स्विट्जरलैंड के रेड रॉक्सी होटल में देवराज चौहान की आँख सुबह आठ बजे खुली । उसने इंटरकॉम पर रूम सर्विस को कॉफ़ी का आर्डर दिया और बाथरूम में जाकर हाथ-मुँह धोने के बाद खिड़की के पास पहुँचा और पर्दा हटाकर बाहर देखा ।
बाहर कोहरे का धुआँ हवा के संग लहरा रहा था । रात बर्फ नहीं गिरी थी परंतु सर्दी बढ़ गई थी । देवराज चौहान खिड़की से हटा और सिगरेट सुलगा ली । चेहरे पर सोच के भाव थे कि कई दिन हो गए थे उसे स्विट्जरलैंड के इस होटल में बैठे परंतु स्मिथ वाल्टर से वो बात नहीं हो पाई थी जिसके लिए वो आया था । स्मिथ वाल्टर से मुलाकात भी नहीं हुई थी । एक बार फोन अवश्य आया था कि वो दोबारा जल्दी बात करेगा तब देवराज चौहान ने नए लिए मोबाइल का स्थानीय नम्बर दिया था । वो बात हुए भी तीन दिन हो चुके थे । उसके बाद स्मिथ वाल्टर का दोबारा फोन नहीं आया था ।
कॉफ़ी आ गई । देवराज चौहान सोफा चेयर पर बैठे कॉफ़ी के घूँट लेने लगा ।
देवराज चौहान ने तो सोचा था कि इस काम में एक-दो दिन का वक्त लगेगा और वो वापस इंडिया लौट आएगा । परंतु यहाँ तो काफी दिन लग गए थे । स्मिथ वाल्टर की तरफ से ही देर हो रही थी । वापस भी नहीं जा सकता था कि डकैती की सारी योजना स्मिथ वाल्टर की दी जानकारी पर ही आधारित हो जानी थी । सब कुछ इसी बात पर निर्भर था ।
देवराज चौहान ने कॉफ़ी समाप्त ही की थी कि उसका मोबाइल बजने लगा । उसने फौरन कॉलिंग स्विच दबाया और बात की ।
"हेलो !"
"देवराज चौहान !" दूसरी तरफ से स्मिथ वाल्टर की आती आवाज को उसने पहचान लिया था, "आज तुम्हारा काम हो जाएगा ।"
"पक्का ?"
"बिल्कुल पक्का । मिनिस्ट्री की फ़ाइल निकालकर वापस हमारे डिपार्टमेंट को भेजी जा रही है । उसमें स्विस सरकार की तरफ से सामान भेजने की सारी प्लानिंग को ओके किया होगा ।"
"जिस प्लेन में सामान भेजा जाएगा, उस प्लेन की सारी डिटेल होगी ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"सब कुछ होगा । मैं तुम्हें पता लगते ही फोन करूँगा ।"
इसके साथ ही बातचीत समाप्त हो गई ।
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दोपहर के तीन बज रहे थे । देवराज चौहान ने एक इलाके की व्यस्त मार्किट के रेस्टोरेंट में लंच लिया था । बाजार में काफी चहल-पहल थी । स्थानीय लोगों के अलावा विदेशी सैलानी भी काफी संख्या में थे । यदा-कदा हिंदुस्तानी भी नजर आ जाते थे । लंच के बाद देवराज चौहान मार्किट में टहलने लगा । मौसम में ठंडक थी । आज सूर्य नहीं निकला था और मध्यम-सा कोहरा अभी भी वातावरण में मौजूद था । कुछ दूर बर्फ से ढके पहाड़ देखने में बहुत अच्छे लग रहे थे । उस वक़्त देवराज चौहान सड़क किनारे मौजूद बैंच पर बैठा सिगरेट के कश ले रहा था । तभी उसका फोन बजने लगा ।
"हेलो !" देवराज चौहान ने बात की ।
"कहाँ हो तुम, होटल में ?" स्मिथ वाल्टर की आवाज कानों में पड़ी ।
देवराज चौहान ने बताया कि वह मेसी पॉइंट पर, सेवंथ रोड की मार्किट के पास है ।
"मैं वहीं आ रहा हूँ,वहाँ पहुँचकर फोन करूँगा । तुम्हारे काम की खबर मिल चुकी है।”
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डेढ़ घण्टे बाद देवराज चौहान और स्मिथ वाल्टर उसी बैंच पर एक साथ बैठे हुए थे ।
"बोलो ! तुमने बहुत दिन मुझे यहीं बैठाए रखा ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"प्रोग्राम कुछ लेट हो गया । इस मामले में वक़्त भी लग ही जाता है । मेरे बस में कुछ नहीं था ।" स्मिथ वाल्टर ने कहा, "विभाग ने तीन दिन पहले ही सारे प्रोग्राम की फ़ाइल बनाकर मंत्रालय को भेजी थी जो कि आज पास होकर आ गई । दो हजार करोड़ का सोना भारत सरकार ने स्विट्जरलैंड की सरकार से खरीदा है । दोनों देशों के बीच सारी कार्यवाहियाँ पूरी हो चुकी हैं और अब सोने को हिंदुस्तान ही पहुँचाना बाकी रह गया है । इस बारे में ये फैसला लिया है कि दो हजार करोड़ का सोना चार बार में हिंदुस्तान पहुँचाया जाएगा । हर बार यात्री विमान का ही इस्तेमाल किया जाएगा । एक बार में पाँच सौ करोड़ का सोना हिंदुस्तान पहुँचाया जाएगा ।"
"2000 हजार करोड़ का सोना एक बार में भी तो हिंदुस्तान पहुँचाया जा सकता है ?"
"ऐसा हो सकता है परंतु ये दोनों देशों की सरकारों के बीच की बात है । वही जाने कि ऐसा क्यों किया जा रहा है । एक बार में पाँच सौ करोड़ का सोना स्विट्जरलैंड से यात्री विमान में हिंदुस्तान पहुँचेगा । ये सारा ऑपेरशन एक सप्ताह में खत्म हो जाएगा । हर एक दिन छोड़कर विमान में पाँच सौ करोड़ का सोना हिंदुस्तान पहुँचेगा । मतलब कि आठ दिन में 2000 करोड़ का सोना हिंदुस्तान पहुँच जाएगा ।"
"मुझे सिर्फ ये जानना है कि पहली बार गोल्ड किस विमान से हिंदुस्तान के किस एयरपोर्ट पर पहुँचेगा ?"
"स्विस एयरवेज की फ्लाइट संख्या 606 से मुम्बई के सांता क्रूज़ एयरपोर्ट पर पहुँचेगा । हिंदुस्तान के वक़्त के मुताबिक ये फ्लाइट सात बजे सांता क्रूज़ एयरपोर्ट पर पहुँचेगी और इस दिन ग्यारह तारीख होगी ।
"ग्यारह तारीख ? मतलब कि सोना पहुँचने में अभी नौ दिन पड़े हैं ।"
"तुम जो जानकारी चाहते थे, वो मैंने तुम्हें दे दी ।"
"और तुम्हें जानकारी देने की कीमत एडवांस में ही मिल चुकी है ।"
स्मिथ वाल्टर हिचकिचाया । देवराज चौहान ने गहरी निगाहों से उसे देखा ।
"म... मैं कुछ कहना चाहता हूँ ।" स्मिथ वाल्टर ने गहरी साँस लेकर कहा ।
देवराज चौहान ने उसे देखते हुए सिर हिलाया ।
"तुमने कहा था कि तुम सोने की लूट करोगे ।"
"डकैती ।" देवराज चौहान का स्वर शांत था ।
"वही, वही । मेरा मतलब था कि तुम मुझे बहुत कम पैसे दे रहे हो ।"
"जो हम में तय हुआ था, जो तुमने माँगा था, वही दिया है तुम्हें ।"
"तब मैंने जल्दबाजी की थी । अब आराम से सोचा तो लगा, मुझे तो कुछ भी नहीं मिला । पाँच सौ करोड़ का सोना बहुत ज्यादा होता है । तुम तो मुझे कुछ भी नहीं दे रहे ।" स्मिथ वाल्टर ने धीमे स्वर में कहा ।
देवराज चौहान के होंठों पर मध्यम-सी मुस्कान उभरी और लुप्त हो गई ।
आस-पास से लोग आ-जा रहे थे । दोनों के चेहरे पर सामान्य भाव थे । उन्हें देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि वे बेहद गम्भीर मामले पर बातचीत कर रहे हैं ।
"तुमने जो माँगा, वही तुम्हें दिया गया है स्मिथ ।" देवराज चौहान इधर-उधर नजरें दौड़ाता कह उठा ।
"वो तो ठीक है । लेकिन कम है और मैं ज्यादा चाहता हूँ ।"
"बात फाइनल हो जाने के बाद ज्यादा माँगना ग़लत है ।"
"मैं सॉरी बोलता हूँ पहले की बात को । तुम्हें अब दोबारा से मेरे बारे में सोचना चाहिए । मैंने तुम्हारे साथ बेईमानी नहीं की । तुम जो जानकारी चाहते थे, उसे देने के बाद ही मैंने अपने लिए ज्यादा माँगा है अब ।"
देवराज चौहान चुप रहा । आते-जाते लोगों पर नजरें दौड़ाता रहा । स्मिथ वाल्टर ने अपनी नजरें जूतों पर टिका दी और बोला ।
"नहीं देना चाहते तो न सही । मैं तुम्हें फ़ोर्स नहीं करूँगा और ये बात भी बाहर नहीं जाएगी कि तुम क्या करने वाले हो ।"
"कितना और चाहते हो ?" देवराज चौहान ने स्मिथ वाल्टर को देखा ।
"मैं नहीं चाहता कि तुम खराब मन से दो ।" स्मिथ वाल्टर ने गहरी साँस ली ।
"मैंने अपनी जेब से कुछ नहीं देना है । कह दो ।"
"एक लाख यू०एस० डॉलर मुझे और मिल जाते तो मैं खुश हो जाता ।"
"मंजूर है । परंतु ये एक लाख डॉलर इस बात पर निर्भर होंगे कि मेरा काम पूरा हो जाये, तब मिलेंगे । अब तक तुम्हें जो दिया है, वो मैंने अपनी जेब से दिया है ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"ठीक है !" स्मिथ वाल्टर ने राहत की साँस ली और मुस्कुराया, "तुम्हारा इतना कहना ही बहुत है । मुझे तुम्हारी जुबान पर भरोसा है । तुम हिंदुस्तान के नम्बर वन डकैती मास्टर हो, मुझे यकीन है कि तुम सफल रहोगे ।"
"अगर सोना भेजने के प्रोग्राम में कोई फेर-बदल हो तो मुझे खबर करना तुम्हारा काम है ।"
"उसका मैं पूरा ध्यान रखूँगा ।" स्मिथ वाल्टर सिर हिलाकर कह उठा ।
देवराज चौहान का स्विट्जरलैंड का काम पूरा हो चुका था । उसके बाद उसने वापस इंडिया जाने की टिकट बुक कराई जो कि आधी रात के बाद सुबह 2.50 बजे की फ्लाइट में सीट मिल गई । मतलब कि फ्लाइट में कुछ ही घण्टे बाकी थे । रात को डिनर लेना । कॉफ़ी पीना और बारह बजे एयरपोर्ट रवाना हो जाना ।
देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन किया ।
"काम हुआ कि नहीं ?" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।
"हो गया ! आज रात की फ्लाइट से मैं मुम्बई पहुँच रहा हूँ जो कि मुम्बई के वक़्त के हिसाब से सुबह पाँच बजे पहुँचेगी ।"
"हमारा काम प्लान के हिसाब से ही होगा न ?" जगमोहन ने उधर से जल्दी से पूछा ।
"हाँ ! सब ठीक चल रहा है ।" देवराज चौहान ने कहा, "रमेश गोरे से मिले ?"
"जरूरत ही नहीं पड़ी । तुम कहो तो मिल लेता हूँ ।" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।
चंद पलों की सोच के बाद देवराज चौहान ने कहा ।
"हम इकट्ठे ही रमेश गोरे से मिलेंगे । काम करने तक हमारे पास पर्याप्त फुर्सत होगी । वक़्त काफी है ।"
"तारीख कौन-सी है ?" उधर से जगमोहन ने पूछा ।
"ग्यारह तारीख ।" देवराज चौहान ने बताया ।
"प्रोग्राम पक्का है ?"
"कुछ भी बदलाव होगा तो स्मिथ हमें बता देगा ।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया । फिर वहाँ से पैदल चलता पास के टैक्सी स्टेशन तक पहुँचा और टैक्सी लेकर होटल की तरफ चल दिया । शाम के छः बज रहे थे ।
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देवराज चौहान सुबह सात बजे बंगले पर पहुँचा तो जगमोहन को नींद में पाया लेकिन उसकी आँख खुल गई थी । बंगले के मुख्य दरवाजे के बाहर ही एक छिपी जगह पर ऐसे मौके के लिए चाबी होती थी कि वक़्त-बेवक़्त आना हो तो चाबी वहाँ से लेकर दरवाजा खोला जा सके ।
"काफी दिन लगा दिए ।" जगमोहन बोला ।
"स्मिथ वाल्टर की तरफ से ही देर हुई ।" देवराज चौहान बैग एक तरफ रखकर बैठता हुआ बोला, "ग्यारह तारीख को स्विट्जरलैंड से यात्री विमान फ्लाइट नम्बर 606 टेक ऑफ होगी और यहाँ के वक़्त के हिसाब से शाम के सात बजे सांताक्रूज़ एयरपोर्ट पर लैंड करेगी । पाँच सौ करोड़ का सोना उसमें से उतारा जाएगा ।"
"पाँच सौ करोड़ ?"
"2000 करोड़ का सोना खरीदा है भारत सरकार ने स्विट्जरलैंड से जो कि इसी तरह किस्तों में आएगा । हर एक दिन बाद चार बार यात्री विमान से सोना लाया जाएगा । हम बार-बार तो गोल्ड पर हाथ डाल नहीं सकते । जो गोल्ड पहली बार सांताक्रूज एयरपोर्ट पर पहुँचेगा, उसी पर हाथ डालेंगे ।"
"यात्री विमान पर स्विट्जरलैंड से सरकार गोल्ड को मँगवाए, ये अजीब बात है ।"
"मेरे ख्याल में हिंदुस्तान की सरकार, गुपचुप तौर पर 2000 करोड़ का सोना मँगवा रही है । तभी तो थोड़ा-थोड़ा करके चार किश्तों में सोना इंडिया लाया जा रहा है । ये गवर्नमेंट की कोई पॉलिसी होगी ।" देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली, "हमें कुछ और न सोचकर यही सोचना है कि हम अपना काम सफलता से कैसे पूरा करें ।"
"तुम्हें शक है कि हम असफल भी हो सकते हैं ?"
"क्यों नहीं हो सकते । एयरपोर्ट से सोना उड़ा लेना, आसान नहीं होगा हमारे लिए ।"
"रमेश गोरे हमारी सहायता करेगा । वो वहाँ पर कारगो मैनेजर है ।"
"रमेश गोरे भी एक हद तक ही हमारी सहायता कर सकता है । हमें ये देखना होगा कि वो हमारी कितनी सहायता कर सकता है । बाकी की प्लानिंग हमें उसी हिसाब से करनी होगी ।"
"आज मिल लेते हैं रमेश गोरे से ।"
"दोपहर बाद मिलेंगे । तुम उसे फोन करके पूछ लेना कि कब वो हमसे बात करने के लिए फुर्सत में होगा ।"
जगमोहन ने सिर हिला दिया ।
"रमेश गोरे से हमें काफी जानकारी मिल सकती है । सबसे पहली हमें ये जानना है कि स्विट्जरलैंड से आने वाला गोल्ड कितनी देर एयरपोर्ट पर रहेगा । ऐसा तो नहीं कि गोल्ड विमान से उतारकर सरकार की भेजी गाड़ियों में लाद दिया जाए और वो गाड़ियाँ हाथों-हाथ एयरपोर्ट से तगड़ी सिक्योरिटी में निकल कर अपनी मंजिल की तरफ बढ़ जाए । अगर ऐसा होता है तो हमें अपनी प्लानिंग बदलनी होगी ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"अभी तक तो हम यही सोच कर चल रहे हैं कि सोना कुछ घंटे एयरपोर्ट पर तो जरूर रहेगा या हो सकता है कि रातभर ही एयरपोर्ट पर रहे । अभी हमारी प्लानिंग इसी हिसाब से चल रही है ।"
"ये बात तभी स्पष्ट होगी जब सरकार की तरफ से एयरपोर्ट कंट्रोलर को आर्डर आयेंगे । ऐसे आर्डर कई दिन पहले नहीं आते । रमेश गोरे ही हमें बता पाएगा कि ऐसे आर्डर कितनी देर पहले आ जाते हैं ।"
"सब ठीक है । कोई समस्या नहीं । हम संभाल लेंगे ।"
"जरूर ।" देवराज चौहान मुस्कुराया, "कोशिश करेंगे कि सब ठीक कर लें ।"
"मैंने सबसे बात कर ली है । सब ठीक है । वह हमारे साथ काम करेंगे । काका मेहर थोड़ा-सा पीछे हटा था परंतु बाद में मान गया । जो हमारे साथ काम करेंगे, उन पर हमारा करीब 100 करोड़ खर्च होगा । 400 करोड़ हमारे होंगे ।"
देवराज चौहान के चेहरे पर सोचें उभरी हुई थीं ।
"एक नए आदमी को मैंने शामिल किया है । मोहन भौंसले का भाई प्रताप भौंसले है । उम्र कैद की सजा पाया जेल से फरार मुजरिम है । ख़तरनाक है, तेज है । हमारे काम का है ।"
"फरार मुजरिम ।" देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा । दोनों की नजरें मिली ।
"ऐसे इंसान को साथ लेने की क्या जरूरत थी । पुलिस की नजरों में आकर वह मुसीबत खड़ी कर सकता है ।"
"हालात ऐसे बन गए थे कि लेना पड़ा उसे । मोहन भौंसले ने उसे काम देने को कहा । मैंने बोला कि उससे मिलकर ही फैसला करूँगा परंतु उसे ये कहना याद नहीं रहा कि अपने भाई से वह बात न करें । उसने मेरे मिलने से पहले ही अपने भाई प्रताप भौंसले को सब कुछ बता दिया और यही वजह रही कि उसे भी साथ ले लिया ।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।
"तुम मिलोगे इन सब लोगों से ?" जगमोहन ने पूछा ।
"जल्दी ही मिलूँगा । रमेश गोरे को फोन करके पूछो कि वह हमें कब मिलेगा ? उसकी ड्यूटी किस शिफ्ट की है ?"
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रमेश गोरे ।
52 बरस का लम्बा-स्वस्थ व्यक्ति ।
एयरपोर्ट पर कार्गो सिक्योरिटी का हेड क्वार्टर था । ऐसे तीन लोग थे जो आठ-आठ घंटों की शिफ्ट में थे । ड्यूटी देते थे । जिनमें से एक रमेश गोरे था । अभी तक शादी नहीं की थी, जबकि शादी करने की उसकी इच्छा हमेशा से रही थी । हमेशा उसकी निगाह अपने जीवनसाथी को तलाशती रही थी । ऐसे में अगर कोई मिलती भी तो उसमें कोई ऐसी बात नजर आ जाती जो कि उसे पसंद नहीं आती और वो उससे दूर हो जाता । परिवार के नाम पर घर में बूढ़े माँ-बाप थे । जिनकी बहुत इच्छा थी उनका बेटा शादी कर ले लेकिन रमेश गोरे को अभी तक कोई पसंद की लड़की नहीं मिली थी । परंतु छः महीने पहले वह 44 साल की ऐसी औरतों से मिला जिसने उसकी ही तरह शादी नहीं की थी पर अब करना चाहती थी । खूबसूरत थी । उसे पसंद आई थी और उसमें कोई कमी भी नहीं लगी थी । वह भी रमेश गोरे को पसंद करने लगी थी । उसका नाम नीरा था । रमेश गोरे दो बार नीरा से शादी की बात छेड़ चुका था परंतु नीरा ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया था । उसने इतना जरूर कहा कि उसकी इच्छा है शादी के बाद वह मुम्बई छोड़कर खंडाला में रहे लेकिन उसके पास खंडाला में रहने को कोई घर नहीं है । रमेश गोरे उसकी चाहत को समझ गया । बातें आगे बढ़ी तो रमेश गोरे ने वादा किया कि वह जल्दी ही खंडाला में घर खरीदेगा । उसके बाद वे शादी कर लेंगे । इस पर मीरा ने फौरन सहमति दे दी कि ऐसा होते ही वो शादी करने को तैयार है ।
ये सब बातें तीन महीने पहले की थीं ।
रमेश गोरी मन ही मन चिंतित था कि खंडाला में घर खरीदने के लिए पैसे कहाँ से लाएगा । अब तक जो उसने जोड़ा था, वो सब खंडाला में घर लेने पर लगा दिया तो भविष्य का क्या होगा ? वैसे भी पास में इतना नहीं था कि उससे खंडाला में घर ले पाता । रमेश गोरे को लगने लगा कि नीरा से पैसे की वजह से वह शादी नहीं कर पाएगा । परंतु 15 दिन पहले तक बात बनती दिखी, जब देवराज चौहान और जगमोहन उससे मिले ।
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शाम के 6:30 बज रहे थे । रमेश गोरे की ड्यूटी 6:00 बजे खत्म हो गई थी । अपनी कार से वह एयरपोर्ट से निकला और 8 किलोमीटर दूर उस रेस्टोरेंट में जा पहुँचा जहाँ जगमोहन ने पहुँचने को कहा था । कार पार्क करके रेस्टोरेंट के भीतर पहुँचा । देवराज चौहान और जगमोहन नहीं दिखे तो उसने एक टेबल संभाल ली और फिर जगमोहन को फोन किया तो पता चला कि वो पाँच मिनट में रेस्टोरेंट में पहुँचने वाले हैं । वेटर आया तो उसने अभी आर्डर देने से मना कर दिया ।
दस मिनट बाद देवराज चौहान और जगमोहन उसके सामने बैठे थे ।
"कैसे हो रमेश गोरे ?" जगमोहन ने पूछा ।
रमेश गोरे ने 'ठीक है' कि अंदाज में सिर हिला दिया ।
"पच्चीस लाख तो सलामत रखे हैं न जो पंद्रह दिन पहले हमने दिए थे ?" जगमोहन मुस्कुराया ।
रमेश गोरे ने बेचैनी से पहलू बदलकर मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा ।
"तुमने एक करोड़ देने को कहा था । पचहत्तर लाख अभी बाकी हैं ।"
"पचहत्तर लाख भी तुम्हें मिलेंगे । जरूर मिलेंगे ।" जगमोहन ने देवराज चौहान पर नजर मारी ।
"मुझे अभी तक नहीं बताया गया कि मुझे करना क्या होगा ?" रमेश गोरे बोला ।
"मैंने तुमसे कहा था कि काम ऐसा होगा, जो करने में तुम्हें परेशानी होगी । तुम्हारी नौकरी पर आंच नहीं आएगी । पुलिस का कोई लफड़ा नहीं होगा । अभी भी हम उसी बात पर कायम है ।" जगमोहन ने कहा ।
"इस वक़्त हम तुम्हें काम बताने के लिए मिल रहे हैं ।" देवराज चौहान बोला, "जो कि तुम जानने को उत्सुक हो ।"
रमेश गोरे की व्याकुल निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी । तभी वेटर आया और कॉफी का आर्डर लेकर चला गया ।
"मैं तुमसे सीधे-सीधे बात करूँ या घुमाकर ?" देवराज चौहान के चेहरे पर शांत भाव थे ।
"जो कहना है कह दो ।"
"अपने बारे में हम तुम्हें पहली मुलाकात में बता चुके हैं । तुम भूले नहीं होगे ।"
"याद है ।" गोरे ने जल्दी से कहा ।
"कुछ दिनों के बाद स्विट्जरलैंड से यात्री प्लेन में पाँच सौ करोड़ का सोना सांताक्रुज एयरपोर्ट पर उतरने वाला है, जहाँ पर तुम्हारी ड्यूटी रहती है । हम उस सोने को ले उड़ने के बारे में सोच रहे हैं ।" देवराज चौहान बोला ।
"क्या ?" रमेश गोरे बुरी तरह चौंका, "प...पाँच सौ करोड़ का सोना त... तुम... ?"
"इतना हैरान क्यों हो रहे हो ?" देवराज चौहान मुस्कुराया, "पहली मुलाकात में तुम्हें बता दिया था कि हम कौन है । तुम्हें तभी समझ जाना चाहिए था कि हम ऐसा ही कोई काम करने वाले हैं ।"
"तुम चाहते हो कि इस काम में मैं तुम्हारी सहायता करूँ ?" गोरे अभी तक हक्का-बक्का था ।
"जाहिर है ।"
"मैं ये काम नहीं कर सकता ।" रमेश गोरे ने स्पष्ट इनकार किया, "मेरी नौकरी चली जायेगी । पुलिस मुझे पकड़... ।"
"ऐसा कुछ नहीं होगा ।"
"क्यों नहीं होगा ? मैं तुम लोगों की डकैती में सहायता करूँगा तो... ।"
"तुम फिजिकली डकैती में शामिल नहीं होगे । तुम्हें तो हमें सिर्फ गोल्ड के बारे में ही खबर देनी है, जैसे ही पहुँच गया और अब उसे लेकर क्या प्रोग्राम बन रहा है । एयरपोर्ट पर रखा जा रहा है तो कहाँ रखा जा रहा है । उसकी सिक्योरिटी कैसी है । अगर एयरपोर्ट से गाड़ियों में भरकर कहीं ले जाया जा रहा है तो कितनी गाड़ियाँ हैं । साथ में कितने लोग है । उन्होंने सुरक्षा के क्या-क्या इंतजाम कर रखे हैं । यानी कि भीतर की हर बात हमें बतानी है ।"
"न... नहीं । ! ये काम मैं नहीं कर... ।"
"तुम पच्चीस लाख एडवांस ले चुके हो गोरे ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।
"तब मुझे पता नहीं था कि मुझे क्या करना है । ये खतरनाक काम है । मैं पकड़ा जाऊँगा ।"
"इस बात को सिर्फ हम दोनों ही जानते हैं कि तुम हमें भीतर की खबर दे रहे हो ।"
रमेश गोरे ने दोनों को देखा । वो परेशान दिख रहा था ।
"त... तुम अपना पच्चीस लाख वापस ले लो ।" गोरे जल्दी से बोला, "ये काम मुझसे नहीं हो सकेगा । तुम लोग बहुत बड़ी ग़लती कर रहे हो ये सोचकर । गोल्ड अगर एयरपोर्ट पर रखा जाएगा तो वहाँ सख्त पहरा होगा । अगर उसे एयरपोर्ट से कहीं ले जाया जाता है तो तब भी जबर्दस्त सिक्योरिटी होगी । फँस जाओगे तुम दोनों भी ।"
"तुम हमें हमारा काम मत सिखाओ ।"
"मैं ये काम नहीं करूँगा ।" रमेश गोरे ने सिर हिलाते हुए पक्के स्वर में कहा ।
"सोच लो ।"
"सोच लिया ।"
तभी वेटर कॉफ़ी रख गया । जगमोहन ने कॉफ़ी का प्याला अपनी तरफ सरकाया और घूँट भरा । देवराज चौहान और रमेश गोरे ने कॉफ़ी को हाथ भी नहीं लगाया । दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे ।
"माना कि तुम पच्चीस लाख दे दोगे हमें । परंतु इस बात का क्या होगा कि तुम जान चुके हो कि हम क्या करने वाले हैं ?"
"म... मैं किसी को कुछ नहीं कहूँगा ।" गोरे ने फौरन कहा ।
"तुम्हारे कहने से काम नहीं चलेगा ।"
"तो ?" रमेश गोरे ने व्याकुल स्वर में पूछा ।
"मेरे ख्याल में अगले चौबीस घण्टे तुम्हें सोचना चाहिए कि हमें खबर देने की एवज में तुम्हें एक करोड़ मिल रहा है ।"
"मैंने सोच लिया है कि मैं ये काम नहीं करूँगा ।" गोरे ने दृढ़ स्वर में कहा ।
"अच्छी बात है । जब तक हम काम कर नहीं लेते तब तक तुम हमारी कैद में रहोगे ।"
"कैद में ? ये कैसे हो सकता है ? मैं क्यों रहूँ कैद में ?"
"ताकि तुम किसी को बता नहीं सको कि आने वाले दिनों में एयरपोर्ट पर क्या होने वाला है ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"मेरा विश्वास करो । मैं इस बारे में किसी से बात नहीं करूँगा ।"
"इस मामले में ऐसा विश्वास नहीं किया जा सकता । क्योंकि जरा भी गड़बड़ हो जाने का मतलब है, हम फँस गए ।"
"कसम से । मैं किसी को कुछ नहीं... ।"
"तुम किस्मत वाले हो कि हमसे बात कर रहे हो ।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा, "किसी और के सामने ये स्थिति होती तो वो तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ता । अभी भी हम तुम्हारे सामने नरमी से पेश आ रहे हैं । तुम्हें नौ-दस दिन हमारे पास बंदी रहना होगा । तब तक हमारा काम हो जाएगा और हम तुम्हें छोड़ देंगे । तुम्हें अभी हमारे साथ चलना... ।"
तभी रमेश गोरे का फोन बजने लगा ।
जगमोहन ने कॉफ़ी का घूँट भरा । नजरें रमेश गोरे पर थीं ।
फोन की बेल बजे जा रही थी । गोरे ने फोन निकालकर बेमन से बात की ।
"हेलो !"
"ओह, रमेश !" नीरा की मीठी आवाज कानों में पड़ी, "तुमने इतनी देर क्यों लगा दी फोन उठाने में ।"
"नीरा तुम ?"
"मैंने मम्मा को बता दिया है कि हम शादी करने वाले हैं । मम्मा को ये भी बताया कि तुम मेरे लिए खंडाला में फ्लैट लेने वाले हो । मम्मा बहुत खुश हैं । वो कहती हैं मैं जल्दी से बच्चा कर लूँ । उम्र हो गई है । बाद में नहीं होगा । हम बच्चा कर लेंगे रमेश । कितना अच्छा लगेगा तब सब कुछ । हमारा प्यारा-सा परिवार होगा । तुम, मैं और हमारा बच्चा । और हाँ, मम्मा कहती है कि मैं शादी में साड़ी पहनूँ । परंतु मैं लहँगा-चोली पहनना चाहती हूँ । जो भी मैं तुम्हारी बात मानूँगी । तुम जो कहोगे, वही पहनूँगी । मम्मा तो घर में खुशी से झूम रही है । मैंने उन्हें इतना खुश पहले कभी नहीं देखा ।" नीरा ने सब कुछ एक ही साँस में कह दिया । वो भी बहुत खुश थी । उसकी आवाज बता रही थी ।
गोरे के होंठों से कोई शब्द नहीं निकला । वो गुम-सुम-सा लग रहा था ।
"रमेश !" नीरा की आवाज आई, "तुम सुन रहे हो न मुझे ?"
"ह... हाँ !" रमेश गोरे के होंठों से खरखराती आवाज निकली ।
"मम्मा तो कहती है कि मैं अभी से शॉपिंग शुरू कर दूँ । मेरे मन में भी गुदगुदी उठ रही है कि मैं शादी करने वाली हूँ । सच में, मैं बहुत खुश हूँ । बहुत खुश । तुम सोच भी नहीं सकते ।"
मोबाइल कान से लगाये गोरे ने सूख रहे होंठों पर जीभ फेरी ।
"तुम कुछ कह नहीं रहे ?" नीरा की आवाज आई ।
"म... मैं !"
"क्या बात है ? तुम खुश नहीं हो ?"
"न... नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है !" गोरे कह उठा, "मैं बहुत खुश हूँ । हम शादी करने वाले हैं ।"
"अच्छा सुनो !" नीरा का स्वर कानों में पड़ा, "तुम जल्दी से खंडाला में फ्लैट ले लो । तुमने कहा था कि एक-ढेड़ महीने में ले लोगे । जब खंडाला जाओ तो मुझे भी साथ ले लेना । हम अच्छा फ्लैट लेंगे । फ्लैट लेने में देर न करो । मैं अब और नहीं रुक सकती । शादी करके तुम्हारे साथ दिन-रात बिताना चाहती हूँ ।"
गोरे ने होंठ भींच लिए । वो खामोश रहा । नजरें उठाकर देवराज चौहान और जगमोहन को देखा ।
"रमेश !" एकाएक नीरा की आने वाली आवाज में उलझन और गंभीरता आ गई ।
"हाँ नीरा !"
"तुम चुप-चुप से क्यों हो ? मुझे तुम खुश नहीं लग रहे ।"
"नहीं, ये बात नहीं । मैं ऑफिस में काम में उलझा हुआ हूँ ।"
"सच कह है हो ?"
"हाँ !" गोरे ने धीमे से कहा ।
"सुनो, अगर कोई और बात है तो मुझे बता दो ।"
"और बात ?"
"अगर मैं तुम्हें पसंद नहीं हूँ या तुम मुझसे शादी नहीं करना... ।"
"ग़लत मत कहो । ऐसी कोई बात नहीं है ।"
"सच कह रहे हो ?"
"हाँ, सच कह रहा... ।"
"मेरी कसम लो ।"
"तुम्हारी कसम नीरा ।"
"थैंक गॉड ! मैं अचानक ही डर गई थी कि... ।"
"नीरा !" गोरे गंभीर स्वर में बोला ।
"सुन रही हूँ ।"
"खंडाला में फ्लैट लेना जरूरी है क्या ?"
"वो तो बहुत जरूरी है रमेश । आई लव खंडाला । मेरा सपना रहा है खंडाला में जीवन बिताना । कितनी अच्छी जगह है । वहाँ का मौसम बहुत प्यारा है । कितनी शांति है वहाँ । जब भी वहाँ जाती हूँ तो वापस लौटने का मन नहीं करता । एक बार अखबार में मैरिज का इश्तिहार दिया था और खासतौर पर उसमें लिखा था कि लड़का खंडाला का होना चाहिए और खंडाला में उसका घर होना चाहिए । ऐसा एक रिश्ता मिल गया । दस साल पहले की बात है, लड़का मुझे पसंद आया परंतु उसने बताया कि वो मुम्बई में नौकरी करता है और शादी के बाद मुम्बई में ही रहेगा तो मैंने उसी पल इनकार कर दिया । आई लव खंडाला । वहाँ जीवन बिताने के लिए तो मैं पागल हूँ ।"
"लेकिन नीरा, मेरे बूढ़े माँ-बाप मुम्बई में... ।"
"वो भी हमारे साथ खंडाला में ही रहेंगे । मुझे अच्छा लगेगा ।"
गोरे ने गहरी साँस ली ।
"म... मेरी नौकरी तो मुम्बई में... ।"
"नौकरी छोड़ देना । अब कुछ साल की तो नौकरी बची है । मेरे पास भी काफी पैसा है । हमारा काम चल जाएगा । खंडाला में मैं अपना बुटीक खोलूँगी । बुटीक का काम मैं बहुत अच्छा जानती हूँ । सब कुछ बढ़िया चलेगा रमेश । ये बताओ कि तुम खंडाला में फ्लैट देखने कब चल रहे हो ? हमें ये काम जल्दी कर लेना चाहिए ।"
रमेश गोरे की आँखों के सामने नीरा का खूबसूरत चेहरा उभरा ।
"फ्लैट देखने हम जल्दी चलेंगे ।" रमेश गोरे ने गंभीर स्वर में कहा ।
"सच ?"
"हाँ, मैं तुम्हें फोन करूँगा इस बारे में ।"
"मम्मा को भी साथ ले चलें । वो तुमसे मिल भी लेंगी ।"
"जैसा तुम ठीक समझो । मैं तुम्हें फोन करूँगा । बाय ।"
"बाय ! एक-दो दिन में हम मिलेंगे भी जरूर ।" उधर से नीरा ने कहा ।
"हाँ, मिलेंगे !" कहने के साथ ही रमेश गोरे ने फोन बन्द करके, उसे जेब में रखा । उसने देवराज चौहान और जगमोहन को देखा ।
दोनों की निगाह उस पर थी ।
"मैं तुम लोगों का काम करूँगा ।" गोरे ने धीमे शांत स्वर में कहा ।
"अचानक इरादा कैसे बदल गया ?" जगमोहन ने पूछा ।
"मुझे पैसे की जरूरत है । मैं शादी करने जा रहा हूँ ।" रमेश गोरे ने गहरी साँस ली ।
"अब पीछे मत हटना ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"मैंने पक्का इरादा बना लिया है कि तुम लोगों का साथ दूँगा । परंतु मुझे पैसों की पहले जरूरत होगी ।"
"पहले ?"
"मुझे खंडाला में फ्लैट लेना है । जिस तरह तुम लोगों का काम जरूरी है, उसी तरह मेरा ये काम भी जरूरी है ।"
"फ्लैट कितने का आएगा ?"
"पता नहीं ! पर एक करोड़ तक तो आ ही जायेगा । पच्चीस लाख मुझे दे चुके... ।"
"पचास लाख कल तुम्हें और मिल जाएगा ।" देवराज चौहान ने कहा, "बाकी का पच्चीस काम के बाद ।"
रमेश गोरे ने सहमति से सिर हिला दिया । फिर बोला ।
"अब मुझे शुरू से बताओ कि सारा मामला क्या है और मुझसे क्या और किस तरह की जानकारी चाहते हो ।"
■■■
"मारियो गोवानी की तरफ से समस्या आ रही है ।" जगमोहन ने कहा, "उसका कहना है कि उससे जो काम लिया जा रहा है, उस काम को वो तभी कर सकता है जब उसके पास इस काम की पूरी जानकारी हो कि काम कहाँ होना है और काम को कैसे किया जाएगा । इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही वो अपनी तैयारी कर पायेगा ।"
"तुमने कहाँ नहीं कि तैयारी हम करके देंगे ?"
"कहा । परंतु उनका कहना है कि काम वो करेंगे तो तैयारी भी अपने हिसाब से करेंगे । उन्हें हमारी तैयारी पर भरोसा नहीं ।"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा कर कश लिया ।
इस वक़्त रात के ग्यारह बज रहे थे । दोनों डिनर कर चुके थे और अपने बंगले पर मौजूद थे । जगमोहन कॉफ़ी बनाने जा रहा था कि अचानक ही उसने गोवानी से बातों का जिक्र छेड़ दिया ।
"गोवानी तुमसे मिलने को भी उत्सुक है ।" जगमोहन बोला ।
देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव थे ।
"मारियो गोवानी से सब कुछ कह देना ठीक होगा या नहीं, इस बात का फैसला हमें लेना है ।" जगमोहन कह उठा ।
"मारियो गोवानी की जो रिपोर्ट हमारे पास है, उसे देखते हुए तो उसे सही बन्दा माना जा सकता है ।"
"इस बात का फैसला तुम्हें ही लेना है । पता नहीं लगता कि कौन कब हेराफेरी कर जाए ।"
"तुमने कितनी रकम उसे देने को कहा है ?"
"पंद्रह करोड़ । हममें यही तय हुआ था ।"
"जब तुम उससे मिले तो उसका साथी मोहिते भी पास में रहा होगा ?" देवराज चौहान ने सिर हिलाकर जगमोहन को देखकर कहा ।
"हाँ, उसने तो मेरी तलाशी ली थी । वो बहुत सतर्क रहने वाला इंसान है । मारियो गोवानी का वफादार है । वो दोनों इस मामले में हमारे काम के हैं लेकिन ये बात मैं अक्सर सोचता हूँ कि क्या हमें मारियो गोवानी की सहायता की जरूरत पड़ेगी या पंद्रह करोड़ रुपया हम यूँ ही खराब कर रहे हैं ?" जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा ।
"हम ये डकैती कुछ इस तरह से कर रहे हैं कि वहाँ पर कभी भी कुछ भी हो सकता है ।" देवराज चौहान ने कश लेकर सोच भरे स्वर में कहा, "या तो हम दस मिनट में पाँच सौ करोड़ का सोना लेकर निकल जायेंगे या फँस जायेंगे ।"
"अगर जरा भी गड़बड़ हुई तो हमारा वहाँ से बच निकलना कठिन होगा ।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा, "उस वक़्त तक प्लेन लैंड करने के समय पूरे एयरपोर्ट पर पुलिस ही पुलिस होगी । सिक्योरिटी टाइट हो चुकी होगी । कोई भी आसानी से भीतर-बाहर नहीं आ सकेगा । हर तरफ पैनी निगाह रखी जा रही होगी और... ।"
"पर तब कारगो की तरफ किसी का ध्यान नहीं होगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।
जगमोहन के शरीर में हल्का-सा तनाव उभरा ।
"मैं इतना जानता हूँ कि तब सुरक्षा एजेंसियों के द्वारा पूरा एयरपोर्ट उनकी निगरानी में होगा ।" जगमोहन बोला, "इस डकैती में खतरा बहुत है । सबकी आँखों के सामने से सरकार का पाँच सौ करोड़ की कीमत का सोना ले जाना, आसान नहीं होगा ।"
"ये तो मैं भी जानता हूँ कि जरा-सी भी चूक हुई तो हम फँस जायेंगे ।" देवराज चौहान ने कहा ।
दोनों की नजरें मिलीं ।
"क्या ये काम करके हम ठीक कर रहे हैं ?" जगमोहन बेचैन दिखा ।
"तभी तो हम मारियो गोवानी की सेवाएँ पंद्रह करोड़ में ले रहे हैं कि मुसीबत का ऐसा वक़्त आये तो वो हमें वहाँ से निकालने को कोशिश कर सके । इस योजना के हर पहलू पर मैं सोच-विचार कर चुका हूँ । ये काम खतरनाक जरूर है लेकिन असंभव नहीं । वैसे भी अभी हमारे सामने स्थिति साफ नहीं है । हमें ये नहीं पता कि स्विट्ज़रलैंड से आने वाला पाँच सौ करोड़ का सोना उस यात्री विमान से निकालकर उसे एयरपोर्ट पर रखा जाएगा या सीधे ही सरकारी गाड़ियों में लादकर किसी अन्य जगह पर जबर्दस्त सिक्योरिटी में ले जाया जाएगा । अगर सरकार का प्रोग्राम है कि हाथोंहाथ सोने को एयरपोर्ट से लेकर चल दिया जाए तो हमें खुली सड़क पर सोने से भरे वाहनों पर हाथ डालना होगा । इस बारे में खड़े पाँव आनन-फानन सबकी योजना तैयार करनी होगी और अगर गोल्ड को कुछ देर के लिए कारगो जंक्शन के किसी हिस्से में रखा जाता है तो हमें कारगो पर हाथ डालना... ।"
"गोरे ने बताया है कि कारगो में एक सुरक्षित वाल्ट भी है जहाँ कीमती चीजें रखी जाती हैं और उन पर तगड़ा पहरा रहता है । पहरे के बिना भी उस वाल्ट को खोल पाना आसान नहीं ।" जगमोहन बोला ।
"उसका रास्ता भी निकल आएगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"कैसे ?"
"वक़्त आने पर रमेश गोरे हमारी सहायता करेगा ।"
"गोरे सहायता करेगा ? परंतु उसे तो हमने कहा है कि हमें उससे सिर्फ जानकारी चाहिए । अन्य किसी प्रकार की सहायता नहीं चाहिए । मेरे ख्याल में वो हमारी इस प्रकार की सहायता नहीं करेगा ।"
"जरूर करेगा ।" देवराज चौहान ने विश्वास भरे स्वर में कहा, "इंसान जब लालच की दलदल में फँसता है तो फँसता ही चला जाता है । अब रमेश चाहेगा कि हम सोना लेकर जल्दी से जल्दी वहाँ से निकल जाएँ । वो कभी भी नहीं चाहेगा कि हम पकड़े जाएँ । क्योंकि इसमें उसे भी खतरा है । वो डरेगा कि पकड़े जाने पर हम कहीं उसका नाम न बता दें कि इस काम में गोरे हमारी सहायता कर रहा था । ऐसे में वो हमारी हर तरह की सहायता करेगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"अभी ये स्पष्ट नहीं है कि उस दिन हमें सोने पर हाथ कहाँ डालना है । एयरपोर्ट पर या खुली सड़क पर ।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।
"अगर गोल्ड पर खुली सड़क पर हाथ डाला गया तो हमारी सोनिया और मोहन भौंसले वाली योजना बेकार चली जाएगी ।"
"ऐसा तो होगा ही । परंतु वो सरकारी सोना होगा । मेरे ख्याल में सरकार आनन-फानन सोने को एयरपोर्ट पर से नहीं ले जाएगी । सोने को वहाँ से ले जाने में वो एक-दो दिन का वक़्त ले सकती है । ऐसे में सोना कारगो के वाल्ट में रखा जाएगा । यही सोचकर मैंने अब तक की योजना बनाई है । बाकी तो वक़्त आने पर ये पता चलेगा ।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा ।
"जो सरकारी विभाग आने वाले गोल्ड से वास्ता रखता है, हम वहाँ से जान सकते हैं कि वो क्या करने की सोच रहे हैं ।"
"मेरे ख्याल में ऐसा करना ग़लत भी हो सकता है ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"क्यों ?"
"सरकारी विभाग जब कोई योजना बनाता है तो बेहद धीमी रफ्तार से चलता है । इसकी खबर भी बड़े अधिकारियों को होती है । खासतौर से जब सैकड़ों-करोड़ों के सोने से बात वास्ता रखती हो तो मामला गंभीर हो जाता है । इस बारे में किसी प्रकार की पूछताछ की गई तो अधिकारी सतर्क भी हो सकते हैं । ये बात पता करने में ही दो-तीन दिन लग सकते हैं कि आने वाले सोने को कौन से डिपार्टमेंट के लोग संभालेंगे । उसके बाद उन लोगों को तलाश करके, उन पर नजर रखना और उनमें से अपने काम के आदमी को ढूँढ निकालने में वक़्त लग सकता है । मेरे ख्याल में सरकार ये जिम्मेदारी पुलिस या ऐसी ही किसी विभाग को दे सकती है कि उनका काम है, सोने को किसी खास ठिकाने तक पहुँचाने का । वहाँ से पता लगा पाना आसान नहीं होगा । हमें सिर्फ अपनी योजना की तरफ ध्यान देना है । हमारी एक योजना सोनिया और मोहन भौंसले वाली है और दूसरी योजना आनन-फानन तक बनेगी, अगर हाथों-हाथ सोने को एयरपोर्ट से किसी ठिकाने की तरफ ले जाया जाता है । उस स्थिति में या कैसी भी स्थिति में हमारे पास काम के लोगों की कमी नहीं है । काका मेहर, रवीना, ललित कालिया, प्रताप भौंसले, जैकी के अलावा मारियो गोवानी भी हमारा साथ देगा । ये लोग कभी नहीं चाहेंगे कि हमारा काम पूरा न हो, क्योंकि काम हो जाने की स्थिति में इन्हें भी बहुत बड़ी रकम मिल रही है जिससे ये अपना जीवन संभाल लेंगे । ऐसे में ये हर संभव कोशिश करेंगे कि काम हर हाल में पूरा हो जाए । हमें अपनी योजना को जाँचते रहना होगा ।"
"ललित कालिया और प्रताप भौंसले को छोड़कर बाकी सब नए रंगरूट हैं । वो कितना हमारे काम आ सकेंगे ?"
"बहुत काम आयेंगे ।" देवराज चौहान मुस्कुराया, "सब अपने दौड़ते जीवन से बर्बाद हो चुके हैं । इन्हें पैसों की सख्त जरूरत है । वक़्त आने पर ये अपनी आखिरी हिम्मत तक लगा देंगे कि काम पूरा हो जाये ।"
"इन्हें हथियार दिए जायेंगे ?"
"नहीं ! खून बहाकर दौलत को पाना हमारा लक्ष्य कभी नहीं रहा ।"
"अगर सब एयरपोर्ट पर ही फँस गए तो ?"
"वही नहीं, तब हम भी फँसेंगे । तब मारियो गोवानी हमें बचा सका तो ठीक, नहीं तो हम फँस जायेंगे । पकड़े जायेंगे । उन मौके पर अगर हथियार उन लोगों के पास हुए तो घबराहट में ये गोलियाँ चलानी शुरू कर देंगे । फायदा कुछ नहीं होगा । ये दो-तीन को मार देंगे और उसके बाद अपनी जान भी गँवा देंगे । हम डकैती में कभी भी हथियार का इस्तेमाल नहीं करते । करते भी हैं तो बहुत मजबूरी में । वो भी हाथ-पैरों पर गोलियाँ चलाते हैं । परंतु मेरे ख्याल में ऐसी नौबत कभी आई नहीं । कानून से कभी भी मत उलझो क्योंकि कानून से जीता नहीं जा सकता । वर्दी वाले को देखकर अपना रास्ता बदल लो । हमने वर्दी वाले पर कभी भी हाथ नहीं उठाया । यही वजह है कि पुलिस हमसे कभी नाराज नहीं दिखी । ये जुदा बात है कि पुलिस को हमारी तलाश है क्योंकि डकैतियाँ करते हैं । परंतु वो तलाश भी सामान्य-सी है । ऐसा कभी नहीं हुआ कि पुलिस ने हमें खतरनाक घोषित करने की कभी सोची भी हो ।"
"हमारी फ़ाइल इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े के पास है । उसने कहा रखा है कि तुम्हें पकड़कर रहेगा ।"
"वानखेड़े ईमानदार और सच्चा पुलिस वाला है । वो मुझे समझता है कि मैं क्या हूँ और मैं उसे जानता हूँ । तीन बार मैं उसकी जान बचा चुका हूँ और एक बार उसने भी मुझे छोड़ दिया था सिर्फ इसी वजह से कि हम सिर्फ डकैतियाँ करते हैं । अंडरवर्ल्ड के लोगों से झगड़ा हो जाता है कभी-कभी, परंतु पुलिस को कभी नुकसान नहीं पहुँचाया ।"
"मेरे ख्याल में हमें मारियो गोवानी के बारे में सोचना चाहिए । उसका क्या किया जाए ?" जगमोहन ने पूछा, "वो सब कुछ जानना चाहता है कि वो अपने ढंग से काम कर सके ।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।
"पाँच सौ करोड़ के सोने की बात सुनकर मारियो गोवानी बेईमान भी हो सकता है ।"
"मैंने उसके बारे में अच्छी तरह पता लगाया है ।" देवराज चौहान ने बताया, "वो जुबान का पक्का है । आज तक उसकी किसी भी तरह की बेईमानी सामने नहीं आई । कई लोगों ने उसकी तारीफ की है ।"
"मारियो गोवानी के बारे में तुम ही फैसला लोगे ।"
"कल हम मारियो गोवानी से मिलेंगे ।" देवराज चौहान ने कहा ।
जगमोहन ने गहरी साँस ली ।
"विश्वास पर ही दुनिया टिकी है । भरोसा न होता तो दुनिया खत्म हो चुकी होती । हमें मारियो गोवानी पर भरोसा करके चलना होगा । दुनिया में हर तरह के इंसान होते हैं । सब बुरे नहीं होते, सब अच्छे नहीं होते । अच्छे भी हमारे बीच में हैं और बुरे भी हमारे बीच में हैं । इन्हीं में से हमें अपने काम की पसंद का इंसान चुनना होता है ।"
"अभी फोन करूँ गोवानी को ?"
"जब भी करो, परंतु मुलाकात का वक़्त कल का ही रखना ।" देवराज चौहान ने कहा ।
■■■
अगले दिन दोपहर एक बजे देवराज चौहान और जगमोहन, मारियो गोवानी से मिले ।
मारियो गोवानी ने एक थ्री स्टार होटल में कमरा लेकर मुलाकात का इंतजाम किया था और रात में ही उसने कह दिया था कि कल वो लंच एक साथ ही करेंगे ।
मारियो गोवानी बहुत खुश होकर देवराज चौहान से गले मिला ।
मोहिते से देवराज चौहान ने हाथ मिलाया । वो कमरे में मौजूद सोफों पर आमने-सामने बैठे ।
"सच में देवराज चौहान ।" मारियो गोवानी खुशी से भरे स्वर में कह उठा, "तेरे से मिलकर दिल खुश हो गया । बहुत नाम सुना है तेरा । तेरे कारनामें सुने और अखबार में पढ़े । तब कभी सोचा नहीं था कि तेरे से मिल पाऊँगा ।"
"समंदर में ही हम दोनों ने घूमना होता है तो मुलाकात किसी न किसी कश्ती में होनी ही थी ।" देवराज चौहान बोला ।
"समंदर ? समझा । समझ गया । तेरा मतलब कि हम लोग क्राइम की दुनिया के बाशिंदे हैं । एक जैसे ही रास्ते हैं हमारे । पर सच कहता हूँ कि आज तेरे से मिलकर दिल बहुत खुश हुआ । ये मोहिते है, मेरा सबसे खास । बस इसी के साथ ही जिंदगी बिता दी । अपने से भी ज्यादा भरोसा मैं इस पर करता हूँ ।"
मोहिते शांत-सा बैठा था । परंतु उसकी आँखों में सतर्कता थी ।
आधा घण्टा चाय-पानी का दौर चला । दो वेटर वहाँ ड्यूटी पर लगे थे । फिर वे जब बर्तन लेकर जा रहे थे तो मारियो गोवानी ने उनसे कहा ।
"तीन बजे तक लंच यहाँ लग जाना चाहिए । दोस्तों की तरह बढ़िया काम करना ।"
वेटर सारे बर्तन लेकर चले गए । मोहिते ने उसी पल उठकर दरवाजा भीतर से बन्द किया ।
"देवराज चौहान ।" मारियो गोवानी बोला, "तेरा बहुत टेम ले लिया । अब बोल, सेवा बता मेरे को ?"
"जगमोहन ने तुझे सब बताया ।"
"सब नहीं बताया । आधा-अधूरा ही बोला । अपने काम में तुमने हमें पीठ पीछे रखना है तो हमें ये बात जरूर पता होनी चाहिए कि काम क्या है, कैसे किया जाएगा ? तभी तो हम ठीक से तैयारी कर सकेंगे । मेरा मानना है कि काम करो तो ठीक से करो, नहीं तो करो ही मत । ग़लत काम तो होना ही नहीं चाहिए । तू मेरे पास इसलिए आया कि मौके पर तेरे काम आऊँ । ये तो तभी होगा, जब मेरे को सब कुछ पता हो ।"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई, कश लिया और बोला ।
"आज के वक़्त में भरोसेमंद व्यक्ति कम ही मिलता है ।"
"तेरे को मुझ पर भरोसा नहीं क्या ?" मारियो गोवानी मुस्कुरा पड़ा ।
"भरोसा न होता तो मैं आता ही क्यों ?"
"फिर ?"
"वक़्त से पहले तेरे को सब कुछ बता दूँ और तू सही रहे, इस बात का भरोसा नहीं ।"
"मारियो गोवानी धंधे में बहुत ईमानदार है ।"
"ये बात तो मैं तभी कह सकता हूँ जब तुम्हारी ईमानदारी मेरे पर बीते ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"आजमा के देख ।"
"तेरे को आजमाने में मेरी डकैती खराब हुई तो ?"
"गला काट देना मारियो गोवानी का । शूट कर देना मुझे ।" मारियो गोवानी छाती पर हाथ रखकर बोला, "कसम से आज तक धंधे में बेईमानी नहीं की । मोहिते से पूछ ले । पर तू मोहिते की बात क्यों मानेगा । वो तो मेरा साथी है । पर तेरे को इतना जरूर बोलता हूँ कि कभी मारियो गोवानी पर शक मत करना ।"
देवराज चौहान ने मारियो गोवानी की आँखों में झाँका । मारियो गोवानी ने भी उसकी आँखों में देखा ।
"जगमोहन कहता है कि ये बड़ी रकम का मामला है । मारियो गोवानी पर भरोसा नहीं किया जा सकता ।"
"जगमोहन को कहने दे । तू मेरे से बात कर देवराज चौहान ।" मारियो गोवानी का स्वर दृढ़ता से भरा था ।
"मतलब कि तेरी तरफ से कोई गड़बड़ हो तो तेरे को गोली मार दूँ ?"
"बेशक !" मारियो गोवानी मुस्कुराया, "पर ऐसा होगा नहीं । जुबान वाला बन्दा हूँ ।"
देवराज चौहान ने सिगरेट ऐश-ट्रे में मसली और मारियो गोवानी को देखकर बोला ।
"ये पाँच सौ करोड़ की डकैती है मारियो ।"
मारियो गोवानी चौंकता दिखा फिर संभलकर दृढ़ स्वर में बोला ।
"पाँच सौ करोड़ । ये बहुत बड़ी रकम है देवराज चौहान । किसी के लिए भी बेईमान होने की खास वजह बन सकती है पाँच सौ करोड़ की रकम । लेकिन मारियो गोवानी अपनी मेहनत की ही रकम खायेगा ।
"पंद्रह करोड़ की रकम ।" मोहिते बोल पड़ा ।
"तुम्हारी किस्मत में जो है, वो तुम्हारा ।" मारियो गोवानी ने कहा ।
"सोच लो मारियो ।" देवराज चौहान बोला, "तुमने सही बोला कि बेईमान बनने के लिए पाँच सौ करोड़ की रकम काफी है । कहीं ऐसा न हो कि तुम इस बात की तैयारी करने लगो कि हमसे माल कैसे झपटना है ।"
"कितनी बार कहना पड़ेगा कि मारियो गोवानी ऐसा नहीं है ।" मारियो गोवानी के चेहरे पर मुस्कान थी ।
देवराज चौहान खामोशी से मारियो गोवानी को देखता रहा ।
"अगर तुम्हें शक है कि मारियो गोवानी धोखा कर सकता है तो फिक्र की कोई बात नहीं । तुमने जो बताया है, वो मैं भूल जाऊँगा । हम यहाँ खुशी से मिलकर लंच करते हैं और गले मिलकर इस तरह अलग होंगे कि दोबारा भी कभी मिल सकें ।" मारियो गोवानी बोला ।
"मुझे देवराज चौहान का इरादा ऐसा नहीं लगता ।" मोहिते शांत स्वर में बोला, "ये हमें अपने साथ रखेगा । इसकी आँखों में दोस्ती के भाव हैं । ऐसा कम ही होता है कि मेरी बात ग़लत निकले ।"
मारियो गोवानी ने देवराज चौहान को देखा ।
"ये ठीक कह रहा है मारियो ! मैं तुम पर भरोसा करके आगे की बात करने जा रहा हूँ ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"शुक्र है, तुमने मुझे मौका दिया कि मैं अपने को साबित करके दिखा सकूँ ।"
जगमोहन ने पहलू बदला । वो कुछ बेचैन दिखा ।
"मारियो, मैं तुम्हारे सामने अपनी पाँच सौ करोड़ की डकैती की सारी प्लानिंग रखने जा रहा हूँ । तुमसे कुछ कहना, इसे मेरी मजबूरी भी समझ सकते हो या जरूरत कह लो । लेकिन आखिरी बार ये बात दोहरा रहा हूँ कि अगर तुम्हारी तरफ से कुछ भी ग़लत हुआ तो तुम्हारी मौत निश्चित है ।" देवराज चौहान के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था ।
जवाब में मारियो गोवानी ने मुस्कान भरे अंदाज में देवराज चौहान को देखा ।
जगमोहन ने मोहिते को देखा जो बिना किसी उत्साह के बैठा दिख रहा था ।
"कुछ दिन बाद सांताक्रुज एयरपोर्ट पर पाँच सौ करोड़ का गोल्ड पहुँच रहा है । वो दिन कौन-सा है मुझे पता है । वक़्त क्या होगा वो भी मुझे पता है । जिन बातों को बताने की जरूरत नहीं है वो मैं तुम्हें नहीं बता रहा । वो गोल्ड सरकार का है । मुझे नब्बे प्रतिशत इस बात का भरोसा है कि शाम सात बजे एयरपोर्ट पर पहुँचने वाले गोल्ड को, रातभर के लिए एयरपोर्ट पर ही, कारगो में रखा जाएगा । कारगो के स्ट्रांग रूम में । मेरे ऐसा सोचने की वजह ये है कि सात बजे गोल्ड पहुँचेगा और उसे उतारने-संभालने में ही नौ बज जायेंगे और सरकारी काम रात के अँधेरे में नहीं होते । खासतौर पर पाँच सौ करोड़ का सोना कहीं ले जाने के लिए ।"
"सही कहा । ऐसे सरकारी काम रात को नहीं होते ।" मारियो गोवानी ने फौरन सिर हिलाया ।
"और ये भी पक्की बात है कि अगले दिन सुबह दस बजे से पहले गोल्ड वहाँ से हिलने वाला नहीं । सरकार की तरफ से गोल्ड ले जाने की कोशिश दस बजे के बाद ही होगी ।" देवराज चौहान ने कहा, "ऐसे में हम सुबह साढ़े नौ बजे हरकत में आयेंगे । यानी कि मेरी प्लानिंग शुरू होगी ।"
"क्या प्लानिंग ?"
"सुबह आठ बजे मुम्बई से कश्मीर के लिए यात्री प्लेन उड़ेगा जो कि मात्र बीस मिनट के लिए दिल्ली एयरपोर्ट पर रुकेगा । यानी कि दस बजे दिल्ली पहुँचेगा । वहाँ दिल्ली के यात्री उतरेंगे और कश्मीर जाने वाले यात्री विमान में सवार होंगे । दस बजकर बीस या पच्चीस मिनट पर प्लेन कश्मीर के लिए टेक ऑफ कर जाएगा ।"
मारियो गोवानी के चेहरे पर दिलचस्पी के भाव उभरे । मोहिते भी ध्यान से देवराज चौहान की बात सुन रहा था । जगमोहन कुछ व्याकुल-सा दिखने लगा ।
"प्लेन में मेरा भेजा एक आदमी मोहन भौंसले होगा और साढ़े नौ बजे उसकी पत्नी सोनिया एयरपोर्ट पहुँचकर ये बात कहने लगेगी कि उसका पति बम लेकर प्लेन में सवार हो गया और प्लेन को उड़ा देने का इरादा रखता है । सोनिया उस वक़्त इतनी घबराई हुई होगी कि अपने पति के बारे में या विमान के बारे में कुछ नहीं बता सकेगी । इस बात से एयरपोर्ट पर हड़कंप मच जाएगा । अफरा-तफरी फैल जाएगी । एक घण्टे बाद साढ़े दस बजे वो धीरे-धीरे अपने पति के बारे में, विमान के बारे में या बम के बारे में बताना शुरू करेगी साढ़े दस बजे इसलिए कि साढ़े दस तक मोहन भौंसले वाला विमान दिल्ली एयरपोर्ट से कश्मीर के लिए उड़ान भर चुका होगा । अगर सोनिया पहले बात खोल देगी तो उड़ान को दिल्ली एयरपोर्ट से उड़ान ही नहीं भरने दिया जाएगा । जबकि मुझे एयरपोर्ट पर घबराहट पैदा करनी है । ऐसी घबराहट कि सारे एयरपोर्ट का ध्यान उस कश्मीर जाने वाले विमान पर टिक जाये कि विमान में मौजूद बम कभी भी फट सकता है ।"
"शानदार !" मारियो गोवानी के होंठों से निकला, "खूब ! तुम्हारी योजना जबर्दस्त है । इस बात से सारे एयरपोर्ट पर घबराहट फैल जाएगी और इसी घबराहट का फायदा उठाकर तुम एयरपोर्ट के कारगो से गोल्ड चुरा ले उड़ोगे ।"
"ठीक समझे तुम ।"
"मैं जानता हूँ, तुम्हारी डकैतियाँ कमाल की होती हैं । तुम्हारी हर योजना शानदार होती है । आज पहली बार महसूस कर रहा हूँ कि तुम सफल डकैतियाँ किस तरह करते हो । तुम तो... ।"
"ये है सारी सिचुएशन ।" देवराज चौहान ने कहा, "एयरपोर्ट से बाहर तुम होगे । मैं और जगमोहन, तुम्हारे और मोहिते के साथ फोन पर सम्पर्क में होंगे । अगर हम अपनी योजना में सफल नहीं हो पाते, फँसने लगते हैं, तो तुम हमें बाहरी मदद दोगे और हमें वहाँ से निकाल ले जाने का रास्ता तैयार करोगे ।"
"इसके लिए मुझे एयरपोर्ट पर जाकर कारगो और बाकी जगह ध्यान से देखनी होगी ।"
"ये तुम्हारा काम है मारियो ।"
"मैं देख लूँगा सब कुछ । तुम्हारे साथ कितने लोग होंगे ?" मारियो गोवानी ने पूछा ।
"पाँच ।"
"कौन-कौन ? उनके बारे में... ।"
"जरूरत नहीं । जितनी जरूरत थी, मैंने तुम्हें बता दिया ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"इमरजेंसी के वक़्त उन्हें निकालना हो तो हम उन्हें कैसे पहचानेंगे ?" मोहिते बोल पड़ा ।
"तब तुम लोग आसानी से समझ जाओगे कि किन लोगों को तुम्हें बचाना है । वो तुम्हें दिख जायेंगे ।"
मारियो गोवानी सिर हिलाकर रह गया ।
"किस तारीख को सोना आएगा ?"
"ग्यारह ।"
"ठीक है देवराज चौहान । मैं दिल से तुम्हारा साथ दूँगा । इस काम के लिए जिस तैयारी की जरूरत होगी, मैं कर... ।"
"बस एक बात का खास ध्यान रखना है कि तब तुम लोगों ने किसी की जान नहीं लेनी है ।"
"तब तो कुछ भी हो सकता है ।"
"खून नहीं बहेगा मारियो ।" देवराज चौहान बोला, "बाकी जो भी करना ।"
मारियो और मोहिते ने एक-दूसरे की तरफ देखा ।
"थोड़ा बहुत तो कुछ करना ही होगा ।" मोहिते बोला, "अगर तुम लोग फँस जाते हो, पकड़े जाते हो, तो हमें कुछ तो सख्ती दिखानी होगी, तुम्हें बचाने के लिए । उसके बाद तो… ।"
"अगर लाशें गिराए बिना हमें बचा सको तो ठीक है, नहीं तो कुछ मत करना । ये मेरी शर्त है कि एक भी लाश नहीं गिरनी चाहिए ।" देवराज चौहान ने शब्दों पर जोर देकर कहा ।
"ऐसा कैसे होगा मोहिते ?" मारियो गोवानी गंभीर स्वर में बोला ।
"तब तो काम करना कठिन हो जाएगा हमारे लिए ।" मोहिते ने सोच भरे स्वर में कहा ।
"बेशक काम मत करना । परंतु लाश नहीं गिरनी चाहिए किसी की ।"
मारियो गोवानी ने गहरी साँस ली और धीमे स्वर में बोला ।
"तुम्हारी बात का हम ध्यान रखेंगे ।"
"ध्यान नहीं रखना । ये मेरी बात पूरी हुई चाहिए ।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"ठीक है, ऐसा ही होगा । तुम एयरपोर्ट से सोना कैसे ले जाओगे ?"
"ये पूछना तुम्हारा काम नहीं है ।"
"मेरा काम है । क्योंकि जिन गाड़ियों में सोना लेकर बाहर निकलोगे, उसमें तुम लोग ही तो होगे । अगर वो गाड़ियाँ सिक्योरिटी वालों ने रोक ली तो मुझे कैसे पता चलेगा कि उसमें अपने लोग हैं ।" मारियो गोवानी ने कहा, "अगर मुझे पता होगा कि उन गाड़ियों में तुम लोग हो तो मैं ध्यान लगाकर काम कर सकूँगा ।"
देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव उभरे । जगमोहन गंभीर दिख रहा था ।
"वक़्त आने पर ये खबर तुम्हें मैं फोन पर दे दूँगा ।"
"मतलब कि ऐन मौके पर ही बताओगे ।"
"हाँ !"
"ठीक है, मैं दिल से तुम्हारा काम पूरा करूँगा । गॉड ने चाहा तो तुम लोग फँसोगे ही नहीं । फँस गए तो मुझे ये परेशानी आएगी कि किसी की किसी की जान नहीं जानी चाहिए । यहाँ पर ये काम जरा टेड़ा हो गया ।"
"तुम लोग नहीं फँसे, सोना लेकर वहाँ से निकल गए तो हमारा पंद्रह करोड़ हमें मिलेगा ?" मोहिते ने पूछा ।
"जरूर मिलेगा ।"
■■■
"पता नहीं क्यों मुझे ये ठीक नहीं लग रहा है कि हमने मारियो गोवानी को अपनी ये योजना बता दी है ।"
"तो तुम्हें शक है कि वो गड़बड़ कर देगा ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"पता नही ! पर अब एक तरह से हमारी जान मारियो की मुट्ठी में चली गई है ।"
"ऐसा तब होगा, अगर वो गड़बड़ करता है तो । मैंने मारियो गोवानी के बारे में जानकारी इकट्ठी की थी । उस जानकारी में वो साफ बन्दा उभर कर सामने आया । नहीं सुना कि उसने किसी से बेईमानी की हो । तभी उसे इस काम में लिया ।"
"ठीक है कि उसने आज तक बेईमानी नहीं की । परंतु ये पाँच सौ करोड़ का मामला है, वो बेईमान हो सकता है । इतनी बड़ी रकम किसी के भी होश उड़ा देने के लिए काफी है ।" जगमोहन ने कहा, "मोहिते तो मुझे और भी खतरनाक लगा । वो बोलता कम है और हालात को समझता ज्यादा है । तभी तो सोच रहा हूँ कहीं ग़लती तो नहीं कर दी, उन्हें योजना बताकर ।"
"उन्हें बताना जरूरी था ।"
"क्यों जरूरी... ?"
"हमें इस डकैती में बैक में कोई चाहिए । ऐसा कोई चाहिए कि हम मुसीबत में फँसे तो हमें बचा ले । ये एयरपोर्ट पर डकैती होगी । वो हाई सिक्योरिटी जोन वाला एरिया है । दिन का वक़्त होगा, कभी भी गड़बड़ हो सकती है । ये मेरा विश्वास है कि गोल्ड उस शाम एयरपोर्ट पर पहुँचते ही, उसे वहाँ से ले जाया गया तो हमें खुली सड़क पर हाथ डालना होगा जबकि भरपूर सिक्योरिटी गोल्ड के आस-पास होगी । तब हमारे पास इतना वक़्त नहीं होगा कि सोच-समझकर योजना बना सकें । तब आनन-फानन हालातों के हिसाब से चल देना होगा ।"
"मैं मारियो गोवानी की बात कर... ।"
"हम मारियो गोवानी को बैक के तौर पर पीछे न रखते तो किसी और को रखते । वो भी जरूर पूछता कि डकैती कहाँ और कैसे होगी, ताकि वो अपने तौर पर काम की तैयारी कर सके ।"
जगमोहन, देवराज चौहान को देखने लगा ।
देवराज चौहान की नजरें सड़क पर थीं । वो कार ड्राइव कर रहा था ।
"अन्य डकैतियों के मामले में इस डकैती में खतरा ज्यादा है ।" जगमोहन कह उठा ।
"हर डकैती में अपनी-अपनी तरह का खतरा होता है । इस डकैती में अपनी तरह का खतरा है ।"
"इसमें मुझे ज्यादा खतरा लग रहा है ।"
"हो सकता है कि... ।"
"ये डकैती एयरपोर्ट जैसी जगह पर है, जहाँ हाई सिक्योरिटी होती है । वक़्त भी दिन का होगा । गोल्ड अगर एयरपोर्ट के कारगो के स्ट्रांग रूम में रखा जाता है तो वहाँ गनमैन मौजूद होंगे ।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा, "पाँच सौ करोड़ का सोना ले जाने के लिए हमें तीन बड़ी गाड़ियों की जरूरत होगी । गोल्ड उन गाड़ियों में रखने में भी वक़्त लगेगा । क्या पता हमें इतना वक़्त मिलता भी या नहीं, उसके बाद गोल्ड के साथ बाहर निकलना...।"
"सब योजना तुम्हें पता है कि हम तब सारा काम कैसे करेंगे ।"
"तो ?"
"उन बातों में कोई कमी हो तो बताओ ?"
"मैं खतरे की बात कर रहा हूँ । मारियो गोवानी की बात कर रहा हूँ कि लालच में वो कोई गड़बड़ न कर दे ।"
"मारियो गोवानी के बारे में रिस्क लेना हमारी मजबूरी है । लगता नहीं कि वो गड़बड़ करेगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"ये तुम्हारा ख्याल है । क्या पता आने वाले वक़्त में क्या हो ।" जगमोहन ने गहरी साँस ली ।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।
"मान लो कि गोल्ड एयरपोर्ट पर रखा जाता है और हमारे साथ एयरपोर्ट पर गड़बड़ हो जाती है तो इस स्थिति में मारियो गोवानी और मोहिते क्या कर पायेंगे ? उनकी संख्या सिर्फ दो ही तो है । दो कम रहेंगे उस मौके पर ।"
"ये सोचना मारियो का काम है कि उसे साथ में आदमी चाहिए कि नहीं । चाहिए तो वही इंतजाम करेगा ।"
"ये सोचना हमारा भी काम है ।" जगमोहन ने अपने शब्दों पर जोर दिया, "ये हमारी सुरक्षा का मामला है । मारियो से हमें पूछना चाहिए कि वो क्या-क्या इंतजाम कर रहा है और हम देखेंगे कि उसके इंतजाम में हमें तसल्ली है कि नहीं ।"
"इस बारे में दो-तीन बाद तुम मारियो से मिल लेना । पूछना उससे ।" देवराज चौहान ने कहा ।
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा ।
"कल हम एक छोटी-सी मीटिंग रखेंगे । उन सब बातों की मीटिंग जो डकैती में हमारे साथ होंगे । सोनिया और मोहन भौंसले उस मीटिंग में नहीं होंगे क्योंकि उनका काम दूसरे ढंग का है । उन्होंने अलग से काम करना है ।"
"तो कल मीटिंग में उन लोगों को प्लानिंग के बारे में कुछ बताया जाएगा ?"
"कुछ नहीं बताया जाएगा ।" देवराज चौहान बोला, "हम सब साथ काम करने वाले हैं । ये मीटिंग इसलिए होगी कि हम एक-दूसरे को पहचान लें । एक बार सबको इकट्ठा करना बेहतर रहेगा ।"
"मीटिंग वहीं रखनी है न, जो जगह हमने पहले ही सेट कर रखी है ?" जगमोहन ने देवराज को देखा ।
"वहीं पर ।"
■■■
अगले दिन सुबह को 11.30 बजे ।
ये समंदर का ऐसा वीरान किनारा था जहाँ कोई नहीं आता था । पेड़ और झाड़ियाँ आस-पास खड़ी नजर आ रही थीं । पैरों के नीचे रेत थी । सामने दूर तक फैला नीला-सफेद समंदर नजर आ रहा था जो कि इस वक़्त शांत-सा था । सूर्य की धूप में चमकता समंदर का पानी कभी-कभार आँखों को चौंधिया देता था । इस वक़्त समंदर में कोई जहाज या बोट नजर नहीं आ रही थी । मौसम में नमी थी ।
देवराज चौहान और जगमोहन यहाँ साढ़े दस बजे ही पहुँच गए थे । तब वहाँ कोई नहीं था । जगमोहन ने कल ही सबको फोन करके जगह बताकर 11 बजे पहुँचने को कहा था ।
10.45 पर सबसे पहले काका मेहर वहाँ पहुँचा था । उसके पाँच मिनट बाद ही रवीना आ गई । ललित कालिया और प्रताप भौंसले लगभग एक साथ ही 11.10 पर पहुँचे थे ।
11.25 पर जैकी पहुँचा था । 11.30 तक सब आ चुके थे । वे कुल पाँच थे ।
जगमोहन ने उन्हें देवराज चौहान का परिचय दिया । वे सब देवराज चौहान से खुशी और उत्साह से मिले ।
"मैंने तुम पर एक बार लेख लिखा था अखबार में । क्या खूब हो तुम ! तुम तो... ।"
"चुप रहो ।" देवराज चौहान शांत स्वर में बोला, "ऐसा कुछ मत कहो कि जिससे तुम्हारी पहचान जाहिर हो ।" देवराज चौहान ने सब पर नजर मारकर कहा, "हम लोग एक साथ, एक काम करने वाले हैं । उसी के लिए इकट्ठे हुए हैं । उसके बाद सबको अलग-अलग हो जाना है । ऐसे में अपने नाम के अलावा, दूसरे को अपनी पहचान न बतायें । इसी में सबका भविष्य सुरक्षित रहेगा ।"
काका मेहर और जैकी बार-बार एक-दूसरे को देख रहे थे । जैसे वे आपस में एक-दूसरे को कुछ कहना चाहते हों । उनके चेहरों से लग रहा था कि वे एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं ।
"मैंने तुम्हारे बारे में बहुत कुछ सुन रखा है ।" ललित कालिया ने कहा, "मुझे यकीन है कि तुम हम सब को करोड़ों की दौलत दिलवा दोगे । इतना पैसा आ जाने पर हमारी जिंदगी बन जाएगी ।"
"मुझे पैसे की बहुत जरूरत है ।" प्रताप भौंसले कह उठा ।
"इस डकैती में उन्हीं लोगों को इकट्ठा किया गया है जिन्हें पैसे की सख्त जरूरत है ।" देवराज चौहान बोला, "ऐसा इसलिए किया गया है कि तुम लोग भी मेरे साथ इस काम में भरपूर मेहनत करो कि पैसा मिलने वाला है ।"
"हम पूरी मेहनत करेंगे ।" काका मेहर बोला ।
"लेकिन सौ प्रतिशत ये सोचकर मत चलो कि डकैती सफल होगी और पैसा... ।"
"परंतु तुम्हारी तो हर डकैती सफल रही है ।" रवीना कह उठी ।
"ये तुमने ग़लत सुना है ।"
"मुझे एक पुलिस वाले ने बताया था । लेख के सिलसिले में मैंने तुम्हारे बारे में जानकारी इकट्ठी की थी । उस पुलिस वाले ने कहा, डकैती मास्टर देवराज चौहान अपनी हर डकैती में सफल रहा है ।" रवीना ने तुरंत कहा ।
"मेरे बारे में, मुझसे ज्यादा कोई दूसरा नहीं जान सकता है ।"
"तो क्या तुम असफल भी रहे ?"
"कई बार । मेरे हाथ कुछ भी नहीं लगा । लेकिन ये बात पुलिस नहीं जान सकती । मुझे इस बात की गारंटी मत समझो कि जिस काम को मैं कर रहा हूँ, वो सफल ही होगा । कभी-कभी अचानक ही हालात बदल जाते हैं । कुछ भी गड़बड़ हो जाती है कि आँखों के सामने से दौलत दूर चली जाती है । हम सब मिलकर एक नई कोशिश करने जा रहे हैं । इस काम में हमें पूरी मेहनत करनी है । आशा तो है कि हम सफल होंगे ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"तुम तो हमारी तरह साधारण से इंसान हो ।" जैकी कह उठा ।
देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा । जगमोहन भी मुस्कुराया ।
"मैं तुम लोगों की तरह ही साधारण इंसान हूँ । मुझमें कुछ भी खास नहीं है । मेरे काम ने मुझे कुछ खास बना दिया है । पुलिस मेरे बारे में बोलती है । अखबार लिखते हैं । कभी-कभी टीवी न्यूज पर भी मेरे बारे में कुछ कह दिया जाता है । परंतु मैं बेहद साधारण इंसान हूँ ।" देवराज चौहान बोला, "मैंने आज की छोटी-सी मीटिंग रखी कि हम सब एक-दूसरे को देख-पहचान लें । इसके बाद सब एक साथ तभी मिलेंगे जब काम करना होगा ।"
"मेरे ख्याल में हम में कुछ लोग कम हैं ।" प्रताप भौंसले का इशारा मोहन और सोनिया की तरफ था ।
उसकी बात समझकर देवराज चौहान बोला ।
"हम सब को एक साथ काम करना है । दूसरे लोगों को काम तो करना है, पर हमारे साथ नहीं ।"
प्रताप भौंसले ने कुछ नहीं कहा । परंतु ललित कालिया बोला ।
"हमारे अलावा और भी लोग हैं इस काम में ?"
"हाँ !"
"डकैती कहाँ करनी है ?" जैकी ने पूछा, "उस बारे में हमें बताओ ?"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर सबको टोका ।
"मेरे ख्याल में तुम सब ही डकैती के बारे में जानना चाहते होगे ?"
"हाँ !" ललित कालिया कह उठा ।
"अभी डकैती के बारे में किसी को नहीं बताया जाएगा ।"
"क्यों ?" प्रताप भौंसले ने पूछा ।
"जब डकैती करने का वक़्त आ चुका होगा, तभी इस बारे में बताया जाएगा ।"
"वो वक़्त कब आएगा ?" काका मेहर ने पूछा ।
"कुछ दिन बाद ।"
"तुमने वो दिन तय कर रखा है ?"
"हाँ !"
"इतना तो बता ही सकते हो कि डकैती कितनी बड़ी होगी ?" काका मेहर ने पूछा ।
"इससे किसी को कोई मतलब नहीं । डकैती सफल रही तो सबको उतनी ही रकम मिलेगी, जो कही गई है ।"
"हमारे अलावा कितने लोग हैं जो ये काम कर है हैं ?" काका मेहर ने पूछना चाहा ।
"सिर्फ उतनी ही बात पूछो जो तुम्हारे काम की हो । डकैती कहाँ होगी, किस दिन होगी या कितने लोग इसमें शामिल हैं, ये सब बातें जरूरत के हिसाब से , वक़्त आने पर बताई जाएगी ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"कम से कम हमें ये तो पता चले कि हमें काम क्या करना है डकैती में ?"
"कह चुका हूँ, जिस-जिस बात का वक़्त आता जाएगा, वो बात बताई जाती रहेगी ।" देवराज चौहान ने कश लिया, "तुम लोगों से काम लेना हमारा काम है । जब तक डकैती नहीं होती, तब तक सबको सम्भलकर रहना है । किसी चक्कर में नहीं फँसना है और खुद को फुर्सत में रखना है । आने वाले दिनों में कभी भी मेरा फोन आ सकता है । ये बात किसी के मुँह से नहीं निकलनी चाहिए कि तुम लोग क्या करने वाले हो ।"
सबकी निगाह देवराज चौहान पर थी ।
"तुम सब लोगों को पैसे की जरूरत है । पैसा तभी हाथ आ सकता है जब सब काम ठीक से किए जायें । जो मौका तुम सब को मिल रहा है, ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता । लापरवाही में कोई भी ग़लती मत कर देना, नहीं तो सारी उम्र इस बात का पछतावा रहेगा कि पैसा गँवा दिया । जब तक ये काम नहीं हो जाता, कम से कम लोगों से मिलो । ताकि मुँह से बात निकलने की नौबत ही न आये । हर पल इस डकैती के लिए खुद को मजबूत करते रहो ।"
"मैं बहुत मजबूत हूँ ।" रवीना बोली, "मुझे पैसे की बहुत जरूरत है ।"
"मैं भी पैसा चाहता हूँ ।" काका मेहर थके स्वर में कह उठा ।
"तुम सबको पैसे की बहुत जरूरत है इसलिए अपने काम के प्रति गम्भीर रहो जो तुम करोगे ।" क्षण भर ठहरकर देवराज चौहान पुनः बोला, "मन में ये बात रखो कि हमें हर हाल में सफल होना है ।"
सबकी निगाह देवराज चौहान पर थी ।
"डकैती के वक़्त कोई भी अपने पास हथियार नहीं रखेगा । मैं कोई खून-खराबा नहीं चाहता ।"
"ये क्या कह रहे हो ?" प्रताप कह उठा, "हथियार रखना तो बहुत जरूरी होगा ।"
"तुमने सुना नहीं कि मैं कोई खून-खराबा नहीं चाहता ।"
"वो तो मैं समझ गया परंतु हथियार तो अपनी सुरक्षा के लिए रखना होता है, किसी की जान लेने के लिए ।"
"हथियार तुम्हारे पास हो और हालात बिगड़ जाए तब तुम क्या करोगे ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
प्रताप भौंसले ने होंठ भींच लिए
"जाहिर है कि हालात बिगड़ने पर तुम सामने वाले पर गोली चलाओगे और खून-खराबा शुरू हो जाएगा ।"
"तो जहाँ पर डकैती करनी है, वहाँ और भी लोग होंगे ?" जैकी ने पूछा ।
"हाँ ! वह हथियारबंद लोग होंगे । पब्लिक होगी । परंतु हम हथियार इस्तेमाल नहीं करेंगे ।"
"अगर हम फँस गए तो ?" ललित कालिया ने पूछा ।
"ऐसी स्थिति आने पर हमारे कुछ साथी हमें वहाँ से निकाल ले जाने की कोशिश करेंगे ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"तुमने इस बात का इंतजाम कर रखा है ?" रवीना ने पूछा ।
"हाँ !"
"अगर वो भी हमें न बचा सकें तो ?" काका मेहर ने देवराज चौहान से पूछा ।
"तो हम कानून के शिकंजे में होंगे ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।
एकाएक वहाँ चुप्पी छा गई ।
"कोई गारंटी नहीं है कि डकैती सफल ही हो । तब वहाँ कुछ भी हो सकता है ।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"मुझे तुम पर पूरा भरोसा है । मैं तुम्हारे साथ हूँ ।" रवीना कह उठी ।
"मुझे भी तुम पर भरोसा है ।" प्रताप भौंसले बोला ।
"जो भी हो, मैं तुम्हारे साथ डकैती करूँगा ।" काका मेहर बोला, "मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है ।"
ललित कालिया ने मुस्कुराकर अपना हाथ ऊपर उठा दिया ।
"मैं देवराज चौहान के साथ हूँ ।" जैकी कह उठा ।
"तुम लोगों का भरोसा ही, तुम लोगों को पैसे वाला बना देगा । हम सफल होने के लिए कोशिश कर रहे हैं । हमेशा ही कोई भी काम हो, काम करने की कोशिश की जाती है । ये तो बाद में पता चलता है कि काम किस हद तक पूरा हुआ । काम करने वाले को अपने पर भरोसा जरूर होना चाहिए, तभी काम पूरा होता है ।" देवराज चौहान ने कहा, "अब हम बातचीत यहीं पर खत्म करते हैं । मेरे फोन का इंतजार करना । कुछ दिन बाद सबको फोन आएगा । अब तुम लोग एक-एक करके जैसे आये थे, वैसे ही एक-एक करके यहाँ से निकलना शुरू कर दो ।"
ललित कालिया वहाँ से चला गया ।
पाँच मिनट बाद प्रताप भौंसले गया ।
कुछ देर बाद रवीना चली गई ।
काका मेहर, जैकी के पास पहुँचा । जैकी भी उसे ही देख रहा था ।
"कैसे हो जैकी ?" काका मेहर ने मुस्कुराने की चेष्टा की ।
"तुम्हें पता ही है मेरा हाल ।" जैकी ने गहरी साँस ली ।
काका मेहर ने देवराज चौहान और जगमोहन को देखकर कहा ।
"हम दोनों पहले से एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं । एतराज न हो तो हम साथ-साथ ही यहाँ से जायें ?"
"जैसी तुम दोनों की मर्जी ।" देवराज चौहान ने कहा और जगमोहन के साथ वहाँ से आगे बढ़ गया ।
काका मेहर ने जैकी से कहा ।
"चलते हैं । तुम्हारी कार किस तरफ खड़ी है ?"
दोनों आगे बढ़ गए ।
"मेरे पास कार नहीं है ।" जैकी ने कहा, "मैं टैक्सी में आया था ।"
"अभी तो मेरे पास कार है । जहाँ कहोगे, वहीं छोड़ दूँगा ।"
"मैंने सुना था कि काका मेहर बर्बाद हो गया ।" जैकी बोला ।
"हाँ, तुमने ठीक ही सुना । वो भी क्या दिन थे । तुम और मैं बुलंदी पर थे । तुमने मेरी तीन फिल्मों में गीत गाये थे ।"
"काफी हिट रही थीं वे फिल्में । दो फिल्मों के गाने बहुत पॉपुलर हो गए थे ।" जैकी मुस्कुराया ।
"अब हम दोनों के हाल बहुत बुरे हैं । अब इंडस्ट्री हमें काम नहीं देगी । मैंने तो बहुत नुकसान उठा लिया । लेनदार पीछे हैं । मुझे हिट फ़िल्म की जरूरत है ।" काका मेहर गंभीर स्वर में कह रहा था, "जैकी !"
"हाँ !"
"अगर डकैती सफल रही और मुझे पैसा मिल गया तो मैं छोटे बजट की हिट फिल्म बनाऊँगा ।"
"तुम्हारे बस में कहाँ है हिट फिल्म बनाना । ये तो पब्लिक बताएगी कि क्या हिट रहा ।"
"जो भी हो । मैं अच्छी फिल्म बनाऊँगा और तुम्हें गीत गाने का चांस दूँगा । तुम मेरी फिल्म में... ।"
"अब गीत गाने में दिलचस्पी नहीं रही ।"
"दिल छोटा क्यों करते हो । मेरी फिल्म में तुम एक बार फिर हिट हो जाओगे ।" काका मेहर ने हाथ हिलाकर कहा ।
"अब हिट होने की इच्छा नहीं रही ।"
"खैर, छोड़ो ! इस बारे में फिर बात करेंगे । अभी तुम्हारा मन ठीक नहीं है ।"
■■■
ललित कालिया बाहर मुख्य सड़क पर पहुँचकर पैदल ही सड़क के किनारे-किनारे चलने लगा । वो टैक्सी में आया था । अपनी कार तो उसके पास थी नहीं । वड़ा-पाव ही बेचने से फुर्सत नहीं मिलती थी तो कार की जरूरत भी नहीं थी । वो जानता था कि यहाँ से तीन-चार किलोमीटर आगे जाकर ही टैक्सी मिल जाएगी । अभी तो सौ-डेढ़ सौ कदम ही आगे गया होगा कि तभी पीछे से आती कार पास में आकर रुकी ।
ललित कालिया ने ठिठककर कार के भीतर देखा । प्रताप भौंसले ड्राइविंग सीट पर बैठा उसे देख रहा था ।
"भीतर आ जाओ ।" प्रताप भौंसले ने कहा ।
"देवराज चौहान ने मना किया है कि हम एक साथ न जायें ।" ललित कालिया बोला ।
"मैं तुम्हें लिफ्ट दे रहा हूँ ।"
ललित कालिया ने दरवाजा खोला और प्रताप भौंसले की बगल की सीट पर बैठकर दरवाजा बंद कर लिया । प्रताप भौंसले ने कार आगे बढ़ाई और ललित कालिया पर निगाह मारकर बोला ।
"ये कार चोरी की है ।"
"चोरी की ?" ललित कालिया ने उसे देखा ।
"हाँ ! यहाँ तक आना था तो सड़क किनारे पार्क कर रखी कार उठा ली । मेरे लिए ये मामूली-सी बात है । परंतु अब देवराज चौहान से मिलकर, ये बात महसूस हुई कि मुझे ऐसा कोई उल्टा काम नहीं करना चाहिए । खामखाह फँस गया तो डकैती के बाद मिलने वाली रकम से हाथ धो बैठूँगा ।"
"ये बात तुम्हें पहले ही सोच लेनी चाहिए थी ।"
"कुछ आगे जाकर हम ये कार छोड़ देंगे सड़क पर और टैक्सी लेंगे । तुम्हारा नाम ललित कालिया है न ?"
"हाँ, और तुम प्रताप भौंसले हो । जगमोहन ने जब परिचय कराया था तो सबके नाम बताए थे ।"
"तुम खुश हो कि इस काम के तुम्हें करोड़ों मिलने वाले हैं ?"
"बहुत खुश हूँ ।"
"मैं भी खुश हूँ । सब ठीक है । परंतु एक बात मुझे उलझन में डाल रही है ।"
"क्या ?"
"देवराज चौहान का ये कहना कि डकैती के वक़्त हम हथियार नहीं रखेंगे । ये भला क्या बात हुई ?"
ललित कालिया चुप रहा ।
"कुछ कहा नहीं तुमने ?" प्रताप भौंसले ने कहा ।
"मेरे ख्याल में हमें देवराज चौहान की कही बात पर, आपस में डिस्कस नहीं करनी चाहिए ।"
"क्यों ?"
"देवराज चौहान को ये बात पसंद नहीं आएगी ।"
"पर देवराज चौहान को बतायेगा कौन कि हमने इस बारे में बातें की हैं ?" प्रताप भौंसले मुस्कुराया ।
ललित कालिया होंठ भींच कर कार से बाहर देखने लगा ।
"हम कुछ देर बात करके अच्छे दोस्त बन सकते हैं ललित । डकैती के बाद भी हम मिला करेंगे ।"
ललित कालिया ने कुछ नहीं कहा ।
"तुम्हारा पुलिस रिकॉर्ड है न ?"
"तुम्हें कैसे पता ?" ललित कालिया के होंठों से निकला । उसने गर्दन घुमाकर प्रताप भौंसले को देखा ।
"तुम्हारे हाव-भाव और चेहरे से मैंने ये बात पहचानी । मैं भी पुराना पापी हूँ । करीब बीस दिन पहले जेल से फरार हुआ था । पुलिस को मेरी तलाश है । मेरे पास पैसा आ गया तो मैं खुद को आसानी से पुलिस से छिपा लूँगा और पुलिस मुझे नहीं पकड़ सकेगी । ये बात तुम्हें इसलिए बता रहा हूँ कि हम दोस्त बन जाए । हमारी अच्छी पटेगी । इस काम को हम एक साथ करने वाले हैं । देवराज चौहान के साथ डकैती करना हमें हमेशा याद रहेगा ।"
"ये बात तो है ।" ललित कालिया ने सिर हिलाया ।
"बस एक ही बात मुझे पसंद नहीं आई कि डकैती के वक़्त हमने हथियार पास में न रखे ।" प्रताप भौंसले बोला ।
"देवराज चौहान ऐसा चाहता है तो हमें ऐसा ही करना पड़ेगा । ये डकैती उसी की प्लांनिग है ।"
"पर हम हथियार पास में क्यों न रखें ?"
"देवराज चौहान खून-खराबा नहीं चाहता ।"
"वो कहता है कि डकैती के वक़्त वहाँ गनमैन होंगे । अगर वो समझ गए कि हम डकैती करने वाले हैं तो वो हमें भून देंगे । ऐसे में हमारे पास हथियार हो तो हम उन्हें मारकर अपनी जान बचा सकते हैं ।"
ललित कालिया ने प्रताप भौंसले को देखा ।
"देवराज चौहान को तो चाहिए कि हमें हथियार दे... ।" प्रताप भौंसले ने पुनः कहा ।
"वह कहता है कि हमारे बचाव के लिए भी वहाँ पार्टी होगी ।"
"पार्टी होने से क्या होता है ?" प्रताप भौंसले ने तीखे स्वर में कहा, "हमारे पास हथियार होने चाहिए ।"
"मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ परंतु देवराज चौहान नहीं चाहता कि... ।"
"परंतु हमें अपनी बेहतरी के लिए सोचना है ।"
ललित कालिया ने प्रताप भौंसले पर खोज भरी दृष्टि मार कर कहा ।
"हम हथियार छिपाकर रख सकते हैं । देवराज चौहान को क्या पता चलेगा ।"
"यही, यही बात मेरे मन में थी, जो तुमने कह दी । हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं ।" प्रताप भौंसले ने मुस्कुराकर उत्साह भरे स्वर में कहा, "कार को यहीं छोड़ते हैं । सामने चौराहे से कोई न कोई टैक्सी मिल जाएगी । हमारे दोस्ती के नाम, किसी बार में चलकर बियर पीते हैं । खूब बातें करेंगे । मजा आएगा । बोल, पियेगा न मेरे साथ बियर ? इससे हमारी दोस्ती मजबूत होगी, क्यों ?"
"क्यों नहीं ! हम जरूर बियर लेंगे साथ में ।" ललित कालिया मुस्कुराकर कह उठा ।
■■■
"मैं बैंक में डकैती करने की तैयारी कर रहा था परंतु मुझे लगा कि बात नहीं बन पाएगी तो मैं पीछे हट गया । अगर वो डकैती करता तो तीन-चार करोड़ मिल जाते ।" ललित कालिया ने बियर का घूँट भरकर कहा, "काफी मेहनत के बाद काम को बीच में छोड़ना पड़ा कि तभी जगमोहन मुझसे मिला और इस काम में साथ ले लिया ।"
"क्या बोला वो कि तेरे को कितना देगा ?" प्रताप भौंसले का बड़ा गिलास आधा खाली हो चुका था । दोनों बियर बार में बैठे थे लेकिन प्रताप भौंसले ने अपनी बियर में एक पव्वा भी डाल लिया था । हल्का म्यूजिक वहाँ बज रहा था । कई लोग वहाँ बैठे बियर का मजा ले रहे थे । एक टेबल पर तो पाँच-छः औरतें बैठी बियर का मजा ले रही थीं । बार में भरपूर रौनक थी ।
प्रताप भौंसले के सवाल पर ललित कालिया हिचकिचाया ।
"पर्दा मत रखो ।" प्रताप भौंसले मुस्कुरा पड़ा, "हम दोस्त बन चुके हैं । मुझे दस करोड़ देने को कहा गया है, तुझे ?"
"मुझे भी दस करोड़ मिलेगा ।" ललित कालिया बोला ।
प्रताप भौंसले मुस्कुरा कर ललित कालिया को देखने लगा फिर घूँट भरा । आँखों में नशा दिखने लगा था । वैसे वो पूरी तरह सामान्य दिख रहा था । ललित कालिया की नजर उस पर ही थी ।
"क्या हुआ ?" ललित कालिया कह उठा ।
"मेरे दोस्त, मैं जो सोच रहा हूँ । जो बात मेरे दिमाग में है, वो तेरे दिमाग में नहीं ।"
"क्या ?"
"देवराज चौहान कितने माल की डकैती कर रहा है ?"
"कितने माल की ? हमें तो ये भी नहीं बता रहा है कि डकैती कहाँ पर की जानी है ।" ललित कालिया ने कहा ।
"आज हम पाँच लोग वहाँ इकट्ठे हुए । दो और भी हैं इस काम में । उन्हें मैं जानता हूँ । कुल मिलाकर सात हो गए । इसके बाद वो लोग भी हैं, जिसके बारे में देवराज चौहान ने कहा है कि डकैती के वक़्त भी कुछ लोग होंगे जो गड़बड़ होने की स्थिति में सहायता करेंगे । उन्हें भी करोड़ो रुपया दिया जा रहा होगा । इन सब को दिए जाने वाले पैसे का हिसाब लगाया जाए तो सौ करोड़ तक पहुँचता है । करीब सौ करोड़ देवराज चौहान दूसरों को दे रहा है ।"
ललित कालिया की आँखें सिकुड़ीं । नजरें प्रताप भौंसले पर थी ।
प्रताप भौंसले ने सिर हिलाकर पुनः कहा ।
"मैं सोचता रहता हूँ कि देवराज चौहान इस डकैती में कितना माल अपनी जेब में डालेगा ?"
"क्या मतलब ?"
"सोच कि सौ करोड़ वो दूसरों को दे रहा है तो खुद कितना ले रहा होगा ?"
ललित कालिया ने बेचैनी से पहलू बदला ।
"हमें ये सोचना चाहिए ?" ललित कालिया के होंठों से निकला, "उससे क्या होगा ?" ललित कालिया ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर बियर का घूँट भरा ।
"पता तो चले कि डकैती कितने की हो रही है ?"
"देवराज चौहान ये बात नहीं बताने वाला ।"
"इसलिए नहीं बतायेगा कि डकैती मोटी है । कई सौ करोड़ की तो होगी ही ।"
"कई सौ करोड़ ?"
"तभी तो वो सौ करोड़ तो अपने साथ काम करने वालों में बाँट रहा है ।"
"इन सब बातों से तुम्हारा मतलब क्या है ?"
"उन कई सौ करोड़ में हमारा बराबर हिस्सेदार होना ।"
"बराबर का हिस्सेदार ?"
"क्यों नहीं ? जो काम देवराज चौहान करेगा, वो हम भी करेंगे । जितना खतरा वो उठायेगा, उतना हम भी उठायेंग ।"
"लेकिन ये डकैती देवराज चौहान की है ।" ललित कालिया परेशान दिखा ।
"तुम्हारा मतलब कि सारी तैयारी देवराज चौहान की है ?"
"हाँ, वही ।"
"तो तैयारी में जो खर्चा हुआ है, वो ले ले । उसके ऊपर दस-बीस करोड़ ले ले । पर डकैती में मिलने वाले माल के तो बराबर के हिस्से मिलें सबको ।" प्रताप भौंसले ने कहकर घूँट भरा ।
"देवराज चौहान ये बात नहीं मानेगा ।"
"सही कहता है तू, वो क्यों मानेगा ?" प्रताप भौंसले मुस्कुराया ।
"तेरी बात सही है कि जब हम सब बराबर का खतरा उठा रहे हैं तो हिस्सा भी बराबर बाँटना चाहिए । अपनी तैयारी का वो खर्चा ले सकता है । पर वो तो डकैती मास्टर देवराज चौहान है, हमें बराबर का क्यों देगा ?"
"मुझे यकीन था कि मेरी बात तेरी समझ में आ जायेगी । वो आ गई ।" प्रताप भौंसले बोला, "तेरी ये बात भी ठीक है कि देवराज चौहान हमें सारे माल में से बराबर का हिस्सा नहीं देगा ।"
"पर हमारा हिस्सा बनता है ।"
"वो नहीं देगा ।" प्रताप भौंसले ने ललित कालिया की आँखों में देखा, "कोई जुगाड़ लगाना पड़ेगा ।"
"जुगाड़ ?"
"समझा नहीं मेरी बात को ?"
"तू समझा कि जुगाड़ का क्या मतलब है ?"
"मतलब तो यही है कि हम जबर्दस्ती अपना हिस्सा लें । परंतु इसके लिए बहुत कुछ सोचना पड़ेगा ।"
"ये कैसे हो सकेगा ? वो डकैती मास्टर देवराज चौहान है । खतरनाक है और... ।"
"हम क्या कम खतरनाक हैं ।" प्रताप भौंसले शांत स्वर में बोला, "वो भी इंसान है, हम भी इंसान हैं । डरना कैसा ?"
ललित कालिया, प्रताप भौंसले को देखता रहा ।
"हम दोनों मिलकर काफी कुछ कर सकते हैं । बोल तू मेरे साथ है ?"
ललित कालिया ने बियर का घूँट भरा, चुप रहा ।
"वैसे हमें दस-दस करोड़ मिलेगा ।" प्रताप भौंसले बोला, "अगर हम हिम्मत दिखाकर कोशिश कर जाए तो हमें सौ-दो सौ करोड़ की कीमत हासिल हो सकती है । कहाँ दस करोड़ और कहाँ सौ करोड़ ।"
"म... मैं तेरे साथ हूँ प्रताप ।" ललित कालिया फौरन कह उठा ।
"जानता था कि तू तैयार हो जाएगा । सौ करोड़ की रकम किसे बुरी लगती है । मैं तो...।"
"पर ये सब होगा कैसे ? हमें तो कुछ भी नहीं पता कि देवराज चौहान कहाँ पर डकैती कर रहा... ।"
"मुझे पता है ।" प्रताप भौंसले कड़वी मुस्कान से कह उठा ।
"कैसे पता ?"
"ये मत पूछ पर मुझे पता है कि देवराज चौहान एयरपोर्ट पर डकैती कर रहा है ।"
"एयरपोर्ट पर, किस चीज की डकैती ?" ललित कालिया की आँखें सिकुड़ीं ।
"ये मुझे नहीं पता । लेकिन पता चल जाएगा । तू मेरे साथ है तो अब काम हो जाएगा । एक से भले दो । बढ़िया रास्ता सोचना होगा कि डकैती के बाद दौलत हमारे हाथ में आ जाये । ललित... ।"
"हाँ !"
"मैं सोचता हूँ कुछ । कल हम फिर मिलेंगे । परंतु मिलने की जगह ऐसी रखेंगे, जहाँ कम लोग आते-जाते हों । जेल से फरार हूँ मैं । किसी ने पहचान लिया तो पंगा खड़ा हो जाएगा । देवराज चौहान कम से कम तीन-चार सौ करोड़ का हाथ मार रहा है । तभी तो वो सौ करोड़ अपने साथियों को देने जा रहा है । साले के हाथ पर ऐसा हाथ मारेंगे कि सारी दौलत हमारे पास आ जाये और हम उस दौलत को आधा-आधा बाँट लेंगे । कल फिर मिलेंगे दोस्त । आगे की बात करेंगे । अभी हमें कई बार मिलना होगा । खामोशी से अपनी तैयारी करनी होगी ।"
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सोनिया कमरे में अकेली बैठी थी । प्रताप भौंसले, देवराज चौहान और जगमोहन के बुलावे पर गया हुआ था । सोचों के भाव थे सोनिया के चेहरे पर । बार-बार उसकी निगाह बगल के बन्द कमरे के दरवाजे पर उठ रही थी । जहाँ मोहन भौंसले दो दिन से बन्द था । न तो खुद कमरे से बाहर आता था, न ही किसी को भीतर आने देता था । बाथरूम जाने के लिए जब कमरे से बाहर निकलता तो उस पल दरवाजे पर ताला लगा देता था । दो दिन से वो नहाया भी नहीं था । यहाँ तक कि रात को वो कमरे में अकेला, दरवाजा बंद कमरे में नींद लेता था और प्रताप, सोनिया इसी कमरे में रात बिताते थे । एक बार भी मोहन भौंसले दरवाजे से झाँककर नहीं देखता कि वो दोनों क्या कर है हैं ।
मोहन भौंसले के इस व्यवहार पर सोनिया मन-ही-मन परेशान थी । वो नहीं समझ पा रही थी कि मोहन भौंसले के इस व्यवहार का मतलब क्या है । जब से उसने सोनिया और प्रताप को एक साथ देखा था तब से ही मोहन भौंसले के व्यवहार में बदलाव आ गया था । सोनिया ने दीवार में लगी घड़ी की तरफ देखा ।
दोपहर के तीन बज रहे थे । आज तो मोहन भौंसले ने सुबह नाश्ता भी नहीं किया था । नाश्ता देने के लिए सोनिया ने दरवाजा थपथपाया था परंतु मोहन भौंसले ने दरवाजा नहीं खोला । पुकारने पर उसने जवाबी आवाज भी नहीं दी थी ।
सोनिया उठी और आगे बढ़कर दरवाजा थपथपाया ।
आधे मिनट के इंतजार के बाद मोहन भौंसले ने दरवाजा खोला । इतना ही खोला कि वो बाहर वाले को देख सके । उसके बाल बिखरे हुए थे । कपड़े मैले और अस्त-व्यस्त थे ।
"खाना खा लो ।" सोनिया बोली, "बना रखा है । तुमने सुबह से कुछ भी नहीं खाया ।"
मोहन भौंसले कुछ पल सोनिया को देखता रहा फिर बोला ।
"ले आओ ।"
सोनिया कुछ कहते-कहते रुकी । फिर पलटकर चली गई ।
मोहन भौंसले उसी प्रकार दरवाजा थोड़ा-सा खोले खड़ा रहा । नजरें दूसरे कमरे में घूम रही थीं ।
पाँच मिनट बाद सोनिया खाने का थाल लिए लौटी । मोहन भौंसले ने दरवाजा थोड़ा और खोला, खाने का थाल पकड़ा, उसे भीतर लेकर दरवाजा बंद करने लगा कि सोनिया ने तुरंत हाथ बढ़ाकर दरवाजे का पल्ला थाम लिया ।
मोहन ने उसे देखा ।
"तुम्हें मुझसे बात करनी होगी ।" सोनिया ने बेचैन स्वर में कहा ।
"क्या बात है ?"
"तुम मेरी परवाह नहीं कर रहे । हर वक़्त कमरे में बन्द रहते हो । रात को भी मुझे कमरे में नहीं आने देते । मेरे से बात भी नहीं कर रहे । पहले तो तुम ऐसे नहीं थे । तुम्हें मेरी परवाह करनी चाहिए ।"
"तुमने जो भी कहा, उसका जवाब तुम्हारे पास है ।" मोहन भौंसले के चेहरे पर कोई भाव नहीं था ।
"तुम मेरी बात पर यकीन क्यों नहीं करते कि तुम्हारे भाई ने मेरे साथ जबर्दस्ती की और... ।"
"तुम्हारा चेहरा बता रहा था कि जो भी हो रहा था उसमें तुम्हारी रजामंदी शामिल थी।"
"तुम ग़लत सोच रहे... ।"
"प्रताप हर तरफ से मेरे से अच्छा है न ?"
"मुझे प्रताप से क्या मतलब । तुम मेरे पति... ।"
"प्रताप ने कहा कि तुम मेरे से शादी करके पछता रही हो ।"
"प्रताप ने कहा और तुमने मान लिया । वो कमीना ऐसे ही बोलता है । मैं तो... ।"
"छोड़ो इन बातों को । मुझे अभी बहुत काम है ।"
"तुम कमरे में बन्द रहकर क्या करते रहते हो ?"
"अपना भविष्य सँवारने का प्रयत्न करने में लगा हूँ ।"
"भविष्य ? तुम... ।"
तभी मोहन भौंसले ने दरवाजा बंद कर लिया । सोनिया बन्द दरवाजे को देखती रही । उसकी आँखें सिकुड़ चुकी थीं । उसके बाद सोनिया ने अपने लिए कॉफ़ी बनाई और सोफे पर बैठकर घूँट भरने लगी । देखने में वो जितनी शांत लग रही थी, उसके भीतर उतनी ही हलचल मची थी । सोचों का केंद्र मोहन भौंसले था । उसने उसे प्रताप के साथ देख लिया था । बात इतनी ही होती तो वो सब कुछ ठीक कर लेती । परंतु उसे महसूस हो रहा था कि बात कुछ और है । मोहन कुछ करने वाला है ।
साढ़े चार बजे प्रताप आ पहुँचा ।
दोनों की नजरें मिलीं ।
"तू कुछ चिंता में लगती है ?" प्रताप उसके सामने बैठता हुआ बोला ।
सोनिया ने बियर और व्हिस्की की मिली-जुली गन्ध महसूस की ।
"मोहन कोई गड़बड़ कर रहा है ।"
"कैसी गड़बड़ ?" प्रताप की आँखें सिकुड़ीं ।
"ये तो पता नहीं, लेकिन उसका व्यवहार यही कहता है । दो दिन से वो कमरे में बन्द है, बाहर नहीं निकलता । निकलता है तो कमरे के दरवाजे पर ताला लगा देता है कि कोई भीतर न जाये । आखिर वो कमरे में क्या कर रहा है ?"
"बहम में मत पड़ो ।" प्रताप के चेहरे पर नशे से भरी मुस्कान उभरी, "ऐसा करके वो नाराजगी जता रहा है । हम दोनों प्यार कर बैठे हैं और उसे चिंता है कि उसकी खूबसूरत बीवी हाथ से न चली जाए ।"
"मेरी बात को मजाक में मत लो ।"
"ये मजाक ही तो है कि मोहन की तुम चिंता कर रही हो ।" प्रताप ने सिगरेट सुलगा ली।
"मुझे डर है कि कहीं वो डकैती खराब न कर दे ।" सोनिया ने गंभीर स्वर में कहा ।
प्रताप टकटकी बाँधे सोनिया को देखने लगा । सोनिया के खूबसूरत चेहरे पर गंभीरता थी ।
"ऐसा कुछ मोहन ने कहा ?" प्रताप ने पूछा ।
"नहीं !"
"तो तू ऐसा क्यों सोचती है कि मोहन ऐसा कोई कदम उठाएगा ?"
"पता नहीं, मेरा दिल कहता... ।"
"दिल की बातें मत कर मेरे से, दिमाग जो कहे, वो कह ।"
"दिमाग भी कुछ ऐसा ही सोचता है ।"
"मोहन में ऐसा दम-खम नहीं कि वो ऐसा कुछ कर दे । फिर भी एक बार मैं उसको धमका देता हूँ । साला, अगर ऐसा कुछ करने को सोच रहा है तो संभल जाए ।" प्रताप की निगाह कमरे के बन्द दरवाजे की तरफ उठी ।
"देवराज चौहान और जगमोहन से क्या बात हुई ?"
"वो सब बाद में बताऊँगा ।" प्रताप ने कश लिया और उठता हुआ बोला, "पहले मोहन को समझा दूँ ।"
"ठीक से बात करना, वो गुस्से में है ।" सोनिया बोली ।
प्रताप बन्द दरवाजे पर पहुँचा और उसे थपथपाया ।
कोई जवाब नहीं मिला तो उसने दोबारा थपथपाया ।
"क्या है ?" भीतर से मोहन भौंसले की आवाज आई ।
"दरवाजा खोल ।" प्रताप नरम स्वर में बोला ।
"क्यों ?"
"तेरे से बात करनी है । अपने भाई से ऐसी क्या नाराजगी कि दरवाजा बन्द करके बैठा है ।" प्रताप ने हँसकर कहा ।
"कुछ देर बाद बाहर आता हूँ ।" भीतर से मोहन भौंसले की आवाज आई ।
प्रताप पलटकर सोनिया के पास आ गया ।
"उस दिन से मोहन का व्यवहार बहुत बदल गया है ।" सोनिया बोली ।
"मैं सब ठीक कर दूँगा । चिंता मत कर ।" प्रताप बैठता हुआ कह उठा ।
"कॉफ़ी तो तुम लोगे नहीं । चढ़ा रखी है, खाना चाहिए तो लगा देती हूँ ।"
"बाहर से खा लिया था ।" प्रताप ने प्यार भरी निगाहों से सोनिया को देखा ।
"इस तरह बाहर घूमता रहेगा तो पुलिस की नजरों में आ जायेगा ।" सोनिया ने कहा ।
"ये चिंता मुझे भी है । डकैती होने तक मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता ।"
"देवराज चौहान से क्या बात हुई ?"
प्रताप बताने लगा ।
उसने ललित कालिया से वास्ता रखती बातें भी बताईं ।
सोनिया, ललित कालिया के बारे में कुछ कहने वाली थी कि तभी दरवाजा खुला कमरे का और मोहन भौंसले खाने की थाली बर्तन उठाये बाहर निकला । दोनों की निगाह उसकी तरफ उठी । मोहन भौंसले ने बर्तन नीचे रखे और कमरे का दरवाजा बंद करके ताला लगाया और करीब सोफे पर आ बैठा ।
"कैसा है तू ?" प्रताप ने मुस्कुराकर अपनेपन से पूछा ।
मोहन भौंसले मुस्कुरा पड़ा ।
"नाराज तो नहीं लगता तू ।"
"नहीं !" मोहन भौंसले बोला ।
"सोनिया कहती है कि तू नाराज है ।"
"मेरी बीवी दिल की बात तेरे को बता देती है और तेरे को इसकी बहुत चिंता है ।"
"नाराज मत हो । उसके बाद हमारे बीच ऐसा-वैसा कुछ नहीं हुआ । सोनिया से पूछ ले।" प्रताप ने कहा ।
मोहन भौंसले होंठों पर मुस्कान लिए प्रताप को देखता रहा ।
"कमरा बन्द करके तू क्या कर रहा है ?" प्रताप ने पूछा ।
"अपने भविष्य की प्लानिंग कर रहा हूँ ।"
"बन्द कमरे में तू भविष्य की प्लानिंग करता है । तो इसमें कमरा बन्द करने की क्या जरूरत है ?"
"मोटे नोट वाले हैं । डकैती होने जा रही है । बहुत कुछ सोचना पड़ता है कि नोटों का क्या करना... ।"
"कमरा बन्द करके ये सब सोचना, मेरी समझ से बाहर है ।"
"मैं ऐसे ही सोचता हूँ ।"
"तू तो रात को भी अपनी बीवी को, मेरे कमरे में छोड़ देता है ।" प्रताप बोला ।
"तो क्या हो गया ? तुम दोनों में पहचान हो चुकी है । सोनिया तेरे पास रहे या मेरे पास क्या फर्क पड़ता है ।"
"ये मेरे से नाराज है प्रताप ।" सोनिया गहरी साँस लेकर बोली ।
"पत्नी से नाराजगी ज्यादा लम्बी नहीं होनी चाहिए । फिर तो मैं तेरा भाई हूँ जो... ।"
"मुझे पता है तू मेरा भाई है ।" मोहन भौंसले का स्वर बेहद शांत था ।
"तू तो सच में नाराज है । क्यों सोनिया ?"
"मैंने तो पहले ही कहा है कि तेरी ग़लती से, मेरा पति मेरे से नाराज हो गया है ।" सोनिया बोली ।
"ठीक हो जाएगा । सब ठीक हो जाएगा । नोट आते ही सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा । क्यों मोहन ?"
मोहन भौंसले चुप रहा ।
"तेरे को पता है न कि मैं सुबह कहाँ गया था ?" प्रताप ने पूछा ।
"मालूम है ।"
"तो तूने मेरे से पूछा नहीं कि देवराज चौहान से मेरी क्या बात हुई ?"
"जरूरत नहीं समझी । मैं अपने काम की तरफ ध्यान दे रहा हूँ जो जगमोहन ने मुझे करने को कहा है ।" मोहन भौंसले ने सामान्य स्वर में कहा, "डकैती में तेरे को जो काम करना है वो तू जाने ।"
"तो तू बहुत ज्यादा नाराज है ।" प्रताप भौंसले ने मोहन की आँखों में झाँका, "तेरा इरादा गड़बड़ करने का तो नहीं है ?"
"कैसी गड़बड़ ?"
"तू कोई उल्टी हरकत करके डकैती को असफल बना दे ।"
"मैं ऐसा क्यों करूँगा ?"
"क्योंकि मैंने तेरी खूबसूरत-सी पत्नी पर हाथ डाला है । उसे बड़े प्यार से भोगा है ।"
मोहन भौंसले खुलकर मुस्कराया ।
"मेरा दिमाग खराब है क्या जो मैं एक औरत की खातिर 10 करोड़ गँवा दूँगा ।"
"दस नहीं, बीस ।" सोनिया बोली, "हमें बीस मिलेगा । वो हम दोनों का तुम्हारा ही तो है ।"
मोहन भौंसले ने सोनिया को देखा और बिना कुछ कहे उठ गया ।
"बैठ तो । तेरे को जाने की जल्दी क्या है ?"
"मैं एकांत चाहता हूँ । मेरे पास सोचने को बहुत कुछ है ।" कहकर मोहन दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।
"कोई गड़बड़ मत करना मोहन । ये करोड़ों का मामला है ।" पीछे से प्रताप ने कहा ।
"मेरी तरफ से कोई गड़बड़ नहीं होगी ।" कहते हुए मोहन ने दरवाजे पर लगा ताला खोला और भीतर प्रवेश करके दरवाजा बंद कर लिया । सिटकनी लगाई जाने की आवाज सुनाई दी ।
सोनिया ने उसी पल प्रताप से कहा ।
"ये कमरा इस तरह बन्द क्यों रखता है ? किसी को भीतर क्यों नहीं जाने देता ?"
"नक्शा दिखा रहा... ।"
"नहीं प्रताप ! वो जरूर कुछ करेगा । ग़लत करेगा । मैं मोहन की आदतों को अच्छी तरह जानती हूँ ।" सोनिया व्याकुलता से कह उठी, "कुछ बातें औरतें जल्दी भाँप लेती... ।"
"बहुत मोटी डकैती होने जा रही है । मोहन को पैसे की जरूरत है । वो कभी चाहेगा कि डकैती में अड़चन आये ।"
"प्रताप तुम... ।"
"मेरे होते हुए तुम चिंता क्यों करती हो जानेमन ? तेरे पर तो मैं फिदा हो चुका हूँ । डकैती के बाद तू मेरे साथ चल देगी । मजे से कहीं रहकर जिंदगी बिताएँगे । मजे करेंगे । मोहन से तेरा पीछा छूट जाएगा ।" प्रताप हँसकर कह उठा, "तू सिर्फ मेरे बारे में सोचा कर । प्रताप की चिंता किया कर ।"
परंतु सोनिया के चेहरे पर बेचैनी छाई रही ।
"तुम ये तो देखो कि वो दरवाजा बंद करके कमरे में क्या कर रहा है ।" सोनिया बोली ।
"कुछ नहीं कर रहा । वहम में मत... ।"
"ये मेरा वहम नहीं है । वो जरूर कुछ कर रहा है । मेरी बात नहीं मानोगे तो पछताओगे।"
जवाब में प्रताप नशे भरी हँसी हँसा ।
सोनिया खीझ भरी निगाहों से उसे देखती रही फिर उठ खड़ी हुई ।
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