जगमोहन सुबह सात बजे से उस होटल के बाहर था, जिसमें डोगरा ठहरा हुआ था। यूं तो उसे पता था कि डोगरा बारह बजे से पहले निकलने वाला नहीं। एक बजे उसने बीच रैस्टोरेंट पर किसी कैस्टो नाम के आदमी से मिलना था। परन्तु सावधानी के नाते डोगरा की निगरानी करने का प्रोग्राम बना था। रात एक बजे वो गोवा पहुँचे थे और मडगाँव नाम की जगह बीच के किनारे पर स्थित होटल नाइट शाईन में ठहरे थे। सुबह छः बजे तक जगमोहन सोया और सात बजे यहाँ निगरानी पर पहुँच गया। प्रोग्राम था कि साढ़े नौ बजे हरीश खुदे आकर उसकी जगह ले लेगा और वो देवराज चौहान के साथ बीच रैस्टोरेंट पर जायेंगे और वहाँ की निगरानी शुरू कर देंगे।
खुदे ने जगमोहन को रमेश टूडे का हुलिया बारीकी से समझा दिया था। टूडे को लेकर जगमोहन गुस्से में था। क्योंकि रात कोल्हापुर में हुए झगड़े में देवराज चौहान को काफी चोटें लगी थी। जगमोहन के मन में था कि वो रमेश टूडे को अच्छी तरह ठोक-पीट दे, अगर वो उससे टकरा जाये। उधर देवराज चौहान का कहना था कि रमेश टुडे को भी काफी चोटें लगी होंगी। मन में अफसोस था जगमोहन को कि रात के झगड़े में वो तब वहाँ क्यों नहीं था।
इस समय जगमोहन सतर्क सा होटल के गेट पर नजरें टिकाये हुए था। आधा-पौना घंटा पहले उसने एक कार को भीतर जाते देखा था और कार चलाने वाले का चेहरा घायल था तो उसके मन में आ गया कि कहीं ये टूडे नाम का वो ही व्यक्ति तो नहीं, जो रात कोल्हापुर में देवराज चौहान से टकराया था।
जगमोहन अब उसके बाहर आने के इन्तजार में था।
साढ़े नौ से ऊपर का वक्त हो गया था। हरीश खुदे भी पहुँचने वाला होगा।
और जब हरीश खुदे उसके पास पहुँचा तभी जगमोहन को होटल के भीतर से वो वाली ही कार निकलती दिखाई दी।
"वो देख । उस कार वाले को।" जगमोहन खुदे से कह उठा।
खुदे ने कार वाले को देखा तो चौंक पड़ा।
“ये तो रमेश टूडे है।” खुदे के होंठों से निकला ।
ये सुनने की देर थी कि जगमोहन फौरन कुछ दूर खड़ी अपनी कार की तरफ भागा।
खुदे हक्का-बक्का सा जगमोहन को भागते देखने लगा। फिर उसके देखते ही देखते जगमोहन कार में बैठा और कार को उस तरफ दौड़ा दिया जिधर रमेश टूडे की कार गई थी।
खुदे ने उसी पल मोबाइल निकाला और जल्दी-जल्दी देवराज चौहान को नम्बर मिलाने लगा।
बात होते ही खुदे तेज स्वर में कह उठा।
"देवराज चौहान। जगमोहन, टूडे के पीछे गया है।"
"रमेश टूडे के ?" उधर से देवराज चौहान बोला।
"वो ही। वो कार पर होटल से निकला। मैंने जगमोहन को बताया कि वो टुडे है तो वो उसके पीछे चला गया।" खुदे ने बेचैनी से कहा--- "टूडे बहुत खतरनाक है। जगमोहन उसके सामने पड़ा तो कुछ भी हो सकता है।"
"तुम होटल पर नज़र रखो। मैं जगमोहन से बात करता हूँ।" उधर से देवराज चौहान ने कहा।
अगले दो मिनट में ही जगमोहन ने आगे जाती टूडे की कार देख ली। वो फासला रखकर टूडे की कार के पीछे लग गया। खून उबल रहा था कि रात को उसने देवराज चौहान को मारने की कोशिश की। उसके चेहरें पर मारपीट के निशान थे इसी तरह देवराज चौहान के चेहरे पर भी मारपीट के निशान थे। इसी से स्पष्ट था कि दोनों में झगड़ा किस बुरी तरह से हुआ था।
जगमोहन ने मन में ठान ली थी कि मौका मिलते ही टूडे को शूट कर देगा। उसका फोन बज उठा। बात की तो दूसरी तरफ देवराज चौहान को पाया। वो कह रहा था।
"खुदे ने मुझे बताया कि तुम टूडे के पीछे हो।"
“हाँ। कमीना अचानक ही मुझे दिख गया। मैं मौका देखते ही उसे खत्म करने वाला हूँ।"
"ऐसा मत करना।"
"क्यों ?"
"जब तक वो सलामत है, तब तक डोगरा इस भ्रम में रहेगा कि उसे बचाने वाला उसके आस-पास ही है। वो इसी धोखे में रहेगा और हम डोगरा पर हाथ डाल देंगे। अभी इस हत्यारे को जिन्दा रखो...।"
"लेकिन---।” जगमोहन के चेहरे पर असहमति के भाव उभरे।
"जो मैंने कहा है वो ही करो। टूडे को कुछ मत कहो। उस पर सिर्फ नज़र रखो। वो डोगरा के आस-पास ही रहेगा। परन्तु हमारी नज़रों में रहे तो अच्छा है। कल भी उसने हमारा काम खराब किया है। आज भी कुछ ऐसा ना कर दे।"
"मैं उसे खत्म कर देना चाहता।"
"जो मैंने कहा है, वो ही करो। टूडे पर नज़र रखे रहो।" कहकर उधर से देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया था।
■■■
बारह बजकर दस मिनट पर जगमोहन का फोन आया। तब देवराज चौहान बीच रैस्टोरेंट में बैठा कॉफी पी रहा था और वो पता कर चुका था कि रैस्टोरेंट में दो मीटिंग हॉल हैं और एक हॉल आज बुक है। दोपहर वहाँ किसी की मीटिंग होने वाली है। कुछ ही देर में वहाँ नगीना, देवेन साठी को लेकर पहुँचने वाली थी और साथ में बांके, सरबत सिंह ने होना था। जगमोहन फोन पर कह रहा था।
"मैं टूडे के पीछे लगा रहा। ग्यारह, पैंतालिस तक उसने खास कुछ नहीं किया। एक रेस्टोरेंट में नाश्ता किया। फिर आधा घंटा बीच पर टहलने चला गया। उसके बाद पास के बाजार में घूमने लगा और साढ़े ग्यारह बजे कार में चल पड़ा। उसे ना तो किसी का फोन आया ना ही उसने किसी को फोन किया। 11.45 बजे उसने सड़क के किनारे एक जगह पर कार पार्क कर दी और उसी में बैठा रहा। 11.55 पर उसने एक कॉल रिसीव की और पाँच मिनट बाद ही वो वहाँ से चल पड़ा। कुछ देर बाद मुझे महसूस हुआ कि वो आगे जा रही एक काली गाड़ी के पीछे जा रहा है जो कि होटल डी-गामा की गाड़ी है, उसके शीशे काले हैं। उसके भीतर कौन बैठा है, देखा नहीं जा सकता, परन्तु मेरा ख्याल है कि डी-गामा होटल की गाड़ी में विलास डोगरा हो सकता है।"
“विलास डोगरा हो सकता है?" उधर से देवराज चौहान ने कहा।
“हाँ।"
"परन्तु खुदे ने तो विलास डोगरा के बाहर निकलने की खबर नहीं दी।" देवराज चौहान की आवाज आई।
"उस काले शीशे वाली गाड़ी में खुदे नहीं झांक पाया होगा ।"
"तुम किस दम पर कहते हो उसमें डोगरा हो सकता है।"
"ये रास्ता चौरी नाम की जगह की तरफ जाता है, जो कि बीच रैस्टोरेंट से उल्टी तरफ है। रमेश टूडे, ऐसे समय में जबकि डोगरा को बीच रैस्टोरेंट पर जाना है, उल्टी तरफ क्यों जायेगा। वो तो डोगरा के आसपास ही रहेगा।" जगमोहन बोला।
“अभी 12.10 हुए हैं। क्या पता वो अभी वापस लौट आये। एक बजने में काफी वक्त है। मीटिंग डेढ़ बजे भी हो सकती है।" उधर से देवराज चौहान ने कहा--- "मेरे ख्याल में वो वापस लौटेगा।"
“कह नहीं सकता।" जगमोहन सावधानी से दूर रखे कार को, पीछा करता कह उठा।
सड़क पर और ट्रैफिक भी था। इतना पर्याप्त ट्रेफिक था कि पीछा किए जाने का शक नहीं हो सकता। जगमोहन निश्चिंत था।
“तुम पन्द्रह मिनट बाद मुझे फोन पर एक बार फिर बताना कि क्या हो रहा है।"
"ठीक है।"
पन्द्रह मिनट बाद जगमोहन ने फोन पर फिर देवराज चौहान से बात की। 12.30 बजे थे।
"मैं टूडे के पीछे काफी आगे तक आ चुका हूँ। चौरी आने वाला है। पोजीशन वही है। आगे होटल डी-गामा की वैन है। उसके पीछे टूडे की कार है। मुझे पूरा विश्वास है कि होटल की उस काली गाड़ी में डोगरा मौजूद है तभी तो टूडे उसके पीछे है। मुझे उनका रुकने का इरादा नहीं लग रहा अभी। तुमने खुदे से पूछा?"
"खुदे अभी भी उसी होटल के बाहर है और पक्के तौर पर कहता है कि डोगरा बाहर नहीं निकला।" देवराज चौहान की आवाज आई।
"खुदे को होटल की गाड़ी वाली बात बताई?"
"बताई। सुनकर वो चिन्तित हुआ कि इस तरह काले शीशों वाली गाड़ी में डोगरा निकले तो पता नहीं चलेगा "
"अब क्या कहते हो?"
"मैं सोच रहा हूँ कि हो सकता है टूडे किसी काम पर जा रहा हो। डोगरा वक्त पर बीच रेस्टोरेंट पहुँच जाये।"
"तो फिर होटल डी-गामा की काली गाड़ी के बारे में क्या कहते हो। जबकि डोगरा भी उसी होटल में है।"
"हमारे सामने कुछ भी ठीक से स्पष्ट नहीं है। मैंने अभी रैस्टोरेंट में फिर से मालूम किया है। उनका कहना है कि रैस्टोरेंट के हॉल में एक बजे की बुकिंग है। इस बात को नज़रदांज भी नहीं किया जा सकता "
"तो मैं अब क्या करूं?"
“तुम टूडे के पीछे रहो। इधर हम संभालेंगे। हम फोन पर सम्पर्क बनाये रहेंगे।" उधर से देवराज चौहान ने कहा।
जगमोहन आस-पास देखता कह उठा।
“इस समय चौरी नाम का इलाका पार कर रहा हूँ और उनका यहाँ रुकने का इरादा नहीं लगता ।"
"तुम सावधान रहना। रमेश टूडे के सामने पड़ने की कोशिश मत करना। वो ऐसा इन्सान नहीं कि उससे भले की उम्मीद की जा सके। वो सख्त जान है। रात उसने मुझे कड़ी टक्कर दी थी।"
“मैं उससे दूर रहूँगा।” जगमोहन ने कहा और फोन बंद कर दिया।
जगमोहन, देवराज चौहान से कह रहा था । तब 12.55 बजे थे ।
“होटल डी-गामा की गाड़ी में विलास डोगरा ही है। मैंने उसे देखा। साथ में रीटा है।" जगमोहन की आवाज में गुर्राहट के भाव झलक रहे थे--- "डोगरा, करमार नाम की जगह पर, बीच किनारे स्थित ग्लोब रैस्टोरेंट में पहुँचा है। डोगरा और रीटा भीतर चले गये हैं। रमेश टूडे रैस्टोरेंट के बाहर ही मंडरा रहा है। ये काफी बड़ी जगह है। शांत इलाका है। ज्यादा लोग नहीं है यहां। सैलानी बहुत कम है। कालेज के लड़के-लड़कियां समन्दर किनारे दिखाई दे रहे हैं। ग्लोब रैस्टोरेंट सड़क पर ही है। परन्तु पिछली तरफ जहाँ समन्दर पड़ता है, वहाँ रेस्टॉरेंट का मुँह पड़ता है। मैं इस समय रेस्टोरेंट के बाहर टहलते टूडे को देख रहा हूँ और कार में बैठा हूँ।"
"इसका मतलब, कोल्हापुर वाली घटना से उन्होंने सबक लिया कि प्रकाश दुलेरा ने हमें उसके प्रोग्राम के बारे में बता दिया है। यही वजह है कि डोगरा ने मीटिंग की जगह बदल ली।” देवराज चौहान की आवाज जगमोहन के कानों में पड़ी।
"तुम आ रहे हो?"
"हम नहीं आ सकते। डेढ़ घंटे का सफर है करमार का। डोगरा इतनी देर वहाँ नहीं रुकने वाला। मेरे ख्याल में हमें डोगरा को निश्चिंत कर देना चाहिये कि हम उसके टूर प्रोग्राम के बारे में नहीं जानते।"
"ये कैसे होगा?"
"गोवा में डोगरा ने चार दिन और रहना है और छः जगह अलग-अलग लोगों से मिलना है। अगर उसे हमारे पीछे लगे होने का एहसास होता रहा तो वो हर बार जगह बदलता रहेगा और हमारे हाथ नहीं लगेगा। ऐसे में अब गोवा में उसके या रमेश टूडे के आसपास भी नहीं फटकना है। चुपचाप बहुत दूर रहकर उस पर नज़र रखनी है। जब वो या टूडे हमें आसपास नहीं पायेंगे तो कुछ हद तक निश्चिंत हो जायेंगे। गोवा से निकलकर डोगरा कर्नाटक के हवेरी नाम की जगह पर जायेगा। उनके बाद चिकमंगलूर पहुँचना है। हम इनमें से किसी जगह पर डोगरा का शिकार करेंगे।"
"तो अब इन्हें कुछ नहीं कहना है?"
"नहीं ।"
कार में बैठे जगमोहन ने सौ कदम दूर टहलते रमेश टूडे की देखकर कहा।
"टूडे मेरे निशाने पर है। मैं आसानी से उसे खत्म---"
"नहीं। हमारा शिकार डोगरा है। टूडे को शूट किया तो डोगरा सतर्क होकर खिसक जायेगा। पहले डोगरा फिर टूडे---।"
जगमोहन के होंठ भिंच गये।
"सुना तुमने?" उधर से देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।
"सुन लिया।" जगमोहन ने अपने पर काबू पाया--- “तो अब मैं क्या करूं?"
"ये तुम पर है कि उन पर नज़र रखते हो या वापस आते हो। उन्हें खुला छोड़ दो। हमें हवेरी या चिकमंगलूर के लिए कुछ प्लान करना होगा कि वहाँ पर कैसे हम डोगरा को पकड़ सकते हैं। बात उसे शूट करने की होती तो ज्यादा समस्या नहीं थी। परन्तु बेहतर होगा कि उसे मारने से पहले एक बार देवेन साठी से उसकी बात करा दें।"
बातचीत खत्म हो गई। जगमोहन ने फोन जेब में रखा और दूर टहलते टूडे पर निगाह मारते उसने फैसला किया कि वो यहीं रहेगा और इनके पीछे-पीछे ही वापस जायेगा।
■■■
रेस्टोरेंट में कोने की टेबल पर वे सब बैठे थे। रीटा अपनी आदत के अनुसार ऐसे मौके पर, कुर्सी पर बैठे विलास डोगरा के पीछे खड़ी थी। सामने पैंतीस बरस का विपुल कैस्टो बैठा था। उसके बाल गर्दन तक लम्बे थे और नीचे को झूलती मूंछें थी। रंग सांवला था। कद छः फीट को छूता और भरा-भरा शरीर था। पास ही में शीशे की दीवार थी, जिसके पार समन्दर का दृश्य दिखाई दे रहा था। वहाँ तीन-चार परिवार समन्दर के मजे ले रहे थे। छुट्टी मना रहे थे। कालेज के लड़के-लड़कियां भी बीच पर जोड़ों में मौजूद थे। वहाँ से कुछ आगे आठ-दस छोटी-छोटी बोट्स खड़ी थी कि जो समन्दर में सैर करना चाहे, पैसे खर्च करके मजे ले सकता है सैर के ।
रेस्टोरेंट में इस वक्त एक आदमी, औरत और उनके तीन बच्चे मौजूद लंच लेने की तैयारी में थे। वहाँ पर विपुल कैस्टो के तीन आदमी मौजूद थे और आठ अन्य आदमी रेस्टोरेंट के बाहर के रास्तों पर थे।
"मैं इस रेस्टोरेंट में एक बार पहले भी आया था।" डोगरा मुस्कराकर बोला--- “इसी टेबल पर बैठा घंटों समन्दर को देखता रहा था। बहुत अच्छा लगा था मुझे यहाँ से समन्दर को देखते रहना। क्यों रीटा डार्लिंग।"
"यहां से समन्दर मुझे भी अच्छा लगता है डोगरा साहब ।" रीटा कह उठी।
"समन्दर को देखते रहने से मन को शान्ति मिलती है।" विपुल कैस्टो ने मुस्कराकर कहा--- "मैं भी यहाँ कई बार आया हूँ परन्तु काम की व्यस्तता की वजह से कभी समन्दर को देखने का मजा नहीं ले पाया। आप खुश-किस्मत हैं जो वक्त निकाल लेते हैं।" डोगरा ने सिर हिलाया और कंधे पर रखे रीटा के हाथ को थपथपाकर कहा ।
"कैस्टो साहब। आप तो मेरे साथ ज्यादती कर रहे हो।"
विपुल कैस्टो की निगाह विलास डोगरा पर जा टिकी।
"आठ सालों से मैंने पूरे गोवा को संभाल रखा है। हर जगह मेरी भेजी ड्रग्स ही सप्लाई होती है। लेकिन आपके आदमी मेरे आदमियों को खदेड़ने पर लगे हैं गोवा से आपके आदमी, मेरे आदमियों से रोज मारपीट करते हैं। मेरे चार लोगों को मार दिया गया। इस तरह तो धंधा नहीं होता। ये काम तो मैं भी कर सकता हूँ। पर क्या हमें शोभा देगा कि हम झगड़ा करें।" डोगरा ने शांत स्वर में कहा।
"मरने वाले अपनी गलती से मरे।" कैस्टो मुस्कराया।
“मैं यहाँ पर गलती देखने नहीं आया। जो भी हो रहा है, वो अब रुक जाना चाहिये ।"
“मैं भी ऐसा ही सोचता हूँ।” विपुल कैस्टो शांत स्वर में बोला।
“आपके आदमी, मेरी पुरानी पार्टियों को माल देने की कोशिश में लगे हैं। वो आपसे माल नहीं ले रहे तो उन्हें धमकाया जा रहा है। ये तो धन्धा करने का ढंग नहीं। इस तरह काम कैसे चलेगा।" डोगरा का स्वर हर भाव से परे था।
"आपने आठ साल गोवा पर कंट्रोल रखा, अब दूसरों को भी मौका मिलना चाहिये।" कैस्टो बोला।
"तो क्या तुम मेरा धंधा उखाड़ फेंकना चाहते हो?"
"ये तो मैंने सोचा नहीं।"
"अगर मैं भी तुम्हारा धंधा उखाड़ने पर लग जाऊँ तो क्या होगा कैस्टो ?"
"हमें मामला सुलझा लेना चाहिये।"
"मामला तुमने ही खड़ा किया है।"
"मेरे को अपना धंधा जमाना है। गोवा पर पहले मेरा हक है। मैं यहीं पैदा हुआ था।"
"तो क्या मुसीबत आने पर गोवा वाले तुम्हें बचा लेंगे।"
कैस्टो ने विलास डोगरा को देखा।
डोगरा मुस्कराया।
स्पष्ट धमकी थी ये डोगरा की। परन्तु दोनों के चेहरे शांत थे।
"तुम जो भी करो, मेरे धंधे को खराब मत करो गोवा में।"
“गोवा मेरा है।" विपुल कैस्टो विश्वास भरे स्वर में कह उठा।
“तुम गाजी खान से ड्रग्स लेते हो। वो तुम्हें ड्रग्स भेजता है। गाजी खान से मेरे अच्छे सम्बंध है।" डोगरा ने कहा।
"और भी बहुत हैं जिनसे ड्रग्स ली जा सकती है। गाजी खान को रोक देने से मेरे को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।"
"तुम्हें मेरी बात मान लेनी चाहिये। मेरे धंधे को छेड़े बिना, तुम बेशक जो भी करो गोवा में।"
“बेहतर होगा कि तुम पीछे हट जाओ।" विपुल कैस्टो शांत स्वर में बोला--- "मैं इस बारे में गम्भीर हूँ।"
"झगड़ा करोगे तो दोनों का धंधा जायेगा। पुलिस को शोर अच्छा नहीं लगेगा।"
"पुलिस से मेरी बात हो चुकी है।" कैस्टो ने डोगरा को देखा।
"बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हो।” डोगरा मुस्कराया--- "परन्तु पुलिस मेरी है। तुम मेरा मुकाबला नहीं कर सकते।"
"तो तुम पीछे हटने वाले नहीं।" कैस्टो बोला।
"मैं पहले से जमा बैठा हूँ। पीछे कैसे हटूंगा। मैं तुम्हें टिकने नहीं दूंगा।" डोगरा बोला।
“अगर तुम्हारा ये विचार है तो अगले चौबिस घंटों में तुम्हारे गोवा में मौजूद आदमी मारे जायेंगे।”
"उससे पहले तुम ही नहीं रहोगे।" डोगरा सर्द स्वर में कह उठा।
विपल कैस्टो के चेहरे पर कठोरता उभरी।
"यहां मेरे औदमी मौजूद हैं और तुम अकेले हो।” कैस्टो ने स्पष्ट धमकी में दी--- "तुम्हें अभी खत्म कर---।"
“भूल मे मत रहना।” डोगरा कहर से मुस्कराया--- “तुमसे दुगने यहाँ मेरे आदमी मौजूद हैं। तुमने कैसे सोच लिया मैं अकेला हूँ। रीटा डार्लिंग ।”
"जी डोगरा साहब।"
"यहाँ हमारे कितने आदमी मौजूद हैं ?"
"गिना तो नहीं। पन्द्रह सत्रह तो होंगे ही। चार तो इस रैस्टोरेंट के बाहर खड़े हैं। कैस्टो साहब के हर आदमी पर हमारा एक आदमी नज़र रखे हुए है कि फौरन उसे संभाला जा सके। हमारा पासा भारी है।" रीटा ने सामान्य स्वर में कहा।
कैस्टो ने कुर्सी पर पहलू बदला।
"कहें तो मैं कैस्टो साहब के सामने अपने आदमियों की परेड करा दूं।” रीटा पुनः बोली।
"जरूरत नहीं। कैस्टो को यकीन है कि हम बल्फ नहीं मार रहे। क्यों कैस्टो साहब ।" डोगरा व्यंग से कह उठा।
"हम यहाँ दोस्ती बनाने के लिए मिले हैं। झगड़े के लिए नहीं ।" कैस्टो कह उठा।
"धमकी तो पहले तुमने ही दी।" डोगरा ने कहा।
"गोवा ना आपका है ना मेरा। यहां कोई भी स्थाई कभी नहीं रहता। आज कोई है तो कल कोई।" कैस्टो ने कहा--- "पुलिस को शान्ति की गारंटी चाहिये तभी वो धंधा चलने देगी। हमें आपस में खुलकर बात करनी चाहिये। बीच का रास्ता इस्तेमाल करना चाहिये।"
"वो बीच का रास्ता तुम बता दो।"
"गोवा को आधा-आधा बांट लेना चाहिये। कोई दूसरे के इलाके में दखल नहीं देगा।"
"तुम आधे के हकदार नहीं हो सकते। मेरा धंधा यहां आठ सालों से जमा हुआ है। तीस परसेंट गोवा तुम्हारा।”
“ये कम है।"
"मैंने ज्यादा कह दिया है।"
"चालीस मेरा, साठ आपका।"
"बात नहीं बन सकती। मैं तुम्हें पैंतीस परसेंट गोवा दे सकता हूं जहां तुम अपना माल सप्लाई करो। मेरे इलाके की तरफ तुम्हारे आदमी नहीं आयेंगे। परन्तु पैंतीस परसेंट गोवा तुम्हें देने की मेरी शर्त भी है।" डोगरा ने शांत स्वर में कहा।
"कैसी शर्त?”
"माईकल के आदमी मेरे आदमियों से पंगा लेते रहते हैं। उनसे हफ्ता मांगते हैं। ये ध्यान तुम्हें रखना होगा कि माईकल मेरे आदमियों को तंग ना करे। तुम जो चाहो माईकल के साथ करो। मुझे कोई एतराज नहीं ।"
"माइकल का फोन मेरे को भी आया था कि धंधा करना है। तो उसे हफ्ता देना होगा। मैं संभाल लूंगा उसे ।” कैस्टो ने कहा--- "अब ये तय करना बाकी रह गया है कि गोवा का पैंतीस प्रतिशत कौन-सा हिस्सा मेरा होगा।"
"ये हम ईमानदारी से बांटेंगे। तुम्हें इसमें नाराजगी नहीं होगी।"
"मैं चाहता हूं अभी ये फैसला हो जाये।" कैस्टो जेब से गोवा का नक्शा निकालकर टेबल पर बिछाता कह उठा--- "ऐसा ना हो कि मलाईदार जगह तुम लो और मुझे बेकार की जगह।"
“डोगरा हमेशा ईमानदारी से काम करता है। पैंतीस परसेंट में से तुम्हें पन्द्रह परसेंट मलाईदार जगह मिलेगी। उससे तुम्हारा धंधा बढ़िया जमा रहेगा। मैं अभी इस नक्शे में से तुम्हारा पैंतीस परसेंट का हिस्सा निकाल देता हूं।"
"डोगरा साहब। जरा समन्दर का नजारा तो देखिये।” रीटा, डोगरा के कंधों पर हाथ रखे कह उठी।
विलास डोगरा की निगाह फौरन शीशे की दीवार के पार समन्दर की तरफ उठी। सब कुछ वैसा ही था जैसा कि पहले था फिर जब कुछ दूर किनारे पर खड़ी बोट्स की तरफ नज़रें गई तो आंखें सिकुड़ गई। एक बोट्स पर उसने रमेश टूडे और जगमोहन को देखा फिर उसने बोट को समन्दर की तरफ जाते देखा। टूडे ने जगमोहन को बोट के फर्श पर लिटा दिया था और खुद तेजी से बोट को समन्दर की तरफ दौड़ा दिया था।
"रीटा डार्लिंग। समन्दर तो अब मुझे और भी अच्छा लगने लगा है।" डोगरा प्यार से बोला ।
"मैंने सुना है जो समन्दर के बीचो-बीच मरते हैं, वो सीधा स्वर्ग जा पहुंचते हैं।" रीटा मुस्करा कर कह उठी।
बोट समन्दर के किनारे में दूर होती, छोटी-सी दिखने लगी थी।
■■■
पन्द्रह-बीस मिनट हो गये थे जगमोहन को कार में बैठे। नज़रें रमेश टूडे पर थी, जो कि एक जगह पर टहले जा रहा था। दस कदम आगे जाता तो, दस कदम पीछे आ जाता। इस दौरान वो एक बार भी नहीं रुका था। जगमोहन मन-ही-मन सोच रहा था कि उसे खत्म करने का कितना अच्छा मौका है, परन्तु देवराज चौहान ने ऐसा करने को मना कर रखा था।
तभी जगमोहन एकाएक सतर्क हो गया।
टूडे अचानक ही उसकी कार की तरफ बढ़ने लगा था ।
जगमोहन ने फौरन रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली। मन में सोच रहा था कि क्या वो उसके पास आ रहा है या उसके पीछे कहीं जा रहा है। उसे अपना पीछा किए जाने का पता तो नहीं चल गया। अगले ही पल जगमोहन की आंखें सिकुड़ी ये सोचकर कि वो वहां देर तक टहलता रहा, जबकि उसे डोगरा के पास जाना चाहिये था। कहीं वो उसके कारण ही तो बाहर नहीं था। तरह-तरह के अंदेशे जगमोहन के मस्तिष्क में थे।
टूडे उसकी कार के पास पहुंच चुका था।
कार में बैठे जगमोहन के हाथ में रिवॉल्वर थी और नज़रें करीब आ चुके टूडे पर थी।
रमेश टूडे सीधे उसके पास आ पहुंचा खुली खिड़की के पास खड़ा हो गया।
जगमोहन समझ गया कि कुछ होने वाला है।
“एक घंटा तुम पीछा करते रहे। थके नहीं?” टूडे शांत स्वर में बोला ।
"मैं इतनी जल्दी नहीं थकता ।" जगमोहन ने उसी प्रकार उसे देखते हुए कहा।
टूडे का हाथ अपने घायल चेहरे पर पहुंचा। उसने जगमोहन के हाथ में दबी रिवॉल्वर देखी।
"मेरे लिए रिवॉल्वर निकाल रखी है। जब तुझे आते देखा, तभी रिवॉल्वर निकाली होगी।" टूडे ने शांत स्वर में कहा।
जगमोहन खामोशी से उसे देखता रहा।
"कौन हो तुम?"
"जगमोहन।" जगमोहन का स्वर शांत था।
“देवराज चौहान का साथी जगमोहन हूं---उसकी तबीयत कैसी है अब?" टूडे की आवाज सामान्य थी।
"तुम्हारी तरह ही है।"
"रात को बच गया।"
"ऐसा ही देवराज चौहान कहता है कि तुम बच गये।" जगमोहन का स्वर कठोर हो गया।
"फैसला तो हो जाना था। परन्तु वहां देवराज चौहान का कोई साथी भी था। उसके पास रिवॉल्वर होने का शक था मुझे। वो तुम नहीं थे। उसकी और तुम्हारी आवाज में फर्क है। अंधेरा इतना था कि मुझे अपने हाथ भी दिखाई नहीं दे रहे थे। मैंने गलत जगह का चुनाव किया। फिर भी अगर बात मेरे और देवराज चौहान के बीच की होती तो फैसला हो जाता। परन्तु वहां जो तीसरा था, उसकी वजह से मुझे वहां से निकल जाना पड़ा। अगर मैं देवराज चौहान से निपट भी लेता तो वो मुझे आसानी से गोली मार देता। अगर तीसरा वहां ना होता तो शायद पहले ही देवराज चौहान मारा जाता। उसने मुझे ईंट मारकर मेरे हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर गिरा दी और...।"
“क्या तुम कोल्हापुर हादसे की रिपोर्ट लिखाने आये हो मेरे पास?" जगमोहन सतर्क था ।
“मैं तुम्हें खुलासा बता रहा हूं। कि रात क्या हुआ।" टूडे ने कहा।
"मत बताओ। मुझे सब पता है।"
"कोई बात छूट ना गई हो, इसलिये बता रहा हूं।"
"तुम्हारा चेहरा इस वक्त बहुत सूज रहा है।"
“हाँ।" टूडे ने पुनः अपने चेहरे को छुआ--- "पहली बार मुझे ऐसा कोई मिला जिससे भिड़ने में रात मजा आया। वरना कोई मेरे सामने ज्यादा देर टिकता ही नहीं। बहुत हिम्मत वाला है देवराज चौहान, एकदम मजबूत।" टूडे ने कहा।
"मेरा दिल तो करता है कि तुम्ह शूट कर दूं।" जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा।
"तो फिर करते क्यों नहीं ?"
जगमोहन रमेश टूडे को घूरने लगा।
कुछ पल उनके बीच खामोशी रही।
"कर भी सकता हूँ।" जगमोहन गुर्रा उठा।
"करो।" टूडे ने कार की खिड़की पर झुके जगमोहन की आंखों में झांका।
"परन्तु तुम देवराज चौहान के शिकार हो। बेहतर होगा कि देवराज चौहान ही तुम्हें मारे।"
"या मेरे हाथों मरे।" टूडे कह उठा।
"चले जाओ वरना अभी मारे जाओगे।" जगमोहन ने दांत भींचकर कहा।
"तुम मुझ पर नजर रख रहे हो। इस वक्त तुम भी अकेले हो मैं भी अकेला हूं। बातें करते हैं। तुमने मुझे कहां पकड़ा? कहां से तुम मेरे पीछे लगे। मुझे थोड़ा अजीब भी लगा कि तुम करवार तक चले आये।"
जगमोहन रिवॉल्वर थामे, टूडे को घूरता रहा।
“दुलेरा ने तुम लोगों को डोगरा के टूर का सारा प्रोग्राम बता दिया।"
"वो ज्यादा नहीं बता पाया। पहले ही मारा गया।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा--- “उसने कोल्हापुर और गोवा के बीच रेस्टोरेंट पर विपुल कैस्टो से मुलाकात की बात बताई और उसके बाद उसकी जुबान बंद हो गई थी।" जगमोहन ने झूठ बोला।
"लगता नहीं, ऐसा हुआ हो।" रमेश टूडे आसपास नज़रें घुमाता कह उठा--- "देवराज चौहान नहीं है यहां?"
जगमोहन के होंठ भिंच गये।
"तुम अकेले तो नहीं हो सकते। पर देवराज चौहान मुझे कहीं नज़र नहीं आ रहा।" टूडे पुनः बोला।
"अगर तुम इसी तरह खड़े रहे तो मैं तुम्हें शूट कर दूंगा।"
"मुझे समझ नहीं आता कि तुम किस बात का इन्तजार कर रहे हो। तुम्हें तो चाहिये था कि मुझे पहले ही शूट कर देते। ये अलग बात है कि देवराज चौहान ने तुमसे कह दिया हो कि वो अपना हिसाब खुद चुकायेगा। वो डकैती मास्टर है। उसे डकैती की तरफ ही ध्यान देना चाहिये। अण्डरवर्ल्ड डॉनों से पंगा लेकर भला कोई जिन्दा रह पाया है। उसने तो अपना खाना खराब कर लिया।" कहने के साथ ही टूडे ने फूर्ती से हरकत की और अपनी रिवॉल्वर निकालकर नाल जगमोहन की गर्दन पर रख दी।
जगमोहन दो पल के लिए ठगा-सा रह गया।
“हिलना मत।" रमेश टूडे ने सर्द स्वर में कहा।
जगमोहन का खून सुलग उठा। परन्तु उसका रिवॉल्वर वाला हाथ नीचे था।
"इतनी देर से मैं देख रहा था कि आसपास तुम्हारा कौन-सा साथी है। परन्तु मुझे कोई भी नज़र नहीं आ रहा। विश्वास नहीं होता कि तुम इतनी हिम्मत वाले हो कि मेरे पीछे अकेले आ गये। कहीं ऐसा तो नहीं देवराज चौहान बीच रैस्टोरेंट पर खड़ा हमारा इन्तजार कर रहा है और तुम बस इत्तेफाक से मेरे पीछे आ गये।" कहने के साथ ही टूडे ने झुककर उसकी रिवॉल्वर की तरफ हाथ बढ़ाया।
जगमोहन ने दांत भींचे रिवॉल्वर नहीं छोड़ी।
टूडे ने उनकी गर्दन पर रखी नाल का दबाव बढ़ा दिया।
जगमोहन ने रिवॉल्वर छोड़ दी।
टूडे ने उससे रिवॉल्वर लेकर, कार के पीछे वाली सीट पर फेंक दी और बोला ।
"रिवॉल्वर हाथ में पकड़े रहना, ज्यादा अच्छी बात नहीं है। इससे तनाव बढ़ता है और ब्लड प्रेशर ज्यादा हो जाता है। मैं अभी भी यही सोच रहा हूं कि मौका होते हुए भी तुमने मुझ पर गोली क्यों नहीं चलाई, जबकि कल मैंने देवराज चौहान को मारने की कोशिश की। कहीं तुम लोग सुधर तो नहीं गये। बुरे कामों से मन बदल गया और तपस्या करने का प्लॉन बना रहे हो। वैसे अच्छा ही हुआ जो तुम मिल गये। मैं बोर हो रहा था। अब मेरा मन लगा रहेगा। चलो, समन्दर की सैर करके आते हैं।"
जगमोहन ने मौत भरी निगाहों से उसे देखा ।
तभी टूडे ने उसकी गर्दन से रिवॉल्वर हटाई और जोरदार घूंसा दूसरे हाथ से उसके चेहरे पर मारा।
जगमोहन का मुंह कराह के साथ घूम गया।
रिवॉल्वर पुनः उसकी गर्दन से आ लगी।
जगमोहन का होंठ फट गया था और कोने से खून बह निकला था। चेहरे पर दरिन्दगी सिमट आई थी। उसने सिर उठाकर टूडे को देखा और खून भरा थूक बाहर थूक दिया। उसने खूंखारता भरी निगाहों से टूडे को देखा।
“चलो। समन्दर में घूमने चलते हैं।" कहते हुए टूडे ने दरवाजा खोला– “समन्दर का नमकीन पानी तुम्हारे जख्मों को ठीक कर देगा।” उसके साथ ही रिवॉल्वर वाला हाथ हिलाकर उसे बाहर आने का इशारा किया।
जगमोहन मौत की सी निगाहों से उसे देखता रहा।
"वैसे ये जगह भी बुरी नहीं। मैं तुम्हें यहां भी शूट कर सकता हूं।" टूडे ने दरिन्दगी भरे स्वर में कहा।
जगमोहन कार से बाहर निकला और टूडे रिवॉल्वर जेब में डालता कह उठा।
"तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि मैंने कब रिवॉल्वर निकाल ली। इसलिये तुम ये ही सोचो कि मैंने रिवॉल्वर पकड़ रखी है।" टूडे, जगमोहन की बांह पकड़कर उसे एक तरफ खींचता, चलने लगा--- "मैं जानता हूं तुम इस वक्त ये ही सोच रहे हो कि तुमने पहले ही मुझ पर गोली चला ही दी होती तो बढ़िया रहता। लेकिन जो वक्त एक बार हाथ से निकल जाये, वो वापस नहीं आता।"
दोनों आगे बढ़े जा रहे थे।
"रात भी मैंने इसी तरह देवराज चौहान की बांह पकड़ रखी थी। फर्क सिर्फ इतना है कि उसकी कमरे से रिवॉल्वर लगी थी, परन्तु अब वो मेरी जेब में है। रात उसने जरा भी गड़बड़ की होती तो मैं तभी...।"
तभी जगमोहन का बायां हाथ घूंसे के रूप में घूमा और टूडे के पेट में जा लगा।
टूडे के हाथों उसकी बांह छूट गई। वो कराह कर थोड़ा-सा बेहतर हुआ कि तभी जगमोहन का घूंसा उसके चेहरे पर पड़ा। टूडे बुरी तरह लड़खड़ाया, परन्तु इस दौरान पलक झपकते ही उसने रिवॉल्वर निकाल ली और अपने ऊपर झपटते जगमोहन के पेट से लगा दी। जगमोहन जहां का तहां रुक गया। चेहरे पर खतरनाक भाव थे।
"तुम भी कम नहीं हो। वैसे भी जब मौत करीब आती है तो इन्सान बहुत फड़फड़ाता है।" टूडे ने सर्द स्वर में कहा--- “बहुत हो गया। अगर गोली नहीं खाना चाहते तो मेरे साथ चलते रहो। अब तुम्हें समझाऊंगा नहीं।"
इस तरफ कोई भी आ-जा नहीं रहा था। उनकी हरकतों पर किसी की नज़र नहीं पड़ी थी।
टूडे ने जगमोहन की कमर से रिवॉल्वर लगा रखी थी और उसकी बांह पकड़कर उसे अपने से सटा रखा था। दोनों मध्यम गति से आगे बढ़ रहे थे। सूर्य सिर पर था परन्तु पास में समन्दर होने की वजह से धूप चुभ नहीं रही थी।
“तुम बहुत बुरी मौत मरोगे।" जगमोहन गुर्रा उठा।
"जानता हूं।" टूडे ने सर्द स्वर में कहा--- “मौत को बुरी ही माना जाता है।"
"समन्दर का खारा पानी, तुम्हारे चेहरे के जख्मों का इलाज जरूर करेगा।" जगमोहन गुर्राया ।
रेस्टोरेंट के सामने से होकर वो पास की गली में प्रवेश कर गये।
गली में छोटे-छोटे रेस्टोरेन्ट बने हुए थे और गली के पार सामने समन्दर नज़र आ रहा था। गली में कॉलेज के पांच-सात लड़के-लड़कियां थे। उन्होंने गली पार की और दाईं तरफ बीच के किनारे पर काफी लोग दिखे, जबकि बाईं तरफ कुछ दूरी पर बोटें खड़ी थी। दो आदमी वहां मौजूद थे।
"बोट पर समन्दर घूमने का मजा कुछ और ही होता है।" टूडे उसे बोट की तरफ ले जाता बोला--- "तुमने बोट पर समन्दर की सैर की?"
"तुम मरने वाले हो।"
"जानता हूं कि जब बोट वापस आयेगी तो हममें से एक ही वापस आयेगा । परन्तु मेरे पास रिवॉल्वर है ऐसे में मेरी वापसी के चांस ज्यादा हैं। तुमने इस तरह मरने की तो कभी नहीं सोची होगी, तुम अब अचानक ही लापता हो जाओगे और तुम्हारी लाश भी किसी को नहीं मिलेगी। तुम्हारे जानने वाले आपस में बातें किया करेंगे कि जगमोहन अचानक कहां चला गया। तुम्हारी वापसी का इन्तजार होगा। फिर इन्तजार करने वाले तुम्हें भूलने लगेंगे। इस तरह तुम्हारी याद भी दुनिया से मिट जायेगी। समन्दर में मरने का मजा ही कुछ और है।"
जगमोहन के दांत भिंचे पड़े थे। रह-रहकर गुर्राहट निकल आती थी।
"बोट खोलो।" टूडे ने वहां मौजूद बोट वाले दोनों आदमियों से कहा।
"पर्ची कहां है?" एक ने कहा।
“पर्ची?”
"रेस्टोरेंट के रिसैप्शन से बोट पर घूमने की पर्ची कटती है । वहां पैसे देने होते हैं। हम वो पर्ची लेकर...।"
टूडे ने पल भर के लिए जगमोहन की कमर से रिवॉल्वर हटाकर उन्हें दिखाई।
"पर्ची देखी?" टूडे गुर्रा उठा ।
दोनों के चेहरे एकाएक घबराहट से भर गये रिवॉल्वर देखकर।
"साब... जी।" वो घबराकर रह गया।
"बोट खोलो। जल्दी ।"
उसने आगे बढ़कर किनारे पर बंधी एक बोट खोली ।
"वापस आ जाओ। तुम्हें साथ जाने की कोई जरूरत नहीं।" टूडे बोला ।
वो तुरन्त उस बोट से हट गया।
"चलो।" टूडे जगमोहन को धकेलता कह उठा--- "कोई शरारत मत करना वरना अभी मरोगे।" उसने जगमोहन को आगे कर दिया।
जगमोहन अन्य बोटों पर पांव रखता, होंठ भींचे सावधानी से आगे बढ़ने लगा।
"और तुम दोनों शान्ति से यहीं रहो।" जगमोहन पर नज़रें टिकाए टूडे ने कहा--- "मैं बोट लेकर आधे घंटे में वापस आता हूं। तब तुम दोनों को नोट दूंगा और पर्ची भी कटवा लूंगा। मेरे आने तक चुपचाप यहीं रहना।"
दोनों हड़बड़ाये से खड़े रहे।
टूडे और जगमोहन बोट पर पहुंचे और टूडे ने उनकी टांगों में टांग फांसकर नीचे गिरा दिया उसे।
"हिलना मत।" टूडे गुर्राकर और बोट के स्टेयरिंग पर बैठ गया। उसे स्टार्ट किया।
जगमोहन ने सिर उठाकर टूडे की तरफ देखा।
टूडे ने उसे रिवॉल्वर दिखाई और चेहरे पर खतरनाक मुस्कान आ गई। बोट आगे दौड़ा दी उसने। आठ फीट लम्बी और छः फीट चौड़ी छोटी-सी बोट थी जो कि समन्दर की सतह पर तेजी से भाग रही थी।
जगमोहन शान्ति से लेटा रहा। वो जानता था कि रमेश टूडे अब उसकी हत्या करने वाला है। समन्दर के भीतर गोली की आवाज कोई नहीं सुनेगा। वो समझ चुका था कि ये उसकी जिन्दगी का आखिरी संघर्ष है। जान बचानी है तो उसे पूरी ताकत लगाकर टूडे से मुकाबला करना होगा। बीतता वक्त उसे पहाड़ की तरह लग रहा था। वो बोट के स्टेयरिंग के पास सिर किए लेटा था और टूडे हर दूसरे पल उस पर नज़र मार रहा था। वो सतर्क था। चेहरा खतरनाक भावों से भरा था।
"तो तुम मुझे मारने वाले हो।" जगमोहन बोला।
“तुम्हें शानदार मौत नसीब होने वाली है। समन्दर में इस तरह मरना सौभाग्य की बात है। बहुत कम ऐसे नसीब वाले होते हैं जो समन्दर में मरते हैं।” टूडे का चेहरा वहशी-सा होकर चमक रहा था--- "तुम बहुत किस्मत वाले थे।"
"मैं तुम्हें दस लाख रुपया दूंगा।" जगमोहन ने कहा।
"अच्छा।" टूडे मुस्करा कर गुर्राया ।
"मुझे छोड़ दो। क्यों मेरी जान लेते हो।"
"तुम इतनी बढ़िया मौत लेने से इनकार कर रहे हो। ऐसा कैसे कर सकते हो तुम। तुम्हें मेरा शुक्रगुजार होना...।"
"पन्द्रह लाख ले लेना।" जगमोहन ने फैसला कर लिया था कि उसे क्या करना है।
"सिर्फ पन्द्रह लाख ? क्या यही कीमत है तुम्हारी जान की ?"
"मेरे पास इतने ही हैं।"
"जीवन भर डकैतियां करते रहे और कहते हो पन्द्रह लाख ही हैं। ये तो मजाक कर रहे हो तुम।"
"बाकी सारा पैसा देवराज चौहान ले गया।"
“बुरा किया देवराज चौहान ने ।" टूडे ने दांत कसे हुए थे और चेहरा भयंकर हो रहा था।
बोट समन्दर में तेज आवाज करती दौड़े जा रही थी। वो किनारे से काफी दूर आ गये थे ।
“अभी और कितनी आगे जाना है?" जगमोहन कह उठा।
"समन्दर जितना गहरा हो मरने का उतना ही मजा आता है। मैं तुम्हारा मजा कम नहीं करना चाहता। तुम...।"
परन्तु तब तक जगमोहन अपनी तैयारी पूरी कर चुका था। बोट के फर्श पर हथेलियां और पांवों को टिकाये वो उछला और तीन फीट तक ऊपर होते, दाईं तरफ चालक की सीट पर मौजूद रमेश टूडे से जा टकराया।
रमेश टूडे को जबरदस्त झटका लगा। रिवॉल्वर उसके हाथ से छूटकर समन्दर में जा गिरी। वो खुद भी समन्दर में गिरने लगा कि बायां हाथ स्टेयरिंग व्हील पर जम गया।
बोट जोरों से लहराई ।
जगमोहन खुद को संभाल न सका और लड़खड़ा कर बोट में जा गिरा।
बोट अभी भी समन्दर में लहराकर आगे बढ़ रही थी। क्योंकि व्हील पर टूडे का हाथ टिका था और वो गलत ढंग से मुड़ा हुआ था। टूडे खुद को संभाल चुका था। बोट की रफ्तार धीमी पड़ गई थी। उसने नीचे पड़े जगमोहन को उठते देखा तो उसके होंठों से गुर्राहट निकली और सीट छोड़कर जगमोहन पर छलांग लगा दी
दोनों बोट के फर्श पर जा गिरे।
दोनों के होंठों से गुर्राहटें निकल रही थी। टूडे जगमोहन के गले पर अपना पंजा टिका देना चाहता था। तभी जगमोहन ने उसके चेहरे पर जोरदार घूंसा मारा। टूडे का सिर झनझना उठा। उसने एक के बाद एक दो घूंसे जगमोहन के चहरे पर लगाये तो जगमोहन ने तड़प कर अपने ऊपर पड़े टूडे को, घुटना फंसाकर ऊपर उठाया और बगल में गिराकर, जल्दी से खड़े होने की चेष्टा की परन्तु टूडे ने उसकी टांग पकड़कर तेजी से झटका दिया।
जगमोहन बोट के फर्श पर जा गिरा।
दोनों पुनः गुत्थमगुत्था हो गये।
एकाएक टूडे अपने कोशिश में कामयाब रहा और उसका पंजा जगमोहन की गर्दन पर जा पड़ा। उसी पल दांत भींचे वो पंजे का दबाव बढ़ाने लगा। जगमोहन छटपटा उठा। उसने गले से टूडे का हाथ हटाने की चेष्टा की परन्तु सफल नहीं हो सका। चेहरा, सांस रुकने की वजह से लाल पड़ने लगा।
टूडे पंजे का दबाव बढ़ाता जा रहा था। उसके चेहरे पर वहशी भाव सिमटे थे।
तभी जगमोहन ने एक घूंसा, अपने ऊपर झुके टूडे की नाक पर लगा दिया।
टूडे छटपटा उठा गर्दन से पकड़ कुछ ढीली हुई। जगमोहन ने दूसरा घूंसा लगा दिया। उसके होंठों से चीख निकली। नाक से खून बह निकला। दो पलों के लिये उसका ध्यान अपने पर चला गया। इतना वक्त जगमोहन के लिए काफी था। टांग मोड़कर जूता टूडे के पेट पर रखा और उसे पीछे उछाल दिया।
टूडे उछलकर पीछे स्टेयरिंग सीट से जा टकराया।
अगले ही पल दोनों बोट पर खड़े खूंखार निगाहों से एक-दूसरे को देख रहे थे। बोट की रफ्तार कम हो चुकी थी। वो मध्यम गति से समंदर की सतह पर डोल रही थी। यहां किनारे पर बना रैस्टोरेंट नज़र नहीं आ रहा था। वे काफी भीतर समन्दर में पहुंच चुके थे। टूडे की नाक से बहता खून, उसे खौफनाक बना रहा था।
"हममें से एक ही वापस जायेगा।" जगमोहन दरिन्दगी भरे स्वर में कह उठा ।
उसी पल टूडे ने उस पर छलांग लगा दी।
जगमोहन ने भी इसी पल उस पर छलांग लगाई थी। जबरदस्त ढंग से दोनों टकराये। टूडे ने दो-तीन घूंसे जगमोहन के चेहरे पर लगा दिए, जबकि जगमोहन ने उसके पेट में घूंसे मारे। टूडे उससे लिपट गया। जगमोहन ने उसी पल जोरों का हाथ उसकी टांगों के बीच मारा तो गला फाड़कर चीखा और उससे अलग हो गया चेहरे पर पीड़ा से उसके दोनों हाथ अपनी टांगों के बीच रखे थे। जगमोहन ने फौरन जूते की ठोकर पुनः उसकी टांगों के बीच मारी।
टूडे खुद को बचाने के चक्कर में पीछे हुआ और उसकी टांग पकड़ ली।
जगमोहन बुरी तरह लड़खड़ाकर बोट के फर्श पर गिरा। टूडे ने उसकी टांग नहीं छोड़ी थी। टांग को वह दायें-बायें घुमाता रहा। खून से सने पड़े थे टूडे के दांत। वो दरिन्दा लग रहा था। छोटी-सी बोट भी दायें-बायें डोल रही थी। तभी जगमोहन ने अपनी टांग थोड़ी-सी खींची और फिर जोर से धक्का दिया।
बोट पर खड़ा टूडे लड़खड़ाया । उसका बैलेंस बिगड़ा। जगमोहन की टांग हाथ से छूट गई। उसने खुद को संभालने की बहुत कोशिश की परन्तु आखिरकार वो समन्दर में जा गिरा। गिरते ही वो पानी से बाहर निकला और एक हाथ से बोट का किनारा थाम लिया। जगमोहन तेजी से खड़ा हुआ, परन्तु बोट के एक तरफ झुक जाने से, खड़े होने में उसे सावधानी का इस्तेमाल करना पड़ रहा था और वो बोट के ऊपर आने की कोशिश में लगे टूडे के हाथों पर जूते की ठोकरे मारने लगा कि वो बोट छोड़ दे। परन्तु टूडे जानता था कि इस गहरे समन्दर में बोट से अलग हो जाना खतरनाक था। उसने बोट नहीं छोड़ी और जगमोहन की ठोकरों से हाथ को बचाता रहा। तभी जगमोहन स्टेयरिंग सीट पर बैठा और एकाएक पूरी रफ्तार से बोट को दौड़ा दिया। टूडे बोट का किनारा मजबूती से थामें रहा। बोट एक तरफ को झुकी रही। और समन्दर में दौड़ती रही इसके साथ ही वो बोट पर चढ़ आने का भरपूर प्रयत्न कर रहा था।
अपनी इस कोशिश में टूडे सफल भी रहा। उसकी एक टांग बोट पर आ चुकी थी। अब उसने चंद पलों में ही बोट पर होना था। ये देखकर जगमोहन जल्दी से सीट से उठा और खतरनाक इरादे के साथ टूडे की तरफ लपका। परन्तु उसके पास पहुंचने पर टूडे ने जो खेल खेला उसमें सार नजारा ही पलट गया।
जगमोहन के पास पहुंचते ही टूडे समझ गया कि जगमोहन इस वक्त उस पर भारी पड़ेगा। क्योंकि वो बोट पर है। ऐसे में टूडे ने एक हाथ से बोट का किनारा थामा और दूसरे हाथ से जगमोहन की पिंडली पकड़कर जोरों का झटका दिया। बोट जोरों से हिली। जगमोहन खुद को संभाल ना सका। और सीधा समन्दर में जा गिरा।
टूडे पानी में आगे खिसकती बोट के साथ आगे बढ़ आया था और लगातार बोट पर चढ़ने की चेष्टा कर रहा था। जल्दी ही वो बोट पर था। फौरन खड़ा हुआ और पीछे समन्दर की सतह पर नज़र मारी।
परन्तु जगमोहन कहीं भी नहीं दिखा। होंठ भींचे रमेश टूडे समन्दर में नज़रें दौड़ाता रहा कि अभी जगमोहन दिखेगा, लेकिन देर तक इन्तजार करने के पश्चात् जगमोहन उसे कहीं नहीं दिखा। करीब आधा घंटा टूडे ने इन्तजार किया फिर बोट को वापस किनारे की तरफ दौड़ा दिया।
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"कैस्टो साहब।” विलास डोगरा मुस्करा कर बोला--- “ड्रग्स के धंधे के लिहाज से हमने गोवा को बांट लिया है। पैंतिस प्रतिशत गोवा के जिस हिस्से में तुम ड्रग्स सप्लाई करोगे, उस हिस्से पर मैंने निशान लगा दिए हैं। नक्शा भी तुम्हारे पास ही छोड़े जा रहा हूं। गोवा के बंटवारे को लेकर, कहीं कोई शिकायत हो तो कह सकते हो।"
“मुझे तसल्ली है।" विपुल कैस्टो मुस्कराया।
"तो आज से हम दोस्त हुए। माईकल को संभालना तुम्हारा काम है। अब ना तो तुम हमारे रास्ते में आओगे, ना हम तुम्हारे रास्ते में आयेंगे। मेरे पास खबर है कि माईकल तुम्हारी जान लेने की सोच रहा है।" डोगरा बोला
"किसने कहा?" कैस्टो चौंका। उसके माथे पर बल पड़ते चले गये।
“मेरे आदमियों ने मुझे खबर दी है और वो कभी भी गलत खबर मुझे नहीं देते। खबर के मुताबिक चौबीस घंटों के भीतर वो तुम्हारी हत्या करने वाला है। क्या उससे तुम्हारा कोई झगड़ा हुआ था ?"
“खास नहीं, कल छोटे भाई से तू-तड़ाग हो गई थी।"
“खैर ये तुम जानो।” कहने के साथ ही डोगरा ने अपनी कमीज़ की जेब में लगा पैन निकालकर कैस्टो की तरफ बढ़ाया--- "ये गोल्ड का बना पैन है। खास मैंने अपने लिए सिंगापुर से बनवाया था। इस पैन से मुझे बहुत प्यार है। हमारी दोस्ती की शुरुआत की खुशी में ये पैन तुम्हें देता हूं। ये हमेशा तुम्हें हमारी दोस्ती की याद दिलाता रहेगा।"
"ओह डोगरा साहब।" रीटा इठला कर बोली--- "ये पैन तो आप मुझे देने वाले थे।"
"तुम्हें मैं बढ़िया-सा हार ले दूंगा रीटा डार्लिंग।" डोगरा प्यार से बोला ।
"थैंक्यू डोगरा साहब।" कैस्टो मुस्करा कर पैन लेता कह उठा--- "मैं जल्दी ही आपको बेहतरीन तोहफा भेजूंगा।"
"मैं इन्तजार करूंगा।"
"अब हमें चलना चाहिये।" विपुल कैस्टो उठता हुआ कह उठा--- "चार बजे किसी के साथ मेरी मीटिंग है।"
"लेकिन मैं दस-बीस मिनट अभी रुकूंगा।" डोगरा सिर घुमाकर समन्दर की तरफ देखता कह उठा--- "मेरा एक खास आदमी समन्दर में घूमने गया है। उसका इन्तजार करूंगा। वो आने ही वाला होगा।"
“मुझे इजाजत दीजिये।"
“जरूर। माईकल को मत भूलना। वो...।" डोगरा ने कहना चाहा।
“शाम तक माईकल का काम खत्म हो जायेगा। उसमें बहुत हिम्मत आ गई वो मेरे को खत्म करने की सोचने लगा।"
विपुल कैस्टो चला गया।
उसके आदमी भी चले गये।
डोगरा और रीटा की निगाह समन्दर की तरफ उठी । रीटा कह उठी।
“डोगरा साहब! आप भी क्या-क्या चालें चलते हैं। मेरी तो समझ में ही नहीं आता।"
"क्या हुआ रीटा डार्लिंग ?"
"माईकल का क्या चक्कर है?" रीटा, डोगरा के बगल वाली कुर्सी पर जा बैठा।
"कैस्टो अब अपने आदमियों से कहेगा कि माईकल उसकी जान के पीछे है उसे खत्म कर दो। माईकल शाम तक खत्म हो या ना हो, परन्तु कैस्टो नहीं रहेगा। ऐसे में हर कोई यही सोचेगा कि माईकल ने कैस्टो को मारा होगा। मेरे बारे में तो हर कोई ये ही सोचेगा कि कैस्टो से मेरी बात तसल्ली बख्श हो गई। मुझसे मिलने के बाद कैस्टो खुश था ।" डोगरा मुस्करा पड़ा।
रीटा ने फौरन विलास डोगरा को देखकर कहा।
“आपने क्या चाल चली है?"
"वो गोल्ड का पैन बहुत शानदार है। उसमें एक छोटा-सा प्यारा सा बम है। मैंने पैन में लगा बटन दबाकर उसे ऑन कर दिया है। और ठीक साढ़े चार घंटों के बाद ब्लास्ट होगा और कैस्टो की कहानी खत्म।” विलास डोगरा समंदर में नज़रें दौड़ाता कह रहा था--- "वो पैंतीस परसैंट गोवा मेरे से लेने के सपने देख रहा है। वो सोचता है कि मेरे आदमियों पर हमला करेगा तो मैं डर जाऊंगा। गलत सोचा कैस्टो ने। अभी वो बच्चा है। मैंने उसे नर्क का रास्ता दिखा दिया।"
"ओह डोगरा साहब, आप ग्रेट हैं।" रीटा खुशी से कह उठी--- "क्या खूबसूरत चाल चली है आपने।"
डोगरा की निगाह समंदर पर थी।
“मैं चाल नहीं चलूंगा तो सामने वाला चाल चल देगा। बचना है तो पहले चाल चल दो।"
पंद्रह मिनट बाद समंदर से किनारे की तरफ बोट आती दिखाई दी।
"वो टूडे है या जगमोहन ?” रीटा कह उठी।
दोनों की निगाहों बोट पर टिकी रही ।
जब बोट जरा करीब आई तो टूडे को उन्होंने साफ पहचाना।
"कम ऑन रीटा डार्लिंग।" डोगरा उठता हुआ बोला--- "हमें बाहर चलना चाहिए।"
तब तक टूडे की बोट किनारे पर खड़ी अन्य बोटों के पास पहुंच चुकी थी।
विलास डोगरा और रीटा बाहर की तरफ चल पड़े।
रीटा ने हमेशा की तरह डोगरा की बांह थामी हुई थी।
रेस्टोरेंट के बाहर डी-गामा होटल की वैन खड़ी थी। पास में ड्राइवर तैयार खड़ा था।
डोगरा और रीटा कुछ पहले ही रुक गए। रमेश टूडे का इंतजार करने लगे। दस मिनट में वो आता दिखा। जब वो पास आया तो उन्होंने देखा टूडे का नाक सूजा हुआ है।
“क्या रहा?" डोगरा बोला--- “जगमोहन गया ना?"
"शायद। पक्का नहीं कह सकता।" टूडे नेअपनी नाक को छूते हुए कहा--- "समंदर में काफी आगे डूबा है वो। बचना आसान नहीं, अगर वो तैरना नहीं जानता तो पक्का मर चुका है। तैरना जानता है तो कुछ कह नहीं सकता।"
"गोली नहीं मारी?"
"रिवॉल्वर समंदर में गिर गई थी।"
“हमने तो जगह बदल ली थी। फिर वो यहां तक कैसे पहुंच गया?" डोगरा ने पूछा।
"वो अकेला ही पीछे आ सका। इत्तेफाक था पीछे आ जाना उसका।” टूडे बोला--- "वैसे उसने कहा कि प्रकाश दुलेरा ज्यादा कुछ बताने से पहले ही मर गया था। दुलेरा ने बीच रेस्टोरेंट तक का ही प्रोग्राम बताया था।"
"देखते हैं। पता चल जाएगा। अभी चार दिन तो हमने गोवा में ही बिताने हैं।" डोगरा ने कहा और रीटा के साथ होटल डी-गामा की गाड़ी में जा बैठा। अगले ही पल वो कार वापसी के सफर पर चल दी।
रमेश टूडे अपने कार की तरफ बढ़ गया।
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