मोना चौधरी कमरे में शांत सी बैठी, सोचों में डूबी थी। दिन के बारह बज रहे थे। फिर एकाएक उसने मोबाइल उठाया और लैला को फोन किया। लैला से बात हो गई। मोना चौधरी ने बेहद धीमें स्वर में बात की।

"फिरोजशाह से मेरी बात हो गई है। उसकी तलाश में जो आदमी लगे हैं, उन्हें पीछे हटा लो।"

"मैं उन सब एजेन्ट को हटा लेती हूँ। तुम बताओगी कि आखिर तुम किस तरह अपना काम कर रही हो?"

"मेरा काम लाली खान को कमजोर करके बरबाद करना है।"

"तो ?"

"काम हो रहा है। । तुम सवाल-जवाब मत करो।"

"तुम्हें मेरी बात का जवाब देना चाहिये। आखिर हम एक साथ काम कर रहे हैं...।"

"हम एक साथ काम नहीं कर रहे...।" मोना चौधरी कह उठी--- "इस काम की पूरी जिम्मेवारी मुझ पर है। तुम लोग मेरे साथ हो।"

लैला की दो पलों की चुप्पी के बाद आवाज आई---

"तुम्हारा क्या ख्याल है कि तुम लाली खान को बरबाद कर दोगी?”

"कोशिश तो कर रही हूँ। उन तीनों गोदामों को तुमने तबाह करना है। भूल मत जाना।"

"आज रात या कल तक यह काम हो जाना चाहिये।"

“मुझे काम पूरा चाहिये। एक गोदाम भी सलामत न बचे। वहाँ का पूरी ड्रग्स बरबाद हो जानी चाहिये।"

"ऐसा ही होगा। इस काम में बहुत लाशें बिछेंगी। लेकिन ये काम मैं पूरा कर दूंगी।"

"जयन्त कब लौटेगा ?"

"वो रास्ते में है। छः एजेन्ट भी उसके साथ हैं। मेरे ख्याल से उसे रात तक पहुँच जाना चाहिये।”

"महाजन की कोई खबर ?”

"वो अपने काम में लगा हुआ है। लाली खान के महमुडे राकी शहर के एक ठिकाने से शकीला नाम की औरत उनके हाथ लगी है, जो कि लाली खान की खास है शायद। उसे नांगारहार में, मेरे उन आदमियों के हवाले किया था, जो कि उसे लेकर मेरे पास काबुल पहुँच चुके हैं। अब मैं उससे पूछताछ करके, उससे लाली खान के खास ठिकानों के बारे में जानकारी प्राप्त करने जा रही हूँ।”

"ठीक है। महाजन का फोन नम्बर होगा तुम्हारे पास?"

"उसके पास चालू हालत में कोई फोन नहीं है। परन्तु उसके साथ मेरे आदमी जौहर का फोन नम्बर नोट कर लो ।"

लैला ने फोन नम्बर बताया।

मोना चौधरी ने उसके बाद फोन बंद कर दिया।

फिर वो उठी और कमरे से बाहर निकलकर गुलजीरा खानके पास जा पहुँची।

गुलजीरा खान कुर्सी की पुश्त से सिर टिकाए, आँखें बंद किए बैठी थी। आहट पाकर उसने आँखें खोलीं।

"थकी लग रही हो... ।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा ।

"थोड़ी सी गड़बड़ हो गई है।" गुलजीरा खान ने सीधा बैठते हुए कहा।

"क्या?"

"रात लाली खान के लोगों ने जिस हिन्दुस्तानी को पकड़ा था, वो कैद से भाग निकला।"

मोना चौधरी मुस्कुरा दी।

"दाँत क्यों फाड़ रही हो?" गुलजीरा खान की आँखें सिकुड़ीं। उसे घूरने लगी।

“तुम्हारे आदमी भी अजीब हैं?” मोना चौधरी बैठते हुए कह उठी--- "किसी को पकड़ते हैं, फिर वो कैद से भाग निकलता है।"

"उसका एक साथी और था उसने उसे छुड़ा लिया।"

“गलत हुआ। मेरे ख्याल से तो उसे पकड़ते ही गोली से उड़ा देना चाहिये था।"

"पूछताछ के लिए जिन्दा रखा था उसे। शमशेर उसके पास है। हमने शमशेर को हासिल करना है।"

"बहुत चिन्ता है शमशेर की?"

"उसे गोली मारनी है।" गुलजीरा खान कठोर स्वर में कह उठी।

"क्यों ?"

"वो मुंह खोल रहा है। उसकी वजह से वो हिन्दुस्तानी लाली खान के ठिकाने तक पहुँच रहा है।"

"शमशेर को इस बात की जानकारी होनी ही नहीं चाहिये थी कि लाली खान के ठिकाने कहाँ हैं।"

"ये जानकारी शमशेर ने अपने तौर पर हासिल की थी। इस बारे में उसे बताया नहीं गया था। लाली इस बात को जान चुकी थी कि शमशेर उसके कई ठिकानों के बारे में जानता है। परन्तु परवाह इसलिये नहीं की कि शमशेर का काम ही जानकारियां इकट्टी करना है और वो सब कुछ जान कर वो अपने तक ही रखता था और जरूरत पड़ने पर हमारे लिए जानकारी को बाहर निकालता था।"

"परन्तु इस बार मामला उल्टा पड़ गया...।" मोना चौधरी बोली।

"हाँ। उल्टा पड़ गया।"

"वो हिन्दुस्तानी लाली खान के पीछे क्यों है?" मोना चौधरी ने पूछा।

"ये अभी मालूम नहीं हो सका।" गुलजीरा खान ने इन्कार में सिर हिलाया--- "यही तो पूछना था उससे। ये वही हिन्दुस्तानी है, जो हमारी पार्टी से हमारे ही नाम पर ड्रग्स लूट चुका है और इसी ने हमारा ड्रग्स वाला गोदाम जला दिया था।"

"फिर तो दुश्मनी तगड़ी लगती है...।"

गुलजीरा खान ने कुछ नहीं कहा।

मोना चौधरी भी खामोश रही।

"जयन्त कब लौटेगा ?" गुलजीरा खान ने पूछा।

"रात को।"

"बांग्ला देश माल पहुँचाना है, ढाका में... ।"

"कब ?"

"कोई जल्दी नहीं है। कल-परसों या उससे अगले दिन, कभी भी माल लेकर रवाना हुआ जा सकता है।"

"काम हो जायेगा।"

तभी मोना चौधरी का फोन बजा। दूसरी तरफ हैदर खान था।

"तुम्हारी आवाज सुनकर अच्छा लग रहा है...।" मोना चौधरी मुस्कराकर बोली।

"आज तुमने मुझसे मिलना है।" हैदर की आवाज कानों में पड़ी।

"फुर्सत में हूँ, आऊँ क्या?"

"ये तो बढ़िया बात होगी।"

"आती हूँ...।" मोना चौधरी ने कहा और फोन बंद कर दिया। कुर्सी से उठ खड़ी हुई।

"हैदर से बात की तुमने अभी...?" पूछा गुलजीरा खान ने ।

“हाँ....।" मोना चौधरी ने कहा और बाहर निकल गई।

“पक्की कुतिया है।” गुलजीरा खान गुस्से से बड़बड़ा उठी--- “ये आसानी से मेरे भाई का पीछा नहीं छोड़ने वाली...।"

■■■

मोना चौधरी के कॉलबेल बजाने पर हैदर खान ने दरवाजा खोला।

नमी मिली। दोनों मुस्करा पड़े।

मोना चौधरी आगे बढ़ी तो हैदर खान ने उसे बाँहों में समेट लिया।

"कैसी हो?" हैदर खान ने प्यार से पूछा।

"मजे में हूं...।" मोना चौधरी ने उसकी छाती पर 'किस' किया।

हैदर खान ने उसका माथा चूमा, फिर मोना चौधरी को बाँहों के घेरे से आजाद किया।

मोना चौधरी भीतर की तरफ बढ़ गई। हैदर खान दरवाजा बंद करके पलटता कह उठा---

"तुम पास नहीं होतीं तो सब कुछ खाली-खाली सा लगता है...।"

"खुद को व्यस्त रखो।" मोना चौधरी सोफा चेयर पर बैठती कह उठी।

"हम हमेशा के लिए एक साथ भी तो रह सकते हैं... ।" हैदर खान पास आकर बैठता बोला।

"तुम्हारे साथ रहने में मुझे अच्छा लगेगा।" मोना चौधरी ने गहरी सांस ली--- "परन्तु ये सम्भव नहीं हो पायेगा...।"

"लाली की तुम फिक्र मत करो। उसे मैं देख... !”

"हैदर...।" मोना चौधरी ने हाथ बढ़ाकर उसके होठों पर उंगली रखी--- "मैं थोड़े वक्त के लिए आई हूँ...।"

"थोड़े वक्त के लिए?"

"शाम को मैंने वापस जाना है। जयन्त आ रहा है। उससे कुछ बात करनी है।"

"नहीं... तुम रात भी मेरे पास रहोगी। उसके साथ क्या बात कर...।"

"नहीं हैदर। मैं अपना काम कल पर नहीं छोड़ती...।" मोना चौधरी ने प्यार से कहा।

हैदर खान मौना चौधरी को देखने लगा।

"क्या देख रहे हो?" मोना चौधरी उसके बालों में उंगलियां फेरती कह उठी।

“सोच रहा हूँ कि तुममें ऐसा क्या है... जो मैं तुम्हारा दीवाना हो गया हूँ...।"

"तुम भी मुझे अच्छे लगते हो।"

"तो हम साथ क्यों नहीं रह सकते?" हैदर खान जिद भरे स्वर में कह उठा।

"इस बारे में फिर कभी बात करेंगे।"

"ये तो तुमने पहले भी कहा था।"

"जब वक्त आयेगा, बात हो जायेगी। अब तुम वक्त क्यों खराब कर रहे हो। मुझे वापस भी जाना है।"

"मैं तुम्हें रात के डिनर के बाद ही जाने दूंगा। पहले नहीं....।"

मोना चौधरी मुस्करा पड़ी।

"ठीक है। तुम्हारी ये बात मानी... ।"

हैदर खान प्यार भरी निगाहों से उसे देखने लगा।

"तुम्हें मालूम है हैदर कि लाली को परेशानी आ रही है?” मोना चौधरी पुनः बोली ।

"उस हिन्दुस्तानी की वजह से ?"

“हाँ। वो लाली को मारने के लिए उसे ढूंढता फिर रहा है।”

"लाली संभाल लेगी उसे ।"

"वो पकड़ा भी गया, परन्तु कैद से भाग निकला।"

"उसकी फिक्र मत करो। लाली के लिये ये बातें मामूली हैं।" हैदर खान मुस्करा कर बोला।

“मुझे तुम्हारी चिन्ता है।"

"मेरी चिन्ता बिल्कुल मत करो। हम पूरी तरह सुरक्षित हैं। कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।" कहने के साथ ही हैदर खान ने मोना चौधरी का हाथ पकड़ा और उसे अपने ऊपर खींच लिया।

“शरारती....।" मोना चौधरी हंस पड़ी।

तभी हैदर के होंठ मोना चौधरी के होंठों से जा लगे ।

■■■

रात के ग्यारह बजे जयन्त वापस पहुँचा।

गुलजीरा खान अपने आफिस में थी तब । चेहरे से कुछ थकी-थकी लग रही थी। मोना चौधरी पन्द्रह मिनट पहले लौटी थी और अपने कमरे में चली गई थी। जयन्त के आ पहुँचने की खबर मिलने पर, वो बाहर निकली। जयन्त मिला।

"बढ़िया काम किया।" गुलजीरा ने मुस्करा कर कहा ।

"मेरे काम ऐसे ही होते हैं...।" जयन्त ने भी मुस्कराकर कहा--- "उस वैन में तीन बैग रखे हैं। दो छोटे और एक बड़ा बैग। उसमें नोट, डायमंड और सोना तीनों चीजें मौजूद हैं। चैक कर लो कि सब पूरे हैं।"

"तुम यहाँ तक आ गये हो तो, वो भी पूरे होंगे।"

“मोना चौधरी कहाँ है?"

"कमरे में...।" कहने के साथ ही गुलजीरा खान सामने नज़र आ रही वैन की तरफ बढ़ गई।

जयन्त, कमरे में मोना चौधरी के पास पहुँचा ।

“हो गया काम?” मोना चौधरी उसे देखते ही बोली।

"वो तो होना ही था।" जयन्त कुर्सी पर बैठा और अपने जूते खोलने लगा--- "कोई नई खबर ?"

"एक खबर है। सुनोगे तो विश्वास नहीं आयेगा।" मोना चौधरी ने सहज स्वर में कहा।

“क्या?"

"मैं इस काम से हट रही हूँ... ।”

जयन्त चौंक कर उसे देखने लगा।

"क्या कहा?" उसके होंठों से निकला।

"मैं गु-ले-ल मिशन से हट रही हूँ...।"

“ये.. ये कैसे हो सकता है?" जयन्त हक्का-बक्का कह उठा--- "हम सब तुम्हारे भरोसे ही तो हैं और तुम...।"

"मैं तुम जैसे बेईमानों के साथ काम नहीं करती। रॉ बेईमान है। रॉ का विश्वास नहीं किया जा सकता।"

जयन्त, मोना चौधरी को गम्भीर निगाहों से देखता कह उठा---

"बात क्या है?"

मोना चौधरी ने जयन्त की आँखों में झांका और पूछा---

"पारसनाथ कहाँ है?"

जयन्त की आँखें सिकुड़ीं। होंठ भी सिकुड़े।

"तुम्हें बताया तो है कि पारसनाथ लाली खान के लोगों के पास है। चीफ उसे छुड़ाने पर लगे हैं...।"

मोना चौधरी के होंठों पर कड़वी मुस्कान रेंग गई।

"लाली खान की कैद में नहीं है पारसनाथ... ।”

"किसने कहा?" जयन्त के होंठों से निकला।

"मैंने कहा। लाली खान ने कहा। गुलजीरा खान ने कहा।"

"तुमने पूछा?" जयन्त के होंठ सिकुड़े।

"मैंने अपने ढंग से पता किया है। पारसनाथ, लाली खान की कैद में नहीं है। उन्होंने पारसनाथ का नाम सुना ही नहीं है। अब तुम बताओ कि क्या खेल है?"

"खेल?" जयन्त परेशान सा हुआ।

“क्या खेल खेला गया है मेरे साथ? वैसे मैं महसूस कर चुकी हूँ कि मुझे पता है, मामला क्या है। लेकिन अब तुमसे सुनना चाहती हूँ।"

जयन्त उसे देखता रहा।

"मैं इस मिशन को अधूरा छोड़ने जा रही हूँ...।"

"ऐसा मत करना।" जयन्त कह उठा ।

"तो मुझे बताओ कि पारसनाथ के मामले में सच क्या है?"

"ये सच है कि पारसनाथ को लाली खान ने कैद.... ।"

“बकवास मत करो। तुम लोग अब मुझे और बेवकूफ नहीं बना सकते। रॉ ने शुरू से ही मेरे साथ धोखा किया है।" मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी--- "लेकिन अब मैं और धोखे में नहीं रहने वाली। इस तरह मैं किसी का कोई काम नहीं करती कि कोई मुझे धोखे में रखकर मेरा इस्तेमाल करे। तुम लोगों ने धोखा दिया मुझे...।"

जयन्त ने होंठों पर जीभ फेरी। मोना चौधरी को देखता रहा।

"चुप रहने की जरूरत नहीं, अपना मुँह खोलो या फिर ये मिशन खत्म समझो...।"

"ये बातें हम बाद में भी कर सकते... ।"

"बात आज ही होगी। अभी होगी।" मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर कह उठी।

जयन्त ने गहरी सांस ली और बेचैनी से कह उठा---

"पारसनाथ रॉ के पास है।"

"क्यों किया ऐसा?" मोना चौधरी का चेहरा कठोर हो गया।

"तुमसे ये काम लेने के वास्ते। हमारे एजेन्ट पहचाने जा रहे थे और लाली खान के लोगों के हाथों खत्म किए जा रहे थे। हम नहीं चाहते थे कि हमारे और एजेन्ट मिटें। चीफ इस मिशन के लिये ऐसा कोई इन्सान चाहते थे, जो इन लोगों में आसानी से घुल-मिल सके... और तभी तुम चीफ की नज़रों में आ गईं। चीफ को लगा कि तुम रॉ का ये मिशन आसानी से पूरा कर सकती हो।"

“इसलिये पारसनाथ की कहानी मेरे सामने रखी कि मैं ये काम करने से इन्कार न करूँ।"

"हाँ...।"

“और तुम लोगों ने सोचा कि मुझे पता ही नहीं चलेगा कि असल में हकीकत क्या है?" मोना चौधरी के दाँत भिंच गये।

जयन्त ने मोना चौधरी को देखा और मुँह घुमा लिया।

"पारसनाथ कहाँ है?"

"दिल्ली में। रॉ के पास।"

मोना चौधरी का चेहरा कठोर हुआ पड़ा था।

"अगर मैं ये काम अभी छोड़ दूँ तो क्या होगा ?" मोना चौधरी गुस्से से बोली।

"रॉ को बहुत बड़ा झटका लगेगा। हम मिशन समाप्ति के करीब हैं। प्लीज, ऐसा मत करना।"

"रॉ ने बहुत गलत किया है मेरे साथ...।"

जयन्त ने कुछ नहीं कहा।

“अब काम मेरी शर्तों पर होगा, अगर हुआ तो...।" मोना चौधरी ने पूर्ववतः स्वर में कहा।

"कैसी शर्तें...?"

"तुम्हें कुछ कहने से कोई फायदा नहीं होगा। अपने चीफ से मेरी बात कराओ।"

जयन्त ने मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा।

“उसे बता देना कि रॉ ने जो खेल खेला है, वो खुल चुका है।" मोना चौधरी ने शब्दों को चबाते हुए कहा।

जयन्त कान से फोन लगाए कुर्सी से उठा और मोना चौधरी से दूर हट गया।

दो मिनट जयन्त फोन पर बात करता रहा, फिर पास आकर फोन मोना चौधरी की तरफ बढ़ाकर कहा---

"लो... बात कर लो।"

मोना चौधरी ने फोन थामा और बात की।

"तुम हो... गोपाल दास ?” मोना चौधरी सख्त स्वर में बोली।

"क्या चाहती हो?" गोपाल दास की आवाज कानों में पड़ी।

"तुमने धोखा दिया है मुझे।"

"मेरी निगाहों में ऐसा करना जरूरी था। क्योंकि इस काम के लिये तुम मुझे ठीक लगी थीं। लेकिन तुम्हें बुरा नहीं मानना चाहिये ।”

"अगर तुम चाहते हो कि मैं ये काम करूँ तो तुम्हें काम की कीमत अदा करनी होगी।"

"कीमत बोलो...।"

"पचास करोड़ रुपये....।"

"ये ज्यादा हैं।"

"इसमें झूठ बोलने का जुर्माना भी शामिल है। और इस वक्त मैं जहाँ हूँ, वहां पचास करोड़ मामूली रकम समझी जाती है।"

"ठीक है। मेरा वादा है कि तुम काम खत्म करके जब वापस लौटोगी तो पैसा तुम्हें दे दिया जायेगा ।"

"लेकिन ये काम देश के हित में है, इसलिये इस काम का पैसा मैं अपनी जेब में नहीं रखूँगी। दस-दस करोड़ पाँच जगह, ऐसी गरीब संस्थाओं को देना है जो सही मायनों में गरीबों पर पैसा खर्च करती हैं और रसीद मुझे दे देना।"

"मैं समझ गया। ऐसा ही होगा।"

"अगर तुमने शुरू में ही मुझसे स्पष्ट बात की होती तो शायद इस काम का मैं कुछ भी न लेती।"

"काम की पोजीशन क्या है?" गोपाल दास ने पूछा।

"काम बढ़िया चल रहा है। जल्दी ही कुछ सामने आयेगा। पारसनाथ को अभी छोड़ दो।"

"वो एक घंटे में अपने घर पर होगा।"

"लाली खान की बेटी मासो का पता किया है, जो दिल्ली में पढ़ रही...।"

“पता कर लिया है। उसे ढूंढ लिया गया है। वो रिंग रोड पीतमपुरा के हाई सोसाईटी स्कूल में पढ़ती है। स्कूल से तीन किलोमीटर दूर शालीमार बाग के एक बंगले में वो रहती है। वहाँ मासो के साथ उसकी देख-रेख के लिए दो औरतें रहती हैं। चार हथियारबंद लायसेंस शुदा गनमैन बंगले की निगरानी पर रहते हैं। एक गेट पर रहता है। मासो जब स्कूल जाती-आती है तो दो गनमैन उसके साथ होते हैं। साथ ही...।"

"तुम्हें जयन्त ने बताया नहीं कि तुमने मासो का अपहरण करना है।"

"एक घंटा पहले ही मेरे आदमी शालीमार बाग के उस बंगले की तरफ चले गये हैं, जहाँ मासो रहती है। अगले तीन-चार घंटों में मासो मेरे पास होगी।” गोपाल दास की आवाज कानों में पड़ी।

“मासो को कोई तकलीफ न हो।"

"लेकिन तुम क्या करना चाहती हो?"

“ये मेरा खेल है। मुझे ही खेलने दो।" मोना चौधरी ने कहा और फोन बंद कर दिया।

जयन्त अजीब सी निगाहों से मोना चौधरी को देख रहा था।

“दोबारा कभी मुझसे झूठ बोलने की कोशिश मत करना।”

मोना चौधरी ने उसे मोबाइल थमाया।

"तुम बहुत अजीब हो।”

"क्यों?"

"तुमने पचास करोड़ गरीबों की संस्थाओं को दान देने को कह दिया। इतनी बड़ी रकम...।"

“मेरे लिए मामूली है---परन्तु इससे हजारों परिवारों का भला होगा।" मोना चौधरी ने कहा।

"और तुम्हें क्या मिलेगा?"

"शान्ति।"

जयन्त गहरी सांस लेकर रह गया।

"मैंने तो सोचा था कि मैंने तुम्हें समझ लिया है। परन्तु अब लगता है कि मैं तुम्हें जरा भी नहीं समझ पाया।"

“मुझे मत समझो। जिस मिशन पर हो, उस पर ध्यान दो तो ठीक रहेगा।"

"यहाँ पर क्या हो रहा है?"

"लैला कभी भी लाली खान के ड्रग्स के तीनों ठिकाने तबाह करवा सकती है।"

"इस काम के लिए उसने आदमी बाहर से खरीदे हैं?"

“हाँ... उसने यही बताया।"

"तो वो लाली खान की नज़रों में आ जायेगी। कोई भी किराये का आदमी उसके बारे में मुँह खोल सकता है।”

"लैला अपनी असलियत को छिपा कर ये काम कर रही होगी। वो बेवकूफ नहीं है।"

"और महाजन ?”

"वो लाली खान को ढूंढ रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि महाजन की वजह से लाली खान परेशान हो रही होगी।"

■■■

इंडिया ।

दिल्ली।

रात के 11.30 बजे। शालीमार बाग का वो शानदार बंगला ।

बंगले के गेट पर और भीतर रोशनी हो रही थी ।

गेट पर एक चौकीदार खड़ा था और चारदीवारी के भीतर रोज की तरह चार गनमैन पहरा दे रहे थे। दो गनमैन नीचे बंगले के इर्द-गिर्द घूम रहे थे और दो छत पर सतर्कता से पहरा दे रहे थे।

सब कुछ रोज की तरह सामान्य चल रहा था।

परन्तु बंगले के बाहर खामोश हलचल थी। बंगले से कुछ ही दूरी पर एक वैन और एक कार खड़ी थी। जोकि पन्द्रह मिनट पहले ही वहाँ पहुँची थी। वैन से दी आदमी निकलकर बंगले की तरफ बढ़ गये थे। बंगले पर देर तक नज़र मारने के बाद वो वापस लौटे और तब तक वैन और कार के पन्द्रह आदमी बाहर निकल चुके थे।

"बंगले पर पहरा है।" नज़र मारने वालों ने कहा--- "गेट पर दरबान है। दीवार के भीतर दो गनमैन टहल रहे हैं। छत पर दो हैं। हमें आर्डर मिले हैं कि जहाँ तक हो सके, खून-खराबा न हो और बच्ची को ले आयें। परन्तु बिना खून-खराबे के ये कैसे हो पायेगा। वो गनमैन हमें बच्ची को नहीं ले जाने देंगे।"

"हमें कोई ऐसी तरकीब निकालनी चाहिये कि...।"

"ये मुझ पर छोड़ दो।" एक ने कहा।

"तुम क्या करोगे गुप्ता... ?"

"नितेश मेरे साथ जायेगा।" गुप्ता ने कहते हुए रिवाल्वर निकाली और नाल पर साईलेंसर चढ़ाने लगा--- "मैं और नितेश नीचे वाले दोनों गनमैनों की टांग पर गोली मार कर उन्हें घायल करेंगे और उनकी गनें छीन लेंगे। फिर हमारे इशारे पर तुम सब भीतर जाओगे और छत वाले दोनों गनमैनों पर कैसे काबू...।”

गुप्ता अपनी योजना बताने लगा ।

"तुम ज़रा भी चूके तो वे तुम्हें मार देंगे गुप्ता।” पूरी बात सुनने के बाद एक ने कहा।

"मेरी फिक्र मत करो। मैं अपना काम कर लूंगा। तुम तैयार हो नितेश ?" गुप्ता ने पूछा।

"बिल्कुल तैयार हूँ..।”

“साईलेंसर चढ़ा ले।"

"वो तो मैंने तेरे को देखकर ही चढ़ा लिया था...।"

“चल। तुम सब हमारे इशारे को पाते ही आ जाना।"

गुप्ता और नितेश आगे बढ़ गये। बंगले की तरफ। इसके साथ ही रॉ के सब एजेन्ट फुर्ती से आस-पास पोजीशन लेते चले गये। ये सब कुछ बे-आवाज पूरा हो गया।

गुप्ता और नितेश बंगले के गेट पर जा पहुँचे।

“ऐ!" गुप्ता बोला--- “हम सी.बी.आई. वाले हैं।” कार्ड निकाल कर दिखाता कह उठा--- "गेट खोलो।”

"लेकिन साहब, यहाँ सी.बी.आई. का क्या काम ... ?"

"गेट खोलो पता चल जायेगा।” गुप्ता ने रौबीले स्वर में कहा ।

दरबान ने गेट नहीं खोला, परन्तु आवाज लगाकर एक गनमैन को बुलाया।

"हम सी.बी.आई. वाले हैं। आस-पास के लोगों की शिकायत पर ये जानने आये है कि तुम लोगों के पास हथियारों के लायसेंस हैं....।" कहते हुए गुप्ता ने अपना कार्ड गेट की सलाखों के भीतर सरका दिया।

उस गनमैन ने कार्ड देखा। कम रोशनी थी वहाँ। परन्तु गुप्ता की तस्वीर और तीन मुँह वाले शेर का निशान देखते ही उसने कार्ड वापस करते हुए कहा---

"हमारे पास लायसेंस हैं।"

"हमें जांच करनी होगी। गेट खोलो और लायसेंस दिखाओ ।" गुप्ता ने कार्ड लेकर जेब में रखा।

गेट खोल दिया गया।

गुप्ता और नितेश ने भीतर प्रवेश किया।

तब तक दूसरा गनमैन भी पास आते कह उठा---

"क्या हुआ... गेट क्यों खोला?"

“सरकारी आदमी हैं। हथियारों के लायसेंस की जाँच करने आये हैं।"

“पीछे क्वार्टर में रखे हैं लायसेंस। मैं लेकर आता हूँ...।" दूसरे गनमैन ने कहा।

"हमें खबर मिली है कि यहाँ चार हथियारबंद लोग नज़र आते हैं।" गुप्ता ने कहा ।

“हाँ। दो इस वक्त छत पर हैं। उनके लायसेंस भी क्वार्टर में हैं। मैं लाता हूँ...।” कहकर वो चला गया।

गुप्ता और नितेश गेट से भीतर की तरफ जाने लगे। गनमैन उनके साथ था।

“शानदार बंगला है। तुम लोग किसकी सुरक्षा पर हो ?" नितेश कह उठा।

"मालिक की।"

"कौन है तुम्हारा मालिक?"

"हमें इस बात की मनाही है कि बाहर के लोगों की बातों का जवाब दें...।"

“मगर हम सी.बी.आई. वाले हैं। कोई चोर नहीं... ।”

गनमैन खामोश रहा।

अब वे गेट से पन्द्रह कदम भीतर आ गये थे। दरबान दूर हो गया था। भीतर हर तरफ मध्यम रोशनी फैली थी। गुप्ता ने नितेश को कोहनी मारी। नितेश सतर्क हो गया। उसने बंगले की छत की तरफ देखा वहाँ से कोई नज़र नहीं आ रहा था। तब तक गुप्ता अपने कपड़ों में छिपी रिवाल्वर निकाल चुका था। कम रोशनी में गनमैन गुप्ता की ये हरकत नहीं देख पाया। गुप्ता ने उसके घुटने से ऊपर टांग का निशाना लिया और गोली चला दी।

पिट ।

मध्यम सी आवाज हुई।

इसके साथ ही नितेश ने झपट्टा मारा और उसके होठों पर अपनी हथेली टिका दी। गनमैन तड़प उठा। गुप्ता ने उसके हाथ से गन छीन ली। गनमैन पीड़ा से तड़पता और खुद को आजाद कराने की चेष्टा में लगा नीचे गिर गया। नितेश ने उसके होंठों पर जमी हथेली न हटने दी। हथेली हटते ही उसने चीखना था और सब कुछ गड़बड़ हो जाना था।

तभी गनमैन वापस आता दिखा।

पास आते-आते उसने नीचे पड़े गनमैन और नितेश को देख लिया था। रोशनी वहाँ कम थी।

"इसे क्या हुआ?" गनमैन के होठों से निकला।

"दौरा पड़ गया है...।"

गनमैन ने करीब आकर मामला समझने की चेष्टा की।

गुप्ता ने उसकी टांग पर गोली मारी और झपट्टा मारकर गन छीन ली।

वो चीख कर नीचे जा गिरा और तड़पने लगा।

तभी रॉ के बाकी लोग रिवाल्वरें थामें भीतर घुसते चले गये।

एक ने दरबान को पकड़कर बिठा लिया था। कुछ आदमी पाईपों के सहारे छत पर पहुँचने के लिए चढ़ने लगे तो कुछ बंगले के भीतर प्रवेश करने के लिये रास्ता खोजने लगे। खामोशी से भरी भगदड़ मच चुकी थी। दबी-दबी कदमों की आहटें वहाँ गूंज रही थीं।

नितेश उस गनमैन के होंठों पर से हथेली हटाकर, रिवाल्वर उससे सटा कर गुर्राया---

"चीखना मत...।"

गुप्ता ने भी दूसरे गनमैन पर रिवाल्वर रखकर उसे शोर करने से मना कर दिया था।

इतने लोगों को भीतर आते देखकर, गनमैन समझ गये कि भारी गड़बड़ होने वाली है। वो सहम से गये थे।

“तुम... तुम लोग कौन हो?" एक गनमैन ने हिम्मत करके पूछा।

"चुप कर, वरना गोली इस बार सिर में मारूंगा।" गुप्ता गुर्रा उठा।

दस मिनट लगे, छत वाले गनमैनों पर काबू पाने में।

जब छत वाले गनमैनों ने छत पर पहुंचे पांच हथियारबंद लोगों को देखा तो उन्होंने मुकाबला करने की अपेक्षा हथियार डाल देना ही बेहतर समझा। रॉ के पांचों एजेन्ट उन दोनों को सीढ़ियों से लेकर नीचे बंगले में पहुँचे। तब तक नीचे से भी रॉ के लोग बंगले में प्रवेश कर चुके थे। बंगले में दो औरतें और मासो थी, दस बरस की। औरतों में एक पचास बरस की थी और दूसरी पच्चीस की। वो घबरा गई। और मासो को अपने साथ चिपका लिया।

“हम बच्ची को लेने आये हैं और लेकर ही जायेंगे।" एक ने कठोर स्वर में कहा--- “क्या तुम गोली खाना चाहोगे?"

"बच्ची को मत ले जाओ। इसने किसी का क्या बिगाड़ा...।"

एक आदमी ने मासो को उससे अलग किया और कंधे पर डाल कर बाहर की तरफ बढ़ गया।

"मौसी...।" मासो रोते हुए चीख उठी।

परन्तु अब होना तो वो ही था जो रॉ के एजेन्टों ने करना था।

वे मासो का अपहरण करके ले गये।

■■■

अगले दिन सुबह ।

अफगानिस्तान के नांगारहार शहर के करीब की पहाड़ियों में महाजन और जौहर ने रात भर से वैन खड़ी कर रखी थी और भरपूर नींद लेने के बाद जब वो उठे तो सूर्य निकल आया था।

शमशेर वैन के फर्श पर ही बंधा पड़ा था। तीन दिन बंधे रहने और वैन में सफर करते रहने से उसकी हालत बुरी हो चुकी थी। सारी अकड़ निकल चुकी थी और चेहरे से वो थका-हारा नजर आ रहा था। कोने में रखे पानी से महाजन और जौहर ने हाथ-मुंह धोया और वैन का पिछला दरवाजा खोला।

शमशेर ने सिर उठाकर उन्हें देखा और टूटे स्वर में कह उठा---

"कुछ देर के लिये तो मुझे खोल दो... वरना मेरी जान निकल जायेगी।"

महाजन और जौहर की नजरें मिलीं।

"ये हमें अब लाली खान का कोई ठिकाना नहीं बता रहा...।" जौहर कह उठा।

"फिर तो ये हमारे काम का रहा ही नहीं...।" महाजन बोला।

"कितनी बार कहूं कि मैं लाली खान के किसी और ठिकाने को नहीं जानता..।" शमशेर चीख उठा।

"ये खुद कहता है कि ये अब हमें कोई जानकारी नहीं दे सकता।" जौहर बोला।

"ये हमारे काम का नहीं तो जान गंवायेगा। बेकार में इसे साथ रखने का कोई फायदा नहीं।" महाजन कह उठा।

"सोच ले भाई।" जौहर बोला--- “अफगानी-अफगानी भाई। सच कह रहा हूं, मुंह खोलेगा तो जिन्दा रहेगा। नहीं तो मरेगा।"

"मैं... मैं कुछ नहीं जानता।"

"फिर तो मरेगा। हम तेरे को जिन्दा तो छोड़ेंगे नहीं । तू हमारे बारे में बहुत कुछ जान चुका है।" जौहर ने सिर हिलाकर कहा।

"मैं... मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगा... मैं...।"

“तेरी-मेरी ऐसी रिश्तेदारी नहीं कि तेरी बात पर भरोसा कर लूं।" जौहर ने शांत स्वर में कहा।

"लैला को फोन करके पूछो कि शकीला ने मुंह खोला---कुछ बताया ?"

जौहर ने लैला को फोन किया। बात हो गई।

"मैडम...।" जौहर बोला--- “शकीला ने क्या बताया ?"

"अभी मुंह खोला नहीं उसने। लेकिन अगले दो घंटे में बता देगी। तुम लोग क्या कर रहे हो?"

“शमशेर अटका हुआ है कि वो लाली खान का कोई और ठिकाना नहीं जानता ।"

"झूठ बोलता है वो!"

"अब हम उसे खत्म करने जा रहे हैं।" जौहर ने कहा।

ये सुनकर शमशेर के जिस्म में मौत की सिरहन दौड़ गई।

“शकीला ने कुछ बताया तो मैं तुम लोगों को फोन कर दूंगी। अब वो कभी भी मुंह खोल सकती है।"

जौहर ने फोन बंद करके महाजन से कहा---

“शकीला कभी भी मुंह खोल देगी।"

महाजन की निगाह, शमशेर की तरफ उठ गई।

"इसे खोल।" महाजन क्रूर स्वर में कह उठा।

"क्यों?"

"इसे दौड़ा कर गोली मारेंगे।"

“अभी लो... ।” कहकर जौहर वैन के भीतर गया और शमशेर के बंधन खोलने लगा।

"मुझे क्यों मार रहे हो...मैं बेकसूर हूँ। लाली का गुस्सा उस पर निकालो। मुझ पर क्यों...।"

"तू चाहता था ना कि तेरे बंधन खोले जायें।"

"लेकिन मुझे मारने क्यों जा रहे हो?" शमशेर की हवा खुश्क हो गई थी, यों मरने की बात सुनकर।

"क्योंकि तू अब हमारे लिये बेकार हो गया है। तेरे को साथ रखने का कोई फायदा नहीं।" जौहर ने उसके बंधन खोले और वैन से बाहर कूद कर पलटा--- "चल, बाहर आ जा...।"

शमशेर का रंग फक्क पड़ा हुआ था।

"बाहर आ । मैं नहीं चाहता कि वैन खराब हो। चल, जल्दी कर...।"

"मुझे मत मारो... ।” शमशेर ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कांपते स्वर में कहा--- "मैं एक और ठिकाना बताता हूं... लाली खान का।"

"एक मिनट पहले तक तो तूने हाथ खड़े कर दिए थे कि तू कुछ नहीं जानता?" जौहर ने कड़वे स्वर में कहा।

शमशेर ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"जौहर !” महाजन बोला--- “ये रुक-रुक कर बता रहा है। मुझे ये बात पसन्द नहीं। बाहर निकाल के गोली मार इसे।"

"हुक्म हो गया। बाहर आ जा... ।” जौहर ने रिवाल्वर निकाल ली ।

"मैं... मैं लाली खान दो ठिकाने जानता हूं...।" शमशेर जल्दी से कह उठा--- "मुझे मत मारो...।"

"सुना...।" जौहर ने महाजन को देखा।

"ये हरामी दो क्या चार ठिकाने जानता होगा!" महाजन ने कड़वे स्वर में कहा--- "चल अभी तो दो ठिकानों से काम चलाते हैं। उसके बाद इसने और ठिकाने न बताये तो गोली मारेंगे इसे। कहाँ हैं ठिकाने?" महाजन ने तीखी निगाहों से शमशेर को देखा।

"एक काबुल में, दूसरा बराली राजन में...।” शमशेर कह उठा।

महाजन ने जौहर को देखकर पूछा--- "कौन सी जगह यहाँ से पास पड़ती है ?"

"बराली राजन...।"

"तो इसके हाथ बांध के डाल दे इसे और बराली राजन चल।"

"अभी कुछ देर तो मेरे हाथ खुले रहने दो...।” शमशेर कह उठा

"बराली राजन में कैसा ठिकाना है लाली खान का, वैसा ही गांव में झोंपड़ा या...।"

"छोटा सा बंगला है।" शमशेर ने व्याकुलता से गहरी सांस लेकर कहा।

■■■

दो खबरें ऐसी मिलीं कि गुलजीरा खान की हालत खराब हो गई।

तब दिन के ग्यारह बजे थे। गुलजीरा खान बाहर का काम देख कर ठिकाने पर पहुंची थी और कमरे में बैठते ही उसने एक आदमी से कॉफी लाने को कहा था। उसके बाद बैठे मिनट भर भी नहीं था कि फोन बजा ।

"हैलो... ।” गुलजीरा खान ने बात की।

"मैडम! हमारे ड्रग्स के ठिकाने पर जबर्दस्त हमला हुआ।" तेज़ आवाज कानों में पड़ी--- "हमारे कई आदमी मर गये...या उन्हें भागना पड़ा और ड्रग्स के गोदाम को आग के हवाले कर दिया गया। वहाँ लाशें ही लाशें बिखरी हैं।"

गुलजीरा खान सकते की हालत में बैठी रह गई।

कम से कम ऐसी बुरी खबर की वो उम्मीद नहीं कर रही थी।

“क.... कौन सा ठिकाना ?" गुलजीरा खान के होंठों से निकला ।

"काबुल वाला ही, दशमुख मोड़ वाला गोदाम...।"

गुलजीरा खान का चेहरा देखने लायक था।

तभी दूसरा फोन बजा तो उसने बात की।

"मैडम, हमारे ड्रग्स के गोदाम पर बहुत से लोगों ने हमला किया। बहुत तबाही मचाई। हमारे आदमियों को मार दिया। गोदाम में आग लगा दी। हम... हम तो बरबाद हो गये मैडम... हम....।"

"खबर मिल गई है।" गुलजीरा खान के दाँत भिंच गये--- “तुम कहाँ-कौन से ठिकाने की बात कर रहे हो?”

"काबुल के ठिकाने की मैडम, बुढावा वाले....।"

“बुढावा वाले?" गुलजीरा खान चिहुँक उठी--- "हमारे दो ठिकाने किसी ने तबाह कर दिए ? नहीं! ये नहीं हो सकता... ये...।"

उसी पल पहले वाला फोन फिर बजने लगा।

“हैलो... ।” गुर्राहट भरी आवाज निकली गुलजीरा खान के होंठों से।

"मैडम! मैं नांगारहार से बोल रहा हूं।” नई आवाज कानों में पड़ी--- "बहुत से लोगों ने हमारे ड्रग्स वाले गोदाम पर हमला किया। हमारे लोगों ने उन पर गोलियाँ चलाईं। परन्तु हम हार गये। वो जाने कौन लोग थे, जिन्होंने हमारी सारी ड्रग्स जला दी....।"

गुलजीरा खान को काटो तो खून नहीं।

पूरा बदन अड़क सा गया लग रहा था उसे।

तीनों गोदामों पर अफगानी कीमत 3,500 करोड़ की ड्रग्स थी वो। और दूसरे देशों में पहुंचकर उसी ड्रग्स ने खरबों की बन जाना था। परन्तु किसी ने उसे जला दिया। अब वो क्या करेंगे?

पैंतीस सौ करोड़ कम नहीं होता।

टेबल पर रखे फोन पर फोन बज रहे थे। परन्तु गुलजीरा खान को अब जरूरत नहीं महसूस हो रही थी उन फोनों को रिसीव करने की। उसे सब कुछ बरबाद लग रहा था। पहले एक गोदाम जलाया गया। उसका नुकसान तो सह लिया, परन्तु पैंतीस सौ करोड़ की ड्रग्स अब बरबाद हो गई। इतना बड़ा झटका उसका परिवार नहीं सह सकता था। उसे हर तरफ अंधेरा नजर आने लगा।

"मैडम, कॉफी..।"

आदमी टेबल पर कॉफी का प्याला रख गया था।

आवेश में गुलजीरा खान का चेहरा लाल हुआ पड़ा था। रह-रह कर बदन काँप उठता था।

वह इस खबर को सहने की कोशिश कर रही थी---परन्तु सह ना पा रही थी।

ये क्या हो गया? सब कुछ तो ठीक चल रहा था। फिर ये सब...।

दूसरी खबर गुलजीरा खान को तब मिली जब हैदर खान वहां पहुंचा।

हवाईयाँ उड़ रही थीं हैदर खान के चेहरे पर।

गुलजीरा खान ने उसे देखा, खाली-खाली निगाहों से।

"ह... हम बरबाद हो गये गुल!" हैदर खान का स्वर कांप उठा था।

“हमारी पैंतीस सौ करोड़ की ड्रग्स जला दी गई... ।” गुलजीरा खान ने फीके स्वर में कहा।

“ए... एक बुरी खबर और भी है।" हैदर खान की जुबान, शब्दों को संभाल नहीं पा रही थी।

"इससे बुरी और क्या खबर होगी।" गुलजीरा खान ने पुश्त से सिर टिका कर आंखें बन्द कर लीं।

"मासो का अपहरण कर लिया गया है...।"

तेज झटके के साथ गुल्जीरा खान आँखें खोलकर सीधी बैठ गई।

"मासो का अपहरण ?" उसके होंठों से निकला।

"रात को हुआ था। लाली का फोन आया। उसने बताया। वो बहुत परेशान हुई पड़ी है...।"

"बैठ जा!" गुलजीरा खान ने कठोर स्वर में कहा।

हैदर खान को जैसे अब याद आया कि उसे बैठना भी है, वो बैठा।

"ये सब क्या हो रहा है मेरे भाई?" गुलजीरा खान का चेहरा अब धधकने लगा था।

"मुझे क्या पता?"

"हमारी सारी ड्रग्स जला दी गई। मासो का अपहरण हो गया। कोई हमारे पीछे हाथ धोकर पड़ा है।"

"लेकिन क्यों?"

"ये ही तो समझ में नहीं आ रहा कि कोई ये क्यों कर रहा है।" गुलजीरा खान ने दाँत पीसे--- "अब हम क्या करेंगे?"

हैदर खान व्याकुल नजरों से गुलजीरा खान को देखने लगा।

"हमारा धंधा खत्म हो गया। वो पैंतीस सौ करोड़ की ड्रग्स थी। हमने अपना सारा पैसा ड्रग्स इकट्ठी करने में लगा दिया था। सोचा था कि कुछ ही महीनों में इससे बहुत ज्यादा पैसा हम ड्रग्स बेच कर बना लेंगे। परन्तु अब... हम खाली हो गये। न हमारे पास पैसा रहा ना लाली के पास।"

"लाली ने बुलाया है, अभी चलना होगा... ।” हैदर खान होंठ भींचकर बोला।

"लाली के पास बचा ही क्या है अब कहने को ?"

"उसके पास चलना है। मैं तेरे को लेने आया हूं बहन ।"

"ये... ये सब कौन कर रहा है हैदर... ।"

"हम पता लगा लेंगे।" हैदर खान का चेहरा भी गुस्से में धधक उठा--- "वो जो भी है, उसे बहुत बुरी मौत मारूँगा...।"

"उससे क्या हो जायेगा? हम बरबाद तो हो गये! हमारी सारी अकड़ खत्म हो गई। पैसा ही इन्सान को बनाता है और पैसा ही बिगाड़ता है। हम... ।"

"लाली के पास अभी भी पैसा होगा... वो...।" हैदर ने कहना चाहा।

“नहीं है।" गुलजीरा खान ने होंठ भींचकर कहा--- “लाली तीन सौ करोड़ से ज्यादा पैसा, पाकिस्तान में अपना संगठन खड़ा करने में लगा चुकी है और लगाती जा रही हैं। अब वो सब खत्म हो गया। ऐसे संगठन तभी चलते हैं, जब उन्हें भरपूर पैसा मिलता रहे। हम यहाँ से कमाते थे और वहां पर थोड़ा सा लगा देते थे। हमें कोई फर्क नहीं पड़ता था। परन्तु अब तो थोड़ा सा भी हमारे पास नहीं बचा। यूँ समझ कि कल रात जयन्त जो पैसा मुम्बई से लाया हो, वही ही है हमारे पास। कुछ नहीं बचा...।"

"हमें लाली के पास पहुंचना है। जल्दी चल। वो इन्तजार कर रही होगी।"

गुल थके से अन्दाज में उठ खड़ी हुई। चेहरे पर सदा रहने वाली चमक, गायब हो चुकी थी।

"मैं अभी आती हूं।" गुलजीरा खान कहकर दरवाजे की तरफ बढ़ी।

"कहां जा रही है?"

“मोना चौधरी को देखने। हमारे तीन ठिकाने तबाह हुए ड्रग्स के... क्या पता किसने किए हैं?"

"ओह, तुम मोना चौधरी के पीछे क्यों पड़ी हुई हो ?" हैदर खान ने झल्लाकर कहा।

गुलजीरा खान बाहर निकल चुकी थी।

हैदर खान भी उसके पीछे बाहर निकला और आगे बढ़कर गुलजीरा के साथ चलता कह उठा---

"तुम पागल हो गई हो... जो मोना चौधरी पर शक कर रही हो।"

"उस पर पूरा विश्वास तो मैंने कभी भी नहीं किया। मन ही नहीं चाहता विश्वास करने का... ।"

"वो हमारे कितने काम कर रही है, ये भी तुम जानती हो गुल...।" हैदर खान ने तीखे स्वर में कहा ।

"चुप रहो। मेरे कामों में दखल मत दो...।"

“ये मेरा भी मामला है।"

“मोना चौधरी को बहुत चाहते हो?" गुलजीरा खान ने अजीब मुस्कान के साथ कहा।

"हां। सुनना ही चाहती हो तो अच्छी तरह सुन लो, कि मैं सच में उसे प्यार करता हूं...।"

"लेकिन वो जल्दी ही तुम्हें छोड़ देगी। जब उसे पता चलेगा कि हम बरबाद हो गये हैं...।"

"वो ऐसी नहीं है।"

"ये तू नहीं, तेरे अन्दर घुसा मोना चौधरी की खूबसूरत जवानी का नशा बोल रहा है भाई...।" उसने सपाट स्वर में कहा।

"तेरे को ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिये...।" हैदर खान ने नाराजगी से कहा।

दोनों मोना चौधरी वाले कमरे में प्रवेश कर गये। आगे गुल, पीछे हैदर।

फौरन ही दोनों ठिठके ।

मोना चौधरी और जयन्त बैड पर बैठे ताश खेल रहे थे कि इन्हें देख कर खेल बंद कर दिया।

“हाय हैदर...।” मोना चौधरी ने मुस्कराकर कहा और बैड से उतरी--- फिर दोनों के चेहरे के भावों को देखकर ठिठकी--- "क्या हुआ? तुम दोनों भाई-बहन इस कदर परेशान क्यों लग रहे हो? सब ठीक तो है?"

हैदर खान ने होंठ भींचकर मुंह घुमा लिया।

“कुछ भी ठीक नहीं है। हमारी ड्रग्स फिर से जला दी गई।" गुलजीरा खान ने दरिन्दगी भरे स्वर में कहा--- “जो ड्रग्स तुमने इकट्ठी की थी, वो सारी ड्रग्स। जिसकी कीमत पैंतीस सौ करोड़ रुपये थी। हम पूरी तरह बरबाद हो गये हैं मोना चौधरी... ।”

"क्या कह रही हो?" मोना चौधरी के होंठों से निकला ।

गुलजीरा खान पलटकर बाहर निकल गयी।

हैदर खान भी जाने के लिए पलटा तो मोना चौधरी बोली---

“सुनो तो हैदर...।”

"फिर आऊंगा। इस वक्त जल्दी में हूं।" कहकर हैदर रुका नहीं। बाहर निकल गया।

मोना चौधरी और जयन्त की नजरें मिलीं।

दोनों के चेहरों पर जहरीली मुस्कान थिरक उठी।

"लैला ने बढ़िया ढंग से काम कर दिया लगता है।" मोना चौधरी धीमे स्वर में कह उठी।

“और ये खबर तो हमें सुबह ही मिल गई थी कि लाली की बेटी मासो रॉ के कब्जे में पहुंच चुकी है।”

"लैला को फोन लगा जयन्त ।” मोना चौधरी ने कहा।

जयन्त लैला का फोन नम्बर मिलाने लगा। फिर फोन मोना चौधरी को थमा दिया।

"हैलो...।" उधर से लैला की आवाज कानों में पड़ी।

"तुमने बहुत अच्छा काम किया।" मोना चौधरी ने फुसफुसाते स्वर में कहा।

“शुक्रिया। मुझे इस बात की बहुत चिन्ता थी कि ये काम ठीक से हो जाये।"

“तुम मेरे बहुत काम आ रही हो।" मोना चौधरी ने कहा।

"ये सब करना तो मेरा ही काम है। मेरी ड्यूटी है।"

"मासो चीफ के कब्जे में है। पता है?"

“नहीं। ये बात अब पता चली। कब हुआ ऐसा और वो कहाँ से मिली?"

मोना चौधरी ने उसे मासो के बारे में बताया।

“ओह अब समझी...।” उधर से लैला की आवाज आई।

"महाजन कैसा है?"

“अपने काम में लगा हुआ है वो। उसने शकीला को मेरे हवाले किया था। उसका मुंह खुलवाने पर लगी हूं...।”

"तुम्हारा क्या ख्याल है कि तीनों गोदामों के नष्ट हो जाने से लाली खान की क्या हालत होगी?"

"मैं इस बारे में स्पष्ट नहीं कह सकती...।”

"अभी गुलजीरा खान ने कहा कि वो लोग बरबाद हो गये हैं। इतनी बड़ी बात वो यूं ही नहीं कहेगी।"

"मतलब कि हमने लाली खान पर तगड़ी चोट कर दी है!"

“हाँ! अब के लिये तो तगड़ी चोट है। मेरे ख्याल में अब लाली खान के पास इतनी गुंजाईश नहीं बचेगी कि वो पाकिस्तान में खड़े किए अपने संगठन की सहायता कर सके। परन्तु लाली खान के परिवार की ये कमजोरी साल-डेढ़ साल तक जाएगी। उसके बाद ये फिर ड्रग्स के दम पर अपने पाँव जमाना शुरू कर देंगे। इनके लम्बे-चौड़े बहुत से खेत हैं, जहाँ अफीम की पैदावार होती है।"

“ये बात तो तुम ठीक कहती हो।"

“इसलिये ये बात पहले से ही मेरे मन में थी कि लाली खान के परिवार का ऐसा हाल करना है कि ये फिर से खड़े न हो सकें।”

"ऐसा क्या करना चाहती हो तुम?"

“तुम्हें जो कहूं, वो सुनो। अपने आदमी से गुलजीरा खान को फिर फोन कराना है और क्या कहना है, वो सुन लो ।” कहने के साथ ही मोना चौधरी धीमें स्वर में फोन पर लैला को समझाने लगी।

■■■

वो ही वाली काली वैन उस जगह पर खड़ी थी। काले ही शीशे थे। बाहर से भीतर नहीं देखा जा सकता था। ड्राईविंग केबिन अलग था, परन्तु देखने में जुड़ा हुआ ही लग रहा था। वैन काबुल की ऐसी सड़क पर खड़ी थी, यहां से कम ट्रेफिक ही निकल रहा था। उसकी ड्राईविंग सीट पर चालीस बरस का इकबाल बैठा था। बेहद सख्त जैसा दिखने वाला इन्सान लगता था। लम्बी नाक, सुर्ख चेहरा-क्लीन शेव्ड । छोटी-छोटी आंखें, बड़े कान। खतरनाक इन्सान था इकबाल।

इकबाल की बगल में दो और थे।

एक मेमन। दूसरा याकूब ।

मेमन साठ बरस का था। सिर पर छोटे-छोटे सफेद बाल थे। चौड़ा माथा। उसके कान भी बड़े-बड़े थे। मोटी नाक । वो साठ का अवश्य था। परन्तु उसमें युवकों जैसी फुर्ती थी। वह सामान्य था। आंखों में हर समय खूंखारता भरी रहती थी। मेमन तब से इस परिवार के साथ है, जब लाली खान की माँ ड्रग्स का धंधा संभाला करती थी। सुना जाता था कि मेमन के लाली खान की माँ के साथ भी सम्बन्ध रहे हैं। परन्तु ये उड़ती बातें थीं। मेमन लाली खान का सबसे ज्यादा विश्वासी आदमी था। मेमन को हर वक्त लाली की सुरक्षा की चिन्ता रहती थी। इस बारे में वो कोई लापरवाही बर्दाश्त नहीं कर सकता था। बेहद खतरनाक था मेमन।

याकूब पैंतीस बरस का कठोर शरीर वाला इन्सान था। हर समय मरने-मारने को तैयार रहता था। कभी-कभी तो वो पागल जैसा लगता था ऐसे मौके पर। मेमन से लम्बा और इकबाल से छोटा था वो। छोटे कान। छोटी नाक। लम्बा चेहरा। सिर पर हमेशा उस्तरा फिरवा के रखने की आदत थी और सिर पर रह-रह कर हाथ फेरता रहता था।

इकबाल, मेमन और याकूब, तीनों हमेशा लाली खान के साथ रहते थे। हर खतरे से लाली खान को बचाने के लिये तैयार रहते थे। लाली खान के गिर्द, मजबूत दीवार की तरह रहते थे हमेशा। जब-जब भी लाली खान पर कोई खतरा आया। इन तीनों ने डट कर खतरे का मुकाबला किया और लाली खान को हर हाल में सुरक्षित रखा।

इन तीनों के बिना लाली खान कहीं जाती भी नहीं थी।

खास बात तो ये थी कि तीनों एक साथ रहने पर भी आपस में बहुत कम बात करते थे। मुस्कराना तो इन्होंने सीखा ही नहीं था। आंखें हर वक्त जैसे अपने शिकार को तलाश करती रहती थीं। हर पल चौंकन्ने। सावधान ।

तभी वैन के पास हैदर खान की कार आकर रुकी।

गुलजीरा खान और हैदर खान कार से निकले और वैन के पास पहुंचे। हैदर खान ने वैन का दरवाजा खोला और गुल को भीतर जाने का रास्ता दिया और खुद भीतर गया और वैन का दरवाजा बंद कर लिया। दोनों सामने पड़ी सोफे जैसी कुर्सियों पर जा बैठे। इनके ठीक  सामने लाली खान बैठी थी।

बेहद खूबसूरत लाली खान।

परन्तु आज उसके चेहरे पर पहले जैसी चमक, वो खुशी नहीं थी।

आसमानी रंग सूट के ऊपर चाँद-सितारों का काम किया हुआ था। वे चमक कर लाली खान की शान को बढ़ाते लग रहे थे। कानों में लम्बे झुमके । कमर तक जाते लम्बे बालों को फैशनदार ढंग से सिर के पीछे बांध रखा था। हल्के आसमानी रंग का ही दुपट्टा ले रखा था। गले में नील रंग के मोतियों का हार पहना था।

लाली खान का बुझा चेहरा, सवा लाख के हाथी की याद दिला रहा था, जिसकी मरने पर कीमत बढ़ गई थी।

उन दोनों के बैठते ही लाली खान ने वैन की बॉडी थपथपाई।

अगले ही पल वैन स्टार्ट हुई और आगे बढ़ गई।

लाली खान ने गम्भीर नजरों से दोनों को देखा।

हैदर खान ने होंठ भींचकर बेचैनी से पहलू बदला।

बेहद शांत लग रही गुलजीरा खान वैन के चलते ही गम्भीर स्वर में कह उठी---

“हम बरबाद हो गये लाली। हमने आज तक जो पैसा इकट्ठा किया था, वो सारा चला गया।"

"हिम्मत हार ली तूने !" लाली खान ने गहरी सांस लेकर कहा।

"तेरे पास पैसा रखा है?" हैदर खान ने पूछा।

“नहीं। मैं पैसे को पाकिस्तान में अपना संगठन खड़ा करने में लगाती रही हूं। वो खर्चे वाला काम है।"

"तो अब संगठन का क्या होगा?"

“खत्म। पैसा न मिलने से वो टूट जायेगा। मेरी सारी मेहनत और पैसा खराब हो गया...।"

"तो तेरे पास कोई पैसा नहीं रखा?"

"ऐसा कुछ नहीं कि जिससे ड्रग्स के धंधे को फिर से संभाला जा सके।" लाली खान ने कहा।

दो पलों की खामोशी रही।

"ये सब हुआ कैसे?" लाली खान ने दोनों को देखा।

"कोई हमें बरबाद करने पर लगा हुआ है।" गुलजीरा खान ने कहा।

"वो तो जाहिर ही है कि कोई हमारे पीछे है। बुरी तरह हमारे परिवार के पीछे पड़ चुका है। पहले हमारा एक ड्रग्स का गोदाम जला दिया गया। वही हमारे लिये झटका था, परन्तु हमने खुद को संभाल लिया। तब पता चलता था कि ये काम किसी हिन्दुस्तानी ने किया है। उसके बाद मोना चौधरी ने अफगानिस्तान से हमें ड्रग्स इकट्ठी करके दी। पूरे पैंतीस सौ करोड़ खर्चे हमने । अपने पास की सारी रकम हमने ड्रग्स इकट्ठी करने में लगा दी कि, हम ड्रग्स किंग बने रहें। हमारे तीन-तीन गोदाम भर गये ड्रग्स से और हम निश्चिंत थे कि जी भर कर ड्रग्स बेचेंगे। परन्तु तीनों गोदामों पर हमला किया गया। हमला करने वाले ढेरों आदमी थे और एक ही वक्त पर तीनों गोदामों पर हमला हुआ कि हमें संभलने का मौका ही न मिले। तीनों गोदामों को आग के हवाले कर दिया गया। लेकिन अभी तक ये स्पष्ट नहीं हो पाया कि हमला किसने किया? कौन है इस काम के पीछे!"

"तेरे को बताया था उस फोन के बारे में।” गुलजीरा खान कह उठी--- "वो कह रहा था कि अगर पारसनाथ को न छोड़ा तो वो ड्रग्स के तीनों गोदामों को जला देगा।"

"पारसनाथ नाम का कोई आदमी हमारे पास है ही नहीं तो छोड़ें किसे?” लाली खान ने कहा ।

“ये काम उसी का हो सकता है।"

"तीनों गोदामों पर हमला करने वाले सौ से ज्यादा आदमी थे। जाहिर है कि वो किराये के होंगे। ये खबर बाहर तो आनी ही चाहिये कि इस काम के पीछे कौन है। किसने उन्हें किराये पर लिया?"

"वो जो भी है मैं उसे बहुत बुरी मौत मारूंगा लाली।" हैदर खान गुर्रा उठा ।

"ऐसा ही होगा। वो बुरी मौत ही मरेगा।"

"हैरानी है कि हमारे खिलाफ आवाज उठाने वाले पैदा हो गये।" हैदर खान ने पूर्ववतः स्वर में कहा।

"कभी-कभी ऐसा होता रहता है। ये हर धंधे में लगा रहता है। परन्तु हम पर बहुत सोच समझ कर वार किया गया। इन सब बातों के पीछे बेहद शातिर दिमाग काम कर रहा है। हर कोई ऐसे काम नहीं कर सकता हैदर ।"

"आखिर वो है कौन?" हैदर खान ने दरिन्दगी भरे स्वर में कहा।

“उसे ही तो ढूंढना है...।" लाली खान ने शांत स्वर में कहा--- “शमशेर के गायब होते ही, मामला ज्यादा गड़बड़ होने लगा। वो मेरे कई ठिकाने जान चुका था। ये बात मैं जानती थी परन्तु मैंने इस बात की परवाह नहीं की कि शमशेर हमारा वफादार है, वो इस बात का फायदा कभी नहीं उठायेगा। परन्तु किसी हिन्दुस्तानी ने उसका अपहरण कर लिया और उसका मुंह खुलवा लिया कि मेरे ठिकाने कहाँ-कहाँ पर हैं। उसके बाद वो हिन्दुस्तानी एक एक ठिकाने पर जाकर मुझे ढूंढता है। वो भी शातिर है। एक बार पकड़ा गया, परन्तु बच निकला। उसने मेरे कई आदमियों को मार दिया। वो मेरे पीछे क्यों पड़ा है, मैं नहीं समझ पाई।"

"पारसनाथ की वजह से...।" गुलजीरा खान कह उठी ।

"झूठी है पारसनाथ की बात। क्योंकि हमारे पास पारसनाथ है ही नहीं। हमने पहले कभी पारसनाथ का नाम सुना ही नहीं। असल मामला कुछ और है। पारसनाथ का नाम लेकर हमें बहकाया जा रहा है।"

"लेकिन लाली, कोई खामखाह तो ये सब करेगा नहीं, कोई तो वजह होगी जो...।"

"उसी वजह को तो हमने तलाश करना है।"

“शमशेर अभी भी उसी हिन्दुस्तानी की कैद में है?" हैदर खान बोला।

“हाँ... । मेरी जानकारी के मुताबिक तो है ही...।"

“तो तुम किसी भी ऐसी जगह पर मत जाओ, जो जगह शमशेर जानता हो।"

"मैं ऐसा ही कर रही हूं... मैं उसके हाथ नहीं आने वाली। परन्तु अब हद हो चुकी है। हमें अपने आदमी उसकी तलाश में लगा देने  चाहिए। शमशेर के आदमियों को संभालने वाला कोई नहीं है। हैदर, मेरे ख्याल में शमशेर का काम तुम्हें संभाल लेना चाहिये, जब तक कि शमशेर की जगह लेने वाला कोई और नहीं मिलता...।"

"ठीक है।" हैदर ने कठोर स्वर में कहा--- "मैं आज ही शमशेर की जगह ले लेता हूं...

"और सबसे पहला काम तुमने उस हिन्दुस्तानी को ढूंढने का करना है, जो शमशेर को कैद में रखे मेरी तलाश में भागा फिर रहा । मुझे लगता है कि उसी ने ही आदमी भेज कर हमारे ड्रग्स के ठिकानों को तबाह करवाया है। वैसे तो हर ठिकाने पर मैंने अपने आदमी बिठा रखे हैं। जिन्हें शमशेर जानता था कि वो हिन्दुस्तानी वहां पहुंचे और मारा जाये। परन्तु वो हर बार बच रहा है। लेकिन हो सकता है कि कभी भी मेरे लोगों की पकड़ में आ जाये। परन्तु तुम भी उसकी तलाश शुरू कर दो।"

"ये काम मैं कर देता हूँ अभी...।"

"उस हिन्दुस्तानी की मदद कोई स्थानीय व्यक्ति भी कर रहा है। बाहरी आदमी हमारे मुल्क में आकर इस तरह काम नहीं कर सकता कि वो हमारी नजरों से बचा रहे। उसे स्थानीय मदद भी हासिल है।" लाली खान ने गम्भीर स्वर में कहा।

"मैं पता लगा लूंगा ।" हैदर खान ने दृढ़ स्वर में कहा।

"मैं कुछ कहना चाहती हूं।" गुलजीरा खान ने कठोर स्वर में कहा।

"क्या?" लाली खान ने उसे देखा।

"जब से मोना चौधरी हमसे जुड़ी है, हम पर मुसीबतें आनी शुरू हो गईं। इधर उसने हमारा काम शुरू किया और उधर उस हिन्दुस्तानी की खबर मिलने लगीं, जो हमारे पीछे पड़ा...।"

"तुम कहना क्या चाहती हो?" लाली खान के माथे पर बल पड़े।

हैदर खान गुस्से से गुलजीरा खान को देखने लगा था।

“मुझे मोना चौधरी में कुछ गड़बड़ लगती है...।" गुलजीरा खान ने कहा।

"बकवास मत कर गुल!" हैदर खान भड़क उठा--- "तू पता नहीं क्यों मोना चौधरी के पीछे पड़ी.. ।"

"हैदर ।" लाली खान ने एकाएक कठोर स्वर में कहा।

हैदर खान होंठ भींच कर रह गया।

"गुल अगर मोना चौधरी के बारे में कुछ कहती है तो तुम्हें परेशानी क्यों होती है?" लाली खान कह उठी ।

हैदर खान के होंठ भिंचे रहे। लाली खान को देखता रहा।

“मैं बताती हूं... ये मोना चौधरी को प्यार करने लगा है और मोना चौधरी भी कुछ ऐसा ही कहती है...।" गुल बोली

"ये सच है हैदर?"

"हाँ। प्यार करना कोई गुनाह तो नहीं ?" हैदर खान फट पड़ा

"तुम अच्छी तरह हमारे परिवार के नियम को जानते हो । वो नियम जो पीछे से चला आ रहा है। परिवार में कोई शादी नहीं करता। सिर्फ परिवार की बड़ी लड़की ही शादी कर सकती हैं और वो शादी तब तक ही रहेगी, जब तक कि ड्रग्स का काम संभालने के लिये लड़की पैदा नहीं हो जाती। उसके बाद पति को छोड़ दिया जाता है।"

"माँ ने तो ऐसा नहीं किया था?" हैदर खान ने तीखे स्वर में कहा।

लाली खान के माथे पर पुनः बल पड़े।

"माँ ने हम तीनों को पैदा किया। अब्बा को हमेशा अपने साथ रखा। वो सबको बहुत चाहती थी।"

"माँ ने अगर एक बार नियम तोड़ दिया तो क्या नियम तोड़ने की परंपरा चलने दें?" लाली खान बोली।

"मैं मोना चौधरी को पसन्द करता हूँ।"

"कर, बेशक कर। उसे अपने साथ रख। परन्तु शादी जैसा विचार तो नहीं है तेरे मन में?"

हैदर खान ने होंठ भींच लिए।

“मुझे तो लगता है कि ये मोना चौधरी से शादी करने की सोच रहा है।” गुल कह उठी।

“तू चुप कर... ।” हैदर खान गुर्रा उठा ।

गुलजीरा खान के चेहरे पर कठोरता के भाव आ ठहरे।

"तेरा व्यवहार गलत है हैदर... ।" लाली खान बोली।

"मैं मोना चौधरी के साथ शादी करूँ या न करूँ... ये मेरा अपना मामला। मैं काम तो ठीक से संभाल रहा हूं... ।”

“ये तेरा मामला नहीं हैदर, परिवार का मामला है।" लाली खान का स्वर सख्त हो गया--- “अगर तेरे मन में मोना चौधरी से शादी जैसी कोई बात है तो उसे अपने मन से निकाल दे। परिवार को ये पसन्द नहीं...।"

"मैं शादी करूँ या न करूँ---इससे किसी को क्या फर्क...।"

"परिवार को फर्क पड़ता है। हम धंधे में बाहरी इन्सान को शामिल नहीं कर सकते। भीतरी बातों से दूर ही रखते हैं। हम तीनों में से कोई भी शादी करेगा तो उसका जोड़ीदार धंधे में दखल देना शुरू कर देगा। जितने ज्यादा लोग दखल देंगे, धंधा उतना ही हाथ से निकलता चला जायेगा। और एक दिन ऐसा आयेगा कि धंधे में हमारे लिये ही जगह न बचेगी।"

हैदर खान होंठ भींचे बैठा रहा।

“आज मोना चौधरी तुझे पसन्द आ गई है, तो कल को कोई और पसन्द आ जायेगी। ये जिन्दगी है। पानी के बहाव की तरह चलती रहती है। लोग आते-जाते रहते हैं। दिल किसी के साथ भी नहीं लगाना है। क्योंकि हमें, हमारा धंधा सब से अहम है। सारा ध्यान उस पर लगाना है। ड्रग्स हमारी भगवान है। धंधा हमारे लिये खुदा है। इससे बढ़कर हमारे लिये और कुछ नहीं... ।"

हैदर खान उखड़ा सा रहा। चुप रहा।

“दोबारा मुझे ये सुनने को न मिले कि तू मोना चौधरी से शादी करने जैसा ख्याल रखता है।" लाली खान ने कहा। फिर गुलजीरा खान से बोली--- “जब तूने मोना चौधरी को काम दिया तो उससे पहले उसके बारे में पूरी जानकारी हासिल की?"

"हां... ।" गुल के होंठ हिले ।

"तो अब तेरे को उसमें गड़बड़ लगने लगी?"

"पता नहीं--लेकिन मेरा मन कहता है कि कुछ तो गड़बड़ है।"

"मन की मत सुन। दिमाग से काम ले। मोना चौधरी हमारा काम बढ़िया कर रही है। काफी अच्छा काम किया है उसने और आगे चलकर वो और भी हमारे कई काम करेगी। तू उसके बारे में गलत सोचना छोड़ दे गुल...।"

गुल गहरी सांस लेकर कह उठी---

"अब हम धंधा नहीं कर सकते। ड्रग्स नहीं रही हमारे पास। पैसा हमारे पास नहीं। सब तबाह हो गया।"

"हौसला मत छोटा कर...।" लाली खान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "हम खुद को फिर खड़ा कर लेंगे। इसमें साल-डेढ़ साल लग जायेगा। हमारे लम्बे-चौड़े खेतों में अफीम की फसल उगाई जा रही है। ज्यादा वक्त नहीं लगेगा कि हमारी ड्रग्स फिर से तैयार होनी शुरू हो जायेगी और साल-डेढ़ साल में हम फिर से धंधा पहले की तरह शुरू कर देंगे। हर काम में बुरा वक्त आता है। हमारा भी कुछ बुरा वक्त आ गया। लेकिन सब ठीक हो जायेगा। अब हमें फुर्सत ही फुर्सत है। इस फुर्सत का फायदा उठाकर हम पूरा ध्यान अपने दुश्मनों पर लगा देंगे। उन्हें जड़ से खत्म करेंगे। इस तरह कि दोबारा कोई हमारे खिलाफ उठने का हौसला न कर सके। इस काम को हैदर अपने हाथ में लेगा और इसके कहने पर तुम इसके साथ होगी।"

गुलजीरा खान ने सिर हिला दिया।

“सुना हैदर ?" लाली ने उसे देखा ।

“सुना...।"

"धंधे की तरफ ध्यान दे। मोना चौधरी से शादी की बात कभी मत सोचना। ये हमारे लिए ठीक नहीं है। जब तक हम आजाद हैं, तब तक तो सब ठीक है। शादी जैसे कामों में पड़ते ही, धंधा खत्म होना शुरू हो जायेगा। हमारा परिवार हमेशा से ही ड्रग्स का किंग रहा है और आगे भी रहेगा। हम किसी से डरने वाले नहीं हैं। ये सब को दिखा देंगे।"

वैन में खामोशी सी छा गई।

वैन मध्यम रफ्तार से चलती जा रही थी।

"जीजा तो नहीं कर रहा हमें बरबाद?" हैदर खान कह उठा।

"बड़ी बात मत बोल हैदर। फिरोज के बस का नहीं है ये काम करने का। हम तुम पर वो छोटे-छोटे हमलों के अलावा कुछ नही करा सकता। लेकिन उससे भी निपटनी है। अब हमारे पास फुर्सत है तो  हमें अपने दुश्मनों का सफाया करने में लग जाना चाहिये। जब ये काम करके हटेंगे तो हमारी अफीम की फसल तैयार होनी शुरू हो जायेगी। तब हम यहां व्यस्त हो जायेंगे। यूं समझो कि हम नये सिरे से धंधे की शुरूआत कर रहे हैं। ऐसे में हमारा कोई दुश्मन जिंदा नहीं  बचना चाहिये।"

"मैं सबको खत्म कर दूंगा।" हैदर खान ने दृढ़ स्वर में कहा।

“मैं जानती हूं कि तू ये काम अच्छी तरह करेगा।" लाली खान ने शांत स्वर में कहा--- "जो भी हमें तबाह करने पर लगा है, उसे ढूंढो और खत्म करो। हर दो-चार साल बाद ऐसे दुश्मनों का उठ खड़ा होना, साधारण बात है।"

"मासो का क्या हुआ ?" गुलजीरा खान ने पूछा।

लाली खान गम्भीर हो उठी।

"पता नहीं चल रहा कि उसे किसने उठाया है...।" लाली खान बोली--- "उलझन की बात तो यह है कि किसी को कैसे पता चल गया कि मासो इंडिया में, दिल्ली के स्कूल में पढ़ रही है ? ये बात तो कोई नहीं जानता था ।"

"शमशेर भी नहीं ?" हैदर खान ने पूछा।

लाली खान, हैदर को देखने लगी, फिर बोली--- "शमशेर को इतनी खबर तो हो सकती है कि मासो दिल्ली के किसी स्कूल में पढ़ रही है।"

"तो ये काम उसी ने किया, जिसने शमशेर को कैद कर रखा है, जो तुम्हें भी ढूंढता फिर रहा है।" गुलजीरा खान कह उठी।

"सम्भव है ये काम उसी का हो।"

“मैं उसे ढूंढ लूंगा। वो हमारा नम्बर वन दुश्मन है।" हैदर खान कठोर स्वर में बोला ।

"मासो को उठाते वक्त इस बात का खास ध्यान रखा गया कि किसी को मारा न जाये। ऐसा ही हुआ वहां। बहुत शान्ति के साथ मासो को वो अपहरणकर्ता ले गये। इससे मुझे विश्वास है कि वो मासो को ठीक तरह रख रहे होंगे।" लाली खान सख्त स्वर में बोली।

"हमारे लोग वहां मासो को ढूंढ रहे हैं?"

"हां...। लेकिन मासो की खबर मिलना आसान नहीं।" लाली खान ने इन्कार में सिर हिलाया--- "वो जो भी हैं तेज लोग हैं ।"

"लेकिन मासो को उठा कर क्या करेंगे वो...?"

"वो अपनी डिमांड रखेंगे।" लाली खान से होंठ भींच कर कहा।

"डिमांड ?" गुलजीरा खान ने कहा--- "लेकिन हमारे पास तो ज्यादा पैसा है ही नहीं कि...।"

"जरूरी नहीं पैसे की ही डिमांड हो। शायद पैसे की डिमांड नहीं होगी ।" लाली खान ने पहलू बदलते हुये कहा--- "मासो को उठा लेने का मतलब है कि वो जो भी लोग हैं, हमसे कुछ खास चाहते हैं।"

"खास क्या?"

"ये तो उनका फोन आने पर ही पता चलेगा ।"

"फोन आयेगा ?"

"हर हाल में। कभी भी आ सकता है।" लाली खान दृढ़ स्वर में बोली--- "वो अपनी डिमांड रखेंगे।"

"मुझे मासो की चिन्ता है।" हैदर खान बोला।

“मुझे भी चिन्ता है।” लाली खान बोली--- "लेकिन हम उसके लिये कुछ नहीं कर सकते हैं। अपहरणकर्ताओं से बातचीत होने पर ही कोई नतीजा निकलेगा ।"

उनके बीच खामोशी रही।

लाली खान ने वैन की बॉडी को थपथपाया और कह उठी---

"हमारे साथ जो भी हो रहा है, बहुत बुरा हो रहा है। इसका ये ही मतलब निकलता है कि हमसे कई गलतियां हुई हैं और उन गलतियों का एहसास हमें अभी तक नहीं है। कोई हमारे पीछे है और हमें उसकी खबर तक नहीं हुई...।"

गुल और हैदर खामोश रहे।

"दुश्मनों को साफ करके, अब हमें सारे रास्तों को सुरक्षित रखना है।" लाली खान ने कहा--- "मैं अपना सारा ध्यान अपने उस संगठन पर लगा रही थी जो कि पाकिस्तान में खड़ा किया है। लेकिन ये मेरी गलती थी। इस बात का एहसास हो गया है मुझे। मुझे अपना ध्यान ड्रग्स पर ही लगाना चाहिये था। यही हमारे परिवार का धंधा है। ये हमारे लिए बेशकीमती है। अब मैं पहले की तरह तुम लोगों के साथ मिल कर ड्रग्स का काम ही करूंगी मैं। दूसरा कोई काम नहीं करूँगी मैं।"

तभी वैन रुक गई।

"तुम्हें पता है ना हैदर कि तुम्हें क्या करना है?” लाली खान ने हैदर को देखा।

"हां। अब हमारा कोई दुश्मन नहीं बचेगा।" हैदर खान ने दांत भींचकर कहा--- "मैं किसी को नहीं छोड़ूंगा।"

"दुश्मन के बारे में पता करो और उसे खत्म कर दो।" लाली खान ने सर्द स्वर में कहा।

दो पल की खामोशी रही, फिर गुलजीरा खान ने वैन का दरवाजा खोला और बाहर निकल गई।

हैदर खान भी उठा कि लाली खान बेहद शांत स्वर में कह उठी---

“मोना चौधरी के साथ रहकर सपने मत पालना हैदर...।"

हैदर खान ने ठिठककर लाली खान को देखा, फिर वैन से बाहर निकल गया। दरवाजा बंद किया।

लाली खान ने वैन की बॉडी थपथपाई तो उसी पल वैन आगे बढ़ गई।

■■■

गुलजीरा खान और हैदर खान वापस उसी ठिकाने पर पहुँचे।

रास्ते में दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई थी। हैदर खान उखड़ा-उखड़ा सा था।

"क्या बात है मेरे भाई...।" गुलजीरा खान शांत स्वर में बोली--- “मेरे से नाराज है?"

हैदर खान ने जवाब नहीं दिया।

“मोना चौधरी की बात को लेकर नाराज है?"

"तेरे को लाली के सामने, मोना चौधरी की और मेरी बात नहीं करनी चाहिये थी।" हैदर खान ने उखड़े स्वर में कहा।

“तो मैंने गलत क्या कहा, तू मोना चौधरी से प्यार नहीं करने लगा क्या?"

“तूने ये बात लाली से क्यों कही?"

"हमारा परिवार है हैदर। आपस में बातें छिपाना ठीक नहीं। हर बात की खबर, हर किसी को होनी चाहिये।"

“ये मेरी अपनी जिन्दगी का मामला है।"

"सब की जिन्दगी परिवार से जुड़ी है।"

"कुछ बातें इन्सान की व्यक्तिगत होती हैं।" हैदर ने तीखे स्वर में कहा--- "मुझे पसन्द नहीं कि कोई दखल दे।"

"तेरे को मैंने या लाली ने ये तो नहीं कहा कि तू मोना चौधरी को छोड़ दे।" गुलजीरा खान ने प्यार से कहा।

"कोई कसर भी नहीं छोड़ी....।"

"गलत मतलब मत ले। तू मोना चौधरी के साथ रह। उससे उतना ही प्यार कर कि उसे छोड़ना पड़े तो तेरे को तकलीफ न हो। ये तो तू जानता ही है कि आज नहीं तो कल, मौसम बदलेगा और तेरे को मोना चौधरी की जगह दूसरी लड़की अच्छी लगने लगेगी।"

"ऐसा नहीं होगा...।" हैदर खान ने दृढ़ स्वर में कहा--- "मैं उसे सच्चा प्यार करने लगा हूं।"

"जो मर्जी कर। लेकिन शादी की मत सोच। बिना शादी के तू सारी उम्र उसके साथ रह।”

"समझ में नहीं आता कि मैं शादी करता हूँ तो तुझे या लाली को क्या तकलीफ है।"

"इससे तेरा प्रेम ड्रग्स के धंधे के प्रति कम हो जायेगा और... ।"

"बकवास... ।” हैदर खान ने दाँत भींचकर कहा।

"परिवार में जो सिस्टम चला आ रहा है, सब कुछ वैसे ही चलेगा मेरे भाई...।"

"उस सिस्टम को माँ तोड़ चुकी है।"

"फिर तो हमें और भी ध्यान रखना चाहिये कि दोबारा फिर ये परम्परा न टूटे।"

हैदर खान ने गुलजीरा खान पर नजर मारकर कठोर स्वर में कहा---

"मैं अगर मोना चौधरी से शादी कर लेता हूँ तो तुम या लाली मेरा क्या कर लोगे?"

"ये बात !” गुलजीरा खान गम्भीर हो उठी--- "लाली को कह, वो ही जवाब देगी।"

ठिकाने पर पहुँच कर हैदर खान कार से निकला तो गुलजीरा खान ने कहा---

“अब तू मोना चौधरी के पास जा रहा है।"

"तुझे क्या परेशानी है? तू मेरी माँ नहीं है जो...।”

"तेरे को शमशेर की जगह पर जाना चाहिये। वहाँ सब आदमियों को इकट्ठे करके नये आदेश देने चाहिये। दुश्मन को तलाश करके उसे खत्म करना चाहिये! और तू मोना चौधरी के पास...।"

“मैं इस काम में मोना चौधरी को अपने साथ रखूंगा। उसकी मुझे बहुत मदद मिलेगी।”

गुलजीरा खान, उसे देखने लगी। फिर कह उठी---

"हैदर ! हमारा ड्रग्स का धंधा तो तब तक के लिए रुक गया, जब तक हमारे अफीम के खेत तैयार नहीं हो जाते।"

"तो?"

"इसमें बहुत महीने लग जायेंगे। उसके बाद अफीम को ड्रग्स में बदलने में वक्त लगेगा। यानि कि करीब साल भर के लिये हमारे पास मोना चौधरी के लायक कोई काम नहीं है, तो हम उसे अपने साथ क्यों चिपकाए रखें?"

"वो मेरे साथ ही रहेगी। यहाँ से जाने वाली नहीं।" हैदर खान ने दाँत भींचकर कहा।

"मोना चौधरी भी तेरे से शादी करना चाहती है ?"

हैदर खान के दाँत भिंचे रहे। गुलजीरा खान को वो घूरता रहा।

"पक्की कुतिया है वो " गुलजीरा खान कड़वे स्वर में कह उठी।

हैदर खान भीतर की तरफ बढ़ गया।

"मैं बात करूंगी अब मोना चौधरी से। मुझे उससे बात करनी ही होगी।” गुलजीरा खान ने एकाएक चीखकर कहा।

हैदर खान आगे बढ़ता रहा।

वहाँ मौजूद कई आदमी गुलजीरा खान को देखने लगे थे।

गुस्से में सुलगती गुलजीरा खान अपने उसी कमरे में पहुँची और लाली खान का नम्बर मिलाया।

“लाली!" बात होते ही गुल फुंफकारी--- "हैदर नहीं मान रहा, मोना चौधरी को लेकर...।"

“अब क्या कहा उसने?” लाली की आवाज कानों में पड़ी।

"वो कहता है कि में मोना चौधरी से शादी कर लूंगा तो तुम या लाली मेरा क्या कर लोगे।"

"ऐसा बोला हैदर ?" स्वर शांत था लाली का ।

“हाँ। और अब वो मोना चौधरी को साथ लेकर शमशेर के ठिकाने पर जा रहा है। कहता है मोना चौधरी इस काम में उसके साथ ही रहेगी। किसी बाहरी को इस कदर धंधे के भीतर तक ले लेना ठीक नहीं। मोना चौधरी हमारे भेद जान जायेगी। वो आने वाले वक्त में इस बात का फायदा उठाकर हमें नुकसान पहुँचा सकती है...।"

चंद पलों की खामोशी के बाद आवाज आई लाली की---

"तू सब्र रख गुल... ।"

"क्या मतलब?"

"ये हमारा मुसीबत से भरा वक्त चल रहा है। इस बुरे वक्त को खत्म हो लेने दे। अभी हैदर जो करता है, उसे करने दे। इन हालातों में कोई नई बात उठ खड़ी हो, ये हमारे हक में अच्छा नहीं होगा। समझी तू?"

"हां...।" गुलजीरा खान के चेहरे पर गुस्सा नाच रहा था।

"सबकुछ ठीक होने पर मैं बात करूंगी हैदर से।"

"अगर हैदर ने तब तक मोना चौधरी से शादी कर ली तो?"

"जल्दी मत कर गुल । हर बात का जवाब अभी मत ले। शान्ति रख। सब्र से काम ले। पहले सब कुछ ठीक हो लेने दे। हैदर, कुछ भी कहे, कुछ भी करे, लेकिन होगा वो ही जो मैं चाहूंगी। वो अगर मोना चौधरी से शादी करता है तो भुगतेगा।" 

गुलजीरा खान के चेहरे पर कुछ राहत के भाव उभरे।

"इस वक्त हम बहुत मुसीबतों में हैं और जब तक ये मुसीबतें न सुलझें, तब तक मैं कोई नई बात खड़ी नहीं करना चाहती। अभी हमें हैदर की जरूरत है। उसने कई काम करने हैं और ये तो हमारे हक में अच्छा ही है कि हमारे दुश्मन को खत्म करने में मोना चौधरी हैदर का साथ दे। काम जल्दी और बढ़िया हो जायेगा ।"

"मोना चौधरी हमारे लिए बीमारी है। वो हैदर को खा जायेगी।"

"हैदर को कुछ नहीं होगा ।" लाली खान की आवाज आई--- "काम के बाद मोना चौधरी को हमारे इशारे पर गोली मार दी जायेगी।"

"ओह...।"

"हैदर यही समझता रहेगा कि किसी दुश्मन ने मोना चौधरी को शूट किया है।"

गुलजीरा खान के चेहरे पर ढेर सारी राहत के भाव आ गये।

"मैं समझ गई।" गुलजीरा खान ने कहा और फोन बंद करके बड़बड़ा उठी--- "इस पक्की कुतिया को तो निपटा के ही चैन लूंगी...।"

■■■

हैदर खान उस कमरे में पहुंचा, जहां मोना चौधरी और जयन्त थे।

दो कुर्सियों पर बैठे बातें कर रहे थे कि हैदर को आते पाकर मोना चौधरी उठी।

"आओ हैदर...।" मोना चौधरी कह उठी--- "तुम बहुत परेशान दिख रहे हो... ।"

हैदर खान कुर्सी पर जा बैठा और व्याकुलता से बोला---

"बहुत बुरा हुआ हमारे साथ---हमारी सारी ड्रग्स तबाह कर दी गई। 3500 करोड़ की ड्रग्स थी वो। हमारा सारा पैसा उसमें लगा था। अब हमारे पास ड्रग्स भी नहीं रही और पैसा भी नहीं। धंधा दोबारा से शुरू करने में साल-डेढ़ साल लग जायेगा...।"

"जो हुआ मुझे उसका दुख है।" मोना चौधरी गम्भीर स्वर में बोली--- "दोबारा धंधा शुरू करने में साल-डेढ़ साल लगेगा?"

"हां। खेतों में अभी अफीम की फसलें तैयार हो रही हैं। उसमें अभी कई महीने लगेंगे।" हैदर खान ने गुस्से से कहा।

“अपने पर नाराज क्यों होते हो? जो हो गया उसे लौटाया नहीं जा सकता।" मोना चौधरी प्यार से बोली।

हैदर खान ने मोना चौधरी को देखकर कहा---

"मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता मोना चौधरी...।""

"क्या मतलब?"

"यहाँ तुम्हारे करने को कोई काम नहीं बचा... ।" हैदर खान ने परेशानी से कहा--- “अब तुम क्या करोगी?"

“कोई काम नहीं है मेरे लिए... तो फिर मुझे अपने लिए दूसरा रास्ता ढूंढना पड़ेगा।”

हैदर कुर्सी से उठा और आगे बढ़कर मोना चौधरी का हाथ थाम लिया।

जयन्त शांत सा बैठा, हैदर खान को देख रहा था।

"तुम चली गईं तो मेरा मन नहीं लगेगा... मैं तुम्हें चाहने लगा हूं।" बोला हैदर खान ।

"तुम भी मुझे अच्छे लगते हो। मैं तुम्हें कभी भूल नहीं...।"

"तुम मेरे साथ रहो... मेरे पास। हम दोनों इकट्ठे रहेंगे। साथ-साथ...।"

“तुम्हारा मतलब कि मैं घरेलू औरतों की तरह जीवन बिताऊँ?” मोना चौधरी ने उसका हाथ थपथपाकर कहा--- "लेकिन मैं शांत नहीं बैठ सकती। मुझे हर वक्त कोई काम चाहिये। काम ही मेरी जिन्दगी के पहिये हैं, जिन पर...।"

"तुम मुझे प्यार नहीं करतीं?"

"करती हूं हैदर...।"

"तो फिर मुझे छोड़ने की कैसे सोच सकती हो? मेरे से दूर जाने को कैसे कह सकती हो?"

"प्यार के साथ काम की तो जरूरत होती है हैदर... ।”

"साल-डेढ़ साल की तो बात है... उसके बाद हमारा ड्रग्स का काम फिर से शुरू हो जायेगा।"

मोना चौधरी ने हैदर को देखा। चेहरे पर गम्भीरता थी।

हैदर परेशानी में डूबा, उसके होंठों को देखता, जैसे जवाब का इन्तजार कर रहा था।

"मैं तुम्हें दुख नहीं देना चाहती हैदर...।"

"तो कौन मजबूर करता है कि तुम मुझे दुख दो? मेरे साथ रहो तुम। साल भर बाद फिर से हमारा ड्रग्स का धंधा शुरू हो जायेगा। मैं तुम्हें सच में चाहने लगा हूँ। लगता ही नहीं कि तुम्हारे बिना रह।पाऊंगा...।" हैदर खान की आँखें डबडबा उठीं।

मोना चौधरी ने मुस्कराकर हैदर का गाल थपथपाया।

"तुम रहोगी ना, मेरे पास?" बोला हैदर ।

"मैं तुमसे झूठ नहीं कहूंगी। जहां काम न हो तो मैं वहां नहीं रुकती। फिर भी तुम्हारे साथ थोड़ा और वक्त रह लूंगी...।"

“थोड़ा वक्त ?”

"हाँ... मैं...।"

"मैं उस थोड़े वक्त को लम्बा कर दूंगा। तुम्हें इतना प्यार करूंगा कि तुम मुझसे दूर नहीं जा पाओगी...।" हैदर खान की आंखों से आंसू की बूंद निकल कर गालों पर आ गई--- "पता नहीं क्यों मुझे तुमसे इतना प्यार हो गया... ।” हैदर ने मोना चौधरी का हाथ छोड़ा और आंखों से निकलने वाले आंसू को साफ किया।

मोना चौधरी गम्भीर निगाहों से हैदर खान को देख रही थी।

“मैंने।” हैदर खान ने कहा--- "अपने उस दुश्मन को ढूंढना है जो हमें बरबाद कर रहा है। क्या तुम मेरा साथ दोगी?"

"क्यों नहीं!” मोना चौधरी मुस्करा पड़ी--- "मैं तुम्हारे साथ हूं हैदर...।"

हैदर खान के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभरी।

"तो आओ, हमें अभी से काम पर लग जाना होगा। शमशेर के ठिकाने से हम अपना काम करेंगे। वहां उसके बहुत आदमी भी मौजूद है।”

"मैं जयन्त से बात करके आती हूं...।"

"जल्दी आना...।" कहकर हैदर बाहर निकल गया।

मोना चौधरी और जयन्त की नजरें मिलीं।

“मैं कहूँ कुछ ?" जयन्त गम्भीर स्वर में बोला।

"क्या?"

“मुझे लगता है कि तुम भी उसे पसन्द करती या चाहती हो?"

"ये कैसे लगा तुम्हें?"

"तुम जिस ढंग से उससे बात कर रही थीं... तुम्हारे चेहरे के भाव, सब कुछ तो स्पष्ट नजर आ रहा था...।"

"ख्याल गलत नहीं है तुम्हारा।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "हैदर सच्चे दिल का प्यारा इन्सान है।"

"ये गलत है मोना चौधरी। तुम इस वक्त खास मिशन पर हो। ये बातें तुम्हारे मन में नहीं आनी चाहिये ।"

"मिशन का इन बातों से कोई मतलब नहीं। मिशन हर हाल में पूरा होगा।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा--- “हमारा काम पूरा होने में ज्यादा वक्त नहीं रहा। मासो हमारे हाथों में है। लाली खान की सारी ड्रग्स तबाह हो चुकी है। सिर्फ लाली खान तक पहुंचने का ही इन्तजार है। कभी भी सब कुछ खत्म हो सकता है।"

"और गुलजीरा खान---हैदर खान। इनका क्या करोगी? ये फिर से ड्रग्स का धंधा खड़ा कर लेंगे।"

"इनका भी इन्तजाम हो जायेगा।"

"क्या तुम हैदर को वक्त आने पर खत्म करोगी?"

मोना चौधरी ने जयन्त की आंखों में देखा, फिर मुस्कराकर कह उठी---

"मिशन तसल्ली वाले ढंग से पूरा होगा। तुम देख लेना ।" कहकर मोना चौधरी बाहर निकल गई।

■■■

गुलजीरा खान ने सुल्तान को बुलाया और दो मोबाइल उसकी तरफ सरका कर कहा--

“ये दो मोबाइल तू रख। इन पर पार्टियों के ड्रग्स के लिये आर्डर आते हैं और अब हमारे पास ड्रग्स नहीं है। तो तू पार्टियों से बात करेगा। हमें छः से आठ महीने लगेंगे, फिर से ड्रग्स बेचने में तू पार्टियों को दो-चार महीनों के लिये टरकाते रहना कि माल की बहुत तंगी है। फसल किसी ने जला दी, ड्रग्स खराब हो गई या फिर किसी पार्टी ने सारी ड्रग्स खरीद ली। अब माल कुछ महीनों के बाद ही मिल पायेगा। ऐसी ही बातें... समझ गया ?"

"समझ गया।" सुल्तान ने दोनों मोबाइल उठा लिए।

"पार्टियों से बना कर रखनी है। उन्हें गलत बात मत कहना।"

सुल्तान ने सिर हिलाया।

गुलजीरा खान का इशारा पाकर सुल्तान चला गया तो उसने गहरी साँस ली और पुश्त से पीठ टिका कर आराम भरी मुद्रा में बैठ गई। लम्बे अरसे के बाद गुलजीरा खान को फुर्सत भरा खाली वक्त मिला था। वो सोचने लगी थी कि अगले पाँच छः महीने कैसे बिताये। क्या आरिफ के साथ कहीं दूर घूमने निकल जाये या फिर माँ के पुराने मकान पर जाकर रहे। वहां भी आरिफ आ सकता था। तभी हैदर खान ने भीतर प्रवेश किया।

गुलजीरा खान ने उसे देखते ही कहा---

"तू अभी गया नहीं भाई ?"

"मोना चौधरी आ रही है, उसके साथ ही जाऊंगा।" हैदर खान ने बैठते हुए कहा।

"लगता है तेरा कोई भी काम मोना चौधरी के बिना अब पूरा नहीं होता।" गुलजीरा खान ने मुस्करा कर कहा।

"तुझे क्या... ।" हैदर खान ने तीखे स्वर में कहा।

तभी टेबल पर पड़ा एक अन्य मोबाइल बजने लगा।

"औरतों और मदों में ये ही फर्क होता है।" मोबाइल की तरफ हाथ बढ़ाते गुलजीरा खान बोली--- "औरतें अपना काम पहले करती हैं, बाद में दूसरा काम। जबकि मर्द, औरतों की खातिर अपना काम तक छोड़ने को तैयार हो जाते हैं।"

हैदर खान लापरवाह सा दूसरी तरफ देखने लगा ।

"हैलो!" गुलजीरा खान ने फोन कान से लगाया।

"गुलजीरा खान है तू?" उधर से आती मर्दानी तीखी आवाज कानों में पड़ी।

गुल चौंकी।

ये वो ही आवाज थी, जिसने पहले फोन करके पारसनाथ की मांग की थी।

"ह... हां... " गुलजीरा खान संभली ।

"पहचाना मुझे?"

“हाँ। तू वो ही है, जिसने पारसनाथ को मांगा था। परन्तु वो हमारे पास नहीं है।"

हैदर खान की निगाह, गुलजीरा खान पर जा टिकी।

"देख लिया अंजाम ? तुम्हारे ड्रग्स के तीनों ठिकाने तबाह कर दिए। तुमने सोचा होगा कि मेरी धमकी खोखली होती है, परन्तु अब समझ में आ गया होगा कि मैं खाली-खाली धमकी नहीं देता। करके भी रहता हूं...।"

गुलजीरा खान का चेहरा धधक उठा।

हैदर खान, एकटक गुल को ही देख रहा था।

"जानता है तूने हमारा कितना बड़ा नुकसान किया है? हमारी ड्रग्स तबाह करके तूने हमें बरबाद कर दिया।"

"ये तो अभी शुरूआत है... ।" उधर से खतरनाक स्वर में कहा गया--- "अभी देख मैं क्या करता हूँ।"

तभी होंठ भींचे हैदर खान ने हाथ बढ़ाकर कहा---

"मुझे दे। मैं बात करूंगा।"

"बात करने दे मुझे...।" गुलजीरा खान ने उसका हाथ रोका--- "अभी बात चल रही है।"

"कौन है पास में?" उधर से तीखी हंसी के साथ कहा गया।

"हैदर...।"

"लाली भी वहीं होगी...।"

"वो नहीं है।"

"मरेगी वो मेरे हाथों से!"

"क्या वो तुम ही हो, जो लाली को हर जगह तलाश करते फिर रहे हो?"

"वो तो मेरा मामूली-सा आदमी है। मैं मैदान में होता तो तुम सब मर चुके होते...।"

गुलजीरा खान के होंठ भिंच गए। बोली---

"तुम ही मैदान में क्यों नहीं आते। मुकाबला करके हम फैसला कर लेते...।"

“आऊंगा। मैं भी मैदान में आऊंगा। तेरी सारी हसरतें पूरी करूंगा।"

"आखिर हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो तुम दुश्मनी निकाल रहे हो?"

"पारसनाथ! उसे मेरे हवाले कर दो। मेरा खास आदमी है, वरना...।"

"हमारे पास नहीं है वो...।"

"मानेगी नहीं तू...।"

"मैं सच कह रही हूं कि पारसनाथ... ।"

"मासो मेरे पास है...।"

चिहुंक उठी गुलजीरा खान।

तभी मोना चौधरी ने भीतर प्रवेश किया और हैदर के पास आ खड़ी हुई। हैदर ने उसे देखा। कहा कुछ नहीं। मोना चौधरी समझ गई कि कोई बात हो रही है।

"क्या कहा तूने?" गुलजीरा खान के होठों से हक्का-बक्का स्वर निकला--- "मासो तेरे पास है?"

हैदर खान चौंका। उसके होंठ भिंच गए।

मोना चौधरी समझ गई कि वो फोन आ गया है---जिसे करवाने को उसने लैला से कहा था।

"बिल्कुल। इसी से तेरे को समझ जाना चाहिये कि मेरे हाथ कितने लम्बे हैं..।" उधर से हंसकर कहा गया।

गुलजीरा खान से कुछ कहते न बना ।

"बोलना भूल गई क्या?"

"मासो को क्यों पकड़ लिया तूने?"

"पारसनाथ चाहिये वापस। वो मुझे दो, वरना मासो के टुकड़े करके...।"

"खबरदार...!" गुल गुर्रा उठी--- "मासो को कुछ नहीं कहना...।"

"डर गई? अभी तो टुकड़े करने की बात ही कही है। जब टुकड़े करूंगा तो तब तेरा क्या हाल... ।”

“मेरी बात सुन ...।” गुलजीरा खान बहुत परेशान और व्याकुल दिखाई दे रही थी--- "मुझे बता, पारसनाथ है कौन?"

"मेरे को बेवकूफ बनाती है?" उधर से गुर्राकर कहा गया--- "पारसनाथ वो ही है, जिसे दिल्ली से तुम लोगों ने कैद किया और उसे अफगानिस्तान ले आये। वो मुझे वापस दे दे।"

"हम तुम्हें कैसे यकीन दिलाएं कि पारसनाथ हमारे पास नहीं है।"

"लेकिन मैं तुम्हें यकीन दिला दूंगा, मासो के शरीर के टुकड़े भेजकर कि, मैं जो कहता हूं वो करता हूं...।"

"ऐसा मत करना।” गुलजीरा खान गुर्रा उठी--- "तेरे को भारी गलती लग रही है। हमारे पास पारसनाथ है ही नहीं। समझ में नहीं आता कि तुम्हे कैसे यकीन दिलाऊं ? तुम हमसे मिल क्यों नहीं लेते? सामने बैठकर बात करते हैं।"

"मैं तुम्हें पारसनाथ के बारे में पूछने के लिये दोबारा फोन करूं या मासो के टुकड़े भेजना शुरू करूं?"

"तुम दोबारा फोन करना। मैं लाली से बात करूंगी।"

उसके साथ ही उधर से फोन बंद कर दिया गया।

"क्या हुआ?" हैदर खान दाँत भींचकर बोला।

"वो पारसनाथ को वापस मांगता है। कहता है ड्रग्स के तीनों गोदाम उसने जलाए हैं। लाली खान की तलाश में उसका ही आदमी पड़ा है। मासो भी उसी के कब्जे में है। कहता है कि मासो के टुकड़े भेजूंगा, अगर पारसनाथ को वापस नहीं दिया तो।"

हैदर गुर्राकर कह उठा---

"तुमने कहा नहीं कि पारसनाथ को हम नहीं जानते। वो हमारे पास नहीं है।"

"इस बात पर वो यकीन नहीं करता।"

"मैं उसे ढूंढता हूं जो लाली को ढूंढ रहा है। वो पकड़ में आ गया तो, उसके द्वारा हम इस तक पहुंच जायेंगे।" हैदर खान गुस्से से भरा उठ खड़ा हुआ--- "चलो मोना चौधरी। हम उसे ढूंढ कर ही रहेंगे।"

मोना चौधरी और हैदर खान बाहर निकल गये।

गुलजीरा खान कुछ पलों तक दरवाजे को देखती रही, फिर बड़बड़ा उठी--

“ये पक्की कुतिया अब ज्यादा देर जिन्दा नहीं रहेगी...।"

फिर गुलजीरा खान ने लाली का नम्बर मिलाया। बात हो गई।

गुल ने लाली खान को फोन पर हुई सारी बातचीत बताई।

"हमारे पास पारसनाथ नहीं है।" लाली खान की आवाज कानों में पड़ी।

“वो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। वो सिर्फ पारसनाथ को चाहता है।"

"वो फिर फोन करे तो उसे मेरा नम्बर दे देना...।" उधर से लाली खान ने कहा ।

"ठीक है। पर मुझे मासो की चिन्ता हो रही है।" गुल बोली।

“मुझे भी चिन्ता है। तुम इस वक्त हैदर का साथ दो। मासो का मामला मैं संभाल लूंगी।"

■■■

शमशेर के हाथ बंधे हुए थे। वो सीट पर बैठा, बाहर देखता रास्ता बता रहा था। महाजन उसके सामने बैठा था। रास्ता सुनता जौहर वैन को आगे बढ़ाये जा रहा था। वो इस वक्त अफगानिस्तान के शहर बराली राजन में थे।

शाम के चार बज रहे थे।

सूर्य पश्चिम की तरफ झुकता जा रहा था। धूप सुनहरी और शांत होने लगी थी।

शमशेर इन हालातों में पूरी तरह टूट चुका था। उसे अपनी हैसियत कुत्ते की तरह लग रही थी। इतना बुरा हाल कभी उसका किया जायेगा, ये उसने कभी सोचा भी नहीं था।

शमशेर के बताने पर वो बराली राजन के एक साफ-सुथरे इलाके में जा पहुंचे। ये अमीर लोगों का इलाका लग रहा था। हर तरफ बंगले ही बंगले बने नजर आ रहे थे। चौड़ी सड़कें। खुला इलाका था ये ।

"बस यहीं रोक दी...।" शमशेर कह उठा।

जौहर ने वैन रोक दी। सामने ही गली नजर आ रही थी।

"इसी गली में एक बंगला लाली खान का ठिकाना है।"

"कौन सा बंगला ?" महाजन ने पूछा।

"इस गली में बायीं तरफ बने बंगले की लाईन में आगे जाकर एक ऐसा बंगला है, जिसके फाटक के ऊपर, दायें-बांये दो घोड़े बने खड़े हैं। उन घोड़ों के नीचे फाटक है। वो बंगला दूर से ही पहचाना जाता है।" शमशेर थके स्वर में बोला।

"मैं देख के आता हूं।" जौहर ने कहा और वैन से बाहर निकल कर गली की तरफ बढ़ गया।

शमशेर ने आहत भाव से महाजन को देखकर कहा---

“अब लाली खान मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगी... ।”

"क्यों? अब क्या नया कर दिया तूने?"

"मैं उसके ठिकाने तुम्हें बताता जा रहा हूं...।"

"बच गया तू सुबह, वरना अब तक तो तेरी लाश भी पहचानी न जाती।" महाजन कड़वे स्वर में बोला।

शमशेर ने मुंह फेर लिया।

"मुझे तो लगता है कि तू अभी भी हमें बेवकूफ बना रहा है।"

"क्या मतलब?"

“जहां लाली खान हो सकती है, तू वहां हमें नहीं ले जा रहा। यूं ही घुमाये जा रहा है।"

"वहम है तुम्हारा। लाली खान उस ठिकाने पर भी हो सकती है।"

"इस ठिकाने से वापस आकर तेरी खबर लूंगा।"

"क्या पता तुम लोग वापस ही न आ सको। लाली खान के लोग तुम्हें मार दें... ।”

"हमारा बुरा ही सोचते रहना। अच्छी बात मत सोचना।" महाजन बाहर देखते कह उठा।

जौहर आता दिखा---वो पास आया और वैन में बैठते कह उठा---

“इसने ठीक बताया है। एक बंगले के फाटक के ऊपर दो घोड़े खड़े हैं। बहुत अच्छे लग रहे हैं वो।"

“तू नीचे बैठ।" महाजन ने शमशेर से कहा--- "तुझे बांधूंगा।"

शमशेर नीचे बैठता कह उठा---

"तुम देख लेना, मैं बंधे-बंधे ही मर जाऊंगा। बहुत जुल्म कर रहे हो मुझ पर।"

महाजन ने शमशेर को वैन के फर्श पर लिटाया और रस्सी से सीट के नीचे की रॉड के साथ शमशेर के शरीर को बांधने लगा। इसी पल जौहर का फोन बजा ।

"हैलो... ।" जौहर ने बात की।

"कामयाबी मिली तुम दोनों को कि नहीं?" उधर से लैला ने पूछा।

"हम लाली खान एक ठिकाने के बाहर हैं। देखते हैं कि लाली यहां है कि नहीं... शकीला ने कुछ बताया ?”

"बहुत जिद्दी है। मरने की हालत में पहुंचने वाली है लेकिन लैला के बारे में बताने को तैयार नहीं।"

"मैं होता तो उसका मुंह खुलवा लेता।"

"हमने सारे हथकण्डे इस्तेमाल कर लिए हैं। लेकिन शकीला जैसी पक्की औरत मैंने नहीं देखी।"

“रिवाल्वर उसके सिर से लगाकर पूछो मैडम।" जौहर का स्वर कठोर हो गया--- "ना बताये तो पहली गोली पैर पर मारो। दोबारा फिर पूछो। तब भी मुंह न खोले तो दूसरे पैर पर मोली मारो। तब भी मुंह न खोले तो उसके एक घुटने पर गोली मारो। इसी तरह आगे बढ़ते रहो। खाली धमकी मत दो। धमकी को साबित करके भी दिखाओ। तभी उसमें डर बैठेगा।"

"लगता नहीं कि मुंह खोले। फिर भी इसी तरह कोशिश करके देखती हूं।" कहकर उधर से लैला ने फोन बंद कर दिया था।

जौहर ने फोन बंद किया।

तब तक महाजन ने, शमशेर को अच्छी तरह बांध दिया था।

"क्यों जरा-जरा करके मुझे मार रहे हो। सीधे गोली क्यों नहीं मार देते!" शमशेर तड़प कर कह उठा।

"सुबह तेरे को मारने तो जा रहे थे।" महाजन ने कहा--- "तूने ही कहा था कि मत मारो...।"

"तुम दोनों कमीने कुत्ते हो...।" शमशेर चीखा।

"अभी इसमें बहुत हिम्मत बची है।" जौहर हंस कर कह उठा---- "इसकी जान आसानी से नहीं निकलेगी।"

"अभी तो हमें ये लाली खान के बारे में बहुत कुछ बतायेगा।" महाजन ने कड़वे स्वर में कहा।

"मुझे पता ही नहीं तो कहां से बताऊँगा।" बंधा हुआ शमशेर सुलगा।

"ये तो तू जान कि कहां से बतायेगा। लेकिन तू बतायेगा। इस तरह बंधा हुआ तू कितना अच्छा लगता है! मेरा दिल तो करता है कि तुझे इसी तरह बांधे रहूं...।" फिर महाजन ने जौहर को कहा--- "चल...।"

जौहर ने गन उठा ली।

महाजन ने रिवाल्वर चैक की और गोलियों से भरी फालतू मैग्जीन भी जेब में रख लीं।

दोनों वैन से नीचे उतरे। आगे-पीछे के दरवाजे बंद किए।

"गन मुझे दे दे.... ।" महाजन ने कहा।

“ना भाई।" जौहर सिर हिलाकर कह उठा--- "बुरा मत मानिये । गन से तो मैं ही गोलियाँ चलाऊंगा।"

"मानेगा नहीं तू...।" महाजन ने मुस्करा कर गहरी सांस ली।

दोनों गली में बढ़ गये।

जौहर ने खुले में गन थाम रखी थी। दो लोग गली से आते दिखे, उन्होंने डर भरी निगाहों से जौहर के हाथ में थमी गन को देखा और जल्दी से आगे बढ़ते चले गये।

"कैसे काम शुरू करना है?" महाजन ने पूछा।

“भीड़ भरा इलाका है ये। काम करने की ज्यादा गुंजाईश नहीं है। सीधे-सीधे ही भीतर घुसेंगे। बंगले के बड़े गेट के बाहर कोई नहीं खड़ा है। गेट बंद है। तू गेट खुलवायेगा। मैं गन लिए साईड में रहूंगा। उसके बाद दोनों भीतर चलेंगे।"

महाजन ने कुछ नहीं कहा।

"बायीं तरफ, वो चौथा बंगला आ रहा है। गेट के ऊपर सफेद रंग के दो घोड़े खड़े हैं।"

महाजन आगे बढ़ता रहा। जौहर कुछ पीछे हो गया।

महाजन उस गेट पर पहुंचा, जिसके ऊपर दायें-बायें के पिलरों से आते दो घोड़े रखे थे। घोड़ों के पिछले पैर पिलरों पर थे। दोनों घोड़ों के चेहरे गेट के बीचोबीच पहुंच कर जैसे मिल से रहे थे। वो गेट ऐसा था कि बाहर से भीतर नहीं देखा जा सकता था। बाहर कोई नहीं खड़ा था।

महाजन गेट के पास पहुंचा और जोरों से उसे थपथपाया।

फौरन ही गेट पर लगी छोटी सी खिड़की खुली और दो आंखें दिखाई दीं।

"क्या है?" उधर से आंखों वाले ने पूछा।

"खोलो... ।"

"क्यों?"

महाजन ने इधर-उधर देखा, फिर धीमे स्वर में कह उठा---

"लाली खान ने भेजा है मुझे... ।"

"किसने?"

"लाली खान ने पता चला है कि दुश्मन आज यहां पर धावा बोलने वाले हैं। मैं तुम लोगों को सतर्क करने आया हूं।”

"ठीक है। हम हो गये सतर्क। तू अब जा।"

"जा! दिमाग तो ठीक है तुम्हारा? ना चाय, न पानी, ना आराम। काबुल से आ रहा हूं, सीधा ।" महाजन ने तीखे स्वर में कहा--- "लाली खान ने मुझे कहा था कि मैं यहां के बंगले का जायजा भी लूं। उससे फोन पर तुम लोगों की बात भी कराऊं...।"

"हमें तो नहीं कहा गया कि लाली खान के भेजे, कोई आयेगा ?”

"मैं आया हूं ना! अभी लाली खान से बात करा देता हूं। दरवाजा खोल ।" महाजन ने घुड़की दी।

छोटी सी खिड़की से आंखें हट गईं। खिड़की बंद हो गई।

अगले ही पल भीतर से गेट का कुंडा हटाने की आवाज आई, फिर थोड़ा सा गेट खुला।

“आ... ।" भीतर वाले ने सिर आगे करके कहा।

महाजन आगे बढ़ा और इसी बीच उसने रिवाल्वर निकाली और भीतर प्रवेश करते हुये उसके पेट से सटा दी। चौंका वो। हक्का-बक्का रह गया। महाजन भीतरी जगहों पर नजर घुमाई। कोई न दिखा। गेट के भीतर दूसरा गनमैन भी था। तभी पीछे से गन थामें जौहर भीतर आता चला गया।

“तुम... तुम ....।" उसने हड़बड़ाये स्वर में कहना चाहा।

जौहर को भीतर प्रवेश करते पाकर, दूसरे गनमैन ने उसे देखा । महाजन की रिवाल्वर तो दिखी नहीं थी जो पहले गनमैन के पेट से लगी हुई थी। जौहर के हाथ में गन देखकर दूसरे ने फुर्ती से कंधे से गन उतारनी चाही।

तब तक जौहर ने आगे बढ़कर उसकी छाती पर गन रख दी थी।

वो भी हक्का-बक्का रह गया।

"हिलना मत। शोर नहीं करना...।"

“क.... कौन हो तुम?"

"हम वो ही हैं, जिसके आने का अंदेशा तुम लोगों को था।" महाजन कड़वे स्वर में कह उठा।

सबसे पहले उनके हथियार जुदा करके चार कदम दूर रख दिये गये।

उसके बाद गन के दम पर दोनों को गेट के पास ही नीचे बिठा दिया गया।

दोनों अब घबराये से लग रहे थे।

महाजन ने रिवाल्वर को नाल की तरफ से पकड़ा और दस्ते की चोट एक की कनपटी पर की।

वो हल्की सी कराह के साथ नीचे गिरता हुआ बेहोश होता चला गया।

इस बीच जौहर गन थामे सतर्क खड़ा हर तरफ देख रहा था।

अपने साथी को बेहोश होते पाकर, दूसरा गनमैन और भी घबरा उठा था।

रिवाल्वर पकड़े महाजन उसके सामने झुकता धीमे स्वर में कह उठा---

"जो मैं पूछूं, बताते जाना! वरना तेरे साथी को तो बेहोश किया है, लेकिन तेरे सिर में गोली मार दूंगा।"

"तुम जो पूछोगे... बताऊंगा।” वो कांपकर बोला।

"कितने आदमी हैं भीतर?"

"प-पांच... ।"

“किधर?"

“भीतर ही हैं। बंगले में हमारी ड्यूटी तो बाहर थी।”

"सब हथियारबंद हैं?"

"ह.. हां... ।"

"लाली खान की क्या खबर है कि वो कहां मिलेगी?"

"नहीं पता। सच में नहीं पता। मुझे गोली मत मारना।” वो आहत भाव में कह उठा।

उसी पल महाजन का रिवाल्वर वाला हाथ घूमा। नाल उसकी कनपटी पर पड़ी। वो कराह उठा। दूसरा वार पुनः उसकी कनपटी पर हुआ और वो बेहोश होकर अपने साथी पर जा लुढ़का ।

महाजन ने जौहर को देखा। दोनों की नजरें मिलीं।

आंखों ही आंखों में इशारे हुये और वे आगे बढ़ गये। बंगले के मुख्य दरवाजे के पास जाकर ठिठके । उसे धकेल कर देखा तो वह बंद था। गन थामे जौहर ने महाजन को पीछे आने का इशारा किया और बंगले के साथ-साथ दबे पांव आगे बढ़ गया। वो भीतर जाने का रास्ता देख रहे थे। राह में पड़ने वाली खिड़किया चैक करते जा रहे थे।

एक खिड़की खुली मिल गई।

खिड़की में ग्रिल, सलाखें नहीं थीं। उसके दोनों पल्ले खुले हुए थे।

जौहर ने सावधानी से भीतर झांका। वो बेडरूम था। परन्तु खाली था। सामने बैडरूम का दरवाजा दिखा जो कि खुला हुआ था। मध्यम सी आवाजें एक आध बार उसने सुनी।

जौहर पीछे हटा और महाजन को भीतर जाने का इशारा किया।

वो खिड़की जमीन से साढ़े पांच फीट ऊंची थी। महाजन ने रिवाल्वर को दोनों में फंसाया और चौखट पर हाथ रखे उछलकर खिड़की पर चढ़ा और भीतर प्रवेश करते ही दाँतों में फंसी रिवाल्वर हाथ में ले ली।

बाहर खड़े जौहर ने सावधानी से आस-पास देखा, फिर भीतर पहुंच चुके महाजन को गन थमाई और खुद भी भीतर आ गया। गन पुनः हाथ में ले ली।

रह-रह कर मध्यम सी आवाजें उनके कानों में पड़ जाती थीं।

"मैं आगे जाता हूं... तू पीछे से मुझे कवर दे...।" कहकर जौहर बैडरूम के खुले दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

दरवाजे पर पहुंचकर जौहर ठिठका और गर्दन आगे करके बाहर झांका।

बाहर गैलरी थी, दोनों तरफ जाती।

जौहर ने महसूस किया कि आवाजें बायीं तरफ से आ रही हैं। वो गन थामे बायीं तरफ बढ़ गया। महाजन रिवाल्वर थामे दरवाजे पर पहुंचा और दो पल ठिठक कर फासला रखकर जौहर के पीछे चल पड़ा। परन्तु उसका पूरा ध्यान इस बात पर था कि कोई पीछे से न आ जाये। गैलरी के अंत में वो ठिठके, जौहर के पास आ पहुंचा।

सामने ड्राइंगरूम था।

पांच लोग वहां बैठे ताश खेल रहे थे। टेबल के बीचों-बीच रुपये रखे थे, ढेर सारे। उनके हथियार इधर-उधर पड़े थे यानि कि वो हर बात से, हर खतरे से लापरवाह थे। उन्होंने नहीं सोचा था कि कोई भीतर आ जायेगा।

जौहर ने महाजन को इशारा किया और गन थामें आगे बढ़ता चला गया।

उनकी नजर जौहर पर पड़ गई थी।

वे चौंके। फुर्ती से अपनी गनों की तरफ लपके।

"रुक जाओ।" जौहर गुर्रा उठा।

परन्तु वे नहीं रुके।

जौहर ने गन का घोड़ा दबा दिया।

तड़-तड़-तड़ की आवाजें बातावरण में गूंज उठीं।

तीन के सिर और छाती में गोलियां जा लगी थीं। उनका काम तो तुरन्त ही हो गया था।

एक बचा रह गया। बाकी एक की टांग पर गोलियां लगीं।

महाजन भी रिवाल्वर थामें सामने आ गया।

जौहर दांत भींचे आगे बढ़ा और उसकी छाती पर गन रखी, जो घायल था।

"बता ! लाली खान किधर मिलेगी।" जौहर ने दरिन्दगी से कहा--- "सही जवाब देगा तो छोड़ दूंगा...।"

“मैं नहीं जानता।" वो हांफते हुआ कह उठा।

गन का घोड़ा दब गया।

तड़-तड़-तड़ ।

ढेर सारी गोलियों ने उसकी छाती छलनी कर दी थी। वो उसी पल मर गया था।

ये देखकर आखिर पांचवें के होश गुम हो गये।

जौहर ने उसकी छाती पर गन रखी।

“सही जवाब देगा तो छोड़ दूंगा।" जौहर खतरनाक स्वर में बोला--- “लाली खान किधर मिलेगी?”

“व-वो काबुल में नहीं... नांगारहार में, शायद बराली राजन में मिले... वो... वो... ।”

जौहर ने घोड़ा दबा दिया।

वो भी गया।

जौहर ने भिंचे दांतों से गर्दन घुमा कर महाजन को देखा।

महाजन का चेहरा सख्त था। रिवाल्वर हाथ में थी।

"यहां अब कुछ नहीं बचा।" महाजन दरवाजे की तरफ बढ़ता कह उठा--  "निकलो...।"

आगे बढ़कर महाजन ने दरवाजा खोला तो सामने ही प्रवेश गेट दिखा। दोनों वहां से बाहर निकले और गली में आगे बढ़ते चले गये। कुछ लोग अपने बंगलों से बाहर झांक रहे थे। उन्होंने गोलियां चलने।की आवाजें सुन ली थीं।

दोनों गली के बाहर खड़ी वैन में पहुंचे।

गन को दूसरी तरफ फुट बोर्ड पर रखकर जौहर ने ड्राईविंग सीट संभाली और वैन आगे बढ़ा दी।

महाजन वैन में आ चुका था और पीछे वाले हिस्से में पहुंचा, जहां शमशेर बंधा था।

"आ गये तुम लोग?" शमशेर गहरी सांस लेकर बोला--- "पता नहीं तुम दोनों हर बार जिन्दा कैसे आ जाते हो... ।"

महाजन उसके बंधन खोलने लगा।

“वहां कोई मिला भी था या बंगला खाली पड़ा था?" शमशेर बोला ।

"सात लोग थे।" महाजन कह उठा--- “पांच को मार दिया। दो बेहोश रहे।"

बंधन खुल गये थे शमशेर के ।

"हाथ भी खोल दो कुछ देर चैन से बैठ लूंगा।" शमशेर याचना भरे स्वर में कह उठा।

महाजन ने उसके हाथ भी खोल दिए।

शमशेर ने चैन की सांस ली और कलाईयां मसलने लगा।

"अगला ठिकाना तुमने कहां बताया था?" महाजन ने पूछा।

"काबुल... ।" शमशेर ने सिर हिलाकर कहा।

"जौहर ! काबुल वापस चलो।"

"वहीं चल रहा हूं। तुमने इसकी कलाईयां क्यों खोल दीं ?"

"अगर ये भागेगा तो मैं इसे गोली मार दूंगा।"

"अच्छा यही होगा कि इसे बांध कर रखो... लोग इसे लकड़बग्गा कह कर बुलाते हैं।”

"झूठ बोलता है। मैं बहुत शरीफ हूं...।"

"मुझे पता है।" महाजन ने कहा।

वैन तेजी से दौड़े जा रही थी।

“अब मैं तुम्हें काबुल में लाली खान के ऐसे ठिकाने पर ले जाऊंगा जहां से तुम जिन्दा नहीं बच सकते।" शमशेर कह उठा।

"क्यों, वहां क्या शेर खुले घूमते हैं?" महाजन ने कड़वे स्वर में कहा।

“वहां हमेशा काफी ज्यादा लोग मौजूद रहते हैं। वहां तुम लोग बच नहीं सकोगे।"

"चिन्ता की कोई बात नहीं । काबुल में मेरे बहुत लोग हैं। वहां हम सिर्फ दो ही नहीं होंगे...।" जौहर ने कहा।

"काबुल... ।” शमशेर गहरी सांस लेकर कह उठा--- “क्या शान से मैं काबुल में रहता था। तुम लोगों ने मुझे कुत्ता बना के रख दिया...।"

"अभी भी तो बड़ी इज्जत से रह रहे हो।" महाजन ने उसके सिर पर हाथ फेरा।

"ये तो बताओ कि मेरे गायब हो जाने से गुलजीरा खान और हैदर खान पर क्या प्रतिक्रिया हुई...।"

"हमें नहीं मालूम। वैसे कुत्तों के गायब हो जाने की कोई परवाह नहीं करता।" जौहर ने हंसकर कहा।

"क्या... मैं कुत्ता...।"

"गुलजीरा खान के सामने तुम्हारी हैसियत कुत्ते से ज्यादा नहीं है।"

शमशेर गहरी सांस लेकर रह गया।

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