सोहा को चायना टाउन छोड़कर प्रमोद हर्नबी रोड पर स्थित कमला माथुर के फ्लैट पर पहुंचा ।
कविता बहुत चिन्तित थी ।
"ओह प्रमोद !" - कविता ने कसकर प्रमोद की बांह पकड़ ली और शान्ति की सांस लेकर बोली- "शुक्र है तुम आ गए।"
"तुम फोन का जवाब क्यों नहीं देतीं ? मैंने कितनी ही बार फोन किया । घन्टी बजती रहती थी लेकिन तुम फोन उठाती ही नहीं थीं । "
"मेरा हौंसला नहीं होता था । "
"क्यों ?"
“क्या पता कौन टेलीफोन कर रहा हो ।”
“क्या सुषमा मिली थी तुमसे ?”
"हां ।”
"वह पुलिस हैटक्वार्टर ले जाई गई है।”
"मुझे मालूम है ।"
न जाने क्यों प्रमोद ने उसे यह नहीं पूछा कि यह बात उसे कैसे मालूम है ?
“सुषमा ने मुझे एक कहानी सुनाई है।" - प्रमोद बोला 'और वही कहानी वह शायद पुलिस को भी सुनाएगी
लेकिन उस कहानी में बहुत कमियां हैं । "
"क्या ?" - कविता ने सशंक स्वर में पूछा ।
"वह कहती है कि वह रात के दो बजे जगन्नाथ के फ्लैट के पिछले दरवाजे से उसकी पोर्ट्रेट लेकर बाहर निकली थी और सीधी अपने फ्लैट पर चली गई थी। अपने इस कथन की सत्यता वह पोर्ट्रेट हाजिर करके सिद्ध कर सकती है । अगर वह पोर्ट्रेट हाजिर न कर पाई तो उसकी बात की सत्यता को पुलिस स्वीकार नहीं करेगी ।"
"लेकिन वह पोर्ट्रेट हाजिर कर सकती है ।"
" पोर्ट्रेट कहां है ?"
"मेरे फ्लैट पर सुषमा के कमरे में । "
श्योर ?"
प्रमोद उलझकर रह गया । अभी तो वही उर्मिला के फ्लैट में देखकर आ रहा था ।
"पहले तो यह तस्वीर यहां थी ।"
"बाद में मैंने उसे अपने फ्लैट पर भिजवा दिया था । "
"कैसे ?”
"टैक्सी द्वारा । "
"पुलिस उस टैक्सी वाले को खोज निकालेगी और फिर उन्हें पता लग जाएगा कि वही पोर्ट्रेट पहले यहां तुम्हारे पास भी थी।"
"ऐसा नहीं होगा ।" - कविता विश्वासपूर्ण स्वर में बोली
"क्यों ?"
“तुम खामखाह मामूली सी बात को तूल दे रहे हो प्रमोद । बात केवल इतनी ही है कि सुसी पुलिस को अपनी कहानी सुनाएगी । पुलिस हमारे फ्लैट पर जाकर उसके कमरे से पोर्ट्रेट बरामद कर लेगी । फिर वे शायद शिनाख्त के लिये खोसला नाम के उस आदमी को बुलायेंगे जिसने सुसी को तस्वीर लेकर सीढियां उतरते देखा था । वह तस्वीर और सुसी दोनों को पहचान लेगा और किस्सा खत्म । सुसी दो बजे इमारत से बाहर थी जबकि हत्या तीन बजे के करीब हुई थी ।"
बोला । "बात इतनी आसन नहीं है, कविता ।" - प्रमोद धीरे से
"क्यों ?"
"पुलिस शायद पहले ही तुम्हारे फ्लैट की तलाशी ले चुकी है, इसलिये उन्हें मालूम था कि तुम रात अपने कमरे में नहीं सोई थीं । उन्हें यह बात पहले ही मालूम है कि उस समय तुम्हारे फ्लैट में वह पोर्ट्रेट नहीं थी। अगर होती तो सबसे पहले उनका ध्यान उस पोर्ट्रेट की ओर हो जाता । पुलिस सुबह से ही तुम्हारी तलाश कर रही है। इसलिए स्वाभाविक है कि पुलिस के आदमी तभी से तुम्हारे फ्लैट की निगरानी कर रहे होंगे । जब वह सुबह यहां आया था, उस समय पोर्ट्रेट यहीं थी । तुमने पोर्ट्रेट बाद में ही भिजवाई होगी। पुलिस के आदमियों को फौरन पता लग गया होगा कि पोर्ट्रेट कब तुम्हारे फ्लैट पर पहुंची । मतलब यह कि सुषमा का यह दावा कि वह रात को दो बजे पोर्ट्रेट के साथ सीधी अपने फ्लैट पर पहुंची थी, भक्क से उड़ जाएगा।"
कविता का चेहरा सफेद हो गया ।
"तुमने पोर्ट्रेट कैसे यहां से अपने फ्लैट तक पहुंचाई थी ?" - प्रमोद ने पहला प्रश्न फिर दोहरा दिया ।
“पोर्ट्रेट यहां से राजेन्द्र नाथ लेकर गया था ।" - कविता धीरे से बोली- "मैंने कैनवस को फ्रेम से उतार लिया था । राजेन्द्र नाथ ने कैनवस को लपेटकर अपने कोट में छिपा लिया था । और मेरे फ्लैट पर चला गया था । वहां जाकर उसने कैनवस को एक दूसरे फ्रेम पर मढ दिया था और उसे सुषमा ने कमरे में रख दिया था । "
"तुम्हें मालूम है, राजेन्द्र नाथ भी पुलिस हैडक्वार्टर ले जाया गया था ?"
"हां"
"वह पोर्ट्रेट तुम्हारे फ्लैट पर पुलिस द्वारा ले जाए जाने से पहले लेकर गया था या बाद में ?"
"बाद में ?"
"उसे यहां का पता कैसे मालूम हुआ ?"
"उसे नहीं मालूम था मैंने उसे फोन करके बुलाया था।"
"मुझे राजेन्द्र नाथ का भरोसा नहीं है।"
"यह तुम उसके साथ ज्यादती कर रहे हो, प्रमोद । उसकी कुछ आदतें खराब जरूर हैं लेकिन वह मेरे और सुषमा के प्रति पूरी तरह ईमानदार है । वह तुम्हारे प्रति भी ईमानदार हो सकता है, बशर्ते कि तुम उसे होने दो ।”
"कविता ।" - प्रमोद गंभीर स्वर में बोला - "राजेन्द्र नाथ ने तुम्हें धोखा दिया है ।"
"क्या मतलब ?" - कविता चौंककर बोली ।
"वह यहां से तस्वीर तुम्हारे फ्लैट पर लेकर नहीं गया।"
“क्या !" - उसकी आंखों की पुतलियां एकदम फैल गई ।
"अभी एक घन्टा भी नहीं हुआ है जब मैंने जगन्नाथ की वही पोर्ट्रेट उर्मिला नाम का एक ऐसी औरत के फ्लैट पर देखी थी, जो स्वयं को जगन्नाथ की विधवा बताती है । वह समझती है कि सुषमा जगन्नाथ की रखैल थी और उसी ने जगन्नाथ की हत्या भी की है । "
"प्रमोद !" - कविता दहशत भरे स्वर में चिल्ला उठी ।
"घबराओ मत !"
"मेरी तो जान निकली जा रही है । "
“सम्भावना इस बात की भी है कि पुलिस ने तुम्हारे फ्लैट से पोर्ट्रेट बरामद कर ली हो और बाद में जगन्नाथ की पत्नी होने के नाते उर्मिला को सौंप दी हो ।”
कविता चुपचाप माथे पर हाथ रखे बैठी रही ।
“अगर गड़बड़ राजेन्द्र नाथ ने की है तो विश्वास जानो पुलिस किसी भी किसी क्षण यहां पहुंच सकती है। क्या तुम पुलिस का सामना कर सकोगी ?"
"मुझे अपनी चिंता नहीं है । मुझे सुसी की चिंता है वह पुलिस का सामना नहीं कर सकेगी । वह अभी बच्ची है ।"
"सुषमा बच्ची नहीं है।" - प्रमोद बोला - "अच्छी-खासी जिम्मेदार लड़की है वह । तुम उसकी चिंता मत करो ।"
"मेरे लिए तो वह बच्ची ही है । "
“तुम सुषमा से उम्र में बड़ी नहीं हो । "
"काफी बड़ी हूं । प्रमोद तुम जानते हो कि हम दोनों बहनों का इस दुनिया में कोई भी नहीं है । सुषमा के लिए मैं मां-बाप, भाई-बहन सब कुछ हूं । जिन्दगी की किसी भी मुश्किल से उसकी रक्षा करना मेरा धर्म है ।”
"लेकिन मान लो अगर सुषमा ने सत्य ही जगन्नाथ की हत्या की हो तो ?"
“तो भी ।”
उसी समय फ्लैट की घन्टी बज उठी और साथ ही किसी ने भारी हाथों से फ्लैट का द्वार भी खटखटाया ।
"यह पुलिस होगी ।" - प्रमोद सहज स्वर में बोला । "प्रमोद ।" - कविता भयभीत होकर उठ खड़ी हुई ।
"डरो नहीं ।"
" प्रमोद ! मुझे क्या कहना चाहिए उनसे ?"
"हकीकत ।" - प्रमोद बोला और उससे आगे बढकर द्वार खोल दिया बाहर से दो सिपाहियों के साथ इन्स्पेक्टर आत्माराम खड़ा था ।
“आप ! प्रमोद साहब यहां !" - वह हैरानी से चिल्ला पड़ा।
“आपको कोई एतराज है, इन्सपैक्टर साहब ?" - प्रमोद ने मुस्कराकर पूछा ।
"एतराज तो नहीं है लेकिन हैरानी जरूर है साहब, अगर आपकी जगह मुझे यहां दरवाजे पर अमेरिका का राष्ट्रपति खड़ा दिखाई देता तो इतनी हैरानी नहीं होती जितनी आपको देखकर हो रही है। आपने तो फरमाया था आप तो जानते नहीं हैं कि कविता ओबेराय कहां है ।"
"जिस समय आपने पूछा था, उस समय मुझे वाकई नहीं मालूम था । मुझे बाद में खयाल आया था कि कविता के पास कमला माथुर के फ्लैट की चाबी थी । मैं तो यह देखने चला आया था कि शायद कविता यहां हो ।"
“और ये यहां थी ?” - आत्माराम व्यंगपूर्ण स्वर में बोला।
"जाहिर है ।" - प्रमोद बोला- "इन्सपैक्टर साहब, दरअसल मैं अभी यहां पहुंचा हूं। मैंने अभी कविता को बताया है कि जगन्नाथ नाम के एक व्यक्ति का कत्ल हो गया है और उस सिलसिले में पुलिस उसे तलाश कर रही है । कविता अभी आपको फोन करने ही वाली थी कि..."
"कविता ओबराय को हिन्दी आती है न ?" - आत्माराम के स्वर में उपहास और व्यंग का सम्मिश्रण था ।
“जी हां, जी हां, क्यों नहीं ?"
"तो फिर उन्हें ही बोलने दीजिए।"
"आल राइट।"
“दरअसल, प्रमोद साहब, मैं कविता ओबेराय को हैडक्वार्टर लिवा चलने के लिए आया हूं । इसलिए आपकी तो अब यहां जरूरत पड़ेगी नहीं ?"
"इसलिये बेहतर यही होगा कि मैं यहां से चला जाऊं ? है, न इन्सपैक्टर साहब ?"
"आप बहुत समझदार हैं।"
प्रमोद ने एक आश्वासनपूर्ण दृष्टि कविता पर डाली और फ्लैट से बाहर निकल गया ।
एक सिपाही द्वार बन्द करने के लिये आगे बढा ।
दरवाजा बन्द होते-होते प्रमोद के कान में आत्माराम की चिकनी चुपड़ी आवाज पड़ी - "कविता जी, यहां आते समय जो पहला खयाल मेरे दिमाग में आया था वह यह था कि एक पुलिस इन्सपैक्टर की ड्यूटी भी कितनी अप्रिय होती है । कितने अप्रिय काम..."
उसी क्षण द्वार बन्द हो गया और प्रमोद को इन्स्पेक्टर की आवाज सुनाई देनी बन्द हो गई ।
नीचे आकर प्रमोद अपनी कार में बैठ गया । उसने इग्नीशन आन करके इंजन चालू कर दिया लेकिन कार को गियर में डालने का उपक्रम नहीं किया। उसने अपनी कोहनियां स्टेयरिंग व्हील पर टिका लीं और स्पीडोमीटर की लाइट पर अपने नेत्र फोकस कर लिये ।
पलक झपकते ही उसकी सारी मानसिक शक्तियां केस की उलझी हुई गुत्थियों पर एकाग्र हो गई ।
उसकी जानकारी में केवल पांच ही व्यक्ति थे, जिन्हें मालूम था कि प्रमोद के पास एक स्लीगन है । वे थे कविता, सुषमा, राजेन्द्र नाथ, सोहा और याट-टो। और यही पांच व्यक्ति प्रमोद की अनुपस्थिति में भी उसके फ्लैट में मौजूद हो सकते थे । इसलिए यह निश्चित था कि स्लीवगन इन पांचो में से ही किसी ने चुराई थी ।
सुषमा कहती थी कि वह तस्वीर के साथ दो बजे जगन्नाथ के फ्लैट में से निकल आई थी जबकि सोहा ने उसे ढाई बजे और पौने तीन बजे के बीच जगन्नाथ के फ्लैट में सोये देखा था ।
जगन्नाथ के पास स्लीवगन कैसे पहुंची ?
जगन्नाथ की मास्टर पीस पोर्ट्रेट सुषमा ने बनाई थी, लेकिन फिर भी वह उसकी बैकग्राउन्ड कविता से टच करवा रही थी । कम्पीटशन में भेजी जाने वाली पेन्टिंग को फिनिश करने में सुषमा भला किसी दूसरे से सहायता क्यों लेगी । और फिर प्रमोद ने सुना था कि आर्टिस्ट अपने काम में किसी दूसरे आर्टिस्ट का दखल पसन्द नहीं करते।
सुषमा ने राजेन्द्र नाथ को पोर्ट्रेट अपने फ्लैट पर ले जाने को दी थी तो फिर वह उर्मिला के पास कैसे पहुंच गई थी ?
कहीं... कहीं... आखिरी प्रश्न का उत्तर प्रमोद को सूझ गया ।
उसने सिर को एक झटका दिया और होश में आ गया ।
उसने गाड़ी को गियर में डाल दिया और बड़े आराम से गाड़ी चलाता हुआ मार्शल हाउस की ओर चल दिया ।
***
जिस समय प्रमोद अपने फ्लैट में घुसा, उस समय ड्राइंगरूम की मेज पर चौकड़ी मारकर सुषमा बैठी हुई थी और याट-टो उसके सामने खड़ा था । प्रमोद को देखते ही सुषमा ने याट-टो से बात करना एकदम बन्द कर दिया और बायां हाथ कान पर रखकर दायें हाथ को हवा में लहरा-लहराकर जोर-जोर से गाने लगी- "बहारो फूल बरसाओ, मेरा खरगोश आया है, मेरा खरगोश आया है । अरे, खरगोश तो सचमुच नहीं आ गया ।”
कविता सच कहती है, प्रमोद ने सोचा, सुषमा वाकई अभी बच्ची है । शारीरिक रूप से नहीं तो मानसिक रूप से तो जरूर ही बच्ची है ।
"सुसी की बच्ची ।" - प्रत्यक्ष में वह क्रोध प्रकट करता हुआ बोला - "यह क्या शोर मचा रही हो ?"
याट-टो एकदम वहां से गायब हो गया ।
“अरे मेरे खरगोश, मेरे पप्पू ।" - सुषमा कूदकर मेज से उतरती हुई बोली- "यह शोर नहीं, यह तो मुहब्बत का राग है"
"तुम यहां क्या कर रही हो ?"
- "अभिसारिका से ऐसे जटिल प्रश्न मत पूछ, भद्र ।" सुषमा दोनों हाथ जोड़कर ड्रामा सा करती हुई बोली ।
"सुषमा तुम यह बकवास बन्द नहीं करोगी ?"
"एक शर्त पर कर सकती हूं।" - वह शरारत भरे स्वर में बोली ।
"क्या ?"
"स्काटलैंड का गंगाजल पिलाओ
"शटअप ।" - प्रमोद चिल्ला पड़ा ।
"ज्यादा नहीं, केवल दो पैग । उससे ज्यादा मांगू तो जो चोर की सजा वह मेरी सजा ।"
"तुम चुप नहीं रहोगी ।"
"मेरी बात मान जाओ नहीं तो आज मैं तुम्हारे फ्लैट का कबाड़ा करके रख दूंगी।"
"क्या करोगी ?"
"नमूने के लिए यह देखो।" - सुषमा बोली । वह एकदम सोफे पर जा लेटी । उसने जोर से अपना एक पांव ऊपर की ओर घुमाया । उसके पांव से चप्पल निकलकर छत से जा टकराई और फिर भड़क से प्रमोद के समीप फर्श पर आकर गिरी । प्रमोद का सिर बाल-बाल बचा ।
“दूसरी भी आ रही है ।" - सुषमा बोली ।
लेकिन दूसरी चप्पल की कलाबाजी देखने के लिये प्रमोद वहां नहीं था । वह किचन में घुस गया था । थोड़ी देर बाद वह दो पैग लेकर वापिस लौटा ।
"यस" - सुषमा होकर बोली- "दैट्स लाइक ए गुड ब्वाय।”
प्रमोद ने एक पैग लाकर उसके सामने शीशे की मेज पर रख दिया ।
सुषमा ने पैग उठा लिया और बोली- "बीटनिक्स आफ सुषमा वर्ल्ड ।”
प्रमोद ने भी जवाब में अपना गिलास ऊंचा किया और फिर एक चुस्की लेकर उसे वापिस मेज पर रख दिया ।
सुषमा ने एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया ।
प्रमोद हैरानी से उसका मुंह देखने लगा ।
“अब मेरा जी चाह रहा है तुम्हें एक गन्दा सा चुटकला सुनाऊं ।" - सुषमा चटकारा लेकर बोली ।
“खबरदार ।" - प्रमोद बोला
"डर गए ? वाह रे मेरे शेर । लेकिन घबराओ नहीं । इस समय मुझे कोई गन्दा चुटकला याद नहीं आ रहा है । "
प्रमोद चुप रहा ।
“अभी एक पैग और पिलाओगे न ?”
"नहीं ।" - प्रमोद दृढ स्वर में बोला ।
"मैं अभी तीसरी मंजिल से नीचे छलांग लगा दूंगी और फिर मेरी भी तीसरी मंजिल बन जाएगी ।" - सुषमा ने धमकाया ।
“लगा दो छलांग ।" - प्रमोद ने चैलेंज दिया ।
"तुम मुझे रोकेगे नहीं ।”
"मैं क्यों रोकूं ?"
"तो फिर मैं क्यों छलांग लगाऊं ? फिर अपनी बात पूरी करने का उससे आसान तरीका जो आता है ।"
"क्या ?"
"यह ।" - सुषमा बोली । उसने झपटकर मेज से प्रमोद का गिलास उठाया और उसे भी एक सांस में पी गई ।
प्रमोद बौखलाया सा उसका मुंह देखने लगा । सुषमा के चेहरे पर लाली झलकने लगी थी।
“दो पैग विस्की पीकर तुमसे बात करने में बहुत फायदा है।" - वह बोली - "अगर अब मैं कोई उल्टी सीधी हरकत कर दूं या तुम्हारी तपस्या तोड़ने का प्रयत्न करू तो बाद में मैं बड़ी आसानी से सारा इलंजाम विस्की पर थोप कर तुमसे माफी मांग सकती हूं।"
"पुलिस हैडक्वार्टर में तुम से क्या पूछा गया था ?" - प्रमोद विषय परिवर्तन का प्रयत्न करता हुआ बोला ।
"कई उल्टे सीधे सवाल पूछे उन्होंने ।"
"रूमाल के बारे में ? "
"रूमाल के बारे में भी। मैंने बड़ी सादगी से स्वीकार कर लिया कि वह मेरा रूमाल है । इस बात का उन पर अच्छा प्रभाव पड़ा था, खरगोश | "
" उन्होंने यह नहीं पूछा कि रूमाल जगन्नाथ के फ्लैट पर कैसे पहुंचा गया ?"
" पूछा था, मैंने कहा कि मैं पोर्ट्रेट बानने के लिए उसके फ्लैट पर जाती ही रहती थी, कभी रह गया होगा ।"
"अब पोर्ट्रेट कहां है ?"
"कविता दीदी ने तो उसे टच करके फ्लैट पर भिजवा दिया था, अब शायद वह पुलिस के अधिकार में होगी ।"
प्रमोद कई क्षण सुषमा को घूरता रहा और फिर एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ गंभीर स्वर में बोला "सुषमा तुम वह लड़की नहीं हो जो रात के दो बजे खोसला को तस्वीर लेकर नीचे उतरती दिखाई दी थी । तुम्हें किसी प्रकार मालूम हो गया था कि कोई लड़की उस समय पिछली सीढियों से दोनों हाथों में तस्वीर थामे उतरती देखी गई थी । तुम्हें यह बड़ी सुरक्षित स्कीम मालूम हुई कि तुम यह धोखा दो कि वह लड़की तुम थीं । अपने कथन की सत्यता प्रमाणित करने के लिए तुम्हें जरूरत थी जगन्नाथ की पोर्ट्रेट की । उसका इंतजाम तुमने कविता से करवा लिया । कविता चुपचाप कमला माथुर के फ्लैट में जा छुपी और तुम्हारे बनाये जगन्नाथ के कुछ स्कैचों की सहायता से उसने सारी रात काम करके जगन्नाथ की एक गुजारे लायक नई पोर्ट्रेट तैयार कर डाली । कविता जैसे महान आर्टिस्ट के लिए यह कोई कठिन काम नहीं था । आज सुबह जब मैं कमला माथुर के फ्लैट पर पहुंचा था, उस समय कविता तुम्हारी बनाई पोर्ट्रेट में सुधार नहीं कर रही थी, बल्कि नई पोर्ट्रेट तैयार कर रही थी ।"
सुषमा के चेहरे का रंग उड़ गया ।
"यह झूठ है ।" - वह कम्पित स्वर में बोली - "खोसला ने जिसे देखा था वह लड़की मैं ही थी ।"
"नहीं, जो तुम कह रही हो, वह झूठ है । सुषमा, जरा सोचो । जो औरत वास्तव में रात को दो बजे वह तस्वीर लेकर फ्लैट से निकली थी जब वह सामने आ जायेगी तब तुम्हारे इस बयान में क्या वजन रह जायेगा ? मैं उस दूसरी औरत को जानता हूं । जगन्नाथ की असली तस्वीर उसके पास है और वह समझती है कि तुम हत्यारी हो ।"
सुषमा चुप रही ।
"पहले मुझे तस्वीरों की गड़बड़ समझ नहीं आई थी । मैं समझा था कि राजेन्द्र नाथ ने ही कोई शरारत की है और तस्वीर गलत हाथों में पहुंच गई है। लेकिन अब बात स्पष्ट हो गई है कि तस्वीरें वास्तव में दो हैं । "
सुषमा कुछ नहीं बोली ।
"क्या हुआ था ?" - प्रमोद ने सांत्वनापूर्ण स्वर में पूछा
“पिछली रात मैं जगन्नाथ की पेन्टिंग को फिनिशिंग टच देने के लिए उसके फ्लैट पर गई थी । काम के बाद जगन्नाथ ने मुझे चाय पिलाई थी जिसमें उसने कोई नशीली चीज मिला दी थी। मैं बेहोश हो गई थी। लगभग तीन बजे मुझे होश आया था। मैं लड़खड़ाती हुई सी कमरे से बाहर निकली थी और मुझे बाहर के कमरे में मेज पर औधे मुंह पड़े जगन्नाथ की लाश दिखाई दी थी । "
"लाश के आसपास स्लीवगन भी पड़ी थी ?"
“सम्भव है पड़ी हो, लेकिन मुझे दिखाई नहीं दी थी । मेज पर उसके दायें हाथ के समीप सौ-सौ की दो-तीन गड्डियां पड़ी थीं । "
"उस समय वहां और कोई था ?"
" मैंने देखा नहीं । मैं तो उसकी लाश देखकर एकदम दहल गई थी और जो पहला खयाल मेरे दिमाग में आया था, वह यह था कि मैं वहां से भाग निकलूं और यही मैंने किया भी । सामने के दरवाजे पर तो भीम सिंह बैठा रहता था । मुझे पिछले दरवाजे की जानकारी थी । वह दरवाजा बाहर से तो चाबी से ही खुलता था लेकिन भीतर से वह केवल एक हैण्डिल घुमाकर खोला जा सकता था। मैंने दरवाजा खोला और भाग निकली ।"
"तुमने अपने पीछे दरवाजा बन्द नहीं किया था ?”
"सम्भव है न किया हो । मुझे याद नहीं । "
" उस समय कितने बजे थे ?"
"तीन ।”
"तुम सीधी अपने फ्लैट पर आई थीं ?"
"हां"
"तुम वहां से निकलकर सीधी अपने फ्लैट में गई थीं?"
"हां ! कविता अभी जाग रही थी। वह भी थोड़ी देर पहले ही बाहर से लौटी थी। मेरे आने पर राजेन्द्र नाथ भी जाग गया। मैंने सच-सच सारी बात कविता को बात दी। फिर राजेन्द्र नाथ ने ही राय दी थी कि वास्तव में जगन्नाथ मरा भी है या नहीं । सम्भव है, वह नशे में बेसुध पड़ा हो और मैंने उसे मरा हुआ समझ लिया हो । राजेन्द्र नाथ फौरन ही राबर्ट स्ट्रीट चला गया। उसने लौटकर बताया कि जगन्नाथ वाकई मर गया था और पुलिस वहां पहुंच चुकी थी । उसी ने बताया कि दो बजे खोसला नाम के एक आदमी ने पिछवाड़े की सीढियों में एक लड़की को जगन्नाथ की तस्वीर लेकर नीचे उतरते देखा था । कैनवस के विशाल आकार के कारण खोसला उस लड़की को सूरत नहीं देख सकता था । राजेन्द्र नाथ की ही राय थी कि अगर हम बाद में अपनी बात की सत्यता प्रमाणित करने के लिए जगन्नाथ की डुप्लीकेट पोर्ट्रेट तैयार कर सकें तो मैं यह दावा कर सकती हूं कि दो बजे जगन्नाथ के फ्लैट से बाहर आने वाली लड़की मैं थी । कविता को यह विचार बहुत पसन्द आया । मेरे पास जगन्नाथ की पोर्ट्रेट के ओरिजिनल स्कैच थे । कविता ने वे स्कैच ले लिए और फिर उसने फौरन ही कमला माथुर के फ्लैट पर जाकर पोर्ट्रेट तैयार करनी शुरू कर दी । कविता का कहना था कि पुलिस को कमला माथुर के फ्लैट के का खयाल बड़ी मुश्किल से आयेगा । अत: उसे पोर्ट्रेट बनाने के लिये पर्याप्त समय मिल जायेगा । अगली सुबह दस-ग्यारह बजे तक ही उसने जगन्नाथ की एक गुजारे लायक पोर्ट्रेट तैयार कर ली थी । बाद में वह पोर्ट्रेट राजेन्द्र नाथ वहां से ले आया था । "
"तुम लोगों ने यह नहीं सोचा कि अगर असली लड़की जो वास्तव में दो बचे जगन्नाथ के फ्लैट से आ गई थी, उसकी पोर्ट्रेट के साथ सामने आ गई तो क्या होगा ।”
"उस वक्त नहीं सोचा था न !" - सुषमा निराश स्वर में बोली- “उस वक्त तो राजेन्द्र नाथ की स्कीम बड़ी मास्टरपीस लग रही थी । वह कहता था कि अगर असली लड़की सामने आ भी गई तो जरुरी नहीं है पुलिस उसी का विश्वास करे ।”
"तुमने झूठ बोलकर बहुत बड़ी मुसीबत मोल ले ली है, सुसी ।" - प्रमोद चिन्तित स्वर में बोला- असली पोर्ट्रेट जरूर जरूर सामने आयेगी। तब तुम्हारी स्थिति बड़ी गंम्भीर हो जायेगी । पुलिस तुम्हारी कही किसी भी बात का हरगिज विश्वास नहीं करेगी और फिर तुम ही जगन्नाथ की हत्यारी समझी जाओगी । हत्यारे की मदद करने के आरोप में कविता भी फंसेगी ।"
" और राजेन्द्र नाथ भी ?"
"राजेन्द्र नाथ को भाड़ में झोंको । मुझे उसकी चिन्ता नहीं है । "
“क्या ऐसा नहीं हो सकता कि दूसरी तस्वीर के अस्तित्व की भी जानकारी पुलिस को न हो ?" - सुषमा ने भोले स्वर में पूछा ।
प्रमोद गम्भीर मुद्रा बनाये चुप बैठा रहा ।
"ऐसा देवदास मार्का पोज मत बनाया करो खरगोश । मेरा दिल धड़कने लगता है।"
“एक पैग और पियोगी ?"
"क्या इरादा है, खरगोश ।" - सुषमा अपने स्वर में शंका का बनावटी भाव लाती हुई बोली- "कहीं तुम मुझे अखबार की हैड लाइन बनाने के फिराक में तो नहीं हो ?"
"क्या मतलब ?"
"एक नौजवान लड़की" - सुषमा यूं बोली, जैसे अखबार पढ रही हो - "एक नौजवान लड़के के फ्लैट में शराब के नशे में मदहोश पाई गई । होश में आने पर उसने पुलिस को बयान दिया, मुझे नहीं मालूम मैं ऐसी हालत में कैसे पहुंची ? मैं तो बाजार में चाकलेट खरीदने जा रही थी कि मुझे रास्ते में यह युवक मिल गया जिसमे मेरी मामूली जान-पहचान थी । युवक ने अपने फ्लैट पर चाय के लिए आमंत्रित किया, मैंने निमंत्रण स्वीकार कर लेने में कोई हर्ज नहीं समझा और युवक के साथ उसके फ्लैट में चली आई । युवक ने मुझे एक कप में एक गहरे रंग का तरल पदार्थ दिया । जिसे मैं चीनी ढंग की कोल्ड-टी समझकर पी गई । हालांकि उस चाय का स्वाद बहुत कसैला था । उसके बाद मैं होश खो बैठी और मुझे जब होश आया तो मैंने अपने आपको पुलिस के आदमियों से घिरा पाया और मैं... और मैं... मैं लुट चुकी थी ।”
आखिरी कुछ शब्द सुषमा ने इतने नाटकीय ढंग से कहे कि प्रमोद अपनी हंसी न रोक सका ।
सुषमा भी हंसने लगी ।
प्रमोद किचन की ओर बढ़ गया ।
किचन में याट-टो बैठा था ।
"पुलिस ने तुमसे क्या पूछा था, याट-टो ?" - प्रमोद ने कैन्टोनीज से पूछा ।
" उन्होंने तो बहुत कुछ पूछा लेकिन मैं बता कुछ भी नहीं पाया ।” - याट-टो बोला- "मैंने कहा मैं बूढा आदमी हूं, न मुझे अच्छी तरह दिखाई देता हैं न सुनाई देता है । मेरी याददाश्त कमजोर हो गई है। यह तो मेरे मास्टर की कृपा है कि वह मुझे नौकरी से नहीं निकालता । इसलिये मुझे याद नहीं रहता कि मास्टर से कौन लोग मिलने आते हैं । न ही मैं किसी की सूरत याद रख पाता हूं इसलिये अब किसी को पहचान पाने का सवाल ही नहीं उठता। उनके सवालों से मुझे मालूम हुआ कि वे एक ऐसी चीनी लड़की की विशेष रूप से तलाश कर रहे हैं, जिसकी आपसे अच्छी मित्रता हो और जो अक्सर यहां आती हो ।”
याट-टो की प्रश्न सूचक दृष्टि उसकी ओर उठ गई ।
"मैं एक ऐसा काम करना चाहता हूं, जो पेन्टर महिला की जानकारी में नहीं आना चाहिए | क्या तुम ऐसा कोई इन्तजाम कर सकते हो जिससे थोड़ी देर के लिए वह गहरी नींद सो जाये । तुमने एक बार एक बूटी सी घोलकर मुझे भी पिलाई थी । क्या वह... "
"यस सावी । वैरी समाल मैटर ।" - याट-टो आश्वासनपूर्ण स्वर में बोला ।
"आल राइट दैन।" - प्रमोद बोला- "पेन्टर महिला एक पैग विस्की का इन्तजार कर रही है।"
"यस सावी ।"
प्रमोद बाहर निकल आया ।
“याट-टो आ रहा है ।" - वह बोला और फिर सोफे पर बैठा गया ।
"ओके, ओके बाई भी, डोन्ट अपालोजाइज, खरगोश ।" - सुषमा मदभरे स्वर में बोली ।
तभी याट-टो दो पैग विस्की ले आया । पहले उसने एक पैग सुषमा को थमाया और फिर प्रमोद को । फिर वह मुस्कराता हुआ सुषमा से बोला - "यह नई विस्की है । इसका वास्तविक आनन्द तभी आता है जब सारा पैग एक ही घूंट में पी लिया जाये । "
“आल राइट ओल्ड मैन ।" - सुषमा बोली और उसने एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया ।
प्रमोद ने भी वैसा ही किया ।
याट-टो सन्तुष्ट भाव से सिर हिलाता हुआ गिलास उठाकर ले गया ।
"खरगोश ।" - वह झुककर बोली- "अगर लोकसभा में विस्की पीने वालों का बहुमत हो जाये तो जानते हो पहला कानून क्या बनेगा ?"
"क्या ?"
“भारत का जो भी नागरिक एक दिन में कम से कम दो पैग विस्की नहीं पियेगा उसे छ: महीने की कैद या मुशक्कत |"
दोनों ने एक साथ जोर का अट्टाहस किया ।
एकाएक सुषमा एकाएक सीरियस हो गई ।
"खरगोश ।" - वह गम्भीर स्वर में बोली- "एक बात सच-सच बताओगे ?"
"हां।" - प्रमोद सशंक स्वर में बोला ।
"तुम दीदी से अब भी मुहब्बत करते हो । "
"सुसी तुम...."
"मेरी बात का जवाब दो।" - सषुमा तीव्र स्वर में बोली
"हां ।" - प्रमोद ने हिचकिचाकर उत्तर दिया । "तो फिर तुम दीदी से शादी क्यों नहीं करते ?” "कविता नहीं मानती।" - प्रमोद बोला ।
"क्यों ?"
"बहुत सी बातें कहती है वह । कभी कहती है कि मेरी उम्र शादी के योग्य नहीं रही। मैं अब बूढी हो चुकी हूं । हालांकि अभी उसकी उम्र केवल छत्तीस साल है। कभी कहती है, मेरी भावनाएं मर चुकी हैं । अब मैं पूरी इमानदारी से शादी जैसे गंभीर विषय में दिलचस्पी नहीं ले सकती । मुझसे शादी तुम्हारे जीवन में कोई प्रसन्नता नहीं ला सकती । मैं तुम्हारे लिए एक समस्या नहीं बनना चाहती। कभी कहती । मैं तुम्हारे लिए एक समस्या नहीं बनना चाहती । कभी कहती है कि मैं अपनी और प्रमोद की मित्रता में अब सैक्स की भावना नहीं लाना चाहती । इससे एक अच्छी मित्रता में दरार आने का खतरा रहता है । कभी कहती है..."
“नानसैंस ।” - सुषमा उसकी बात काटकर बोली।
“ज्यादा प्रसिद्धि प्राप्त हो जाने के कारण दीदी का दिमाग खराब हो गया है । तुम शादी कर लो उससे ।"
"लेकिन वह माने भी।"
"तो फिर तुम मुझसे शादी कर लो जो माने।" - सुषमा थरथराती हुई आवाज में बोली ।
“क्या मतलब ?"
"मतलब कि मैं । तुम मुझसे शादी क्यों नहीं करते ? मुझसे वह सभी कुछ है जो दीदी में है। मैं सुन्दर हूं, मैंखरगोश.. क्या चीन में कभी तुमने किसी लड़की से.. क्या अपनी उस चीनी सहेली से शादी करोगे... राजेन्द्र नाथ कहता है कि वह मुझ पर मरता है.. तुम्हारा क्या खयाल है खरगोश क्या राजेन्द्र नाथ जैसा गधा किसी पर मर सकता है... नहीं मर सकता ना... खरगोश... मेरा खरगोश आया है, मेरा खरगोश..."
उसके नेत्र मुंद गये और फिर उसका शरीर निश्चेष्ट सा सोफे पर लुढक गया ।
प्रमोद उठकर उसके पास आ गया। उसने सुषमा को अपनी बांहों में उठा लिया और उसे बैडरूम की ओर चला।
के एक क्षण के लिये सुषमा की आंख खुली। उसने धुंधलाई आंखों से अपनी स्थिति और फिर प्रमोद का निरीक्षण किया । फिर एकाएक उसके होंठ प्रमोद के होंठों से जा मिले और उसने नेत्र बन्द कर लिये ।
एक क्षण बाद ही उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और वह
प्रमोद की बांहों में झूल गई ।
प्रमोद ने उसे बैडरूम में ले जाकर पलंग पर लिटा दिया।
याट-टो वहीं था । उसने सुषमा का शरीर कम्बल से ढक दिया ।
प्रमोद जेब से रूमाल निकालकर अपने होंठों पर लगी लिपस्टिक पोंछने लगा ।
"पेन्टर महिला कितनी देर सोयेगी ?" - उसने पूछा ।
"कम से कम एक घन्टा ।" - याट-टो ने उत्तर दिया "इससे पहले यह जागाने से भी नहीं जागेगी । उसके बाद भी यह सोती रहेगी लेकिन जागाये जाने से जाग जायेगी ।"
“मैं जा रहा हूं । इसका खयाल रखना । किसी भी सूरत में इसे यह मालूम नहीं होना चाहिए । कि मैं एक क्षण के लिए भी फ्लैट से बाहर गया था ।"
याट-टो ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
***
0 Comments