धर्मा ने फोन बंद किया और एक्स्ट्रा को देखा ।

एक्स्ट्रा करीब ही बैठा उसकी सारी बातें सुन रहा था ।

"डकैती मास्टर देवराज चौहान का मुकाबला कर रहे हैं हम ।" धर्मा ने कहा- "राघव उसकी कैद में पहुंच चुका है ।"

"देवराज चौहान।" एक्स्ट्रा ने मुंह बनाया- "सुन रखा है कि खतरनाक बंदा है ।"

"शायद हम महसूस भी कर चुके हैं कि वो हमसे कम नहीं है ।" धर्मा ने बेचैनी से पहलू बदला ।

एक्स्ट्रा गंभीर नजर आने लगा था ।

"इस वक्त की सबसे खतरनाक बात ये है कि कोई बंगले में है जो देवराज चौहान और जगमोहन को बंगले की खबर दे रहा है। बंगले में ही से ये बात उन लोगों को किसी ने बताया कि राघव जगजीत के पास गया है और वहां राघव पर हाथ डाल दिया ।"

"यकीनन राघव लापरवाह रहा होगा ।"

"तो उसे क्या पता था कि जगजीत के यहां उसके लिए जाल बिछा होगा।" धर्मा ने कहा- "बंगले में उनका खबरी कौन हो सकता है ?"

दोनों की नजरें मिलीं।

"राघव, जगजीत के पास गया। ये बात किन-किन को मालूम थी ?" धर्मा बोला ।

"हमें, रतनचंद को। सुन्दर को ।"

"सुन्दर से ये बात गनमैन के सामने भी निकल सकती होगी ।" एक्स्ट्रा ने सोच भरा चेहरा हिलाया ।"

इस तरह हम काम कैसे कर सकेंगे कि हमारी खबरें बंगले से बाहर जा रही हैं ।" धर्मा ने दांत भींचकर कहा ।

"खबरें बाहर करने वाला सुन्दर भी हो सकता है ।"

"रतनचंद से इस बारे में बात करते हैं, वो तो कहता है कि सुन्दर उसका खास है ।"

"इसमें रतनचंद भी क्या करेगा। अगर सुन्दर दगाबाज बन जाये ? देवराज चौहान ने सुन्दर को खरीदा हो सकता है ।"

"लेकिन ये सब पक्की बातें नहीं है, हमारी सोच है ।"

"जो भी हो, राघव मुसीबत में जा फंसा है, ये हमारे लिए बड़ी बात है ।"

धर्मा और एक्स्ट्रा रतनचंद यानि कि देवराज चौहान के कमरे में पहुंचे ।

बैड पर लेटा हुआ था देवराज चौहान। कमरे में जीरो वॉट का बल्ब जल रहा था ।

एक्स्ट्रा ने बड़ी लाइट ऑन की तो देवराज चौहान फौरन उठ बैठा। दोनों को देखा ।

"कोई खास बात ?" देवराज चौहान की आवाज में शांत भाव थे।

"तुम्हारी हत्या डकैती मास्टर देवराज चौहान करना चाहता है ।" एक्स्ट्रा बोला ।

"क्यों ?" पल भर के लिये तो देवराज चौहान अचकचा उठा ।

"देवराज चौहान ने ही तुम्हारी हत्या के तीन करोड़ में सुपारी ली है ।"

"किसने बताई ये बात ?"

"जगमोहन ने, जो देवराज चौहान का साथी है ।"

अब देवराज चौहान समझा कि मामला क्या है ।

"जगमोहन से कैसे बात हो गई तुम्हारी ?" रतनचंद की आवाज में बोल रहा था देवराज चौहान ।

"राघव, देवराज चौहान की कैद में जा पहुंचा है। राघव का फोन जगमोहन के पास आया था और उससे बात हो गई ।"

"राघव कैसे ?"

"रतनचंद ।" धर्मा कठोर स्वर में बोला- "राघव जगजीत के फ्लैट पर गया था देवराज चौहान और जगमोहन को ये बात पता चल गई। जगमोहन का कहना है कि ये बात उन्हें बंगले के ही किसी आदमी ने बताई।"

"ओह ! तो देवराज चौहान ने राघव को कैद कर लिया है ।"

"हां ।"

"वो क्या उसे मारेंगे ?"

"पता नहीं, वैसे जगमोहन का कहना है कि राघव को, तुम्हारी हत्या करने के बाद छोड़ दिया जायेगा ।"

"और जगजीत भी देवराज चौहान की कैद में है ।"

"जगमोहन ने ही बताया सब कुछ?" रतनचंद बना देवराज चौहान भोलेपन से बोला ।

"हां ।"

"अब सबसे बड़ा सवाल तो ये पैदा होता है कि देवराज चौहान को किसने खबर दी कि राघव, जगजीत के फ्लैट पर गया है ।"

"जिसे पता हो, वो ही तो ये खबर आगे भेजेगा ।"

"हमारे अलावा ये बात तुम्हें और सुन्दर को पता थी ।"

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।

"तुम कहते हो कि सुन्दर तुम्हारा विश्वासनीय  है,  वो गद्दारी नहीं करेगा ।"

"ये बात तो मैं अब भी कहता हूं ।"

"तो फिर तुमने देवराज चौहान को खबर दी होगी कि राघव, जगजीत के फ्लैट पर गया है ।" धर्मा कड़वे स्वर में बोला ।

"मैं खबर क्यों दूंगा ?"

"वो ही तो हम कहते हैं कि तुम खबर क्यों करोगे। करेगा तो सुन्दर ।"

देवराज चौहान दोनों को देखने लगा ।

"क्या सोच रहे हो रतनचंद ।" धर्मा ने पूछा ।

"सुन्दर गद्दारी नहीं कर सकता ।" देवराज चौहान कह उठा ।

"क्यों नहीं कर सकता ?" धर्मा ने दांत भींचकर कहा।

"वो मेरा परखा हुआ है और पूरी तरह भरोसे के काबिल है ।" देवराज चौहान ने स्वर को गंभीर बना कर कहा- "इन बातों में सबसे बड़ी सोचने की बात तो ये है कि देवराज चौहान ने जगजीत को कैद में रख लिया ?"

"क्या मतलब ?" धर्मा की आंखें सिकुड़ी ।

"राघव को तो उसने इसलिए पकड़ा होगा कि उससे दुश्मनी चल रही है । एक को पकड़, तुम तीनों की तिकड़ी को कमजोर करें और तुम लोग राघव की वजह से परेशान हो जाओ, परंतु जगजीत को कैद में रखने के पीछे देवराज चौहान का क्या इरादा हो सकता है ?"

धर्मा और एक्स्ट्रा की नजरें मिलीं।

"रतनचंद, तूने सही बात पकड़ी ।"एक्स्ट्रा होंठ सिकोड़ कर बोला- "तेरा दिमाग चलता है।"

धर्मा, एक्स्ट्रा से कह उठा-

"तेरा क्या ख्याल है कि देवराज चौहान ने, जगजीत को क्यों कैद किया होगा ?"

"मेरे ख्याल में कुछ भी नहीं है ।" एक्स्ट्रा सोच भरे स्वर में कह उठा- "ये बात तो हमारे सामने स्पष्ट हो चुकी है कि देवराज चौहान ने भी जगजीत से रतनचंद के चेहरे का मस्क बनवाया । क्योंकि रतनचंद के रूप में ही देवराज चौहान, काशीनाथ से मिला था। परंतु जगजीत को कैद करने के पीछे उसका क्या मकसद हो सकता है, ये आसानी से समझ नहीं आयेगा ।"

"आसानी से समझ में नहीं आयेगा ?"

"क्योंकि देवराज चौहान बहुत ठंडे दिमाग से हमसे चालबाजियां  चल रहा है । उसकी बात को हम समझ नहीं पा रहे ।"

धर्मा कुछ कहने लगा कि तभी सुन्दर ने भीतर प्रवेश किया ।

"तुम दोनों यहां हो, मैं वहां कमरे में गया परंतु-।"

"कोई काम था ?"

"कॉफी के लिए पूछने गया था ।"

"कॉफी भी पी लेंगे ।" एक्स्ट्रा ने कहा- "तुम्हें मालूम था कि राघव, जगजीत के पास गया है ?"

"मालूम था ।" सुन्दर ने फौरन सिर हिलाया।

"तुमने ये बात किसी को बताई ?"

"मैं क्यों बताऊंगा ?"

"शायद किसी के सामने मुंह से निकल गई हो ।"

"नहीं। तुम लोगों की बात मैं किसी से क्यों करूंगा? लेकिन  हुआ क्या, सब ठीक तो है ?" सुन्दर ने पूछा।

एक्स्ट्रा ने उसे सारी बात बताई ।

"मैंने किसी से कुछ नहीं कहा।" सुन्दर  सब कुछ जान कर कह उठा ।

"तुम देवराज चौहान के हाथों बिके हुए तो नहीं हो? तुमने ही देवराज चौहान को बताया हो कि-।"

"बस, आगे मत बोलना।" सुन्दर का चेहरा कठोर हो गया- "मेरी तरफ उंगली उठाने की कोशिश मत करो। जिस काम के लिये आये हो, उस पर ध्यान दो। ठीक से काम नहीं कर पा रहे हो और मुझ पर उंगली उठाने लगे ।"

"तेरी तो-।" धर्मा ने गुस्से से कहना चाहा ।

एक्स्ट्रा ने धर्मा को रोका ।

"ये हमारा मामला नहीं है, सुन्दर को देखना रतनचंद का काम है। हम इस बात का ध्यान रखेंगे कि हम जो करें, वो सुन्दर न जान सके ।"

सुन्दर ने दोनों को घूर कर देखा और बाहर निकल गया ।

"रतनचंद ।" एक्स्ट्रा कह उठा- "अब ये तुम ही सोचो की बात बाहर कैसे गई ?"

इसके बाद एक्स्ट्रा और धर्मा कमरे से बाहर निकल गये।

रतनचंद बने, देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान थिरक उठी ।

कमरे में पहुंचते ही एक्स्ट्रा कह उठा-

"राघव खतरे में है। जैसे भी हो, हमें राघव को देवराज चौहान के हाथों से निकाल लाना होगा ।"

"ठिकाना पता करना होगा ।"

"ये आसान नहीं होगा।" धर्मा ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा।

"आसान तो नहीं होगा, लेकिन इस बारे में गोकुल से बात की जा सकती है ।"

"गोकुल ।" धर्मा ने एक्स्ट्रा को देखा ।

"ठीक रहेगा ?" एक्स्ट्रा बोला ।

धर्मा ने सिर हिला दिया ।

एक्स्ट्रा ने फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा ।

रात का डेढ़ बज रहा था।

दूसरी तरफ से बेल हुई और होती रही। काफी देर बाद ही उधर से बात की गई ।

"हैलो ।" स्वर में नींद के भाव भरे पड़े थे ।

"गोकुल ।" एक्स्ट्रा बोला ।

"नाम बोल-नाम अपना ।"

"R.D.X ।"

"ओह ।"  अगले ही पल गोकुल की आवाज में चुस्ती आ गई- "एक्स्ट्रा, अब पहचाना। लेकिन तुमने नींद खराब कर दी ।"

"काम सुन ।"

"खाली-खाली काम ही है या कुछ मिलेगा भी ?"

"काम जल्दी जितनी जल्दी करेगा, उतना ही ज्यादा पैसा मिलेगा ।"

"फंसे पड़े लग रहे हो। बोल-कर बता ।"

"डकैती मास्टर देवराज चौहान का ठिकाना जानना है ।"

"देवराज चौहान ?"

"हां-वो ।"

"एक्स्ट्रा, ये बहुत ही कठिन काम है। देवराज चौहान का ठिकाना मालूम करना आसान होता तो पुलिस ने कब का कर लिया होता ।"

"ये जरूरी है गोकुल ।" एक्स्ट्रा ने अपने शब्दों पर जोर दिया- "तेरे को ज्यादा पैसा मिलेगा ।"

"ठीक है, पता करने की कोशिश करता हूं। नींद तो तुमने खराब कर दी। दो चार फोन खड़का कर पूछता हूं । लेकिन देवराज चौहान से क्या पंगा हो गया? वो ठीक बंदा नहीं है। सुना है काफी खतरनाक है ।"

"R.D.X के बारे में नहीं सुना क्या ?"

"समझ गया। पंगा तगड़ा है, मैं मालूम करके तुम्हें फोन कर रहा हूं ।"

"मैं तेरे फोन के इंतजार में जाग रहा हूं ।"

उधर से गोकुल ने फोन बंद कर दिया। एक्स्ट्रा ने फोन टेबल पर रख दिया ।

"हम क्या कर रहे हैं, ये बात किसी को पता नहीं चलना चाहिये।" धर्मा ने कहा ।

"ठीक कहते हो। बंगले से बातें निकल कर देवराज चौहान के पास पहुंच रही है ।"

"मुझे तो सुन्दर पर शक है कि वो-।"

"इस मामले में चुप रहना ही अच्छा है। वरना सुन्दर हत्थे से उखड़ेगा और उसके खिलाफ हमारे पास कोई सबूत नहीं है ।"

धर्मा होंठ भींच कर रह गया ।

"गोकुल ने देवराज चौहान का ठिकाना बता दिया तो हम अभी उस तरफ निकल जायेंगे ।" एक्स्ट्रा बोला- "आज से पहले हमें किसी ने इस तरह टक्कर नहीं दी ।" धर्मा ने कहा ।

एक्स्ट्रा ने कुछ नहीं कहा और कमरे में टहलने लगा ।

"देवराज चौहान इसलिए हम पर भारी पड़ रहा है कि वो छिपकर वार कर रहा है। हम उसके बारे में नहीं जान पाये, जबकि वो हम पर पूरी तरह नजर रखे रहा और हमारी बातें, मूवमेंट उस तक पहुंचतीं रहीं ।"

"वो हम पर भारी पड़ा ?" एक्स्ट्रा मुस्कुराकर खतरनाक स्वर में कह उठा- "यूं समझो कि उसने अपनी बारी चली। अब हमारी बारी है । हमें भी जल्द ही मौका मिलेगा कुछ करने का ।"

"इस वक्त मुझे सिर्फ राघव की चिन्ता है ।"

तभी टेबल पर रखा मोबाइल फोन बजा ।

"हैलो।" एक्स्ट्रा ने फौरन फोन उठाकर बात की ।

"एक्स्ट्रा ।" गोकुल की आवाज कानों में पड़ी- "कईयों से फोन करके पूछा है देवराज चौहान के बारे में। परन्तु उसके ठिकाने के बारे में कोई नहीं जानता। एक ने कहा है कि सोहनलाल बता सकता है देवराज चौहान के बारे में ।"

"सोहनलाल ?"

"मशहूर तालातोड़ । बड़े-बड़े ताले पलक झपकते ही खोल लेता है । बहुत बार देवराज चौहान के साथ काम कर चुका है ।"

"कहां मिलेगा ये ?"

गोकुल ने सोहनलाल के फ्लैट का पता बताया । फिर पूछा-

"बात क्या है, क्या पंगा हो गया ?"

"तूने अभी तक पैसे कमाने वाला कोई काम नहीं किया ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

"क्या कहता है ? तेरे को अभी सोहनलाल के बारे में-।"

"देवराज चौहान के बारे में जानना है मुझे। पता कर और जल्दी से मुझे बता ।"

"ठीक है। और पता करता हूं। आधी रात का वक्त है, किसी को फोन करता हूं तो वो काट खाने को दौड़ता...।"

एक्स्ट्रा ने फोन रखा और धर्मा से बोला-

"देवराज चौहान के पहचान वाले सोहनलाल का पता मालूम हुआ है । शायद वो जानता हो कि देवराज किधर मिलेगा ।"

"हम दोनों सोहनलाल के पास चलेंगे ।" धर्मा कह उठा-

"हम दोनों में से कोई भी तब तक अकेला बाहर नहीं जायेगा, जब तक देवराज चौहान से निपट नहीं लिया जाता। उसकी नजर हम पर है और राघव के अकेले होने का फायदा उठाकर, देवराज चौहान ने उसे पकड़ लिया ।"

"सच बात तो ये है कि राघव उस वक्त सतर्क नहीं होगा ।" एक्स्ट्रा ने कहा- "अभी चल, सोहनलाल के पास चलते हैं ।"

"अगर सोहनलाल को देवराज चौहान का पता भी हुआ तो हमें, उसका ठिकाना बतायेगा क्यों ?" धर्मा बोला ।

"मैं बात ही इस ढंग से करूंगा कि वो हमें अवश्य बता देगा ।"

एक्स्ट्रा और धर्मा बाहर की तरफ बढ़ गये ।

रास्ते में सुन्दर मिला।

"कहीं जा रहे हो क्या ?" सुन्दर बोला ।

"कुछ काम है, घंटे भर में लौट आयेंगे ।" एक्स्ट्रा ने मुस्कुरा कर कहा ।

■■■

सोहनलाल और जगजीत आज दिन भर साथ रहे थे। शाम आठ बजे वे उठे थे। यही वजह थी कि रात के इस वक्त भी दोनों जागे हुए थे और वक्त बिताने के लिए टी.वी. देख रहे थे ।

जगजीत के हाथ सोहनलाल ने पीछे की तरफ बांध रखे थे । ताकि यहां से फरार होने के लिये वो कोई हरकत ना कर दे । खाने-पीने के दौरान ही जगजीत के हाथ खोलता था । नींद लेते वक्त सोहनलाल, जगजीत की टांगें भी बांध देता था कि उसकी नींद का फायदा उठाकर कोई हरकत ना कर दे ।

बंधनों की वजह से जगजीत परेशान हो चुका था ।

"मैं तुम्हारे पास ही हूं, ऐसे में मेरे हाथ-पांव बांधने की जरूरत क्या...?"

"तुम मेरे पास हो, तभी तो तुम्हारे हाथ-पांव बांध रहा हूं । क्या भरोसा तुम्हारा की टेबल उठा कर मेरे सिर पर मार दो ।"

"मुझ पर भरोसा नहीं क्या ?"

"तूने अपनी बहन मेरे से ब्याही है, जो तुम्हारा भरोसा करूं ?" सोहनलाल भोलेपन से बोला ।

जगजीत ने उसे घूरा।

"उखड़ गया-।" सोहनदान ने आंखें नचाईं ।

"अच्छा ही किया जो तू मेरे हाथ बांध के रखता है ।" जगजीत ने कड़वे स्वर में कहा ।

"क्यों ?"

"हाथ खुले होते तो बहन ब्याहने की बात पर, मैं तेरी जान जरूर ले लेता ।" जगजीत कठोर स्वर में बोला ।

"इसमें नाराज होने की क्या बात है, आखिर बहन किसी से तो ब्याहेगा ही, कोई तो उसे-।"

"मेरे हाथ खोल, फिर बताता हूं-।"

"साला !" सोहन लाल ने दांत दिखाये - "मुझे बेवकूफ समझता है जो तेरे हाथ खोलूंगा ।"

जगजीत तिलमिलाया-सा सोहनलाल को देखने लगा ।

"R.D.X को कब से जानता है ?" सोहनलाल ने पूछा ।

"चार सालों से ।"

कितनी बार उनके लिए फेसमॉस्क बनाया ?"

"दो बार। मैं फेस मॉस्क ही नहीं कई तरह के अन्य काम भी करता हूं । किसी भी तरह के सरकारी विभाग का आई-कार्ड बनवाना हो, दो घंटे में बना दूंगा और मेरा बनाया नकली कार्ड, असली से भी असली होगा ।"

"पहुंचा हुआ कारीगर है, और क्या गुल खिलाता है तू ?"

"हर तरह की डुप्लीकेट कागजात बना सकता हूं ।"

"नोट तगड़े लेता होगा इस काम के ?"

"हां, धंधा है ये तो ।"

"ऐसे में तू कभी भी अपनी बहन मेरे से ब्याह कर, मेरे लिए मुफ्त काम नहीं करना चाहेगा ।" सोहनलाल ने दांत फाड़े।

"तेरी तो-।"

तभी कॉलबेल बजी ।

बरबस ही सोहनलाल की निगाह वॉल क्लॉक पर गई, जहां घड़ी के रात में घड़ी में रात के ढाई बज रहे थे ।

जगजीत के शब्द मुंह में ही रह गये ।

"कौन हो सकता है ?" जगजीत में अजीब से स्वर में पूछा ।

सोहनलाल ने कुछ नहीं कहा और उठकर कमरे से बाहर निकल गया ।

ड्राइंग रूम में पहुंचा और मैन दरवाजे की सिटकनी हटाकर दरवाजा खोला ।

अगले ही पल सोहनलाल की ऐसी हालत हुई, जैसे अंजाने में सांप पर पांव रख दिया हो। परन्तु कमाल तो ये रहा कि चेहरे के भाव सामान्य ही रहे । बेहद शांत दिखा वो।

सामने एक्स्ट्रा और धर्मा खड़े थे ।

"ये वक्त है किसी के घर की बेल बजाने का ?" सोहनलाल दिलो-दिमाग की भीतरी हलचल पर काबू पाता कह उठा।

"सोहनलाल हो तुम ?"

"बिल्कुल हूं ।"

'इस वक्त तुम्हें तकलीफ देने की माफी चाहते हैं ।" धर्मा मुस्कुराया- "हम भीतर आकर बात करें तो ज्यादा ठीक रहेगा ।"

"मैं तुम दोनों को नहीं जानता । फिर भी आना...।"

"सोहनलाल, हम बहुत ही खास काम से आये हैं ।"

"काम बोलो ।"

"बहुत बड़ी डकैती की प्लानिंग है हमारे सामने, परन्तु करने का हौसला नहीं है। पता लगा कि तुम डकैती मास्टर देवराज चौहान को जानते हो तो, सीधा तुम्हारे पास आ गये। आखिर यार ही यार के काम आता है ।" धर्मा ने दोस्ताना स्वर में कहा।

सोहनलाल का दिमाग तेजी से काम कर रहा था।

"यार कौन तुम -देवराज चौहान ?"

"सब ही यार हैं । यार को यार से फायदा होगा तो-।"

"यहीं रुको ।" सोहनलाल कह उठा- "मैं पांच मिनट बाद दरवाजा खोलूंगा। तब तुम भीतर आना।" इसके साथ ही सोहनलाल ने दरवाजा बंद कर लिया ।

एक्स्ट्रा और धर्मा की नजरें मिलीं ।

सोहनलाल होंठ सिकोड़े जगजीत के पास पहुंचा ।

इतना तो सोहनलाल समझ चुका था कि एक्स्ट्रा और धर्मा ने उसके बारे में पता लगा लिया होगा कि वो देवराज चौहान को जानता है, ये भी पता लगा लिया होगा कि रतनचंद के पीछे देवराज चौहान हैं । ऐसे में ये उसके पास देवराज चौहान की टोह लेने आ गये है। यकीनन ये ही वजह होगी, इसके यहां आने के पीछे ।

जगजीत ने सोहनलाल को देखा ।

"रिश्तेदार आए हैं मेरे ।" सोहनलाल एक तरफ पड़ी नाईलॉन की रस्सी उठाता बोला ।

जगजीत ने रस्सी को देखा और आंखें सिकोड़ कर कह उठा-

"रिश्तेदार आये हैं तो रस्सी उठाने की क्या जरूरत है ?"

"तेरी टांगे बांधनी हैं, हाथ तो पहले ही बने पड़े हैं। दरअसल मैं नहीं चाहता कि तू बातों के दौरान परेशान-।"

"मैं भला क्यों परेशान करूंगा ?"

सोहनलाल उसकी टांगों को बांधने लगा ।

जगजीत गुस्से से सोहनलाल को देखता रहा ।

उसकी टांगे बांधने के बाद सोहनलाल ने अलमारी से कपड़ा निकाला और उसके मुंह में ठूँसने लगा ।

"ये क्या कर रहे....।"

"थोड़ी देर बर्दाश्त कर ले तकलीफ ।" सोहनलाल कठोर स्वर में बोला- "वरना तेरे को गोली खानी पड़ेगी ।"

जगजीत बात मानने को मजबूर था ।

सोहनलाल ने उसके मुंह में कपड़ा ठूंस दिया ।

अब जगजीत बुरे हाल बैड पर पड़ा था ।

"अब तो जंच रहा है ।" सोहनलाल विषैले स्वर में मुस्कुराया-"जानता है बाहर कौन आया है ?"

पूछने के लिए जगजीत ने आंखें नचाईं ।

"एक्स्ट्रा और धर्मा ।"

जगजीत की आंखें फैल गईं । वो तड़पा ।

"शांत रह शांत । वैसे तो मैंने तेरे को अच्छी तरह फिट कर दिया है इस पर भी तूने उन दोनों को अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाने की चेष्टा की तो सबसे पहले मैं तेरे को गोली मारूंगा, बाकी बातें बाद में निपटूंगा। समझा क्या ?"

जगजीत ने आंखें बंद कर ली । गहरी सांस ली।

सोहनलाल ने टेबक की ड्राज से रिवाल्वर निकाली । उसे चेक की । फिर रिवॉल्वर वो अपने कपड़ों में फंसाकर कमरे से बाहर निकला और दरवाजा बाहर से बंद करके मुख्य द्वार पर आ पहुंचा ।

दरवाजा खोल सोहनलाल ने और एक्स्ट्रा और धर्मा से बोला-

"आओ ।"

दोनों भीतर आये तो सोहनलाल ने दरवाजा बंद करते हुए कहा-

"इस वक्त कोई चाय-पानी नहीं होगा और ज्यादा वक्त भी नहीं है मेरे पास । बैठ जाओ ।"

दोनों सोफे पर बैठ गये ।

सोहनलाल उनके सामने बैठा और गोली वाली सिगरेट सुलगा ली ।

"जैसा कि तुम्हें बताया है कि हमारे पास एक ऐसी जगह है जहां पर बहुत बड़ी डकैती की जा सकती है। परन्तु हमारे पास डकैती करने की हिम्मत नहीं है । इसलिए हम देवराज चौहान को योजना बताना चाहते हैं ।"

"क्या योजना है ?" सोहनलाल बोला ।

"देवराज चौहान को बतायेंगे ।"

"मेरे पास क्यों आये हो ?"

"तुम हमें देवराज चौहान से मिलवा सकते हो ।" धर्मा ने कहा । सोहनलाल मुस्कुरा पड़ा ।

"ये बात तुमसे किसने कह दी ?"

"किसी ने कही है । क्या तुम देवराज चौहान को जानते नहीं ?" एक्स्ट्रा ने भोलेपन से कहा ।

"मैं जानता हूं । अच्छी तरह जानता हूं । जब भी देवराज चौहान को मेरी जरूरत होती है, वो मुझे अपने काम में लेता है। परन्तु मेरे पास उसका फोन नम्बर भी नहीं है और वो कहां रहता है, ये भी नहीं पता।"

"ऐसा कैसे हो सकता है ?"

"हो नहीं सकता, ऐसा ही है । तुम दोनों को किसी ने गलत कह दिया कि मैं देवराज चौहान को जानता हूं ।" सोहनलाल ने कश लिया । फिर बोला- "तुम दोनों के नाम क्या है ?"

"ये विनोद है, मैं सुरेश ।"

"अपना फोन नम्बरी दे जाओ, अगर दो-चार दिन में देवराज चौहान का फोन आ गया तो तुम्हें फोन कर दूंगा ।"

एक्स्ट्रा और धर्मा की नजरें मिलीं ।

"यार ये ड्रामा छोड़ो, हमें देवराज चौहान से मिलवा दो ।" धर्मा ने गहरी सांस लेकर कहा ।

"ड्रामा ?" सोहनलाल ने धर्मा को घूरा- "मेरी बात को तुम ड्रामा कह रहे हो ?"

"मेरा मतलब है कि तुम हमें देवराज चौहान से-।"

"पागल तो नहीं हो गये हो ?" सोहनलाल उखड़ा- "जब एक बार कह दिया कि मैं देवराज चौहान के बारे में कुछ नहीं जानता, जब भी देवराज चौहान को जरूरत होती है तो वो फोन पर मुझसे बात कर लेता है-।"

'कोई और रास्ता नहीं है देवराज चौहान से मिलने का ?"

"मैं क्या तुम लोगों के लिए 'रास्ते' लिए बैठा हूं ?" सोहनलाल ने मुंह बनाकर कहा- "तेरे को बोला कि देवराज चौहान का फोन आया तो उसे बता दूंगा, अपना नम्बर दे जाओ ।"

'समझा क्या ?" एक्स्ट्रा धर्मा से बोला- "अपना फोन नम्बर दे दो। समझदार को इशारा काफी होता है, कल तक ये देवराज चौहान से हमारी बात करा देगा ।"

"ओह, अब समझा ।" धर्मा बोला और फोन नम्बर सोहनलाल को नोट करा दिया ।

"अब तुम लोग जाओ ।"

"मुझे पूरी आशा है कि तुम लोग कल तक देवराज चौहान से हमारी बात करा दोगे ।" एक्स्ट्रा ने मुस्कुरा कर कहा ।

सोहनलाल कुछ नहीं बोला ।

दोनों बाहर निकल गये ।

सोहनलाल ने दरवाजा बंद किया और दूसरे कमरे में जगजीत के पास पहुंचा ।

उसने जगजीत के मुंह में फंसा कपड़ा निकाला ।

जगजीत मुंह खोले गहरी-गहरी सांस लेने लगा। सोहनलाल ने उसकी टांगों के बंधन खोले, फिर कपड़ों में फंसी रिवॉल्वर निकालकर टेबल के ड्राज में रखी। तभी अपनी सांसो को संभालता जगजीत बोला-

"एक्स्ट्रा और धर्मा तुम्हारे पास क्या करने आये थे ?"

"पूछ रहे थे कि जगजीत गुम हो गया है, मैंने उसे देखा तो नहीं ?"

"मजाक मत करो-मैं-।"

सोहनलाल कमरे से निकला और फोन कर देवराज चौहान से संबंध बनाने लगा ।

कुछ देर बाद ही सोहनलाल, देवराज चौहान को, उन दोनों के आने के बारे में बता रहा था। तब देवराज चौहान से ही उसे पता चला कि राघव जगमोहन की कैद में पहुंच चुका है और खुद रतनचंद बना, एक्स्ट्रा और धर्मा के बीच मौजूद है।

■■■

अगले दिन सुबह जगमोहन बे रतनचंद और राघव को तगड़ा नाश्ता कराया । इस दौरान दोनों अलग-अलग कमरों में रहे और नाश्ते के दौरान बारी-बारी दोनों के हाथ खोलें और जगमोहन पहरेदारी के तौर पर फांसी रहा ।

"तुम इस तरह कब तक मुझे बांधे रखोगे ?" राघव ने परेशानी से कहा ।

जगमोहन ने नाश्ते के बाद के हाथ पुनः बांध दिये थे ।

"जब तक जरूरत रहेगी ।"

"मेरा तो बहुत बुरा हाल हो जायेगा, इस तरह बंधे-बंधे-।" राघव ने उखड़े स्वर में कहा ।

"तो मैं क्या कर सकता हूं ?" जगमोहन ने कहा और दूसरे कमरे में रतनचंद के पास पहुंचा ।

जगमोहन रतनचंद को भी नाश्ता करा कर हाथ बांध चुका था ।

"सिगरेट होगी ?" रतनचंद बोला ।

"मैं नहीं पीता ।" कहते हुए जगमोहन कुर्सी पर बैठ गया ।

रतनचंद ने जगमोहन को देखा और गंभीर स्वर में बोला-

"एक बात का जवाब दोगे?"

"देने लायक हुआ तो जरूर दूंगा ।" जगमोहन ने कहा ।

"जिसने मुझे मारने की सुपारी देवराज चौहान को दी है, वो मुझे क्यों मारना चाहता है? ये तो बता सकते हो । मालूम तो होगा तुम्हें-।"

"हां, मालूम है ।"

"तो बताओ मुझे ।"

"तुम्हारी ड्रग्स के धंधे की वजह से, उसकी पत्नी को नशे की लत लगी और वो जान गंवा बैठी ।"

रतनचंद के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।

"मेरे ड्रग्स के धंधे की वजह से ।" उसके होंठों से निकला ।

"हां ।"

"मैं कौन-सा ड्रग्स का धंधा करता हूं ?"

"ये तो सबको ही पता है तुम-।"

"क्या बकवास करते हो ?" रतनचंद मुंह बना कह उठा- "मैं और ड्रग्स का धंधा ?"

"हां, तुम और तुम्हारा ड्रग्स का धंधा ।"

"कहने वाले ने कहा और तुमने मान लिया ?"

"क्यों ? नहीं मानना चाहिए क्या ?"

"मैं ड्रग्स का धंधा नहीं करता। एक्सपोर्ट का बिजनेस है मेरा । टी.वी. बनाने की फैक्ट्रियां हैं । कई बड़े बड़े शो-रूम है मेरे और सरकारी तौर पर मैं हथियारों की दलाली करता हूं । ड्रग्स की तो मैं शक्ल भी नहीं जानता ।" रतनचंद ने तीखे स्वर में कहा ।

"और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी बात मान लूं-।"

"जैसे तुमने दूसरे की बात मानी है, वैसे ही मेरी बात पर भी यकीन कर लो ।"

जगमोहन के चेहरे पर अचकचाहट के भाव दिखाई दिए ।

कई पलों तक वो रतनचंद को देखता रहा ।

"क्या देख रहे हो ?" रतनचंद बोला ।

जगमोहन उठा और बाहर निकल गया ।

मिनट भर बाद वापिस आया तो उसके हाथों में अखबारों की कटिंग का पुलिंदा था ।

"ये अखबारों की कंटिग्स है।" जगमोहन कुर्सी पर बैठते हुए बोला- "इनमें तुम्हारे ड्रग्स के व्यापार के बारे में खुलासा किया गया । तुम पर जो अदालत में केस चल रहे हैं-।"

"बकवास मत करो। मैं तुम्हारा मुंह तोड़ दूंगा।" रतनचंद गुर्रा उठा- "मैं कोई धंधा नहीं करता। मेरे बारे में ऐसी खबरें अखबारों में छपने का सवाल ही नहीं पैदा होता तो तुम्हारे पास ये कंटिग्स कहां से आ गई? ऊपर से कहते हो ड्रग्स के केस, मेरे खिलाफ अदालतों में चल रहे हैं । मुझे तुम पागल लगते हो । लगता है तुमने मेरे बारे में पता नहीं किया-।"

"किया था ।" जगमोहन व्यंग से बोला- "तुम्हारे बारे में सुनी हर बात सही निकली ।"

"कुत्ते हो तुम जो ऐसा कह रहे हो ।" रतनचंद का चेहरा गुस्से से लाल हो गया- "किसी ने कहा और तुमने मान लिया ? ऊपर से कहते हो कि तुमने मेरे बारे में पता किया है और ड्रग्स वाली बात सही निकली । कहां फंस गया हूं मैं । मेरे सामने मेरे बारे में दावे के साथ झूठ बोल रहे हो और आंखों में जरा भी शर्म नहीं।"

"घुंघट निकाल लूं क्या ?"

"तुम्हे तो डूब मरना चाहिये, ड्रग्स के धंधे के झूठ की एवज में-।"

जगमोहन के होंठ सिकुड़े ।

रतनचंद का चेहरा गुस्से से भरा रहा ।

जगमोहन ने महसूस किया कि रतनचंद जैसे सच कह रहा हो । वो सोचों में डूबा उठा और रतनचंद के हाथ खोलकर अखबारों की कटिंग्स का पुलिन्दा,उसे थमा दिया ।

"ये देखो ।" जगमोहन बोला ।

रतनचंद उन कटिंग्स को देखने लगा

कटिंग्स में अखबारों के साथ कई जगह उसकी तस्वीर भी थी।

"ये तस्वीर तुम्हारी नहीं है ?" जगमोहन बोला ।

"मेरी है। बल्कि तस्वीरों में जो कपड़े पहने हैं, वो भी मेरे हैं ।" उसके होठों से हक्का-बक्का स्वर निकला- "लेकिन ये-ये सब झूठी खबरें हैं । मैंने तो आज तक पढ़ी नहीं, ये कैसे हो सकता है ?'

"तुम्हारे कह देने भर से खबरें झूठी नहीं हो जायेंगी।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा ।

"ये किसी की चाल है ।"

"कैसी चाल ?"

"मैं नहीं जानता, लेकिन जिसने तुम्हें मेरी हत्या के लिए कहा है, ये उसकी चाल हो सकती है । ये कटिंग्स तुम्हें किसने दी ?"

"उसी ने जो तुम्हें मरवाना चाहता है ।"

रतनचंद पुनः अखबारों की कटिंग्स को देखने लगा ।

कई पल इसी चुप्पी में निकल गये ।

"ये-ये अखबार है ही नहीं ।" एकाएक रतनचंद बोला।

"क्या मतलब ?'

"अखबारों का पेपर स्पेशल होता है, घटिया रद्दी का बना होता है, परन्तु पेपर बेहतर क्वालिटी का है । ये कटिंग्स दिखाकर तुम लोगों को बेवकूफ बनाया गया है ।" रतनचंद का चेहरा पुनः गुस्से से भरने लगा ।

"मुझे लगता है कि तुम्हें बेवकूफ बनाकर, मेरी हत्या के लिये तैयार किया गया है । जब तुम मेरे बारे में पता करने निकले तो क्या वो आदमी जानता था कि तुम मेरे बारे में पता कर रहे हो ?"

"शायद जानता हो ।"

"तो उसने सब कुछ प्लान किया है। तुमने जिससे भी पूछा होगा, वो उसी का आदमी होगा ।"

"ऐसा कैसे हो सकता है ?" जगमोहन की आंखें सिकुड़ी ।

"मैं बड़े-बड़े बिजनेस करता हूं और जानता हूं कि सब काम किया जा सकता है। मेरे बारे में जिन लोगों से पता किया, उनसे तुम एक ही बार मिले। दोबारा तो उनसे नहीं मिले ?"

"नहीं ।"

"तो आज फिर उनसे मिलने जाओ ।"

"क्यों ?"

"क्योंकि वो सब उसी आदमी के प्लान किए व्यक्ति थे जिसने मेरी हत्या करने के लिए तुम्हें तीन करोड़ दिये और अखबारों के दफ्तर जाकर इन कटिंग्स की सच्चाई का भी पता करो । उसके बाद तुम मेरे से बात करना ।"

"तुम तो बहुत ही रौब से बात कर रहे हो ।" जगमोहन मुस्कुरा पड़ा ।

"बेवकूफों से मैं इसी तरह बात करता हूं ।" रतनचंद ने दांत भींचकर कहा ।

जगमोहन उठा और रतनचंद के हाथ बांधते कह उठा-

"बड़ी बात कह रहे हो तुम की ये कटिंग्स झूठी हैं और हमें बेवकूफ बनाया गया है ।" जगमोहन बोला ।

"मेरी बातों की सच्चाई जानो उसके बाद मेरे से बात करना ।"

"जरूर, मैं आज ही सब कुछ एक बार फिर पता करूंगा ।" जगमोहन की आवाज में गंभीरता आ गई थी।

■■■

एक्स्ट्रा और धर्मा नाश्ता कर रहे थे ।

"तुम्हारा क्या ख्याल है कि सोहनलाल आज, देवराज  चौहान से बात करा देगा ?"

"करानी तो चाहिये ।"

"सोहनलाल जानता है कि देवराज चौहान किधर है, लेकिन उसने हमें नहीं बताया ।" धर्मा ने कहा ।

"कोई भी इस तरह, एकदम देवराज चौहान के बारे में नहीं बतायेगा।" एक्स्ट्रा बोला ।

"अब तक हो सकता है कि उसने देवराज चौहान से बात कर ली हो और देवराज चौहान का फोन भी आये ।"

एक्स्ट्रा कुछ चुप रहकर बोला-

"मुझे ने राघव की चिन्ता हो रही है ।"

धर्मा ने फौरन मोबाइल में फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा ।

"किसे फोन कर रहे हो ?"

"राघव को ।"

"परन्तु उसका फोन तो उस जगमोहन के पास-।"

"जगमोहन से ही बात करूंगा, उसका हाल चाल पूंछूं ।"

फोन लग गया। बेल जाने के पश्चात जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।

"हैलो ।"

"मैं धर्मा ।"

"बोलो ।"

"राघव कैसा है ?"

"हाथ-पांव बांधकर डाल रखा है। कहता है बंधन खोल दूं, हाथ-पांव दर्द कर रहे हैं ।"

"मतलब कि वो ठीक है ।"

"एकदम । उसे तब तक कोई तकलीफ नहीं पहुंचेगी, जब तक वो कोई उल्टी हरकत नहीं करेगा ।"

"तुम ठीक नहीं कर रहे हो ।"

"ठीक क्या है, गोली मार दूं राघव को ?"

"राघव को कुछ मत करना ।"

"ये बकवास बाजी छोड़, मुझे नहीं लगता कि तेरे पास कोई काम की बात करने की है ।"

"मैंने उसका हाल-चाल पूछने के लिए फोन किया था ।"

"हाल-चाल हो गया। अब फोन बंद करता हूं ।" इसके साथ ही उधर से जगमोहन ने फोन बंद कर दिया था ।

धर्मा ने फोन बंद किया ।

"तो राघव सलामत है ।"

"हां, मेरे ख्याल में आज हम राघव को छुड़ा लेंगे वहां से । एक बार देवराज चौहान का फोन आ जाये, मैं सब ठीक कर लूंगा ।"

तभी रतनचंद बने देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया ।

देवराज चौहान की निगाह उस पर गई ।

देवराज चौहान कुर्सी पर बैठता कह उठा-

"केकड़ा का फोन आया था। अभी-।" देवराज चौहान के ये शब्द एकदम झूठे थे ।

"केकड़ा-क्या बोला ?" एक्स्ट्रा कह उठा।

"केकड़ा ने बताया कि रात तुम दोनों देवराज चौहान की पहचान वाले मशहूर ताला तोड़ सोहनलाल के घर गये थे ।"

धर्मा का चेहरा गुस्से से भर उठा ।

"तो ये हरामी केकड़ा हम पर नजर रख रहा है ।" धर्मा ने एक्स्ट्रा को देखा ।

"और क्या बोला केकड़ा ?" एक्स्ट्रा के माथे पर बल नजर आ रहे थे ।

"यही, जो बताया ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"एक बार हाथ लग जाये, तब साले को बहुत मारूंगा ।" धर्मा पूर्वतः स्वर में बोला- "हमारी बातें दूसरों को बता रहा-।"

"तुम दोनों ने रात को मुझे नहीं बताया कि कहां जा रहे हो ?"  देवराज चौहान बोला ।

"कोई जरूरत नहीं थी बताने की। तुम्हारी या सुन्दर की तरफ से यहां की खबरें देवराज चौहान तक पहुंच रही हैं। इसी कारण राघव, देवराज चौहान के हाथ लगा । इसलिए अब हम चुप रहना ही ठीक समझते हैं ।"

"मैं क्यों यहां की खबरें बाहर करूंगा ?" देवराज चौहान बोला- "सोच समझकर बोलो ।"

"हमारा मतलब सुन्दर से है ।"

"वो गलत काम नहीं करेगा, मेरा विश्वासी आदमी है ।"

"तो फिर हमारी बातें तुम बाहर निकाल रहे होगे ।" एक्स्ट्रा गहरी सांस लेकर कह उठा ।

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।

"कहीं कुछ नहीं है, तुम लोग गलत सोच रहे हो ।"  सुन्दर पर शक मत करो । कोई गद्दार है तो, कह नहीं सकता ।"

दोनों चुप रहे ।

"सोहनलाल से मिलने का कोई फायदा हुआ, उससे देवराज चौहान का पता चला ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"शायद आज कुछ पता चले ।"

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।

"बाहर चलने के लिए तुम तैयार नहीं हुए ?"

"हम आधे घंटे में यहां से निकल चलेंगे ।" कहकर देवराज चौहान बाहर निकला और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया ।

रास्ते में सुन्दर मिला ।

"आज मैंने कहां-कहां जाना है और क्या काम करना है, लिस्ट बना ली तुमने-?"

"जी सर ।"

"कुछ ही देर में हम चलेंगे, चलने की तैयारी कर लो ।" कहकर देवराज चौहान आगे बढ़ गया ।

रतनचंद बना देवराज चौहान कमरे में पहुंचा तो वहां पड़ा रतनचंद वाला मोबाइल फोन बजते पाया ।

"हैलो-।" देवराज चौहान ने फोन पर बात की ।

"केकड़ा ।"

एकाएक देवराज चौहान सतर्क हो उठा ।

"बच गये कल-।"

"हां-।" देवराज चौहान उसकी आवाज पर ध्यान दे रहा था, परन्तु बोलने वाला अपने असली आवाज को छिपाने की भरपूर चेष्टा कर रहा था । ऐसा लगता था जैसे उसने फोन पर भी कोई कपड़ा लगा रखा हो कि आवाज स्पष्ट ना हो सके उसकी ।

"मैंने तो सोचा कि वे लोग तुम्हें गोली मार देंगे रतनचंद, लेकिन सब वैसे ही चले गये ।"

"तुम वही थे ?"

"नहीं, मेरा आदमी वहां था । उसने सब कुछ देखा ।"

देवराज चौहान का ध्यान पूरी तरह उसकी बातों पर था ।

"अब ये तो पता चल गया कि कौन मुझे गोली मारना चाहता है।" देवराज चौहान रतनचंद की आवाज में शांत-सा बोला ।

"पता चल गया-कैसे-कौन है वो ?

"डकैती मास्टर देवराज चौहान ।"

"खूब। कैसे पता चला ?" केकड़ा के हंसने की आवाज आई ।

"देवराज चौहान ने राघव को पकड़कर अपने कैद में रख लिया है ।"

"ये खबर मैंने पहली बार सुनी है। अच्छी खबर है कि राघव पकड़ा गया । एक्स्ट्रा या धर्मा तो बल खा रहे होंगे ।"

"हां। तुम्हारे पास कोई नई खबर हो तो बताओ ।"

"ये कैसे पता चला कि वो देवराज चौहान ही है ?'

"धर्मा की, राघव के फोन पर देव चौहान के साथी, जगमोहन से बात हो गई थी, जगमोहन ने ही ये बात बताई । ये  बात तुम बता देते तो तुम्हें मुझसे अच्छी रकम मिल सकती थी ।"

"इस मामले में मैं पैसे नहीं कमा रहा। तेरी सेवा कर रहा हूं । गुप्त सेवा । तेरे को पहले ही बता देता हूं कि कब तेरे पर हमला होने जा रहा है ।"

"ये सब बता कर तुम्हें क्या मिलता है केकड़ा ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"बेकार की बातें मत पूछ ।"

"तू है कौन ?"

"ये भी बेकार की बात है ।"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई, कश लिया ।

"रतनचंद। तू बचने वाला नहीं, देवराज चौहान तेरे को मार देगा। उसने काम पूरा करने का तीन करोड़ लिया है ।"

देवराज चौहान कुछ नहीं बोला ।

"R.D.X भी तेरे को बचा नहीं सकते । राघव कैद में पहुंच गया, बाकी दो को भी देवराज चौहान नहीं छोड़ेगा ।"

'तेरे को देवराज चौहान के बारे में बहुत जानकारी है ?"

"खास नहीं । काम चल जाये, इतनी ही जानकारी है ?" केकड़ा की आवाज में लापरवाही भरी हुई है थी ।

"अब नई खबर क्या है ?"

"नई खबर ?"

"देवराज चौहान मुझ पर कब हमला करेगा ?"

"केकड़ा की आवाज नहीं आई ।

"आज मैं बाहर जा रहा हूं ।"

"रतनचंद, थोड़ी सी गड़बड़ हो गयी है, अब देवराज चौहान की खबरें मिल नहीं पा रही ।"

"गड़बड़ ?" देवराज चौहान के चेहरे पर विषैली मुस्कान उभरी- "मेरे ख्याल में तेरा साथ कोई साथी देवराज चौहान के साथ होगा ।"

"ये बातें जानने की कोशिश मत कर रतनचंद-"

देवराज चौहान को अब लगने लगा था कि आवाज को वो पहले भी कहीं सुना चुका है। परन्तु बोलने वाला अपनी आवाज छिपाकर बोल रहा था, इसलिए अभी स्पष्ट तौर पर पहचानने में कठिनाई हो रही थी ।

"इस वक्त तो।" केकड़ा की आवाज पुनः कानों में पड़ी- "मैं ये भी नहीं जानता कि देवराज चौहान कहां है, लेकिन एक बात तो पक्की है कि वो तेरे ही चक्कर में पड़ा है और तेरे को मार के ही दम लेगा ।"

"मतलब कि तेरे पास कोई खबर नहीं है ।"

"नहीं ।" केकड़ा की आवाज आई ।

"मेरे लिये तू बेकार हो गया है ।"

"मैं इतनी जल्दी बेकार नहीं होता ।"

"तो फिर ये बता कि मेरी जान की सुपारी किसने दी है ?"

"ये बात तू कई बार पूछ चुका है और हर बार मैंने इन्कार ही किया है ।" केकड़ा की आवाज कानों में पड़ी ।

"बताने में तेरे को इंकार क्यों ?"

"मैं उतनी खबरें तो तेरे को दे सकता हूं, लेकिन बीच की बात तेरे को नहीं बताऊंगा ।"

"ऐसा क्यों ?"

"क्योंकि मुझे तेरे से कोई हमदर्दी नहीं। कल का मरता तो आज मरे, कोई परवाह नहीं ।"

'तो फिर तू मुझे खबरें क्यों दे रहा था ?"

"ये बात तेरे को बताने का कोई फायदा नहीं । सबसे बड़ा सच तो ये है कि तू मर के ही रहेगा ।"

"मेरे से तुझे क्या दुश्मनी ?"

केकड़ा की आवाज नहीं आई ।

"तू मत बता। मैं तेरे को बता देता हूं कि कौन मेरी हत्या की सुपारी देकर मुझे मरा देखना चाहता है । बताऊं क्या ?"

"बता ।

"नागेश शोरी ।"

दूसरी तरफ से केकड़ा के गहरी सांस लेने का स्वर सुनाई दिया।

"तेरे को कैसे पता चला रतनचंद ?"

"ये बात तेरे को नहीं बताऊंगा कि मुझे कैसे पता ।"

"और वो तेरे को क्यों मारना चाहता है। ये भी तेरे को पता होगा ?"

"मेरे को तो पता है। लेकिन तेरे मुंह से सुनकर मुझे और भी अच्छा लगेगा ।" रतनचंद की आवाज में बोल रहा था देवराज चौहान।

"अपनी करतूत मेरे मुंह से क्यों सुनना चाहता है ?" केकड़ा का स्वर अब शांत था ।

"क्योंकि मुझे लगता है कि तू ये बात नहीं जानता ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

"तूने कैसे सोच लिया कि मैं नहीं जानता ?"

"मेरा ख्याल है कि तू कुछ नहीं जानता और खामखाह ही इस मामले में टांग अड़ा बैठा है ।" देवराज चौहान जानबूझकर ऐसे शब्द इस्तेमाल कर रहा था कि केकड़ा भड़के और जो जानना चाहता है केकड़ा बता दे ।

केकड़ा की तरफ से आवाज नहीं आई ।

"मुझे लगता है तू कुछ नहीं जानता इस बारे में कि नागेश शोरी क्यों मेरी जान लेना चाहता है । इसलिए फोन बंद करता-।"

"तूने उसकी बीवी की जान ली है, ऐसे में वो तेरी हत्या तो करवायेगा ही-।"

"नागेश शोरी की बीवी की जान ?"

"हां। नहीं ली क्या ?" केकड़ा का स्वर शांत था ।

"नहीं ।" देवराज चौहान के माथे पर बल पड़ चुके थे ।

"तेरे कहने से क्या होता है, नागेश शोरी तो इस बात को जानता है कि तू उसकी बीवी का हत्यारा है ।"

"ठीक है। बता क्या किया था मैंने उसकी बीवी के साथ ?"

केकड़ा की आवाज नहीं आई ।

"चुप क्यों हो गया-बता ।

"तू कौन है ।" केकड़ा के स्वर में इस बार शक के भाव भरे हुए थे ।

"रतनचंद ।"

"नहीं, मुझे नहीं लगता कि तू रतनचंद है ।"

"मैं रतनचंद ही हूं ।"

"तो फिर तू ऐसी बातें पूछने पर क्यों लगा है, जो तू जानता है ?"

"दूसरे के मुंह से सुनकर मुझे अच्छा लगता है ।"

"नही । रतनचंद नहीं है तू। बता कौन है तू ?"

"मेरी आवाज नहीं पहचान रहा ?"

"आवाज रतनचंद की बना लेने से तू रतनचंद नहीं बन सकता । अब मुझे पूरा विश्वास हो चुका है कि तू रतनचंद नहीं ।"

"वहम है तेरा ।"

"मुझे आसानी से वहम नहीं होता ।"

देवराज चौहान के होंठों पर अजीब-सी मुस्कान उभर आई ।

"छोड़ इन बातों को बता मैंने क्या किया था उसकी बीवी के साथ ?" देवराज चौहान बोला

"तू है कोई ?"

"रतनचंद-।"

कुछ चुप्पी के पश्चात केकड़ा की आवाज आई-

"रतनचंद के बंगले पर है तू ?"

"हां, मैं ही रतनचंद हूं, ये मेरा ही बंगला है ।"

"बता। पिछली बार मैंने तेरे को किसका नाम बताया था ?" एकाएक उधर से केकड़ा ने पूछा ।

"किसका नाम बताया था ?" देवराज चौहान के होंठ गोल हुए ।

"तू बता, मैंने तेरे को कल सुबह फोन किया था और किसका नाम बताया था ?"

"याद नहीं-बाद में याद आ जायेगा ।"

केकड़ा के हंसने की आवाज आई ।

देवराज चौहान जानता था कि केकड़ा को विश्वास हो चुका है कि वो रतनचंद नहीं ।

"सोच ले, शायद याद आ जाये ।"

"जब याद आयेगा, तो बता दूंगा ।"

"अब मेरी सुन। मैंने तेरे को पिछली बार कोई भी नाम नहीं बताया था। समझा, तू रतनचंद नहीं है । अब तो तू अपनी अग्निपरीक्षा भी दे, तो तब भी मैं तेरी बात का यकीन ना करूं।" केकड़ा के स्वर में दृढ़ता के भाव थे ।

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली और बोला-

"ठीक सोचा तुने ।"

"यानि कि तू रतनचंद नहीं है । मानता है इस बात को ?"

"हां ।"

"तो फिर कौन है तू ?"

"देवराज चौहान ।"

"कौन ?" केकड़ा के स्वर में हैरानी के भाव आ गये थे ।

"देवराज चौहान ।"

"तू-तू रतन चंद की जगह पर बैठा है ?"

"हां ।"

"और R.D.X ?"

"वो भी यहीं है ।"

"उन्हें शक नहीं हुआ ?"

"राघव मेरी कैद में है और बाकी दोनों को कोई शक नहीं हुआ।"

"तेरा चेहरा-वो-।"

"जगजीत से मैंने रतनचंद का फेस मॉस्क बनवा लिया था ।" देवराज चौहान का स्वर सामान्य था- "एकदम रतनचंद हूं मैं अब।"

'लेकिन तूने तो-रतनचंद की जान ली थी, फिर-फिर-।"

"मैं तेरे को इस बात का जवाब क्यों दूं ?" देवराज चौहान बोला।

केकड़ा की तरफ से खामोशी रही ।

"अब तो बता दे कि रतन चंद ने क्या किया था शोरी की बीवी के साथ ?"

"सच में देवराज चौहान, तू बहुत खतरनाक है।" केकड़ा के गहरी सांस लेने की आवाज आई ।

"खतरनाक ?"

"हां। इस रतनचंद का चेहरा ओढ़ कर रतनचंद की जगह ले लेना और वो भी तब जबकि R.D.X पास में मौजूद हों और उन्हें शक ना हो सके। ये सारा काम किसी हिम्मत वाले का ही हो सकता है ।"

"मेरी बात का जवाब दे कि मैंने क्या किया था शोरी की बीवी-।"

"उधर से केकड़ा ने फोन बंद कर दिया ।

देवराज चौहान के होंठ सिकोड़ कर फोन कान से हटाया और गहरी सांस ली।

चेहरे पर सोच के भाव नजर आ रहे थे

नागेश शोरी का कहना था कि रतनचंद ड्रग्स का धंधा करता है और उसकी बीवी की मौत ड्रग्स लेने की वजह से हो गई, तो वो रतनचंद को खत्म करवा देना चाहता है ।

जबकि केकड़ा की बातों में कुछ और ही झलक रहा है । रतनचंद की ड्रग्स की वजह से शोरी की बीवी मरी होती तो केकड़ा अवश्य बता देता कि वो कैसे मरी? देवराज चौहान का ख्याल था और उसे अपना ख्याल बहुत हद तक ठीक लग रहा था ।

ये सवाल फिर देवराज चौहान के सामने था कि आखिर रतनचंद ने शोरी की बीवी के साथ क्या किया जो वो मर गई ?

दूसरी बात, केकड़ा अब तक रतनचंद को बताता रहा कि कब उस पर हमला होगा, जबकि केकड़ा के मन में रतनचंद के लिए कोई दोस्ताना नहीं है। बातों से यही लगा की केकड़ा भी रतनचंद के खिलाफ है। तभी तो वो रतनचंद को नागेश शोरी का नाम नहीं बता रहा था। तभी तो अब तक उसने रतनचंद को भी नहीं बताया कि देवराज चौहान ने उसकी हत्या की सुपारी ली है, असल बात वो रतनचंद से हमेशा छिपाता रहा है ।

आखिर केकड़ा है कौन और किस मकसद से वो रतनचंद को आधी अधूरी खबरें देता रहा ?

केकड़ा की आवाज के भावों से लगता है कि उसने आवाज नहीं सुनी है, परन्तु फिलहाल लगता है कि वो गलत सोच रहा है, ये आवाज उसने कहीं नहीं सुनी। खास कुछ स्पष्ट नहीं हो पाया था देवराज चौहान के सामने ।

अब असल बात रतनचंद से जानी जा सकती थी कि हुआ क्या था ?

तभी कदमों की आवाज सुनाई दी और सुन्दर ने भीतर प्रवेश किया।

"सर अभी तक आप तैयार नहीं हुए ।" वो बोला ।

"हो रहा हूं ।" देवराज चौहान का स्वर सोचों में था ।

"सब ठीक तो है सर ?"

"हां ।" देवराज चौहान ने सिर हिलाकर सुन्दर को देखा- "एक्स्ट्रा और धर्मा का ख्याल है कि तुम यहां की बातें बाहर निकाल रहे हो। देवराज चौहान ने तुम्हें खरीद लिया है। वो तुम्हें पैसा दे रहा है ।"

सुन्दर का चेहरा सख्त हो गया ।

"वो गलत सोच रहे हैं । मैं ये काम नहीं कर रहा ।"

"मैं जानता हूं, परन्तु तुम्हें उनकी बात का गुस्सा नहीं करना चाहिये ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा- "सही बात तो ये है कि वो भी परेशान हैं। एक तो राघव देवराज चौहान के हाथों में फंस गया, दूसरे वे देवराज चौहान पर काबू नहीं पा सके हैं ।"

"उन्हें इस तरह मेरी तरफ उंगली नहीं उठानी चाहिये ।"

"उनकी बातों की परवाह मत करो । मैं तो जानता हूं कि तुम मेरे विश्वासी हो ।"

सुंदर ने कुछ नहीं कहा ।

"मैं दस मिनट में तैयार होकर आता हूं। धर्मा और एक्स्ट्रा से चलने को कह दो ।"

"कह चुका हूं, वे तैयार हो रहे हैं ।" सुन्दर ने कहा और बाहर निकल गया ।

देवराज चौहान कपड़े बदलने लगा ।

■■■

एक्स्ट्रा और धर्मा, सारा दिन रतनचंद बने देवराज चौहान को लेकर घूमते रहे । साथ में सुन्दर था और छः अन्य गनमैन। तीन का काफिला रहा उनका।

कभी एक जगह तो कभी दूसरी जगह ।

काम के वक्त देवराज चौहान मन ना होने का बहाना बनाकर काम टाल देता तो कभी सुन्दर से पूछ कर काम कर देता। ऐसा इसलिए करता कि वो नहीं जानता था कि कौन-सा काम कैसे करना है। जहां रतनचंद के साइन करने की बात आती, तो देवराज चौहान बाद में करने को कहकर टालता रहा।

कुल मिलाकर देवराज चौहान पांच जगह पूरे दिन में गया ।

पांचवी जगह पर पहुंचे तो शाम के छः बज रहे थे ।

सुन्दर, रतनचंद के साथ ऑफिस में चला गया। साथ में दो गनमैन थे। बाकी के चार गनमैन  बाहर की फैल गये।

धर्मा और एक्स्ट्रा कार के पास ही खड़े रहे ।

"कुछ नहीं हुआ ।" धर्मा बोला।

"जबकि देवराज चौहान चाहता तो रतनचंद का निशाना ले सकता था । कई बार ऐसा हुआ कि जब रतनचंद को आसानी से निशाने पर लिया जा सके ।" एक्स्ट्रा सोच भरे स्वर में कहा उठा- "कल शाम वह काशीनाथ ने पंगा खड़ा किया तो वहां भी रतनचंद को नहीं मारा गया। जबकि तब ये काम आसानी से किया जा सकता था ।"

"तेरे को नहीं लगता कि देवराज चौहान पीछे हट गया है? वो रतनचंद को नहीं मार रहा या कुछ ऐसा ही। कल भी उसने रतनचंद का निशाना लेने की कोशिश नहीं की और अब भी नहीं ।"

इसके पीछे भी जरूर कोई वजह होगी कि वो क्यों खामोश बैठ गया। लेकिन देवराज चौहान कभी भी रतनचंद पर वार कर सकता है ।"

"ऐसा क्यों ?"

"क्योंकि रतनचंद को मारने के लिये उसने तीन करोड़ की सुपारी ले रखी है ।"

"देवराज चौहान का फोन नहीं आया अभी तक ।"

"सोहनलाल, देवराज  चौहान से मिल नहीं पाया होगा ।"

"बकवास करता है सोहनलाल कि देवराज चौहान का पता ठिकाना नहीं जानता । सब जानता है। देवराज चौहान का फोन भी होगा उसके पास ।"

"फिर तो अब तक देवराज चौहान ने हमसे बात कर ली होगी ।"

"की होती तो अब तक देवराज चौहान ने उससे बात कर ली होती ।"

दोनों की नजरें मिलीं।

"आज पकड़ें हरामी सोहनलाल को? मुंह में हाथ देकर सब कुछ बाहर निकलवाते हैं ।" धर्मा कह उठा ।

"देखते हैं, हो सकता है कि शायद देवराज चौहान का फोन आ ही जाये ।"

"नहीं आया तो रात को पकड़ते हैं सोहनलाल को । हमारे लिए शर्म की बात है कि हम राघव को ढूंढ नहीं पा रहे ।"

"इस बार ऐसे दुश्मन से पाला पड़ा है कि सामने का रास्ता साफ नजर नहीं आ रहा। छापामारों की तरह देवराज चौहान काम कर रहा है, वो अचानक की कोई हरकत करता है और गुप्त हो जाता है। हम उसके बारे में ठीक से जान नहीं पाते। मैं तो सोच रहा हूं कि आखिर बंगले में कौन है, जो हमारी खबरें देवराज चौहान को दे रहा है ।"

"रतनचंद तो खबरें देने से रहा। सुन्दर ही ये सब काम कर रहा है ।"

"यकीन के साथ कुछ भी नहीं कह सकते। और कल शाम काशीनाथ से वहां हंगामा करवाया चौहान ने? वो खामखाह का हंगामा था। परन्तु तब देवराज चौहान का मकसद खास रहा होगा।  हंगामे की आड़ में उसने क्या किया होगा ?"

धर्मा होंठ भींच कर रह गया।

"हम कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं, सिर्फ रतनचंद को सुरक्षा दे पा रहे हैं । उधर देवराज चौहान कुछ भी करने को आजाद है ।"

"ये सब ज्यादा देर नहीं चलेगा ।" धर्मा दांत किटकिटा कर कह उठा।

"एक बात और-।"

धर्म ने एक्स्ट्रा को देखा।

एक्स्ट्रा के चेहरे पर अजीब भाव थे ।

"अब ये तो स्पष्ट हो चुका है कि देवराज चौहान ने जगजीत से रतनचंद के चेहरे का मॉस्क बनवाया ।"

"तो ?"

"देवराज चौहान ने उस फेस मॉस्क का क्या इस्तेमाल किया होगा ?"

"क्या इस्तेमाल किया होगा ?" धर्मा के माथे पर बल पड़े ।

"खामखाह तो वो फेस मॉस्क बनवाने से रहा, उसका कोई इस्तेमाल तो होगा ही-।"

"जरूर होगा, लेकिन फेस मॉस्क का क्या इस्तेमाल हो सकता है ?"

"तुम सोचो ।" एक्स्ट्रा कह उठा- "ये सवाल बहुत महत्वपूर्ण है । सवाल ये भी महत्वपूर्ण है कि देवराज चौहान अब रतनचंद का निशाना क्यों नहीं ले रहा, ये सवाल भी महत्वपूर्ण है कि काशीनाथ से हंगामा करवा कर, देवराज चौहान आखिर अपना कौन- सा मतलब निकालना चाहता था ?"

दोनों एक दूसरे को देखते रहे ।

धर्मा कुछ कहने लगा कि तभी देवराज चौहान, यानि की रतनचंद बाहर आता दिखाई दिया । उनकी बातचीत अधूरी रह गई और ध्यान रतनचंद की तरफ हो गया ।

शाम सवा सात बजे वे सब बंगले पर पहुंचे ।

एक्स्ट्रा और धर्मा दिनभर की भागदौड़ से थक चुके थे ।

सुंदर को चैन था कि आज दिन में कुछ नहीं हुआ। सब कुछ शांत रहा ।

बंगले में पहुंचकर धर्मा ने देवराज चौहान से कहा-

"आज हमारी आशा के विपरीत ठीक रहा ।"

"हां ।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया ।

"और ये ठीक-ठाक रहना, किसी गड़बड़ की तरफ इशारा करता है।" एक्स्ट्रा बोला ।  

"कैसी गड़बड़ ?"

"यही तो पता नहीं चल रहा ।" एक्स्ट्रा मुस्कुरा पड़ा- "कहां तो देवराज चौहान हाथ धोकर तुम्हारी जान के पीछे था और कोई मौका नहीं छोड़ता था और अब देवराज चौहान तुम्हारी हत्या के प्रति उदासीन दिख रहा है ।"

"क्या पता वो कोई बड़ी तैयारी कर रहा हो ।" रतनचंद बोला ।

"ऐसा भी हो सकता है ।" सुन्दर ने कहा- "हमें किसी भी तरह लापरवाह नहीं होना चाहिये ।"

"देवराज चौहान मुझ पर गोली चलाने के लिए देर कर रहा है, ऐसा शायद वो इसलिए कर रहा हो कि हम लोग कुछ लापरवाह हो जायें और वो मौका देखकर नपा-तुला वार कर दें।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा ।

"ये भी सम्भव है ।" एक्स्ट्रा ने सोच भरे स्वर में कहा ।

"मैं थक गया हूं ।" धर्मा बोला- "कुछ आराम करूंगा ।"

फिर वे लोग अपने-अपने कमरों में चले गये ।

"कुछ और चाहिये सर ?"

"नहीं-।" देवराज चौहान में कॉफी का घूंट भरा- "मुझे काम से बाहर जाना है ।"

"चलिये सर, मैं तैयार हूं ।"

"मैं अकेला जाऊंगा ।"

"अकेले ?" सुन्दर पल भर के लिये हड़बड़ा उठा- "ये आप क्या कह रहे हैं ?"

"काम ही ऐसा है ।"

"नही सर। इन हालातों में आपका अकेले जाना ठीक नहीं । गनमैन को लेकर जाइये। एक्स्ट्रा और धर्मा को-।"

"सुन्दर ।" देवराज ने शांत स्वर में कहा- "मुझे अकेले ही जाना है ।"

"नहीं सर । ये तो ठीक ना होगा ।" सुन्दर ने गंभीर स्वर में कहा- "एक्स्ट्रा और धर्मा आपको कभी भी अकेले नहीं-।"

"उन्हें मत बताना कि मैं बाहर जा रहा हूं ।"

"ये कैसे हो सकता है। जब उन्हें पता चलेगा तो वो मुझे नहीं छोड़ेंगे । अगर आपको कुछ हो गया तो ?"

"मुझे कुछ नहीं होगा, मैं दो घंटे में वापस आ जाऊंगा। तुम चुपचाप मेरे लिए कार तैयार रखो। पन्द्रह मिनट बाद मैं निकलूंगा ।"

"सर ।" वो बोला- "मैं आपके साथ चलता हूँ ।"

"नहीं। मैं अकेला ही जाऊंगा और घंटे बाद वापस आ जाऊंगा । मुझे कुछ नहीं होगा। मेरे लिए कार तैयार रखो ।"

न चाहते हुए भी सुन्दर कार तैयार रखने के लिए बाहर निकल गया ।

"मैं सोहनलाल से बात करके आता हूं ।" धर्मा बोला ।

"हां, उससे ये जानना जरूरी है कि देवराज चौहान से डकैती के बारे में उसने बात की या नहीं ?"

"साले के गले में हाथ डाल कर देवराज चौहान का ठिकाना पता करूंगा।"

"शांति से काम लो। क्रोध से गड़बड़ हो जायेगी। आते वक्त सोहन लाल का फोन नम्बर लेते आना ।"

"तुम नहीं चलोगे ?"

"मैं आराम करना चाहता हूं और सोचना चाहता हूं कि हमसे चूक कहां हो रही है ।" एक्स्ट्रा ने कहा- "तुम ही चले जाओ ।"

"ठीक है। कुछ ही देर में मैं सोहनलाल से मिलने के लिए यहां से निकलूंगा ।"

तब सुन्दर ने भीतर कदम रखा ।

देवराज चौहान की पहचान वाले सोहनलाल से मिलने जा रहे हो, जिससे कल मिले थे ?" सुन्दर बोला ।

"तुम्हें कैसे पता ?"

"सुबह सेठ जी ने बताया था ।"

"तुम-।" एक्स्ट्रा में गहरी सांस लेकर कहा- "हमारी तरफ से अपने कान बंद रखा करो ।"

"मैं कॉफी के लिये पूछना आया था ।

"ये काम तो नौकर भी कर सकता है ।"

"खास मेहमानों की सेवा मैं ही करता हूं, लाऊं क्या ?"

"ले आओ ।"

सुन्दर बाहर निकल गया ।

"ये अच्छा नहीं हुआ कि सुन्दर को पहले ही पता चल गया कि तुम, सोहनलाल से मिलने जा रहे हो ।"

देवराज चौहान ने कॉफी समाप्त की थी कि उसका फोन बजा ।

दूसरी तरफ जगमोहन था ।

"तुमसे बहुत जरुरी बातें करनी है।" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।

"मैं बंगले पर ही पहुंच रहा हूं। घंटे भर बाद वहीं मिलूंगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।"

"रतनचंद वाला मामला उतना सीधा नहीं है, जैसा कि हम समझ रहे हैं ।"

"वो कैसे ?"

"रतनचंद कहता है कि वो ड्रग्स का धंधा नहीं करता। उसने कहा कि अखबारों की कटिंग्स झूठी है। मैंने उसकी बातों की सच्चाई जानने के लिये, उसके बारे में सब पता किया फिर से । वो ठीक कह रहा है ।"

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी ।

"वो ठीक कहता है कि वो ड्रग्स का धंधा नहीं करता ?"

"हां, वो ठीक कहता है ।"

"ये तो तुमने ही मालूम किया था कि वो ड्रग्स का धंधा करता है। शोरी ठीक कहता है ।"

"मेरे ख्याल में वो सब शोरी की चाल थी। उसने मुझ पर नजर रखी कि मैं कहां-कहां जाकर रतनचंद के बारे में पता कर रहा हूं, वहां पर उसने अपने आदमी फैला दिए, जिन्होंने यही कहा कि रतनचंद ड्रग्स का धंधा करता है। हमसे चालबाजी खेली गई है।"

"और वो अखबारों की कटिंग्स ?"

"झूठी हैं । उन कटिंग्स को तैयार किया गया है-ताकि उन्हें देखने वाले को लगे कि रतनचंद ड्रग्स के धंधे में है । मैंने अखबार के दफ्तर जाकर उन कटिंग्स की सत्यता की जांच की। कटिंग्स की तारीखों वाले अखबार निकलवाये, उन अखबारों में रतनचंद से वास्ता रखती कोई खबर नहीं थी। अखबार के चीफ एडिटर से रतनचंद के बारे में पूछा, वो रतनचंद के बारे में जानकारी रखता था, उसने बताया कि रतनचंद गलत काम नहीं करता ।"

देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब सी भाव आ ठहरे ।

"हमें गलत रास्ता दिखाकर शोरी ने इस काम के लिए तैयार किया है ।"

"मैं एक घंटे में बंगले पर आ रहा हूं ।"

"आ जाओ । वहां सब ठीक है ?"

"ठीक है ।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।

नागेश शोरी ने झूठ की आड़ लेकर, उन्हें रतनचंद की हत्या के लिये तैयार किया । अखबारों की कटिंग्स झूठी थी।

देवराज चौहान एक बार फिर पूरे मामले पर नजर दौड़ाने लगा।

तभी सुन्दर ने भीतर प्रवेश किया और धीमें स्वर में बोला-

"सर, धर्मा सोहनलाल के पास जाने के लिए तैयार हो रहा है ।"

"सोहनलाल। देवराज चौहान की पहचान वाला वो ?"

"जी, कल धर्मा और एक्स्ट्रा दोनों ही सोहनलाल से मिले । रात को गये थे ।"

"ठीक है, वो जो करते हैं, उन्हें करने दो। कार तैयार है मेरे लिये ?"

"जी।" सुन्दर ने सिर हिलाया- "लेकिन आपका अकेले जाना...।"

"चुप रहो, दो घंटे में मैं वापस आ जाऊंगा ।"

उसके बाद देवराज चौहान बंगले में मौजूद कार में बैठा और बाहर निकल गया ।

कुछ आगे जाकर उसने कार रोकी और बाहर निकलकर कार से टेल लगाकर खड़ा हो गया। हर तरफ अंधेरा फैला था, सड़क पर हैड लाइटें जलाये, तेजी से वाहन दौड़े जा रहे थे ।

■■■

धर्मा कार ड्राइव करता हुआ, बंगले के बाहर निकला और आगे दौड़ा दी। वो जल्द-से-जल्द सोहनलाल के पास पहुंच जाना चाहता था । सोहनलाल से जानना चाहता था कि उसने देवराज चौहान से बात की तो देवराज चौहान ने क्या कहा, नहीं बात की तो, क्यों नहीं की। वो राघव को जल्द-से-जल्द देवराज चौहान की कैद से निकला लेना चाहता था ।

एकाएक धर्मा चिंहुक उठा।

रतनचंद को उसने सड़क के किनारे कार के साथ टेक लगाए खड़े देखा ।

रतनचंद बंगले से बाहर है ?

"ये कैसे हो सकता है, वो तो बंगले के भीतर था।

धर्मा ने फौरन सड़क किनारे कार रोकी और बाहर निकला । रतनचंद का इस तरह बंगले से बाहर नजर आना हैरानी की बात थी । देवराज चौहान उसे गोली मार सकता था ।

धर्मा मन-ही-मन सर्तक हुआ कि ये देवराज चौहान या उसका कोई आदमी रतनचंद का मॉस्क पहने हो सकता है, क्योंकि देवराज चौहान ने भी जगजीत से, रतनचंद के चेहरे वाला फेस मॉस्क बनवाया था ।

धर्मा ने जेब में पड़ी रिवॉल्वर टटोली।

देवराज चौहान की निगाह भी करीब आते धर्मा पर टिक चुकी थी । उसके शरीर पर दिन वाले ही कपड़े थे और कार वही थी, शाम को बंगले में खड़ी थी, इसलिए धर्मा को कुछ तसल्ली हुई थी कि ये रतनचंद ही है ।

"तुम बंगले से बाहर कैसे आ गये?" धर्मा ने संदिग्ध स्वर में पूछा।

"काम था, तभी बाहर निकला ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"तुम्हें बाहर जाना था तो हमें बताना चाहिये था ।" धर्मा उखड़े स्वर में बोला- "सारा दिन तुम्हारे साथ चिपके रहे। और अब तुम अकेले ही बाहर आ गये और यहां खड़े हो। सच में तुम्हारे हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी। ये नहीं सोचा कि देवराज चौहान तुम्हें मार देगा ?"

"मैं केकड़ा से मिलने जा रहा हूं ।" देवराज चौहान ने झूठा बम का गोला छोड़ा ।"

"केकड़ा से ?" धर्मा चिंहुक पड़ा ।

"हां । कुछ देर पहले केकड़ा का फोन आया था। वो मुझसे मिलना चाहता है और वो नहीं चाहता कि मैं इस बारे में किसी को बताऊं । लेकिन अब तुम मिल गये तो केकड़ा से मिलने मेरे साथ हो सकते हो ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"मैं ?"

"सुन्दर ने बताया था कि तुम सोहनलाल से मिलने जा रहे हो । वापसी पर उससे मिल लेना अब केकड़ा के पास चलो-।"

"ठीक है, चलो ।" धर्मा ने उसी पल सिर हिलाया- "और क्या कह रहा था केकड़ा ?"

"चल रहे हो, पूछ लेना-सुन लेना ।"

"मेरे ख्याल में वो उसके बारे में बताना चाहता होगा, जिसने तुम्हारी हत्या की सुपारी दी है ।"

"तुम अपनी कार यही छोड़ दो । इस कार में मेरे साथ चलो ।" देवराज चौहान ने कहा ।

दोनों भीतर बैठे। देवराज चौहान ने कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी।

"कहां मिलेगा केकड़ा ?"

"चल रहे है वहां, उसने किसी बंगले का पता बताया है ।"

कार अब सड़क पर दौड़ रही थी ।

"जो भी हो, तुम्हें इस तरह खुले में नहीं आना चाहिए था रतनचंद । हमें साथ लेकर आने... ।"

"अब तो तुम मेरे साथ ही हो ।" देवराज चौहान मुस्कुराकर कर कह उठा ।

■■■

देवराज चौहान ने कार बंगले में जाकर पोर्च में रोकी।

धर्मा ने अजीब सी निगाहों से देवराज चौहान को देखा ।

"क्या हुआ ?" देवराज चौहान ने उसे देखते हुए, कार का इंजन बंद किया ।

"तुमने यहां इस तरह कार रोकी है रतनचंद, जैसे अक्सर यहां आते रहते हो ।" धर्मा ने कहा ।

"ऐसा कुछ नहीं है ।" देवराज चौहान मुस्कुराया- "केकड़ा ने मिलने के लिये मुझे इसी बंगले का पता दिया था ।"

"मुझे तो लगता है कि तुम यहां पहले भी आ चुके हो ।" पुनः धर्मा बोला ।

"पहली बार आया हूं मैं ।"

"मुझे नहीं लगता।" धर्मा ने कहा और जेब से रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली।

"ये क्या ?" देवराज चौहान उसे रिवॉल्वर निकालते पाकर बोला।

"सावधानी के नाते, मुझे यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा ।" धर्मा ने गहरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा- "तुम कहते हो कि केकड़ा ने मिलने के लिए इस बंगले में बुलाया है। जबकि तुम्हारे आने का ढंग बताता है कि तुम यहां पहले भी आये हुए हो ।"

"वहम है तुम्हारा ।"

"ये मेरा वहम ही हो तो, अच्छा है ।" धर्मा ने आस-पास नजर घुमाई ।

"बाहर निकलें?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"जरूर ।"

तभी सामने, मुख्य द्वार खुला ।

जगमोहन दिखा ।

धर्मा की निगाह उस पर जा टिकी।

"ये कौन है ?" धर्मा की आंखें सिकुड़ी ।

"केकड़ा होगा...।" देवराज चौहान लापरवाही से बोला ।

"मुझे सब कुछ अजीब सा लग रहा है रतनचंद ।"

"वो कैसे ?"

"केकड़ा किसी ऐसी जगह पर नहीं मिलेगा, जैसा कि ये बंगला है । इसके उसके पहचाने जाने का डर होगा, ना ही वो इस तरह खुलकर सामने आयेगा। और तुम कहते हो कि ये केकड़ा होगा।" धर्मा ने शक भरे स्वर में कहा ।

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

'मैंने अपना ख्याल जाहिर किया है कि ये केकड़ा होगा ।"

जगमोहन के कदम इस तरफ उठने शुरू हो गये थे ।

"देखा है इसे कभी ?" देवराज  चौहान ने पूछा ।

"नहीं ।"

जगमोहन पास पहुंचा ।

रिवाल्वर थामें धर्मा सतर्क हो उठा ।

'कौन हो तुम ?" धर्मा ने रिवाल्वर जगमोहन की तरफ करके, सतर्क स्वर में पूछा ।

जबकि जगमोहन धर्मा को देखते ही चौंका ।

देवराज चौहान ने ऐसा कुछ नहीं बताया था कि वो धर्मा के साथ नहीं आयेगा ।

जगमोहन ने झुककर दूसरी तरफ बैठे रतनचंद रूपी देवराज चौहान को देखा ।

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"कौन हो तुम?" धर्मा ने रिवाल्वर वाला हाथ आगे करके जगमोहन से पूछा ।

"जगमोहन ।"

"जगमोहन ?" धर्मा चिंहुक उठा- "क-कौन जगमोहन ?"

"देवराज चौहान का साथी ।"

धर्मा ने फौरन चौंक कर, रतनचंद रूपी देवराज चौहान को देखा।

"ये क्या हो रहा है रतनचंद, ये तो-।"

तभी देवराज चौहान के हाथ में दबी रिवाल्वर धर्मा के कमर में लग गई ।

धर्मा को उसी पल महसूस हो गया कि वो फंस गया है ।

"कौन हो तुम ?" धर्मा ने दांत भींचकर देवराज चौहान से पूछा ।

"देवराज चौहान ।"

धर्मा की हालत देखने लायक थी ।

"तुम-तुम देवराज चौहान हो ?" उसके होठों से निकला ।

"हां ।"

"तो-तो रतनचंद कहां है ?"

"इसी बंगले में ।"

"ये अदला-बदली कब की तुमने ?" धर्मा अजीब से स्वर में कह उठा।

"जब काशीनाथ ने हंगामा किया था वहां ।"

"ओह, तो तुम्हें मालूम था कि तब रतनचंद गनमैन के रूप में वहां है-। ये बात तुम्हें किसने बताई ?"

देवराज चौहान ने रिवाल्वर का दबाव उसकी कमर में बढ़ाया ।

धर्मा के होंठ भिंचे ।

"राघव से मिलना चाहते हो ?"

"वो, यहीं है ?"

"यहीं है। रतनचंद यहीं है और तुम भी यही हो।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा- "अपनी रिवॉल्वर जगमोहन के हवाले करो और नीचे उतरो । तुम्हें भीतर ले चलना है ।"

जगमोहन ने धर्मा के हाथ से रिवॉल्वर ले ली ।

धर्मा का चेहरा कठोर हो चुका था और शरीर गुस्से से भर चुका था ।

"तुम देवराज चौहान हो ?"

"हां ।"

"और रतनचंद के रूप में, तुम हमारे बीच ही रह रहे थे ?"

"सही समझे।"

"ओह, कितनी बड़ी धोखेबाजी के शिकार हुए। और हम समझ नहीं सके ।" धर्मा अभी भी सकते की हालत में था ।

जगमोहन ने दरवाजा खोला ।

"बाहर आओ ।"

धर्मा बाहर निकला ।

जगमोहन ने उसे रिवाल्वर पर रख लिया ।

धर्मा की निगाह बंगले पर फिरने लगी ।

"चलो भीतर ।"

"मुझे अभी भी विश्वास नहीं आ रहा कि मैं फंस गया हूं ।"

"राघव को विश्वास आ चुका है की वो कैद में है, वो तुम्हें विश्वास दिला देगा ।" जगमोहन ने व्यंग से कहा ।

देवराज चौहान भी बाहर निकल आया था ।

वो धर्मा को लिए दरवाजे की तरफ बढ़ने लगे ।

वे बंगले के भीतर पहुंचे ।

"तलाशी लो इसकी ।" जगमोहन ठिठकता हुआ रिवॉल्वर थामे सर्तक स्वर में बोला।

देवराज चौहान ने तलाशी ली।

रिवॉल्वर एक ही थी, जिसे जगमोहन पहले ले चुका था ।

मोबाइल फोन मिला, जिसे देवराज चौहान ने अपनी जेब में रख लिया ।

रोशनी में धर्मा ने दोनों को देखा ।

"कोई चालाकी मत करना ।" बोला जगमोहन ।

धर्मा मुस्कुरा पड़ा ।

"दांत क्यों फाड़ रहे हो ?"

"अपनी बेवकूफी पर कि कितनी आसानी से मुझे फांस लिया गया । हम सोच भी नहीं सकते थे कि देवराज चौहान रतनचंद की जगह पर बैठा हुआ है और यही सब करने के लिये देवराज चौहान ने रतनचंद का फेस मॉस्क जगजीत से बनवा लिया था। हम कुछ भी ना समझ सके ।"

जगजीत का रास्ता तुम लोगों ने हीं हमें दिखाया था।"

"दिखाया नहीं, तुम लोगों ने देख लिया था ।"

"अपना चेहरा तो दिखा दो देवराज चौहान ।"

"फुर्सत में, अभी मैं व्यस्त हूं ।"

'मुझे और राघव को कैद करके तुम लोग क्या करना चाहते हो ?" धर्मा ने गंभीर स्वर में पूछा ।

"वक्ती तौर पर तुम लोगों को कैद किया गया है क्योंकि तुम लोग मेरे काम में अड़चन पैदा कर रहे हो ।" देवराज चौहान बोला- "रतनचंद का काम निपटने पर, तुम दोनों को छोड़ दिया जायेगा ।"

"और रतनचंद का क्या करोगे ?"

"उसका अभी कुछ भी तय नहीं है कि उसके साथ क्या करना है। इसे ले जाओ जगमोहन ।" देवराज चौहान ने कहा और सिगरेट सुलगा ली ।

■■■

जगमोहन धर्मा को एक कमरे में बांधकर छोड़ आया । देवराज चौहान के पास पहुंचा

"तुम कह रहे थे कि नागेश शोरी की बताई बातें झूठी है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

जगमोहन ने सारी बात बताई ।

आज की भाग-दौड़ के बारे में भी बताया ।

देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता आ ठहरी।

"आज केकड़ा का फोन भी आया था ।" देवराज चौहान बोला ।

"केकड़ा ?"

"वो ही, जो हमारे बारे में रतनचंद को खबरें देता रहा कि हम उसके खिलाफ कब, क्या करने जा रहे हैं, परन्तु केकड़ा ने रतनचंद को ना तो कभी हमारा नाम बताया और ना ही उसका, जिसने उसकी हत्या की सुपारी दी है ।" देवराज चौहान ने कहा- "केकड़ा की बातों से रतनचंद के खिलाफ मैंने नफरत का एहसास पाया ।"

जगमोहन के चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे ।

"केकड़ा से बात करके मुझे जाने क्यों महसूस हुआ कि शोरी की बीवी की मौत ड्रग्स की वजह से नहीं हुई ।"

"ओह ।"

"मेरे ख्याल में ये मामला हमारे सामने स्पष्ट नहीं है । शोरी ने हमें धोखे में रखा है ।"

"अभी साले की गर्दन-।"

"पहले रतनचंद से बात करेंगे । स्पष्ट तौर पर उसके सामने खुलना पड़ेगा ।"

"रतनचंद मुंह खोलेगा। बतायेगा सब कुछ ?"

"बताना पड़ेगा, इस वक्त वो फंसा पड़ा है । आओ, रतनचंद से बात करें ।"

देवराज चौहान और जगमोहन, रतनचंद के पास पहुंचे ।

वो बंधा पड़ा था । अपने चेहरे वाले को देख कर चौंका।

"तुम-।" रतनचंद चौंका ।

"इसके सारे बंधन खोल दो ।"

"तुम इन दिनों रतनचंद बने पड़े हो ?"

"हां ।"

"देवराज चौहान हो तुम-डकैती मास्टर ?"

देवराज चौहान ने सिर हिलाया ।

"मेरी हत्या की सुपारी तुमने ली है ?"

"हां ।"

"तो फिर मुझे कैद करके रखा हुआ है, मुझे मारा तो नहीं ? आखिर क्या चाहते हो तुम ? बेहतर होगा कि मेरे से सौदा कर लो । मैं तुम्हें पांच करोड़ दूंगा छोड़ने के। लेकिन मुझे उसका नाम भी बताना, जिसने तुम्हें सुपारी दी है ।"

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"अपना असली चेहरा तो दिखा दो ।"

"मैं ऐसे ही ठीक हूं ।"

"मेरी जगह लेने से तुम्हें परेशानी तो आ रही होंगी, क्योंकि मेरे बारे में सब कुछ तो पता नहीं होगा ।" रतनचंद बोला ।

"अभी तो कोई परेशानी नहीं आई, क्योंकि मुझे बंगले में ही रहना पड़ रहा है ।"

"हैरानी है कि R.D.X को तुम पर शक नहीं हुआ ।"

"राघव के बाद धर्मा भी यहां आ गया है ।"

"धर्मा भी ?" रतनचंद के चेहरे पर हैरानी उमड़ी- "R.D.X. इतने कमजोर तो नहीं कि उन्हें इस तरह बंदी बना...।"

"वो तुम्हारे धोखे में मात खा रहे हैं ।"

"मेरे धोखे में ?" रतनचंद देवराज चौहान को देखने लगा ।

"वो रतनचंद पर शक नहीं कर सकते और मैं रतनचंद बना बैठा हूं, इसलिए उन पर हाथ डालने में कोई परेशानी नहीं हो रही ।"

जगमोहन ने रतनचंद के हाथ-पांव खोल दिए ।

रतनचंद हाथ-पांवो को रगड़ते हुए बोला-

"मुझे छोड़ने वाले हो ?"

"नहीं ।"

"तो फिर मेरे हाथ-पांव क्यों खोले ?"

"तुमसे बात करनी है। मैं चाहता हूं हम आराम से बात करें ।"

"मेरे से बात करनी है, ठीक है, करो ।"

"ये बात तो अब तुम्हें अच्छी तरह पता है कि हमने तुम्हारी हत्या की सुपारी ली है और तुम्हें कभी भी मार सकते हैं ।"

"मैं तुम्हें पांच करोड़-।"

"मेरी बात का जवाब दो, मैं तुमसे जरूरी बात जा करने जा रहा हूं ।"

"ठीक है, तुम मुझे मार सकते हो ।" रतनचंद गंभीर हुआ।

"इसलिए तुमसे जो बात करने जा रहा हूं, उसका महत्व  समझना और सही जवाब देना ।"

रतनचंद ने सिर हिलाया ।

"तुम ये जानने की को बहुत उतावले हो कि किसने तुम्हारी हत्या की सुपारी दी ?"

"हां ।"

"नागेश शोरी को जानते हो ?"

"नागेश शोरी ?" रतनचंद चौंका ।

"जानते हो ?"

"अच्छी तरह से ।"

"उसने तुम्हारी हत्या की सुपारी मुझे दी है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

रतनचंद, अजीब सी निगाहों से देवराज चौहान को देखने लगा फिर बोला-

"मुझे यकीन नहीं आता ।"

"ये बात मैं कह रहा हूं, इसलिए तुम्हें यकीन करना पड़ेगा। नागेश का कहना है कि तुम ड्रग्स का धंधा करते हो और ड्रग्स लेने की वजह से उसकी बीवी को जान से हाथ धोना पड़ा । शहर भर में तुम्हीं ड्रग्स फैलाते हो, इसलिए तुम्हें मारना चाहता है। अपनी बीवी की मौत का हिसाब वो इस तरह बराबर करना चाहता है ।" देवराज चौहान ने कहा।

रतनचंद, देवराज चौहान को देखता रहा ।

"अब बोलो। तुम क्या चाहते हो। सिर्फ सच बोलना । तुम्हारे झूठ का एहसास हो जायेगा मुझे ।"

"मैं सोच भी नहीं सकता कि नागेश शोरी ऐसा कुछ करेगा ।" रतनचंद के होंठों से निकला ।

"जानते हो उसे ?"

"बहुत अच्छी तरह से । वो मेरा दोस्त था ।"

"दोस्त ?"

"हां । उसकी बीवी मेरे को भाई मानती थी । हम लोगों में अच्छे संबंध रहे हैं । लेकिन उसकी बीवी की मौत के साथ ही शोरी का दिमाग खराब हो गया था। वो मुझे कहने लगा कि उसकी बीवी के साथ मेरे संबंध थे ।" रतनचंद ने गहरी सांस ली।

"नागेश शोरी ने कहा ये ?"

"हां, जब कि मैं उसे बहन मानता था । वो भी मुझे भाई मानती थी । अक्सर वो घर पर अकेली ही आ जाया करती थी। घंटों बैठती, बातें करती, फिर वो चली जाती। अक्सर इस दौरान मेरी बीबी सोनिया भी पास होती थी।" रतनचंद ने व्याकुलता भरे स्वर में कहा- "नागेश का ये सोचना गलत भी नहीं था कि उसकी बीवी मीरा के साथ किसी के साथ संबंध है ।"

"क्या मतलब ?"

रतनचंद ने गहरी सांस ली, फिर कह उठा-

"नागेश की बीवी मीरा का रंजन श्रीवास्तव के साथ संबंध थे । अक्सर वो दो-दो दिन रंजन श्रीवास्तव के घर पर ही रहती और नागेश को नहीं पता होता कि कहां है, वो यही सोचता कि मीरा मेरे घर पर होगी या हम दोनों किसी और जगह पर एक साथ होंगे । कई बार तो मीरा, नागेश से झूठ ही कह देती कि वो मेरे यहां थी। वो नहीं जानती थी कि उसका पति नागेश मुझे और मीरा को लेकर शक करता है। दिन-ब-दिन नागेश का ये बेवजह का शक पक्का होता रहा ।"

"तुमने नागेश को रंजन श्रीवास्तव के बारे में नहीं बताया ?"

"नहीं, क्योंकि इस मामले में मीरा जुड़ी हुई थी, जिसे मैं बहन मानता था । ऐसे में उसकी शिकायत क्यों करता मैं ?"

"तुमने मीरा को समझाने की चेष्टा नहीं की?"

"ये उसका व्यक्तिगत मामला था। मैं समझाता भी तो क्या समझाता ? वो नागेश को छोड़ने के लिए रास्ते की तलाश कर रही थी ।"

"क्यों ?"

"क्योंकि नागेश ड्रग्स का धंधा करता है ।"

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा ।

जगमोहन ने सिर दूसरी तरफ में घुमा लिया ।

"शोरी ड्रग्स का धंधा करता है ?"

"हां ।" रतनचंद गंभीर स्वर में कह रहा था- "ये बात मीरा को पसंद नहीं थी । उधर शोरी ड्रग्स का धंधा छोड़ने को तैयार नहीं था, क्योंकि दूसरे कामों में काफी नुकसान खा चुका था, ड्रग्स के धंधे ने ही उसे नुकसान से बाहर निकाला था। यूं भी शोरी महीने में पच्चीस दिन ड्रग्स के धंधे की वजह से शहर से बाहर रहता था। ऐसी जिंदगी मीरा को रास नहीं आ रही थी और तब उसे रंजन श्रीवास्तव मिल गया। रंजन श्रीवास्तव से उसकी अच्छी पटने लगी और वो नागेश को छोड़ने की फिराक में थी।"

"रंजन श्रीवास्तव क्या करता है ?"

"छोटा-मोटा बिजनेस मैन है । मीरा ने बताया था ।"

"फिर क्या हुआ ?"

"मीरा ने मुझे दो-तीन बार कहा था कि वो नागेश को छोड़ देगी, मैंने उसे समझाने की चेष्टा की, परन्तु वो तय कर चुकी थी । उधर नागेश यही सोचता रहा कि मीरा के संबंध मेरे साथ हैं, मैं ही उसे उकसाता रहता हूं।"

देवराज चौहान और जगमोहन, रतनचंद को देखते रहे ।

"जब मीरा ने नागेश से अलग होने के बाद, नागेश से कहीं तो वो हत्थे से उखड़ गया । मीरा के साथ-साथ वो मुझे भी गालियां देने लगा। दो बार नागेश ने मुझे फोन करके कहा कि मैंने उसकी बीवी को भड़का दिया है। वो मुझे नहीं छोड़ेगा नहीं। तब भी मैंने उसे ये बात नहीं बताई कि वो शख्स मैं नहीं, रंजन श्रीवास्तव है।"

"तुम्हें बता देना चाहिए था ।" जगमोहन बोला ।

"ऐसे में वो उसी वक्त रंजन श्रीवास्तव को खत्म करवा देता ।"

"अब वो तुम्हें अपराधी मानकर, तुम्हें खत्म करने पर लगा है।"

"मैं नहीं जानता था कि वो ऐसा करेगा मेरे साथ।"

"उसकी निगाहों में अभी भी तुम ही हो, उसकी बीवी को भड़काने वाले-तो वो ऐसा क्यों नहीं करेगा ?"

रतनचंद परेशान लग रहा था।

"उसकी बीवी मरी कैसे ?"

"मैं नहीं जानता ।" रतनचंद की आवाज में व्याकुलता के भाव आ गये- "मीरा और नागेश की लड़ाई चल रही थी । मीरा तलाक लेकर उससे अलग होना चाहती थी । नागेश नहीं चाहता था कि मीरा ऐसा करें । फिर एक दिन मीरा ने अपना सूटकेस तैयार कर लिया । वो घर से जाने के लिए तैयार हो गई थी। ये बात मीरा ने मुझे फोन करके बताई तो मैंने उसे समझाया, लेकिन मेरी बात नहीं सुनी उसने। उसके बाद मीरा से मेरी बात नहीं हुई । परन्तु अगले दिन सुबह खबर मिली कि मीरा अपने घर में मृत पाई गई । उसकी मौत ज्यादा ड्रग्स लेने से हुई ।"

"और ड्रग्स कैसे ली उसने ?"

"जहां तक मेरा ख्याल है, ड्रग्स मीरा ने ली नहीं बल्कि नागेश ने उसे दी होगी। ड्रग्स के माध्यम से नागेश ने ही उसकी हत्या की। परन्तु ये बात साबित कैसे होती? नागेश को अपना बचाव करना आता है । पुलिस में उसकी पहचान है । मुझे इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं रही कि मीरा को कैसे मारा गया । मैं मन से मीरा को ही दोषी मानता था । क्योंकि रंजन श्रीवास्तव के चक्कर में पड़कर वो नागेश को छोड़ने जा रही थी। जो कि गलत बात थी । मीरा को ऐसा नहीं करना चाहिये था ।"

"फिर ?"

"मीरा की मौत के दो दिन बाद नागेश ने मुझे फोन करके व्यंग भरे स्वर में कहा कि मेरी माशूका मर गई। गलतफहमी थी नागेश को। तब मैंने नागेश को समझाने की चेष्टा की कि मेरी तरफ से ऐसा कुछ नहीं था, परन्तु उसने मेरी एक ना सुनी और फोन बंद कर दिया। मैंने उसकी बात की परवाह नहीं की। वक्त बीतता चला गया। अब करीब साल भर बाद नागेश ने मेरी हत्या की सुपारी तुम्हें दे दी । मैं तो कभी सोच भी नहीं सकता था कि नागेश मेरे साथ ऐसी कोई हरकत करेगा ।"

"साल भर में तुम्हारे और नागेश के बीच कोई बात नहीं हुई ?"

"नहीं । हम दोनों में दोस्ती का रिश्ता खत्म हो चुका था क्योंकि वो मुझ पर, मीरा को लेकर शक करता था।"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और कुर्सी पर जा बैठा ।

रतनचंद गंभीर दिख रहा था ।

जगमोहन चुप रहा ।

"तुमने जो बताया है, वो सच है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"पूरी तरह ।"

"रंजन श्रीवास्तव का पता जानते हो ?"

"हां ।" कहकर रतनचंद ने रंजन श्रीवास्तव का पता बता दिया ।

"अगर तुम सच बोल रहे हो तो तुम्हें हम नहीं मारेंगे ।"

"क्यों-मेरी हत्या के लिए तुमने तीन करोड़-।"

"शोरी ने झूठ बोलकर, तुम्हारी हत्या की सुपारी हमें दी। उसने मनगढ़ंत अखबारों का पुलिन्दा हमें थमा दिया, जिसे कि उसने खुद ही तैयार किया था । उसने ये बात भी झूठ कही कि तुम ड्रग्स का धंधा करते हो। उसके बीवी किसी और वजह से मरी और इल्जाम तुम पर लगा दिया ।" देवराज चौहान ने कहा-

"इसलिए सारा मामला तो यहीं खत्म हो जाता है ।"

रतनचंद कुछ नहीं बोला ।

"शोरी ने हमसे झूठ क्यों बोला ?" जगमोहन ने कहा ।

"वो ही बतायेगा ये बात, तुम रंजन श्रीवास्तव से मिलकर, बातों की सच्चाई पता करो ।"

"मैं अभी रंजन श्रीवास्तव से मिलकर आता हूं ।" जगमोहन ने कहा।

"मैं जा सकता हूं ?" रतनचंद बोला ।

"अभी नहीं, पहले बातों की सच्चाई तो परख लेने दो । क्या पता झूठे तुम ही हो ?" जगमोहन बोला ।

"मैंने सच कह रहा है ।"

"पता चल जायेगा ।"

"इन बातों का गवाह कोई और भी है ?" देवराज चौहान ने पूछा।

"मेरी पत्नी है ।"

"उसकी गवाही नहीं चलेगी, वो तुम्हारे लिए झूठ भी बोल सकती है ।" देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा- "तुम रंजन श्रीवास्तव से मिलकर बात करो और इसके हाथ-पांव बांध दो।"

जगमोहन रतनचंद के हाथ-पांव बांधने की तैयारी करने लगा ।

"मुझे बांधना जरूरी है ?" रतनचंद बोला ।

"बहुत जरूरी है ।"

"मैं भागूंगा नहीं-मैं-।"

"चुप रह । तेरी कोई बात नहीं मानी जायेगी ।"

जगमोहन ने उसके हाथ-पांव अच्छी तरह बांधे ।

"तुम कब तक मेरी बातों की सच्चाई का पता लगा लोगे ?" रतनचंद बोला ।

"अगले कुछ घंटों में ।"

उसे बांधने के पश्चात देवराज चौहान और जगमोहन बाहर निकले।

धर्मा के पास उस कमरे में पहुंचे, जहां वो बंधा पड़ा था ।

रतनचंद रूपी देवराज चौहान को देखते ही धर्मा का चेहरा कठोर हो गया । वो कह उठा-

"बहुत कमीने हो तुम ।"

"वो कैसे ?" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

"इस तरह धोखे में रखकर, किसी को कैद कर लेना कोई बहादुरी नहीं होती ।"

"ये धोखा नहीं था। हमारी खामोश लड़ाई है । तुम लोग अपने-अपने पैंतरे चला रहे हो और हम अपने । लड़ाई दो तरह की होती है, हत्यारों से फिर शांति से। ये लड़ाई चुप्पी वाली है । इसलिए जो हो रहा है, सब ठीक हो रहा है ।"

"एक बार मुझे मौका मिल जाये देवराज चौहान-तब-।"

"तुम्हें इसी में तसल्ली होनी चाहिये कि मैं तुम्हारा अहित नही चाहता। सिर्फ कुछ देर के लिये कैद में रखा है ।"

"वक्त आने दे, तेरी सारी बातों का जवाब देंगे ।" धर्मा ने कड़े स्वर में कहा ।

"जुबान बंद रख ।" जगमोहन तीखे स्वर में बोला- "एक लात भी पड़ गई तो फालतू बोलना छोड़ देगा ।"

धर्मा ने कहर भरी निगाहों से जगमोहन को घूरा ।

"तेरे को तो नहीं छोडूंगा में ।"धर्मा गुर्रा उठा ।

"बहुत ढीठ है । लात खा के ही मानेगा ।"

उसके बाद दोनों राघव के कमरे में पहुंचे ।

राघव के हाथ-पांव बंधे हुए थे और फर्श पर पड़ा था वो।

जगमोहन के साथ इस तरह रतनचंद को घूमते पाकर राघव चौंका ।

"क्या चक्कर है रतनचंद ?" राघव कह उठा- "जगमोहन से दोस्ती हो गई ?"

"मैं रतनचंद नहीं, देवराज चौहान हूं ।"

"देवराज चौहान ?" राघव के माथे पर बल पड़े- "क्या कहते हो ?"

"ठीक कह रहा हूं मैं ।"

"लेकिन तुम रतनचंद-।" राघव ने कहना चाहा ।

"मैं तभी रतनचंद बन चुका था, जब काशीनाथ ने खामखाह गोलियां चलाकर तुम लोगों का ध्यान बांटा, रतनचंद तब गनमैन के रूप में था और मैं उस पर काबू पाकर, उसकी जगह ले ली और तुम लोगों के साथ बंगले पर जा पहुंचा ।"

"ओह, और हम सोचते रहे कि काशीनाथ ने वहां शोर-शराबा क्यों किया । तुम सच में बहुत चालाक हो ।"

"खेल तो खेल ही होता है। जिसका वार चल जाये, उसे चालाक कहा जाता है । जीता हुआ कहा जाता है । मौत के खेल में कोई भी हमेशा चालाक बना नहीं रह सकता । सब कुछ वार चलने पर निर्भर करता है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"अपना चेहरा दिखाओ ।" राघव बोला ।

"बाद में दिखाऊंगा, अभी खेल जारी है ।"

"एक्स्ट्रा और धर्मा को शक नहीं हुआ तुम पर कि-।"

"नहीं । वो दोनों मुझे रतनचंद ही समझते रहे । अब तुम यहां अकेले नहीं हो, धर्मा भी यहां आ चुका है ।"

"धर्मा यहां ?" राघव की आंखें सिकुड़ी ।

"कुछ देर पहले ही उसे यहां लाया हूं । तुम लोग मेरे कामों में अड़चन पैदा कर रहे थे ।"

"हम पर काबू पाना हिम्मत का काम है, लेकिन तुम हिम्मत नहीं, चालाकी से काम ले रहे हो । रतनचंद बनकर हमारे बीच रहे, ऐसे में तो कोई भी धोखा खा सकता है । हम भी धोखे में आ गये।" राघव में गहरी सांस ली।

"एक्स्ट्रा भी जल्दी ही यहां आ जायेगा ।" जगमोहन बोला ।

राघव देवराज चौहान से बोला ।

"मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि आखिर तुम्हारा मकसद क्या है ? तुम रतनचंद को मारना चाहते थे, परन्तु उसे कैद करके रखा हुआ है, आखिर तुम करना क्या चाहते हो ?"

"ये जानना चाहता हूं कि हमारे बारे में रतनचंद को खबरें कौन दे रहा था । उसे कैसे हमारे बारे में मालूम हो रहा था । कौन है मेरे आस-पास, जो ये काम कर रहा है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"केकड़ा-ये काम तो केकड़ा कर-।"

"केकड़ा असल में कौन है, ये तो नहीं मालूम ।"

राघव, देवराज चौहान को देखने लगा । बोला-

"आज से पहले हमारी ये हालत कभी नहीं हुई ।"

"जिस धंधे में हो, वहां कभी भी कुछ भी हो सकता है ।" देवराज चौहान ने कहा और जगमोहन के साथ बाहर आ गया।

राघव कुछ पल तो खुले दरवाजे को देखता रहा-फिर कसमसा कर बंधनों से आजाद होने की चेष्टा करने लगा ।

कमरे से बाहर आते ही देवराज चौहान बोला-

"तुम रंजन श्रीवास्तव से मिलकर रतनचंद की बातों की सच्चाई का पता करो ।"

तभी देवराज चौहान के पास मौजूद मोबाइल की बेल बजी ।

देवराज चौहान ने फोन निकाला। धर्मा वाला फोन बज रहा था।

"हैलो ।" देवराज चौहान ने बात की ।

"तुम कहां हो धर्मा-फोन भी नहीं किया । सोहनलाल से क्या बात हुई ?"

"मैं देवराज चौहान हूं एक्स्ट्रा ।"

"देवराज चौहान ?" उधर से एक्स्ट्रा का स्वर हैरानी भरा था- "ये फोन तुम्हारे पास कैसे ?"

"धर्मा, राघव की तरह मेरी कैद में पहुंच चुका है ।"

एक्स्ट्रा की आवाज नहीं आई ।

"दोनों मेरे पास सुरक्षित हैं, तुम्हें उनकी चिंता करने की जरूरत नहीं । मेरा काम खत्म होते ही उन्हें छोड़ दिया जायेगा ।"

"मुझे विश्वास नहीं आता कि धर्मा तुम्हारे कैद में है ।" एक्स्ट्रा अजीब स्वर में कह उठा ।

देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया ।

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