एक घिनौना सच
मुनिरका पहुंचकर वंश ने सबसे पहले कविता के फ्लैट वाली बिल्डिंग के आस-पास का जायजा लिया, ये गारंटी करने के लिए कि लल्लन वहां पहुंचा हुआ नहीं था। तत्पश्चात उसके पेरेंट्स के फ्लैट तक गया और फोन कर के लड़की को बाहर बुला लिया।
कविता कुमावत उस वक्त जींस और टॉप पहने थी, थोड़ा मेकअप भी किया जान पड़ता था, जिसके कारण पहले से कहीं ज्यादा खूबसूरत दिख रही थी। इतनी ज्यादा कि उसे देखकर अंदाजा लगा पाना असंभव था कि वह शादीशुदा थी।
बिल्डिंग से निकलकर उसने इधर-उधर देखा फिर वंश को खिड़की से हाथ निकालकर इशारा करता पाया तो आगे बढ़कर कार की पैसेंजर सीट पर सवार हो गयी।
“हाय।”
“हाय, तुम हांफ रही हो?”
“सीढ़ियां उतरकर आई हूं न इसलिए।”
“ओह फिर तो कुछ ज्यादा ही मेहनत कर ली।”
वह हंसी, फिर तत्काल अपने होंठ भीचती हुई बोली, “अब बताओ क्या बात है? तुमने तो मुझे डराकर ही रख दिया। इतनी खतरनाक खबर ऐसे दी जाती है किसी को?”
“पहले कभी दी नहीं, इसलिए तजुर्बा नहीं है।”
“अब हो गया?”
“हां अगली बार से किसी को सावधान करना होगा तो उसे बस एक मैसेज ड्रॉप कर दूंगा, ये लिखकर कि ‘जीवन बहुत अनमोल है, उसे बचाकर रखना चाहिए’ तब कम से कम झटका तो नहीं ही लगेगा।”
वह फिर से हंस पड़ी।
“इंस्पेक्टर सुशांत अधिकारी ने किसी को तुम्हारे कत्ल की जिम्मेदारी सौंपी है, हालांकि उसने साफ-साफ तुम्हारा नाम नहीं लिया था, लेकिन मुझे यही लगा कि जिस लड़की की हत्या करवाने की बात वह कर रहा था, वह तुम्हीं थीं।”
“मुझसे भला उसकी क्या दुश्मनी हो सकती है?”
“हो सकती है अगर साल भर पहले तुम्हीं ने डॉक्टर बरनवाल को खत्म कर दिया हो। उसके बाद इंस्पेक्टर के साथ तुम्हारी डील हुई और उसने तुम्हें बचा लिया। लेकिन अब हालात जुदा हैं, वो ये सोचकर डर रहा है कि कहीं तुम पुलिस की गिरफ्त में पहुंच गयीं तो उसका किया धरा सामने आ जायेगा।”
“मैं जानती हूं वंश कि तुम अपने काम में एक्सपर्ट हो। तुम्हारा हर शो देखती हूं इसलिए ये भी पता है कि ढेर सारे तथ्यों को सिलसिलेवार जोड़कर एक मजेदार कहानी तैयार कर लेते हो, ऐसी कहानी जो अपने अंतिम पड़ाव में लोगों को सांस रोककर बैठ जाने को मजबूर कर देती है। फिर अपनी एक्सपर्टनेस मेरे सामने साबित करने पर क्यों तुले हो?”
“मतलब क्या हुआ इसका?”
“यही कि मेरा डॉक्टर के कत्ल से कोई लेना देना नहीं है।”
“होता तो तुम कबूल कर लेतीं?”
“जाहिर है नहीं करती।”
“एग्जैक्टली, तभी सवाल करना मेरी मजबूरी बन जाती है। जवाब हासिल करना भी मजबूरी ही होती है, तभी मैं किसी निष्कर्ष पर पहुंच पाता हूं। समझ लो इस वक्त वही कर रहा हूं - कहकर उसने पूछा - अब बताओ क्या ऐसी कोई भी वजह हो सकती है जिससे इंस्पेक्टर अधिकारी को तुमसे खतरा महसूस हो रहा हो, भले ही उसका डॉक्टर के कत्ल से कोई लेना देना न हो?”
लड़की सोच में पड़ गयी।
“तुम्हारी जान को खतरा बराबर है मैडम, इसलिए कुछ छिपाने की कोशिश करोगी तो अपना ही नुकसान कराओगी। हां कत्ल तुमने ही किया है तो बेशक जुबान बंद रख सकती हो, क्योंकि वक्ती तौर पर ही सही तुम्हें उसका फायदा पहुंचकर रहेगा।”
“सिर्फ वक्ती तौर पर?”
“हां, आखिरकार तो मैं कातिल के खिलाफ सबूत जुटाने में कामयाब हो ही जाऊंगा।”
“जिससे डरने की मुझे कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं कातिल नहीं हूं। लेकिन एक बात फिर भी ऐसी है जिसकी वजह से अधिकारी मेरा मुंह बंद करने की सोच सकता है, हालांकि उसका डरना गलत है क्योंकि मैं चाहकर भी उस बारे में किसी को कुछ नहीं बता सकती, बताऊंगी तो कहीं की नहीं रहूंगी।”
“मैडम मैं ये नहीं कह रहा कि वह तुम्हारा कत्ल करा सकता है, मैं ये कह रहा हूं कि कत्ल करने के लिए आदमी हॉयर कर चुका है, और ये आदेश भी दे दिया है कि काम आज के आज निबट जाना चाहिए। ऐसे में कोई खास बात मुझसे छिपाने की कोशिश करोगी तो मैं भला क्या मदद कर पाऊंगा तुम्हारी?”
“उस बारे में जाने बिना भी तो मदद कर सकते हो?”
“जरूर कर सकता था, अगर मुझे गारंटी होती कि कत्ल तुम्हारा ही होने वाला है, जबकि अभी तो दो नामों को लेकर कंफ्यूजन का शिकार हूं। पहली तुम और दूसरी आयशा बागची, तीसरा चौथा नाम भी हो सकता है, जिसके बारे में मुझे नहीं मालूम क्योंकि इस केस पर आज से ही काम शुरू किया है। ऐसे में अगर तुम कोई वजह बता देती हो तो मेरे लिए तय कर पाना आसान हो जायेगा कि हत्यारे का शिकार तुम हो या नहीं।”
“बात इतनी आसान नहीं है वंश, समझ में नहीं आता कि कैसे बताऊं, फिर तुम ठहरे मीडिया पर्सन, इसलिए भी झिझक रही हूं मैं। कहीं ढिंढोरा पीट दिया तो मैं गयी काम से।”
“तुम अगर वाकई में ‘पर्दाफाश’ रेग्युलर देखती हो तो ये भी जानती होगी कि हम कभी भी किसी की निजी बातें शेयर नहीं करते, अपराधी को छोड़कर क्योंकि उसके बारे में सबकुछ बताये बिना उसका जुर्म साबित करना असंभव होता है। बावजूद इसके पुरजोर कोशिश रहती है कि उसका कोई गलत इंपेक्ट उसके साथ जुड़े लोगों पर ना पड़े, वरना तो इंवेस्टिगेशन के दौरान ऐसी ऐसी जानकारियां हमारे हाथ लगती हैं, कि उनका जिक्र अपने शो में कर दें तो जाने कितने घर बर्बाद हो जायें। उम्मीद है मेरी बात तुम्हारी समझ में आ गयी होगी।”
“हां आ गयी, और मुझे तुम्हारे कहे से पूरा पूरा इत्तेफाक भी है।”
“थैंक यू अब बताओ क्या बात है?”
“ऑफ द रिकॉर्ड प्लीज।”
“नो प्रॉब्लम।” कहकर वंश ने अपने कोट का एक बटन अलग किया जो असल में कैमरा था, और कोट की ही पॉकेट में रखी रिकॉर्डिंग डिवाईस निकालकर उसे थमाता हुआ बोला, “जब तक हमारी बातचीत पूरी नहीं हो जाती, दोनों चीजों को आप अपने पर्स में रख लो ताकि तुम्हें यकीन आ जाये कि अब मैं कुछ भी रिकॉर्ड नहीं कर रहा।”
“मुझे तुमपर वैसे ही यकीन है। फिर मान लो तुमने दूसरा तीसरा कैमरा इसी तरह कहीं और भी छिपा रखा हो, जैसे कि इस कार में तो मैं क्या कर लूंगी?”
“ऐसा कुछ नहीं है।”
“इट्स ओके, मैंने मान लिया।”
“थैंक यू अब बताओ क्या बात है?”
सुनकर लड़की के चेहरे के भाव एकदम से बदल गये, यूं लगा जैसे वह अभी रो पड़ेगी, “इंस्पेक्टर सुशांत जब भी डॉक्टर के क्लिनिक आता था मेरे साथ फ्री होने की कोशिश करता था, घूरता था, ऐसे जैसे निगाहों से मेरे शरीर को टटोल रहा हो। शुरू के दिनों में उस बात से मुझे कोफ्त सी महसूस होती थी, मगर धीरे धीरे आदत डाल ली, फिर वैसा करने वाला वह कोई पहला मर्द तो था नहीं इसलिए मैंने नजरअंदाज करना शुरू कर दिया।”
“ओके।”
“लेकिन कत्ल वाले रोज बात बहुत आगे बढ़ गयी।”
“कितना आगे?”
“पहले ये जान लो कि जो हुआ उसकी नौबत क्यों आई।”
“मैं सुन रहा हूं।”
“उस रोज जब मैं क्लिनिक पहुंची तो जैसा कि तुम्हें पहले भी बता चुकी हूं, मुझे यही लगा था कि डॉक्टर जल्दी आ गया था। इसलिए मैं ऊपर उसके केबिन तक गयी और दरवाजा खोलकर भीतर झांका तो लाश दिखाई दे गयी। बाद में दरवाजे पर बने मेरे फिंगर प्रिंट्स फॉरेंसिक वालों ने उठा लिये और अधिकारी के कहने पर हाथ के हाथ मेरी उंगलियों के निशानों से टेली कर के ये साबित कर दिया कि वह प्रिंट मेरे ही थे।”
“जो कि होने ही थी, इसमें बड़ी बात क्या थी?”
“कोई बड़ी बात नहीं थी, लेकिन अधिकारी उसी बेस पर मुझे कातिल करार देने पर तुल गया। वह मुझे जबरन ऊपर डॉक्टर के केबिन में ले गया और कहने लगा कि हत्या मैंने ही की है। तरह तरह के इल्जाम भी लगाये, जैसे कि मेरा डॉक्टर के साथ अफेयर था, और मैं उसपर शादी के लिए दबाव बना रही थी। डॉक्टर तैयार नहीं हो रहा था, इसलिए गुस्से में आकर मैंने उसे खत्म कर दिया।”
“फिर क्या हुआ?”
“वह वहीं मेरे शरीर को इधर उधर छूने और सहलाने लगा। मैंने विरोध किया तो एक दो थप्पड़ जड़ दिये, गाली भी दी, और साफ लहजे में कह दिया कि डॉक्टर के कत्ल में मुझे जेल भिजवाकर रहेगा।”
“इतना आसान नहीं होता किसी को फंसाना।”
“मैं जानती हूं नहीं होता, लेकिन थाने का मुंह तो वह दिखा ही सकता था, बल्कि गिरफ्तार कर के कोर्ट में खड़ी कर दी जाती तो भी कोई बड़ी बात नहीं होती, बाद में भले ही निर्दोष साबित हो जाती। मगर तब तक क्या मेरा सबकुछ बर्बाद नहीं हो गया होगा। एक महीने बाद ही मेरी शादी थी, कौशल को मुझपर लगाये गये आरोपों का पता लगता तो क्या वह रिश्ता तोड़ नहीं देता?”
“तोड़ देता।” वंश को कबूल करना पड़ा।
“ऊपर से न जाने क्यों मुझे लगने लगा था जैसे उसे कातिल के बारे में पता था, और उसे बचाने के लिए किसी बलि के बकरे की तलाश में जुटा हुआ था, जो कि मैं हरगिज भी नहीं बनना चाहती थी।”
“बचने के लिए क्या किया तुमने?”
“उसने मुझसे कहा कि अगर मैं उसे सैक्सुअल फेवर दूं तो वह मुझे जेल जाने से बचा सकता था।”
“इतनी घटिया बात उसने अपने मुंह से कही?”
“कही तो बहुत बाद में थी वंश, उससे बहुत पहले ही मेरे शरीर का भूगोल नाप चुका था, एक नंबर का कमीना है साला।” कहती हुई वह हौले से सिसक उठी।
“खैर तुमने क्या जवाब दिया।”
“मैं थोड़ा तैश में आ गयी, साफ कह दिया कि मैं उसकी धमकी में नहीं आने वाली, भले ही जेल क्यों न जाना पड़े। फिर मैं वहां से जाने ही लगी थी कि उसने मुझे जबरन कुर्सी पर धकेल दिया, तभी दीक्षित ने उसे फोन कर के बताया कि रिसेप्शन की दराज में तीन लाख रूपये मौजूद थे। मैं बौखलाई हुई तो थी ही, इसलिए वह बात सुनकर बुरी तरह डर गयी। जबकि होशो हवास ठिकाने होते तो इतना फौरन समझ गयी होती कि अगर उन लोगों ने मुझे फंसाने के लिए रकम वहां रखनी भी थी, तो वह काम फौरन नहीं होने वाला था, क्योंकि तीन लाख का इंतजाम करने में वक्त लग जाना था। मगर उस वक्त तो यही सोचकर मेरे हाथ पांव फूल गये कि वह पैसे दराज में मौजूद थे, जिसे मेरे अलावा कोई छूता तक नहीं था।”
“फिर तुमने क्या किया?”
“उससे पहले सुनो कि उसने और क्या किया?”
“क्या किया?”
“एक औरत को वहां बुलाया, जिसकी बातों से मुझे लगा कि वह चकला चलाती थी, भले ही न चलाती हो और उसे बस मुझपर दबाव डालने के लिए ही क्यों न बुलाया गया हो। उसने केबिन में घुसते ही मुझे पहचान लिया और अधिकारी को बताया कि मैं उसकी लड़की थी, लड़की मतलब उन लड़कियों में से एक जिनसे वह धंधा कराती थी, ये भी कहा कि दो दिनों पहले मुझे गांजे की सप्लाई देने किसी के पास भेजा था। मतलब वह हर तरह से मेरा मनोबल गिराये जा रहा था। वह मुझे तोड़ रहा था और मैं टूटती जा रही थी।”
“आगे क्या हुआ?”
“मैंने अधिकारी के पांव पकड़ लिये, उसके आगे खूब गिड़गिड़ाई, रोई भी, लेकिन उसका दिल नहीं पसीजा। उसके बाद वह सब हुआ जो वह चाहता था।” कहती हुई वह हिचकिचां लेकर रो पड़ी और अपना सिर वंश के कंधे पर रख दिया।
“बाद में तुमने कंप्लेन क्यों नहीं की?”
“कैसे करती वंश, करती तो उसका कुछ बिगड़ता या न बिगड़ता मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह जाती, इसलिए सब जब्त कर गयी मैं। फिर विरोध करना ही होता तो क्या मैं गिरफ्तारी के लिए ही तैयार नहीं हो जाती?”
“दोबारा अपनी हरकत दोहराने की कोशिश नहीं की उसने?”
“बस यही एक अच्छा काम किया था साले ने वरना तो मेरी जिंदगी जहन्नुम बन गयी होती। नहीं दोबारा उसने मुझपर दबाव बनाने की कोई कोशिश नहीं की, कभी मिला तक नहीं, जबकि मैं उम्मीद बराबर कर रही थी।”
“ये सोचकर भी नहीं की होगी कि कहीं तुम तंग आकर उसके खिलाफ मुंह न फाड़ बैठो, क्योंकि तुम्हारे खिलाफ कोई सबूत सच में तो उसके पास थे नहीं, और बाद में उस मामले को उठाने की कोशिश करता तो सबसे पहला सवाल यही उठ खड़ा होता कि अगर वह जानता था कि कातिल तुम थीं तो उसने तुम्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया।”
“जरूर यही बात रही होगी।”
“सवाल ये है कि जो बात साल भर पहले शुरू होते के साथ ही खत्म हो गयी थी, उसके लिए वह अब तुम्हारा कत्ल करवाने की कोशिश क्यों करेगा?”
“मैं नहीं जानती, लेकिन डॉक्टर के कत्ल की फिर से तफ्तीश कर रही है पुलिस, इसलिए वह ये सोचकर डर गया होगा कि कहीं मैं अपनी आप बीती पुलिस को सुना न दूं। जो अगर सच में सुना बैठी तो जेल जाने से दुनिया की कोई ताकत उसे नहीं बचा पायेगी, क्योंकि अब वह ये तो नहीं कह सकता कि कातिल मैं हूं।”
“ठीक कहती हो।”
“तुम्हें कैसे पता लगा कि वह मेरा कत्ल करवाने की फिराक में है?”
जवाब ने वंश ने सारा किस्सा उसे सुना दिया।
“हे भगवान! अब मैं क्या करूं?”
“एक रास्ता है जिसपर चलना तुम्हें शायद ही गवारा हो।”
“नहीं मैं पुलिस में कंप्लेन कर के अपनी शादीशुदा जिंदगी में आग नहीं लगाना चाहती।”
“बिना कंप्लेन के बात बन जाये तो?”
“कैसे?”
“उसके लिए तुम्हें मुझपर यकीन करना होगा, मैं गारंटी करता हूं कि असल बात किसी के सामने नहीं आयेगी, सिवाये एक पुलिस ऑफिसर के जो कि लेडी है।”
“मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा।”
“अगर अपनी जान की परवाह है कविता तो इतना रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। उसके बाद पुलिस तुम्हारे घर की घेराबंदी कर देगी, फिर जो भी तुम्हारा कत्ल करने पहुंचेगा, रंगे हाथों दबोच लिया जायेगा, आगे ये पता लगते कितनी देर लगेगी कि वह किसके कहने पर तुम्हारी जान लेने आया था।”
“और कहीं बाद में अधिकारी ने ही मेरे साथ किया कराया बक दिया तो?”
“नहीं उसमें सबसे बड़ा नुकसान उसी का है, इसलिए उस बारे में जुबान नहीं खोलने वाला।”
“कहीं लेने के देने न पड़ जायें।”
“कुछ नहीं होगा, फिर तुम क्या जीवन भर खुद को बचाती रह सकती हो। मौत किस दरवाजे से भीतर दाखिल होगी तुम्हें क्या पता? यानि आज नहीं तो कल वह कमीना तुम्हें खत्म करवाने में कामयाब हो ही जायेगा।”
“हे भगवान, ये कहां फंस गयी मैं।”
“अगर तुम्हारा इशारा मेरी तरफ है तो खामख्वाह हलकान हो रही हो। मैं अभी के अभी सारी बातें भूल जाने को तैयार हूं। हां तुम्हारी जान की गारंटी नहीं कर सकता, क्योंकि मैं हर वक्त तुम्हारे घर की पहरेदारी भी नहीं कर सकता। और ना ही मैं कोई पुलिसवाला हूं जो तुम्हें सुरक्षा देने में कामयाब हो जाये। इसलिए हिम्मत कर के आगे बढ़ो, मैं वादा करता हूं कि तुम्हारी आपबीती की किसी को कानोंकान खबर नहीं लगेगी।”
“जिस लेडी पुलिसवाली का जिक्र कर के हटे हो उसे कितना जानते हो?”
“बहुत ज्यादा नहीं जानता, लेकिन जितना जानता हूं उसके बेस पर गारंटी कर सकता हूं कि वह मामला बिगड़ने नहीं देगी।”
“ठीक है।”
“क्या ठीक है?”
“तुम जो कहो मैं करने को तैयार हूं।”
“ये हुई न बात, अब चलते हैं यहां से।”
कहकर उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
गरिमा देशपांडे ने बड़ी हैरानी के साथ कविता की पूरी बात सुनी, वंश का कहा सुना, और आगे बहुत देर तक उसपर सोच विचार करने के बाद बोली, “मेरे ख्याल से तो तुम्हें रेप की कंप्लेन दर्ज करा देनी चाहिए। पढ़ी लिखी लड़कियां भी अगर ऐसे मामलों में आगे नहीं आयेंगी तो दूसरों से क्या उम्मीद की जा सकती है।”
“मैं नहीं करा सकती मैडम, सॉरी।”
“इंसाफ हासिल करना बुरी बात नहीं होती।”
“मैं अपनी जिंदगी बर्बाद नहीं करना चाहती। साल भर पहले मेरे साथ जो कुछ भी हुआ उसे बड़ी मुश्किल से भूल पाने में कामयाब हो पाई हूं। इसलिए हो गयी क्योंकि बात मेरे और अधिकारी के बीच रह गयी थी। कंप्लेन करूंगी तो पूरी दुनिया जान जायेगी, उसके बाद अपनी जान देने के अलावा रास्ता ही क्या होगा मेरे पास। और जब मरना ही है तो जिल्लत की मौत क्यों मरूं? इंतजार कर लूंगी कि कब अधिकारी का भेजा कोई आदमी आकर मुझे गोली मार दे। तब कम से कम वह हादसा मेरी मौत के साथ हमेशा हमेशा के लिए दफ्न तो हो जायेगा।”
“खामख्वाह परेशान होने की जरूरत नहीं है, तुम चाहती हो कि किसी को उस बात का पता न लगे तो समझ लो नहीं लगेगा। और इस बात की भी गारंटी करती हूं कि तुम्हारी जान नहीं जायेगी।”
“थैंक यू मैडम।”
“बस एक डाउट है गरिमा जी।” वंश बोला।
“क्या?”
“मैंने लल्लन को शाम के वक्त ही गैराज से निकलते देखा था, और तब अगर वह कविता का कत्ल करने ही निकला था, तो जाहिर है अब तक निराश होकर वापिस लौट गया होगा, उन हालात में आप क्या करेंगी?”
“नहीं किसी को जान से मारने के लिए शाम का वक्त माकूल नहीं होता, क्योंकि उस दौरान आवागमन बहुत होता है। फिर भी वैसा हो चुका है तो डांट वरी, जब लल्लन का पता ठिकाना आप जानते ही हैं तो उसे उठाते कितना वक्त लगेगा हमें। अब थोड़ी देर वेट कीजिए, लौटकर हम दोनों एक साथ कविता के फ्लैट पर चलेंगे।” कहकर वह कमरे से बाहर निकल गयी।
दोनों इंतजार करने लगे।
पंद्रह मिनट बाद गरिमा वापिस लौटी तो वंश उसे देखता ही रह गया। जींस और टॉप में सुसज्जित वह इंस्पेक्टर अब कॉलेज की स्टूडेंट नजर आने लगी थी। थोड़ा मेकअप भी कर लिया था, जिसके कारण उसका रूप लावण्य निखर उठा था। बाकी खूबसूरत तो वह थी ही, खास कर के उसके होंठों पर हर वक्त दिखाई देने वाली मुस्कान जो इस वक्त कुछ ज्यादा ही गहरी हो आई थी।
“आप नरिमा हैं?” वंश ने पूछा।
“व्हॉट?”
“गरिमा मैडम की छोटी बहन?”
सुनकर वह हंस पड़ी।
“कमाल की लग रही हैं, देखकर कोई कह नहीं सकता कि आप पुलिस महकमे से हैं, सच कहूं तो कहर ढा रही हैं इस वक्त।”
“वंश!” उसने आंखें तरेरीं।
“मैं आपको डिनर पर इनवाईट कर सकता हूं?”
“अब बस भी कीजिए - कहकर वह फिर से हंसी, तत्पश्चात कविता की तरफ देखकर बोली - अपने फ्लैट की चाबी दे सकती हो हमें, अगर हां तो तुम्हारा हमारे साथ वहां रहना जरूरी नहीं है।”
“नो प्रॉब्लम, ले लीजिए।” कहकर उसने चाबी गरिमा को थमा दी।
“गुड, अब तुम चाहे कहीं भी चली जाओ लेकिन अपने फ्लैट का रुख मत करना, तब तक हरगिज भी नहीं जब तक कि मैं फोन कर के आने को न कह दूं।”
“पेरेंट्स के घर चली जाती हूं।”
“ये बढ़िया आइडिया है।”
फिर तीनों वहां से निकलकर पुलिस हेडक्वार्टर के बाहर पहुंचे जहां से कविता एक ऑटो में सवार होकर चली गयी, उसके बाद गरिमा वंश की तरफ देखकर बोली, “आपकी कार से चलते हैं, वरना बिना वर्दी के जाने का कोई फायदा नहीं होगा।”
“यस मैम, प्लीज कम।”
“कहां खड़ी की है?”
“पास में ही है, आईये।”
तत्पश्चात दोनों पॉर्किंग में पहुंचे और वंश की कार में सवार हो गये।
आगे मुनिरका पहुंचने में उन्हें आधा घंटा लगा।
वहां कार से उतरकर दोनों यूं बातचीत करते हुए बिल्डिंग की तरफ बढ़े जैसे गहरे दोस्त हों। उस दौरान वंश की निगाहों ने सहज ही ये भांप लिया कि आस-पास कई पुलिसवाले सिविल ड्रेस में मौजूद थे। फिर दाईं तरफ को एक रेहड़ी पर गोलगप्पे खाता एसआई नरेश चौहान भी उसे दिखाई दे गया।
यानि गरिमा देशपांडे ने पंद्रह मिनट का वक्त सिर्फ कपड़े चेंज करने में नहीं जाया किये थे। बल्कि अपनी टीम को वहां के लिए रवाना करके वापिस अपने कमरे में पहुंची थी।
दोनों ऊपर पहुंचे, जहां गरिमा ने कविता से हासिल चाबी से फ्लैट का दरवाजा खोला और भीतर पहुंचकर लाईट जलाने के बाद चिटखनी चढ़ा दी। वह टू बीएचके फ्लैट था, जिसमें बाईं तरफ को ओपन किचन, दाईं तरफ को वॉशरूम, और सामने की तरफ दो दरवाजे दिखाई दे रहे थे। किचन के बगल में एक ऐसी खिड़की भी थी जो इंट्रेंस की तरफ खुलती थी, दोनों वहीं जाकर खड़े हो गये।
इंतजार शुरू हो गया।
तब तक रात के नौ बज चुके थे।
“सुट्टे लगायेंगे वंश साहब?”
“क्यों नहीं, थैंक यू।”
“थैंक यू मत बोलिये, सुलगा लीजिए।”
सुनकर वह हौले से हंसा फिर सिगरेट सुलगाने में व्यस्त हो गया।
“आप इस पचड़े में कैसे पड़ गये, मेरा मतलब है कविता कुमावत में आपका क्या इंट्रेस्ट है?”
“इंट्रेस्ट लड़की में नहीं है मैडम - दो सिगरेट सुलगाने के बाद एक उसे थमाता हुआ वंश बोला - इस बात में है कि साल भर पहले वह डॉक्टर बरनवाल के क्लिनिक में बतौर नर्स काम किया करती थी।”
“खबर है मुझे, लेकिन उस केस से भी आपका क्या लेना देना?”
“वही जो आपका है, हम दोनों ही चाहते हैं कि बरनवाल का कातिल पकड़ा जाये। आप तो ये भी चाहती हैं कि अधिकारी और दीक्षित का जुर्म साबित हो जाये।”
“कविता ने रेप वाली बात नहीं बता दी होती वंश साहब, तो मैं यही सोच रही थी कि खामख्वाह ही फंस गये थे वो दोनों, लेकिन अब उनका किरदार कुछ अलग ही दिखाई देने लगा है।”
“कहीं कातिल ही निकल आये तो एकदम अलग हो जायेंगे।”
“बकवास।”
“नहीं बकवास तो नहीं है मैडम, क्योंकि कविता ने बताया था कि अधिकारी और दीक्षित हर महीने डॉक्टर से मिलने आते थे, और उसे शक है कि उसकी वजह कोई लेन देन थी। यानि बरनवाल को अगर कोई ब्लैकमेल कर रहा था, तो वैसा करने वाले वो दोनों भी रहे हो सकते हैं। बल्कि एक बात और पता लगी है जो ब्लैकमेलिंग वाली थ्योरी को बल देती है।”
“क्या?”
जवाब में उसने मुक्ता की कही बातें उसे बता दी।
“लोगों के मुंह से इतने गहरे राज उगलवाने में कामयाब कैसे हो जाते हैं वंश साहब, जबकि पुलिस की तरह आपसे तो कोई डरता भी नहीं होगा, या डर जाते हैं लोग?”
“नहीं डरते तो नहीं हैं।”
“फिर कैसे कर पाते हैं ये कारनामा? अभी कविता को ही ले लीजिए, जो बात उसने साल भर से किसी को नहीं बताई, वह आपको बता दिया, जबकि आप कहते हैं कि आज से पहले कभी उससे मिले तक नहीं थे।”
“नहीं मिला था।”
“मुझे यकीन है, तभी तो आपसे राज उगलवाने का गुण पूछ रही हूं।”
“क्या है न मैडम कि राज कोई उगलता नहीं है, मैं खुद उसके दिल में घुसकर अपने मतलब की जानकारी बाहर निकाल लाता हूं।”
“ओह तो ये बात है।”
“क्या बात है?”
“कविता के दिल में उतर गये आप?”
“अरे मेरा मतलब वो नहीं था।”
“क्या हर्ज है, खूबसरत है।”
“शादीशुदा है।”
“तो भी क्या फर्क पड़ता है?”
“क्यों मेरी क्लास ले रही हैं गरिमा जी?”
“छोड़िये ये बताईये कि अगर हमारे दोनों ऑफिसर डॉक्टर को ब्लैकमेल कर भी रहे थे तो उन्हें उसकी हत्या करने की जरूरत क्यों पड़ गयी?”
“क्योंकि डॉक्टर ने अचानक एक दिन सोने के अंडे देने से इंकार कर दिया।”
“तो भी उसे मारकर क्या हासिल होना था, डॉक्टर उनका तो कुछ नहीं बिगाड़ सकता था?”
“गुरूर, दंभ, ताकत के मद में चूर इंसान अक्सर अविवेकी फैसले भी ले लिया करते हैं मैडम। डॉक्टर ने पैसे देने से इंकार किया तो उन्हें अपनी तौहीन महसूस हुई, और उसे खत्म कर दिया।”
“यकीन करने का मन नहीं हो रहा।”
“ऐसा है तो कत्ल किसी और ने किया होगा, जिसके बारे में अधिकारी और दीक्षित यकीनन जानते थे, तभी तो विश्वजीत और उसकी मां पर दिल्ली से निकल जाने का दबाव बनाया गया।”
“कहीं कविता का ही तो कारनामा नहीं था?”
“क्या कह रही हैं?” वंश ने बुरी तरह चौंककर दिखाया, जबकि वैसा ख्याल उसके जेहन में अब तक कई बार आ चुका था।
“क्या बड़ी बात है, फिर मुझे ये बात भी हैरान कर रही है कि अधिकारी ने उसका शोषण किया और उसने हो जाने दिया, जबकि इतनी सी बात तो कोई भी समझ सकता था कि उसके खिलाफ केस बना पाना मुमकिन नहीं था। इसके विपरीत मान लीजिए डॉक्टर वाकई शादी का झांसा देकर उसका शोषण कर रहा था, और धीरे धीरे लड़की को यकीन आ गया था कि वह बस शादी के ख्वाब ही दिखा रहा था, ना कि सच में उसके साथ शादी करने का उसका कोई इरादा था। तो उसने बदला लेने की खातिर उसे मार गिराया। ये भी रहा हो सकता है कि डॉक्टर ने खुद को अनमैरिड बताया हो, मगर बाद में किसी जरिये से उसे खबर लग गयी कि वह शादीशुदा था, ऐसे में किसी को भी गुस्सा आ सकता है।”
“कत्ल रात को किया गया था मैडम, जबकि उससे कहीं पहले वह क्लिनिक से निकल गयी थी, और दोबारा अगली सुबह ही लौटी थी, ऐसे में वह कातिल कैसे हो सकती है?”
“हमें क्या पता कि जाकर कत्ल करने के लिए लौट नहीं आई थी। मैं केस फाईल पढ़ चुकी हूं इसलिए जानती हूं कि कोई सीसीटीवी फुटेज वगैरह पुलिस के हाथ नहीं लगी थी। कविता की बात को सच साबित करता बस एक ही एविडेंस था और वह था गुल्लू नाम का एक दुकानदार जो उसके पेरेंट्स के घर के पास जनरल स्टोर चलाता है। उसी ने बताया था कि सवा नौ बजे उसने कविता को वहां पहुंचते देखा था, जिसके बाद साढ़े नौ उसने दुकान बंद कर दी थी इसलिए नहीं जानता कि कविता दोबारा अपने घर से निकली थी या नहीं।”
“मुझे तो वह लड़की कहीं से भी कातिल नहीं दिखती।”
“आप मीडियावालों का क्या है वंश साहब, आपको तो पुलिस की हर थ्योरी गलत ही जान पड़ती है। जबकि अक्सर पुलिस का सोचा ही सही साबित होता है।”
“कम से कम मुझसे तो आपको ऐसी उम्मीद नहीं ही रखनी चाहिए।”
“नहीं रखती, तभी तो आपके कहने भर से यहां पहुंच गयी, आपकी जगह कोई और उस लड़की को लेकर आया होता तो यही कहती कि जाकर थाने में कंप्लेन दर्ज कराये - कहकर उसने सिगरेट से एक गहरा कश खींचा, फिर नाक से धुआं उगलती हुई बोली - अब दुआ कीजिए कि कोई सच में यहां कविता का कत्ल करने पहुंच जाये, ताकि उसे हिरासत में लेकर मैं अधिकारी और दीक्षित पर होल्ड बनाऊं और उन्हें सच बोलने को मजबूर कर सकूं।”
“वो तो खैर नहीं ही बोलने वाले दोनों, क्योंकि जानते हैं कि उनका अला भला जुबान बंद रखने में ही है।”
“अरे जब हम लल्लन को गिरफ्तार कर लेंगे तो वह भी कुछ बोलेगा, नाम बतायेगा कि किसने उसे कविता का कत्ल करने भेजा था, उसके बाद कैसे मुमकिन हैं कि दोनों अपनी जुबान बंद रख सकें?”
“चलिए देखते हैं।”
“वैसे मुझे इस विश्वजीत के किरदार में भी कोई भेद दिखाई दे रहा है। जितना बड़ा षड़यंत्र उसने रच दिखाया, उतनी हिम्मत तो कोई बड़ा और घुटा हुआ अपराधी ही कर सकता है।”
“जो कि वह नहीं है।”
“आपको क्या पता?”
“उसने भरी अदालत में अधिकारी और दीक्षित पर आरोप लगाये थे मैडम, और उस वक्त मैं भी वहीं था। इसलिए गारंटी से कह सकता हूं कि आरोप झूठे नहीं थे, क्योंकि ये पता लगते ही कि अखिल असल में डॉक्टर बरनवाल का बेटा विश्वजीत है, दोनों के चेहरों पर राख सी पुत गयी थी।”
“हैरानी की बात है वंश साहब कि वह दोनों विश्वजीत को पहचान नहीं पाये, जबकि एक साल पहले उसके साथ कई मुलाकातें हुई होंगी।”
“इसलिए नहीं पहचान पाये क्योंकि अब उसने दाढ़ी रख ली थी। बाल भी पहले की अपेक्षा लंबे कर लिए थे। फिर अधिकारी और दीक्षित की निगाहों में तो वह स्मैकिया था, इसलिए ना पहचान पाना कोई बड़ी बात नहीं मानी जा सकती।”
“जो कि वह नहीं था।”
“वो बात पहले कहां पता थी दोनों अफसरों को?”
“पूरे मामले को गौर से देखेंगे वंश साहब तो दो परस्पर विरोधी बातें सामने आ रही हैं, जिन्होंने मुझे उलझाकर रख दिया है।”
“कौन सी बातें?”
“अगर हम इस बात को सच मान लें कि अधिकारी और दीक्षित जानते थे कि डॉक्टर का कत्ल किसने किया था, और वो दोनों हत्यारे से रिश्वत खाये बैठे थे, तो विश्वजीत के कहने पर उसे डॉक्टर का कातिल कैसे तसलीम कर लिया?”
“कैसे कर लिया?”
“मैं आपसे पूछ रही हूं।”
“ये सोचकर कर लिया होगा मैडम कि एक नशेड़ी जब उतना बड़ा जुर्म कबूल कर रहा था, तो क्यों न उसे अदालत में पेश कर के डॉक्टर की मौत का केस सॉल्व हुआ दिखा दिया जाये।”
“तब उनके मन में ये ख्याल क्यों नहीं आया कि लड़का किसी खास वजह से झूठ बोल रहा था?”
“इसलिए नहीं आया क्योंकि उनकी निगाहों में वह नशेड़ी था, जो अक्सर बहुत कुछ भूल जाया करते हैं, या कुछ बातों की गलत कल्पना कर बैठते हैं। वैसे भी अमरजीत के कत्ल के बारे में तो उन्हें यकीन था ही कि वह उसी ने किया था, इसलिए उसकी कही दूसरी बात को भी कैच किया और दोनों का चार्ज जड़ दिया उसपर, इसमें हैरानी की क्या बात है?”
“यानि दोनों जानते थे कि वह बरनवाल का कातिल नहीं था?”
“जानते ही होंगे, हत्यारे ने गुमनाम रहकर थोड़े ही उन्हें अपनी तरफ कर लिया होगा। और रिश्वत अगर सामने से खाई थी तो ना पहचानने का क्या मतलब बनता है?”
“ये क्यों नहीं हो सकता कि वह विश्वजीत ही रहा हो?”
“कैसे पॉसिबल है मैडम, अगर अपने खिलाफ जुबान बंद रखने को तैयार करने वाला विश्वजीत रहा होता, तो उसे और उसकी मां को दिल्ली से वापिस लौट जाने को मजबूर क्यों किया जाता?”
“यानि लड़के के किरदार में आपको कोई भेद नहीं दिखता?”
“दिखता क्यों नहीं है, आपकी तरह मैं भी ये सोचकर हैरान हूं कि उसने प्लॉन कर के झूठ बोला था, लेकिन वह चतुराई उसकी नहीं बल्कि एडवोकेट रमन राय की थी जो उसकी गिरफ्तारी के बाद थाने जाकर उससे मिला था। फिर इंसान में हौसला हो, धैर्य हो और वह दिमाग रखता हो तो कुछ भी कर सकता है, कोई आ रहा है।”
“क्या?”
“अभी अभी कोई बिल्डिंग में दाखिल हुआ है।” खिड़की से बाहर देखता वंश बोला।
“कोई?”
“गर्दन झुकी हुई थी, इसलिए चेहरा नहीं दिखा, लेकिन डील डौल लल्लन जैसी ही लगी थी मुझे।”
“ठीक है आप कमरे में जाईये।”
“होशियार रहियेगा।”
“वंश साहब...
“सॉरी मैडम, मैं बार बार भूल जाता हूं कि आप महज एक खूबसूरत लड़की नहीं हैं।”
“मतलब आज कसम खाकर बैठे हैं मेरे दिल में उतरने की?”
“जगह हो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है।”
“अब जाईये भी।” वह हंसती हुई बोली।
तत्पश्चात वंश सामने वाले कमरे में जा घुसा और दरवाजे को थोड़ा सा खोलकर बाहर देखने लगा, गरिमा आराम से सोफे पर जाकर बैठ गयी।
तब तक रात के दस बज चुके थे।
थोड़ी देर बाद कॉलबेल बजी।
गरिमा ने बजने दिया।
“कौन?”
“मैं हूं।” बेहद संक्षिप्त जवाब मिला।
“आती हूं।” कहकर वह उठी और जाकर दरवाजा खोल दिया।
सामने एक हैंडसम दिखने वाला नौजवान खड़ा था।
“आप कौन?” उसने पूछा।
“मैं कौन मतलब?”
“कविता कहां है?”
“भीतर है, आ जाओ।”
सुनकर वह अंदर दाखिल हो गया।
“तुम उसकी कोई फ्रैंड हो?” युवक ने पूछा।
“हां - कहते के साथ ही गरिमा ने उसपर अपनी गन तान दी - डोंट मूव।”
युवक की आंखें फट सी पड़ीं, उसने व्याकुल भाव से आस-पास देखा, तभी वंश को कमरे से बाहर निकलता देख वह और ज्यादा बौखला उठा। फिर उसने इंस्पेक्टर को जोर से धक्का दिया और दरवाजे की तरफ दौड़ लगा दी।
रिवाल्वर गरिमा के हाथ से निकलकर फर्श पर जा गिरी, जिसे उठाने का वह सही वक्त नहीं था, इसलिए गन को भूलकर उसने युवक पर छलांग लगा दी, दोनों हाथ लड़के के कंधों पर पड़े और अगले ही पल गरिमा ने उसे वापिस भीतर खींच लिया। खींचकर नीचे गिराया और एक जोर की लात उसके पेट में जमाने के बाद गुर्राती हुई बोली, “इस बार हिलने की कोशिश की तो हाथ पांव सलामत नहीं बचेंगे।”
कहने के साथ ही उसने फर्श पर पड़ी अपनी सर्विस रिवाल्वर उठाकर कमर में खोंस लिया।
“स...सॉरी - नीचे पड़ा युवक गिड़गिड़ा उठा - तुम्हें जो चाहिए ले जाओ, लेकिन मुझे मारना मत प्लीज।”
सुनकर गरिमा और वंश सकपका से गये।
“कौन हो तुम?”
“कौशल सरदाना।”
“कौन कौशल सरदाना?”
“कविता का हस्बैंड है मैडम।” वंश एक लंबी आह भरकर बोला।
उसी वक्त लल्लन दरवाजे पर प्रगट हुआ, फिर ज्यों हीं उसकी निगाह भीतर के नजारे पर पड़ी, गायब हो गया। तब तक वंश को उसकी और उसके हाथ में थमें छुरे की एक झलक मिल चुकी थी।
“वह भाग रहा है मैडम, ब्लू कलर की हुडी पहने है।”
सुनते के साथ ही गरिमा ने बाहर की तरफ दौड़ लगा दी।
वंश ने कौशल की तरफ देखा, “डोंट वरी, ये पुलिस कार्रवाई है, मतलब तुम्हें या तुम्हारी वाईफ को कोई खतरा नहीं है।” कहकर वह खुद भी वहां से बाहर निकल गया।
तब तक लल्लन सीढ़ियों के दहाने तक पहुंच भी चुका था। गरिमा पूरी ताकत से उसके पीछे भागी, दोनों आगे पीछे सीढ़ियां उतरने लगे। फिर खुद के घायल हो जाने की परवाह किये बगैर गरिमा एकदम से उसके ऊपर कूद गयी। उस कोशिश में उसके दोनों घुटने लल्लन की पीठ पर पड़े। वह मुंह के बल नीचे गिरा, छुरा हाथ से निकल गया, और गरिमा के घुटनों का प्रहार उसे बुरी तरह तड़पा गया।
घुटनों को तेज झटका लगने के कारण गरिमा को भी अपनी हड्डियां चटकती सी महसूस हुईं, मगर उनकी परवाह किये बगैर उसने लल्लन के बालों को मुट्ठी में जकड़ा और थोड़ा ऊपर उठाने के बाद जोर से उसका थूथन समतल फर्श पर दे मारा।
लल्लन भी कोई कम ताकतवर नहीं था, वह लेटे लेटे पूरे का पूरा घूम गया। अब उसपर चढ़कर बैठी गरिमा का चेहरा उसके सामने था, और इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, लल्लन ने पूरी ताकत से एक घूंसा उसके चेहरे पर जड़ा और अपने ऊपर से दूर झटकता हुआ उठकर खड़ा हो गया।
अगले ही पल फर्श पर पड़ा छुरा उसके हाथ में था।
गरिमा अभी उठने की कोशिश कर ही रही कि लल्लन का छुरे वाला हाथ वार करने को ऊपर उठा। उसका निशाना गरिमा की पीठ थी, और इस बात में भी कोई शक नहीं था कि वह कामयाब हो जाता।
उसी वक्त!
सीढ़ियाँ उतरते वंश ने वह नजारा देखा तो लल्लन के हाथ में थमे छुरे की परवाह किये बगैर उसपर छलांग लगा दी। उस वक्त लल्लन का छुरे वाला हाथ हवा में उठा हुआ था, जब दो-तीन स्टेप ऊपर से कूदे वंश की लात उसके सीने पर पड़ी और वह पीठ के बल नीचे जा गिरा। उसकी खोपड़ी जोर से फर्श से टकराई और अगले ही पल उसकी चेतना लुप्त हो गयी।
गरिमा देशपांडे उठकर खड़ी हो गयी।
तत्पश्चात लल्लन को एसआई नरेश चौहान के हवाले कर के दोनों वापिस कविता के फ्लैट में पहुंचे, जहां बैठा कौशल सरदाना अभी भी जोर जोर से कराह रहा था।
“सॉरी।” वह बोली।
“नैवर माईंड, पकड़ाई में आया या नहीं?”
“और क्या भाग जाता? - कहकर उसने पूछा - कविता ने तो बताया था कि आप दिल्ली से बाहर हैं, फिर अचानक कैसे पहुंच गये?”
“आना तो मैंने आज ही था मैडम, लेकिन उसे सरप्राईज देने के चक्कर में जानबूझकर इंफॉर्म नहीं किया, मालूम होता यहां इतना बड़ा सरप्राईज मौजूद होगा तो बताकर आया होता।”
“डॉक्टर के पास जाना चाहते हैं?”
“नहीं।”
“आपको चोट लगी है?”
“कविता हैंडल कर लेगी मैडम, आप तो बस अपने यहां होने की वजह बता दीजिए मुझे, प्लीज।”
“आपकी वाईफ का मर्डर प्लॉन किया गया था कौशल जी, जिसकी खबर इत्तेफाक से पत्रकार साहब को लग गयी - उसने वंश की तरफ इशारा कर के कहा - जिसके बाद हमने यहां कातिल के खिलाफ ट्रैप लगाया, जिसमें गलती से आप फंस गये।”
“आप मजाक कर रही हैं?”
“नहीं।”
“कोई मेरी वाईफ की जान भला क्यों लेना चाहेगा?”
“वह ‘कोई’ नहीं है कौशल साहब - वंश ने झूठ का सहारा लिया - वह शख्स है जिसने एक साल पहले डॉक्टर बालकृष्ण बरनवाल की हत्या की थी।”
“कमाल है! डॉक्टर हत्यारा भला कविता को क्यों मारना चाहेगा?”
“क्योंकि उसे लगता है आपकी वाईफ कुछ ऐसा जानती हैं, जिससे उसका भेद खुल सकता है, जो महज उसकी कल्पना की उपज है, क्योंकि हम कविता जी से पहले ही लंबी पूछताछ कर चुके हैं।”
“नहीं असल बात कुछ और है, जो शायद आप लोग मुझे बताना नहीं चाहते। हमला अगर डॉक्टर के हत्यारे ने कराना होता तो एक साल इंतजार क्यों करता?”
वंश ने हड़बड़ाकर गरिमा की तरफ देखा।
“मुबारक हो।” वह कौशल की तरफ देखकर मुस्कराती हुई बोली।
“किसलिए?”
“आपने वंश साहब की चोरी पकड़ ली। लेकिन सच्चाई आपको फिर भी नहीं बताई जा सकती, क्योंकि पूरे मामले में अभी बहुत कुछ जानना बाकी है। आपकी वाईफ को भी बस इतनी ही जानकारी दी गयी है कि डॉक्टर का हत्यारा उसकी जान लेने पर तुला हुआ है।”
“यानि डॉक्टर के कातिल से कविता को कोई खतरा नहीं है?”
“सॉरी हम ज्यादा कुछ नहीं बता सकते आपको।”
“कम से कम इतना तो बताईये, कि क्या अभी भी उसे सावधान रहने की जरूरत है?”
“हां कुछ दिन तो यकीनन।”
“ठीक है मैं कोई इंतजाम कर लूंगा।”
“कैसा इंतजाम?”
“देखता हूं, और कुछ नहीं तो बोल दूंगा छुट्टी लेकर अपने पेरेंट्स के घर बैठे, जब तक ये मामला शांत नहीं हो जाता।” कहते हुए वह दोनों हाथों से अपना सिर पकड़कर बैठ गया।
“आपके सिर पर खून लगा है।”
“जी?”
“मैंने कहा आपके सिर पर खून लगा है।”
“हाथ में कट लग गया है, जो बेध्यानी में सिर पर पहुंच गया होगा।”
“हो सकता है।”
तत्पश्चात दोनों वहां से निकल गये। फिर वंश ने कविता को फोन कर के समझा दिया कि उसके हस्बैंड के साथ क्या हुआ था और ये भी कि उन लोगों ने उसे क्या बताया था। ताकि बाद में किसी गलतफहमी की गुंजाईश नहीं रह जाती।
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