वो सब इकट्ठे ही सड़क के किनारे आगे बढ़े जा रहे थे। नजरें इधर-उधर फिर रही थीं। उनकी सोचों में सिर्फ यही बात थी कि शैतान के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी कैसे पाई जाये?

“मेरा तो ख्याल था कि जार्ज के साथ जाकर शैतान को देखने का मौका मिलेगा।” मोना चौधरी आगे बढ़ते हुए कह उठी-“लेकिन वो सामने नहीं आया।”

“शैतान तो किसी के सामने भी नहीं आता होगा।” जगमोहन ने कहा-“वो अपनी परछाई से ही सारे काम चलाता होगा। अपनी मौजूदगी का एहसास दर्शाता होगा।”

“हमें ऐसा करना चाहिये कि शैतान को हमारे सामने आना पड़े-।” पारसनाथ सपाट-कठोर स्वर में कह उठा।

“शैतान इतना कमजोर नहीं होगा कि आसानी से सामने आ जाये।” महाजन ने कहा।

“खरी बोलो हो तंम।” बांकेलाल राठौर ने सिर हिलाया-“शैतानो आसानी से सामनो न आयो।”

“अपने मकसद में हम तभी सफल हो सकते हैं, जब शैतान तक पहुंच जायें।” सोहनलाल बोला।

“बेहतर होगा कि पहले हम शैतान के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करें।” जगमोहन ने शब्दों को चबाकर कहा-“उसके बारे में कुछ मालूम होगा तो तभी कुछ करने की सोचा जा सकता है।”

“शैतान चुप नई बैठेला बाप।” रुस्तम राव ने गम्भीर स्वर में कहा-“वो भी आपुन लोगों के बारे में पक्का कुछ सोचेला।”

तभी उन्होंने आसमान की तरफ से स्याह धब्बा उभरता देखा। अचानक ही वो दिखा था और वो स्याह धब्बा बड़ा होते हुए इस तरफ ही आने लगा था।

“नीलू! देख तो, ये बादल का टुकड़ा है या चाँद का?”

सब ठिठक गये।

“खतरा बाप-!” कहने के साथ ही वो एक तरफ भागा।

अन्य हक्के-बक्के से रह गये थे।

स्याह धब्बा उनके सिरों पर आ पहुंचा था। उसके करीब आने पर महसूस हुआ कि उसमें से काली रोशनी निकलकर उन पर पड़ रही है। उनके आस-पास ही जगह काली सी नजर आने लगी। उनके कपड़े और चेहरों का रंग भी स्याह जैसा ही दिखने लगा।

दूर आते-जाते लोग और रोशनी सामान्य दिखाई दे रही थी।

“यो का हौवे छोरे-?”

“तेरा छोरा तो भाग गया मूंछों वाले-।” राधा बीस फुट ऊपर मौजूद स्याह धब्बे को देखती कह उठी।

तभी स्याह धब्बे से एक छोटा-सा टुकड़ा अलग हुआ और तेजी से उस तरफ बढ़ा जिधर रुस्तम राव भागा था। सबने देखा रुस्तम राव ने धब्बे के टुकड़े को अपनी तरफ बढ़ते देख लिया था। वो और भी तेज दौड़ने लगा।

“अपणो छोरो बचो न पायो हो-।”

उसी पल धब्बे के टुकड़े की छाया रुस्तम राव पर पड़ी तो वो ठिठक गया।

करीब एक मिनट उस पर छाया पड़ती रही। फिर वो टुकड़ा वापस आकर धब्बे का हिस्सा बन गया और फिर वो स्याह धब्बा दूर होते हुए लुप्त हो गया।

वे स्तब्ध से एक-दूसरे को देख रहे थे।

“गड़बड़ है नीलू-।” राधा के होंठों से निकला।

मोना चौधरी के होंठ भिंचे हुए थे।

जगमोहन बेचैन-सा हुआ पड़ा था।

“यो शैतान ने कोई गड़बड़ करो हो।”

“लेकिन हमें तो कुछ हुआ नहीं।” राधा ने कहा।

“हो जायेगा।” सोहनलाल गम्भीर था-“शैतान की कोई भी हरकत यूं ही नहीं हो सकती।”

“सोहनलाल ठीक कहता है।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर बोली-“यहां पर कोई हरकत खामख्वाह नहीं हो सकती। स्याह धब्बे की छाया हम पर शैतान ने क्यों डाली? इसका जवाब तो शैतान से ही हमें मिल सकता है।”

“शैतान हमारे सवालों का जवाब देने के लिये सामने नहीं आयेगा।” महाजन बोला-“हमें ही जवाब ढूंढना होगा।”

तभी रुस्तम राव पास आ पहुंचा।

“क्या होएला बाप?”

“ठण्ड रखो छोरे। जो हौवे सबो को दिखो।”

वे सब पुनः आगे बढ़ने लगे।

सब सतर्क थे। इस फेर में थे कि शैतान तक पहुंचने का कोई रास्ता मिले।

☐☐☐

ये एक छोटा-सा कमरा था।

कतार में तीन व्यक्ति काले कपड़े पहने सावधानी की मुद्रा में खड़े थे। उनके ठीक सामने दीवार पर एक खास हिस्सा चमक रहा था। तीनों की निगाह उस चमकती दीवार पर थी। वे आपस में कोई बात नहीं कर रहे थे।

मिनट भर इसी तरह बीता कि तभी वो चमकता हिस्सा स्याह पड़ने लगा। ये देखते ही तीनों ने अपनी गर्दन नीचे झुका ली। कुछ क्षण ही बीते होंगे कि शैतान का स्वर उनके कानों में पड़ा।

“सदा शैतानी हरकतों में डूबे रहो मेरे बच्चों। मेरा आशीर्वाद तुम सबके साथ है।”

“शैतान की जय हो।” तीनों ने एक साथ सिर झुकाये कहा।

“खुश रहो।” शैतान का स्वर पुन: वहां गूंजा।

तीनों ने अपना सिर सीधा किया।

चमकती दीवार पर शैतान की परछाई दिखाई दे रही थी।

“शैतान!” एक ने कहा-“हमने मन और मस्तिष्क की भावनाएं जानने के लिये, खास स्याह रंग का उन पर इस्तेमाल किया, परन्तु उनके मन और मस्तिष्क में सिर्फ आपकी ही सोचें हैं।”

“ये कैसे हो सकता है?” शैतान का स्वर गूंजा।

तीनों खामोश खड़े रहे।

“काले महल के भीतर हमारी कोई शक्ति प्रवेश नहीं कर पा रही।” शैतान ने सामान्य स्वर में कहा-“मेरी ही जमीन पर मेरी शक्तियां काम न करें, ये बहुत बड़ी बात है मेरे बच्चों।” शैतान का स्वर उनके कानों में पड़ रहा था-“ऐसे में आसानी से ये सोचा जा सकता है कि काला महल के भीतर कोई बड़ी शक्ति मौजूद है।”

“ऐसा होता तो उनके मन-मस्तिष्क की भावनाओं से ये बात

मालूम हो जाती। स्याह रंग सबके मन की बात जान लेता है। उस रंग में आपकी शक्ति है, परन्तु उनके मन-मस्तिष्क के भीतर ऐसी कोई बात नहीं छिपी, जो महल के भीतर की किसी खास बात का एहसास कराये।”

“इसका तो मतलब ये हुआ कि काला महल में कोई शक्ति मौजूद नहीं है।”

“हां शैतान-।” दूसरा बोला-“स्याह रंग ने ये बात स्पष्ट कर दी है।”

“असम्भव-।” शैतान को स्वर शांत था-“काला महल के भीतर कोई बड़ी शक्ति मौजूद है। तभी तो मेरी शक्तियां भीतर नहीं जा रहीं। मैं महल के भीतर झांक नहीं पा रहा हूं-।”

“तो शैतान, इसका मतलब हम क्या माने कि स्याह रंग ने हमें गलत सूचना दी है।” तीसरे ने कहा।

“स्याह रंग गलत सूचना नहीं दे सकता।” शैतान का स्वर वहां गूंजा-“और मेरी शैतानी शक्तियां भी मुझे गलत संकेत नहीं दे सकतीं। वो बार-बार महल की दीवारों से टकराकर लौट रही हैं।”

तभी कमरे में पीले रंग का प्रकाश बार-बार फैलने और बुझने लगा। जबकि वहां कोई बल्ब या जगमगाने वाली कोई भी वस्तु नजर नहीं आ रही थी।

“देखो-।” शैतान का स्वर गूंजा।

एक पलट कर दरवाजे के पास पहुंचा। दरवाजा खोला।

बाहर काले कपड़े पहने एक व्यक्ति खड़ा था।

“मुझे शैतान से बात करनी है।” उसने कहा-“बहुत जरूरी बात है।”

“आओ, शैतान अभी आया है।”

वो भीतर आया तो दरवाजा बंद कर दिया गया।

“शैतान की जय हो।” दीवार पर दिखाई देने वाली परछाई पर उसने सिर झुकाकर कहा।

“खुश रहो बच्चे। कहो, क्या कहना चाहते हो?” शैतान का स्वर गूंजा।

“बहुत ही परेशान करने वाली बात है शैतान-।”

“मेरे होते हुए तुम में से किसी को भी परेशान होने की बात नहीं है। तुम लोगों की परेशानियां मेरी हैं।”

“शैतान! बहत्तर नम्बर को दो के साथ काला महल भेजा था, कि वो भीतर जाकर देखे, परन्तु महल में प्रवेश करने से पहले ही बहत्तर नम्बर जल कर राख हो गया। उसके साथ के दो पलट कर वापस भागे और मुझे इस बात की खबर दी।”

“ओह-!” शैतान की परछाई के होंठ हिलते नजर आये-“तो मेरा शक सही निकला कि महल के भीतर कोई बड़ी शक्ति मौजूद है। तभी तो वो दूसरी शक्ति को भीतर नहीं आने दे रही।”

वो व्यक्ति कुछ न कह सका।

पहले तीन में से एक कह उठा।

“अगर ऐसा है तो शैतान स्याह रंग ने ये बात क्यों नहीं...।”

“इससे तो एक ही बात समझ में आती है कि मिन्नो और उसके साथ के लोगों को महल में उस बड़ी शक्ति के मौजूद होने की जानकारी नहीं है। तभी तो उनके दिलो-दिमाग पर शक्ति के बारे में कोई विचार मौजूद नहीं है। हैरानी है कि किस शक्ति में इतनी हिम्मत हो गई कि वो इस तरह मेरे आसमान पर आ सके। सच में ये तो हैरान कर देने वाली बात है। तुम लोग अपने-अपने कामों में व्यस्त हो जाओ। मैं अभी मालूम करता हूं कि महल में क्या हो रहा है। कौन-सी शक्ति है वो। खुश रहो बच्चों।” इसके साथ ही चमकती दीवार पर से शैतान की परछाई लुप्त हो गई।

☐☐☐

अंधेरे से भरे कमरे के बीचो-बीच रखे कुण्ड में जाने क्या सुलग रहा था। सुलगने की वो जरा सी रोशनी ही कमरे में फैली थी। कुछ भी स्पष्ट नजर नहीं आ रहा था।

कुंड के पास ही पीठ करके वो साया-सा लगने जैसा व्यक्ति घुटनों के बल बैठा था। उसने काला चोगा पहन रखा था कि जो आसपास फैल रहा था। उसके बाल कमर तक फैले महसूस हो रहे थे। अंधेरे से भरे वातावरण में उसके बड़े-बड़े कानों की झलक सी मिल रही थी। एक कान में कुंडल के लटकने का एहसास हो रहा था। कुंड के जरा से प्रकाश में उसका मात्र यही हुलिया ही दिख रहा था।

वो शैतान था।

घुटनों के बल बैठा वो होंठों ही होंठों में कुछ बड़बड़ा रहा था। और सामने लोहे के बड़े से थाल में रखे सामान को मुट्ठी भर कर सिर के पार पीछे फेंक रहा था, जो कि कुंड में गिरता और कुंड की सुलगन को बढ़ा देता। इस क्रम के बीच शैतान के बुदबुदाने की आवाज बराबर जारी थी। तभी उसने लोहे के थाल के पास रखा छोटा सा खंजर उठाया और उसकी नोक अपने अंगूठे में लगा दी।

खंजर पीछे किया और अंगूठे में से खून बहकर आने लगा।

शैतान के कटे अंगूठे को सिर के ऊपर करके, बहते खून के छींटे पीछे फेंके। वो ये हरकत बराबर करता रहा। तभी कुंड में से आग भड़की और उसी पल शांत भी पड़ गई। उसे सुलगन पहले की तरह नजर आती रही। शैतान के होंठों से बुदबुदाहट बराबर जारी थी।

उसी पल कुंड की सुलगन के बीच में से धुआं उठा। जो कि देखते ही देखते युवती की आकृति बनकर ठहर गया। देखने में ऐसा लग रहा था जैसे उस आकृति के दोनों पैर कुंड के भीतर हों।

“शैतान-।” कमरे में एकाएक युवती का तेज स्वर गूंजा।

शैतान के होंठों से निकलने वाली बुदबुदाहट फौरन थम गई। उसने उसी मुद्रा में दोनों हाथ जोड़े और सिर झुकाते हुए प्रणाम किया। जबकि कुंड पीठ की तरफ था।

“महामाया की जय हो।” शैतान का स्वर उभरा।

“तुम्हारा प्रणाम स्वीकार किया। कहो क्या बात है, जो तुमने मुझे याद किया और मुझे अपना प्रेम मिलाप भंग करके आना पड़ा।” युवती का स्वर वहां गूंज रहा था।

“मैं अजीब-सी स्थिति में फंस गया हूं महामाया-।”

“तुम शैतान की जगह पर मौजूद हो। इतना बड़ा रुतबा मैंने तुम्हें सौंपा है। तुम्हारे पास हर तरह की शैतानी ताकतें हैं फिर भी तुम्हें क्या परेशानी आ गई-। अपनी समस्या का समाधान करो-। मेरी सहायता क्यों लेते हो।”

“तुमसे बात करने की जरूरत पड़ गई थी। महामाया-।”

“शैतान-!” महामाया का स्वर पुनः गूंजा-“अब तेरे को थकान होने लगी है।”

“कैसे महामाया?”

“तेरे कई बेहतरीन शिष्य खत्म हो चुके हैं। अगर तू नगरी के गुरुवर का मुकाबला नहीं कर सकता था तो गुरुवर के रास्ते में नहीं आना था तुमने।” महामाया का स्वर सख्त हो गया-“ऊपर की शैतानी शक्तियां मुझसे सवाल करती हैं कि शैतान का यश सृष्टि में ज्यादा नहीं फैल रहा। क्यों हो रहा है ऐसा-?”

“मैं अपने काम पूरी मेहनत से कर रहा हूं महामाया।” शैतान का स्वर आदर भरा था।

“तो फिर कमी कहां है?”

“मैंने तो कमी महसूस नहीं की। लेकिन अब मैं देखूँगा कि मुझसे कहां कमी रही।”

“अगर बड़ी शैतानी शक्तियों को लगा कि तुम शैतानी कामों को ठीक तरह अंजाम नहीं दे पा रहे थे। शैतानी सृष्टि उन्हें खतरे में लगी तो तुमसे शैतान के सारे हक छीन कर दूसरे को दे दिए जायेंगे।”

“मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। अपनी सारी कमियां दूर कर लूंगा।”

“अपने फायदे-नुकसान की तुम्हें अच्छी तरह खबर होगी। कहो, मेरी जरूरत कहां पड़ी?”

“मैं काला महल के बारे में चिन्तित हूं महामाया।” शैतान का

स्वर गूंजा-“मेरी कोई भी शक्ति महल के भीतर प्रवेश नहीं कर पा रही। किसी ने भीतर जाना चाहा तो वो जलकर राख हो गया।”

कुंड में धुएं के रूप में खड़ी महामाया जहरीले ढंग में हंस पड़ी।

“वहां तेरी कोई भी शक्ति काम नहीं करेगी।”

“ये कैसे हो सकता है महामाया!”

“जहां पहले ही दूसरी शक्ति का अधिकार हो, वहां तेरे को पांव रखने की जगह ही कहां मिलेगी।”

“क्या मतलब?”

“काला महल में गुरुवर की शक्तियों ने अधिकार कर रखा है।”

“क्या?” शैतान के स्वर में अजीब-सा भाव आ गया।

“हैरान होना कमजोरी की निशानी है शैतान-।”

“लेकिन गुरुवर की शक्तियां महल में कैसे आ गईं?” शैतान की आवाज उभरी।

क्षणिक चुप्पी के बाद महामाया ने गम्भीर स्वर में कहा।

“शैतान! गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल तू और तेरी सारी शक्तियां तलाश कर रही थीं। लेकिन किसी ने भी ये नहीं सोचा कि गुरुवर की सारी शक्तियां महल में मौजूद हो सकती हैं।”

“असम्भव-।”

“शैतान को असम्भव शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये। शक्ति वही बड़ी होती है जिसका इस्तेमाल वक्त पर किया जाये।” महामाया का स्वर गूंज रहा था-“तुम बड़ी से बड़ी शक्ति को अपने पास संभाले रखो और उसका इस्तेमाल न करो तो उसका कोई फायदा नहीं।”

शैतान ने कुछ नहीं कहा।

“गुरुवर की शक्तियों ने भी बाल काला महल में छिपा रखी थी। किसी को भी इस बात का आभास नहीं-।”

“लेकिन मैंने तो अपनी पूरी शक्तियां लगा दी थीं कि-।”

“गुरुवर ने उस बाल पर अपनी शक्ति का ऐसा आवरण डाल दिया था कि किसी की भी कोई शक्ति उस बाल तक नहीं पहुंच सकती थी, जिसमें गुरुवर की शक्तियां भरी पड़ी हैं।”

“ये बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताई महामाया?”

“मुझे भी नहीं मालूम था। कुछ देर पहले ही मुझे, मेरी शक्ति ने बताया कि गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल काला महल में मौजूद है और एक बिल्ली में गुरुवर ने अथाह शक्ति डालकर उसे बाल की रक्षा के लिये लगाया हुआ है।” महामाया का शांत स्वर गूंज रहा था।

“ओह! मैं क्यों अंजान रहा इस बात से-।”

“तुमने वक्त पर अपनी शक्तियों को इस्तेमाल नहीं किया। अब

वो वक्त हाथ से निकल चुका है। तुम अपनी जमीन पर बेबस हो। काला महल तुम्हारे कब्जे में नहीं आयेगा।”

“अगर काला महल यहां रहकर अपनी मर्जी करता रहा तो बहुत बुरा होगा। मेरे लिये कई तरह की परेशानियां खड़ी हो जायेंगी। मेरे कई काम रुक जायेंगे।” शैतान के स्वर में तीखापन आ गया था।

“मैं सोच चुकी हूं ये बातें।” महामाया का स्वर गूंजा-“मैंने अपनी शक्ति इस्तेमाल कर दी है काला महल पर, परन्तु वो शक्ति धीरे-धीरे काला महल पर असर करेगी। ठीक पन्द्रह दिन बाद काला महल जलकर राख हो जायेगा।”

“ओह-और गुरुवर की शक्तियां?”

“वो भी जल कर राख हो जायेंगी।”

“अगर वो शक्तियां मेरे पास आ जायें तो मैं-।”

“भ्रम में मत रहो। वो शक्तियां अब तुम्हारे हाथ नहीं लग सकतीं।” महामाया ने चेतावनी देने वाले स्वर में कहा-“अगर

गुरुवर की शक्तियां ज्यादा देर इस जमीन पर रहीं तो यहां तबाही फैला देंगी।”

“ओह। फिर तो उन शक्तियों का नष्ट हो जाना ही बेहतर है।”

“महल से मिन्नो और उसके साथ कुछ लोग निकलकर तुम्हारी जमीन पर घूम रहे हैं। उन्हें खत्म कर दो। वरना आने वाले वक्त में वे तुम्हारे लिये मुसीबत खड़ी कर देंगे।”

“ठीक है महामाया। मैं उन्हें अभी खत्म करवा देता हूं।”

“उन्हें खत्म करवाने में चूक मत जाना। उन्हें खत्म करने का एक ही मौका मिलेगा तुम्हें।”

“एक ही मौका क्यों?”

“मेरी से बड़ी शक्तियां देखना चाहती हैं कि एक ही बार में तुम साधारण इन्सानों को खत्म कर सकते हो या नहीं। मामूली-सा काम है। तुम सफल हो जाओगे।” महामाया का स्वर गूंजा।

“मेरे लिये बहुत मामूली बात है उन्हें खत्म करना-।”

“उन्हें खत्म करो। वरना तुम्हारे लिये भारी मुसीबतें खड़ी हो जायेंगी।” महामाया के शब्द वहां गूंजे-“एक और बात तुम्हें बता रही हूं वो सुनो और सोच लो कि क्या करना है।”

“कैसी बात महामाया?”

“मेरी शक्तियों ने मुझे बताया है कि जब काला महल, इस जमीन पर आकर रुका, तब एक अदृश्य शरीर महल से निकला और जाने कहां चला गया। वो अदृश्य शरीर इसी धरती पर खुला घूम रहा है और उस शरीर के भीतर दो आत्माएं मौजूद हैं।”

“दो आत्माएं?”

“हां। एक आत्मा उस शरीर की हो सकती है और दूसरी आत्मा ने उस शरीर में प्रवेश कर रखा है। स्पष्ट है कि शरीर में प्रवेश करने वाली आत्मा शक्तियों की मालकिन होगी।”

“अदृश्य शरीर-दो आत्माएं?” शैतान की आवाज में उलझन-सी उभरी।

“मालूम करो कि वो अदृश्य शरीर कहां है? क्या कर रहा है, तुम्हारी जमीन पर? ये जानना जरूरी है।”

“मैं जल्दी ही ये बात जान लूंगा।” शैतान की आवाज में दृढ़ता थी।

“मैं चलती हूं। अपने कामों को ठीक तरह अंजाम देना तुम्हारा काम है।”

“ठीक है महामाया। जरूरत पड़ी तो तुम्हें फिर याद करूंगा।”

तभी कुंड से उभरी आकृति देखते ही देखते कुंड में समा गई। उसके बाद धीरे-धीरे कुंड की सुलगन कम होने लगी। शैतान ने दोनों हाथ जोड़कर पुनः प्रणाम किया और उठ खड़ा हुआ। दोनों हाथ पीठ पर बांधे चहलकदमी करने लगा। गहरे अंधेरे में वो सिर्फ काला साया लग रहा था। उसकी मुद्रा से लग रहा था जैसे वो किसी गहरी सोच में डूबा हो।

कुछ पलों बाद ही वो ठिठका और एक अन्य छोटा सा दरवाजा धकेलता हुआ उधर चला गया।

☐☐☐

ये कमरा छोटा-सा था।

कमरे में हर तरफ स्याह रंग फैला हुआ था। कोने में से जाने किस चीज से रोशनी फूट रही थी। वो रोशनी इतनी कम थी कि वहां मौजूद चीजें साये की तरह लग रही थीं। शैतान स्वयं भी साये की तरह ही नजर आ रहा था। उस कमरे में दीवार पर एक बोर्ड लगा हुआ था। जहां छोटे-बड़े डेढ़ सौ की संख्या से ज्यादा स्विच लगे नजर आ रहे थे। बोर्ड के बॉर्डर वाले हिस्से पर नन्हें-नन्हें बल्ब लगे हुए थे जो कि इस वक्त बुझे हुए थे।

शैतान ने बोर्ड के पास पहुंचकर सबसे ऊपर लगा मोटा स्विच

दबाया तो उस पल उन बल्बों में कुछ बल्ब बारी-बारी जलने-बुझने लगे।

परंतु हैरानी की बात थी कि उनकी रोशनी पास ही खड़े शैतान पर भी नहीं पड़ रही थी। शैतान स्याह साया बना नजर आ रहा था।

उसके बाद शैतान ने बोर्ड पर नजर आ रहे कई बटन दबाये और पीछे हट गया।

तभी एक तरफ की दीवार चमकीली-सी हो उठी। धीरे-धीरे उसकी चमक बढ़ती चली गई।

दीवार पूरी तरह चमकीली हो गई। इतनी चमकीली कि देखने में आंखें चौंधिया जायें।

शैतान के होंठों से निकलने वाली मध्यम-सी बड़बड़ाहट कमरे में भिनभिनाती सी महसूस होने लगी।

आधा मिनट ही बीता होगा कि चमकती दीवार पर काले रंग के दो बिन्दु नजर आने लगे। शैतान ने दोनों हाथ जोड़कर चेहरा छत की तरफ किया और फिर सामान्य मुद्रा में खड़ा हो गया। नजरें चमकती दीवार पर थीं।

देखते ही देखते चमकती दीवार पर दोनों बिन्दु बड़े होने लगे।

वो फैलते चले गये। इतने बड़े हो गये कि मानवीय आकृति के रूप में लकीरों की भांति दिखाई देने लगे। चेहरों की जगह भी चेहरे की शेप की लकीरें नजर आ रही थीं।

चमकती दीवार पर नजर आने वाली लकीरों की आकृतियां हिलती सी दिखाई देने लगीं।

“द्रोणा! प्रेतनी चंदा! मौत के बाद का जीवन कैसा लग रहा है दोनों को?” शैतान का स्वर वहां गूंजा।

“शैतान की जय हो।” द्रोणा का स्वर गूंजा।

“जय हो शैतान की-।” प्रेतनी चन्दा की आवाज सुनाई दी।

शैतान की छोटी सी हंसी सुनाई दी।

“मुझे मौत के बाद इस जीवन से मुक्ति दिलाओ शैतान-।”

“क्यों?” शैतान की आवाज गूंजी-“वहां किस बात की कमी

है तुम्हें? भोजन, रहने-खाने, ऐशो-आराम सब कुछ है तुम्हारे पास। कितनी सेविकाएं तुम्हारी सेवा में रहती हैं।”

“बिना कर्म के सब कुछ बेकार है शैतान। ये चीजें भी तभी अच्छी लगती हैं, जब कर्म साथ हो। बैठे रहना मुझे अच्छा नहीं लगता। मुझे कर्म का मौका दो शैतान-।” द्रोणा के स्वर में तड़प थी।

“मुझे भी शैतान-।” चमकती दीवार पर प्रेतनी चंदा की आकृति हिली-“बिना कर्म के मुझसे भी वक्त नहीं कटता। इस तरह तो मैं पागल हो जाऊंगी। मौत के बाद का जीवन बिल्कुल व्यर्थ है। भगवान के यहां कोई मरता है तो मौत के बाद भी आत्मा कर्मों में व्यस्त हो जाती है। तुम्हारे यहां मौत के बाद तो कर्म है ही नहीं। आराम ही आराम है।”

शैतान की हंसी की आवाज उभरी फिर थम गई।

“तूने ठीक कहा प्रेतनी चंदा! भगवान के यहां मौत के बाद भी कर्म है और मेरे यहां मौत के बाद आराम है।” शैतान का स्वर गूंजा।

“ऐसा क्यों शैतान-?” द्रोणा बोला।

“भगवान के यहां मौत से पहले और बाद में भी, कर्म ही है। वहां के लोग हर काम आराम से करते हैं। क्योंकि पहले और बाद के कर्मों में ही उनका जीवन है। शैतान का स्वर कमरे में सुनाई दे रहा था-“परन्तु मेरे यहां सिर्फ मौत से पहले ही कर्म है। मौत के बाद आत्मा को आराम मिलता है। क्योंकि अपने जीवन में इतने शैतानी कर्म कर लिए होते हैं कि मौत के बाद कर्म करने की गुंजाईश ही नहीं रहती।”

“लेकिन शैतान, मौत के बाद भी कर्म करने की मेरी इच्छा अभी समाप्त नहीं हुई।”

“तेरे कर्म अभी बाकी हैं द्रोणा। तूने अपनी गलती की वजह से जान गंवाई-।” शैतान शांत स्वर में कह रहा था-“देवा को मारने के लिये तूने शैतानी चक्र छोड़ दिया। सिर्फ उसे ही क्यों, शैतानी चक्र के कान में सबके नाम की फूंक मार देता तो तेरे मुकाबले के लिये कोई भी जिन्दा न रहता।” शैतानी चक्र के बारे में जानने के लिये पढ़ें, अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “दूसरी चोट”।

“मुझसे भूल हो गई शैतान। उन साधारण मनुष्यों को मैंने कम समझा।” द्रोणा की आवाज सुनाई दी-“मौत के बाद मुझे अपनी हर गलती का एहसास हो गया। मैंने सोचा कि कहां-कहां मैंने भूल की।”

“मौत के बाद सोचने का क्या फायदा। पहले सोचता तो तेरा जीवन बच जाता। मैंने तेरे को वक्त रहते समझाया भी था लेकिन तू अपने विश्वास के नशे में था। अपने कर्मों की खोट को नहीं पहचान सका।”

“क्षमा शैतान। क्षमा। भूल हो गई। एक बार मुझे जीवन देकर क्षमा करो। फिर कभी भूल नहीं करूंगा।”

“मुझे भी क्षमा कर दो शैतान-।” प्रेतनी चंदा की आवाज सुनाई दी।

दो पलों की चुप्पी के पश्चात् शैतान की आवाज आई।

“प्रेतनी चंदा। तूने एक हजार लोगों की जान लेनी थी। ऐसा होते ही तुझे प्रेत योनी से मुक्ति मिल जाती। पांच सौ बरस से भटकती तेरी आत्मा को चैन मिल जाता और हजार जानें पूरी होने में सिर्फ दो की जान लेनी बची थीं। तब तेरे सामने दो से ज्यादा मनुष्य थे। तेरे पास इतनी ज्यादा शैतानी ताकतें थीं कि तू पलों में चींटी की तरह सबको मसल कर खंजर मिन्नो के हाथ में देकर, उससे मुकाबला करने की भूल कर बैठी।” ये सब बातें जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “दूसरी चोट”।

“माफी चाहती हूं शैतान। मिन्नो ने धोखे से मुझे बेवकूफ...।”

“धोखे से नहीं। चालाकी से।” शैतान ने शांत स्वर में कहा-“उसके धोखे में तो तू आ गई। उसकी चालाकी में फंस गई। तूने समझ से काम नहीं किया। द्रोणा की तरह तेरे को भी शैतानी शक्तियों का घमण्ड हो गया था।”

“सच बात है शैतान। घमण्ड में मैं बहुत भूल कर बैठी थी। मुझे बहुत पछतावा हो रहा है। मेरी इच्छायें भटक रही हैं। मौत के बाद मैं परेशान घूमती हूं। कहीं भी मेरा मन नहीं लगता। मुझे कर्म करने का मौका दो, ताकि मैं अपनी अतृप्त इच्छाओं को पूर्ण कर सकूं-।”

“इच्छाएं कभी भी पूर्ण नहीं होतीं। कम अवश्य हो सकती हैं।” शैतान का स्वर गूंजा।

“जैसे भी हो। मुझे इच्छायें कम करने का ही मौका दे दो शैतान-।” प्रेतनी चंदा की आवाज सुनाई दी।

“मुझे भी अपने चरणों में लेकर, सेवा का मौका दो शैतान-।” द्रोणा का स्वर उभरा।

शैतान ने दोनों हाथ पीठ पर बांधे और चहलकदमी करने लगा।

चमकती दीवार का प्रकाश वहां फैला था, परन्तु शैतान पर वो प्रकाश नहीं पड़ रहा था। वो पूरी तरह अंधेरे में डूबा था। बोर्ड पर नन्हें-नन्हें बल्ब जल-बुझ रहे थे। चमकती दीवार पर द्रोणा और प्रेतनी चंदा की आत्मा की लकीरें उभरी हुई थीं।

तभी शैतान ठिठका और चमकती दीवार पर नजर आ रहे आत्माओं के सायों को देखकर बोला।

“मैं तुम दोनों को शक्तियां वापस लौटाकर कर्म करने का एक मौका फिर दे सकता हूं।”

“शैतान की जय हो।”

“जय हो शैतान की।”

“लेकिन अपने कर्मों को शैतानी धर्म से ऊपर ले जाना होगा।”

“हम ऐसा ही करेंगे।”

“हमारे कर्म, धर्म को पीछे छोड़ देंगे।”

“अगर तुम अपने कर्मों को, धर्म के ऊपर न ले जा सके तो बहुत बुरी सजा मिलेगी।”

“हमें हर सजा मंजूर है शैतान-।” प्रेतनी चंदा और द्रोणा के स्वर एक साथ गूंजे।

“सजा के बारे में सुन लो। शायद तुम दोनों का विचार बदल जाये।” शैतान का स्वर शांत था-“अगर इस बार तुम दोनों के

कर्म, शैतानी धर्म को पार न कर सके तो मंत्रों द्वारा तुम दोनों की आत्माओं को बांधकर आग में डाल दिया जायेगा। फिर कभी आग से निकाला नहीं जायेगा। ऐसे में कितना दर्द होगा, जानते ही हो।”

दो पलों के लिये वहां खामोशी छा गई।

“ये सजा ज्यादा है।” द्रोणा का स्वर गूंजा।

“क्या तुम्हें अपने कर्मों पर भरोसा नहीं कि ठीक ढंग से कर्मों को अंजाम दे पाओगे।” शैतान बोला।

“मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे कर्म शैतानी धर्म को पार कर पायेंगे?” द्रोणा की आवाज आई-।

“तो फिर सजा के बारे में सोचते ही क्यों हो।” शैतान के स्वर में ठहराव था।

“ठीक कहते हो शैतान। मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है।”

“प्रेतनी चंदा-तुम कहो-।”

“वैसे तो सजा ज्यादा है शैतान। फिर भी मुझे मंजूर है। अपने कर्मों पर भरोसा है मुझे-।” प्रेतनी चंदा का स्वर गूंजा।

शैतान का सिर हिला फिर उसकी आवाज गूंजी।

“वैसे तो इस मामूली काम के लिये मेरे पास हजारों-लाखों शिष्य हैं। लेकिन तुम दोनों में फिर से जीवन डालना चाहता था कि तुम दोनों अपने कर्मों को आगे बढ़ाते हुए अपनी इच्छाओं को पूर्ण कर सको।” शैतान ने सामान्य स्वर में कहा-“और तुम दोनों की सबसे बड़ी इच्छा होगी, उन मनुष्यों को खत्म करना, जिनकी वजह से तुम दोनों की आत्माओं को शरीर छोड़ना पड़ा। इस इच्छा को पूरी करके कर्मों को आगे बढ़ाओ तो बहुत अच्छा लगेगा।”

द्रोणा की आत्मा की लकीरें जोरों से हिलती दिखीं दीवार पर।

“शैतान! मिन्नो ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा। उसके पास प्रेतनी चंदा का शैतानी शक्तियों से भरा खंजर था। उसी शैतानी खंजर से वो मुझे खत्म करने में सफल हो सकी। मुझे मेरा रूप वापस दे दो शैतान। मैं मिन्नो को बहुत बुरी मौत दूंगा।” द्रोणा के शब्द

वहाँ सुनाई दिए।

“मुझे भी मिन्नो ने धोखे और चालाकी से मारा। वो छोटा-सा लड़का, जो मासूम-सा दिखता है, वो बहुत ही खतरनाक है शैतान। उसने मुझे खत्म करके मेरी पांच सौ बरस की मेहनत को बरबाद कर दिया। मैं प्रेत योनि से मुक्ति नहीं पा सकी।”

“मैं मिन्नो और त्रिवेणी को बहुत बुरी मौत मारूंगी।”

“चुन-चुन कर नहीं। सबको ही खत्म करना है।”

“तुम दोनों को ये जानकार और भी अच्छा लगेगा कि ये सब

मनुष्य मेरी जमीन पर मौजूद हैं।”

“ओह। याद आया शैतान।” द्रोणा का स्वर उभरा-“मैं काला

महल में सवार होकर आपके पास आ रहा था। वो सब भी महल में ही थे। वो अवश्य यहां पहुंच गये होंगे। वो बच नहीं सकते। वो सब कहां हैं शैतान?”

“हमारी जमीन की सड़कों पर घूम रहे हैं। शरीर प्राप्त होते ही सब बातों की जानकारी तुम दोनों के दिमागों में भर दी जायेगी। तुमसे एक गलती और हुई है द्रोणा।” शैतान की आवाज में किसी तरह का भाव नहीं था-“गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल काला महल के भीतर ही मौजूद थी और तुम उसे गुरुवर की नगरी में तलाश करते रहे।”

“ओह! ये खबर तो मेरे लिये बिल्कुल नई है।”

“सब जानकारी तुम दोनों को मिल जायेगी। कुछ ही देर में, तुम दोनों को शरीर मिल जायेगा। ये आखिरी मौका है तुम दोनों अपने कर्म करके, खुद को सुधार सकते हो तो सुधार लो। अब की बार कोई गलती की तो फिर कभी भी कर्म करने का मौका नहीं मिलेगा। हमेशा के लिये जलती आग में पड़े रहोगे।”

“अब की बार हम गलती नहीं करेंगे।” प्रेतनी चंदा की आवाज आई।

शैतान बोर्ड के पास पहुंचा और एक बटन दबाया।

दो पल ही बीते होंगे कि कमरे में काले साये की परछाई सी दिखाई दी।

“हुक्म शैतान-।”

“द्रोणा और प्रेतनी चंदा को शक्तियों के साथ उनके शरीर लौटा दो।” शैतान ने कहा।

“मैं अभी ये काम कर देता हूं-।” कहने के साथ ही वो परछाई गायब हो गई।

चमकती दीवार से दोनों की आत्माओं की लकीरें भी लुप्त हो गईं।

शैतान ने बोर्ड का एक अन्य स्विच दबाया तो उसी पल आवाज उभरी।

“हाजिर हूं शैतान-।” ये जिन्न बाधात की आवाज थी।

“जिन्न बाधात!” शैतान के शब्द वहां की दीवारों से टकराये-“काला महल से कोई अदृश्य शरीर निकलकर हमारी जमीन पर मौजूद है। उसके भीतर कोई अन्य आत्मा भी है। महल से निकलकर वो अदृश्य शरीर किस तरफ गया है, क्या कर रहा है, मालूम करो। इसके लिये किसी शक्ति की जरूरत पड़े तो मुझसे मांग लेना।”

“समझ गया शैतान।” जिन्न बाधात की आवाज पुनः गूंजी-“उस अदृश्य शरीर के बारे में सिर्फ मालूम करना है या उसके कामों में बाधा भी डालनी है।” जिन्न बाधात के बारे में जानने

के लिये पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “दूसरी

चोट”।

दो पलों की चुप्पी के बाद शैतान ने कहा।

“उस अदृश्य शरीर के भीतर दो आत्माएं हैं। स्पष्ट है कि उनके इरादे बुरे ही हैं। वो हमें अवश्य कोई नुकसान ही पहुंचाना चाहते हैं अगर वो अदृश्य शरीर कोई गलत काम करता दिखे तो उनके काम में बाधा डाल देगा। तुम में अदृश्य चीजों को देखने की शक्ति मौजूद है। जिन्न बाधात!”

“हां शैतान। तुम्हारे कई आशीर्वाद मेरे भीतर हैं। मैं उस अदृश्य शरीर को ढूंढता हूं कि वो कहां है और क्या कर रहा है?”

“तुम हमेशा अपने काम में सफल हुए हो।”

“मैं अब भी सफल ही रहूंगा शैतान-।” जिन्न बाधात की आवाज गूंजी।

शैतान आगे बढ़ा और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया।

☐☐☐

नगीना ने तेज-तेज कदमों से आगे बढ़ते हुए उस लम्बी सड़क को पार किया और पेशीराम के कहे मुताबिक बाईं तरफ मुड़कर आगे बढ़ने लगी। इस बीच उसने इस बात का पूरा ध्यान रखा था कि राह गुजरते किसी से वो टकरा न जाये। रास्ते में शैतानी दुनिया के कई नजारे देखने को मिले। दो व्यक्ति एक युवती को उठाकर ले जा रहे थे। वो बचने के लिये चिल्ला रही थी, परन्तु कोई उसे बचाने न आया। हर कोई इसे सामान्य घटना मानकर आगे बढ़ा जा रहा था। रास्ते में तीन लाशें पड़ी मिलीं, परन्तु वहां से गुजरते लोगों को लाशों की कोई परवाह नहीं थी। एक कार ने चार लोगों को कुचल दिया था। कार आगे चली गई। किसी ने परवाह नहीं की। ऐसे कई नजारे देखने को मिले।

सड़क खत्म होने पर पेशीराम के कहने पर जब वो मुड़ी तो उधर कोई नजर नहीं आया। वहां सड़क नहीं थी। कच्चा रास्ता दूर तक जाता वीरान-सम दिखा। दूर दो-तीन लोग ही आते-जाते दिखे।

“यहां तो जरा भी भीड़ नहीं है।” नगीना होंठों में बुदबुदाई।

“ये रास्ता हर किसी के लिये नहीं है।” पेशीराम के शब्द मस्तिष्क में गूंजे-“आगे जाकर सामान्य लोगों के लिये रास्ता बंद है। इस तरफ कोई नहीं आता-।”

“ऐसा क्यों बाबा?”

“इस तरफ शैतान के खास काम होते हैं। शैतान के खास आदमी ही इधर के कामों को देखते हैं।”

“देवराज चौहान की आत्मा इसी तरफ है बाबा-?”

“हां-।” पेशीराम के स्वर में गम्भीरता आ गई-“शैतान, आत्माओं पर बहुत ही खतरनाक पहरेदारी लगा रखी है।” “

“ओह!” नगीना का स्वर सख्त हो गया-“हम देवराज चौहान की आत्मा को ले आयेंगे बाबा-।”

“कुछ भी यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता।”

तभी सामने से दूर, धूल उड़ाती काली बग्गी इधर आती दिखाई दी। उसके आगे दो काले रंग के चुस्त-सेहतमंद घोड़े लगे थे। बग्गी कम और धूल का गुबार उड़ता ज्यादा नजर आ रहा था।

“नगीना बेटी! जल्दी से कहीं छिप जाओ।” पेशीराम के शब्द मस्तिष्क से टकराये।

इन शब्दों के साथ ही नगीना कुछ कदमों की दूरी पर नजर आ रही झाड़ियों की तरफ दौड़ी और उनके पीछे दुबक कर बैठ गई। चेहरे पर उलझन के भाव थे।

“बाबा आपने छिपने को क्यों कहा?”

“बग्गी के काले घोड़ों की आंखों में शैतानी शक्तियां मौजूद हैं। वो अदृश्य हुई चीज को भी देख लेती हैं। ऐसे में सीधी खबर शैतान के पास पहुंच जाती है। शैतान ने अपनी शक्तियों का जाल बहुत पक्के ढंग से फैला रखा है। अगर घोड़ों की निगाह तुम पर जाती तो शैतान को तुम्हारे इस तरफ मौजूद होने की खबर मिल जाती।”

“ओह-!”

तभी घोड़ों की टापों की आवाजें उसके कानों में पड़ने लगीं। फिर देखते ही देखते वो घोड़ा गाड़ी करीब आ पहुंची थी। घोड़ा गाड़ी की रफ्तार एकाएक कम हुई और वो रुक गई। घोड़ा गाड़ी को खींच रहे दोनों घोड़ों की गर्दन इधर-उधर, ऊपर-नीचे होने लगी।

नगीना और भी नीचे दुबक गई।

“घोड़ों की आंखों में मौजूद शैतानी शक्तियों ने तुम्हें देख लिया

है, या फिर उन्हें शक है। तभी तो यहीं रुक कर दोनों घोड़े इधर-उधर देख रहे हैं।” पेशीराम के शब्द मस्तिष्क में पड़े।

ये सुनते ही नगीना और भी दुबक गई।

मिनट भर ऐसे ही बीत गया। फिर घोड़े बग्गी को लिए आगे बढ़ गये।

घोड़ों की टापों की आवाज जब तक सुनाई देती रही, तब तक नगीना दुबकी रही।

“बाबा-!” घोड़ों की टापों की आवाजें सुनाई देनी बन्द हुईं तो नगीना खड़े होते हुए बोली-“क्या मालूम घोड़ों की आंखों में मौजूद शैतानी शक्तियों ने मुझे देख लिया हो।”

“इस बारे में मैं यकीन के साथ नहीं कह सकता। वक्त बरबाद मत करो। आगे बढ़ो-।”

नगीना पुनः रास्ते पर आई और आगे बढ़ने लगी।

“बेटी!” पेशीराम की फुसफुसाहट मस्तिष्क में पड़ी-“मैं काला

महल का चक्कर लगाकर आता हूं, ताकि वहां के हालातों के बारे में जान सकूँ कि हमारे आने के बाद क्या हुआ। तुम इसी तरह आगे बढ़ती रहो।”

“लेकिन बाबा! रास्ते में कोई अन्जाना खतरा आया तो-?”

“मुझे ज्यादा देर नहीं लगेगी वापस लौटने में।” पेशीराम का स्वर सोचों से टकराया-“इस बीच अगर तुमने खतरे को महसूस किया तो इसकी खबर फौरन मुझे मिल जायेगी। तब तुम मुझे अपने पास पाओगी।”

“ऐसा कैसे होगा बाबा?”

“हवा तो कभी भी-कहीं भी पहुंच सकती है। बेहतर होगा इस बारे में ज्यादा सवाल मत करो।”

नगीना ने कुछ नहीं कहा।

“मैं जाता हूं-।”

उसी पल नगीना के मस्तिष्क को हल्का-सा झटका लगा।

फिर वो खुद को सामान्य महसूस करने लगी।

साथ ही वो समझ गई कि फकीर बाबा की आत्मा उसके शरीर से निकल गई है। नगीना ने सावधानी से आसपास देखा फिर तलवार संभाले आगे बढ़ने लगी। दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था।

दस मिनट बिना रुके नगीना सावधानी से आगे बढ़ी थी कि तभी उसके मस्तिष्क को झटका लगा। दूसरे ही पल वो सामान्य हो गई। उसके चलने की रफ्तार कम नहीं हुई।

“आ गये बाबा-।” होंठों ही होंठों में नगीना बड़बड़ाई।

“हां बेटी-।” पेशीराम का गम्भीर स्वर मस्तिष्क से टकराया-“खतरा हर तरफ है।”

“क्या बात है बाबा?”

“शैतान की धरती पर हम सुरक्षित नहीं हैं। इस बात का आभास पहले ही था।” पेशीराम का गम्भीर स्वर मस्तिष्क को

महसूस हो रहा था-“शैतान को हमारी हरकतों का पूरी तरह एहसास है। काला महल में मौजूद बिल्ली ने बताया कि शैतान ने अपने अवतार द्रोणा और प्रेतनी चंदा की आत्मा को पुनः शरीर और शक्तियां दे दी हैं। ताकि वे मिन्नो, जग्गू, गुलचन्द, परसू, त्रिवेणी, भंवर सिंह, नील सिंह और राधा को खत्म कर सकें। जो कि काला महल से निकलकर, शैतान की जमीन पर मौजूद हैं।”

“ओह! लेकिन बाबा उन दोनों को शरीर और शक्तियां देने की क्या जरूरत थी।” नगीना बड़बड़ाई-“शैतान के पास तो हजारों ऐसे होंगे जो इन सबको मार सकें।”

“तुम्हारा सोचना सही है। ऐसे में द्रोणा और प्रेतनी चंदा को शरीर और शक्तियां देना खतरनाक बात है हमारे लिये। इसका मतलब शैतान उन दोनों का इस्तेमाल करके लम्बी लड़ाई लड़ना चाहता है।” पेशीराम का गम्भीर स्वर नगीना के मस्तिष्क से टकरा रहा था-“उन दोनों को शक्तियों के साथ पुनः जीवित करने का मतलब है कि शैतान को उनकी कमी अवश्य महसूस हो रही होगी। ये वक्त उन्हें पुनः जिन्दा करने के लिये ठीक लगा शैतान को।”

“शैतान की धरती पर उन सबको तो भारी खतरा है। उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा।” नगीना व्याकुल होकर बड़बड़ाई।

“हां। ऐसा हो सकता है।” पेशीराम के शब्द इस बार परेशानी भरे थे।

“उनके पास तो कोई हथियार भी नहीं कि जिससे वो शैतानी ताकतों का मुकाबला-।”

“मिन्नो के पास प्रेतनी चंदा का, शैतानी ताकतों वाला खंजर है। लेकिन अकेला हथियार शायद कुछ न कर सके।”

“बाबा-!” नगीना के होंठ हिले-“तुम उन्हें कोई शक्ति दे दो कि वो अपना बचाव कर सकें।”

“ये सम्भव नहीं।” पेशीराम के शब्दों का एहसास हुआ नगीना को-“मैं अपनी शक्तियां शैतान की जमीन पर नहीं ला सकता। गुरुवर की तरफ से इस बात की इजाजत नहीं है। अगर मैंने अपनी शक्तियों को यहां लाने-इस्तेमाल करने की चेष्टा की तो मेरी सारी शक्तियां छिन जायेंगी। मैं तुम जैसा साधारण इन्सान बन जाऊंगा। अगर मेरे बस में होता तो मैं किसी को भी मुसीबत में न पड़ने देता।”

“ओह-!” चलते चलते नगीना दुःखी स्वर में कह उठी-“काला महल में कौन-कौन हैं बाबा?”

“भामा परी। मिट्टी के बुत वाली युवती। सरजू और दया-।” नगीना कुछ नहीं बोली। आगे बढ़ती रही।

“बिल्ली ने एक और चिन्ताजनक खबर दी है।”

“वो क्या बाबा?”

“शैतान को जाने कब खबर मिल गई है कि महल से कोई शरीर अदृश्य होकर उनकी जमीन पर आ चुका है और उस शरीर में कोई दूसरी आत्मा भी मौजूद है।” पेशीराम के शब्द उसके मस्तिष्क को छू रहे थे-“परन्तु शैतान को किसी भी तरह से ये खबर नहीं लगी कि किसी अदृश्य शरीर को देखा गया है। शैतानी शक्तियां अभी तक तुम्हारे अदृश्य शरीर की झलक नहीं पा सकीं। ऐसे में उसने जिन्न बाधात को बुलाकर तुम्हें तलाश करने को कहा। जिन्न बाधात के पास अदृश्य ताकतों को देखने की शक्ति है।”

“जिन्न बाधात तो बहुत शैतान है।” नगीना बुदबुदाई-“वो तो मुसीबत में फंसा देता है।”

“हां। अब जिन्न बाधात ही तुम्हें तलाश कर रहा है।”

नगीना कुछ नहीं बोली।

“जब वो तुम्हें तलाश कर लेगा तो शैतान को खबर देगा। उसके बाद शैतान तुम्हें खत्म करने के लिये अपनी किसी बड़ी शक्ति को भेजेगा।” पेशीराम का उखड़ा स्वर नगीना को महसूस हो रहा था-“उस वक्त तुम्हें खुद को बचाना होगा। जो कि लगभग असम्भव ही काम होगा। शैतान की धरती पर, उसकी निगाहों में आकर बचे रह पाना सम्भव नहीं है।”

“मैं सिर्फ अपने काम की तरफ ध्यान दे रही हूं-।” नगीना भिंचे स्वर में बुदबुदा उठी-“शैतान के हाथों जिन्दा रह पाती हूं या नहीं, ये बात मेरे सोचने की नहीं है। मेरा काम कोशिश करना ये

है। ला सकी तो देवराज चौहान की आत्मा को वापस लाना है।”

“कोशिश तो हम कर रहे हैं। लेकिन ये काम असम्भव लगता है मुझे-।”

“क्यों बाबा?” नगीना के होंठ हिले-“असम्भव क्यों?”

“शैतान के ऊपर शक्ति है। महामाया कहते हैं उसे।” पेशीराम का गम्भीर स्वर नगीना के मस्तिष्क से टकराया-“महामाया जान चुकी है कि काला महल के भीतर गुरुवर की सारी शक्तियां मौजूद हैं। इसी कारण शैतान की कोई शक्ति काला महल में काम नहीं कर पा रही। किसी ने भीतर जाना चाहा तो वो जल कर राख हो गया। यानि कि शैतान के लिये काला महल ऐसा हो गया कि जैसे वो मुसीबत में पड़ गया हो तो महामाया ने अपनी शैतानी शक्ति काला महल पर फेंक दी-।”

“उससे क्या होगा?” नगीना के होंठों से निकला।

“गुरुवर की शक्तियां काला महल के भीतर मौजूद होने के कारण महामाया की शैतानी शक्ति एकदम काला महल पर असर नहीं कर रही। वो शक्ति धीरे-धीरे असर करेगी और आज से ठीक पन्द्रहवें दिन काला महल जल कर राख हो जायेगा। तब महल के भीतर कोई भी मौजूद हो। कैसी भी शक्ति हो, वो भी जल जायेगी।”

“फिर भय कैसा बाबा?” नगीना के होंठ हिले-“पन्द्रह दिन

तो बहुत होते हैं। तब...।”

“पन्द्रह दिन बहुत कम हैं बेटी। तुम्हारा रास्ता लम्बा है। अगर

सब ठीक रहता है तो वापस काला महल में पहुंचकर, महल को वापस जमीन पर ले जाना है। बीच में जाने कैसा वक्त आता है। जहां भी पन्द्रह दिन पूरे होंगे, वो काला महल जलना आरम्भ हो जायेगा।”

नगीना कुछ नहीं बोली। आगे बढ़ती रही । दूर-बहुत दूर अब बड़ा-सा मकान दिखाई देने लगा था। नजरें आस-पास फिर रही थीं। हर तरफ वीरानी-सुनसानी ही देखने को मिली। तभी नगीना की नजरें उस मकान के बड़े से खुले दरवाजे पर पड़ीं। वहां से कोई बाहर आता दिखा।

“बाबा! कोई उस मकान से बाहर निकला-।”

“आगे बढ़ती रहो। उसके पास अदृश्य चीजों को देखने की

शक्ति नहीं है।”

नगीना आगे बढ़ते हुए बोली।

“मेरे बाकी साथियों का क्या होगा! द्रोणा और प्रेतनी चंदा उन सबको खत्म कर देंगे।”

“कह नहीं सकता क्या होगा।” फकीर बाबा के शब्द मस्तिष्क

में महसूस हुए-“मेरे पास आगे देखने की शक्ति नहीं है। ये उनकी किस्मत है कि वे बच पाते हैं या नहीं।”

“मुझे उनकी चिन्ता हो रही है।”

“तुम या मैं उनके लिये कुछ नहीं कर सकते।” पेशीराम का स्वर नगीना की सोचों से टकराया-“ऐसे में तुम्हें सिर्फ अपने बारे

में, अपने काम के बारे में सोचना चाहिये। अगर व्यर्थ में तुम्हारा दिमाग भटका तो शैतान की किसी भी चाल से धोखा खाकर अपनी जान गंवा बैठोगी।”

“मैं इस बात का ध्यान रखूँगी-।” नगीना के हिलते होंठों से गम्भीर स्वर निकला।

उस मकान से निकलने वाली अधेड़ उम्र की औरत थी। जो कि पास आ चुकी थी। नगीना की निगाह उस पर टिक चुकी थी। चूंकि नगीना अदृश्य थी। इसलिये वो, उसे नहीं देख पाई और पास से निकलती चली गई। अब वो मकान पास आ गया था।

“ये कैसा मकान है?” नगीना ने होंठ हिलाये।

“ये मकान उस रास्ते की शुरूआत है, जहां तुमने जाना है।” पेशीराम का गम्भीर स्वर नगीना के मस्तिष्क से टकराया-“इसके साथ ही तुम्हारे लिये खतरे और मुसीबत की शुरूआत हो रही है।”

“कैसे खतरे बाबा?”

“मकान में प्रवेश करने के बाद, तुम्हारे सामने आने शुरू हो जायेंगे। यहां से रास्ता दूसरी दिशा की तरफ मुड़ता है। तुम्हें हर कदम पर सावधान रहना होगा। तलवार इस्तेमाल करने की तरफ से लापरवाह मत होना। किसी भी आहट को फिजूल मत समझना। ये भी मत सोचना कि हर खतरे के प्रति मैं तुम्हें सतर्क करूंगा। मकान में प्रवेश करने के बाद तुम्हें अपनी काबलियत दिखानी है।”

“मैं लापरवाह नहीं होऊंगी बाबा-।” नगीना होंठ भींचे बड़बड़ा उठी।

“तुम्हारा अदृश्य होना सहायक है तुम्हारे लिये। लेकिन ज्यादा खतरा वहां आयेगा, जब कोई बड़ी शैतानी शक्ति अदृश्य चीज को देखने की ताकत रखती होगी और तुम्हें देख लेगी।” पेशीराम का गम्भीर स्वर शब्दों के रूप में उसके मस्तिष्क से टकरा रहा था-“तब और भी असल खतरे तुम्हारे सामने आयेंगे।”

नगीना दांत भींचे आगे बढ़ती रही।

उस बड़े मकान का खुला दरवाजा करीब आ चुका था।

“भीतर प्रवेश करते ही पांच रास्ते अलग-अलग दिशाओं में जाते दिखेंगे। तुमने सफेद रास्ते पर आगे बढ़ना है। किसी दूसरे रास्ते पर पांव मत रख देना। ऐसा किया तो तुम उसी वक्त जल

कर राख हो जाओगी।”

“मैं सफेद रास्ते पर ही आगे बढ़ूँगी।”

मकान के खुले गेट के समीप पहुंचते ही नगीना ठिठकी।

वहीं से पांच रास्ते अलग-अलग रंग लिए, अलग-अलग दिशाओं में जा रहे थे। एक रास्ता सफेद सा नजर आ रहा था। जो कि टूटा-फूटा और उस पर सूखी सी झाड़ियां खड़ी हुई थीं। देखने में स्पष्ट था कि कम से कम वो रास्ता आगे बढ़ने के लिये नहीं है। जबकि दूसरे रास्ते बहुत हद तक साफ थे, आगे बढ़ने के लिये। सब रास्तों पर नजरें दौड़ाने के बाद नगीना सफेद वाले रास्ते पर आगे बढ़ने लगी। झाड़ियों से बचती, खड्डों से पांवों को बचाती रही।

वो रास्ता ज्यादा लम्बा नहीं था। कुछ आगे जाकर एक बरामदे पर पहुंच कर खत्म हो गया और अन्य रास्ते भी, उसी बरामदे पर आकर ही खत्म हो रहे थे।

बरामदे के करीब पहुंच कर ठिठकी नगीना।

“अब क्या करूं बाबा?”

“चलती रहो। बरामदा पार करके आगे जो दरवाजा नजर आ रहा है, उससे भीतर प्रवेश करो।”

नगीना ने बरामदे में पांव रखा और बरामदा पार करके, खुले दरवाजे से भीतर प्रवेश कर गई। सामने छोटा-सा कमरा था। वहां दो टेबलों के गिर्द कुर्सियां रखी हुई थीं।

“कमरा पार करो और जो दरवाजा नजर आ रहा है उसमें चली जाओ।”

नगीना दरवाजे की तरफ बढ़ी कि तभी कदमों की आहटें सुनाई दीं।

“रुक जाओ।” नगीना के मस्तिष्क में सरगोशी हुई-“कोई आ रहा है। एक तरफ हटो-।”

नगीना तुरन्त एक तरफ हटी और दीवार के साथ सटकर खड़ी हो गई।

उसी पल भीतर से दो व्यक्ति और एक युवती बाहर निकले और कमरा पार करते हुए बरामदे की तरफ से बाहर निकल गये।

कदमों की आवाजें दूर होती चली गईं।

“भीतर जाओ।”

नगीना दीवार के पास से हटी और दरवाजे से भीतर दूसरे कमरे में प्रवेश कर गई।

ये कमरा बैठक के रूप में सजा हुआ था। कुर्सियों पर गद्दियां रखी हुई थीं। बीच में चांदी का टेबल था। जिस पर फलों की टोकरी पड़ी थी। वहां दो व्यक्ति बैठे धीरे-धीरे बातचीत में व्यस्त थे। उन दोनों की मध्यम-सी खुसर-फुसर का एहसास हो रहा था।

बगल के दूसरे कमरे में से कुछ लोगों की बातचीत के स्वर कानों में पड़ रहे थे।

“यहां रुकने की जरूरत नहीं है।” पेशीराम की आवाज मस्तिष्क में पड़ी-“तीसरे कमरे में प्रेवश कर जाओ।”

नगीना बिना रुके तीसरे कमरे में प्रवेश कर गई।

वहां छः-सात व्यक्ति मौजूद थे। गिलासों में हरे रंग का तरल थे। पदार्थ डाले पी रहे थे। उन सबकी आंखें लाल सुर्ख हो रही थीं। गिलासों में नशे वाला पदार्थ था। पीने के दौरान वे ऊंची-ऊंची बातें कर रहे थे।

नगीना ठिठक कर उन्हें देखने लगी।

“रुको मत बेटी। आगे चलो। उस दरवाजे से चौथे कमरे में चलो।”

नगीना पुनः आगे बढ़ी और उन लोगों से बचते हुए आगे के दरवाजे में से प्रवेश करके चौथे कमरे में चली गई। ये कमरा सजा-सजाया बेडरूम था। बेड इतना बड़ा था कि चार व्यक्ति उस पर आसानी से नींद ले सकते थे। दीवारों पर युवतियों की खूबसूरत तस्वीरें लगी थीं। बदन पर उन्हें बहुत कम कपड़े पहने दिखाया गया था। इस कमरे में अन्य कोई दरवाजा नहीं था। न ही कोई खिड़की थी।

नगीना आंखें सिकोड़े इधर-उधर नज़रें घुमाने लगी।

“इस कमरे को तो पार करने का कोई रास्ता ही नहीं है बाबा।” नगीना के होंठ हिले।

“इस कमरे में रास्ते की कोई जरूरत नहीं है।” पेशीराम का स्वर मस्तिष्क से टकराया-“ये कमरा ही अपने आप में रास्ता है।”

“क्या मतलब?”

“बेड पर लेट जाओ-।”

“क्या?” नगीना के होंठों से हिचकिचाहट भरा स्वर निकला।

“जल्दी करो। बाहर बैठे व्यक्तियों में से कोई भीतर आ सकता है।”

नगीना के होंठ भिंच गये। दूसरे ही पल वो आगे बढ़ी और बेड पर चढ़कर उस पर लेट गई। तलवार को उसने मजबूती से पकड़ रखा था। नज़रें ऊपर गईं तो अचकचा-सी उठी। छत पर जबड़ा फाड़े शेर बना था। और इस तरह था कि देखने पर महसूस हो कि वो जिन्दा है और अभी छलांग लगा देगा।

नगीना ने अपने पर काबू पाया।

बेड के गद्दे नर्म थे। नगीना को अपना शरीर धंसता सा महसूस

हुआ।

“तलवार की नोक को चादर पर मार।”

“क्या मतलब?” बेड पर लेटी नगीना के होंठों से निकला।

“बेड पर बिछी चादर को फाड़ना है। छेद करना है। तलवार से ये काम आसानी से हो सकता है।”

“लेकिन ऐसा क्यों बाबा?”

“सवाल मत पूछो। जो कहा है, वो कर। सब सामने आ जायेगा।”

नगीना ने उसी पल तलवार वाला हाथ उठाया और नोक वाला हिस्सा चादर पर मारा। नोक चादर में छेद करके भीतर जा धंसी।

नगीना ने तलवार वापस खींची तो चादर में छेद-सा नजर आने लगा।

“इस चादर में शैतानी शक्ति मौजूद रहती है। जब तक इसमें छेद न हो। इसे थोड़ा-सा फाड़ा न जाये। तब तक शैतानी शक्ति रास्ता नहीं देती। अब रास्ता मिल जायेगा।”

“कैसा रास्ता?”

तभी बेड में हल्का सा कम्पन हुआ और वो फर्श में धंसने लगा।

नगीना दम साधे बेड पर लेटी रही। होंठ भिंच गये थे।

दूसरे कमरे से आती आवाजें अभी भी नगीना के कानों में पड़ रही थीं।

कुछ पलों बाद ही नगीना समझ गई कि फर्श का वो हिस्सा जिस पर बेड है, वो नीचे होता जा रहा है। बाकी का फर्श अपनी जगह मौजूद था और वो बेड पर लेटी, फर्श के पार, नीचे चली गई थी। दो पलों के लिये उसे घुप्प अंधेरा-सा महसूस हुआ और फिर नगीना ने बेड सहित खुद को रोशनी में पाया।

बेड उसे नीचे के कमरे में ले आया था।

“बेटी! बेड फर्श पर टिकने वाला है। फर्श पर बेड के लगते

ही तुरन्त नीचे उतर जाना। क्योंकि उसी पल ये वापस जाने लगेगा।” पेशीराम के शब्द नगीना को अपने मस्तिष्क से टकराते महसूस हुए।

नगीना होंठ भींचे उसी तरह बेड पर लेटी रही।

तीसरे ही पल बेड के नीचे का फर्श, कमरे के फर्श पर लगा और एकाएक वो वापस जाने लगा। तब तक नगीना बेड से उछल कर फर्श पर उतर आई थी। अजीब-सी निगाहों से वो बेड को ऊपर वाले फर्श के साथ ऊपर जाते देख रही थी।

ऊपर छत में बेड के साईज जितना फर्श खाली नजर आ रहा था और ऊपर के कमरे की छत पर बना शेर स्पष्ट नजर आ रहा था। फिर उस कटे फर्श में बेड समाता चला गया। धीरे-धीरे बेड बिल्कुल ही ऊपर चला गया और बेड के नीचे का फर्श, इस कमरे की छत बन गया। देखने पर जरा भी आभास नहीं हो पा रहा था, इस कमरे की छत के बीच का हिस्सा नीचे भी जा सकता है।

नगीना की निगाहें कमरे में फिरने लगीं।

☐☐☐

बेहद तीव्र प्रकाश फैला हुआ था कमरे में।

फर्श-दीवारों और छत पर आंखों को चौंधिया देने वाली चमक फैली हुई थी। खाली-प्लेन दीवारें थीं। वहां महक फैली हुई थी। जैसे किसी ने धूप जला रखी हो, परन्तु कहीं भी धूप या उस जैसी कोई चीज वहां नजर नहीं आ रही थी। बेहद शांत और अजीब-सा माहौल था वहां।

जो चीज सबसे ज्यादा न समझ में आने वाली और बेहद आकर्षित कर रही थी, वो था ताबूत जैसा बक्सा। जो कि कमरे के बीचो-बीच मौजूद था।

वो स्याह काले रंग का बक्सा था।

परन्तु उस पर सोने की तारों और सोने की पट्टियों के डिजाईन बनाकर नक्काशी की गई थी जो कि बहुत ही खूबसूरत लग रही थी और चमक रही थी।

नगीना आंखें सिकोड़े उस ताबूत को एकटक देखे जा रही थी।

“बेटी-!”

“कहो बाबा!” नगीना के होंठ हिले-“ये-ये ताबूत जैसा। बक्सा क्या है?”

“ये बक्से में जो है, वो शैतानी सृष्टि को जड़ से हिला सकता है।” पेशीराम के शब्द नगीना के मस्तिष्क से टकराये।

“क्या?” नगीना दो पल के लिये हक्की-बक्की रह गई।

“हैरान हो गई?” इस बार पेशीराम के शब्दों में मुस्कराहट थी।

“हां बाबा! हैरानी की ही तो बात है। भला ऐसा कौन है जो शैतान की सृष्टि की जड़ को हिला दे।”

“तांत्रिक और जादुई-मायावी शक्तियों का मालिक सौदागर सिंह।” पेशीराम के शब्दों को महसूस कर रही थी नगीना-“बहुत ही अजीब बातें हैं सौदागर सिंह की।”

“मैं समझी नहीं-।”

“तीन सौ बरस पहले सौदागर सिंह गुरुवर का ही शिष्य था।”

“गुरुवर का?” नगीना के होंठों से निकला।

“हां। गुरुवर का होनहार, बहुत ही खास शिष्य।” पेशीराम के गम्भीर स्वर नगीना के मस्तिष्क से टकरा रहे थे-“गुरुवर ने सौदागर सिंह को विद्याओं से भर दिया। सौदागर सिंह भी तेज

मस्तिष्क रखता था। वो गुरुवर से सब कुछ सीखता चला गया। गुरुवर को पूरा विश्वास था कि सौदागर सिंह विद्याओं से, लोगों का भला करेगा। यही वजह थी कि गुरुवर ने कोई कमी न छोड़ी और सौदागर सिंह को ढेर सारी विद्याओं का ज्ञान दे दिया।”

पेशीराम को खामोश हुआ पाकर नगीना बोली।

“बताओ बाबा! फिर क्या हआ? आप खामोश क्यों हो गये?”

“जब सौदागर सिंह ढेर सारी विद्याओं का ज्ञानी बन गया तो उसमें घमण्ड भर आया। वो अपनी मन मर्जी करने लगा। गुरुवर ने बहुत समझाया, परन्तु सौदागर सिंह की बिगड़ी हरकतें बढ़ती ही चली गईं। वो अपने फायदे के काम करके मासूमों को सताने लगा। वो इतनी ज्यादा विद्याओं का ज्ञाता था कि उसका कुछ बिगाड़ पाना आसान नहीं था और गुरुवर कभी भी अपने शिष्य को कुछ नहीं कह पाते, जिसे विद्या दी हो उन्होंने। क्योंकि वो जानते हैं कि उनकी सिखाई विद्याओं का जो गलत इस्तेमाल करेगा उसके साथ शीघ्र ही बहुत बुरा होगा।” पेशीराम की आवाज नगीना को महसूस हो रही थी-“इधर शैतान हमेशा गुरुवर पर नजर रखता है। उसने जब देखा कि सौदागर सिंह बहुत बड़ा ज्ञानी बन चुका है, परन्तु उसकी हरकतें बुरे रास्ते पर जा रही हैं तो शैतान ने सौदागर सिंह को अपने साथ मिलाने की सोच कर सौदागर सिंह से बात की। गुरुवर का साथ छोड़कर शैतान से मिल जाने की बात सुनकर, सौदागर सिंह सोच में पड़ गया। सौदागर सिंह जो भी करता हो, परन्तु शैतान का साथ देने का उसने सोचा नहीं था कभी।”

“तो क्या सौदागर सिंह ने शैतान का साथ दिया? नगीना के होंठ हिले।

“हां दिया। शैतान से सौदागर सिंह ने सौदेबाजी की कि अपने आसमान का तीसरा हिस्सा उसे देगा, जिसका कि वो मालिक है। उस पर वो जो भी करे, शैतान को एतराज नहीं होगा। शैतान ने उसकी बात तुरन्त स्वीकार कर ली कि अपने शैतानी आसमान के तीसरे हिस्से का मालिक उसे बना देगा। गुरुवर को ये बात पता चली तो वो उसी वक्त सौदागर सिंह के पास पहुंचे। उसे बहुत समझाया कि शैतान का साथ मत दे। बुरे रास्ते पर न जाये, परन्तु सौदागर सिंह शैतानी जमीन पर अपना साम्राज्य बनाने के सपने देख रहा था। गुरुवर ने अपनी शक्ति को इस्तेमाल करके सौदागर सिंह के भविष्य में झांका और उसे बताया कि शैतान उसे दगा देगा और उसे बुरी कैद में डाल देगा, परन्तु सौदागर सिंह ने तो सोच रखा था कि एक दिन शैतान को मार कर उसके पूरे आसमान का मालिक बन जायेगा और फिर एक दिन वो भी आया कि शैतान उसे अपने आसमान पर ले गया। वहां उसने सौदागर सिंह को शैतानी विद्या सिखाई। शैतानी विद्याएं और गुरुवर की दी विद्याओं का ज्ञाता बन गया सौदागर सिंह। वो वास्तव में अपने आप में एक शक्त बन गया था। वायदे के मुताबिक शैतान ने उसे अपने आसमान का तीसरा हिस्सा दे दिया और अपने हिस्से की जमीन पर सौदागर सिंह अपनी शक्ति द्वारा खतरनाक ताने-बाने बुनने लगा। गुरुवर की और शैतान की, दोनों शक्तियों का इस्तेमाल किया इस काम में उसने। दोनों शक्तियों का एकमात्र ज्ञानी सौदागर सिंह ही था।”

पेशीराम की आवाज न आने पर फिर नगीना बोली।

“आगे बताओ बाबा।

“शैतान उन दोनों शक्तियों के पार नहीं देख सकता था। क्योंकि गुरुवर की शक्ति बीच में आ रही थी इसलिये उसके कहने पर महामाया सौदागर सिंह की हरकतों पर पूरी तरह नजर भी रख

रही थी और उसके बनाये खेल को भी समझ रही थी। पचास बरस में सौदागर सिंह ने अपने इस कार्य को पूरा किया। फुर्सत मिलते ही उसने शैतान को खत्म करने की सोची और अपनी योजनाएं तैयार करने लगा। महामाया ने उसके विचारों को पढ़ लिया। वो कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती थी। क्योंकि सौदागर सिंह के पास शैतानी शक्तियों के अलावा गुरुवर की भी शक्ति मौजूद थी। तांत्रिक और ज्ञानी बन चुका था सौदागर सिंह। महामाया ने शैतान को सावधान कर दिया। शैतान को ये बात पसन्द नहीं आई कि सौदागर सिंह उसे खत्म करने का विचार मन में लाये। बहुत सोच-समझ कर शैतान ने इस ताबूत को बनवाया और सौदागर सिंह को धोखे से अपनी शक्तियों से बांधकर, इस ताबूत में कैद कर लिया। उसके बाद शैतान ने सौदागर सिंह से बहुत जानने की चेष्टा की कि चक्रव्यूह जैसे ताने-बाने जो उसने बनाये हैं, उनका तोड़ क्या है। उन्हें कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है? सौदागर सिंह ने कहा पहले उसे आजाद करे। तब बताऊंगा। परन्तु शैतान, सौदागर सिंह को आजाद करने का खतरा नहीं मोल लेना चाहता था। आखिर शैतान ने महामाया से पूछा कि सौदागर सिंह ने जो चक्रव्यूह बनाया है, उसका ज्ञान उसे कैसे मिल सकता है? महामाया को उन चीजों का जोड़-तोड़ मालूम था। इस तरह इस जगह की जानकारी शैतान को मिल गई। शैतान को सौदागर सिंह के बनाये रास्ते इतने बढ़िया लगे कि उसने कैद कर रखी आत्माओं को उसी जगह पर बना सबसे मुनासिब लगा।”

“ओह!” नगीना के होंठ हिले-“तो सौदागर सिंह तब से अभी तक कैद है।”

“हां-। वो कम से कम ढाई सौ बरस से कैद भुगत रहा है।” “आपको कैसे मालूम?”

“गुरुवर ने बताया था। गुरुवर से जो विद्या सीख लेता है। उसकी हरकतों की जानकारी उन्हें होती रहती है।” पेशीराम की आवाज नगीना के मस्तिष्क को छू रही थी-“इन ढाई सौ बरसों में सौदागर सिंह की विद्या पहले से कई गुणा बढ़ चुकी है। अब तो शैतान भी उसके मुकाबले पर उतरने से पहले सोचेगा।”

“सौदागर सिंह तो कैद में है। कैद में उसकी विद्या कैसे बढ़ सकती है।” नगीना के होंठ हिले। नजरें बक्से पर थीं।

“शक्ति बढ़ाने के सारे मंत्र, सब तरीके सौदागर सिंह जानता है। उन मंत्रों का इस्तेमाल करके सौदागर सिंह अपनी शक्ति बढ़ाता जा रहा है। शैतान ने उसे बेहद खास शक्ति इस्तेमाल करके कैद किया है। इसलिये सौदागर सिंह कैद से आजादी नहीं पा सकता। तभी आजादी पा सकता है, जब उसे कोई आजाद कर दे।”

“शैतान को सौदागर सिंह से खतरा है तो वो, सौदागर सिंह को खत्म क्यों नहीं कर देता बाबा?”

“लालच में है शैतान-।” पेशीराम का गम्भीर स्वर नगीना के मस्तिष्क से टकराया-“मैं पहले ही बता चुका हूं कि सौदागर सिंह आज बे-पनाह ताकत का मालिक है। शैतान उसकी ताकतों की इज्जत करता है और लालच इस बात का है कि सौदागर सिंह अगर उसके अधीन काम करना मान ले तो, उसका नाम दूर-दूर तक फैल जायेगा। हर कोई उससे कांपने लगेगा। कोई भी उसके मुकाबले पर आने की नहीं सोचेगा।”

“ओह-!” नगीना की नजरें बक्से पर थीं। चेहरे पर अजीब-से

भाव आ ठहरे थे।

“बक्से का ढक्कन खोल बेटी-।”

नगीना के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे।

“डर मत! बक्से का ढक्कन खोल दे-।”

नगीना ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। फिर बक्से के करीब पहुंचकर फंसे कुंडे को हटाया और एक हाथ से बक्से के उस भारी ढक्कन को खोल दिया। भीतर निगाह पड़ते ही नगीना की आंखें फैलती चली गईं। वो चिहुंक कर तीन-चार कदम पीछे होती चली गई।

☐☐☐