देवराज चौहान और जगमोहन ने आर्य निवास होटल में सुरेंद्र पाल के नाम से कमरा ले लिया था। कमरा दूसरी मंजिल पर मिला था। दिन के दस बज रहे थे। इस वक्त वे कॉफी के घूंट भर रहे थे।
"हमारा पूना का प्रोग्राम आज रह जाएगा...।" जगमोहन बोला।
"देखते हैं।" कॉफी का घूंट भरते देवराज चौहान ने कहा।
"समस्या क्या है राणे को?"
"अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं। फोन पर उसने बताया कि मुम्बई के ड्रग्स किंग सुधीर दावरे से उसका कोई झगड़ा हो गया है। उसका कहना है कि सुधीर दावरे को उसके प्रति गलतफहमी हो गई है।" देवराज चौहान ने कहा।
"तो इसमें हम क्या कर सकते हैं?"
"वो मुझे बीच में डालना चाहता है कि उसके लिए मैं दावरे से बात करूं।"
"राणे करता क्या है?"
"स्पष्ट नहीं है। साल भर पहले जब मिला था तो शायद उसने यही बताया था कि वो ड्रग्स का काम करता है।"
"शायद अब भी ड्रग्स का ही काम करता हो।" जगमोहन बोला।
"मिलने पर पता चलेगा। आने वाला होगा वो...।"
देवराज चौहान और जगमोहन राणे के आने का इंतजार करते रहे।
इंतजार लम्बा होने लगा।
साढ़े ग्यारह बज गए।
"वो आएगा भी या नहीं?" जगमोहन ने बोरियत भरे स्वर में पूछा।
"जरूर आएगा।"
"फोन करके देखो उसे...।"
यही वो वक्त था जब देवराज चौहान का फोन बजने लगा।
"हैलो।" देवराज चौहान ने बात की।
"आर्य निवास होटल में कमरा ले लिया?" राणे की आवाज कानों में पड़ी।
"लगभग दो घंटे हो गए हैं। तुम्हारा इंतजार हो रहा है।"
"मैं बस निकलने वाला हूं...।" राणे का स्वर बेचैन था।
"अभी तक निकले नहीं?"
"खतरा सिर पर मंडरा रहा हो तो सतर्क रहना पड़ता है। दावरे के आदमी मुझे मारने के लिए, भागे फिर रहे...।"
"ये बात है तो मुझे अपनी जगह के बारे में बताओ, वहीं आ जाता हूं।"
"यहां भी सुरक्षित नहीं है। मुझे किसी पर भरोसा नहीं कि जाने कब, कौन मेरे बारे में दावरे को खबर दे दे।"
"कब तक पहुंच रहे हो?" देवराज चौहान ने पूछा।
"एक घंटे तक।"
देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।
"ये राणे हमारा वक्त खराब कर रहा है।" जगमोहन कह उठा।
देवराज चौहान मुस्कुराया। बोला कुछ नहीं।
"तुम कुछ नहीं कहोगे?"
"राणे बुरा फंसा पड़ा है मेरे ख्याल से। तभी उसे मेरी याद आई होगी। वो मेरे काम आया था। अब मुझे उसके काम आना चाहिए।"
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
वे दोनों राणे के आने का इंतजार करते रहे।
■■■
आर्य निवास होटल की दूसरी मंजिल के हॉल के दरवाजे पर दो आदमी खड़े थे और आने वाले अपने आदमियों को पहचान कर ही, उन्हें भीतर जाने दे रहे थे। (पाठकों को ये बता दें कि ये वही दिन और वही वक्त था जब सर्दूल के जन्मदिन की पार्टी इस हॉल में दी जा रही थी और यहां पर अकबर खान, दीपक चौला, सुधीर दावरे, वंशू करकरे अपने आदमियों के साथ पहुंच रहे थे और सर्दूल ने भी आना था। ये सब लोग गुपचुप सर्दूल के जन्मदिन की पार्टी यहां कर रहे थे।)
दरवाजे पर खड़े दोनों लोग वो थे जो कि अंडरवर्ल्ड के सब लोगों की पहचान रखते थे। उनमें से एक सुधीर दावरे का आदमी था और दूसरा अकबर खान का।
उस वक्त दिन के, दोपहर के पौने दो हो रहे थे जब वहां खड़ा सुधीर दावरे का आदमी चौंका। सामने से राणे आ रहा था। वो आदमी जानता था कि तीन दिनों से दावरे के आदमी राणे को ढूंढ रहे हैं, परंतु वो हाथ नहीं आ रहा। राणे ने उन दोनों को देखा। परंतु वो नहीं जानता था इन दोनों को और वो तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि इस वक्त इस होटल में, सुधीर दावरे मौजूद हो सकता है। उसकी निगाहों में तो फिलहाल ये सुरक्षित जगह थी।
राणे उनके सामने से निकल कर, आगे जाती गैलरी में प्रवेश कर गया।
वो आदमी फौरन आगे गया और राणे को जाते देखता रहा।
कुछ आगे जाकर राणे ठिठका और एक बंद दरवाजे को थपथपाया।
फौरन ही दरवाजा खुला और राणे भीतर चला गया। दरवाजा बंद हो गया।
उस आदमी के होंठ भिंच गए। वो वापस पलटकर दरवाजे के पास आया और वहां खड़े आदमी से बोला---
"मैं अभी आया।" ये कहकर वो दरवाजा धकेल कर भीतर प्रवेश कर गया।
ये काफी बड़ा हॉल था।
बैठने के लिए सोफे लगे थे। टेबल कुर्सियां लगी थी। फर्श पर कारपेट बिछा था। छत पर फानूस लटक रहे थे। दीवारों पर पेंटिंग्स लगी थी। तेज रोशनी वहां हो रही थी। इस वक्त वहां तीस के करीब लोग थे। सुधीर दावरे, वंशू करकरे, अकबर खान और दीपक चौला भी वहां मौजूद थे। ग्रुपों में बंटे वे लोग हंस-हंस कर बातें कर रहे थे तो कभी वे ठहाका लगा उठते। टेबलों ऊपर कोल्ड ड्रिंक, चाय और खाने के सामान की प्लेटें रखी थीं।
सर्दूल अभी नहीं आया था।
खास बात तो ये थी कि वहां होटल का कोई कर्मचारी मौजूद नहीं था। उनके अपने आदमी जरूरत का सामान ला रहे थे। अजीब बात तो ये थी कि सर्दूल के जन्मदिन के कारण ये पार्टी रखी गई थी, परंतु हॉल में कहीं भी जन्मदिन की सजावट नहीं थी। केक का टेबल भी कहीं नजर नहीं आ रहा था। कोई म्यूजिक नहीं चल रहा था। सिर्फ एक तरफ टेबलें जोड़कर लंबी टेबल बनाई गई थी, जहां लंच का गर्म सामान अभी लाकर रखा गया था। कुछ आदमी इन्हीं तैयारियों में जुटे हुए थे।
"सर्दूल साहब नहीं आए अभी तक?" दीपक चौला ने कहा।
"आ जाएंगे। फोन आया था कि वो पहुंचने वाले हैं।" वंशू करकरे ने कहा।
तभी वो आदमी पास आकर सुधीर दावरे के कान में कुछ बोला।
दावरे फौरन उठा और उस आदमी के साथ, हॉल के कोने में पहुंचा।
"अब कहो...।" सुधीर दावरे धीमे स्वर में बोला।
"मैंने अभी राणे को देखा है, यहीं इसी होटल में।" उस आदमी ने बताया।
"राणे...वो कौन?"
"वो ही जिसने हमारी ड्रग्स लूटी थी और...।"
"समझा... समझा।" दावरे ने सिर हिलाया--- "वो इसी होटल में है?"
"हां। अभी-अभी मैंने उसे एक कमरे में जाते देखा है।"
"तो वो इस होटल में छिपा हुआ है?" सुधीर दावरे मुस्कुराया--- "ये तो कमाल हो गया। हम भी यहां, वो भी यहां...!"
"अब उसका क्या करें?"
"सर्दूल आने वाला है।" सुधीर दावरे हॉल में नजरें दौड़ाता कह उठा--- "ये उसके जन्मदिन की पार्टी है।"
वो आदमी खामोश खड़ा रहा।
"इस पार्टी में कोई पंगा नहीं खड़ा होना चाहिए। राणे किसी कमरे में है?" दावरे ने पूछा।
"हां।"
"हो सकता है वो उसी कमरे में टिका हो। तू वहां नजर रख। उसे निकलने मत देना। तब तक हम ये पार्टी निपटा लें।"
"समझ गया...।" कहने के साथ ही वो आदमी दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
अभी दरवाजे के पास पहुंचा ही था कि सर्दूल ने भीतर प्रवेश किया।
सर्दूल को देखकर सब उसके स्वागत के लिए उठ खड़े हुए।
सब आगे बढ़-बढ़ कर सर्दूल से हाथ मिलाने लगे।
चेहरे पर मुस्कान समेटे सर्दूल सब से मिल रहा था। वो अकेला आया था। उसके आने पर पार्टी में जैसे जान आ गई थी। सर्दूल खतरनाक मुजरिम था। हिन्दुस्तान से भागकर पाकिस्तान और दुबई में ठिकाना बनाए हुए था। पाकिस्तान सरकार के साथ सर्दूल के बहुत अच्छे संबंध थे। इन दिनों चोरी-छिपे हिन्दुस्तान आया हुआ था। हर साल ही वो भारत आता था। भारत का खतरनाक फरार मुजरिम था, परंतु भारत के अंडरवर्ल्ड से संबंध टूटा नहीं था। उसके इशारे पर अभी भी अंडरवर्ल्ड के काम बन और संवर जाते थे। आज भी वंशू करकरे, अकबर खान, सुधीर दावरे और दीपक चौला के धंधों को वो ही सुरक्षा देता था। ये चारों कभी कुछ भी नहीं थे। सर्दूल ने अपना हाथ इनकी पीठ पर रखा और ये चारों अपने-अपने धंधों के सरताज बनते चले गए। किसी को पता नहीं था कि सर्दूल का हाथ इनकी पीठ पर है। अपने धंधे की जो समस्या ये सुलझा नहीं पाते, इनके कहने पर सर्दूल उस समस्या को दूर करता। सर्दूल के आदमी हिन्दुस्तान के हर शहरों में फैले हुए थे। वो उन्हें इशारा करता और समस्या दूर हो जाती। बदले में सर्दूल हर महीने इन चारों से बंधी-बंधाई रकम लेता था। उसके आदमी आते और पैसे ले जाते।
ये ही नहीं, इस तरह के सर्दूल के सैकड़ों काम हिन्दुस्तान में चल रहे थे।
मिलने के बाद सबसे पहले फुर्सत मिलते ही सर्दूल सबसे कह उठा।
"ये तुम लोगों की जिद थी कि मेरा जन्मदिन मनाया जाए। जबकि मैं पन्द्रह साल का था, तभी से ही जन्मदिन मनाना छोड़ दिया।"
"ऐसा क्यों?" दीपक चौला ने पूछा।
"जब मैं पन्द्रह साल का पूरा हुआ तो मेरे मां-बाप जन्मदिन मना रहे थे मेरा। तभी दो लोग आए और मेरे मां-बाप को गोलियों से भूनकर चले गए। मैं छिप ना जाता तो, मैं भी मारा जाता।"
"ऐसा क्यों हुआ?" वंशू करकरे ने पूछा।
"मेरा बाप मटके (जुए) का धंधा करता था। उसके धंधे में कोई लफड़ा था जो गोलियां चलीं।" सर्दूल ने मुस्कुरा कर कहा--- "वैसे उस घटना के चार साल बाद मैंने अपने मां-बाप की मौत का बदला तो ले लिया, पर मां-बाप तो गए! तब से मैं अपने जन्मदिन को अपशगुन के तौर पर देखता हूं और मनाता नहीं...।"
"ये भी तुम्हारा जन्मदिन कहां मन रहा है।" अकबर खान ने हंसकर कहा--- "यहां ना तो सजावट है जन्मदिन की, ना ही केक है जन्मदिन का। तुमने ही मना किया था कि ये सब ना हो।"
"हां। मैं अपने जन्मदिन वाले दिन कोई खुशी नहीं मनाता। लेकिन तुम लोगों के जोर देने पर मैं जन्मदिन पर लंच के प्रोग्राम पर आ ही गया। लेकिन ज्यादा देर रुकूंगा नहीं। इसलिए जल्दी लंच शुरू किया जाए।"
"तुमने व्हिस्की भी नहीं खोलने दी आज।" सुधीर दावरे कह उठा।
"क्योंकि मैं व्हिस्की नहीं पीता और ये भी पसंद नहीं करता कि कोई पीकर, मेरे सामने बकवास करे।" सर्दूल ने मुस्कुरा कर कहा--- "अब जल्दी करो। अगर लंच ठंडा हो गया तो मजा नहीं आएगा। लंच गर्म है ना?"
"बिल्कुल गर्म है।"
■■■
"बहुत देर लगा दी तुमने...।" देवराज चौहान दरवाजा बंद करते हुए बोला।
"पूछो कुछ मत। छुपता-छुपाता यहां तक पहुंचा हूं...।" आगे बढ़कर कुर्सी पर बैठता राणे कह उठा।
राणे पैंतालीस बरस का मध्यम कद-काठी का आदमी था। उसने जगमोहन को देखकर कहा।
"तुम जगमोहन हो?"
जगमोहन ने सहमति में सिर हिला दिया।
देवराज चौहान राणे के सामने आ बैठा।
"कहो, क्या बात है?" पूछा देवराज चौहान ने।
राणे ने गहरी सांस ली फिर बोला।
"सुधीर दावरे मुंबई का ड्रग्स किंग...।"
"सुन रखा है नाम।" देवराज चौहान कह उठा।
"दस दिन पहले कुर्ला में सुधीर दावरे की ड्रग्स उतर रही थी। तो कुछ लोगों ने उसकी ड्रग्स लूट ली। इत्तेफाक से तब मैं वहां से निकल रहा था और मेरी कार का एक्सीडेंट दावरे के आदमी की कार से हो गया। रुका मैं तो दावरे के आदमियों ने मुझे पहचाना और वो यही कहने लगे कि मैंने ही उनकी ड्रग्स लूटी है। उस वक्त मैं वहां से निकल गया। परंतु दावरे मेरे पीछे पड़ गया।"
देवराज चौहान की निगाह राणे पर थी।
"दावरे के आदमियों ने फोन पर मुझे कल तक का दिन दिया था कि उनकी ड्रग्स वापस दे दूं। मैंने लूटी नहीं तो मैं कहां से दूं? कल का दिन बीत गया। अब मुझे पता चला है कि दावरे के आदमी मुझे शूट करने के लिए मेरी तलाश कर रहे हैं।"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई। कश लिया।
"तुम क्या करते हो?"
"मैं भी ड्रग्स का काम करता हूं।" राणे ने गहरी सांस ली।
"तुमने नहीं लूटी वो ड्रग्स?"
"कसम से।" राणे कह उठा--- "मैं ऐसे काम नहीं करता।"
"तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं?" देवराज चौहान बोला।
"तुम सुधीर दावरे को समझा सकते हो कि राणे ने ये काम नहीं किया।"
"मेरे कहने से वो क्यों समझेगा?"
"तुम...तुम डकैती मास्टर देवराज चौहान हो। तुम्हारी बात को वो गंभीरता से लेगा। मैं खामख्वाह की मुसीबत में फंसा पड़ा हूं। तुम कोशिश करो तो मैं किनारे लग सकता हूं।" राणे ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा।
"मेरे ख्याल में तुम बेकार ही मुझे इस मामले में घसीट रहे हो। ये पूरी तरह तुम्हारा और दावरे का मामला...।"
"मैंने ड्रग्स नहीं लूटी। लूट के वक्त पर मेरा वहां देखा जाना ही मेरे लिए मुसीबत बन गया। दावरे को किसी तरह मेरे पीछे से हटाओ। वरना उसके आदमी मुझे मार देंगे।" राणे ने देवराज चौहान को देखा।
तभी खामोश बैठा जगमोहन कह उठा---
"ये तो तुम कह रहे हो कि तुमने सुधीर दावरे की ड्रग्स नहीं लूटी।"
"तो?" राणे ने जगमोहन को देखा।
"हमें क्या पता कि तुम सच कह रहे हो या झूठ...।"
"मैं सच कह रहा...।"
"हमें तो नहीं पता।"
"तुम्हें मेरी बात का भरोसा नहीं?"
"नहीं...।"
राणे ने गहरी सांस लेकर देवराज चौहान को देखा।
"मैं झूठ नहीं बोल रहा देवराज चौहान।" राणे कह उठा।
"हमारा बीच में आना ठीक नहीं होगा।" जगमोहन पुनः बोला--- "हम नहीं जानते कि ये आदमी किस हद तक सच और झूठ बोलता है। ये इसका और दावरे का मामला है।"
देवराज चौहान ने सिगरेट का कश लिया और शांत भाव थे।
"देवराज चौहान!" राणे परेशान सा कह उठा--- "मैंने कोरिया में तुम्हारे बिना कहे, तुम्हारी सहायता की थी।"
"हम उसकी कीमत दे सकते हैं।" जगमोहन बोला।
"मुझे पैसा नहीं, दावरे से अपनी जान बचानी है। मेरे काम आओ देवराज चौहान।"
"तुमने उसकी ड्रग्स लूटी?" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में पूछा।
"बार-बार ये बात क्यों पूछते हो? एक बार नहीं कह दिया तो उसे नहीं ही समझो।"
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
जगमोहन ने मुंह फेर लिया।
"जगमोहन को शक है कि तुम गलत कहते हुए भी हो सकते हो।"
"मैं समझ गया। तुम मेरी सहायता नहीं करना चाहते। तुम भूल गए कि कोरिया में हमारी दोस्ती हुई थी, हम...।"
"सब याद है मुझे। याद ना होता मैं तुमसे मिलता भी नहीं। परंतु मुझे सोचने का मौका दो।"
"सोचने का मौका?"
"थोड़ा सा वक्त।"
"तुम मुझे चलता करने की कोशिश में लगे हो। सीधी तरह ही कह दो कि...।"
"किसी नतीजे पर पहुंचने में जल्दी मत करो राणे। दो घंटे बाद मुझे फोन करना।"
राणे ने देवराज चौहान को देखा और गहरी सांस लेकर कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।
"इन दो घंटों में तुम क्या करोगे?" राणे ने गंभीर स्वर में पूछा।
"मैं और जगमोहन इस मामले पर बात करके, किसी नतीजे पर पहुंचेंगे।" देवराज चौहान ने कहा।
"ठीक है। मैं दो घंटे बाद फोन करूंगा। मैंने तो सोचा था कि तुम मेरे काम आकर खुश होगे।" राणे बोला।
"मैं सच में खुश होऊंगा अगर तुम्हारे काम आ सका तो---।"
"मुझे लगता नहीं कि तुम मेरा ये काम करोगे।"
"दो घंटे बाद फोन करना। मैं जगमोहन से इस बारे में बात कर लेना चाहता हूं।"
राणे ने दोनों को देखकर सिर हिलाया और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
देवराज चौहान भी दरवाजे के पास पहुंचा।
दरवाजा खोल चुका राणे उसे देखकर बोला---
"मैं फोन करूंगा।"
देवराज चौहान ने सिर हिला दिया।
राणे गैलरी में आगे बढ़ गया।
देवराज चौहान ने दो पल नजरें उस पर टिकाए रखीं, फिर पलटने लगा कि एकाएक ठिठका। उसकी नजर गैलरी समाप्त होने पर, सीढ़ियों वाली छोटी सी लॉबी पर जा टिकी। वहां एक आदमी टहल रहा था। जाने क्यों वो संदिग्ध लगा देवराज चौहान को। राणे गैलरी में उसी की तरफ बढ़ता जा रहा था। राणे को सीढ़ियों से नीचे जाना था। तभी देवराज चौहान ने उस आदमी को ठिठकते और उसका हाथ जेब में जाते देखा।
सतर्क हो गया देवराज चौहान।
परंतु इतना मौका नहीं था कि वो राणे को सतर्क कर पाता। चार-पांच कदमों के पश्चात राणे ने उसके पास होना था। बड़ी बात तो ये थी कि राणे उस आदमी के प्रति लापरवाह था। शायद वो सोच भी नहीं सकता था कि होटल के भीतर उसे कोई खतरा आ सकता है।
देवराज चौहान आंखें सिकोड़े राणे और उस आदमी पर नजरें टिकाए हुए था।
राणे ज्योंही उस आदमी के पास से निकला, उस आदमी ने फुर्ती से उसकी बांह पकड़ी और जेब में डाल रखा हाथ बाहर निकाला। हाथ में रिवाल्वर दबी थी, रिवॉलवर उसने राणे की कमर से लगा दी। राणे को छटपटाकर आजाद होने की चेष्टा करते देखा देवराज चौहान ने।
परंतु वो आदमी राणे को धकेलता एक तरफ ले गया ।
देवराज चौहान जहां खड़ा था, वहां से अब राणे या वो व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था।
देवराज चौहान समझ गया कि राणे खतरे में है। कुछ पलों तक उलझन की स्थिति में वहीं पर खड़ा रहा देवराज चौहान, फिर तेजी से गैलरी में, राणे और उस आदमी की दिशा में बढ़ता चला गया।
जगमोहन जो कि देवराज चौहान को ही देख रहा था, देवराज चौहान को इस तरह जाते देखकर वो चौंका, फिर वो कुर्सी से उठा और तेजी से आगे बढ़कर दरवाजे पर पहुंचा।
देवराज चौहान तब तक आधी गैलरी पार कर चुका था।
"कहां जा रहे हो?" जगमोहन ने पुकारा।
परंतु देवराज चौहान ने ना तो जवाब दिया, ना ही रुका।
■■■
राणे सोच भी नहीं सकता था कि ऐसा कुछ हो जाएगा।
वो तो अपनी, दावरे की और देवराज चौहान की ही सोचों में उलझा हुआ था। मन ही मन इस बात पर बल खा रहा था कि देवराज चौहान उसकी सहायता करने से पीछे हट रहा है। और जब उस आदमी के पास से निकला तो उसने फुर्ती से उसकी बांह पकड़ी और रिवाल्वर कमर पर लगा दी।
राणे चिंहुक पड़ा।
उसने खुद को आजाद कराने की चेष्टा की, परंतु सफल नहीं हो सका।
लॉबी के एक तरफ हॉल के बंद दरवाजे पर उसका साथी खड़ा इधर ही देख रहा था।
"तड़प मत।" कमर पर रिवाल्वर लगाए वो गुर्राया--- "चल दरवाजे की तरफ...।"
वो उसे धकेलता दरवाजे की तरफ ले गया।
"कौन हो तुम? क्या चाहते हो?" राणे घबराकर कसमसाया।
तब तक वो राणे को धकेलता दरवाजे के पास आया था। वहां खड़ा आदमी कह उठा।
"क्या बात है, कौन है ये?"
"दरवाजा खोल। दावरे के पास ले जाना है इसे।" उसने कहा।
"छोड़ो मुझे...।" राणे जोरों से तड़पा।
"गोली मार दूंगा।" उसकी कमर से रिवाल्वर लगाए वो गुर्रा उठा।
राणे सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गया।
दरवाजे पर खड़े व्यक्ति ने हॉल के दरवाजे का पल्ला खोला। वो राणे को भीतर लेता चला गया।
वहां खड़े आदमी ने दरवाजा बंद कर दिया।
तभी देवराज चौहान लॉबी में पहुंचा।
परंतु देवराज चौहान को राणे और रिवाल्वर वाला आदमी कहीं ना दिखा। तब उसकी निगाह दरवाजे पर खड़े आदमी पर जा टिकी। वो भी देवराज चौहान को देख रहा था। देवराज चौहान उसके पास पहुंचा।
"वो दोनों भीतर गए हैं?" देवराज चौहान ने हॉल के बंद दरवाजे की तरफ इशारा किया।
वो सतर्क हुआ। उसने घूरकर देवराज चौहान को देखा।
"कौन दोनों?"
"तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं किन दोनों की बात कर रहा हूं।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
"अच्छा यही होगा कि यहां से चले जाओ।"
तभी जगमोहन भी वहां आ पहुंचा।
"क्या बात है?" जगमोहन ने पूछा।
"राणे को कोई आदमी, रिवाल्वर लगाकर भीतर ले गया है।" देवराज चौहान ने कहा।
जगमोहन उस आदमी पर नजर मारकर देवराज चौहान से बोला।
"तो हमें क्या, वो अपने कामों का खुद जिम्मेवार है।"
"राणे हमसे मिलने आया था। कम से कम होटल से बाहर निकलने तक उसकी जिम्मेदारी हमारी है।" देवराज चौहान बोला।
"क्या जरूरी है जो...।"
"जरूरी है।" देवराज चौहान का चेहरा सख्त हुआ और उस आदमी से बोला--- "दरवाजा खोलो। हमें भीतर जाना है।"
"पागल हो क्या?" वो तीखे स्वर में कह उठा--- "भीतर जाकर करोगे क्या?"
"खोलो।" देवराज चौहान की आवाज में कठोरता आ गई।
उसने फुर्ती से रिवाल्वर निकाल ली और दोनों को दिखाता कह उठा---
"चले जाओ यहां से, वरना गोली मार दूंगा।"
तभी जगमोहन उस पर झपट पड़ा। रिवाल्वर वाली कलाई पकड़ी और जोरों का घूंसा पेट में मारा।
वो पीड़ा से दोहरा होता चला गया।
जगमोहन ने रिवॉल्वर वाले हाथ को झटका दिया तो रिवॉल्वर नीचे जा गिरी। उसी पल जगमोहन ने उसके चेहरे पर जोरदार घूंसा मारा और नीचे गिरी रिवॉल्वर उठा ली। वो संभला। अब कुछ घबराया दिखने लगा था।
"खोल दरवाजा।" जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा।
"भीतर मत जाओ। बच नहीं सकोगे।" वो सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा।
"क्यों, भीतर क्या है?"
वो कुछ नहीं बोला। दोनों को देखता रहा।
देवराज चौहान आगे बढ़ा और दरवाजा धकेलकर भीतर प्रवेश कर गया।
उसके पीछे जगमोहन भी भीतर प्रवेश कर गया।
■■■
हॉल में लंच हो चुका था।
खाने के दौरान सब हंसी-मजाक में व्यस्त थे।
सर्दूल खाने की प्लेट थामें खाते-खाते वो सब के पास जा रहा था। बातें कर रहा था। इस वक्त के माहौल को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि ये अंडरवर्ल्ड के दरिंदे खतरनाक लोग हैं।
खाने का प्रोग्राम खत्म हो गया था।
तभी वंशू करकरे कह उठा।
"खाने के बाद कॉफी होनी चाहिए...।"
"अभी लो।" दीपक चौला बोला और उसने कुछ दूर खड़े आप्टे को आवाज लगाई।
आप्टे फौरन पास पहुंचा।
"किसी को साथ ले जाओ और कॉफी का इंतजाम करो सब के लिए।"
"जी...।" आप्टे कहकर पलटने को हुआ।
तभी सर्दूल पास आ पहुंचा।
"तुम लोग कॉफी पियो। मैं चलूंगा अब...।"
"ये कैसे हो सकता है।" सुधीर दावरे पास आता कह उठा--- "कम से कम कॉफी तो हमारे साथ लो। फिर जाने कब मुलाकात हो।"
"दावरे ठीक कहता है।" अकबर खान कह उठा।
"तुम सब की यही मर्जी तो रुक जाता हूं।" सर्दूल मुस्कुरा कर बोला--- "लेकिन कॉफी आने में देर नहीं लगनी चाहिए।"
"अभी लो।" वंशू करकरे बोला--- "जल्दी जा आप्टे।"
ठीक तभी हॉल का दरवाजा खुला और राणे की कमर पर रिवाल्वर लगाए, वो आदमी भीतर आया।
सर्दूल की निगाह फौरन उस पर पड़ी तो उसकी आंखें सिकुड़ी।
"ये कौन है?"
सबकी नजर उधर ही उठी।
ये देखकर सुधीर दावरे की आंखें सिकुड़ी।
"मेरा आदमी उसे लाया है। मैं बात करता हूं।" सुधीर दावरे तेजी से उनकी तरफ बढ़ गया।
उनके पास पहुंचा। नजरें राणे पर थीं।
"ये राणे है?" दावरे ने अपने आदमी से पूछा।
"हां। ये कमरे से निकल कर जा रहा था तो मुझे इससे पकड़ कर यहां लाना पड़ा।" वो बोला।
सुधीर दावरे को सामने पाकर राणे का बुरा हाल हो गया था। वो तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि आर्य निवास होटल में वो दावरे से टकरा जाएगा। जिससे बचकर भागता फिर रहा है। यहां के माहौल से उसे ये महसूस हो गया था कि पार्टी चल रही है। परंतु उसे इतना मौका नहीं मिला था कि वहां मौजूद लोगों के चेहरों पर नजरें दौड़ा पाता। ऐसा किया होता तो समझ जाता कि अंडरवर्ल्ड के खतरनाक लोग यहां मौजूद हैं।
दावरे ने राणे को घूरा।
राणे की सिट्टी-पिट्टी गुम हुई पड़ी थी।
तभी दावरे पलटकर सबसे ऊंचे स्वर में बोला।
"सब ठीक है।"
तब वहां मौजूद लोग पुनः पहले की तरह सामान्य दिखने लगे। बातें करने लगे।
"तू रिवाल्वर अंदर रख...।" दावरे ने अपने आदमी से कहा।
उसने फौरन राणे की कमर से रिवाल्वर हटाकर वापस जेब में रखी।
"तो तू है वो हरामी...।" दावरे कड़वे स्वर में राणे से कह उठा।
"म...मैंने कुछ नहीं किया दावरे साहब, मैंने कुछ नहीं...।"
"तूने हमारी ड्रग्स लूटी है।"
"मैं वहां से गुजर रहा था। भला मैं कैसे हिम्मत कर सकता हूं आपकी ड्रग्स को...।"
तभी हॉल का दरवाजा खुला और देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया।
फिर जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया।
दावरे दरवाजे से ज्यादा दूर नहीं था। सबसे पहले उसने ही दोनों को देखा था।
"ये कौन है?" दावरे के माथे पर बल दिखने लगे थे।
उस आदमी की गर्दन फौरन दरवाजे की तरफ घूमी।
राणे ने भी उधर देखा।
देवराज चौहान और जगमोहन पर निगाह पड़ते ही राणे सकपका उठा।
"मैं नहीं जानता।" दावरे का आदमी बोला।
दावरे ने देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें हॉल में घूमते देखी।
राणे को महसूस हुआ कि गड़बड़ हो सकती है। वो समझ गया कि देवराज चौहान ने देख लिया होगा कि ये लोग उसे जबरदस्ती इधर लाये हैं तो देवराज चौहान उसके लिए यहां आ गया।
परंतु इतने लोगों के बीच देवराज चौहान और जगमोहन कुछ नहीं कर सकते थे। तब राणे ने वहां मौजूद लोगों को पहचानना शुरू कर दिया था कि यहां दावरे के अलावा अंडरवर्ल्ड के कई लोग हैं। जब उसकी निगाह सर्दूल पर पड़ी तो वो सिर से पांव तक कांप उठा था। सर्दूल जैसा खतरनाक मुजरिम यहां था तो यहां कुछ भी हो सकता था।
राणेके चेहरे पर एक रंग आ रहा था तो दूसरा जा रहा था। वो घबराकर दावरे से बोला---
"ये देवराज चौहान और जगमोहन हैं।"
"ये दोनों कौन हैं?" दावरे ने माथे पर बल डाले पूछा उससे।
"डकैती मास्टर देवराज चौहान, जानते नहीं क्या, सुना नहीं कि...।"
"तो ये डकैती मास्टर देवराज चौहान है।" दावरे के होंठ सिकुड़े--- "ये यहां क्या कर रहा है?"
"म...मैं इसी से मिलने होटल में आया था। पर शायद वापसी पर उसने देख लिया कि तुम्हारा आदमी मुझे पकड़कर इधर लाया है तो ये शायद मेरी खातिर इधर आ गया।"
"तेरी खातिर!" सुधीर दावरे का स्वर कड़वा हो गया।
राणे ने सूखे होंठों पर जीभ फेर कर कहा---
"इस... इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है।"
तब तक देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें राणे पर पड़ चुकी थी। वो इधर ही बढ़ आए।
"वो इधर आ रहे हैं।" दावरे का आदमी बोला।
सुधीर दावरे खतरनाक अंदाज में दोनों को पास आते देखता रहा।
देवराज चौहान और जगमोहन पास आ पहुंचे। दावरे को गहरी निगाहों से देखने के बाद देवराज चौहान ने कहा---
"चल राणे...।"
राणे ने फक्क चेहरे से दावरे को देखा।
"चल...चल...।" जगमोहन ने राणे का हाथ पकड़ा।
राणे ने हाथ छुड़ाकर सुधीर दावरे को आहत नजरों से देखा।
राणे की हरकत पर जगमोहन हैरान हुआ।
सुधीर दावरे कठोर निगाहों से देवराज चौहान और जगमोहन को देख रहा था।
"डकैती मास्टर हो तुम, देवराज चौहान। राणे ने अभी बताया मुझे।" दावरे शब्दों को चबाकर बोला।
अब सबका ध्यान उनकी तरफ होने लगा था।
वे धीरे-धीरे पास आने लगे थे।
"तुम कौन हो?" देवराज चौहान ने शांत स्वर में पूछा।
"सुधीर दावरे। ड्रग्स किंग। नाम तो सुना होगा?" विषैले स्वर में बोला दावरे।
देवराज चौहान और जगमोहन चौंके। उन्होंने राणे को देखा।
राणे का चेहरा फक्क था।
"तुम्हारा आदमी जबर्दस्ती राणे को यहां लाया है। मैंने देखा और अब मैं राणे को ले जाने आया हूं।" देवराज चौहान ने कहा--- "राणे इस होटल में मेरा मेहमान बनकर आया था, जब तक ये होटल से बाहर नहीं निकलता, तब तक ये मेरी जिम्मेवारी पर है।"
"तुम्हारी जिम्मेवारी?" कड़वा स्वर हो गया दावरे का।
"हां...।" देवराज चौहान ने राणे की आंखों में झांका।
तब तक आसपास और लोग भी इकट्ठे हो गए थे।
सर्दूल भी वहां आ पहुंचा था।
"क्या हो रहा है?" सर्दूल ने गंभीर स्वर में पूछा।
"सर्दूल साहब, ये राणे मेरा शिकार है और ये डकैती मास्टर देवराज चौहान, इसे मेरे हाथों से ले जाने यहां तक आ पहुंचा है।"
तब पहचाना उन्होंने सर्दूल को।
नाम से सर्दूल ने भी देवराज चौहान को पहचाना।
"बहुत नाम सुना था तुम्हारा देवराज चौहान...।" सर्दूल मुस्कुराया।
देवराज चौहान शांत नजरों से सर्दूल को देखने लगा।
तभी जगमोहन कह उठा।
"पुलिस को तुम्हारी सख्त जरूरत है और तुम इस तरह खुले में घूम रहे हो?" जगमोहन कह उठा।
"मैं छिपकर नहीं रह सकता।" सर्दूल पुनः मुस्कुराया।
"मैंने तो सुना था कि दुबई और पाकिस्तान चले गए हो?"
"हां। अब वहीं रहता हूं मैं। खासतौर से पाकिस्तान में। परंतु हिन्दुस्तान में आना कैसे छोड़ सकता हूं? यहां मेरा मन लगता है। मैं अक्सर यहां आता-जाता रहता हूं। मेरे काम हिन्दुस्तान में चल रहे हैं।" सर्दूल ने मुस्कुराकर कहा।
जगमोहन गहरी सांस लेकर रह गया।
"ये मेरे जन्मदिन की पार्टी है। मैं चाहता हूं देवराज चौहान, तुम भी इसमें शामिल हो जाओ।" सर्दूल बोला।
"मुझे पार्टियां पसंद नहीं हैं।" देवराज चौहान बोला।
"पसंद तो मुझे भी नहीं है। परंतु इन सब की जिद पर मुझे इस पार्टी में आना पड़ा और...।"
"मैं राणे को ले जाने आया हूं...।" देवराज चौहान ने कहा।
"ये...।" सर्दूल की नजर राणे पर गई--- "इसकी जरूरत दावरे को है।"
"ये होटल में मुझसे मिलने आया था। इसे पकड़ लिया गया।"
सर्दूल मुस्कुराया। देवराज चौहान को देखता रहा।
"तुम इस मामले में मत पड़ो।" सर्दूल बोला।
"राणे को मुझे ले जाने दो। मैं इसे होटल के बाहर पहुंचा दूंगा। उसके बाद तुम और ये जो भी करो, मुझे मतलब नहीं।"
"बेकार की बात है देवराज चौहान। तुम्हें हमारे मामले में नहीं आना चाहिए।"
"तुम्हारा मामला?" जगमोहन ने सर्दूल को देखा।
"ये सब मेरे पार्टनर ही तो हैं। इनका काम मेरा है। ये दावरे, अकबर खान, करकरे, ये चौला...।" सर्दूल सबकी तरफ हाथ करता कह उठा--- "तुम राणे की चिंता मत करो। हम इसका पूरा ध्यान रखेंगे।"
"मुझे राणे को ले जाने दो।" देवराज चौहान का स्वर दृढ़ता से भरा था।
इन सब बातों के बीच राणे की जान सूखती जा रही थी। वो कभी एक को देखता तो कभी दूसरे को।
सर्दूल ने होंठ सिकोड़कर आराम से, इंकार में गर्दन हिलाई।
कुछ चुप्पी सी छा गई वहां।
जगमोहन सतर्क था।
देवराज चौहान भी खतरनाक लोगों का जमघट महसूस कर चुका था।
"दावरे! राणे कौन है?" सर्दूल ने शांत स्वर में पूछा।
"ये ड्रग्स का काम करता है और कुछ दिन पहले इसने मेरी ड्रग्स लूटी थी। मुझे इसकी तलाश थी।"
"हूं। तो ये गंभीर मामला है।" सर्दूल ने सिर हिलाकर देवराज चौहान को देखा--- "इसे तो नहीं छोड़ा जा सकता। ठीक यही होगा कि तुम हमारी पार्टी में शामिल हो जाओ और सब कुछ भूल जाओ। मुझसे अच्छे संबंध बनाओ। हम दोनों मिलकर कोई फायदे वाला धंधा करेंगे। तुम मेरा फायदा उठाना, मैं तुम्हारा फायदा उठाऊंगा। मेरी नजर में एक ऐसी जगह है, जहां बे-शुमार दौलत पड़ी है। तुम मेरे साथ मिल जाओ तो हम कमाल दिखा सकते हैं।"
"जरूर।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा--- "पहले राणे को बाहर छोड़ आऊं...।"
"तो तुम राणे को भूलोगे नहीं?" सर्दूल ने होंठ सिकोड़कर कहा।
देवराज चौहान खामोश सा खड़ा, सर्दूल को देखता रहा।
सर्दूल ने सुधीर दावरे को देखा, फिर शांत स्वर में कह उठा---
"तुम ही निपटा लो इस मामले को।"
दावरे के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान तैरती चली गई।
पास में वंशू करकरे, अकबर खान, दीपक चौला व उनके कई आदमी खड़े देख-सुन रहे थे।
"अब बोल...।" दावरे होंठ भींचकर देवराज चौहान से कह उठा--- "क्या इरादा है तेरा?"
"राणे को होटल के बाहर तक ले जाने दे मुझे।" देवराज चौहान ने कहा।
तभी दावरे वहां खड़े आदमियों से ऊंचे स्वर में कह उठा---
"इन दोनों हरामियों की वो धुनाई करो कि पानी भी ना मांग सकें।"
दावरे का इतना कहना था कि सब देवराज चौहान और जगमोहन पर टूट पड़े। यहां तक कि दावरे खुद भी देवराज चौहान और जगमोहन पर हाथ-पांव चलाने लगा। देखा-देखी अकबर खान, करकरे, दीपक चौला भी दोनों पर अपने हाथ-पांव चलाने लगे। मिनट भर में ही वहां का माहौल बदल गया।
देवराज चौहान और जगमोहन की चीखें गूंजने लगीं।
राणे अपनी जगह खड़ा रहा। उसकी टांगें कांप रही थी। देवराज चौहान और जगमोहन को पिटते देखे जा रहा था। बेदर्दी से उन दोनों को मारा जा रहा था। जैसे उन्हें सांस लेने की फुर्सत भी ना मिल रही हो।
इस बीच सुधीर दावरे, राणे के पास आ पहुंचा।
"बोल हरामी, तूने मेरी ड्रग्स लूटी कि नहीं?"
"ल...लूटी...।" राणे कांप कर कह उठा।
"साला-कुत्ता! मुझे पहले ही पता था।" दावरे दांत पीस उठा।
"मैं... मैं सब वापस दे दूंगा।" राणे हाथ जोड़कर कह उठा।
"जुर्माना भी देगा। दो करोड़।"
"द...दूंगा।"
"कब?"
"चौबीस घंटों में...।" राणे ने थूक निगला।
"अचानक ही तू बहुत समझदार हो गया?" सुधीर दावरे ने कहकर देवराज चौहान की तरफ देखा। मक्खियों की तरह सब आदमी दोनों से चिपटे उनकी धुनाई करने में लगे थे--- "जा, आगे बढ़ और तू भी उन दोनों को ठोक।"
"म...मैं?"
"क्यों?" दावरे ने राणे को घूरा--- "तू क्यों नहीं मारेगा उन्हें? तेरा तो मारना बहुत जरूरी है। तुझे ही बचाने तो वो आए थे। उनके पास पहुंच और उन्हें ठोकना शुरू कर दे। चल, मैं तुझे ही देख रहा हूं।"
राणे घबराया सा जल्दी से उस तरफ बढ़ गया।
तभी सर्दूल, सुधीर दावरे के पास आ पहुंचा।
"मैंने कहा था ना कि मेरा जन्मदिन मत मनाओ। जरूर कुछ बुरा होगा।" सर्दूल ने गहरी सांस ली।
"मैं...।"
"अब देखो, मेरे जन्मदिन की पार्टी वाली जगह की क्या हालत हो गई।" सर्दूल ने वहां बिखरते सामान को देखकर कहा।
"अब इन दोनों का क्या करें सर्दूल साहब?" दावरे ने होंठ भींच कर पूछा।
"वो डकैती मास्टर देवराज चौहान है। कम नहीं है वो।" सर्दूल बोला।
दावरे उसे देखता रहा।
"उसे जिंदा छोड़ोगे तो वो नाग बनकर पीछे पड़ जाएगा। खामख्वाह मुसीबत मोल लेने का क्या फायदा?"
दावरे खामोश रहा।
"खत्म कर दो इन दोनों को। इसी में ही सबका भला है।"
सुधीर दावरे के चेहरे पर दरिंदगी से भरी चमक उभरी। उसने पास जाते आदमी को रोका।
"चाकू है तेरे पास?"
उस आदमी ने फौरन जेब से चाकू निकालकर दावरे को दिया।
"ये क्या कर रहा है?" सर्दूल बोला।
"इन दोनों को मैं अपने हाथों से मारूंगा।" सुधीर दावरे गुर्रा उठा।
"एक-एक गोली मैं भी चलाऊंगा इन पर।" सर्दूल हंसकर कह उठा।
तभी जैसे हालात बदल गए।
मंजर बदला।
बुरी तरह पिटते-पिटते एकाएक किसी तरह जगमोहन ने रिवाल्वर निकाल ली थी और अपने ऊपर चढ़े बैठे आदमियों पर गोलियां चलाने लगा। फायरिंग से वो हॉल थर्रा उठा। चीखें गूंजने लगीं।
मौका मिला तो देवराज चौहान ने भी रिवाल्वर निकालकर गोलियां चलानी शुरू कर दीं।
लोग मरने लगे।
लाशें बिछने लगीं।
गोलिया चलते ही सर्दूल और दावरे ने एक तरफ की टेबलों की आड़ ले ली।
अकबर खान, दीपक चौला और वंशू करकरे भी वहीं आड़ लेने के लिए भागे।
चीखो-पुकार थमने का नाम नहीं ले रही थी।
यही सिलसिला चलता रहा।
गोलियां चलती रहीं। चीखें उठती रहीं। लाशें बिखरती रहीं।
दस-पन्द्रह मिनट ये सब ही होता रहा।
देवराज चौहान और जगमोहन भी कब के आड़ ले चुके थे।
देवराज चौहान के पास एक रिवाल्वर थी जो कि खाली हो गई।
जबकि जगमोहन के पास एक अपनी और दूसरी दरवाजे पर खड़े आदमी से छीनी गई रिवाल्वर थी। उसकी एक रिवॉल्वर तो कब की खाली हो चुकी थी और जल्दी ही वो वक्त आ गया जब दूसरी रिवाल्वर भी खाली हो गई।
हॉल में लाशें ही लाशें पड़ी थीं।
खून बिखरा था हर तरफ।
मौत ही मौत हर तरफ नजर आ रही थी।
राणे की लाश भी उन्हीं लाशों में मौजूद थी।
देवराज चौहान और जगमोहन यहां से अब निकल जाना चाहते थे। परंतु दरवाजा दूर था। और वो जानते थे कि ओट से बाहर निकले तो हॉल में छिपे लोग नहीं छोड़ेंगे। रिवाल्वरें खाली हो चुकी थीं।ठुकाई की वजह से शरीर की बुरी हालत थी। देवराज चौहान की एक आंख में सूजन आ गई थी।
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं।
"हमें यहां से बाहर निकलना है।" जगमोहन बोला।
"इस ओट से बाहर मत निकलना।" देवराज चौहान ने कहा--- "यहां छिपे लोग हमें खत्म कर देंगे।"
"हमारी गोलियां खत्म हो गई हैं।"
"हम फंसे पड़े हैं, वो हमें...।"
तभी पास में खटका हुआ।
दोनों तेजी से पलटे।
सामने एक आदमी रिवाल्वर थामें खड़ा, वहशी निगाहों से उन्हें देख रहा था।
कई पल ऐसे ही बीत गए।
एकाएक वो आदमी ऊंचे स्वर में बोला---
"इन दोनों की गोलियां खत्म हो गई हैं। ये मेरे निशाने पर...।"
"गोली मत मारना।" सर्दूल की आवाज आई--- "इन्होंने हमारे बहुत आदमी मार दिए हैं। हम इन्हें तड़पा-तड़पा कर मारेंगे। ऐसी मौत देंगे कि, उसे देखकर मौत भी कांप उठेगी।"
रिवाल्वर उनकी तरफ किये, वो आदमी पीछे हटता सतर्क स्वर में कह उठा।
"उठो, खड़े हो जाओ।"
उनकी बात मानने के अलावा देवराज चौहान और जगमोहन के पास कोई रास्ता नहीं था। खाली रिवाल्वरें गिराकर वो खड़े हो गए। अपनी-अपनी जगहों से सर्दूल, वंशू करकरे, दावरे, दीपक चौला और अकबर खान भी बाहर निकलने लगे। पांचों के चेहरों पर दरिंदगी के वहशी भाव थे। उनकी निगाह वहां फैली लाशों पर भी जा रही थी। अपने साथियों की मौत देखकर वे पागल हो उठे थे।
उनके सिर्फ पांच-सात साथी ही जिंदा बचे थे, वो भी छुपने की जगह से बाहर आ गए थे।
दावरे के हाथ में अभी तक चाकू थमा हुआ था।
अकबर खान, वंशू करकरे और दीपक चौला ने भी अपने लिए चाकुओं की तलाश कर ली थी। अपने मरे साथियों की जेबों से ढूंढ कर चाकू निकाल लिए थे।
"घातक वार नहीं करना है इन पर।" अकबर खान वहशी स्वर में बोला--- "चाकू का ऐसा वार करना है कि ये तड़पें पर इनकी जान ना निकले।"
"चलो आगे बढ़ो।" दीपक चौला वहां बचे पांच-सात आदमियों से गुर्राकर बोला--- "पकड़कर मारो इन्हें कि इनमें इतनी हिम्मत ना बचे कि हाथ भी हिला सकें।"
वो सातों बदमाश देवराज चौहान और जगमोहन पर झपट पड़े।
देवराज चौहान और जगमोहन तो पहले से ही घायल थे। शरीर के कई हिस्सों में दर्द हो रहा था। वे बराबरी करने के लायक नहीं थे और सातों से अपना बचाव नहीं कर सके।
जगमोहन और देवराज चौहान की जबर्दस्त धुनाई होने लगी।
बीच-बीच में उनकी चीखें भी गूंज जातीं।
तभी चाकू थामें दीपक चौला सर्दूल के पास पहुंचा और कठोर स्वर में बोला।
"आपका जन्मदिन तो हमेशा याद रहेगा हमें...।"
अगले दस मिनट में ही देवराज चौहान और जगमोहन की हालत इतनी बुरी हो चुकी थी कि ऐसा हाल उनका पहले कभी नहीं हुआ था। ठुकाई-पिटाई से शरीर इतना बेकार हो गया कि हिलने का नाम नहीं ले रहा था। ऊपर से सुधीर दावरे, वंशू करकरे, अकबर खान, दीपक चौला और उनके तीन अन्य साथियों के हाथों में खून से सने खुले चाकू थमे थे और वे बारी-बारी कई वार जगमोहन और देवराज चौहान के शरीरों पर कर चुके थे। ऐसी जगह कि वो मरें नहीं तड़पतें रहें।
देवराज चौहान और जगमोहन की हिम्मत जवाब दे चुकी थी। वे हिल नहीं सकते थे, पलट नहीं सकते थे। दर्द से भरे, तड़प वाले अंदाज में पीठ के बल पड़े थे और उन दोनों के सिर पर खड़े हुए सब ठहाके लगा रहे थे उनकी हालत पर।
"डकैती मास्टर देवराज चौहान!" वंशू करकरे ठहाका लगाकर कह उठा--- "सुना है अंडरवर्ल्ड में इसका खौफ है। इतने बड़े दादाओं को जड़ से खत्म किया है। अंडरवर्ल्ड इसे मानता है।"
"इसकी मौत हमारे ही हाथों लिखी थी।" दीपक चौला ठहाका लगा उठा।
"खामखाह ही हमारे रगड़े में आ गया।" अकबर खान ने कहा।
"सर्दूल साहब का ये जन्मदिन तो नहीं भूलेगा हमें।" हंसा दावरे।
"बस बहुत हो गया।" सर्दूल रिवाल्वर थामें उनके पास आ पहुंचा--- "अगर गलती से शेर की गर्दन हाथ आ जाए तो उसका मजाक नहीं उड़ाते। फौरन काम खत्म करते हैं।"
"वो कैसे?" दीपक चौला ने सर्दूल को देखा।
"इन्हें खत्म करके अभी यहां से चलना चाहिए।" सर्दूल ने वहां मौजूद लाशों पर नजरें दौड़ाते कहा--- "कितनी लाशें यहां पड़ी हैं। गोलियां चलने की आवाजें दूर तक गई होंगी। पुलिस आती ही होगी।"
"मेरे कई खास आदमी मारे गए...।" अकबर खान ने गहरी सांस ली।
"तुम्हारे क्या सबके ही मरे हैं।"
"ये सब हंगामा नहीं होना चाहिए था।" सर्दूल बोला--- "या तो हंगामा कर लो, या धंधा कर लो। अब पुलिस तुम सब लोगों के पीछे पड़ जाएगी। इस तरह कैसे धंधा करोगे कि...।"
"कोई हमें पहचान नहीं सकता।" अकबर खान बोला--- "होटल के सब सी•सी•टी•वी• कैमरे बंद करा दिए गए थे।"
"अगर किसी ने हमें पहचान भी लिया तो मुंह खोलकर उसे मरना है क्या?"
सर्दूल दो कदम और आगे बढ़ा और देवराज चौहान और जगमोहन के पास जा पहुंचा।
दोनों पीठ के बल असहाय पड़े थे।
आंखें घूम रही थीं उनकी। सब देख-सुन रहे थे। शरीरों पर जगह-जगह चाकू लगने के निशान दिखाई दे रहे थे। खून से भीगे पड़े थे वे। हिलने की हिम्मत भी बाकी नहीं बची थी।
दोनों की निगाह सर्दूल पर गई।
"तुम दोनों की हालत पर मुझे दुख है देवराज चौहान।" सर्दूल बोला--- "अगर तुम मेरी बात मान जाते तो हम मिलकर काफी पैसा कमा सकते थे। लेकिन अब तो कुछ भी नहीं बचा।"
देवराज चौहान सर्दूल को देखता रहा।
"तुम दोनों को विश्वास नहीं आ रहा होगा कि तुम लोग मरने जा रहे हो अब।" सर्दूल ने सिर हिलाया--- "मैं तुम्हें मारना नहीं चाहता। परंतु मजबूरी में मुझे ये सब करना पड़ रहा है। अगर यूं ही छोड़ दिया और तुम लोग जिंदा बच गए तो जाहिर है कि अपनी इस हालत का बदला जरूर लोगे। इसलिए तुम्हें खत्म करना पड़ रहा है।"
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
जगमोहन की हालत भी गुस्से से कांप रही थी।
दर्द और पीड़ा के कारण मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा था।
"तुम लोगों की मौत, जो भी अपने सिर लेगा, अंडरवर्ल्ड में उसकी धाक जम जाएगी। परंतु यहां मौजूद लोगों में से कोई भी ऐसा नहीं करना चाहेगा। क्योंकि यहां और भी लाशें पड़ी हैं, उनकी जिम्मेवारी भी उसके सिर पर आ जाएगी और पुलिस उसके पीछे पड़ जाएगी। इसलिए तुम लोगों की मौत की जिम्मेवारी कोई नहीं लेगा।"
जगमोहन पीड़ा से तड़पता हुआ ऐंठा, फिर किसी प्रकार कह उठा---
"मैं... मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा।"
सर्दूल शांत सा दोनों को देखता रहा फिर आगे बढ़ा। जगमोहन के पास पहुंचा।
जगमोहन सुलगती निगाहों से उसे ही देख रहा था।
सर्दूल ने रिवॉल्वर वाला हाथ आगे किया और ट्रेगर दबा दिया।
तेज आवाज के साथ गोली निकली और जगमोहन के सिर में कहीं जा लगी।
देवराज चौहान ने तड़प कर आंखें बंद कर लीं। होंठों से गुर्राहट निकली।
गोली लगते ही जगमोहन शांत पड़ गया था।
सर्दूल ने देवराज चौहान को देखा। रिवाल्वर वाला हाथ उसकी तरफ सीधा किया।
इसी पल देवराज चौहान ने आंखें खोलीं।
"अलविदा देवराज चौहान।" सर्दूल ने शांत स्वर में कहा और ट्रेगर दबा दिया।
फायर की तेज आवाज गूंजी और गोली देवराज चौहान के सिर में जा लगी। इसके साथ ही देवराज चौहान के होश गुम हो गए थे। सर्दूल रिवाल्वर जेब में रखता पलटकर कह उठा---
"चलो, निकल चलो यहां से...।"
और फिर सब फुर्ती से जल्दी से बाहर निकलते चले गए।
उस हॉल में हर तरफ लाशें ही लाशें बिखरी पड़ी नजर आ रही थीं।
ये वजह थी कि देवराज चौहान भूखे भेड़िए की तरह इन सबके पीछे पड़ा हुआ था। इन सब से गिन-गिन कर बदले लेना चाहता था। एक-एक को चुनकर मार देना चाहता था।
जंग जारी थी देवराज चौहान की।
■■■
अकबर खान ने राठी को फोन किया।
"जी?" राठी की आवाज कानों में पड़ी।
"क्या हो रहा है?"
"सब ठीक है...।"
"जगमोहन कैसा है?"
"वैसा ही है। अब ठीक हाल में है। परंतु उसे कुछ भी याद नहीं रहा। शायद सिर में गोली लगने की वजह से वो सब भूल गया है।"
"ऐसा तो नहीं कि वो ड्रामा कर रहा हो भूलने का?"
"वो सच में अपनी याददाश्त भूला है। मैंने अच्छी तरह चैक कर लिया है। दरवाजे खुले रहते हैं। परंतु वो यहां से जाने की कोशिश नहीं करता। बाहर जाने में घबराता है वो, क्योंकि उसे कुछ भी याद नहीं...।"
"कहीं वो वहां से बाहर ना निकल जाए...।"
"हरि और बंटी, उस पर बराबर नजर रख रहे हैं। मैं भी हर वक्त ठिकाने पर रहता हूं।"
कुछ खामोशी के बाद अकबर खान का सोच से भरा स्वर राठी के कानों में पड़ा।
"तो जगमोहन को कुछ भी याद नहीं?"
"नहीं। मेरा यकीन करें, वो सब कुछ भूल चुका है।"
"मैं आ रहा हूं वहां...।"
"जी...।"
अकबर खान ने मोबाइल बंद करके जेब में रखा फिर आगे बढ़कर टेबल का ड्रॉज खोला उसमें रखी तस्वीर बाहर निकाली। वो देवराज चौहान की, कई साल पहले की तस्वीर थी।
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वो ही ठिकाना।
जहां जगमोहन को रखा गया था।
शांति थी इस ठिकाने पर। ये जगह सिर्फ छिपकर रहने के लिए तैयार की गई थी। यहां कोई काम नहीं होता था। एक कमरे में जगमोहन कुर्सी पर आंखें बंद किए बैठा था कि राठी ने भीतर प्रवेश किया।
जगमोहन ने आंखें खोलीं और उसे देखा।
"अकबर खान तुमसे मिलने आ रहे हैं। बस, पहुंचने ही वाले होंगे।"
"अकबर खान?" जगमोहन बड़बड़ाया।
"वो पहले भी आए थे। एक बार तुम उनसे पहले भी मिल चुके हो।" राठी ने दोस्ताना लहजे में कहा।
जगमोहन ने सिर हिला दिया। फिर बोला---
"मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा कि मैं कौन हूं।"
"कितनी बार बता चुका हूं कि तुम्हारा नाम जगमोहन है।"
"लेकिन मैं हूं कौन?"
राठी खामोश रहा।
"तुमने बताया कि मेरा ट्रक से एक्सीडेंट हो गया था।" जगमोहन बोला।
राठी ने सहमति से सिर हिलाया।
"तुम लोगों ने मुझे सड़क पर घायल पड़े देखा तो उठा लाए। इलाज करवाया मेरा। मैं जानता हूं डॉक्टर मेरे लिए आता रहा।"
"हां। ऐसा ही कुछ हुआ था।"
"फिर...फिर मुझे होश आया तो, मेरी याददाश्त जा चुकी थी।" जगमोहन के चेहरे पर परेशानी दिखाई देने लगी थी।
राठी ने सहमति से सिर हिलाया।
"ओह कितनी बुरी बात है कि तुम लोगों को मेरे बारे में कुछ नहीं पता।" जगमोहन झल्ला उठा।
उसी पल कदमों की आहट गूंजी और अकबर खान ने भीतर प्रवेश किया। उसके पीछे हरि और बंटी भी थे।
अकबर खान ठिठका और गहरी निगाहों से जगमोहन को देखने लगा।
जगमोहन ने भी उसे देखा।
"कैसे हो?" अकबर खान मुस्कुरा कर आगे बढ़ा और जगमोहन के सामने कुर्सी पर बैठ गया।
"ठीक हूं। पर मुझे अपने बारे में कुछ भी याद नहीं आ रहा...।" जगमोहन कह उठा।
"आज मैं तुम्हें, तुम्हारे बारे में ही बताने आया हूं जगमोहन।" अकबर खान गंभीर स्वर में बोला।
"मेरे बारे में?"
"हां...।"
"तो पहले क्यों नहीं बताया। मैं कब से पूछ रहा...।"
"तब मैंने सोचा था कि तुम्हारी याददाश्त लौट आएगी। परंतु ऐसा नहीं हुआ।" अकबर खान सिर हिलाकर बोला--- "तुम पांच साल के थे और अनाथ थे। तब मैंने तुम्हें पाला और बड़ा किया। तुम मेरे लिए काम करते थे।"
"तुम्हारे लिए?"
"हां... मैं... अकबर खान...।" अकबर खान उसे देखने लगा
"मुझे याद नहीं आ रहा।"
"मेरी बातें सुनते रहो। वही सच है।"
"तुम क्या काम करते हो?"
"मैं हथियारों का डीलर हूं। हम चोरी-छुपे दूसरे मुल्क से हथियार मंगाते हैं और यहां बेचते हैं। मुख्य तौर पर पाकिस्तान से ही हमारे संबंध हैं। पाकिस्तान हमें मुफ्त के भाव हथियार देता है, ताकि इन हथियारों को हम हिन्दुस्तान में फैलाकर, हिन्दुस्तान का सत्यानाश कर सकें और कर भी रहे हैं। कभी-कभी हमें चीन से भी हथियार मिल जाते हैं। हमारा धंधा बढ़िया चल रहा है। तुम मेरे सबसे खास आदमी हो। तुम ही मेरा सारा काम संभालते हो।"
"मैं?"
"हां। तुम जगमोहन। धीरे-धीरे तुम्हें सब याद आ जाएगा।"
जगमोहन ने राठी को देखा। हरि और बंटी को देखा।
"ये सब तुम्हारे ही आदेश मानते हैं।" अकबर खान कह उठा।
"तुमने तो मुझे बताया था कि ट्रक से मेरी टक्कर...।"
"तब मैंने सोचा था कि तुम्हें सब याद आ जाएगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ...।"
"तो मुझे क्या हुआ था?"
अकबर खान के चेहरे पर सख्ती के भाव छाए रहे, फिर कह उठा।
"हमारा एक दुश्मन पैदा हो गया है। देवराज चौहान...।"
"देवराज चौहान?" जगमोहन के होंठ हिले।
"हां। डकैती मास्टर देवराज चौहान। किसी बात पर उसकी हमसे ठन गई। वो हम सबको खत्म कर देना चाहता है। उसने हमारे लोगों को खत्म किया भी। तक तुमने देवराज चौहान को खत्म करने की ठानी और उसकी तलाश में निकल पड़े।" अकबर खान कहता जा रहा था--- "तुम हर तरह के हथियार चलाने में माहिर हो। निशानेबाज हो। लड़ाई का हर पैंतरा जानते हो। देवराज चौहान तुम्हारा मुकाबला नहीं कर सकता।"
"फिर?"
"फिर तुम्हारा और देवराज चौहान का मुकाबला हुआ। तुमने देवराज चौहान को ढूंढ लिया था। दोनों में तगड़ा झगड़ा हुआ। तुमने उसे खत्म ही कर देना था कि तभी उसके और साथी ऊपर से आ गए। वो तुम पर भारी पड़ गए। उन्होंने तुम्हें खूब मारा और जब वो तुम्हें गोली मारने वाले थे। ऊपर से राठी अपने लोगों के साथ वहां पहुंच गया और तुम बच गए...।"
जगमोहन ने माथे पर बल डालकर राठी को देखा।
राठी ने सिर हिला दिया।
"अब तो समझ गए होगे कि तुम्हारे साथ क्या हुआ था?" अकबर खान गंभीर स्वर में बोला।
जगमोहन दांत किटकिटा कर कह उठा।
"तो देवराज चौहान ने मेरी ये हालत की।"
"वो हमारा दुश्मन है।"
"मैं उसे कुत्ते की मौत मारूंगा।" जगमोहन के होंठों से गुर्राहट निकली और वो कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।
"उसे खत्म करना ही होगा जगमोहन।" अकबर खान कठोर स्वर में बोला--- "उसकी वजह से हम धंधा नहीं कर पा रहे हैं। हमें छिपना पड़ रहा है। वो हमें ढूंढता फिर रहा है। जब तुम ठीक थे तो मुझे तुम्हारा हौसला था, परंतु अब तो...।"
"मैं ठीक हूं अब...।" जगमोहन गुर्रा उठा।
"यही शुक्र है कि तुम ठीक हो गए। वरना देवराज चौहान ने तो तुम्हें मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।"
"मैं उसे कुत्ते की मौत मारूंगा अकबर खान।" जगमोहन वहशी स्वर में कह उठा।
अकबर खान ने जेब से देवराज चौहान की तस्वीर निकाली और उसे देते कहा।
"इसे अच्छी तरह पहचान लो। यही है देवराज चौहान। हमारा दुश्मन। इसे खत्म करना बहुत जरूरी है।"
जगमोहन ने तस्वीर लेकर देखी, फिर उसे जेब में रख लिया और कहर भरे स्वर में बोला।
"ये देवराज चौहान तो मर गया समझो...।"
"इस बार तुमने पहले की तरह कोई गलती नहीं करनी है। तुम...।"
"क्या गलती की थी मैंने?" जगमोहन दांत किटकिटा उठा।
"तुम अकेले ही देवराज चौहान से मुकाबले पर उतर गए थे, जबकि उसके साथ हमेशा साथी रहते हैं। तुम अकेले थे, तभी तो उसने तुम्हारी ये हालत कर दी। इस बार तुम अपने साथ आदमी रखोगे। सबके पास हथियार होंगे। याद रखो कि देवराज चौहान हमें खत्म करने के लिए पागल हुआ सांड की तरह दौड़ता फिर रहा है। वो हमारा धंधा, हमें भी खत्म कर देगा।"
"मैं ऐसा नहीं होने दूंगा।" जगमोहन दांत पीसकर कह उठा।
"मुझे तुम पर पूरा विश्वास है कि तुम देवराज चौहान को खत्म कर दोगे।" अकबर खान ने गंभीर स्वर में कहा--- "क्या अब तुम्हारी सेहत ठीक है? तुम खुद को ठीक महसूस कर रहे हो, काम के लिए?"
"मैं बिल्कुल ठीक हूं और देवराज चौहान को खत्म कर देना चाहता हूं।"
अकबर खान ने राठी की तरफ गर्दन घुमाई।
"राठी।"
"जी...।"
"तुम हरि और बंटी, जगमोहन के साथ रहोगे। तीन आदमी और बुलवा लो। जगमोहन के साथ तुम छः हथियारबंद आदमी रहोगे और मुंबई में जगह-जगह घूमोगे। खुले में रहोगे, ताकि देवराज चौहान को, जगमोहन की खबर मिले तो वो इसे मारने आए और जब वो आए तो देवराज चौहान को सबने खत्म कर देना है।"
"मैं समझ गया।"
"जगमोहन को उसकी पसंद का हथियार दो।" अकबर खान कुर्सी से उठता कठोर स्वर में बोला--- "देवराज चौहान ने जगमोहन की जो हालत पहले की थी, वैसी अब ना कर सके। उसे खत्म करके ही वापस लौटना है।"
"देवराज चौहान की तुम परवाह मत करो अकबर खान।" जगमोहन गुर्रा उठा--- "इस बार वो मेरे हाथों से नहीं बचेगा। बहुत बुरी मौत मारूंगा। तुम सीधे-सीधे बताओ कि वो कहां मिलता है?"
"उसका कोई पक्का ठिकाना नहीं है। वो भूत की तरह सामने आता है और चला जाता है। वो सामने आये, इसके लिए तुम्हें खुले में घूमते रहना होगा। ताकि कहीं से देवराज चौहान तक तुम्हारी खबर पहुंचे और तुम्हें मारने के लालच में वो सामने आ जाए और तुम्हारे हाथों वो मारा जाए।"
जगमोहन का चेहरा सुलग रहा था। वो दांत पीसकर रह गया।
"ध्यान रखना जगमोहन, देवराज चौहान खतरनाक इंसान है। वो बहुत चालाक और फुर्तीला है। मौकापरस्त है। अपने दुश्मन को वो अपना दोस्त और भाई कहकर फंसाता है और फिर उसे खत्म कर देता है। तुम उसकी बातों में कभी मत फंसना। वो ऐसा दरिंदा है कि उसे देखते ही, उसे मार देना ही बेहतर है। तुम्हारी याददाश्त ना गई होती तो तुम्हें ये सब बातें पता होतीं। मुझे कहनी ना पड़तीं। बस तुमने उसे देखते ही खत्म कर देना है।"
"मैं यही करूंगा।"
अकबर खान आगे बढ़ा और पास पहुंचकर जगमोहन का कंधा प्यार से थपथपाकर कहा---
"मैंने तुम्हें बचपन से ही बहुत प्यार से पाला है जगमोहन। मैंने तुम्हें जिंदगी का हर दांव सिखाया है और उन दांवों को अब तुम अपने दुश्मन देवराज चौहान पर इस्तेमाल करोगे। उसकी मौत में ही हमारी जीत है।"
"देवराज चौहान मर जाएगा अकबर खान। ये मेरा तुमसे वादा है।" जगमोहन गुस्से से मुट्ठियां भींचता कह उठा।
"तुमने हमेशा मुझसे मुझे मुसीबत से बचाया है और इस बार भी बचाओगे। जानता हूं ये बात।"
जगमोहन के चेहरे पर खतरनाक भाव नाच रहे थे। जेब से देवराज चौहान की तस्वीर निकाल कर पुनः देखने लगा।
"राठी!" अकबर खान कह उठा--- "वक्त बर्बाद मत करो। जगमोहन को साथ लो और देवराज चौहान को खत्म करने में जुट जाओ।"
■■■
वो आदमी एक पुरानी सी दुकान के कैश काउंटर पर बैठा था। दुकान के भीतर एक सेल्समैन स्टूल पर बैठा था।
सुस्त लग रहा था वो। जैसे उसे पता हो कि दुकान पर कोई ग्राहक नहीं आने वाला। हौजरी की दुकान थी वो। बनियान, अंडरवियर या इसी तरह का छोटा-मोटा सामान मिलता था और दुकान की हालत बता रही थी कि चार दिन से तो यहां कोई ग्राहक नहीं आया।
कैश काउंटर पर बैठा आदमी पचास की उम्र के आसपास था। चेहरे पर काली-सफेद दाढ़ी थी। आंखों पर नजर का चश्मा चढ़ा रखा था। जबकि वो चश्मा नजर का नहीं होकर, प्लेन शीशे का था। वो कोई और नहीं, सुधीर दावरे था। मुंबई का ड्रग्स किंग सुधीर दावरे। इस वक्त वो अपना हुलिया बदले अंडरग्राउंड हुआ पड़ा था। पुलिस को भी उसकी तलाश थी और देवराज चौहान भी उसे, उसकी हत्या करने के लिए ढूंढता फिर रहा था।
कैश काउंटर पर बैठा सुधीर दावरे सामने की भागती-दौड़ती सड़क को देख रहा था। सड़क पर से वाहनों का ढेर निकल रहा था। धूप तीखी होने लगी थी। सूर्य सिर पर चढ़ने लगा था।
सेल्समैन बना व्यक्ति उसका खास आदमी था।
दावरे के पास ऐसे कई ठिकाने थे छिपने के लिए कि कोई उसे ढूंढ नहीं सकता था। सब इंतजाम उसने पहले से ही कर रखा था। क्योंकि बुरा वक्त कभी भी आ सकता है और अब आ भी गया। यूँ मोबाइल पर अपने सब लोगों के साथ बातें चलती रहती थीं। ड्रग्स का धंधा इस वक्त पहले वाली रफ्तार से तो नहीं, परंतु जैसे-तैसे चल ही रहा था। फोन पर आर्डर आते तो वो माल पहुंचाने को अपने आदमियों को कह देता था।
तभी एक आदमी उसकी दुकान के भीतर आ खड़ा हुआ। उसने भी दाढ़ी लगा रखी थी। बल्कि उसके तो सिर पर भी विग थी। परंतु पहचानी नहीं जा रही थी। गर्दन तक लंबे बाल थे उसके।
सुधीर दावरे ने उसे देखा-- और अगले ही पल चौंककर खड़ा हो गया।
"सर्दूल... तुम...।" उसके होंठों से निकला।
"बैठ जाओ। मुझे देखकर खड़े मत हो वो...।" सर्दूल सेल्समैन को देखता धीमे स्वर में बोला।
"वो मेरा ही आदमी है।" अपने पर काबू पाता दावरे, सर्दूल की नजरों का मतलब समझकर कह उठा।
"भरोसे का है?"
"पूरी तरह।" दावरे काउंटर के पीछे कुर्सी पर बैठता सेल्समैन से बोला--- "मोहन, स्टूल इधर दे।"
मोहन फुर्ती से उठा और स्टूल वहां लाकर रखा।
सर्दूल उस पर बैठ गया।
"ये मेरे खास हैं।" दावरे ने मोहन से कहा--- "तू जा, ठंडा ले के...।"
"चाय...।" सर्दूल ने टोका।
"चाय लेकर आ। बढ़िया। निकल ले अब...।"
मोहन फौरन दुकान से बाहर निकल गया।
दावरे ने सर्दूल को देखकर गहरी सांस लेकर कहा---
"मुझे हैरानी है कि तुमने मेरा ठिकाना कैसे ढूंढ लिया। ये जगह तो किसी को नहीं पता।"
"मुझे पता है। अपने लोगों की मैं सब खबर रखता हूं।" सर्दूल शांत स्वर में बोला।
दावरे ने पहलू बदला। फिर पूछा---
"मैंने तो सोचा था कि तुम पाकिस्तान से बात करते हो। हिन्दुस्तान से चले गए...।"
"गया था। काम था। 15 दिन पाकिस्तान में रहा फिर लौट आया था। तुम लोगों को इस तरह मुसीबत में छोड़कर मैं पाकिस्तान से आराम से कैसे बैठ सकता हूं? तुम लोगों को सुरक्षा देना मेरा काम है।"
"तुमने बताया था कि करकरे को देवराज चौहान ने मार दिया।"
"हां...। रात दीपक चौला भी मारा गया।"
"मारा गया?" दावरे चिंहुक पड़ा--- "पर मुझे तो ऐसी कोई खबर नहीं मिली?"
"उसकी मौत अभी जग-जाहिर नहीं हुई। जिस गैराज में वो छुपा था, वहां उसकी और उसके आदमियों की लाशें पड़ी हैं। सुबह मैं वहां गया और मैंने दावरे की लाश देखी।" सर्दूल ने शांत-गंभीर स्वर में कहा।
"देवराज चौहान ने मारा उन्हें?"
"हां। चौहान ने ही मारा।" सर्दूल सिर हिलाकर कह उठा--- "रात मैंने चौला को फोन किया तो उसके फोन पर देवराज चौहान ने कॉल रिसीव की। उसने बताया कि चौला की लाश सामने पड़ी है। इसके बाद फोन बंद हो गया।"
दावरे, सर्दूल को देखता रहा।
"बुरा हो रहा है ये सब...।" सर्दूल बोला।
"हमारी सुरक्षा की जिम्मेवारी तुम्हारी है सर्दूल...। तुम्हें चाहिए देवराज चौहान को खत्म कर दो।"
"वो खत्म हो जाएगा। मेरे आदमी उसे ढूंढ रहे हैं।"
"वो हम लोगों को मारता जा रहा है।"
"खुद को बचा के रखो। इतना काम तो तुम लोग कर ही सकते हो। बच्चे तो नहीं हो कि तुम सबको गोद में लेकर घूमता रहूं...।"
दावरे ने बेचैनी से पहलू बदला।
"ये देवराज चौहान तो किस्मत का सुल्तान निकला।" सर्दूल ने सामने सड़क पर जाते वाहनों को देखते हुए कहा--- "मैंने सिर में गोली मारी तो मरा नहीं, कोमा में चला गया। मैंने सोचा कि कोमा में ही मर जाएगा। कोमा में पड़े इंसान को मारने की क्या जरूरत है, यही वजह रही कि जब अकबर खान ने तारा और जैकब को हस्पताल में देवराज चौहान को मारने भेजा तो मैंने उन दोनों को मार दिया क्योंकि वो कोमा में पड़े इंसान की हत्या करने जा रहे थे। खैर तो देवराज चौहान कोमा में मरा नहीं, बल्कि होश आ गया और पुलिस वालों को धोखा देकर हस्पताल से भाग निकला।"
"फिर हम लोगों को मारने लगा।"
"यही हाल रहा तो तुम सब मरोगे।" सर्दूल का स्वर बेहद शांत था।
"क्या मतलब?" सुधीर दावरे सतर्क हुआ।
"मेरे अपने लोगों ने अब मुझसे झूठ बोलना शुरु कर दिया है।" सर्दूल ने उसे देखा।
"किसकी बात कर रहे हो तुम? मैंने तो कुछ नहीं किया।"
"अकबर की बात कर रहा हूं।"
दावरे ने चैन की सांस ली।
"क्या किया है अकबर खान ने?"
"तेरे को पता है जगमोहन को अस्पताल से उठा लिया था।"
"सुना तो था।"
"ये काम अकबर खान के आदमियों ने किया। मैंने अकबर खान को फोन किया। बात की। परंतु उसने ये बात मेरे से छुपाए रखी कि उसने जगमोहन को उठाया है। बहुत गलत किया अकबर ने। मेरे विश्वास को तोड़ा।"
"जगमोहन अकबर खान के पास है?" दावरे के होंठों से निकला।
"हां। बहुत संभाल के रखा है उसे। मुझे मालूम है कि जगमोहन को कहां रखा है।"
"लेकिन... लेकिन अकबर ने उसे क्यों उठाया? क्या फायदा?"
"दूर की सोचता है अकबर।"
दावरे, सर्दूल को देखता रहा।
तभी मोहन चाय के दो गिलास ले आया। उसे काउंटर पर रखा।
"तू यहां से दूर हो जा।" दावरे बोला--- "इधर की बातें तेरे कानों में ना पड़ें।"
मोहन दुकान के भीतर कोने में चला गया।
"मैं समझा नहीं सर्दूल कि...।"
"अकबर खान को अपनी जान बहुत प्यारी है।" सर्दूल मुस्कुराया--- "जगमोहन को उसने संभाल रखा है। उस वक्त के लिए जब देवराज चौहान उस पर हमला करने आएगा। तब वो जगमोहन का सौदा करेगा और अपनी जान बचाएगा।"
"ये तो धोखेबाजी कर रहा है हमसे अकबर...।" दावरे कह उठा।
"मैंने तुम लोगों से कितना कहा था कि मेरे जन्मदिन की पार्टी मत करो। जन्मदिन मनाना मुझे फलता नहीं है। परंतु तुम में से किसी ने मेरी बात का यकीन नहीं किया और पार्टी कर दी मेरे जन्मदिन की। देख लिया उसका अंजाम!" सर्दूल बोला।
"सच में। उस दिन से हम भागे फिर रहे हैं।"
"राहत की खबर है एक।"
"वो क्या?"
"चौला ने मरने से पहले कमिश्नर बाजरे से सौदा कर लिया था कि ये मामला उन पर से हटा दे।"
"तुम्हारा मतलब कि सौदा हो गया?"
"ढाई करोड़ में...।"
"ओह...। सौदा चौला ने अपने लिए किया था या सबके लिए?"
"सबके लिए।"
सुधीर दावरे के चेहरे पर राहत के भाव उभरे।
"पर चौला की मौत से कमिश्नर फैल सकता है।" सर्दूल ने चाय का गिलास उठाकर घूंट भरा--- "अभी चौला की मौत खुली नहीं है। तू कमिश्नर को फोन लगाकर बोल दे कि सौदे से हिला तो जान से जाएगा।"
"रुपया पहुंच गया उसके पास?"
"चौला ने कल शाम ही कमिश्नर के पास ढाई करोड़ पहुंचा दिया था।"
"मेरे पास नम्बर नहीं है कमिश्नर का।"
"मैं नम्बर बताता हूं। तू फोन लगा। कमिश्नर बाजरे है वो।"
दावरे ने फोन निकाला और सर्दूल नम्बर बताने लगा।
फोन लग गया। बेल जाने लगी।
"हैलो...।" कमिश्नर बाजरे की आवाज कानों में पड़ी।
"बाजरे?" सुधीर दावरे शांत स्वर में बोला।
"हां, तुम कौन हो?"
"सुधीर दावरे। पहचाना...?"
"पहचाना।" बाजरे के गहरी सांस लेने की आवाज आई।
"ढाई रोकड़ा तेरे पास चौला ने पहुंचाया तो उसके बाद तूने कुछ किया क्यों नहीं?"
"मैंने सब कुछ कर दिया है।"
"बोल...।"
"पुलिस को तुम लोगों की तलाश से हटा दिया है। देवराज चौहान की तलाश से हटा दिया है। होटल में हुआ खून-खराबा किन्हीं और लोगों के नाम डाल दिया, जो कि पांच दिन पहले ही पुलिस एनकाउंटर में मारे गए थे। तुम लोग पुलिस की तरफ से पूरी तरह आजाद हो। पुलिस को तुम्हारी जरूरत नहीं है।"
"देवराज चौहान पर से पुलिस की तलाश क्यों हटवाई?"
"जरूरी था। इस मामले में वो तुम लोगों के साथ जुड़ा हुआ है। वो पकड़ा गया तो तुम लोगों का नाम लेगा। इस तरह मामला फिर से शुरू हो जाएगा। इस मामले में उसे दूर करना ही ठीक था।"
"मतलब सब ठीक है। हम खुले में आ सकते हैं।" दावरे ने चैन की सांस ली।
"बेशक। पुलिस तुम लोगों की तरफ देखेगी भी नहीं। मैंने पक्का इंतजाम कर दिया है।"
"शुक्रिया।"
"ये सब करने का मैंने ढाई लिया है। शुक्रिया की जरूरत नहीं।"
"एक खबर तेरे को बतानी है।"
"क्या?"
"रात चौला मारा गया।"
"ओह! देवराज चौहान ने मारा उसे?"
"तूने ठीक कहा।"
"उसकी लाश नहीं मिली अभी?" उधर से बाजरे ने कहा।
"वो कहीं पड़ी है। मिलनी हुई तो मिल जाएगी। तू चिंता मत कर। अब फोन बंद करता हूं।" कहकर दावरे ने फोन बंद किया और सर्दूल से बोला--- "कमिश्नर सीधा हुआ पड़ा है। गड़बड़ नहीं करेगा।"
सर्दूल चाय के घूंट भरता रहा।
दावरे ने भी चाय का घूंट भरा, फिर गंभीर स्वर में बोला---
"अकबर से तुम बात करो कि जगमोहन का इस्तेमाल हम सबके लिए करे वो, सिर्फ अपने लिए नहीं।"
"अकबर ने मुझसे धोखेबाजी की है और ऐसों को मैं जिंदा नहीं छोड़ता।" सर्दूल ने शांत स्वर में कहा।
दावरे के शरीर में झुरझुरी दौड़ती चली गई।
"आपस में धोखा नहीं चलता। हमें एक-दूसरे के लिए शीशे की तरह साफ रहना चाहिए। वरना हम तो...।"
यही वो वक्त था कि सर्दूल का फोन बज उठा।
सर्दूल ने फोन निकालकर स्क्रीन पर आया नम्बर देखा तो माथे पर बल पड़े।
"अकबर का ही फोन है...।" सर्दूल कह उठा।
"देख तो, क्या कहता है।" सुधीर दावरे ने बेचैनी से कहा।
सर्दूल ने कॉलिंग स्विच दबाया और मोबाइल कान से लगाता कह उठा।
"कैसा है अकबर?"
"ठीक हूं सर्दूल। तुम कहां हो, हिन्दुस्तान में या पाकिस्तान में?"
"पाकिस्तान गया था। लेकिन इस मामले की खातिर लौट आया। तेरे लिए अच्छी खबर भी है और बुरी भी...।"
"पहले बुरी बता।"
"चौला, रात में देवराज चौहान के हाथों मारा गया।"
"ओह, सुनकर दुख हुआ। ये खबर अभी तक मुझ तक नहीं पहुंची थी।" अकबर खान ने उधर से परेशान स्वर में कहा।
"देवराज चौहान हम सब की तलाश में है।"
"अब तू अच्छी खबर सुना, फिर मैं तेरे को कुछ बताता हूं।
"मरने से पहले चौला ने सौदा पूरा कर लिया था पुलिस से। ये मामला अब खत्म हो गया है। पुलिस तुम लोगों के पीछे नहीं है।"
"ये अच्छी खबर है।"
"अब सिर्फ देवराज चौहान से निपटना रह गया।" शांत स्वर में बोला सर्दूल।"
"अब मेरी बात सुन। मैंने भी एक तीर चलाया है।" अकबर खान की आवाज कानों में पड़ी।
"बोल...।"
"मैंने जगमोहन को हॉस्पिटल से उठवा लिया था।"
"पता है।"
"पता है?" उधर से अकबर खान चौंका।
"पहले दिन से ही पता था।"
"तो तूने इस बारे में मुझसे बात क्यों नहीं की?"
"क्योंकि तूने नहीं की।"
अकबर खान के गहरी सांस लेने की आवाज सर्दूल के कानों में पड़ी।
सुधीर दावरे गंभीर निगाहों से सर्दूल को देख रहा था और बात समझने की कोशिश कर रहा था ल।
"मैं मौके पर तुम्हें जगमोहन के बारे में बताना चाहता था। सोच-समझ रहा था कि उसका क्या करूं?"
"तो क्या किया तूने?"
"वो पूरा ठीक है, लेकिन अपनी याददाश्त खो बैठा है। उसे कुछ भी याद नहीं कि वो कौन है। ऐसे में मैंने उसके दिमाग में ठूंसा कि वो मेरा आदमी है। मैंने उसे बचपन से पाला है। वो मेरे लिए काम करता है। उसकी जो हालत अब हुई है, वो देवराज चौहान से टक्कर लेने में हुई है। देवराज चौहान हमारा दुश्मन है और हम सबको मार देना चाहता है। देवराज चौहान की तस्वीर दिखाई उसे मैंने। ठूंस-ठूंस कर मैंने जगमोहन के दिमाग में, देवराज चौहान के लिए जहर भर दिया है। अब वो देवराज चौहान से बदला लेने के लिए पागल हुआ पड़ा है।"
"हूं...।" सर्दूल के चेहरे पर सोच के भाव नजर आ रहे थे।
"मैंने उसके साथ अपने छः आदमी कर दिए हैं। वो मुंबई में जगह-जगह घूमेंगे। कभी तो देवराज चौहान को उसके बारे में खबर मिलेगी। और वो जगमोहन को ढूंढता उसके पास आएगा तो जगमोहन के हाथों ही मारा जाएगा।"
"योजना अच्छी है।" सर्दूल बोला।
"मैं जानता हूं कि मैंने बढ़िया बात सोची है।"
"लेकिन गलत ढंग से खेल खेल रहा है।"
"क्या मतलब?"
"जगमोहन को मेरे हवाले कर दे। मैं देवराज चौहान को पिंजरे में फांस लूंगा।" सर्दूल ने सोच भरे स्वर में कहा--- "जगमोहन को मुंबई में खुला घुमाना ठीक नहीं। इससे मामला लंबा हो जाएगा।"
"ठीक है। मैं जगमोहन को तेरे पास भेजता हूं। कुछ आदमी भी साथ भेजूं क्या?"
"जो छः आदमी उसके साथ हैं, वो ही भेज देना।"
"कहां भेजूं?"
"एक घंटे तक तेरे को फोन करके बताऊंगा।"
"ठीक है।"
"अपने लोगों में से किसी के पास देवराज चौहान का फोन नंबर तो नहीं है?"
"नहीं...। हमारे पास उसका नंबर कहां से आएगा?"
"देवराज चौहान को खबर पहुंचानी है कि जगमोहन उसे किधर मिलेगा। तभी तो वो जाल में फंसेगा।" सर्दूल ने कहा--- "इस मामले में वो पुलिस वाला सबसे ज्यादा दखल दे रहा है जिसने परमजीत को पकड़ा था।"
"सब-इंस्पेक्टर कामटे...।"
"वो ही...।" उससे पूछ, शायद उसके पास देवराज चौहान की कोई खबर हो या फोन नंबर हो।"
"लगता तो नहीं कि उसे कुछ पता होगा। फिर भी उससे बात करता हूं।"
"कर और मुझे बता कि कोई फायदा हुआ कि नहीं...।" कहकर सर्दूल ने फोन बंद कर दिया।
दावरे जो सर्दूल को देख रहा था, बोला---
"क्या मामला है?"
"अकबर जगमोहन के बारे में बता रहा था।" सर्दूल ने सारी बात बताई।
"ये तो बढ़िया बात है कि जगमोहन हमारे कब्जे में है और उसकी याददाश्त चली गई है। जगमोहन के दम पर हम देवराज चौहान को सामने आने के लिए मजबूर कर सकते हैं और उसे बुरी मौत दे सकते हैं।" दावरे ने उत्साह भरे स्वर में कहा।
"लेकिन पहले देवराज चौहान तक ये खबर तो पहुंचे कि, जगमोहन हमारे पास है।" सर्दूल ने सोच भरे स्वर में कहा--- "मैं जगमोहन को अपने किसी ठिकाने पर बुला रहा हूं। छः आदमी साथ भेजेगा अकबर। तू भी देख कि देवराज चौहान तक कैसे खबर पहुंचाई जा सकती है कि जगमोहन हमारे पास है...।"
"अभी अपने आदमियों को फोन करता हूं कि वो देवराज चौहान के बारे में खबर पाने की कोशिश करें और...।"
ठीक इसी वक्त सुनीता ने दुकान में प्रवेश किया।
सुनीता! सब-इंस्पेक्टर कामटे की पत्नी।
सुनीता सजी-संवरी पड़ी थी। साड़ी पहन रखी थी। बालों का फैशनेबल जूड़ा बना रखा था। ऊंची हील की सैंडल पहनी थी। वो खुश नजर आ रही थी। उसने एक निगाह दावरे और सर्दूल की तरफ देखा, फिर दुकान के भीतर मोहन की तरफ बढ़ती चली गई। उसके आने से दुकान में जैसे रौनक आ गई थी।
तभी सर्दूल उठा और दावरे से बोला---
"मैं अपने किसी ठिकाने पर जगमोहन को मंगाने का इंतजाम कर लूं। उसके बाद तुमसे बात करूंगा।"
"मैं तुम्हारे साथ हूं। किसी भी काम के लिए मुझे बुला लेना।"
सर्दूल बाहर निकलता चला गया।
सुनीता, मोहन के पास पहुंचकर बोली---
"अंडरवियर देना, 90 सेंटीमीटर वाला। ऐसी कंपनी का देना जिसकी टी•वी• में ऐड आती हो।"
"अभी लीजिए।" कहकर मोहन रैक में लगे डिब्बे उतारने लगा।
मोहन ने शीशे के काउंटर पर कई डिब्बे रखे और बोला---
"सफेद चलेगा या रंगदार...।"
"रंगदार दे दे। सफेद में तो रोज-रोज धोने का चक्कर रहेगा।" सुनीता मुंह बनाकर बोली--- "छः देना। और भाव ठीक लगाना। तेरी दुकान पर पहली बार आई हूं। अब गलत हुआ तो दोबारा नहीं आऊंगी।"
"चिंता मत कीजिए। हमारी दुकान पर हर माल कम भाव का है।"
दस मिनट में ही सुनीता छः अंडरवियर लेकर दुकान से बाहर निकल गई।
■■■
कामटे आज पूरी तरह छुट्टी पर था और मस्ती में था। रात भर वो और सुनीता जागते ही रहे। उसने सुनीता को सोने नहीं दिया और सुनीता ने उसे। सुबह चार बजे ही वो नींद ले पाए थे। नौ बजे उठने के पश्चात सुनीता ने नाश्ता बनाया। वो भी मस्ती में लग रही थी। नाश्ता करने के बाद सुनीता ने कुछ सामानों की लिस्ट तैयार की और बाजार निकल गई। वो खुश थी कि बीस लाख रुपया घर में आ गया है। वो घर के पर्दे-सोफा, किचन के बर्तन, पुराने बैड यहां तक कि जूते भी, हर चीज नई खरीद लेना चाहती थी। जाहिर था कि जब तक वो दो-चार लाख ठिकाने नहीं लगाएगी, तब तक उसे चैन नहीं मिलने वाला।
सुनीता के बाजार जाने के पश्चात कामटे नहा-धोकर फुर्सत में आया और चाय बनाकर सोफे पर आ बैठा था। बीते दिनों के बारे में सोचने लगा। कल शाम देवराज चौहान, दीपक चौला के ठिकाने पर उसे मारने गया था। उसके बाद कामटे को देवराज चौहान या चौला की कोई खबर नहीं मिली थी।
एक बार मन में भी आया कि जाकर उस गैराज पर देखे। परंतु वहां जाना उसका ठीक नहीं था।
किसी ने उसे वहां आते-जाते देख लिया तो खामखाह ही रगड़े में आ जाएगा।
परंतु एक बात तो उसके मस्तिष्क में तय थी कि रात या तो देवराज चौहान मर गया होगा या दीपक चौला। अब दोनों में से एक ही जिंदा रहा होगा।
कामटे जानता था कि देर-सवेर में इस बारे में कोई खबर मिलेगी ही। परंतु दिल से वो चाहता था कि देवराज चौहान के साथ कुछ बुरा ना हुआ हो। क्योंकि देवराज चौहान उसे किसी भी तरफ से ऐसा इंसान नहीं लगा था कि उसे मर जाना चाहिए था। बल्कि इस मामले में देवराज चौहान और जगमोहन के साथ ही ज्यादती हुई थी। ऐसे में देवराज चौहान जो कर रहा था, वह ठीक कर रहा था। उसकी जगह कोई और होता तो वो भी ऐसा ही करता। वानखेड़े ने उसे ठीक समझाया था कि ये मामला पुलिस का नहीं है। उन दोनों का अपना है।
कामटे का मोबाइल बजने लगा। बेल बजने की आवाज कानों में पड़ी।
कामटे ने चाय का प्याला टेबल पर रखा और उठकर भीतरी कमरे में गया।
"हैलो।" फोन कान से लगाए वो वापस ड्राइंग रूम में पहुंचा।
"कामटे...।" बाजरे की आवाज कानों में पड़ी।
"सर।" कामटे फौरन संभला।
"एक नई खबर मिली है। सोचा तुम्हें बता दूं।"
"क्या सर?"
"लाश नहीं मिली अभी तक। खबर आम भी नहीं हुई। लेकिन सुना है कि रात चौला को किसी ने मार दिया।"
"किसी ने?" गहरी सांस ली कामटे ने--- "देवराज चौहान ने ही मारा होगा।"
"मुझे भी ऐसा ही लगता है।" बाजरे की आवाज कानों में पड़ी।
"ये केस बंद हो गया है या अभी...।"
"बंद हो गया। पुलिस के लिए, इस मामले में कुछ नहीं रखा।"
कामटे ने यही सोचा कि तगड़े नोट चढ़ाये गए हैं कमिश्नर को।
"ठीक है सर। अभी तो मैं सप्ताह की छुट्टी पर...।"
"तुम्हारी पत्नी वापस नहीं आई?"
"बहुत मुश्किल से मना कर लाया हूं सर। वो तो आने को तैयार ही नहीं थी।"
"ये सप्ताह अपनी बीवी को ही देना...।"
"हां सर, वो महाबलेश्वर जाने को कह रही है। चार-पांच दिन वहीं रहेंगे शायद...।"
"ये तुमने अच्छा प्रोग्राम बनाया। पैसे-वैसे चाहिए तो मुझसे...।"
"पैसों का इंतजाम है सर...।"
बातचीत खत्म हो गई।
कामटे ने मोबाइल टेबल पर रखा और राहत की सांस ली कि देवराज चौहान जिंदा था और चौला मर गया था। ऐसा ही चाहता था कामटे कि ऐसा हो।
कामटे ने चाय का प्याला उठाकर घूंट भरा।
चाय ठंडी हो गई थी। उसने प्याला रख दिया।
तभी मोबाइल पुनः बजने लगा। सुनीता होगी। ये सोचते हुए उसने बात की।
"हां बोल...।"
"कामटे...?" दूसरी तरफ से अकबर खान का स्वर कानों में पड़ा।
"ह...हां। तुम कौन हो?"
"अकबर खान।"
कामटे फौरन सीधा होकर बैठ गया।
"मुझसे क्या काम पड़ गया? पुलिस तुम लोगों के पीछे से हट गई है।" कामटे जल्दी से कह उठा।
"जानता हूं। मैंने देवराज चौहान के लिए तुम्हें फोन किया है।"
"देवराज चौहान के लिए...मैं समझा नहीं।"
"तुम्हें मालूम है कि देवराज चौहान कहां मिलेगा?"
"मुझे मालूम होता तो उसे पकड़ ना लिया होता?" कामटे संभले स्वर में बोला।
"फिर तो उसका कोई फोन नंबर भी तुम्हारे पास नहीं होगा?"
"अजीब बात कर रहे हो! डकैती मास्टर का फोन नंबर पुलिस वाले के पास क्यों होगा?"
"मेरे को देवराज चौहान से बात करनी है। कैसे होगी? वो कमीना हमारे पीछे हाथ धोकर पड़ा हुआ है।"
कामटे कुछ पल खामोश रहकर कह उठा---
"वो तुम सबको नहीं छोड़ने वाला। उससे बात करना बेकार है।"
"अगर वो कहीं मिले तो उसे कहना कि जगमोहन हमारे पास है।" अकबर खान का कड़वा स्वर कानों में पड़ा कामटे के।
कामटे चौंका। फिर तुरंत ही संभल गया।
"जगमोहन तुम्हारे पास?"
"अब तक वो मेरे ही पास था। परंतु कुछ ही देर में सर्दूल के पास पहुंच जाएगा। देवराज चौहान मिले तो कहना हमसे बात कर ले। वरना जगमोहन की गर्दन काट कर किसी चौराहे पर फेंक देंगे।" इसके साथ ही फोन बंद हो गया।
कामटे होंठ सिकोड़े फोन थामे बैठा रहा।
ये तो वो पहले ही जानता था कि जगमोहन को इन्हीं लोगों ने उठाया है और उसका ख्याल सही निकला भी। ये लोग अब जगमोहन की आड़ लेकर देवराज चौहान के बढ़ते कदमों को रोक देना चाहते थे। लेकिन देवराज चौहान का पता-ठिकाना, फोन नंबर, कुछ भी उसके पास नहीं था।
कामटे ने मोबाइल टेबल पर रखा और पसर कर बैठ गया। वो इस सब बातों में से निकल जाना चाहता था। पुलिस की अब कोई दिलचस्पी नहीं थी इस मामले में। वो सिर्फ सुनीता के साथ मजे से जिंदगी को बिताना चाहता था। ताजा-ताजा बीस लाख जो मिला था उसे। परंतु उसकी हमदर्दी देवराज चौहान के साथ थी।
तभी दरवाजे पर आहट हुई और सुनीता ने भीतर प्रवेश किया। उसके चेहरे पर पसीना चमक रहा था। हाथों में कई लिफाफे थाम रखे थे। भीतर आते ही उसने लिफाफे रखे और कुर्सी पर बैठ गई।
उसकी हालत देखकर कामटे मुस्कुरा पड़ा।
"पानी दो। ठंडा देना।" सुनीता बोली।
"मैं दूं...।"
"तो और कौन देगा?" सुनीता ने मुंह बनाया--- "कितने आदमी पाल रखे हैं मैंने? तुमसे ही कह रही हूं।"
कामटे हंसा और उठकर ठंडे पानी का गिलास सुनीता को दिया। फिर बोला---
"क्या सामान लाई हो?"
"घर का सामान है। दोपहर को खाने के लिए छोले-भटूरे पैक करा लाई हूं। तुम्हारे लिए छः अंडरवियर लाई हूं।"
"छः?"
"रोज-रोज नहीं धोए जाते मुझसे। पता नहीं क्या करते हो, एक अंडरवियर एक दिन से ज्यादा नहीं चलता। सप्ताह में एक बार ही मशीन लगाकर सारे कपड़े धोया करुंगी।" पानी पीने के बाद सुनीता ने कहा।
"ठीक है महारानी जी। घर तो तुम ही संभालती हो। जैसा चाहो कर लो।"
सुनीता ने लिफाफों में से एक लिफाफा निकालकर उसकी तरफ बढ़ाया।
"लो, चैक कर लो अंडरवियर। ठीक है ना?"
"ठीक ही होंगे।" कामटे ने लिफाफा पकड़ा और खोलने लगा।
"महाबलेश्वर कब जाना है?" सुनीता बोली।
"शाम को चलेंगे। पांच बजे टैक्सी आ जाएगी। बोल दिया है। तुम तैयारी कर लो।"
"तैयारी क्या करनी है! चार कपड़े ही तो बैग में डालने हैं।"
कामटे ने अंडरवियर निकालकर देखे। फिर तुरंत ही कह उठा---
"ये क्या, तुम तो 90 सेंटीमीटर के ले आई हो। ये साइज तो तंग रहता है मुझे।"
"90 के ही तो पहनते हो तुम!'
"नहीं, महीने भर से 105 सेंटीमीटर वाले पहन रहा हूं। ये गलत ले आई।"
"तो अभी जाकर बदल लो। शाम को महाबलेश्वर के लिए जाना है। बाहर सड़क पर जो दुकान है, उससे लाई हूं। जिस दुकान पर नीला बोर्ड लगा हुआ है।"
"कैसी घटिया दुकान से लाई हो। उस दुकान का माल बिकता ही कहां है। पुराना माल पड़ा होगा। तुम्हें दे दिया।"
"वक्त बर्बाद मत करो। जल्दी से बदल लाओ। फिर भटूरे खाकर कुछ आराम करेंगे।"
"आराम?" कामटे ने अर्थ पूर्ण निगाहों से देखा।
सुनीता शरारत भरे ढंग से मुस्कुराई।
कामटे के होंठों पर भी मुस्कान फैल गई।
"फिर तो अभी बदल कर आता हूं अंडरवियर।" कामटे लिफाफा थामें उठते हुए बोला।
"जल्दी आना। मुझे भूख लग रही है।" सुनीता बोली--- "मैंने बापू को फोन कर दिया है।"
"बापू को फोन...?"
"हां। बोल दिया उसे कि छोटी की शादी के लिए पैसों की फिक्र ना करे। तुम शादी के लिए पैसे दे दोगे और जब भी बापू से बन पड़ेगा, वो वापस दे देगा।"
"वापस दे देगा?" कामटे मुंह बनाकर बोला--- "कहां से देगा? वो तो इतना बूढ़ा है कि पांव लटकाए तैयार बैठा है। मेरे ख्याल में तो वो तुम्हारी छोटी बहन की शादी के लिए ही जिंदा है। इधर शादी हुई और वो भी खिसक गया।"
"अब इसमें उसका क्या कसूर कि वो बूढ़ा...।"
"मेरा पैसा तो गया...।"
"तुम कौन सा मेहनत से कमाकर लाए हो। तुमने अभी तक नहीं बताया कि कहां से लाए हो?"
कामटे ने गहरी सांस ली, फिर मुस्कुराया।
"तुझे क्या करना है जानकर कि किधर से लाया हूं। तू मौज कर। भटूरे खा। मैं अंडरवियर बदलकर आता हूं।" कहने के साथ ही कामटे बाहर निकलता चला गया।
सुनीता उठी और लाए सामान को घर के ठिकाने पर रखने में व्यस्त हो गई। पन्द्रह मिनट में इस काम से उसने फुर्सत पाई। फिर साड़ी उतारकर गाउन पहनने की सोच ही रही थी कि किसी के आने की आहट मिली। वो फौरन कमरे से ड्राइंग रूम में पहुंची, ये सोचकर कि कामटे इतनी जल्दी कैसे आ गया।
परंतु दरवाजे पर निगाह पड़ते ही ठिठक गई।
वहां देवराज चौहान खड़ा था।
"आइए भाई साहब, आइए।" सुनीता कह उठी--- "वो तो बाजार गए हैं। अभी आ जाएंगे।"
देवराज चौहान ने मुस्कुराकर सिर हिलाया और भीतर आ गया। बैठा।
सुनीता ने पानी लाकर पिलाया। बोली---
"लंच का वक्त हो रहा है। खाने को भटूरे हैं, दूं क्या?"
"हां, मुझे भी भूख लग रही है।"
"अभी देती हूं।" सुनीता पलटते हुए बोली--- "अभी बाजार से लाई थी भटूरे। उस समय जाने क्या मन में आया कि दो प्लेट ज्यादा पैक करा लीं। अच्छा ही हुआ जो आप आ गए...।"
सुनीता किचन में गई और छोले-भटूरे प्लेट में डालकर ले आई।
"लीजिए भाई साहब...।"
देवराज चौहान ने खाना शुरु कर दिया। सुनीता बोली---
"आज शाम पांच बजे हम महाबलेश्वर जा रहे हैं। अभी बहुत काम करने हैं मैंने। पैकिंग करनी है। मर्दों का क्या है! पैंट-कमीज पहनी, नोट जेब में डाले और चल पड़े। मुसीबत तो औरत के सिर पर ही होती है।"
इसी तरह देवराज चौहान का खाना और सुनीता की बातें चलती रहीं। बातों के दौरान सुनीता अपने काम भी करती जा रही थी। जबकि देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता नजर आ रही थी।
■■■
सब-इंस्पेक्टर कामटे का बुरा हाल हो चुका था।
अंडरवियर बदलकर वो दुकान से निकला तो उसे लग रहा था जैसे उसकी टांगें कांप रही हों। चलने में समस्या आ रही हो। जबकि ऐसा कुछ नहीं था। उसकी चाल सामान्य ही थी। दिल जोरों से बज रहा था।
कामटे को पूरा यकीन था कि उसने धोखा नहीं खाया है।
सुधीर दावरे को वो पहले भी कई बार देख चुका था। तीन साल पहले किसी मामले में उसे पूरा दिन थाने में बिठाकर रखा गया था, तब उसने दावरे को करीब से देखा था। कामटे की वैसे भी आदत थी कि मुजरिम की तस्वीर खींचकर वो अपने दिमाग में रख लेता था।
यही वजह थी कि वो दुकान से कैश काउंटर पर दाढ़ी/मूंछें लगाए बैठे दावरे को पहली नजर में ही पहचान गया था कि वो कोई और नहीं, ड्रग्स किंग सुधीर दावरे है। जो कि देवराज चौहान और पुलिस के डर से इस वेश में यहां छिपा बैठा है। दावरे को पहचानते ही उसे देवराज चौहान की याद आई थी।
दुकान पर चोर नजरों से उसने कई बार दावरे को देखा। परंतु दावरे का ध्यान उस पर नहीं था।
जब दुकान से बाहर निकला तो उत्तेजना में उसका शरीर हौले-हौले कांप रहा था।
शेर के मुंह खून लग चुका था।
यानी कि कामटे को रिश्वत का स्वाद लग चुका था।
दीपक चौला से उसने बीस लाख झटके थे।
अब वो सोच रहा था कि अगर उसे देवराज चौहान का पता होता तो देवराज चौहान से मोटे नोट वसूल कर सकता था--- जगमोहन और सुधीर दावरे की जानकारी देने के बदले।
इसी हाल में कामटे अपने घर पहुंचा।
देवराज चौहान को वहां मौजूद पाया तो दिल तेजी से धड़कने लगा। आंखों पर विश्वास नहीं आया।
"तुम?" कामटे के होंठों से निकला।
देवराज चौहान भटूरे खा चुका था। सुनीता बर्तन ले जा चुकी थी।
देवराज चौहान ने गंभीर निगाहों से उसे देखा।
"तुम कब आए?"
"कुछ देर हुई।" देवराज चौहान बोला--- "भटूरे खाए हैं। बैठो। तुमसे बात करनी है।"
तभी सुनीता आवाजें सुनकर ड्राइंग रूम में आ पहुंची।
"सुनो जी, भटूरे खा लो। कब तक पड़े रहेंगे। बाजार का सामान है। खराब हो जाएगा। भाई साहब ने भी खा लिए हैं।"
"दे दे...।" कामटे देवराज चौहान के सामने जा बैठा। उसका दिमाग तेजी से दौड़ रहा था।
"अंडरवियर बदल लिए ना भाई ने?" सुनीता ने किचन की तरफ जाते पूछा।
"हां।"
देवराज चौहान और कामटे एक-दूसरे को देख रहे थे।
"खबर है कि तुमने चौला को मार दिया।" कामटे धीमे स्वर में बोला।
"हां।"
"अब मेरे पास क्यों आए हो?" कामटे ने बेचैनी से पहलू बदला।
"सुधीर दावरे, अकबर खान और सर्दूल की जरूर है मुझे...।"
"तो?"
"तुम इन्हें ढूंढने के काम पर लगे हुए हो, किसी और की तो खबर होगी तुम्हें?"
कामटे खामोश रहा। वो सोच रहा था कि उसके सामने देवराज चौहान बैठा है। हिन्दुस्तान का नंबर वन डकैती मास्टर। इसने बहुत डकैतियां की हैं। बहुत पैसा होगा इसके पास और इसे कुछ बताने के बदले इससे पैसा वसूला जा सकता है। तभी सुनीता भटूरे-छोले की प्लेट ले आई और कामटे के सामने रखते कह उठी---
"पता है पांच बजे, महाबलेश्वर के लिए टैक्सी ने आ जाना है। भूल मत जाना।" सुनीता चली गई।
"अकबर खान का आदमी राठी अभी बचा हुआ है। उनके बारे में कोई खबर हो तो...।"
"मैंने तुम्हें कल ही कह दिया था कि पुलिस इस काम से हट गई है।"
"तुम ये काम मेरे लिए कर सकते हो। उन लोगों को तलाश करो और...।"
"मुझे क्या फायदा? मैं पहले ही तुम्हारे काम आ चुका हूं। सरकार तो मुझे तनख्वाह देती है। तुमसे कुछ नहीं मिलता मुझे। फिर तुम बार-बार मेरे पास आते हो। इसमें मुझे खतरा हो सकता है।"
"इन लोगों के बारे में तुम मुझे खबर दोगे तो मैं तुम्हें पैसा दूंगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"मैंने तुम्हें चौला के बारे में बताया, तुमने उसे मार दिया। मुझे कुछ भी नहीं मिला।"
"चौला के तुम्हें दस लाख दूंगा।"
"दस लाख?" कामटे फौरन सीधा होकर बैठ गया।
"बाकी किसी के बारे में खबर दोगे तो बीस लाख दूंगा।"
"बीस लाख एक के?" कामटे का दिल धड़क उठा।
"हां। एक के।" देवराज चौहान गंभीर था।
जबकि कामटे का दिमाग बहुत तेजी से दौड़ रहा था।
"जगमोहन का कुछ पता चला?" कामटे ने भटूरा खाना शुरू किया।
"नहीं। उसका भी कुछ भी पता नहीं चल रहा।" देवराज चौहान के दांत भिंच गए।
"अगर मुझे जगमोहन के बारे में कोई खबर मिली तो उसका क्या दोगे?" कामटे ने पूछा।
"जगमोहन के मरने की खबर दोगे तो पांच लाख। जिंदा होने की खबर दोगे तो दस लाख। अगर वो जिंदा है और तुम बताते हो कि वो कहां पर है तो बीस लाख दूंगा।" देवराज चौहान ने सख्त शब्दों में कहा।
"दस लाख चौला के। दस लाख जगमोहन के जिंदा होने की खबर के और बीस लाख दावरे का ठिकाना बताने के। यानि कि कुल चालीस लाख तुम मेरे हवाले करो तो बाकी बात आगे की करेंगे।"
देवराज चौहान के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा।
"क्या--क्या कहा तुमने?" देवराज चौहान के होंठों से निकला।
"वही जो तुमने सुना।" कामटे गंभीर हो गया।
"जगमोहन जिंदा है?" देवराज चौहान के शब्दों में कम्पन भर आया था।
"हां...।"
"तो ये बात तुमने मुझे कल क्यों नहीं बताई?"
"मुझे भी आज ही पता चली।"
"वो है कहां?"
"पक्की खबर दूंगा कि वो किसके पास है। लेकिन पहले मुझे नोट दिखाओ।"
"तुमने दावरे के बारे में बताने को कहा है।"
"तभी तो चालीस हुए। दस चौला के, दस जगमोहन के और बीस दावरे के...।"
"तुम मुझे सब कुछ बताओ। मैं तुम्हें चालीस लाख दूंगा।"
"दूंगा नहीं चलेगा देवराज चौहान।" कामटे गंभीर स्वर में कह उठा--- "सवाल चालीस हजार का होता तो मैं उधार कर लेता। परंतु मामला चालीस लाख तक पहुंच गया है। ये मेरे लिए बड़ी रकम है। नोट दो और अपने काम की बात सुनो। बुरा मत मानना। आखिर मामला चालीस लाख का है।"
देवराज चौहान उसी पल खड़े होते कह उठा---
"मैं चालीस लाख लेकर डेढ़ घंटे में वापस आता हूं...।"
कामटे ने सिर हिलाया। उसे देखता रहा।
"तुम यहीं मिलना मुझे। ऐसा ना हो कि तुम यहां से गायब...।"
"मैं यहीं मिलूंगा। पक्का वादा।"
देवराज चौहान बाहर निकलता चला गया।
कामटे सोचों में डूबा छोले भटूरे खाने लगा।
तभी सुनीता वहां आई और कह उठी---
"अरे, आपके वो दोस्त कहां चले गए?"
कामटे ने सुनीता को देखा, फिर बोला---
"यहां सामने बैठ, तेरे से बात करनी है।"
"क्या है?" सुनीता सामने सोफे पर बैठती कह उठी।
"हम महाबलेश्वर नहीं जा रहे...।"
"क्या?" सुनीता तड़प उठी--- "नहीं जा रहे? मैंने पूरी तैयारी कर रखी है। मन बना रखा है। और तुम...।"
"मैं पुलिस की नौकरी भी छोड़ रहा हूं...।"
"क्या?" अनीता अचकचाई--- "तुम नौकरी छोड़ रहे हो? मेरे बाप ने तो तुम्हारी सरकारी नौकरी देखकर तो ब्याह पक्का किया था मेरा--- और तुम नौकरी छोड़...।"
"बीस लाख घर में पड़ा है...और चालीस लाख और आ रहा है...।"
"चा... चा... चालीस लाख?" सुनीता का मुंह खुला का खुला रह गया।
"कुल साठ लाख हो जाएगा।" मुस्कुराया कामटे--- "बढ़िया सा इलेक्ट्रॉनिक्स का शोरूम खोलूंगा। मजेदार जिंदगी बिताएंगे हम। दिन में शोरूम संभालेंगे मिलकर और रात में घर संभालेंगे।"
सुनीता अभी तक भारी तौर पर उलझन में थी।
"चा... चालीस लाख क...कहां से आ रहा...।"
"वो जो अभी बैठा था, वो ही लेने गया। अभी आएगा चालीस लाख लेकर। उसे कुछ जानकारी चाहिए। जो कि मेरे पास है। महाबलेश्वर कुछ दिन बाद चलेंगे। तब तक तुम घर का नया सामान खरीद...।"
"ये आदमी है कौन? कल तुमने मुझे यही बताया था कि तुम्हारी पहचान वाला है।"
"ये डकैती मास्टर देवराज चौहान है।"
"क्या?" सुनीता हड़बड़ा उठी--- "य...ये डकैती मास्टर देवराज चौहान है और मैंने उसे भटूरे खिला दिए...ये...ये...।"
"शांति से सुन। मैं तुम्हें सारी बात बताता हूं। है तो वो डकैती मास्टर। लेकिन बंदा शरीफ है।" फिर कामटे, सुनीता को सारी बात बताने लगा। सुनीता ने पूरी बात सुनी। कुछ समझ में आई, कुछ नहीं। फिर सुनीता कह उठी---
"लेकिन हम इलेक्ट्रॉनिक्स का शोरूम नहीं खोलेंगे। तुम नौकरी नहीं छोड़ोगे।"
"सुनीता तू...।"
"तुम नौकरी नहीं छोड़ोगे। जिन वर्दियों को मैं धोती रही, उन्हें पहनकर तुमने एक ही झटके में चालीस लाख कमा लिए। जिन्हें मैं मामूली खाकी वर्दी समझती थी, वो तो बहुत करामाती वर्दी निकली। तुम नौकरी नहीं छोड़ोगे। दूसरा काम नहीं करोगे। यही खाकी वर्दी वाला काम ठीक है।"
कामटे के चेहरे पर तीखे भाव आ ठहरे। उसने सुनीता को घूरा।
"अब क्या देख रहे हो?" सुनीता कह उठी--- "तुम नौकरी नहीं छोड़ोगे।"
"तू मजाक समझ रही है खाकी वर्दी को...। ये...।"
"पहले समझती थी। अब नहीं समझती। पहले तो...।"
"चुप रहो। मुझे गुस्सा ना दिला ये बातें करके। इस वर्दी को पहनकर जान जोखिम में डालनी पड़ती है। मौत को गले लगाना पड़ता है। खतरों से खेलना पड़ता है। अभी वो लोग मुझे मार भी सकते थे। जान बचाने की खातिर मैंने बीस लाख लेकर समझौता कर लिया। तू क्या सोचती है कि सारी उम्र मैं खाकी वर्दी की आड़ में बोरे भर कर लाता रहूंगा? भूल जा। ये तो जिंदगी में एक बार ही होता है और वो हो गया। मैंने वर्दी इसलिए नहीं पहनी थी कि रिश्वतें लेता फिरूं। कानून और जनता के प्रति मेरा जो फर्ज है, उसे भी पूरा करना है।"
"तो तू दोबारा कभी इस तरह नोट नहीं लाएगा।"
"बोला तो, ये सब एक बार होना था, हो गया 60 लाख इकट्ठे हो जाएंगे। इनसे सारी उम्र तू सूट सिलवाती रह। गोल-गप्पे खाती रह। चाट खाती रह। खत्म नहीं होंगे। तू ऐश कर जिंदगी भर।"
"और तू क्या करेगा?"
"मैं वर्दी की जिम्मेदारी निभाऊंगा।"
"फिर तो अच्छा यही है कि तू इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान ही...।"
"नहीं। मैंने सोच लिया है कि मैं वर्दी ही पहनूंगा। शराफत से नौकरी करूंगा।"
"जो तेरी मर्जी हो तू कर। ये साठ लाख तो मेरे हैं।"
"गद्दा बनाकर नीचे बिछा ले।" कामटे ने मुंह बनाकर कहा।
"इतना पैसा घर रखना ठीक नहीं।" सुनीता बोली।
"तो?"
"मैं पैसे को बापू के पास रखवा आती हूं...।"
"उसके पास?" कामटे खीझकर बोला--- "वो खा जाएगा सारा पैसा।"
"सारा थोड़े ना खाएगा। दो-चार लाख ही खायेगा। हमें क्या फर्क पड़ेगा!"
"अगर मेरा बाप जिंदा होता तो तेरे ये विचार मेरे बाप के लिए भी होते क्या?"
"फालतू बात मत करो। ये बताओ कि देवराज चौहान चालीस लाख लेकर आएगा भी या नहीं?"
"आएगा। पक्का आएगा।"
■■■
देवराज चौहान दो घंटे बाद वहां पहुंचा।
सुनीता ये सोच-सोच कर आधी हो गई थी कि वो पैसा लेकर आएगा भी या नहीं? देवराज चौहान को आया पाकर, सुनीता दौड़ी-दौड़ी किचन में गई और ठंडा गिलास पानी का लाकर देवराज चौहान को दिया।
"भाई साहब पानी...।"
कामटे ने सुनीता को घूरा।
देवराज चौहान ने पानी का गिलास पीकर, वापस उसे थमा दिया। सुनीता की निगाह बार-बार उस ब्रीफकेस पर जा रही थी, जो देवराज चौहान के हाथ में था। बड़ा ब्रीफकेस था वो।
"भटूरे और खाएंगे भाई साहब?" सुनीता खुशी से बोली।
"नहीं।"
"अब तू जा।" कामटे बोला--- "हमें बात करने दे।"
सुनीता पास से हट गई।
देवराज चौहान ने ब्रीफकेस खोला तो भीतर पड़ी हजार की गड्डियां चमक उठीं।
"ये चालीस गड्डियां हैं। घंटे मतलब कि चालीस लाख रूपया।" देवराज चौहान ने कहा।
"कहीं से डकैती करके लाए हो?"
"नहीं...।"
"तो इतना पैसा कहां से लाए?"
"जहां मैं रहता हूं, मेरे उस ठिकाने पर पर्याप्त नकदी रहती है। कभी भी किसी से सौदेबाजी करने की जरूरत पड़ जाती है। जैसे कि अब जरूरत पड़ गई।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।
कामटे ने उसके हाथ से ब्रीफकेस लिया और बंद कर के पास ही रख दिया।
"मुझे जगमोहन के बारे में बताओ कि वो कहां पर है?" देवराज चौहान ने बेचैनी से कहा।
"वो जिंदा है। एकदम ठीक है।" कामटे ने गंभीर स्वर में कहा--- "लेकिन पहले मैं तुम्हें दावरे के बारे में बताना चाहता हूं। जगमोहन के बारे में तो हम बाद में भी बात कर सकते हैं।"
"पहले दावरे के बारे में ही क्यों?" देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।
"इस वक्त वो जहां है, वो वहां से जा भी सकता है। हो सकता है दोबारा उसकी खबर ना मिले।"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया और सोच भरे स्वर में कहा---
"दावरे के बारे में बताओ...।"
तभी सुनीता पास आकर कामटे से बोली---
"मैं बापू के पास हो आऊं...?"
"जा।" कामटे ने पीछा छुड़ाने वाले अंदाज में कहा।
"ये भी ले जाऊं?" उसने ब्रीफकेस की तरफ इशारा किया।
"ले जा...।"
सुनीता ने फौरन ब्रीफकेस उठाया और भागने के अंदाज में वहां से चली गई।
जीवराज चौहान की निगाह कामटे पर थी।
कामटे देवराज चौहान को बताने लगा कि सुधीर दावरे इस वक्त पास ही, बाहर की मुख्य सड़क पर बनी दुकान पर, चेहरे पर दाढ़ी-मूंछें लगाए मौजूद है।
देवराज चौहान ने सब सुना। सब समझा।
दरिंदगी नाच उठी चेहरे पर।
"मेरे ख्याल में पहले तुम दावरे से निपटना चाहोगे।" कामटे गंभीर स्वर में बोला।
देवराज चौहान की आंखों में वहशी भाव उछाल मारने लगे। उसने रिवाल्वर निकाली। चैक की। फिर वापस पैंट के भीतर फंसाता उठ खड़ा हुआ। कामटे की निगाह उस पर ही थी।
"तुम मुझे यहीं मिलना।" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा।
कामटे ने सिर हिला दिया।
देवराज चौहान बाहर निकलता चला गया। दोपहर के ढाई बज रहे थे।
"सुनीता।" कामटे ने गंभीर स्वर में पुकारा।
सुनीता फौरन वहां आ पहुंची।
"क्या है?"
"मैं कुछ देर में आता हूं...।"
"कहां जा रहे...।"
"देवराज चौहान दावरे को खत्म करने गया है। मैं दूर रहकर देखूंगा कि क्या होता है।"
"पास मत जाना।"
"नहीं जाऊंगा।" कामटे खुले दरवाजे से बाहर निकल गया।
"मैं बापू के घर जा रही हूं...।"
"जा...।"
"वो सारा का सारा सामान भी लेती जा रही हूं।"
"ठीक है।" कामटे खुले दरवाजे से बाहर निकल गया।
"शाम तक वापस आ जाऊंगी।" पीछे से सुनीता ने ऊंचे स्वर में कहा।
■■■
सर्दूल इस वक्त अपने एक ऐसे ठिकाने पर मौजूद था, जिसके नीचे ग्राउंड फ्लोर पर बहुत बड़ा डिपार्टमेंटल स्टोर चलता था और वो स्टोर भी उसका ही था। उसके आदमी संभालते थे। ऊपर भी डिपार्टमेंटल स्टोर जितना बड़ा हॉल था। बीच-बीच में पिलर खड़े थे। सड़क की तरफ खिड़कियां खुलती थी। जो कि अभी भी खुली हुई थी। बाहर सड़क पर से निकलने वाले वाहनों का शोर बराबर कानों में पड़ रहा था।
सर्दूल जेबों में हाथ डाले टहल रहा था वहां। उसके जूतों की आवाजें सुनाई दे रही थीं। पांच अन्य आदमी भी वहां थे जो कि उस हाल में बिखरे से, सतर्क मुद्रा में खड़े थे।
एकाएक सर्दूल ठिठका और जेब से मोबाइल निकाल कर नंबर मिलाने लगा, फिर उसने कान से लगाया। दूसरी तरफ बेल जा रही थी, फिर अकबर खान की आवाज कानों में पड़ी---
"हैलो...।"
"जगमोहन अभी तक पहुंचा नहीं। बहुत देर हो गई तुम्हें ये कहे कि, वो पहुंचने वाला होगा।"
"वो पहुंचने वाला होगा।" अकबर खान की आवाज कानों में पड़ी--- "वो, वो... ठहरो। मैं अभी राठी से फोन पर पूछता हूं कि...।"
तभी सर्दूल ने देखा कि उसके दो आदमी फुर्ती से सीढ़ियों की तरफ बढ़े हैं।
सीढ़ियों से कदमों की मध्यम सी आवाजें उठ रही थीं।
"शायद वो आ गए हैं।" सर्दूल फोन पर बोला--- "रुको जरा...।"
सर्दूल की निगाह सीढ़ियों की तरफ उठी रही।
फिर सर्दूल ने जगमोहन को देखा। राठी को देखा। हरि और बंटी को देखा। तीन अन्य आदमियों को देखा।
वे सब ऊपर आ गए थे।
"वो आ गए हैं।" सर्दूल ने कहा और फोन बंद करके जेब में डालता होंठों पर मुस्कान लिए उनकी तरफ बढ़ा।
सर्दूल ये महसूस कर लेना चाहता था कि उसकी याददाश्त से वास्तव में चली गई है?
जगमोहन को सामने पाकर सर्दूल सतर्क हो चुका था।
जगमोहन ऊपर पहुंचकर ठिठका और हर तरफ नजरें दौड़ाने लगा। वहां मौजूद लोगों को देखा। फिर उसकी निगाह अपनी तरफ जाते सर्दूल पर जा टिकी। राठी जगमोहन से कह उठा---
"ये सर्दूल साहब हैं।"
"मैं इन्हें जानता हूं?" जगमोहन ने उलझन भरे स्वर में पूछा।
"बहुत अच्छी तरह से। ये अकबर खान के बड़े हैं। तुम उनकी इज्जत करते हो।" राठी ने कहा।
तब तक सर्दूल पास आ पहुंचा था और जगमोहन की तरफ हाथ बढ़ाता कह उठा---
"मुझे खुशी है कि तुम ठीक हो गए हो जगमोहन।"
जगमोहन ने सर्दूल से हाथ मिलाते हुए कहा---
"लेकिन मैं सब कुछ भूल चुका हूं। मुझे कुछ भी याद नहीं...।"
"ये दुख की बात है। लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि तुम्हें याद आ जाएगा सब कुछ...आओ।" सर्दूल जगमोहन का हाथ पकड़े चंद कदमों पर बिछी कुर्सियों की तरफ बढ़ गया--- "मैं तो कब से तुम्हारे आने की राह देख रहा था।"
जगमोहन के साथ आने वाले राठी, हरि, बंटी और तीनों आदमी वहीं हाल के एक तरफ खड़े हो गए।
सर्दूल और जगमोहन कुर्सियों पर बैठे।
सर्दूल ने अपने दो आदमियों से कहा---
"नीचे जाओ और हर तरफ नजर रखो। कोई ऊपर ना आए...।"
दो आदमी सीढ़ियों की तरफ बढ़ गए।
"क्या लोगे जगमोहन?" सर्दूल मुस्कुरा कर बोला--- "बाहर बहुत गर्मी हो रही है। बीयर लोगे क्या?"
"मैं बीयर पीता हूं?"
"क्यों नहीं, तुम तो हमेशा बीयर पीने की ताक में रहते हो।" सर्दूल हंसा--- "भूल गए क्या?"
"सच में भूल गया...।"
वो आदमी फौरन नीचे चला गया।
जगमोहन सर्दूल को देख रहा था। जैसे याद करने की चेष्टा कर रहा हो।
"मुझे हैरानी है कि तुम देवराज चौहान से हार गए। उसने तुम्हारा बुरा हाल कर दिया। अगर मौके पर अकबर खान के आदमी ना पहुंच जाते तो, वो तुम्हारी जान ही ले लेता।" सर्दूल ने कहा।
"मुझे याद नहीं, परंतु अब वो मेरे हाथों से नहीं बचेगा।" जगमोहन ने दांत पीसकर कहा और जेब से तस्वीर निकाली--- "यही है ना देवराज चौहान?"
"हां...। तस्वीर कहां से ली?"
"अकबर खान ने दी कि मुझे कुछ याद नहीं आ रहा। शायद तस्वीर से याद आ जाए।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा--- "तुम जानते हो कि देवराज चौहान कहां मिलेगा। मैं इसे खत्म कर देना चाहता हूं...।"
"मुझे पूरा यकीन है कि इस बार तुम इसे खत्म कर दोगे। ये कमीना हम सबको मार देना चाहता है।" सर्दूल गुस्से से बोला।
"मैं इसे मार दूंगा। ये बताओ कि ये कहां मिलेगा?" जगमोहन गुर्रा उठा।
"मेरे आदमी इसे ढूंढ रहे हैं। जल्दी ढूंढ निकालेंगे इसे।" सर्दूल ने सिर हिलाकर कहा--- "तब तक तुम मेरे साथ यहीं पर रहोगे। हमें तुम्हारा ही हौसला है जगमोहन। क्योंकि एक तुम ही हो जो देवराज चौहान से निपट सकते हो।"
वो आदमी बीयर की दो ठंडी बोतलें ले आया। साथ में गिलास भी लाया था। उसने गिलास तैयार किए और दोनों को थमाकर, चार कदम दूर सतर्क मुद्रा में खड़ा हो गया।
"देवराज चौहान हमारे आदमियों को मारता जा रहा है।" सर्दूल बीयर का घूंट भरकर कह उठा--- "करकरे को मार दिया। दीपक चौला को तो रात को ही मारा। और भी कई आदमियों की जान ली। कहीं ऐसा ना हो कि वो हमें भी मार दे...।"
"मैं उसे खत्म कर दूंगा।" जगमोहन दांत किटकिटा उठा--- "वो मेरे हाथों से मरेगा।"
"बहुत जल्दी हमें देवराज चौहान की खबर मिल जाएगी। तब खत्म कर देना उसे।" सर्दूल ने कठोर स्वर में कहा--- "हम सबको ही तुमसे बहुत आशाएं हैं। अकबर खान ने बाप बनकर पाला है तुम्हें कि तुम दाएं हाथ बनकर उसकी मुसीबत दूर करते रहो। तुम्हारे होते हुए हमें देवराज चौहान हाथ भी लगा दे, ये कैसे हो सकता है जगमोहन।"
"तुम ठीक कहते हो।" जगमोहन गुर्राया--- "एक बार उस हरामी देवराज चौहान को सामने तो आने दो। मैं उसके शरीर के इतने टुकड़े करूंगा कि ये तय करना भी कठिन हो जाएगा कि कौन सा टुकड़ा कहां का है!"
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सुधीर दावरे ने लंच में कचौड़ियां खाईं थीं। मोहन दो किलोमीटर दूर स्थित मशहूर दुकान से कचौड़ियां लाया था। खाली बैठा दावरे फोन पर ही अधिकतर व्यस्त रहता था। सर्दूल बता गया था कि पुलिस से जान छूट गई है। परंतु देवराज चौहान उनकी जान के पीछे पड़ा हुआ था। सबसे परेशानी वाली बात तो ये थी कि उन्हें नहीं पता था कि देवराज चौहान कहां पर है। उसका कोई ठिकाना तो था नहीं। उसके आदमी भी नहीं थे कि बात लीक होकर बाहर आ जाए कि वो कहां होगा? परंतु अब देवराज चौहान से उन्हें राहत मिल सकती थी।
जगमोहन नाम की गोटी के दम पर जीत हासिल हो सकती थी। क्योंकि जगमोहन याददाश्त भूल चुका था। उसे अपने हिसाब से नचाकर, देवराज चौहान के खिलाफ खड़ा किया जा सकता था।
दावरे ने मोहन को देखा। वो दुकान के भीतर स्टूल पर बैठा था। फिर दावरे ने दुकान के बाहर नजर मारी। दुकान के बाहर फुटपाथ पर से लोग आ-जा रहे थे। सड़क पर दौड़ता ट्रैफिक था।
तभी उसका फोन बजा।
"हैलो।" सुधीर दावरे ने धीमे स्वर में बात की।
"दावरे!" सर्दूल की आवाज कानों में पड़ी--- "जगमोहन मेरे पास पहुंच गया है।"
"ये तो अच्छी खबर है।"
"अपने आदमियों को बोल दे कि देवराज चौहान तक ये खबर पहुंचाने की कोशिश करें कि जगमोहन हमारे पास है। आदमियों से कहो कि सबको ये खबर देते जाओ। कहीं ना कहीं से उड़ती खबर देवराज चौहान तक पहुंच जाएगी और वो जगमोहन के लिए हमसे बात करेगा। हम जगमोहन के हाथों से ही देवराज चौहान को खत्म कराएंगे।"
"बढ़िया मोहरा हमारे हाथ लग गया है।" दावरे हौले से हंसा।
"अब सब कुछ इस बात पर निर्भर है कि मोहरे का इस्तेमाल कैसे करते हैं।"
"उसकी याददाश्त सच सच में चली गई है क्या?"
"हां। मैंने उसके चेहरे के भावों को अच्छी तरह पढ़ा है। वो ड्रामा नहीं कर रहा।"
"अब करकरे और दीपक चौला की जगह कौन लेगा? उनका धंधा भी तो संभाले रखना है।"
"मेरे आदमी उनका काम संभाल लेंगे। तुम अपने आदमियों को जगमोहन के बारे में खबर करो।"
इसके साथ ही दोनों की बातचीत खत्म हो गई।
दावरे अपने आदमियों को जगमोहन के बारे में खबर देने लगा और उन्हें कहने लगा कि ये बात हर तरफ फैला दो--- ताकि किसी तरह देवराज चौहान के कानों तक ये खबर पहुंच सके।
यही वो वक्त था कि देवराज चौहान ने दुकान के भीतर कदम रखा था।
दावरे ने उसे देखा।
अगले ही पल दावरे के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा।
उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि देवराज चौहान इस तरह उसके सामने आ खड़ा होगा।
देवराज चौहान के चेहरे पर प्रतिशोध की लपटें उठ रही थीं।
सुधीर दावरे का चेहरा फक्क पड़ गया। मुंह खुला रह गया। दो पल तो उसे समझ नहीं आया कि वो क्या करे! दांत भींचे देवराज चौहान ने हाथ बढ़ाया और उसके चेहरे पर लगी दाढ़ी खींच ली।
दाढ़ी हटते ही दावरे का चेहरा चमक उठा।
वो हड़बड़ा कर खड़ा हो गया। फोन हाथ से छूट गया।
"साले-कुत्ते...।" दावरे गुर्राया--- उसके स्वर में गुस्सा भी था और मौत के भाव भी--- "तू फिर मेरे सामने आ गया? पहली बार तो तू बच गया। लेकिन अब तेरे को कुत्ते की मौत मारूंगा।"
ये सुनते ही मोहन चौंक कर स्टूल से उठ खड़ा हुआ।
दांत भींचे देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली और पैंट में फंसी रिवाल्वर निकाली।
यही वो वक्त था कि आठ कदम दूर खड़े मोहन ने स्टूल उठाकर देवराज चौहान की तरफ फेंका।
देवराज चौहान का पूरा ध्यान दावरे पर था।
रिवाल्वर का इस्तेमाल करने से पहले ही स्टूल उसके कंधे से आ लगा।
देवराज चौहान को तीव्र झटका लगा। होंठों से आह निकली।
रिवाल्वर उसके हाथ से छूट गई।
स्टूल फेंकते ही मोहन तीर की तरह दौड़ा था और देवराज चौहान के पास से निकलकर भीतर से ही दुकान का शटर फुर्ती से गिरा दिया। एकाएक वहां अंधेरा छा गया।
उसी पल मोहन वापस पलटा और देवराज चौहान पर झपट पड़ा।
स्टूल कंधे पर लगने से देवराज चौहान का सारा खेल बिगड़ गया। रिवाल्वर हाथ से छूट गई थी और कंधे का दर्द से बुरा हाल हो गया था। ऊपर से अंधेरा और मोहन उस पर झपट पड़ा था।
कैश काउंटर के पीछे स्तब्ध से खड़े दावरे ने पीछे दीवार के लगे स्विचों पर हाथ मारा।
अगले ही पल दुकान के भीतर की तीन-चार लाईटें जल उठीं।
मोहन ने देवराज चौहान को बांहों में भींच रखा था।
"ये देवराज चौहान है। छोड़ना मत इसे।" दावरे चीखा और काउंटर के पीछे से निकला। वो परेशान-डरा हुआ था। गुस्से में था। इस वक्त उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें?
हैरान था कि देवराज चौहान उस तक कैसे पहुंच गया?
दावरे ने रिवाल्वर निकाल ली। परंतु यहां चलाई गोली की आवाज बाहर के लोगों के कानों में पड़ सकती थी। वो फंस सकते थे। देवराज चौहान मोहन की पकड़ से आजाद होने को छटपटा रहा था।
दावरे ने महसूस किया कि मोहन, देवराज चौहान को ज्यादा देर नहीं संभाल पाएगा।
तभी दाहिने हाथ में दबी रिवाल्वर को नाल से पकड़ा और जोरदार चोट देवराज चौहान के सिर पर की।
देवराज चौहान पीड़ा से तड़प उठा।
दावरे ने तेजी से दूसरी चोट की सिर पर।
फिर तीसरी, चौथी, पांचवी और छठी चोट की।
देवराज चौहान का शरीर ढीला पड़ता चला गया। सिर के बालों में से बहती खून की धारा चेहरे को रंगने लगी। देवराज चौहान अब नीचे की तरफ गिरा जा रहा था। मोहन से अब संभले ना, संभल रहा था।
मोहन ने देवराज चौहान को अपनी पकड़ से आजाद कर दिया।
देवराज चौहान नीचे फर्श पर जा गिरा।
दावरे गहरी-गहरी सांसें ले रहा था।
मोहन भी तेज सांसें ले रहा था।
"देख तो हरामजादे को...।" दावरे ने अभी तक रिवाल्वर को नाल से पकड़ा हुआ था। दांत भिंचे हुए थे।
मोहन ने झुककर देवराज चौहान को चैक किया।
"ये तो बेहोश हो गया।"
"साला, कुत्ता यहां तक पहुंच गया।"
"आपने तगड़ी चोटें मारी हैं। होश आने वाला नहीं इसे।" मोहन बोला--- "मर भी सकता है।"
"मरे तो मुसीबत खत्म हो।" दावरे रिवाल्वर को जेब में रखता कह उठा।
"अब क्या करना है इसका?"
"इसे मारना है।"
"कैसे?"
"मेरी बात मान तो एक बड़ा सूटकेस ला। जिसमें इसके हाथ-पांव बांधकर डाल दे और सूट के किसी नदी वगैरह में फेंक दे।"
"अच्छा आईडिया है। सामने सड़क पार सूटकेस की दुकान है। लाऊं क्या?" मोहन बोला
"ले आ। बड़ा लाना। जिसमें ये आ जाए। साथ में इसके हाथ-पांव बांधने के लिए नाड़ा भी लेते आना।"
मोहन सिर हिलाकर आगे बढ़ा और शटर को थोड़ा सा ऊपर उठाकर नीचे से बाहर निकला और शकर पुनः नीचे गिरा दिया। दावरे अभी भी गहरी-गहरी सांसें ले रहा था। उसे यकीन नहीं आ रहा था कि देवराज चौहान पर उसने काबू पा लिया है।
"हरामजादा!" गुस्से से बड़बड़ा कर बेहोश पड़े देवराज चौहान को जोरदार ठोकर मारी।
देवराज चौहान वैसे ही पड़ा रहा।
दावरे ने जेब से फोन निकाला कि सर्दूल को देवराज चौहान के बारे में खबर दे दे दे। परंतु फिर ये सोच कर फोन जेब में रख लिया कि पूरी तरह देवराज चौहान का निपटारा करने के बाद ही, सर्दूल को खबर देगा।
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