जीव के सिर पर पड़ी पुलिस टोपी उतरकर गिर चुकी थी । उसका भयानक-सा नजर आने वाला चेहरा स्पष्ट हो गया था । शरीर पर पड़ी वर्दी पर खून के बड़े-बड़े धब्बे नजर आ रहे थे । स्कूल में किसी की नजर उस पर पड़ती तो वह दहशत से चीख उठता । बीतते पलों के साथ स्कूल में आतंक फैलता चला गया । रहस्यमय जीव के स्कूल में आ आने की खबर फैलने लगी ।

महाजन जानता था कि वह बुरी तरह फँस चुका है । स्कूल से बाहर निकलता है तो पुलिस उसे नहीं छोड़ेगी । ऐसे में अगर वह रहस्यमय जीव को यहाँ छोड़ जाता तो ये स्कूल में लाशें बिछा देता । यानी कि जीव के साथ रहना उसकी मजबूरी बनती जा रही थी ।

महाजन ने पैंट में फँसी बोतल निकाली । घूँट भरा ।

दोनों तेजी से स्कूल के भीतर रास्ते में आगे बढ़ते जा रहे थे । तभी महाजन ठिठका । इस तरह आगे बढ़ते रहने का कोई फायदा नहीं था । कहीं तो ठहरना ही था । पास ही एक दरवाजा खुला मिला तो रहस्यमय जीव की बाँह पकड़े वह भीतर प्रवेश कर गया ।

ये आठवीं-नौवीं के बच्चों की क्लास थी, परन्तु इस वक्त वहाँ पढ़ाई नहीं हो रही थी । उन्हें भीतर प्रवेश करते पाकर सब सहमे-से थे । खासतौर से रहस्यमय जीव को देखकर बच्चे दहशत से चीख उठे । अजीब-सा शोर उठ खड़ा हुआ । महाजन को समझ नहीं आया कि क्या करें ? पलटकर उसने फौरन दरवाजा भीतर से बंद किया । गला फाड़कर हड़बड़ाहट भरे अंदाज में चीखा ।

“खामोश हो जाओ ।”

कुछ ने उसकी बात सुनी । कुछ ने नहीं ।

कई बार कहने के बाद बच्चों की चीखें कम हुई । पाँच छः बच्चे बेहोश हो चुके थे । रहस्यमय जीव एक तरफ खड़ा अपनी आँख हर दिशा की तरफ घुमा रहा था । बच्चों की मैडम दीवार के साथ लगी कुछ दूरी से इधर ही देख रही थी । महाजन इस स्थिति पर तेजी से सोच रहा था ।

“डरो मत ।” महाजन ने बच्चों पर नजर मारी, “जब तक मैं इसके साथ हूँ, ये तुम्हें कुछ नहीं कहेगा ।”

किसी ने कोई जवाब नहीं दिया । सब सहमे-से रहस्यमय जीव को देखे जा रहे थे । सन्नाटा-सा उभरा हुआ था । भय-दहशत, डर उनके चारों ओर आँखों में स्पष्ट नजर आ रहा था ।

तभी रहस्यमय जीव नीचे फर्श पर बैठा और सबको देखने लगा ।

मैडम दहशत से भरी अभी तक दीवार से सटी हुई थी ।

“तुम अपने पर काबू रखो ।” महाजन ने मैडम से कहा, “डरने की कोई बात नहीं है ।”

मैडम के होंठ हिले परन्तु वह कुछ कह नहीं सकी ।

“तुम ठीक हो ?” महाजन ने पूछा ।

मैडम ने पहले ‘हाँ’ कहा फिर ‘न’ कहा । चेहरे पर पीलापन भरा पड़ा था ।

“बच्चों को संभालो, जो बेहोश हो गये हैं ।” महाजन ने शांत स्वर में कहा और घूँट भरा । बोतल खत्म होने वाली थी । चेहरे पर गंभीरता समेटे महाजन आगे बढ़ और कुर्सी पर जा बैठा ।

रहस्यमय जीव आराम से फर्श पर बैठा था ।

मैडम काँपती टाँगों से बेहोश बच्चों की तरफ बढ़ गई थी । महाजन ने रहस्यमय जीव को देखा । वह उसे ही देख रहा था । दोनों की नजरें मिली तो जीव मुस्कुरा पड़ा । न चाहते हुए भी महाजन चेहरे पर जबरन मुस्कान ले आया ।

मैडम ने बेहोश बच्चों को संभाला । उसने दो-तीन बच्चों को साथ देने के लिए पास बुलाया । बच्चे घबराये हुए थे । सिर्फ एक ही बच्चा मैडम की सहायता के लिए आगे बढ़ा । चार बच्चे होश में आ गये थे । दो को अभी होश नहीं आया था । मैडम ने कुर्सी पर बैठे महाजन को देखा ।

“क्या हुआ ?”

“दो बच्चे को होश नहीं आ रहा ।” मैडम के स्वर में हल्की-सी कँपकँपाहट थी ।

“क्यों ?”

“श... शायद उन पर भय से ज्यादा असर डाला है ।” मैडम ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

महाजन ने एक साथ दो घूँट भरकर बोतल खाली की और कह उठा ।

“तो अब क्या करना है ?” महाजन ने मैडम को देखा ।

मैडम, महाजन को देखती रही ।

“दोनों बेहोश बच्चों को बाहर छोड़ आने का इरादा है तुम्हारा ?” महाजन का स्वर सामान्य था ।

मैडम ने पुनः सूखे होंठों पर जीभ फेरी और सहमति से सिर हिलाया ।

“कैसे ले जाओगी बच्चों को बाहर ?”

“उठा-उठाकर ।”

“ले जाओगी, फिर वापस आओगी ?”

“वापस ?”

“हाँ, वापस । कहीं ऐसा न हो कि तुम बच्चे को छोड़ने जाओ और वापस ही न लौटो ।

“म... मैं वापस आऊँगी ।

“तुम्हें आना ही पड़ेगा ।” महाजन ने मैडम को देखा, “बच्चों को यूँ इस तरह अकेला नहीं छोड़ा जा सकता ।”

मैडम, महाजन को देखती रही । चेहरा फक्क-सा था ।

“बेहोश बच्चे को बाहर स्कूल स्टाफ के हवाले करके आओ । फिर दूसरे बच्चे को ले जाना ।”

मैडम ने फर्श पर बैठे रहस्यमय जीव को देखा । घबराहट चेहरे पर नाच रही थी । फिर वह पलटकर बेहोश बच्चे के पास पहुँची और उसे किसी तरह बाँहों में उठाया ।

“भारी है ।” महाजन की गंभीर निगाह मैडम पर थी ।

“म... मैं ले जाऊँगी ।” मैडम ने कहा ।

“जाओ ।”

मैडम ने फर्श पर बैठे रहस्यमय जीव को देखा । दरवाजे तक जाने के लिए उस जीव के पास से निकलना पड़ता था । महाजन ने मैडम की नजरों को पहचान कर कहा ।

“फिक्र मत करो । ये तुम्हें कुछ नहीं कहेगा ।”

मैडम के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे ।

महाजन उठा और आगे बढ़कर दरवाजा खोला । कुछ दूरी पर ढेरों लोगों की चुप खड़ी भीड़ दिखाई दी । उस भीड़ में पुलिस वाले थे । दरवाजा खुलते पाकर वह हड़बड़ाकर पीछे होने लगे ।

महाजन ने मैडम को देखा ।

“जाओ ।”

मैडम, बच्चों को बाँहों में उठाये आगे बढ़ी । रहस्यमय जीव के पास से निकलते हुए उसकी टाँगों में तीव्र कम्पन हुआ । वह गिरने लगी कि महाजन ने उसे संभाला ।

“ध्यान से, तुम भी गिरोगी । बच्चा भी गिरेगा । ये जीव तुम्हें कुछ नहीं कहेगा । डरो मत ।”

खुद को संभालते हुए वह बच्चों को उठाये आगे बढ़ी । दरवाजे तक पहुँची ।

“सुनो ।”

महाजन की आवाज सुनकर वह ठिठकी ।

महाजन पास पहुँचा ।

“वापस आ जाना ।” महाजन ने उसकी आँखों में झाँका, “ मैं इतने बच्चों को नहीं संभाल सकता । अगर इनकी मैडम पास नहीं हुई तो इन्हें ज्यादा डर लगेगा इस जीव से ।”

मैडम ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और बाहर निकल गई ।

महाजन ने दरवाजा बंद कर लिया ।

बच्चे सहमे-से बैठे कभी महाजन को देखते तो कभी रहस्यमय जीव को ।

“तुम बच्चों को डरने की जरूरत नहीं है । खामोशी से बैठे रहो ।” महाजन बोला, “ये जीव किसी को कुछ नहीं कहेगा, अगर तुम इसे तंग नहीं करोगे तो ।”

तभी एक बच्चा हिम्मत इकट्ठी करके बोला ।

“मैंने इसकी तस्वीर अखबार में देखी थी ।”

“अवश्य देखी होगी ।” महाजन ने उसे देखा ।

“अखबार में लिखा था कि ये जल्लाद है । इसने बहुतों तो को मारा है ।”

“ठीक कहते हो तुम ।” महाजन शांत ढंग से मुस्कुराया, “इसने बहुतों को मारा है, लेकिन क्या अखबार में यह नहीं लिखा था कि मरने वाले इसे मार देना चाहते थे । इसकी जान लेना चाहते थे ।”

बच्चा कुछ न कह सका ।

महाजन ने सब पर निगाह फिराई ।

“बच्चों ।” महाजन के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान उभरी, “ये बहुत शरीफ जीव है । यह तभी किसी को कुछ कहता है, जब कोई उसकी जान लेने की कोशिश करें । अगर ये जल्लाद होता तो क्या इस तरह आराम से बैठा होता ? नहीं, जल्लाद इस तरह आराम से नहीं बैठते ।”

“आप ठीक कह रहे हैं सर !” दूसरा बच्चा कह उठा ।

“आप यहाँ क्यों आये हैं इसे लेकर ?” पहले वाले बच्चे ने पूछा ।

“मैं तो कहीं और जा रहा था इसके साथ ।” महाजन ने गंभीर स्वर में कहा, “पीछे पुलिस पड़ गई इसे मारने के लिए । मैं इसे बचाना चाहता था । इसी भागदौड़ में मैं यहाँ आ गया ।”

“बाहर तो पुलिस होगी ?” अन्य बच्चे ने पूछा ।

बच्चों का डर पहले से कुछ कम हो गया था ।

“हाँ !”

“पुलिस यहाँ भी आ सकती है ।”

“इस स्थिति में यहाँ नहीं आयेगी, जब तक मैं इस जीव के साथ तुम लोगों की क्लास में हूँ । पुलिस जानती है कि उनकी कोई हरकत इस जीव को वहशी बना सकती है । ऐसे में बच्चों की जान को खतरा है ।”

“सर !” तभी सबसे पीछे बैठा बच्चा कह उठा, “आप शक्तिमान से नहीं बच सकते ।”

“शक्तिमान ?”

“हाँ ! पुलिस खुद को मजबूर महसूस करेगी तो शक्तिमान की सहायता लेगी ।” उस बच्चे ने कहा ।

“शक्तिमान भला मिलेगा कहाँ ?” दूसरे बच्चे ने उस बच्चे को देखा ।

“मुकेश खन्ना को तो पता ही होगा शक्तिमान का एड्रेस ।” एक बच्चा कह उठा ।

“मुकेश खन्ना कौन है ?”

“वही तो शक्तिमान बनता है, जैसे मैं रामलीला में हनुमान जी का लंगूर बनता हूँ ।”

तभी दरवाजे पर आहट हुई । दरवाजा खुला । मैडम ने भीतर प्रवेश किया ।

दूसरा बच्चा अभी तक बेहोश पड़ा था ।

“देर लगी आने में ।” महाजन ने मैडम को देखा ।

“वो... वो उन लोगों को समझाने में देर लग गई कि... ।”

“किसे? पुलिस वाले को ?” महाजन ने मैडम को घूरा ।

मैडम सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गई ।

“पुलिस वालों को समझा देना कि ज्यादा समझदारी दिखाने की कोशिश न करें । इस जीव को गुस्सा आ गया तो बच्चों की जान को खतरा हो सकता है ।” महाजन ने शब्दों को चबाकर कहा ।

“मैं... मैं कह दूँगी ।”

“ले जाओ बेहोश बच्चे को ।”

मैडम खुद को संभालते हुए आगे बढ़ी । बच्चे को उठाया और दरवाजे की तरफ बढ़ी ।

फर्श पर बैठा रहस्यमय जीव, मैडम और बच्चे को देख रहा था ।

“वापस जल्दी आना ।”

मैडम बच्चे को बाँहों में संभाले बाहर निकलती चली गई ।

महाजन आगे बढ़ा और दरवाजा बंद करके पलटा । वह बच्चे को देखने लगा । बच्चे कभी उसे देखते तो कभी रहस्यमय जीव को । पैना सन्नाटा वहाँ उभरा हुआ था ।

“इसे दोस्त बनाना चाहोगे ?” महाजन ने बच्चों से पूछा ।

“ये कैसे दोस्त बनता है ?” एक बच्चे ने पूछा ।

“ऐसे ।” मुस्कराकर कहते हुए महाजन जीव के पास पहुँचा और उसकी तरफ हाथ बढ़ाया, “हैलो !”

रहस्यमय जीव ने हाथ बढ़ाया और महाजन का हाथ थामकर हिलाया और छोड़ दिया ।

महाजन ने मुस्कराकर बच्चों को देखा ।

“तुम सबने देखा होगा कि ये हैलो भी करता है । इससे हैलो करो और इसके दोस्त बन जाओ ।”

“ये तो हाथ भी मिलाता है ।” अन्य बच्चे ने कहा ।

“मैं नहीं मिलाऊँगा हाथ ।” दूसरा बच्चा बोला, “ये तो मुझे खा जायेगा ।”

“नहीं खायेगा ।” महाजन ने मुस्कराकर बच्चों को देखा, “पास आओ । हाथ मिलाकर इसे दोस्त बनाओ । इससे दोस्त बनाकर बहुत अच्छा लगेगा तुम्हें । आओ, सबसे पहले कौन-सा बच्चा आयेगा ?”

महाजन के इन शब्दों के साथ ही गहरी खामोशी छा गई वहाँ ।

किसी बच्चे ने भी अपनी जगह से हिलने की कोशिश नहीं की ।

“डरो मत । मुझ पर विश्वास करो । ये तब तक किसी को कुछ नहीं कहेगा, जब तक कि सामने वाला इसे नुकसान पहुँचाने की कोशिश नहीं करेगा । ये सबका बहुत अच्छा दोस्त है । आओ-आओ । देखें तो सही, कौन-सा बहादुर बच्चा सबसे पहले इससे हाथ मिलाकर इसका दोस्त बनता है ।”

चुप्पी ही छाई रही ।

महाजन की निगाह बच्चों पर फिरने लगी । वह इसलिए ये सब कह कर रहा था कि बच्चों के मन से इस जीव के प्रति डर निकाला जा सके । रहस्यमय जीव का रूप-आकार ही ऐसा था कि देखने वाला डर जाये । फिर ये तो बच्चे थे । डर की वजह से किसी बच्चे को ज्यादा नुकसान भी हो सकता था ।

महाजन ने महसूस किया कि किसी भी बच्चे पर उसकी बात का असर नहीं हुआ ।

तभी एक बच्चा अपनी जगह से उठा ।

“मैं हाथ मिलाऊँगा इससे ।”

“बैठ जा ।” अन्य बच्चे ने दबे स्वर में कहा, “वो तेरे को मार देगा । देख तो कितना भयानक है ।”

“अखबार में पढ़ा था, वो शरीर को चीर-फाड़ देता है ।” अन्य बच्चे ने कहा ।

“मेरे पापा कहते हैं भगवान के अलावा किसी से भी डरना नहीं चाहिए ।” उस बच्चे ने कहा, “मेरे पापा कभी भी गलत नहीं कहते । मैं इससे हाथ मिलाकर इसका दोस्त बनूँगा ।”

“पागल है ।”

“मरेगा ।”

“इसे कुछ नहीं होगा ।” महाजन मुस्कराकर कह उठा, “न तो ये पागल है । न ही ये मरेगा । ये इस जीव का दोस्त बनेगा । आओ ।”

वह बच्चा, महाजन की तरफ बढ़ा । उसके चेहरे पर घबराहट भी नजर आ रही थी ।

महाजन बराबर मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था ।

बच्चा, महाजन के पास पहुँचकर ठिठका और घबराहट बड़े स्वर में बोला ।

“ये मुझे खा तो नहीं जायेगा ?”

‘बिल्कुल भी नहीं । मैं तुम्हारे साथ हूँ । आगे बढ़ो । मिलाओ हाथ ।”

महाजन, बच्चे को लिए रहस्यमय जीव के पास पहुँचा ।

“हाथ आगे बढ़ाओ । हैलो करो ।”

बच्चे ने हाथ उठाया लेकिन रहस्यमय जीव की तरफ बढ़ने की हिम्मत नहीं कर सका । घबराहट से उसके शरीर में कंपन-सा उभरा । नजरें विचित्र से जीव पर थी ।

महाजन ने उसका हाथ पकड़कर जीव की तरफ बढ़ाया ।

“हैलो !”

तभी जीव ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बच्चे का हाथ थामकर उसे हिलाया । इसके साथ ही जीव के चेहरे पर मुस्कान आ ठहरी । फिर हाथ छोड़ दिया ।

सब बच्चे साँस रोके यह देख रहे थे ।

सब कुछ ठीक पाकर उस बच्चे ने फिर जीव से हाथ मिलाया । तभी कुछ बच्चे आगे बढ़े, रहस्यमय जीव से हाथ मिलाने के लिए । इसके साथ ही रहस्यमय जीव से हाथ मिलाने का एक नया सिलसिला वहाँ शुरू हो गया । महाजन को तसल्ली हुई कि बच्चों के मन से जीव के प्रति डर निकल गया है, वरना बच्चे आने वाले वक्त में परेशानी खड़ी कर सकते थे ।

महाजन बेचैन नजर आने लगा था ।

एक घंटा होने को आ रहा था मैडम को गये । वह बेहोश बच्चों को छोड़ने गई थी, परन्तु अभी तक लौटी नहीं थी । उसे कब का आ जाना चाहिए था ।

मैडम के न आने से बच्चों को संभाल पाना कठिन हो जायेगा । मैडम आयेगी । महाजन ने सोच भरे ढंग से सिर हिलाया । बच्चों को स्कूल वाले यूँ इस तरह नहीं छोड़ सकते । वो... ।

तभी दरवाज़े पर थपथपाहट-सी हुई और दरवाजा खुला । साड़ी लपेटे किसी ने भीतर प्रवेश किया और ठिठक गई । ये वह मैडम नहीं थी जो बेहोश बच्चों को लेकर गई थी । बच्चों को रहस्यमय जीव के साथ हाथ मिलाते पाकर उसके चेहरे पर हैरानी उभरी । जीव ने भी देखा, फिर बच्चों में व्यस्त हो गया ।

महाजन ने आगे बढ़कर दरवाजा बंद किया और उसे गहरी निगाहों से देखा ।

“कौन हो तुम ?” महाजन के होंठ हिले ।

“बच्चों की मैडम हूँ ।” वह बोली । निगाह जीव पर थी ।

“पहले वाली मैडम कहाँ हैं ।”

“वो यहाँ आने से डर रही है ।”

“मेरे ख्याल में तो उसने डरना बंद कर दिया था ।” महाजन की नजरें उस पर थी ।

“मैं नहीं जानती । बेहोश बच्चे को ले जाने के बाद उसने इधर आने को मना कर दिया था ।” कहने के साथ ही उसने महाजन को देखा, “स्कूल वालों ने मुझे यहाँ भेजने को तैयार किया ।”

“क्या नाम है तुम्हारा ?”

“मैडम शर्मा कहते हैं मुझे ।”

“तुम्हें यहाँ आने से डर नहीं लगा मैडम शर्मा ?”

“लगा ।” मैडम शर्मा ने गंभीर स्वर में कहा, “लेकिन बच्चों को अकेला भी नहीं छोड़ा जा सकता ।”

महाजन गंभीर नजरों से मैडम शर्मा को देखता रहा ।

“आपका क्या नाम है ?” मैडम शर्मा ने पूछा ।

“मेरे नाम से तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए ।” महाजन ने शांत स्वर में कहा ।

मैडम शर्मा की निगाह रहस्यमय जीव पर जा टिकी ।

“बच्चों को संभालो कि वो डरकर चीखें नहीं ।” महाजन बोला, “वैसे जीव के प्रति बच्चों का डर कम... ।”

“मैंने ऐसा जीव पहले कभी नहीं देखा ।” मैडम शर्मा ने कहा ।

महाजन खामोश रहा ।

“तुमने देखा है पहले कभी ऐसा जीव ?”

महाजन ने कुछ नहीं कहा ।

“अखबारों में तो लिखा था कि ये जल्लाद है । लोगों की हत्याएँ करता है । मुझे तो ऐसा नहीं लगता ।”

“ऐसा बन जाता है ये, अगर इसे तकलीफ दी जाये । बाहर दो पुलिस वालों को मार कर आया है । उन्होंने इस पर गोलियाँ चलाई थी ।” महाजन ने शांत स्वर में कहा, ‘तुमने उन पुलिस वालों की लाश देखी होंगी ।”

“हाँ !” मैडम शर्मा की निगाह बच्चों पर फिरने लगी ।

“तुम बच्चों को संभालो । बच्चों की तरफ से कोई झंझट न हो ।”

“बच्चों को यहाँ से बाहर निकाल दो ।”

महाजन ने मैडम शर्मा को देखा ।

“क्यों ?”

“बच्चों का इस जीव के पास रहना ठीक नहीं !” मैडम शर्मा ने महाजन को देखा ।

“बच्चों को यही रहना चाहिए ।”

“ये जीव कभी भी गुस्से में बच्चों पर झपट सकता... ।”

“ऐसा नहीं होगा । मेरी जिम्मेदारी ।”

मैडम शर्मा ने गहरी निगाहों से महाजन को देखा ।

“तुम बच्चों को बाहर क्यों नहीं भेज रहे ?”

“बच्चे यहाँ से बाहर निकल गये तो पुलिस अपनी मनमानी पर उतर आयेगी ।” महाजन का चेहरा सख्त हो उठा, “पुलिस वाले मुझे भी भून देंगे और इसे भी मारने की कोशिश करेंगे । ये आसानी से मरने वाला नहीं । गोलियाँ इस पर असर नहीं करेंगी । तब यह जल्लाद बन जायेगा और जाने कितनी लाशें बिछायेगा । बाद में क्या होगा मैं नहीं... ।”

“तुम्हें ये डर है कि पुलिस इस पर फायरिंग करेगी और ये... ।”

“मुझे इसका नहीं, इस वक्त अपना डर है ।” महाजन ने उसे घुरा, “तुम बच्चों की तरफ ध्यान दो ।”

मैडम शर्मा ने गंभीर निगाहों से रहस्यमय जीव को देखा । बच्चों को देखा । बच्चे बार-बार जीव के करीब जाकर उससे हाथ मिला रहे थे ।

मैडम शर्मा कुछ पल ये सब देखती रही फिर आगे बढ़कर रहस्यमय जीव से हाथ मिलाया ।

उसके बाद महाजन के पास आकर बोली ।

“देखने में भयानक-सा लगता है लेकिन हरकतें मासूमों जैसी हैं ।”

“ये सच में मासूम है ।”

“तुम इसे कब से जानते हो ?”

महाजन ने मैडम शर्मा को देखा फिर गंभीर स्वर में कह उठा ।

“डेढ़ महीने पहले से । जब इसे कोटेश्वर बीच पर पहली बार देखा गया ।”

“ये दूसरों का दुश्मन क्यों है ? तुम्हारा दोस्त क्यों है ?”

“इसे मालूम है कि मैं इसे नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा, इसलिए मेरा दोस्त है ।”

बच्चों में अब शोर पड़ना शुरू हो गया था ।

“सब अपनी जगह पर बैठ जाओ ।” मैडम शर्मा ने ऊँची आवाज में कहा ।

मैडम शर्मा ने दो बार कहा, तब बच्चे अपनी जगहों पर जाकर बैठने लगे ।

फिर भी बच्चों की बातों की आवाज सुनाई दे रही थी ।

बच्चों के पास से टहलते ही रहस्यमय जीव फर्श पर लेट गया था ।

“ये क्या हो रहा है ?” मैडम शर्मा के होंठों से निकला ।

“थक गया है । आराम करना चाहता है । शायद नींद भी ले ।” महाजन ने रहहस्मय जीव को देखा ।

“तुम बच्चों को कब तक यहाँ रखोगे ?”

“मालूम नहीं !” महाजन ने मैडम शर्मा को घूरा, “लेकिन बच्चे यही रहेंगे । तुम सवाल-जवाब बहुत कर रही हो ।”

मैडम शर्मा ने महाजन की आँखों में देखा ।

“मुझे बच्चों की ज्यादा चिंता है । मैं इन्हें यहाँ से बाहर निकाल ले जाना चाहती हूँ ।”

“ये बच्चे यही रहेंगे मैडम शर्मा !” महाजन एक-एक शब्द चबाकर कह उठा, “बेहतर होगा कि तुम इनके खाने-पीने की चिंता करो । बाहर जाकर कह दो कि बच्चों के लिए खाना-पीना तैयार रखें ।”

“बहुत बड़ी मुसीबत स्कूल पर टूट पड़ेगी । अगर बच्चें यहाँ रहे तो बच्चों के रिश्तेदारों-घरवालों को जवाब देना कठिन हो जायेगा ।” मैडम शर्मा ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा, “जब बच्चों को पता चलेगा कि उन्हें यहाँ से बाहर नहीं जाने दिया जा रहा तो वह हिम्मत खो बैठेंगे । यहाँ से बाहर जाना चाहेंगे । तब मैं इन्हें नहीं संभाल पाऊँगी ।”

“बच्चे यही रहेंगे ।” महाजन ने दाँत भींचकर कहा ।

“इन्हें बाथरूम जाने की जरूरत महसूस हुई तो ?”

“कमरे के कोने में बाथरूम बना लो ।”

“छी, कैसी बात... ।”

“जो मैं कह रहा हूँ, वैसा ही होगा ।” महाजन के होंठों में गुर्राहट निकली ।

“एक बात याद रखना मिस्टर !” मैडम शर्मा कठोर स्वर में कह उठी, “बच्चे जब बाहर जाना चाहेंगे तो तुम रोक नहीं सकोगे । ये जीव, बच्चों का दोस्त बन गया है और... ।”

तभी महाजन के हाथ में रिवॉल्वर नजर आने लगी ।

मैडम शर्मा ने होंठ बंद कर लिए ।

“ये बच्चे यहाँ कैद है ।” महाजन के होंठों से दरिंदगी भरा स्वर निकला, “मेरी इजाजत के बिना ये यहाँ से बाहर नहीं जायेंगे । मैं इन्हें बाहर नहीं जाने दूँगा, क्योंकि मुझे अपनी जान प्यारी है ।”

“अगर बच्चे जबरदस्ती बाहर जाना चाहे तो ?”

“मैं गोली मार दूँगा ।”

मैडम शर्मा, महाजन को देखने लगी ।

“बच्चों की तरफ ध्यान दो; और तुम यहाँ कैद नहीं हो । बेशक यहाँ से बाहर जा सकती हो ।” महाजन के स्वर में खतरनाक भाव आ गये थे, “लेकिन बाहर वालों को इतना समझा देना कि मेरे साथ कोई गड़बड़ न करें । वरना बच्चों की जान की कोई गारंटी नहीं ।”

मैडम शर्मा कई पलों तक महाजन को देखती रही, फिर धीमे स्वर में बोली ।

“मैं बाहर होकर आती हूँ ।”

“बेशक जाओ, जल्दी वापस आना । बाहर वालों को कह देना कि बच्चों के खाने-पीने का भी इंतजाम करें ।”

मैडम शर्मा ने महाजन को देखा फिर रहस्यमय जीव को, उसके बाद कमरे से बाहर निकल गई । महाजन ने आगे बढ़कर दरवाजा बंद कर लिया ।

पारसनाथ आधे घंटे बाद एक तरफ खड़ी मोना चौधरी के पास पहुँचा ।

स्कूल को पुलिस ने बहुत अच्छी तरह घेरा हुआ था । हर तरफ पुलिस की गाड़ियाँ और हथियारबंद पुलिस वाले ही दिखाई दे रहे थे । उनसे दूर लोगों की भीड़ नजर आ रही थी । पुलिस वाले लोगों की भीड़ को स्कूल से दूर रखने में पूरी तरह कामयाब थे ।

अखबारों और टीवी रिपोर्टरों का पहुँचना भी शुरू हो गया था ।

सनसनी से भरा तनावयुक्त माहौल था हर तरफ ।

मोना चौधरी के चेहरे पर चिंता और गंभीरता दिखाई दे रही थी ।

“मोना चौधरी !” पारसनाथ ने धीमे स्वर में कहा, “हालात बहुत ही नाजुक हैं ।

मोना चौधरी की नजरें पारसनाथ पर जा टिकी । होंठ भिंचे हुए थे ।

“क्या हो रहा है भीतर ?”

“इस वक्त महाजन, रहस्यमय जीव के साथ स्कूल के कमरे में है ।” पारसनाथ सपाट-खुरदरे स्वर में कह उठा, “उस कमरे में तीस-पैंतीस बच्चे भी हैं ।”

“बच्चे ?”

“हाँ ! दो बच्चों को टीचर उठाकर बाहर लाई है । वे उस जीव से डरकर गहरी बेहोशी में डूब गये थे ।”

मोना चौधरी ने पारसनाथ को गहरी निगाहों से देखा ।

“महाजन करना क्या चाहता है ?” मोना चौधरी के होंठ हिले ।

“वो रहस्यमय जीव के साथ उस कमरे में है । सुनने में आया है कि उसने बच्चों को कमरे में कैद कर लिया है । उसका इरादा बाहर आने का नहीं है ।” पारसनाथ हाथ से अपना खुद का चेहरा रगड़ने लगा, “वो जीव के साथ कमरे में खुद को सुरक्षित समझ रहा है । वो महसूस कर रहा होगा कि खुले में जाने पर उसे जीव से खतरा है ।”

“लेकिन बच्चों को कब तक कैद में रख सकेगा ।” मोना चौधरी होंठ भिंचे कह उठी ।

“मालूम नहीं !” पारसनाथ गम्भीर था, “कमरे से एक मैडम कुछ देर पहले आई है । उसने आकर बताया कि बच्चे कमरे में कैद में है । उसके खाने-पीने का सामान तैयार रखा जाये ।

“ओह !”

“पुलिस वाले मैडम को अलग कमरे में ले गये हैं, बातचीत के लिए ।”

“वो अब मैडम को समझाएँगे की महाजन से क्या-क्या बात करनी है ।”

पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा फिर नजर आ रही पुलिस की गाड़ियों पर निगाह मारकर बोला ।

“स्कूल की एक मैडम किसी को बता रही थी कि इस वक्त जो औरत, मैडम के रूप में महाजन के पास है, वो पुलिस वाली है, स्कूल की मैडम नहीं ।”

“क्या ?” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।

“हाँ ! पहले वाली मैडम जब बेहोश बच्चों को लेकर बाहर आई तो पुलिस वालों ने महिला कमिश्नर को, सादी साड़ी पहनाकर मैडम बनाकर महाजन के पास भेज दिया ।” पारसनाथ के स्वर में बेचैनी-सी आ गई थी ।

“पुलिस वाली कोई गड़बड़ कर सकती है ।” मोना चौधरी के होंठों से निकला, “महाजन को खतरा हो सकता है ।”

“मेरे ख्याल में उसे कोई खतरा नहीं है ।”

“कैसे ?”

“उस कमरे में बच्चे भी हैं । पुलिस वाले बेवकूफ नहीं है, जो महाजन के साथ गड़बड़ करके बच्चों की जान खतरे में डालेगें । पुलिस जानती हैं कि रहस्यमय जीव कितना बड़ा जल्लाद है, जो कि कमरे में ही है ।”

मोना चौधरी होंठ भीचें पारसनाथ को देखती रही ।

“पुलिस वाले इस तरह कब तक खामोश बैठेंगे । जल्दी ही कुछ करेंगे ।”

“शायद पुलिस, महाजन के बाहर आने का इंतज़ार करे ।”

“महाजन किसी भी हालत में बाहर नहीं निकलेगा ।” मोना चौधरी दृढ़ता भरे स्वर में कह उठी ।

“क्यों ?”

“वो जानता है कि पुलिस के हाथों में पड़ गया तो फिर पुलिस वाले उसे छोड़ेंगे नहीं ।” मोना चौधरी बोली, “ऐसे में वो बाहर निकलने की गलती नहीं करेगा । स्कूल के परिसर में रहस्यमय जीव ने दो पुलिस वालों को मारा हैं । इस बात को लेकर तो पुलिस वैसे भी क्रोध में होगी ।”

“फिर तो यह मामला लम्बा चलेगा । महाजन रहस्यमय जीव के साथ उस कमरे में रहेगा । बच्चों को कैद में रखेगा । बाहर पुलिस फैली रहेगी । ऐसे में बाद में जाने क्या हो ।”

मोना चौधरी चेहरे पर व्याकुलता समेटे सोच में डूबी रही ।

खामोशी लम्बी होने लगी तो पारसनाथ ने कहा ।

“क्या हुआ बेबी ?”

“रहस्यमय जीव के बारे में सोच रही हूँ कि उसने महाजन को कुछ नहीं कहा ।”

“मेरे ख्याल में रहस्यमय जीव तुम्हें तलाश कर रहा है ।” पारसनाथ गंभीर स्वर में बोला, “वो तुम्हारी जान लेना चाहता है । अगर उसे महाजन पर गुस्सा होता तो महाजन को कब का खत्म कर दिया होता ।”

“ठीक कहते हो पारसनाथ !” मोना चौधरी ने गहरी साँस ली, “रहस्यमय जीव मेरी जान लेना चाहता है, क्योंकि मैंने कोटेश्वर बीच पर उसे विश्वास दिलाया था कि हम लोग उसके दोस्त हैं । उसका बुरा नहीं चाहते । मेरे विश्वास दिलाने पर ही मेरे पीछे दिल्ली की तरफ चल पड़ा । मेरे शरीर की गंध के सहारे वह दिल्ली आ गया, लेकिन वहाँ लोगों की भीड़ में मेरे शरीर की गंध को सूँघ पाने में भटक गया । मुझ तक नहीं पहुँच सका ।”

पारसनाथ होंठ भीचें खड़ा रहा ।

“रहस्यमय जीव की ताकत का मुकाबला मैं नहीं कर सकती । ऐसे में उसके सामने जाना भी खुद को मौत के मुँह में धकेलना है । अपनी जान बचने का एक प्रतिशत भी चांस होता तो रहस्यमय जीव को एक बार ठीक करने की कोशिश... ।”

“ऐसा सोचना भी तुम्हारे हक़ में ठीक नहीं ।” पारसनाथ बोला, “वो तुम्हें मारना चाहता है ।”

दाँत भीचें मोना चौधरी गहरी साँस लेकर रह गई ।

“शायद महाजन ने कुछ सोच रखा हो कि वो क्या करेगा ?” पारसनाथ बोला ।

“मालूम नहीं !” मोना चौधरी ने सिर हिलाया, “लेकिन महाजन की इस हरकत से ये तो स्पष्ट हो गया कि वो रहस्यमय जीव को पुलिस के सामने नहीं पड़ने देना चाहता । उसे सबसे बचा ले जाना चाहता है ।”

“ऐसा क्यों ? जबकि महाजन जानता है कि वो जिन्दा रहेगा तो तुम्हें जान का खतरा बना रहेगा ?”

“मैं खुद नहीं समझ पा रही कि ये सब क्या हो रहा है ।” मोना चौधरी बोली, “इंस्पेक्टर मोदी कहाँ है ?”

“वो स्कूल के भीतर ही है ।”

मोना चोधरी ने कुछ नहीं कहा । वह परेशानी-सी दिखाई दे रही थी ।

“मोदी से काम हो तो किसी तरह बुला लाता हूँ उसे ।” पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा ।

“कोई फायदा नहीं ।” मोना चौधरी ने इन्कार में सिर हिलाया, “देखते हैं, महाजन क्या करता हैं ।”

“महाजन इसी तरह पुलिस के घेरे में रहा तो उसकी जान को खतरा हो सकता हैं ।”

मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा । कहा कुछ नहीं ।

आधे घंटे बाद मैडम शर्मा ने भीतर प्रवेश किया और दरवाजा बंद किया ।

महाजन ने चुभती निगाहों ने उसे देखा ।

“तुम्हें इतनी ज्यादा देर नहीं लगनी चाहिए थी वापस आने में ।” महाजन ने सख्त स्वर में कहा ।

“मैं जल्दी आना चाहती थी ।” मैडम शर्मा का स्वर गंभीर था, “लेकिन बाहर पुलिस वालों की बातों का जवाब देना पड़ता है कि भीतर क्या हो रहा है । स्कूल के स्टाफ से बात करनी पड़ती है । उन्हें बच्चों की चिंता है ।”

महाजन की नजरें मैडम शर्मा पर टिकी रहीं ।

मैडम शर्मा ने बच्चों को देखा ।

“तुम सब ठीक हो बच्चों ?” मैडम शर्मा ने ऊँचे स्वर में पूछा ।

“यस !” सिर्फ एक-दो बच्चों की आवाज उभरी ।

“मैडम, छुट्टी का वक्त हो चुका है !” अन्य बच्चे ने कहा ।

“मैडम, मुझे घर पहुँचना है ! मेरा टीवी प्रोग्राम आने वाला है ।”

मैडम शर्मा ने महाजन पर निगाह मारी, फिर गंभीर स्वर में बच्चों से कहा ।

“अभी तुम सब को यहाँ रहना होगा ।”

“क्यों ? मुझे तो भूख लगी है ।”

“तुम सबको हिम्मत से काम लेना है ।” मैडम शर्मा कह उठी, “अभी कोई भी बाहर नहीं निकलेगा । किसी ने बाहर जाने की कोशिश की तो विचित्र जीव उसकी जान ले लेगा ।”

मैडम शर्मा के शब्द पूरे होते ही एक बच्चा जोर-जोर से रोने लगा ।

दो-तीन बच्चे सुबकने लगे ।

अधिकतर बच्चे, मैडम शर्मा की बात सुनकर सहम गये ।

रहस्यमय जीव फर्श पर लेटा हुआ था ।

“तुम बच्चों को डरा रही हो ।” महाजन ने गुस्से में कहा ।

“तो क्या कहूँ ?” मैडम शर्मा ने तीखे स्वर में कह, “ इन्हें ये कहूँ कि इन्होंने बाहर जाने की चेष्टा की तो तुम इन्हें गोली मार दोगे । ये सब कैद हैं यहाँ ।”

“मैडम, मुझे बाथरूम जाना है !” एक बच्चे ने रुआँसे स्वर में कहा ।

“तुम बच्चों को प्यार से समझा सकती थी ।”

“ज्यादा देर बच्चों से झूठ नहीं बोला जा सकता ।” मैडम शर्मा ने गंभीर स्वर में कहा, “आजकल के बच्चे बहुत समझदार हैं । सच्चाई को सहन करना जानते हैं ये ।”

“मैडम, मुझे भूख लगी है ! घर जाना है ।”

महाजन ने एक निगाह बच्चों पर मारी, फिर मैडम शर्मा से बोला ।

“बच्चों की ये बातें न उठे । इन्हें चुप रहने को कहो ।”

“बच्चों को इस तरह चुप नहीं कराया जा सकता ।” मैडम ने गंभीर स्वर में कहा, “किसी बच्चे का बाथरूम नहीं रोका जा सकता । किसी को भूख लगी है तो उसे खाने को चाहिए । बच्चों को ज्यादा देर बंदी नहीं बनाया जा सकता ।”

“मुझे समझाने की कोशिश मत करो ।” महाजन ने उसे खा जाने वाली निगाहों से देखा, “बच्चों को संभाल लो ।”

“मुझे भूख लगी है ।”

“मुझे घर जाना है ।”

“मेरा सू-सू निकलने वाला है ।”

“खाने के लिए बाहर वालों को कह दिया ?” महाजन ने शब्दों को चबाकर पूछा ।

“हाँ !”

“मुझे क्या देख रही हो ।” महाजन पूर्ववत: स्वर में बोला, “मैंने बच्चों को संभालने के लिए कहा है ।”

“पुलिस वालों ने तुमसे बात करने को कहा है ।” मैडम शर्मा ने गंभीर स्वर में कहा ।

“तो सिखाकर भेजा है पुलिस वालों ने तुम्हें ।” महाजन का स्वर कड़वा हो गया ।

“ये बात नहीं ।” मैडम शर्मा ने सीधे स्वर में कहा, “मुझे जो कहकर भेजा गया है, वो तुम्हें कहना चाहती हूँ ।”

महाजन ने बच्चों को देखा ।

बच्चों में कुछ शोर-सा उठना शुरू हो गया था ।

“तुम सब कुछ देर के लिए चुप हो जाओ ।” महाजन ने ऊँचे स्वर में बच्चों से कहा ।

“मुझे सू-सू आया है ।”

“कमरे के कोने में कर लो ।” महाजन ने गुस्से पर काबू पाते हुए कहा ।

वह बच्चा रोने लगा । उसकी आँखों से आँसू बह निकले ।

“अब रो क्यों रहे हो ?” महाजन ने अपनी झल्लाहट दबाते हुए पूछा ।

“क्लास में सू-सू किया तो मैडम मुझे सजा देगी ।”

“मैडम सजा नहीं देगी । ये खड़ी है पूछ लो ।”

“ये हमारी मैडम नहीं है ।” दूसरे बच्चों ने कहा ।

मैडम शर्मा के होंठों में कसाव आ गया ।

“तुम्हारी नहीं तो किसी और क्लास के बच्चों की मैडम होगी । ये... ।”

“हमने तो इस मैडम को स्कूल में पहले कभी देखा ही नहीं ।” सबसे आगे बैठी बच्ची कह उठी ।

मैडम शर्मा के होंठ भिंच गये ।

महाजन ने चौंककर मैडम शर्मा को देखा ।

दोनों की नजरें मिलीं ।

“तो तुम पुलिस वाली हो ।” महाजन की आँखें सिकुड़ीं ।

“हाँ !”

“मैडम बनकर मेरे पास, यहाँ आने का मतलब ?”

मैडम शर्मा ने कंधों को उचकाया । कहा कुछ नहीं ।

तभी महाजन के हाथ में रिवॉल्वर नजर आया । वह दाँत भींचकर करके उठा ।

“अपनी जगह से हिलना मत ।”

“क्या मतलब ?”

“हिलना मत ।” शब्दों को चबाकर महाजन बोला और आगे बढ़ा, “मैं तुम्हारी तलाशी लेना चाहता हूँ । पुलिस वाली ऐसे नाजुक वक्त पर यहाँ भेजी गई है तो खाली हाथ नहीं भेजी गई होगी ।”

“ब्लाउज में पिस्तौल है ।”

महाजन आगे बढ़ा । पास पहुँचकर हाथ बढ़ाया । अचानक ब्लाउज को टटोला और पिस्तौल निकालकर अपनी जेब में डाल ली । बच्चे हैरानी से महाजन के हाथ में पिस्तौल देख रहे थे ।

“अब तुम कहोगी कि तुम्हारे पास एक ही पिस्तौल है ।” महाजन की नजरें मैडम शर्मा पर थी ।

“हाँ, ये मेरी सर्विस पिस्तौल है !” मैडम शर्मा ने गंभीर स्वर में कहा ।

“लेकिन मैं तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं कर सकता ।” महाजन ने कहा, “पुलिस वालों का तो मैं वैसे भी विश्वास नहीं करता । इस वक्त तुमने एक गोली भी इस जीव को मार दी तो बहुत तबाही फैलेगी ।”

“मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है । मैं... ।”

“मैं तुम्हारी तलाशी लेना चाहता हूँ ।” महाजन ने शब्दों को चबाकर कहा, “तुम्हें एतराज... ?”

“मुझे तब एतराज होगा, जब तलाशी के बीच तुम्हारे हाथों ने गलत हरकत की ।”

महाजन ने जवाब देने की अपेक्षा उसकी तलाशी लेनी शुरू की । कपड़ों को अच्छी तरह टिटोला । लेकिन कहीं भी रिवॉल्वर-पिस्तौल नहीं मिली । महाजन पीछे हटता हुआ बोला ।

“क्या नाम है तुम्हारा ?”

मैडम शर्मा कह लो या सब-इंस्पेक्टर शर्मा कह लो ।”

महाजन ने अपने हाथ में दबी रिवॉल्वर जेब में डाली । रहस्यमय जीव को देखा । वह नींद में डूब चुका था । माथे से गुजरती एक कान से दूसरे कान तक जाती आँख की पट्टी को पलक ने ढाँप लिया था । फर्श पर ही पसरा पड़ा था वह । मैडम शर्मा ने भी उस पर निगाह मारी ।

“बोलो, क्या कहना चाहती थी तुम ?” महाजन ने पूछा ।

“पुलिस के बड़े अफसरों का कहना है कि तुम्हें कुछ नहीं कहा जायेगा । बच्चों को यहाँ से बाहर निकाल दो और खुद भी बाहर आ जाओ । इस जीव को पुलिस संभाल लेगी ।” मैडम शर्मा ने गंभीर स्वर में कहा ।

“खूब !” महाजन ने कड़वे स्वर में कहा, “तो पुलिस इस जीव को संभालेगी ।”

“हाँ !”

“लगता है पुलिस वाले यहाँ लाशें बिछी देखना चाहते हैं ।” महाजन का स्वर कठोर हो गया ।

“क्या मतलब ?”

“इस जीव पर गोलियों का असर नहीं होता । कैसे संभालेगी पुलिस इसे ?”

“इसे खत्म करने के लिए दूसरे हथियारों का इंतजाम कर लिया गया है ।” मैडम शर्मा ने गंभीर स्वर में कहा, “ऐसी गनों का इंतजाम किया गया है जो पहले सामने वाले के शरीर में प्रवेश करती है और तीस सेकेंड के पश्चात किसी बम की तरह फटती है । अब ये बच नहीं सकेगा ।”

महाजन खा जाने वाली निगाहों से मैडम शर्मा को देखने लगा ।

“क्या देख रहे हो ?”

“मुझे तुम्हारी बात मंजूर नहीं ।”

“गलती कर रहे हो । पुलिस वालों की बात मान लो, वरना पुलिस के हाथों तुम बच नहीं सकोगे । इस वक्त तुम एक ऐसे हत्यारे का साथ दे रहे हो, जिसने... ।”

“मैं हत्यारे का साथ नहीं दे रहा ।” महाजन ने खा जाने वाले स्वर में कहा, “बल्कि मैंने इस जीव को संभाल रखा है, जिस पर आसानी से काबू नहीं पाया जा सकता । वरना अब यह जाने कितनों की जान ले ले ।”

“ऐसा है तो तुमने बच्चों को क्यों कैद में... ?”

“पुलिस वालों के कारण ।” महाजन गुस्से से बोला, “अगर मैंने इन बच्चों को यहाँ न रोक रखा होता तो अब तक पुलिस वालों ने यहाँ अटैक कर देना था । इस जीव का जाने क्या होता या यह जाने कितनों को मारता । परंतु पुलिस की फायरिंग से मैं नहीं बच पाता ।”

“इतना गलत मत सोचो ।” मैडम शर्मा ने कहा, “पुलिस वाले ऐसा कुछ नहीं करना चाहते ।”

“तुम बेशक पुलिस वाली हो, लेकिन पुलिस वालों को मैं तुमसे ज्यादा अच्छी तरह जानता हूँ ।”

मैडम शर्मा कई पलों तक महाजन को देखती रही ।

बच्चे इन दोनों को ही देख रहे थे । इनकी बात समझ रहे थे और नहीं भी समझ रहे थे । जिस बच्चे को सू-सू आया था, उसने और कोई रास्ता न पाकर कमरे के कोने में कर दिया था । उसे ऐसा करते पाकर कई बच्चों ने वहाँ सू-सू कर दिया था । कई बच्चे बेहद डरे हुए दिखाई दे रहे थे तो कुछ सामान्य थे ।

“पुलिस की तरफ से एक और ऑफर आया है तुम्हारे लिए ।” मैडम शर्मा ने कहा ।

‘क्या ?”

“अगर तुम इसे जिंदा पकड़वा देते हो तो इनाम के तौर पर पुलिस वाले तुम्हें दस लाख का नगद इनाम देंगे ।”

“दस लाख ?”

“हाँ !” मैडम शर्मा ने जल्दी से कहा, “सजा माफी के साथ दस लाख का इनाम भी । अगर... ।”

“मेरी भी सुन लो ।” महाजन ने शब्दों को चबाकर कहा ।

“क्या ?”

“मैं ग्यारह लाख दूँगा । अगर पुलिस वाले इसे और मुझे छोड़कर चले जाये ।”

मैडम शर्मा ने गंभीर नजरों से महाजन को देखा ।

“तुम जो भी हो, खामखा पुलिस के रास्ते में आने की चेष्टा कर रहे हो ।”

“तुम पुलिसवाले खामखाह मुझे और इस जीव को तंग कर रहे हो ।”

“इस जीव ने कई लोगों की जान ली है ।” मैडम शर्मा की आवाज में तीखापन आ गया ।

“जो गोलियाँ इस जीव के जिस्म में धँसी हुई हैं, उनका हिसाब कौन देगा, सब-इंस्पेक्टर शर्मा ! क्यों मारी इसे गोलियाँ ? तब तो हमने किसी को कुछ नहीं कहा था । तुम लोग बेजुबान को मारो तो ठीक है । बेजुबान अपने पर हमला करने वालों को मारे तो गलत है ।” महाजन के होंठों से गुर्राहट निकली ।

मैडम शर्मा के दाँत भिंच गये ।

“मुझे भूख लगी है ।” तभी एक बच्चा रो देने वाला स्वर में कह उठा ।

“मुझे घर जाना है ।”

“मुझे तो भूख लगी है, पेट में दर्द हो रहा है ।”

धीरे-धीरे एक के बाद एक बच्चे बोलने लगे । कमरे में शोर-सा उठ खड़ा हुआ ।

“बच्चों के खाने के लिए कह दिया था ?”

“हाँ !”

“जाकर मालूम करो । खाना आ गया हो तो ले आओ । खाना लाने का काम कम चक्करो में करना ।”

“जल्दी ही खाना यहाँ पहुँच जायेगा । दो-तीन लोग खाना और पानी यहाँ छोड़… ।”

“तुम्हारे अलावा कोई दूसरा कमरे में आया तो उसे गोली मार दूँगा ।” महाजन के होंठों से सर्द स्वर निकला ।

मैडम शर्मा ने महाजन को देखा ।

दोनों कई पलों तक एक-दूसरे को देखते रहे ।

दृढ़ता नाच रही थी महाजन के चेहरे पर ।

मैडम शर्मा होंठ भीचें पलटी और बच्चों पर नजर मारकर कह उठी ।

“मैं अभी खाने का इंतजाम करती हूँ ।” इसके साथ ही वह दरवाजे की तरफ़ बढ़ गई ।

स्कूल के ही कमरे में चार पुलिस कमिश्नर और बड़े ओहदे वाले पुलिस ऑफिसर मौजूद थे । इंस्पेक्टर मोदी भी वहाँ खड़ा था । सभी की नजर मैडम शर्मा पर थी । मैडम शर्मा अभी भीतर आई थी ।

करीब बारह पुलिस वाले थे भीतर ।

दरवाजा भीतर से बंद था और पुलिस वालों का पहरा था ।

“वो हमारी कोई भी बात मानने को तैयार नहीं है ।” मैडम शर्मा ने गंभीर स्वर में कहा ।

“क्यों ?”

उसका कहना है कि हम उस जीव पर काबू नहीं पा सकेंगे । उस पर काबू पाने की चेष्टा में उस जीव का हम कोई अहित करे, ये भी उसे पसन्द नहीं ।”

“अजीब आदमी है ।”

“आपने उससे ठीक तरह बात की है ? कही ऐसा तो नहीं कि... ।”

“मैंने उससे ठीक बात की है । मैं जानती हूँ कि ऐसे मौके पर कैसे बात करनी है ।”

दो पलों के लिए वहाँ खामोशी छा गई ।

“वो उस जीव का पक्ष लेता है । कहता हैं पुलिस वाले उसे तंग कर रहे हैं । पहले भी पुलिस वालों ने उस पर गोलियाँ चलाई । वो घायल हुआ तो जल्लाद बना । हकीकत में वो मासूम जीव है ।

“आपको लगता है कि वो मासूम है ?” एक कमिश्नर ने पूछा ।

“सच बात तो ये है कि मुझे उसकी बात पर बहुत हद तक विश्वास है ।”

“क्या मतलब ?”

“मैं कह रही हूँ कि मुझे उस पर विश्वास है कि वो सच कहता है । मैंने अपनी आँखों से बच्चों को उस जीव के साथ हाथ मिलाते देखा है । अगर वो वास्तव में जल्लाद होता तो बच्चे उससे हाथ नहीं मिला पाते । वो आराम से फर्श पर बैठा लेटा है । उसने मुझे देखा और कुछ नहीं कहा । यह सब उस जीव की मासूमियत का ही हिस्सा है ।” मैडम शर्मा ने बारी-बारी सब पर नजर मारी ।

इंस्पेक्टर मोदी दाँतों से होंठ काटते मैडम शर्मा को देख रहा था ।

चेहरे पर व्याकुलता समेटे इंस्पेक्टर दुलानी एक तरफ खड़ा था ।

“अगर वो मासूम होता तो पुलिस वालों पर इस तरह हमला करके उनकी जान न लेता ।”

“उस व्यक्ति का कहना है कि पुलिस वालों ने उस पर गोलियाँ चलाई, तभी उसने पुलिस वालों पर हमला किया ।”

“कमिश्नर शर्मा !” अन्य कमिश्नर ने शांत लहजे में कहा, “आप कहीं उस व्यक्ति से प्रभावित तो नहीं हो गईं ।”

मैडम शर्मा ने तीखी निगाहों से उस पुलिस कमिश्नर को देखा ।

“मुझे उसकी बातें बहुत हद तक ठीक लगी है । मैं उसकी बातों में कुछ हद तक प्रभावित हुई हूँ । लेकिन ये बात उसे महसूस नहीं होने दी । वो पूछता है कि पुलिस वाले उसी के पीछे क्यों पड़े हैं ?”

“क्योंकि उसने लोगों और पुलिस वालों को मारा है ।”

“बाद में । पहले उसे गोलियाँ मारी गई । उसे तकलीफ दी गई ।”

“ये आप कह रही हैं कमिश्नर शर्मा ?”

“नहीं ! वो कहता है ।”

“उसने कहा और आपने मान लिया ।”

“वो सच कह रहा है । उसकी आवाज़ में सच्चाई है । ऐसी बातें पहचानने में मैं धोखा नहीं खा सकती ।”

खामोशी-सी छा गई वहाँ ।

“वो जानता है कि आप पुलिस कमिश्नर हैं ?”

“वो सिर्फ यह जानता है कि मैं सब-इंस्पेक्टर के ओहदे पर हूँ । अगर उसे मालूम हो जाता कि मैं कमिश्नर के ओहदे पर हूँ तो शायद ज्यादा बातें करने में मुझसे परहेज करता ।” मैडम शर्मा ने गंभीर स्वर में कहा ।

“वो है कौन ?”

“अपने बारे में नहीं बता रहा । मैंने भी बात पूछने पर ज्यादा जोर नहीं दिया । क्योंकि मेरा ध्यान उन बच्चों पर है, जो उस कमरे में है । आखिर कब तक कमरे में इस तरह बैठे रह सकते हैं । बड़े लोग होते तो चुपचाप कुछ वक्त बिता लेते । बच्चों को एक हद से ज्यादा नहीं समझाया जा सकता ।” मैडम शर्मा परेशान हो उठी, “कहीं ऐसा न हो कि आदमी या वो जीव, बच्चों के बेवजह शोर पर उनको नुकसान पहुँचाना शुरू कर दें ।”

कइयों के चेहरे पर व्याकुलता उभरी ।

“आपने उसे कहा नहीं कि बच्चों को छोड़ दे वो ।”

“कहा, लेकिन कहता है कि जब तक बच्चे उसके पास है, वो सुरक्षित है । वरना पुलिस उस पर और रहस्यमय जीव पर गोलियाँ चलानी शुरू कर देगी । वो मर जायेगा ।” मैडम शर्मा कह उठी, “मैंने उससे दस लाख के नाम के बारे में बात की थी तो वह हमें पीछे हटने के लिए ग्यारह लाख देने को तैयार है ।”

“मतलब कि हमारी कोई बात नहीं मान रहा ।”

“स्पष्ट बात तो की है ।”

एकाएक सन्नाटा छा गया वहाँ पर ।

मोदी और दुलानी की नजरें मिलीं ।

“अगर बच्चे भीतर न होते तो हम उसे और जीव से आसानी से निपट लेते ।” एक पुलिस वाले ने कहा ।

“वो सही सोच रहा है कि अगर बच्चों को छोड़ा तो पुलिस वाले उसे नहीं छोड़ेंगे ।” मैडम शर्मा ने उस पुलिस वाले को देखकर कहा, “मेरे ख्याल से पुलिस के रंग-ढंग जानता है वो, तभी तो ऐसी स्थिति में भी डर नहीं रहा ।”

“लेकिन उसकी दिलचस्पी क्या है उस रहस्यमय जीव में ?”

“वो उसे कोटेश्वर बीच से जानता है । ये बात उसने कही ।”

कमिश्नर रामकुमार ने दुलानी को देखा ।

“दुलानी !” रामकुमार ने कहा, “कोटेश्वर बीच पर इस जीव का केस तुम्हारे पास था ।”

“यस सर !” कहते हुए दुलानी ने सिर हिलाया ।

“वहाँ कौन-कौन लोग जीव के करीब आये थे ?”

“कह नहीं सकता सर ! मेरे साथ तो पुलिस वाले ही थे ।” दुलानी ने जल्दी से कहा, “जीव दूर-दूर तक घूमता रहा था । हो सकता है इस बीच कोई जीव का वाकिफकार बन गया हो ।”

कमिश्नर रामकुमार सिर हिलाकर रह गये ।

मोदी ने दुलानी को देखा और दुलानी ने मुँह फेर लिया ।

“हमारे सामने बहुत ही नाजुक स्थिति है ।” एक पुलिस कमिश्नर कह उठा, ‘हमें हर हाल में उन बच्चों को उस कमरे से सुरक्षित निकालना है और जो भीतर हैं, वो बच्चों को बाहर नहीं आने देगा ।”

“बच्चों को बचाने का कोई तो रास्ता निकालना ही होगा ।”

“बच्चों के घरवाले स्कूल में इकठ्ठे होने लगे हैं ।” एक कमिश्नर उठा और टहलते हुए सख्त स्वर में कह उठा, “गृहमंत्री का दो बार फोन आ चुका है कि बच्चों को जल्द से जल्द सुरक्षित... ।”

“बच्चों के लिए खाने पीने का सामान आ गया ?” मैडम शर्मा ने पूछा, “बच्चों को भूख लग रही है ।”

“हाँ ! पास ही रेस्टोरेंट्स से बर्गर-पेटीज-नूडल मँगाये गये हैं, ताकि खाने के चटपटे साधन के साथ बच्चे कुछ हद तक व्यस्त रह सके । जैसे भी हो बच्चों को जल्दी ही आजाद करवाना होगा ।”

“मैं बच्चों को खाने का सामान उस कमरे तक पहुँचा रही हूँ ।”

“बाकी के लोग सामान को उस कमरे तक... ।”

“नहीं !” मैडम शर्मा ने गंभीर स्वर में कहा, “उसका कहना है कि मेरे अलावा अगर किसी दूसरे ने भीतर कदम रखा तो गोली मार देगा । इन हालातों में वो कुछ भी कर सकता है ।

सबकी गंभीर निगाहें मैडम शर्मा पर थीं ।

“आप खतरे में हैं कमिश्नर शर्मा !” अन्य कमिश्नर ने कहा, “वो आपकी किसी बात पर नाराज होकर आपको भी शूट कर सकता है ।”

“मैं उसकी नाराजगी के प्रति सतर्क रहूँगी ।” मैडम शर्मा के होंठ भिंच गये ।

“जैसे भी हो, इस मामले को पुलिस के हक में निपटाने की कोशिश कीजिए मैडम शर्मा !”

“वो चालाक है, मेरी बात में नहीं फँसेगा ।”

“कोशिश करो । शायद कोई नतीजा निकले ।”

“कह नहीं सकती । फिर भी कोशिश करूँगी ।”

“उसे ऐसा लालच दो कि वो... ।”

“वो सख्त-सा इंसान लगता है मुझे । फिर भी मैं कोशिश करूँगी । एक रिवॉल्वर मुझे दो । वो मेरी पिस्तौल ले चुका है ।”

मैडम शर्मा ने रिवॉल्वर लेकर अपनी पिंडली पर टेप से चिपका ली ।

“ऐसा कुछ मत करना कमिश्नर शर्मा कि बच्चों को जान का खतरा... ।”

“ऐसा कुछ नहीं होगा ।”

मैडम शर्मा ने खाने का सामान आठ फेरों में कमरे में पहुँचाया ।

महाजन ने कमरा भीतर से बंद कर लिया । मैडम शर्मा ने सब बच्चों को खाने का सामान दिया । दो बच्चों की ड्यूटी लगा दी कि अन्य बच्चों की जरूरत का ख्याल रखें ।

मैडम शर्मा इन कामों से फारिग हुई तो महाजन कह उठा ।

“मैं एक बार फिर तुम्हारी तलाशी लेना चाहता हूँ ।”

“क्यों ?” मैडम शर्मा ने महाजन को देखा, “तलाशी तो तुम ले चुके हो ।”

“बाहर से तुम फिर कोई हथियार ला सकती हो ।”

“वहम में मत पड़ो ।”

“वहम ही सही । तुम्हें तलाशी देने में कोई एतराज है ?” महाजन का स्वर सख्त हो गया ।

“कोई एतराज नहीं !” मैडम शर्मा जानती थी कि इंकार करने से काम नहीं चलेगा ।

महाजन ने सावधानी से आगे बढ़कर तलाशी ली ।

रहस्यमय जीव फर्श पर गहरी नींद में डूबा हुआ था ।

जल्द ही महाजन ने मैडम शर्मा की पिंडली से चिपकी रिवॉल्वर बरामद कर ली । ऐसा होते ही महाजन के चेहरे पर कहर के भाव आ गये । उसने खा जाने वाली निगाहों से मैडम शर्मा को देखा ।

“तो तुम रिवॉल्वर लेकर आई हो ।” एक-एक शब्द पर जोर देखा महाजन कह उठा ।

“मैं कुछ नहीं लाई ।” मैडम शर्मा ने शांत स्वर में कहा, “ये पहले से ही मेरी पीड़ली से चिपकी हुई थी ।”

“झूठ ! मैंने अच्छी तरह से देखा था कि... ।”

“तुमने अच्छी तरह से नहीं देखा था ।” मैडम शर्मा अपने शब्दों पर जोर देकर बोली, “ये पहले से ही पीड़ली से चिपकी थी ।”

महाजन कई पलों तक मैडम शर्मा को देखता रहा ।

“अब कोई अन्य हथियार तो तुम्हारे पास नहीं है ?” महाजन ने तीखे स्वर में कहा, “कही फिर न कहो कि हथियार पहले ही तुम्हारे पास था । मैं बार-बार तुम्हारी यह हरकत सहन नहीं करूँगा ।”

“अब मेरे पास कोई हथियार नहीं है ।” मैडम शर्मा के होंठों पर छोटी-सी मुस्कान उभर आई ।

महाजन ने हाथ में दबे रिवॉल्वर को जेब में डाला और बच्चों पर निगाह मारी । खाने के दौरान बच्चे एक तरफ रखी मिनरल वॉटर की बोतल उठाने लगे थे । महाजन की आँखों में व्याकुलता उभरी हुई थी । वह जानता था कि जल्द ही कोई रास्ता निकालना पड़ेगा । आखिर बच्चों को कब तक इस तरह कैद में रखेगा । वह इस बात को महसूस कर चुका था कि रहस्यमय जीव को बचाने के चक्कर में बड़ी मुसीबत मोल ले चुका है । देर-सवेर में पुलिस उसकी पहचान कर लेगी । कोई-न-कोई पुलिस वाला तो उसे पहचान ही लेगा । फिर तो पुलिस उसे पकड़कर ही दम लेगी । इस वक्त यहाँ से बच भी गया तो बाद में नहीं बच सकेगा ।

कुछ पल के लिए महाजन सोचो में ऐसा डूबा कि आस-पास का उसे जरा भी ध्यान नहीं रहा ।

तभी उससे मैडम शर्मा का शरीर जोरों से टकराया । वह उछलकर नीचे आ गिरा । इससे पहले कि वह संभलता, मैडम शर्मा का शरीर उसके ऊपर आ गिरा । उठने की कोशिश करते महाजन का कंधा जोरों से फर्श से टकराया तो महाजन के होंठों से कराह निकल गई । मैडम शर्मा ने टाँगों से उसकी कमर पकड़ ली थी ।

ये सब होते पाकर बच्चे उत्सुकता से नजारा देखने लगे ।

मैडम शर्मा के दोनों हाथ महाजन की गर्दन पर थे ।

तभी महाजन ने अपनी टाँग चलाई और ऊपर बैठी मैडम शर्मा की पीठ पर लगी ।

मैडम शर्मा को तीव्र झटका लगा । वह उछलकर फर्श पर लुढ़कती चली गई । दूसरे ही पल वह उछलकर खड़ी हो गई । तब तक महाजन भी खड़ा हो चुका था ।

दोनों ने खा जाने वाली निगाहों से एक-दूसरे को देखा ।

“बहुत गलत हरकत की तुमने ।” महाजन खतरनाक स्वर में कह उठा, “मैं तुम्हें गोली मार सकता हूँ ।”

मैडम शर्मा होंठ भींचें उसे देखती रही ।

“अच्छा यही होगा कि इस वक्त मुझसे टकराने का इरादा छोड़ दो ।” महाजन ने पूर्ववत: स्वर में कहा ।

“तुम जो भी करो, मेरा कोई मतलब नहीं । लेकिन मैं बच्चों को यहाँ से निकाल देना चाहती हूँ ।

“कोई भी बच्चा मेरी इजाजत के बिना बाहर नहीं जायेगा ।” महाजन दाँत भींचकर बोला ।

मैडम शर्मा, महाजन की आँखों में झाँककर कह उठी ।

“कानून से टकराकर कोई भी नहीं बच सकता । होश में आओ । दस लाख के इनाम वाली ऑफर अभी भी तुम्हारे सामने है । बच्चों को जाने दो । तुम भी बाहर आ जाओ । पुलिस इस जीव से निपट लेगी । ऐसा करने से तुम्हें कानून का डर भी नहीं रहेगा और दस लाख भी मुफ्त में मिल जायेंगे । शायद अखबार में तुम्हारी तस्वीर भी छप जायें ।

महाजन के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान उभरी ।

मैडम शर्मा की आँखें सिकुड़ीं ।

“क्या हुआ ?”

“तुम गलत इंसान को लालच में फँसाने की कोशिश कर रही हो ।”

“ये तुम्हारा सगा वाला तो नहीं, जिसे तुम बचाना चाहते हो ।”

“इससे मेरा सच्चा नाता है । इसे मुझसे कोई लालच नहीं और मुझे इससे कोई लालच नहीं ।” महाजन के दाँत भिंच गये, “तुम पुलिस वाले बिना मतलब के कोई काम नहीं करते और मैं जो कर रहा हूँ, वो बिना मतलब के कर रहा हूँ ।”

“पुलिस वाले चाहते हैं कि इन बच्चों की जान को खतरा न पैदा हो । इन्हें यहाँ से बाहर कर दिया जाये ।”

“मैं पहले भी कह चुका हूँ और फिर कहता हूँ कि जब तक बच्चे यहाँ हैं, मेरा जीवन सुरक्षित है । बच्चों के अलग होते ही मैं पुलिस के हाथों मारा जाऊँगा और मैं खामखाह मरना नहीं चाहता ।”

“बचने का रास्ता तुम्हें बता चुकी हूँ । दस लाख साथ मिलेगा ।

“तुम्हारे ऑफर से मुझे इंकार है ।”

“अपनी जिंदगी बचाने का तुम्हें शानदार मौका मिल रहा है ।” मैडम शर्मा ने दाँत भींचकर कहा, “वक्त तुम्हारे हाथ में है ।”

“इस जीव को मौत के मुँह में भेजकर अपनी जान बचाना, मैं गलत समझता हूँ ।”

तभी मैडम शर्मा उछली और महाजन से टकराई ।

महाजन सतर्क था । वह गिरा नहीं । मैडम शर्मा को संभाले, उसके शरीर के गिर्द बाँह लपेटे उसे जकड़ लिया । इसके साथ ही उसने जेब से रिवॉल्वर निकाली और मैडम शर्मा के सिर से सटा दी ।

मैडम शर्मा दाँत भीचें खड़ी-की-खड़ी रह गई ।

“क्या इरादा है ?”

मैडम शर्मा भिंचे होंठ के साथ खड़ी रही ।

“मैं पुलिस वालों की जान लेने में विश्वास नहीं रखता लेकिन जरूरत पड़ने पर परहेज भी नहीं करता ।” महाजन एकाएक खतरनाक स्वर में कह उठा, “इस बार तुम्हें छोड़ रहा हूँ । अगली बार नहीं छोड़ूँगा ।” इसके साथ ही महाजन ने मैडम शर्मा को अपने से जुदा करते हुए धक्का दिया तो वह तीन-चार कदम दूर जाकर रुकी ।

सन्नाटा-सा छा चुका था वहाँ ।

मैडम शर्मा ने पलटकर महाजन को देखा । चेहरे पर गंभीरता थी ।

बच्चे खाना-पीना छोड़कर इधर ही देख रहे थे ।

महाजन बच्चों को देखकर जबरन मुस्कुराया और रिवॉल्वर जेब मैं डालते कह उठा ।

“खाना खाओ बच्चों । रुक क्यों गये ?”

बच्चों में हरकत हुई । उसका ध्यान खाने की तरफ होने लगा ।

“अंकल-अंकल ! आपके पास पिस्तौल असली है ?” एक बच्चे ने पूछा ।

“नहीं !” महाजन पुनः मुस्कुराया, “नकली है । डराने के लिए ।”

“आमिर खान के पास तो असली है ।”

“आमिर खान के पास पिस्तौल थोड़े न है । वो तो अब क्रिकेट खेलने लगा है । मैंने टीवी पर देखा था ।”

खाने के बीच बच्चों की बातें शुरू हो गई ।

माहौल सामान्य-सा होने लगा ।

महाजन ने कठोर निगाहों से मैडम शर्मा को देखा ।

“ऐसे मौके पर मुझ पर हाथ डालना तुम्हारी बहुत बड़ी बेवकूफी है ।” महाजन ने एक-एक शब्द चबाकर कहा, “इस वक्त मैं हर तरफ से फँसा पड़ा हूँ और फँसा इंसान खून की नदियाँ बहा देता है ।”

“तुम कहते हो तुम ।” मैडम शर्मा ने कहा, “लेकिन मैं अपना फर्ज निभाने की कोशिश कर रही हूँ । इन बच्चों को यहाँ के हालातों से मुझे हर हालत में निकलना है । तुम अपना फर्ज निभा रहे हो और मैं अपना ।”

मैडम शर्मा के बाहर जाने के बाद पुलिस वालों की गम्भीर नजरें आपस में मिली । पैना-तीखा सन्नाटा छा गया था वहाँ । अधिकतर पुलिस वाले बेचैन और परेशान दिखाई दे रहे थे ।

“हालातों की सहमति का रुख हमारी तरफ जरा भी नहीं है ।” कमिश्नर रामकुमार ने खामोशी तोड़ी, “वो इंसान जाने कौन है जो हमारी कोई भी बात नहीं मान रहा । बच्चों को कैदी बनाकर कमरे में बंद कर रखा है । उसके पास हथियार भी है और साथ में वो वहशी जीव भी । बच्चों को भी बड़े खतरे का सामना करना पड़ सकता है ।”

दूसरे कमिश्नर ने पहलू बदलकर रामकुमार को देखा ।

“जैसे भी हो, बच्चों को सबसे पहले इस खतरे से निकालना है ।”

“लेकिन ये काम होगा कैसे ?”

“इसी मुद्दे पर हमें विचार करना है; और ये काम जल्द-से-जल्द करना है । कही देर न हो जाये ।”

पुलिस वालों की नजरें एक-दूसरे पर जाने लगी ।

मोदी और दुलानी की निगाहें मिली ।

“वो एक ही इंसान है । मेरे ख्याल में हमें ब्लैक कमांडोज भीतर भेजने चाहिए ।”

“ब्लैक कमांडोज की जरूरत नहीं पड़ेगी ।” अन्य कमिश्नर ने कहा ।

“क्यों ?”

“कमिश्नर शर्मा रिवॉल्वर साथ लेकर गई है । शायद वो उस व्यक्ति को खत्म कर दें जो भीतर... ।”

“ये इतना आसान नहीं है सर !” मोदी के होंठों से निकला । कइयों की निगाहें मोदी पर गई ।

“क्यों आसान नहीं है ?” एक कमिश्नर ने पूछा ।

“मुझे ।” मोदी संभलकर कह उठा, “वो आदमी बहुत चालाक लगता है । एक तरफ तो रहस्यमय जीव को अपने साथ लिए संभाले फिर रहा है, जिसे की सबने जल्लाद का नाम दिया है । दूसरी तरफ हम पुलिस वालों का बखूबी मुकाबला कर रहा है । ऐसे इंसान पर काबू पाना आसान काम नहीं हो सकता । वो कमिश्नर शर्मा से धोखा नहीं खायेगा ।”

“हाँ ! इंस्पेक्टर मोदी की बात से इत्तेफाक रखता हूँ कि वो बहुत चालाक इंसान है ।” कमिश्नर रामकुमार गंभीर स्वर में कह उठा ।

“लेकिन उस पर किसी तरह काबू तो पाना है । बच्चों को छुड़ाना है ।”

“इसके लिए हमें कमांडोज की सहायता ही लेनी पड़ेगी । वो सिर्फ एक है । हमारे कमांडोज आसानी से उसे संभाल लेंगे ।

“कमांडोज का इस्तेमाल करना खतरे वाली बात होगी । बच्चों को नुकसान पहुँच सकता है ।” अन्य पुलिस वाले ने कहा, “फिर उस रहस्यमय जीव को भी ध्यान में रखना है कि इन हालातों में वो क्या करेगा ?”

“वो क्या करेगा । उसे तो हम कुछ नहीं कह रहे । जब तक उसे कुछ नहीं कहेंगे तो वो दूसरों को कुछ नहीं कहेगा ।”

“इस बात पर सोचा जा सकता है ।”

“ये करना गलत होगा ।” दुलानी कह उठा, “जो उस व्यक्ति को कुछ करेगा, विचित्र जीव उसे छोड़ेगा नहीं ।”

कइयों की निगाह दुलानी पर जा टिकी ।

“क्या मतलब ?”

इंस्पेक्टर हरीश दुलानी के होंठ भिंच गये ।

“जवाब दो इंस्पेक्टर दुलानी ! क्या कहना चाहते हो तुम ?”

“वो उस रहस्यमय जीव को बचाने की चेष्टा कर रहा है और इस बात का जीव को एहसास है ।”

“तो ?”

“ऐसे में कोई भी उस व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुँचा सकता । जो ऐसा करेगा, वो जीव उसे भी नहीं छोड़ेगा ।”

वहाँ मौजूद पुलिस वालों की आँखों में दिलचस्पी के भाव उभरे ।

“हम समझे नहीं इंस्पेक्टर दुलानी कि तुम क्या कहना चाहते हो ?”

“सर-सर ! वो जीव बहुत समझदार है । वो जानवर नहीं है । जाने वो क्या है ? वो शायद इंसानों से ज्यादा दिमाग रखता है । वो बोला नहीं पाता लेकिन सब समझता है ।” दुलानी गंभीर स्वर में कह उठा, “वो जानता है कि कुछ लोग उसे या उसके साथ के आदमी को पकड़ने की चेष्टा में है । वो पुलिस वर्दियों को खासतौर से पहचानता है और ऐसे कपड़े पहनने वालों को पसंद नहीं करता । पुलिस वालों की पहचान उसे कोटेश्वर बीच से हो चुकी है । अपने बचाने वालों को हर हाल में बचायेगा । गोलियाँ उसके शरीर में प्रवेश कर जाती हैं, परंतु उसे मार नहीं पाती । ऐसे में कमांडोज ने कोई हरकत करने की चेष्टा की तो क्रोध में आकर वो सबको खत्म कर देगा । बहुत ताकतवर है वो । उसका मुकाबला नहीं किया जा सकता । बच्चों को भी उससे खतरा पैदा हो सकता है । मेरी तो यही राय है कि उसकी मौजूदगी में किसी तरह का एक्शन न लिया जाये ।”

सबकी निगाह दुलानी पर ही थी ।

“वो अभी तक उस कमरे के भीतर है । ये अच्छी बात है । उस व्यक्ति ने उसे कमरे में ही संभाल रखा है । हमें उसका एहसान मानना चाहिए ।” दुलानी गंभीर स्वर में कह उठा, “अगर वो विचित्र जीव कमरे से बाहर निकल आया और उसे क्रोध आ गया तो जाने कितनी लाशें बिछा देगा । उसे गुस्सा दिलाने के लिए उसे रिवॉल्वर दिखाना ही बहुत है । वो रिवॉल्वर को पहचानता है कि इससे कुछ निकलकर शरीर में चला जाता है । फिर दर्द होता है ।”

“तुम... तुम ये सब बात कैसे जानते हो ?” एक कमिश्नर ने पूछा ।

“सर, मैं कोटेश्वर बीच पर सब बातें भुगत हुआ हूँ !” दुलानी ने कहा ।

“ओह !”

“मैं उससे हाथ भी मिला चुका हूँ । किसी तरह उस पर काबू पाकर उससे दोस्ती कर ली थी ।” दुलानी ने मोना चौधरी और महाजन का नाम नहीं लिया, “परंतु सब इंस्पेक्टर तिवारी ने उन पर गोलियाँ बरसाकर हममें और उस जीव में दुश्मनी-सी पैदा कर दी ।”

“बता सकते हो कि वो जीव क्या है ?”

“नहीं ! मैं उसके बारे में कोई राय कायम नहीं कर सकता ।”

“और कहते हो कि दिमाग रखता है ।”

“यस सर ! हमसे ज्यादा तेज दिमाग रखता है ।”

“इन बातों को हम बाद में भी कर सकते हैं ।” कमिश्नर रामकुमार ने कहा, “हमारे सामने सबसे बड़ा मामला बच्चों को कमरे से निकालने का है । इंस्पेक्टर दुलानी तुम बताओ कि बच्चों को बाहर निकालने के लिए हमें क्या करना चाहिए ।”

“मैं किसी भी तरह की राय देने में असमर्थ हूँ ।” दुलानी ने गंभीर स्वर में कहा, “जब तक जीव हमारे रास्ते में है तब तक हथियार होते हुए भी हम बे-हथियार हैं ।”

“तो तुम कहना चाहते हो कि उस जीव के सामने पुलिस वाले बेबस हैं ।” एक इंस्पेक्टर कह उठा ।

“हाँ ! क्योंकि हथियार उस पर... ।”

तभी इंस्पेक्टर मोदी ने कमिश्नर रामकुमार से गंभीर स्वर में कहा ।

“सर ! मैं आपसे अकेले में बात करना चाहता हूँ ।”

“अकेले में ?” रामकुमार की निगाह वहाँ बैठे पुलिस वालों पर गई, “सबके सामने भी तो बात हो सकती है ।”

जवाब में मोदी ने गंभीरता से इंकार में सिर हिलाया ।

कमिश्नर रामकुमार ने होले से सिर हिलाया और उठ खड़े हुए ।

इंस्पेक्टर मोदी और कमिश्नर रामकुमार कुछ हटकर, कमरे की दीवार के पास पहुँचे ।

“ऐसी क्या खास बात है मोदी !”

“सर !” मोदी ने धीमे स्वर में कहा, “बहुत देर से मैं आपको एक बात बताना चाह रहा था, परंतु वक्त नहीं मिला कि... ।”

“कैसी बात ?”

“सर ! उस जीव के साथ महाजन है ।”

“कौन ?”

“महाजन ! मोना चौधरी का साथी ।”

“ओह, महाजन !” चिहुँक उठा रामकुमार, “वो महाजन, जीव के पास है ।”

“यस सर !”

रामकुमार ने गहरी निगाहों से इंस्पेक्टर मोदी को देखा ।

“तुम्हें... तुम्हें कैसे मालूम ?” रामकुमार की होंठों से निकला ।

“सर, वो इंस्पेक्टर जयंत की वर्दी मेरे सामने जीव को पहनाई गई थी । मैंने उसे वर्दी पहनाने में सहायता की ।”

“किसकी सहायता ?”

“महाजन की ।”

कमिश्नर रामकुमार के चेहरे पर कई तरह के भाव आ-जा रहे थे ।

“पूरी बात बताओ । क्या हुआ था इमारत के भीतर ?” मोदी ने बताया ।

“ओह ! तो ये बात है ।”

“यस सर ! महाजन पर मैं हाथ नहीं डाल सकता था, जब तक की आफत वाली बात न होती । वैसे भी उसकी मौजूदगी में हम कुछ भी कर पाने के काबिल नहीं थे । उसकी ताकत मैं देख चुका हूँ । अगर कुछ करने की कोशिश करते तो हमें मार देता । उसकी ताकत पर काबू नहीं पाया जा सकता सर !”

रामकुमार होठं भींचें सोच भरी निगाहों से मोदी को देखता रहा ।

“सर !”

“कहो ।” रामकुमार बेचैन-सा दिखा ।

“आप कहे तो मैं महाजन से बात करके देखूँ ?”

“क्या बात करोगे ?”

मोदी होंठ भींचकर रह गया ।

“महाजन तुम्हारी बात मानेगा ?”

“मालूम नहीं सर !”

“मोना चौधरी कहाँ है ?”

“मालूम नहीं सर ! यहाँ पर मोना चौधरी का आना खतरनाक है । कोई उसे पहचान भी सकता है ।”

रामकुमार होंठ भींचें मोदी को देखता रहा ।

“सर, शायद मैं महाजन को इस बात के लिए तैयार कर लूँ कि वो बच्चों को बाहर आने दे ।”

“ऐसे मौके पर महाजन तुम्हारी बात नहीं मानेगा मोदी ! वो जानता है कि बच्चों की वजह से ही वो बचा हुआ है, वरना पुलिस वाले उसे नहीं छोड़ते । वो बच्चों को बाहर नहीं आने देगा ।” कमिश्नर रामकुमार ने सोच भरे स्वर में कहा ।

“फिर भी सर, एक बार महाजन से बात... ।”

“मुझे कोई एतराज नहीं । लेकिन यह बात तुम्हें सबके सामने रखनी होगी । इस वक्त यहाँ मिलकर काम किया जा रहा है । किसी को मत बता देना कि तुम जानते हो कि रहस्यमय जीव के पास कौन है ।” रामकुमार ने उसे सतर्क किया ।

“मैं समझता हूँ सर !”

कमिश्नर रामकुमार वापस कुर्सी पर आ बैठा और बोला ।

“इंस्पेक्टर मोदी उस इंसान से बात करना चाहता है जो उस रहस्यमय जीव के पास है ।”

“मोदी ने अकेले में यही बात की आपसे ?” अन्य कमिश्नर कह उठा, “ये तो वो सबके सामने भी कह सकता था ।”

तभी दूसरे पुलिस कमिश्नर ने कहा ।

“उस व्यक्ति के पास कमिश्नर शर्मा है । शर्मा उस व्यक्ति को नहीं संभाल पा रही तो इंस्पेक्टर मोदी क्या बात कर... ।”

“आप ठीक कह रहे हैं सर !” मोदी कह उठा, “फिर भी मुझे उससे बात करने की इजाजत दी... ।”

“मैं जरूरी नहीं समझता ।” उसी कमिश्नर ने कहा, “जरूरत पड़ी तो उस आदमी से हम बात कर सकते हैं ।”

“प्लीज सर !” मोदी ने अपने स्वर को सामान रखने की चेष्टा की ।

“मेरे ख्याल में अगर इंस्पेक्टर मोदी उस व्यक्ति से बात करना चाहता है तो हर्ज ही क्या है ।” अन्य कमिश्नर कह उठा ।

“हम भी तो उससे कर... ।”

“बात ये नहीं है कि हम उससे बात कर सकते हैं ।” उस कमिश्नर ने कहा, “ बात है कि अगर इंस्पेक्टर मोदी ने ये बात कही तो कुछ सोचकर ही कही है । मोदी सीनियर इंस्पेक्टर है । ऐसे हालातों का अनुभव है । वो अवश्य सोच चुका होगा कि उस व्यक्ति से उसने क्या और कैसे बात करनी है ।”

“मेरे ख्याल में मोदी को उससे बात कर लेने की इजाजत दे देनी चाहिए ।” रामकुमार ने कहा, “आखिर इससे नुकसान ही क्या है ! उससे ढंग की बातचीत हुई तो ठीक, नहीं तो हम सोच ही रहे हैं कि हमें क्या करना है ।”

एतराज उठाने वाले कमिश्नर ने कंधे उचकाकर कहा ।

“आप सब को कोई एतराज नहीं तो फिर मुझे क्या एतराज हो सकता है ।”

कमिश्नर रामकुमार ने मोदी को गंभीर निगाहों से देखा ।

“तुम कैसे, क्या बात करोगे इंस्पेक्टर मोदी?” रामकुमार ने पूछा।

दूसरों की नजरें भी मोदी की तरफ उठीं।

“सर, मैं उससे बातचीत करके ये जानने की चेष्टा करूँगा कि वो चाहता क्या है? वहाँ के हालात देखूँगा कि... ।”

“मतलब कि तुम कमरे के भीतर जाओगे ।” दूसरा पुलिस कमिश्नर कह उठा ।

“ज... जी !”

“तुमने कैसे सोच लिया कि तुम भीतर चले जाओगे ? हो सकता है वो तुमसे बात नहीं करना चाहे । अगर बात करे तो तुम्हें भीतर ही न आने दे । भीतर से ही वो बात करे ।”

“मैंने ही सोचा है सर !” मोदी ने संभले स्वर में कहा, “अब उसकी मर्जी कि वो बात करता है या नहीं । करता है तो भीतर से ही करता है या फिर मुझे भीतर बुला लेता है ।”

कुछ पलों की चुप्पी के बाद कमिश्नर रामकुमार ने कहा ।

“ओके । तुम बात करो । गलत हरकत मत करना । भीतर बच्चे और कमिश्नर शर्मा हैं ।”

“मैं समझता हूँ सर ?” मोदी ने गम्भीर स्वर में कहा ।

इंस्पेक्टर हरीश दुलानी होंठ भींचे गम्भीर निगाहों से मोदी को देख रहा था ।

☐☐☐

मोदी ने उस बंद दरवाजे को थपथपाया ।

कोई जवाब नहीं मिला । खामोशी-सी छाई रही ।

इस बार मोदी ने दरवाजे को जोर से थपथपाया ।

“क्या है ?” भीतर से आया महाजन का उखड़ा-सा स्वर मोदी के कानों में पड़ा ।

मोदी ने खुद को संभाला और ऊँचे स्वर में कह उठा ।

“मैं इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी तुमसे बात कर रहा हूँ । मैं नहीं जानता तुम कौन हो ।” मोदी ने जल्दी से कहा । उसे डर था कि कही महाजन उसका नाम न पुकार ले, “लेकिन पुलिस की तरफ से मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ ।”

पल भर की खामोशी के बाद महाजन की आवाज सुनाई दी ।

“यहाँ सब-इंस्पेक्टर शर्मा है । पुलिस से मेरी जो बात होनी थी, वो हो चुकी । तुम कोई नई बात नहीं करोगे ।”

“शायद हम में कोई नई बात हो जाये ।”

“कुछ भी नया नहीं है । सब कुछ वही है ।” महाजन की आवाज में तीखेपन के भाव थे ।

“पुलिस वालों की सबसे पहली दिलचस्पी बच्चों को आजाद करवाने की है ।” मोदी ने ऊँचे स्वर में कहा ।

“मैं जानता हूँ पुलिस मजबूर है । जब तक बच्चे भीतर हैं, तब तक पुलिस किसी भी तरह का एक्शन नहीं ले सकती ।” महाजन का स्वर मोदी के कानों में पड़ा, “मैं पुलिस को हरकत में आने का मौका नहीं दूँगा ।”

“तुम हमारी बातें मानो । हम तुम्हारी बात मानेंगे ।

“मुझे सिर्फ अपने से मतलब है । तुम लोग क्या चाहते हो, इसकी मुझे परवाह नहीं ।”

मोदी कई पलों तक होंठ भिंचे खड़ा रहा, फिर बोला ।

“मैं भीतर आकर तुमसे बात करना चाहता हूँ ।”

“जरूरत नहीं ! पुलिस वालों को दूर रखना ही अच्छा लगता है मुझे ।”

“नाम क्या है तुम्हारा ?” थक-हारकर मोदी ने यूँ ही पूछा ।

“मेरे बारे में कुछ भी जानने की चेष्टा मत करो । मैं नहीं बताऊँगा ।” महाजन का उखड़ा स्वर कानों में पड़ा, “अगर बच्चों की सलामती चाहते हो तो मुझे और इस जीव को यहाँ से निकल जाने दो ।”

“यानी कि तुम बच्चों को छोड़ने को तैयार हो ?”

“हाँ, लेकिन शर्त है ये कि जब मैं यहाँ से, जीव के साथ बाहर निकलूँ तो मेरे पीछे पुलिस न लगे । यहाँ से जाने के लिए मुझे वैन का इंतजाम करके दोगे । तब पाँच बच्चे भी मेरे साथ जायेंगे और... ।”

“बच्चे साथ क्यों ?”

“इसलिए कि रास्ते में पुलिस वाले कोई चालाकी न कर दे ।”

“हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जैसा कि तुम सोच रहे हो ।”

“ये तो अच्छी बात है । जब मैं रास्ते में खुद को सुरक्षित समझूँगा तो बच्चों को छोड़ दूँगा ।”

मोदी के चेहरे पर तीखेपन के भाव उभरे ।

“अगर हम आमने-सामने बात कर ले तो ।”

“मैं जरूरत नहीं समझता ।”

मोदी समझ गया कि महाजन उसकी बात नहीं मानेगा ।

“तुम उस विचित्र जीव को यहाँ से ले जाओगे । बाद में वो फिर निर्दोष लोगों की हत्याएँ करना शुरू... ।”

“जब तक उसे कुछ नहीं कहा जायेगा, वो किसी को कुछ नहीं कहेगा ।”

“ये कैसे साबित हो कि तुम सच कह रहे हो ?”

“मेरा कहना ही सच है । आगे तुम्हारी मर्जी ।”

कुछ चुप्पी के पश्चात मोदी दाँत भींचकर बोला ।

“अगर हम तुम्हें यहाँ से निकलने के लिए रास्ता न दे तो ?”

“तो मैं किसी बच्चे को नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा ।” महाजन की आवाज मोदी को सुनाई दी, “मैं यहाँ मजे में हूँ । बच्चों को कैद में अवश्य तकलीफ होगी । मुझे क्या ? बच्चे जब मुझे तकलीफ देंगे तो मैं उन्हें शूट करना शुरू कर दूँगा ।”

“तुम बच्चों को नहीं मार सकते । मैं जानता हूँ ।”

“तुम ये नहीं जानते कि मैं कौन हूँ तो बाकी बातें कैसे जानोगे ।” महाजन जल्दी से बोला । वह फौरन समझ गया था कि गुस्से में मोदी ऐसा कुछ कहने जा रहा था कि सुनने वाले समझ जाएँगे कि वे एक-दूसरे को जानते हैं ।

एकाएक मोदी होंठ भींचकर रह गया ।

महाजन की आवाज पुनः कानों में पड़ी ।

“मुझे यहाँ से जाने का रास्ता दो या फिर घेरा डाले रहो । मेरे से रहम की उम्मीद मत करना । अगर किसी ने जबरदस्ती भीतर आने की चेष्टा की । मुझ पर हाथ डालने के लिए पुलिस ने चालाकी इस्तेमाल की तो ये बच्चे जिंदा नहीं मिलेंगे । इनकी लाशें ही इनके घर वालों को... ।”

“ऐसे बुरे शब्द मत बोलो ।” मोदी कह उठा ।

“मुझे और जीव को यहाँ से निकलने के लिए रास्ता देते हो ?” महाजन की आवाज पुनः कानों में पड़ी ।

“इस बात का फैसला करना मेरे हाथ में नहीं ।”

“तो जिसके हाथ में है, उससे बात कर लो । लेकिन इतना जान लो कि इस मामले में पुलिस अपनी नहीं कर सकती । मेरी बात माननी ही पड़ेगी । इस सारे मामले में मेरी ऐसी कोई दिलचस्पी नहीं है कि मैं पुलिस वालों की कोई बात मानूँ ।”

मोदी होंठ भींचें खड़ा रहा ।

तभी इंस्पेक्टर दुलानी पास पहुँचा ।

“क्या हुआ ?”

“वो निकलने के लिए रास्ता माँग रहा है । साथ में कुछ बच्चों को भी ले जायेगा । सीधी-सी बात है, वो कोई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता । खुद को सुरक्षित रखकर ही हर काम कर रहा है ।” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा ।

दोनों की नजरें मिली ।

“कहीं वो बच्चों को नुकसान न पहुँचा दे ।” दुलानी ने दबे स्वर में कहा ।

“मैं जानता हूँ वो ऐसा नहीं करेगा ।” मोदी के स्वर में विश्वास के भाव थे, “फिर भी ऐसे मौके पर मैं उसके खिलाफ कुछ भी करना नहीं चाहता । कुछ करने के बाद, उस जीव से मुकाबला नहीं कर सकते हम ।”

“ये बात तो है ।” इंस्पेक्टर हरीश दुलानी से सोच भरे स्वर में कहा, “अब क्या करें ?”

“उसकी माँग कमिश्नर साहब को बताते हैं । जो करेंगे अब वही करेंगे ।” मोदी की आवाज में गंभीरता थी ।

मैडम शर्मा ने महाजन को गहरी निगाहों से देखा । मोदी से बात करने के बाद महाजन कुर्सी पर आ बैठा था । उसके चेहरे पर गुस्से और उखड़ेपन के भाव थे । सच बात तो ये थी कि महाजन समझ नहीं पा रहा था कि क्या करें इन हालातों में ? वह जानता था कि पुलिस की बराबरी पर खड़ा नहीं हुआ जा सकता ।

“तुम्हें उस पुलिस वाले से बात करनी चाहिए थी ।” मैडम शर्मा ने कहा ।

“जरूरत नहीं समझता ।” महाजन ने उसे खा जाने वाली निगाहों से देखा, “वो वही कहेगा, जो तुम कह चुकी हो ।”

“हो सकता है, वो कोई नई बात कहना चाहता हो ।”

“नई बात होती तो वो बंद दरवाजे के पास से ही कह देता । इस तरह चला न जाता ।”

मैडम शर्मा ने सिर हिलाकर गंभीर निगाहों से महाजन को देखते हुए कहा ।

“व्यक्तिगत तौर पर मैं तुम्हें इतना अवश्य कहूँगी कि यहाँ से निकल भी गये तो पुलिस के हाथों से बच नहीं सकोगे । कहीं पर तो फिर से पुलिस के हाथों में पड़ जाओगे । इंसान का किया उसका पीछा नहीं छोड़ता ।”

“मैं कुछ बुरा नहीं कर रहा कि मेरे कर्म मेरे पीछा करते रहे ।” महाजन ने मैडम शर्मा को देखा, “इस जीव को बचा रहा हूँ कि इसे किसी तरह की तकलीफ न हो और लोगों को बचा रहा हूँ कि जीव तंग हुआ तो गुस्से में जाने कितनी जाने ले लेगा । मेरी हरकत से किसी को नुकसान नहीं हो सकता ।”

मैडम शर्मा महाजन को देखती रही ।

“पुलिस इस जीव के पीछे क्यों है ? क्यों इसे मार देना चाहती है ?”

“क्योंकि इस जीव से जनता को खतरा है ।”

“खतरा ?” महाजन का स्वर कड़वा हो गया, “तुम कब से यहाँ हो । इस जीव को देख रही हो । इस वक्त ये नींद में है । क्या तुम्हें लगता है कि इससे जनता को खतरा है ? ये लोगों की जान लेगा ? ये जल्लाद है ? इसने अभी तक ऐसी कोई हरकत की कि तुम्हें इससे डर लगा हो ?”

मैडम शर्मा के चेहरे पर गंभीरता आ ठहरी । कहा कुछ नहीं ।

तभी बच्चे घर जाने की जिद करने लगे ।

मैडम शर्मा बच्चों को समझाने, उन्हें शांत करने में व्यस्त हो गई ।

इंस्पेक्टर मोदी ने उस कमरे में मौजूद पुलिस वालों को बता दिया कि महाजन क्या चाहता है ।

बच्चे भीतर थे । ऐसे में कोई भी पुलिस वाला सख्ती पर नहीं आना चाहता था कि बच्चों को नुकसान पहुँचे । जो भी कदम अब उठाना था, बहुत सोच-समझकर उठाना था ।

“तुम्हारा क्या ख्याल है इंस्पेक्टर मोदी !” एक पुलिस कमिश्नर ने पूछा, “वो इंसान बच्चों को नुकसान पहुँचा सकता है ?”

“सर !” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, “जब इंसान फँसा हो । निकलने का रास्ता न हो । उसकी जान पर आ बनी हो तो वो खुद को बचाने के लिए कुछ भी कर सकता है और यह इंसान इस वक्त फँसा हुआ है ।

“तुम्हारा मतलब है कि उसे यहाँ से निकलने दिया जाये ?”

“ये फैसला तो आप लोग ही करेंगे ।” मोदी ने कहा, “लेकिन मैं इतना अवश्य कहूँगा कि बच्चों की जान खतरे में डालने की अपेक्षा उसे रहस्यमय जीव के साथ निकल जाने का रास्ता दे देना चाहिए । बच्चों को बचाने के बाद हम उसे फिर किसी जगह पर घेर सकते हैं । कानून के हाथों से बच नहीं सकेगा वो ।”

“लेकिन वो है कौन, जो जीव के साथ है ?” दूसरे कमिश्नर ने पूछा, “पहले तो जीव अकेला था । ये व्यक्ति कहाँ से आ गया ?”

“आपकी तरह ही इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है ।”

तभी अन्य पुलिस वाले ने कहा ।

“इंस्पेक्टर मोदी ठीक कहता है कि पहले बच्चों को बचाया जाये । उसे तो हम फिर भी पकड़ सकते हैं ।”

“लेकिन यहाँ से बाहर निकलकर उस जीव ने फिर लोगों की जान लेनी शुरू कर दी तो कौन जिम्मेदार होगा ?”

“सर, वो भीतर रहकर बच्चों की भी जान ले सकता है !”

“बेहतर है कि कमिश्नर शर्मा को बुलाकर, उससे बातचीत की जाये ।” कमिश्नर रामकुमार ने गंभीर स्वर में कहा, “वो भीतर है । वहाँ के हालातों को बेहतर जानती है और हमें राय दे सकती है ।”

उसी वक्त दरवाजा थपथपाकर एक पुलिस वाले ने भीतर प्रवेश करके कहा ।

“सर ! इंस्पेक्टर मोदी से कोई मैडम मिलना चाहती हैं । मैडम का कहना है कि बहुत अर्जेंट काम है ।”

मोदी ने उसे देखा ।

“कौन मैडम ? नाम क्या है उसका ?”

“अपने बारे में कुछ भी नहीं बताना चाहती ।”

मोदी ने कमिश्नर रामकुमार को देखा ।

“देख लो मोदी कि वो कौन है ।” कहने के पश्चात कमिश्नर रामकुमार ने अन्य पुलिस वाले से कहा, “कमिश्नर शर्मा को बुला लाओ । बाहर से आवाज देना । भीतर जाने की गलती मत कर बैठना ।”

“सर !” भीतर आने वाले पुलिस वाले ने कहा, “बाहर बच्चों के घर वाले इकट्ठे होने शुरू हो गये हैं । दो स्थानीय नेता भी जोर डाल रहे हैं कि बच्चों को बचाया जाये । स्कूल वाले भी बच्चों को बचाने के लिए कह रहे हैं । पब्लिक भी इकट्ठी होती जा रही है । आने वाले वक्त में हमारे लिए परेशानी खड़ी हो जाएगी ।”

“उनसे कहो कि बच्चों को बचाने की पूरी कोशिश की जा रही है ।”

मोदी स्कूल के रिसेप्शन पर पहुँचते ही ठिठका ।