पौने बारह बजे कर्नल डिक्सन, उसकी लड़की और मिस्टर बारतोश कर्नल की कोठी में दाख़िल हुए, लेकिन कर्नल उनके साथ नहीं था।
कर्नल डिक्सन अधेड़ उम्र का एक दुबला-पतला आदमी था। आँखें नीली, मगर धुँधली थीं। मूँछों का निचला हिस्सा ज़्यादा तम्बाकू पीने से हल्के भूरे रंग का हो गया था। उसकी लड़की नौजवान और काफ़ी हसीन थी। हँसते वक़्त उसके गालों में छोटे-छोटे भँवर पड़ जाते थे।
बारतोश अच्छी क़द-काठी का आदमी था। उसके चेहरे पर बड़ी कलात्मक क़िस्म की दाढ़ी थी। चेहरे की रंगत में फीकापन था। मगर उसकी आँखें बड़ी जानदार थीं। अगर वे इतनी जानदार न होतीं तो चेहरे की रंगत के आधार पर कम-से-कम पहली नज़र में तो उसे जिगर का मरीज़ ज़रूर ही समझा जा सकता था।
‘हैलो बेबी!’ कर्नल डिक्सन ने सोफ़िया का कन्धा थपथपाते हुए कहा, ‘अच्छी तो हो! मैं सोच रहा था कि तुम लोग स्टेशन ज़रूर आओगे।’
इससे पहले कि सोफ़िया कुछ कहती, डिक्सन की लड़की उससे लिपट गयी।
फिर परिचय शुरू हुआ। जब इमरान की बारी आयी तो सोफ़िया झिझकी
इमरान आगे बढ़ कर ख़ुद बोला, ‘मैं कर्नल ज़रग़ाम का सेक्रेटरी हूँ अनादान...अर...मिस्टर नादान!’ फिर वह बड़े बेतुकेपन से हँसने लगा। कर्नल डिक्सन ने लापरवाही के अन्दाज़ में अपने कन्धे सिकोड़े और दूसरी तरफ़ देखने लगा।
‘ज़रगी कहाँ है?’ कर्नल डिक्सन ने चारों तरफ़ देखते हुए कहा।
‘क्या वे आपके साथ नहीं हैं?’ सोफ़िया चौंक कर बोली।
‘मेरे साथ!’ कर्नल डिक्सन ने हैरत से कहा, ‘नहीं तो!’
‘ओह नहीं...ओह नहीं...!’
‘क्या वे आपको स्टेशन पर नहीं मिले।’ सोफ़िया के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।
सोफ़िया ने इमरान की तरफ़ देखा और उसने अपनी बायीं आँख दबा दी। लेकिन सोफ़िया की परेशानी में कमी नहीं आयी। उसने बहुत जल्दी उससे तन्हाई में मिलने का मौक़ा निकाल लिया।
‘डैडी कहाँ गये?’
‘पता नहीं!’
‘और आप इत्मीनान से बैठे हुए हैं?’
‘हाँ...आँ!’
‘ख़ुदा के लिए संजीदगी अख़्तियार कीजिए!’
‘फ़िक्र मत कीजिए! मैं कर्नल का ज़िम्मेदार हूँ।’
‘मैं उन्हें तलाश करने जा रही हूँ।’
‘हरगिज़ नहीं! आप कोठी से बाहर क़दम नहीं निकाल सकतीं।’
‘आख़िर क्यों?’
‘कर्नल का हुक्म।’
‘आप अजीब आदमी हैं!’ सोफ़िया झुँझला गयी!
‘मौजूदा हालात की जानकारी मेहमानों को नहीं होनी चाहिए...उन दोनों को भी मना कर दीजिए।’
‘उन्हें इसका इल्म नहीं है।’ सोफ़िया ने कहा।
‘इतना तो जानते ही हैं कि कर्नल किसी ख़तरे में हैं।’
‘हाँ।’
‘इसका ज़िक्र भी नहीं होना चाहिए!’
‘मेरे ख़ुदा, मैं क्या करूँ।’ सोफ़िया रुआँसी आवाज़ में बोली।
‘मेहमानों की ख़ातिर!’ इमरान शान्त लहजे में बोला।
‘आपसे ख़ुदा समझे! मैं पागल हो जाऊँगी!’
‘डरने की बात नहीं...कर्नल बिलकुल ख़तरे में नहीं हैं।’
‘आप पागल हैं।’ सोफ़िया झुँझला कर बोली।
इमरान ने इस तरह सिर हिला दिया जैसे उसे अपने पागलपन पर सहमति हो।
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