केशो भाई की उम्र सत्ताईस-अट्ठाईस बरस की थी। सामान्य पतला जिस्म था। गर्दन तक लम्बे बाल थे। देखने में वो, जैसे मौज-मस्ती पसन्द युवक नजर आता था। उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वो माना हुआ दादा है और छोटा-मोटा काम करवाने के लिये उसका एक फोन ही बहुत था।
पहली क्लास भी नहीं पढ़ा था। उसने सिर्फ अपराधों की पढ़ाई की थी और कानून के साथ खेलने की बड़ी डिग्री उसके पास थी। अपराधी हो या पुलिस, सबसे उसका वास्ता हरदम रहता था। ढ़ेरों आदमी थे उसके पास काम करने को, परन्तु जब देखता कि काम कठिन है तो खुद भी मैदान में आ जाता था।
इस वक्त वो सजे-सजाये कुछ बड़े कमरे में था। एक हिस्सा ड्राइंगरूम जैसा बना रखा था और दूसरी तरफ शानदार डबलबेड लगा था। वार्डरोब-अलमारी-टी.वी.-फ्रिज वगैरह वहां नजर आ रहे थे। फर्श पर कालीन बिछा था। कुर्ता-पायजामा पहने, पीठ पर हाथ बांधे शांत सा वो टहल रहा था जब पारसनाथ, मोना चौधरी और उस बदमाश ने भीतर कदम रखा। पारसनाथ को देखकर मुस्कराया और उसकी तरफ बढ़ा।
“तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई पारसनाथ।” हाथ मिलाता वो कह उठा- “दो साल बाद हम मिल रहे हैं।”
“हां।” पारसनाथ के खुरदरे चेहरे पर मुस्कान उभरी।
“खुद आने की क्यों तकलीफ की। फोन कर देते। यार के पास तो मैं ही हाजिर हो जाता।” केशो भाई मुस्करा रहा था।
“तुम आये, मैं आया... एक ही बात है।”
“बैठो-बैठो। खड़े क्यों हो?”
वो तीनों बैठे।
केशो भाई ने इन्टरकॉम पर कोल्ड ड्रिंक लाने को कहा और खुद भी बैठ गया।
“तुम...।” केशो भाई ने बदमाश को देखा- “इन लोगों के साथ कैसे?”
बदमाश के कुछ कहने से पहले ही पारसनाथ बोला।
“केशो! तुम्हारे कहने पर इसने सीमा पुरी का अपहरण किया था।”
“हां।” केशो भाई का चेहरा बिल्कुल सामान्य रहा।
“सीमा पुरी को इसने तुम्हारे हवाले किया?”
“हां...।”
मोना चौधरी ने बदमाश को देखा।
“इसके कहने पर तुमने और किसी का अपहरण किया था?”
मोना चौधरी ने पूछा।
“हां। अजय सिंह नाम के व्यक्ति का?”
“अजय सिंह कहां है?”
“केशो भाई के पास होगा।” बदमाश ने शांत स्वर में कहा।
केशो भाई शांत-सा उन्हें देख रहा था।
मोना चौधरी और पारसनाथ की निगाहें मिलीं।
“इसे रिवॉल्वर-चाकू देकर भेज दो...।”
पारसनाथ ने उसे रिवॉल्वर-चाकू देकर जाने को कहा।
बदमाश ने दोनों चीजें अपनी जेब में डालते हुए केशो भाई से कहा।
“दोनों ने धोखे से मुझे पकड़ा और सीमा पुरी के बारे में मुझसे पूछने लगे कि मैंने उसे किसके कहने पर उठाया।” फिर बदमाश ने मोना चौधरी की तरफ इशारा किया- “सीमा पुरी को ले जाते वक्त, इसने मुझे रोकने की कोशिश की थी।”
केशो भाई कुछ नहीं बोला।।
“मैं जाऊं...?”
केशो भाई के सहमति से सिर हिलाने पर बदमाश वहां से चला गया।
तभी एक आदमी ट्रे में कोल्ड ड्रिंक के गिलास रखे लाया और टेबल पर रखकर चला गया। केशो भाई ने दोनों को कोल्ड ड्रिंक का गिलास दिया और खुद भी गिलास थामे बैठ गया।
“क्या बात है पारसनाथ?” केशो भाई ने कहा- “क्या मुझे सीमा पुरी का अपहरण नहीं करवाना चाहिये था? ऐसा कुछ था तो मुझे पहले कह देते। तब कोई उनको छू भी नहीं सकता था।”
“इस बारे में तुमसे ये बातें करेंगी।” पारसनाथ ने घूंट भर कर मोना चौधरी की तरफ इशारा किया।
केशो भाई की निगाह मोना चौधरी पर टिकी।
“ये कौन हैं...?”
“मोना चौधरी का नाम सुना है?” पारसनाथ का स्वर सपाट था।
“हां...।”
“ये मोना चौधरी ही हैं।”
केशो भाई चौंका फिर संभलने की कोशिश में मुस्कराकर कह उठा।
“माफ करना। मैंने पहचाना नहीं। वैसे सोच भी नहीं सकता था कि कभी मोना चौधरी यहां आ सकती है। तुमसे मिलकर मुझे खुशी हुई। मुझे यकीन नहीं आ रहा कि मोना चौधरी के सामने बैठा हूँ मैं...।”
मोना चौधरी सिर्फ सिर हिलाकर रह गई।
“मुझे बताओ, क्या पूछना चाहती हो तुम?”
“सीमा पुरी और अजय सिंह का अपहरण तुमने क्यों किया?” मोना चौधरी कह उठी।
केशो भाई ने दो पल की सोच के पश्चात कहा।
“मुझे पांच लोगों के अपहरण के लिये दो कीमती हीरे दिये गये हैं, जोकि करीब दस लाख की कीमत के हैं।”
“हीरे?”
“हां। अपहरण मेरे लिये मामूली काम है। मामूली काम के बदले कोई दस लाख दे तो, लेने में क्या हर्ज है?”
“कौन-से पांच लोगों का तुमने अपहरण किया? कहीं बाकी के तीन दीपा लाम्बा, रंजना और प्रेम कुमार तो नहीं थे...।”
“हां। यही थे। यही पांच।” केशो भाई ने मोना चौधरी को देखा- “तुम ये सब कैसे जानती हो?”
“वो हीरे दिखाओगे, जो तुम्हें इन अपहरणों की कीमत के रूप में दिये गये हैं।” मोना चौधरी ने कहा।
केशो भाई ने उठकर अलमारी का लॉकर खोला और उसमें से हीरे निकालकर मोना चौधरी का दिखाये। मोना चौधरी ने हीरे देखे। बहुत ही ध्यान से देखे। चेहरे पर अजीब-से भाव आ ठहरे।
“ये हीरे लेकर तुमने अपहरण करवाया है।” मोना चौधरी ने उसे देखा।
“हां...।”
“कौन कहता है कि इन हीरों की कीमत दस लाख है?”
“मेरा कोई पहचान वाला आया था। उसे दिखाये तो उसने बताया था।” केशो भाई ने कहा था। नजरें मोना चौधरी पर थीं।
“ये दुर्लभ किस्म के हीरे हैं।” मोना चौधरी ने हीरों को टेबल पर रख दिया- “ऐसे हीरे अब कम ही देखने को मिलते हैं और हीरों का पारखी बिना मोल-भाव किए इनके पच्चीस लाख तो फौरन दे देगा।”
“पच्चीस लाख?” केशो भाई के होंठों से निकला।
“हां। अभी मैंने इनकी कम कीमत बोली है।”
केशो भाई की निगाह हीरों पर रुक गई। वो कुछ उलझन में नजर आने लगा।
“पांच लोगों के अपहरण के लिये तुम्हें इतनी कीमत देना, अजीब बात है। जबकि पच्चीस लाख में तो तुम पच्चीस लोगों को खत्म कर दो।” मोना चौधरी एक-एक शब्द पर जोर देकर कह उठी।
“तुम ठीक कहती हो कि पांच लोगों के अहपरण के लिये पच्चीस लाख बहुत ज्यादा है।” केशो भाई के होंठों से निकला।
“वो कौन है जिसने तुम्हें ये हीरे देकर काम करवाया?”
“मैं उसे नहीं जानता।”
“क्या मतलब?”
“मेरे एक आदमी ने उससे, मुझे मिलवाया था कि वो, किसी का अपहरण करवाना चाहता है। उस वक्त अजीब बात मुझे ये लगी कि वो मेरे पास नहीं आया। गली के बाहर कार में ही बैठा रहा। मुझे उसके पास जाना पड़ा। वो आदमी भी अजीब-सा ही था। बातों के दौरान वो कार में ही बैठा रहा। पचास बरस का होगा वो सिर के बाल काले थे। गले में कई तरह की माला पहन रखी थीं। कानों में कुण्डल डाल रखे थे। हाथों की उंगलियों में अजीब-सी अंगूठियां थी। शरीर पर कूल्हों के गिर्द पतला-सा कपड़ा पहन रखा था और पांवों में कुछ भी नहीं पहने था। मैंने उसके बारे में पूछा तो अपने बारे में बताने से उसने इंकार कर दिया। बोला पांच लोगों का अपहरण करवाना है और वो भी एक ही दिन, ताकि किसी को बचने-छिपने का मौका न मिले।”
पारसनाथ ने सिगरेट सुलगा ली।
मोना चौधरी की निगाह, केशो भाई पर थी।
केशो भाई पुनः कह उठा।
“मैंने उसके ढंग से काम कर देने की हामी भरी तो वो बोला, मेरे पास देने को रुपया नहीं है। इसके साथ ही उसने पास रखी छोटी-सी थैली में से दो हीरे निकालकर मुझे दिए और बोला कि ये हीरे बेचकर तुम रुपया हासिल कर सकते हो। मैंने हीरे रख लिए। उसे एक सप्ताह बाद आने को कहा कि उस दिन पांचों का अपहरण करके, उसके हवाले कर दूंगा। हीरों के साथ उसने अजय सिंह, प्रेम कुमार, दीपा लाम्बा, रंजना और सीमा पुरी की तस्वीरें दीं। तस्वीरों के पीछे उनका पता लिख हुआ था। मैंने उन पांचों पर नजर रखनी शुरू करवा दी। मेरे आदमी इस काम पर लग गये और फिर सब ठीक पाकर, एक ही दिन में मैंने उन पांचों का अपहरण करवाया। उसी रात वो आदमी मुझसे मिला तो मैंने पांचों को वायदे के मुताबिक उसके हवाले कर दिया।”
केशो भाई के चुप होते ही, कुछ पलों के लिये वहां खामोशी छा गई।
पारसनाथ खामोशी से बैठा कश ले रहा था।
“अगर मैं उन पांचों को ढूंढना चाहूं तो मुझे क्या करना होगा?” मोना चौधरी बोली।
केशो भाई के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
“अब उन्हें ढूंढ पाना आसान नहीं होगा।”
“क्यों?”
“क्योंकि वो पांचों अब उस व्यक्ति के कब्जे में हैं, जिसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं। जिस कार पर वो दो बार मुझे मिला। मेरे पूछने पर उसके ड्राईवर ने बताया कि, कार उसने किराये पर ले रखी है और कार में ही सोता-बैठता है। एक बार भी बाहर नहीं निकला। यहां तक कि खाना-पीना तो दूर, तीन-तीन दिन वो पानी भी नहीं पीता। किराये की एवज में उसे, उसने एक हीरा दिया था। ऐसा ही हीरा था।”
मोना चौधरी केशो भाई को देखती रही।
“मेरे ख्याल में उन्हें ढूंढने की कोशिश बेकार रहेगी।” केशो भाई कह उठा।
“उन पांचों को वो ले कैसे गया?”
“उसी कार में ठूंस कर...।”
“पांचों ने कार में बैठने के लिये मना नहीं किया?” मोना चौधरी ने पूछा।
“खास एतराज नहीं किया। वो पांचों बहुत डरे हुए थे।” केशो भाई ने बताया।
“वो कार वाला यहां से कहां गया था?”
“मैं नहीं जानता। लेकिन मालूम किया जा सकता है।”
“तो मालूम करो।”
“कुछ वक्त लगेगा। तीन-चार घंटे...।”
“कोई बात नहीं। पारसनाथ को फोन कर देना। बेहतर होगा कि अगर उस ड्राईवर से ही मेरी बात करा दो।”
“कोई दिक्कत नहीं। मैं अपने आदमी के साथ उस ड्राईवर को पारसनाथ के पास भेज दूंगा।” केशो भाई ने कहा।
“साथ ही ये भी ध्यान रखना कि शायद उस तक पहुंचने का कोई रास्ता याद आ जाये...।”
“मैं ध्यान रखूंगा। लेकिन इन सब बातों से तुम्हारा क्या वास्ता है?”
“उन पांचों को ढूंढना है मैंने...।”
“क्यों...?”
“इस क्यों का जवाब तुम्हारी समझ में नहीं आयेगा।” मोना चौधरी ने गहरी सांस ली।
“उस कार के ड्राईवर को मेरे पास भेज देना।” पारसनाथ उठते हुए बोला।
“शाम तक वो तुम्हारे पास पहुंच जायेगा।”
मोना चौधरी भी उठ खड़ी हुई।
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“जिसके बारे में केशो भाई ने बताया है, उसके बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है?” मोना चौधरी कह उठी।
“हुलिये के मुताबिक तो वो अजीब ही शख्सियत का मालिक लगता है।” पारसनाथ ने कहा।
“केशो भाई कहता है कि उसने कानों में कुण्डल, गले में मालाएं, हाथों की उंगलियों में कई अंगूठियां पहन रखी थीं। कपड़ों के नाम पर, कमर में पतला-सा कपड़ा लपेट रखा था और पांव नंगे थे।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा- “कौन हो सकता है ऐसा इंसान?”
“जिस कार वो इस्तेमाल करता रहा है, उसके ड्राईवर का कहना है कि वो सप्ताह भर कार में ही रहा...।”
“मुझे तो विश्वास नहीं होता कि ये बात सच है...।” मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा।
“केशो उस ड्राईवर को भेजेगा। उससे कुछ तो उसके बारे में मालूम होगा।”
“शायद ड्राईवर से मालूम हो जाये कि वो उन पांचों को लेकर कहां गया है...।” मोना चौधरी अपनी सोचों के दम पर किसी किनारे पहुंचने की चेष्टा में बोली- “मेरा ख्याल है कि वो अकेला ये काम नहीं कर रहा होगा। उसके और साथी भी होंगे, जो पीछे रहकर ही सब संभाल रहे होंगे।”
“ऐसा भी हो सकता है।”
“लेकिन ये सब काम करने वाला बेवकूफ नहीं हो सकता।” मोना चौधरी ने एकाएक कहा।
“क्या मतलब...?”
“वो अपने काम करवाने की एवज में कैश न देकर, दुर्लभ किस्म के हीरे दे रहा है। यहां तक कि उसने कार के ड्राईवर को भी, सप्ताह भर के मेहनताने की एवज में लाखों का हीरा दिया। माना कि उसके पास कैश नहीं था, तो उन हीरों को बेचकर कैश पेमेंट दे सकता था। ऐसे में उसके दो हीरे बच जाते।”
पारसनाथ ने कुछ नहीं कहा।
“उस आदमी की हरकतें, कुछ अजीब हैं ना, पारसनाथ?”
“हां, और हमें उसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।”
“उस तक पहुंचने का कोई तो रास्ता मिलेगा ही...।”
मोना चौधरी और पारसनाथ रेस्टोरेंट में पहुंचे। पारसनाथ रेस्टोरेंट के काम की वजह से नीचे ही रुक गया। मोना चौधरी ऊपर पहुंची तो अंशुल को टी.वी. वीडियो गेम खेलते पाया।
“आंटी...।” मोना चौधरी को देखते ही अंशुल वीडियो गेम छोड़कर पास आ पहंचा- “आप तीन दिन से कहां थीं...?”
“तुम्हारी मम्मी को ढूंढ रही थी बेटे...।” मोना चौधरी प्यार से उसे अपने पास बिठाते हुए बोली।
“तो मम्मी को कहां छोड़ दिया? घर चली गई मम्मी...।”
अंशुल मोना चौधरी को देखने लगा।
“अभी तुम्हारी मम्मी नहीं मिलीं।”
“नहीं मिलीं?”
“नहीं...।”
“लेकिन आप तो कह रही हैं कि मम्मी को ढूंढ रही थीं...!”
“हां, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ...।”
“आंटी, आपने तो कहा था कि आप जल्दी ही, मम्मी को ढूंढ लेंगी।”
“हां। जल्दी ही तुम्हारी मम्मी मिल जायेंगी।” मोना चौधरी ने उसका गाल थपथपाया।
“आंटी, मम्मी को जल्दी ढूंढ़ो। टेस्ट आने वाले हैं। मैंने स्कूल भी जाना है। अब तक तो होम वर्क भी बहुत इकट्ठा हो गया होगा फिर मम्मी रात को सोने नहीं देंगी। कहेंगी, होम वर्क पूरा करो। फिर सो जाना।” अंशुल के चेहरे पर भोलापन और वो अपनी ही पढ़ाई की परेशानी में फंसा लग रहा था।
मोना चौधरी ने उसे प्यार से अपनी गोदी में बिठाया और कह उठी।
“बेटे! मैं अपने सारे काम छोड़कर तुम्हारी मम्मी को ढूंढ रही हूं। मुझे तुमसे ज्यादा जल्दी है।”
“नहीं आंटी। मुझे ज्यादा जरूरत है मम्मी की। होम वर्क पूरा न हो तो मैडम बहुत डांटती हैं।”
अंशुल को इसी बात पर अड़ा देखकर, मोना चौधरी ने बात बदली।
“यहां पर अंकल तुम्हारा पूरा ध्यान रखते हैं?”
“हां आंटी। अंकल बहुत अच्छे हैं। मुझे चॉकलेटों का डिब्बा ला दिया। कोल्ड ड्रिंक जितनी भी मांगू, कभी भी मम्मी की तरह मना नहीं करते। खाना भी बहुत बढ़िया देते हैं। ऐसा खाना तो मम्मी भी नहीं देतीं।”
“तो फिर यहीं रहो। मम्मी की क्या जरूरत है।” मोना चौधरी हंसी।
“लेकिन आंटी- मम्मी होम वर्क कराती हैं। पढ़ना बहुत जरूरी है।”
उसके भोलेपन की बातों पर मोना चौधरी मुस्कराकर रह गई।
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