दिन का उजाला फैलते ही डुमरा की आंख खुल गई। लेटे ही लेटे डुमरा ने जंगल में इधर-उधर नजरें मारी और उठ बैठा। चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी। लम्बे पलों तक वो सोच भरी मुद्रा में बैठा रहा। उसके पास सामान के दो थैले थे। घोड़े पर सवार होकर जंगल तक आया था और फिर घोड़ा छोड़कर ही जंगल में प्रवेश कर आया था। ये कल दोपहर की बात थी और दिन भर जंगल का रास्ता पैदल ही तय करता रहा और रात को यहां आ लेटा था। उसे अभी तक जंगल में ऐसा कुछ नहीं दिखा था कि जिस पर खुंबरी का ठिकाना होने का शक होता। डुमरा ने एक थैले में हाथ डाला और छोटी-सी कांटेदार बाल जैसी कोई चीज निकाली और उसका एक बाल तोड़कर सामने फेंका तो उसी पल आवाज उभरी।

“कह डुमरा। क्या काम है?”

“नाम क्या है तेरा?” डुमरा बोला।

“खोमा।” वो आवाज पुनः सुनाई दी।

“खुंबरी का पता उन लोगों में से किसी को मिला?” डुमरा ने पूछा।

“नहीं। वो लोग खुंबरी की कैद में पहुंच गए हैं। जगमोहन और सोमाथ ही बचे हुए हैं।” खोमा का स्वर उभरा।

“ये कैसे हो सकता है कि वो खुंबरी की कैद में पहुंच जाएं?” डुमरा के माथे पर बल दिखने लगे।

“दोती नाम की ताकत ने चालाकी से सबको कैद में डाल दिया है। उनका सुरक्षा कवच पहले ही उतरवा लिया था।”

“तो खुंबरी की ताकतें हरकत में आ चुकी हैं।”

“हाँ। जगमोहन, बार-बार उनकी चालाकी को मात दे रहा है।”

“इसका मतलब वो लोग फंस गए हैं। खुंबरी का ठिकाना नहीं ढूंढ पाएंगे। सोमाथ क्या कर रहा है?”

“वो जंगल में घूमता फिर रहा है। उस पर ताकतें असर नहीं कर सकतीं।”

डुमरा के चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थी।

“ठीक है, तू जा।”

खोमा की फिर आवाज नहीं आई।

“तोखा।” डुमरा ने धीमे से पुकारा।

“मैं आ गया डुमरा। कल से तूने मुझे बुलाया ही नहीं।” तोखा की आवाज आई।

“मेरे यहां आने का कोई फायदा नहीं हुआ। खुंबरी की ताकतों ने जगमोहन और सोमाथ को छोड़कर सबको कैद में कर लिया है।”

“मैंने खोमा की बात सुन ली है।” तोखा का स्वर कानों में पड़ा।

“जगमोहन भी कहीं सबकी तरह खुंबरी की कैद में न पहुंच जाए। वैसे भी वह अकेला इतने बड़े जंगल में से खुंबरी का ठिकाना कैसे तलाश कर पाएगा। समस्या पैदा हो गई है।” डुमरा ने विचार-भरे स्वर में कहा-“मैंने तो सोचा था कि उनमें से कोई खुंबरी का ठिकाना ढूंढ लेगा और मुझे पता चल जाएगा।”

“तुम्हें यहां तक नहीं आना चाहिए था डुमरा। तुमने खतरा मोल लिया।”

“खुंबरी की ताकतें मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं। तुम जानते ही हो।”

“लेकिन इन जंगलों में खुंबरी रहती है। तुम्हें खतरा पैदा हो सकता है। उसकी किसी चाल में तुम फंस सकते हो।”

“मैं चाहता हूं कि खुंबरी की ताकतें मुझ पर वार कर दें, ताकि मुझे भी वार करने की आजादी मिल सके।”

“तो ये है तुम्हारा मकसद।”

“बड़ी शक्तियां सीधे तौर पर मेरा साथ नहीं दे रहीं। सब कुछ मुझे अपने विचारों से ही करना है। मैं खुंबरी पर वार करने से आजाद रहना चाहता हूँ ये तभी हो सकता है, जब पहला वार खुंबरी मुझ पर कर दे।”

“क्या पता इसके लिए तुम्हें कितना इंतजार करना होगा।” तोखा की आवाज कानों में पड़ी-“परंतु तुम्हें अन्य लोगों की चिंता होनी चाहिए। वो सब खुंबरी की कैद में हैं। क्या पता उन्हें मार दिया गया हो।”

“कह नहीं सकता। खुंबरी के आसपास क्या हो रहा है, ये कोई शक्ति नहीं जान पाती। ताकतों के साये फैले हैं खुंबरी के ठिकाने के गिर्द। परंतु मैं सोच रहा हूं कि खुंबरी खामोश बैठकर क्या कर रही होगी?”

“वो जरूर तुम्हारे लिए जाल बुन रही होगी।”

“फिर तो उसे मुझ पर वार करना चाहिए।”

“सतर्क रहकर मुझसे बात करो। इस जंगल में खुंबरी की ताकतों का जाल फैला हो सकता है। वो हमारी बातें सुन सकती है। उन्हें ये पता नहीं लगना चाहिए कि तुम्हें मायूसी हो रही है कि खुंबरी का ठिकाना नहीं जान पाए।”

“मैं जरा भी मायूस नहीं हुआ तोखा।” डुमरा बोला-“मुझे पता है इस काम में कितना भी वक्त लग सकता है। मैं तो उन लोगों के बारे में सोच रहा हूं जिन्हें मैंने भेजा और सुरक्षा कवच होते हुए भी वे ताकतों की चालों में फंस गए।”

“उन्हें कुछ हो गया तो जिम्मेवारी तुम पर आएगी।” तोखा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मैं उनके लिए चिंतित हूं परंतु कुछ कर नहीं सकता। मुझे नहीं पता वो कहां हैं।” डुमरा उठते हुए बोला-“मुझे यहां से चलना चाहिए। खुंबरी के ठिकाने को तलाशने की चेष्टा करनी चाहिए।”

दोनों थैले उठाए डुमरा जंगल में आगे बढ़ गया। वो जानता था कि दूर तक फैले जंगल में खुंबरी की जगह को ढूंढ़ पाना आसान होता तो, इस तरफ पहले ही आ गया होता। ये काम आसान नहीं है। इंसानी आंखें ही जंगल में मौजूद खुंबरी के ठिकाने को देख सकती हैं, शक्तियां नहीं देख सकतीं। जबकि रानी ताशा, नगीना, देवराज चौहान, मोना चौधरी, सोमारा और बबूसा पर खुंबरी की ताकतें काबू पा चुकी हैं। ऐसे में अब कम ही आशा थी खुंबरी तक पहुंच पाने की। दो घंटे चलते रहने पर डुमरा को भूख लगी तो पेड़ के नीचे बैठकर खाना खाने लगा। सूर्य निकल आया था। किरणें पेड़ों के बीच में से अपनी जगह बनाती जमीन पर पड़ रही थीं लेकिन ये नजारा कहीं-कहीं ही था।

खाना खाने के बाद डुमरा ने पुनः चलने की तैयारी की तो दोती की खनकती आवाज कानों में पड़ी।

“तुम्हें देखकर बहुत खुशी हुई डुमरा। तुम तो बहुत कम उम्र के हो।”

डुमरा ने तुरंत आवाज की तरफ नजरें घुमाईं।

चंद कदमों के फासले पर दोती खड़ी दिखी। डुमरा ने थैले नीचे रखे और दोती को देखने लगा। फिर उसके चेहरे पर मुस्कान आ ठहरी। वो आगे बढ़ता कह उठा।

“तुम दोती हो न?”

“मैं जानती हूं तूने अपनी शक्तियों से मेरे बारे में जान लिया होगा। कैसी लगी मैं तुम्हें।” आगे बढ़ता डुमरा दोती को इस तरह पार कर गया जैसे वो हवा हो।

दोती पलटकर डुमरा से कह उठी।

“शरीर साथ हो तो काम धीमे होता है। अपने आकार को लेकर ही हर जगह पहुंच जाती हूं।”

“तुम तो बहुत चालाक हो जो सबको कैद कर लिया।” डुमरा बोला।

“वो सब तो मेरे लिए छोटे बच्चे हैं।” दोती हंसी-“ये काम मेरे लिए कठिन नहीं रहा।”

“जगमोहन को नहीं पकड़ पाई।”

“वो जरा चालाक है। मेरी चाल को पहले ही समझ जाता है। पर वो भी पकड़ा जाएगा।”

“कहां ले गई सबको?”

“खुंबरी के पास कैद में।”

“मारा नहीं अभी तक उन्हें।”

“खुंबरी कहती है सबको एक साथ मारेंगे। ताकतें उनका खून देखकर बहुत खुश हो जाएंगी।”

“सोमाथ को तो तुम पकड़ ही नहीं सकतीं।”

“वो तो कृत्रिम इंसान है। उस पर ताकतों का असर नहीं होता। पर वो जंगल में ही भटकता रहेगा। उससे खुंबरी को कोई खतरा नहीं होगा। मैं तो तेरे लिए आई हूं डुमरा।” दोती ने प्यार से कहा-“मैंने तो सोचा था तू बूढ़ा होगा पर...”

“मैंने नया शरीर पाया है। बूढ़ा शरीर छोड़ दिया।”

“खुंबरी को मारने आया है तू?” दोती ने होंठ सिकोड़े।

“तू क्यों आई मेरे पास?”

“मैं तेरे को भी कैद में पहुंचा देना चाहती हूं पर ऐसा मेरे से हो नहीं सकेगा।”

“तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती।”

“जानती हूँ।” दोती ने गहरी सांस ली-“तू भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”

“कोई और वक्त होता तो मैंने तेरे को जला दिया होता तू मेरे पास आती ही नहीं।” डुमरा ने सख्त स्वर में कहा-“पर मैं अभी खुंबरी की ताकतों पर वार नहीं कर सकता। तेरे को सब पता है।”

“तभी तो मैं तेरे सामने आ गई कि तू मुझ पर वार नहीं करेगा। मेरी मान तो झगड़ा मत कर।”

“क्या मतलब?”

“खुंबरी से दोस्ती कर ले।”

“क्यों नहीं, मैं तो तैयार हूं खुंबरी के संग बैठने को।” डुमरा मुस्करा पड़ा-“पर उसे तुम बुरी ताकतों का साथ छोड़ना होगा।”

“हम इतनी तो बुरी नहीं।’

“तुम ताकतों ने ही खुंबरी को भटका रखा है तुम ताकतों के बिना वो चैन से जिंदगी बिताएगी।”

“तू हमारे पीछे क्यों पड़ा है डुमरा?”

“जब तुम सब नागाथ की सेवा में थीं तो तब शक्तियां नागाथ के पीछे थीं।”

“पर शक्तियां तो नागाथ का भी कुछ नहीं बिगाड़ सकी थीं।”

“शक्तियों की बात न मानने पर नागाथ को अपने शरीर का त्याग करना पड़ा था।”

“उससे ताकतों को क्या फर्क पड़ा, हमें खुंबरी जैसी मालकिन मिल गई। हमारा काम तो चल ही रहा है।” दोती हंसी।

“मैं तुम ताकतों को खत्म करके ही रहूंगा।” डुमरा ने सख्त स्वर में कहा।

“हम तेरे को खुंबरी के पास फटकने भी नहीं देंगे। तू थक जाएगा डुमरा।”

“डुमरा कभी नहीं थकता, तुम तो...”

“तेरे को दुख तो बहुत हो रहा होगा कि खुंबरी पांच सौ सालों बाद वापस आ गई। तूने तो सोचा होगा कि खुंबरी से पीछा छूटा। पर हमने पांच सौ साल खुंबरी का ख्याल रखा, तभी तो वो वापस आ पाई। नहीं तो जन्मों के फेर में भटक जाती।”

“अब क्यों आई है मेरे पास?”

“ओहारा ने कहा, तू डुमरा का हाल पूछ, मैं आ रहा हूं।” दोती गम्भीर होती दिखी।

“ओहारा?”

“जिसकी सेवा में मैं काम करती हूं। वो बड़ी ताकत है। वो तेरे पास अभी आने वाला है।”

डुमरा एकाएक सतर्क होता दिखा।

“डुमरा।” तोखा की मध्यम आवाज कानों में पड़ी-“ये ठीक कह रही है। मैंने किसी ताकत के आने का आभास पा लिया है।”

डुमरा चुप रहा।

“तेरे पर वार होने वाला है।” तोखा ने पुनः कहा।

“ये तो खुशी की बात है।” डुमरा ने कहा-“मैं तो कब से वार होने का इंतजार कर रहा हूं।”

“क्या कहा?” दोती कह उठी।

डुमरा खामोश खड़ा, दोती को देखता रहा।

“समझी, तू अपनी शक्तियों से बात कर रहा है।” दोती बोली-“पर ओहारा का मुकाबला तू नहीं कर सकता।”

जवाब में डुमरा मुस्करा पड़ा।

“ओहारा को गुस्सा मत दिलाना, वरना वो तेरे को छोड़ेगा नहीं।” दोती ने पुनः कहा।

डुमरा तब भी कुछ नहीं बोला।

उसी पल चंद कदमों पर जैसे बिजली-सी कौंधी और बड़ा-सा गोला दिखा कोहरे का जो कि धीरे-धीरे मानव आकृति में बदलकर, ओहारा के रूप में सामने दिखने लगा। वो पच्चीस बरस का खूबसूरत युवक था, जो कि डुमरा को देखते हुए मुस्करा रहा था। उसके शरीर पर कमीज-पैंट जैसे कपड़े दिख रहे थे। गले में लकड़ियों की छोटी-सी माला पड़ी थी। पांवों में कुछ नहीं पहना था। डुमरा को देखने के बाद उसने दोती को देखा तो दोती कह उठी।

“हुक्म ओहारा।”

ओहारा ने कुछ नहीं कहा और पुनः डुमरा को देखा।

“तेरा नाम बहुत सुना था डुमरा। तूने तो खुंबरी को खूब परेशान किया। अब वो तेरे को मारना चाहती है।”

“तो मुझे मार दो।”

“मैं तुझे मारने ही आया हूं।” ओहारा बोला-“तू मेरे वार से बच नहीं सकेगा।”

“तेरे जैसी ताकतें खुंबरी के पास हैं तो वो छिपती क्यों है। सामने क्यों नहीं आती?” डुमरा बोला।

“खुंबरी को छिपकर रहने की आदत नहीं है। दूसरे ग्रह से आकर वो आराम कर रही है।”

“मैं जानता हूं वो सामने नहीं आएगी।”

“तेरी शक्तियां तुझे, मेरे वार से बचा नहीं सकेंगी।” ओहारा मुस्कराया।

डुमरा ने गले में पड़े लॉकेट को मुट्ठी में जकड़ लिया। नजरें ओहारा पर थीं।

“इससे क्या तू बच जाएगा।” ओहारा हंसा।

“तेरे को एक ही वार करने का मौका मिलेगा। उसके बाद मुझे वार करने की छूट होगी।” डुमरा ने कहा-“तुम बुरी ताकतों ने खुंबरी को भटका रखा है। वो तुम सबको अपना समझती है जबकि...”

“हम ताकतें खुंबरी का बहुत ध्यान रखती हैं और खुंबरी हमारा बहुत ध्यान रखती है। हम ऊर्जा के बिना मरने की हालात में पहुंच चुकी थीं कि खुंबरी वक्त पर आ गई और हमें ऊर्जा दी। खुंबरी के बिना हम नहीं जी सकतीं।”

“मैं खुंबरी की जान लेने आया हूं।”

“ताकतों के होते तू खुंबरी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता डुमरा। हम तो हम हैं और वो रहेगी।” ओहारा का स्वर सख्त हुआ और अपना दायां हाथ उठाकर होंठों-ही-होंठों में कुछ बड़बड़ाया तो अगला पल हैरान कर देने के लिए काफी था।

ओहारा के उठे हाथों से जैसे छोटे-छोटे चमकीले असंख्य तीर निकलकर, डुमरा की तरफ बढ़े और उसके शरीर से टकराकर नीचे गिरते हुए लुप्त होने लगे।

डुमरा ने हाथ में लॉकेट को पकड़ रखा था।

ओहारा का हमला जारी था।

एकाएक ओहारा परेशान-सा दिखा। उसी पल उसने दूसरा हाथ ऊपर उठाया और होंठों-ही-होंठों में जाने क्या बड़बड़ाया कि तभी दूसरे हाथ से काले रंग के तीर निकलकर डुमरा पर बरसने लगे। परंतु उनका हाल भी पहले जैसे तीरों जैसा ही हुआ। तीर डुमरा के शरीर से टकराते रहे और नीचे गिरकर लुप्त होते रहे।

ये सब कुछ दो मिनट तक रहा।

इन दो मिनटों में ऐसा लगा जैसे छोटा-सा तूफान गुजर गया हो।

फिर ओहारा ने दोनों हाथ नीचे कर लिए। उसके चेहरे पर क्रोध नाच रहा था। जबकि डुमरा के होंठों पर मुस्कान थी। उसी पल दोती अपनी जगह से गायब हो गई।

“शुक्रिया ओहारा। वार करके तूने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी। अब मैं आजाद हूं खुंबरी पर और तुम ताकतों पर वार करने के लिए।”

डुमरा ने मीठी मुस्कान के साथ कहा-“अब मेरे हाथ बंधे हुए नहीं है। वरना मैं तो मजबूर था कि खुंबरी पर वार नहीं कर सकता। तुमने मेरे लिए रास्ता बना दिया।”

“तू बचेगा नहीं डुमरा।” ओहारा गुर्रा उठा-“मैं फिर आऊंगा।”

“मैं चाहूं तो अभी तेरे पर वार कर सकता हूं परंतु तूने मेरी समस्या हल की है। ऐसे में इस बार मैं तेरे पर वार नहीं करूंगा परंतु अगली बार तुझे छोडूंगा भी नहीं।” डुमरा ने कहा।

उसी क्षण गुस्से में ओहारा ने अपने दोनों हाथ एक साथ ऊपर उठाए और बड़बड़ाया तो उसके हाथों से सतरंगी बड़े-बड़े छल्ले निकलने लगे और वो छल्ले डुमरा के सिर से होते, उसे घेरे में लेते उसके पैरों में गिरने लगे।

पांवों से छल्ले इकट्ठे होते ऊपर की तरफ उठने लगे। छल्लों की दीवार में डुमरा की टांगें छिपने लगीं। वो हर पल और ऊपर उठते जा रहे थे।

डुमरा ने लॉकेट को मुट्ठी में भींच रखा था और मुस्करा रहा था।

जल्दी ही वो वक्त आ गया जब छल्लों ने सिर से पांव तक डुमरा को अपने भीतर छिपा लिया। एकाएक छल्लों की बरसात रुक गई। ओहारा ने हाथ नीचे कर लिए और चमक भरी निगाहों से छल्लों को देखने लगा जिनके भीतर डुमरा कैद हो चुका था। परंतु ये पल ज्यादा देर तक कायम न रहे और तभी वो छल्ले चटक-चटककर टूटने लगे। गिरने लगे। कुछ ही क्षणों में सारे छल्ले कर बिखर चुके थे और फिर वे लुप्त हो गए। डुमरा सही सलामत सामने खड़ा था। होंठों के बीच मुस्कान फंसी थी।

“मैं फिर आऊंगा।” ओहारा चीखा-“देखता हूं तेरी शक्तियां तुझे कब तक बचाती हैं।” इसके साथ ही ओहारा का शरीर हवा में घुलता हुआ गायब होता चला गया।

डुमरा ने लॉकेट छोड़ा और गहरी सांस ली। चेहरे पर गम्भीरता आ गई।

“डुमरा।” तोखा की आवाज कानों में पड़ी-“उसके दूसरे वार से मैं तो घबरा ही गया था। छल्लों के बीच फंसकर मेरा तो दम ही घुटने लगा था। बहुत जबर्दस्त वार किया था उसने तुम पर।”

“वो बड़ी ताकत थी। पर मेरी शक्तियों ने मुझे बचाए रखा।” डुमरा बोला।

“अब तो खुंबरी की तरफ से पहला वार तुझ पर हो गया। अब तू भी वार करने को आजाद है।”

“इस बात की मुझे खुशी है। मैं ऐसा ही चाहता था। मेरे लिए रास्ता साफ हो गया। खुंबरी खुलकर सामने आने को तैयार हो गई है। वो अपनी कई ताकतों को अब मेरे पास भेजेगी। वो हर हाल में मेरे से श्राप का बदला लेना चाहेगी। इस बार उसकी ताकतें मुझे मारने को पूरा जोर लगा देंगी।”

“फिर तो तुझे सतर्क रहना होगा, हो सकता है ताकतों का कोई वार तुम पर चल जाए।”

डुमरा उसी पल पीठ की तरफ घूम गया।

कुछ ही दूरी पर टोमाथ खड़ा था।

दोनों की नजरें मिलीं। टोमाथ मुस्कराकर बोला।

“ओहारा अपने को बहुत बड़ी ताकत समझता था। तुमने उसके वारों को असफल करके उसे अक्ल सिखा दी। कम-से-कम अब वो मेरे सामने अकड़ दिखाएगा तो मैं उसे कह तो सकूँगा कि पहले डुमरा को मारकर दिखाओ।”

डुमरा ने उसी पल अपना लॉकेट थाम लिया।

“मैं तुम पर वार करने नहीं आया।” टोमाथ कह उठा-“शक्तियों की डोर को थामने की जरूरत नहीं। मैं तो तुमसे खुश हूं कि तुमने ओहारा को नीचा दिखा दिया। अब मेरे सामने अकड़ा तो नहीं करेगा।”

“तुम कौन हो?”

“मैं टोमाथ हूं। तुम कहो तो तुम्हें खुंबरी के पास ले जा सकता हूं। ज्यादा दूर तक नहीं चलना पड़ेगा। पास ही में है।”

डुमरा खुलकर मुस्कराया।

“तुम तो बहुत अच्छे इंसान लगते हो। खुंबरी ने तुम्हें खामख्वाह ही बदनाम कर रखा है।” टोमाथ भी मुस्कराया।

तभी तोखा ने धीमे स्वर में, कान में कहा।

“ये बहुत चालाक ताकत है। इसकी बातों में जरा भी नहीं आना।”

“मैं इन ताकतों की चालों को बखूबी समझता हूं। ये सिर्फ खुंबरी की दोस्त हैं।” डुमरा बोला।

“तुमने मुझसे कुछ कहा। जरा ऊंचा बोलो।” टोमाथ ने कहा।

“मैंने कहा है कि खुंबरी कुछ देर पहले ही मुझे मिली थी।” डुमरा मीठे स्वर में बोला-“उसने मुझसे कहा था कि जल्दी ही वो टोमाथ को रास्ता दिखाने को भेजेगी। तुम तो बहुत जल्दी आ गए।”

टोमाथ ने पलकें झपकाईं और हंस पड़ा।

“मजाक मत करो। खुंबरी तो सुबह से ही गहरी नींद में है। वो शाम से पहले नहीं उठने वाली। अगर तुम खुंबरी से मिलना चाहो तो मैं तुम्हें ले चलता हूं। खुंबरी को भी जगा दूंगा। वो तुमसे मिलकर खुश होगी।” टोमाथ बोला।

“मैं खुंबरी से मिलने की इच्छा नहीं रखता।”

“तुम अच्छे इंसान हो। अभी तक मुझ पर वार नहीं किया। कोई और होता तो मुझे देखते ही वार करता।”

“मैं कभी भी तुम पर वार कर सकता हूं।”

“मजाक मत करो।” टोमाथ ने कहा-“आओ चलते-चलते बातें करते हैं।”

“तुम्हें जो कहना है यहीं कहो। जब तक तुम मेरे सामने हो, मैं एक कदम से ज्यादा नहीं चलूंगा। तुम जैसी घटिया ताकतें मेरे पांव बांधने की चेष्टा कर सकती हैं। तुम में ज्यादा ताकत नहीं है, पर मुझे नुकसान तो पहुंचा सकते हो।”

टोमाथ एकाएक गम्भीर दिखने लगा और बोला।

“तुम ऐसी ही निगाहों से मुझे देखोगे डुमरा। मेरे पर शक भी करोगे। तुम हर उस चीज को शक की निगाहों से देखोगे, जिसके पास ताकत होकर गुजरती हो। परंतु मैं तुम्हें सच कह रहा हूं कि खुंबरी से मेरा मन भर चुका है। मैं आजाद होना चाहता हूं। इस बारे में मैंने खुंबरी से कई बार कहा पर वो मुझे आजाद नहीं करती। मैं चाहता हूं कि तुम खुंबरी को मार दो। अभी वो गहरी नींद में है। मैं तुम्हें खुंबरी के पास ले चलता हूं, तुम उसकी गर्दन काट दो। तुम्हारा काम भी बन जाएगा और मेरा भी।”

“तो तुम खुंबरी की मौत चाहते हो?” डुमरा मुस्कराया।

“सच में। मैं उससे बहुत दुखी हूं। उसे मारकर मेरा भला करोगे।”

टोमाथ ने थके स्वर में कहा-’तुम्हारे पास शक्तियां हैं कि तुम खुंबरी को मार सको। किसी से कहना नहीं कि मैंने ऐसा कहा है। बेशक सोच लो, मैं फिर आ जाऊंगा।”

तभी दोती की आवाज गूंजी।

“मैंने सब सुन लिया है टोमाथ। अब खुंबरी तेरी जान ले लेगी।”

कुछ फासले पर एकाएक दोती खड़ी नजर आने लगी थी।

“एक और आ गई।” तोखा बड़बड़ा उठा।

“अच्छा हुआ जो तूने सुन लिया। मैंने भी सुना था एक बार तो तू खुंबरी को गालियां दे रही थी।” टोमाथ बोला-“पर मैंने तो खुंबरी से नहीं कहा कि तू गालियां दे रही है उसे। तू भी तो खुंबरी से परेशान है।”

“पर तेरी तरह मैं किसी से कहती तो नहीं। तू दुश्मन डुमरा से सहायता मांग रहा है।” दोती ने कहा।

“जो मेरे काम आएगा, वो ही मेरा दोस्त है। डुमरा मेरी बात मानने जा रहा है।”

“कौन-सी बात?”

“ये अभी मेरे साथ खुंबरी के पास जाएगा और उसका गला काट देगा। डुमरा ने कहा है अभी।”

“सच?” दोती खुश हो उठी-“ये खुंबरी को मार देगा?”

“अभी पता चल जाएगा।” फिर टोमाथ ने डुमरा से कहा-“चल डुमरा आज खुंबरी की जान ले ले। मौका अच्छा है। वो गहरी नींद में है। सोने से पहले उसने खूब कारू (शराब) पी थी। उठ भी गई तो मुकाबला करने के काबिल नहीं होगी।”

“ये तो बहुत ही अच्छा मौका है खुंबरी का गला काटने का।” दोती ने पुनः खुशी से कहा।

तभी डुमरा ने होंठों ही होंठों में बुदबुदाना शुरू कर दिया। उसने ऐसा करते ही टोमाथ और दोती तुरंत गायब हो गए। डुमरा ने बुदबुदाना छोड़ा तो तोखा ने हंसकर कहा।

“भाग गए दोनों। तुमने इन पर वार क्यों नहीं किया?”

“ताकतें मुझे परेशान करने की कोशिश कर रही हैं। मैं इनकी चाल समझना चाहता हूं।”

“ओहारा फिर जरूर वार करेगा तुम पर। हो सकता है इस बार छिपकर धोखे से वार करे। वो तैयार होकर आएगा इस बार।”

“अब भी तो वो तैयार होकर आया था। मैं उसका मुकाबला कर लूंगा।” डुमरा बोला-“आगे चलते हैं।”

डुमरा ने थैले उठाए और चल पड़ा।

“एक शक्ति को फैलाकर चलो। कहीं भी तुम्हारे पांव बांधने के लिए ताकतों का जाल बिछा हो सकता है।”

डुमरा होंठों-ही-होंठों में कुछ बुदबुदाया। फिर चंद पल के बाद बोला।

“मैंने अपने आसपास शक्ति को फैला दिया है तोखा।”

“अब कोई खतरा नहीं। परंतु तुम्हें सतर्क रहना होगा। खुंबरी की ताकतों की नजर तुम पर टिक चुकी है डुमरा।”

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जगमोहन कंधे पर थैला डाले तेजी से आगे बढ़ा जा रहा था। कल, जब बबूसा, ताकतों के हाथों में पड़ गया था, उसके बाद उसके साथ कोई बात नहीं हुई थी। रात वो चैन से सोया था और सुबह उठा था। अब उसे महसूस होने लगा था कि खुंबरी को ढूंढने का काम आसान नहीं है। जंगल बहुत ही घना और दूर-दूर तक फैला हुआ था। खुंबरी जाने कैसे ठिकाने में रह रही

होगी। वो आसानी से नजर नहीं आने वाली। जगमोहन का ख्याल था कि खुंबरी ने अपना ठिकाना जमीन के नीचे बना रखा होगा। जमीन के ऊपर ठिकाना बनाने की बेवकूफी वो नहीं करने वाली, जो कि सबको नजर आ जाएगा। जगमोहन नहीं जानता था कि वो किस दिशा में जा रहा है, बस वो आगे बढ़ता जा रहा था और उसकी नजरें हर तरफ जा रही थीं। पर ऐसा कुछ नहीं दिख रहा था जहां खुंबरी का ठिकाना होने की संभावना हो। देर तक चलते रहने से उसे थकान होने लगी थी, परंतु मन में था कि अभी और चलेगा। आराम नहीं करेगा।

एकाएक जगमोहन ठिठककर पलट गया।

पीछे से कदमों की आहटें आई थीं।

पीछे देखते ही जगमोहन चौंका। टोमाथ उसके पीछे आ रहा था। उसके रुकते वो भी रुक गया।

“तुम?” जगमोहन के दांत भिंच गए।

“मैंने सोचा तुम्हें बातें करने वाला कोई चाहिए होगा। अकेले में दिल नहीं लग रहा होगा।” टोमाथ मुस्कराकर बोला।

“बबूसा कहां है?”

“वो खुंबरी की कैद में है। कुछ देर पहले ही वो खाना खाकर हटा है। वो खुश है वहां। सोमारा भी उसके पास पहुंच गई है।”

“सोमारा?”

“हां। अब तो सिर्फ तुम और सोमाथ ही बचे हो। सोमाथ हमारे बस का नहीं है। वो कृत्रिम इंसान है। तुम सीधे-सीधे हमारे साथ क्यों नहीं चलते। हम तुम्हें छोड़ने वाले तो नहीं। अब नहीं तो कुछ देर बाद, पकड़े तो जाओगे ही।”

“तुमने मुझे धोखा दिया और बबूसा को पकड़ लिया।” जगमोहन गुस्से से कह उठा।

“उसमें मेरा कसूर नहीं था।” टोमाथ ने सिर हिलाया-“वो तो दोती की चालाकी थी। दोती ने ही कहा था कि ऐसा करते हैं। मैंने उसकी बात मान ली और तुम लोग दोती की चाल में फंस गए। दोती अब बहुत तेज हो गई है।”

जगमोहन खा जाने वाली निगाहों से टोमाथ को देखने लगा।

“अब तुम मुझसे नाराज हो तो मुझे माफ कर दो।” टोमाथ गम्भीर स्वर में बोला-“मैं तो खुद खुंबरी से परेशान हूं।”

“चले जाओ यहां से।”

“मैं जानता हूं कि एक बार धोखा खा लेने के पश्चात तुम मेरी बातों का भरोसा नहीं करोगे। लेकिन क्या करूं, खुंबरी का आदेश तो मानना ही पड़ेगा, जब तक वो जिंदा है। मैं तो चाहता हूं कि कोई उसे मार दे। मेरी बात मानो या न मानो, पर तुम जिस तरफ बढ़ रहे हो, उस तरफ खुंबरी नहीं मिलेगी। खुंबरी का ठिकाना तो उस तरफ है।” टोमाथ ने अन्य दिशा की तरफ इशारा किया-“एक बार मेरा कहना मानकर तो देखो, तुम्हें पता चलेगा कि टोमाथ कितना सच्चा है।”

“मुझे तुम्हारी सलाह की जरूरत नहीं है।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा-“चले जाओ और दोबारा मत आना।”

उसी पल दोती की आवाज आई।

“बे-ईमान। तुम इसे खुंबरी तक पहुंचने का रास्ता बता रहे हो।”

दोनों की नजरें घूमी। कुछ कदमों की दूरी पर, जाने कब दोती आ गई थी।

“मैंने कहां बताया है।” टोमाथ ने फौरन कहा-“पूछ लो।”

“मैंने खुद देखा है तुम इसे उस तरफ जाने को कह रहे थे।”

“मैं इसे रास्ता क्यों बताऊंगा। मैंने तो कहा है जिस तरफ बढ़ रहे हो, उसी तरफ बढ़ते रहो।”

“तुम झूठे हो। मैं खुंबरी को तुम्हारी बे-ईमानी बताऊंगी।”

“तुम इससे क्यों नहीं पूछतीं कि मैंने इसे किस तरफ जाने को कहा है। मुझ पर पर झूठा इल्जाम मत लगाओ।” टोमाथ ने झल्लाकर कहा।

“मैं खुंबरी को बताने जा रही हूं तुम्हारी करतूत।” कहने के साथ ही दोती गायब हो गई।

“ओह। दोती को रोकना होगा। मैं जाता हूं। तुम उधर ही जाना जिधर मैंने जाने को कहा है। खुंबरी उधर ही मिलेगी। उसे देखते ही मार देना।” इतना कहने के साथ ही टोमाथ अपनी जगह से गायब हो गया।

जगमोहन ने अपने कदम उसी दिशा में बढ़ा दिए जिस तरफ वो पहले से ही जा रहा था।

देर तक चलता रहा। थकान सवार होने लगी तो एक पेड़ के नीचे डेरा जमा लिया। चलते-चलते पांवों में दर्द होने लगा था। कुछ देर थैले पर सिर रखे सुस्ताता रहा फिर पानी निकालकर पीया। नजरें हर तरफ जा रही थीं। जंगल सुनसान था। दूर-दूर तक कोई भी नजर नहीं आ रहा था। भूख महसूस हुई तो खाना निकाल लिया। खाना खाने के बाद वो लेट गया।

देखते ही देखते जगमोहन को नींद ने घेर लिया।

qqq

दोलाम ने रास्ता खोला और बाहर आ गया। उसके पीछे खुंबरी और धरा भी बाहर आ गईं। हर तरफ जंगल दिखा। खुंबरी के चेहरे पर खुशी नाच उठी। वो धरा से बोली।

“कितना अच्छा लग रहा है खुले में आना।”

“मैं तो खुले में ही रही हूं। पर तेरे को जरूर अच्छा लगेगा कि पांच सौ बरसों के बाद तू बाहर आई।”

“ठंडी हवा शरीर को बहुत अच्छी लग रही है। चल घूमें।” खुंबरी कहते हुए आगे बढ़ गई। धरा उसके साथ थी।

दोलाम उनके कई कदम पीछे चल रहा था।

खुंबरी के गले में भी अब ‘बटाका’ नजर आ रहा था।

“डुमरा को खत्म करने के बाद मैं सदूर की रानी बनूंगी। सदूर के अलग हो चुके सारे टुकड़े वापस सदूर से आ मिलेंगे। बहुत बड़ा हो जाएगा सदूर, जब मैं रानी बनूंगी। अपने लिए बहुत बड़ा किला बनाऊंगी।”

“ज्यादा खुश मत हो। पहले डुमरा को खत्म कर।” धरा बोली।

“वो जंगल में ही है। मेरी ताकतें उस पर काबू पाने की चेष्टा कर रही हैं। डुमरा बच नहीं सकेगा।”

“क्या हमारा इस तरह जंगल में घूमना ठीक है?” धरा ने कहा-“जबकि वो लोग जंगल में हमें ढूंढ़ रहे हैं।”

“मैं नहीं डरती इस बात से।”

“पर सतर्क तो रहना चाहिए। सोमाथ मिल गया तो खतरा पैदा हो जाएगा। उस पर ताकतों का जादू नहीं चल सकेगा। वो नकली इंसान है। वो ताकतवर है, उसका मुकाबला भी नहीं किया जा सकता। वो हमें मार सकता है।”

“ये बात तो तूने सही कही।” खुंबरी बोली-“पर क्या वो आस-पास हैं?”

“मैं क्या जानूं?”

दोनों बातें करते आगे बढ़ती जा रही थीं।

खुंबरी ने कहा-“डुमरा को मेरी ताकतें खत्म कर देंगी। वो तैयारी कर रही हैं डुमरा पर बड़ा वार करने की।”

“डुमरा अगर कमजोर होता तो वो इस जंगल में न आता।”

“वो अकेला नहीं है, उसके पास शक्तिया हैं।” खुंबरी बोली-“शक्तियों के दम पर ही वो यहां आया है।”

“वो शक्तियां उसे बचा लेंगी ताकतों के वार से।”

“इस बार नहीं बचा सकेंगी। ओहारा डुमरा को खत्म करके ही रहेगा।” खुंबरी ने दृढ़ स्वर में कहा।

“मुझे भरोसा नहीं कि डुमरा मारा जाएगा।” धरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तेरे को ज्यादा भरोसा है डुमरा पर।”

“बात भरोसे की नहीं। डुमरा जानता है कि उस पर बड़े से बड़ा वार करेंगी ताकतें। उसने खूब तैयारी कर रखी होगी बचने की, बल्कि वो अब जवाब में जबर्दस्त वार भी कर सकता है ताकतों पर।”

“ऐसा तो वो जरूर करेगा। परंतु ताकतें अब ज्यादा ताकत हासिल कर चुकी हैं। डुमरा के लिए बचना आसान नहीं होगा।”

तभी पीछे से दोलाम की आवाज आई।

“खुंबरी। यहां कोई है।”

दोनों फौरन पलटकर दोलाम की तरफ बढ़ीं।

“कहां?”

“वो देखो, उसे पेड़ के नीचे कोई नींद में है।” दोलाम ने एक तरफ इशारा किया।

वो पेड़ कुछ दूर था परंतु साफ दिखा दिखा कि उसके नीचे कोई सोया पड़ा है।

“वो कहीं सोमाथ तो नहीं?” खुंबरी सतर्क भाव में कह उठी।

“वो सोमाथ नहीं हो सकता।” धरा बोली-“सोमाथ को नींद लेने की जरूरत नहीं पड़ती।”

दोलाम पास आ गया। बोला।

“तुम्हें वापस चले जाना चाहिए खुंबरी।”

“वो सोमाथ नहीं है। हमें डरने की जरूरत नहीं है।” खुंबरी बोली-“आओ उसे देखते हैं।”

तीनों उस तरफ बढ़ गए।

“वो जगमोहन हो सकता है।” धरा बोली-“या फिर डुमरा।”

“हमारे पास बटाका है। हमें डुमरा की परवाह करने की जरूरत नहीं।” खुंबरी ने कहा।

तीनों उसके पास जा पहुंचे।

“ये जगमोहन है।” धरा बोली।

जगमोहन गहरी नींद में था कि इनके पास आ जाने पर भी उसकी आंख न खुली। खुंबरी की निगाह जगमोहन पर पड़ी तो उसे देखती रह गई।

“आह, कितना खूबसूरत नौजवान है।” खुंबरी के होंठों से निकला।

धरा ने खुंबरी को फौरन देखा।

दोलाम के माथे पर बल पड़े।

“कितना मासूम, कितना अच्छा लग रहा है।” खुंबरी की नजरें जगमोहन के चेहरे पर टिकी थीं।

“ये तो सामान्य-सा इंसान है।” दोलाम कह उठा।

“मेरी नजरों से देखो दोलाम। आज तक कोई भी मुझे अच्छा नहीं लगा। परंतु ये एक ही नजर में भा गया। नाम भी कितना अच्छा है-“जगमोहन।”

कहते हुए खुंबरी जगमोहन के पास ही बैठ गई। जगमोहन का सिर थैले पर टिका था।

“तुम प्यार वाली बातें कर रही हो खुंबरी।” धरा गम्भीर स्वर में बोली।

“प्यार? हां, अमाली ने ठीक ही कहा था कि मुझे पृथ्वी के किसी आदमी से प्यार हो जाएगा।” खुंबरी ने गहरी सांस ली-“इसे देखते ही मुझे प्यार हो गया है। ये तो नजरों के जरिए मेरे दिल में जा बसा है।”

दोलाम के चेहरे पर नाराजगी के भाव उभरे।

“ये गलत बात है।” धरा बोली।

“गलत क्यों?”

“ये शक्तियों के साथ है। इसका-तेरा साथ नहीं बन सकता।”

“बन जाएगा। साथ में बना लूंगी।” खुंबरी का हाथ नींद में डूबे जगमोहन के चेहरे को छूने लगा-“ये भी मेरी तरह ताकतों का साथ देने लगेगा। मेरा प्यार इसे शक्तियों से दूर कर देगा।”

“ये खतरे वाली बात हो जाएगी।” धरा ने तेज स्वर में कहा।

“ये होना ही था।” खुंबरी के हाथ की उंगलियां जगमोहन के गालों पर फिर रही थीं-“तभी तो अमाली ने पहले ही कह दिया था। देख तो कितना अच्छा लग रहा है नींद में। मुझे तो इस पर प्यार आ रहा...”

तभी जगमोहन हड़बड़ाकर नींद से उठा और फौरन ही खड़ा हो गया। उसने हैरानी भरी निगाहों से सबको देखा और धरा को देखते ही हैरान हो गया। धरा के होंठों पर मुस्कान उभरी।

“ध-धरा।” जगमोहन के होंठों से निकला-“तुम?” उसी पल खुंबरी को बैठे देखा-“तुम-तुम खुंबरी हो?”

“हां।” खुंबरी उठते हुए कह उठी-“मैं खुंबरी हूं।”

जगमोहन खुंबरी को देखने लगा।

खुंबरी के होंठों पर दिलकश मुस्कान उभरी।

“तुम-तुम दोनों एक जैसी ही दिखती हो। पर-पर तुम बहुत खूबसूरत हो।” जगमोहन खुंबरी से बोला।

“मैं खुंबरी का रूप हूं जो धरती पर जन्म ले रहा था।” धरा बोली।

“मतलब कि असली खुंबरी ये है।” जगमोहन की निगाह खुंबरी से हट न रही थी।

“तुम ऐसा भी कह सकते हो।” धरा मुस्कराई।

“तुम बहुत खूबसूरत हो।” जगमोहन खुंबरी से बोला-“रानी ताशा से भी ज्यादा खूबसूरत।”

खुंबरी खुलकर मुस्कराई।

“अगर तुम खुंबरी न होती तो मैं तुमसे शादी कर लेता।” जगमोहन ने गहरी सांस ली।

“खुंबरी होने में क्या बुराई है जगमोहन?” खुंबरी की मुस्कान गहरी हो गई।

“तुम मेरा नाम भी जानती हो।”

“मेरी बात का जवाब दो कि मेरे खुंबरी होने में क्या बुराई है।”

“तुम बुरी ताकतों की मालिक हो। मैं तुम्हारी जान लेने आया हूं।” जगमोहन ने कहा।

“मेरी जान लेना चाहते हो। मैंने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा?”

“तुमने रानी ताशा और देवराज चौहान को अलग किया था।”

“ऐसा न करती तो मेरा सदूर पर आने का रास्ता नहीं बनता।” खुंबरी बोली-“मैंने तुम्हारा तो कुछ बुरा नहीं किया।”

“पर तुम बुरी हो।”

“कौन कहता है कि मैं बुरी हूं।” खुंबरी मुस्करा रही थी और प्यार से बात कर रही थी।

“डुमरा कहता है।”

“और तुमने डुमरा की बातों का भरोसा कर लिया। वो तो मेरा दुश्मन बना है। उल्टी बात ही बोलेगा। तुम ही कहो, क्या मैं तुम्हें बुरी लगी?”

“नहीं।”

“मैं बुरी हूं ही नहीं। मैं जैसी हूं वैसी ही दिखती हूं।” खुंबरी मुस्कराई तो निचला होंठ थोड़ा-सा टेढ़ा दिखने लगा। इससे वो और भी अच्छी दिखी।

“पर तुम बुरी ताकतें रखती हो।”

“तुम भी तो शक्तियों वाली अंगूठी पहने हो। क्या इससे तुम ज्यादा अच्छे हो गए?”

“नहीं।”

“इसी तरह बुरी ताकतों की मालकिन हूं मैं, परंतु बुरी तो नहीं हो गई। जैसे कि तुमने मुझे देखते ही शादी की बात कह दी, उसी तरह मैं भी तुम्हें देखते ही तुम्हें प्यार करने लगी। तब तुम नींद में थे। तुम मुझे अच्छे लगे।”

तभी दोलाम एक कदम आगे बढ़कर नाराजगी से कह उठा।

“महान खुंबरी। तुम कैसी बातें कर रही हो। ये डुमरा का भेजा व्यक्ति है। इसने पवित्र शक्तियों की दी अंगूठी पहन रखी है। ये हमारा दुश्मन है। इसे फौरन मारने का हुक्म दो या कैद कर लो।”

“नहीं दोलाम।” जगमोहन को देखती खुंबरी बोली-“ये मुझे प्यारा लगने लगा है।”

“ताकतों और शक्तियों का मिलना नहीं हो सकता खुंबरी।” दोलाम ने कहा।

“क्यों नहीं हो सकता। जगमोहन अंगूठी उतार देगा।” खुंबरी बोली।

“मैं अंगूठी नहीं उतारूंगा।” जगमोहन के होंठों से निकला।

“मेरे लिए भी नहीं?” खुंबरी बेहद प्यार से बोली।

“तुम मुझसे प्यार करने लगी हो?”

“सच में?”

“तो बुरी ताकतों को छोड़कर मेरे पास आ जाओ हमेशा के लिए। तुम्हारा साथ पाकर मुझे खुशी होगी। इतनी खूबसूरत खुंबरी को कौन अपनी पत्नी नहीं बनाना चाहेगा।” जगमोहन ने शांत स्वर में कहा।

“ताकतों ने ही तो मुझे जीवन दे रखा है। उन्हें कैसे छोड़ सकती हूं। जैसे तुम अंगूठी नहीं उतार रहे।”

“तुम चालाकी से मेरी अंगूठी उतार लेना चाहती हो कि दूसरों की तरह तुम मुझे भी कैद कर सको।”

“ये कैसा प्यार है तुम्हारा कि मुझ पर शक कर रहे हो।” खुंबरी बोली।

“तुम पर भरोसा नहीं मुझे।”

“प्यार भी करने को कहते हो और भरोसा भी नहीं करते।”

“खुंबरी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। तुम चालाक हो और मेरा बुरा कर सकती हो।”

“ऐसा न कहो। मैंने पहली बार किसी मर्द को पसंद किया है। एक नजर में ही तुम पसंद आ गए। मेरे बारे में गलत ख्याल अपने मन में न रखो।”

खुंबरी ने जगमोहन की तरफ हाथ बढ़ाया-“मेरा हाथ थाम लो।”

“ये तुम्हारी नई चालाकी है।”

“नहीं जगमोहन। मेरा हाथ थामने का मतलब है कि हम दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे हैं। मैंने हाथ बढ़ाया और तुमने थाम लिया। मतलब कि हम दोनों एक-दूसरे से प्यार...”

“मैंने पहले ही कहा था कि अगर तुम खुंबरी न होती तो तुमसे शादी कर लेता।” जगमोहन गम्भीर दिखा-“तुम खुंबरी हो, इसलिए मजबूर हूँ कि तुमसे प्यार नहीं कर सकता। मैं तुम्हारी जान लेने आया हूं।”

“मेरी जान लेना चाहते हो?” खुंबरी एकाएक गम्भीर हो गई।

“हां।”

“तुम्हारे हाथों जान गंवाकर मुझे चैन मिलेगा। क्योंकि तुम वो हो, जिसे मैंने पहली निगाह में पसंद कर लिया।” खुंबरी ने कहा और हाथ की उंगली से जमीन की तरफ इशारा किया।

उसी पल जमीन में लम्बा-सा खंजर धंसा दिखने लगा।

“खंजर को उठा लो।” कहने के साथ ही खुंबरी घुटनों के बल नीचे झुक गई-“खंजर से मेरी जान ले लो। मैं स्वयं तुम्हारे हाथों मरने को तैयार हूं। अगर तुम मुझसे प्यार नहीं कर सकते तो मेरी जान ले लो।” जगमोहन खुंबरी को देखता रहा।

धरा गम्भीर दिखने लगी थी।

“महान खुंबरी ये क्या कर रही हो तुम। तुम्हारी जान सिर्फ तुम्हारी नहीं, ताकतों का भी हक है तुम्हारी जान पर। तुम्हें कुछ हो गया तो ताकतों का ध्यान कौन रखेगा। उठ जाओ, ऐसा मत करो।”

“ताकतों के साथ मेरा ये रूप रहेगा।” खुंबरी ने धरा की तरफ इशारा किया।

“परंतु तुम्हारी हरकत गलत है।” दोलाम गुस्से से कह उठा-“पांच सौ सालों तक मैंने तुम्हारे शरीर की देखभाल की। इसलिए नहीं की कि इस तरह अपनी जान गंवा दो। ताकतों को तुम्हारी ये हरकत कभी पसंद नहीं आएगी।”

“दोलाम।” धरा ने तीखी नजरों से दोलाम को देखा-“तुम जरूरत से ज्यादा आगे बढ़ रहे हो।”

“लेकिन ये सब...”

“इसे कुछ हो गया तो मैं हूं। इन बातों में तेरे बोलने की आवश्यकता नहीं है।” धरा ने कहा।

“क्या मेरा कोई अधिकार नहीं बनता?” दोलाम ने धरा को आंखें सिकोड़कर देखा।

“नहीं बनता। ये मेरा मामला है। मेरी जिंदगी है। तूने जो सेवा की, उसका फायदा तेरे को मिल जाएगा।”

दोलाम ने होंठ भींच लिए।

धरा ने जगमोहन को देखा, जो एकटक खुंबरी को देख रहा था।

“उठाओ खंजर और मुझे मार दो।”

“तुम सब इस तरह की बातें करके मुझे भटका रहे हो। दोती और टोमाथ भी ऐसी बातें करने लगते थे कि मेरे मस्तिष्क पर प्रभाव पड़े।” जगमोहन बोला-“मैं तुम लोगों की बातों में नहीं फंसने वाला।”

“मैं तुमसे खंजर उठाने को कह रही हूं।” खुंबरी बोली-“उस

पुरुष के हाथों, मुझे मरने में खुशी होगी, जो पहली ही नजर में मुझे अच्छा लगा। तुम बेहिचक मेरी जान ले सकते हो। खुंबरी पर डुमरा काबू नहीं पा सका। उसकी शक्तियां काबू नहीं पा सकीं, परंतु जिसे एक ही नजर में मैंने चाहा, उसने खुंबरी पर काबू पा लिया। मैं तुम्हारे ‘बस’ में हूं। तुम मेरे साथ जो चाहो कर सकते हो। कसम से खुंबरी के होंठों से ‘उफ’ नहीं निकलेगी।”

जगमोहन की निगाह खुंबरी के खूबसूरत चेहरे पर थी।

“सोचो मत जगमोहन। मैं तुम्हें बेहतरीन अवसर दे रही हूं। मेरी जान ले लो।” खुंबरी बोली।

जगमोहन ने उसी पल झुककर खंजर उठा लिया।

“जाने क्यों, तुम्हारी जान लेने का मन नहीं कर रहा।” जगमोहन बेचैन स्वर में बोला।

“तुम मेरी जान लेने आए हो।” खुंबरी ने कहा।

“हां।” जगमोहन के होंठ भिंच गए।

“तो फिर सोचना कैसा।” खुंबरी मुस्कराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

जगमोहन खंजर थामे खुंबरी की तरफ बढ़ा।

उसी पल दोती की आवाज उभरी।

“महान खुंबरी। मैं दोती हूं। ओहारा ने मुझे आपके पास भेजा है। ओहारा कहता है कि ऐसा करके आप भूल कर रही हैं। ये डुमरा का भेजा इंसान है। इसके साथ प्यार करना गुनाह है।”

“गुनाह तो खुंबरी से हो चुका है।”

दोती दस कदमों के फासले पर खड़ी दिखी।

“ओहारा ने आपको ये कदम उठाने को मना किया है।” दोती ने पुनः कहा।

“ओहारा मुझे नहीं रोक सकता। अपनी मालिक मैं खुद हूं।” खुंबरी बोली।

“परंतु ओहारा...” दोती ने कहना चाहा।

“तुम जाओ।” धरा गम्भीर स्वर में कह उठी-“ओहारा से कहो डुमरा को मारने की सोचे।”

दोती उसी पल गायब हो गई।

दोलाम नाराजगी से भरी तीखी नजरों से खुंबरी को देख रहा था।

“जगमोहन।” धरा बोली-“ये मत भूलना कि खुंबरी तुम्हें दिल दे बैठी है। ऐसा न होता तो वो तुम्हारे सामने झुकी न होती।”

“ये बुरी ताकतें छोड़ दे तो मैं इससे शादी कर लूंगा।” जगमोहन ने व्याकुल स्वर में कहा।

खुंबरी मुस्कराई तो निचला होंठ टेढ़ा हो गया। वो अभी तक घुटनों के बल बैठी थी।

“खुंबरी अपनी जान तो दे सकती है, लेकिन ताकतों को दूर नहीं कर सकती।” धरा बोली।

“क्यों?” जगमोहन ने धरा को देखा।

“क्योंकि मुझे ताकतों से प्यार है।” धरा ने कहा-“ताकतों के बिना जीने की मैं सोच भी नहीं सकती।”

जगमोहन ने कदम उठाया और खुंबरी के पास जा पहुंचा।

“तुम्हारे हाथों मरकर मुझे बहुत खुशी होगी।” खुंबरी ने कहा और दायां हाथ बढ़ाकर कहा-“मेरा हाथ थाम लो।”

“क्यों?”

“क्योंकि मुझे याद रहे कि जब मेरी जान निकली तो मेरा प्यार मेरे पास था।”

जगमोहन ने खुंबरी का हाथ थाम लिया।

खुंबरी ने प्यार भरी निगाहों से जगमोहन को देखा और मुस्कराकर बोली।

“विदा मेरे प्यारे जगमोहन। हम दोबारा जन्म लेने पर मिलेंगे। तब हम एक साथ रहेंगे।”

जगमोहन का खंजर वाला हाथ ऊपर उठा।

खुंबरी जगमोहन की आंखों में आंखों डाले घुटने के बल बैठी थी।

एकाएक विचलित हो उठा जगमोहन और खंजर एक तरफ फेंकते, होंठ भींचे कह उठा।

“मैं तुम्हारी जान नहीं ले सकता।” धरा मुस्करा पड़ी।

जबकि दोलाम की नजरों में कहर के भाव आ गए।

“रुक क्यों गए जगमोहन।” खुंबरी गम्भीर स्वर में बोली।

“मैं-मैं तुम्हें नहीं मार सकता खुंबरी।”

“क्यों?” खुंबरी उठ खड़ी हुई। वो गम्भीर दिख रही थी।

“शायद-शायद मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं। पहली नजर में ही तुम्हें प्यार कर बैठा।” जगमोहन बेचैनी से बोला।

“हम दोनों ने ही प्यार का इम्तिहान दे दिया। मैं जान देने को तैयार थी और तुमने खंजर उठाकर भी मेरी जान नहीं ली। ये हम दोनों का ही प्यार है। अब तुम्हें भरोसा हो गया होगा कि...”

“मुझे मालूम है मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं।” जगमोहन ने गहरी सांस ली।

“इसी तरह मुझे भी तुमसे प्यार हो गया है। ये हम दोनों के भाग्य में लिखा था कि जब भी हम सामने पड़ेंगे एक-दूसरे से प्यार कर बैठेंगे। वो ही हुआ। हमें इसी पल एक-दूसरे का हो जाना चाहिए।”

“मैं तुमसे शादी करने को तैयार हूं।” जगमोहन शांत स्वर में बोला-“तुम्हें मेरे लिए ताकतें छोड़ देनी होंगी।”

“ताकतों को जुदा नहीं कर सकती अपने से। तुम मेरे साथ रहो, मैं तुम्हारे साथ रहूंगी। जैसा हमारा प्यार होगा, वैसा ही आने वाले वक्त में हो जाएगा। अब तो तुम मुझे और भी प्यारे लगने लगे हो। चाहो तो अपनी अंगूठी उतार सकते हो।”

“तुम ताकतें नहीं छोड़ रहीं और मेरी अंगूठी उतरवाना चाहती हो।”

“ठीक है। मत उतारो। मैं तुम्हें मजबूर नहीं करूंगी। वो प्यार ही क्या जिसमें शर्ते लागू हों।” खुंबरी मुस्कराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा-सा दिखने लगा-“हम एक साथ रहेंगे। बाकी जो वक्त को मंजूर होगा, वो ही हमें मंजूर होगा। हो सकता है तुम ताकतों के साथ ही मुझे स्वीकार कर लो। खुंबरी का प्यार तुम पर भारी पड़ जाए।”

“या तुम ताकतें छोड़ दो। साधारण बनकर जीवन-भर मेरे साथ रहो।” जगमोहन भी मुस्कराया-“मुझे अपने प्यार पर पूरा भरोसा है कि मैं तुम्हें राह पर ले आऊंगा।”

“ये सम्भव नहीं कि मैं ताकतों को अपने से अलग कर दूं।” खुंबरी ने गम्भीर स्वर में कहा।

“क्या तुम्हें आने वाले वक्त के बारे में पता है? जगमोहन मुस्कराया।

“नहीं और तुम्हें भी नहीं पता जगमोहन।” एकाएक खुंबरी ने सिर को झटका दिया-“देखते हैं भविष्य में क्या छिपा है।”

“तुम्हारी ताकतें तुम्हें भविष्य के बारे में बता सकती हैं।” जगमोहन ने कहा।

“प्यार के मामले में मैं भविष्य को नहीं जानूंगी।” कहते हुए खुंबरी ने गले में मौजूद बटाका थामकर कहा-“ढोला।”

“हां खुंबरी?”

“सबसे कह दो कि मेरे और जगमोहन के प्यार के भविष्य में झांकने का प्रयत्न न करें। ये मेरा हुक्म है।”

“ठीक है खुंबरी।” ढोला की आवाज उभरी।

खुंबरी ने बटाका छोड़ा और मुस्कराकर जगमोहन को देखा।

जगमोहन भी मुस्कराया।

दोनों आगे बढ़े और एक-दूसरे की बांहों में समा गए।

दोलाम ने होंठ भींचकर मुंह फेर लिया जबकि धरा के होंठों पर मीठी मुस्कान उभरी। देखते-ही-देखते जगमोहन और खुंबरी के होंठ सट गए। दोनों ने किस की और जगमोहन हंसकर अलग होता बोला।

“मुझे हैरानी है कि खुंबरी से मुझे प्यार हो गया है।”

“सच में।” खुंबरी हंसी-“मैं भी हैरान हूं कि मुझे किसी से प्यार हो गया है। मैंने आज तक प्यार नहीं किया। किसी को बांहों में नहीं लिया न ही कोई बांहें फैलाकर मेरे सामने आया। ये बातें मुझे अच्छी नहीं लगती थीं और अब तुम्हें देखते ही प्यार अच्छा लगने लगा। ये चमत्कार नहीं तो और क्या है। अब तुम मेरे साथ, मेरी जगह पर रहोगे।”

“तुम्हारी जगह पर?”

“ऐतराज है?” खुंबरी ने निगाहें टेढ़ी करके जगमोहन को देखा।

“नहीं तो, पर मैं तुम्हें पृथ्वी पर ले जाने की सोच रहा हूं।” जगमोहन ने कहा।

“मेरे साथ तुम्हें इतना अच्छा लगेगा कि तुम पृथ्वी को भूल जाओगे।” खुंबरी ने जगमोहन का हाथ थाम लिया-“डुमरा की मौत के बाद, मेरे कदम पुनः सदूर की रानी बनने की तरफ बढ़ेंगे। मेरा जगमोहन सदूर का राजा बनेगा। हम मजे में रहेंगे।”

“अगर मुझे तुम्हारे साथ यहां अच्छा न लगा तो?”

“मेरे साथ रहकर तो देखो। इसमें मेरा प्यार भी शामिल होगा। अभी तुमने मेरा प्यार देखा ही कहां है। हमने एक-दूसरे को जानना है, बहुत बातें करनी हैं। तुम्हारी खुंबरी बहुत अच्छी है, जल्दी ही ये बातें तुम्हें पता चल जाएंगी।”

“खुंबरी।” जगमोहन के चेहरे पर प्यार ही प्यार छलक रहा था।

खुंबरी जगमोहन का हाथ थामे, धरा से कह उठी।

“तेरे को जगमोहन पसंद आया?”

“क्यों न पसंद आएगा।” धरा ने खुशी से कहा।

“जगमोहन।” खुंबरी दोलाम की तरफ पलटते कह उठी-“ये मेरा सबसे खास सेवक है। दोलाम नाम है इसका। पांच सौ सालों तक इसने मेरा शरीर संभाले रखा। इंसानी रूप में एकमात्र मेरा ये ही सेवक है। सेवक तो और भी बहुत हैं, परंतु दोलाम जैसा सेवक मिलना बहुत कठिन है। मैंने अभी अपनी ताकतों को इशारा नहीं किया, वरना ताकतें इंसानी सेवकों की भीड़ लगा देती। सबसे पहले मैं डुमरा की मौत चाहती हूं। श्राप का बदला, उसे अपनी जान देकर गंवाना होगा।”

जगमोहन ने मुस्कराकर दोलाम को देखा।

दोलाम जबरन अपने चेहरे पर मुस्कान लाया और बोला।

“महान खुंबरी। मैं सिर्फ तुम्हारा सेवक ही बनकर रहना चाहता हूं। किसी और की सेवा करना कठिन होगा। आदत नहीं है किसी अन्य का हुक्म सुनने की। मेरी बात पसंद न आए तो क्षमा चाहूंगा।”

“ठीक है दोलाम। तुम मेरा ही हुक्म मानना।”

दोलाम शांत खड़ा रहा।

खुंबरी और जगमोहन ने एक-दूसरे का हाथ थाम रखा था।

“आओ जगमोहन।” खुंबरी ने कहा-“अपनी जगह पर चलते हैं। तुम देखोगे कि मैं कहां रहती हूं। अचरज हो रहा है कि जब मैं वहां से बाहर निकली थी तो सोचा भी नहीं था कि अपने प्यार के साथ, वापस आऊंगी।”

“मैंने भी नहीं सोचा था कि सदूर ग्रह पर खुंबरी से मुझे प्यार हो जाएगा।” जगमोहन ने खुंबरी का खूबसूरत चेहरा देखते हुए कहा।

दोनों वापस चल पड़े।

धरा उनके पीछे चली तो सबसे पीछे दोलाम।

दोलाम के चेहरे पर जहान भर की नाराजगी ठहरी नजर आ रही थी। वो नापसंदगी भरी निगाहों से जगमोहन की पीठ को देख रहा था फिर उसकी क्रोध भरी निगाह खुंबरी की पीठ पर जा टिकी।

qqq

डुमरा के गले में पड़ा लॉकेट गर्म जैसा हो गया तो डुमरा ने तुरंत अपने कदम रोके और थैला नीचे रखकर उसमें से कांटेदार बाल निकाली और उसका एक कांटा तोड़कर सामने फेंक दिया। ऐसा करते ही लॉकेट से निकलने वाली गर्मी समाप्त हो गई और महीन-सी आवाज उसके कानों में पड़ी।

“मैं हाजिर हूं।”

“नाम क्या है तेरा?”

“टोजा। वो ही धीमी-पतली आवाज पुनः उभरी।

“अभी-अभी कोई नई बात हुई है। उसके बारे में बता।” डुमरा ने कहा।

“जगमोहन और खुंबरी में प्यार हो गया है।”

“प्यार हो गया है। ये कैसे सम्भव हुआ?”

“दोनों ने एक-दूसरे को देखा और चाहने लगे।” वो ही महीन आवाज कानों में पड़ी।

डुमरा के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।

“जगमोहन ने खुंबरी की जान नहीं ली। ऐसा कैसे हो गया?” डुमरा के माथे पर बल दिखने लगे थे।

“खुंबरी ने जगमोहन को मौका दिया कि उसे मार दे। परंतु जगमोहन को खुंबरी अच्छी लगी। उसने खुंबरी को नहीं मारा।”

“ये क्या कर दिया उस बेवकूफ ने। तू जा।” डुमरा ने कहा और लॉकेट मुट्ठी में दबाकर बोला-“वजू।”

“बोल डुमरा।” वजू की धीमी आवाज कान के पास सुनाई दी।

“जगमोहन खुंबरी से प्यार कर बैठा है।”

“ये तो होना ही था। मैंने तुझे पहले ही बता दिया था।” वजू का शांत स्वर कानों में पड़ा।

“खुंबरी को भी उससे प्यार हुआ है?”

“दोनों ही प्यार की राह पर चल पड़े हैं।”

“ताकतें खुंबरी को ऐसा करने से रोक देंगी। तब जगमोहन का क्या होगा?”

“ताकतें खुंबरी के अधीन हैं। वो खुंबरी को ऐसा आदेश नहीं दे सकतीं। उसके व्यक्तित्व में होने वाली हलचल में दखल नहीं दे सकतीं। ये खुंबरी का व्यक्तिगत मामला है। जरूरत पड़ने पर ताकतें खुंबरी से बात अवश्य कर सकती हैं।”

“अब जगमोहन कहां है?”

“खुंबरी की जगह पर। वो उसे अपने साथ ले गई है।”

“तुम जगह के बारे में जानते हो?”

“नहीं। वहां ताकतों के काले साये फैले हैं। लेकिन घटनाएं हमें देखने को मिल जाती हैं।”

“जगमोहन ने अंगूठी उतार दी है?”

“वो जगमोहन के हाथ की उंगली में है।” वजू की धीमी आवाज उसके कान में पड़ रही थी।

“जगमोहन, खुंबरी के साथ कोई चाल खेल रहा है?”

“उसे सच में खुंबरी बहुत अच्छी लगी है। उसने खुंबरी को बुरी ताकतें छोड़ देने को कहा, परंतु खुंबरी ने इस बात को आने वाले वक्त के हवाले करने को कह दिया और ताकतों को हुक्म दिया है कि उसके प्यार के भविष्य में न झांका जाए।”

“तुम तो भविष्य में झांक सकते हो कि इनके प्यार का क्या अंजाम होगा।”

“जगमोहन अब खुंबरी से जुड़ गया है और खुंबरी के भविष्य में हम नहीं झांक सकते।” वजू का स्वर सुनाई दिया।

“इसका मतलब, जो लोग भी जंगल में आए थे सोमाथ को छोड़कर, सब खुंबरी के पास पहुंच गए।”

“हां।”

“क्या खुंबरी जगमोहन के साथ चाल खेल रही है?” डुमरा ने पूछा।

“वो जगमोहन से सच्चा प्यार करने लगी है। इसमें कोई भी चाल नहीं है।”

“मुझे समझ में नहीं आता कि ये सब क्या हो रहा है।” डुमरा गम्भीर था-“अब मुझे क्या करना चाहिए?”

“जो तुम्हें ठीक लगे, वो ही करो।”

“तुम मुझे सलाह दो।”

“ये काम तुमने ही पूरा करना है। तुम जो कहोगे, हम वो कर देंगे। परंतु सब कुछ तुमने ही करना है।”

“ये तो गलत है, कम-से-कम मुझे सलाह तो मिलनी चाहिए।” डुमरा नाराजगी से कह उठा।

वजू की आवाज नहीं आई।

“वजू।” डुमरा ने पुकारा।

कोई जवाब नहीं मिला।

डुमरा ने लॉकेट छोड़ा और बड़बड़ा उठा।

“शक्तियां इस बारे में दृढ़ निश्चय कर चुकी हैं कि खुंबरी के मामले में मेरी सहायता नहीं करेंगी।”

“तो क्या अब तुम यहां से वापस जाओगे?” तोखा कानों के पास बोला।

“कभी नहीं।” डुमरा ने पक्के स्वर में कहा-“मैं उन लोगों को खुंबरी के पास छोड़कर नहीं जा सकता।”

“तुम पर अब जबर्दस्त वार होंगे। मुकाबला कर सकोगे ताकतों का।”

“करना ही होगा। ताकतें डुमरा को आसानी से नहीं मार सकतीं। अगर जगमोहन प्यार में न पड़ता तो खुंबरी की जान ले सकता था। जगमोहन ने गलत किया। वो खुंबरी की जान ले लेता तो ताकतें अकेली रह जातीं। उन्हें संभालने वाला कोई न रहता।”

“अब क्या होगा?” तोखा का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा।

“पता नहीं।” डुमरा ने सोच भरे गम्भीर स्वर में कहा-“पर मैं इसी तरह खुंबरी की जगह तलाश करता रहूंगा। अब या तो मेरी जान जाएगी या खुंबरी की। खुंबरी को मेरे सामने आना ही होगा।”
 

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दोलाम कमर पर हाथ बांधे एक कमरे में टहल रहा था। इधर से उधर चक्कर काट रहा था। उसका चेहरा गुस्से से भरा हुआ था। बार-बार वो होंठों को भींच लेता। उसके चेहरे से ही लग रहा था कि वो पागल हुआ पड़ा है। एकाएक वो ठिठका और कुर्सी पर बैठ गया फिर बड़बड़ाया।

“मैं ये नहीं होने दूंगा। खुंबरी इस तरह किसी और को नहीं चाह सकती। मैंने पांच सौ सालों तक खुंबरी के शरीर की देखभाल इसलिए नहीं की कि वापस आने पर वो अपना शरीर किसी और के हवाले कर दे। खुंबरी को प्यार करना ही था तो मुझसे करती। मेरे में क्या कमी है। मैं खुंबरी के काबिल हूं। पृथ्वी से आए मर्द के हवाले कर दिया खुद को। ये बात मुझे जरा भी अच्छी नहीं लगी। ये तूने ठीक नहीं किया खुंबरी। इससे मेरे अहम को बहुत बड़ी चोट लगी है।”

दहकने लगा था दोलाम का चेहरा।

वो पुनः उठा और टहलने लगा।

“मैं ये नहीं होने दूंगा। खुंबरी से स्पष्ट बात करनी होगी। वो मेरे साथ इस तरह का अन्याय नहीं कर सकती।” दोलाम पुनः बड़बड़ाया और कमरे से बाहर निकलकर आगे बढ़ता चला गया। उसके कदम तेजी से उठ रहे थे।

कई रास्तों को पार करने के बाद वो एक कमरे के सामने पहुंचा। कमरे का दरवाजा बंद था। दोलाम उस दरवाजे को घूरने लगा कि तभी भीतर से खुंबरी और जगमोहन की खिलखिलाहट, पिघले शीशे की तरह दोलाम के कानों से टकराई।

“खुंबरी खुद को उसके हवाले कर चुकी है। प्यार का स्वाद चख लिया है खुंबरी ने।” दोलाम दांत भींचकर बड़बड़ाया-“जिस शरीर का मैंने पांच सौ सालों तक ध्यान रखा, वो किसी और को सौंप दिया जबकि हक मेरा था। खुंबरी को ऐसा नहीं करना चाहिए था। सेवा मैंने की और इनाम दूसरा ले गया। ये तूने क्या कर दिया खुंबरी।” इसके साथ ही दोलाम पांव पटकने के अंदाज में वहां से वापस चल पड़ा-“इसका अंजाम तो अब तुझे भुगतना ही होगा महान खुंबरी।” खतरनाक स्वर दोलाम के होंठों से निकला।

खुंबरी ने हंसी रोकी और बांह फैलाकर जगमोहन को अपने साथ सटा लिया। दोनों एक बड़े पलंग पर एक-दूसरे से लिपटे हुए थे। कपड़े के नाम पर उनके शरीर पर कुछ नहीं था।

“तुमने मुझे कितना मजा दिया जगमोहन।” खुंबरी की आवाज मस्ती में डूबी थी-“आज पहली बार मैंने जाना कि मर्द का प्यार कैसा होता है। तुमने मुझे ऐसी दुनिया की सैर करा दी, जिसके बारे में मैं सुना करती थी। आज मैंने जाना कि प्यार क्या होता है और लोग क्यों प्यार करने में अपना जीवन लगा देते हैं। तुम्हारे साथ मैंने अब नई जिंदगी की शुरुआत की है। आज से पहले तो मैं जैसे बे-मतलब-सी जिंदगी जिया करती थी। तुमने मुझे आज नए सुख से परिचित कराया। शुक्रिया तुम्हारा।”

“तेरे को प्यार करना अच्छा लगा।” जगमोहन उसके बालों की लटों से खेलता कह उठा-“ये जानकर मुझे खुशी हुई।”

“प्यार करना कितना प्यारा होता है।”

“हां खुंबरी। प्यार से इंसान को एक नई शक्ति मिलती है। जीने का उत्साह मिलता है।”

“मैंने पहले कभी प्यार नहीं किया था। ये शरीर तो जैसे तुम्हारे लिए संभाले रखा था मैंने। अपने जगमोहन के लिए।”

“खुंबरी।” जगमोहन का स्वर कांपा।

“जगमोहन।”

दोनों पुनः एक-दूसरे से लिपट गए।

“कितना अच्छा लगता है।” खुंबरी प्यार में डूबी कह उठी।

“मुझे भी तुम्हारा साथ पाकर बहुत अच्छा लग रहा है। मैं तुमसे शादी करूंगा खुंबरी।”

“तुमसे शादी करके मुझे अच्छा लगेगा। तुम सदूर के राजा बनोगे जगमोहन।”

“लेकिन मैं तुम्हें वापस पृथ्वी ग्रह पर ले जाना चाहता हूं।” जगमोहन प्यार से बोला।

“नहीं जगमोहन। पृथ्वी पर जाकर मैं क्या करूंगी। यहां मेरे पास सब कुछ है, मैं...”

“पृथ्वी पर मेरे पास सब कुछ है। बहुत दौलत है। वहां तुम रानी बनकर रहोगी।”

“पर मेरी ताकतें तो...”

“उन्हें छोड़ दो।”

“ये क्या कह रहे हो?”

“ताकतों को छोड़ दो खुंबरी। मेरे लिए छोड़ दो। हम दोनों की जिंदगी प्यार में बहुत अच्छी बीतेगी।”

खुंबरी एकाएक उठ बैठी।

“क्या हुआ?” जगमोहन ने पूछा।

“जितना प्यार मैं तुमसे करने लगी हूं उतना ही प्यार मैं ताकतों से करती हूं। तुम्हारी तरह, ताकतें भी मेरी जान का हिस्सा हैं।”

“अब तुम्हें जीने के लिए ताकतों की जरूरत नहीं। मैं तुम्हारी ताकत हूं। प्यार में बहुत ताकत होती है।”

“ताकतों के बिना मैं खुद को अधूरा महसूस करती हूं।” खुंबरी गम्भीर दिखने लगी-“वो तो...”

“मेरी खातिर तुम ताकतों को नहीं छोड़ सकती?”

“ताकतों की खातिर अब मैं तुम्हें भी नहीं छोड़ सकती जगमोहन। हर चीज अपनी जगह ठीक है।”

“ये कहकर तुम मेरा दिल तोड़ रही हो।”

खुंबरी मुस्कराई और गर्दन घुमाकर जगमोहन को देखा। निचला होंठ टेढ़ा दिखने लगा।

“अपने जगमोहन का दिल तोड़ने से पहले खुंबरी की जान न निकल जाए।”

“ऐसी बुरी बात मत कहो।”

“तुम क्या जानो कि मेरी नजरों में तुम क्या हो। मेरे राजा हो। मेरी जान हो। खुंबरी की धड़कन तुममें बसने लगी है। मैंने पहली बार किसी से प्यार किया है। खुंबरी का प्यार थोड़े वक्त के लिए नहीं है। तुम्हें देखते ही मैं तुम पर मर मिटी थी। तुम मेरे लिए कीमती हो।”

“तुम भी तो मेरे लिए बेशकीमती हो खुंबरी। मैं भी तुम पर मर मिटा हूं।”

“मुझे ऐसे ही प्यार करोगे न?”

“हां खुंबरी। हम दोनों ही एक-दूसरे को ऐसे ही प्यार करेंगे। हम प्यार की राहें दूर तक तय करेंगे।”

“तुम कितने अच्छे हो जगमोहन।” खुंबरी पुनः जगमोहन से जा लिपटी।

“अपने अच्छे जगमोहन के लिए तुम ताकतें नहीं छोड़ सकतीं।” जगमोहन ने प्यार से कहा।

खुंबरी पुनः अलग होकर जगमोहन को देखने लगी।

“तुम्हें ताकतें परेशान कर रही हैं?”

“मुझे? नहीं तो।”

“तो अभी ताकतें छोड़ने को क्यों कहते हो। मैं उन्हें नहीं छोड़ सकती, जैसे कि अब तुम्हें नहीं छोड़ सकती।” खुंबरी गम्भीर हो गई।

“मेरा ये मतलब नहीं कि तुम अभी जवाब दो। सोच लो कि...”

“इस बारे में मुझे सोचना भी नहीं है।”

“छोड़ो। मैं प्यार का मजा खराब नहीं करना चाहता। आओ, एक बार फिर मेरी बांहों में आ जाओ। हम फिर प्यार करेंगे।”

खुंबरी उसी पल जगमोहन के शरीर से लिपटती चली गई।

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खुंबरी और जगमोहन एक कमरे में बैठे खाना खा रहे थे। टेबल पर ढेर सारे व्यंजन मौजूद थे। लगता था जैसे दावत हो रही हो। परंतु खाने वाले दो ही थे। कुछ कदमों के फासले पर सेवक की भांति खड़ा दोलाम सुलगती आंखों से खुंबरी और जगमोहन को देख रहा था। परंतु वे दोनों इस बात से अंजान थे।

“इतना बढ़िया खाना दोलाम ने बनाया है?” जगमोहन ने खुंबरी से पूछा।

“मेरे लिए खाना ताकतें लाकर देती हैं।” खुंबरी ने बताया।

“वो कैसे?”

“मेरी ताकतें हमेशा मेरे आस-पास नजर रखती हैं कि खुंबरी को किसी चीज की जरूरत तो नहीं। जब मैंने दोलाम से खाने के लिए कहा तो, खाने का एक खास कमरा है, जहां बर्तन मौजूद रहते हैं, मेरी इच्छा होते ही वो खाने से भर जाते हैं।”

“ये तो अच्छी बात है।”

“तुम देखोगे कि ताकतों का कितना फायदा है। वो मेरा कितना ध्यान रखती हैं।” खुंबरी खाते-खाते मुस्कराई-“जल्दी ही तुम भी ताकतों को चाहने लगोगे। एक बार ताकतों के साथ जीने की आदत पड़ जाए तो फिर उनके बिना जीने में मजा नहीं आता।”

जगमोहन ने मुस्कराकर खुंबरी को देखा।

“आज मैं अपनी ताकतों की वजह से ही जिंदा हूं। डुमरा ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी कि मेरा वजूद खत्म कर सके। परंतु ताकतों ने मुझे बचाया। बचाया ही नहीं, वापस सदूर तक फिर ले आई मुझे।”

“मैं अभी ताकतों के बारे में ज्यादा नहीं जानता।”

“अब तुम मेरे साथ रहोगे ही, तो सब जानते चले जाओगे।” खुंबरी ने मुस्कराकर कहा।

दोलाम होंठ भींचे शांत खड़ा था।

तभी धरा ने वहां प्रवेश करते हुए कहा।

“अमाली से बात करो। तुमसे बात करने के लिए मुझे तंग कर रही है।”

“बोल अमाली।” खुंबरी कह उठी।

उसी पल खुंबरी के कानों के पास अमाली की आवाज उभरी।

“मेरी बात सही निकली न कि तुझे पृथ्वी से आए मर्द के साथ प्यार हो जाएगा।”

“हां।” खुंबरी मुस्कराई-“सच में तूने सही कहा था।”

“कैसा है तेरा सपनों का राजा?”

“बहुत अच्छा।”

“प्यार करके मजा आया?”

“बहुत।” कहते हुए खुंबरी ने जगमोहन पर नजर मारी।

जगमोहन मुस्कराया।

धरा हौले-से हंस पड़ी।

जबकि दोलाम के तन-बदन में आग लग गई। उसके होंठ और भी भिंच गए।

“वो तो तेरे को देखकर ही पता चल रहा है कि खुंबरी मस्ती में है। एक बात तो बता तूने सबको रोका क्यों कि तेरे प्यार का भविष्य कोई न देखे। ऐसा हुक्म देने की जरूरत क्या थी। ये बात मुझे तो अच्छी नहीं लगी।”

“मेरे और जगमोहन के प्यार का भविष्य देखने की कोई जरूरत है ही नहीं। हम एक-दूसरे को चाहते हैं, क्यों जगमोहन।”

“सच्चे मन से चाहते हैं।” जगमोहन बोला।

“वो तो ठीक है खुंबरी। पर मुझे प्यार का भविष्य देखने दे। अगर कहीं थोड़ी-बहुत ऊंच-नीच हुई तो मैं ठीक कर दूंगी।”

“नहीं अमाली। मेरे और जगमोहन का प्यार ठीक चलेगा। कोई ऊंच-नीच नहीं होगी। मुझे जगमोहन पर पूरा भरोसा है।”

बातें सुनता दोलाम मन-ही-मन सुलग रहा था।

“वक्त का कुछ पता नहीं चलता महान खुंबरी। तू कहे तो तेरे प्यार के रास्ते पर एक नजर डाल लूं?”

“बिल्कुल नहीं। मुझे जगमोहन पर पूरा भरोसा है।”

“जो तेरी इच्छा। मैं तो तेरे भले के लिए कह रही थी।” अमाली की आवाज कान के पास उभरी।

“अब तू जा।”

“हां-हां अब तेरे पास फुर्सत ही कहां है मेरे से बात करने की। नया-नया मर्द का प्यार जो मिल गया है।”

खुंबरी मुस्कराई। फिर अमाली की आवाज नहीं आई।

“तू भी खाना खा ले।” खुंबरी ने धरा से कहा।

“अभी मन नहीं है।” धरा ने कहा फिर जगमोहन से बोली-“ये बात मुझे नहीं पता थी कि खुंबरी तेरे को दिल दे बैठेगी।”

“मैंने भी नहीं सोचा था कि खुंबरी से मुझे प्यार हो जाएगा।” जगमोहन मुस्कराया।

“अब दिल लगा के रखना इसका।” धरा शरारत भरे स्वर में कह उठी।

“मुझे अपना काम करना अच्छी तरह आता है।” जगमोहन ने प्यार भरी नजरों से खुंबरी को देखा।

“मर्दो पर पूरा भरोसा नहीं करते।” धरा ने हंसकर खुंबरी से कहा।

“इस मर्द पर मुझे पूरा भरोसा है।” खुंबरी के चेहरे पर मधुर मुस्कान थी-“दोलाम।”

“हुक्म।” दोलाम अपने मन के भावों को दबाकर फौरन बोला।

“पानी खत्म हो गया, तेरा ध्यान अपने काम की तरफ नहीं है क्या?”

दोलाम फौरन बाहर निकल गया।

“खुंबरी।” जगमोहन बोला-“मेरे साथी किधर हैं?”

“वो सब कैद में हैं।” खुंबरी ने जगमोहन को देखा।

“मैं उनसे मिलना चाहता हूं।”

“जरूर जगमोहन। हम अभी खाना खाकर उसी तरफ चलते हैं।”

तभी दोलाम पानी ले आया।

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खुंबरी और जगमोहन एक साथ आगे बढ़ रहे थे। धरा और दोलाम उनके पीछे थे। कई रास्तों को पार करके वे एक लम्बे रास्ते पर चलने लगे थे। कुछ देर चलते रहने के बाद बाईं तरफ एक दरवाजे जैसी खाली जगह नजर आई तो खुंबरी जगमोहन के साथ उस खुले दरवाजे के भीतर प्रवेश कर गई।

पीछे-पीछे धरा और दोलाम भी आ गए।

भीतर प्रवेश करते ही जगमोहन ठिठका। चेहरे पर रौनक आ गई।

ये एक बहुत बड़ा हाल कमरा था। कई पलंग बिछे हुए थे और बैठने के लिए कुर्सियां भी थीं। देवराज चौहान, मोना चौधरी, बबूसा, नगीना, रानी ताशा, सोमारा सब यहां मौजूद थे। कोई पलंग पर लेटा था तो कोई कुर्सियों पर बैठा था। सब ठीक हालत में था। जगमोहन तेजी से उन सबकी तरफ लपका।

“मुझे तुम सबकी चिंता हो रही थी।”

“तुम यहां।” मोना चौधरी ने कहा और खुंबरी, धरा और दोलाम को देखने लगी।

जगमोहन देवराज चौहान के पास पहुंचा।

“तुम ठीक हो न?”

“हां।” देवराज चौहान ने कुछ कदमों दूर खुंबरी पर निगाह मारकर कहा-“मुझे तो तुम्हारी चिंता हो रही थी।”

“मैं ठीक हूं।”

बाकी सब भी पास आ पहुंचे थे।

“पर तुम इन लोगों के साथ...?”

“ये खुंबरी है।” जगमोहन ने प्रसन्नता भरे लहजे में कहा-“वो दोलाम सेवक है। धरा को तो तुम सब पहचानते ही हो।”

“तुम इन लोगों के साथ कैसे?”

“मुझे खुंबरी से प्यार हो गया है।” जगमोहन ने खुशी भरे लहजे में कहा-“खुंबरी भी मुझे प्यार करने लगी है। हम...”

तभी रानी ताशा दांत पीसकर खुंबरी की तरफ दौड़ी, उस पर झपटने के लिए।

“मैं तेरी जान ले लूंगी खुंबरी। तूने मुझे मेरे देव से अलग किया...”

रानी ताशा अपनी बात पूरी न कर सकी और इस तरह लड़खड़ाकर नीचे जा गिरी, जैसे पांवों में कुछ अटक गया हो। जबकि वहां कुछ भी नहीं था। रानी ताशा के होंठों से कराह निकल गई।

खुंबरी के चेहरे पर जहरीले भाव उभरे और रानी ताशा से कह उठी।

“दोबारा मुझ पर झपटने की कोशिश मत करना। तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। अपनी जान की फिक्र करो।”

रानी ताशा ने उठने की कोशिश की, परंतु वो हिल भी न सकी। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे फर्श पर ही दबा रखा हो। वो मन-ही-मन छटपटाकर रह गई।

“खुंबरी हमारी दुश्मन है जगमोहन।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला-“और तुम उससे प्यार करने...”

“डुमरा ने कहा था कि हममें से किसी को खुंबरी से प्यार होगा। उसने सच कहा था। खुंबरी बहुत अच्छी है, तुम उसे ठीक से जानते नहीं। डुमरा ने खुंबरी के बारे में जरूरत से ज्यादा बुरा कह दिया...”

“खुंबरी बुरी ताकतों की मालिक है।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला।

“उससे क्या फर्क पड़ता है। वो मन की बहुत अच्छी है। बिल्कुल बच्चों की तरह...” जगमोहन के चेहरे पर खुशी के भाव उभरे हुए थे-“मैंने खुंबरी के साथ वक्त बिताया है। मुझे वो जरा भी बुरी नहीं लगी।

देवराज चौहान ने नीचे गिरी रानी ताशा पर नजर मारकर कहा।

“खुंबरी ने कभी मुझे और ताशा को अलग किया था। महज अपने मतलब की खातिर। हम उसी बात का बदला लेने आए हैं।”

जगमोहन के चेहरे पर व्याकुल भाव आ गए।

“पर अब खुंबरी मुझे प्यारी है।” अचानक ही जगमोहन के होंठों से निकला।

“वो मेरी और रानी ताशा की मुजरिम है।”

“ऐसा न कहो। मैं सच में खुंबरी से प्यार करता हूं। उसमें मेरी जान बसने लगी है।” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला।

देवराज चौहान भी गम्भीर दिखने लगा।

कई कदम दूर खड़ी खुंबरी उनकी बातें सुन रही थी।

“तुम गलत हो जगमोहन।” नगीना कह उठी-“खुंबरी से हम दुश्मनी निकालने निकले थे और तुम...”

“भाभी, मुझे क्या पता था कि खुंबरी मुझे इतनी अच्छी लगने लगेगी कि मैं उससे प्यार कर बैठूंगा।”

“इस काम में तुम देवराज चौहान का साथ दे रहे थे।” मोना चौधरी ने कहा।

“मैं जानता हूं पर मन पर मेरा बस नहीं रहा।” जगमोहन ने गहरी सांस ली-“मैं खुंबरी के साथ खुश हूं।”

“राजा देव।” तभी बबूसा कह उठा-“ये प्यार का मामला है, आप तो प्यार को सबसे ऊपर रखा करते थे।”

“तब उसी प्यार को खुंबरी ने तबाह किया था। तभी तो अब हम...”

“आपको जगमोहन के प्यार का भी ध्यान रखना चाहिए। प्यार तो प्यार ही होता है। क्यों सोमारा?”

“तुम ठीक कहते हो बबूसा।”

देवराज चौहान के चेहरे पर गम्भीरता छाई हुई थी। वो बोला।

“इस बारे में ताशा का फैसला ही अंतिम होगा।”

उसी पल रानी ताशा को लगा जैसे वो आजाद हो गई हो। वो फौरन न उठी तो खुंबरी कठोर स्वर में कह उठी।

“फिर कभी बुरे इरादे से मेरी तरफ मत बढ़ना।”

रानी ताशा ने अपने दांत भींचकर, सुलगती हुई आंखों से खुंबरी को देखा।

“तुमने मुझे और देव को अलग किया था। तब मैं धोखे में रही कि ये सब मैंने किया है। मैं तुम्हारी जान लेकर ही रहूंगी।”

“तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। मेरे इशारे पर ताकतें तुम्हें बर्बाद कर देंगी। वैसे भी तुम सब इस वक्त मेरे कब्जे में हो। तुम्हारी जान मेरी मुट्ठी में है। जब चाहूं तभी ले लूं।” खुंबरी जहरीले स्वर में कह उठी।

“मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं।” गुस्से में कांपती रानी ताशा ने पुनः खुंबरी पर झपटना चाहा।

परंतु उसी पल रानी ताशा के कदम चिपककर रह गए। वो उठे ही नहीं।

“तो तुम मानोगी नहीं।” खुंबरी का स्वर खतरनाक हो गया।

तभी बबूसा पास आकर रानी ताशा से बोला।

“रानी ताशा। ये सब कोशिशें मैंने पोपा में ही करके देख ली थी। इससे कोई फायदा नहीं होगा। आप अपने पर काबू रखिए। इस तरह आप खुंबरी का मुकाबला नहीं कर सकतीं।” बबूसा ने धरा को देखा तो धरा मुस्करा पड़ी।

उसी पल रानी ताशा के पांव आजाद हो गए। लेकिन रानी ताशा की क्रोध भरी नजरें खुंबरी पर थीं।

“इन सबको हमने कैद करके क्यों रखा है।” धरा पास आते बोली-“इन्हें मार देना ही बेहतर होगा।”

“जगमोहन को ये बात पसंद नहीं आएगी। ये सब हैं तो जगमोहन के साथी ही।” खुंबरी कह उठी।

“इस बारे में जगमोहन से बात की?”

“अभी नहीं।” खुंबरी की निगाह सामने खड़ी रानी ताशा पर थी।

“आपको राजा देव बुला रहे हैं।” बबूसा बोला।

रानी ताशा पलटकर सबके पास पहुंची तो मोना चौधरी कह उठी।

“जगमोहन को खुंबरी से प्यार हो गया है ताशा। अगर तुम चाहो तो खुंबरी को माफ कर दो, ताकि हम खुंबरी की जान लेना छोड़ दें।”

“ये नहीं होगा। खुंबरी मेरी और देव की गुनाहगार है।” रानी ताशा दांत भींचे कह उठी-“देव, तुम जगमोहन को समझा दो कि इसने गलत राह चुनी है। खुंबरी को अपने मन से निकाल दे। वो हमारी दुश्मन है।”

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

“तुमने आज तक जो भी राह चुनी, मैंने हमेशा तुम्हारा साथ दिया।” जगमोहन गम्भीर स्वर में, देवराज चौहान से बोला-“अगर साथ देने का मन न हो तो, चुप रहो। आज मुझे तुम्हारी जरूरत है। खुंबरी मेरे दिल में आ बसी है। मैं सच में उसे चाहने लगा हूं। वो उतनी भी बुरी नहीं, जितना कि डुमरा कहता था। हम दोनों खुशी से जीवन बिता लेंगे। अगर कभी खुंबरी की ताकतों ने गलत किया था तुम दोनों के साथ तो उसे भूल जाओ। वो सब कुछ बहुत पुराना हो चुका...”

“नहीं।” रानी ताशा गुर्रा उठी-“कुछ भी पुराना नहीं हुआ। मेरे लिए तो जैसे आज ही की बात है। उसी कारण आज भी देव मुझे स्वीकार नहीं कर पा रहे। खुंबरी मेरे और देव के प्यार की, बिना वजह दुश्मन बन गई थी। मैं उसकी जान लेकर रहूंगी।”

जगमोहन गम्भीर दिखने लगा।

“तुम खुंबरी का साथ छोड़ दो जगमोहन।” मोना चौधरी बोली-“ये ही ठीक रहेगा।”

“मैं खुंबरी से सच्चा प्यार करने लगा हूं। कैसे छोड़ दूं मोना चौधरी। क्या रानी ताशा, देवराज चौहान को छोड़ सकी है अब तक?”

मोना चौधरी ने देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

“रानी ताशा।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“मेरा यकीन मानिए, हम खुंबरी का कुछ नहीं बिगाड़ सकते।”

“ये तुम कह रहे हो बबूसा।” एकाएक रानी ताशा दांत भींचकर बबूसा से बोली।

“हां।” बबूसा ने सिर हिलाया-“मैंने पोपा में धरा का मुकाबला करने की कोशिश की, परंतु नाकाम रहा था। उसकी ताकतें उसे घेरे रहती हैं। बुरे इरादे के साथ कोई भी उसकी तरफ बढ़े तो ताकतें उसे रोक देती हैं। अभी आप खुंबरी की तरफ झपटीं तो ताकतों ने ही आपके कदम रोके थे। वो खुंबरी का बुरा नहीं होने देतीं।”

“तो क्या चाहते हो तुम?”

“आप खुंबरी को क्षमा कर दें।”

“मैं उसे सिर्फ मौत दूंगी। बेशक कोई मेरे साथ न रहे, पर मेरा अंत तक ये ही इरादा रहेगा।” रानी ताशा ने दृढ़ स्वर में कहा और कई कदम दूर खड़ी खुंबरी को भस्म कर देने वाली निगाहों से देखा।

शांत खड़ी, खुंबरी के होंठों के बीच मुस्कान नाच रही थी।

“तुम्हें जो करना है, तुम वो ही करो जगमोहन।” नगीना गम्भीर स्वर में बोली।

“और आप सब?” जगमोहन की निगाह सब पर गई।

“हम अपने मन की करेंगे।” नगीना ने कहा।

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा तो देवराज चौहान सिर्फ मुस्कराकर रह गया।

जगमोहन पलटा और वापस खुंबरी के पास पहुंचा।

“तुम उदास हो जगमोहन।” खुंबरी कह उठी-’रानी ताशा की बात को गम्भीरता से न लो।”

“क्या तुम्हें इस बात की चिंता नहीं है कि रानी ताशा तुम्हारी दुश्मन बनी बैठी है।” जगमोहन बोला।

“मुझे क्यों चिंता होगी।” खुंबरी हंसी-“ताकतों के होते मुझे किसी भी बात के लिए व्याकुल होने की आवश्यकता नहीं है। जो भी मेरा दुश्मन बनेगा, ताकतें उसे खुद संभाल लेंगी। ताकतें मेरा नुकसान नहीं होने देंगी।”

“इस कमरे का दरवाजा भी नहीं है फिर भी ये लोग भीतर क्यों बैठे हुए हैं। ये तो रुकने वाले नहीं।”

“ये देख चुके हैं कि ये बाहर नहीं निकल सकते। दरवाजे की जगह पर ताकतों का पहरा है। ये बाहर निकलना चाहें तो ताकतें इन्हें वापस धकेल देती हैं। इन्हें कमरे में ही रहना होगा।” खुंबरी ने बताया।

“इनका खाना-पीना?”

“ताकतें वक्त पर इन्हें हर चीज दे देती हैं। तुम किसी भी बात की चिंता न करो जगमोहन।” खुंबरी ने कहा।

“मैं इन्हें आजाद कराना चाहता हूं।”

“ये नहीं हो सकता। ये मेरे लिए मन में दुश्मनी रखते हैं। इन्हें कैद में ही रखा जाएगा।”

“क्या तुम मेरी बात भी नहीं मानोगी।” जगमोहन ने शिकायती अंदाज में कहा-“मैं हक से तुम्हें कह रहा हूं।”

“ऐसी बात है तो मैं बबूसा को आजाद कर सकती हूं जो जंगल में तुम्हारे साथ था।”

“ठीक है। बबूसा हमारे साथ ही रहेगा।” जगमोहन ने सिर हिलाया।

“जैसा तुम चाहो। परंतु उसे समझा देना कि मेरे खिलाफ एक कदम भी उठाया तो उसे कैद में डाल दिया जाएगा।”

जगमोहन ने इशारे से बबूसा को पास बुलाकर कहा।

“क्या तुम मेरे साथ रहने की आजादी चाहते हो?”

“क्यों नहीं, इससे मुझे खुशी होगी।” बबूसा ने तुरंत कहा।

“खुंबरी के खिलाफ कोई भी कदम उठाने की मत सोचना, वरना आजादी खत्म हो जाएगी।”

“मैं जानता हूं कि खुंबरी का कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मैं ऐसी बेवकूफी नहीं करूंगा।” बबूसा मुस्कराकर बोला।

“तुम पोपा में मेरा गला दबाने की कोशिश में आगे बढ़े थे।” धरा कह उठी।

“तब मैं खुंबरी को बेहतर ढंग से नहीं जानता था। जब जाना तो पीछे ही रहा।”

“तो अब जंगल में खुंबरी को मारने क्यों आ गए?” धरा पुनः बोली।

“राजा देव का सेवक हूं। हुक्म के आगे गर्दन तो हिलानी ही पड़ती है। जबकि मैं पहले से ही जानता हूं कि खुंबरी का डुमरा के अलावा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।” बबूसा ने सरल स्वर में कहा।

“डुमरा भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता।” धरा हंसी-“वो ताकतों से ही उलझकर रह जाएगा।”

तभी सोमारा की आवाज आई।

“तू इनके साथ जा रहा है बबूसा?”

“हां, पर तेरे से मिलने आते रहूंगा।” बबूसा ने सोमारा से कहा और खुंबरी से बोला-“सोमारा से मिलने आ सकता हूं न?”

“बेशक आ सकते हो। लेकिन खुंबरी के खिलाफ कुछ किया तो, तुम्हारी जान चली जाएगी।” धरा सख्त स्वर में कह उठी।

“मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगा।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा।

“आओ चलें।” खुंबरी ने हाथ के इशारे से कहा और पलटकर बाहर निकल गई। जगमोहन साथ था उसके और बबूसा धरा भी उसके साथ बाहर निकलते चले गई। जबकि दोलाम वहीं खड़ा रानी ताशा को देखता रहा। उसके चेहरे पर कहर भरी मुस्कान नाच रही थी। वो आगे बढ़ा और रानी ताशा के पास जा पहुंचा।

सबकी निगाह दोलाम पर थी।

“रानी ताशा।” मुस्कराते हुए दोलाम ने जहरीले स्वर में कहा-“मेरे ख्याल में खुंबरी का बुरा वक्त तब से ही शुरू हो चुका है जब उसे जगमोहन से प्यार हुआ। इसका अंजाम तो अब खुंबरी को भुगतना ही होगा। हो सकता है तुम्हारी दुश्मनी का कष्ट मैं ही दूर कर दूं। क्योंकि जगमोहन से प्यार करके खुंबरी ने मेरा दिल दुखा दिया है।”

“तुम ऐसा नहीं कर सकते।” सोमारा कह उठी-“तुम्हारी बात खुंबरी की ताकतों ने सुन ली होंगी, वो तुम्हें...”

“कभी नहीं।” दोलाम हाथ की उंगली हिलाते जहर भरे अंदाज में हंसा-“मेरी बातें ताकतें सुन ही नहीं सकतीं। क्योंकि वो जानती हैं कि मैं खुंबरी का सबसे वफादार सेवक हूं। ताकतों ने मुझे आजाद छोड़ रखा है।”

“तुम खुंबरी की जान ले लोगे।” रानी ताशा कह उठी-“सच में ले लोगे, न? ये ही कहा तुमने।”

“मैं फिर आऊंगा रानी ताशा। सिर्फ तुमसे मिलने।” दोलाम ने कहा और पलटकर वहां से बाहर निकलता चला गया।

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खुंबरी उस कमरे में पहुंचकर कुर्सी पर बैठी और मुस्कराकर जगमोहन को देखा।

जगमोहन भी मुस्कराया और खुंबरी के पास ही कुर्सी पर बैठकर, खुंबरी का हाथ पकड़ लिया। दोनों की नजरों में प्यार भरा था। तभी धरा कह उठी।

“डुमरा का ध्यान है। वो हमारे लिए जंगल में भटक रहा है।”

“डुमरा को कैसे भूल सकती हूं।” खुंबरी ने कहा और उसी पल बटाका छूकर पुकारा-“ओहारा।”

“बोल खुंबरी।” कानों के पास ओहारा की आवाज उभरी-“तूने सबको परेशान कर दिया है।”

“ऐसा क्या किया मैंने?”

“तेरे को मर्द से प्यार जो हो गया है।” ओहारा की आवाज

आई।

“क्या तू नहीं प्यार करता। मैंने किया तो सब परेशान हो गए।” खुंबरी के माथे पर बल पड़े।

“तूने अपनी जान जगमोहन के हवाले जो कर दी। तब ये क्यों भूल गई कि हम ताकतें भी तेरे साथ जुड़ी हुई हैं। जगमोहन तेरे को मार देता तो हमारा क्या होता। हमें सम्भालने वाला तो कोई नहीं था।” ओहारा के स्वर में भरपूर शिकायत के भाव थे।

“मरी तो नहीं। जिंदा हूं न।” खुंबरी ने अपने लहजे को तीखा करते हुए कहा।

“ठोरा को भी ये बात पसंद नहीं आई। उसने मुझे संदेश भेजा कि खुंबरी ने गलत हरकत की है।”

खुंबरी के चेहरे पर गम्भीरता उभरी।

“ठोरा ने नाराजगी दिखाई मेरी बात पर?”

“हां। तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। अपनी जान जगमोहन के हवाले करके तुमने गुनाह किया है हमारी नजरों में।”

“फिर से मैं ऐसा नहीं करूंगी।” खुंबरी ने बेहद शांत स्वर में कहा।

“तूने अपने प्यार का भविष्य देखने को क्यों मना किया?”

“मुझे अपने जगमोहन पर पूरा भरोसा है।” खुंबरी मुस्कराई-“मेरे प्यार का भविष्य सुख से भरा है।”

पास में ही बैठा जगमोहन, खुंबरी की तरफ देखता प्यार से मुस्कराया।

खुंबरी भी उसे देखकर मुस्कराई।

“अच्छा तो ये ही होता कि अमाली एक बार तुम्हारे प्यार के भविष्य पर नजर डाल लेती।”

“मैं ऐसा हुक्म नहीं दूंगी। हम बहुत जल्दी शादी करेंगे। हमारे बच्चे भी होंगे ओहारा।”

“ये तो खुशी की बात है। बता मुझे क्यों बुलाया?”

“डुमरा को कब खत्म करेगा। तेरे वार तैयार हैं या अभी...” खुंबरी ने कहा।

“कल डुमरा पर ऐसा वार होगा कि उसका अंत हो जाएगा।” ओहारा की आवाज सुनाई दी।

“ओह।” खुंबरी की आंखें चमकने लगी-“सच में, तूने तो मुझे खुश कर दिया ओहारा।”

“मोरगा ने भी अपने वार तैयार किए हैं। उसने भी डुमरा पर वार करने के लिए कल का दिन चुना है।”

“फिर तो डुमरा जिंदा नहीं बचेगा।” खुंबरी खुश हो गई-“मेरा दुश्मन कल खत्म हो जाएगा।”

“जरूर होगा महान खुंबरी।”

“जा ओहारा। कल की तैयारी कर।” खुंबरी ने खुशी के अंदाज में कहा।

फिर ओहारा की आवाज नहीं आई।

“तुम्हें खुश देखकर, मुझे बहुत खुशी मिलती है खुंबरी।” जगमोहन प्यार से बोला।

“ये ही तो प्यार है।” फिर खुंबरी, धरा से बोली-“कल मजा आएगा। हमारा दुश्मन अपनी जान गंवा बैठेगा।”

“मुझे यकीन है कि ओहारा और मोरगा जरूर डुमरा को मार देंगे।” धरा ने कहा।

“ठोरा कौन है?” जगमोहन ने पूछा।

“ठोरा मेरी ताकतों में, सबसे बड़ी ताकत है। आज तक ठोरा को कोई हुक्म देने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि मेरे काम उससे छोटी ताकतें ही पूरा कर देती हैं।” खुंबरी ने बताया फिर कहा-“हम कमरे में चलते हैं जगमोहन।”

जगमोहन फौरन उठ खड़ा हुआ।

धरा के चेहरे पर मीठी मुस्कान उभरी।

खुंबरी और जगमोहन अपने कमरे में पहुंचे, दरवाजा बंद किया और एक दूसरे के आगोश में समा गए।

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दोलाम उसी कमरे में कुर्सी पर बैठा था, दोनों कुर्सियां टेबल पर टिकी थीं और दोनों हाथों से अपना सिर थाम रखा था। काफी देर से वो इसी मुद्रा में बैठा था कि एकाएक खड़ा हो गया। चेहरा कठोर हुआ पड़ा था उसका और आँखें सुर्ख-सी महसूस हो रही थीं। वो कमरे से निकला और तेज-तेज कदमों से आगे बढ़ गया। मशाल के प्रकाश के पास से ही निकलता तो चेहरे के भाव स्पष्ट नजर आते। आगे बढ़ता तो भाव दिखने मध्यम हो जाते। तभी सामने से धरा आती दिखी तो दोलाम ने तुरंत अपने चेहरे के भावों पर काबू पाने की चेष्टा की। जहां दोनों मिले, वहां मशाल का बेहद मध्यम प्रकाश आ रहा था।

“दोलाम।” धरा बोली-“अब तो सदूर में दूसरी तरह की रोशनी इस्तेमाल की जाती है। तुम भी वो रोशनी क्यों नहीं ले आते। उससे प्रकाश अच्छा होता है। दूर तक वो रोशनी रास्ता दिखाती है।”

“जरूर महान खुंबरी।” दोलाम बेहद सामान्य स्वर में बोला-“मैं जल्द ही वैसी रोशनी का इंतजाम करूंगा।”

“बबूसा कहां है?”

“उसे एक कमरा दे दिया है।” दोलाम बोला-“वो वहीं आराम कर रहा है।”

धरा आगे बढ़ गई। दोलाम पुनः अपने रास्ते पर चलने लगा। मशाल की रोशनी में अब पुनः उसके जबड़े भिंचे हुए दिखने लगे थे। उन रास्तों को पार करके वो खुंबरी के कमरे के बंद दरवाजे पर जा रुका और सुलगती निगाहों से दरवाजे को देखने लगा कि उसी पल भीतर से जगमोहन की हंसी सुनाई दी फिर खुंबरी की अस्पष्ट-सी आवाज दोलाम के कानों में पड़ी।

“उफ-धीरे करो। मेरी जान तो मत लो।”

दोलाम ने क्रोध से जमीन पर पांव पटका और आगे रास्ते पर बढ़ता कह उठा-“आज तो फैसला होकर ही रहेगा। मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। खुंबरी पर सिर्फ मेरा हक है।”

लम्बे-लम्बे कदम उठाकर, कुछ रास्ता तय करने के बाद दोलाम ने उस कमरे में प्रवेश किया जिसमें मंत्रों वाला कटोरा रखा था और दिन में दो बार वो कटोरे में पानी डालने आता था। परंतु इस वक्त वो कटोरे में पानी डालने नहीं आया था। कटोरे के पास पहुंचकर चंद क्षण होंठ भींचे वो कटोरे के पानी को घूरता रहा फिर तुरंत दायां हाथ उस पानी में डाल दिया।

उसी पल वहां दहाड़ती आवाज उभरी-“ठोरा के सिर में हाथ मारने की हिम्मत किसने की। कौन है जिसकी मौत आई है।”

“ठोरा।” दोलाम का स्वर पल भर के लिए लड़खड़ाया-“मैं दोलाम हूं।”

“दोलाम? तूने मेरे सिर में हाथ मारा। जानता है तेरी इस गलती की वजह से मैं तेरी जान ले सकता हूं।”

“क्षमा चाहता हूं ठोरा। पर मैं जानता हूं कि ठोरा मेरी जान नहीं लेगा। मैंने हमेशा ही खुंबरी की सेवा दिल से की है।”

“क्या चाहता है तू?”

“मैं खुंबरी से नाराज हूं।”

“वजह बता।” ठोरा का तेज स्वर उभरा।

“मैंने खुंबरी की हमेशा दिल से सेवा की। उसके शरीर की पांच सौ सालों तक देखभाल करता रहा। मैंने क्या कुछ नहीं किया खुंबरी के लिए और खुंबरी जगमोहन से प्यार करने लगी। उसे मर्द की चाहत थी तो वो मेरे से भी तो प्यार कर सकती थी। क्या मैं खुंबरी के प्यार का हकदार नहीं। वो शादी करना चाहती है तो मेरे से अच्छा आदमी उसे कहां मिलेगा। जिस शरीर की मैंने देखभाल की, उसका सुख पृथ्वी से आया मर्द ले रहा है, ये देखकर मुझे आग लग रही है। मैं तुमसे इंसाफ चाहता हूं ठोरा।”

“तो ये बात है।” ठोरा का स्वर अब कुछ सामान्य हुआ।

“क्या मेरा हक नहीं बनता खुंबरी पर?”

“जरूर बनता है दोलाम।” ठोरा की आवाज आई-“खुंबरी को चाहिए था कि वो तेरे को अपना शरीर इनाम में देती।”

“तो उसने ऐसा क्यों नहीं किया ठोरा। जगमोहन ही क्यों-मैं क्यों नहीं? क्या खुंबरी की निगाहों में मेरी कोई कीमत नहीं।”

“गलत बात मत कह दोलाम। खुंबरी तेरे को बहुत मानती है।”

“तो फिर खुंबरी को, प्यार करने के लिए मैं क्यों नहीं दिखा, जगमोहन कैसे दिख गया।”

“ये तो खुंबरी के मन की बात है दोलाम, वो ही जाने। हम उसके मन में दखल नहीं देते।”

“मैं तुम्हारे पास इंसाफ के लिए आया हूं ठोरा।” दोलाम ने तेज स्वर में कहा।

“कैसा इंसाफ? मेरी नजरों में तो कुछ भी गलत नहीं हुआ। खुंबरी ने तुम्हें नहीं चुना अपने शरीर की प्यास बुझाने के लिए तो किसी और को चुन लिया। खुंबरी के मन की बात है, जो उसे अच्छी लगी।”

“मैं क्यों नहीं अच्छा लगा?”

“ये तो खुंबरी ही जाने। पर तेरे को मैं रास्ता दिखा सकता हूं कि तेरा काम बन जाएगा।”

“बता ठोरा।”

“तू खुंबरी के रूप (धरा) की बांह थाम ले। है तो वो भी खुंबरी ही फिर...”

“नहीं ठोरा।” दोलाम ने दांत भींचकर कहा-“मुझे रूप नहीं, असली खुंबरी का शरीर चाहिए, जिस शरीर की मैं सेवा करता रहा। उसी पर मेरा हक बनता है।”

“खुंबरी पर हम ताकतों का बस नहीं दोलाम।”

“क्या मतलब?”

“तू अच्छी तरह जानता है कि खुंबरी के व्यक्तिगत जीवन में हम दखल नहीं दे सकते। खुंबरी कुछ भी करे, हम उस पर ऐतराज नहीं करते। फिर जब मामला चाहने का हो तो हमें इस बात से जरा भी मतलब नहीं।”

“मैंने बहुत लम्बे वक्त तक खुंबरी की सेवा की है। मुझे मेरा हक मिलना चाहिए।”

“ये बात मैं स्वीकार करता हूं।”

“पर तू मेरे लिए कुछ कर नहीं सकता?”

“नहीं कर सकता। तेरी इच्छा को खुंबरी से कह भी नहीं सकता। ये मेरा काम नहीं।”

“खुंबरी तुम ताकतों की मालिक बनी हुई है जबकि उसने अपनी जान जगमोहन के हवाले कर दी थी। जगमोहन को खंजर दिया और अपनी गर्दन आगे कर दी कि वो खुंबरी की गर्दन काट दे।”

“ये गलत किया खुंबरी ने। अगर खुंबरी की जान चली जाती तो हमें अंधेरे में छिपना पड़ता। लेकिन खुंबरी ओहारा से कह चुकी है कि दोबारा वो ऐसा नहीं करेगी। तुम्हारा इन बातों से कोई मतलब नहीं दोलाम।”

“अगर खुंबरी मुझे न मिली तो जगमोहन को भी नहीं मिल सकेगी।”

दोलाम गुर्रा उठा।

“स्पष्ट कह।”

“मैं खुंबरी की जान ले लूंगा।”

“ये तू कैसे कर सकता है। हम ताकतें खुंबरी के सहारे तो जिंदा हैं। उसे कुछ हो गया तो हम अंधेरे में...”

“मैं ताकतों को अंधेरे में नहीं खोने दूंगा। मैं तुम ताकतों का मालिक बन जाऊंगा।”

ठोरा की तरफ से खामोशी रही।

“ठोरा।” एकाएक दोलाम ने दांत भींचकर पुकारा-“तू चुप क्यों हो गया?”

“मैं तुझे इस बात की इजाजत नहीं दूंगा।”

“क्यों?”

“हमें खुंबरी से कोई शिकायत नहीं है।”

“जब मैं खुंबरी को मार दूंगा, तब तो तुम ताकतों को मुझे ही अपना मालिक बनाना होगा।” दोलाम दांत भींचकर बोला।

कुछ चुप्पी के बाद ठोरा की आवाज आई-“तेरे में और खुंबरी में क्या होता है, ताकतों को इसमें कोई समस्या नहीं है। अगर खुंबरी की तरफ से शिकायत मिली तो ताकतें तेरे को छोड़ने वाली नहीं, क्योंकि खुंबरी हमारी मालिक है। मेरे ख्याल में बात इतनी नहीं है जितनी कि तू बढ़ा रहा है। खुंबरी से बात कर, वो अपना शरीर जरूर तेरे हवाले करके, तुझे इनाम देगी।”

“उसने इंकार किया तो फिर मैं खुंबरी की जान लेने का मौका तलाश करूंगा ठोरा।” दोलाम का चेहरा क्रोध से दहक रहा था। ये कहने के साथ दोलाम ने मंत्रों वाले पानी से अपना हाथ निकाला और सुलगते अंदाज में पलटा कि थम से खड़ा का खड़ा रह गया।

दरवाजे पर बबूसा खड़ा शांत निगाहों से उसे देख रहा था।

समाप्त