एंड ऑफ द गेम
पांचों पापी बाकी की रात इंटेरोगेशन रूम में बंद रहे थे, लॉकअप में इसलिए नहीं क्योंकि वहां दूसरे कैदी मौजूद थे, जिनके साथ उन बच्चों को रखना ठीक नहीं समझा गया। उनमें से तीन क्योंकि लड़कियां थीं इसलिए दो लेडी कांस्टेबल्स ने भी आगे का वक्त वहीं बैठकर गुजारा था। किसी के मोबाईल फोंस भी कब्जे में लेने की कोशिश नहीं की गयी, इसलिए सुबह नींद से जागते के साथ ही उन लोगों ने अपने अपने घरवालों को फोन खटका दिया था।
विराट राणा घर नहीं जा पाया, इसलिए हैडक्वार्टर में ही नहा धोकर तैयार होने के बाद नौ बजे के करीब अपने कमरे में जा बैठा। वहीं उसने चाय और टोस्ट का नाश्ता किया फिर जोशी की तरफ से कोई खबर मिलने का इंतजार करने लगा, जो तब तक मुंबई पहुंच भी चुका था।
दस बजे गिरफ्तार बच्चों के मां बाप वहां इकट्ठे होने लगे। उन्हीं में से कोई वहां पहुंचने से पहले मीडिया को इंफार्म कर आया था, जो कि बाहर गेट पर खड़े होकर मनगढ़ंत किस्से, वो किस्से जो पापियों के घरवालों ने उन्हें सुनाया था, अपने ऑडियंस के सामने बार-बार रिपीट किये जा रहे थे।
मीडिया के सामने सबसे ज्यादा वाही तबाही नदीम अहमद ने बकी जिसने विराट को विलेन साबित करने में कोई कसर उठा नहीं रखी थी। काश कि उसे असलियत का पता होता तो शायद उतना बढ़ चढ़कर नहीं बोलता, जितना अब तक वह बोल चुका था।
राजावत को खूब पता था कि विराट राणा उस वक्त हैडक्वार्टर में ही था, मगर उसने वहां पहुंचे पेरेंट्स को उस बात की जानकारी देने की कोई कोशिश नहीं की, ना ही उनमें से कोई विराट के कमरे में ये देखने पहुंचा था कि वह ड्यूटी पर था या नहीं।
डीसीपी को उस बात की सूचना देना राजावत की मजबूरी थी जो उसने नौ बजे ही दे दी थी, बावजूद इसके सहरावत को वहां पहुंचने में दस बज गये, क्योंकि उससे पहले कमिश्नर की हाजिरी भरनी पड़ी थी, जहां खूब खरी खोटी सुनकर आया था।
सैंडी और रोहताश के घरवालों को अभी तक ये खबर नहीं दी गयी थी कि वह दोनों मारे जा चुके थे, इसलिए सातों पापियों के पेरेंट्स इस बात की जिद पर अड़े हुए थे कि या तो उनको बच्चों को फौरन रिहा किया जाये या फिर पुलिस उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करके उन्हें कोर्ट में पेश करे।
राजावत अभी दोनों में से एक भी काम करने को राजी नहीं था, क्योंकि विराट के साथ चली लंबी मीटिंग में यही फैसला लिया गया था कि मुंबई से जोशी की रिपोर्ट आने तक ना तो किसी को गिरफ्तार किया जायेगा, ना ही छोड़ा जायेगा।
मगर वहां मौजूद धनकुबेरों को चुप रखना आसान काम नहीं था। सब अपने अपने स्तर पर कोशिशों में जुटे हुए थे। सोर्स खड़काये जा रहे थे, पुलिस पर दबाव डलवाया जा रहा था, इसलिए राजावत के पास आने वाली कॉल्स का ताता सा लग गया। आखिरकार तंग आकर उसने लैंडलाईन फोन का रिसीवर उठाकर नीचे रख दिया।
मगर मोबाईल के साथ वैसा नहीं कर सकता था, उसे ऑन रखना उसकी मजबूरी थी, क्योंकि कॉल कमिश्नर ऑफिस से भी आ सकती थी, जिसके बारे में सोचकर ही उसके पसीने छूट रहे थे।
कुल मिलाकर मामला बेहद भयानक रुख अख्तियार करता जा रहा था, और रही सही कसर मीडिया पूरी किये दे रही थी, जो जलती आग में लगातार घी के कनस्तर उड़ेल रही थी।
आखिरकार बारह बजे के करीब जोशी की वह कॉल विराट के पास पहुंची जिसका उसके साथ-साथ एसीपी राजावत को भी बेसब्री से इंतजार था।
“गुड न्यूज है सर।” वह चहकता हुआ बोला।
“शुक्र है।”
“पापियों ने जिन चारों लड़कों का संहार किया था, वह जरायम पेशा थे, कई बार जेल होकर भी आ चुके थे। मगर सबसे लंबी सजा उन्हें एक नियर मर्डर के जुर्म में धारा 307, और इललिगल पजेशन ऑफ फॉयर आर्म्स के लिए दफा 25 के तहत हुई थी, जिसके कारण पूरे तीन सालों तक जेल में रहना पड़ा था। लेकिन धमाकेदार खबर ये है कि उससे पहले चारों एक साथ नौकरी करते थे - कहकर उसने पूछा - जानते हैं कहां करते थे?”
“सर्कस में, जहां वह अपने तरह-तरह के कारनामों से दर्शकों को चौंका देते होंगे। जैसे कि यहां दिल्ली में पापियों को चौंका रहे थे।”
“आपको पता था?” जोशी का हैरानी भरा स्वर उसके कानों में पड़ा।
“अंदाजा बराबर था, वह चारों बेहद पतली दुबली कद काठी के लड़के थे। इतने दुबले पतले कि उनके शरीर पर मांस शायद ढूंढने पर भी नहीं मिलता। मगर ये भी तय था कि कमजोर नहीं थे, कुपोषण के शिकार भी नहीं थे, जो कि होते तो उतने बड़े-बड़े कारनामों को अंजाम नहीं दे पाते, जो उन चारों ने हवेली में कर दिखाया था। इसीलिए मेरा ध्यान सर्कस की तरफ चला गया था।”
“फिर तो आप ये भी समझ गये होंगे कि उन्हें हॉयर करने वाला कौन था?”
“मनीराज गोपालन।”
“एग्जैक्टली।”
“जिसपर तुमने पहले ही दिन शक जता दिया था, मगर अफसोस कि मैंने तुम्हारी बात पर कान धरने की भी कोशिश नहीं की थी।”
“उस वक्त मेरे पास वैसा कहने की कोई वजह थोड़े ही थी सर, मैंने तो यूं ही बोल दिया था कि कातिल वह भी हो सकता है। बस समझ में ये नहीं आता कि अगर वह मधु कोठारी से पीछा छुड़ाना चाहता था तो बाकियों को मारने की उसे क्या जरूरत थी?”
“उस बात का जवाब मेरे पास मौजूद है जोशी साहब इसलिए बेफिक्र हो जाओ, अब मनीराज गोपालन बचकर कहीं नहीं जाने वाला - कहकर उसने पूछा - वापिस कब तक लौट आओगे?”
“चार बजे तक तो यकीनन।”
“गुड, तब तक मैं इसी मनीराज को हिरासत में लेने का इंतजाम करता हूं। रही बात उसे इंटेरोगेट करने की तो वह काम तुम्हारे यहां पहुंच चुकने के बाद हम दोनों मिलकर करेंगे, साथ में मौका भी दूंगा उससे अपने मनचाहे ढंग से पूछताछ करने का।” कहकर विराट ने कॉल डिस्कनैक्ट की और उठकर इंटेरोगेशन रूम में पहुंचा, जहां चार पापी मजे से वहां मौजूद मेज के इर्द गिर्द रखी कुर्सियों पर बैठे हुए थे। जबकि अरसद टेबल के ऊपर बैठा था क्योंकि एक कुर्सी कम थी।
विराट पर निगाह पड़ते ही वह उठकर खड़ा हो गया। तब उसने एक सिपाही को बोलकर दो और कुर्सियां मंगवाईं जिनमें से एक पर खुद बैठ गया जबकि दूसरे पर अरसद को बैठने का इशारा कर दिया।
“कैसे हो पापियों?” उसने पूछा।
“एकदम मस्त।” सब एक साथ बोल पड़े।
“अरसद तो जिंदा है - वाणी की तरफ देखता हुआ विराट मुस्कराकर बोला - तो क्या मैं ये समझूं कि तुमने अपना ऑफर विद ड्रॉ कर लिया है?”
“तुम हामी तो भरो इंस्पेक्टर, ये दूसरी गर्लफ्रैंड ढूंढ लेगा।”
“इतना जुर्म मत करो बेचारे पर, पहले ही बहुत फुंका बैठा है - कहकर उसने पूछा - तुम लोग अपने पापों का बोझ कुछ कम करना चाहते हो?”
“नहीं - ऐना बोली - पापों की वजह से ही तो हमारा वजूद है इंस्पेक्टर, वही नहीं रहेंगे तो हमारी प्रजाति ही नहीं खत्म हो जायेगी?”
“अच्छा एक बात बताओ।”
“क्या?”
“इंग्लिश मीडियम में पढ़ लिखकर बड़े हुए तुम लोगों की हिंदी इतनी अच्छी क्यों है?”
“आपकी मां का नाम क्या है इंस्पेक्टर साहब?” नैना ने पूछा।
“सवाल के बदले सवाल मत करो।”
“जवाब दीजिए प्लीज।”
“अवंतिका राणा, अब दुनिया में नहीं हैं।”
“नहीं हैं फिर भी आपको उनका नाम याद है?”
“हद है, कोई अपनी मां का नाम कैसे भूल सकता है?”
“एग्जैक्टली, कोई अपनी मां का नाम कैसे भूल सकता है। इसी तरह हिंदी हमारी मदर लैंग्वेज है, उसे भूल गये मतलब अपनी मां को भूल गये। फिर हमारी पापी मंडली में तो उसे लेकर कानून भी बहुत सख्त है।”
“कैसा कानून?”
“अस्सी फीसदी हिंदी बोलना अनिवार्य है, जिसकी शुद्धता कम से कम पचास फीसदी होनी ही चाहिए, जिसे ये बात स्वीकार नहीं, वह पापी नहीं, यानि मंडली से आउट कर दिया जायेगा।”
“अच्छा कानून है, जब से मिले हो पहली बार कुछ ऐसा कहा है जिससे मैं पूरी तरह सहमत होकर दिखा सकता हूं। कई भाषाओं का ज्ञान होना अच्छी बात है, मगर मातृ भाषा का ज्ञान न होना डूब मरने जैसी बात है।”
“थैंक यू।”
“चलो पापों का बोझ बेशक हल्का मत होने दो, मगर कानून की थोड़ी बहुत मदद तो कर ही सकते हो।”
“कैसी मदद?”
“तुम लोगों में से मनीराज के साथ सबसे अच्छी किसकी बनती है?”
“बनने जैसी तो कोई बात नहीं है इंस्पेक्टर - नैना बोली - क्योंकि वह शख्स हमें कभी पसंद ही नहीं आया। मगर आप अपनी कहिये क्या चाहते हैं?”
“मुझे उससे अकेले में कहीं बात करनी है, मैं खुद फोन करूंगा तो हो सकता है आने से मना कर दे, मगर क्या तुम लोगों में से कोई ऐसा है जिसके बुलावे पर वह घर से कहीं बाहर आने को तैयार हो जाये।”
“मैं ट्राई कर सकती हूं - वाणी बोली - उम्मीद है आ भी जायेगा, क्योंकि उसके साथ सर्कस देखते वक्त मैंने बिना मन के ही सही कई बार तालियां बजाई थीं।”
“उसे कोई प्रलोभन देकर बुलाओ, पक्का आ जायेगा।”
“नो वे इंस्पेक्टर, मैं उसे सैक्स का ऑफर दूंगी, तो अरसद मेरा गला नहीं घोंट देगा?”
विराट हड़बड़ाया, फिर बोला, “प्रलोभन से मेरा तात्पर्य किसी ऐसी बात से है, जिसे सुनकर वह तुमसे मिलने को खुद उतावला हो उठे। एक काम करो, उससे कहो कि तुम्हें पता लग गया है कि हनी का कातिल कौन है, और मिलकर वही बात उससे डिस्कस करना चाहती हो। थोड़ा रहस्यमय ढंग से बोलना, कुछ इस तरह जैसे डरी हुई हो, या कोई गहरा राज जान लेने पर जिस तरह की हालत हमारी हो जाया करती है।”
“ओके आई विल - कहकर वाणी ने मनीराज का नंबर डॉयल कर के मोबाईल को बिना कहे ही स्पीकर पर डाल दिया - बुलाना कहां है?”
“बदरपुर, ना माने तो कहीं भी।”
चौथी बार बेल जाते ही दूसरी तरफ से कॉल अटैंड कर ली गयी।
“हॉय मनी।” वह धीरे से बोली।
“हॉय वाणी, कैसे याद किया?”
“जब इंसान प्रॉब्लम में हो तो अपनों की ही तो याद आती है।”
“अरे क्या हुआ, सब ठीक तो है?”
“नो स्वीट हॉर्ट कुछ भी ठीक नहीं है।”
“अब कुछ बताओगी भी?”
“मेरे को एक बहुत बड़ा सीक्रेट मालूम पड़ गया है। समझ में नहीं आता कि पुलिस को बताऊं या नहीं बताऊं? इसलिए सोचा पहले तुमसे डिस्कस कर लूं।”
“बोलो।”
“ऐसे नहीं, कहीं अकेले में मिलो फिर बताऊंगी।”
“कोई हिंट दो फिर सोचूंगा।”
“सोचोगे, ये तो हद ही हो गयी।”
“ओके हिंट दो फिर डेफिनेटली पहुंच जाऊंगा।”
“मुझे पता लग गया है कि हनी का कत्ल किसने किया था?”
“वॉट?” मनीराज का हैरानी भरा स्वर पूरे कमरे में गूंजा।
“सच कह रही हूं बेबी।”
“ओह माई गॉड, कहां हो तुम?”
“मैं, मैं बदरपुर में हूं।”
उसी वक्त मोबाईल पर एक हल्की सी बीप सुनाई दी, फिर कुछ क्षणों के लिए मनी की आवाज आनी बंद हो गयी, जैसे कोई नैटवर्क इशू उत्पन्न हो गया हो।
“हैलो, तुम सुन रहे हो या नहीं?” वाणी ने उतावले ढंग से पूछा।
“हां सुन रहा हूं।”
“फिर कुछ बोलते क्यों नहीं?”
“देखो अगर तुम्हें पता लग गया है कि हनी का कातिल कौन है तो जाकर पुलिस को बता दो, इसमें मुझसे डिस्कस करने जैसी क्या बात है?”
“है तभी तो बुला रही हूं।”
“सॉरी इस वक्त तो नहीं आ पाऊंगा।” कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
“सॉरी इंस्पेक्टर, मैं फेल हो गयी।”
“इट्स ओके।”
“मैं कोशिश करूं?” नैना ने पूछा।
“नहीं रहने दो, दोबारा वैसी कॉल आने पर वह फौरन समझ जायेगा कि उसे किसी ट्रैप में फंसाया जा रहा है।”
“मिलना क्यों चाहते हो उससे?”
“कुछ सवाल जवाब करने हैं, जो कि उसके घर पहुंचकर नहीं किये जा सकते। खैर कोई बात नहीं, किसी और दिन सही - कहकर उसने पूछा - तुम लोगों ने कुछ खाया या नहीं अभी तक?”
“बस चाय पी है, क्योंकि हम पापी नहाये बिना ब्रेकफॉस्ट नहीं करते।”
“फिर तो कुछ घंटे और इंतजार करना पड़ेगा तुम लोगों को।”
“नो प्रॉब्लम, आज खाने का मन हममें से किसी का नहीं हो रहा।”
विराट उठ खड़ा हुआ।
इंटेरोगेशन रूम से निकलकर उसने एसीपी को कॉल लगाया।
“बोलो?” उधर से पूछा गया।
“अभी और इसी वक्त मनीराज गोपालन को गिरफ्तार करना है सर।”
“वॉट, तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है? - एसीपी का दबा हुआ लहजा उसके कानों में पड़ा - पहले ही क्या कम झमेले खड़े किये बैठे हो?”
“आपकी निगाहों में कातिल को गिरफ्तार करने की बात कहना अगर दिमाग खराब होना है सर, तो समझ लीजिए हो ही गया है।”
“तुम सोचते हो लॉ एंड ऑर्डर मिनिस्टर का बेटा हत्यारा है?”
“जी हां।”
“साबित कर सकते हो?”
“हां कर सकता हूं।”
“कांफ्रेंस रूम में पहुंचो।”
“आपके कमरे में क्यों नहीं?”
“यहां गब्बर्स मौजूद हैं।”
विराट हंसा।
“दो मिनट बाद।”
“यस सर, थैंक यू।”
तत्पश्चात वह सीढ़ियां चढ़कर दूसरी मंजिल पर पहुंचा और कांफ्रैंस रूम में बैठकर एसीपी के आने का इंतजार करने लगा।
थोड़ी देर बाद एसीपी के साथ-साथ डीसीपी सहरावत भी वहां पहुंच गया। दोनों ऑफिसर्स इस वक्त कैसी स्थिति से गुजर रहे थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि हॉल में कदम रखने के बाद राजावत ने पलटकर दरवाजा बंद कर दिया था। जबकि उसकी कोई जरूरत नहीं थी।
विराट ने उठकर दोनों का अभिवादन किया, फिर उनके बैठ चुकने के बाद डीसीपी का इशारा पाकर खुद भी उनके सामने एक कुर्सी पर टिक गया।
सहरावत कुछ क्षण गहरी निगाहों से उसे देखता रहा फिर बोला, “जानते हो दिल्ली के तमाम रईसों की आज की तारीख में अहम ख्वाहिश क्या है इंस्पेक्टर?”
“किसी भी तरह अपने बच्चों को यहां से आजाद करा लेना?”
“नहीं, क्योंकि वह काम कोई ज्यादा मुश्किल नहीं है उन लोगों के लिए। ख्वाहिश तो तुम्हारी वर्दी उतरते देखने की है, साथ में ये भी कि तुम उनके सामने घुटनों के बल बैठकर रहम की भीख मांगो, उनसे कहो कि तुम्हें माफ कर दें ताकि तुम्हारी नौकरी बच सके।”
“अच्छी ख्वाहिश है सर, जिनमें से पहली वाली पर तो खैर मेरा कोई जोर नहीं है, लेकिन दूसरे वाले के बारे में गारंटी है कि इस जन्म में तो क्या पूरा होता देख पायेंगे।”
“यानि वर्दी की कोई फिक्र नहीं है?”
“है क्यों नहीं सर, मैं तो बस ये कह रहा हूं कि उस फ्रंट पर उनका प्रयास कारआमद साबित हो सकता है। ना कि मैं पुलिस की नौकरी से तंग आ गया हूं।”
“यहां आने से पहले मैं कमिश्नर साहब के बुलावे पर उनसे मिलने पहुंचा था - डीसीपी आगे बोला - उन्होंने स्पष्ट लहजे में कह दिया है कि अगर तुम्हारे पास पांचों बच्चों को गिरफ्तार करने की पर्याप्त वजह न हो तो फौरन तुम्हें सस्पेंड कर दिया जाये।”
“फिर तो वर्दी भी बच ही गयी समझिये सर।”
“कैसे भई? कातिल अगर मनीराज गोपालन है - हालांकि उस बात पर भी मुझे शक ही हो रहा है - तो बाकी सब तो निर्दोष ही हुए न?”
“ऐसा नहीं है सर, पूरी तरह तो उनमें से एक भी बेकसूर नहीं है। ये आप साहब लोगों के ऊपर डिपेंड करता है कि उन्हें अभियुक्त बनाते हैं, या महज चेतवानी देकर छोड़ देते हैं।” कहकर उसने अरसद के साथ हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग प्ले कर दी।
दोनों ऑफिसर्स ने बड़े ही ध्यान से उसे सुना फिर सहरावत ने सवाल किया, “इससे ये कहां पता लगता है कि मधु का कत्ल मनीराज ने किया था?”
“इससे नहीं होता, लेकिन आगे जो कुछ भी मैं आपको बताने जा रहा हूं उससे साबित होकर रहेगा सर - कहकर उसने जोशी से हासिल जानकारी उनके आगे परोस दी - अब मैं ये चाहता हूं कि मनी की औकात को भूलकर आप मुझे उसको गिरफ्तार करने की परमिशन दें।”
“ये इतना आसान नहीं है विराट, इसलिए सिर्फ तुम्हारे वहां जाने से बात नहीं बनने वाली, आखिर मिनिस्टर साहब का बेटा है, लेने के देने भी पड़ सकते हैं - कहकर उसने डीसीपी ने राजावत की तरफ देखा - अभिषेक।”
“हुक्म कीजिए सर।”
“हैंडल कर लोगे?”
“अगर मिनिस्टर साहब ही उसकी ढाल बनकर नहीं खड़े हो गये, तो हां कर लूंगा।”
“उन हालात में तो कोई कुछ नहीं कर पायेगा भई, तब होगा ये कि हमें कोर्ट से उसका अरेस्ट वॉरेंट हासिल करना पड़ेगा। क्योंकि उसके बिना तो हम उसे छू भी नहीं पायेंगे।”
“मैं समझ गया सर।”
“एक बात का और ध्यान रखना।”
“क्या सर?”
“वहां पहुंचकर सीधा गिरफ्तारी की तलवार ही मत लटका देना उसके सिर पर, बल्कि अपना सारा जोर इस बात पर रखना कि कमिश्नर साहब यहां एसीबी हैडक्वार्टर में हैं, जो कि उसके खिलाफ जाती कुछ बातों को क्लियर करना करना चाहते हैं।”
“यानि झूठ बोलना होगा?”
“जैसे पुलिस पहली बार बोलेगी।”
“ठीक है सर, तो अब हम लोग निकले यहां से?”
“बिल्कुल निकल लो, साथ में कुछ सिपाहियों को भी लेकर जाना। तब तक मैं तुम्हारे कमरे में बैठे मुअज्जित मेहमानों के साथ अकेले मत्था फोड़ता हूं।”
“उन्हें बता ही क्यों न दिया जाये सर कि उनके बच्चों को किस जुर्म में यहां रोककर रखा गया है।”
“अभी नहीं, पहले मनीराज की गिरफ्तारी हो लेने दो, उसके बाद हम बाकियों के गुनाहों पर विचार करेंगे। तब तक कुछ धमकियां और दे लेने दो उन्हें, आखिर सुबह से यही सब तो करते आ रहे हैं।”
तत्पश्चात तीनों उठकर हॉल से बाहर निकल गये।
लॉ एंड ऑर्डर मिनिस्टर के बंगले पर पहुंचकर मनीराज को गिरफ्तार करना उतना मुश्किल काम साबित नहीं हुआ, जितना कि पुलिस समझ रही थी कि हो सकता था, बल्कि मुश्किल तो कोई सामने आई ही नहीं।
उसे ज्योंहि पता लगा कि विराट राणा वहां फोर्स के साथ पहुंचा था और साथ में एसीपी रैंक का एक पुलिस ऑफिसर भी मौजूद था। उसने दोनों को सहज ही अंदर बुला लिया। अलबत्ता सिपाहियों को भीतर दाखिल होने की अनुमति नहीं दी गयी।
पहली मुलाकात की तरह इस बार भी वह लॉन में रस्सी पर चलता हुआ ही मिला।
“ये क्या कर रहा है?” एसीपी ने पूछा।
“शौक पूरे कर रहा है सर।”
उसी वक्त मनीराज ने हाथ में थमे डंडे की सहायता से लंबी छलांग मारी और एकदम से उनके सामने आ खड़ा हुआ।
“लगता है विराट साहब ने मेरे खिलाफ कुछ खास ढूंढ निकाला है, कुछ ऐसा जिसके बूते पर मुझे गिरफ्तार करने यहां पहुंच गये, है न?”
“गिरफ्तारी जैसी कोई बात नहीं है - जवाब राजावत ने दिया - हां कुछ ऐसी बातें जरूर सामने आ गयी हैं, जिनके कारण मधु कोठारी के कत्ल से तुम्हारा रिश्ता जुड़ता दिखाई दे रहा है। उसी सिलसिले में कमिश्नर साहब तुमसे कुछ सवाल जवाब करना चाहते हैं, जो कि इस वक्त एसीबी हैडक्वार्टर में ही बैठे तुम्हारे वहां पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं।”
“दिल्ली में दो कमिश्नर कब से हो गये एसीपी साहब?”
“मतलब?” राजावत एकदम से हड़बड़ा सा गया।
“ये कि पुलिस कमिश्नर तो इस वक्त भीतर मेरे डैड के साथ मीटिंग में बिजी हैं, ऐसे में वह एसीबी हैडक्वार्टर में कैसे हो सकते हैं? या सच में दो हो गये हैं अब?”
“साहब का मतलब डिस्ट्रिक पुलिस कमिश्नर से था मनीराज।” विराट ने बात संभालने की कोशिश की।
“कम से कम ढंग का झूठ बोलना तो सीख लो विराट, भला डीसीपी को भी कोई कमिश्नर कहकर पुकारता है, वह भी पुलिस महकमे के लोग।”
“ठीक है फिर सच सुनो। वहां कोई तुम्हारा इंतजार नहीं कर रहा - विराट बदले हुए लहजे में बोला - असल बात ये है मनिराज गोपालन कि अब तुम्हारा खेल खत्म हो चुका है।”
“अच्छा इतनी जल्दी? जबकि अभी तो मैं बहुत कुछ सीखने की सोचे बैठा हूं - कहकर उसने वहां रखी चेयर्स की तरफ इशारा किया - आइये आराम से बैठकर बात करते हैं।”
तत्पश्चात तीनों आमने सामने रखीं कुर्सियों पर बैठ गये।
“मैं उस खेल की बात कर रहा हूं जो रस्सी पर चलने से कहीं ज्यादा दुष्कर होता है। मैं तुम्हें किसी एक के नहीं बल्कि ट्रिपल मर्डर के इल्जाम में गिरफ्तार करने के लिए आया हूं।”
“क्या सच में, भूल गये पिछली बार मैंने क्या कहा था?”
“नहीं भूला हूं, इसलिए सबूत के साथ हाजिर हुआ हूं।”
“मेरे कातिल होने का सबूत?” वह हैरान सा होता हुआ बोला।
“बेशक।”
“और तुम सिर्फ तीन लोगों के कत्ल की बात क्यों कर रहे हो विराट, जबकि मरे चार हैं, या राहुल हांडा का नाम याद नहीं आ रहा तुम्हें?”
“भूला नहीं हूं, नाम बस इसलिए नहीं लिया क्योंकि पक्के तौर पर जानता हूं कि उसका कत्ल तुमने नहीं किया था।”
“बाकियों का भी नहीं किया।”
“मैं साबित कर सकता हूं।”
“फिर तो कमाल ही हो जायेगा, करो।”
जवाब में विराट ने उसे सर्कस के चारों जमूरों के बारे में बताया, फिर बोला, “अब ये बात साबित हो चुकी है कि उन लोगों को तुमने ही हॉयर किया था। मुंबई से दिल्ली लेकर आने वाले भी तुम्हीं थे। और इस बात में भी कोई शक नहीं है कि तीनों हत्यायों को उन चारों ने ही अंजाम दिया था। तुम मुकरने की कोशिश करोगे तो हम तुम्हारी कॉल डिटेल्स से अपने कहे को साबित भी कर देंगे, क्योंकि ये हो ही नहीं सकता कि तुमने उन लोगों को कभी कॉल न किया हो। फिर इस बात का भी क्या जवाब दोगे कि मुंबई के चार सजायाफ्ता लड़के - जो कि सर्कस में काम भी करते थे - यहां दिल्ली में तुम्हारे कांटेक्ट में थे?”
तब पहली बार वह थोड़ा विचलित दिखाई दिया।
“सारे सबूत तुम्हारे खिलाफ हैं, आगे हम और भी ढूंढ निकालेंगे। इसलिए बच पाना नामुमकिन ही समझो। अच्छा यही होगा कि तुम चुपचाप अपनी मर्जी से हमारे साथ चलो। अगर खुद को बेगुनाह मानते हो तो भी चलो ताकि विस्तृत सवाल जवाब कर के उस बात को क्लियर किया जा सके।”
तब विराट ने वो देखा जिसकी उम्मीद न तो उसे थी ना ही एसीपी राजावत को। साथ ही उसकी समझ में ये भी आ गया कि सनकी बस पापी मंडली के लोग ही नहीं थे, उस मामले में मनीराज तो जैसे उन सब का बाप था।
“बिल्कुल चलूंगा इंस्पेक्टर, आखिर पिछली मुलाकात में तुम्हें बचन दे चुका हूं - मनी अपनी कुर्सी से उठता हुआ बोला - तुमने क्योंकि मेरा जुर्म साबित कर दिखाया, इसलिए अपने वादे के मुताबिक तुम्हारे साथ कहीं भी चलने को तैयार हूं। बावजूद इसके कि मेरी मर्जी के खिलाफ तुम चाहकर भी मुझे यहां से नहीं ले जा सकते।”
सुनकर दोनों ऑफिसर क्षण भर के लिए सकपका कर रह गये, तत्पश्चात मनीराज को साथ लेकर गेट की तरफ बढ़े। उन्हें पूरा पूरा यकीन था कि अभी वह पैंतरा बदलेगा और अपनी गिरफ्तारी पर हंगामा खड़ा कर के रख देगा। फिर होता ये कि उसका बाप भीतर मौजूद पुलिस कमिश्नर को हुक्म देता और उसकी गिरफ्तारी फौरन रोक दी जाती।
मगर वैसा कुछ नहीं हुआ।
सब निर्विघ्न बाहर पहुंच गये।
अगले ही पल वहां पहुंची पुलिस की तीनों गाड़ियां वापिस एसीबी हैडक्वार्टर लौटी जा रही थीं। उस मनीराज के साथ जो कि कातिल था, जिसका पिता मिनिस्टर था। जिसने उनके रुतबे का फायदा उठाने की कोई कोशिश नहीं की थी।
कोई सुनता तो इस बात पर हरगिज भी यकीन नहीं करता कि लॉ एंड ऑर्डर मिनिस्टर के बेटे को गिरफ्तार करना और किसी गली के नुक्कड़ पर बैठे अफीमची को धर दबोचना एक ही बात साबित हुई थी।
शाम साढ़े चार बजे मुंबई गया सुलभ जोशी हैडक्वार्टर वापिस लौटा, जिसके तुरंत बाद वह राजावत और विराट के साथ गहरी मंत्रणा में व्यस्त हो गया। आगे करीब पंद्रह मिनटों तक तीनों आपस में तर्क वितर्क करते रहे, फिर विराट और जोशी उठकर आईटी डिपार्टमेंट के इंचार्ज मिश्रा के पास पहुंचे, जहां कुछ जरूरी बातें क्लियर करने के बाद, महेश गुर्जर को हुक्म दिया कि वह पांचों पापियों के साथ-साथ मनीराज को भी ऊपर कांफ्रैंस हॉल में पहुंचा दे।
उसके पांच मिनट बाद डीसीपी सहरावत और एसीपी अभिषेक सिंह राजावत की अध्यक्षता में विराट ने वहां मौजूद तमाम लोगों को इंटेरोगेट करना शुरू किया।
“सवाल जवाब शुरू करने से पहले मैं तुम सबको एक आखिरी मौका देना चाहता हूं - विराट का लहजा इस वक्त बेहद गंभीर और शांत था - चाहो तो अपने गुनाहों को खुद अपने मुंह से भी कबूल कर सकते हो, क्योंकि अब ऐसा कुछ नहीं है जो हमसे छिपा हुआ हो।
जवाब में सबसे पहले ऐना ने अपनी जुबान खोली, “हमारा अपराध बस इतना है इंस्पेक्टर साहब कि हम सैंडी को राहुल और हनी की लाश जलाने से रोक नहीं पाये और जब वैसा हो रहा था तो हर वक्त उसके साथ मौजूद भी रहे थे। लेकिन लाशों को हम पांचों में से किसी ने भी आग के हवाले नहीं किया था। उनपर डीजल रोहताश ने डाला था, जबकि आग सैंडी ने लगाई थी।”
“इसके अलावा अगर कोई जुर्म हमने किया है - नैना बोली - तो वह बस इतना है कि राहुल और हनी की मौत की सूचना पुलिस को नहीं दी। इसलिए नहीं दी क्योंकि सैंडी को डर था कि पुलिस उसे राहुल की हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार कर लेगी।” कहकर उसने वही कहानी दोहरा दी जो अरसद से पहले ही कबूल करवाई जा चुकी थी।
“वह हत्या नहीं थी इंस्पेक्टर साहब - वाणी बोली - बस नशे और चुहल के चक्कर में राहुल की जान चली गयी थी। वरना तो सैंडी को वह अपनी जान से भी ज्यादा प्यारा था, बल्कि हम दोस्तों में सबसे ज्यादा उन दोनों के बीच ही बनती थी।”
“और हनी की हत्या किसने की ये बात हम सच में नहीं जानते - जयदीप बोला - वहां तो जैसे सच में कोई करिश्मा ही हुआ था। साथ ही इस बात की भी गारंटी करते हैं कि हम पापियों में से किसी ने उसे नहीं मारा हो सकता, क्योंकि सब हर पल एक दूसरे की निगाहों के सामने थे।”
तब विराट ने उनकी तरफ से ध्यान हटाकर मनीराज गोपालन की तरफ देखा, जो पूरी तरह बेफिक्र नजर आ रहा था, “तुम अपनी सफाई में कुछ कहना चाहते हो?”
“बहुत कुछ कहना चाहता हूं विराट साहब। तुम लोगों के साथ चला तो बस इसलिए आया, क्योंकि पिछली मुलाकात में तुमसे वादा किया था कि जब भी मुझे कातिल साबित करने लायक सबूत खोज निकालोगे, अपनी गिरफ्तारी दे दूंगा। मगर वादा पूरा करने का मतलब ये तो नहीं कि मैं फांसी चढ़ने को भी तैयार हो जाऊं?”
“तुम पूरे मामले में अपना हाथ होने से इंकार कर रहे हो?”
“ये भी कोई पूछने की बात है।”
“जबकि हमारे पास तुम्हारे खिलाफ एयर टाईट एविडेंस हैं।”
“एयर टाईट एविडेंस - उसने जोर का ठहाका लगाया - ऐसे एविडेंस जिनकी औकात दो कौड़ी की भी नहीं है। कोर्ट में मेरा लॉयर पलक झपकते ही तुम्हारे केस की धज्जियां उड़ाकर रख देगा। मगर वह बाद की बात है, अभी तो तुम मुझसे निबट कर दिखा दो वही बहुत होगा।”
“तुम अपने खिलाफ मौजूद सबूतों को झुठलाना चाहते हो?” विराट ने हैरानी से पूछा।
“हां भई क्योंकि असल में वह कोई सबूत हैं ही नहीं। हां इतना मैं कबूल करता हूं कि अजय, जयराज, मनोहर और बिट्टू को मैं ही मुंबई से अपने साथ लेकर दिल्ली आया था। उन चारों के साथ मेरा तीन महीनों का अनुबंध हुआ था, जिसके लिए उन्हें पचास-पचास हजार रुपये दिये जाने थे, जो कि मैंने वह मियाद पूरी होते ही पे कर दिया, बल्कि उनके काम से खुश होकर पांच-पांच हजार का इंसेंटिव भी दिया था।
“चलो यही बता दो कि अगर तुम्हारा इरादा उनके हाथों मधु, सैंडी और रोहताश का कत्ल करवाने का नहीं था, तो उन्हें हॉयर क्यों किया? मुंबई से अपने साथ दिल्ली क्यों ले आये?”
“उसके पीछे की वजह कत्ल नहीं था इंस्पेक्टर, बल्कि मेरा शौक था, सर्कस वाला शौक, जिसके बारे में तुम पहले से जानते हो। मैं उनके जरिये वह करतब सीखना चाहता था, जो वे लोग सर्कस में दिखाया करते थे। जिसे चाहकर भी खुद नहीं सीखा जा सकता था, इसलिए तंख्वाह पर रख लिया चारों को। पूरे तीन महीनों तक उन लोगों ने मेरे बंगले में रहकर मुझे ट्रेंड किया और काफी कुछ सिखा गये। जिसके बाद उन्हें नौकरी पर बहाल रखने की मुझे कोई जरूरत महसूस नहीं हुई, क्योंकि कौन सा हुनर कैसे सीखना है, उस बारे में उन लोगों ने कई कई बार विस्तार से मुझे समझा दिया था, अनेकों बार प्रैक्टिस भी करा चुके थे। यानि आगे बस उसी को दोहराते रहना था और मैं परफेक्ट हो जाता।”
चारों पुलिस ऑफिसर हकबका कर उसकी शक्ल देखने लगे।
“अब लाख रूपये की बात ये है इंस्पेक्टर कि मेरे यहां से काम छोड़कर जा चुके मेरे कर्मचारी, बाद में तीन कत्ल कर दें, या तीन सौ लोगों को मार गिरायें, उसके लिए तुम मुझे कैसे जिम्मेदार ठहरा सकते हो?”
उसकी दलील का सबसे ज्यादा प्रभाव जोशी पर पड़ा था। कैसे उस लड़के ने पलक झपकते ही खुद को बेगुनाह साबित कर दिखाया, कैसे उन सबूतों को झुठला गया था जिन्हें तब तक वह अकाट्य समझ रहा था।
कुछ कुछ वैसा ही हाल वहां बैठे डीसीपी का भी हुआ। वह बड़ी शिद्दत के साथ ये सोचने पर मजबूर हो गया कि कहीं मनीराज को गिरफ्तार करके गलती तो नहीं कर दी? बावजूद इसके अगर कोई बात उसे राहत पहुंचा रही थी तो वह था विराट पर उसका यकीन, अच्छी तरह से जानता था उसने इतना बड़ा कदम यूं ही नहीं उठाया हो सकता।
“और कुछ कहना चाहते हो?” विराट ने बड़े धैर्य के साथ पूछा।
“तुम कोई और इल्जाम लगाना चाहते हो?”
“नहीं, लेकिन कहना जरूर चाहता हूं कुछ।”
“तो फिर देर किसी बात की है, शुरू करो।”
“तुम अभी बच्चे हो मनीराज, ऐसा बच्चा जो हाथ में लॉली पॉप आते ही मारे खुशी के उछलना शुरू कर देता है। जैसे दुनिया में उससे बड़ी कोई नियामत ही न हो। तुमने सोच भी कैसे लिया कि चार फैंसी बातें कर के तुम हमारी जुबान बंद कर दोगे? ये भी कैसे सोच लिया कि दुनिया में बस एक तुम ही चतुर सुजान हो, तुम्हारे अलावा हर कोई मूर्ख है?”
“मूर्ख तो तुम बराबर जान पड़ते हो विराट, नहीं होते तो मेरे बंगले पर पहुंचकर मुझे हिरासत में लेने की गलती हरगिज भी नहीं की होती, बल्कि उस वक्त तो हर हाल में पीछे हट जाते जब मैं बिना किसी विरोध के तुम्हारे साथ यहां आने को तैयार हो गया। तुम्हारी जगह कोई समझदार पुलिसवाला होता तो मेरे उस एक्शन से ही समझ जाता कि उससे एक बड़ी चूक होने जा रही थी। भला अपराधी भी कहीं इतनी आसानी से पुलिस के साथ चल लिया करते हैं? वह भी तब जबकि उनके पास ना कहने का ऑप्शन पहले से मौजूद हो।”
“और कुछ?”
“तुम्हें ये भी सोचना चाहिए था कि खुद को गिरफ्तार होने से बचाने के लिए मुझे बस डैड को एक कॉल ही तो करनी थी, फिर भीतर बैठे कमिश्नर साहब बाहर आते, तुम्हें जमकर लताड़ लगाते और तुम जो इस वक्त इतना बढ़ चढ़कर बोल रहे हो, मुझे सॉरी बोलते हुए दुम दबाकर वहां से निकल लिए होते। मगर मैंने वैसा कुछ नहीं किया, इसलिए नहीं किया क्योंकि मैं तुम्हें बताना चाहता था कि पुलिसवाला होने का मतलब ये नहीं बनता कि तुम जैसे दो कौड़ी के लोग चाहे जिसके घर में घुसकर उसे अपराधी बताना शुरू कर दो। अब देखना कैसे मैं तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारे इस एसीपी को भी इसकी जात औकात दिखाता हूं।”
विराट का चेहरा कानों तक सुर्ख हो उठा।
“मिस्टर मनीराज गोपालन - डीसीपी सहरावत कड़े लहजे में बोला - सोच समझकर जुबान खोलिये, वर्दी का लिहाज नहीं कर सकते तो कम से कम उम्र का तो आपको करना ही चाहिए।”
“जाने दीजिए सर इसकी कोई गलती नहीं है।”
“वॉट?”
“गलती मेरे से हुई है, जो बिना सोचे समझे इसपर कत्ल का इल्जाम लगा बैठा - कहकर विराट ने मनीराज की तरफ देखा - मैं तुमसे सॉरी बोलता हूं भई, अब तुम जा सकते हो।”
“पक्का?”
“हां पक्का।”
“ठीक है तुम कहते हो तो चला जाता हूं, मगर ये हरगिज भी मत समझना कि तुम्हारे हाथों हुई अपनी बेइज्जती को मैं भूल जाऊंगा, मुझे गिरफ्तार करने का खामियाजा तो तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा।” कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ।
वहां बैठे बाकी के तीनों पुलिस ऑफिसर्स एकदम से हड़बड़ा कर रह गये। किसी की समझ में वह बात आ जो नहीं रही थी।
“चलो मैं खुद तुम्हें बाहर तक छोड़ आता हूं - कहकर विराट भी अपनी जगह से उठा और डीसीपी की तरफ देखकर बोला - मैं अभी हाजिर होता हूं सर।”
तत्पश्चात उसने इशारे से जोशी को अपने साथ चलने को कह दिया।
राजावत ये सोचकर परेशान था कि जब मनी को इतनी आसानी से छोड़ ही देना था तो उसे गिरफ्तार करने की जरूरत ही क्या थी।
जबकि डीसीपी हैरानी से मुंह बाये उन्हें तब तक देखता रहा जब तक कि तीनों हॉल से बाहर निकल कर उसकी आंखों से ओझल नहीं हो गये।
मनीराज के साथ सीढ़ियां उतरते हुए दोनों ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचे, तभी विराट ने पीछे से उसका कॉलर थामा और जबरन इंटेरोगेशन रूम की तरफ खींचता चला गया।
वह जोर से चिल्लाया, हैरानी जताई, धमकी भी दी, मगर विराट ने उसे नहीं छोड़ा। रास्ते में उसने दो सिपाहियों को भी अपने पीछे आने का इशारा कर दिया।
अगले ही पल पांचों इंटेरोगेशन रूम के अंदर थे।
तत्पश्चात विराट के आदेश पर सिपाहियों ने मनीराज को मेज पर उल्टा लिटा दिया। एक सिपाही ने खींचकर उसके दोनों हाथ थामें जबकि दूसरे ने दोनों पैर जकड़ लिए। तब विराट ने एक डंडा उठाया और तबियत से उसकी धुनाई शुरू कर दी।
मनीराज की चींखे कमरे में गूंजने लगीं, मगर वह नहीं रुका। उसका रौद्र रूप देखकर सिपाही तो सहमे ही सहमे, जोशी का भी बुरा हाल हो उठा, क्योंकि जानता था कि मिनिस्टर के बेटे को यूं जानवरों की तरह पीटना बेहद भारी पड़ सकता था, मगर विराट को रोक पाने की हिम्मत वह फिर भी नहीं दिखा पाया। अलबत्ता डंडे सिर्फ और सिर्फ उसके नितंबों पर बरस रहे थे, इसलिए खून निकलने या हड्डी क्रेक हो जाने का कोई खतरा नहीं था।
वह सिलसिला करीब दो मिनट तक चलता रहा, फिर विराट ने डंडा एक तरफ फेंका और मनी का टेंटुआ पकड़कर गुर्राता हुआ बोला, “आगे से तहजीब से बात करना मनीराज गोपालन, वरना इस बिल्डिंग के बाहर बस तुम्हारी लाश ही जायेगी। फिर तुम्हारे बाप से मेरा जो उखाड़ते बने उखाड़ ले, मुझे परवाह नहीं।”
तत्पश्चात मनीराज को उठाकर उसके पैरों पर खड़ा कर दिया गया। वह अभी भी मारे दर्द के तड़प रहा था, उसकी आंखों से आंसुओं की गंगा जमुना बह रही थी, अलबत्ता चीखना चिल्लाना उसने बंद कर दिया।
जोशी ने रुमाल निकालकर उसके आंसू पोंछे, चेहरा साफ किया, फिर दोनों उसे सहारा देकर एक बार फिर सीढ़ियों की तरफ बढ़ चले। सहारा देकर इसलिए क्योंकि उससे चला नहीं जा रहा था।
वापिस कांफ्रैंस रूम में पहुंचे तो सबने हकबकाकर उनकी तरफ देखा, फिर डीसीपी ने पूछा, “ये गया नहीं अभी?”
“नो सर, वो क्या है कि नीचे पहुंचते के साथ ही इसे अपनी गलती का एहसास हो आया, कहने लगा एसीपी साहब से माफी मांगे बिना नहीं जायेगा।” कहकर विराट ने उसे पहले वाली कुर्सी पर बैठा दिया।
ये अलग बात थी कि उससे बैठा नहीं जा रहा था।
“चलो अब सॉरी बोलो साहब से।”
“सॉरी सर।” वह धीरे से बोला और फूट फूट कर रो पड़ा।
“हुआ क्या है इसे?” सहरावत ने पूछा।
“पश्चाताप के आंसू हैं सर, रोके नहीं रुक रहे।”
जवाब में दोनों ऑफिसर्स मन ही मन मुस्करा उठे, क्योंकि अच्छी तरह जानते थे कि उसे क्या हुआ था? या क्या हुआ हो सकता था।
“कातिल कौन है विराट?” प्रत्यक्षतः डीसीपी ने सवाल किया।
“अभी बताता हूं सर, बात दरअसल ये है कि थोड़ी देर पहले बड़े ही जोर शोर से खुद के बेगुनाह होने का दावा करते वक्त मनीराज ये बात भूल गया कि तमाम घटनाक्रम में इसका साथ बस चार लोगों ने ही नहीं दिया था, बल्कि उनकी संख्या पांच थी। और वह पांचवां शख्स क्योंकि अभी भी सही सलामत है, इसलिए ये कुछ बोले या न बोले असलियत तो हर हाल में सामने आकर रहेगी।”
सुनकर मनीराज अपना दर्द भूल गया, उसके चेहरे पर बड़े ही बौखलाहट के भाव उभरे, फिर धीरे से बोला, “मैंने किसी का कत्ल नहीं किया, ना ही किसी और के जरिये करवाया है। और एक बार को मैं तुम्हारी ये बात मान भी लूं कि मधु की हत्या मैंने इसलिए करा दी, क्योंकि उससे शादी नहीं करना चाहता था, तो सवाल ये है कि रोहताश और सैंडी का कत्ल क्यों करवाया? उनकी तो मेरे साथ दोस्ती या दुश्मनी जैसी कोई बात नहीं थी, बल्कि ढंग से उन्हें जानता तक नहीं था।”
“तुम्हें कैसे पता कि सैंडी और रोहताश का कत्ल हो चुका है?”
मनीराज सकपकाया।
“मिस्टर मनीराज गोपालन - डीसीपी के लहजे में कोड़े जैसी फटकार थी - जवाब दीजिए।”
“अ..अंदाजा लगाया।”
“अंदाजे का भी तो कोई आधार होता है।”
“यहां सातों में से बस पांच ही दोस्त मौजूद हैं - वह बात को संभालता हुआ बोला - इसलिए मैंने सहज ही सोच लिया कि बाकी के दोनों मारे जा चुके हैं। क्योंकि मेरे बंगले पर विराट ने तीन हत्यायों की बात कही थी।”
“दिमाग बढ़िया चला लेते हो, मगर गलत वक्त पर गलत लोगों के सामने चला रहे हो - विराट मुस्कराता हुआ बोला - चलो एक नया सवाल पूछता हूं, ये बताओ कि क्या ‘ट्रैप’ शब्द से तुम्हें कुछ याद आ रहा है?”
मनी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।
“लगता है याद आ ही गया, है न?”
“म...मुझे अपने डैड को कॉल करनी है।”
“अले अले मुन्ना तो घबला गया - विराट हंसता हुआ बोला - क्या करोगे डैड को फोन कर के, उन्हें तो अब तक वैसे ही पता लग गया होगा तुम्हारी गिरफ्तारी के बारे में - फिर क्षण भर को रुककर बोला - सबसे बड़ी गलती तुमसे ये हुई मनी कि तुम ओवर स्मार्ट बनकर जोश में मेरे साथ यहां चले आये। जबकि चाहते तो गिरफ्तारी का विरोध कर सकते थे, और मैं कबूल करता हूं कि कामयाब भी हो जाते। मगर अब वह वक्त तुम्हारे हाथ से निकल चुका है। मेरा वादा है कि तुम्हें जेल भिजवाकर रहूंगा, चाहे दुनिया के टॉप लॉयर एक साथ खड़े होकर तुम्हारी पैरवी में क्यों न जुट जायें।”
“विराट।” डीसीपी बोला।
“यस सर।”
“पहेलियां बुझाने का वक्त नहीं है।”
“सॉरी सर, मैं मुद्दे पर आता हूं - कहकर उसने बताना शुरू किया - ये जो पूरी कहानी है न सर, वह दो भागों में बंटी हुई है। पहले हिस्से में राहुल हांडा का कत्ल हुआ जबकि दूसरे भाग में मधु, रोहताश और सैंडी अपनी जान से हाथ धो बैठे। राहुल के कत्ल में मनी का कोई हाथ नहीं था क्योंकि उस वारदात को नशे में ही सही सैंडी ने अंजाम दिया था। लेकिन मधु! उसे तो ये हर हाल में अपने रास्ते से हटा देना चाहता था। ये अलग बात थी कि खुद उसका कत्ल करने लायक हौसला अपने भीतर नहीं जुटा पा रहा था। उन्हीं दिनों पापी मंडली के एक मेंबर ने इससे संपर्क कर के समझाया कि मधु सिर्फ इसकी ही नहीं बल्कि उसकी भी दुश्मन थी इसलिए दोनों को एक हो जाना चाहिए। तब दोनों के बीच क्या बातें हुई, कैसे एक दूसरे का साथ देने को राजी हो गये, मैं नहीं जानता, मगर रिजल्ट यही रहा कि दोनों ने हाथ मिला लिया।”
“फिर क्या हुआ?”
“अजय, जयराज, मनोहर और बिट्टू जैसे चार जरायमपेशा लड़कों को इसने पहले ही अपने घर में पाल रखा था। इसलिए किराये का कातिल तलाश करने के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं पड़ी। मैं नहीं जानता कि तीनों को मार गिराने के लिए उन्हें कितनी मोटी रकम दी गयी थी, मगर दी बराबर होगी, वरना वह भला इसके कहने भर से किसी का कत्ल क्यों करने लग जाते।”
“तुम्हारा मतलब है उन्हें खास कर के वारदात को अंजाम देने के लिए दिल्ली नहीं बुलाया गया था?”
“नहीं सर, लेकर तो उन्हें ये सच में अपने सर्कस वाले शौक की वजह से ही आया था, मगर बाद में उन चारों का तगड़ा रोल निकल आया, जिसको अंजाम देते हुए अपनी जान से हाथ धो बैठे।”
“ठीक है आगे बढ़ो।”
“मनी को ज्योंहि पता लगा कि सैंडी अपने दोस्तों के साथ एक ऐसी हवेली में रात गुजारने वाला है जो अभिशप्त मानी जाती है, जहां कोई कदम तक नहीं रखना चाहता, इसने अपने जोड़ीदार के साथ मिलकर एक शानदार योजना बनाई और मामले को हद से ज्यादा कॉम्प्लिकेटेड, साथ में मनोरंजक भी बना दिया। पिछले से पिछले शनिवार की रात को आठ पापी वहां पार्टी के लिए पहुंचे, नाच गाना हुआ, खाना पीना भी हुआ। उसके बाद बारी आई ‘गेम ऑफ डैथ’ की जो कि सच में मौत का खेल ही बनकर रह गया। गेम में हारने के बाद जैसे ही मधु ने डांस करना शुरू किया, हवेली के दरवाजे को बाहर से कुंडी चढ़ाकर जनरेटर बंद कर दिया गया। फिर शुरू हुआ प्रेतात्माओं का उपद्रव, ऐसा उपद्रव जिसकी जांच के दौरान एक बार को हम भी भूत प्रेतों के वजूद पर यकीन करते दिखाई देने लगे। जबकि वह सारी नौटंकी सर्कस में काम कर चुके उन चारों जमूरों की फैलाई हुई थी, जिन्हें कल रात यहां बैठे पांच पापियों में से चार ने गोली मार दी थी।”
“तुम कहते हो तो मान लेता हूं कि सारा किया धरा उन चारों का ही रहा होगा, मगर यकीन जानों उसमें मेरा कोई हाथ नहीं था - मनीराज धीरे से बोला - मैंने तो उन लोगों को पंद्रह दिन पहले ही अपने यहां से आउट कर दिया था।”
“आउट बेशक कर दिया था, मगर वह भी तुम्हारी योजना का ही एक हिस्सा था, ताकि बाद में उनके किये धरे की जवाबदेही तुमपर आयद न हो सके।”
“ये गलत है।”
“पहले पूरी कहानी तो सुन लो, इतने उतावले क्यों हो रहे हो?”
“ठीक है बोलो।”
“हवेली में भूत प्रेतों का वह उपद्रव कामयाब इसलिए हो गया क्योंकि तुम्हारा जोड़ीदार आठों पापियों में से एक था। जिसने तुम्हारे आदमियों के लिए सहूलियत पैदा करते हुए, मधु कोठारी को कुछ सुंघाकर या उसपर हमला कर के बेहोश किया फिर ऊपर से नीचे लटकाई गयी एक रस्सी को उसकी छाती पर दोनों हाथों के नीचे बांध दिया। उसी ने बाद में मधु की रिकॉर्ड की गयी आवाज को अपने मोबाईल में प्ले भी किया था, जिसे सुनकर बाकी लोगों को ये लगा कि जो हो रहा था वह मधु की मर्जी से किया जा रहा था।”
सुनकर पांचों पापी एक दूसरे की शक्ल देखने लगे, जैसे अपने बीच से मनी के जोड़ीदार को शॉर्ट आउट कर लेना चाहते हों।”
“क्या वह दूसरा शख्स इस वक्त भी यहां मौजूद है?” डीसीपी ने पूछा।
“जाहिर है सर, जब जिंदा बचे तमाम पापी यहां बैठे हैं तो मनी का जोड़ीदार और कहां हो सकता है?”
“कौन है वह?”
“नैना सबरवाल।”
मनी के अलावा सब हकबकाकर उसकी तरफ देखने लगे।
“ये क्या बकवास है विराट? - लड़की कुर्सी से उछलती हुई उठ खड़ी हुई - मैं भला किसी की जान क्यों लेने लगी?”
“ये इश्क नहीं आसां, इतना ही समझ लीजे, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है। हां इस बात पर मुझे बराबर हैरानी हो रही है कि तुम्हारे जैसी अल्ट्रॉ मॉड लड़की, जिसने राहुल के मरते ही उसके कजन को अपना ब्वॉयफ्रैंड बना लिया, इतनी इमोशनल क्योंकर है?”
“क्या बकवास कर रहे हो?”
“ये बकवास नहीं है मैडम, तुमने जो किया वह दिल के हाथों मजबूर होकर किया, मगर नहीं करना चाहिए था। क्योंकि राहुल का कत्ल असल में कत्ल था ही नहीं। सैंडी अगर उस रात नशे में नहीं होता तो वैसी नौबत ही नहीं आई होती। फिर भी एक बार को तुम उसे गुनहगार मान सकती थीं, मगर रोहताश और मधु की तो कोई गलती नहीं थी, जिन्हें तुमने सिर्फ इस बात की सजा दे डाली कि दोनों ने सैंडी को वैसा करने से रोका नहीं था। खैर उस वक्त तो तुमने सैंडी की बात मानकर अपने ब्वॉय फ्रैंड की चिता जल जाने दी, मगर बदले की भावना ने तुम्हारे मन में इतनी गहरी पैठ बना ली कि तुमने तीनों को ही मौत देने का फैसला कर लिया।”
“झूठ है ये।” वह तीखे लहजे में बोली, मगर चेहरे के भाव उसके लहजे से मैच नहीं कर रहे थे।
“अगर झूठ है तो फिर डर क्यों रही हो, कहानी समझ कर ही सुन लो - कहकर उसने आगे बताना शुरू किया - राहुल की मौत के कुछ दिनों बाद ही तुम्हें एहसास हो गया कि मनीराज मधु के साथ शादी करने में जरा भी इंट्रेस्टेड नहीं था। आगे तुमने कैसे इसके दिल की थाह ली, मैं नहीं जानता। मगर परिणाम यही निकला कि मनीराज ने अपना हाले दिल तुम्हारे सामने उड़ेल कर रख दिया। यह मधु को रास्ते से हटाना चाहता था, जबकि तुम मधु के साथ-साथ सैंडी और रोहताश को भी खत्म कर देना चाहती है। आखिरकार दोनों के हाथ मिले, षड़यंत्र रचा गया और नतीजे के रूप में सामने आईं तीन लाशें। जिनमें से दो मेरी निगाहों में पूरी तरह से बेगुनाह थे।”
“आपको जरूर कोई गलतफहमी हो रही है इंस्पेक्टर साहब।” जयदीप बोला।
“कैसी गलतफहमी?”
“आपने बताया कि नैना ने किसी तरह हनी को बेहोश कर के नीचे लटकती रस्सी में बांध दिया था। कैसे मुमकिन था ये, जबकि ये तो खुद बुरी तरह वहां घायल पड़ी थी, बहुत ही भयंकर ढंग से सिर फटा था इसका, कोई खुदपर उतना घातक वार कैसे कर सकता है?”
“घातक वार की बात तो तुम जाने ही दो, सच ये है कि उस रात नैना को खरोंच तक नहीं आई थी।”
“आप गलत हैं इंस्पेक्टर - ऐना बोली - हमने खुद अपनी आंखों से देखा था, इसके सिर का पिछला हिस्सा खूनोखून हुआ पड़ा था, फर्श पर भी बहुत सारा खून फैल चुका था, जिसके बाद सैंडी ने इसकी ड्रेसिंग भी की थी।”
“तुम लोगों ने खून देखा, खून में तरबतर इसका सिर देखा और कूद कर इस नतीजे पर पहुंच गये कि ये बुरी तरह घायल थी, जबकि मेरा दावा है कि इसके सिर पर उस रोज कोई चोट नहीं लगी थी, ये इंकार कर के तो दिखाये, हम अभी एक डॉक्टर को बुलाकर मुआयना करा लेंगे।”
“दावे की वजह?” राजावत ने पूछा।
“जरा फॉरेंसिक टीम द्वारा निकाले गये नतीजे पर गौर कीजिए सर। उन लोगों ने हमें बताया था कि हवेली के फर्श पर जितना भी खून गिरा था वह सबका सब किसी जानवर का था, ना कि इंसान का। फिर इसके सिर से निकला खून कहां चला गया, जो कि बेतहाशा वहां बहा बताया जाता है?”
“इसके अलावा क्या है तुम्हारे पास इस लड़की के खिलाफ?”
“मनीराज के बंगले पर जाने से पहले इंटेरोगेशन रूम में मैंने इन पांचों के जरिये इसे कहीं बाहर बुलाने का फैसला किया था, जहां इसे गिरफ्तार करना आसान हो जाता। क्योंकि तब तक तो मैं यही सोच रहा था कि आसानी से ये हमारे हाथ नहीं लगने वाला। तब वाणी ने इसे फोन किया, वह झूठी कहानी परोसी जो मैंने इससे बोलने को कहा था, बातचीत के दौरान हमें लगने भी लगा था कि ये आने को तैयार हो जायेगा। मगर तभी इसके मोबाईल पर हमें एक बीप सुनाई दी, जो कि किसी मैसेज के नोटिफिकेशन जैसी थी। उसके बाद मनी का सुर एकदम से बदल गया, इसने साफ-साफ आने से मना किया और कॉल डिस्कनैक्ट कर दी। जानते हैं उस मैसेज में क्या लिखा था?”
“क्या?”
“सिर्फ एक शब्द ‘ट्रैप’ जिसे पढ़ते के साथ ही इसने वाणी के बुलावे पर आने से इंकार कर दिया था। और मेरी नाक के नीचे से मनी को वह मैसेज करने वाला और कोई नहीं बल्कि नैना ही थी।”
“जब उस वक्त आने को तैयार नहीं हुआ, तो बाद में सहज ही हमारे साथ क्यों चला आया?” एसीपी ने पूछा।
“ओवर कांफिडेंस का शिकार हो गया सर। जो इल्जाम हम इसपर लगा रहे थे, उसे सुनकर इसे फौरन यकीन आ गया कि वह बेहद मामूली थे जिन्हें ये बड़ी आसानी से झुठला सकता था। या ये दिखाने के लिए साथ चला आया कि ये कितना बड़ा श्याना था और पुलिस कितनी बड़ी बेवकूफ।”
“क्या तुम अभी भी खुद को बेगुनाह कहोगे?” डीसीपी ने पूछा।
“मैं उस बारे में तब तक कोई बात नहीं करूंगा जब तक कि मेरा लॉयर यहां नहीं पहुंच जाता।”
“नैना तुम?”
“मुझे भी जो कहना है वह अपने लॉयर के आने के बाद कहूंगी।”
“एक और बात सर - विराट बोला - घटना वाली रात मधु के छत पर चले जाने के बाद जब सातों पापी उसे ढूंढते हुए वहां पहुंचे, तो नीचे हॉल में इन्हें एक बड़ा ही अजीब नजारा दिखाई दिया। राजा महाराजाओं जैसी वेष भूसा में बैठे किसी शख्स के सामने एक लड़की नृत्य कर रही थी, जिसे इन सबने मधु समझ लिया। असल में वह एक छोटे से प्रोजेक्टर के जरिये वहां प्ले किया जा रहा किसी मूवी का क्लिप था। मेरा दावा है कि उस काम को नीचे हॉल में बेहोश होने की नौटंकी कर रही नैना ने ही अपने हाथ में बंधी घड़ी के जरिये अंजाम दिया था, जो कि इस वक्त भी पहने हुए है, और उसकी शेप से ही पता लग जाता है कि वह सिर्फ घड़ी नहीं है।”
सब एक बार फिर नैना की तरफ देखने लगे, जबकि विराट की बात सुनकर उसने मेज पर रखे अपने हाथ को तुरंत नीचे खींच लिया।
“वारदात के बाद घड़ी फेंक क्यों नहीं दी इसने?” एसीपी ने पूछा।
“सही जवाब तो ये ही दे सकती है, मगर मेरा अंदाजा है कि उसका कोई इस्तेमाल ये कल रात वाली वारदात में सोचे बैठी थी इसलिए नहीं फेंका, और बाद में हमने इसे यहां लाकर बंद कर दिया तो मौका हासिल नहीं हो पाया घड़ी से निजात पाने का।”
“ठीक है - सहरावत अपनी जगह से उठता हुआ बोला - मनीराज और नैना को हवालात में डाल दो और बाकी चारों को जाने दो यहां से। बाकी रोहताश और सैंडी के पेरेंट्स को उनकी मौत की खबर मैं दिये देता हूं।”
राजावत उसके पीछे लपका।
“सर, सर।”
“कुछ कहना चाहते हो?”
“यस सर।”
“बोलो?”
“राहुल और मधु की लाश जलाने का गुनाह तो बाकी लोगों से भी हुआ है, ऐसे में उन्हें छोड़ देना क्या ठीक होगा?”
“अगर तुम सच में नैना और मनीराज को जेल जाता देखना चाहते हो अभिषेक तो अपना सारा फोकस बस उन्हीं पर बनाकर रखो। उस स्थिति में हमारा सामना बस दो पॉवरफुल रईसों से होगा, जबकि बाकी चारों को भी रोक लिया तो पूरा डिपार्टमेंट मिलकर भी छह धनकुबेरों का मुकाबला नहीं कर पायेगा। नतीजा ये होगा कि सब के सब साफ बरी हो जायेंगे। जिसका अंदेशा तो खैर बाकी दोनों के मामलों में भी बराबर है।”
“आपको लगता है कि हम मनीराज और नैना को भी सजा नहीं दिलवा पायेंगे?”
“सच पूछो तो लग कुछ ऐसा ही रहा है अभिषेक - डीसीपी गहरी सांस लेकर बोला - बाकी कोशिश पूरी करेंगे कि वैसी नौबत न आने पाये। फिर एक और बात भी है जिसके कारण पांचों को आजाद करना बेहद जरूरी है।”
“वो क्या सर?”
“विराट और सुलभ ने अरसद के घर में पहुंचकर जो कुछ भी किया वह जायज नहीं ठहराया जा सकता। और अपने दो ईमानदार ऑफिसर्स को सस्पेंड करना मुझे हरगिज भी मंजूर नहीं है। जो कि अगर हम अरसद को गिरफ्तार करते हैं तो करना ही पड़ेगा। जबकि उसे छोड़ देने की सूरत में नदीम खान की मजाल नहीं होगी विराट और जोशी के खिलाफ कोर्ट में जाने की, समझ गये?”
“यस सर, थैंक यू सर।”
विराट ने पांचों पापियों की स्टेटमेंट दर्ज कराकर उन्हें घर जाने को कह दिया, जबकि नैना और मनीराज को अलग-अलग लॉकअप में डाल दिया गया।
उस काम से फारिग होकर वह जोशी के साथ अपने कमरे में आ बैठा, फिर चाय और सिगरेट की जुगलबंदी शुरू हो गयी।
“कैसी रही जोशी साहब?”
“कमाल की सर, बेमिसाल, हैरतअंगेज। हालांकि एक दो बार नैना पर शक बराबर गया था मेरा, लेकिन हर बार यही सोचकर नजरअंदाज कर गया कि अगर कातिल वह होती तो कम से कम राहुल का कत्ल नहीं किया गया होता। मैं तो सोच भी नहीं पाया कि लड़की अपने ब्वॉयफ्रैंड की मौत का बदला ले रही थी, मगर आपको उसपर शक कब हुआ?”
“तभी जब हरिद्वार से लौटकर हवेली पहुंचे पापियों को हिरासत में लेने के बाद अगली सुबह उनसे पूछताछ कर रहे थे। सबने बताया था कि मधु के साथ-साथ नैना पर भी हमला हुआ था। उसका सिर बुरी तरह फट जाने और खून बहने के बारे में भी सुनने को मिला, जबकि फॉरेंसिक टीम पहले ही दावा कर चुकी थी कि हवेली के फर्श पर मिले खून के धब्बे किसी इंसान के नहीं हो सकते थे।”
“कमाल है, इतनी बड़ी बात सूझ चुकने के बाद भी आपने उसपर हाथ डालने की कोशिश नहीं की?”
“इसलिए नहीं की, क्योंकि शक को साबित कर दिखाने जैसा कुछ भी नहीं था हमारे पास। फिर ये क्यों भूल जाते हो कि तब तक मरी सिर्फ मधु थी, जिसकी हत्या की नैना के पास दूर दूर तक कोई वजह नहीं दिखाई दे रही थी, ना ही पापियों की बताई घटनाओं का कोई ओर छोर हमारी समझ में आ रहा था। ऊपर से जिसे देखो वही चंद्रशेखर महाराज के प्रेत की कथा कहने में जुट जाता था। और सबसे बड़ी बात ये कि हम नैना को गिरफ्तार तो कर सकते थे, मगर आगे उसे हिरासत में रख पाना, या इंटेरोगेट कर पाना हमारे वश से बाहर की बात थी, क्योंकि सबूत कोई नहीं था उसके खिलाफ। रही बात उसके सिर पर लगी चोट की तो उस मामले में उसे झूठा साबित कर के भी हमें कुछ हासिल नहीं होने वाला था। वह यही कह देती कि अपने दोस्तों के साथ मजाक किया था उसने, तब क्या बिगाड़ लेते हम उसका? फिर हमारे पास इस बात का भी तो कोई जवाब नहीं था कि जो हुआ था उसे करने में वह हॉल में बैठे बैठे कैसे कामयाब हो गयी थी।”
“मैं समझ गया सर।”
“इसके विपरीत मान लो हम उसे गिरफ्तार कर के हवालात में डाल देते, या कोर्ट में पेश करते जहां से उसे ज्युडिशियल कस्टडी में भेज दिया जाता, या हम रिमांड हासिल करने में ही कामयाब हो जाते। और उसी दौरान नैना के साथ मिलकर रचे गये षड़यंत्र को आगे बढ़ाते हुए मनीराज सैंडी और रोहताश का कत्ल करवा देता, फिर क्या होता?”
“नैना हमेशा हमेशा के लिए शक के घेरे से बाहर हो जाती।”
“एग्जैक्टली, फिर मुझे इस बात का भी पूरा पूरा यकीन हो चुका था कि कातिल अकेला नहीं था। हवेली में जिस तरह की घटनायें घटित हुई थीं, वह किसी अकेले इंसान का किया धरा हरगिज भी नहीं हो सकता था। यही वजह रही कि मैंने कभी किसी के साथ सख्ती नहीं की, ना कि मैं उनके दौलमंद घरानों से होने का खौफ खा गया था।”
“और कत्ल के मोटिव की तरफ कब ध्यान गया आपका?”
“कल रात, जब अरसद ने हमें बताया कि राहुल की मौत किन परिस्थितियों में हुई थी। तभी मैं समझ गया कि अगली बारी रोहताश या सैंडी में से किसी की भी हो सकती थी। अफसोस कि हम उन दोनों को बचा पाने में कामयाब नहीं हो पाये।”
“सैंडी को तो चलिए भूत प्रेतों वाले ड्रामे का ही शिकार बनाया गया था, मगर रोहताश वह क्या इत्तेफाकन मारा गया?”
“असल बात तो नैना को इंटेरोगेट करने के बाद ही सामने आ पायेगी, मगर अंदाजा मेरा ये है कि हॉल में फैले धुंए का फायदा उठाते हुए या तो खुद नैना ने रोहताश को गोली मार दी थी, या फिर उस शख्स ने जिसने रस्सी के सहारे लटककर सैंडी पर हमला किया था, और बाद में उसे ऊपर उठा ले गया था।”
“और रस्सी खींचने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़े, उसके लिए उस चरखी का इस्तेमाल किया गया था जो कि हमें मर चुके चारों मुंबई वासियों में से एक के बैग में मिली थी?”
“यही बात है, क्योंकि उस चरखी का और कोई इस्तेमाल तो नहीं दिखाई दे रहा।”
“बाद में चारों हत्यारों को पापियों द्वारा गोली मार देने के बारे में आपका क्या विचार है आपका, क्या नैना ने उकसाया होगा उन्हें?”
“जिस तरह का मिजाज उन सबने पाया है उसमें दोनों ही बातें मुमकिन हैं। पहली ये कि चारों ने गुस्से में आकर उन्हें खत्म कर दिया था और दूसरी ये कि नैना किसी तरह उन्हें उकसाने में कामयाब हो गयी थी।”
“उनके पीछे गाड़ी भगाकर तो जयदीप ले गया था सर, और तब इतना वक्त बिल्कुल भी नहीं था कि नैना उसका ब्रेनवॉश कर पाती, हां आगे बाईक पर भागे जा रहे लोगों को ठोंक देने के लिए ललकारा बराबर हो सकता है। ये भी हो सकता है कि उसी के कहने पर घायलों को गाड़ी में डालकर सब आगे बढ़ गये हों।”
“हो सकता है, वैसे जयदीप से कुछ कराने के लिए नैना को उसका ब्रेनवॉश करने की कोई जरूरत नहीं थी, उसने तो बस गाड़ी उनके पीछे दौड़ाने को कहना भर था, जो कि सेकेंडों का काम था। लड़के को नैना के रूप में अपना सौभाग्य जो दिखाई देता है, ऐसे में उसके कहे को फॉलो करने से इंकार कैसे कर सकता था?”
“नैना जेल चली गयी सर तो जयदीप का सौभाग्य तो दुर्भाग्य में बदल जायेगा।”
“बदल गया समझो, क्योंकि जेल तो मैं नैना और मनीराज दोनों को भिजवाकर रहूंगा, चाहे उसके लिए मुझे किसी भी हद तक क्यों न जाना पड़े।”
“अच्छा ये बताइये सर कि मनीराज पर आपको शक कब हुआ?”
“बीती रात, जब मैंने सड़क पर पड़ी चारों लाशों का मुआयना किया। मुझे क्योंकि वो सब सर्कस से जुड़े नजर आ रहे थे, इसलिए सहज ही मेरा ध्यान मनी की तरफ चला गया, फिर जल्दी ही पूरा मामला दिन के उजाले की तरह मेरे जेहन में साफ होता चला गया।”
“कुछ भी हो सर एक बात तो माननी पड़ेगी।”
“क्या?”
“जाल बड़ा ही भयानक बुना गया था।”
“गलत सोच रहे हो।”
“क्यों सर?”
“जाल इसलिए भयानक नहीं था क्योंकि उसकी बुनावट उलझी हुई थी, बल्कि इसलिए था क्योंकि उसे बुनने वाले हाई सोसाईटी के लोग थे। जो कि अगर न होते, जैसे कि मान लो आठों पापी मिडल या लोवर क्लास से होते तो हम मधु की हत्या के बाद ही सबको धर दबोचते और इंटेरोगेट करने में भी कामयाब हो जाते। उन हालात में नैना आखिरकार तो टूट ही जाती, फिर उसके मुंह से मनीराज का नाम उगलवाते भी हमें ज्यादा देर नहीं लगी होती। बल्कि उसकी भी क्या जरूरत थी, हमें ज्योंही ये पता लगता कि मनीराज मधु से शादी नहीं करना चाहता था, मगर उसका बाप जिद पर अड़ा हुआ था, कूद कर इस नतीजे पर पहुंच जाते कि मधु का कत्ल उसी ने किया था। और तब क्योंकि वह बहुत ही आम लड़का होता इसलिए जमकर ठुकाई करते और तुरंत सारी असलियत बाहर आ जाती।”
“ठीक कहते हैं आप, कमजोर पर हर किसी का जोर चल जाता है। खासतौर से हमारे डिपार्टमेंट का। जबकि मौजूदा केस में तो हाल ये था कि किसी से ढंग से पूछताछ भी नहीं कर पा रहे थे। वह तो जाने कैसे आपके अंदर का शैतान जाग उठा और आपने अरसद को उठा लिया, वरना तो राहुल की मौत से पर्दा उठना ही मुश्किल होता, बाकी की वारदातों के बारे में तो हम क्या सोचे पाये होते।”
“अंत भला तो सब भला जोशी साहब, अब चाय खत्म करो तो घर पहुंचे। कई दिनों से ढंग की नींद नसीब नहीं हुई है, जो कि आज मैं हर हाल में पूरा कर लेना चाहता हूं।”
तत्पश्चात दोनों कप खाली करने में व्यस्त हो गये।
समाप्त
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