एक बिस्तर में तीन
बक्से वाले बिस्तर के बहुत-से फ़ायदे होते हैं। उसमें कपड़े, फ़ालतू बिछौने, पुरानी फ़ाइलें, अतीत के विजय स्मृति-चिह्न, शराब की पेटियाँ और यहाँ तक कि मल-पात्र, एनिमा और दूर के रिश्तेदारों के फ़्रेम में जड़े फ़ोटो रखे जा सकते हैं। पुराने होटल रॉयल के अधिकतर कमरों में स्प्रिंग वाले पलंग थे और हनीमून पर आने वाले नव-दंपति शिकायत करते थे कि जोश में भरकर प्यार करते समय, पलंग चरमराते थे और बहुत आवाज़ करते थे। प्रेमपूर्ण आह्लादित आहें और कराहने की आवाज़ें, चरमराते बिस्तर के शोर के साथ मेल नहीं खाती थीं। इसलिए होटल के मालिक नंदू ने कमरा नंबर 14 से शुरू करते हुए कुछ कमरों में बक्से वाले बिस्तर लगवा दिए थे।
कमरा नंबर 14 क्यों? वैसे तो इसका आरंभ कमरा नंबर 13 से होना चाहिए था, किंतु होटल के मेहमानों के मन में प्रायः तेरह की संख्या को लेकर संदेह रहता है, इसलिए यह तय किया गया कि कमरा नंबर 12 के बाद सीधा नंबर 14 पर पहुँचा जाए। कमरा नंबर 14 वास्तव में, नंबर 13 ही था किंतु उसका नाम, कमरा नंबर 14 था! आप भी चाहें तो अख़बार में नोटिस देकर अपना नाम बदल सकते हैं। परंतु नंदू औपचारिकताओं में नहीं पड़ता था। वह तो अपने होटल ‘रॉयल’ के नाम के अंत में अंग्रेज़ी का ‘ई’ जोड़कर उसे फ़्रांसीसी पुट भी देना चाहता था।
ख़ैर, बात जब कमरों के साजो-सामान में नवीनता लाने की हुई तो नंदू को सबसे पहले कमरा नंबर 14 का विचार आया क्योंकि नया नाम और नंबर देते समय उस कमरे में कुछ परिवर्तन पहले ही किए जा चुके थे।
बक्से वाला बिस्तर बहुत सफल सिद्ध हुआ। वह अधिक लंबा-चौड़ा था और दो लोग उस पर आराम-से सो सकते थे। उसे लेकर हनीमून पर आने वाले दंपतियों, विवाहित या अविवाहित, पुराने या नए प्रेमी जोड़ों को भी कोई शिकायत नहीं थी। यहाँ तक कि अकेले रहने वाले लोग भी बक्से वाले बिस्तर की प्रशंसा करते थे। उसके ऊपर दो ठोस, किंतु नर्म डनलप के गद्दे रखे थे और नंदू यह जाँच करने के लिए कि किसी नाज़ुक राजकुमारी को गद्दे चुभते तो नहीं हैं, उसके नीचे कभी-कभी मटर का दाना रख देता था किंतु किसी ने उसकी भी शिकायत नहीं की।
जून के अंत में मुंबई से आए एक नव-विवाहित दंपति ने कमरा नंबर 14 किराए पर लिया। वे थके हुए थे और जल्दी सोने चले गए। वे दोनों कुल्लू और शिमला घूमकर आए थे, इसलिए चुंबन और प्रेम-भरी बातों की आवश्यकता लगभग समाप्त हो गई थी। उस समय वे सिर्फ़ सोना चाहते थे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। वह बिस्तर उन्हें परेशान कर रहा था। वह उतना सपाट नहीं था जितना प्रायः होता है। वह एक ओर से थोड़ा झुका हुआ था और लड़की बार-बार नीचे फिसल रही थी।
‘यह ठीक से बंद नहीं हुआ है,’ लड़के ने कहा। वह देखने के लिए उठा कि बिस्तर में क्या गड़बड़ है। उसने चादर हटाई और बक्से का ढक्कन खोला। एक आकर्षक युवक बक्से के अंदर नग्नावस्था में मृत पड़ा, अपनी निर्जीव आँखों से उस नव-दंपति को घूर रहा था।
जैसा कि स्वाभाविक था, उन्होंने शोर मचाया। उनकी शिकायत थी कि बक्से में पड़ी लाश, उनके होटल पैकेज का हिस्सा नहीं है। नंदू को यह बात माननी पड़ी। दंपति को दूसरा कमरा दे दिया गया, जिसमें पुरानी तरह का स्प्रिंग वाला बिस्तर लगा था। इस कहानी में अपनी भूमिका निभा चुकने के बाद, वे दोनों सामान्य वैवाहिक जीवन बिताने लगे।
अपने सबसे बढ़िया बक्से वाले बिस्तर में एक युवक की लाश देखकर नंदू के पास आधी रात में पुलिस को सूचित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। कुछ देर बाद दो उनींदे सिपाही और एक चिड़चिड़ा इंस्पेक्टर मौक़े पर पहुँच गए। उनके साथ एक स्थानीय चिकित्सक भी आया था, जिसने इस बात की पुष्टि कर दी कि बिस्तर के अंदर पड़ा युवक मर चुका था। परंतु वह कौन था और बिस्तर के अंदर कैसे पहुँचा?
मैंने ये प्रश्न नंदू से अगले दिन सुबह नाश्ते के समय किया। लाश को जाँच के लिए सरकारी अस्पताल के मुर्दाघर में रखा गया था।
‘क्या उसके शरीर पर चोट के निशान थे?’ मैंने पूछा। ‘क्या उसे गोली या चाकू से अथवा गला घोंटकर मारा गया था या फिर पीट-पीटकर उसकी हत्या की गई थी?’
‘कुछ भी नहीं,’ नंदू ने बताया। ‘उसके शरीर पर हिंसा का कोई निशान नहीं था। वह अत्यंत शांत और निश्चिंत अवस्था में था।’
‘बक्से वाले बिस्तर के लिए अच्छा विज्ञापन है, किंतु वह प्राकृतिक मृत्यु का आनंद लेने स्वयं तो बिस्तर के बक्से में घुसा नहीं होगा। उसे किसी ने वहाँ डाला होगा।’
‘उसके दो साथी थे,’ नंदू ने कहा। ‘वे तीनों हिसार के रहने वाले थे। लगता था कि उन्होंने हाल में कॉलेज पास किया था और वे शायद मौज-मस्ती के लिए निकले थे।’
‘तो, बाक़ी दोनों कहाँ हैं?’
‘वे दोनों कल होटल छोड़कर चले गए। हमने सोचा कि तीनों चले गए होंगे। आजकल पर्यटकों का मौसम है तो लोगों का आना-जाना लगा रहता है।’
‘हो सकता है उनमें झगड़ा हुआ हो और उस दौरान उसकी मौत हो गई हो। उन दोनों ने उसकी लाश को बक्से वाले बिस्तर में बंद किया और ख़ुद जल्दी-से होटल छोड़कर निकल गए। क्या उस मृतक के कपड़े मिले?’
‘हाँ, उसकी कपड़ों की पोटली उसकी लाश के पास ही बंधी पड़ी थी।’
‘इसका आशय हुआ कि उन्होंने उसे नग्नावस्था में मारा था। हो सकता है, उन्होंने सामूहिक व्यभिचार किया हो।’
‘ये सब अनुमान हैं, मेरे दोस्त। हमें मेडिकल जाँच की रिपोर्ट आने की प्रतीक्षा करनी होगी।’
परंतु जाँच रिपोर्ट से ज़्यादा कुछ पता नहीं लगा। काफ़ी मात्रा में भोजन, पानी और शराब का सेवन किया गया था। शरीर में अकड़न या ज़हर का कोई संकेत नहीं मिला। कोई चोट नहीं थी। उसकी मौत दम घुटने या साँस रुक जाने से हुई थी।
पुलिस द्वारा मृतक के दोनों साथियों को पकड़ लेने के बाद ही इस रहस्य का सुलझ पाना संभव था।
इसमें कोई कठिनाई नहीं हुई। होटल के रजिस्टर में लिखे नाम और पते सही निकले। पुलिस ने दोनों युवकों को हिसार में उनके घर पर खोज लिया। उन्होंने यह स्वीकार किया कि उन्होंने अपने दोस्त रोहित के साथ होटल में कमरा लिया था, लेकिन उनका कहना था कि रोहित ने उनके साथ हिसार लौटने से मना कर दिया था और मसूरी में रुकने की इच्छा व्यक्त की थी।
रोहित के माता-पिता से संपर्क किया गया। उसकी मौत का समाचार सुनकर वे बुरी तरह टूट गए और अपने बेटे के शव को लेने मसूरी दौड़ पड़े। उन्हें किसी पर संदेह नहीं था। लेकिन पुलिस ने पड़ोसियों और दोस्तों और साथियों से पूछताछ की। इस दौरान सामने आया कि उन तीनों में किसी लड़की को लेकर झगड़ा हुआ था लेकिन जब उस लड़की ने उन तीनों का ही प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो बात ख़त्म हो गई। उन तीनों ने मसूरी जाकर मौज-मस्ती करने और प्रेम में मिली असफलता से उबरने का फ़ैसला किया। उन्होंने होटल में थोड़ी शराब पी थी। होटल के अन्य मेहमानों ने भी उनकी उत्साही हरकतों की शिकायत की थी। यदि उनके बीच कोई झगड़ा हुआ होगा तो वह भी सबके सामने नहीं होगा।
कुछ दिनों तक शहर में उस किस्से की चर्चा होती रही और फिर धीरे-धीरे उसमें लोगों की रुचि समाप्त हो गई। वे युवक वहाँ के रहने वाले नहीं थे और पहाड़ी इलाक़ों में लोगों की बातें अधिकतर अपने मित्रों और पड़ोसियों तक ही सीमित रहती हैं। सामान्य तौर पर, दोस्त ही एक-दूसरे की पोल खोलते हैं और इन युवकों की वहाँ किसी से जान-पहचान नहीं थी। मसूरी पुलिस ने अपनी जाँच हिसार पुलिस को सौंप दी जिन्हें कुछ संदेह तो था किंतु उनके पास कोई ठोस प्रमाण नहीं था। उन दिनों टीवी चैनल भी नहीं थे जो अलग से निजी स्तर पर जाँच-पड़ताल करते रहते हैं।
मैं कभी-कभी मिस रिप्ली-बीन से मिलने और लोबो का पियानो सुनने होटल रॉयल जाया करता था। नंदू भी पेरिस के अपने ख़ुशनुमा और रंगीन जीवन के किस्से सुनाता रहता था। मुझे कैंप्टी गाँव में स्थित अपने घर पहुँचने के लिए जंगल पार करके लगभग एक घंटा पैदल चलना पड़ता था। एक दिन शाम के समय पहाड़ों पर बादल गरजने लगे, तेज़ हवा चलने लगी और फिर मूसलाधार वर्षा शुरू हो गई।
‘बेहतर होगा कि आप आज रात यहीं रुक जाइए,’ नंदू ने कहा। ‘आज पूरी रात बारिश होने वाली है।’
‘परंतु होटल में जगह नहीं है,’ मैंने कहा। ‘लोबो ने बताया कि सब कमरे भरे हैं।’
‘कमरा नंबर 14 ख़ाली है।’
‘क्या यह वही कमरा है, जहाँ उस लड़के की लाश मिली थी?’
‘हाँ। क्या आप अंधविश्वास को मानते हैं?’
‘नहीं। मैं नहीं मानता। मैंने सोचा कि वह कमरा पुलिस ने सील कर दिया होगा।’
‘नहीं। उन्होंने अपनी जाँच पूरी कर ली थी। वहाँ खोजने को क्या था? कोई हथियार नहीं, कोई प्रेम-पत्र नहीं। पर्यटक आते हैं और चले जाते हैं और उनके साथ उनकी समस्याएँ भी चली जाती हैं। वे लड़के बहुत स्वार्थी निकले जो अपने दोस्त को यहीं छोड़कर चले गए और वह भी मेरे बक्से वाले नए बिस्तर में!’
‘आपके किसी भी पुराने बिस्तर से मेरा काम चल जाएगा,’ मैंने कहा। ‘बिस्तर में कोई गड़बड़ नहीं है!’ नंदू विरोध करते हुए बोला। ‘यदि कोई हत्यारा हमारे बिस्तर पर सो जाए तो क्या वह बिस्तर बुरा हो जाएगा? यदि इस पर मर्लिन मुनरो सो जाए तो क्या उससे यह बिस्तर मनमोहक बन जाएगा?’
‘हो सकता है,’ मैंने कहा। ‘कुछ लोगों के बारे में सोचने से उत्तेजना बढ़ सकती है।’
‘लेकिन आप ऐसे नहीं हैं। एक जाम और ले लीजिए और फिर सुबह नाश्ते पर मिलते हैं।’
मैं एक तरह से सो गया, जैसा कि सैम्युल पेपीस ने कहा है।
पेपीस की तरह मैं भी मज़े से सोता हूँ। मैंने इधर तकिए पर सिर रखा और उधर मैं सपनों की दुनिया में गया!
नींद में… न जाने कौन-सा सपना आ जाए…
बिस्तर लंबा-चौड़ा था और मैं उस पर आराम-से करवट ले सकता था। मैं नींद में अनेक स्थानों पर भ्रमण करता हूँ। मुझे लगता है कि मैं उस समय ताहिती-तट पर लेटा था। मैंने हाथ फैलाया तो मुझे लगा कोई मेरे साथ लेटा है।
वह मेरे सपनों में आई ताहिती की प्रेम की देवी नहीं थी, बल्कि किसी पुरुष का अकड़ा हुआ कठोर शरीर था।
संक्षेप में कहूँ तो, एक लाश!
मैंने बिस्तर के पास लगा लैंप जलाया। हाँ, वह लाश वहीं थी, ठीक बिस्तर के बीचों-बीच!
मैं लपककर बिस्तर से नीचे कूदा और मैंने कमरे की लाइट जला दी।
वहाँ, चादर पर एक लंबे आकर्षक युवक का नग्न शव पड़ा था।
परंतु वह उस जगह बीस या तीस सेकंड से अधिक नहीं रहा। अचानक वह दृश्य ग़ायब हो गया और मैं ख़ाली बिस्तर को देखता रहा। ‘वह शायद कोई बुरा सपना था,’ मैंने ख़ुद से कहा और फिर बाथरूम में जाकर भीतर की लाइट जलाई।
मैंने देखा कि खुली आँखों और ढीले जबड़ों वाले उसी युवक का नग्न शव, अंदर संगमरमर के टब में पड़ा था।
मैं हड़बड़ाकर कमरा नंबर 14 से बाहर निकला और मिस रिप्ली-बीन के कमरे की ओर दौड़ा। मैंने उनका दरवाज़ा खटखटाया और उन्हें आवाज़ लगाकर कमरे के भीतर बुलाने का अनुरोध किया।
उन्होंने जैसे ही दरवाज़ा खोला, उनके तिब्बती कुत्ते फ़्लफ़ ने मुझ पर हमला कर दिया। उसने मेरा पायजामा पकड़ लिया और उसे लगभग फाड़ डाला। फ़्लफ़ ने जब मुझे पहचाना तो मैं बैठ गया। मैंने मिस रिप्ली-बीन को अपने अनुभव के बारे में बताया।
‘चिंता की कोई बात नहीं है,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। ‘बस, तुम थोड़े सनकी हो।’
उन्होंने अपनी पुदीना शराब की बोतल निकाली और मुझे एक बड़ा-सा जाम बनाकर दिया। उसका स्वाद बहुत बुरा था लेकिन उसे पीकर मैं थोड़ा सँभल गया।
मिस रिप्ली-बीन ने घर के फ़ोन से होटल के पियानोवादक और हमारे मित्र लोबो को बुलाया। हम तीनों बैठकर उस स्वप्न या कहें, दृश्य अथवा अलौकिक अनुभव पर चर्चा करने लगे। हम लोग इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि युवा रोहित ने मुझे सपने में दिखाई देकर संकेत दिया है कि उसकी मृत्यु नहाने के टब में डूबने से हुई थी।
‘उन्होंने रोहित को ऐसे ही मारा होगा,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। ‘एक ने उसके पैर पकड़कर उसे घसीटा होगा और दूसरे ने उसका सिर पानी में डुबाया होगा। पानी में डूबने या दम घुटने से मौत! कितना क्रूर सुनाई पड़ता है! उन्हें फिर शव को छिपाना था तो उन्होंने उसे बिस्तर के बक्से में डाल दिया ताकि कुछ दिन तक किसी को उसका पता न लग सके। परंतु उनसे थोड़ी लापरवाही हो गई और बक्सा ठीक से बंद नहीं हुआ जिसके कारण हनीमून पर आए दंपति को लाश का पता लग गया।’
मिस रिप्ली-बीन और लोबो ने मुझसे सुबह नाश्ते तक रुकने का आग्रह किया। सब लोग मुझे नाश्ता करवाना चाहते थे किंतु मैं होटल में मछली का अंडा खाने की बजाय, कैंप्टी में अपने घर लौटकर उबला अंडा खाने का अधिक इच्छुक था।
हमने अपना मत पुलिस को बता दिया लेकिन उन्होंने हमारी बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। उन्हें किसी मृत व्यक्ति का सपने में आकर अपने मरने का तरीक़ा बताने वाली बात अटपटी लगी, लेकिन इंस्पेक्टर ने यह माना कि ऐसा हो सकता है कि रोहित, ग़लती से या किसी योजना के तहत, टब में डूबकर मरा हो और उन लड़कों ने सोचा हो कि उसकी लाश को छिपाने के लिए बिस्तर का बक्सा सबसे बढ़िया जगह होगी। इंस्पेक्टर ने हमसे वादा किया कि वह अपना संदेह हिसार पुलिस को अवश्य बताएगा।
उसने ऐसा किया या नहीं, हमें नहीं पता, परंतु हमें इससे अधिक कुछ करने की आवश्यकता नहीं थी।
उन दिनों मोबाइल फ़ोन नहीं होते थे और मुँह से कही बात का भी उतना ही महत्त्व होता था। एक दिन नंदू ने हमें बताया कि कमरा नंबर 14 के वे दो लड़के, जो रोहित को छोड़कर चले गए थे, पंजाब में ब्यास नदी पार करते समय कार दुर्घटना में मारे गए।
नदी पर बने पुल के टोल संचालक ने उन लड़कों की गाड़ी से टोल वसूलकर उन्हें रसीद जारी की थी। टोल वाले और उसके दूसरे साथी ने देखा था कि वही दोनों युवक गाड़ी चला रहे थे। फिर टोल वाले ने बताया कि अचानक लड़कों ने अपनी गाड़ी धीमी कर दी क्योंकि एक विचित्र आकृति, जो बिलकुल नग्न थी, उनकी गाड़ी के सामने आ गई। गाड़ी की गति अचानक तेज़ हुई और फिर उस आकृति को बचाने के चक्कर में गाड़ी फिसली और पुल की नीची दीवार से टकराकर नदी में जा गिरी।
उनकी गाड़ी नीचे और नीचे डूबती चली गई और अंत में, नदी के तल तक पहुँच गई।
उस दुर्घटना के सिर्फ़ दो गवाह थे - टोल वाला और उसका साथी। पुल पर किसी तीसरे व्यक्ति का कोई निशान नहीं था।
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