करंट न्यूज़ चैनल’ के चीफ़ एडिटर स्वर्ण भास्कर का ध्यान मोबाइल के वाइब्रेट होने पर भटका। वह थोड़ी देर बाद प्रसारित होने वाले अपने प्रोग्राम की स्क्रिप्ट को ध्यान से पढ़ रहा था। थोड़ी ही देर में उसका शो शुरू होने वाला था। उसके चैनल का स्टार संवाददाता समर्थ उसे इस वक्त कॉल कर रहा था तो जरूर कोई खास बात ही हुई होगी। उसने तुरंत कॉल अटेंड की।

“बॉस, बड़ी धाँसू और गरमागरम खबर है। यहाँ कलंबोली में एक एनकाउंटर चल रहा है। इत्तफ़ाक से मैं अभी वहीं हूँ। यह मोहन डेयरी के पास का वाकया है।” एक ही साँस में समर्थ बोला।

“तुम वहाँ पर कैसे पहुँचे?” स्वर्ण भास्कर ने पूछा।

“मेरे एक सोर्स ने बताया कि आज मुंबई पुलिस की अंदर ही अंदर बहुत भागदौड़ चल रही है। बस मैं किसी खबर की तलाश में तो रहता ही हूँ। थोड़ी सी सूँघ मिलते ही इधर आ पहुँचा।” समर्थ ने बताया।

“क्या चल रहा है उधर?”

“बॉस, गोलियाँ चलने की आवाज फिश मार्केट की तरफ से आयी है और इधर मोहन डेयरी के नाम से एक बंद पड़ी हुई डेयरी है। उधर भी पुलिस की पूरी हलचल है। सुनने में आया है कि कुछ टेररिस्ट वहाँ पर छुपे हुए थे।”

“समर्थ, मुझे वहाँ की पूरी रिपोर्ट दो। अपनी न्यूज़ कन्फ़र्म करो और फिर हम डिसीजन लेते हैं कि क्या करना है। अभी प्राइम स्लॉट शुरू होने वाला वाला है। उस वक्त तुम्हें हम लाइव कर देंगे।”

“ठीक है।” कह कर समर्थ ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।

उसके बाद समर्थ मार्केट के उस जगह की तरफ बढ़ा जहाँ पर उसे गोली चलने की आवाज सुनाई दी थी। उसे वहाँ पर लोगों की भीड़ दिखाई दी। जब वह वहाँ पर पहुँचा तो उसने देखा सुधाकर राव, मिलिंद राणे और नागेश कदमघटना स्थल पर खड़े हुए थे। श्रीकांत के कहे अनुसार अमीन गोटी की लाश को उठा कर तब तक पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था।

नागेश कदम को समर्थ अच्छी तरह से जानता था। नागेश के वहाँ होने का मतलब था कि बम पटाखे तो बस फूटे ही फूटे। समर्थ अपने साथी कैमरामैन के साथ वहाँ पर पहुँचा। उसे देखते ही सुधाकर ने नागेश को चुप रहने का इशारा किया।

“अरे दादा। खूब धमाल मचाया आज?” समर्थ नागेश के पास जाकर बोला।

“तूने देखा क्या? इधर ही था क्या तू उस टाइम? बच के रहने का था तुम को? बंदूक से निकली गोली पूछती नहीं है कि सामने कौन है। बस फाड़ के निकल जाती है बदन को।” नागेश समर्थ के कंधे पर हाथ रखता हुआ बोला।

“दादा। आप का तो मनपसंद गेम है ये तो। आज क्या धूम धड़ाका हुआ इधर?” समर्थ अपनी चिकनी चुपड़ी भाषा में बोला।

“मेरे मनमाफिक का काम नहीं हैं ये। मैं तो सामने वाले को बोलता है कि सरेंडर कर दो। अब वो गोली चलाये तो मुझे भी अपनी जान बचाने के लिए गोली चलाना पड़ता है। तुम लोगों ने फैंसी नाम दे दिया हमको एनकाउंटर स्पेशलिस्ट। अरे मैं काहे का स्पेशलिस्ट। बस अपुन ये ही सोचता है कि किसी कीड़े के माफिक नहीं मरने का, बस मार के मरने का।”

“तभी तो तुम इतना फ़ेमस है दादा। पर इधर कोई टेररिस्ट था क्या?” समर्थ ने किसी खबर की सूंघ लेने के लिए नागेश को कुरेदते हुए पूछा।

तभी सुधाकर नागेश के पास आया और उसके कान में धीरे से फुसफुसाया।

“अब चलो यहाँ से। हमें एसीपी आलोक देसाई को रिपोर्ट करना है।”

“जरा एक मिनट की बाइट तो दे जाते दादा।” समर्थ गुहार लगाते हुए बोला।

“आप पुलिस हेडक्वार्टर पर पहुँच जाओ। आगे की ब्रीफिंग वहीं पर होगी।” सुधाकर जल्दी से बोला।

“वहाँ पर भरपेट बाइट मिलेंगा। बड़े साहब से बड़ा वाला।” नागेश जाते-जाते बोला।

उन दोनों के जाने के बाद समर्थ वहीं खड़ा कुछ सोचता रहा। फिर उसने मोहन डेयरी की तरफ चक्कर लगाने का निश्चय किया लेकिन वहाँ पर पुलिस वालों ने उसे मोहन डेयरी के पास भी नहीं फटकने दिया।

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दिल्ली

राजीव जयराम संसद मार्ग स्थित अभिजीत देवल के ऑफिस में उसके सामने बैठे हुए थे। श्रीकांत के माध्यम से दोनों को मुंबई में हुई घटना का पता चल गया था। जयराम ने सारी बातें तफसील से अभिजीत देवल के सामने रखी। मामला सुलझने की बजाय और उलझ गया था। खुलेआम हुई यह गोलीबारी उनके लिए परेशानी का सबब बन सकती थी। जयराम ने श्रीकांत को फोन लगाया।

“श्री, कहाँ हो तुम अब?” जयराम ने पूछा।

“हम लोग वापस अंधेरी के ऑपरेशन रूम में मौजूद हैं, सर।” श्रीकांत का जवाब आया।

“श्री! वॉट इज दिस। तुम्हें मुंबई में एक खास हिदायत के साथ भेजा गया था कि हमें कोई पब्लिसिटी नहीं चाहिए। अब क्या तुम्हें यह बात अब मैं फिर से समझाऊँ?” जयराम की आवाज में बेसब्री झलक रही थी।

“ये सिचुएशन हमारे हाथ से निकल गयी, सर। निकल क्या गयी, हाथ में ही नहीं आयी। यहाँ की पुलिस को इन्फोर्मेशन मिली थी कि किडनैपर कलंबोली के एरिया में छुपे हुए हैं। हमें वहाँ पर जाना ही था। लेकिन वे लोग तो लगता है जैसे किसी सुसाईडल मिशन पर थे। राहत की बात है कि हम लोग चार बंधकों को छुड़ाने में कामयाब हो गए हैं।” श्रीकांत ने कहा।

“गुड। यह एक बढ़िया बात हुई है। उन लोगों से हमें जरूर कोई न कोई लीड जरूर मिलेगी। श्रीकांत इस मामले की सबसे बड़ी कमी यह है कि हम लोग इसे ज्यादा हाइलाइट नहीं कर सकते। लेकिन हमें इस किस्से को जल्दी निपटाना होगा। यही हमारे देश के हित में हैं।” अभिजीत देवल ने बात का सिरा अपने हाथ में लिया।

“यस सर। वी विल बी मोर अलर्ट नेक्स्ट टाइम।”

“एक बात और, श्रीकांत। इस मिशन में मुझे यह खबर न सुनाई दे कि हमारा कोई जवान चला गया। नीलेश पासी हमें चाहिए, जिंदा चाहिए, लेकिन अपने किसी जवान को खो कर नहीं। अगर जरूरत पड़े तो जस्ट किल एंड विन। मेरा मैसेज आलोक को भी दे देना।” अभिजीत देवल ने दृढ़ शब्दों के साथ अपनी बात को समाप्त किया।

“राइट सर।” श्रीकांत ने जवाब दिया।

“श्री, तुम अब नीलेश को ट्रेस करने की लाइन पर काम करो। इन लोकल प्लेयर्स को मुंबई पुलिस को हैंडल करने दो। मेरा ख्याल है तुम समझ गए होगे कि मैं क्या चाहता हूँ। एंड कीप मी अपडेटेड।” राजीव जयराम ने कहा।

इसके बाद लाइन कट गयी।

“क्या नीलेश के वीडियो को तुम लोगों ने एनालाइज किया? उसका कोई नतीजा निकला?” श्रीकांत से बात ख़तम होने के बाद अभिजीत देवल ने जयराम की तरफ मुखातिब होते हुए पूछा।

“उस वीडियो में कहीं से भी छेड़छाड़ के सबूत नहीं मिले हैं। वो क्लियर वन टेक वीडियो है। किसी तरह की एडिटिंग का भी कोई प्रूफ नहीं है।” जयराम ने कहा।

“इस बात का मतलब क्या हुआ?” अभिजीत की पेशानी पर बल पड़े।

“इस बात का मतलब है कि वो लड़का मुंबई में ही है और ये लोकल प्लेयर्स का ही काम है। ज्यादा माल ऐंठने के चक्कर में इसे उन लोगों ने दूसरा रंग दे दिया है।” जयराम ने कहा।

“आई होप सो! जयराम, अगर वह लड़का नहीं मिला तो तुम जानते ही हो कि क्या हल्ला मचने वाला है! वो जिंदा वापस आना चाहिए।” अभिजीत का चिंता में डूबा स्वर उभरा।

“इस कादिर मुस्तफा वाले एंगल का क्या करें। उन लोगों की तरफ से कोई और संदेशा तो नहीं आया अभी तक।” जयराम जैसे खुद से ही पूछता हुआ बोला।

“उसका तो जो ऊपर से आदेश होगा वही होगा। उम्मीद है कि इतिहास अपने आप को दोबारा नहीं दोहराएगा।” अभिजीत ने गहरी साँस छोडते हुए कहा।

“देखो! क्या होता है।” जयराम बोला।

“देखते हैं। क्या करना है।” अनगिनत सवालों के जाल में उलझे हुए अभिजीत की आवाज आयी।

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मुंबई

“श्रीकांत, मैंने अंधेरी से लेकर पुणे की तरफ जाती हुई ट्रैफिक की पूरी फुटेज देख ली है। लेकिन एक बात मुझे खटक रही है।” नैना दलवी ने अपनी आँखें स्क्रीन पर गड़ाए हुए श्रीकांत से कहा।

“क्या?” श्रीकांत ने एक निगाह नैना दलवी पर डाली।

अमीन गोटी की लाश का मुआयना करने के बाद उसने अभी उस रूम में कदम रखे ही थे। अमीन गोटी के मरने के बाद उनके पास नीलेश के मामले में आगे बढ़ने का एक मात्र सूत्र हाथ से निकल गया था।

“यह देखो।” नैना ने स्क्रीन की तरफ इशारा करते हुए कहा। “सिग्मा ट्रेवल्स की यह बस घटना की शाम को तुर्भे से निकलने के बाद वाशी पुल से निकलती दिखाई दे रही है। वह समय उन लोगों के मीटिंग से बहुत बाद का समय है। इस को ज़ूम कर के देखें तो इसे वही आदमी चलाता दिखाई दे रहा है जो अभी आज के एनकाउंटर में मारा गया है। अमीन गोटी।”

“इसका मतलब है यह आदमी, अमीन गोटी, अब इस बस को सोमू के पास लेकर जा रहा है। पर इसमें किसी सवारी का आभास तो नहीं हो रहा है। मेरे ख्याल से ये लोग विस्टा टेक्नोलॉजी के लोगों को कहीं ट्रांसफर कर चुके थे। जो चार लोग हमने मोहन डेयरी से छुड़ाएँ हैं, सुधाकर उन लोगों से पूछताछ कर रहा है।” श्रीकांत ने स्क्रीन पर निगाह जमाते हुए कहा।

“कहीं इन लोगों ने लापता हुए कर्मचारियों के चार-चार के कई ग्रुप तो नहीं बना दिये। ऐसे ही तीन ग्रुप्स को हमें अभी तलाश करना है।” नैना ने आशंका जाहिर की।

“हो सकता है। नैना, अमीन गोटी ने सिग्मा की बस को रीजेन्सी के पास ही सोमू को क्यों सौंपा? ये लोग इतनी दूर वापस क्यों आये जबकि विस्टा के लोग दूसरी बस में जा चुके थे!” श्रीकांत ने नैना से पूछा।

“ये लोग शायद कन्फ्यूजन क्रिएट करना चाहते थे।” नैना बोली।

“अभी तुमने शायद यह वीडियो नहीं देखा।” श्रीकांत ने उसे जयराम का भेजा हुआ वीडियो दिखाया।

उस वीडियो को देखकर नैना के माथे पर बल पड़ गए।

“यह क्या है?” नैना ने पूछा।

“जिस आदमी को इन नकाबपोशों ने घेरा हुआ है, वह नीलेश है। इसकी रिहाई की कीमत एक हजार करोड़ रुपए माँगी गयी है। इसके पीछे लगे बैनर बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे आज से पहले हमें हासिल हुए इस तरह के वीडियो में मिलते आये हैं।” श्रीकांत ने जवाब दिया।

“ये मोर्फड वीडियो भी तो हो सकता है।” नैना ने आशंका जाहिर की।

“नहीं नैना। जयराम का कहना है कि यह बिना किसी एडिटिंग का वीडियो है।” श्रीकांत बोला।

“इसका मतलब है कि नीलेश यहीं मुंबई में ही है और हालात ऐसे दिखाए गए है कि लोगों को लगे कि किसी आतंकवादी संगठन के हेडक्वार्टर पर है।” नैना ने सवाल पूछा।

“आई होप सो। लेकिन हम किसी अँधेरे में रहकर काम नहीं कर सकते। हमें बुरी से बुरी संभावना पर विचार करते हुए आगे बढ़ना होगा।” श्रीकांत फिर से स्क्रीन की तरफ देखने लगा।

“वैसे रीजेन्सी से एयरपोर्ट भी दूर नहीं है।” नैना ने हँसते हुए कहा।

“हाँ, वहाँ भी जाकर हमें देखना होगा कि कहीं कोई कर्मचारी चुपचाप बेंगलूरु तो नहीं निकल गया।”

तभी आलोक देसाई के कदम ऑपरेशन रूम में पड़े। नैना और श्रीकांत की बात अधूरी रह गयी।

कुछ देर के बाद वहाँ पर श्रीकांत मेनन, नैना दलवी, आलोक देसाई, नागेश कदम, सुधाकर शिंदे और वीडियो कॉल पर धनंजय रॉय के बीच एक तूफानी मीटिंग हुई।

श्रीकांत ने वर्तमान हालात और आगे का एक्शन प्लान बताया कि किसने क्या करना था।

लेकिन जिंदगी प्लान के हिसाब से कहाँ चलती है। उनके प्लान में ऐसा व्यवधान आया जिसकी उन लोगों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

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दिल्ली

अभिजीत देवल ने तिहाड़ जेल की एक सबसे सुरक्षित सेल में कदम रखे। जेलर ने जब अभिजीत के साथ उस कमरे में कदम रखने चाहे तो उन्होंने उसे बाहर ही रुकने के लिए कहा। अभिजीत देवल की इस मुलाक़ात को बिल्कुल गुप्त रखा गया था।

जेलर को बताया गया था कि आई. बी. के डायरेक्टर आने वाले थे। लेकिन जब राजीव जयराम के साथ अभिजीत देवल ने गाड़ी से बाहर कदम रखे तो जेलर के होश उड़ गए। उसे स्वप्न में भी गुमान नहीं था कि पूरी भारतीय नौकरशाही को अपने इशारों से नियंत्रित करने वाली शख्शियत उसके सामने खड़ी थी।

उस कमरे में कादिर मुस्तफा पहले से ही मौजूद था। जिस कुर्सी पर कादिर बँधा हुआ बैठा था उसके सामने एक बड़ी मेज थी जिसके ऊपर दूधिया रोशनी बिखेरती हुआ एक तेज एलईडी रोशन थी जिसकी वजह से कादिर की आँखें बुरी तरह से चुंधयाई हुई थी। राजीव जयराम बाहर ही मौजूद रहा और उस कमरे के साथ वाले केबिन में लगे वन-वे मिरर से अंदर का घटनाक्रम देख रहा था।

“कैसे हो कादिर मुस्तफा?” अभिजीत वार्तालाप का सिरा अपने हाथों में लेता हुआ बोला।

“अल्लाह का करम है, जनाब। फिलहाल सब खैरियत है। इस मुल्क की हुकूमत हम पर जो कहर न ढ़ा दे, वही कम है। आज हमें यहाँ पर लाया गया है तो इसका मतलब जरूर किसी ने इस मुल्क के निजाम की किसी दुखती रग पर हाथ रख दिया है।” कादिर मुस्तफा ने मुस्कुराते हुए कहा।

“हमें तो एक नासूर विरासत में मिला है जो बदकिस्मती से हमारा पड़ोसी भी है। उसका दर्द रह-रह कर मेरे मुल्क को परेशान करता रहता है। इस बहाने-दर-बहाने हम भी उस का वक्त बेवक्त इलाज करते रहते हैं।” अभिजीत देवल ने तल्खी भरा जवाब दिया।

“ज़ख्म तो तुम्हारे इस बदकिस्मत मुल्क के नसीब में ही लिखें हैं, जनाब। इसमें किसी का क्या कसूर है?” कादिर मुस्तफा ढिठाई से बोला।

“सही कहा तुमने। ज़ख्म नसीब की बात है। यह इस मुल्क की बदकिस्मती ही है कि तुम जैसे लोग इस धरती पर पैदा होते हैं और फिर एक सरफिरे पड़ोसी देश के बहकावे में आकर अपनी ही सरजमीं से गद्दारी करते हैं और इस देश को तोड़ने के ख़्वाब देखते हैं।”

कादिर अभिजीत देवल की आवाज़ में सराबोर कहर को महसूस कर के सकपकाया।

“मुझे इस तेज रोशनी से आगे दिखाई नहीं दे रहा है। क्या मैं ये जान सकता हूँ कि मैं किससे मुखातिब हूँ? यह आवाज़ यहाँ के जेलर या उन अफ़सरान में से तो किसी की नहीं लग रही, जिन्हें हम जानते हैं या हर रोज मिलते हैं।” कादिर की आवाज़ में संशय दिखने लगा।

“तुम्हारा अंदेशा सही है, कादिर मियाँ। तुम हमसे पहली बार मुखातिब हो रहे हो। न तो इससे पहले हम कभी मिले हैं, न आज के बाद कभी मिलेंगे। खाकसार को अभिजीत देवल कहते हैं।” इतना कहकर अभिजीत उस मेज पर आगे की तरफ झुके। उनका चेहरा अब दूधिया रोशनी में चमक रहा था।

उन्हें अपने सामने देखकर तेज रोशनी से बंद होने के कगार पर पहुँची कादिर की आँखें सहसा फैल कर फटने को हो गयी। उसने सपने में नहीं सोचा था कि उसके सामने भारत का सबसे तेज-तर्रार और शातिर आदमी बैठा होगा जिसकी वजह से उनकी ऑर्गनाइज़ेशन की रीढ़ कश्मीर की घाटी में टूटने की कगार पर थी।

“कितने बेबस महसूस कर रहे होगे तुम। तुम्हारे प्यादे जिसे हर रोज़ ख्वाबों में मार कर सोते हैं, वह आदमी तुम्हारे सामने मौजूद है और तुम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते।” अभिजीत देवल ने कहा।

“जितने मजबूर हम हैं, उससे कहीं ज्यादा मजबूर हमें आप लगते हैं, देवल साहब। तभी तो हिंदुस्तान का सबसे बड़ा ओहदेदार शख़्स, जिसे हिंदुस्तान के वजीरे-आजम का दिमाग कहा जाता है, इस वक्त हमारे सामने मौजूद है।”

“हम तुम्हारे सामने इसलिए मौजूद हैं ताकि तुम्हें बता सकें कि तुम्हारे चाहने वाले तुमसे मिलने के लिए बहुत बेकरार हैं। तुम्हें अपने पास बुलाने के लिए उन लोगों ने हाल ही में एक बहुत बड़ी हिमाकत की है। तुम्हें तो खैर इस बात का पता ही होगा?”

“हवाएँ हमें इस तरह की खबर कान में चुपके से सुना जाती हैं। उन लोगों को तब तक चैन से बैठने की मनाही है जब तक हम लोग अपने मकसद में कामयाब नहीं हो जाते। इस मुल्क की रगों में हमने लगातार जहर भरना है... दस साल, बीस साल, पचास साल, हजार साल... ”

“इतना जहर लाते कहाँ से तुम लोग अपने जहन में। पहले तो तुम लोगों ने सीरिया को नष्ट किया, फिर इराक, अफगानिस्तान की फिज़ाओं को जहरीला कर दिया। हम तो तुम्हारे निशाने पर थे ही। अब तुम लोग ब्रिटेन, फ़्रांस और दूसरे देशों तक जा पहुँचे।”

“हम दुनिया के हर हिस्से तक पहुँचेंगे और अपना परचम बुलंद करेंगे। चाहे इसके लिए हमें कितनी ही कुर्बानियाँ ही क्यों न देनी पड़ें।”

“अगर तुम्हें कुर्बानी देने का इतना ही शौक है तो फिर मरने से इतना डरते क्यों हो? क्यों तुम्हारे आदमी तुम्हें छुड़ाना चाहते हैं? तुम्हें मरने का खौफ नहीं है लेकिन आज़ाद होने की इतनी बेकरारी।”

“कौन डरता है मरने से? हम! हमें और मरने का ड़र... हा हा हा।”

“इस खोखली हँसी में कुछ नहीं रखा है, कादिर मियाँ। तुम्हें पता है कि तुम्हें आज़ाद करवाने की एक नापाक कोशिश हाल-फिलहाल हुई है और हम तुम्हें इतना यकीन दिलाते हैं कि वह कामयाब नहीं होने वाली। हिंदुस्तान की धरती से आज़ाद हो कर जाने का तुम्हारा ये ख्वाब, ख्वाब ही रह जाएगा। मैं यहाँ पर इसलिए आया हूँ कि तुम अपने संगठन तक यह पैग़ाम पहुँचाओ कि जो हिमाकत उन्होंने की है, वो लोग उससे बाज आएँ। जो एक गलती हम पहले कर चुके वह दोबारा नहीं होगी।”

“हम पैग़ाम भिजवाएँ? इस जेल में बैठे हुए हम यह हिमाकत कैसे कर सकते हैं। हमारे पास तो परिंदा भी पर नहीं मार सकता। आप लोगों ने ऐसा पुख्ता इंतजाम कर रखा है।”

“तो फिर हम यह इंतजाम कर दें। तुम अपना मैसेज रिकॉर्ड कर दो। हम उसे तुम्हारी तंजीम तक पहुँचाने की पूरी कोशिश करेंगे।”

“आखिर आप क्या फरमा रहें हैं? यह हमारी समझ के बाहर है। हमें क्या कहें, किससे कहें और क्यों कहें? किसलिए कहें? हमारी तहरीर का कहीं कोई असर नहीं होने वाला है।”

“कादिर मियाँ। तुम्हारी रिहाई का एक पैग़ाम हमारे पास आया है। सिर्फ़ पैसों की बात होती तो कोई बात नहीं थी पर उसमें तुम्हारी रिहाई के बदले कई लोगों की जिंदगी दाँव पर लगा दी गयी है। इस तरह का मामले का एक तरफा हल नहीं होता। हर बार वह हालात नहीं होते हैं जिसकी आप लोगों को आदत पड़ गयी है। इसलिए तुम्हारे चाहने वालों को यह बात समझ लेनी चाहिए कि उनके मंसूबे कामयाब नहीं होंगे। मेरी दोस्ताना सलाह है कि जो लोग उनके कब्ज़े में हैं उन्हें सही सलामत छोड़ दिया जाए।”

अभिजीत देवल की यह बात सुनकर कादिर मुस्तफा के तेवर बदल गए। उसके चेहरे से नफ़ासत का मुखौटा उतर गया।

वह जहर उगलते हुए स्वर में बोला, “हालात को अपने काबू में करना हम लोग बखूबी जानते हैं, देवल साहब। आपके और हमारे मुल्क के निजाम बदलते रहेंगे पर हमारा मकसद वही रहेगा... हिंदुस्तान की बर्बादी। इस मकसद में हम कामयाब...”

“दिल बहलाते रहिए। कहीं दूसरों को तोड़ने का ख्वाब देखते-देखते तुम्हारा सरपरस्त खुद ही अपना नामोनिशान न मिटा बैठे। मेरी इस मुलाक़ात का नतीजा मुझे पता था। अब जो बात करेगा वो हमारा वार्ताकार यानी निगोशिएटर करेगा। दुआ करना कि कोई नतीजा निकल आए।”

इसके साथ अभिजीत देवल अपनी कुर्सी से उठे और उस सेल से बाहर निकल गए। बाहर राजीव जयराम और जेलर उनका इंतजार कर रहे थे। जेलर को कुछ हिदायतें देने के बाद वे दोनों वहाँ से बाहर निकल गए।