’’-उसने मरे हुए स्वर में कहा।

''खूब बात करिएगा। बल्कि वकील की तो अब आपको बहुत जरूरत पडऩे वाली है। घंटों बातें करिएगा ‘‘

''वैसे भी आपको समस्या किस बात से है?’’-ऋषभ विनोदपूर्ण स्वर में बोला-''कोर्ट तो आप जाने ही वालीं थीं। अब आपको पुलिस स्टेशन जाना पड़ रहा है। वो भी तो कोर्ट से जुड़ी हुई ही एक संस्था है। वहां से भी आपको बाद में कोर्ट ही ले जाएगा।’’

उसने ऋषभ को ऐसे घूरकर देखा, जैसे आंखों से ही कच्चा चबा जाएगी।

''बस।’’-इंस्पैक्टर ने ऋषभ से कहा-''अब इधर-उधर की बातें छोड़ो। और मुद्दे पर आओ।’’

''मुद्दा ये है कि प्रताप का खून किसी और ने नहीं बल्कि इन्होंने ही किया था।’’

''ये झूठ है...।’’-रूपाली ने प्रतिवाद किया।

''शांत बैठी रहिए।’’-इंस्पैक्टर ने कहा-''पहले उसे अपनी बात पूरी कर लेने दीजिए। उसके बाद आपको भी बोलने का मौका दिया जाएगा।’’

वो खामोश हो गई।

''चलिए, शुरू से शुरू करते हैं।’’-ऋषभ ने कहा-''और शुरू से शुरू करने के लिए मुझे सौरभ का वो राज खोलना पड़ेगा, जिसे न खोलने के लिए उसने हर तरह की तकलीफ सही। हर तरह की जिल्लत झेली। लेकिन वो बेचारा ये बात भूल गया कि सच को छिपाने की चाहे कितनी भी कोशिश क्यों न करो, सच को सामने आना ही होता है।’’

''क्या था सौरभ का सच, जो वो सबसे छिपाना चाहता था?’’-प्रधान ने कहा।

''सौरभ कुछ साल पहले तक मेल एस्कॉर्ट का काम करता था। हालांकि उसे ऐसा घृणित काम पसंद नहीं था लेकिन मजबूरी के कारण उसने वो रास्ता चुना था। बाद में पहला मौका मिलते ही उसने वो काम छोड़ दिया। और पुणे आ गया। किसी अच्छे काम की तलाश में। अच्छी जिंदगी की तलाश में। और यहां दोनों ही उसका इंतजार कर रहे थे। सौरभ को पुणे आकर लगने लगा कि उसकी बीती जिंदगी के बुरे साए ने उसका पीछा छोड़ दिया है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। वो साया वापस आया। और कुछ इस तरह वापस आया कि उसकी नई बस रही खुशहाल जिंदगी को छिन्न-भिन्न करके रख दिया।’’

एक पल के लिए कमरे में सन्नाटा छाया रहा।

''उस साये का नाम रूपाली माधवन था।’’

''ये गलत है।’’-रूपाली ने कहा-''मैं सौरभ को जानती भी नहीं...।’’

''खामोश।’’-प्रधान की भारी आवाज और भी भारी होकर कमरे में गूंजी।

उसके होंठ सिल गए।

''सौरभ यहां एक मॉल में काम करने लगा था।’’-ऋषभ ने कहना जारी रखा-''लेकिन आर्थिक समस्याओं ने अब भी उसका पीछा नहीं छोड़ा था। इसी बीच उसकी मुलाकात प्रताप से हुई। दोनों के बीच दोस्ती हुई और कमरे का रेंट बचाने के लिए सौरभ अपना ज्यादा किराए वाला घर छोड़कर प्रताप के साथ रहने के लिए सनशाइन अपार्टमेंट्स में रूम पार्टनरशिप में रहने आ गया। और यहीं से उसके बुरे वक्त की शुरूआत हुई।’’

''यहां से कैसे?’’-पलक ने पूछा।

''सालों पहले जब सौरभ मेल एस्कॉर्ट के रूप में काम करता था, तब उसने एक बार एक महिला के साथ सात दिन बिताए थे। और वो महिला इस वक्त हमारे सामने बैठी है।’’-उसने रूपाली की ओर इशारा किया-''सनशाइन अपार्टमेंट्स की मालकिन भी यहीं हैं। इन्हें शायद पिछली बार की सेवाओं से सौरभ का काम पसंद आ गया था। सौरभ को अपने अपार्टमेंट्स में देखकर इनकी बांछें खिल गईं। इन्होंने पहला मौका मिलते ही सौरभ को अकेले में अपने फ्लैट पर बुलाया और वही सेवाएं दोबारा देने के लिए उस पर दबाव डालने लगीं। सौरभ इसके लिए तैयार नहीं हुआ। क्योंकि वो एक नई, एक अच्छी जिंदगी शुरू करना चाहता था। तब इन्होंने उसे अपना दूसरा रूप दिखाया। उसे ब्लैकमेल किया। कि पलक को उसकी हकीकत बता देंगीं। उसके स्याह अतीत के बारे में बता देंगीं। धमकाया। कि उस पर बद्फेली करने का इल्जाम लगवाकर उसे जेल भिजवा देंगीं। लालच दिया। कि ये उसे पिछली बार की तरह ही पैसे भी देंगीं। कुल मिलाकर इन्होंने हर पैंतरा अपनाकर सौरभ को फिर से वही सब करने पर राजी कर लिया, जो वो बहुत पहले छोड़ चुका था।’’

''इसमें प्रताप का खून कहां से आ गया?’’-पलक ने कहा।

''प्रताप इनकी आंखों में बहुत अरसे से खटक रहा था। दरअसल, इनके पति विपुल माधवन की मौत के बाद से ये इस पूरे अपार्टमेंट की मालकिन बन बैठीं थीं। लेकिन विपुल की मां और बहन पास के ही एक गांव शिवापुर में रहतीं हैं, जो इस संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार हैं। ये हिस्सेदारी रूपाली को किसी भी हालत में मंजूर नहीं थी। इन्होंने अपनी सास और ननद को लगातार भुलावे में रखा कि वे एक परिवार ही तो हैं, अपार्टमेंट्स का काम अच्छा नहंी चल रहा, मरम्मत वगैरह में बहुत खर्च हो जाता है, इनके पति मरने के बाद बहुत सारा कर्जा छोड़ गए हैं, वगैरह वगैरह। ऐसी ही पट्टियां पढ़ाकर ये अपनी सास और ननद को अपने पति की मृत्यु के बाद से लगातार मूर्ख बनाती आईं। लेकिन इनकी ननद श्वेता को धीरे-धीरे इस बात का अहसास होने लगा कि भाभी की नजर पूरी जायदाद अकेले हड़प जाने की है। शादी के बाद से ही रूपाली का व्यवहार अपनी सास और ननद के प्रति अच्छा नहीं था। उसी की जिद पर विपुल गांव में अपना मकान, अपनी मां और बहन को छोड़कर यहां आकर रहने लगा था। रूपाली तो विपुल के जिंदा रहते उसका अपनी मां और बहन से गांव में मिलने जाना भी पसंद नहीं करती थी। ऐसे में अचानक ऐसा क्या हो गया कि विपुल की मौत के बाद रूपाली का बर्ताव अचानक अपनी सास और ननद के प्रति चेंज हो गया? इसी बात से श्वेता को शक होने लगा। उसे जब ये बात समझ में आ गई कि रूपाली का इरादा असल में विपुल की पूरी जायदाद हड़प जाने का है तो उसने प्रॉपर्टी में आधे हिस्से को हासिल करने के लिए कानून की सहायता ली।’’

ऋषभ वो सब प्रधान और पलक को बताते हुए कभी रुपाली को थर्ड पर्सन में सम्बोधित कर रहा था तो कभी उसके सामने ही बैठे होने के कारण रुपाली के लिए 'इनके' या 'इन्होने' जैसे सम्बोधन भी प्रयोग कर रहा था

''फिर?’’

''यहां पर श्वेता को पता चला कि उसका सामना किससे है? रूपाली पहले ही उसके इस कदम का तोड़ निकाल चुकी थी। वो एक बार मौका पाकर-जब श्वेता घर पर नहीं थी-उसकी मां-यानि अपनी सास से-ऐसे कागजातों पर साइन करवा चुकी थी-जिनके अनुसार उन्होंने पूरी जायदाद रूपाली के नाम कर दी थी। अब इस बिल्डिंग में से फूटी कौड़ी भी श्वेता या उसकी मां की नहीं थी। लेकिन श्वेता ने फिर भी हार नहीं मानी। वो लगातार कोर्ट के चक्कर लगाती रही। वकीलों से मिलती रही। रूपाली से भी मिली। श्वेता ने रूपाली से सीधे कहा कि प्रॉपर्टी का आधा हिस्सा उनका अधिकार है। वो हिस्सा ये उन लोगों को दे दें। लेकिन रूपाली ने साफ कह दिया कि वो फूटी कौड़ी भी किसी को नहीं देनी वाली थी। इसी दौरान श्वेता को प्रताप के बारे में पता चला। वो प्रताप से मिली और सारी बात उसे कह सुनाई। प्रताप अपनी बहन को अच्छी तरह जानता था। उसने श्वेता को भरोसा दिलाया कि वो उसे अपनी बहन से उसका हक दिलवाने की पूरी कोशिश करेगा। उसने रूपाली से कई बार बात की। लेकिन रूपाली ने प्रताप से भी सख्ती से इनकार कर दिया और उसे इस मामले से दूर रहने की चेतावनी दी। लेकिन प्रताप ने तो मानो श्वेता को उसका हक दिलाने की कसम खा ली थी। उसने सनशाइन अपार्टमेंट्स में ही फ्लैट लेकर यहीं डेरा डाल दिया, जिससे समय-समय पर रूपाली से मिलकर उसे कचोटता रहे। उसे विश्वास था कि धीरे-धीरे समझाने पर रूपाली अपनी सास और ननद को उनका हिस्सा लौटाने के लिए जरूर मान जाएगी। लेकिन ये प्रताप की भूल थी। अगर रूपाली को इतनी आसानी से ही उनका हिस्सा लौटाने के लिए मान जाना होता, तो वो उस हिस्से को हड़पने के लिए इतनी साजिश ही क्यों करती?’’

''उसके बाद क्या हुआ?’’

''रूपाली को धीरे-धीरे करके समझाने के जिस तरीके को प्रताप ने चुना था, उसका उल्टा ही असर हुआ। ये इस बात से बुरी तरह खफा हो गई कि इनका भाई ही इनकी जायदाद से आधे हिस्से को श्वेता को वापस दिलवाने में लग गया है। ये प्रताप को अच्छी तरह जानती भी थी। प्रताप ने जिंदगी में कोई बड़ा काम भले न किया हो। लेकिन वो एक अच्छा इंसान था। वो कुछ करने की ठान लेता था तो करके ही रहता था। इन्हें साफ लगने लगा कि प्रताप श्वेता को उसकी जमीन दिलवाकर ही रहेगा। कई बार बातचीत में प्रताप ने रूपाली पर ये बात जाहिर भी कर दी थी। करोड़ों की जायदाद में से हिस्सेदारी इनको किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं थी। इसलिए इन्होंने वो रास्ता चुना, जो शायद दुनिया की कोई बहन नहीं चुन सकती थी।’’

''अपने भाई की हत्या का रास्ता।’’-प्रधान ने कहा।

''हां। लेकिन ये जानती थीं कि ये सब इतना आसान नहीं था। इन्होंने पूरी योजना बनाई। एक फूलप्रूफ प्लान, जिसमें किसी को इन पर शक नहीं होना था। इन्होंने एक बकरा भी तलाश किया-तलाश क्या किया, वो तो जैसे किस्मत ने ही इनकी झोली में लाकर डाल दिया था-जिसे उस हत्या के इल्जाम में जेल भेजा जा सके, जो इन्होंने की।’’

''सौरभ।’’

''हां। रूपाली से तंग आकर उसके चंगुल से निकलने के लिए सौरभ प्रताप से झगड़ा करने का झूठा नाटक रचने लगा। जिससे इस अपार्टमेंट से पीछा छुड़ा सके। रूपाली को इससे भी फायदा मिला। इन्होंने भी कॉलोनी में ये बात प्रचारित करनी शुरू कर दी कि सौरभ और प्रताप में अनबन चल रही थी। रही-सही कसर उस दिन बार में हुई लड़ाई से पूरी हो गई-हालांकि वो रूपाली के प्लान का हिस्सा नहीं था लेकिन इनके प्लान के लिए मुफीद जरूर था-जब सौरभ ने नशे में कई लोगों के सामने प्रताप को जान से मारने की धमकी दे डाली।’’

''प्रताप और सौरभ के बीच ऐसी क्या बात हुई थी’’-प्रधान ने कहा-''जो सौरभ ने उसे जान से मारने की धमकी दे डाली।’’

''ये बात भी कम शर्मनाक नहीं है। दरअसल, प्रताप अपनी बहन के कृत्यों से वाकिफ था। सौरभ और प्रताप एक ही फ्लैट में रहते थे। रूपाली और सौरभ के बीच क्या चल रहा था, ये बात प्रताप से कब तक छिपी रहने वाली थी? आखिरकार प्रताप को पता चल ही गया और उसने सौरभ को रूपाली से दूर रहने की हिदायत दी। अब सौरभ प्रताप को कैसे समझाता कि वो तो खुद उस बला से दूर रहना चाहता था। लेकिन वो रूपाली ही थी, जो उसे धमका कर, ब्लैकमेल करके उसका इस्तेमाल कर रही थी। सौरभ ये सब उसे खुलकर नहीं बता पाया। वो अपने और रूपाली के बीच किसी तरह के संबंध होने से इनकार ही करता रहा। उस दिन बार में प्रताप ने सौरभ से यही कहा था कि अगर वो रूपाली से मेलजोल खत्म नहंी करेगा तो प्रताप उनके संबंधों के बारे में पलक को बता देगा, जिस पर सौरभ भड़क उठा था।’’

"ओह।"

''सौरभ ने शुरूआत में जब उस रात-जिस रात प्रताप का कत्ल हुआ था-बिल्डिंग में रूपाली से मिलने जाने की बात कबूल की थी, तब भी उसने मुझे पूरा सच नहीं बताया था। बल्कि उसे पूरा सच पता ही नहीं था। वो रूपाली पर शक भी नहीं कर सकता था कि प्रताप के कत्ल में उसका हाथ हो सकता था। आखिर रूपाली प्रताप की बहन थी। इसीलिए उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि इस फ्लैट में उसकी और रूपाली की उस गुप्त मुलाकात में रूपाली पूरे समय उसके साथ नहीं थी। इनके और सौरभ के मीटिंग सेशंस बेहद गुप्त होते थे। क्योंकि खुलेआम लोग सौरभ को बार-बार इनके फ्लैट में आते-जाते देखते तो इनकी संभ्रांत छवि दागदार हो जाती। प्रताप के कत्ल की रात भी सौरभ इनके कहने पर ही रात को साढ़े नौ बजे सनशाइन अपार्टमेंट गया था। बिल्डिंग का पिछला दरवाजा आम तौर पर बंद रहता था लेकिन जब इन्हें सहूलियत चाहिए होती थी तो ऐसी खास तौर के लिए खुल भी जाया करता था। दस बजे के करीब ये सौरभ को कमरे में ही छोड़कर खामोशी से दूसरी मंजिल पर पहुंची, जहां इन्होंने प्रताप के फ्लैट में पहुंचकर उसे शूट कर दिया और उतनी ही खामोशी से वापस ऊपर अपने फ्लैट में सौरभ के पास आ गई। उस समय इन्होंने सौरभ से बाहर बालकनी में जाने का बहाना बनाया था और सौरभ को फ्लैट में ही रहने के लिए कहा था। वापस लौटने के बाद इन्होंने सौरभ को दस हजार रूपए ये कहकर दिए कि वो उन पैसों को प्रताप को दे दे। प्रताप आजकल पैसों की बड़ी परेशानी में चल रहा है और ये उसकी मदद करना चाहती है। प्रताप को पैसों की तंगी रहती थी, ये बात तो सौरभ जानता ही था। और एक बहन के लिए अपने भाई की पैसों से मदद करने में तो कोई हैरानी की बात है ही नहीं। रूपाली ने सौरभ को वो पैसे प्रताप को तुरंत देने के लिए नहीं कहा था-क्योंकि वैसा करने पर सौरभ को बाद में शक हो सकता था या वो बात पुलिस की ही नोटिस में आ सकती थी-लेकिन वो जानती थी कि जब प्रताप का फ्लैट रास्ते में ही पड़ता है तो सौरभ उसे पैसे देते हुए ही जाएगा।’’

''जो कि उसने किया भी।’’

''बिल्कुल किया। रूपाली ने सौरभ को बहकावे में लेने के लिए दो तरह की पट्टी पढ़ाई। एक तो उसने उसके दिमाग में ये भरा कि प्रताप को पैसों की ज्यादा जरूरत थी। यानि वो ये सुनिश्चित करना चाहती थी कि जो पैसे वो प्रताप की मदद करने के नाम पर उसे दे रही थी, वो वापस लौटते समय सौरभ उसके बिना कहे ही खुद से ही प्रताप को देने उसके फ्लैट पर पहुंच जाए। क्योंकि वो चाहती थी कि सौरभ को घटनास्थल के आसपास देखा जाता। उसकी ये मंशा पूरी भी हुई। इसके अलावा इन्होंने दूसरी पट्टी सौरभ को ये पढ़ाई कि इन्हें बार में सौरभ और प्रताप के बीच हुई लड़ाई की खबर थी। और उस बात को लेकर ये सौरभ से बेहद नाराज थी। जबकि हकीकत इसके ठीक उलट थी। इसे घंटा भी फर्क नहीं पड़ता था कि सौरभ की प्रताप के साथ मारपीट हुई थी। इनकी बला से सौरभ प्रताप को जान से भी मार देता, तब भी इन्हें कोई फर्क नहीं पडऩे वाला था। बल्कि इनके लिए तो ये राहत वाली बात ही होती। क्योंकि उस स्थिति में इन्हें अपने भाई को मारने के लिए इतनी लंबी-चौड़ी साजिश नहीं करनी पड़ती। रूपाली ने ये बात ठोंककर सौरभ के दिमाग में भर दी कि सौरभ ने बार में खुलेआम प्रताप को जान से मारने की धमकी दी थी, जो कि बहुत बड़ी बात थी। यहां भी इनकी साजिश कामयाब रही और सौरभ फ्लैट में प्रताप की लाश देखने के बाद पुलिस को सूचित करने की जगह रूपाली को बताने के लिए वापस ऊपर पहुंचा। क्योंकि इस बिल्डिंग में वो प्रताप के अलावा इन्हें ही जानता था। सौरभ ने जब इन्हें प्रताप के फ्लैट में उसकी लाश मिलने की बात बताई तो इन्होंने पहले सौरभ पर ही शक करके दिखाया। इन्होंने ऐसा जताया कि सौरभ ने ही क्लब में प्रताप का खून होने की अपनी धमकी को पूरा कर दिखाया था। सौरभ ने जब कहा कि वो खून कैसे कर सकता है? वो तो ऊपर फ्लैट पर इनके साथ था। तो इन्होंने उस पर आरोप लगाया कि जरूर वो पहले दूसरी मंजिल पर प्रताप का खून करने के बाद पांचवी मंजिल पर इनसे मिलने आया होगा और अब फ्लैट में लाश को पहली बार देखने का नाटक कर रहा है।’’

''और सौरभ इनके झांसे में आ गया?’’

''आता कैसेे नहीं? वो तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि एक बहन अपने भाई का कत्ल कर सकती थी। वो तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि उसे एक सोची-समझी साजिश के तहत फंसाया जा रहा था। वो संयोग से ही प्रताप के फ्लैट में उसकी लाश बरामद करने नहीं पहुंच गया था। रूपाली ने सौरभ को मानसिक रूप से दबाव में लेने के लिए इतना लंबा-चौड़ा ड्रामा किया था, भूमिका तैयार की थी। आखिर उसका कुछ तो फल मिलना ही था। सौरभ इनके दबाव में तो हमेशा से ही था। तो शायद ये कहना ज्यादा सही होगा कि पूरा ड्रामा ये सौरभ का पूरी तरह ब्रेनवॉश करने के लिए कर रही थी। जिससे सौरभ वो सब करता जाए, जो ये उससे कराना चाहती थी। और एक पल के लिए भी इनके बारे में गलत नहीं सोच पाए।’’

''इन्होंने जब सौरभ पर प्रताप का खून करने का आरोप लगाया, उसके बाद सौरभ ने क्या किया?’’

''सौरभ ने जब इनके सामने दुहाई दी, कसमें खाईं कि उसने प्रताप का खून नहीं किया, वो कर ही नहीं सकता था, तब इन्होंने उसके दिमाग में ये भरना शुरू किया कि ये तो एक बार को उसकी बात का यकीन कर भी लेगी। लेकिन पुलिस किसी हालत में नहीं करने वाली। इन्होंने सौरभ को इतना डरा दिया कि सौरभ ने पुलिस के पास जाने की बात तो बिल्कुल ही दिमाग से निकाल दी, इसके अलावा इस बात को लेकर भी दृढ़ निश्चय कर लिया कि पुलिस को सच नहीं बताएगा। बताता भी कैसे? सच में बताने लायक था ही क्या? अपने और इनके अवैध संबंधों के बारे में बताता तो वो भी उसका एक नकारात्मक पहलू ही पुलिस के सामने उजागर होता। उस बात को दुनिया से छिपाने के लिए ही तो वो इनसे ब्लैकमेल होने के लिए तैयार हुआ था। रूपाली का ये भी कहना था कि अगर जांच में उनके अवैध संबंधों की बात सामने आई तो ये पुलिस को ये भी बता देगी कि सौरभ पहले मेल एस्कॉर्ट के रूप में काम करता था। ऐसे में सौरभ पुलिस को और भी ज्यादा शेडी कैरेक्टर लगने लगता। पुलिस यही समझती कि जो शख्स मेल एस्कॉर्ट का काम करता था, मरने वाले की बहन से जिसके अवैध ताल्लुकात थे, उसके लिए खून कर देना क्या बड़ी बात थी? ऊपर से रूपाली ये भी शो करके दिखा रही थी कि उसे खुद भी सौरभ पर पूरा भरोसा नहीं था कि उसने प्रताप का खून नहीं किया है। उसने ये बात भी सौरभ के दिमाग में बिठा दी कि जब उसे सौरभ के निर्दोष होने का यकीन नहीं हो पा रहा था तो पुलिस तो किसी हालत में नहीं करने वाली थी। इसलिए सौरभ की भलाई इसी में थी कि वो चुपचाप वहां से गायब हो जाए। और किसी भी हालत में ये न कबूले कि वो बिल्डिंग या फ्लैट के आसपास भी देखा गया था। रूपाली के जाल में फंस कर बेबस हो चुके सौरभ ने वही किया।’’

''वो इनके जाल में इस तरह फंस गया था’’-प्रधान ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा-''जैसे मकड़ी का शिकार उसके जाले में फंस जाता है।’’

''वो आपकी हर बात को अंधों की तरह मान रहा था।’’-ऋषभ ने रूपाली की ओर देखा-''लेकिन एक बात न मानकर उसने समझदारी दिखाई।’’

''कौन-सी बात?’’-पलक ने पूछा।

''इन्होंने सौरभ को जो पैसे प्रताप को देने के लिए दिए थे, उन्हें लेकर कहीं दूर भाग जाने के लिए कहा था। इन्होंने कहा था कि पुलिस उस पर-यानि सौरभ पर-हर हाल में शक करेगी और उसे छोडऩे वाली नहीं है। इसलिए सौरभ की भलाई इसी में है कि वो यहां से भाग जाए। अगर सौरभ इनकी बाकी बातों की तरह ये बात भी मान जाता, फिर तो इनकी योजना पूरी तरह कामयाब हो जाती। फरार होकर वो एक तरह से खुद को अपराधी साबित कर देता। फिर वो पकड़ा जाता या नहीं, इन पर कोई शक नहीं करने वाला था।’’

''मैंने उस हरामजादे से साफ कहा था’’-रूपाली किसी नागिन की तरह फुंफकारी-''कि पैसे लेकर यहां से दूर चला जाए। लेकिन उसे तो यहीं मरना था।’’

''उसने ठीक किया। वो एक अच्छा इंसान है। भगवान से डरने वाला। सही-गलत को मानने वाला। आप जैसी कुटिल औरत के जाल में फंसे होने के कारण भले ही उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था लेकिन फिर भी उस रात उसने एक बड़ा-बहुत बड़ा और इस पूरे केस में उसे बचाने में महत्त्वपूर्ण साबित होने वाला-फैसला लिया। फैसला था कानून से नहीं भागने का। फैसला था यहीं रूककर जो होने वाला था, उसका सामना करने का। और उसका ये फैसला आखिरकार सही साबित हुआ। शुरू में उसे जरूर मुश्किल का सामना करना पड़ा, जेल जाना पड़ा, बदनामी सहनी पड़ी, लेकिन वो तो शायद ईश्वर उसकी परीक्षा ले रहा था। आखिरकार सोना आग में तपकर कुंदर बनकर निकला। उसे एक साथ दो बड़ी मुसीबतों से छुटकारा मिल गया। आपने उसे हत्या के जिस झूठे इल्जाम में फंसाया था, वो उसके सिर पर से हट गया।’’

''दो बड़ी मुसीबतों से छुटकारा?’’-पलक ने पूछा-''दूसरी कौन सी?’’

''सौरभ की दूसरी बड़ी मुसीबत हमारे सामने साकार रूप में बैठी हुई है। जिन्हें इस शहर के लोग रूपाली माधवन के नाम से जानते हैं। इन्होंने ही उसे वापस पाप के रास्ते पर घसीटा था। और तब तक घसीटती रहीं, जब तक इन्हें अपना मन बहलाने के लिए दूसरा साथी नहीं मिल गया। हालांकि वो दूसरा साथी भी इनकी तरह ही एक नम्बर का गिरा हुआ, घटिया इंसान और खूनी निकला।’’

''वो जो जेल में सौरभ पर हमला हुआ...।’’

''वो भी इन्होंने ही करवाया था। सौरभ पर हमला करने वाले कैदी पर पहले ही कई खून के इल्जाम हैं। जेल में वो एक और कर देता, तब उसे कोई दो बार फांसी पर चढ़ाने वाला नहीं था। वो कैदी अस्पताल में होश में आने के बाद पुलिस के सामने ये कबूल कर चुका है कि उससे बाहर से किसी ने कॉन्टैक्ट किया था, पांच लाख रूपयों में सौरभ को जेल में ही हमेशा के लिए खामोश कर देने का सौदा तय हुआ था। पैसे देने वाली यहीं थीं, ये भी जल्द ही साबित हो जाएगा। क्योंकि सौरभ को मारने में केवल इन्हीं की दिलचस्पी हो सकती है। शुरू में तो वो इनके इशारों पर चलता रहा। लेकिन कभी भी वो इनके बताए रास्ते पर चलना छोड़ सकता था। वैसा होने पर इनके लिए मुश्किलें बढ़ जानी थीं। सौरभ के खून में इनका कोई हाथ न लगे, इसलिए उस पर हमला करने वाले कैदी को भी खासतौर पर हिदायत दी गई थी कि सौरभ पर हमले की घटना ऐसी लगनी चाहिए, जैसे वो कैदियों के बीच झगड़े की ही बात हो। आज मैं सौरभ से मिलने जेल में गया था। इसके अलावा गांव में इनकी ननद श्वेता से पहले ही मिल चुका था। सौरभ के भेजे में ये बात घुस ही नहीं रही थी कि एक बहन भी अपने ही भाई की कातिल हो सकती है। इसीलिए इनकी बात मानते हुए उसने पहले तो उसने प्रताप की हत्या के समय सनशाइन अपार्टमेंट्स में होने की बात लगातार सबसे छिपाई। यहां तक कि पलक से भी, जो कि उसका भला चाहते हुए मेरे खिलाफ भी हो गई थी। बाद में जब मैं जेल में उससे पहली बार मिला, तब भी उसने मुझे पूरा सच नहीं बताया। सिर्फ इनके साथ अपने संबंधों के कारण अपार्टमेंट्स में उपस्थिति की बात स्वीकार की। आज मेरे जोर देने पर उसने मुझे पूरा सच बताया, जो कि मैं आप सबको बता चुका हूं।’’

''अपने ही भाई का खून कर दिया?’’-पलक ने कहा-''कैसी औरत हो तुम?’’

रूपाली ने कोई जवाब नहीं दिया।

''जो शख्स तुमसे जायदाद में हिस्सा मांग रहा था’’-प्रधान ने कहा-''उसकी जगह तुमने उस शख्स की जान ले ली, जो सिर्फ तुमसे उसे हिस्सा देने के लिए सिफारिश कर रहा था? वो भी तुम्हारा अपना भाई?’’

रूपाली ने चेहरा अपने हाथों में छिपा लिया और सुबकने लगी।

''प्रताप श्वेता को उसका हिस्सा दिलाने के लिए किसी भी हद तक जाने पर उतारू था।’’-वो सुबकते हुए ही बोली-''श्वेता थोड़ी कमअक्ल लड़की थी। उससे निबटने के लिए मुझे उसे मारने की कोई जरूरत नहीं थी। मैं उसे लगातार धोखा देती आ रही थी। उसकी मां से तो मैंने जायदाद के कागजातों पर साइन तक करवा लिए थे। श्वेता भी जब-जब अपने हिस्से की भीख मांगते हुए यहां मेरे पास आती थी मैं उसे कभी कुछ पैसे देकर, तो कभी बिना कुछ दिए कुत्ते की तरह दुत्कार कर भगा दिया करती थी। लेकिन प्रताप अचानक बीच में आकर सब कुछ गड़बड़ कर देने पर उतारू था। प्रताप और श्वेता का मिलना तो जैसे मेरे लिए मुसीबत बन गया था। प्रताप ने जब देख लिया कि उसके कई बार बोलने और समझाने पर भी मैं श्वेता को विपुल की जायदाद में से उसका हिस्सा देने के लिए तैयार नहीं थी तो उसने मुझे सीधे शब्दों में धमकी दी थी। उसने कहा था कि वो मुझे एक मजबूर लड़की के साथ नाइंसाफी नहीं करने देगा। वो भी ऐसी लड़की, जो मेरी रिश्तेदार थी। वो कहता था कि मुझे तो खुद अपनी मर्जी से श्वेता को उसका हिस्सा दे देना चाहिए था। प्रताप ने कहा था कि जल्द ही वो श्वेता के साथ मिलकर किसी बड़े वकील को हायर करेगा और कोर्ट में मेरे खिलाफ केस करेगा। श्वेता को उसका हक दिलवाकर रहेगा। मुझे जेल की चक्की पिसवा देगा। मैं उस बात से पागल हो गई थी। एक तो मुझे अपने हाथों से करोड़ों की जायदाद का आधा हिस्सा जाता दिख रहा था। दूसरे, मेरा भाई, जिसे मेरे साथ खड़ा होना चाहिए था, जो जिंदगी में दूसरे मौकों पर तो मेरे साथ कभी खड़ा नहीं हुआ, जब मुझे उसकी जरूरत पड़ी। लेकिन मेरे खिलाफ, मेरी दुश्मन के साथ खड़ा हो रहा था। उसी दिन मैंने ठान लिया था कि प्रताप को उसकी करनी का फल भुगतना होगा।’’

''इसीलिए जब आप कमलकांत को उसकी बुरी हालत करने की धमकी दे रहीं थीं’’-ऋषभ ने रूपाली से कहा-''तब मैंने कहा था मुझे आपकी बात का भरोसा है। क्योंकि जब आप सौरभ के साथ वो सब करतीं थीं, जिसने कभी आपका कोई बुरा नहीं किया, उल्टे आप से दूर ही रहने की कोशिश की, अपने भाई का खून कर दिया, तो कमलकांत के साथ-जिसने आपको धोखा देने की कोशिश की-तो आप जो न कर दें, वो थोड़ा है।’’

''मैं शुरू से जानती थी।’’-पलक ने कहा-''सौरभ बेगुनाह था।’’

''बेगुनाह गुनहगार।’’-ऋषभ ने कहा।

''क्या?’’-पलक नेउसकी ओर देखा।

''सौरभ गुनहगार था।’’-ऋषभ ने कहा-''लेकिन उस गुनाह का नहीं, जिसका गुनहगार होने का उस पर इल्जाम लगाया जा रहा था। सौरभ का गुनाह ये था कि उसने उसके साथ अच्छा बनकर दिखाया, जो उसके साथ लगातार बुरा करती आ रही थी। उसे विनाश की ओर धकेल रही थी। अपने स्याह अतीत से पीछा छुड़ाने और नई, सम्मान की जिंदगी जीने के सपने देख रहे सौरभ पर इन्होंने ऐसा मानसिक दबाव बनाया कि वो उसके हाथों की कठपुतली बनकर रह गया। जो-जो ये कहती गईं, वो उसे मानता गया। उसे अहसास तक नहीं हो रहा था कि वो एक मकड़ी के जाले में फंस कर धीरे-धीरे अपनी बर्बादी की ओर बढ़ रहा है। और शायद अहसास होने पर भी उसके खिलाफ कुछ भी कर पाना अकेले उसके लिए संभव नहीं था। अगर वो इनकी असलयित सबके सामने लाने की कोशिश भी करता, इनकी बात न मानकर, इनकी ब्लैकमेलिंग, मानसिक दबाव, हर चाल से बचकर निकलते हुए पुलिस को उस रात जो कुछ हुआ था, सब सच-सच बता भी देता-जिसकी कि संभावना बेहद कम थी-तब भी ये बड़ी आसानी से उसे झूठा साबित कर देती। पुलिस के सामने कह देती कि ये सौरभ को जानती तक नहीं थी। वो इनका चरित्र हनन करने की कोशिश कर रहा था। इन पर, समाज में प्रतिष्ठित अकेली रह रही एक बेचारी विधवा औरत पर कीचड़ उछाल रहा था। जब ये आंसू बहा-बहाकर ऐसा कहतीं, तो सब इनका विश्वास करते।’’

कुछ पल कमरे में सन्नाटा छाया रहा।

''आप कह रहीं थीं आपको अपने वकील से बात करनी है?’’-फिर प्रधान रूपाली की ओर घूमते हुए बोला।

''हां।’’-रूपाली के कंठ से फंसी हुई सी आवाज निकली।

''सारे शहर के वकीलों को बुला लीजिए। देखते हैं, अब आपको कौन बचाता है?’’

रूपाली को गिरफ्तार किया जा चुका था।

रूपाली ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया था।

पलक, निरंजन, ऋषभ और इंस्पैक्टर प्रधान पुलिस स्टेशन में मौजूद थे।

''खून भी खुद किया।’’-प्रधान ने कहा-''और फिर खुद ही लाश बरामद करने का नाटक भी किया। ऐसा तो बहुत कम ही मामलों में होता है।’’

''रूपाली ने लाश बरामद करने का नाटक किया"-ऋषभ ने कहा-"जबकि लाश को लाश बनाने वाली वो खुद थी। ऐसा उसने इसलिए किया क्योंकि वो अपने ऊपर से पुलिस का शक बिल्कुल हटा देना चाहती थी। जब लाश को बरामद ही वो खुद कर रही थी, तो पुलिस उस पर शक कैसे करती? कातिल कत्ल करने के बाद लाश के बगल में खड़े होकर उसे बरामद करने की हिम्मत कैसे करेगा? ऐसा कोई कातिल तभी कर सकता है, जब वो रूपाली जैसा धूर्त और चालाक हो, उसने वो कत्ल एक सोची-समझी योजना के तहत किया हो, और कत्ल के इल्जाम में फंसाने के लिए उसने कोई और मुर्गा तैयार कर रखा हो। जैसा कि इस मामले में रूपाली ने सौरभ को तैयार किया हुआ था।’’

''गन पर सौरभ की उंगलियों के निशान कैसे आए?’’

''घटना के दो दिन पहले ही रूपाली ने सौरभ के साथ अपने अंतरंग सेशन के दौरान उसे किसी खाने-पीने की चीज में नींद की दवाई मिलाकर दी थी। सौरभ ने ही बताया था कि वो रूपाली के घर में कभी नहीं सोया। रूपाली से छुट्टी मिलते ही वो वापस अपने घर चला जाता था। लेकिन उस रात उसे ऐसी नींद आई कि कुछ होश ही नहीं रहा। उस रात सौरभ ने रूपाली के जिद करने पर थोड़ी-सी बीयर पी थी, जिसके बाद उसे सिर भारी लगने लगा था और उसके बैडरूम में ही नींद आ गई थी। रूपाली ने उसी दौरान गन पर उसकी उंगलियों के निशान ले लिए होगें। फिर प्रताप के खून के बाद उस गन को मौका पाकर बिल्डिंग के पिछले दरवाजे के पास कबाड़ रखने वाली जगह में डाल दिया, जिससे गन वहां से बरामद हो जाए और पुलिस को सौरभ के उंगलियों के निशान उस पर से मिल जाएं।’’

''तुमने सौरभ को अपार्टमेंट्स के पिछलेे दरवाजे से बाहर आते हुए देखा था’’-निरंजन ने कहा-''यानि एक तरह से तुम्हारी गवाही रूपाली के हक में ही साबित हुई।’’

''गवाही ही उसके हक में साबित हुई।’’-प्रधान ने कहा-''ये तो बिल्कुल भी उसके हक में साबित नहीं हुए।’’

''रूपाली का उद्देश्य सौरभ को प्रताप के खून के जुर्म में फंसाना ही था।-ऋषभ ने कहा-अगर मैं संयोग से सौरभ को बिल्डिंग के पिछले गेट से निकलते नहीं देखता, तब भी वो सौरभ की बिल्डिंग में मौजूदगी की बात को किसी न किसी तरह पुलिस की जानकारी में लाने ही वाली थी। वो तो संयोग से मैं खुद उसके बाहर निकलने का गवाह बन गया तो रूपाली को घटना के समय सौरभ की बिल्डिंग में उपस्थिति साबित करने के लिए अलग से मेहनत नहीं करनी पड़ी।’’

''प्रताप श्वेता को न्याय दिलाना चाहता था?’’-निरंजन ने कहा-''उसका हक दिलाना चाहता था? ये बात कुछ हजम नहीं हुई। तुम्हारी जमीन पर कब्जा करने के लिए केस तो लड़ रहा था वो।’’

''कोर्ट में चल रहे केस के दौरान मेरी प्रताप से बहुत कम ही मुलाकात हुई थी। वो केस को लेकर काफी उदासीन लगता था। और ये भी हम लोगों के केस जीत जाने की असल में बड़ी वजह थी। प्रताप असल में उतना बुरा इंसान नहीं था, जितना बुरा उसे दर्शाया जाता था। लेकिन उसके बाप और बहन के कर्मों ने उसेे बदनाम कर रखा था। हमारे स्टूडियो की जमीन पर कब्जे का केस भी वो रूपाली के दबाव में लड़ रहा था। रूपाली उस जमीन पर कब्जा करना चाहती थी। प्रताप का ऐसा करने का कभी कोई इरादा नहीं था। वहीं रूपाली लाखों की जमीन को इतनी आसानी से हाथ से निकलने देने के लिए तैयार नहीं थी। वो प्रताप को हमेशा यही कहकर ताने मारती थी कि वो और किसी काम का तो साबित नहीं हुआ। कम-से-कम अपने पिता की जमीन को ही हम लोगों से छुड़वा ले। प्रताप उससे यहां तक कह देता था कि उसे जमीन में इतनी ही दिलचस्पी थी तो वो खुद केस क्यों नहीं लड़ लेती? उस पर भी रूपाली उसे पट्टी पढ़ाती थी कि औरत होने के कारण उसका कोर्ट के चक्कर काटना ठीक नहीं है। वो उस पर भी प्रताप को ताने मारती थी कि उसके होते हुए उसे कोर्ट के चक्कर काटने पड़ेंगें तो क्या ये सही होगा? वो उसे ये सपने भी दिखाती थी कि जमीन मिल जाती है तो उसे बेचकर जो पैसे मिलेंगें, उससे प्रताप की जिंदगी संवर सकती थी। क्योंकि प्रताप की आर्थिक स्थिति वैसे ही खराब रहती थी। औरतों का 'तुम्हारे भले के लिए ही कह रही हूं’ वाला फेमस डायलॉग मारकर वो केस लडऩे के लिए, बुरा बनने के लिए प्रताप को फं्रट पर भेज देती थी।’’

''मतलब काम हो रहा था रूपाली का। और दुनिया के सामने बुरा बन रहा था प्रताप।’’

ऋषभ ने सहमति में सिर हिलाया।

''मैं तो सोचती हूं वो कैसी बहन थी?-पलक ने कहा-''यकीन नहीं होता। कोई बहन अपने भाई के साथ इतना बुरा कर सकती है। अपने ही भाई का खून कर सकती है।’’

''बहनें ऐसी नहीं होतीं।’’-ऋषभ ने कहा-''बहनों का दर्जा बहुत ऊंचा होता है। मां के बाद सबसे ज्यादा प्यार करने वाली कोई होती है तो वो बहन ही होती है। लेकिन सब एक जैसे नहंी होते। सौ-हजार में एक-आध खराब निकल ही जाता है। रूपाली माधवन भी भाई को जान से भी ज्यादा चाहने वाली बहनों के मामले में अपवाद थी। और बहुत भयंकर अपवाद थी। उसने प्रताप की जिंदगी नर्क बनाने में अपनी भूमिका बखूबी निभाई। और जब प्रताप उसे अपने लिए खतरा बनता नजर आया, अपने रास्ते का रोड़ा बनता नजर आया, तो उसे रास्ते से हटाने में एक पल भी नहीं लगाया। अपने मां जाये भाई को शूट करते समय एक पल के लिए भी उसके हाथ नहीं कांपे।’’

''मेरे लिए भी ये हजम करना बहुत मुश्किल है’’-निरंजन ने कहा-''कि एक बहन अपने ही भाई का खून कर सकती है।’’

''नहीं कर सकती। अगर वो रूपाली जैसी न हो तो। रूपाली एक बेहद स्वार्थी औरत है। उसके लिए रिश्ते कोई मायने नहीं रखते। मायने रखता है तो सिर्फ उसका स्वार्थ। उसकी दौलत की हवस। उसने अपने स्याह अतीत को भुलाकर अच्छी जिंदगी अपनाने की कोशिश कर रहे एक युवक को वापस उसी गर्त में धकेलने की कोशिश की। कोशिश क्या की, धकेल ही दिया। और उतने पर भी उसका मन नहीं भरा तो उसे कत्ल के इल्जाम में फंसा दिया। वैसे जो औरत अपने भाई का खून कर सकती थी, वो किसी दूसरे आदमी के साथ तो जो न कर देती, कम था।’’

''चलो’’-प्रधान ने गहरी सांस लेते हुए कहा-''सौरभ को जेल से छुड़ाने की कागजी कार्यवाही भी पूरी करनी है। बेचारे को जेल में बहुत तकलीफ सहनी पड़ी।’’

''जिस तरह सौरभ ने रूपाली की बात न मानकर शहर छोड़कर नहीं जाने का फैसला किया और यहीं रूकने की हिम्मत दिखाई, उसी तरह अगर वो थोड़ी और हिम्मत कर लेता, अगर वो उस रात जो कुछ हुआ था, वो सब सच-सच पुलिस को बता देता, तो शायद उसे उतनी तकलीफ भी नहीं सहनी पड़ती, जितनी उसने सही। लेकिन रूपाली का जादू ही कुछ ऐसा था। उसने सौरभ को पूरी तरह अपने दबाव में ले रखा था। उसके दिमाग में ठूंस-ठूंस कर इस बात को भर दिया था कि लोग उसी पर कातिल होने का शक करते। इसलिए उसकी भलाई इसी में है कि वो प्रताप के कत्ल की रात बिल्डिंग में होने की बात को कबूल ही न करे। जो कि उसने किया भी। शहर छोड़कर नहीं जाने का फैसला भी शायद रूपाली से अलग रहकर, घर में शांति से सोचने पर ही उसने लिया होगा। वरना इस दौरान अगर रूपाली का उससे सम्पर्क हो जाता या किसी तरह रूपाली को पता चल जाता कि शहर छोड़कर नहीं जा रहा है तो वो फिर कोई न कोई चाल चलकर उसे शहर से जाने पर मजबूर कर देती। या उसके लिए कोई और मुसीबत खड़ी कर देती।’’

''सही बात है।’’-निरंजन ने सहमति में सिर हिलाया।

''एनीवे’’-प्रधान ने ऋषभ की ओर हाथ बढ़ाया-''तुमने इस केस को हल करने में असाधारण योग्यता का परिचय दिया है। मैं इसके लिए तुम्हारी दाद देता हूं। कल के अखबारों में कातिल के पकड़े जाने की पूरी कहानी के साथ ही हर ओर तुम्हारा ही नाम छाया होगा। मैं तुम्हें इस काम के लिए विभाग से कोई ईनाम दिलवाने की भी अनुशंसा करूंगा।’’

ऋषभ ने भी उससे हाथ मिलाया।

''धन्यवाद इंस्पैक्टर साहब।’’-वो बोला-''लेकिन इस मामले में मेरा नाम उछाले जाने की कोई जरूरत नहीं है।’’

''क्यों?’’-प्रधान की भृकुटियां तनीं।

''मैंने केस हल करने में सहयोग भले ही किया हो, लेकिन केस आपका था। इसके इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर आप हैं। अगर आप मुझे हीरो बनाते हैं तो मुझे थोड़ा-बहुत नाम और वाहवाही जरूर मिल जाएगी लेकिन उससे मुझे कोई विशेष फायदा नहीं होगा। केस को हल करने के हीरो बनने का वास्तविक फायदा आपको ही मिल सकता है। और आप ही को मिलना चाहिए। पुलिस में मेरा कोई सर्विस रिकॉर्ड नहीं है। आपका है। मैंने जो कुछ भी जानकारी दी, मुझे जो कुछ भी पता चला, वो सब समझिए आप ही को पता चला। ये केस आपने ही हल किया है। बधाई कबूल कीजिए।’’

पलक ने भी हैरानी से ऋषभ की ओर देखा।

''लेकिन मैं किसी और के काम का क्रेडिट कैसे ले सकता हूं?’’-प्रधान ने कहा।

''क्यों नहीं ले सकते? जब मैं खुशी से आपको क्रेडिट देने के लिए तैयार हूं।’’

''लेकिन फिर भी..।’’-इंस्पैक्टर अब भी हिचकिचा रहा था।

''अभी भी फिर भी? आपने अभी-अभी मुझसे हाथ मिलाया न? इसे हमारी नई-नई शुरू हुई दोस्ती का तोहफा समझकर कबूल करिए।’’

प्रधान कुछ पलों तक उसे देखता रहा, फिर बोला-''चलो ऐसे ही सही। वैसे भी तुम्हारी बात तो माननी ही पड़ेगी। इसे मिलाकर तुम्हारे दो अहसान हो जाएंगें।’’

''दो?’’

''एक निर्दोष को पकड़ रखा था हमने। उसे भी तो तुमने ही छुड़वाया है।’’

''अच्छा। वो। उसे छुड़ाने के लिए ही तो ये सब भागदौड़ करनी पड़ी।’’

पलक का चेहरा जगमगा उठा।

पुलिस स्टेशन से छुट्टी पाने के बाद ऋषभ सीधे स्टूडियो पहुंचा, जहां वो देर तक अपने लैपटॉप पर कुछ टाइप करता रहा।

''सुना है प्रताप के मर्डर केस वाले मामले में कोई तीर मारकर आ रहे हो?’’-विनीत ने कमरे में दाखिल होते हुए कहा।

''श...श...श...।’’-ऋषभ ने उसकी ओर हाथ करके उसे चुप रहने का इशारा किया, फिर उसकी उंगलियां पहले की तरह लैपटॉप के की बोर्ड पर दौडऩे लगीं।

''जब से आया है, पता नहीं क्या पोथी लिखे जा रहा है।’’-विनीत नाक चढ़ाते हुए वापस बाहर वाले रूम की ओर चला गया।

लैपटॉप में अपना काम खत्म करने के बाद ऋषभ ने एक फाइल पलक को मेल की, विनीत से कहा कि वो न्यूज वन के ऑफिस जा रहा है। वहां से सीधा घर जाएगा।

फिर वो अखबार के दफ्तर पहुंचा।

''मेल चैक करो।’’-उसने पलक के सामने कुर्सी पर पसरते हुए कहा।

पलक ने ऑफिस के कम्प्यूटर पर ई मेल ओपन किए और ऋषभ के भेजे ई मेल को पढ़ा।

''ये तुमने लिखा है?’’-पूरी न्यूज पढऩे के बाद पलक ने विस्मित भाव से ऋषभ की ओर देखा।

ऋषभ मुस्कुराया। फिर उसने बड़ी शाइस्तगी से सिर सहमति में हिला दिया।

''वाओ।’’-पलक के मुंह से निकला-''यकीन नहीं होता। ये तो किसी प्रोफेशनल का काम लग रहा है।’’

''अखबार में छपने लायक है या नहीं?’’

''फ्रंट पेज पर छपने लायक है। इसे मैं पापा को दिखाऊंगीं तो वो तो तुम्हारे पीछे ही पड़ जाएंगें।’’

''पीछे पड़ जाएंगें? वो किसलिए?’’

''वो तुम्हारी लाई फोटुओं से ही इतने खुश रहते हैं कि फोटोग्राफी का जिक्र आने पर तुम्हारी तारीफों के पुल बांधने शुरू कर देते हैं। अखबार में काम करने वाले फोटोग्राफर्स को लताडऩे लगते हैं। जब वे देखेंगें कि तुम इतनी बढिय़ा न्यूज भी तैयार कर सकते हो, तब तो वो तुम्हे बक्से में बंद करके अपने ऑफिस में ही रख लेंगें और तब तक बक्सा नहीं खोलेंगेें, जब तक तुम अखबार में काम करने के लिए हां नहीं कर देते।’’

''इतना हाइपर होने की कोई जरूरत नहीं है।’’-ऋषभ ने हंसते हुए कहा-''खबर मैंने तैयार जरूर की है। लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम इसे अपने नाम से छपवाओ।’’

''मेरे नाम से? वो भला क्यों?’’

''ऐसे ही।’’-ऋषभ ने कंधे उचका दिए-''वैसे भी, अभी तुमने ही कहा न, तुम्हें खबर पसंद आई। तो तुम्हें अपने नाम से अखबार में छपवाने से गुरेज नहीं होना चाहिए।’’

''यानि तुम्हें शोहरत भी नहीं चाहिए।’’

''मैं अपनी खबर को अखबार में देखकर ही खुश हो जाऊंगा।’’

''भले ही उस पर नाम किसी और का रहे?’’

''किसी और का नहीं, तुम्हारा।’’

''और इसके बदले में मुझे क्या करना होगा?’’

''कुछ नहीं।’’

''यानि नेकी कर दरिया में डाल? जैसे तुमने इस केस को सॉल्व करने का सारा क्रेडिट इंस्पैक्टर को दे दिया।’’

''ऐसा ही समझ लो।’’

''तो सुनिए, मिस्टर रॉबिन हुड, ये खबर अखबार में छपेगी, फ्रंट पेज पर छपेगी, और आप ही के नाम से छपेगी।’’

''लेकिन...।’’

''लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। हमारे अखबार में ये सब नहीं होता। और जहां तक रही मेरी बात, तो मेरे लिए तुमने पहले ही बहुूत कुछ किया है। हमेशा किया है। और सौरभ वाले मामले के बाद तो मैं खुद को तुम्हारे अहसानों तले दबा हुआ महसूस कर रही हूं।’’

''फिजूल की बात मत करो...।’’

''तुम्हें ये फिजूल की बात लग सकती है लेकिन मेरे लिए हकीकत है। मैं तुम्हारी कर्जदार हूं। पुराना कर्ज चुका नहीं सकती। और तुम जबर्दस्ती नया कर्ज लादने पर तुले हो। ऐसा नहीं होने वाला। मैं अभी ये न्यूज लेकर पापा के पास जाती हूं और उनसे बात करती हूं। इतनी अच्छी न्यूज तैयार करने के लिए एक बार फिर बधाई।’’

कहकर वो कागज लेकर दरवाजे की ओर बढ़ी।

जाते-जाते वो दरवाजे पर ही रूकी, पलटी और बोली-''और सौरभ के लिए, मेरे लिए तुमने जो कुछ भी किया, उसके लिए एक बार फिर थैंक्स।’’

कहकर वो दरवाजा खोलकर एडीटर रूम में चली गई।

पीछे ऋषभ ये सोचता हुआ अकेला खाली कमरे में बैठा रह गया कि वो उससे कभी अपने दिल की बात कह भी पाएगा या नहीं?

समाप्त