पुलिस वालों को मोना चौधरी की हरकत पसंद नहीं आ रही थी । वे यही सोच रहे थे कि बहुत ज्यादा मेहनत करके खुद को खतरे में डालकर रहस्यमय जीव को जाल में फाँसा है और अब इसे आजाद किया जा रहा है । परंतु वह मोना चौधरी के आगे ज्यादा बोल नहीं पा रहे थे । वे जानते थे कि इस्पेक्टर दुलानी की खास पहचान वाली है ।

मोना चौधरी ने चाकू से जाल को काटकर अलग किया । चाकू वापस रखा । इसके बाद बेहोश पड़े रहस्यमय जीव को सीधा करने लगी । उसके हाथ-पाँव फैलाकर उसे पीठ के बल लिटाने लगी ।

पुलिस वाले और रोमांच भरी निगाहों से जीव की बनावट देख रहे थे । माथे पर नजर आने वाली पलक पर, पट्टी के ऊपरी हिस्से से ही निकलकर, उसकी चमड़ी जैसे पलक ने आँख को, सारी पट्टी को ढाँप लिया था । ऐसे में माथा बहुत हद तक सामान्य नजर आ रहा था ।

“विश्वास नहीं आता कि यही वहशी दरिंदा है जो किसी के काबू में नहीं आ रहा था । दरीदगी भरे ढंग से लोगों को चीर-फाड़ कर रहा था ।” पुलिस वाले ने गहरी साँस लेकर कहा ।

“लेकिन ये है क्या ? आज तक ऐसा कोई इन्सान-जानवर नहीं देखा ।” दूसरा पुलिस वाला कह उठा ।

“ये इंसान नहीं है । जानवर नहीं है । मालूम नहीं क्या है ये ।”

“आया कहाँ से ?”

“मुझे तो लगता है ये किसी दूसरे ग्रह का प्राणी है जो किसी तरह हमारी धरती पर आ पहुँचा ।”

मोना चौधरी उसे पीठ के बल लिटाकर सीधी हुई । बेहोशी में वह पस्त-सा पड़ा था । उसका पेट बेहद मध्यम से ढंग से ऊपर नीचे हो रहा था जो कि उसके साँस लेने की निशानी थी ।

“अब इसे आराम से खत्म किया जा सकता है ।” पुलिस वाला कह उठा, “इस्पेक्टर साहब के दिमाग की दाद देनी पड़ेगी कि इसे फाँसने के लिए कैसी बढ़िया योजना बनाई । ये सब तो हम सोच भी नहीं सकते थे ।”

“योजना खतरनाक भी थी । चूक हो जाती तो हम सब की लाशें इस वक्त यहाँ बिखरी होती ।”

तभी एक पुलिस वाला बोला ।

“इसके टेढ़े-मेढ़े नाखूनों को देखो । नाखूनों में खून-सा लगा नजर आ रहा है ।”

सबकी निगाह उसके हाथ की उंगलियों के नाखूनों पर जा टिकी ।

“खून, माँस और चर्बी के लोथड़े नाखूनों में फँसे लग रहे हैं ।”

“सूखे हुए नहीं हैं । कहीं रात को उसने किसी की जान तो नहीं ली ।”

कुछ पलों के लिए वे सब चुप से रहे गये ।

तभी अचानक उनके कानों में कदमों की आहट और बातचीत की आवाजें पड़ी । सबने नजरें उठाई तो इस्पेक्टर दुलानी और महाजन छः पुलिस वालों के साथ उस पुलिस वाले को भी आते देखा जो उन्हें बुलाने गया था । वे सब उत्साहित और खुश नजर आ रहे थे ।

“मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा कि रहस्यमय जीव को पकड़ लिया गया ।” महाजन के होंठों से गंभीर स्वर निकला ।

हर कोई आँखें फाड़े बेहोश रहस्यमय जीव को देख रहा था ।

“ये सब-इंस्पेक्टर दुलानी की योजना का नतीजा है ।” कहते हुए मोना चौधरी ने दुलानी को देखा ।

“कील ठोक-ठोक कर मेरे ताबूत का बुरा हाल कर देगी ये । जब मेरी वर्दी उतरेगी, ये कहीं बैठी मौज उड़ा रही होगी ।” हरीश दुलानी बड़बड़ा उठा, फिर बोला, “योजना बनाने से बहुत कठिन है योजना को अंजाम देना । मैं सोच सकता हूँ कि इस पर काबू पाने में बुरा हाल हो गया होगा मेरे साथियों का ।” इसके साथ ही दुलानी आगे बढ़ा और उत्सुकता भरी निगाहों से रहस्यमय जीव के पास पहुँचकर उसे देखने लगा ।

महाजन पहले वहाँ पहुँचा । वह विचित्र जीव को गहरी निगाहों से देख रहा था ।

अभी आये पुलिस वाले भी बेहोश जीव को घेरकर खड़े हो गये थे । ये जुदा बात थी कि उसे करीब पाकर उनके दिल भय की वजह से और भी तेजी से धड़क उठे थे ।

“इसकी आँख कहाँ है ?” एकाएक हरीश दुलानी के होंठों से निकला ।

महाजन के होंठ सिकुड़े । आँख की तरफ उसका ध्यान नहीं गया ।

मोना चौधरी करीब आ पहुँची ।

“जिस तरह हम नींद लेते हैं तो पलकें बंद हो जाती हैं । बेहोश होने पर भी अक्सर ऐसा ही होता है । इसी तरह माथे पर से गुजरती पट्टी के भीतरी हिस्से से इसकी चमड़ी की पतली परत निकलकर सारी पट्टी को पलक की तरह ढाँप लिया है, जिसमें आँख घूमती है । मेरे ख्याल से जब इसे होश आयेगा तो चमड़ी जैसी परत वापस पट्टी में समा जायेगी और आँख दिखने लगेगी ।”

“ओह !”

“ऐसे किसी जीव के बारे में पहले कभी देखा-सुना नहीं ! कुदरत के करिश्मों को समझ पाना असंभव है ।” महाजन गहरी साँस लेकर कह उठा, “लेकिन ये आया कहाँ से, मेरी समझ से बाहर है ।”

“इसका जवाब तो शायद किसी के भी पास नहीं है ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “इस बारे में बाद में भी सोचा जा सकता है । पहले वह काम कर लिया जाना चाहिए जो दिलानी साहब की योजना में आता है । हो सकता है बेहोशी की दवा इस पर कम असर करें । ऐसे में ये जल्दी होश में आ गया तो बहुत बुरा हो जायेगा ।”

हरीश दुलानी ने चुभती निगाहों से मोना चौधरी को देखा ।

“दुलानी साहब, यहाँ पर कितने लोगों की जरूरत है ?” मोना चौधरी ने पूछा, “बता दीजिये ।”

“मेरे ख्याल में ।” दुलानी दिल पर पत्थर रख कह उठा, “ यहाँ किसी की जरूरत नहीं है । सब थके हुए हैं । ये वापिस जाकर आराम करेंगे । बाकी का काम हम संभाल सकते हैं ।

“दुलानी !” महाजन ने कहा, “हमें जल्दी से काम शुरू करना है ।”

दुलानी, पुलिस वालों से कह उठा ।

“तुम सब वापस जाओ । एक-दो घंटों में हम भी आ रहे हैं ।”

“लेकिन इस्पेक्टर साहब, इस जीव का करना क्या ?”

“ये सवाल बाद में भी हो सकता है ।” दुलानी अनमने ढंग से बोला, “तुम सब वापिस... ।”

“वो हमारे लोग किधर जा रहे हैं ?” एक पुलिस वाले के होंठों से निकला ।

सबकी निगाह उधर उठी ।

वे तीन पुलिस वाले थे जो दूसरी दिशा से आकर अन्य दिशा की तरफ जा रहे थे ।

“ये हमें ही तलाश कर रहे होंगे ।” दूसरे पुलिस वाले ने कहा ।

“बुलाओ उन्हें ।”

दो पुलिस वाले जल्दी से उस तरफ दौड़े । उन्हें आवाजें दी तो उनका ध्यान इधर को हुआ ।

वे पास आ पहुँचे ।

“तुम लोग यहाँ क्या कर... ?” दुलानी नें पूछना चाहा ।

“इंस्पेक्टर साहब !” एक हड़बड़ाकर दुखी स्वर में कह उठा, “आपको ढूँढ़ रहे थे । ये बताने के लिए की रात उस दानव ने हमारे दो साथियों को मार डाला ।”

“क्या ?” पुलिस वाले चौंके ।

“दो पुलिस वाले और मारे गये ।”

“तो रात को यह उस वक्त वह दो की जान लेकर आ रहा था ।” यह सुनते ही पुलिस वाले हक्के-बक्के से रह गये थे ।

तभी उनमें क्रोध की लहर दौड़ी । एक रिवॉल्वर निकालकर गुस्से से भड़क उठा ।

“मैं इसे जिंदा नहीं छोड़ूँगा ।”कहने के साथ ही वह बेहोश रहस्यमय जीव की तरफ लपका ।

वहाँ पहुँचे तीनों पुलिस वालों की निगाह रहस्यमय जीव पर पड़ी तो वे चिहुँक पड़े । चेहरे पर से कई रंग आकर गुजर गये । जो रंग आँखों में ठहर गया था वह खौफ का ही था ।

“रुक जाओ !” मोना चौधरी ने तेज स्वर में कहा, “इसे कुछ मत करना ।”

“मैं इसे शूट... ।” पुलिस वाले ने गुस्से से भरे स्वर में कहते हुए रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा करना चाहा ।

परन्तु महाजन ने फौरन पास पहुँचकर उसकी रिवॉल्वर वाली कलाई थाम ली ।

“सुना नहीं तुमने ।” महाजन ने सख्त स्वर में कहा ।

“तुम लोग कौन होते हो मुझे रोकने वाले ।” वह तीखे स्वर में कह उठा, “हटो, मेरी बाँह छोड़ो । मैं... ।”

मोना चौधरी ने नजरे मिलते ही हरीश दुलानी को इशारा किया ।

“रिवॉल्वर वापस रख लो । मेरे आदेश के बिना कोई कुछ नहीं करेगा ।” दुलानी होंठ भींचकर बोला ।

“लेकिन सर... !” उस पुलिस वाले ने कहना चाहा ।

“खामोश हो जाओ ।” दुलानी की आवाज में गुस्सा आ गया ।

महाजन ने उसकी कलाई छोड़ी और पीछे हट गया ।

न चाहते हुए भी उसने रिवॉल्वर वापस रख ली । चेहरे पर क्रोध स्पष्ट नजर आ रहा था ।

“सर !” तभी दूसरा पुलिस वाला कह उठा, “ये दरिंदा हमारे पाँच साथियों को मार चुका है । आपके दोस्त योगेश मित्तल को मार चुका है । उन पाँच सरकारी गनमैनों की जान ले चुका है गाँव में दो व्यक्तियों को बुरी मौत दे दी । अभी भी ये जाने किन-किन को मारता । कितने घर बर्बाद करता । कितनी औरतों को विधवा बनाता और बच्चों को यतीम । माँ-बाप से उनके जीने का सहारा छीन लेता । ऐसे में हाथ आ गया तो इसे इस तरह क्यों रखा हुआ है ? इसे गिरफ्तार करने से तो बेहतर है कि खत्म कर दिया जाये । ऐसी वहशी के साथ रहम करना सरासर गलत बात है ।”

दुलानी ने छिपी निगाहों से मोना चौधरी को देखा फिर उस पुलिस वाले से कह उठा ।

“अब मुझे तुमसे सीखना पड़ेगा कि क्या गलत है और क्या ठीक ।” स्वर में चुभन थी ।

“मेरा यह मतलब नहीं था सर ! मैं तो... ।”

“शटअप !” दुलानी की आवाज कठोर हो गई ।

पुलिस वाले ने होंठ बंद करके नजरें जमीन की तरफ कर ली । दुलानी कुछ कहने लगा कि दूसरा पुलिसवाला कह उठा ।

“लेकिन सर, अब इसका करना क्या है ?” हरीश दुलानी ने उसकी उखड़ी निगाहों से देखा ।

“क्या करना है इसका और क्या नहीं, यह मैं देख-समझ लूँगा ।” दुलानी ने शब्दों को चबाने वाले अंदाज़ में कहा, “ इस बारे में मुझे राय की जरूरत पड़ी तो तुम्हें बुलाकर सलाह ले लूँगा ।”

इसके बाद किसी ने कुछ नहीं कहा । दुलानी का सख्त रुख देखकर पुलिस वाले चुप ही रहे ।

“तुम सब जाओ यहाँ से ।” दुलानी ने बे-मन से कहा, “मैं कुछ देर में आता हूँ ।”

सब पुलिस वाले चले गये ।

हरीश दुलानी की नजरें जमीन पर पड़े बेहोश रहस्यमय जीव पर जा टिकी । उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे मोना चौधरी और महाजन ने उसे मजबूर करके बाँध दिया हो । वह पुलिस वालों को यहाँ से नहीं भेजना चाहता था और रहस्यमय जीव को अपने कब्जे में पाकर अपनी मनमानी करना चाहता था, परंतु ऐसा नहीं कर सकता था वह । ऐसा करने की मोना चौधरी के सामने हिम्मत नहीं इकट्ठा कर सका था । क्योंकि इस बारे में पहले तय हो गया था कि क्या किया जाना है ।

जाने वाले पुलिस वाले अब नजर आने बंद हो गये थे ।

दुलानी ने गहरी साँस लेकर महाजन और मोना चौधरी को देखा ।

“बेबी !” महाजन की निगाह बेहोश बड़े रहस्यमय जीव पर थी, “तुमने वास्तव में बहुत बड़ा हाथ मारा है ।”

“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया ।” मोना चौधरी गंभीर थी, “पुलिस वालों ने ही किया है । उनमें से मौके पर एक भी लापरवाह हो जाता तो जाने क्या हो जाता । मैं पुलिस वालों पर ही निर्भर थी इस मामले में ।”

“जो भी हो, मेरी निगाहों में यह बहुत बड़ा काम है ।” महाजन ने व्याकुलता से भरी गहरी साँस ली, “क्यों दुलानी ?”

हरीश दुलानी ने उसे देखा । कहा कुछ नहीं ।

“क्या हो गया तेरे को ?”

कुछ कहने को हुआ लेकिन खामोश ही रहा दुलानी ।

“फिर दिमाग घूम गया तेरा ।”

“महाजन !” मोना चौधरी आगे बढ़कर रहस्यमय जीव के पास पहुँची, “आओ हम अपना काम शुरू करें । थैला उधर पड़ा है । लाओ उसे । तुम्हारा थैला कहाँ है ?”

“वो रहा ।”

“वह भी ले आओ ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा और उसकी निगाह रहस्यमय जीव की छाती पर जा टिकीं । जहाँ थोड़ी-सी गोलाई लिए जख्म जैसी जगह नजर आ रही थी । जो कि अब सूख रही थी ।

यहीं लगी थी इसे गोली ।

मोना चौधरी को समझते देर न लगी ।

महाजन दोनों थैले लेकर मोना चौधरी के पास आ गया ।

“ये देखो महाजन ! छाती के इस हिस्से में गोली धँसी हुई है ।” मोना चौधरी ने कहा ।

महाजन ने गंभीर निगाहों से वह जगह देखी ।

“गोली अभी इसके शरीर में ही है ।” महाजन ने मोना चौधरी को देखा ।

“हाँ ! किसी के निकाले बिना गोली का बाहर निकल पाना संभव नहीं ।”

“तुम्हारी सोच गलत भी हो सकती है कि गोली की वजह से अभी भी इसे दर्द हो रहा है ।”

“हो सकता है, मेरा ख्याल गलत हो ।” मोना चौधरी की निगाह छाती पर नजर आ रहे उस जख्म पर जा टिकी जहाँ वे गोली धँसें होने के बारे में सोच रहे थे, “लेकिन महज एक गोली लगने की वजह से कोई भी हर रोज इस कदर भयानक ढंग से प्रतिशोध ले सकता है । धीरे-धीरे गुस्सा कम हो जाता है । प्रतिशोध की भावना पर वक्त की परत पड़ने लगती है । तकलीफ की सोचे धुंधली होने लगती है, परंतु जिस तरह रोज रात में यह लाशें बिछा रहा है उससे स्पष्ट है कि गोली लगने की बात को इसलिए नहीं भूल पा रहा कि शरीर की भीतरी फँसी गोली की वजह से अभी भी इसके शरीर में पीड़ा उठती रहती है और यह गुस्से-से भर जाता है । लोगों की जान लेने लगता है ।”

“ये तुम्हारी सोचें हैं ।” महाजन ने मीना चौधरी को देखा ।

“हाँ !”

“हो सकता है गोली निकालने के बाद भी इसकी हरकतों में बदलाव न हो और यह पहले की तरह ।”

“कुछ भी हो सकता है ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “खतरे का असल खेल तो अब शुरू होगा । इसके शरीर में धँसी गोली निकालकर, दवा लगाकर, जख्म पर बैंडिज लगाकर चले जायेंगे । उसके बाद जब इसे होश आ जायेगा तब इसकी तरफ से क्या प्रतिक्रिया होगी, सब कुछ उसी पर निर्भर है ।”

“उसके बाद के बारे में तुमने क्या सोचा है ?”

“इस बारे में फिर भी बात हो सकती है ।” मोना चौधरी ने रोका, “आओ इसकी छाती में धँसी गोली निकालते हैं ।”

पास खड़ा दुलानी गंभीर, व्याकुल स्वर में कह उठा, “मोना चौधरी !” दोनों ने दुलानी को देखा ।

“अगर गोली निकालने के बाद भी इसने अपनी हरकतें जारी रखीं तो जानती हो, मेरा क्या हाल होगा । नौकरी... वर्दी जायेगी । मुझे गलत ढंग से काम करने की वजह से गिरफ्तार कर लिया जायेगा । ड्यूटी में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया जायेगा । मेरे पर केस चलाया चलेगा और... ।”

“दुलानी... !” महाजन ने शांत स्वर में कहा ।

“चुपकर । दुलानी-दुलानी लगा रखा है ।” हरीश दुलानी उखड़े हुए तीखे स्वर में कह उठा, “तू क्या समझता है कि हर बार तेरे इशारे पर मैं चुप कर जाऊँगा । मुझे भी ऊपर जवाब देना है । गड़बड़ हो गई तो तुम लोग खिसक जाओगे । मुझे तो भागने के लिए भी रास्ता नहीं मिलेगा ।”

“फड़क उठी तेरी नस ।”

“अभी तो पता नहीं क्या-क्या फड़केगा ।” हरीश दुलानी ने महाजन को खा जाने वाली निगाहों से घूरा, “गड़बड़ होने पर ऊपर वाले सबसे पहले सवाल तो तुम लोगों के बारे में करेंगे कि तुम दोनों कौन थे और सरकारी काम पर तुम दोनों को साथ क्यों रखा था ? कलाई टूट गई तो ऊपर रिपोर्ट क्यों नहीं भेजी ? तुम दोनों के बारे में बताऊँगा तो फौरन मुझे मोना चौधरी का साथी बना दिया जायेगा । तुम्हारी मेरी पुरानी जान-पहचान निकाल दी जायेगी । नहीं बताऊँगा तो सीधे-सीधे ही फँस जाऊँगा की अवश्य कोई खास बात है जो तुम लोगों के बारे में नहीं... ।”

“दुलानी साहब !” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में टोका, “हम आपकी स्थिति को अच्छी तरह समझ रहे हैं । इसके साथ ही आप यह सोचिये कि हम जो कर रहे हैं, उसमें हमारा क्या फायदा है ।”

“यही तो मैं कह रहा हूँ कि तुम लोग खामखाह इस मामले में फँसे हो । बहुत हो गया । खत्म करो इस बात को । ये विचित्र जीव तो हमारे हाथ लग ही गया है । हम इसे आसानी से खत्म कर सकते हैं । उसके बाद अपने-अपने रास्ते पर... ।”

“तेरी पूँछ सीधी नहीं होगी ?” महाजन कड़वे बोल उठा ।

“तुम दोनों मेरी पूँछ सीधी करने के फेर में सारी कीलें मेरे ही ताबूत में ठोक दो । यह मैं कैसे सह सकता हूँ ।” हरीश दुलानी दाँत भींचकर कह उठा, “जो काम अब तुम करने जा रहे हो, इसका कोई फायदा है ? खुद ही बता दो । हमारा मकसद था, इस आतंक से छुटकारा पाना और अब इसे खत्म करके आसानी से सब कुछ ठीक कर सकते हैं ।”

हममें ये बात तय हो चुकी है कि क्या किया जायेगा ।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा ।

“मुझे समझ में नहीं आता कि गोली निकालकर, इसे ठीक करके, बाद में इसका बदला या न बदला रवैया देखकर, तुम दोनों क्या साबित करना चाहते हो ?” दुलानी ने गुस्से में कहा, “क्यों इसे बख्शने की सोच रहे ?”

“गलत मत कहो, दुलानी !” मोना चौधरी गंभीर स्वर में कह उठी, “हमारा इरादा इस पर किसी भी तरह का रहम करने का नहीं है ।”

“तो इन सब हरकतों का मतलब ?”

मोना चौधरी ने गहरी साँस ली ।

महाजन ने मुँह बनाकर घूँट भरा ।

“रहस्यमय जीव के मामले में जो विचार मेरे मन में आया है । उस विचार के बारे में देखना चाहती हूँ कि वह ठीक है या नहीं !” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द पर जोर देकर गंभीर स्वर में कहा ।

“खूब ! तो तुम अपने विचार के बारे में ठीक-गलत जानने के लिए मासूम निर्दोष लोगों की जान खतरे में डाल रही हो । अगर तुम्हारा विचार गलत निकला तो आज के बाद इस दरिंदे को कौन संभालेगा ? तब तो... ।”

“हम ही संभालेंगे ।” मोना चौधरी का चेहरा कठोर हो गया ।

“तुम दोनों ?”

“हाँ ! मैं तुमसे वायदा करती हूँ कि आज के बाद यह किसी की जान लेने आया तो सबसे पहले मेरी जान लेगा । मैं... ।”

“बेबी !” व्याकुल-से महाजन ने टोका । मोना चौधरी के चेहरे पे दृढ़ता नाच रही थी ।

“पागल हो । यह अच्छा मौका है ।” दुलानी चीख-सा उठा, “इसे खत्म कर देना चाहिए । ये वक्त हाथ से मत जाने दो ।”

“महाजन, थैलों में से सामान निकालो । इन बातों में हम वक्त बर्बाद कर रहे हैं ।”

महाजन ने दोनों थैलों में से दो छोटे-छोटे बॉक्स निकाले । उन्हें खोलकर पास ही रख लिया । बॉक्सों में हर वह समान था, जिससे कि रहस्यमय जीव की छाती में धँसी गोली निकाली जा सके । बिना वक्त गँवायें मोना चौधरी रहस्यमय जीव की छाती में धँसी गोली निकलने की तैयारी करने लगी ।

महाजन उसके काम में गंभीर व्याकुल-सा हाथ बँटा रहा था । मन में इस बात का पूरा शक था कि आने वाले वक्त में जाने क्या होगा ?

होंठ भिंचे हरीश दुलानी रहस्यमय जीव की छाती से गोली निकाले जाने की कोशिशों को देखने लगा । यह सब होना उसे अच्छा नहीं लग रहा था । लेकिन जाने क्या सोचकर सब कुछ बर्दाश्त कर रहा था । उसकी निगाहों में मोना चौधरी की हरकतें पागलपन के अलावा कुछ नहीं थी । कई बार मन में आता कि रिवॉल्वर निकालकर रहस्यमय जीव के सिर में सारी गोलियाँ उतार दे, परंतु यह विचार सिर्फ विचार ही रहा ।

दिन पूरी तरह खिल चुका था ।

कुछ ही देर में सूर्य को नजर आ जाना था ।

सूर्य की तेज धूप उन पर पड़ रही थी । मध्यम-सा पसीना कभी-कभार शरीर पर उभर आता था ।

दिन के नौ बजे थे । मोना चौधरी और महाजन को ढाई घंटे की बराबर मेहनत करनी पड़ी थी । इसी बीच उन्होंने आराम करने की जरा भी नहीं सोची थी । रहस्यमय जीव की छाती से गोली निकालते समय उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा था कि उसके जख्म को ज्यादा न काटना पड़े । छाती में दो इंच भीतर तक धँसी हुई थी गोली । सावधानी से निकालने में उन्हें वक्त भी ज्यादा लगा और दिमागी-शारीरिक मेहनत भी ज्यादा लगी ।

परंतु अपने पसंदीदा ढंग से काम करने में पूरी तरह सफल रहे । उसके बाद छोटी-सी शीशी खोलकर उसमें भरी दवा छाती पर नजर आ रहे जख्म पर डाली जो की जख्म के भीतर तक गई । रहस्यमय जीव गहरी बेहोशी में पड़ा था । उसके बाद मलहम जैसी दवा जख्म में भरने के पश्चात आसपास भी लगाई फिर बैंडिज कर दी गई ।

सारा काम निपट गया पाकर दोनों ने राहत की साँस ली । मन में खुशी से भरी तसल्ली थी, परंतु वे गंभीर थे । चुप-चुप-से थे ।

उनमें कोई खास बात नहीं हो रही थी । दोनों थके अंदाज में उठे । महाजन ने एक तरफ रखी बोतल उठाकर एक साथ कई घूँट लिए ।

हरीश दुलानी एक तरफ जमीन पर बैठा था । होंठ ऐसे बंद थे जैसे सिल रखे हो ।

मोना चौधरी ने झुककर एक तरफ रखे रिवॉल्वर की वह गोली उठाई जो रहस्यमय जीव की छाती से निकाली थी । वह .38 के रिवॉल्वर की गोली थी जो कि कुछ भारी थी और तीव्र प्रहार करने वालों में से थी ।

“ऐसी गोली जिस्म में फँसी हो तो दर्द कायम रह सकता है ।” महाजन ने गंभीर-शांत स्वर में कहा ।

मोना चौधरी के होंठों पर अजीब-सी मुस्कान उभरी ।

“देखते हैं ।” कहते हुए मोना चौधरी ने सिर हिलाया, “मैंने तो कोशिश करनी थी । जो काम करना था, वह कर लिया । मालूम नहीं, अब क्या होगा ? आने वाला वक्त क्या रंग लाता है ?”

“जख्म ठीक होने में कितने दिन लगेंगे ?” महाजन ने पूछा ।

“दो-तीन दिन में जख्म ठीक हो जायेगा ।” मोना चौधरी की निगाह बेहोश पड़े रहस्यमय जीव पर जा टिकी, “जख्म पर ऐसी दवा इस्तेमाल की है कि बिना किसी परेशानी के जख्म फ़ौरन भर जाये ।”

“दो-तीन दिन ।” महाजन बड़बड़ा उठा ।

मोना चौधरी ने हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर की गोली को जेब में डाला ।

“अपनी पागलों वाली हरकत को पूरा कर दिया ।” तीखे स्वर में दुलानी कह उठा ।

“तुम्हारे आशीर्वाद से सब काम पूरा हो गया है ।” महाजन मुस्कुरा पड़ा ।

हरीश दुलानी ने खा जाने वाली निगाहों से उसे देखा ।

“मुझे तो अभी भी समझ में नहीं आ रहा कि मैंने क्या सोचकर तुम दोनों की बात मान ली ।” दुलानी खड़े होते हुए बोला, “मुझे लगता है, मेरा दिमाग खराब हो गया था जो... ।”

“खराब हो गया था तो हो गया । बीती बातें क्यों याद करते हो ।” महाजन ने उसी लहजे में कहा, “ये क्या कम खुशी की बात है कि अब तुम्हारा दिमाग ठीक हो गया । तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो चुका है ।”

“तुम मजाक कर रहे हो ।” दुलानी ने उसे खा आने वाली नज़रों से देखा ।

“हाँ !”

“लेकिन मैं मजाक नहीं कर रहा । मैं तो यह सोच-सोचकर परेशान हूँ कि आने वाले वक्त में जो लाशें देखने को मिलेगी उसके बाद मेरा क्या होगा ?” मैं... मैं... ।”

“जो अभी हुआ नहीं उसके बारे में अभी से परेशान होने की क्या जरूरत है । जब वक्त आएगा परेशान हो लेना ।” महाजन ने कहते हुए गहरी साँस ली, “सच बात तो यह है कि मन-ही-मन में मैं भी तुम्हारी तरह ही परेशान हूँ ।”

“किस बात पर परेशान ?”

“यही कि हम इसे जिंदा छोड़ रहे हैं । महाजन की निगाह उसके जिस्म पर जा टिकी, “होश में आने पर यह जाने क्या करें ? हो सकता है हमारी इस हरकत पर यह और भी क्रोधित हो उठे और लोगों को मारने का काम और भी तेज कर दे ।”

“अब आई है यह बात समझ में ।” दुलानी जैसे फटने को हुआ ।

“ये बात तो पहले से ही ध्यान में थी ।”

“तो फिर मोना चौधरी को टोका-समझाया क्यों नहीं ? काम में इसका साथ क्यों दिया ?”

“जो मैंने किया, वह अपनी जगह पर है । जो मैंने अब कहा, वह अपनी जगह पर है । वे अपनी जगह पर है ।” महाजन की नजरें पुनः हरीश दुलानी पर गई, “बेबी की सोच अपनी जगह ठीक हो सकती है । हमारी सोच अपनी जगह पर ठीक है ।”

तभी मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी ।

“जो सोच मेरे मस्तिष्क में आई, मैंने बहुत कोशिश के बाद उस सोच को अंजाम दिया है । ये सब यही सोचकर किया कि शायद आने वाले वक्त में सारे हालत ठीक रहे । दुलानी साहब, मैंने कभी भी यह नहीं कहा कि आप गलत कर रहे हैं ! लेकिन इसकी जान लेने से पहले मैं ये वाली कोशिश करके देख लेना चाहती थी ।”

“मैं अब भी यही पूछता हूँ कि होश आने के बाद यह विचित्र जीव पहले की तरह लोगों को मारने लगा तो… ?”

“तो ।” मोना चौधरी, दुलानी की बात काटकर गंभीर स्वर में कह उठी, “सबसे पहले मैं आगे जाऊँगी । पहले ये रहस्यमय जीव मेरी जान लेगा । उसके बाद किसी दूसरे की जान जायेगी ।”

“जाने तो जायेंगी । लाशें तो पुलिस वालों को ही इकट्ठी करनी पड़ेगी । अब जवाब तो मुझे ही देना पड़ेगा और मेरे पास इस बात का कोई जवाब नहीं होगा कि जब रहस्यमय जीव को जाल में फँसा लिया गया तो उसे खत्म क्यों नहीं किया गया ? या फिर कैद क्यों नहीं किया गया ? क्यों जाल को काट दिया गया ? क्यों पुलिस वालों को वापस भेजा गया ।”

“तुम पर बेशक जो भी इल्जाम लगे, परंतु एक इल्जाम से बचे रहोगे ।” महाजन का लहजा गंभीर ही था ।

“क्या मतलब ?” दुलानी की आँखें सिकुड़ीं ।

“कोई भी तुम्हें यह नहीं कह सकेगा कि तुमने रहस्यमय जीव से रिश्वत लेकर उसे छोड़ा है ।” इसे कहते हुए महाजन हौले से हँस पड़ा, “क्योंकि वह जब बोल-सुन नहीं सकता तो नोटों की भाषा कहाँ जानता होगा ।”

हरीश दुलानी दाँत भींचकर महाजन को देखने लगा ।

“नाराज होने की जरूरत नहीं !” महाजन ने घूँट भरकर कहा, “ऐसे तनाव भरे माहौल में मजाक कर लेना ठीक रहता है ।”

हरीश का मन तो कर रहा था कि महाजन को उठाकर जमीन पर पटक दे, परंतु अपनी सोच को दबाते हुए आगे बढ़ा और रहस्यमय जीव के पास पहुँचकर होंठ भींचें उसे देखने लगा ।

रहस्यमय जीव बेहोश था तो इस वक्त उस का खौफ नहीं था । अगर होश में होता और दूर से भी नजर में आता तो भय से रोंगटे खड़े हो जाने थे । टाँगें काँप जानी थीं ।

मोना चौधरी ने थैले में से दूरबीन निकाली और महाजन से धीमे स्वर में बोली ।

“दुलानी के साथ वापिस चले जाना ।”

“और तुम बेबी ?”

“मैं कुछ देर बाद आ जाऊँगी ।”

“लेकिन यहाँ रुकने... ।”

“मैं यहाँ से दूर रहकर दूरबीन से देखूँगी कि होश आने पर यह जीव क्या करता है । इसकी हरकतें क्या जाहिर करती हैं ?” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा ।

“इससे क्या होगा ?”

इसकी हरकतों से ये बात महसूस की जा सकेगी कि आने वाले वक्त में यह क्या करना चाहेगा ?”

महाजन और मोना चौधरी की नजरें मिलीं ।

“वो मैं बता देता हूँ कि ये होश में आने के बाद क्या करेगा ?” रहस्यमय जीव से नजरें हटाकर दुलानी ने कहा ।

दोनों की नजरें दुलानी पड़ गई ।

“पहले ये कम आक्रमक था । सोच-समझकर लोगों की जानें ले रहा था ।” दुलानी गंभीर स्वर में कह उठा, “अब यह पहले से भी ज्यादा जल्लाद बन जायेगा पागलों की तरह गाँव में आकर, कटेश्वर बीच पर जाकर लोगों को मारने लगेगा क्योंकि अपने ज़िस्म में हुई चीर-फाड़ इसे गुस्से से पागल कर देगी ।”

महाजन ने गहरी साँस लेकर घूँट भरा ।

“ऐसा हुआ तो बुरी, बहुत बुरी बात होगी ।” मोना चौधरी ने होंठ भींचकर कहा ।

हरीश दुलानी की नजरें पुनः रहस्यमय जीव के शरीर पर जा टिकीं । फिर वह नीचे झुका और उसके शरीर को उंगली से छुआ । दो-चार बार फिर हाथ फेरा । यह सब करते समय दुलानी के होंठ भिचें हुए थे । आँखें सिकुड़ी हुई थीं । कई बार उसके शरीर पर हाथ फेरने के बाद सीधा होते हुए दोनों को देखा ।

“इसका माँस सामान्य तरह का नहीं है । लगता है जैसे कठोर परत हो माँस की चमड़ी जैसी कठोर परत ।”

“पहले अपने ताबूत में ठुकती किलों को गिनने से ही फुर्सत नहीं मिल रही थी । अब मिली तो इसकी तरफ ध्यान गया । अब भी फुर्सत मिली कि तुम लोगों के पास ऐसी कोई कील बाकी नहीं रही की ठोके जाने की गुंजाइश बाकी बची हो । मेरे ताबूत को तुम लोगों ने जितना ठोकना-पीटना था, तबीयत से वह कर लिया ।”

“तेरी मर्जी से ही हम कीले ठोक रहे थे ।” महाजन बोला ।

“मेरी मजबूरी का फायदा तुम दोनों ने उठाया ।”

“तू बच्चा तो है नहीं दुलानी, जो तुझे बेवकूफ बनाकर लाइन में खड़ा कर दें ।”

“छोड़ो । इन बातों का वक्त पीछे छूट चुका ।” हरीश दुलानी ने कहते हुए गंभीर निगाहों से पुनः रहहस्मय जीव को देखा, “मैं इसे देखता हुआ कब से हैरान हो रहा हूँ कि आखिर यह कौन है ? इंसान यह है नहीं और जानवर लगता नहीं, इसके अलावा कुछ और हो नहीं सकता ।”

मोना चौधरी और दुलानी की नजरें बेहोश पड़े रहस्यमय जीव पर जा टिकीं ।

“क्या है ये ?” दुलानी ने दोनों हाथों को देखा, “कुछ तो सोचा होगा ।”

“सच बात तो यह है कि हम इसके विचित्र बनावट पर हैरान है ।” मोना चौधरी कह उठी, “लाख सोचने पर भी हम किसी तरह के नतीजे पर नहीं पहुँच सके कि यह हकीकत में ऐसी शख्सियत है ।”

“अगर ये किसी नस्ल का जीव होता तो इसके बारे में पहले भी देखा-सुना गया होता ।” दुलानी ने होंठ सिकोड़कर सोच भरे स्वर में कहा, “धरती के किसी कोने में इसकी मौजूदगी के बारे में पता होता तो अब तक याद आ जाता ।”

“मैं नहीं समझ पाई कि यह कौन हो सकता है, कहाँ से आया होगा ?” मोना चौधरी की स्वीकृति की निगाह रहस्यमय जीव के शरीर पर जा ठहरी, “इसके शरीर की बनावट कहती है कि यह जानवर जैसे खानदान से ताल्लुक रखता हो सकता है परंतु इसकी आँख की हैरान कर देने वाली बनावट इस सोच को खत्म कर देती है । इसकी अभी तक की हरकतों को नोट करें कि किसी तरह सोच-समझकर यह काम करता है तो इसके इंसान होने की आशा की जा सकती है । यानी कि अभी इसके बारे में कोई भी धारणा स्पष्ट नहीं बनाई जा सकती । दूसरों की तरह मैं भी यही कह सकती हूँ कि यह इंसान नहीं ! जानवर नहीं ।”

चुप्पी छा गई वहाँ ।

तीनों की निगाह कुछ पलों के लिए रहस्यमय जीव के शरीर पर ठहरी रही ।

“बेबी !” महाजन ने होंठ सिकोड़कर कहा, “ये किसी दूसरे ग्रह से आया मानव हो सकता है ।”

“दूसरे ग्रह से ?” मोना चौधरी ने उसे देखा ।

“जरा सोचो ।” महाजन ने सिर हिलाकर कहा, “कुछ लोग दूसरे ग्रह से जहाँ इसी तरह के लोग रहते हैं, वह अपने अंतरिक्ष यान से धरती पर आ पहुँचे और बाहर निकलकर हमारी धरती पर घूमने लगे, परंतु अचानक ही कोई ऐसी वजह पैदा हो गई कि उन्हें अपना यान लेकर धरती से खड़े पाँव जाना पड़ा और उनका ये साथी टहलते हुए दूर निकल गया । इसे वो अपने साथ नहीं ले जा सके और यहीं रह गया ।”

मोना चौधरी और दुलानी की निगाह महाजन पर ही थी ।

“अगर यह किसी दूसरे ग्रह का मानव है, इस बात को माना जाये तो इसे बोलना भी चाहिए ।” हरीश दुलानी ने कहा ।

“ठीक कहते हो । लेकिन हमें क्या मालूम कि इनकी भाषा क्या है ? हो सकता है इनके मुँह से निकलने वाली आवाज ही इसकी भाषा हो ।” महाजन बोला, “या फिर अजनबियों के बीच खुद को पाकर अपनी भाषा न बोल रहा हो । परेशान हो कि उसके साथी उसे छोड़ गये । वो अब वापस कैसे जायेगा ?”

“अगर यह सच बात है तो पूरी दुनिया में तहलका मच जायेगा ।”

“मैंने तो अपने विचार जाहिर किए हैं । सच-झूठ का नहीं पता ।” महाजन ने मोना चौधरी को देखा, “क्यों बेबी ?”

“इस बारे में मैं कुछ कहना ठीक नहीं समझती ।” मोना चौधरी का स्वर शांत था, “हमें यहाँ नहीं रुकना है । मालूम नहीं इसे कब होश आ जाये । चलते हैं यहाँ से ।”

“तुम दूर रहकर इसके होश में आने पर दूरबीन से देखोगी कि यह क्या करता है ।” दुलानी ने मोना चौधरी से कहा ।

“हाँ !”

“हम भी तुम्हारे साथ... ।” दुलानी ने कहना चाहा ।

“नहीं ! मेरे साथ कोई नहीं रहेगा । ये काम मुझे अकेले ही करना होगा । ऐसी जगह पर अकेला इंसान तो शायद किसी तरह खुद को इसकी निगाहों से छुपा ले । एक से ज्यादा होंगे तो निगाहों में आ जाने का खतरा है । इस वक्त किसी तरह खतरा उठाना हमारे लिए ठीक नहीं है । चलो ।”

महाजन और हरीश दुलानी के साथ ही मोना चौधरी करीब हजार गज दूरी तक पहुँचकर रुकी । पलटकर पीछे देखा जहाँ रहस्यमय जीव बेहोश पड़ा था ।

अब वह रहस्यमय जीव आँखों को स्पष्ट नजर नहीं आ रहा था । मोना चौधरी के गले में लटक रही दूरबीन आँखों पर लगाई तो जमीन पर पड़ा वह रहस्यमय जीव स्पष्ट नजर आने लगा ।

“गुड !” मोना चौधरी ने तसल्ली भरे ढंग से सिर हिलाया, “ये जगह ठीक है ।” फिर आँखों से दूरबीन हटाकर दोनों को देखा, “तुम दोनों जाओ । मैं उसके होश आने के पश्चात वापस आ जाऊँगी ।”

“तुम खतरा उठाने जा रही हो बेबी !” महाजन व्याकुल-सा हुआ ।

“खतरा तो हमारे आस-पास रहता ही है ।”

“इस वक्त अकेली हो और दुश्मन न समझ में आने वाला रहस्यमय जीव है ।”

जवाब में मोना चौधरी मुस्कराकर रह गई ।

“वो होश आने पर वहाँ से तुम्हें देख भी सकता है ।” दुलानी ने रहस्यमय जीव की दिशा की तरफ देखा ।

“रहस्यमय जीव मुझे तभी देख पायेगा, अगर होश आने पर वो इसी दिशा की तरफ बढ़ा । जाओ तुम दोनों ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “तुम दोनों की मौजूदगी खतरा खड़ा कर सकती है ।”

“चल ।” महाजन ने धीमे स्वर में दुलानी से कहा ।

हरीश दुलानी ने मोना चौधरी को देखा ।

“तुम्हें इस तरह यहाँ पर अकेले छोड़कर जाना मुझे ठीक नहीं लग रहा । तुम... ।”

“बेबी की चिंता तुम बाद में कर लेना ।” महाजन, दुलानी की बाँह पकड़कर खींचते हुए बोला, “इस बारे में हम रास्ते में बात कर लेंगे । अभी तुम्हें यह भी सोचना है की रहस्यमय जीव अब लाशें बिछायेगा तो अपने ऑफिस में क्या जवाब देना है । क्या रिपोर्ट उन्हें भेजेगा । इस काम में तेरी जितनी हैल्प कर सकूँगा, वो भी करूँगा ।”

दुलानी और महाजन आगे बढ़ गये ।

“हैल्प ?” चलते-चलते दुलानी कड़वे स्वर में कह उठा, “तुम दोनों तो फाँसी का फंदा मेरे गले में डालने की हैल्प कर रहे हो ।”

“हैल्प तो हैल्प ही होती है । बेशक वो कैसी भी हो ।”

“वैसे ही हाथ-पाँव तोड़कर मुझे किसी कुएँ में फेंक दो । क्यों कीलें ठोक-ठोककर मार रहे हो ।”

“ये काम तो तुम्हारे साथ तुम्हारे डिपार्टमेंट की तरफ से होने ही वाला है । कोई नई सेवा बताओ मेरे लायक ।”

जवाब में हरीश दुलानी दाँत पीसकर रह गया ।

महाजन और दुलानी दूर जाते नजरों से ओझल होने लगे थे ।

मोना चौधरी ने उन्हें जाते देखा फिर हर तरफ देखने लगी ।

उसे ऐसी जगह की तलाश थी जहाँ वह रहस्यमय जीव की निगाहों से सुरक्षित रह सके और होश में आने पर उसकी हरकतों को साफ़ तौर पर देख भी सके ।

हर तरफ बंजर और वीरान नजर आती जमीन थी ।

इस तरफ दूरी पर मोना चौधरी ने सूखे पेड़ को देखा । पेड़ का मीडियम साइज़ का तना आठ-नौ फिट ऊँचा खड़ा हुआ था । दो मोटी-मोटी सुखी टहनियाँ ऊपर से निकलकर इधर-उधर फैली थी । तना और दोनों टहनियाँ बिल्कुल चिकनी-सी थीं । उनकी छाल उन पर नहीं थी ।

इस खुली जगह में उसके तने से बढ़िया जगह नहीं थी छिपने के लिये । खुली जगह में कहीं भी लेट जाती तो रहस्यमय जीव की नजरें उसे देख सकती थी । मोना चौधरी तने के पास पहुँची और आँखों पर दूरबीन लगाकर रहस्यमय जीव की तरफ देखा । वहाँ से भी वह स्पष्ट नजर आ रहा था । मोना चौधरी फौरन तने की ओट में पेट के बल लेट गई और पुनः दूरबीन लगाकर उस तरफ देखा ।

इस तरह कुछ परेशानी अवश्य आई रहस्यमय जीव को देखने में । शायद इसलिए कि उधर वह भी बेहोशी की हालत में जमीन पर पड़ा था । लेकिन यह जगह ठीक थी । पेड़ के तने की ओट छिपने में बहुत सहायता दे रही थी । होश में आने पर रहस्यमय जीव की नजर उस पर पड़ जाना अब लगभग असंभव ही था । अगर वह इधर को आता है तो सामना हो जाने के पूरे-पूरे चांसेस थे ।

दूरबीन थामें, पेट के बल लेटे मोना चौधरी को इंतजार था रहस्यमय जीव के होश में आने का । जो कि कभी भी, किसी भी वक्त होश में आ सकता था ।

दिन के आगे बढ़ने के साथ-साथ सूर्य की तपिश अब ज़िस्म को चुभने लगी थी ।

दिन के बारह बज चुके थे ।

सूर्य की धूप जैसे मोना चौधरी को ही अपना निशाना बनाये, किरणें फेंक रही थी । अपनी तेज चमक के साथ वह ठीक आसमान के बीचोबीच आता जा रहा था ।

पेट के बल लेटी मोना चौधरी की पीठ और सिर के बालों के बीच पसीना दौड़ता-सा महसूस हो रहा था । वह जब लेटी थी उसके बाद उसने उठने की चेष्टा नहीं की थी । पीठ-टाँगें सीधी करने की इच्छा होने के बावजूद भी उसने खतरा मोल लेना ठीक नहीं समझा था ।

रहस्यमय जीव को कभी भी होश आ सकता था ।

ठीक इसी पल इन्हीं सोचों के साथ मोना चौधरी ने आँखें सिकोड़ीं । नजरें उधर ही थी जिधर वह बेहोश पड़ा था । उसे वहाँ कुछ हरकत-से होने का एहसास हुआ ।

मोना चौधरी ने तुरंत आँखों पर दूरबीन लगा ली ।

दूरबीन में रहस्यमय जीव के शरीर को हौले-हौले हिलते देखा तो धड़कन कुछ तीव्र हो उठी । होंठों में खिंचाव-सा आ गया । नशे की दवा का असर खत्म हो गया था । रहस्यमय जीव को होश आ रहा था । इसी पल का तो इंतजार था मोना चौधरी को । वह सतर्क थी । सावधान थी । अपने शरीर को उसने और भी सिकोड़ लिया था कि तने की ओट में रह सके । रहस्यमय जीव की नजर को उसकी मौजूदगी का एहसास न हो सके । दूरबीन बेहद पॉवरफुल थी । उसे आँखों पर लगाकर रहस्यमय जीव को देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे वह मात्र बीस कदमों की दूरी पर मौजूद हो ।

दूरबीन के लेंसों पर आँखें टिकाये मोना चौधरी को स्पष्ट नजर आ रहा था कि वह धीरे-धीरे हिल रहा है । अब उसके हाथों में हरकत-सी होने लगी थी । जैसे वह नींद से उठ रहा हो । उसके हिलने में ऐसा भाव था ।

उसकी आँख की पलक अभी नहीं हटी थी ।

मोना चौधरी की गंभीरता से आँखें दूरबीन के जरिये रहस्यमय जीव पर टिकी थी ।

करीब मिनट बाद उसकी पलक हटने लगी थी ।

माथे की पट्टी पर से कभी ऊपर से पलक का हिस्सा ऊपर को जाता तो कभी पुनः उस पट्टी के ऊपर आ जाता । जब वह ऊपर जाता तो आँख झलक उठती थी ।

दस-बारह बार ऐसा हुआ फिर पलक जैसा वह हिस्सा उसके ऊपर हिस्से में ही कहीं जाकर लुप्त हो गया । अब उसकी आँख नजर आने लगी थी । उसकी आँख ठीक माथे के बीचोबीच स्थित थी । जैसे कि देखने-समझने की चेष्टा कर रहा हो कि मामला क्या है ? क्या हुआ था ?

फिर उसकी आँख उस पट्टी में इधर-उधर सरकने लगी । लेटे-ही-लेटे वह आस-पास नजर दौड़ाने लगा था । आँख कभी एक कान की तरफ जाती तो कभी दूसरे कान की तरफ ।

मिनट भर ऐसे ही बीत गया ।

फिर वह पूरा हिला और उठकर कूल्हों के बल बैठ गया । इसके साथ ही उसकी गर्दन दायें-बायें घूमने लगी । पीछे की तरफ भी उसने गर्दन मोड़कर देखा । अब वह हर तरफ से नजर मार रहा था । अचानक वह गर्दन घुमाकर आसमान की तरफ देखने लगा कुछ देर उसकी गर्दन उठी रही । वही ऊपर देखता रहा ।

मोना चौधरी समझ गई कि उसे जाल की याद आ गई है । अब उसे शायद आज उसे ठीक तरह से याद आने लगा था कि रात के वक्त उसके साथ क्या-क्या हुआ । उसने किस-किस को देखा । फिर उसने गर्दन नीचे की और जाल को देखने लगा उसके ऊपर वह बैठा था । जाल आस-पास ही फैला था इसके साथ ही उसकी निगाह वहाँ पड़े थैली और अन्य सामान को देखने लगी ।

तभी मोना चौधरी में दाँत भिंच गये ।

रहस्यमय जीव के चेहरे पर एकाएक क्रोध के भाव उभरते देखें । पहले उसके दाँत किटकिटाते नजर आये फिर ऐसा लगा जैसे उसने होंठों से कोई आवाज निकाली हो । वह गुस्से में भर आया था । उसने हाथ बढ़ाकर पास पड़े बॉक्स को पकड़ा और दोनों हाथों से मसलकर उसे इस तरह दूर फेंक दिया जैसे कोई बच्चा कागज को मरोड़कर दूर फेंकता है । इसके साथ ही वह उठा ।

मोना चौधरी उसके चेहरे के भावों से स्पष्ट अंदाजा लगा रही थी कि वह गुस्से में है । उसके मुँह से गुर्राने की आवाजें निकल रही थीं । खड़े होते ही उसनें दूसरा बॉक्स उठाकर तोड़-मरोड़कर फेंक दिया । फिर वहाँ मौजूद चारों बॉक्सों को पाँव मार-मारकर तोड़ने लगा ।

बाँस टूटकर पिसते जा रहे थे ।

एकाएक वह पलटा और नीचे पड़े जाल को उठाकर अपना क्रोध उस पर निकालने लगा । जब वह जाल टूटा नहीं तो गुस्से में भरे उसने जाल को दूर फेंक दिया । दूरबीन में देखते हुए मोना चौधरी उसके चेहरे से, उसके भावों से स्पष्ट अंदाजा लगा रही थी कि पागलपन उस पर सवार हो चुका है । तभी उसकी निगाह अपनी छाती पर गई । सिर झुकाकर वह छाती को देखने लगा, उसके बाद ही वह आसमान की तरफ मुँह करके जोरों से जाने क्या चीखा । इस बार मोना चौधरी को उसकी माध्यम-सी आवाज कानों में पड़ती महसूस हुई ।

ऐसा लग रहा था जैसे वह गुस्से में जल रहा हो । तड़प रहा हो ।

एकाएक उसने हरकतें रोकीं और हर दिशा की तरफ ध्यानपूर्वक देखने लगा । रह-रहकर उसके दाँत खतरनाक अंदाज में नजर आने लगते थे । मोटे-भद्दे अजीब ढंग से फैले लटकते नजर आ रहे थे । दो मिनट तक जैसे उसने हर दिशा की तरफ बेहद ध्यान से देखा । शायद वह ये जानना देखना चाहता था कि कोई वहाँ है तो नहीं । कोई उसे देख तो नहीं रहा ।

फिर वह आगे की तरफ बढ़ने लगा । जिधर रात के अंधेरे में बढ़ा जा रहा था । उसके चलने की ढंग में गुस्सा था । रह-रहकर वह पाँव को पटकने लगता । अपनी बाँह को गुस्से से भरे ढंग से हिलाने लगता ।

मोना चौधरी दूरबीन पर आँखें टिकाकर उसे तब तक देखती रही, जब तक वह नजर आता रहा । अब वह दूरबीन में छोटा-सा नजर आने लगा था और बहुत दूर होता जा रहा था । एक ही दिशा में बढ़ा जा रहा था । देखती रही मोना चौधरी, जब तक कि वह निगाहें से ओझल नहीं हो गया ।

वह दिखाई देना बंद हो गया, लेकिन उसने दूरबीन आँखों पर लगाए रखी ।

फिर दूरबीन आँखों से हटाकर एक तरफ रखी और गहरी साँस लेते हुए करवट लेकर पीठ के बल लेट गई । सूर्य की तेज किरणें उसके पसीने से भरे चेहरे पर पड़ी ।

मोना चौधरी ने आँखें बंद कर ली ।

बंद आँखों में रहस्यमय जीव की हरकतें चलचित्र की भाँति नजर आती महसूस हो रही थी । जो कुछ भी उसने देखा, महसूस किया उससे उसकी थकान बढ़ गई थी । रहस्यमय जीव के दिल से नफरत निकालकर अच्छा काम करना चाहती थी, परंतु उसकी हरकत से रहस्यमय जीव के मन में नफरत के भाव और भी बढ़ गए लगते थे ।

मोना चौधरी समझ गई कि सारी कोशिश बेकार गई ।

क्रोध में आकर अब वह पहले से भी ज्यादा कहर ढायेगा । मासूम और निर्दोष लोगों को मौत देता रहेगा । बेहतर होता कि गोली निकालने की अपेक्षा उसे खत्म कर देती । दुलानी की बात मान लेती ।

लेकिन अब वक्त निकल चुका था ।

मोना चौधरी जब वापिस पहुँची तो दिन के ढाई बज रहे थे । सड़क के किनारे पेड़ों की छाया में पुलिस वालों के अस्थाई डेरे में हलचल जोरों पर थी । कुछ लंच ले चुके थे । कुछ ले रहे थे । मोना चौधरी वहाँ पहुँची तो अधिकतर पुलिस वालों की उत्सुकता भरी या गम्भीर निगाह उस पर जा टिकी । नजरों में यही सवाल था कि रहस्यमय जीव कहाँ है ? उसके साथ क्या किया गया ?

दुलानी दिन और रात भर का थका-हारा लंच लेने के पश्चात एक तरफ चारपाई पर नींद में डूबा हुआ था । आराम न करने की वजह से कलाई में कुछ दर्द-सा होने लगा था ।

महाजन, मोना चौधरी के पास पहुँचा । वह मोना चौधरी के सोचों से भरे गंभीर चेहरे को पहचान चुका था और समझ गया था कि कुछ ठीक नहीं हुआ ।

“बेबी, भूख लग रही होगी ! कल से कुछ खाया नहीं ।” महाजन बोला ।

“हाँ !” मोना चौधरी ने गहरी साँस लेकर कहा, “हाथ-मुँह धोने के लिए पानी मँगवा दो ।” महाजन ने एक पुलिस वाले को पास बुलाया ।

“बेबी के हाथ-मुँह धुलवाओ । अलग हटकर टेबल लगा दो और लंच भी ले आओ ।”

सारा काम फौरन हो गया ।

मोना चौधरी कुर्सी पर बैठ गई थी । महाजन दूसरी कुर्सी पर मौजूद था । हाथ-मुँह धोकर मोना चौधरी खुद को कुछ हद तक फ्रेश महसूस कर रही थी ।

एक पुलिस वाले ने टेबल पर खाना रखा । दो पुलिस वाले पास पहुँचे । उसमें से एक ने पूछा ।

“मैडम ! रहस्यमय जीव को मार दिया ?”

मोना चौधरी ने उसे देखा और शांत स्वर में कह उठी ।

“ये बात आपको इंस्पेक्टर दुलानी से पूछनी चाहिए । जो भी किया है उनकी योजना पर किया गया ।”

“इंस्पेक्टर साहब से पूछा था ।” दूसरा पुलिस वाला कहने लगा, “कि इस बारे में सुबह उठने के बाद बात करूँगा । आपको देखा तो सोचा आप से ही मालूम कर ले कि... ।”

“दुलानी साहब ने मना कर रखा है कि किसी से कुछ नहीं बताना । जो भी पूछना हो उनसे ही पूछना ।”

दोनों पुलिस वाले मन मारकर चले गये ।

मोना चौधरी ने खाना शुरू कर दिया । महाजन लंच ले चुका था ।

“बेबी !” महाजन की नजरें मोना चौधरी पर थी, “वहाँ पर क्या हुआ ?”

“शायद ठीक नहीं हुआ ।”

“क्या मतलब ?”

“मेरे ख्याल में मेरी सोच सफल नहीं हो सकी ।” मोना चौधरी ने महाजन पर निगाह मारी ।

महाजन की सवालिया निगाह मोना चौधरी पर टिकी रही ।

मोना चौधरी ने रहस्यमय जीव के होश आने की बात बताकर कहा ।

“अब महसूस हो रहा है कि इंस्पेक्टर दुलानी अपनी जगह पर ठीक था । रहस्यमय जीव को खत्म कर देना ही बेहतर था ।” मोना चौधरी के स्वर में अफसोस के भाव थे, “मुझे लग रहा है कि अब वो कभी भी अपने जल्लादी रूप में आकर लोगों को मारना शुरू कर देगा ।”

“ऐसा हुआ तो बच नहीं सकेगा । पुलिस वालों की असंख्य गोलियों से वह कब तक बचा रहेगा ।” महाजन के होंठ भिंच गये ।

मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा । सोच में डूबे लंच करती रही । महाजन ने एक साथ कई घुट भरे और व्याकुल नजरों से इधर-उधर देखते हुए बोला ।

“मुझे अफसोस हो रहा है कि हमारी सारी मेहनत बेकार गई ।

“मेहनत बेकार जाने का मुझे अफसोस नहीं हो रहा ।” मोना चौधरी ने कहा, “मुझे तो यह महसूस हो रहा है कि वो रहस्यमय जीव हमारे कब्जे में था । हमारे रहमों-करम पर था । उसे खत्म करने का मौका था हमारे पास ।”

“दुलानी से यह मत कह देना ।” महाजन गंभीर था, “वो तो पहले से ही हमसे खार खाया हुआ है । तुम्हारे मुँह से ये सुनते ही डंडा उठाकर हमारे सिर पर मार देगा । वो सच में बहुत परेशान है ।”

“सारे हालातों की उसे जानकारी तो देनी ही है ।”

“हमें यही रहना है ?”

“नहीं ! गौरी के यहाँ जाकर आराम करेंगे । पुलिस वालों से कह देना कि हम गाँव में हैं । दुलानी को बता दे, जब वो नींद से उठे । मेरे ख्याल में दुलानी हमसे अवश्य बात करना चाहेगा ।”

महाजन होंठ भींचें मोना चौधरी को देखने लगा ।

उसके बाद दोनों सीधा गाँव में गौरी के यहाँ पहुँचे और थकान से भरे नींद में जा डूबे ।

शाम के साढ़े पाँच बजे हरीश दुलानी ने ही आकर उन्हें नींद से उठाया ।

गौरी ही दुलानी को उनके पास लेकर आई थी ।

“तुम !” महाजन ने उसे देखते ही कहा ।

मोना चौधरी ने उसे देखा, परंतु कहा कुछ नहीं ।

“चाय लाऊँ, मेमसाहब ?” गौरी ने पूछा ।

मोना चौधरी की सहमति से सिर हिलाने पर गौरी बाहर निकल गई ।

दुलानी उनके सामने ही नीचे बिछी चादर पर बैठता हुआ मोना चौधरी से बोला ।

“वहाँ क्या हुआ, तुमने उसे होश आते देखा ? सब ठीक रहा ?”

क्षणिक खामोशी के बाद मोना चौधरी ने बुझे मन से कहा ।

“मिस्टर दुलानी ! सुनकर तुम्हें गुस्सा तो आयेगा लेकिन बता देना जरूरी है कि मैं अपने काम में सफल नहीं हो सकी ।”

“क्या मतलब ?” दुलानी चौंका । उसकी आँखें सिकुड़ गईं ।

“होश में आने के बाद रहस्यमय जीव गुस्से से भर उठा था ।” मोना चौधरी ने कहा, “वो आस-पास पड़ी चीजों को तोड़ने लगा । क्रोध में चीख रहा था । वो यही सोच रहा होगा कि उसके साथ जो किया गया, क्यों किया । अच्छा नहीं किया गया ।”

“फिर ?”

“फिर गुस्से में पाँव पटकने वाले ढंग में वो आगे को दूर तक जाते हुए नजरों से ओझल हो गया ।”

कुछ पल हरीश दुलानी और मोना चौधरी एक-दूसरे को देखते रहे ।

“तुम्हारा मतलब की सारी कोशिश बेकार हो गई ।” दुलानी शब्दों को चबाते कह उठा ।

“ऐसा ही समझ लो ।”

“अगर तुम मेरी बात मान लेती कि उसे खत्म कर दिया जाये तो उस स्थिति में अब तुम्हें कैसा लग रहा होता ?”

“अच्छा लगता ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा ।

“तुमने हमारे लिए खतरा और बढ़ा दिया है, मोना चौधरी !” दुलानी गुर्रा उठा, “तुम... ।”

“खतरा पहले भी था और अब भी है ।” मोना चौधरी कह उठी, “तुम ये कह सकते हो कि खतरे को खत्म करने का बहुत अच्छा मौका था जिससे कि मैंने अपनी कोशिश से गँवा दिया ।”

दुलानी दाँत पीस उठा ।

“अब जो खून-खराबा होगा ।” दुलानी खा जाने वाले स्वर में बोला, “उसके बारे में ऊपर वालों को जवाब कौन देगा ।”

मोना चौधरी ने मुँह फेर लिया ।

“जब मेरे ऑफिसर मेरे से इस बारे में पूछेंगे तो मैं चुप नहीं रह सकता । मुझे जवाब में कुछ-न-कुछ बोलना पड़ेगा और मेरे पास कहने को कुछ होगा नहीं ! सच बात तो यह है कि तुम लोगों ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा ।”

“दुलानी, यार... !” महाजन ने कहना चाहा ।

“तू ।” हरीश दुलानी ने खा जाने वाली निगाहों से महाजन को देखा, “तू अपना मुँह मत खोल । सारी गड़बड़ तेरे कारण हुई है । तूने मुझे अपनी बातों में फँसा लिया, जब मैं मोना चौधरी को ऐसा करने से रोकने की कोशिश कर रहा था ।”

“तू बच्चा था, जो फँस गया ।” महाजन उखड़ा ।

“बेवकूफ था जो फँस गया ।”

“तब तो तुझे पुलिस की वर्दी नहीं पहननी चाहिए ।”

“पहनी हुई थी ये वर्दी । अब तो उतरी ही समझो ।” दुलानी जैसे गुस्से से बाहर होता जा रहा था, “तुम लोग यहाँ से चलते बनोगे । उसके बाद जो मेरा हाल होगा, उसकी तो तुम दोनों को खबर भी नहीं लगेगी की... ।”

“खबर लेते रहेंगे तेरी ।” महाजन तीखे स्वर में कह उठा ।

“कोई और कील बची है तो वो भी ताबूत में ठोक दो । कसर मत छोड़ देना बाकी ।”

“कील तो दूर की बात, अब तो तू उंगली लगाने के काबिल भी नहीं रहा । तेरा काम हो गया लगता है ।”

दुलानी ने खत्म कर देने वाली नजरों से महाजन को देखा ।

उखड़े अंदाज में महाजन ने घुँट भरा ।

तभी गौरी ने भी भीतर प्रवेश किया और गिलासों में चाय रखकर चली गई ।

“चाय पी ले । ठंडी हो जाएगी ।” महाजन ने मुँह बनाकर कहा ।

लेकिन दुलानी के गुस्से में कोई कमी नहीं आई ।

“मिस्टर दुलानी !” मोना चौधरी ने भिंचें होंठों से गंभीर स्वर में कहा, “मेरा यहाँ से जाने का इरादा नहीं है ।”

दुलानी की कड़वी निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी ।

“मोना चौधरी ! तुमने जितना बरबाद करना था, वह कर लिया; और कुछ नहीं बचा ।”

“बचा है ।” कहते हुए मोना चौधरी के स्वर में दरिंदगी भर आई थी ।

“क्या ?” हरीश दुलानी के दाँत भिंच गये ।

“मेरी एक कोशिश बेकार हो गई, दूसरी कोशिश बेकार नहीं जायेगी । ये वादा है मेरा ।”

“दूसरी कोशिश ?”

“रहस्यमय जीव को खत्म करूँगी मैं ।”

हरीश दुलानी जोरों से चौंका ।

“तुम रहस्यमय जीव को खत्म करोगी !”

“इसमें हैरान होने की क्या बात है ?” मोना चौधरी के शब्दों का वही अंदाज था ।

“तुम... तुम तो बचाना चाहती थी उसे कि... ।”

“वो पहले की बात है ।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी, “पहले मैं अपनी एक कोशिश करके उसे बचाना चाहती थी । मेरी कोशिश वापस मेरे मुँह पर लगी । लेकिन इस बात का अफसोस नहीं है । दुख ये है कि उसे खत्म करने का हाथ आया मौका मैंने गँवा दिया ।”

“वक्त निकल जाने के बाद मेरी बात समझ में आई । पहले मैंने कितना कहा, परंतु तुम दोनों मुझे पागल समझते रहे ।” दुलानी ने दाँत भींचते हुए कहा ।

“एक बात और स्पष्ट हो गई । महाजन ने घूँट भरकर धीमे स्वर में कहा ।

“क्या ?” दुलानी की आँखें सुकड़ीं ।

“यही कि हमने तेरे को गलत समझा । तू पागल नहीं है ।”

“महाजन, मुझे ऐसे मजाक पसंद नहीं है !” दुलानी का सुलगता स्वर कठोर हो गया ।

महाजन ने जवाब में कुछ नहीं कहा । वह मन-ही-मन रहस्यमय जीव को लेकर व्याकुल था ।

हरीश दुलानी की निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी ।

“अभी इस काबिल हूँ मैं कि उसे खत्म कर सकूँ ।”

“तुम्हारी काबिलियत पर शक नहीं है ।” मोना चौधरी ने उसकी कलाई पर निगाह मारकर गंभीर स्वर में कहा, “लेकिन अपनी टूटी कलाई की वजह से तुम ठीक से इस मामले को कमांड नहीं कर पाओगे । सिर्फ आदेश देने से ही काम नहीं चलेगा । अपने साथी पुलिस वालों के साथ फील्ड में रहना भी जरूरी है तभी उनसे अच्छे ढंग से काम लिया जा सकता है ।”

जवाब में दुलानी दाँत पीसकर मोना चौधरी को देखने लगा ।

“विश्वास करो, जैसे भी हो मैं उस पर काबू पा लूँगी । जिंदा नहीं रहेगा । उसे खत्म कर दूँगी ।” मोना चौधरी शब्दों को चबाते हुए कह उठी, “सब पुलिस वाले जानते हैं कि जो भी हो रहा है तुम्हारे कहने पर ही हो रहा है । ऐसे में बेशक उसे मैं खत्म करूँ लेकिन वो तुम्हारा किया-धरा ही माना जायेगा । इससे पहले कि वह रहस्यमय जीव पहले से ज्यादा लाशें गिरा सके, मैं उसे खत्म कर देने की पूरी कोशिश करूँगी । अगर विश्वास हो तो उसे खत्म करने का मामला भी मेरे हवाले कर दो ।”

“तुम्हारे हवाले क्यों ।” दुलानी तीखे स्वर में कह उठा, “मेरे पास ऐसे कई पुलिसवाले हैं जो मेरे आदेश पर मेरी देख-रेख में सब कुछ संभालकर रहस्यमय जीव को खत्म कर सकते हैं ।”

“मैंने यह नहीं कहा कि पुलिस वाले यह काम नहीं कर सकते । कोई शक वाली बात नहीं है ।” मोना चौधरी एक-एक शब्द पर जोर देते हुए गंभीर स्वर में कह उठी, “लेकिन मेरे से जो गलती हुई है, वह सुधारना चाहती हूँ । मेरे ही कारण रहस्यमय जीव हाथ आकर निकल गया । अब मैं ही उसे खत्म करना चाहूँगी ।”

दुलानी दाँत भिंचें रहा । मोना चौधरी को देखता रहा । बोला कुछ नहीं ।

तभी गौरी ने भीतर प्रवेश किया और कह उठी ।

“ओह, मेम साहब ! चाय पी ली ? यह तो ठंडी हो रही है ।”

सबकी नजरें चाय के प्याले की तरफ गई ।

मोना चौधरी ने चाय का प्याला उठा लिया ।

महाजन ने घूँट भरकर हरीश दुलानी को देखा ।

“चाय पी ले । वह मन से बनाकर लाई है ।”

दुलानी ने चाय का प्याला उठा लिया ।

“मैं गर्म कर देती हूँ ।” गौरी कह उठी, “ये तो ठंडी हो गई ।”

“गौरी !” मोना चौधरी कह उठी, “खाना हम यहीं खाएँगे ।”

“ये पुलिस वाले साहब जी भी खाना ।”

“नहीं !” महाजन ने सिर हिलाया, “मैं और बेबी ही खाएँगे ।”

दुलानी ने महाजन को घूरा । कहा कुछ नहीं ।

“खाना तैयार हो रहा है ।” गौरी बोली, “एक घंटे में ला दूँगी ।” गौरी बाहर निकल गई ।

कुछ पलों की खामोशी रही फिर दुलानी ने परेशान-सी नजरों से मोना चौधरी से कहा ।

“तुम उसे खत्म करोगी ?”

“मतलब कि तुम्हें एतराज नहीं कि मैं रहस्यमय जीव को खत्म करूँ ।”

“मोना चौधरी !” हरीश दुनिया ने उसकी आँखों में झाँका, “मैं यह मामला खत्म हुआ देखना चाहता हूँ और चाहता हूँ कि वह अब किसी मासूम निर्दोष की जान न ले सके ।”

“मैं यह तो नहीं कहती कि वह किसी की जान नहीं ले पायेगा ।” मोना चौधरी होंठ भिंचें कह उठी, “लेकिन इतना अवश्य यकीन दिला देती हूँ कि अब वह पहले जितने लोगों की जान नहीं ले सकेगा । उससे पहले ही उसे खत्म कर दूँगी । उसे किसी काबिल नहीं छोड़ूँगी ।”

“बेबी, वह खतरनाक है ! वहशी है । जल्लाद है । ताकतवर है ।” महाजन ने असहमति भरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा, “इतना भी आसान नहीं है उसे खत्म करना, जितनी आसानी से तुमने यह बात कह दी ।”

“मैं जानती हूँ, उसे मारना आसान नहीं । लेकिन उसे अब ज्यादा देर जिंदा नहीं रहने दूँगी ।”

उनके बीच चुप्पी ही छाई रही मिनट भर तक ।

“ये सब तुम कैसे करोगी ?” हरीश दुलानी ने पूछा । वह सोचो मैं था ।

“अभी मैंने तय नहीं किया कि यह सब मुझे कैसे करना है ।” मोना चौधरी ने कहा, “क्योंकि पहले मुझे इस बात का पक्का नहीं था कि तुम यह काम मेरे हवाले करने के लिए तैयार होगे ! अब तुम्हारी हाँ के पक्ष में कुछ सोच सकूँगी । रात तक तय कर लूँगी । लेकिन अब वक्त नहीं है । एक-सवा एक घंटे में अंधेरा हो जायेगा । पुलिस की गाँव में क्या पोजीशन है ?”

“गाँव में पहले की ही तरह पुलिस फैली है । प्रवेश करने वाले रास्तों पर भी और भीतर खास-खास जगहों पर भी ।”

“ठीक है ! पुलिस वालों को रोजमर्रा की तरह इकट्ठे होकर गश्त पर भेजो । जहाँ सड़क के किनारे डेरा जमा रखा है, वहाँ पर पर्याप्त संख्या में पुलिस वालों को रखना । इस तरह कि वह आपस में ज्यादा-ज्यादा दूर न रहे । उनमें ज्यादा फासला नहीं होगा तो रहस्यमय जीव किसी पर हमला करने से पहले दस बार सोचेगा ।”

“ये सारा इंतजाम मैं अभी वापस जाकर कर देता हूँ । ऐसा इंतजाम हुआ ही पड़ा है, कुछ फेरबदल करना पड़ेगा ।” दुलानी के चेहरे पर बेचैनी उभरी, “उस जमीन की तरफ भी पुलिस वालों को भेजना है ?”

“नहीं ! किसी को नहीं भेजना । सड़क से उस तरफ सिर्फ कुछ आगे तक पुलिस वालों को पहरे पर लगा देना ।”

“तो क्या उस तरफ हम नहीं जायेंगे रात को ?”

“नहीं, हमारे जाने की जरूरत नहीं !” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “अब हमें उसकी तलाश नहीं है । उसे हमारी तलाश होगी । क्योंकि वह हमारी जान लेना चाहता होगा । खासतौर से मेरी । वो समझ चुका है, उसे जाल में फँसाकर उसके साथ जो किया गया, वो मैंने किया । बेहोशी के अंतिम वक्त में मैं उसके साथी थी । ऐसे में वह खुद ही मेरी तलाश में हमारे पास आयेगा ।”

महाजन ने गहरी साँस लेकर घूँट भरा ।

हरीश दुलानी ने बेचैनी से पहलू बदला ।

“तो रात भर हम कहाँ रहेंगे ?”

“वही जहाँ से तुम आ रहे हो । सड़क किनारे जहाँ बाकी पुलिस वाले होंगे । वहीं रहकर उसका इंतजार या फिर इस खबर के मिलने का इंतजार करेंगे कि किधर उसे देखा गया है ?” कहाँ उसने लोगों को मारा है ?” कहते हुए मोना चौधरी के चेहरे पर दरिंदगी नाच उठी, “तुम लोगों के पास गन है ?”

“हाँ ! दस-बारह गनें तो होंगी ही ।” कहते हुए दुलानी ने सिर हिलाया ।

“ठीक है ! तुम जाकर रात की गश्त और पहरे का इंतजाम करो । हम दो घंटे में वहीं आ रहे हैं ।”

रात के दस बज रहे थे । दुलानी ने पुलिस के डेरे के पास और दूर भी पुलिस की निगरानी लगा दी थी । गश्त के लिए पुलिस कारें फैल चुकी थीं । डिनर का काम कब का निपट चुका था । गाँव का घेरा डाले पुलिस वालों को वहीं खाना पहुँचा दिया गया था । दुलानी ने खासतौर से सबको यही कहा था की रहस्यमय जीव के प्रति पहले से ज्यादा सतर्क रहें । पुलिस वालों के पूछने पर हरीश दुलानी ने यही कहा था कि वह रहस्यमय जीव को खत्म करने जा रहे थे कि अचानक दूर उस जैसे कई रहस्यमय जीव आते दिखाई दिए, जो कि चीख रहे थे । शायद वे अपने साथी को बचाने आ रहे थे । ऐसे में उन्हें अपनी जान बचाने के लिए भाग जाना पड़ा । कठिनता से वे बचे । ऐसा झूठ बोलने के अलावा दुलानी के पास दूसरा रास्ता भी नहीं था । इसके सिवाय कहता भी तो क्या कहता ।

जो भी हो, कई पुलिस वालों को उसका जवाब पसंद नहीं आया था । लेकिन वह दुलानी को कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थे । हरीश दुलानी उनका ऑफिसर था । इस केस में इंचार्ज था । अब वह मोना चौधरी और महाजन के साथ था ।

महाजन और दुलानी कुर्सी पर बैठे थे । मोना चौधरी पास ही कमर पर हाथ रखे टहल रही थी ।

दूर पुलिस वालों की वर्दियाँ नजर आ रही थीं  कभी-कभार बातों का मध्यम स्वर सुनाई दे जाता ।

पास ही टेबल पर दो ऑटोमैटिक गनें रखी थी । वह ऐसी गनें थी कि शुरू हो जाने के बाद दो ही स्थिति में रुकती थी । या तो उसके ट्रेगर पर से दबाव हटा दिया जाये, या फिर उसके जहरीले छर्रे खत्म हो जाये ।

यानी कि सामने जो भी हो किसी भी हालत में उसका बच पाना संभव नहीं ।

वे पूरी तरह तैयार थे रहस्यमय जीव का मुकाबला करने के लिए ।

दुलानी ने टेबल पर रखे गिलास में से पानी का घूँट भरा और टहलती हुई मोना चौधरी से कहा ।

“मुझे ये समझ में नहीं आ रहा है कि हम गनें लेकर उसकी तलाश में उस तरफ क्यों नहीं गये, जहाँ उसके मिलने के चांसेस है । यहाँ बेकार में बैठे वक्त खराब कर रहे हैं ।”

मोना चौधरी ठिककी । दुलानी ने देखा ।

तभी महाजन कह उठा ।

“कभी तो आराम करने दिया कर । हर समय दौड़ते रहने की ही सोचता है ।”

“दुलानी साहब !” मोना चौधरी बोली, “अब उस तरफ जाने में हमें भी खतरा है ।”

“वो क्यों ?”

“रहस्यमय जीव इस वक्त बहुत गुस्से में है । ताकतवर तो है ही । ऐसे में वो हम पर हमला करेगा, तो हम खुद को बचा नहीं सकेंगे । वो अब घात लगाकर हम पर हमला करेगा । सोच-समझकर क्रूरता भरे ढंग से हमें मारने की सोचेगा । वो जानता है कि हम रातों को अक्सर उस तरफ जाते हैं तो हो सकता है वह हमारे इंतजार में कहीं मौजूद हो, जैसे कि हम उसके इंतजार में यहाँ बैठे हैं । हर तरफ पुलिस वाले भी घूम रहे हैं, उसके इंतजार में ।”

दुलानी कुर्सी के हत्थे पर हाथ मारते हुए उठा ।

“ये मेरी जिंदगी का सबसे कठिन और अजीब-सा केस है ।

“हम तुम्हारा साथ देने आ गये ।” महाजन मुस्कराकर बोला, “वरना जाने तुम्हारा क्या होता ।”

हरीश दुलानी ने उसे घूरा ।

“अगर तुम लोग न आते तो अब तक मैंने विचित्र जीव का मामला निपटा देना था ।” दुलानी ने सख्त स्वर में कहा ।

“सही कह रहे हो । या तो तुम निपट जाते या वो निपट जाता । कुछ तो हुआ ही होता ।”

“तुम उलटी बातें करना बंद नहीं करोगे ।”

“मैं ठीक ही कह रहा हूँ । तुम्हारे समझने का फेर है ।” कहने के साथ ही महाजन ने घूँट भरा ।

मोना चौधरी की निगाह हर तरफ जा रही थी । वहाँ रोशनी के लिए गैस लाइटों का भरपूर प्रबंध था । दूर तक पर्याप्त घेरे में रोशनी फैली थी ।

“तुम्हारा क्या ख्याल है मोना चौधरी !” दुलानी बोला, “वो आयेगा ?”

“मेरा ख्याल में तो उसे अवश्य आना चाहिए ।” मोना चौधरी पक्के स्वर में कह उठी, “वो इस वक्त क्रोध में भरा होगा । क्योंकि उसकी इच्छा के खिलाफ धोखे से उसे पकड़कर उसकी छाती पर चीर-फाड़ की गई । उसकी वजह से गोली का जख्म उसे और भी पीड़ा पहुँचा रहा होगा । बदले की भावना से वो जल रहा होगा । जब तक वो वहशी ढंग से दो-चार को मार नहीं देता, तब तक उसे कतई चैन नहीं मिलेगा । वो कभी भी आ सकता है और कभी भी उसके कहीं होने की खबर आ सकती है ।”

दुलानी ने दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया ।

“सिर पर पहाड़ गिर गया क्या ?” महाजन बोला ।

“तुम दोनों ने मेरी बात न मानकर उसे खत्म नहीं किया । यही सबसे बड़ी भूल कर दी ।”

महाजन गहरी साँस लेकर रह गया ।

उन्हें इंतजार था रहस्यमय जीव के आने का ।

रात बीत गई ।

दिन का उजाला फैलने लगा ।

वहाँ सब कुछ शांत था । रहस्यमय जीव के बारे में कोई शोर नहीं उठा । रात भर के जगे होने के कारण उनकी आँखें नींद से भारी हो रही थी ।

“तुम तो कह रही थी कि वो रात को अवश्य आयेगा ।” दुलानी ने नींद से बोझिल पलकों से मोना चौधरी को देखा ।

“हाँ, कहा था ! आया होगा । यहाँ नहीं तो कहीं और ।” मोना चौधरी ने शब्दों को चबाकर कहा ।

हरीश दुलानी की आँखें सिकुड़ गईं ।

“कहीं और ?”

“हाँ ! कटेश्वर बीच पर या कहीं भी ।” मोना चौधरी ने उसे देखा ।

“बीच पर भी पुलिस वाले हैं । कुछ होता तो खबर आ जाती । कहीं और वो आया होता तो... ।”

“अभी तो ठीक से दिन भी नहीं निकला । खबर आ जायेगी । अवश्य कहीं पर लाशें बिछा गया होगा ।” कहते हुए मोना चौधरी का चेहरा कठोर होता चला गया, “वो बहुत गुस्से वाला जीव है ।”

दुलानी कुछ नहीं कह सका ।

“बेबी !” महाजन गंभीर स्वर में कह उठा, “हो सकता है वो इधर आया हो । लेकिन इधर-उधर घूमते पुलिस वालों को देखकर समझ गया हो कि यहाँ कुछ करने से उसे नुकसान हो सकता है ।”

“ऐसा ही हुआ होगा और वो कहीं और चला गया होगा ।” मोना चौधरी ने महाजन को देखा ।

“मालूम नहीं !” महाजन के होंठों से निकला, “इस मुसीबत से कैसे छुटकारा मिलेगा ।”

मोना चौधरी की निगाह टेबल पर रखी गनों पर गई और खतरनाक स्वर में कह उठी ।

“उसके सामने आने की देर है । वो दिखा नहीं कि छुटकारा मिल गया ।”

महाजन, मोना चौधरी के चेहरे पर खतरनाक भावों को देखने लगा ।

“मैं अभी पुलिस वालों को इधर-उधर दौड़ाकर रहस्यमय जीव के बारे में खबर मँगाता हूँ ।” इसके साथ ही दुलानी पुलिस वालों की तरफ बढ़ गया ।

सुबह के आठ बज रहे थे ।

हरीश दुलानी और महाजन उलझन में घिरे चुप-चुप से थे । दुलानी बेचैनी से भरा कभी पुलिस वालों के पास जाता तो कभी उनके पास आ जाता । उसके भेजे पुलिस वाले दूर-दूर तक होकर वापस आ गये थे । लेकिन ऐसी कोई खबर नहीं मिली की रहस्यमय जीव ने रात को कहीं कुछ किया हो ।

ये हैरानी वाली बात थी ।

हर रात वह कुछ करता था, परंतु बीती रात उसकी हरकत की कोई खबर नहीं मिली । खबर न मिलने की वजह से मोना चौधरी रह-रहकर परेशान हो उठती थी । उसे पूरा विश्वास था कि बीती रात वह पहले से ज्यादा आक्रमक बनकर सामने आयेगा । होंठ भिंचें मोना चौधरी ने महाजन से कहा ।

“रहस्यमय जीव की कोई हरकत न मिलना हैरान कर देने वाली बात है ।”

“मुझे तो खुद ही समझ में नहीं आ रहा कि... ।”

“मेरे खयाल में तो उसने अवश्य कहीं कुछ किया होगा ।” मोना चौधरी ने विश्वास भरे स्वर में कहा, “हो सकता है, वो रात को इस तरफ आया ही न हो कि यहाँ खतरा है और कहीं दूर जाकर कई लोगों की जान ले ली हो । शायद देर-सवेर में उसकी रात की खबर मिल जाये ।”

महाजन सोच भरी निगाहों से मोना चौधरी के कठोर चेहरे को देख रहा था ।

“क्या सोच रहे हो ?” मोना चौधरी की निगाह महाजन के चेहरे पर जा टिकी ।

“अजीब-सी बात ही सोच रहा हूँ ।” महाजन होंठ सिकोड़े कह उठा ।

“क्या ?”

“हमने उसकी छाती में थोड़े से हिस्से में चीरा देकर गोली निकाली । दवा डालकर जख्म को बंद कर दिया । ये भी तो हो सकता है कि जख्म बिगड़ गया हो । जहर फैल गया हो । वो हिलने की भी हालत में न हो । मरने के करीब हो ।

“हाँ !” कुछ सोचकर मोना चौधरी, महाजन को देखते सिर हिलाकर कह उठी, “ऐसा भी हो सकता है ।”

“तब तो हम उसे आसानी से ढूँढ़ सकते हैं कि वह कहाँ छिपा हो सकता है । तुमने उसे खास दिशा की तरफ जाते देखा भी था । उधर ही कहीं उसने रहने का ठिकाना बना रखा होगा । हम उधर चले तो... ।”

“नहीं !” मोना चौधरी ने दृढ़ता भरे अंदाज में इंकार किया, “मैं किसी भी तरह का अब रिस्क नहीं लूँगी । वो बहुत सख्त जान है और आसानी से मरने वाला नहीं । उसके सामने कोई पहुँच गया तो मरते-मरते भी वो उसे खत्म कर देगा । फिर ये भी तो पक्का नहीं कि वास्तव में उसकी तबीयत बिगड़... ।”

“बीती रात उसके द्वारा कुछ न किया जाना तो इसी तरफ इशारा करता है ।”

“वो ।” मोना चौधरी एकाएक कह उठी, “वो चैन से बैठने वालों में से नहीं है । वो गुस्से वाला एक पागल जल्लादी जीव है । अगर उसे कुछ नहीं हुआ तो फिर तो लाशें गिराने आयेगा । एक रात वो नहीं आया तो हमें उसके बारे में नये-नये ख्याल नहीं बनाने चाहिए । वो आने वाली रात अवश्य आयेगा । हमें हर पल सोचकर सतर्क रहना है कि वह आ रहा है । आ रहा है । एक ही बार में हम सब को खत्म करने की सोचकर बढ़ा चला आ रहा है । रात में वो नहीं आया तो दिन में कभी भी आ सकता है । वो कोई भी बात भूलने वालों में से नहीं है । वो बदला लेने... ।”

“अगर न आया तो ?” महाजन कह उठा ।

“अभी इंतजार करेंगे । मुनासिब इंतजार करने के बाद भी वो रहस्यमय जीव न आया । उसकी कोई हरकत न आई तो फिर उसकी तलाश में उधर ही जायेंगे ,जिधर दूर मैंने उसे जाते देखा था ।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी ।

पूरा दिन रहस्यमय जीव के वहाँ पहुँचने या उसकी खबर मिलने का इंतजार होता रहा । पुलिस वाले हर तरह की स्थिति से निपटने के लिए सतर्क थे ।

अपने कामों के दौरान भी पुलिस वाले ज्यादा बातचीत नहीं कर रहे थे । रहस्यमय जीव के बारे में ही सोच रहे थे कि वह किसी भी वक्त नजर आ सकता है । कुछ भी हो सकता है । लेकिन उसका मुकाबला करते वक्त क्या हालात सामने आयेंगे ।

दिन बीत गया ।

रहस्यमय जीव नहीं आया । न ही उसकी कोई खबर सुनने को मिली ।

पुलिस वाले रहस्यमय जीव के न आने, हमला न करने की वजह से परेशान थे । उलझन में घिरते जा रहे थे कि रहस्यमय जीव ने आना बंद क्यों कर दिया ? जवाब भला किसके पास था ।

रात का अंधेरा फैल गया ।

हरीश दुलानी की परेशानी का तो किनारा ही नजर नहीं आ रहा था । उसे विश्वास था कि मोना चौधरी जीव को खत्म कर देगी । एक-आध दिन सारा मामला समाप्त हो जाना था, परंतु ये सब तब होता अगर रहस्यमय जीव आया होता । या उसके कहीं होने की खबर मिल जाती । लेकिन उसके बारे में तो खबरें मिलनी बंद हो गई थी । दुलानी को अपनी सोचें मिट्टी में मिलती लगने लगी थी कि वह कब तक यहाँ पड़े रहेंगे । रहस्यमय जीव एकाएक कहाँ गायब हो गया ?

डिनर के बाद हरीश दुलानी ने मोना चौधरी से बात की ।

“मुझे समझ नहीं आता कि रहस्यमय जीव आया क्यों नहीं ? उसकी कोई खबर... ?”

“दुलानी साहब !” मोना चौधरी गंभीर स्वर में कह उठी, “वो बीती रात को नहीं आया तो आज रात आएगा । मैं पहले भी कह चुकी हूँ कि वो चैन से बैठने वाला नहीं है । ऐसा भी नहीं कि दोबारा जाल में फँसने के डर से यहाँ से कहीं दूर भाग गया हो । जो प्रतिशोध की भावना मन में रखते हैं, वो डरकर भागा नहीं करते ।”

“मतलब कि वो आज रात आयेगा ।

“पक्का ।” मोना चौधरी के दाँत भिंच गये, “वो आज अवश्य आयेगा । पुलिस वालों को ज्यादा सावधान रहने को कहो ।”

“कल की तरह न आया तो ?”

मोना चौधरी ने दुलानी ने चेहरे पर निगाह मारी ।

“अपने पर काबू रखो । इस तरह परेशान होने से काम नहीं चलेगा । बच्चों की तरह सवाल मत पूछो ।”

हरीश दुलानी गहरी साँस लेकर रह गया । उसने महसूस किया कि वह वास्तव में ज्यादा परेशान हो रहा है ।

“दुलानी !” एकाएक महाजन बोला, “मैं तुम्हें बताता हूँ कि रहस्यमय जीव क्यों नहीं आया ।”

“चुप रहो तुम ।” दुलानी ने उसे खा जाने वाली निगाहों से देखा, “मालूम है मुझे कि तुम कहोगे दूसरे ग्रह से उन्हीं लोगों का अंतरिक्ष यान वापस आया और अपने साथी को लेकर वापस अपने ग्रह की तरफ चला गया ।”

महाजन ने दुलानी को देखा और मुस्कराकर मुँह फेर लिया ।

रहस्यमय जीव का मुकाबला करने की पूरी तैयारी थी ।

पुलिस वाले बेहद सतर्क थे और किसी प्रकार की आहट उठने पर उन्हें यही आदेश होता कि रहस्यमय जीव आ गया । इंतजार में रात बीत गई । दिन का उजाला फैल गया ।

रहस्यमय जीव नहीं आया ।

“बेबी !” महाजन गंभीरता और दृढ़ता भरे स्वर में कह उठा, “तुम्हें मेरी बात मान लेनी चाहिए कि हमारे गोली निकालने के दौरान उसकी छाती के जख्म में हमारे औजारों से या पहले से ही भीतर फँसी गोली की वजह से जहर फैल गया होगा । उस स्थिति में वो या तो मर गया होगा या मरने वाला होगा ।”

महाजन पर नजरें टिकाये मोना चौधरी ने होंठ भींच लिए ।

“वो हर रोज आ रहा था । कोई भी रात खाली नहीं गई । अब नहीं आ रहा जबकि तुमने कहा था कि होश में आते ही वह गुस्से से पागल हो उठा था । ऐसे में तो उसे और भी भयानक ढंग से हमला करना चाहिए । ये तुम्हारा भी कहना था । उसने ऐसा इसलिए नहीं किया कि शरीर में जहर फैलने से उसकी हालत खराब हो चुकी है । वो चलने-फिरने के काबिल नहीं रहा । मर गया या फिर मर रहा है वो ।”

मोना चौधरी में दाँत भिंचे रहे ।

“तुम जवाब क्यों नहीं देती बेबी ?”

वो ऐसा कमजोर जीव नहीं है महाजन कि शरीर में फैलते जहर से उसके कदम रुक जाये ।

“क्या मतलब ?”

“बीमार होने की स्थिति में भी वो आता । क्योंकि वो जब प्रतिशोध से सुलगता है तो अपने पर काबू नहीं रख पाता । उसके पागलपन को मैं अच्छी तरह महसूस कर चुकी हूँ ।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी ।

“तो वह आया क्यों नहीं ?”

मोना चौधरी कुछ पलों तक खामोश रही, फिर गंभीर और उलझे स्वर में कह उठी ।

“ये बात मानने का दिल नहीं करता । ऐसा हो जाना उसकी आदत के विपरीत है । शायद डरकर या किसी और वजह से उसने इधर आना छोड़ दिया हो । अपनी जगह से निकलना बंद कर दिया हो या फिर कहीं दूर चला गया हो ।”

“ऐसा हो सकता है ।” सोच भरे स्वर में कहते हुए महाजन की आँखें सिकुड़ गईं, “वो बेशक कितना भी ताकतवर, कितना भी शक्तिशाली या कितना भी जिद्दी सही लेकिन डर हमेशा दिल के पास ही रहता है । वो कभी भी उछाल मार देता है । हो सकता है, एक बार हमारी कैद में आकर छूटने के पश्चात उसके दिल में डर बैठ गया हो कि कहीं हम उसे फिर न पकड़ ले । वो वहाँ से भाग गया हो ।”

“ऐसा है तो देर-सवेर में उसके कहीं पर दिखाई दे जाने की खबर अवश्य मिलेगी ।” मोना चौधर कह उठी ।

महाजन ने घूँट भरा और गंभीर स्वर में कह उठा ।

“दो रातें बीत गई हैं । मेरे ख्याल में हमें उसकी तलाश में निकल जाना चाहिए बेबी ! वो... ।”

“एक रात और देख लेते हैं ।” मोना चौधरी ने महाजन की आँखों में झाँका, “मैं किसी तरह का खतरा नहीं उठाना चाहती । वो आने वाली रात को नहीं आया । उसकी कोई खबर न मिली, तो कल उसकी तलाश में निकलेंगे ।”

तभी हरीश दुलानी इस तरफ आता दिखाई दिया । वह गुस्से से परेशान और झल्लाया हुआ था ।

“दुलानी आ रहा है ।” महाजन ने गहरी साँस लेकर कहा, “तुम ही बात करना उससे ।”

वह दिन भी बीत गया ।

रात आ गई ।

आज रात सब सतर्क थे । यकीन था कि रात को रहस्यमय जीव अवश्य आयेगा । रात सरकती रही । सबको यही लगता कि जैसे रहस्यमय जीव पास आता जा रहा है ।

परंतु दिन निकलने के साथ ही उनके हौसले पस्त होने लगे । उन्हें महसूस होने लगा कि वक्त खराब किया जा रहा है । रहस्यमय जीव जाने कहाँ गुम हो गया है । वह अब नहीं आयेगा ।

मोना चौधरी कुछ परेशान, कुछ उलझन में घिरी थकी-सी दिखाई दे रही थी ।

तीसरी रात भी इंतजार में बेकार हो गई थी ।

“बेबी !” महाजन ने गंभीर स्वर में कहा, “मान लो मेरी बात । गोली से या हमारे औजारों की वजह से उसके शरीर में जहर फैल गया है । अब तक वह मर चुका होगा । हमें उसकी लाश ढूँढ़नी चाहिए । फैसला कर लो कि क्या करना है ।” कहने के साथ ही मौजूद फोल्डिंग बेड की तरफ बढ़ गया ।

मोना चौधरी होंठ भिंचें महाजन को देखती रही ।

तभी हरीश दुलानी पास पहुँचा ।

“मोना चौधरी !” दुलानी के सब्र का प्याला जैसे टूट रहा था, “तुम्हारी बातों में फँसकर मैं ज्यादा वक्त खराब नहीं कर सकता । मेरे साथ पुलिस के ढेरों आदमी हैं और मुझे भी ऊपर जवाब देना होता है कि मैं क्या एक्शन ले रहा हूँ ? मामले को कहाँ तक संभाल पाता हूँ ? क्या चल रहा है ? मैं अब... ।”

“आज हम रहस्यमय जीव की तलाश में चलेंगे ।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी ।

“आज ?” दुलानी ने उसी लहजे में कहा, “आज कब ?”

“जब भी तुम कहो ।” मोना चौधरी की निगाह दुलानी पर थी ।

होंठ भिंचें दुलानी ने । कुछ सोचने के बाद कहा ।

“पुलिस वाले इन तीन दिनों में थक चुके हैं । वो ठीक से नींद भी नहीं ले पाये । आराम भी नहीं कर पाये । उनमें से कुछ ऐसे पुलिस वालों को चुनना पड़ेगा जो थकान के बावजूद भी काम कर सके । कितने पुलिस वालों को साथ लूँ ।”

“अब ये बातें तुम्हें ही तय करनी है ।” मोना चौधरी ने कहा ।

“बीस पुलिसवाले ठीक रहेंगे । तुम्हें याद है न कि होश आने के बाद वह किधर गया था ?”

“याद है ।”

“उधर ही चलेंगे । उसे ढूँढ़कर रहेंगे । खाने-पीने का सामान भी साथ ले लेंगे ।” कहते हुए हरीश दुलानी के स्वर में दृढ़ता आ गई थी, “इस बार तो उसे तलाश करके ही रहेंगे कि वो कहाँ छिप जाता है ।”

“चलना कितने बजे है ?” मोना चौधरी ने पूछा ।

“सारी तैयारी करने में तीन-चार घंटा तो लग ही जायेंगे ।

“मैं तब तक कुछ नींद ले लेती हूँ । चलने से आधा घंटा पहले मुझे जगा देना ।”

“ठीक है ! वैसे तुम्हारा क्या ख्याल है, रहस्यमय जीव को हम ढूँढ़ लेंगे ?” दुलानी ज्यादा व्याकुल नजर आया ।

“कह नहीं सकती ।” मोना चौधरी के होंठ भिंच गये, “मैं खुद उलझ गई हूँ कि वो आया क्यों नहीं ? कहाँ गया ?

“मैं चलने की तैयारी करवाता हूँ ।”

दिन के ग्यारह बज रहे थे ।

पुलिस वालों में कुछ हलचल थी । रहस्यमय जीव की तलाश में जाने के लिए सारी तैयारियाँ पूरी हो चुकी थीं । खाने का सामान भी यह सोचकर साथ ले लिया था कि जाने कितनी देर लगे, वापसी कब हो । अधिकतर पुलिस वालों के पास रिवॉल्वर थी । बाईस पुलिस वालों के अलावा दुलानी, महाजन और मोना चौधरी थे ।

हर कोई गंभीर था । क्योंकि कोई नहीं जानता कि जहाँ वे जा रहे हैं, वहाँ क्या होगा, लेकिन यह सब के दिमाग में था कि रहस्यमय जीव से मुकाबला करना है तो हर हाल में उसे खत्म करना है । दुलानी कभी-कभार उत्साह में दिखाई देने लगता । क्योंकि पहली बार उसकी इच्छा पर काम कर रही थी मोना चौधरी । रहस्यमय जीव को खत्म करने के लिए साथ जा रही थी ।

उनके चलने में अब ज्यादा वक्त नहीं रहा ।

तभी जो हुआ वह पुलिस वालों के लिए किसी बारूदी सुरंग के फटने से कम नहीं था कि जैसे उस पर पाँव पड़ गया हो । हर कोई हक्का-बक्का रह गया । तूफान-सा उठ खड़ा हुआ वहाँ ।

एक पुलिस वाला बदहवास-सा भागता-चिल्लाता वहाँ पहुँचा ।

“वो... वो आ गया । वो आ गया ।” वह चिल्लाये जा रहा था ।

“कौन ?”

“कौन आया ?”

“वही... वही... ।  वो... वो ।”

“वो जो सब को मार रहा था । कहीं वो तो नहीं ?”

“हाँ, वो दरिंदा आ गया ! होशियार रहो । मैं उधर गया था तो मैंने उसे आते देखा ।”

तुरंत ही हर कान तक यह बात पहुँची ।

दुलानी के दाँत भिंच गये । सुलग उठा उसका चेहरा ।

“सब हथियार उठा लो । दुलानी गला फाड़कर चिल्लाया, “पोजीशन ले लो । हमारी संख्या बहुत है । वो दरिंदा अब किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा । इशारा मिलते ही फायरिंग शुरू कर देना ।”

अपने हथियार को संभाले पुलिस वाले यहाँ वहाँ पर पोजिशन लेने लगे ।

महाजन भी हैरान, परेशान-सा मोना चौधरी के पास पहुँचा ।

मोना चौधरी तब एक तरफ पड़ी गन उठा चुकी थी ।

“बेबी, वो रहस्यमय जीव आ रहा !”

“सुन चुकी हूँ ।” दाँत भींचें मोना चौधरी ने कहा और गन थामें पुलिस वालों की तरफ दौड़ी ।

होंठ भींचें महाजन ने रिवॉल्वर निकाली और मोना चौधरी के पीछे दौड़ा ।

अधिकतर पुलिस वाले पोजीशन ले चुके थे । बाकी ले रहे थे । जिसे जहाँ ओट मिला, वही पोजीशन लेता जा रहा था । कुछ पेड़ों पर चढ़ गये । मोना चौधरी वहाँ खड़े चार-पाँच पुलिस वालों के पास पहुँचते हुए बोली ।

“किस तरफ से आ रहा है वो ?”

“सामने की तरफ से ।” एक ने हाथ से इशारा किया ।

“सीधा ही आ रहा है ।” मोना चौधरी के चहरे पर वहशीपन नाच उठा ।

“हाँ ! वो... ।”

“जाओ । पोजिशन ले लो ।” मोना चौधरी ने कहा । महाजन भी पास आ पहुँचा था, “जब इशारा मिले तो फायरिंग कर देना ।”

पुलिस वाले फौरन वहाँ से हट गये ।

दुलानी भी हड़बड़ाया और गुस्से से भरा पास आ पहुँचा था ।

“वो आ गया । अब कोई परेशानी नहीं । हम उसे आसानी से निशाने पर लेकर... ।”

“हाँ !” मोना चौधरी सामने की तरफ देखती शब्दों को चबाकर कह उठी, “अब वह नहीं बचेगा । तुम सब पुलिस वालों को यह बात कह दो कि मैडम की पहली गोली चलते ही वह रहस्यमय जीव का निशाना लेकर फायरिंग शुरू करें ।”

“ये कहने की क्या जरूरत है । उसे देखते ही... ।”

“गलत बात है ।” मोना चौधरी कह उठी, “फौज की लगाम कभी भी ढीली नहीं छोड़नी चाहिए । उन्हें आदेश पर काम करना चाहिए । इस तरह पुलिस वालों द्वारा उस पर गोलियाँ बरसाना गलत होगा । पहले मैं उसके सामने जाऊँगी । पहली गोली मेरी होगी ।”

दुलानी ने इस वक्त ज्यादा बहस करना ठीक नहीं समझा ।

सब पुलिसवालों तक ये आदेश पहुँच गया कि मैडम की पहली गोली चलते ही वह रहस्यमय जीव पर फायरिंग शुरू कर दें ।

“हम भी पोजिशन ले लेते हैं ।” दुलानी ने कहा ।

“महाजन !” मोना चौधरी की आवाज में दरिंदगी थी, “दुलानी को लेकर फौरन पोजिशन ले लो ।

“लेकिन बेबी, तुम... ।”

“जाओ, वक्त खराब न करो !” मोना चौधरी के दाँत भिंच गये ।

तभी रहस्यमय जीव दूर से इस तरफ बढ़ता नजर आया ।

“वो देखो, वो आ रहा ।” हरीश दुलानी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहना चाहा ।

“यहाँ से चल ।” महाजन उसकी कलाई थामें एक तरफ बढ़ा, “बेबी, संभलकर ! वो दरिन्दे से कम नहीं है ।”

वह पास आता जा रहा था ।

अब स्पष्ट दिखने लगा था ।

सामान्य-सी चाल । अलग तरह का ही उसका चलने का ढंग था । हर कदम उठाने के पश्चात देखने वाले को ऐसा लगता जैसे वह रुकने जा रहा हो कि तभी वह दूसरा कदम उठाकर आगे रख देता था । कमर से लटककर उसकी चमड़ी का घेरा कूल्हों को ढाँपता हौले-हौले हिल रहा था ।

आँख ठीक माथे के बीचोबीच स्थित थी । यानी कि वह सामने देख रहा था । आगे बढ़ते हुए उसकी दोनों बाहें सामान्य गति से चल रही थीं । उसके मोटे-मोटे होंठ आपस में चिपके हुए थे ।

मोना चौधरी की कठोर निगाह उस पर जा टिकी थी । जब वह करीब आ पहुँचा तो मोना चौधरी ने अपना एक हाथ गन की बैरल पर और दूसरा ट्रेगर के पास जमा लिया । वह तैयार थी गन का मुँह खोलने के लिए ।

वह बीस कदम की दूरी पर था । फिर पहन्द्र कदम की दूरी पर आ पहुँचा ।

दस कदम के फासले पर पहुँचकर ठिठक गया ।