अलफांसे को तहखाने में गए आज चौथी रात थी।
हैम्ब्रीग को पूरा विश्वास था कि आज रात उसका मास्टर कोहिनूर ले आएगा। योजना के अनुसार तो आज की रात कोहिनूर के साथ उन्हें गार्डनर के ऑफिस में पहुंच जाना चाहिए।
हैम्ब्रीग खुश था, बेहद खुश! होता भी क्यों न?
उसकी अपनी देखरेख में दुनिया के सबसे नायाब हीरे कोहिनूर की चोरी होने जा रही थी—अगर चोरी सफल होती है, जो लगभग सफल हो गई ही मालूम पड़ती है तो वह निश्चय ही दुनिया का सबसे बड़ा चोर बन जाएगा—चोर ही क्यों, दुनिया का सबसे बड़ा या ज्यादा-से-ज्यादा अपने मास्टर से कम धनवान भी तो बन जाएगा वह—कोहिनूर को दुनिया के बाजार में रखकर मास्टर उसकी जो कीमत वसूल करेगा उसके छींटे ही उसे धनवान बना देंगे।
कुछ ऐसे ही सुख-सपनों में खोया हैम्ब्रीग चोरों की तरह अपने बिस्तर से उठा—एक नजर गहरी निद्रा में लीन मेगा पर डाली और फिर पिछली चार रातों की तरह वह आज भी बाहर निकल आया—जब से गार्डनर गया था तब से इमारत के अन्दर रात की डयूटी इन्ही दोनो की थी और नियमानुसार उसके लौटने तक रहनी भी इन्हीं की थी।
आखिर गार्डनर के हुक्म से ही तो ड्यूटी चेंज होनी थी।
विशेष चाबी का इस्तेमाल करके उसने गार्डनर के ऑफिस का दरवाजा खोला, अन्दर कदम नहीं रखा उसने, क्योंकि उस चैम्बर जैसे गोल ऑफिस का फर्श गायब था।
दरवाजे पर खड़ा होकर ही उसने नीचे झांका—अंधेरा था—नंगी आंखों से उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया तो टॉर्च ऑन करके उसने उसकी रोशनी नीचे डाली।
प्रकाश का दायरा सौ फीट नीचे मौजूद इस कमरे के फर्श पर थिरकने लगा, गार्डनर की टेबल, चेयर और दूसरे सामान पर, किन्तु फर्श पर अलफांसे उसे कहीं नजर नहीं आया।
हैम्ब्रीग के दिलो-दिमाग पर निराशा-सी छा गई।
रात के दो बज रहे थे, योजना के मुताबिक अलफांसे को कोहिनूर के साथ फर्श पर पहुंच जाना चाहिए था, फिर क्यो नहीं पहुंचु हैं वो? क्या कहीं कोई गड़बड़ हो गई हैं?"
वहीं खड़ा वह दो घंटे यानि चार बजे तक अलफांसे का इंतजार करता रहा, मगर अलफांसे एक बार उसे नीचे फर्श नजर नहीं आया।
अलफांसे की आज्ञा के मुताबिक अब यहां खड़े रहकर उसका इंतजार करने का समय खत्म हो गया था, अतः इसी चाबी से उसने ऑफिस का दरवाजा बंद कर दिया।
चाबी जेब में डालता हुआ वह वापस जाने के लिए घूमा।
बस, इस क्षण उसे ऐसा लगा जैसे अचानक ही उसके पैरों तले से जमीक खिसक गई हो—हैम्ब्रीग के सारे शरीर में मौत की ठंड़ी लहर बिजली के समान कौंध गई। करीब पंद्रह कदम दूर, गैलरी में खड़ा मेगा उसे खूंखार दृष्टि से घूर रहा था।
"त...तुम?" हैम्ब्रीग की आवाज कांप रही थी।
मेगा का मुंह से गुर्राहट-सी निकली—"यहां क्या कर रहे हो, जॉनसन?"
"म...म..मैं—बस, यूं ही।" हैम्ब्रीग की हथेलियां और तलवे तक पर पसीना उभर आया।
"ऑफिस की चाबी तुम्हारे पास कहां से आई?"
"व...वो...बॉस मुझे दे गए थे।"
"झूठ मत बोलो, जॉनसन।" मेगा दहाड़ उठा—"मैं इस सर्विस में तुमसे पहला हूं, दस साल हो गए हैं मुझे और जानता हूं कि अपने ऑफिस की चाबी बॉस किसी को नहीं देते।"
हैम्ब्रीग की इस वक्त की स्थिति काबिले—बयान से बाहर थी, उसके चेहरे का रंग बिल्कुल सफेद पड़ गया था, जैसे जिस्म में एक बूंद भी खून बाकी न बचा हो-सारा शरीर सुन्न-सा पड़ गया था उसका और ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे उसके पोर—पोर पर हजारो चीटियां रेंग रही हों।
टांगे बुरी तरह कांप रही थीं—कुछ इस तरह कि जैसे ज्यादा देर तक उसका बोझ न संभाल सकेंगी—उसे लग रहा था कि बस अब एक पल बाद ही वह चकराकर गिर पडेगा।
फिर भी मेगा की बात का जवाब दिया उसने—"य...यकीन करो मेगा, बॉस मुझे चाबी दे गए थे।"
"म...मैं यकीन क्यों करूं—यकीन करेंगे के○एस○एस○ के अफसर, मैं उन्हें अभी फोन करता हूं।" कहने के साथ ही वह घूमा और तेजी के साथ गैलरी को पार करने लगा।
हैम्ब्रीग के तिरपन कांप गए।
"न...नहीं।" वह अपनी संपूर्ण शक्ति से उसकी तरफ दौड़ता हुआ चीखा—"र...रुक जाओ, प...प्लीज, रुक जाओ—मेरी बात सुनो।"
मेगा ठिठका। घूमकर दांत पीसता हुआ बोला—"क्यों, डर क्यों गए—तुम्हें तो चाबी बॉस ने दी है?"
"ओह, हां—सुनों मेगा—देखो, जो कुछ मिलेगा, मैं उसमें से आधा हिस्सा तुम्हें दूंगा—पहरेदारी की इस नौकरी में क्या रखा है—ह...हमारे पास बेशुमार दौलत होगी।"
घृणात्मक अंदाज में उसके सफेद चेहरे को घूरता हुआ मेगा गुर्राया—"तो यह है तुम्हारी असलियत—ड़ाके की दौलत से एक ही दिन में अमीर बन जाना चाहते हो?"
"त...तुम समझते क्यों नहीं मेगा, तुम...।"
"मैं ऐसी दौलत और तेरे जैसे कुत्ते के मुंह पर थूकता हूं, कमीने—थू।" गुस्से कांपते हुए मेगा ने सचमुच उसके चेहरे पर थूक दिया—"मैंने देख लिया तो अपने इस काले कारनामे में मुझे भी शामिल कर लेना चाहता है हरामजादे—मैं तुझे फांसी के तख्ते तक पहुंचाकर रहूंगा।" कहने के बाद वह घूमा और फिर तेजी के साथ गैलरी पार करने लगा।
हड़बड़ाया-सा हैम्ब्रीग उसके पीछे लपका। फिर बिना कुछ सोचे-समझे ही पीछे से मेगा पर जम्प लगा दी उसने।
कदाचित् मेगा ने उससे यह आशा नहीं की थी—वैसे भी हैम्ब्रीग हड़बड़ाहट के कारण अजीब अटपटे-से अंदाज में जम्प लगाई थी, अतः एक-दूसरे से गुंथे दोनो ही फर्श पर गिरे।
लुढकते हुए वे ठीक कम्प्यूटर के सामने गिरे थे।
बौखलाहट में ही हैम्ब्रीग के हाथ में मेगा की गर्दन आ गई और फिर फर्श पर पड़े मेगा के सीने पर सवार होकर हैम्ब्रीग दांत भींचे दोनों हाथों से उसकी गर्दन दबाता चला गया
मेगा छटपटाने लगा, गें...गें...की अजीब आवाज निकल रही थी उसके मुंह से।
मेगा ने उसके बंधन से निकलने की भरपूर कोशिश की, मगर नाकाम रहा, जिसे अपने प्राण ही खतरे में नजर आ रहे हो, उसकी गिरफ्त से निकलना आसान नहीं होता—वह खूब तड़पा, छटपटाया, किन्तु गर्दन से हैम्ब्रीग के फौलाद-से हाथों को न हटा सका।
और एक सीमा के बाद वह निश्चल पड़ गया।
बेचारे हैम्ब्रीग को तो इस बात का भी ख्याल नहीं था—उसके निश्चल पड़ने के बावजूद भी वह काफी देर तक गरदन दबाए रहा—जब उसने महसूस किया कि मेगा हिल तक नहीं रहा है तो वह चौंका।
कुछ होश-सा आया और यह महसूस करते ही उसके होश फाख्ता हो गए कि मेगा मर चुका था।
घबराकर न केवल उसने अपने हाथ ही मेगा की गर्दन से हटाए, बल्कि उछलकर खड़ा भी हो गया और फटी-फटी आंखों से कम्प्यूटर के ठीक सामने पड़ी लाश को देखने लगा—उसके हाथ-पैर जूड़ी के मरीज के समान कांप रहे थे।
कानो के आसपास गूंज रहा था सांय-सांय करता सन्नाटा।
किसी अनजानी मदद के लिए घबराकर उसने चारों तरफ देखा तो दृष्टि पुनः मेगा की लाश पर पड़ी—विशेष रूप से उन आंखों पर जो गला दबने के कारण पलकों के किनारो की सीमा तोड़कर उबली-सी पड़ रही थी।
हैम्ब्रीग उन आंखों से डर गया और लड़खड़ाता-सा ऑफिस की तरफ दौड़ा—जेब से चाबी निकालकर उसने जल्दी से दरवाजा खोला, नीचे झांका। जेब से टॉर्च निकाली।
प्रकाश दायरा नीचे, फर्श पर थिरकने लगा, बौखलाहट में वह पागलों की तरह चिल्ला उठा—"म...मास्टर—मास्टर।"
आवाज इस्पात के बने उस कुंए की गोल दीवारों से टकरा-टकराकर प्रतिध्वनित होने लगी, हैम्ब्रीग के जवाब में कुएं की हर दीवार पुकारने लगी—"मास्टर...मास्टर...मास्टर।"
जब वह आवाजें कुएं के गर्भ में विलीन हो गई तो हैम्ब्रीग पुनः चीख पड़ा—"म...मेरी मदद करो मास्टर, मैं खतरे में फंस गया हूं—जल्दी आ जाओ।"
जवाब में उसके वही शब्द टंकी की दीवारों से टकराकर गुडमुड़ हो गए और सारी टंकी में कुछ ऐसी आवाजे गूंजनें लगी जैसे ढेर सारी प्रेतात्माएं मिलकर चीख-चिल्ला रही हों।
¶¶
उस टंकी से मीलों दूर था अलफांसे।
जब से उसने कुदाल का पहला वार जमीन पर किया था, तबसे एक पल के लिए भी वह सोया नहीं था, चौबीस घंटे कुदाल और फावड़े से कठोर शारीरिक श्रम करता रहा था वह।
अतः चमड़े के बैग में अपने लिए वह पांच दिन का खाना और पर्याप्त पानी भी लाया था—प्रत्येक बारह घंटे बाद वह खाना खाता—समय पर लैट्रीन को छोटी-सी सुरंग से निकली मिट्टी के नीचे दबा देता।
बस जिस समय में वह यह आवश्यक काम कर रहा होता था, यही उसके सुस्ताने का समय था, इन कामों से निबटकर वह पुनः उस सुरंग में घुस जाता, जिसे तैयार कर रहा था।
अलफांसे को जानने वाले यह भी जानते हैं कि उसके लिए कम-से-कम दस रात तक जागते रहना कोई मुश्किल काम नहीं है।
मुश्किल काम तो वह था, जो वो कर रहा था।
अस्सी घंटे पहले जहां उसने कुदाल मारी थी, अब वहां एक इतना चौड़ा गड्डा था कि जिसमें पूरा आदमी समा जाए, यह गड्डा पांच फीट गहरा था, इसके बाद सुंरग समकोण पर मुड़ती हुई जमीन के अन्दर—ही—अन्दर उस हॉल के नीचे चली गई, जिसमे कोहिनूर रखा था।
ठीक वैसी ही सुंरग के रूप में जैसी वैष्णो देवी पर अर्धकन्या की सुरंग है।
दस फीट तक सीधी खुदी हुई वह सुरंग वहां से ऊपर की तरफ चली गई थी और इस स्थान पर वह सुरंग को अपने खड़े होने जितना ऊंचा खोद चुका था।
सुरंग के इस भाग में इमरजेंसी लाइट का भरपूर प्रकाश था।
खड़ा हुआ अलफांसे अपने सिर के ऊपर से, फावड़े से मिट्टी हटा रहा था—जब उसके पैरों के आसपास काफी मिट्टी जमा हो गई तो मिट्टी को उसने एक चादर में भरा—गठरी बनाई।
गठरी के मुंह पर रस्सी बांधी और फिर इस रस्सी का सिरा हाथ में लेकर वह सुरंग में लेट गया, रेंगते हुए उसने दस फीट लंबी सीधी सुंरग पार की—मोड़ पर आकर खड़ा हो गया।
ताकत लगाकर उसने रस्सी खींची।
मिट्टी से भरा गठरी से उसके पास आ गई।
गठरी को उठाकर उसने सुंरग के मुंह के बाहर रखा, स्वयं भी सुंरग से निकला और गठरी खोलकर मिट्टी के ही उस ढेर पर वह मिट्टी डाल दी। बुरी तरह हांफ रहा था अलफांसे, सारा जिस्म पसीने से तर-बतर था—कपड़े और सारे ही जिस्म पर सीली-सी मिट्टी लिसड़ी पड़ी थी। मिट्टी में लिपटा भूत-सा नजर आ रहा था वह।
सुंरग के अंतिम सिरे पर पहुंचकर उसने पुनः फावड़ा संभाला और सुरंग की ऊंचाई बढ़ाने में व्यस्त हो गया, शीघ्र हो ऐसी आवाज हुई जैसे फावड़ा मिट्टी पर नहीं लोहे की किसी चादर पर टकराया ही और उस आवाज के होते ही अलफांसे की आंखें चमकने लगीं।
वह दूने जोश के साथ इस्पात की चादर के इस निचले सिरे पर जमी मिट्टी को फावड़े से खुरचने लगा और मिट्टी हट जाने के बाद इस्पात की वह चादर साफ चमकने लगी।
अलफांसे ने फावड़े से उसे अच्छी तरह ठोक—बाजकर देखा।
मिट्टी को पुनः एक छोटी-सी गठरी बनाई और बाहर निकल आया—खुले हुए दरवाजे के सामने चमक रहे कोहिनूर को देखकर वह धीमे से मुस्कराया—फिर पलटकर उसने अपने बैग से एक छोटा-सा सिलेंड़र निकाला, उस सिलेंड़र में केवल दो किलो गैस आ सकती थी।
सिलेंडर के साथ उसने रबर के दो पाइप अटैच्ड़ किए—इन पाइपों के दूसरे सिरे उसने एक वैल्डिंग होल्डर से जोड़े, गैस खोल दीं। फिर एक हाथ में वैल्डिंग होल्ड़र, दूसरे में एक पैनी छेनी तथा भारी हथौड़ा लिए वह पुनः सुरंग में दाखिल हो गया—सिलेंडर और होल्डर से सम्बन्धित रबर के पास सुरंग के इस कोने से उस कोने तक फैल गए।
अलफांसे ने वैल्ड़िंग होल्डर एक तरफ देखा, छेनी-हथौड़े से इस्पात की चादर पर निशान बनाने लगा, वह निशान जहां से उस चादर को उसे काटना था।
एक, दो फीट व्यास का वृत्त-सा बना लिया उसने।
फिर छेनी-हथौड़ा एक तरफ रखकर वैल्डिंग होल्ड़र उठाया—जेब से वह चश्मा निकालकर आंखों पर लगाया जिसका इस्तेमाल वैल्डिंग करने वाले करते हैं।
बटन ऑन करते ही होल्ड़र के मुंह से नीले रंग की आंच बड़ी तेजी से लपलपाने लगी—उस आग के लपलपाने से सुरंग में गूंजने वाली आवाज गूंज रही थी।
अब वह निशान पर से इस्पात की चादर को काटने लगा।
उसके आस-पास आग की चिंगारियां बिखरने लगीं—उसे नहीं मालूम कि वह कितनी देर तक मशीन से उसे गलाता रहा, बीच-बीच में छेनी-हथौड़े से चादर को काटता भी रहा था।
उस वक्त सुबह के पांच बजे थे, जब उसने संतुष्ट होकर बटन ऑफ कर दिया—होल्ड़र के मुंह पर लपलपाती आग गुम हो गई-सारा सामान वहीं छोड़कर वह वापस लौटा।
सुरंग के इस सिरे से चादर तथा वह छोटा-सा केन उठाया जिसमें अभी थोडा-सा पानी था—इन दोनो वस्तुओं को लेकर वह पुनः सुरंग के अंतिम सिरे पर पहंचा।
पानी का केन उसने एक तरफ रख दिया।
चादर की कोई तहें बनाकर उसने इस्पात के कटे हुए भाग पर रखी और फिर चादर पर अपने दोनो हाथ टिकाकर वह कटे भाग को पूरी तरह से ऊपर की तरफ धकेलने लगा।
कटा भाग हिल रहा था।
बीच में चादर होने के बावजूद भी अब इस्पात की गर्मी अलफांसे अपने हाथों पर महसूस कर रहा था, सुरंग में कपड़ा जलने की दुर्गंध फैलनी लगी।
परन्तु इसकी परवाह किए बिना कटे हुए भाग को ऊपर की तरफ धकेलने की भरपूर कोशिश कर रहा था वह, इस कोशिश में उसे अपनी संपूर्ण शारीरिक शक्ति का इस्तेमाल करना पड़ रहा था।
दांत भींचे उनसे पूरी ताकत लगा दी—मगर अपने उद्देश्य में कामयाब न हो सका।
अब उसके हाथ जलने-से लगे थे, जोर लगाना बंद करके उसने चादर हटाई, चादर की ऊपरी तह गर्म इस्पात पर रखी होने के कारण जल गई थी।
इस बार छेनी-हथोड़ी रखकर जब उसने पुनः जोर लगाया तो—अचानक ही एक झटके के साथ इस्पात का कटा हुआ वह गोल भाग, चादर समेंत ऊपर की तरफ उछल पड़ा।
एक जोरदार आवाज के साथ वह हॉल के फर्श पर जा गिरा।
अब, अलफांसे अपनी सुरंग के इस सिरे का हॉल के अन्दर रखी मेज की काफी करीब निकालने में कामयाब हो गया था, मगर हॉल में जाने की उसने जल्दी नहीं की।
सुरंग ही में रेंगता हुआ वापस लौटा।
अब आप यूं समझ सकते हैं कि सुरंग का एक सिरा हॉल के दरवाजे के समीप बाहर था, दूसरा हॉल के बीचोबीच रखी मेज के करीब।
अलफांसे बाहर निकला।
दरवाजे पर खड़े होकर उसने कोहिनूर की तरफ देखा, मेज के समीप ही इस्पात के फर्श से अलग हुआ गोल हिस्सा और चादर पड़ी थी। ऐसा भट्ट नजर आ रहा था जैसे सीवर का ढक्कन गायब हो गया हो। कुछ देर तक वही खड़ा अलफांसे अपनी कारगुजारी पर मुस्कराता रहा और फिर बड़ी तेजी से उसने वही बुलेट प्रूफ लिबास पहना, जिसे पहनकर गली पार की थी।
उसने बैग से कोहिनूर जैसा ही नजर आने वाला हीरा निकाला और उसे मुट्ठी में दबाए सुंरग में रेंग गया, अंतिम सिरे पर जाकर उसने केन से पानी के छींटे उस इस्पात पर डाले, जिससे हिस्सा अलग किया था। छन-छन की आवाज के साथ पानी की बूंदे वैसे ही जलने लगी जैसे गर्म तवे पर जला करती हैं इस्पात की उस चादर को पार करने से पहले ठंड़ा करना आवश्यक था।
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यह बात शीघ्र ही हैम्ब्रीग की समझ में आ गई कि इस तरह चीखते रहने से कोई समस्या हल होने वाली नहीं थी तब उसने नीचे उतरने का निश्चय किया।
रस्सी उसके पास थी ही, अतः उतरने का इंतजाम करने में उसे देर नहीं लगी।
ऊपर एक कुंदे में बंधी रस्सी पर वह बंदर के समान उतरता ही चला गया, फर्श पर पहुंचते ही उसने खुले दरवाजे से बाहर जम्प लगाई।
इस्पात की खुली सड़क उसके सामने थी।
मौत के भय से भी कोई इतना तेज नहीं दौड़ सकता जितना तेज इस वक्त हैंम्ब्रीग दौड़ रहा था।
जो दूरी मर्सिड़ीज से पंद्रह मिनट में पार होती थी, वह दूरी हैम्ब्रीग ने सिर्फ चालीस मिनट में पार कर ली, अब वह दौड़ता हुआ मर्सिडीज के समीप पहुंचा।
बुरी तरह हांफते हुए उसने मर्सिड़ीज में झांका और यही वह क्षण था, जब उसके कण्ठ से भयानकतम चीख उबलती चली गई।
संकरी गली के उस पार से गोलियों की जोरदार आवाज उभरी।
हैम्ब्रीग की चीखें गोलियों की उस आवाज में दबकर रह गई थीं—वह कार के अन्दर मौजूद एक भयानक चेहरे को देखकर चीखा था।
हतबुध्दि-सा वह अभी कार की पिछली सीट पर नजर आने वाले भयंकर चेहरे को देख ही रहा था कि एक झटके—से मर्सिड़ीज का दरवाजा खुला।
डरावने चेहरे वाला फुर्ति से बाहर आ गया।
यह वही था जो उसे पानी की टंकी के पीछे छुपा हुआ था, जब अलफांसे और हैम्ब्रीग 'बैंक संस्थान' की इमारत की छत से नीचे उतरने
के लिए जीने की तरफ बढ़े थे। उसे देखते ही अपने स्थान पर किसी स्टैचू-सा खड़ा रह गया हैम्ब्रीग।
उस तहखाने में उसने अपने और अलफांसे के अलावा किसी तीसरे व्यक्ति की मौजूदगी की तो कल्पना भी नहीं की थी—और फिर इस आदमी की, जो इस वक्त उसके सामने खड़ा था।
हैम्ब्रीग के कण्ठ से बरबस ही निकला—"अ...आप।"
"हूं।" जैसे कोई जंगली तेंदुआ गुर्राया हो।
"अ...आप यहां कहां से...?"
और हैम्ब्रीग का यह वाक्य पूरा भी नहीं हो सका था कि उस डरावनी शक्ल वाले ने झपटकर अपने दोनों हाथ उसकी गर्दन पर जमा दिए।
"म...मास्टर।" हैम्ब्रीग ने चीखना चाहा, परन्तु इस बार चीख उसके हलक में ही कहीं घुटकर रह गई—कुछ देर तक वह डारवने चेहरे वाले की मजबूत गिरफ्त में यूं छटपटाता रहा जैसे बाज की गिरफ्त में फंसा कबूतर फड़फड़ाया करता है, फिर ठंड़ा पड़ा गया।
हैम्ब्रीग की लाश धड़ाम से इस्पात की सडक पर गिरी।
¶¶
जब इस्पात की चादर पूरी तरह ठंड़ी पड़ गई तो अलफांसे ने बचे हुए पानी समेत केन को सुरंग में फेंक दिया तथा दोनों हाथ ऊपर करके हॉल का फर्श पकड़ लिया उसने।
एक ही जम्प में वह गड्ड़ के ऊपर कमरे के फर्श पर बैठा था।
सबसे पहले उसने हॉल के खुले हुए दरवाजे की तरफ देखा, दरवाजे के बाहर से शुरु हुई इस सुरंग का मुंह और मौत की गली का भी कुछ हिस्सा उसे चमक रहा था। उसने जेब से एक सिक्का निकालकर दरवाजे की तरफ उछाला।
सिक्का बीच ही में फक से जलकर नीचे गिर गया—इसका मतलब यह कि जमीन के नीचे से होता हुआ अब वह अदृश्य वेव्ज वृत्त के के इधर आ गया था।
यह सिक्का उसने यह जानने के लिए फेंका था कि वेव्ज वृत्त उससे कितनी दूर हैं और सिक्के के जलकर गिरे जाने से यह बात उसने जान ली।
अब वह मेज के समीप आराम से खड़ा हो गया।
कोहिनूर उससे इतनी दूर था कि हाथ बढाकर वह उसे उठा सकता था, किन्तु उसने किसी प्रकार के उतावलेपन से काम नहीं लिया—
कोहिनूर को अपने इतने नजदीक देखकर वह मुस्काराया, वह मुस्कराहट ऐसी थी जैसे कोहिनूर से कह रहा हो कि—देखा, तुम अलफांसे से हार गए।
एक बार फिर उसने ध्यान से सोचा कि कोहिनूर के हटते ही कहां-कहां क्या-क्या प्रतिक्रिया होगी, कुल मिलाकर कोहिनूर के अपने स्थान से हटते ही पांच क्रियाएं होनी थी, पहली—कंट्रोल रूम में उपग्रह सिग्नल देने लगेगा।
'हुंह...कोई सिग्नल नहीं देगा।' अलफांसे बड़बडाया।
दूसरी हॉल की दीवारों में छुपे कैमरे फोटो खींचने लगेंगे।
अलफांसे बडबड़ाया—'खींचते रहे, फोटुओ में मेरे इस बुलेट प्रूफ लिबास के अलावा और आएगा ही क्या, ये नकाब—आंखों पर चढ़ा बुलेट
प्रूफ चश्मा।'
तीसरी—हॉल का वह खुला हुआ दरवाजा बंद हो जाएगा।
'होता रहे।'
चौथी—चारों तरफ से गोलियां बरसने लगेंगी।
'बरसें।' अलफांसे ने कहा—'मेरा क्या बिगाड़ लेंगी?'
पांचवी—कोहिनूर के यहां से हटते ही म्यूजियम के हॉल में रखे जार के अन्दर से कोहिनूर का अक्स गायब हो जाएगा।
'कितनी देर के लिए?' इस पांचवी क्रिया को याद करके अलफांसे मुस्काराया, स्वयं ही बोला—'मेरे पास दूसरा कोहिनूर हैं, वहां के गार्ड्स की पलकें भी नहीं झपकेंगी कि जार में कोहिनूर उन्हें पुनः नजर आएगा।'
अब अलफांसे ने नकली कोहिनूर बांए हाथ में ले लिया—दायां हाथ असली कोहिनूर की तरफ बढ़ाया और फिर हैरतअंगेज फुर्ती के साथ उसने दांए हाथ से कोहिनूर उठाया और बांए हाथ से रख दिया। हॉल की दीवारों में छुपी गनें गरज उठी, गोलियां उसके लिबास से टकराकर शहीद हो गईं—उन्हीं गोलियों की आवाज में वहां हैम्ब्रीग की चीख दबकर रह गई थी।
हॉल का दरवाजा बंद हो चुका था।
अलफांसे जानता था कि कैमरे उसके फोटो भी खींच रहे होंगे, परन्तु इस बात की भला चिंता कहां थी उसे—हॉल के चारों तरफ छुपी गनें गोलीवर्षा करके शांत हो गईं।
अलफांसे जानता था कि उनमें भरी गोलियां खत्म हो गईं होंगी—मगर जिस मकसद से गनों को फिक्स किया गया था वह पूरा नहीं हुआ, क्योंकि कोहिनूर को उठाने वाला फर्श पर पड़ा तड़प नहीं रहा था, बल्कि उन व्यवस्थाओं पर हंस रहा था।
फायरिंग के बाद सारे हॉल में मौत-सी खामोशी छा गई।
कोहिनूर हाथ में लिए अलफांसे मेज के समीप ही खड़ा था, सबसे पहले उसने वह ट्रांसमीटर कोहनूर से अलग करके फर्श पर डाला जिसका कनेक्शन उपग्रह से था।
फिर बंद हो गए हॉल के दरवाजे की तरफ देखा।
निश्चय ही नकली कोहिनूर में असली के बराबर वजन नहीं था, वरना उस दरवाजे को खुल ही जाना चाहिए था—मगर अलफांसे को उस दरवाजा के खुले रहने या बंद हो जाने से कोई फर्क पड़ने वाले नहीं था—कोहिनूर को जेब के हवाले करके वह सुरंग में उतर गया। दो मिनट बाद ही वह इस बंद हॉल के बाहर था।
¶¶
''अरे!" कोहिनूर की तरफ देख रहे कई गार्ड्स के मुंह से एक साथ निकला, उन्होंने पलकें झपकीं और कोहिनूर अपने स्थान पर था।
जिन गार्ड़स ने कुछ नहीं देखा था, वे अपने साथी गार्ड्स की इस अरे पर चौंके थे और लगभग एक साथ ही उन्होंने पूछा—"क्या हुआ?"
इन गार्ड्स के कमांड़र ने पूछा—"क्या बात हैं, तुम लोग चौंके क्य़ों थे?"
"स...सर।" एक गार्ड़ कुछ कहता-कहता जार में मौजूद कोहिनूर पर दृष्टि पड़ते ही रुक गया, जबकि कमाण्ड़र ने कहा—"हां—हां, बोलो।"
हिम्मत करके दूसरे गार्ड़ ने कहा—"स...सर...ऐसा लगा था जैसे किसी ने कोहीनूर को छुआ हो?"
"छुआ हो!" कमांडर का चकित भाव।
"ज...जी हां।" एक अन्य से हिम्मत की—"एक पल के लिए ऐसा महसूस किया था कि जैसे एक हाथ ने कोहिनूर को उठाकर पुनः वहीं रख दिया हो।"
"व...वह हाथ दस्ताने पहने हुए था, सर।" तीसरे ने कहा।
कमांडर और वे गार्ड उन्हें इस तरह देखने लगे, जैसे वे पागल हो गए हो, जिन्होंने कुछ नहीं देखा था—इन गार्ड्स की तरफ कमांड़र की दृष्टि कुछ सख्त हो गई, बोला—"तुम्हारा दिमाग तो ठीक है?"
कुछ देखने वाले गार्ड्स के चेहरे पीले पड़ गए।
कमांडर ने आगे कहा—"कोहिनूर उस जार के अन्दर हैं, हम सब लोग जार के चारों तरफ खड़े हैं—जार टूटा तक नहीं और किसी हाथ ने कोहिनूर को छू भी लिया, किसका हाथ था वह?"
"प...पता नहीं, सर।"
"बको मत।" कमांडर गुर्राया।
एक-दूसरे की तरफ देखने के बाद वे गार्ड़ चुप रह गए, चेहरे से ही नजर आ रहा था कि वे अनिच्छापूर्वक चुप रहे थे—शायद इसलिए कि जो उन्होंने देखा था, उसे भुला नहीं पा रहे थे और चुप इसलिए थे, क्योंकि उनकी तर्कबुध्दि स्वयं उसे स्वीकार नहीं क पा रही थीं।
फिर कोहिनूर भी तो स्थान पर नजर आ रहा था।
¶¶
बुलेट प्रूफ लिबास की जेब में कोहिनूर था और इस लिबास को पहने अलफांसे काफी तीव्र गति से भागता हुआ गली पार करने लगा—गोलियों की आवाज से सारा तहखाना गूंज उठा।
बुलेट प्रूफ लिबास से टकराकर गोलियां बिना कोई करिश्मा दिखाए शहीद हो गई।
गली पार करने में अलफांसे को मुश्किल से दो मिनट लगे, मगर पार होने के बाद भी वह ठिठका नहीं, बल्कि उसी गति से मर्सिड़ीज की तरफ बढ़ गया। वह दूसरी बात थी कि वहां तक पहुंचते-पहुंचते उसने नकाब की चेन खोल दी थी।
करीब जाते ही एक झटके से मर्सिड़ीज का दरवाजा खोला और उसके ऐसा करते ही कार के अन्दर से एक लाश लुढ़ककर उसेक कदमों में गिर गई।
अलफांसे चौंका और उस समय तो उसकी खोपड़ी ही घूम गई, जब उसने देखा कि यह लाश हैम्ब्रीग की थी—उसने बौखलाकर अपने चारों तरफ देखा।
टेलीफोन बूथ का दरवाजा खोला।
डरावने चेहरे वाला बाहर निकला।
"त...तुम?" अलफांसे उछल पड़ा।
भयानक आवाज—"हां बेटे, कोहिनूर को यहां तक लाने के लिए धन्यवाद।"
अलफांसे का चेहरा पत्थर की तरह सख्त हो गया—जो सामने था, उसे देखने के बावजूद भी वह उसकी सच्चाई पर यकीन नहीं कर पा रहा था। डरावने चेहरे वाला वह व्यक्ति सिंगही था।
अलफांसे जानता था कि सिंगही शब्द ही करिश्मे का पर्याय हैं, किन्तु फिर भी उसे इस स्थान पर देखकर अलफांसे को जितना आश्चर्य हो रहा था, उतना शायद अपने पिछले जीवन में कभी न हुआ था।
मुस्कराता हुआ सिंगही उसके सामने आ खड़ा हुआ।
अलफांसे अभी तक अपने आश्चर्य पर काबू पाने का प्रयास कर रहा था।
सिंगही ने बड़ी ही प्यार से पूछा—"इस तरह क्या दे ख रहे हो बेटे?"
"तुम यहां कैसे पहुंच गए?"
सिंगही का जवाब था—"जिस तरह तुम पहुंचे हो।"
"क्या हैम्ब्रीग को तुमने मारा है?" पता होते भी अलफांसे ने पूछा।
"जाहिर है।"
सिंगही ने कुछ ऐसे अंदाज में स्वीकृति दी थी कि अलफांसे के सारे शरीर में क्रोध की लहर दौड़ती चली गई, चेहरा कुछ और सख्त हो गया—आंखें इस कदर सुर्ख हो गईं कि जैसे अगले ही पल उनसे खून की कोई बूंद टपक पड़ेगी।
गुर्रा उठा वह—"हैम्ब्रीगक मेरा वफादार शार्गिद था।"
"जानता हूं।" सिंगही के पतले होंठों पर वही खूंखार-सी नजर आने वाली मुस्कराहट थी—"विशेष रूप से कोहिनूर तक पहुंचने में इसने तुम्हारी मदद की हैं।"
"मैं तुमसे मौत का बदला लेकर रहूंगा सिगंही।"
वही शांत स्वर—"जब मौका मिले तो कोशिश जरूर करना।"
अलफांसे के तन-बदन में आग लग गई, मगर बीच के समय में वह स्वयं को नियंत्रित कर चुका था, वह इस स्थान पर सिंगही को उपास्थिति के अर्थ को समझ सकता था, सिंगही ने हाथ फैलाकर बड़े आराम से कहा—"लाओ, कोहिनूर को मेरे हवाले कर दो।"
"कटोरा हाथ में लेकर भीख मांगना शुरु कर दो।"
"भीख में यही कोहिनूर मिले तो सिंगही कटोरा हाथ में लेने से भी नहीं हिचकेगा, बेटे।" बड़ी ही प्यारी-सी मुस्कान के साथ सिंगही ने कहा था—"मगर फिलहाल मैं भींख नहीं मांग रहा हूं।"
"मेहनत मैंने की हैं, यह भीख नहीं तो और क्या है?"
"असली हकदार मेहनत कराने वाला होता है।"
अलफांसे की आंखें सिकुड़कर गोल हो गई, बोला—"क्या मतलब?"
"इसमे शक नहीं को कोहिनूर को चुराने के लिए तुमने एक खूबसूरत योजना बनाई और उस पर काम किया, कोहिनूर के चारों तरफ की गई सुरक्षा व्यवस्था अब भी ज्यों-की-त्यों अपनी जगह हैं—फिर भी उनमें से किसी को मालूम नहीं है कि कोहिनूर चोरी हो चुका हैं—वैल—बहुत खराब बेटे, हम जानते थे कि कोहिनूर की ऐसी सफल चोरी करने वाला दुनिया में केवल एक ही आदमी है—तुम—और चोरी—और इसीलिए अपने इस काम के लिए हमने तुम्हें चुना, हमारे चुनाव की दाद तो तुम्हें देनी ही होगी।"
"क्या बक रहे हो तुम?"
जवाब में सिंगही ने जो कुछ बताया उसे सुनकर अलफांसे की स्थिति पागलों जैसी हो गई। अविश्वसनीय और भावुक-से स्वर में वह
चीख पड़ा—"न...नहीं—यह सब नहीं हो सकता, तुम झूठ बक रहे हो।"
"तुम जानते हो कि अपना काम निकलने के बाद सिंगही झूठ नहीं बोलता हैं।"
"काम निकलने के बाद—हुंह—क्या तुम यह समझते हो कि कोहिनूर को मुझसे प्राप्त कर लोगे?"
"बेशक।"
"भावुकता के जिस भंवर में फंसाकर तुम मुझसे कोहिनूर लूटना चाहते हो बेटे, मैं उसमें नहीं फसूंगा।" सिंगही से टकराने के लिए तैयार होता हुआ अलफांसे गुर्राया—"मैं जानता हूं कि कम-से-कम इर्वि के बारे में कहा गया तुम्हारा एक-एक शब्द गलत हैं—केवल इसलिए कहा गया है ताकि मैं मानसिक रूप से त्रस्त हो जाऊं—तुम्हारा मुकाबला न कर सकूं और तुम बड़ी आसानी से कोहिनूर प्राप्त कर लो—मगर तुम शायद भूल गए सिंगही कि मेरा नाम अलफांसे हैं।"
"अगर भूल गया होता तो इस काम के लिए तुम्हें क्यों चुनता?"
"हुंह।" उसकी उपेक्षा-सी करते हुए अलफांसे ने मर्सिड़ीज का दरवाजा खोला, अभी गाड़ी में दाखिल होने के लिए उसने पहला कदम बढ़ाया ही था कि सिंगही ने झपटकर गाड़ी के बोनट पर हाथ रख दिया—उसके ऐसा करते ही अलफांसे के जिस्म को करेंट का तीव्र
झटका लगा।
अलफांसे उछलकर मर्सिडीज से दूर जा गिरी—मगर अगले ही पल वह बिजली की-सी गति से पुनः उछलकर खड़ा हो गया था। उसने सिंगही की तरफ देखा।
बोनट पर कोहनी टिकाए, बड़े आराम से खड़ा सिंगही उसे ही देखकर मुस्करा रहा था।
अलफांसे को यह समझते देर नहीं लगी कि सिंगही ने कपड़ों के नीचे अपनी त्वचा के रंग वाली, जिस्म से चुपकी रबर की पोशाक पहन रखी थी और उस वक्त उसका जिस्म करेंटयुक्त था।
अतः इस वक्ति सिंगही से कम-से-कम मल्लयुध्द करना बेकार था।
अलफांसे ने उसके करेंटयुक्त जिस्म से बचने के लिए बडी तेजी से अपने चारो तरफ नजर दौड़ाई—आस-पास उसे कहीं भी कोई ऐसी चीज नजर नहीं आई, जिससे सिंगही का मुकाबला किया जा सकता। अतः अचानक की घूमकर वह तेजी से भागा।
उसके इरादे को भांपकर सिंगही पीछे लपका और कहना चाहिए कि थोड़ी दूर की भाग-दौड़ के बाद ही सिंगही ने एक लंबी जम्ब लगाकर एक घूंसा अलफांसे के सिर पर मारा।
पहली बात तो सिंगही का घूंसा—दूसरा करेंटयुक्त।
मुंह से एक चीख निकालता हुआ अलफांसे उछलकर दूर जा गिरा और इसबार गिरने के बाद वह उठ नहीं सका—जहां गिरा था, वहीं पड़ा रह गया—निश्चल।
उसे देखकर सिंगही के होठों पर पुनः मुस्कान दौड़ गई।
सिंगही का दायां हाथ अपनी बाईं बगल में पहुंचा, कोई नन्हा-सा स्विच ऑफ हुआ। अब उसका जिस्म करेंटयुक्त नहीं था।
अलफांसे के नजदीक पहुंचकर वह बड़े आराम से झुका, जेब में हाथ डालकर उसने कोहिनूर को अपनी मुट्ठी में कसा ही था कि अलफांसे के दोनों पैरों की भरपूर ठोकर उसके जबड़े पर पड़ी।
मुंह से चीख निकालता हुआ सिंगही दूर जा गिरा और अब अलफांसे उसे संभालने का मौका नहीं देना चाहता था, अतः उसने कुछ इस प्रकार फुर्ती से जम्प लगाई, जैसे पैरो में स्प्रिंग लगे हो और सिंगही के उठने से पहले ही उसके ऊपर जा गिरा।
कोहिनूर सिंगही के हाथ में था, परन्तु अलफांसे के दोनों हाथ सिंगही की गर्दन पर।
सिंगही ने उसकी गिरफ्त से निकलने के लिए शक्ति लगाई, अलफांसे दांत भींचकर कुछ और जोर से उसकी गर्दन दबाने लगा। सिंगही ने अपना हाथ बाईं बगल में ले जाना चाहा।
उसे रोकने के लिए अलफांसे को भी एक हाथ उसकी गर्दन से हटाना पड़ा, सिंगही के दाएं हाथ को कब्जाकर सिर की एक भरपूर टक्कर उसने सिंगही की नाक पर मारी।
सिंगही के मुंह से चीख और नाक से खून की धारा बह निकली। अब उसने अपनी बाईं मुट्ठी में दबा कोहिनूर एक तरफ उछाल दिया—फिर जाने किस अंदाज में उसने ऐसी करवट ली कि बाईं बगल में मौजूद बटन ऑन हो गया।
अलफांसे के जिस्म को करेंट का जोरदार झटका लगा।
एक चीख के साथ उछलकर वह पुनः दूर जा गिरा और इस बार भी वह पहले के समान ही निश्चल पड़ा रह गया—सिंगही ने सीधी जम्प कोहिनूर पर लगाई थी।
सिंगही से तीन गज दूर जा खड़ा हुआ वह और इस बार उसके हाथ में रिवॉल्वर भी था—अपनी तरफ तने हुए रिवॉल्वर को देखकर सिंगही ने जोरदार ठहाका लगाया ऐसा जोरदार कि सारे तहखाने में ठहाका गूंज उठा।
अलफांसे जानता था कि रिवॉल्वर को देखकर वह क्यों हंस रहा था। कम-से-कम सिंगही के सामने रिवॉल्वर बिल्कुल महत्वहीन वस्तु थी—संगआर्ट (गोली से बचने की कला) का आविष्कारक ही सिंगही हैं, इसीलिए तो इस आर्ट का नाम संगआर्ट हैं—गोलियों से वह उतनी आसानी से बच सकता था, जिस तरह किसी भी व्यक्ति से फेंके गए ईंट के टुकड़ो से बंदर।
अलफांसे जानता था कि सिंगही पर फायर करना गोलियों को व्यर्थ करना था, अतः बड़ी तेजी से उसने पैंतरा बदलकर मर्सिड़ीज के टायर पर फायर कर दिया।
भड़ाक की एक जोरदार आवाज के साथ टायर—टयूब फट गए।
उसके इरादे को भांपते ही सिंगही ने उस पर जम्प लगा दी—मगर अलफांसे ने खुद को उससे दूर रखकर उसी पर एक फायर कर दिया।
संगआर्ट का आविष्कारक गोली को तो धोखा दे गया, परन्तु जिस वक्त गोली को धोखा देने में व्यस्त था, अलफांसे ने मर्सिड़ीज के दूसरे टायर का निशाना बनाया।
सिंगही ने उस पर पुनः जम्प लगाई।
अलफांसे ने उस पर दूसरा फायर किया और जिस क्षण वह संग आर्ट का प्रदर्शन कर रहा था, उस क्षण अलफांसे ने मर्सिडीज के तीसरे और चौथे टायर को भी शहीद कर दिया था।
एस साथ दो टायरों को ध्वस्त करने में टाइमिंग की हल्की-सी गड़बड़ हुई और उसी का लाभ उठाता हुआ सिंगही अलफांसे के ऊपर जा गिरा।
तीव्र करेंट के कारण अलफांसे का समूचा जिस्म झनझना उठा। मुंह से चींखे निकलने लगीं, मगर सिंगही ने उसे तभी छोड़ा जब उसके मुंह से चीखे निकलनी बंद हो गईं—सिंगही के छोड़ते ही अलफांसे का जिस्म धड़ाम से फर्श पर गिरा।
अब सिंगही को अलफांसे के बेहोश होने में कोई शक नहीं था—एक नजर उसने अलफांसे को देखा, फिर—मुट्ठी में दबे कोहिनूर को—उसे वह कुछ ऐसी दृष्टि से देखता रहा जैसे पहचाने की कोशिश कर रहा हो कि कोहिनूर असली था या नहीं?"
संतुष्ट होने के बाद कोहिनूर को उसने जेब में रखा।
बेहोश पड़े अलफांसे के जिस्म से संबोधित होकर बोला—"मान गए बेटे, तुम उन हालात में भी बहुत कुछ कर जाते हो, जिनमें दरअसल कुछ किया ही नहीं जा सकता—जहां तक कार से जाना था, तुमने विवश कर दिया कि सिंगही उस रास्ते को पैदल नापे, तुम्हारी योग्यता के एक बार फिर हम कायल हो गए।"
¶¶
ड्रिल मशीन अपनी पूर्ण गति के साथ चल रही थी।
मगर सुरंग में इस वक्त थोड़ी अफरा-तफरी का-सा वातावरण था। विक्रम कह रहा था—"पता नहीं विकास कहा गया—अभी मुश्किल से दस मिनट पहले यही तो था।"
"मेरा ख्याल है कि वह सुंरग से बाहर चला गया है, विजय।" अशरफ ने कहा।
"यही लगता है।" गुस्से में दांत भींचकर विजय ने अपने दाएं का घूंसा बाईं हथेली पर मारा—"अपना दिलजला जरूर कोई गड़बड़ करेगा—उफ—हमने उसे यहां लाकर ही गड़बड़ की—बहुत ही बेवकूफ लड़का है—ठंडे दिमाग से बिल्कुल काम नहीं लेता।"
आशा बोली—"वह तो पहले ही से इस सुरंग के प्रति आशावान नहीं था और फिर सुंरग के पार निकलने में जो देर हो रही हैं, उसी ने उसे निराश कर दिया होगा।"
"लगता है कि अब वह इस सुरंग से बाहर अपने ढंग से काम करने चला गया है।"
इसमें शक नहीं कि जो संभावना अशरफ व्यक्त कर रहा था, कुछ वैसा ही ख्याल विजय का भी था और यह सोचकर विजय को वास्तव में गुस्सा आ रहा था कि अब वह जरूर कोई अंटशंट हरकत करेगा। उसी गुस्से में बड़बड़ाता हुआ बोला—"तुम जरा देखकर आओ झानझरोखे, सुरंग के उस कोने पर बेवकूफ का तैराकी का लिबास है कि नहीं?"
"नहीं है।" उसी दिशा से प्रकट होते ब्लैकमेलर ने कहा।
वे सभी एक झटके से उसकी तरफ घूम गए। विजय के मुंह से निकला—"त...तुम?"
"हां हुजूर, हूं तो मैं ही।"
"क्या तुमने विकास को नदी से बाहर निकलते देखा है?"
"अगर देखा होता सरकार तो कान पकड़कर वापस न ले आता?"
" उफ!" विजय ने बेबसी के-से अंदाज में पुनः सुरंग की एक दीवार में घूंसा मारा, बोला—"खैर, तुम बोलो—इस वक्त क्यों आए हो?"
"सुना है बंदापरवर कि यह सुरंग पूरी होने वाली हैं।"
"अपना हिस्सा लेने आए हो?"
"जी नहीं।"
"फिर?"
"आपको यह बताने कि अब आपका खेल खत्म हो चुका है।"
एक साथ चारों चौंक पड़े—"क...क्या मतलब?"
जवाब में जो हरकत उसने की उसे देखकर विजय सहित उन सभी के देवता कूच कर गए, बड़े आराम से उसने रिवॉल्वर निकलाकर उनकी तरफ तान दिया था, बोला—"बराय मेहरबानी, साहब लोग यदि अब अपने हाथ ऊपर उठा लें तो बजा होगा।"
विजय एक ही सेंकड़ में समय की गंभीरता को भांप गया, हाथ ऊपर उठाता हुआ बोला—"इसका मतलब तुम यह सोच रहो हो प्यारे, लूमड़ से अकेले ही कोहिनूर छीन लोगे?"
"कोहिनूर तो उनसे छिन चुका है, जनाब।"
"मतलब?"
"जी हां, और जिनके कब्जे में इस वक्त कोहिनूर है, उनके निकलने के लिए नायाब रास्ता बनाने के लिए मैं तहेदिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूं।"
"कौन है वह?"
"उनके बारे में जानने की ऐसी जल्दी क्या है सरकार, फिलहाल आपके लिए मेरे ही बारे में जान लेना काफी है।"
"तुम्हारे बारे में?"
"आप इस नकाब के पीछे छुपे चेहरे को देखने के लिए बेचैन थे न?" कहने के साथ उसने अपने चेहरे से नकाब नोंच ली—उसका चेहरा देखकर हालांकि अशरफ, विक्रम और आशा पर कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं हुई, जबकि विजय एकदम उछल पड़ा, मुहं से निकला—"ब...बोगान!"
"पहचानने के लिए शुक्रिया जनाब।"
और इसमें शक नहीं कि उस रूप में, वहां बोगाना को देखकर विजय जैसा व्यक्ति भी आश्चर्य के सागर में गोते लगा रहा था। उसके मुंह से सिर्फ इतना निकल सका—"त...तुम!"
"जनाब को हैरत हो रही है?"
"म...मगर तुम इस रूप में यहां क्या कर रहे हो?"
"अगर सच पूछा जाए तो बात यह है कि जो कुछ अलफांसे ने किया, वह भी मैं कर रहा हूं और जो कुछ आपके ग्रुप ने किया वह भी मैं कर रहा था—बल्कि मैं भी नहीं, मैं तो केवल फील्ड़ में था—इस सबके पीछे दिमाग तो किसी और ही का है।"
"किसका?"
"महामहीम का।"
"म...महामहिम?"
"आप उन्हें सिंगही चचा कहते हैं।"
"स...सिंगही?" एक साथ चारों पर जैसे बिजली गिर पड़ी।
"जी हां, इस वक्त भी आप उन्हीं की कृप्या से यहां हैं—सब कुछ उन्हीं की कृपा से हुआ है।"
"अलजबरे के इस सवाल को हम समझ नहीं सके हैं, बोगान प्यारे, जरा खोलकर समझाओ।"
बोगान इस तरह मुस्कराया जैसे विजय आदि कि स्थिति पर तरस खा रहा हो, बोला—"यह कहानी उस आविष्कार से शुरु होती हैं, जो प्रोफेसर बरले ने महामहिम के लिए किया हैं, एक ऐसा अविष्कार को जो महामहिम को दुनिया का सम्राट बना सकता हैं, मगर उस अविष्कार को दुनिया के सामने लाने से पहले महामहिम को धन की जरूरत थी, जब मुझे पता लगा कि महामहिम को धन की जरूरत है तो मैंने उनका ध्यान कोहिनूर की तरफ आकर्षित कराया।"
"तुम्हें कोहिनूर के बारे में कैसे मालूम था?"
"एक बार काफी पहले ही बेवकूफ चैम्बूर मेरे सामने उसे उडाने का प्रस्ताव रख चुका था, सुरक्षा व्यवस्थाएं सुनकर मैं कांप गया था और मैंने यह काम करने के लिए चैम्बूर से मना कर दिया था, जवाब में उसने कहा था कि गार्डनर की लड़की इर्विन इस काम में हमारी मदद कर सकती हैं—यदि उसकी मदद से मैं कोई स्कीम बनाने में कामयाब हो जाऊं तो उससे बात कर लूं, मगर व्यवस्थाएं सुनकर सचमुच मेरे हौसले पस्त हो गए थे, इसलिए इस काम में हाथ नहीं डाला।"
"इर्विन भला चैम्बूर की मदद क्यों करती?"
"जो आपने कहा था जब वही मैंने माहमिहम को बताया था, तो उन्होने भी यही सवाल किया था जो आपने किया हैं, जवाब में मैंने कहा था कि इस बारे में मैं कुछ नहीं जानता हूं, क्योंकि मैंने चैम्बूर से पूछा ही नहीं था—तब, महामहिम ने मुझे इस राज का पता लगाने का हुक्म दिया—इस निर्देश के साथ कि मेरी गतिविधियों की भनक चैम्बूर को न लग सकें—उनके हुक्म का पालन करने पर मेरे सामने एक चौंका देने वाला कारण आया।"
"क्या?"
"चैम्बूर और इर्विन के बीच नाजायज सम्बन्ध थे।"
"क्या बक रहे हो?"
"फोटो और टेप के रूप में इन नाजायज सम्बन्धों के सारे सबूत मैंने महामहिम के चरणो में ले जाकर पटक दिए—उन्हें देखने और मेरी बात सुनने के बाद महामहिम समझ गए हैं कि चैम्बूर को आज किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश है जो कोहिनूर की चोरी की न केवल स्कीम बना सके, बल्कि उस पर काम भी कर सके—स्वयं महामहिम ने भी ऐसे व्यक्ति की तलाश में दिमाग दौडाया और ऐसे व्यक्ति के रूप में उनके दिमाग में अलफांसे का नाम आ गया—उन्होने पता लगाया कि अलफांसे कहां हैं, यह पता लगाने ही कि आजकल वह अमेरिका में है, चैम्बूर को पकड़कर अड्डे पर ले जाया गया—उसके और इर्विन के सम्बन्धों के आधार पर उसे उंगलियों पर नचाना आसान साबित हुआ और महामहिम की आज्ञा से ही वह प्रस्ताव लिए अमेरिका गया था।"
"ओह!"
"अलफांसे से हुई चैम्बूर की बातें उसने आपको बता ही दी थीं।"
"तो फिर उसने चचा के बारे में क्यों नहीं बता दिया था?"
"वही बेडरूम के फोटो और टेप।"
"यदि उसे इतना ही डर था तो हमें वहीं सब क्यों बताया?"
"क्योंकि महामहिम की तरफ से वह सब आपको बता देने की उसे आज्ञा थी।"
"इसका क्या मतलब?"
"सुनते रहिए।" बोगान ने कहा—"अमेरिका से लौटकर चैम्बूर ने अपनी और अलफांसे की बातों का विवरण महामहिम को दिया—यहां गौर करने वाली बात यह है कि चैम्बूर ने अलफांसे से इर्विन की मदद मिल जाने के बारे में कोई बात नहीं की थी।"
"फिर?"
"सुनकर महामहीम मुस्कराए, शायद इसलिए क्योंकि वे जानते थे कि अलफांसे भले ही चैम्बूर से कुछ भी कहा हो, मगर कोहिनूर के चारों तरफ फैली व्यवस्था अलफांसे को कचोटती रहेगी—अतः महामहिम के जासूस उसी दिन से अलफांसे पर नजर रखने लगे और एक दिन वह लंदन आ ही गया—सूचना मिलते ही इस बार महामहीम ने चैम्बूर के साथ इर्विन को भी बुला लिया—फोटो और टेप के आधार पर इर्विन को उंगलियों पर नचाना चैम्बूर से भी आसान रहा—तब, मेरे गुंड़ो से इर्विन के अपहरण का ड्रामा रचा गया—इर्विन को मेरे गुंड़ो से अलफांसे ने बचाया—इर्विन उसे जबरदस्ती अपने घर ले गई—उसे अपना और अपने डैडी का इंट्रोडक्शन दिया—यह सब इसलिए किया गया था कि अलफांसे इर्विन की तरफ आकर्षित हो—और वही हुआ, इर्विन तो उस पर लट्टू हो जाने का नाटक कर ही रही थी—महामहीम ने दावे के साथ कहा था कि जब अलफांसे को यह पता लगेगा कि इर्विन गार्डनर की लड़की है तो वह निश्चय ही इर्विन में दिलचस्पी लेगा।"
विजय बड़बड़ाया—"बड़ी ऊंची सुना रहे हो, प्यारे।"
"इर्विन से अलफांसे के सामने शादी का प्रस्ताव महामहीम ने ही रखवाया था, परन्तु उन्हें यह उम्मीद नहीं थी कि अलफांसे उसे स्वीकार कर लेगा—उनका ख्याल था कि अलफांसे शादी से बचा रहकर ही कोई योजना बनाएगा, यही कारण था कि अलफांसे की शादी का समाचार सुनकर महामहीम चौंक पडे थे। फिर, उन्होने चैम्बूर के माध्यम से कोहिनूर तक पहुंचने की अलफांसे की सारी योजना मालूम कर ली—यह योजना ज्यादा सशक्त नहीं थी, यानि उसमें कई खामियां थीं, अतः महामहीम समझ गए कि अलफांसे ने चैम्बूर को योजना बताने में काफी होशियारी से काम लिया हैं—उसने चैम्बूर को संतुष्ट भी कर दिया हैं और बड़ी खूबसूरती से कुछ छुपा भी गया हैं और उन छुपी हुई बातों की वजह से ही योजना में खामियां नजर आती हैं यानि महामहीम का ख्याल था कि अलफांसे एक सशक्त योजना बना चुका है और शादी करनी उसी योजना का एक अंग हैं—महामहीम समझ सकते थे कि काम निकलने के बाद अपनी योजना के मुताबिक अलफांसे के लिए पत्नी नाम की घंटी से हमेशा के लिए पीछा छुडाना कठिन काम नहीं होगा।"
"यह सोचकर चचा ने शादी हो जाने दी कि सारी डोरियां उसके हाथ में हैं?"
"थीं भी और अंत तक रहीं—अलफांसे केवल यही समझता रहा कि सिर्फ चैम्बूर उसका राजदार है, इर्विन की तरफ तो कभी उसका ख्याल तक नहीं गया—आप समझ ही सकते है कि चैम्बूर को यह निर्देश था कि वह अलफांसे से कभी इर्विन के बारे में कुछ न कहे—मदद के लिए अलफांसे ने अपने हैम्ब्रीग नामक एक शार्गिद को अपना राजदार बनाया—शादी होते ही उन्होंने अपनी योजना के मुताबिक काम करना शुरू कर दिया, मजे की बात यह थी कि अपनी समझ के मुताबिक अलफांसे बडी खूबसूरती से अपनी जबरदस्त स्कीम पर काम करता जा रहा था, बस—उसे कभी यह न मालूम हो सका है कि इर्विन की वे दो आंखें हमेशा उसे वॉच करती थीं जिन्हें नींद में डूबी समझकर छोड़ जाता था—इर्विन न केवल प्रतिरात की रिपोर्ट महामहीम को देती थी, बल्कि वे सारी चीजें भी पहुंचाती रही थी, जो अलफांसे हासिल करता था।"
"कैसी चीजें?"
"अलफांसे ने बड़ी मेहनत से 'बैंक संस्थान' से कोहिनूर तक पहुंचने के लिए आवश्यक चाबियों के जो अक्स हासिल किए थे, उन सभी की नकल इर्विन से आसानी से महामहीम तक पहुंचती रहीं।"
"यानि कि चोर के ऊपर मोर?"
"अलफांसे के सफल होने के बाद उससे कोहिनूर हासिल करने तक की महामहिम की स्कीम बिल्कुल क्लीन थी, मगर तभी इस सारे झमेले में आप लोगों का ग्रुप कूद पड़ा और आपके कूद पड़ने पर महामहीम को यह डर हुआ कि कहीं आप लोग अलफांसे की स्कीम को नाकाम न कर दें।"
"वह तो होना ही था।" विजय ने छाती चौड़ी की।
"फिर भी यह सोचकर कि आप लोगों को छेड़ना मधुमक्खियों के छत्ते में हाथ डालने जैसा खतरनाक है, महामहीम ने आपको नहीं छेड़ा—हां, अपने अड्डे पर बैठे वो स्क्रीन पर न केवल आपको हमेशा देखते रहते थे, बल्कि आपकी बातें भी सुनते रहते थे—जब उन्होंने यह जाना कि आप लोगों की योजना भी अलफांसे क सफल हो जाने पर ही उससे कोहिनूर छील लेने की है तो वे आशवस्त हो गए, क्योंकि वे समझ चुके थे कि आप लोग खुद ही कोई ऐसा कदम नहीं उठाएंगे, जिससे अलफांसे की योजना कमजोर पड़े—बस, फिर उन्होंने आप लोगों को आपके ही ढंग से काम करते रहने के लिए आजाद छोड़ दिया—वो चाहते तो चैम्बूर को आप लोगों से बचा सकते थे, मगर आपको अलफांसे की योजना मालूम हो जाए—इसके पीछे उनकी मंशा यह थी कि यदि आसानी से आपको अलफांसे की योजना मालूम हो जाएगी तो उसके लिए आप ज्यादा बखेड़ा खडा नहीं करेंगे और चुपचाप अलफांसे से कोहिनूर को प्राप्त करने की योजना पर काम करने में जुट जाएंगे, और ऐसा ही हुआ, मगर जब उन्होंने स्कीम पर देखा कि आप लोगों ने चैम्बूर को मार ही डाला है तो उन्होंने आप लोगों पर अंकुश लगाना जरूरी समझा और फिर वह अंकुश ब्लैकमेलर के रूप में मैंने लगाया—केवल अंकुश ही नहीं लगाया; बल्कि आपकी मदद भी की।"
"वह क्यों?"
"ताकि आप लोग ज्यादा बखेडा न करें।"
"क्या मतलब?"
"महामहीम जान चुके थे कि आप लोगो ने यह सुरंग बनाने का निश्चय किया है—वे समझ सकते थे कि इस सुरंग को बनाने के लिए आपको ड्रिल मशीन जैसी अनेक वस्तुओं की जरूरत पड़ेगी और उन्हें प्राप्त करने के लिए आप लोग वैसा ही कोई हंगामा खड़ा करेंगे जैसा हथियार प्राप्त करने के लिए किया था और यह महामहीम नहीं चाहते थे।"
"क्यों?"
"उस हंगामे से खेल बिगड़ सकता था, इसलिए वो मेरे माध्यम से आप लोगो की हर जरूरत पूरी करते रहे—काम उनकी योजना के मुताबिक ही हुआ यानि आप लोग सुरंग बनाने में व्यस्त हो गए।"
"यानि लूमड़ की तरह हम भी अन्जाने में अपने चचा की ही स्कीम पर काम कर रहे थे?"
"बेशक।"
"कमाल कर दिया प्यारे! यह तो साली वही बात हुई कि महाभारत का युध्द जीतने के बाद भीम और अर्जुन आदि एक-दूसरे से डींग मार रहे थे कि मैंने इतने मारे—इतने आसमान में फेंक दिए कि तभी कृष्ण ने कहा, कि किसी को नहीं मालूम है कि किसने कितने मारे, क्योंकि सभी लड़ रहे थे—इस बात का फैसला तो वही कर सकता हैं, जो लड़ा नहीं था और जिसने महाभारत का पूरा युध्द देखा है—अर्जुन ने पूछा कि ऐसा आदमी कौन हैं, तो कृष्ण उन्हें पेड़ की शाख पर लटकी बब्रूवाहन की उस खोपड़ी के नजदीक ले गए जिसने वास्तव में सारा युध्द देखा था—जब उससे पूछा गया तो बब्रूवहीन की खोपड़ी ठहाका लगाकर हंस पड़ी, बोली—मैंने तो न यह देखा कि भीम ने किसी को अपनी गदा से मारा हैं और न ही कि अर्जुन के गांडीव से कोई मरा—सच बात तो यह है कि न किसी को युधिष्टिर ने मारा हैं, न नुकुल-सहदेव ने—मैंने तो सिर्फ एक सुदर्शन चक्र देखा हैं—बस, सारे उस चक्र ने ही काके और वह चक्र इस माखन चोर का था।"
बोगान इस लंबे-चौड़े वृत्तांत का अर्थ बिल्कुल न समझ सका तो बोला—"पता नहीं हुजूर कि यह क्या बकवास कर डाली हैं आपने?"
"तुम नहीं समझोगे प्यारे। यह भी नहीं समझोगे कि अपनी बातों से तुमने साले उस नकली चाच को माखन चोर साबित चोर साबित कर दिया है-सारे ऑपरेशन में उसका दिमाग सुदर्शन चक्र-सा घूम रहा था और हम और लूमड़ मियां तो भीम, अर्जुन बनकर रह गए हैं।"
“आपकी कोई बात मेरी समझ में नहीं आ रही है।”
“समझने के लिए दिमाग पर जोर भी मत डालो, क्योंकि ऐसा करने से तुम जल्दी ही बूढ़े हो जाओगे।" विजय ने उसे समझाने वाले भाव में कहा और बोला—"खैर, अपना वो महाभारत का वृत्तांत जारी रखो।"
"महामहीम चाहते थे कि आप और अलफांसे जिन दो स्कीमों पर काम कर रहे हैं, निर्विघ्न करते रहे, क्योंकि ऐसा होते रहने में ही उनकी सफलता छुपी थी, वे जानते थे कि आप लोग सफल हों या अलफांसे—अंततः कोहिनूर उन्हीं के हाथ लगना है—हां, यदि आप दोनों में से कोई सफल न होता तो उन्हें भी सफलता न मिलती, इसलिए उस गतिरोध को अदृश्य शक्ति के रूप में महामहीम ने हल किया है।"
"जैसे?"
"कंट्रोल रूम वाले ऑपरेशन में अलफांसे और हैम्ब्रीग की योजना गड़बड़ा गई थी, इस गड़बड़ की वजह से के○एस○एस○ और इसमें शक नहीं कि अलफांसे का आगे का काम काफी कठिन हो गया था—तब, बॉण्ड की आवाज में एम से बात करने से अलफांसे की राह में उत्पन्न हुआ गतिरोध दूर हुआ था।”
"यूं कहो प्यारे कि अन्जाने में हम सब साले की नकलची चचा के इशारे पर नाचते रहे।"
उसकी बात पर कोई ध्यान न देकर बोगान ने कहा—"अलफांसे के पीछे-ही-पीछे महामहीम भी 'बैंक संस्थान' के नीचे से म्यूजियम
के नीचे तक चली गई सुरंग में पहुंच गए हैं, बल्कि वो मुझे रिपोर्ट दे चुके हैं तहखाने से इस सुरंग के माध्यम से निकलना है, इसीलिए मैंने आप सब लोगो को कवर किया है।"
"मगर प्यारे, सुरंग अभी तक पार तो हुई नहीं है।"
"हो जाएगी हुजूर, इतने उतावले क्यो हैं—खैर, आप लोग जरा इधर, एक लाइन में खड़े हो जाए ताकि मैं ड्रिल मशीन का निरीक्षण कर सकूं।"
हाथ ऊपर उठाए वे चारों बोगान के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य थे।
वे दीवार के सहारे खड़े हो गए, हाथ ऊपर उठाए आशा धीरे-धीरे चोरी से दीवार को खुरच रही थी—लंबे नाखून होने की वजह से इस काम को वह बडी आसानी से कर सकती थी।
धीरे—धीरे उसने अपनी मुट्ठी में ढेर सारी मिट्टी जमा कर ली।
और फिर, अवसर मिलते ही बिजली की-सी फुर्ती से उसने यह मिट्टी बोगान के चेहरे पर फेंक दी। ढेर सारी मिट्टी बोगान की आंख से घुस गई, बोगान बौखला उठा और इस अवसर के मिलते ही अशरफ ने फुर्ती के साथ रिवॉल्वर निकालकर फायर झोंक दिया। गोली बोगान के सिर पर लगी। सारी सुरंग में उसकी अंतिम चीख गूंजती चली गई।
¶¶
इर्विन के दूध-से गोरे, सुडौल और गदराए जिस्म पर उस वक्त सफेद रंग का अत्यन्त ही झीना नाइट गाउन था—इतना झीना कि उसकी ब्रेजरी और अंडरवियर भी स्पष्ट चमक रहे थे—उसके पुष्ट वक्ष प्रदेश को ब्रेजरी कैद-सा किए थी।
एक भरपूर अंगडाई के साथ वह बेड़ से उठी।
सीधी ड्रेसिंग टेबल के सामने जाकर खड़ी हो गई—अपने यौवन को निहारने लगी वह—मुखडे पर बिखरी जुल्फों को लंबी, गोरी एंव पतली उंगलियों से ही जब उसने संवाला तो दूध से धुला-सा मुखड़ा दमक उठा।
उसी क्षण—उसने अपने कमरे के बाहर वाली गैलरी में से एक से ज्यादा व्यक्तियों के बोलने की और भागने की आवाज सुनी –इर्विन चौंकी और अभी ठीक से वह कुछ समझ भी नहीं पाई थी किसी ने जोर-जोर से उसके कमरे के बंद दरवाजे पर दस्तक दी।
कुछ भी न समझती हुई इर्विन दरवाजे की तरफ लपकी, हाथ बढाकर उसने चटकनी खोल दी, उसी पल सारी कोठी में एक नौकर की आवाज गूंजी—"दरवाजा मत खोलना इर्विन मेमसाहब।"
मगर तब तक चटकनी खुल चुकी थी और चटकनी के खुलते ही बाहर की तरफ से दरवाजे पर किसी ने इतना जोरदार धक्का मारा कि इर्विन के माथे पर फटाक से किवाड़ लगा।
एक चीख के साथ उछलकर वह पीछे जा गिरी।
झपटकर एक साथ फीट लंबा लड़का न केवल कमरे में आ गया, बल्कि विद्युत गति से घूमकर उसने चटकनी भी बंद कर दी। ऐसा होते ही बाहर से दरवाजा पीटा जाने लगा, मगर उसकी परवाह किए बिना सात फीट लंबा लड़का घूमा।
पलक झपकते ही हो गई इस घटना ने इर्विन को बदहवास कर दिया, बुरी तरह आंतकित हो गई, वह चेहरे का रंग उड़ गया—और उस वक्त तो उसके समूचे जिस्म में मौत की ठंड़ी लहर बिजली बनकर कौंध उठी जब दृष्टि लड़के पर पड़ी—उस तंदरुस्त और
खूबसूरत लडके का चेहरा इस वक्त किसी भट्टी के समान भभक रहा था—आंखें मानो दो दहकते अंगारे थीं।
किसी जंगली भेड़िया-सा हिंसक नजर आ रहा था वह।
"क...कौन हो तुम?" आंतक से घिरी इर्विन के कण्ठ से निकला।
जैसे कोई सांप फुंफकारा हो—"मुझे नहीं पहचानती?"
"त...तुम विकास तो नहीं हो, रैना दीदी के बेटे?"
"मैं वही हूं।"
"म...मगर तुम यहां कैसे और इतने गुस्से में क्यों हो?"
"मैं तुमसे यह कहने आया हूं कि तुम इसी क्षण में अलफांसे गुरू से सम्बन्ध विच्छेद कर लो।"
"क...क्या मतलब?"
"अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो...।"
"म...मगर क्यों, वो मेरे पति हैं।"
"यह सब बकवास है।" विकास दहाड़ उठा—"तम बहुत बड़े भ्रम का शिकार हो इर्विन, अलफांसे गुरू तुमसे बिल्कुल प्यार नहीं करते—केवल कोहिनूर को हासिल करने के लिए उन्होंने तुमसे शादी की है।"
"क...कोहिनूर, क्या मतलब?"
"कोहिनूर के○एस○एम○ नामक एक संस्था के चार्ज में रखा हैं, तुम्हारे डैडी इस संस्था के डायरेक्टर है और तुम्हारी इसी कोठी से, तुम्हारे डैडी के कमरे से उस कंट्रोल रूम तक रास्ता जाता है, जहां कोहिनूर से सम्बन्धित उपग्रह सिग्नल देता है।"
"यह सब तुम क्या कह रहे हो, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है।"
"यह बहुत लंबी कहानी हैं इर्विन, संक्षेप में सिर्फ तुम इतना ही समझ लो कि अलफांसे गुरू ने तुमसे इसलिए शादी नहीं की है कि वो तुमसे प्यारे करते हैं या अपना घर बसाना चाहते हैं—उनका ऐसा कहना एक चाल है, खूबसूरत धोखा—हकीकत यह है कि शादी के बहाने वे इस कोठी के नीचे कंट्रोल रूम में गड़बड़ करने और कोहिनूर तक पहुचंने के लिए आवश्यक चाबियों आदि का प्रबंध करने के लिए घुसे हैं—उनका अंतिम मकसद कोहिनूर को हासिल करना है, यदि उस मकसद के पूरा होने के बाद तुमने उनके गले की घंटी बनकर लटकने की कोशिश की तो वो तुम्हें खत्म कर देंगे।"
"यह झूठ है।"
"यह सच हैं, विकास उससे कहीं ज्यादा जोर से चीख पड़ा—"तुम क्राइमर अंकल की पत्नी नहीं, उनकी शतरंजी चाल की एक मोहरा मात्र हो।"
"यह सब झूठ है, बकवास है।" इर्विन चीख पड़ी—"म...मैं उनके बच्चे की मां बनने वाली हूं।"
लड़के ने भभकते स्वर में कहा—"इसका मतलब तुम नहीं मानोगी, अलफांसे गुरू से सम्बन्ध विच्छेद करके कभी इस कोठी में न आने के लिए नहीं कहोगी?"
"म...मैं ऐसा कैसे कर सकती हूं, वो मेरे पति हैं।"
"तो फिर यह लो।" विकास ने जेब से एक चाकू निकालकर खोल लिया, गुर्राया—"इस सारे किस्से को मैं खत्म किए देता हूं—अलफांसे गुरू की सारी योजना का आधार तुम हो, और जब तुम ही न रहोगी तो उनकी सारी योजना तिनके-तिनके होकर बिखर जाएगी।"
इर्विन के जिस्म से मानो सारा रक्त निचोड़ लिया गया हो।
"न...नहीं—म...मुझे मत मारो।" चीखता हुई वह पीछे हटी।
मगर चाकू ताने विकास इर्विन की तरफ बढ़ा।
बंद कमरे का दरवाजा बाहर से बराबर पीटा जा रहा था।
आंखों के सामने नजर आ रही साक्षात् मौत से बचने के लिए इर्विन धीरे-धीरे पीछे हट रही थी कि अचानक ही विकास बाज की तरह झपटा।
चाकू खच्च से इर्विन के पेट में समा गया।
जहां इर्विन के कण्ठ से निकली चीख ने गार्डनर की समूची कोठी को झनझनाकर रख दिया, वही इर्विन के पेट से निकले गर्म खून
का फव्वारा विकास के चेहरे से टकराया।
लड़के का सारा चेहरा खून से रंगता चला गया।
चाकू को एक वृत्त की शक्ल में पेट के अन्दर घुमा दिया उसने इर्विन की आंतें बाहर निकल आईं—सफेद गाउन सुर्ख होता चला गया, जरा भी तो रहम नहीं किया जालिम ने। इर्विन की लाश फर्श पर गिरी। आंखें फाड़े छत को घूर रही थी वह।
¶¶
इस्पात की बनी उस चौड़ी सड़क पर हालांकि सिंगही भाग नहीं रहा था, परन्तु फिर भी उसकी चाल भागने की प्राथमिक अवस्था जैसी थी—जिस रास्ते को कार से दस और पंद्रह मिनट के बीच में तय कर सकता था वह, उसी रास्ते पर चलते-चलते उसे पैंतालीस मिनट के करीब गुजर चुके थे।
करीब पचास मिनट में वह टंकी के करीब पहुंचा।
यहां इस विशाल टंकी की बाईं दीवार में एक तीन फीट व्यास का मोखला नजर आ रहा था—सिंगही समझ सकता था कि वह मोखला विजय आदि से टेम्स से शुरु की गई सुरंग का अंतिम गेट था, यानि सुरंग पूरी खुद चुकी था।
सुरंग के मुंह को देखकर वह धीमे से मुस्कराया और उसके नजदीक पहुंचकर ठिठका, फिर उसने जोरदार आवाज लगाई—"बोगीन।" जवाब में बोगान की आवाज नहीं उभरी—हां, सुरंग में उसकी अपनी आवाज जरूर गूंजती चली गई।
सिंगही ने बोगान को एक-दो आवाज और लगाईं और जब इस पर भी जवाब में बोगान की आवाज नहीं उभरी तो अचानक ही सिंगही कुछ सतर्क-सा नजर आने लगा—बहुत ही ध्यान से उसने अपने चारों तरफ फैले सन्नाटे को घूरा—अजीब रहस्यमय-सन्नाटा लगा उसे।
अब वह तेज कदमों के साथ इस्पात की टंकी के खुले दरवाजे की तरफ बढ़ गया और एक मिनट बाद ही वह टंकी के फर्श पर था—चेहरा उठाकर उसने ऊपर देखा, एक सौ पंद्रह फीट ऊपर नजर आ रही टंकी की छत की तरफ—ऊपर के दरवाजे से लेकर टंकी के फर्श तक वह रस्सी लटक रही थी, जिसके माध्यम से हैम्ब्रीग नीचे आया था।
सिंगही ने अपनी रिस्टवॉच पर नजर ड़ाली और फिर तेजी से उस रस्सी की तरफ बढ़ा, अभी वह रस्सी के नजदीक पहुंचा ही था कि धांय।
एक गोली की आवाज से सारी सुरंग गूंज उठी।
दहकती बुलेट सिंगही की बाईं जांघ में धंस गई और एक चीख के साथ त्यौराकार वह इस्पात के फर्श पर गिरा, इसी क्षण वहां विजय की आवाज गूंज उठी—"गुड मॉर्निंग, चचा।"
गजब की फुर्ती के साथ सिंगही उछलकर खडा हो गया।
जांघ में लगी गोली के जख्म में हो रही पीड़ा के बावजूद उसे देखकर सिंगही मुस्कराया और बोला—"मॉर्निंग बेटे, लगता है कि बोगान का क्रियाक्रम कर दिया है तुमने।"
विजय ने कंधे उचकाए, बोला—"तुम तो जानते हो चचा कि क्रियाक्रम करने की आदत-सी बन गई है हमें। अब देखो न—तुम्हारे क्रियाक्रम की तैयारी हैं।"
"चचा को मारोगे?"
"जब चचा ही नालायक हो तो भतीजा क्या करे? अब देखो न—दुनिया के उस नायाब हीरे के तुम अकेले ही हड़प जाने के चक्कर में हो—अबे शर्म करो चचा, इस बुढ़ापे में तो कुछ शर्म करो—कोहिनूर को अकेले नहीं पचा सकोगे, पेट में दर्द हो जाएगा।"
"और तुम यहां यह सोचकर छुपे थे कि चचा से कोहिनूर छीन लोगे?"
"सुरंग खोदनी इसलिए शुरु की थी कि कोहिनूर लूमड़ से छीनना है, मगर कुछ ही देर पहले पता लगा कि सुदर्शन चक्र तो तुम्हारा घूम रहा था—खैर, अपने पर क्या फर्क पड़ना था—लूमड़ से न सही, तुम्हीं से सही—बहरहाल सही समय पर हम? यहां पहुंच ही गए हैं—फिर भी, यह मानना पड़ेगा कि तुम नसीब के अव्वल दर्जे हो—हमने सोच लिया था कि बोगान की आवाज सुनकर तुम चौंकोगे—उस अवस्था में यहां से निकलने के लिए तुम्हारे सामने दो ही रास्ते होंगे, पहला सुरंग और दूसरा यह टंकी—हमें ज्यादा उम्मीद तुम्हारे सुरंग वाले रास्ते में ही घुसने की थी, क्योंकि नौ बजे से पहले यह फर्श हिल तक नहीं सकेगा, मगर जब यहां आकर यह रस्सी देखी तो जाना कि बाहर निकलने का फर्श के अलावा भी इंतजाम हैं। सो चचा, हम यहीं जम गए—खुद अगर तुमने सुरंग में घुसने की कोशिश की होती तो इस वक्त तक तुम्हारा सिर सुरंग के अन्दर और धड़ सुरंग के इधर लुढ़क रहा होता, क्योंकि सुरंग के अन्दर अपने झानझरोखे, गोगियापाशा और विक्रमादित्य घात लगाए बैठे हैं।"
"मैं रेंगकर सुंरग में दाखिल होता और वे मेरी गर्दन साफ कर देते?" कहते वक्त सिंगही यूं मुस्करा रहा था, जैसे कोई बड़ा किसी बच्चे की बचकानी योजना पर मुस्करा रहा हो।
"वहां न सही—यहां हम तुम्हें साफ कर देंगे।"
सिंगही की मुस्कारहट गहरी हो गई, बोला—"बच्चों को इतने भयानक सपने नहीं देखने चाहिए बेटे।"
"जब शक्ल ही ऐसी भयानक हो चचा तो सपने भी डरावने ही चमकते हैं।"
"वह गोली तुमने पीछे से चलाई थी बेटे, इसलिए लग गई, मगर तुम जानते हो कि यह गोली का जख्म तुम्हारे चाच के लिए
कोई महत्व नहीं रखता है—अब जरा गोली चलाकर देखो, संगआर्ट का प्रदर्शन तुम भी करना सीख गए हो, मगर असली प्रदर्शन आज हम दिखाएंगें।"
"इतना बेवकूफ नहीं हूं चचा कि तुम पर सामने से गोली चलाकर हथियारों की दुकान से बड़ी मेहनत के बाद चुराए गए कारतूसों का दुरूपयोग करूं।" कहने के साथ ही विजय ने गन अपने कंधे पर लटका ली—उसका इरादा भांपकर सिंगही ने बगल में हाथ डाला।
उसके ऐसा करते ही विजय ने फुर्ती से अपने कदमों में पड़ा वह मोटा डंडा उठा लिया, जिसे शायद अपने साथ लेकर ही वहां छुपा था, बोला—"मैं तुम्हारे इस फेर में नहीं पड़ूंगा, चचा।"
सिंगही के मस्तिष्क को एक झटका-सा लगा।
विजय ने आंख मारी और बोला—"अपने जिस्म को करेंटयुक्त कर लेना तुम्हारा पुराना दांव है चचा, समझ सकता हूं कि इसी दांव से तुमने लूमड़ को भी बेहोश किया होगा और इसी से निपटने के लिए मैंने यह हथियार तैयार किया हैं—कुछ देर पहले तक यह फावड़ा था, अब केवल एक लाठी है और इस लाठी पर से लेकर करेंट मुझ तक नहीं पहुंच सकेगा।"
"काफी समझदार हो गए हो।"
लाठी के मुकाबले जरा कम लंबे, मगर अधिक मोटे डंडे को अपने दोनो हाथों में पकड़कर तौलता-सा विजय बोला—"अब तुम्हें भी समझदारी का परिचय देना चाहिए चचा।"
"वह कैसे?"
"कोहिनूर को मेरे हवाले करके।"
"पहले भी कह चुका हूं बेटे कि ऐसे खौफनाक ख्वाब मत देखा करो।"
जवाब में इस बार विजय ने झपटकर ड़ंडे का वार उसके सिर पर किया—सिंगही ने फुर्ती से झुककर न केवल खुद को बचाया, बल्कि विजय पर भी जम्प लगाई। एक तरफ हटकर विजय ने पुनः वार किया।
स्वयं को बचाकर सिंगही पुनः झपटा।
इस प्रकार, यह क्रम जारी हो गया—विजय के प्रत्येक वार से स्वयं को बचाकर सिंगही उस झपटता और विजय, क्योंकि जानता था कि सिंगही के जिस्म से स्पर्श होने के अर्थ खतरनाक था, इसलिए खुद को बचाकर उस पर वार करता।
दो मिनट तक लगातार चलते रहे, एक-दूसरे के आक्रमण से वे बड़ी खूबसूरती से खुद को बचाते रहे और फिर अचानक ही टंकी
के दरवाजे पर अशरफ, विक्रम और आशा नजर आए।
सिंगही पर नजर पड़ते ही अशरफ ने फायर झोंक दिया।
सिंगही ने उछलकर खुद को गोली से बचाया, मगर इस फेर में विजय के डंडे से खुद को नहीं बचा सका—डंडा सांय से उसकी पसलियों पर पड़ा। एक चीख के साथ सिंगही गिरा।
"चचा से दूर रहना, इसके शरीर में करेंट है।"
हालांकि यह वाक्य विजय ने बहुत जल्दी चीखकर कहा था, परन्तु उससे पहले ही उचित मौका जानकर विक्रम ने सिंगही पर जम्प लगा दी थी। सिंगही के जिस्म से टकराते ही उसे तीव्र झटका लगा—एक चीख के साथ वह उछलकर टंकी के एक कोने में जा गिरा—सिंगही संभलकर खड़ा हो चुका था।
उसने जैसे ही अशरफ को पुनः रिवॉल्वर तानते देखा, उस पर जम्प लगा दी, करेंट का झटका लगते ही अशरफ भी दूर जा गिरा।
रिवॉल्वर उसके हाथ से छूटकर कहीं गिर गया था, मगर इस अवसर का लाभ उठाते हुए विजय ने एक और वार सिंगही की कमर पर किया।
सिंगही मुंह के बल पर फर्श पर गिरा।
विजय ने उसे बचाव का मौका दिए बिना सांप से लाठी का दूसरा वार उसके सिर पर किया—इस बार सिंगही के कण्ठ से न केवल चीख उबल पड़ी, बल्कि सिर से खून की धारा भी बह निकली।
विजय ने फर्श पर पड़े सिंगही पर तीसरा वार करने के लिए लाठी हवा में उठाई ही थी कि सिंगही ने नीचे ही से उसके पैरो पर जम्प लगा दी।
थरथराहट मिश्रित एक धक्के के साथ विजय भी दूर ज गिरा—हालांकि वह गजब की फुर्ती के साथ उछलकर खड़ा हो गया था, किन्तु सिंगही ने उससे कहीं ज्यादा फुर्ती का प्रदर्शन किया—वह न केवल उठकर खड़ा हो गया था, बल्कि एक ऊंची जम्प लगाई उसने और रस्सी पकड़ ली। अगले पल सिंगही किसी बंदर के समान रस्सी पर चढ़ता चला गया।
"अबे मैदान छोड़कर भागते कहां हो, चचा।" चीखते हुए विजय ने भी रस्सी पर जम्प लगा दी और सिंगही के पीछे चढ़ने लगा—इधर आशा ने फर्श पर एक तरफ पड़े अशरफ के रिवॉल्वर पर जम्प लगाई थी—रिवॉल्वर हाथ में आते ही उसने रस्सी पर चढ़ रहे सिंगही पर फायर किया।
गोली सिंगही की दाईं टांग में लगी।
चढ़ता हुआ विजय बोला—"शाबाश गोगियापाशा, मार गिराओ साले को।"
सिंगही ने खुद को बड़ी मुश्किल से न केवल रस्सी से गिरने के बचाया, बल्कि अब वह कुछ ऐसे अंदाज में रस्सी पर चढने लगा कि चढ़ते समय आशा के रिवॉल्वर पर नजर रखे।
विजय के वाक्य से प्रोत्साहित होकर आशा ने सिंगही पर दूसरा फायर किया।
मगर इस बार फायर होते ही सिंगही रस्सी छोड़कर हवा में उछला और एक कलाबाजी खाने के बाद पुनः रस्सी को पकड़कर उस पर चढ़ने लगा।
सिंगही के इस कमाल को देखकर आशा ही नहीं, विजय और अशरफ भी चमत्कृत रह गए—विजय अपनी पूरी फुर्ती के साथ रस्सी पर चढ़ता चला जा रहा था। आशा ने पुनः फायर किया।
सिंगही ने हरकत दोहरा दी।
गोली से बचने के बाद लौटकर पुनः रस्सी को पकड़ लेने वाला सिंगही का कमाल देखने लायक था। अशरफ को जाने क्या सूझा कि उसने आशा के हाथ से रिवॉल्वर लेकर खुद निशाना लिया।
सिंगही की आंखें अब अशरफ पर चिपक गई थीं।
अशरफ ने फायर किया—मगर व्यर्थ।
सिंगही अपने उस अजीब आर्ट का प्रदर्शन करके पुनः गोली को धोखा दे गया और गोली टंकी की इस्पाती दीवार से टकराकर अपना ही मुंह तोड़ बैठी।
रिवॉल्वर खाली हो गया।
अब अशरफ और आशा के पास रस्सी पर चढने की हो रही प्रतियोगिता को देखने के अलावा और कोई चारा नहीं था—यह प्रतियोगिता ऐसे दो व्यक्तियों के बीच हो रही थी, जो अपने—अपने क्षेत्र के बादशाह हैं—जासूसो में श्रेष्ठ विजय।
अपराधी सम्राट—सिंगही।
देखते-ही-देखते सिंगही उस खुले दरवाजे पर चढ़ गया जहां से यह रस्सी लटकाई गई थी, विजय अभी भी उस स्थान पर पहुंचने की कोशिश कर रहा था, अचानक ही सिंगही ने दरवाजे में खड़े होकर नीचे झांका, रस्सी फुर्ती से चढ़ रहे विजय को देखकर
मुस्काराया बोला—"रुक जाओ बेटे।"
"रुकना तो तुम्हें है, चचा।" बढ़ता हुआ विजय चिल्लाया।
"अगर नहीं रुकोगे बेटे, तो मैं ऊपर से रस्सी खोल दूंगा।"
विवशतावश विजय को ठिठक जाना पड़ा, बोला—"यह तो फाउल है चचा।"
"फाउल ही सही बेटे, मगर यह बात अच्छी तरह दिमाग में बैठा लो कि अगर अब तुमने एक इंच भी ऊपर चढ़ने के लिए हाथ-पैर
मारे तो मैं रस्सी खोल दूंगा और जरा सोचो कि मेरे ऐसा करते ही क्या होगा—यही न कि तुम यहां से सीधे इस्पाती फर्श पर जा गिराने और फिर फर्श पर खड़े तुम्हारे साथियों को भी यह पहचानने में मेहनत करनी होगी कि यह लाश किसकी है।"
इतने ऊपर से इस्पाती फर्श पर गिरना वाकई आत्महत्या करना था, इसीलिए तो सिंगही की धमकी के कारण विजय को रस्सी पर ठिठक जाना पड़ा था, बोला—"अमां इससे ज्यादा नालायकी तुम और क्या दिखाओगे चचा कि मैदान छोड़कर भाग रहे हो?"
"इसमें शक नहीं कि तुम्हारे सामने से मुझे हमेशा मैदान छोड़कर भागना पड़ता है और सच्चाई यह है बेटे कि मैं इसीलिए तुम्हारी कद्र करता हूं।"
"अमां झूठ मत बोलो चचा, क्या खाक कद्र करते हो?"
"क्या यह कद्र कम है कि इस वक्त मैं तुम्हें मार नहीं रहा हूं, जिंदा छोड़कर जा रहा हूं?"
"विजय दी ग्रेट को मारने वाले मर गए, चचा।"
"तुम्हें मारने के लिए इस रस्सी को खोल देने से ज्यादा मुझे कुछ भी नहीं करना पड़ेगा, मगर मैं ऐसा नहीं करूंगा। जानते हो क्यों—सिर्फ इसलिए कि तुम बहादुर हो और सिंगही बहादुरो को चींटी की मौत नहीं मार सकता—जिस तरह विश्व सम्राट बनना मेरा पहला लक्ष्य है उसी तरह भविष्य में तुम्हें एक शानदार मौत उपहारस्वरूप देना मेरा दूसरा लक्ष्य है।"
"तुम सठिया गए हो, चचा।"
ठहाका लगार हंस पड़ा सिंगही, टंकी की हर दीवार जैसे उसके सुर-से-सुर मिलाकर हंसने लगी, बोला—"शायद तुम ठीक कह रहे हो भतीजे, इसीलिए तुम्हें जीवित छोड़कर जा रहा हूं।"
इन शब्दों के बाद वह खुले दरवाजे में गायब हो गया।
विजय पुनः तेजी से ऊपर चढने लगा—अभी मुश्किल से वह दो या तीन फीट ही चढ़ पाया था कि खट्ट की एक जोरदार आवाज के साथ ऊपर का दरवाजा बंद हो गया।
विजय ठिठक गया, वह जानता था कि इस दरवाजे को कम-से-कम समय रहते तक तो खोला नहीं जा सकेगा—रस्सी पर लटका वह बड़बडाया—"जमाने, धत् तेरे की।"
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