सुबह सुनील जब रमाकांत की यूथ क्लब में पहुंचा तो नौ बजने को थे। सुनील की दफ्तर में रात की ड्यूटी थी, इसलिए वह सो नहीं सका था और उसकी आंखें लाल हो रही थीं ।


उसने एक नौकर को बुलाकर पूछा- “रमाकांत हैं ?"


“अभी तो नहीं आए, साब।"


“तो फिर कब आएंगे ?"


"मालूम नहीं, साहब ।”


"अच्छा, अब आए तो उसे मेरे बारे में बताना । " सुनील एक केबिन की ओर बढ़ता हुआ बोला ।


"साब" - वेटर ने उसके पीछे आते हुए कहा - "अगर इजाजत हो तो कुछ अर्ज करू ?"


- "इजाजत है।" सुनील ने शाहाना स्वर में कहा"अगर हम खुश हुए तो इनाम पाओगे वर्ना सर कलम कर दिया जाएगा।" -


"गुलाम के सस्ते से सर का घटिया-सा कलम क्या

कीजिएगा, हुजूर आजकल तो छ: आने में अच्छा खासा पैन मिल जाता है।"


“खैर, अगर छ: आने में पैन मिलता होता तो तुम्हारी जान बख्शी कर देंगे। तुम अपना बयान जारी रखो।"


"हुजूर" - वेटर ने धीरे से कहा- "मेन हॉल की गैलरी में नलिनी बैठी है । "


"अबे साले" - सुनील उछलकर बोला- "पहले क्यों नहीं बका ?"


"हुजूर, जान की इमान पाता तो बकता न ?"


"अच्छा, भाग ।”


सुनील ने एक नजर अपने सिलवटों भरे कपड़ों पर डाली, अपने दाएं हाथ की पीठ से चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ी को रगड़ा, तनिक हिचकिचाया और सिर को एक झटका देकर गैलरी की ओर बढ़ गया ।


"हैलो !" - उसने नलिनी के पास पहुंचकर तनिक झुकते हुए कहा ।


"हैलो !" - नलिनी ने बुरा-सा मुंह बनाकर कहा ।


नलिनी फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट की लड़की थी । रमाकान्त के यूथ क्लब के अतिरिक्त शहर के लगभग सारे मुख्य क्लबों की सदस्य थी। युवक वर्ग में ट्रम्प कार्ड के नाम से प्रसिद्ध थी, क्योंकि वह कभी किसी को लिफ्ट नहीं देती थी ।


सुनील कई महीनों से उसके पीछे पड़ा हुआ था, लेकिन वह एक बार भी उसे ढंग से बात करने के लिए तैयार नहीं कर पाया था ।


"मे आई हैव ए सीट हीयर ?" - उसने एक कुर्सी पर बैठने का उपक्रम करते हुए कहा ।


"यू मे नाट।" - नलिनी ने कुटिलतापूर्वक मुस्कराकर कहा। 


सुनील बैठता-बैठता रुक गया। फिर वह एक झटके से कुर्सी पर बैठता हुआ बोला- "लोग कहते हैं कि स्त्री की न को हां समझना चाहिए और तुम तो जानती ही हो कि मैं फायदे की बात बहुत जल्दी समझ जाता हूं।"


“अब तुम बोर करोगे ?”


"नहीं, दरअसल मैं तुमसे बहुत जरूरी बातें करना चाहता हूं, वैसे मैंने तुम्हें बता दिया है न कि मुझे तुमसे इश्क हो गया है । "


"नहीं तो।" - नलिनी ने पलक झपकाते हुए कहा ।


हूं।" “खैर अब सुन लो । मैं तुम पर दुबारा आशिक हो गया


"हुआ करो ! तुम ही तो अकले आशिक थोड़े ही हो मेरे । यूथ क्लब के सारे मैम्बर नलिनी से इश्क का दम भरते हैं।"


"लेकिन मैं तुम्हारा पुराना आशिक हूं और बाकी लोगों

से बहुत सीनियर हूं, इसीलिए मुझे प्रेफरेन्स मिलनी चाहिए।"


"तुम क्या प्रेफरेन्स चाहते हो ?"


"मुझसे शादी कर लो ।”


"फिर क्या होगा ?"


"फिर तुम मेरी पत्नी वन जाओगी। मैं तुम्हें हनीमून मनाने के लिए ईरान ले जाऊगा जहां हम गलीचों पर बैठकर उड़ा करेंगे और मर्तबानों में चाय पिया करेंगे। कभी मर्तबान में बैठकर चाय पी है तुमने ?"


"नहीं तो।" - नलिनी ने पलकें झपकाते हुए कहा ।


" इसीलिये तो मैं तुम्हें गलीचों और मर्तबानों के देश में ले जाना चाहता हूं।"


"मिस्टर सुनील" - नलिनी ने उकताकर उठते हुए कहा "ईरान की बातें मैं कभी फुरसत के समय सुनूंगी ।" "तुम अभी क्यों नहीं सुनतीं ?"


"क्योंकि अभी हमारी जानकारी इतनी पुरानी नहीं है कि मैं आपके भविष्य में दिलचस्पी ले सकूं।"


"मेरा ख्याल है तुम हिसाब में कमजोर हो ।”


"क्यों ?"


"हमारी जानकारी खासी पुरानी है । "


"कैसे ?"


"देखो मैं कम से कम बीस बार इस क्लब में तुमसे मिल चुका हूं और हर बार कम से कम दो घंटे तुम्हारे साथ रहा हूं, यानी कुल मिलाकर चालीस घण्टे मैं तुम्हारे साथ गुजार चुका हूं।"


"फिर ?"


"आम तौर पर आशिक बड़ी मुश्किल से सप्ताह में एक या दो बार मिल पाते हैं और कभी मौसम खराब होने के कारण, कभी डैडी के रोक देने के कारण, कभी मिलने के लिए ढंग की जगह न मिलने के कारण सप्ताह में एक दो बार भी मिलना नहीं होता और अगर कभी मिल भी पाते हैं तो पांच या दस मिनट के लिये। अगर हम सप्ताह में दस मिनट की एक मुलाकात की एवरेज लगाएं तो मुझे तुमसे मिलते हुए लगभग साढ़े चार साल हो गए। अव बताओ साढे चार साल की जानकारी क्या थोड़ी होती है ?"


"अच्छा बाबा मान लिया कि तुम मेरे पुराने चाहने वाले हो। अब तुम यहां से चलते हो या मैं जाऊं ?"


“तुम क्या चाहती हो ?"


"मैं चाहती हूं कि अब तुम दफा हो जाओ।"


"ये लो, तुम भी क्या याद करोगी"- सुनील ने उठते हुए कहा "हो गए दफा ।"


सुनील के उठने का कारण ये था कि उसे काउंटर पर रमाकांत दिखाई दे गया था। वह काउण्टर पर पहुंचा और


रमाकांत को ऑफिस में ले गया।


"तुम्हारे जो आदमी रमा का पीछा कर रहे थे, उनकी कोई रिपोर्ट आयी है ?" - सुनील ने पूछा ।


"हां" - रमाकान्त ने बैठते हुए कहा - "ओरियंट मोटर कम्पनी से निकलने के बाद रमा एक डिपार्टमेंटल स्टोर गयी और वहां से उसने कम्बल, चादरें, तकिए, गिलाफ, मेजपोश, तौलिये, साबुन रैडीमेड कपड़े और न जाने क्या क्या अला-बला खरीदी।"


“रमा ने पेमैंट कैसे की थी ? चैक से या...?"


"कैश भाई मेरे, हार्ड कैश ।”


“क्या काफी नकद रुपया था उसके पास ?"


"काफी ! वहां तो ऐसा लगता था जैसे सौ-सौ के नोट उग रहे हों उसके पर्स में ।"


"फिर ?"


"उसके बाद वह लेक होटल चली गयी। मोहन और राकेश अब भी उसकी निगरानी कर रहे हैं। मेरा एक आदमी स्टोर में ही रह गया था। उसने बताया कि रमा के स्टोर छोड़ते ही कुछ आदमी कैशियर के पास पहुंचे, उन्हें अपने बैज वगैरह दिखाए।"


"सीक्रेट सरविस के आदमी होंगे ?"


"हां, और सौ-सौ के जो नोट रमा ने दिए थे वे सारे उन्होंने कैशियर से ले लिये और बदले में उन्होंने कैशियर को

दूसरे नोट दे दिए और चले गए।"


"नैशनल बैंक की चोरी के बारे में कोई नयी बात पता लगी है ?"


"केवल इतना पता चला है कि जमनादास की सहायता के लिये जो इन्स्पेक्टर नियुक्त था, भई वही जो कहता था कि उस समय वह रेस की कमैंट्री सुन रहा था - याद आया वह आजकल एक पैट्रोल पम्प का मालिक है।"


"इंस्पेक्टर का नाम क्या था ?"


"जयनारायण और पैट्रोल पम्प लिंक रोड की नुक्कड़ पर है। "


" और कुछ ?"


'और यह कि चोरी गए धन में से सौ के पचास नोटों के नम्बर पुलिस के पास हैं। जो भी सौ का नोट रमा खर्च करती है, वह पुलिस के पास पहुंच जाता है।"


"क्या वे समझते हैं कि चोरी का रुपया रमा के पास है ?"


"और क्या ? नहीं तो ये हजारों रुपये का सामान खरीदने के लिए उसके पाए रुपया कहां से आता है ?"


"हूं।"


"सुनील, मैं एक बताना भूल गया तुम्हें" - रमाकांत ने अपनी जेब से एक लिफाफा निकालते हुए कहा - "एक चपरासी ये लैटर दे गया है तुम्हारे लिए । "


"मेरे लिये ?”


"हां और वह कहता था कि यह बड़ा जरूरी पत्र है और उन्हें नौ बजे से पहले मिल जाना चाहिए।"


"लेकिन मेरे पत्र का तुम्हारे क्लब में क्या काम ? पता तो मेरे फ्लैट का लिखा हुआ है ।"


“भई पहले किसी ने पत्र डाक द्वारा भेजने की सोची होगी, लेकिन फिर इरादा बदल गया होगा और पत्र चपरासी के हाथ भिजवा दिया।"


उसी समय रमाकांत के फोन को घण्टी बज उठी । रमाकांत फोन सुनने में मग्न हो गया। सुनील ने उसकी ओर पीठ फेरकर लिफाफे को फाड़ डाला। लिफाफे में सौ सौ के पांच नोट एक हजार का नोट और एक टाइप किया हुआ पत्र था जिसमें लिखा था:


मैंने आपको नौ बजे से पहले पांच सौ रुपये देने का वादा किया था । मुझे अफसोस है कि मैं रुपये देने स्वयं न आ सकी।


पत्र पर किसी के साइन नहीं थे। केवल अन्त में टाइप राइटर से ही आर लिखा हुआ था ।


रमाकांत अभी भी फोन में ही जूझा हुआ था। सुनील ने लिफाफा चुपचाप जेब में रख लिया ।


"मैं तुम्हारी कार ले जाऊं?" - उसने रमाकांत से पूछा।


रमाकांत ने माउथपीस से मुंह हटाए बिना ही सहमतिसूचक दृष्टि से संकेत कर दिया।