अपने फ्लैट में पहुँचते ही सोनिया निढाल सी कुर्सी में पसर गई । वह चाहकर भी जैकी की लाश का नज़ारा और अंधेरे कमरे में चलायी गई गोलियों के विचार को अपने दिमाग से निकल नहीं पायी थी ।
जलीस ने उसे ब्राँडी का एक जाम पिलाकर प्यार से उसके बाल सहलाए और गाल पर हल्का सा चुंबन लिया ।
"जब तक मैं फोन करूँ तुम यहीं रहना ।" वह बोला–"कहीं मत जाना ।"
"लेकिन जलीस...।"
"घबराओ मत । सब ठीक हो जाएगा ।"
"प्लीज, जलीस...।" वह फँसी सी आवाज़ में बोली–"तुम कुछ मत करना ।"
"फिक्र मत करो, सोनिया ।"
"नहीं, जलीस...तुम कुछ मत करना वरना सब खत्म हो जाएगा ।"
"मैं सावधान रहूँगा ।"
सोनिया ने निराश भाव से सर हिलाया तो उसके बाल चेहरे पर बिखर गए ।
"नहीं, तुम कुछ भी मत करो, प्लीज । किस्मत ने हमें मुश्किल से मिलाया है । हमारी तकदीरे साथ जुड़ी है । तबाही का सामान मत करो । अगर तुम कुछ नहीं करोगे तो हम इस शहर से दूर जाकर चैन से जिंदगी बसर कर सकते है ।"
"सोनिया...।"
लेकिन उसके चेहरे पर व्याप्त भाव सोनिया पढ़ चुकी थी ।
"मुझे बहलाने की कोशिश मत करो ।" वह बोली–"तुम्हें इस वक्त सिर्फ एक गन की जरुरत है । गन हाथ में आते ही तुम उसे इस्तेमाल जरुर करोगे...फिर हम दोनों ही खत्म हो जाएगे । तुम खुद भी यह जानते हो, जानते हो न ?"
जलीस के पास कोई जवाब नहीं था ।
"तुम्हारे दिमाग में इस वक्त कोई बहुत बड़ी बात है ।" वह बोली–"और तुम्हारे इरादे खतरनाक है ।"
"नहीं. सोनिया । बेवजह खतरा उठाना मैं भी नहीं चाहता ।"
"तो फिर तुम्हारे दिमाग में क्या बात है ?"
"यही कि यह सारा सिलसिला पुराने 'प्रिंसेज पैलेस' से जुड़ा है ।"
"तो इसे पुलिस पर छोड़ दो । वे लोग अपने आप निपट लेंगे ।"
जलीस जानता था, सोनिया को समझाने की कोशिश करने से कोई फायदा नहीं होना था ।
"ठीक है ।" वह बोला–"मैं वादा करता हूँ कि कुछ नहीं करूँगा । बस चंदेक और सवालों के जवाब मुझे चाहिए ताकि मैं समझ सकूँ कि इस स्थिति से कैसे निपटा जाएगा । फिर मैं तुम्हें फ़ोन करुंगा या यहीं आ जाऊँगा ।"
इससे वह काफी हद तक संतुष्ट हो गई और अनिच्छापूर्वक उसका हाथ छोड़कर मुँह दूसरी ओर घुमा लिया ।
"मैं खुदा बाप से तुम्हारे लिए दुआ करूँगी ।"
जलीस फ्लैट से निकल गया ।
* * * * * *
पब्लिक टेलीफोन बूथ से जलीस ने पीटर द्वारा महाजन को बताया गया नंबर डायल किया ।
दूसरी ओर घंटी बजते ही रिसीवर उठा लिया गया ।
"पीटर ?" जलीस ने पूछा ।
"ओह, जलीस ।" पीटर का हाँफता सा स्वर सुनाई दिया–"कहाँ गायब हो गए थे ?"
"मैं मसरूफ था । तुम कहाँ से बोल रहे हो ?"
"मास्टर पिंटो की बार से ।"
"वही जो शिवाजी मार्ग पर है ?"
"हाँ । मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ । अरमान अली से मिलना चाहते हो तो यहाँ चले आओ ।"
एकाएक जलीस के स्वर में पैनापन आ गया ।
"तुमने उसे कैसे ढूंढ निकाला ?"
"मैंने नहीं, उसका पता सोहन लाल ने लगाया है । तुमने अरमान अली के गर्दन और कंधे के जोड़ की माँस पेशी में सुराख बना दिया था और उसे डॉक्टर के पास जाना पड़ा । सोहन लाल ने अपने सभी सोर्सेज से इस बारे में पूछताछ की तो पता लगा कि वह खुब चंदानी के पास गया था । तुम्हें भी याद होगा वही पुराना सिन्धी डॉक्टर । कई साल पहले पुलिस ने उसे ड्रग्स सप्लाई करने के जुर्म में गिरफ्तार किया था लेकिन अदालत में उसका जुर्म साबित नहीं किया जा सका...।"
"मैं समझ गया तुम किसकी बात कर रहे हो ।" जलीस ने उसे टोककर कहा–"आगे बोलो ।"
"डॉक्टर खूब चंदानी वाकई ड्रग्स का धंधा करता था और 'सिन्डीकेट' का आदमी हुआ करता था । इसलिए अरमान अली जानता था कि उसे इलाज के लिए किसके पास जाना चाहिए । इसका मतलब समझ रहे हो न ?"
"हाँ । अरमान अली का भी 'सिन्डीकेट' से ताल्लुक है । लेकिन वह अब कहाँ है ?"
"यहाँ पास ही कार्नर पर एक गैस्ट हाऊस में । नंबर है–दो सौ चौबीस । डॉक्टर खूब चंदानी के पास से वह सीधा यहीं आया था । मुझे लगता है, इस गैस्ट हाउस को खूब चंदानी ऐसे ही कामों के लिए इस्तेमाल करता है । सोहन लाल ने डॉक्टर के क्लीनिक से यहाँ तक उसका पीछा किया था और तब तक उस पर निगाह रखी जब तक कि मुझसे सम्पर्क नहीं बना लिया । फिर मैं यहाँ आ पहुँचा और उसे वाच करना शुरु कर दिया । तुम यहाँ आ जाओ । फिर हम उसकी मिजाजपुर्सी करेंगे ।"
"ठीक है । मैं बीस मिनट तक पहुँच जाऊँगा । और सुनो...हालात तेजी से बदल रहे हैं । जैकी की हत्या की जा चुकी है ।"
"जैकी ? ओह, माई गॉड...लेकिन किसने...?"
"यह आर्गेनाईजेशन का काम लगता है । जैकी ने क्लब पर कब्ज़ा करने की कोशिश में जो ब्लफ किया था वो चल नहीं पाया और उसकी पोल खुल गई । कुछ मायनों में अब यह बात समझ में आ रही है । विक्टर की बार में चल रही कांफ्रेंस याद है तुम्हें ?"
"हाँ ।"
"और शानदार लिबास वाले वे आदमी भी ?"
"हाँ ।" वे 'बड़े' लोग है–आर्गेनाइजेशन के फ्रंट मैन ।"
"ज्यादा उम्मीद इसी बात की है कि जैकी पावर गेम का स्टंट करने की ही कोशिश कर रहा था । वह उस वक्त भी उन्हें यकीन दिला सकता था लेकिन ऐन वक्त पर हम विक्टर की बार में जा पहुँचे । नतीजतन जैकी का स्टंट चल नहीं पाया और उसे मरना पड़ा ।"
"हालात और भी ज्यादा पेचीदा और खतरनाक हो गए हैं जलीस । अब हमारे मुकाबले पर बड़ी तोपें हैं, दोस्त । मछलियाँ नहीं अब मगरमच्छ सामने हैं...।" अचानक पीटर हँसा तो उसे खाँसी आ गई । खाँसी का दौरा रुका तो बोला–"मुझे नहीं लगता कि ज्यादा देर साथ दे पाऊंगा ।"
"सिगरेट छोड़ दो । जिंदगी और लंबी खिंच जाएगी ।" जलीस बोला–"तुम वहीं रहना मैं जितना जल्दी हो सकेगा पहुँच जाऊँगा । अपनी रिवॉल्वर लेने जाने के चक्कर में भी नहीं पडूँगा । इसलिए किसी लफड़े में मत पड़ना ।"
जलीस ने संबंध विच्छेद कर दिया ।
* * * * * *
शिवाजी मार्ग पर मास्टर पिंटो की बार में ।
जलीस को पीटर कहीं नजर नहीं आया ।
बार टेंडर को एक पैग विस्की का आर्डर देने बाद पीटर का हुलिया बताकर उसने पूछा–"उस आदमी को देखा था ?"
"हो, वह बार–बार आ जा रहा था । ब्राँडी के तीन स्माल पैग भी उसने लिए थे ।" बार टेंडर ने जवाब दिया–"वह किसी का इंतजार कर रहा लगता था ।"
"आखिरी दफा कितनी देर पहले उसे देखा था ?"
"करीब दस मिनट हो गए । वह बाहर गया था लेकिन अभी तक नहीं लौटा ।"
जलीस को असलियत भांपते देर नहीं लगी । पीटर बार–बार जाकर गैस्ट हाऊस को चेक कर रहा था–यकीनी तौर पर जानने के लिए अरमान अली वास्तव में वहीं था । वहाँ से कहीं और खिसकने के फेर में नहीं था ।
उसने पाँच मिनट और इंतजार किया ।
लेकिन पीटर नहीं लौटा ।
जलीस के मन में आशंका घर करने लगी । वह समझा गया कि जरूर कोई गड़बड़ थी ।
गिलास खाली करके उसने पचास का नोट काउंटर पर फेंका और बाहर निकल गया । पीटर ने बताया था, गैस्ट हाउस का नंबर दो सौ चौबीस था और वो एकदम कार्नर पर था ।
लेकिन कौन से कार्नर पर ?
बायाँ कार्नर नज़दीक था । जलीस ने वहीं ट्राई किया । मगर उस कार्नर के आस–पास दो सौ चौबीस नंबर की कोई इमारत नहीं थी ।
वह वापस दाएँ कार्नर की ओर दौड़ा–मकानों के नंबरों पर निगाह डालता हुआ ।
कार्नर पर पहुँचते ही उसे अपनी गलती का अहसास हो गया । वह सड़क की गलत साइड पर था । दो सौ चौबीस नंबर ठीक सामने दूसरी साइड में था ।
वो एक तीन मंजिला मकान था । बेसमेंट की सामने की तरफ वाली खिड़की से पीली मरियल सी रोशनी बाहर झाँक रही थी । परदे के पीछे कुर्सी पर बैठी किसी औरत के अखबार पढ़ रही होने का अस्पष्ट सा आभास मिल रहा था ।
ऊपर की मंजिलों पर अंधेरा था ।
पीटर को कहीं नजर नहीं आता पाकर जलीस एक ही नतीजे पर पहुँचा । अरमान अली वहाँ से जा चुका था और पीटर उसके पीछे लगा हुआ था । लेकिन उसके लिए यकीनी तौर पर जानना जरुरी था और इसका एक ही तरीका था–चेक किया जाए ।
चार सीढ़ियाँ तय करके प्रवेश द्वार पर पहुँचते ही जलीस ठिठककर रुक गया ।
पीटर के जूते दरवाजे के पास रखे थे । स्पष्ट था कि अंदर भारी गड़बड़ थी ।
तभी अंदर फायरों की आवाज़ गूँजी और एक आदमी की घुटी सी चीख उभरी ।
जलीस दरवाज़ा खोलकर अंदर दौड़ा ।
"पीटर ।" वह चिल्लाया ।
पहली मंज़िल से पीटर ने पुकारा ।
"यहाँ आओ, जलीस ।"
जलीस उसकी आवाज़ से अनुमान लगाकर सीढ़ियों की ओर भागा ।
ऊपर कोई चीज दीवार से टकराकर गिरी । फिर काँच टूटने का जोरदार छनाका हुआ । और फिर ज्यों ही लैंडिंग पर पहुंचकर जलीस अंधेरे में सामने मौजूद दरवाजे की ओर झपटा, एक फायर और किया गया ।
चंदेक फुट के फासले से अंधेरे में कराहने की आवाज़ उभरी ।
"पीटर ?" जलीस ने पुकारा ।
"ऊपर...छत पर...पिछली तरफ...उसे पकड़ो...जलीस ।"
जलीस अंधेरे में एक के बाद एक कमरे से गुजरा । एक स्थान पर मेज उसकी जाँघों से टकराई तो उसने मेज एक ओर धकेल दी ।
उसकी आँखें काफी हद तक अंधेरे की अभ्यस्त हो चुकी थीं । उसे सीढ़ियों की ओर खुलता दरवाज़ा नजर आ गया ।
अधिकांश मकानों में छत पर जाने के लिए एक ही सीढ़ियाँ थी । लेकिन इस मकान को अंदर से तोड़कर नई शक्ल दी गई थी इसलिए यहाँ पृष्ठ भाग में सीढ़ियाँ बनी हुई थीं ।
जलीस ने तेजी से सीढ़ियाँ तय की और छत पर खुलने वाले दरवाजे में रुक गया । अंधेरे के बावजूद सीधा छत पर पहुँचना खतरनाक था । उसने अपना कोट उतारकर छत पर फेंक दिया ।
फौरन दाँयी ओर से गोली चली और नीचे गिरने से पहले ही कोट को चीरती हुई गुजर गई ।
जलीस को फायरकर्ता की स्थिति का अंदाजा हो गया ।
वह सावधानी पूर्वक बाहर निकला, दाँयी ओर घूमा और कोने में आड़ लेकर आहट लेने की कोशिश की ।
नीचे कोई गला फाड़कर चिल्ला रहा था लेकिन छत पर पूरी तरह खामोशी थी ।
जलीस ने अपने जूते उतार दिए । ऊंची मुंडेर के साथ–साथ खुद को अंधेरे में रखता हुआ वह नंगे पैर उस तरफ बढ़ा जहाँ से साथ वाली छत पर पहुँचा जा सकता था ।
वांछित पोजीशन मिलते ही वह पंजों के बल बैठा । उसने इमारतों को एक–दूसरी से जुदा करने वाली मेहराबों की ओर देखा । उस ब्लाक की सभी इमारतें तीन मंजिला और पुरानी थी लेकिन उनका मालिक शायद एक ही था । इसीलिए सभी के बीच में पतली गली होने के बावजूद उनकी छतों की मुंडेरे मेहराबों द्वारा परस्पर जुड़ी हुई थी ।
सहसा जलीस को छत के उस तरफ के सिरे की ओर हल्की हरकत का आभास हुआ । मुंडेर के साए में वह दबे पाँव उधर ही बढ़ गया ।
चंद सैकेंड पश्चात ही उसे अंधेरे में लिपटी मानवाकृति धुंधली सी नजर आने लगी । जलीस की तरफ पीठ किए वह उन सीढ़ियों की ओर निगाहें गड़ाए प्रतीत होता था जिधर से जलीस छत पर पहुंचा था ।
जलीस ज्यादा देर वहाँ रुकने का रिस्क नहीं ले सकता था । वक्त तेजी से गुजर रहा था । अब तक चली गोलियों की आवाजें सुनकर पड़ोसियों ने जरुर पुलिस को इत्तिला कर दी होगी और वे लोग किसी भी क्षण वहाँ पहुँच सकते थे ।
एक–एक पल कीमती था ।
जलीस तेजी से उसकी ओर लपका । लेकिन भूत की तरह निशब्द दौड़ने वाला पीटर वह नहीं था । पर्याप्त सावधानी के बावजूद पैरों से आहट हो ही गई ।
उस वक्त वह उस आदमी से मुश्किल से दस फुट दूर था । वह आदमी फौरन पलटा और उस पर फायर झोंक दिया ।
गोली जलीस के सर के ऊपर से गुजर कर पीछे पानी की टंकी से जा टकराई ।
लेकिन दूसरा फायर करने का मौका उसे नहीं मिल सका । जलीस ने उस पर छलांग दी थी ।
उस आदमी की पीठ भड़ाक से मुंडेर से टकराई । उसकी गन हाथ से छूटकर मुंडेर के ऊपर से गुजरती हुई नीचे गली में जा गिरी ।
"हरामजादे ।" वह गुर्राया और जलीस को पीछे धकेल दिया ।
जलीस भांप गया, आदमी ताकतवर था ।
जलीस पुन: उसकी ओर झपटा ।
उस आदमी ने ऐसा जाहिर किया मानों बाएँ हाथ का घूंसा जड़ना चाहता था मगर ऐन वक्त पर दाएँ हाथ का घूसा चला दिया ।
घूँसा वजनी था और कनपटी पर पड़ना था लेकिन जलीस तनिक पीछे हटकर स्वयं को बचाने में कामयाब हो गया । फिर वह तेजी से आगे आया और उसकी ठोढ़ी पर मुक्का जमा दिया ।
वह आदमी लड़खड़ाकर पीछे हट गया ।
जलीस पुनः उसकी ओर झपटा तो उस आदमी ने जलीस के घुटने पर ठोकर जमा दी ।
ठोकर इतनी भारी थी कि जलीस तुरंत रुक गया ।
तभी उस आदमी ने फुर्ती से आगे आकर उसकी गरदन पर हाथ जमा दिया । जलीस बुरी तरह लड़खड़ाया और संभलने की कोशिश करने के बावजूद छत पर जा गिरा ।
मैदान पूरी तरह उस आदमी के हाथ में था । लेकिन जलीस के गिरते ही वह मुंडेर पर चढ़ गया और मेहराब की ओर लपका । ताकि वहाँ से गुजरकर बगल वाली छत पर पहुंचकर भाग सके । मगर मैदान छोड़कर भागने की हड़बड़ी में उसका पैर वहाँ फैली टी वी एन्टीना की तार में उलझा और वह तीन मंज़िल नीचे गली में जा गिरा ।
जलीस ने उठकर अपने जूते पहने और कोट उठाकर सीढ़ियों पर नीचे दौड़ गया ।
उस आदमी को वह पहचान चुका था । उसका नाम अमरनाथ था और वह सिंडिकेट के लिए काम करता था । उसकी मौजूदगी ने इस मामले की तस्वीर का काफी हद तक सही रुख पेश करना शुरु कर दिया था ।
जलीस वापस उसी कमरे में पहुँचा और लाइट स्विच ऑन कर दिया ।
फर्श पर खून में लथपथ पड़े पीटर ने मुस्कराने की कोशिश करते हुए उसे देखा ।
"उ...उसका क्या हुआ ?"
"वह मर गया ।" जलीस बोला–"यहाँ क्या हुआ था ।"
पीटर ने कमरे के दूसरे दरवाजे की ओर सर हिला दिया ।
जलीस ने अंदर जाकर लाइट स्विच ऑन किया और फिर फौरन ही ऑफ कर दिया ।
वह देख चुका था, गरदन पर पट्टियाँ लपेटे बिस्तर पर पड़े आदमी की छाती में दो ताजा सुराख बने नजर आ रहे थे ।
जलीस ने पीटर की हालत का सही जायजा लेना चाहा तो उसने हाथ उठाकर रोक दिया । वह रुक रुककर मुश्किल से सांस ले पा रहा था । चेहरा एकदम सफेद था और आँखें अधमुंदी ।
"तुम्हें गोली लगी है ?" जलीस ने पूछा ।
"हाँ...छाती में ।"
"मैं तुम्हें डॉक्टर के पास ले चलता हूँ ।"
"नहीं ।"
"डॉक्टर को यहीं बुला लूँ ।"
"नहीं...कोई फायदा नहीं होगा ।"
"पागल मत बनो । तुम ठीक हो जाओगे ।"
"नहीं, दोस्त...मेरा वक्त आ गया है...तुम भाग जाओ, जलीस ।"
"मुझे बताओ, यहाँ हुआ क्या था ?"
"मैं इस मकान को वाच कर रहा था...उस आदमी को यहाँ आते देखा...मैं उसे जानता था...वह सिंडिकेट का गनमैन था ।"
"मैंने भी पहचान लिया था । वह अमरनाथ था ।"
पीटर को खाँसी आ गई । दर्द के कारण उसका सास शरीर ऐंठ गया । आँखें बाहर को उबल आईं और मुँह से गाढ़ा खून रिसने लगा । इसके बावजूद खाँसी रुकने के बाद वह खामोश नहीं रहा ।
"म...मैंने उसे रोकने की कोशिश की...मगर अब मैं पहले वाला बिलाव नहीं रहा...उसने मेरी छाती में गोली मार दी...।" पीटर की हाँफती आवाज़ बहुत धीमी थी । लेकिन अत्यधिक पीड़ा के बावजूद वह मुस्कराया–"जलीस...शालीमार होटल के रिसेप्शनिस्ट से मिल लेना...फरमान अली ने फोन किया था...।"
"बोलो मत, पीटर । मैं समझ गया ।"
सहसा साइरन की धीमी आवाज़ दोनों को सुनाई दी । ।
"भागो, जलीस ।" पीटर बोला–"छत से होकर भाग जाओ...पुराने वक़्तों की तरह जाओ...।"
"तुम्हें इस हालत में छोड़कर ।"
पीटर एक बार और मुस्कराया ।
"म...मैं इसी हाल में खुश हूँ...मेरे लिए कुछ नहीं किया जा सकता...तुम मेरे दोस्त हो...हम ब्लड ब्रदर्स है...प्रिंसेज है... शहज़ादे है...पुराने वक़्तों में बहुत मजा आता था...उससे ज्यादा मजा अब तुम्हारे साथ आया है...जिंदगी भर हम फसाद करते रहे...लेकिन अब रुखसत होने का वक्त आ गया, दोस्त...हाथ नहीं मिलाओगे, शहज़ादे...।"
जलीस ने उसका हाथ धाम लिया ।
"ओके, मैन...नाऊ रन अवे ।" पीटर बुदबुदाया–"गुडबाई...।"
पुलिस साइरन की आवाज़ तेज होती जा रही थी ।
पीटर ने अपना हाथ खींच लिया ।
"जाओ...जलीस...।"
जलीस उठकर बाहर दौड़ गया ।
सीढ़ियों द्वारा वापस छत पर पहुँचा और मेहराबों के ऊपर से गुजरता एक छत से दूसरी पर दौड़ता चला गया–पुराने वक़्तों की तरह । उसे लगा कि वह एक बार फिर अपनी नौजवानी के दिनों में लौट गया था ।
अंतिम छत से बरसाती पानी की निकासी के लिए लगे पाइप से नीचे उतर गया ।
वह तेजी से पीटर की खोली की ओर चल दिया ।
अब सबसे पहला काम था–रिवॉल्वर वापस लाना ।
* * * * * *
शालीमार औसत दर्जे के हर मामले में बदनाम होटलों में से एक था ।
लॉबी खाली थी ।
जलीस सीधा रिसेप्शन पर पहुँचा ।
वहाँ मौजूद अधेड़ सूरत से काइंया नजर आता था ।
"कमरा चाहिए ?" उसने पूछा ।
"मुझे पीटर ने तुमसे मिलने के लिए कहा था ।"
अधेड़ ने उसे घूरा ।
"पीटर ने ?"
जलीस जानता था, उस तरह के आदमियों से निपटने के दो ही तरीके थे । पहला तरीका अपनाते हुए उसने सौ रुपए का एक नोट काउंटर पर डाल दिया ।
"हाँ, पीटर रोडरिक ने ।"
अधेड़ नोट को देखने लगा लेकिन उसका चेहरा भावहीन ही रहा ।
"पीटर रोडरिक ।" उसने यूँ दोहराया मानों नाम को याद करने की कोशिश कर रहा था ।
जलीस ने वक्त जाया करने की बजाय दूसरा तरीका इस्तेमाल करना बेहतर समझा । उसने अपने कोट के बटन इस ढंग से खोले कि बैल्ट होल्सटर में रखी रिवॉल्वर अधेड को दिखाई दे सके । फिर वह मुस्कराया तो अधेड़ समझ गया कि उसका कांझ्यापन नहीं चलेगा ।
"मेरा नाम जलीस है ।" वह बोला ।
अधेड ने चुपचाप नोट उठाकर जेब में रखा । खाली पड़ी लॉबी में निगाहें डाली फिर एक रजिस्टर अपने सामने खींच लिया ।
"पीटर ने बताया था ।" जलीस बोला–"तुम वो नंबर याद करके बता सकते हो जिस पर फरमान अली उर्फ जगन ने फोन किया था ।"
अधेड ने अपने होंठों पर ज़ुबान फिराई ।
"हाँ । लेकिन वे...।"
"उनकी फिक्र मत करो ।" जलीस सर्द लहजे में बोला–"वे दोनों मर चुके हैं ।"
अधेड ने रजिस्टर से निगाहें उठाकर उसे देखा उसकी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा इसी होटल के काउंटर पर गुजरा था । इस बीच हर तरह के इतने लोगों के चेहरे वह देख चुका था कि चेहरे देखकर लोगों को भांपने की खासी तमीज उसे हो गई थी । अपने उसी तजुर्बे की बिना पर उसे समझते देर नहीं लगी कि सामने खड़ा आदमी न सिर्फ सच बोल रहा था बल्कि उन दोनों की मौत की वजह भी वह खुद ही था ।
"इ...इसके चक्कर में मुझ पर तो कोई मुसीबत नहीं आएगी ?"
"अगर कोई पूछता है तो कह देना कि तुमने जिंदगी में पहले कभी मुझे नहीं देखा ।"
"ल...लेकिन पीटर तो जानता है ।"
"वह भी मर चुका है ।"
"ओह !"
"फोन नंबर बताओ ।"
"बीस चालीस अस्सी । टू जीरो फोर जीरो एट जीरो । यह राउंड फीगर में है इसीलिए मुझे याद आ गया ।"
जलीस वहाँ से हटकर पब्लिक टेलीफोन बूथ में जा घुसा । टेलीफोन विभाग का डाइरेक्ट्री इंक्वायरी का नंबर डायल करके संबंध स्थापित होने पर उसने अधेड़ द्वारा बताया गया नंबर बताकर पूछा कि वो नंबर किसका था ।
जवाब में उसे होल्ड करने के लिए कह दिया गया ।
कुछेक सैकेंड बाद लाइन पर पुनः उसी आप्रेटर का स्वर सुनाई दिया और उस व्यक्ति का नाम–पता बता दिया गया जो उस फोन नंबर का मालिक था ।
जलीस को पीटर की बात याद आ गई । दो पेशेवर हत्यारों को उसकी हत्या का कांट्रेक्ट दिया गया था । बाद में किसी ने हत्या करने में देर करने की एवज में नई और तगड़ी ऑफर उन्हें दे दी थी । हत्यारों ने अगले आदेश के लिए उस आदमी को फोन किया जिसने शुरु में उन्हें कांट्रेक्ट दिया था और उसने पुनः काम खत्म करने का पुराना आदेश दोहरा दिया ।
वो फोन काल करके उन्होंने बड़ी भारी गलती की थी । उनकी इसी गलती ने जलीस को उस आदमी तक पहुंचा दिया जिसने उसकी हत्या का कांट्रेक्ट उन्हें दिया था ।
वह आदमी था–सुलेमान पाशा । फरमान अली द्वारा वो काल उसी को की गई थी ।
* * * * * *
तिलक बाजार इलाके के पुराने खस्ता हालत मकानों को तोड़कर करीब दस साल पहले उनकी जगह नई चार मंजिला इमारतें खड़ी की गई थी और वहाँ रहने वालों को फिर से नए फ्लैटों में बसा दिया गया था । सभी आवश्यक सुविधाएँ भी उन्हें बेहतर ढंग से उपलब्ध करा दी गई थीं । लेकिन वे लोग जरा भी नहीं बदले । उनका रहन–सहन और सोचने का ढंग पहले जैसे ही थे । वे सब चुनाव में हमेशा एक ही व्यक्ति को वोट डालते थे जो भी उनकी वोट की सबसे ज्यादा कीमत देता था । विजेता उम्मीदवार बाद में उनकी कितनी परवाह करता था इससे कोई मतलब उन्हें नहीं था ।
सुलेमान पाशा को उनके वोट खरीदने में कोई दिक्कत नहीं होती थी । बुनियादी तौर पर सही जोड़–तोड़ बैठाने वाला वह एक तिकड़मी राजनीतिबाज था और उसका वजूद दिनों दिन भारी होता चला गया । क्योंकि बहुत बड़े वोट बैंक का मालिक होने की वजह से किसी भी चुनाव में उसकी भूमिका निर्णायक साबित होती थी ।
लोगों को उससे लगाव था और उसकी इज़्ज़त करते थे । उसकी 'छवि' एक ऐसे स्थानीय नेता की थी जो उन्हीं लोगों के बीच में रहकर उनकी समस्याएँ सुलझाने के लिए हर वक्त तैयार रहता था । यह एक अलग बात थी कि इसमें उसका निजी स्वार्थ ही प्रमुख होता था ।
लगभग पच्चीस साल पहले कार्नर की जिस इमारत के तीन कमरों में वह रहता था अब पूरी तरह उसका मालिक बन चुका था । उन दिनों वो इमारत तिलक बाजार से खा से फासले पर थी लेकिन वक्त और हालात ने अब उसे पूरे इलाके की गतिविधियों का केन्द्र बना दिया था । शायद इसीलिए वो इलाके की सबसे शानदार इमारत भी बन गई थी ।
सुलेमान पाशा पैंथा उस (टॉप फ्लोर पर बना अपार्टमेंट) में रहता था । नीचे के खंडो पर भले और इज्जतदार लोग बतौर किराएदार रहते थे ।
ठीक दस बजे निकटतम बार से निकलकर जलीस उस इमारत की ओर चल दिया ।
आसमान में घिरे बादलों की वजह से स्ट्रीट लाइट की रोशनी के बावजूद वातावरण पर्याप्त रुप से प्रकाशमय नहीं था और हवा में मिली नमी बारिश आने का संकेत दे रही थी ।
जलीस इमारत में दाखिल हुआ और लिफ्ट की बजाय सीढ़ियों की ओर बढ़ गया ।
अंतिम फ्लोर पर पहुंचकर उसने देखा कि लिफ्ट वहाँ खाली खड़ी थी और वो सिर्फ वहीं तक जाती थी जबकि सीढ़ियाँ और ऊपर तक गई हुई थी ।
शेष सीढियाँ तय करके जलीस ने वहाँ मौजूद दरवाजा खोला जो पैंथा उसके चारों ओर बनी टैरेस पर खुलता था ।
टैरेस पर आकर उसने दरवाज़ा पुनः बंद कर दिया ।
उस तरफ दक्षिण की ओर खुलने वाली पैंथा उसकी बड़ी–बड़ी खिड़कियाँ थीं । जिन पर भारी पर्दे झूल रहे थे । उनमें से दो ग्रिल विहीन खिड़कियाँ ऐसी लगती थीं जिन्हें दरवाजे की तरह बाहर की और खोला जा सकता था । लेकिन जलीस अंदर जाने की कोशिश करने से पहले उस स्थान का एक चक्कर लगाना चाहता था । हालांकि अंदर कहीं से न तो रोशनी बाहर आ रही थी न ही कोई आवाज़ सुनाई दे रही थी । फिर भी अहतियातन पहले उस स्थान का भूगोल जानना जरूरी था ।
उत्तर की ओर का दरवाज़ा प्रत्यक्षतः किचिन एरिया में खुलता था ।
पश्चिम में बरांडेनुमा स्थान में तीन सुंदर मेजें और मैचिंग चेयर्स पड़ी थीं । अंदर कहीं से धूमिल सी रोशनी आती भी नजर आ रही थी । अनुमानतः वो रोशनी नाइट बल्ब की प्रतीत होती थी । लेकिन अंदर सुलेमान पाशा था और इतनी जल्दी सो गया था, यह बात समझ में आने वाली नहीं थी । ऐसा लगता था, पाशा कहीं गया हुआ था और नौकरों को रात भर की छुट्टी दे दी थी ।
पैंथा उसके लॉक्ड प्रवेश द्वार ने भी जलीस के इस अनुमान की पुष्टि कर दी ।
सारे मुआयने के बाद वह इस नतीजे पर पहुँचा कि दक्षिणी खिड़कियों को खोलना सबसे आसान था ।
कीरिंग में मौजूद छोटा सा मगर मजबूत चाकू निकालकर दो–तीन बार ट्राई करने के बाद वह अंदर से चढ़ी कुंडी को गिराने में कामयाब हो गया ।
धीरे से अंदर प्रवेश करके उसने पुनः खिड़की बंद कर दी और रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली ।
चंदेक सैकेंड पश्चात् उसकी आँखें अंधेरे की अभ्यस्त हो गई तो अस्पष्ट रुप से जो भी वस्तुएँ वहाँ दिखाई दी उनसे पाशा के रहन–सहन के स्तर का अंदाजा भली भांति लगाया जा सकता था । उस इलाके के अधिकांश लोगों को जिन आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ता था उनका मामूली सा भी कोई चिंह वहाँ नहीं था । अपना राजनैतिक प्रभुत्व बनाए रखने के लिए पाशा का उस इलाके में रहना जरुरी था लेकिन उस ढंग से रहना कतई जरुरी नहीं था जैसे कि दूसरे लोग रहते थे । पैसे से ख़रीदा जा सकने वाला विलासिता का प्रत्येक साधन उसने अपने लिए जुटाया हुआ था ।
शानदार प्यानो के बगल से गुजरकर वह मेहराबदार द्वार पर पहुंचा ।
रोशनी दाँयी ओर एक कमरे से आ रही थी । गलियारे में जाकर उसने देखा, दूर एक कोने में धीमी रोशनी के बल्ब वाला एक टेबल लैम्प ऑन था ।
वह उधर ही बढ़ गया ।
कमरा स्टडी रुम के अनुरुप सुसज्जित था । दो दीवारों के साथ पूरी लंबाई में बुक शैल्फ खड़े थे । एक सिरे पर कलर टी वी था । सामने कई चमड़ा मैंढ़ी आरामदेह कुर्सियाँ पड़ी थी ।
जलीस किसी चीज को छुए बगैर घूमकर दूसरी साइड में पहुँचा । एक दीवार के साथ बनी शानदार बार में बोतलें और गिलास दो कतारों में सजे थे । एक सिरे पर खाली गिलास रखा था । उसने गिलास उठाया तो उसमें पड़ा बर्फ का टुकड़ा धीरे से गिलास की साइड से टकरा गया ।
वहाँ एक अन्य खुला दरवाज़ा भी था ।
जलीस रिवॉल्वर निकालकर उधर ही बढ़ा ।
वो बैडरूम था । अंदर अंधेरा था लेकिन बाहरी कमरे का धीमा प्रकाश सीमित रुप से वहाँ पहुँच रहा था ।
खुले दरवाजे में खड़े जलीस को बिस्तर का निचला आधा भाग नजर आया । उस पर पड़े आदमी के शरीर में कोई हरकत नहीं थी ।
जलीस ने अंदर जाकर दीवार पर टटोलकर लाइट स्विच ऑन कर दिया ।
अचानक फैल गए तीव्र प्रकाश में बिस्तर पर निगाह डालते ही उसकी धड़कनें एकाएक बढ़ गई और वह समझ गया कि किसी बेवकूफ़ की तरह जाल में आ फँसा था ।
बिस्तर पर एक आदमी बंधा पड़ा था और उसके मुँह में कपड़ा ठूँसा हुआ था ।
इससे पहले कि जलीस संभलता एक गन की नाल उसकी पीठ में आ गड़ी ।
"रिवॉल्वर फेंक दो ।" सर्द लहजे में आदेश दिया गया ।
मजबूरी थी ।
जलीस ने रिवॉल्वर नीचे गिरा दी ।
पीठ में गड़ी गन द्वारा उसे आगे ठेला गया ।
जलीस कमरे में थोड़ा आगे आ गया ।
"पीछे घूमो ।"
जलीस ने वैसा ही किया ।
सामने पिस्तौल ताने खड़े आदमी का नाम टोनी था । वह प्रॉफेशनल किलर था और संगठित अपराध करने वाले सिंडिकेट के लिए काम करता था ।
"हलो, टोनी ।" जलीस बोला ।
टोनी ने लापरवाही से सर हिला दिया ।
उससे तनिक पीछे उसका एक और साथी हाथ में पिस्तौल ताने खड़ा यूँ जलीस को देख रहा था मानों उसे उम्मीद थी कि जलीस बचकर भागने की कोशिश करेगा और उसे इस तरह उसको शूट करने का मौका मिल जाएगा ।
तभी करीम भाई दारुवाला मुस्कराता हुआ भीतर दाखिल हुआ । नीचे पड़ी रिवॉल्वर उठाकर उसने जेब में रख ली और हिंसक निगाहों से जलीस को घूरा ।
"तुम्हारी गन बढ़िया है ।" वह बोला–"यह वही है न जो तुमने बरसों पहले उस पुलिसिए से छीनी थी ।"
"हाँ, वही है ।" जलीस बोला–"तुमने बिल्कुल ठीक पहचाना ।" उसके स्वर में उपहास का पुट था–"यह वही रिवॉल्वर है जिससे दो बार मैंने तुम्हें शूट किया था । दोनों बार तुम्हारी दुम पर गोली मारी थी ।"
टोनी हँस पड़ा । लेकिन जब दारुवाला ने उस पर निगाह डाली तो उसकी हँसी में ब्रेक लग गया ।
"मुझे मुद्दत से इसकी तलाश थी, जलीस ।" वह बोला ।
"जानता हूँ । तुम एक यादगार चीज के तौर पर इसे अपने पास रखना चाहते थे ।"
"तुम बहुत ज्यादा बोलते हो ।"
"पुरानी आदत जो है ।"
इससे पहले कि दारुवाला कुछ कहता टोनी बोला–"बेहतर होगा कि अब हम यहाँ से निकल चलें ।"
"अभी नहीं ।"
"क्यों ?"
"इसलिए कि मैं कह रहा हूँ ।" दारुवाला डांटता सा बोला ।
"लेकिन यह कहने वाले तुम कौन होते हो ?" टोनी बोला–"तुम भी तो उन्हीं लोगों के लिए काम करते हो जिनके लिए मैं करता हूँ । उन्होंने जल्दी लौटने के लिए कहा था इसलिए हमें वही करना है । हमें सुलेमान पाशा और इस आदमी को लाने को काम सौंपा गया था । पाशा तो हमारे हाथ नहीं आ सका । लेकिन इस आदमी ने खुद ही यहाँ आकर हमारी मुश्किल आसान कर दी । इस तरह आधा काम तो हमने कर ही दिया । आओ, अब वापस चलते है ।"
दारुवाला को यह याद दिलाया जाना अच्छा नहीं लगा कि वह किसी के आदेशों का पालन कर रहा था । उसका चेहरा कठोर हो गया और आँखें नफरत से जलने लगीं ।
जलीस इस बारे में और ज्यादा जानकारी हासिल करना चाहता था इसलिए बिस्तर पर पड़े आदमी की ओर सर हिलाकर इशारा किया ।
"यह कौन है, करीम ?"
"पाशा का नौकर ।" टोनी ने जवाब दिया ।
"यह बेहोश है ?"
"हाँ ।"
"लेकिन होश में आने पर तो तुम लोगों के बारे में बता ही देगा ।"
"यह ऐसा कुछ नहीं कर सकेगा । इसे पता ही नहीं चल सका कि इस पर किसने वार किया था या किस चीज से किया था ।"
दारुवाला ने नज़दीक आकर जलीस को घूरा ।
"तुम यहाँ किस चीज की तलाश में आए थे ?"
"जिस की तलाश में तुम आए थे ।"
"इसका मतलब है, तुम जानते थे ।"
"क्या ?"
"यही कि पाशा यहाँ नहीं मिलेगा और हो सकता है तुम यह भी जानते हो कि वह कहाँ गया है ।"
जलीस समझ गया, वह आगे क्या करने वाला था इसलिए पहले ही बोल पड़ा–"तुम अगर रात भर भी मुझे टार्चर करते रहो तो भी कोई फायदा नहीं होगा । मैं यहाँ पाशा की तलाश में ही आया था । जिस तरह वह तुम्हें नहीं मिल सका उसी तरह मुझे भी नहीं मिला ।"
दारुवाला जलती निगाहों से उसे घूर रहा था ।
"लेकिन तुम्हारे मुकाबले में मेरी किस्मत ज्यादा तेज है । पाशा के बाद हमने तुम्हारी तलाश में जाना था । पाशा फिलहाल हमारे हाथ से बच गया । लेकिन ज्यादा देर बचा नहीं रह सकेगा । जल्दी ही हम उसे ढूंढ निकालेंगे । मगर तुम...तुम्हारी बात अलग थी लेकिन तुमने यहाँ आकर हमारा काम आसान कर दिया ।"
"तब तो वाकई तुम्हारी किस्मत तेज है ।"
"तुम्हारे सामने दो ही रास्ते हैं ।"
"अच्छा ?"
"यहाँ से चुपचाप बाहर चलो, नीचे खड़ी कार में बैठो और चुपचाप हमारे साथ चलो ।"
"कहाँ ?
"जहाँ भी हम ले जाएं ।"
"वरना ?"
"तुम्हें साथ ले जाने का दूसरा तरीका हमें अख्तियार करना पड़ेगा । हम तुम्हारे घुटने के जोड़ में गोली मार देंगे । ताकि तुम भागने की कोशिश न कर सको ।"
जलीस जानता था, दारुवाला सिर्फ कोरी धमकी ही नहीं दे रहा था । उसके सामने वाकई कोई और रास्ता नहीं था ।
"ठीक है ।" वह बोला–"मैं चुपचाप साथ चलूँगा ।"
दारुवाला ने उसके पीछे जाकर उसकी जेबें थपथपायीं जब उसे तसल्ली हो गई कि उसके पास कोई और हथियार नहीं था तो वह पीछे हट गया ।
"चलो ।"
दोनों पिस्तौलधारियों और दारुवाला के बीच घिरा जलीस बैडरूम से बाहर आ गया ।
तभी उसे पहली बार पता चला कि अपार्टमेंट में आने–जाने के लिए एक प्राईवेट लिफ्ट भी थी ।
उसी के द्वारा वे नीचे पहुँचे ।
इमारत के पिछले दरवाजे से कोई बीसेक गज दूर एक नई एम्बेसेडर खड़ी थी । वहाँ तक वे इस तरह पहुँचे जैसे पुराने दोस्त साथ–साथ चला करते हैं । जलीस नोट कर चुका था कि दोनों पिस्तौलधारी पूरी तरह सतर्क थे । किसी भी तरह की कोई चालाकी करने का रिस्क लेना मूर्खता थी ।
वह एम्बेसेडर की पिछली सीट पर बैठ गया और अपनी बाँहें मोडकर छाती पर रख लीं । पिस्तौलधारी एक–एक करके उसके दोनों ओर आ बैठे । उनकी पिस्तौलें उसकी साइडों में गड़ने लगीं ।
दास्वाला, ड्राइविंग सीट पर पहले से ही मौजूद ड्राइवर की बगल में बैठ गया और सीट की पुश्त पर बाँह रखकर पीछे देखा । जलीस की मौजूदा विवशता से वह पूरी एनज्वॉय कर रहा था । बरसों पहले जलीस ने उसके साथ जो किया था उस तमाम । कड़वाहट से अब वह छुटकारा पाता सा प्रतीत हो रहा था ।
ड्राइवर ने इंजिन स्टार्ट करके कार आगे बढ़ा दी ।
एम्बेसेडर विभिन्न सड़को से गुजरने लगी ।
जल्दी ही जलीस ने नोट किया कि इस बात को छिपाने का कोई प्रयत्न वे नहीं कर रहे थे कि किस रास्ते से गुजर रहे थे । इसका सीधा सा मतलब था–जहाँ उसे ले जाया जा रहा था वहाँ से उसे जिंदा वापस लौटने देने का कोई इरादा उनका नहीं था ।
मुनासिब वक्त का इंतजार करते रहने के अलावा अन्य कोई चारा उसके पास नहीं था । इससे भी बड़ी बात थी कि जो भी करना था अपने अकेले के दम पर ही करना होगा ।
वह एकदम अकेला था ।
अमोलक मर चुका था । पीटर भी नहीं रहा । कोई भी नहीं जानता था कि वह कहाँ था या किस फेर में था । अकेले पाशा के अपार्टमेंट में जाकर उसने बड़ी भारी गलती की थी और यह उसकी आखिरी गलती भी हो सकती थी । दोनों पिस्तौलधारी पेशेवर हत्यारे थे । वे सिर्फ एक ही काम जानते थे । उन्हें हत्या करने का काम सौंपा गया था और हर सूरत में उन्होंने यह काम अंजाम देना था । इस मामले में किसी भी तरह की दलील का कोई असर उन पर नहीं होना था । क्योंकि हत्या करना उनका पेशा था । हत्या करके लाश को ठिकाने लगाकर उन्होंने खा पीकर चैन से सो जाना था । इस काम के लिए तय की गई रकम लेने के बाद उन्होंने इस बारे में सोचना तक नहीं था ।
दारुवाला पुनः पीछे गरदन घुमाकर मुस्कराया । वह खुश था...बेहद खुश ।
"तकलीफ़ हो रही है, करीम ?" जलीस ने उसे छेड़ा ।
दारुवाला ने भौहे चढ़ाई ।
"क्या मतलब ?"
"जिस तरह तुम सीट पर बैठे हो उससे लगता है तुम्हारे नितंबों में कीलें चुभ रही है ।"
टोनी हँस पड़ा ।
"तुम्हें जल्दी ही पता चल जाएगा कि कीलें किसे चुभ रही है ।" दारूवाला ने कहा ।
"मेरा भी यही खयाल है ।" जलीस बोला ।
"तुम कहना क्या चाहते हो ?" |
"यही कि तुम बूढ़े हो गए हो । मारामारी करना तुम्हारे वश की बात नहीं है ।"
"तुम्हारे लिए मैं बूढ़ा नहीं हुआ हूँ, जलीस । मुझे बरसों से इस मौके का इंतजार था ।"
"तुम बहुत बड़ी ग़लतफहमी का शिकार हो रहे हो ।"
"इसकी बात में दम है ।" टोनी सपाट स्वर में हस्तक्षेप करता हुआ बोला–"खुद को कवर किए बगैर कहीं जाने वाला आदमी यह नहीं है । इसके साथ जरुर कोई और रहा होगा । और उस कोई और को पता होगा कि यह इस वक्त हमारे कब्ज़े में है ।"
"नहीं, मुझे लगता है इस दफा यह खुद को कवर करना भूल गया था ।" दारुवाला ने कहा–"यह अकेला ही पाशा के अपार्टमेंट में पहुँचा था ।"
"फिर भी तुम्हें यकीनी तौर पर जानना चाहिए ।"
"मुझे यकीन है । मैं बरसों से इसे जानता हूँ ।"
"यह बरसों तक इस शहर से दूर भी रहा है ।"
"ऐसे आदमी कभी नहीं बदलते । यह तुम भी अच्छी तरह जानते हो, टोनी ।"
टोनी कई पल खामोशी से जलीस को देखता रहा, फिर दारुवाला की ओर गरदन घुमा दी ।
"अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो मैंने फौरन इस आदमी को खत्म कर देना था ।"
"लेकिन तुम मेरी जगह नहीं हो, टोनी ।"
"लेकिन मुझे खतरा नजर आ रहा है ।"
"कैसा खतरा ?"
"इस आदमी को जिंदा रहने देना ठीक नहीं है । मुझे लगता है यह जरुर कोई भारी गड़बड़ करेगा ।"
"तुम बेकार वहम पाल रहे हो । यह कुछ नहीं कर पाएगा ।"
"मैं कोई वहम नहीं पाल रहा । इस आदमी को जिंदा रखकर तुम जो गलती कर रहे हो इसके लिए जल्दी ही तुम्हें बुरी तरह पछताना पड़ेगा ।"
"मेरी फिक्र छोड़ो और अपनी चोंच बंद करो ।"
टोनी कुछ बड़बड़ाया फिर खामोश हो गया । उसके साथी की निगाहें बराबर जलीस पर जमी हुई थी ।
करीब दस मिनट बाद एम्बेसेडर एक बंद रेस्टोरेंट के संमुख जा रुकी ।
टोनी का साथी दरवाज़ा खोलकर नीचे उतर गया ।
टोनी ने पिस्तौल से जलीस को टहोका लगाया ।
"बाहर निकलो ।"
जलीस खुले दरवाजे से बाहर आ गया ।
टोनी ठीक उसके पीछे था । उसने पिस्तौल की नाल से जलीस को रेस्टोरेंट के बगल वाले दरवाजे की ओर ठेला ।
दारुवाला भी कार का अगला दरवाज़ा खोल चुका था ।
"मैं पीछे रहूँगा ।"
जलीस समझ गया कि एक बार अंदर पहुँचने के बाद बचाव का कोई मौका नहीं मिल पाएगा । उसे फौरन कुछ करना होगा ।
लेकिन टोनी उसके इरादे को भांप गया लगता था इससे पहले कि जलीस कुछ कर पाता टोनी की रिवॉल्वर का भारी प्रहार उसकी कनपटी पर हुआ ।
जलीस को लगा मानों खोपड़ी फट गई थी फिर उसकी चेतना लुप्त हो गई ।
* * * * * *
होश में आने पर जलीस ने स्वयं को एक कुर्सी पर बैठा पाया । उसके पैर आपस में बंधे थे और हाथ पीछे कुर्सी के साथ । गरदन आगे की ओर लटकी हुई थी ।
दारुवाला की धीमी सी आवाज़ सुनाई दी ।
"इसे होश आ रहा है ।"
"गुड ।" कोई और बोला–"इसे फिर अमोनिया सुंघाओ ।"
तेज गैस ने उसकी नाक की राह से अंदर प्रवेश किया तो उसे गले में चुभन महसूस हुई और आँखों में पानी आ गया ।
उसने अपनी गरदन सीधी करके सर हिलाया ।
सामने बैठा मंझोले कद और इकहरे जिस्म वाला आदमी मुस्कराया ।
"शाबास ।"
जलीस ने पलकें झपकाते हुए उसे देखने की कोशिश की । जब उसकी आँखें साफ हो गई तो उसे पहचान गया ।
उस आदमी को सब मिस्टर नायर कहकर संबोधित करते थे और उसके सामने कोई भी ऊंची आवाज़ में नहीं बोलता था । वह सिंडिकेट का स्थानीय बॉस था । इस बात की जानकारी कम ही लोगों को थी । आमतौर पर उसे सफल बिजनेसमैन और विभिन्न समाज सेवी संस्थाओं से जुड़ा एक सहृदय और इज्जतदार आदमी समझा जाता था ।
कमरे में उसके अलावा और भी कई आदमी मौजूद थे । उनमें से कुछेक को जलीस उस रात 'प्रिंसेज पैलेस' क्लब की मीटिंग में भी देख चुका था । अब वे सब कुछ इस ढंग से उसे देख रहे थे मानों वह उनके रास्ते की सबसे बड़ी ऐसी रुकावट था जिसे सफाई से और हमेशा के लिए दूर किया जाना निहायत जरुरी था ।
"तुम ठीक हो ।" मिस्टर नायर ने पूछा ।
जलीस की खोपड़ी में हथौड़े से बज रहे थे । उसने मुँह से कुछ कहने की बजाय धीरे से सर हिलाकर हामी भर दी ।
"गुड । जानते हो, तुम्हें यहाँ क्यों लाया गया है ?"
"नहीं ।" इस दफा जलीस ने जवाब दिया ।
"इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । तुम जानते हो, हम क्या चाहते हैं ?"
अज्ञानता प्रदर्शन करने में कोई समझदारी नहीं थी ।
"रनधीर का सामान ।" जलीस ने जवाब दिया ।
"बिल्कुल ठीक ।"
जलीस जबरन तनिक मुस्कराया ।
"लेकिन वो मुझसे तुम्हें नहीं मिल सकता ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि वो मेरे पास नहीं है ।"
"सच कह रहे हो ?"
"हाँ ।"
"फिर भी हम यकीनी तौर पर जानता चाहते है ।" मिस्टर नायर ने कहा और अपने कंधे के ऊपर से उंगली हिलाई–"मदन...अपने तरीके का नमूना दिखाओ ।"
मदन एक लंबा–चौड़ा पहलवान टाइप आदमी था । वह यूँ आगे आया मानों मनपसंद काम करने आ रहा था । एक पल के लिए गौर से उसने जलीस को देखा फिर उसका खुला हाथ जलीस के चेहरे पर पड़ा ।
जलीस को चेहरे का उतना भाग सुन्न हो गया महसूस हुआ । फिर इससे पहले कि वह संभल पाता दूसरे हाथ का भरपूर झापड़ दूसरी ओर पड़ा । जलीस को अपने जबड़े हिल गए महसूस हुए और गालों के भीतरी हिस्से दाँतों में दबकर कट जाने की वजह से मुंह खून से भर गया ।
"मेरी आवाज़ सुन सकते हो ?" मिस्टर नायर ने पूछा ।
जलीस ने सर हिलाकर हामी भर दी ।
"तुम्हारे बारे में मुझे सब कुछ बता दिया गया है ।" मिस्टर नायर बोला–"तुम बहुत ही सख्त जान हो । तुम और तुम्हारा दोस्त रनधीर दूसरों की ज़ुबान खुलवाने के लिए अजीब–अजीब तरीके इस्तेमाल किया करते थे । इसलिए बताने की जरुरत नहीं है कि तुम्हारा क्या अंजाम होगा । अगर तुमने ज़ुबान नहीं खोली तो तुम्हें तिल तिल करके मरना पड़ेगा ।"
"यह सब मैं भी जानता हूँ ।" जलीस मुश्किल से ही कह पाया–"लेकिन तुम्हें इससे कोई फायदा नहीं होगा ।"
"यह झूठ बोल रहा है ।" अचानक दारुवाला बोला ।
"अच्छा ?" मिस्टर नायर ने पूछा–"तुम कैसे जानते हो ?"
"क्योंकि मुझे याद है, ये दोनों दो जिस्म एक जान हुआ करते थे । मैं यह भी जानता हूँ कि इन दोनों के सोचने का ढंग कैसा था । रनधीर अपनी हर एक चीज इसी के लिए छोड़ गया था ।"
"अगर वो चीज इसके पास होती तो क्या अब तक इसने जाहिर नहीं कर देनी थी ?"
"मेरी बात सुनिए ।" दारुवाला जिद भरे लहजे में बोला–"कोई नहीं जानता यह आदमी किस फेर में है । रनधीर की बात और थी । वह सीधा खेल खेलता था । मगर इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता । मुझे पूरा यकीन है, यह जरुर जानता है वो चीज कहाँ है । इसे टार्चर कराइए...यह बता देगा ।"
"तुम कुछ कहना चाहते हो, जलीस ?" मिस्टर नायर ने बड़े ही नम्र स्वर में कहा ।
"नहीं । अगर मुझे टार्चर ही कराना चाहते हो तो करा लो ।"
"हमें कोई जल्दी नहीं है । हमारे पास वक्त है लेकिन तुम्हारे पास नहीं है । अगर तुम बता दोगे तो इसमें तुम्हारी अपनी ही भलाई है ।"
"अगला तरीका अपनाया जाए, मिस्टर नायर ?" मदन ने पूछा । मिस्टर नायर ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया ।
"अभी नहीं ।" उसने कहा फिर जलीस से बोला–"देख रहे हो, मदन कितना बेताब हो रहा है । जलती सिगरेट से दूसरों के शरीर को दागना, और चाकू की नोंक से माँस उखाड़ना इसके खास शौक है । ऐसे ही और भी कई काम यह करता है...खैर वे सब बाद की बातें है ।"
बंधनों की वजह से जलीस के हाथ और बाँहें सुन्न हो गए । सर दर्द से फटा जा रहा था और जबड़े दुख रहे थे ।
"इससे...कोई फायदा नहीं होगा ।" वह मुश्किल से ही बो ल पाया ।
"जिद करके अपनी तकलीफों को मत बढ़ाओ, जलीस ।"
"यह जिद नहीं, असलियत है ।"
"बेवजह वायलेंस के हक में मैं नहीं हूँ । तुम इस बारे में बातें करना चाहते हो ?"
"मुझे कोई एतराज नहीं है ।"
मिस्टर नायर मुस्कराया ।
"ओ के तुम्हारे दोस्त की मौत से ही बात शुरु करते है । उसकी हत्या किसने की थी ?"
जलीस ने धीरे–धीरे अपना सर ऊपर उठाया ।
"तुमने की थी ?"
"बिल्कुल नहीं । हमारे लिए वो रिस्क लेना कतई जरुरी नहीं था । हालांकि रनधीर पूरी आर्गेनाइजेशन के लिए एक ऐसा बोझ था जिसे कोई बर्दाश्त करना नहीं चाहता था । इसके बावजूद मामले को बढ़ाने की बजाय उसकी माँग को पूरा करना ही सब ज्यादा ठीक समझते थे । नहीं, जलीस, हममें से किसी ने उसकी हत्या नहीं की थी ।" कहकर मिस्टर नायर ने पूछा–"बाई दी वे इस बारे में तुम्हारा अपना क्या विचार है ?"
"मेरे विचार से यह सुलेमान पाशा का काम था ।"
मिस्टर नायर पुनः मुस्कराया ।
"तुम्हारे इस विचार में दम है । पाशा का कद और वजन बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं । आर्गेनाइजेशन से बड़ी–बड़ी माँगें वह करता रहा है । लेकिन वह भी रनधीर की मुट्ठी में था । अगर उस पर अंकुश नहीं होता और वह अपनी मर्जी के मुताबिक काम करने के लिए आजाद रहा होता तो उसकी अहमियत कई गुना ज्यादा होनी थी । लेकिन रनधीर उसकी लगाम खींचकर रखता था । इसके अलावा पाशा उन लोगों में से है जिनका कोई दीन और ईमान नहीं होता । मैं अच्छी तरह जानता हूँ अगर रनधीर का खजाना उसके पास होता तो उसने क्या करना था । क्या तुम जानते हो, उसने तुम्हारे साथ क्या करने की कोशिश की थी ?"
"मुझे खत्म कराने के लिए उसने अरमान अली और फरमान अली की सेवाएँ हासिल की थीं ।"
"बिल्कुल ठीक । इत्तिफाक से वे दोनों आदमी ऐसे थे जिन पर हम भी अपना प्रभाव इस्तेमाल कर सकते थे । हमने किया भी । और उन्हें कुछ समय के लिए रोकने में कामयाब भी हम हो गए । हम नहीं चाहते थे कि रनधीर का वो खजाना किसी ऐसी जगह पड़ा रहे जहाँ से किन्हीं गलत हाथों में वो पड़ जाए । हमारे लिए यह जानना जरुरी था कि वो कहाँ है । इस मामले में हमने पाशा को वार्निंग तक भी दी थी लेकिन हमारी सलाह पर अमल उसने नहीं किया ।" मिस्टर नायर तनिक रुककर बोला–"हमें नीचा देखना पड़े यह भी आर्गेनाइजेशन के हित में ठीक नहीं है । रनधीर की अचानक मौत के बाद आर्गेनाइजेशन के बिखरने के हालात पैदा हो गए थे । स्थिति इतनी विस्फोटक थी और अभी भी है कि हर एक बड़े ग्रुप का मुखिया खुद को नया बॉस बनाना चाहता है । अगर रनधीर का खजाना मिलने में और ज्यादा वक्त लगा तो यहाँ सभी ग्रुप आपस में लड मरेंगे । अभी तक ऐसा न होने की इकलौती वजह था–जैकी । उसने ब्लफ किया और वक्ती तौर पर उसका ब्लफ चल भी गया । क्योंकि जैकी प्रत्यक्षतः रनधीर के नज़दीक और उसका पुराना साथी था । बेहद कांइया और मक्कार तो वह था ही । इसलिए इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता था कि जैकी किसी प्रकार रनधीर की हत्या करके उसका खजाना हासिल करने में कामयाब हो गया था । मगर तुम्हारे आ पहुँचने से उसके ब्लफ की पोल खुलनी शुरु हो गई और उसके कोशिश करने के बावजूद खुलती चली गई और इसी चक्कर में उसे अपनी जान गंवानी पड़ी । लेकिन सुलेमान पाशा का मसला अलग है । उसने जो किया वो आर्गेनाइजेशन की अथार्टी को चुनौती देने के बराबर था । क्योंकि जब तक कोई ठोस और यकीनी बात सामने न आ जाए हम तुम्हें जिंदा रखना चाहते थे । चाहे तुम्हारे पास वो चीज है या नहीं जो हम चाहते हैं ।"
"अब तो असलियत तुम्हें पता चल गई ।" जलीस बोला ।
"अभी नहीं । यकीनी तौर पर नहीं ।"
जलीस ने उसे बातों में लगाए रखने की गरज से पूछा–"इसीलिए तुम पाशा को पकड़ना चाहते थे ?"
मिस्टर नायर उसका वास्तविक आशय समझ गया था लेकिन इस पर कोई एतराज उसने नहीं किया ।
"पाशा को पकड़ने की वजह थी–उसे सबक सिखाना । एक ऐसा सबक जिसे उसने हमेशा याद रखना था । उसकी वजह से हमें एक अच्छे आदमी को खत्म करना पड़ा । फरमान अली तो तुम्हारी वजह से मारा गया और अरमान अली को तुमने जख्मी कर दिया था । लेकिन उसे जख्मी हालत में अकेला नहीं छोड़ा जा सकता था । क्योंकि वह हेरोइन एडिक्ट था और किसी को भी बता सकता था कि तुम्हारी हत्या को टाले रखने की एवज में हमने उसे रकम आफर की थी । इसलिए हमने रिस्क लेना मुनासिब नहीं समझा ।"
"तुम जानते हो ।" जलीस ने पूछा–"अरमान अली को खत्म करने के लिए तुमने जो आदमी भेजा था उसका क्या अंजाम हुआ ?"
मिस्टर नायर की मुस्कराहट गायब हो गई ।
"वो सब हम सुन चुके हैं । इससे यह भी साबित हो गया कि तुम्हारे बारे में जो हमें बताया गया था वो सब सच है ।"
"आप बेकार वक्त जाया कर रहे हैं ।" अचानक दारुवाला हस्तक्षेप करता हुआ बोला ।
"बातचीत करने से ही अगर बात बन जाती है तो अच्छी बात है ।"
"लेकिन मैं इसकी चीखें सुनना चाहता हूँ ।"
"मैं नहीं सुनना चाहता ।" मिस्टर नायर ने कहा । उसके नम्र स्वर में पैनापन था । फिर सामान्य स्वर में जलीस से बोला–"अब तक सारी बैक ग्राउंड तुम्हें बता दी गई है । अब तुम क्या कहते हो ?"
एकाएक जलीस ने अजीब सा खालीपन अपने अंदर महसूस किया ।
"रनधीर के बाद भी बहुत लोग मारे जा चुके है । अमोलक... पीटर...लेकिन यह सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ है ।"
"तुम इसे यहीं रोक सकते हो ।"
"नहीं...मैं इसमें कुछ नहीं...कर सकता ।"
"मिस्टर नायर ?" अचानक दारुवाला उत्तेजित सा बोला ।
"क्या बात है, करीम ?"
दारुवाला अपनी कुर्सी से उठकर जलीस के पास पहुंचा । उसके बाल पकड़कर जोर से उसका सर हिलाया ।
"हम इस मामले को गलत ढंग से हैंडल कर रहे है...बिल्कुल गलत ढंग से ।" जलीस का सर एक ओर झटककर वह पीछे हट गया ।
"साफ साफ कहो, करीम ।" मिस्टर नायर बोला ।
"मैं उस लड़की सोनिया के बारे में कह रहा हूँ ।"
मिस्टर नायर की निगाहें दारुवाला से हटकर जलीस पर जम गई ।
"क्या ?"
एकाएक जलीस ने अपने पेट में भारी ऐंठन सी महसूस की और उसका दिल पसलियों में धाड़ धाड़ बजने लगा ।
"बड़ी सीधी सी बात है ।" दारुवाला ने कहा–"उस लड़की ने हम सबको बेवकूफ़ बना दिया ।" उसकी निगाहें जलीस के चेहरे पर जमी थीं ।
अचानक सोनिया के जिक्र से उसकी सलामती के लिए फिक्रमंदी के गहरे भाव जलीस के चेहरे पर आसानी से पढ़े जा सकते थे ।
"मुझे अफसोस है कि पहले मेरा ध्यान उसकी ओर नहीं गया ।" दारुवाला का कथन जारी था–"जरा सोनिया और रनधीर के बारे में सोचिए । दो साल तक वह लड़की उस मरदूद के साथ चिपकी रही और उस दौरान रनधीर पर उसका भूत इस बुरी तरह सवार था कि हर वक्त बस उसी की बातें किया करता था । उस लड़की का दीवाना था वह । और इस दीवानगी की वजह से ही न तो रनधीर देख सका और न ही समझ सका कि असल में वह क्या कर रही थी । क्या चाहती थी । क्यों उसके साथ चिपकी हुई थी । उस लड़की ने मेरे साथ भी यही किया था...मुझे बेवकूफ़ बनाकर ऐसे ऐसे अजीब अजीब काम मुझसे कराए कि मैं सोच भी नहीं सकता था । खैर, मैं बेवकूफ़ तो बना मगर उसकी दीवानगी मुझ पर सवार नहीं हुई ।"
"मतलब की बात करो ।" मिस्टर नायर ने उसे टोका ।
"मतलब की बात यह है, रनधीर उसका गुलाम बनकर रह गया था । उसके हाथों का खिलौना । लेकिन रनधीर 'टॉपमैन' था । सोनिया को यकीन दिलाने के लिए उसे यह साबित करना और बताना पड़ा कि जो वह था, क्यों था । आप भी जानते है रनधीर टॉप पर कैसे पहुंचा । एक बार टॉप पर पहुँचने के बाद सबने समझ लिया कि वह वास्तव में इसी काबिल था । लेकिन असलियत क्या थी, हम बेहतर जानते है । औरतों के मामले में दब्बू और काफी हद तक सनकी उस आदमी की इस असलियत को उसके नज़दीक रहने वाली सोनिया जैसी तेज और समझदार औरत भी आसानी से समझ सकती थी । इस हालत में सोनिया के दीवाने रनधीर ने यह साबित करने के लिए कि वह कितनी बड़ी चीज था, क्या करना था ? वह एक ही काम कर सकता था और वही उसने किया । उसने अपना वो 'खजाना' सोनिया को दिखा दिया । रनधीर के लिए ऐसा करना एक और वजह से भी बेहद जरूरी था । सोनिया उसकी पत्नी के तौर पर राजदार के रुप में खुद भी इसका एक हिस्सा बनने वाली थी ।"
"बको मत । तुम पागल हो ।" जलीस चिल्लाया–"सोनिया ने उस घटिया आदमी के पास फटकना भी नहीं था । अगर मुझसे अपनी पुरानी खुन्नस निकालने के लिए तुमने सोनिया को हाथ भी लगाया तो मैं तुम्हारी जान ले लूँगा करीम ।"
"देखा–मिस्टर नायर ।" दारुवाला बोला–"इसका रिकार्ड चालू हो गया है ।"
"तुम्हारी बात में दम है, करीम । कुछ और कहना चाहते हो ?"
"जरुर । यह मामला एकदम आइने की तरह साफ है । आप भी जानते हैं कि रनधीर क्लब में एक बहुत बड़ी पार्टी देने वाला था । हालांकि पार्टी की वजह को राज रखा जाना था लेकिन बड़बोले रनधीर के मुँह से बात निकल ही गई । क्योंकि वह चाहकर भी इस बात को, जो कि उसके लिए 'टॉपमैन' बनने जैसी ही अहमियत रखती थी, पचा नहीं सका । उस पार्टी में वह सोनिया के साथ अपनी एंगेजमेंट की घोषणा करने वाला था ।"
जलीस के मुँह से गालियों का बम फट पड़ा । वह तभी शांत हुआ जब बुरी तरह हाँफने लगा था ।
मिस्टर नायर ने सर हिलाया ।
"बड़ा ही जबरदस्त रिएक्शन हुआ है ।"
"यह तो इस पर होना ही था ।" दारूवाला बोला–"क्योंकि इसे भी बेवकूफ़ बनाया गया है । इससे पहले कि वो 'खजाना' सही मायने में सोनिया के हाथ लग पाता रनधीर की हत्या कर दी गई । और सोनिया को जलीस के साथ चिपकना पड़ा ताकि उसे पता लग सके कि वो 'खजाना' इसके हाथ लगा या नहीं ।
मिस्टर नायर धीरे से उठकर खड़ा हो गया ।
"वो तुम्हारे हाथ लगा, जलीस ?"
"बेशक लगा ।" जलीस की जगह दारुवाला ने जवाब दिया–"और इसने वो सोनिया को दे दिया ताकि वह तब तक उसे अपने पास रख सके जब तक कि यह अपने सभी कांटेक्ट्स से संपर्क नहीं कर लेता और उन सबका इंतजाम नहीं कर लेता जो इसके लिए मुसीबत खड़ी कर सकते है । इसीलिए यह आज रात पाशा की तलाश में उसके घर गया था ।" वह जोर से हंसा और जलीस की रिवॉल्वर जेब से निकाल ली–"इस तरह पाशा को हमारा अहसानमंद होना चाहिए कि हमने उसकी जान बचा दी ।"
मिस्टर नायर ने कोने में जाकर वहाँ रखे टेलीफोन उपकरण का रिसीवर उठाकर नंबर डायल किया ।
"सोनिया ब्रिगेजा को पकड़कर मेरे पास ले आओ ।" अपना नाम बताए बगैर वह बोला–"हाँ...हम वहीं हैं...पता...होल्ड करो ।" उसने पुकारा–"करीम ?"
दारुवाला ने सोनिया का पता बता दिया ।
मिस्टर नायर ने फोन पर दोहरा कर संबंध विच्छेद कर दिया । फिर उसके संकेत पर वे सब एक–एक करके उसके पीछे दूसरे कमरे में चले गए ।
जलीस को ड्रिंक्स बनाये जाने और उनके हँसने की मिली जुली आवाजें सुनाई देने लगीं । उनमें सबसे ऊंची आवाज़ दारुवाला की थी ।
लगभग दस मिनट बाद टेलीफोन की घंटी बजी ।
मदन ने आकर रिसीवर उठाया और मैसेज ले लिया ।
चंदेक सैकेंड पश्चात मिस्टर नायर भी आ गया ।
"लड़की वहाँ नहीं है, मिस्टर नायर ।" रिसीवर थामे खड़े मदन ने जानकारी दी ।
"उसने बताया कहाँ गई है ?"
"जी नहीं । उसका कहना है, इमारत के बाहर मौजूद पान वाले ने लड़की को जाती देखा था । पान वाला उस आदमी को भी जानता हैं जिसके साथ लड़की गई थी । वह सुलेमान पाशा था ।"
इस नई जानकारी की कोई प्रतिक्रिया जलीस पर नहीं हुई ।
"क्या वह जानता है वे कहाँ गए है ?" मिस्टर ने पूछा ।
मदन ने माउथपीस में प्रश्न दोहरा दिया । करीब दो मिनट तक इंतजार करने के बाद बोला–"पान वाले ने पाशाको एक टैक्सी रोकते देखा था । टैक्सी पास ही मौजूद स्टैंड से आ रही थी । पान वाला उस ड्राइवर को जानता है । उसका कहना है जल्दी ही वह ड्राइवर अपनी एक रेगुलर सवारी को ले जाने के लिए वापस आएगा ।"
"उससे कहो पता लगाए कि पाशा लड़की के साथ कहाँ गया था और फौरन फोन करे ।"
मदन ने दोहरा कर संबंध विच्छेद कर दिया ।
"ऐसा लगता है, करीम ।" मिस्टर नायर बोला–"पाशा भी तुम्हारी तरह इसी नतीजे पर पहुँचा है और इसी पर ही काम कर रहा है । बात बननी शुरु हो गई है ।"
"हरामजादा ।" दारुवाला गुर्राया ।
"लेकिन होशियार । वह दोनों तरफ से कब्ज़ा करने के चक्कर में हैं ।"
"आप इस बारे में क्या करेंगे ?"
"मैं ? मुझे कुछ नहीं करना है । मैं किसी फाइव स्टार होटल की बार में जाकर बैठूँगा जहाँ बहुत से लोग मुझे देख सकें और जरुरत पड़ने पर मेरी वहाँ मौजूदगी की गवाही दे सकें । लेकिन तुम्हारा मामला अलग है । तुम्हें यहीं रहकर उस फोन काल का इंतजार करना होगा । मैं चाहता हूँ, जैसे ही तुम्हें पाशा के बारे में पता चले तुम उसकी छाती पर जा चढ़ो । यह तुम्हारी सरदर्दी है और अब तुम इस मामले के इंचार्ज हो । ज्यादा उम्मीद इसी बात की है कि पाशा उसे किसी ऐसी जगह ले गया है जहाँ उसकी ज़ुबान खुलवा सके ।
"मेरा भी यही खयाल है ।"
मिस्टर नायर ने जलीस की ओर देखा ।
"तुम्हें उस लड़की से बहुत ज्यादा लगाव है ?"
जलीस कुछ नहीं बोला ।
"तुम्हारा जवाब तुम्हारे चेहरे पर साफ पढ़ा जा रहा है ।" मिस्टर नायर बोला–"तुम यह भी जानते हो कि उससे जानकारी हासिल करने के लिए पाशा उसके साथ क्या करेगा ।"
"पाशा पागल है । वह कुछ नहीं जानता ।"
"वह पागल नहीं है ।" दारुवाला बोला–"तुम बेवकूफ़ हो ।"
"बको मत, करीम ।" मिस्टर नायर ने कहा, फिर जलीस से बोला–"अगर तुम जानते हो पाशा लड़की को कहाँ ले गया है तो हम मदद कर सकते है ।"
"मैं नहीं जानता ।"
"मैं एक बार फिर दोहराता हूँ...अगर तुम जानते हो, रनधीर का वो खजाना कहाँ है और बता देते हो तो पाशा का इंतजाम हम कर देंगे और लड़की को छोड़ देंगे । क्योंकि अगर वो पैकेज हमें मिल जाता है तो कोई भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा ।"
जलीस ने जवाब नहीं दिया ।
"मुझे जो कहना था, कह दिया ।" मिस्टर नायर बोला–"तुम्हें जो ठीक लगता है, करो ।"
मदन मुस्कराता हुआ आगे आया ।
"आपने मुझे कोशिश नहीं करने दी । मैं...।"
"पागल मत बनो । जलीस यहाँ उसी जाल में फंसा हुआ है जिसमें जैकी फँसा था । यह कुछ नहीं जानता । अगर यह कुछ जानता होता तो उस लड़की को बचाने के लिए इसने सब बता देना था । यह बात कोई भी इसके चेहरे पर पढ सकता है ।"
जलीस समझ गया कि उन लोगों के लिए कोई कीमत या अहमियत उसकी नहीं थी । वह बिल्कुल बेकार था । इसका सीधा सा अर्थ था–उसकी निश्चित मृत्यु ।
"मुझे कम से कम आधा घंटे का वक्त चाहिए ।" मिस्टर नायर दारुवाला का कंधा थपथपाकर बोला–"फिर तुम जो चाहो जलीस के साथ कर सकते हो । टोनी और इमरान को यहीं रखो...।"
"मुझे इनकी जरुरत नहीं है ।"
"जो कहा जाता है, वही करो ।" मिस्टर नायर के स्वर में आदेश का पुट था–"पाशा और लड़की का पता लगते ही तुम उस इलाके में हमारे सबसे नज़दीकी ग्रुप को फोन करके उन दोनों को अपने कब्ज़े में लेने के लिए कहोगे । मैं उन सभी को तैयार रहने के लिए कहलवा दूँगा । उन्हें सिर्फ तुम्हारे आदेशों का पालन करने के लिए कह दिया जाएगा ।" वह तनिक रुका फिर बोला–"इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि पाशा या लड़की का क्या होता है । तुमने हर हालत में वो पैकेज लेकर ही यहाँ वापस लौटना है । समझे ?"
दारुवाला के चेहरे पर नापसंदगी भरे भाव थे लेकिन उसने सहमतिसूचक ढंग से सर हिला दिया ।
"में ऐसा ही करुंगा ।"
मिस्टर नायर दरवाजे के पास पहुँचकर जलीस की ओर पलटा ।
"इस सबके लिए मुझे अफसोस है, जलीस । लेकिन तुमसे कोई जाती दुश्मनी मुझे नहीं है । यह हालात की मजबूरी है वरना सच तो यह है कि मैं वाकई तुम्हें पसंद करता हूँ ।"
जलीस भी जवाब में कोई चुभती बात कहना चाहता था लेकिन उसके अंदर इतनी भयानक उथल–पुथल मची हुई थी कि वह कुछ नहीं कह सका । वह बस बुत बना बंधा बैठा रहा ।
मिस्टर नायर और उसके पिछलग्गु बाहर निकल गए ।
कमरे में टोनी, उसका खामोश पार्टनर इमरान और दारुवाला ही रह गए ।
दारुवाला मुस्करा रहा था । उसने जेब से दस्ताने निकालकर पहन लिए ।
टोनी ने कुर्सी से उठकर सिगरेट सुलगा ली ।
"मैंने सारा दिन कुछ नहीं खाया ।" वह बोला–"किसी बढ़िया जगह इत्मिनान से बैठकर भरपेट खाना खाना चाहता हूँ । आस–पास तो इस वक्त कुछ मिलेगा नहीं दूर ही जाना पड़ेगा ।"
"मेरे लिए भी कुछ ले आना ?" उसका पार्टनर इमरान पहली बार बोला–"दिन भर की भाग दौड़ ने बुरी तरह थका दिया है ।" उसने अंगड़ाई ली–"थोड़ी देर ऊंघना चाहता हूँ ।"
वह बैडरूम में चला गया ।
जलीस को स्प्रिंगों की हल्की सी चरमराहट सुनाई दी तो समझ गया कि इमरान बिस्तर पर लेट चुका था ।
टोनी भी बाहर निकल गया ।
दारुवाला धूर्ततापूर्वक मुस्कराता हुआ जलीस के सामने आ खड़ा हुआ ।
"मुझे एक लंबी मुद्दत से इस मौके का इंतजार था ।" वह अपने हाथों को मुट्ठियों की शक्ल में भींचता हुआ बोला–"आज अपनी ख़्वाहिश पूरी करुंगा ।"
जलीस ने उस पर थूक दिया ।
"तुम बूढ़े हो गए हो, सूअर ।" वह बोला–"मारामारी करने के चक्कर में तुम्हारा कमजोर हार्ट फेल हो जाएगा ।"
"हरामजादे ।" दारुवाला गुर्राया और दोनों हाथों से उस पर घूँसे बरसाने लगा ।
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