बेलगाम पणजी से कोई चालीस किलोमीटर दूर एक छोटा सा कसबा था । ऐंजो का बताया पता वहां के ऐसे इलाके का था जहां मध्यम वर्ग के लोग रहते थे । विष्णु आगाशे का आवास एक छोटा सा बंगला निकला जिसके सामने खुला लॉन था और पहलू में गैरेज था । गैरेज का दरवाजा खुला था और उसके सामने के ड्राइव वे पर उस घड़ी एक नीली मारुति 800 खड़ी थी । एक दोरंगी फिएट बंगले के गेट के आगे सड़क पर खड़ी थी जो कि देखने में बहुत खस्ताहाल लग रही थी । उसने फियेट के पीछे अपनी एम्बैसेडर खड़ी की और बाहर निकला । उसने जोर से एक अंगड़ाई ली और सड़क के दोनों तरफ निगाह डाली सड़क उस घड़ी खाली थी और वातावरण में खामोशी व्याप्त थी लेकिन फिर भी उसे अहसास हो रहा था कि वो एक बसा हुआ इलाका था, वहां की बाकी इमारतें भी आगाशे के बगल की तरह आबाद थीं। -
बाहरला फाटक फांदकर वो भीतर दाखिल हुआ और लॉन के बीच में बने रास्ते पर से गुजरता हुआ बंगले के बरामदे में पहुंचा । उसने काल बैल बजायी ।
दरवाजा एक ऐसे आदमी ने खोला जो बिना बाजू की गोल गले की टी शर्ट और बहुत टाइट जीन पहने था । उम्र में वो पैंतीसेक साल का था और उसका जिस्म उसकी बॉडी बिल्डिंग में दिलचस्पी होने की चुगली कर रहा था । उसने एक सरसरी निगाह जीतसिंह पर ऊपर से नीचे तक दौड़ाई ।
"बद्रीनाथ ।" - जीतसिंह बोला - "पणजी से । "
"ऐंजो के फ्रेंड ?" - वो बोला ।
"हां"
"वैलकम । मेरा नाम विष्णु आगाशे है । मुझे तुम्हारा ही इन्तजार था । प्लीज कम इन। "
"शुक्रिया ।"
वो उसे एक सजी हुई बैठक में ले गया। वहां दो लोग और मौजूद थे। एक ईजी चेयर पर एक लम्बा-पतला अधगंजा व्यक्ति पसरा पड़ा था जो कि अपने नाप से दो साइज बड़ा सूट पहने मालूम होता था। कमीज के मुड़े-तुड़े कालर के साथ वो टाई भी लगाए था लेकिन टाई टाई कम और एक नुचड़ी हुई धज्जी ज्यादा लग रही थी। आंखों पर वो नजर का चश्मा लगाए था और वो किसी बहुत ही घटिया जलकर कसैला धुआं पैदा करने वाले तम्बाकू वाले सिगरेट के कश लगा रहा था । बाहर खड़ी फियेट जरूर उसकी थी क्योंकि जैसी खस्ताहाल वो फियेट थी, वैसा ही खस्ताहाल वो खुद था ।
दूसरा जना एक फुलझड़ी जैसी युवती थी जो कि एक सोफे पर पसरी पड़ी थी । उसके नयन नक्श सुथरे थे, रंग गोरा था लेकिन उसका रखरखाव, उसकी पोशाक, उसके व्यक्तित्व की हर बात फर्जी मालूम होती थी, बनावटी मालूम होती थी । वो ऐसी औरत थी जो वहां न होती तो जीतसिंह ज्यादा इत्मीनान महसूस करता ।
"ये भागचन्द नवलानी है।" - आगाशे ने परिचय दिया - " और ये मेरी बीवी इला है । ये बद्रीनाथ है । पणजी से आया है।"
इला ने अपने लिपस्टिक से पुते होंठों के पीछे से सफेद दांत चमका कर जीतसिंह का अभिवादन किया और, जैसे अभिवादन के ही सप्लीमैंट के तौर पर कंधे सिकोड़कर अपने असाधारण आकार के स्तनों की नुमायश की।
मर्दखोर जीतसिंह ने सोचा यही फिट विशेषण था उस औरत के लिए ।
अलबत्ता नवलानी ने सिगरेट फेंककर, अपरे स्थान से उठकर उसके करीब आकर, उससे हाथ मिलाकर उसका परिचय कबूल किया ।
"कैसा है साई ?" - वो बोला ।
"ठीक ।" - जीतसिंह बोला ।
" ऐंजो तुम्हारी बहुत तारीफ करता था । तुम्हारी भी और तुम्हारे हुनर की भी ।”
"मेहरबानी है उसकी ।"
"बैठ साई ।"
जीतसिंह एक कुर्सी पर बैठ गया ।
"बियर !" - आगाशे बोला ।
जीतसिंह ने इंकार में सिर हिलाया ।
"तो कोई कोल्ड ड्रिंक ?"
"चलेगा।"
"इला, पैप्सी ले के आ ।"
युवती के चेहरे पर ऐसे भाव आए जैसे एक अजनबी के सामने यूं हुक्म दिया जाना उसे पसन्द न आया हो लेकिन वो तत्काल अपने स्थान से उठी और लचकती, मटकती वहां बाहर निकल गई ।
आगाशे और नवलानी जीतसिंह के करीब बैठ गए ।
"ऐंजो कहां है ?" - जीतसिंह बोला ।
"बस आता ही होगा ।" - आगाशे बोला ।
"किस्सा क्या है ?"
"ऐंजो आ जाए फिर किस्सा एक ही बार डिसकस करेंगे।" जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।
आगाशे ने उसे एक सिगरेट पेश किया जो कि उसने ले लिया तीनों ने सिगरेट सुलगा लिए और खामोशी से उसके कश लगाने लगे ।
जीतसिंह सोचने लगा। वो दोनों आदमी काफी हद तक ठीक थे लेकिन औरत से वो आशंकित था । उसकी चंचल प्रवत्ति साफ परिलक्षित हो रही थी और उसके हाव-भाव से ऐसा लगता था जैसे वो किसी फिल्मी गैंगस्टर की संगिनी थी और उसे अपना वो रोल पसन्द था । आगाशे ने उसे अपनी बीवी बताया था लेकिन बीवियों जैसी न उसकी हरकतें थी और न नीयत थी और अपने सैक्स को कैश करने का, उसे हथियार की तरह इस्तेमाल करने का उसे खास तजुर्बा मालूम होता था।
"काम" - एकाएक जीतसिंह बोला- "उतने ही आदमियों का है जितने कि हम यहां मौजूद हैं ?"
"ऐंजो भी तो है।" - आगाशे बोला ।
"बस ?"
"दो जने और हैं लेकिन उनकी इस वक्त यहां मौजूदगी जरूरी नहीं । उनका रोल स्कीम के एक ही फेज में है और लिमिटिड है । स्कीम पास हो गई, उस पर अमल करने का हममें फैसला हो गया तो ऐन जरूरत के वक्त उन्हें बुला लिया जाएगा। पहले से जमघट लगाने का कोई फायदा नहीं ।"
- “कायदे की बात है।" - वो एक क्षण ठिठका और बोला . 'आप लोग काशीनाथ देवरे से वाकिफ हैं ?"
"कौन देवरे ?" - आगाशे बोला ।
"बम्बई से है । इसी लाइन का आदमी है । वसन्त राव के नाम से भी जाना जाता है। कभी वास्ता पड़ा हो उससे ?"
"मेरा तो नहीं पड़ा ।" - आगाशे बोला ।
"मेरा भी ।" - नवलानी बोला- "मैंने तो साई, नाम तक नहीं सुना ।"
"है कौन वो ?” - आगाशे बोला- "और तुम क्यों पूछ रहें हो उसकी बाबत ?"
"यूं ही । कोई खास वजह नहीं । "
"फिर भी ?"
"वो हमारी लाइन का आदमी है । एक आदमी की और जरूरत महसूस होने पर वो हमारे काम आ सकता है । भरोसे का आदमी है । "
"लेकिन हमें एक और आदमी की जरूरत नहीं पड़ने वाली |"
"फिर तो बात ही खत्म हो गई । "
प्रत्युतर में कोई कुछ न बोला ।
कछ क्षण खामोशी बरकरार रही ।
"वो" - फिर जीतसिंह ने ही खामोशी भंग की - "हाल ही में गोवा में था ।"
"कौन ?" - आगाशे तनिक हकबकाया सा बोला ।
"देवरे । वास्कोडिगामा में था वो हाल ही में वैसे बम्बई से है ।”
"पहले भी बोला तुमने ।”
"वो अपनी लाइन का आदमी है । पहले नहीं पड़ा तो आगे कभी वास्ता पड़ सकता है। ऐसा कभी हो जाए तो मेरे को खबर करने का है । मेहरबानी होगी ।"
" कैसे खबर करने का है ?"
"ऐंजो के जरिये । जो ऐंजो को बोलोगे, मेरे को मालूम पड़ जाएगा।"
"अरे, साई" - नवलानी बोला- "ये तो बता, तू उसे क्यों ढूंढता है ? अब आपसदारी में क्या पर्दादारी ?"
"मेरे को उसका हिसाब चुकाना । है। उसकी अमानत मेरे पास है जो मैंने वक्त रहते उसे न सौंपी तो वो वहम करेगा । सोचेगा मैं बेईमान हो गया ।”
मारा था ?" "हां । बम्बई में मैंने उसके साथ एक..." तभी कॉल बैल बजी ।
"कहीं कोई हाथ
“ऐंजो होगा ।" - अगाशे उठता हुआ बोला- “मैं देखता हूं।" आगाशे जा के वापिस लौटा तो उसके साथ ऐंजो ही था ।
तभी इला कोल्ड ड्रिंक्स के चार गिलास एक ट्रे पर रखे लौटी । चौथा गिलास, जाहिर था कि, उसके खुद के लिये था लेकिन ऐंजो को आया देखकर उसने वो उसे दे दिया । वो खुद उनसे परे एक खिड़की के करीब जा बैठी।
"कोई बातचीत हुई ?" - ऐंजो बोला ।
“अभी नहीं।" - आगाशे बोला- "हम तेरा इन्तजार कर रहे थे।"
'मैं आ गया है । अब टेम खोटी न करो और शुरू करो क्या किस्सा है ?"
"किस्सा बड़े कीमती आर्टवर्क का है। यहां एक आर्ट गैलरी है जिसकी सबसे कीमती आइटम देवदासियां हैं।"
"देवदासियां ?" - जीतसिंह के माथे पर बल पड़े ।
"किन्नरियां | अप्सराएं । कुछ भी कह लो । चौहदवी सदी में उज्जयनी के सम्राट के शयनागार की शोभा के लिए ऐसी चौसठ मूर्तियां बनाई गई बताई जाती हैं जिनमें से अट्ठाइस हमारे विदेशी हुक्मरान चोरी करके इंगलैंड ले गए थे, पांच स्थानीय संग्रहालय में हैं, तेइस नई दिल्ली में नैशनल म्यूजियम में हैं और आठ गायब हैं लेकिन जिनके बारे में कहा जाता है कि वो हिन्दोस्तान में ही कहीं किसी कलैक्टर के प्राइवेट म्यूजियम में मौजूद हैं। वो मूर्तियां खालिस सोने की बनी हुई हैं और कला का अद्वितीय नमूना बताई जाती हैं । "
"आगे।"
“आइन्दा चंद दिनों में नई दिल्ली की नैशनल आर्ट गैलरी में एक इंटरनैशनल आर्ट सेमीनार होने जा रहा है जिसके लिये हिन्दोस्तान की कई बड़ी आर्ट गैलरियों में से पेंटिंग्स, मूर्तियां वगैरह जैसी दुर्लभ कलाकृतियां वहां पहुंचाई जाने वाली हैं । यहां की आर्ट गैलरी से जो कुछ यहां से भेजा जाने वाला है, वो वो पांच मूर्तियां हैं जो कि एक महीने बाद यहां वापिस लौट आएंगी ।”
"ये सब तुम्हें कैसे मालूम है ?"
"मेरा एक कजन लोकल आर्ट गैलरी का मुलाजिम है । उसने बताया है । और भी काफी सारी बातें मुझे उसी से मालूम हुई हैं और आगे होंगी।"
"इरादा वो पांच मूर्तियां हथियाने का है ?"
"हां"
"देखने में कैसी हैं वो ?"
"नायाब चीज हैं देखने में । आर्ट गैलरी में कभी भी जाकर उन्हें देखा जा सकता है - मेरा मतलब है जब तक कि उन्हें नई दिल्ली नहीं भेज दिया जाता । मूर्तियों में चित्रित अप्सराएं नृत्य की जुदा-जुदा मुद्राओं में हैं। हर मूर्ति कोई एक फुट ऊंची है और वजन में तकरीबन एक किलो है । इन बातों में कोई छुपाव नहीं है क्योंकि ये सब बातें आर्ट गैलरी द्वारा जारी की गई उनकी सूची में बमय हर कलाकृति की तस्वीर छपी हुई है।"
"कितनी नायाब हैं वो ? आर्ट की दुनिया में क्या कीमत आंकी जाती है उनकी ?"
“एक एक की बीस-बीस लाख रुपये । कम से कम । यानी कि कुल कीमत एक करोड़ रूपये ।"
"ये तो जायज कीमत होगी। चोरी का माल तो नाजायज कीमत पर बिकता है।"
"हां । लेकिन मेरा कजन कहता है कि सत्तर लाख तो फिर भी कहीं गए ।"
"सत्तर लाख !”
"हां"
" और हिस्सेदार चार !"
“छ । दो बाद में भी आने वाले हैं। उन्हें तुम भूल रहे हो ।”
"वो भी बराबर के हिस्सेदार होंगे ?"
"हां"
"खरीददार कौन है ?"
"खरीददार !"
“जो सत्तर लाख रुपये की चोरी की मूर्तियां खरीदेगा ?"
"अरे, वो मिल जाएगा।"
"कब मिल जाएगा ? कैसे मिल जाएगा ? आर्ट की खरीद-फरोख्त बाजार में किसका कोई वाकिफ है जो उन मूर्तियों को खुद खरीद सकता है या आगे बिकवा सकता है ?"
तीनों एक-दूसरे का मुंह देखने लगे ।
"साहेबान" - जीतसिंह उठता हुआ बोला- "मेरी आप लोगों को राय है कि इस काम में हाथ डालने से पहले बग्घी जोतना सीख लें । बग्घी में घोड़ा आगे जुतता है और गाड़ी पीछे होती है । आप लोग बग्घी आगे करके उसके पीछे घोड़ा जोत रहे हैं
"तुम समझते हो ये काम नहीं हो सकता । "
"मैं ऐसा कुछ नहीं समझता । वो एक जुदा मसला है । काम हो सकता है या नहीं हो सकता, ये स्कीम की डिटेल में जाने के बाद ही पता चलेगा न । लेकिन ऐसा काम हुआ किस काम का जिसमें पल्ले कुछ न पड़े ! वो मूर्तियां सत्तर लाख की जगह सात करोड़ की भी हों तो वो हमारे किस किस काम की जब कि उनके लिए ग्राहक अभी हमें तलाशना होगा!"
"वो इंश्योर्ड है । हम बीमा कम्पनी से उनकी बाबत बात कर सकते हैं ।”
"क्या बात कर सकते हैं ?"
"यही कि उनका इंश्योरेंस क्लेम चुकाने की जगह वो वो मूर्तियां हमसे वापिस खरीद कर सकते हैं।"
"ये आ बैल मुझे मार जैसी हरकत होगी।"
"हम सावधानी से ये काम कर सकते हैं।"
"ऐसे काम इंगलैंड, अमरीका में हो जाते होंगे, यहां नहीं होते । हो भी जाएं किसी करिश्माई तरीके से तो रुपये के चार आने भी मिल भी मिल जाएं तो गनीमत होगी। यानी कि पूरी इंश्योर्ड कीमत पर पच्चीस लाख रूपये की वसूली और उसमें भी छ: पार्टनर, यानी कि एक जने का हिस्सा तकरीबन चार लाख रुपये । जबकि कोई विघ्न न हो, कोई बाधा न हो, सब कुछ ठीक निपटे ।" I
"चार लाख कम हैं ?"
"करोड़ के माल के लिहाज से कम हैं । "
आगाशे खामोश हो गया । उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
"साई" - नवलानी बोला- "हम एक बात को नजरअंदाज कर रहे हैं ?"
"कौन-सी बात की ?" - जीतसिंह बोला ।
"वो मूर्तियां सोने की हैं । "
"तो क्या हुआ ?"
"हम उन्हें पिघलाकर सोना बेच सकते हैं। सोना बेचने में क्या दिक्कत है !"
"कितना सोना लगा है उन मूर्तियों में ?" - जीतसिंह हंसता हुआ बोला - "फी मूर्ति एक किलो । यानी कि कुल सोना पांच किलो | हम सोने का मौजूदा भाव पांच सौ रुपये फी ग्राम भी मानकर चलें तो वो बना पच्चीस लाख का । दस परसेंट खोट निकालो तो साढ़े बाइस लाख । इसका बटा छ हुआ पौने चार लाख । यानी किए जो हिस्सा अभी वर्क आउट किया है, उससे भी कम रकम ।"
"ओह !"
"कहने का मतलब ये है, जनाब, कि वो मूर्तियां बेशकीमती इसलिए हैं क्योंकि वो आर्टवर्क हैं, दुर्लभ कलाकृत्तियां हैं, न कि इसलिए क्योंकि वो सोने की हैं । "
"मैं अभी भी कहता हूं" - आगाशे बोला- "कि चार लाख भी कोई कम रकम नहीं है । "
"मेरे लिए कम है । मैं उसी काम में हाथ डालना मंजूर कर सकता हूं जिसमें मेरा हिस्सा कम से कम दस लाख हो ।” "क्यों ?"
" है कोई वजह ।"
"पता तो लगे ।"
"वो मेरा जाती मामला है । "
"साई" - नवलानी बोला- "अगर खरीददार हमें हासिल हो तो तेरे को इस काम में शरीक होना नजर है ?"
"हां । "
"तो फिर उठके क्यों खड़ा हो गया है ? तो बैठ के कम से कम आगाशे की स्कीम तो सुन कि वो क्या कहती है । "
जीतसिंह ने ऐंजो की तरफ देखा ।
“क्या वान्दा है ?" - ऐंजो बोला ।
जीतसिंह वापिस बैठ गया ।
" मैं सुन रहा हूं।" - वो बड़े धीरज के साथ बोला ।
"मेरा कजन कहता है" - आगाशे बोला - "कि वो मूर्तियां जुदाजुदा लकड़ी के क्रेटों में बन्द होंगी और वो क्रेट एक ट्रक के आकार की बख्तरबंद गाड़ी में बंद होंगे। गाड़ी के साथ गार्डों की कोई गारद नहीं होंगी ।"
"बख्तरबंद गाड़ी के साथ जरूरत भी नहीं होती ऐसी पहरेदारी की ।"
"लेकिन" - ऐंजो बोला- "कोई और गाड़ी, मसलन कोई पायलट कार तो होती होगी उसके साथ?”
"होगी । है । लेकिन आर्ट गैलरी की नहीं। पुलिस की एक वायरलैस गाड़ी बतौर एस्कार्ट उनके साथ होगी लेकिन वो सौ-सौ किलोमीटर पर बदल जाएगी ।"
"क्या मतलब ?" - जीतसिंह बोला ।
" जैसे एक पुलिस की गाड़ी उसके साथ यहां से चली । वो अपने जिले को छोड़कर दूसरे जिले में पहुंची तो वहां दूसरी गाड़ी चार्ज ले लेगी । यूं ही आगे पुलिस की गाड़ियां बदलती चली जाएंगी। यूं एक इलाके की पुलिस की गाड़ी को सौ किलोमीटर से ज्यादा अपने बस से दूर नहीं जाना पड़ेगा ।”
"वे सारा प्रोग्राम पहले ही तहशुदा होगा ?"
"जाहिर है । और पूरी तरह से सिंक्रोनाइज्ड भी । यानी कि बख्तरबंद गाड़ी के सौ किलोमीटर वाले चेंजिंग पॉइंट पर पहुंचने से पहले ही अगले जिले की पुलिस की गाड़ी जिले की ऐसी गाड़ी को फारिग करने के लिए तैयार खड़ी होगी ।"
"आई सी ।" "ये प्रोग्राम समझ गए सब जने ?"
सबने सहमति में सिर हिलाया ।
"अपने दिल्ली के रास्ते में उस गाड़ी का एक दुर्गम पहाड़ी इलाके में से गुजरना लाजमी है जिसके इर्द-गिर्द कि घने जंगल है.... मैं नक्शे में दिखाता हूं।"
उसने मेज पर भारत का एक नक्शा फैलाया और एक स्थान पर उंगली रखी ।
"ये है वो जगह" - वो बोला- "जिसका कि मैंने अभी जिक्र किया है । ये कोई चालीस किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता है जो दो राज्यों के बीच में पड़ता है। इस रास्ते पर ऐसा इन्तजाम है कि इसके दाखिले पर एक राज्य की पुलिस की वायरलैस जीप बख्तरबन्द गाड़ी की अगवानी के लिये खड़ी होगी जो पहाड़ी सड़क पर आधे रास्ते बख्तरबन्द गाड़ी के साथ चलेगी । आधे रास्ते पर दूसरे राज्य की पुलिस जीप पहले से ही तैयार खड़ी होगी जिसके हवाले बख्तरबन्द गाड़ी करके पहले राज्य की पुलिस वापिस लौट जाएगी। फिर दूसरी वायरलेस जीप बख्तरबंद गाड़ी को अपनी देखरेख में वो दुर्गम रास्ता पार करायेगी । हमारा घटनास्थल वो जगह होगी जहां से कि एक राज्य की जीप अपनी जिम्मेदारी दूसरे राज्य की जीप को सौंप कर वापिस लौटेगी । वहां सड़क पर एक यू टर्न है जिस पर कि दूसरे राज्य की जीप बख्तरबन्द गाड़ी के वहां प्रकट होने से काफी पहले पहुंची हुई होगी। हमारी स्कीम ये है कि हमने पहले राज्य की जीप के साथ बख्तरबन्द गाड़ी के उस यु टर्न वाले पॉइंट पर पहुंचने से पहले वहां पहले से ही पहुंची हुई दूसरे राज्य की जीप को अपने काबू में करना है जो कि कोई मुश्किल काम नहीं ।"
“अच्छा !"
"उस जीप में ड्राइवर के अलावा दो ही और सशस्त्र पुलिसिये होंगे जिनको कि बड़ी आसानी से काबू में किया जा सकता है ।"
"कैसे ?"
"बताता हूं। दरअसल यहां हमारे उन दो साथियों का रोल शुरू होता है जो कि मैंने कहा था कि बाद में आएंगे।"
आई सी ।"
“वो एक पच्चीस साल का लड़का और मुश्किल से बीस साल की लड़की है । उनके पास एक खटारा सी कार है जिसके साथ कि वो उस यु टर्न वाली जगह पर मौजूद होंगे। कार में पूरी तरह से हथियारबन्द हममें से कोई छुपा होगा जो कि जब पुलिम की तवज्जो लड़का लड़की की तरफ होगी तो वो उन्हें काबू में कर लेगा ।”
"लड़का लड़की क्या कर रहे होंगे ? सड़क पर ये जाहिर करते पड़े होंगे कि उनका एक्सीडेंट हो गया था ? ये ट्रिक बहुत पुरानी हो चुकी है मिस्टर आगाशे । इसमें कोई नहीं फंसने वाला ।"
"मुझे मालूम है । "
"तो क्या कर रहे होगे ?"
"वो ऐसा कुछ कर रहे होंगे जो पुलिसवालों को अनोखा, कभी न देखा, नाकाबिलेयकीन लगेगा और वो हक्के बक्के रह जाएंगे।"
"ऐसा क्या कर रहे होंगे वो ?"
"वो अपनी खटारा गाड़ी के पहलू में जमीन पर कम्बल बिछाकर अभिसाररत होंगे ।"
"क्या !"
"उनका बहाना ये होगा कि वो एक उजाड़ रास्ता था जिस पर वो कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि कोई वाहन आ सकता था। दोनों अपने नंगे जिस्म ढंकने की कोशिश का, और इस दाद फरियाद का कि जवानी के जोश में वो वो भूल कर बैठे थे ऐसी अजीमोश्शान सोंग एण्ड ड्रामा पेश करेंगे कि उस घड़ी पुलिसियों की तवज्जो उन दोनों के अलावा कहीं भी नहीं होगी।"
"तौबा !”
- "उनके करीब ही खटारा कार में मौजूद हमारा आदमी - जो कि हम में से कोई भी हो सकता है बड़ी आसानी से उन दो पुलिसियों को कवर कर लेगा और फिर ड्राइवर को काबू करने में वो पुलसिये ही हमारी मदद कर रहे होंगे।"
"फिर ?"
"फिर क्या ? फिर दूसरे राज्य की पुलिस जीप हमारे काबू में होगी, मैं नवलानी और ऐंजो उनकी वर्दियां पहने, बख्तरबन्द गाड़ी की बाट देखते वहां तैयार खड़े होंगे। पहले राज्य की पुलिस के साथ गाड़ी वहां पहुंचेगी जो कि दूसरे राज्य की पुलिस यानी कि हमारे हवाले कर दी जाएगी और खुद लौट जाएगी । अब हमारी देखरेख में गाड़ी आगे बढ़ेगी तो यू टर्न काटते ही एक नया नजारा पेश आएगा।"
"क्या ?"
"हमारे युवा साथियों की खटारा गाड़ी सड़क पर यूं उल्टी पड़ी होगी कि उसके पहलू से बख्तरबन्द गाड़ी का क्या, जीप का भी गुजर पाना नामुमकिन होगा। गाड़ी में उसका ड्राइवर और उसका एक सशस्त्र साथी बस दो आदमी सवार होंगे जिनकी आंखों के सामने हम जीप से उतरेंगे और उलटी पड़ी गाड़ी को सड़क से नीचे खड्ड में लुढ़का देने की ऐसी कोशिश करेंगे जिसमें, जाहिर है कि हमने नाकाम होकर ही दिखाना होगा । तब बख्तरबंद गाड़ी के ड्राइवर और उसके साथी को खुद ही अहसास होने लगेगा कि ये काम उनकी मदद के बिना नहीं होने वाला था । रही-सही कसर हम तीनों का ड्रामा पूरी कर देगा जब कि हम हाथ खड़े कर देंगे। फिर एक बार उन दोनों के मदद के लिए गाड़ी से उतर आने की देर है कि बाजी हम ने जीत भी ली हुई होगी ।"
"बख्तरबन्द गाड़ी का कहीं वायरलैस सम्पर्क हो सकता है।"
" ऐसा कोई इंतजाम उसमें नहीं है। दो इन्तजाम पुलिस की गाड़ी में है लेकिन वो तो हमारे कब्जे में होगी ।"
"फिर ?"
"फिर क्या ? एक बार बख्तरबंद गाड़ी पर हमारा कब्जा हुआ नहीं कि तुमने उस खोला नहीं ।"
"हूं । तो मेरा रोल गाड़ी को खोलना है !"
"जाहिर है ।"
"गाड़ी के बख्तरबन्द हिस्से की चाबियां गार्ड या ड्राइवर के पास नहीं होगी ?"
"नहीं होंगी । वो हिस्सा एक कंप्यूटराइज्ड वॉल्ट की तरह बना हुआ है जिसका ताला एक कोड द्वारा यहां बेलगाम में सैट किया जाएगा और फिर उसी कोड द्वारा गाड़ी के नयी दिल्ली पहुंचने पर खोला जाएगा । वो कोड यहां और वहां की आर्ट गैलरियों के उच्चाधिकारियों के अलावा कोई नहीं जानता होगा ।”
"आई सी । आगे ।"
"वो उलटी पड़ी खटारा गाड़ी असल में खटारा गाड़ी नहीं होगी । असल में वो बड़ी मजबूत नए शक्तिशाली इंजन वाली बढ़िया कार होगी जिसमें कि हम मूर्तियों की पांच पेटियां लादेंगे और वहां से रुखसत हो जाएंगे।"
"कहां के लिए ?"
"वापिस यहां के लिए "
“रास्ते में कहीं तलाशी हो गई तो ?"
" मैंने तुन्हें स्कीम का मोटा मोटा खाका ही बताया है । ऐसे अंदेशों पर, ऐसी और खामियों पर हम इत्मीनान से गौर कर सकते हैं। उसके लिए अभी बहुत वक्त है हमारे पास । फिलहाल तो तुम ये बताओ कि तुम्हें स्कीम कैसी लगी ?"
"ठीक है । लेकिन इसे पोलिश किए जाने की काफी गुंजायश है जो हम फिर मीटिंग करके तब कर लेंगे जब कि तुम मुझे ये गुड न्यूज दोगे कि तुमने खरीददार तलाश कर लिया है।"
"ये गुडन्यूज मैं तुम्हें तुम्हारी उम्मीद से जल्दी दूंगा।" "फिर क्या बात है ?"
"बाहर कोई आदमी है।" - एकाएक खिड़की के करीब से इला बोली- "गाड़ियां चैक कर रहा है ।" JH
चारों उठकर खड़े हुए और लपककर खिड़की के करीब पहुंचे ।
बाहर एक चपटी नाक वाला मोटा सा आदमी मौजूद था जो कि दोनों गाड़ियों का और ऐंजो की टैक्सी का मुआयना कर रहा था ।
जीतसिंह को ऐसा लगा जैसे वो सूरत उसने पहले भी कभी देखी हो ।
कब ? कहां ?
"पुलसिया होगा ।" - आगाशे चिन्तित भाव से बोला ।
"पुलसिया है तो" - नवलानी बोला- "वर्दी में क्यों नहीं है कर्मामारा ?”
"पुलसिया नहीं है ।" - जीतसिंह बोला - "तुम लोगों में से किसी का वाकिफकार तो नहीं ?"
आगाशे और नवलानी ने इनकार में सिर हिलाया ।
“इला !" - फिर आगाशे बोला- "तू क्या कहती है ?"
"मुझे नहीं पता ये कौन है !" - वो हड़बड़ाई सी बोली - "मैंने इसे पहले कभी नहीं देखा । "
"पक्की बात !"
“लो । अगर मैं इसे जानती होती तो मैं तुम लोगों को इसकी बाहर मौजूदगी की बाबत बताती ?"
"हूं।"
अब उस आदमी की तवज्जो पर से हट गई थी और वो बंगले की ओर देखने लगा था। फिर उसने आगे बढ़कर उसका फाटक ठेला और भीतर लॉन में कदम रखा ।
"तो कोई नहीं जानता इसे ?" - जीतसिंह बोला ।
"नहीं ।"
"मैं देखता हूं कौन है ये और क्या चाहता है ।"
"ठीक है ।"
"तुम लोग भीतर ही रहना । "
वो आदमी बंगले के बरामदे में पहुंचा । कालबैल बजी । । "जैसे मैं और ऐंजो आए" - जीतसिंह बोला - "वैसे ही ये भी तो नहीं आने वाला था ?"
"तो क्या मैं इसकी शक्ल न पहचानता होता ?" - आगाशे बोला।
"मेरी शक्ल कहां पहचानते थे तुम ?”
"वो ठीक है लेकिन... यहां और कोई नहीं आने वाला था।”
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