सुबह सुनील आफिस में आकर अभी बैठा ही था कि अर्जुन लपकता हुआ उसके केबिन में दाखिल हुआ।
“गुरुजी”—वो उत्तेजित भाव से बोला—“खबर लगी?”
“किस बात की?”—सुनील तनिक हड़बड़ाया।
“पुलिस ने कियारा सोबती को फिर गिरफ्तार कर लिया है।”
“अच्छा! कब?”
“आज सुबह सवेरे। विवेक नगर उसके घर से।”
“वजह?”
“क्या पता! उसके खिलाफ कुछ नया हाथ लगा होगा पुलिस के!”
“हूं। तुझे कैसे खबर लगी?”
“पुलिस ने खुद इस बाबत न्यूज बुलेटिन जारी किया जो कि वायर सर्विस पर आ गया।”
“आई सी। अब कहां है वो?”
“जहां अरैस्टिंग आफिसर इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल है। पुलिस हैडक्वार्टर में।”
“उससे मुलाकात की कोई सूरत?”
“आप निकाल ही लेंगे। आखिर आप आप हैं।”
सुनील ने घूर कर उसे देखा।
“मेरा मतलब इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल आप का यार है...”
“पुलिस वाले भी कभी किसी के यार हुए हैं!”
“... आप का लिहाज करता है...”
“फूट ले।”
अर्जुन चला गया।
पीछे सुनील ने एक सिग्रेट सुलगा लिया और सिग्रेट के कश लगाता केस पर तबसरा करने लगा।
आखिर उसने सिग्रेट फेंका, एक कागज अपने सामने घसीटा और उस पर दर्ज किया :
होटल स्टारलाइट मर्डर केस
मंगलवार शाम रूम ‘506’ में आवाजाही का कैलेंडर
आगन्तुक | समय | विशेष |
तोरल मेहता | 8.55 | लिपस्टिक गिराई चाकू गिराया बीच का दरवाजा खुला देखा |
वेटर जितेन्द्र | 9.15 | ड्रिंक्स लाया डोर से ही डिसमिस |
कियारा सोबती | 9.30 | पहला फेरा मुलाकात न हुई डोर से ही डिसमिस |
देवीना महाजन | 9.40 | लाश देखी उलटे पांव वापिस |
कियारा सोबती | 9.50 | दूसरा फेरा मकतूल उसके सामने ‘मंगला’ बोल कर मरा |
काव्या कपूर | 10.05 | लाश देखी अंगूठी गिराई |
सुनील | 11.30 | लाश देखी खाली फूलदान पर तवज्जो बटुवा, अंगूठी, लिपस्टिक देखी सैंडलों का खाली डिब्बा देखा |
पुलिस के अटाप्सी सर्जन ने कत्ल का टाइम नौ और दस के बीच का मुकरर्र किया था लेकिन उपरोक्त कैलेंडर दर्शाता था कि मकतूल रात सवा नौ बजे जिन्दा था जब कि उसने रूम सर्विस से अपने रूम के दरवाजे पर ड्रिंक्स की ट्रे रिसीव की थी और दो ड्रिंक्स का आर्डर दर्शाता था कि भीतर उसके साथ कोई था जिस के साथ कि वो ड्रिंक्स शेयर करने वाला था।
नौ पचास पर कियारा सोबती मकतूल के कमरे में दाखिल हुई थी तो उसने मकतूल को ड्रार्इंगरूम में कार्पेट पर लुढ़का पड़ा पाया था और उस की छाती में मूठ तक एक नक्काशीदार हैण्डल वाला चाकू धंसा हुआ था। बकौल कियारा उसने उसके सामने दम तोड़ा था।
यानी कत्ल सवा नौ और पौने दस के बीच हुआ था और कत्ल जरूर उस मेहमान ने किया था जो उस वक्फे के दौरान मकतूल के साथ मौजूद था और मकतूल के साथ ड्रिंक्स शेयर कर रहा था तो यकीनी तौर पर उससे अच्छी तरह से वाकिफ था, ड्रिंक्स शेयर करने की हद तक बेतकल्लुफ था।
बड़ा सवाल : मेहमान कौन था?
काफी अरसा वो उस बात पर मनन करता रहा, फिर उसने कागज को मोड़ कर जेब के हवाले किया और उठ खड़ा हुआ।
दोपहर के करीब सुनील विक्रमपुरा और आगे म्यूनीसिपल मार्केट पहुंचा।
सत्ताइस नम्बर शॉप का दरवाजा खुला था और भीतर प्रहलाद राज मौजूद था।
वो शॉप काफी बड़ी थी जिस के फ्रंट में एक रिसैप्शन और वेटिंग लाउन्ज था और बैक में दो केबिन थे जिन की ग्लास विंडोज में से एक पर दिवंगत अविनाश खत्री का और दूसरी पर उसके पार्टनर प्रहलाद राज का नाम दर्ज था। फ्रंट का हिस्सा उस घड़ी खाली पड़ा था इसलिये उसने प्रहलाद राज के केबिन पर दस्तक दी और दरवाजा ठेल कर भीतर दाखिल हुआ।
प्रहलाद राज अपने लैपटॉप पर व्यस्त था। सुनील के आगमन पर उसने उस पर से सिर उठाया।
“नमस्ते।”—सुनील मधुर स्वर में बोला।
“आओ, भई।”—प्रहलाद राज अनमने भाव से बोला—“बैठो।”
“थैंक्यू।”
“ये पता मालूम था?”
“जी हां।”
“कैसे मालूम था?”
“आपने पुलिस को बताया था न! ऐसी बातें, जिनमें कुछ खुफिया न हो, पुलिस मीडिया से सांझा करती है।”
“ओह! कैसे आये?”
“कोई खास वजह नहीं। इधर से गुजर रहा था; सोचा, आप का आफिस ही देखता चलूं। बढ़िया है—छोटा है लेकिन बढ़िया है।”
“हूं।”
“पुलिस में हाजिरी लगी?”
“लगी भई।”—वो आह सी भरता बोला—“नाजायज लगी लेकिन लगी। सिर्फ इसलिये लगी, क्यों कि मकतूल की जिन्दगी में मैं उसका पार्टनर था। और न मैं किसी लेने में, न किसी देने में।”
“किस से सामना हुआ?”
“इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल से। जो कि इस केस का इनवैस्टिगेटिंग आफिसर है और हैडक्वार्टर में बैठता है।”
“मैं उसे जानता हूं। वो बड़ा रीजनेबल, बड़ा हट के पुलिस आफिसर है।”
“मेरे से तो रीजनेबली पेश न आया!”
“अच्छा!”
“ही गेव मी ए हार्ड टाइम। साफ हिन्ट देने लगा कि अपने पार्टनर के कॉनगेम में मैं भी शरीक था।”
“कत्ल के केस में पुलिस वाले ऐसी लम्बी लम्बी छोड़ते ही है।”
“वो तो ठीक है लेकिन उसके कत्ल के बाद बाजरिया मीडिया ये बात—कि वो कैसा कॉनमैन था—उजागर होने से पहले मेरे को तो कभी इसकी भनक तक नहीं लगी थी!”
“जब कि वो आप का बिजनेस पार्टनर था!”
“उससे क्या होता है! हर किसी की अपनी कोई पर्सनल लाइफ भी तो होती है! मेरा उसका कोई चौबीस घन्टे का साथ तो नहीं था न! मेरे से तो उसने कभी ये ही साझा नहीं किया था कि गाहे बगाहे वो मुम्बई क्यों जाता था?”
“जबकि अब ये बात खुल चुकी है कि मुम्बई जाता ही नहीं था, तमाम अरसा यहीं, इसी शहर में होता था।”
“हां, यार। कैसे कर लेता था? हैरानी है!”
“तो पुलिस ने आप से वो लाख रुपये का सवाल पूछा या नहीं?”
“कौन सा सवाल?”
“जिसका मुझे जवाब देना आप को मंजूर नहीं था?”
“अरे, भई कौन सा सवाल?”
“कत्ल के वक्त के दौरान आप कहां थे!”
वो खामोश हो गया।
“जवाब दिया या वहां भी ‘साइलेंस इज गोल्डन’ वाला रवैया अख्तियार किया?”
वो फिर भी खामोश रहा।
“मैंने बोला था ये एक रूटीन क्वेश्चन है जो पुलिस आप से पूछेगी। आपने इस मामूली बात का मुझे जवाब नहीं दिया था, ये कह के टाल दिया था कि जवाब तो आप पुलिस को ही देंगे। आप उम्मीद कर रहे थे कि शायद पुलिस आप से कोई सवाल न करें। पुलिस की हाजिरी भरी तो जाहिर है कि उम्मीद पूरी न हुई, ये सवाल आप से जरूर हुआ होगा। अब बताइये, क्या जवाब दिया? दिया तो पुलिस को आपका ये जवाब हज्म हुआ कि उस घड़ी आप कहीं भी थे, होटल स्टारलाइट में नहीं थे, उसके आसपास भी नहीं थे?”
उसने इंकार में सिर हिलाया।
“नहीं हज्म हुआ?”
“नहीं।”
“उन्होंने जिद की होगी जानने की कि असल में आप कहां थे?”
“बहुत सख्ती से की, यार। हवास खराब कर दिये।”
“तो क्या जवाब दिया आपने?”
“वही जो देना बनता था। किसी की इज्जत का सवाल था, इसलिये जब तक मेरी जान पर ही न आन बने, मेरा खामोश रहना जरूरी था।”
“ये तो, जनाब, किन्हीं अवैध सम्बन्धों की तरफ इशारा जान पड़ता है!”
वो सकपकाया।
“आप शादीशुदा मर्द हैं। आप का किसी से अफेयर है और उस अफेयर के तहत मंगलवार रात नौ और दस बजे के करीब आप अफेयर में पार्टनर की सोहबत में थे तो बनता तो है आप का खामोश रहना!”
“पुलिस तो नहीं सुनती! पुलिस तो नहीं समझती! मैं तो मर्द हूं, जैसे तैसे झेल लूंगा, यूं उस औरत बेचारी की कितनी बदनामी होगी, पुलिस तो इस से कोई सरोकार मानने को तैयार नहीं!”
“आई सी। तो आखिर क्या हुआ?”
“मुझे आज शाम तक की मोहलत मिली है, या तो मैं माकूल जवाब दूं या फिर पुलिस के कहर से दो चार होने के लिये तैयार रहूं।”
“कैसा कहर?”
“उस इन्स्पेक्टर ने क्लियर हिंट दिया था कि इस बाबत मेरी खामोशी मेरी गिरफ्तारी का बायस बन सकती थी। मुझे बतौर मर्डर सस्पैक्ट गिरफ्तार किया जा सकता था और फिर मेरी”—उसके शरीर ने झुरझुरी ली—“डंडा परेड हो सकती थी।”
“थर्ड डिग्री?”
“और क्या?”
“ऐसा अब शायद न हो।”
उसकी भवें उठीं।
“पुलिस ने आप के पार्टनर के कत्ल के इलजाम में कियारा सोबती को गिरफ्तार किया है।”
“वो तो मुझे मालूम है लेकिन ये भी मालूम है कि जवाबतलबी के बाद लगभग फौरन ही छोड़ दिया था।”
“आज सुबह सवेरे फिर गिरफ्तार किया है।”
“अच्छा!”
“जी हां। अगर पुलिस उसको कातिल समझ रही है तो शाम को आप की जो फिर पेशी पुलिस के पास होनी है, उसे आप अब मुलाहजा ही समझिये।”
“ओह! ये तो अच्छी खबर दी तुमने!”
“बतौर मुलाहजा ही सही, आप पुलिस के सामने जुबान खोलेंगे? खामोशी, जो गोल्डन है, उसे भंग करेंगे?”
“पता नहीं क्या करूंगा, यार!”—वो असहाय भाव से हाथ फैलाता बोला—“अभी शाम तक का वक्त मेरे पास है। सोचूंगा कि...”
भड़ाक से केबिन का दरवाजा खुला।
दोनों की निगाह उधर उठी।
एक विशालकाय व्यक्ति ने भीतर कदम रखा।
सुनील ने नोट किया कि जब उसने दरवाजे के भीतर कदम डाला था तो ऊपरी चौखट से टकराने से बचने के लिये उसे अपना सिर नीचे झुकाना पड़ा था। वो एक बटनों वाली ऊनी जैकेट और जींस पहने था और उसके चेहरे पर इतने क्रूर भाव थे कि राक्षस जान पड़ता था।
कद काठ में तो था ही।
“क्या!”—सुनील को पूरी तरह से नजरअन्दाज करता वो बोला।
“अरे, देख नहीं रहे हो”—प्रहलाद राज सप्रयास बोला—“इस वक्त में एक मेह... क्लायन्ट के साथ हूं!”
“क्या?”
“अभी जाओ। शाम को आना।”
“नहीं चलेगा।”
“शाम तक मैं”—उसने एक गुप्त निगाह सुनील पर डाली—“जहां बात करनी है, वहां बात करूंगा।”
“अभी करो।”
“अभी कोई बात नहीं हो सकती। देख नहीं रहे हो मैं क्लायन्ट के साथ...”
“ठीक है, शाम को। अभी बोलो, एम्बूलेंस के साथ या मुर्दागाड़ी के साथ?”
“बकवास न करो।”
“शाम को।”
वो चला गया।
पीछे प्रहलाद राज माथे का पसीना पोंछने लगा।
“कौन था?”—सुनील उत्सुक भाव से बोला।
“मवाली।”—वो बोला—“इस इलाके का दादा। मार्केट वालों से हफ्ता वसूल करता है। न मिले तो तेवर दिखाता है। धमकियां देता है।”
“कमाल है! आप को पुलिस के पास जाना चाहिये!”
“मैं क्यों जाऊं? सारी मार्केट की प्राब्लम है। प्रधान जाये। किसलिये मार्केट का प्रधान बनाया गया है उसे? मैं... मैं शाम को उससे बात करूंगा।”
“हैरानी है कि मवाली व्यापारियों से यूं शरेआम हफ्ता वसूल करते हैं!”
“करते हैं, भई। बहाना लगा देते हैं कि हफ्तावसूली नहीं, पार्टी के लिये चन्दा है।”
“कौन सी पार्टी के लिये?”
“किसी भी पोलिटिकल पार्टी का नाम ले देंगे।”
“ऐसा है तो रसीद दें। चैक से पेमेंट लें।”
“अच्छा प्वायन्ट है। मैं बोलूंगा ये बात।”
“आप कहें तो अपने अखबार में इस बाबत मैं कुछ छापूं?”
“अरे, नहीं, भई। इतना बड़ा मुद्दा नहीं है ये।”
“वो आदमी बहुत खतरनाक था! उसके तेवर बहुत खतरनाक थे!”
“लगता था ऐसा। बिल्ड पहलवानों जैसा था न!”
“लेकिन...”
“अरे, छोड़ो वो किस्सा। और बोलो, और क्या कहना चाहते थे तुम?”
“कुछ नहीं।”—सुनील उठ खड़ा हुआ—“आप से फिर मुलाकात का फख्र हासिल हुआ, बस यही काफी है। इजाजत चाहता हूं। नमस्ते।”
सुनील पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा।
इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल अपने आफिस में मौजूद था।
“आओ, रिपोर्टर साहब”—वो सहज भाव से बोला—“कैसे आये?”
“बस, आपके दर्शन पाने चला आया।”—सुनील लहजे में मिठास घोलता बोला।
“विराजो।”
“शुक्रिया।”—सुनील एक विजिटर्स चेयर पर ढ़ेर हुआ—“कियारा सोबती को फिर थाम लिया?”
“मालूम पड़ गया?”
“पड़ना ही था। पुलिस ने ही खबर रिलीज की।”
“आई सी।”
“नया कुछ मालूम पड़ गया उसके खिलाफ?”
“नहीं।”
“तो?”
“पिछली बार उससे बहुत मामूली पूछताछ हुई थी। तब हम केस से ताल्लुक रखते बाकी किरदारों से पूरी तरह से वाकिफ नहीं थे। तमाम वाकफियत जमा हुई, हमने उस पर तबसरा किया तो हमें बतौर कातिल सब से सम्भावित कैण्डीडेट वो लड़की ही लगी इसलिये उसे फिर हिरासत में लिया ताकि इस बार उस से सख्ती से पूछताछ की जा सके।”
“उसे कातिल मान कर?”
“हां।”
“फिर भी मकतूल के पार्टनर प्रहलाद राज के पीछे पड़े हैं।”
प्रभूदयाल की भवें उठीं।
“उसे नोटिस जारी कर दिया कि शाम तक बके कि कत्ल के वक्त के आसपास वो कहां था वर्ना उसका अंजाम बुरा होगा!”
“उसके पास भी पहुंच गये!”
“अब है तो ऐसा ही!”
“कहां कहां नहीं पहुंच जाते हो!”
“धक्के खाते फिरने का मेरा सालों का एक्सपीरियेंस जो ठहरा!”
प्रभूदयाल हँसा।
“जवाब देने के लिये उसे टाइम क्यों दे दिया? इतने टाइम में तो वो आराम से अपने लिये कोई एलीबाई गढ़ लेगा।”
“हम यही चाहते हैं कि वो ऐसा करे। इसीलिये उसे टाइम दिया जिस में वो खुद को आजाद समझ कर अपने डिफेंस में कोई झूठी गवाही खड़ी करने की कोशिश करे। उसकी हर मूवमेंट पर हमारी नजर है।”
“ओह! लेकिन जब वो दुहाई देता है कि किसी की इज्जत का सवाल है...”
“इसीलिये तो अपने डिफेंस में कोई आल्टरनेट गवाह खड़ा करने की कोशिश करेगा वर्ना आसान काम तो उसके लिये यही है कि बताये कि कत्ल के वक्त के आसपास वो किसके साथ था! पुलिस ऐसे गवाह के सीक्रेट को सीक्रेट रखती है, उसे आम नहीं करती।”
“उसका किसी औरत से अवैध सम्बन्ध है?”
“हिन्ट तो ये ही देता है! वो औरत शादीशुदा हो सकती है इसलिये जुबान बिल्कुल ही नहीं खोलना चाहता।”
“आप को इस बात पर ऐतबार है?”
“क्या मतलब?”
“क्या पता ऐसा कोई अफेयर उसका न हो, वो ऐसे किसी अफेयर की इस लिये ओट लेने की कोशिश कर रहा हो क्योंकि कत्ल के वक्त की उसके पास कोई एलीबाई नहीं!”
“कुछ भी हो सकता है, रिपोर्टर साहब। लेकिन शाम तक की उसे छूट है। उसके बाद जो हकीकत है‚ उसे हम उसके हलक में बांह डाल के निकलवा लेंगे।”
“ ‘औरत की इज्जत का सवाल हैं’ वाली उसकी कहानी झूठी निकली तो?”
“तो वो कातिल।”
“कियारा सोबती भी कातिल!”
“तब उसे छोड़ देंगे।”
“मैं प्रहलाद राज की एक गर्लफ्रेंड से वाकिफ हूं। उससे भी तो कहलवाया जा सकता है कि कत्ल के वक्त के आसपास प्रहलाद राज उसके साथ था या नहीं!”
“कहलवाओ।”
“मैं?”
“क्या हर्ज है? कुछ अच्छा अच्छा कहलवा सको तो आना। शाबाशी देंगे।”
“इस बाबत आप खुद कुछ करते तो...”
“शाम तक हमें कुछ करने की जरूरत नहीं है। हमारी प्रहलाद राज से शाम वाली मीटिंग हो ले, उसके बाद ही हम अपना अगला कोई कदम निर्धारित करेंगे।”
“शाम को कब?”
“सात बजे। तुम्हारी भी हाजिरी है।”
“जी।”
“शाम को हर उस शख्स की यहां मेरे आफिस में हाजिरी है जिसका प्रत्यक्ष या परोक्ष में इस कत्ल के केस से कोई रिश्ता है। शाम को आना। वैसे ऐसी मीटिंगों में घुसपैठ की तिगड़में लगाते रहते हो, इस बार मैं खुद तुम्हें न्योत रहा हूं।”
“क्यों?”
“क्योंकि लाश तुमने बरामद की थी। क्योंकि और कई जनों की तरह तुम भी मौकायवारदात के विजीटर थे।”
“कमाल है! मैं यहां न आता तो कैसे न्योतते?”
“तो पकड़ मंगवाते।”
“तौबा!”—सुनील ने नकली झुरझुरी ली।
प्रभूदयाल हँसा।
“मैं कियारा से मिल सकता हूं?”—सुनील बोला।
“क्या?”
“छोटी सी मुलाकात! बहुत छोटी सी!”
“क्यों करना चाहते हो?”
“कोई खास वजह नहीं। भली लड़की है। मुझे पसन्द है। उसे आश्वासन देना चाहता हूं कि इंस्पेक्टर प्रभूदयाल के होते उसके साथ नाजायज कुछ नहीं होगा।”
“मेरे किए किसी के साथ भी नाजायज कुछ नहीं होता, अगरचे कि वो बेगुनाह हो।”
“तो फिर?”
“इजाजत मिल सकती है तुम्हें। लेकिन एक शर्त पर।”
“कैसी शर्त?”
“मुलाकात बगल के कमरे में होगी।”
“ताकि आप सब कुछ सुन सकें? मानीटर कर सकें?”
“हां।”
“है तो ये नाजायज बात...”
“तो चलते बनो।”
“...लेकिन मुझे मंजूर है।”
बगल का कमरा सुनील का देखा भाला था। उसे मालूम था वहां खुफिया माइक्रोफोन फिक्स थे जिनके सदके प्रभूदयाल अपने आफिस में बैठा वहां होता हर वार्तालाप सुन सकता था।
अवसाद की प्रतिमूर्ति बनी कियारा सोबती एक गोल मेज के पार उसके सामने बैठी हुई थी।
“चियर अप।”—सुनील बोला—“अगर तुम बेगुनाह हो तो तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा।”
वो सिर झुकाये खामोश बैठी रही।
“हो न!”
उसने झटके से सिर उठाया।
“आखिरी बार पूछ रहा हूं। खुदा का वास्ता है तुम्हें। बेगुनाह हो न? तुमने कत्ल नहीं किया न?”
“मैंने कत्ल नहीं किया।”—वो कातर भाव से बोली।
“यकीन कर लूं मैं तुम्हारा?”
“प्लीज। तुम मेरी तरफ हो। तुम्हारे से झूठ बोलने की मेरे पास कोई वजह नहीं।”
“गुड। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूं कि पुलिस के पास तुम्हारे खिलाफ कोई ठोस केस नहीं है। ठोस, ओपन एण्ड शट‚ केस वो होता है जिस में पुलिस के पास कत्ल का कोई मजबूत चश्मदीद गवाह हो। तुम्हारे खिलाफ पुलिस के पास सिर्फ कुछ परिस्थितिजन्य सबूत है जिनकी पुलिस की तर्जुमानी बतौर कातिल तुम्हारी तरफ उंगली उठाती है, कोई चश्मदीद गवाह तुम्हारे खिलाफ उन के पास नहीं है।”
“वो... वो तुषार अबरोल, जो कहता है कि उसने कत्ल होता देखा, कातिल को देखा!”
“कातिल की बाबत कोई दावा नहीं करता, वो सिर्फ झोल झाल सा एक शक जाहिर करता है कि कत्ल करते शायद—रिपीट, शायद—उसने जिसे देखा था, वो तुम थीं। कोई भी काबिल डिफेंस अटर्नी अदालत में उसकी इस गवाही की धज्जियां उड़ा के दिखा देगा।”
“तो... तो मुझे गिरफ्तार क्यों किया गया?”
“तुम्हारा मनोबल तोड़ने के लिये। गिरफ्तारी, वो भी कत्ल के केस में, एक बड़ा वाकया होता है जिससे बड़े बड़े हिल जाते हैं, तुम तो एक मासूम, नादान लड़की हो। वो अपने कुछ पुलिसिया पैंतरे तुम्हारे पास आजमायेंगे...”
“मेरे खयाल से एक तो आजमा चुके हैं।”
“अच्छा! वो कैसे?”
“मुझे यहां ला कर लॉक-अप में बन्द कर दिया गया था। दो घन्टे बाद दो पुलिस वालों के साथ एक आदमी लॉक-अप के जंगले पर आया था, उसने मुझे थोड़ी देर गौर से देखा था और फिर सहमति में गर्दन हिलाने लगा था। दोनों पुलिस वाले भी संजीदगी से वैसे ही गर्दन हिलाने लगे थे और फिर उस आदमी को लेकर वहां से चले गये थे।”
“उस आदमी ने तुम्हें देखा और गर्दन हिलाने लगा?”
“हां।”
“मुंह से कुछ न बोला?”
“न!”
“ऐसा न हुआ कि पहले तुम्हें देर तक गौर से देखा, जो देखा उस पर गम्भीर मनन किया, उस बाबत पुलिस वालों से भी कोई खुसर पुसर की और फिर गर्दन हिलाई?”
“न।”
“पुलिसिये भी कुछ न बोले?”
“न। वो भी खामोश रहे। मतलब क्या हुआ?”
“कोई मतलब न हुआ। वो तुम्हें नर्वस करने का, विचलित करने का स्टैण्डर्ड पुलिसिया स्टण्ट था जिस से तुम्हें लगता कि तुम्हारे खिलाफ कोई मजबूत चश्मदीद गवाह पुलिस के हत्थे चढ़ गया था जिसकी गवाही से अब तुम्हारा मुकम्मल पुलन्दा बंधना लाजमी था। अपने केस को फुंदने लगाने के लिये पुलिसिये ऐसी हरकतें अकसर करते हैं।”
“ओह?”
“कोई बड़ी बात नहीं कि शाम तक तुम्हारे जैसी एक और बन्दिनी तुम्हारे साथ लॉक-अप में बन्द की जाये जो सुबक सुबक कर तुम्हें अपनी राम कहानी सुनाने लगे।”
“कैसी राम कहानी?”
“ऐसी कि उस पर अपने पति के खून का इलजाम था। बड़े राजदाराना ढ़ण्ग से वो तुम्हें वारदात को ग्राफिक डिटेल्स में सुनाने लगेगी कि कैसे हालात ऐसे बन गये थे कि वो अपने पति का खून कर बैठी थी। फिर वो तुम से पूछेगी कि तुमने क्या किया था और प्रोत्साहित करेगी कि तुम भी अपनी राम कहानी उसे सुनाओ। तुम उसके आगे—एकाएक बन गये हमदर्द के आगे—मुंह फाड़ बैठोगी! बाद में पता लगेगा कि वो औरत, जो लॉक-अप में प्लांट की गयी थी, असल में पुलिस आफिसर थी और अब तुम्हारे कनफैशन की गवाह थी।”
“तौबा!”
“पुलिस ऐसे ही चोर बहकाती है। ऐसे और भी पैंतरे हैं जो वो उस मुलजिम पर आजमाती है जो अपनी जुबान खोलने को तैयार नहीं होता।”
“ओह!”
“तो ये बात फाइनल है कि तुमने कत्ल नहीं किया?”
“हां।”
“डू आई हैव युअर सालम वर्ड?”
“यस। बट...”
“नो! नो बट्स नाओ।”
“मैं कुछ कहना चाहती हूं।”
“अपने पर आयद इलजाम के बारे में?”
“नहीं किसी और बात के बारे में। यूं समझो कि मैं कोई गुनाह कुबूल करना चाहती हूं।”
“मैं नहीं सुनना चाहता।”
“क्या बोला?”
“जो बात, कोई कथित गुनाह तुम्हारे मौजूदा हालात से ताल्लुक नहीं रखता, उसकी बाबत मैं नहीं सुनना चाहता।”
“लेकिन...”
“नो लेकिन। मेरी बात को समझो। जो कहने लायक था, वो तुम ये कह के कह चुकी हो कि तुमने कत्ल नहीं किया। मेरे लिये इतना काफी है। आई रिपीट, जो बात, जो वाकया तुम्हारे मौजूदा हालात से, तुम्हारी मौजूदा दुश्वारी से ताल्लुक नहीं रखता, इस घड़ी उसकी बाबत मैं नहीं सुनना चाहता।”
“कमाल है!”
“कोई कमाल नहीं। तुम बात को यूं समझो कि जो कुछ मैं कह रहा हूं, तुम्हारी इस बात पर यकीन करके कह रहा हूं कि तुम बेगुनाह हो। बेगुनाह की बेगुनाही को साबित करना मेरा जुनून है जिसके कि मैं इस घड़ी हवाले हूं। लेकिन तुम्हारे किसी गुनाह में, मौजूदा से जुदा किसी गुनाह में, शिरकत करने का मेरा कोई इरादा नहीं। मैं कमिटिड जर्नलिस्ट ही नहीं, कमिटिड सिटीजन भी हूं। तुम मेरे सामने अपना कोई गुनाह कुबूल करती हो और मैं खामोश रहता हूं वो इसका मतलब है कि तुम्हारे गुनाह में मैं खुद को शरीक कर रहा हूं जो कि मुझे मंजूर नहीं, मुझे कुबूल नहीं। तुम समझीं मेरी बात?”
उसने इंकार में सिर हिलाया।
“तुम कहो कि उस कॉनमैन का कत्ल तुमने किया है लेकिन मैं तुम्हें बेगुनाह साबित कर के दिखाऊं तो मैं कहूंगा, जयहिन्द, चलता हूं। अब समझीं?”
उसने हिचकिचाते हुए हामी भरी।
“गुड।”—सुनील उठ खड़ा हुआ—“अब वक्ती जहमत को बहादुर लड़की बन के बर्दाश्त करो और समझो कि तुम्हें अपने सामने जो नाउम्मीदी का अन्धेरा छाया दिखाई देता है, वो बहुत जल्द छंट जाने वाला है और उम्मीद की किरणें तुम्हें सराबोर करने वाली हैं। आज का अन्धेरा ही कल की रौशनी का रास्ता खोलता है। इंसान पर कोई अनचीन्हा संकट आता है तो समझो भगवान उसका इम्तिहान लेता है, जिस में उसने पास हो के दिखाना है। दिखा सकोगी?”
“हां।”
“दिखाओगी?”
“हां।”
“गॉड ब्लैस यू।”
���
शाम सात बजे पुलिस हैडक्वार्टर्स में इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल के आफिस में हर वो शख्स मौजूद था, मंगलवार रात होटल स्टारलाइट के सुइट नम्बर 506 में हुए कत्ल से प्रत्यक्ष या परोक्ष में जिसका कोई रिश्ता था। कियारा सोबती मर्डर सस्पैक्ट थी और तोरल मेहता और काव्या कपूर के साथ इसलिये भी वहां मौजूद थी क्योंकि वो तीनों मकतूल की कामयाब ठगी का शिकार हो चुकी थीं—कत्ल के वक्त के आसपास की तीनों की सुइट नम्बर 506 में हाजिरी स्थापित थी—और देवीना महाजन शिकार होने से बाल बाल बची थी। तुषार अबरोल वहां इसलिये मौजूद था क्योंकि मौकायवारदात से नैक्स्ट डोर उसका स्थायी मुकाम था और उसका दावा था कि उसने कत्ल होते देखा था और कातिल की औनी पौनी शिनाख्त भी की थी। प्रहलाद राज पुलिस के प्रति अपने असहिष्णुतापूर्ण व्यवहार की वजह से वहां मौजूद था और क्योंकि वो अभी भी बताने को तैयार नहीं था कि कत्ल के वक्त के आस पास वो कहां था इसलिये बतौर मर्डर सस्पैक्ट अब पुलिस के राडार पर था। जमा, वो मकतूल का पार्टनर था और उसके हर इन एण्ड आउट को बेहतर तरीके से जानता था।
और सुनील था जो मर्डर सस्पैक्ट भले ही नहीं था लेकिन मौकायवारदात का उस रोज का विजीटर बराबर था और, बकौल प्रभूदयाल, उसकी टांग और भी कई जगह फंसी दिखाई देती थी।
“लेडीज एण्ड जन्टलमैन”—प्रभूदयाल सुसंयत स्वर में बोला—“अब ये निर्विवाद रूप से स्थापित हो चुका है कि मकतूल एक कॉनमैन था और बहुत कामयाबी से इन्टरनैट को अपनी कामयाबी का जरिया बनाता था और अपनी गुड लुक्स को और अपनी मैग्नेटिक पर्सनैलिटी को बहुत कामयाबी से कैश करता था। उसके अंशुल खुराना, आदित्य खन्ना, आकाश खोसला जैसे कई नाम थे जबकि उसका असली नाम अविनाश खत्री था। वो अपने आप को यूएसए से आया बताता था जहां कि वो आठ साल से स्थापित था, होटल में मुम्बई से पहुंचे गैस्ट के तौर पर रजिस्टर्ड था जब कि असल में वो एक लोकल बाशिन्दा था जो यहां सुभाष नगर में अपनी बीवी और दो बच्चों के साथ रहता था और विक्रमपुरे की म्यूनीसिपल मार्केट में उसका बिजनेस आफिस था जहां से वो अपने पार्टनर”—उसने प्रहलाद राज की तरफ इशारा किया—“के साथ ठेकेदारी का छोटा मोटा बिजनेस कन्डक्ट करता था। जो मर्डर सस्पैक्ट्स हमारी नॉलेज में हैं, उनमें देवीना महाजन को शुमार नहीं किया जा सकता क्योंकि एक तो इन का दर्जा अभी फ्यूचर कॉनमैनशिप प्रॉस्पैक्ट का ही था, अभी ये मकतूल की स्टैण्डर्ड स्विंडलिंग की शिकार नहीं हुई थीं और दूसरे किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से ये स्थापित नहीं होता कि मंगलवार शाम किसी वक्त मौकायवारदात पर इन का फेरा लगा था...”
“अब होता है।”—सुनील दबे स्वर में बोला।
प्रभूदयाल ठिठका, उसने अप्रसन्न भाव से सुनील की तरफ देखा।
“क्या बोला?”—वो बोला।
“मंगलवार रात”—सुनील बोला—“होटल स्टारलाइट में इनका फेरा लगा था। होटल में भी और मौकायवारदात पर भी।”
“मौकायवारदात पर भी? उस रात ये रूम नम्बर 506 में भी गयी थीं?”
“जी हां। नौ चालीस पर। जब कि इन्होंने वहां रूम के आकूपेंट को मरा पड़ा देखा था और दहशत के हवाले ये उल्टे पांव वहां से लौट आयी थीं।”
“कौन कहता है?”
“ये खुद कहती हैं।”
“किसे कहती हैं?”
“मुझे। मुझे कहती हैं।”
“कब बोलीं ये ऐसा?”
“कल सुबह।”
“ये बात तुमने पुलिस को क्यों न बतायी?”
“मैं समझा था कि पुलिस पहले ही जान चुकी होगी।”
“नहीं जान चुकी थी।”
“अब आप के वक्तव्य से अहसास हुआ न, कि नहीं जान चुकी थी। तभी तो मुझे जरूरी लगा कि ये बात मुझे आप की जानकारी में लानी चाहिये थी और मैंने आप को टोकने की गुस्ताखी कर के ये बात आप की जानकारी के लिये कही।”
प्रभूदयाल ने अपलक सुनील की तरफ देखा, वो विचलित न हुआ तो प्रभूदयाल देवीना से मुखातिब हुआ—“आपने ये बात हमें क्यों न बताई?”
“मुझे दहशत थी”—देवीना नर्वस भाव से बोली—“कि इस बाबत मैंने मुंह खोला तो मेरा नाम भी कत्ल के साथ जुड़ जायेगा।”
“क्यों थीं आप होटल में?”
“मेरी मकतूल के साथ अप्वायन्टमेंट थी। रात सवा नौ बजे की। उसने मुझे लॉबी में मिलना था। मैंने बहुत देर इन्तजार किया, जब वो लॉबी में न पहुंचा तो उसका पता करने मैं उसके कमरे में गयी और मैंने उसे वहां मरा पड़ा पाया।”
देवीना के शरीर में स्पष्ट झुरझुरी थी।
“कब गयीं? क्या टाइम हुआ था तब?”
“नौ चालीस।”
“कितना अरसा वहां रुकीं?”
“रुकी ही नहीं। बस, गयी और लौटी।”
“इस बाबत खामोश रहने को किसने बोला आप को?”
“किसी ने नहीं।”
“किसी ने, मसलन इन रिपोर्टर साहब ने, पट्टी न पढ़ाई खामोश रहने की बाबत?”
“न!”
“जो किया, गलत किया आपने। जिस के साथ आपकी डेट थी, आपने उसे कत्ल हुआ पड़ा पाया तो आप को तभी ये बात होटल मैनेजमेंट की जानकारी में लानी चाहिए थी!”
“आई...आई एम सॉरी।”
“अब क्या सॉरी!”
वो खामोश रही, उसने बेचैनी से पहलू बदला।
“हमने आपकी यहां मौजूदगी इसलिये जरूरी समझी थी कि आप मकतूल की ठगी का ताजातरीन प्रॉस्पैक्ट थीं और इस वजह से हो सकता था कि आप हमें कोई ऐसी बात बतातीं जो कि मुजरिम तक पहुंचने की दिशा में हमें कोई मदद पहुंचा सकती। आप की बाबत जो बात अब उजागर हुई है, उसकी रू में तो अब आप भी मर्डर सस्पैक्ट हैं।”
“ओ, नो!”
“मैं आप की फिर खबर लूंगा।”—प्रभूदयाल शुष्क स्वर में बोला—“अभी मुझे अपनी बात कहने दीजिये।...सो लेडीज एण्ड जन्टलमैन, मकतूल के मुख्तलिफ नामों में ये भी एक गौरतलब बात है कि सबके इनीशियल्स—प्रथमाक्षर—ए. के. हैं। नकली नामों के चयन में ये एकरूपता भी साबित करती है कि मकतूल कितना शातिर मुजरिम था। सामान के तौर पर उसके साथ जो दो सूटकेस और एक बैग था, उस पर उसके इनीशियल्स ‘ए. के.’ एम्बौस्ड थे जो कि उसके असली नाम अविनाश खत्री के इनीशिल्स थे और वो सामान इतना कीमती था कि उसकी शानोशौकत ही उसके किसी सम्पन्न विदेशी मुल्क से आये होने की चुगली करती थी। ये इन्तजाम अपने फ्रॉड को प्रमाणिक बनाने के लिये उसने जानबूझ कर ही किया हो सकता था ताकि उसकी पर्सनैलिटी उसके फैंसी लगेज से मैच करती जान पड़ती और वो जब भी कोई नया नाम अख्तियार करता तो उसे लगेज न बदलना पड़ता, लगेज पर के इनीशियल्स न बदलने पड़ते।”
“इसलिये”—सुनील बोला—“नया नाम हर बार ऐसा कि इनीशियल्स ‘ए. के.’ ही रहते!”
“हां। इससे ये भी जाहिर होता है अपने ठगी के कारोबार में उसकी लम्बी प्लानिंग थी और वो अपनी ठगी की कामयाब स्कीम को अभी कई बार और दोहराना चाहता था।”
सुनील ने सहमति में सिर हिलाया।
“कातिल के खिलाफ हमें जो सबूत उपलब्ध हैं, उन में से एक तो वो नक्काशीदार हैंडल वाला चाकू है जो कि आलायकत्ल है और उस के फल पर लगे पेंट से हम जान चुके हैं कि वो चाकू कहां से आया और उसे मौकायवारदात पर कौन लाया! हमें मालूम हुआ है कि तोरल मेहता के पड़ोस में एक आर्टिस्ट रहता है जो कि अपने कैनवस पेंट करने के लिये ब्रश नहीं, चाकू इस्तेमाल करता है। चाकू के फल को वो ब्रश की जगह इस्तेमाल करता है और यूं अपनी कलाकृतियां उकेरता है। उसके पास ऐसे कई चाकू थे लेकिन उन की गिनती का कोई ट्रैक वो नहीं रखता था। तोरल मेहता ने अपने बयान में कबूल किया हैं कि उन चाकुओं में से एक उसने आर्टिस्ट के स्टूडियो में से खिसका लिया था और मंगलवार शाम को जब वो मकतूल से मुलाकात के लिये गयी थी तो ये वो एक चाकू अपनी हिफाजत के लिये अपने साथ ले कर गयी थी। चाकू का हैंडल नक्काशीदार होने की वजह से उस पर उंगलियों के स्पष्ट निशान बन पाना सम्भव नहीं था लेकिन वो निशान हमें एक दूसरी आइटम पर मिले थे। वो आइटम एक पीतल का भारी फूलदान था जो कि उस होटल के रूम्स का स्टैण्डर्ड इक्विपमेंट हैं। उस पर से फिंगरप्रिंट्स के दो स्पष्ट सैट—एक मर्दाना और एक जनाना—उठाये गये थे। मर्दाना प्रिंट्स पहले बने थे और जनाना उन को सुपरइम्पोज करते बाद में बने थे। मर्दाना प्रिंट्स खुद मकतूल के थे लेकिन जनाना प्रिंट्स की शिनाख्त अभी तक भी नहीं हो पायी है। हम नहीं जानते कि वो प्रिंट्स किसके हैं लेकिन बाखूबी जानते हैं कि किस के नहीं हैं। वो प्रिंट्स कियारा सोबती, तोरल मेहता और काव्य कपूर में से किसी के नहीं हैं...”
“टोकने के लिये माफी चाहता हूं, जनाब—सुनील बोला—“लेकिन आप तो कहते थे कि तोरल मेहता को अपने फिंगरप्रिंट्स का नमूना देना कबूल नहीं था?”
“ये अपना ये रवैया बरकरार नहीं रख पायी थीं। जब इन्हें ये समझाया गया था कि कैसे ऐसा करना खुद इनके हित में था तो इन्होंने खुशी से पुलिस को अपने फिंगरप्रिंट्स का नमूना ले लेने दिया था।”
“आई सी।”
“कोई और बात?”
“जी नहीं, शुक्रिया। दखलअन्दाजी के लिये माफी के साथ।”
“केस में”—प्रभूदयाल ने अपने आख्यान को आगे बढ़ाया—“हमारी भटकन के दौर में हालात फिर यूं बदलते हैं कि हमारी जानकारी में आता है कि, जैसा हमें बताया गया था कि, होटल के पांचवीं मंजिल के कमरा नम्बर ‘506’ के अलावा बाकी कमरे गैस्ट्स के हवाले नहीं थे, 505 नम्बर कमरा जो कि मकतूल के बाजू का था, आकूपाइड था और आकूपेंट कोई गैस्ट नहीं, होटल का एक असिस्टेंट मैनेजर तुषार अबरोल था।”
सब की निगाह तुषार अबरोल की तरफ घूमी।
“पढ़े लिखे, समझदार शख्स हैं”—प्रभूदयाल आगे बढ़ा—“फिर भी ये जनाब हमें तो कुछ नहीं बताते, बाजरिया सुनील धमाका करते हैं कि इन्होंने कातिल को देखा था...”
“मेरी मजबूरी थी।”—तुषार अबरोल होंठों में बुदबुदाया।
“हम आपकी मजबूरी के तरफदार नहीं।”—प्रभूदयाल शुष्क स्वर में बोला—“ये कत्ल का केस है जिसके बारे में अगर आप को कोई जानकारी थी तो आप का फर्ज बनता था कि आप फौरन उसे पुलिस की जानकारी में लाते और यूं साबित करके दिखाते कि आप एक जिम्मेदार नागरिक थे। दो दिन आपने ये जो जानकारी दबाये रखी, आखिर उसका जिक्र भी किया तो किससे? पुलिस से नहीं, सुनील से जो कि मीडिया परसन है, ‘ब्लास्ट’ का चीफ रिपोर्टर है।”
“क्योंकि सुनील ने ही मुझे अप्रोच किया।”
“ये न अप्रोच करता तो आप अभी भी इस बाबत खामोश होते?”
जवाब देने की जगह उसने बेचैनी से पहलू बदला।
“पुलिस होटल में थी, आप होटल में थे, फौरन क्यों न बोले इस बाबत?”
“म-मैंने पहले ही अर्ज किया कि मेरी प्राब्लम थी। जिन हालात में मैं वो नजारा कर सका था, उन की खबर अगर मैंनेजमेंट को लगती तो मेरी नौकरी जा सकती थी।”
“आपने अपने निजी हित की निगाह में सर्वहित को दरकिनार किया!”
“मेरी जगह कोई दूसरा भी होता तो यही करता। इन्स्पेक्टर साहब, पहले घर में चिराग जलाया जाता है, फिर मस्जिद की फिक्र की जाती है।”
“आपकी मिसाल कुबूल है मुझे, लेकिन फिर आप चुप भी तो न रहे!”
“हालात की रवानगी में मैं मुंह फाड़ बैठा था। सुनील ने अपने सवालों की बौछार से मुझे गड़बड़ा दिया था और ऐसा घेरा था कि यूं समझिये कि मर्जी न होते हुए भी वो बात मेरे मुंह से निकल गयी थी।”
“मर्जी न होते हुए नहीं निकल गयी थी”—सुनील धीरे से बोला—“आपने बहुत सोच समझ कर वो बात आगे सरकाई थी।”
“क-क्या बोला?”
“आप ने पूरी तरह से प्लान कर के वो बात आगे सरकाई थी।”
“क-क्या...क्या कहना चाहते हो?”
“ये कि जो आप कहते हैं आपने देखा था, आपने नहीं देखा था।”
तुषार अबरोल गड़बड़ाया।
प्रभूदयाल ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला लेकिन फिर कुछ सोच कर जबड़े भींच लिये।
“काव्या कपूर आप की चचेरी बहन है और मर्डर सस्पैक्ट है।”—सुनील पूर्ववत् सहज स्वर में बोला—“वो कथा आपने चचेरी बहन की खातिर की ताकि उस पर से फोकस हट जाता और शिद्दत से कियारा सोबती पर शिफ्ट हो जाता। बात बेबुनियाद थी इसलिए आप ने खम ठोक कर, दो टूक भी ये न कहा कि आपने कियारा को मकतूल पर चाकू से वार करते देखा था। आपने बात को घुमा फिरा कर, गोल मोल कहा ताकि बाद में किसी तरीके से अगर ये स्थापित हो जाता कि कियारा कातिल नहीं थी तो आप कह पाते कि आपने कभी गारन्टी से नहीं कहा था कि आपने कियारा को देखा था। इसी वजह से आपने बात पुलिस को न कही, मेरे को सरकायी। ऐसा कुछ कहने के लिये मैं ने आप पर कोई दबाव नहीं डाला था—दबाब डालने लायक कोई बुनियाद ही नहीं थी मेरे पास—बातों बातों में आप ही ने ये बात सरकाई थी कि आप ने कत्ल होता देखा था, कातिल को देखा था। बात सीधे पुलिस को न कहने की आपको ये एडवांटेज थी कि बाद में आप कह सकते थे कि आपने तो कुछ और कहा था, सुनील ने कुछ और सुना था। और इस ऑनर के लिये कियारा का नाम आपने इसलिये चुना था क्योंकि बाजरिया मीडिया आप को मालूम था कि कियारा को कातिल होने के शक में पुलिस ने हिरासत में लिया था। गुलेगुलजार, ये खुशी की बात है कि तुमने चचेरी बहन के लिये जिम्मेदारी दिखाई, बावक्तेजरूरत उसका सगा बन के दिखाया लेकिन इस कोशिश में तुमने एक बेगुनाह लड़की को अपना निशाना बनाया, इसे शर्मनाक ही कहा जा सकता है, लानत से ही नवाजा जा सकता है। इन्स्पेक्टर साहब, मैं पुरजोर अल्फाज़ में कहता हूं कि इन्होंने झूठ बोला, बहन की खातिर झूठ बोला कि इन्होंने कत्ल होते देखा था और कातिल इन्हें कियारा जैसी लगी थी। इन्होंने झूठ बोला था, ये बात मैं इसलिये यकीनी तौर पर कह सकता हूं क्योंकि मुझे मालूम है कि कियारा कातिल नहीं है।”
“कैसे मालूम है?”—तुषार बोला।
“बस, है मालूम। तुम अपनी बहन की हिमायत में बोल सकते हो तो मैं भी अपनी बहन की हिमायत में बोल सकता हूं।”
कियारा द्रवित दिखाई देने लगी।
“मेरी राय में”—सुनील बोला—“ये मशगला फिलहाल मुल्तवी किया जाना चाहिये और इन्स्पेक्टर साहब को अपनी बात मुकम्मल करने देना चाहिये जो फूलदान की बाबत कह रहे थे कि उस पर से उठाये गये जनाना उंगलियों के निशान कियारा, तोरल या काव्या में से किसी के नहीं थे। इन्स्पेक्टर साहब, क्या इन तीन देवियों के फिंगरप्रिंट्स हासिल कर के बाकायदा इस बात की तसदीक की गयी थी?”
“हां।”—प्रभूदयाल बोला—“तीनों के फिंगरप्रिंट्स को उपलब्ध फिंगरप्रिंटस से कम्पेयर किया गया था तो वो मिलते नहीं पाये गये थे।”
“किसी ने फिंगरप्रिंट्स देने से हुज्जत की थी?”
“तोरल ने की थी लेकिन बाद में हुज्जत छोड़ दी थी।”
“कियारा ने?”
“नहीं!”
“फिंगरप्रिंट्स तीनों के क्यों, चारों के क्यों नहीं?”
“क्या बोला?”
“ये ट्रीटमेंट देवीना महाजन के फिंगरप्रिंट्स को क्यों न दिया गया?”
“वजह तुम्हें मालूम है। किसी से भी बेहतर तुम्हें मालूम है। पहले ये बात हमारी जानकारी में नहीं थी कि देवीना का भी फेरा मौकायवारदात पर लगा था।”
“अब तो आ गयी जानकारी में!”
“हां। लेकिन इसके पास कत्ल का कोई उद्देश्य नहीं। इस के साथ कोई ठगी नहीं हुई।”
“वो जुदा मसला है। लेकिन पुलिस की तफ्तीश के दायरे में तो ये आती है न! अब तो खासतौर से आती हैं न, कि मंगलवार रात को कत्ल के वक्त के आसपास ये न सिर्फ होटल स्टारलाइट में थी, उसके रूम नम्बर 506 में—जो कि मौकायवारदात था—भी इसका फेरा लगा था। कैसे न कैसे ये पुलिस के राडार पर हैं वर्ना ये यहां न होती। फिर पुलिस इनवैस्टिगेशन की रूटीन के तौर पर चैक अप का वहीं ट्रीटमेंट इसे भी तो मिलना चाहिये था जो कि बाकियों को मिला!”
“ऐसे तो तुम कहोगे कि तुषार अबरोल को भी मिलना चाहिये था! प्रहलाद राज को भी मिलना चाहिये था! कम्पैरिजन के लिये हमें इनके भी फिंगरप्रिंट्स लेने चाहिये थे!”
“मैं आगे यही करने वाला था।”
“तुम भूल रहे हो कि फिंगरप्रिंट्स का अनचीन्हा सैट जनाना है, तुषार अबरोल, प्रहलाद राज मर्द हैं।”
“आल दि सेम अनचीन्हे प्रिंट्स की शिनाख्त के लिये मैं समझता हूं कि पुलिस को हर उस शख्स के फिंगरप्रिंट्स हासिल करने चाहिये थे जो कि केस के सन्दर्भ में पुलिस की जानकारी में था।”
“ये वाहियात बात है।”
“ये प्रोसीजरल बात है। पुलिस आलवेज कवर्स ए लॉट आफ टैरीटेरी इन ए मर्डर केस। वाई शॉर्टन इट इन प्रेज़ेंट केस, सर?”
प्रभूदयाल ने उस बात पर विचार किया।
“दिस विल वी ए फ्यूटाइल एक्सरसाइज।”—फिर बोला—“वक्त जाया करने वाली बात है लेकिन अतिखुराफाती रिपोर्टर साहब की तसल्ली के लिये मैं वक्त जाया करने के लिये तैयार हूं। मैडम”—वो देवीना की तरफ घूमा—“आप को अपने फिंगरप्रिंट्स का नमूना देने से कोई एतराज है?”
“मुझे कोई ऐतराज नहीं।”—देवीना निर्भीक भाव से बोली।
उसने तुषार अबरोल की तरफ देखा।
“एतराज तो मुझे भी नहीं”—तुषार हिचकिचाता-सा बोला—“लेकिन...ओके! ऐज़ यू विश।”
प्रभूदयाल की निगाह प्रहलाद राज पर आ कर टिकी।
“मैं ये जरूरी नहीं समझता।”—वो उखड़े लहजे से बोला।
“क्या!”
“कोई काला चोर कुछ भी कह दे आप उस पर अमल करने लग जायेंगे?”
“हर्ज क्या है?”
“सवाल हर्ज का नहीं, जरूरत का है। जो काम जरूरी नहीं, उसके पीछे पड़ने का क्या मतलब हुआ भला?”
“ये आप हमें सिखायेंगे कि मर्डर केस की इनवैस्टिगेशन में कौन सा काम जरूरी है, कौन सा काम जरूरी नहीं है?”
“मैं कुछ नहीं जानता। मेरा कत्ल से दूर दराज का कोई रिश्ता नहीं। मौकायवारदात पर जाना तो दूर की बात है, उस शाम मैं तो होटल के करीब भी नहीं फटका था। दूसरे, मेरे पास कत्ल की कोई वजह नहीं, कोई मोटिव नहीं। तीसरे, ये न भूलें कि अभी आप खुद कह के हटे हैं कि जिन फिंगरप्रिंट्स की शिनाख्त नहीं हो पायी है, वो जनाना हैं। तो फिर...”
“बहस अच्छी कर लेते हैं आप लेकिन इस वक्त मैं बहस के मूड में नहीं हूं। मैं बहुत खपा हुआ बन्दा हूं इसलिये बहसबाजी में मैं और नहीं खपना चाहता। आप शुरू से मेरे को खपा रहे हैं। जब आप से सवाल किया गया था कि कत्ल के वक्त के आसपास आप कहां थे तो तब भी आप इस सिम्पल सवाल का जवाब देने को तैयार नहीं थे, दुहाई देने लगे थे कि किसी की इज्जत का सवाल था, आप उस बाबत जुबान नहीं खोल सकते थे। तब मैंने आप का लिहाज किया था और आप की बात कबूल कर ली थी और आप को जाने दिया था। लेकिन उस वाकये की रिपीट परफारमेंस अब मुमकिन न होगी। आप हर बार ही पुलिस को मिजाज दिखा कर नहीं बच सकते। आप के फिंगरप्रिंट्स जरूरी हैं या नहीं हैं, केस में उनकी कोई अहमियत है या नहीं है, ये पुलिस देखेगी। आप सीधा जवाब दीजिये, फिंगरप्रिंट्स देते हैं या नहीं?”
“नहीं।”—वो दृढ़ता से बोला—“मैं इसकी जरूरत नहीं समझता।”
“ये बात आप ये जानते बूझते कह रहे हैं कि कहां बैठे हुए हैं?”
“लेकिन जब मैं कह रहा हूं कि...”
“आप देखना चाहते हैं कि पुलिस अपनी आयी पर आ जाये तो क्या करती है?”
“आप तो...आप तो मुझे...धमका रहे हैं?”
“नहीं, धमका नहीं रहा, उस अंजाम से आप को वाकिफ करा रहा हूं जो इंकार की सूरत में अभी आप का होगा।”
आप मेरे साथ कोई जोर जबरदस्ती करेंगे तो पछतायेंगे। मैं एक इज्जतदार शहरी हूं...”
“और हम क्या हैं? गुण्डे बदमाश! मवाली!”
“अरे, राज साहब”—सुनील मीठे स्वर में बोला—“क्यों जरा सी बात का बतंगड़ बनाते हो...”
“तुम चुप रहो। तुम्हारा इन बातों से कोई मतलब नहीं।”
“अच्छा, भई।”—सुनील गहरी सांस लेता खामोश हो गया।
“इधर मेरी तरफ देखिये।”—प्रभूदयाल सख्ती से बोला।
प्रहलाद राज ने सप्रयास इन्स्पेक्टर की तरफ देखा।
“आप जितना फिंगरप्रिंट्स देने से इंकार करेंगे, हमारा शक उतना ही बढ़ेगा। कोई वजह न होने पर भी बढ़ेगा। आप चाहते हैं ऐसा हो?”
“नहीं चाहता।”—प्रहलाद राज आवेश से बोला—“लेकिन आप मेरी मर्जी के खिलाफ मुझे किसी काम के लिये मजबूर नहीं कर सकते। इतना कायदा कानून मैं समझता हूं।”
“अच्छा! पक्का पता है आप को?”
“हां।”
“तो मैं शुरू करूं?”
उसके चेहरे पर असमंजस के भाव आये।
“बंसल!”—एकाएक प्रभूदयाल गला फाड़ कर चिल्लाया।
सब-इन्स्पेक्टर बंसल बगूले की तरह कमरे में दाखिल हुआ।
“इस आदमी को”—प्रभूदयाल ने मजबूत इशारा प्रहलाद राज की तरफ किया—“हथकड़ियां डालो।”
“सर!”
“दो चार आदमी और बुलाओ। हो सकता है ये तुम अकेले के काबू में न आये।”
प्रहलाद राज उछलकर खड़ा हुआ और दृढ़ता से दरवाजे की ओर बढ़ा।
बंसल दीवार बन के उसके सामने खड़ा हो गया।
प्रहलाद राज ने धक्का देकर उसके बाजू से गुजरने की कोशिश की तो बंसल ने गन निकाल ली।
प्रहलाद राज ठिठका, उसने थूक निगली, उसके गले की घन्टी जोर से उछली।
“वापिस जा कर बैठिये।”—बंसल रिवाल्वर की नाल से उसकी छाती पर दस्तक देता बोला—“मुझे गोली चलाने पर मजबूर न कीजिये।”
“तुम...ग-गोली नहीं चला सकते।”
“फरार होते शख्स पर चला सकता हूं। अख्तियार है मुझे? इसीलिये गन मिली हुई है।”
“मैं क्या मुजरिम हूं जो फरार होऊंगा?”
“तो क्या कर रहे थे?”
“मैं तो... मैं तो जा रहा था।”
“मुझे तो फरार होते लगे थे! बद्गुमानी हो जाती है कई बार। तो मैं चलाऊं गोली या...”
बंसल ने जानबूझ कर वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
प्रहलाद राज घूमा और भारी कदमों से चलता वापिस जा कर अपनी कुर्सी पर बैठ गया।
बंसल दरवाजे पर गया और एक हवलदार को बुला कर लाया जिसके पास कि हथकड़ी थी।
अगले क्षण प्रहलाद राज की कलाईयां हथकड़ियों से जकड़ी हुई थीं।
“ये धांधली है! जुल्म है!”—उसने आर्तनाद किया—“सुप्रीम कोर्ट से मुजरिम को हथकड़ी पहनाने पर मनाही है। मैं तो मुजरिम भी नहीं हूं!”
“बोलना कोर्ट को।”
“यानी आप इस धान्धली से बाज नहीं आयेंगे?”
“नहीं, भई, नहीं आऊंगा।”
“हद है! कैसे पुलिस आफिसर हैं आप?”
“अभी तक पता नहीं लगा कैसा पुलिस आफिसर हूं मैं!”
“लेकिन...”
“अब थोड़ी देर खामोश बैठिये।”—प्रभूदयाल एक क्षण ठिठका फिर बोला—“प्लीज।”
प्रहलाद राज ने होंठ भींच लिये, बैचैनी से पहलू बदलता वो बैठा रहा।
लैब से, जो कि वहां से ऊपरली मंजिल पर ही थी, फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट शकील अहमद को तलब किया, प्रभूदयाल के आदेशानुसार जो फूलदान से उठाये गये फिंगरप्रिंट्स की छाप को साथ ले कर आया। प्रहलाद राज के जबरन फिंगरप्रिंट्स लिये गये और फिर हथकड़ी निकाल दी गयी। बंसल हवलदार के साथ वहां से रुखसत हो गया। शकील अहमद ने वहीं बैठकर फिंगरप्रिंट्स के मिलान को अंजाम दिया।
आखिर उसने अपना मैग्नीफार्इंग ग्लास जेब में रखा, कागजात प्रभूदयाल के सामने सरकाये और निर्णायक भाव से बोला—“मिलते हैं।”
“क्या!”—प्रभूदयाल सकपकाया-सा बोला।
“हूबहू मिलते हैं। एक एक व्होर्ल, एक एक लूप, एक एक कर्व मिलता है।”
“शक की कोई गुंजाइश नहीं?”
“बिल्कुल नहीं।”
“जा सकते हो।”
शकील अहमद अभिवादन कर के विदा हो गया।
पीछे प्रभूदयाल मन्त्रमुग्ध सा कागजों को उलटता पलटता रहा।
“हैरान होने की कोई बात नहीं।”—सुनील धीरे से बोला—“सुपरइम्पोज्ड फिंगरप्रिंट्स को यहां इसलिये जनाना समझा गया क्योंकि हाथ कदरन छोटा था, संकरा था, उंगलियां पतली थीं, न कि कोई स्टैंडर्डाइजेशन कहती थी कि वो प्रिंट जनाना थे। इस आदमी को देखिये। इसका सारा वजूद ही जनाना है, फीचर्स, रंगत, कदकाठ सब जनाना है। इसके हाथ खास तौर से छोकरियों जैसे हैं। ये बाल तक लड़कियों जैसे लम्बे रखता है। मैंने जब से इसको, इसके हाथों को देखा था, तब से मेरे कान में घंटी बजती थी कि इसके जनाना आकार का कोई मानी होना चाहिए था।”
“ये कातिल!”—प्रभूदयाल के मुंह से निकला।
“और क्या! वर्ना ये बताये कि फूलदान पर इसकी उंगलियों के निशान कैसे आये!”
“कोई मुझे बोलने दे तो बताऊं न!”—प्रहलाद राज ने आर्तनाद किया।
“क्या कहना चाहते हो?”—प्रभूदयाल नम्र स्वर में बोला।
“वो फूलदान होटल के गैस्ट रूम्स के डेकोर का स्टैण्डर्ड इक्विपमेंट हैं। वहां हर कमरे में आर्टीफिशल फ्लावर्स वाला हूबहू वैसा एक एक फूलदान मौजूद है। पिछले हफ्ते दो तीन बार मेरा जाना वहां हुआ था जहां हर बार मैं किसी से उसके रूम में जाकर मिला था। अपनी ऐसी किसी विजिट के दौरान हो सकता है मैं ने उस कमरे के—माईन्ड इट, उस कमरे के, मौकायवारदात वाले कमरे में नहीं, सुईट 506 के नहीं—फूलदान को हैंडल किया हो और मुझे फंसाने की नीयत से किसी ने उस फूलदान को तब्दील कर दिया हो!”
“ऐसा हो सकता है।”—प्रभूदयाल ने स्वीकार किया—“लेकिन ऐसा तब कबूल किये जाने के काबिल माना जाता जब कि फूलदान पर सिर्फ...सिर्फ तुम्हारी उंगलियों के निशान पाये जाते। उसे, किसी दूसरे कमरे के फूलदान को, तुम्हारे से पहले मकतूल ने भी हैंडल किया होता, ये कैसे हो सकता है?...सोच समझ के जवाब देना। ये कहोगे कि उस दूसरे कमरे में मंगलवार से पहले कभी मकतूल भी तुम्हारे साथ था तो इसका मतलब होगा कि तुमने उसकी होटल में मौजूदगी की बाबत उसके कत्ल के बाद न जाना, तब न जाना जब कि कत्ल की खबर अखबारों में छपी बल्कि तुम हकीकत से पहले से वाकिफ थे। अगर पहले से वाकिफ थे तो इसका साफ मतलब ये हुआ कि तुम्हें मालूम था कि मकतूल, तुम्हारा बिजनेस पार्टनर, मुम्बई नहीं गया हुआ था, वो इसी शहर में होटल स्टारलाइट में मौजूद था। और अगर तुम्हें ये बात मालूम थी तो इसका आगे मतलब निकलता है कि तुम उसके कॉनगेम से भी वाकिफ थे। क्यों वाकिफ थे? क्योंकि उसमें शरीक थे। अब जवाब दो।”
उससे जवाब देते न बना। अब वो स्पष्ट बद्हवास दिखाई देने लगा।
“एक बात और भी है”—सुनील बोला—“जो इसके क्लेम को झुठलाती है। होटल में हर सुबह हाउसकीपिंग स्टाफ जब रूम सैटिंग के लिये निकलता है तो हर आइटम को कोलिन मार के क्लीन करता है। यानी हर फूलदान भी रोज चमकाया जाता है। अगर ये पिछले हफ्ते कभी होटल के किसी कमरे में गये थे और जाने अनजाने इन्होंने वहां फूलदान को हैंडल किया था तो इनके फिंगरप्रिंट्स मंगलवार तक, जबकि ये कहते हैं कि फूलदान तब्दील किये गये, बरकरार नहीं रह सकते थे। हाउसकीपिंग स्टाफ की रूटीन में अगले रोज उन का पुंछ जाना लाजमी था।”
प्रभूदयाल ने सहमति में सिर हिलाया।
प्रहलाद राज अब और बद्हवास दिखाई देने लगा।
“कत्ल की रात क्या हुआ होगा”—सुनील आगे बढ़ा—“उसका तसव्वुर करना अब कोई मुश्किल काम नहीं। कत्ल क्यों हुआ, ये जुदा मसला है जिसका जिक्र बाद में आयेगा लेकिन कत्ल के बाद क्या हुआ, वो अब स्पष्ट है। मकतूल के बैडरूम में एक कीमती सैंडलों का डिब्बा था जिस में से सैंडलें गायब थीं। मेरा दावा है कि वो सैंडलें इन्होंने पहन ली थीं।”
“खुद के जूते?”—प्रभूदयाल बोला।
“अभी एक आइटम इन्होंने और भी तो वहां से सरकाई थी! इन्होंने वार्डरोब में टंगा मकतूल का ओवरकोट भी अपने काबू में कर लिया था। इन्होंने हील और गोल्फ कैप के साथ वो कोट पहना था तो अपने जूते कोट की जेबों में डाल लिये थे। यूं कद में मात खाया ये शख्स काफी लम्बा लगने लगा था और सैंडलों और लम्बे बालों की वजह से जिस किसी ने भी इसकी तरफ निगाह डाली, इसे कोई शाहाना कद वाली लम्बी, छरहरी लड़की जाना। ये सुरक्षित होटल से बाहर निकल कर डोरमैन द्वारा बुलाई एक टैक्सी में बैठ गया। इसका रेजीडेंस विनायक नगर में है जो कि होटल स्टारलाइट से नौ-दस किलोमीटर के फासले पर है। इतना फासला ये सैंडलें और ओवरकोट पहने नहीं रह सकता था। ये पहले दोनों चीजों को कहीं फेंकता और फिर टैक्सी में सवार होता तो इसे अन्देशा रहता कि बहुत जल्द वो दोनों चीजें बरामद हो जातीं और फिर किसी को ये भी सूझ जाता कि वो किस इस्तेमाल में लायी गयी थीं! टैक्सी में बैठा उतार के फेंकता तो टैक्सी ड्राइवर उस की उस हरकत का गवाह बन जाता, वो हैरान होता कि कैसे औरत टैक्सी में सवार हुई थी और बीच रास्ते मर्द बन गयी थी। ये बात टैक्सी ड्राइवर कभी न भूलता और देर सबेर बतौर गवाह इनके खिलाफ जरूर आन खड़ा होता।”
“तो क्या किया इसने?”
“मैं वहीं पहुंच रहा हूं। होटल से सिर्फ डेढ़ किलोमीटर के फासले पर, केनिंग रोड पर इसकी माशूक रहती है जिस का नाम निधि सांगवान है। ये पहले माशूक के पास गया और सैंडलें और ओवरकोट इस हिदायत के साथ उसे सौंप दिया कि वो उन दोनों चीजों का बंडल बनाकर बंडल को हमेशा के लिये गायब कर दें। मसलन बंडल के साथ वजन बांधकर उसको समुद्र के हवाले कर दे। यहां औरतजात के एक्सपेंसिव फेमिनिन आइटम्स के शौक और लालच ने इस का काम बिगाड़ा। इसकी माशूक निधि सांगवान का सैंडलों पर दिल आ गया जो कि इटैलियन थीं, स्टिलेटो हील वाली थीं और बत्तीस हजार कीमत की थीं। उसने ओवरकोट तो शायद ठिकाने लगा दिया लेकिन सैंडलों को अपने इस्तेमाल के लिये छुपा के रख दिया। कल उस लड़की को मैंने वैसी सैंडलें पहने देखा था और उन की बाबत सवाल किया था तो उसने कहा था कि वो इटैलियन ब्रांड की असली सैंडलें नहीं थीं, फेक थीं, उसने अमेजन से आन लाइन मंगायी थीं और कीमत आठ हजार रुपये अदा की थी। ये बात यकीन में आने वाली नहीं थी क्योंकि अव्वल तो वो फेक नहीं थीं, फेक थीं तो अमेजन से हासिल की गयी नहीं हो सकती थीं। इतना बड़ा आन लाइन ब्रांड फेक आइटम्स बेचता हो, ये यकीन में आने वाली बात नहीं। प्रभू, उस लड़की का पता है फ्लैट नम्बर अट्ठारह, थर्ड फ्लोर, पंकज अर्पाटमेंट्स, केनिंग रोड। लड़की का नाम निधि सांगवान है जो कि इसकी माशूक है, जिसको इसने इस झांसे से अपने साथ अटकाया हुआ है कि वो अपनी बीवी को तलाक दे कर उस से शादी कर लेगा। पुलिस उस फ्लैट की तलाशी लेगी तो यकीनन सैंडलें वहां से बरामद होंगी। फिर ये नहीं हो सकता कि पुलिस उससे न कबुलवा ले कि उसको सौंपे गये ओवरकोट का उसने क्या किया था, वो मंगलवार रात सैंडलों के साथ कब उसे हासिल हुआ था, किस से हासिल हुआ था! ये सब हो जाने के बाद वो लड़की ही इस पॉकेट साइज के ताबूत में मजबूत कील होगी।”
प्रभूदयाल ने सहमति में सिर हिलाया।
“लेकिन”—फिर बोला—“कल और आज के बीच उसने सैंडलें भी गायब कर दी हुर्इं, ये सोचकर गायब कर दी हुर्इं कि वो तुम्हारे नोटिस में आ गयी थीं, तो?”
“तो भी वो उन के वक्ती पोजेशन की हामी से नहीं बच सकती। मैं चश्मदीद गवाह हूं कि ऐसी सैंडलें उसके पोजेशन में थीं। उसकी फ्लैटमेट डिम्पल सक्सेना चश्मदीद गवाह थी। उसे बताना होगा कि वो इटैलियन नहीं थीं, फेक थीं तो अब कहां गयीं!”
“बतायेगी।”—प्रभूदयाल पूरे विश्वास के साथ बोला—“गा गा के बतायेगी।”
“बढ़िया।”
“लेकिन कत्ल का उद्देश्य! इसके पास कत्ल का क्या उद्देश्य है?”
“इस बाबत यकीनी तौर पर कुछ कह पाने की स्थिति में मैं नहीं हूं लेकिन कुछ ऐसी बातें मेरे नोटिस में आयी हैं जिन से मैं उद्देश्य का अन्दाजा बाखूबी लगा सकता हूं।”
“क्या है अन्दाजा?”
“मेरे खयाल से कत्ल का उद्देश्य आर्थिक है। ऐसा मुझे स्पष्ट हिन्ट मिला है कि ये किन्हीं आर्थिक दुश्वारियों के हवाले हैं जिन का ये कोई फौरी हल न निकाल पाया तो इसके साथ बहुत बुरी बीतेगी, इतनी कि या हस्पताल में होगा या शमशान घाट पर। और इसकी आर्थिक दुश्वारियां क्या हैं, उसका भी एक रीजनेबल अन्दाजा मेरे को है।”
“क्या?”
“ये जुआ खेलता है। हार्स रेसिंग का रसिया है। बुकी के जरिये घोड़ों पर दांव लगाता है। अपनी जुबानी ये कहता है ये अमूमन जीतता है क्योंकि घोड़ों की टिप्स जो शख्स इसे सरकाता है, उसे इस काम का चालीस साल का तजुर्बा है लेकिन असलियत ये हैं कि रेस में इसका घोड़ा नहीं लगता, इस वास्ते ये बुकी का कर्जाई है और कर्जा इतना बढ़ गया है कि बुकी वसूली के लिये, वसूली नहीं तो मिजाजपुर्सी के लिये, इसके पास एनफोर्सर भेजता है। आज दोपहर में इसके आफिस में मैं इससे मिला था तब मेरी मौजूदगी में पहाड़ जैसा एक एनफोर्सर वहां पहुंचा था और इसे अपनी ताकत बताने लगा था। इसने ये कह कर उसे टाला था कि अभी वो क्लायन्ट के साथ—मेरे साथ, जो कि मैं नहीं था—था, शाम को जहां बात करनी थी, वहां बात करेगा। एनफोर्सर टल तो गया था लेकिन इशारे से इस के किसी बुरे अंजाम के लिये इसे साफ धमका के गया था, पूछ रहा था कि जब लौट के आये तो एम्बूलेंस के साथ आये या मुर्दागाड़ी के साथ आये। क्या मतलब हुआ इसका? ये मतलब हुआ कि पूछ रहा था कि लौट के आके हाथ पांव तोड़े या जान से ही मार डाले। उसके चले जाने के बाद मैंने उसकी बाबत इस से सवाल किया था तो इसने ये कह के बात को संवारने की कोशिश की थी कि इलाके का दादा था जो मार्केट के व्यापारियों से जबरन हफ्तावसूली करता था। प्रभू, वहां मार्केट से मामूली पूछताछ से पता चल जायेगा कि वहां ऐसी कोई हफ्तावसूली नही होती थी।”
प्रभूदयाल ने सहमति में सिर हिलाया।
“मैं सेफली ये अज्यूम कर सकता हूं”—सुनील आगे बढ़ा—“कि एनफोर्सर का मकतूल के पास आज का फेरा कोई पहला फेरा नहीं था, ऐसी कोई खतरनाक धमकी, जो उसे हस्पताल या श्मशान घाट पहुंचा सकती थी, उसे पहले भी मिल चुकी थी और ये जानता था कि अपनी उस दुश्वारी से निजात पाने के लिये इसका फौरन कुछ करना जरूरी था। इस का कहीं से कोई मोटी माली इमदाद पाना जरूरी था और इस सिलसिले में इसे कोई संकटमोचन दिखाई देता था तो वो इसका मरहूम पार्टनर था। ये कॉनगेम में भी पार्टनर था, इसका यही काफी सबूत है कि इसे मालूम था कि मुम्बई जाने को कह कर घर से निकला पार्टनर इसी शहर में होटल स्टारलाइट में मौजूद था। कोई फौरी माली हमदाद हासिल करने की नीयत से ही ये मंगलवार शाम को होटल स्टारलाइट में अपने पार्टनर के पास पहुंचा था।”
“मैं होटल स्टारलाइट के करीब भी नहीं फटका था।”—प्रहलाद राज आवेश से बोला।
“आप अभी चुप रहिये।”—प्रभूदयाल सख्ती से बोला।
“हे भगवान!”—प्रहलाद राज एकाएक विलाप-सा करता बोला—“ये क्या हो रहा है? मेरे पर इतना बड़ा इलजाम आ रहा है और मेरे को मुंह खोलने की भी मनाही है!”
“कोई मनाही नहीं। जब बोलने को बोला जाये, तब बोलना।”
“अरे, आप कैसे पुलिस वाले हैं कि इस खुराफाती शख्स की मनघडंत कहानियों को तो गौर से सुन रहे हैं और जो हकीकत है, उसको नजरअन्दाज कर रहे हैं। ”
“क्या हकीकत है?”—प्रभूदयाल बोला।
“आप लोगों ने खुद प्रैस को ब्रीफ किया है कि मरने वाला अपने कातिल का, अपने हमलावर का नाम ले कर मरा था। मंगला नाम लेकर मरा था। इस शख्स ने मुझे जनाना आदमी कहकर मेरी इन्सल्ट की। चलो, मैं हूं जनाना आदमी। इतने से मैं मंगला हो गया!”
“कत्ल को हुए चार दिन हो गये।”—सुनील बोला—“अभी तक किसी मंगला का वजूद सामने नहीं आया है।”
“कोई मंगला आप की जानकारी में नहीं आयी तो इसका ये मतलब तो नहीं कि मंगला है ही नहीं!”
“फिर ये भी पूर्णतया स्थापित नहीं कि मरने से पहले उसने जो एक लफ्ज बोला था, वो मंगला था।”
“क्यों स्थापित नहीं? जब पुलिस कहती है...”
“पुलिस वही कहती है जो उसे बताया जाता है। मकतूल की मौत के वक्त पुलिस उसके सिरहाने नहीं थी, ये”—सुनील ने कियारा की तरफ संकेत किया—“ये उस के सिरहाने थी। पुलिस ने जो कुछ प्रैस को बोला था, वो इसके बयान के आधार पर था। लेकिन ये श्योर नहीं है कि इसने मंगला सुना था। कियारा”—वो कियारा की तरफ घूमा—“तुम गारन्टी से कह सकती हो कि जब मकतूल ने तुम्हारी मौजूदगी में प्राण त्यागे थे तो उसके मुंह से जो इकलौता शब्द निकला था, वो मंगला था?”
“नहीं।”—वो दबे स्वर में बोली—“जो मुझे लगा था, मैंने बोल दिया था। वो मर रहा था, उसकी जान हलक में अटकी हुई थी, बड़ी मुश्किल से तो वो बोल पा रहा था! प्राण निकलने से पहले बहुत शिद्दत से वो एक लफ्ज मुंह से निकाल सका था जो मुझे मंगला लगा था।”
“हो सकता है बंगला कहा हो! जंगला कहा हो...”
“हो सकता है।”
“या सिंगला कहा हो?”
“क्या? क्या बोला?”
“सिंगला...सिंगला कहा हो! मरने वाले की जुबान से निकला आखिरी लफ्ज सिंगला—रिपीट, सिंगला—हो!”
‘यू आर राइट।”—वो नेत्र फैलाती बोली—“बाई गॉड, यू आर राइट। सिंगला ही कहा था उसने। सिंगला ही कहा था उसने। नाओ आई कैन बैट माई लाइफ आन इट दैट ही सैड सिंगला।”
“सिंगला!”—प्रभूदयाल ने उलझनपूर्ण भाव से दोहराया—“वो कौन हुआ?”
“इससे”—सुनील प्रहलाद राज की तरफ हाथ लहराता बोला—“इसका सरनेम पूछिये।”
“सरनेम पूछूं?”—प्रभूदयाल सकपकाया।
“नहीं बतायेगा।”
“क्यों भला?”
“पूछ के देखिये।”
“पूछना बेकार है। तुम्हारे कहने के चैलेंजभरे ढ़ण्ग से ही मैं इसके जवाब का अन्दाजा लगा सकता हूं। ये नहीं बतायेगा। तुम बोलो, क्यों नही बतायेगा?”
“क्योंकि कहता है सरनेम के खिलाफ है। सरनेम जात-पांत को रेखांकित करता है और ये जात-पांत के खिलाफ है क्योंकि जात-पांत आदमी और आदमी में फर्क करती है, बांटती है। इस सिलसिले में फिल्म स्टार इरफान खान की मिसाल देता है, खुद को उसका हमखयाल बताता है, जिसने अपने नाम से हमेशा के लिये खान हटा दिया है और अब उसकी फिल्म्स के क्रेडिट्स में उस का नाम खाली इरफान दर्ज होता है। ये नहीं बतायेगा, मैं बताता हूं कि इसने अपने नाम से क्या सरनेम हटाया है! इसने अपने नाम से सिंगला हटाया है। इस का पूरा नाम प्रहलाद राज सिंगला है।”
प्रभूदयाल ने उसकी तरफ देखा।
वो परे देखने लगा।
“ये”—सुनील ने अपने जेब से एक तहशुदा कागज निकाला और उसे खोल कर प्रभूदयाल के सामने डाला—“इसके आधार कार्ड की फोटोकापी है। आधार कार्ड की अर्जी में सरनेम दर्ज करना मैंडेटरी है, लाजमी है। इस कार्ड पर इसका पूरा नाम दर्ज है जो कि सिंगला है। मकतूल बतौर कातिल मंगला नाम की किसी औरत का नहीं, अपने पार्टनर का नाम ले कर मरा था।”
“ये...ये तुम्हारे पास कहां से आयी?”—प्रभूदयाल बोला।
“आप को मालूम ही होगा आज कल बैंक एकाउन्ट को आधार से लिंक करना जरूरी है।”
“मालूम है!”
“इसके बैंक एकाउन्ट के रिकार्ड से आयी, नेशनल बैंक की विनायक नगर ब्रांच से आई।”
“हूं।”—प्रभूदयाल प्रहलाद राज की तरफ घूमा—“आप का सरनेम सिंगला है? आप का पूरा नाम प्रहलाद राज सिंगला है?”
उसने मजबूती से होंठ भींच लिये।
“ये आप के आधार कार्ड की फोटोकापी है?”
उसने जवाब न दिया।
“आप खामोश नहीं रह सकते। मैं आप को यकीन दिलाता हूं आप खामोश नहीं रह सकते।”
“आप भी”—वो फट पड़ा—“मामूली परिस्थितिजन्य सबूतों के दम पर मुझे कत्ल का मुजरिम नहीं ठहरा सकते।”
“अभी जो कुछ आप की बाबत कहा गया, वो मामूली है ?”
“हां, मामूली है। मसलन सिंगला अकेला मैं ही नहीं हूं सारे हिन्दोस्तान में।”
“जिस सिंगला से मकतूल वाकिफ था, वो आप हैं।”
“आप को क्या मालूम? क्या जरिया है आप के पास जानने का कि मकतूल सिर्फ एक सिंगला को जानता था?”
“मकतूल के कमरे में कीमती इटैलियन सैंडलों का खाली डिब्बा था, वो सैंडलें आपकी गर्लफ्रेंड पहने थी।”
“खाली डिब्बा देख कर आप को कैसे पता लग गया कि उसके भीतर जो सैंडलें पैक थीं, वो कैसी थीं? ऐसी कौन सी बात यूनीक थी उन में जिसकी वजह से उनकी अलग से शिनाख्त हो सकती थी? फैशनेबल लेडीज फुटवियर्स में लाल रंग आम है, स्टिलेटो हील आम है, हाई प्राइस आम हैं—सैंडलें लाख लाख रुपये तक आती हैं—तो कौन सी बात थी कि डिब्बे की सैंडलों में जो उन्हें खास बनाती थी, वन आफ दि काइन्ड बनाती थी?”
“फूलदान पर आप की उंगलियों के निशान थे।”
“फूलदान आलायकत्ल नहीं।”
“आप ये बताने को तैयार नहीं कि कत्ल के वक्त के आस पास आप कहां थे!”
“इतने से मैं कातिल साबित हो गया! मैं ये नहीं बताना चाहता कि मैं कहां था तो इसका सीधा, साफ मतलब ये हो गया कि मौकायवारदात पर था? था भी तो मौकायवारदात पर ही होने से कोई कातिल हो जाता है? ये तीनों लड़कियां मौकायवारदात पर थीं। आप ठहराईये इन्हें कातिल!”
“ये मानती तो हैं ये मौकायवारदात पर थीं! आप कहां मान रहे हैं?”
“मैं ये नहीं मान रहा मैं कहां था? अगर मैं बता दूं मैं कहां था तो इतने से ही पीछा छोड़ देंगे आप मेरा? मैं न सिर्फ बता दूं, साबित कर दूं कि कत्ल के वक्त के आसपास मैं मौकायवारदात से दूर कहीं था तो छोड़ देंगे आप मेरा पीछा?”
प्रभूदयाल भौंचक्का सा उस का मुंह देखने लगा।
कुछ क्षण खामोशी रही।
“कमाल है!”—फिर प्रभूदयाल असहाय भाव से गर्दन हिलाता बोला—“अभी तो आपके होश उड़े हुए थे, अभी दिलेरी आ गयी!”
“कायदे कानून से मैं भी वाकिफ हूं। चश्मदीद गवाह के बिना आप किसी को निर्विवाद रूप से कातिल नहीं ठहरा सकते। परिस्थितिजन्य सबूतों की बिना पर आप किसी को फांसी पर नहीं टांग सकते। आप ऐसे मुलजिम को सिर्फ परेशान कर सकते हैं, हलकान कर सकते हैं, उसे सजा नहीं दिला सकते, उसका अदालत से बेनिफिट आफ डाउट पाकर, सन्देह लाभ पा कर, छूट जाना महज वक्त की बात होता है।”
“कमाल है! आप को तो यकीनी तौर पर मालूम है हम क्या नहीं कर सकते?”
प्रहलाद राज उपेक्षा से परे देखने लगा।
तुषार अबरोल ने खंखार कर गला साफ किया।
प्रभूदयाल ने उसकी तरफ देखा।
“मुझे कुछ कहने की इजाजत है?”
प्रभूदयाल के माथे पर बल पड़े, उसने अप्रसन्न भाव से उसे घूरा।
“मैं जानता हूं”—वो दबे स्वर में बोला—“मेरी कुछ नादानियों ने, कुछ नासमझ बातों ने आपकी निगाह में मेरा क्रेडिट खराब कर दिया है लेकिन फिर भी मैं कुछ कहना चाहता हूं, मेरा बैटर जजमेंट कहता है कि जो मैं कहना चाहता हूं, वो मुझे कहना ही चाहिये। कह के ही रहना चाहिये। तब हो सकता है कि मेरी बेजा हरकत के लिये पुलिस मुझे माफ ही कर दे।”
“क्या कहना चाहते हो?”
“मैंने कत्ल होता सच में देखा था...”
प्रभूदयाल के चेहरे पर आश्वासन के भाव न आये।
“...कत्ल होता देखा होने के बारे में जो मैंने कहा था, सच कहा था, उस में झूठ का अंश सिर्फ ये था कि अपने स्वार्थ के हवाले, जो कि अब उजागर है, मैंने असल कातिल का नाम नहीं लिया था, ये भ्रम पैदा करने की कोशिश मैंने की थी कि कातिल ये लड़की थी।”—उसने कियारा की तरफ इशारा किया।
“ताकि एक बेगुनाह सजा पा जाता?”—प्रभूदयाल व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला।
“ऐसा नहीं होने वाला था।”—तुषार व्यग्र भाव से बोला—“मैं जानता था ऐसा नहीं होने वाला था। बेगुनाह दर्जनों तरीकों से खुद को बेगुनाह साबित कर सकता था। पुलिस के लिये भी बेगुनाह को गुनहगार साबित करना कोई हँसी खेल न होता। लिहाजा मेरी गलतबयानी इस लड़की के लिये महज थोड़ी देर की जहमत होती और यही मेरा मकसद था।”
“क्या मतलब?”
“मुझे यकीन था कि उतने में असल कातिल ने पकड़ा जाना था और काव्या पर से वैसे भी फोकस हट जाना था।”
“ऐसा न होता तो?”
“तो मेरे साथ जो बीतती, उसको नजरअन्दाज कर के हकीकत बयान करने को मैं आगे आता।”
“क्या बीतती?”
“मैंने पहले ही अर्ज किया, मेरी नौकरी चली जाती। होटल का नया मैनेजमेंट ये हरगिज बर्दाश्त नहीं करने वाला था कि मैं नाजायज तरीके से होटल के एक गैस्ट की निगाहबीनी करता था। दो महीने पहले होटल में बालीवुड की एक बड़ी फिल्म स्टार ठहरी थी और एक वेटर ऐसी ही ताकझांक करता रंगे हाथों पकड़ा गया था। खुद जनरल मैंनेजर उसे वो हरकत करते पाया था। नतीजतन खड़े पैर नौकरी से निकाल दिया था। मैं जानता हूं मेरा ये बयान मुझे भी उसी अंजाम तक पहुंचा के रहेगा लेकिन मौजूदा हालात की रू में मैं अब खामोश नहीं रह सकता। मेरे पहले झूठ की तलाफी मेरा अब बोला सच ही कर सकता है।”
“क्या देखा था?”—प्रभूदयाल के स्वर में नम्रता आयी—“कैसे देखा था? बीच का दरवाजा खोल लिया था?”
“नहीं। कमरे में रेगुलर आवाजाही और आकूपेंट के साथ एक मेहमान की मौजूदगी में मैं ऐसी जुर्रत नहीं कर सकता था।”
“तो क्या किया था?”
“की-होल में आंख लगा कर परली तरफ के हालात का नजारा किया था।”
“क्या देखा था?”
“मेजबान और मेहमान को ड्रार्इंगरूम में यूं आमने सामने बैठे देखा था कि मेजबान की—मकतूल की—मेरी तरफ पीठ थी और मेहमान का मेरी तरफ मुंह था जिसे कि मैं की-होल में से साफ देख सकता था। उस वक्त मुझे नहीं मालूम था कि मेहमान कौन था लेकिन अब मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मेहमान”—उसने प्रहलाद राज की तरफ मजबूत उंगली उठाई—“ये शख्स था।”
“झूठ!”—प्रहलाद राज भड़का।
“खामोश रहिये।”—प्रभूदयाल धीरज से बोला—“ये जो कहना चाहते हैं, इन्हें कहने दीजिये।”
“खामखाह! ऐसे तो ये कुछ भी बक...”
“शट अप!”—प्रभूदयाल इतनी जोर से गर्जा कि भड़ाक से दरवाजा खुला और बंसल भीतर दाखिल हुआ।
प्रहलाद राज सहम कर चुप हो गया।
“तुम यहीं ठहरो।”—प्रभूदयाल बंसल से बोला—“शायद तुम्हारी जरूरत पड़े।”
बंसल ने सहमति में सिर हिलाया, उसने अपने पीछे दरवाजा बन्द किया और सावधान की मुद्रा में उसके सामने अड़ कर खड़ा हो गया।
“आगे बढ़ो।”—अपने भड़के मूड पर काबू पाता प्रभूदयाल तुषार से बोला।
“ये दोनों रूम सर्विस से आर्डर किये ड्रिंक्स शेयर कर रहे थे लेकिन जल्दी ही उस फार्मल माहौल का खात्मा हो गया था और ये झगड़ने लगे थे। फिर झगड़ा भीषण तकरार में बदल रहा था।”
“जो तुम्हें बगल के कमरे में सुनायी दी?”
“सहज ही नहीं। आम हालात में बगल के कमरे की आवाजें मेरी तरफ नहीं पहुंचती थीं लेकिन मैं की-होल में कान लगाता था तो वो मुझे सुनायी देने लगती थीं तब मैं ये नहीं देख सकता था कि उन दोनों के बीच कैसी गुजर रही थी। इन्स्पेक्टर साहब, की-होल के जरिये या मैं देख सकता था या सुन सकता था, दोनों काम एक साथ हो पाना मुमकिन नहीं था इसलिये की-होल से कभी आंख कभी कान लगाते मैंने कभी कुछ देखा, कभी कुछ सुना। जो सुना वो टूटा फूटा था, इंट्रप्टिड था, इसलिये मैं यही अन्दाजा लगा सका था इन दोनों के बीच तकरार का मुद्दा रुपया पैसा था। मेहमान को किसी रकम का पच्चीस फीसदी हासिल हो रहा था जबकि वो पचास फीसदी चाहता था और चाहता था कि इस नये डिस्ट्रीब्यूशन के तहत पिछला बकाया भी फौरन उसके हवाले किया जाता। मकतूल ऐसा करने को कतई तैयार नहीं था, नतीजतन दोनों में हाथापायी की नौबत आ गयी थी। तब सुनना छोड़कर मैंने देखने पर जोर दिया था तो पाया था कि मेहमान के हाथ में कहीं से चाकू आ गया था और मकतूल यूं फूलदान सिर से ऊपर उठाये था जैसे वो उससे मेहमान पर हमला करना चाहता हो। लेकिन वही काम मेहमान ने पहले कर दिया। उसने मेजबान पर चाकू से वार किया। मैंने खून के छींटे उसकी ड्रैस के सारे फ्रंट पर पड़ते देखे लेकिन उस वार का मकतूल पर कोई प्रत्यक्ष असर दिखाई न दिया...”
“क्योंकि पहले वार पर चाकू गहरा नही धंसा था।”—प्रभूदयाल बोला।
“...मकतूल भारी फूलदान का वार मेहमान के सिर पर करने की लगा था कि मेहमान ने फिर चाकू चला दिया। इस बार वार इतना जबर था कि चाकू उसके हाथ से छूट गया। मकतूल चाकू समेत कार्पेट पर ढ़ेर हो गया। फूलदान उस के हाथ से निकल गया और कार्पेट पर एक तरफ लुढ़क गया। तब मेहमान ने फूलदान को उठाया, उसको वापिस मेज पर रखा और उसमें से बाहर बिखर पड़े फूल उठा उठा कर वापिस उसमें डाले। उस काम से फारिग होकर वो उठ कर सीधा हुआ ही था कि कालबैल बज उठी। तब मेहमान दरवाजे से विपरीत दिशा की तरफ लपका और बाजरिया की-होल मेरी विजन के दायरे से बाहर निकल गया।
“बैडरूम में जा छुपा”—सुनील धीरे से बोला—“क्योंकि तभी देवीना वहां पहुंच गयी थी।”
देवीना ने सहमति में सिर हिलाया।
“प्रभू”—सुनील आगे बढ़ा—“ये पहले से स्थापित है कि ड्रिंक्स के साथ रूम सर्विस वाले वेटर की वहां आमद सवा नौ बजे हुई थी जब कि दरवाजे पर ड्रिंक्स की ट्रे रिसीव करने के लिये मकतूल जिन्दा था और अब हमें मालूम है कि देवीना वहां नौ चालीस पर पहुंची थी जबकि उसने मकतूल को मरा पड़ा पाया था। इससे साफ जाहिर होता है कि कत्ल सवा नौ और नौ चालीस के बीच हुआ था। तोरल की वहां आमद इस वक्फे से पहले हुई थी और देवीना, दूसरे फेरे में कियारा और काव्या की बाद में हुई थी। मकतूल के रूम में कियारा का पहला फेरा साढ़े नौ बजे लगा था जब कि मेहमान—कातिल—भीतर था इसलिये मकतूल ने कियारा को ये कह के दरवाजे पर से ही डिसमिस कर दिया था कि वो नीचे लॉबी में जाकर उसके बुलावे का इन्तजार करे। जब बुलावा न आया तो नौ पचास पर कियारा फिर पांचवें फ्लोर पर और आगे मकतूल के सुईट में गयी तो उसने उसे बाहरी कमरे में मरा पड़ा पाया। उससे थोड़ी देर पहले वही नजारा देवीना को करने को मिला था। मकतूल के सुईट की इतनी आवाजाही में यही हैरानी की बात है कि उस फ्लोर पर किन्हीं दो आगन्तुकों की लाइन क्रॉस न हुई।”
प्रभूदयाल के सहमति में सिर हिलाया।
“तुषार की ‘बैटर लेट दैन नैवरʼ गवाही की रू में गुलेगुलजार के खिलाफ”—सुनील ने प्रहलाद राज की तरफ हाथ लहराया—“अब ये ओपन एण्ड शट केस जान पड़ता है। कत्ल का जो उद्देश्य मैंने अन्दाजन बयान किया था, तुषार के बयान से अब उसकी भी तसदीक हो गयी है। मेरे और तुषार के बयान पर अलग अलग गौर किया जाये तो दोनों में झोल दिखाई देता है लेकिन दोनों बयानों को जोड़ कर परखा जाये तो वो झोल अपने आप ही गायब हो जाता है। अब ये स्पष्ट है कि अपनी खस्ता माली हालत की रू में प्रहलाद राज अपने पार्टनर के पास होटल स्टारलाइट में रूम नम्बर ‘506’ में पहुंचा था। इस से ये भी साबित होता है कि इसे यकीनी तौर पर मालूम था कि मकतूल मुम्बई नहीं गया हुआ था, वो शहर में ही था और शहर में कहां था। माली इमदाद के तौर पर एक मोटी रकम की इस को फौरन जरूरत थी क्योंकि इसके सिर हार्स रेसिंग के बुकी की देनदारी थी और बुकी के एनफोर्सर इस के हाथ पांव तोड़ देने पर आमादा थे, बल्कि जान से मार देने पर आमादा थे। रकम की अदायगी को लेकर दोनों में फसाद हुआ जिसका अंजाम कत्ल तक पहुंचा।”
प्रभूदयाल का सिर फिर सहमति में हिला।
“अब ये भी स्पष्ट होता है कि कॉनमैनशिप के धन्धे में ये और मकतूल पार्टनर थे और दोनों की पार्टनरशिप कैसी थी। पार्टनरशिप में ये कम्प्यूटर वि़जर्ड था, हैकिंग एक्सपर्ट था जो ठगी जाने लायक लड़कियों पर रिसर्च करता था और मकतूल फील्ड आपरेटर था जो अपनी मैगनेटिक पर्सनैलिटी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करके शिकार को शीशे में उतारता था और ठगी के लिये तैयार माल बनाता था। मकतूल का काम ज्यादा था, जोखम का भी था इसलिये प्रोसीड्स में उसका हिस्सा पिचहत्तर फीसदी था और डैस्क वर्कर पार्टनर का—प्रहलाद राज सिंगला का—हिस्सा पच्चीस प्रतिशत था। ये इन्तजाम सुचारू रूप से चल रहा था—बावजूद इसके एक्सपैंसिव लाइफ स्टाइल के सुचारू रूप से चल रहा था जब कि ये माशूक पर खुल्ला खर्चा करता था, उस को कीमती तोहफों से, लैविश वीकएण्ड पार्टीज से नवाजता था। लेकिन इस की हार्स रेसिंग की लत ने आखिर इसके उजाड़ू लाइफ स्टाइल में फच्चर डाल दिया। कभी इस का घोड़ा न लगा, ये मुतवातर हारा और इसके नाम बुकी का बड़ा क्रेडिट खड़ा हो गया जिसको चुकता करने का इसके पास कोई दूसरा जरिया नहीं था, सिवाय इसके कि ये पार्टनर को एक बड़ी रकम की अदायगी के लिये मजबूर करता। इसने न सिर्फ फिफ्टी-फिफ्टी पार्टनरशिप की मांग की बल्कि यूं जो इसके एरियर्स बनते थे, उसकी भी फौरी अदायगी की जिद की जो कि, अब जाहिर है कि, मकतूल को कबूल न हुई और नतीजा खूनखराबे तक पहुंचा।”
“अब क्या कहते हो?”—प्रभूदयाल प्रहलाद राज के मुखातिब हुआ—“कत्ल के केस में चश्मदीद गवाह पर तुम्हारा बड़ा जोर था। अब तो चश्मदीद गवाह भी मौजूद है, अब क्या कहते हो?”
“ये सिखाया पढ़ाया गवाह है।”—प्रहलाद राज भड़के लहजे से बोला।
“कब को सिखा पढ़ा दिया, भई, हमने?”
“मुझे नहीं मालूम लेकिन यकीनन ये सिखाया पढ़ाया गवाह है। इसकी बहन कातिल है इसलिये ये कत्ल की रेवड़ियां दायें बायें बांट रहा है।”
“वो तो दस बजे के बाद मौकायवारदात पर पहुंची थी!”
“झूठ बोलती है।”
“एक तुम्हीं सच बोलते हो?”
“हां। हां।”
“बड़े ढ़ीठ हो भैय्या, समझते हो कि लम्बी लम्बी छोड़ के अपनी करतूत की जिम्मेदारी से बच जाओगे।”
“मैं कुछ नहीं जानता...”
“अभी जनवाते हैं। प्रहलाद राज सिंगला, यू आर अन्डर अरैस्ट फार दि मर्डर आफ युअर पार्टनर अविनाश खत्री।”
“ये जुल्म है!”—प्रहलाद राज ने आर्तनाद किया।
“तुम कहते थे कि जब जान पर आ बनेगी तो बताओगे कि कत्ल के वक्त के आसपास तुम किसके साथ थे। अब आ बनी है न जान पर! अब बताओ किसके साथ थे?”
उसने जवाब न दिया।
“लगता है सखी ने”—सुनील बोला—“निधि सांगवान ने इसे एलीबाई देने से इंकार कर दिया है। कत्ल का केस है, झूठी गवाही देकर कौन फंसना चाहेगा! वो भी एक शादीशुदा चाहने वाले के लिये जो पता नहीं आगे चल कर साथ दे पायेगा या नहीं!”
प्रभूदयाल ने सहमति में सिर हिलाया, फिर निर्णायक भाव से बोला—“बंसल!”
“सर!”—बंसल तत्पर स्वर में बोला।
“अरैस्ट दिस मैन एण्ड लॉक हिम अप।”
प्रहलाद राज गिरफ्तार हो गया।
मीटिंग बर्खास्त हो गयी।
उपसंहार
पुलिस ने केनिंग रोड के निधि सांगवान के फ्लैट पर दबिश की तो सबसे पहले वहां से स्टिलेटो हील की लाल रंग की कीमती इटैलियन सैंडलें ही बरामद कीं। पहले उसने पुलिस को अमेजन से मेल आर्डर वाली पुड़िया ही सरकाई लेकिन जब उसे बताया गया कि उसके चाहने वाले प्रहलाद राज सिंगला पर अपने पार्टनर के कत्ल का इलजाम था और बतौर कातिल की मददगार वो भी गिरफ्तार हो सकती थी तो उसने तमाम सच उगल दिया। उसने कबूल किया कि मंगलवार रात को दस बजे के करीब प्रहलाद राज उसके फ्लैट पर आया था और उसने इस हिदायत के साथ उसे वो सैंडलों का जोड़ा और एक ओवरकोट सौंपा था कि वो पहली फुरसत में दोनों चीजों की गठरी बना कर गठरी के साथ वजन बान्ध कर उसे समुद्र के हवाले कर दे। उसने ओवरकोट के मामले में तो हिदायत पर अमल किया था लेकिन सैंडिलों का उसे लालच आ गया था और उसने ये सोचकर उन्हें तिलांजलि नहीं दी थी कि वो थोड़ी सी सावधानी भी बरतती तो प्रहलाद राज को कभी पता नहीं लगने वाला था कि सैंडलें उसने अपने पास रख ली थीं।
उसने पुलिस को ये भी बताया कि जब वो फ्लैट पर पहुंचा था तो उसकी ड्रैस के फ्रंट पर खून के छींटे थे जिन्हें उसने ओवरकोट और सैंडलों के बंडल को अपनी छाती के आगे रख कर छुपाया हुआ था। उसने वहां फ्लैट के बाथरूम में ही खून के छींटों को पोशाक पर से धोया था और फिर वहां से रुखसत हुआ था।
अगले रोज वो निधि से फिर मिला था तो निधि ने तसदीक कर दी थी कि पिछली रात उसको सौंपा गया सामान उसने उसकी हिदायत के मुताबिक समुद्र में डुबो दिया था। तब प्रहलाद राज ने उससे दरख्वास्त की थी कि अगर पूछताछ की नौबत आये तो वो कह दे कि मंगलवार रात नौ और दस बजे के बीच वो निधि के फ्लैट में निधि के साथ था। उसको उस टाइम की एलीबाई की क्यों जरूरत थी, इस का जवाब उसने ये कह के टाल दिया था कि उसकी कोई जाती दुश्वारी थी जो उसकी समझ में नहीं आने वाली थी। निधि ने ये कहकर उस बात से साफ इंकार कर दिया था कि मंगलवार रात की उस घड़ी उसकी फ्लैटमेट भी वहीं थी जो बाखूबी जानती थी कि वो नौ बजे से वहां नहीं था बल्कि पहुंचा ही दस बजे थे। यानी निधि की झूठी गवाही प्रहलाद राज के लिये तभी कारगर साबित हो सकती थी जबकि फ्लैटमेट डिम्पल सक्सेना भी झूठ बोलने को तैयार होती जो कि मुमकिन नहीं था।
निधि सांगवान की उस गवाही ने ही प्रहलाद राज के कस बल निकाल दिये। आखिर उसने कुबूल किया कि ठगी के धन्धे में भी वो मकतूल अविनाश खत्री के साथ शामिल था, वो हैकिंग स्पैशलिस्ट था और अपनी उस खूबी को इस्तेमाल कर के वो ठगी जा सकने लायक पैसे वाली, अकेली रहती लड़कियों को ट्रेस करता था। रुपये पैसे की बाबत ऐसी किसी लड़की की औकात जानने के लिये इंकम टैक्स अधिकारी बनकर वो उसे फोन करता था और टैक्स डिफॉल्ट की, भारी पैनल्टीज की धमकी दे कर उसकी माली औकात का पूरा पता निकालता था। फिर दूसरा—हैण्डसम, स्मार्ट, फैशन माडल्स जैसे आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी—पार्टनर टेकओवर करता था और इन्टरनेट के जरिये अपना प्रेम जाल फैलाता था।
उसने कबूल किया कि रेस के बुकीज की उस पर लाखों की देनदारी थी जो न चुकता होती तो उसका अंजाम बुरा होता। बुकीज के एनफोर्सर उसके हाथ पांव तो तोड़ते ही, उसको जान से भी मार डालते तो कोई बड़ी बात नहीं थी। उस दुश्वारी से उसका पार्टनर ही उसे निजात दिला सकता था जो हमेशा ठगी गयी रकम का तीन चौथाई हासिल करता था और उस जैसा फिजूल खर्च और ऐबी भी नहीं था। पैसे की मांग को लेकर ही वो होटल में पार्टनर से मिलने गया था जब कि पार्टनर ने उसकी कोई मदद करने से साफ इंकार कर दिया था। इसी बात पर तू तू मैं मैं और तकरार हुई थी जिस में नौबत हाथापायी तक पहुंच गयी थी। पार्टनर एकाएक उस पर इतना खफा हो गया था कि उसने उसके सिर पर दे मारने के लिये फूलदान उठा लिया था। तब उसे वहां सैन्टर टेबल के करीब पड़ा चाकू दिखाई दिया था जिसे उसने झपट लिया था और फिर आत्मरक्षा के लिये पार्टनर पर चलाया था।
उसे मालूम था कि उसकी पार्टनर से तू तू मैं मैं के दौरान वहां एक लड़की पहुंची थी जिसे पार्टनर ने दरवाजे से ही चलता कर दिया था। तब उसको सूझा था कि वो ऐसा आडम्बर रच सकता था जिस से जान पड़ता कि कत्ल उस लड़की ने—कियारा सोबती ने—किया था। उसने मकतूल का ओवर कोट पहन लिया था, सिर पर उसकी गोल्फ कैप लगा ली थी और पैरों में हाई हील की सैंडलें पहन कर वहां से निकल पड़ा था ताकि कोई उस को नोटिस में लेता तो उसे वो लड़की समझता जो कत्ल कर के वहां से खिसकी जा रही थी।
सैशन कोर्ट में जज उसकी आत्मरक्षा वाली प्ली को इतना ही खातिर में लाया कि उसने फांसी की जगह उम्र कैद की सजा सुनाई।
मकतूल अविनाश खत्री के दो विभिन्न बैंकों में दो लॉकरों का पता पुलिस ने निकलवाया जिन्हें कोर्ट आर्डर के तहत खोला गया तो उन में से नकद बावन लाख रुपये बरामद हुए, पुलिस ने जिन्हें मकतूल की कॉनमैनशिप की कमाई करार दिया जिसमें आय कर विभाग दखलअन्दाज हुआ तो उसने उसे दो नम्बर का पैसा बताकर सीज कर लिया। मकतूल की बेवा ने उस पर अपना हक जताया क्यों कि उसकी बेवा होने की वजह से वो स्वाभाविक तौर पर उसकी वारिस थी। बाजरिया शातिर वकील उसने कोर्ट में ये अपील दाखिल की कि वो रकम इंकम टैक्स अनपेड थी तो इंकम टैक्स विभाग उस पर अब टैक्स लगा ले, कोई जुर्माना लगाना हो तो वो भी लगा ले, लेकिन बाकी की रकम तो मकतूल के वारिस के, उसकी बेवा के, हवाले करे।
कियारा, काव्या और तोरल ने मिलकर कोर्ट में केस डाला और उस रकम पर ये कहते हुए अपनी दावेदारी पेश की कि वो मकतूल ने उन्हें अपनी कॉनमैनशिप का शिकार बनाकर उन से ठगी थी। उस बाबत अखबार में खबर छपी तो चार लड़कियां और सामने आ गयीं जो दावा करने लगीं कि मकतूल ने उन्हें भी ठगा था इसलिये उस रकम पर उन की दावेदारी पर भी विचार किया जाये। सात दावेदारों की रकम पर हाजिरी से केस ऐसा उलझा कि सालों साल घिसटता चला गया, किसी अंजाम तक न पहुंच पाया।
बाद में कियारा ने इस बात का भी खुलासा किया कि जब सुनील उस की गिरफ्तारी के बाद उससे पुलिस हैडक्वार्टर पर मिला था तो वो कौन सा गुनाह था जो वो कुबूल करना चाहती थी लेकिन सुनील ने उस बाबत सुनने से इंकार कर दिया था। बकौल उसके, नौ पचास पर अपने दूसरे फेरे में जब वो मकतूल के कमरे में दाखिल हुई थी तो उसने लाश के करीब मकतूल का बटुवा यूं लुढ़का पड़ा देखा कि उसमें से नोट बाहर झांक रहे थे। उसने झुक कर देखा था तो पाया था कि अधिकतर नोट दो हजार रुपये के थे। वक्ती लालच के हवाले हो कर उसने वो नोट बटुवे में से निकाल लिये थे और बाद में पाया था कि छब्बीस थे। यानी यूं मकतूल का बावन हजार रुपया उसने कब्जा लिया था और ये कह कर खुद को तसल्ली दी थी कि आखिर उन नोटों का मालिक उसके साथ उन्नीस लाख रुपये की ठगी कर चुका था।
तब सुनील ने उसे बताया कि उसे पहले से ही शक था कि मकतूल के बटुवे में से बड़े नोट किसी ने सरका लिये थे क्योंकि ये न्यायोचित नहीं जान पड़ता था कि फाइव स्टार होटल में ठहरे व्यक्ति के बटुवे में चन्द सौ, पचास और बीस के नोट ही होते। जब कियारा ने कहा था कि वो कोई गुनाह कुबूल करना चाहती थी तो वो तभी समझ गया था कि बटुवे से नोट उसने सरकाये थे। वो उसे ये बात अपनी जुबानी कुबूल करने देता तो अपने आफिस में बैठा, बगल के कमरे में होता वार्तालाप मानीटर करता, प्रभूदयाल भी सुनता। फिर कियारा पर चोरी का एक नया इलजाम आयद होता और कोई बड़ी बात न होती कि पुलिस दावा करती कि कियारा बटुवे में से नोट सरकाती रंगे हाथ पकड़ी गयी थी और उसी वजह से कत्ल की नौबत आयी थी।
बाद में सुनील ने उस बाबत खामोश रहना ही मुनासिब समझा।
—————
0 Comments