पापियों की गिरफ्तारी

“अगर आप शांति की तलाश में यहां आये हैं, तो आपको नहीं मिलेगी - आचार्य परमानंद सामने बैठे सैकड़ों श्रोताओं पर निगाह डालते हुए प्रवचन कर रहे थे - सच तो ये है कि संसार में शांति अगर कहीं है तो वह बस हमारे अंतःकरण में है, जिसे हमें तलाशना होगा, महसूस करना होगा, तभी हमारे मन को चैन मिल पायेगा। नहीं तो चाहे हरिद्वार आयें या चारो धाम की यात्रा पर निकल जायें, ऐसी कोई दुकान नहीं मिलेगी जहां से आप शांति खरीद सकें। मेरी एक बात आप हमेशा याद रखें कि विचलित मस्तिष्क में अच्छे विचार कभी आ ही नहीं सकते। अशांति ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह है जो एक बार आपके मन में दाखिल हुई नहीं कि आपके दिलो दिमाग पर अपना साम्राज्य स्थापित करते उसे देर नहीं लगती, फिर लगे रहिए आंदोलन करने में, अपने घर को उस मेहमान से मुक्त कराने में जिसके आगमन का आप गलती से स्वागत कर बैठे थे।”
सुनकर लोगों ने खुलकर ठहाका लगाया और जोर जोर से तालियां पीटने लगे।
“जिस मन में शुद्ध विचारों का अभाव हो भक्तों वहां शांति का वास नहीं हो सकता। प्रभु निवास करेंगे ऐसा तो सोचना भी हास्यपद लगता है। इसलिए सबसे पहले जरूरी ये है कि अपने चित्त को शांत करें। उसके लिए योग और ध्यान का सहारा लें, परमात्मा को याद करें, ऐसा कर के आप नाना प्रकार की व्याधियों से भी सहज ही मुक्ति पा जायेंगे।”
हरिद्वार के दूर दराज इलाके में स्थित उस आश्रम का नाम ही शांति आश्रम था, जहां हर मंगलवार की सुबह दस बजे आचार्य परमानंद का प्रवचन होता था, जिसे सुनने के लिए लोकल लोग भले ही कम संख्या में पहुंचते हों, मगर दूर दूर से गंगा स्नान के लिए आये श्रद्धालुओं की भीड़ हमेशा एकत्रित हो जाया करती थी।
आश्रम की खास बात ये थी कि वहां रहने के लिए पचासों कॉटेज बने हुए थे, जो कि आधे से ज्यादा विदेशी सैलानियों से भरे होते थे। वहां योग और ध्यान की शिक्षा दी जाती थी, जिसके कारण दूसरे देशों से आये पर्यटक तो महीनों तक वहीं रुक जाया करते थे।
“आप सोच रहे होंगे कि - आचार्य ने थोड़ी देर चुप रहने के बाद फिर से बोलना शुरू किया - ऐसे भाषण बहुत सुने हैं जिंदगी में, मगर जब स्वयं पर पड़ती है तब पता लगता है कि मन को शांत करना कितना दुष्कर कार्य होता है। आप एकदम सही सोच रहे हैं, चित्त शांत करना और एवरेस्ट की चोटी फतह करना एक ही बात होती, लेकिन फिर भी कर जाते हैं लोग, बस जरूरत है अपने आत्मविश्वास को जगाने की। बात अगर फिर भी आपकी समझ में नहीं आ रही, तो चित्त को शांत करने का एक अचूक उपाय बताता हूं। सबसे पहले खुद से ये सवाल कीजिए कि जो बौखलाहट, जो अशांति आपके अंतर्मन में घर बना चुकी है, उसने प्रवेश कब किया था? कहां से किया था? और क्यों किया था? इन तीनों सवालों का उत्तर जब आपको हासिल हो जाये तो ठीक उसी जगह पहुंचकर शांति की तलाश में जुट जाइये जहां से आपके मन में अशांति का वास हुआ था। विश्वास कीजिए चैन आपको वहीं पहुंचकर मिलेगा क्योंकि अपने मन की शांति को आप उसी जगह छोड़ आये हैं। और जो चीज जहां गिरती है मिलती भी वहीं से है - कहकर उन्होंने दोनों हाथ जोड़े फिर नारा सा लगाया - बोलो जय गंगा मइया।”
“जय गंगा मईया।” भीड़ जोर से चिल्लाई।
“जय भोलेनाथ।”
“जय भोलेनाथ।”
तत्पश्चात आचार्य जी अपने आसन से उठकर भीतर चले गये।
“अब चलें यहां से?” रोहताश ने पूछा।
“पागल हुआ है - सैंडी थोड़ा घुड़ककर बोला - आचार्य जी से मिले बिना कैसे जा सकते हैं?”
“दर्शन तो कर ही लिए हैं, अब और क्या करना है?”
“कुछ प्रश्न हैं मेरे जेहन में जिनका जवाब वही दे सकते हैं।”
“मिलना मुमकिन हो पायेगा?” जयदीप ने धीरे से पूछा।
“हां - बाकी सब एक साथ बोल पड़े - हम पहले भी मिल चुके हैं।”
“जब भी हमारा मन अशांत होता है - नैना सबरवाल बोली - यहां चले आते हैं, आचार्य जी का प्रवचन सुनते हैं। उनकी चरणरज लेते हैं फिर स्थिर मन से वापिस लौट जाते हैं।”
“अगर मिलना ही है - रोहताश फिर से बोल पड़ा - तो हम यहां क्यों खड़े हैं?”
“जरा भीड़ छंट लेने दो, फिर चलेंगे।”
तत्पश्चात सातों पूरी खामोशी वक्तगुजारी करने लगे, फिर बाहर से आये लोग जब आश्रम से निकल गये तो सैंडी उन्हें लेकर आचार्य के कमरे की तरफ बढ़ा।
गेट पर उन्हें रोक दिया गया, “आगे जाने की आज्ञा नहीं है बच्चों।”
“मिल जायेगी - सैंडी बोला - गुरू जी से कहो कि दिल्ली से सूरज सिंह अपने दोस्तों के साथ उनके दर्शन करने आया है।”
“आचार्य जी जानते हैं तुम लोगों को?”
“जाकर उन्हीं से क्यों नहीं पूछ लेते?”
“ठीक है यहीं रुको।” कहकर वह अंदर चला गया।
मिनट भर बाद मुलाकात की इजाजत हासिल हो गयी।
सब आचार्य के कमरे में दाखिल हुए और उन्हें प्रणाम कर के उनके सामने फर्श पर बिछे गलीचे पर बैठ गये।
“बहुत दिनों बाद आना हुआ बच्चों।”
“जी गुरू जी, दो महीने बीत गये हैं।”
“कोई समस्या खींच लाई है, या ऐसे ही चले आये?”
“समस्या भी है गुरू जी।”
“बताओ।”
“हमारे एक दोस्त की मौत हो गयी है।”
“उसके बारे में तो तुम लोगों ने पिछली बार ही बता दिया था।”
“परसों रात हमारा एक और दोस्त अपनी जान से हाथ धो बैठा गुरूदेव।”
“ओह ईश्वर उसकी आत्मा को शांति दें - कहकर उन्होंने सवाल किया - क्या हुआ था?”
“हम सब पार्टी करने के लिए एक ऐसी हवेली में प्रवेश कर गये जो सालों से बंद पड़ी थी, जहां कोई आता-जाता नहीं था, और आस-पास के लोगों का कहना था कि वहां प्रेतात्माओं का बसेरा है।”
“यानि मालिक की इजाजत के बिना प्रवेश किया था?”
“जी ये गलती तो बराबर की थी - सैंडी बोला - मगर मालिक विदेश में रहता है। और हवेली भी कोई ऐसी नहीं है जहां कोई कीमती सामान रखा हुआ हो। मैंने सोचा ऐसी जगह पर रात गुजारना नया अनुभव होगा, इसीलिए अपने सात दोस्तों के साथ शनिवार की रात को वहां पहुंच गया।”
“और जब वहां से बाहर निकले तो एक दोस्त को खो चुके थे?”
“जी यही बात है।”
“मृत्यु कैसे हुई उसकी?”
“जो कुछ घटित हुआ था गुरूजी वह साफ साफ प्रेतलीला ही दिखाई दे रहा था। बड़ी भयानक किस्म की घटनाओं से दो चार हुए थे हम उस रात। अपनी तरफ से उसे बचाने की पूरी पूरी कोशिश भी की मगर वह अपनी जान से हाथ धो बैठी।”
“कोई लड़की थी?”
“जी हां मधु नाम था, हम सब उसे हनी कहकर बुलाते थे।”
“और अब तुम लोग खुद को उसकी मौत के लिए जिम्मेदार मान रहे हो?”
“सिर्फ मैं गुरूदेव, क्योंकि बाकी सबको लेकर तो मैं ही गया था वहां, ऊपर से ये झूठ भी बोल दिया कि हवेली मैंने खरीद ली थी। इसलिए जिम्मेदार तो मैं ही हुआ न?”
“तुम स्वयं पर गलत दोषारोपण कर रहे हो बच्चे, ये क्यों नहीं सोचते कि उसके प्रारब्ध में बधा था उस हवेली के भीतर मृत्यु को प्राप्त होना, तुम तो निमित्त भर बन गये। जिसे प्रभु अपने शरण में बुलाना चाहें उसे हम इस दुनिया में कैसे रोके रख सकते हैं। इसलिए स्वयं को दोष देना व्यर्थ है। आज उसकी मौत हुई है, कल मेरी होगी, परसों तुममे से कोई और दुनिया छोड़ जायेगा। यही नियति है बच्चों, इसपर किसी का जोर नहीं।”
“हम अभी तक ये भी तो नहीं समझ पाये हैं गुरूदेव कि उसे मारा तो आखिर मारा किसने? क्या सच में उस हवेली के भीतर किसी प्रेतआत्मा का वास है? या हमने जो कुछ भी वहां देखा, वह बस हमारे मन का वहम था।”
“भूत प्रेत जैसी कोई चीज इस संसार में नहीं होती बच्चों, सच पूछो तो ये पूरी अवधारणा ही गलत है। जरा सोचकर देखो कि एक तरफ तो हम ये कहते हैं कि जिसके जीवन में जितने साल लिखे हैं उससे एक पल भी ज्यादा नहीं जी सकता। और दूसरी तरफ ये कहते हैं कि अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोग बची हुई उम्र प्रेत योनि में भटकते हुए गुजारते हैं। अब जरा विचार करो कि जिसकी जिंदगी ही विधाता ने बीस साल की लिख दी हो, वह अगर बीस में मर गया तो उसकी मृत्यु भला अकालमृत्यु क्योंकर हो गयी? और अकाल नहीं हुई तो प्रत्यक्ष है कि उसके प्रेत बनकर विचरने का भी कोई मतलब नहीं बनता। आत्मा एक शरीर का त्याग करते ही दूसरे में प्रवेश कर जाती है। यानि जब एक इंसान मरता है तो उसी वक्त एक गर्भस्थ शिशु के शरीर में जान पड़ जाती है। तात्पर्य ये है कि भूत प्रेत जैसी बातों को हमारे समाज ने गढ़ा है ना कि ईश्वर ने, इसलिए ऐसी भ्रामक बातों से दूर रहो।”
“अगर वह प्रेत नहीं था तो हमें दिखाई क्यों नहीं दिया? बल्कि कोई उतने भयानक कारनामें करने में भी क्यों कामयाब हो गया जिसने हमारे रोंगटे खड़े कर दिये थे?”
“कभी जादू का खेल देखा है तुमने?”
“जी बचपन में कई बार।”
“मैंने भी बचपन में ही देखा था, और एक बार तो जादूगर को छोटे छोटे कंकड़ों को एक रूपये के सिक्कों में बदलते देखा था। तब मैं दस साल का था। उस बात का मुझपर इतना गहरा असर हुआ कि अक्सर कंकड़ लेकर उसकी तरह कुछ बुदबुदाना शुरू कर देता, फिर जोर से फूंक मारकर जब मुट्ठी खोलता तो ये देखकर मन निराशा से भर उठता कि कंकड़ तब भी कंकड़ ही रह गये थे। एक दिन मेरे दादा जी ने मुझे वैसा करते देखकर कारण पूछा तो मैंने बता दिया। तब उन्होंने कहा कि उस जादूगर के पास अगर सच में कंकड़ को पैसे में बदलने की ताकत होती तो क्या वह गली गली भटक कर अपनी जीविका का इंतजाम कर रहा होता? बस उसी दिन से मैंने मान लिया कि दुनिया में जादू नाम की कोई चीज नहीं होती, जो होता है वह करतब होता है। वैसा ही करतब जैसा कि हवेली में तुम्हें दिखाया गया था। और अब मेरी तरह तुम लोग भी हाथ में कंकड़ लिए उसे पैसों में बदलने की कोशिश कर रहे हो, जो कि असंभव है।”
“यानि वहां जो कुछ घटित हुआ वह किसी की सोची समझी चाल थी?”
“अवश्य वैसा ही रहा होगा।”
“लेकिन हमारे वहां पहुंचने के बारे में तो किसी को भी पता नहीं था, ऐसे में कोई हनी की मौत का जाल कैसे तैयार कर सकता था?”
“इस सवाल का जवाब भी तुम्हें वापिस वहीं पहुंचकर मिलेगा। जहां तुम अंत समझ रहे हो वहीं से शुरूआत करो, मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि जल्दी ही तुम्हें इस दुविधा भरी स्थिति से बाहर निकाल लें।”
“जरूर कीजिएगा।”
तत्पश्चात सब ने बारी बारी से आचार्य परमानंद के कदमों में सिर झुकाकर आशीर्वाद लिया और वहां से बाहर निकल आये।
आगे आश्रम के ऑफिस में पहुंचकर सबने पचास पचास हजार रूपये का दान दिया। जयदीप को छोड़कर, जिसके पास या तो पैसे नहीं थे, या फिर उस तरह के दान पुण्य में उसकी आस्था नहीं थी।
दोपहर एक बजे के करीब विराट और जोशी एक बार फिर तिमारपुर गांव पहुंचे। वहां कई लोगों से पूछताछ की मगर काम की कोई जानकारी हासिल नहीं हुई। हवेली के बारे में भी खूब सवाल जवाब किये, जिसके प्रत्युत्तर में वहां भटकती महाराज की प्रेतात्मा के अलावा और कुछ सुनने को नहीं मिला। और मुखिया तब तक वापिस लौटा नहीं था, इसलिए उसके साथ उनकी पूछताछ मुकम्मल नहीं हो पाई।
थक हारकर दोनों वहां से निकले तो गांव के बाहर मौजूद सरकारी स्कूल के सामने पहुंचकर विराट ने गाड़ी रोक दी।
“क्या हुआ सर?” जोशी ने पूछा।
“जरा शिक्षक लोगों से भी सवाल-जवाब कर लिये जायें, कम से कम गांव वालों की तरह बे सिर पैर की बातें तो नहीं ही करेंगे।”
गाड़ी को स्कूल के बाहर खड़ा कर के दोनों भीतर दाखिल हुए और प्रिंसपल के कमरे में पहुंचे। वहां कुल जमा चार लोग मौजूद थे, जिनके हाव-भाव बताते थे कि सब के सब शिक्षक ही थे।
विराट ने अपना परिचय दिया तो तुरंत चारों की अटैंशन उसे हासिल हो गयी।
“कहिए इंस्पेक्टर साहब? - प्रिंसपल ने पूछा - कैसे आना हुआ?”
“कुछ सवाल करना चाहता हूं।”
“कैसे सवाल?”
“चंद्रशेखर महाराज की हवेली के बारे में क्या जानते हैं आप लोग?”
सुनकर सब एकदम से सकपका से गये।
“बात क्या है? - एक ने पूछा - क्या फिर से वहां कोई वारदात घटित हो गयी?”
“पक्का नहीं कह सकता, लेकिन अंदेशा बराबर है।”
“बहुत खौफनाक जगह है इंस्पेक्टर साहब - प्रिंसपल ने बताया - दिन दहाड़े लोगों की जानें चली जाती हैं। सुना है कोई गलती से भी हवेली के फाटक को छू लेता है तो बाद में किसी ना किसी वजह से उसकी मौत होकर रहती है। बल्कि कुछ लोग तो वहीं के वहीं अपनी जान से हाथ धो बैठे थे।”
“आखिरी बार कौन मरा था?”
“ये मैं कैसे बता सकता हूं आपको?”
“स्कूल से बामुश्किल एक किलोमीटर दूर है वह जगह, अगर वहां कोई मारा जाता तो क्या आपको खबर नहीं लगती?”
“खबर तो खैर गांववालों के जरिये लग ही जाती है - वहां बैठा एक अन्य अध्यापक बोला - लेकिन आखिरी बार कौन मरा था, उसका नाम नहीं मालूम हमें।”
“मुझे मालूम है - दूसरा जना बोला - उसका नाम अजब सिंह था, वह तिमारपुर का ही रहने वाला था। महाराज के प्रेत ने उसे बुरी तरह चीर फाड़ डाला था। ये भी सुना है कि जिस वक्त वह घटना घटित हुई थी अजब सिंह अपने दो दोस्तों के साथ था, जो किसी तरह वहां से भागकर अपनी जान बचाने में कामयाब हो गये थे।”
“वह तो बीस साल पुरानी बात है।”
“हां इतनी ही पुरानी होगी। हालांकि अजब से पहले भी कई लोग मारे जा चुके थे, मगर जहां तक मुझे याद पड़ता है, हवेली के करीब हुई वह आखिरी मौत थी, उसके बाद गांव वालों ने पूरी तरह उस जगह से दूरी बना ली। आस-पास जिन लोगों के खेत हैं, उन्होंने वहां खेती करनी बंद कर दी। अब तो कोई भूले से भी उधर का रुक नहीं करता होगा। हां बाहर का कोई बंदा पहुंचकर अपनी जान गवां बैठा हो तो नहीं कह सकते।”
“इसके अलावा कोई बात जो उसे अभिशप्त करार देती हो?”
“अमावस की रात को वहां से किसी के जोर जोर से हंसने की आवाजें आती हैं। या हवेली के ऊपर लगा घंटा बजने लग जाता है। ये भी सुना है कि उधर से रात बिरात गुजरने वाले लोगों में से बहुत से बाद में यूं बीमार पड़े कि अपनी जान से हाथ धो बैठे।”
“हंसने की आवाज आप में से किसी ने सुनी है कभी?”
“हां जी सुनी है, आखिरी बार परसों रात को ही सुनी थी। और उस रोज भी क्योंकि अमावस ही था, इसलिए मेरा ये सोचकर दम निकला जा रहा है कि कहीं मेरे साथ कुछ बुरा न घटित हो जाये।”
“आप हवेली के आस-पास ही कहीं रहते होंगे, है न?”
“ना जी वैसी मनहूस जगह के पास रहना भी गुनाह हो जायेगा। हां गांव मेरा तिमारपुर ही है।”
“जहां से हवेली की दूरी डेढ़ दो किलोमीटर से कम तो क्या होगी, फिर भी आवाज आप तक पहुंच गयी?”
“नहीं, बात ये है कि शनिवार की रात मैं पलवल में एक पार्टी अटैंड कर के वापिस लौट रहा था, रास्ते में जब हवेली के सामने से गुजरा तो ठहाके की आवाज मेरे कानों में पड़ी, सुनते के साथ ही मैंने मोटरसाइकिल की स्पीड बढ़ा दी और घर पहुंचकर ही दम लिया।”
“तब वक्त कितना हुआ था?”
“सवा बारह के आस-पास का रहा होगा, क्योंकि बारह बीस तक तो मैं अपने घर के भीतर था।”
“और कुछ?”
“मेरी बीवी ने भी उसे देखा था।”
“किसे महाराज के भूत को?” विराट ने हैरानी से पूछा।
“पक्का नहीं मालूम लेकिन उसके अलावा और भला कौन हो सकता था?”
“देखा क्या था?”
“एक खूब बड़ी दानवी आकृति को हवेली के ऊपर तैरते हुए।”
“देख कैसे पाईं, क्या हवेली के पास गयी थीं?”
“नहीं जी, बात ये है कि गांव में हमारा तीन मंजिला घर है जिसकी छत से हवेली साफ दिखाई देती है। कुसुम को नींद ना आने की बीमारी है इसलिए अक्सर छत पर टहलने निकल जाती थी। उस रोज भी वही कर रही थी। तभी वह नजारा देखा था उसने। देखकर यूं डरी कि महीनों तक बिस्तर से उठ तक नहीं पाई। अब तो उसका हाल ये है कि क्या रात और क्या दिन, छत पर कदम ही नहीं रखती।”
“वह भी अमावस की ही रात रही होगी?”
“जी हां।”
“ठीक है साहबान - विराट उठता हुआ बोला - वक्त देने के लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।”
“अरे चाय तो पीकर जाइये।” प्रिंसपल बोला।
“फिर कभी, शुक्रिया।”
तत्पश्चात दोनों बाहर आकर गाड़ी में सवार हो गये।
“अब क्या कहते हैं सर? - जोशी ने हंसते हुए गाड़ी आगे बढ़ा दी - हवेली में भूत हैं या नहीं?”
“अगर हैं तो जरूर पुलिस से डरते होंगे, वरना कल जिस वक्त हम भीतर थे हमला जरूर किया होता।”
“वह तो रात में करते हैं सर।”
“ठीक है फिर आज की रात हम हवेली में ही गुजारेंगे।”
“मुझे तो माफ ही कर दीजिए, और आपको भी ऐसी सलाह नहीं दूंगा मैं।”
“जैसे मैं चला ही जाता रात को वहां।”
कहकर वह हौले से हंस पड़ा।
इनोवा क्रिस्टा और सफारी आगे पीछे सड़क पर दौड़ रही थीं। इनोवा सैंडी ड्राईव कर रहा था, ऐना उसके बगल में बैठी थी, जबकि रोहताश पिछली सीट पर अकेला बैठा हुआ था।
दूसरी गाड़ी जयदीप चला रहा था। बगल में पैसेंजर सीट पर बैठी नैना लगातार उसे छेड़े जा रही थी, जिसके जवाब में वह कभी मुस्कराकर रह जाता तो कभी उसकी तरफ देखकर आंखें भर तरेर देता था।
पीछे की तरफ वाणी दोनों घुटनों को सीट पर टिकाये अरसद की तरफ मुंह कर के उसकी गोद में बैठी हुई थी। दोनों एक दूसरे के होंठों को यूं चुभला रहे थे जैसे चबाकर ही दम लेंगे।
कोई अंजान शख्स उन्हें इस स्थिति में देख लेता तो उसके मन में ख्याल तक नहीं आता कि वो वही लोग थे जिनकी एक दोस्त महज दो दिन पहले अपनी जान से हाथ धो बैठी थी।
गम का तो जैसे दूर दूर तक नामो निशान नहीं था उन चारों के चेहरों पर।
“सच सच बताओ बेबी - नैना मुस्कराती हुई बोली - मेरे अलावा कितनी लड़कियों के साथ सेक्स कर चुके हो?”
“किसी के साथ नहीं किया।”
“उंह, झूठ मत बोलो।”
“मैं सच कह रहा हूं, कभी कोई गर्लफ्रैंड बनी ही नहीं। और बाजारू लड़कियों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।”
“इसकी बातों पर मत जाना नैना - अरसद के होंठों से अपने होंठ हटाती हुई वाणी जोर से बोली - ये बहन चो... लड़के हमेशा यही कहते हैं, भले ही घाट-घाट का पानी पी चुके हों।”
“जैसे तुम लड़कियां गले में पट्टा लटकाकर घूमती हो कि ‘आई एम नॉट अ वर्जिन’, उल्टा अपने रिलेशंस छिपाने में तुम हम लड़कों से कहीं आगे होती हो।” अरसद बोला।
“मैंने पूछा तुझसे? - वाणी ने गुस्से से उसकी तरफ देखा - चुपचाप उन खिलौनों से खेलता रह जो मैंने तेरे हाथों में थमा रखा है।”
“मैं दोनों काम एक साथ कर सकता हूं हनी।”
“मैं हनी नहीं हूं साले।”
“ये तो हद ही हो गयी, मधु को हनी कह के पुकारना तो जैसे जी का जंजाल बनकर रह गया है।”
“स्वीट हॉर्ट बोल, डॉर्लिंग बोल, मगर हनी नहीं चलेगा, समझ गया?”
“हां समझ गया।”
“गुड - कहकर वह जोर से बोली - तू इसकी मैडिकल जांच करा ले नैना, फिर सब पता लग जायेगा।”
“बेशक करा लो, मुझे परवाह नहीं।” जयदीप हंसता हुआ बोला।
“साले तेरी नीयत का तो इसी से पता लग जाता है कि राहुल का कजन ब्रदर होते हुए भी, उसके जाने के फौरन बाद नैना पर अपना क्लेम ठोंक दिया।”
“नहीं फौरन नहीं ठोंका था, उसकी नौबत आते आते तो पंद्रह-बीस दिन गुजर गये थे - नैना मुस्कराती हुई बोली - हां हिचकिचा फिर भी रहा था, ऐसे कि क्या कोई दुल्हन पहली रात को अपने खसम के आगे हिचकती होगी।”
“नौटंकी कर रहा होगा, वरना लगता तो यही है कि ये साला पहले से ही तुझपर निगाह रखे हुए था।”
“ऐसा नहीं है।” जयदीप धीरे से बोला।
“ऐसा ही है, वरना तूने कम से कम इतना तो सोचना चाहिए था कि राहुल की गर्लफ्रैंड होने के नाते इसका दर्जा तेरे लिए भाभी जैसा था, और भाभी तो - मैंने फिल्मों में देखा है - मां समान होती है।”
“शटअप - नैना ने जोर से घुड़का - बंद कर अपनी बकवास।”
“अरे इसमें गुस्सा होने की क्या बात है?”
“है, ये मुझे अपनी मां समझने लगेगा तो इसे छोड़कर मुझे इसके बाप के पास जाना पड़ जायेगा, और तू तो जानती ही है कि मुझे बूढे़ मर्द जरा भी पसंद नहीं हैं।”
उस बात पर सब ने जोर का ठहाका लगाया।
दोनों गाड़ियां तेज रफ्तार से दिल्ली की तरफ बढ़ रही थीं, और भीतर बैठे लोग मधु को भूलकर यूं ही आपस में चुहल किये जा रहे थे। किसी को हनी का ख्याल तक नहीं आ रहा था, ना ही इस बात की कोई परवाह थी कि दिल्ली पहुंचने पर पुलिस उनसे मधु के बारे में सवाल-जवाब जरूर करेगी।
इतना बेफिक्रा तो शायद ही कोई होता होगा।
“रोहताश।” इनोवा चलाता सैंडी बोला।
“सुन रहा हूं।”
“तुझे हनी का अफसोस हो रहा है, है न?”
“नो वे, समझ ले मैंने उसे भुला दिया।”
“इतनी जल्दी?”
“हां, आखिर कभी नैना ने भी तो यही किया था, फिर मैं क्यों नहीं कर सकता। बावजूद इसके मैं अफसोस करूंगा तो जानता है उसका मतलब क्या होगा?”
“क्या होगा?”
“यही कि मैं पापी कहलाने के काबिल नहीं हूं।”
“ऐसा तो नहीं होना चाहिए।”
“बेशक नहीं होना चाहिए, वरना दूसरों में और हम पापियों में फर्क ही क्या रह जायेगा? इसलिए हनी को भूल जा। पापी मंडली उसके साथ भी कायम थी और उसके बाद भी रहेगी।”
“अगर ऐसा है तो तेरे चेहरे पर मातम के भाव क्यों हैं?”
“ये मातम के भाव नहीं हैं, विचार के भाव हैं।”
“ऐसा क्या सोच रहा है तू?”
“यही कि हमें मेरठ में रुककर थोड़ा इंजॉय करना चाहिए, उसके बाद आगे का सफर पूरा करेंगे।”
“क्या सच में?”
“हां यार, तू और ऐना, अरसद और मिस वॉयस, जयदीप और नैना, मैं और शोभना।”
“शोभना - सैंडी चौंका - वह कौन है?”
“फ्रैंड है, खास फ्रैंड, कई दिनों से मिलने के लिए बुला रही थी, सोच रहा हूं आज उसकी ख्वाहिश पूरी ही कर दूं।”
“तू वही कह रहा है न जो मैं समझ रहा हूं?”
“ऑफकोर्स मैं उसके साथ इंजॉय करने की बात कर रहा हूं।”
“मेरठ में रहती है?”
“हां।”
“जानता कैसे है उसे?”
“इसकी एक्स है।” ऐना ने बताया।
“तुम जानती है उसे?”
“यस बेबी, बल्कि तुम भी जान जाते अगर इसने शोभना की जगह शुभी कहा होता जो कि उसका निक नेम है।”
“ओह शुभी - सैंडी बोला - ठीक है बुला लेना।”
“कहां?”
“होटल हाइवे में, जहां हम एक घंटे में पहुंच जायेंगे।”
“बाद में तुम लोग ये तो नहीं कहने लगोगे कि साला रोहताश कितना बेवफा है?”
“नहीं पापी, उल्टा तेरी हिम्मत की दाद देंगे। हम क्या जानते नहीं कि तू हनी को कितना चाहता था, ऐसी लड़की को दिल से निकाल फेंकना क्या कोई आसान काम है।”
“तो मैं फोन करूं उसे?”
“मोबाईल से नहीं - ऐना बोली - भूल गया हम सबने अपने अपने घर पहुंचकर ही नैटवर्क में वापिस लौटने का फैसला किया था?”
“सॉरी मैं सच में भूल गया था, मगर सवाल ये है कि अब कांटेक्ट करूं तो करूं कैसे शुभी को?”
“आगे एक पैट्रोल पंप है, वहां फोन जरूर होगा। तब तक वेट करते हैं - सैंडी बोला - और तुझे ठीक लगे तो शुभी को पापी मंडली में शामिल होने की इंवीटेशन भी दे सकता है। आखिर हनी के जाने से खाली हुई जगह को भरना भी तो है।”
“हां सो तो है, अच्छा एक बात बता।”
“क्या?”
“हम अपनी संख्या आठ से ज्यादा क्यों नहीं कर सकते?”
“प्रॉब्लम होगी।”
“कैसी प्रॉब्लम?”
“गेम खत्म होने के बाद कई बार ऐसा होता है जब हम सबको एक साथ, एक ही गाड़ी में सफर करना पड़ता है। जैसे कि पिछले से पिछले शनिवार को बैरिकेडिंग तोड़ने के लिए तुम लोगों को मेरे साथ जाना पड़ा था। अलग-अलग गाड़ियों में होते तो उतना मजा नहीं आया होता जितना कि एक साथ होने की वजह से आया था। फिर साथ होने से हमारी ताकत भी तो बढ़ जाती है। ऐसे में जरा कल्पना कर के देख कि अगर हम पापियों की संख्या आठ की बजाये दस हो गयी, तो क्या एक ही गाड़ी में बैठने के बारे में सोच पायेंगे?”
“नहीं, पॉसिबल ही नहीं है।”
“बस यही कारण है कि मैं अपनी मंडली के लोगों की संख्या नहीं बढ़ाना चाहता। और आठ से कम इसलिए नहीं कर सकते क्योंकि तब हमारा ग्रुप बहुत छोटा दिखाई देने लगेगा।”
“मैं समझ गया पापी।”
“गुड।” कहकर सैंडी ने गाड़ी की स्पीड घटानी शुरू की और थोड़ा आगे जाने के बाद इंडियन ऑयल के पैट्रोल पंप पर ले जाकर खड़ा कर दिया।
दोनों पुलिस ऑफिसर दिन भर इधर उधर भटकते रहे, मगर केस था कि किसी सिरे पहुंचता दिखाई ही नहीं दे रहा था। उस दौरान दोनों के कदम एक बार फिर से ‘रॉयल ब्यूटी’ में पड़े जहां मैंनेजर शिव आनंद प्रसाद से नये सिरे से पूछताछ की गयी।
पिछले फेरे में जहां उनका पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ राहुल हांडा की गुमशुदगी पर था, वहीं इस बार बाकी के दोस्तों, खासकर मधु कोठारी के संदर्भ में जमकर सवाल जवाब किये गये। ये अलग बात थी कि हासिल कुछ नहीं हुआ, क्योंकि मैंनेजर को तो ये तक पता नहीं था कि आठों में से मधु कोठारी थी कौन।
थक हार कर दोनों अंधेरा घिरने तक वापिस हैडक्वार्टर लौट आये, जहां मिश्रा से ये सुनने को मिला कि अभी तक मधु या उसके दोस्तों में से किसी का भी मोबाईल ऑन नहीं किया गया था, इसलिए लोकेशन मिलने का तो कोई मतलब ही नहीं बनता था।
बुरी तरह निराश दोनों आमने-सामने बैठकर केस पर दिमाग खपाने लगे। बहुत देर तक तर्क वितर्क भी किया। असल में अब वे लोग इस बात को लेकर उलझन का शिकार हो रहे थे कि बीच में भूत प्रेतों की जिस कहानी ने एंट्री मारी थी, उसका राहुल या मधु की गुमशुदगी के साथ कोई लेना देना था या नहीं।
“नहीं - विराट अचानक ही बोल पड़ा - मामला असल में कुछ और है जोशी साहब। ये ना तो अपहरण है ना ही सातों बच्चों का कत्ल किया गया है।”
“अगर ऐसा है सर तो गायब कहां है वो सब?”
“जवाब बेशक नहीं है मेरे पास, लेकिन देख लेना अंत पंत तो सब जिंदा वापिस लौट आयेंगे।”
“मधु कोठारी भी?”
“उम्मीद तो मैं यही कर रहा हूं। सात लोग एक साथ गायब हैं तो बुरा उनमें से सिर्फ किसी एक के साथ कैसे घटित हुआ हो सकता है? और मैं क्योंकि ये मानकर चल रहा हूं कि बाकी के बच्चे सही सलामत हैं तो जाहिर है मधु भी ठीक ही होगी। बल्कि मैं दिल से चाहता हूं कि वह ठीक ही हो।”
“ईश्वर करें आपका चाहा पूरा हो जाये सर।”
“महेश को फोन कर के जरा पता तो करो कि कल रात की तरह आज रात भी वह तीनों हवेली की ड्यूटी भुगतने जा रहे है या नहीं? कहीं हुक्म मिलने का इंतजार न कर रहे हों।”
“ऐसा नहीं है सर, मैंने उन्हें पहले ही बोल दिया है कि हवेली की निगरानी तब तक बदस्तूर जारी रखनी है जब तक कि आप खुद उन्हें मना नहीं कर देते।”
“तत्परता खूब दिखाते हो जोशी साहब।”
“सब आपके साथ का असर है सर।”
“मस्का लगाने का भी कोई मौका नहीं गंवाते - विराट हंसता हुआ - अब ये मत कह देना कि वह गुण भी मुझसे ही सीखा है।”
“नहीं कहूंगा सर, क्योंकि वह खास तालीम मैंने एक मिनिस्टर साहब के घर की ड्यूटी के दौरान हासिल की थी।”
सुनकर विराट हंस पड़ा।
“अब घर की तरफ प्रस्थान करें सर?”
“करना ही पड़ेगा, चलो।”
दोनों उठ खड़े हुए।
रात के साढ़े ग्यारह बजने को थे।
विराट राणा आधा घंटा पहले ही नींद के हवाले हुआ था, जो कि पुलिस की नौकरी में आसानी से मयस्सर नहीं होती। कभी होती दिखाई देती थी तो अचानक ही उसमें कोई न कोई व्यवधान उठ खड़ा होता था।
जैसे कि इस वक्त हुआ।
मोबाईल की लगातार बजती घंटी ने उसे उठकर बैठ जाने को मजबूर कर दिया।
कॉल एएसआई महेश गुर्जर की थी, जिसे उसने तुरंत अटैंड कर लिया।
“इतनी रात को डिस्टर्ब करने के लिए माफी चाहता हूं जनाब।”
“नो प्रॉब्लम तुम भी तो जाग रहे हो, बताओ क्या बात है?”
“यहां भूत-प्रेत तो कोई ना दिखा जी, लेकिन बारात बराबर पहुंच गयी है।”
“मैं समझा नहीं।”
“दो गाड़ियों में भरकर चार छोरे और तीन छोरियां आई हैं। हवेली के फाटक की चाबी भी उनके पास थी, और तो और साले अपने साथ जनरेटर तक लेकर आये हैं, लगता है बाकी की रात हवेली में ही गुजारने का इरादा है उनका।”
“पक्का सात ही लोग हैं?”
“हां जी मैंने खुद गिना था।”
विराट आशांवित हो उठा।
“ठीक है निगाह बनाये रखो, मैं घंटा भर में पहुंच जाऊंगा।”
“उससे पहले वे लोग कहीं और के लिए निकल लिए तो क्या करना है?”
“तुम तीन ही तो लोग हो, क्या कर पाओगे?”
“आप हुक्म कर के देखिये जनाब, कोई एक जना भी हमारे हाथ से निकल जाये तो गोली मार दीजिएगा।”
“उलझना ठीक नहीं होगा महेश, क्योंकि उनमें से कम से कम एक के हथियारबंद होने के पूरे पूरे चांस हैं। और मैं ये भी नहीं चाहता कि पुलिस से बच निकलने की कोशिश में सातों में से कोई घायल हो जाये - कहकर उसने क्षण भर को विचार किया फिर बोला - अच्छा एक काम करो अगर सबके सब एक साथ वहां से चल पड़ें तो उनकी गाड़ी का पीछा करना। इक्का दुक्का जाता दिखाई दे, तो उसे भूलकर बाकियों की निगरानी पर डंटे रहना।”
“ठीक है साहब जी।”
विराट ने कॉल डिस्कनैक्ट कर के जोशी को फोन लगाया, जो कि बहुत देर बाद जाकर रिसीव की गयी।
“उठ जा वीर बालक, एक्शन में आने का वक्त हो गया है।”
“आपका मतलब है हम तिमारपुर जा रहे हैं?”
“हां यही मतलब है, पांच मिनट में पिक करता हूं तुम्हें।”
कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट की, फटाफट कपड़े और जूते पहने, फिर बाहर निकल कर अपनी गाड़ी में सवार हो गया।
आगे पांच मिनट से भी कम वक्त में जब वह जोशी के घर पहुंचा तो उसे बाहर खड़े होकर अपना इंतजार करता पाया।
अगले ही पल फॉर्च्यूनर हवा से बातें करने लगी।
सड़क पर ट्रैफिक ना के बराबर था, इसलिए विराट को पूरी पूरी उम्मीद थी कि हवेली तक पहुंचने में उसे तीस-चालीस मिनट से ज्यादा का वक्त नहीं लगने वाला था।
“बात क्या है सर?” जोशी ने उत्सुक लहजे में पूछा।
“महेश ने खबर दी है कि अभी अभी दो गाड़ियों में सवार सात लोग हवेली पहुंचे हैं।”
“ये तो गुड न्यूज हुई न सर जी?”
“उम्मीद बराबर कर रहा हूं, मगर लग नहीं रही।”
“क्यों, जब सातों के सातों सही सलामत हैं तो न्यूज बुरी कैसे हो सकती है।”
“क्योंकि महेश ने बताया है कि सातों में से चार लड़के हैं और तीन लड़कियां हैं। जबकि होना ये चाहिए था कि जितने लड़के होते उतनी ही लड़कियां, तब बेशक मैं उसे गुड न्यूज मान लेता।”
“फिर तो आपका ही सोचा सही जान पड़ता है सर कि शनिवार को वहां सात नहीं आठ लोगों ने पार्टी की थी - फिर उसकी आंखों में एकदम से आश्चर्य उभर आया - ये तो बड़ी भयानक बात है सर जी।”
“मैं समझा नहीं?”
“इत्तेफाक से अगर कातिल वह आठवां शख्स ही था, तो इस वक्त बाकी बच्चों की जान तो खतरे में हुई न, फिर मैं ये सोचकर भी हैरान हो रहा हूं कि क्यों इतनी रात गये वे सब एक बार फिर से हवेली में इकट्ठे हुए हैं।”
“क्या करूं महेश को भीतर जाने के लिए कह दूं?”
“कोई फायदा होता तो दिखाई नहीं दे रहा सर। तीनों में से बस एक उसी के पास रिवाल्वर है, और हवेली के भीतरी भूगोल से उन लोगों की कोई वाकफियत भी नहीं है, ऐसे में अंदर जाना खतरनाक भी साबित हो सकता है। कातिल को जब ये पता लगेगा कि वहां पुलिस पहुंची हुई है तो हड़बड़ाहट में जाने कैसा कदम उठा बैठे, जिसे संभाल पाना कम से कम महेश और उसके साथ मौजूद दोनों सिपाहियों के लिए तो मुश्किल ही होगा - कहकर क्षण भर को चुप रहने के बाद वह आगे बोला - एक संभावना ये भी तो है सर कि मधु का कत्ल उन सबने मिलकर किया हो, ऐसे में पुलिस को वहां पहुंचा देखकर सबकी कोशिश यही होगी कि किसी भी तरह वहां से भाग निकलें। फिर तीन पुलिसकर्मी मिलकर सात नौजवान बच्चों को भला रोक भी कैसे सकते हैं, जबकि हथियार बस उनमें से एक महेश के पास है।”
“फिर क्या करें?”
“स्पीड पर जोर रखिये सर।”
“वह तो पहले से ही नब्बे और सौ के बीच है।”
“मैं सिगरेट सुलगाकर देता हूं आपको।”
“फिर क्या ये गाड़ी उड़ने लग जायेगी?”
“उम्मीद तो पूरी पूरी है सर।” कहकर वह सिगरेट सुलगाने में व्यस्त हो गया।
बारह दस के करीब जब फॉर्च्यूनर हवेली के करीब पहुंचती दिखाई दी तो विराट ने उसकी स्पीड धीमी कर के महेश गुर्जर को कॉल लगाया।
“हैलो।”
“सब ठीक है?”
“अभी तक तो है साहब जी।”
“तुम लोग कहां हो?”
“हवेली के करीब ही हैं।”
“हम पहुंच गये, सामने आ जाओ।” कहकर उसने गाड़ी को लेफ्ट टर्न देकर कच्चे रास्ते पर उतारा और वहां खड़ी सफारी के पीछे ले जाकर खड़ा कर दिया।
तभी महेश और दोनों सिपाही उनके सामने आ खड़े हुए।
“सर, सर - जोशी हैरान सा होता हुआ बोला - ये तो वही गाड़ी है।”
“कौन सी गाड़ी?”
“जिसका हमने नोएडा एक्प्रेस वे पर पीछा किया था।”
विराट ने नई निगाहों से सफारी को देखा।
“उस रात गाड़ी में सवार लोगों की संख्या आठ थी। और अभी अगर हम मधु कोठारी की हत्या हो गयी मान लें, तो भीतर मौजूद सातों को मिलाकर, आठ की गिनती अपने आप पूरी हो जाती है। हैरानी की बात है सर कि राहुल के सात दोस्तों के बारे में जान चुकने के बाद भी हमारे मन में एक पल को ये ख्याल नहीं आया कि हाईवे पर हमसे टकराने वालों में से सात बच्चे वही थे जो कि ‘रॉयल ब्यूटी’ की छत पर उसके साथ पार्टी कर रहे थे।”
विराट ने बड़े ही गंभीर भाव से गर्दन हिलाकर सहमति जताई।
सब लोग फाटक के करीब पहुंचे तो वहां भीतर की तरफ से ताला लगा पाया।
“करना क्या है सर?” जोशी ने पूछा।
“उन्हें बाहर बुलाना होगा।”
“आ जायेंगे?”
“क्यों नहीं आयेंगे?”
“अगर बेगुनाह हैं तो बेशक आ सकते हैं सर - जोशी ने दलील दी - इसके विपरीत अगर मधु कोठारी का कत्ल उन सब ने मिलकर किया है तो हम लाख कहते रहें कोई बाहर नहीं आने वाला।”
“नहीं आयेंगे तो और क्या करेंगे, यहां से भाग निकलने का दूसरा कोई रास्ता ही कहां है?”
“पीछे की टूटी हुई बाउंड्री वॉल को क्यों भूल जाते हैं सर?”
“उसके लिए भी सातों को हॉल से बाहर निकलकर हमारे सामने से गुजरना पड़ेगा, और धिक्कार है हमारे पुलिसवाला होने पर अगर पांच लोग मिलकर सात बच्चों को भी काबू में नहीं कर पाये।”
“माफी के साथ कहता हूं सर कि हम लोकल थाने से फोर्स क्यों न बुला लें। फिर पूरी हवेली को घेर चुकने के बाद उन्हें चेतावनी देकर बाहर आने को कहें। आगे वे लोग अपनी मर्जी से निकलें, या भीतर घुसकर जबरन गिरफ्तार करना पड़े, दोनों ही हालात हमारे पक्ष में होंगे, क्योंकि उनके भाग जाने का कोई अंदेशा नहीं होगा।”
“इतना तामझाम मुझे कबूल नहीं है जोशी साहब। सातों अगर इनोसेंट हैं तो मैं हरगिज भी नहीं चाहूंगा कि उन्हें किसी किस्म का खौफ महसूस हो, आखिर बच्चे ही तो हैं।”
“आप अभी भी उनकी बेगुनाही के बारे में सोच रहे हैं?”
“बेशक सोच रहा हूं, इसलिए खामख्वाह अपने दिमाग से कसरत करवाना बंद कर दो। वक्त बर्बाद करना तो फौरन बंद कर दो।”
“यस सर - कहकर उसने पूछा - आवाज लगाऊं?”
“लगा सकते हो, लेकिन फायदा कोई नहीं होगा, क्योंकि अंदर म्यूजिक बज रहा है। अव्वल तो तुम्हारी आवाज भीतर पहुंचेगी ही नहीं, और पहुंच भी गयी तो उसमें उतना दम खम नहीं महसूस होगा जो उन्हें बाहर निकलने के लिए मजबूर कर सके।”
“फिर क्या करें?”
“गाड़ी का हॉर्न बजाना शुरू करो, और तब तक बजाते रहो जब तक कि कोई दरवाजा खोलने नहीं पहुंच जाता। बाकी लोग फाटक के दायें बायें पोजिशन ले लो।”
“आपको लगता है हमला हो सकता है?”
“सावधानी बरतने में क्या जाता है?”
सुनकर महेश और दोनों सिपाही फाटक के इर्द गिर्द खड़े हो गये, जोशी ने गाड़ी का दरवाजा खोलकर हॉर्न बजाना शुरू कर दिया। जबकि विराट फॉर्च्यूनर के बायीं तरफ यूं खड़ा हो गया कि अगर हॉल के दरवाजे से कोई फायर करने की कोशिश करे तो उसे ट्रिगर दबाने से पहले ही निहत्था किया जा सके।
आधी रात का वक्त होने के कारण हॉर्न की आवाज कई गुणा तेज महसूस हो रही थी। जोशी लय बदल बदल कर उस काम को अंजाम दे रहा था, मगर नतीजा लगातार जीरो ही रहा।
“बहरे हो गये हैं साले।”
“या फिर डर गये हैं। तुम अपना काम जारी रखो। मुझे पूरी उम्मीद है कि उनमें से कोई ना कोई तो ये जानने के लिए बाहर जरूर निकलेगा कि हॉर्न कौन बजा रहा है?”
जोशी फिर से उस काम में लग गया।
सातों पापियों ने मेरठ में पूरे चार घंटे बिताये थे। पैट्रोल पंप से की गयी रोहताश की कॉल पर शोभना उनसे कहीं पहले होटल पहुंच गयी थी, जिसके साथ मिलकर सबने जमकर जाम छलकाये, नाच गाना किया, फिर डिनर करने में जुट गये।
उसी दौरान रोहताश ने शोभना को पापी मंडली जॉयन करने का ऑफर भी दिया, जिसके बारे में उसने सोचकर बताने के लिए कह दिया।
रात दस बजे के करीब शोभना से विदा लेकर सातों पापी दिल्ली के लिए रवाना हुए, ये अलग बात थी कि घर जाने की बजाये चंद्रशेखकर महाराज की हवेली पहुंच गये थे।
लगातार बजते हॉर्न की वजह से आखिरकार हॉल का दरवाजा खुलता दिखाई दिया, मगर उतना ही खुला जितने से बाहर झांका जा सके। उसका एहसास भी उन लोगों को इसलिए हो गया क्योंकि भीतर से रोशनी की एक लकीर बाहर चबूतरे तक खिंचती चली गयी।
“कौन है?” एक मर्दाना किंतु संदेह से भरा स्वर उन लोगों के कानों तक पहुंचा।
“पुलिस - विराट बोला - सब लोग अपने अपने हाथ ऊपर कर के बाहर निकल आओ।”
दरवाजा बंद हो गया।
“अब क्या करें सर?” जोशी ने पूछा।
“वेट करो, मुझे लगता है दरवाजे तक पहुंचा शख्स अपने बाकी साथियों से सलाह मशविरा करने गया है।”
“आपकी कल्पना शक्ति गजब की है सर।”
“थैंक यू।”
जैसा कि विराट ने संभावना जताई थी, मिनट भर बाद दरवाजा फिर से खुलता दिखाई दिया, इस बार उसके दो पल्लों में से एक पूरा का पूरा खोल दिया गया। पीछे एक से ज्यादा लोगों के खड़े होने का एहसास हुआ अलबत्ता सूरत किसी की नहीं दिखाई दे रही थी।
“बाहर आ जाओ सब लोग।” विराट गरज कर बोला।
“अभी नहीं, पहले फाटक के करीब आकर अपनी पहचान सुनिश्चत कीजिए - कोई जोर से बोला - और गलत हरकत तो बिल्कुल भी नहीं करनी है वरना मैं गोली चला दूंगा।”
“सूरज सिंह?” विराट ने आवाज पहचान कर पूछा।
अपना नाम सुनकर सैंडी थोड़ा सकपका सा गया।
“आप मुझे जानते हैं?”
“तुम भी जानते हो, ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे को याद करो, जहां तुम लोग बड़ी फैंसी बातें कर के हमें मुंह चिढ़ाकर भाग खड़े हुए थे, याद आया कुछ?”
“इंस्पेक्टर विराट राणा?” वह हकबकाया सा बोला।
“एकदम सही पहचाना।”
“बदला लेने आये हैं?” सैंडी हड़बड़ाया हुआ बोला।
“बदला वह भी तुम बच्चों से, ऐसा कुछ करना होता तो क्या उस रात तुम लोगों को भाग निकलने दिया होता?”
“पहुंच कैसे गये यहां?”
“वैसे ही जैसे कि पुलिस अक्सर पहुंच जाया करती है, अब या तो तुम लोग हमें अंदर आने दो, या फिर खुद बाहर निकलो ताकि मैं अपना काम खत्म कर सकूं।”
“कैसा काम?”
“निकलो तो सही फिर बताता हूं।”
“ठीक है मैं दरवाजा खोलने आ रहा हूं।” कहकर सैंडी चबूतरे से नीचे उतरा, फिर फाटक के पास पहुंचकर उसपर लगा ताला खोल दिया।
तब तक जोशी और महेश की गंस सैंडी की तरफ तन चुकी थी। मगर लड़के को उसकी जरा भी परवाह नहीं हुई। ताला खोलकर उसने दरवाजे के एक पल्ले को अपनी तरफ खींचा फिर बड़े ही साधारण ढंग से बोला, “प्लीज कम।”
“अपनी गंस वापिस होलस्टर में रख लो ऑफिसर्स - विराट अपने पीछे देखता हुआ बोला - यहां उसकी कोई जरूरत नहीं पड़ने वाली - कहकर उसने सैंडी से पूछा - सही कह रहा हूं न मैं?”
“यस सर।”
“गन तो इसके पास भी है।” जोशी बोला।
“अब नहीं है।” कहकर सैंडी ने अपनी रिवाल्वर विराट को सौंप दी।
पांचों पुलिसवाले अंदर पहुंचे तो तीन लड़कों को दरवाजे के पास खड़ा पाया जबकि उतनी ही लड़कियां हॉल के बीचों बीच फर्श पर बिछे मैट्रेस पर बैठी हुई थीं।
उससे थोड़ा अलग हटकर डांसिंग प्लेटफॉर्म रखा हुआ था, जिसमें रंग बिरंगी लाइट्स तो उस वक्त भी जल रही थीं, मगर म्यूजिक बंद था।
“आइये बैठिये इंस्पेक्टर साहब।” सैंडी ने मैट्रेस की तरफ इशारा कर के कहा।
“मैं ऐसे ही ठीक हूं।”
“यहां कोई कुर्सी नहीं है सर, खड़े खड़े थक जायेंगे।”
विराट ने उस बात पर विचार किया फिर मैट्रेस के एक कोने पर दोनों हाथ थोड़ा पीछे की तरफ टिकाते हुए टांगे फैलाकर बैठ गया।
“कॉफी लेंगे?”
“गरम है तो जरूर लूंगा।”
नैना ने तत्काल एक थर्मस से निकालकर गरमा गरम कॉफी उसे थमा दी। फिर बाकियों के लिए कप भरने ही लगी थी कि विराट जल्दी से बोल पड़ा, “ये लोग कॉफी नहीं पीते।”
“सच में?” उसने हैरानी से चारों पर नजर डाली।
“जी मैडम, आज ही छोड़ी है - जोशी मुस्कराता हुआ बोला - क्या करें बहुत महंगी जो पड़ती थी, इसलिए आगे से चाय पीकर ही गुजारा कर लेंगे।”
“अभी कौन सा पैसा देना है आप लोगों को?”
“आदत छोड़नी है मैडम तो उसमें खरीदकर या मुफ्त में पीने जैसा कुछ भी नहीं होता। फिर असली लत तो फ्री में हासिल चीजों से ही लगती है।”
“ऐज यू विश गाईज।” कहते हुए उसने कंधे उचका दिये।
“कहीं बाहर से यहां लौटे दिखते हो, कहां गये थे?” विराट ने किसी को निर्दिष्ट किये बिना सवाल किया।
“हरिद्वार।”
“गंगा स्नान के लिए?”
“नहीं आचार्य परमानंद का प्रवचन सुनने।”
“ये नाम पहले तो कभी नहीं सुना।”
“वो तो आपने हमारा भी नहीं सुना होगा - वाणी बोली - जबकि साक्षात मौजूद हैं इस वक्त आपके सामने।”
“हरिद्वार से लौटे तो यहां क्यों चले आये? - उसकी बात को नजरअंदाज करता हुआ विराट बोला - घर क्यों नहीं गये, या गिरफ्तार हो जाने का खतरा था?”
“गिरफ्तार होने का खतरा! - कहकर ऐना ने बड़ी हैरानी से सैंडी की तरफ देखा - इंस्पेक्टर साहब क्या कह रहे हैं बेबी, कहीं तुमने किसी का कत्ल तो नहीं कर दिया?”
“मैं तुम सबकी बात कर रहा हूं।”
“नो वे - वाणी फिर से बोल पड़ी - बाकी के लोग भले ही अरेस्ट हो जायें, मैं नहीं होने वाली।”
“क्यों?”
“सुना है जेल में मच्छर बहुत होते हैं।”
सुनकर विराट बड़ी मुश्किल से खुद को मुस्कराने से रोक पाया।
“अच्छा ये बताओ कि मधु कहां है?”
“कहां है ये तो हम नहीं जानते इंस्पेक्टर साहब - सैंडी बोला - लेकिन लगता यही है कि उसकी आत्मा परमात्मा में विलीन हो चुकी है।”
“साफ साफ क्यों नहीं कहते कि मर चुकी है?”
“मरना एक गलत शब्द है इंस्पेक्टर - रोहताश बोला - क्योंकि मौत जैसी कोई चीज इस दुनिया में नहीं होती। लगता है आपने गीता नहीं पढ़ी, उसमें लिखा है कि जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों का त्याग कर नये वस्त्र धारण कर लेता है उसी प्रकार आत्मा भी वस्त्र रूपी शरीर को त्याग कर नये शरीर का आवरण धारण कर लेती है।”
“जरूर कर लेती होगी बच्चे, लेकिन कैसा लगेगा अगर कोई जबरदस्ती तुम्हारे कपड़े उतार फेंके, वह भी तब जबकि अभी पुराने भी न हुए हों?”
“जरा भी बुरा नहीं लगेगा सर, क्योंकि हम पापी पहले ही ऐसी भावनाओं से ऊपर उठ चुके हैं। हमारे लिए दुनिया में ऐसा कुछ नहीं है जिसका त्याग न कर सकें। रही बात कपड़ों की तो इंसान जब संसार में कदम रखता है तो वह नंगा ही होता है, ना कि कोई फैंसी सी ड्रेस पहनकर मां के पेट से बाहर निकलता है। इस तरह से देखें तो क्या फर्क पड़ता है अगर कोई हमारे कपड़े जबरन उतार ले जाये।”
“देख बेटा, तेरी ये फैंसी बातें मेरी समझ से बाहर हैं, इसलिए साफ साफ बता दे कि मधु कोठारी कहां है?”
“हम नहीं जानते।” सब एक सुर में बोल पड़े।
“अच्छी बात है, चलो यही बता दो कि शनिवार की रात को मधु कोठारी इस हवेली में तुम लोगों के साथ थी या नहीं? झूठ बोलने का कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि तुम सबके मोबाईल की लोकेशन हम पहले ही हासिल कर चुके हैं।”
“खामख्वाह मेहनत की इंस्पेक्टर, हम भला इतनी सी बात पर झूठ क्यों बोलने लगे? ऑफ कोर्स हनी उस रात हमारे साथ ही थी।”
“हनी?”
“मधु को हम इसी नाम से बुलाते थे। जैसे कि वाणी को रोहताश मिस वॉयस कहकर बुलाता है, मुझे सूरज की बजाये सैंडी कहते हैं।”
“कत्ल किसने किया तुम्हारी हनी का?”
“इसकी हनी नहीं इंस्पेक्टर - ऐना खींझकर बोली - इसकी हनी तो मैं हूं, जो कि तुम्हारे सामने एकदम सही सलामत बैठी है। मधु तो रोहताश की हनी थी।”
“ठीक है रोहताश की ही सही। बताओ किसने मारा उसे, या तुम सब ने मिलकर जान ले ली थी उसकी?”
“हनी का कत्ल हो गया?” अरसद ने पूछा।
“देख बेटा मेरे धैर्य की परीक्षा तो ले मत तू।”
“ओह नो, नॉट ऐट ऑल इंस्पेक्टर, मैं वैसा कुछ नहीं कर रहा।”
“झूठ बोलकर भी कुछ भला नहीं होगा, इसलिए साफ साफ बता दो कि उसके साथ क्या किया था तुम लोगों ने?”
“हमने किया? - वाणी हैरानी से बोली - आपको लगता है हमने उसे गायब कर दिया था?”
“हां यही लगता है।”
“गलत लगता है।”
“अगर सब किया धरा तुम लोगों का नहीं था, तो पुलिस को खबर क्यों नहीं की, वापिस घर क्यों नहीं लौटे, हरिद्वार क्यों चले गये, और गये तो किसी को इंफॉर्म कर के क्यों नहीं गये? ऊपर से तुम सबका मोबाईल भी ऑफ है, बोलो इनमें से किसी बात का जवाब है तुम्हारे पास?”
“हां है।” सैंडी बोला।
“क्या?”
“हमारी मर्जी।”
जवाब में विराट ने इतनी जोर का थप्पड़ उसके गाल पर मारा कि वह बैठे बैठे ऐना के ऊपर जा गिरा।
“ओह बेबी - वह सैंडी का गाल सहलाती हुई बोली - ज्यादा तो नहीं लगी न तुम्हें?”
“नहीं, तू बस ऐसे ही सहलाती रह।” कहता हुआ सैंडी उसकी गोद में पसर गया।
उसकी उस हरकत पर विराट के साथ-साथ बाकी के पुलिसवाले भी तिलमिलाकर रह गये। मगर कर कुछ नहीं पाये क्योंकि उन्हें अपने अफसर का मिजाज समझ में नहीं आ रहा था।
“तुम लोग अपनी बाकी की रात हवालात में गुजारना चाहते हो?” विराट ने बड़े ही शांत लहजे में पूछा।
“हवालात? - नैना ने किलकारी सी भरी - वॉव मजा आ जायेगा, हमने आज तक कभी किसी लॉकअप में पार्टी नहीं की है, है न जयदीप?”
“ऑफ कोर्स नहीं की है बेबी, मगर लॉकअप कोई पार्टी करने की जगह नहीं होती, वहां पुलिस मुजरिमों को बंद कर के उनकी पिटाई करती है।”
“नो प्रॉब्लम - वाणी बोली - डांस तो मैं मार खाते खाते भी कर सकती हूं। बहुत पहले एक फिल्म में देखा था कि विलेन हिरोईन पर कोड़े बरसा रहा होता है और वह नाचती चली जाती है।”
“कौन सी फिल्म थी?” सैंडी ने उठते हुए पूछा।
“नाम याद नहीं आ रहा।”
“गूगल कर के देख।”
“ओके, क्या टाईप करूं?”
“वह तुम लोग बाद में करना।” विराट उठता हुआ बोला।
“आप जा रहे हैं इंस्पेक्टर?”
“हां, मगर तुम सातों को साथ लेकर। मैंने सोचा था कि सच्चाई बता दोगे तो हवालात में रात काली होने से बच जायेगी। मगर तुम लोगों ने तो जैसे जुबान न खोलने की कसम खा रखी है, जो कि हवालात में यकीनन खुलकर रहेगी। किसी को चलने से ऐतराज हो तो साफ बोलो।”
“ऐतराज होगा तो उसे यहीं छोड़ देंगे?”
“नहीं उठाकर ले जायेंगे।”
“ओह फिर तो नो ऑब्जेक्शन बोलना ही बनता है, वरना आप लोगों को पता लग जायेगा कि मैं चालीस की नहीं पचास की हूं, जबकि अभी तक सबसे अपना वेट छिपाकर रखा हुआ है - कहती हुई ऐना उठ खड़ी हुई - वैसे भी हम पापियों के लिए जैसे अपना घर, वैसे ही ये हवेली और उम्मीद है लॉकअप भी कुछ वैसा ही फील करायेगा।”
“चल रहे हो तो खुद देख लेना।”
सब उठकर खड़े हो गये।
विराट उनकी दिलेरी पर कसमसा कर रह गया, हालांकि उनमें से किसी के कातिल निकल आने की उम्मीद उसे कम ही दिखाई दे रही थी, मगर इतना यकीन था कि मधु कोठारी की मौत के बारे में कुछ ना कुछ तो यकीनन जानते हैं। इसीलिए उनकी कम उम्र को देखते हुए वहीं पूछताछ कर लेना बेहतर समझा था, ताकि निर्दोष जान पड़ते तो पकड़ ले जाने की जरूरत नहीं पड़ती।
मगर नहीं, वो सब तो जैसे लॉकअप में बंद होने को मरे जा रहे थे, ऐसे में उनके साथ रियायत बरतना ठीक नहीं होता, वरना उस बात को वे लोग सहज ही पुलिस की कमजोरी समझ लेते।
घंटा भर बाद उन सातों को लेकर जब पुलिस टीम एसीबी हैडक्वार्टर पहुंची तो सब ने एक साथ वहां हुड़दंग मचाना शुरू कर दिया। कोई जोर जोर से गाना गाने लगा, तो कोई ठुमके लगाकर नाचने लगा। असल बात तो ये थी कि उस वक्त सबके सब शराब और स्मैक के दोहरे नशे में थे। इसलिए उन्हें एहसास ही नहीं हो रहा था कि क्या कर रहे थे और कहां कर रहे थे।
सबको एक साथ लॉकअप में डाल दिया गया।
“आप इजाजत दें तो कम से कम चारों लड़कों की थोड़ी मरम्मत कर दी जाये सर - जोशी बोला - फिर देखियेगा कैसे सब एक ही झटके में शांत हो जाते हैं।”
“गाना ही तो गा रहे हैं, गा लेने दो। थक हारकर खुद शांत हो जायेंगे।”
“एक बात पूछूं सर?”
“क्या?”
“बुरा तो नहीं मानेंगे?”
“नहीं बेखौफ बोलो।”
“इनमें से कोई एक या सब के सब आपके वाकिफकार तो नहीं हैं?”
“ऐसा क्यों लगा तुम्हें?”
“इसलिए क्योंकि अपराधियों के साथ इतनी मोहब्बत से पेश आते आपको पहले कभी नहीं देखा। ऐसा ही आपने उस रात भी किया था, जब ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे पर ये लोग हमें जुबान चिढ़ाते हुए भाग निकले थे।”
“नहीं, इनके साथ मेरी कोई रिश्तेदारी नहीं है। लिहाज तो मैं इनकी कम उम्र का कर रहा हूं, और इस बात का भी कि सातों में से एक भी क्रिमिनल नहीं जान पड़ता। कहने का मतलब है कि ये लोग बद्तमीज और बिगड़े हुए चाहे जितने भी हों, हत्यारे नहीं हो सकते।”
“आपकी महिमा अपरम्पार है सर - जोशी हंसता हुआ बोला - वैसे जब ये लोग चैन लेने ही नहीं दे रहे, तो क्यों न इंटेरोगेट अभी कर लिया जाये?”
“सुबह करेंगे यार, अब घर चलते हैं।”
“आपकी तरह यहां का स्टॉफ उनका लिहाज नहीं करने वाला सर, ऐसे ही चिल्लाते रहे तो कोई सिपाही ही धुनकर रख देगा सबको। एक बार पहले भी हो चुका है।”
“क्या हो चुका है?”
“आपकी पोस्टिंग से छह सात महीने पहले की बात है। ऐसे ही एक अमीरजादा गिरफ्तार कर के लाया गया था, जो कि नशे में टुन्न था और पूरे स्टॉफ की मां बहन एक किये दे रहा था। बहुत लोगों ने उसे चुप कराने की कोशिश की मगर नहीं हुआ। तब एक सिपाही चुपके से लॉकअप खोलकर भीतर दाखिल हुआ और लड़के का सिर पकड़कर पूरी ताकत से दीवार पर दे मारा। उसके बाद दे लात दे घूंसे। तब तक पीटता रहा जब तक कि खुद बेदम नहीं हो गया। लड़के के सिर में आठ टांके आये थे, छह महीने कोमा में भी पड़ा रहा था। जबकि सिपाही आज भी जेल में अपने किये की सजा काट रहा है। कहने का मतलब ये है सर कि हर किसी के बर्दाश्त की एक हद मुकर्रर होती है, जिसके बाद वह आगा पीछा भूल जाता है।”
“हमारी नौकरी में सबसे ज्यादा जरूरत धैर्य की ही होती है जोशी साहब। अब तुमने मन में खटका डाल ही दिया है पहले जरा ड्यूटी अफसर के पास चलो, उसके बाद घर के लिए प्रस्थान करेंगे।”
दोनों ड्यूटी रूम में पहुंचे तो वहां एक हवलदार और चार सिपाहियों को बैठा पाया, जो उनपर निगाह पड़ते ही उठकर खड़े हो गये।
“कोई बात हो गयी जनाब?” ड्यूटी अफसर ने पूछा।
“अभी नहीं हुई है - विराट बोला - आगे भी नहीं होनी चाहिए।”
“हम समझे नहीं जनाब।”
“लॉकअप नंबर 2 में सात बच्चे बंद हैं जो कि थोड़ा उत्पात मचा रहे हैं।”
“उसमें क्या प्रॉब्लम है सर जी, अभी ठीक किये देते हैं। दोबारा चूं भी कर जायें कहियेगा - कहकर हवलदार ने वहां खड़े सिपाहियों की तरफ देखा - मदनपाल तू जा, और ऐसा सबक सिखा सालों को कि...”
“शटअप।”
“सॉरी जनाब।”
“अभी यहां जितने में भी लोग ड्यूटी पर हैं, एक एक को चेतावनी दे दो कि अगर उनमें से किसी का नाखून भी छुआ तो वैसा करने वाले का बैज और बैल्ट मैं अपने हाथों से उतारूंगा।”
कहकर वह मुड़ा और ड्यूटी रूम से बाहर निकल गया।
“ये विराट साहब को क्या हो गया जनाब? - हवलदार ने जोशी से पूछा - इतने भड़क क्यों रहे हैं?”
“चल पूछ के आते हैं।”
“मुझे तो माफ ही कर दो जी।” वह हड़बड़ाकर बोला।
जवाब में हंसता हुआ सुलभ जोशी वहां से बाहर निकल गया।
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