कुछ देर तक तो वह आश्चर्य के साथ विकास के मासूम मुखड़े को देखता रहा, फिर एकदम उसे कुछ होश आया । उसने विकास से कहा ।
-"क्या वास्तव में यह सत्य है ? "
-"एकदम सच है अंकल ।" विकास बोला- "अगर सच न होता तो प्रोफेसर स्टार देखकर इस बुरी तरह से भयभीत क्यों होता?"
- "लेकिन अगर ऐसा है तो केस भयानक मोड़ ले रहा है । " विजय सोचता हुआ बोला ।
"आप बिल्कुल ठीक कह रहे है ।" विकास ने गंभीरता के साथ समर्थन किया ।
तभी विजय को जैसे होश आया । वह संभला... उसे ध्यान आया कि वह बातें किससे कर रहा है? अगले ही पल उसने मुद्रा बदली और डपटकर बोला- "लेकिन तुम्हें इन बातों से क्या मतलब? तुम अपनी पढ़ाई में मन लगाओ।"
-"वाह अंकल!" विकास भी मुस्कराता हुआ ही बोला"पहले तो सारा रहस्य जान लिया और फिर हमें ही डांटते हो!" 1
विकास की बात का विजय को कोई संतोषजनक उत्तर न बन पड़ा ।
अंधकार काजल की भांति स्याह हो चला था । समस्त राजनगर गहन निद्रा की गोद में समाया हुआ था । चारों ओर निस्तब्धता अपना प्रभुत्व जमाए थी।
वह नाटे कद का स्याहपोश था- जो रघुनाथ की कोठी के बगीचे में बिल्कुल शांत खड़ा था। अंधकार में वह अंधकार का ही एक भाग नजर आ रहा था । वह बिल्कुल शांत था...ऐसा प्रतीत होता था मानो वह किसी की प्रतीक्षा कर रहा था । न जाने क्यों उसकी आंखें प्रत्येक क्षण विकास वाले कमरे की ओर लगी थी। उसके चेहरे पर एक स्याह नकाब था । केवल आंखों का स्थान रिक्त दिखाई दे रहा था ।
एकाएक वह धीमे से चौंका ।
अगले ही पल उसके अधरों पर विचित्र - सी मुस्कन नृत्य कर उठी । उसकी आंखें चमक उठी। अपने नाटे-से जिस्म को समेटकर उसने कोठी में लगे पौधों के मध्य कर दिया और ध्यान से वह उस ओर देखने लगाजिधर देखकर वह चौंका था। उसने गौर से देखा ।
ये लगभग पांच इंसानी छायाएं थीं जो स्वयं को अंधकार में रखने का प्रयास करते हुए अत्यंत सतर्कता के साथ दबे पांव कोठी में दाखिल हुई थी। उनके जिस्मों पर भी काले लबादे थे, नाटे कद का साया उन्हें स्पष्ट देख पाने में पूर्ण सफल था । वह शांत खड़ा उनकी एक-एक हरकत नोट करता रहा ।
दो छायाएं नीचे खड़ी हो गई । अन्य तीन पूर्ण सतर्कता के साथ कमरे की ओर बढ़ रही थीं । देखते-ही-देखते वे छायाएं लेशमात्र की ध्वनि भी न करके अंदर गुम हो गई ।
अब नाटे कद का साया उन्हें देख नहीं सकता था, क्योंकि बीच में बरामदे में लगा एक खंबा था । अत: नाटे कद का वह स्याहपोश तुरंत बगीचे में लेट गया और सतर्कता के साथ रेंगता हुआ ऐसे स्थान पर आ गया जहां से वह एक खुली खिड़की के माध्यम से अंदर का दृश्य देख सकता था । अंदर का दृश्य देखने में उसे किसी प्रकार की कठिनाई के स्थान पर सरलता ही हो रही थी, क्योंकि कमरे में एक नीले रंग का छोटा-सा बत्व मुस्करा रहा था ।
उसके धीमे और धुंधले प्रकाश में नाटे कद के स्याहपोश ने स्पष्ट देखा कि तीनों छायाएं विकास के पलंग की ओर बढ़ी । मासूम विकास निद्रारानी की गोद का शरणार्थी बना हुआ था । धुंधले प्रकाश में उसका मासूम मुखड़ा बड़ा ही भला प्रतीत होता था...लगता था मानो वह इन सबसे अनभिज्ञ हो ।
एकाएक न सिर्फ वह नाटे कद की छाया चौंक पड़ा, बल्कि कमरे में उपस्थित तीन छायाएं भी उछल पड़ी, क्योंकि आशा के विपरीत अचानक विकास बिस्तर से उछल पड़ा । उसका इरादा खतरनाक था, क्योंकि एक ही पल में उसके हाथ में रिवॉल्वर भी चमक उठी।
किंतु कमाल की फुर्ती और चतुरता- हासिल थी इन तीनों छायाओं को भी । विकास ने तो अपनी तरफ से गजब की फुर्ती का परिचय दिया ही था, किंतु इसका क्या किया जाए कि लाख फूर्ती दिखाने पर भी तीनों छायाएं उससे कहीं अधिक फुर्तीली और शक्तिशाली थीं ।
एक ही पल में तीनों छायाएं झपटीं और इससे पूर्व कि
विकास कुछ कर सके, उन्होंने न सिर्फ विकास को दबोच लिया, बल्कि उसके हाथ से रिवॉल्वर छीनकर एक कराटे के जरिए अचेत भी कर दिया ।
सभी कुछ बड़ी शांति के साथ हो रहा था । नाटा साया भी शांत खड़ा सब कुछ देख रहा था ।
विकास अचेत होकर उनकी बांहों में झूल गया । छायाओं ने एक-दूसरे की ओर देखा । एक ने विकास के बेहोश जिस्म को कंधे पर लादा और पूर्ण सावधानी के साथ वे वापस लौटे । बाहर खड़ी दोनों छायाएं किसी भी खतरे का सामना करने के लिए पूर्णतका सतर्क थीं, किंतु प्रत्यक्ष रूप से कोई खतरा सामने न आया । अत: अग्रिम कुछ ही क्षणों में वे पांचों छायाएं शांति के साथ कोठी से बाहर की ओर जा रही थीं ।
नाटे कद का साया उनसे भी अधिक सावधानी का परिचय दे रहा था । वह चुपचाप उनका अनुसरण कर रहा था ।
कुछ ही आगे जाकर वे लोग सड़क के एक ओर खड़ी काली ऑस्टिन के निकट पहुंचे, ऑस्टिन में पहले से ही कोई अन्य इंसान उपस्थित था । किंतु ऑस्टिन के भीतर की लाइट ऑफ थी, इसलिए चमक नहीं रहा था, किंतु अंधेरे में उसकी भराई हुई आवाज अवश्य गूंजी।
-"काम हो गया ?"
-''यस सर!'' एक छाया धीमे से फुसफुसाई ।
उसके बाद...!
सब लोग गाड़ी में समा गए । विकास इस बात से पूर्णतया
अनभिज्ञ प्रतीत हो रहा था । लगभग एक मिनट पश्चात ही इंजन स्टार्ट होने की ध्वनि ने सन्नाटे को पराजित कर दिया । अगले ही पल काली ऑस्टिन शांत सड़क के सीने को रौंदती हुई आगे बढ़ गई ।
ऑस्टिन कठिनाई से तीस कदम ही चल पाई थी कि एक मोटरसाइकिल उसके पीछे लग गई मोटरसाइकिल पर नाटे कद का साया बैठा था, ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो उसे इस घटना की पूर्व जानकारी अथवा संभावना 'हो । तभी तो उसकी मोटरसाइकिल पहले से ही झाड़ियों में छिपी हुई थी । खैर बहरहाल जो क्कु भी हो रहा हो, किंतु इतना तो निःसंदेह कहा जा सकता है कि नाटे कद का वह साया एक निश्चित दूरी निर्धारित करके बड़ी सतर्कता के साथ ऑस्टिन का अनुकरण कर रहा था । उसकी मोटरसाइकिल की कोई भी लाइट ऑन नहीं थी ।
अब तक वे कई मोड़ मुड़ चुके थे, किंतु एक मोड़ पर नाटे कद का साया एकाएक बुरी तरह चौंक पड़ा, क्योंकि मुड़ने पर वह जहां तक देख सकता था-साफ सड़क ही दीखी । केवल रिक्त सड़क । ऑस्टिन की तो बात ही छोड़िए-वहां ऑस्टिन का नामोनिशान तक नहीं था । नाटे कद के साए की खोपड़ी मानो वायु में चक्कर लगा रही थी। ऑस्टिन को अचानक धरती निगल गई अथवा आसमान सटक गया ।
कुछ देर तक तो नाटा साया इस उद्देश्य को लिए सड़कों पर चकराता रहा कि कहीं ऑस्टिन के दर्शन हो जाएं, किंतु उसे जब सफलता नहीं मिली तो वह झुंझला गया । अब उसने मोटरसाइकिल की हैडलाइट ऑन कर दी और अब उसका रुख रघुनाथ की कोठी की ओर था ।
परेशानी की-सी स्थिति में वह रघुनाथ की कोठी पर पहुंचा । उसकी मोटरसाइकिल ठीक वहां स्थिर हुई जहां वह ऑस्टिन खड़ी थी । उसने मोटरसाइकिल वहीं स्टैंड पर खड़ी की और जेब से एक पेंसिल टॉर्च निकालकर वहां का निरीक्षण करने लगा ।
एकाएक छाया चौंकी । उसकी टॉर्च का प्रकाश मिट्टी में बने कुछ चिह्नों पर स्थिर हो गया। उसने ध्यान से देखा वहां अनेक जूतों के चिह्न थे, किंतु उनके बीच में कुछ भिन्न प्रकार के चिह्न भी थे, कुछ इस प्रकार के चिह्न-जैसे किसी भारी वस्तु को खदेड़ा गया हो । -
नाटा साया कुछ देर तक तो उन चिह्नों को देखता रहा, फिर वह टार्च के प्रकाश को उन्हीं चिट्ठों पर उस तरफ को चलाने लगा - जिस ओर कि किसी भारी वस्तु को खदेड़कर ले जाया गया था | चिह्नों झाड़ियों की ओर चले गए थे। टॉर्च के प्रकाश के सहारे वह झाडियों की ओर चला...!
और अंत में जब उसकी टॉर्च का प्रकाश उस भारी वस्तु पर केंद्रित हुआ तो वह चौंके बिना न रह सका। यह एक लाश थी...नग्न और जवान युवक की लाश ।
उसके पेट में चाकू ठूंस दिया गया था । खून से आसपास की झाड़िया रक्तिम थी । कुछ देर तक वह टॉर्च के प्रकाश में लाश का निरीक्षण करता रहा, किंतु उसने उसे हाथ नहीं लगाया । उसका दिमाग शायद यह सोच रहा था कि ये चक्कर क्या है? यह लाश किसकी है?
विकास, विजय को यह बताकर चला गया कि प्रोफेसर हेमंत उस स्टार से भयभीत क्यों हो गया था, किंतु विजय के दिमाग में काफी उथल-पुथल छोड़ गया। विजय जानता था कि कुछ भी सही, लेकिन फिर भी विकास है तो बालक-बुद्धि ही । यह बात तो उसके दिमाग में घर कर ही चुकी थी कि विकास साधारण व्यक्तियों की अपेक्षा गजब की कुशाग्रबुद्धि का वारिस है । लेकिन फिर भी विकास है तो बालक ही । यह तो ठीक था कि उसने प्रोफेसर हेमंत की एक नस को पकड़ा था, किंतु विजय जानता था कि इसका परिणाम उसे अवश्य भुगतना होगा । अत: उसके जाने के पश्चात विजय चिंतित हो उठा ।
वैसे अभी विजय यह निश्चय करने में असफल था कि प्रोफेसर हेमंत का भयभीत होना-आग के बेटे वाले केस से कितना गहरा संबंध रखता है? अथवा यह एक बिल्कुल ही पृथक घटना है किंतु इतना निश्चित था कि विकास खतरे में है। उसके विचार से प्रोफेसर हेमंत या तो विकास की हत्या का प्रयास करेगा अथवा उसका अपहरण किया जाएगा ।
न जाने क्यों विजय का दिमाग आग के बेटे वाले अभियान से हटकर इधर लग गया। शायद इस कारण कि इस समय विकास की जान खतरे में थी । उसे लग रहा था कि विकास के साथ अवश्य कोई अप्रिय घटना होगी।
अत: स्याह रात के आगमन के श्रीगणेश से ही वह गुप्त रूप से विकास की सुरक्षा हेतु उसकी कोठी पर जाकर उसकी निगरानी करने लगा-वह अपनी तरफ से पूर्णतया सतर्क और लैस था, किंतु फिर भी वह उस नाटे कद के साए को नहीं देख सका, क्योंकि वह कोठी के सामने की ओर के बगीचे में था और विजय कोठी के पीछे- किंतु वह ऐसे स्थान पर था जहां से वह प्रत्येक क्षण विकास के कमरे पर बिना किसी परेशानी के निगाह रख सकता था ।
और वास्तव में काम उसके सोचने के अनुसार ही हुआ । उस समय वह धीमे से चौंका- जब रात की घनी स्याही में किसी इंजन की आवाज निकट आई और स्याही से बाहर निकलती स्याह आस्टिन को उसने अपनी ओर ही आते महसूस किया ।
विजय जैसे दक्ष व्यक्ति के लिए यह ऐसी नई बात नहीं थी । अत: धीमे से मुस्कराकर वह फुर्ती और सतर्कता के साथ निकट की झाड़ियों में रेंग गया। सांस रोककर वह ध्यान से उस ओर देखने लगा । यह लिखने की आवश्यकता नहीं है कि विजय के हाथ में उसका रिवॉल्वर आ चुका था ।
स्याह ऑस्टिन ठीक वहीं, उन्हीं झाड़ियों के पास रुकी, जिनमें विजय पड़ा हुआ था। रिवॉल्वर लिए वह शांत पड़ा रहा । तभी ऑस्टिन से पांच छायाएं बाहर निकलीं और आस्टिन में शेष छठी छाया बोली ।
"सारा काम सतर्कता के साथ हो ।"
- "आप चिंता न करें।" पांच छायाओं में से एक बोली ।
- "उठाकर लाने में केवल दस मिनट लगने हैं । "
'यस सर! '' उसी ने उत्तर दिया और पांचों रघुनाथ की कोठी की दीवार की ओर बढ़ गई ।
विजय को समझने में देर नहीं लगी कि इनकी योजना विकास के अपहरण की है-उसकी हत्या की नहीं । विजय ने तुरंत निश्चय किया कि उसे क्या करना है और छायाओं से नजर हटाकर ऑस्टिन की ओर घूरने लगा। वह अभी घूर ही रहा था कि... ।
एकाएक अंदर बैठी छाया ने लाइटर जलाया और अगले ही ने पल उसके हाथों के बीच फंसी सिगरेट सुलग गई । तीसरे पल लाइटर की लौ विलुत्त हो गई किंतु इतने समय में विजय अपने मतलब की प्रत्येक स्थिति देख चुका था कि यह स्याह कपड़ों में लिपटा एक इंसान है जिसने सिगरेट पीने हेतु अपनी स्याह नकाब ऊपर कर ली थी। तथा वह ऑस्टिन की बाई ओर की विंडो से टेक लगाए बैठा था जबकि विजय इस समय ऑस्टिन की दाई ओर वाली झाड़ियों में छिपा हुआ था ।
विजय के होंठों पर एक विचित्र - सी मुस्कान खेल गई । अब वह ऑस्टिन के भीतर जलती उस सिगरेट को बड़ी सरलता से देख सकता था जिसमें जब वह छाया कश मारती तो क्षणमात्र के लिए मानो उसका चेहरा भी दमक उठता था ।
विजय जानता था कि उसे अपना कार्य सिर्फ आठ मिनट में शांति के साथ करना है । अत: वह रिवॉल्वर संभाले झाड़ियों से बाहर कार की ओर रेंगा ।
उसे रेंगते हुए ऑस्टिन का चक्कर लगाकर बाई ओर पहुंचने में मुश्किल से तीन मिनट लगे थे । इन तीन मिनटों के शेष सेकंडों में ही वह भयानक फुर्ती के साथ खड़ा हुआ और इससे पूर्व कि वह छाया कुछ समझ सके अथवा कुछ कर सके, उसने रिवॉल्वर का पिछला भाग शक्ति से उसकी कनपटी पर रसीद किया ।
सिगरेट तो उसके हाथसे छूट गई। साथ ही उसने चीखना भी चाहा, किंतु इसका क्या किया जाए कि उसके मुख पर रखा विजय का दाहिना हाथ उसे चीखने की का नहीं दे रहा था । वह छाया भी विजय के हाथों में बुरी तरह मचली...!
किंतु विजय जानता था कि अवसर देना खतरे से खाली नहीं होगा और विजय के यह सोच लेने के पश्चात उस बेचारे की क्या मजाल कि कुछ कर जाए! अत: विद्युत गति से विजय ने रिवॉल्वर वहीं छोड़ा और चाकू निकालकर उसके पेट में घोंप दिया ।
छाया भयानकता के साथ मचली - पूर्ण शक्ति से उस छाया ने चीखना चाहा - किंतु विजय इतना शरीफ कहां था कि उसे इस सब में सफल होने देता! अत: परिणाम यह हुआ कि चाकू लगते ही उसने खून की उल्टी कर दी। विजय का हाथ भी खून में सन गया । किंतु वह छाया दुनिया से कूच कर गई । इस बीच विजय ने इतनी सावधानी अवश्य बरती थी कि खून की एक बूंद भी ऑस्टिन के अंदर न गिरे और वह अपने इस कार्य में सफल भी रहा ।
ठीक सात मिनट में ही विजय उसे खदेड़कर झाड़ियों में डाल आया और उसके स्याह कपड़े विजय के जिस्म पर लगभग फिट ही थे । मतलब ये कि आठवें मिनट में वह आस्टिन में बैठा उसी ब्रांड की सिगरेट फूंक रहा था जिसे वह इंसान फूंक रहा था, हालांकि विजय सिगरेट इत्यादि नहीं पीता था, किंतु ऐसी नफरत भी नहीं करता था, क्योंकि उसका काम ही ऐसा था, जिसमें न जाने कब क्या करना पड़े। कभी-कभी वह सिगरेट में कश लगाता और किसी झकझकी की एकाध पंक्ति बड़बड़ाकर स्वयं ही खुश हो लेता था ।
तब जबकि पांचों छायाएं विकास के बेहोश जिस्म के साथ बिना किसी परेशानी के अपना कार्य पूर्ण करके वहां आई तो उसने लगभग उसी स्वर में कहा ।
"काम हो गया ?"
इत्यादि वार्तालाप के पश्चात ऑस्टिन आगे बढ़ी। विजय ही नहीं, बल्कि अन्य पांचों ने भी चेहरे नकाब से ढक लिए थे । ऑस्टिन तीव्र वेग से दौड़ रही थी । कोई किसी से न बोल रहा थासभी शांत थे ।
एकाएक विजय चौक पड़ा ।
ऑस्टिन में लगा ट्रांसमीटर पिक पिक करने लगा। ड्राइवर ने तुरंत ट्रांसमीटर ऑन किया उसमें से आवाज आई ।
- "यस... नंबर शर्बीला सेशन?"
"यस महान आग के स्वामी... आई एम शर्बीला सेशन स्पीकिंग ।"
"इतनी बेवकूफी अच्छी नहीं होती ।" दूसरी ओर के लहजे में तीव्र गुर्राहट थी ।
- "क्या मतलब महान स्वामी...? " वह एकदम चौंका । विजय को भय हुआ कि कहीं उसका रहस्य तो नहीं खुल गया, किंतु फिर भी वह स्वयं को संयत किए शांति से बैठा रहा । यह एक अन्य बात थी कि उसने किसी खतरे से निबटने के लिए स्वयं को पूर्णतया सतर्क कर लिया था । वह ध्यान से सुनने लगा ।
- "एक मोटरसाइकिल निरंतर तुम्हारा पीछा कर रही है और तुम लोग अनभिज्ञ हो ।"
- "क्षमा महान स्वामी क्षमा ।" शर्बीला सेशन स्थिति को । संभालने का प्रयास करता हुआ बोला- "हम शीघ्र ही उससे पीछा छुड़ाने में सफल होंगे । "
"उससे पीछा मैं स्वयं छुड़ा लूंगा ।'' दूसरी ओर से गुर्राया स्वर- 'तुम पहले अपने बराबर में बैठे शर्जीला सेशन को गिरफ्तार करो-जो भयानक जासूस विजय के अतिरिक्त कोई नहीं ।"
विजय जैसे आकाश से गिरा...!
वास्तव में उस अधेड़ की हरकत ही ऐसी थी कि उसे रंगीन मिजाज की उपाधि देनी पड़ती है । यह वही अधेड़ था, जो रघुनाथ की कोठी के पिछवाड़े वाली गली में देखा गया था और विकास के जरिए फरार होने के बाद गधे के सींग साबित हुआ था ।
इस समय वह राजनगर के प्रसिद्ध होटल सेविना' में था । वह पहले भी सेविना में कई बार दाखिल होने का प्रयास कर चुका था, किंतु इसका क्या किया जाए कि दरबान प्रत्येक चार उसके चौधरी परिधान को देखकर उसे वहां से खिसकने पर मजबूर कर देता था । अतः परिणामस्वरूप उसके समस्त इरादों पर पानी फिर जाता - किंतु था वह भी कोई रांड का जंवाई ही ।
उसने भी शायद निश्चय ही कर लिया था कि उसे 'सेविना' में अवश्य जाना है। तभी तो आज उसके शानदार जिस्म पर धोती-कुर्ते के स्थान पर शानदार चमकीला सूट नजर आ रहा था। काउंटर से टेक लगाए वह किसी छंटे हुए सेठ की भांति सिगार में कश लगा रहा था ।
हॉल में शायद आज कुछ विशेष आयोजन था तभी तो हॉल की, लगभग समस्त सीटें हो चुकी थी। बैरे तत्परता के साथ कार्य कर रहे थे । शराब और सिगरेट के धुएं से वातावरण कुछ रंगीन-सा था । इस रंगीनी में शेष कमी पूरी कर रहे थे स्त्री-पुरुषों के मिश्रित कहकहे । प्रत्येक इंसान स्वयं में ही मस्त नजर आता था ।
उस अधेड़ को भी किसी से कोई मतलब न था, क्योंकि
उसके हाथ में एक पैग थाउंगलियों में दबा हुआ एक सिगार और बगल में वह कॉलगर्ल, जो उसकी गर्म जेब को ठंडा करने के इरादे से उससे लिपटी जा रही थी, किंतु विचित्र था वह अधेड़ भी... ।
अगर वह उस कॉलगर्ल को अपने पास से हटा नहीं रहा था तो उसे अधिक लिफ्ट भी नहीं दे रहा था, किंतु कॉलगर्ल को इससे क्या मतलब-उसकी निगाहों में तो वह आसामी था । अत: पैसे के अनुसार उस पर अपनी अदाओं, नजरों इत्यादि के तीर चलाने से नहीं चूक रही थी। अतः वह अपने तन से पूर्णतया अधेड़ पर न्योछावर थी ।
किंतु अधेड़ अपने अधरों के बीच नृत्य करती मुस्कान को स्थायी रूप से कैद बनाए- - उसकी ओर से लापरवाह उस एक पैग को क्षण-भर के लिए पूरता रहा । तभी वह कॉलगर्ल अपनी समस्त अदाओं को एक साथ ही एकत्रित करके बड़े रोमांटिक ढंग से बोली ।
"ये तुम्हारा दसवां पैग है डार्लिंग।"
अधेड़ ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया । किंतु अपनी चमकीली आंखों से उसे देखा अवश्य । उसके देखने का ढंग भी कुछ विचित्र-सा था । जिसमें छिपी भयानकता भी थी और प्यार-सा भी । न जाने क्यों कॉलगर्ल कुछ कांप-सी गई, किंतु कांपकर भी वह उसके जिस्म से और अधिक सट गई । अधेड़ की मुस्कराहट में लेशमात्र भी अंतर नहीं आया.. किंतु शीघ्र ही उसने लड़की के चेहरे से निगाहें हटाकर पैग को घूरा, मानो पैग को आंखों के माध्यम ही से पेट में पहुंचा देगा, किंतु कुछ नहीं किया, बल्कि एक ही घूंट में वह उस पैग को कंठ से नीचे उतार गया ।
कॉलगर्ल का काम तो मानो बस नाजो-अदा ही दिखाना था, तभी अधेड़ ने अपने से थोड़ी दूर पर जाते हुए एक बैरे को अपनी ही भाषा में आवाज लगाई ।
"अरे ओ छोरे यूंह कू सन !"
बैरा एकदम उसकी ओर घूम गया...फिर मुस्कराता हुआ उसके निकट आकर बोला ।
-"बोलिए साब!"
- "यार यहां यूंई रंगीन-सी मिले है के- -ऊ ना है देस्सी ?"
एक बार को तो बैरे स मन किया कि वह खुलकर कहकहा लगा दे - किंतु मजबूर था... क्योंकि अधेड़ फिर भी ग्राहक ठहरा और वह सिर्फ एक बैरा । अतः स्वयं को कठिनाई से रोककर वह बोला ।
-"नहीं साब! "
और अभी शायद वह बैरा आगे भी कुछ कहना चाहता था कि वह थम गया । समस्त हॉल चौंक पड़ा और सभी की नजरें एक ओर घूम गई । कुछ लोगों के मुख से भयभीत कॉलगर्ल भी निकल गई । कॉलगर्ल अधेड़ से लता की भांति चिपक गई । अधेड़ के पास जो बैरा खड़ा था उसके हाथ में एक पानी का जग था- जो तुरंत फर्श पर गिरकर चूर-चूर हो गया ।
उसके पीछे खड़ा काउंटरमैन सूखे पत्ते की भांति कांपने लगा । अपने सूखे अधरों पर जीभ फेरकर वह अत्यंत ही धीमे स्वर में बड़बड़ाया ।
- "पता नहीं बॉस ने इस राक्षस को यहां क्यों रखा है ?"
वास्तविक्ता यह थी कि बैरे के वाक्यों को एक अति सुंदर लड़की की चीख ने बीच में ही रोक दिया। समस्त हॉल के साथ अधेड़ व्यक्ति की दृष्टि भी एक झटके के साथ उधर ही उठ गई और वास्तव में चौंक वह भी पड़ा था ।
वह एक अत्यंत खूबसूरत लड़की की चीख थी जिसे एक भयानक-सा नजर आने वाला हट्टा-कट्टा काला नीग्रो लगभग घसीटता हुआ हॉल से गुजारता हुआ सीढियों की ओर ले जा रहा था । वह लड़की अपनी शक्ति और क्षमता के अनुसार निरंतर और पूर्णतया उस नीग्रो का विरोध कर रही थी, किंतु कहां वह कोमल कली और कहां वह भयानक रूपी नीग्रो ! नीग्रो के भयानक और मजबूत हाथ उस कली की गोरी और नाजुक कलाई को थामे घसीटते ले जा रहे थे ।
"बचाओ...बचाओ...!" वह लड़की निरंतर अपनी संपूर्ण शक्ति से चीख रही थी, किंतु किसी पर उसकी चीखों का कोई असर नहीं हो रहा था- बल्कि इस दृश्य को देखकर सबकी हालत खस्ता हो गई थी। सभी बुरी तरह से आतंकित हो चुके थे । मानो वह भयानक शक्तिशाली नीग्रो इंसान न होकर बीसवीं सदी का राक्षस रहा हो । सभी भयभीत-से इस दृश्य को देख रहे थे ।
अधेड़ ने कांपते हुए बैरे और काउंटरमैन को देखा । एक क्षण के लिए उसकी दृष्टि कॉलगर्ल पर भी गई, फिर भी उसने आतंकग्रस्त हॉल को निहारकर अपनी निगाह उस नीग्रो और लड़की पर जमा दी-जो हॉल के दूसरे कोने पर पहुंच चुके थे । एकाएक अधेड़ चीखा-' 'अरे ओ कालिए. अरे कहां ले जाय याक्कू ?"
वाक्य सुनते ही भयानक नीग्रो का खूंखार चेहरा, एक तीव्र झटके के साथ उसकी ओर घूम गया और साथ ही घूम गए हॉल में उपस्थित समस्त चेहरे । सभी की आंखों में जहां महान आश्चर्य उमड़ रहा था, वहीं अधेड़ के प्रति सहानुभूति के भाव भी, किंतु अधेड़ मानो उनसे बिल्कुल लापरवाह था ।
यह दूसरी बात है कि नीग्रो की भयानक और दहकती लाल आंखों के तेवर देखकर अंदर ही अंदर वह भयभीत होकर कांप गया हो, किंतु प्रत्यक्ष में वह तनिक भी भयभीत न हुआ, वास्तव में अधेड़ भी जान चुका था कि जोश में आकर आज उसने साक्षात मौत को छेड़ दिया है । उस भयानक नीग्रो को मौत कहा जाए तो अधिक उपयुक्त होगा। नीग्रो के घूमते ही अधेड़ को अपना इरादा कुछ बदलता हुआ महसूस हुआ । उसने मन-ही-मन अपने शब्द वापस लेकर अपनी भूल सुधारने और नीग्रो से न टकराने का निश्चय किया क्योंकि वह भांप गया कि इस खूंखार नीग्रो से टकराने का मतलब तो साक्षात मौत है- अभी वह सोच ही रहा था कि ।
एकाएक न जाने कैसे उस लड़की का हाथ खतरनाक नीग्रो की सख्त पकड़ से मुक्त हो पया । मुक्त होते ही वह पहले थोड़ी-सी लड़खड़ाई - फिर वह संभलकर अधेड़ की ओर भागी । भागी तो वह निःसंदेह, किंतु प्रत्येक कदम पर ऐसा लग रहा था कि जैसे अब गिरी बस अब गिरी । भागती-भागती ही वह अपनी संपूर्ण शक्ति से चीखी ।
"भैया...ऽऽऽ………!" यह शब्द चीखती हुई वह बुरी तरह से लड़खड़ाती हुई अधेड़ की ओर भागी। लड़खड़ाकर वह अधेड़ के कदमों में गिरने ही वाली थी कि न जाने अधेड़ में कौन-सी शक्ति का संचार हुआ? भैया... शब्द ने जाने कौन-सी शक्ति प्रदान कर दी कि एक झटके के साथ उसकी उंगलियों के बीच फंसा वह सिगार और छोटा-सा गिलास तो छूट ही गए। साथ ही उसने स्वयं से लिपटी कॉलगर्ल को धक्का देकर अलग कर दिया और लड़खड़ाकर अपने कदमों में गिरती लड़की को अपनी बाहों में संभालकर आलिंगन किया, न जाने किन भावनाओं से प्रेरित हो गया वह अधेड़ कि अगले ही पल उसका हाथ ठीक इस प्रकार स्नेह से उस लड़की के बालों पर घूमा, मानो वह वास्तव में उस लड़की का सगा भाई हो।
अचानक वह लड़की बुरी तरह सिसककर अपने भाई के सीने से लग गई ।
अधेड़ शायद जान गया कि साधारण-सी वेशभूषा में नजर आने वाली लड़की मध्यम वर्ग की है जिसने कभी होटलों में हंगामे देखे न हो, जो इन रंगीनियों से बहुत परे हो, जिसे ये लोग अपनी हवस का शिकार बनाने हेतु यहां उठा लाए हैं । वरना होटलों की दुनिया में पली लड़की नीग्रो के इस प्रकार ले जाने का न तो विरोध ही करती और अगर किसी कारण विरोध करके वह उसकी सहायता भी चाहती तो 'भैया' जैसा पवित्र शब्द कभी न कहती । वह तो होती उस कॉलगर्ल की भांति, जो कि अभी कुछ समय पूर्व उसकी जेब ठंडी करने के इरादे से उससे लिपटी खड़ी थी ।
सोचते-सोचते उस अधेड़ की आंखों में दृढ़ता उभर आई एक क्षण पूर्व नीग्रो से टकराने का जो इरादा डगमगा गया था वह चट्टान की भांति अडिग हो गया । उसकी आंखों में भी खून झांकने लगा । उसने भी जलती आंखों से उस भयानक - नीग्रो को देखा, जो खूंखार ढंग से उसी ओर घूर रहा था ।
हॉल में मौत जैसा सन्नाटा था ।
अब प्रत्येक इंसान उन दोनों के मध्य से हट गया था । उपस्थित प्रत्येक इंसान को विदित था कि महज चंद भावनाओं में बहकर अधेड़ ने मौत को ललकारा है जिसके फलस्वरूप कुछ ही क्षणों उपरांत हॉल में उसकी लाश तड़पती नजर आएगी ।
"यह तुम क्या कर रहे हो चौधरी? वह आज का सबसे खतरनाक आदमी जिम्बोरा है ।" एकाएक अधेड़ के कानों से अपने पास खड़े काउंटरमैन की बड़बड़ाहट टकराई, किंतु उस पर इसका लेशमात्र भी अंतर न पड़ा । वह उसी प्रकार नीग्रो को घूरता रहा ।
अचानक नीग्रो के मोटे, लटके हुए भद्दे और काले होंठों पर एक ऐसी क्रूर और जहरीली मुस्कान नाच उठी -मानो उसने अधेड़ को उसके इस अपराध के लिए क्षमा कर दिया हो । वह अत्यंत भयानक और घरघराती- सी आवाज में लड़की से संबोधित होकर बोला ।
- ''ये हिंदोस्तानी मच्छर तेरी क्या रक्षा करेगा छोकरी? अगर जिम्बोरा इसमें फूंक भी मार दे तो रसातल में समा जाए।" अधेड़ का उबलता खून मानो उफन गया । उफनकर मानो समस्त लहू उसकी आंखों में तैर आया । समस्त जिस्म की नसों में एकदम तनाव आ गया । जबड़े शक्ति के साथ एक-दूसरे पर जम गए । अत्यंत खूंखार दृष्टि से नीग्रो को घूरता हुआ वह चीखा ।
"कहा कै बे कालिए... मैं तोरी टांग पै टांग धर कै चीर दूंगो।"
उपरोक्त वाक्य ने मानो एकदम नीग्रो की मुस्कान छीन ली । उसके भयानक जबड़े किसी राक्षस की भांति फैले । भयानक तरीके से वह अधेड़ की तरफ बढ़ा । इस बीच उसकी खतरनाक कटार भी उसके हाथों में दबी थी ।
अधेड़ में न जाने कौन-सी शक्ति का संचार हो गया था । उसने भी लड़की को धीरे से स्नेह के साथ स्वयं से अलग किया और मौत बनकर, मौत से टकराने के लिए आगे बढ़ा...।
समस्त हॉल में भयानक भय व्याप्त हो गया था। वहां मौत जैसी शांति थी । एक मौत दूसरी मौत की मृत्यु हेतु आगे बढ़ रही थी ।
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