मंगलवार : सोलह मई : दिल्ली

वो एक सूखा कुआं था जिसका व्यास मुश्किल से चार फुट था और वो कोई पन्द्रह या सोलह फुट गहरा था। सारी रात विमल ठोड़ी से घुटने सटाये उसमें बैठा रहा था। बीच में उसने कभी झपकी मारने की कोशिश की थी तो कोई मकड़ी, कोई छिपकली, कोई काकरोच या कोई चूहा उस पर फुदकने लगता था। कुयें के मुंह पर छत की तरह जाल पड़ा हुआ था जो कि सरियों को यूं वैल्ड करके बनाया गया था कि वो चौकोर टुकड़ियों में बंटा जान पड़ता था। वो संदूक के ढक्कन की तरह उठता था और वैसे ही एक कोने में लगे कुंडे के साथ उसमें ताला लगाने की व्यवस्था थी।
सारी रात विमल ने जो विशेष काम उस अन्धेरे कुयें में बैठे किया था वो ये था कि उसने अपनी पगड़ी को लम्बाई के रुख दो तिहाई फाड़ लिया था, एक तिहाई पगड़ी वापिस सिर पर लपेट ली थी ताकि देखने वाले को उसकी कमी न खलती और दो तिहाई को लम्बी लम्बी कत्तरों में काट कर उनको आपस में यूं गूंथ दिया था कि उन्होंने एक रस्सी की सूरत अख्तियार कर ली थी। उस रस्सी का कोई फौरी इस्तेमाल उसके जेहन में नहीं था, फिलहाल उसने जो किया था मुख्यत: वक्तगुजारी के लिये किया था।
रात को किसी वक्त बारिश होने लगी थी जिसकी वजह से कुयें का फर्श न केवल सूखा नहीं रहा था बल्कि एक एक इंच पानी उसकी तलहटी में जमा हो गया था। वही बारिश सारी रात होती रहती जो जरूर कुयें में ही उसे जलसमाधि मिल जाती।
गनीमत थी कि ऐसा नहीं हुआ था। रात को बारिश थोड़ी देर होकर बन्द हो गयी थी।
बून्दाबान्दी का आलम तब भी था और आसमान की रंगत बता रही थी कि वो बून्दाबान्दी कभी भी तेज बारिश में तब्दील हो सकती थी।
बहरहाल ऊपर काली चादर की जगह फैली रोशनी बता रही थी कि रात बीत चुकी थी।
उसने रस्सी को अपनी पोशाक के नीचे अपनी कमर के गिर्द लपेट लिया और दिन चढ़ आया होने की प्रतिक्रियास्वरूप कोई नयी घटना घटित होने की प्रतीक्षा करने लगा।
आखिरकार उसे ऊपर से करीब होते कदमों की आहट मिली।
किसी ने जाल पर से नीचे झांका।
“कैसे हैं राजा साहब?” — बजाज ने पूछा — “सलामत हैं न? रात चैन से कटी न? नींद ठीक से आयी न?”
विमल ने जवाब न दिया।
“साहब लोगों को दया आ गयी है तुम्हारे पर इसलिये उन्होंने नाश्ता भेजा है।”
विमल खामोश रहा।
जाल के बीच में से रस्सी के सहारे एक छोटी सी टोकरी नीचे लटकाई गयी जिसमें कि एक मग में भाप उड़ाती चाय थी और एक प्लेट में डबल रोटी की चार सलाइसें थीं।
“साहब लोगों की मर्जी राजा साहब को शाही दस्तरखान पर ब्रेकफास्ट सर्व करने की थी लेकिन हवा तेज है, साथ में बून्दाबान्दी हो रही है इसलिये गार्डन में दस्तरखान बिछ नहीं रहा। फिलहाल इसी से गुजारा करो। मग और प्लेट उठाओ टोकरी में से।”
विमल ने आदेश का पालन किया।
टोकरी वापिस खींच ली गयी।
“मैं पांच मिनट में वापिस लौटूंगा। खाली मग और प्लेट वापिस लेने। समझ गये?”
विमल चाय पीने लगा।
बजाज जाल पर से परे हट गया।
विमल कान लगाकर उसके दूर जाते कदमों की आवाज सुनता रहा। जब आवाज सुनायी देनी बन्द हो गयी तो वो फुर्ती से उठ कर खड़ा हुआ। उसने अपनी कमर के गिर्द से अपनी रात भर की मेहनत का फल वो रस्सी निकाली। उसने उसका एक सिरा अपनी बगलों के नीचे से निकाल कर अपनी छाती के गिर्द बांधा, उसके ऊपर अपना बन्द गले का कोट व्यवस्थित किया, दूसरे सिरे को पीछे पीछे से कोट के कालर में से बाहर निकाला और फिर वो सिरा अपने दान्तों में पकड़ लिया। फिर उसने अपनी पीठ कुयें की एक साइड में लगायी, पांव उससे विपरीत दिशा में दीवार से सटाये और तेजी से पीठ और पैरों के सहारे कुयें में ऊपर की ओर सरकने लगा।
पांच मिनट!
पांच मिनट में उसने वापिस आना था।
उससे कहीं पहले उसने बहुत कुछ करना था।
कुयें में वापिस तो हरगिज नहीं जा गिरना था।
आखिरकार वो जाल के करीब पहुंचा। उसने दान्तों में दबा रस्सी का सिरा हाथों में पकड़ा और फुर्ती से उसे जाल के मध्य में एक सलाख के साथ बान्धा।
तभी उसे करीब आते कदमों की आहट मिली।
उसने एक दो क्षण और प्रतीक्षा की और फिर अपनी पीठ और पैरों की कुयें की दीवार पर से पकड़ को ढीला छोड़ दिया। उसने मुंह से एक घुटी हुई चीख निकाली और फिर उसका शरीर लम्बवत् कुयें में लटक कर रस्सी के सहारे पेन्डुलम की तरह झूलने लगा। रस्सी का सारा जोर उसके कन्धों पर था लेकिन कोई ऊपर से झांकता तो यही समझता कि वो उसके गले में बन्धी हुई थी।
बजाज ने चीख सुनी तो वो लपक कर ऊपर जाल पर पहुंचा। जाल के साथ बन्धी रस्सी के सहारे उसने अपने कैदी की लाश को झूलते देखा तो उसके छक्के छूट गये।
“सत्यानाश!” — उसके मुंह से निकला — “इसने तो फांसी लगा ली! रस्सी कहां से आ गयी इसके पास! हे भगवान! अब क्या होगा? झामनानी तो मेरा खून पी जायेगा! अभी लटका है। शायद अभी जिन्दा हो!”
उसने इधर उधर देखा तो करीब ही बागवानी में इस्तेमाल होने वाली एक कैंची पड़ी पाया। उसने झपट कर वो कैंची उठायी और उसका मुंह जाल में डाल कर रस्सी काट दी।
विमल धड़ाम से कुयें के पेंदे में जाकर गिरा।
बजाज ने चाबी लगाकर जाल का ताला खोला, जाल को परे उलटा और करीब पड़ी एक सीढ़ी कुयें में लटकाई। सीढ़ी नीचे पहुंच कर कहीं टिक गयी तो वो उसके सहारे कुयें में उतर गया।
कैदी का निश्चेष्ट शरीर औंधे मुंह दोहरा हुआ वहां पड़ा था।
उसने उसको कन्धों से थाम कर सीधा किया और उसके दिल की धड़कन टटोलने की कोशिश की।
विमल के दोनों हाथ हवा में उठे और उन्होंने बजाज की दोनों कनपटियों पर एक साथ वज्र प्रहार किया।
बजाज के मुंह से एक हाय निकली और वो उस सीमित स्थान में विमल के ऊपर उलट गया। विमल ने उसे परे धकेला और पूरी शक्ति से उसकी पसलियों में कई घूंसे बरसाये।
बजाज की आंखें उलट गयीं।
तब विमल हांफता हुआ सीधा हुआ और उसने छाती के साथ बन्धी रस्सी को अपने जिस्म से अलग किया। उसने देखा कि उसके सामने बेहोश पड़ा व्यक्ति बरसाती और वैसी ही वाटरप्रूफ टोपी पहने था। उसने उसे सीधा किया और बरसाती और टोपी दोनों उसके जिस्म से अलग करके खुद पहन लिये। अपनी दाढी और मूंछ उतार कर उसने बरसाती की जेब में डाल लीं। उसने बरसाती की जेबों में हाथ डाला तो पाया कि एक जेब में एक रिवॉल्वर मौजूद थी।
बढ़िया।
वो फुर्ती से सीढ़ी चढ़ के कुयें से बाहर निकल गया। उसने अपने पीछे सीढ़ी को वापिस खींच कर एक तरफ डाला, जाल को वापिस कुयें के मुंह पर उलटा, उसके कुंडे में अटका ताला उसको लगाया और चाबी झाड़ियों में उछाल दी।
तब उसने अपने चारों तरफ निगाह डाली।
उसे ऊंचे पेड़ों के अलावा कुछ दिखाई न दिया।
पता नहीं वो सूखा कुआं फार्म के कौन से हिस्से में था।
फिर उसकी निगाह उस पगडण्डी की तरफ गयी प्रत्यक्षत: जिस पर चलता हुआ वो शख्स वहां पहुंचा था।
बरसाती की रिवॉल्वर वाली जेब में हाथ डालकर उसे मजबूती से थामे विमल पगडण्डी पर आगे बढ़ा।
काफी देर चलते रहने के बाद उसे अपने आगे कहीं हलचल का आभास हुआ।
वो एक पेड़ की ओट में हो गया। उसने सावधानी से आगे झांका।
आगे एक छोटा सा मैदान था जिसमें उसी क्षण एक मैटाडोर वैन आ कर खड़ी हुई थी। उसके देखते देखते वैन की ड्राइविंग सीट पर से उसी के जैसी बरसाती और टोपी पहने एक आदमी बाहर कूदा और सिर झुकाये बून्दाबान्दी में एक तरफ चल दिया।
विमल प्रतीक्षा करता रहा।
वो दृष्टि से ओझल हो गया तो विमल दबे पांव मैटाडोर के पास पहुंचा। ये देख कर उसे बड़ी राहत महसूस हुई कि मैटाडोर की चाबियों का गुच्छा इग्नीशन में ही लटक रहा था। वो फुर्ती से उसमें सवार हो गया। उसने पीछे झांका तो पाया कि मैटाडोर खाली थी। उसने उसे स्टार्ट किया और आगे बढ़ाया। मैदान के आगे एक कच्चा रास्ता था जिस पर पहुंच कर वो ठिठका।
किधर जाये वो? दायें या बायें?
किधर तो उसने जाना ही था इसलिये उसने बायें का रुख किया।
मैटाडोर थोड़ी देर आगे बढ़ी तो उसे वो अर्धवृत्ताकार ड्राइव वे दिखाई दिया पिछली रात जिस पर पैदल चलता वो फार्म हाउस तक पहुंचा था।
उसने मैटाडोर को उस ड्रइव वे पर फार्म हाउस से विपरीत दिशा में दौड़ाया।
मैटाडोर बन्द फाटक पर पहुंची।
विमल ने रिवॉल्लर निकाल कर दायीं जांघ के नीचे दबा ली और हॉर्न बजाया।
गार्ड ने एक उड़ती हुई निगाह मैटाडोर पर डाली, मैटाडोर में बरसाती टोपी ओढ़े बैठे ड्राइवर पर डाली और फिर फाटक खोल दिया।
विमल ने मैटाडोर आगे बढ़ाई।
“बड़ी जल्दी लौट पड़े?” — वो फाटक के करीब पहुंचा तो गार्ड बोला।
“हुक्म हुआ है।” — विमल घरघराती आवाज में बोला।
गार्ड ने सहमति में सिर हिलाया और फिर न बोला।
मैटाडोर फाटक से पार निकल गयी।
विमल ने रिवॉल्वर वापिस बरसाती की जेब में रख ली।
फाटक पीछे बन्द हो गया।
विमल ने चैन की सांस ली।
एक करिश्मे की तरह — या शायद इरफान की दुआओं से — वो रिहा हो गया था।
लेकिन फायदा क्या था उस रिहाई का?
सोचना होगा। सोचना होगा कोई फायदा।
उसने मैटाडोर को शहर की तरफ दौड़ाया।
पिछली रात को कम से कम एक तजुर्बा उसे हो गया था कि वो दिल्ली के दादा उसकी एवज में नीलम को रिहा नहीं करने वाले थे। इसलिये फिर उन्हें खुद को आफर करना बेवकूफी थी।
तो? तो?
सूझेगा। सूझेगा कुछ।
‘वो’ सुझायेगा।
जिस नौ देवै दया करि सोई पुरुख सुजान।
तभी उसे सुनसान सड़क पर विपरीत दिशा से अपनी ओर आती एक कार दिखाई दी। कार में आगे ड्राइवर के साथ ड्राइवर जैसी ही मामूली हैसियत का एक व्यक्ति बैठा था और पीछे कीमती सूट में सजा एक साहब बैठा था। कार एक नयी जेन थी।
सड़क संकरी थी इसलिये आदतन विमल ने डिप्पर मारा।
डिप्पर की क्षणिक रोशनी में उसे जेन में बैठे साहब की शक्ल साफ दिखाई दी। वो सूरत अखबारों में और पत्रिकाओं में छपी वो इतनी बार देख चुका था कि उसने उसे साफ पहचाना।
‘भाई’!
दिल्ली में!
झामनानी के फार्म की तरफ जाता!
पलक झपकते विमल ने अपना अगला कदम निर्धारित कर लिया।
जेन अब उससे मुश्किल से बीस गज दूर रह गयी थी और किसी भी क्षण मैटाडोर की बगल से गुजर जाने वाली थी।
उसने पूरी शक्ति से एक्सीलेटर का पैडल दबाया और मैटाडोर को दायें काटा।
इससे पहले कि जेन का ड्राइवर कुछ समझ पाता, मैटाडोर सीधी जेन पर चढ़ दौड़ी।
विमल ने दरवाजा खोला और मैटाडोर से बाहर छलांग लगा दी।
दोनों गाड़ियां टकराईं, धड़ाम की गगनभेदी आवाज उस बियाबान इलाके में गूंजी।
जेन टक्कर लगते ही एक पहलू के बल उलट गयी और एक खड्ड में जा कर गिरी।
मैटाडोर टक्कर के बाद तिरछी हुई और एक पेड़ से जा टकराई।
फिर खामोशी छा गयी।
कांखता कराहता विमल उठा। उसके जिस्म का पोर पोर दुख रहा था लेकिन गनीमत थी कि कोई हड्डी नहीं टूटी थी, कहीं कोई गहरा घाव नहीं लगा था। उसने बरसाती की दायीं जेब टटोली तो पाया कि रिवॉल्वर वहां मौजूद थी। उसने रिवॉल्वर निकाल कर हाथ में ले ली और लड़खड़ाता हुआ खड्ड में पड़ी जेन की तरफ बढ़ा।
वो खड्ड इतनी गहरी थी और उसके आगे इतने घने झाड़ झंखाड़ थे कि उसमें गिरी पड़ी जेन सड़क से दिखाई नहीं देती थी।
वो खड्ड में उतरा।
उसने पाया कि जेन का ड्राइवर बड़ी खतरनाक हालत में स्टियरिंग के पीछे फंसा मरा पड़ा था।
वैसी ही हालत उसके जोड़ीदार की हुई थी।
टक्कर से गाड़ी सामने से यूं पिचकी थी कि अगली सवारियों का बच पाना असम्भव था।
उसने पीछे निगाह डाली।
‘भाई’ पिछली सीट पर लुढ़का पड़ा था। दाईं कनपटी के करीब से उसका सिर फट गया था और उसमें से निकलता खून उसका चेहरा भिगो रहा था लेकिन वो खुशकिस्मत था कि जिन्दा था।
विमल ने करीब जाकर उसे हिलाया डुलाया, उसके हाथ पैरों का मुआयना किया।
वो बेहोश था लेकिन जिन्दा था और किसी भी तरह के खतरे से बाहर था।
विमल ने रिवॉल्वर वापिस जेब में रखी, उसे कार में से बाहर निकाला और अपने कन्धे पर लाद कर उसे मैटाडोर तक लाया। मैटाडोर का स्लाइडिंग डोर खोल कर उसने उसे पीछे की एक सीट पर लिटाया। उसने अपने सिर पर से वाटर प्रूफ कैप हटा कर उसके नीचे से अपनी बची खुची पगड़ी बरामद की और उससे मजबूती से ‘भाई’ की मुश्कें कस दीं।
फिर उसने मैटाडोर का मुआयना किया।
मैटाडोर का अगला भाग पिचक गया था, रेडियेटर में से पानी टपक रहा था, विंड स्क्रीन चटक गयी थी लेकिन पैट्रोल की टंकी सलामत थी और इंजन इग्नीशन ऑन किये जाते ही जवाब देता था।
यानी कि मैटाडोर चलने की हालत में थी।
उसने मैटाडोर को पहले बैक करके पेड़ के सामने से हटाया, फिर सड़क पर उसे यूं सीधा किया कि उसका रुख वापिस झामनानी के फार्म की तरफ हो गया। मंथर गति से उसे चलाता वो उसे दुर्घटनास्थल से कोई सौ गज आगे ले गया और उसे सड़क से नीचे उतार कर पेड़ों के एक झुरमुट के पीछे रोक दिया।
उसके बाद वो फिर ‘भाई’ की तरफ आकर्षित हुआ जो कि हौले हौले कुनमुना रहा था और लगता था कि किसी भी क्षण होश में आ जाने वाला था।
वो प्रतीक्षा करने लगा।
पांच मिनट बाद ‘भाई’ के मुंह से पहली कराह निकली। उसने कई बार आंखें खोलीं, बन्द कीं और फिर उठने का उपक्रम किया। अपने उपक्रम में कामयाबी हासिल न होती पाकर उसे अहसास हुआ कि उसके हाथ पांव मजबूती से बन्धे हुए थे।
फिर उसकी निगाह सामने बैठे विमल पर पड़ी।
“कौन हो तुम?” — वो क्रोधित भाव से बोला।
“फैन्टम।” — विमल बड़ी शान्ति से बोला — “दि घोस्ट हू वाक्स।”
“क्या बकता है? कौन है तू?”
“मैं वो शख्स हूं जिसने तेरे से वादा किया था कि वो तुझे ईंट का जवाब पत्थर से देगा।”
‘भाई’ के नेत्र फैले।
“मैं वो शख्स हूं जो लाल कालीन बिछा कर तेरा इस्तकबाल करने का इरादा रखता था लेकिन तू ऐसा एकाएक आया कि इरादे को अमली जामा न पहनाया जा सका।”
“तू... तू सोहल है?”
“मैंने बोला था कि बहुत जल्दी तू मुझे अपने सिरहाने खड़ा पायेगा।”
“मेरी इधर आमद की बाबत कैसे जान गया?”
“मैं कहां जान गया! ऊपर वाले ने जनवाया जिसके हाथ में तेरी बद्किस्मती है और मेरी खुशकिस्मती है। नतीजा तेरे सामने है। क्या हुआ, कैसे हुआ, किस के किये हुआ, इस पर भले ही जब तक जी चाहे, सिर धुनता रह।”
“सोहल, मैंने तेरे जैसा मुकद्दर का सिकन्दर नहीं देखा।”
“और मैंने अपने जैसा अभागा और बद््नसीब नहीं देखा।”
“अब क्या चाहता है?”
“कितनी तमन्ना है भारत सरकार की तेरे पर अपना कब्जा जमाने की!”
“तू मुझे गिरफ्तार करायेगा?”
“करना तो ये ही चाहिये लेकिन क्या करूं, मेरी खुदगर्जी आड़े आ रही है।”
“कैसी खुदगर्जी?”
“ऐसा भोला बन के मत दिखा। दुबई में बैठा हर बात की खबर रखता है तो इस बात की खबर भी तुझे जरूर होगी कि मेरी बीवी नीलम तेरे दिल्ली वाले नये जोड़ीदारों के कब्जे में है।”
“क्यों नहीं होगी? खबर तो मुझे ये भी है कि तुम लोगों ने शिवांगी शाह को मार डाला और बच्चे को छुड़ा लिया।”
“जिसका कि तुझे अफसोस है!”
“है तो सही लेकिन उतना अफसोस बच्चे के हाथ से निकल जाने का नहीं है जितना कि शिवांगी शाह की मौत का है। वो ऐसी कमाल की औरत थी कि हीरों के तोल में भी सस्ती थी।”
“मुझे कमाल की औरतों का कोई तजुर्बा नहीं।”
“तू खुदगर्जी की बात कर रहा था!”
“हां। खुदगर्जी ये है कि तुझे गिरफ्तार कराने की जगह मैं तेरी जान का सौदा नीलम की जान से करना चाहता हूं।”
“कर पायेगा?”
“मुनहसर है।”
“किस बात पर?”
“इसी बात पर कि दिल्ली वालों की निगाह में तेरी कोई कीमत, तेरी कोई औकात है या नहीं!”
“मैं ‘भाई’ हूं।” — वो गर्व से बोला — “‘भाई’ की औकात से तो सारे एशिया के अन्डरवर्ल्ड की औकात है!”
“फिर क्या बात है! फिर तो मेरी फतह है!”
“तू क्या करेगा?”
“मैं क्या करूंगा? जो करेगा, तू करेगा।”
“क्या?”
“अपना मोबाइल निकाल, झामनानी को काल लगा और उसे बोल कि नीलम को लेकर यहां आये।”
वो खामोश रहा।
विमल ने रिवॉल्वर निकाल कर हाथ में ली।
“क्या!” — वो बोला।
‘भाई’ मुस्कराया।
“तू मुझे नहीं मार सकता।” — वो बोला — “तू अभी खुद तो बोला कि तूने मेरी जान का सौदा अपनी बीवी की जान से करना है। मुझे मार डालेगा तो सौदा कैसे होगा?”
विमल ने रिवॉल्वर की नाल को ‘भाई’ की दायीं कनपटी में वहां गड़ाया जहां उसे गहरा जख्म लगा था और जोर से घुमाया।
तब तक बहना बन्द हो चुका खून तत्काल परनाले की तरह फिर बह निकला।
‘भाई’ का चेहरा कागज की तरह सफेद हो गया।
“ये नाल तेरी खोपड़ी में इधर से दाखिल होकर परली कनपटी से बाहर निकले तो भी तुझे क्या फर्क पड़ेगा!” — विमल सहज भाव से बोला — “तू तो शेर है। कैसे कोई तेरी मूंछ का बाल नोच सकता है! नहीं?”
“हटा।” — वो बड़ी मुश्किल से बोल पाया।
“जो हुक्म।” — विमल ने रिवॉल्वर कनपटी से परे की।
“हाथ खोल।”
विमल ने खोले।
‘भाई’ ने अपने कोट की जेबें टटोली, फिर पतलून की जेबें टटोलीं।
“क्या हुआ?” — विमल बोला।
“मोबाइल।” — वो बोला — “एक्सीडेंट में कहीं गिर गया जान पड़ता है।”
दाता!
“पता नहीं साबुत भी बचा होगा या नहीं!”
विमल ने खुद उसकी तमाम जेबें टटोलीं।
मोबाइल कहीं नहीं था।
“घड़ी उतार।” — वो बोला।
“क्या?” — ‘भाई’ हड़बड़ाया।
“अंगूठी भी। ब्रेसलेट भी। गले में कोई चेन वेन पहनता है तो वो भी। जल्दी कर।”
भाई ने वो सब चीजें उसे सौंपी।
“तमाम जेबें खाली कर।”
‘भाई’ ने वो भी किया।
विमल ने सब सामान उसी के रूमाल में बान्धा और अपनी बरसाती की जेब के हवाले किया। उसने उसके हाथ फिर पहले की तरह बान्ध दिये, फिर उसके गले से टाई उतारी और उसका एक सिरा गोल करता हुआ बोला — “मुंह खोल।”
“क्या?”
“मुंह खोल, भई। तुझे लड्डू खिलाना है।”
“क्या बकता है?”
“कोई बात नहीं समझता।”
विमल ने उसका निचला जबड़ा जबरन दबोच कर उसका मुंह खोला, उसमें टाई का गोल किया सिरा ठूंसा और बाकी की टाई को ऊपर से उसके मुंह पर बान्ध दिया। फिर उसने उसे सीट से नीचे लुढ़का दिया और पीछे पड़ी तिरपाल उसके ऊपर डाल दी। फिर वो मैटाडोर की ड्राइविंग सीट पर जा बैठा और उसने उसे फार्म की तरफ दौड़ाया।
फार्म से आधा मील पहले उसने मैटाडोर को सड़क से नीचे उतार दिया और पेड़ों के एक झुरमुट के पीछे छुपा दिया। उसने चाबियां इग्नीशन में ही छोड़ दीं। सड़क पर वापिस आकर उसने उस दिशा में निगाह दौड़ाई तो उसे मैटाडोर दिखाई न दी।
गुड!
वो पैदल फार्म की तरफ बढ़ा।
बून्दाबान्दी तब भी जारी थी।
उसके फार्म के बन्द फाटक तक पहुंचते पहुंचते बून्दाबादी तेज हो गयी और पानी बाकायदा बरसने की धमकी देने लगा।
पूर्ववत् उसने कालबैल बजायी।
फाटक का झरोखा खुला।
नीली वर्दी वाले गार्ड ने सन्दिग्ध भाव से उसकी तरफ देखा।
“मैं ‘भाई’ का हरकारा हूं।” — विमल बोला — “उसका सन्देशा लाया हूं। भीतर खबर कर।”
“कौन ‘भाई’?” — गार्ड बोला।
“ये गूढ़ ज्ञान की बातें हैं। तेरे पल्ले नहीं पड़ने वाली। भीतर फोन लगा और झामनानी को खबर कर।”
उसने फोन किया।
उसने रिसीवर वापिस रखा तो उसके चेहरे पर पहले जैसे उपेक्षा के भाव न थे। वो झरोखे से परे हटा। उसने फाटक की खिड़की खोली।
विमल भीतर दाखिल हुआ।
“सीधे चले जाओ।” — गार्ड बोला।
“रास्ता मालूम है मुझे।”
लम्बे डग भरता वो आगे बढ़ा और इमारत के सामने पहुंचा।
हुकमनी और तरसेम लाल बरामदे में मौजूद थे।
“कोई हथियार है तो इधर करो।” — हुकमनी बोला।
“जरूर।” — विमल बोला, उसने रिवॉल्वर निकाल कर उसे थमा दी।
रिवॉल्वर हाथ में आते ही हुकमनी के माथे पर बल पड़े। कई क्षण तक उसने उलट पलट कर उसका मुआयना किया।
“ये तो” — फिर वो सन्दिग्ध भाव से विमल को घूरता हुआ बोला — “बजाज की रिवॉल्वर है।”
“उसी की है।” — विमल सहज भाव से बोला।
“तुम्हारे पास कैसे आयी?”
“जैसे तुम्हारे पास आयी।”
“क्या मतलब?”
“जैसे मैंने तुम्हें दी तो तुम्हारे पास आ गयी, वैसे ही उसने मुझे दी तो ये मेरे पास आ गयी।”
“कहां मिला वो तुम्हें?”
“सारे सवाल खुद ही पूछेगा?” — विमल कर्कश स्वर में बोला — “तेरे को बताया कोई कि मैं क्या बोला कि मैं कौन हूं?”
हुकमनी सकपकाया, फिर वो तरसेम लाल से बोला — “इस पर नजर रखना, मैं आता हूं।”
तरसेम लाल ने सहमति में सिर हिलाया।
पीछे का एक दरवाजा खोलकर हुकमनी उसके पीछे गायब हो गया।
विमल प्रतीक्षा करता रहा।
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला, हुकमनी चौखट पर प्रकट हुआ, उसने विमल को आगे बढ़ने का इशारा किया।
विमल आगे बढ़ा, उसके पहलू से गुजर कर वो भीतर दाखिल हुआ तो उसके पीछे दरवाजा बन्द कर दिया।
भीतर चारों बिरादरीभाई मौजूद थे।
विमल के हाथ से स्थानांतरित हुई रिवॉल्वर झामनानी के हाथ में थी और सबसे ज्यादा उलझन के भाव उसी के चेहरे पर थे।
“वडी, कौन है, नी, तू?” — झामनानी बोला।
विमल ने सिर से टोपी उतार कर एक ओर उछाल दी।
ब्रजवासी द्वारा सोहल की मुम्बई से लायी तसवीरों से तब तक चारों बिरादरीभाई दो चार हो चुके थे। विमल की सूरत पर निगाह पड़ते ही उनके होश उड़ गये।
विमल ने बरसाती के बटन खोल कर उसे भी उतारा।
नीचे से राजा गजेन्द्र सिंह की शाही ड्रैस प्रकट हुई तो उनके रहे सहे होश भी उड़ गये। चारों उछल कर खड़े हुए।
“सोहल!” — झामनानी के मुंह से निकला।
“ऐट युअर सर्विस।” — विमल सिर नवा कर बोला।
“तू तो बाहर से आया, नी! कुयें से कैसे निकला? बाहर कैसे पहुंच गया?”
“बाहर तो निकला सो निकला” — ब्रजवासी बोला — “लौट के आ गया?”
“खोट्टी अकल माईंयवे दी।” — पवित्तर सिंह बोला।
“मार के गेर दो, जी, सुसरे को।” — भोगीलाल बोला — “इब के लिहाज मति न करो।”
“साईं लोगो, सबर।” — झामनानी बोला — “सबर। वडी, तुम भुल रहे हो, नी, कि ये ‘भाई’ का नाम लेकर इधर आया। ‘भाई’ का हरकारा बोला ये अपने को।” — वो विमल की तरफ घूमा — “इधर मेरी तरफ देख, नी।”
विमल ने देखा।
“वडी, फाटक वाले गार्ड ने ठीक सुना, नी, कि तू ‘भाई’ का सन्देशा लाया है?”
“ठीक सुना।” — विमल बोला।
“तू ‘भाई’ का हरकारा कैसे बन गया?”
“राज की बात है। सब के सामने नहीं बताई जा सकती।”
“वडी, क्या सन्देशा लाया है, नी?”
“सब के सामने बोलूं?”
“ड्रामा बन्द कर, नी! जल्दी बोल वरना शूट कर दूंगा।”
“क्या कहने! यानी कि मैं तुम लोगों की सहूलियत को निगाह में रख कर वापिस लौट के आया?”
“साईं, तेरे लौट आने पर तो मैं सख्त हैरान हूं! इस बात से भी ज्यादा हैरान हूं कि तू कुयें से कैसे निकला!”
“पूरी बात सुनोगे तो अभी हैरानी से गश ही खा जाओगे।”
“वडी, जल्दी बोल, नी, कि क्या है पूरी बात?”
“मैं नीलम को लेने आया हूं।”
“तू... तू पागल है, नी।”
“या” — ब्रजवासी बोला — “नशे में है।”
“सुबह सवेरे।” — भोगीलाल बोला।
“गुरमुखो” — विमल पवित्तर सिंह से बोला — “तुसी कुछ नहीं कहना?”
“पवित्तर सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला, घूर कर विमल को देखा और बोला — “तूने कहा तू नीलम को लेने आया है और हम कहेंगे कि चल भई नीलम, जा अपने खसम दे नाल। ठीक?”
“ऐसा ही है कुछ कुछ मेरे जेहन में।”
चारों ने फिर उलझनपूर्ण भाव से एक दूसरे की तरफ देखा।
“वडी, ‘भाई’ की बात बीच में रह गयी, नी।” — झामनानी बोला — “बोल नी, क्या सन्देशा लाया है तू उसका?”
“दरअसल मैं उसका सन्देशा नहीं, उसकी खबर लाया हूं।”
“वडी, कैसी खबर, नी?”
“दिल्ली के दादाओ, तुम सब का पिता ‘भाई’ इस वक्त मेरे कब्जे में है। ऐन वैसे ही जैसे कि नीलम तुम्हारे कब्जे में है।”
“बड़ के हांक रिया है, जी।” — भोगीलाल बोला।
“तेरे कहने भर से मान लें” — ब्रजवासी बोला — “कि ‘भाई’ तेरे कब्जे में है?”
“मैं सबूत पेश कर सकता हूं।” — विमल बोला।
“तो कर न, नी।” — झामनानी बोला — “करता क्यों नहीं?”
विमल ने बरसाती की जेब से वो रूमाल निकाला जिसमें ‘भाई’ का निजी सामान बन्धा था। उसने रूमाल को खोला और उसका सामान उन लोगों के सामने मेज पर उलट दिया।
“ये है सबूत।” — वो बोला — “ये ‘भाई’ का पासपोर्ट। ये उसकी रोलेक्स की लाखों की घड़ी। ये उसकी नीलम जड़ी अंगूठी। ये उसका हीरों से जड़ा आइडेंटिटी ब्रेसलेट। ये अल्लाह के पेंडेंट वाली उसकी फैंसी चेन। ये उसका रे बैन का चश्मा। ये उसका शेफर्स का गोल्ड पैन। ये उसका यू.ए.ई. में जारी हुआ इन्टरनेशनल ड्राइविंग लाइसेंस। ये उसका मगरमच्छ के चमड़े का बटुवा जिस में उसके नाम के चार इन्टरनेशनल क्रेडिट कार्ड हैं। और ये आखिरी आइटम उसके मोनोग्राम वाला रूमाल। दिल्ली के दादाओ, भाई का ये खास और निजी सामान उसी शख्स के कब्जे में हो सकता है जिसके कब्जे में कि ‘भाई’ हो।”
सब ने एक एक आइटम का मुआयना किया। फिर सब के चेहरों पर हवाईयां उड़ने लगीं।
“‘भाई’ को थाम लिया!” — ब्रजवासी के मुंह से निकला।
उसके कहने का ढंग ऐसा था जैसे ‘भाई’ को थामना और प्रलय आ जाना एक ही बात हो।
“वडी, कहां है, नी, वो?” — झामनानी बोला।
विमल हंसा।
“नहीं बतायेगा, नी?”
“कैसे बातऊंगा? जबकि मैं न पागल हूं और न नशे में हूं। कोई हालिया दिमागी दौरा भी मुझे नहीं पड़ा।”
“खामोश रह सकेगा, नी?”
“मार के आगे भूत भागते हैं।” — भोगीलाल बोला।
“कीमा कुट दयो माईंयवे दा।” — पवित्तर सिंह बोला।
“इसका तो बाप भी बोले।” — ब्रजवासी बोला।
“तूने ऐसी कोई घोषणा नहीं करनी, झामनानी?” — विमल बोला।
झामनानी सकपकाया, उसका सिर अपने आप ही इनकार में हिला।
“तो अपने कुत्तों को चुप करा ताकि मैं तेरे सवाल का जवाब दे सकूं।”
तीनों के चेहरे लाल हुए, वो विमल की तरफ झपटे लेकिन झामनानी ने उन्हें रोका।
“वडी, क्या जवाब है, नी , तेरा?” — झामनानी बोला।
“मुमकिन है कि तुम लोग जबरन मेरे से कुबुलवा लो कि ‘भाई’ कहां है लेकिन दो वजह से वो जानकारी तुम्हारे काम नहीं आने वाली। एक तो एक खास वक्त तक मैं अपने उन आदमियों के पास वापिस न लौटा जिनके कब्जे में ‘भाई’ है तो वो ‘भाई’ को मार डालेंगे। दूसरे, उस खास वक्त से पहले तुमने मेरे से ‘भाई’ का पता कुबुलवा लिया और तुम वहां पहुंच भी गये तो ‘भाई’ जिन्दा तुम्हारे हाथ नहीं लगेगा क्योंकि मेरी अपने आदमियों को हिदायत है कि शहर में जिस जगह पर ‘भाई’ कैद है, कोई गैर या अनजाना आदमी उसके करीब भी फटके तो वो ‘भाई’ का सिर काट कर उसे प्लेट में सजा कर यहां भेज दें। ऐन वैसे ही जैसे कि तुम मेरी बीवी को मुझे ताबूत में पेश करना चाहते हो या मेरे बच्चे को जूते के डिब्बे में पेश करना चाहते हो।”
“तेरे आदमी कौन?”
“धोबी, जिनसे तुम बाखूबी वाकिफ हो।”
“धोबियों से निपटने का यहां पूरा इन्तजाम है। बहुत हथियारबन्द आदमी हैं हमारे पास यहां। छोटी मोटी फौज मौजूद है यहां हथियारबन्द आदमियों की।”
“कल देखी मैंने। लेकिन धोबियों का यहां आना जरूरी नहीं। जरूरी होता तो मैं उन्हें साथ ही ले के आया होता। मैं आ गया, यही काफी है मौजूदा हालात में।”
“क्या कहने!” — ब्रजवासी बोला।
“साईं, तू है तो बहुत सयाना” — झामनानी बोला — “लेकिन इस बार तो सब गलत किया।”
“वो कैसे?”
“तूने अपने धोबियों के साथ जो टाइम लिमिट सैट की, ये सोच के सैट की कि नीलम इधर है। लेकिन नीलम तो इधर नहीं है, नी!”
विमल गड़बड़ाया। वो बात तो उसने वाकेई नहीं सोची थी।
“वो इधर ही है।” — फिर वो बोला।
“वडी, कौन बोला, नी, कि वो इधर है?”
“खुद ‘भाई’ बोला।”
झामनानी खामोश हो गया।
“लफ्फाजी बहुत हो चुकी।” — विमल एकाएक कर्कश स्वर में बोला — “एक मिनट में नीलम को सही सलामत इधर हाजिर करो वरना अपने ‘भाई’ के जनाजे में शामिल होने के लिये तैयार हो जाओ।”
चारों फिर बेहद परेशान दिखाई देने लगे।
“बोलो।” — विमल पूर्ववत् कर्कश स्वर में बोला — “क्या जवाब है तुम्हारा?”
“नीलम आती है, साईं।” — झामनानी मरे स्वर में बोला — “हुकमनी, वडी, ले के आ, नी, इसकी बीवी को।”
दो मिनट में नीलम वहां पहुंची।
विमल को अकेले वहां मौजूद देख कर उसका चेहरा कागज की तरह सफेद हो गया।
“हौसला रख।” — विमल आश्वासनपूर्ण स्वर में बोला — “मैं गिरफ्तार नहीं हूं, अपनी मर्जी से यहां मौजूद हूं।”
“ओह!”
“मैं तुझे लेने आया हूं।”
“क्या!”
“ये लोग तुझे राजी राजी मेरे साथ भेज रहे हैं।”
“इतनी आसानी से नहीं, साईं।” — झामनानी बोला।
“क्या मतलब?” — विमल के माथे पर बल पड़े।
“वडी, पहले ‘भाई’ की बात तो मुकम्मल हो जाये!”
“अब क्या बात बाकी रह गयी मुकम्मल होने से?”
“‘भाई’ हमारे तक वापिस कैसे पहुंचेगा?”
“बड़े आराम से पहुंचेगा। मैं नीलम को यहां से ले के जाऊंगा। मेरे अपने आदमियों के पास हमारे महफूज पहुंचते ही वो लोग ‘भाई’ को रिहा कर देंगे।”
“चड़या हुआ है? वडी तू चला गया, तेरी जोरू चली गयी तो ‘भाई’ के लौटने को क्या गारन्टी रह जायेगी?”
“तुम क्या चाहते हो?”
“किसी तरीके से ‘भाई’ की सेफ वापिसी की गारन्टी कर और क्या चाहतें हैं!”
विमल कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला — “तुम नीलम को यहां से अकेली चली जाने दो। मैं इसे अपने साथियों का पता बता दूंगा। इसके मेरे साथियों के पास पहुंचते ही मेरे साथी ‘भाई’ को रिहा कर देंगे और ‘भाई’ को समझा देंगे कि रिहा होते ही वो यहां तुम लोगों को फोन करे। फोन पर खुद ‘भाई’ के ये तसदीक करते ही कि वो आजाद हो गया था, इधर तुम मुझे आजाद कर दोगे और ‘भाई’ की तरह ही अपनी रिहाई की खबर मैं अपने आदमियों को टेलीफोन पर दे दूंगा।”
“तू वक्त कितना मुकर्रर करके आया है अपनी वापिसी का?”
“दो घन्टे का।”
“जिसमें से आधा घन्टा तो गुजर भी चुका होगा!”
“पौना।”
“ठीक है। हमें ये इन्तजाम मंजूर है, नी। तेरी बीवी इधर से जायेगी और हमें यहां ‘भाई’ का फोन आयेगा कि वो आजाद हो गया है। तब हम तेरे को छोड़ देंगे। लेकिन” — झामनानी का स्वर एकाएक हिंसक हो उठा — “अगर सवा घन्टे के अन्दर ‘भाई’ का इधर फोन न आया तो मैं खुद तुझे शूट कर दूंगा।”
“‘भाई’ को यहां का फोन नम्बर मालूम है?”
“मालूम है, नी।”
“रास्ता?”
“वो भी मालूम है, नी?”
“तो मुझे मंजूर है। अब मैं नीलम से अकेले में बात करना चाहता हूं।”
“चड़या हुआ है!”
“मुझे नीलम को उस जगह का पता बताना होगा जहां ‘भाई’ गिरफ्तार है।”
“यहीं बता।”
“मेरे भाई, अब तू चड़या हुआ है। अगर उस जगह का पता तुम लोगों ने भी सुन लिया, फिर क्या तुम हमें छोड़ोगे? फिर तो तुम फौरन उस जगह पर हल्ला बोल कर ‘भाई’ को छुड़ाने की कोशिश करोगे।”
दादा लोगों की आपस में निगाहें मिलीं।
“तुम दोनों यहां से बाहर नहीं जा सकते।” — फिर झामनानी बोला — “तू बीवी को कोने में ले जा और यूं इसके कान में पते की फूंक मार कि तेरी आवाज हमें सुनाई न दे।”
“ठीक है।”
विमल ने नीलम की बांह पकड़ी और उसे कमरे के कोने में ले गया।
“जो मैं कहता हूं, उसे गौर से सुन।” — विमल फुसफुसाता सा बोला — “सुन पा रही है?”
नीलम ने बड़े सस्पेंसभरे भाव से सहमति में सिर हिलाया।
“यहां से कोई आधा मील दूर महरौली की ओर जाने वाली सड़क पर दायीं ओर पेड़ों का एक झुरमुट है। उसके पीछे एक ब्राउन कलर की मैटाडोर वैन खड़ी है। मैटाडोर की चाबियां इग्नीशन में ही मौजूद हैं। मैटाडोर में ही हाथ पांव बन्धा ‘भाई’ पड़ा है।”
वो चौंकी।
“यहां से इतने करीब?” — वो बोली।
“धीरे। धीरे। तुझे सिर्फ कार चलानी आती है, मैटाडोर चलाना तेरे लिये मुश्किल काम होगा। लेकिन ये काम तूने किसी भी तरीके से करके दिखाना है। इसी में तेरी जान की सलामती है।”
“और तुम्हारी?”
“मुझे कुछ नहीं होगा।”
“मैटाडोर चला के मैं जाऊंगी कहां?”
“तुम उसको इस इलाके से ज्यादा से ज्यादा दूर ले जाना और कहीं से मुबारक अली को फोन करना। मैं तुझे उसका तिराहा बैरम खां का एक पी.पी. नम्बर बता रहा हूं जिसे जुबानी याद कर ले।”
“बोलो।”
विमल ने बोला।
“नम्बर न मिला तो?”
“अभी सुबह का वक्त है, मुझे उम्मीद नहीं कि मुबारक अली इतनी जल्दी घर से निकल जायेगा। वो न हो तो अली या वली को पूछना। वो भी न हों तो हाशमी को पूछना। फिर भी कोई बात न बने तो सौ नम्बर डायल करना और सब कुछ पुलिस को बात देना।”
“वो आदमी कहता था कि अगर ‘भाई’ न लौटा तो वो तुम्हें मार डालेंगे!”
“वो कोरी धमकी है। जब तक उन्हें ‘भाई’ की कोई खोज खबर नहीं लग जायेगी, वो ऐसा कुछ नहीं करेंगे।”
“फिर भी...”
“फिर भी सोचने का वक्त नहीं। थोड़ा बहुत रिस्क लेना जरूरी है। तू जैसा मैंने कहा है, वैसा कर।”
“मुबारक अली से बात हो गयी तो मैं उसे कहूंगी क्या?”
“उसको यहां के हालात बता देना। ये बता देना कि ‘भाई’ मैटाडोर में है। आगे जो वो मुनासिब समझेगा, खुद कर लेगा।”
“मैं तुम्हारी तरफ से आश्वस्त नहीं।”
“अरी, मूर्ख, मुझे कुछ नहीं होने वाला। तू जा, वरना कोई टोक देगा।”
“लेकिन...”
“वडी, खत्म करो, नी।” — झामनानी उच्च स्वर में बोला
“देखा!” — विमल बोला — “अब वक्त बर्बाद न कर। तू फौरन यहां से निकल जा। मुझे अन्देशा है कि कहीं इन लोगों का तेरी बाबत इरादा न बदल जाये। अब जा जा जा।”
“जाती हूं।” — नीलम मरे स्वर में बोली — “लेकिन...”
“अब क्या है?”
“सूरज! वो... वो...”
“सेफ है। मुम्बई में है। इरफान के पास है।”
“वो तो... वो तो...”
“दुश्मनों के चंगुल में था? छुड़ा लिया।”
“ओह!”
“अब जा।”
“अच्छा।”
“झामनानी” — विमल उच्च स्वर में बोला — “मैंने नीलम को जो कहना था, कह दिया है। ये जाने को तैयार है।”
झामनानी ने सहमति में सिर हिलाया और बोला — “हुकमनी!”
“हां, साहब।”
“सरदार की बीवी को फार्म से बाहर तक छोड़ के आ। सब आदमियों को भी समझा दे कि ये मेरे हुक्म से यहां से जा रही है, ये कहीं भी जाने के लिये आजाद है। किसी ने इसे रोकना टोकना नहीं है, नी?”
“पीछे भी नहीं जाना है।” — विमल बोला।
“वडी, सुना, नी?”
“हां, साहब।”
“तो हिलता क्यों नहीं, नी?”
हुकमनी ने नीलम को इशारा किया, फिर दोनों लम्बे डग भरते वहां से बाहर निकल गये।
पीछे खामोशी छा गयी।
पांच छ: मिनट बाद हुकमनी वापिस लौट आया।
“गयी।” — वो बोला।
“ठीक।” — झामनानी बोला — “अब इसे उसी कमरे में ले के चल जिसमें इसकी बीवी बन्द थी। तरसेम लाल तू भी चल।”
झामनानी, उसके दोनों आदमी और विमल पिछवाड़े के एक कमरे में पहुंचे।
उस कमरे में प्रवेश द्वार के अलावा कोई छोटा मोटा रोशनदान तक नहीं था। भीतर छत से लटके शेड के साथ एक बल्ब जल रहा था। कमरे में एक हस्पतालों जैसे ऊंचे लोहे के पलंग के अलावा एक कुर्सी थी, एक मेज थी जिस पर एक टेबल फैन रखा हुआ था और एक पानी की बोतल और एक गिलास रखा हुआ था।
“वडी, तशरीफ रख, नी।” — झामनानी बोला।
विमल पलंग पर नीचे टांगें लटका कर बैठ गया।
“तरसेम लाल।” — झामनानी बोला।
“हां, साहब।” — तरसेम लाल तत्पर स्वर में बोला।
“ये आदमी तेरे हवाले है, इसलिये तू इधर ही ठहरेगा।”
“ठीक है।”
“ये रिवॉल्वर पकड़। ये आदमी कोई शरारत करे, कोई पंगा करे तो इसे बेहिचक शूट करने की तेरे को मेरी इजाजत है। समझ गया?”
“हां, साहब।”
“ये पलंग पर बैठा है, नी। ये इस पर से उठ कर खड़ा होने की भी कोशिश करे तो गोली।”
“ऐसा ही होगा।”
“तरसेम लाल, ये तेरा इम्तहान है कि तू मेरे काबिल आदमी है या नहीं। तेरे इधर होते अगर ये आदमी यहां से निकल भागने में कामयाब हो गया तो समझ लेना कि तेरी जिन्दगी खतम।”
“ऐसा कुछ नहीं होगा, साहब। ये हिल के तो दिखाये!”
“शाबाश!” — फिर वो हुकमनी की तरफ घूमा — “और तू! यहां से निकल और कमरे को बाहर से ताला लगा।”
विमल के चेहरे पर मायूसी छा गयी।
यानी कि भीतर छूटे जा रहे तरसेम लाल नाम के आदमी पर वो काबू पा भी लेता तो भी बाहर निकलना नामुमकिन था।
झामनानी और हुकमनी बाहर निकल गये। तत्काल दरवाजा बन्द हुआ और उसको बाहर से ताला लगाया जाने की आवाज हुई।
फिर दूर जाते कदमों की आवाज।
तरसेम लाल ने एक जमहाई ली और पलंग पर बैठे विमल की तरफ देखा।
कैसा शरीफ, कैसा निरीह लग रहा है ये शख्स इस घड़ी! इस घड़ी कोई इसे देखता तो भला कह सकता था कि ये सात राज्यों में घोषित इश्तिहारी मुजरिम था और इसकी गिरफ्तारी पर तीन लाख रुपये का ईनाम था! कैसा बेइज्जत हुआ था कल बेचारा! अकेले यहां पहुंच कर कैसा हौसले का काम किया था इसने कल!
और आज फिर!
कैसे अपनी जान जोखम में डालकर इसने अपनी औरत को रिहा करवाया था!
“मैं पुलिस का आदमी हूं।” — एकाएक वो बोला।
विमल ने हड़बड़ा कर सिर उठाया।
“क्या?” — वो बोला — “क्या कहा?”
“मैं पुलिस का आदमी हूं।” — तरसेम लाल दबे स्वर में बोला — “दिल्ली पुलिस में हवलदार हूं। ये देखो मेरा आइडेन्टिटी कार्ड।”
उसने विमल को जेब से दिल्ली पुलिस का आइडेन्टिटी कार्ड निकाल कर दिखाया।
“ओह!” — विमल बोला — “यहां कैसे?”
“यहां मैं इन लोगों के बीच पुलिस का भेदिया हूं।”
“भेदिया! किसलिये?”
“झामनानी की ऐसी तैसी फेरने के लिये जिसने कि मायाराम बावा का अगवा करवाया।”
“तुम्हें कैसे मालूम है कि मायाराम का अगवा इसने करवाया था?”
“मेरे से बेहतर और किसे मालूम होगा!”
“मतलब?”
“मैंने ही रिश्वत खाकर झामनानी को मायाराम को पंजाब पुलिस द्वारा अमृतसर ले जाये जाने के तमाम प्रोग्राम के बारे में बताया था।”
विमल ने हैरानी जताते हुए उसकी तरफ देखा।
“दूसरे, अब तो वो लोग अपनी जुबानी भी कुबूल कर चुके हैं कि सब किया धरा उनका था। वो तो तुम्हारे सामने भी कुबूल कर रहे थे कि उन्होंने दिल्ली और मुम्बई में और भी कत्ल करवाये थे।”
“जब इन्हीं लोगों का हुक्का भर रहे थे तो इनके खिलाफ क्योंकर हो गये गये?”
“राजी से तो न हुआ! हालात ही ऐसे पैदा हो गये कि खिलाफ होना पड़ा। समझ लो कि यूं मैं अपने उस गुनाह की सजा काट रहा हूं जो कि मैंने मायाराम की बाबत मुंह फाड़ कर किया था।”
“मुझे ये सब क्यों बता रहे हो?”
“मैं तुम से बहुत प्रभावित हुआ हूं। कल इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी तुमने जैसे गौरव और स्वाभिमान का प्रदर्शन किया, वो नायाब था। तुम फंसे हुए थे, लाचार थे फिर भी उन ओछे छिछोरे आदमियों के मुकाबले में एक प्रतापी पुरुष लग रहे थे। तुम भी उन्हीं जैसे जरायमपेशा शख्स हो, फिर भी कोई ऐसी बात थी जो तुम्हें उन लोगों से कोई जुदा शिनाख्त देती थी।”
“तुम नाहक मेरी तारीफ कर रहे हो। मेरे में कोई खूबी नहीं।”
“ये भी तुम्हारी खूबी है जो तुमसे ऐसा कहलवाती है।”
“इधर क्या हो रहा है? इतनी चहल पहल क्यों है? इतने आदमी क्यों हैं?”
“कल तक मुझे नहीं मालूम था लेकिन अब मालूम है कि यहां एशिया के बहुत बड़े ड्रग लॉर्ड्स की मीटिंग होने वाली है। उसी सिलसिले में ‘भाई’ आया है जो पता नहीं कैसे तुम्हारे हत्थे चढ़ गया।”
“और कौन आ रहे हैं यहां?”
“मुझे उनकी खसूसियात नहीं मालूम, सिर्फ नाम मालूम हैं लेकिन हैं वो सब यकीनन अपने अपने मुल्कों में नॉरकॉटिक्स ट्रेड के बड़े खलीफा। जिन्हें झामनानी ड्रग लॉर्ड्स बोला। उसी की जुबानी मैंने उनके नाम सुने और ये सुना कि वो कहां से आ रहे हैं! मसलन यहां कराची से जहांगीर खान आ रहा है, काठमाण्डू से बुद्धिरत्न भट्टराई आ रहा है, ढाका से खलील-उर-रहमान आ रहा है रंगून से आंग सू विन आ रहा है, कोलम्बो से नेविल कनकरत्ने आ रहा है और काबुल से मुहम्मद कामिल दिलजादा आ रहा है।”
“क्या कहने! जैसे कामनवैल्थ कन्ट्रीज के प्राइम मिनिस्टर्स कान्फ्रेंस के लिये आ रहे हों!”
“अभी एक और शख्स आ रहा है जो कि इन सब का बॉस जान पड़ता है और लगता है कि उसी के लिये खासतौर से यहां हैलीपैड बनाया गया है।”
“वो कौन हुआ?”
“उसका नाम रीकियो फिगुएरा है। सुना है वो सारे एशिया का ड्रग ट्रेड कन्ट्रोल करता है और उसके अमरीकी माफिया से सीधे कान्टैक्ट्स हैं।”
“वो कब आयेगा?”
“हैलीपैड तो तैयार है! लिहाजा किसी भी वक्त आ सकता है।”
“और बाकी लोग? जिन्हें तुमने बड़े ड्रग लॉर्ड्स कहा? वो फिगुएरा के साथ आयेंगे?”
“मेरे खयाल से नहीं। ऐसा होने वाला होता तो ‘भाई’ अकेला न आया होता।”
“हूं।”
“जब वो सब लोग यहां इकट्ठे हो जायेंगे तो यहां पुलिस की बहुत बड़ी रेड होगी। महकमे को कोई फौजी ऑपरेशन जरूरी लगने लगे तो भी बड़ी बात नहीं।”
“आई सी।”
“इस वक्त मैं तुम्हारे लिये कुछ नहीं कर सकता लेकिन उस वक्त की अफरातफरी में मैं तुम्हें यहां से खिसका देने की कोशिश करूंगा।”
“तब तक पता नहीं ये लोग मुझे जिन्दा छोड़ेंगे या नहीं!”
“वो तो है लेकिन मैं भी मजबूर हूं। तुमने सुना ही था झामनानी मुझे क्या धमकी दे के गया था!”
“तुम्हारी मदद पर मेरा कोई दावा नहीं है, मेरे भाई। मैं तो इसके लिये भी तहेदिल से तुम्हारा शुक्रगुजार हूं कि मेरे बारे में तुमने इतना अच्छा अच्छा सोचा। मेरे लिये तो ये करिश्मा है कि मुझ अधम प्राणी में तुम्हें कोई खूबी दिखाई दी। बाकी रही यहां से रिहा होने की बात, तो अगर ‘वो’ चाहेगा तो खुद बांह बढ़ा कर मुझे उबार लेगा।”
“ठीक कहा।”
मैं मतिमन्द चरण सरणागति कर गहि लेहु उबारी। ”
“लाख रुपये की बात कही।”
तभी बाहर से गड़गड़ की आवाज आयी।
“ये हैलीकाप्टर की आवाज है।” — तरसेम लाल बोला — “लगता है वो बड़ा साहब पहुंच गया इधर।”
“रीकियो फिगुएरा?” — विमल बोला।
“या जो कोई भी इधर हैलीकाप्टर पर आने वाला था।”
“हूं।”
“एक बात बोलूं?” — वो बोला।
विमल ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा।
“हां, हां।” — वो बोला — “बोलो।”
“मैं करप्ट पुलिसिया हूं लेकिन मूर्ख पुलिसिया नहीं हूं।”
“क्या मतलब?”
“मैं आंखें खुली रखता हूं और कान खड़े रखता हूं।”
“क्या कहना चाहते हो?”
“ ‘भाई’ शहर में मौजूद तुम्हारे उन आदमियों के कब्जे में नहीं है जिन्हें कि तुमने धोबी कहा।”
विमल चौंका, उसने मुंह बाये तरसेम लाल की तरफ देखा।
“मेरे भाई” — तरसेम लाल मुस्कराता हुआ बोला — “तुम्हारे पास इतना वक्त कहां था कि तुम न सिर्फ शहर पहुंच गये होते, वहां से लौट भी आये होते! बजाज मेरे सामने तुम्हारे लिये चाय और डबल रोटी ले के गया था। तुमने उसे फौरन भी अपने काबू में कर लिया होता तो भी टाइम का हिसाब पूरा नहीं बैठता। तुम तो भाग निकलने के बाद एक तरह से उल्टे पांव इधर लौटे और लगे दावा करने कि ‘भाई’ तुम्हारे आदमियों की पहरेदारी में शहर में कहीं कैद था। तुम्हारे पास तो शहर पहुंचने का भी वक्त नहीं था जबकि तुम तो लौट के भी आये! वो भी पैदल चल के!”
“मेरे आदमी मुझे इधर करीब ही मिले थे जो कि फौरन ‘भाई’ को यहां से दूर, शहर ले गये थे।”
“तुम यहां अकेले आये थे।”
“आदमी बाद में पहुंचे थे।”
“बाद में कब? रात को या सुबह?”
“सुबह।”
“यानी कि उन्हें मालूम था कि सुबह तुम रिहा हो जाने वाले थे? उन्हें मालूम था कि झामनानी रात को ही तुम्हारा बोलो राम नहीं करा देने वाला था?”
“तो तुम्हारे खयाल से मैंने ब्लफ मारा कि ‘भाई’ मेरे कब्जे में है?”
“नहीं। ब्लफ नहीं मारा। वो यकीनन तुम्हारे कब्जे में था वरना उसका वो निजी सामान तुम्हारे हाथ न लगा होता जो कि तुमने पेश किया था।”
“तो?”
“‘भाई’ जिस जगह पर भी है, वो जगह फार्म से ज्यादा दूर नहीं हो सकती। वो आसपास ही कहीं है जहां से पैदल चल कर तुम वापिस यहां पहुंचे थे।”
“ये पैदल चल के आने वाली बात क्योंकर कही?”
“भई, तुम ‘भाई’ के हरकारे बन कर यहां पहुंचे थे। तुम किसी गाड़ी पर आये होते तो यहां किसकी मजाल हो सकती थी ‘भाई’ के हरकारे की गाड़ी फाटक पर रुकवाने की? गाड़ी पर आये होते तो फार्म हाउस तक पैदल चलने की जहमत भला क्यों उठाते?”
“काफी तीखा दिमाग पाया है तुमने।”
“शुक्रिया।”
“फिर भी अभी हवलदार ही हो।”
“दुआ है ऊपर वाले की कि वो तो हूं वरना बेरोजगार भी हो सकता था।”
“ओह!”
“बेरोजगारी से बचने के लिये ही तो झामनानी जैसे खतरनाक गैंगस्टर के कैम्प में पुलिस का भेदिया बनना कुबूल किया।”
“हूं।”
“अब ये तो कुबूल करो कि जो मैंने कहा, सही कहा!”
“सही कहा।”
“यानी कि ‘भाई’ करीब ही कहीं है।”
“हां।”
“कहां?”
“फार्म के फाटक से मुश्किल से आधा मील दूर। वहां पेड़ों के एक झुरमुट के पीछे यहीं की एक मैटाडोर वैन खड़ी है जिसमें कि वो बन्धा पड़ा है।”
“बढ़िया।”
“ये बात मैंने तुम्हें इसलिये बतायी है” — विमल जल्दी से बोला — “क्योंकि तुम पुलिस वाले हो। तुम ने बहुत बड़े बड़े नाम गिनाये लेकिन असल बड़ी मछली जो इधर मौजूद है, वो ‘भाई’ ही है। तुम ‘भाई’ को गिरफ्तार करा सके तो तुम्हारी ऐसी जय जयकार होगी कि तुम्हारे सारे पाप धुल जायेंगे। ये तुम एक राष्ट्रीय हित का काम करोगे जो मैं नहीं कर सकता क्योंकि मौजूदा हालात में मुझे अपनी जान की कोई गारन्टी दिखाई नहीं देती। इन लोगों के तमाम वादों, आश्वासनों के बावजूद मेरे साथ कैसा भी धोखा हो सकता है इसलिये...”
तभी बाहर कदमों की आहट हुई।
“खामोश!” — तरसेम लाल दांत भींचे फुंफकारा।
विमल खामोश हो गया और दरवाजे की तरफ देखने लगा।
ताला खुलने की आवाज आयी। दरवाजा खुला। चौखट पर शैलजा और अमरदीप प्रकट हुए। अमरदीप के हाथ में रिवॉल्वर थी। शैलजा खाली हाथ थी।
“सब खैरियत है, तरसेम लाल?” — शैलजा मुस्कराती हुई बोली।
“हां।” — तरसेम लाल बोला।
“बॉस चाहता है हम भी इधर ही ठहरें। मैं भीतर और अपना अमरदीप बाहर बन्द दरवाजे पर।”
“ठीक है।”
“रिवॉल्वर मुझे दो।”
तरसेम लाल ने तनिक हिचकते हुए रिवॉल्वर उसे सौंप दी। फिर उसने उसके लिये कुर्सी भी खाली कर दी और खुद पलंग पर बैठ गया।
अमरदीप ने बाहर निकलकर अपने पीछे दरवाजा मजबूती से बन्द कर दिया।
विमल को दाल में काला लग रहा था।
उस बन्द कमरे में — बाहर से बन्द कमरे में — तरसेम लाल के उसके साथ अभी पांच मिनट नहीं बीते थे कि वहां दो और रखवालों की हाजिरी जरूरी समझ ली गयी थी।
क्या माजरा था?
कई क्षण खामोशी से कटे।
“हैलीकाप्टर पर कौन आया?” — एकाएक तरसेम लाल बोला।
“हैलीकाप्टर!” — शैलजा की भवें उठीं — “कैसा हैलीकाप्टर?”
“जो बाहर पहुंचा।”
“कौन बोला?”
“बोला तो कोई नहीं!”
“तो फिर?”
तरसेम लाल से जवाब देते न बना।
“खामोश बैठो।”
उसने होंठ भींच लिये और परे देखने लगा।
“काफी सख्त हाकिम हो!” — विमल बोला।
“तुम भी।” — वो डपट कर बोली — “वरना...”
“वरना क्या?”
“ये।”
शैलजा ने रिवॉल्वर उसकी तरफ तानी।
विमल खामोश हो गया।
पांच सात मिनट यूं ही कटे।
एकाएक दरवाजा फिर खुला और हुकमनी के साथ झामनानी ने भीतर कदम रखा।
विमल ये देख कर सकपकाया कि हुकमनी एक स्टेनगन थामे था।
तरसेम लाल उछल कर खड़ा हुआ।
“वडी, कैसा चल रहा है, नी?” — झामनानी बोला।
“ठीक।” — तरसेम लाल तत्पर स्वर में बोला।
“तंग तो नहीं किया, नी, इसने?”
“नहीं। बिल्कुल नहीं। मजाल नहीं हुई इसकी।”
“बढ़िया।” — फिर वो विमल से सम्बोधित हुआ — “मैंने पुटड़ी को भेजा ताकि इसकी शक्कल देख देख के तेरा दिल लगा रहे।”
“शुक्रिया।” — विमल पलंग से नीचे उतरता बोला — “‘भाई’ का फोन आ गया?”
जवाब देने से पहले झामनानी के चेहरे पर बड़ी रहस्यपूर्ण मुस्कराहट आयी।
विमल सकपकाया सा उसके जवाब का इन्तजार करता रहा।
“उससे चोखा काम हो गया है, साईं।” — झामनानी बोला।
“क्या?”
“‘भाई’ आ गया है।”
विमल हक्का बक्का सा उसका मुंह देखने लगा।
“वडी, छक्के छूट गये न सुन के?”
“तुम झूठ बोल रहे हो।” — विमल बोला।
“अच्छा!”
“हां। ये नहीं हो सकता।”
“फिर तो ये भी नहीं हो सकता होगा कि तेरी बीवी भी वापिस इधर पहुंची हुई है।”
तब वाकेई विमल के छक्के छूट गये।
“वडी, अब हिल, नी, इधर से और चल के दर्शन कर दोनों के।”
“क... कैसे... कैसे हुआ?”
“सुन ले कैसे हुआ? इस कर्मांमारे की मेहरबानी से हुआ। इसके बढ़ बढ़ के बोलने की वजह से हुआ।”
तरसेम लाल की समझ में कदरन देर में आया कि झामनानी का इशारा उसकी तरफ था।
“क्या... क्या कह रहे हो, साहब?” — वो हकबकाया सा बोला।
“वडी लक्ख दी लानत तेरे ऊपर। वडी, गोद में बैठ के दाढी मूंडने आया, नी, झामनानी के पास! इसलिये कदमों में लोट के नौकरी मांगी थी, नी, कि तू इधर पुलिस के लिये जासूसी कर सकता!”
“साहब, ये झूठ है। आपकी वजह से मेरी नौकरी छूट गयी इसलिये मैं...”
“भौंक मत, कुत्ते।” — झामनानी कहरभरे स्वर में बोला।
तरसेम लाल सहमकर चुप हो गया।
“वडी, जो कुछ मैंने अपने कानों से सुना, तू बोलता है कि वो झूठ है?”
“कानों से सुना?” — तरसेम लाल के मुंह से निकला।
“हां।”
“क... क्या?”
“क्या तो तुझे मालूम है, नी। ये पूछ कैसे?”
“क... कैसे?”
“उस लैम्प शेड के भीतर” — झामनानी ने छत की तरफ उंगली उठाई — “कंडेसर माइक्रोफोन फिट है जो इधर की हर आवाज पकड़ता है और मेरे पास ट्रांसमिट करता है। लगाया था इस उम्मीद में कि तेरे से बात करेगा तो सोहल कोई मतलब की बात बोलेगा। बोला तो ये भी लेकिन तू ज्यादा मतलब की बात बोला। खास पुलिसिया दिमाग पाया है तूने, कमीने। कैसे ‘भाई’ की बाबत वो बात भांप गया जो हमें न सूझी। अब उलझन में हूं कि ‘भाई’ के कहीं करीब ही होने की बात सुझाने के लिये तेरा शुक्रिया बोलूं या इधर जासूसी की सजा के तौर पर तुझे गोली मार दूं।”
तरसेम लाल सिर से पांव तक कांपा।
“कर्मांमारा सब भांप गया। इधर की होने वाली मीटिंग भी भांप गया। हैलीपैड भी भांप गया। सब के सब मेहमानों के नाम सुन लिये। फिगुएरा का नाम भी सुन लिया। फिर भी बोलता है जासूसी नहीं कर रहा था। कमीना पुलिस का सगा तो बना सो बना, सोहल का सगा भी बन के दिखा रहा था। बोलता था रेड की अफरातफरी में इसे यहां से खिसका देने की कोशिश करेगा।”
तब पहली बार तरसेम लाल को गारन्टी हुई कि झामनानी कोई बात अन्दाजन नहीं कह रहा था, उसने वाकेई वहां बोला गया एक एक शब्द सुना था।
“अब बोल, इधर की खबरें किस के पास पहुंचाता था। फरेबी या टालमटोल वाली जुबान बोला तो बहुत पछतायेगा।”
“अपने थाने के एस.एच.ओ. के पास।” — तरसेम लाल बोला।
“अभी तक क्या बताया उसे?”
“खास कुछ नहीं। बस इतना ही कि इधर हैलीपैड बन रहा था और कोई खास मेहमान इधर पहुंचने वाले थे।”
“कौन खास मेहमान?”
“मैंने नहीं बोला था। मैं बस एक ही बार कल रात पांच मिनट के लिये एस.एच.ओ. से मिला था, तब तक मुझे नहीं मालूम था कि यहां कौन लोग आने वाले थे!”
“आज तो मालूम था! अभी दस मिनट पहले नाम ले रहा था तू सब के!”
“मुझे मौका कहां मिला आज आगे कोई बात कहने का?”
“जिसका कि तुझे अफसोस है?”
“नहीं, साहब।”
“रेड वाली बात सच है?”
“हां, साहब। लेकिन वो तब तक नहीं होगी जब तक कि मैं एस.एच.ओ. नसीब सिंह को खबर नहीं करूंगा।”
“इधर की बातों की पुलिस में और किस को खबर है?”
“मालूम नहीं। शायद हमारे जोन के डी.सी.पी. को हो!”
“शाबाश! बहुत बढ़िया फिट किया झामनानी को।”
“साहब, खता हो गयी। मैं वादा करता हूं कि मैं अब आगे कोई बात नहीं करूंगा।”
“कैसे करेगा? जिन्दा रहेगा तो करेगा न?”
“साहब, रहम!”
“कर्मांमारे, समझ ले कि अपने एस.एच.ओ. और अपने डी.सी.पी. की मौत के लिये भी तू ही जिम्मेदार है।”
तरसेम लाल के नेत्र फट पड़े।
“आप... आप उन्हें भी...”
“लेकिन पहले तुझे। हुकमनी, शूट कर दे हरामजादे को।”
तरसेम लाल को जैसे अपने कानों पर विश्वास न हुआ। फिर तत्काल वो झामनानी के कदमों में लोट गया और बिलखता हुआ बोला — “रहम! रहम, साहब, रहम!”
झामनानी ने बड़े नफरतभरे अन्दाज से पांव की ठोकर से उसे परे धकेला।
हुकमनी ने स्टेनगन का रुख उसकी तरफ किया और ट्रीगर खींचा।
कई गोलियां तरसेम लाल के शरीर के विभिन्न भागों से टकराई। तरसेम लाल का शरीर एक बार ऐंठा और फिर स्थिर हो गया।
विमल को उसकी आंखों से जीवन ज्योति बुझती साफ दिखाई दी।
झामनानी ने अमरदीप को इशारा किया।
वो तरसेम लाल की लाश को टांग से पकड़ कर घसीटता हुआ वहां से ले गया।
झामनानी विमल की ओर घूमा।
“क्या देखा?” — वो बोला।
“वही” — विमल धीरे से बोला — “जो तूने दिखाया।”
“क्या?”
“जालिम का जुल्म देखा। अहंकारी के अहंकार का जोर देखा। हैवान की हैवानियत का नंगा नाच देखा।”
झामनानी ने जोर का अट्टहास किया।
“वो तो अभी और होगा, नी” — वो बोला — “लेकिन देखने वाला तू नहीं होगा। वैसे तो तेरे सौ गुनाह ऐसे हैं जिनकी वजह से तेरी जान जाना जरूरी है लेकिन ‘भाई’ पर हाथ डाल के तूने ऐसा गुनाह किया है जिसके लिये तुझे हरगिज भी नहीं बख्शा जा सकता।”
विमल खामोश रहा।
“तेरी किस्मत पर रश्क आता है मुझे। बहुत ही खुशकिस्मत है तू। हथेली पर रख कर सिर लाया था फिर भी बच गया।”
सिर दीने सिर रहत है, सिर राखे सिर जाये। ”
“पहले भी बोला तू। कमीने, सारे हिन्दोस्तान में तू ही एक शख्स बचा था जिसने कि ‘भाई’ से टकराना था! सब बेड़ागर्क हो गया था। महज एक इत्तफाक ने झामनानी की लाज रख ली।”
“इत्तफाक?”
“हां, इत्तफाक। जो झूलेलाल की मेहर से कैसा झामनानी के हक में हुआ! यहां लगा कन्डैंसर माइक्रोफोन जो आवाजें पकड़ता है वो अमूमन टेप रिकार्डर पर दर्ज होती हैं जिसे कि फुरसत में सुन लिया जाता है। सिर्फ आज ही ऐसा हुआ था कि मैं खुद रिसीवर सैट पर बैठा यहां होती बातचीत सुन रहा था। तेरी जुबानी ‘भाई’ और मैटाडोर की बात सुन के तो मेरे छक्के ही छूट गये, नी। मेरे हुक्म पर कुछ आदमियों के साथ हुकमनी गोली की तरह वहां पहुंचा और उसने मैटाडोर को और फिर ‘भाई’ को वहां से बरामद किया। अभी हुकमनी ‘भाई’ को खोल ही रहा था कि तेरे हुक्म की तामील करती, पेड़ों में छुपती छुपाती तेरी बीवी भी उधर पहुंच गयी। नतीजतन वो फिर वापिस यहां। अब बोल क्या कहता है?”
विमल के मुंह से बोल न फूटा।
“अपनी आंखों से दोनों को इधर देखेगा तो कहेगा शायद।” — झामनानी ने घूर कर उसे देखा और फिर गर्जा — “वडी, अब हिल्ल, नी।”
सब जने वापिस इमारत के अग्रभाग वाले कमरे में पहुंचे।
सबसे पहले विमल की निगाह ‘भाई’ पर पड़ी जो कि बिफरे हुए सांड की तरह कमरे में चहलकदमी कर रहा था। अब उसका चेहरा खूनआलूदा नहीं था और सिर पर पट्टी बन्धी हुई थी।
फिर उसकी निगाह एक ओर एक कुर्सी पर सहमी सिकुड़ी बैठी नीलम पर पड़ी। दोनों की निगाहें मिलीं तो नीलम खेदपूर्ण ढंग से तनिक मुस्कराई। विमल ने आंखों ही आंखों में उसे आश्वासन दिया।
विमल पर निगाह पड़ते ही ‘भाई’ ठिठका। फिर वो यूं विमल की तरफ लपका जैसे वो उसे रौंदता हुआ गुजर जाना चाहता हो। लेकिन वो विमल के ऐन सामने पहुंचा तो थमक कर खड़ा हो गया।
“सोहल!” — वो कहरभरे स्वर में बोला — “कोई तेरे से बात करने का ख्वाहिशमन्द न होता तो, कमीने, मैं तुझे कच्चा चबा जाता...”
“किसी आदमखोर जानवर से” — विमल सहज भाव से बोला — “और क्या उम्मीद की जा सकती है?”
“...तो मैं तेरा सिर काटकर यहीं उसके साथ फुटबाल खेलता।”
“क्या बड़ी बात है! सिर काटना तो तुझे बचपन से आता है, बस फुटबाल खेलना ही तो सीखना होगा!”
“तुझे भी सिखाऊंगा। ऐसा कर सकूं इसलिये पहले तेरी बीवी का सिर काटूंगा।”
“इस वक्त तू वक्त का हाकिम है, कुछ भी कर सकता है।”
“ये भी कोई कहने की बात है? मैं तो...”
उसी क्षण पहलू का एक दरवाजा खुला और काला सूट पहने रीकियो फिगुएरा ने बड़ी शान से भीतर कदम रखा।
उस पर निगाह पड़ते ही सब अदब की मुद्रा में आ गये। कोई बैठा था तो खड़ा हो गया।
रीकियो फिगुएरा के ऐन पीछे रॉस आरनाल्डो था और उसके पीछे स्टेनगनधारी दो गार्ड थे।
सब ने फिगुएरा का अभिवादन किया।
फिगुएरा ने एक क्षण को झामनानी से बात की और फिर विमल की तरफ बढ़ा। वो करीब पहुंचा तो ‘भाई’ अदब से एक ओर हट गया।
फिगुएरा विमल के सामने आकर खड़ा हुआ। उसने हाथ में थमे सिगार का एक कश लगाया, हवा में धुआं उड़ाया और फिर बोला — “तो आप हैं महान सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल जिनके कि मैंने इतने चर्चे सुने हैं?”
“जी हां।” — विमल धीरज से बोला — “और मेरे खयाल से आप ही रीकियो फिगुएरा हैं जो कि हैलीकाप्टर से इधर पधारे हैं?”
“ठीक पहचाना। मुझे तुम्हारे से मिल कर खुशी हुई।”
“काश मैं भी ऐसा कह सकता।”
फिगुएरा के माथे पर बल पड़े।
“वैसे तुम्हें अहसास तो है न” — वो बोला — “कि इस घड़ी तुम्हारे और तुम्हारी मौत के बीच में सिर्फ चन्द सांसों की दूरी है!”
“ये अहसास मुझे इस घड़ी ही क्यों, हर घड़ी रहता है। जेहा चीरी लिखिया तेहा हुकम कमाई, घल्ले आवहि नानका सद्दे उठी जाई। भेजा तो आ गये, बुलायेगा तो चल देंगे।”
“मौत से नहीं डरता?”
“विलायती साहब, मौत तो जिन्दगी का आखिरी अंजाम है। मौत से डरना” — विमल ने ठिठक कर ‘भाई’ और झामनानी वगैरह की तरफ देखा — “अहमकों का काम है।”
“मैं तुम्हारी बहादुरी की दाद देता हूं।”
“शुक्रिया।”
मैं ने ऐसा इंसान पहली बार देखा है जो आंधी, तूफान और जलजलों के आगे झुकने से इंकार करता है। जो साक्षात मौत के सामने भी बेखौफ, तन कर खड़ा होता है।
विमल खामोश रहा।
“ऐसे इंसान से मैं दरख्वास्त करता हूं — दरख्वास्त, जो मैंने कभी किसी से नहीं की — कि वो ‘कम्पनी’ की खाली गद्दी कुबूल करे।”
“ये नहीं हो सकता।”
“या तो गद्दीनशीन होवो या उसकी मुखालफत बन्द करो।”
“ये भी नहीं हो सकता।”
“तुम्हें अपनी मौत की परवाह नहीं है लेकिन अपनी बीवी की मौत की परवाह शायद हो! अपनी खातिर नहीं तो उसी की खातिर अपना रवैया तब्दील करो।”
“मेरे हामी भरने से क्या होगा? तुम मेरी बीवी को छोड़ दोगे?”
“हां। तुम्हें भी।”
“लिहाजा झूठ बोल कर रिहा होने का रास्ता सुझा रहे हो?”
“तुम वो रास्ता अख्तियार कर सकते हो लेकिन मुझे यकीन है कि तुम ऐसा नहीं करोगे। मैं आदमी पहचान के बात करता हूं। तुम झूठ बोलने वाली किस्म के आदमी नहीं हो। हो तो बोलो?”
विमल खामोश रहा।
“दुश्मनी खत्म करने के दो ही कारआमद तरीके होते हैं। या दुश्मनी को खत्म कर दो या दुश्मन को खत्म कर दो। मैंने पहला तरीका आजमाया, कुछ हाथ न आया। अब दूसरा तरीका आजमाने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं। मुझे तुम्हारी मौत का अफसोस होगा, दोस्त।”
विमल के चेहरे पर शिकन न आयी।
“देखो, तुम इस हकीकत को नहीं झुठला सकते कि तुम हार चुके हो।”
“मैं झुठलाना भी नहीं चाहता।” — विमल शान्त‍ि से बोला — “लेकिन फिरंगी साहब, एक बार फिर भी कहना चाहता हूँ। मैं दुश्मन से नहीं हारा, किस्मत से हारा। आदमी का बच्चा दुश्मन से लड़ सकता है, किस्मत से नहीं लड़ सकता।”
फिगुएरा मंुह बाये उसे देखने लगा।
कुछ क्षण खामोशी रही।
“सब चौपट हो गया।” — फिर फिगुएरा असहाय भाव से गर्दन हिलाता बोला — “दिल्ली वाले इतने नालायक निकलेंगे, मुझे सपने में भी इमकान नहीं था।”
झामनानी हड़बड़ाया, उसने व्याकुल भाव से अपने बिरादरी भाइयों की तरफ देखा, नालायक कहे जाने पर जो उसी की तरह व्याकुल दिखाई दे रहे थे।
“इतनी सेफ जगह पर इतनी सेफ मीटिंग अरेंज की, एक पुलिस वाले को उसकी भनक लग जाने दी।”
“सर जी” — झामनानी व्यग्र भाव से बोला — “उससे ऐसी उम्मीद नहीं थी। वो गद्दार निकला, उसकी गद्दारी की सजा उसे दे दी गयी है।”
“एक करोड़ की आबादी बताई जाती है इस शहर की। मुलाजमत में रखने के लिये एक पुलिस वाला ही बचा था?”
“वो नौकरी से निकाला हुआ पुलिस वाला था।”
“फिर भी पुलिस वाला था।”
“सर जी, वो...”
“ये जगह मुझे बिल्कुल सेफ नहीं दिखाई देती। न अपने लिये न अपने मेहमानों के लिये। यहां एक सैकंड भी फालतू ठहरना गुनाह है। दि मीटिंग इज कैंसल्ड।”
कोई कुछ न बोला।
“रॉस!”
“सर।” — रॉस आरनाल्डो तत्पर स्वर में बोला।
“हैलीकाप्टर के वायरलेस से सब को खबर पहुंचाओ कि कोई इधर का रुख न करे, कोई कर चुका हो तो रुख बदल ले। सब से कान्टैक्ट हो जाये तो आकर मुझे खबर करना, ताकि हम भी यहां से रवाना हो सकें।”
“यस, सर।”
आरनाल्डो तत्काल वहां से बाहर निकल गया।
“कितने अफसोस की बात है” — पीछे फिगुएरा बोला — “कि नाकाबिल लोगों से हमें इसलिये माथा फोड़ना पड़ रहा है क्योंकि काबिल को हमारी पेशकश कुबूल नहीं।”
बिरादरी भाइयों के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं।
“माल किधर है?”
“इधर ही है।” — झामनानी बोला।
“इधर कहां?”
“इमारत के नीचे एक तहखाना है। रास्ता सिर्फ मेरे को और इन तीन बिरादरी भाइयों को मालूम है।”
“शिफ्ट करो। पुलिस की रेड पड़ गयी तो वो इमारत की बुनियादें तक खोद डालेगी।”
“सर जी, वो खतरा अब टल गया है। उस पुलिस वाले को शूट कर दिया गया है जिसके इशारे पर इधर रेड होनी थी।”
“स्टुपिड!”
“ठीक है, सर जी। ऐसा ही होगा।”
फिगुएरा वापिस विमल की ओर घूमा।
“सोहल!” — वो बोला — “आखिरी बार पूछता हूं। हां या न?”
विमल ने दृढ़ता से इनकार में सिर हिलाया।
“मर जाओगे।”
“आदमी मर जाता है तो अमर हो जाता है। जिन्दा रहता है तो मर जाता है।”
“फिलासोफिकल बात है। मैं नहीं समझ सकता। ओके। झामनानी!”
“बोलो, सर जी।” — झामनानी बोला।
“अपने गनमैन को कहो इसे शूट कर दे। इसकी बीवी को भी।”
“अभी, सर जी।”
झामनानी ने स्टेनगन थामे खड़े हुकमनी को इशारा किया।
तत्काल हुकमनी आगे बढ़ा।
नीलम झपट कर विमल के सामने आ खड़ी हुई।
“पहले मुझे।” — वो बोली — “पहले मुझे।”
“वडी, क्यों, नी?” — झामनानी बोला।
“मैं विधवा नहीं मरना चाहती। मैं सुहागन मरना चाहती हूं।”
“वडी, एक सैकंड में क्या विधवा और क्या सुहागन! एक सैकंड की तो बात है! पहले क्या, पीछे क्या!” — वो हुकमनी की तरफ घूमा — “मुंह क्या देखता है, नी? काम कर अपना।”
हुकमनी ने सहमति में सिर हिलाया, उसने स्टेनगन का रुख विमल और नीलम की ओर किया।
तभी दूर कहीं से आती लाउडस्पीकर की आवाज वहां गूंजी।
“झामनानी के कारिन्दो! चमचो! चाटुकारो! हुक्मबरदारो...”
एक सफेद वैन और एक नीली बस आगे पीछे चलती फार्म तक पहुंचीं। बस फार्म के फाटक से थोड़ा परे रुक गयी, वैन ऐन फाटक के सामने आकर रुकी।
वैन के दोनों पहलुओं में, और माथे पर भी, होटल ताज पैलेस लिखा था। वैन की ड्राइविंग सीट पर अली था और वली उसके पहलू में बैठा हुआ था। अली ने ड्राइवर की सफेद वर्दी पहनी हुई थी जिसकी छाती पर धागे से कढ़ा होटल ताज पैलेस लिखा था। वली ने स्टीवार्ड्स जैसा काला सूट पहना हुआ था।
अली ने हॉर्न बजाया।
फाटक का झरोखा खुला। झरोखे में से गार्ड ने बाहर झांका।
“होटल से आये हैं।” — अली अधिकारपूर्ण स्वर में बोला — “खाना लाये हैं।”
“देर हो गयी है, यार।” — वली बोला — “ट्रैफिक में फंस गये थे। बरायमेहरबानी जल्दी फाटक खोल वरना झामनानी साहब खफा हो जायेंगे।”
गार्ड ने सहमति में सिर हिलाया।
फाटक खुला। वैन भीतर दाखिल हुई।
“सीधे चले जाओ।” — वो अली से बोला।
“मालूम है। मालूम है।” — अली बोला — “पहली बार नहीं आये।”
गार्ड पीछे फाटक बन्द करने के लिये उधर बढ़ा तो वैन के एक पहलू का स्लाइडिंग डोर खुला, उसमें से दो आदमी निशब्द बाहर निकले और गार्ड के सिर पर पहुंचे। एक ने गार्ड की खोपड़ी पर एक मोटे डण्डे का वार किया। तत्काल गार्ड की आंखें उलटीं और जिस्म लहराया। दूसरे ने उसके धराशायी हो पाने से पहले ही उसे सम्भाल लिया और घसीटता हुआ फाटक के पहलू में बने उसके केबिन की तरफ ले चला।
डण्डे वाला फाटक को, जिसका कि पहले ही एक पट खुला था, पूरा खोलने लगा।
उसने बाहर निकल कर इशारा किया तो तत्काल बस फाटक की तरफ बढ़ी।
केबिन में गार्ड को सम्भाले व्यक्ति ने उसकी वर्दी उतार कर खुद पहन ली और गार्ड के अचेत शरीर को वहां पड़े तख्तपोश के नीचे धकेल दिया।
बस के भीतर दाखिल होते ही डण्डे वाले ने फाटक उसके पीछे बन्द कर दिया और वापिस वैन में आ बैठा।
आगे पीछे चलती वैन और बस ड्राइव वे पर आगे बढ़ी।
उसी क्षण बारिश होकर हटी थी इसलिये रास्ता सुनसान पड़ा था।
ड्राइव वे को पार करके दोनों वाहन फार्म हाउस के सामने के विशाल कम्पाउन्ड में पहुंचे तो ड्राइव वे के दहाने पर ही रुक गये।
बस और वैन में से पच्चीस के करीब लोग बाहर निकले जिनमें अली, वली के अलावा मुबारक अली, हाशमी, अशरफ और अब्दुल रहमान भी थे।
हाशमी और मुबारक अली अपने कन्धों पर पोर्टेबल लाउडस्पीकर लटकाये हुए थे। अशरफ और रहमान के हाथ में स्टेनगन थीं जबकि बस से निकले बाकी लोगों में से कुछ के हाथों में ही फायरआर्म्स थे, अधिकतर तलवार, साइकल चेन, डण्डे और लाठियां सम्भाले थे।
फिर बस में से कितनी ही रोती, सुबकती औरतें निकलने लगीं। वो औरतें हर साइज हर शेप और हर उम्र की थीं और तमाम की तमाम नंगीं थीं। अपनी उस हालत से शर्मिन्दा, आतंक की मारी वो औरतें एक दूसरे की ओट लेने की नाकाम कोशिश कर रही थीं।
“अल्लाह!” — मुबारक अली के मुंह से निकला — “खता माफ फरमाना। पर मैं भी क्या करूं! और कोई चारा भी तो नहीं था!”
धोबियों के निर्देश पर कोई पैंतालीस के करीब वो औरतें खामोशी से इमारत की ओर मुंह करके दायें से बायें कतार बना कर खड़ी हो गयीं। उनके पीछे अपनी अपनी किस्म के हथियार सम्भाले धोबी तैनात हो गये।
औरतें रो रही थीं और अपने हाथों से अपनी लाज ढंकने की कोशिश कर रही थीं।
इमारत के विशाल बरामदे में अब कोई इक्का दुक्का आदमी प्रकट होने लगा था।
तब कइयों ने इमारत की तरफ पीठ फेर ली लेकिन उन्हें डांट कर वापिस इमारत की तरफ रुख करने के लिये मजबूर किया गया।
कन्धे से कन्धा जोड़े पैंतालीस नंगी औरतें एक दीवार की तरह इमारत और धोबियों के बीच खड़ी थीं।
तभी मुबारक अली ने अपने कन्धे से लाउडस्पीकर उतारा और उसको मुंह के सामने लाकर बोला — “झामनानी के कारिन्दो! चमचो! चाटुकारो! हुक्मबरदारो! मैं तुम्हारे साहब लोगों से नहीं, तुम से मुखातिब हूं। बाहर निकलो और अपनी गैरत की नीलामी का नजारा करो।”
कुछ हथियारबन्द गार्ड बरामदे में प्रकट हुए। नंगी औरतों को देखकर वो हंसने लगे। उनके लिये वो कोई तमाशा था जिसका इन्तजाम उनके साहब लोगों ने बाहर से आये साहब लोगों के लिये किया था।
“अरे!” — फिर किसी के मुंह से निकला — “ये तो मेरी बीवी है!”
“वो तो मेरी मां है!” — दूसरा बोला।
“मेरी बहन!”
“मेरी बेटी!”
“मेरी बीवी!”
“मेरी मां!”
तत्काल हंसी का दौर बन्द हुआ।
फिर गालियां बकते गार्ड आगे को झपटे।
अली वली ने हवा में फायर किये।
तब गार्डों को जैसे पहली बार अहसास हुआ कि नंगी औरतों के पीछे मर्दों की भी एक कतार थी।
फिर नंगी कतार में से बेबस आवाजें उठने लगीं।
“बेटा!”
“भैय्या!”
“बापू!”
“मुन्ने के अब्बा!”
“झामनानी के चमचो!” — हाशमी अपने लाउडस्पीकर में बोला — “तुम गिनती में हम से बहुत ज्यादा हो। तुम्हारे पास हथियार भी कहीं ज्यादा हैं, कहीं उम्दा हैं। तुम लोगों ने हम पर हमला किया तो ये बराबरी की जंग नहीं होगी। तुम्हारे भी कुछ लोग मरेंगे लेकिन हम तो सभी मारे जायेंगे। आखिरी जीत तुम्हारी होगी। लेकिन कब होगी? जब तुम हमारे और तुम्हारे बीच में खड़ी इस दीवार को ढा दोगे। इस दीवार को ढाये बिना तुम हमारे तक नहीं पहुंच सकते। लेकिन जब तुम ये दीवार ढाओगे तो उस मां को रौंदोगे जिसकी छाती से तुमने ममता का रस पिया है, उस कोख को रौंदोगे जिसमें से तुम्हारी आने वाली नसल के गुलाब खिलने हैं। उस बहन को, उस बेटी को रौंदोगे जिनकी उरियानी देखने की नौबत आने से पहले गैरतमन्द लोग मर जाना पसन्द करते हैं। क्या तुम गैरतमन्द लोग नहीं हो? क्या तुम दादा लोगों के आगे इस हद तक बिक चुके हो कि अपनी इज्जत आबरू को, अपनी गैरत को घोल के पी सकते हो? हुक्काम का मैला चाटने वालो! जवाब दो!”
जवाब मुकम्मल सन्नाटे से मिला। तब तक तो औरतों ने भी रोना सुबकना बन्द कर दिया था।
“ये तुम्हारी जंग नहीं है, अहमको।” — मुबारक अली बोला — “इस जंग में तुम्हारी हार जीत नहीं होने वाली। इस जंग में जो जीतेगा, वो झामनानी जीतेगा।”
“और जो हारोगे, वो तुम हारोगे।” — हाशमी बोला — “जरा सोचो, अभी आइन्दा चन्द लम्हों में किस के सिर से मां का साया उठेगा? किस को जाके अपने बच्चों को ये नामुराद खबर सुनानी पड़ेगी कि उनकी मां खुद उसके हाथों कत्ल हो गयी। किसे अपनी बहन बेटी की डोली उठती देखना नसीब नहीं होगा? इतने बेवकूफ न बनो, दोस्तो। ये जंग तुम्हारी नहीं है। इसे तुम न लड़ो। इसे उन्हीं लोगों को लड़ने दो जिनकी ये जंग है। आज हम सब यहीं मरेंगे। यहीं मरेंगे। मर्द बच्चा लड़ाई हारता है, हिम्मत नहीं हारता। लेकिन हम में से एक के भी मरने से पहले तुम्हें अपनी मां बीवी बहन बेटियों के खून से होली खेलनी होगी। ऐसा किये बिना तुम हम तक नहीं पहुंचे सकते। अगर तुम्हें ऐसा करना कुबूल है तो आगे बढ़ो, अपने कुनबों को धूल में मिलाते हम तक पहुंचो और हमें शहीद कर दो।”
“वरना हथियार फेंक दो।” — मुबारक अली बोला।
तभी चारों बिरादरीभाई बरामदे में प्रकट हुए।
“खबरदार! — झामनानी चिल्लाया — “खबरदार जो किसी ने हथियार फेंका, नी। जिस किसी ने भी हथियार फेंका, वडी, मैं उसे गोली से उड़ा दूंगा।”
“ये ऐसा नहीं कर सकता।” — मुबारक अली गर्जा — “ये चार आदमी अपने से पन्द्रह गुणा लोगों का मुकाबला नहीं कर सकते।”
“इस शख्स ने गोली चलाने की धमकी देकर इस बात का सबूत दिया है” — हाशमी बोला — “कि इसे तुम्हारे भले बुरे से कोई सरोकार नहीं। इसे तुम्हारी जाती दुश्वारी से कुछ लेना देना नहीं। तुम लोगों के कुनबों की औरतों के मरने जीने से इसे कोई फर्क नहीं पड़ता। अन्डरवर्ल्ड के इन बड़े महन्तों को कोई फर्क तो तब पड़ता जबकि इनकी बहन बेटियां भी इसी कतार में नंगी खड़ी होतीं जिसमें कि तुम्हारी बहन बेटियां खड़ी हैं। फिर देखते कि ये शख्स कैसे कहता कि ये हथियार फेंकने वाले को गोली से उड़ा देगा?”
तभी एक बन्दूक कम्पाउन्ड में आकर गिरी।
“चला गोली।” — कोई गुस्से से चिल्लाया — “पहले मेरे पर चला।”
बन्दूक के पीछे कई हथियार कम्पाउन्ड में आकर गिरे।
“मेरे पर चला!”
“मेरे पर चला!”
“मेरे पर चला!”
“क्या फायदा ऐसी चाकरी का कि मां का मरा मुंह देखना पड़े!”
“क्या फायदा ऐसी गुलामी का कि बीवी की लाश पर रोना पड़े!”
“बेटी के खून से हाथ रंगने पडें!”
“बहन की डोली उठाने की जगह उसकी अर्थी उठानी पड़े!”
“खामोश हो जाओ।” — झामनानी चिल्लाया — “वडी, खामोश हो जाओ नी।”
खामोशी की जगह पहले से ज्यादा शोर उठा।
तभी उस शोर से भी ऊंची एक आवाज वातावरण में गूंजी।
एक जोर से गड़गड़ की आवाज हुई और फिर एक हैलीकाप्टर इमारत के पीछे से ऊपर उठता दिखाई दिया। सब के देखते देखते वो हैलीकाप्टर फार्म से परे कहीं उड़ चला।
“वडी, खामोश हो जाओ, नी।” — झामनानी बोला — “मुझे बात तो करने दो दूसरी तरफ!”
शोर शांत हुआ।
“वडी, उधर से कौन बोलता है, नी, लाउडस्पीकर पर?”
“मुबारक अली बोलता है।”
“वडी, क्या चाहता है, नी?”
“तुझे मालूम है मैं क्या चाहता है! सोहल और उसकी बीवी को सही सलामत इधर रवाना कर।”
“बदले में तुम क्या करोगे?”
“खून खराबा नहीं करेंगे। न करेंगे, न होने देंगे।”
“कैसे रोकोगे, नी?”
“जो करेंगे, जैसे करेंगे, सब सामने आ जायेगा।”
“तो तुम सोहल और उसकी बीवी की रिहाई चाहते हो?”
“हां।”
“ठीक है, नी। तुम लोग जैसे चुपचाप यहां पहुंचे हो, वैसे ही चुपचाप यहां से चले जाओ। तुम्हारे यहां से रुखसत होते ही उन दोनों को रिहा कर दिया जायेगा।”
“ये नहीं हो सकता।” — मुबारक अली बोला — “हम सोहल और उसकी बीवी को साथ लेकर जायेंगे।”
हाशमी ने मुबारक अली का कन्धा दबाया और बोला — “झामनानी, हम एक शर्त पर तुम्हारी बात कुबूल कर सकते हैं।”
“वडी, कैसी शर्त, नी?”
“तुम्हें अपने तमाम प्यादों को भी निहत्थे हमारे साथ यहां से रुखसत करना होगा। इस फार्म में पीछे तुम चार बिरादरीभाई और दो सोहल और उसकी बीवी रह जायें तो हमें ये शर्त मंजूर है। फिर जब तुम्हारा जी चाहे तुम सोहल और उसकी बीवी को रिहा करना।”
“ये नहीं हो सकता।”
“तो फिर वो भी नहीं हो सकता जो तुम चाहते हो।”
“अगर जंग छिड़ी तो तुम सब मारे जाओगे।”
“कोई नयी बात बोल, खलीफा। जो बात हमें पहले से मालूम है, वो हमें क्यों बताता है?”
“मैं सब से पहले उन दोनों को ही गोली से उड़ाता हूं।”
“तूने ऐसा किया” — मुबारक अली गुस्से से बोला — “तो इन पैंतालीस बेसहारा औरतों में से एक भी जिन्दा नहीं बचेगी। तो इन सब का खून तेरे सिर होगा।”
मुबारक अली के इरादे की मजबूती स्थापित करने के लिये अली, वली ने हवा में गोलियां चलाईं।
“नहीं! नहीं!” — दूसरी ओर से कई आवाजें उठीं — “हमारी औरतों पर गोली न चलाना।”
“हम नहीं चलायेंगे।” — हाशमी बोला — “हमारी ऐसी कोई मंशा नहीं है लेकिन हमें मजबूर किया गया तो हम ऐन यही करेंगे।”
“और मजबूर” — मुबारक अली बोला — “हमें किया जा रहा है।”
“हम ऐसा नहीं होने देंगे।”
“कैसे रोकोगे?”
“आप लोग बोलो हम क्या करें? अपनी औरतों की सलामती के लिये हम कुछ भी करने को तैयार हैं।”
“पक्की बात?”
“हां। हमें आजमा के देख लो।”
“ठीक है। पहले बाकी जने भी हथियार फेंको।”
तत्काल बरामदे के सामने कम्पाउन्ड में जैसे हथियारों की बारिश हुई।
“अब इन चारों खलीफाओं कोदबोच लो और समझ लो कि हम सब की जान बच गयी।”
“मंजूर।”
पलक झपकते झामनानी, पवित्तर सिंह, भोगीलाल और ब्रजवासी अपने ही आदमियों की पकड़ में छटपटाने लगे।
“चलो।” — मुबारक अली बोला।
उसके साथ हाशमी, अली, वली, अशरफ और अब्दुल रहमान आगे बढ़े। औरतों की दीवार लांघ कर दौड़ते हुए वो बरामदे में पहुंचे।
दिल्ली के दादाओं को तब तक लोगों ने इस बुरी तरह से दबोच लिया था कि अब वो हिल भी नहीं पा रहे थे।
मुबारक अली झामनानी के सामने पहुंचा।
“क्या!” — वो बोला।
“क... क्या क्या, नी?” — झामनानी बड़ी मुश्किल से बोल पाया।
“परजा खिलाफ हो जाये तो कोई राजा नहीं जीत सकता।”
झामनानी ने जोर से थूक निगली।
“सोहल कहां है?”
झामनानी ने एक बन्द दरवाजे की तरफ इशारा किया।
“उसकी बेगम?”
“वहीं... वहीं उसके साथ है।”
अली, वली के साथ मुबारक अली उस दरवाजे की ओर बढ़ा।
भीड़ में मौजूद इकलौती औरत शैलजा ने अपने करीब खड़े अमरदीप को कोहनी मारी।
क्षण भर को दोनों की निगाहें मिलीं।
“ठहरो!” — फिर एकाएक अमरदीप बोला।
मुबारक अली और अली वली ठिठके। मुबारक ने प्रश्नसूचक नेत्रों से अली वली को तरफ देखा।
“भीतर सोहल और उसकी बीवी तो हैं” — अमरदीप बोला — “लेकिन उनके सिरहाने दोनों की कनपटी में रिवॉल्वर सटायें हुकमनी और टोकस मौजूद हैं जो कि झामनानी साहब के बहुत ही खास आदमी हैं। किसी अनजानी सूरत ने उस कमरे में कदम रखा तो खुद उनका कोई भी अन्जाम हो, वो दोनों को गोली मार देंगे।”
मुबारक अली सन्नाटे में आ गया।
“कमीने!” — झामनानी दांत पीसता बोला — “गद्दार! नमकहराम!”
शोहाब ने एक झांपड़ उसके चेहरे पर रसीद किया तो वो खामोश हुआ।
“इधर आ।” — मुबारक अली अमरदीप से बोला।
अमरदीप उसके करीब पहुंचा।
“तेरे को कैसे मालूम?”
“इन्होंने” — अमरदीप ने झामनानी की तरफ इशारा किया — “मेरे सामने उन दोनों को ये हुक्म सुनाया था।”
“यानी कि ये हमें जानबूझ कर, वो क्या कहते हैं अंग्रजी में, ऐसे माहौल में भेज रहा था जिसमें सोहल और उसकी बीवी तो मरते ही मरते, कोई बड़ी बात नहीं थी कि हमारा भी काम हो जाता?”
“हां।”
“बाप” — मुबारक अली झामनानी से बोला — “तू तो बहुत कमीना है!”
जवाब में झामनानी के गले की घन्टी जोर से उछली।
“अबे, दायें बायें वालो” — फिर मुबारक अली अपने जुड़वा भांजों पर झल्लाया — “अब कुछ बोलो भी तो कि क्या करें?”
“मामू” — अली बोला — “इसी से पूछो।”
“बोल भई, क्या करें?”
“झामनानी को साथ लेकर जाओ।” — अमरदीप बोला।
“कर्मांमारे कुत्ते!” — झामनानी दान्त पीसता बोला।
“छोड़ो इसे।” — मुबारक अली बोला।
कई हाथ, जो झामनानी को दबोचे हुए थे, उसके जिस्म से अलग हुए।
“चल।”
झामनानी को बन्द दरवाजे के सामने ले जाया गया।
“दरवाजा खोल के भीतर कदम डाल।” — मुबारक अली बोला — “सिर्फ एक ही कदम भीतर बढ़ाना है। दूसरा कदम उठा तो गोली। समझ गया?”
झामनानी ने अपने सूखे होंठों पर जुबान फेरी और सहमति में सिर हिलाया।
“पीछे दरवाजा बन्द करने की कोशिश नहीं करनी। फिर उन दोनों को अपने करीब बुलाना है। क्या?”
झामनानी ने फिर सहमति में सिर हिलाया।
“शुरू।”
झामनानी ने आगे कदम बढ़ाया।
अली, वली और मुबारक अली दरवाजे के आजू बाजू हो गये।
पीछे एकाएक सन्नाटा छा गया।
झामनानी ने दरवाजा खोला एक कदम भीतर डाला और फिर वहीं ठिठक गया।
मुबारक अली और अली, वली की पोजीशन ऐसी थी कि उन्हें सिर्फ झामनानी दिखाई दे रहा था।
झामनानी को भी इस बात की खबर थी जिसकी वजह से प्रत्यक्ष में उसका शरीर यूं तना हुआ था जैसे किसी भी क्षण गोली आ लगने की उम्मीद कर रहा हो।
“हुकमनी!” — झामनानी फंसे कण्ठ से बोला।
“हां, साहब।”
“इधर आ।”
“आया, साहब। बाहर सब पकड़ में आ गया?”
“हां। टोकस, तू भी इधर आ।”
“आया, साहब।”
दो जोड़ी चलते कदमों की आहट हुई जो झामनानी के करीब आकर रुके।
अली, वली ने दरवाजे में छलांग लगा दी।
“खबरदार!” — अपनी अपनी स्टेनगन सामने तानते वो सम्वेत स्वर में चिल्लाये।
लेकिन खबरदार कोई न हुआ।
हुकमनी और टोकस ने झामनानी के कन्धे पर से गोली चलाई।
झामनानी तत्काल डाई मार कर जमीन पर लुढ़क गया।
नतीजतन दो स्टेनगंस से निकली तमाम की तमाम गोलियां सीधे हुकमनी और टोकस के शरीरों से टकराई।
दोनों पछाड़ खाकर फर्श पर ढेर हुए।
फिर खामोशी छा गयी।
मुबारक अली ने भीतर कदम डाला। नीलम और विमल पर निगाह पड़ने पर तब पहली बार उसने चैन की सांस ली। उसके चेहरे पर अपने आप ही मुस्कराहट आ गयी।
“खादिम सलाम अर्ज करता है, बाप।” — वो बोला — “भाभी साहिबा को भी।”
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