देवराज चौहान और सोहनलाल कमरे के फर्श पर बंधे पड़े थे। रात हो चुकी थी। कमरे में लाईट ऑन थी। पास में शिवचंद, बाबू के अलावा वो छः बदमाश टाईप आदमी भी मौजूद थे। पिछले दो घंटों से देवराज चौहान और सोहनलाल की ठुकाई चल रही थी। दोनों की हालत खस्ता हो चुकी थी। चेहरों पर चोटों के निशान दिख रहे थे। देवराज चौहान के होंठों के कोने से खून की लकीर निकली दिखाई दे रही थी। सोहनलाल के चेहरे पर तो ठुकाई के अच्छे खासे निशान नजर आ रहे थे। ठोकरें इतनी पड़ चुकी थीं। कि उनके शरीर से पीड़ा की लहरें रह-रहकर उठ रही थीं।

"हमारी बात मान जाओ।" शिवचंद कड़वे स्वर में बोला--- "माननी तो पड़ेगी ही, फिर क्यों मार खा रहे हो। वो पैसा हम छोड़ने वाले नहीं। उसे पाने के लिए हमने बहुत मेहनत की है, ये तुम भी जानते हो।"

देवराज चौहान ने शिवचंद को देखा। कहा कुछ नहीं।

"रात भर तुम्हारे साथ ये ही चलता रहेगा। अब नहीं तो सुबह मानोगे, ना खाना मिलेगा, ना पानी। तुम दोनों....।"

"शिवचंद... ।" बाबू हंसकर बोला--- “मुझे तो लगता है पैसा देखकर देवराज चौहान की नियत खराब हो गई है।"

“ज्यादा होगा?" शिवचंद ने होंठ सिकोड़कर बाबू को देखा।

“ये तो देवराज चौहान ही बता सकता है।" बाबू ने देवराज चौहान को देखा।

“क्यों देवराज चौहान, कितना माल निकला मदन के केबिन से...?"

“बहुत ज्यादा। उसके मुकाबले तुम दोनों की औकात बहुत कम है।" देवराज चौहान ने कहा।

"तुम्हें हमारी औकात का पता चल गया?" बाबू ने जहरीले स्वर में कहा।

"तुम दोनों पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ पर खुश हो, इससे तुम्हारी औकात पता चल जाती है।"

"बाबू.... ।” शिवचंद बोला--- “काफी मोटा माल लगता है।"

"देवराज चौहान सारा खुद ही हजम करने की सोच रहा है। ये तो अच्छा हुआ जो हमने अच्छे वक्त पर इसे पकड़ लिया। नहीं तो फुर्र हो जाता और हम हाथ मलते रह जाते, क्यों देवराज चौहान....।" बाबू हंसा ।

"हाथ तो अब भी मलते रह जाओगे।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।

“साले के हाथ-पाँव बंधे हैं, मार खा रहा है, फिर भी उल्टी बातें कर रहा है।" बाबू ने कड़वे स्वर में कहा।

"इसे तैयार करने के लिए ज्यादा मेहनत चाहिए। छः में से एक आदमी कह उठा--- “ठुकाई से ये मानने वाला नहीं।

"क्या करना चाहते हो?" बाबू ने उस आदमी को देखा।

"इसके शरीर पर चीरा लगाकर, वहाँ नमक-मिर्च डाला जाए, तब ये मानेगा।" उसने कहा।

“सुना देवराज चौहान। ऐसा करें क्या?" शिवचंद कह उठा।

"देर क्यों लगा रहे हो, जल्दी करो।" देवराज चौहान बोला।

“साला ढीठ है।" बाबू गुर्रा उठा---फिर उन छः से कहा--- "जैसे भी हो, इसका मुँह खुलवाओ। बस इतना ध्यान रखना है कि इन दोनों में से कोई मरे नहीं। कल हमें हर हाल में पैसा चाहिए।"

सब आदमी फौरन अपनी तैयारी में लग गए।

“बाबू....।” शिवचंद बोला--- “मेरे ख्याल में जगमोहन को यहाँ मंगवा लेना चाहिए। अगर रात भर में ये नहीं माना तो सुबह इनके सामने जगमोहन के टुकड़े किए जाएंगे।" स्वर में खतरनाक भाव आ गए थे।

“मैं किसी की जान लेने से परहेज करता हूँ शिवचंद।" बाबू बोला ।

“आज तक तुमने कइयों को मारा है। एक को तो सिर्फ पचास रुपये की खातिर मार दिया था।”

“वो मेरी भूल थी। मुझे लगा उसके ब्रीफकेस में बीस-तीस लाख रुपया है; परन्तु....।"

“ये पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ का मामला है। एक-दो को मारना भी पड़े तो परवाह नहीं। हम इन दोनों को भरपूर मौका और वक्त दे रहे हैं कि ये मान जाएं। ये नहीं मानते तो हमें सख्त कदम उठाना ही.... ।”

तभी दरवाजा खुला और नोरा ने भीतर प्रवेश किया।

शिवचंद और बाबू ने उसे देखा।

देवराज चौहान और सोहनलाल ने भी।

"ये क्या हो रहा है?" नोरा देवराज चौहान और सोहनलाल की हालत देखकर बोली।

"समझा रहे हैं कि हमारी बात मान जाए। अभी तक को नहीं माना।" शिवचंद ने कहा।

"ये ज्यादा कर रहे हो इन दोनों के साथ।" नोरा कह उठी।

"तुम्हें दर्द हो रहा है?" बाबू ने तीखे स्वर में कहा।

"मैंने इसके साथ कुछ दिन बिताये हैं....ये अच्छा इन्सान है।"

“ये हिन्दुस्तान का माना हुआ डकैती मास्टर है, ऐसे में ये अच्छा कैसे हो सकता है?" शिवचंद ने कहा।

“ये कुछ भी करता हो, पर ये अच्छा है।" नोरा ने सख्त स्वर में कहा।

“तो तुम चाहती हो कि हम इन दोनों को छोड़ दें?" बाबू का स्वर तीखा ही था।

“मैंने ऐसा नहीं कहा... मैं ।”

“अब इनके शरीरों को जगह-जगह से काटा जाएगा और वहाँ नमक-मिर्च भरा जाएगा। ये जल्दी ही वॉल्ट में रखी दौलत हमारे हवाले करने को तैयार हो जाएंगे। कल वो सारी दौलत हमारे पास होगी।"

"अगर इस यातना के बाद भी ये लोग नहीं माने तो...?" नोरा के माथे पर बल दिख रहे थे।

“तो कल सुबह इनके सामने, इनके साथी जगमोहन को मार दिया जाएगा।"

“उससे क्या होगा? क्या तब ये मान जाएंगे?" नोरा की आवाज में सख्ती आ गई।

“तुम कहना क्या चाहती हो?" शिवचंद ने नोरा को गौर से देखा।

“बातचीत से हल निकालो।"

"देवराज चौहान बातचीत से मानने वाला नहीं। बातें बहुत हो चुकीं, अब.....।"

नोरा पलटी और कमरे के दरवाजे से बाहर निकलकर ठिठक गई। फोन निकाला और नम्बर मिलाकर बात की। उधर से कॉल रिसीव की गई तो आवाज कानों में पड़ी---

"हैलो।"

"शिवचंद और बाबू, देवराज चौहान को यातना दे रहे हैं।" नोरा ने शांत स्वर में कहा।

"देवराज चौहान पैसा देने से इंकार कर रहा होगा।"

"हाँ, परन्तु ये गलत तरीका है। तुम्हें ये नहीं भूलना चाहिए, कि वो भी हस्ती है। माना हुआ डकेती मास्टर है। इस तरह जबर्दस्ती उसका मुँह नहीं खुलवाया जा सकता। इसके लिए तरकीब लगानी होगी।"

"क्या ?"

"तुम प्रेमभाव से देवराज चौहान से बात करो। उसे रास्ते पर लाओ। डण्डे के दम पर वो कोई बात नहीं मानेगा, वो अपने आप में खतरनाक इन्सान है। उसे डराया नहीं जा सकता।" नोरा के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था।

उधर से आवाज नहीं आई।

"जगमोहन कहाँ है?" नोरा ने पूछा।

"मेरे पास, यहीं कैद में....।" दूसरी तरफ से आने वाले स्वर में सोच के भाव थे--- "मैं देवराज चौहान के सामने नहीं पड़ना चाहता। मैं नहीं चाहता वो जाने कि इस मामले के पीछे मैं हूँ। शिवचंद और बाबू को ही ये मामला देखने दो।"

"बात को समझो। मैंने पहले भी कई बार तुम्हें बेहतर राय देकर, तुम्हें मुसीबतों से बचाया है। ये दोनों मामूली से ठग हैं। जालसाजी करने वाले निचले स्तर के लोग हैं। ये देवराज चौहान जैसे डकैती मास्टर को नहीं संभाल सकते। ये मामला और बिगाड़ देंगे। सब कुछ तभी ठीक होगा जब तुम देवराज चौहान से बात करोगे।" नोरा ने कहा।

जवाब नहीं आया।

"एक बात और भी है, देवराज चौहान हमें सारी दौलत कैसे दे देगा? उसने भी तो मेहनत की है, वो दौलत पाने के लिए बड़ी-बड़ी डकैतियाँ करता है। जनता सेवा तो नहीं करता कि सारा पैसा हमारे हवाले कर दे। उससे बात करने के लिए समझदारी की जरूरत है, जो कि शिवचंद और बाबू के पास है ही नहीं। वैसे भी इस मामले की डोर तुम्हारे हाथ में है। देवराज चौहान से बात करते हुए तुम कोई बेहतर फैसला ले सकते हो। शिवचंद और बाबू तो देवराज चौहान पर डण्डे चलाकर मामला बिगाड़ते रहेंगे। हालात और भी खराब कर देंगे। ऐसा ना हो कि तुम जैम डिमोरा का पैसा ना चुका सको। जैम डिमोरा की दी टाईम लिमिट खत्म होने में कुछ दिन ही बाकी....।"

"ठीक है, मामले को मैं संभालता हूँ। शिवचंद और बाबू कहाँ हैं?" उधर से पूछा गया।

"भीतर कमरे में, देवराज चौहान के पास....।”

"उनसे मेरी बात कराओ।"

“रुको....।" कहने के साथ ही नोरा ने दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश कर गई। बाबू के पास पहुँचकर उसे फोन दिया--- “बात करो।"

बाबू ने फोन लेते उलझन भरी नजरों से नोरा को देखते पूछा---

"कौन है?”

“बात तो करो।” नोरा ने सामान्य स्वर में कहा।

“हैलो।”

"बाबू!" उधर से कहा गया--- "देवराज चौहान मदन का पैसा देने को तैयार नहीं हो रहा?”

“आप?” बाबू चौंका, नोरा को देखा।

“जवाब दो।”

“ह-हम....।" बाबू ने खुद को संभाला--- "देवराज चौहान और सोहनलाल को तैयार कर रहे हैं।"

“उन्हें यातना दे रहे हो?”

“हाँ। वो....।”

“देवराज चौहान कोई मामूली इन्सान नहीं है कि उसे यातना देकर रास्ते पर ले आओगे। पहले उसकी हैसियत पहचानो, फिर उसी हिसाब से उससे बात करो। वो तुम्हारे बस का नहीं है, दोनों को मेरे पास ले आओ।"

“आपके पास....?”

“मैं गाड़ी भेज रहा हूँ। देवराज चौहान और सोहनलाल के साथ तुम दोनों भी आना। नोरा को भी ले आना।"

“ठ-ठीक है।" बाबू के होंठों से निकला।

उधर से फोन बंद कर दिया गया।

बाबू का फोन वाला हाथ नीचे गया तो नोरा ने उससे फोन वापस ले लिया।

“तुम उसे कैसे जानती हो?" बाबू ने आँखें सिकोड़कर नोरा से पूछा ।

“तुम क्या समझते थे कि इतना बड़ा मामला सिर्फ तुम दोनों के हाथों में उसने दे दिया है? ऐसा कुछ भी नहीं था। उसकी तरफ से मैं यहाँ मौजूद थी और उसे हालातों की रिपोर्ट देती थी। ये ठीक है कि तुम दोनों ने मुझे इस काम में लिया, परन्तु मेरा पता तुम लोगों को उसने ही बताया था।" नोरा ने शांत स्वर में कहा।

“क्या हुआ?" शिवचंद ने बाबू से पूछा।

बाबू शिवचंद को सारी बात बताने लगा।

नोरा आगे बढ़कर देवराज चौहान के पास पहुँची और कहा---

“तुमसे अब वो बात करेगा, जिसने ये सारी योजना प्लान की थी ।”

“कौन है वो ?” देवराज चौहान ने पूछा।

“जल्दी पता चल जाएगा।" फिर नोरा बाबू की तरफ पलटी--- “आगे का क्या प्रोग्राम है?"

“उसने गाड़ी भेजने को कहा है और इन दोनों के साथ तुम्हें भी साथ लाने को कहा है।" बाबू ने कहा।

नोरा ने सिर हिलाया ।

"तुम उसे पहले से जानती थीं?” देवराज चौहान ने नोरा से पूछा ।

“मुझे गोद में बिठाकर तो उसने सारी योजना तैयार की थी देवराज चौहान।” नोरा बोली--- "हालांकि उसकी कुछ बातों से मैं शुरू से ही सहमत नहीं थी, लेकिन वो अपनी करके रहता है। अण्डरवर्ल्ड का बड़ा चेहरा जो ठहरा...।”

■■■

देवराज चौहान और सोहनलाल नहीं देख सके कि उन्हें कहाँ ले जाया गया है। बंधे हाथ-पाँवों से ही उन्हें उठाकर बंगले के बाहर वैन के फर्श पर डाल दिया गया, तब रात के बारह बज रहे थे। जब वैन चली तो रात के बारह बज चुके थे। इस तरह बंधनों में जकड़े होने की वजह से वैन के फर्श पर रहना कष्टदेह था। वैन उछलती तो शरीर को जोरों से झटके लगते, जिनसे पीड़ा होती, लेकिन वे विरोध करने की स्थिति में भी नहीं थे।

वैन में उनके अलावा सात लोग थे।

शिवचंद, बाबू, नोरा और दो अन्य आदमी, उनके साथ बैठे थे। आगे वैन का ड्राईवर था और दूसरा बगल में बैठा था। वैन के शीशों पर पर्दे लगे थे। वैन के भीतर अंधेरा था कि वे एक-दूसरे को स्पष्ट नहीं देख पा रहे थे। पूरे रास्ते वैन सामान्य रफ्तार से चलती रही थी।

एक घंटे बाद उनका सफर खत्म हुआ।

देवराज चौहान और सोहनलाल को इतना जरूर महसूस हो गया कि वैन किसी इमारत के भीतर जा रुकी है। फिर दरवाजे खुले, सब नीचे उतरे। करीब दो मिनट बाद उन्हें वैन से निकालकर कंधों पर डाला गया और लिफ्ट के सहारे दूसरी मंजिल पर पहुँचे और एक कमरे में डाल दिया गया। उन्हें लाने वाले आदमी पास ही मौजूद रहे।

देवराज चौहान और सोहनलाल की नजरें मिलीं।

"हमारी बुरी हालत हो रही है।" देवराज चौहान बोला।

“बहुत ही बुरी।” सोहनलाल ने गहरी सांस ली।

"मैं उस इन्सान को देखना चाहता हूँ, जिसने मुझे बेवकूफ बनाकर फंसा लिया।" देवराज चौहान ने कहा।

"तुम क्या कर सकते थे....। झूठ के जाल ने तुम्हें उलझाकर अपनी गिरफ्त में ले लिया....।”

तभी नोरा दो आदमियों के साथ भीतर आई।

“इसके बंधन खोल दो।" नोरा ने कहा।

साथ आये दोनों आदमी देवराज चौहान और सोहनलाल के बंधन खोलने लगे।

"कोई शरारत की तो बहुत तकलीफ में आ जाओगे देवराज चौहान।" नोरा कह उठी--- “ये मत सोचना कि तुम्हारे हाथ-पाँव खुल गए हैं तो तुम कुछ भी कर सकते हो। तुम ऐसी जगह पर हो, जहाँ कोई अपनी मनमानी नहीं कर सकता।"

देवराज चौहान और सोहनलाल के बंधन खुल गए।

"हम उसके यहाँ हैं, जिसने सारी योजना बनाई थी?" सोहनलाल ने पूछा।

"हाँ! जगमोहन पहले से ही यहाँ पहुँच चुका है।" नोरा ने कहा।

"वो कैसा है?” देवराज चौहान ने नोरा को देखा।

"उसे कोई तकलीफ नहीं दी गई, वो कैद में है।" नोरा का स्वर शांत था।

“तुम्हारी यहाँ पर क्या हैसियत है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"जल्दी क्या है, पता चल जाएगा।" फिर नोरा पास खड़े आदमियों से बोली--- "ये हमारे खास मेहमान हैं। इन्हें पूरी इज्जत के साथ खाना खिलाओ, जख्मों पर दवा लगाओ और इन पर कड़ी नजर रखो कि ये कोई गलत हरकत ना कर सकें। इनके हाथ-पाँव तभी बांधना, जब ये गलत हरकत करने की कोशिश करें....और रात को इन्हें आराम से सोने देना।"

"मैं उस इंसान से मिलना चाहता हूँ जिसने मुझे इस झंझट में फंसा दिया।" देवराज चौहान ने कहा।

"सुबह...।" नौरा मुस्कुराई--- "आधी रात हो गई है, ये शरीफों का नींद का वक्त है।"

“शरीफ? वो? ठीक है, सुबह ही सही।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।

नोरा कुछ पल देवराज चौहान को देखती रही, फिर बाहर निकल गई।

"नोरा की हैसियत के बारे में क्या ख्याल है कि वो यहाँ....।"

“सोहनलाल!” देवराज चौहान कह उठा--- "तुम नोरा की कही बात भूल गए? उसने कहा था जब इस सारे खेल की योजना बनाई जा रही थी तो वो योजना बनाने वाले की टांगों पर बैठी थी।"

"तुम्हारा मतलब कि नोरा भी योजना बनाने में शामिल थी?" सोहनलाल बोला।

"जरूर शामिल रही होगी। बनते प्लान में वो पास थी तो वो भी इस रगड़े में शुरू से शामिल है.... और यहाँ वो जिस तरह इन लोगों को हुक्म दे रही है, इसी से उसकी हैसियत का दम भी झलकता है। "

■■■

देवराज चौहान और सोहनलाल कमरे में फर्श पर ही सोये थे, क्योंकि वहाँ कोई बैड नहीं था, तकिये अवश्य उनको दे दिए। गए थे। वे गहरी नींद में सोये और सुबह अपनी जाग ही उठे। तब दस बज रहे थे। रात जो लोग उन पर नजर रखे थे, जगने पर वो नहीं दिखे, नये चेहरे दिखे,  दो कमरे के भीतर कुर्सियों पर थे। एक खुले दरवाजे के बाहर कुर्सी पर बैठा था।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।

उन दोनों व्यक्तियों में से एक बोला---

“कुछ चाहिए?”

“कॉफी मिलेगी?” देवराज चौहान ने पूछा।

वो बिना कुछ कहे उठकर बाहर निकल गया।

“मेरे लिए भी....।" पीछे से सोहनलाल ने कहा।

देवराज चौहान खुले दरवाजे के बाहर देखने लगा। बाहर गैलरी जैसा कुछ नजर आ रहा था। नींद लेने से तबीयत सुधरी सी महसूस हो रही थी। देवराज चौहान इन हालातों के बारे में सोचने लगा। उसके मन में जरा भी इच्छा नहीं थी कि यहाँ से निकलने की सोचे। वो उस इंसान से मिलना चाहता था जो इस योजना के पीछे था।

"क्या इरादा है?"

देवराज चौहान ने सोहनलाल को देखा, जो सरककर पास आ गया था और धीमे स्वर में बोला था---

“हम यहाँ फंसे पड़े हैं।" सोहनलाल ने पुनः कहा--- "वॉल्ट में रखी दौलत तुम इन्हें देने वाले नहीं और ये हमें छोड़ेंगे नहीं। जगमोहन भी यहाँ कैद है। ऐसे में बाहरी सहायता मिलने की जरा भी उम्मीद नहीं है। तुम सोचो कैसे यहाँ से निकलें?"

“इस बारे में मैंने सोचा भी नहीं....।"

“अब तक तो तुम्हें सोच लेना चाहिए था कि....।"

“क्या तुम उससे नहीं मिलना चाहते जो इस योजना का मुखिया है?" देवराज चौहान ने पूछा।

“इतना पता चल गया है तो ये भी पता चल जाएगा कि वो कौन है। हमें यहाँ से निकलने की सोचना....।"

“तुम दोनों यहाँ से फरार होने की बात कर रहे हो?" तीन कदम दूर कुर्सी पर बैठा व्यक्ति मुस्कुराकर कह उठा ।

दोनों ने उसे देखा ।

“बोलो। अगर वास्तव में ऐसा कुछ सोच रहे हो तो मैं तुम्हें मौका दे सकता हूँ।" वो पुनः बोला।

“कैसा मौका?”

“यही कि तुम दोनों जा सकते हो। मैं या बाहर बैठा आदमी तुम्हें रोकेगा नहीं, लेकिन मेरा दावा है कि अगले दस मिनट बाद तुम दोनों इसी कमरे में पड़े होगे और बुरा हाल हो चुका होगा तुम दोनों का।" वो बराबर मुस्कुरा रहा था।

सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान उस आदमी को देखता मुस्कुराकर बोला---

"तुम्हारा बड़ा कौन है... उसका नाम....।"

"हमें तुम्हारे बारे में बता दिया गया है कि तुम कितने बड़े शातिर हो।" उसने कहा--- “देवराज चौहान, बहुत जल्दी तुम उनसे मिल भी लोगे, जिनके बारे में पूछ रहे हो। इस बारे में हमें कुछ भी कहने पर मनाही है। भागना चाहो तो भाग सकते हो।"

"अभी नहीं।" देवराज चौहान बोला--- "उससे मिलने के बाद....।"

"बाद में पता नहीं, तुम्हें मौका मिले या ना मिले....।”

तभी गया आदमी ट्रे में कॉफी के दो प्याले रखे कमरे में आ गया।

दोनों ने कॉफी ली और पीने लगे।

दस मिनट बाद ही नोरा वहाँ आ गई।

"गुड मॉर्निंग।" नोरा दोनों को देखती मुस्कुराई--- “पता चला रात गहरी नींद सोये....।"

देवराज चौहान ने नोरा के खूबसूरत चेहरे को देखा।

"वो सामने बाथरूम का दरवाजा है। नहा-धो लो, फिर तुम दोनों को किसी से मिलना है।" नोरा बोली।

"उसी से, जिसने मुझे चक्कर में डालकर, मदन का केबिन खाली कराया।" देवराज चौहान बोला।

“सही कहा।" नोरा ने सिर हिलाया--- "उसे तुम लोगों से मदन का वो पैसा चाहिए। अपने को तैयार कर लो, सोच लो कि उसे क्या कहना है.... या तुम लोगों ने क्या फैसला लेना है। पैसा दोगे तो आजादी मिल पाएगी, नहीं तो पता नहीं क्या होगा।" कहने के साथ ही नोरा ने कंधे उचकाए--- "अब हालात गंभीर हो चुके हैं देवराज चौहान।"

“तो तुम चाहती हो कि हम उसे वो सारा पैसा दे दें?" देवराज चौहान मुस्कुराया।

"मैं जरूर चाहूंगी, क्यों ना चाहूंगी।" नोरा हंसी--- "पर असल फैसला तो तुमने ही लेना है। अगर ये सोचते हो कि यहाँ से भाग जाओगे तो भूल जाओ, इस जगह से इजाजत के बिना बाहर नहीं निकला जा सकता। जगमोहन को बता दिया गया है कि तुम दोनों यहाँ पर हो; परन्तु सुनकर वो खुश नहीं हुआ, परेशान हो गया था।"

"जगमोहन को हमारे पास....।"

“अभी मिलोगे जगमोहन से? नहा-धो लो, नाश्ता कर लो, फिर सबसे मिलोगे।” कहकर नोरा बाहर निकल गई।

“इसकी बातों में प्यार भी है, धमकी भी है।" सोहनलाल बोला--- "इसी ने तुम्हें सारे मामले में उलझाए रखा। ये चालाक बहुत है।"

देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे।

■■■

देवराज चौहान और सोहनलाल को दोपहर एक बजे एक कमरे में लाया गया। तब साथ में तीन आदमी और नोरा भी थी। तीनों आदमी उन्हें कमरे में छोड़कर चले गए। ये ढाई कमरों जितना बड़ा चौकोर कमरा था। कमरे में जरूरत का सारा सामान मौजूद था, जैसे कि डबल बैड, डायनिंग टेबल, फ्रिज, टी.वी. सोफा, सेन्टर टेबल और कुर्सियाँ।

कमरे में जगमोहन भी मौजूद था।

दोनों को देखते ही जगमोहन फौरन आगे बढ़कर दोनों से मिला।

ऐसे में नोरा कुछ कदम हटकर खड़ी हो गई।

“तुम दोनों की तगड़ी ठुकाई हुई लगती है।" जगमोहन बोला--- “किसने की?"

“हो गई। अब क्यों पूछते हो?” सोहनलाल बोला--- “तुम बचाने आये होते तो शायद ये सब ना होता।"

“मैं कैसे आता, कुछ लोगों ने बंगले में आकर मुझे पकड़ लिया, जब मैं फोन पर बातें सुन रहा था, सारे हालातों को समझ रहा था।” जगमोहन ने कहा।

“तुम यहाँ कब से हो?” देवराज चौहान ने पूछा।

“कल से। ”

“पता चला किसकी कैद में हो?”

“नहीं।” कहते हुए जगमोहन ने नोरा पर नजर मारी--- “ये यहाँ क्या कर रही है?”

देवराज चौहान नोरा पर नजर मारकर बोला---

“ये कहती है कि जब मुझे घेरे में लेने की योजना बनाई जा रही थी तो ये भी पास में मौजूद थी।"

“और ये ही तुम्हारी नकली पत्नी भी बनी ?"

“हाँ!”

“इसने बताया नहीं कि इन सबके पीछे कौन....।"

तभी दरवाजा खुला और एक आदमी शिवचंद और बाबू को छोड़कर चला गया।

“ये कौन हैं?” जगमोहन ने पूछा।

“ये दोनों अपने को ठग कहते हैं और योजना बनाने वाले ने सब कुछ प्लान करके पूरा करने का जिम्मा इन पर छोड़ दिया था। ये बाबू है, जो बंगले में नौकर होने का बहाना कर रहा था और ये शिवचंद पीछे रहकर काम कर रहा था।" देवराज चौहान बोला।

शिवचंद ने कमरे में नजर दौड़ाकर नोरा से पूछा---

"तावड़े साहब नहीं आये?"

"आ रहे हैं।" नोरा ने शांत स्वर में कहा।

"अब वो यहाँ आ रहा है, जिसने सारी योजना बनाई थी।" देवराज चौहान बोला--- "वो भी अण्डरवर्ल्ड का आदमी है।"

"अण्डरवर्ल्ड का?" जगमोहन चौंका।

उसी पल कमरे का दरवाजा खुला और चैक शर्ट और काली पैंट पहने चालीस वर्षीया आदमी ने भीतर प्रवेश किया। वो सेहतमंद था, सामान्य कद का था, सिर के बाल छोटे थे, फुर्तीला दिख रहा था वो। हाव-भाव से चुस्ती थी, उसने दरवाजा बंद करके सबको गंभीर नजरों से देखा, फिर नोरा से कहा---

"दरवाजे के बाहर लाल बल्ब जला दो, ताकि कोई हमें डिस्टर्ब ना करे।"

नोरा ने दीवार में लगा एक स्विच दबा दिया।

"कैसे हो दोस्तों।" वो देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल पर गंभीर नजर मारकर बोला--- “मुझे पहचानते हो?"

तीनों ने इंकार में सिर हिलाया।

"मैं वो ही हूँ, जिससे तुम लोग मिलना चाहते थे।" वो बोला।

“प्लानर...?" सोहनलाल ने कहा।

“सही समझे।"

“तुम हो कौन?" देवराज चौहान की आँखें सिकुड़ीं।

“ताबड़े कहते हैं मुझे। हीरा ताबड़े.... ।”

“हीरा ताबड़े...?” देवराज चौहान के होंठों से निकला---

“तुम हो हीरा ताबड़े। मुम्बई अण्डरवर्ल्ड के जाने माने ड्रग्स किंग और हथियारों के सौदागर?" जगमोहन कह उठा।

“मैं ही हूँ। तुम लोगों ने मेरा नाम सुन रखा है, पर पहले कभी देखा नहीं। हम मिले नहीं, जरूरत ही नहीं थी। हमारे-तुम्हारे रास्ते अलग-अलग हैं। मंजिलें अलग हैं, काम अलग है तो फिर मिलना कैसा। ये जुदा बात है कि रहते हम एक ही समन्दर में हैं। ऐसे में कभी मुलाकात भी हो जाये तो हैरानी कैसी।" हीरा ताबड़े गंभीर दिख रहा था।

"तुम अपने काम से हटकर, मुझे फंसाने के लिए ऐसी घटिया योजना कब से बनाने लगे?" देवराज चौहान ने कहा।

"सब बताऊँगा देवराज चौहान। तभी तो हम मिल रहे हैं, नहीं तो ताबड़े के पास इतना वक्त नहीं होता कि वो वक्त को खराब करे। पर तुमसे मिलना बहुत जरूरी हो गया था।" कहने के साथ ही हीरा ताबड़े ने कहर भरी नजरों से शिवचंद और बाबू को देखकर कहा--- "मुझे नहीं पता था कि तुम दोनों में अकल नाम की कोई चीज नहीं है। मैंने सोचा था ठग हो, दिमाग तो होगा ही, पर वो भी नहीं है। भैंस जैसी समझ है तुम्हारी.... ।”

"ह-हमने क्या गलत कर दिया ताबड़े साहब?” बाबू बोला।

“देवराज चौहान और सोहनलाल को यातना देने की क्या जरूरत थी? समझदार इंसान प्यार भाव से अपने काम को पूरा करता है। ये माना हुआ डकैती मास्टर है और तुम लोग बच्चों की तरह इसकी ठुकाई करने पर लग गए कि ये पैसा हमें दे दे। सामने वाले को देखकर बात करनी चाहिए। गंवार हो पूरे-के-पूरे.... ।”

“पर ये देने को मना कर रहा....।" शिवचंद ने कहना चाहा।

“तो मुझसे बात करो। तुम दोनों मेरे लिये काम कर रहे हो, समस्या आई तो मुझसे बात करते। पर तुम दोनों तो खुद सब कामों को बेवकूफों की तरह निपटाने पर लग गए। ये बड़े लोगों के बड़े काम हैं। तुम्हारी समझ में नहीं आ सकते। तुम दोनों को तो अपने पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ की पड़ी होगी, कि वो जल्दी से मिल जायें। ये भूल गए कि सामने देवराज चौहान है।"

शिवचंद और बाबू ने कुछ नहीं कहा।

“बेवकूफ!” हीरा ताबड़े ने तीखे स्वर में कहा और टहलने लगा।

“अपनी तारीफ सुनकर मजा तो आया होगा तुम दोनों को ।" नोरा व्यंग भरे स्वर में कह उठी।

“मुझे नहीं पता था कि तुम तावड़े साहब की खास हो ।” शिवचंद बोला।

“पता लगता भी कैसे-- मैंने पता ना लगने दिया।" नोरा ने उसी अन्दाज में कहा।

तभी देवराज चौहान कह उठा---

“तुम कुछ भी सही तावड़े; परन्तु मेरे रास्ते में आकर तुमने गलती की है। तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। मेरे साथ... ।”

"देवराज चौहान, सबसे पहले तो मैं तुम्हें सॉरी कहूंगा जो इन दोनों ने तुम्हें और सोहनलाल को यातना दी। ये सब मेरी जानकारी में नहीं था। मुझे तब पता चला जब नोरा ने मुझे फोन पर बताया कि यहाँ क्या चल रहा है। पता चलते ही मैंने तुम दोनों को यहाँ मंगवा लिया। जहाँ तक हो सका, तुम लोगों को पूरा आराम देने की कोशिश की। हम लोग गैरकानूनी काम करते हैं, लेकिन शान्ति से करते हैं, किसी को यातना देने जैसे काम मैं नहीं करता।"

"मुझे धोखे से अपने खेल में शामिल करके तुमने बहुत गलत किया।" देवराज चौहान बोला।

"कुछ भी गलत नहीं किया। मैं फंसा पड़ा हूँ। तुम भी यही करते अगर मेरी जगह पर होते।" कहने के साथ ही हीरा तावड़े आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठा। वो गंभीर था--- "कभी-कभी ना चाहते हुए भी वो काम करना पड़ता है, जो नहीं करना चाहिए या जिसको करने का मन नहीं करता। मेरी मजबूरी को समझो देवराज चौहान।"

“क्या है तुम्हारी मजबूरी?" जगमोहन ने पूछा।

नोरा, तावड़े के पास एक कुर्सी पर आ बैठी थी।

शिवचंद और बाबू सोफे पर बैठ चुके थे।

"मुझे जान से मारने की धमकी मिली हुई है। समय सीमा खत्म होने में सिर्फ आठ दिन बाकी हैं।" हीरा तावड़े बोला।

"तुम्हें जान से मारने की धमकी कौन दे सकता है?" जगमोहन ने कहा--- “तुम उसे संभाल सकते हो।"

"उसे नहीं संभाल सकता, तुम लोग भी उसे जानते हो।"

“कौन है वो ?” देवराज चौहान की आँखें सिकुड़ीं।

“जैम डिमोरा....।”

“जैम डिमोरा?” देवराज चौहान के होंठों से निकला--- "वो मुम्बई में है?"

“नहीं! पाकिस्तान में है। जब तुमसे उसका झगड़ा हुआ तो उसे हांगकांग छोड़ना पड़ा और पाकिस्तान में...।"

“मालूम है मुझे....।” देवराज चौहान कह उठा।

(जैम डिमोरा और इन सब बातों को जानने के लिए अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित दो उपन्यास- (1) डकैती का जादूगर, (2) हांगकांग में डकैती, पढ़ें।)

"जैम डिमोरा पाकिस्तान में ड्रग्स किंग बन चुका है।" हीरा तावड़े ने गंभीर स्वर में कहा--- "मैं हिन्दुस्तान में ड्रग्स का जो धंधा करता हूँ, वो ड्रग्स किसी और से मंगवाता था। जैम डिमोरा का संदेश मुझे साल भर से आ रहा था कि में उससे ड्रग्स मंगवाऊँ, उसके साथ धंधा शुरू करूं, तो आखिरकार मैंने उससे भी ड्रग्स ले ली। ये तीन महीने पहले की बात है। जैम डिमोरा ने मेरे कहने पर ढाई सौ करोड़ की ड्रग्स मुझे मुम्बई में डिलीवर कर दी। एक पैसा भी नहीं लिया। हममें ये ही तय हुआ था कि पेमेन्ट नब्बे दिन यानि की तीन महीनों में दी जाएगी। जबकि मुझे पता था कि मैंने महीने भर में ही आधी ड्रग्स बेचकर ढाई सौ करोड़ हासिल कर लेना है। वो सारी ड्रग्स मेरे चार गोदामों में रखी थी कि पाँचवें दिन ही एंटी नारकोटिक्स विभाग ने सब जगह छापा मारकर वो ड्रग्स जब्त कर ली। मुझे अण्डरग्राऊण्ड होना पड़ा। माल भी गया, मैं भी खतरे में पड़ गया। धंधा भी चौपट हो गया। पुलिस बुरी तरह मेरे पीछे पड़ गई। तीन महीनों से मैं छिपता फिर रहा हूँ, उधर जैम डिमोरा को जब ड्रग्स पकड़े जाने की खबर मिली तो वो ढाई सौ करोड़ का तकाजा करने लगा। मेरे पास इतना पैसा नहीं है, उसे कहाँ से दूँ। इस बात को लेकर जैम डिमोरा से तू-तू मैं-मैं भी हुई; परन्तु हल कोई नहीं निकला। दो महीने पहले ही जैम डिमोरा का आदमी जॉनी राईट पाकिस्तान से आकर मिला। वो तुम्हें जानता है देवराज चौहान।"

“मैं भी उसे भूला नहीं हूँ।" देवराज चौहान बोला--- “उसने मुझे हांगकांग के वॉल्ट में फंसा दिया था ।"

“जॉनी राईट ने मुझे स्पष्ट कहा कि जैम डिमोरा ने मेरे लिए मैसेज भेजा है कि नब्बे दिन में ढाई सौ करोड़ की पेमेन्ट मैंने नहीं की तो जैम डिमोरा मेरी हत्या करवा देगा। अब जैम डिमोरा दो महीने तक मुझे फोन नहीं करेगा। नब्बे दिन पूरे होने पर उसका फोन मुझे आएगा। मैं जानता हूँ जैम डिमोरा खतरनाक इन्सान है। गलती भी मेरी है कि मैं उसे उसका पैसा देने के काबिल नहीं रहा। ऐसे में जॉनी राईट ने मुझे कहा कि एक आदमी है जो तुम्हारी समस्या हल कर सकता है। पूछने पर उसने तुम्हारा नाम लिया देवराज चौहान। जॉनी राईट ने कहा कि देवराज चौहान जैसा डकैती, मास्टर तुम्हें इस मुसीबत से निकाल सकता है; परन्तु वो मेरे लिए कोई भी काम नहीं करेगा। उसे तैयार किया जाये और बताया जाये कि वहाँ पैसा पड़ा है--- तो वो आसानी से पैसा ला देगा। जॉनी राईट की ये बात सुनकर मुझे सहारा मिला। उसने मुझे तुम्हारा बंगला भी दिखा दिया कि तुम कहाँ रहते हो और मुझे मौत की धमकी देकर वापस पाकिस्तान चला गया।"

कहकर हीरा तावड़े ने गहरी सांस ली और सिर हिलाया।

नोरा कुर्सी पर शांत सी बैठी थी ।

शिवचंद और बाबू खामोशी के साथ बैठे सब कुछ सुन रहे थे।

हीरा तावड़े ने देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल पर नजर मारी।

"तुम तो फंस गए तावड़े।" सोहनलाल बोला।

“बुरी तरह।" तावड़े ने सिर हिलाया--- “वो.... ।”

"जैम डिमोरा किस हद तक खतरनाक इन्सान है, हम जानते हैं। वो किसी के पीछे पड़ जाये तो उसे छोड़ता नहीं। मामला ढाई सौ करोड़ जैसी बड़ी रकम का हो तो उसके पीछे हटने का सवाल ही नहीं पैदा होता।" सोहनलाल ने कहा।

“ऐसे में तुम लोग सोच ही सकते हो कि मेरी क्या हालत हो रही है। मैं भी जैम डिमोरा को जानता हूँ, वो कमीना इंसान है। मैंने उसे कहा भी कि भविष्य में कमाकर उसका पैसा वापस दे दूंगा, लेकिन वो नहीं माना।"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।

“मैं तुम्हें सब बातें साफ-साफ बता रहा हूँ देवराज चौहान ।" तावड़े बेचैनी से कह उठा--- “तब मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था कि तुम पर एक चाँस लेकर देखूं कि शायद मेरी जान बच जाए, लेकिन जॉनी राईट के मुताबिक तुम्हें तैयार करना भी आसान काम नहीं था; आखिरी आशा को भी मैं छोड़ना नहीं चाहता था। मेरी जिन्दगी और मौत का सवाल था। यही वजह रही कि मैंने अपनी प्लानिंग की घेराबंदी तुम्हारे गिर्द की। मुझे कुछ ऐसा सोचना पड़ा कि तुम मेरे काम आ सको।”

“एक मुसीबत से बचने के चक्कर में दूसरी मुसीबत मोल ले ली।" देवराज चौहान ने कहा ।

“दूसरी मुसीबत?” तावड़े ने देवराज चौहान को देखा।

"जैम डिमोरा से बचने के लिए मेरे से पंगा ले लिया?”

"सब कुछ तो तुम्हें बता दिया है कि मैं कैसे फंसा पड़ा हूँ। कसम से, मैंने तुमसे कोई पंगा नहीं लिया है। तुम्हारी सहायता....।"

"इसे तुम सहायता नहीं कह सकते। तुम सहायता मांगने मेरे पास नहीं आये।" देवराज चौहान बोला।

“मैं आता तो क्या तुम मान जाते?"

“नहीं!"

"फिर तो मैंने जो किया, सही किया। मैं जैम डिमोरा का हिसाब नक्की करके अपनी जान बचाना चाहता हूँ।"

"लेकिन तुमने तो अपनी मुसीबत बढ़ा ली।"

हीरा तावड़े ने गहरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा, फिर बोला---

"तुम्हें सब कुछ पता चल चुका है कि मैंने ये सब कैसे किया।"

"हाँ ।"

"कुछ जानना बाकी है तो, मेरे से पूछ लो ।”

"तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हारे झूठ के जाल में फंसकर, मदन के वॉल्ट में रखा पैसा लूटने को तैयार हो जाऊँगा? मैं इस तरह सोचूंगा, ये भी तो हो सकता था कि मैं मदन के पैसे के बारे में सोचता ही नहीं?" देवराज चौहान ने कहा।

"मैंने नहीं सोचा था कि तुम मदन के वॉल्ट में रखे पैसे के बारे में सोचने लगोगे और उसे वहाँ से निकाल लोगे। ये बात तो नोरा के हवाले थी। धीरे-धीरे नोरा ने ये बात तुम्हारे दिमाग में डालनी थी कि मदन को सबक सिखाने का सबसे अच्छा तरीका है, वॉल्ट में रखा उसका पैसा निकाल लेना, परन्तु नोरा को इस बात के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ी, तुम खुद ही इस रास्ते पर पड़ गए और काम होता चला गया।" हीरा तावड़े ने बताया।

"तुम्हें कैसे पता था कि मदन का केबिन लक्ष्मीचंद वॉल्ट में है और उसमें इतनी ज्यादा दौलत है?"

“मदन मेरा दोस्त है।”

"दोस्त?”

"हाँ! हम एक-दूसरे को पुराना जानते हैं। अक्सर मिलते रहते हैं तो इस तरह मुझे ये बात काफी पहले से मालूम थी--- लेकिन जब मुझे दौलत की जरूरत पड़ी तो लक्ष्मीचंद वॉल्ट ही नजर आया और नजर आये तुम।" तावड़े गंभीर दिख रहा था--- "मुसीबत में इंसान को वो सब करना पड़ता है जो वो सामान्य वक्त में कभी नहीं करता। जानते हो मदन के केबिन में कितनी दौलत है जो तुमने निकालकर, वहीं पर अपने केबिन में रख दी है?"

"कितनी?"

“तीन सौ करोड़.... ।”

“तीन सौ करोड़ ?" जगमोहन के होंठों से निकला।

“इतनी ज्यादा....।” बाबू ने शिवचंद को देखा।

"मैं तो साठ-सत्तर-अस्सी करोड़ तक ही समझ रहा था।" शिवचंद बोला।

"इतनी हो सकती है वो दौलत।" सोहनलाल ने सिर हिलाया।

"तुम्हे पता था कि यहाँ इतनी दौलत है?" जगमोहन ने गहरी सांस लेकर पूछा।

"पता था। पीने-पिलाने के दौरान एक बार मदन के होंठों से निकला था।" तावड़े ने कहा।

"तुमने तो दोस्त की गर्दन काट ली।"

"जब इन्सान फंसा हो तो करना पड़ता है। वैसे मैं बुरा इंसान नहीं हूँ।"

नोरा शांत-सी कुर्सी पर बैठी सब देख-सुन रही थी।

"अब देवराज चौहान!" हीरा तावड़े ने गंभीर स्वर में कहा--- "सब कुछ तुमने जान लिया है कि मैंने किन हालातों में इस सारे काम को अन्जाम दिया। मदन की जो दौलत तुम्हारे पास है, उससे मेरे सिर से मुसीबत हट सकती है। वो तीन सौ करोड़ के ऊपर की दौलत है और मुझे सिर्फ ढाई सौ करोड़ चाहिए कि जैम डिमोरा को दे सकूँ। तुम मुझे ढाई सौ करोड़ दे दो। ऊपर की तुम रख लो।"

"और हमारे पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ रुपये।" बाबू बोला।

"दूसरे सब लोगों के पचास-पचास लाख भी तो देने हैं।" शिवचंद कह उठा।

तावड़े ने खतरनाक नजरों से दोनों को देखा।

दोनों कुछ सहम से गए।

"सबको मिलेगा, मेरे पास है पैसा। बीच में मत बोलो।" तावड़े का स्वर कठोर हो गया।

दोनों कुछ नहीं बोले।

“देवराज चौहान, तुम्हारी बहुत मेहरबानी होगी। इस वक्त मुझे उस पैसे में से ढाई सौ करोड़ दे दो। हम हमेशा के लिए अच्छे दोस्त बन जाएंगे और कभी तुम्हारा ये एहसान भी उतार दूंगा।" तावड़े ने नर्म स्वर में कहा।

"मुझसे तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"दौलत चीज ही ऐसी है कि हाथ आ जाए तो फिर देने का मन नहीं....।"

"ये बात नहीं है तावड़े। वो पैसा ना मेरा है ना तुम्हारा।"

"तो किसका है?"

"मदन का।"

"क्या कह रहे हो।" जगमोहन हड़बड़ाकर बोला--- "मदन बीच में कहाँ से आ गया....।"

"जगमोहन सही कहता है देवराज चौहान।" हीरा तावड़े ने कहा--- "मदन को हमारे बीच में से निकाल दो।"

देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा---

"केबिन में से मदन का पैसा निकालने का हमारा कोई प्लान था?"

"नहीं।"

"मदन हमारी लिस्ट में था?"

"नहीं।" जगमोहन बेचैन दिखा।

"हमने ये काम कभी करने का सोचा था ?”

“सोचा तो नहीं था; परन्तु....।"

"इस राह पर तावड़े ने मुझे धोखे से डाला। धोखे में रखकर मेरे से काम लिया गया। तब मुझे ठीक से नहीं पता था कि मैं ये काम किसके लिए कर रहा हूँ। ये सब मेरे से अन्जाने में हुआ.... ।”

“पर तीन सौ करोड़....।" जगमोहन ने कहना चाहा।

“वो पैसा ना मेरा है, ना तावड़े का है। उस पर सिर्फ मदन का हक है।" देवराज चौहान ने कहा।

जगमोहन ने सकपका कर सोहनलाल को देखा।

उसे देखते पाकर, सोहनलाल मुस्कुरा पड़ा।

“तू क्यों दाँत फाड़ रहा है?" जगमोहन झल्लाकर बोला।

सोहनलाल की मुस्कान और गहरी हो गई।

“दाँत मत फाड़, तीन सौ करोड़ के ऊपर का मामला.... ।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहना चाहा।

“देवराज चौहान!” हीरा तावड़े ने कहा--- "ढाई सौ करोड़ मुझे दे दो, ताकि मैं जैम डिमोरा को देकर अपनी जान बचा सकूं। ज्यादा दिन अब बाकी नहीं रहे। सिर्फ आठ दिन का वक्त और बचा है।"

“तेरे को मेरे से कुछ नहीं मिलेगा तावड़े।" देवराज चौहान बोला।

"तेरे को मैंने सब हालात बताये हैं--- फिर भी तू इन्कार कर रहा है।" तावड़े प्यार से बोला।

“तूने मेरे पर अपने प्लान का इस्तेमाल किया। मेरे लिए ये ही बहुत बड़ी बात है।" देवराज चौहान ने कहा--- "मेरे को ये बात कभी भी पसन्द नहीं आती कि कोई मेरा इस्तेमाल करे। तुमने तो... ।”

“देखो देवराज चौहान। ये आपस की बातें हैं। मिल-बैठकर निपटा लेंगे। पहले मैं जैम डिमोरा का हिसाब खत्म करना चाहता हूँ ताकि मेरे सिर से मौत का डर हट जाए। तू ढाई सौ करोड़.... ।”

“वो मदन का पैसा है।"

“ये बात रहने दे। पैसा उसी का होता है, जिसके पास होता है। मैं जानता हूँ कि इतनी बड़ी दौलत को कोई हाथ से नहीं जाने देगा, तू भी नहीं। तभी मदन का नाम आगे करके खुद पीछे हट रहा है। मैं तेरे से वादा करता हूँ कि इस वक्त तू मेरे काम आ । जिन्दगी में कभी तेरे एहसान का उधार चुका दूंगा।"

“तूने मेरे साथ धोखे का खेल खेला है। मैं तेरे काम कभी नहीं आऊँगा तावड़े....।”

हीरा तावड़े ने सिर हिलाया और पास बैठी नोरा से कहा---

“ये तो मान नहीं रहा।"

“तुम्हारी बात ही गलत है।" नोरा ने शांत स्वर में कहा--- “तीन सौ करोड़ में से तुम्हें ढाई सौ करोड़ क्यों दे?”

हीरा तावड़े सिर हिलाकर देवराज चौहान से बोला---

“ठीक है। तुम मुझे सवा दो सौ करोड़ दे दो, बाकी तुम रख लो । ”

“मदन के पैसों में से तुम्हें एक करोड़ भी नहीं मिलेगा तावड़े ।”

“दो सौ करोड़ मुझे दो--- अब तो ठीक है?” तावड़े ने कहा।

देवराज चौहान कुछ नहीं बोला।

“ये नहीं मानने वाला ।” बाबू बोल पड़ा--- “हमने भी काफी कोशिश की है।”

“सारी दौलत खुद हजम करना चाहता है।" शिवचंद ने कहा।

“मान जाओ देवराज चौहान।” तावड़े बोला--- “जैम डिमोरा को पैसा देना जरूरी है, नहीं त मेरे लिए पाकिस्तान से हत्यारे भेज देगा, हो सकता है उसके आदमी हिन्दुस्तान में ही मौजूद हों। कोई किसी की जान लेना चाहता है तो देर-सवेर में वो सफल हो ही जाता है। ऐसे लोगों से खुद को ज्यादा देर बचाए नहीं रखा जा सकता। मैं ये वक्त ही नहीं आने देना चाहता। सब कुछ ठीक हो सकता है, अगर तुम मुझे वो पैसा दे दो। मैं अपनी जान बचा सकता हूँ।"

"जैम डिमोरा जिसके पीछे पड़ जाए, उसे छोड़ता नहीं है।" देवराज चौहान ने कहा।

"तभी तो, मैं खुद को उससे तभी बचा सकता हूँ जब तुम मुझे वो पैसा दे दो।"

"उस पैसे को भूल जाओ।"

"कोई फायदा नहीं तावड़े साहब।" शिवचंद बोला--- "ये पैसा नहीं देने वाला।"

चंद पल चुप रहकर हीरा तावड़े कह उठा---

"देवराज चौहान! मैं कितने प्यार से तुमसे पेश आ रहा हूँ। इस वक्त तुम्हें दोस्त मानकर चल रहा हूँ। मैंने सारे हालात तुम्हारे सामने रख दिए हैं कि तुम मेरी हालत को समझ सको। ऐसे में तुम्हें मेरी बात मान लेनी चाहिए।"

"तुम्हारी हर कोशिश मुझ पर बेकार है तावड़े।” देवराज चौहान ने कहा।

“तो तुमने सोच रखा है कि सारा पैसा तुमने ही लेना है?" तावड़े गंभीर दिखा।

"वो मदन का पैसा है, मदन के पास वापस जाएगा।"

“लेकिन....।" जगमोहन ने देवराज चौहान से कहना चाहा।

"चुप रहो।" देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा--- "तुम्हें जो कहना है, बाद में भी कह सकते हो।"

जगमोहन ने गहरी सांस लेकर मुँह फेर लिया।

"देवराज चौहान, तुम समझदार इन्सान हो। ऐसे में तुम्हें सोच-समझकर जवाब देना चाहिए।" हीरा तावड़े ने कहा--- “ये बात तुम्हें कभी नहीं भूलनी चाहिए कि तुम मेरे पास हो । जगमोहन और सोहनलाल भी....।”

"बस तावड़े.... मैं तुम्हारी धमकियों में नहीं आने वाला..... ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"मैं धमकी नहीं दे रहा, बल्कि चाहता हूँ तुम हर पहलू पर सोच और....।"

"मैं सोच चुका हूँ।” हीरा तावड़े देवराज चौहान को देखने लगा, चेहरे पर सोच के भाव थे।

"तो मेरे प्यार से बात करने का कोई फायदा नहीं हुआ?" तावड़े ने कहा।

"तुम गलत सोच रहे हो कि मेरे से मदन वाली दौलत ले लोगे... मैं....।"

"तावड़े साहब!" बाबू बोला--- "आप लाख कोशिश कर लें, ये पैसा नहीं देगा। हमने भी बहुत कोशिश की थी। ये पक्का इरादा किए बैठा है कि मदन वाला सारा पैसा खुद हजम कर जाएगा।"

"लगता तो मुझे भी ऐसा ही है।" तावड़े ने गंभीर स्वर में कहा-- - "कान खोलकर सुन लो देवराज चौहान, अगर मैं जैम डिमोरा से खुद को ना बचा पाया, तो अपने मरने से पहले तुम तीनों को शूट कर दूंगा। मेरी जिन्दगी जाएगी तो बचोगे तुम भी नहीं।"

"तुम्हें जो कहना-करना है, कर लो....।" देवराज चौहान ने कहा।

"हैरानी है। मैंने तुम जैसा बेवकूफ पहले कभी नहीं.... ।"

"हीरा!" नोरा मुस्कुराकर कह उठी--- "तुम जल्दी कर रहे हो। "

"क्या मतलब?

"तुम तो देवराज चौहान के सिर पर खड़े हो कि अभी दौलत दे दे। तुमने अपनी कह दी, अब इन्हें सोचने का मौका दो। इतनी बड़ी दौलत एकदम तो किसी को दी नहीं जाती। तुम्हारे पास आठ दिन हैं, अभी वक्त है, देवराज चौहान को फैसला ले लेने दो। हो सकता है सोचने के बाद देवराज चौहान ही तुम्हारे सामने कोई ऑफर रख दे।"

"तुम सोचती हो कि ऐसा हो सकता है?" तावड़े ने नोरा को देखा।

"क्यों नहीं हो सकता, देवराज चौहान को वक्त दो, कल इससे बात करना। इन तीनों को एक ही जगह पर रखो ताकि ये आपस में बातचीत करके किसी नतीजे पर पहुँच सकें।" नोरा का सोच भरा स्वर सामान्य था ।

"क्यों नहीं नोरा, मैं इन्हें सोचने का वक्त दे सकता....।"

"तावड़े साहब!" शिवचंद ने कहा--- "सबसे अच्छी बात है कि देवराज चौहान को मेरे हवाले कर दें।"

"तुम क्या करोगे?"

"वो ही, जो करना रह गया है। इसके शरीर को जगह-जगह चाकू से काटकर उसमें नमक-मिर्च भरूंगा। देखता हूँ कब तक ये ना-ना कहता है। सीधी तरह से मानने वाला नहीं लगता।"

"इसकी बातों में मत आना तावड़े।" नोरा बोली--- "देवराज चौहान को सोचने का वक्त दो कि....।"

"ठीक है, इन्हें एक-दो दिन दिए जा सकते हैं। मैं इनसे कल बात करूंगा।" तावड़े कह उठा--- "अगर ये नहीं माने तो फिर इन्हें शिवचंद बाबू के हवाले कर दूंगा, तब भी नहीं माने तो इन्हें शूट करना पड़ेगा। इन्हें मेरी जिन्दगी की परवाह नहीं है तो मैं इनकी परवाह क्यों करूं? सुन रहे हो ना देवराज चौहान....।"

तभी हीरा तावड़े का फोन बजने लगा।

तावड़े ने पैंट की जेब से फोन निकालकर बात की।

"हैलो।" "कैसे हो तावड़े ?" उधर से जैम डिमोरा का स्वर कानों में पड़ा।

"डिमोरा....तुम....।" हीरा तावड़े चौंककर बोला।

"तुम तो इस तरह हैरान हो गए, जैसे मेरा फोन आने की तुम्हें आशा ही ना हो तावड़े।"

हीरा तावड़े ने गहरी सांस ली, फिर कह उठा---

"अभी आठ दिन बाकी हैं, मैं एक-एक दिन गिन रहा हूँ। तुम्हें थोड़ा वक्त बढ़ा देना चाहिए। मैं पूरी कोशिश कर रहा हूँ कि तुम्हारे पैसों का इंतजाम कर सकूँ। मैं बेईमान नहीं हूँ। ड्रग्स गई थी, तभी ये सारा झंझट हुआ और.... ।"

"तावड़े, मुझे पता है कि तुम पैसों के इन्तजाम के लिए कैसे-कैसे यत्न कर रहे हो।"

“पता है?" हीरा तावड़े चौंका--- "कैसे?"

"हिन्दुस्तान में मुम्बई में मौजूद मेरे आदमी, मुझे वो रिपोर्ट देते हैं, जिनकी रिपोर्ट मुझे चाहिए हो।" जैम डिमोरा का शांत स्वर तावड़े के कानों में पड़ रहा था--- "जैसे कि घंटा भर पहले मुझे बताया कि देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल इस वक्त तुम्हारी कैद में हैं। तुमने देवराज चौहान को कैसे फंसाया अपने काम के लिए, ये भी मुझे घंटा भर पहले ही पता चला है। जॉनी राईट इस वक्त मेरे पास है, बैठा है। जॉनी ने मुझे बताया कि देवराज चौहान का रास्ता उसने ही तुम्हें बताया था।"

देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल, तावड़े के मुँह से जैम डिमोरा का नाम सुनकर सतर्क हो गए थे।

"मैं पूरी कोशिश कर रहा हूँ कि तुम्हारे पैसों का इन्तजाम मैं कर सकूँ।" हीरा तावड़े गंभीर स्वर में बोला--- "फिर भी मैं चाहूंगा कि कुछ वक्त और बढ़ा दो कि मैं आराम से पैसों का इंतजाम कर सकूँ ।"

"देवराज चौहान कैसा है?" उधर से जैम डिमोरा ने पूछा।

"बढ़िया है।" तावड़े की निगाह देवराज चौहान की तरफ उठी।

"क्या वो वॉल्ट से लूटा पैसा तुम्हें देने को तैयार है?"

“अभी तक तो नहीं।"

“देगा भी नहीं, वो इतना सीधा नहीं है, जितना कि तुम समझ रहे हो। वो बहुत खतरनाक है। उसकी वजह से ही हांगकांग मेरा ड्रग्स का धंधा उखड़ गया। मेरे बेशकीमती हीरे-जवाहरातों का संग्रह उसने वॉल्ट से लूट लिया। हालात ये हो गए कि मुझे हांगकांग से भागकर इस पाकिस्तान में बसने की योजना बनानी पड़ी.... और तो और मेरी बेटी मैगी को मेरे खिलाफ भड़काकर..... ।" उधर से जैम डिमोरा ने गहरी सांस ली। फिर कहा--- “रहने दो। तुमसे बातें करने का क्या फायदा। तुम उस बारे में कुछ भी नही जानते। देवराज चौहान से मेरी बात कराओ।"

“क्यों?” हीरा तावड़े के माथे पर बल पड़े।

“देवराज चौहान से बात करा तावड़े....।"

“लेकिन क्यों... ये मेरा मामला है।"

“बेशक तेरा मामला है; परन्तु देवराज चौहान से मेरे कई हिसाब अभी अधूरे हैं। जरा बात तो करूँ उससे। उसकी आवाज सुने बहुत देर हो गई।"

तावड़े के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे।

“क्या सोचने लगा तावड़े?" जैम डिमोरा की आवाज कानों में पड़ी।

"कराता हूँ।” तावड़े ने कहकर फोन कान से हटाया और देवराज चौहान के पास पहुँचकर बोला--- "जैम डिमोरा तुमसे बात करना चाहता है।"

देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।

जबकि जगमोहन कुछ बेचैन हुआ। सोहनलाल एकाएक चिन्ता में दिखने लगा।

“लो.... ।” तावड़े ने देवराज चौहान की तरफ फोन बढ़ाया।

देवराज चौहान ने फोन लेकर बात की।

"पाकिस्तान में कैसा वक्त कट रहा है जैम डिमोरा?" देवराज चौहान मुस्कान भरे स्वर में बोला।

"आह.... ।" जैम डिमोरा के गहरी सांस लेने की आवाज आई--- “तुम्हारी आवाज सुनकर चैन मिला। ऐसा लग रहा है, जैसे तुम मेरे सामने हो, पास में हो। तुम तो अचानक ही मुझसे बहुत दूर हो गए थे देवराज चौहान।”

"तुम ही हांगकांग से भाग गए थे, मैं तो.... ।”

"वो मेरा बुरा वक्त था, बहुत बुरा वक्त था। तुमने मुझे बहुत तकलीफ....।”

“सोहनलाल को अपने साथ हांगकांग ना ले जाते तो सब ठीक रहता; परन्तु तुम.... ।”

“उस वक्त को याद करके मुझे बहुत तकलीफ होने लगी है। मुझे विनय बरुटा याद आने लगा । मेरा हीरे-जवाहरातों का बेशकीमती संग्रह जो कि दो हजार करोड़ की कीमत का था, वो याद आने लगा है, वो तुम्हारे पास है देवराज चौहान ?”

“विनय बरुटा के पास।”

“पर वो मेरा था ।”

“तुम्हारी हरकतों की वजह से उसका हकदार बरुटा बन बैठा।"

“तो तुमने मैगी के वॉल्ट में विनय बरुटा के लिए डकैती की थी कि हीरे-जवाहरात उसे दे सको।” (ये सब जानने के लिए पढ़ें दो उपन्यास - ( -(1) डकैती का जादूगर, (2) हांगकांग में डकैती।)

“हाँ! ये मेरा वादा था और मैंने अपना वादा पूरा किया।” देवराज चौहान ने कहा।

“जबकि विनय बरुटा की प्लानिंग पर ही वो हीरे-जवाहरात लूटे गए ।"

“इन पुरानी बातों से तुम्हें क्या मिलने वाला है जैम डिमोरा । तुम.... ।”

"मैं वो हीरे-जवाहरात विनय बरुटा से हासिल कर लूंगा देवराज चौहान।” जैम डिमोरा का तीखा स्वर कानों में पड़ा।

"बेशक करो। अब उन हीरे-जवाहरातों से मेरा कोई वास्ता नहीं। "

“तू तो हीरा तावड़े के हाथों में फंस गया। अब क्या करेगा देवराज चौहान ?”

“तुम्हें चिन्ता करने की जरूरत नहीं। मैं इन बातों की परवाह नहीं.... ।”

"तावड़े तेरे से पैसे लेकर ही रहेगा। उसकी गर्दन मेरे हाथों में फंसी पड़ी है, समझा क्या?"

"समझ गया।" देवराज चौहान ने व्यंग भरे स्वर में कहा--- “और कुछ?"

"तेरे पर मेरे कई हिसाब बाकी हैं।"

"तुझे हिन्दुस्तान आना होगा जैम डिमोरा, क्योंकि तूने हिसाब चुकता करने हैं। मैंने नहीं।"

"मैगी कैसी है?"

"बहुत अच्छे से जिन्दगी बिता रही है।"

"कहाँ है?"

"ये तू कभी नहीं जान पाएगा।"

"मैगी, सोहनलाल और इंस्पेक्टर वानखेड़े के साथ हिन्दुस्तान आई थी। तुम्हें जरूर पता होगा कि वो कहाँ है।"

"मैंने कब कहा कि मुझे नहीं पता।"

"मुझे मैगी चाहिए।"

“ताकि तू उसे मार सके?"

“उसने अपने वॉल्ट में मेरी दौलत पर डकैती करने में तेरी सहायता की थी। मेरा दो हजार करोड़ का दुर्लभ हीरे-जवाहरातों का संग्रह मैगी की वजह से वॉल्ट से निकल सका, वरना तुम कभी कामयाब नहीं हो सकते थे। उसकी इस हरकत को मैं कभी नहीं भूल सकता। वैसे भी वो मेरी बेटी.....।"

“उसे बेटी मत कहना, वो तुम्हारी कुछ भी नहीं लगती। मैगी ने सब कुछ मुझे हांगकांग में ही बताया था। तुम्हें पता....।"

“मुझे मैगी चाहिए। उसने मेरा बहुत कुछ बिगाड़ा था। तुमने भी मेरा बहुत कुछ बिगाड़ा। चाहो तो मैं तुम्हारा पीछा छोड़ सकता हूँ।"

“अच्छा।” देवराज चौहान हंसा--- "वो कैसे?”

“मुझे मैगी दे दो।”

"तुम मैगी तक कभी भी नहीं पहुँच सकते। वो तुम्हारे हाथों से बहुत दूर है।" देवराज चौहान ने कहा।

“मैं जानता हूँ वो मुम्बई में है।" उधर से जैम डिमोरा ने कहा।

"मैंने कब इंकार किया इस बात से...?”

“तो तुम मैगी को मेरे हवाले नहीं करोगे?” जैम डिमोरा का स्वर सख्त हो गया।

देवराज चौहान ने फोन कान से हटाया और हीरा तावड़े की तरफ बढ़ाते बोला---

"जैम डिमोरा की बेकार की बातें मैं और नहीं सुन सकता।"

तावड़े ने फोन लेकर कान से लगाया और पीछे हटता बोला---

"डिमोरा! मैं देवराज चौहान से पैसे वसूल करके तुम्हें जल्दी ही फोन करूंगा।"

“तावड़े! पैसे देने के लिए मैं तेरे को एक साल का वक्त दे सकता हूँ।" जैम डिमोरा ने उधर से कहा।

“एक साल ?” तावड़े चौंका--- “एक साल का वक्त?"

“अगर तू देवराज चौहान और सोहनलाल को मेरे हवाले कर दे।” डिमोरा की आवाज कानों में पड़ी।

हीरा तावड़े फौरन कुछ नहीं कह सका। नोरा टकटकी बांधे तावड़े को देखने लगी।

देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल भी तावड़े को देख रहे थे।

शिवचंद और बाबू बातों को समझने की चेष्टा में लगे थे।

“चुप क्यों हो गया तावड़े?" उधर से पुनः डिमोरा का स्वर आया ।

“डिमोरा!” हीरा तावड़े शब्दों को तौलता कह उठा--- "तुम उन तिलों की मांग कर रहे हो, जिनमें से मैं तेल निकालना चाहता हूँ।”

“ये भूल जाओ कि देवराज चौहान तुम्हें दौलत देगा। मैं उसे अच्छी तरह जानता हूँ।"

“लेकिन देवराज चौहान मेरा है....।"

“मुझे उसकी लम्बे वक्त से जरूरत है। मैंने उससे कुछ पूछना है!" दूसरी तरफ से डिमोरा ने कहा।

“मैंने तुम्हारा ढाई सौ करोड़ देना है। उसका इन्तजाम देवराज चौहान से ही हो सकता....।"

“मैं तुम्हें साल भर का वक्त दे दूंगा, अगर तुम देवराज चौहान मेरे हवाले कर दो।"

“ये समस्या वाली बात है डिमोरा।"

“मुझे देवराज चौहान की जरूरत है। वो अब तुम्हारे हाथ में है। जबकि आसानी से वो हाथ नहीं आता। इसलिए....।"

“तुम तो मुझे वक्त से पहले परेशान करने लगे हो डिमोरा।" तावड़े ने सोच भरे स्वर में कहा।

"देवराज चौहान मुझे दे दे तावड़े.... । वो मेरे लिए जरूरी है।" हीरा तावड़े ने देवराज चौहान को देखा।

तभी नोरा ने तावड़े का कंधा थपथपाकर इशारे से कहा कि वो डिमोरा से बाद में बात करे।

तावड़े ने सिर हिला दिया।

देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल की निगाह तावड़े पर थी।

"तुम्हें मेरी बात मान लेनी चाहिए तावड़े।" जैम डिमोरा की आवाज पुनः कानों में पड़ी।

"मुझे सोचने का वक्त दो।"

“मैं चाहता हूँ तुम हाँ करो....तो शाम तक मैं अपने आदमी तेरे पास भेजूं, जो देवराज चौहान और सोहनलाल को तेरे से लेकर मेरे पास पाकिस्तान पहुँचा दें।" डिमोरा का शांत स्वर कानों में पड़ा।

“तुम्हारी मांग बहुत टेढ़ी है। मैं इस बारे में सोचना चाहता हूँ।" तावड़े बोला।

“दो घंटे बाद फोन करूँ ?”

“मैं फोन करूंगा तुम्हें।" तावड़े ने कहा।

“दो घंटे में करना। मैं इंतजार कर रहा हूँ।" इतना कहने के साथ ही उधर से जैम डिमोरा ने फोन बंद कर दिया था।

तावड़े ने कान से फोन हटाकर जेब में डाला कि नोरा कह उठी---

“जैम डिमोरा, देवराज चौहान को मांग रहा है?"

“हाँ।” हीरा तावड़े ने गम्भीर नजरों से देवराज चौहान को देखा--- “तुम्हारा क्या लफड़ा है डिमोरा से?

“लम्बी बातें हैं। तुम नहीं समझ सकोगे।" देवराज चौहान ने कहा।

“लम्बी बातें....।” हीरा तावड़े ने गंभीर स्वर में कहा--- "वो तुम्हें मांग रहा है।”

“डिमोरा हर हाल में मुझे अपने कब्जे में लेना चाहेगा।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "मैंने उसे बहुत तगड़ी चोट दी थी।"

"हर हाल में?"

“हाँ! हर हाल में। उसका सपना होगा मुझे अपने कब्जे में देखने का। मुझे हर रोज ठोकरें मारने का।"

“फिर तो बात गंभीर हो गई देवराज चौहान। वो तुम्हें मांग रहा है। लगभग जिद्द कर रहा है।" हीरा तावड़े सोच भरे स्वर में बोला--- "लेकिन मैं तुम दोनों के मामले के बीच नहीं आना चाहता। मैंने उसे ढाई सौ करोड़ देना है, नहीं तो आठ दिन बाद वो मेरी जान लेने के लिए हजारों को छोड़ देगा। समझ रहे हो ना मेरी बात। मुझे सिर्फ अपनी जान की पड़ी है, और किसी बात से कोई मतलब नहीं।"

देवराज चौहान की निगाह हीरा तावड़े पर थी।

"हालात गंभीर हो गए हैं।" जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा--- "तुम्हें इस बारे में सोचना चाहिए।"

"वो ही सोच रहा हूँ।" देवराज चौहान बोला।

"तुम्हारे साथ वो सोहनलाल को मांग रहा है। तुम्हें लेने के लिए वो मेरे पास अपने आदमी भेजने को तैयार है और मुझे पैसा लौटाने के लिए साल भर का वक्त दे रहा है।" तावड़े बोला--- “पर मैं सोचता हूँ डिमोरा की बात क्यों मानूँ? क्यों ना उसे ढाई सौ करोड़ देकर पीछे कर दूँ। तुम क्या कहते हो, मुझे क्या करना चाहिए?"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।

“तावड़े!" नोरा बोली--- "डिमोरा को देवराज चौहान जरूर चाहिए?"

"हाँ! वो जबर्दस्ती वाले ढंग में देवराज चौहान और सोहनलाल को मांग रहा था, वो जरूरतमंद है।"

“तो सौदा करो डिमोरा से। ढाई सौ करोड़ माफ और साथ में सौ करोड़ की ड्रग्स देगा।" नोरा ने कहा।

हीरा तावड़े ने नोरा को देखा।

"मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा।" नोरा ने भी तावड़े को देखा।

“मेरे ख्याल में देवराज चौहान और सोहनलाल उसके लिए इतने कीमती नहीं होंगे।"

“बात करो डिमोरा से। शायद बात बन जाए।"

तावड़े ने देवराज चौहान को देखकर पूछा---

“फैसला तुम पर छोड़ता हूँ देवराज चौहान। एक बार तुम डिमोरा के हाथ लग गए तो तुम समझ सकते हो कि तुम्हारा क्या होगा।"

"पहले डिमोरा से बात करो।" देवराज चौहान बोला।

“क्या बात?”

“उसे अपनी ऑफर दो।"

"अगर उसने मेरी ऑफर मान ली तो फिर पीछे हटना मुश्किल हो जाएगा।" तावड़े ने कहा।

"गुंजाईश रखकर बात करो।" देवराज चौहान ने कश लिया--- "उसे कहो कि तुम इस तरह सोच रहे हो...।"

“अब हालात तुम्हारे हक में नहीं रहे। समझदारी इसी में है कि ढाई सौ करोड़ देकर अपनी जान छुड़ा लो।" तावड़े बोला।

“तुम डिमोरा से गुंजाईश रखकर बात करो।"

“सच बात तो ये है देवराज चौहान कि मुझे डिमोरा से कोई हमदर्दी नहीं है। मेरे लिए पहले तुम इसलिए हो कि मैंने तुम्हें अपनी योजना में इस्तेमाल किया है। मेरा टारगेट तुम्हें डिमोरा के हवाले करना नहीं, बल्कि डिमोरा का हिसाब चुकता करना है। मैं तुम्हें किसी बड़ी मुसीबत में नहीं डालना चाहता। तुम अगर पैसा मुझे दे दो तो....।"

"डिमोरा से बात करो।"

हीरा तावड़े के चेहरे पर गंभीरता के भाव थे। फोन जेब से निकाला।

“तुम लोग अपने चक्करों में लगे हो।" बाबू बोला--- "हमें पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ कब मिलेगा?"

“मिलने वाला है।" नोरा तीखे स्वर में बोली--- "बातें समझ नहीं रहे क्या?”

“हमारे पन्द्रह करोड़ की बात तो हुई नहीं कि...।"

“चुप रहो।” तावड़े नम्बर मिलाता सख्त स्वर में बाबू से कह उठा ।

“शांत रह बाबू।” शिवचंद ने कहा--- "तावड़े साहब जल्दी ही हमें पैसा देंगे।"

हीरा तावड़े की जैम डिमोरा से बात हो गई।

“मैं जानता था तावड़े तू मेरी बात जरूर मानेगा। उधर से डिमोरा की आवाज कानों में पड़ी।

“अभी मैं कुछ नहीं माना। तुमसे बात करना चाहता हूँ।" तावड़े ने कहा।

""कर!" उधर से जैम डिमोरा की आती आवाज कान में पड़ी--- “तुमसे सौदा करने की सोच रहा हूँ।" हीरा तावड़े ने शांत स्वर में कहा।

“बोलता रह।"

"ढाई सौ करोड़ नहीं दूंगा और ऊपर से सौ करोड़ की ड्रग्स मेरे को देगा, तो देवराज चौहान, सोहनलाल तेरे हो जाएंगे।"

"ये तो तूने बहुत ज्यादा मांग लिया।"

"तेरे को देवराज चौहान, सोहनलाल चाहिए नहीं क्या?"

“पर तूने कीमत बहुत ज्यादा मांग ली। इतने पाँव मत फैला तावड़े। थोड़ा-थोड़ा खाना अच्छा होता है। बैलेंस बना के चल ।"

"मैं तो और भी ज्यादा के लिए कहने वाला था, पर नोरा ने कहा कि तुम नहीं मानोगे तो मैंने कम कर दी रकम....।"

"ये बहुत ज्यादा है।”

“फिर तो हममें सौदा नहीं हो सकेगा डिमोरा। बात कम-ज्यादा की नहीं है, जरूरत की है। तुम्हें इन दोनों की जरूरत है और मुझे तुम्हारा हिसाब चुकता करने की जरूरत है। हाँ कहते हो, तो मैं इस सौदे पर विचार कर सकता हूँ।"

जैम डिमोरा की तरफ से आवाज नहीं आई।

“तो मैं समझूँ कि ये सौदा नहीं हो सकता।" हीरा तावड़े कह उठा।

“मैं तेरा ड्रग्स का पैसा छोड़ सकता हूँ, इस सौदे में।"

“सौ करोड़ की ड्रग्स नहीं देगा?”

“ढाई सौ करोड़ छोड़ रहा हूँ.... और तेरे को क्या चाहिए। ज्यादा लालच मत कर।"

“मुझे सोचने दे।” तावड़े गंभीर स्वर में बोला।

“कब बताएगा मुझे?"

“आधे घंटे बाद।” तावड़े ने कहा और फोन बंद करके देवराज चौहान को देखा।

“जैम डिमोरा क्या कहता है?" नोरा ने पूछा।

"देवराज चौहान और सोहनलाल के बदले वो ढाई सौ करोड़ छोड़ने को तैयार है। सौ करोड़ की ड्रग्स ऊपर देने को मना कर रहा है।"

“सौदा बुरा नहीं।” नोरा मुस्कुराई।

“मेरे ख्याल में वो सौ करोड़ की ड्रग्स भी ऊपर दे देगा।"

हीरा तावड़े की नजर देवराज चौहान पर जा टिकी--- "कहो, अब तुम क्या कहते हो, डिमोरा तो लगभग मान ही गया है। ढाई सौ करोड़ छोड़ने को तैयार है।"

"ठीक है। मैं तुम्हें ढाई सौ करोड़ दूंगा।” देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।

“ये फैसला समझदारी से भरा है। मैं भी ये ही चाहता हूँ कि ऐसा ही हो। तुम डिमोरा के हाथों में ना जाओ। डिमोरा सच में बुरा इन्सान है। उसने मेरे साथ जो व्यवहार किया, वो उसे नहीं करना....।"

इसी पल तावड़े का फोन बज उठा।

"हैलो।” तावड़े ने बात की।

"तावड़े, मैं पाकिस्तान से सुलेमान...।"

"पहचान लिया सुलेमान भाई।" तावड़े बोला--- "कैसे मिजाज हैं ?"

“तुम पहले कभी नहीं फंसे। इस बार मेरे से ना लेकर डिमोरा से ड्रग्स ली तो माल पकड़ा गया तुम्हारा।"

“मुझे पता लगा, खुन्दक में तेरे ही आदमी ने वहाँ ड्रग्स होने की खबर पुलिस में दी।" तावड़े ने कहा ।

“सुलेमान गलत धंधा जरूर करता है, पर गलत ढंग से नहीं करता।" सुलेमान ने उधर से शांत स्वर में कहा--- “गाली दे ले, पर ऐसा बुरा इल्जाम मुझ पर मत लगा। मैंने ऐसा काम कभी भी नहीं किया।"

“मुझे आज तक नहीं पता चला कि पुलिस को खबर कैसे लग गई कि....।”

“पता लगाना पुलिस का काम है। वो लगा लेती है। डिमोरा की दी समय-सीमा खत्म होने में आठ दिन बाकी हैं।"

“सब खबर है तेरे को।"

“धंधे में खबर रखनी पड़ती है। तू कहे तो डिमोरा से बात करके वक्त बढ़ा दूँ?”

“वो तेरी बात क्यों मानेगा?"

“मान जाएगा। धंधा अलग-अलग करते हैं, पर हैं तो सब भाई-भाई। डिमोरा से मेरी कई बार बात हुई है।”

“इसकी जरूरत नहीं। डिमोरा को पैसे देने का इंतजाम मैंने कर लिया है।" तावड़े फोन पर बोला ।

“ये तो अच्छी खबर दी तुमने.... ।”

“अब मैं तेरे से ही माल मंगवाऊँगा। जैम डिमोरा घटिया आदमी है।" तावड़े ने कड़वे स्वर में कहा।

"भेजूं क्या?”

“कुछ दिन ठहर जा। डिमोरा को उसका माल दे दूँ, फिर तेरे को फोन करता हूँ।"

"तो हम कुछ दिन बाद बात करते हैं तावड़े।"

तावड़े ने फोन बंद करके जेब में रखा और बोला---

"तो पक्का रहा देवराज चौहान, तू मुझे ढाई सौ करोड़ देगा?"

"हाँ!"

"तो आज ही दे। मैं डिमोरा का हिसाब नक्की करूं। इस वक्त साढ़े तीन बज रहे हैं, वॉल्ट शाम को बंद होगा।"

"वॉल्ट की दोनों चाबियाँ मेरे पास हैं।" शिवचंद कह उठा।

"हम तीनों....।” देवराज चौहान ने जगमोहन और सोहनलाल को देखकर कहा--- "यहाँ से निकलकर वॉल्ट जाएंगे। तुम्हारे आदमी वॉल्ट के बाहर रहेंगे, वॉल्ट से पैसा निकालकर उनके हवाले करेंगे और....।"

"मैं तुम लोगों के साथ चलूंगा।" हीरा तावड़े बोला--- “इन हालातों में मैं धोखा नहीं खाना चाहता।"

“मैं तुम्हें धोखा देने की नहीं सोच रहा।" देवराज चौहान ने कहा।

“फिर भी दुर्घटना से सावधानी भली।"

“तुम वॉल्ट के भीतर नहीं जा सकते। गेस्ट को भीतर ले जाना मना है। ये वॉल्ट का नियम है।"

“मैं वॉल्ट के ऑफिस में बैठकर तुम्हारे आने का इंतजार....।"

“ठीक है। मुझे कोई ऐतराज नहीं।" देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ।

"हमारा तीस करोड़।" शिवचंद बोला--- “बाकी सब लोगों का पचास-पचास लाख....।"

“मिलेगा। बेसब्र मत बनो। तुम दोनों भी मेरे साथ चलोगे। नोरा....।"

"हाँ!”

“दयाल से कहो, कम-से-कम बीस हथियारबंद आदमी साथ...।”

हीरा तावड़े का फोन बजने लगा। दूसरी तरफ जैम डिमोरा था।

“मैंने सोचा, तुमने फैसला ले लिया होगा अब तक।" डिमोरा की आवाज कानों में पड़ी।

“सही सोचा। मैं तुम्हें ढाई सौ करोड़ वापस देने वाला हूँ।" तावड़े ने कहा।

“क्या? तुम तो देवराज चौहान और सोहनलाल को देने की बात....।"

"वो प्रोग्राम मैंने कैंसिल कर दिया है। देवराज चौहान मदन की दौलत से ढाई सौ करोड़ देने को तैयार है।"

"ये तुम ठीक नहीं कर रहे तावड़े....।"

"मैं तो ठीक कर रहा हूँ, पर तुमने मेरे साथ ठीक नहीं किया। ड्रग्स का धंधा ही ऐसा है कि कभी-कभी माल पकड़ा भी जाता है। ये सब चलता रहता है, पर तुमने तो तलवार मेरी गर्दन पर लगा दी। ऐसे धंधा नहीं होता डिमोरा। धंधा ही नहीं चलेगा, तो मैं तुम्हारे पैसे कैसे दूंगा? सुलेमान ने तो कभी मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया। मिल-मिलाकर ही चला जाता है, पर तुम तो मेरा माल पकड़े जाने पर मेरे पर हुकूमत करने की कोशिश करने लगे। तेरे-मेरे बीच वो ढाई सौ करोड़ हैं जो मैंने देना है, वो चौबीस घंटों में तुम्हें मिल जाएगा। मैं फोन करूंगा.... ।”

"तावड़े, मुझे पैसे से ज्यादा देवराज चौहान और सोहनलाल की जरूरत.... ।”

“ये दोनों अब तेरे को, मेरे से तो मिलने से रहे डिमोरा। मैं देवराज चौहान को तेरे हाथों में क्यों फंसाऊँ, जबकि वो मुझे पैसा दे रहा है। ऐसा करना धंधे के लिहाज से गलत होगा।"

“तावड़े, मैं तेरे को सौ करोड़ की ड्रग्स भी दूंगा।"

“अब कुछ नहीं हो सकता। मैं तेरे साथ कोई 'डील' नहीं करना चाहता।" तावड़े ने कहा और फोन बंद कर दिया। चेहरे पर सख्ती के भाव दिख रहे थे। नजरें देवराज चौहान पर उठीं।

देवराज चौहान को अजीब-सी निगाहों से, नोरा की तरफ देखते पाया।

हीरा तावड़े ने नोरा की तरफ निगाह घुमाई।

अगले ही पल तावड़े वहीं का वहीं ठिठक गया।

नोरा के हाथ में रिवॉल्वर दबी थी, जिसका रुख तावड़े की तरफ था। तावड़े ने पहचाना कि नाल पर साईलैंसर भी चढ़ा हुआ है यानि कि इस वक्त की नोरा ने पहले ही तैयारी कर रखी थी।

तावड़े संभला। नोरा के चेहरे पर नजर मारी।

नोरा का चेहरा सपाट और सख्त दिख रहा था।

शिवचंद और बाबू भी ये देखकर अजीब-सी स्थिति में खड़े थे। नोरा ने रिवॉल्वर तब निकालकर तावड़े पर तानी थी जब वो डिमोरा से बात कर रहा था। नोरा की हरकत पर सब हैरान रह गए थे।

“क्या?” तावड़े की आँखें सिकुड़ी थीं। उसने सिर को झटका देकर नोरा से पूछा।

“तू तो मेरा दीवाना है तावड़े ! है ना?” नोरा के सख्त स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था।

"तुझे क्या हो गया नोरा....ये....।"

“मुझे तो बहुत देर से हुआ पड़ा है, पर तेरे से बात करने का वक्त नहीं मिल रहा था।" नोरा ने कहा--- "पिछले पाँच सालों से तूने बार-बार मेरे साथ नाइन्साफी की। मुझे उठवा लिया, क्योंकि खूबसूरत थी। तेरे को भा गई। तूने मजबूर किया, मैं तेरे साथ सोया करूँ। ये भी मैंने मान लिया, सोचा तू बुरा काम करता है, पर मेरे लिए तो अच्छा होगा। पर पाँच सालों में तूने जाने कितनी बार मेरा दिल तोड़ा, अपनी हरकतों से, पर मैं सहती रही, लेकिन इस बार तो तूने हद ही कर दी।"

“इस बार ?” तावड़े के होंठों से निकला--- “मैंने क्या किया?”

“तूने तो मुझे चारा बनाकर देवराज चौहान के सामने डाल दिया.... ।”

“नोरा वो....।”

“ये तो देवराज चौहान की शराफत रही कि उसने मुझे छुआ भी नहीं, पर तूने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी। याद कर मैंने तेरे को तब भी कितना मना किया था कि किसी और के सामने कपड़े उतारना मुझे अच्छा नहीं लगेगा। मैं उनमें से हूँ जो सिर्फ एक ही मर्द को पसंद करती है, जिसे कर लिया, तुझे किया, बेशक मजबूरी में, पर कर लिया; लेकिन मेरे कहने पर तू नहीं माना। मेरी परवाह नहीं की और अपने प्लान में देवराज चौहान की पत्नी के तौर पर मेरा दाखिला करवा दिया। ये तो तूने बोत गलत किया। मेरी ज़रा भी कद्र नहीं की कि पाँच साल मैं तेरे को अपना जिस्म परोसती रही। तेरा दिल बहलाती रही और तूने मुझे देवराज चौहान के सामने डाल दिया। बहुत बेइज्जती कर दी तूने मेरी... ।”

“होश में आ नोरा। तू पागल हो गई है जो ऐसा....।”

“मैं पागल ना तो पहले थी, ना अब हूँ। तू तो अपने को मेरा दीवाना कहा करता था। ये ही है तेरा दीवानापन कि मुझे दूसरे मर्द के सामने डाल दिया? मैं समझ गई कि तेरी नजरों में मेरी कोई हैसियत नहीं.... ।"

“नोरा, तुम तो मेरी रानी.... ।”

"रहने दे तावड़े ! कहाँ की रानी, तूने तो मेरे को बर्बाद कर दिया है। मैं कहीं की नहीं रही। आज मैं जिन्दगी के ऐसे मोड़ पर खड़ी हूँ, जहाँ मेरे लिए कोई रास्ता ही नहीं बचा है।" नोरा सपाट सख्त स्वर में कहती जा रही थी--- “अगर तूने मेरी परवाह की होती, मेरे को देवराज चौहान के सामने ना डाला होता, तो शायद हमारी गाड़ी कुछ साल और चल जाती, लेकिन अब गाड़ी के सारे पहिये टूट चुके हैं, जो कि अनजाने विश्वास पर खड़े रहते थे। तेरा-मेरा इतना ही साथ था तावड़े। तूने मेरे को बर्बाद करके ही मरना था। मैं बर्बाद हो गई और अब तू मर.... ।"

“ये तुम क्या कर रही हो नोरा, मैं तो तुम्हें...।"

“पहले तो मैंने सोचा था कि तुम्हें जैम डिमोरा मार देगा। देवराज चौहान तुम्हें पैसा नहीं देगा; परन्तु अब हालात बदल गए हैं। देवराज चौहान तुम्हें पैसा देने को तैयार है, उधर डिमोरा, देवराज चौहान और सोहनलाल के बदले तुम्हें आजाद करने को कह रहा है। यानि कि बाजी तुम जीत गए, पर अपनी माशूका को नहीं जीत सके, अब....।"

हीरा तावड़े हड़बड़ाया-सा देवराज चौहान की तरफ पलटकर बोला---

“इसका दिमाग खराब हो गया है देवराज चौहान, इसे समझाओ कि...।”

“किस देवराज चौहान को तुम समझाने को कह रहे हो?” नोरा तीखे स्वर में कह उठी--- “जिसे तुमने अपनी योजना में फंसाकर नचा डाला। इसे इतना परेशान किया कि आज ये तुम्हारे पास जान खतरे में डाले बैठा.... ।”

“प्लीज नोरा।" तावड़े परेशान-सा नोरा की तरफ मुड़ा।

“वहीं रहो। एक कदम भी आगे मत बढ़ना।” नोरा तुरन्त तेज स्वर में कह उठी।

हीरा तावड़े वहीं का वहीं रुक गया।

“तुमने ही मुझे ऊटी में रिवॉल्वर चलाना सिखाया था। बस ये ही काम तुमने अच्छा किया, बाकी काम तो...।"

“मैं तुम्हें आज भी बहुत चाहता हूँ नोरा, तुम मेरी.... ।"

“जरूर चाहते होगे। मुफ्त का माल कौन नहीं चाहेगा, पर अब तुम मुझे इतने भी अच्छे नहीं लगते कि तुम्हारे पास बैठ सकूँ। तुमने मुझे दूसरे मर्द के सामने परोस दिया, ये तुम्हारी बड़ी गलती रही। मेरी एक ना सुनी तुमने और....।"

"ओह नोरा, मेरी जान, तुझे मैं कैसे समझाऊँ कि उस वक्त मुझे अपनी जान बचाने की फिक्र...।"

"तुझे अपनी ही चिन्ता रहती है। तू कभी भी दूसरों के बारे में नहीं सोचता। गुंजना के साथ तूने क्या किया?"

हीरा तावड़े चौंककर नोरा को देखने लगा।

"तेरे को क्या लगा कि मुझे पता नहीं है?" नोरा जहरीले अन्दाज में मुस्कुरा पड़ी--- "डेढ़ साल तू बीस बरस की गुंजना के साथ मजे लेता रहा। कभी मेरे साथ, तो कभी उसके साथ। तूने मेरे से वादा किया था कि मेरे होते किसी लड़की को नहीं देखेगा, पर तूने अपनी बात ही नहीं रखी। गुंजना अब माँ बनने वाली है। तेरे बच्चे की सच में, तू मेरे काबिल कभी रहा ही नहीं तावड़े। औरत होने के नाते मैंने काफी सहा तेरे को, पर देवराज चौहान के सामने मेरे को परोसकर तूने मेरे को बहुत तकलीफ....।"

"सुन!" तावड़े हाथ आगे करके बोला--- "हम समझौता कर लेंगे। मैं तेरे को आजाद कर दूंगा। बहुत पैसा भी दूंगा और... ।"

नोरा सावधानी से रिवॉल्वर तावड़े की तरफ ताने खड़ी थी। तावड़े कहता जा रहा था कि नोरा उसकी किसी बात के झांसे में आ जाए।

परन्तु नोरा तो फैसला ले चुकी थी कि उसे क्या करना है।

"देवराज चौहान!" हीरा तावड़े पर नजर रखे नोरा ने सख्त किन्तु गंभीर स्वर में कहा--- "तावड़े को मारना मेरी व्यक्तिगत समस्या है। तुम सुन भी चुके हो। क्या तावड़े की मौत से तुम्हें कोई नुकसान पहुँचेगा, ऐसा है तो बता दो।"

"मुझे कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा। क्या इसे मारना तुम्हारे लिए जरूरी है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"बहुत जरूरी हो गया है। इसका मेरे से दिल भर गया है। ये मुझसे छुटकारा चाहता है। तुम्हारे पास भेजकर इसने मुझे मेरी नजरों से गिरा देना चाहा। मैं वेश्या बन जाती अगर तुम अच्छे इन्सान ना होते। इस वक्त कम-से-कम अपने लिए इतनी इज्जत तो है मेरे मन में कि मैं वेश्या नहीं हूँ। जिस्म से दूसरों की सेवा नहीं करती। ये जिन्दा रहा तो मुझे पूरी तरह बर्बाद कर देगा।"

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

"अपनी बची हुई जिन्दगी को संवारने के लिए देवराज चौहान, मैं तुमसे दस करोड़ रुपये चाहती हूँ, दोगे?" नोरा पुनः बोली।

खामोश बैठा जगमोहन फौरन कह उठा---

"दस नहीं, पन्द्रह मिलेंगे, तुम इसे शूट करो।"

"प्लीज नोरा, मैं तुम्हें पचास करोड़.... ।" हीरा तावड़े ने जल्दी से कहना चाहा।

पिट... पिट...पिट.... ।

उसी पल नोरा के हाथ में दबी रिवॉल्वर से बेआवाज तीन गोलियाँ निकलीं। दो गोलियाँ तावड़े की छाती में धंस गई, एक तावड़े के गले के आर-पार हो गई।

तावड़े की आँखें फैल गई। वो एक कदम पीछे को लड़खड़ाया। दोनों बाँहें दाँये-बाँये फैल गई थीं। फिर उसका शरीर झुकता हुआ पास पड़ी कुर्सी से टकराया और कुर्सी को साथ लेता फर्श पर जा लुढ़का।

सबकी नजर तावड़े के शरीर पर थी।

तावड़े का शरीर शांत पड़ चुका था।

हर कोई चुप और स्तब्ध-सा हीरा तावड़े के शरीर को देखे जा रहा था।

“य-ये तुमने क्या किया?” हक्का-बक्का सा शिवचंद कह उठा--- "ता-तावड़े साहब को म-मार दिया?”

नोरा की बिल्लौरी आँखों में खतरनाक भाव नाच रहे थे। रिवॉल्वर थामे वो तीन कदम शिवचंद और बाबू की तरफ बढ़ आई। ये देखकर शिवचंद और बाबू की नजरें मिलीं और पुनः नोरा पर टिक गईं।

“और तुम दोनों।" नोरा शब्दों को चबाकर कठोर स्वर में बोली--- “तुमने कहा कि ताश के बावन पत्ते तुम लोगों के हाथ में थे। बेशक थे, माना, और देवराज चौहान को ताश का जोकर बना दिया, लेकिन ये भूल गए कि ताश में एक नहीं, दो जोकर होते हैं। दूसरा जोकर एक ही चाल में पूरा खेल बदल कर रख सकता है, समझे। दूसरा जोकर किस्मत ने मुझे बना दिया।”

“ये तुम क्या कह रही....।" शिवचंद घबराकर बोला।

“क्या तुम हमें शूट करने की सोच रही हो?" बाबू चीख उठा।

पिट...पिट.... ।

नोरा के हाथ में दबी रिवॉल्वर से दो फायर हुए। पहला शिवचंद को लगा, दूसरा बाबू को। दोनों उसी पल पीछे जा गिरे। नोरा तेजी से आगे बढ़ी, दोनों को देखा। दोनों अभी जिन्दा थे। नोरा ने एक-एक फायर उन पर और किया और वो शांत हो गए। नोरा रिवॉल्वर वाला हाथ नीचे किए गहरी-गहरी सांस लेने लगी।

“इन्हें....।” देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "मारने की क्या जरूरत थी ?"

"बहुत जरूरत थी देवराज चौहान।" नोरा सांसों को ठीक करती कह उठी--- "एक तो मैं इन दोनों को शुरू से ही नापसन्द कर रही थी। दूसरे, इनके जिन्दा रहते हम यहाँ से बाहर नहीं निकल सकते थे। इन्होंने अभी तावड़े की मौत होने का शोर डाल देना था।"

देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल की नजरें मिलीं।

नोरा ने पास आकर रिवॉल्वर देवराज चौहान को देते हुए कहा---

“हो सकता है यहाँ से निकलते वक्त तुम्हें रिवॉल्वर की जरूरत पड़ जाए...।"

देवराज चौहान ने रिवॉल्वर जेब में रखते हुए कहा---

“अब तुम क्या चाहती हो?"

नोरा ने हीरा तावड़े की लाश पर नजर मारकर कहा---

“मैं चाहती हूँ सीधे वॉल्ट चलो और मुझे पन्द्रह करोड़ दो, जिसके साथ मैं गायब हो सकूँ।"

“मैं वॉल्ट की चाबियाँ इनकी जेबों से निकालता हूँ।" कहते हुए सोहनलाल, शिवचंद और बाबू की लाश के पास बढ़ गया।

“यहाँ से बाहर निकलने में क्या परेशानी आएगी?" देवराज चौहान ने पूछा।

"मैं तुम लोगों के साथ हूँ, इसलिए हो सकता है कि परेशानी ना आए; परन्तु कुछ भी हो सकता है। यहाँ पर तीस से ऊपर लोग हैं और सभी हथियारबंद हैं, खतरनाक हैं। आगे कुछ हुआ तो मामला तुमने ही संभालना है। मेरे बस में कुछ नहीं होगा।"

“हमारे निकलते ही कोई भी कमरे में झांक सकता है।" जगमोहन ने कहा।

“जब तक कमरे के बाहर लाल बल्ब जल रहा है, कोई भी इधर नहीं आएगा। सब जानते हैं कि तावड़े भीतर व्यस्त है।"

तभी सोहनलाल की आवाज कानों में पड़ी---

“चाबियाँ मिल गईं।"

“निकलो यहाँ से।" देवराज चौहान बोला।

नोरा आगे बढ़ी। बाकी उसके पीछे थे। वे दरवाजा खोलकर बाहर निकले। नोरा ने पलटकर दरवाजा बंद कर दिया। दरवाजे के ऊपर दीवार पर लाल बल्ब जल रहा था। वे चारों वहाँ से आगे बढ़ते हुए लिफ्ट के पास पहुँचे, लिफ्ट से वे नीचे पहुँचे। चारों बेहद सामान्य दिख रहे थे। जब नोरा उन्हें लिए एक तरफ खड़ी कारों की तरफ बढ़ रही थी तो दयाल सामने पड़ गया, वो पैंतालीस बरस का मोटा-सा व्यक्ति था। तावड़े का सबसे खास था और खतरनाक था।

इन्हें बाहर की तरफ जाते पाकर ठिठक गया।

जब वे पास पहुँचे तो दयाल बोला---

"कहाँ जा रही हो नोरा?" दयाल की निगाह देवराज चौहान, सोहनलाल और जगमोहन पर गई ।

“तावड़े साहब ने ही कहीं भेजा है। अभी घंटे भर में वापसी हो जाएगी।” नोरा ने शांत स्वर में कहा।

“इनसे बात पट गई?" दयाल ने पूछा।

“तावड़े साहब बात करेंगे तो बात कैसे नहीं पटेगी?" नोरा मुस्कुरा पड़ी।

“शिवचंद और बाबू कहाँ हैं?"

“वो तावड़े साहब के पास हैं। अभी जाने दो, जल्दी है। बाकी बातें आकर करूंगी।" कहकर नोरा आगे बढ़ गई।

वे उस इमारत से बाहर निकले तो उनके पास दो कारें थीं। एक कार में देवराज चौहान और सोहनलाल थे, दूसरी में नोरा और जगमोहन। दोनों का रुख लक्ष्मीचंद वॉल्ट, दादर की तरफ था।

वे जब वॉल्ट पहुँचे तो शाम के छः बज रहे थे। अभी वॉल्ट बंद होने में वक्त था। देवराज चौहान और सोहनलाल ही वॉल्ट में गए। नोरा और जगमोहन बाहर कार में ही रहे।

“तुमने दस करोड़ कहा था ना?" जगमोहन बोला।

“तुमने पन्द्रह देने का वादा किया था।" नोरा ने कहा।

“ना भी देते, तो भी तुम हीरा तावड़े को शूट अवश्य करतीं।"

“जरूर करती, वो मेरे साथ घटियापन पर आ गया था।” नोरा कड़वे स्वर में कह उठी।

“फिर तो तुम्हें दस करोड़ ही बहुत हैं.... ।”

“पन्द्रह। बात से पीछे मत हटो।" नोरा ने जगमोहन को देखा--- "फिर कौन-सा तुम लोग अपनी जेब से दे रहे हो।"

“जेब से ही दे रहे हैं, वो माल अब हमारी जेब में है। बारह ले लो ।”

“पन्द्रह से एक पैसा भी कम नहीं। मैं देवराज चौहान से बात करूंगी।" नोरा ने नाराजगी से कहा।

“उसे क्यों बीच में लाती हो। पन्द्रह ही ले लेना।"

कुछ सोचकर नोरा बोली---

"इतना पैसा रखूंगी कहाँ, मेरे पास तो कुछ है भी नहीं।" नोरा ने जगमोहन को देखा।

"पैसा आ जाए तो यही समस्या आ जाती है कि कहाँ रखा जाए।" जगमोहन बोला--- “वैसे उस तरफ सूटकेस की दुकान है। सूटकेस लेना चाहती हो तो....।"

“तो ले दो ना सूटकेस ।" नोरा कह उठी--- "तुम्हें पता तो है मुझे जरूरत पड़ेगी।”

देवराज चौहान और सोहनलाल करीब सात बजे वॉल्ट से बाहर निकले। उनके पास तीन भारी सूटकेस थे, जो वॉल्ट में रखे थे। सारी दौलत वो निकाल लाए थे। सोहनलाल के पास एक काले रंग का बोरे के साईज का प्लास्टिक का बैग था जो कि आधा भरा लग रहा था। जगमोहन ने आगे बढ़कर, सूटकेसों को हाथ लगवाया। बड़ी कार में रखवाया।

सोहनलाल काले थैले के साथ दूसरी कार में जा बैठा और नोरा को भी कार में बिठा लिया। नोरा ने पिछली सीट पर रखा सूटकेस खोल लिया। सोहनलाल काले थैले के भीतर से गड्डियाँ निकालकर सूटकेस में रखता बोला---

“ये पूरा पन्द्रह करोड़ है। मैं भीतर से गिनकर लाया हूँ। सारा पैसा इस सूटकेस में नहीं आ सकता, कुछ थैले में पड़ा रह जाएगा। नोटों को संभालना आसान नहीं होता, ज्यादा खर्च मत करना और तेजी से खर्च मत करना। साधारण जिन्दगी बिताना और मुम्बई से इतनी दूर चली जाना कि यहाँ की हवा भी तुम्हारे पीछे ना आ सके।”

सुनते हुए नोरा सिर हिलाती रही।

“अब तक तावड़े के आदमियों ने तावड़े की लाश देख ली होगी या जल्दी ही देखने वाले होंगे। उसके बाद वे इन कारों की तलाश शुरू कर देंगे। खैर इसी में है कि जल्द-से-जल्द इस कार से पीछा छुड़ा लेना और मुम्बई से निकल लेना।"

सूटकेस पूरा भर गया था, जिसे कि बंद कर दिया गया ।

करीब चार करोड़ की गड्डियां अभी भी काले थैले में मौजूद थीं।

"अब मैं चला।" कहने के साथ ही सोहनलाल ने दरवाजा खोला और बाहर निकला।

नोरा भी बाहर निकली और आगे खड़ी कार पर नजर मारी। देवराज चौहान और जगमोहन सूटकेसों को कार में सेट कर रहे थे। लगभग कर चुके थे। नोरा ने सोहनलाल से कहा---

"मैं देवराज चौहान से बात करना चाहती हूँ।"

"कहता हूँ उसे।" सोहनलाल कार की तरफ बढ़ गया।

मिनट भर बाद देवराज चौहान नोरा के पास आया।

देवराज चौहान को देखकर नोरा बड़े प्यार से मुस्कुराकर बोली---

"मेरी एक चाहत पूरी करोगे?"

"क्या ?"

“मैं दस दिन तुम्हारे साथ एकान्त में, बिस्तर पर बिताना चाहती हूँ। मानोगे?” नोरा ने कहा।

"तुम्हारी ये चाहत कभी नहीं पूरी हो सकती।" देवराज चौहान मुस्कुराया।

"वजह?"

“मैं शादीशुदा हूँ।” देवराज चौहान ने कहा।

"वो तो सब होते हैं।"

“मेरी पत्नी है। "

"सबकी पत्नियाँ होती हैं।"

“मैं धोखेबाज नहीं हूँ कि अपनी पत्नी को धोखा दूँ। मैं ऐसा नहीं कर सकता।"

“पत्नी से डरते हो?"

“नहीं, अपने से डरता हूँ। एक बार किसी को धोखा दिया तो फिर दूसरी बार किसी को धोखा दूंगा। उसके बाद धोखे बढ़ते चले जाएंगे। धीरे-धीरे ऐसा करना मेरी आदत में शामिल हो जाएगा--- और मैं ऐसा नहीं बनना चाहता।"

"हैरानी है कि डकैती मास्टर ऐसा कह रहा है।" नोरा की निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर थी।

“डकैती करना मेरा काम है। पर मैं धोखेबाज नहीं हूँ। बहुत चैन मिलता है ऐसी जिन्दगी बिताकर । तुम छः महीने किसी से झूठ मत बोलो, धोखा मत दो, बेईमानी मत करो, तो तब देखो तुम अपने में कितना बदलाव महसूस करोगी। हमारा यहाँ ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं। इस कार से छुटकारा पा लेना, हीरा तावड़े के आदमी, तावड़े को मरा पाकर सबसे पहले इन दोनों कारों को ही ढूंढेंगे।" कहकर देवराज चौहान पलटा और आगे वाली कार की तरफ बढ़ गया।

"मैं तुम्हें याद रखूंगी देवराज चौहान।" पीछे से नोरा कह उठी।

देवराज चौहान कार में बैठा तो सोहनलाल ने कार आगे बढ़ा दी।

"मदन के डायमंड हाऊस चलो सोहनलाल।" देवराज चौहान ने कहा।

"व-वहाँ क्यों?" जगमोहन हड़बड़ाकर बोला।

"मदन की दौलत उसे वापस देनी....।"

"वापस देनी है, पर क्यों? ये तो अब हमारी है, हम...।"

"जगमोहन!" देवराज चौहान ने जगमोहन को देखकर कहा--- "हमने मदन का पैसा नहीं लूटा, बल्कि तावड़े ने खतरनाक योजना बना, मुझे मोहरा बनाकर, इस रास्ते पर लगा दिया था। मदन का पैसा लेने का हमारा कोई प्लान नहीं था।"

"अब आ गया है तो....।"

"तो हमें वापस देना है मदन को....।"

“मैं ये बात कभी नहीं मानूंगा। ये बहुत बड़ी रकम है। बेशकीमती हीरे-जवाहरात हैं। हमने मेहनत....।”

"जो हुआ, होता चला गया; जैसे हम इस जंजाल में फंसे, वैसे बाहर भी निकल आए। नोरा अगर हीरा तावड़े को शूट नहीं करती तो तब ये पैसा हमने तावड़े को देना....।"

"तावड़े मर गया। वो बात खत्म हो गई। अब पैसा हमारे पास है और....।"

"हम किसी को व्यक्तिगत रूप से नहीं लूटते। हम उसी के पैसे पर डकैती करते हैं, जिसे लूटना होता है, खाली करना होता है। तब सब कुछ प्लानिंग के साथ किया जाता है, पर मदन का पैसा तो हमसे धोखे में रखकर लुटवाया गया है। इस काम को मैं तैयार नहीं था, तब मैं झूठ के चक्रव्यूह में फंसा काम कर रहा था और सारी योजना के पीछे तावड़े का दिमाग काम कर रहा था।"

जगमोहन के चेहरे पर खीझ के भाव नज़र आ रहे थे।

"तो तुम ये सारी दौलत मदन को देने वाले हो?"

"हाँ!"

“पर इसमें से हमारा भी तो हक बनता....।"

“मदन का पैसा है, हमारा हक नहीं बनता।" देवराज चौहान ने स्पष्ट कहा।

जगमोहन फौरन कुछ नहीं कह सका।

“सोहनलाल।” जगमोहन गंभीर स्वर में बोला--- "देवराज चौहान का फैसला सही है क्या?"

“तुम जानो, देवराज चौहान जाने। इन बातों के बीच तो मुझे सिर्फ ड्राईवर ही समझो।" सोहनलाल ने गहरी सांस लेकर कहा--- "मैं तो सिर्फ नोरा के बारे में सोच रहा हूँ कि अगर उसने वक्त पर तावड़े को शूट नहीं किया होता, मदन लुट-पिट गया होता। जब उसे पता चलता कि वॉल्ट से तीन सौ करोड़ की रकम गायब है तो उसका दिल काम करना बंद कर देता।"

जगमोहन को सोहनलाल का जवाब मिल गया था कि मदन ही अपने पैसों को वापस पाने का हकदार था।

जगमोहन मन-ही-मन बल खाकर रह गया।

■■■

डायमंड हाऊस के मालिक मदन से मिलने में उन्हें परेशानी आई, क्योंकि मदन इस तरह अन्जान लोगों से नहीं मिलता था, लेकिन जब देवराज चौहान ने उससे शोरूम से ही इन्टरकॉम पर बात करके कहा कि उन्हें हीरा तावड़े ने भेजा है, तो मदन ने उन्हें फौरन शोरूम के पिछली तरफ बने अपने केबिन में बुला लिया।

सोहनलाल बाहर गाड़ी के पास दौलत के पास मौजूद था। देवराज चौहान और जगमोहन ही भीतर आए थे।

मदन अपने शानदार केबिन में मौजूद था। वहाँ तेज रोशनी जगमगा रही थी। वो साठ-बासठ साल का व्यक्ति था। पतला और लम्बा था। सिर के अधिकतर बाल सफेद थे।

दोनों कुर्सियों पर बैठे तो देवराज चौहान ने कहा---

“आपसे मिलने के लिए झूठ बोलना पड़ा कि हमें तावड़े ने भेजा है, पर ऐसा कुछ नहीं है। हमारा मिलना बहुत जरूरी था। आपका पैसा लौटाना है, जो आपने लक्ष्मीचंद वॉल्ट में रखा हुआ था।"

“क्या?” मदन पागलों की तरह देवराज चौहान को देखने लगा--- “तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने है?”

“पूरी बात सुनने के बाद आपका दिमाग टिकाने आ जाएगा।" जगमोहन बोला--- "हम तो नेकी करके दरिया में डालने आए हैं और आप हमें ही पागल कहने लगे।"

"मदन साहब!” देवराज चौहान बोला--- “आप इस वक्त इसलिए उलझन में हैं कि आपको हालातों का नहीं पता। पूरी बात सुनने के बाद आप समझ जाएंगे कि क्या बात है। मैं आगे बोलू?”

"पता नहीं तुम लोग कौन हो और....।" मदन ने परेशानी से कहना चाहा।

“मेरी पूरी बात सुनते रहो।” देवराज चौहान बोला--- “इतना जान लो कि लक्ष्मीचंद वॉल्ट में आपका 112 नम्बर केबिन खाली हो चुका है और तीन सौ करोड़ से ऊपर की दौलत बाहर गाड़ी में पड़ी है, जो कि तुम्हारी है। जो कि उसी केबिन में पड़ी थी। इतना कहने के साथ ही देवराज चौहान सब-कुछ, सारा मामला मदन को बताने लगा ।

सुनते-सुनते मदन हक्का-बक्का रह गया।

बीस मिनट में देवराज चौहान ने ए-टू-जैड सारी बात बता दी।

सब कुछ जान लेने के बाद मदन की हालत ऐसी थी कि हिलना चाहकर भी हिल ना सके। जो भी उसने सुना था, वो तगड़ा झटका था उसके लिए। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि ये सब सच है और ये दोनों उसे पैसा वापस देने आए हैं। उसे तो इस बात का भी यकीन नहीं हो रहा था कि सामने बैठा इन्सान डकैती मास्टर देवराज चौहान है।

“अब आप अपना पैसा वापस लेना चाहेंगे?" देवराज चौहान उठते हुए बोला।

“दि-दिखाओ।" मदन के स्वर में अभी भी अविश्वास कूट-कूट कर भरा था कि सुरक्षित वॉल्ट में रखा उसका पैसा बाहर कैसे आ सकता है। ये बात तो वो सपने में भी नहीं सोच सकता था ।

अगले दस मिनट में शोरूम के कर्मचारियों की सहायता से कार में रखे तीनों सूटकेस मदन के केबिन में पहुँचाये गए। कर्मचारी चले गए तो देवराज चौहान ने तीनों सूटकेस खोलकर दिखाए।

मदन अपने सामान को फौरन पहचान गया और उसके होश उड़ गए।

“हे भगवान!” मदन के गले से सूखा-सा स्वर निकला--- “ये.... ये मैं क्या देख रहा हूँ।”

"तुम्हारे पैसे में सिर्फ पन्द्रह करोड़ कम हैं, जो हमने नोरा को दिया। बाकी सब पूरा है।" कहने के साथ देवराज चौहान जगमोहन से बोला--- "चलो, हमारा काम खत्म हो गया, जिसका पैसा था, उस तक पहुँचा दिया।"

“काम खत्म हो गया?" जगमोहन के होंठों से निकला--- "हमें तो कुछ भी नहीं मिला.... ।”

“आओ।" कहने के साथ ही देवराज चौहान बाहर निकलता चला गया।

बाहर पहुँचा तो सोहनलाल को टहलते पाया।

“कार कहाँ है?” देवराज चौहान ने पूछा।

“यहाँ से कुछ दूर छोड़ आया हूँ।" सोहनलाल ने कहा--- “जगमोहन बाहर नहीं आया? वो भीतर क्या कर रहा है?"

देवराज चौहान ने सोहनलाल को देखा और मुस्कुरा दिया।

“ये जगमोहन भी अपना कमाल दिखाये बिना मानने वाला नहीं।” सोहनलाल भी मुस्कुराया ।

बीस मिनट बाद जगमोहन डायमंड हाऊस से बाहर आता दिखा। वो मुस्कुरा रहा था। उसके हाव-भाव बता रहे थे कि वो खुश है। जब पास पहुँचा तो सोहनलाल कह उठा---

“मदन को शीशे में उतार लिया?"

“जरूरत ही नहीं पड़ी। वो समझदार है, तभी तो इतना सफल बिजनेसमैन है। इशारा ही समझ गया।" जगमोहन बोला।

“तो वो तुम्हें कितना देने वाला है?" सोहनलाल ने होंठ सिकोड़े।

जगमोहन ने छिपी निगाहों से देवराज चौहान को देखा, फिर कह उठा---

“कुछ नहीं यार। बस चाय-पानी का ही खर्चा देगा.... ।"

“ये चाय पानी का खर्चा कितने करोड़ों का होगा?” सोहनलाल मुस्कुराया ।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और आगे बढ़ गया।

“मुझे क्या देखता है...।” जगमोहन झल्लाकर सोहनलाल से बोला--- “अंधेरा हो रहा है, चल यहाँ से।”

सोहनलाल हंस पड़ा।

समाप्त