अनोखा अनुभव
मेजर के साथ शेष लोगों ने भी नीचे आकर देखा कि डाक्टर अपने घुटनों में सिर दिए सोफे पर बैठा था। मेजर ने कहा, "मैं आपको एक आश्चर्यजनक वात बताना चाहता हूं कि दीवान साहब की हत्या के लिए हत्यारे का इस कमरे में होना भी जरूरी नहीं था। आपको शायद विश्वास नहीं आ रहा है - लेकिन मैं सच कह रह हूं, और मेरा यह भी ख्याल है कि हत्यारा इस कमरे में अपना जाल विवाकर चला गया था । उसे अपने विछाए हुए जाल पर पूर्ण विश्वास था कि उसका वार खाली नहीं जा सकता | ठहरिए, मैं यह बात आपको उदाहरण देकर समझाता हूं- आप लोग बैठ जाइए।"
सब लोग बैठ गए तो मेजर ने पिछली दीवार के पास पड़ी हुई अलमारी के निकट जाकर उसके पीछे के पर्दे की ओर संकेत किया, "आप देख रहे हैं कि जिस गोल लकड़ी से पर्दा टंगा हुआ है, उसका सिरे वाला पीतल का छल्ला गोल लकड़ी से निकलकर लटका हुआ है । आप यह भी देख रहे हैं कि पर्दे के दो भाग हैं और वे दोनो भाग आधे खुले हुए हैं। इसका मतलब यह है कि किसी ने पर्दा खोलना चाहा था और उसे थाधा खोलकर छोड़ दिया था। यह पर्दा या तो पूरा खुला होना चाहिए था या पूरा बन्द होना चाहिए था। जब दीवान सुरेन्द्रनाथ इस कमरे में आए तो यह पर्दा बन्द था । उन्होंने हरगिज इसे आधा नहीं खोला होगा । वे यह पर्दा खोल रहे होंगे कि मौत का संदेश आ गयां । देवी जूम्बी की मूर्ति उनके सिर पर आ गिरी और चोट घातक सिद्ध हुई। मैं यह कहना चाहता हूं कि पीतल का छल्ला गोल लकड़ी पर से किसी ने कल रात को या दीवान साहब के यहां आने से पहले ही उतार दिया था ताकि जब वे पर्दा खोलने की कोशिश करें तो पर्दा पूरा न खुलने पाए और जोर लगाने पर मूर्ति गिर जाए । इन्स्पेक्टर साहब, आप समझ रहे हैं न कि मैं क्या कहना चाहता हूं ? "
“जी हां, अब मेरी समझ में आ रहा है कि आपने सिद्दीकू को कुर्सी पर चढ़ाकर यह क्यों पूछा था कि उसने अलमारी के ऊपर मूर्ति कहां रखी थी ।"
" आप विल्कुल ठीक समझ रहे हैं। मैंने सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से भी कुछ देखा था । अलमारी के ऊपरी भाग पर खरोंच मौजूद है जिसका मतलब है कि किसी ने मूर्ति को उसके स्थान पर से हटाकर जरा आगे सरका दिया था। यही कारण है कि डॉक्टर साहब ने मूर्ति को पुनः उसके असली स्थान पर रख दिया था। लेकिन डाक्टर साहब को मालूम नहीं था कि हत्यारा उनके जाने के बाद मूर्ति को दोबारा सरका कर अलमारी के सिरे पर टिका जाएगा। मूर्ति को जरा-सा टैढ़ा करने के लिए हत्यारे ने पेंसिल का टुकड़ा इस्तेमाल किया ।"
मेंजर ने जेब में हाथ डाला और पेंसिल का टुकड़ा निकालकर सबको दिखाया, "मैंने अलमारी के ऊपर से पेंसिल का यह टुकड़ा उठाया था। और जेब में डाल लिया था।"
मेजर ने आगे बढ़कर पर्दा बन्द कर दिया। इसके बाद उसने देवी जूम्बी की मूर्ति उठाई और पेंसिल के टुकड़े को अलमारी के ऊपर रखते हुए मूर्ति को उन पेन्सिल पर टिका दिया। मूर्ति जरा आगे की ओर झुक गई लेकिन अपने स्थान पर टिकी रही। मेजर ने मूर्ति के आगे से हटकर पर्दे को सरकाना शुरू किया। जब पर्दा वाधा खुल गया तो मूर्ति धड़ाम से फर्श पर आ गिरी ।
"देखा आपने-हत्यारे ने अपनी अनुपस्थिति में दीवान साहब की हत्या कर दी! " और वह उपस्थित जनों पर अपने इस रहस्योद्घाटन का प्रभाव देखने के लिए रुका । जब उनमें से कोई न बोला तो मेजर ने पुनः कहना शुरू किया, "मैं यह सिद्ध करना चाहता हूं कि इस घर के किसी व्यक्ति की अनुपस्थिति उसके निर्दोष होने का प्रमाण नहीं हो सकती । अब रहा टाई पिन, रिपोर्ट और खून-भरे जूते का प्रश्न तो कोई भी व्यक्ति डाक्टर साहब को कॉफ़ी में अफीम मिलाने के बाद ये सारी चीजें आसानी से प्राप्त कर सकता था।"
"रिपोर्ट के अलावा टाई पिन और रबड़ के जूते डाक्टर साहब के सोने के कमरे में थे ।" इन्स्पेक्टर बोला, "जब हम डाक्टर साहब को जगाने के लिए गए थे तो उनके सोने का कमरे का दरवाजा अन्दर से बन्द था । फिर किसी ने उन चीजों को कैसे प्राप्त कर लिया ?"
"अगर आप अपने दिमाग पर जरा-सा जोर दें तो यह बात कोई पहेली नहीं रहती । आप इस चक्करदार सीढ़ी को भूल जाते हैं जिससे डाक्टर साहब के पढ़ने और सोने के कमरे में जाना कोई मुश्किल नहीं है। आपको यह मानना पड़ेगा कि हत्यारे ने डॉक्टर साहब को अपराधी सिद्ध करने के लिए कोई कसर नहीं उठा रखी। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि हत्यारा वह व्यक्ति है जिसने डाक्टर साहब की कॉफ़ी में अफीम का पाउंडर मिलाया।"
- "मामला कुछ साफ हो गया है। हत्यारे के बारे में कुछ बातें मालूम हो गई हूँ।" मेजर बोला, "हत्यारा इस घर के कोने-कोने का भेदी है। उसका उद्देश्य केवल व्यक्ति की हत्या नहीं था - वह डाक्टर साहब जैसे निर्दोष व्यक्ति को हत्यारा सिद्ध करके एक और प्राणी को अपने रास्ते से हटाना चाहता था । डाक्टर साहब को अपने रास्ते से हटाने के बाद भी उसका कोई उद्देश्य हो सकता है । यह हत्या अपराध का अंत नहीं, प्रारम्भ है । डाक्टर साहब को काफी परेशानी उठानी पड़ी है। मैं इनको यही मशविरा दूंगा कि वे जाएं और जाकर आराम करें।"
डाक्टर ऊपर अपने कमरे में चला गया तो मेजर ने डिक्सन से कहा, "आप काफी समय से यहां काम कर रहे हैं । आप इस घर की परिस्थितियों को कुछ तो जानते होंगे। क्या दीवान सुरेन्द्रनाथ ने कोई वसीयत भो की थी ?"
"जी हां, कुछ दिन पहले राजेश ने मुझे बताया था कि उसके चाचा ने अपनी वसीयत नये सिरे से लिखवाई है और उसमें रजनी के लिए काफी रुपया छोड़ने की बात लिखी है।"
"और राजेश के हिस्से में क्या आया है ? " मेंजर ने पूछा ।
"राजेश के बयान के अनुसार उसे भी उतना ही रुपया मिलेगा जितना जनी नांग लिया गया है।"
"ओोर दीवान साहब की बेटी कामिनी को क्या मिलेगा ?"
“कामिनी को फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी । "
"क्यों ?"
"इस सवाल का जवाब राजेश और रजनी ही दे सकते हैं।"
"आपके विचार में खुदाई का काम रुक जाने से ज्यादा अफसोस डाक्टर साहब को होगा या राजेश को ?"
“राजेश को । असल में राजेश एक उत्साही नवयुवक है । वह खुदाई की पुि को एक महान कार्य समझता है । उसने अपने चाचा से वार-बार यह प्रार्थना की थी कि दे मुहिम में अवश्य ही पैसा लगाएं।"
."रजनी के बारे में आपको क्या राय है ?
"वह एक पतिव्रता पत्नी है । डाक्टर साहब के हर काम में गहरी दिलचस्पी लेती रहीं है। लेकिन अब पिछले छः महीने से उसे डाक्टर साहब के काम में कोई दिलचस्पी नहीं रही — लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि वह पतिव्रता नहीं है । "
"सिद्दीकू ने तो रजनी को नहीं बहकाया है ? " मेजर ने पूछा ।
"ऐसा सम्भव नहीं है।"
‘‘मेरे सामने डाक्टर साहब ने सिद्दीकू पर आरोप लगाया था कि वह उनकी पत्नी के कान भरता रहता है ।"
"असल में डाक्टर साहब को सिद्दीक शुरू से ही पसन्द नहीं था । "
"चलिए, मैं आपकी बात मान लेता हूं कि रजनी एक पतिव्रता पत्नी है। लेकिन कहीं यह पातिव्रत्य विवशता तो नहीं बन गया है ? अब मैं आपसे एक नाजुक सवाल पूछूंगा-क्या रजनी अपने पति के अलावा भी किसी में दिलचस्पी रखती है ?"
"आपका यह सवाल वाकई बहुत नाजुक है ।" डिक्सन वोला, “ मैं इसका जवाब नहीं दे सकता।"
“धन्यवाद ! अब आप जा सकते हैं । "
डिक्सन चला गया तो इन्स्पेक्टर ने पूछा, "मैं एक बात समझ नहीं पाया हूं | आपने जान-बूझकर राजेश से पेन्सिल क्यों मांगी थी ?"
"मैं यह देखना चाहता था कि राजेश किस तरह की पेन्सिल इस्तेमाल करता है । अलमारी के ऊपर जो पेन्सिल मिली है, वह राजेश की पेन्सिल से भिन्न है । "
डाक्टर साहब की मेज पर भी तो एक पेन्सिल पड़ी थी ।" इन्स्पेक्टर ने कहा।
"मैं आपके इस सवाल का बड़ा साफ जवाब दूंगा । डाक्टर साहब की मेज पर पड़ी हुई पेन्सिल उस पेन्सिल जैसी थी जो अलमारी के ऊपर मिली है।"
"जरा बावर्ची रूपा को बुला लाओ ।” इन्स्पेक्टर ने सब-इन्स्पेक्टर गुरुदयाल से कहा ।
रूपा आया तो मेजर ने कहा, "रूपलाल, बैठ जाओ।"
रूपलाल ने एक कुर्सी पर सिमटकर बैठते हुए कहा, "मैं बीस साल से इस घर में काम कर रहा हूं। मैंने कभी किसी का हुक्म नहीं टाला | तन-मन से सबकी सेवा करता रहा हूँ । न जाने मेरा अब क्या बनेगा !"
"रूपलाल, यह बताओ कि इस घर में सुबह के नाश्ते का क्या प्रबन्ध है ?"
“नाश्ता डाइनिंग रूम में किया जाता है। सिर्फ दीवान साहब का नाश्ता उनकै कमरे में जाया करता था ।”
"बेड टी या कॉफ़ी सुबह कितने बजे दी जाती है ?"
“छ: से साढ़े छः बजे तक ।"
"आज सुबह जब तुम बैड टी या कॉफी तैयार कर रहे थे तो कोई व्यक्ति डाइनिंग रूम में आया था ?"
"मैंने राजेश को देखा था और फिर दस मिनट के बाद रजनी बीबी भी उधर आई थी और वापस चली गई थीं।"
"क्या तुम उस समय वेड टी या काफी तैयार कर चुके थे ?"
"जी हाँ, डाक्टर साहब के लिए काफी तैयार कर चुका था।"
"हूँ!" मेजर ने कुछ सोचते हुए कहा, "काफी तैयार कर चुकने के बाद क्या तुम तुरन्त डॉक्टर साहब के पास कॉफी ले गए थे ?"
"नहीं, मैं लक्ष्मी को जगाने के लिए चला गया था—उसे जगाया न जाए तो वह देर तक सोई रहती है।"
"जब तुम डाक्टर साहब के लिए कॉफ़ी लेकर गए थे तो वे जाग रहे थे या सो चुके थे?"
"ऊंघ रहे थे।"
"जब तुम कॉफी उनके कमरे में छोड़कर आए थे तो उसके बाद तो कोई व्यक्ति उनके कमरे में नहीं गया था ?"
“मैं कुछ नहीं कह सकता। सुबह के वक्त बहुत काम होता है। बेड टी और कॉफी के साठ नाश्ता तैयार करना होता है। हर आदमी का नाश्ता अलग-अलग होता है । मुझे एक साथ बहुत सी चीजें बनानी पड़ती हैं। मैं अपने काम में लग गया था । मुझे मालूम नहीं कि डाक्टर साहब के कमरे में कोई गया था या नहीं।"
"रूपलाल, अब तुम जा सकते हो ।" मेजर ने कहा।
"रूपा के बयान के मुताबिक केवल दो व्यक्ति संदिग्ध हो सकते हैं --राजेश और रजनी। दोनों डाइनिंग रूम में आए थे। उन दोनों में से कोई एक कॉफी में अफीम का पाउडर मिला सकता था।"
"गुरुदयाल, लक्ष्मी को बुला लाओ।" मेजर ने कहा ।
लक्ष्मी आई तो मेजर उसे सिर से पांव तक देखता रह गया। वह पहाड़िन मालूम होती थी। गोरा-चिट्टा रंग | भरा-भरा वदन | आयु चालीस वर्ष से अधिस नहीं थी ।
"लक्ष्मी, तुम जानती हो ना कि आज इस घर में क्या हुआ है ?" मेजर ने उसे पर बैठने का इशारा करते हुए कहा ।
लेकिन लक्ष्मी खड़ी रही। फिर अपने कूल्हों पर हाथ रखकर बोली- "मैं क्या कुछ नहीं जानती, बाबू ! सब कुछ जानती हूं। मैं तो हरियान (हैरान ) हूं कि आज जो कुछ इस घर में गुजरा है, वह आज से बहुत पहले क्यों नहीं गुजरा।"
मेंजर उसकी बेबाकी से बहुत प्रभावित हुआ, "तुम्हें शायद इस घर के लोगों का रहन सहन अध्छा नहीं लगता लक्ष्मी ! "
"अभी यहां की कोई कल सीधी नहीं है। एक तो यहां कलमुंहा काल भुजंग है। उसे देखकर दिल8 को कलेजा धक् से रह जाए, रात को तो पूछो ही नहीं । और वह बंगाली अकबर (डाक्टर) हैं जो बहुत ही भयानक मूर्तियां बनाते हैं।"
"अभी-अभी तुमने यह बात कही है कि आज जो कुछ गुजरा है, वह वाज से बहुत पहले गुजर जाना चाहिए था।"
“बाबू जी, इस घर का बावाआदम ही निराला है। बस, रूपा ही एक अच्छा आदमी है। वह न होता तो मैं कभी का किनारा कर गई होती। एक बीबी कामिनी बहुत अच्छी थी वो भी इस पर का चरित्र देखकर ऐसी गयीं कि फिर आने का नाम न लिया।"
"अच्छा लक्ष्मी, यह बताओ कि आज सुबह जब रूपा तुम्हें जगाने के लिए गया था तो तुम कितनी देर के बाद रसोई में आई थीं ? "
"पांच मिलट (मिनट ) में । "
"तुम जब रसोई में आई थीं तो रूपा उस समय कहां था ?"
"नल पर प्यालियां धो रहा था । "
"क्या राजेश और रजनी खाने के कमरे में बैठे थे ?
"नहीं।"
"जब रूपा नल पर प्यालियां धो रहा था तो तुमने कोई और आवाज सुनी थी ?”
“नहीं वावू जी...।" यह कहकर लछमी कुछ सोच में पड़ गई और दोबारा कूल्हों पर हाथ रखकर बोली, "याद आ गया वावू जी – मैं रसोई से निकलकर प्यालियां धोने में रूपा का हाथ बंटाने गई थी तो मैंने किसी को कॉफी उड़ेलते हुए सुना था।"
"वह कौन था ? "
“नल पर से यह देखना मुसकल ( मुश्किल ) है कि रसोई में कौन गया और कौन वहां से निकला ।” लछमी बोली । फिर उसने सोनिया की ओर घूरकर देखा ।
"अच्छा लछमी, तुम जाओ और अपना काम करो ।” मेजर ने कहा ।
लछमी ठुमक-ठुमककर चलती हुई बाहर निकल गई ।
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