28 नवम्बर-गुरुवार

चौथे दिन उसकी उस रुटीन में तब्दीली आयी।
उस शाम को वसंत कुंज में हाइडपार्क नामक एक नाइट क्लब में हाजिरी भर रहा था लेकिन उस रोज उसके साथ दोस्तों का हुजूम नहीं था, एक नौजवान लड़की थी। लड़की निहायत ख़ूबसूरत थी और रखरखाव में पूरे जलाल पर थी। चेहरे का मेकअप और हेयर स्टाइल ऐसा था जैसे सीधे ब्यूटी पार्लर से वहाँ पहुँची हो। वो लाल रंग की कालर वाली खुले गले की शर्ट के साथ सफेद जींस-जैकेट पहने थी। उसके मुकाबले में अमित गोयल भी अपने लिहाज से सजा-धजा ही था, वो ‘आई लव अमेरिका’ छपी काली टी-शर्ट और डेनिम की जींस-जैकेट पहने था।
उसके देखते-देखते दोनों भीतर चले गये।
थोड़ी देर बाद उसने भीतर जाने की कोशिश की तो वर्दीधारी, फौजियों जैसे कद्दावर, हट्टे कट्टे दरबान ने सख़्ती से उसे रोक दिया।
“क्या हुआ?” — विमल हैरानी से बोला।
“साहब, मेल गैस्ट की अकेले ऐन्ट्री मना है।” — दरबान बोला — “साथ में फीमेल कम्पैनियन होना जरूरी है।”
“अच्छा! ये रूल नये, अनजाने गैस्ट्स के लिये है या सबके लिये है?”
“सबके लिये है।”
“बड़ा सख़्त रूल है।”
“रात के वक्त इधर की ऐसी सब जगहों पर ऐसा ही है।”
“ओह!”
विचारपूर्ण मुद्रा बनाये विमल मेन डोर से परे हटा।
वैसा विघ्न आने की उसे कोई अपेक्षा नहीं थी।
पहले तीन दिन छोकरा दोस्तों के साथ जहाँ-जहाँ गया था, वहाँ ऐसी कोई पाबन्दी पेश नहीं आयी थी।
मेन डोर से थोड़ा हट कर चार-पाँच नौजवान लड़कियां खड़ी आपस में बतिया रही थीं। उसमें से एक ने उसकी तरफ देखा, आई कान्टैक्ट हुआ तो मुस्कुराती हुई बोली — “नो प्रॉब्लम।”
“यू टॉकिंग टु मी?” — विमल बोला।
लड़की ग्रुप से हटकर उसके करीब आ खड़ी हुई।
“यस!” — वो बोली।
“यू सैड नो प्रॉब्लम!”
“यस!”
“अबाउट वॉट?”
“अबाउट गैटिंग इन।” — उसने अँगूठे से नाइट क्लब के बन्द मेन डोर की तरफ इशारा किया।
“अच्छा!” — विमल की भवें उठीं।
“हाँ।”
“कैसे?”
“आई विल गिव यू कम्पनी।”
“क्या बोला?”
“कम्पैनियन बिना भीतर जाना मना है न! मैं तुम्हारी कम्पैनियन!”
“ओह! थैंक्यू।”
“नहीं चलेगा।”
“क्या मतलब?”
“ख़ाली थैंक्यू नहीं चलेगा। दे से पेमेंट कैन बी इन कैश ऑर इन काइन्ड। यू आर सजेस्टिंग पेमेंट इन काइन्ड। अभी समझे?”
“समझा। कितना?”
लड़की ने उसे पंजा दिखाया।
“माई डियर, आई डोंट नीड ए ले।”
“यू आर ड्रीमिंग। फॉर फाइव थाउ, यू वोंट ईवन गैट ए हैण्ड जॉब।”
दाता!
“पाँच सिर्फ क्लब में दाखिले के?” — वो बोला।
“हाँ।”
“ज्यादा हैं।”
“तो?”
“दो।”
“बनिया है? परचून की दुकान है?”
विमल ख़ामोश रहा।
“चार।” — वो बोली।
“तीन। हाँ बोल नहीं तो जाके बैठता हूँ।”
“कहाँ?”
“परचून की दुकान पर।”
वो हँसी, फिर बोली — “डोंट टेक इट टु हार्ट, मैन। ओके।”
विमल ने उसे तीन हजार रुपये दिये।
“थैंक्यू!” — वो बोली।
उसने अपनी जींस की पॉकेट में नोट खोंसे, बड़ी आत्मीयता से उसकी बाँह में बाँह पिरोई और यूँ गेट की तरफ बढ़ी जैसे वो विमल के साथ न हो, विमल उसके साथ हो।
दरबान ने सादर दरवाजा खोला।
जरूर वो उस रैकेट से वाकफ़ि था।
बाकी लड़कियाँ भी जरूर बाहर इसीलिये मौजूद थीं कि किसी को कम्पैनियन की जरूरत होगी जो कि फीस भर कर उपलब्ध थी।
वो भीतर पहुँचे।
विमल की निगाह पैन होती रौशनियों से जगमगाते और म्यूजिक से गूँजते हाल में घूमी तो अमित गोयल और उसकी सखी उसे बैंड स्टैण्ड के करीब की एक टेबल पर बैठे दिखाई दिये। दोनों ड्रिंक्स एनजॉय कर रहे थे।
काले कोट वाला एक स्टीवार्ड उनके करीब पहुँचा।
“ए टेबल, सर?” — वो अदब से बोला।
“यस” — विमल बोला — “प्लीज। नियर बैंड स्टैण्ड इफ पॉसिबल।”
स्टीवार्ड ने पीछे निगाह दौड़ाई। जहाँ वो दोनों बैठे थे, उनके करीब ही एक टेबल खाली थी।
“आईये।” — स्टीवार्ड बोला।
उसने दोनोें को उस टेबल पर पहुँचाया। फिर वेटर को इशारा किया।
“आई विल हैव ए लार्ज वोदका विद लाइम।” — लड़की उत्साह से बोली।
विमल ने घूर कर उसे देखा।
वेटर अपने स्क्रैच पैड पर ऑर्डर नोट करने लगा।
“लार्ज ग्लैनफिडिक विद वॉटर।” — विमल बोला।
वेटर चला गया।
“घूर क्यों रहे थे?” — पीछे लड़की बोली।
विमल ने जवाब दिया।
“तुम पागल हो, नादान हो, नौसिखिये हो। मैंने तुम्हें मजाक में बनिया कहा तो क्या सच में ही खुद को बनिया साबित करके दिखाओगे?”
विमल का सिर मशीनी अन्दाज से इंकार में हिला।
“तुम्हारी सूरत बता रही है कि तुम नेक, भले, इज्जतदार, ख़ानदानी आदमी हो, यहाँ ऐश की तलब में आने वाले बिगड़ैल छोकरे नहीं हो। इसीलिये मैंने खुद तुम्हें अप्रोच किया।”
“आई एम ग्रेटफुल।”
“मेरा एक वोदका ड्रिंक तुम्हें भारी पड़ता है तो . . . तो . . . आई विल पे फॉर माई ड्रिंक।”
“नो! नैवर!”
“भीतर आ जाने के बाद कम्पैनियन का रोल ख़त्म हो जाता है। तुम चाहो तो मैं अभी उठ के यहाँ से जा सकती हूँ।”
“नहीं।”
“तुम्हें कोई नहीं टोकेगा। कम्पैनियन के बारे में कोई सवाल नहीं करेगा।”
“फिर भी नहीं। प्लीज स्टे।”
“श्योर?”
“यस। प्लीज।”
“माईंड इट, आई मे ऑर्डर ए रिपीट।”
“आइल डू दैट फॉर यू। आइल इवन रिपीट दि रिपीटिड रिपीट।”
वो हँसी।
“ओके!” — वो बोली।
“आई एम सॉरी फॉर माई कन्डक्ट।”
“यू नीड नाट बी।”
“ऐसी जगहों के तौर-तरीकों की मुझे सच में कोई वाकफियत नहीं।”
“अब होगी।”
तभी ड्रिंक्स के साथ वेटर वहाँ पहुँचा।
दोनों ने चियर्स बोला।
“नाम क्या है तुम्हारा?” — विमल बोला।
उसकी भवें उठीं।
“जानने की कोई जिद नहीं है। पेड कम्पैनियन का नाम जानना ऐसी जगहों के तौर तरीकों के खिलाफ है तो नहीं पूछता।”
वो मुस्कुराई, फिर बोली — “प्रियंका।”
“मैं . . . विमल।”
“हल्लो, हैण्डसम!”
“आई ऑलरेडी डिड।”
“डिड वॉट?”
“हैन्डिड यू दि सम। थ्री थाउ।”
वो जोर से हँसी।
“पसन्द आये तुम मुझे।” — फिर बोली।
कई क्षण ख़ामोशी में गुजरे।
“एक बात बोलूँ?” — एकाएक वो बोली।
“बोलो।”
“तुम्हारी तवज्जो कहीं और है।”
“क्या बोला?”
“तुम फिजीकली मेरे साथ हो लेकिन तुम्हारा ध्यान कहीं और ही है।”
“और कहाँ?”
“बगल की टेबल पर। जहाँ वो खड़े कान और पकौड़े जैसी नाक वाला लड़का स्वाति के साथ बैठा है।”
“तुम उस लड़की को जानती हो?”
“सखी तो नहीं है पर जानती हूँ।”
“कैसे?”
“यहाँ की रेगुलर है। पीछे सब इसे बार फ्लाई कहते हैं। हैसियत वाले नौजवानों की यारी की ताक में रहती है।”
“ठीक।”
“क्या ठीक।”
“ऐसी ही कम्पनी में वो है इस वक्त।”
“तुम्हें कैसे मालूम?”
“मेरा मतलब है ऐसा जान पड़ता है।”
“ओह! जान पड़ता है।”
तभी बैंड डांस की धुन बजाने लगा।
कई जोड़े टेबल्स छोड़कर बैंड स्टैण्ड के सामने बने डांस फ्लोर पर पहुँच गये।
उनमें अमित गोयल और उसकी उस शाम की डेट भी थी।
“मुझे डांस नहीं आता।” — विमल बोला — “लेकिन मैं करना चाहता हूँ।”
“क्यों?”
“यूं कम्पैनियन को बाँहों में भरने का मौका मिलता है।”
“नॉनसेंस। मैं जानती हूँ तुम वैसे मर्द नहीं हो।”
“कैसे जानती हो?”
“बस, जानती हूँ। इन्ट्यूशन है। अन्दर की आवाज है।”
“सही। अब डांस का बोलो। तुम्हें तो औना-पौना आता होगा?”
“पूरा-पूरा आता है। आओ।”
दोनों डांस फ्लोर पर पहुँच गये और म्यूजिक की धुन पर झूमने लगे। यूँ जानबूझकर प्रियंका के साथ विमल अमित गोयल के बहुत करीब सरक आया।
“मैं नशे में कहीं भूल न जाऊँ” — वो अपनी डांस की संगिनी को कदरन ऊँची आवाज में कह रहा था ताकि वो संगीत के शोर में सुनी जा सकती — “कल यहीं मिलना।”
“कब?” — लड़की ने पूछा।
“शाम को, और कब?”
“अरे, शाम को तो हुआ, शाम को कब? कोई वक्त भी तो बोलो।”
“नौ बजे।”
“कहाँ?”
“बार पर।”
“भीतर?”
“डमडम! जब बार भीतर है, तो और कहाँ!”
“भीतर कैसे आओगे? अकेले को तो . . .”
“मुझे कोई नहीं रोकता यहाँ।”
“अच्छा!”
“हाँ। मेरा जुगाड़ है।”
“गुड। ठीक है, नौ बजे।”
“लेट न होना।”
“पाँच मिनट पहले पहुँचूँगी।”
“कोई रोके-टोके तो मेरा नाम लेना। बोलना अमित गोयल के साथ हो।”
“ठीक।”
“डिच न करना। वर्ना बुरी तरह पेश आऊँगा।”
“ख़याल भी नहीं करूँगी।”
“किसी से इतनी जल्दी कभी नहीं भीगता मैं। इसे अपनी ख़ुशकिस्मती समझो कि . . .”
तभी बैंड बजना बन्द हो गया।
डांस करते जोड़ों ने तालियाँ बजाईं और अपनी मेजों पर वापिस लौटे।
विमल ने नये ड्रिंक्स का ऑर्डर किया।
इस बार गोयल और उसकी संगिनी टेबल पर पहले की तरह आमने सामने बैठने की जगह अगल-बगल बैठे और विमल ने कई बार अमित गोयल का हाथ अपनी संगिनी की लाल शर्ट के खुले गिरेबान के भीतर सरकते देखा और संगिनी को उसकी उस हरकत से कोई ऐतराज भी न दिखाई दिया।
ड्रिंक्स का सैकण्ड राउन्ड खत्म हुआ तो तीसरा ड्रिंक विमल ने सिर्फ प्रियंका के लिये मँगवाया।
प्रियंका की भवें उठीं पर उसने जुबानी कोई ऐतराज न किया।
“सुनो।” — एकाएक विमल उसकी तरफ झुककर तनिक राजदाराना लहजे से बोला — “तुम चाहो तो मेरा एक काम कर सकती हो।”
“क्या?” — प्रियंका सशंक भाव से बोली।
“मैं तुम्हारी उस जहमत की बाकायदा फीस भरूँगा।”
“अरे, काम क्या?”
“मैं पकौड़ा नाक लड़के की कम्पैनियन से, जिसका नाम तुमने स्वाति बताया, दो मिनट अकेले में बात करना चाहता हूँ।”
उसके चेहरे पर हैरानी के भाव आये।
“लसूड़े की तरह लड़की से चिपका हुआ है, लगता नहीं क्लोजिंग टाइम तक भी पीछा छोड़ेगा। बीच में ये बड़ी हद उठकर लेडीज टायलेट में जायेगी जहाँ मैं नहीं जा सकता . . .”
“पकौड़ा नाक भी तो कभी-न-कभी टायलेट जायेगा, तब स्वाति टेबल पर अकेली होगी!”
“पर तनहा नहीं होगी। मैं इतने लोगों के बीच नहीं, अकेले में उससे बात करना चाहता हूँ।”
“क्या बात?”
“है कोई बात जिसे तुम नहीं समझोगी।”
“कोई ख़ास बात?”
“यही समझ लो।”
“ख़ास ही होगी! आम बात तो तनहाई के बिना भी की जा सकती है।”
“ठीक।”
“तुम एक ऐसी लड़की से अकेले में कोई ख़ास बात करना चाहते हो जिसे तुम बिल्कुल नहीं जानते, जिसकी आज से पहले तुमने कभी सूरत नहीं देखी, जो ऐसे लड़के की कम्पनी में है जिससे तुम्हारी कोई वाकफियत नहीं!”
“नाओ, डोंट गैट डिफीकल्ट।” — विमल एक क्षण ठिठका, फिर बोला — “प्लीज!”
“आई एम नॉट गैटिंग डिफीकल्ट, आई एम गैटिंग पजल्ड।”
“ड्रॉप दैट आलसो।”
“क्लोजिंग टाइम पर जब ये बाहर निकलेगी . . .”
“मुझे यक़ीन है, तब भी अकेली नहीं होगी। पकौड़ा नाक तब भी उसके साथ होगा क्योंकि उसने आज शाम की उस पर अपनी इनवैस्टमेंट की रिकवरी करनी होगी।”
“वो तो है! और स्वाति को उस रिकवरी से कोई ऐतराज भी नहीं होगा।”
“अब बोलो, क्या कहती हो?”
“सोचने दो।”
“मैं तुम्हारी मदद की कीमत अदा करूँगा।”
“अरे, सोचने दो।”
विमल ख़ामोश हो गया।
आधा घन्टा यूँ ही गुजरा।
फिर स्वाति उठी और मेजों के बीच से होती एक तरफ बढ़ चली।
“आती हूँ।” — प्रियंका बोली।
वो भी उसके पीछे हो ली।
विमल प्रतीक्षा करने लगा।
पाँच मिनट बाद प्रियंका लौटी।
“बिल्कुल रियर में दायीं तरफ” — वो विमल के कान के पास मुँह ले जाकर बोली — असिस्टेंट मैनेजर का आफिस है। बाहर ‘असिस्टेंट मैनेजर’ लिखी नेम प्लेट लगी है। वहाँ पहुँचो।”
“वहाँ पहुँचूँ?” — विमल सकपकाया।
“वहाँ वो तुम्हारा इन्तजार कर रही है। सैट कर के आयी हूँ न!”
“असिस्टेंट मैनेजर . . .”
“नहीं होगा वहाँ। वहाँ अकेली है वो। पाँच मिनट वहाँ कोई नहीं आयेगा। टाइम ख़राब न करो। जाओ।”
विमल फुर्ती से उठा और आगे बढ़ा।
असिस्टेंट मैनेजर का आफिस उसने बड़ी सहूलियत से तलाश कर लिया।
वो अनिश्चित-सी वहाँ एक विजिटर्स चेयर पर बैठी हुई थी।
“वक्त कम है।” — विमल उसके पहलू में दूसरी चेयर पर बैठता बोला — “इसलिये मैं सीधा मतलब की बात पर आता हूँ। तुम अमित गोयल की कम्पनी में हो और इस कम्पनी को कल नौ बजे रिपीट करने वाली हो।”
“तुम्हें कैसे मालूम?” — वो हकबकाई-सी बोली।
“है मालूम किसी तरह से।”
“हो कौन तुम?”
“मैं वो शख़्स हूँ जो दो मिनट तुम से बात करना चाहता है। कर रहा है।”
“क्या बात?”
“जैसा कि फिक्स हुआ है, कल शाम नौ बजे तुमने यहाँ नहीं आना है। अमित गोयल को उसके कहे मुताबिक कल यहाँ बार पर नहीं मिलना है।”
“कौन कहता है?”
“मैं कहता हूँ।”
“क्यों? क्यों कहते हो?”
“बहस न करो। कल यहाँ आने से तुम्हें जबरदस्ती भी रोका जा सकता है। लेकिन मैं ख़ामख़ाह की फौजदारी पसन्द नहीं करता इसलिये दरख़्वास्त कर रहा हूँ, कल यहाँ न आना।
“अरे, क्यों? क्यों न आना? कोई वजह भी तो हो!”
विमल ने असहाय भाव से गर्दन हिलायी।
“बहस ही करोगी।” — फिर बोला — “ठीक है, सुनो क्यों न आना! क्योंकि” — विमल ने अपलक उसे देखा — “इसी पर तुम्हारी जिन्दगी का दारोमदार है।”
“क्या!” — वो हकबकाई।
“जान प्यारी हो” — विमल बर्फ से सर्द लहजे से बोला — “जान से ज्यादा खूबसूरती प्यारी हो तो मेरा कहना मानना।”
“तुम हो कौन?” — वो तमक कर बोली — “होते कौन हो मुझे धमकाने वाले?”
विमल ने जेब से उस्तरा निकाल कर उसे खोला और उसकी धार उसके एक कपोल पर टिकाई।
तत्काल वो भयभीत दिखाई देने लगी।
“मामूली काम है” — विमल बोला — “जो तुमने मेरे कहने पर करना है। कल नौ बजे यहाँ न आना। हाँ बोलो वर्ना . . .”
विमल ने उस्तरे की धार उसके दूसरे कपोल पर शफ़ि्रट की।
“तुम्हारे दाँत ख़ूबसूरत हैं।” — वो धीमे किन्तु हिंसक भाव से बोला — “मोतियों जैसे। मुँह खोलती हो तो मोतियों की तरह ही झिलमिलाते हैं। दोनों गाल कान तक कटे होंगे तो मुँह खोलने की, हँसने की जहमत किये बिना ही दिखाई देंगे। नहीं?”
वो सिर से पाँव तक काँपी।
“अब बोलो, क्या ख़याल है?”
“म-मैने . . . मैंने उसे यूँ धोखा दिया” — वो बड़ी मुश्किल से बोल पायी — “तो . . . तो वो मेरा बुरा हाल करेगा।”
“उससे ज्यादा, जो तुम्हारा अभी हो सकता है?”
उससे जवाब देते न बना।
“वो तुम्हारा कोई बुरा हाल नहीं करेगा। मैं इस बात की गारन्टी करता हूँ . . .”
“तुम हो कौन?”
“. . . कोई बुरा हाल करना तो दूर, कल के बाद वो तुम्हारे पास भी नहीं फटकेगा। ताजिन्दगी कभी तुम्हें अपनी शक्ल नहीं दिखायेगा।”
“तु-तुम्हें क्या मालूम?”
“मुझे ही मालूम। अब जल्दी फैसला करो।”
“रेजर हटाओ।”
“पहले फैसला करो।”
“मैं कल शाम नौ बजे यहाँ नहीं आऊँगी।”
“वो फोन करेगा।”
“कैसे करेगा? उसे मेरा मोबाइल नम्बर नहीं मालूम।”
“आज पहली मुलाकात है?”
“आज जैसी इंटीमेट मुलाक़ात पहली है, वैसे सूरत से मैं उसे पहले से पहचानती थी।”
“कैसे?”
“कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी नाइट स्पॉट पर अक्सर दिख जाता था।”
“हूँ। अब इतनी इन्टीमेसी सैट हो चुकी होने के बाद फोन नम्बर पूछेगा तो जरूर!”
“मैं नहीं बताऊँगी।”
“अभी तुम्हारा उसका बहुत देर का साथ है। वो जिद करेगा।”
“तो गलत नम्बर बताऊँगी।”
“पक्की बात?”
“हाँ।”
“फिर समझो तुम्हारी ख़ूबसूरती बीती बात होने से बच गयी।”
उसने उस्तरा हटाया।
लड़की ने चैन की लम्बी साँस ली।
“अभी यहाँ से उठोगी और सब कुछ जा के उसे बता दोगी।”
“नहीं।”
“ऐसा जोश आये तो याद रखना, मैं क्लोजिंग टाइम तक यहीं हूँ। मुझे मालूम हुए बिना नहीं रहेगा। फिर जो अब होना टल गया है, तब होगा। फिर कटे-फटे चेहरे के साथ बेशक आना कल यहाँ साथी का साथ देने।”
‘मैं . . . मैं कुछ नहीं बोलूँगी।”
“शुक्रिया।”
“तु . . . तुम हो कौन?”
“कल यहाँ आयी तो पता चल जायेगा, न आयी तो दोबारा कभी मेरी सूरत नहीं देखोगी।”
उस्तरा जेब में रखता विमल उठा।
“दिव्या को कैसे जानते हो?” — वो व्यग्र भाव से बोली।
“दिव्या! वो कौन है?”
“ओह! तो तुम्हें उसने कोई और नाम बताया!”
“हाँ। प्रियंका। तुम्हारा नाम तो स्वाति ही है न!”
“हाँ।”
“बाई, स्वाति।”
“कुछ तो बोल के जाओ कौन हो?”
“फैंटम! घोस्ट हू वाक्स।”
विमल उससे पहले वहाँ से बाहर निकल गया।
29 नवम्बर-शुक्रवार
अगले रोज रात नौ बजे विमल, नीलम और अल्तमश ‘हाइड पार्क’ में मौजूद थे। स्वाति वहाँ नहीं पहुँची थी।
अमित गोयल ड्रिंक लिये बार पर बैठा था और बार-बार दरवाजे की तरफ देख रहा था। ज्यों-ज्यों वक्त गुजरता जा रहा था, त्यों-त्यों उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
विमल को ईस्साभाई विगवाला का मुम्बई से भेजा ‘खास सामान’ उसी रोज हासिल हुआ था, वर्ना वो पिछले रोज भी वहाँ छोटे-मोटे मेकअप में पहुँचा होता।
उस वक्त वो भी आधुनिक फैशन को रेखांकित करती जींस-जैकेट और टीशर्ट पहने था। उसके ऊपरले होंठ पर मूँछ थी जो होंठों की कोरों से बाहर तक पहुँचती थी और निचले होंठ और ठोडी के बीच बालों का तिकोन था जो कि ‘सोल पैच’ या ‘जाज डॉट’ कहलाता था। उसकी भवें अब घनी थीं और सिर पर भूरे बालों का विग था, जिसके साथ लम्बी कलमें भी शामिल थीं। जमा, आँखों में बिना नम्बर के नीले कान्टैक्ट लैंस थे और बायीं आँख के नीचे एक काला मस्सा था।
नीलम भी उससे मैच करते मॉड बहुरूप में थी। वो खुले गले की कमीज और मुश्किल से पसलियों के सिरे तक पहुँचने वाली जैकेट और टखनों तक आने वाली ऐसी रंगबिरंगी स्कर्ट पहने थी, जो स्कर्ट कम और घघरी ज्यादा जान पड़ती थी। उसके सिर पर भी बालों का स्टाइलिश विग था और आँखों की पुतलियाँ उसकी भी कॉन्टैक्ट लैंसिज के सदके नीली थीं। उसके गले में कई लडि़यों वाली मनकों की माला थी और कानों में चूड़ी से बस जरा ही छोटे इयरिंग थे। बायीं कलाई में लगभग कोहनी तक मैटल की चूडि़याँ थीं और दोनों हाथों की तीन-तीन उँगलियों में विभिन्न रंगों के पत्थरों से जड़ी अँगूठियाँ थीं। मेकअप से उसकी आँखें जरूरत से ज्यादा काली थीं और होंठ सुर्ख थे।
अल्तमश अपने जनाना बहुरूप में था और कहर ढा रहा था। उस रोज वो दुपट्टे बिना शानदार सलवार सूट और मैचिंग कार्डिगन पहने था और सिर पर पहले से ज्यादा उम्दा, ज्यादा मॉडर्न विग लगाये था। उसका जलवा इतने जलाल पर था कि आसपास की मेजों पर बैठे कई नौजवान अपने कम्पैनियन से नजर चुराकर, रह-रह कर ललचाई आँखों से उसे देखने लगते थे और अल्तमश बाक़ायदा, बड़ी अदा से मुस्करा के उन्हें तरह देता था।
साढ़े नौ बज गये।
बार पर अमित गोयल के हाथ में अब दूसरा जाम था, वो साथ में सिगरेट फूँक रहा था और अँगारों पर लोटता जान पड़ता था। कई बार उसके हाथ में मोबाइल दिखाई दिया था जिसकी वजह से हर बार उसका मूड और बिगड़ता जान पड़ता था।
“अब।” — विमल संजीदगी से बोला।
अल्तमश ने सहमति में सिर हिलाया।
“और देर की तो हो सकता है कोई और लड़की चिपक जाये।”
“मैं अभी गया।” — वो बोला।
“सम्भाल लेगा न!”
“ये भी कोई पूछने की बात है! सारा दिन तो रिहर्सल करता रहा!”
“गुड।”
अल्तमश यूँ लहराती चाल चलता, कृत्रिम स्तनों को जानबूझकर जुम्बिश देता बार की ओर बढ़ा कि देखने वालों का कलेजा मुँह को आने लगा।
वो बार पर पहुँचा, उसने अमित गोयल के बाजू के एक ख़ाली बार स्टूल पर कब्जा किया। जानबूझकर उसने अमित की तरफ निगाह उठाने से परहेज किया।
“वॉट द हैल!” — अल्तमश अपनी महीन आवाज में उतावलापन झलकाता बोला — “बारमैन को बुलाने को क्या बैल बजाने का!”
“ऐसे ही आ जायेगा।” — अमित बोला।
“किधर से आ जायेगा? किधर से ऑटो करके आयेगा?”
“ये लो, आ गया।”
बारमैन ने परली तरफ उसके सामने आकर, सिर नवा कर उसका अभिवादन किया और बोला — “योर प्लेजर, मैम!”
“यू सर्व मिंट जेलप?” — विमल का सिखाया पढ़ाया अल्तमश बोला।
“यस, मैम।”
“सैट मी अप ए मिंट जेलप।”
“राइट अवे, मैम।”
बारमैन उसके लिये मिंट और बोरबन विहस्की की कॉकटेल तैयार करने लगा।
“दि सन ऑफ ए बिच!” — पीछे अल्तमश दाँत पीसता यूँ बुदबुदाया जैसे स्वतः भाषण कर रहा हो।
“कौन?” — अमित सकपकाया-सा बोला — “बारमैन! बिकाज ही इज डिलेईंग योर ड्रिंक?”
“नो, मैन! दि ड्यूड हू स्टुड मी अप।”
“अरे! यू आर आलसो स्टुड अप!”
“वाट डु यू मीन आलसो?”
“इधर भी यही हाल है।”
“क्या! कोई मीटिंग का प्रॉमिस करके डिच किया?”
“हाँ। पता नहीं कहाँ मर गयी साली।”
“तुम्हारा अपना साली के साथ डेट?”
“अरे, नहीं, मैम। गर्लफ्रेंड के साथ।”
“बट साली बोला।”
“गाली दिया। तुम्हारी तरह।”
“मेरी तरह?”
“तुम सन ऑफ ए बिच बोला न!”
“अच्छा वो!”
बारमैन ने ड्रिंक उसके सामने रखा।
अल्तमश ने गिलास थामा और अर्थपूर्ण भाव से अमित की तरफ देखा।
अमित ने काउन्टर पर से अपना जाम उठाया और तनिक हड़बड़ाये लहजे से बोला — “चियर्स!”
“चियर्स!”
“तुम्हारा ड्रिंक मेरी तरफ से।”
गुड! मछली चारा निगल रही थी।
“काहे?” — वो मासूमियत से बोला।
“काहे? दिल्ली की नहीं हो! मुम्बई की जान पड़ती हो!”
“हाँ। कैसे जाना?”
“तुम्हारी भाषा से। तुम्हारे डायलेक्ट से। ‘काहे’ से।”
“ओह! हाउ क्लैवर!”
“कैसे आना हुआ?”
“इधर नैटफ्लिक्स का वास्ते एक वैब फिल्म का शूटिंग है।”
“ओह! एक्ट्रेस हो?”
“फर्स्ट टाइमर।”
“नो प्रॉब्लम! हर कोई शुरू में फर्स्ट टाइमर ही होता है।”
“राइट।”
“मेरा नाम अमित है। अमित गोयल।”
“गोल?”
“गोयल! गोयल!”
“ओह! गोयल! मैं मीशा। हल्लो अमित!”
“हल्लो मीशा।”
“तो तुम्हारा गर्लफ्रेंड नहीं आया?”
“हाँ। जैसे तुम्हारा ब्वायफ्रेंड नहीं आया।”
“यस। दि सन ऑफ ए बिच! आई विल फ़िक्स हिज वैगन।”
“मिलेगा, तब न?”
“हाँ, वो तो है!”
“तब तक क्या करोगी?”
“तुम क्या करोगे?”
“मैं तो कर रहा हूँ।”
“क्या?”
“इतनी ख़ूबसूरत मुम्बई की मेडन के साथ ड्रिंक शेयर कर रहा हूँ।”
“ओह! यू!” — अल्तमश ने खुश होकर दिखाया।
“लेकिन” — एकाएक अमित के स्वर में सन्देह का पुट पैदा हुआ — “तुम तो अकेली नहीं हो!”
“क्या बोला?”
“मैंने तुम्हें उधर टेबल पर उस कपल के साथ बैठे देखा था।”
“यस। वुई वर सपोज्ड टू बी फोरसम, यू नो!”
“फोरसम?”
“दो जोड़े। चार जने।”
“ओह!”
“उसका डेट आया। मेरा डेट ब्लडी रास्कल मेरे को डिच किया।”
“मेरी भी यही कहानी है। लेकिन . . .”
“लेकिन क्या?”
“हम अब चाहें तो अपनी-अपनी कहानी भूल सकते हैं।”
“बोले तो?”
“हम एक दूसरे की डेट हो सकते हैं।”
“ऐसा?”
“तुम लोग फिर फोरसम . . . नो?”
“यस।”
“तो?”
“मेरे को आइडिया पसन्द।”
“गुड! लेकिन तुम्हारे साथियों को भी तो पसन्द आये!”
“आयेगा। आओ।”
“किधर?”
“टेबल पर। अरे, फोरसम होने का या नहीं होने का?”
“ओह! ओह!”
“बाटम्स अप।”
दोनों ने गिलास खाली किये। अमित ने बार का बिल चुकता किया। फिर दोनों बार से रुख़सत हुए। बार से हटते ही ऐसे मामलों में तजुर्बेकार अमित ने अपना हाथ उसकी कमर में डाला, कोई एतराज पेश न हुआ तो सहज स्वाभाविक भाव से ऊपर सरकाया। उस की उँगलियाँ एक उन्नत उरोज के सम्पर्क में आयीं। उसने सशंक भाव से अल्तमश की तरफ देखा तो पाया उसके चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया प्रकट नहीं हुई थी। उसने एक बार स्तन को भींचकर हाथ वापिस खींच लिया, क्योंकि तब तक वो टेबल पर पहुँच गये थे।
“ये अमित है।” — अल्तमश ने परिचय दिया — “नाइस गाई। बार पर मिला। अभी इधर।”
“वैलकम।” — विमल बोला — “मैं विमल। ये मेरी कम्पैनियन नी . . . कोमल।”
चौतरफा ‘हल्लो, हल्लो’ हुई।
फिर चारों इकट्ठे बैठ गये। ड्रिंक्स का नया दौर ऑर्डर किया गया।
वो सिलसिला नीलम के लिये दिक़्कत वाला था, लेकिन दिखावा जरूरी था।
आधा घण्टा हँसी ठिठोली में गुजरा।
उस दौरान सरकता-सरकता अमित अल्तमश के इतने करीब सरक आया कि बस, दबोचने की ही कसर बाकी बची।
फिर उसका हाथ उसकी बगल में सरका, वक्ष पर टिका और वहीं टिका रहा।
“मेरे पास दो हैं।” — अल्तमश उसके कान के पास मुँह ले जाकर फुसफुसाया।
“क्या?” — अमित तनिक सकपकाया।
“जो टटोल रहे हो। अभी सुबह गिने।”
“स्साली।”
“उसके पास भी दो हैं।”
“बहन की दीनी!”
अल्तमश हँसा।
विमल और नीलम ने यूँ जाहिर किया जैसे वो उनकी खुसर-पुसर से बेख़बर थे।
ड्रिंक्स रिपीट हुए। फिर आधा घन्टा और गुजरा।
उस दौरान अमित की हरकतें और बोल्ड होती चली गयीं। उसको बढ़ावा देने के लिये अल्तमश ने कई बार अपना हाथ उसकी जाँघ पर पड़ जाने दिया।
“एक बात बोलूँ?” — इस बार अमित अल्तमश के कान के पास होंठ ले जाकर फुसफुसाया।
विमल और नीलम तब तन्मयता से आपस में बतियाते होने का बहाना कर रहे थे।
“दो बोलो, मैन।” — अल्तमश भी दबे स्वर में बोला।
“तेरे ये . . . कुछ खास ही हैं।”
“क्या बोला, मैन?”
“युअर पेयर इज आउट ऑफ दिस वर्ल्ड, बट . . .”
“वाट बट?”
“यू वोंट माईंड?”
“नो।”
“हार्ड।”
“नो, माई स्वीट, फ़र्म।”
“फ़र्म!”
“लाइक एक रॉक।”
“ओह!”
“बड़े और खड़े। नो सैंगिंग। नो सपोर्ट।”
“ओह!”
“माँगता है?”
अमित की आँखों में वासना की चमक आयी, उसने एक सतर्क निगाह विमल और नीलम की तरफ डाली तो पाया कि वो एक दूसरे में मग्न थे।
अमित ने जवाब देने की जगह उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने साथ भींचा।
अल्तमश ने कोई ऐतराज न किया।
“मेरे को जवाब मिल गया।” — वो कुटिल भाव से अपना निचला होंठ चुभलाता दबे स्वर में बोला।
“क्या?”
“माँगता है।”
“हाँ। पर खाली पेयर नहीं, बाकी भी सब कुछ।”
“यू नॉटी मैन! मेरे को ड्रिंक में घोल के पीना माँगता है साला।”
अमित हँसा।
फाश हँसी।
तब तक उसको काफी नशा हो चुका था, फिर नया ड्रिंक अभी भी उसके सामने था।
विमल हौले से खांसा।
अल्तमश ने उसकी तरफ देखा तो विमल ने उसको गुप्त इशारा किया।
अल्तमश ने सावधानी से सहमति में सिर हिलाया।
“ये टाइम” — फिर बोला — साला मुम्बई याद आता है मेरे को।”
“क्यों?” — अमित बोला।
“उधर होटल अकामोडोशन . . . डैम ईजी। साला आवर्स में भी रूम मिलता है। और कोई चख चख भी नहीं। कोई प्रूफ ऑफ आईडेन्टिटी नहीं, कोई प्रूफ ऑफ रेजीडेंस नहीं। कोई प्रीबुकिंग का लफ़ड़ा नहीं। साला इतना मजा आ रहा था कि मुम्बई में होते तो अभी का अभी इस पार्टी का वेन्यू शिफ्ट करते और इसे ऑल नाइट अफेयर बनाके छोड़ते।”
अमित की आँखों में एक वहशी चमक आयी।
“तुम चाहती हो ऐसा?” — वो बोला।
“अरे, तभी तो बोला? बट . . . इधर साला कुछ नहीं हो सकता।”
“हो तो सकता है!”
“क्या बोला?”
“मैं इन्तजाम कर सकता हूँ।”
“सच में?” — अल्तमश ने नकली उत्साह जाहिर किया।
“हाँ।”
“क्या कर सकता है, मैन?”
“अगर सबकी एक राय हो तो मैं इस शानदार मीटिंग को ऑल नाइट अफेयर बनाने का इन्तजाम कर सकता हूँ।”
अल्तमश ने विमल की तरफ देखा।
विमल ने नीलम की तरफ देखा।
नीलम ने लजाने का अभिनय करते हुए हामी भर दी।
विमल का सिर भी सहमति में हिला।
“आई एम गेम।” — अमित को कोहनी मारता अल्तमश बोला — “क्या इन्तजाम कर सकते हो?”
“ईस्ट ऑफ कैलाश में” — अमित बोला — हमारा एक घर है, नोएडा शफ़ि्रट करने से पहले जहाँ कि हम रहते थे। हमारी वो कोठी ख़ाली पड़ी है लेकिन फर्निश्ड है। जब शफ़ि्रट किया था तो वहाँ से हमने कुछ भी नहीं हटाया था, क्योंकि तब ख़याल था कि नोएडा दिल न लगा तो वहीं लौट आयेंगे।”
“तो? लौट आये?”
“नॉनसेंस! अरे, बोला न, कोठी खाली पड़ी है। और . . .”
“और क्या?”
“चाबी मेरे पास है।”
“यू मीन” — अल्तमश संदिग्ध भाव से बोला — “हम वहाँ जा सकते हैं?”
“हाँ।”
“कोई लफड़ा नहीं? कोई लोचा नहीं?”
“हाँ।”
“हुर्रे!” — अल्तमश ने हर्षनाद किया और फिर अमित के अपनी ओर के गाल पर एक चुम्बन अंकित किया।
अमित निहाल हो गया, वो उसके साथ अभिसार के सपने देखने भी लगा।
विमल और नीलम ने भी ख़ुश हो के दिखाया।
“उधर” — अल्तमश ने पूछा — “ड्रिंक्स का इन्तजाम है?”
“है।” — अमित बोला।
“ले के चलो।”
“कैसे चलेंगे? तुम लोगों के पास कार है?”
“नहीं” — किसी से भी बोलने से पहले विमल जल्दी से बोला — “हम तो कैब से आये थे।”
“मेरे पास है। हम सब मेरी कार पर चल सकते हैं। ठीक?”
“बिल्कुल ठीक।”
“मेरी कार यहाँ से दूर खड़ी है, मैं उसे गेट पर ले के आता हूँ, तब तक तुम लोग बाहर आओ।”
“ठीक है।”
वो उठकर चला गया।
“फँस तो गया!” — पीछे अल्तमश बोला।
“न सिर्फ फँस गया, बढि़या फँस गया।” — विमल धीरे से बोला — “हमारा काम आसान कर दिया उसने वर्ना हमें कोई ठीया तलाशना पड़ता।”
“बढि़या।”
विमल ने बिल मंगा कर चुकता किया।
तीनों वहाँ से बाहर निकले।
मेन गेट से थोड़ा परे एक आई-20 खड़ी थी, उसकी ड्राइविंग सीट पर अमित मौजूद था, उसने हॉर्न बजाकर उनका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया।
तीनों कार के करीब पहुँचे। अल्तमश आगे पैसेंजर सीट पर सवार हो गया तो विमल और नीलम पीछे बैठ गये।
अमित ने कार आगे बढ़ा दी।
“रात बाकी” — अल्तमश चहकता हुआ सा गाने लगा — “बात बाकी . . .”
बीस मिनट में वो ईस्ट ऑफ कैलाश पहुँच गये।
अमित ने एक सुनसान, अन्धेरी कोठी के आगे कार रोकी।
चारों बाहर निकले। आउटर गेट को भी ताला लगा हुआ था, जिसे अमित ने खोला। फिर भीतर जाकर मेन डोर का ताला खोला। सब भीतर दाखिल हुए। अमित ने एक स्विच ऑन किया, रोशनी हुई तो उन्होंने पाया कि वो ड्राईंगरूम में थे जहाँ का सारा फर्नीचर सफेद चादरों से ढंका हुआ था। ड्राईंगरूम पार करके अमित ने पिछवाड़े का एक दरवाजा खोला और उन्हें इशारा किया।
तीनों उसके करीब पहुँचे।
आगे एक कवर्ड अहाता-सा था जिसके आजू-बाजू और सामने कई बंद दरवाजे थे।
“वो पीछे बैडरूम्स हैं।” — अमित अर्थपूर्ण स्वर में बोला — “वहाँ की फर्निशिंग ड्राईंगरूम की तरह कवर्ड नहीं है।”
“गुड!” — अल्तमश उत्साह से बोला — “बैडरूम इज ओके। मेरे को देखने का।” — वो एक क्षण ठिठका, फिर बोला — “तुमको भी देखना होगा?”
विमल ने सहमति में सिर हिलाया।
“गुड! दिखाओ, भई, कैसा है तुम्हारा बैडरूम्स!”
अमित आगे बढ़ा, उसने अहाता-सा पार किया और सामने के दो बंद दरवाजों में से बायें पर पहुँचा। उसने दरवाजा खोल कर भीतर की बत्ती जलाई, फिर विमल और नीलम की तरफ इशारा किया।
दोनों ने यूँ सहमति में सिर हिलाये जैसे सब समझ गये हों।
अमित वहाँ से हटा और दायें दरवाजे पर पहुँचा। उसने उसे खोला और भीतर दाखिल हो गया। भीतर बत्ती जली लेकिन वो दरवाजे पर प्रकट न हुआ।
अल्तमश हिचकिचाता हुआ उस तरफ बढ़ा।
वो कमरे में पहुँचा तो उसने पाया कि अमित कहीं से विहस्की की बोतल और दो गिलास बरामद कर भी चुका था।
“पहले चियर्स बोल लें!” — वो बोला।
“जल्दी क्या है? — अल्तमश मादक स्वर में बोला।
अमित की भवें उठीं।
“बैडरूम में खड़े हो, मेरे सामने खड़े हो, मैं तो समझी थी तुम्हें कोई और ही जल्दी होगी!”
“है तो सही!” — वो तत्काल बोला — “लेकिन सोचा शायद तुम्हें उतावलापन पसन्द न हो।”
“पसन्द है। वो मर्द क्या जिसके सामने यौवन का घट हो और वो प्यास बुझाने को उतावला न हो!”
“बहुत पोएटिक बात कही लेकिन पसन्द आयी।”
“अब कबूल करो उतावले हो!”
“किया।”
“मेरे लिये मरे जा रहे हो!”
“बुरी तरह से। शुरू से। मुमकिन होता तो ‘हाइड पार्क’ में ही लिटा लेता।”
“अब तो है मुमकिन!”
“हाँ, अब तो है! और यहाँ आये किसलिये हैं?”
“करैक्ट। बोतल का पीछा छोड़ो।”
उसने गिलास और बोतल एक टेबल पर रख दी।
अल्तमश उसके करीब पहुँचा, उसने बड़े उत्तेजक भाव से मुस्कराते हुए उसकी छाती पर हाथ रखा और उसे तब तक पीछे चलाता रहा जब तक उसकी टाँगे घुटनों के पीछे से बैड से न छूने लगीं। फिर बड़ी अदा से उसने उसे बैड पर धकेल दिया।
“क्या इरादा है?” — अमित वासनालिप्त लहजे से बोला।
“तुम्हारा क्या इरादा है?” — अल्तमश मैच करते लहजे से बोला।
“वही।”
“तो मुँह से बोलो दो टूक, मरे जा रहे हो?”
“मरा जा रहा हूँ।”
“मैं होना?”
“होना।”
“ओके। आई विल अनड्रैस यू।”
“अरे, अनड्रैस युअरसैल्फ़।”
“बाद में। पहले तुम?”
“क्यों?”
“क्योंकि मुम्बई स्टाइल राइड मारने का।”
“मुम्बई स्टाइल क्या?”
“वूमैन ऑन टॉप।”
“वाह!”
“एण्ड इन कण्ट्रोल।”
“वो कैसे?”
“मालूम पड़ेगा। सीधे लेट जाओ। पाँव फैला कर। आँखें बंद कर लाे।”
“लेकिन . . .”
“मैन, यू विल बी इन सेवेंथ हेवन। जस्ट यू वेट।”
“ओके।”
बैड कास्ट आयरन की थी। उसने अमित के दोनों हाथ बैक-रैस्ट की रेलिंग से बाँध दिये।
“ये क्या करती है?” — अमित भड़कने को हुआ।
“अभी पाँव भी ऐसे ही बांधने का। फिर ड्यूरिंग एक्शन सिर्फ मिडल जम्प मारेगा। साला राइड ऐसा एनजॉय करेगा कि तीनों लोक दिखाई दे जायेंगे।”
“ओह! ओह!”
“अभी समझा!”
“यस! यस!”
“वूमैन ऑन टॉप एण्ड इन कन्ट्रोल। ऐनी ऑब्जेक्शन?”
“नो। नो। लेकिन अब वक्त बर्बाद न कर। जल्दी कर जो करना है।”
“अभी।”
उसने उसकी पतलून की बेल्ट खोलकर अलग की, हुक खोले, जिप सरकाई और पतलून टखनों तक नीचे सरका दी।
वो तैयार था।
उसने उसकी कमीज और जैकेट बगलों तक ऊपर चढ़ा दी।
“अब तू भी तो उतार! देखूँ, कैसी बनी हुई है!”
“टटोल के पता नहीं लगा? हाथों से भी और निगाहों से भी!”
“अरे, क्या बक . . . कह रही है? ये बातें बाद में कर लेना।”
अल्तमश ने सीटी बजाई।
दरवाजा खुला, विमल ने भीतर कदम रखा। वो बैड के पायताने आकर खड़ा हो गया। संजीदगी से उसने अपलक अमित की तरफ देखा।
एकाएक अमित को फिजा भारी लगने लगी। रति सुख पाने का उसका मूड चुटकियों में हवा हो गया।
“क-क्या . . . क्या बात है?” — वो फँसे कण्ठ से बोला।
किसी ने जवाब न दिया।
अमित को वातावरण में मौत व्याप्त लगने लगी। हाथ पाँव को झटक कर वो स्वयं को बंधनमुक्त करने की कोशिश करने लगा, लेकिन कामयाब न हो सका।
विमल ने अल्तमश की तरफ देखा।
अल्तमश ने सहमति में सिर हिलाया। उसने अपने फैंसी हैण्डबैग में से बांस का चिमटा, उस्तरा और पोलीथीन की एक थैली बरामद की जिसमें कि नम मिट्टी भरी जान पड़ती थी।
उसने बांस के ऊपरी सिरे आजूबाजू फैलाये और वापिस छोड़े।
“क-क-क्या . . .?”
पलक झपकते अमित के गुप्तांग बांस के चिमटे की तरह खुले हिस्से में मजबूती से फँसे हुए थे।
“अरे, ये क-क्या . . . क्या कर रही है?”
फिर अल्तमश ने उस्तरा खोला और वो बड़े संकेतात्मक ढंग से उसकी धार परखने लगा।
तब एकाएक अमित की समझ में आया कि क्या होने वाला था।
“गॉड! नहीं! नहीं!”
विमल ने उसको गला फाड़ कर चिल्लाने को तैयार पाया तो उसने लपक कर उसका मुँह दबोच लिया।
अल्तमश ने उस्तरा चलाया।
अमित का शरीर कुछ क्षण बन्धनों में तड़पा, फिर शान्त हो गया।
अल्तमश पोलीथीन की थैली से नम मिट्टी निकाल कर उसकी ख़ून- आलूदा जाँघों के बीच थोपने लगा।
“मर तो नहीं जायेगा?” — विमल चिन्तित भाव से बोला।
“आज तक तो कोई नहीं मरा।” — अल्तमश बोला — “बशर्ते कि दहशत में दम न निकल जाये।”
“ख़त्म कर।”
“अभी।”