बंसीलाल ने कुर्सी पर बंधे थापर पर निगाह मारी फिर पास खड़े दोसा से बोला।


“तुमने अच्छा काम किया।"


“बंसी भाई !” उसने दांत फाड़े तो टूटे दांत नजर आने लगे-- “मैंने कौन सा काम बुरा किया है, वो बताना। बाटला अभी तक नहीं आया। लगता है, यहां का रास्ता भूल गया होगा।" बंसीलाल की निगाह पुनः थापर पर जा टिकी ।


“ये थापर है।" दोसा बोला- “हो सकता है बाटला सुरेन्द्र पाल को ले आये।”


“तुम जाओ दोसा। मुझे इससे बात करनी है।" बंसीलाल ने दोसा को देखा।


“बाहर इन्तजार करूं?”


“नहीं तुम्हारा कोई काम नहीं है अब-।" 


"इसकी लाश ठिकाने लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्या?" 


“इसके लिये आदमी हैं मेरे पास - ।”


“ठीक है। जब मेरी जरूरत नहीं तो मैं यहां क्यों रहूं। कल मिलूंगा, बंसी भाई- ।" कहने के साथ ही दोसा पलटा और पीछे नजर आया रहे दरवाजे की तरफ बढ़ गया। फिर वो बाहर निकल गया ।


दरवाजे पर से एक आदमी ने भीतर झांका।


"दरवाजा बन्द कर दो। कोई भीतर न आये।"


दरवाजा बन्द हो गया।


ये जगह बार एण्ड रेस्टोरेंट के बेसमेंट में थी। जिसके बारे में ज्यादा लोगों को खबर नहीं थी। कुर्सी पर बंधा पड़ा थापर कठोर निगाहों से बंसीलाल को देख रहा था।


बंसीलाल ने सिग्रेट सुलगाई और सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। 


“तुमने गोवा में मेरे दो आदमियों को मारा।" बंसीलाल बोला- “और तुम्हारे चार आदमी मारे गये।" थापर देखता रहा, बंसीलाल को।


"मैंने तो तुम्हें कुछ नहीं कहा।” बंसीलाल का स्वर शांत था“- फिर तुमने अपने दो आदमी मेरी जान लेने के लिये क्यों भेजे। मुझ जैसे गैंगस्टर से तो तुम्हें दूर रहना चाहिये। शहर के शरीफ हो तुम - " 


“तुमने दिव्या का अपहरण किया। उसकी इज्जत लूटी। उसकी हत्या की । तुम जैसे इन्सान को - ।"


“दिव्या?” बंसीलाल के होंठ सिकुड़े- "ये कौन है ? 


“उसका पिता मेरे पास काम करता है। और मैं अपने आदमियों को अपना दोस्त मानता हूँ। उनका दुःख मेरा दुःख है।


“वेशक दुखः मनाओ। मैं तुम्हें ऐसा करने को रोक नहीं रहा। लेकिन ये दिव्या कौन है, सच में मैं नहीं जानता।"


“ये वो ही लड़की थी, जो मौका पाकर तुम्हारी कैद से भाग निकली थी। जब तुम्हारे आदमियों के हाथ नहीं आई तो उसे खत्म कर दिया गया।" थापर कड़वे स्वर में कह उठा।


“समझा।” बंसीलाल ने सिर हिलाया- “समझ गया, तुम किसकी बात कर रहे हो। वो अच्छी लड़की थी। जब मैंने उसे पहली बार देखा तो तभी उस पर दिल आ गया था। मालूम किया कि वो कहीं पर पन्द्रह सौ में नौकरी कर रही है। मैंने उसे जबर्दस्ती बुलवा कर रेस्टोरेंट में पांच हजार की नौकरी की ऑफर दी। ये सोचकर कि उसे नोट मिलते रहेंगे और मेरा दिल बहलता रहेगा। लेकिन वो वेवकूफ नहीं मानी। मैंने उसे सोचने के लिये एक दिन का वक्त भी दिया। तब भी नहीं मानी तो उठवा लिया मैंने उसे। जो चीज मेरी निगाहों में चढ़ जाये तो उसे मैं छोड़ता नहीं।" कहते हुए मुस्करा पड़ा वो - "बंसीलाल यूं ही नहीं कहते मुझे - "


थापर के दांत भिंच गये।


“मैंने अपनी जिन्दगी में बहुत बंसीलाल देखे हैं। तुम - " 


“मुझ जैसा नहीं देख होगा।" बंसीलाल के चेहरे पर फैली

मुस्कान में क्रूरता आ गई- “खैर छोड़ो, ये तो समझ में आ गया कि तुम क्यों मेरे पीछे पड़े। लेकिन ये सुरेन्द्र पाल कौन है?" 


थापर ने खा जाने वाली नजरों से बंसीलाल को देखा। “मुझे कैद करके तुम बहुत बड़ी गलती कर चुके हो।” थापर गुर्रा उठा "मैं आम लोगों में से नहीं हूं जिन्हें तुम कैद कर लेते हो। अपनी मनमानी करते हो। मैं- ।”


“खूब।” बंसीलाल ने उसी लहजे में कहा- “तुम कोई खास क्वालिटी के हो क्या? क्या है तुममें खास चीज? मुझे भी बताओ। शायद मैंने वो चीज कभी न देखी हो। किसी दूसरे ग्रह से आये हो क्या?”


थापर ने कुछ नहीं कहा। चेहरे पर मौत भरी मुस्कान फैल गई।


"तुम सुरेन्द्र पाल के बारे में बता रहे थे। तुम्हारे चार आदमी मर गये। मेरे आदमी तुम्हारे पीछे थे। ऐसे में तुम रात को चुपके से अकेले ही निकलकर गोवा जा पहुंचे। यानि कि सुरेन्द्र पाल कोई खास ही है जिससे मिलने के लिये तुमने इतना बड़ा खतरा उठाया। इस बात का भी डर नहीं रहा कि रास्ते में मेरे आदमी तुम्हें मार सकते हैं। गोवा पहुंचते ही तुम सुरेन्द्र पाल के पास गये। मेरे आदमी पीछे थे। तुम्हें खत्म करने के लिये लेकिन होटल के कमरे में उन्हें ख़त्म कर दिया गया। किसने मारा उन दोनों को। तुमने या सुरेन्द्र पाल ने?”


थापर खतरनाक निगाहों से बंसीलाल को देखता रहा ।


“वैसे सुरेन्द्र पाल है कौन सा ? वो जो होटल के कमरे से पहले निकला था वो जो लड़की के साथ अभी भी गोवा में है।” 


“होटल से जो पहले निकला था।" थापर के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान फैल गई - "वो तुमसे जल्दी मिलेगा।" 


“अच्छा- ।” बंसीलाल होले से हंसा ।


“ये तो मुसीबत वाली बात कर दी। वैसे कौन है ये । सुरेन्द्र पाल का नाम तो मैंने कभी नहीं सुना । "


“असली नाम क्या है?"


“ये उसका असली नाम नहीं है।


“वो खुद ही तुम्हारे पास आकर अपने बारे में तुम्हें बतायेगा।" 


“हूं। बंसीलाल कुर्सी से उठा और पीठ पर हाथ बांधे टहलने लगा- “बहुत काम की बातें बताईं तुमने। ठीक है। उससे भी मिल लूंगा। वैसे वो मेरे बारे में जानता है ना कि मैं कितना खतरनाक हूं।” 

“वो इन बातों की परवाह नहीं करता।" थापर ने उसे खा जाने वाली निगाहों से देखा।


थापर को देखते हुए बंसीलाल के होंठों पर मुस्कान फैल गई। 


"तुमने सुरेन्द्र पाल के बारे में मुझे बताकर गलत किया कि वो मेरी गर्दन काटने का इरादा रखता है।" बंसीलाल कह उठा-"अब मैं और भी सतर्क हो जाऊंगा। वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा और मेरे आदमी उसे पकड़ लेंगे।”


“कोशिश करके देख लो। मैंने तुम्हें यूं ही नहीं उसके बारे में बताया बंसीलाल -।"


बंसीलाल ने थापर की आंखों में झांका “कोई गैंगस्टर है सुरेन्द्र पाल ?”


“नहीं ।”


“अण्डरवर्ल्ड का कोई बड़ा है ?” 


“नहीं ।”


" ऐसा कुछ भी नहीं है तो फिर मुझे उसकी परवाह करने की जरूरत ही क्यों है । "


जवाब में थापर के होंठों पर कहर से भरी मुस्कान थिरक उठी । “ मैंने तो नहीं कहा कि तुम उसकी परवाह करो । तुम खुद ही उसकी परवाह करने लगे हो।” थापर ने व्यंग्य से कहा। 


"बहुत विश्वास के साथ मुझसे धमकी भरी बातें कर रहे हो।” अब की बार बंसीलाल के चेहरे के साथ-साथ उसकी आवाज भी कठोर हो गई - "वैसे तो मैंने पक्के तौर पर अपना मन बना रखा था कि तुमसे पूछताछ करके रात ही मैं तुम्हें खत्म करवा कर तुम्हारी लाश किसी नाले में डलवा दूंगा। लेकिन तुम्हारी बातें सुनकर मेरा इरादा बदल गया। पहले मैं तुम्हारा विश्वास तोडूंगा। उसके बाद तुम्हें खत्म करूंगा। और तुम्हारा विश्वास टूटेगा सुरेन्द्र पाल की लाश देखकर। उसकी लाश के टुकड़े देखकर। जिसके दम पर तुम बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हो ।”


“पहले सुरेन्द्र पाल को तलाश करो। उसके बाद ही तो उसकी लाश के टुकड़े करोगे।” थापर ने कठोर स्वर में कहा ।


बंसीलाल दांत भींचे देखता रहा थापर को। “ठीक है।" बंसीलाल चुनौती भरे स्वर में कह उठा- "चौबीस घंटों में तुम सुरेन्द्र पाल को मरे हुए देखोगे ।”


“बहुत बड़ी बात कह रहे हो।" थापर ने पहले वाले स्वर में

कहा ।


“मेरी नजरों में ये रोजमर्रा की बात है।" कहने के साथ ही बंसीलाल पलटा और दरवाजे के पास पहुंचकर दरवाजा खुलवाया और बाहर निकल गया। दरवाजा पुनः बंद हो गया।


बंसीलाल सीधा अपने ऑफिस में पहुंचा। फोन की बेल बज रही थी। चेहरे पर कठोरता के भाव समेटे बंसीलाल कुर्सी पर बैठा और रिसीवर उठा लिया।


"हैलो । "


“बाटला बोलता हूं भाई-।" बाटला का स्वर कानों में पड़ा। 


"बोलो।"


“बहुत वक्त हो गया। लेकिन सुरेन्द्र पाल या उसकी कार नजर नहीं आई। या तो वो पहले ही मुम्बई आ पहुंचा है या फिर गोवा में ही है। इधर को नहीं आया ।”


बंसीलाल ने घडी देखी और फिर सोच भरे स्वर में कहा । “कुछ देर और देखो। मेरे पास पक्की खबर है कि सुरेन्द्र पाल गोवा से मुम्बई के लिये दिन में चला था।” 


“ठीक है। मैं अभी और देखता हूं।"


बंसीलाल ने रिसीवर रख दिया। चेहरा कठोर हुआ पड़ा था।


***

देवराज चौहान की आंख सुबह खुली। वो उठा और तैयार होने के पश्चात् द्वार पर बंगले से बाहर निकलता चला गया। उसे तलाश थी अब बंसीलाल की।

करीब एक घंटे बाद जगमोहन और नगीना बंगले पर पहुंचे। रात भर की ड्राईविंग की वजह से जगमोहन थका-सा नजर आ रहा था। पोर्च में पहुंचते ही कह उठा।

“लगता है देवराज चौहान पहुंचा नहीं। उसकी कार नजर नहीं आ रही।"

“ उन्हें तो रात को ही पहुंच जाना चाहिये था।" नगीना के होठों से निकला।

दोनों बंगला खोलकर भीतर पहुंचे। सैंटर टेबल पर चाय का प्याला देखते ही नगीना कह उठी।

“वो रात को यहां आये थे। ये देखो चाय का प्याला रखा है। " 

जगमोहन ने चाय के प्याले पर नजर मारी फिर बंगले के भीतरी हिस्से की तरफ बढ़ गया। नगीना की निगाहें इधर-उधर फिरने लगीं। दूसरे ही मिनट जगमोहन वापस आया।

"हां। देवराज चौहान आया था। किचन में चाय का बर्तन बता रहा है कि कुछ घंटे पहले उसमें चाय बनाई गई है। वाथरूम में वो कपड़े पड़े हैं जो गोवा से पहन कर चला था और टॉवल गीला है।"

"इसका मतलब वो रात को ही या फिर सुबह बंगले से गये हैं।" नगीना ने जगमोहन को देखा।

"सुबह ही निकला है देवराज चौहान बंगले से।" जगमोहन ने विश्वास भरे स्वर में कहा - "बाथरूम का फर्श और टॉवल का गीलापन बता रहा है कि एक-डेढ़ घंटा पहले कोई नहाया था।" 

नगीना के चेहरे पर गम्भीरता नजर आने लगी। "वो बंसीलाल की तलाश पर गये हैं।"

जगमोहन ने सहमति में सिर हिला दिया। नगीना ने कुछ नहीं कहा।

“भाभी! तुम अपने बंगले पर चले जाओ।" यहां-। 

“जगमोहन।” नगीना गम्भीर स्वर में कहा उठी-"तुम यहां रहकर, उनके फोन का इन्तजार करोगे या फिर बंसीलाल की तलाश में बाहर जाओगे।"

"हां"

मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं।" 

“नहीं भाभी। ये ठीक नहीं होगा।" जगमोहन के होंठों से निकला – “देवराज चौहान ने तुम्हें अलग बंगले में इसलिये रखा है कि दुश्मनों की निगाहों में तुम न आ सको। दुश्मन तुम पर कब्जा जमा कर, हमें मजबूर न कर सके किसी काम के लिये। और तुम कहती हो कि तुम्हें इस काम में अपने साथ ले लूं। ”

“मैं पहले भी तुम लोगों के साथ फील्ड में काम कर चुकी-"

“वो अलग बात है।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा- “तब देवराज चौहान साथ था सब कुछ उसी की मर्जी से हुआ था। मुझे इस बात की इजाजत नहीं है कि तुम्हें किसी काम पर साथ लूं। मैंने ऐसा कुछ किवा तो मुझे देवराज चौहान की नाराजगी का शिकार होना पड़ेगा।"

“जगमोहन।" नगीना कह उठी- "इस बात की जिम्मेवारी मेरी रही कि - "

“सॉरी भाभी ! मैं तुम्हारी ये बात नहीं मान सकता। देवराज चौहान ये बात पसन्द नहीं करेगा।" जगमोहन ने स्पष्ट कहा। " 

नगीना के होंठों पर मुस्कान उभरी ।

“ठीक है। इस बात के लिये मैं तुम्हें मजबूर नहीं करूंगी। और तुम मुझे बंगले से जाने को मजबूर नहीं कर सकते। “क्या मतलब ?"

"मैं दूसरे बंगले पर नहीं जाऊंगी। कुछ दिन यहीं रहूंगी।" तुम मुझे निकाल नहीं सकते।" नगीना मुस्करा रही थी। 

"ठीक है भाभी।" जगमोहन ने गहरी सांस ली- "इसके लिये मैं तुम्हें जोर नहीं दे सकता। मर्जी तुम्हारी । बंगले का दरवाजा बंद कर लो। मैं सोने जा रहा हूं। तुम भी आराम कर लो। देवराज चौहान का फोन कभी भी आ सकता है। मैं यहीं सोफे पर फोन के पास लेट जाता हूं। तुम बैडरूम में जाकर आराम कर लो।" 

नगीना ने बंगले का दरवाजा बन्द किया और बैडरूम की तरफ बढ़ गई।

बैड पर लेटने के पश्चात् नगीना बेचैनी-सी महसूस करने लगी थी। थकान की वजह से आंखों में नींद थी। आंखें बंद थीं, परन्तु नींद नहीं ले पा रही थी। उसे ऐसा लग रहा था, जैसे कोई उसे नींद नहीं लेने दे रहा हो। पलकें खोलती तो नींद से बोझिल वो फिर बंद हो जातीं। तभी कानों में मध्यम- सी सरगोशी हुई।

नगीना बेटी- ।"

“आंखें बंद किए नगीना के मस्तिष्क में हल्की सी हलचल हुई फिर थम गई। नींद में नगीना को महसूस हुआ कि ये कोई सरगोशी नहीं है। वहम ही था उसका ।

“नगीना बेटी।" पुनः वही सरगोशी।

उसी पल नगीना की आखें खुलीं, नजरें कमरे में दौड़ने लगीं। जीरो वाट का मध्यम-सा प्रकाश फैला हुआ था। नगीना का मस्तिष्क अब नींद से निकल कर साफ-साफ काम करने लगा था। वो महसूस कर चुकी थी कि कानों में पड़ने वाली सरगोशी उसका वहम नहीं था। धोखा नहीं था।

वो उठकर बैठ गई। पूरा कमरा खाली था। 

“मुझे देखने की कोशिश कर रही हो नगीना बेटी ।" 

इस बार सरगोशी न होकर आवाज स्पष्ट थी ।

“कौन हो तुम - ?" नगीना के माथे पर स्पष्ट तौर पर बल नजर आने लगे। 

इसी के साथ वो उठी और कमरे की लाईट ऑन कर दी। कमरे का जर्रा-जर्रा चमक उठा। उसके अलावा कमरे में कोई और नहीं था। 

“तुम मुझे नहीं जानतीं ।” 

वो ही आवाज पुनः नगीना को सुनने को मिली।

"देवा जानता है मुझे, जग्गू जानता है। पेशीराम नाम है मेरा। वैसे यहां के लोग मुझे फकीर बाबा कहते हैं।"

"यहां के लोग? कौन हो तुम। नजर क्यों नहीं आ रहे ?" उलझन में फंसी नजर आ रही थी वो- "मैंने तुम्हारा नाम किसी से नहीं सुना।" 

"इसका मतलब देवा या जग्गू ने तुमसे कोई जिक्र नहीं किया?"

नगीना का चहरा अजीब से भावों से भर उठा।

"कौन देवा - जग्गू - ?"

"देवराज चौहान । जगमोहन। मैं उन्हें तीन जन्म पहले के नाम से पुकारता हूं।"

“तीन जन्म पहले के नाम ?” उलझन में घिरी जा रही थी नगीना ।

“तुम्हें कुछ नहीं मालूम तो मेरी बातों को तुम समझ भी नहीं पाओगी और मेरे पास इतना वक्त नहीं कि यहां ठहर सकूं। जाना है मुझे। जल्दी है । देवा और जग्गू से पूछोगी तो वो बता देंगे सारी बात।” फकीर बाबा की आवाज नगीना को सुनाई दे रही थी - " बहुत ही गम्भीर बात तुमसे करने आया हूं।"

“तुम नजर क्यों नहीं आ रहे ?”

“वक्त आया तो तुम बहुत जल्द मुझे सामने खड़ा देखोगी। देव और जग्गू से मेरे बारे में बात करके तुम सब कुछ समझ पाओगी। तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा। तुम्हारी उलझन का एहसास है मुझे अजीब-सी हालत में नगीना खड़ी रही ।

“मिन्नो को जानती हो ?”

“मिन्नो?” नगीना के होंठों से निकला ।

“मोना चौधरी की बात कर रहा हूं मैं। तीन जन्म पहले उसक नाम मिन्नो था-।”

"तुम्हारी बातों को समझ कर भी नहीं समझ पा रही हूं '

"पहले जन्मों वाली बात मेरी समझ से बाहर है- ।"

“सब कुछ तुम्हारी समझ में आ जायेगा। मैं मिन्नो की बात-।"

"जानती हूं। मोना चौधरी को देखा तो नहीं लेकिन नाम सुन चुकी हूं उसका ।" नगीना ने शांत स्वर में कहा- "देवराज चौहन के साथ दुश्मनी है उसकी ।”

“हां। कई बार उनमें झगड़ा भी हो चुका है।" फकीर बाबा गम्भीर स्वर कानों में पड़ा-“लेकिन हर बार दोनों ही सलामत बच गये। लेकिन इस बार शायद ऐसा न हो। कोई एक जान गवां बैठे?” 

“क्या मतलब“- नगीना के होंठों से निकला।

"देवा इस वक्त बंसीलाल के पीछे है।" फकीर बाबा की आवाज़ नगीना के कानों में पड़ रही थी- “नगीना बेटी! देवा से कहो, इस रास्ते पर न चले। बंसीलाल का पीछा छोड़ दें। ये सब सितारों की चाल है। अगर देवा ने बंसीलाल का पीछा न छोड़ा तो इसी रास्ते पर चलकर उसकी मिन्नो से खतरनाक टक्कर हो जायेगी।” 

नगीना ने हौले से सिर हिलाया।

"तुम भविष्य का गर्भ जानते हो कि क्या होने वाला है।" नगीना कह उठी।

"मैं उस हद तक ही भविष्य की बातें करता हूं, जो मुझसे वास्ता रखती है।" फकीर बाबा की गम्भीर आवाज नगीना के कानों में स्पष्ट पड़ रही थी - "कभी-कभी मेरे लिये भी भविष्य में झांकना असम्भव हो जाता है।"

होंठ जमाये खड़ी नगीना के चेहरे पर गम्भीर सोच के भाव नजर आ रहे थे।

“तुम देवा की पत्नी का स्थान रखती हो इस जन्म में।” फकीर बाबा की आवाज पुनः आई- “चाहो तो देवा को इस रास्ते पर जाने से रोक सकती हो । भयानक टकराव से उसे बचा सकती हो ।” 

“तुमने कहा कि तुम देवराज चौहान को जानते हो।” नगीना बोली।

“हां ।”

“तो उन्हीं से इस बारे में बात करो। वो - "

“रात को मैने देवा से बात की थी। लेकिन वो नहीं माना मेरी बात । देवा तो- "

“फिर तो इस बारे में में भी कुछ नहीं कर सकती।" नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा-"देवराज चौहान ने मुझे अपने कामों में दखल देने का हक नहीं दिया कि उन्हें टोक सकूं-।"

“नगीना बेटी तुम आने वाले वक्त का खतरनाक पहलू नहीं देख पा रही, जो मुझे नजर आ रहा है। अगर तुमने देवा को रोक लिया तो समझो बहुत बड़े खून-खराबे को तुमने मुट्ठी में बांध लिया।" फकीर बाबा की आवाज में गम्भीरता और व्याकुलता थी- "काई दूसरा रास्ता न पाकर मुझे तुमसे बात करनी पड़ी। जग्गू से बात करने का मुझे कोई फायदा नजर नहीं आया। वो तो जन्मों-जन्मों से आंखें मूंदकर, देवा की बात मान लेता है। ऐसे में वो मेरी बात को गम्भीरता से लेकर देवा को नहीं समझायेगा। आने वाले वक्त में जो होने वाला है उसके बारे में मैंने तुम्हें बता दिया। मिन्नो और देवा का टकराव न हो। वो आमने-सामने न पड़े। इसी में तुम लोगों का और मेरा भी भला है। अगर हो सके तो उनका टकराव रोकने की कोशिश करना। मैं जा रहा हूं।" 

नगीना कमरे में नजरें दौड़ाने लगी । पहले भी कोई नजर नहीं आ रहा था और अब भी कोई नहीं दिखा।

गहरी चुप्पी छा गई वहां ।

नगीना समझ गई कि फकीर बाबा या पेशीराम जो भी वो है, वो जा चुका है। लेकिन उसके मन में गहरी उलझनें छोड़ गया था कि पूर्व जन्मों की क्या बात है। उसे कुछ भी नहीं मालूम देवराज चौहान ने भी कभी उसे नहीं बताया और जगमोहन ने भी जिक्र नहीं किया कभी। मन में उत्सुकता और उलझन की गठरी बांधे नगीना कमरे से निकली और ड्राईंगहाल में पहुंची ।

जगमोहन फोन के पास ही लम्बे सोफे पर गहरी नींद में था। नगीना ने उसे नींद से उठाना ठीक नहीं समझा और वापस कमरे में आ गई कि जब वो सोया उठेगा तब फकीर बाबा के बारे में उससे पूछेगी। बात करेगी।

***