एस० पी० मदन पाल वर्मा !



ऑफिस से निकलने ही वाला था जब रंजीत पहुंचा ।



उसने राकेश मोहन की जांच और रजनी राजदान के बारे में संक्षिप्त रिपोर्ट दे दी ।



–"तुम्हारे डेस्क पर एक फाइल रखी है ।" एस० पी० ने कहा–"उसमें तमाम तथ्य मौजूद हैं । उन्हें पढ़कर याद कर लेना ।"



–"राइट, सर !"



–"एस० आई० मनोज तोमर को मैंने हसन भाइयों पर थोड़ा दबाव डालने के लिये भेजा है । उसके साथ सबसे ख़ूँख़ार पुलिसमैन गये हैं । हसन भाई भी पुलिस के आने की अपेक्षा कर रहे होंगे । उनकी प्रतिक्रिया जान लेना बढ़िया रहेगा ।"



–"यस सर !"



एस० पी० चला गया ।



रंजीत सोच रहा था बिल्कुल सही स्टेप लिया गया था । हसन भाइयों को यह बड़ा ही अपमानजनक लगेगा कि सिर्फ एक एस० पी० उनके पास आया था ।



फाइल उसके लिये अलग सैट किये डेस्क पर रखी थी । उसे एक तरफ खिसकाकर उसने अपनी नोट बुक निकाली और रजनी राजदान की रिपोर्ट तैयार करनी शुरू कर दी ।



उसके बारे में सोचते रंजीत का खून का दौरा तेज हो गया । समस्त शरीर का रक्त एक खास दिशा में प्रवाहित होने लगा । उसने स्वयं को जोश में आता महसूस किया ।



उसके जहन में पलभर के लिये अचानक सूजी का ख्याल आया और फिर उसी तरह अपने आप गायब हो गया ।



लेकिन संक्षिप्त पल ने उसे विचलित कर दिया ।



उसने सिगरेट सुलगाकर फोन पर कॉफी का ऑर्डर दे दिया कैंटीन में ।



कॉफी पीकर रिपोर्ट पूरी कर दी ।



खुद को मसरूफ रखने के लिये हसन भाइयों की फाइल खोली और पढ़ने लगा ।



* * * * * *



हसन भाइयों की फाइल में सिर्फ संक्षिप्त तथ्य ही मिले ।



पहले पेजों में उस वक्त का विवरण था जब कम उम्र में वे गुण्डागर्दी किया करते थे । डरा–धमका कर लोगों से जबरन पैसा ऐंठना और मार–पीट से लेकर लूटपाट तक करके भाग जाना । दोनों हिंसक और खतरनाक थे ।



ऐसी ही एक हिंसक वारदात ने फारूख हसन को ठीक चौबीस साल पहले सात वर्ष के लिये जेल भेज दिया था । जुर्म था–एक क्लब के मालिक पर कातिलाना हमला । उस केस को बहुत ज्यादा पब्लिसिटी सिर्फ इसलिये मिली थी क्योंकि एक दर्जी की कैंची से आदमी का यौनांग काट दिया गया था और सजा सुनने के बाद फारूख ने चीख–चीख कर कहा था–सजा की कोई परवाह मुझे नहीं है...मुझे खुशी है वो कमीना आइंदा मेरी माशूका से तो दूर रहेगा ही, किसी और लड़की के साथ भी कुछ नहीं कर पायेगा ।



अगले साल अनवर हसन को भी पांच साल की सजा सुना दी गयी । एक वेश्या हमीदाबाई को मार–मार कर दोनों बांहें तीन पसलियाँ और जबड़ा तोड़ डालने के अपराध में ।



उन दिनों दोनों हसन भाई जगतार सिंह के लिये काम किया करते थे । वह मक्कार, तेज दिमाग और ख़ूँख़ार आदमी था । पेशेवर पहलवान और मुक्केबाज़ रह चुकने के बाद जरायम की दुनिया अपना ली थी उसने । क्लबों की आड़ में नंगे नाच और कॉलगर्ल रैकेट, जुआघर, स्मगलिंग और ब्लैक मार्किटिंग, हफ्ता वसूली, प्रॉटेक्शन रैकेट, फ्रॉड वगैरा उसके खास धंधे थे ।



लगभग एक तिहाई स्थानीय अपराध जगत पर जगतार का कब्ज़ा था । उसकी कम्पनी में हसन भाइयों की अपनी अलग ही अहमियत थी । उनकी बेरहमी और हिंसक स्वभाव के ऐसे–ऐसे हौलनाक किस्से–कहानियां थे कि सुनने वालों के रोंगटे कांपने लगते थे ।



जबरन पैसा वसूली, ख़ौफ़ बनाये रखना और गद्दारों को सजा देना उनकी खास ख़ूबियाँ थीं । इनमें कोई भी उनका मुकाबला नहीं कर सकता था । उन दोनों ने कुल कितनी हत्याएँ की थीं, किसने ज्यादा जाने ली थीं । इसके सही आंकड़ें तो उन दोनों के पास ही हो सकते थे लेकिन मोटेतोर पर कहा जाता था, दो दर्जन से ज्यादा लोगों को मार चुके थे ।



उनकी शैतानियत की मिसाल के कई खौफनाक किस्से अपराध जगत में प्रचलित थे ।



एक ढाबे के मालिक ने अपनी दुकान बेचने से इंकार कर दिया था । दुकान रात में जला दी गयी और मालिक और उसकी पत्नी की लाशें उनके घर में पड़ी पायी गयीं । उन दोनों की गुदा में कुर्सी के पाये ठोंक दिये गये थे । तीन आदमियों के हाथ–पैर बाँधकर उन्हें छठी मंज़िल से नीचे फेंक दिया गया था । एक आदमी ने अपना रेयर ग्रुप खून उनके एक दोस्त को देने से मना कर दिया तो एक सुबह वह अपनी बीवी और दो बच्चे सहित मरा पड़ा पाया गया । रात में उनके शरीरों से खून की आखिरी बूंद तक निकाल ली गयी थी । पुलिस के मुखबिरों और अपने खिलाफ गवाही देने की जुर्रत करने वालों को घोर यातनायें देकर या जिंदा जलाकर मार डालना उनके लिये मामूली बात थी । दो गद्दारों को कुल्हाड़ी से काटकर मौत की सजा दे दी थी । दो वेश्याएं बगैर वक्षों के जी रही थीं । तीन कॉलगर्ल नकटी हो चुकी थीं और एक के दोनों कान काट लिये गये थे । कई आदमी अपने हाथों या पैरों की उंगलियां कटवा चुके थे और चार पूरी तरह अपाहिज व्हील चेयरों में जिंदगी गुजार रहे थे ।



सात और पांच साल की सजाओं ने दोनों भाइयों में भारी तब्दीली ला दी थी । उनके हौंसले और ख्वाहिशें तो ज्यादा बढ़ गये लेकिन हिंसक स्वभाव और ध्वंसकता की जगह काफी हद तक चालाकी, मक्कारी, कूटनीति जैसी खूबियों ने ले ली । बातचीत में नर्मी, व्यवहार में तमीज और रहन–सहन में काफी सलीका आ गया । फारूख के एक साल बाद अनवर जेल से छूटा । यह अस्सी का दशक आधा गुजर जाने के बाद की बात थी । तबसे दोनों में से किसी ने भी जेल जाना तो दूर रहा एक रात भी कभी पुलिस स्टेशन में नहीं गुजारी ।



अनवर के जेल से छूटने के सिर्फ तीन महीने बाद नवम्बर की एक रात जगतार सिंह गायब हो गया हमेशा के लिये । पुलिस के मुताबिक जगतार संदेहजनक परिस्थितियों में गायब हुआ था । एक गवाह भी उनके पास था, बुकी रहमत अंसारी । वह हल्का–फुल्का सा आदमी था । दायें गाल पर आँख के नीचे उसकी एक नस हर वक्त फड़कती रहती थी ।



उस रात रहमत जगतार के साथ था । दोनों दस बजे तक एक बार में शराब पीते रहे थे । जगतार ने अपनी कार से उसे रास्ते में ड्रॉप करके आगे चले जाना था ।



वे बार से निकलकर सड़क पर खड़ी कार की ओर चल दिये । तभी एक काली एंबेसेडर उनकी बगल में आ सकी ।



रहमत ने बाद में पुलिस को बताया एंबेसेडर में चार आदमी थे । उनमें से एक ने जगतार को पुकारा–"जगतार, एक जरूरी बात करनी है ।"



रहमत को फुटपाथ पर खड़ा छोड़कर जगतार लापरवाही से उनकी ओर चल दिया ।



तभी कार की पिछली सीट से दो आदमी नीचे कूदे । अचानक जगतार को दबोच लिया । उसे घसीटकर जबरन कार में लादा फिर उन सबको लेकर कार तेजी से दौड़ गयी ।



मूक दर्शक बना खड़ा रहमत देखता ही रह गया ।



वह अपहरण का चश्मदीद गवाह था ।



पुलिस ने उसे अपने रिकार्ड में मौजूद सैंकड़ों अपराधियों की फोटो दिखाई । उसने फारूख और अनवर हसन की सरसरी–सी शिनाख़्त कर दी एंबेसेडर में सवार चार आदमियों में से दो के रूप में ।



अगली सुबह हसन भाइयों को शिनाख्ती परेड में शामिल होने के लिये बुलाया गया । वे पहुंच गये । लेकिन रहमत अंसारी उनमें से किसी पर भी उंगली नहीं रख सका ।



–"उनमें से कोई भी मुझे वैसा नजर नहीं आया जिन्हें एंबेसेडर में देखा था ।" उसने साफ कह दिया ।



पुलिस को इस पर जरा भी ताज्जुब नहीं हुआ । रहमत की निगरानी कर रहे दो पुलिस वालों ने नोट किया था शिनाख़्त से पहली रात के अंतिम में प्रहर में कोई रहमत के घर उससे मिलने आया था । रहमत के मुताबिक आने वाला उसका जीजा था । उसके जीजा ने भी इस बात की पुष्टि कर दी थी ।



लेकिन निगरानी कर रहे पुलिस वालों को लगभग पूरा यकीन था कि रात में आने वाला कालका प्रसाद था–जगतार का दाया हाथ ओर हसन भाइयों का गहरा दोस्त ।



कालका प्रसाद से पूछताछ की गयी तो उसने कई गवाह पेश कर दिये जिन्होंने साफ कबूल किया आधी रात के बाद से सुबह सात बजे तक वह जगतार के एक क्लब सिल्वर लाइन में मौजूद रहा था । वहां काम करने वाली एक लड़की ने बयान दिया कालका सुबह तक उसके साथ रहा था ।



उसकी इस ठोस एलीबी को पुलिस नहीं तोड़ सकी हालांकि वे जानते थे रहमत से मिलने आने वाला कालका प्रसाद ही था । यह भी जानते थे जरायम की दुनिया में उसे आमतौर पर कालदूत कहा जाता था क्योंकि हत्या करके लाश को हमेशा के लिये ठिकाने लगाने में उसका जवाब नहीं था ।



लेकिन तथ्यों को बदला नहीं जा सकता था । नवम्बर की उस रात के बाद से जगतार सिंह गधे के सर से सींग की तरह हमेशा के लिये गायब हो चुका था । उसे न तो कहीं देखा गया और न ही उसके बारे में कभी कुछ सुना गया और पुलिस इस केस पर कोई रोशनी नहीं डाल सकी । बाद में एक और तथ्य सामने आया । गायब होने से हफ्ता भर पहले जगतार अपने चारों क्लब सिल्वर लाइन, मून लाईट, गोल्डन एरो और हारमोनी हाउस चार अलग–अलग बिज़नेस मैनों को क़ानूनन बेच चुका था । खरीद–फरोख्त के तमाम जरूरी कागज़ात मौजूद थे, इसलिये शक की कोई गुंजाइश बाकी नहीं थी । यह अलग बात थी कि क्लब खरीदने वाले बिजनेसमैन सफेद चोलों में भूतपूर्व अपराधी थे और कागज़ात के मुताबिक जो पैसा जगतार को दिया गया था, उसका कहीं कोई सुराग नहीं मिला ।



जगतार के गायब होने के बाद हसन भाई धीरे–धीरे खुशहाल होते चले गये । वे खुद को कानून और पुलिस से दूर रखते थे हालांकि सभी आदमी और औरतें अब खुले आम उनके साथ थे, जो पहले जगतार सिंह के नज़दीक होते थे । दोनों भाइयों के बातचीत के अंदाज में और ज्यादा नर्मी आती गयी । व्यवहार–कुशलता भी उन्होंने सीख ली । रहन–सहन में ठाठ के साथ–साथ सलीकामंदी भी आ गयी । कीमती लिबास पहने वे वर्दीधारी शोफर को साथ लेकर चलते थे । लेकिन झूठी खुद्दारी घमंड और बदमिज़ाजी में कोई फर्क नहीं आ सका ।



चारों क्लबों के नाम बदल दिये गये ।



नये नाम थे–पैराडाइज क्लब न्यू हैवन ब्लैक बुल और ब्लू डायमण्ड ।



हालांकि कानूनी तौर पर ऐसा कोई सबूत नहीं था कि किसी भी क्लब में उनका कोई फ़ाइनेंशियल इंट्रेस्ट था लेकिन सब जानते थे क्लबों के असली मालिक वे ही थे ।



रंजीत ने फाइल का अध्ययन जारी रखा ।



तथ्यों और पुलिस की जानकारी का संक्षिप्त विवरण साइकियेट्रिक रिपोटें, जेल अधिकारियों की रिपोर्ट और तीन सीनियर पुलिस ऑफिसरों के रिमार्क जिन्होंने दृढ़ निश्चय के साथ लम्बी कोशिश की थी हसन भाइयों के खिलाफ ठोस सबूत जुटाने की ।



एक भाग में हसन भाइयों की आदतों और सेक्सुअल टेस्ट का ब्यौरा था । दोनों में से किसी ने भी शादी नहीं की थी हालांकि हर एक के बहुत–सी औरतों के साथ सम्बन्ध रह चुके थे । उनमें से ज्यादातर क्लब की होस्टेस और दूसरी लड़कियाँ थीं । उनमें से कुछेक के साथ महीनों तक ताल्लुकात रहे थे और बाकी के साथ चंदेक रोज या हफ्ते ।



फारूख हसन को कमसिन लड़कियाँ ज्यादा पसंद थीं–सोलह या सत्रह की । उन्हें भी स्कूली, नर्स, फ़ौजी वगैरा की यूनीफ़ॉर्म में पसंद करता था । उसके पास एक स्पेशल वार्डरोब में जरूरी लिबास और पैंटीज–ब्रा मौजूद रहते थे ।



एक साइकिएट्रिस्ट ने उसके बारे में लिखा था–इस आदमी के अंदर नाबालिग लड़कियों को खराब करने की इच्छा बहुत गहराई तक है । यह उन लड़कियों से लिबास के अनुसार ही व्यवहार करने की अपेक्षा रखता है । अगर किसी लड़की ने इसकी चाहत पूरी करने से इंकार किया या वह इसकी पसंद के मुताबिक सही अभिनय नहीं कर पायी तो यह आदमी हताश होकर किसी भी हद तक खतरनाक साबित हो सकता है ।



अनवर हसन के टेस्ट अपेक्षाकृत नार्मल सेक्स के दायरे में थे । लेकिन वह गहरे रोमांस की अपेक्षा रखने वाला बेहद जज्बाती आदमी था । उसकी लड़कियों को उससे ताल्लुकात के दौरान पूरी तरह वफादार यानि सिर्फ उसी की होकर रहना जरूरी था । इस मामले में उसके अंदर हसद इतनी ज्यादा थी कि बेवफ़ाई या बदकारी का जरा–सा भी शक होते ही वह जान तक ले सकता था ।



दोनों भाई दो जिस्म एक जान की तरह थे । उन्हें अलग नहीं किया जा सकता था । उनके मैंटल एटीट्यूड में अक्सर दो एक जैसे जुड़वाओं की झलक नजर आया करती थी । मौलाना आजाद एनक्लेव में उनकी लम्बी–चौड़ी पुरानी कोठी का नाम था–हसन हाउस । उसे अनवर की मां हसीना बेगम के नाम पर खरीदा गया था । तीनों वहीं एक साथ रहते थे ।



हसीना बेगम न सिर्फ हसीना थी बल्कि किसी बेगम जैसे ही ठाठ–बाट से रहती भी थी । ऊँचे कद की गोरी–चिट्ठी हसीना के चेहरे पर अभी भी चमक थी । बालों में चमक और जिस्म में कसाव वाली वह सही मायने में 'मर्दखोर' औरत थी ।



रिहाइश के लिये दो मंजिला कोठी को चार अपार्टमेंटों में बांट दिया गया था । ग्राउंड फ्लोर कॉमन था, जिसे एक परिवार की तरह शेयर किया जाता था । फारूख, अनवर और हसीना तीन अपार्टमेंटों में रहते थे जबकि चौथे में तेईसेक वर्षीया परवेज अहमद रहता था । जिसे हसीना बेगम उसके बचपन में एक मायने में गटर से उठाकर लायी थी । उस वक्त वह हसीना के लिये एक और बेटे की तरह था लेकिन जैसे ही परवेज ने जवानी में कदम रखा, रिश्ता पूरी तरह बदलता चला गया ।



बासठ साल की उम्र में भी हसीना के अंदर की औरत जवान थी । शारीरिक आकर्षण कायम रखने के साथ–साथ उसकी जिस्मानी जरूरियात और उन्हें पूरा करने का जोश भी काफी हद तक कायम था । जिस्म को हर लिहाज से फिट रखने के मामले में वह अपनी मिसाल आप ही थी । हालांकि खुलकर कहने की तो हिम्मत किसी में नहीं थी लेकिन हसन भाइयों के ज्यादातर साथी जानते थे, नौजवान मर्द हसीना की कमज़ोरी थे और परवेज अहमद से वह अपनी वासना की भूख मिटाती थी । मगर हसन भाइयों में से किसी को या दोनों को ही हसीना की अय्याशी और मर्दखोरी पसंद नहीं थी तो भी वे इसे अपने अंदर छिपाकर ही रखते थे ।



हसन परिवार में शामिल होने के पहले ही दिन से क्योंकि परवेज को परिवार के हिस्से के तौर पर कबूल कर लिया गया था । फारूख और अनवर भी हमेशा उसे अपना सगा छोटा भाई ही मानते थे । उस पर इतना खुलकर प्यार और पैसा लुटाते थे, जितना कि अपनी सोहबत में आने वाली लड़कियों पर भी नहीं लुटाते थे । जिस बढ़िया तालीम से खुद महरूम रहे थे, वो भी उसे दिलाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी और अपने धंधों से उसे हमेशा दूर ही रखा । ऐसा लगता था परवेज ने उनके किसी खास गहरे खालीपन का भर दिया था और उनकी सबसे अहम जरूरत को पूरा कर दिया था । वो प्यार का केन्द्र बिन्दु था । एक इंसानी मूरत था जिसे वे अपने मुजरिमाना गुनाह के फ़रिश्तें या शैतान को खुश करने के लिये इस्तेमाल किया करते थे ।



हसन भाइयों का ज्यादातर वक्त उन चारों क्लबों में ही गुजरता था जो कभी जगतार सिंह की मिल्कियत थे । इसमें भी अधिकांश समय पैराडाइज क्लब में ही मिलते थे । वो चारों में सबसे बड़ा था और एक तरह से उनका हैडक्वार्टर्स भी वही था ।



अपने मातहतों के भारी दलबल के साथ एस० आई० मनोज तोमर भी वहीं गया था ।