तब एक बजने वाला था, जब मोना चौधरी रंजना सिनेमा पहुंची। फिल्म का शो शुरू हो चुका था। इस कारण वहां न के बराबर लोग थे। दो-तीन खोमचे वाले वहां खड़े थे। सड़क पार ठीक सामने खाने-पीने की दो-तीन दुकानें नजर आ रही थीं। वहां से थोड़ा आगे जाते ही, मोटाहिट्टी नामक जगह आ जाती थी।

मोना चौधरी ने सौ गज पहले ही कार रोकी और नजरें दौड़ाने लगी। एक-दो व्यक्ति शक्की अंदाज में वहां टहलते नजर आए। मोना चौधरी ने कुछ पल सोचा कि कार से निकलकर, आगे बढ़ने लगी। वह जानती थी कि रंजना सिनेमा पर बख्तावर और चांग ली के आदमियों की घेराबंदी हुई पड़ी है। ऐसे में वह तब ही माइक्रो फिल्म हासिल कर सकती है, जबकि खुलकर सामने आए और इस तरह सामने आने पर खतरा था। और अब यह खतरा उठाना जरूरी था। लेकिन चिंता की बात तो यह थी कि उसकी रिवॉल्वर थापा के पास रह गई थी। रंजना सिनेमा के पास पहुंचते ही उसे दो व्यक्ति और नजर आए। मोना चौधरी समझ गई कि घेराबंदी तगड़ी है। लेकिन वह किसके आदमी हैं। यह इसलिए समझ नहीं आया कि वह सब नेपाली थे।

मोना चौधरी रंजना सिनेमा के सामने पहुंची थी कि मोटा हिट्टी की तरफ से पैदल ही चांग ली आता नजर आया। मोना चौधरी ने फौरन उसकी तरफ पीठ कर ली। सामने ही रेलिंग था। जिसके पार पहाड़ की गहरी खाई नजर आ रही थी। जहां कहीं-कहीं मकान बने नजर आ रहे थे।

मोना चौधरी ने कुछ पल बाद छिपी निगाहों से देखा।

चांग ली करीब बीस कदम दूर रेलिंग पर पीठ लगाए, खड़ा होकर इधर-उधर नजरें मार रहा था। मोना चौधरी ने घड़ी में देखा। एक बज चुका था। चांग ली का ध्यान उसकी तरफ नहीं था। तभी मोना चौधरी के कानों में कदमों की आहट पड़ी।

मोना चौधरी ने तुरंत दूसरी तरफ गर्दन घुमाई।

सूर्या पास आ पहुंचा था।

“तुम यहां क्या कर रही हो?” सूर्या ने पूछा।

मोना चौधरी ने चांग ली वाली दिशा में देखा। चांग ली का ध्यान उसकी तरफ नहीं था।

“तुम यहां क्या कर रहे हो?” मोना चौधरी ने भी सवाल किया।

“राजपाल ने हमसे यहीं मिलना है। झा साहब की तरफ से खबर मिली थी।”

इस वक्त सूर्या को यह बताना ठीक नहीं था कि राजपाल उससे मिल चुका है। यह मालूम होते ही सूर्या की दिलचस्पी उसमें खत्म हो जाती जबकि मोना चौधरी इस वक्त सूर्या को घेराबंदी किए आदमियों से निपटने के लिए, इस्तेमाल करने की सोच चुकी थी।

“मुझे भी अपने सोर्स से खबर मिली थी कि राजपाल ने यहां आना है।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा –“लेकिन यह भी मालूम हुआ कि बख्तावर सिंह के पास यह खबर है कि राजपाल यहां आ रहा है।”

“ओह –।” सूर्या का चेहरा कठोर हो गया।

“राजपाल के लिए, बख्तावर सिंह यहां घेराबंदी डलवा चुका है। पहचानने वाली नजरों से देखोगे तो समझ जाओगे कि यहां पांच-छ: आदमी, बिखरे हुए मौजूद हैं। तुम अकेले आए हो?”

“दो आदमी है मेरे साथ –।”

“ठीक है। काम चल जाएगा। बख्तावर के आदमियों को पहचान लो। सब नेपाल के ही हैं। स्थानीय हैं। वक्त आने पर तुम उन्हें निशाना बनाना। बख्तावर सिंह को मैं संभाल लूंगी।”

सूर्या कुछ नहीं बोला। वह शायद उलझन में था।

“जाओ। वक्त बरबाद मत करो। बख्तावर के आदमियों को पहचान लो। वह आने वाला होगा।”

सूर्या वहां से जाने लगा तो मोना चौधरी बोली।

“तुम्हारे पास रिवॉल्वर है?”

“है।”

“एक ही?”

“हां। क्यों?”

“कुछ नहीं। जाओ। आगे के काम को सावधानी से अंजाम देना।” मोना चौधरी दबे स्वर में कह उठी।

सूर्या वहां से हट गया।

मोना चौधरी ने तसल्ली से भरी सांस ली। अब उसे उन लोगों की खास चिंता नहीं थी। जिन्होंने वहां घेराबंदी कर रखी थी। सूर्या उन्हें संभाल लेगा। उनका ध्यान अपनी तरफ कर लेगा। लेकिन मोना चौधरी को महाजन नजर नहीं आया। जबकि उसे पूरा विश्वास था कि महाजन आसपास ही होगा।

तभी उसके कानों में कार रुकने की आवाज आई।

मोना चौधरी ने थोड़ी सी छिपी निगाहों, से गर्दन घुमाकर देखा। कार से बख्तावर सिंह उतर रहा था। मोना चौधरी ने चांग ली की तरफ नजर मारी जो बख्तावर सिंह की आमद पाकर, सर्तक नजर आने लगा था।

☐☐☐

“तुम दस मिनट लेट आए हो।” बख्तावर सिंह के पास पहुंचने पर, चांग ली बोला।

“आज पाकिस्तान जा रहा हूं। तैयारी में देरी हो गई –।” बख्तावर सिंह ने कहा।

“लेकिन तुम्हारे आदमी तो काफी पहले से यहां मौजूद हैं।” चांग ली ने चुभते स्वर में कहा।

“वह तुम्हारे लिए नहीं हैं।” बख्तावर सिंह ने मुस्कुराकर कहा –“ माइक्रो फिल्म लाए हो।”

चांग ली की निगाह, बख्तावर सिंह के हाथ में थमे ब्रीफकेस पर कहा –“पचास लाख ब्रीफकेस में हैं?”

“हां। सोना है। गोल्ड।”

“दिखाओ। कहीं खाली ब्रीफकेस मेरे हवाले कर दिया तो, मेरा बुरा हाल हो जाएगा।”

बख्तावर सिंह ने मुस्कराते हुए ब्रीफकेस थोड़ा सा खोला।

चांग ली को सोने के बिस्कुटों की झलक मिली।

बख्तावर ने ब्रीफकेस बंद कर दिया।

चांग ली ने जेब से छोटी-सी माइक्रो फिल्म निकाली और बख्तावर सिंह की तरफ बढ़ाई।

कुछ दूर खड़ी मोना चौधरी यह देखते ही बिल्ली के दबे पांवों की तरह उनकी तरफ तेजी से बढ़ी।

“असली है।” बख्तावर सिंह ने कहा –“कल की तरह नकली तो नहीं?”

“सौदे में असली सामान हो लेन-देन होता है।” चांग ली मुस्कुराया।

पास पहुंच चुकी मोना चौधरी ने चील की भांति झपट्टा मारा। आखिरी वक्त में चांग ली को यह एहसास भी हुआ कि कुछ होने वाला है। लेकिन तब कुछ कर गुजरने का वक्त बीत चुका था। वह फिल्म मोना चौधरी की मुट्ठी में पहुंच चुकी थी।

दोनों की निगाह बिजली की सी तेजी से घूमी।

मोना चौधरी को करीब पाकर वह चौंका चेहरे पर अजीब से भाव आ ठहरे।

“तुम?” चांग ली के होठों से अजीब सा स्वर निकला।

जबकि बख्तावर सिंह का चेहरा कठोर हो गया।

“हां।” मोना चौधरी ने तीखे स्वर में कहा –“मुझे आशा नहीं थी कि हमारी मुलाकात फिर इतनी जल्दी हो जाएगी।

“ठीक कहती हो। आशा तो मुझे भी नहीं थी।” चांग ली ने गहरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा –“कुछ महीने पहले तुमने मुझे तगड़ी हार दी थी।”

मोना चौधरी मुस्कराई। मुट्ठी में दबी माइक्रो फिल्म जेब में डाल ली।

“फिल्म मेरे हवाले कर दो मोना चौधरी।” बख्तावर सिंह एक-एक शब्द चबाकर कह उठा।

मोना चौधरी उसे देखकर कड़वे अंदाज में मुस्कराई।

“ले लो। मेरी जेब में है निकाल लो। इस वक्त तो यहां तुम्हारी हिम्मत बहुत बढ़ी-चढ़ी होनी चाहिए। क्योंकि यहां तुम दोनों के आदमियों ने घेरा डाल रखा है।”

“मेरा कोई आदमी नहीं।” चांग ली शांत स्वर में बोला –“सब बख्तावर की माया है।”

“तब तो बख्तावर के लिए, मेरे से फिल्म वापस ले लेना, और भी आसान है।” मोना चौधरी ने व्यंग्य से कहा।

बख्तावर सिंह के दांत भिंच गए।

“तुम यहां से बचकर नहीं जा सकती। मेरे आदमी।”

“मेरे भी आदमी यहीं पर हैं।” मोना चौधरी ने मीठे स्वर में, जहरीली आंखों से उसे देखते हुए कहा –“मैं जानती थी कि तुम्हें तो संभाल लूंगी लेकिन तुम्हारे आदमियों को संभालने के लिए मुझे किराये के आदमियों की जरूरत होगी और मेरे वह आदमी तुम्हारे आदमियों के सिर पर सवार हैं।”

बख्तावर सिंह की निगाह फौरन घूमी। देखने के लिए।

“इस तरह नहीं बख्तावर।” मोना चौधरी व्यंग्य से कह उठी –“मेरे आदमी अपने गले में मेरा नाम लटकाये नहीं घूम रहे। अपने आदमियों को हरकत करने का इशारा करो और फिर देखो तमाशा।”

बख्तावर सिंह की खा जाने वाली निगाह पुनः मोना चौधरी पर जा टिकी।

मोना चौधरी के होंठों पर व्यंग्यभरी मुस्कान उभरी।

तभी दांत भींचे बख्तावर सिंह ने मोना चौधरी पर झपट पड़ा ब्रीफकेस छोड़ दिया था। मोना चौधरी को बख्तावर से, इस तरह की आशा नहीं थी। लेकिन बख्तावर ने किसी तरह का कोई परहेज नहीं किया था अपनी जान के खतरे का। मोना चौधरी को भी बचने का मौका नहीं मिला। अगले ही पल मोना चौधरी, सिंह की लौह बांहों के शिकंजे में जकड़ी जा चुकी थी।

खुद को आजाद करवाने के लिए मोना चौधरी तड़पी।

लेकिन वह बख्तावर सिंह की पकड़ थी।

मोना चौधरी ने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया।

“अब बोल मोना चौधरी।” बख्तावर सिंह के चेहरे पर दरिंदगी के भाव छा चुके थे –“बहुत आदमियों के साथ आई है तू। तगड़ा घेरा डलवा लिया होगा तूने। मेरे आदमियों को भी कवर कर लिया होगा। बढ़िया। बोत बढ़िया, ठीक है। बोल –अपने आदमियों से कह गोली चलाएं। शूट करें मुझे। बोल, चुप क्यों है। उन्हें कह गोली चलाएं। बख्तावर सिंह पर घेरा डलवाती है।”

मोना चौधरी जहरीली मुस्कान के साथ, बख्तावर सिंह का धधकता चेहरा देखती रही।

“बख्तावर –।” पास खड़ा चांग ली मुस्करा कर व्यंग्य से कह उठा –“जरा और कसके चिपका ले साथ। ऐसे मौके बार-बार नहीं आते। जरा और जोर से –।”

“चांग ली।” बख्तावर सिंह के होंठों से गुर्राहट निकली।

“हां –।”

“इसकी जेब से माइक्रो फिल्म निकाल –।” बख्तावर सिंह पूर्ववतः स्वर में कह उठा।

चांग ली ऐसा करने की सोच रहा था। इसलिए बख्तावर सिंह के कहने से पहले ही वह अपना कदम इसी इरादे से आगे बढ़ा चुका था।

मोना चौधरी ने पुनः बख्तावर सिंह की पकड़ से आजाद होने की कोशिश की। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बख्तावर सिंह का चेहरा भट्ठी की तरह तप रहा था।

करीब पहुंचकर चांग ली ने अपना हाथ ज्योंही, मोना चौधरी की पैंट की जेब में डालना चाहा। उसी पल मोना चौधरी की टांग हिली और चांग ली की टांगों के बीच घुटना जा लगा।

चांग ली के होंठों से कराह निकली वह लड़खड़ाकर दोनों हाथ टांगों के बीच रखे, पीछे हटता चला गया। चेहरे पर पीड़ा के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे।

यह सब देखकर बख्तावर के दो आदमी अपनी-अपनी जगह से बाहर निकल आए। उनके हाथ जेबों में थे और चेहरे पर खूंखारता समेटे, उनकी तरफ बढ़े। अभी वह उनसे कुछ ही दूर होंगे कि गोलियों के दो धमाके हुए और दोनों नीचे गिरकर तड़पने लगे।

मोना चौधरी समझ गई कि यह गोलियां सूर्या ने चलाई होगी।

गोलियां चलते पाकर बख्तावर सिंह चौंका। उसका ध्यान बंटा।

मोना चौधरी ने इस बात का फायदा उठाते हुए अपना सिर, बख्तावर के चेहरे पर दे मारा। बख्तावर सिंह के होंठों से कराह निकली। बंधन ढीला हुआ और मोना चौधरी इस बात का फायदा उठाते हुए उसके बंधनों से निकली और पलटकर उसके पेट में घूंसा मारा। बख्तावर सिंह के शरीर को तीव्र झटका लगा और लड़खड़ाकर पीछे गिरने को हुआ कि संभल गया।

लेकिन मोना चौधरी अभी संभल भी नहीं पाई थी कि चांग ली ने गुर्राहट के साथ उस पर छलांग लगाई और मोना चौधरी को लिए नीचे गिरता चला गया। दोनों कुछ दूर लुढ़कते चले गए। फिर रुकते ही मोना चौधरी ने उसके चेहरे पर घूंसा मारा और उसे अपने ऊपर से हटाना चाहा। लेकिन जवाब में चांग ली ने उसके पेट में घुटना मारा।

मोना चौधरी के होंठों से कराह निकली और दोनों हाथों से चांग ली की गर्दन थाम ली।

और दबाव बढ़ाने लगी। उंगलियां कसकर जब गर्दन में धंसने लगी तो, चांग ली ने तड़पकर अपने सिर की टक्कर मोना चौधरी के चेहरे पर मारी। पकड़ ढीली हुई तो, चांग ली का घूंसा मोना चौधरी के चेहरे पर जा पड़ा। गले पर उंगलियों की पकड़ पूरी तरह ढीली हो गई। चांग ली छिटककर अलग हो गया।

इससे पहले मोना चौधरी उठ पाती बख्तावर सिंह पास पहुंचा और दांत भींचकर जोरदार ठोकर, मोना चौधरी के कूल्हे पर मारी। दांत भिंचे मोना चौधरी दो-तीन करवटें लेती चली गई। चेहरे पर पीड़ा ही पीड़ा, नजर आने लगी थी। तभी चांग ली भी पास आ पहुंचा। दोनों ने मोना चौधरी को ठोकरों पर रख लिया। एक के बाद एक, मोना चौधरी के शरीर पर ठोकरे पड़ने लगी।

वहां मौजूद दुकान वालों ने और आसपास से गुजरते लोग, यह सब देखकर ठिठक गए वह समझ नहीं पा रहे थे, दो तगड़े आदमी, एक युवती को मारने पर क्यों लगे हैं। अलबत्ता यह सब देखने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही थी।

नीलू महाजन का चेहरा गुस्से से सुर्ख हो उठा। वह देख रहा था कि मोना चौधरी के पास बचने का मौका नहीं है।

दांत भींचकर महाजन ने रिवॉल्वर सीधी की और ट्रिगर दबा दिया। तेज धमाके के साथ गोली चांग ली का कंधा छीलती चली गई।

चांग ली कंधे पर हाथ रखते हुए तड़पकर पीछे होता चला गया।

बख्तावर सिंह चौंका। उसने फौरन आसपास नजर मारी।

इतना वक्त बहुत था, मोना चौधरी के लिए। वह उछलकर खड़ी हुई और भिंचे दांतों से बख्तावर सिंह के चेहरे पर घूंसा मारा। बख्तावर सिंह लड़खड़ाया। होंठों के कोने से खून छलक आया।

तभी तीन कदम दूर खड़े चांग ली ने, जेब से रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली। उसका एक हाथ कंधे पर था। आंखों में दरिंदगी नाच रही थी।

बख्तावर सिंह ने भी रिवॉल्वर निकाल ली।

मोना चौधरी ठिठक गई।

बख्तावर सिंह और चांग ली के चेहरे बता रहे थे कि गोली कभी भी चल सकती है।

“बहुत हो गया मोना चौधरी।” चांग ली ने मौत भरे स्वर में कहा –“तुमने कई बार मुझे हार दी। लेकिन आज तुम नहीं बच सकती। एक दिन तो तुम्हारी मौत हमारे हाथों से होनी ही थी। क्यों बख्तावर?” चांग ली की आवाज वहशीपन से भरी हुई थी।

बख्तावर सिंह के चेहरे पर छाए भाव मौत को छू रहे थे जैसे।

तभी महाजन ने पुनः फायर किया।

गोली, बख्तावर की बांह के पास से निकलती चली गई।

बख्तावर ने चौंककर आसपास देखा कोई नजर नहीं आया।

“तुम क्या समझती हो, महाजन तुम्हें बचा लेगा।” चांग ली ने आस-पास देखा –“खत्म कर साले महाजन को भी।” बख्तावर गुर्राया और –आगे बढ़कर, रिवॉल्वर की नाल मोना चौधरी की छाती पर रख दी –“अब मरने के लिए तैयार हो जाओ। तुम –।”

यह सब देखकर इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा ने चेहरे पर लगा रखी दाढ़ी-मूंछ उतारकर फेंकी और रिवॉल्वर निकालकर ओट से निकलता हुआ, तेजी से उनकी तरफ बढ़ता हुआ चिल्लाया।

“यह क्या हो रहा है।” थापा चूकि सादी वर्दी में था, इसलिए अपना कार्ड निकालकर हाथ में लिए और आगे करते हुए बोला –“मैं इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा हूं। फ्रॉम काठमांडू याद करोगे तो, याद भी आ जाएगा कि हम लोग पहले भी मिल चुके हैं। तुम लोग अपने-अपने रिवॉल्वर नीचे गिराकर, हाथ ऊपर कर लो।”

बख्तावर सिंह और चांग ली की आंखें मिली। फिर पास आते थापा को देखने लगे। थापा के एक हाथ में रिवॉल्वर और दूसरे में कार्ड था।

थापा पास आकर ठिठका।

उसका कार्ड दोनों ने देखा। दूर से ही थापा कार्ड को जेब में डालता हुआ बोला।

“अपने-अपने रिवॉल्वर गिरा दो –।” थापा ने सख्त स्वर में कहा।

“इंस्पेक्टर।” बख्तावर सिंह ने शांत स्वर में कहा –“इसका नाम मोना चौधरी है। यह हिन्दुस्तान के क्राइम वर्ल्ड की मशहूर हस्ती है। यह हमें मारने की  कोशिश–।”

“मिस्टर बख्तावर सिंह, मैं तुम्हें भी अच्छी तरह जानता हूं।” थापा का लहजा कठोर ही था –“और चांग ली को भी पहचानता हूं। तुम लोग नेपाल में अपनी मनमानी नहीं कर सकते मैं नेपाल में चैन-अमन चाहता हूं। रिवॉल्वरें गिरा दो।”

मोना चौधरी खुद को बचा हुआ महसूस करने लगी।

चांग ली ने रिवॉल्वर फेंकी। थापा का ध्यान बख्तावर सिंह की तरफ हुआ तो चांग ली दांत भींचकर इंस्पेक्टर थापा के रिवॉल्वर पर झपट पड़ा। थापा इस स्थिति के लिए तैयार था। उसने रिवॉल्वर हाथ से नहीं निकलने दी। चांग ली ने सख्ती से रिवॉल्वर वाली कलाई थाम रखी थी। खींचातानी में, दोनों आपस में भिड़ गए।

“चांग ली–।” थापा गुर्राया –“तुम्हें और चीन को, मुझसे हाथापाई करने और नेपाल में खून-खराबा करने की एवज में जवाब देना होगा। तुम बच नहीं सकते।”

बख्तावर सिंह ने दांत भींचकर अपना ध्यान मोना चौधरी की तरफ करना चाहा कि तभी मोना चौधरी ने फुर्ती के साथ उसके रिवॉल्वर वाले हाथ पर जूते की ठोकर मारी।

रिवॉल्वर बख्तावर सिंह के हाथ से निकलकर, दूर जा गिरा।

बख्तावर सिंह दांत भींचकर, मोना चौधरी पर झपटा।

मोना चौधरी ने दोनों हाथ आगे किए। बख्तावर को रोका और सिर का वार उसके पेट पर किया। बख्तावर जोरों से लड़खड़ाया और खुद को न संभाल पाने के कारण पीठ के बल जा गिरा।

मोना चौधरी का चेहरा गुस्से से दहक रहा था।

तभी भागता हुआ महाजन पास पहुंचा। रिवॉल्वर उसके हाथ में दबी हुई थी।

“कमॉन बेबी हरीअप –।”

मोना चौधरी ने आगे बढ़कर, बख्तावर सिंह की नीचे गिरी रिवॉल्वर उठाई। चांग ली और थापा अभी तक आपस में उलझे हुए थे। पास पहुंचकर मोना चौधरी ने, चांग ली के बाल पकड़कर पीछे की तरफ खींचा तो चांग ली थापा को छोड़कर, अपने सिर पर दोनों हाथ रखता, जोरों से कराह उठा।

थापा के लिए इतना ही काफी था।

उसने जोरदार घूंसा, चांग ली के चेहरे पर मारा। मोना चौधरी ने फौरन उसके बाल छोड़ दिए। चांग ली लड़खड़ाकर नीचे जा गिरा। थापा आगे बढ़ा और चांग ली के सीने पर रिवॉल्वर रख दी।

इस दौरान मौका पाकर बख्तावर सिंह ने उठना चाहा कि महाजन रिवॉल्वर थामे सिर पर आ खड़ा हुआ।

“साले।” महाजन गुर्राया –“बच गया तू। मैं नेपाल पुलिस को अपने पीछे नहीं डलवाना चाहता तेरा खून करके। वरना अब तक तो तू मर चुका होता।”  

बख्तावर दांत पीसकर रह गया।

तभी एक दीवार की तरफ से फायर हुआ। गोली महाजन की कमीज सुलगाती चली गई। उसने फौरन नजर उठाकर देखा। गोली चलाने वाला पुनः आड़ में हो चुका था।

“कितने कुत्ते साथ लाया है तू –।” महाजन ने सुलगते स्वर में कहा।

बख्तावर सिंह खा जाने वाली निगाहों से उसे देखता रहा।

“यहीं पड़ा रह।” महाजन आसपास देखता हुआ, सतर्क स्वर में कह उठा –“वरना –।”

तभी मोना चौधरी पास पहुंची और बोली।

“चलो।” फिर बख्तावर सिंह को देखकर, जहरीले स्वर में बोली –“बाकी फिर सही बख्तावर। यह मामला भी अधूरा रहा। जल्दी मिलेंगे। अब की बार हिन्दुस्तान आओ तो, तोहफा देने की कोशिश मत करना। नहीं तो फिर इस बार की तरह लेने के देने पड़ जाएंगे। सुनार की तरह ठक-ठक करने की आदत से बाज आ जाओ। मेरी तरह लोहार की चोट का इस्तेमाल किया करो।”

विवश-सा बख्तावर, न तो कुछ कहने की स्थिति में था और न ही करने की। गुस्से से बदन का खून उबल रहा था। चेहरा पत्थर की तरह सुर्ख होकर धधक रहा था।

“इसका हार्ट अटैक होने वाला है बेबी।” महाजन कड़वे स्वर में कह उठा।

मोना चौधरी तेजी से उस तरफ बढ़ती चली गई जहां कार खड़ी थी।

“हिलना मत।” महाजन ने दांत भींचकर कहा फिर आगे बढ़कर, बख्तावर सिंह का ब्रीफकेस उठाया जिसमें पचास लाख का सोना मौजूद था। उसके बाद, मोना चौधरी की तरफ भागता चला गया।

बख्तावर सिंह ने जल्दी से उठना चाहा।

“ऐसे ही रहो।” चांग ली को कवर किए थापा ने कठोर स्वर में कहा –“उठने की कोशिश मत करना –।”

“मोना चौधरी भाग रही है।” बख्तावर सिंह ने दांत भींचकर कहा।

इंस्पेक्टर थापा के चेहरे पर कड़वी मुस्कान उभरी।

“वह अपराधी है। आज भाग जाएगी तो कल हाथ में आ जाएगी। लेकिन तुम जैसे लोग फिर मौका नहीं दोगे कि तुम पर हाथ डाला जाए। सोचना शुरू कर दो कि नेपाल सरकार से अपने बचाव के लिए क्या कहना है। नेपाल को तुम अपने आतंकवाद की गुल्लक बनाना चाहते हो। मैंने तुम्हारे कई ठिकाने तबाह किए हैं। लेकिन अब यह सब और नहीं चलने दूंगा। तुम लोग –।”

तभी इंस्पेक्टर के बदन से रिवॉल्वर की नाल आ सटी।

थापा ने फौरन पीछे देखना चाहा कि रिवॉल्वर का दबाव और ज्यादा बढ़ा।

“ऐसे ही रहो।” स्वर खतरनाक था। वह कैप्टन सिद्दीकी –“रिवॉल्वर फेंको। हाथ ऊपर कर लो। बहुत लोग इकट्ठा हो चुके हैं। हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है। हमें अभी यहां से निकलना है।”

चेहरे पर कठोरता समेटे थापा खड़ा रहा। रिवाल्वर नहीं फेंकी।

तभी सिद्दीकी ने रिवॉल्वर की नाल का वार थापा के सिर के पीछे वाले हिस्से में किया। थापा के होंठों से पीड़ा भरी कराह निकली। रिवॉल्वर उसके हाथ से छूटती चली गई। घुटने मुड़े और नीचे गिरकर बेहोश हो गया।

बख्तावर सिंह और चांग ली के चेहरे पर भूचाल जैसे भाव नजर आने लगे। दोनों फुर्ती के साथ खड़े हुए।

“वह।” बख्तावर सिंह के होंठों से निकला –“फिल्म और पचास लाख का सोना ले गई है।”

“छोड़ो सब कुछ।” चांग ली ने सुलगते स्वर में कहा –“इस पुलिस वाले के होश में आते ही नेपाल की पुलिस हमें तलाश करना शुरू कर देगी। पकड़े गए तो हमारी सरकारों को जवाब देने में दिक्कत आएगी कि हम यहां क्या कर रहे थे। गोलियां क्यों चला रहे थे। मोना चौधरी से फिर निपटा जाएगा।”

फिर उनमें से वहां कोई भी न रुका।

इंस्पेक्टर नीचे बेहोश पड़ा था।

उनके चले जाने के बाद भीड़ में से कुछ लोग जल्दी से बेहोश इंस्पेक्टर थापा की तरफ बढ़े।

☐☐☐

राजपाल की आंखों में दरिंदगी के भाव नाच रहे थे। चेहरा सपाट था। परंतु वहां पर भी अजीब-सी दृढ़ता उभरी नजर आ रही थी। सामान्य गति से वह, कार ड्राइव कर रहा था। दोपहर के साढ़े तीन बज रहे थे। विक्रम बहादुर से कुछ देर पहले ही, रत्ना पार्क से जुदा होकर निकला था।

विक्रम बहादुर के लाख पूछने पर भी उसने नहीं बताया कि मंगवाए बारूद का क्या करना है। लेकिन, राजपाल ने उस बारूद के साथ जो किया, उसे देखकर विक्रम बहादुर की आंखें फैल गईं।

“यह आप क्या कर रहे हैं राजपाल साहब –।”

लेकिन राजपाल ने कोई जवाब नहीं दिया।

विक्रम बहादुर, राजपाल का इरादा समझ चुका था। उसने राजपाल को रोकने की भरपूर कोशिश की लेकिन राजपाल अपना इरादा पक्का कर चुका था। उसके बाद विक्रम बहादुर को हक्का-बक्का वहीं छोड़कर, कार में सवार होकर चल पड़ा था।

आधे घंटे बाद राजपाल ने लोहे के बड़े से फाटक के पास कार रोकी। जो कि बंद था और बाहर दो शस्त्रधारी व्यक्ति मौजूद थे।

राजपाल के हॉर्न बजाने पर एक पास आया।

“दरवाजा खोलो –।” राजपाल ने अधिकार भरे स्वर में कहा।

राजपाल को देखते ही वह व्यक्ति चौंका।

“आप?” उसके होंठों से निकला।

“हाँ। मैं क्यों? तुम मुझे देखकर इतने हैरान क्यों हो रहे हो?” राजपाल ने मुस्कराकर कहा।

“बख्तावर साहब का हुक्म है कि आपको देखते ही गोली मार दी जाए।” वह उलझन भरे स्वर में बोला।

“दिमाग खराब हो गया है तेरा। बख्तावर सिंह ऐसा क्यों कहेगा। तूने गलत सुन लिया होगा। ऐसा कुछ होता तो मैं यहां मरने क्यों आता।” राजपाल ने हंसकर कहा –“चल-चल, फाटक खोल –।”

अजीब सी उलझन में फंसे उस व्यक्ति ने फाटक खोल दिया।

राजपाल अपनी कार भीतर ले जाता चला गया।

यह जगह नेपाल स्थित पाकिस्तान की ऐसी ब्रांच थी, जो हिन्दुस्तान में आतंक फैलाने का खास काम करती थी। दिखावे के तौर पर बाहर ‘ट्रांसपोर्ट गोदाम’ लिखा था और भीतर का कुछ हिस्सा गोदाम के काम भी आता था। ताकि किसी को उनकी हरकतों पर शक न हो।

राजपाल ने आगे पहुंचकर कार रोकी और इंजन बंद करके नीचे उतर गया। सामने ही ट्रांसपोर्ट ऑफिस था। वह उस तरफ न जाकर दूसरी तरफ घूम गया। थोड़ा सा चलने के पश्चात वह गैलरी में पहुंचा और दोनों हाथ जेबों में डाले आगे बढ़ने लगा। इस वक्त राजपाल की आंखें सुलग रही थी। चेहरा कठोर हुआ पड़ा था।

कुछ लोग आसपास से गुजरे। परंतु किसी ने उसकी तरफ ध्यान न दिया।

राजपाल एक दरवाजे के सामने पहुंचकर ठिठका फिर दरवाजा धकेलकर भीतर प्रवेश कर गया। उस कमरे में दो-तीन लोग अलग अलग टेबलों पर, फाइलें खोले बैठे, लिखने-पढ़ने में व्यस्त थे। परंतु राजपाल को भीतर प्रवेश करते पाकर वह चौंके।

एक का हाथ जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर जा टिका।

“हैलो। एवरीबडी।” राजपाल ने मुस्कराकर सबको देखा।

तीनों की निगाहें आपस में मिली फिर राजपाल पर।

“क्या हुआ। तुम लोग मुझे देखकर हैरान क्यों हो गए। मैं राजपाल हूं।

राजपाल–।”

“मालूम है हमें।” एक ने कहा –उसके माथे पर बल झलक उठे –“तुम यहां कैसे आ गए?”

“क्यों –मैं तो पहले भी आठ-दस बार यहां आ चुका है। आज क्या खास बात हो गई।” लापरवाही से कहते हुए राजपाल आगे बढ़ा और कुर्सी पर जा बैठा।

“तुमने सर बख्तावर के साथ कोई गड़बड़ की है।”

“दिमाग खराब है तुम्हारा।” राजपाल ने मुंह विगाड़कर कहा –“यह अफवाह किसने फैलाई –।”

तीनों के चेहरों पर उलझन स्पष्ट नजर आने लगी।

“तुमने सर बख्तावर के साथ कोई गड़बड़ नहीं की?”

“नहीं। मैं तो अभी बख्तावर के पास से ही आ रहा हूं।” राजपाल हंसा।

राजपाल के इस जवाब पर एक ने दूसरे को देखकर कहा।

“तो फिर सर बख्तावर ने फोन पर यह क्यों ऑर्डर दिया कि राजपाल को देखते ही मार दिया जाए।”

दूसरे के कुछ कहने से पहले ही राजपाल ने हंसकर कहा।

“फाटक पर खड़ा आदमी भी यही कह रहा था। तुम लोगों ने कुछ और सुन लिया होगा। बख्तावर के कहने का यह मतलब नहीं होगा। फोन पर बात करो बख्तावर से। मालूम हो जाएगा।”

एक ने तुरंत रिसीवर उठाया और बख्तावर सिंह से संबंध बनाने में लग गया।

राजपाल आंखों में कहर के भाव समेटे उसे देखता रहा। कुछ पल बात करके उसने रिसीवर रखते हुए कहा।

“सर बख्तावर वहां पर मौजूद नहीं हैं।”

“कैप्टन सिद्दीकी से बात कर लेते।” उसके साथी ने कहा।

“वह भी नहीं हैं।” फिर उसने राजपाल को देखा –“हो सकता है हमें गलती हुई हो सुनने-समझने में। कोई बात नहीं, असल बात भी सामने आ जाएगी। आप बताइए क्या लेंगे?”

“चाय चलेगी।” राजपाल मुस्कराया –“सर्दी बहुत है काठमांडू में –।”

राजपाल की लापरवाही भरे ढंग ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया था कि बख्तावर सिंह की बात सुनने में यकीनन उन्हें कोई गलती लगी है। अगर ऐसा कुछ होता तो राजपाल यहां आता ही क्यों?

“मैं चाय के लिए कहकर आता हूं।” एक ने कहा और उठकर बाहर निकल गया।

राजपाल ने सिगरेट सुलगाई।

“कैसे आना हुआ मिस्टर राजपाल–।”

“ऐसे ही।” राजपाल मुस्कराया–“हिन्दुस्तान वापस जा रहा था। सोचा तुम लोगों से मिलता जाऊं। मैं तो आना ही नहीं चाहता था दिल्ली में बहुत काम है। लेकिन बख्तावर जबरदस्ती खींच लाया कि इंकार नहीं कर सका। जीवन कहां है। आया नहीं क्या?”

“कंट्रोल रूम में है।”

“उससे मिलकर आता हूं।” राजपाल तुरंत उठता हुआ बोला –“चाय आने तक मैं भी आ जाऊंगा।” कहने के साथ ही राजपाल आगे बढ़ा और कमरे की दीवार में लगा दरवाजा खोलकर भीतर प्रवेश कर गया।

सामने छोटा-सा अंधेरे से भरा रास्ता था। उसे पार करके सीढ़ियां आई तो राजपाल तेजी से सीढ़ियां चढ़ने लगा। उसकी आंखों में तीव्र चमक नाच रही थी।

सीढ़ियां समाप्त होते ही, ठीक सामने दरवाजा था। राजपाल ने दरवाजा धकेला तो वह खुला था और खुलता चला गया। राजपाल ने तनाव और शान्ति के मिले-जुले भावों के साथ भीतर प्रवेश किया।

यह कमरा ऐसा लगता था जैसे, बिजली का तरह-तरह का सामान डालकर, इसे अच्छी तरह हिला दिया हो। कुछ ऐसा हाल था यहां का । कमरे के एक तरफ बोर्ड बना हुआ था। जिस पर पचासों तरह की नॉब और इंडिकेटर लगे हुए थे। नीचे बिजली की तारों का जाल बिछा हुआ था। जाने कौन सा तार कहां जा रहा था। चार तरह के वायरलेस सेट पड़े हुए थे। उनमें से दो की रेंज तो बहुत दूर तक थी। इनसे पाकिस्तान में आसानी से बात की जा सकती थी। बोर्ड पर दो जगह लाल और हरा बल्ब ऑन था। और हरा बल्ब बराबर जल-बुझ रहा था।

कानों में हेडफोन लगाए कुर्सी पर बैठा एक व्यक्ति बेहद व्यस्त नजर आ रहा था। बोर्ड पर लगे बटनों को दबाता हुआ, अपने काम में उलझा हुआ था। मक्खियों जैसी भिनभिनाहट की आवाजें एक तरफ लगे माइक्रो में से बराबर आ रही थी। एक तरफ, दीवार पर बड़ी सी टी.वी. स्क्रीन लगी हुई थी। बोर्ड से पांच-छ: तारें

उस स्क्रीन तक जा रही थी। लेकिन इस वक्त स्क्रीन बंद थी।

उस कुछ आहट सी पाकर वह व्यक्ति कुर्सी सहित घूमा तो राजपाल को सामने पाकर चौंका। चेहरे पर अजीब से भाव आ गए थे।

“तुम–अ-आप राजपाल साहब।” वह चौंका सा कह उठा।

“कैसे हो, जीवन शाह –।”

“ठ-ठीक हूं।” वह कुछ असंयत सा लग रहा था।

“मुझे देखकर तुम खुद को ठीक महसूस नहीं कर रहे।” राजपाल की आवाज में तीखापन आ गया।

“हां-नहीं–ऐसी बात तो नहीं।” जीवन शाह अचकचा-सा उठा –“दरअसल बख्तावर सिंह का मैसेज आया कि आपको देखते ही गोली मार दी जाए –।”

राजपाल हंसा।

“हां। नीचे वाले भी कुछ ऐसा ही कह रहे थे। वह मैसेज तुमने रिसीव किया था।”

“नहीं। नीचे बैठे स्टाफ ने–।”

“उनकी तसल्ली करा आया हूं। वह मैसेज मेरे लिए नहीं था।”

“सुनने में गलती हो गई होगी।” जीवन शाह तनाव से दूर होता हुआ कह उठा।

“ऐसी ही बात थी।” राजपाल ने नई सिगरेट सुलगाई –“कैसा वक्त गुजर रहा है।”

“बढ़िया। सब आपकी दया है। दो-दो कत्लों के जुर्म में हिन्दुस्तान की पुलिस मुझे ढूंढ रही थी। अगर पकड़ा जाता तो फांसी की सजा होती। लेकिन आपने मुझे बचा लिया।”

“हां।” राजपाल ने कश लेकर सिर हिलाया –“मैंने तुम्हें बचा दिया। तुम्हें नेपाल लाकर, बख्तावर के पास तुम्हारी नौकरी लगा दी। पाकिस्तानी एजेंट बन गए तुम। मजे से रह रहे हो। मोटा पैसा मिलता है। मजे हैं तुम्हारे।”

“सब आपकी कृपा है।”

“कहीं बात करने जा रहे थे?”

“जी हां। पाकिस्तान मिला रहा था। लेकिन संबंध नहीं बन रहा।” जीवन शाह बोला।

राजपाल उसके पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।

“मेरे कारण तुम्हारे छः साल बढ़िया निकले जीवन शाह –।”

“छः साल?”

“मेरा मतलब छः साल से तुम यहां हो। वरना अब तो हिन्दुस्तान की पुलिस तुम्हारी कहानी ही खत्म –।”

“जी हां। आप ठीक कह रहे हो –।”

“लेकिन अब आगे की जिंदगी तुमने कैसे बितानी है। यह तुमने ही तय करना है।”

“म-मैं समझा नहीं।”

“वो खबर सही है कि बख्तावर नाम का कुत्ता मेरी जान के पीछे है और मैं उसके पीछे –।” कहते हुए राजपाल का चेहरा दरिंदगी से भर उठा था।

जीवन शाह ने हड़बड़ाकर सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“मैं इस कंट्रोल रूम को तबाह करने आया हूं।” राजपाल का स्वर पहले जैसा ही था –“मेरे पास इतना बारूद है कि इस आधी इमारत की धज्जियां उड़ा दूं। और–।”

“यह-यह क्या कह रहे हैं। मैं –।”

“चुप। सिर्फ मेरी बात सुनो जीवन शाह। सिर्फ मेरी बात।” राजपाल गुर्राया –“सोचकर तो आया था कि बारूद के साथ-साथ खुद को भी उड़ा दूंगा। लेकिन कोई दिक्कत नहीं। यहां पर इस वक्त बहुत कम लोग हैं। मैं अपना काम करके आसानी से निकल सकता हूं।”

जीवन शाह आंखें फाड़े, राजपाल को देखे जा रहा था।

“लेकिन अब सोचता हूं तेरा क्या करूं?”

“मैं समझा नहीं।”

“मैंने जो काम करना है। तेरे को बता दिया है। और तू मुझे यह काम करने नहीं देगा।”

जीवन शाह का चेहरा सफेदी में डूब गया।

“म-मैं क्यों रोकूंगा।” जीवन शाह अटकते स्वर में कह उठा। राजपाल के चेहरे पर छाए भाव, उसे भीतर तक कंपा देने के लिए काफी थे –“अ-आप कीजिए। म-मुझे बताइए, म-मैं आपके लिए क्या करूं?”

राजपाल के चेहरे पर मौत की मुस्कान उभरी।

“अपना रिवॉल्वर मुझे दे दो।”

जीवन शाह ने फौरन रिवॉल्वर निकाला और राजपाल को थमा दिया। राजपाल ने चैम्बर खोलकर, गोलियां एक तरफ फेंकी और रिवॉल्वर दूसरी तरफ उछाल दिया।

जीवन शाह चेहरे पर फक्क भाव ओढ़े उसे देख रहा था।

राजपाल उठा और शरीर पर पड़ा अपना कोट उतारता हुआ बोला।

“तुम सोच रहे होगे की अगर तुम्हारा बस चलता तो मुझे खत्म करके, बख्तावर से इनाम पाते।”

“य–यह आप क्या कह रहे हैं।” जीवन शाह हड़बड़ाया।

“उल्लू के पट्ठे। ठीक कह रहा हूं। इंसानी फितरत से अच्छी तरह वाकिफ हूं।” राजपाल ने दांत भींचकर कहा और कोट उतारने के बाद कमीज के बटन खोलने लगा। कमीज के नीचे मोटा-मोटा कुछ पड़े होने का एहसास स्पष्ट तौर पर हो रहा था।

राजपाल ने जब कमीज उतारी तो, जीवन शाह को अपनी सांसें रुकती-सी महसूस होने लगी। राजपाल की कमर और पेट के साथ, एक बेल्ट के सहारे बारूद बंधा हुआ था। दहशत से भरी बात तो यह थी कि बारूद इतना खतरनाक और इतनी ज्यादा मात्रा में था कि अगर वह फट जाए तो इस बिल्डिंग की ईंट से ईंट बज जाए। हर तरफ तबाही ही तबाही होगी।

जीवन शाह के चेहरे के भाव देखकर, राजपाल और भरे भाव से मुस्कराया।

“मजा आ रहा है।”

जीवन शाह के होंठ हिले। हिलकर रह गए। मुंह से कोई शब्द न निकला।

“मुझे नहीं मालूम था कि इतना मजा आएगा कि तुम्हारे मुंह से आवाज निकलनी बंद हो जाएगी।”

जीवन शाह सिर से पांव तक दहशत में भर चुका था।

राजपाल के होंठों से मौत से भरी सर्द हंसी निकली। उसने दोनों हाथ पीछे करके पीठ पर बंधी बेल्ट खोली और उसमें फंसे बारूद सहित बेल्ट को डैशबोर्ड पर रख दिया। उसके बाद राजपाल दांत भींचे, अपनी कमीज पहनने लगा।

जीवन शाह फटी-फटी आंखों से बेल्ट में बंधे बारूद को देखे जा रहा था।

राजपाल कोट पहन ही रहा था कि किसी के आने की आहट मिली दोनों ने देखा। आने वाला नीचे तीनों में से एक था। उसके हाथ में चाय के दो गिलास थे। “मैं चाय ऊपर ही ले आया मिस्टर राजपाल। लीजिए।” वह मुस्कराता हुआ पास आकर ठिठका। तभी उसकी निगाह बारूदी बेल्ट पर पड़ी तो वह अचकचा उठा –“यह क्या?”

“यह।” राजपाल खतरनाक मुस्कान के साथ बोला –“तुम लोगों की मौत है।”

इन शब्दों को सुनते ही, उसके हाथ से चाय के गिलास छूट गए। वह बाहर की तरफ दौड़ा। लेकिन राजपाल ने उसकी बांह कसकर पकड़कर, उसे भीतर की तरफ धक्का दिया।

वह लड़खड़ाकर नीचे जा गिरा।

“अगर तुम अपनी जिंदगी बचाना चाहते हो।” राजपाल ने अपनी रिवॉल्वर निकालते हुए कठोर स्वर में जीवन शाह से कहा –“तो इसे खत्म करो।”

जीवन शाह महसूस कर रहा था कि राजपाल की आवाज में धमकी नहीं। कर गुजरने वाले भाव थे। उसने हड़बड़ाकर पास पड़ी भारी कुर्सी उठाई और उठ रहे उस व्यक्ति के सिर पर एक के बाद एक तब तक वार करता चला गया, जब तक उसका सिर, पूरी तरह से कुचल गया। जब वह इस काम से फुर्सत पाकर हटा तो, हांफ रहा था। गहरी-गहरी सांसें ले रहा था।

राजपाल के होंठों पर दरिंदे की सी मुस्कान उभरी। उसने रिवॉल्वर जेब में डाली। फिर पलटकर दरवाजा भीतर से बंद करके कह उठा।

“जीवन शाह! हम उस रास्ते से बाहर निकलेंगे। जो एमरजेंसी में इस्तेमाल होने के लिए है। इस रास्ते से बाहर गए तो, नीचे बैठे लोगों से बात करनी पड़ेगी। और मेरे पास इतना वक्त नहीं है।”

जीवन शाह ने डैशबोर्ड पर पड़ी बारूदी बेल्ट पर निगाह मारी। फिर सूखे होंठों पर जीभ फेरता हुआ दीवार के पास पहुंचा और उसके खास हिस्से को दबाया।

दीवार थोड़ी सी सरकी और सामने सीढ़ियां नजर आने लगीं।

“चलो।”

पहले जीवन शाह और फिर राजपाल दोनों सीढ़ियां, उतरने लगे जब सीढ़ियां समाप्त हुई तो सामने दरवाजा आया। जीवन शाह ने दरवाजा खोला। दोनों बाहर आ गए खुली हवा में। यह इमारत के पिछवाड़े का हिस्सा था। दोनों इमारत के साथ-साथ घूमते सामने की तरफ आने लगे।

“जीवन शाह। यह काम मैंने किया है। लेकिन तेरी खैर नहीं। बख्तावर गुस्से में ही सही तेरे को जिंदा नहीं छोड़ेगा। हो सकता है तेरे को मेरा साथी समझे। एक बार तू हिन्दुस्तान की पुलिस से बचने के लिए भागा था। अब तू नेपाल से बख्तावर सिंह से बचने के लिए भागेगा। तय करना शुरू कर दे कि अब कहां जाएगा।”

जीवन शाह ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। उसकी टांगों में इस हद तक खौफ भरा कंपन हो रहा था कि, कदम उठाने कठिन हो रहे थे।

राजपाल अपनी कार तक पहुंचा और भीतर बैठते हुए बोला।

“बैठ जा। यहां से दूर छोड़ दूंगा।”

जीवन शाह ने कांपते हाथों से दरवाजा खोला और बेजान सा भीतर जा बैठा।

राजपाल ने कार स्टार्ट की और मोड़ते हुए वापस घुमा दी। दो पलों में ही कार लोहे के गेट के पास थी। भीतर की तरफ खड़े, शस्त्रधारी गार्ड ने दरवाजा खोला। कार बाहर निकल गई राजपाल के चेहरे पर मौत के भाव नाच रहे थे। कुछ आगे जाकर उसने कार रोकी और कोट की जेब में हाथ डालकर, रिमोट कंट्रोल बाहर निकाला और उसका रुख उसी इमारत की तरफ करके, पहले ऑन का बटन दबाया तो रिमोट कंट्रोल के ठीक बीच में सुर्ख रोशनी चमक उठी।

दहशत में डूबे जीवन शाह ने आंखें बंद कर ली।

दांत भींचकर राजपाल ने दूसरा बटन दबाया तो कानों को फाड़ देने वाला धमाका हुआ। उन्हें अपनी कार तक हिलने का जोरों से कम्पन हुआ। और बख्तावर सिंह के उस ठिकाने की धज्जियां उड़ती चली गईं। एक के बाद एक कई धमाकों की आवाज उनके कानों में पड़ने लगी।

राजपाल ने दांत को भींचकर रिमोट कंट्रोल फेंका और कार आगे बढ़ा दी।

“अब बख्तावर को, नेपाल में फिर से पांव जमाने में साल-डेढ़ साल तो लग ही जाएगा।” कहने के साथ ही राजपाल ने भिंचे दांतों से जीवन शाह को देखा, जो जाने किस खौफ में डूबा कांपा-सा जा रहा था। शायद वह सोच रहा था कि अगर विस्फोट के वक्त वह भी भीतर होता तो, उसके शरीर का क्या हाल हुआ होता। उसकी लाश तो क्या, शरीर के चीथड़े भी नहीं मिलने थे।

राजपाल ने उस छोटे से मोड़ को काटा कि सामने से तेजी से आती तूफानी रफ्तार वाली कार को देखकर हड़बड़ाया। वह तंग सड़क थी। उसने ब्रेक लगाते हुए स्पीड कम करनी चाही। कार को रोकना चाहा। कार रुकी। परंतु सड़क के किनारे मौजूद पेड़ से जा टकराई।

राजपाल और जीवन शाह को तीव्र झटका लगा। फिर संभल गए। अगर कार न रुकती तो यकीनन दोनों कारों का जबरदस्त एक्सीडेंट हो जाना था। फिर जब जीवन शाह की निगाह दूसरी कार की तरफ उठी तो देखा, वह भी रुक चुकी है। दूसरे ही पल उसकी नजरें भीतर बैठे व्यक्ति पर गई। उसे जब पहचाना तो आतंक से जड़ होता चला गया।

देखते ही देखते दूसरी कार का दरवाजा खोलकर बख्तावर सिंह बाहर निकला। उसके जबड़े भिंचे हुए थे। सुर्ख आंखें इसी तरफ टिकी हुई थी।

राजपाल भी उसे देख चुका था।

“हरामजादा। यहां भी आ मरा –।” राजपाल का चेहरा क्रोध से स्याह पड़ने लगा। जीवन शाह को जैसे अपनी मौत नजर आने लगी थी।

“तेरा क्या ख्याल है।” राजपाल ने रिवॉल्वर निकाली और क्रूरता भरे स्वर में कह उठा –“बख्तावर सिंह मेरे हाथों मरेगा।”

जीवन शाह के शरीर में तो जैसे जान ही बाकी न बची थी।

“तू हार्ट अटैक से मरेगा। तेरे जैसे आई मौत से नहीं। बे-मौत ही मरते हैं।” राजपाल ने होंठ भींचकर कहा और कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकल आया। रिवॉल्वर हाथ में थी –“हैलो बख्तावर। मुझे तो लग रहा था कि तेरे से मुलाकात नहीं होगी। लेकिन हो गई। लेकिन ऐसी जगह और ऐसे वक्त पर हुई कि मैं तेरे को वैसी बुरी मौत नहीं मार सकता, जैसी मौत तूने मेरी बेटी को दी थी।”

बख्तावर सिंह दो कदम आगे बढ़ा और ठिठक गया। दायां हाथ जेब में पहुंच गया।

उनके बीच सात-आठ कदम का फासला था। राजपाल अगर अपने हाथ में फंसी रिवॉल्वर से गोली चलाता तो बख्तावर सिंह हर हाल में निशाना बन जाता।

“इससे पहले कि तू मरे। तेरे को बढ़िया खबर सुनाता हूं।” राजपाल की आंखें आग उगल रही थी –“नेपाल का तेरा खास ठिकाना –यानी कि हेडक्वार्टर, मेरे ख्याल में वहीं पर तू जा रहा है ट्रांसपोर्ट गोदाम वाली जगह पर। उसे मैं बारूद से उड़ाकर आ रहा हूं। ऐसा तबाह किया है उस जगह को कि दोबारा वहां कुछ बनाना भी आसान नहीं होगा। तब तू भी वहीं बैठा होता तो सारा झंझट ही खत्म हो जाता। लेकिन कोई बात नहीं। अब सही। सालों से मुझे ब्लैकमेल करते हुए, मुझे मजबूर करके तूने मेरे से देश से गद्दारी करवाई। लेकिन अब उसका अफसोस मुझे इसलिए नहीं कि, तेरे को मारकर, मैं अपने दिल की आग ठंडी करने जा रहा हूं।”

बख्तावर सिंह के चेहरे पर भूचाल के निशान उभरे। आंखें सिकुड़ी।

“अभी जिस धमाके की आवाज सुनी थी, तुम उसी की बात कर रहे हो राजपाल–।”

“हां। वह तेरी तबाही का धमाका था।” राजपाल पागलों की तरह हंसकर ठहाका लगा उठा –“उस धमाके की आवाज पसंद आई थी बख्तावर। सुनकर मजा आया था।”

“बहुत –।” बख्तावर सिंह गुर्राया।

“अब तू अपनी मौत की आवाज सुनेगा।” राजपाल ने दांत भींचकर रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा किया और ट्रिगर दबा दिया।

जल्दबाजी, घबराहट और आवेश में चलाई गई गोली ठीक निशाने पर न बैठी। बख्तावर सिंह के कोट को सुलगाकर कहीं, दूर जा गिरी। उसके बाद बख्तावर सिंह ने राजपाल को फिर मौका नहीं दिया। फुर्ती के साथ जेब से रिवॉल्वर निकाली और राजपाल की तरफ रुख करते हुए गोली चला दी।

गोली राजपाल के सिर में जा लगी। वह बिना चीखे पीठ के बल जा गिरा और बिना तड़पे ही आसान मौत पाकर शांत हो गया।

चेहरे पर मौत समेटे बख्तावर सिंह की निगाह कार में बैठे जीवन शाह की तरफ उठी फिर उसके कदम उस तरफ बढ़े। वह कार के पास पहुंचकर ठिठका।

जीवन शाह मरो जैसी हालत में बैठा था। बख्तावर सिंह को करीब आते पाकर भी उसके जिस्म में हरकत नहीं हुई। सिर्फ आंखों की पुतलियां ही हिली। शायद वह इस सच को अपने मन में बैठा चुका था कि वह जिंदा नहीं बचेगा। बख्तावर सिंह उसे खत्म करके ही रहेगा।

बख्तावर सिंह का रिवॉल्वर वाला हाथ उठा। जीवन शाह की आंखें तेजी से हिली। वह अपनी सफाई में कहना चाहता था कि वह राजपाल के साथ नहीं है। राजपाल ने जो किया अपनी मर्जी से किया। उसका इस मामले से कोई लेना देना नहीं।

लेकिन खौफ में डूबे, जीवन शाह के होंठ भी न हिले।

बख्तावर सिंह ने रिवॉल्वर की जाल, उसके माथे पर लगा दी।

जीवन शाह टकटकी बांधे बख्तावर को देखे जा रहा था। तभी ट्रिगर दबा। तेज धमाका हुआ और जीवन शाह के चेहरे के चीथड़े-चीथड़े उड़ गए। जहां दो पल पहले चेहरा नजर आ रहा था। वहां अब सिर्फ खून में डूबा मांस का ढेर ही बाकी रहा था।

बख्तावर सिंह ने खून से सनी रिवॉल्वर की नाल, जीवन शाह की ही कमीज से साफ की और उसे जेब में डालकर कार की तरफ बढ़ गया। हालात ऐसे हो गए थे कि अब उसका नेपाल में रुकना, ठीक नहीं था। पकड़ लिया गया तो पाकिस्तान सरकार को जवाब देना कठिन हो जाएगा। वह कार में बैठा और उसे वापस मोड़ते हुए। तेजी से आगे बढ़ा दी।

एकाएक आंखों के सामने मोना चौधरी का चेहरा नाचा तो बख्तावर सिंह के दांत भिंच गए। मोना चौधरी अगर इस मामले में न आई होती तो शायद यह सब न होता।

☐☐☐

मोना चौधरी और महाजन उसी होटल में पहुंचे। कार को होटल से कुछ पहले ही खड़ी कर दी थी। उन्हें होटल पहुंचे तीन घंटे बीत चुके थे। उन्हें इंतजार था इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा का, जिसे कि अब तक आ जाना चाहिए था। परंतु वह नहीं पहुंचा।

महाजन ने टेबल पर पड़ी बोतल उठाकर तगड़ा घूंट भरा।

“इंस्पेक्टर थापा अगर ठीक वक्त पर बीच में न आता तो, कुछ भी हो सकता था।”

“हां।” मोना चौधरी ने सिर हिलाया –“यह पहले से ही तय था कि वह बीच में नहीं आएगा। परंतु जिस तरह बख्तावर और चांग ली सरेआम, लोगों के देखते-देखते मुझ पर टूट पड़े तो, तब थापा ने बीच में आने में कोई हर्ज न समझा। क्योंकि लोगों के रूप में उसके पास इस बात के बहुत गवाह थे कि वहां झगड़ा हो रहा था। तब पुलिस वाला तो बीच में आ ही सकता है। वैसे वह इस हक में नहीं था कि बख्तावर और चांग ली जैसे लोगों के मामले में अपनी टांग  फंसाए–।”

“लेकिन वह अभी तक आया क्यों नहीं?”

मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा।

“थापा से मिलने की जरूरत है।”

“शायद है।”

“क्यों?”

“वह कह रहा था कि कुछ बताऊंगा। तुम्हारे काम की बात –।” मोना चौधरी ने महाजन को देखा।

“क्या बताएगा?”

“मालूम नहीं। देखते हैं।”

“क्या मालूम, थापा आएगा भी या नहीं।” महाजन बोला।

“आएगा।”

महाजन ने कंधे उचकाकर, व्हिस्की की बोतल उठाई और घूंट भरा।

शाम के पांच बज गए।

“काफी वक्त हो गया है।” महाजन बोरियत भरे स्वर में कह उठा –“हमने जो करना था कर लिया। मेरे ख्याल से बख्तावर सिंह सबसे पहले नेपाल से निकलने की कोशिश करेगा। शायद निकल भी गया होगा। हमने वो माइक्रो फिल्म भी उनसे छीन ली है। पचास लाख का सोना भी हाथ लग गया। नेपाल में हमारा कोई काम नहीं रहा। बख्तावर सिंह ने हमें जो तोहफा दिया था।” महाजन का स्वर कड़वा हो गया –“मेरे ख्याल में हम, उससे कहीं भारी तोहफा बख्तावर के गले में डाल चुके हैं। याद करेगा वह –।”

मोना चौधरी मुस्कराकर उठी।

“कहां?”

“इंस्पेक्टर थापा को फोन पर मालूम करूं कि वह कहां है। कमरे में तो फोन नहीं। रिसेप्शन से फोन करके आती हूं।” कहने के साथ ही मोना चौधरी बाहर निकल गई।

महाजन ने बोतल उठाई और टांगे फैलाकर, घूंट लेने लगा।

दस मिनट बाद मोना चौधरी वापस आई।

“आ रहा है?”

“नहीं मिला वह। कोई पुलिस वाला ही था फोन पर। उसका कहना है कि इंस्पेक्टर थापा सुबह से ऑफिस नहीं आया। दोपहर में रंजना सिनेमा पर उसे कुछ लोगों में बेहोश कर दिया था। खबर है, कि आधे घंटे बाद उसे होश आ गया था। उसके बाद उसकी कोई खबर नहीं मिली।” मोना चौधरी बोली।

“यह पुलिस वाले ने कहा –।”

“हाँ।”

“बेबी।” महाजन ने मुंह बनाकर कहा –“बेकार है, यहां रहना। निकल चलते हैं।”

“कल सुबह चलेंगे।”

“मतलब कि तुम सुबह तक थापा का इंतजार करोगी।”

“इंतजार समझो या आराम, जो भी समझो –।”

“ओ.के. बेबी। सुबह ही सही। मैं बढ़िया से डिनर का इंतजाम करके आता हूं।” महाजन उठा।

“होटल से बाहर मत जाना। कोई भी खतरा सिर पर आ सकता है।” मोना चौधरी ने सतर्क किया –“बढ़िया डिनर का ख्याल छोड़कर, इस होटल से ही जो मिलता है। मंगवा लो।”

“ओ.के. बेबी।” महाजन मुंह बनाकर रह गया।

तभी दरवाजे पर आहट हुई और इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा ने भीतर प्रवेश किया। वह इस हद तक थका हुआ लग रहा था कि जैसे दिन भर उसे एक पल की भी फुर्सत न मिली हो। उसने दोनों को देखा फिर थका सा बेड पर बैठा और सिगरेट सुलगाई।

“महाजन, चाय के लिए बोल आओ।”

“नहीं।” थापा ने सिर हिलाया –“मेरे पास वक्त नहीं है। मुझे अभी जाना है। दोपहर में बारूद लगाकर किसी ट्रांसपोर्ट गोदाम को उड़ा दिया गया है। उसमें कई लोग मारे गए। वहां के मलबे को देखने पर पुलिस को ऐसी कई चीजें मिली हैं, जिससे लगता है, वह जगह किसी देश का जासूसी ठिकाना था। मैं काम बीच में छोड़कर आया हूं।”

मोना चौधरी समझ गई कि यह काम राजपाल ने किया होगा। लेकिन वह राजपाल का काम पूरा नहीं कर सकी। बख्तावर सिंह को खत्म करके। कोई बात नहीं। मोना चौधरी ने मन ही मन तय किया कि जल्दी ही बख्तावर सिंह का नामोनिशान मिटा देगी।

मोना चौधरी ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।

“मैंने देखा था वह माइक्रो फिल्म तुम्हारे हाथ लग गई थी।” थापा ने मोना चौधरी को देखा।

मोना चौधरी ने जेब में हाथ डाला और माइक्रो फिल्म निकालकर थापा की तरफ उछाल दी। थापा ने हाथ बढ़ाया और हवा में ही फिल्म पकड़ ली।

“यह क्या बेबी –।” महाजन उलझन से कह उठा।

“हममें यही तय था।” मोना चौधरी मुस्करा कर बोली –“अब इस फिल्म को इंस्पेक्टर थापा, हिन्दुस्तान सरकार के मुनासिब हाथों में पहुंचाएंगे।”

“अगर न पहुंचाया तो इंस्पेक्टर थापा ने कोई गड़बड़ की तो?” महाजन के माथे पर बल पड़े।

“ऐसा नहीं होगा।” मोना चौधरी ने थापा को देखा –“और अगर ऐसा हुआ तो हमें काठमांडू का एक और चक्कर लगाना पड़ेगा। थापा से आखिरी मुलाकात करने के लिए –।”

थापा ने मुस्कराकर माइक्रो फिल्म जेब में डाली।

“इस काम के लिए तुम्हें नेपाल में कदम नहीं रखना पड़ेगा।”

“यह तो अच्छी बात है।” मोना चौधरी का स्वर शांत था।

“तुम कह रही थी कि तुम काठमांडू में स्थित बख्तावर सिंह का कोई ठिकाना बताओगी।” एकाएक थापा बोला।

“महाजन, थापा को बख्तावर सिंह का वह ठिकाना बता दो, जहां उसने तुम्हें कैद किया था।” मोना चौधरी बोली।

“लेकिन क्यों?”

“ताकि सरकारी तौर पर थापा, उस ठिकाने को तबाह कर सके –।” मोना चौधरी तीखे अंदाज में मुस्कराई।

महाजन, मोना चौधरी की बात को समझा और उस ठिकाने के बारे में बता दिया।

“गुड।” इंस्पेक्टर थापा उठते हुए बोला –“मैंने भी तुम्हें बताने के लिए कहा था –कुछ।”

“याद है।” मोना चौधरी की निगाह इंस्पेक्टर थापा के चेहरे पर जा टिकी।

“लेकिन बताने से पहले तुमसे कुछ पूछना चाहता हूं।”

“क्या?”

“देवराज चौहान से बहुत ज्यादा दुश्मनी है क्या?” इंस्पेक्टर थापा ने पूछा।

“क्या मतलब?” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी।

“मैंने तुमसे कुछ पूछा है।”

“जवाब देना मैं जरूरी नहीं समझती।” मोना चौधरी की सख्त निगाह, थापा की आंखों से टकराई।

महाजन जाने क्यों एकाएक सतर्क हो उठा था।

“मैं तुम्हें देवराज चौहान के बारे में बता सकता हूं कि वह इस वक्त कहां पर है?”

“कहां है?” मोना चौधरी की आंखों में तीव्र चमक उभरी।

“मुंबई में। मेरा असिस्टेंट कल ही मुंबई से लौटा है। उसने कालबा देवी रोड पर स्थित आर्य निवास होटल में देवराज चौहान को देखा। वह उसी होटल में ठहरा हुआ है।”

मोना चौधरी के होठ भिंच गए।

“यह कल की बात है?”

“हां।”

महाजन एकटक मोना चौधरी को देख रहा था।

“महाजन –।”

“अभी चलना है बेबी?” महाजन गहरी सांस लेकर कह उठा।

“बिल्कुल अभी।” मोना चौधरी की आवाज में सख्ती आ गई थी।

“मुम्बई?”

“हां।”

“आई मुसीबत।” महाजन बड़बड़ा उठा।

“मोना चौधरी।” इंस्पेक्टर बहादुर थापा कह उठा –“मुझे आशा है कि तुम अब फिर नेपाल में नहीं आओगी। हमारी मुलाकात नेपाल की धरती पर नहीं होगी।”

“यह तो आने वाला वक्त बताएगा।” मोना चौधरी ने सपाट स्वर में कहा फिर महाजन से बोली –“होटल का बिल ‘पे’ करो। हमारे पास वक्त कम है।”

महाजन उसी वक्त बाहर निकल गया।

मोना चौधरी और इंस्पेक्टर थापा की नजरें मिली। मोना चौधरी अजीब से अंदाज में मुस्कराई। इंस्पेक्टर थापा उसे घूरने के पश्चात, तेज-तेज कदमों से बाहर निकलता चला गया।

☐☐☐

नेपाल के त्रिभुवन हवाई अड्डे से साढ़े ग्यारह बजे की इंटरनेशनल फ्लाइट थी। पेरिस के लिए। जिसने कि एक घंटे के लिए मुंबई में, सांता कुंज एयरपोर्ट पर रुकना था।

मोना चौधरी और महाजन को उस फ्लाइट में मुंबई तक के लिए सीट मिल गई। जब प्लेन टेकऑफ कर गया तो उन्होंने कमर में बंधी बेल्ट खोली। विमान में ज्यादा यात्री नहीं थे।

“बेबी।” महाजन का स्वर गंभीर था।

“हां –।”

“तुम खामख्वाह झगड़ा मोल लेने, देवराज चौहान के पास जा रही हो।” मोना चौधरी ने मुस्कराकर महाजन को देखा।

“यह बात तुम कैसे कह सकते हो।”

“तो मुंबई में देवराज चौहान के पास क्या करने जा रही हो?”

“यह देखने कि देवराज चौहान क्या कर रहा है।”

“देखकर क्या करोगी बेबी –।” महाजन की आवाज में व्याकुलता थी।

“उसमें गुंजाइश तलाश करूंगी कि देवराज चौहान के मामले में ऐसी गुंजाइश कहां पर है कि जहां मैं फिट हो सकूं।” कहते हुए मोना चौधरी के होंठ भिंचते चले गए थे।

महाजन ने गहरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा।

“मतलब कि तुम देवराज चौहान से झगड़ा मोल लोगी।”

“महाजन। झगड़ा तो शुरू हो ही चुका है। लेकिन वह खत्म नहीं हुआ था कि मुझे और देवराज चौहान को भी रुक जाना पड़ा। उस समय हालात ही ऐसे हो गए थे।” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द चबाकर कहा –“अभी फैसला नहीं हुआ। और जब तक किसी बात का फैसला न हो। मैं चैन से नहीं बैठ सकती।”

“तुम देवराज चौहान को अपने दिमाग से निकाल क्यों नहीं देतीं?”

“नहीं।” मोना चौधरी के दांत भिंच गए –“देवराज चौहान मेरे दिमाग से, मेरी सोचों से नहीं निकल सकता। इस दुनिया में पहला और आखिरी शख्स वही है जिसने मुझे चुनौती दी और उसके बाद भी वह अपनी जगह पर सही-सलामत खड़ा है। अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सका।”

महाजन ने पैंट में फंसी बोतल निकालकर घूंट भरा।

“बेबी। मैं चाहता हूं तुम देवराज चौहान से झगड़े की बात मन से निकाल दो।”

“यह नहीं हो सकता।” मोना चौधरी की आवाज में वहशीपन चमका।

“समझने की कोशिश करो। वह कोई छोटा-मोटा दादा नहीं है। देवराज चौहान है। अंडरवर्ल्ड का बड़े से बड़ा भी एकबारगी उसके सामने पड़ने से कतराता है, जैसे कि तुम्हारे से टकराना कोई पसंद नहीं करता। तुम्हारे हाथ इतने लंबे नहीं हैं कि देवराज चौहान की गर्दन तक पहुंच सके और देवराज चौहान के हाथ भी लंबे नहीं हैं, तुम्हारी गर्दन पकड़ने के लिए।” महाजन समझाने वाले अंदाज में कह उठा –“ऐसे में झगड़ा होना, दोनों के लिए नुकसानदेह है तुम –।”

“महाजन –।” मोना चौधरी का स्वर कठोर था।

महाजन खामोश रहा।

“नुकसान और फायदा बिजनेस में देखा जाता है। झगड़े में नहीं। झगड़े में सिर्फ यह देखा जाता है कि ‘जीत का ताज’ किसके सिर पर रखा गया। कौन हारा और कौन विजेता रहा।” मोना चौधरी विषैले स्वर में कह उठी –“ताज का तो फैसला होगा ही कि किसके हिस्से आया।”

“जीत का ताज –?”

मोना चौधरी ने उसी निगाहों से महाजन को देखा।

“हां।”

“ताज एक है और उसके हकदार दो।” महाजन ने गहरी सांस ली –!

“जानती हूं। जीत का ताज, एक को ही हासिल होगा।”

“हो सकता है...तुम्हें न मिले।” महाजन गंभीर था।

मोना चौधरी अजीब से ढंग से मुस्करा उठी।

“वो लोग कभी नहीं जीत सकते, जो जंग शुरू होने से पहले ही, जीत के ताज की तमन्ना रखने लगते हैं। जंग का मतलब है लड़ना। हार और जीत, जंग का अंतिम पड़ाव होता है और वहां फैसला होता है कि ताज किसकी किस्मत में रहा –।”

महाजन ने बोतल से एक साथ दो तगड़े घूंट भरे।

“फकीर बाबा ने ठीक ही कहा था।” महाजन ने पहलू बदला।

“क्या?”

“यही कि तुम्हारे और देवराज चौहान के बीच यह लड़ाई तीन जन्मों से चली आ रही है। लेकिन किसी भी जन्म में हार-जीत का फैसला नहीं हो सका। परंतु इस जन्म में फैसला होगा। और वह फैसला तुम्हारी और देवराज चौहान में से किसी एक की मौत के बाद होगा। जहां तक मेरा ख्याल है, उस रहस्यमय फकीर बाबा की यह भविष्यवाणी झूठी नहीं हो सकती। जबकि फकीर बाबा चाहता है, तुम दोनों में झगड़ा न हो। आपस में सुलह कर लो। ताकि तीन जन्मों से भटक रहे उस फकीर बाबा को भी मुक्ति मिले और वह मृत्यु को प्राप्त हो।”

मोना चौधरी के दांत भिंच गए।

महाजन ने मोना चौधरी के पर निगाह मारी फिर गहरी सांस लेकर रह गया। वह जानता था कि मोना चौधरी, लाख समझाने पर भी अपनी बात से पीछे नहीं हटेगी।

“तुम विश्वास करते हो फकीर बाबा की बातों पर?” एकाएक मोना चौधरी ने पूछा।

“हां।” महाजन ने बेहिचक कहा –“अब तक फकीर बाबा की जिस शख्सियत और उसकी कुदरती हरकतों को देखा है तो उसकी इस बात पर भी विश्वास करता हूं। फकीर बाबा कुछ हैं। उसमें ऐसी ताकत है जो इंसानों में नहीं पाई जाती। वह खुद को तीन जन्मों से भटकता हुआ इंसान कहता है। लेकिन मैं उसे इंसान नहीं, इंसान की सीमा से बाहर की चीज मानता हूं। वह यकीनन कुछ है।”

मोना चौधरी कुछ नहीं बोली।

“बेबी।” महाजन ने एकाएक मोना चौधरी को देखा –“फकीर बाबा के बारे में तुम्हारी क्या राय है?”

कुछ कहने की अपेक्षा मोना चौधरी ने आंखें बंद करके, पुश्त से सिर टिका लिया।

महाजन ने घूंट भरा और बोतल पैंट में फंसा ली।

“बेबी।” कुछ पलों के बाद महाजन बोला –“मुम्बई एयरपोर्ट पर सावधान रहना।”

“क्यों?” मोना चौधरी ने आंखें खोली।

“क्योंकि इस वक्त तुम असली चेहरे में हो। बतौर मोना चौधरी तुम्हें, एयरपोर्ट पर मौजूद पुलिस वालों ने पहचान लिया तो, सोच लो फिर क्या हो सकता है। वह रिवॉल्वरें भी हमने काठमांडू में ही फेंक दी थी कि हमें प्लेन में सफर करना है। ऐसे में पुलिस से टकराना पड़ गया तो हमारे पास हाथ ऊपर करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होगा।”

☐☐☐

सांताकुज एयरपोर्ट पर मोना चौधरी और नीलू महाजन को पुलिस का किसी तरह का खतरा सामने नहीं आया। एयरपोर्ट से उन्होंने कालबा देवी के लिए टैक्सी पकड़ी। कई पलों तक उनके बीच खामोशी रही।

“अगर आर्य निवास होटल में।” महाजन ने खामोशी तोड़ी –“देवराज चौहान मिला तो?”

मोना चौधरी ने मुस्कराकर महाजन को देखा फिर लापरवाही से कह उठी।

“मैं तुम्हें पहले भी कह चुकी हूं कि देवराज चौहान को छेड़ना नहीं है। सिर्फ उसकी हरकतों पर नजर रखनी है। अगर वह कुछ कर रहा है, तो यह देखना है कि उसके काम में, खामोशी से कैसे दखल दिया जा सकता है। ताकि एक बार फिर उससे टकराने और अब की बार उसे हार देने खासतौर से मौत का ताज पहनाने का मौका मिले –।”

महाजन ने कुछ नहीं कहा।

“तुम डर तो नहीं रहे?” मोना चौधरी ने पूछा।

“डर?” महाजन के होंठों से निकला –“कैसा डर?”

“देवराज चौहान के सामने पड़ने का –।” मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान थी। महाजन ने तीखी निगाहों से, मोना चौधरी को देखा।

“बेबी। हवा देने की कोशिश मत करो। पहली बार देवराज चौहान के सामने पड़ने नहीं जा रहा। पिछली बार तुम्हारे से कदम से कदम मिलाकर, देवराज चौहान से टक्कर ली थी।”

“मतलब कि इस बार भी इरादा पक्का है।” मोना चौधरी हौले से हंसी।

“तुम्हें कुएं में छलांग लगाने से परहेज नहीं तो फिर मुझे क्या एतराज हो सकता है।” महाजन ने मुंह बनाया।

करीब सवा घंटे बाद टैक्सी कालबा देवी पहुंची। सुबह के चार बज रहे थे। पूरी तरह वहां वीरानी नहीं थी। अक्सर वाहनों का गुजरना, और लोगों को आना जाना नजर आ ही जाता था। उन्होंने बाहर रोड पर ही, बस स्टॉप के पास टैक्सी रुकवाई और किराया चुकता करके सामने नजर आ रही चौड़ी सड़क की तरफ बढ़े। कोने पर ही आर्य निवास होटल था। परंतु उसका प्रवेश द्वार बीस गज भीतर जाकर था । वह सड़क पूरी तरह रोशन नजर आ रही थी।

दोनों दरवाजे पर पहुंचे। वहां गन के साथ वॉचमैन मौजूद था। सामने सीढ़ियां नजर आ रही थी। दोनों सीढ़ियां चढ़ते चले गए।

इस वक्त आधी रात के तीन से ऊपर का वक्त हो रहा था।

दोनों पहली मंजिल पर स्थित रिसेप्शन पर पहुंचे। रात के इस वक्त होटल में सुनसानी छाई हुई थी। रिसेप्शन पर एक पचास बरस का व्यक्ति और तीस बरस का युवक मौजूद था।

“यस–।” पचास वर्षीय व्यक्ति ने मुस्कराकर कहा।

“मिस्टर देवराज चौहान किस रूम में ठहरे हुए हैं?” महाजन ने पूछा।

“देवराज चौहान?”

“जी–।”

“जस्ट ए मिनट –।” कहकर उसने रजिस्टर चेक किया और फिर सिर हिलाकर बोला –“इस नाम का कोई भी व्यक्ति होटल में नहीं ठहरा –।”

महाजन ने मोना चौधरी को देखा।

“और मिस्टर सुरेन्द्रपाल–।” मोना चौधरी ने फौरन कहा।

उस व्यक्ति ने पुनः रजिस्टर देखा फिर सहमति से भरे अंदाज में सिर हिलाया।

“जी हां। मिस्टर सुरेन्द्र पाल दो दिन से होटल में ठहरे हुए थे लेकिन रात दस बजे ही वह चेक आउट कर गए हैं।” रिसेप्शनिस्ट ने कहा।

यह शब्द सुनते ही मोना चौधरी की आंखों में कठोरता उभरी। जबकि महाजन ने चैन की सांस ली।

“मिस्टर सुरेन्द्र पाल होटल छोड़कर कहां गए होंगे। आपको मालूम है?” मोना चौधरी ने पूछा।

“नो मैडम –उन्होंने कहीं जाने के लिए हमारे होटल से टिकट नहीं बनवाई। न ही अपने किसी प्रोग्राम पर डिस्कस किया।”

मोना चौधरी सिर हिलाकर रह गई।

“चलें बेबी–।” अब महाजन तनाव मुक्त नजर आने लगा था।

मोना चौधरी ने सहमति में सिर हिलाया। दोनों होटल से बाहर आ गए।

“अब बेबी –किधर का प्रोग्राम है?” महाजन ने पैंट में फंसी बोतल निकालकर घूंट भरा।

देवराज चौहान के निकल जाने के कारण मोना चौधरी का मूड उखड़ा हुआ था।

“वापस। दिल्ली–।”

“मेरा भी यही ख्याल है। हम कुछ घंटे लेट हो गए –।” महाजन मुस्कराया –“जब इंस्पेक्टर थापा हमें देवराज चौहान के यहां होने की खबर दे रहा था, दरअसल उस वक्त हमें यहां होना चाहिए था।”

मोना चौधरी ने जवाब में कुछ नहीं कहा।

मेन रोड पर आकर वह टैक्सी की तलाश में इधर-उधर नजरें दौड़ाने लगे।  

समाप्त