तोलका की पत्नी फौरन बाहर निकली और चीख-चीखकर लोगों को पुकारने लगी। फौरन ही नींद में डूबे विद्रोही वहां पहुंचने लगे। देव की तलवार, तोलका की छाती पर लगी थी। देव सतर्क था कि वो कोई हरकत न कर दे।

तोलका के चेहरे का रंग फक्क था।

“तुम-तुम मुझे मार दोगे न राजा देव।” तोलका घबराया हुआ था।

“तुम्हारा फैसला बाद में होगा। अभी कोई बात मत करो।” देव ने सख्त स्वर में कहा-“मुझे ये काम बहुत पहले कर देना चाहिए था। परंतु तुम्हारे बारे में कभी गम्भीरता से सोचा ही नहीं। अब तुम्हारे आदमियों ने पंद्रह लोगों की जान ली तो मुझे तुम्हारे बारे में सोचना पड़ा। राजा इस तरह नहीं बना जाता तोलका। इसके लिए बहुत कुछ चाहिए होता है और तुम्हारे पास ऐसा कुछ भी नहीं है। जो खुद को न बचा सके, वो दूसरों को क्या बचाएगा।”

तम्बू के बाहर विद्रोहियों की भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी। तोलका की पत्नी ने राजा देव के वहां होने और तोलका पर तलवार रखी होने के बारे में बताया और सिपाहियों के आ जाने की बात बताई। राजा देव के वहां पर मौजूद होने की बात सुनकर उनमें हड़कंप मच गया। तोलका की पत्नी उनसे कह रही थी कि सिपाहियों का मुकाबला न किया जाए वरना तोलका को राजा देव मार देगा। तोलका के बिना वो विद्रोही बेकार हो गए थे। उन्होंने उसी पल आपस में बातचीत की कि क्या किया जाए। सिपाहियों का मुकाबला किया तो राजा देव तोलका को मार देंगे। उनमें अंत में ये ही फैसला हुआ कि तोलका को बचाना है। इसलिए वे सिपाहियों का मुकाबला नहीं करेंगे।

कुछ देर बाद ही सिपाही वहां आ पहुंचे।

किसी ने भी उनका मुकाबला करने की कोशिश नहीं की। सिपाहियों को घेरा वहां पड़ चुका था। विद्रोहियों के हथियार भी अपने कब्जे में ले लिए गए थे। तोलका को पकड़ लिया गया था और उसके हाथ पीछे की तरफ करके बांध दिए गए थे। देव के कहने पर धोमरा ने सब विद्रोहियों को सिपाहियों के घेरे में इकट्ठा किया। जो कुछ दूर पहाड़ों पर पहरा दे रहे थे सिपाही उन्हें भी पकड़ लाए। उनमें से कुछ भागने में कामयाब हो गए थे। बच्चे, औरतें और सब विद्रोही वहां मौजूद थे। देव ने उनमें उन खास विद्रोहियों को छांटकर अलग किया जो तोलका के खास साथी थे। उनकी कुल संख्या छब्बीस थी। वहां पर रोशनी वाली मशालों का भरपूर प्रकाश फैला था। अंधेरे में भी काम करने में कोई परेशानी नहीं आ रही थी। उन छब्बीस और तोलका को अलग करके देव ने बाकी लोगों को चेतावनी दी कि उन्हें एक मौका दिया जा रहा है। वो शांति से जीवन व्यतीत करें। आज के बाद कभी विद्रोह का सोचा भी

तो उनके लिए बुरा होगा।

उसके बाद तोलका और उसके साथियों को बंदी बनाकर, पहाड़ों के उस तरफ पहुंचे जहां घोड़े और बग्गियां मौजूद थीं। सिपाही खुश थे कि अपने मकसद में वो बिना खून-खराबे के सफल रहे। तब तक दिन का उजाला फैलना आरम्भ हो गया था। वापस चलने की तैयारी की गई। बंदियों के हाथ-पांव बांधकर बग्गियों में डाल लिया गया। धोमरा ने सारा काम संभाला। देव और बबूसा तो पहले ही वापसी के लिए रवाना हो गए थे। पूरा दिन सफर में बीता, रात के वक्त अंधेरा फैल जाने पर वो किले पर पहुंचे। देव खुश था कि तोलका को पकड़ लिया गया है। तोलका के बाद बाकी के विद्रोही खुद ही अलग-थलग पड़ जाएंगे। किले के तालाब में देव नहाया और फिर कारू पी, इस दौरान उसने बबूसा से कहा कि कल जनता के बीच मुनादी करा दी जाए कि तोलका को राजा देव ने खत्म कर दिया है। आज के बाद जो भी विद्रोह की कोशिश करेगा, उसका हाल भी तोलका की तरह ही होगा। अगले दिन देव की आंख खुली तो ताशा का चेहरा आंखों के सामने नाच उठा। देव के चहरे पर मुस्कान फैल गई ये सोचकर कि आज वो ताशा से मिलेगा। तोलका का काम उसकी आशा से कहीं जल्दी पूरा हो गया था। ताशा जरूर उससे मिलने का इंतजार कर रही होगी। सोमारा ने उसे बता दिया है कि वो राजा देव है। देव के चेहरे पर मुस्कान उभरी ये सोचकर कि तब ताशा का क्या हाल हुआ होगा।

तभी किले के एक कर्मचारी ने धोमरा के आने की खबर दी।

देव बड़े कमरे में जाकर धोमरा से मिला। धोमरा थका हुआ लग रहा था। उसका चेहरा बता रहा था कि वो ठीक से रात नींद नहीं ले पाया है। उसने बताया कि वो आधी रात के बाद ही अपने ठिकाने पर पहुंच सके। रास्ते में बरसात आ जाने से काफिला धीमा हो गया था। परंतु धोमरा उत्साह में भरा था कि तोलका और उसके खास साथियों को पकड़ लिया गया है।

“विद्रोहियों का क्या करना है राजा देव?” धोमरा ने पूछा-“उन्हें कैद में रखना है या कोई और सजा देनी है?”

“उन्हें जिंदा रखकर, उनकी देखभाल करने का कोई मतलब नहीं है। वो विद्रोही हैं।” देव ने सोच भरे स्वर में कहा-“उन सबको ग्रह से बाहर फेंक देना है आज ही। सिपाहियों से कहो कि उन्हें पाइप वाले कमरे की तरफ ले जाएं।”

“क्या आप भी वहां मौजूद होंगे?”

“मेरी जरूरत नहीं।” देव बोला-“परंतु बबूसा वहां रहेगा।”

धोमरा चला गया। देव ने बबूसा को बुलाकर कहा कि अपनी देख-रेख में तोलका और उसके साथियों को ग्रह के बाहर फिंकवा दे। बबूसा चला गया। देव अपने कमरे में ही रहा। खाया-पिया फिर किले के कामों पर नजरें दौड़ाता रहा। रह-रहकर उसे ताशा का ख्याल आ रहा था। बबूसा के आने के इंतजार में दिन बीतने लगा। शाम की शुरुआत होने पर बबूसा वापस लौटा।

“देर लगा दी आने में।” देव ने कहा।

“वो काफी लोग थे, जिन्हें पाइप के रास्ते ग्रह के बाहर फेंकना था। धोमरा के सिपाही भी, विद्रोहियों को लेकर पाइप वाले कमरे पर काफी वक्त गुजर जाने के बाद पहुंचे थे। आप कहें, अब मैं क्या करूं?”

“ताशा से मिलने जाना था।” देव मुस्कराया-“परंतु अब दिन काफी बीत चुका है। कल जाएंगे।”

बबूसा किले के ऊपरी कमरे में सोमारा के पास चला गया।

देव ने बाकी का दिन आराम किया।

अगले दिन देव, ताशा से मिला। उसके घर पहुंचा। बबूसा बग्गी चला रहा था। ताशा के घर का दरवाजा खुला हुआ था। देव जब दरवाजे पर पहुंचा तो ताशा सामने ही पलंग पर बैठी थी। उसने देव को देख लिया था और बैठी उसे ही देखे जा रही थी। आज उसका दिल तेजी से धड़क रहा था, क्योंकि वो जान चुकी थी कि उसका देव, सदूर का राजा देव है।”

“ताशा।” देव का भी दिल धड़क उठा था ताशा को इस तरह देखते।

ताशा उठी और देव के पास जा पहुंची। उसकी नीली आंखें बहुत कुछ कह रही थीं।

“आप राजा देव हैं?”

“मैं तुम्हारा देव हूं ताशा।” देव ने प्यार भरे स्वर में कहा।

“आप झूठे हैं, मक्कार हैं।” ताशा नाराजगी से कह उठी-“आपने मुझसे छिपाकर रखा कि आप राजा देव हैं।”

“मैं सिर्फ तुम्हारा देव हूं ताशा। तुम्हारा देव। हमारे बीच राजा कहां से आ गया। हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं। अगर तुम्हें पहले पता चल जाता कि मैं राजा देव हूं तो, तुम्हारे प्यार को कैसे पहचान पाता। तुम मेरी ताशा हो और मैं तुम्हारा देव। हम दोनों में प्यार का रिश्ता है। मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं ताशा।”

ताशा की आंखों से आंसू बह उठे। वो देव की छाती से लग गई।

देव ने उसे बांहों में भींच लिया।

“आप राजा देव हैं। मैं सोचती थी कि अब आपसे क्या बात कर पाऊंगी।” ताशा कह उठी।

“मैं तुम्हारे लिए सिर्फ देव हूं। सिर्फ देव। ताशा का देव।” देव प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरता कह उठा-“आज से तुम मुझे सिर्फ देव कहोगी। मैंने तुमसे प्यार किया है तो चाहूंगा कि जवाब में मुझे भी प्यार मिले। मुझे राजा कभी मत कहना।”

दोनों देर तक एक-दूसरे में सिमटे खड़े रहे।

फिर ताशा अलग होते कह उठी।

“आप तो तोलका को मारने गए थे। मैं डर गई कि आपको कुछ न हो जाए।”

“मुझे कुछ नहीं हो सकता। आज से मैं तुम्हारे लिए हर खतरे को जीता करूंगा। तुम मेरी ताकत बनोगी।” देव ने प्यार से उसका गाल थपथपाया-“जंगल में चलते हैं। वहां बैठकर दिन भर बातें करेंगे।”

ताशा मुस्करा पड़ी फिर बोली।

“आपकी ये हरकतें देखकर तो मेरा दिल नहीं मानता कि आप राजा देव हैं।”

“एक इंसान के कई रूप होते हैं ताशा जैसे हालात होते हैं, वैसा ही रूप सामने आ जाता है। जब तुम मेरे पास होती हो तो मेरा ये रूप सामने आ जाता है, जो सिर्फ तुम्हारे लिए है।”

“भला हो सोमारा का कि जिसने मुझे आपके बारे में सच बता दिया, वरना अपने राजा होने की बात जाने कब तक मुझे न बताते। मक्कार तो आप बहुत हैं, मैंने देख लिया है।” ताशा ने चंचल स्वर में कहा।

देव मुस्कराकर ताशा को देखता रहा।

“आप फिर मुझे देखने लगे।”

“अपनी ताशा को देख रहा हूं। तुम मुझे देखने को मना नहीं कर सकती।” देव हंस पड़ा।

“ये प्यार कम तो नहीं हो जाएगा देव?” ताशा का स्वर कांप उठा।

“ये और बढ़ेगा।” देव ने ताशा का हाथ थामकर प्यार से कहा-“मेरा प्यार सच्चा है ताशा। सच का फल कभी सड़ता नहीं।” फिर वे दोनों बग्गी में बैठकर जंगल में जा पहुंचे।

सुनसान हरियाली से भरा जंगल। रंग-बिरंगे पेड़ मध्यम हवा के संग झूम रहे थे। वहां धूप भी थी और छाया भी। सब कुछ सुहावना था। दोनों के मन खुश थे। ऐसे में वो तपते पहाड़ पर भी बैठ जाते तो उन्हें अच्छा लगता।

देव और ताशा एक पेड़ की छाया में जा बैठे थे। देव ने तने से टेक लगा ली और ताशा उसके सामने बैठ गई थी। देव ने ताशा का हाथ पकड़ा और उसके खूबसूरत चेहरे को निहारने लगा। नजरों में प्यार भरा पड़ा था।

“फिर मुझे देखने लगे।”

“ताशा।” देव का स्वर प्यार के आवेश में कांपा-“हम शादी कर लें।”

ये सुनते ही ताशा ने अपने दिल पर हाथ रख लिया। गहरी सांस ली।

“इस तरह मिलना, घंटों बैठे रहना।” देव ने कहा-“बातें करना। परंतु जुदा होने पर मन बेचैन रहता है। मैं तुम्हें हर पल पास, अपने करीब देखना चाहता हूं। कई बार तो तुम्हारी याद में किले में मन नहीं लगता।”

ताशा ने अपनी आंखें बंद कर लीं। ढेरों लम्हे खामोशी के बीच निकल गए।

“ताशा।”

“हूँ।”

“मेरे से शादी करने में तुम्हें एतराज तो नहीं?” देव के स्वर में कम्पन था।

“नहीं।” ताशा के होंठ कांपे।

“तुम राजा देव से शादी करोगी या देव से?”

“देव से। अपने प्यारे देव से। आप सदा ही मेरे प्यारे देव रहेंगे। मैं आपसे प्यार करती हूं देव।”

अगले दिन से ही किले में देव की शादी की तैयारियां शुरू हो गईं। खुशी का माहौल था हर तरफ। किले को रोशनी वाली मशालों से रात को सजा दिया गया। किले के चारों कोनों में बने बुर्जों पर भी मशालों की रोशनियां नजर आने लगीं। हर कोई खुश था। जनता में भी मुनादी करा दी गई थी कि राजा देव की शादी वाले दिन सारी जनता किले पर ही खाना खाएगी। जनता ने अपनी जगहों को भी राजा देव की शादी की खुशी में सजाना शुरू कर दिया। किले में सदूर की रानी आने वाली थी। ऐसे में किले का जर्रा-जर्रा फिर से चमकाया जाने लगा। खुशी में बबूसा के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। सोमारा भी हर समय भागती-दौड़ती नजर आती। ओका भी हर पल कामों में व्यस्त दिखता। परंतु इस दौरान देव और ताशा ने मिलना नहीं छोड़ा था। वो हर रोज मिलते। देव उसके चेहरे को निहारता रहता। वो खूब बातें करते। ताशा कहती कि उसे डर लगता है कि इतने बड़े किले में कैसे रहेगी तो देव हंस पड़ता। उसकी हंसी पर ताशा मुंह फुला लेती। उनका प्यार मासूम और बच्चों की तरह था। देव ताशा को सामने पाकर बच्चा ही बन जाता जैसे। कभी ताशा से मिलने जाना होता और बबूसा व्यस्त होता तो, देव खुद ही बग्गी लेकर चुपचाप निकल जाता। देव ने ताशा के पिता को बड़ा घर दे दिया था। चार नौकर दे दिए थे। देख-रेख के लिए। दो बग्गियां दे दी थीं। ताकि ताशा के पिता को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो, ताशा की शादी के बाद। दोनों का मासूम प्यार अंगड़ाइयां ले रहा था। वो दो जिस्म एक जान बन चुके थे। देव तो ताशा के बिना रह ही नहीं सकता था। किले में बबूसा ने सारा काम संभाल रखा था। सोमारा ने ताशा के लिए नए-नए कपड़े तैयार किए थे, जिनमें शादी का जोड़ा भी था। इस दौरान वो ताशा से कई बार मिल चुकी थी। कभी उसका नाप लेना होता तो कभी उसकी पसंद पूछने के लिए।

कई दिन इन्हीं तैयारियों में बीत गए। किले पर मेले जैसा माहौल रहा। खाने में बढ़िया-बढ़िया पकवान तो पहले से ही बनने शुरू हो गए थे। किले के बाहर बांटे जाने वाले खाने में भी वो पकवान शामिल होते। देव को जैसे शादी की तैयारियों से कोई मतलब ही नहीं था। वो तो सिर्फ ताशा के ख्यालों में ही रहता और उस दिन का इंतजार करता, जिस दिन ताशा शादी के बाद दुल्हन बनकर किले में आएगी।

शादी वाला दिन भी आ पहुंचा।

सदूर के लोग दूर-दूर से देव और ताशा की शादी में शामिल होने आए थे और किले की तरफ से दिए जाने वाले भोज का आनंद उठाने आए थे। किले के बाहर भोज की दूर-दूर तक बैठे लोगों की लाइनें लग गई थीं। सबको प्रेम-भाव से खाना खिलाया जा रहा था। इस सेवा में जनता के लोग भी लग गए थे। इसी दौरान बंद बग्गी में ताशा दुल्हन की तरह सजी किले पर पहुंच गई थी। सोमारा उसके साथ थी। किले के आंगन में शादी की जानी थी और शादी का कार्य पूरा कराने के लिए महापंडित स्वयं आया था।

देव और ताशा की शादी हो गई। वो सारा दिन इतनी व्यस्तता से बीता कि जाने कब रात हो गई। ताशा दुल्हन बनी किले के भीतर आ गई थी। सोमारा हर पल उसके साथ थी। ताशा का सुंदर रूप, दुल्हन के रूप में और भी चार चांद लगा रहा था। ये बात तो देखते ही बनती थी। ताशा शर्माई-शर्माई सी कुछ डरी-सी थी। देव बार-बार ताशा के पास उससे बात करने आ जाता था। दिन तो क्या आधी रात तक किले में शोर-शराबा होता रहा।

जब देव, ताशा के पास पहुंचा तो थक चुका था। ताशा दुल्हन के लिबास में उसके कमरे में मौजूद थी। उसके आते ही सोमारा पर्दे लगाकर चली गई, देव पलंग पर ताशा के पास जा बैठा। शर्माई-सी ताशा ने पलकें उठाकर देव को देखा। देव बहुत खुश लग रहा था।

“अब तुम सदूर की रानी बन गई हो ताशा। मेरी पत्नी। कितना अच्छा लग रहा होगा तुम्हें।” देव खुशी से बोला।

“मुझे तो अपने देव की पत्नी बनकर अच्छा लग रहा है।” ताशा मुस्कराकर बोली।

“विश्वास ही नहीं आ रहा कि तुम मेरी पत्नी बन गई हो।” देव ने कहा।

“तो एक बार फिर शादी कर लें।” ताशा ने चंचलता से कहा।

देव ने हाथ बढ़ाकर ताशा का हाथ थाम लिया।

ताशा का जिस्म अजीब-सी उत्तेजना में कांप उठा।

“अब मैं तुम्हें हर पल, हर दम देख सकूँगा। तुम मेरे पास रहोगी। मेरे बहुत करीब। तुम्हारी नीली आंखों में मैं गुम हो जाऊंगा। तुम्हारा साथ मैं कभी न छोडूंगा।” देव का स्वर प्यार में डूबा हुआ था।

उसके बाद तो वक्त तेजी से बीतने लगा।

देव और ताशा तो जैसे एक-दूसरे के लिए ही बने थे। हर पल वो साथ रहते। पास में रहते। वो दोनों बग्गी में बैठकर किले के बाहर भी घूमने जाते। देव की तो दुनिया ही बदल गई थी। हर पल, हर वक्त सिर्फ ताशा और ताशा खाना-पीना-घूमना, मौज करना। देव की तरह ताशा की दुनिया भी बदल गई थी। एकदम उसे इतना कुछ मिल गया था कि वो संभाले, संभाल न पा रही थी। ऊपर से देव का प्यार ऐसा कि वो इन सब में डूब गई थी। दोनों ने एक-दूसरे की कमियों को पूरा कर दिया था।

कई महीने बीत गए।

बबूसा मन ही मन झल्लाता रहता कि राजा देव ने सब काम छोड़ दिए हैं। कर्मचारी ही सब कामों की देख-रेख करते हैं। ऐसे में बबूसा के पास भी करने को कुछ नहीं होता, राजा देव व्यस्त होते तो वो भी व्यस्त हो जाता था। परंतु राजा देव तो ताशा के दीवाने हुए पड़े थे। एक बार भी राजा देव ने किले के या बाहरी कामों के बारे में उससे नहीं पूछा था। वैसे वो कर्मचारियों पर बराबर नजर रखता था। एक-दो बार उसने दबे स्वर में देव को ये बात कही भी, परंतु देव ने उसकी बात पर खास ध्यान नहीं दिया। बबूसा ने अपनी समस्या सोमारा को बताई तो सोमारा ने इतना ही कहा, वो सदूर के राजा हैं। उन्हें तुमसे ज्यादा चिंता है सदूर की। वो जानते हैं कि उनके कर्मचारी काबिल हैं, कोई गलत काम न होने देंगे।

फिर एक दिन देव ने सोमारा को बुलाया।

सोमारा देव के पास पहुंची तो ताशा भी वहां मौजूद थी। ताशा अब और भी निखर गई थी देव के प्यार में। वो पहले से भी ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी थी। वो कयामत नजर आ रही थी।

“हुक्म राजा देव।” सोमारा ने वहां पहुंचते ही कहा।

“सोमारा।” देव मुस्कराकर बोला-“मैं चाहता हूं कि तुम ताशा को वो सब कुछ समझाओ, जो किले में रहते हुए जरूरी है और सदूर की रानी के लिए जरूरी है। इसे कर्मचारियों और लोगों से बात करने का अंदाज बताओ। सदूर के बारे में भी समझाओ जो रानी को पता होना चाहिए।”

“जरूर राजा देव। मैं रानी ताशा को एकदम तैयार कर दूंगी।” सोमारा बोली।

अकेले में सोमारा ने ताशा से कहा-“रानी ताशा, आपकी सुंदरता तो गजब ढा रही है। आप तो पहले से भी ज्यादा सुंदर हो गई हैं।”

ताशा जवाब में मुस्कराकर रह गई। उसके बाद सोमारा जब-तब ताशा के पास आ जाती और उसे समझाती-बताती। ताशा बहुत जल्दी सोमारा की बातों को सीखने लगी। उधर जहां तक हो सके देव, ताशा को सदूर के कामों के दौरान अपने साथ ही रखता कि ताशा को सदूर की बातें समझ में आएंगी। देव ने कामों की तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया था।

बबूसा भी व्यस्त रहने लगा।

परंतु इन सब बातों के दौरान देव और ताशा का प्यार बढ़ता ही चला गया था। दोनों एक-दूसरे की जान बने हुए थे। देव तो ताशा को अकेला छोड़ना ही नहीं चाहता था। कभी-कभी तो ताशा देव के इतने प्यार से तंग आकर, भागकर सोमारा के पास ऊपर कमरे में चली जाती। दोनों में मधुर सम्बंध कायम हो चुके थे। रानी ताशा अब किले के कामों को समझने लगी थी और कोशिश करने लगी थी कि किले के कामों को वो खुद संभालें।

“खुश हो ताशा?” देव ने ताशा के कमरे में आने पर पूछा।

सजी-संवरी ताशा मुस्कराई और नीली आंखें झपकाकर बोली।

“बहुत ज्यादा खुश हूं। मेरा देव सबसे अच्छा है। सबसे निराला।”

“मैं तुम्हें हमेशा इसी तरह खुश देखना चाहता हूं ताशा।” देव ने प्यार से कहा।

“सच?” ताशा ने नीली आंखें फैलाईं।

“हां। तुम खुश रहोगी तो मैं भी बहुत खुश रहूंगा। तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी छिपी है।”

“एक परेशानी है।” ताशा ने मुंह फुलाकर चंचल स्वर में कहा।

“परेशानी-कैसी परेशानी?”

“आप मुझे इतना ज्यादा प्यार करते हैं कि मैं तंग आ जाती हूं।” ताशा खिलखिला उठी।

देव ने आगे बढ़कर ताशा को बांहों में भर लिया।

“फिर?” ताशा ने आंखें नचाईं।

“तुम्हारा प्यार ही तो मेरा जीवन है। तुम्हारे प्यार के सहारे ही तो, मेरी ताकत बनी हुई है।” देव बोला।

अगले दिन देव का मैदान में मुकाबला था। एक व्यक्ति ने चुनौती दी थी देव को।

जब ताशा को ये पता चला तो वो दौड़ी-दौड़ी देव के पास पहुंची।

“कल आप मुकाबले पर जा रहे हैं?” ताशा के चेहरे पर चिंता थी।

“तुम क्यों घबरा रही हो?”

“अगर आपको कुछ हो गया तो?” ताशा ने आगे बढ़कर देव का हाथ थाम लिया।

“मुझे कुछ नहीं होगा।” देव मुस्कराया-“ये मेरे लिए मामूली बातें हैं।”

“आप मुकाबले की प्रथा को हटा क्यों नहीं देते। क्यों खतरा उठाते हैं।”

“इस प्रथा को हटा नहीं सकता।” देव ने ताशा का हाथ थपथपाकर कहा-“क्योंकि मेरे पिता ने भी कभी सदूर का राज्य ऐसे ही मुकाबले में जीता था और वो राजा बने थे।”

“लेकिन मुझे डर लगता है, ऐसी बातों से।”

“मैं तुम्हारा डर दूर कर दूंगा।” देव खुलकर मुस्कराया।

“कैसे?”

“मुकाबला करना तुम्हें भी सिखाऊंगा।”

“मैं?” ताशा घबरा उठी-“नहीं, नहीं मैं ये सब नहीं कर सकती।”

“तुम कर लोगी।”

“देव, नहीं कर सकूँगी।” ताशा कह उठी-“मैं तो…”

“तुम्हें मुकाबला करना मैं सिखाऊंगा और मुझे भरोसा है कि तुम जबर्दस्त लड़ाका बनोगी। पहले तुम्हें किले में रहने के नाम से डर लगता था परंतु अब तुम रानी बनकर किले के कामों की आसानी से देखभाल करती हो। कोई भी काम कठिन नहीं होता। काम को बार-बार करने पर वो आ जाता है।” देव ने विश्वास भरे स्वर में कहा-“मैं तुम्हें किले के पीछे फलों के बाग में मुकाबला करना सिखाऊंगा। जैसे मैं कहूं तुम्हें वैसे करते जाना है। कुछ कठिन नहीं होगा। ऐसे मुकाबले की जमीन मैं तैयार करवा देता हूं कि गिरने पर चोट न लगे।”

उसके बाद देव ने बबूसा से कहा कि पीछे वाले बाग की जमीन का कुछ हिस्सा मुकाबला सिखाने के लिए तैयार करवा दे। तब ताशा इस बात पर घबराई हुई थी। उसी शाम जम्बरा आ पहुंचा। देव तब ताशा के साथ किले के भीतर था। बबूसा को जब जम्बरा के आने का पता चला तो वो फौरन जम्बरा के पास पहुंच गया।

“तुम क्यों आए जम्बरा?” बबूसा ने सीधे-सीधे पूछा।

“क्या मेरा किले पर आना मना है?”

“नहीं मना। तुम जब भी चाहो आ सकते हो।” बबूसा मुस्कराकर बोला-“पोपा के काम के लिए आए हो?”

“हां। राजा देव की कही सब तैयारी मैंने पूरी कर ली है। अब पोपा बनाने की शुरुआत हो जानी चाहिए।' “

“तुम जानते हो कि पोपा बनाने के लिए राजा देव को लम्बा वक्त किले से दूर बिताना होगा।”

“वक्त तो लगेगा ही।” जम्बरा ने सिर हिलाया।

“अभी राजा देव के पास वक्त नहीं है।” बबूसा ने शांत स्वर में कहा-“कुछ पहले ही तो राजा देव ने शादी की है और इन दिनों काम भी कुछ ज्यादा बढ़ गया है। राजा देव बहुत व्यस्त रहने लगे हैं।”

“परंतु ये तो उन्हीं की चाहत है कि पोपा बनाया जाए।”

“वो मुझे पता है। मैं तुम्हारे आने की बात राजा देव को बता दूंगा। अभी कुछ वक्त तुम भी आराम से बिताओ।'

“तो क्या राजा देव से मुलाकात नहीं होगी?”

“अभी नहीं। जब राजा देव ने मिलना होगा, मैं तुम्हें खबर भिजवा दूंगा। इन दिनों तो राजा देव के पास फुर्सत ही नहीं है।”

जम्बरा चला गया। बबूसा ने देव को जम्बरा के आने के बारे में नहीं बताया। बबूसा जानता था कि राजा देव, सब तैयारी हो चुकी है, ये सुनकर पोपा बनाने के लिए चल देंगे, जबकि बबूसा चाहता था कि अभी वो रानी ताशा के साथ ही वक्त बिताए। राजा देव को भी फुर्सत के कुछ पल मिले अपना जीवन जीने को। अगले दिन देव ने मैदान का मुकाबला आसानी से जीत लिया था। उधर बबूसा ने जल्दी ही किले के पीछे वाले बाग में मिट्टी की दलदली जमीन तैयार करवा दी तो देव, ताशा को सिखाने लगा कि किसी का मुकाबला कैसे करते हैं। मासूम ताशा के लिए ये इम्तिहान कठिन था। सुबह से दोपहर तक देव, ताशा को मुकाबला करना सिखाता था। देव को इसमें बहुत मेहनत करनी पड़ी। ताशा इन बातों से बहुत दूर थी परंतु देव ने हार नहीं मानी। मन में जिद थी कि ताशा को बढ़िया लड़ाका बना के रहेगा। इसमें ताशा को कई बार चोटें भी लगतीं तो देव ताशा को बांहों में उठाकर किले के भीतर लाता और खुद ही उसका इलाज करता। परंतु धीरे-धीरे ताशा, देव की बताई बातों को सीखने लगी थी। तब देव को बहुत खुशी हुई कि ताशा भी मेहनत कर रही है। कुछ महीने लगे, परंतु ताशा वो सब सीख गई, जो देव ने सिखाया था। वो देव की तरह का लड़ाका तो नहीं बन पाई, परंतु बेहतरीन लड़ाका वो बन चुकी थी और किसी से भी मुकाबला करने के काबिल बन चुकी थी। अब ताशा में और भी निखार आ गया। उसका विश्वास और भी बढ़ गया था। किले के लिए अब वो नई नहीं रही थी। किले के फैसले वो खुद लेने लगी थी और देव से कम ही सलाह लेती थी। देव खुश था कि ताशा, रानी होने के नाते अपने कामों को देखने लगी है। इस दौरान उनका प्यार और बढ़ गया था। वो घूमते-फिरते, मौज करते, शाम को किले के बुर्ज पर ऊपर पहुंचकर सदूर को निहारते और घंटों वक्त वहां बिताते। दोनों का जीवन प्रसन्नता से बीत रहा था। उसके बाद देव ने ताशा को तलवारबाजी सिखाई। मुकाबला सीख चुकी ताशा को तलवारबाजी सीखने में कोई परेशानी नहीं आई। दो महीनों में ही ताशा निपुण तलवारबाज बन गई। देव ने खंजर और छोटी तलवारों को भी चलाना सिखाया। ये सब सीखने के बाद ताशा का आत्मविश्वास बहुत ज्यादा बढ़ गया था। अब वो पहले वाली भोली-भाली ताशा नहीं रही थी। वो जबर्दस्त योद्धा बन चुकी थी। किले में पूरे विश्वास के साथ चलती थी और कर्मचारियों को, उनके कामों के बारे में बताती थी। ताशा को सब कुछ ठीक से संभालते पाकर देव ने किले के भीतर के काम देखने बंद कर दिए थे। देव को ताशा अब और भी प्यारी लगने लगी थी। या यूं कहें कि देव की दीवानगी ताशा के प्रति और भी बढ़ गई थी। उसे जब भी मौका मिलता, ताशा के पास जा पहुंचता और उसे बांहों में ले लेता। दोनों एक-दूसरे के पूरक बन चुके थे। शादी को साल से ऊपर का वक्त बीत चुका था परंतु दोनों को आकर्षण एक-दूसरे के प्रति जरा भी कम नहीं हुआ था। ताशा का मन किले में इतना ज्यादा लग गया था कि वो अब अपने पिता से मिलने भी कम ही जाती थी। सदूर पर विद्रोह पूरी तरह खत्म हो चुका था। बचे हुए विद्रोही सही रास्ते पर आ गए थे और चैन से जिंदगी बिताने लगे थे। तोलका की मौत से सदूर काफी शांत हो गया था।

एक दिन देव, ताशा से बोला।

“मैं सदूर पर मशालों की अपेक्षा दूसरी तरह की रोशनी तैयार करना चाहता हूं। ऐसी रोशनी जो मशालों से ज्यादा तेज हो। इस काम के लिए मैं किले के ऊपर का कमरा इस्तेमाल करूंगा। ताकि हर समय तुम्हारे पास किले में रह सकूँ। जब तुम चाहो मेरे पास आ सको।”

“ऐसी रोशनी कैसे तैयार होगी?” ताशा ने पूछा।

“मेरे दिमाग में ऐसी रोशनी बनाने के लिए कुछ बातें हैं।” देव बोला-“पोपा को चलाने के लिए भी मैंने बक्से में करंट तैयार किया है अब वैसे ही बक्से से रोशनी बनाने की कोशिश करूंगा।”

“पोपा कब तैयार होगा?” ताशा ने पूछा।

“जम्बरा मेरे कहने के मुताबिक तैयारी कर रहा है। वो तैयारी पूरी करके मेरे पास आएगा। तब मैं पोपा बनाने के लिए पहाड़ी के पार जाऊंगा। जब पोपा बन जाएगा तो हम सदूर से दूर हवा में सैर करने जाया करेंगे और ये भी देखेंगे कि जैसे हम सदूर पर रहते हैं तो क्या दूसरे ग्रहों पर भी और लोग रहते हैं।”

“क्या दूसरे ग्रहों पर भी लोग रहते होंगे?” ताशा ने हैरानी से पूछा।

“जरूर रहते होंगे। हम हैं तो दूसरे ग्रहों पर भी जीवन होगा। ऐसा हुआ तो हम उनसे मिलेंगे। बातचीत करेंगे। उन्हें सदूर पर आने का निमंत्रण देंगे। उनसे नया रिश्ता कायम करेंगे।” देव बोला।

“मुझे यकीन नहीं आता देव कि ऐसे लोग दूसरे ग्रहों पर हमें मिलेंगे।”

“पोपा में बैठकर हम उन्हें ढूंढ़ने चलेंगे।” देव मुस्करा पड़ा-“मैं देखना चाहता हूं कि हमारे सदूर के बाहर भी जीवन है कि नहीं। जब भी मैं किले के बुर्ज पर ऊंचाई में जाता हं तो ये ही सोचता हूं आसमान को देखकर।”

दो दिन बाद ही जम्बरा आ गया।

तब देव किले के ऊपर के कमरे में बबूसा के साथ रोशनी बनाने में व्यस्त था। किले के कर्मचारी ने जम्बरा के आने की खबर दी तो बबूसा मुंह बनाकर रह गया।

देव और बबूसा, किले के बड़े कमरे में जम्बरा से मिले।

“इस बार तुमने बहुत देर लगा दी आने में जम्बरा।” देव ने कहा।

“देर?” जम्बरा ने बबूसा पर निगाह मारकर कहा-“मैं तो आपके बुलावे का इंतजार करता थक गया। तब आया हूं।”

बबूसा ने हड़बड़ाकर नजरें फेर लीं।

“बुलावे का इंतजार?” देव के चेहरे पर उलझन उभरी-“मैं समझा नहीं जम्बरा।”

“तो क्या बबूसा ने आपको बताया नहीं कि मैं महीनों पहले भी आया था।”

देव के होंठ सिकुड़े। उसने बबूसा को देखा।

बबूसा फौरन दांत फाड़कर कह उठा।

“राजा देव। तब आपकी शादी नई-नई हुई थी। ऐसे में आपका रानी ताशा के पास रहना जरूरी था।”

“ये फैसला तुमने करना था या मैंने?” देव ने बबूसा को तीखी निगाहों से देखा।

“आपने राजा देव।”

“तो फिर तुमने फैसला क्यों लिया?”

“क्षमा राजा देव।” बबूसा कह उठा।

देव ने जम्बरा को देखकर कहा।

“सारी तैयारी हो गई जम्बरा?”

“हां राजा देव। अब हमें पोपा का निर्माण शुरू कर देना चाहिए।” जम्बरा बोला।

“मैं जल्दी ही पोपा बनाने के लिए तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा।” देव ने कहा।

जम्बरा चला गया।

देव, ताशा से मिला तो कुछ गम्भीर था।

“क्या हुआ मेरे देव।” ताशा पास आकर बोली-“आप उदास लग रहे हैं।”

“मुझे पोपा का निर्माण करने जाना है ताशा।” देव ने ताशा के कंधों पर बांहें रखकर उसकी नीली आंखों में देखा।

“तो जाइए, इसमें सोचने की क्या बात है?”

“मुझे वापस आने में बहुत वक्त लगेगा।” देव ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तो मैं भी आपके साथ चलती हूं।”

“तब तुम्हारा पास में होना ठीक नहीं होगा। पोपा से मेरा ध्यान भटककर तुम पर आ जाएगा। जबकि पोपा का निर्माण करने में बहुत ध्यान से काम करना पड़ेगा। तुम्हें साथ ले जाना ठीक नहीं होगा।”

“कोई बात नहीं, मैं किले पर रहूंगी देव। यहां भी मेरी जरूरत है।” ताशा कह उठी।

“मेरे बिना तुम रह लोगी ताशा?”

“क्यों नहीं देव। आप काम करने जा रहे हैं। मैं आपकी वापसी का इंतजार करूंगी। किले के कामों को देखूंगी और इसी तरह मुझे सदूर के बाकी कामों की भी समझ आएगी। मैं सारे काम संभाल लूंगी।”

“किले की देखभाल का काम मैं धोमरा के हवाले कर दूंगा। जो बात तुमसे न संभले, वो तुम धोमरा से कह सकती हो।” देव ने गहरी सांस ली-“तुमसे दूर जाने का मन नहीं कर रहा ताशा।”

“ये आप कैसी बातें कर रहे हैं देव। भूल गए कि पोपा बनने के बाद उसमें बैठकर हम घूमने जाया करेंगे। तब कितना अच्छा लगेगा हम दोनों को। मैं तो उस दिन का इंतजार कर रही हूं।”

“सच ताशा?”

“देव की कसम।” ताशा ने प्यार से कहा।

“मेरे जाने के बाद मेरी याद आएगी तो क्या करोगी?” देव ने शरारत भरे स्वर में पूछा।

“आपके साथ बिताए उस प्यारे वक्त को याद करूंगी, जिन्हें सीढ़ियां बनाकर हमने यहां तक पहुंचने का सफर तय किया है। जब आप वापस लौटेंगे तो मुझे अपने इंतजार में खड़ी पाएंगे।”

“तुम कितनी अच्छी हो ताशा।”

“आप मेरे से ज्यादा अच्छे हैं देव।” ताशा का स्वर भर्रा उठा-“जब तक आप वापस नहीं लौटते, आपकी यादों के सहारे मैं वक्त बिता लूंगी। आपके जल्दी आने की आशा करूंगी।”

दस दिन देव किले में ही रहा। सदूर के जरूरी कामों को पूरा करता रहा। बबूसा भी उसके साथ कामों में व्यस्त रहा। ताशा को भी समझाता रहा कि कौन-सा काम कैसे पूरा करना है। देव ने सोमारा से कहा कि ताशा की हर बात मानी जाए, जैसे कि उसका हुक्म हो। ताशा के हुक्म की अवहेलना न हो। देव ने धोमरा को बुलाकर कहा कि जब तक वो पोपा का निर्माण करके वापस नहीं आता, तब तक किले की देखभाल उसे करनी होगी। इसमें रानी ताशा का हुक्म सबसे ऊपर होगा। देव ने जाने से एक दिन पहले ताशा के साथ सारा दिन उसी जंगल में बिताया, जहां वो शादी से पहले मिला करते थे। ताशा अब पूरी तरह जवान और समझदार हो चुकी थी। ये बात देव ने भी महसूस की और मन ही मन खुश हुआ कि ताशा मुसीबतों को संभालने वाली बन गई है। उस पर भरोसा करके काम उस पर छोड़े जा सकते हैं। ये सारा बदलाव तब आया जब ताशा ने मुकाबला करना सीखा था। हथियार चलाने सीखे थे। जंगल में वे उसी पेड़ के नीचे बैठे थे, जहां वे पहले बैठा करते थे। उन्होंने अपनी पुरानी यादें ताजा की। देव किसी तरह खुद को संभाले हुए था। वो ताशा से थोड़ी देर के लिए भी जुदा नहीं होना चाहता था। जबकि उसे अब लम्बे वक्त के लिए दूर जाना पड़ रहा था ताशा भी मन ही मन खुश नहीं थी, परंतु देव को वो रोकना नहीं चाहती थी। वो जानती थी कि पोपा को बनाना,

देव की प्रिय इच्छा थी। अंधेरा होने पर वे किले पर लौटे। बबूसा ने ही बग्गी चलाई थी। वो ही उस दिन कोचवान बना था। देव ने बबूसा से कल चलने की तैयारी के बारे में पूछा तो बबूसा ने कहा, तैयारी पूरी हो चुकी है। तब देव ने कहा कि वो अब सोमारा के पास जाए। चाहे तो कारू भी पी सकता है। सुबह दिन निकलने से पहले वो चल पड़ेंगे।

देर रात तक देव, ताशा का हाथ हाथों में लिए ताशा से बातें करता रहा।

सारा दिन साथ बिताने पर भी देव का मन नहीं भरा था। ताशा भी जैसे सोना नहीं चाहती थी। देव के साथ बातों में ही रात बिता देना चाहती थी। उस रात वे दोनों ही नहीं सोए। बातों में ही डूबे रहे होश तब आई जब बबूसा की आवाज कानों में पड़ी। वे बाहर से राजा देव कहकर उसे पुकार रहा था। देव फौरन कमरे से बाहर पहुंचा तो बबूसा को चलने को तैयार खड़ा पाया।

“तुम इतनी जल्दी आ गए बबूसा?" देव ने कह उठा।

“राजा देव, सुबह होने में ज्यादा वक्त नहीं रहा। मैं तो सोच रहा था कि मुझे देर हो गई।” बबूसा ने गहरी नजरों से राजा देव को देखा-“लगता है पूरी रात आप सोए नहीं। वक्त बीतने का भी आपको एहसास नहीं हुआ।”

तब देव को पता चला कि पूरी रात ताशा से बातें करते ही बीत गई है। कुछ ही देर में देव चलने को तैयार हो गया। उसने ताशा को बांहों में भरकर प्यार किया, तो ताशा की आंखों में आंसू चमक उठे। देव भी अपने को रोक नहीं सका।

“जल्दी आइएगा मेरे प्यारे देव।” ताशा, देव की बांहों में फंसी भीगे स्वर में कह उठी।

“हां।” देव ने भरे गले से कहा।

उसके बाद देव, बबूसा के साथ पोपा का निर्माण करने जम्बरा की तरफ रवाना हो गया।

तभी देवराज चौहान ने करवट ली और एकाएक उसकी आंखें खुल गईं।

मस्तिष्क में दौड़ते यादों की बारात के साए थम से गए। वो उदास निगाहों से सामने की दीवार को देखने लगा।

‘ताशा।’ देवराज चौहान बड़बड़ाया-‘मेरी प्यारी ताशा-मेरी जिंदगी, मेरा सब कुछ...’ बेचैनी की तीव्र लहर मन और दिमाग में दौड़ी और देवराज चौहान उठकर बैठ गया-“ताशा, तुम कहां हो ताशा?” बेजान-सा देवराज चौहान बैठा रहा, सामने की दीवार को देखता रहा। चेहरा उतरा हुआ था। आंखों के सामने ताशा का मोहक चेहरा घूम रहा था। ख्यालों में ताशा बस चुकी थी। वो तड़प-सा रहा था ताशा के बिना। ताशा, किला, सदूर के दृश्य, वो जंगल जहां वो और ताशा मिला करते थे। सदूर के पहाड़, सदूर के रास्ते और सदूर की ही चीजें देवराज चौहान के मस्तिष्क में, आंखों के सामने दौड़ रही थीं। ताशा को बांहों में लेना। ताशा के साथ बैठकर बातें करना, ताशा की नीली आंखों में शरारत के भाव, ताशा का मुंह फुला लेना तो कभी उसकी बांहों से निकलकर, किले की ऊपरी मंजिल के कमरे में सोमारा के पास जाकर बैठ जाना। ताशा का हर रूप आंखों के सामने नाच रहा था। अजीब-सी मदहोशी देवराज चौहान पर छाई हुई थी। आंखें बोझिल थीं।

देर तक देवराज चौहान इसी हाल में बैठा रहा।

लगता था जैसे किसी ने उसकी हिम्मत छीन ली हो।

ताशा उसकी जिंदगी थी। उसकी सांसें थी। ताशा के बिना उसका जीवन व्यर्थ था। पहले उसे याद नहीं था ताशा के बारे में, परंतु अब सब कुछ याद आ गया है। ताशा भी उसे कितना ज्यादा प्यार करती है, उसके बिना नहीं रह सकती। तभी पोपा में बैठकर सदूर से पृथ्वी पर आ पहुंची उसे लेने के लिए। कैसे रही होगी इतने दिन ताशा उसके बिना। कितनी तड़पी होगी। कितनी रोई होगी। कितना उसे ढूंढा होगा। कैसे किया होगा अकेली ताशा ने ये सब।

देवराज चौहान बहुत ज्यादा बेचैनी से भर उठा। परेशान-सी नजरें कमरे में दौड़ी। अगले ही पल उसकी निगाह बबूसा पर जा टिकी।

बबूसा बेड पर उसकी बगल में, गहरी नींद में डूबा हुआ था। वो

अधलेटा-सा था। बेड की पुश्त से टेक लगा रखी थी और गर्दन एक तरफ लुढ़की हुई थी। स्पष्ट था कि देवराज चौहान की पहरेदारी करते-करते उसे झपकी आ गई थी। देवराज चौहान, बबूसा को देखने लगा। कितना अच्छा है बबूसा। उसका कितना ख्याल रखता है, सदूर पर भी हमेशा उसके बारे में चिंता किया करता था और अब भी उसे लेकर चिंतित है। उसने कभी भी बबूसा को कर्मचारी नहीं माना था। हमेशा अपना दोस्त समझा था। बबूसा ने हमेशा दिल से उसकी सेवा की। उसकी खुशी को अपना माना। सदूर पर बबूसा के बिना खुद अधूरा ही समझता यहां भी बबूसा उसका कितना ख्याल रख रहा है, ताशा के बारे में...

एकाएक देवराज चौहान की सोच थम गई।

ताशा? सब विचारे पीछे हो गए। ताशा ही सामने नजर आई। बबूसा उसे ताशा के पास नहीं जाने देना चाहता। ताशा उसके बंगले पर उसके आने का इंतजार कर रही है। बबूसा कहता है कि सब याद आने पर ही ताशा के पास जाने देगा। उसे याद तो आ गया है। सदूर के बारे में। ताशा के बारे में, बबूसा के बारे में, महापंडित के बारे में सब कुछ तो...

देवराज चौहान सतर्क हो उठा। बबूसा पर निगाह मारी, जो कि गहरी नींद में था।

देवराज चौहान आहिस्ता से बेड से नीचे उतरा और खड़ा हो गया पुनः बबूसा को देखा जो उसी हाल में गहरी नींद में था। देवराज चौहान ने कमीज-पैंट पहन रखी थी। जूते सामने ही रखे थे। वो दबे पांव जूतों के पास पहुंचा और उन्हें उठाए दबे पांव बेडरूम से निकलकर ड्राइंग रूम में आ पहुंचा और फुर्ती से जूते पहनने लगा। वो जानता था कि अगर बबूसा की आंख खुल गई तो उसे ताशा के पास नहीं जाने देगा। जाने की जिद की तो उसे बेहोश कर देगा। जबकि देवराज चौहान हर कीमत पर ताशा के पास पहुंच जाना चाहता था। दिलोदिमाग में सिर्फ ताशा नाच रही थी। वो सोच रहा था कि जब ताशा को सामने देखेगा तो उसे कितनी खुशी होगी और ताशा भी खुशी से पागल हो जाएगी। वो ताशा को बांहों में ले लेगा। उसे अपने सीने से लगा लेगा। तब कितना चैन मिलेगा। ताशा के साथ सदूर पर वापस चला जाएगा जहां उसकी असली दुनिया है और एक बार फिर से वो और ताशा प्यार में डूब जाएंगे। ताशा के साथ उसी जंगल में जाया करेगा। कितना अच्छा लगता था तब। वो और ताशा घना जंगल, ठंडी हवा, टकराते पत्तों की आवाजें। उन दोनों के अलावा वहां कोई नहीं होता था। प्यार के वो पल, देवराज चौहान की आंखों के सामने दौड़ने लगे। ताशा के बिना उसका जीवन बेकार है। वो सामने होती है तो उसे कितना अच्छा लगता है। सब कुछ भूल जाता है वो। ताशा में जादू है, हसीन ख्वाब की तरह है ताशा का साथ। वो दो दिल एक जान थे। पता नहीं वो अलग क्यों हो गए? वो कैसे पृथ्वी पर आ गया और ताशा सदूर पर रह गई। परंतु देवराज चौहान इस बारे में सोचना भी नहीं चाहता था। वो तो बस इतना जानता था कि ताशा उसके पास आ पहुंची है। उसे ढूंढ़ रही है। वो तड़प रही होगी उसे देखने के लिए। देवराज चौहान बिना देर किए ताशा के पास पहुंच जाना चाहता था। उसे देखना चाहता था। उसे बांहों में लेना चाहता था। इस विचार के साथ ही उसका दिल तेजी से धड़क उठा कि वो अपनी ताशा के पास जा रहा है। ताशा को फिर से देख सकेगा। उसे छू सकेगा। उसकी नीली आंखों में फिर से खो जाएगा। वो समां कितना हसीन होगा, जब ताशा उसकी बांहों में होगी।

जूते डालने के बाद देवराज चौहान उठा और बेआवाज-सा दरवाजे के पास जा पहुंचा। दरवाजा खोला, बाहर निकला और आहिस्ता से दरवाजा बंद करके वो आगे बढ़ गया। अब देवराज चौहान खुश था कि वो बबूसा से आजाद हो गया है। बबूसा नींद में डूबा है। उसकी रखवाली करते-करते उसकी आंख लग गई। बबूसा सोया उठेगा तो उसे न पाकर, उसका क्या हाल होगा। देवराज चौहान बाहर सड़क पर पहुंचा और तेज कदमों से आगे बढ़ गया। रह-रहकर सड़क पर नजरें मार रहा था। उसे टैक्सी की तलाश थी। तभी दिन निकलना शुरू हो गया था। रात का अंधेरा और दिन के फैलते उजाले का मिलन देखना एक अनोखा अनुभव था। परंतु देवराज चौहान को रात-दिन की परवाह ही कहां थी। वो तो सिर्फ ताशा को देख रहा था। ताशा ही उसके मन में, ख्यालों में थी। रह-रहकर सदूर के नजारे आंखों के सामने आ रहे थे कि वो जंगल में ताशा का हाथ पकड़े दौड़ रहा है। ताशा खिलखिलाकर हंस रही है। उसके मोतियों जैसे दांत चमक रहे हैं। कितना अच्छा वक्त था सदूर पर ताशा के साथ। वो सुनहरी लम्हे थे जीवन के। तभी खाली जाती टैक्सी मिल गई। देवराज चौहान टैक्सी में बैठा और ड्राइवर को बताया कहां जाना है। टैक्सी दौड़ पड़ी। देवराज चौहान के चेहरे पर मीठी मुस्कान दौड़ गई। उसे अब कोई नहीं रोक सकता था ताशा से मिलने से । कुछ ही देर में ताशा उसकी बांहों में होगी।

“ताशा।” एकाएक देवराज चौहान का जिस्म कांप उठा, ताशा से मिलने की सोचकर।

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पंद्रह मिनट भी नहीं बीते होंगे कि बबूसा की आंख खुल गई। देवराज चौहान को बेड पर न देखकर वो चौंका। उसी पल उठा और पूरा फ्लैट, सारे बाथरूम में देख लिया। परंतु देवराज चौहान कहीं नहीं था। बबूसा के चेहरे पर चिंता दिखने लगी। वो परेशान हो उठा। अगले ही पल अपना माथा पकड़कर बड़बड़ा उठा।

“ये आपने क्या कर दिया राजा देव। अभी आपका रानी ताशा के पास जाना खतरे से खाली नहीं था। अगर आपको सब कुछ याद आ गया होता तो आपने कभी भी ताशा के पास नहीं जाना था। ये तो अनर्थ कर डाला आपने। लेकिन मैं आपको अकेला नहीं छोड़ सकता। मुझे भी आपके पास आना होगा। मैं सोमाथ के सामने अभी नहीं पड़ना चाहता था, परंतु अब मुझे खतरे में कदम रखना होगा। महापंडित ने आपकी ताकत के साथ इस बार मेरा जन्म कराया है। सोमाथ के लिए आसान नहीं होगा, मुझसे टकराना। बेशक वो मुझसे ज्यादा ताकतवर है।” बबूसा होंठ भींचे आगे बढ़ा और दरवाजा खोलकर

बाहर निकलता चला गया।

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एकाएक रानी ताशा की आंख खुल गई। वो बंगले के बेडरूम में, सोमारा के साथ बेड पर नींद में थी और समझ नहीं पाई कि उसकी आंख क्यों खुली। खिड़की से बाहर रोशनी बता रही थी कि दिन निकल चुका है। रानी ताशा ने सोमारा पर निगाह मारी, जो कि गहरी नींद में थी। फिर उठी और कमरे से बाहर आ गई। ड्राइंग हॉल में पहुंची। वहां जगमोहन, नगीना, मोना चौधरी और धरा एक तरफ फर्श पर लेटे नींद में थे। सोमाथ उनकी पहरेदारी करता हुआ कुर्सी पर बैठा था। अन्य तीनों व्यक्ति भी चंद कदमों दूर फर्श पर सो रहे थे।

“आंख खुल गई रानी ताशा।” सोमाथ उसे देखता ही कह उठा।

“हां।” रानी ताशा ने जगमोहन वगैरहा पर नजर मारी-“आज जाने क्यों जल्दी आंख खुल गई। ऐसा लगा जैसे किसी ने नींद से जगा दिया हो। तुम्हें महापंडित ने बढ़िया बनाया है, तुम थकते नहीं कभी।”

“मेरे शरीर में लगी बैटरी मुझे थकने नहीं देती है।” सोमाथ कह उठा।

तभी नगीना की आंख खुली तो धरा भी उठ बैठी। इसी तरह जगमोहन और मोना चौधरी भी उठ गए। वैसे भी फर्श पर कच्ची-पक्की नींद आती थी।

“मेरे घर में तुमने मुझे फर्श पर सुला रखा है।” जगमोहन कह उठा।

“मैंने तुम लोगों को बहुत अच्छे से रखा हुआ है।” रानी ताशा मुस्कराई।

“ये सब कब तक चलेगा?”

“जब तक राजा देव मुझे मिल नहीं जाते।” रानी ताशा ने कहा।

“देवराज चौहान यहां नहीं आएगा।”

“आएगा। वो तुम लोगों के लिए यहां आएगा। उसे आना ही होगा।” रानी ताशा ने दृढ़ स्वर में कहा।

“उन्हें।” नगीना बोली-“सदूर के जन्म की याद आ गई होगी और पता भी चल गया होगा कि तुमने उनके साथ कोई धोखा किया था तो वो तुम्हें छोड़ने वाले नहीं।”

रानी ताशा मुस्कराई। नजरें नगीना पर थीं।

“तुम इन बातों की व्यर्थ में चिंता मत करो। ऐसा हुआ तो महापंडित सब ठीक कर देगा। जब मैं राजा देव को लेकर सदूर पर पहुंच जाऊंगी तो महापंडित राजा देव को पहले जैसा सामान्य कर देगा।”

“मुझे तुम्हारी बातों पर अभी भी यकीन नहीं।” मोना चौधरी कह उठी।

“तुम सब मेरे साथ सदूर पर चलोगे और महापंडित तुम लोगों के दिमाग इस प्रकार कर देगा कि मेरी सेवा किया करोगे। किले के कर्मचारी बनोगे और मुझे और राजा देव को देखा करोगे कि हम कितने प्यार से अपना जीवन बिताते हैं। हम पहले भी बहुत खुश थे और अब फिर बहुत खुश रहेंगे।”

“मुझे भी साथ ले जाओगी।” धरा जल्दी से कह उठी।

“हां-तुम भी...”

“मुझे मत ले जाओ। मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। मुझे यहीं रहने दो।” धरा ने कहा।

“मेरा फैसला तुम लोगों ने सुन ही लिया है। तुम सब मेरे साथ...”

“ये सब तब होगा। जब देवराज चौहान तुम्हें मिलेगा।” जगमोहन बोला-“और वो तुम्हें मिलने वाला नहीं...”

इसी पल बेल बजने का स्वर वहां गूंज उठा।

सब चौंके। कम-से-कम सुबह तो किसी के आने की आशा नहीं की जा सकती थी।

नींद में डूबे वो तीनों व्यक्ति बेल के स्वर से तुरंत उठ गए।

“आने वाला जो भी हो, उसे भीतर ले आओ।” रानी ताशा ने कहा।

उन तीनों में से एक दरवाजे की तरफ बढ़ गया। तभी पुनः बेल बजी।

बाहर जो भी था वो जल्दी से भीतर आ जाना चाहता था।

एकाएक रानी ताशा चौंकी और कह उठी।

“राजा देव आ गए। मेरा देव आ गया। आह-मुझे उसके करीब होने का एहसास हो रहा है। मेरा देव ही आया है। जल्दी से दरवाजा खोलो। जन्मों से जिस वक्त का मुझे इंतजार था, वो वक्त आ गया।” रानी ताशा का चेहरा खुशी से खिल उठा था। नीली आंखों में आंसू चमकने लगे थे-“देव-मेरा प्यारा देव आ गया। मेरे देव...”

रानी ताशा की बात पर जगमोहन, नगीना, मोना चौधरी और धरा चौंकीं।

उनकी नजरें मिली परंतु कुछ कह न सके। उन्हें विश्वास नहीं था कि देवराज चौहान ही आया होगा।

रानी ताशा मुस्कान भरी निगाहों से बंद दरवाजे को देख रही थी।

तभी भीतर से सोमारा भी उठी चली आई थी।

“क्या बात है ताशा?” सोमारा ने पूछा।

“मेरा देव आ गया। मैं उसके करीब आ जाने का एहसास पा रही हूं। मैं जानती थी कि देव, जल्दी ही मेरे पास आएगा। वो मेरे से दूर नहीं रह सकेगा। मेरी तरह वो भी तड़प रहा होगा, मेरे से मिलने को।” रानी ताशा का स्वर कम्पन लिए हुए था। वो खुश थी। उसके अंग-अंग से खुशी झलक रही थी।

दरवाजे पर पहुंचकर उस आदमी ने दरवाजा खोला तो तेजी से देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया। उसकी हालत दीवानों जैसी हो रही थी। जगमोहन, मोना चौधरी, नगीना को देवराज चौहान, देवराज चौहान नहीं लगा।

देवराज चौहान के अंदाज की झलक कहीं भी नहीं दिखी उन्हें।

“दे...व।” रानी ताशा बांहें फैलाती चीख उठी-“मेरे प्यारे देव...”

“ता-शा...” देवराज चौहान गला फाड़कर चीखा-“ताशा-ताशा...” इसके साथ ही ताशा की तरफ दौड़ पड़ा।

“मेरे देव...” ताशा का स्वर कांप उठा, आंखों से आंसू बहकर गालों पर आ लुढ़के।

“मैं आ गया ताशा।”

“देव।”

पास पहुंचते ही देवराज चौहान ने पागलों-दीवानों की तरह झपट्टा मारा और ताशा को अपनी बांहों में लेकर भींच लिया। ताशा की बांहें भी देवराज चौहान के गिर्द कस गईं।

“ताशा...” देवराज चौहान की आंखों से भी आंसू बह निकले।

“देव, तुम कहां थे इतनी देर तक।” ताशा रो पड़ी।

“मैं आ गया ताशा। आ गया। अब तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा।” ताशा को बांहों में समेटे हुए देवराज चौहान ताशा का चेहरा चूमते कहे जा रहा था।

“मैंने तुम्हें वापस पा लिया ताशा। हम फिर मिल गए। तुम कहां चली गई थीं ताशा। तुम तो जानती हो कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता...”

“आप क्या जानो देव, आपके बिना मैं कितना तड़पी हूं। चार जन्मों से आपसे मिलने की आस लगाए हुए हूं।” ताशा रोते हुए बोली-“आप तक पहुंचने में मैंने कितनी तकलीफें सही। मैं अब आपसे अलग नहीं होऊंगी। आपको दूर नहीं जाने दूंगी। अपनी नजरों के सामने ही रखूंगी।”

“हां ताशा, हां-मैं तुम्हें अपने पास ही रखूंगा। दूर नहीं जाने दूंगा मेरी प्यारी ताशा। तुम तो मेरी जिंदगी हो। तुम्हारे बिना मेरा जीवन कुछ भी नहीं है।” देवराज चौहान दीवानों की तरह ताशा का चेहरा चूमे जा रहा था। वो अजीब-से बुरे हाल में लग रहा था। रो भी रहा था और खुश भी था।

“मेरे देव।” ताशा उसके सीने पर प्यार करते कह उठी-“मैं कितनी भाग्य वाली हूं जो आप मुझे मिल गए वापस। इस वक्त का मैं कब से इंतजार कर रही थी। तड़प रही थी आपको बांहों में लेने के लिए।”

“अब तो मैं आ गया हूं ताशा।”

“मेरा देव। मेरा प्यारा देव।” ताशा ने बांहो का घेरा कसकर देवराज चौहान के गिर्द इस तरह डाल रखा था कि जैसे उसे डर हो कि देवराज चौहान कहीं भाग जाएगा-“महापंडित ने मुझे भरोसा दिलाया था कि आप मुझे जरूर मिलेंगे। अपनी मशीन से उसने मेरी बातें करवाई थीं। महापंडित ने मुझे हौसला न दिया होता तो आज मैं जिंदा नहीं होती। महापंडित ने ही मुझे बताया था कि आप पृथ्वी ग्रह पर बार-बार जन्म ले रहे हैं और आपको सदूर की बातें कुछ भी याद नहीं और...”

“मुझे याद आ गया है ताशा, सदूर मुझे याद आ गया। तुम याद आ गईं...”

“अ-और क्या याद आया?” ताशा का स्वर कांप उठा।

“हम जंगल में मिला करते थे। बग्गी में घूमा करते थे। हमारी शादी भी हो गई थी। तुम किले के कामों को देखने लगी थीं। मैंने तुम्हें मुकाबला करना सिखाया, तुम्हें तलवारबाजी सिखाई। मैं पोपा बनाने की तैयारी कर रहा था। मुझे सब याद आ गया ताशा। हमारा वो प्यार, वो सुनहरे दिन, वो सब कुछ कितना अच्छा था ताशा।”

“बहुत अच्छा था।” ताशा खुशी से कांप उठा-“मैंने अपने देव को पा लिया, सब कुछ पा लिया। अब आपको अपने से दूर नहीं जाने दूंगी। आज मुझे जितनी खुशी मिल रही है, इतनी खुशी तो तब भी नहीं मिली थी, जब मैंने आपसे शादी की थी। आप मिल नहीं रहे थे और मेरी हिम्मत टूटती जा रही थी देव। मैं ही जानती हूं कि मैंने अपने को कैसे संभाले रखा और आस जगाए रखी कि आप मिल जाएंगे। इतनी देर से आप मेरे पास क्यों नहीं आए देव। मैंने कितनी बार आपको बुलाया। फोन पर बातें की।”

“बबूसा, मुझे आने नहीं दे रहा था, वो...”

“वो तो आपका सेवक है। वो आपको कैसे रोक सकता है?”

“वो कहता है मेरे भले के लिए मुझे रोक रखा है कि रानी ताशा के पास न जाऊं। वो मुझे सदूर की बातें याद दिलाना चाहता था कि मुझे सब कुछ याद आ जाए। तुम तक जाने की कोशिश करता तो वो मुझे बेहोश कर देता था। बबूसा में इतनी ताकत जाने कहां से आ...”

“महापंडित ने इस बार उसमें आपकी ताकत, आपके गुण डालकर, उसका जन्म कराया था। बबूसा बहुत ताकतवर है इस जन्म में। ये वो साधारण बबूसा नहीं है, जो आपका सेवक हुआ करता था।” ताशा ने कहा-“मेरा देव मुझे मिल गया। मेरी तलाश पूरी हो गई। अब मुझे कुछ नहीं चाहिए।”

देवराज चौहान ने दोनों हाथों से ताशा का चेहरा पकड़कर उसे देखा। नीली आंखों में झांका।

“तुम-तुम कितनी अच्छी हो ताशा।”

“देव।” ताशा का स्वर कांप उठा।

“वो ही नीली आंखें, वो ही खूबसूरत चेहरा, तुम जरा भी नहीं बदली ताशा।” देवराज चौहान का स्वर कांपा।

“आप भी तो वैसे ही हैं। वो ही चेहरा, वो ही बात करने का अंदाज। वो ही प्यार करने की चाह। वो ही मेरे प्रति आपकी दीवानगी। किसी भी तरफ से आप नहीं बदले मेरे देव।”

“तुम्हारे लिए मैं वो ही देव हूं। तुम्हारा देव। ताशा का देव, तुम्हारा पागल देव।”

ताशा आंसुओं भरी नीली आंखों से देवराज चौहान को देखे जा रही थी।

“देव।” ताशा के होंठ कांपे-“मैं आपसे क्षमा मांगना चाहती हूं।”

“ये क्या कह रही हो ताशा?” अभी भी दोनों हथेलियों में ताशा का खूबसूरत चेहरा फंसा था।

“मैंने आपके साथ बुरा किया था। उसी वजह से सदूर से निकलकर आप पृथ्वी पर आ गए। उसी कारण हम अलग हो गए थे। पर मैंने अपने किए का पछतावा भी बहुत किया है। उस जन्म के बाद तीन बार महापंडित मेरा जन्म करवा चुका है और आपकी याद मेरे मस्तिष्क में महापंडित ने कायम रखी। हर जन्म में मैं आपसे मिलने की आस लगाए बैठी रही। मैंने किसी को भी अपने दिल का राजा नहीं बनाया। क्योंकि मेरे दिल में तो सिर्फ मेरा देव था। मेरा प्यारा देव। मुझसे जो भूल हुई थी, उसके लिए मुझे क्षमा कर दीजिए।”

“ये कैसी बातें कर रही हो ताशा?” देवराज चौहान तड़प उठा।

“मेरी वो ही भूल तो बबूसा आपको याद दिलाना चाहता है। तब मेरे से...”

“इन बातों को छोड़ दो ताशा।” देवराज चौहान प्यार से कह उठा-“तुम मुझे मिल गई हो। अब मुझे कुछ भी नहीं सुनना है। मैंने अपना प्यार पा लिया। ताशा अब मेरे पास है।”

“मुझे उस भूल की क्षमा चाहिए।”

“क्षमा दी।” देवराज चौहान बोला-“मैं...”

“जानेंगे नहीं कि मुझसे क्या भूल हुई जो...” ताशा ने कांपते स्वर में कहना चाहा।

“कुछ नहीं जानना है मैंने। मेरी ताशा मुझे मिल गई। ये ही बहुत है मेरे लिए। तुम नहीं जानती कि आज मैं कितना खुश हूं। तुम्हारी तरह कि मुझे सदूर पर हमारी शादी की इतनी खुशी नहीं हुई थी जितना खुशी आज हो रही है। मैंने तुम्हें पा लिया। तुम मेरी बांहों में हो ताशा। मेरा जीवन सफल हो गया।” देवराज चौहान की आंखों में आंसू थे।

“मेरे प्यारे देव।” रानी ताशा के होंठों से थरथराता स्वर निकला।

“ताशा, मेरी प्यारी ताशा।” देवराज चौहान ने पुनः ताशा को अपने सीने से लगा लिया।

दोनों ने एक-दूसरे को कसकर भींच लिया।

वहां सन्नाटा छाया हुआ था। देवराज चौहान और रानी ताशा के शब्द सबके कानों में पड़ रहे थे। वो दोनों इस तरह बातों में व्यस्त थे कि जैसे उनके अलावा कोई दूसरा वहां हो ही नहीं। सबकी निगाहें उन दोनों पर टिकी हुई थीं और वो दोनों दुनिया से बेखबर एक दूसरे से चिपके हुए थे। एक-दूसरे को भींच रखा था। वो अपनी अलग ही किसी दुनिया में डूब चुके थे।

जगमोहन, मोना चौधरी, नगीना और धरा हक्के-बक्के से देख सुन रहे थे।

जगमोहन को तो अपनी आंखों और कानों पर विश्वास ही नहीं आ रहा था कि जो वो देख-सुन रहा है वो सच है। देवराज चौहान आंसू बहाते, रानी ताशा को सीने से लगाए, उससे जिस प्रकार बातें कर रहा था, ऐसा नजारा देखने की तो उसने कल्पना भी नहीं की थी। वो हैरान था। ठगा-सा देवराज चौहान और रानी ताशा को देखे जा रहा था। ये ही हालत नगीना और मोना चौधरी की थी। उन्हें विश्वास नहीं आ रहा था कि वो जो देख रहे हैं, वो सच है, परंतु सच था। जो हो रहा था उनकी आंखों के सामने हो रहा था। देवराज चौहान का एक नया रूप सामने था। मोना चौधरी छिपी निगाहों से बार-बार नगीना को देख लेती थी। नगीना के चेहरे पर उलझन के भाव थे। ऐसे भाव कि उसे विश्वास न आ रहा हो कि जो वो देख रही है वो सही है। रानी ताशा से बात करते देवराज चौहान के शब्द उसके कानों में पड़ रहे थे। एक-एक शब्द उसने सुना था। मोना चौधरी से रहा नहीं गया तो वो नगीना से कह उठी।

“ये सब क्या हो रहा है?”

“देवराज चौहान को सदूर के जन्म की याद आ गई है।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तुम्हारा मतलब कि सच में कोई सदूर ग्रह है, जहां लोग रहते हैं।” मोना चौधरी के माथे पर बल पड़े।

“हां।”

“तो ये बात सही है कि सदूर के जन्म में देवराज चौहान वहां का राजा था और ताशा, रानी थी।”

“हां।”

“परंतु वो बात तो कई जन्म पीछे रह गई है। देवराज चौहान तो यहां पर आज का जन्म जी रहा है।” मोना चौधरी ने तीखे स्वर में कहा-“ऐसे में उस जन्म की बातें, कम-से-कम देवराज चौहान और ताशा के एक हो जाने की बात खत्म हो चुकी है।”

“बात तभी खत्म होगी, जब ये बात देवराज चौहान माने या ताशा माने।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा-“परंतु ये दोनों ही उस जन्म की बातों का नकारना नहीं चाहते। इनका हाल तुम्हारे सामने ही है। दोनों इस तरह मिले हैं, जैसे कुछ दिन पूर्व ही अलग हुए हों, जबकि इस बात को तीन-चार जन्म बीत

चुके हैं।”

“अगर देवराज चौहान को वो जन्म याद आ गया है तो, बबूसा का कहना है कि जन्म याद आते ही देवराज चौहान, ताशा को सजा दे सकता है।” मोना चौधरी ने कहा-“परंतु यहां तो बिल्कुल ही अलग हो रहा है।”

“मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा मिन्नो।” नगीना होंठ भींचे कह उठी।

“देवराज चौहान तो तुझे बिल्कुल ही भूल गया है। ये कैसे हो सकता है।”

“कहा तो, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा।” नगीना की निगाह देवराज चौहान और ताशा पर थी, जो अभी भी एक-दूसरे को बांहों में समेटे दुनिया को भूले हुए थे।

“बबूसा कहां है?” मोना चौधरी कह उठी।

नगीना चुप रही। वो परेशान-सी दिखने लगी थी।

मोना चौधरी ने जगमोहन को देखा, जो हैरान-सा लग रहा था।

“देवराज चौहान क्या कर रहा है?” मोना चौधरी ने पूछा।

“मुझे नहीं पता।”

“क्या ये कोई ड्रामा तो नहीं कर...”

“ये सच्चाई है मोना चौधरी।” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला-“जो तुमने देखा-सुना, वो सच है। देवराज चौहान की हालत बदली हुई है। मैं देवराज चौहान में अजीब-सा बदलाव देख रहा हूं। ये इसी वजह से है कि इसे सदूर ग्रह का जन्म याद आ गया है। ताशा याद आ गई है। सब कुछ याद आ गया...”

“ये तुम कैसे कह सकते हो?” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।

“उसी धोखे के बारे में अभी ताशा ने देवराज चौहान से क्षमा मांगी थी तो देवराज चौहान के जवाब से लगा कि उसे इस धोखे के बारे में कुछ भी पता नहीं है। वो बस ताशा के मिल जाने से खुश है। ताशा में गुम है। परंतु बबूसा कहां चला गया। वो किसी भी हाल में देवराज चौहान को अकेला नहीं छोड़ेगा।

उसे ताशा के पास आने भी नहीं देता। जब तक देवराज चौहान को सदूर ग्रह का पूरा जन्म याद न आता। इस बारे में बबूसा का इरादा पक्का था।”

“फिर तो एक बात ही हो सकती है कि देवराज चौहान बबूसा की निगाहों से बचकर यहां आ पहुंचा हो।” मोना चौधरी ने कहा।

“ये ही हुआ होगा।” जगमोहन के होंठ भिंच गए-“ऐसा है तो बबूसा भी आता होगा।”

“तुम्हें देवराज चौहान से बात करनी चाहिए।”

“किस बारे में?”

“नगीना के बारे में कि वो उसकी पत्नी...”

“अभी खामोश रहो।” जगमोहन ने कहा-“देवराज चौहान ठीक से अपने होश में नहीं है। मैं तो ये सोच रहा हूं कि अब क्या होगा? क्योंकि ताशा उसे सदूर ग्रह पर ले जाने का इरादा बनाए हुए है।”

मोना चौधरी का चेहरा कठोर हो गया।

“भाभी।” जगमोहन ने नगीना से कहा-“अपने पर काबू रखना। मुझे लगता है जैसे कोई नई मुसीबत शुरू होने जा रही है। देवराज चौहान बहुत बदला-सा लग रहा है और ताशा का दीवाना हुआ पड़ा है। ऐसे में कुछ भी हो सकता है और हम अपनी मनमानी नहीं कर सकते, क्योंकि सोमाथ पर हम काबू नहीं पा सकते।”

“रानी ताशा के वो तीनों आदमी।” नगीना ने शब्दों को चबाकर कहा-“बबूसा ने बताया था कि उनके पास जोबिना नाम का कोई हथियार है, जो कि इंसान को राख में बदल देता है। हड्डियां भी राख हो जाती हैं। सोमाथ पर काबू पा भी लेंगे तो उन तीनों से नहीं बच सकते। इस वक्त हम फंसे पड़े हैं।”

“तो अब करना क्या है?” धरा बोली-“या कुछ नहीं करोगे तुम लोग?”

“देवराज चौहान इस हाल में है तो, हम कर भी क्या सकते हैं।” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला।

“देवराज चौहान से बात करो।” धरा बोली-“वो ऐसा क्यों कर रहा है।”

“ये वक्त चुप रहने का है।”

“बबूसा कहां चला गया। वो तो देवराज चौहान का साथ छोड़ने वाला नहीं।” धरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

देवराज चौहान और रानी ताशा अलग हुए। एक-दूसरे का हाथ थाम रखा था। दोनों के चेहरे आंसुओं से भरे थे। परंतु चेहरों पर खुशी थी, मुस्कान थी। रौनक थी। देवराज चौहान प्यार भरी निगाहों से ताशा को देखे जा रहा था तो ताशा, उसकी छाती पर हाथ मारकर बोली।

“आप फिर मुझे पहले की तरह देखने लगे। आदत गई नहीं आपकी।”

“तुम्हें जितना भी देख लूं दिल नहीं भरता। जाने तुम्हारे चेहरे पर क्या है। जो हाल मेरा पहले था, वो ही अब है।” देवराज चौहान ने प्यार भरे स्वर में कहा-“तुम हो ही ऐसी ताशा। कोई मेरी नजरों से तुम्हें देखे तो समझ जाएगा ये बात।”

“मक्कार।” रानी ताशा मीठे स्वर में कह उठी।

देवराज चौहान चेहरे पर मुस्कान समेटे ताशा को देखता रहा।

“आप कैसे हैं राजा देव?” सोमारा की आवाज सुनकर, देवराज चौहान ने चेहरा घुमाया।

कुछ फासले पर सोमारा को देखा तो कह उठा।

“सोमारा तुम...?”

“आपको फिर से देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है राजा देव।” सोमारा ने मुस्कराकर कहा।

“तुम्हें देखकर मुझे भी खुशी हुई। मैं नहीं जानता था कि ताशा के साथ तुम भी आई हो।”

“मैं बबूसा के लिए आई हूं राजा देव। बबूसा आपके साथ नहीं आया।”

“वो नींद में था तो मैं चुपके से चला आया।” देवराज चौहान ने मुस्कराकर कहा।

“तो बबूसा नहीं जानता कि आप यहां हैं।” सोमारा बोली।

“जब आंख खुलेगी तो समझ जाएगा कि मैं यहां आ गया हूं। वो यहां आ जाएगा सोमारा।”

“वो ठीक तो है न?”

“पूरी तरह। इस जन्म में तो महापंडित ने उसमें मेरे जैसी ताकत भर रखी है।”

सोमारा शांत-सी देवराज चौहान को देखती रही। फिर कह उठी।

“आप उसे साथ ही लाते तो अच्छा रहता।”

“बबूसा मुझे यहां नहीं आने देता। वो चाहता था कि सदूर की सब बातें याद आने के बाद मैं ताशा से मिलूं।”

सोमारा चुप रहा। सोमाथ अब तक खामोशी से खड़ा था।

वो तीनों व्यक्ति भी अपनी जगह मौजूद थे।

“मेरे देव।” रानी ताशा बोली-“उस कमरे में जाकर आराम करते हैं। मैं आपसे दिल भरकर बातें करना चाहती हूं। कब से इस वक्त को तरस रही हूं। अब आप मेरे पास हैं। मेरे इतने करीब कि खुशी से पागल हो रही हूं।”

“हम कितनी भी बातें कर ले, परंतु हमारा दिल नहीं भरेगा।” देवराज चौहान ने प्यार से कहा-“आओ ताशा, हम पुराने वक्त की यादों को एक बार फिर ताजा करें। अब मैं तुम्हारे पास रहा करूंगा। तुम भी मेरे पास ही...”

“ये आप क्या कर रहे हैं।” तभी नगीना खड़े होते हुए कह उठी।

सबकी निगाहें नगीना की तरफ गई। नगीना गुस्से में दिखी।

जगमोहन और मोना चौधरी सतर्क हो गए।

“तुम यहां हो नगीना।” देवराज चौहान उसे देखते ही कह उठा-“मैंने तो तुम्हें देखा ही नहीं था।”

“ये औरत कौन है?” नगीना का लहजा तीखा था।

“ये-ये ताशा है नगीना।”

“कौन ताशा?”

“तुम तो जानती हो ताशा को, ये सदूर पर मेरी पत्नी...”

“मैं न तो किसी सदूर को जानती हूं और न ही इसे। मैं सिर्फ इतना जानती हूं कि आप मेरे पति हैं।”

“ताशा मेरी पत्नी है नगीना-ये...”

“आपकी पत्नी मैं हूं।”

“परंतु ये मेरी पहले की पत्नी है।” देवराज चौहान ने दीवानों की भांति कहा-“मैं इसे बहुत प्यार करता हूं। मैं इसके बिना नहीं रह सकता। ये मेरे लिए सब कुछ है।”

“और मैं?” नगीना गम्भीर हो गई-“मैं आपके लिए क्या हूं?”

“तुम-तुम भी मेरी पत्नी हो, लेकिन ताशा को मैं तुमसे ज्यादा चाहता...”

“आप अपने होश में नहीं हैं, जो ऐसी बातें कर रहे हैं। ताशा आपके लिए अंजान है और...”

“ऐसा न कहो नगीना। ताशा के बिना मेरा जीवन, जीवन नहीं है। ये मुझे सबसे प्रिय है।” देवराज चौहान ने कहा।

“तो आपको सदूर के जन्म की याद आ गई है?”

“हां नगीना, मुझे सब याद आ गया...”

“सब याद नहीं आया आपको।” नगीना ने दांत भींचकर कहा-“बबूसा ने कहा था कि जब आपको सब कुछ याद आ जाएगा तो ताशा को आप सजा देंगे। जबकि इस वक्त आप इसके दीवाने हो रहे हैं।”

“मुझे जितनी जरूरत थी, उतना याद आ गया है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“सदूर के बारे में मुझे सब याद गया है। ताशा के बारे में, बबूसा के बारे में सब याद आ गया है। अब और कुछ भी मुझे जानने की जरूरत नहीं। मैं फिर से ताशा को खोना नहीं चाहता। यूं भी ताशा ने मुझसे अपनी गलती की क्षमा मांग ली है। जबकि मैं नहीं जानता, वो गलती क्या थी, ताशा से मुझे कोई भी शिकायत नहीं है और न ही होगी।”

“आप मेरे पति हैं।”

“मेरे लिए ताशा ही सब कुछ है। मैं ताशा के बिना नहीं रह सकता।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

ताशा, नगीना को देखकर मुस्कराई।

“तो क्या हमारा रिश्ता कुछ भी नहीं था?”

“तब मैं ताशा से अंजान था।” देवराज चौहान ने अभी भी ताशा का हाथ थाम रखा था-“मुझे सदूर के बारे में कुछ भी याद नहीं था। ताशा याद आई तो मुझे महसूस हो गया कि मेरा असली जीवन, असली प्यार सदूर पर है ताशा है। अब मैं ताशा को खोना नहीं चाहता। ताशा में मेरी जान बसती है।”

उसी पल जगमोहन खड़ा होकर, कह उठा।

“तुम जो कह रहे हो, पूरे होश में रहकर कह रहे हो।” जगमोहन गम्भीर था।

“मैं पूरे होश में हूं जगमोहन।”

“इस वक्त तुम कौन-सा जीवन जी रहे हो। पृथ्वी का या सदूर ग्रह का?” जगमोहन बोला।

देवराज चौहान, जगमोहन को सोच भरी निगाहों से देखने लगा।

“मेरे देव।” रानी ताशा गर्व भरे अंदाज में कह उठी-“जवाब दो। बता दो इन्हें कि आप सिर्फ मेरे हो।”

“बताओ मुझे इस वक्त तुम कौन-सा जीवन जी रहे हो। पृथ्वी का या सदूर ग्रह का?”

“पृथ्वी का।”

“तो पृथ्वी के हिसाब से तुम्हारी पत्नी कौन है? नगीना या ये?”

“बेशक मैं पृथ्वी का जन्म जी रहा हूं, परंतु सदूर का वक्त मुझे एहसास करा रहा है कि मैं वहां का हूं। ताशा का हूं। वहीं पर मेरा सब कुछ है। ताशा के बिना मैं नहीं रह सकता। ये ही मेरा असली प्यार है, मैं...”

“तुम सदूर ग्रह के उस जन्म की बात कर रहे हो जो आज से चार जन्म पहले का था। जबकि इंसान का हर नया जन्म, एक नई जिंदगी की वजह बनता है। चार जन्म पहले ताशा तुम्हारी पत्नी थी। उसके बाद तुमने पृथ्वी के किसी हिस्से पर जन्म लिया। जिसे हम पूर्वजन्म की जमीन कहते हैं, जो कि आज न जाने कहां लुप्त हो चुकी है परंतु समय चक्र हमें कई बार, उस पूर्वजन्म में ले जा चुका है। उस जन्म के बाद तुमने पंजाब के लुधियाना शहर में जन्म लिया और मोना चौधरी तुम्हारी पत्नी बनी थी। ये जन्म तुम दोनों ने जी भरकर जिया। बात करने के लायक कोई बात नहीं है, परंतु पूर्वजन्म की धरती पर नगीना भाभी, बेला के नाम से तुम्हारी पत्नी बनी थी जो कि तब की मिन्नो यानी मोना चौधरी की छोटी बहन थी और आज के तीसरे जन्म में वो ही बेला, नगीना के नाम से तुम्हारी पत्नी बनी। लेकिन अब तुम कहते हो कि पूर्वजन्म से भी पहले के, सदूर ग्रह के जन्म में ही तुम्हारी आज की जिंदगी है तो ये कैसे सम्भव है। तब की पत्नी ताशा के साथ तुम्हारे सारे सम्बंध उसी वक्त खत्म हो गए थे, जब तुमने सदूर ग्रह से अलग होकर पृथ्वी पर जन्म लिया। तो ऐसे में तुम ये कैसे कह सकते हो कि सदूर का जीवन ही तुम्हारा असली जीवन है। चार जन्म पहले की पत्नी को तुम अपनी पत्नी कह रहे हो और आज की पत्नी को तुम दूर धकेल रहे हो।” जगमोहन के होंठ भिंच चुके थे। चेहरे पर कठोरता दिखाई देने लगी थी-“तुम होश में नहीं हो। होश में होते तो कभी भी ऐसी बात नहीं कहते। ताशा की खूबसूरती ने तुम्हारे होश छीन लिए हैं कि अच्छा-बुरा नहीं समझ पा रहे।”

“मैं ताशा से पहले भी दीवानावार प्यार करता था और अब भी करता हूं।” देवराज चौहान ने नाराजगी से कहा-“मैं ताशा के बिना नहीं रह सकता जगमोहन। अब मैं इससे दूर नहीं हो सकता।”

“ये तुम्हारी पत्नी नहीं है।” जगमोहन ने तेज स्वर में कहा।

“मेरी पत्नी है ये। क्या तुम्हें बबूसा की बातों पर यकीन नहीं। मेरी बात पर यकीन नहीं कि मुझे सदूर का जन्म याद आ चुका है। ताशा ही मेरी सब कुछ है और...।”

“मैं तुम्हें ये समझाना चाहता हूं कि तुम इस वक्त सदूर का नहीं, पृथ्वी का जन्म जी रहे हो।”

“बेशक मैं पृथ्वी का जन्म जी रहा हूं।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“परंतु तब मैं ताशा के बारे में सब कुछ भूला हुआ था। मुझे सदूर के बारे में कुछ भी याद नहीं था। पर अब सब कुछ याद आ चुका है। मेरा असली जीवन सदूर पर ही है। ताशा के साथ ही मेरी सांसें हैं। ताशा ही मेरे जन्म की साथी है। ताशा के बिना जीवन बिताने की मैं सोच भी नहीं सकता। ये ठीक है या गलत, तुम जानो। मेरी नजरों में ये पूरी तरह ठीक है। ताशा में मेरी जान बसती है।”

“और नगीना का क्या होगा।” जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा।

“मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता। मैं ताशा के साथ रहूंगा...।” देवराज चौहान ने कहा।

नगीना गम्भीर निगाहों से देवराज चौहान को देख रही थी। खामोश खड़ी मोना चौधरी गम्भीर स्वर में बोली।

“देवराज चौहान, मुझे तुमसे ऐसी आशा तो कभी नहीं थी। मैंने नहीं सोचा था कि तुम ऐसी हरकत भी करोगे।”

“मैं ताशा को भूल चुका था। अगर मुझे ताशा की याद रही होती तो...”

“तुम कभी भी...” मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहना चाहा।

“चुप हो जा मिन्नो।” नगीना गम्भीर स्वर में बोली-“मुझे इस बात पर जरा भी एतराज नहीं कि देवराज चौहान किसी और के साथ रहे। ये अपनी मर्जी से फैसला कर रहे हैं और मैं खुशी से इनके फैसले के साथ हूं।”

सोमारा खामोश खड़ी गम्भीर निगाहों से सब कुछ देख-सुन रही थी।

जगमोहन ने सख्त निगाहों से देवराज चौहान को देखा। परंतु देवराज चौहान पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ा। उसने ताशा का हाथ थाम रखा था। जबकि ताशा के होंठों के बीच मुस्कान फंसी थी।

“मेरे देव।” ताशा प्यार से कह उठी-“हम वापस सदूर पर जाएंगे। पोपा डोबू जाति के पास खड़ा है।”

“हां ताशा।” देवराज चौहान ने मधुर मुस्कान से ताशा को देखा-“हम वापस अपने सदूर पर जाएंगे। हमारा जीवन वहीं पर है। हम अपने प्यार को फिर से नया जीवन देंगे। वो ही सुहावना समय फिर लौट आएगा। मैं-तुम और सदूर, कितना अच्छा होगा वहां। हमारी खुशियां वहीं पर हैं।”

“मैं तो कब से इस वक्त के वापस लौटने का इंतजार कर रही हूं प्यारे देव।” ताशा की आंखें भर आईं-“तुम्हारी बांहों में जीवन बिता देना चाहती हूं। महापंडित हमें फिर पैदा करवा देगा, जब हम बूढ़े हो जाएंगे। सिर्फ मैं और तुम हम हर जन्म में मिलते रहेंगे। जन्म-जन्म का साथ हमारा। हम एक-दूजे के लिए ही जिएंगे और मरेंगे देव।”

“ताशा।” देवराज चौहान का स्वर कांप उठा-“तुम कितनी अच्छी हो ताशा।”

“मेरे देव जैसा दूसरा कोई नहीं है।” ताशा का स्वर कांप उठा।

देवराज चौहान प्यारी निगाहों से ताशा के चेहरे को निहारने लगा।

“फिर मुझे देखने लगे।” ताशा ने शरारत से कहा-“ऐसे ही तंग करोगे मुझे।” ताशा ने नीली आंखें नचाई।

देवराज चौहान हौले-से हंस पड़ा।

“सोमाथ। हम आज ही डोबू जाति की तरफ चल देंगे। तैयारी शुरू कर दो।” रानी ताशा ने कहा।

“जी रानी ताशा। परंतु डोबू जाति तक जाने का रास्ता हमें पता नहीं है।” सोमाथ बोला।

“यंत्र द्वारा किलोरा से सम्पर्क बनाओ और यहां का पता देकर, उसे कहो कि रास्ता दिखाने को, हमारे पास किसी को भेजे।”

“मैं अभी किलोरा से बात करता हूं।” सोमाथ ने सिर हिलाया।

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखकर कहा।

“तुम लोग जहां जाना चाहो जा सकते हो, बेशक इसी बंगले में रहो। मेरा सब कुछ, सारी दौलत जगमोहन और नगीना की है। दोनों आधी-आधी बांट लेना। मैं ताशा के साथ सदूर पर वापस जा रहा हूं।”

“देव, इन्हें भी अपने साथ लिए चलते हैं।” ताशा बोली।

“नहीं ताशा, इन्हें अपनी जिंदगी जीने दो। हम...”

“हम भी साथ जाएंगे।” जगमोहन गम्भीर स्वर में कह उठा।

“तुम भी साथ जाओगे?” देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।

“मैं अकेला नहीं, हम सब, नगीना भाभी, मोना चौधरी, धरा सब...”

“म-मैं?” धरा ने कहना चाहा।

परंतु मोना चौधरी ने उसी पल उसे पांव मारकर रोक दिया।

“प्यारे देव। पोपा में बहुत जगह है, इन्हें भी साथ ले चलेंगे। ये सदूर पर हमारे किसी काम ही आएंगे। महापंडित इनके दिमाग बदल देगा। तुम भी इन्हें अपने आस-पास देखोगे तो, तुम्हें खुशी मिलेगी।”

“ठीक है ताशा।” देवराज चौहान ने मुस्कराकर कहा-“जैसी तुम्हारी इच्छा।”

“आओ देव।” ताशा प्यार से भरे अर्थपूर्ण स्वर में बोली-“हम कमरे में बातें करते हैं।”

“आओ ताशा, मैं तुम्हारे साथ फिर से प्यार के जीवन में प्रवेश कर जाना चाहता हूं जो जीवन पीछे छूट गया था।” देवराज चौहान ने प्यार भरे स्वर में कहा और कमरे की तरफ बढ़ गया।

तभी खामोश खड़ी सोमारा कह उठी-“ताशा। अभी तक बबूसा नहीं आया।”

“फिक्र मत कर सोमारा, आ जाएगा। बबूसा कभी भी राजा देव से दूर नहीं रहता।” ताशा ने विश्वास भरे स्वर में कहा-“कमरे में कोई न आए। वहां मैं अपने प्यारे देव के साथ, पुराने लम्हों को ताजा करूंगी।”

देखते-ही-देखते देवराज चौहान और ताशा बेडरूम में गए और दरवाजा बंद हो गया। उन तीनों व्यक्तियों में से दो व्यक्ति दरवाजे के बाहर पहरेदारों की तरह खड़े हो गए। ताकि राजा देव और रानी ताशा की तरफ जाने की कोई कोशिश न करे। सोमाथ यंत्र पर, किलोरा से बात करने की चेष्टा करने लगा। सोमारा सोचों में डूबी आगे बढ़कर सोफे पर जा बैठी।

जगमोहन, मोना चौधरी, नगीना और धरा की नजरें मिलीं।

“तुमने सदूर पर साथ जाने को क्यों कहा जगमोहन भैया?” नगीना गम्भीर स्वर में कह उठी।

“मैं कुछ भी समझ नहीं पा रहा भाभी कि ये सब क्या हो रहा है।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“हमें देवराज चौहान के साथ रहना चाहिए। शायद आने वाले वक्त में उसे हमारी जरूरत पड़ जाए।”

“कैसी जरूरत?”

“कह नहीं सकता। देवराज चौहान का बदला रूप देखकर तो मेरा दिमाग हिल गया है।” जगमोहन के होंठ भिंच गए।

“जगमोहन ठीक कहता है।” मोना चौधरी बोली-“हमें देवराज चौहान के साथ ही रहना चाहिए।”

“परंतु बबूसा कहां है।” धरा बोली-“वो होता तो...”

“बबूसा आ गया।” नगीना के होंठों से निकला।

सबकी नजरें तेजी से घूमी।

मुख्य दरवाजे से बबूसा को भीतर प्रवेश करते पाया।

तभी सोमारा की खुशी से भरी तेज आवाज सबको सुनाई दी।

“बबूसा...” सोमारा बबूसा की तरफ दौड़ पड़ी।

सोमारा को देखकर बबूसा बुरी तरह चौंका। वो ठिठक गया।

तब तक सोमारा, बबूसा के पास पहुंच चुकी थी।

“बबूसा।” सोमारा बबूसा से लिपट गई-“तू कैसा है बबूसा। इस जन्म में तो अब तेरे को देख पाई हूं। तूने भैया को रजामंदी क्यों दे दी कि वो तेरा जन्म कराकर तुझे पृथ्वी पर छोड़ दे। बोल?”

बबूसा ने भी सोमारा को अपनी बांहों में ले लिया था।

“तू कैसी है सोमारा?”

“तू मिल गया तो अब बहुत अच्छी हूं। तेरे से मिलने के लिए तो मैं रानी ताशा के साथ आई हूं। एक बात तो बता।”

“क्या?”

“वो लड़की, धरा के साथ तेरा क्या सम्बंध है?”

“कुछ भी नहीं।”

“तो फिर तू उसे, डोबू जाति वालों से बचाता क्यों फिर रहा है। कोई बात है तो बता दे।”

“कोई बात नहीं। मेरा उससे दोस्तों जैसा सम्बंध है।” बबूसा बोला-“राजा देव यहां नहीं आए सोमारा?”

“आए हैं राजा देव, रानी ताशा के ‘बस’ में हैं। उसके दीवाने हुए पड़े हैं। वो रानी ताशा के साथ सदूर पर जाने को तैयार हैं। इस वक्त राजा देव और रानी ताशा, उधर के कमरे के भीतर हैं और आज ही पोपा के पास जाने के बारे में सोच रहे हैं।”

“ये तो गजब ढा दिया राजा देव ने।” बबूसा चिंतित स्वर में कह

उठा-“राजा देव मौका पाते ही मेरे पास से भाग निकले और यहां आ गए। उन्हें सदूर के जन्म की याद तो आई, परंतु पूरी याद आने से पहले ही, वो रानी ताशा के पास आ पहुंचे। वो ही हुआ, जिसका मुझे डर था। अब राजा देव फिर रानी ताशा के दीवाने हो जाएंगे और रानी ताशा के मोहजाल में इस तरह डूब जाएंगे कि सदूर का जन्म उन्हें याद आना रुक जाएगा। रानी ताशा, राजा देव को सदूर पर ले जाएगी और महापंडित राजा देव के दिमाग का वो हिस्सा मिटा देगा, जहां सदूर की यादें दर्ज हैं। इस तरह रानी ताशा राजा देव को फिर से पा लेगी और उसने राजा देव को जो धोखा दिया था, उसकी सजा उसे कभी नहीं मिल सकेगी।”

“तुमने तो बहुत कोशिश की बबूसा, परंतु राजा देव ने गलत कर दिया यहां आकर। अब क्या होगा?”

“वो ही तो समझ नहीं पा रहा कि अब मैं राजा देव के लिए क्या कर सकता हूं।” बबूसा चिंतित स्वर में बोला।

“मुझे रानी ताशा इसलिए साथ लाई कि वक्त आने पर तुम्हें रानी ताशा के खिलाफ काम करने से रोक सकूँ। परंतु मैं तेरे साथ हूं। तू ही मेरा सब कुछ है। पहले तू बाकी सब बाद में। मेरे से शादी करेगा न?” सोमारा कह उठी।

“जरूर करूंगा सोमारा।” बबूसा मुस्करा पड़ा-“तेरे साथ ही जीवन बिताऊंगा। महापंडित को हमारा ब्याह करना पसंद नहीं आएगा।”

“भैया की बात मत करो।” सोमारा मुस्कराकर बोली-“वो तो अब भी मेरा ब्याह सदूर के खूबसूरत से खूबसूरत युवक के साथ कराने को कह रहे थे। पर मैं नहीं मानी। मैंने कहा शादी करूंगी तो बबूसा से, नहीं तो नहीं।”

“महापंडित बहुत गलत काम कर रहा है। वो राजा देव के खिलाफ रानी ताशा का साथ दे रहा है। मैं राजा देव से कहकर महापंडित को सजा जरूर दिलवाऊंगा। महापंडित राजा देव के साथ बेईमानी कर रहा है। उसे चाहिए था कि राजा देव को सदूर के उस जन्म की याद कराता, तब रानी ताशा से आमना-सामना कराता। परंतु उसने रानी ताशा को सीधे-सीधे ही राजा देव के पास पहुंचा दिया। महापंडित का मन मैला है। वो सब ठीक कर देना चाहता है और रानी ताशा को उस धोखे की सजा से बचाकर रखना चाहता है। पर मैं ऐसा नहीं होने दूंगा सोमारा।”

“मैं तेरे साथ हूं बबूसा।” सोमारा गम्भीर स्वर में बोली-“मैं तो कब से तेरे से मिलने का इंतजार कर रही थी। कुछ भी भूली नहीं हूं मैं। सब याद है मुझे उस वक्त की। भैया ने मेरे हर जन्म के साथ वो यादें मेरे मस्तिष्क में ताजा रखीं। वो वक्त मैं कभी भी नहीं भूल सकती। तब तेरा कितना बुरा हाल हो गया था, राजा देव को ग्रह से बाहर फेंके जाने की बात से। मैंने ही किसी

तरह तेरे को संभाला...”

“वो सब मैंने अपनी आंखों से देखा था।” बबूसा की आंखों में आंसू चमक उठे-“राजा देव कितना कह रहे थे रानी ताशा से कि तुम पछताओगी। बहुत बड़ी भूल कर रही हो। क्या-क्या नहीं कहा था राजा देव ने तब। रानी ताशा को बहुत समझाने की चेष्टा की थी। परंतु वो तब जाने किन बातों की वजह से मदहोश थी। मैं देखता रहा और कुछ न कर सका। राजा देव को सदूर से बाहर फेंक दिया गया।”

“बीती बातों को याद मत कर।” सोमारा उसकी आंखों में आंसू देखकर बोली-“अब की सोच। अब क्या करना है। राजा देव, रानी ताशा को मिल चुके हैं और रानी ताशा पोपा की तरफ जाने की तैयारी कर रही है।”

“सोमाथ कहां है?” एकाएक बबूसा ने पूछा।

सोमारा ने गर्दन घुमाकर सोमाथ की तरफ देखा।

बबूसा की निगाहें भी सोमाथ पर जा टिकीं। सोमाथ पहले से ही एकटक बबूसा को देख रहा था। बबूसा और सोमाथ की नजरें मिली तो एकाएक सोमाथ, खतरनाक अंदाज में बबूसा की तरफ बढ़ने लगा।

ये देखकर सोमारा चौंकी। बबूसा की आंखें सिकुड़ी और वो सतर्क हो गया।

“तुम क्या कर रहे हो सोमाथ?” सोमारा तेज स्वर में कह उठी।

“रानी ताशा मुझे हुक्म दे चुकी है कि बबूसा को देखते ही मार दूं।” आगे बढते सोमाथ ने शांत स्वर में कहा।

“रुक जाओ सोमाथ।” सोमारा चीखी-“मैं रानी ताशा से बात करती हूं। मैं ऐसा नहीं होने दूंगी।”

परंतु सोमाथ नहीं रुका। बबूसा के पास जा पहुंचा। बबूसा सतर्क था।

“मत करो सोमाथ।” सोमारा ने सोमाथ को पीछे धकेलना चाहा।

सोमाथ ने बबूसा को पकड़ने के लिए हाथ आगे बढ़ाया।

बबूसा फौरन अपनी जगह से हट गया।

“तुम मुझसे बच नहीं सकते बबूसा।” सोमाथ का स्वर सामान्य था।

सोमारा तेजी से उस कमरे की तरफ दौड़ी जहां देवराज चौहान और रानी ताशा थे। परंतु दरवाजे पर खड़े दोनों व्यक्तियों ने सोमारा को दरवाजे तक न पहुंचने दिया। एक ने कहा।

“रानी ताशा को इस वक्त एकांत चाहिए। उनका आदेश है।”

“सोमाथ, बबूसा को मार देगा।” सोमारा व्याकुल-सी कह उठी-“रानी ताशा ही सोमाथ को रोक सकती है। मुझे उनसे बात करने दो।”

“तुम, रानी ताशा को इस वक्त परेशान नहीं कर सकतीं।”

सोमारा ने बहुत कोशिश की, परंतु दोनों ने एक न सुनी।

“हमें बबूसा का साथ देना चाहिए।” धरा परेशान-सी कह उठी।

“हम कुछ नहीं कर सकते।” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला-“सोमाथ हमें ही मार देगा।”

सोमाथ, बबूसा की तरफ बढ़ते मुस्कराकर बोला।

“आओ बबूसा। मेरा मुकाबला करो। महापंडित ने मुझे बताया था कि तुम बहुत ताकत रखते हो। महापंडित ने तुम्हारे भीतर वो ही ताकत भर रखी है जो कभी सदूर में राजा देव के भीतर हुआ करती थी। परंतु तुम बच नहीं सकते। मैं तुम्हें मार दूंगा। मैं तो कब से तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था कि तुम सामने आओ, तुमने रानी ताशा को बहुत परेशान किया है। राजा देव को रानी ताशा से दूर रखा। उन्हें मिलने नहीं दिया। ये बात मुझे कभी भी पसंद नहीं आई।”

बबूसा सावधानी से पीछे होता जा रहा था।

सोमाथ, बबूसा की तरफ बढ़ता रहा।

तभी परेशान-सी सोमारा, पास आ पहुंची।

“बबूसा।” सोमारा ने गुस्से से कहा-“वो मुझे रानी ताशा से नहीं मिलने दे रहे। सोमाथ सिर्फ रानी ताशा का हुक्म ही मानता है। मैं क्या करूं बबूसा-मैं...”

“शांत हो जाओ सोमारा।” सोमाथ पर निगाह रखे बबूसा कह उठा-“सोमाथ के लिए आसान नहीं होगा, मुझे मार देना। राजा देव जैसी ताकत मुझ में है। मैं इसका मुकाबला कर लूंगा।”

“तुम्हें कुछ हो गया तो...”

“पीछे हो जाओ।” पीछे हटाता बबूसा दीवार से जा लगा।

सोमाथ, बबूसा की तरफ बढ़ता रहा।

दीवार के साथ सटा बबूसा की एकटक निगाह सोमाथ पर थी।

पास पहुंचकर सोमाथ ने अपने दोनों हाथ तेजी से बबूसा की तरफ बढ़ाए। बबूसा ने फुर्ती से अपने दोनों हाथ बढ़ाकर सोमाथ को बढ़ते हाथों को रोक दिया। सोमाथ और बबूसा के हाथों की उंगलियां, एक-दूसरे के हाथों की उंगलियों में फंस गई थीं। दोनों की बांहें ऊपर को उठी हुई थीं। दोनों एक-दूसरे पर जोर लगा रहे थे। जबकि सोमाथ का चेहरा शांत था, परंतु बबूसा का चेहरा कठोर हो चुका था।

“तेरे में तो सच में ताकत है।” सोमाथ बोला।

“महापंडित ने तेरा निर्माण करके गलत काम किया। इसकी सजा महापंडित को जरूर मिलेगी।” बबूसा गुर्रा उठा।

सोमाथ मुस्कराया। तभी बबूसा ने अपनी बाएं हाथ को खास अंदाज में झटका दिया तो सोमाथ की बाईं बांह नीचे होती चली गई। बबूसा ने सोमाथ के हाथ की उंगलियों को अपनी फंसी उंगलियों से जबर्दस्त अंदाज में झटका दिया और खुद उछलकर दूर जा खड़ा हुआ और सांसों को संयत करने लगा।

सोमाथ अपनी जगह खड़ा अपने बाएं हाथ की उंगलियों को देख रहा था। उसके हाथ की उंगलियां बबूसा ने हथेली के उल्टी तरफ मोड़ दी। अंगूठा अपनी जगह पर था परंतु चारों उंगलियां हथेली से उल्टी दिशा में पीछे को मुड़ी पड़ी थीं। तभी सोमाथ के चेहरे से लगा कि वो जैसे अपने भीतर ही भीतर जोर लगा रहा हो। बीतते पलों के साथ सोमाथ के हाथ की उंगलियां धीरे-धीरे सीधी होने लगीं। बबूसा अपनी जगह पर खड़ा सोमाथ की उंगलियों को सीधे होते देखा तो उसके होंठ भिंच गए। तभी बबूसा दौड़ा और उछलकर वेग के साथ सोमाथ के शरीर से जा टकराया। सोमाथ का ध्यान अपनी उंगलियों की तरफ था। बबूसा के टकराते ही सोमाथ के पांव उखड़ गए और वो उछलकर नीचे जा गिरा। बबूसा संभल चुका था और तेजी से सोमाथ के पास पहुंचकर उसके चेहरे पर ठोकर मारनी चाही कि सोमाथ ने दाएं हाथ से उसकी पिंडली

पकड़कर झटका दिया। बबूसा फिरकनी की भांति घूमकर नीचे जा गिरा। फौरन ही संभला और खड़ा हो गया। तब तक सोमाथ भी खड़ा हो चुका था। उसके हाथों की उंगलियां सीधी हो चुकी थीं। दोनों की नजरें मिलीं।

“महापंडित ने तुझे बहुत सोच-समझकर बनाया है सोमाथ।” बबूसा सख्त स्वर में कह उठा-“तेरी जगह अगर कोई साधारण इंसान होता तो उसकी बांह टूट चुकी होती।”

“तू भी ताकत रखता है, इसका एहसास मुझे हो गया है।” सोमाथ ने पुनः बबूसा की तरफ बढ़ना शुरू किया।

बबूसा सतर्क हो गया। धीरे-धीरे पीछे हटने लगा।

सोमारा सांस रोके एक तरफ खड़ी थी।

तभी कुछ दूर खड़ा रानी ताशा का आदमी, सोमाथ से बोला।

“इसे जोबिना से खत्म कर देते हैं।”

“नहीं। बबूसा को मैं अपने हाथों से मारूंगा।” सोमाथ कह उठा-“ये मेरे से कम ताकत रखता है।”

उसी पल बबूसा सोमाथ की तरफ दौड़ा। ठिठक गया सोमाथ। बबूसा उछला और पलक झपकते ही अपने दोनों पांव सोमाथ की छाती पर रखे और सीढ़ी चढ़ने की तरह, ऊपर चढ़ता चला गया और अगले ही पल वो दोनों पांव, सोमाथ के दोनों कंधों पर रखे खड़ा था। सोमाथ को एक पल के लिए भी समझने का मौका नहीं दिया और बेहद तेजी से, दोनों पांवों में सोमाथ की दोनों कनपटियां फंसाकर, फिरकनी की भांति धूमा और एक ही छलांग में कई कदम दूर फर्श पर जा खड़ा हुआ। सोमाथ को देखा। सोमाथ का सामने देखने वाला चेहरा अब दाएं कंधे की तरफ घूमकर स्थिर हो चुका था। जैसे उसकी गर्दन सामने की तरफ नहीं, कंधे की तरफ टिकी हो। एकाएक सोमाथ बहुत भयावह दिखने लगा। सोमाथ की गर्दन का हाल देखकर तो धरा के होंठों से चीख निकल गई, जबकि कंधे पर टिकी गर्दन पर, सोमाथ के होंठ मुस्कराए। उसने बबूसा को देखा। बबूसा आंखें सिकोड़े सोमाथ को देख रहा था। होंठ भिंच चुके थे। वो जानता था कि सोमाथ की जगह अगर कोई सामान्य व्यक्ति होता तो उसकी गर्दन कब की टूटकर लटक गई होती। परंतु सोमाथ को उससे ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ा था कि उसकी गर्दन घूम गई थी। सोमाथ सही सलामत था। तभी सोमाथ की गर्दन बेहद मध्यम गति से, धीमे-धीमे वापस घूमने लगी। उसी वक्त बबूसा उछला और हवा में लहराते उसके दोनों पांव सोमाथ के सिर पर जा लगे। सोमाथ जोरों से लड़खड़ाकर रह गया। बबूसा फर्श पर जा खड़ा हुआ। सोमाथ की गर्दन धीरे-धीरे दिशा बदलकर सीधी होती जा रही थी। जबकि ये देखकर बबूसा का हाल अजीब-सा हो रहा था। मन-ही-मन उसने माना कि महापंडित ने जबर्दस्त ढंग से सोमाथ का निर्माण किया था। उस पर कोई भी वार असर नहीं दिखा रहा।सोमाथ को जो थोड़ा बहुत नुकसान होता है तो वो तुरंत ही ठीक होना शुरू हो जाता है। इस हिसाब से सोमाथ उससे कहीं ज्यादा ताकतवर था। सोमाथ को मारा नहीं जा सकता था, परंतु बबूसा जानता था कि ऐसे इंसान की कमजोरी, इसके शरीर में ही होगी, परंतु कहां, ये पता लगाना बेहद कठिन कार्य था। एकाएक बबूसा को सोमाथ से खतरा महसूस होने लगा इस तरह वो कब तक सोमाथ का मुकाबला कर पाएगा। सोमाथ सच में उसे मार देने में कामयाब हो जाएगा। बबूसा को समझते देर न लगी कि वो खतरे में है। सोमाथ अब कभी भी उसकी जान ले सकता है। उसके सामने मुकाबला करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। जब तक सांसें चलती रहेंगी, वो मुकाबला करता रहेगा लेकिन अंत में जीत सोमाथ की होगी। बबूसा को सोमाथ के हाथों स्पष्ट अपनी मौत दिखने लगी।

सोमाथ की गर्दन वापस, सीधी हो गई।

बबूसा होंठ भींचे सोमाथ को देख रहा था।

“जितना मैंने सोचा था तू उससे भी ज्यादा तेज निकला बबूसा।” सोमाथ ने मुस्कराकर कहा-“तेरे किसी वार का मुझ पर कोई बुरा असर नहीं होगा। मरना, तुझे ही है। आज तेरी जिंदगी का अंतिम दिन है।” इस के साथ ही सोमाथ फुर्ती से बबूसा की तरफ लपका। पीछे हटने की अपेक्षा बबूसा, सोमाथ पर झपट पड़ा। दोनों जोरों से टकराए। सोमाथ ने बबूसा को बांहों के घेरे में लेना चाहा कि बबूसा ने उसके कंधों के पास से उसकी बांहों को हाथों से थाम लिया और उन्हें दूर रखने का प्रयत्न करने लगा। इस काम में उसे पूरा जोर लगाना पड़ रहा था। क्योंकि सोमाथ भी अपनी ताकत लगा रहा था। बबूसा ज्यादा देर तक इसी मुद्रा में डटा नहीं रह सका। उसे फुर्ती से सोमाथ की बांहों को छोड़कर दूर हट जाना पड़ा कि तभी सोमाथ ने उस पर छलांग लगा दी।

बबूसा संभल न सका और सोमाथ तेजी से उससे आ टकराया। बबूसा के पांव उखड़े और वो पीछे को जा गिरा। पास पहुंचकर सोमाथ ने उसकी छाती पर पांव रखा और दबाने लगा। बबूसा के होंठों से गुर्राहट निकली और दोनों हाथों से उसने सोमाथ की पिंडली थामी और उसे छाती से हटाने को पूरा जोर लगा दिया। परंतु बबूसा को जरा भी सफलता नहीं मिली। उसे लग रहा था कि सोमाथ के पांव के दबाव से उसकी छाती की हड्डियां टूट जाएंगी।

उसी पल सोमारा दौड़ी और सोमाथ को धक्का देकर, हटाने की कोशिश करती बोली-“छोड़, छोड़ मेरे बबूसा को।”

सोमाथ का हाथ हौले से घूमा, सोमारा के कंधे पर पड़ा तो सोमारा तेज चीख के साथ चार-पांच कदम दूर जा गिरी। तभी बबूसा ने पूरी ताकत लगाकर सोमाथ की पिंडली को झटका दिया। पांव का दबाव कुछ कम हुआ, दो पल के लिए कि बबूसा ने पिंडली को एक और झटका दिया और पांव के नीचे से करवट लेता वहां से हट गया और फुर्ती से खड़ा होने की चेष्टा की कि तभी सोमाथ ने छलांग लगाई और उसके ऊपर आ गिरा बबूसा के होंठों से मध्यम-सी कराह निकली, दोनों गुत्थम-गुत्था हो गए और अगले ही पल सोमाथ का दायां हाथ बबूसा की गर्दन पर जा टिका। बबूसा को लगा जैसे लोहे का शिकंजा गर्दन से कस गया हो। उसने तड़पकर सोमाथ का हाथ गले से हटा देना चाहा, परंतु सोमाथ की पकड़ एक अंश भी ढीली नहीं हुई। दबाव बढ़ने लगा। सोमाथ का चेहर सांस रुकने के कारण लाल सुर्ख हो उठा था। आंखें फटने को आ गईं। सोमारा चीखती हुई पास आई और सोमाथ का हाथ बबूसा की गर्दन से हटाने की भरपूर कोशिश की, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ।

दम रुकने की वजह से बबूसा छटपटा उठा।

“ता-ऽ-ऽ-ऽ-ऽ-शा-ऽ-ऽ-ऽ-...।” एकाएक सोमारा गला फाड़कर चीख उठी-दो पल भी नहीं बीते कि कमरे का दरवाजा खुला, रानी ताशा आगे थी, देवराज चौहान पीछे। वो कमरे का दृश्य देखकर चौंके। तभी सोमारा गुस्से से कह उठी।

“बबूसा को बचाओ ताशा। सोमाथ उसकी जान ले रहा है।”

“बबूसा।” देवराज चौहान तेजी से दौड़ा आया-“ये क्या कर रहे हो तुम बबूसा के साथ। छोड़ो इसे।”

परंतु सोमाथ की पकड़ का दबाव बढ़ता ही जा रहा था।

“हटो।” देवराज चौहान ने सोमाथ को हटाना चाहा।

लेकिन सोमाथ अपनी करनी पर कायम रहा।

“रुक जाओ सोमाथ।” रानी ताशा कह उठी-“बबूसा को छोड़ दो।”

उसी पल सोमाथ की पकड़ ढीली हो गई। वो बबूसा का गला छोड़कर उठ खड़ा हुआ।

“बबूसा।” देवराज चौहान बबूसा के पास बैठ गया। सोमारा भी करीब आ बैठी। उसकी आंखों में आंसू थे-“तुम ठीक तो हो बबूसा।” देवराज चौहान की आवाज में तड़प थी-“तुम...”

बबूसा मुंह खोले, सांसें लेने का प्रयत्न कर रहा था।

उसी पल देवराज चौहान उठा और पलटकर खतरनाक निगाहों से सोमाथ को देखा। दरिंदा-सा लग रहा था देवराज चौहान। हाथों की मुट्ठियां भिंच गई थीं। वो सोमाथ की तरफ बढ़ना चाह रहा था कि तभी ताशा पास आई और देवराज चौहान का हाथ पकड़कर प्यार से कह उठी।

“मेरे देव, सोमाथ मेरे आदेश का पालन कर रहा था। उसे मैंने ही कहा था बबूसा को खत्म करने को।”

“तुमने ऐसा आदेश क्यों दिया?” देवराज चौहान गुस्से में था।

“बबूसा हमें मिलने नहीं दे रहा था देव। वो हमारे मिलन में अड़चन डाल रहा था।”

“मैं बबूसा का अहित नहीं सह सकता ताशा।” देवराज चौहान कुछ ढीला पड़ा-“वो मेरा खास है।”

“अब सोमाथ बबूसा को कुछ नहीं कहेगा। आप मिल गए तो मेरा क्रोध भी समाप्त हो गया।”

देवराज चौहान ने गम्भीर निगाहों से रानी ताशा को देखा।

ताशा, देवराज चौहान को देखकर मुस्कराई।

“अब अपनी ताशा पर गुस्सा करोगे देव।” ताशा ने मुंह फुलाकर कहा।

देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।

बबूसा अब उठ बैठा था। चेहरे पर अभी भी लाली चमक रही थी।

“रानी ताशा।” बबूसा गहरी सांसें लेता कह उठा-“मैं तो आपके लिए राजा देव को संभाले रखे हुए था। मैं तो कबसे आपके आने की राह देख रहा था कि राजा देव को आपके हवाले कर सकूँ। राजा देव भी आपसे मिलने को तड़प रहे थे। आपके लिए मैंने इतना कुछ किया और आपने सोमाथ से कह दिया कि वो मेरी जान ले ले।”

“तुमने मुझसे विद्रोह किया। डोबू जाति छोड़कर आ गए और...”

“रानी ताशा। मैं तो राजा देव की तलाश में निकला था कि आपके आते ही राजा देव को आपके हवाले कर दूं और हम पोपा में बैठकर वापस सदूर चले जाएं। आपने मुझे गलत समझ लिया।” बबूसा ने दुख भरे स्वर में कहा।

“तुम कुछ भी कहो, अब मुझे किसी की परवाह नहीं है। मेरे देव मुझे मिल गए हैं। देव को क्या पाया, मैंने सब कुछ पा लिया।” रानी ताशा ने मुस्कराकर

देवराज चौहान को देखा-“आप मेरे हैं न देव?”

“मैं अपनी ताशा के बिना नहीं रह सकता।” देवराज चौहान ने प्यार से कहा।

रानी ताशा की आंखें भर आईं-“मैंने आपको कितनी मेहनत से पाया है। अब आपको गुम नहीं होने दूंगी।”

“हम साथ-साथ रहेंगे ताशा।” देवराज चौहान भावुक हो उठा-“मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।”

रानी ताशा ने बबूसा से कहा।

“तुम तो डोबू जाति तक पहुंचने का रास्ता जानते हो?”

“हां, रानी ताशा।”

“तो हमें वहां ले चलो। पोपा वहां खड़ा है। हमें वापस सदूर पर, अपने किले में जाना है। जहां मेरी और देव की दुनिया बसती है।”

“आप चलने की तैयारी कीजिए रानी ताशा, मैं भी अब वापस सदूर जाना चाहता हूं।” बबूसा कह उठा।

“मेरे देव।” रानी ताशा ने कहा-“हमें चलने की तैयारी करनी चाहिए।”

देवराज चौहान की निगाह जगमोहन, नगीना, मोना चौधरी और धरा पर गई-“जगमोहन।” देवराज चौहान बोला-“क्या तुम लोग भी सदूर पर, हमारे साथ जाना चाहते हो?”

“हां।” जगमोहन ने फौरन कहा।

“तो चलने की तैयारी करो। गाड़ियों का इंतजाम करो। बबूसा से जान लो कि कहां जाना है।” देवराज चौहान ने कहा और ताशा का हाथ पकड़कर प्यार से कह उठा-“हम कमरे में चलते हैं। मैं अभी जी भरकर तुम्हें देख नहीं सका।”

“आओ मेरे देव।” ताशा देवराज चौहान से सट गई-“मैं उन प्यार के पलों को फिर से पा लेना चहती हूं जो पीछे छूट गए थे।”

दोनों कमरे में चले गए। दरवाजा बंद हो गया।

“हमें कुछ करना होगा।” मोना चौधरी कह उठी-“ये लोग तो अब किसी दूसरे ग्रह पर जाने की तैयारी करने लगे हैं।”

“जब तक हालात हमारे हक में न हों, हमें कुछ नहीं करना है।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“बबूसा की ताकत हमने देख ली है, वो हमारे काम आ सकता है, वो रानी ताशा के खिलाफ है। जल्दबाजी में खेल मत बिगाड़ देना मोना चौधरी। हम किसी मौके की तलाश में ही, इन लोगों के साथ रहेंगे।”

“सब कुछ देवराज चौहान पर निर्भर है।” नगीना ने सोच भरे स्वर में कहा-“परंतु उन्हें ताशा के अलावा कुछ नजर ही नहीं आ रहा। ऐसे में हम कर भी क्या सकते हैं।”

“बबूसा बताएगा कि हमें क्या करना है अब।” जगमोहन के होंठ भिंच गए।

“सिर्फ बबूसा ही तो है, जो सोमाथ का कुछ मुकाबला कर सकता है।”

धरा ने गम्भीर स्वर में कहा-“बबूसा का हमें बहुत सहारा रहेगा। बबूसा हालातों को हमसे बेहतर जानता है कि अब क्या करना चाहिए।”

बबूसा उठ बैठा था। उसकी सांसें संयत हो चुकी थीं। चेहरे पर अभी भी लाली था। उसने कुछ दूर खड़े सोमाथ को देखा। सोमाथ भी उसे ही देख रहा था। पास बैठी सोमारा धीमे स्वर में कह उठी।

“तेरे को मेरे से ज्यादा कोई नहीं जान सकता बबूसा। मैं जानती हूं तेरे मन में क्या चल रहा है।”

बबूसा ने गम्भीर निगाहों से सोमारा को देखा।

“मुझे पता है कि तू मेरे मन की बात जान लेती है।” बबूसा बोला-“इसी कारण तू मुझे बहुत अच्छी लगती है।”

“क्या करेगा तू अब?”

“रानी ताशा, राजा देव को उलझाकर सदूर पर ले जाना चाहती है। ऐसे में राजा देव के सदूर की सारी बातें याद नहीं आएंगी। क्योंकि वो तो रानी ताशा के प्यार में दीवाने होकर उलझे रहेंगे। रानी ताशा भी राजा देव को कुछ भी सोचने का मौका नहीं देगी। ऐसे में रानी ताशा सोचती है कि राजा देव को सदूर पर ले जाकर, उनके दिमाग के उस हिस्से को महापंडित से हटवा देगी, जहां पर सदूर की बुरी यादें दर्ज हैं, जिनके याद आने पर राजा देव, रानी ताशा को सख्त सजा देंगे। परंतु मैं रानी ताशा को, राजा देव से किए धोखे की सजा दिलवाकर ही रहूंगा। रानी ताशा अपनी मनमानी नहीं कर सकेगी।”

“बबूसा।” सोमारा ने बबूसा का हाथ पकड़ लिया-“इस काम में मैं तेरा साथ दूंगी।”

“सच सोमारा?” बबूसा मुस्करा पड़ा।

“सोमारा तेरे को खूब जानती है, खूब समझती है कि तू कभी कोई गलत काम नहीं करेगा। खासतौर से राजा देव से जुड़ा मामला हो तो अपनी जान लगा देगा। ऐसे में सोमारा तेरा साथ क्यों न देगी। अपनी जान भी दे देगी।”

सोमारा ने दृढ़ स्वर में कहा-“अपनी सोमारा पर भरोसा रख बबूसा। तेरे लिए तो मैं रानी ताशा का गला भी काट दूंगी।”

“ऐसा कुछ नहीं करना है हमने। रानी ताशा को राजा देव ही सजा देंगे। हम तो सिर्फ उनके सेवक हैं।” बबूसा ने कहा।

तभी जगमोहन पास आ पहुंचा। बबूसा ने जगमोहन को देखा।

“तुम तो फेल हो गए बबूसा।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।

“बबूसा ने कभी फेल होना नहीं सीखा। अब तो शुरुआत हुई है।” बबूसा का स्वर बेहद कठोर था-“तुमने अभी बबूसा को जाना ही कहां है। रानी ताशा को अपनी किए की सजा भुगतनी ही होगी। वो बच नहीं सकती। राजा देव ही रानी ताशा को सजा देंगे।” फिर बबूसा की निगाह सोमाथ की तरफ उठी जो दूर खड़ा उसे ही देख रहा था-“सोमाथ को संभालना अवश्य खतरनाक महसूस हो रहा है।” बबूसा का हाथ अपने गले पर पहुंच गया-“पर सोमाथ मेरे हाथों से बच नहीं सकेगा। राजा देव कहा करते थे कि बबूसा, कोई भी काम कठिन नहीं होता, अहम बात तो ये होती है कि उस काम को पूरा करने की, मन की भावना कितनी प्रबल है। राजा देव की ये बात मैं कभी नहीं भूला। मैं जल्दी ही अपनी कोशिशों पर खरा उतरूंगा और वह वक्त भी आएगा जब रानी ताशा के सामने खड़े राजा देव, उससे सदूर पर किए धोखे का हिसाब मांगेंगे।”

“सोमारा तेरे लिए अपनी जान भी लड़ा देगी बबूसा।” सोमारा दृढ़ स्वर में कह उठी-“परंतु तोमाथ की याद है तुम्हें, तुम उसे कहकर आए थे सदूर पर कि विद्रोह की सारी तैयारी पूरी रखे और तोमाथ ने सारी तैयारी कर रखी है वो सिर्फ तुम्हारे इशारे का इंतजार कर रहा है कि किसी प्रकार तुम अपने यंत्र पर या पोपा के भीतर मौजूद यंत्र द्वारा उसे आगे का आदेश दे दो रानी ताशा को किले से उखाड़ देने की कार्यवाही शुरू कर दें।”

“हम सब भी तुम्हारे साथ हैं बबूसा। तुम्हारे जितनी कोशिशें तो नहीं कर सकते, पर जितनी हिम्मत है, उतना साथ तो दे ही सकते हैं।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“हमें डोबू जाति की तरफ जाने की तैयारी करनी होगी तुम मुझे उधर जाने का रास्ता समझा दो।”

“वो मैं तुम्हें समझा देता हूं कि हमें किस तरफ जाना है।” बबूसा ने कठोर स्वर में कहा।

तभी धरा पास आकर घबराए स्वर में कह उठी।

“बबूसा। अगर मैं डोबू जाति वालों के पास गई तो वो मेरी जान ले लेंगे।”

“बबूसा के होते कोई तेरी तरफ आंख भी उठाकर नहीं देखेगा।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा।

तभी उसकी निगाह सोमाथ पर गई तो सोमाथ को ऐसी निगाहों से अपनी तरफ देखते पाया, जैसे कह रहा हो कि मैं सब जानता हूं कि तुम क्या करने की सोच रहे हो, परंतु मेरे होते तुम कुछ नहीं कर सकोगे।”

समाप्त