देवराज चौहान ने पोपा की ऊपरी मंजिल के उस कमरे में प्रवेश किया तो मुस्करा पड़ा। रानी ताशा कुर्सी पर बेल्ट बांधे बैठी थी। वो भी मोहक अंदाज में मुस्करा पड़ी।

“ताशा।” देवराज चौहान आगे बढ़ा और रानी ताशा की बेल्ट खोल दी।

रानी ताशा उठी और देवराज चौहान से लिपट गई।

“मेरे देव।”

“ताशा।” देवराज चौहान ने उसे बांहों में भींच लिया।

“पोपा तुमने चलाया देव?” रानी ताशा उसकी छाती पर चूमते कह उठी।

“हां ताशा। बहुत मजा आया पोपा चलाने में।”

“ओह मेरे देव, तुम नहीं जानते मुझे कितनी खुशी हो रही है।” रानी ताशा का स्वर थरथरा उठा-“मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि मैं अपने देव के साथ वापस सदूर पर जा रही हूं, तुम्हें इस बात का भरोसा है न देव?”

“हां ताशा। मुझे पूरा भरोसा है कि हम एक साथ वापस सदूर पर जा रहे हैं।” देवराज चौहान, ताशा को बांहों में दबाए हुए था।

रानी ताशा ने सिर उठाकर देवराज चौहान को देखा।

रानी ताशा की आंखें गीली थीं।

“ये क्या ताशा तुम्हारी आंखों में आंसू?”

“खुशी के आंसू। अपने देव को वापस पा लेने के आंसू हैं। हम-हम उसी जंगल में, उसी पेड़ के नीचे जाकर बैठेंगे।”

“हां ताशा। तुम्हारी गोद में मेरा सिर होगा और तुम मेरे बाल सहला रही होओगी। कितना सुखद आनंद का वक्‍त होगा वो।”

“मैंने बहुत दुख देखे हैं।”

देवराज चौहान ने ताशा के गाल चूमे।

“जानते हो देव, मेरे लिए सबसे बड़ा दुख क्या था।”

“क्या?”

“तुम्हारा साथ छूट जाना। मैं तो पागल हो गई थी तुम्हारे बिना। उस किले में मेरा दम घुटता था। किले के हर रास्ते पर, हर मोड़ पर मैं तुम्हें ढूंढ़ा करती थी। चलते समय मुझे ऐसा लगा करता था जैसे तुम आने वाले मोड़ से अचानक प्रकट हो जाओगे और दौड़कर मुझे बांहों में भर लोगे। तुम्हें देखने को, मैं तरसा करती थी।” रानी ताशा की आंखों में आंसू आ गए-“तुम्हें तो याद भी नहीं कि हम कैसे, किस वजह से जुदा हुए थे।”

“जुदाई की बातें मत करो।”

“मैं तुम्हें जरूर बताऊंगी देव। मेरे दिल का बोझ हल्का हो जाएगा। पहले मैं सोचती थी कि तुम्हें नहीं बताऊंगी। महापंडित से कहकर तुम्हारे दिमाग का वो हिस्सा साफ करा दूंगी जहां सदूर के उस जन्म की वो बुरी घटना दर्ज है। पर मैं तुम्हारे साथ धोखा नहीं कर सकती देव। मैं तुम्हें प्यार करती हूं।

तुम्हें दिल से चाहती हूं। तुम्हें बताऊंगी कि हम कैसे जुदा हो गए थे। सब मेरा ही कसूर था। मेरी ही गलती थी। पता नहीं वो सब मेरे से कैसे हो गया। मैं-मैं कुछ भी नहीं समझ पाई।”

“तुम मुझे मिल गईं ताशा और कुछ भी नहीं चाहिए मुझे।”

“पर मैं अपने दिल का बोझ जरूर हल्का करूंगी, उस मनहूस शाम की बात बताकर। किले में तुम्हारी गोद में सिर रखकर सब कुछ कह दूंगी बुरा लगे तो उसी पल अपनी ताशा का गला दबा देना और...”

“ऐसा मत कहो।” देवराज चौहान के होंठों से निकला-“बुरे शब्द मत बोलो।”

दोनों एक-दूसरे को जकड़े खड़े रहे।

“देव। पोपा को और तेज चलाओ, मैं जल्द-से-जल्द सदूर पर पहुंचकर खुशियां मनाना चाहती हूं।”

“पोपा अपनी रफ्तार पर ही जा रहा है ताशा।” देवराज चौहान ने प्यार भरे स्वर में कहा।

“पृथ्वी पर तुमने कभी भी मुझे याद नहीं किया?”

“मुझे तुम्हारा ख्याल भी नहीं था तो याद कैसे करता। मैं तो सदूर के उस जन्म को ही भूल बैठा था। ये तो तुम पृथ्वी पर आई तो मुझे सदूर की याद आनी शुरू हुई। जब तुम्हारी याद आई तो मैं रुक नहीं सका, तुम्हारे पास आने को।”

रानी ताशा सिर उठाकर नीली आंखों से देवराज चौहान को देखने लगी।

देवराज चौहान ने उसे देखकर, उसके सिर पर हाथ फेरा।

“तुम कितने अच्छे हो देव।”

“मुझसे ज्यादा अच्छी तुम हो।” देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।

“झूठ। तुम ज्यादा अच्छे हो।” ताशा प्यार में नाराजगी दिखाकर बोली।

देवराज चौहान खिलखिलाकर हंस पड़ा फिर टकटकी बांधकर ताशा को देखने लगा।

“तुम फिर मुझे इस तरह देखकर तंग करने लगे।” ताशा ने मुंह फुलाया फिर खुद ही हंस पड़ी अगले ही पल आंखों में आंसू चमक उठे-“मुझे डर लगने लगा है कि कहीं तुम फिर से, मेरे से दूर न हो जाओ।”

“अब ऐसा कभी नहीं होगा ताशा।” देवराज चौहान ने रानी ताशा को सख्ती से अपनी बांहों में भींच लिया।

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जहां धरा का केबिन था, उसी कतार में, वैसे ही केबिन बने हुए थे। उन्हीं केबिनों में जगमोहन, मोना चौधरी, नगीना और रानी ताशा के अन्य आदमी थे। हर केबिन में एक व्यक्ति था। बबूसा और सोमारा को पोपा के नीचे वाले हिस्से में एक कमरा दिया गया धा, परंतु बबूसा ने अपने लिए एक केबिन भी रख लिया था। इस वक्‍त बबूसा और सोमारा फर्श पर फिक्स कुर्सियों पर, बेल्ट बांधे बैठे थे। अभी-अभी पोपा में जबर्दस्त कम्पन्न हुआ था।

“सदूर पर जाते तू खुश है न बबूसा।” सोमारा मुस्कराकर कह उठी।

बबूसा ने गर्दन घुमाकर सोमारा को देखा फिर मुस्कराकर बोला।

“तेरा साथ मिल गया तो खुश क्यों नहीं रहूंगा।” परंतु स्वर में गम्भीरता थी।

“तू खुश नहीं लगता। सोमाथ या धरा की चिंता है न?” सोमारा बोली।

बबूसा ने सिर हिला दिया।

“तू बोल, मैं क्या करूं, तेरे लिए तो अपनी जान भी दे दूंगी।” सोमारा ने दृढ़ स्वर में कहा।

“मैं अब सोमाथ को रास्ते से हटाऊंगा।”

“कुछ सोचा है?”

“हां। बहुत कुछ सोचा है।” बबूसा के होंठ भिंच गए-“बताऊंगा। मैंने दो बातें सोच रखी हैं, पहले तो एक बात पर काम किया जाएगा। अगर वो मामला सफल न रहा तो फिर अपने ‘चक्रव्यूह’ पर काम करूंगा।”

“क्या है तेरा चक्रव्यूह?” सोमारा ने पूछा।

“अभी चक्रव्यूह के बारे में नहीं बताऊंगा। पहले जो बात मैंने सोच रखी है, उस पर सब काम करेंगे।”

“सब?”

“हां, वो सबका ही काम है। तुम-मैं, जगमोहन, नगीना, मोना चौधरी, सब एक साथ ही इस काम को करेंगे।”

“क्या है तेरे मन में?”

“सबका साथ होगा तो बताऊंगा।” बबूसा बोला-“अगोमा से सारा सामान मिल गया था?”

“हां। उसने दो तरह के रस्से दिए हैं। दोनों ही मजबूत हैं। एक तो नायलोन का रस्सा है दूसरा दूसरी तरह का।”

“और हथियार?”

“वो भी दिए हैं एक बोरे में भरकर। सब कुछ मैंने तुम्हारे कहने के मुताबिक पोपा के पीछे वाले हिस्से में, जहां पोपा का बंद दरवाजा है, वहां रखवा दिए हैं। मैंने बोरे के भीतर झांककर नहीं देखा कि क्‍या दिया है अगोमा ने।”

“वो मैं अभी जाकर देखूंगा।”

“रस्सों का क्या करेगा?” सोमारा ने पूछा।

बबूसा मुस्करा पड़ा फिर गम्भीर होता कह उठा।

“मैं जो खेल खेलूंगा वो मौत का खेल होगा। मेरा चक्रव्यूह है ही ऐसा। परंतु अंजाम का कुछ पता नहीं कि बाद में मैं जिंदा रहता हूं या सोमाथ। जादूगरनी ने मुझे पहले ही सतर्क कर दिया है।”

“क्या सतर्क?” सोमारा के माथे पर बल पड़े।

“यही कि जो मैं करूंगा, उसका अंजाम कुछ भी हो सकता है।” बबूसा ने धीमे स्वर में कहा-“परंतु मैं अपने चक्रव्यूह को अंजाम जरूर दूंगा। सोमाथ मुझे पसंद नहीं। उसे मैं खत्म करने की पूरी चेष्टा करूंगा, वो...”

तभी दरवाजा खुला और रानी ताशा के आदमी ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा।

“पोपा पृथ्वी ग्रह से बाहर निकल आया है और अपने रास्ते पर है।” कहने के साथ ही उसने दोनों ही बेल्टें खोलीं और बाहर निकल गया।

सोमारा उठते हुए मुस्कराकर बोली।

“अब हम सदूर पहुंच जाएंगे।”

बबूसा भी कुर्सी छोड़कर पक और गम्भीर स्वर में कह उठा।

“ये यात्रा ज्यादा सुखद नहीं रहने वाली।”

“तू ऐसा क्‍यों कहता है बबूसा?”

“क्योंकि आने वाले वक्‍त का मुझे आभास है। चल अगोमा के दिए हथियार देख लें।”

दोनों कमरे से बाहर निकले और आगे बढ़ गए।

पोपा अब बिल्कुल शांत था लगता ही नहीं था कि वो बेहद तेज रफ्तार से सदूर ग्रह की तरफ बढ़ रहा है। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वे सामान्य फर्श पर चल रहे हों।

“पोपा पर सफर करना कितना अच्छा लगता है।” सोमारा बोली।

“मैं पहली बार होशोहवास में पोपा का सफर कर रहा हूं।” बबूसा ने मुस्कराकर सोमारा को देखा-“राजा देव को जब ग्रह के बाहर फेंक दिया गया था तो पोपा मुझे कभी अच्छा नहीं लगा। जम्बरा ने कई बार सैर पर जाने को कहा, पर मैं नहीं गया।”

“जानती हूं मैं।”

“जम्बरा भी राजा देव के बिना उदास था, परंतु उसने अपने काम कभी नहीं छोड़े थे।”

“तभी तो भैया (महापंडित) हर बार उसका नया जन्म कराते रहे। उसके दिमाग में पिछले जन्म की यादें ताजा रखीं।”

“हां सोमारा। महापंडित हर काम अच्छा करता है, परंतु सोमाथ का निर्माण करके उसने गलत किया।”

“क्या पता इसके पीछे भी भैया की कोई सोच हो।”

“महापंडित सोमाथ के हाथों मुझे खत्म कराने का इरादा रखता है, क्योंकि मैं हर जन्म में उसकी बहन से शादी कर लेता हूं। जबकि वो मुझे पसंद नहीं करता। सोमाथ का निर्माण महापंडित ने मेरे लिए किया है।”

“मुझे ऐसा नहीं लगता।” सोमारा गम्भीर स्वर में बोली।

“क्या मतलब?”

“ये ठीक है कि भैया तुम्हें ज्यादा पसंद नहीं करते, परंतु उन्होंने हमारे मिलने में, किसी जन्म में अड़चन नहीं डाली। इस बार भी भैया ने रानी ताशा से कहा कि मुझे अपने साथ ले जाए पृथ्वी पर। वहां बबूसा भी मिलेगा। भैया चाहते तो हमारा नया जन्म कराते, हमारे मस्तिष्क से एक-दूसरे को याद मिटा देते। परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया।”

“तुम कहना क्या चाहती हो?”

“यही कि भैया हमारे खिलाफ नहीं हैं। उन्होंने सोमाथ इसलिए नहीं बनाया कि वो तुम्हें मार दे।” सोमारा ने धीमे स्वर में कहा।

“परंतु सोमाथ मुझे मारने वाला था। तब तुम पास ही थीं।”

“वो संयोग भी हो सकता है।”

“जो भी हो, मैं सोमाथ को सबक सिखाकर रहूंगा।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा।

“पहले तो तुम ऐसे नहीं होते थे बबूसा।”

तब मेरे में राजा देव जैसी ताकत और उन जैसा दिमाग नहीं था। परंतु इस बार महापंडित ने ये दोनों चीजें मुझमें डाली हैं। मैं बहुत हद तक अब वैसे ही सोचता हूं जैसे राजा देव सोचा करते थे।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“राजा देव अपने दुश्मन को कभी नहीं छोड़ते थे। हारना उन्हें पसंद नहीं था, अब वो ही हाल मेरा है। सोमाथ मुझे मारने वाला था। और मैं ये बात भूल नहीं सकता। मुझे हिसाब बराबर करना ही होगा।”

“तुमने सोचा है बबूसा कि सोमाथ हमारी तरह का इंसान नहीं है। वो भैया के निर्माण का हिस्सा है ।”

“तभी तो वो आसानी से काबू में नहीं आ रहा।” बबूसा के होंठ भिंच गए।

“मतलब कि तुम सोमाथ के मामले में पीछे नहीं हटने वाले?”

“कभी नहीं।”

“अगर सोमाथ ने तुम्हें मार दिया तो मुझे ये जन्म तुम्हारे बिना बिताना पड़ेगा।” सोमारा गम्भीर हो गई।

“तुम उस स्थिति में किसी से शादी कर लेना।”

“क्यों कर लूं। मैं तेरे से ही शादी करूंगी, तू नहीं होगा तो नहीं करूंगी। अगले जन्म का इंतजार करूंगी।” सोमारा कह उठी।

कुछ चुप रहकर बबूसा बोला।

“अगर मुझे जोबिना मिल जाए तो मैं सोमाथ को चंद पलों में राख बना दूं।”

बातें करते दोनों आगे बढ़े जा रहे थे। मोड़ मुड़ते जा रहे थे।

“तू कोशिश कर सोमारा कि किसी तरीके जोबिना हासिल कर सको। तुम तो रानी ताशा के करीब रहती हो। जोबिना पाए लोगों से किसी तरह जोबिना हासिल कर...”

“तुम जोबिना वाले लोगों को ठीक से नहीं जानते। वो जोबिना किसी तरह भी हाथ से नहीं निकलने देते।” सोमारा ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा-“जोबिना चलाने वाले, इस बारे में बहुत पक्के होते...”

तभी सामने के मोड़ से, एक आदमी मुड़कर इधर को आया।

बबूसा ने उसे पहचाना कि ये उन दो में से एक था जो डोबू जाति में, हथियारों वाली जगह पर पहरा देते खड़े रहते थे। बबूसा मुस्कराकर बोला।

“तुम वो ही हो न, जिसने मुझे जोबिना दिखाई थी।”

“हां।” वो रुकता हुआ कह उठा।

“अब फिर मुझे जोबिना दिखाओ।”

“क्यों?”

“यूं ही, मैं देखना चाहता हूं। मुझे जोबिना बहुत अच्छी लगती है।” बबूसा पुनः मुस्कराया, जबकि वो इरादा पक्का कर चुका था कि जैसे भी हो, वो इससे जोबिना हासिल करके, सोमाथ को तुरंत राख बना देगा।

“अब मेरे पास जोबिना नहीं है। रानी ताशा सबसे जोबिना ले चुकी है।”

“ऐसा क्यों?”

“जोबिना हमें तभी दी जाती है, जब मुसीबत भरा वक्‍त हो। नहीं तो जोबिना रानी ताशा के पास ही रहती है।”

“ये बात मुझे नहीं पता था। रानी ताशा जोबिना कहां रखती है?”

“अपने कमरे में।” उस व्यक्ति ने कहा और आगे बढ़ गया।

बबूसा के चेहरे पर सोच के भाव दिखने लगे। उसने सोमारा से कहा।

“तुम जानती हो, रानी ताशा जोबिना कहां रखती है?”

“रानी ताशा के कमरे में एक धातु के बॉक्स दीवार में फिट है। उसमें रखी जाती है जोबिना।” सोमारा ने बताया।

“वो बॉक्स खुलता कैसे है?”

“बॉक्स पर बटनों वाली प्लेट लगी है। उन्हीं बटनों को दबाकर,

उसे...”

“ऐसा बॉक्स उस कमरे में पहले नहीं होता था ।” बबूसा ने सोच भरे स्वर में कहा।

“जम्बरा ने बाद में बनाया होगा।”

“ये सम्भव है। क्या तुम उस बॉक्स को खोल सकती हो?” बबूसा ने पूछा।

“उसे खोलने के लिए कई बटनों को क्रमवार दबाया जाता है। मैं उन बटनों का क्रम नहीं जानती।”

बबूसा वहीं पर, सोच-भरे अंदाज में ठिठका रहा।

“तुम राजा देव से कहकर जोबिना क्‍यों नहीं ले लेते?” सोमारा बोली।

“राजा देव मुझे कभी भी जोबिना नहीं देंगे।” बबूसा अजीब-सी मुस्कान से कह उठा-“क्योंकि वो मेरा इरादा जानते हैं कि मैं सोमाथ को खत्म करना चाहता हूं। मेरे इस इरादे में राजा देव मेरा साथ नहीं देंगे। आओ चलें सोमारा।”

दोनों आगे बढ़ गए।

“मेरे ख्याल में तो तुम्हें धरा के बारे में जरूर चिंतित होना चाहिए।” सोमारा ने कहा-“वो सदूर पहुंचकर जाने क्या करने का इरादा रखती है। वो कौन है, जिसने अपनी ताकतों के दम पर, रानी ताशा के हाथों, राजा देव को ग्रह से बाहर फिंकवा दिया था, क्योंकि धरा को वापस सदूर पर आने का अपना रास्ता तैयार करना था।”

“मैं धरा के बारे में सोमाथ से ज्यादा चिंतित हूं सोमारा। परन्तु धरा पर मेरा ‘बस’ नहीं है। वो सही कहती है कि उसके पास ताकतें हैं। मैंने राजा देव को धरा के बारे में बताना चाहा तो मेरे मुंह से वो नहीं निकला जो मैं कहना चाहता था, वो निकला जो मैंने सोचा भी नहीं था। धरा ने मुझे पहले ही कह दिया था, कि उसकी ताकतें मुझे कुछ भी नहीं बताने देंगी।”

“ओह, ऐसा तो मेरे साथ भी हुआ था।” सोमारा फौरन कह उठी-“जब मैंने नगीना-मोना चौधरी को धरा के बारे में बताना चाहा तो मेरे मुंह से भी अनचाहे शब्द निकले थे। बाद में मैंने धरा को देखा तो वो व्यंग्य भरी निगाहों से मुझे देख रही थी।”

“धरा बहुत खतरनाक है। मुस्कराते हुए जब उसका होंठ टेढ़ा होता है तो वो क्रूर-सी लगती है।”

“मुझे तो वो कई बार खतरनाक लगी। तू जब उसे डोबू जाति से बचाता फिर रहा था, तब तुझे उसके बारे में कुछ एहसास नहीं हुआ।”

“नहीं। शायद में तब उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाया होऊंगा। परंतु एक बात मुझे जरूर याद आती है कि जब डोबू जाति वाले धरा को मारने के लिए उसके पीछे थे तो तब धरा, सोलाम की पकड़ में आ गई थी। (विस्तार से जानने के लिए पढ़ें ‘बबूसा’) डोबू जाति का कोई भी योद्धा अपने शिकार को हाथ आने पर नहीं छोड़ता। परंतु तब सोलाम ने धरा को छोड़ दिया। मुझे पूरा यकीन है कि तब धरा की ताकतों ने सोलाम पर काबू पा लिया होगा, उन ताकतों ने ही सोलाम का दिमाग घुमा दिया होगा। उसके बाद सोलाम मेरे साथ भी सहयोग करने लगा और मुझे एक बार बचाया भी। क्योंकि धरा सदूर पर वापस पहुंचना चाहती थी और ये काम मेरे बिना मुमकिन नहीं था। मेरे साथ रहकर ही, वो आने वाले वक्‍त में सदूर पर जा सकती थी। अब मुझे समझ में आता है कि धरा क्‍यों मेरी सहायता करती रही राजा देव की तलाश में, क्‍यों वो सबसे कहती रही कि बबूसा सही कहता है। इस बात का दूसरों को भरोसा दिलाती रही। धरा की ताकतों को आने वाले वक्त का पूरी तरह पता था कि क्या होने वाला है, उसी तरह से धरा मेरे साथ रहकर काम करती रही, मेरा विश्वास जीता कि मैं उसे अपने साथ रखूं। मैं जरा भी नहीं पहचान पाया कि उसकी मंशा क्या...” कहते-कहते बबूसा ठिठक गया।

एक खुले रास्ते पर सामने से उसने रानी ताशा को आते देख लिया था।

सोमारा भी रुकते हुए कह उठी।

“जबसे राजा देव मिले हैं, तब से रानी ताशा की सुंदरता में निखार आ गया है।”

परंतु बबूसा की मुस्कराती निगाह, पास आ चुकी रानी ताशा पर थी।

“बधाई हो रानी ताशा।” बबूसा बोला-“हम सदूर पर लौट रहे हैं।”

“क्या पता तुम सदूर पर न पहुंच पाओ।” रानी ताशा ने शांत स्वर में कहा।

“ऐसा क्‍यों रानी ताशा?” बबूसा मुस्करा रहा था।

रानी ताशा ने सोमारा से कहा।

“बबूसा से मिलकर तू खुश है न?”

“बहुत ताशा।” सोमारा ने कहा।

“तो इसे समझा कि सोमाथ से दुश्मनी न ले। एक बार तो मेरे कहने पर सोमाथ रुक गया था, पर अब नहीं रुकेगा ।”

“लगता है सोमाथ ने आपसे शिकायत लगा दी है ।”

“तुमने उसका गला काटने की कोशिश की, डोबू जाति में।”

“वो मेरी भूल थी।”

“तो तुम्हें समझ आ गई कि तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।”

“क्योंकि मुझे नहीं पता था कि महापंडित ने दूर की सोचकर, सोमाथ के गले में ऐसी कोई रोक लगा रखी है कि अगर कोई उसका गला काटना चाहे तो उसे कामयाबी न मिले।” बबूसा ने शांत स्वर में कहा-“अगर मुझे पहले ये बात मालूम होती तो मैं उसका गला काटने को नहीं सोचता। कोई और ही कदम उठाता।"

रानी ताशा ने कठोर निगाहों से बबूसा को घूरा।

“तुम बहुत बदतमीज हो गए हो बबूसा।” रानी ताशा की आवाज में बेहद ज्यादा सख्ती थी।

“मैंने आपकी शान में कोई गलत बात नहीं की।”

“तुम्हें सोमाथ से दूर रहना चाहिए।”

बबूसा जवाब में मुस्कराता रहा।

“सोमाथ कहता है कि तुम अवश्य दोबारा उस पर हमला करोगे।” रानी ताशा ने कहा।

“वो ठीक कहता है।”

“सोमाथ का कहना है कि तुमनें डोबू जाति के हथियार पोपा में रखवाए हैं। उनका इस्तेमाल तुम सोमाथ पर जरूर करोगे।”

“डोबू जाति के हथियार तो मैंने याद के तौर पर अपने साथ लिए हैं कि शायद दोबारा पृथ्वी पर जाना न हो सके। कुछ यादें वहां की साथ ले जाऊं। सोमाथ को उन हथियारों से डरना नहीं चाहिए।” बबूसा बोला।

“तुम जानते हो कि सोमाथ कभी नहीं डरता। महापंडित ने डर उसमें डाली ही नहीं। पर अभी भी वक्‍त है बबूसा, तुम संभल जाओ और सोमाथ की तरफ से मुंह फेर लो। वरना जो भी होगा, वो तुम्हारे हक में अच्छा नहीं होगा।”

“मेरी चिंता करने का शुक्रिया रानी ताशा।”

“तो तुम नहीं मानोगे।” रानी ताशा का चेहरा कठोर हो गया।

बबूसा खामोश रहा।

“सोमारा।” रानी ताशा ने गुस्से में कहा-“तुम बबूसा को समझा सको तो समझा लेना। पर इतना जान लो कि अगर सोमाथ पर अब हमला किया गया तो वो जवाब में बबूसा को खत्म करने की चेष्टा करेगा।”

“मैं बबूसा को समझा लूंगी ताशा।”

“रानी ताशा कहो सोमारा। ताशा कहना तुम्हें शोभा नहीं देता।” बबूसा कह उठा।

“मैं तो रानी ताशा ही कहती रही परंतु इनका कहना है कि मैं इन्हें ताशा कहकर ही बुलाऊं।” सोमारा बोली।

“सोमारा मेरी सहेली, मेरी बहन जैसी है।” रानी ताशा ने कहा और आगे बढ़ने को हुई।

“रानी ताशा।” बबूसा ने फौरन कहा-“मुझे आपसे बात करनी है। कुछ कहना है।”

रानी ताशा ने ठिठककर बबूसा को देखा।

बबूसा ने सोमारा से कहा।

“तुम वहीं जाओ, जहां हम जा रहे थे। मैं अभी तुम्हारे पास, वहीं पर आता हूं।”

सोमारा ने सिर हिलाया और वहां से चली गई।

रानी ताशा की निगाह बबूसा पर थी।

“रानी ताशा।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“आपने राजा देव को ग्रह से बाहर फेंका था, भूली तो नहीं होंगी, ये बात।”

रानी ताशा के होंठ भिंच गए।

“मैं आपको दुख देने के लिए ये बात नहीं कर...”

“मैं जानती हूं कि तुम मेरे देव को ये बात याद दिलाने की चेष्टा में हो कि...”

“अवश्य। मैं ऐसा ही करने की सोच रहा था।” बबूसा ने कहा-“ये बात मेरे रुकने से भी रुकने वाली नहीं, राजा देव को अब ये बात याद आनी ही है। अगर वो, आपसे न मिल गए होते तो अब तक ये बात याद आ गई होती।”

“बबूसा।” रानी ताशा ने गम्भीर स्वर में कहा-“तब मैंने राजा देव के साथ उस जन्म में जो किया था, उसका मुझे आज भी बहुत दुख है। तुम नहीं समझोगे कि कितने पश्चाताप में...”

“मैं जानता हूं।”

“क्या?” रानी ताशा के माथे पर बल पड़े।

“आपको वास्तव में राजा देव को ग्रह से बाहर फेंके जाने का दुख था।”

“तुम्हें कैसे पता, तुमने तो कभी मेरे दुख को नहीं समझा। मुझे ही दोषी मानते रहे और...”

“तब में हकीकत से वाकिफ नहीं था।”

“कैसी हकीकत?”

“आप समझती हैं कि आपके इशारे पर धोमरा ने राजा देव को सैनिकों के साथ मिलकर ग्रह से बाहर फेंका था?”

“ये...” रानी ताशा की आवाज कांपी। आंखों में आंसू चमके-“ये ही तो हुआ था।”

“बेशक ये ही हुआ था, परंतु ये होना सच नहीं था। इस सच के पीछे असलियत छिपा...”

“तुम क्या कहना चाहते हो। तुम क्या...?”

“मैं आपको वो सच बता रहा हूं जो आप नहीं जानती मैं चाहता हूं कि आपके दिल से बोझ उतर जाए, राजा देव को सदूर से बाहर फेंकने का। मुझे कुछ दिन पहले ही पता चला है कि आपने जो किया, बेशक वो आपने किया था, परंतु उसमें आपकी सहमति शामिल नहीं थी। उस वक्‍त आपके सिर पर, अंजानी ताकतें सवार थीं, उन ताकतों ने आपको प्रभाव में लेकर आपसे ये काम कराया था और जब वो ताकतें आपके सिर से हट गईं तो आप पश्चाताप में रहने लगीं कि ये आपने क्‍या कर डाला। आपको हमेशा ये ही लगता रहा कि आपने राजा देव को ग्रह से बाहर फेंका है, जबकि हकीकत वो थी, जो मैंने आपको बताई।”

रानी ताशा की आंखों में आंसू बह निकले।

“तुम्हें कैसे पता कि ये काम मेरे से अंजानी ताकतों ने कराया था?” स्वर भर्रा उठा था।

“उन ताकतों के मालिक ने मुझे ये बात बताई।”

“ताकतों का मालिक? कौन है ताकतों का मालिक?”

“इस वक्‍त वो पोपा में सवार है।”

“कौन?”

“उसकी ताकतें अभी भी काम कर रही हैं।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“मैंने उसके बारे में राजा देव का बताने की चेष्टा की थी परंतु उन ताकतों ने मेरे मुंह से कोई बात निकलने नहीं दी। इसी तरह अब मैं आपको उसका नाम बताने की चेष्टा करूंगा तो नहीं बता सकूंगा। वो ताकतें जैसे मेरे पहरे पर मेरे साथ मौजूद रह रही हैं।”

रानी ताशा अपना आंसुओं भरा चेहरा साफ करती कह उठी।

“ये बात कहकर तुमने मेरे सिर से बोझ उतार दिया। परंतु मैं नहीं जानती कि तुमने सच कहा है या झूठ-मैं...”

“मैंने हर बात सच कही है।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला-“मैं राजा देव का सेवक हूं। अगर आपको निर्दोष होने की बात कहूंगा तो वो गलत नहीं होगी। परंतु मुझें कुछ और ही चिंता सता रही है।”

“वो क्या बबूसा?”

“राजा देव को जब ये याद आएगा कि आपके आदेश पर उन्हें ग्रह से बाहर फेंका था। तब आप पास ही मौजूद खड़ी, ठहाके लगा रही थीं तो राजा देव का क्रोध रुकने का नाम नहीं लेगा। तब राजा देव को संभालना कठिन होगा।”

“महापंडित से कहकर राजा देव के दिमाग का वो हिस्सा ही मिटा दिया जाए, जहां ये यादें दर्ज हैं।” रानी ताशा कह उठी।

“नहीं। ये मैं कभी नहीं होने दूंगा।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा।

“क्यों? इस तरह सब ठीक हो जाएगा।”

“मैं राजा देव के साथ इस तरह का धोखा नहीं कर सकता। मैं उनका सेवक हूं और इस काम में कभी शामिल नहीं होऊंगा। न ही इस काम को होने दूंगा। परंतु ऐसा वक्‍त आने पर राजा देव को आपके हक में समझाने की चेष्टा जरूर करूंगा।”

रानी ताशा की आंखें अभी भी गीली थीं।

“आज तुमने मुझे बोझ से मुक्त कर दिया बबूसा।” रानी ताशा ने आभार भरे स्वर में कहा।

बबूसा चुप रहा।

“मुझे उन ताकतों के बारे में बताओ।”

“अभी मैं चाहकर भी नहीं बता पाऊंगा मेरे मुंह से उसका नाम भी नहीं निकलेगा। परंतु सदूर तक पहुंचने पर, सब कुछ सामने आ जाएगा।” बबूसा गम्भीर था-“सदूर पर अब जाने कैसा वक्‍त आने वाला है।”

“ऐसा क्या होने वाला है?” रानी ताशा की आंखें सिकुड़ी-“आखिर तुम किसकी बात कर रहे हो?”

“उसका नाम मेरे मुंह से नहीं निकलता।”

“तुम कहो तो, अगर वो पोपा में है तो हम उस पर काबू पा सकते...”

“हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। जादूगरनी ने ऐसा ही कहा था।”

“उसका नाम बताओ।” रानी ताशा का चेहरा एकाएक सख्त होने लगा।

“धरा।” बबूसा ने नाम बताना चाहा तो उसके मुंह से निकलता चला गया-“मुझे धरा के पास जाना है, बहुत जरूरी काम याद आ गया है। मैं आपसे फिर बात करूंगा रानी ताशा।” कहने के साथ ही बबूसा आगे बढ़ता चला गया।

रानी ताशा वहीं खड़ी, उलझन भरी निगाहों से, बबूसा को जाते देखती रही।

बबूसा तेजी से आगे बढ़तें एक मोड़ पर ठिठका और गहरी-गहरी सांसें लेने लगा। उसने रानी ताशा को धरा के बारे में बताने की कोशिश की थी, परंतु पहले की ही तरह, कहना कुछ चाहा और मुंह से जबरन कुछ और ही निकल गया। वो जानता था कि इसके पीछे धरा की ताकतें हैं। धरा की ताकतें उस पर नजर रखे हुए हैं कि वो किसी को धरा के बारे में न बता दे। ये संकट भरी स्थिति थीं बबूसा के लिए। वो अपनी मनचाही बात न कर पा रहा था अजीब-सी झल्लाहट बबूसा पर सवार हो गई थी। चेहरे पर सख्ती उभरी और तेजी से वो आगे बढ़ गया। कई रास्तों को पार करने के बाद वो धरा के केबिन के सामने पहुंचा और दरवाजा धकेलते हुए भीतर प्रवेश कर गया।

सामने ही धरा बेड पर आल्थी-पाल्थी मारें बैठी, मुस्कराती हुई दरवाजे को ही देख रही थी। दोनों की नजरें मिलीं और धरा हौले से खिलखिला उठी।

फिर चेहरे पर बराबर मुस्कान ठहरी रही, निचला होंठ टेढ़ा हो गया था।

“तू मेरा पीछा क्‍यों नहीं छोड़ती?” बबूसा दांत पीसकर बोला।

“पीछा छोड़ दूं, ताकि तू सबको बता दे मेरी बातें और मुझे समस्या आ जाए।” धरा कह उठी।

“क्या समस्या आएगी तुझे?”

“देव और ताशा तो पोपा को वापस पृथ्वी पर ले जाएंगे और मेरे को बाहर निकाल देंगे। तब...”

“तेरी ताकतें क्या ऐसा होने देंगी?”

“वो बाद की बात है। झगड़ा तो खड़ा हो जाएगा। अब आराम से बैठी हूं, तब आराम से कैसे बैठ पाऊंगी। मेरी ताकतें सबका सत्यानाश कर देंगी, पर पोपा को चलाने के लिए भी तो कोई चाहिए। मैं सदूर पर कैसे पहुंचूगी। फिर तेरे को पता है कि तू देव को कुछ नहीं बता पाया तो ताशा को बता सकता है। मैं तुझे कुछ भी नहीं बताने दूंगी।”

“तू आखिर चाहती क्या है?”

धरा हंसी। जहरीली मुस्कान।

“तू जो भी है बहुत खतरनाक है।” बबूसा दांत पीसकर तेजी से आगे बढ़ा।

दो कदम ही बढ़ा होगा कि फौरन पलटा और दरवाजे पर जा खड़ा हुआ।

धरा पुनः हंसी और बोली।

“मेरा गला दबाने आ रहा था। देखा, मेरी ताकतों ने तुझे वापस धकेल दिया।” धरा बोली।

“तेरे को सब कुछ कैसे पता चल जाता है?” बबूसा हारे स्वर में कह उठा।

“मेरी ताकतें मुझे बता देती हैं।” धरा मुस्करा रही थी। निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

“इतनी जल्दी तेरे को बता देती हैं?”

“मेरी ताकतों के दिमाग के साथ, मेरा दिमाग जुड़ा हुआ है। फौरन संदेश मेरे पास पहुंच जाता है।”

“तू मेरा पीछा कब छोड़ेगी?”

“सदूर पर पहुंचकर ।” धरा ने कहा-“तब मुझे तेरे से क्या वास्ता।”

“तू है कौन?” बबूसा गम्भीर हो गया।

“सदूर पर पहुंचकर तेरे को पता चल जाएगा।”

“तूने कहा था कि जब पोपा सदूर की तरफ चल पड़ेगा। तो तू अपने बारे में बताएगी।”

“तेरे को याद है कि मैंने ऐसा कहा था।”

“हां, कहा था।”

“पर मैंने ये भी तो कहा था कि सदूर पर पहुंचकर तुझे अपने बारे में बताऊंगी।”

“अपना नाम बता दे।”

“मेरा नाम ही तो मेरी पहचान है। नाम बताया तो मेरी पहचान खुद-ब-खुद ही खुल जाएगी।”

“मेरे लिए तू पहेली बन चुकी है।”

“सदूर पर पहुंचते ही पहेली हल हो जाएगी। तेरे को, तेरी हर बात का जवाब मिल जाएगा।”

बबूसा, धरा को देखता रहा फिर गम्भीर स्वर में बोला।

“याद है तेरे को सोलाम ने पकड़ लिया था, परंतु मारा नहीं...”

“मारता कैसे।” धरा हंसी-“मेरी सहायक ताकतें उसके सिर पर सवार हो गईं। उन्होंने सोलाम के दिमाग में डाल दिया कि बबूसा मुझे पसंद करता है, तभी तो डोबू जाति के योद्धाओं से मुझे बचा रहा है। सोलाम तेरी इज्जत बहुत करता है। जब ये बात उसके दिमाग में डाली गई तो उसने मुझे छोड़ दिया।”

“मतलब कि तेरी ताकतें सोलाम की जान नहीं ले सकती थीं।” बबूसा ने सोच भरे स्वर में कहा।

“मैंने तेरे को पहले भी कहा है कि पृथ्वी पर मेरी ताकतों की संख्या दो-तीन ही है। मेरी असल ताकतें तो सदूर पर रहती हैं। फिर किसी की जान लेने से मेरा काम संवरता नहीं, क्योंकि मेरा लक्ष्य तो सदूर पर वापस पहुंचना है। मेरे सदूर तक पहुंचने के रास्ते में जो रुकावटें आ रही हैं, मेरी ताकतें उन रुकावटों को दूर कर रही हैं। उनका काम मुझे सही अवस्था में सदूर पर पहुंचाना है और मैं पहुंच भी जाऊंगी मेरे प्यारे बबूसा।” धरा हंस पड़ी। निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

“सदूर पर पहुंचकर तू क्‍या करेगी?” बबूसा ने पूछा।

“वो ही काम, जो पहले कर रही थी और अधूरा रह गया था।” धरा बराबर मुस्करा रही थीं।

“कैसा काम?”

“अभी तू कुछ नहीं जान सकेगा, मेरे मुंह से, कितनी भी कोशिश कर ले।”

“महापंडित को तेरे बारे में पता है।” बबूसा कह उठा।

“अच्छा।” धरा व्यंग्य से मुस्कराई-“क्या पता है?”

“यही कि तू सदूर पर पहुंचकर मुसीबतें खड़ी करने वाली है।”

“महापंडित को कुछ नहीं पता। वो तो तभी से खुद ही परेशान है, जब रानी ताशा ने राजा देव को सदूर ग्रह से बाहर फेंका था।”

“क्या मतलब?” बबूसा के माथे पर बल दिखने लगी।

“महापंडित की मशीनों ने उसे तभी बता दिया था कि राजा देव को ग्रह से बाहर फेंकने में रानी ताशा की कोई गलती नहीं है। रानी ताशा निर्दोष है। इससे ज्यादा मशीनें कुछ नहीं बता सकी। तभी से महापंडित इस उलझन में फंसा हुआ है कि रानी ताशा कैसे निर्दोष हो सकती हैं। जबकि वो जानता है कि मशीनें भी झूठ नहीं बोलती। महापंडित को मेरे बारे में आभास जरूर हो गया है, परंतु वो मेरी हकीकत से अंजान है अभी। सदूर पर मौजूद पूरी ताकतों ने उसे इससे ज्यादा कुछ पता ही नहीं लगने दिया। ये भी न पता लगता, परंतु अब मेरी ताकतें कमजोर हो रही हैं। उनकी ऊर्जा खत्म हो रही है।”

“ऊर्जा?”

“हां। मेरी ताकतें भी तो तभी काम करेंगी, जब उन्हें ऊर्जा मिलेगी। सदूर पर पहुंचकर उन्हें ऊर्जा दूंगी, मुझे सारे काम ठीक से संभालने हैं। सब कुछ फिर से शुरू करना होगा। बहुत भटक ली मैं।” धरा गम्भीर हो उठी।

“तुम्हारी ताकतों को ऊर्जा कैसे मिलती है?”

धरा, बबूसा को देखती रही फिर कह उठी।

“ये मेरे भीतर की बात है। रहस्य की बात है। तेरे को क्यों बताऊं?”

“तो सदूर पर पहुंचकर तेरे बारे में सबको पता चल जाएगा।? “हां, तब कोई पर्दा नहीं होगा।” धरा मुस्कराई, निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

“तब तेरे को किसी का डर नहीं होगा?”

“तब मैं क्यों डरूंगी। लोग मुझसे डरेंगे। तू अभी मेरे बारे में जानता ही क्या है बबूसा।” धरा हंस पड़ी।

“राजा देव के सामने तेरी एक चाल नहीं चलेगी सदूर पर।”

“राजा देव।” धरा मुस्कराई, निचला होंठ टेढ़ा हो गया-“तुम्हारा राजा देव तो सदूर पर मेरे सामने मच्छर की तरह होगा, जिसे मसलने का भी मन नहीं करता। ऐसे मामूली लोगों से मैं कोई वास्ता नहीं रखती। मजा तो उसे चखाना है, जिसने धोखे से मुझ पर वार किया और मुझे एक खास समय तक के लिए सदूर छोड़कर जाना पड़ा था।”

“किसकी बात कर रही हो?”

“और बातें मत कर मुझसे। मैं अभी अपने बारे में तेरे को कुछ नहीं बताना चाहती।” धरा ने तीखे स्वर में कहा।

बबूसा खड़ा, धरा को देखता रहा।

“जा अब। मैं कोई बात नहीं करूंगी।”

बबूसा गम्भीरता में डूबा, वहां से बाहर निकल आया। उसे एहसास हो चुका था कि आने वाला वक्‍त बहुत खराब होगा। धरा की सलामती कई नई मुसीबतें पैदा करने वाली है। अब वो सोचने लगा कि अगर सोमाथ के साथ धरा भी खत्म हो जाए तो सब कुछ सामान्य हो जाएगा। कोई तनाव बाकी न रहेगा।

परंतु ये होगा कैसे?

अब जबकि वो गुस्से में धरा का गला दबाने के लिए आगे बढ़ा कि तभी उसके दिमाग में विचार आया कि ऐसा नहीं करना है और वो वापस दरवाजे के पास जा पहुंचा। बबूसा जानता था कि ये बात धरा की ताकत ने ही उसके दिमाग में डाली होगी। उसकी ताकतें हमेशा ही उसकी रक्षा करने को तैयार रहती थीं। उसे पूरी सुरक्षा दे रही थीं। ऐसे में उसे खत्म कर पाना भी आसान काम नहीं था। उसकी ताकतें, उसके बारे में किसी को बताने भी नहीं दे रही थीं। उसे मार देना भी सम्भव नहीं हो रहा था।

जोबिना?

हां, इन सब बातों का हल एकमात्र जोबिना था। अगर जोबिना उसके हाथ लग जाती है तो धरा को खत्म करना कठिन नहीं होगा। इससे पहले कि धरा की ताकतें हरकत में आएं, जोबिना से धरा को राख बनाया जा सकता है। सोमाथ से भी दो पल्लों में निबटा जा सकता है। परंतु जोबिना हासिल कैसे हो? जोबिना ऐसा खतरनाक हथियार था कि रानी ताशा स्वयं उस पर अधिकार रखती थी। अपने पास रखती थी। जोबिना के गलत हाथों में पड़ जाने का मतलब बहुत खतरनाक हो सकता था।

बबूसा ठिठक गया।

सोचें चेहरे पर उभरीं नजर आ रही थीं। वो कशमकश में दिखा।

फिर आगे बढ़ा और मोड़ों को पार करता बढ़ता चला गया। रास्ते में एक-दो रानी ताशा के आदमी भी मिलें। बबूसा सीढ़ियां चढ़कर ऊपर की मंजिल पर पहुंचा और सावधानी से आगे बढ़ने लगा। चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी। बबूसा फैसला कर चुका था कि जोबिना हासिल कर सके। उसके लिए रानी ताशा और राजा देव के कमरे में जाना जरूरी था। जोबिना वहीं पर एक बंद बॉक्स में रखी हुई थी। सोमारा ने ये ही बताया था। उस बक्से को खोलने की दिक्कत अवश्य थी कि उसे खोलने के लिए, बटनों के क्रम को नहीं जानता था। लेकिन उसने कोशिश करने की ठान ली थी। अहम बात तो ये थी कि रानी ताशा के कमरे की क्या स्थिति होगी। रानी ताशा कुछ देर पहले उसे पोपा के नीचे वाले हिस्से में मिली थीं। वो पोपा का चक्कर लगाने के लिए निकली होंगी। परंतु राजा देव तो भीतर ही होंगे?

जो भी हो बबूसा रानी ताशा के कमरे के दरवाजे के बाहर पहुंचकर ठिठका। कमरे का दरवाजा था। उसने हैंडल पकड़कर भीतर धकेला तो दरवाजा खुलता चला गया।

बबूसा ने गर्दन आगे करके भीतर झांका।

पंद्रह फुट चौड़ा, पंद्रह फुट लम्बा कमरा था। एक तरफ आठ फुट के घेरे में शानदार बेड था। कमरे में टेबल, दो कुर्सियां और जरूरत का अन्य सामान मौजूद था। परंतु देवराज चौहान नहीं दिखा। चंद पल ऐसे ही बीत गए फिर बबूसा ने दबे पांव भीतर प्रवेश किया और दरवाजा आहिस्ता से बंद किया।

तभी आवाजें सुनकर बबूसा सतर्क हुआ।

जिधर बाथरूम था। आवाजें उधर से आई थीं।

बबूसा दबे पांव आगे बढ़ा और बाथरूम के दरवाजे के बाहर खड़े होकर भीतर आहटें लीं तो फौरन ही उसे एहसास हो गया कि राजा देव नहा रहे हैं। बबूसा वहां से हटा और कमरे में नजरें दौड़ाने लगा। जल्दी ही उसकी निगाह दीवार के एक हिस्से पर जा टिकी। वहां बक्से का छोटा-सा दरवाजा नजर आ रहा था उसके पास ही बटन वाली प्लेट लगी थी। वो बक्सा दीवार

के भीतर फिट हुआ था। बबूसा उसके पास जा पहुंचा। इन बटनों में कैसा क्रम डालकर लॉक खोला जाता है इस बात का एहसास था बबूसा को तो वो उसी तरह के क्रम डालकर बक्से का दरवाजा खेलने की चेष्टा करने लगा। वो जानता था कि वक्‍त कम है। राजा देव कभी भी बाथरूम से बाहर आ सकते हैं।

बबूसा को उंगलियां बहुत तेजी से बार-बार बटनों को नया क्रम दे रही थीं।

छ:-सात मिनट बाद एक खास क्रम पर ‘क्लिक’ की आवाज कानों में पड़ी।

बबूसा का दिल धड़क उठा।

उसने बक्से के दरवाजे का हैंडल पकड़कर बाहर को खींचा तो दरवाजा खुलता चला गया।

बबूसा का चेहरा खुशी से चमक उठा। उसने बक्से के भीतर झांका। जहां दो-तीन खाने बने हुए थे। एक खाने में कई सारी जोबिना (हथियार) रखी दिखी। बबूसा ने फोरन एक जोबिना बाहर निकाली और उसे चेक किया। वो सम्पूर्ण थी, उसमें सब सामान लगा हुआ था। बबूसा बक्से का दरवाजा बंद करने लगा कि ठिठक गया।

फौरन घूमकर पीछे की तरफ देखा।

देवराज चौहान बाथरूम के दरवाजे पर खड़ा उसे ही देख रहा था। वो नहाकर आया था और अंडरवियर में था। धीरे-धीरे वो अपने गीले बालों पर हाथ फेर रहा था।

दोनों की नजरें मिलीं।

बबूसा का चेहरा फक्क पड़ गया।

एकाएक देवराज चौहान मुस्कराया और आगे बढ़ता कह उठा।

“क्या कर रहे हो बबूसा?”

“चोरी कर रहा था राजा देव।” बबूसा अपने पर काबू पाता कह उठा।

“जोबिना चुरा रहे थे?”

“हां राजा देव। मांगने पर तो कोई देता नहीं, जरूरत थी इसलिए चोरी कर लेने की सोची।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मुझसे कहा होता।”

“आप भी नहीं देते।” बबूसा बोला।

देवराज चौहान पास आकर ठिठक गया।

“सोमाथ को मारने के लिए तुम्हें जोबिना चाहिए।” देवराज चौहान बोला।

“सोमाथ के साथ एक और समस्या है। जोबिना के बिना मेरा काम नहीं बनेगा।”

“मैंने तुम्हें सोमाथ से दूर रहने को कहा था।”

“ये सम्भव नहीं राजा देव। कुछ काम तो ऐसे हैं जो मुझे करने ही हैं। उनकी जरूरत मैं समझता हूं।” बबूसा गम्भीर हो गया।

“मुझे चोरी, हेराफेरी, धोखेबाजी से सख्त नफरत है। तुम्हें मेरे साथ ऐसा नहीं करना चाहिए।” देवराज चौहान बोला।

“पर मैं तो रानी ताशा के अधीन चीज की चोरी कर रहा हूं।”

“अब मैं आ गया हूं तो हर चीज मेरे अधीन है । जोबिना वापस रख दो बबूसा।” देवराज चौहान का स्वर शांत था।

“जो हुक्म राजा देव। लेकिन मुझे इसकी सख्त जरूरत है।”

“वापस रखो।”

बबूसा ने जोबिना वापस बॉक्स में रख दी।

“अब तो तुम्हारे पास जोबिना नहीं है?” देवराज चौहान ने पूछा।

“नहीं राजा देव। तलाशी ले लीजिए।”

“मुझे तुम पर भरोसा है। बॉक्स बंद करो।”

बबूसा ने बॉक्स का छल्ला बंद किया तो ‘क्लिक’ की आवाज उभरी।

“तुम्हारी आदतें बहुत बिगड़ गई हैं बबूसा।” देवराज चौहान ने सामान्य स्वर में कहा।

“राजा देव, मेरा हर काम आपके लिए होता है। सदूर के भले के लिए होता है।” बबूसा ने धीमे स्वर में कहा।

“परंतु तुम तो सोमाथ को मारने के लिए जोबिना चुरा रहे थे।”

“मैं वो ही कर रहा हूं जो मैंने जरूरी समझा।”

“सोमाथ से मुकाबला करना है तो करो, परंतु इस काम के लिए तुम्हें जोबिना नहीं मिलेगी।” देवराज चौहान मुस्कराया।

“मैं जोबिना के बिना भी सोमाथ का मुकाबला कर लूंगा।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“जोबिना तो मैं धरा...धरा को दिखाना चाहता था। वो कह रही थी कि मैं जोबिना देखना चाहती हूं।”

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।

“ये दूसरी बार हैं कि तुम मेरे सामने धरा की बात कर रहे हो। तुम धरा को ज्यादा महत्व दे रहे हो।”

बबूसा मन ही मन झल्ला उठा।

वो तो देवराज चौहान से कहने जा रहा था कि जोबिना तो मैं धरा पर इस्तेमाल करना चाहता हूं परंतु धरा की ताकतों ने फिर उसके शब्दों को किसी और तरफ मोड़ दिया था। बबूसा के चेहरे पर उखड़ापन उभरा।

“क्या हुआ?” देवराज चौहान ने उसके चेहरे पर आए भावों को देखकर पूछा।

“कुछ नहीं राजा देव। मैं कहना कुछ चाहता हूं और मुंह से कुछ और निकल रहा है।” बबूसा लम्बी सांस लेकर बोला।

“जाकर आराम करो। मुझे तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग रही। कारू के घूंट ले लो।”

बबूसा ने कुछ नहीं कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

“दोबारा जोबिना को हासिल करने की कोशिश मत करना।”

“जो हुक्म राजा देव।” बबूसा ने कहा और बाहर निकल गया। मन में एक ही सोच चल रही थी कि जोबिना हाथ लग गई थीं। अगर राजा देव कुछ पल और देरी से आते तो जोबिना लेकर कमरे से बाहर निकल गया होता।

बबूसा पोपा के रास्तों को पार करके आगे बढ़ता गया। चेहरे पर झल्लाहट सवार थी। जब सीढ़ियों के पास पहुंचा तो दूसरी तरफ देखा। उधर पोपा का चालक कक्ष था। बबूसा चालक कक्ष में जा पहुंचा। वहां किलोरा कुर्सी पर बैठा विंड शील्ड से बाहर का नजारा देख रहा था। आकाश गंगा बहुत ही सुंदर नजर आ रही थी और पोपा बाहर तेज रफ्तार से खिलौने की भांति, स्क्रीनों पर भागता दिख रहा था।

किलोरा बबूसा को देखते ही बोला।

“आओ बबूसा। तुम पोपा को उड़ाने-चलाने के बारे में जानते हो?”

“हां। मैं जानता हूं ये कैसे चलाया जाता है । इसे तैयार करने में मैं राजा देव और जम्बरा के साथ था।”

“मुझे बहुत अच्छा लगता है पोपा चलाना। आओ कुर्सी पर बैठो।” किलोरा ने कहा।

“मैं बाद में आऊंगा। अभी व्यस्त हूं। क्या तुम्हारे पास जोबिना है?”

“जोबिना? नहीं, रानी ताशा ने सबसे जोबिना वापस ले ली है, पर तुम्हें क्यों चाहिए?” किलोरा ने पूछा।

“ऐसे ही पूछ रहा था।” बबूसा ने कहा और चालक कक्ष से बाहर निकल गया।

बबूसा, पोपा के पिछले हिस्से में पहुंचा, जहां सोमारा उसके इंतजार में फर्श पर बैठी थी।

“देर लगा दी आने में, ऐसी क्या बात कर रहे थे रानी ताशा से?” सोमारा उसे देखते ही कह उठी।

बबूसा ने सब कुछ बताया और उसके पास फर्श पर ही जा बैठा।

“ओह, तुमने जोबिना पा ली थी।” सोमारा के होंठों से निकला।

“अगर राजा देव को बाथरूम से निकलने में कुछ पलों की देरी हो जाती तो मैं जोबिना लेकर निकल चुका होता। तब सोमाथ और धरा को पलों के भीतर जलाकर खाक कर देता।” बबूसा अफसोस भरे स्वर में कह उठा।

“तुम राजा देव को समझाते कि धरा को खत्म करने के लिए, जोबिना जरूरी है।”

“कैसे कहता? धरा की ताकतें हर समय मेरे आसपास ही रहती हैं। वो मुझे कुछ भी कहने नहीं देतीं। कहने की कोशिश करता हूं तो मुंह से कुछ का कुछ निकलता है वो ताकतें मेरे मुंह से निकलने वाली बात को घुमा देती हैं। धरा बहुत शैतान है, कहती है उसकी ताकतों के साथ उसका मस्तिष्क जुड़ा हुआ है। उसे सब कुछ क्षणों में मालूम हो जाता है। मैं किसी को हकीकत बताने के काबिल नहीं हूं। धरा कहती है उसका नाम ही उसकी पहचान है। जब उसका नाम जानेंगे तो उसके बारे में जान जाएंगे।”

“तो क्या धरा उसका नाम नहीं है?”

“वो तो पृथ्वी का नाम है। वो सदूर के नाम के बारे में बात करती है। जादूगरनी ने बताया था कि दो-दो, यानी कि एक शक्ल वाली दो धरा होंगी सदूर पर।”

“ये कैसे हो सकता है।”

“मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा।”

सोमारा के चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थी।

“अब तुम क्या कहने वाले हो?” सोमारा कह उठी।

“अब?” बबूसा की निगाह एक तरफ पड़े रस्सों की तरफ गई। एक पीले रंग का कुछ मोटा नायलोन का रस्सा था और दूसरा सामान्य रस्सा था और डेढ़ इंच मोटा था। वो उठकर पास पहुंचा और रस्सों को टटोलकर देखने लगा। उसकी लम्बाई चेक किया फिर तसल्ली भरे स्वर में कह उठा-“मुझे ऐसे ही रस्से चाहिए थे।”

सोमारा पास आ पहुंची।

“तुम इन रस्सों का क्‍या करोगे?”

बबूसा के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान उभरी।

“ये मोटा रस्सा मेरे सोचे ‘चक्रव्यूह’ में अहम काम करेंगे। सोमाथ को खत्म करने में मोटा रस्सा मेरी भरपूर सहायता करेगा।”

“मैं समझी नहीं, जरा खुलकर बताओ।”

“बताऊंगा। परंतु अपना चक्रव्यूह बिछाने से पहले मै सोमाथ को खत्म करने की एक खास कोशिश करने वाला हूं। ऐसे में हो सकता है कि चक्रव्यूह को बिछाने की जरूरत ही न पड़े।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला-“तुम उन सबको बुला लाओ।”

“जगमोहन, नगीना और मोना चौधरी को?”

“हां।” बबूसा हथियारों से भरा बोरा खोलता कह उठा।

“उन्हें यहां लाना ठीक रहेगा?”

“हां। ये जगह तो सबसे बढ़िया हैं हमारे काम के लिए।”

सोमारा बाहर निकल गई।

बबूसा बोरी से हथियारों को निकालकर, बाहर रखने लगा। हथियारों में तलवारें थीं, खंजर थे, लम्बे फल वाले घातक चाकू थे, चौकोर पत्ती वाले हथियार थे, कुल्हाड़ी थी छोटी-छोटी, छोटे किंतु दमदार हथौड़े थे। काफी मात्रा में हथियार थे जिन्हें देखकर बबूसा ने संतुष्टि भरे ढंग से सिर हिलाया। चेहरे पर सख्ती आ गई थी।

कुछ ही देर में सोमारा, नगीना, मोना चौधरी और जगमोहन के साथ थी। वे सब फर्श पर बैठे। सबके चेहरों पर गम्भीरता थी, बबूसा बोला।

“मैं सोमाथ पर वार करने की सोच रहा हूं। तुम सबकी सहायता चाहिए ।”

“क्या करने वाले हो तुम?” जगमोहन ने पूछा।

उस दिन सोमाथ की गर्दन काटने का प्रयास किया गया परंतु महापंडित ने उसकी गर्दन में रोक लगा रखी थी कि अगर कोई उसकी गर्दन काटना चाहे तो कट न सके। महापंडित ने बहुत सोच-समझकर बबूसा का निर्माण किया है। परंतु महापंडित इतना भी समझदार नहीं कि हम कुछ न कर सके।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“इस बार हम सफल रहेंगे, परंतु असफल भी रहे तो चिंता की बात नहीं, क्योंकि मैंने सोमाथ के लिए जबर्दस्त चक्कर से की तैयारी कर ली है।”

“कैसा चक्रव्यूह?” नगीना ने पूछा।

“जरूरत पड़ने पर मैं तुम सबको बताऊंगा, परंतु पहले सोमाथ को बेकार करने की जो कोशिश मन में है, वो करके देख लें।”

“क्या करना चाहते हो तुम?” मोना चौधरी ने पूछा।

“हम सोमाथ की टांग काटेंगे।”

“टांग।”

“हां। पैर से कुछ ऊपर से, सोमाथ की टांग काटी जाएगी।” बबूसा दांत भींचकर कह उठा-“टांग अलग करके हम अपने साथ ले आएंगे कि कटी टांग फिर न जुड़ सके। टांग कट जाने की स्थिति में, सोमाथ बेकार हो जाएगा। तब वो मुकाबला करने के काबिल ही नहीं रहेगा और ये हमारी, उस पर जीत होगी।”

“ये काम आसान नहीं है।” नगीना बोली।

“कैसे?”

“सोमाथ अपनी टांग कैसे कटने देगा-वो तो बहुत सतर्क रहता...”

“हम सब मिलकर कोशिश करेंगे।” बबूसा ने कहा-“सोमाथ इस वक्‍त नीचे वाले हिस्से में अपने कमरे में है। हम सब हथियारों के साथ वहां जाएंगे और सोमाथ को वक्‍त दिए बिना उस पर झपट पड़ेंगे। एकाएक ऐसा हो जाने से सोमाथ उलझ जाएगा, लम्बे क्षणों के लिए। उसी दौरान में कुल्हाड़ी से सोमाथ की टांग काट दूंगा। सब कुछ हमें बहुत तेजी से करना होगा कि सोमाथ को अपने को बचाने का वक्‍त न मिल सके।”

“मुझे ये काम आसान नहीं लगता।” जगमोहन कह उठा।

“कोई भी काम मुश्किल नहीं होता, अगर काम को मेहनत और लगन से किया जाए।” बबूसा ने कहा।

“तब तक सोमाथ हम लोगों की गर्दनें तोड़ देगा। उसमें बहुत ताकत है।” मोना चौधरी बोली।

“थोड़ा-सा तो खतरा उठाना ही होगा। ये छोटा-सा परंतु जबर्दस्त हमला होगा सोमाथ पर। अगर हमने ठीक से काम किया तो सोमाथ को हम हमेशा के लिए बेकार कर सकते हैं। टांग कट जाने की स्थिति में वो हारा हुआ माना जाएगा।”

सबकी निगाह बबूसा पर थी।

“इस काम में खतरा तो बहुत है बबूसा।” सोमारा कह उठी।

“सोमाथ रोबोट है। असली इंसान नहीं है ।” नगीना कह उठी।

बबूसा ने नगीना को देखा।

“बैटरी से चलता होगा।”

“बैटरी लगी है।” बबूसा ने कहा।

“तो हमें उस बैटरी को बेकार कर देना चाहिए। इससे वो बेजान हो जाएगा।” नगीना बोली।

“तुम्हारा कहना कुछ हद तक सही है।” बबूसा ने सोच भरे स्वर में कहा-“परंतु इसमें दो बातें परेशानी पैदा कर रही हैं, एक तो ये कि हम नहीं जानते सोमाथ के शरीर के किस हिस्से में बैटरी लगी है। देखने में वो हर तरफ से फिट दिखता है और इस बात का आभास ही नहीं होता कि बैटरी उसके शरीर के किस हिस्से में फिट है। दूसरी बात ये कि अगर हम बैटरी के बारे में जान लेते हैं और किसी तरह उस बैटरी को उसके शरीर से अलग कर देते हैं तो कुछ देर के लिए सोमाथ बोजान जरूर हो जाएगा परंतु रानी ताशा फौरन नई बैटरी सोमाथ को लगा देगी और वो फिर हमारे सामने होगा।”

“रानी ताशा के पास बैटरी होगी?” नगीना ने कहा।

“जरूर होगी।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा-“सोमाथ के लिए एक से ज्यादा बैटरी पोपा में मौजूद होंगी।”

“फिर तो बैटरी वाला आइडिया बेकार है।” जगमोहन कह उठा।

सोमाथ के शरीर का कोई हिस्सा जरूर नाजुक होगा, जहां वार करने से उसे भारी नुकसान हो। परंतु हम उस जगह के बारे में अंजान हैं।” मोना चौधरी कह उठी-“ये बात कहीं से पता भी नहीं चल सकती।”

“इन बातों में नहीं उलझना है हमें।” बबूसा बोला-“सोमाथ के बारे में मैंने जो सोचा है, उस पर ही काम कर लेना बेहतर होगा। शायद हमें कामयाबी मिल जाए और सोमाथ बेकार हो जाए।”

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जगमोहन के हाथ में लम्बे फल वाला चाकू था। नगीना ने दोधारी खंजर थाम रखा था। मोना चौधरी के हाथ में छोटा परंतु भारी हथौड़ा था। सोमारा के हाथ में तलवार थी और बबूसा ने कुल्हाड़ा थाम रखा था। सबके चेहरों पर कठोरता नाच रही थी। वो पोपा की नीचे की मंजिल के रास्तों को तय करते सोमाथ के कमरे की तरफ बढ़े जा रहे थे। ये अच्छा ही रहा कि रास्ते में उन्हें कोई नहीं मिला था। देर तक वे सोमाथ पर हमला करने की योजना को तैयार करते रहे थे। इनके इरादे दृढ़ थे। वो जानते थे कि सोमाथ के हाथों किसी-न-किसी की जान भी जा सकती थी।

वे पांचों सोमाथ के कमरे के सामने पहुंचे, नगीना ने दरवाजा खोला और सब एक साथ ही भीतर प्रवेश करते चले गए। सोमाथ कमरे में टहल रहा था कि सबको हथियारों के साथ भीतर आया पाकर चौंका। परंतु आगे कुछ भी न सोच सका। जगमोहन, सोमारा, नगीना और मोना चौधरी हथियारों के साथ उस पर झपट पड़े।

नगीना खंजर थामे उछली और सोमाथ की छाती से जा टकराई। एक हाथ सोमाथ की गर्दन में डाला और हाथ में दबे खंजर का वार उसकी छाती पर किया। खंजर सोमाथ की छाती में जा धंसा। तब तक जगमोहन लम्बे फल वाले चाकू को सोमाथ की कमर में धंसा चुका था। मोना चौधरी ने फुर्ती से हथौड़ा सोमाथ के सिर पर मारा तो सोमारा ने तलवार का भरपूर वार उसकी बांह पर इस तरह किया, जैसे बांह काट देना चाहती हो। परंतु ‘टक’ की आवाज के साथ तलवार बांह के आंधी भीतर पहुंचकर रुक गई। परंतु इन वारों को करके वे रुके नहीं, एक के बाद एक बार-बार सोमाथ के शरीर पर वार करने लगे। जगमोहन चाकू को बार-बार सोमाथ के शरीर के भीतर-बाहर कर रहा था। इसी तरह नगीना खंजर को बार-बार उसकी

छाती और पेट में धंसा रही थी। मोना चौधरी कभी सिर पर तो कभी कंधों पर हथौड़े बरसा रही थी। सोमारा तलवारों के वार कर रही थी। सब कुछ तेजी से जारी था।

“पागल हो तुम लोग।” सोमाथ के होंठों से निकला।

तभी बबूसा ने कुल्हाड़ी का जबर्दस्त वार सोमाथ की पिंडली पर किया।

आधी पिंडली कटने के बाद, कुल्हाड़ी ‘टक’ की आवाज के साथ थम गई।

बबूसा ने फिर जबर्दस्त वार किया।

दोबारा भी कुल्हाड़ी पिंडली को पूरा न काट सकी। ‘टक’ की आवाज उभरी और कुल्हाड़ी रुक गई। बबूसा ने एक साथ कई वार कर डाले। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कुल्हाड़ी हर बार आगे बढ़ने से रुक जाती। बबूसा के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी। वो गुर्राहट भरे स्वर में कह उठा।

“कोई फायदा नहीं। इसकी टांगों में भी रोक लगी है कि टांग कट न सके।”

“इसकी बांह में भी ऐसा ही है।” सोमारा गुस्से से कह उठी-“बांह नहीं कट रही।”

वार करते सब थम गए।

सोमाथ का शरीर जगह-जगह से उधड़ा लग रहा था। जिस्म में चाकू, खंजर, तलवारों के वारों की वजह से छेद नजर आ रहे थे। हथौड़े की चोट पड़ने की वजह से सिर पिचक गया था। दो मिनट में ही वो बुरे हाल में दिखने लगा था। जबकि सोमाथ की आंखें खुली थीं और वो सबको हरकत करते देख रहा था। नगीना का गला उसने पकड़ना चाहा तो नगीना ने फौरन उसकी छाती से एक तरफ छलांग लगा दी।

कई जगह से सोमाथ की स्किन छिलके की भांति लटक रही थी।

“तुम सफल नहीं हो सके बबूसा।” जगमोहन सोमाथ पर लम्बे चाकू से वार करता कह उठा।

“इसके शरीर में अंगों पर हर जगह रोक लगी है कि कोई भी हिस्सा कट कर अलग न हो।” बबूसा के चेहरे पर क्रोध नाच रहा था-“हम असफल रहे, जो करने की सोचा था। चलो यहां से।”

फिर वो सब देखते ही देखते हथियारों के साथ बाहर निकलते चले गए।

सोमाथ अपनी जगह पर स्थिर खड़ा था। बुरी हालत लग रही थी उसकी। पूरा शरीर टूट-फूट चुका था। उसने गर्दन घुमाकर अपनी छाती और पेट का हाल देखा। बांहें देखीं। तलवार से कट चुका स्किन का लम्बा-सा हिस्सा बांह से नीचे की तरफ लटक रहा था। फिर उसने बांह उठाकर पिचके सिर पर फेरा। एक तरफ से कनपटी भी पिचकी-सी नजर आ रहीं थी। उसके बाद उसकी निगाह पिंडली पर गई, जहां कुल्हाड़ी के वार हुए थे। पिंडली को हर तरफ से काटने की चेष्टा की गई थी, परंतु पिंडली के भीतर लगी रोक को वजह से पिंडली नहीं कट पाई थी।

“ये तो बबूसा ने बहुत गलत किया।” सोमाथ बोला-“सबको अपने साथ मिला लिया। मैं जानता था वो मुझ पर वार जरूर करेगा। बबूसा ने पक्की योजना बनाकर मुझे मार डालना चाहा, परंतु सोमाथ पर इन बातों का, इन वारों का कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन ऐसा करके बबूसा ने खुद को मुसीबत में डाल लिया है। सोमारा भी बबूसा के साथ मिल गई।” एकाएक सोमाथ के टूटे-फूटे चेहरे पर शांत-सी मुस्कान उभरी फिर आगे बढ़कर, वहां बिछे बेड पर पीठ के बल लेट गया।

आंखें खुली थीं। वो छत को देख रहा था।

वक्‍त बीतने लगा।

धीरे-धीरे उसका कटा-फटा, पिचका शरीर ठीक होने लगा। शरीर में बने छेद भरने लगे। पिचका सिर बेहद मध्यम रफ्तार से पुनः गोल होता जा रहा था। पिंडली दुरुस्त होने लगी।

इन सबको बीस मिनट लगे और वो पूरी तरह ठीक हो गया।

सोमाथ बेड से उठा। बांह की मांस रूपी झिल्ली लटक रही थी, जिसे कि उसने दूसरे हाथ से पुनः उस जगह पर रख दिया, जहां से कटकर वो लटक रही थी तो मिनट भर में वो भी ठीक हो गई।

अब सोमाथ पहले की तरह सामान्य था।

वो मुस्कराया। बेहद शांत मुस्कान। आगे बढ़कर उसने एक तरफ पड़ा यंत्र उठाया और उससे छेड़छाड़ करके रानी ताशा से सम्बंध बनाया और बात की।

“कहो सोमाथ?” यंत्र से रानी ताशा की आवाज निकलकर सोमाथ के कानों में पड़ी।

“बबूसा ने सोमारा, जगमोहन, नगीना और मोना चौधरी के साथ मिलकर मुझ पर हमला किया, मेरे कमरे में।”

“ओह! पूरी बात बताओ।”

सोमाथ ने सारा वर्णन बता देने के बाद कहा।

“आपका हुक्म था कि ऐसा कुछ हो तो मैंने उन्हें कुछ नहीं कहना है।”

“शुक्रिया सोमाथ कि तुमने मेरी बात याद रखी।” रानी ताशा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“लेकिन रानी ताशा ये हर बार तो नहीं होगा। बबूसा अभी फिर मुझ पर हमला करेगा। वो रुकने वाला नहीं है। मैं चाहता हूं कि आपकी तरफ से हमला का जवाब देने की मुझे इजाजत मिल जाए।”

“बबूसा ने जो किया, गलत किया।” रानी ताशा कठोर स्वर में यंत्र से उभरा-“आखिरी बार उसे समझाने की चेष्टा की जाएगी। तुम अब से आजाद हो कि अगर वो लोग तुम पर फिर हमला करें तो उन्हें मार सकते हो।”

“मैं यही सुनना चाहता था रानी ताशा।” कहते हुए सोमाथ के चेहरे पर मुस्कान फैल गई।

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रानी ताशा ने यंत्र बंद करके एक तरफ रखा।

देवराज चौहान प्रश्नभरी नजरों से रानी ताशा को देख रहा था।

“देव, बबूसा ने सोमाथ पर हमला किया था उसे खत्म करने के लिए।” रानी ताशा ने देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।

“इस हमले में बबूसा के साथ जगमोहन, नगीना, सोमारा और मोना चौधरी थे।”

देवराज चौहान ने हौले-से सिर हिलाया।

“सोमारा भी बबूसा के साथ मिल गई है, जबकि मैंने सोचा था कि वो उसे समझाएगी।”

“ये गलत हो रहा है।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला।

“सोमाथ से मैंने कह रखा था कि ऐसा वक्‍त आए तो तुमने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना है। परंतु मैं सोमाथ को ज्यादा देर तक रोके नहीं रख सकती। वो अपनी मर्जी करने के लिए भी आजाद है। दो बार बबूसा, सोमाथ पर जानलेवा हमला कर चुका है। मैंने सोमाथ को इजाजत दे दी है कि अब ऐसा हो तो वो जवाबी कार्यवाही कर सकता है।”

“सोमाथ तो उन सबको मार देगा।” देवराज चौहान गम्भीर था।

“सोमाथ कहता है कि बबूसा रुकने वाला नहीं। वो फिर हमला करेगा।” रानी ताशा ने कहा।

“ये सब रुकना चाहिए ताशा ।”

“मेरे देव। सोमाथ अब तक मेरे कहने पर रुका हुआ था, पर अब नहीं रुकेगा।”

“मैं नहीं चाहता कि उन सबको अपनी जान गंवानी पड़े।” देवराज चौहान ने कहा-“हमें उन सबको समझाना चाहिए।”

“मैं बबूसा को समझा चुकी हूं परंतु वो नहीं माना।” रानी ताशा ने कहा।

“वो सोमाथ को मारने की जिद कर रहा है।” देवराज चौहान बोला-“मैंने भी उसे समझाया था।”

“महापंडित ने बबूसा का जन्म कराते समय उसमें आपकी आदतें, आपकी ताकत डाली है। वो जिद तो करेगा ही। अपनी धुन का पक्का है, परंतु वो सोमाथ को जीत नहीं सकता, वो खुद भी मरेगा और अन्यों के मरने की भी वजह बनेगा।”

देवराज चौहान उठता हुआ बोला।

“हमें उन सबको सख्ती से समझाना चाहिए।”

“कोई फायदा नहीं होगा देव।” रानी ताशा गम्भीर स्वर में बोली-“बबूसा मानने वाला नहीं।”

“मेरे साथ चलो ताशा। जैसे भी हो उन्हें समझाना ही पड़ेगा।” देवराज चौहान गम्भीर दिख रहा था।

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“हम असफल रहे।” बबूसा क्रोध में सुलगता, दांत भींचकर कह उठा-“कितनी अच्छी तरह हमने सोमाथ को जा घेरा था। सब ठीक रहा। हम जो करना चाहते थे, वो ही किया, परंतु असफलता ही मिली हमें।”

इस समय वे सब पोपा के पीछे वाले हिस्से में, उसी जगह पर मौजूद थे। बबूसा कमर पर हाथ बांधे क्रोध में टहल रहा था। बाकी सब पोपा के फर्श पर बैठे थे। सब चिंतित दिख रहे थे।

“हमारी कोशिश में कोई कमी नहीं थी।” मोना चौधरी कह उठी।

“लेकिन फायदा तो कुछ न हुआ।” जगमोहन बोला।

“मैंने हथौड़े मार-मारकर उसका सिर पिचका दिया था। पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ा।” मोना चौधरी ने पुनः कहा-“पता नहीं उसे कैसे बनाया गया है कैसे वो अपने टूट-फूट चुके शरीर की फौरन रिपेयर कर लेता है।”

“महापंडित ने सोमाथ का जबर्दस्त बनाया है। सारा कमाल तो महापंडित का है, सोमाथ का नहीं।” बबूसा दांत भीचे कह उठा-“महापंडित जैसा गुणवान व्यक्ति मैंने दूसरा नहीं देखा।”

“इस वक्‍त बात ये नहीं है कि हम असफल रहे।” नगीना बोली-“बात ये है कि सोमाथ ने अब तक खुद को ठीक कर लिया होगा और हमसे बदला लेने के लिए वो कभी भी यहां आ सकता है।”

सबकी नजरें मिलीं।

“हमारे लिए सोमाथ नाम का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। हमारी कोशिशें असफल हो रही हैं।” सोमारा ने कहा-“मेरे खयाल में हमने सोमाथ पर हमला करके अपने लिए खतरा बढ़ा लिया है।”

सब गम्भीर थे।

बबूसा गुस्से में था।

“ये बात सही है कि अब सोमाथ हमें नहीं छोड़ेगा।” जगमोहन बोला।

“और हम किसी भी प्रकार से उसका मुकाबला नहीं कर सकते।” मोना चौधरी ने कहा।

“तुम उसकी टांगें क्‍यों नहीं काट पाए बबूसा?” नगीना ने पूछा।

“वहां भी रोक लगी थी। मेरी कुल्हाड़ी पिंडली के बीच में जाकर अटक जाती थी। उसकी गर्दन में भी रोक लगी है। इसका मतलब उसके शरीर के हर हिस्से में ऐसी रोक है, उसे काट नहीं सकते।”

“तुम ठीक कहते हो।” सोमारा बोली-“मेरी तलवार उसकी आधी बांह काटकर रुक जाती थी। कुछ ऐसी आवाज-सी आती थी जैसे कि तलवार सख्त चीज से टकरा रही हो।”

“अब हमें सोमाथ से अपना बचाव कैसे करना चाहिए?”

“हम सोमाथ से बचाव नहीं कर सकते भाभी।” जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा-“उसका मुकाबला नहीं कर सकते।”

“बचाव के लिए कुछ तो सोचना ही पड़ेगा।”

“बबूसा ही कुछ बताएगा।” मोना चौधरी ने बबूसा को देखा।

टहलते-टहलते बबूसा रुका और सबको देखा। बोला।

“मेरे होते चिंता मत करो। सोमाथ का मुकाबला में करूंगा। मेरे मरने के बाद ही खतरा तुम पर आएगा।”

“मरने की बात मत कर।” सोमारा कह उठी।

बबूसा के चेहरे पर सख्ती नाच रही थी।

“अब मैं अपना चक्रव्यूह बिछाऊंगा।”

“कैसा चक्रव्यूह?”

“बबूसा का चक्रव्यूह।” बबूसा के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान नाच उठी-“माना कि महापंडित गुणी इंसान है। उसने सोमाथ का इस तरह से निर्माण किया है कि उसे जीता नहीं जा सकता, परंतु इस जन्म में मेरे में भी राजा देव का दिमाग डाला है महापंडित ने। राजा देव का दिमाग जरूरत पड़ने पर रास्ता निकाल ही लेता है। मैं अपने चक्रव्यूह पर सैकड़ों बार सोच चुका हूं और वो इतना बेहतरीन है कि सोमाथ उस चक्रव्यूह में फंसकर छटपटा उठेगा और मारा जायेगा।”

सबकी नजरें मिलीं।

बबूसा की आंखों में जहरीली मुस्कान नाच रही थी।

“हमें भी बता बबूसा, चक्रव्यूह के बारे में।” सोमारा कह उठी।

“हां, अब बताने का वक्त आ गया...”

उसी पल कदमों की आहटें गूंजी।

बबूसा के शब्द मुंह में ही रह गए।

“सोमाथ आ गया।” कहते हुए नगीना उसी पल उछलकर खड़ी हो गई।

बाकी सबने भी उठने में देर न लगाई।

बबूसा का जिस्म तन गया।

तभी सामने के रास्ते से देवराज चौहान और रानी ताशा ने भीतर प्रवेश किया। सबको इस तरह खड़े पाकर दोनों ठिठक से गए। नजरें मिलती रहीं। पल आगे सरकने लगे।

“तो तुम लोगों ने सोचा, सोमाथ आ गया।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में कह उठा।

बबूसा ने फौरन अपने को शांत कर लिया था।

जबकि देवराज चौहान को देखकर नगीना की आंखों में शिकायत के भाव आ गए थे।

“कैसे हो जगमोहन?” देवराज चौहान ने पूछा।

“अच्छा हूं।”

“तुम भी ठीक हो नगीना?"

“जी।” नगीना ने केवल इतना ही कहा।

तभी रानी ताशा, सोमारा से कह उठी।

“क्यों सोमारा? तू तो कहती थी कि बबूसा को समझाएगी। पर तुम तो बबूसा का ही साथ देने लगी।”

सोमारा, रानी ताशा को खामोशी से देखती रही।

“बबूसा।” रानी ताशा बोली-“तुम लोग अभी तक इसलिए सलामत हो कि मैंने सोमाथ से कह रखा था कि अगर बबूसा गलत हरकत करे तो तुम कुछ मत कहना। सोमथ ने मेरी बात पूरी तरह मानी, वरना अब तक तुम लोग जिंदा न रहते। परंतु अब सोमाथ से मुझे कहना ही पड़ा कि अगर अब बबूसा या बाकी लोग, उसे नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करें तो वो भी आजाद है, कुछ भी करने को।”

बबूसा शांत भाव से मुस्करा पड़ा।

अब सावधान रहना सोमाथ को नुकसान पहुंचाने से पहले, सोमाथ तुम सबको उस स्थिति में मार देगा।”

“मैं जानता हूं रानी ताशा कि आपको हम सबकी बहुत चिंता है।” बबूसा ने सामान्य स्वर में कहा।

“तुम अभी भी मेरी बात को गम्भीरता से नहीं ले रहे।” रानी ताशा तीखे स्वर में कह उठी।

“आप गलत समझ रही हैं मुझे। मैं जानता हूं कि आपने जो कहा है सही कहा है।”

“समझदारी इसी में है कि तुममें से कोई भी सोमाथ पर हमला करके, अपनी मौत को न बुलाए।”

किसी ने जवाब नहीं दिया।

“सोमाथ ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है बबूसा?” रानी ताशा पुनः बोली।

“उसने मेरी जान लेने की कोशिश की थी।” पढ़ें पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा खतरे में’।

“वो मेरे हुक्म का पालन कर रहा था। मैंने उसे कहा था कि बबूसा जब सामने आए तो वो उसे मार दे।”

बबूसा शांत रहा।

तभी देवराज चौहान बबूसा के पास पहुंचकर बोला।

“मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता बबूसा।”

“जी राजा देव।” बबूसा इस वक्‍त बेहद शांत था।

“सोमाथ के पीछे मत पड़ो। वरना इस बार वो तुममें से किसी को नहीं छोड़ेगा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“ताशा, सोमाथ से कह चुकी है कि अगर अब उस पर हमला हो तो वो जो चाहे, जवाब में कर सकता है। सोमाथ को ऐसी इजाजत न देना भी गलत बात थी। उसके पास भी हमले का जवाब देने की इजाजत होनी चाहिए। तुम दो बार उस पर हमला कर चुके हो।”

“दोनों ही बार सफल नहीं हो सके राजा देव।” बबूसा मुस्कराया।

“सोमाथ का मुकाबला नहीं किया जा सकता महापंडित ने उसे बनाया ही इस तरह से है।”

“राजा देव, आप ही कहा करते थे कि कोई भी काम कठिन नहीं होता। मेहनत, लगन और धैर्य की जरूरत होती है, काम करने के लिए।”

देवराज चौहान ने बबूसा को गहरी निगाहों से देखा।

बबूसा दूसरी तरफ देखने लगा।

“तो तुम अभी भी सोमाथ से टकराने का इरादा रखते हो बबूसा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

बबूसा खामोश रहा।

“अगर मैं तुम्हें हुक्म दूं कि तुम सोमाथ की तरफ देखोगे भी नहीं तो...”

“आपका हुक्म सिर-आंखों पर राजा देव। बबूसा तो आंखें बंद करके आपके हुक्म का पालन करता रहा है और करता भी रहेगा। परंतु सोमाथ के मामले में आप मुझे हुक्म देकर, मुझ पर जुल्म नहीं करेंगे। ये सोमाथ का और मेरा मामला है।”

“राजा देव।” रानी ताशा सख्त स्वर में बोली-“ये अब पहले वाला बबूसा नहीं रहा।”

“मैं तुम्हारी जान बचाना चाहता हूं बबूसा।”

“मैं जानता हूं कि बबूसा को राजा देव की सेवा के लिए जिंदा रहना है और बबूसा जिंदा रहेगा भी।”

देवराज चौहान ने गहरी निगाहों से बबूसा को देखा।

बबूसा ने आंखें नहीं मिलाईं और मुंह फेर लिया।

“ठीक है बबूसा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“मैं तुम्हें हुक्म नहीं दूंगा।”

“मैं जानता हूं आपका दिल बहुत बड़ा है।” बबूसा मुस्करा पड़ा-“आप गलत हुक्म देकर बबूसा का दिल नहीं दुखाएंगे।”

देवराज चौहान गम्भीर नजर आ रहा था।

“ये क्या राजा देव। हम तो बबूसा को रोकने आए थे।” रानी ताशा कह उठी-“आप इसे सख्ती से हुक्म दें कि...”

“मैं, बबूसा को ऐसा कोई हुक्म नहीं दूंगा ताशा, जिससे कि बबूसा को तकलीफ हो।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा फिर नगीना, जगमोहन और मोना चौधरी को देखकर कहा-“तुम तीनों अपना ख्याल रखना। जरूरी नहीं कि बबूसा की बात मानकर तुम लोग अपने को खतरे में डाल दो। जो भी करो, सोच-समझकर करो। सोमाथ को अब कुछ भी करने की छूट मिल चुकी है।” इसके साथ ही देवराज चौहान ने सोमारा को देखकर कहा-“हो सके तो बबूसा को समझाने की कोशिश करो।”

बबूसा, मुस्कराहट के साथ देवराज चौहान को देख रहा था।

देवराज चौहान ने बबूसा को देखा तो बरबस ही, वो भी मुस्करा पड़ा।

“बबूसा हमेशा ही आपका बेहतरीन सेवक रहेगा राजा देव।” बबूसा ने आदर भरे स्वर में कहा।

“पर मैंने तुम्हें हमेशा दोस्त समझा है।” देवराज चौहान ने हाथ से बबूसा का कंधा थपथपाया।

“राजा देव।” रानी ताशा अजीब-से स्वर में कह उठी-“बबूसा को रोकने की अपेक्षा आप तो उसे बढ़ावा दे रहे हैं।”

“मैं ऐसा हुक्म नहीं देना चाहता कि जिसे पूरा करने के लिए बबूसा को कशमकश से गुजरना पड़े। बबूसा की इच्छा है, सोमाथ से टकराने की तो, ऐसी ही सही। बबूसा जो चाहता है, बेशक वो ही करे।”

“परंतु राजा देव।” रानी ताशा के होंठों से निकला-“सोमाथ इन सबको मार देगा।”

देवराज चौहान ने भरपूर निगाहों से बबूसा को देखा और कह उठा।

“बबूसा बच्चा नहीं है, जो भी...”

तभी दौड़ते कदमों की आवाज से सबका ध्यान भंग हुआ।

“राजा देव-राजा देव-आप यहां हैं क्या?” इसके साथ ही हम्बस ने घबराए अंदाज में भीतर प्रवेश किया।

“क्या हुआ?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“किलोरा आपको बुला रहा है। चालक कक्ष में खतरे का सिग्नल बजे जा रहा है।” हम्बस ने बदहवास हाल में कहा।

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“राजा देव।” किलोरा बदहवास-सा कह उठा-“मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा। मैं यहां बैठा था कि अचानक ही खतरे का सिग्नल बजने लगा। स्क्रीनों पर पोपा के आस-पास के दृश्य देखे तो सब ठीक पाया, मैंने सिग्नल बंद कर दिया कि कुछ पलों बाद वो फिर बजने लगा। तब मुझे पोपा से दूर कुछ छोटे-छोटे काले धब्बे दिखें स्क्रीन पर। मैं नहीं समझ पाया कि वो धब्बे क्‍या हैं परंतु मैंने उन धब्बों से बचने के लिए पोपा की दिशा बदल दी, लेकिन खतरे का सिग्नल फिर भी बंद नहीं हुआ मैंने कई दिशाएं बदलीं परंतु हालात वो ही रहे। सिग्नल बराबर बज रहा है। स्क्रीन पर वो धब्बे अब स्पष्ट हो चुके हैं, वो चट्टानों के बड़े-बड़े पत्थर हैं जो कि आकाशगंगा में भटक रहे हैं। लगता है आकाश गंगा में वो पत्थर काफी बड़े इलाके में फैले हैं, तभी तो दिशा के बदलने पर भी खतरे का सिग्नल बंद नहीं हो रहा। पोपा अगले दस मिनट में उन पत्थरों से टकरा जाएगा। हमारे पास वक्‍त कम है राजा देव। फौरन ही कुछ करना होगा ।” किलोरा घबराया हुआ था।

देवराज चौहान पास की कुर्सी पर बैठ चुका था।

इस वक्‍त कमरे में उनके अलावा, रानी ताशा, बबूसा और हम्बस थे।

देवराज चौहान के स्क्रीन पर नजर मारी, जहां पत्थर के टुकड़े आकाश गंगा में भटकते नजर आ रहे थे।

देवराज चौहान ने पोपा को बाईं तरफ मोड़ा। नजरें स्क्रीन पर ही रही।

कमरे में खतरे के सिग्नल की बींप-बींप बज रही थी।

पोपा मुड़कर दूसरी दिशा पकड़ चुका था लेकिन स्क्रीन पर पत्थर बराबर नजर आ रहे थे। बींप-बींप की आवाज चालक कक्ष में बराबर गूंज रही थीं। दो मिनट बीत गए, दिशा बदले परंतु कोई फर्क नहीं दिखा। तब देवराज चौहान ने बाईं तरफ की दिशा कर ली। नजरें स्क्रीन पर जा टिकीं।

“मैं सब कुछ करके देख चुका हूं राजा देव। ये पत्थर लगता है, आकाश गंगा के बहुत बड़े हिस्से में फैले हुए हैं।”

स्क्रीन पर पत्थर बराबर नजर आते रहे। बींप-बींप की आवाज बराबर वहां गूंज रही थी।

कोई फर्क न पड़ने पर देवराज चौहान पोपा की ऊंचाई बढ़ाता चला गया।

तब भी अगले दो मिनटों में कोई फर्क नहीं पड़ा तो होंठ भींचे देवराज चौहान पोपा को नीचे की तरफ ले जाने लगा। ऐसा करते ही पोपा का अगला हिस्सा नीचे की तरफ झुक गया था। देवराज चौहान और भी रफ्तार बढ़ा चुका था। पोपा ने तूफानी गति पकड़ ली थी।

“हमारे पास तीन-चार मिनट का ही वक्त है राजा देव।” किलोरा बोला-“वो पत्थर काफी बड़े लग रहे...”

उसी पल चालक कक्ष में उभरती बीप-बींप की आवाजें थम गईं।

स्क्रीन पर नजर आने वाले पत्थर धुंधले पड़ने लगे।

देवराज चौहान के चेहरे पर राहत के भाव उभरे। दस मिनट तक वो पोपा को उसी दिशा में लेता गया और स्क्रीन पर से पत्थरों के निशान गायब हो चुके थे।

किलोरा का चेहरा मुस्कान से भरने लगा था।

“मैंने-मैंने पोपा को नीचे की तरफ नहीं किया था।” किलोरा कह उठा।

दस मिनट बाद देवराज चौहान ने पोपा को सीधा किया और किलोरा से बोला।

“सब ठीक है अब। पोपा को इसी दिशा में बढ़ाते रहो और बीस मिनट बाद, इसे वापस अपनी दिशा में ले आना। तब इस बात का ध्यान रखना कि स्क्रीन पर पत्थरों के धब्बे न दिखें। मेरे ख्याल में तब तक हम पत्थरों से दूर आ चुके होंगे, परंतु तुम सतर्कता से पोपा को वापस अपनी दिशा में लेना किलोरा।”

“जी राजा देव।”

सब ठीक पाकर बबूसा चालक कक्ष से निकला और आगे बढ़ गया। अब फिर उसके मस्तिष्क में सोमाथ घूमने लगा था। धरा घूमने लगी थी। वो जानता था कि धरा से मुकाबला नहीं किया जा सकता, उसकी ताकतों ने उसे रखा हुआ था, ऐसे में उसका ध्यान सोमाथ पर केंद्रित हो गया। दिल दिमाग में दृढ़ इरादा किए बैठा था कि सोमाथ को खत्म करके रहना है और अब वो अपना चक्रव्यूह बिछाएगा सोमाथ के गिर्द और...एकाएक बबूसा की सोचें थम गईं। नजरें धरा पर जा टिकी, जो कि इस वक्‍त अपने केबिन का दरवाजा खोले खड़ी थी। दोनों की नजरें मिली तो धरा मुस्कराई, उसका निचला होंठ टेढ़ा हो गया। बबूसा के चेहरे पर गम्भीरता उभरी, वो धरा की तरफ बढ़ गया।

धरा उसी अंदाज में मुस्कराते हुए पलटी और वापस केबिन में चली गई। दरवाजा खुला रहा। बबूसा जब दरवाजे पर पहुंचा तो धरा को आल्थी-पाल्थी मारकर, बेड पर बैठे देखा।

बबूसा दरवाजे पर ही रुक गया था।

धरा उसे देखकर हंसी और निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

“क्यों?” धरा ने आंखें नचाई-“जोबिना हाथ आकर भी निकल गई मुझे मारना चाहता था जोबिना से?”

“नहीं।” बबूसा ने शांत स्वर में कहा-“सोमाथ को मारना है।”

“तू कहता है तो तेरी बात को सच मान लेती हूं। क्योंकि मेरी ताकतें किसी के मन का हाल तो जान नहीं सकतीं, वैसे तू इतना शरीफ नहीं लगता कि जोबिना तेरे पास हो और तू मुझे मारने की न सोचे।”

“ये तेरा वहम है। मैंने ऐसा नहीं सोचा।”

“तकलीफ तो तेरे को बहुत हो रही होगी कि तू मेरे बारे में देवराज चौहान। या ताशा को नहीं बता पा रहा।” धरा बच्चों की तरह खुश होती मुस्कराई तो पुनः होंठ टेढ़ा हुआ-“तकलीफ हो रही है न?”

“सच में।” बबूसा ने स्वीकारा।

“तेरे को एक और मजेदार बात बताऊं, उसे सुनकर तेरे तोते उड़ जाएंगे।” धरा ने चंचलता से आंखें नचाई।

“तोते?”

“हां! तोते उड़ाऊ तेरे?” धरा ने शरारत भरे स्वर में कहा। आंखों में शैतानी चमक तैर रही थी।

“कह दे।”

“वो तेरे को याद है न जब रानी ताशा का देवराज चौहान को फोन आता था तो देवराज चौहान होश गंवा बैठता था और ताशा-ताशा कहकर उसके पास जाने को उतावला हो जाता था। देवराज चौहान तड़पता था रानी ताशा के पास जाने के लिए। भागता था रानी ताशा से मिलने के लिए...भूला तो नहीं होगा तू?”

“क्यों भूलूंगा। सब याद है, पर तू कहना क्या चाहती है?” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला।

“वो सारा असर मेरी ताकतें ही देवराज चौहान पर डालती थीं कि वो ऐसा करे।”

“क्यों?” बबूसा के होंठों से निकला।

“क्योंकि मैं चाहती थी कि देवराज चौहान जल्द-से-जल्द रानी ताशा से मिल जाए और वापस सदूर पर जाने का मेरा रास्ता खुल जाए। देवराज चौहान ताशा के पास पहुंच जाना चाहता था, ये सब मेरी ताकतें ही तो देवराज चौहान से करा रही थीं और मेरी ताकतों ने ही देवराज चौहान को, रानी ताशा तक पहुंचाया था।”

“ओह।” बबूसा के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे-“ये सब तूने किया?”

“हां। मैंने अपनी ताकतों से कराया, ताकि देवराज चौहान और ताशा मिलें और फिर सदूर पर जाने का प्रोग्राम बनाएं और मेरे को भी साथ ले चलें। वो ही हो रहा है न?” धरा ने आंखें नचाई।

बबूसा, गम्भीर निगाहों से धरा को देखता कह उठा।

“बहुत गलत किया तूने।”

“मैं ऐसे काम ही करती हूं। अब तेरा असली तोता उड़ाने जा रही हूं, उड़ाऊं क्या?” धरा ने आंखें नचाईं।

“असली तोता?” बबूसा के होंठों से निकला। उसकी आंखें सिकुड़ी।

“उड़ाऊं के, रहने दूं?”

“उड़ा...” बबूसा एकाएक सतर्क-सा दिखने लगा, जैसे बम फटने वाला हो।

“देवराज चौहान को रानी ताशा से कोई प्यार-व्यार नहीं है। न ही वो रानी ताशा का दीवाना है।” धरा हाथ नचाते, जहरीली मुस्कान के साथ कह उठी-“देवराज चौहान को तो मेरी ताकतों ने, रानी ताशा का दीवाना बना रखा है।”

“क्या?” बबूसा का मुंह हैरत से खुला रह गया।

“उड़ गया न तोता?” धरा हंस पड़ी। निचला होंठ टेढ़ा दिखने लगा।

“ये-ये तुमने-ऐसा क्‍यों किया?” बबूसा के होंठों से निकला।

“ऐसा न करती तो क्या करती, करना पड़ा। मेरी ताकतों ने मुझे पहले ही बता दिया था कि देवराज चौहान, अपनी पत्नी नगीना का साथ नहीं छोड़ने वाला। सब कुछ याद आने पर भी वो रानी ताशा को स्वीकार नहीं करेगा कि इस जन्म में उसकी पत्नी नगीना है और रानी ताशा की बातें तो उसी जन्म में खत्म हो गई थीं। मतलब कि देवराज चौहान और रानी ताशा आपस में नहीं मिलते, जबकि रानी ताशा का इरादा दृढ़ था कि वो राजा देव को सदूर पर वापस लेकर ही जाएगी। ऐसे में कई तरह के झगड़े उठ जाते और मैं कैसे सदूर पर जाती। मेरा वापस सदूर पर पहुंचना बहुत जरूरी है। तब मैंने अपनी ताकतों को हुक्म दिया कि वो देवराज चौहान को रानी ताशा का दीवाना बना दें, ताकि वे सुख-शांति से सदूर पहुंच जाएं। और ऐसा ही किया मेरी ताकतों ने। देख ले, पोपा अब सदूर की तरफ उड़ा जा रहा है।”

बबूसा ठगा-सा धरा को देखने लगा। मस्तिष्क में तूफान खड़ा ही गया था।

धरा उसे देखते मुस्करा रही थी। निचला होंठ टेढ़ा हो गया था।

“ये तूने बहुत गलत किया।”

“बोला तो, मैं ऐसे काम ही करती हूं।” धरा ने आंखें नचाई-“मुझे किसी बात से कुछ भी वास्ता नहीं। मेरा मकसद तो वापस सदूर पर पहुंचना है, इसी वास्ते मैंने ये सब किया। मेरी ताकतें, मेरी इच्छा जरूर पूरी करती हैं। देवराज चौहान इस वक्‍त अपने ‘बस’ में नहीं है। मेरी ताकतों के बस में है। मेरी ताकतें उसे नचा रही हैं और वो ताशा-ताशा करता फिर रहा है। रानी ताशा भी बहुत खुश है कि उसे देव वापस मिल गया है, पर ऐसा होने वाला नहीं।”

“क्या मतलब?” बबूसा के माथे पर बल पड़े।

“सदूर पर पहुंचकर मेरी ताकतें देवराज चौहान को आजाद कर देंगी। ऐसा होते ही देवराज चौहान रानी ताशा का साथ छोड़कर, नगीना के पास पहुंच जाएगा और रानी ताशा को ये बात कैसे पसंद आएगी कि राजा देव सदूर में ही किसी और औरत के साथ रहे। आगे तू समझ ही सकता है कि रानी ताशा किस हद तक जा सकती है।” धरा हंस पड़ी।

बबूसा की हालत अजीब-सी होने लगी। आने वाला वक्त जैसे उसकी आंखों के सामने नाचने लगा। वो धरा को देख रहा था जो कि मुस्कराए जा रही थी। निचला होंठ टेढ़ा हुआ पड़ा था।

“क्या हुआ बबूसा?” धरा ने पुनः आंखें नचाई।

“अ-अगर ऐसा हुआ तो रानी ताशा सदूर पर तूफान खड़ा कर देगी। वो राजा देव को दिल से चाहती हैं।”

“पर देवराज चौहान तो रानी ताशा के नहीं चाहता। इस समय मेरी ताकतों ने देवराज चौहान का दिमाग पलटा हुआ है और वो रानी ताशा को चाह रहा है। मेरी ताकतें देवराज चौहान के सिर से हटी नहीं कि देवराज चौहान ने रानी ताशा को छोड़ देना है।”

“ओह। ये तो तुमने बहुत बड़ा अनर्थ कर डाला।” बबूसा का सिर घूमने लगा।

“मैंने अनर्थ का वक्‍त आगे सरकाया है।” धरा ने शांत मुस्कान के साथ कहा-“ये झगड़ा पृथ्वी पर ही खड़ा हो जाना था, पर मेरी ताकतों ने देवराज चौहान का दिमाग घुमाकर, झगड़े का समय आगे सरका दिया कि जब तक मैं सदूर पर नहीं पहुंच जाती, तब तक सब शांत रहें, उसके बाद जो भी होता रहे, मेरी बला से। देवराज चौहान तब तक ही रानी ताशा का दीवाना है जब तक पोपा सदूर पर नहीं पहुंच जाता, उसके बाद मेरी ताकतें देवराज चौहान के मस्तिष्क के आजाद कर देंगी। तब जो भी देवराज चौहान के मन में आए, वो ही करे। मुझे क्या, मैं तो सदूर पर वापस पहुंच गई न।”

“तूने तो मेरे लिए एक नई मुसीबत खड़ी कर दी ।” बबूसा चिंतित स्वर में कह उठा।

“सदूर पर तो पहुंच लेने दे मुझे, तब देखना मेरे रंग।” धरा की मुस्कान के साथ निचला होंठ टेढ़ा हो गया-“अभी तूने मेरा रूप देखा ही कहां है, मैं अभी पृथ्वी वाली धरा के रूप में हूं।”

“तेरा रूप अलग है कोई?”

“मेरा असली रूप अलग है, पर धरा जैसी ही हूं मैं। धरा, मेरे असली रूप का ही रूप है।” धरा हंस पड़ी-“कितना मजा आ रहा है मुझे। मैं सदूर पर वापस जा रही हूं सैकड़ों बरसों के बाद। खुशी से मैं पागल हो रही हूं। मेरी ताकतें मेरा इंतजार कर रही हैं कि मैं उनके लिए ऊर्जा का जल्द-से-जल्द इंतजाम करूं और वो फिर से जवान हो जाएं।”

“अब तू अपने बारे में बता दे।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला।

“थोड़ा इंतजार कर। मुझे सदूर पर पहुंच लेने दे। तू क्या सब जान जाएंगे कि मैं वापस आ गई हूं। एक बार फिर मैं सदूर पर छा जाऊंगी। मेरी हुकूमत फिर से कायम हो जाएगी। हर तरफ मेरा ही नाम होगा।” मुस्कराते हुए धरा का निचला होंठ टेढ़ा हो गया। वो शैतान जैसी दिखने लगी-“सच में तेरी मुसीबतें तो बढ़ती जा रही हैं बबूसा। पहले तू देवराज चौहान और रानी ताशा को मेरी बातें नहीं बता पा रहा था अब तू चाहेगा कि ये बात जगमोहन, नगीना, मोना चौधरी को बताए, पर मेरी ताकतें तुझे ऐसा नहीं करने देंगी। ये भी तू जानता ही है, पर सोमारा से बात करके तू अपना दिल हल्का कर सकता है, सोमारा भी तेरी तरह, मेरी ताकतों के काबू में है।” हंस पड़ी धरा।

बबूसा गम्भीर निगाहों से, धरा को हंसते देखता रहा।

“जा, मेरी बातों से अब तेरा दिल लगा रहेगा।” हंसी रोककर धरा ने कहा, चेहरे पर शैतानी चमक थी-“तेरी नींद तो हराम हो गई बबूसा। क्या करूं, मैं हूं ही ऐसी, किसी को चैन से रहने ही नहीं देती। ये ही तो मेरी खासियत है।”

बबूसा ने धरा को देखा फिर पलटकर बाहर निकलता चला गया।

“वाह खुंबरी। तूने तो पृथ्वी से ही अपना खेल खेलना शुरू कर दिया था। सदूर पर तो तू कमाल कर देगी। वो तो तेरा घर है, वहां तेरी ताकतें बढ़ जाएंगी। इस बार डुमरा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा तेरा।” धरा अपने से ही बातें करने लगी-“डुमरा को तो ऐसा सबक सिखाऊंगी कि श्राप देना भूल जाएगा। मुझे श्राप देकर पांच सौ सालों के लिए, सदूर से बाहर रहने को मजबूर कर दिया था। धोखे से उसने मुझे अपने चंगुल में फांस लिया था, मैं उसकी बातों के जाल में फंस गई थी, पर अब-अब तो खुंबरी डुमरा को नाच नचाएगी पांच सौ सालों का गिन-गिनकर बदला लूंगी डुमरा से।”

धरा एकाएक गुर्रा उठी, चेहरा सुलगता दिखने लगा। आंखों में शैतानी चमक भर आई थी और निचला होंठ टेढ़ा हो गया था-“मैं आ रही हूं डुमरा। खुंबरी आ रही है वापस।”

बबूसा, धरा के केबिन से निकलकर, पोपा के पीछे वाले हिस्से की तरफ बढ़ गया। धरा की बातों ने उसके मस्तिष्क में हलचल मचा दी थी। राजा देव अपनी मर्जी से रानी ताशा के दीवाने नहीं हुए, बल्कि धरा की ताकतों ने राजा देव का दिमाग घुमाकर, उन्हें रानी ताशा का दीवाना बना रखा है और सदूर पर पहुंचते ही राजा देव के मस्तिष्क से धरा की ताकतें हट जाएंगी और राजा देव को जैसे होश आ जाएगा। वो रानी ताशा से दूर हो जाएंगे? वो अपनी पृथ्वी वाली पत्नी नगीना के पास चले जाएंगे। ये बात रानी ताशा कभी भी बर्दाश्त नहीं करेगी। वो राजा देव से सच्चा प्यार करती है और राजा देव को पाने के लिए कुछ भी कर सकती है। बबूसा को समझ नहीं आ रहा था कि सदूर पर पहुंचकर क्या-क्या होने वाला है। धरा जाने कौन है उसकी बातें खतरे का संकेत दे रही हैं और अब नई बात सामने आई है ताकतें हट जाएंगी। क्योंकि ताकतों का असली मकसद तो धरा को सदूर पर पहुंचना है। बबूसा सोमारा को सब कुछ बताना चाहता था। बहुत बैचेन हो रहा था। वो नए हालातों के बारे में सुनकर। धरा ने बहुत बड़ी गड़बड़ कर दी थी। जब रानी ताशा को पता चलेगा कि राजा देव उसे प्यार नहीं करते तो रानी ताशा जाने क्या कर... तभी चलते-चलते एक मोड़ पर बबूसा किसी से टकरा गया तो फौरन अपनी सोचों से बाहर निकला तो देखा कि वो सोमाथ से टकराया है। सामने सोमाथ खड़ा उसे शांत निगाहों से देख रहा था। सोमाथ को देखते ही बबूसा के मस्तिष्क से धरा निकल गई। बातें निकल गईं। बबूसा का चेहरा कठोरता से भरता चला गया। आंखों में खतरनाक भाव मचल उठे।

“पता चला है कि रानी ताशा ने तुझे छूट दे दी है कि अब अगर हम तुम पर हमला करें तो तू बेशक हमें मार दे।” बबूसा कह उठा।

“हां।” सोमाथ बेहद शांत था।

“इस बार मेरे हाथों से बच के दिखाना सोमाथ।” बबूसा गुर्रा उठा-“मैं तेरे को इतना मौका ही नहीं दूंगा कि तू हम पर वार कर सके।” कहने के साथ ही बबूसा आगे बढ़ता चला गया।

सोमाथ ने गर्दन घुमाई और शांत निगाहों से बबूसा को जाते देखता रहा, फिर बड़बड़ा उठा।

‘ये मेरे हाथों से जरूर मरेगा।’

समाप्त