"फिलहाल यहीं जमे रहने के अलावा कोई चारा ही नहीं है।" - सुषमा बोली- "पुलिस इस उम्मीद में तुम्हारे फ्लैट की निगरानी कर रही है कि शायद मैं यहां आऊंगी । वे लोग यहां की तलाशी लेकर जा ही चुके हैं। इसलिए यह तो उन्हें सपने में नहीं सूझेगा कि मैं यहां हो सकती हूं । वे सारे शहर में मेरी तलाश करेंगे लेकिन यहां नहीं ।" ।
"ओके। फिलहाल इस विषय को छोड़ो। अब तुम मुझे अपनी करतूत के बारे में जरा विस्तार से बताओ।”
"क्या बताऊं ?"
"तुमने जोगेन्द्र की पुलिस की गिरफ्त से कैसे रिहा करवाया ? इस काम में तुम्हारा सहयोगी कौन था और तुम्हें जोगेन्द्र को गोदाम में छुपाकर रखने का खयाल कैसे आया ?"
"लेकिन, खरगोश मैंने तो इनमें से एक भी काम नहीं किया ।”
"जोगेन्द्र को पुलिस की गिरफ्त से तुमने रिहा नहीं करवाया ।"
"नहीं।"
"तुमने उसे गोदाम में छुपाकर नहीं रखा ?"
"नहीं।"
"तो फिर तुम्हें कैसे मालूम था कि वह वहां था ?”
"उसी ने मुझे सूचित किया था ।”
"किस्सा क्या है ? साफ-साफ बताओ । मैं तो यह फैसला भी नहीं कर पा रहा हूं कि तुम झूठ बोल रही हो या सच ।”
"तुमसे झूठ बोलकर मुझे क्या हासिल होगा, खरगोश?"
"तो फिर बताओ, क्या माजरा है ?"
सुषमा एक क्षण चुप रही, फिर उसने एक गहरी सांस ली और बोली- "खरगोश, मेरा जोगेन्द्र के फरार हो जाने वाली घटना में कोई हाथ नहीं । मुझे तो रेडियो सुनकर ही इस बात की खबर लगी थी । "
"तो फिर तुम क्यों पुलिस से भागी फिर रही हो ?"
"जोगेन्द्र की मदद करने की नीयत से । मैं नहीं चाहती कि पुलिस के हाथ उस तक पहुंचें । मेरा खयाल था कि पुलिस जोगेन्द्र के फरार हो जाने की घटना के सन्दर्भ में मुझे भी टटोलेगी। पुलिस सोचेगी कि शायद मेरा भी इसमें कोई हाथ हो । हकीकत में तो मैं जानती नहीं थी कि जोगेन्द्र कहां था । पुलिस मुझसे उस घटना के फौरन बाद बात करने में कामयाब हो जाती तो वह भी यह जान जाती कि मैं कुछ नहीं जानती थी । मैंने सोचा कि अगर में भी गायब हो जाऊं तो पुलिस यही समझेगी कि सारी घटना में मेरा कोई हाथ था । पुलिस मुझे ही तलाश करती रहेगी और जोगेन्द्र को कहीं सुरक्षित निकल भागने का अवसर मिल जाएगा।"
"लेकिन कभी तो तुम्हें प्रकट होगा पड़ेगा । जब पुलिस तुम से पूछेगी कि तुम कहां गायाब थीं तो तुम क्या जवाब दोगी ?"
"मैं भला कोई जवाब क्यों दूंगी ? मैंने कोई अपराध किया है ? मेरे कोई वारन्ट निकले हुए हैं? जहां मेरे मन में आया, मैं गई। पुलिस को क्यों बताऊं मैं कहां थी ?"
"यह सिद्ध करने के लिए कि तुम्हारा जोगेन्द्र के भाग निकलने वाली घटना से कोई वास्ता नहीं था, तुम्हें बताना पड़ेगा कि जिस वक्त जोगेन्द्र को पुलिस की गिरफ्त से रिहा किया जा रहा था, उस वक्त तुम घटनास्थल से दूर कहीं और थीं।"
"ये बहुत बाद की बातें हैं । जब ऐसी नौबत आएगी तो देखी जाएगी । फिलहाल तो मैं पुलिस की निगाहों में फरार ही बनी रहना चाहती हूं ।"
“ओके । अब यह बताओ तुम्हें यह कैसे मालूम था कि जोगेन्द्र गोदाम में छुपा था ?”
"फोन आया था ।”
"फोन !”
"हां। और यह महज एक इत्तफाक था कि फोन कविता दीदी ने या किसी नौकर-चाकर ने नहीं सुना । मैंने फोन उठाकर कान से लगाया, अपना नाम बताया, दूसरी ओर से किसी ने सिर्फ इस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी का गोदाम कहा और फोन बन्द कर दिया | "
"बस इतना ही कहा ?"
"हां"
"बोलने वाला जोगेन्द्र था ?"
“आवाज तो मुझे उसी की लगी थी ।"
"फिर तुमने क्या किया ?”
"मैंने टेलीफोन डायरेक्ट्री में से गोदाम का पता नोट कर लिया । लेकिन गोदाम तक जाने की नौबत आने से पहले मुझे कविता दीदी ने बताया कि तुम आ रहे थे । मैंने सोचा मैं तुम्हीं से पूछूंगी कि मैं क्या करू । छुपते छुपाते मैं एयरपोर्ट पहुंची। वहां मैंने उसी प्लेन के स्वागत मे पुलिस को मौजूद पाया जिसमें कि तुम आ रहे थे। मेरी पास जाने की हिम्मत ही नहीं हुई । फिर मैंने तुम्हें एक पुलिस इन्स्पेक्टर के साथ एक ओर जाते देखा । मेरी रही-सही हिम्मत भी जवाब दे गई । मैं एयरपोर्ट से भाग खड़ी हुई।"
" फिर रात को जब मैं फ्लैट से निकला तो तुमने मुझे पुकारा ?"
"हां"
"यह बात तुमने मुझे फौरन क्यों नहीं बताई थी ?"
“मैंने बताने की कोशिश की थी लेकिन कभी मुझे तुम टोक देते थे और कभी घबराहट में मैं गड़बड़ा जाती थी और बात मेरे दिमाग से हट जाती थी । और फिर मैं यह भी चाहती थी कि इस बारे में इत्मीनान से बात हो ।"
"वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए कविता भी यही समझती है कि तुम्हीं ने जोगेन्द्र के दोस्त हर्ष कुमार के साथ मिलकर उसे पुलिस से रिहा करवाया था । "
सुषमा चुप रही ।
"वैसे पिछली रात मुझे गली में मिलने के पीछे तुम्हारा असली मकसद क्या था ? मुझे हकीकत बताना ?"
"यह भी और जोगेन्द्र के हित में तुम्हारी कोई राय जानना और तुम्हारी कोई मदद हासिल करना भी। में जोगेन्द्र से गोदाम में मिलने के लिए तुम्हें अपने साथ ले जाना चाहती थी।"
"यह बात जोगेन्द्र को पसन्द आती ?"
“पता नहीं ।”
"वह तुमसे मुहब्बत करता है, तुम पर पूरा भरोसा करता है, क्या पता वह सिर्फ तुमसे ही मिलना चाहता होता ? क्या पता मेरा तुम्हारे साथ आना उसे सख्त नापसन्द होता ?"
"लेकिन मैं फिर भी तुम्हें साथ ले जाना चाहती थी । अगर उसे मुझ पर भरोसा था तो मुझे भी तो तुम पर भरोसा था।"
प्रमोद चुप हो गया । वह कुछ क्षण विचारपूर्ण मुद्रा बनाए चुपचाप बैठा रहा ।
"सुषी ।" - अन्त में वह बोला- "अगर तुमने जोगेन्द्र को नहीं छुड़वाया तो फिर किसने किया यह काम ?”
"हर्ष कुमार ने ही किया होगा । और तो कोई आदमी मुझे सूझता नहीं जो जोगेन्द्र के लिए दीदादिलेरी का काम कर सकता हो ।”
"लेकिन तुम्हें पक्का तो नहीं पता ।"
"नहीं । मैं तो अपना अन्दाजा बता रही हूं।"
"तुमने उससे पूछा ?”
"नहीं।"
" पुलिस को उसकी खबर है ?"
"नहीं । यह भी एक वजह है जो मैंने उससे मिलने की कोशिश नहीं की। मुझे भय था कि कहीं मेरे माध्यम से पुलिस उस तक भी न पहुंच जाए।"
“हर्ष कुमार से बात करनी पड़ेगी ।" - प्रमोद यूं बोला जैसे अपने आपको कह रहा हो ।
सुषमा चुप रही ।
" और जोगेन्द्र को आत्मसमर्पण करना ही पड़ेगा ।" “उसे इस काम के लिए मनाना आसान नहीं होगा।”
“आसान हो या मुश्किल । यह बात तो सबसे जरूरी है । इसके बिना उसका बचाव मुमकिन नहीं । "
"लेकिन पहले पता तो लगे कि वह है कहां ! अगर गोदाम में वही छुपा हुआ था तो वहां से भागकर क्या मालूम कहां गया वह !"
"मैं हर्ष कुमार से मिलूंगा । तुम मुझे उसका पता बता देना । शायद जोगेन्द्र ने उससे सम्पर्क स्थापित किया हो ।”
" और मेरे बारे में क्या हुक्म है ?"
"सबसे पहला हुक्म तो यही है कि थोड़ी देर चुपचाप बैठो।"
सुषमा चुप हो गई । वह एक बिस्कुट उठाकर धीरे-धीरे दांतों से कुतरने लगी ।
प्रमोद ने अपने ड्रेसिंग गाउन की जेब से सिगरेट लाइटर निकाला । उसने लाइटर जलाया और उसकी लपट पर अपनी निगाह को स्थिर कर लिया। उसकी सारी मानसिक शक्तियां एक शार्प फोकस पर केन्द्रित हो गई ।
सुषमा बिस्कुट कुतरना भूल गई । वह मुंह बाए प्रमोद की सूरत देखने लगी ।
चार-पांच सैकेण्ड तक प्रमोद पत्थर की निर्जीव प्रतिमा की तरह स्थिर बैठा रहा । फिर उसने एक गहरी सांस ली और एक हल्की सी खटाक के साथ लाइटर बन्द कर दिया ।
"खरगोश ।" - सुषमा हैरानी से बोली- "यह अभी तुम क्या कर रहे थे ! क्या हो गया था तुम्हें ?"
"कुछ नहीं । यह मस्तिष्क को एकाग्र करने का एक तरीका है ।"
"अजीब तरीका है। मुझे तो तुम्हारी सूरत देखकर डर लग रहा था ।"
प्रमोद मुस्काराया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
"एक सिगरेट मुझे भी दो ।" - वह बोली ।
प्रमोद ने उसे घूरकर देखा ।
“अच्छा, मत दो।" - वह मुंह बिगाड़ कर बोली - "मैं धुआं ही सूंघ लूंगी।"
प्रमोद चुप रहा ।
"क्या यही वह कन्सन्ट्रेशन नाम का आर्ट है जिसे तुम चीन से सीखकर आये हो ?"
"हां ।”
"बड़ा वाहियात काम है। अलबत्ता बच्चों को डराने के लिए बड़ा कारआमद सबित हो सकता है। कोई बच्चा रोना शुरू करे तो उसके सामने ऐसा पोज बनाकर बैठ जाओ । हफ्ता-दस दिन तो वह दुबारा राने का नाम लेगा नहीं । बच्चे क्या, इससे तो बड़े भी डर सकते हैं। मुझे खुद डर लग रहा था । मैं तुम्हें जानती हूं इसलिए यहां से चीखें मारती भागी नहीं । कोई अनजान आदमी यह हरकत करता तो ऐसी सरपट भागती यहां से कि कमर्शियल स्ट्रीट के मोड़ पर ही जाकर दम लेती ।"
"और फिर पुलिस तुम्हें पकड़ कर ले जाती ।"
“अभी जो पोज तुमने बनाया था, उससे तुम्हें क्या हासिल हुआ ?"
"मैं इस नतीजे पर पहुंच पाया कि तुम यहां नहीं रह सकती । देर सवेर पुलिस यहां फिर आ धमकेगी ।”
"मैं फिर पहले की तरह फ्लैट से गायब हो जाऊंगी ।"
"अगर पुलिस दिन में यहां आई तो तुम्हारी यह स्टण्ट नहीं चलेगा ।"
"लेकिन में यहां से जा भी तो नहीं सकती । यहां से बाहर कदम रखते ही पुलिस मुझे दबोच लेगी।"
“ मैंने तुम्हें यहां से निकालने की एक तरकीब सोची है|"
"क्या ?"
"अभी बताता हूं।" - वह बोला । वह उठकर टेलीफोन के पास पहुंचा । उसने चायना टाउन में चू की के घर का नम्बर डायल किया । कुछ ही क्षण बाद उसके कान में सो हा की आवाज पड़ी । ।
"मेरा मुंह एक है लेकिन कान कई हो सकते हैं । " - प्रमोद सावधानी से चीनी में बोला। उसे भय था कि कहीं पुलिस ने उसकी लाइन न टेप की हुई हो ।
"तुम एक ही कान के लिए बोलो।" - सो हा बोली ।
"मैं तुमको और तुम्हारे फादर को अपने फ्लैट पर आमंत्रित करना चाहता हूं।"
"कब ?"
“जब तुम चाहो । मैं तो तुमसे मिलने को हमेशा ही बेसब्र रहता हूं।"
“कोई और बात ?”
"पोशाक ऐसी पहनकर आना कि मैं पोशाक ही देखता रह जाऊं ।”
" और दुनिया भी पोशाक ही देखती रह जाए ?”
“हां ।”
सो हा एक क्षण चुप रही और फिर बोली- "निमन्त्रण के लिए धन्यवाद । फादर को तुम्हारे यहां आकर खुशी होगी|"
प्रमोद ने रिसीवर यथास्थान रख दिया ।
"जब तुम चीनी बोलते हो तो मेरा माथा ठनकने लगता है।" - सुषमा बोली- "किस से बात कर रहे थे ? सो हा से ?"
"हां ।" - प्रमोद बोला ।
"क्यों ?"
"तुम्हारे लिए मैंने उससे और उसक फादर से मदद मांगी है।"
“खरगोश ।” - एकाएक सुषमा बदले स्वर से बोली" वैसे तुम्हें मालूम है न कि वह लड़की तुम पर मरती है ?"
“नानसैंस ।”
"मत मानो । लेकिन मैं सच कह रही हूं। औरत को औरत ही पहचान सकती है। उस लड़की के चेहरे पर लिखा है कि वह तुमसे मुहब्बत करती है ।"
“अब जाने भी दो ।”
सुषमा चुप हो गई ।
“आओ, ड्राईगरूम में चलें ।" - प्रमोद बोला ।
दोनो उठकर ड्राईगरूम में आ गए ।
“प्रमोद ।” - एकाएक सुषमा गम्भीर स्वर में बोली"मुझे उस प्रतिमा के बारे में बताओ जो तुमने मुझे उपहार में दी थी । वही, जिस पर एक चीनी बुर्जुगवार एक खच्चर पर उसकी दुम की और मुंह करके बैठे हुए थे।"
“वह चीनी दार्शनिक चाउ कोह-कोह की प्रतिमा है और प्रतिमा में चीनी जीवन का सारा दर्शन छुपा हुआ है । चाउ कोह कोह एक बहुत बूढा, बहुत दाना आदमी है । उसने अपने जीवन का पूरा आनन्द उठाया है और वह प्रसन्न है । उसमें जिन्दगी के प्रति भारी उमंग है ।"
"लेकिन वह अपने खच्चर पर उसकी पूंछ की ओर मुंह करके क्यों बैठता है ?"
"वह कहता है कि जिन्दगी में हम जो कुछ करते हैं वह किसी अलौकिक शक्ति द्वारा पूर्वनिर्धारित होता है । इस बात का कोई महत्व नहीं है कि इन्सान का मुकद्दर अच्छा है या बुरा, लेकिन उस बुरे या अच्छे मुकद्दर के प्रति उसकी जो प्रतिक्रिया है, वह महत्वपूर्ण है। यानी इन्सान को अपनी कामयाबी पर खुशी से फूल कर कुप्पा नहीं हो जाना चाहिए और नाकामयाबी पर आंसू बहाने नहीं बैठ जाना चाहिए । उसको अपने मुकद्दर के साथ सहयोग रखना चाहिए और जिन्दगी में अच्छा या बुरा जैसा भी तजुर्बा हो उससे लाभ उठाना चाहिए । चाउ कोह कोह क्योंकि इन बातों को खूब समझता है इसलिए वह अपने खच्चर की पूंछ की ओर मुंह करके बैठता है क्योंकि वह कहता है इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कहां जा रहा है । जिन्दगी में मन्जिल का कोई महत्व नहीं होता । महत्व उन बातों का है जो मन्जिल तक पहुंचते समय इन्सान रास्ते में करता है । मन्जिल पर तो चाउ कोह कोह कहता है, उसने पहुंच ही जाना है, फिर मुंह खच्चर की दुम की ओर भी हुआ तो क्या फर्क पड़ता है !"
"बड़ी बढिया बात है । इसे तो सुनकर ही मन को बड़ी राहत मिलती है । और क्या कहा है उसने ?"
"बहुत कुछ । जैसे इन्सान को दौलत को कभी अपनी मंजिल नहीं समझना चाहिए । जो आदमी दौलत से विरक्ति दिखा सकता है, प्रसिद्धि से जिसका मिजाज नहीं चढ जाता, उसको जिन्दगी में कभी हार नहीं सताती । उसने एक तरह से हार को जीत लिया है। दौलतमन्द आदमी संसार के भौतिक सुख ही हासिल कर सकता है लेकिन इज्जत हासिल करने के लिए उसका चरित्र ऊंचा होना जरूरी है। हम लोग आदमी की कीमत उसकी दौलत और समाज में बने उसके रुतबे से आंकते हैं। लेकिन एक बेहद दौलतमन्द और ऊंचे रुतबे वाला आदमी निहायत घटिया और जलील हो सकता है । अक्सर होता है। ऐसे लोग दौलत को अपनी मन्जिल की एक सीढी नहीं बल्कि मन्जिल ही समझ लेते हैं । लेकिन चाउ कोह कोह कहता है कि रईसी और गरीबी तो दो शक्तियां हैं जिनसे चरित्र का निर्माण होता है। अगर आप जिन्दगी में ।
उन्हें किसी और आइने से देखते हैं तो आपका जीवन असफल है। इसलिए खच्चर की दुम की ओर मुंह करके सफर करो, आपके साथ जो हादसे होते हैं उनकी परवाह मत करो, बल्कि उन हादसों की जीवन पर प्रतिक्रिया की ओर ध्यान दो, उनके अपने चरित्र पर हुए प्रभाव को महत्व दो । मैंने ये बातें तुम्हें पहले भी बताई हैं । "
"हां ।" - उसने स्वीकार किया - "लेकिन उस वक्त में इन्हें समझ नहीं पाई थी। मैंने यह दर्शन जोगेन्द्र को समझाने की कोशिश की थी और तभी मुझे लगा था कि अभी तो मैं इसे खुद ठीक से नहीं समझती थी ।"
"क्या तुमने चाउ कोह कोह की वह प्रतिमा कभी उसे भी दी थी जो मैंने तुम्हें दी थी ?"
"क्यों पूछ रहे हो ?"
"मेरी बात का जवाब दो ।"
"हां"
"कब ?"
सुषमा हिचकिचाई ।
"ओह, कम आन !"
"जिस रोज..."
“हां, हां ।"
“जिस रोज हरि प्रकाश सावंत का कत्ल हुआ था, उसी रोज ।”
"वह प्रतिमा कब तक जोगेन्द्र के पास रही थी ?"
"केवल एक दिन । अगले दिन वह उसे वापिस ले आया था।"
"प्रतिमा अब कहां है ? "
"मेरे फ्लैट में, मेरे बैडरूम में । "
"श्योर !" "
"होनी तो वहीं चाहिए।"
"वह नहीं होगी । वह प्रतिमा अब पुलिस के अधिकार में है, सुषमा । और मैंने उस पर खून के धब्बे देखे थे। पुलिस ने उस बारे में भी मुझसे पुछताछ की थी ।"
बोली । "तुमने उन्हें क्या बताया था ?" - सुषमा घबरा कर
प्रमोद के चेहरे पर एक आश्वासनपूर्ण मुस्कारहट उभरी
"कुछ भी नहीं ।" - वह बोला ।
***
प्रमोद की फोन काल के ठीक बीस मिनट बाद चू की और सो हा प्रमोद के फ्लैट पर पहुंच गए। दोनों उस वक्त योरोपियन परिधान पहने हुए थे । सो हा ने एक ऊंचे कालर वाला फर का कोट पहना हुआ था । सिर पर वह एक चमकदार नीले रंग का खूबसूरत हैट पहने थी जिसमें लाल रंग का एक पंख लगा हुआ था ।
"कैसी लग रही हूं, प्रमोद ?" - सो हा बोली ।
"बहुत दिलकश !" - प्रमोद बोला । -
"पोशाक ऐसी ही है न कि दुनिया देखती रह जाए ?"
“सरासर ।"
“ऐसी ही कि देखने वाला पोशाक ही देखे, पहनने वाले की सूरत नहीं ?"
"बिल्कुल ।”
"मैं फोन पर तुम्हारा इशारा समझ गई थी ।”
"मुझे तुमसे यही उम्मीद थी । तुम बहुत समझदार हो|"
सुषमा और सो हा और चू की में अभिवादनों को बड़ा तकल्लुफभरा आदान-प्रदान हुआ ।
यांग टो चाय सर्व कर गया। साथ में वह तरबूज के सुखाये हुए बीज लाया ।
- " पुलिस को" - प्रमोद मतलब की बात पर आता हुआ बोला- "सुषमा की तलाश है ।"
“क्यों ?" - चू की ने पूछा
"मालूम नहीं ।"
“अज्ञान अनिश्चय का जनक है ।"
" पुलिस को एक केस की तफ्तीश के सिलसिले में इसकी भी तलाश है । "
"साफ-साफ बोलो, प्रमोद ।" - सो हा बोली - "तुम सुषमा को यहां से बाहर निकालना चाहते हो लेकिन इस जगह की निगरानी हो रही है । ठीक ?"
प्रमोद ने हामी भरी ।
"मेरा भी यही खयाल था । मैं यहां ऊंचे कालर वाला फर का कोट और बड़ा भड़कीला हैट पहनकर आई हूं । निगरानी करते पुलिस वालों को हैट और कोट ही याद रहेगा, पहनने वाली की सूरत नहीं ।"
"तुम्हारा मतबल है मुझे यह हैट और कोट पहनकर यहां से निकलना है ?" - सुषमा बोली ।
प्रमोद ने हामी भरी ।
"लेकिन सिर्फ यहां से निकल जाना ही तो काफी नहीं ।" - सुषमा बोली- "बाद में जब मैं स्वयं को प्रकट करूंगी तो पुलिस पूछेगी मैं कहां थी ! तब अगर मैं कोई युक्तियुक्त और ठोस बात न बता पाई तो पुलिस यही समझेगी कि मैं जोगेन्द्र को भगाने की साजिश में शामिल थी ।"
"तुमने भी तो इसका कोई जवाब सोचा होगा ?"
"मैंने कई उपाय सोचे थे लेकिन उनमें से दमदार कोई नहीं।"
चू की ने एक बार खंखार कर गला साफ और फिर सहज भाव में बोला - "मैं बूढा आदमी हूं। किसी दिन मैं भी अपने पूर्वजों के पास जाऊंगा। मैं चाहता हूं अपने पीछे मैं अपनी कोई यादगार छोड़ जाऊं। मैं अपनी एक पोर्ट्रेट बनवाना चाहता हूं । इस काम के लिए मैंने तुम्हें चुना है। क्या तुम कुछ दिन मेरे गरीबखाने पर रहकर मेरी पोर्ट्रेट बनाना स्वीकार करोगी ?”
" पोर्ट्रेट पर तुम्हें बहुत रफ्तार से काम करना होगा, सुषमा।” - प्रमोद बोला- "ताकि अगर पुलिस तुम्हें उम्मीद से जल्दी खोज निकाले तो पोर्ट्रेट देखकर यह कहा जा सके कि उस पर काफी अरसे से काम हो रहा है । "
"लेकिन मेरे पास पेन्टिंग का सामान तो है ही नहीं ।" - सुषमा बोली ।
“जो चीजें पैसा खर्च कर हासिल की जा सकती हैं, वे मुहैया कर दी जाएंगी।" - चू की बोला ।
सुषमा चुप हो गई ।
सो हा उठी । उसने अपना हैट और कोट उतारकर सोफे पर रख दिया और सुषमा से बोली- "जरा पहनकर दिखाओ तो कैसा लगता है ।"
सुषमा ने हैट और कोट पहन लिया ।
"एक्सीलैन्ट !" - सो हा प्रशंसात्मक स्वर से बोली“तुम्हें तो ये दोनों चीजें मुझसे कहीं ज्यादा सुन्दर लगती हैं, सुषमा इसे मेरी ओर से भेंट स्वीकार कर लो।"
"लेकिन मुझे तो ये..."
“ओह प्लीज, डोंट से नो ।"
सुषमा ने प्रमोद की ओर देखा ।
"क्या फर्क पड़ता है !" - प्रमोद दार्शनिक भाव से बोला ।
"थैंक्यू ।" “आल राइट।" - सुषमा अनिश्चयपूर्ण स्वर से बोली
"अब हम चलें ?" - चू की उठता हुआ बोला ।
"वे लोग शायद आपका पीछा करें।" - प्रमोद बोला ।
"शौक से करें।" - चू की बोला- "मैं इस बारे में कोई छुपाव थोड़े ही रखता हूं कि मैं कहां जा रहा हूं ? वे मेरा पीछा करना चाहते हैं तो करें लेकिन वे चायना टाउन के किसी एक सिरे तक ही मेरा पीछा कर पाएंगे। मेरे सिरे के किसी एक दरवाजे से कहीं दाखिल हो जाने के बाद वे मुझे खोजते ही रह जाएंगे और वे इन्तजार में बूढे हो जाएंगे लेकिन मुझे उसी दरवाजे से बाहर निकलता नहीं देख पाएंगे।"
"वैरी गुड ।" - प्रमोद बोला ।
"चलें ?" - चू की ने सूषमा से पूछा ।
सुषमा ने सहमतिसुचक ढंग से सिर हिलाया ।
चू की और सुषमा वहां से रवाना हो गए ।
उनके जाने के बाद प्रमोद सो हा की ओर आकर्षित हुआ । सो हा सोफे पर बैठी बड़ी नफासत से तरबूज के बीजों में से गिरियां निकाल कर खा रही थी ।
“सो हा ।" - प्रमोद बोला- "मैं तुम लोगों को यह तकलीफ नहीं देना चाहता था लेकिन और कोई रास्ता भी तो नहीं था !"
"तकलीफ कैसी ?" - सो हा बोली- "क्या तुम हमें अपना दोस्त नहीं समझते ?"
"लेकिन यह कोई मामूली बात नहीं है । यह कत्ल का मामला है । कत्ल की सजा पाया हुआ एक आदमी पुलिस की गिरफ्त से भाग निकला है। उसकी जो कोई भी कैसी भी मदद करेगा, वह गुनहगार समझा जाएगा ।”
"मैं ऐसे किसी आदमी को नहीं जानती जो कत्ल की सजा पाया हुआ है और जो पुलिस की गिरफ्त से भाग निकला है ।" - सो हा भावहीन ढंग से बोली ।
"लेकिन अगर पुलिस वाले तुम्हारे पीछे पड़ गए तो उन्हें यह विश्वास दिलाना आसान काम नहीं होगा ।"
"देखा जाएगा ।" - सो हा लापरवाही से बोली ।
"और तुम फौरन यहां से नहीं जा सकती । तुम्हें थोड़ी देर यहां रुकना होगा ताकि अगर पुलिस वालों में से किसी ने तुम्हारे हैट और कोट के अलावा थोड़ी बहुत तुम्हारी सूरत की भी झलक देखी हो तो वह उसे भूल जाए या तब तक शायद उसकी ड्यूटी बदल जाए। अगर किसी ने तुम्हें आती बार देखा होगा तो वापिसी में वह तुम्हें हैट और कोट के बिना जाती देखकर शक करेगा ।"
"नैवर माइन्ड । मुझे यहां से जाने की कोई जल्दी नहीं है।"
"लेकिन उस दौर में मुझे कहीं जाना है।"
"शौक से जाओ। तब तक मैं यांग टो से बातें करती हूं
"कब तक लौटोगे ?"
“एकाध घन्टे में ।”
"फौरन जा रहे हो ?"
"हां ।”
"एक बात बताते जाओ।"
"क्या ?"
"सुषमा की खातिर मुझसे मदद मांगते समय तुम झिझकने क्यों लगते हो ?"
प्रमोद ने उत्तर नहीं दिया।
"मैं बताऊं ?"
"बताओ।"
"तुम सोचते हो कि सुषमा कुछ गलत समझ बैठेगी | उससे तुम्हारी शादी हो जाने के बाद वह तुम्हारा मुझसे मेलजोल पसन्द नहीं करेगी । है न ?"
"हे भगवान ! सो हा, सुषमा से मेरी शादी नहीं होने वाली न ही हो सकती है। वह किसी और लड़के से मुहब्बत करती है ।"
"वास्तव में तुम यह कहना चाहते हो या वह कहती है, या तुम ऐसा समझते हो कि वह किसी और से मुहब्बत करती है । वह...'
"छोड़ो। यह इन बातों का वक्त नहीं ।"
"ओके ।"
सो हा फिर निर्विकार भाव से तरबूज के सूखे बीजों की गिरियां निकाल-निकाल कर खाने लगी ।
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