26-मेडिकल परीक्षा की तैयारी
"आप बहुत भाग्यशाली हैं। यह इस कोचिंग का आखिरी नामांकन था। अगर आप एक दिन और लेट हो गई होती, तो आपके बच्चे को नहीं मिलती।” कोचिंग संस्थान का क्लर्क मुस्कुराया।
अजिता और अभिनव ने इसके लिए भगवान को धन्यवाद दिया। वह कोचिंग इन्स्टीट्यूट शहर में सबसे अच्छा माना जाता था। वहाँ की फीस अन्य संस्थानों से डबल थी; फिर भी छात्र इस संस्थान में आना पसंद करते थे। क्योंकि छात्रों की एक अच्छी संख्या हर साल मेडिकल में यहाँ से चुनी जाती थी।
"क्लास कब से शुरू करेंगे?” अजिता ने क्लर्क से पूछा।
"मैडम, कल से शुरू हो चुकी हैं। आप अभिनव को कल से क्लास में भेज सकती हैं। उसने कहा कि वो अन्य छात्रों की मदद से अपनी छूटी हुई पढ़ाई को पूरा कर सकता है और अजिता को फीस की रसीद सौंपते हुए वह अभिनव से बोला,
"कृपया समय से क्लास में आईएगा। क्लास ठीक 4 बजे शुरू हो जाती है देर से आने पर एंट्री नहीं मिलती है।”
“बहुत बहुत धन्यवाद। वो समय पर पहुँच जाएगा,” अजिता ने कहा।
क्लर्क ने कुछ किताबें और कॉपियाँ खरीदने का सुझाव दिया था जिसे बाजार से खरीदने के बाद अजिता और अभिनव घर लौट आए।
“अपनी पुस्तकों और नोट बुक को कवर कर लो और अपने पुराने स्कूल बैग में पैक कर लो। ताकि स्कूल से वापस आने के बाद तुम्हें फिर से कोचिंग के लिए बैग पैक नहीं करना होगा।“
"ठीक है माँ, मैं अपनी साइकिल की सफाई के बाद बैग पैक कर लूँगा। कल स्कूल के बाद मुझे अपनी साइकिल साफ करने के लिए भी समय नहीं मिलेगा। अभिनव कोचिंग जाने के लिए काफी उत्साहित था लेकिन साथ ही एक ही समय में, स्कूल और कोचिंग की पढ़ाई का दबाव भी महसूस कर रहा था।
स्कूल में उसके सहपाठियों ने भी उसे डरा दिया था कि प्री-मेडिकल टेस्ट बहुत मुश्किल है। वो मन में अनिश्चितता महसूस कर रहा था कि अगर वह परीक्षा पास नहीं कर पाया तो क्या करेगा?”
अजिता ने अपने बच्चे के चेहरे पर पढ़ाई का दबाव महसूस किया था। उसने अभिनव को समझाते हुए कहा,
“अपने आप पर विश्वास रखो, अपनी ताकत और बुद्धि को कम मत समझो, मुझे पूरा विश्वास है कि तुम आसानी से परीक्षा पास कर सकोगे। सभी को पहले डर लगता है लेकिन जो मेहनत करते हैं उन्हें सफलता तो मिलती ही है।”
अपनी माँ के हौसला देने पर उसने कुछ सहज महसूस किया। उसने सोचा,
"जो बच्चे परीक्षा में पास होते हैं वो सब मुझसे अलग तो हैं नहीं। फिर मैं क्यों इतना डर महसूस कर रहा हूँ। मुझे सिर्फ मेहनत करनी है जो मेरे हाथ में है।"
अजिता थोड़ी देर आराम करने के लिए अपने कमरे में चली गई। पिछले कुछ दिनों से, कार्यो में व्यस्तता के चलते वह बहुत थक गई थी, पहले शादी समारोह और फिर अभिनव का पढ़ाई का नया सत्र। अजिता और विजय ने उस साल अभिनव की पढ़ाई पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया। हालाँकि विजय अभिनव की क्षमता को लेकर थोड़ा अनिश्चित थे, फिर भी वो पढ़ाई में अभिनव को पूरी तरह से मदद कर रहे थे।
छः महीने बाद
"मुझे बहुत सर दर्द हो रहा है और बुखार भी है। आज मैं कोचिंग क्लास नहीं जाऊँगा।”
अभिनव ने स्कूल से आने के बाद कहा और सीधे अपने कमरे में सोने चला गया। उसने बिस्तर पर अपना बैग फेंका, लापरवाही से अपने जूते उतारे, और बिस्तर पर लेट गया। अजिता कमरे में आई बैग उठाया और अलमारी में रखा, जूते उठा के रैक पर रखे और अभिनव का माथा छू कर देखा तो सच में अभिनव को बुखार था।
“मैंने तुम्हारे लिए बेसन के लड्डू और पकोड़ी बनाई हैं, क्या तुम खाओगे? “अजिता ने पूछा
"हाँ, “ अभिनव ने धीमी आवाज़ में कहा। उसे लड्डू बहुत पसंद है।
"मैं नाश्ते के साथ में सरदर्द और बुखार की दवा भी ले आती हूँ, तुम्हें आराम मिलेगा।” अजिता ने प्यार से कहा।
वो जानती थी कि दवा लेने और आराम करने से एक घंटे में दवा असर करेगी।”कोचिंग जाने में अभी दो घंटे बाकी हैं। जब वो स्वस्थ महसूस करेगा कि तब वो अभिनव को कोचिंग जाने को कहेगी।
“ये आ गया तुम्हारा नाश्ता, उठो और गरम-गरम पकोड़ी खाओ मैं तुम्हारे लिए कॉफी भी लाती हूँ।”
अपने पसंद के नाश्ते की खुशबू से अभिनव के मुँह में पानी आ गया। उसने अपना नाश्ता खाया, और अजिता ने रेडियो पर उसका पसंदीदा प्रोग्राम चला दिया। मधुर संगीत की ध्वनि से कमरा गूँज उठा। अभिनव का नाश्ता होने के बाद, अजिता ने उसे दवा दे दी। अभिनव को नींद आने लगी।
अजिता अलमारी से उसका कोचिंग बैग उठाकर कमरे से बाहर आ गई। एक घंटे बाद उसने अभिनव को जगाया और देखा कि, उसका बुखार सामान्य हो गया था और वो थोड़ा स्वस्थ भी लग रहा था इसलिए अजिता ने उसे कोचिंग जाने की सलाह दी।
"मैंने आपको बताया था कि आज मैं कोचिंग नहीं जाऊँगा, मैं आज बीमार हूँ।”
अभिनव अपनी माँ पर चिड़चिड़ा रहा था। असल में उसका उस दिन कोचिंग जाने का बिलकुल मन नहीं था। आज जब उसकी तबीयत ठीक नहीं है तो तुम क्यों उसे ज़बरदस्ती भेज रही हो।
विजय उसी समय ऑफिस से घर वापस आया था। ऐसे मामलों में अजिता अभिनव और उसके पिता को कैसे समझाना है, यह वो अच्छे तरह से जानती थी।
वह दृढ़ता के साथ बोली,
“अब अभिनव ठीक है, वो एक मेहनती छात्र है। स्कूल और कोचिंग में पढ़ाई दोनों पूरे जोरों पर चल रही है। जो पाठ्यक्रम आज छूट जाएगा उसको कवर करने के लिए उसे ज्यादा मेहनत करनी होगी।
फिर अभिनव की तरफ देख कर उसने कहा,
“चलो और जल्दी तैयार हो जाओ, मैं तुम्हारा बैग अलमारी से बाहर ले आई हूँ।"
हालाँकि अभिनव उस समय तक पूरी तरह फिट महसूस कर रहा था, पर उसे कोचिंग जाने का मन नहीं था। वह ज़िद करने लगा,
"माँ एक क्लास छूट जाने से कुछ फ़र्क नहीं पड़ता है।”
“मैं मानती हूँ, पर मुझे यह तो बताओ कि तुम आज क्लास क्यों नहीं जाना चाहते हो?” अभिनव ने उस दिन टेलीविज़न पर एक फिल्म देखने की योजना बनाई थी।
उसको माँ को बताने के लिए कोई वास्तविक कारण नहीं था इसलिए वो चिड़चिड़ा महसूस कर रहा था।
"जब मैंने अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट मैच खेलने की योजना बनाई थी तब भी आपने मुझे क्लास से छुट्टी नहीं लेने दिया था, क्या मैं सिर्फ एक दिन के लिए भी क्लास नहीं छोड़ सकता?”
“वह मैच कोई महत्वपूर्ण नहीं था। तुमने रविवार को भी उन्हीं दोस्तों के साथ मैच खेला था, मैंने तुम्हें रविवार को खेलने से नहीं रोका था, तुम जितना चाहो अपनी छुट्टियों का मज़ा ले लो। तुम अपनी महत्वपूर्ण कक्षाएँ क्यों छोड़ना चाहते हो? अगर तुम अभी ईमानदारी से पढ़ाई करोगे तो बाद में हमेशा मज़े ले सकते हो। मेरी बात सही है कि नहीं? “
अभिनव ने ना चाहते हुए भी सिर हिलाया और बोला, ” लेकिन...।”
"तुम आज कोचिंग न जाकर क्या करना चाहते हो?”
“मैं टीवी पर एक फिल्म देखना चाहता हूँ। वह फिल्म मुझे बहुत पसन्द है।” अभिनव अपनी माँ से लगभग विनती के भाव से अनुनय करने लगा। उस फिल्म को देखने देने के लिए उत्साह और उत्सुकता अभिनव के चेहरे पर झलक रही थी।
” ठीक है, तुम फिल्म देखना चाहते हो, तो मैं इसे तुम्हारे लिए रिकॉर्ड कर के रखूँगी और जब तुम कोचिंग से वापस आओगे तब हम सभी साथ में देखेंगे और मैं वेफर्स, चिप्स, पॉपकॉर्न और शरबत लाकर रख लूँगी। रात को तुम्हारा पसंदीदा खाना भी रेस्तरां से मंगवाऊँगी।
“सच मम्मी, फिर बहुत मज़ा आएगा। लव यू मम्मी।”
अभिनव उत्साह के साथ कूदने लगा। अब अभिनव में थकान, कमजोरी या सुस्ती का कोई निशान नहीं था। वह जल्दी से तैयार हुआ और ख़ुशी ख़ुशी कोचिंग चला गया।
विजय और अजिता अभिनव के व्यवहार में आये इस परिवर्तन को देख कर मुस्कुराने लगे।
"तुम्हारे अंदर लोगों को समझाने की एक अदभुत कला है। तुम उनसे वही करवाती हो जो तुम उनसे करवाना चाहती हो।“ विजय जानता था कि अगर अजिता एक बार कुछ करने की सोच ले तो फिर वो उसे निश्चित रूप से पूरा करती है।
अजिता मुस्कुराई और बोली,
"चलो ये सभी चीज़ें लेने के लिए हम बाजार चलते हैं। आप कृपया टेलीविज़न को सेट कर दीजिए, फिल्म रिकॉर्ड करने के लिए तब तक मैं तैयार हो जाती हूँ।”
" आज मुझे बहुत थकान महसूस हो रही थी इसलिए मैंने आधे दिन की छुट्टी ली है। क्या तुम अकेले बाजार चली जाओगी?” विजय ने पूछा।
"ठीक है मैं चली जाऊँगी। अजिता ने विजय को चाय दी और बाजार जाने के लिए तैयार हो गई।
27-बाजार में
तुम यहाँ क्या कर रही हो अजिता?” सुनन्दा ने अजिता से पूछा। सुनन्दा अपनी सहेलियों के साथ वहाँ घूम रही थी। वे अपनी किटी पार्टी करने वहाँ एक रेस्तराँ में आए थे।
"नमस्ते दीदी, मैं कुछ सामान खरीदने के लिए आई हूँ," अजिता ने मुस्कुराते हुए कहा।
"हम कितने समय से नहीं मिले हैं। क्यों न तुम भी हमारी किटी में शामिल हो जाओ? हम सभी किटी के सदस्य हर महीने मिलते हैं और खूब मस्ती करते हैं। आप भी हमारे साथ शामिल हो जाओ बड़ा मज़ा आएगा, “गीतांजलि ने अजिता से कहा।
” हाँ मैं भी आना चाहती हूँ, लेकिन मेरे पास घर के इतने काम रहते हैं कि समय ही नहीं मिल पाता।”
“आप हमेशा अपने घर परिवार में व्यस्त रहती हो।
“तुमको भी खुद के लिए कुछ समय निकालना चाहिए। हम सबका भी अपना परिवार है लेकिन हम अपने मनोरंजन के लिए भी समय निकाल लेते हैं।" सुनन्दा ने सलाह दी
“आप परिवार और अपने लिए समय निकाल लेती हैं, यह वास्तव में तारीफ के काबिल है।" अजिता ने कहा
"हम जब बाहर जाते हैं, 'तब हम अपने घर के कामों को भूल जाते हैं। बच्चे भी घर पर अकेले का आनंद लेते हैं।" सुनंदा ने लापरवाही से कहा।
“क्या वे अपने आप पढ़ाई कर लेते हैं?" अजिता आश्चर्यचकित थी। वो अभिनव को इस तरह से कभी नहीं छोड़ सकती थी।
सुनन्दा लापरवाही से हँसी और बोली।” जब मैं घर पर रहती हूँ तब भी वो पढ़ाई नहीं करते, तो उस समय क्या पढ़ेंगे जब मैं घर पर नहीं हूँ? मेरा तो मानना है कि अगर वे अच्छे से पढ़ाई करते हैं तो उन्हीं का भविष्य उज्जवल होगा, और अगर नहीं करते तो फिर उनको उसके परिणामों का सामना करना होगा। हम लोग तो उनको उनकी ज़रूरत की सभी चीज़ें उपलब्ध करा देते हैं। अब आगे उनका भाग्य तय करेगा कि वे अपना भविष्य कैसे सवांरते हैं।"
अजिता धीरे से मुस्कुराई, उसे जवाब देने के लिए कोई शब्द नहीं मिले। उसकी सहेलियों को पार्टी के लिए देर हो रही थी, इसलिए सबने अजिता को अलविदा कहा और चली गई।
अजिता ने सोचा कि जब उसके पास समय होगा तो वो जरूर किटी मे शामिल होगी। अजिता अपने इस जीवन से खुश थी। अजिता ने सारा सामान खरीदा, रात का खाना रेस्तरां से पैक करवाया और तुरंत घर वापस आ गई।
जब अभिनव कोचिंग से घर लौटा तो उसका पसंदीदा खाना तैयार था और उसके पापा-मम्मी उसके साथ फिल्म का मज़ा लेने को तैयार बैठे थे। उसने घर पर ही इस तरह की एक मज़ेदार शाम की उम्मीद नहीं की थी। उस दिन कोचिंग जाने के फ़ैसले से वो अब बहुत खुश था जिसके बदले ये मज़ेदार पार्टी मिल रही थी।
28-परीक्षा में सहयोग
अजिता का जीवन रोज़ के कामों में बीत रहा था। सुबह से शाम तक घड़ी की सुई की तरह निरंतर व्यस्त रहती थी। उसने ट्यूशन पढ़ाना छोड़ दिया ताकि वो अभिनव पर ज़्यादा से ज़्यादा ध्यान दे सके। अभिनव भी कक्षा १२वीं और प्री मेडिकल परीक्षा की तैयारी में व्यस्त हो गया था। कभी-कभी वो अपनी पढ़ाई से चिढ़ जाता था, उस समय अजिता और विजय उसे खुश करने की कोशिश करते थे, और कभी वे पिकनिक पर जाते, कभी फिल्म देखने जाते, कभी छोटी मोटी पार्टी की व्यवस्था घर पर ही करते।
विजय ने भी अपनी यात्राएँ कम कर दी थी ताकि वो ज़्यादा से ज़्यादा घर पर रह सके। अभिनव जानता था कि उसके अभिभावक हमेशा उसके साथ हैं। वो दिल से उनका आभार महसूस करता था और खुद को बहुत भाग्यशाली समझता था कि उसे ऐसे माँ बाप मिले हैं। वो अपने कुछ दोस्तों के माँ बाप को जानता था जो स्वयं अपने जीवन पर ज़्यादा ध्यान देते थे और अपने बच्चे के भविष्य के बारे में कम सोचते थे।
अभिनव ने तय किया कि वो कड़ी मेहनत से परीक्षा की तैयारी करेगा और परीक्षा में उत्तीर्ण होकर अपने माता पिता को गौरान्वित करायेगा। परीक्षा की तिथि जितनी नज़दीक आ रही थी, जीवन में सफल बनने की उसकी इच्छा उतनी ही मज़बूत होती जा रही थी। विजय और अजिता अभिनव के व्यवहार में परिवर्तन महसूस करते थे।
अभिनव एक परिपक्व बालक हो गया था और वह अपने कैरियर और अपने भविष्य के बारे में बहुत गंभीर हो गया था। हालाँकि, विजय और अजिता अपने बेटे में परिवर्तन देख कर खुश थे, पर वे इसके पीछे के कारण भी जानते थे। अभिनव अपने कुछ सहपाठियों के कारण खुद को हीन महसूस करता था।
उसके सहपाठी उसके घर की आर्थिक स्थिति के लिए मज़ाक बनाते थे। अभिनव अपने दोस्तों के व्यवहार से आहत था। अभिनव ने उनका सामना करने के लिए पढ़ाई में मेहनत की जरूरत समझ ली थी। वह चुनौतियों का सामना करने के लिए दिन-ब-दिन मज़बूत होता जा रहा था। वह अपने माता पिता को दुखी नहीं करना चाहता था इसलिए अपने मनोभावों की कभी उनसे चर्चा नहीं करता था।
29-मुंबई की यात्रा
इतनी लम्बी पढ़ाई और परीक्षाओं के लम्बे समय के बाद न सिर्फ अभिनव बल्कि विजय और अजिता भी तनावमुक्त महसूस कर रहे थे। उन्होंने अजय से मिलने के लिए मुंबई जाने का प्रोग्राम् बनाया। अभिनव को इस यात्रा के बारे में पहले पता नहीं था, इसलिए जब उसे पता चला तो वो ख़ुशी से उछल पड़ा। आखिरकार अजय उसके प्रिय चाचा थे और वो उनसे काफी लम्बे समय के बाद मिलने जा रहा था।
इस यात्रा का मुख्य आकर्षण अजय और सौम्या की दो महीनें की बेटी थी। अभिनव, अजिता और विजय उसे पहली बार देखने वाले थे। अभिनव अपनी छोटी बहन के लिए खिलौने खरीदना चाहता था। विजय और अजिता ने पहले से ही उसके लिए कई उपहार ख़रीदे थे। अभिनव ने उसके लिए एक नाम भी सोचा था जो वो उसे मिल कर बताना चाहता था। ट्रेन स्टेशन पर रुकी। विजय, अजिता और अभिनव उतरे तो देखा अजय प्लेटफार्म पर इंतज़ार कर रहा था।
"कैसे हो अभिनव, इग्ज़ाम कैसे हुए?”
“प्रणाम भैया, भाभी।“ अजय काफी लम्बे समय के बाद मिल कर बहुत खुश दिख रहा था। अभिनव की पढ़ाई की वजह से वह उस साल मिलने नहीं गया, नहीं तो वो साल में कई बार भैया-भाभी से मिलने चला जाता था।
"कैसे हो तुम अजय और घर में सब कैसे हैं?" विजय ने पूछा।
"हम सब ठीक हैं, आइये घर चलते हैं। सौम्या और अम्मा बेसब्री से आप सबका इंतज़ार कर रहे होंगे।“
अजिता की सास जया पिछले साल अजय के साथ आ गई थी और वहीं अजय और सौम्या के साथ रह रही थी। स्टेशन से बाहर निकलकर अजय उन्हें अपनी कार की तरफ ले गया।
” यह आपकी कार है चाचा?" नई स्टील ग्रे शेड की चमचमाती गाड़ी देख के अभिनव की आँखे खुली रह गई। उसने गाड़ी को छू कर देखा।
“कितनी बढ़िया कार है चाचा?"
सभी लोग गाड़ी के अंदर बैठे गए। मुलायम गद्दीदार सीटें और एयर कंडीशनर की ठंडी हवा उन्हें अलग ही महसूस करा रही थी। पहली बार वे लोग इस तरह की लग्जरी कार में बैठे थे। यह उनके परिवार की पहली कार थी।
मुंबई उनके लिए एक नई और अजीब जगह थी। वे इतने बड़े शहर में पहले कभी नहीं गए थे।
घर जाते समय रास्ते में,
“मम्मी! यह देखो इतनी ऊँची बिल्डिंग यहाँ रहने वाले लोगों को ऊँचाई से डर नहीं लगता है?” “अभिनव ने आश्चर्य से कहा।
उसे लग रहा था कि जैसे वो एक अलग दुनिया में आया है। कितनी भीड़ थी सड़क पर। कोई भी इतनी भीड़ में खो सकता था। वह थोड़ा नर्वस महसूस कर रहा था।
”यहाँ की आबादी बहुत ज्यादा है इसलिए लोगों को मल्टी स्टोरे बिल्डिंग में रहना पड़ता है। लोग देश भर से रोज़गार की तलाश में यहाँ आ जाते हैं। देश की आर्थिक राजधानी होने की वजह से रोज़गार के काफी अवसर होते हैं यहाँ, “अजय ने बताया।
“यह बहुत अलग शहर है।” तुम्हारा घर यहाँ से कितनी दूर है? क्या हमें घर के रास्ते में समुद्र दिखाई पड़ेगा?” अजिता ने पूछा।
"मेरा घर अब यहाँ से सिर्फ दस मिनट की दूरी पर है और समुद्र दूसरी तरफ है। अभी उधर दोपहर में बहुत गर्म होगा। हम शाम को चौपाटी चलेंगे और तभी शाम की बाजार और भेलपूरी का मज़ा ले पाएंगे।" अजय बोला।
अजय दो बेडरूम के अपार्टमेट में रहता था। जो था तो एक बहुमंजिला इमारत में, लेकिन वह उतनी ऊँची नहीं जैसी उन्होंने रास्ते में आते समय देखी थी। उनकी कार के परिसर में प्रवेश करते ही गार्ड ने गेट खोला दिया।
अजिता गेट पर गार्ड की जरूरत नहीं समझ पा रही थी। वे हर किसी को अंदर नहीं आने दे रहे थे।
“यह अजीब है।" अजिता ने सोचा।
अजय सातवीं मंजिल पर रहता था। घर पर जया और सौम्या सबके आने का इंतजार कर रहे थे।
“चाची ये कितनी प्यारी है और कितनी छोटी है।" घर पहुँचने पर अभिनव ने बच्ची को अपनी गोद में लिया। उसने पहले कभी छोटे बच्चे नहीं देखे थे।
“तुम्हें अपनी छोटी बहन का नाम रखना है, अभी उसे सब लोग अलग-अलग नामों से बुलाते हैं।" सौम्या ने नाश्ता देने के बाद अभिनव से कहा।
"मैं शाम को चौपाटी पर नाम बताऊँगा ताकि यह बात हमें हमेशा याद रहेगी।" सबको यह बात अच्छी लगी। जया ने सौम्या से शाम के लिए कुछ मीठा बनाने को कहा जो सौम्या पहले से ही बना चुकी थी।
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"कितनी अदभुत जगह है? उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह भी पानी की लहरों के साथ-साथ चल रही हो। अपने पैरों में रेत का स्पर्श एक नया अनुभव था। वो जितना लहरों के करीब पहुँचती जा रही थी, लहरों का शोर उतना बढ़ता ही जा रहा था। अजय ने उन्हें एक दूसरे का हाथ पकड़े रहने की सलाह दी क्योंकि कभी-कभी तरंगे बहुत तेज़ आती है। आखरी लहर का घटता पानी उनके पैरों को छू रहा था। लहरें अचानक आ रही थी और उन लोगों से टकरा कर चली जाती थी। वे लोग पूरा भीग चुके थे।
"चलो अभिनव, अब आ जाओ और नाम बताओ। तुम एक घंटे से पानी में हो।" सौम्या ने अभिनव को बुलाया। जया और सौम्या बच्चे के साथ वहाँ एक बेंच पर बैठे थे।
"हम आ रहे हैं," अभिनव बोला।
"आपको पानी में अच्छा लगा?" सौम्या ने अजिता से पूछा।
“हाँ, बहुत ही अच्छा लगा। एक अलग ही अनुभव था।" अजिता ने कहा।
"बच्ची का क्या नाम सोचा है तुमने, अब सबको बताओ।“ जया ने अभिनव से कहा।
“मेरी बहन का नाम "अनुप्रिया" होगा।“ अभिनव ने कहा और उसके गालों को चूम लिया। वो अपनी बहन को पाकर बहुत खुश था।
"चाची मैं इसे अपने घर ले जाऊँगा।" अभिनव सौम्या से बोली।
“क्यों नहीं? ये तुम्हारी ही बहन है, तुम इसे अपने साथ क्यों नहीं ले जा सकते हो।" सौम्या ने प्यार से कहा।
"और हमें ये नाम बहुत पसंद है, ये सुनने में भी बहुत प्यारा लग रहा है। इस प्यारे से तोहफ़े के लिए धन्यवाद। हम ये पल कभी नहीं भूलेंगे।" सौम्या ने कहा।
अभिनव और अजिता ने उसे सारे तोहफ़े दे दिये जो वो अनुप्रिया के लिए लाए थे।”
कुछ समय बिताने के बाद, वे सब टहलते हुए मरीन ड्राइव तक आ गए। अभिनव को बहुत मज़ा आ रहा था और वो घर वापस नहीं जाना चाह रहा था। रात बहुत हो चुकी थी और सभी को नींद भी आ रही थी। इसलिए अजय ने अभिनव से वादा किया कि वो उसे वहाँ रोज लेकर आएगा। इस बात पर अभिनव मान गया और वे सब घर वापस आ गये और अगले दिन गेट-वे-ऑफ़ इंडिया जाने का प्रोग्राम बनाया।
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"तुम्हारा फ्लैट बहुत अच्छा है। काफी हवादार और खुला खुला है। घर को बहुत करीने से सजाया है तुम दोनों ने। मुझे बहुत खुशी है यह सब देखकर।" अगले दिन सुबह चाय पीते हुए अजिता ने कहा।
अनुप्रिया रात काफी देर तक जागती रही इसलिए सौम्या को भी जागना पड़ा। सुबह माँ बेटी सो रहे थे। इसलिए अजय ने अजिता को किचन में नाश्ता तैयार करने को कहा। विजय और अभिनव सुबह टहलने के लिए गए थे और जया पूजा के कमरे में थी।
” मैं आपको धन्यवाद करना चाहता हूँ भाभी,“ अजय ने सैंडविच ग्रिल करने के दौरान कहा।
"धन्यवाद किसलिए?" अजिता हैरान थी और जवाब के लिए अजय को देख रही थी। अजय ने संकोच करते हुए कहा,
”मेरे जीवन में सौम्या को लाने के लिए धन्यवाद। मैं वैवाहिक जीवन में विश्वास न कर के गलती कर रहा था। एक समय आ गया था, जब मुझे अपने जीवन का कोई अर्थ महसूस नहीं हो रहा था लेकिन अब हर पल रोमांचक है और मैं नए अनुभवों और जिम्मेदारियों को लेकर बहुत खुश हूँ। सौम्या एक बहुत अच्छी जीवन साथी है और अब अनुप्रिया के साथ ने हमारा घर एक खुशहाल परिवार बना दिया है। मुझे ये सब कुछ सिर्फ आप और भईया के प्रयासों और प्रोत्साहन से मिला है।"
“मैं यह सुनकर बहुत संतुष्ट हूँ कि तुम अपने परिवार के साथ खुश हो। मुझे विश्वास था कि सौम्या एक समझदार और अच्छी पत्नी साबित होगी।"
"आप हमेशा सही कहती थी, और मैं ही आपसे बेकार में बहस करता रहता था।" अजय ने विनोदी लहज़े में कहा।
अजिता उस पर हँसी।
नाश्ता तैयार हो चुका था। अभिनव और विजय भी टहल कर वापस आ चुके थे और सौम्या भी जाग गई थी। सौम्या रसोईघर में आई और अजिता को नाश्ता बनाते देखकर शर्मा गई और बोली,
“दीदी मैं माफ़ी चाहती हूँ कि मैं सुबह जल्दी नहीं उठ पाई। मैं बहुत शर्मिंदा महसूस कर रही हूँ। मैंने आपकी छुट्टी का पहला दिन बेकार कर दिया।"
"तुम शर्मिंदा महसूस मत करो। सच तो यह है, कि तुम्हारे आधुनिक रसोई घर में खाना पकाने का मैंने आनंद लिया है। तुमने बहुत करीने से यहाँ की चीज़े व्यवस्थित की हैं। यह नए उपकरण प्रयोग करने का तरीका मुझे सिखा देना।" अजिता ने जवाब दिया।
"मैं आपको सारे उपकरणों का प्रयोग सीखा दूँगी लेकिन पहले आइये और अपना नाश्ता कीजिये।” सौम्या ने कहा।
“सौम्या सही कह रही है, अब आपको अपनी छुट्टियों का आनंद लेना चाहिए। आपने हमेशा बहुत काम किया है, मैंने कभी आपको छुट्टी करते हुए नहीं देखा।" अजय ने अजिता से कहा।
अजिता मुस्कुराई और कुछ बोली नहीं। वह सोच रही थी कि वह सच है। जब से उसकी शादी हुई और उसने परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली तबसे उसने कभी भी आराम नहीं किया।
वास्तव में, एक गृहिणी के कर्तव्यों का कोई अंत नहीं है। वह लगातार परिवार में हर सदस्य की जरूरतों का ख्याल रखती है लेकिन लोग यह भूल जाते हैं कि उसे भी आराम की ज़रूरत हो सकती है। इसलिए सभी यह चाहते थे कि अजिता अपनी छुट्टीयों का पूरी तरह से आनंद ले। नाश्ते के बाद, हर कोई गेट-वे-ऑफ इंडिया जाने के लिए तैयार होने चला गया। अजय और अजिता सबसे जल्दी तैयार हो गए थे इसलिए लॉबी में इंतजार करने बैठ गये।
"अभिनव की परीक्षा कैसी हुई?" अजय ने अजिता से पूछा।
"अच्छी हुई हैं। अब बस हमें परिणाम का इंतज़ार है।”
"मैं तुमसे एक बात पूछना चाहती हूँ। मैं कई वर्षों से एक ही सपना सैकड़ो बार देख चुकी हूँ। मुझे इस बात कोई सुराग नहीं मिल रहा है कि क्यों मैं एक ही सपना बार-बार देख रही हूँ। हालाँकि मुझे विश्वास है कि इसका मुझसे ज़रूर कोई संबंध है। अभी तक मैंने ये बात सिर्फ विजय को ही बताई है पर अब तुम्हें भी बता रही हूँ। हो सकता है तुम्हें कुछ समझ आए।“ अजिता ने कहा।
"हाँ बताइये!" मैं कोशिश करूँगा कि समझ सकूँ।
"मुझे सपने में एक इमारत दिखाई देती है, जो एक आधुनिक अस्पताल की है और कुछ अंक भी दिखाई देते हैं, ऐसा अस्पताल मैंने कभी हकीकत में नहीं देखा। पहले मैं घबराती थी ये सोचकर कि घर में कोई बीमार पड़ सकता है लेकिन ईश्वर की कृपा से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसलिए बीमारी से इसका कोई नाता नहीं है।"
अजिता को सुनने के बाद अजय कुछ देर सोच में पड़ गया और फिर अजिता से पूछा।
“क्या आपको वो अंक याद है?"
“वो अंक मैंने एक कागज़ पर लिख कर रखे हैं। पहले कुछ साफ नहीं दिखाई देते थे इसलिए मैं उनको ठीक से समझ नहीं पाती थी पर पिछले कुछ हफ़्तों से वह साफ दिखने लगे हैं।“
अजय ने अपनी डायरी और पेन निकाला और अजिता को दिया और कहा कि वो अंक डायरी पर लिखें। उसे देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह उनका कुछ मतलब समझ जायेगा।
अजय ने गौर से उन अंको को देखा फिर आश्चर्य से अजिता को देखा।
"क्या हुआ? कुछ समझ में आया। जल्दी बताओ लगता है तुम्हें कोई सुराग मिल गया है।” अजिता बोली
"क्या सुराग मिला है तुम्हें? किस बारे में बात कर रहे हो तुम लोग?" विजय अंदर से तैयार होकर निकला और उनकी चर्चा में उनके साथ शामिल होते हुए बोला और वहीं सोफ़े पर बैठ गया।
अजय ने पूरी कहानी विजय को बताई। पूरी कहानी सुनने के बाद विजय ने कहा,
“अजिता ने मुझे पहले इस सपने के बारे में बताया था मुझे तो कुछ समझ नहीं आया था। मुझे लगा शायद कोई बीमार पड़ने वाला है लेकिन खुशकिस्मती से ऐसा कुछ नहीं हुआ। तुम्हें क्या लग रहा है? अजिता इसकी वजह से काफी परेशान रहती है।“
"मुझे ऐसा लग रहा है कि ये अभिनव के प्रोफेशन का भविष्य-दर्शन हो। अभिनव एक डॉक्टर बन सकता है, और अपना एक अस्पताल भी खोल सकता है या फिर किसी आधुनिक अस्पताल में काम कर सकता है, हो सकता है ये वही अस्पताल हो जो सपने में दिख रहा हो।" फिर कुछ देर के लिए वो शांत हो गया। अजिता उत्सुकता में बीच में बोली।
"उन अंको के बारे में क्या?"
"हो सकता है वो उसके प्री मेडिकल परीक्षा के अंक हो। अब तो बस कुछ ही दिन और बचे हैं उसके परीक्षा के परिणाम आने में, उसके बाद मेरी बात सही है कि नहीं, पता चल जायेगा।" अजय बोला।
"अरे वाह, तुमने तो बहुत अच्छा अंदाज लगाया। यही सच होगा।" विजय हँसते हुए बोला।
***हम लोग क्या आज गेट-वे-ऑफ इंडिया नहीं जा रहे हैं? आप लोग तैयार नहीं हो।" अभिनव बोला- अभिनव तैयार होकर कमरे के बाहर आ गया था और अपने बड़ों को बातों में व्यस्त देख कर बेचैन हो गया।
"हम सब तैयार हैं अभिनव।" विजय ने अभिनव से कहा।
गेट-वे-ऑफ इंडिया पहुँच कर वहाँ कुछ देर समय बिताने के बाद, सबने एलीफेंटा गुफाओं का दौरा करने की योजना बनाई। ये गुफाएँ एक द्वीप पर स्थित हैं और आने-जाने वाले को वहाँ तक पहुँचने के लिए स्टीमर नाव में जाना पड़ता है। अभिनव बहुत उत्साहित था, अजिता और विजय उसमें बैठने से डर रहे थे। लेकिन बाद में जाने का मन बना लिया था। थोड़ी ही देर में नाव समुन्द्र के बीच में आ गई।
"मुझे जमीन नहीं दिख रही है चाचा। हर तरफ पानी है।" अभिनव ने अजय से कहा।
वो थोड़ा डरा हुआ लग रहा था।
”उधर आसमान की तरफ देखो, जहाँ आकाश पानी को छू रहा है।" अजय ने उसका ध्यान बाँटने के लिए अभिनव से कहा।
अजिता ने पहली बार समुद्र और आकाश संगम देखा था। सचमुच वह अद्भुत दृश्य था। समुद्र और आकाश दोनों के बीच एक शांतिपूर्ण सामंजयस्य और सह-अस्तित्व प्रतीत हो रहा था। धीरे-धीरे आसमान बादलों की चादर से ढ़कता हुआ सा नज़र आ रहा था। अजिता इस सुन्दर अनुभव में खो गई थी। जैसे-जैसे नाव आगे बढ़ रही थी, दृश्य बदलते जा रहे थे। पल-पल दृश्यों का बदलना ऐसा लग रहा था कि जैसे सब पूर्व नियोजित हो जीवन की परिस्थितियाँ भी तो यूँ बदलती रहती हैं। शायद इस बदलाव के साथ चलते रहना ही जीवन है।
“माँ, हम पहुँच चुके हैं। चलो, जल्दी करो, हमें नाव से बाहर निकलना है," अभिनव अपनी माँ से बोला। अजिता जो अपने ख्यालों में डूबी थी अचानक अभिनव की आवाज़ सुनकर नाव से बाहर आ गई।
"इतनी बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ! इन्हें किसने बनाया है?” अभिनव सदियों पहले बनी मूर्तियों की कला देख कर हैरान था।
"इस अविश्वसनीय वास्तुकला के लिए कितनी मेहनत की गई होगी।" अजिता ने कहा। सभी उस अद्भुत जगह को देख कर आश्चर्यचकित रह गए।
उन्होंने वहाँ एक घंटा बिताया और फिर वापस उसी स्टीमर वोट से गेट-वे-ऑफ़ इंडिया आ गये। उस दिन वे सब काफी थक गए थे इसलिए उन्होंने घर लौटने का फैसला किया। अजिता लोग मुंबई दस दिनों के लिए आये थे। शेष दिनों में उन्होंने वहाँ संग्रहाँलय, तारामंडल, लाइब्रेरी, फिल्म सिटी और थिएटर आदि कई स्थान देखे।
अजय और सौम्या ने उनके साथ समय बिताने के लिए अपने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी। सबने इस यात्रा का भरपूर आनंद लिया। और इतने दिन रहने के बाद में तो उनको मुंबई से मोह भी हो गया था। अभिनव हमेशा के लिए वहाँ रहना चाहता था। आधुनिक शहर के जीवन और छोटे शहर के जीवन में बहुत अंतर है।
अजिता भी आवासीय अपार्टमेंट के आधुनिक जीवन शैली से बहुत प्रभावित हो गई थी। वहाँ उसने जीने का एक नया तरीका सीख लिया था और उसने अपने घर में भी उन चीज़ों को लाने का फैसला कर लिया था। उसने मन में यह कामना की, कि अभिनव भी वैसी ही जीवन शैली जी सके।
छुट्टियाँ खत्म हो गई थी और मुंबई से जाने का समय आ गया था, अभिनव बहुत दुखी था। अपने घर में वह कभी-कभी बोर हो जाता था, लेकिन अपने चाचा के घर में, अनुप्रिया के साथ खेलते हुए कभी बोर होने का समय ही नहीं मिला, लेकिन लौटना तो था ही।
अच्छी बात केवल यह थी कि दादी भी उनके साथ जा रही थी। मुंबई में वह सौम्या और उसके बच्चे की देखभाल करने के लिए कुछ महीने के लिए अजय के घर आई थी। अजय और सौम्या सबके जाने के समय अकेला महसूस कर रहे थे। उन्होंने विजय से वादा लिया कि वे अपनी अगली छुट्टियों पर फिर से आएंगे।
जैसे ही ट्रैन स्टेशन से चलने लगी, सभी के आँखों से आँसू आ गए। जया ने सबको देखकर मन ही मन प्रार्थना की, कि उनके दोनों बेटों के परिवार के बीच वैसा ही प्यार हमेशा बना रहे।
घर पहुँचने पर मुंबई की यादों के साथ जीवन सामान्य हो गया था। अजिता ने अपने काम करने की शैली में कुछ बदलाव किए जो उसने सौम्या के घर में सीखे थे। अब तो बस अभिनव के रिजल्ट का इन्तजार था
30-रिजल्ट
एक महीने बाद अभिनव का परीक्षा परिणाम आ गया। वह पास हो गया था। रिज़ल्ट देखकर अभिनव ने खुशी से चहकते हुए अपनी माँ से कहा,
“माँ मैं पास हो गया। देखो, तुम्हारा बेटा अब डॉक्टर बन जाएगा।" अजिता ने पेपर में रिज़ल्ट देखा तो खुशी की वजह से कुछ बोल ना सकी। अभिनव की मेहनत रंग ले आई थी। घर खुशी और उल्लास से भर गया।
अभिनव ने ख़ुशी से अपनी माँ को गले लगाया और उनके चारों तरफ घूमने लगा, अजिता भी ख़ुशी से डाँस करने लगी हालाँकि उसे डाँस आता नहीं था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे उसने आसमान छू लिया हो। उसके मुँह से शब्द तो नहीं निकल रहे थे, लेकिन उसकी भावनाएँ आँखों से आँसू बन कर निकलने लगे। उसका सपना सच हो गया था। उसका बेटा डॉक्टर बनने वाला था।
विजय ने अभिनव को कंधो पर उठा लिया और पूरे घर में घूमने लगा। सभी लोग उन अनमोल क्षणों का आनंद ले रहे थे। अभिनव ने आशीर्वाद लेने के लिए अपने दादी के पैर छुए तो जया ने उसे गले लगाया और उसके खुशहाल भविष्य के लिए उसे खूब सारा आशीर्वाद दिया।
जैसे ही खबर और लोगों को मिली अभिनव को बधाई देने के लिए घर में मेहमानों का आना जाना बढ़ने लगा।
"अभिनव बेटा बहुत-बहुत बधाई, बल्कि डॉ. अभिनव कहना ज़्यादा बेहतर होगा। शाबाश!" श्रीमती गुप्ता ने कहा। वो और उनके पति बधाई देने सबसे पहले आए थे और उसकी सफलता पर बहुत खुश थे। उनके पति डॉ.गुप्ता, अभिनव को अपने बेटे की तरह मानते थे। विजय और अजिता ने उनका दिल से आभार व्यक्त किया।
” आपके प्रयासों के बिना अभिनव को यह रास्ता नहीं मिल पाता। मैं आपकी सहायता और मार्गदर्शन कभी नहीं भूलूँगी।“
"मुझे शर्मिंदा न करें। मैंने क्या किया है? ये सब तो अभिनव का समर्पण और कड़ी मेहनत है जिसका फल उसे मिला है। “गुप्ता जी ने कहा।”
“आप सही कह रही हैं कि अभिनव ने बहुत मेहनत की है लेकिन उसको यहाँ तक पहुँचने में आपका बड़ा योगदान है," अजिता ने कहा।
"माँ, अजय चाचा को भी तो बताना है।" अभिनव बोल उठा।
अजिता के घर टेलीफोन नहीं था इसलिए अजिता ने श्रीमती गुप्ता से अनुरोध किया कि वो सौम्या और अजय को फोन कर के अभिनव के परिणाम के बारे में सूचित कर दें।
"हाँ हाँ, आप खुद चल कर फोन कर लीजिये," यह कहते हुए श्रीमती गुप्ता उठी और अजिता को अपने साथ अपने घर ले गयी। वहाँ जाकर अजय को फोन मिलाया।
“आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ यह वास्तव में बहुत खुश करने वाली खबर है, मुझे यकीन था कि आपका सपना सच होगा। यह हमारे परिवार की एक सबसे बड़ी सफलता है कि अभिनव डॉक्टर बनने जा रहा है। मुझे अभिनव पर गर्व है, "अजय ने उत्साह से कहा।
"तुम्हें भी बधाई अजय, ये तुम्हारा भी सहयोग और मेहनत है जिसने अभिनव को मेडिकल क्षेत्र में कैरियर चुनने के लिए प्रोत्साहित किया।" अजिता ने कहा।
"वैसे, इस पल का जश्न मनाने के लिए हम बहुत जल्द ही आएंगे। मैं अभी आने की टिकट बुक करा लेता हूँ। मुझे अभिनव से मिलने का बहुत मन हो रहा है।" अजय ने कहा।
"हम सभी तुम लोगों का इंतज़ार करेंगे। अभिनव तुम्हारे आने के बारे में जानकर बहुत खुश होगा। सबको अनुप्रिया की बहुत याद आती है। अच्छा अब फोन रखती हूँ।" ये कह कर अजिता ने रिसीवर नीचे रख दिया।
***
अजय लोगों के आने पर घर में एक पार्टी रखी गई। घर में मेहमानों का ताँता लग गया। सभी मित्रों और रिश्तेदारों को बुलाया गया था।
”तुम्हें कैसा महसूस हो रहा है डॉ. अभिनव?" अभिनव के दोस्त उससे मस्ती कर रहे थे।
”मुझे अभी पढ़ाई करनी है उसके बाद ही डॉक्टर बनूँगा। मैं अभी सिर्फ अभिनव हूँ और तुम सबके लिए हमेशा तुम्हारा दोस्त अभिनव ही रहूँगा। मुझे डॉ.अभिनव कह के अजीब सा महसूस मत कराओ, मैं तुम सबके लिए अभिनव ही रहना चाहता हूँ।"
"इतना भावुक नहीं हो, हम सिर्फ मज़ाक कर रहे थे," उसके मित्र ने प्यार से समझाया।
लेकिन अभिनव उदास था क्योंकि उसे दूसरे शहर के मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला था और उसे अब सबसे दूर जाकर रहना होगा। हम तुम्हें बहुत याद करेंगे, पर कैरियर के लिए ऐसा करना पड़ता है।
“तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारे पास एक अच्छा कैरियर है। दूसरी ओर हम बिना किसी लक्ष्य के पढ़ रहे हैं।“
"तुम ऐसा क्यों कह रहे हो? अभी तुम्हारे पास बहुत समय और अवसर हैं। तुम्हे सिर्फ अपनी पसंद के लक्ष्य को पाने के लिए कोशिश करने की जरूरत है,” अभिनव बोला।
“तुम तो जानते हो कि हम सभी कितना पढ़ने वाले हैं और कितनी क्षमता है। हम लोग तुम्हारे लिए खुश है कि हमारा दोस्त डाक्टर बन गया,” मित्रों ने कहा।
दूसरे कमरे में अजिता महिलाओं के साथ बैठी हुई बातें कर रही थी। वह अभिनव के भविष्य के लिए खुश थी लेकिन अभिनव को दूर भेजने के विचार से ही मन भर आ गया।
"मेरा बेटा वहाँ कैसे अकेला जायेगा? वो हमसे कभी दूर नहीं रहा है।" विजय बोले।
विजय दिल से कमज़ोर था। इसलिए जब उसे पता चला कि अभिनव को किसी दूसरे शहर में दाखिला मिला है, तो उसे बुखार आ गया। उसने अपने शहर के एक कॉलेज में अभिनव के स्थान्तरण के लिए अनुरोध भी किया, लेकिन अधिकारियों ने इसकी अनुमति नहीं दी।
"वो अब बड़ा हो गया है और सिर्फ अभिनव ही नहीं बल्कि उसकी उम्र के कई बच्चे हैं जिन्हें पढ़ाई के लिए बाहर जा के रहना पड़ता है। अगर सभी अभिभावक ऐसे सोचने लगे तो उनके बच्चे कैसे आगे पढ़ाई कर पाएंगे? उदास मत हो। आप भाग्यशाली पिता हैं जिसके बेटे को मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिला है। आपको तो पता है कि यह परीक्षा पास कर पाना कितना कठिन है। बस कुछ सालों की तो बात है, उसके बाद तो आप सब फिर एक साथ रहेंगे, इसलिए आप खुश रहिए नहीं तो अभिनव को दुख होगा।" अजय ने अपने भाई को समझाया ।
अजिता भी बहुत दुखी थी पर वो अपनी भावनाएँ दिखने नहीं देती थी वह चाहती थी कि अभिनव हिम्मती बने और जीवन की हर परिस्थिती का सामना करने को तैयार हो।
जया उस दिन बेहद खुश और गौरवानित थी। सबने उसके पोते की सफलता के लिए उसे बधाई दी।
जया जानती थी कि इस उपलब्धी के पीछे कौन है। पार्टी खत्म होने पर वह अजिता के पास गई और गले लगाकर उसे आशीर्वाद दिया।
"तुम्हारी मेहनत की वजह से हम सबको ये दिन देखने का अवसर मिला है। तुम्हें अपनी बहू के रूप में पाकर मुझे बहुत गर्व है। तुमने इस परिवार के सभी सदस्यों के लिए बहुत कुछ किया है। भगवान तुम्हें हमेशा सफल रखे।"
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