सोमवार : 24 नवम्बर

अगले रोज जीतसिंह, गाइलो और मिश्री का मुकाम धारावी के एक छोटे से होटल में था। वो होटल धारावी में उस के लक्ष्मीबाग के इलाके में था और उसमें उन की पहुंच उन के साझे दोस्त डेविड परदेसी की वजह से बनी थी जो कि धारावी में ही रहता था। होटल का मैनेजर परदेसी का दोस्त था इसलिये वहां दो कमरे उन्हें सहज ही मिल गये थे जिनमें से एक मिश्री के हवाले कर दिया गया था और दूसरा जीतसिंह और गाइलो ने कब्जा लिया था।

वो तीनों सुबह ही वहां पहुंचे थे, रात उन की कमाठीपुरा में ही कटी थी। मिश्री के फ्लैट वाली इमारत में उसके पहले माले पर मिश्री की तरह ही, उसी जैसे कारोबार में संलग्न एक लड़की अकेली रहती थी रात को जिसने सहर्ष उन तीनों को अपने फ्लैट में पनाह देना कबूल कर लिया था जिसकी वजह से ऊपर से एकाएक पलायन करने पर मजबूर होने के बावजूद रात को उस इमारत से बाहर तो वो निकले ही नहीं थे जबकि गाइलो और जीतसिंह को पूरा पूरा अन्देशा था कि उन की तलाश में पहुंचे लोग पूरी इमारत की तलाशी का मन बना सकते थे। लेकिन मिश्री ने दृढ़ता से कहा था कि ऐसा नहीं होने वाला था। उस इमारत में टोटल नौ फ्लैट थे जिसमें चार मिश्री जैसी अकेली, बहुत सलीके से ढ़ंकी छुपी बाइयों के कब्जे में थे और बाकी पांच में सम्भ्रान्त परिवार बसते थे। मिश्री का दावा था कि वो हर फ्लैट की तलाशी लेने का अभियान चलाते तो वहां ऐसा होहल्ला मचता कि उन्हें वहां से भागते ही बनता। वहीं ठहरे रहने के विपरीत अगर वो इमारत से पलायन की कोशिश करते तो पता नहीं कितने आदमी उन की ताक में थे जो बाहर उन के थाम लिये जाने की वजह बन सकते थे। इमारत से निकासी का एक ही रास्ता था जो मेन रोड पर खुलता था और वहां पता नहीं कितने लोग उस इमारत की चौकसी कर रहे होते।

आखिर उन को मिश्री की ही सलाह पर अमल करना पड़ा था और रात उन की उसी इमारत के पहले माले के एक फ्लैट में कटी थी।

पिछली रात जो कुछ हुआ था, उससे सब चमत्कृत थे और हैरान थे कि मिश्री ने सब हैंडल करने में बला की दानिशमन्दी, तेजी और फुर्ती दिखाई थी।

दोनों का सवाल था मिश्री को शक कैसे हुआ था कि रात के मेहमान में कोई लोचा था।

मिश्री का जवाब था—“किसी अंजाने कस्टमर का मेरे पास पहुंचना कोई बड़ी बात नहीं था। जैसा मेरा ढ़ंका छुपा, लिमिटिड, लोन आपरेटर धन्धा था, उस में नवां कस्टमर ऐसे ही आता था कि कोई दूसरा, सैटिस्फाइड, कस्टमर रिकमैंड किया कि वो उधर जाये पण मेरे नक्की बोलने पर कोई चिपकने नहीं लगता था, गले नहीं पड़ने लगता था, जब कि मेरा रात का वो कस्टमर पहले तो अपनी उम्र का हवाला देने लगा कि वो साठ साल का था, फिर बोला सीढ़ियां चढ़ते उसका आधा दम निकल गया था और फिर बोला उसको एक गिलास पानी मांगता था। वो किसी फ्रेंड के घर नहीं पहुंचा था, रिश्‍तेदारी में नहीं आया था, एक कालगर्ल के ठीये पर आया था। कालगर्ल के सामने अपने आप को कोई बूढ़ा, नाकारा बोलता है! अभी सीढ़ियां चढ़ के ऊपर पहुंचने में ही ये हाल तो आगे क्या करता, साला!”

“ठीक!”—जीतसिंह बोला।

“बोले तो करैक्ट!”—गाइलो बोला।

“फिर और अनोखी फरमाइश कर दी कि टायलेट जाने का। साला बाई के ठीये पर आया कि सिनेमा देखने आया पिक्चर हाल पर! वन गो का रोकड़ा भरता था। मैं हां बोलती तो क्या करता? कौन सा काम इम्पॉर्टेंट उसके वास्ते? मेरे को दबोचने का और अपना रोकड़ा वसूल करने का था या टायलेट जाने का! जाना भी था तो पहले जाके आता, मेरे ठीये पर पहुंचने के बाद किस वास्ते!”

“बरोबर बोला।”—गाइलो बोला।

“तो”—जीतसिंह बोला—“इस वास्ते तेरे को उस पर शक हुआ?

“हां।”—मिश्री बोली—“एक वजह और भी थी पण वो इतनी इम्पॉर्टेंट नहीं थी।”

“और वजह क्या?”

“उस का नाम। अपना नाम बोल के गया।”

“क्या नाम?”

“कीरत मेधवाल।”

जीतसिंह और गाइलो की निगाह मिली।

गाइलो ने अनभिज्ञता से कन्धे उचकाये।

“बहुत टेम पहले”—मिश्री कह रही थी—“मैंने इस नाम के एक मवाली का जिक्र एक दो बार सुना था जो अपने आप को किसी इब्राहीम कालिया के गैंग का बताता था और हर घड़ी हर किसी से खामखाह पंगा लेने को तैयार रहा था। ये कई साल पहले की बात है जब कि मैं ने उसका जिक्र ही सुना था लेकिन शक्ल कभी नहीं देखी थी। जीते, मैं ये नहीं बोलती कि कोई मवाली मेरा कस्टमर बनके उधर नहीं आ सकता था लेकिन उसकी कल रात जो बाकी हरकतें थीं, मैंने उन को उस नाम से जोड़कर सोचा तो मेरे को हालात ठीक न लगे, बल्कि मेरे को साफ साफ खतरे की सूंघ लगी।

“बोले तो”—गाइलो बोला—“उसे कहीं से किसी तरह का हिन्ट मिला कि जीते की तुम्हेरे से फिरेंडशिप। इस वास्ते उसके मगज में आया कि ये उधर तुम्हेरे फिलेट पर होना सकता। और इस वास्ते उधर का पोजीशन चैक करने कू वो साला बोगस कस्टमर बन के उधर आया!”

“वो टेम यहीच आया मेरे मगज में।”

“पण”—जीतसिंह बोला—“जब वो कनफर्म किया कि मिश्री के फ्लैट में मैं नहीं था, तू नहीं था, कोई नहीं था तो फिर हमें उधर क्या खतरा था?”

“बोले तो”—गाइलो बोला—“मगज काम नहीं कर रयेला है ये टेम तेरा। अरे, जब मिश्री तेरे कान्टेक्स्ट में उन भड़वों के फोकस में आ गयी तो क्या उन को इतने से ही इसका पीछा छोड़ देने का था कि तू रात को इसके फिलेट पर नहीं था! नहीं था तो आ सकता था। इस वास्ते उधर का वाच जरूरी होना या नहीं होना?”

“होना।”

“फिर सूनर ऑर लेटर हम उधर से बाहर कदम रखते या नहीं रखते?”

“रखते। उधर कैद हो के कैसे बैठे रह सकते थे?”

“तो? तो आगे क्या होता, ये मैं बोलेगा तो तेरे मगज में आने का!”

जीतसिंह का सिर इंकार में हिला।

“उन को मिश्री का खबर लग सकता था? अभी मैं प्रॉपर करके नहीं बोला। उन को तेरे कान्टैक्स्ट में—आई रिपीट, तेरे कान्टैक्स्ट में—मिश्री का खबर लग सकता था?”

“आसानी से नहीं। मैं तो अभी भी हैरान हूं कैसे लगी खबर?”

“कैसे भी लगी पण लगी। जैसे मिश्री की खबर नहीं लग सकती थी पण लगी, वैसे उधर के थर्ड फ्लोर के फिलेट की भी लग सकती थी कि प्रेजेन्टली वो खाली पड़ेला था पण उसका चाबी मिश्री के पास था। अभी तू बोल, डियर ब्रो, कि ये खबर लगने के बाद हमेरे थाम लिये जाने में क्या कसर रह जाती!”

“कोई कसर न रह जाती। हम जरूर थाम लिये जाते।”

“तो कल मैडम ने मगज से काम लिया और बुलेट का माफिक जो स्टैप लिया, वो क्या गलत लिया? साला थोड़ा सा भी टेम एक्स्ट्रा लग जाता निकल लेने में तो डेफिनिट कर के थाम लिये गये होते। क्या!”

“ठीक!”

“मार्निंग में मालूम पड़ा था कि रात को साला बुलेट ठोक के तीसरे माले के फिलेट का ताला तोड़ दिया और भीतर एन्ट्री लिया। नैक्स्ट डोर के फ्लैट के भीड़ू को गन चमका के हूल दिया। साला हरामी लोग फुल फोर्स से आया और इतना अग्रैसिवली ऐक्ट किया। उनके उस मूड में हम थाम लिये जाते तो...तो...”

गाइलो खामोश हो गया, उसके शरीर ने जोर से झुरझुरी ली।

कुछ क्षण खामोशी रही।

“हम तो दरबदर हुए ही”—फिर जीतसिंह धीरे से बोला—“हमारे मुलाहजे में, मिश्री, तेरे को भी दरबदर होना पड़ा।”

“वान्दा नहीं।”—मिश्री बोली—“वान्दा नहीं रे, मेरे को।”

“अरे, तेरे को ठीया छोड़ना पड़ा। और अभी पता नहीं कब तक छोड़े ही रहना पड़ेगा! तेरा धन्धा बिगाड़ा न हमारे मुलाहजे ने!”

“बोला न, वान्दा नहीं।”

“पण...”

“अरे, मेरा एक खास चाहने वाला है रोस्टिड और ग्रिल्ड जो मेरे को लाखों में ऐसे रोकड़ा देता है—मैं नक्की भी बोले तो जबरदस्ती देता है—जैसे मेरा प्रॉविडेंट फंड बना रहा हो। अभी दो महीना पहले मेरे को तीन पेटी एक मुश्‍त दिया।”—एकाएक मिश्री की आवाज भर्रा गई, उसकी आंखें नम हो गयीं,—“उसके होते मेरे को धन्धे की क्या परवाह है! उसके होते”—उसके गले की घन्टी जोर से उछली—“मेरे को किसी भी बात की क्या परवाह है!”

एकाएक जज्बाती बन गये माहौल में वार्तालाप आगे न चला।

 

दोपहरबाद सोलंके चर्च गेट पहुंचा।

और अपने बॉस के वहां के फ्लैट के आफिसनुमा कमरे में उससे मिला।

“मलाड नहीं गया, बॉस!”—उसके सामने बैठता सोलंके बोला।

“मलाड गया!”—नायक ने मुंह बिगाड़ा—“अरे, मैं आधा घन्टा पहले सो के उठा।”

“ओह!”

“रात खाना पीना दोनों ज्यास्ती हो गया।”

“होता है कभी कभी।”

“कैसे आया?”

“एक दो बात थीं। डिसकस करने आया। एकाध खबर थी, बोलने आया।”

“बोल।”

“बॉस, कल रात नौसिखिया गैंग के, औने-पौने गैंग के किसी भीड़ू को थामने की जो बात हुई थी, वो फिलहाल मुमकिन नहीं रही।”

“बोले तो?”

“जम्बूवाडी चाल की निगरानी अब नहीं हो रहेली है। नागपाड़ा टैक्सी स्टैण्ड की ताक में भी अब कोई भीड़ू नहीं है।”

“ऐसा?”

“हां, बॉस। मैंने बरोबर पक्की करवाया। इसी वास्ते दोपहर हो गयी।”

“क्या हुआ? वो प्यादे जिस टैक्सी डिरेवर भीड़ू की ताक में थे, वो पकड़ में आ गया?”

“हो सकता है। ये भी हो सकता है कि वाच से नाउम्मीद हो गये हों और खुद ही नक्की कर गये हों।”

“बोले तो एक्शन की वो लाइन हमेरे वास्ते बन्द!”

“बन्द तो नहीं, बॉस! ऐसी नाउम्मीदी की बात तो नहीं! वैसे निगरानी हमें होती मिलती तो हमेरा काम आसान होता। चाल से या टैक्सी स्टैण्ड से किसी भीड़ू को थाम लेना आसान होता। पण ये काम फिर भी होगा डेफिनिट कर के।”

“कैसे?”

“बॉस, कल मैं बोला न, हमेरे को उन भीड़ुओं में से कुछ के नाम मालूम हैं—बोले तो मगन कुमरा, विराट पंड्या, श्रीनन्द कन्धारी, सुहैल पठान—किसी अन्डरवर्ल्ड के भीड़ू का नाम मालूम हो तो पता निकालना कोई मुश्‍किल काम नहीं होता। मैंने चौतरफा फैलाया है मेरे को इन चार भीड़ुओं में से कोई एक—कोई भी एक—मांगता है। बॉस, अन्डरवर्ल्ड में, अक्खी मुम्बई में, तुम्हेरा नाम बड़ा है, हो सकता है ये बात कान में पहुंचे तो इन में से कोई एक खुद ही हमेरे पास चला आये।”

“खुद ही चला आये!”

“ये सोच के कि शायद तुम उसको गैंग जायन करने को बुलाता था।”

“हो सकता है पण ये दूर की कौड़ी।”

“बॉस, लगता है तुम्हेरे मगज में कुछ और है।”

“है तो बरोबर!”

“क्या?”

“तू चोर की मां को पकड़।”

“बोले तो?”

“उस जरनैल कर के भीड़ू को थाम जिस का असली नाम कीरत मेधवाल है और जो मेरे को पक्की कि भाईगिरी की राह का पुराना राही है। अगर वो सच में नवां गैंग खड़ा करने की कोशिश में लगे प्यादों का सलाहकार है, जो तू रहनुमा कर के बोला, वो है तो ये होईच नहीं सकता कि उसको न खबर हो कि वो प्यादे किस फिराक में थे! बोले तो क्यों वो किसी टैक्सी डिरेवर भीड़ू की फिराक में थे!”

“बात तो तुम्हेरी ठीक है, बॉस!”

“वो भीड़ू हमारी टाइप का है, येहीच शहर में रहता है, हमेरे को उस का नाम मालूम, उसका खास, मशहूर नाम मालूम, बहुत मुश्‍किल ऐसे भीड़ू का पता निकालना?

“नहीं, बहुत मुश्‍किल तो नहीं!”

“तो उसको काबू में कर और मेरे पास ले के आ। फिर मैं देखता है वो इब्राहीम कालिया के टेम का पुराना प्यादा अब रहनुमा है, एक्सपर्ट सलाहकार है, लीडर है, क्या है? मैं निकलवाता है उस से कि जो प्यादे किसी टैक्सी डिरेवर के पीछे पड़े हैं, वो कौन हैं, क्यों पीछे पड़े हैं और असल में उन को क्या मांगता है!”

“बढ़िया। मैं करता है न सब इन्तजाम!”

“और बोल!”

“और अन्डरवर्ल्ड में खुसर पुसर है कि अगर कोई भीड़ू हमेरे हाथ से निकले माल की, बोले तो गायब माल की कोई खबर दे, या माल को वापिस काबू में करने में मदद करे तो क्या उसे कोई शाबाशी मिलेगी!”

“शाबाशी!”

“ईनाम! नकद!”

“किसी को क्या खबर कोई माल खोया हुआ है और वो किसका है?”

“बॉस, जब खुसर पुसर है तो कोई बुनियाद भी होगी! बुनियाद है तो किसी को खबर भी होगी!”

“कि माल अमर नायक का?”

“बोले तो हां।”

“कीमत बीस खोखा?”

“वो भी।”

“हूं।”

नायक ने खामोशी से अपनी एक उंगली से अपनी कनपटी खटखटाई।

सोलंके धीरज से बॉस के बोलने की प्रतीक्षा करता रहा।

“खबर का जवाब जारी करा”—फिर नायक बोला—“कि ईनाम मिलेगा बरोबर। अगर खबर में दम पाया गया, उसका कोई माकूल नतीजा निकला तो चोखा ईनाम मिलेगा।”

“ठीक।”

“ऐसी कोई जानकारी सच में हमारे हाथ लगी तो मौजूदा हालात में, जबकि खुद हम कुछ भी नहीं कर पा रहे तो, सोलंके, ये किसी करिश्‍मे से कम नहीं होगा।”

“बरोबर बोला, बॉस। मैं सब सैट करता है अभी का अभी।”

“बढ़िया।”

 

रात को नौ बजे के करीब जीतसिंह और गाइलो पास्कल के बार में मौजूद थे।

वो धारावी का बहुत रौनक वाला बार था। उस की क्लायन्टेल, रखरखाव सब सैकंड क्लास था लेकिन चालू बेवड़े अड्डों से बेहतर था इस लिये इलाके में काफी मशहूर था। उसकी दूसरी मशहूरी ये थी कि वो ढ़ंका छुपा कालगर्ल्स का अड्डा था जिन की वहां मौजूदगी से मैनेजमेंट को कोई ऐतराज नहीं होता था।

दोनों भीड़ से थोड़ा अलग हट के एक टेबल पर बैठे थे, उन के सामने विस्की के गिलास मौजूद थे और उस घड़ी उन्हें परदेसी की वहां आमद का इन्तजार था।

विस्की चुसकते और सिग्रेट के कश लगाते वो इन्तजार की घड़ियां काट रहे थे।

बकौल गाइलो, परदेसी के साथ वहां कोई अमर नायक के गैंग का प्यादा आने वाला था।

आखिर परदेसी वहां पहुंचा।

उसके साथ जो भीड़ू था, वो उम्र और कद काठ में उन्हीं जैसा जान पड़ता था। उसकी रंगत गोरी थी, क्लीनशेव्ड था, सिर पर घने, सलीके से संवारे हुए काले बाल थे, दायें कान में स्टड था और जिस्म पर सलीके की पोशाक थी। केवल एक ही बात उसके व्यक्तित्व में ऐसी थी जो उसके अन्डरवर्ल्ड का भीड़ू होने की चुगली करती थी :

आंखों में धूर्तता का स्थायी आवास जान पड़ता था।

“ये भरत श्रेष्ठ है।”—परदेसी बोला—“ये जीता, ये गाइलो।”

आगन्तुक ने कदरन बेबाकी से दोनों से हाथ मिलाया।

गाइलो ने सबके लिये ड्रिंक्स का आर्डर दिया।

“नेपाली?”—जीतसिंह बोला।

“हां।”—श्रेष्ठ बोला—“पण ट्वेन्टी इयर्स से इधर है।”

“ओह!”

“तेरे को मेरे नेपाली होने से कोई प्राब्लम!”

“अरे, नहीं, भीड़ू। ये मुम्बई है, यहां सब के लिये जगह है।”

“वो तो है!”

“गाइलो गोवानी है, परदेसी कोंकणी क्रिश्‍चियन है, मैं हिमाचली है, साला प्राब्लम कैसा?”

“गुड।”

“हम सब वैरी ओल्ड फिरेंड्स।”—परदेसी बोला—“ब्रदर्स का माफिक। हमारे में आपस में कोई सीक्रेट नहीं, सब सांझा है।”

“बढ़िया।”

“अब तेरे साथ भी सब का सब सांझा। क्या!”

“मेरे को मंजूर।”

तभी वेटर ड्रिंक्स ले कर आया।

वो रुखसत हुआ तो सबने चियर्स बोला।

“श्रेष्ठ बढ़िया भीड़ू है।”—परदेसी अर्थपूर्ण स्वर में बोला—“कोआपरेट किया बरोबर जो मेरी रिक्वेस्ट पर मेरे साथ इधर आया। अभी मैं बोले तो जिस वास्ते आया, वो बात पहले, प्रायर्टी से होना। क्या!”

जीतसिंह का सिर सहमति में हिला।

“वो क्या है कि”—फिर बोला—“मैं टैक्सी डिरेवर। गाइलो भी। टैक्सी डिरेवर को एकीच काम। अक्खा दिन पैसेंजर ढ़ोने का।”

“सैवरल टाइम्स अक्खा नाइट।”—गाइलो ने जोड़ा।

“पैसेंजर भीड़ू बात करता है, डिरेवर सुनता है। नहीं सुनना मांगता पण कान में पड़ता है तो क्या करने का! जो सुनता है वो पैसेंजर अपनी मंजिल पर पहुंच कर टैक्सी से नक्की करता है तो मगज से उड़ जाता है। पण कुछ बातें साला ऐसा भी सुनता है कि मगज में फिक्स हो जाता है।”

“नहीं मांगता”—गाइलो बोला—“फिर भी मैमरी में रिकार्ड हो जाता है। क्या!”

श्रेष्ठ ने संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया और विस्की का एक घूंट भरा।

“अभी पिछले गुरुवार”—जीतसिंह बोला—“बोले तो बीस तारीख रात को, ऐसीच कुछ मेरे साथ हुआ जो साला मगज में पक्की करके बैठ गया। साला फुल डेंजर बात सुना मैं जो साला मगज में रखते भी नहीं बनता था और किसी को बोलते भी नहीं बनता था। आखिर गाइलो को बोला क्यों कि ये मेरा डियर फिरेंड। मैं इससे कुछ नहीं छुपाता...”

“सेम विद मी।”—गाइलो बोला—“वुई आर ओल्ड फिरेंड्स। सब शेयर करता है।”

“क्या शेयर किया?”—श्रेष्ठ उत्सुक भाव से बोला—“क्या सुना?”

“बहुत कुछ सुना, भीड़ू, बहुत कुछ सुना।”—जीतसिंह बोला—“पैसेंजर को लम्बा जाने का था, इस वास्ते बहुत कुछ सुना।”

“एकीच पैसेंजर?”

“क्या बात करता है? एक पैसेंजर क्या नींद में बड़बड़ायेगा जो मैं सुनेगा?”

“तो कितने?”

“दो। जो बैक सीट पर था और आपस में बात करता था। वो बात करता था, मैं सुनता था; नहीं सुनना मांगता था पण कान में पड़ता था तो...बस, सुनता था।”

“क्या सुना?”

जीतसिंह ने सप्रयास परदेसी की तरफ देखा।

“अरे, बोल न, जीते।”—परदेसी बोला—“श्रेष्ठ मेरा फिरेंड। तू और गाइलो मेरे फिरेंड। तो बोले तो हम सब फिरेंड। तो फिरेंड्स में कुछ भी बोलने से वान्दा किधर है!

“ठीक!”—जीतसिंह बोला—“बोलता है। मैं ये सुना कि उन पैसेंजर भीड़ू लोगों ने कोई बड़ा माल नक्की किया जो किसी दूसरे भीड़ू के कब्जे में था। वो दूसरा भीड़ू बिग बॉस अमर नायक का खास था इस वास्ते मेरे मगज में आया कि माल बिग बॉस अमर नायक का।”

“कितना बड़ा माल?”—श्रेष्ठ सावधान स्वर में बोला।

“नहीं मालूम। पण अन्दाजा है।”

“वही बोल।”

“करोड़ों का।”

“करोड़ों का ही कोई अन्दाजा?”

“चार और चालीस करोड़ के बीच में।”

“माल क्या?”

“नहीं मालूम।”

“माल देखा? कोई झलक मिली?”

“नहीं?”

“फिर भी मालूम माल करोड़ों का?”

“क्यों कि पैसेंजर भीड़ू लोग ऐसा बोला।”

“बोला कि माल करोड़ों का?”

“हां।”

“पण ये न बोला कि माल क्या?”

“हां।”

“बोला नहीं या सुना नहीं?”

“बोला नहीं।”

“ये भी बोला कि माल बिग बॉस अमर नायक का?”

“साफ न बोला पण मैं हिन्ट लिया।”

“हूं।”

“अरे, तू तो अमर नायक के गैंग का इम्पॉर्टेंट कर के भीड़ू है”—परदेसी बोला—“तेरे को तो अन्दर का बात मालूम होयेंगा! मालूम होयेंगा कि माल क्या, उसका वैल्यू क्या और कौन उसको नक्की किया!

श्रेष्ठ ने इंकार में सिर हिलाया।

“बोम मारता है साला! फिरेंड्स में बोम मारता है!”

“नहीं।”—श्रेष्ठ बोला—“मेरे को ऐसा करना होता तो मैं इधर आया ही न होता।”

“ठीक!”

“मेरे को मोटे तौर पर मालूम कि बिग बॉस का कोई बड़ा माल लोचे में पड़ गया। अंडरबॉस सोलंके ने गैंग के सारे भीड़ुओं को आर्डर जारी किया कि बड़े, करोड़ों के माल की किधर कोई चर्चा सुनाई दे तो खबर करें।”

“अभी देता है न चर्चा सुनाई!”—गाइलो बोला—“क्या करेंगा?”

“खबर करेगा आर्डर के मुताबिक पण तुम भीड़ू लोगों को फिरेंड बोला, तुम बोलेगा खबर नहीं करने का तो नहीं करने का।”

“जरूर करने का।”—जीतसिंह पुरजोर लहजे से बोला।

“ऐसा?”

“बरोबर। इसी वास्ते तो तू इधर है। इसी वास्ते तो तेरे से मीटिंग करता है।”

“मकसद क्या?”

“मकसद समझ, यार। मकसद यही कि बड़े लोगों की मेहरबानी से कोई चार पैसे हम गरीब भीड़ू लोगों के भी हाथ लगें।”

“कैसे होगा?”

“अरे, जब बिग बॉस को कोई ऐसा हिंट सरकायेगा जिससे उसके खोये माल का पता लग सके, वो वापिस कब्जे में लिया जा सके तो वो हिन्ट सरकाने वाले को किसी शाबाशी का, किसी ईनाम का हकदार मानेगा या नहीं मानेगा?”

“तो तुम्हेरे को ईनाम मांगता है?”

“अभी आयी बात समझ में।”

“और मांगता है कि ये खबर बॉस लोगों को मैं पहुंचाये कि तू उन के काम का भीड़ू जो उन की उन का माल ट्रेस करने में हैल्प कर सकता है!”

“बरोबर।”

“फिर? समझ बॉस लोग फ्लैट हो गया इस बात से। फिर जो जानकारी तेरे पास है, वो किस को सरकायेगा?”

“बॉस को।”

“नशा हो भी गया क्या?”

“उसके किसी डिप्टी को। उसके अन्डर में चलने वाले किसी नम्बर दो को।”

“मैं सुना”—गाइलो बोला—“ऐसा अन्डरबॉस नवीन सोलंके।”

“बोले तो नहीं हो सकता।”

“तो?”

“जो बोलना है, मेरे को बोलो।”

“फिर ये फैसला भी तूहीच कर लेगा कि जानकारी ईनाम के काबिल है या नहीं? फैसला पाजिटिव में हुआ तो इनाम का साइज भी तूहीच फिक्स करेगा? फिर तूहीच ईनाम हमें थमायेगा?”

“ये कैसे हो सकता है? मैं साला गैंग में कोई बॉस है?”

“हमेरे को मालूम, नहीं है। वो फिर काहे को बड़ा बोल बोला कि जो बोलना है, जीता तेरे को बोले?”

वो बगले झांकने लगा।

कुछ क्षण खामोशी रही।

उस दौरान श्रेष्ठ ने अपना विस्की का गिलास खाली किया।

उसकी देखा देखी बाकियों ने भी गिलास खाली किये और जीते ने नये ड्रिंक्स का आर्डर किया।

“एक बात का जवाब दो।”—श्रेष्ठ बोला—“उसके बाद मैं बोलेगा मैं क्या कर सकता है...क्या करेगा?”

“पूछो।”—जीतसिंह बोला।

“मैं खुल के बोले?”

“हां।”

“जवाब भी ऐसीच मिलेगा?

“हां।”

“कोई गोली नहीं सरकाने का। कोई पुड़िया नहीं देने का। फिरेंड्स में ये काम गलत। नाजायज। क्या?”

“ठीक!

“तो आनेस्ट जवाब देगा?”

“हां।”

“प्रामिस?”

“हां, भई। अब कुछ बोल भी तो सही!”

“अरे, मैं गारन्टी करता है न, डियर फिरेंड”—परदेसी पुरजोर लहजे से बोला—“कि जवाब में कोई लोचा नहीं होगा, कोई पेच नहीं होगा।”

“बढ़िया। अभी मेरे को ये बोलो कि जब तुम भीड़ू लोगों के पास इतना इम्पॉर्टेंट कर के जानकारी है तो तुम उसको खुद कैश क्यों नहीं करता? बॉस लोगों को आगे सरका के ईनाम क्यों मांगता है तुम्हेरे को? साला मगज में कचरा या कोई और स्ट्रेटेजी!”

जीतसिंह और गाइलो एक दूसरे का मुंह देखने लगे।

“कोई स्ट्रेटेजी नहीं।”—गाइलो धीरे से बोला—“हम मामूली टैक्सी डिरेवर भीड़ू। बोले तो मैंगों पीपुल। आम आदमी। सैवरल इयर्स से मुम्बई में। आगे भी इधरीच रहने का। हम किसी बिग अन्डरवर्ल्ड डॉन के माल पर निगाह भी मैली करने का कोशिश करेंगा तो डैड बॉडी समन्दर में स्विम करता होयेंगा।”

“यही बात है।”—जीतसिंह बोला—“हमेरे को किसी डॉन से पंगा नहीं लेने का। न हमेरे में हिम्मत है, न हौसला।”

“एण्ड दैट्स गॉड्स ट्रुथ।”

“फिर मेरे को पक्की कि जो जानकारी मेरे पास है वो तुम्हेरे बिग बॉस के फुल काम की है। वो उस पर एक्ट करके अपना माल रिकवर करेगा तो मेरे को गारन्टी कि कोई बड़ा ईनाम वो खुशी खुशी मेरे को देगा।”

“महबूब फिरंगी दिया विद प्लेजर।”—गाइलो बोला—“बहरामजी कान्ट्रैक्टर दिया विट ग्रेट प्लेजर।”

श्रेष्ठ के नेत्र फैले।

“तू खाली इतना कर, बिरादर, कि जो मैं बोला उसको अपने बिग बॉस के पास नहीं पहुंचा सकता तो गैंग के किसी और इम्पॉर्टेंट करके भीड़ू के पास पहुंचा।”

“ऐसे के पास”—गाइलो बोला—“जिसका हैण्ड्स में इन्डीपेंडेंट डिसीजंस लेने का पावर्स हों।”

“ओके।”—श्रेष्ठ निर्णायक भाव से बोला—“मैं करेगा ऐसा।”

“इमीजियेट करके?

“हां। और आगे जो सैटल होगा उसकी खबर मैं परदेसी को करेगा।”

“मीटिंग फिक्स होयेंगा जीते के साथ?”

“पता नहीं क्या होगा! जो होगा बोलेगा न!”

“काफी है इतना।”—जीतसिंह बोला—“इसी बात पर बाटम्स अप।”

सबने किया।

 

रात ग्यारह बजे गाइलो लक्ष्मीबाग वाले होटल लौटा।

“इतना टेम लगाया?”—जीतसिंह ने शिकायत की।

“कुछ काम करता था न!”—गाइलो उस के सामने बैठता बोला।

“टैक्सी चलाता था!”

“अरे, वो तो रोज ही चलाता है। साला तेरा काम का काम करता था।”

जीतसिंह सम्भल कर बैठा।

“क्या किया?”—वो बोला—“क्या हुआ?

“वो तेरा पुलिस को टिप सरकाने का आइडिया...”

“उन दोनों भीड़ुओं की बाबत? बोले तो जो मेरे पीछे पड़े थे? विराट पंड्या! सुहैल पठान!”

“वही। तेरी जिद पर उनके बारे में कल पुलिस को गुमनाम काल किया न! मेरे को पक्की था कि नतीजा साला जीरो निकलने का। पण नतीजा तो साला ऐसा निकला कि सुनेंगा तो फिलेट हो जायेंगा।”

“कर मेरे को फ्लैट।”

“वो भीड़ू...पंड्या...जो खेतवाडी का पता बोला था! गिरफ्तार है।”

“क्या?”

“मैं खुद हैरान साला। बोले तो कमाल किया पुलिस! खाली एक नाम और एक बोगस अड्रैस के बेस पर भीड़ू को खोज निकाला।”

“अरैस्ट भी कर लिया?”

“बोले तो बरोबर।”

“तेरे को कैसे मालूम पड़ा?

“अरे, मैं टिप सरकाया न पुलिस को!

“वो तो तू सरकाया बरोबर। पण ‘100’ से आगे टिप किधर गया...”

“ ‘100’ नम्बर कौन बोला?”

“क्या! तूने गुमनाम काल ‘100’ नम्बर पर नहीं की थी?”

“नहीं।”

“तो किधर की थी?”

“सिवरी थाने। जिधर का कि केस था जोकम फर्नान्डो कर के भीड़ू का।”

“कमाल है! कैसे सूझा?”

“मगज से काम लिया न!”—गाइलो एक उंगली से अपना घुटना ठकठकाता बोला।

“गाइलो, तेरा मगज घुटने में है?”

गाइलो हँसा।

“मेरा सवाल था तेरे को कैसे मालूम पड़ा वो भीड़ू गिरफ्तार था?”

“सिवरी थाने से मालूम किया न! उधर एसएचओ मीडिया वालों को बयान देता था, मैं भी सुना। जीते, पुलिस उस भीड़ू को एक बड़े गैंगस्टर के तौर पर प्रोजेक्ट कर रयेला है और बोस्ट कर रयेला है कि बड़ा केस पकड़ा। इसी वास्ते मीडिया को स्टेटमेंट दिया कि फिराइडे अर्ली मार्निंग रेलवे ट्रैक के पास जोकम फर्नान्डो करके भीड़ू का जो डैड बॉडी मिला, वहीच भीड़ू उसको डैड बॉडी बनाया।”

“वो कनफैस कर चुका?”

“करेगा न! अभी तो थामा खाली। बाकी कल छापे में न्यूज आयेगा तो मालूम पड़ेगा।”

“थामा कैसे? किधर था?”

“एसएचओ बोला न कि पुलिस का टीम खेतवाडी गया, उधर से मालूम पड़ा वो भीड़ू साल से ज्यास्ती हो गया अपने उधर पांचवा लेन वाले अड्रैस से नक्की किया। अभी जिधर जो भीड़ू साल से ऊपर रहा हो, उसको इलाके के भीड़ू जानते तो होयेंगे न! साला ये बोलने वाला एक भीड़ू जल्दी पकड़ में आ गया कि वो अब किधर रहता था! साला नवां पता ही न बोला, पहुंचा के आया पुलिस को उधर।”

“किधर?”

“कुलसा गली। उधर से थामा पुलिस ने उसको”—गाइलो ने कलाई घड़ी पर निगाह डाली—“कोई टू आवर्स बिफोर।”

“और दूसरा! उसका जोड़ीदार! सुहैल पठान!”

“वो तो बोले तो आबवियस अभी पकड़ में नहीं आया। आया होता तो एसएचओ उस का भी वो जो पिरेस की कान्फ्रेंस करता था, उसमें जिक्र करता।”

“ठीक।”

“पण दूसरे भीड़ू का, पठान का थामा जाना बोले तो ईजी। उसका वास्ते डोंगरी जाकर पुलिस को कोई भीड़ू नहीं तलाश करने का जिसको मालूम कि डोंगरी मार्केट के अपनी ठीये से पठान किधर शिफ्ट किया। जिसको थामा, उसको ठोकेगा न, पंड्या को थर्ड डिग्री देंगा न! साला गा गा के बोलेगा ये टेम उसका जोड़ीदार किधर रहता था। बोले तो पठान का पकड़ा जाना इज जस्ट ए मैटर आफ टाइम।”

“क्या पता अभी तक पकड़ा जा भी चुका हो!”

“नो बिग डील। बोले तो बरोबर बोला।”

“और तू बोलता था पुलिस को टिप सरकाना यूजलैस! बोलता था जब अड्रैस बोगस तो पुलिस साला क्या करेंगा!

“अभी मिस्टेक हुआ न!”

“वान्दा नहीं।”

“अभी बोल डिनर पी चुका?”

“खा चुका पूछ रयेला है न!”

“नहीं श्‍याने। वही बोल, जो पूछा?”

“नहीं पी चुका डिनर। तेरा वेट करता था।”

“दैट्स लाइक ए गुड फिरेंड। बोले तो मिश्री?”

“वो तो कब की सो भी चुकी है।”

“फिर टेम खोटी न कर। मेरे को भी ‘सो भी चुका’ होना मांगता है। क्या!”

“अभी।”