दिन के ग्यारह बज रहे थे। आकाश में सुबह से ही बादल थे, जो कि चढ़ते दिन के साथ गहरे होते चले गए थे। पहले बूंदा-बांदी शुरु हुई, फिर वही बूंदा-बांदी तेज बरसात में बदलती चली गई। समंदर पास होने की वजह से, बरसात शुरू होते ही वातावरण में ठंडक आ गई थी। आकाश में छुपे काले बादल इस कदर गहरे थे कि अंधेरा-सा महसूस हो रहा था।

देवराज चौहान और जगमोहन होटल से निकलकर कार पार्किंग में मौजूद कार में बैठे तो कुछ हद तक कपड़े गीले हो गए थे। जब कार सड़क पर पहुंची तो बरसात तेज हो गई थी। गीली सड़कें होने की वजह से, कार की रफ्तार उन्होंने कम ही रखी। पैंतालीस मिनट बाद कार उस कॉलोनी में प्रवेश कर गयी, जहां राजन राव के आदमी उसे जबरदस्ती लाए थे।

"राजन राव वहां मौजूद न हुआ तो?" जगमोहन ने पूछा।

"नहीं हुआ तो उसके आदमी अवश्य उसे खबर कर देंगे, वो जहां भी होगा, आ जाएगा।" देवराज चौहान ने मोड़ काटते हुए शांत स्वर में कहा--- "उसे पक्के तौर पर मेरे आने का इंतजार होगा।"

जगमोहन ने फिर कुछ नहीं कहा।

कुछ देर बाद देवराज चौहान ने उस चार मंजिला इमारत के प्रवेश द्वार के समीप कार रोकी और इंजन बंद करके, वाईपर भी बंद किया। मूसलाधार बरसात में शीशे के बाहर कुछ भी देख पाना ठीक तरह से संभव नहीं हो पा रहा था।

"ये जगह है।" देवराज चौहान ने इमारत को प्रवेश द्वार की तरफ इशारा किया--- "आओ।"

अगले ही पल दोनों ने कार के दरवाजे फुर्ती के साथ खोले। पानी की तीव्र बरसात उन पर पड़ी। दूसरे ही पल वे कार से बाहर थे। और तेजी से दौड़कर इमारत के द्वार से भीतर प्रवेश करके ठिठके। इतने में ही वे काफी भीग गए थे।

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

"पहली मंजिल पर---।" देवराज चौहान ने कहा और सामने नजर आ रहे सीढ़ियों की तरफ बढ़ा।

जगमोहन साथ था।

पहली मंजिल पर स्थित दरवाजे के पास पहुंचकर देवराज चौहान ने बेल बजाई।

दूसरी बार बेल बजाने की जरूरत नहीं पड़ी। दरवाजा खुला। दरवाजा खोलने वाले को देवराज चौहान ने पहचान लिया। ये आदमी उस दिन भी यहीं मौजूद था। उसके चेहरे पर नजर आने वाले भावों से स्पष्ट हो गया था कि उसने देवराज चौहान को पहचान लिया है। वो मुस्कुराया।

"आओ---।"

जगमोहन ने देवराज चौहान पर नजर मारकर कहा।

"ये तो लगता है जैसे हमारे ही इंतजार में है---।"

"हां---।" उसने मुस्कुराकर जवाब दिया--- "इसमें कोई शक नहीं। क्योंकि मुझे कहा गया है कि तुम लोग कभी भी यहां आ सकते हो और मैं तीन दिन से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं---।"

देवराज चौहान आगे बढ़ा और भीतर प्रवेश कर गया जगमोहन भी। वो दरवाजा बंद करके पलटा।

"आप अकेले हो?" देवराज चौहान ने उसे देखा।

"तुम्हारा काम हो जाएगा।"

"क्या मतलब?"

"तुम्हें राजन राव साहब से काम है और वो मौजूद है। मैं उन्हें खबर करता हूं।" कहने के साथ ही वो कमरे के भीतर लगे दूसरे दरवाजे की तरफ बढ़ता चला गया।

दोनों बैठे।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।

दो ही कश लिए होंगे कि राजन राव ने भीतर प्रवेश किया। हर बार की तरह उसका चेहरा शांत था। दोनों को देखकर उसने सिर हिलाया। दोनों से हाथ मिलाया फिर बैठा।

"मैं जानता था कि तुम लोग देर-सवेर में अवश्य आओगे। तो आ गए---।"

दोनों की निगाहें एकटक राजन राव पर थीं।

"तुम्हें विश्वास था कि हम आएंगे। क्यों?" देवराज चौहान बोला।

"क्योंकि तुम मदन मेहता तक पहुंचना चाहते हो और मैं जानता हूं उस तक नहीं पहुंच सकते। और मैं बता चुका हूं कि मैं तुम्हें मदन मेहता तक पहुंचा सकता हूं---।" राजन राव का स्वर शांत था।

"कल मैंने तुम्हें कहा था कि पीछे मत आना। लेकिन तुम फिर भी आए।"

"मैं नहीं आया था। लेकिन मेरा आदमी बराबर तुम पर नजर रख रहा था। उसने मुझे खबर दी कि तुम मदन मेहता वाली मछुआरों की बस्ती में गए हो। मैं समझ गया कि वहां तुम मदन मेहता की तलाश में गए हो और ऐसे में तुम्हारे लिए वहां भारी खतरा था। इसलिए मुझे अपने आदमी लेकर वहां पहुंचना पड़ा। सिर्फ यह सोचकर कि जरूरत पड़ने पर अगर तुम्हारी सहायता कर सकूं तो ठीक है। नहीं तो नहीं। क्योंकि सीधे-सीधे उस बस्ती में जाकर गड़बड़ करने का मतलब है मौत।" राजन राव ने देवराज चौहान और जगमोहन को देखा--- "अगर रात में  मैं या मेरे आदमी वहां न होते तो तुम लोगों के साथ तब कुछ भी बुरा हो सकता था। वो सब एक साथ तुम दोनों पर झपटे थे। और---।"

"अब तुम अपने बारे में बताओ---।" देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांका।

राजन राव की आंखें देवराज चौहान से टकराईं।

"अपने बारे में?" एकाएक वो मुस्कुराया।

"हां---।" देवराज चौहान ने कश लिया--- "नाम तो तुम बता चुके हो राजन राव। लेकिन असल में तुम हो कौन? मेरी सहायता खामखाह तो नहीं करना चाहते। मदन मेहता से तुम्हारा क्या वास्ता? तुम उससे क्या चाहते हो? इस सारे मामले से तुम्हें क्या लेना-देना? कल तुम अपने आदमियों के साथ, खुद को खतरे में डालकर बस्ती तक पहुंच गए कि हो सके तो मुझे बचा लो। मेरी जान न जाने पाए। इतनी दिलचस्पी क्यों है मुझमें, तुम्हारी?"

राजन राव पुनः मुस्कुरा पड़ा।

जगमोहन ने उसे घूरा।

"तुम्हारे सारे ही सवाल बहुत खास-खास हैं। और मैं पहले ही कह चुका हूं कि अपने नाम के अलावा कुछ भी नहीं बताऊंगा। मैं कौन हूं? बेकार का सवाल है। मदन मेहता से मेरा क्या वास्ता है, इस बात से तुम्हें कोई वास्ता होना ही नहीं चाहिए। मेरी तुममें सिर्फ इसलिए दिलचस्पी है कि तुम खतरनाक शख्सियत देवराज चौहान हो और मेरे बताए रास्ते पर, खतरा उठाकर मदन मेहता तक पहुंच सकते हो। अब तुम ये सोचो कि मैं तुम्हारी सहायता खामखाह कर रहा हूं तो गलत सोच रहे हो। आखिर इसमें मेरा भी तो मतलब है और जो मतलब है, उसे तुम मेरे पास ही रहने दो। जब वक्त आएगा तो अपने मतलब की वसूली मैं खुद कर लूंगा।"

देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं।

"ये तो जरूरत से ज्यादा ही चालू है।" जगमोहन ने तीखी निगाहों से राजन राव को घूरा।

तभी वो ही आदमी ट्रे में चाय के तीन प्याले रखे वहां पहुंचा। प्याले टेबल पर रखे और वापस चला गया।

"चाय लो।" राजन राव ने कहा और चाय का प्याला उठा लिया---  "देवराज चौहान तुम मदन मेहता तक पहुंचना चाहते हो और ये काम लगभग असंभव है। इतना तो अब तुम्हें महसूस हो चुका होगा। तभी तो यहां आए हो। और मैं तुम्हें मदन मेहता तक पहुंचा सकता हूं। तुम्हारी जगह मैं होता तो सबकुछ भूलकर मदन मेहता तक पहुंचने की सोचता। बेकार के सवालों में खुद को नहीं उलझाता। मेरे बारे में दिलचस्पी समाप्त करो तो बात आगे बढ़ सकती है।"

देवराज चौहान और जगमोहन ने चाय के प्याले उठाए। घूंट भरे। कुछ पल खामोशी में बीत गए।

"ठीक है।" देवराज चौहान बोला--- "मैं मदन मेहता तक कैसे पहुंच सकता हूं---।"

"हूं---।" राजन राव ने हौले से सिर हिलाया--- "बढ़िया। तीन-चार दिन बाद मैं तुम्हें फोन करूंगा। आ जाना। आगे की बात करूंगा।"

"क्या मतलब?"

"तुम्हारी हां सुन ली। अब मैं आगे की तैयारी करूंगा।"

"आगे की तैयारी?"

"हां---। तुम्हें मदन मेहता तक पहुंचाने की तैयारी---।"

देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।

"एक बात तो बताओ।"

"क्या?"

"तुम मुझे मदन मेहता तक पहुंचा सकते हो। लेकिन खुद नहीं पहुंच सकते---। ऐसा क्यों?" देवराज चौहान ने पूछा।

"इसकी कई वजह हैं।" राजन राव गंभीर स्वर में कह उठा--- "पहली वजह तो यह है कि मदन मेहता के कई आदमी मुझे पहचानते हैं। मैं पहचाना जा सकता हूं। यानी कि मदन मेहता तक पहुंचते-पहुंचते रास्ते में ही फंसकर अपनी जान गंवा बैठूंगा। दूसरी वजह ये है कि मदन मेहता का इस वक्त जहां है, वहां तक पहुंचने के लिए जो काबिलियत चाहिए। वो मुझमें नहीं है। मैं कहीं भी चूक सकता हूं---।"

"और तुम्हारे ख्याल में मुझसे कहीं भी चूक नहीं होगी।"

"नहीं।"

"ऐसा विश्वास क्यों है मुझ पर---?"

"क्योंकि तुम देवराज चौहान हो और देवराज चौहान क्या दम रखता है, मैं अच्छी तरह जानता हूं।"

"ये तो कोई विश्वास का आधार नहीं हुआ। मेरा नाम किसी चीज की गारंटी तो नहीं---।"

"तुम्हारी निगाहों में गारंटी बेशक गारंटी नहीं, लेकिन मेरे लिए तुम किसी गारंटी से कम नहीं हो। ये बात मेरे लिए रहने दो। तुम पर मेरा विश्वास अपनी जगह पर कायम है।" राजन राव मुस्कुरा पड़ा--- "तुममें हर वो गुण है, जो किसी काबिल कमांडो में होता है, और ऐसा ही इंसान ठीक-ठाक मदन मेहता तक पहुंच सकता है और तुम यकीनन पहुंचोगे देवराज चौहान---।"

देवराज चौहान ने चाय का प्याला टेबल पर रखा और बोला।

"माना कि तुम्हारे दिखाए रास्ते पर चलकर मैं मदन मेहता तक पहुंच जाता हूं। तब...?"

"क्या तब?"

"मेरा मतलब है तब मेरा मतलब तो हल हो जाएगा। जो मैं मदन मेहता से चाहता हूं। लेकिन तुम्हारा मतलब कैसे हल होगा, इसके तहत तुम, मेरी सहायता कर रहे हो।" देवराज चौहान ने उसे देखा।

राजन राव पुनः मुस्कुराया।

"तुम मेरा मामला लेकर क्यों परेशान होते हो। अपने काम की तरफ ध्यान दो---।"

"मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम मेरी सहायता करके क्या हासिल करना चाहते हो। ये बात तो मैं मान नहीं सकता कि तुम मेरी सहायता करके हाथ पर हाथ रखे बैठे रहोगे।"

"तीन-चार दिन तक मैं फोन करूंगा। फिर बताऊंगा कि तुम मदन मेहता तक कैसे पहुंचोगे।" राजन राव ने शांत स्वर में कहा--- "मैं आज से ही तैयारी शुरू कर देता हूं---।"

"ये तो पानी नहीं पड़ने दे रहा अपनी बातों पर।" जगमोहन कह उठा--- "अपनी बात ही कहे जा रहा है। दूसरों की बात को तो भाव देने पर ही राजी नहीं।"

"क्योंकि---।" राजन राव मुस्कुराया--- "मदन मेहता तक तुम लोगों ने मेरी सहायता से पहुंचना है। मैंने नहीं। ऐसे में अपने काम से मतलब रखना ही ठीक है तुम लोगों के लिए। मैंने तो तुमसे कुछ नहीं मांगा। तुम तो मेरी सहायता नहीं कर रहे।"

जगमोहन ने होंठ सिकोड़कर देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।

"तुम ठीक कहते हो। गरज हमारी ही है।" कहते हुए देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ--- "मैं तुम्हारे फोन का इंतजार करूंगा।"

जगमोहन ने गहरी सांस ली। वो भी उठ खड़ा हुआ।

"हां।" राजन राव सिर हिलाकर कह उठा--- "मैं फोन करूंगा। लेकिन एक बात है।"

"क्या?"

राजन राव उठ खड़ा हुआ।

"तुम, मदन मेहता वाली मछुआरों की बस्ती की तरफ नहीं जाओगे। इस मामले में अब कोई कदम नहीं उठाओगे। मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी किसी हरकत की वजह से मेरी कोशिशें बेकार हो जाएं। अब तुम अपनी तरफ से कोई चेष्टा नहीं करोगे, मदन मेहता तक पहुंचने की---।"

"समझ गया। फिक्र मत करो। कुछ और?"

"तुम इसी बात पर अमल कर लो। यही बहुत है।" राजन मुस्कुरा पड़ा।

देवराज चौहान ने उसे गहरी निगाहों से सिर से पांव तक देखा फिर जगमोहन के साथ बाहर निकलता चला गया। राजन राव कमरे में खड़ा सोच भरी निगाहों से खुले दरवाजे को देखता रहा।

■■■

मूसलाधार बरसात में कोई भी कमी नहीं आई थी। कार तक पहुंचने में दोनों कुछ और भीग गए। कार स्टार्ट करके, वाईपर ऑन करने के पश्चात जगमोहन ने कार आगे बढ़ा दी।

"राजन राव नाम का ये आदमी, मुझे बहुत बड़ा गड़बड़ लगता है।" जगमोहन कह उठा।

"हां---।" देवराज चौहान ने बाहर नजर आ रही बरसात का नजारा करते हुए कहा।

"राजन राव की बात बेहद उलझन में डालने वाली है।" जगमोहन ने सोच भरे स्वर में कहा--- "उसे हमारे मामले में क्या लेना-देना। जरा भी समझ नहीं आ रहा। वो मदन मेहता से क्या चाहता है, मालूम नहीं। वो हमें मदन मेहता तक पहुंचाने के लिए मरा जा रहा है। लेकिन क्यों?"

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

"एक बात तो बताओ---।"

"क्या?" देवराज चौहान ने जगमोहन के चेहरे पर निगाह मारी।

"राजन राव हमें मदन मेहता तक पहुंचाना चाहता है और इस बात के पीछे उसका मतलब क्या है? कहता है, वो खुद ही हल हो जाएगा। सवाल ये पैदा होता है वो हमें मदन मेहता तक पहुंचा देगा। हम अपना काम, जो भी, जैसे भी निपटाना है, निपटाकर आ जाएंगे। इससे उसे क्या मिलेगा? और जो मिलेगा, उसे कैसे हासिल करेगा? क्योंकि उसके मुताबिक वो तो मदन मेहता तक पहुंच नहीं सकता।"

"राजन राव अपनी हर बात छिपा रहा है। अपनी हरकतों के बारे में कुछ नहीं बता रहा। लेकिन ये तो जाहिर है कि हमारे मदन मेहता तक पहुंचने पर, उसका जो भी मतलब है, हल हो जाएगा। अब वो क्या मतलब है? कैसे हल होगा? इस बारे में हमें तब तक जानकारी नहीं मिल सकती, जब तक कि वो खुद न बताए---।" देवराज चौहान ने कहा।

"वो हमें गहरे अंधेरे में रखकर हमें इस्तेमाल कर रहा है।" जगमोहन बोला--- "ऐसे में हम मुसीबत में भी फंस सकते हैं।"

"ये खतरा तो हमें अब उठाना ही पड़ेगा।"

"क्यों?"

"राजन राव के साथ जबरदस्ती तो नहीं कर सकते कि वो असल बात बताए कि हमें मदन मेहता तक पहुंचाने के पीछे उसका असल खेल क्या है। ऐसे में वो मदन मेहता तक पहुंचाने में इंकार कर सकता है और हमें मदन मेहता की सख्त की जरूरत है। इसलिए उसके कहने के मुताबिक एक तरह से हमें आंखों पर पट्टी बांधकर ही आगे बढ़ना होगा। बाद में अगर कोई गड़बड़ होती है तो--- जो कि होगी तो उस गड़बड़ के हालातों के मुताबिक निपटना होगा।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "उसे इस बात का बखूबी अहसास है कि हमें मदन मेहता की सख्त जरूरत है। वो मुझे राह चलते आसानी से पहचान गया था। उसे मालूम था कि मैं गोवा में मदन मेहता की तलाश में हूं। वो पहले ही मदन मेहता के ठिकाने रेस्टोरेंट ऑफ माईकल पर नजर रख रहा था। यकीनन रेस्टोरेंट पर उसका कोई आदमी फिट है, जैसा कि वो कह भी चुका है। जो वहां की खबरें उस तक पहुंचा रहा है। एक खास बात और भी है।"

"क्या?"

"राजन राव ने मुझसे नहीं पूछा कि मैं मदन मेहता से क्या चाहता हूं---।"

जगमोहन ने कार ड्राइव करते देवराज चौहान पर निगाह मारी।

"इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि वो जानता है कि मदन मेहता से मुझे क्या काम है---।"

"तुम्हारा मतलब कि उसे मालूम है, मुंबई में हमारा क्या मामला हुआ है।" जगमोहन ने कहा।

"अभी तक की बातों से तो यही जाहिर होता है वरना वो अवश्य पूछता कि मुझे मदन मेहता क्यों चाहिए।"

जगमोहन कुछ नहीं बोला।

तीव्र बरसात की वजह से कार धीमी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी।

"तो अब फाइनल तुमने क्या सोचा?"

"हमारे पास सोचने को कुछ नहीं है। मदन मेहता तक पहुंचने के लिए हमें भारी खतरों का सामना करना पड़ेगा और फिर भी पक्का नहीं है कि हम उसे पा लेंगे। ऐसे में राजन राव की बात माननी हमारी मजबूरी है। क्योंकि मदन मेहता तक मैं हर हाल में पहुंचना चाहता हूं---। और राजन राव जो रास्ता बताएगा, वो अवश्य सुरक्षित होगा।"

"राजन राव अपनी हकीकत छिपा रहा है।"

"हकीकत छिपाने के लिए ही तो वो अपना असल मामला हमारे सामने नहीं रख रहा। लेकिन वो भी चाहता है। हमारी सहायता के पीछे उसका क्या मतलब है, देर-सवेर सामने तो आएगा ही---।" देवराज चौहान ने कहा।

"अजीब मुसीबत है। हमें राजन राव के अंधे इशारे पर नाचने पर मजबूर होना पड़ रहा है।"

"वो हमें नाचने को नहीं कह रहा।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "हमारी अपनी जरूरत ही, हमें उसके पास लेकर गई है। राजन राव के मस्तिष्क में क्या है, ये जानने से ज्यादा जरूरी, इस वक्त मदन मेहता हमारे लिए जरूरत बन चुका है। चाचा के सामने भी खुद को बेगुनाह साबित करना है। वानखेड़े को बताना है कि ये काम हमने नहीं, मदन मेहता ने किया है। और ये बात मदन मेहता आसानी से मानने वाला नहीं है। यानी कि असल दिक्कत तो तब हमारे सामने पेश आएगी, जब मदन मेहता हमारे सामने होगा। क्योंकि हमारे पास कोई ठोस सबूत नहीं कि खांडेकर की पत्नी के साथ बलात्कार और हत्या उसी ने की है। उसे बातों में उलझाकर उसके मुंह से सच्चाई निकलवानी पड़ेगी और वो खेला-खाया इंसान है बच्चा तो है नहीं जो, सच को आसानी से मानकर मुसीबत और कानून का फंदा अपने गले में डाल लेगा।"

चंद पलों की खामोशी के बाद जगमोहन बोला।

"अगर मदन मेहता अपना अपराध मान लेता है तो उसे मछुआरों की बस्ती से बाहर लाना भी आसान नहीं। वो बस्ती तो उसके लिए सुरक्षित किले के समान है। वहां कदम-कदम पर उसके हितेषी मौजूद हैं।"

"तुम ठीक कहते हो। लेकिन ये बाद की बात है। पहली बात मदन मेहता तक पहुंचने की है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "बेशक राजन राव हमें मेहता तक पहुंचाएगा, लेकिन राजन राव का ये कहना भी कोई गारंटी नहीं है। कोई भी मुसीबत हमें रास्ते में ही अपने आप में लिपटा सकती है। क्योंकि मदन मेहता जहां भी होगा, निश्चिंत होकर तो बैठा नहीं होगा। सुरक्षित होने के बावजूद भी उसने अपनी सुरक्षा का इंतजाम कर रखा होगा कि कोई सबकी आंखों में धूल झोंककर हवा का दामन थामकर उस तक न पहुंच जाए---। मेरे ख्याल में अब वो और भी होशियार हो गया होगा। माईकल उसे बता चुका होगा कि मैं यानी कि देवराज चौहान उसकी तलाश में गोवा आ चुका है।"

जगमोहन होंठ सिकोड़कर सिर हिलाकर रह गया।

बरसात कम होने का नाम नहीं ले रही थी।

वे दोनों होटल में पहुंचे तो दोपहर के ढाई बज रहे थे और वानखेड़े को कमरे में मौजूद पाया।

■■■

"मैं दो घंटों से यहां बैठा हूं---।" वानखेड़े ने कहा। उसके कपड़े भी कुछ गीले थे।

"बैठो-बैठो।" जगमोहन ने लापरवाही पर कहा--- "बिन बुलाए मेहमान के साथ अक्सर ऐसी स्थिति आ जाती है।" कहने के बाद उसने देवराज चौहान को देखा--- "लंच के लिए कह दूं---।"

देवराज चौहान ने सहमति में सिर हिला दिया।

"तुम लंच लोगे?"

"क्यों नहीं।" वानखेड़े मुस्कुराया--- "भूख लग रही है और लंच का वक्त निकलता जा रहा है।"

जगमोहन ने इंटरकॉम पर रूम सर्विस को लंच के लिए आर्डर दिया।

तब देवराज चौहान बैठ चुका था।

जगमोहन इंटरकॉम का रिसीवर रखकर पलटा और वानखेड़े से बोला।

"तुमने कल कहा था कि मदन मेहता के बारे में जानकारी हासिल करोगे।"

"हां। की।" वानखेड़े के चेहरे पर गंभीरता नजर आई--- "पुलिस से भी और स्थानीय लोगों से भी मदन मेहता के बारे में जानकारी ली। मेरे ख्याल में मदन मेहता तक पहुंचने में तुम लोगों को भारी अड़चन रही होगी।"

"तुमने क्या मालूम किया?"

"मोटे तौर पर तो मदन मेहता के बारे में ये मालूम हुआ कि वो खतरनाक आदमी है। पैसे के लिए, जो कुछ भी कर जाए वो कम है। उससे किसी भी बात की आशा की जा सकती है। दौलत ही उसका एकमात्र धर्म है और जीने का उद्देश्य है। वो सिर्फ अपनी मछुआरों की बस्ती में कोई गलत काम नहीं करता। मछुआरों पर कोई मुसीबत आए तो हर तरह से उनकी सहायता करता है। वहीं उसका जन्म हुआ। वहीं पला-बड़ा हुआ। मछुआरे उसकी इज्जत भी करते हैं और उससे डरते भी हैं। मदन मेहता पर कोई मुसीबत आ जाए तो मछुआरों की पूरी बस्ती उस का साथ देती है। पुलिस भी बेशक उस एक मील लंबी-चौड़ी बस्ती को घेर ले। लेकिन मदन मेहता को नहीं पा सकती।"

"और---?"

"कोई बाहरी व्यक्ति, जैसे कि तुम लोग, उस तक बस्ती में नहीं पहुंच सकते। खासतौर से तब, जबकि उसे इस बात का अहसास हो कि कोई उस तक पहुंचने की चेष्टा कर रहा है।" वानखेड़े ने दोनों पर निगाह मारी--- "अगर कोई मदन मेहता की टोह में मछुआरों की बस्ती में पहुंच जाता है और वहां के लोगों को उसके बारे में मालूम हो जाता है तो फिर वो कभी जिंदा किसी को नजर नहीं आता? या तो उसकी लाश समंदर में मिलती है तो कभी नहीं मिलती। मदन मेहता के साथ खतरनाक लोग हैं। समंदर में तस्करी का माल आता है। मादक पदार्थो का धंधा वो करता है। सैकड़ों-हजारों साल पुरानी मूर्तियां खास-खास जगहों से उठाकर महंगे दामों पर विदेशियों को बेचता है। किसी खास पार्टी के कहने पर, किसी खास व्यक्ति का अपहरण करके उसे बस्ती में रखवाली के तौर पर रख लेता है और बदले में पार्टी से मोटी रकम वसूल करता है। मतलब कि शायद ही ऐसा कोई गैरकानूनी काम हो जो उसने न किया हो। लेकिन इन सब बातों में खास बात तो ये है कि उसकी हरकतों के बारे में पुलिस वाकिफ तो है, परन्तु उसके खिलाफ कोई सबूत इकट्ठा नहीं कर पाई। सबूत तो तब मिलें, जब उसके साथी उसके खिलाफ हों। परन्तु ऐसा कोई साथी सामने नहीं आया। स्पष्ट है कि अगर मदन मेहता के खिलाफ किसी ने बगावत करने की चेष्टा की, तो उसे खत्म कर दिया गया। पुलिस के मुताबिक यदा-कदा समंदर से मछुआरों की लाशें भी मिल जाती है, परन्तु उनके बारे में रिपोर्ट करने कोई पुलिस तक नहीं पहुंचता।"

"यानी कि मदन मेहता हर वक्त सतर्क रहने वाला इंसान है।" जगमोहन के होंठों से निकला।

"और वो किसी पर विश्वास नहीं करता। लेकिन किसी पर जाहिर नहीं होने देता कि वो उस पर अविश्वास कर रहा है। यानी कि मोटे तौर पर मदन मेहता खेल नहीं है कि उस पर हाथ डाला जा सके---।"

कई पलों तक वहां खामोशी रही।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।

"मेरे ख्याल में---।" वानखेड़े ने व्याकुल से निगाहों से दोनों को देखा--- "मदन मेहता के बारे में जानने के बाद मैं इसी नतीजे पर पहुंचा हूं कि खांडेकर की बीवी के मामले में तुम लोग खुद को निर्दोष साबित नहीं कर सकते। मदन मेहता पर हाथ नहीं डाल सकते और डाल भी लिया तो, उस जैसे इंसान से कुछ भी नहीं उगलवाया जा सकता।"

"तुम्हारा कहना गलत नहीं है।" देवराज चौहान का स्वर सख्त हो गया--- "ये बातें हम भी महसूस कर चुके हैं, लेकिन उसे छोड़े बिना तो हम भी टलने वाले नहीं। वो नहीं माना तो, दूसरा रास्ता भी मेरे पास है।"

"कैसा रास्ता?"

"ये जानना पुलिस वालों के लिए जरूरी नहीं है। लोहा ही जानता है कि लोहे को कैसे काटा जा सकता है।" देवराज चौहान के स्वर में खतरनाक भाव झलक उठे थे। चेहरा कठोर हो गया था।

वानखेड़े कुछ कहने लगा कि तभी दरवाजे पर थपथपाहट हुई। जगमोहन ने दरवाजा खोला तो लंच के साथ वेटर को खड़े पाया। वेटर टेबल पर लंच लगा गया। तीनों लंच के दौरान बातें करने लगे।

"ये बाद की बातें हैं। मेरे ख्याल में मदन मेहता तक पहुंच पाना ही तुम लोगों के लिए असंभव है।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा--- "सब कुछ जानने के बाद मुझे तो उस तक पहुंचने का कोई रास्ता नजर नहीं आया। पुलिस से उसके बारे में खुलकर बात हुई है। यहां की पुलिस का भी यही मानना है कि मदन मेहता की इच्छा के बिना, मछुआरों की बस्ती में उस तक नहीं पहुंचा जा सकता। इस बारे में सोचना वक्त बर्बाद करना है।"

"कहना तो तुम्हारा ठीक है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "लेकिन कोई हमें मिला है, जो हमें मदन मेहता तक पहुंचा देने की बात कहता है।"

वानखेड़े ने आंखें सिकोड़कर उसे देखा।

"कौन है वो?"

"वो अपने बारे में बता नहीं रहा। मुझे उसके नाम के अलावा कुछ नहीं मालूम। और उसे ज्यादा कुरेदना ठीक भी नहीं समझा, क्योंकि मैं मदन मेहता तक पहुंचने से पहले कोई अड़चन नहीं देखना चाहता।"

"तुम्हें विश्वास है कि वो तुम्हें मदन मेहता तक पहुंचा देगा?" वानखेड़े ने पूछा।

"इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं, मदन मेहता तक पहुंचने का।" खाने के दौरान देवराज चौहान ने कहा--- "ऐसे में तो जो भी रास्ता आये, उस पर विश्वास करना मजबूरी है।"

खाने के पश्चात उन्होंने उठकर हाथ-मुंह धोये कि दरवाजे पर थपथपाहट पड़ी।

वेटर आया सोचकर, जगमोहन ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला तो सामने ब्रिंगेजा को खड़े पाया। उसके एक कदम पीछे दो आदमी मौजूद थे।

जगमोहन उसे नहीं पहचानता था।

"कहिए?" जगमोहन ने ब्रिंगेजा को देखा।

ब्रिंगेजा ने कुछ कहने की अपेक्षा जगमोहन के कंधे पर हाथ रखकर उसे पीछे धकेला और भीतर प्रवेश कर गया। वो दोनों व्यक्ति भी भीतर आ गए।

जगमोहन अचकचाया।

ब्रिंगेजाके साथ उस आदमी ने भीतर से दरवाजा बंद करके सिटकनी चढ़ा दी।

■■■

"कौन हो तुम लोग?" जगमोहन की आंखें सिकुड़ गईं। हाथ जेब की तरफ सरका।

तब तक ब्रिंगेजा की निगाह, देवराज चौहान की नजरों से टकरा चुकी थी। ब्रिंगेजा को इस तरह आया देखकर देवराज चौहान मन-ही-मन सतर्क हो उठा था। कम-से-कम उसने ब्रिंगेजा के यहां तक आ जाने के बारे में न सोचा था।

देवराज चौहान के चेहरे के भावों से जगमोहन समझ गया कि वो आने वाले को जानता है।

वानखेड़े ब्रिंगेजा को गहरी निगाहों से देख रहा था।

"मुझे यहां देखकर हैरान हो रहे हो---?" ब्रिंगेजा भिंचे स्वर में कह उठा।

"हैरानी वाला वक्त तो पीछे रह गया।" देवराज चौहान शब्दों को चबाकर बोला--- "इस वक्त तो मैं ये सोच रहा हूं कि मेरे सामने मदन मेहता मौजूद है या ब्रिंगेजा।"

"माईकल से तुम्हारी बात हो चुकी है।" ब्रिंगेजा सख्त स्वर में कह उठा--- "मैं जानता हूं तुम मेरे बारे में जान चुके हो। लेकिन तुमने अपना नाम मुझे सुरेंद्र पाल बताया था और हो देवराज चौहान। माईकल ने बताया।"

"ठीक बोला वो---।"

"अगर पहले बता देते कि तुम देवराज चौहान हो तो बात ठीक तरह हो जाती---।" ब्रिंगेजा बोला।

"यहां तक कैसे पहुंचे?" देवराज चौहान बोला।

"गोवा में किसी को तलाश करना, खासतौर से तब, जबकि वो किसी होटल में ठहरा हो, तो उसे तलाश करने में मुझे आधे घंटे से ऊपर का वक्त नहीं लगता।" ब्रिंगेजा की निगाह जगमोहन और वानखेड़े की तरफ उठी फिर देवराज चौहान पर आकर ठहर गई--- "कल तुम मदन मेहता की, मछुआरों की बस्ती में गए थे।"

देवराज चौहान उसे घूरता रहा।

"तुम क्या सोचते हो, इस तरह तुम मदन मेहता तक पहुंच जाओगे---?" ब्रिंगेजा का स्वर कठोर हो गया--- "ऐसा करके तुम अपनी मौत को करीब बुला रहे हो। एक बार वहां से जिंदा बच आए तो जरूरी नहीं कि दूसरी बार भी तुम वहां से सही-सलामत ही निकल आओ।"

देवराज चौहान उसे देखता रहा।

"माना कि तुम देवराज चौहान हो। लेकिन ये गोवा है। यहां तुम्हारी नहीं चल सकती। बेकार के हाथ-पांव मत मारो। यहां तुम अपनी गाड़ी नहीं हांक सकते। इस तरह झगड़ा खड़ा करने का कोई फायदा नहीं। तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा। रात मरने वाले मदन मेहता के खास आदमी थे। लाला भाई की मौत पर उसे दुख हुआ। मैं तो यही चाहता था कि तुम्हें देख लिया जाए, लेकिन मदन ने मना कर दिया। बोला, तुम्हें समझा दूं---।"

देवराज चौहान के चेहरे पर जहरीली मुस्कान उभरी।

"कौन है ये---?" वानखेड़े ने पूछा।

ब्रिंगेजा ने उसे देखा।

"मेरे जाने के बाद पूछ लेना। बीच में मत बोलो।"

वानखेड़े होंठ भींचकर रह गया।

जबकि जगमोहन उसकी बातों से उसके बारे में जान चुका था कि वो कौन है।

"क्या समझाने आए हो मुझे---?" देवराज चौहान की आवाज में सख्त तीखे भाव थे।

"मदन, माईकल के द्वारा तुम्हें पहले ही बता चुका है कि मुंबई में उसने ऐसा कोई कत्ल नहीं किया कि गोवा आकर तुम उसकी तलाश में लग जाओ। वो---।"

"जब माईकल ने मुझे ये बात कही तो मैंने माईकल से एक बात पूछी थी ब्रिंगेजा---।"

"क्या?"

"कि उसे विश्वास है, मदन मेहता जो कह रहा है, सच कह रहा है। इस पर वो ये नहीं कह सका कि मदन मेहता सच कह रहा है और मदन मेहता के बारे में जो बातें मेरे सामने आई हैं, उन्हें सामने रखकर इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि वो शख्स शायद कभी सच नहीं बोलता।" देवराज चौहान की आवाज में तीखे भाव आ गए थे--- "तुम्हारा क्या ख्याल है मदन मेहता ने ये बात सच कही है?"

ब्रिंगेजा के चेहरे पर भूचाल के भाव उभरे, परन्तु उसने खुद पर काबू पाया।

"वो मेरा खास है और मैं नहीं देखता-सोचता कि उसने क्या किया है और क्या नहीं। उसने कहा, तो मैं तुम्हें समझाने आया हूं लेकिन दोबारा समझाने नहीं आऊंगा।" ब्रिंगेजा के स्वर में मौत के भाव थे--- "अबकी बार सामने आया तो तुम्हें अपनी जान गंवानी पड़ेगी। बिस्तर बोरिया गोल करो और निकल जाओ गोवा से। मदन मेहता से तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा। क्योंकि मैं बीच में मौजूद हूं---।"

"ब्रिंगेजा।" देवराज चौहान सख्त स्वर में बोला--- "मदन मेहता से मिले बिना मैं गोवा से नहीं जाऊंगा।"

"पक्का कहते हो।" ब्रिंगेजा के दांत भिंच गए।

"मैं पक्का ही कहता हूं।"

"कोई और वक्त होता तो तुम्हारा ये जवाब तुम्हारी मौत की वजह बनता। लेकिन मदन मेहता ने कहा कि इस बारे में तुम्हें सिर्फ समझाऊं। समझा दिया।" ब्रिंगेजा ने काले स्वर में कहा--- "अगर इतना ही दमखम मानते हो खुद में तो मदन मेहता की तरफ कदम बढ़ाना। उसकी बस्ती में कदम भी रखने की कोशिश करना। फिर तुम देखोगे कि ब्रिंगेजा कैसी कमाल की मौत देता है तुम्हें।" इसके साथ ही ब्रिंगेजा पलटकर दरवाजे की तरफ बढ़ा। उनके आदमी ने फौरन आगे बढ़कर सटकनी हटा दी।

ब्रिंगेजा अपने दोनों आदमियों के साथ बाहर निकलता चला गया।

देवराज चौहान दांत भींचे खुले दरवाजे को देखता रहा। चेहरे पर सख्ती लिपटी नजर आ रही थी। उसका चेहरा बता रहा था कि ब्रिंगेजा को न चाहते हुए भी उसने बर्दाश्त किया है।

"साले की अक्ल ठिकाने लगा देनी चाहिए थी---।" खतरनाक स्वर में कहते हुए जगमोहन आगे बढ़ा और दरवाजा बंद करने के पश्चात सिटकनी चढ़ाकर पलटा।

देवराज चौहान ने अपना सख्त चेहरा इंकार में हिलाया।

"इस वक्त मेरा एकमात्र मकसद मदन मेहता तक पहुंचकर उसे कब्जे में लेना है। ऐसे में कोई और जगह खड़ा करना हमारे लिए ठीक नहीं होगा। ऐसे में हम अपने लक्ष्य से भटक सकते हैं।" देवराज चौहान बोला।

"लेकिन वो हमारे पास आकर हमें धमकी---।"

"ब्रिंगेजा यहां खुद यहां नहीं आया, बल्कि उसे मदन मेहता ने भेजा है। मदन मेहता की कोशिश है कि हम उसकी तरफ से बढ़ें और मामला यहीं खत्म करके वापस चले जाएं।" देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा--- "शायद वो भी नहीं चाहता कि हम उसे लेकर कोई शोर-शराबा पैदा करें, गोवा में---?"

"अगर खांडेकर की पत्नी के मामले में उसका हाथ नहीं होता तो कम-से-कम एक बार तो वो हमारे सामने आकर बात करता। माईकल या ब्रिंगेजा द्वारा हमसे बात न करता।" जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा--- "लेकिन मदन मेहता जानता है कि वो हमारे सामने आ गया तो हम उसे छोड़ेंगे नहीं---।"

"मामला क्या है। कौन था ये---?" वानखेड़े ने पूछा।

जगमोहन ने उसे बताया कि ब्रिंगेजा कौन था।

सुनकर वानखेड़े ने कहा।

"ये तो अब और भी खतरे वाली बात हो गई---। जो, तुम्हें मदन मेहता तक पहुंचाने को कह रहा है, वो जब अपनी कोशिश जारी करेगा तो तब ब्रिंगेजा बीच में कोई मुसीबत खड़ी कर सकता है।"

"ऐसा हो सकता है।" देवराज चौहान ने कहा--- "मुझे पूरा विश्वास है कि ब्रिंगेजा के आदमी हम पर नजर रखेंगे कि उसे मालूम होता रहे कि हम क्या कर रहे हैं और ठीक वक्त पर वो हमसे निपटेगा। ऐसे में ब्रिंगेजा से सावधान रहना होगा। जो भी हम पर नजर रख रहे हैं, उनसे खुद को बचाकर रखना होगा। इसके लिए जरूरी है कि पहले उन लोगों को पहचाना जाए---।"

"हमारे पास वक्त है।" जगमोहन दांत भींचकर कह उठा--- "राजन राव ने हमें तीन-चार दिन बाद फोन करना है। इस दौरान कम-से-कम इतना तो पहचान सकते हैं कि कौन हम पर नजर रखे हुए हैं और उससे कैसे पीछा छुड़ाया जा सकता है।"

वानखेड़े उठ खड़ा हुआ। चेहरे पर गंभीरता थी।

"मेरे ख्याल में मदन मेहता तक पहुंचने में जितनी देर हो रही है, तुम लोगों के सामने उतनी ही मुसीबतें खड़ी होती जा रही हैं। ये मामला जल्दी निपटाना चाहिए---।"

"मदन मेहता तक पहुंचना हमारे हाथ में होता तो हमने कब का ये मामला निपटा दिया होता।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा--- "इस वक्त हम खुद दूसरे पर निर्भर होकर चल रहे हैं।"

वानखेड़े ने हौले से सिर हिलाया।

"मैं नहीं जानता ये मामला तुम कैसे निपटाओगे। लेकिन इस मामले में जो भी होगा, उसका अंत देखकर ही मैं गोवा से जाऊंगा। बेशक जितना भी वक्त लग जाए।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा--- "क्योंकि मुंबई पहुंचते ही मैंने खांडेकर की पत्नी के बारे में फाइनल रिपोर्ट देनी है कि उसका जुर्मी कौन है। अगर तुम खुद को इस मामले में बेगुनाह साबित नहीं कर सके तो मजबूरी में खांडेकर की पत्नी के साथ हुए बलात्कार और हत्या के साथ तुम लोगों का नाम लगाना पड़ेगा। ऐसे में तुम कानून की निगाह में और भी खतरनाक बन जाओगे। बेहतर यही होगा कि अपने काम की रफ्तार तेज करो। जिसने भी ये सब किया है, उसे सामने लाओ।"

देवराज चौहान दांत भींचकर रह गया।

"अजीब मुसीबत है।" जगमोहन कड़वे स्वर में कह उठा--- "कानून को ये साबित करके दिखाना पड़ रहा है कि अपराध हमने नहीं किया है। कितनी अजीब बात है।"

"ये सब इसलिए हो रहा है कि इस मामले में सारे सबूत तुम लोगों के खिलाफ हैं। कानून तुम्हें मजबूर नहीं कर रहा कि तुम लोग ये बात साबित करो। इस मामले में अपना दामन पाक-साफ रखने के लिए तुम ये कोशिश कर रहे हो।" वानखेड़े का स्वर शांत था--- "तुम्हें मेरा शुक्रगुजार होना चाहिए कि मैंने तुम लोगों को सच-झूठ सामने लाने का वक्त दिया। मेरी जगह कोई और होता तो मुंबई में हुए हादसे को तुम दोनों के सिर पर थोपकर, फाइल में मामला दर्ज करके, पुलिस डिपार्टमेंट को और भी सख्ती से तुम लोगों के पीछे लगा देता।"

"बहुत मेहरबानी। इस दया-भाव के लिए---।" जगमोहन ने व्यंग्य से कहा।

वानखेड़े के होंठों पर शांत मुस्कान उभरी।

"दरअसल खांडेकर की पत्नी के मामले में, मेरी जाती तौर पर दिलचस्पी है कि असली मुजरिम सबके सामने आए। इसलिए तुम लोगों को मैंने ये मौका दिया। परन्तु मदन मेहता के सिलसिले में जो हालात सामने आए हैं, उसे देखते हुए लगता है कि शायद तुम लोग सफल न हो सको।"

कई क्षणों तक वहां खामोशी रही।

"मैं चलता हूं। आता रहूंगा। तुम लोग यहां मौजूद नहीं हुए तो इंतजार करूंगा। जिस दिन होटल का ये कमरा खाली होगा तो मैं समझ जाऊंगा कि तुम लोग गोवा छोड़कर जा चुके हो। ऐसे में मैं, मुंबई में अगले दो दिन तक तुम लोगों के फोन का इंतजार करूंगा कि अगर तुम कोई सफाई देना चाहते हो तो दे सकते हो। मैं न मिलूं तो इंस्पेक्टर शाहिद खान को, मेरे नाम का मैसेज दे सकते हो।" वानखेड़े का स्वर शांत था--- "वैसे मेरा ख्याल है, अभी गोवा में ही हमारी मुलाकातें हो जाएंगीं।" कहने के साथ ही वानखेड़े आगे बढ़ा और सिटकनी खिसकाकर दरवाजा खोलते हुए बाहर निकल गया।

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

"ब्रिंगेजा के बीच में आ जाने से मामला और गंभीर हो गया है।" जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा।

देवराज चौहान के चेहरे पर सख्ती सिमटी रही। कहा कुछ नहीं।

■■■

दो दिन बीत गए।

देवराज चौहान और जगमोहन अधिकतर होटल के कमरे में ही रहे। बाहर का कोई खास काम उनके पास नहीं था। राजन राव का फोन आने में अभी वक्त था।

परन्तु इन दो दिनों में जगमोहन ने उन लोगों को पहचान लिया था जो उन पर निगाह रखे रहे थे। वो छः थे। और जब भी नजर आते, दो-दो के जोड़े में नजर आते। स्पष्ट था कि निगरानी के दौरान वो अपनी ड्यूटी बदलते रहते थे। लेकिन दो दिन में वो छः के छः आसानी से निगाहों में आ गए थे।

"ब्रिंगेजा ने हमारी निगरानी का तगड़ा इंतजाम करा रखा है।" जगमोहन ने कहा--- "हम पर नजर रखने वालों को इस बात की भी खास परवाह नहीं है कि हम उन्हें पहचान लेते हैं या नहीं---।"

"दो-दो में बंटकर वो हम पर नजर रख रहे हैं।" देवराज चौहान ने उसे देखा--- "वो कुल छः हैं।"

"हां। मेरे ख्याल में उन्होंने होटल में एक जगह कमरा भी ले रखा है।" जगमोहन के चेहरे पर सोच के भाव थे।

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

"इस वक्त हम फुर्सत में हैं और आसानी से इन लोगों को निपटा सकते हैं।" जगमोहन बोला।

"कोई फायदा नहीं होगा। इन्हें निपटाया तो ब्रिंगेजा और आदमी भेज देगा या फिर हम पर ही वार कर देगा। जबकि मैं चाहता हूं अभी कुछ भी न हो। आने वाले वक्त को देखेंगे कि क्या होता है।"

"लेकिन राजन राव का बुलाया कभी भी आ सकता है तब हम इन लोगों से फौरन कैसे पीछा छुड़ा सकेंगे।"

"ये तो मैं भी नहीं जानता। जब ये वक्त आएगा। तभी कोई रास्ता निकाला जाएगा। वक्त से पहले ब्रिंगेजा के आदमियों के साथ छेड़छाड़, हमें नुकसान भी पहुंचा सकती है। अभी मस्त रहो।"

चौथा दिन भी बीत गया। अंधेरा घिर आया। देवराज चौहान और जगमोहन होटल के कमरे में मौजूद थे। दिनभर वो राजन राव के फोन या मैसेज का इंतजार करते रहे थे।

"आज राजन राव को हमसे बात करनी चाहिए थी।" जगमोहन ने कहा।

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

"मैं राजन राव के पास होकर आऊं। मालूम तो हो कि कहीं उसका प्रोग्राम तो नहीं बदल गया।" जगमोहन पुनः बोला।

"नहीं। तुम्हारा कहीं भी जाना ठीक नहीं।" देवराज चौहान ने कहा--- "ब्रिंगेजा के आदमी हम पर नजर रख रहे हैं। एक-दो दिन और इंतजार कर लो राजन राव का---।"

"अगर किसी काम में देर हो रही है तो कम-से-कम राजन राव को फोन करके ही बता देना...।"

तभी फोन की घंटी बज उठी।

देवराज चौहान ने पास ही मौजूद फोन का रिसीवर उठाया।

"हैलो।"

"देवराज चौहान---।" राजन राव की आवाज कानों में पड़ी।

"हां---।"

"पहचाना मुझे---?"

"हां---।"

"एक-दो दिन और इंतजार करो। शायद परसों हमारी मुलाकात हो।" राजन राव की आवाज आई।

"ठीक है।" देवराज चौहान ने कहा--- "मदन मेहता का खास दोस्त है ब्रिंगेजा उसके आदमी---।"

"तुम लोगों पर निगाह रखे हुए हैं।"

"मतलब कि उन पर निगाह रखे हुए हो?"

"जरूरी है। क्योंकि तुम्हारे कंधे पर हाथ रखकर ही मैंने बाजी खेलनी है, ऐसे में तुम्हें लेकर मुझे आंखें खुली रखनी पड़ रही हैं।" राजन राव का आने वाला स्वर शांत था--- "ब्रिंगेजा के आदमियों की परवाह मत करो, और कोई हरकत मत करना। तुम उन्हें कुछ नहीं कहोगे। जब वक्त आएगा, मैं सब संभाल लूंगा। वे सब मेरे आदमियों की नजरों में हैं। वे हमारे लिए कोई समस्या नहीं खड़ी कर सकते---।"

"और ब्रिंगेजा---?"

"तुम्हें, मदन मेहता तक पहुंचाने के लिए जो रास्ता मैं इस्तेमाल कर रहा हूं, इनमें ब्रिंगेजा के दखल देने की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती।" राजन राव का स्वर गंभीर था--- "अगर ऐसा कुछ होता भी है तो तब हालात तुम्हें ही संभालने होंगे। तभी तो मैं तुम्हें मदन मेहता तक पहुंचाने में दिलचस्पी ले रहा हूं कि बीच रास्ते में कोई अड़चन आती भी है तो उससे निपटने की तुम हिम्मत रखते हो---।"

"तुम्हें क्या फायदा होगा मुझे मदन मेहता तक पहुंचाकर---?" देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।

"बेकार का सवाल नहीं। होटल में ही रहकर मेरे फोन का इंतजार करना---।" इसके साथ ही लाइन कट गई।

देवराज चौहान ने रिसीवर रखा।

"क्या बोला?" जगमोहन की निगाह देवराज चौहान पर थी।

देवराज चौहान ने बताया।

"इसका मतलब।" जगमोहन सोच भरे स्वर में बोला--- "राजन राव भी किसी जुगाड़ में लगा हुआ है।"

"लगता तो ऐसा ही है कि वो मदन मेहता के मामले की तैयारी में व्यस्त है।"

तभी दरवाजे पर थपथपाहट पड़ी।

देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं।

सतर्क-सा जगमोहन दरवाजे के पास पहुंचा।

"कौन है?"

"मैं---।" वानखेड़े का स्वर कानों में पड़ा।

जगमोहन ने सिटकनी हटाकर दरवाजा खोला। वानखेड़े के भीतर आ जाने पर दरवाजा बंद कर दिया।

वानखेड़े ने दोनों पर निगाह मारकर कहा।

"तुम दोनों अभी तक यहीं बैठे हो। मैंने तो सोचा था आज चौथा दिन है। यहां नहीं मिलोगे।"

"राजन राव की तैयारी शायद पूरी नहीं हुई।" देवराज चौहान बोला--- "कुछ पहले ही उससे फोन पर बात हुई कि वो एक-दो दिन और रुकने को कह रहा है।"

"वो दस दिन भी रुकने को कहेगा तो तुम्हें रुकना पड़ेगा।" वानखेड़े मुस्कुराया--- "क्योंकि तुम उस पर निर्भर हो। जिस रास्ते पर बढ़ना है, उसके बारे में वो जानता है।"

देवराज चौहान सिर हिलाकर रह गया।

वानखेड़े आगे बढ़कर कुर्सी पर बैठा और गंभीर निगाहों से दोनों को देखा।

"खांडेकर की बीवी के साथ किसने भी बुरा किया हो, वो जुदा बात है। लेकिन उसके घर पर कब्जा जमाकर, वजह तुम लोगों ने पैदा की, उसकी बीवी के साथ हुए हादसे की---।"

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।

"मेरे ख्याल से इस वक्त इस बात का जिक्र करने की जरूरत नहीं थी।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा--- "ना ही हम उसकी बीवी के लिए किसी तरह की कोई वजह बने। जो होना होता है, वही होता है।"

वानखेड़े की निगाह कई पलों तक जगमोहन पर टिकी रही।

"मैंने उस दिन तुम्हें बताया था कि खांडेकर घर बैठा चौबीसों घंटे पीता रहता है। शेव करना तो दूर, नहाना-धोना भी उससे छूट चुका है।" वानखेड़े ने दुखी स्वर में कहा--- "आज ही मुंबई फोन किया तो इंस्पेक्टर शाहिद खान से बात हुई। उससे खांडेकर का हाल मालूम हुआ। डिपार्टमेंट के कई लोगों ने उसे पास जाकर उसे समझाने की चेष्टा की, परन्तु वो एक ही रट लगाए हुए है कि देवराज चौहान और उसके साथियों को जिंदा नहीं छोड़ेगा। नशे में अक्सर वही बड़बड़ाकर, अपनी पत्नी को याद करके रोने लगता है, और आज ही उसने नौकरी से इस्तीफा भी भिजवा दिया है। उसकी हालत ठीक नहीं, जैसे दिमाग उसका साथ छोड़ता जा रहा है। वैसे उसका इस्तीफा अभी मंजूर नहीं किया गया। क्योंकि अभी वो अपने होशो-हवास में नहीं है। मेरे ख्याल में उसकी पत्नी का हत्यारा कानून की गिरफ्त में आ जाए, तो शायद उसकी हालत में सुधार हो सके---।"

"सब कुछ तुम्हारे सामने ही है वानखेड़े---।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं---।"

वानखेड़े ने सिर हिलाया।

"हां। तुम तो कोशिश कर रहे हो। कामयाबी मिलती है या नहीं। कुछ नहीं कहा जा सकता।" वानखेड़े ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया--- "खांडेकर की दिमागी हालत को देखते हुए कह रहा हूं कि उसका कोई भरोसा नहीं है कि कब क्या कर बैठे। तुम लोगों को कुछ और सावधानी बरतनी चाहिए---।"

"क्या मतलब?"

"मेरे ख्याल में अभी तक वो नहीं जानता कि तुम लोग मुंबई में नहीं, गोवा में हो। मेरे बारे में भी वो पूछ चुका है कि मैं किधर हूं। लेकिन शाहिद खान ने उसे गोवा के बारे में नहीं बताया। अगर देर-सवेर में उसे मालूम हो गया कि तुम लोग गोवा में हो तो खांडेकर अपनी पत्नी की मौत का बदला लेने के लिए वो पागल-सा हुआ यहां पहुंच सकता है।"

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा। फिर वानखेड़े को।

"अभी तो खंडेकर मुंबई में है---।"

"हां। वो नहीं जानता कि तुम या फिर मैं गोवा में हैं। मालूम होने पर वो ऐसा कदम उठा सकता है, और यहां तुम लोग जो भी करने जा रहे हो, राजन राव के साथ मिलकर, वो सब कुछ खांडेकर खराब कर सकता है।"

"खांडेकर के प्रति हम सतर्क रहेंगे।" देवराज चौहान ने कहा--- "वैसे कोई जरूरी नहीं कि वो गोवा ही आए---।"

वानखेड़े गंभीर अंदाज में कंधे उचकाकर रह गया। फिर उठा।

"मैं कल चक्कर लगा जाऊंगा। ब्रिंगेजा के आदमी मुझ पर निगाह रखते हो सकते हैं, क्योंकि तुम लोगों के पास जो भी आएगा, वे उसके बारे में अवश्य जानना चाहेंगे।" वानखेड़े बोला।

"फिर तो वे तुम्हारे बारे में जान गए होंगे कि तुम पुलिस वाले हो।"

"मेरे ख्याल से, शायद अभी तक नहीं। क्योंकि मैं होटल में ठहरा हुआ हूं और मुझसे मिलने कोई पुलिस वाला नहीं आता।"

"कौन से होटल में हो?" जगमोहन ने पूछा।

"इसी होटल में---।" कहने के साथ ही वानखेड़े दरवाजे की तरफ बढ़ा और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया।

जगमोहन चेहरे पर सोचें समेटे आगे बढ़ा और दरवाजा बंद करने लगा तो दरवाजे पर एक व्यक्ति आ खड़ा हुआ। उसके शरीर पर महंगा सूट था। टाई की नॉट ढीली कर रखी थी। आंखों पर चश्मा था। चेहरे पर फ्रेंचकट दाढ़ी और मूंछें थीं। हाथ में खूबसूरत डिजाइन वाली छड़ी थाम रखी थी।

"यस---।" जगमोहन दरवाजा बंद करते-करते सतर्क-सा कहते हुए ठिठका।

"तुम---।" उसने गहरी निगाहों से जगमोहन को देखा--- "जगमोहन हो---?"

जगमोहन चौंका। चेहरे पर अजीब-से भाव आए। सामने खड़े व्यक्ति को उसने पहली बार देखा था।

"तुम कौन हो। मैंने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा।"

"हम मिले ही नहीं, तो मुझे देखोगे कहां?" उसके चेहरे पर शांत मुस्कान उभरी--- "मैं जानता हूं देवराज चौहान भीतर है। मैं तुम लोगों से बात करना चाहता हूं। इस तरह बाहर खड़े रहना, मेरे लिए ठीक नहीं।"

जगमोहन दो पल के लिए समझ नहीं पाया कि उसे हां कहे या ना।

"आओ---।" फिर जगमोहन पीछे हटते हुए बोला।

उसके भीतर आने पर जगमोहन ने दरवाजा बंद किया। इस बारे में वो सतर्क था कि जरूरत पड़ने पर तुरन्त रिवाल्वर निकाली जा सके।

देवराज चौहान की निगाह उस पर टिक गई।

उसने भी देवराज चौहान को देखा।

"हैलो देवराज चौहान।" वो शांत ढंग से मुस्कुराया--- "तुम मुझे जैक्सन कह सकते हो। गोवा का ही रहने वाला हूं और उसी मछुआरों की बस्ती में रहता हूं, जिधर मदन मेहता है।"

देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े। जगमोहन गहरी निगाहों से उसे देख रहा था।

जैक्सन आगे बढ़ा। छड़ी को उसने एक तरफ रखा फिर बैठने के बाद आंखों पर मौजूद चश्मा उतारा। उसके बाद फ्रेंचकट दाढ़ी और मूंछें भी उतार दीं। अब वो क्लीन शेव्ड व्यक्ति वाला नजर आने लगा।

उसने शांत भाव से देवराज चौहान और जगमोहन को देखा। फिर कह उठा।

"ये है मेरा असली चेहरा। इस तरह हुलिया बदलकर मुझे मजबूरी में आना पड़ा। ब्रिंगेजा के आदमियों के अलावा कुछ और लोग भी तुम दोनों पर नजर रखे हुए हैं। जबकि मैं नहीं चाहता कि कोई मेरा चेहरा देखे या फिर उन्हें ये भी मालूम हो कि मेरे इस बदले रूप में, कोई तुम लोगों से आकर मिला है।"

"हमारे पास आने के लिए इतनी सावधानी क्यों?" देवराज चौहान ने पूछा।

"क्योंकि जानने वाले तो मुझे जानते ही हैं और वे ये भी जानते हैं कि तुम लोग मदन मेहता पर हाथ डालने की कोशिश में हो और मैं मछुआरों की बस्ती में रहता हूं तो ऐसे में कोई ये न सोचे कि मैं, तुम लोगों की किसी तरह की सहायता कर रहा हूं।"

देवराज चौहान और जगमोहन की निगाहें मिलीं।

"जैक्सन नाम बताया था तुमने अपना?"

"हां---।"

"हमारे पास क्यों आए?"

जैक्सन कुछ पल खामोश रहा। फिर गंभीर स्वर में कह उठा।

"सबसे पहले तो ये जान लो कि मैं मुंबई के सारे हालातों से वाकिफ हो चुका हूं। मदन मेहता, सुधाकर बल्ली, वो पुलिस वाले की बीवी की बुरी मौत यानी कि सब जानता हूं कि तुम लोग इस मामले में मेरे ख्याल में खामख्वाह फंस गए हो और तभी मदन मेहता तक पहुंचकर साबित करना चाहते हो कि इस बलात्कार और हत्या से तुम लोगों का कोई वास्ता नहीं।"

देवराज चौहान और जगमोहन की निगाहें उसके चेहरे पर ही रहीं।

"मैं मदन मेहता का रिश्तेदार हूं। मेरे नाम पर मत जाना। जैक्सन नाम रख लेने से जिम्मेदारियां नहीं बदली जातीं। सब कुछ मालूम होने पर सोचा एक बार मैं तुम लोगों से मिलूं। सो आ गया।" जैक्सन जैसे सोच-समझकर कह रहा था--- "दरअसल, मदन मेहता तुम लोगों को लेकर कुछ परेशान-सा है।"

"क्या मतलब?"

"मैं पहले ही बता चुका हूं कि मेरा रिश्तेदार है वो। मैं उसके और वो मेरे सुख-दुख का साथी है। अपने दिल की बात वो मुझसे कह देता है। लोग उसके बारे में कुछ भी कहें लेकिन मैं जानता हूं कि वो दिल का बुरा नहीं है। उसके बेहद करीबी लोग भी ये जानते हैं ये जुदा बात है कि वो गैरकानूनी धंधे करता है और---।"

"तुम्हें मदन मेहता ने मेरे पास भेजा?" देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांका।

"नहीं। बिल्कुल नहीं। मैं अपने तौर पर तुम्हारे पास आया हूं। मदन को इस बात की हवा भी नहीं कि मैंने एक बार तुमसे मिलने की बात सोची है या इस वक्त मैं तुम्हारे पास हूं। उसकी बात सुनने के बाद मेरा मन कर आया कि तुमसे मुलाकात करूं।" जैक्सन शांत स्वर में कह उठा--- "ये बात अपने दिमाग से निकाल दो।"

"तो---?"

"मैं तुम्हारे सामने सारे हालात रखने की चेष्टा कर रहा हूं। समझना या न समझना तुम्हारा काम है। मैं ये कह रहा था कि मदन इतना बुरा इंसान नहीं है, जितना कि उसके बारे में कहा जाता है। लोगों की तो आदत ही होती है बात को बढ़ाकर कहने की। वैसे भी उसके दुश्मन बहुत हैं। ऐसे में कोई उसके बारे में जो कह दे वही कम है।" जैक्सन गंभीर स्वर में कह रहा था--- "वो आज तक इतना परेशान नहीं हुआ, जितना कि इस वक्त तुम्हें लेकर। दरअसल वो तुम्हारे बारे में बहुत अच्छी तरह जानता है। तुम्हारी इज्जत करता है। वरना उसके लिए तो बहुत मामूली काम है कि तुम दोनों को यहीं पर खत्म करवा दे। उठवा ले। ब्रिंगेजा तुम्हें खत्म करने के लिए मदन पर जोर डाल रहा है कि मदन एक बार हां कर दे। परन्तु मदन तुम्हारे साथ झगड़ा नहीं करना चाहता---। वो चाहता है ये मामला शांति से निपट जाए और तुम जैसे गोवा आए हो वैसे ही चुपचाप यहां से चले जाओ। शायद इसलिए कि उसके मन में ये शक है कि वो तुम्हें ठीक तरह से संभाल नहीं पाएगा और फिर तुम हाथ धोकर उसके पीछे पड़ जाओगे। लड़ाई लंबी हो जाएगी और गोवा में खून-खराबा होगा। जबकि मदन शांति चाहता है।"

"मुझे कोई एतराज नहीं।" देवराज चौहान का चेहरा सख्त हो गया--- "मैं इस बात का वायदा दे सकता हूं कि गोवो में जरा भी शोर-शराबा नहीं होगा।"

"कैसे?"

"मदन मेहता खुद को मेरे हवाले कर दे---।"

"क्यों?"

"खांडेकर की पत्नी के साथ बलात्कार और उसकी हत्या करने---।"

"यही बात समझाने के लिए, बताने के लिए, विश्वास दिलाने के लिए तो मुझे तुम्हारे पास आना पड़ा है कि शायद तुम मेरी बात समझ जाओ। मैं पहले भी कह चुका हूं कि मदन अपने दिल की बात मुझसे कर लेता है और मेरे से वो कभी झूठ नहीं बोलता। उसका कहना है कि मुंबई में जो काम तुम कर रहे थे, उस काम से उसका सिर्फ इतना ही वास्ता है कि उसने अपनी जान-पहचान वाले सुधाकर बल्ली की योजना सुनकर उसे सुखदेव तक पहुंचा दिया कि किसी काबिल बंदे से सुधाकर बल्ली को मिलवा दे और इत्तेफाक से सुधाकर बल्ली को तुम मिल गए। उसके बाद जो हुआ तुम लोगों ने किया। पुलिस वाले की बीवी के साथ जो हुआ वो किसी और ने किया जबकि तुमने मदन को बीच में खींच लिया। वो कहता है कि इस मामले में उसका कोई हाथ नहीं। तुम गलतफहमी में लिपटे उसकी तरफ बढ़ रहे हो।"

देवराज चौहान का चेहरा बेहद कठोर नजर आने लगा।

जगमोहन भी दांत भींचे जैक्सन को घूर रहा था।

"यानी कि मदन मेहता ने खांडेकर की बीवी के साथ बलात्कार और उसकी हत्या नहीं की?"

"नहीं।"

"तो फिर एकाएक वो मुंबई से क्यों भागा? गोवा में आकर छिप गया क्यों? उसे मालूम है कि मैं उसकी तलाश में यहां आया हूं और खाली-खाली वापस जाने वाला नहीं। अगर उसने कुछ नहीं किया तो उसे अपनी बस्ती में छिपने की अपेक्षा एक बार मेरे सामने आना चाहिए था। मुझसे बात करनी चाहिए थी। अगर वो मुझे अपनी बेगुनाही का विश्वास दिला सकता है तो उसे दिलाना चाहिए था।" देवराज चौहान ने दरिंदगी भरे स्वर में कहा--- "इस तरह सात पर्दों के पीछे छुपकर खुद को निर्दोष कहता रहे तो कौन मानेगा उसकी बात को---।"

जैक्सन गंभीर स्वर में कह उठा।

"तुम्हारी बात ठीक है। लेकिन उसकी मजबूरी है कि वो ये सब करना ठीक नहीं समझता।"

"क्यों?"

"शायद ये बताना, खामख्वाह वाली बात होगी। इससे तुम्हारा कोई मतलब नहीं।" जैक्सन गंभीर था।

"इस वक्त मुझे मदन मेहता की हर बात--- हर हरकत से मतलब है। और तब तक मतलब होगा, जब तक कि वो मेरे हाथ नहीं आ जाता। जब तक वो ये नहीं मान लेता कि खांडेकर की बीवी का वो दोषी है। अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली का वो दोषी है। उसके जुर्मों का बोझ मैं अपने सिर पर लिए नहीं फिर सकता।"

"देवराज चौहान, मैंने तुम्हें कहा है कि मदन मेहता ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, जो---।"

"और मैं तुम्हें कह चुका हूं, सात पर्दों के पीछे छुपकर खाली-खाली कहकर वो खुद को निर्दोष साबित नहीं कर सकता। अगर उसने कुछ नहीं किया, तो उसे सामने आना चाहिए।"

जैक्सन कई पलों तक गंभीर निगाहों से देवराज चौहान को देखता रहा फिर सिर हिलाकर उठा और चेहरे पर दाढ़ी-मूछें लगाते हुए कहने लगा।

"मैंने सोचा था शायद मेरी बात तुम समझ जाओ। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मैंने मदन से भी कहा था कि तुम्हें समझाने की कोशिश करूं तो उसने इंकार कर दिया कि इन हालातों में तुम इन बातों को सच नहीं मानोगे। उसका ख्याल ठीक ही निकला।" दाढ़ी-मूंछें चेहरे पर चिपकाने के पश्चात उसने आंखों पर चश्मा लगाकर छड़ी पकड़ ली--- "मैंने सोचा था शायद मैं मामला संभाल लूंगा। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ मेरे आने का। जो होता है, होता रहे। मैंने तो कोशिश कर ली। चलता हूं।" कहने के पश्चात उसने देवराज चौहान और जगमोहन पर निगाह मारी फिर पलटकर दरवाजे की तरफ बढ़ा और बाहर निकल गया।

कई पलों तक कमरे में तीखी-गंभीर खामोशी रही।

"इस जैक्सन के आने का मतलब मेरी समझ में नहीं आया---।" जगमोहन कह उठा।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर, सख्त स्वर में बोला।

"ये आया नहीं। मदन मेहता ने भेजा है। उसने एक बार फिर कोशिश की है कि मैं गोवा से चला जाऊं। उसके मामले में कुछ न करूं। क्योंकि मेरे यहां रहने का मतलब वो बखूबी समझता है कि उस तक पहुंचने के लिए मैं कुछ करूंगा जरूर। जिससे कि खून-खराबा भी अवश्य होगा और मदन मेहता नहीं चाहता होगा कि ऐसा खून-खराबा हो कि, पुलिस को उस पर हाथ डालने का मौका मिले। इसी वजह के तहत वो किसी-न-किसी माध्यम से बार-बार अपने बेगुनाह होने की बात दोहराये जा रहा है। मेरे ख्याल से अब उसे पक्का विश्वास हो जाएगा कि मैं उसे लिए बिना गोवा से जाने वाला नहीं। ऐसे में अब वो हमें खत्म करने की चेष्टा अवश्य करेगा।"

■■■

दो दिन और बीत गए।

देवराज चौहान और जगमोहन अधिकतर होटल के कमरों में ही रहे। तीसरे दिन सुबह के सात बज रहे थे। वे दोनों नहाने-धोने की तैयारी कर रहे थे कि फोन की बेल बजी।

देवराज चौहान ने ही रिसीवर उठाया।

दूसरी तरफ राजन राव था।

"तैयार हो?" राजन राव का स्वर कानों में पड़ा।

"मदन मेहता तक पहुंचने के लिए---।"

"हां---।"

"कहां पहुंचना है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"वहीं---।"

"कब?"

"ये तुम पर निर्भर है। अभी आ जाओ। मेरी तैयारी पूरी है।"

"मैं आधे घंटे में यहां से निकल रहा हूं---।" कहते-कहते देवराज चौहान ठिठका--- "ब्रिंगेजा के आदमी जो हम पर नजर रख रहे हैं, उनका क्या होगा?"

"तुम्हें उनकी फिक्र करने की जरूरत नहीं है। आराम से होटल से निकलो और चले आओ। उन्हें संभालने के लिए मेरे आदमी, होटल में पहुंच चुके हैं।" राजन राव का स्वर कानों में पड़ा।

"ठीक है। मैं आ रहा हूं।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने रिसीवर रखा।

तभी जगमोहन नहाकर बाथरुम से बाहर निकला।

"किसका फोन था?"

"राजन राव का। हमें आने को कहा है।" देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव थे।

"मतलब कि मदन मेहता तक पहुंचने की के लिए रवानगी?"

देवराज चौहान ने सहमति में सिर हिलाया और बाथरूम की तरफ बढ़ता हुआ बोला।

"मैं नहा लूं। तुम ब्रेकफास्ट के लिए आर्डर दे दो।"

"और बाहर जो ब्रिंगेजा के आदमी...।" जगमोहन ने कहना चाहा।

"राजन राव कहता है कि उन्हें वो खुद देख लेगा। हमें इस बारे में सोचने की जरूरत नहीं।"

■■■

राजन राव का वही ठिकाना। वही कमरा।

वहां राजन राव के अलावा देवराज चौहान, जगमोहन, राजन राव के दो आदमी जो कि कमरे में टहलने के अंदाज में मंडरा रहे थे और एक पचास-पचपन बरस का सांवले से रंग का व्यक्ति था। जिसके सिर के बाल छोटे थे। छोटी-छोटी मूंछें थीं। शरीर पर सादी-सी कमीज-पैंट थी। कमीज, पैंट से बाहर झूल रही थी और सिर पर 'पी' कैप डाल रखी थी। वो कुछ बेचैन-सा अवश्य नजर आ रहा था, परन्तु काफी हद तक संयत था।

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखकर उस व्यक्ति की तरफ इशारा किया।

"इसे गोम्स कहते हैं। ये मदन मेहता वाली, उसी मछुआरों की बस्ती का पुराना मछुआरा है और वहां पर इसे लगभग सारे जानते हैं। ये तुम्हें, मदन मेहता के काफी करीब पहुंचा देगा।"

देवराज चौहान और जगमोहन ने उसे देखा। कहा कुछ नहीं।

राजन राव ने गोम्स को देखा।

"इन दोनों के बारे में मैं तुम्हें अच्छी तरह बता चुका हूं गोम्स---।" राजन राव बोला।

"सब याद है मुझे---।" गोम्स ने सिर पर पड़ी 'पी' कैप उतारी और उसके भीतर हाथ फेरने लगा।

"मैं तुम्हें पहले भी कह चुका हूं कि गोम्स तुम्हें सुरक्षित बस्ती में ले जाएगा और आगे बढ़ने का रास्ता बता देगा कि मदन मेहता कहां है। उसके बाद उस तक तुम्हें अपने दम पर पहुंचना है। रास्ते में कई तरह के खतरे आएंगे और उन खतरों से वही ढंग से निपट सकता है जो बेहतरीन 'कमाण्डो' के गुण जानता हो। और वो गुण तुममें हैं।"

"खतरा पूरा-पूरा है।" गोम्स कह उठा।

"देवराज चौहान सब संभाल लेगा।" राजन राव ने विश्वास भरे स्वर में कहा--- "इसकी तुम फिक्र मत करो---।"

"ये गोम्स---।" देवराज चौहान ने गोम्स की तरफ इशारा किया--- "मुझे कैसे उस मछुआरों की बस्ती में ले जाएगा? वहां पर तो अजनबी फौरन निगाहों में आ जाएगा।"

"सब ठीक है। अभी तुम्हें सब कुछ मालूम हो जाएगा।" राजन राव ने कहा--- "ये बताओ कि तुमने मदन मेहता को देखा है? उसे जानते हो? मेरा मतलब है कि उसके सामने आने पर उसे पहचान लोगे?"

"नहीं।" देवराज चौहान बोला--- "मदन मेहता से मुलाकात करने की नौबत कभी नहीं आई।"

"मतलब कि सामने आने पर तुम उसे नहीं पहचान पाओगे।"

"नहीं।

"अच्छी बात है। मैं तुम्हें मदन मेहता की तस्वीर दिखा देता हूं ताकि जब तुम उसे देखो तो फौरन पहचान जाओ।" इतना कहने के साथ ही उसने वहां मौजूद अपने आदमी को इशारा किया ।

उसका आदमी फौरन बाहर निकल गया और जल्दी ही पलटा। हाथ में तस्वीर थी। जो उसने राजन राव को थमाई। तस्वीर पर निगाह मारकर, वो देवराज चौहान की तरफ बढ़ा दी।

"मदन मेहता---।"

देवराज चौहान ने तस्वीर थामी। उसे देखा।

जगमोहन ने भी गर्दन आगे की।

तस्वीर पर निगाह पड़ते ही दोनों चिंहुक पड़े। अचकचाए। फौरन एक-दूसरे को देखा। नजरें पुनः तस्वीर पर जा टिकीं। उनके चेहरों पर अजीब-से भाव गुड़मुड़ हो रहे थे।

"ये मदन मेहता की तस्वीर है?" जगमोहन के होंठों से निकला।

"हां---।" राजन राव ने उसे देखा।

"मेरे ख्याल में तो ये तस्वीर मदन मेहता के रिश्तेदार जैक्सन की है।" जगमोहन कह उठा।

"ये मदन मेहता है। हजार प्रतिशत मदन मेहता है। फिर भी मेरी बात पर शक हो तो, तस्वीर हाथ में लेकर गोवा का चक्कर लगा लो। ठोक-बजाकर यकीन हो जाएगा।"

"ये बात नहीं।" जगमोहन ने गहरी सांस ली--- "मेरा मतलब था कि कहीं तुम्हें कोई गलती---।"

"मुझे कोई गलती नहीं हो रही---।"

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान होंठ सिकोड़े तस्वीर को देखे जा रहा था। यह तस्वीर उस क्लीन शेव्ड व्यक्ति की, जो होटल में आकर मदन मेहता का रिश्तेदार बताकर जैक्सन के नाम से उन्हें मिला था । जिसने नकली फ्रेंचकट दाढ़ी और चश्मा लगा रखा था। हाथ में छड़ी भी थाम रखी थी। तब वो सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि उनके सामने मदन मेहता मौजूद है, जिसे पाने के लिए उनका चैन हराम हुआ पड़ा है।

"क्या बात है?" राजन राव कह उठा--- "तस्वीर देखकर तुम लोग उलझन में नजर क्यों आने लगे?"

"कुछ नहीं।" देवराज चौहान ने तस्वीर टेबल पर रखते हुए कहा--- "तुम आगे कहो---?"

"ये मदन मेहता की तस्वीर है और मुझे विश्वास है कि उसके सामने आने पर तुम लोग धोखा नहीं खाओगे।" राजन राव ने कहा--- "एक बात और गोम्स के साथ बस्ती में, मदन मेहता तक तुम दोनों नहीं, बल्कि सिर्फ तुम यानी कि देवराज चौहान ही जाएगा।"

"क्यों?" जगमोहन तेज स्वर में कह उठा--- "मेरे साथ जाने में किसी की मां को परेशानी होती है क्या?"

राजन राव मुस्कुरा पड़ा।

"ऐसी कोई बात नहीं। पूरी बात सुनोगे तो समझ जाओगे कि ये कहने की वजह क्या है।"

जगमोहन होंठ भींचे राजन राव को घूर कर रह गया।

"गोम्स ने आज से बाईस-तेईस साल पहले अपने पांच वर्षीय बेटे की गुस्से में इतनी ज्यादा पिटाई की कि वो अपने बाप गोम्स से से डरकर घर से चला गया। गोवा से भाग गया। गोम्स ने उसकी बहुत तलाश की, परन्तु उसका कुछ भी नहीं पता चला। कुछ साल पहले गोम्स को अपने बेटे का पत्र आया था कि वो मुंबई में है और ठीक है। सालों बाद साल भर पहले फिर गोम्स को अपने बेटे का पत्र मिला, कि वो ठीक है। लेकिन इन दोनों पत्रों में गोम्स के बेटे ने अपना पता नहीं लिखा था। इसलिए गोम्स उन पत्रों को पढ़कर, इतने में ही सब्र करके रह गया कि उसका बेटा जहां भी है ठीक है। ये बात बस्ती वाले जानते हैं कि गोम्स का बेटा मुंबई में है और ठीक-ठाक है। सालों-साल बाद उसका एक-आध पत्र आ जाता है और आज से पांच दिन पहले गोम्स को अपने बेटे का तीसरा पत्र मिला। जिसमें गोम्स ने अपना मुंबई का पता भी लिखा था और ये भी लिखा था कि उसे कैंसर हो गया है। बीतते वक्त के साथ उसकी सेहत गिरती जा रही है। वो घर आना चाहता है। गोम्स ने इस तीसरे पत्र के बारे में, हमेशा की तरह बस्ती के अपने पहचान वालों को बताया और पत्र मिलने के अगले दिन गोम्स मुंबई रवाना हो गया, ताकि कैंसर से पीड़ित अपने बेटे को वापस अपनी बस्ती में ला सके, उसकी दवा-दारू करके उसे ठीक करने की चेष्टा करे---।"

देवराज चौहान और जगमोहन की निगाहें राजन राव पर थीं।

गोम्स शांत भाव में बैठा था।

राजन राव ने पुनः कहना शुरू किया।

"दरअसल गोम्स के बेटे के बारे में जो बताया, वो सच है। लेकिन तीसरा पत्र और उसमें जो लिखा है वो गलत है। यानी कि गोम्स को पांच दिन पहले अपने बेटे का जो पत्र मिला था, वो मेरे कहने पर मुंबई से गोम्स के पते पर लिखा गया था। कैंसर वाली बात भी गलत है। ये सब बातें तो मछुआरों की बस्ती में मौजूद उन लोगों के लिए थीं, जो गोम्स को जानते हैं, इस वक्त गोम्स उनकी निगाहों में मुंबई गया है, अपने बेटे को वापस लाने के लिए। लेकिन गोम्स तब से यहां पर मेरे पास है, मुंबई गया ही नहीं।"

"समझा---।" देवराज चौहान ने गंभीरता से सिर हिलाया--- "तुम्हारा मतलब है कि गोम्स बस्ती में मुझे अपना बेटा बनाकर ले जाएगा कि किसी को शक न हो।"

"ठीक, यही बात है। तुम्हारा मेकअप ऐसा कर दिया जाएगा कि तुम लगभग गोम्स के बेटे ही लगो। और वो मेकअप नहाने या शेव करने के बाद भी नहीं छूटेगा। खास केमिकल द्वारा ही इस मेकअप को उतारा जा सकेगा।" राजन राव ने देवराज चौहान को देखा।

"लेकिन गोम्स ऐसा क्यों करेगा?"

"ये सवाल तुम्हारे काम का नहीं है। मेरा और गोम्स का मामला है। काम की बात को आगे बढ़ने दो।" राजन राव ने सिर हिलाकर कहा--- "गोम्स मदन मेहता के लिए काम करता है। ऐसे में ये तुम्हें मदन मेहता तक पहुंचाने के लिए, रास्ते की उस हद तक तो पहुंचा देगा कि तुम अपनी काबिलियत का इस्तेमाल करते हुए उस तक पहुंच सको। ये जानता है कि मदन मेहता कहां है।"

देवराज चौहान और जगमोहन की निगाह गोम्स पर गई।

"लेकिन किसी भी स्थिति में तुम्हें, गोम्स का नाम सामने नहीं आने देना। अगर किसी मौके पर फंस जाओ तो तुमने झूठी कहानी बनाकर यही कहना है कि, गोम्स के बेटे के रूप में, तुमने गोम्स को धोखा दिया कि मदन मेहता तक पहुंच सको। तुम गोम्स के बेटे नहीं हो। ये बात गोम्स भी नहीं जानता।" राजन राव समझाने वाले ढंग में शब्दों पर जोर देकर कह उठा--- "गोम्स हमारी सहायता कर रहा है और मैं नहीं चाहता कि हमारी वजह से ये किसी तरह की मुसीबत में फंसे---।"

"ऐसा कुछ नहीं होगा। अगर ऐसी नौबत आई तो गोम्स का नाम इस मामले में नहीं आएगा।" देवराज चौहान की नजरें गोम्स पर आ टिकीं--- "लेकिन मैं तुमसे एक बात पूछना चाहता हूं---।"

"क्या?" गोम्स के होंठ खुले।

"मदन मेहता के बारे में मिली जानकारी के मुताबिक मछुआरों की बस्ती और उसके आदमी उसके भारी वफादार रहते हैं, और तुम उसके लिए काम करते हुए भी उससे धोखेबाजी कर रहे हो---?" देवराज चौहान बोला।

"कोई जरूरी तो नहीं कि जो काम सब करें वो मैं भी करूं।" गोम्स ने कहा--- "हो सकता है मुंबई में मौजूद मेरे बेटे को वास्तव में कैंसर हो और उसका इलाज कराने के लिए मुझे लाखों रुपयों की जरूरत हो और वो लाखों रुपए मुझे राजन राव से मिल रहे हों। मेरा कहने का मतलब है कि वफादारी छोड़कर दगाबाजी करने की भी एक कीमत होती है। कभी कीमत खुशी में लेनी पड़ती है तो कभी मजबूरी में।"

देवराज चौहान ने गोम्स की आंखों में देखा।

"तो तुमने वास्तव में अपने बेटे के इलाज का खर्चा राजन राव से लिया है? तभी मदन मेहता के साथ गद्दारी करके राजन राव की बात मानकर चल रहे हो?"

"कुछ भी समझ सकते हो।"

देवराज चौहान कुछ नहीं बोला।

राजन राव ने जगमोहन से कहा।

"अगर गोम्स के बेटे दो होते तो तुम भी दूसरा बेटा बनकर साथ जा सकते थे। लेकिन उसका एक ही बेटा है। इसलिए देवराज चौहान ही गोम्स के साथ जाएगा।"

जगमोहन गहरी सांस लेकर रह गया।

"तुम्हारी योजना बुरी नहीं है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "गोम्स मुझे ले जाता है। मैं मदन मेहता तक भी पहुंच जाता हूं, लेकिन इसमें तुम्हें क्या मिलेगा?"

"तुम ये सवाल कई बार कर चुके हो और मैं इस सवाल का जवाब नहीं देना चाहता।" राजन राव ने शांत स्वर में कहा--- "तुम ये सोचो कि तुम मदन मेहता तक पहुंचने जा रहे हो।"

"ये जानते हो कि मुझे मदन मेहता की क्यों जरूरत है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"जानता हूं---।"

देवराज चौहान, राजन राव को देखता रहा। बोला कुछ नहीं।

राजन राव ने ही चंद पलों की चुप्पी को तोड़ा।

"अब तुम मोटे तौर पर समझ गए होगे कि कैसी योजना के तहत तुम्हें मछुआरों की बस्ती में प्रवेश करवाकर, मदन मेहता तक पहुंचाया जाएगा। अब आने वाले वक्त में तुम गोम्स के साथ सहयोग करोगे। ऐसी कोई भी हरकत मत करना कि वो बिना वजह फंसे---।"

देवराज चौहान खामोश रहा।

"कुछ पूछना है तो पूछ सकते हो।" राजन राव बोला।

"तुम्हारे पास बताने को कुछ नहीं है।" देवराज चौहान ने कहा--- "मदन मेहता से वास्ता रखती कोई बात मुझे पूछनी होगी तो वो गोम्स से ही पूछ लूंगा। अब गोम्स का और मेरा साथ ही रहेगा।"

"अच्छी बात है। मैं चाहता हूं तुम गोम्स के साथ अपने काम पर लग जाओ।" राजन राव ने शांत स्वर में कहा--- "मैंने अपने खास आदमी को सुबह ही बुलवा लिया था, जो कि मेकअप में एक्सपर्ट है वो तुम्हारा ऐसा हुलिया बना देगा कि, तुम्हें देखकर कोई भी शक नहीं कर सकेगा कि तुम गोम्स के बेटे नहीं हो।" कहने के साथ ही उसने अपने आदमी की तरफ इशारा किया--- "देवराज चौहान को दूसरे कमरे में ले जाओ। जहां इसका मेकअप करना है।"

राजन राव के आदमी ने सिर हिलाया।

तभी जगमोहन उठा और देवराज चौहान की कलाई पकड़कर उसे उठाते हुए कोने में ले गया।

"हम चूक गए---।" जगमोहन खींझ भरे स्वर में कह उठा।

"क्या मतलब?"

"मदन मेहता हमारे पास होटल में आकर हमसे मिला और हम उसे पहचान नहीं पाए।" जगमोहन झल्लाया-सा था।

"हां।" देवराज चौहान का स्वर गंभीर था--- "इसकी वजह ये रही कि हम मदन मेहता के चेहरे से वाकिफ नहीं थे। हमें किसी तरह तस्वीर का इंतजाम करके, मदन मेहता के चेहरे से वाकिफ हो लेना चाहिए था। गलती हमारी ही थी कि जिसे हम तलाश करने, पकड़ने के फेर में हैं, उसके चेहरे के बारे में जानने की चेष्टा नहीं की---।"

"अगर हम उस वक्त मदन मेहता को पहचान जाते तो अब तक ये मामला खत्म हो गया होता।"

"ठीक कहते हो।" देवराज चौहान की निगाह जगमोहन के चेहरे पर जा टिकी--- "मदन मेहता भारी खतरा लेकर हमारे पास आया था। हम उसे पहचानकर काबू में कर सकते थे। लेकिन उसने ये खतरा क्यों उठाया? उसका इस तरह होटल में आकर, अपनी सफाई देना, मेरी सोचों में गड़बड़ाने लगा है।"

"क्या मतलब?"

"अगर वास्तव में उसने खांडेकर की बीवी के साथ बलात्कार किया है। उसकी हत्या की है। अंकल चौड़ा को मारा है। सुधाकर बल्ली की जान ली है तो, किसी भी सूरत में वो मेरे सामने आने की हिम्मत नहीं कर सकता था। खासतौर से अपनी सफाई देने तो मेरे पास आता ही नहीं। क्योंकि मैं उसे पहचान सकता था। उसे क्या मालूम कि मैं उसकी सूरत से वाकिफ हूं या नहीं, जो भी हो इसमें कोई शक नहीं कि मदन मेहता हिम्मतवाला खतरनाक खेल खेलने वाला इंसान है। तब वो अपना चेहरा छुपाकर मेकअप में आया था तो जाहिर है कि अकेला ही होगा, अपने साथ फौज नहीं लाया होगा।" देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव स्पष्ट उछल रहे थे। आंखें सोच भरे अंदाज में सिकुड़ी हुई थीं।

'यानी कि, तुम कहना चाहते हो कि, मदन मेहता निर्दोष है।" जगमोहन के होंठों से निकला।

देवराज चौहान की निगाह, जगमोहन के चेहरे पर जा टिकी।

"मैं अभी कुछ भी नहीं कहना चाहता।" कहने के साथ ही देवराज चौहान पलटा और राजन राव से कह उठा--- "चलो। किस कमरे में मेकअप करना है।"

राजन राव ने अपने आदमी को इशारा किया तो वो देवराज चौहान को साथ लेकर बाहर निकल गया। जगमोहन अनिश्चिन्त-सा वहीं खड़ा रहा।

"बैठ जाओ। थक जाओगे।" राजन राव ने जगमोहन से कहा।

सोचों में डूबा जगमोहन आगे बढ़ा और कुर्सी पर जा बैठा।

"मैं पूछना भूल गया। कुछ लोगे? चाय, कॉफी, ब्रेकफास्ट?"

कुछ कहने की अपेक्षा जगमोहन ने टेबल पर पड़ी मदन मेहता की तस्वीर उठाई और उस पर निगाहें टिका दीं।

■■■

देवराज चौहान का मेकअप होने में चार घंटे का वक्त लगा।

उसके चेहरे से लेकर पांव तक जाने कैसा लेप लगाया गया था कि जब एक घंटे के बाद उसे नहाने को कहा गया तो, नहाने के बाद उसके शरीर की रंगत गहरे सांवले रंग में बदल गई थी। कुछ इस तरह कि जैसे स्थाई होकर रह गई हो। फिर उसके बालों को खास ढंग से काटकर, उन्हें ड्राअर से घुंघराले बना दिया गया। एक कान में सोने की छोटी-सी 'बाली' इस तरह फंसा दी गई कि जैसे छेद करके कान में डाली गई। माथे पर काले रंग का मस्सा दाईं तरफ इस तरह लगा दिया गया कि देखने पर कोई भी नहीं कह सकता था कि वो नकली मस्सा है।

इतना करके मेकअप करने वाले व्यक्ति ने कहा।

"तुम्हारे जिस्म की रंगत। बालों का अंदाज, और ये मस्सा। सब कुछ असली लग रहा है। इन्हें कोई भी नकली नहीं कह सकता। खास केमिकल के इस्तेमाल के बाद ही मेकअप से मुक्ति पाकर पहले जैसी हालत में आ सकते हो। साबुन-पानी से ये मेकअप साफ नहीं होगा। लेकिन इतने पर भी तुम्हें कोई शक से न देख सके। इसके लिए तुम्हारे होंठों पर छोटी मूंछें लगानी होंगी। जिनके बारे में तुम्हें हर वक्त ध्यान रखना होगा कि मूंछें अलग होकर, तुम्हें फंसा न दें।"

"मैं इस बात का ध्यान रखूंगा।" देवराज चौहान ने शीशे में अपना चेहरा देखते हुए कहा--- "जैसी मूंछें होंठों पर लगाओ, वैसी ही मूंछें अलग से भी दे देना ताकि कहीं पर मूंछें खराब हो जाएं अलग हो जाएं तो दूसरी मूंछों का इस्तेमाल कर सकूं। वैसे मूंछें लगाए बिना काम नहीं चलेगा?"

"नहीं। जो तुम्हारा चेहरा देख चुके हैं, वो तुम्हारे चेहरे के कट्स देखकर शक में पड़ सकते हैं कि तुम्हें कहीं देखा है और ऐसे में तुम पहचाने जा सकते हो। मुझे कहा गया है कि इस तरह से तुम्हारा मेकअप करूं कि आसानी से तुम्हें कोई पहचान न सके। इसलिए मूंछें लगा लेना, बेहतर होगा।"

देवराज चौहान हौले से सिर हिलाकर रह गया।

"तुम तो बिल्कुल ही पहचाने नहीं जा रहे---।"

देवराज चौहान जब उस कमरे में पहुंचा तो उसे देखते ही जगमोहन के होंठों से निकला।

"गुड---!" राजन राव मुस्कुराया--- "अब ठीक है।"

मेकअप के बाद देवराज चौहान, गोम्स के ही किसी खानदान से वास्ता रखता लग रहा था।

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

"मेरे जाने के बाद तुम होटल में ही रहोगे। जरूरत महसूस करो तो बेशक होटल छोड़ सकते हो।" देवराज चौहान ने जगमोहन से पूछा--- "हो सकता है मेरी वजह से मदन मेहता परेशान हो जाए और कोई दूसरा रास्ता न पाकर वो या उसके आदमी गुस्से में तुम्हें नुकसान पहुंचाने की कोई चेष्टा करें---।"

"मैं सतर्क रहूंगा।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा।

देवराज चौहान ने राजन राव से पूछा।

"कुछ और कहना-बताना है तुमने?"

"नहीं।" राजन राव ने सिर हिलाया--- "अब तुम मेहता के सिलसिले में जो भी बात करोगे, गोम्स से ही करोगे। मैंने जो इंतजाम करना था कर दिया---।"

"तो फिर मुझे गोम्स के साथ चल देना चाहिए---।"

राजन राव ने सहमति में सिर हिलाया।

गोम्स उठ खड़ा हुआ।

देवराज चौहान ने गोम्स से पूछा।

"मेरा नाम क्या है?"

"जब तुम पांच साल की उम्र में घर छोड़कर चले गए थे तो तब मैं तुम्हें टोनी कहता था।" गोम्स बोला।

"परिवार के लोग?"

"कोई नहीं। दस साल पहले मेरी पत्नी मछुआरों के साथ समन्दर में मछलियां पकड़ने गई कि तूफान की चपेट में आकर वो लापता हो गई। स्पष्ट है कि मर गई, और ये खबर तुम्हारे लिए नई है। जबकि तुम तो अभी तक यही सोच रहे थे कि तुम्हारी मां जिंदा है। लेकिन ये बात मुझसे मिलने के बाद तुम्हें पता चली---।"

"समझा---।"

"बाकी जो भी पूछना हो रास्ते में पूछ लेना। आओ चलें।" गोम्स ने कहा।

देवराज चौहान गोम्स के साथ बाहर निकल गया।

"मैं भी जाता हूं---।" जगमोहन ने राजन राव को देखा।

"हां। लेकिन सावधान रहना। ब्रिंगेजा के दो आदमी, जो सुबह पहरे पर थे, वो गायब हो चुके हैं। मेरे आदमियों ने उन्हें शूट कर दिया है। ऐसे में ब्रिंगेजा यही सोचेगा कि ये काम तुम लोगों ने किया है। वो तुम्हारे पास आ सकता है।"

"ब्रिंगेजा के आदमियों को शूट करके तुमने गलती की। कुछ देर के लिए उन पर काबू पा लेना चाहिए था। जब हम होटल से निकल आते तो फिर उनका पीछा किया जाने का खतरा नहीं था।" जगमोहन ने कहा।

"मैंने अपने आदमियों को ऐसा करने के लिए ही कहा था। लेकिन ब्रिंगेजा के आदमियों ने मेरे आदमियों को शूट करने की कोशिश की तो मजबूरी में उन्हें शूट कर दिया गया।" राजन राव ने जगमोहन को देखा।

जगमोहन खामोश रह गया।

"फिर भी मेरे आदमी होटल पर तुम्हारी निगरानी करेंगे। ब्रिंगेजा से अगर तुम्हें ज्यादा खतरा पैदा हुआ तो वो तुम्हें बचाने की कोशिश करेंगे।" राजन राव ने सोच भरे स्वर में कहा।

"मुझे ब्रिंगेजा का डर नहीं।" जगमोहन का स्वर सख्त हो गया--- "बिगड़े हालातों को संभालने का दम रखता हूं।"

"वो एक आदमी, जो उसी होटल में ठहरा हुआ है।" कहने के साथ राजन राव ने वानखेड़े का हुलिया बताया--- "वो कौन है?"

"मेरी पहचान वाला है। तुम्हें उसमें दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए।"

"मैं तो यूं ही पूछ रहा था।" राजन राव मुस्कुरा पड़ा।

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देवराज चौहान और गोम्स टैक्सी पर मछुआरों की बस्ती में पहुंचे। दोपहर के तीन बज रहे थे। कल की तरह आज बरसात न होकर मौसम साफ था। आकाश में बादलों के टुकड़े तैर रहे थे। हवा तेज चल रही थी। जब वे सूर्य के सामने आते तो छांव का बहुत बड़ा दायरा जमीन पर फैल जाता।

बस्ती की शुरुआत पर ही टैक्सी छोड़कर पैदल ही आगे बढ़े। अब तक खामोश रहने वाला गोम्स चेहरे पर खुशी के भाव ले आया था। वो देवराज चौहान से बोला।

"तुम्हें इस बात की चिंता नहीं होनी चाहिए कि तुम किसी को पहचान पाते हो या नहीं। क्योंकि जब तुम यहां से गए थे तो मात्र पांच बरस के थे, इतने बरसों बाद लौटे हो तो बस्ती के रास्ते तक भी भूल चुके हो। ये एक सामान्य बात है। ऐसे में भला किसी का चेहरा क्या पहचानोगे।"

देवराज चौहान ने जवाब में सिर हिलाया।

रास्ते में गोम्स से मिलने वाले मिले। उनसे मिलते हुए खुशी भरे लहजे में बताया कि बरसों बाद उसका बेटा टोनी आया है। साथ ही दुख से ये भी बताया कि इसे कैंसर है। लेकिन फिक्र की कोई बात नहीं, बढ़िया से बढ़िया इलाज कराकर, बीमारी ठीक करा देगा। फिर समुन्दर में मछलियां पकड़ने जाया करेगा। अब उसके साथ ही रहेगा।

इस तरह रास्ते में मिलने वाले लोग, मेकअप के मौजूद देवराज चौहान को गोम्स के बेटे टोनी के रूप में पहचानने लगे। गोम्स कहीं भी ज्यादा न रुका, आगे बढ़ता रहा। वो बस्ती के किन रास्तों, किन गलियों से गुजर रहा था, देवराज चौहान सब रास्तों को नोट करता जा रहा था।

यूं कि एक दिन पहले तगड़ी बरसात हुई थी। इसलिए जगह-जगह पानी इकट्ठा हुआ पड़ा था। पर्याप्त सफाई न होने की वजह से, बस्ती में स्मैल भी थी। सीलन की खुशबू भी थी और मछलियों की स्मैल तो जैसे बस्ती की हवा में स्थाई हो चुकी थी।

इनमें कोई शक नहीं कि मछुआरों की बस्ती वास्तव में काफी गहरी थी। ज्यों-ज्यों वे आगे बढ़ते जा रहे थे। रास्ते के रूप में छोटी-छोटी गलियों का जाल और भी उलझता जा रहा था। कहीं झोपड़ियां थीं तो कहीं झोपड़े। कहीं कच्चे-पक्के मकान तो कहीं खूबसूरत आलीशान मकान भी थे। अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक सबने अपने घरों को बना रखा था।

आधे घंटे बाद गोम्स उन गलियों के जाल को पार करके कुछ खुली सड़क पर पहुंचा, जहां काफी हद तक साफ-सफाई थी। गली के सड़क के किनारे पेड़ों की कतारें भी थीं। चार-पांच कारें भी खड़ी यहां नजर आईं। हर तरफ निगाह मारकर देवराज चौहान ने पूछा।

"ये तो अच्छी कॉलोनी जैसी जगह है।"

"हां। जो संपन्न मछुआरे हैं। या यूं कह लो कि तस्करी करके, जिन्होंने बहुत दौलत कमा रखी है। उनमें से अधिकतर यहां बड़े मकानों में रहते हैं। कारों में घूमते हैं। एक मील के व्यास में यह बस्ती फैली हुई है और आधी बस्ती बेहद आलीशान है। जैसी कि तुम देख रहे हो। इससे भी बढ़िया जगहें हैं यहां। यहां महंगे रेस्टोरेंट हैं। नाइटक्लब हैं। जुआघर हैं। हर वो चीज इस बस्ती में है जो गोवा में मौजूद है। हम लोगों की अपनी ही दुनिया है। इस बस्ती में। किसी चीज के वास्ते बाहर जाने की जरूरत नहीं।"

"तुम्हारा घर कहां है?"

"पास ही में है। पहुंचने वाले हैं।"

"तुम्हारे पास कार नहीं है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"है। लेकिन इस वक्त तो मैं मुंबई से आ रहा हूं। वहां अपने बेटे को लेने गया था और बस पर गया था। मैंने कार में जाने की जरूरत नहीं समझी। वो मेरे घर पर मौजूद है।" गोम्स ने शांत स्वर में कहा--- "यहां सावधान रहना। ऐसी कोई हरकत मत करना जो तुम पर शक की वजह बने। देखना-सुनना सब, लेकिन चुप बैठे रहना। बस्ती वाले किसी बाहरी व्यक्ति को यहां पसंद नहीं करते। लेकिन तुम मेरे बेटे हो। बाहरी व्यक्ति नहीं। फिर भी इस बात को पक्का करने में, आसपास के लोगों को पांच-सात दिन तो लगेंगे ही।"

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

पांच मिनट बाद ही गोम्स एक छोटे से मकान के सामने रुका। मकान छोटा अवश्य था, परन्तु खूबसूरत था। भीतर कार खड़ी भी नजर आ रही थी।

"ये मेरा घर है। लोगों की निगाहों में तुम्हारा घर भी है।" गोम्स ने कहा।

देवराज चौहान ने सिर हिलाया।

गोम्स मकान के गेट की तरफ बढ़ा कि तभी आवाज सुनकर ठिठक गया।

"हाय गोम्स! ये किसे ले आए?"

गोम्स के साथ वाले मकान की बालकनी में साठ वर्षीय व्यक्ति खड़ा था।

उसे देखते ही गोम्स खुलकर मुस्कुराया।

"तुम्हें बताया तो था मुंबई जा रहा हूं। अपने बेटे को लेने...।"

"ओह! ये तुम्हारा बेटा है जो बचपन में घर से भाग गया था, मैंने तब इसे देखा नहीं था।" वो व्यक्ति ऊंचे स्वर में कह उठा--- "बेटा मिलने की बधाई हो। तुम्हारे जैसा ही लगता है।"

जवाब में गोम्स पुनः मुस्कुराया।

"क्या नाम बताया था तुमने इसका?"

"टोनी---।"

"हां। याद आया। टोनी। तुम बता रहे थे इसे कोई बीमारी है।"

"कैंसर है।"

"ओह! बहुत दुख हुआ सुनकर। इलाज कराओ इसका। बांका जवान है ये---।"

"अपनी देखरेख में इसका इलाज कराने ही लाया हूं। कोई बढ़िया-सा डॉक्टर हो तो बताना।"

"एक है। पूना का मशहूर डॉक्टर है। वो इसको अवश्य ठीक कर देगा। कल मैं पूना जा रहा हूं। चाहो तो अपनी बेटे को लेकर कल ही मेरे साथ चलो। बात कर लेते हैं डॉक्टर से---।"

"इतनी जल्दी मत करो।" गोम्स मुस्कुरा रहा था--- "बरसों बाद  अपने घर लौटा है टोनी। दो-चार दिन इसे आराम कर लेने दो और अभी तो मैंने भी इससे मन भर के बातें नहीं कीं।"

"समझा-समझा। ठीक है दस-बारह दिन में एक फेरा तो पूना का मेरा लगता ही है। अगली बार चलना।"

गोम्स ने मुस्कुराकर हाथ हिलाया और गेट खोलकर भीतर प्रवेश कर गया।

देवराज चौहान उनके साथ था।

तभी मकान का दरवाजा खुला और बीस वर्षीय युवक बाहर निकला। उसने सामान्य से कपड़े पहन रखे थे। गोम्स को देखते ही कह उठा।

"आप आ गए सर?"

"हां।" कहने के साथ ही गोम्स ने देवराज चौहान से कहा--- "टोनी, ये मेरे घर की देखरेख करता है, बहुत बढ़िया खाना बनाता है। यहां तुम्हारी सेहत ठीक रहेगी। जैकी नाम है इसका---।"

देवराज चौहान ने जैकी को देखा।

"ये आपका बेटा है सर?" जैकी ने खुशी से पूछा।

"हां...।"

"आपके बेटे को देखकर मुझे बहुत खुशी हुई सर।" जैकी मुस्कुराकर देवराज चौहान को देखते हुए कह उठा--- "आइये--- भीतर आईये। आप लोग थक गए होंगे। मैं अभी सूप तैयार करता हूं---।"

दोनों भीतर प्रवेश कर गए।

छोटा-सा सजा-सजाया ड्राइंगरूम था। साधारण-सा सोफा, परन्तु बहुत ही करीने से रखा हुआ था। दीवारों पर कई तरह की छोटी-छोटी खूबसूरत पेंटिंग्स थीं। फर्श पर रेशम जैसा कालीन था। एक तरफ ताजे फूलों का गुलदस्ता रखा था। फूलों की भीनी-सी खुशबू वहां फैली हुई थी। ये चार कमरों का मकान था।

जैकी, सूप बनाने को कहकर, किचन में चला गया था।

गोम्स ने मुस्कुराकर देवराज चौहान को देखा।

"अपने घर आकर तुम्हें कैसा लग रहा है टोनी?"

"अच्छा लग रहा है।" देवराज चौहान ने बैठते हुए कहा।

"मैं नहा लूं, फिर बातें करते हैं।" कहने के साथ ही गोम्स कमरे से निकल गया।

देवराज चौहान उठा और पूरा घर देखने लगा। हर कमरा हवादार था। एक रास्ता पीछे की तरफ भी था। जहां गली थी, परन्तु बेहद साफ-सुथरी थी। इतनी गंदी बस्ती से वे गुजरकर आए थे। ये इतनी ही अच्छी और साफ-सुथरी थी। समुन्दर के रास्ते तस्करी करके, इन मछुआरों की संपन्नता स्पष्ट नजर आ रही थी। दो बैडरूम थे और एक कमरे का स्टडी रूम था, कॉन्फ्रेंस-रूम जैसा बना रखा था। वहां छोटी-सी लकड़ी की गोल टेबल के गिर्द चार कुर्सियां मौजूद थीं। उसी कमरे में छोटा-सा बार था। जहां विदेशी कीमती व्हिस्की की अलग-अलग ब्रांड की बोतले मौजूद थीं।

गोम्स के बाद देवराज चौहान भी नहा लिया था। उसका मेकअप नहाने के बाद भी वैसा ही रहा था। नहाने से पहले उसने मूंछें अवश्य उतार ली थीं और बाथरूम से निकलने से पहले लगा ली थीं।। ड्राइंगरूम में सूप के साथ गोम्स उसका इंतजार कर रहा था।

"आओ टोनी। सूप ठंडा हो रहा है।" गोम्स बोला।

देवराज चौहान बैठ गया। सूप का प्याला अपनी तरफ सरका लिया।

जैकी प्रसन्न भाव से पास ही खड़ा था और देवराज चौहान को देख रहा था।

"जैकी, कोई मैसेज---?" गोम्स ने उसे देखा।

"सर आपके मैसेज डायरी में लिख दिए हैं। कहें तो पढ़कर सुना दूं---।" जैकी ने जैसे इजाजत मांगी।

"मैं खुद डायरी देख लूंगा---। कोई और खबर?"

"रॉबिन आया था---।"

गोम्स की आंखें सिकुड़ी।

"रॉबिन? क्यों?"

"वो कह रहे थे, कुछ जरूरी काम है। आपके न मिलने पर वे कुछ नाराज से लगे।"

"और कुछ?"

"जी बस।"

"फोन दो---।"

जैकी ने तुरन्त गोम्स को फोन दिया। नंबर मिलाकर, गोम्स ने बात की।

"रॉबिन---।" लाईन मिलते ही गोम्स बोला--- "तुम आए थे मेरे पास---?"

"तीन दिन पहले आया था। अब नहीं।" रॉबिन का उखड़ा स्वर कानों में पड़ा--- "कहां चले गए तुम?"

"मुंबई। खास काम आ गया था---।"

"तुम्हें बताकर जाना चाहिए था। तुम---।"

"बरसों बाद मुझे मालूम हुआ था कि मेरा बेटा मुंबई में कहां है। मैं उसे लेने गया था इतना वक्त नहीं मिला कि किसी को खबर भी कर सकूं।" गोम्स ने शांत स्वर में कहा--- "तुम्हें क्या काम था?"

"बेटा मिल गया?"

"हां। साथ ही लाया हूं। उसे कैंसर है। इलाज कराना पड़ेगा। तुम बोलो---?"

"स्मैक की खेप समुन्दर से लानी थी। मदन साहब ने कहा था तुम्हें साथ ले लूं---। लेकिन तुम नहीं मिले।" रॉबिन के स्वर में अब नर्मी थी--- "उस समय वक्त कम था। किसी तरह तुम्हारी जगह दूसरों को पकड़ा था---।"

"कोई और बात? काम?"

"अभी कुछ नहीं---।"

"मैं फिर बात करूंगा।" कहने के साथ ही गोम्स ने फोन बंद करके पास खड़े जैकी को थमाया---।

"सर---!" फोन थामते हुए जैकी बोला--- "इस वक्त आप और आपके बेटे क्या खाना पसंद करेंगे?"

"लंच का वक्त निकल चुका है।" गोम्स ने जैकी को देखा--- "तुम बाजार जाओ और रात के खाने की तैयारी करो। मेरे बेटे को खाना बढ़िया लगना चाहिए।"

"डिनर, एवन बनेगा सर---। मैं अभी बाजार होकर आता हूं---।"

पांच मिनट में ही जैकी बाजार के लिए घर से निकल गया।

देवराज चौहान ने गोम्स को देखा।

"रॉबिन कौन है?"

"मेरी तरह मदन मेहता के लिए काम करता है।" गोम्स ने सूप लेते हुए कहा।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।

"तुम मेरे बारे में जानते हो?"

"हां। तुम देवराज चौहान हो। माने हुए डकैती मास्टर हो। और इस वक्त तुम्हें मदन मेहता की जरूरत है।"

"और मेरी जरूरत को, राजन राव के कहने पर पूरा करने जा रहे हो। जबकि तुम मदन मेहता के लिए काम करते हो। मदन मेहता को ये सब पता चल गया तो वो तुम्हें छोड़ने वाला नहीं।" देवराज चौहान बोला।

गोम्स खामोश रहा।

"जहां तक मेरा ख्याल है, तुम पैसे के लिए राजन राव का ये काम नहीं कर रहे। मदन मेहता से ये गद्दारी करने की वजह कुछ और ही है।" देवराज चौहान की निगाह गोम्स के चेहरे पर थी।

"तुम्हारा ख्याल ठीक है। कोई और ही बात है, जिसकी वजह से मुझे राजन राव की बात माननी पड़ी। वरन मदन साहब से मैं किसी भी हालत में गद्दारी नहीं करता।" गोम्स के दांत भिंच गए।

"अपनी मजबूरी बताना मुझे पसंद करोगे?"

"जरूरत नहीं समझता। वैसे भी ये मेरा जाती मामला है।"

"ठीक कहते हो।" देवराज चौहान का स्वर गंभीर था--- "एक-दो बातें और पूछना चाहता हूं जिनसे मेरा कोई मतलब नहीं था। लेकिन अब मतलब पैदा हो चुका है।"

"क्या?"

"राजन राव कौन है?"

गोम्स के चेहरे पर बेचैनी उभर आई।

"इस बारे में तुमसे बात करने को मना किया गया है।"

"राजन राव ने---?"

"हां।"

"अगर तुम बता दो तो वायदा करता हूं कि तुम्हारा नाम बीच में नहीं आएगा।"

"जरूरत नहीं समझता। मैं तुमसे सिर्फ तुम्हारे मदन साहब के मामले पर विश्वास करूंगा।"

देवराज चौहान ने गोम्स को देखते हुए कश लिया।

"ये तो बता सकते हो कि राजन राव मेरी सहायता करके मुझे मदन मेहता तक पहुंचाकर खुद क्या हासिल करना चाहता है। ऐसा करने से उसका कौन-सा मतलब हल होता है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"ये बात तो सच में मैं भी नहीं जानता।" गोम्स ने सूप को घूरते हुए कहा--- "मुझे सिर्फ एक ही काम करने को कहा गया है कि तुम्हें जैसे भी हो मदन मेहता तक पहुंचा दूं---। उस तक पहुंचने का सुरक्षित रास्ता बता दूं।"

दोनों कई पलों तक एक-दूसरे को देखते रहे।

"राजन राव के बारे में जानना चाहता हूं। मेरे इस सवाल का जवाब तुम जानते हो, वो बताना नहीं चाहते और जो बता सकते हो, उस सवाल का जवाब तुम्हारे पास है नहीं?"

"मदन साहब के बारे में बात करो---।"

"कहां है मदन मेहता?" देवराज चौहान ने पूछा।

"मदन साहब के बस्ती में कई ठिकाने हैं। मालूम नहीं इस वक्त वो इस वक्त कहां होगा? लेकिन रात तक मालूम कर लूंगा।"

"मैं कब तक मदन मेहता तक पहुंच जाऊंगा?"

"कह नहीं सकता। ये तो हालातों पर निर्भर है कि मदन साहब किस ठिकाने पर मौजूद हैं!" गोम्स ने सोच भरे स्वर में कहा--- "इस बारे में रात को बात की जाए तो ज्यादा बेहतर होगा। तब तक मैं मदन साहब के बारे में जान भी लूंगा कि वो कहां पर हैं।"

देवराज चौहान सिर हिलाकर रह गया।

"मैं, जानकारी पाने के लिए बाहर जा रहा हूं। जैकी से फालतू की बात मत करना। उसके सामने मेरे बेटे टोनी बनकर ही रहना और घर से बाहर मत निकलना।" गोम्स ने कहा।

"अच्छी बात है। तुम कब तक लौट आओगे?"

"मेरी वापसी का वक्त तय नहीं है। वैसे, जल्दी लौटने की कोशिश करूंगा।"

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