"अब मैं समझी कि तुम इस घर से जाकर भी लौट क्यों आए थे।" नेत्रों से उस पर चिंगारियां बरसाती हुई रश्मि गुर्रा रही थी— अब मेरी समझ में आया कि वीशू और मांजी को अपने मोहजाल में क्यों फंसाया था तुमने—क्यों तुम एक महीने तक इस चारदीवारी से बाहर नहीं निकले।"

“म.....मेरी बात तो सुनिए, रश्मि जी।"
"हत्यारे—पापी अरे—तूने सचमुच ठगा है मुझे, मेरे वीशू और मांजी को—बहुत बड़ा जालसाज है तू—तूने मुझे बातों के ऐसे जाल में फंसाया कि मैं कुछ समझ ही न सकी जब मैंने इस दाढ़ी-मूंछ के बारे में पूछा तो बोला कि यह रूप तूने ' उनके' हत्यारों तक पहुंचने के लिए भरा है—उफ्फ—यह हकीकत तो मुझे अब पता लगी है कि दरअसल उनके रूप में तू अपने ही पापों को छुपा रहा है।"
" य...यह गलत है, रश्मिजी।"
 वह इंस्पेक्टर ठीक ही कहता था—मेरी सारी पवित्रता भंग कर दी है तुमने—मेरा सर्वस्व लूट लिया है—विधवा होकर मैंने यह लिबास पहना, चूड़ियां और बिछुए पहने, बिन्दी लगाई और सिन्दूर में मांग भरी—उफ्फ—एक विधवा के लिए श्रृंगार करने से बड़ा पाप और क्या हो सकता है। और यह पाप मैंने सिर्फ तुम्हारी बातों में आकर किया—तुमने कहा था कि सर्वेश के जीवित होने की खबर से जैसी खलबली उसके हत्यारों में मचेगी, वैसी ही पुलिस में भी और पुलिस के सामने तुम्हें सर्वेश ही साबित करना जरूरी है, ताकि मुजरिमों को तुम्हारे सर्वेश होने का यकीन हो जाए, तुम्हीं ने पुलिस को वह कहानी सुनाने के लिए कहा था, जो मैंने सुनाई।"
युवक ने कहा— तुम सर्वेश के हत्यारों के जाल में फंस रही हो रश्मि।"
"क्या मतलब?" वह गुर्राई।
 पुलिस को यहां भेजना हत्यारों की कोई साजिश थी।"
"कहानियां गढ़ने में माहिर हो तुम, शायद फिर कुछ गढ़ रहे हो।"
"तुम मेरी बात ध्यान से सुनती क्यों नहीं हो रश्मि?”
"क्या सुनूं—क्या तुम कह सकते हो कि तुमने रूबी की हत्या नहीं की?"
और युवक ने कह दिया—“मैंने कोई हत्या नहीं की।"
"क्या?" रश्मि की आंखें हैरत से फट पड़ीं—"सब कुछ इतना ज्यादा स्पष्ट होने के बावजूद भी क्या तुम ऐसा कहने की हिम्मत रखते हो—उफ्फ गजब के ढीठ हो—सफेद झूठ बोलते हो, सूरज की तरफ देखकर तुम कहते हो कि रात है और यह भी चाहते हो कि लोग तुम्हारे कथन पर यकीन कर लें।"
दिन को रात साबित करने पर आमादा हो गया युवक बोला—" प.....प्लीज रश्मि प्लीज, ठण्डे दिमाग से सिर्फ पांच मिनट चुप रहकर मेरी बात सुन लो।"
उसे घूरती हुई रश्मि ने कहा—" बोलो।"
"डॉली ने जो कुछ बताया है, उससे जाहिर है कि सर्वेश की हत्या के पीछे अपराधियों का कोई छोटा-मोटा संगठन नहीं, बल्कि कोई बहुत बड़ा गिरोह है, इसका मतलब यह है कि वे लोग फिजिकल ताकत के अलावा आर्थिक रूप से भी बहुत ज्यादा ताकतवर हैं और जरा सोचो, ऐसे दस-बीस इंस्पेक्टरों को खरीद लेना पैसे वालों के लिए क्या मुश्किल है? ”
"तुम यह कहना चाहते हो कि वे सब गैंग द्वारा खरीदे हुए थे?"
“हां, मुझे जीवित देखते ही गैंग में खलबली मच गई, निश्चय ही सर्वेश को इस गैंग का कोई ऐसा राज मालूम रहा होगा, जिसके खुलने पर गैंग के बॉस डरते हैं और वह राज ही शायद सर्वेश की हत्या का कारण रहा होगा। मुझे देखते ही उन्होंने मुझे सर्वेश समझा, तुरन्त ही उन्हें यह डर था कि कहीं मैं उनका यह राज न खोल हूं और तब ही वे एक्टिव हो गए, इन पुलिस वालों को खरीदकर उन्होंने मुझे हत्या के अभियोग में गिरफ्तार कर लेने का षड्यंत्र फैला दिया।"
"तुम्हारा मतलब यह है, रूबी के मरने—रूपेश के जलने जादि का काण्ड कहीं हुआ ही नहीं है—एक काल्पनिक कहानी गढ़कर वे तुम्हें जेल में डाल देना चाहते हैं।"
"ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं। सम्भव है कि उनका बताया हुआ काण्ड कहीं हुआ हो, मगर मुझसे उनका कोई सम्बन्ध नहीं है—, उस काण्ड के मुजरिम के रूप में मुझे फंसा देने की कीमत ही इन इंस्पेक्टरों ने गैंग से ली होगी।"
 तुम भूल रहे हो कि वे तुम्हें फंसा नहीं रहे थे, बल्कि साबित कर रहे थे, शायद घटनास्थल से बरामद उनके पास तुम्हारे फिगर-प्रिन्ट्स और राइटिंग हैं, अगर ऐसा नहीं है तो जवाब दो—अपने हाथ की यह दशा क्यों बना ली तुमने?"
“क.....क्योंकि मैं उनकी साजिश समझ गया था।"
"कैसी साजिश?"
"तुमने भी गौर किया होगा कि बातों के बीच उनके मुंह से ' मुगल महल' के मैनेजर मिस्टर साठे का नाम निकल गया था, निश्चय ही सर्वेश की हत्या का ' मुगल महल' होटल से कोई सम्बन्ध है, क्योंकि रंगा-बिल्ला वहीं अक्सर आते रहते हैं और वहां से वे सर्वेश को अपने साथ ले गए थे, बल्कि मुझे तो लगता है कि मैनेजर का ही उस गैंग से कोई सम्बन्ध है।"             
 क्या मतलब? ”
"ऑफिस में आज उसने मुझसे एक कागज पर साइन कराए थे, जाहिर है कि पैन और उसकी मेज पर मेरे फिंगर-प्रिन्ट्स भी रह गए होंगे—उसने राइटिंग और निशान पुलिस को दिए—साथ ही नोट देकर यह भी कहा होगा कि इसे संगीन जुर्म में फंसा दो—पुलिस इतनी जल्दी सीधी यहां पहुंच गई। इससे भी जाहिर है कि उसे मैनेजर ने ही यहां भेजा था—वक्त रहते मेरे जेहन में यह बात आ गई कि मैनेजर की मेज से लिए मेरे फिंगर-प्रिन्ट्स को पुलिस बड़े आराम से किसी ऐसे स्थान से लिए दिखाकर अदालत में पेश कर देगी, जहां जघन्य काण्ड हुआ होगा—यह विचार दिमाग में जाते ही मैंने अपना हाथ जला लिया।"
इस बार चुप रह गई रश्मि—युवक को देखती ही रह गई थी वह।
युवक समझ गया कि लोहा गर्म हो चुका है, अत: उसने भरपूर चोट की— अगर उनमें पुलिस को खरीद लेने की क्षमता न होती तो जरा सोचो रश्मि, डॉली के अनुसार सर्वेश को जहर देकर मारा गया था, क्या पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से यह बात छुपी रह सकी होगी?"
 उनका पोस्टमार्टम ही नहीं हुआ था।"
युवक के होंठों पर धिक्कारात्मक मुस्कान उभर आई—बोला— होता भी क्यों, पुलिस को तो उस गैंग ने पहले ही खरीद लिया होगा।"
ये शब्द रश्मि के जेहन पर असर कर रहे थे, यह खामोश खड़ी सुन रही थी।
युवक ने एक और चोट की— वह सारा मामला इंस्पेक्टर दीवान के हाथ में था और वही इंस्पेक्टर दीवान आज भी यहां आया था।"
इसमें शक नहीं कि युवक के शब्दों ने रश्मि के मस्तिष्क को प्रभावित किया। वह यह सोचने पर विवश हो गई थी कि कहीं सचमुच यह सब उसी गैंग की साजिश तो नहीं थी?
एक के बाद एक अपने तरकश के सभी तीर चलाते हुए युवक ने रश्मि को लाजवाब कर दिया था। कहना चाहिए कि सूरज की तरफ देखते हुए अच्छे-खासे दिन को रात करके दिखाया था उसने।
और अब उसने रश्मि को ठोक-बजाकर देखा—"क्या तुम्हें अब भी मेरी बातों पर यकीन नहीं हुआ है रश्मि?"
"म...मैं दुविधा में फंस गई हूं।"
"कैसी दुविधा? ”
"क्या तुम सच कह रहे हो—क्या रूबी या रूपेश नाम के व्यक्तियों से सम्बन्धित किसी हत्याकाण्ड से तुम्हारा कोई सम्बन्ध नहीं है?"
"बिल्कुल नहीं।" इस बार युवक ने पूरी दृढ़ता के साथ कहा।
खामोशी के साथ रश्मि उसे घूरती रही। बोली—"फिलहाल मैं तुम्हारे इस कथन पर यकीन कर लेती हूं, मगर इस चेतावनी के साथ कि अगर कल हकीकत के रूप में मुझे वही पता लगा, जो पुलिस कह रही थी तो मैं तुम्हारा मुंह नोंच लूंगी।"
"जरूर—मगर...।"
 मगर? ”
"एक रिक्वेस्ट मैं भी करना चाहूंगा।"
"क्या?”
"इस बात को अच्छी तरह समझ लीजिए कि मेरे और सर्वेश के हत्यारे के बीच उनके इस हमले के साथ ही खुली जंग का ऐलान हो चुका है—मैं अपनी चालें चलूंगा—वे अपनी, और वे कोई भी चाल चल सकते हैं—मेरे और आपके बीच मतभेद पैदा करने वाली चालें भी—आपकी दृष्टि में मेरा करेक्टर गिराने की चाल भी—मैं रिक्वेस्ट करूंगा कि आप खुद को उनकी ऐसी किसी भी चाल से बचाकर रखें।"
"कोशिश करूंगी, मगर एक बात अभी भी कहूंगी, मिस्टर।" रश्मि ने कहा— मुझे तुम्हारी बातों पर पूरा यकीन नहीं हुआ है—मैं सोचती हूं कि या तो तुम वाकई निर्दोष हो या इतने बड़े जालसाज और ठग हो जो अपनी गढ़ी हुई तर्कपूर्ण कहानियों से दिन को रात साबित कर सकता है—और अगर तुम वह हो तो निश्चय ही हत्यारे हो और कान खोलकर सुन लो कि—रश्मि अपने पति के हत्यारों से बदला लेने के लिए किसी मासूम के हत्यारे से हरगिज समझौता नहीं कर सकती।"
¶¶
सैंकड़ों ट्यूबलाइटों से जगमगाता हुआ वह एक बहुत बड़ा हॉल था—सिच्युएशन से ही जाहिर था कि वह हॉल किसी बहुत ब़ड़ी इमारत के नीचे छुपा तहखाना है। वहीं दिन जैसा प्रकाश फैला था। दीवारों के सहारे वर्दीधारी सैनिक खड़े थे।
उन सभी के पैरों में कपड़े के जूते थे। हरी वर्दी पर लम्बी कपड़े की चौड़ी बैल्ट और सिर पर लाल रंग की ही कैप लगाए, हाथों में
गन लिए वे इस कदर मुस्तैद खड़े थे कि जैसे किसी भी पल किसी को भी शूट कर देने के लिए तैयार हों।
उनकी गनें उन लोगों की तरफ तनी हुई थीं, जो पंक्तिबद्ध हॉल के बीचो-बीच खड़े थे। उनमें एक चेहरा ऐसा था, जिससे पाठक पूर्ण परिचित हैं।             
यह चेहरा था रूपेश का।
जला हुआ, वीभत्स, भयानक और डरावना चेहरा।
अपने साथ पंक्ति में खड़े अन्य लोगों की तरह ही वह भी बिल्कुल खामोश खड़ा हॉल के एक तरफ बने मंच की तरफ़ देख रहा था।
उस मंच की तरफ, जिसके अग्रिम सिरे पर पंक्तिबद्ध कम-से-कम दस सर्चलाइटें लगी हुई थीं और प्रत्येक सर्चलाइट का प्रकाश इधर ही की तरफ था, अतः मंच अंधेरे में डूबा- सा नजर आता था।
एकाएक ही मंच की छत पर लगा एक लाल रंग का बल्ब जलने-बुझने लगा और उसके साथ ही सारे हॉल में पिंग—पिंग की आवाज गूंजने लगी।
हॉल में मौजूद सभी लोग पहले से कहीं ज्यादा मुस्तैद नजर आने लगे।
फिर मंच पर एक साया नजर आया—सिर्फ साया।
चेहरा स्पष्ट नहीं चमक रहा था उसका। हां—लिबास चांदी जैसे रंग का चमकदार होने की वजह से जरूर चमक रहा था—चुस्त लिबास था वह।
बल्ब ने जलना-बुझना बन्द कर दिया—पिंग-पिंग की आवाज भी बन्द हो गई।
एकाएक मंच से सर्द आवाज उभरी— रंगा-बिल्ला!"
पंक्ति से एक साथ दो क्रूर-से नजर जाने वाले युवक दो कदम आगे बढ़कर रुकते हुए सम्मानित स्वर में बोले— य....यस बॉस।"
"क्या तुम्हें मालूम है कि अनाज तुम्हें यहां क्यों बुलाया गया है?"
"हमें पता लगा है बांस कि सर्वेश को जीवित देखा गया है।" उनमें से एक ने कहा।
"क्यों? ”
"इ...इस बारे में सुनकर हम खुद चकित हैं, बॉस!"
"ऐसा पहली बार देखा गया है कि जिसकी लाश रंगा-बिल्ला ने ठिकाने लगाई हो—वह जीवित देखा जाए—क्या आज से चार महीने पहले ठिकाने लगाई गई वह लाश सर्वेश की नहीं थी?"
"यकीनन यह सर्वेश की लाश थी बॉस—और फिर इस मामले में केवल हम ही नहीं, ' शाही कोबरा' भी इन्वॉल्व थे, उन्होंने जिसे जहर देकर मारा, यह नहीं माना जा सकता कि वह सर्वेश नहीं था, क्योंकि ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता कि ' शाही कोबरा' की आंखें धोखा खा सकती हैं—हमने रेल की पटरी पर यकीनन उसी लाश को रखा था, जो हमें ' शाही कोबरा' ने सौंपी—हमें हुक्म दिया गया था कि लाश को पटरी पर इस तरह रखें कि ट्रेन के गुजरने के बाद उसका चेहरा न पहचाना जा सके—हमने अक्षरश: उनके हुक्म का पालन किया था।"
"इस मामले से ' शाही कोबरा' भी बहुत चकित और चिन्तित हैं—वे उसे दो दिन से ज्यादा जीवित देखना नहीं चाहते।"
"वह दूसरे दिन भी जीवित नहीं मिलेगा।"
"गुड।" मंच की तरफ से आवाज उभरी— तुम जा सकते हो।"
विशेष ढंग से अभिवादन करने के बाद वे दोनों कदम-से-कदम मिलाते हॉल से बाहर चले गए और तब बॉस ने पुकारा—रूपेश!"
“यस बॉंस।" रूपेश पंक्ति से दो कदम आगे निकल आया।
"तुम्हारी जमानत सेठ न्यादर अली ने ली थी न? ”
“यस बॉस।"
"कमाल की बात है—भला उसने तुम्हारी जमानत क्यों ली थी?"
"कचहरी में अपने वकील और इंस्पेक्टर आंग्रे के सामने तो उसने खुद को एक महान और आदर्श व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया—उसने मेरी जमानत क्यों ली थी, इसका रहस्य तो मुझे तब पता लगा, जब वह मुझे अपने बंगले पर ले गया।"
"वहां क्या किया उसने?"
"उस सारे सिलसिले से सम्बन्धित वह मुझसे कोई ऐसी बात जानना चाहता था, जो मैंने पुलिस को न बताई हो।"             
“ओह, इसका मतलब यह कि न्यादर अली एक नम्बर का धूर्त है—फिर, तुमने उसे कुछ बताया तो नहीं?"
"सवाल ही नहीं उठता, बॉस—मीठी-मीठी बातें बनाकर वह मुझे अपने बंगले ही में कैद रखना चाहता था, मगर मौका मिलते ही मैं वहां से भाग आया।"
"गुड।"
"मैं बहुत शर्मिन्दा हूं, बॉस, ' शाही कोबरा' से मेरी तरफ से माफी मांग लीजिएगा—मैं पूरी तरह से उनके हुक्म पर अमल नहीं कर सका।"
"' शाही कोबरा' को सब मालूम है—वे जानते हैं कि इस स्कीम को कामयाब बनाने के लिए तुमने अपनी पत्नि खो दी, अपनी खूबसूरत शक्ल खो दी, मगर फिर भी पुलिस को यह नहीं बताया कि यह सब कुछ तुम ' शाही कोबरा' के लिए कर रहे थे—सारा जुर्म तुमने अपने ही ऊपर ले लिया है—तुम्हारी इस कुर्बानी का इनाम ' शाही कोबरा' जरूर देंगे।"
"थ......थैंक्यू, बॉस।
"अब तुम क्या चाहते हो?"
एकाएक ही रूपेश का डरावना चेहरा विकृत हो गया। बड़ी ही हिंसक गुर्राहट निकली उसके मुंह से—" म......मैँ याददाश्त भूले उस हरामजादे युवक से अपनी माला के खून और मुझे इस हालत तक पहुंचाने का बदला लेना चाहता हूं।"
मंच से बॉस ने कहा— मिलेगा रूपेश, तुम्हें पूरा मौका दिया जाएगा।"
¶¶
' मुगल महल' के काउण्टर पर पहुंचकर इंस्पेक्टर दीवान ने कहा—" मेरा नाम दीवान है और ये हैं इंस्पेक्टर चटर्जी—मैनेजर से कहो कि हम उनसे मिलना चाहते हैं।"
"क्षमा कीजिए।" डॉली ने कहा—“यह तो आपको बताना ही होगा कि किस सम्बन्ध मेँ?"
दीवान ने सवालिया नजरों से चटर्जी की तरफ देखा। दीवान इस समय यूनीफॉर्म में था, जबकि चटर्जी सलेटी रंग का सूट पहने था। उसने डॉली से कहा— क्या यहां कल सर्वेश आया था?"
" ज...जी हां। कहते समय डॉली चौंक पड़ी और उसका यह चौंकना चटर्जी की पैनी निगाहों से छुप नहीं सका। सामान्य स्वर में ही उसने कहा— " उनसे कहो कि हम सर्वेश के सम्बन्ध में मिलना चाहते हैं।"
"म......मैं समझी नहीं....सर्वेश के सम्बन्ध में उनसे क्या बातें करना चाहते हैं आप? ”
चटर्जी की दृष्टि कुछ और पैनी हो गई, बोला—"हम यह जांच कर रहे हैं कि जो सर्वेश कल यहां आया था, वह सर्वेश ही था या उसकी शक्ल में कोई बहुरूपिया है?"
डॉली के होश उड़ गए—"क......क्या वह कोई बहुरूपिया भी हो सकता है?"
बहुत ही रहस्यमयी मुस्कान के साथ चटर्जी ने कहा— क्यों नहीं हो सकता, आखिर चार महीने पहले सर्वेश ने आत्महत्या कर ली थी।"
"व......वह तो ठीक है, मगर...।"
 हमें तुमसे बातें नहीं करनी हैं।" एकाएक ही उसकी बात बीच में काटकर दीवान गुर्रा उठा— हमारे आने की सूचना मैनेजर को दो।"
सकपकाकर डॉली ने रिसीवर उठा लिया, मैनेजर को सूचना दी—थोड़ी देर बाद रिसीवर रखते समय वह शुष्क कण्ठ से सिर्फ इतना ही कह सकी— आप जा सकते हैं।"
"थैंक्यू बेबी—मगर मुझे दुख है कि तुम बहुत ज्यादा स्मार्ट नहीं हो।" बड़े ही अजीब अन्दाज में कहने के बाद चटर्जी दीवान के साथ मैनेजर के कमरे की तरफ बढ़ गया।
डॉली हक्की-बक्की-सी खड़ी रह गई थी।
वह चटर्जी द्वारा कहे गए अन्तिम वाक्य का अर्थ बिलकुल नहीं समझी—हां, यह प्रश्न बड़ी तेजी से उसके जेहन में कौंधा था कि सर्वेश सचमुच सर्वेश ही है या कोई बहुरूपिया?
यह राज उसे भी पता लगना चाहिए, अत: वह मैनेजर के कमरे के बन्द दरवाजे की तरफ लपकी और अगले ही पल वह अन्दर होने वाली बातें सुन रही थी।
¶¶
"भला आपको यहां से कैसे मालूम हो सकता है कि यह सर्वेश ही है या कोई और?" साठे ने चकित भाव से पूछा।
चटर्जी ने अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ कहा—" आपके पास चार महीने पहले का वह रजिस्टर तो होगा ही, जिसमें सर्वेश अपनी ड्यूटी पर आने-जाने का समय लिखकर अपने साइन करता हो?"
“हां, बिल्कुल है।"
"सर्वेश कैशियर था, उसके द्वारा तैयार किए गए खाते भी होंगे?"
"' जी, बिल्कुल हैं—मगर उनसे होगा क्या?"
"मुझे केवल यहां काम करने वाले सर्वेश की राइटिंग चाहिए, जो व्यक्ति कल यहां आया था, उसकी राइटिंग मेरे पास है—दोनों को मिलाने से गुत्थी सुलझ जाएगी।"
"ओह, वेरी नाइस।" साठे कह उठा, चटर्जी के लिए उसके चेहरे पर प्रशंसा के भाव उभर आए थे, बोला— लेबर का हाजिरी रजिस्टर तो मेरे पास रहता ही है, संयोग से चार महीने पहले के कैश रजिस्टर भी मेरे पास हैं।"
"उन्हें निकालिए।"
साठे ने मेज पर पड़े चाबी के गुच्छे में से एक चाबी से दराज खोली और कुछ ही देर बाद चटर्जी उसके द्वारा दिए गए रजिस्टर से गवाह के स्थान पर ली गई सिकन्दर की राइटिंग मिला रहा था और मिलाते-ही-मिलाते वह बड़े गहरे अन्दाज में मुस्करा उठा।
उत्सुक साठे ने पूछा—" क्या रहा?"
"यह सर्वेश नहीं, कोई बहुरूपिया है।"
“ब....बहुरूपिया, मगर वह यहां क्यों आया था—क्या चाहता है?"
“यह सब तो उसकी गिरफ्तारी के बाद ही पता लगेगा, मगर हाजिरी रजिस्टर में सर्वेश के अन्तिम दिन यहां से जाते समय का कॉलम भरा हुआ क्यों नहीं है?"
"शायद उसने तबीयत खराब होने की वजह से नहीं भरा था।"
"हो सकता है।" चटर्जी ने कहा—“अब हमारा लक्ष्य यह पता लगाना है कि खुद को सर्वेश साबित करने के पीछे उसका उद्देश्य क्या है—और उसमें आप हमारी मदद कर सकते हैं, मिस्टर साठे।"
"मैं आपके हर हुक्म का पालन करने के लिए तैयार हूं।"
"वह जब भी यहां आए, यही जाहिर करें कि आप उसे सर्वेश मानते हैं—अपनी सीट पर अगर काम करना चाहे तो वह भी उसे दे दें—पुलिस की नजर बराबर उस पर रहेगी—कोई भी प्वाइंट हाथ में आते ही हम उसे पकड़ लेंगे।"
"किसी प्वाइंट की जरूरत ही कहां रह गई है, आपने अभी कहा कि राइटिंग से क्लीयर हो चुका है, उसे गिरफ्तार कर लीजिए।”
"केवल हमारे दिमागों में क्लीयर हुआ है, अदालत में साबित नहीं किया जा सकता।"
“क्यों?”
"हम आपको बता चुके हैं कि उसने अपना हाथ जला लिया है, अत: उसकी वर्तमान राइटिंग नहीं ली जा सकती। आपके रजिस्टरों की राइटिंग को वह अपनी ही कहेगा और इस राइटिंग को जो हमारे पास है, कहेगा कि यह उसकी नहीं है, जाने किसकी राइटिंग से रजिस्टर्स में मौजूद राइटिंग को मिलाकर मुझे बहुरूपिया साबित किया जा रहा है?”
"ओह नो!"
"अपने चार महीने गुम रहने की वजह उसने आपको क्या बताई थी?"
"याददाश्त गुम होना।"
"वह कहता है कि उसने आपसे ऐसा कुछ नहीं कहा।"
 क...क्या मतलब?" साठे उछल पड़ा—"व...वह बकता है, एकदम झूठ बोल रहा है वह, उसने मुझसे कहा था कि...।"
"हम जानते हैं, मगर फिलहाल उसके झूठ को साबित नहीं कर सकते।"
 क...कमाल कर रहे हैं आप—मुझसे सामना कराइए उसका।"
चटर्जी ने उसी मुस्कान के साथ कहा—" सामना होने पर आप कहते रहेंगे कि वह झूठा है, वह कहता रहेगा कि आप—आपके पास साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं होगा, सो—बात वहीं लटकी रहेगी।"
"हद हो गई, इतना ढीठ है वह?"
"शायद इससे भी ज्यादा, खैर—फिलहाल आपके लिए उसे सर्वेश ही समझ लेना कारगर होगा, मगर अपनी काउण्टर गर्ल से जरा सावधान रहें।"
"क...क्या मतलब?"
"वह मुझे रहस्यमय लगती है, सम्भव है कि इस बहुरूपिए से मिली हुई हो—उसकी तरफ से सतर्क रहने की सख्त आवश्यकता है।" कहने के साथ ही चटर्जी उठ खड़ा हुआ और दीवान के साथ ऑफिस से बाहर निकल गया।
सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक बात यह थी कि इस वक्त साठे के ऑफिस की किसी भी दीवार पर सेठ न्यादर अली का फोटो नहीं लगा हुआ था।
¶¶
डॉली का दिल तभी से ' धक-धक' कर रहा था, जब से उसने मैनेजर के कमरे में होने वाली बातें सुनी थीं। जहां से उसे यह पता लगा था कि जिससे वह अपना दिल खोल बैठी है, जिसे अपना राज बता दिया है, वह सर्वेश नहीं कोई बहुरूपिया है, वहीं अपने बारे में इंस्पेक्टर चटर्जी के विचार सुनकर उसके होश उड़ गए थे।
यह महसूस करके ही उसकी हालत पतली हुई जा रही थी कि पुलिस की नजर मुझ पर है और वे मुझे उस बहुरूपिए का साथी समझ रहे हैं—उफ्फ—मैं उससे मिली ही क्यों—सर्वेश समझकर मैंने उसे राज क्यों बता दिया—पता नहीं वह कम्बख्त कौन है, किस चक्कर में है—उसके साथ व्यर्थ ही मैं भी फंस जाऊंगी।
अचानक उसके दिमाग में एक तरकीब आई।
उसने जल्दी से एक पैड और बाल-पैन उठाया—लिखा—
मैँ जान चुकी हूं कि तुम सर्वेश नहीं हो।
सुनो, दीवान और चटर्जी नाम के दो इंस्पेक्टर यहां आए—साठे जी से मिले, उनके पास तुम्हारी राइटिंग थी, जिसे चार महीने पहले सर्वेश द्वारा तैयार किए गए रजिस्टरों से मिलाकर वे जान गए हैं कि तुम सर्वेश नहीं हो—कमरे में साठे जी से होने वाली सारी बातें मैंने भी छुपकर सुन ली हैं।
मैं नहीं जानती कि तुम किस चक्कर में हो, मगर इतना जान गई हूं कि तुम जिस चक्कर में हो, सफल नहीं हो सकोगे—साठे जी और पुलिस तुम्हारी हकीकत जान गए हैं। उनकी योजना यह बनी है कि तुम पर तुम्हें सर्वेश ही होना जाहिर करके यहां सर्वेश का काम दे दिया जाए—पुलिस की नजर हर पल तुम पर रहेगी और केवल तुम्हें फंसाने के उद्देश्य से ही यह साजिश की जा रही है, अत: तुम अपने किसी मकसद में हरगिज कामयाब नहीं हो सकोगे—खैरियत चाहते हो तो सर्वेश का यह चोला उतार फेंको, जितनी जल्दी हो सके देहली से बाहर भाग जाओ, अगर तुमने ऐसा न किया तो निश्चय ही पुलिस के हत्थे चढ़ जाओगे।
पत्र लिखने के बाद उसने एक बार पढ़ा।
उसे यकीन हो गया कि इस पत्र को पढ़ने के बाद बहुरूपिया एक पल के लिए भी देहली में नहीं ठहरेगा और सर्वेश बना रहकर अपने किसी उद्देश्य में सफल होने का भूत तो उसके दिमाग से उतर ही जाएगा।
यही डॉली चाहती थी।
जब वही न रहेगा तो मामला आगे बढ़ेगा ही नहीं और जब झमेला ही खत्म हो जाएगा तो वह हर झमेले से बाहर हो जाएगी—यही सब सोचकर उसने अपने अत्यन्त विश्वसनीय वेटर को बुलाया और पत्र को एक लिफाफे में बन्द करती हुई बोली— इस लिफाफे को तुम इसी समय सर्वेश के घर पहुचा दो।"
'" ओo केo मैडम।" कहकर वेटर ने लिफाफा ले लिया।
चारों तरफ़ देखती हुई डॉली ने कहा— अब तुम जाओ।"
जाने के लिए अभी वेटर मुड़ा ही था कि मुख्य द्वार खुला, रंगा-बिल्ला होटल के अन्दर प्रविष्ट हुए—उन पर दृष्टि पड़ते ही डॉली का दिल एक बार बहुत जोर से धड़का।
' धक्'
और फिर धड़कनें मानो रुक गईं।
सिट्टी-पिट्टी गुम ही गई डॉली की—मूर्खों की तरह उधर ही देखती रह गई वह, पलकें तक जैसे रंगा-बिल्ला को देखने के बाद झपकना भूल गई थीं।
वे दोनों आदमी नहीं, जिन्न नजर जाते थे—सचमुच के जिन्न।
पांच फुट दस इंच।
वे इस वक्त भी अपना परम्परागत लिबास यानि काले कपड़े पहने हुए थे, पैरों में चमकदार काले जूते जो दर्पण का भी काम कर सकें—यह महसूस करके डॉली के होश उड़ गए कि वे काउण्टर की तरफ ही चले आ रहे हैं।
चलते समय उनके कदम बिल्कुल साथ उठते थे—परेड करते जवानों की तरह।
उनकी जलती हुई आंखों को डॉली ने अपने चेहरे पर स्थिर महसूस किया—डॉली का चेहरा स्वयं ही पीला-जर्द पड़ गया। जाने क्यों किसी अनहोनी की आशंका से डॉली का दिल सूखे पत्ते-सा कांपने लगा था, स्वयं वेटर भी उन्हें देखकर ठिठक गया था।
डॉली दांत भींचकर गुर्राई—“त.....तुम जाओ बेवकूफ, यहां क्यों खड़े हो?"
वेटर जैसे किसी मोहजाल से बाहर निकला।
लिफाफे को जेब में रखते हुए अभी उसने पहला कदम आगे बढ़ाया ही था कि नजदीक पहुंचकर रंगा ने उसके कन्धे पर हाथ रख कर पूछा—"कहां जा रहे हो?"
"ज....जी....? वेटर के प्राण खुश्क ही गए।
डॉली को काटो तो खून नहीं।
बिल्ला ने वेटर से लिफाफा लेते हुए कहा—" ये क्या है?"
डॉली का सिर चकरा गया, चेहरा पीला-जर्द—ऐसी इच्छा हुई कि वह झपटकर बिल्ला के हाथ से लिफाफा छीन ले, मगर ऐसा करने की हिम्मत उसमें दूर-दूर तक नहीं थी, फिर भी लड़खड़ाते-से स्वर में उसने कहा— अ..आओ रंगा-बिल्ला, मैं तुम्हारी क्या सेवा कर सकती हूं?"
"पहले यह देखते हैं कि ये वेटर तेरी क्या सेवा कर रहा था?" कहने के साथ ही बिल्ला ने एक झटके से लिफाफा खोल लिया।             
"न...नहीं...।" डॉली चीख पड़ी—“उ.....उसमें तुम्हारे मतलब की कोई चीज नहीं है .प...प्लीज़—उसे मत खोलो बिल्ला।"
रंगा बोला  डॉली कुछ ज्यादा ही चीख रही है बिल्ला, इसमें शायद हमारे ही मतलब की कोई चीज है।"
बिना कुछ कहे बिल्ला ने पत्र निकाल लिया।
डॉली की आंखों के सामने अपना लिखा एक-एक शब्द चकरा उठा, दिमाग घूम गया उसका। आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा, डॉली को लगा कि वह अभी चकराकर गिर पड़ेगी।
" प...प्लीज, उसे मत पढ़ो बिल्ला।" मौत का खौफ डॉली पर कुछ इस तरह हावी हुआ कि वह गिड़गिड़ाती हुई रो पड़ी।
पत्र पढ़ते-पढ़ते रंगा-बिल्ला के चेहरे क्रूरतम हो उठे, आंखों में उभर आई हिंसक चमक।
¶¶
मुर्गी के अण्डे जितना बड़ा वह एक अण्डाकार गोला था, देखने मात्र से वह कोई छोटा बम-सा नजर आता था। मुश्किल से एक मिनट पहले उसके अन्दर से ' पिंग-पिंग' की उतनी ही धीमी आवाज निकली थी, जितनी "टेबल वॉच' से प्रत्येक सेकंड निकलती है। इस आवाज़ के साथ ही अण्डाकार बम के उस स्थान पर दो बार हरे रंग का एक नन्हां-सा बल्ब जलकर बुझ गया था—जहां छोटा-सा परदर्शी शीशा लगा हुआ था।
वह अण्डाकार बम जैसी वस्तु युवक और विशेष के बीच सेन्टर टेबल पर रखी थी। विशेष अपनी बड़ी-बड़ी और मासूम आंखों में दिलचस्पी लिए उसे ध्यान से देख रहा था।             
जबकि युवक के होंठों पर बहुत ही रहस्यमय मुस्कान थी।
कमरे में खामोशी छाई रही और पांच मिनट गुजरते ही ' पिंग-पिंग' की आवाज़ के साथ हरा बल्ब पुन: लपलपाया।
"बस।" युवक ने विशेष को बताया— फिर पांच मिनट बाद हर बल्ब इसी आवाज के साथ खुद-ब-खुद लपलपाएगा।"
"क्या शानदार खिलौना है, पापा।
"इसे हम बाजार से नहीं लाए हैं वीशू, खुद बनाया है।"
 आपने? ”
"हां।”
विशेष ने खुश होते हुए पूछा—"यह खिलौना आपने मेरे लिए बनाया है न पापा?"
"सॉरी बेटे, नहीं।"
"फिर?”
"तुम तो अभी बहुत छोटे हो वीशू, यह खिलौना हमने बड़े और गन्दे बच्चों के लिए बनाया है। वे इस बल्ब के जलने-बुझने से पूरी तरह डर सकते हैं।"
"इसमें भला डरने की क्या बात है, पापा?"
कुछ बताने के लिए युवक ने अभी मुंह खोला ही था कि किसी ने मकान के मुख्य द्वार पर दस्तक दी, दोनों ही का ध्यान भंग हो गया, युवक ने अण्डाकार बम-सी नजर आने वाली वस्तु जेब में रखते हुए कहा—" जरा देखना वीशू—कौन है?"
विशेष कमरे से निकलकर मुख्य द्वार की तरफ दौड़ गया।
युवक ने आगे बढ़कर एक मेज की दराज खोली, दराज से उसने एक इलेक्ट्रिक स्विच निकालकर कोट की ऊपरी जेब में डाल लिया।
अभी वह मुड़ा ही था कि कमरे में दाखिल होते हुए विशेष ने सूचना दी—" आपके होटल से एक वेटर आया है पापा, कहता है कि उसे डॉली मेमसाब ने भेजा है।"
सुनते ही रोमांच की एक तेज लहर उसके समूचे जिस्म में दौड़ गई। उसे लगा कि अब कुछ ही देर बाद दुश्मनों से वास्तविक जंग शुरू होने वाली है—उसने डॉली से रंगा-बिल्ला की सूचना भेजने के लिए कहा था और यह वेटर शायद यही सूचना लेकर आया है। यह सोचते ही वह तेजी के साथ कमरे से बाहर की तरफ लपका।
आंगन पार करते वक्त कदाचित कदम ठीक न पड़ने की वजह से वह कई बार लड़खड़ा गया, किन्तु गिरा नहीं। दरवाजे पर पहुंचकर उसने वहां खड़े वेटर से पूछा— कहो, डॉली ने क्या संदेश भिजवाया है?"
वेटर ने चुपचाप एक कागज उसकी तरफ बढ़ा दिया।
युवक ने व्यग्रतापूर्वक खोलकर उसे पढ़ा, लिखा था— मैंने पता लगा लिया है सर्वेश कि इस वक्त रंगा-बिल्ला कहां हैं—तुम इस वेटर के साथ चले आओ—यह तुम्हें मेरे पास पहुंचा देगा, फिक्र न करना—वेटर मेरा विश्वसनीय है।"
पत्र जेब में डालते हुए युवक ने घूमकर विशेष से कहा “हम जरा काम से जा रहे हैं, वीशू बेटे—दरवाजा अन्दर से बन्द कर लो।"
वीशू के स्थान पर वहां रश्मि की आवाज गूंजी— काम से तो तुम जा रहे हो, लेकिन जरा संभलकर चला करो—आंगन में तुम्हारे कदम ठीक नहीं पड़ रहे थे।"
"क...क्या मतलब?" कुछ भी न समझने की स्थिति में चौंकते हुए युवक ने पूछा।
अपने कमरे की तरफ जाने वाले जीने की एक सीढ़ी पर खड़ी रश्मि ने उसी गम्भीर और सौम्य स्वर में कहा— तुम्हारे दोनों जूतों की एड़ियां घिस गई हैं—शायद इसीलिए गैलरी पार करते समय कई बार लड़खड़ा गए—मेरी सलाह है कि एड़ियां ठीक करा लो, वरना कहीं मुंह के बल गिर पड़ोगे।"
युवक रश्मि के कटाक्ष, व्यंग्य अथवा पहेली जैसे उन शब्दों का अर्थ नहीं समझ सका—रश्मि की बात का अर्थ पूछने के लिए उसके पास समय नहीं था, अतः वेटर से बोला।
" चलो।”
वह बाहर निकल गया। विशेष ने दरवाजा बन्द कर लिया।
¶¶
वेटर उसे देहली के बाहरी इलाके में स्थित एक गन्दी-सी बस्ती में ले गया, और फिर टीन के बने एक फाटक जैसे विशाल दरवाजे के सामने ठिठका। यह दरवाजा किसी गोदाम के दरवाजे जैसा था, जिसकी तरफ इशारा करके वेटर ने कहा—" आप इसके अन्दर चले आइए।"
"क्या डॉली मुझे यहां मिलेगी?"
"जी हां।"
" म...मगर यह अजीब जगह है, डॉली भला यहां क्या कर रही है?"
"डॉली मेमसाब ने कहा था कि शायद रंगा-बिल्ला को उन पर शक हो गया है—उन्हीं के डर से वे यहां छुपी हुई हैं।"
"क्या तुम अन्दर नहीं चलोगे? ”
"नहीं।" अजीब-से स्वर में कहने के बाद वेटर एक क्षण के लिए भी वहां रुका नहीं। अगला सवाल पूछने के लिए युवक का मुंह खुला-का-खुला रह गया, क्योंकि गजब की तेजी के साथ वेटर मुड़ा और लम्बे-लम्बे कदमों के साथ उससे दूर होता चला गया।
ठगा-सा युवक वहीं खड़ा रहा।
मस्तिष्क में सैकडों विचार चकरा रहे थे। स्वयं को उलझन-सी में घिरा महसूस कर रहा था वह—सारा वातावरण रहस्यमय-सा लगा।
वेटर एक मोड़ पर घूमकर दृष्टि से ओझल हो गया। युवक यह सोचता हुआ दरवाजे की तरफ घूमा कि जब उसने एक खतरनाक काम अपने हाथ में लिया है तो इस किस्म के वातावरण से तो गुजरना ही होगा। दाएं हाथ पर पट्टी बंधी हुई थी—बाएं हाथ से जेब में पड़े रिवॉल्वर को थपथपाया और किसी भी खतरे से जूझने के लिए तैयार होकर उसने गोदाम के दरवाजे पर लगी सांकल जोर से बजा दी।
आवाज दूर-दूर तक गूंज गई, मगर वहां कोई व्यक्ति नजर नहीं आया।
अन्दर से उभरने वाली किसी भारी सांकल के हटने की आवाज सुनकर वह सतर्क हो गया। बायां हाथ जेब के अन्दर डालकर रिवॉल्वर की मूठ पर कस लिया।
दरवाजा खुला। डॉली पर नजर पड़ते ही वह कुछ आश्वस्त हुआ।
युवक ने महसूस किया कि डॉली इस वक्त बुरी तरह आतंकित है। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं, आंखों में हर तरफ ‘खौफ-ही-खौफ' नजर आ रहा था।
"क्या बात है, डॉली? तुम इस कदर डरी हुई क्यों हो?"
"आओ।" उसके सवाल पर कोई ध्यान न देती हुई डॉली ने शुष्क स्वर में कहा तथा टीन के दोनों विशाल किवाड़ों के बीच पैदा हुए रास्ते से हट गई—अन्दर कदम रखते हुए युवक ने डॉली के लहजे में कम्पन महसूस किया।
रुई की गांठों से भरा वह एक बहुत विशाल हॉल था।
युवक ने तेजी से निरीक्षण किया। हर तरफ एक अजीब-सी खामोशी छाई हुई थी। यह खामोशी युवक को वैसी ही महसूस हुई जैसी अक्सर किसी बड़े तूफान के जाने से पहले छा जाया करती है।
वह डॉली की तरफ घूमा।
भारी सांकल चढ़ाने के बाद डॉली स्वयं उसकी तरफ घूमी थी—नजरें मिलीं तो युवक को पुन: अहसास हुआ कि डॉली खुद को सूली पर खड़ी महसूस कर रही है।
उसने पूछा—" क्या बात है डॉली?"
"क...क्या तुम्हें वेटर ने नहीं बताया?" लहजा बुरी तरह कांप रहा था।
"रंगा-बिल्ला को तुम पर कैसे शक हो गया?"
वही आतंकित स्वर—“म......मैं इस वक्त भी उनकी कैद में हूं।"
"क......क्या मतलब?" युवक चीख-सा पड़ा।
"म.......मैं एक-एक शब्द वही बोल रही हूं जो बोलने के लिए उन्होंने कहा है।"
युवक उछल पड़ा, रोंगटे खड़े हो गए उसके, चीखा—" क......कहां हैं वे?"
"इ...इसी गोदाम में।"
"क...क्या मत...?"
युवक का वाक्य पूरा नहीं हो सका। दाईं तरफ बिजली-सी कौंधी।
डॉली के कण्ठ से एक हृदयविदारक चीख निकलकर सारे गोदाम में गूंज गई।
और अगले ही पल युवक ने डॉली की छाती में गड़ा एक चाकू देखा। चालू की सिर्फ मूठ चमक रही थी और उसी से अनुमान लगाया जा सकता था कि चाकू काफी लम्बा है—उसका समूचा फल डॉली की छाती में पैवस्त था।
चेहरे पर असीम वेदना के भाव लिए कटे वृक्ष-सी वह गिरी।
यह सब कुछ एक ही क्षण में हो गया था। इतनी तेजी से कि युवक कुछ समझ नहीं सका—फिर भी बौखलाकर उसने अपनी जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया और इससे पहले कि दाईं तरफ फायर करता, स्वयं उसी के कण्ठ से एक चीख उबल पड़ी।
लोहे की कोई मोटी चैन उसकी रिवॉल्वर वाली कलाई पर पड़ी थी।
मुंह से एक चीख निकली और हाथ से रिवॉल्वर निकलकर जाने कहां जा गिरा। दर्द से बिलबिलाते हुए उसने आक्रमणकारी की तरफ देखा तो जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ गई।
यह बिल्ला था, काला भुजंग।
चेहरे पर इस वक्त खूंखार भाव लिए वह दाएं हाथ में दबी मोटरसाइकिल की चेन को बड़े ही खतरनाक अंदाज में अपनी बाईं कलाई पर लपेट रहा था। अपनी लाल-सुर्ख आंखों से युवक को घूरते हुए वह गुर्राया—"मुझ नाचीज को बिल्ला कहते हैं।"
दाईं तरफ से ' धम्म' की आवाज उभरी।
हड़बड़ाकर युवक ने उधर देखा।
रुई की गांठों के ढेर के ऊपर से जो अभी-अभी फर्श पर कूदा था, वह रंगा था। रुई जैसा ही सफेद, परन्तु आंखें उसकी भी अंगारों जैसी थीं, किसी भी मायने में वह बिल्ला से कम खतरनाक नजर नहीं आता था। उसके हाथ में वैसा ही दूसरा चाकू था जैसा डॉली की छाती में पैवस्त था। युवक की तरफ देखते हुए उसने कहा—"गलती से मेरा नाम रंगा है।"
"एक रंगा-बिल्ला फांसी पर झूल गए—दूसरे हम हैं।" यह बात बिल्ला ने कही थी।
जब युवक ने दोनों तरफ से उन्हें अपनी तरफ बढ़ते देखा तो युवक के तिरपन कांप गए—मौत की लहर बिजली के समान उसके जिस्म में कौंध गई—इस क्षण उसे महसूस हुआ कि रंगा-बिल्ला से टकराने का निर्णय निहायत ही मूर्खतापूर्ण था।
इस गोदाम में कदम रखकर उसने अपने जीवन की सबसे भयंकर और अंतिम भूल की है। उन दोनों से बचने के लिए सहमा-सा वह पीछे की तरफ हटा, साथ ही अपने रिवाल्वर की तलाश में फर्श पर नजर दौड़ाई थी।
नजर डॉली की लाश पर पड़ी।
युवक के होश फाख्ता हो गए। उसे लगा कि कुछ देर बाद वह स्वयं भी उसी अवस्था में पहुंचने वाला है। अपनी उंगलियों में चाकू को नचाते हुए रंगा ने कहा—"क्यों बेटे, अब डर क्यों रहे हो—डॉली से सुना था कि तुम्हें हमारी तलाश है।"
“म....मुझे?...न....नहीं तो!" आतंकित युवक बड़ी मुश्किल से कह सका।
"पिछली बार तो तुम बच गए थे, मगर इस बार नहीं बच सकोगे।"
"' म...मैं सर्वेश नहीं हूँ।"
रंगा गुर्राया— फिर सर्वेश बने क्यों घूम रहे हो?"
"क....कौन हो तुम?" बिल्ला ने पूछा।
"म....मुझे नहीं पता है।
"रंगा-बिल्ला के सवाल को टालता है, हरामजादे।" कहने के साथ ही रंगा ने अपने हाथ में दबा चाकू उस पर खींच मारा—बिजली की-सी तेजी के साथ बौखलाकर युवक नीचे बैठ गया। जो चाकू उसके सीने पर लगना चाहिए था, वह सर्र.....र्र....र्र....की आवाज के साथ उसके ऊपर से गुजरकर पीछे रुई की एक गांठ में धंस गया।
रंगा के चाकू का वार पहली बार ही खाली गया था। कदाचित् इसीलिए रंगा-बिल्ला ने हैरतअंगेज दृष्टि से एक दूसरे की तरफ देखा।
युवक अभी भी डरा हुआ-सा बोला— म...मैं सच कह रहा हूं। मैं नहीं जानता कि मैं कौन हूं?"
दूसरी बार उसका यह वाक्य सुनकर रंगा-बिल्ला के तन-बदन में आग लग गई—बिल्ला ने खींचकर चेन का वार किया और युवक हवा में दो गज उछलकर दूर जा पड़ा।
सांय की आवाज पैदा करती हुई चेन उसके नीचे से निकल गई।
मुंह से पंक्चर हुए टायर की-सी आवाज निकालते हुए रंगा ने जम्प लगाई तो युवक के बाएं हाथ का घूंसा कुछ ऐसे भीषण ढंग से उसके चेहरे पर पड़ा कि एक लम्बी डकार निकालता हुआ वह पीछे जा गिरा।
बिल्ला ने एक बार फिर चेन का वार किया।
इस बार युवक स्वयं को बचा नहीं सका और चेन उसकी पसलियों पर पड़ी, मुंह से चीख निकल गई, परन्तु इस चीख के साथ ही उसने बाएं हाथ से अपने पेट और पीठ पर लिपटी चेन का अग्रिम सिरा पकड़कर इतना जोरदार झटका दिया कि बिल्ला के हाथ से न केवल चेन छूट गई, बल्कि झोंक से वह रुई की एक गांठ से जा टकराया।
इस बीच संभल गए रंगा ने युवक पर जम्प लगाई, परन्तु युवक ने घुमाकर चेन का वार जो उस पर किया तो दर्द के कारण तड़पकर रह गया रंगा।
इसके बाद—चेन युवक के हाथ में थी।
सामने थे रंगा-बिल्ला।
यह कम हैरत की बात नहीं थी कि वहां युवक के स्थान पर रंगा-बिल्ला की चीखें गूंज रही थी जीवन में शायद वे पहली ही बार किसी से इतनी मार खा रहे थे।
युवक के सामने एक नहीं चल पा रही थी उसकी—हर दांव निष्फल।
एक बार बिल्ला को मौका लगा तो उसने चेन का आंग्रिम सिरा पकड़ लिया—अब, वे दोनों चेन को अपनी तरफ खींचने लगे—युवक ने सिर्फ एक हाथ से चेन का यह सिरा पकड़ रखा था और बिल्ला ने दोनों हाथों से।
रंगा ने उछलकर युवक पर वार किया।
युवक के लिए उसके वार को बेकार करना और अपना वार करना जरूरी हो गया, इस चक्कर में चेन उसे छोड़नी पड़ी—बिल्ला चेन समेत लड़खड़ाकर फर्श पर गिरा।
रंगा युवक के वार के परिणामस्वरूप दूसरी तरफ पड़ा फर्श चाट रहा था।
युवक ने जम्प लगाकर रुई की गांठ में धंसा चाकू निकाला, उधर बिल्ला चेन हाथ में लिए न केवल उछलकर खड़ा हो गया था, बल्कि युवक पर चेन का वार भी करने वाला था कि युवक ने आनन-फानन में अपने बांये हाथ से चाकू उस पर फेंक मारा।
घप्प से चाकू का फल बिल्ला की गर्दन के एक तरफ से निकलकर दूसरी तरफ पार निकल गया। हृदयविदारक चीख के साथ चेन को छोड़ता हुअर बिल्ला ' धड़ाम' से फर्श पर गिरा।
फर्श पर गिरने से पहले ही बिल्ला मर चुका था।
पल भर के लिए रंगा हतप्रभ रह गया, जबकि युवक ने इसी क्षण का लाभ उठाते हुए फर्श पर पड़े रिवॉल्वर पर जम्प लगा दी।
रंगा तब चौंका, जब युवक ने रिवॉल्वर उसकी तरफ तानकर कहा—“हाथ ऊपर उठा दो रंगा, वरना इस रिवॉल्वर से निकली गोली तुम्हारे भेजे के चीथड़े उड़ा देगी।"
बिल्ला की लाश पर नजर पड़ते ही उसका चेहरा अत्यन्त वीभत्स हो गया। गोरा चेहरा भभककर लाल-सुर्ख पड़ गया। दांत भींचकर गुर्राया— त...तूने बिल्ला को मार दिया है हरामजादे, तुझे मैं कच्चा चबा जाऊंगा।"
युवक बड़े प्यार से बोला, “ अगर बिल्ला के पास नहीं पहुंचना चाहते हो बेटे, तो हाथ ऊपर उठा तो, आई से हैंड्स अप।"
रंगा ने वस्तुस्थिति को भांपा, हाथ स्वयं ही ऊपर उठते चले गए।
"वैरी गुड—यह हुई न अच्छे बच्चों वाली बात।" युवक ने जहरीली मुस्कान के साथ कहा—" अब जरा ध्यान से मेरी बात सुनो—सच्चाई ये है कि मैं तुममें से किसी को मारना नहीं चाहता था—यह इत्तफाक की बात है कि आनन-फानन में बिल्ला मर गया।"
बेबस रंगा दांत किटकिटाता हुआ सिर्फ हाथ मलकर रह गया।
युवक जानता था कि यदि रंगा का बस चले तो वह उसे कच्चा चबा जाए, उसकी बेबसी का मजा लूटता हुआ बोला—“सर्वेश की हत्या तुम्हारे ' शाही कोबरा' ने की थी और उस जुर्म की सजा उसे ही मिलेगी, तुमने सर्वेश की लाश को ले जाकर केवल रेल की पटरी पर रखा था, मैं तुम्हें सिर्फ उसी जुर्म की सजा देना चाहता था—और वह सजा मौत नहीं थी, किन्तु संयोग से बिल्ला मर गया है।"
"इस संयोग की बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी तुझे।" रंगा गुर्राया।
 इस बात को अच्छी तरह समझ लो कि यदि तुमने मेरे सभी सवालों का सही जवाब दिया और मेरा बताया हुआ काम बिना-बाधा के किया तो मैं तुम्हें बख्श दूंगा। जिंदा रहे तो सम्भव है कि मौका लगने पर कभी मुझसे बिल्ला की मौत का बदला ले सको, मगर यदि तुमने मेरे सवालों का ठीक जवाब नहीं दिया, या मेरा एक खास काम नहीं किया तो बदला लेने का मौका तुम्हें कभी नहीं मिलेगा, क्योंकि यकीन मानो, उस अवस्था में मैं तुम्हें यहीं, अभी बिल्ला के पास पहुंचा दूंगा।
विवश रंगा कसमसाकर रह गया।
युवक ने पूछा—" पहला सवाल—मुझे बताओ कि उस दिन सात बजे तुम सर्वेश को उसकी सीट से उठाकर कहां ले गए थे?"
"मैं तुम्हारे किसी सवाल का जवाब नहीं दूंगा।" रंगा ने दृढ़तापूर्वक कहा।
मगर रंगा की यह दृढ़ता बहुत ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकी।
इसी ललक ने रंगा को तोड़ दिया—युवक के हर सवाल का जवाब देता चला गया वह। जब युवक अपने सभी सवालों का जवाब पा चुका तो बोला— थेंक्यू—अब तुम्हें इसी शराफत के साथ मेरा एक काम भी करना होगा।"
"क्या?" जीने के लिए रंगा ने पूछा।
"उस काम को सुनने से पहले जरा तुम एक चीज को ध्यान से देख तो और उसके काम करने के तरीके को गौर से सुन लो।" कहने के साथ ही उसने रिवॉल्वर पट्टियों से बंधे दाएं हाथ में ले लिया, बोला—" निश्चय ही मेरा यह हाथ जला हुआ है, मगर ध्यान रखना, ट्रेगर दबाने जैसा आसान काम यह हाथ यकीनन कर सकेगा।
रंगा शान्त रहा।
युवक ने बायां हाथ जेब में डालकर अण्डाकार बम जैसी वस्तु निकाली और उसे रंगा को दिखाता हुआ बोला— तुम देख रहे हो कि यह एक बम है, देखने में भले ही छोटा लगे, मगर इतना शक्तिशाली जरूर है कि जहां फटेगा, वहां एक गज व्यास के घेरे में जितनी भी चीजें होंगी, उनके परखच्चे उड़ा देगा।"
रंगा की दृष्टि अण्डाकार बम पर जम गई।
"जिस तरह हैँडग्रेनेड में एक पिन होती है, उसी तरह की पिन इसमें भी है और उस पिन के हटते ही कस-से-कम तुम्हारे लिए यह अणुबम से भी कहीं ज्यादा खतरनाक बन जाएगा। ऐ, ये देखो, जरा ध्यान से देखो कि इसे मैंने किस तरह पकड़ रखा है।" कहने के साथ ही युवक ने बम को तर्जनी और अंगूठे के सिरे से पकड़ लिया, बोला—"अब जैसे ही दांतों से इसकी पिन निकालूंगा, वैसे ही यह साक्षात् मौत बन जाएगा—इस बम में किसी इंसानी जिस्म की ऊष्मा मात्र से फट जाने का गुण पैदा हो जाएगा।"
बहुत ही सावधानीपूर्वक युवक ने दांतों से उसमें से एक पिन खींच ली, बोला—“अब यह फटने के लिए तैयार है, किसी के छूने मात्र से फट जाएगा।"
"' म...मगर यह सब कुछ तुम मुझे क्यों बता रहे हो?"
"ताकि तुम अनावश्यक रूप से इस बम के साथ छेड़खानी न करो।"
"म...मुझे भला क्या जरूरत पड़ी है?"
"अभी पता लग जाएगा।" कहते हुए युवक ने अण्डाकार बम आगे बढ़कर धीमें से रूई की एक गांठ के ऊपर रख दिया, जेब से इलेक्ट्रिक स्विच निकाला, अपनी रिस्टवॉच में समय देखने के बाद बोला— हालांकि तुम कोई तार आदि ऐसा कुछ नहीं देख रहे हो, जिससे समझ सको कि इस बम का सम्बन्ध इस स्विच से भी है।"
"स्विच से?”
"हां, दरअसल यह स्विच इस बम को फटने से रोकने के लिए बनाया गया है।"
"क्या मतलब? ”
"अगर मैं तकनीकी जानकारी बताने बैठा तो शाम इसी गोदाम में हो जाएगी। फिर भी विश्वासपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि तुम उसे समझ ही जाओगे, इसीलिए मोटी-सी बात यह जान लो कि इस बम में हर पांच मिनट बाद फट पड़ने की तीव्र इच्छा होती है, जैसा कि मैंने बताया, यह स्विच बम को फटने से रोकने के लिए बनाया गया है, प्रत्येक पांच मिनट के अन्दर इस स्विच को दबाना जरूरी है, यदि इस स्विच को नहीं दबाया गया तो समझ तो कि छठे मिनट में बम फट जाएगा।"
"क्या मतलब?”
"मतलब यह रिस्टवॉच में समय देखते ही युवक ने अपने हाथ में दबे स्विच को एक बार दबा दिया। इधर स्विच दबा, उधर बम में ' पिंग-पिंग' की आवाज़ के साथ एक हरा बल्ब लपलपाया। युवक ने कहा— इस स्विच के दबते ही बम में छुपा हरा बल्ब पिंग-पिंग की आवाज के साथ ही लपलपाएगा—इसका अर्थ है कि बम को अगले पांच मिनट तक फटने से रोक दिया गया है—जिन पांच मिनट के बीच इस स्विच को नहीं दबाया जाएगा, उनके गुजरते ही बम फट जाएगा।"
"अजीब बम है?"
युवक ने आगे बढ़कर बम को तर्जनी और अंगूठे के सिरे से सावधानी के साथ उठा लिया और रंगा के नजदीक पहुंचा। रिवाल्वर से कवर किए उसके पीछे पहुंचा और फिर अचानक ही बम को उसने रंगा के कॉलर के अन्दर डाल दिया।
"य...ये क्या कर रहे हो?" दहशत के कारण रंगा चीख पड़ा।
उसकी पीठ पर से सरसराता हुआ बम पतलून की वेस्ट पर अटक गया। अब वह पीठ के सबसे निचले सिरे पर अटका हुआ था और बम की ' चुभन' वह स्पष्ट महसूस कर रहा था। युवक अजीब-से अन्दाज में हंसता हुआ उसके सामने आ गया और बोला— अब तुम महसूस कर सकते हो कि बम कहां है—इतना भी समझ सकते हो कि तुम्हारी त्वचा से सिर्फ यही ' प्वाइंट' ' टच' है जिस पर जिस्म की ऊष्मा से कोई फर्क नहीं पड़ता है, अगर ऐसा न होता तो अब तक बम फट चुका होता और तुम्हारे जिस्म के परखच्चे इस गोदाम में बिखरे पड़े होते।"
रंगा का सफेद चेहरा निचुड़े हुए कपड़े-सा निस्तेज हो गया। आतंकित स्वर में उसने पूछा—" म...मगर यह तुमने यहां क्यों डाल दिया है?"
युवक ने कहा—" अब, न तो तुम ज्यादा उछल-कूद कर सकते हो—और न ही किसी अन्य की मदद से बम को वहां से निकाल सकते हो—बम वहीं रहेगा—स्विच मेरे पास है—भले ही एक-दूसरे से हम चाहे जितनी दूर चले जाएं, मगर स्विच और बम का सम्बन्ध विच्छेद नहीं होगा—बम में एक माइक्रोफोन भी है, जो मुझे बताता रहेगा कि तुम कहां, किससे, क्या बातें कर रहे हो—जब तक मैं प्रत्येक पांच मिनट के अन्तराल पर स्विच को दबाता रहूंगा, तब तक तुम जीवित रहोगे और जिस अन्तराल में मैँने इसे नहीं दबाया, वह तुम्हारी जिन्दगी का आखिरी अन्तराल होगा।"
रंगा के जिस्म से मानो समूचा खून निचोड़ लिया गया।
"हर अन्तराल पर मैं तब तक इसे दबाता रहूंगा जब तक कि तुम मेरे अनुसार काम करते रहोगे और अन्त में खुश होकर बम को वहां से हटा दूंगा।"
 त तुम क्या चाहते हो?" रंगा को अपनी ही आवाज किसी गहरे कुएं से उभरती-सी महसूस हुई।
¶¶
"बहुत ही दुख और दुख से भी कहीं ज्यादा हैरत की बात है कि उस कल के छोकरे ने बिल्ला को मार डाला—बिल्ला के मर जाने से भी कहीं ज्यादा हैरत की बात ये है रंगा कि तुम यहां जीवित खड़े हो—तुम—जिसका जोड़ीदार मर गया है—रंगा-बिल्ला को जानने वाले यही कहते थे कि वे दो जिस्म एक जान हैं।"
मंच पर मौजूद बॉस अजीब-से रोष में भरा यह सब कह रहा था। एक प्रकार से रंगा को धिक्कार रहा था वह।
पंक्तिबद्ध खड़े कम-से-कम बीस व्यक्तियों में से एक रंगा था। बिना हिले-डुले बिल्कुल सावधान की मुद्रा में खड़ा था वह। चेहरे पर दहशत के अजीब-से भाव लिए।
कुछ देर की खामोशी के बाद मंच से बॉस की आवाज पुन: उभरी— जवाब दो रंगा—तुम्हारे सामने बिल्ला को मारकर वह छोकरा जिन्दा कैसे निकल गया?"
एकाएक ही रंगा गुर्रा उठा—" वह तो तुझे भी मार डालेगा हरामजादे...।"
"क...क्या बकते हो?" बॉस दहाड़ उठा।
सचमुच रंगा के शब्दों ने वहां अणु बम के फटने से भी कहीं ज्यादा खतरनाक विस्फोट किया था। सभी चौंक पड़े—सनसनी फैल गई—हालांकि दीवारों के सहारे खड़े सैनिकों की गनें तन गई—पंक्ति में खड़े दूसरे लोगों को महसूस हुआ कि रंगा पागल हो गया है।
सभी के चेहरे पीले पड़ गए।
जबकि रंगा गुर्राया—"मैं ठीक कह रहा हूं उल्लू के पट्ठे—वह तुझे ही नहीं—तेरे उस कुत्ते ' शाही कोबरा' को भी देख लेगा—वह परखच्चे उड़ा देगा तुम्हारे और इस अड्डे को जलाकर राख कर देगा।"
"र...रंगा होश में तो हो तुम?"
"होश की दवा तुझे और तेरे ' शाही कोबरा' को करनी है हरामखोर।"
और हद हो गई थी।
वातावरण इतना तनावपूर्ण बन गया कि जिस शख्स को आज से पहले किसी ने मंच से नीचे नहीं देखा था—वही आपे से बाहर होकर मंच से कूदा।
लिबास के साथ का ही चांदी-सा चमकदार नकाब उसके चेहरे पर था।
एक ही जम्प में वह रंगा के समीप आ गया। आनन-फानन में दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़कर चीखा— कौन है तू—बोल, कौन है तू?”
कड़वी मुस्कराहट के साथ कहा रंगा ने— मुझे नहीं पहचाना बागड़बिल्ले?"
 न...नहीं—तू....रंगा नहीं हो सकता—अगर तू रंगा होता तो यह सब कुछ कहने की जुर्रत नहीं कर सकता था, या फिर तू पागल हो गया है।"             
"पागल तो तू हो गया है हरामजादे। अगर खैरियत चाहता है तो उससे टकराने का ख्याल दिमाग से निकाल दे—वह तेरे सारे खानदान को..।"
"आह!" रंगा के आगे के शब्द एक चीख में बदल गए।
बॉस का फौलादी घूंसा उसके जबड़े पर पड़ा था। घूंसा हालांकि काफी शक्तिशाली था, परन्तु रंगा बम के डर से लड़खड़ाया तक नहीं। सावधान की उसी मुद्रा में खड़ा हुआ बोला— अगर जिन्दा रहना चाहता है सूअर तो मुझसे दूर रह।"
“क..क्या बकता है तू?"
 मेरी पीठ पर एक बम है—अगर मैं जरा भी हिसा-डुला तो यह फट जाएगा—मेरे तो परखच्चे उड़ेंगे ही, साथ ही मेरे आसपास खड़ा कोई भी जिन्दा नहीं बचेगा।"
रंगा के इर्द-गिर्द खड़े लोग उससे परे सरक गए।
जबकि बॉस दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़कर झिंझोड़ता हुआ चिल्लाया—“क्या बकता है कुत्ते—कैसा बम?"
रंगा जानता था कि यहां जितनी भी बातें हो रही हैं, युवक वे सब सुन रहा है और अब यदि उसने बॉस को आतंकित नहीं किया तो इस हॉल से नहीं निकल सकेगा, अत: संक्षेप में उसने बॉस को बम के बारे में सब कुछ बता दिया।
सुनकर सचमुच बॉंस भी उससे दूर हट गया। अगले ही पल उसके हाथ में रिवॉल्वर नजर आया। बोला—" तो यहां, यह सब कुछ कहने के लिए तुमसे उसने कहा था और बम के डर से तुम कहते चले गए?"
रंगा ने अजीब-से स्वर में कहा— वह बम अगर तेरी पीठ पर होता कुत्ते तो तू भी उसी तरह नाचता जैसे वह नचाता।"
उत्तेजना के कारण निश्चय ही बॉस का हाल बुरा हो रहा था।
रिवॉल्वर तानकर वह गुर्राया— अपनी वैल्ट खोलो।"
"म...मैं नहीं खोलूंगा।"
"जिस किस्म के बम की बात तू कह रहा है रंगा, वैसे करामाती बम के बारे में न हमने कभी सुना है-न देखा है और कम-से-कम यह बात तो हमारे कण्ठ से नीचे उतर ही नहीं पा रही है कि ऐसा बम उस बहुरूपिए के पास हो सकता है—सम्भव है कि तुझे आतंकित करने के लिए उसने यह सारी बकवास की हो—अगर सच यही हुआ तो बैल्ट खोलने पर तू जिन्दा भी बच सकता है, लेकिन यदि तूने हमारे इस वाक्य की समाप्ति पर भी बैल्ट नहीं खोली तो हमारे रिवॉल्वर से निकली गोली निश्चय ही तेरा भेजा उड़ा देगी।"
रंगा के दिमाग में बात बैठ गई।
जेहन में विचार उभरा कि मरना तो अब दोनों हालत में निश्चित हो गया है। मरने से पहले क्यों न यह जान ले कि बम में वह करामात है या नहीं। अतः उसने बैल्ट खोल दी।
वेस्ट के ढीली होते ही सरसराता हुआ बम पतलून के एक पांयचे के अन्दर से होता हुआ ' पट' से हॉल के फर्श पर गिरा। थोड़ी दूर लुढ़का और फिर रुक गया।
बल्कि बॉस समेत प्रत्येक की दृष्टि उसी पर केन्द्रित थी।
रंगा को बम के अभी तक न फटने पर आश्चर्य था।
तभी 'पिंग पिंग' की आवाज के साथ बम में हरा बल्ब लपलपाया।
"य...ये देखो बॉस—उसने स्विच दबाया होगा।”
 यह बम नहीं कमीने।" बॉस ने आगे बढ़कर बेहिचक उसे उठा लिया और अगले ही पल उसने बम जैसी वस्तु को उछाल दिया—अण्डा दो भागों में विभक्त हो गया।
दूसरे भाग में एक ' चकरी'   धीरे-धीरे घूम रही थी। इस चकरी का एक भाग थोड़ा उभरा हुआ था। एक नन्हें से बल्ब का कनेक्शन दो छोटे तारों के जरिए सेल्स से जुड़ा हुआ था—उसे समझने की कोशिश में पांच मिनट गुजर गए।
'पिंग-पिंग' की आवाज के साथ हरा बल्ब पुन: जला।
"यह बम नहीं कुत्ते, खिलौना मात्र है। बॉस गुर्राया—"सेल अपने खांचों में ढीले हैं। घूमती हुई चकरी पांच मिनट में अपना चक्कर पूरा करती है—प्रत्येक पांच मिनट बाद चकरी का उभरा हुआ भाग खांचों को कस देता है और बल्ब जल उठता है। न इसमें कोई माइक्रोफोन है और न ही किसी स्विच से इसका सम्बन्ध है।"
रंगा का मुंह हैरत से फटा रह गया।
"हुं।" उसे एक तरफ़ फेंकते हुए बॉस ने कहा— इसमें न कोई ऊष्मारहित प्वाइंट है, न ही ऊष्मा से फट पड़ने का कोई गुण—इस खिलौने के डर से तूने हमें...।"
“मु......मुझे माफ कर दो बॉस, मैं समझा कि यह बम...।"
"धांय-धांय।” बांस का रिवॉल्वर दो बार गरजा, उसका न सिर्फ वाक्य अधूरा रह गया, बल्कि हृदयविदारक चीख के साथ वह कटे वृक्ष-सा वहीं गिर गया।
¶¶
"एक प्रकार से यदि यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि मैं सर्वेश की हत्या के सम्पूर्ण रहस्य से परिचित हो चुका हूं—मेरे और उनके बीच जंग भी जारी हो चुकी है।"
"जो तुम जानते हो, वह मुझे भी बताओ।" रश्मि ने सपाट स्वर में पूछा।
युवक ने संक्षेप में गोदाम में घटी घटना उसे सुना दी। सुनने के बाद रश्मि बोली— “ अब तुम आगे क्या करने का विचार रखते हो?"
"मेरा अगला आक्रमण शायद सीधा ' शाही कोबरा' पर होगा।"
"श...' शाही कोबरा' पर। मगर उसे तो तुम अभी जानते भी नहीं हो?”
युवक की आंखें शून्य में स्थिर हो गईं—बोला— भले ही विश्वासपूर्वक न जानता होऊं, मगर एक व्यक्ति पर मुझे शक जरूर है।"
"क...किस पर? ” रश्मि एकदम व्यग्र हो उठी।
"यह मैं तुम्हें शायद आज की रात गुजर जाने के बाद बता सकूंगा।" कहते हुए युवक की दृष्टि रश्मि की गर्दन पर चिपक गई।
बड़े ही विस्फोटक ढंग से युवक के दिमाग में विचार टकराया कि—'अगर वह रश्मि की गर्दन दबा दे तो क्या होगा।'
वह मर जाएगी।
युवक पर जुनून सवार होने लगा।
एकाएक ही वह सोचने लगा कि यदि रश्मि के जिस्म से सारे कपड़े उतार दिए जाएं तो यह बहुत खूबसूरत लगेगी।
उसके दिलो-दिमाग में बैठा कोई चीखा—उतार दे—'इसके जिस्म से कपड़े का एक-एक रेशा नोंचकर फेंक दे—गर्दन दबा दे इसकी—मार डाल—फर्श पर पड़ी इसकी निर्वस्त्र लाश बहुत सुन्दर लगेगी।'
युवक के चेहरे ने अभी वीभत्स होना शुरू किया ही था कि—" हैलो पापा!"
कमरे में दाखिल होते हुए विशेष ने कहा।
युवक के जेहन में मचल रहे भयानक विचार उसी तरह छिन्न-भिन्न हो गए जैसे गोली के दीवार से टकराते ही छर्रे बिखर जाते हैं।
विशेष अभी-अभी स्कूल से आया था।
¶¶
उस वक्त रात के दो बज रहे थे। चारों तरफ अंधेरे और सन्नाटे का साम्राज्य था और अचानक ही अंधेरे में से प्रकट होकर युवक लारेंस रोड पर स्थित न्यादर अली के बंगले के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ता नजर आया—बंगले का लोहे वाला द्वार बन्द था और उसके दूसरी तरफ खड़ा सशस्त्र चौकीदार बीड़ी में कश लगा रहा था।
युवक दरवाजे के नजदीक पहुंचा।
 कौन है?" चौंकते हुए चौकीदार ने टॉर्च निकालते हुए पूछा।
युवक ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा—" क्या तुम मुझे नहीं पहचानते हो?”
जवाब में नजदीक आते हुए चौकीदार ने टॉर्च आन कर दी—टॉर्च के तीव्र झाग झमाके से युवक के चेहरे पर आ गिरे। युवक की आंखें चुंधिया गईं।             
" त......तुम कौन हो भाई?" बिल्कुल नजदीक जाकर चौकीदार ने पूछा।
"सिकन्दर ।" युवक ने एक झटके से कहा।
"म मालिक? ” चौकीदार के कण्ठ से चीख-सी निकल गई— अ...अरे, आप तो सचमुच मालिक ही हैं म...मगर इस वक्त—ये आपने क्या हालत बना रखी है, छोटे मालिक?"
युवक जानता था कि दूसरे नौकरों की तरह यह चौकीदार भी न्यादर अली का पढ़ाया हुआ है। अत: बोला—"ज्यादा चीखने-चिल्लाने की कोशिश मत कर, मेरे पीछे पुलिस पड़ी हुई है—दरवाजा खोलो, मैं डैडी से कुछ बात करने आया हूं।"
हड़बड़ाते हुए चौकीदार ने बीड़ी एक तरफ फेंककर ताला खोल दिया—युवक तेजी के साथ लॉन के बीच बनी सड़क पर से गुजरता हुआ बंगले के द्वार पर पहुंचा। मुख्य द्वार पर ताला लगाने के बाद लपकता हुआ चौकीदार भी उसके नजदीक आ गया था।
युवक ने अपने बाएं हाथ की अंगुली कॉलबेल पर रख दिया।
अन्दर कहीं पियानो-सा बजा।
कई बार की कोशिश के बाद कहीं जाकर दरवाजा खुला। इस बार बंगले के जिस नौकर ने दरवाजा खोला, युवक उसे भी जानता था। आखिर इस बंगले में काफी दिन तक रह चुका था वह—इस नौकर से भी लगभग वैसा ही वार्तालाप हुआ जैसा चीकीदार से हुआ था—फिर यह नौकर और चौकीदार उसे दूसरी मंजिल पर स्थित एक कमरे के दरवाजे पर ले गए।
नौकर ने दस्तक देते हुए न्यादर अली को ' मालिक' कहकर पुकारा।
अन्दर लाइट ऑन हुई। दरवाजा खुला और नाइट गाउन की डोरी बांधते हुए न्यादर अली ने पूछा—" क्या बात है?"
अभी उनके सवाल का कोई जवाब भी नहीं दे पाया था कि न्यादर अली युवक को देखकर चौंका और स्वयं ही कह उठा—"य...ये कौन है?"
 अ...आपने भी मुझे नहीं पहचाना? ” युवक के लहजे में जबरदस्त व्यंग्य था।
 क्या मतलब?"
“ऐसा बाप मैंने पहले कभी नहीं देखा, जो बेटे दाढ़ी-मूंछ, चश्मे और बदली हुई हेयर स्टाइल में पहचान ही न सके।"
"क...क्या तुम सिकन्दर हो, अरे हां तुम सिकन्दर ही तो हो।" न्यादर अली एकदम बौखला-सा उठा था— मगर तुम इस वक्त यहां—इतने दिन कहां रहे तुम—और तुमने अपनी क्या हालत बना रखी है?"
"आप तो जानते ही हैं कि पुलिस मुझे तलाश कर रही है।"
"हां।"
"उसी से बचने के लिए यह भेष बदल रखा है।"
"म...मगर तू चिंता क्यों करता है बेटे, मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा—बड़े-से-बड़ा वकील तुझे बचाने के लिए अदालत में खड़ा कर दूंगा—शायद तू जानता नहीं है—जिसकी हत्या तूने की है, वह खुद मुजरिम थी—रूपेश और उसने मिलकर तेरे खिलाफ एक षड्यन्त्र रचा था—तुझे जॉनी बनाने का षड्यन्त्र। वे कमीने हमारे सिकन्दर को हमसे छीनना चाहते थे—तूने जो कुछ किया, अच्छा ही किया—तू इस तरह छुपता क्यों फिर रहा है बेटे, फिक्र मत कर—उस केस में दुनिया का कोई कानून तुझे सजा नहीं दे सकेगा।"
"मैं उसी सम्बन्ध में बातें करने आपके पास आया हूं।"
"आजा बेटे—आ।" कहकर न्यादर अली ने उसे कमरे में खींच लिया। नौकर और चौकीदार से बोला— तुम दोनों जाओ, सिकन्दर के लौटने का जिक्र किसी से न करना।"
वे चले गए।
युवक ने घूमकर दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया।
न्यादर अली इस वक्त बहुत खुश नजर आ रहा था। बोला— तूने अच्छा ही किया बेटे, जो यहां आ गया—हम तेरे बारे में सोच-सोचकर पागल हुए जा रहे थे।
अचानक ही उसकी तरफ़ पलटकर युवक गुर्राया—"अब यह ‘बेटा-बेटा' की रट लगाने का नाटक बन्द करो मिस्टर ' शाही कोबरा' और अपनी असलियत पर आ जाओ।"
"क...क्या मतलब?" न्यादर अली चिहुंक उठा।
"क्यों! युवक गुर्राया— अपना असली नाम सुनकर पैरों तले से जमीन खिसक गई?"
"य...ये तू कैसी बात कर रहा है, सिकन्दर बेटे? हमारा नाम ' शाही कोबरा'? य...ये भी भला कोई नाम हुआ और फिर हमारे पैरों के नीचे से जमीन क्यों खिसकेगी?"
"अच्छी एक्टिंग कर लेते हो।"
" ए....एक्टिंग? ”
युवक ने तुरन्त ही जेब से रिवॉल्वर निकालकर उस पर तान दिया, गुर्राकर—"अब अगर तुमने जरा भी चूं-पटाक की या पटरी पर नहीं आए तो मैं तुम्हारा भेजा उड़ा दूंगा।"
न्यादर अली विस्फारित नेत्रों से रिवॉल्वर को देखता रह गया। चेहरा एकदम सफेद पड़ गया था उसका, बोला—“त.....तू हमें मार देगा?"
"हां।"
"लगता है बेटे कि तू किसी बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार है।”
"गलतफहमी के शिकार तो तुम हो मिस्टर ' शाही कोबरा', तुम अपने दिमाग में यह वहम पाल बैठे हो कि मैं तुम्हारे षड्यन्त्र में फंसकर खुद को सिकन्दर समझने लगूंगा।"
"स...सिकन्दर तो तुम हो ही।”
"मैं बहुत कुछ जान चुका हूं बेटे, और इसीलिए तुम्हारा कोई नाटक मेरे सामने नहीं चलेगा—बाकी बातें तो बाद में होंगी, पहले तुम मुझे यह बताओ कि होटल ' मुगल महल' के मालिक तुम हो या नहीं?"
“ह....हां बेशक हम ही हैं।"
"और मैं तुम्हारा बेटा हूं—इसीलिए ' मुगल महल' का मैनेजर मुझे भी जरूर जानता होगा।"
“हां, जानता है—हालांकि तुम ' मुगल महल' कभी गए नहीं हो, मगर साठे तुम्हें अच्छी तरह जानता है—तुम्हारे दोस्तों में से है वह।"
"साठे मेरा दोस्त है?" युवक के लहजे में व्यंग्य-ही-व्यंग्य था।
"हां।
"फिर भी वह मुझे नहीं पहचानता—इतना ही नहीं, साठे यह भी कहता है कि तुम्हारा सिकन्दर नाम का बेटा कभी कोई था ही नहीं।"
न्यादर अली चीखता गया—" स...साठे भला ऐसा कैसे कह सकता है?”
"उसने कहा है बेटे—किसी और से नहीं, सीधे मुझसे कहा है—उसी मुगल होटल में एक कमरा है-कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच।"
"ह...होटल में तो बहुत-से कमरे हैं।"
"वे सब किराए पर दिए जाते हैं, मगर पांच-सौ-पांच कभी नहीं दिया जाता—साल-से-साल तक वह तुम्हारे और सिर्फ तुम्हारे ही नाम से बुक रहता है।"
 हमारे नाम से! भला अपने ही होटल में हम कमरा बुक क्यों कराएंगे?"
"यानि वह कमरा तुमने बुक नहीं करा रखा है?"
"बिल्कुल नहीं।"
युवक का चेहरा गुस्से के कारण तमतमा उठा, बोला—"तुम्हें यह जानकर दुख होगा मिस्टर ' शाही कोबरा' कि तुम्हारे ही गैंग का एक खास सदस्य रंगा इस बारे में मुझे सब कुछ बता चुका है।"
"हमारी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि तुम क्या बक रहे हो?"
युवक गुर्राकर बोला—"इस रिवॉल्वर से निकली गोली के भेजे से पार होते ही तुम्हारी समझ में सब कुछ आ जाएगा—तुम्हारे होटल के नीचे तहखाना है—रास्ता उस कमरे से होकर जाता है जो तुम बुक रखते हो—उस तहखाने के अन्दर एक गैंग बसता है—और फिर भी तुम उस सबसे अनभिज्ञता प्रकट कर रहे हो—इसी से जाहिर है कि ' शाही कोबरा' तुम खुद हो—उस गैंग के माध्यम से मादक पदार्थों की तस्करी करते हो।"
"या खुदा, हम क्या सुन रहे हैं?"
"एक और प्वाइंट भी है मेरे पास।" युवक की आंखें जलने लगी थीं—" क्या तुम बता सकते हो कि अपने ही कथित बेटे सिकन्दर को षड्यंत्र का शिकार बनाने वाले रूपेश की जमानत तुमने क्यों ली?"
"उससे ऐसा कुछ जानने के लालच में जो कि उसने युवक को न बताया हो।"
"यह झूठ है-रूपेश की जमानत तुमने इसीलिए ली, क्योंकि वह भी तुम्हारे ही गैंग का एक सदस्य है—यह रहस्य भी रंगा से मुझे पता लग चुका है।"
"य...यकीन करो, सिकन्दर, हमारे और तुम्हारे बीच दरार पैदा करने के लिए शायद कोई षड्यंत्र रच रहा है।"
उसकी बात पर ध्यान दिए बिना युवक ने कहा—"मुझे दो प्रमुख सवालों का जवाब चाहिए बेटे—पहला यह कि तुमने सर्वेश की हत्या क्यों की और दूसरा यह कि मुझे सिकन्दर बनाने की कोशिश क्यों कर रहे हो?”
न्यादर अली ने कुछ कहने के लिए अभी मुंह खोला ही था कि—धांय।"
एक फायर की आवाज ने सारे बंगले को झनझनाकर रख दिया।
न्यादर अली के कण्ठ से चीख निकल गई। गोली उसके सिर के परखच्चे उड़ा गई थी और बौखलाकर युवक ने जब रोशनदान की तरफ देखा तो उसे चांदी के-से चमकदार लिबास की झलक दिखाई दी। केवल एक क्षण के लिए—अगले ही पल वह गायब था।
युवक ने चमकदार लिबास वाले के हाथ में रिवॉल्वर देखा था।
इधर न्यादर अली ' धड़ाम' से फर्श पर गिरा, उधर रिवॉल्वर संभाले युवक कमरे की एक बन्द खिड़की पर झपटा। अभी वह खिड़की को खोल ही रहा था कि किसी ने दरवाजा जोर से खटखटाया।             
उसके जेहन में बड़ी तेजी से यह विचार कौंधा कि नौकर और चौकीदार उसे ही हत्यारा समझेंगे—यह समझते ही वह कुछ और ज्यादा बौखला गया—चमकदार लिबास वाले का पीछा करने के स्थान पर उसके दिमाग में खुद ही वहां से भाग निकलने का विचार उभरा।
¶¶