कुछ ही दिन बाद हमारे रिजल्ट के बारे में अखबार में आया कि‍ तीन जून को बारहवीं सी.बी.एस.सी. का परिणाम घोषित होगा। तभी से हम चारों परिणाम घोषित होने का इंतजार करने लगे। जिस दिन परिणाम घोषित होने वाला था हम स्कूल गए। सोनू, देव, भोपला और मैं स्कूल में पहुँचकर लिस्ट में देखा हम चारों पास तो हो गए थे, नंबर कितने आए थे, ये देखना बाकी था। हमने पता किया कि नंबर कितने हैं। जानकर हैरानी हुई कि सोनू प्रथम आया था, देव द्वितीय आया था, मैं त्रितीय आया था और भोपला चौथे स्थान पर था। मैं कभी इन तीनों स्थान पर से किसी पर भी नहीं आया था। भोपला जिसे हमारे अलावा सभी मानते थे पास भी नहीं होगा, वह चौथे नंबर पर था। सोनू के नंबर 91 प्रतिशत, देव के 89 प्रतिशत,मेरे 78 प्रतिशत और भोपले के 77 प्रतिशत नंबर थे। हम चारों खुशी से उछल गए।

हमारे भूगोल के टीचर भी रिजल्ट देखकर दंग थे। उन्हीं के कारण मेरे और देव के नंबरों में इतना फर्क आ गया था। कक्षा के सभी लड़के हैरान थे। उनके अनुसार देव और सोनू के तो इतने नंबर ठीक थे, पर मैं और भोपला कहाँ से बाजी मार गए! मैंने मिठाई का डिब्बा लिया और सबका मुँह मीठा कराया। हालाँकि ये नंबर किसी सरकारी स्कूल में तो ठीक थे, पर प्राइवेट स्कूल में साधारण थे।

हम सबने सभी के पास हो जाने की खुशी में शाम को घूमने का प्लान बनाया। और घूमकर घर भी आ गए। पापा का फोन घर पर आने के बाद आया। मेरा पास होना उन्हें पता था पर सबसे पहले नंबर पूछा। अमित ने नंबर बताया तो वो नंबर सुनकर खुश हो गए और कहा कि अब कॉलेज में दाखिला तो हो ही जाएगा।

एक अननोन नंबर से फोन आया। वो फोन निधि का था। उसने मुझे बधाई दी। पर मैंने उससे ऐसे समय साधारण बातें कर ली। अमित ने फोन के पास आकर निधि से कहा, “अपनी कक्षा में थर्ड आया है।” 

इतना कहकर मेरे नंबर भी उसे बताए उसने और कहा, “कॉलेज में एडमिशन तो हो ही जाएगा।” निधि ये सुनकर खुश हो गई। फिर फोन कट हो गया।

इस खुशी को सेलिब्रेट करने के लिए हम सभी दोस्त रात को घूमने निकले। अमित भी हमारे साथ था। हम एक रस्टोरेंट में गए जो महरौली में था। हमने वहाँ डोसा खाया और फिर एक फिल्म देखी। हम चारों के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। देर रात जब घर आए तो मम्मी-पापा हमारा रास्ता देख रहे थे। पापा ने मुझे गले लगाया और कहा, “बेटा जिदंगी भर ऐसे ही सफलता छूते रहो।” मैंने उनके पैर छुए। मम्मी-पापा अपने कमरे में चले गए। 

मैंने घड़ी देखी तो सुबह के पाँच बज रहे थे। तभी अमित ने मुझसे कहा, “एक बात करनी है।” 

“ठीक है, ऊपर चलकर बात करेंगे।” मैंने सोचा कि पाँच बज रहे हैं अब कौन सी निधि ऊपर होगी। अमित ने ऊपर आकर कहा, “भाई अब तो उसे माफ कर दो, रात दो बजे से तेरा इंतजार कर रही है।” 

मैंने निधि की छत पर देखा। वहाँ कुछ अँधेरा था। तभी लाइट जल गई। निधि ने वहीं से हाथ हिलाकर इशारा किया तो मैंने भी हाथ हिला दिया। और अमित से कहा, “आज के बाद ऐसी बेवकूफी मत करना। मैं उससे दूर रहना चाहता हूँ। कभी मुझे ऐसे ऊपर मत ले आना। हमारे बीच सब खत्म हो गया है।”

यह सुनकर अमित दंग रह गया, “ऐसा क्या हो गया है जो तुम ऐसी बातें कर रहे हो भाई?” 

“हुआ तो कुछ नहीं, मैंने उसे छोड़ दिया है बस।”

“ठीक है, अब समझा तेरे बचपन के प्यार को कैसे भूला दिया है। उसको कोई और मिल गई है या बोर हो गए हो उससे?” 

“तू कुछ भी समझ, मैं उससे कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता हूँ।”

तभी निधि की छत से उसकी आवाज आई- “राघव... राघव... राघव...” निधि चिल्ला रही थी जिसे मैंने सुना और वहाँ से नीचे आ गया। मेरा मूड खराब हो गया था। मैंने फोन को देखा, उस पर निधि का मैसेज था- ‘पहले प्यार को भुला दिया, कोई गलती हुई तो सॉरी।” मैंने उसके मैसेज को इगनोर कर दिया। मैं सच में दुबारा निधि के पास नहीं जाना चाहता था। मेरे लिए वो इस्तेमाल हो गई चीज भर थी, जिसे उस कमीने वंश ने इस्तेमाल कर लिया था। पर नहीं जानता था जिसे मैं नफरत कह रहा था, वो कहीं मेरे अंदर जी रही थी। 

कुछ ही दिनों में कॉलेज के दाखिले के फॉर्म भी आ गए। पर मेरे नंबर जिसे बेस्ट फोर कहा जाता है 81 प्रतिशत से ज्यादा नहीं बैठ रहे थे। बेस्ट फोर वो होता है जिसके चार सब्जेक्ट में सबसे अच्छे नंबर होते हैं, जिस में एक ही भाषा होती है। इसका कारण था कि सब विषयों के नंबर समानांतर में थे। जबकि भोपले के नंबर बेस्ट फोर में 84 प्रतिशत बैठ रहे थे। मैंने सभी सुबह लगने वाले कॉलेज में फॉर्म भर दिए। अब कॉलेज की लिस्ट आनी बाकी थी। सोनू और देव का नंबर पहली ही लिस्ट में आ जाना था। पर मुझे और भोपले को दूसरी और तीसरी लिस्ट का इंतजार करना था।

एक हफ्ते बाद पहली लिस्ट आई। सोनू और देव ने किरोड़ीमल कॉलेज में बी.ए. में एडमिशन ले लिया। बचे हम दोनों, हमें अगली लिस्ट का इंतजार था। फिर दूसरी लिस्ट भी आई। मेरे दिल की धड़कन बढ़ी हुई थी पर अब भी हमारा नंबर किसी कॉलेज में नहीं आया। कट ऑफ लिस्ट अब भी 86 प्रतिशत पर अटकी रही। अब हमारा नंबर किसी अच्छे कॉलेज में तो नहीं आना था। क्योंकि सभी अच्छे कॉलेज की सीट फुल हो गई थी। अब हमें दूसरी श्रेणी के कॉलेज में ही एडमिशन मिलना था। मैं इस दौरान मंदिरों में भी गया और खूब मन्नत भी माँगी कि‍ किसी कॉलेज में मेरा नंबर आ जाए। कुछ दिन बाद तीसरी लिस्ट भी आई जो कि‍ 84 प्रतिशत पर ठहर गई थी। मेरा नंबर अब नहीं आना था किसी भी कॉलेज में।

ऐसा लग रहा था मेरे हाथ से मेरी जिंदगी रेत के समान निकल रही हो। मैं समझ नहीं पाया कि ये कैसे हुआ। पहले भी 75 प्रतिशत वालों का एडमिशन आसानी से हो जाता था पर ऐसा क्या हुआ जो कट ऑफ 84 पर से नहीं घटी। मैंने इवनिंग में क्लास चलने वाले कॉलेज में फॉर्म ही नहीं भरा था। कसूर मेरा नहीं था, इतने सालों में किसी भी सरकार ने कॉलेज की संख्या नहीं बढ़ाई थी। और छात्रों की संख्या तो हर साल बढ़ती ही जा रही थी।

आखिरी लिस्ट निकलने के बाद सभी सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे विद्यार्थियों का गुस्सा सड़कों पर आ गया। लड़के और लड़कियाँ बसों और गाड़ियों को फूँकने लगे। इस बार की कट ऑफ को देखकर तो प्राइवेट स्कूल वाले भी आंदोलन में शरीक हो गए। रोज आगजनी की घटनाएँ तेज होने लगीं। विद्यार्थी बसों-गाड़ियों और बाइकों को आग के हवाले करने लगे। बात मीडिया में भी फैल गई कि‍ शायद कॉलेज वालों ने कोई धाँधली की है इसलिए कट ऑफ ज्यादा गई है। ये सब देखकर मेरी थोड़ी उम्मीद बढ़ी कि‍ शायद मेरा एडमिशन किसी कॉलेज में हो जाए। मीडिया वाले शायद इतनी ज्यादा कट ऑफ का कारण निकाल ले। पर सभी कॉलेज वालों ने हाथ खड़े कर दिए।

इसका कारण उन्होंने बताया कि देश भर से विद्यार्थी दिल्ली में कॉलेज का फॉर्म भरते हैं जिसके कारण इतनी ऊँची कट ऑफ गई है। इस पर विद्यार्थियों का गुस्सा उन पर भी निकलने लगा जो बाहर से आए थे। अब तो सारी दिल्ली में माँग उठने लगी कि‍ ऐसे लोगों को एडमिशन नहीं देना चाहिए जो दूसरे स्टेट से आए हैं। उन्हें कॉलेज से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए। लेकिन सरकार ने कहा कि ये नहीं हो सकता। दिल्ली देश की राजधानी है, यहाँ सब देशवासियों का समान अधिकार है कि‍ वे आकर शिक्षा ले सकें। बात कोर्ट तक गई पर कोर्ट ने भी सभी को निराश ही किया।

अभी सब कॉलेज बंद थे। दूसरे स्टेट से आए विद्यार्थी सबसे ज्यादा डरे-सहमें थे पर धीरे-धीरे आंदोलन शांत पड़ गया। कुछ दिन बाद सारे कॉलेज भी खुल गए। 

इस ऊँची कट ऑफ का असली कारण था वे विद्यार्थी जो नकली मार्कशीट बनवा लाते थे जिस में वे 90 प्रतिशत तक अपने अंक कर लेते थे। इस कारण सभी अच्छे विद्यार्थी पीछे रह जाते थे। कुछ ही लोग ये जानते थे जैसे कि‍ मुझे भी ये बात एक विद्यार्थी ने बताई थी। कुछ ने तो ये भी बताया कि‍ एक से पाँच लाख में कॉलेज में एडमिशन भी हो जाता है।

मेरे पास ना लाख था ना पाँच लाख जो मेरा एडमिशन किसी कॉलेज में होता। मैं कॉलेज ना पहुँच पाने से निराश था। पापा ने कहा, “या तो बारहवीं दुबारा कर या करेस्पॉन्डेंस से बीए करके अच्छे नंबर लाकर अगले साल कॉलेज में दाखिला ले लेना। मेरे सपने के साथ ही मेरे मम्मी-पापा का सपना भी टूट गया था। अब तो मैंने सोच लिया था मैं आगे कोई और ही रास्ता बनाऊँगा। सभी की तरह भेड़-चाल से दूर। इसलिए मैंने अब कॉलेज के बारे में सोचना ही छोड़ दिया। मैं समझ चुका था मेरा नसीब कॉलेज ना जाकर कुछ और ही है। और कॉलेज जाकर भी कौन-सा इन बच्चों का भला हो जाता है जो मेरा होता। ये सही भी था कि ज्यादातर विद्यार्थी कॉलेज मेजाकर भी क्या कर लेते हैं? मेरा रास्ता दूर का था, मेरा रास्ता क्लर्क या हेड क्लर्क या टीचर बनने का नहीं था। मुझे तो दूर तक उड़ना था।

एक दिन निधि का फोन मैंने गलती से उठा लिया। उसने भी मेरे कॉलेज में एडमिशन ना हो पाने पर दुख जताया। देव, भोपले और सोनू तो बहुत दुखी थे। मैंने उनसे कहा, “यही जिंदगी है, ऐसा होता रहता है। सभी को हर चीज नहीं मिलती जिंदगी में।” 

सच है कि सभी को सब चीज मिल जाए जिंदगी में तो वो मजा जिंदगी में नहीं रह जाता जिसके लिए जिया जाता है। कुछ दिन बाद मैंने करेस्पोंडेंस से बीए का फॉर्म भर दिया। अपनी हार कबूल ली थी ये सोचकर कि‍ किस्मत से ही तो हारे हैं, अपने से नहीं। हम किसी दिन और जीत जाएँगे किसी और चीज में। मैंने बीए की परीक्षा की भी तैयारी शुरू कर दी थी। पर कॉलेज में दाखिले के लिए नहीं अपितु ज्ञान प्राप्ति के लिए। मैंने अपना लक्ष्य भी धुँधले अक्षरों में बना लिया था जिसे मुझे पाना था सोचा हर चीज में आखिर में पैसा ही कमाने है इसलिए सीधे हाथ से कान ना पकड़ के अपने पास होने का कान पकड़ा जाए। मैं मन में कुछ फैसला कर रहा था कि‍ क्या किया जाए।