चालीस मिनट बाद प्यारा वापस लौटा।

"धांसू आइडिया आया है तेरे लिए प्यारे... कि गिन्नी का ब्याह बिना सोने की अंगूठी के, चाची को तेरे साथ ही करना पड़ेगा।"
"बता... वो कैसे?" प्यारा आगे बढ़कर बैठता हुआ उत्सुकता से कह उठा।
"चाची तेरे पीछे-पीछे आयेगी, ब्याह करने को...।" सोनू बहुत खुश था।
"मैंने चाची से नहीं, गिन्नी से शादी करनी...।"
"मेरा मतलब वो ही है प्यारे...।"
"बता... ये कैसे होगा?"
"भगते की याद है तुझे?"
"भगता?"
"वो ही...हलवाई।"
"अच्छा वो भगता...वो तो...।"
"याद कर, साल भर पहले भगते ने क्या किया? रिटायर्ड सूबेदार की लड़की पिंकी...।"
"हाँ...हाँ याद आया...।" प्यारे माथे पर हाथ मार कर कह उठा।
"पिंकी, भगते की दुकान से लड्डू लेने गई थी, भगते ने उसे पटा लिया। रेप कर दिया खेतों में लेजाकर उसके साथ।"
"एक तरफ तू कहता है पटा लिया। दूसरी तरफ कहता है कि रेप कर दिया...।"
"मेरा मतलब है कि भगते ने उसके साथ सब कुछ कर लिया।"
"हाँ, यही सुना था।"
"तीन-चार महीने वे दोनों इसी तरह गड़बड़ करते रहे। सूबेदार की लड़की को बच्चा ठहर गया।"
"हाँ, तब भगता इस बात से मुकर गया कि उसने तो कुछ किया ही नहीं और सूबेदार उसके पीछे भागता रहा कि वो, पिंकी से शादी कर ले। सूबेदार ने पुलिस भी बुला ली थी। बहुत पंगा हुआ था।"
"आखिरकार सूबेदार अपनी बेटी की शादी भगते से करा कर ही रहा।" प्यारे ने सिर हिलाया।
"तू भी झंडे गाड़ दे।"
"क्या मतलब?"
"गिन्नी के साथ गड़बड़ कर दे...।"
"क्या?" प्यारे हड़बड़ाया--- "चाची तो पूरा शहर सिर पर उठा लेगी।"
दोनों की नजरें मिलीं।
दोनों मुस्कुरा पड़े।
"चाची, गिन्नी की शादी तेरे से कराने के लिए तेरे पीछे-पीछे दौड़ेगी।" सोनू ने हाथ-पर-हाथ मारकर कहा।
"तू तो मेरा सच्चा यार है।" प्यारे खुश होकर कह उठा--- "मैं ऐसा ही करूँगा।"
"इससे बढ़िया रास्ता और कोई नहीं है, गिन्नी से शादी करने का। जल्दी से कर दे गड़बड़...।"
"पहले गिन्नी को राजी करना होगा।" प्यारे ने सोच भरे स्वर में कहा--- "उसे पटाना पड़ेगा।"
"पटा ले। सोचता क्या है। लग जा इसी काम के पीछे...।"
◆◆◆
जगमोहन रात को आधा-अधूरा ही सो पाया।
रात भर वो कमरे में अकेला था। सुदेश उसके पास नहीं था। कमरे में कोई खिड़की नहीं थी कि जिससे वो बाहर देखकर ये समझ पाता कि वो कहाँ पर है। एक दरवाजा था, वो बंद था।
सुबह सात बजे उसने बेड छोड़ा। और सोचों में डूबा बाथरूम में जा घुसा।
मन में एक ही बात थी कि आज क्या होगा?
देवराज चौहान उन चारों के साथ जिस बैंक वैन की डकैती करने जा रहा था, उस पर मलिक की भी नजर थी। वो बैंक वैन से अपनी जरूरत का कोई सामान निकालना चाहते थे।
देवराज चौहान को नहीं मालूम था कि ऐसी कोई गड़बड़ होने वाली है। जगमोहन ये भी नहीं जान पाया था कि उसे कैद करने वाले कौन हैं?
इन्हीं सोचों में उलझा जगमोहन, चिन्ता में रहा।
नहा-धोकर कल वाले कपड़े ही पहन लिए।
आठ बजे होंगे जब मलिक और मल्होत्रा ने कमरे में कदम रखा।
जगमोहन की निगाह दोनों के चेहरों पर गई।
"मिस्टर जगमोहन!" मलिक गम्भीर स्वर में बोला--- "वैरी गुड मॉर्निंग। मैं भगवान से यही माँगूंगा कि तुम्हारा आज का दिन सलामती से बीते। मुझे तुम्हारे लिए, आज के दिन की चिन्ता है।"
जगमोहन की निगाह मलिक के चेहरे पर जा टिकी।
"देवराज चौहान रात भर उसी ठाकर होटल में टिड्डा, प्रतापी, शेख और पव्वा के साथ रहा। रात उन्होंने बाजार से बोतल खरीदी और आराम से पी। चैन की नींद ली होगी उन सबने। मेरे आदमी बाहर रहकर उन पर नजर रख रहे हैं। मेरे निशानेबाज भी वहाँ पर मौजूद हैं। मेरी तरफ से इशारा होते ही, वे देवराज चौहान को मार देंगे।"
जगमोहन के होंठ भिंच गये।
"मुझे पूरा यकीन है कि तुमने फैसला ले लिया होगा कि तुमने हमारे साथ कैसे पेश आना है। मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है, मैं तुम्हारा जवाब लेने आया हूँ। हाँ या ना?"
जगमोहन के होंठ भिंचे रहे।
"इसकी ना लगती है मलिक।"  मल्होत्रा ने कहा।
मलिक गम्भीर निगाहों से मलिक को देखता रहा।
जगमोहन कठोर निगाहों से मलिक को देखता रहा।
"इतना वक्त मत लो।" मलिक बोला--- "इन्कार करना है तो जल्दी से इन्कार कर दो। ताकि हम बाकी के काम उसी हिसाब से करें। ये याद रखना कि इन्कार करने की स्थिति में देवराज चौहान को शूट कर दिया जायेगा। वो हमारे आसान निशाने पर है।"
"मेरी बात क्यों नहीं मान लेते तुम...।" जगमोहन बोला।
"कैसी बात?"
"मैं देवराज चौहान से बात कर लेता हूँ वो...।"
"ये हमें मंजूर नहीं...।"
"लेकिन क्यों... ये सबसे आसान और बढ़िया रास्ता...।"
"मैं तुम्हें कल बता चुका हूँ कि हम ज्यादा लोगों के सामने अपनी पहचान नहीं कराना चाहते।" मलिक ने शांत-गम्भीर स्वर में कहा--- "ये हमारे लिए ठीक नहीं होगा।"
"वहम में मत पड़ो। तुम लोगों के बारे में कोई भी मुँह नहीं खोलेगा। इस तरह तुम्हारा मनचाहा काम हो जायेगा और 60 करोड़ हमारे पास सुरक्षित रहेगा। उसके बाद हम लोगों का दोबारा मिलना होगा ही नहीं।"
मलिक ने मल्होत्रा को देखा।
मल्होत्रा कह उठा--- "हमारे साथ कोई और भी होगा जो नहीं चाहता कि उसे कोई देखे।"
"कोई और?" जगमोहन के माथे पर बल पड़े।
"हाँ, उसने उस चीज की पहचान करनी है, जो बक्सों से हमें निकालनी है।" मल्होत्रा बोला।
"वो कौन है?"
"कोई भी हो। तुम्हें क्या?"
"वो मेरे सामने तो आयेगा, मैं तो उसे देख...।"
"तुम भी उसे नहीं देख सकोगे। जब वो सामने आयेगा तो तुम्हारी उस तरफ पीठ करा दी जायेगी।"
"खूब! ताकि पीठ पर आसानी से गोली मार सको।"जगमोहन कड़वे स्वर में बोला।
"अगर गोली ही मारनी है तो तुम्हारी छाती पर क्यों ना मारें? स्पेशल पीठ पर मारने की क्या जरूरत है?" मल्होत्रा ने कड़वे स्वर में कहा--- "वो नहीं चाहता कि उसे कोई भी देखे।"
जगमोहन की निगाह मलिक और मल्होत्रा के चेहरों पर फिरने लगी।
"उसे वो तो देख ही लेगा, जो बैंक के स्टील के उन बक्सों को खोलेगा।"
"वो भी नहीं देख सकेगा। ये हमारा काम है, तुम हम पर छोड़ दो।" मल्होत्रा ने जगमोहन को घूरते हुए कहा--- "तुम अपने बारे में सोचो। तुमने सिर्फ ये करना है कि जब देवराज चौहान और उसके साथ बैंक-वैन लेकर भाग रहे हों तो रास्ते में कहीं भी तुमने बैंक वैन पर कब्जा करके हमारी बताई जगह पर ले आना है। आगे का सारा काम हम संभाल लेंगे। जब तुम ये काम करोगे तो मेरे आदमी तुम्हारे आसपास ही होंगे। उधर देवराज चौहान पर बराबर नजर रखी जा रही होगी। जब भी तुमने हमारी मर्जी के खिलाफ कदम उठाया, देवराज चौहान को उसी वक्त शूट कर दिया जायेगा। ये बात तुम अच्छी तरह जानते हो कि देवराज चौहान इस वक्त मेरे आदमियों के निशाने पर है। हम किसी भी तरह से तुम लोगों का बुरा नहीं चाहते। हमें 60 करोड़ में कोई दिलचस्पी नहीं, जो बैंक-वैन में होगा। जो चीज तुम लोगों के लिए कबाड़ है, हम सिर्फ वो लेना चाहते हैं।"
"क्या वो चीज कीमती है?" जगमोहन ने पूछा।
"तुम्हारे लिए कबाड़ है। तुम्हें बाद में अफसोस नहीं होगा कि तुमने हमसे गलत सौदा किया। जो हमें चाहिए, उसका तुम्हारे लिए कोई महत्व नहीं।" मल्होत्रा ने कहा।
"उस चीज को पाने के लिए तुम लोग हर तरह का खतरा उठाने को तैयार हो?"
"हाँ। क्योंकि हमें उसकी जरूरत है।"
"यकीनन वो कीमती होगी।"
"तुम्हारे लिए नहीं। उस चीज से दौलत हासिल नहीं की जा सकती। वो कुछ कागज हैं।"
"कागज?"
"फाइलें...।"
जगमोहन के होंठ सिकुड़े।
चंद पलों के लिए वहाँ खामोशी छा गई।
खामोश खड़ा मलिक कह उठा---
"अब तो तुम समझ गए कि हमें किस रूप की क्या चीज चाहिए।"
"हाँ। समझ गया।" जगमोहन ने सिर हिलाया--- "समझ गया।"
"अब काम के लिए तैयार हो?"
"एक बात का जवाब और दे दो...।" जगमोहन बोला।
"क्या?"
"तुम लोग नहीं जानते कि बक्सों में पड़े किन कागजों की जरूरत है?"
"क्या मतलब?"
"तभी तो पहचान करने के लिए वहाँ तीसरा आदमी आएगा।"
मलिक और मल्होत्रा की नजरें मिलीं।
"ऐसा ही समझ लो।" मलिक बोला।
"इसका मतलब असल में ये काम तुम्हारा नहीं है। तुम लोग किसी के लिए काम कर रहे हो।"
"अपनी बात कर!" मल्होत्रा उखड़ गया--- "हमारी बात मानता है या देवराज चौहान की मौत देखना...।"
"मैं तुम लोगों की बात मानने को तैयार हूँ...।"
"एक बार फिर सोच ले।" मल्होत्रा खा जाने वाले स्वर में बोला--- "अगर तूने कोई गड़बड़ की तो समझ देवराज चौहान मर गया।"
"मैं साफ मन से ये काम करूँगा।" जगमोहन के पास कोई और रास्ता भी नहीं था।"
"तुम लोगों को 60 करोड़ चाहिए
हमें वहाँ रखे कुछ कागज चाहिए।" मलिक बोला--- "सच बात तो ये है कि हम झगड़ा नहीं चाहते। हम चाहते हैं कि सब कुछ ठीक से निपट जाये।"
मलिक को देखकर, जगमोहन मुस्कुराते हुए सिर हिला उठा।
◆◆◆
वो पचपन बरस का, पेट निकला आदमी था। सिर के बाल और कलमें भी आधी काली सफेद थीं। सूट पहन रखा था उसने। शानदार ऑफिस में विशाल टेबल के पीछे वाली कुर्सी पर बैठा था। नजर का गोल्डन फ्रेम का चश्मा अभी-अभी उतारकर टेबिल पर मौजूद खुली फाइल पर रखा था। उसके चेहरे पर शांत भाव थे। परन्तु आँखों में परेशानी ठहरी नजर आ रही थी। उसने दीवार पर लगी खूबसूरत घड़ी पर निगाह मारी।
सुबह के नौ बज रहे थे।
फिर वो कुर्सी से उठा और पीछे खिड़की की तरफ बढ़ गया। खिड़की के पर्दे को उसने एक तरफ सरकाया और बाहर देखने लगा।
ये दसवीं मंजिल की खिड़की थी। नीचे सड़क नजर आ रही थी। जहाँ वाहन दौड़ रहे थे। लोग नजर आ रहे थे, परन्तु वे सब छोटे-छोटे लग रहे थे।
तभी कमरे में किसी के आने की आवाज पड़ी।
वो पलटा। सफेद यूनिफॉर्म में चपरासी, ट्रे में कॉफी का प्याला रखे भीतर आया था। चपरासी ने प्याला टेबल पर रखा और उस व्यक्ति पर नजर मारकर कहा---
"साहब जी, वधवा साहब आने को कह रहे हैं...।"
"भेजो...।" उसने कहा और अपनी कुर्सी की तरफ बढ़ आया।
चपरासी बाहर निकल गया।
वो कुर्सी पर बैठा। कॉफी का प्याला उठाकर घूंट भरा।
तभी दरवाजा खुला और वधवा ने भीतर प्रवेश किया। वो टेबल की तरह बढ़ता कह उठा---
"छाबड़ा साहब, कोई खबर आज के लिए...। मलिक ने...।"
तभी टेबल पर पड़ा छाबड़ा का फोन बजने लगा।
छाबड़ा ने कॉफी का प्याला रखा और फोन उठाकर, कॉलिंग स्विच दबाकर कान से लगाया---
"हैलो...।"
"छाबड़ा साहब...।" उधर से मलिक की आवाज कानों में पड़ी--- "मैं मलिक बोल रहा हूँ...।"
"कहो...।"
"काम हमारी सोचों के हिसाब से ही चल रहा है।"
"फिर तो काम आज हो जाना चाहिए।" छाबड़ा ने गम्भीर स्वर में कहा।
"ये खबर पक्की है ना कि नोटों वाले किसी स्टील बॉक्स में वो कागज होंगे?"
"पक्की खबर है...।"
"अगर वो कागज वहाँ न हुए तो इस बात की हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। हम बहुत बड़ा खतरा मोल ले रहे हैं। डकैती मास्टर देवराज चौहान के मामले में दखल दिया है हमने।"
"इसकी कीमत भी तुम्हें भरपूर ही दी जा रही है।" छाबड़ा ने शांत स्वर में कहा।
"अगर वहाँ कागज न मिले तो जिम्मेदारी आपकी।"
"ठीक है।" छाबड़ा के चेहरे पर सख्ती सी उभरी।
"आप तैयार रहियेगा। ग्यारह और एक के बीच मैं आपको फोन करके बुलाऊँगा।"
छाबड़ा ने फोन बंद करके टेबल पर रखा।
"मलिक का फोन था?"वधवा ने पूछा।
"हाँ। वो कहता है कि आज काम हो जायेगा। मुझे तैयार रहने को बोला है।"
"ये तो अच्छी खबर है।"वधवा मुस्कुराया।
"बशर्ते कि हमें अपने काम के कागजात मिल जायें।" छाबड़ा ने कहा।
"अभी तक तो खबर यही है कि उस बैंक वाले बैंक की फ्यूचर प्लानिंग के पेपर्स नोटों के साथ ही गुप्त रूप से वहाँ से निकाल रहे हैं। उन्हें भी इस बात का डर है कि कोई दूसरा बैंक उन पेपर्स को न हथिया ले।"
छाबड़ा ने वधवा को देखा। फिर गम्भीर स्वर में बोला---
"हमने गिलक्रिस्ट को फँसाने की चेष्टा की है कि वो फाइनल प्लानिंग हमें बता दे, तगड़े नोटों का लालच दिया। परन्तु वो नहीं माना। ये बात वो उस बैंक को बता सकता है।"
"उससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि इस काम में हम तो सामने नहीं आये। गिलक्रिस्ट से मलिक ने बात की थी। इसमें कोई शक नहीं कि गिलक्रिस्ट ईमानदार है। वैसे जरुरी तो नहीं कि उसने बैंक को हमारी ऑफर की खबर दी हो।"
"अगर दी होगी तो बैंक सतर्क हो चुका होगा।" छाबड़ा बोला--- "क्या पता, तभी वो इन कागजों को गुप्त रूप से नोटों के साथ वहाँ से भेज रहा हो कि कोई उन्हें हथियाने की चेष्टा न करे।"
वधवा, छाबड़ा को देखने लगा।
"हमें उन कागजों की फोटोकॉपी कराकर, कागजों को वापस रख देना है।" छाबड़ा बोला।
"ऐसा क्यों?"
"अगर उन्हें इस बात का आभास हो गया कि उनके बैंक की फ्यूचर प्लानिंग को कोई और ले गया है तो वो फिर से सबको बिठाकर अपनी फ्यूचर प्लानिंग में बदलाव कर लेंगे और हमारी सारी मेहनत बेकार जायेगी। हमें फायदा तब है इस सारी बात का कि वो बैंक अपनी भविष्य की योजना जनता के सामने लाये और हमारा बैंक उस योजना को मद्देनजर रखकर, उनकी प्लानिंग से बेहतर प्लानिंग बाजार में लाये, ताकि उस बैंक के कस्टमर टूटें और हमारे बैंक की तरफ आयें। हमारा बिजनेस बढ़े। तभी तो हम अपना वक्त और करोड़ों रुपया इस दांव पर लगा रहे हैं कि उस बैंक की योजना की जानकारी हमें चुपके से मिले।"
"परन्तु उस पैसे पर तो देवराज चौहान हाथ मार रहा है...।' वधवा बोला।
"उससे कोई फर्क नहीं पड़ता...। बैंक वैन पर डकैती के बाद जब पुलिस को खाली बक्से मिलेंगे, उनमें पड़े कागज मिलेंगे तो, उस बैंक वाले कभी सोच भी नहीं सकेंगे कि उनके प्रतिद्वन्दी बैंक ने उन कागजों की फोटो कॉपी करा ली है। वो तो यही सोचेंगे कि ये एक स्वाभाविक डकैती थी। डकैत पैसा ले जाना चाहते थे और कागज वहीं छोड़ गए। वो नहीं सोच पायेंगे कि डकैतों के साथ, हम भी पीछे-पीछे हैं और हमने कुछ किया है।"
"ये अच्छी बात रहेगी। परन्तु इसमें मलिक को कामयाबी मिलना जरुरी है।" वधवा ने कहा।
"वो बेहतरीन जासूस है।" छाबड़ा ने सिर हिलाकर कहा--- "मुझे यकीन है कि वो काम करके ही रहेगा। हमें तैयार रहना चाहिए। ग्यारह और एक के बीच वो हमें कहीं भी पहुँचने को कह सकता है।"
◆◆◆
देवराज चौहान, पव्वा, शेख, टिड्डा और प्रतापी चलने के लिए तैयार थे। उनके पास भरी हुई रिवाल्वरें और फालतू राउण्ड थे। चारों के हौसले आसमान को छू रहे थे, परन्तु मन में संशय भी था कि कहीं दूसरी पार्टी की वजह से वो असफल न हो जायें। जबकि देवराज चौहान गम्भीर और शांत था।
"किसी भी तरह की घबराहट अपने मन में मत रखो।" देवराज चौहान ने कहा--- "सिर्फ अपने काम की तरफ ध्यान दो। ये सोचो कि इस काम के बाद हमने जगमोहन को तलाश करना है।"
"दूसरी पार्टी पंगा खड़ा कर---।"
"उसकी परवाह मत करो। जब ऐसा वक्त आया तो तब की तब देखी जायेगी। पहले उसके बारे में कुछ मत सोचो। सिर्फ वो ही सोचो, जो तुम इस वक्त करने जा रहे हो। जिसके लिए हम पन्द्रह दिन से मेहनत कर रहे हैं।"
चारों ने सहमति से सिर हिलाया।
"वैन को लेकर कहाँ पहुँचना है।" देवराज चौहान बोला--- "ये बात तुम चारों जानते हो। जो वैन के पीछे रह जायें, वो सब से बचकर वहीं पहुँचें। कोई भी काम हड़बड़ी में नहीं करना है। आराम से सोच-समझ कर करना है काम...।"
सबकी गम्भीर निगाह देवराज चौहान पर थी।
"अभी हमारे पास इतना वक्त है कि योजना को एक बार फिर दोहराया जा सके।" देवराज चौहान ने चारों को देखा।"कोई जरूरत नहीं।" पव्वा बाकी तीनों को देखता बोला--- "हमें सब याद है।"
"हाँ, सब याद है।" टिड्डा कह उठा।
"ठीक है, अब हम ये होटल छोड़ देंगे। यहाँ से चलेंगे और...।"
तभी देवराज चौहान का मोबाइल बजने लगा।
दूसरी तरफ सोहनलाल था।
"मलिक और मल्होत्रा का बंदा पचास लाख लेकर आ गया है। वो बाहर कार में बैठा है। मैं पैसा भीतर रखने आया हूँ...।"
"अब तुम क्या करोगे?"
"इसके साथ जाऊँगा।" सोहनलाल की आवाज कानों में पड़ी।
"ठीक है। मुझे हर जरुरी बात की खबर करते रहना।" देवराज चौहान फोन पर बोला।
"जगमोहन का कुछ पता चला?"
"नहीं...।"
"इस काम में तुम्हारे सामने खतरा आ सकता है। जो काम तुम करने जा रहे हो, वो काम वो लोग भी...।"
"हमें पता है कि और लोग भी ये काम करने वाले हैं। परन्तु उन्हें ये बात नहीं पता । इसलिए हम फायदे में होंगे।"
"हो सकता है वो भी ये बात जानते हों। जगमोहन उन्हीं के पास हो।"
"ये सोचा है मैंने। इसलिए हम सब सतर्क रहेंगे सोहनलाल। तुम खास बातें मुझे बताते रहना।"
"तभी तो मैं दूसरी पार्टी के साथ हूँ कि उनकी खबरें तुम्हें दे सकूँ।"
"मुझे बताना कि कौन है इस सारे काम के पीछे। कौन-कौन ये काम कर रहा है।"
"ठीक है। मैं चलता हूँ। बाहर वो मेरा इन्तजार कर रहा है।"
देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।
चारों की निगाह देवराज चौहान पर थी।
"सब ठीक है। किसी बात की फिक्र मत करो और अपना काम ध्यान में रखो।"
"क्या कह रहा था सोहनलाल?" शेख ने पूछा।
"कुछ खास नहीं। वो मेरे से बात कर रहा था।" देवराज चौहान मुस्कुराया।
"तुम हमसे कुछ छिपा तो नहीं रहे?"
"काम के वक्त मैं अपने साथियों से कोई बात नहीं छिपाता। दूसरी पार्टी ने सोहनलाल को एडवांस में पचास लाख काम पूरा करने के लिए दे दिए हैं। ताकि वो उन बक्सों को खोल सके। सोहनलाल उनके साथ जा रहा है।"
"इसका मतलब दूसरी पार्टी की योजना हमसे पक्की है।" पव्वे के होंठों से निकला।
"वो कैसे?" शेख ने उसे देखा।
"इस काम के एडवांस में पचास लाख देना, तो इसी तरफ इशारा करता है।"
"मुसीबत है ये तो...।" शेख ने गहरी साँस ली।
"कहीं हम फिसड्डी न रह जायें।" टिड्डा मुस्कुरा पड़ा।
"देवराज चौहान से पूछो...।"
देवराज चौहान होंठों पर मुस्कान समेटे उन्हें देख रहा था।
"तुम क्या कहते हो?" प्रतापी ने पूछा।
"हौसले बुलन्द हों तो काम तभी पूरा होता है।" देवराज चौहान बोला--- "अगर तुम लोगों को लगता है दूसरे की योजना इससे बेहतर हो सकती है तो इस स्थिति में हमें काम को यहीं पर खत्म कर देना चाहिए।"
"हमें कोशिश तो करनी चाहिए।" पव्वे ने कहा।
"बुलन्द हौसले के साथ। ये सोचकर काम करना है कि हमारी ही योजना बेहतर है।"
"ठीक तो कहता है देवराज चौहान।" प्रतापी बोला--- "तुम लोग ये क्यों नहीं सोचते कि दूसरी पार्टी बेवकूफ है, जिसने उस काम के पचास लाख सोहनलाल को दे दिए, जो काम सोहनलाल हमारे लिए करेगा।"
"ये भी हो सकता है।" टिड्डा मुस्कुरा पड़ा--- "हमें ये ही सोचना चाहिए कि हम ही कामयाब होंगे।"
"दूसरी पार्टी को सोचोगे तो अपना काम नहीं कर पाओगे।" देवराज चौहान बोला--- "इस वक्त ये काम मैं तुम लोगों के लिए कर रहा हूँ। जगमोहन के लापता हो जाने की स्थिति में, मैं अपने लिए ये काम न करता। उसे तलाश करता।"
"हम काम के लिए तैयार हैं।"
"और काम करके, जगमोहन की तलाश शुरू कर देंगे।"
"हमारे पास भरी हुई रिवाल्वरें हैं। गोलियाँ भी हैं। दूसरी पार्टी ने पंगा डाला तो उसे भून देंगे।"
"होटल का बिल पे कर दिया है।" देवराज चौहान दरवाजे की तरफ बढ़ता बोला--- "हमारे चलने का भी वक्त हो गया है।"
देवराज चौहान दरवाजे से बाहर निकल गया।
चारों की नजरें मिलीं। फिर वे दृढ़ता भरे अंदाज में मुस्कुरा पड़े।
"जीत हमारी होगी।" शेख उत्साह भरे स्वर में बोला।
"हाँ।" पव्वा खतरनाक अंदाज में हँस पड़ा--- "हम ही जीतेंगे।"
फिर वे चारों भी बाहर निकलते चले गए।
◆◆◆