अगले रोज दोपहर तक झेण्डे ने ये गुड न्यूज दी कि बम एक्सपर्ट का इन्तजाम हो गया था । गोविन्द गोरे नाम का एक आदमी उन्हें मिल गया था जो कि मोटी फीस की एवज में कैसा भी बम तैयार कर सकता था ।
दोपहरबाद उन्होंने शिवाजी पार्क का चक्कर लगाया जहाँ कि कल की सभा के लिये स्टेज तैयार की जानी शुरू हो भी चुकी थी । वहां उन्होंने ‘मैं हूं पब्लिक’ छपी टोपियां पहन लीं और खुद को भी पब्लिक पार्टी का वालंटियर बताया और वहां काम करते और कराते वालंटियरों से बाकायदा दोस्ती गांठ ली ।
वहीं उन्हें ये नयी बात भी मालूम पड़ी कि नवनिर्मित पब्लिक पार्टी के संस्थापक नेता उल्हास दादा ताम्बे की जिद थी कि सिक्योरिटी नहीं लेगा । उसका मानना था कि वो पब्लिक का आदमी था इसलिये पब्लिक से उसे कोई खतरा नहीं था ।
लिहाजा सभा के दौरान पुलिस की टोकन हाजिरी ही होती ।
वहीं से उन्होंने ये जानकारी निकलवाई कि कल की सभा में नेता जी को पहनाने के लिये साउथ इन्डियन स्टाइल का पैरों तक आने वाला एक विशेष हार तैयार किया जा रहा था जिसको बनाने वाला कारीगर सुभाष नायक खार में पाया जाता था ।
पता !
किसी ने बताने में कोई हुज्जत न की ।
वे खार पहुंच कर सुभाष नायक से मिले ।
‘‘इतवार को नेता जी की सभा चौपाटी पर है ।’’ — झेण्डे बोला — ‘‘हम उस जोन के वर्कर हैं । नेताजी को पहनाने का वास्ते हमेरे को भी वैसीच मद्रासी स्टाइल हार मांगता है जैसा तुम कल की शिवाजी पार्क की सभा के लिये बना रयेला है । इस वास्ते हम को हार देखने का ।’’
‘‘तुम...’’
‘‘मैं अनूप...माने । देशपाण्डे साहब का खास ।’’
‘‘देशपाण्डे साहब बोले तो ?’’
‘‘नहीं मालूम ?’’
कारीगर ने इंकार में सिर हिलाया ।
‘‘साउथ मुम्बई का लीडर है न पब्लिक पार्टी का ! चौपाटी का इतवार का फंक्शन अपना देशपाण्डे साहब हैण्डल करने का । क्या !’’
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘तो वो हार...’’
‘‘वो हार तो कल बनेगा ।’’
‘‘कल बनेगा ? आज कुछ नहीं किया ?’’
‘‘तैयारी किया न ! सामान इकट्ठा किया न !’’
‘‘कल टेम लग गया तो ?’’
‘‘नहीं लगेगा । दो बजे तक हार ऐन मस्त तैयार होगा ।’’
‘‘शिवाजी पार्क कैसे पहुंचेगा ?’’
‘‘मैं खुद पहुंचायेगा ।’’
‘‘ओह ! खुद पहुंचायेगा ।’’
‘‘हां तीन बजे मैं इधर से चलेगा । कार खुद ड्राइव करेगा, आधा घन्टा में शिवाजी पार्क पहुंच जायेगा ।’’
‘‘कार पर ?’’
‘‘एक वैगन-आर है न मेरे पास ।’’
‘‘ठीक । ठीक । पण अभी हमेरा काम कैसे हो ?’’
‘‘तुम्हेरा काम ?’’
‘‘देशपाण्डे साहब को हार देखना मांगता है न !’’
‘‘ओह !’’
‘‘अभी साला पिराब्लम ।’’
‘‘बोले तो नो प्राब्लम ।’’
‘‘ऐसा ?’’
‘‘हां । मेरे पास हार का कलर फोटू है ।’’
‘‘ओह, फोटू है । देखें तो !’’
कारीगर ने आठ गुणा दस की एक कलर्ड, ग्लॉसी पेपर पर बनी, फोटो पेश की ।
फोटो में कोई नेता हार पहने था जो कि कम से कम पांच इंच मोटा था और गर्दन से ले कर पैरों तक आता था ।
‘‘कल जो हार बनायेगा’’ — झेण्डे बोला — ‘‘वो ऐन ऐसा होगा ?’’
‘‘हां ।’’ — कारीगर बोला — ‘‘बाल बरोबर भी फर्क नहीं ।’’
‘‘बढ़िया । हमेरे को ये फोटू देशपाण्डे साहब को दिखाने का । देता है क्या ?’’
कारीगर हिचकिचाया ।
‘‘वापिस करेंगा न !’’
‘‘कब ?’’
‘‘अरे, आज ही । बड़ी हद कल सुबह ।’’
‘‘फिर वान्दा नहीं ।’’
‘‘थैंक्यू बोलता है...क्या नाम बोला था ?’’
‘‘नहीं बोला था । नायक । सुभाष नायक ।’’
‘‘थैंक्यू बोलता है, नायक भाई ।’’
‘‘वैलकम !’’
बम एक्सपर्ट गोविन्द गोरे भिंडी बाजार में रहता था ।
वो तीनों उसके रूबरू हुए और उन्होंने हार की तसवीर पेश की ।
‘‘बना लेगा ?’’ — झेण्डे ने पूछा ।
‘‘बम बना लेगा’’ — गोरे बोला — ‘‘हार की कोर में फिट होने वाला बम बना लेगा, हार कैसे बना लेगा ?’’
‘‘धत् ! ये तो साला सोचा ही नहीं !’’
‘‘सारी मुम्बई में हार का एक ही कारीगर तो नहीं होगा, झण्डे भाई ।’’ — गरेवाल बोला ।
‘‘क्या मालूम कहीं रेडीमेड भी मिलता हो ?’’ — कौल बोला ।
‘‘कमाठीपुरा में हर तरह के हारों की एक दुकान है’’ — गोरे बोला — ‘‘उधर पता करो ।’’
‘‘करते हैं । बाई दि वे, तुम्हारे को अपने काम के लिये कितना टेम मांगता होयेंगा ?’’
‘‘चार घन्टा ।’’
‘‘ठीक है । अभी जाता है, लौट के आता है ।’’
कसाठीपुरे में हार तैयार न निकला लेकिन कारीगर ने आश्वासन दिया अगर फुल रोकड़ा एडवांस में मिलता तो वो रात दस बजे तक हार तैयार करके दे सकता था ।
रोकड़ा !
तीन हजार रुपया ।
एक हार की कीमत तीन हजार रुपया उन्होंने भरी ।
फिर रात दस बजे के बाद हार गोविन्द गोरे के पास पहुंचाया ।
अगली सुबह एक बजे हार हर लिहाज से तैयार था ।
हार की कोर में डोरी के साथ-साथ बारूद की स्टिक्स थीं जो कि फूलों से यूं पूरी तरह से ढंकी हुई थीं कि बाहर से दिखाई नहीं देती थीं । उन की वजह से हार का वजन कदरन बढ़ गया था लेकिन इतना बड़ा हार वैसे ही भारी था इसलिये बढ़ा हुआ वजन किसी के नोटिस में नहीं आने वाला था ।
तीन बजे से पहले वो खार में थे और सुभाष नायक की वैगन-आर की ताक में थे ।
वो दो कारों में आये थे । एक पीली छत वाली फियेट टैक्सी थी जिस को पैड्रो चला रहा था । बतौर पैंसेजर उसके साथ मारकस लोबो था जो कि टैक्सी की पिछली सीट पर बैठा हुआ था ।
दूसरी कार आल्टो थी जिस में कौल और झेण्डे सवार थे ।
बारूद वाला हार उनकी कार में था ।
तीन बज गये ।
‘‘आ रहा है ।’’ — एकाएक ड्राइविंग सीट पर बैठा कौल बोला ।
‘‘आगे सिग्नल दे ।’’ — झेण्डे सस्पेंसभरे स्वर में बोला ।
कौल ने पूर्वनिर्धारित ढंग से हार्न बजाया ।
उन से सौ गज आगे मौजूद टैक्सी की ड्राइविंग साइड की खिड़की में से हाथ निकाल कर, अंगूठा उठाकर पैड्रो ने तसदीक की कि सिग्नल उसने पकड़ लिया था ।
वैगन-आर खुद चलाता सुभाष नायक सड़क पर पहुंचा ।
वैगन-आर की पिछली सीट पर एक बड़ा सा कार्ड बोर्ड का बाक्स पड़ा था जिसमें निश्चित रूप से डिलीवरी के लिये तैयार हार था ।
टैक्सी वैगन-आर के पीछे लग ली ।
टैक्सी के पीछे कौल ने आल्टो लगा दी ।
वैगन-आर बान्द्रा में दाखिल हुई तो लिंकिंग रोड पर एकाएक झेण्डे ने टैक्सी की स्पीड बढ़ाई, वैगन-आर को ओवरटेक किया फिर टैक्सी को गहरा झोल देकर उसे वैगन-आर के रास्ते में अड़ा दिया ।
आतंकित नायक अपनी वैगन-आर की ब्रेक पर खड़ा हो गया फिर भी उसकी कार टैक्सी से टकरा ही गयी ।
‘‘साला कैसे गाड़ी चलाता है !’’ — आस्तीन चढ़ाता, चिल्लाता कलपता पैड्रो टैक्सी से बाहर निकला — ‘‘फोड़ देंगा साला ।’’
वो वैगन-आर के करीब पहुंचा ।
‘‘बाहर निकल, भीड़ू ।’’ — वो गर्जा ।
‘‘मैंने क्या किया है ?’’ — नायक हकबकाया सा बोला — ‘‘एक्सीडेंट तो तुमने किया ।’’
‘‘अभी बाहर निकलने का । अभी का अभी ।’’
नायक कार से बाहर निकला ।
‘‘मैं साला टर्न लेने का वास्ते सिग्नल दिया या नहीं दिया ?’’
‘‘नहीं दिया ।’’ — नायक बोला ।
‘‘बरोबर दिया । साला ब्लिंकर चलाया बरोबर ।’’
‘‘नहीं चलाया ।’’
‘‘तुम साला पिनक में गाड़ी चलाता है । साला कुछ नहीं देखता । और नहीं तो इतना बड़ा टैक्सी तो तुम्हेरे को दिखाई देने का था या नहीं ?’’
‘‘पण...’’
उस झगड़ा तकरार के दौरान झेण्डे आल्टो से निकला, वैगन-आर के करीब पहुंचा, उस ने खामोशी से वैगन-आर का पिछला दरवाजा खोला, बाक्स का ढक्कन उठाया, उस में से भीतर मौजद हार निकाला और उसकी जगह अपना हार रख दिया । उसने बाक्स पर ढक्कन वापिस लगाया और निर्विघ्न आल्टो में वापिस लौट आया ।
कौल ने पूर्वनिर्धारित ढंग से हार्न बजाया ।
तत्काल आगे जैसे एकाएक झगड़ा शुरू हुआ था, वैसे ही एकाएक खत्म हो गया ।
‘‘अभी नक्की करता है ।’’ — पैड्रो दयानतदारी से बोला — ‘‘साला टैक्सी का लाइट डैमेज किया पण नक्की करता है । क्या !’’
सहमे हुए नायक ने सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘अभी थैंक्यू तो बोल ।’’
‘‘थ-थैंक्यू ।’’
फिर टैक्सी ये जा वो जा ।
पीछे से आल्टो भी गायब ।
चार बजे वो लोग शिवाजी पार्क में होती सभा में मौजूद थे ।
बम को डिटोनेट करने वाला रिमोट कन्ट्रोल झेण्डे के कब्जे में था ।
सभा में कोई दस हजार लोगों का हुजूम था ।
नेताजी उल्हास दादा ताम्बे स्टेज पर प्रकट हुआ ।
गगनभेदी करतल ध्वनि हुई ।
टखनों तक आने वाली स्कर्ट और ब्लाउज पहने एक युवती ने नेताजी का झुक कर हाथ जोड़ कर, विनम्र अभिवादन किया ।
‘‘ये ऐग्नेस सेठना ही है ।’’ — लोबो कौल के कान के करीब मुंह ले जाकर बोला ।
‘‘पक्की बात !’’ — कौल बोला ।
‘‘मैं पहचान निकाल के रखा न बरोबर !’’
‘‘अब हमारी प्रमुख कार्यकर्ता’’ — माइक पर कोई घोषित कर रहा था — ‘‘बहन ऐग्नेस सेठना हमारे चहेते जननायक पब्लिक पार्टी के फाउन्डर लीडर उल्लास दादा ताम्बे को हार पहना कर उनका स्वागत करेंगी । उपस्थित सज्जनों, तालियां !’’
फिर गगनभेदी करतल ध्वनि हुई ।
किसी ने कार्ड बोर्ड का बाक्स खोला और उसमें से हार निकाल कर ऐग्नेस को थमा दिया । ऐग्नेस मुस्कराती हुई नेता के सामने पहुंची ।
झेण्डे ने रिमोट को जेब से निकाल लिया ।
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच ऐग्नेस ने नेता को हार पहनाया ।
झेण्डे का अंगूठा रिमोट के बटन पर कसा ।
तभी ऐग्नेस घूमी और स्टेज पर चलती नेता से परे हटने लगी ।
‘‘ये क्या हो रहा है ?’’ — लोबो बौखलाया — ‘‘ये और परे चली गयी तो इसके बम की चपेट में आने की कोई गारन्टी नहीं होगी ।’’
‘‘क्या करें ?’’ — झेण्डे भी बौखलाया सा बोला ।
तभी जो करना था, उनके लिये नेता ने कर दिया ।
नेता ने बड़े प्यार से नाम ले कर ऐग्नेस को करीब बुलाया । ऐग्नेस फिर उनके सामने जा खड़ी हुई तो नेता ने अपने गले से हार उतार कर ऐग्नेस के गले में डाल दिया ।
और जोर की तालियां गूंजी ।
‘‘नाओ !’’ — लोबो फुंफकारा ।
झेण्डे ने बटन दबाया ।
भीषण विस्फोट हुआ ।
कोहराम मच गया ।
पांच बजे ही हर टीवी चैनल पर लीड स्टोरी थी ।
उल्लास दादा ताम्बे बम विस्फोट में हलाक
स्टेज पर बम फटा
तीन पार्टी कार्यकर्ता मारे गये
दर्जन से ज्यादा लोग घायल
कुछ की हालत गम्भीर ।
पब्लिक पार्टी के लोकप्रिय नेता को सिक्योरिटी को न बोलना भारी पड़ा
राजनैतिक हत्या के कुकृत्य का नंगा नाच
मरने वालों में युवा नेत्री ऐग्नेस सेठना भी
दादर में रैड अलर्ट घोषित ।
सरयू अजमेरा ने टीवी पर न्यूज देखी तो सदमे में उसे हार्ट अटैक होते होते बचा । वो लोअर परेल के एक फ्लैट में अपने पिता से अलग अकेली रहती थी क्योंकि पिता के साथ घाटकोपर में रहना उसकी रंगरेलियों को रास नहीं आता था ।
फिर भी उस घड़ी उसे पिता ही याद आया ।
वो उसको फोन लगाने ही लगी थी कि पहले ही मोबाइल बज उठा ।
उसने स्क्रीन पर निगाह डाली तो पाया लाइन पर पिता ही था ।
‘‘सरयू’’ — पिता का उत्तेजित स्वर उसे सुनाई दिया — ‘‘टीवी खोला । कोई न्यूज चैनल लगा ।’’
‘‘च-चालू है ।’’ — वो कातर भाव से बोली ।
‘‘ब्रेकिंग न्यूज देखी !’’
‘‘हां ।’’
‘‘ऐग्नेस...तेरी फ्रेंड...गयी ।’’
‘‘आप के मन की मुराद पूरी हुई ।’’
‘‘क्या कहती है ?’’
‘‘वही जो आपने सुना । रिश्ते की जो डोर आप टूटी देखना चाहते थे, वो टूट गयी ।’’
‘‘लेकिन मेरा क्या कसूर ?’’
‘‘किसी का कोई कसूर नहीं । सिर्फ मेरी तकदीर का कसूर ।’’
‘‘बेटी घर आ जा ।’’
‘‘आ जाऊंगी, लेकिन अभी नहीं ।’’
‘‘तो कब ?’’
‘‘कुछ दिनों में । एक प्रार्थना है ।’’
‘‘क्या ? निसंकोच बोल ।’’
‘‘कुछ दिन आप मेरे पास न फटकें ।’’
‘‘लेकिन...’’
‘‘मुझे मेरे गम के साथ अकेला रहने दें ।’’
‘‘लेकिन, बेटी...’’
बेटी नहीं सुन रही थी । लाइन कट चुकी थी ।
���
अगली सुबह तीनों — झेण्डे, कौल और गरेवाल — घाटकोपर जा कर कल्याण अजमेरा से मिले ।
‘‘आप का काम हो गया ।’’ — झेण्डे बोला — ‘‘अब हमारे काम का क्या कहते हैं ?’’
‘‘तुमने किया ?’’
‘‘बरोबर । किसी और ने किया होता तो यहां पहुंचा होता ?’’
‘‘हूं ।’’
‘‘अब आपकी बेटी आप पर इलजाम नहीं लगा सकती कि ऐग्नेस सेठना को आपने खल्लास कराया ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘आप की एक बहुत बड़ी समाजी समस्या हमने हल की है, अब बदले में हमारे काम आ कर दिखाइये ।’’
‘‘तुम चैम्बूर का दाता को खत्म करना चाहते हो !’’
‘‘ये भी कोई पूछने की बात है !’’
‘‘क्यों ? तुम्हारी उससे क्या अदावत है ?’’
झेण्डे ने कौल की तरफ देखा ।
‘‘ये हमारा जाती मामला है ।’’ — कौल कदरन तीखे स्वर में बोला ।
‘‘फिर भी...’’
‘‘नो फिर भी । करार पर खरे उतर के दिखाइये, अजमेरा साहब ।’’
‘‘क्या करूं ?’’
‘‘दाता से कान्टैक्ट कीजिये, उसको बोलिये आप पचास लाख रुपये डोनेट करना चाहते हैं ।’’
‘‘मैं तो नहीं चाहता ।’’
‘‘आपने रकम डोनेट नहीं करनी, सिर्फ ऐसा कहना है ।’’
‘‘ओह ! सिर्फ कहना है ।’’
‘‘और पहले की तरह जिद करनी है कि कलैक्शन के लिये वो अकेला आये, क्योंकि रकम दो नम्बर की है और आप को गवाह नहीं मांगता ।’’
‘‘तुम क्या करोगे ?’’
‘‘फिर वही सवाल !’’
‘‘सोहल जब मेरे पास आया खत्म होगा तो उसके हिमायती मेरी क्या गत बनायेंगे, मालूम !’’
‘‘वो आप के पास नहीं पहुंचेगा । रास्ते में ही उसका काम हो जायेगा । आप तो अगर पूछा गया तो बोलेंगे कि वो आया ही नहीं ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘अब हूं हां छोड़िये और कोई तरीके का जवाब दीजिये !’’
‘‘खतरा है ।’’
‘‘कोई खतरा नहीं है ।’’
‘‘है तो पहले सोचना था ।’’ — गरेवाल बोला ।
‘‘बिल्कुल !’’ — झेण्डे बोला — ‘‘आपने अपना मतलब हल कर लिया, हमारी बारी आयी तो टालमटोल कर रहे हैं । नहीं चलेगा ।’’
‘‘नहीं चलेगा तो क्या करोगे ?’’
तीनों की निगाहें मिलीं ।
‘‘आप इनकार करके देखिये ।’’ — गरेवाल बोला — ‘‘मालूम पड़ेगा ।’’
‘‘क्या मालूम पड़ेगा ?’’
‘‘ये मालूम पड़ेगा’’ — कौल बोला — ‘‘कि जो काम हम एक बार कर सकते हैं वो दोबारा भी कर सकते हैं ।’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘अभी आपकी बेटी माशूक के लिये तड़प रही है, फिर बाप के लिये तड़पेगी ।’’
‘‘धमकी दे रहे हो ?’’
‘‘वार्निंग ।’’
अजमेरा कसमसाया ।
कुछ क्षण खामोश रहा ।
‘‘तो क्या जवाब है आपका ?’’ — कौल बोला ।
‘‘मैं उसको यहां नहीं बुला सकता ।’’
‘‘बुला तो सकते हैं न !’’
‘‘हां । लेकिन यहां नहीं । ऐसी बातों की मैं अपनी बीबी को भी खबर नहीं लगने देता, ऊपर से मेरा एक साला आजकल इधर आया हुआ है ।’’
‘‘पहले कहां बुलाते थे ?’’
‘‘मनोरी में । वहां बीच रोड पर मेरा एक कॉटेज है, वहां ।’’
‘‘कॉटेज किस लिये ?’’
‘‘सोचो । समझो ।’’
‘‘ठीक है । हमें पता दीजिये । हम जगह देख के आयेंगे । हमारे काम की हुई तो शाम तक ओके बोलेंगे ।’’
अजमेरा ने पता दिया ।
‘‘जायेगा, बाप ।’’ — इरफान चिन्तित भाव से बोला ।
‘‘लो !’’ — विमल बोला — ‘‘ये कोई पूछने की बात है !’’
‘‘सोच ले ।’’
‘‘क्या सोच लूं ? पहले नहीं गया तीन बार !’’
‘‘पहले की बात और थी ।’’ — शोहाब बोला — ‘‘पहले स्वैन नैक प्वायन्ट वाकया नहीं हुआ था ।’’
‘‘ठीक ! अब इसी वजह से कोई खतरा नहीं । सारे भाई लोग तो मारे गये !’’
‘‘हुआन का खयाल बार बार आता है ।’’
‘‘लोबो का हुआन से कोई लिंक निकला ?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘तो ?’’
शोहाब खामोश रहा ।
‘‘वो जिन्दा नहीं हो सकता ।’’ — विमल बोला — ‘‘किसी करिश्माई तरीके से हुआ भी तो क्या कर सकता है ! उसकी एस्टेट पर जो सरकारी एक्शन हुआ, उसकी रू में क्या जवाब देगा !’’
शोहाब खामोश रहा ।
‘‘जिन्दा है तो जिन्दगी को बरकरार रखने की कोशिश करेगा । उस को रत्ती भर भी अक्ल होगी तो पहला दांव लगते ही सिंगापुर निकल गया होगा ।’’
‘‘लोबो की बाबत एक बात है’’ — इरफान बोला — ‘‘जो हैरान करती है, हलकान करती है ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘परसो वो एक टैक्सी में सवार था जिस का लिंकिंग रोड पर एक वैगन-आर से छोटा सा एक्सीडेंट हुआ । लोबो की ताक में लगे हमारे भीड़ू लोगों की रिपोर्ट है कि वो एक्सीडेंट सरासर टैक्सी वाले की गलती से हुआ था, बल्कि ऐसा जान पड़ता था जैसे उसने जान के किया हो । हमारे भीड़ू लोगों ने सब कुछ फासले से देखा पण बोलते हैं टैक्सी की साइड में बड़ा डेंट पड़ा फिर भी टैक्सी वाले ने वैगन-आर वाले से कोई हर्जाना खामियाजा न मांगा और एकाएक गलाटा फिनिश करके अपनी राह लगा ।’’
‘‘उस एक्सीडेंट की कोई अहमियत है ?’’
‘‘दिखाई तो नहीं देती पण...’’
‘‘क्या पण ?’’
‘‘बाद में वो शिवाजी पार्क की उस सभा में देखा गया जो उधर पब्लिक पार्टी का भीड़ू लोग करता था । बाप, उधर इतना बड़ा ब्लास्ट हुआ...’’
‘‘लोबो ने किया ?’’
‘‘वो तो खैर नहीं हो सकता । कैसे होयेंगा ! पण पता नहीं क्यों मेरे अन्दर में लोबो की वहां मौजूदगी की वजह से कोई धुक धुक । साला कुछ बेचैनी सा महसूस होता है ।’’
‘‘वहम है । इरफान, तेरे को आदत पड़ गयी है खबरदार रहने की — जो कि कोई बुरी बात नहीं — जिस की वजह से तू टेंस रहता है ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘बात’’ — शोहाब बोला — ‘‘डोनेशन कलैक्ट करने जाने की हो रही थी ।’’
‘‘मैं जाऊंगा । इस बार डोनर — कल्याण अजमेरा — पचास लाख देना चाहता है । जरा सोचो, इतनी बड़ी रकम से कितने लोगों का भला होगा !’’
‘‘रकम कुछ ज्यादा ही बड़ी नहीं ?’’
‘‘है तो सही ! पर डोनर के मूड की बात है, सामर्थ्य की बात है । पहले तीन बार दस दस लाख दिया, इस बार एकमुश्त पचास लाख देता है तो क्या प्राब्लम है !’’
‘‘जगह वही ?’’
‘‘हां । गोरई । बीच रोड ।’’
शोहाब खामोश हो गया । वो बार बार इरफान से निगाहों में मन्त्रणा करता जान पड़ने लगा ।
‘‘मैं तुम्हारे मन के भाव पढ़ सकता हूं ।’’ — विमल बोला — ‘‘तुम्हारी फिक्र वाजिब है लेकिन गैरजरूरी है । फिर भी मन नहीं मानना तो ऐसा करना, मनोरी गोरई मेन रोड पर इन्तजार करना ।’’
‘‘उसके बीच रोड से इन्टरसैक्शन पर ?’’ — शोहाब बोला ।
‘‘यही बोला मैंने ।’’
‘‘ये ठीक है ।’’
‘‘हां ।’’ — इरफान भी बोला ।
‘‘मैंने जाना आना ही करना होगा, कोई प्राब्लम नहीं होगी ।’’
‘‘आज शाम ! नौ बजे ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘ठीक है ।’’
‘‘वापिसी में मेरे पास बड़ी रकम होगी । किसी नाके पर कोई चैकिंग हो गयी तो एक से तीन भले ।’’
‘‘ठीक ।’’
���
विमल गोरई और आगे बीच रोड पहुंचा ।
होटल सी-व्यू की एक सफेद एम्बैसेडर कार शुरू से उसके कब्जे में थी जिस को खुद ड्राइव करता वो वहां पहुंचा था ।
कॉटेज जिस रास्ते पर था, उसके दहाने पर पांच सीढ़ियाँ थीं इसलिये कार वहाँ से आगे नहीं जा सकती थी । सीढ़ियों के आगे जो लम्बा रास्ता था, वो कोई सौ गज लम्बा था, टेढ़ा मेढ़ा था और ऊंची झाडियों के बीच से गुजरता था । उस रास्ते के सिरे पर वो कॉटेज था जो कि उसकी मंजिल था ।
वो कार से निकला, उसने सीढ़ियां तय कीं और राहदारी पर आगे बढ़ा ।
घोड़ा जाम हो गया ।
गरेवाल आतंकित भाव से बार बार गन का घोड़ा खींचने लगा ।
बाजरिया झेंडे ब्लैक मार्केट से पैंतीस हजार में खरीदी सैकण्ड हैंड गन ऐन वक्त पर दगा दे रही थी ।
‘‘वो गुजरा जा रहा है’’ — कौल सस्पेंस में फुसफुसाया — ‘‘गोली क्यों नहीं चलाते हो ?’’
उस घड़ी वो दायीं ओर की झाडियों में छुपे हुये थे ।
‘‘ओये, चल नहीं रही । घोड़ा नहीं खिंच रहा ।’’
‘‘हे भगवान ! ये कोई वक्त था ऐसी कोई गड़बड़ का !’’
‘‘क्या करूं ?’’
‘‘वो तो निकला जा रहा है !’’
‘‘आपे कुछ सोच । तू सयाना है, कुछ सोच...’’
तभी इलाके की बिजली चली गयी ।
‘‘लानत !’’ — कौल भुनभुनाया — ‘‘यही कसर बाकी थी ।’’
‘‘ओये, सोच कुछ ।’’
‘‘चुप करो । सोचने दो...’’
विमल काटेज पर पहुंचा, उसने मेन डोर की चौखट के करीब लगी कालबैल का बटन दबाया ।
तभी बिजली चली गयी ।
अब काल बैल ने नहीं बजना था ।
उसने दरवाजे पर दस्तक दी, फिर दी ।
‘‘कौन ?’’ — भीतर से एक स्त्री स्वर में पूछा गया ।
‘‘मैं विमल । अजमेरा साहब से मिलना है ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘मैं पहले भी तीन बार यहां आ चुका हूं । हर बार आप ही ने मुझे दरवाजा खोला था ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘शायद रागिनी नाम बताया था अजमेरा साहब ने ।’’
‘‘तुम वो विमल हो ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘रुको ।’’
विमल प्रतीक्षा करने लगा ।
दरवाजा खुला ।
लेकिन जाली वाला दरवाजा अभी बन्द था । उसके पार विमल को सिर्फ एक जनाना साया ही दिखाई दिया ।
जरूर वो भी जाली से पार साया ही देख रही थी ।
उसने जाली के ऐन करीब आकर बाहर झांका ।
‘‘मुझे तुम्हारी सूरत नहीं दिखाई दे रही ।’’ — वो बोली ।
विमल ने जेब से मोबाइल निकाल कर आन किया और उसे अपने मुंह के आगे किया ।
‘‘हूं ।’’ — वो बोली — ‘‘रुको । बोलती हूं अजमेरा साहब को ।’’
उसके पीठ फेरते ही विमल की खोपड़ी पर पीछे से एक भीषण प्रहार हुआ । उसके मुंह से कराह भी न निकली, वो वहीं, निशब्द, दरवाजे के सामने रेत के बोरे की तरह ढ़ेर हो गया ।
जब उसे होश आया तो उसने खुद को पुलिस की गिरफ्त में पाया ।
पता नही कब तक वो बेहोश रहा था ।
इलाके की रौशनी तब तक लौट चुकी थी ।
उसने देखा कॉटेज का जाली वाला और दूसरा दरवाजा दोनों खुले थे और भीतर भरपूर रौशनी थी । दरवाजों से आगे ड्राईंग रूम था जिसमें एक सोफे पर बैठी एक युवती हाथों में मुंह छुपाये सुबक रही थी । वो एक सलवार सूट पहने थी जिस की जगह जगह से धज्जियां उड़ी हुई थीं । उसके बाल बिखरे हुए थे और बांहों पर, गर्दन पर खूनी खरोंचे साफ दिखाई दे रही थीं ।
रागिनी !
साफ जान पड़ता था किसी ने उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था । जैसी उसकी हालत थी, वो चुटकियों में नहीं बनाई जा सकती थी । इस का मतलब था वो बहुत देर तक बेहोश रहा था ।
‘‘नाम बोलने का ।’’ — एक बावर्दी सब-इन्स्पेक्टर लड़की से सम्बोधित था ।
‘‘रागिनी ।’’ — हथेलियों पर से सिर उठा कर वो बोली — ‘‘रागिनी खरे ।’’
तब विमल ने देखा उसका मुंह भी गर्दन और बांहों की तरह नुचा हुआ था, ऊपर का होंठ यूं सूजा हुआ था जैसे किसी ने उस पर घूंसा जमाया हो ।
‘‘क्या हुआ था ?’’
‘‘सब इसने किया ।’’ — उसने रोते सिसकते विमल की ओर संकेत किया — ‘‘मेरे दरवाजा खोलते ही मेरे पर झपट पड़ा । अजमेरा साहब ने बीच बिचाव किया तो उन को पीट पीट कर मार डाला ।’’
‘‘क्या ! मार डाला ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘इस कॉटेज के मालिक कोई अजमेरा साहब हैं ?’’
‘‘हां । पूरा नाम कल्याण अजमेरा । बड़े बिजनेसमैन हैं ।’’
‘‘तुम उनकी क्या हो ?’’
‘‘मैं...मैं...मैं फ्रेंड हूं ।’’
‘‘फ्रेंड बोला !’’
‘‘हां ।’’
कीप ! — विमल ने सोचा ।
‘‘तुम कहती हो इस आदमी ने अजमेरा साहब को मार डाला !’’
‘‘हां । और मेरा रेप किया । मेरे को नोचा खसोंटा, जानवर की तरह भंभोड़ा ।’’
‘‘क्यों ?’’
‘‘मेरे को नहीं मालूम । जरूर ये कोई सैक्स मैनियाक है ।’’
‘‘सुना !’’ — सब इन्स्पेक्टर विमल से बोला ।
‘‘इसे मेरी बाबत मुगालता है ।’’ — विमल शान्ति से बोला — ‘‘जो यहां हुआ, बुरा हुआ लेकिन मेरे किये न हुआ । मेरे को तो कॉटेज में कदम रखने का भी मौका नहीं मिला था । जाली वाला दरवाजा तो इसने मुझे खोला ही नहीं था ।’’
‘‘तोड़ दिया ।’’ — रागिनी बोली — ‘‘जाली उधेड़ दी और भीतर हाथ डाल कर चिटखनी खोल ली ।’’
‘‘मैं पहले भी तीन बार यहां आया । पहले तुम्हें मेरे से ऐसी कोई शिकायत क्यों न हुई ?’’
‘‘आदमी के पशु बनते क्या टाइम लगता है !’’
‘‘आखिरी बार कब यहां आये थे ?’’ — सब-इन्स्पेक्टर ने पूछा ।
‘‘तीन महीने पहले ।’’
‘‘उस दौरान माथा फिर गया । सैक्स मैनियाक बन गये ।’’
‘‘मैं वैसा आदमी नहीं हूँ ।’’
‘‘तुम हो कौन ?’’
‘‘अजमेरा साहब का वाकिफ हूं, उन के बुलावे पर उन से बात करने यहां आया था ।’’
‘‘क्या बात करने ?’’
‘‘बात उन्होंने करनी थी । मुलाकात होती तो बताते ।’’
‘‘नाम बोलो ।’’
‘‘वि...अरविन्द कौल !’’
‘‘रहते कहां हो ?’’
‘‘मैं मुम्बई से नहीं हूं ।’’
‘‘अभी मुम्बई में हो तो कहीं तो रहते हो !’’
‘‘कोलीवाडा । होटल मराठा ।’’
‘‘क्या काम करते हो ?’’
‘‘दिल्ली में गैलेक्सी ट्रेडिंग कार्पोरेशन में एकाउन्ट्स आफिसर हूं ।’’
‘‘इधर कैसे आना हुआ ?’’
‘‘टूर पर आना पड़ता है । गैलेक्सी का आफिस इधर भी है ।’’
‘‘दिल्ली का आफिस का पता बोलो ।’’
विमल ने केजी मार्ग का पता बोला ।
‘‘उधर फोन लगायें तो तुम्हारी एम्पलायमेंट की तसदीक होगी ?’’
‘‘बिल्कुल होगी ।’’
‘‘किसको फोन लगायें ?’’
‘‘मैंनेजर चान्दवानी को या मालकिन मिसेज शुक्ला को ।’’
‘‘नम्बर बोलो ।’’
विमल ने दो नम्बर बोले ।
जो कि एक हवलदार ने नामों समेत नोट किये ।
‘‘तुम कहती हो’’ — सब-इन्स्पेक्टर रागिनी की तरफ घूमा — ‘‘इसने अजमेरा साहब को पीट पीट के मार डाला और तुम्हारा रेप किया !’’
‘‘हां ।’’ — रागिनी पूर्ववत् सुबकती बोली ।
‘‘लाश कहां है ?’’
‘‘इसी से पूछो ।’’
‘‘लाश कहां हैं ?’’ — सब-इन्स्पेक्टर ने पूछा ।
‘‘मुझे नहीं मालूम ।’’ — विमल बोला — ‘‘मेरे को तो अजमेरा साहब की शक्ल भी नहीं दिखाई दी थी । सच पूछो तो मुझे तो इसकी भी शक्ल नहीं दिखाई दी थी । उस वक्त तभी इलाके की बत्ती चली गयी थी जिस की वजह से कॉटेज में अन्धेरा था । मैंने तो कॉटेज में कदम तक नहीं रखा था ।’’
‘‘फिर यहां जो हुआ, वो कैसे हुआ ? बाई की ये बुरी गत किसने बनाई ?’’
‘‘मैंने नहीं बनाई ।’’
‘‘तो किसने बनाई ?’’
‘‘उसी ने जिसने मेरे पर हमला किया ।’’
‘‘यहां कौन था हमला करने के लिये ?’’
‘‘मुझे नहीं मालूम ।’’
‘‘हमले से पहले तुम्हें हमलावर की कोई भनक न लगी ?’’
‘‘बिल्कुल न लगी । मेरे पर एकाएक पीछे से हमला हुआ । कोई भारी चीज किसी ने पीछे से मेरी खोपड़ी पर दे मारी । ये देखो गूमड़ । अभी तक खून रिस रहा है ।’’
‘‘ये गूमड़ पांव फिसला होने से भी बन सकता है ।’’
‘‘बन सकता होगा लेकिन मैं कहता हूं न, पीछे से वार होने से बना ।’’
‘‘तुम हमें बेहोश नहीं मिले थे । हम जब यहां पहुंचे थे तो तुम हमें अपने पैरों पर खड़े मिले थे ।’’
‘‘मुझे तभी होश आया था ।’’
‘‘बाई के कहे मुताबिक यहां भीतर जो फौजदारी हुई, ये गूमड़ उसका भी नतीजा हो सकता है । तुमने कॉटेज के मालिक को पीट पीट कर मार डाला...’’
‘‘मैंने नहीं ।’’
‘‘...वो खामोशी से ही तो नहीं पिटता रहा होगा ! उसने भी तो कोई हाथ पांव चलाये होंगे ! जबरजिना की शिकार हुई बाई ने भी तो कोई हाथ पांव चलाये होंगे ! ये गूमड़ उसका भी तो नतीजा हो सकता है !’’
‘‘हो सकता है लेकिन है नहीं ।’’
‘‘श्यानपन्ती नहीं मांगता मेरे को । अभी बोलाे, लाश किधर छुपाई ?’’
‘‘मैंने नहीं छुपाई ।’’
‘‘तुम्हारी कमीज पर खून के धब्बे हैं...’’
‘‘मेरे गूमड़ से रिसते खून से बने ।’’
‘‘...लाश उठाने से बने ।’’
‘‘अगर ये सब मैंने किया तो मेरे को लाश छुपाने की क्या जरूरत थी ?’’
‘‘बाई को झूठा साबित करना था न ! ये बोलने के वास्ते कि कोई भीड़ू इधर थाइच नहीं ।’’
‘‘नानसेंस !’’
‘‘इधर कैसे पहुंचे थे ?’’
‘‘कार चला के आया था ।’’
‘‘कौन सी कार ?’’
‘‘एम्बैसेडर । वाइट । मार्क फोर ।’’
‘‘वो जो बाहर राहदारी के सिरे पर सीढियों के सामने खड़ी है ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘वो तुम्हारी कार है ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘चाबी इधर करो ।’’
‘‘क्यों ?’’
‘‘तलाशी होगी ।’’
विमल ने चाबी उसे सौंपी ।
सब-इन्स्पेक्टर ने चाबी आगे अपने दो मातहतों को सौंप दी और तलाशी की बाबत उन्हें हिदायत जारी की ।
हवलदार और सिपाही वहां से चले गये ।
तभी शोहाब और इरफान वहां पहुंचे ।
माहौल की टेंशन से ही उन्हें अहसास हो गया कि वहां कुछ बुरा वाक्या हुआ था ।
‘‘क्या हुआ ?’’ — शोहाब आशंकित भाव से बोला ।
विमल ने संक्षेप में बताया ।
उसे उम्मीद थी लेकिन सब-इन्स्पेक्टर दखलअन्दाज न हुआ ।
‘‘अल्लाह !’’ — सुनकर शोहाब के मुंह से निकला ।
‘‘साला इतना गलाटा हो गया इधर !’’ — इरफान बोला ।
विमल ने खामोशी से सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘साला कोई तेरे को सैट किया ।’’
‘‘हां ।’’
‘‘पण कौन किया ऐसा ?’’
‘‘मालूम नहीं । कोई अन्दाजा भी नहीं ।’’
‘‘ओह !’’
‘‘तुम जबरजिना’’ — शोहाब बोला — ‘‘और कत्ल के मुजरिम !’’
‘‘वो सब-इन्स्पेक्टर यही साबित करने पर तुला है ।’’
तभी एम्बैसेडर की चाबी लेकर गया हवलदार दौड़ता हुआ वापिस लौटा ।
‘‘एसआई साहब !’’ — वो आतंकित स्वर में बोला — ‘‘एसआई साहब ! डिकी में लाश !’’
‘‘क्या !’’
‘‘एम्बैसेडर की डिकी में लाश । खून से लिथड़ी । साफ मालूम पड़ता था किसी ने बेतहाशा ठोका ।’’
सब राहदारी पार कर के कार के करीब पहुंचे ।
लाश को कार से निकाला गया और रागिनी को उसकी शिनाख्त करने को बोला गया ।
रागिनी ने निसंकोच बतौर कल्याण अजमेरा उसकी शिनाख्त की ।
‘‘तो’’ — सब-इन्स्पेक्टर विमल को घूरता बोला — ‘‘लाश को कहीं ले जाकर ठिकाने लगाने का इरादा था ?’’
‘‘क्या फायदा !’’ — विमल बोला — ‘‘पहले भी बोला ।’’
‘‘मैं भी पहले भी बोला, बाई को झूठा साबित करने का था न ! अभी लाश की बरामदी ने तुम्हें ऐन फिट कर दिया है ।’’
‘‘अच्छा !’’
‘‘हां । बाई तुम्हारी खुल्ली शिनाख्त कर रही है कि तुम्हीं इधर पहुंचे थे, तुम्हारे सिवाय यहां कोई नहीं आया था । तुम खुद कबूल करते हो कि तुम यहां पहले भी आ चुके हो इसलिये वो तुम्हें पहचानती थी । इधर जो किया, तुमने किया पण एक बात में चूक गये ।’’
‘‘किस बात में ?’’
‘‘बाई को जिन्दा छोड़ दिया निशानदेयी के वास्ते ? खिलाफ गवाही देने के वास्ते । नहीं करना था । अभी वाट लगेगी ।’’
‘‘क्या करोगे ?’’
‘‘मैं तुम्हें जबरजिना और कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार करता हूं ।’’
‘‘तुम हो कौन ?’’
‘‘मैं लोकल चौकी का इंचार्ज यशवन्तराव सावन्त हूं । ये इलाका मेरी चौकी के अन्डर में आता है । तलाशी होगी, भीड़ू ।’’
विमल की जामातलाशी हुई । उसके पास जो कुछ था सब — मोबाइल भी — जब्त कर लिया गया ।
‘‘तुम गिरफ्तार हो ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर रौब से बोला ।
‘‘ठीक है । पर मेरी एक बात सुनो ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘तुम्हारा कमिश्नर मुझे जानता है ।’’
‘‘क्या बोला ! कमिश्नर जुआरी साहब तुम्हें जानता है !’’
‘‘हां ।’’
‘‘मगज में जाला । इसी वास्ते लम्बी लम्बी छोड़ रहा है ।’’
‘‘मैं सच कह रहा हूं । जुआरी साहब मुझे बहुत अच्छी तरह से जानते हैं । उन्हें मेरा लिहाज है । मेरा मान है ।’’
‘‘एक मामूली एकाउन्टेंट भीड़ू का ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘जो कि इधर मुम्बई से भी नहीं ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘पहले तो ऐसा हो नहीं सकता । होगा भी तो ये जबरजिना का केस है, हत्या का केस है, दोनों सीरियस क्राइम हैं, तुम्हारे खिलाफ बाई की सूरत में चश्मदीद गवाह है, लाश तुम्हारी कार की डिकी से बरामद हुई है, तुम्हारी शर्ट पर खून के छींटें बताते हैं तुमने लाश को कॉटेज से कार तक ढ़ोया था । ओपन एण्ड शट केस है ये, भीड़ू, इसमें कमिश्नर साहब भी क्या करेगा !’’
‘‘देखेंगे । बात तो कराओ ।’’
‘‘कमिश्नर साहब सरकारी दौरे पर परदेस में है । मेरे को पक्की करके मालूम कि पेरिस गयेला है ।’’
‘‘ओह !’’
‘‘अभी...’’
‘‘बाप’’ — एकाएक इरफान बोला — ‘‘जरा साइड में आने का ।’’
‘‘काहे ?’’ — सब-इन्स्पेक्टर बोला ।
‘‘मालूम पड़ता है न !’’
‘‘मांगता क्या हैं ?’’
‘‘वो भी मालूम पड़ता है न !’’
‘‘इधरीच बोलने का ।’’
‘‘बाप’’ — इरफान का स्वर धीमा पड़ा — ‘‘गुलदस्ता देता है न ! जितना बड़ा बोले...’’
‘‘काहे वास्ते ?’’
‘‘केस को रफा दफा करो न !’’
‘‘तुम्हारे कहने से ?’’
‘‘अरे, ये बहुत नेक, बहुत शरीफ भीड़ू है, जो तुम कहता है किया, ये नहीं कर सकता । कर सकता हैइच नहीं । तुम इस को छोड़ो और असली मुजारिम को थामो जो इसको सैट किया ।’’
‘‘यही है असली मुजरिम । और मैं इसको थामे है ।’’
‘‘पण...’’
‘‘मेरे को रिश्वत का दोबारा हिन्ट दिया तो साला तेरे को भी गिरफ्तार करेगा ।’’
‘‘गुलदस्ता नहीं थामता । वैसा पुलिस वाला है...’’
‘‘अभी थोबड़ा बन्द । ये भीड़ू गिरफ्तार है और रहेगा ।’’
इरफान खामोश हो गया ।
‘‘गलत किया ।’’ — कौल चिन्तित भाव से बोला ।
‘‘क्या बकता है ?’’ — गरेवाल भुनभुनाया ।
‘‘सरदार, तेरे पर दीवानगी तारी हो तो तुझे पता नहीं लगता तू क्या कर रहा है । दीवानगी क्या, एकाएक शैतान सवार हो गया था तेरे सिर पर ।’’
‘‘ओये, वो जनानी थी ही इतनी सोहनी कि देख के ही नशा आ गया ।’’
‘‘हम जनानी की वजह से वहां नहीं थे ।’’
‘‘जिस वजह से थे, उस पर भी तो अमल हुआ ! माईंयवा ऐन फिट जबरजिना और कत्ल के केस में । देख लेना फांसी पर झूलेगा ।’’
‘‘खुद क्यों पिल पडे ?’’
‘‘ओये, कहा न, नशा छा गया । मत्था फिर गया । सिर पर शैतान सवार हो गया तेरी जुबान में ।’’
‘‘वही कहानी दोहरायी जो पहले दिल्ली में की थी । पीछे पहले खन्ना को पीट पीट कर मार डाला फिर उसकी बीबी का फुल बैंड बाजा बजा दिया ।’’
‘‘गलती हो गयी, यार ।’’
‘‘गलती नहीं, मूर्खता ! जहालत ! हिमाकत !’’
‘‘ओये, अब क्यों मिट्टी झाड़ रहा है !’’
‘‘नाहक खून से हाथ रंगे । मारना ही था तो सोहल को मारते ! फिर सस्पेंस तो न रहता कि सजा पायेगा या बच जायेगा !’’
‘‘अब बोला तो, गलती हुई ।’’
‘‘हां ।’’ — कौल उदासीन भाव से बोला — ‘‘बोला तो !’’
‘‘तू खफा है !’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘है भी तो छोड़ पिच्छा । जो हुआ सो हुआ । हमारी किसी को खबर नहीं है । न लग सकती है । जो हुआ सब माईंयवा सोहल भुगतेगा और हमारे कलेजे को ठण्ड पड़ेगी ।’’
‘‘आगे क्या प्रोग्राम है ?’’
‘‘अभी कुछ दिन तो रुकेंगे — और नहीं तो सोहल का अंजाम देखने को ही सकेंगे — फिर चलेंगे पंजाब ।’’
‘‘हुआन से हमने गंठजोड़ किया, उसका काम तो न हुआ !’’
‘‘क्यों न हुआ ? बराबर हुआ । है न ऐन फिट सोहल का बच्चा !’’
‘‘उसका काम उसके फिट होने से नहीं बनता । जिन लोगों को वो सैट करना चाहता है, वो सोहल का सिर हथेली पर देखना चाहते हैं ।’’
‘‘वो टाइम वी आ जायेगा ।’’
‘‘सरदार, उस मामले में दिल्ली अभी दूर है ।’’
‘‘है तो है ।’’ — गरेवाल झल्लाया — ‘‘हमारा काम हो गया न ! हुन खसमां नूं खाये हुआन ।’’
कौल खामोश हो गया ।
‘‘एक बात और सुन ।’’ — गरेवाल एकाएक बोला ।
‘‘क्या बात ?’’ — कौल अनमने भाव से बोला ।
‘‘वो गन ! जो वक्त पर धोखा दे गयी ! अब ऐन फर्स्ट क्लास चलती है ।’’
‘‘अब घोड़ा जाम नहीं है !’’
‘‘जरा भी नहीं ।’’
‘‘कमाल है !’’
‘‘है न !’’
‘‘अब हमें उसको पास नहीं रखना चाहिये ।’’
‘‘अभी तो रखेंगे ।’’
‘‘खामखाह...’’
‘‘ओये, नहीं खामखाह । क्या पता आगे किसी काम आये !’’
‘‘किस काम आयेगी ?’’
‘‘सोहल को मायावी मानस बताते हैं । कहते हैं उसके सिर पर दशमेश पिता का हाथ है । काल पर फतह पाया बताते हैं उसे । कहते हैं मौत उसकी तरफ बढ़ती है तो रास्ता बदल लेती है ।’’
‘‘तो ?’’
‘‘ऐसा बन्दा कोई करिश्मा हुआ और छूट गया तो गन फिर काम आयेगी । नहीं ?’’
‘‘यानी कि तुम्हारे दिल के किसी कोने में है कि वो छूट सकता है !’’
‘‘नहीं छूट सकता । फिर भी तैयार रहने में क्या हर्ज है !’’
‘‘ठीक है । मर्जी तुम्हारी । अब एक बात और सुनो ।’’
‘‘क्या बात ?’’
‘‘नाखून काटो ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘हाथों के नाखून काटो । पता नहीं कब से नहीं काटे ।’’
‘‘तो क्या हुआ ?’’
‘‘सोचो ।’’
‘‘क्या सोचूं ?’’
‘‘लड़की नोची खंसोटी गयी, कैसे हुआ ?’’
‘‘अच्छा वो ! पर उसका नाखून काटने से क्या रिश्ता है ?’’
‘‘नोचने से जो चमड़ी उधड़ती है, उस की बारीक तह नाखूनों के भीतर की तरफ सैट हो जाती है जो कि देखने पर दिखाई नहीं देती लेकिन परख का तजुर्बा रखने वाली निगाह से छुपती भी नहीं ।’’
‘‘ओह ! पर मुझे कौन चेक करेगा ?’’
‘‘खबरदार रहने में कोई हर्ज है ! तैयार रहने में कोई हर्ज है !’’
‘‘हला, हला । काटूंगा नाखून ।’’
‘‘गहरे करके । ऐन सिरे तक । फिर रगड़ के हाथ धोना ।’’
‘‘मंजूर है, भई, तेरा हुक्म ।’’
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सुबह चौकी पर शोहाब और इरफान सोहल से मिले ।
‘‘कैसी कटी ?’’ — शोहाब चिन्तित भाव से बोला ।
‘‘ठीक ।’’ — विमल बोला — ‘‘कोई प्राब्लम न हुई ।’’
‘‘पुलिसियों ने तंग न किया ?’’ — इरफान बोला ।
‘‘न !’’
‘‘तू हां बोल, बाप’’ — इरफान आवेश से बोला — ‘‘मैं साला चौकी की ईंट से ईंट बजाता है ।’’
‘‘जरूरत नहीं । मेरे खिलाफ केस में कुछ नहीं रखा ।’’
‘‘फिर भी’’ — शोहाब बोला — ‘‘हमने एक बड़ा वकील सैट किया है । दिनेश प्रधान नाम है । दोपहर तक इधर पहुंचेगा ।’’
‘‘पहुंचे । मैं भी उसे कुछ करारे हिन्ट दूंगा केस के बारे में ।’’
‘‘मसलन क्या ?’’
‘‘बोलता हूं ।...ये चौकी इंचार्ज सब-इन्स्पेक्टर यशवन्तराव सावन्त मूर्ख है । लगता नहीं कभी इसका कत्ल की तहकीकात से वास्ता पड़ा है । इसी वजह से मर्डर इनवैस्टिगेशंस के बेसिक्स भी नहीं जानता मालूम पड़ता ।’’
‘‘बोले तो !’’
‘‘बोलता है कॉटेज से कार तक लाश मैं ने ढोई । अपने कन्धे पर । इस वजह से मेरी कमीज को मकतूल का खून लगा । असल में वो खून मेरी खोपड़ी के गूमड़ में से रिस कर निकला और कमीज पर पड़ा । वो काबिल पुलिस वाला होता तो फॉरेंसिंक्स एक्सपर्ट को तलब करता, लैब वालों को बुलाता जो साबित करके दिखाते कि मेरी कमीज पर लगा खून मेरे ही ब्लड ग्रुप का था ।’’
‘‘मकतूल का ब्लड ग्रुप तुम्हारे वाला हो सकता है ।’’
‘‘हो सकता है लेकिन नहीं भी तो हो सकता । हां न का जवाब हासिल करने की उस सब-इन्स्पेक्टर ने तो कोई कोशिश ही न की !’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘अगर मकतूल का और मेरा ब्लड ग्रुप जुदा निकलता तो ये अपने आप में सबूत होता कि लाश मैंने कार तक नहीं ढोई थी, वो वहां प्लांट की गयी थी । फिर ये अपने आप में सबूत होता कि कोई थर्ड पार्टी मौकायवारदात पर मौजूद थी और तमाम किया धरा उसका था ।’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘लड़की की बांहों पर, गर्दन पर खरोंचों के निशान थे । बाकी जिस्म पर भी हों तो कोई बड़ी बात नहीं । ऐसे निशान नाखूनों से ही बन सकते हैं । और यूं नाखूनों के नीचे नुची हुई चमड़ी के अवशेष पाये जा सकते हैं । मेरे नाखूनों का ऐसा — फिजीकल या माइक्रोस्कोपिक भी — मुआयना किया गया होता तो हाथ के हाथ ही साबित हो जाता कि मैं बलात्कारी नहीं हो सकता था ।’’
‘‘हम अब ऐसे मुआयने की मांग कर सकते हैं ।’’
‘‘वकील दिनेश प्रधान करेगा न !’’
‘‘ओह ! वकील करेगा ।’’
‘‘अब’’ — इरफान बोला — ‘‘हमारे लिये हिदायत क्या है ?’’
‘‘देखो, ये तो जाहिर है कि जो कुछ हुआ है, एक व्यापक षड्यन्त्र के तहत हुआ है । और इस षड्यन्त्र की जड़ें दूर दूर तक फैली हो सकती हैं । हमारी प्राब्लम ये है कि हम नहीं जानते हमारा दुश्मन कौन है । हुआन पर हमें शक है लेकिन वो शक बेमानी हो सकता है । अब तक हम सोचे बैठे थे कि वक्त के साथ दुश्मन की शिनाख्त अपने आप होगी, अपने आप जाहिर होगा कि हुआन मरा या जिन्दा बच गया । अब हम काम के खुद होने का इन्तजार नहीं कर सकते, अब हमें कोशिश करनी होगी कि जो होना है, जल्दी हो ।’’
‘‘कैसे !’’
‘‘जो लोग हमारी निगाह में हैं, हमें उन को थामना होगा, उन पर दबाव बनाना होगा ।’’
‘‘जैसे मारकस लोबो !’’
‘‘जैसे कयूम नलवाला !’’ — इरफान बोला ।
‘‘ऐग्जैक्टली । मैं थर्ड डिग्री के हक में नहीं हूं फिर भी वक्त की जरूरत है कि कम से कम इन दो जनों पर कैसा भी, कितना भी दबाव बनाया जाये ।’’
‘‘लोबो हुआन की बाबत बकेगा ?’’ — शोहाब बोला ।
‘‘हां ।’’
‘‘और नलवाला’’ — इरफान बोला — ‘‘अपने उस आका की बाबत बकेगा जिसने उसे नकली पुलिस रेड के लिये तैयार किया !‘‘
‘‘हां ।’’
‘‘हम थामेंगे दोनों को । ये काम हो गया समझ, बाप । थामेंगे और ऐसा पिरेशर बनायेंगे कि दोनों भीड़ू सब उगलने को मजबूर हो जायेंगे ।’’
‘‘बढ़िया ।’’
‘‘फिर ?’’ — शोहाब बोला ।
‘‘फिर की फिर सोचेंगे । पहला काम पहले ।’’
‘‘वो सब तो मगज में आया, बाप’’ — इरफान बोला — ‘‘पण तेरा क्या होगा ? तू इधरीच ?’’
‘‘फिलहाल । देखो, मुझे फिक्र गिरफ्तारी की नहीं है, मुझे कोई ही फिक्र है ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘ये कि इन लोगों को ये न भनक लग जाये कि इन्होंने मछली पकड़ी थी, मगरमच्छ काबू में आ गया है ।’’
‘‘सोहल ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘ऐसा हो सकता है ।’’ — शोहाब चिन्तित भाव से बोला — ‘‘इस पुलिस चौकी के आगे तुम ने देखा होगा, एक बहुत बड़ा खुला मैदान है जिसके आगे थोड़ा हाइट पर मेन रोड है । जब हम आये थे तो हमने मैदान में कुछ लोग जमा देखे थे जो खुसर पुसर कर रहे थे कि जो भीड़ू पिछली रात जबरजिना और कत्ल के इलजाम में पकड़ा गया था, वो मशहूर इश्तिहारी मुजारिम सोहल था ।’’
‘‘ऐसा !’’
‘‘हमने जो खुसर पुसर सुना, वो बोला ।’’
‘‘लेकिन ऐसा हुआ कैसे ? वो खुसर पुसर शुरू क्योंकर हुई ?’’
‘‘मेरा एक अन्दाजा है तो सही इस बाबत !’’
‘‘क्या ?’’
‘‘कोई अफवाहें उड़ा रहा है ।’’
‘‘कौन ?’’
‘‘जाहिर है कि हमारा अनजाना, अनचीन्हा दुश्मन ।’’
‘‘जो कि असल में कॉटेज वाली हौलनाक वारदात के लिये जिम्मेदार हो सकता है !’’
‘‘हां ।’’
‘‘फिर तो भीड़ में मिल कर उस शख्स की बाबत कुछ जाना जा सकता है !’’
‘‘बरोबर बोला । हम भीड़ में कुछ अपने आदमी प्लांट करेंगे ।’’
‘‘वो सब तो करेंगे’’ — इरफान व्यग्र भाव से बोला — ‘‘पण, बाप, तू सोहल !’’
‘‘प्लास्टिक सर्जरी की वजह से पुलिस के रिकार्ड में मौजूद सोहल की शक्ल से मेरी शक्ल नहीं मिलती ।’’
‘‘फिंगरप्रिंट्स !’’ — शोहाब बोला ।
‘‘इधर वो भी नहीं मिलते । रिकार्ड्स सैक्शन के केशवराव भौंसले नाम के एक हवलदार की मेहरबानी से वो भी नहीं मिलते ।’’
‘‘फिर क्या वान्दा है !’’
‘‘फिर भी ये अफवाह, ये प्रचार बन्द होना चाहिये । ऐसी उंगली मेरी तरफ न ही उठे तो अच्छा है ।’’
‘‘हम करेंगे कुछ । अभी चलते हैं ।’’
विमल ने सहमति में सिर हिलाया ।
ग्यारह बजे के करीब चौकी इंचार्ज सब-इन्स्पेक्टर यशवन्तराव सावन्त के आफिस में विमल की पेशी हुई ।
‘‘बैठो ।’’ — वो बोला ।
विमल उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया ।
‘‘तो क्या सोचा तुमने ?’’
‘‘किस बारे में ?’’
‘‘कनफेशन के बारे में ! जुर्म के इकबाल के बारे में !’’
‘‘मैं ने कोई जुर्म नहीं किया । मैं सरकमस्टांसिज का, हालात का शिकार हूं ।’’
‘‘अकेली इस लड़की रागिनी की गवाही तुम्हें सूली पर टंगवा सकती है ।’’
‘‘वहम है आप का । कॉटेज में घुप्प अन्धेरा था, कैसे वो अपने बलात्कारी की सूरत पहचान पायी ?’’
‘‘वो कहती है तब पहचानी जब तुम वहां पहुंचे थे । स्क्रीन डोर खोलने से पहले उसकी दरख्वास्त पर तुमने मोबाइल आन कर के उसकी रौशनी अपने चेहरे पर डाली थी ताकि वो तुम्हारी सूरत देख पाती, पहचान पाती । तुम्हीं अकेले आदमी थे जिसके वहां कदम पड़े थे ।’’
‘‘इसलिये मैं बलात्कारी !’’
‘‘हां ।’’
‘‘वो मुझे पहचानती थी । क्योंकि मैं तीन बार पहले भी उधर कल्याण अजमेरा से मिलने आ चुका था ।’’
‘‘तो ?’’
‘‘मेरी शक्ल पहचान कर वो अजमेरा को मेरी आमद की खबर करने गयी थी जो कि खुद आकर दरवाजा खोलता या रागिनी को दरवाजा खोलने को बोलता ।’’
‘‘अरे, तो ?’’
‘‘जब स्क्रीन डोर वैसे ही खुल जाने वाला था तो मेरे को उसकी जाली काटने की क्या जरूरत थी ?’’
सब-इन्स्पेक्टर गड़बड़ाया ।
‘‘आप ने खुद बोला था कि स्क्रीन डोर की जाली काट कर भीतर की चिटखनी खोली गयी थी ।’’
‘‘तुम एकाएक हमला करना चाहते थे ताकि किसी को सम्भलने का मौका न मिलता ।’’
‘‘गुड । मैं जाली काट कर, कटी जाली में से हाथ डाल कर भीतर की चिटखनी खोल कर भीतर घुसा और मैंने अजमेरा पर हमला कर दिया । मैंने उसको पीट पीट कर मार डाला ।’’
‘‘हां ।’’
‘‘उस दौरान लड़की क्या कर रही थी ? खड़ी खड़ी तमाशा देख रही थी ?’’
सब-इन्स्पेक्टर फिर गड़बड़ाया ।
‘‘ये करतूत’’ — फिर बोला — ‘‘तुमने कॉटेज के किसी दूसरे कमरे में की होगी जिसका दरवाजा बन्द होगा । लड़की को नहीं पता लगा होगा कि भीतर क्या हो रहा था !’’
‘‘पीट पीट के मारने का काम चुटकियों में नहीं हो जाता ।’’
‘‘क्या कहना चाहते हो ?’’
‘‘उसने कोई आवाज भी न सुनी ?’’
‘‘वो काफी बड़ा कॉटेज है ! वो कॉटेज के किसी दूर के कमरे में होगी जहां कि तुम्हारी करतूत की आवाजें नहीं पहुंची होंगी ।’’
‘‘आप के पास हर बात का जवाब है । शायद एक बात का न हो ।’’
‘‘कौन सी बात का ?’’
‘‘अजमेरा मेरे से डेढ़ गुणा नहीं तो सवाये से ज्यादा बराबर था । कैसे वो मेरे से जानलेवा मार खा गया — यूं मार खा गया कि मेरे जिस्म पर खरोंच तक न आयी !’’
‘‘तुम नौजवान हो, वो उम्रदराज शख्स था । बड़ी उम्र में रिफ्लेक्सिज कमजोर हो जाते हैं । दूसरे, तुमने उस पर एकाएक हमला किया होगा तो वो बेहोश हो गया होगा । बाकी काम एक जुनून के हवाले होकर तुमने उसकी बेहोशी में ही किया होगा !’’
‘‘क्योंकि मैं राक्षस हूं ! शैतान का सगेवाला ! आदमखोर भेड़िया हूं !’’
‘‘तुम क्या हो, ये तुम जानो ।’’
‘‘अपने से सवाये से ज्यादा शख्स को मैं कन्धे पर नहीं उठा सकता था । उठाकर दूर खड़ी कार तक नहीं ले जा सकता था ।’’
‘‘ऐसा कोई तर्जुबा करके नहीं देखा गया कि तुम अपने वजन से सवाया वजन नहीं उठा सकते ।’’
‘‘बलात्कार में बहुत धींगामुश्ती होती है, जो लड़की काबू में न आ रही हो, उसको काबू में करने के लिये बहुत हाथापायी होती है । बहुत हाथापायी हुई, लड़की के मुंह माथे और जिस्म पर आयी खरोंचे इस बात की गवाह हैं । नहीं ?’’
‘‘क्या कहना चाहते हो ?’’
‘‘ऐसी कोई खरोंचें मेरे मुंह माथे पर, मेरे जिस्म पर क्यों न आयीं ? जैसे मैं उस पर झपटा बताया जाता हूं वैसे उसे तो कटखनी बिल्ली की तरह मेरे पर झपटा होगा चाहिये था ! फिर मेरे जिस्म पर कहीं खरोंचों के निशान क्यों नहीं ?’’
‘‘नहीं तो नहीं’’ — सब-इन्स्पेक्टर झुंझलाया — ‘‘ये सब बहसबाजी की बातें हैं । कुछ नहीं हुआ तो नहीं हुआ । जो चीज प्रत्यक्ष है, उसको नहीं झुठलाया जा सकता ।’’
विमल ने फारेंसिक टैस्ट्स का जिक्र करना चाहा लेकिन ये सोच कर खामोश रहा कि वो काम दोपहर तक वहां पहुंचने वाला वकील दिनेश प्रधान बेहतर कर सकता था ।
‘‘चाय पिओगे ?’’ — सब-इन्स्पेक्टर बोला ।
विमल सकपकाया ।
‘‘हैरानी हो रही है’’ — वो मुस्कराया — ‘‘कि मैं पुलिसवाला, चौकी इंचार्ज मुलजिम को चाय आफर कर रहा हूँ ?’’
‘‘हो तो रही है !’’
‘‘पियोगे ?’’
‘‘जैसी सुबह नाश्ते में मिली थी, अगर उससे बेहतर होगी तो जरूर पियूंगा ।’’
सब-इन्स्पेक्टर ने घन्टी बजा कर एक सिपाही को बुलाया और चाय का आर्डर दिया ।
‘‘एक बात मुझे उलझन में डाल रही है ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर बोला ।
विमल की भवें उठीं !
‘‘बाहर मैदान में लोग जमा हो रहे हैं । क्यों हो रहे हैं ? ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ । और भी मुलजिम गिरफ्तार होते हैं, पब्लिक के कान पर जूं नहीं रेंगती । तुम्हारी गिरफ्तारी पर क्यों लोग जमा हो रहे हैं ?’’
‘‘हो के करेंगे क्या ?’’
‘‘ये भी उलझन में डालने वाला सवाल है । इतने लोग तुम्हारे हिमायती तो हो नहीं सकते जो तुम्हें छुड़वा लेना चाहते हों ! या हो सकते हैं ?’’
विमल ने इंकार में सिर हिलाया ।
‘‘मैं मामूली आदमी हूं ।’’ — फिर बोला — ‘‘मेरे इतने हिमायती भला कैसे होंगे !’’
तभी सिपाही चाय और बिस्कुटों की एक प्लेट के साथ लौटा ।
ट्रे उन दोनों के बीच रख कर वो वहां से रुखसत हो गया ।
‘‘चाय लो ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर बोला ।
‘‘थैंक्यू ।’’
‘‘बिस्कुट भी ।’’
‘‘थैंक्यू ।’’
कुछ क्षण खामोशी रही ।
‘‘मैंने एक बेवर्दी सिपाही’’ — फिर सब-इन्स्पेक्टर बोला — ‘‘बाहर जमा लोगों में विचरने के लिये भेजा था जिसने कि वहां होती कानाफूसी सुनी और जो रिपोर्ट वो लाया, वो और भी चौंकाने वाली है ।’’
‘‘क्या बोला ?’’
सब-इन्स्पेक्टर ने अपलक विमल की तरफ देखा ।
‘‘क्या बोला, एसआई साहब ?’’
‘‘तुम सोहल हो ।’’
विमल ने यूं अट्टहास किया जैसे भारी मजाक की बात सुनी ली हो ।
‘‘तुम साबित कर सकते हो’’ — सब-इन्स्पेक्टर के स्वर में अनिश्चय का पुट आया — ‘‘तुम सोहल नहीं हो ?’’
‘‘वो कौन है ?’’
‘‘तुम नहीं जानते ?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘कभी नाम भी नहीं सुना ?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘हैरानी है ।’’
‘‘कौन है ?’’
‘‘मशहूर इश्तिहारी मुजरिम है । सात राज्यों की पुलिस को उसकी तलाश है । कई खून कर चुका है । कई डाके डाल चुका है । गिरफ्तारी पर तीन लाख का इनाम घोषित है ।’’
‘‘ऐसे गुणी शख्स से मेरी शक्ल मिलती है !’’
‘‘शक्ल नहीं मिलती, तुम हो ही सोहल ।’’
विमल ने फिर अट्टहास किया ।
‘‘तुम साबित कर सकते हो कि तुम सोहल नहीं हो ?’’
‘‘आप की निगाह में तो मैं वो भी नहीं साबित कर सकता जो कि मैं हूं ।’’
‘‘जवाब दो !’’
‘‘आप साबित कर सकते हैं कि मैं सोहल हूं ?’’
सब-इन्स्पेक्टर ने बेचैनी से पहलू बदला ।
‘‘अफवाहों का क्या है ! जितने मुंह उतनी बातें । अफवाहें उड़ाने वाले तो कह देंगे मैं दाउद हूं ।’’
‘‘मजाक न करो ।’’
‘‘मजाक तो आप कर रहे हो ।’’
‘‘एक तरीका है ।’’ — फिर सब इन्स्पेक्टर यूं बोला जैसे कोई भूली बात याद आ गयी हो ।
‘‘कौन सा ?’’
‘‘हैड क्वार्टर में सोहल के फिंगरप्रिंट्स हैं । यहां एक एएसआई है जो फिंगरप्रिंट्स के मिलान की प्रक्रिया से वाकिफ है । वो तुम्हारे फिंगरप्रिंट्स रिकार्ड से चैक कर सकता है ।’’
‘‘मुझे हैडक्वार्टर ले के जायेगा ?’’
‘‘फिंगरप्रिंट्स यहां आ जायेंगे । उधर से उन को स्कैन करके यहां मेल किया जा सकता है । यहां कम्प्यूटर है, लेसर प्रिंटर भी है । चुटकियों में काम हो जायेगा ।’’
‘‘ठीक है, करो ।’’
सब-इन्स्पेक्टर ने सकपका कर विमल की तरफ देखा ।
‘‘बड़े इत्मीनान से बोल रहे हो !’’ — फिर बोला ।
‘‘ठीक पहचाना । क्योंकि जो बात आप को मालूम होते होते होगी, वो मुझे अभी मालूम है ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘नतीजा सिफर निकलेगा ।’’
‘‘बहुत दावे से कह रहे हो !’’
‘‘आप देखना ।’’
‘‘देखूंगा तो मैं जरूर ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर जिदभरे स्वर में बोला ।
पन्द्रह मिनट में मशहूर इश्तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल के पुलिस रिकार्ड में उपलब्ध फिंगरप्रिंट्स की कापी और फोटो गोरई चौकी में उपलब्ध थी ।
सब-इन्स्पेक्टर ने सबसे पहले गौर से फोटो का मुआयना किया और कई बार विमल की सूरत पर निगाह डाली ।
फोटो की बाबत विमल निश्चिन्त था । वो फोटो उसके चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी से पहले की थी । लिहाजा उसकी मौजूदा शक्ल का फोटो से मिलते होने का सवाल ही नहीं पैदा होता था ।
आखिर सब-इन्स्पेक्टर ने फोटो को तिलांजलि दी ।
विमल की भवें उठीं ।
‘‘नहीं मिलती ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर नाउम्मीद लहजे से बोला ।
विमल इतमीनान से मुस्कराया ।
‘‘लेकिन फिंगरप्रिंट्स’’ — सब-इन्स्पेक्टर तमक कर बोला — ‘‘वो ज्यादा मजबूत सबूत होते हैं...हैं ।’’
फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट एएसआई का नाम दीपक भारकर था । उसने विमल की दसों उगलियों के निशान सब-इन्स्पेक्टर सावन्त के सामने उतारे, फिर उसने मैग्नीफाईंग ग्लास थामा और उन का मिलान रिकार्ड के प्रिंट्स से करने की प्रक्रिया शुरू की ।
दस मिनट उसने उस काम में लगाये ।
उस दौरान कोई सस्पेंस में था तो वो चौकी इंचार्ज सावन्त ही था जो कि रह रह के सोच रहा था कि क्या उसे मुलजिम के हाथों में हथकड़िया पहनाने की सावधानी बरतनी चाहिये थी । वो इस खयाल से ही थर्राये जा रहा था कि सोहल उसके सामने बैठा हो सकता था ।
इतने मशहूर इश्तिहारी मुजरिम की गिरफ्तारी के यश का भागी वो !
तीन लाख के नकद ईनाम का दावेदार सब-इन्स्पेक्टर यशवन्तराव सावन्त !
क्या पता प्रोमोशन भी हो जाये !
वो अपनी वर्दी पर तीन सितारों की कल्पना करने लगा ।
अपनी किसी बड़े थाने में पोस्टिंग की कल्पना करने लगा ।
‘‘नहीं मिलते ।’’ — एएसआई बोला ।
सब-इन्स्पेक्टर सावन्त जैसे आसमान से गिरा ।
‘‘नहीं मिलते !’’ — वो हकबकाया सा बोला ।
‘‘बिल्कुल नहीं मिलते ।’’ — एएसआई ने निर्णायक भाव से कागजात परे सरका दिये और उन के ऊपर मैग्नीफाईंग ग्लास रख दिया ।
सब-इन्स्पेक्टर ने सन्दिग्ध भाव से विमल की ओर देखा जो कि इत्मीनान से बैठा मन्द मन्द मुस्का रहा था ।
‘‘जरूर कोई गड़बड़ है ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर जिदभरे स्वर में बोला ।
‘‘क्या गड़बड़ है ?’’ — एएसआई बोला — ‘‘क्या गड़बड़ हो सकती है ?’’
‘‘ऐसा कहीं होता है !’’
‘‘हो तो सकता है न ! क्लैरिकल मिस्टेक की गुंजाइश हर जगह होती है । प्रिंट्स कोई स्कैन करने थे, गलती से कोई और स्कैन कर लिये । और आगे हमें भेज दिये । मेरे को मालूम है हैडक्वार्टर के रिकार्ड्स सेक्शन में फिंगरप्रिंट्स कौन हैंडल करता है । केशवराव भौंसले नाम है उसका हवलदार है । बात कराओ ।’’
हवलदार केशवराव भौंसले को फोन लगाया गया ।
जवाब मिला कि ऐसी कोई क्लैरिकल मिस्टेक न उधर से हुई थी, न होने का कोई मतलब था ।
सब-इन्स्पेक्टर फिर भी पस्त न हुआ ।
‘‘दिल्ली पुलिस के पास भी सोहल के फिंगरप्रिंट्स हैं ।’’ — वो बोला — ‘‘मैं उधर से मंगवाता हूं । भारकर, जाने का नहीं है । अभी इधरीच टिकने का है ।’’
पहले वाली प्रक्रिया फिर दोहराई गयी ।
आधे घन्टे बाद दिल्ली के पुलिस रिकार्ड में उपलब्ध सोहल के फिंगरप्रिंट्स की कापी उधर पहुंच गयी ।
एएसआई भारकर ने फिर मैग्नीफाईंग ग्लास थाम लिया ।
फिर दस मिनट गुजरे ।
‘‘नहीं मिलते ।’’ — वो बोला ।
‘‘नहीं मिलते ?’’ — सब-इन्स्पेक्टर मायूस लहजे से बोला ।
‘‘बिल्कुल नहीं मिलते ।’’
‘‘साले खामखाह अफवाहें उड़ाते हैं ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर भड़का — ‘‘खामखाह बेपर की अफवाहें उड़ाते हैं, साले हलकट । कोई काम हैइच नहीं सालों को...’’
‘‘लेकिन’’ — एएसआई बोला ।
सब-इन्स्पेक्टर के भड़के मिजाज को ब्रेक लगी ।
‘‘क्या लेकिन ?’’ — वो भुनभुनाया ।
‘‘दो रिकार्डों के फिंगरप्रिंट्स आपस में भी नहीं मिलते ।’’
‘‘क्या मतलब ?’’
‘‘ये इस भीड़ू के — जो सोहल नहीं हैं — फिंगरप्रिंट्स हैं । ये मुम्बई पुलिस के रिकार्ड के सोहल के फिंगरप्रिंट्स हैं जो कि इस भीड़ू के फिंगरप्रिंट्स से नहीं मिलते । ये दिल्ली पुलिस के रिकार्ड के सोहल के फिंगरप्रिंट्स हैं जो कि पहले की ही तरह इस भीड़ू के फिंगरप्रिंट्स से नहीं मिलते । लेकिन एक भीड़ू के दो जगह पुलिस रिकार्ड में अवलेबल फिंगरप्रिंट्स आपस में तो मिलने चाहियें या नहीं मिलने चाहियें !’’
‘‘मिलने चाहियें ।’’
‘‘नहीं मिलते । क्या मतलब हुआ इसका ? मुम्बई वाला इश्तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल कोई और है, दिल्ली वाला सोहल कोई और है !’’
‘‘ऐसा कहीं हो सकता है !’’
‘‘लेकिन दो मुख्तलिफ पुलिस रिकार्ड्स से तो यही होता जान पड़ रहा है !’’
‘‘नहीं हो सकता । कोई भेद है ।’’
‘‘क्या भेद है ?’’
‘‘मैं इस बारे में किसी सीनियर एक्सपर्ट से बात करूंगा । अपनी डिस्ट्रिक्ट के एसीपी से भी बात करूंगा ।’’
‘‘जरूर ।’’
‘‘तब तक मेरे लिये क्या हुक्म हैं ?’’ — विमल बोला ।
‘‘तुम सोहल हो या नहीं हो, जो चार्ज तुम पर है, उससे उसको कोई फर्क नहीं पड़ता । तुम गिरफ्तार हो और रहोगे ।’’
‘‘ठीक है ।’’
तभी एक अधेड़, रोबदार व्यक्ति ने वहां कदम रखा । वो वकीलों वाला काला कोट पहने था और उसके हाथ में एक ब्रीफकेस था ।
‘‘मैं सीनियर एडवोकेट दिनेश प्रधान ।’’ — वो धीर गम्भीर स्वर में बोला — ‘‘मैं अरविन्द कौल का वकील हूं ।’’
सब-इन्स्पेक्टर सकपकाया ।
‘‘बाहर मुझे बताया गया था आप इस चौकी के इंचार्ज एस आई सावन्त हैं ।’’
‘‘ठीक बताया गया था ।’’ — सब इन्स्पेक्टर आदतन रूखे स्वर में बोला — ‘‘क्या चाहते हैं ?’’
‘‘अपने क्लायन्ट से मिलना चाहता हूं ।’’
‘‘मिलिये ।’’
‘‘केस की बाबत मशवरा करना चाहता हूं ।’’
‘‘कीजिये ।’’
‘‘प्राइवेटली ।’’
‘‘क्यों भला ?’’
‘‘आप को वजह बताना जरूरी नहीं ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘वकील को अपने क्लायन्ट से इन प्राइवेट डिसकशन का अख्तियार होता है । आप इसे नकारिये, मैं डिस्ट्रिक्ट के डीसीपी के पास जाता हूं । कमिश्नर जुआरी साहब आउट ऑफ स्टेशन हैं, उनके नैक्स्ट इन कमांड के पास हैडक्वार्टर जाता हूं ।’’
सब-इन्स्पेक्टर कसमसाया ।
‘‘सारा दिन तो मशवरा नहीं करना होगा !’’ — फिर आदतन झल्लाया ।
‘‘सारा दिन नहीं ।’’ — वकील शान्ति से बोला — ‘‘यही कोई दस-पन्द्रह मिनट । बट इन स्टिक्ट प्राइवेसी ।’’
‘‘बगल के कमरे में जाइये । मशवरा खत्म हो जाये तो इधर लौट के आइये ।’’
‘‘थैंक्यू । सो नाइस आफ यू । आई एम ग्रेटफुल ।’’
बगल का कमरा भी आफिसनुमा था जिसमें स्टैन्डर्ड आफिस फर्नीचर के अलावा एक चरमराता सा टू सीटर सोफा भी मौजूद था ।
दोनों सोफे पर अगल बगल जा कर बैठे ।
‘‘कैसा चल रहा है !’’ — वकील बोला ।
‘‘गिरफ्तारी में कैसा चलना है ?’’ — विमल फीके स्वर में बोला ।
‘‘आई मीन कोई दुर्व्यवहार ! कोई अनड्यू प्रेशर ! कोई थर्ड डिग्री !’’
‘‘अभी नहीं ।’’
‘‘मैं बहुत जल्दी में इधर पहुंचा हूं । यहां से जा कर मैं इलाके के कोर्ट में तुम्हारे मैडिकल एग्जामिनेशन की भी अर्जी लगाऊंगा जिससे पुलिस वालों के थर्ड डिग्री के जोश पर अंकुश लगेगा । मैं बन्दी प्रत्यक्षीकरण की अपील भी लगाऊंगा ताकि ये लोग तुम्हें कोर्ट में पेश करने में देर न लगायें । तुम्हारी जमानत के लिये भी अर्जी लगाऊंगा ।’’
‘‘होगी ?’’
‘‘केस गम्भीर है, तुम्हारे पर सख्त धाराओं के तहत गम्भीर चार्ज है, पहली बार में तो नहीं होगी ! लेकिन रुटीन है, अर्जी तो लगानी ही होगी !’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘मेरी शोहाब से बात हुई है । मुझे यकीन है कि तुम्हें फंसाया गया है, सैट किया गया है, फिर भी फारमली सवाल है जो केस की शुरुआत में वकील को क्लायन्ट से करना ही पड़ता है । बेगुनाह हो न ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘फंस कैसे गये ?’’
‘‘लापरवाही ने फंसाया । कुछ होने की उम्मीद नहीं थी इसलिये लापरवाह हो गया ।’’
‘‘कत्ल, जबरजिना खास तुम्हें सैट करने के लिये !’’
‘‘क्या नहीं हो सकता ?’’
‘‘होने को क्या नहीं हो सकता ! लेकिन कयास में आना मुश्किल है । किसी दूसरे का खून करने की जगह तुम्हारा ही क्यों न कर दिया !’’
‘‘ये सवाल बहुत बार मेरे जेहन में भी उठ चुका है । इसके दो जबाव मुझे सुझते हैं ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘एक तो ये कि कत्ल और जबरजिना के इलजाम में मैं तड़पूं, जिल्लत की मार खा खा कर तिल तिल कर के मरूं और मुझे फंसाने वाले के कलेजे को ठण्डक पड़े ।’’
‘‘ऐसा कोई शख्स है तुम्हारी निगाह में ?’’
‘‘है । लेकिन ये उसका स्टाइल ऑफ फंक्शनिंग नहीं । वो माफिया स्टाइल गैंगस्टर है, दुश्मन को दूसरी सांस आने से पहले उसको शूट करने में विश्वास रखता है । वो बहुत पालिश्ड, बहुत सोफिस्टिकेडिट आदमी है । ऐसी टुच्ची, ऐसी नीच हरकत वो शख्स नहीं कर सकता । दूसरे, उस शख्स की बाबत अभी ये भी सन्दिग्ध है कि वो जिन्दा भी है या नहीं । उस आदमी का काम ये नहीं है, वकील साहब । ये तो किसी घटिया, निचले लैवल के आदमी का काम है ।’’
‘‘लेकिन ऐसा कोई शख्स तुम्हारी निगाह में नहीं ?’’
‘‘फिलहाल ।’’
‘‘दूसरी वजह ?’’
‘‘वो ये कि कोई था तो मेरी ताक में ही लेकिन कॉटेज में जो कुछ हुआ, किसी के जोशोजुनून के तहत पहले ही हो गया, फिर बाद में उन्हें वारदात में मुझे लपेटना सूझा और क्या खूब कामयाबी से लपेटा !’’
‘‘और ?’’
विमल ने कपड़ों पर खून और नाखूनों के नीचे नुची खाल के अवशेष वाली बात उसे बताई ।
‘‘ये बहुत सुपीरियर प्वायन्ट है ।’’ — वकील तनिक उत्तेजित स्वर में बोला — ‘‘तुमने एसआई से इस बाबत बात की !’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘क्यों ?’’
‘‘मुझे आप की आमद की खबर थी और मेरा खयाल था आप ये काम बेहतर कर सकते थे ।’’
‘‘चलो, करते हैं बात ।’’
उस बाबत सब-इन्स्पेक्टर सावन्त से बात की गयी ।
वो सकपकाया, उसने कुछ क्षण दायें बायें देखा फिर रौब से बोला — ‘‘ये बात मेरे जेहन में थी ।’’
जबकि उस बाबत उसे कोई खयाल तक नहीं आया था ।
‘‘तो कुछ किया क्यों नहीं ?’’ — वकील हैरानी से बोला ।
‘‘ऐसे फॉरेंसिक लैब टैस्ट्स अरेंज करने में टाइम लगता है ।’’
‘‘तो लगाओ, भई ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘क्या हूं । मेरे को तो लगता है कि आप की इस शख्स को बेगुनाह साबित करने की कोई मंशा ही नहीं ।’’
‘‘ऐसी कोई बात नहीं ।’’
‘‘तो जो करना है जल्द-अज-जल्द कीजिये । ये एक निर्दोष शख्स के राइट्स का सवाल है, उसकी जिन्दगी का सवाल है । डिले वाला तो ये काम ही नहीं है । और कुछ नहीं तो इसे हिरासत में लेते ही फौरन, फौरन से पेश्तर आप को इस की शर्ट महफूज करनी चाहिये थी जो इसके हक में — खिलाफ नहीं, हक में — सबूत बनने वाली है ।’’
‘‘हम करेंगे ।’’
‘‘अभी कीजिये ।’’
‘‘अभी कैसे करें ? हम इसके लिये शर्ट कहां से लायें !’’
‘‘शर्ट आ जायेगी । जब तक शर्ट नहीं आती, ये यहां नंगा बैठेगा । उतारो, भई ।’’
विमल ने खामोशी से शर्ट उतार कर सब-इन्स्पेक्टर की मेज पर डाल दी ।
सब-इन्स्पेक्टर सकपकाया ।
‘‘इसे एक लिफाफे में बन्द कीजिये ।’’ — वकील आदेशपूर्ण स्वर में बोला — ‘‘लिफाफे को सील कीजिये और सील की गयी जगह पर अपने साइन कीजिये । मैं भी करूंगा ।’’
‘‘आप तो हुक्म दे रहे हैं !’’
‘‘नो ! नैवर ! मैं प्रोसीजरल बात कर रहा हूं । जो काम कल का हो चुका होना चाहिये था, उसे आज तो कीजिये ! अब तो कीजिये !’’
बड़बड़ाते, भुनभुनाते सब-इन्स्पेक्टर ने एक बड़ा लिफाफा मंगाया और वांछित काम किया ।
‘‘अब नाखूनों के बारे में क्या कहते हैं ?’’ — वकील बोला ।
‘‘क्या कहें ?’’ — सब-इन्स्पेक्टर भुनभुनाया ।
‘‘वो तो उंगलियों के साथ जुड़े हैं । कैसे लिफाफे में बन्द कर के सील करेंगे ?’’
सब-इन्स्पेक्टर ने हड़बड़ा कर वकील की तरफ देखा ।
‘‘आप इस शख्स को मुजरिम मान के चल रहे हैं इसलिये आप ही के हित में है कि आप मुजरिम को सबूत नष्ट करने का मौका न दें ।’’
‘‘ये...कैसे नष्ट करेगा । ?’’
‘‘आपके एक सिपाही को सौ का एक पत्ता या दो या तीन-चार पत्ते थामायेगा, सिपाही बीस रुपये का नेल कटर लायेगा, बाकी खुद हजम करेगा । क्या प्राब्लम है ?’’
‘‘ये चौकी में रिश्वत देगा ? इसकी मजाल नहीं हो सकती ।’’
‘‘हा हा हा ।’’
‘‘सावन्त साहब’’ — एएसआई बोला — ‘‘इसकी सारी बिलांगिग्स तो हमारे कब्जे में हैं, रोकड़ा किधर से आयेगा इसके पास !’’
‘‘हां ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर तमक कर बोला ।
‘‘चिट लिख देगा ।’’ — वकील इत्मीनान से बोला — ‘‘सिपाही ड्यूटी से आफ होगा तो जा कर चिट दिखा कर रोकड़ा क्लैक्ट करेगा ।’’
‘‘इतना पहुंचा हुआ भीड़ू है ये ?’’
‘‘वो छोड़िये । आप नाखूनों की बाबत मेरी बात सुनिये और भगवान के लिये उस पर अमल कीजिये ।’’
‘‘क्या करें !’’
‘‘अपने सामने, गवाहों के सामने, अपनी सुपरविजन में इसके नाखून कटवाइये और वैसे ही उन्हें एक लिफाफे में महफूज कीजिये जैसे अभी शर्ट को किया । फिर दोनों चीजों को फौरन, बिना और टाइम जाया किये, पुलिस की फॉरेंसिक लैब में भिजवाइये और रिपोर्ट का इन्तजार कीजिये । लिफाफों पर ‘मोस्ट इमीजियेट केस’ लिखना न भूलियेगा । देख लीजियेगा, दूध का दूध और पानी का पानी होगा ।’’
सब-इन्स्पेक्टर ने नेलकटर मंगवाया जो विमल के हवाले किया गया ।
विमल नाखून काटने लगा ।
उस दौरान वकील ने मोबाइल निकालकर एक फोन किया जिस के जवाब में दो मिनट में एक व्यक्ति वहां पहुंचा ।
‘‘मेरा ड्राइवर है ।’’ — वकील ने बताया — ‘‘तुम कौन से साइज की शर्ट पहनते हो, भई ?’’
‘‘बयालीस ।’’ — विमल नाखूनों पर से सिर उठा कर बोला ।
‘‘ये पकड़ो ।’’ — वकील ने अपने बटुसे से निकाल कर एक हजार का नोट ड्राइवर को सौंपा — ‘‘एक बयालीस साइज की पूरी बांह की कमीज ले के आओ । गोली की तरह जाओ और गोली की तरह लौट के आओ ।’’
‘‘यस, सर ।’’ — ड्राइवर बोला और बगूले की तरह दरवाजे की तरफ भागा ।
विमल एक एक करके नाखून काटता रहा ।
मैदान में लोगों का हुजूम धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था ।
अब अफवाहों को जुबान मिल रही थी, खुसर पुसर मुखर हो रही थी । अफवाहें बड़ी तरतीब से, बड़े कायदे के साथ प्लांट की जा रही थीं ।
‘‘गिरफ्तार कैदी सोहल है ।’’
‘‘सोहल !’’
‘‘जानता नहीं क्या, भीड़ू ! इश्तिहारी मुजरिम ! तीन लाख का ईनामी ! सात राज्यों की पुलिस को जिसकी तलाश है !’’
‘‘अरे, नहीं !’’
‘‘बरोबर बोला मैं ।’’
‘‘वो...वो डेंजर भीड़ू...इस चौकी की हवालात में बन्द है !’’
‘‘बरोबर !’’
‘‘अब तीन लाख का ईनाम चौकी वालों का !’’
‘‘अभी उन्हें मालूम किधर है कि जो गिरफ्तार वो सोहल !’’
‘‘अरे, इधर की बात कभी तो चौकी में पहुंचेगी ही !’’
‘‘वो तो है !’’
‘‘पुलिसिये यकीन कर लेंगे !’’
‘‘न करें । हमें क्या !’’
‘‘बरोबर बोला, बाप ।’’
‘‘ये भीड़ू — बोले तो कैदी — भगवान श्री कृष्ण ! भगवान श्री कृष्ण का माफिक पता नहीं क्या क्या करता है ! जैसे भगवान अर्जुन का रथ चलाता है, गाय चराता है, द्रोपदी की चीरहरण से रक्षा करता है, शिशुपाल को मारता है, वैसीच ये भीड़ू साला कभी तांगा चलाता है, कभी वाइट कलर जॉब करता है, कभी साला गैराज खोल लेता है, मोटर मकैनिक बन जाता है, कभी किसी मोटे सेठ का डिरेवर बन जाता है । साला कभी घडियों का समगलर है, कभी नॉरकॉटिक्स का समगलर है तो कभी एन.आर.आई. फ्राम नैरोबी है ।’’
‘‘वो भी ?’’
‘‘बरोबर ! साला होटल सी-व्यू चलाता था न लीज पर ले के !’’
‘‘पण वो तो कोई राजा गजेन्द्र सिंह था !’’
‘‘यहीच राजा गजेन्द्र सिंह ।’’
‘‘पण ये तो क्लीन शेव्ड !’’
‘‘दाढ़ी मूंछ सब नकली लगाया न ! पगड़ी बान्धा न फैंसी करके ।’’
‘‘पण वो तो बोलते हैं नैरोबी भाग गया !’’
‘‘किधर भाग गया ! इधरीच है । साला दाढ़ी मूंठ, पगड़ी, फैंसी करके ड्रैस सब उतार दिया तो राजा गजेन्द्र सिंह गायब ! साला फैला दिया कि होटल सी-व्यू के हादसे के बाद डर के नैरोबी निकल लिया । किधरीच नहीं गया वो भीड़ू । इधरीच ठहरा । पक्की कर के बोलता है मैं । साला एक नम्बर का नौटंकीबाज है । मैं बोले तो वही राजा गजेन्द्र सिंह, वही उसका पिराइवेट करके सैक्रेटी अरविन्द कौल और वही सैक्रेटी भीड़ू का पीए विमल ।’’
‘‘कम्माल है !’’
‘‘साला एक नम्बर का मेकअप आर्टिस्ट ! कुछ भी बन जाता है ! अभी हाल ही में नाॅरकाॅटिक्स समगलर कालिया एंथोनी बन गया ।’’
‘‘वो भी !’’
‘‘बरोबर !’’
‘‘पण सोहल तो नॉरकॉटिक्स ट्रेड के खिलाफ है !’’
‘‘सब माया है उसकी । मायावी मानस है । साला कब क्या करेगा, कैसे करेगा, कहीं मालूम पड़ता है !’’
‘‘अभी जो जबरजिना और मर्डर के केस में बन्द है, ये भी माया !’’
‘‘बरोबर !’’
‘‘देवा रे !’’
‘‘साला दो सौ भीड़ू, होटल सी-व्यू में हुए बम ब्लास्ट में मारा गया, उसके ढेर हो जाने की वजह से बारूद से उड़कर या मलबे में दब कर मारा गया । उन में टूरिस्ट कम, होटल का स्टाफ ज्यास्ती ।’’
‘‘क्या ! गैस्ट कम मरे ! स्टाफ ज्यास्ती मरा !’’
‘‘यहीच बोला मैं । दोपहर का टेम था साला ब्लास्ट के वक्त । मेहमान लोग साला सैर का वास्ते, तफरीह का वास्ते निकला हुआ था । ये वास्ते स्टाफ के भीड़ू ज्यास्ती मरे । साला किसी का बाप गया, किसी का बेटा गया, किसी का भाई गया, किसी का खाविन्द गया । अभी वो सब लोग राजा साहब के खून के प्यासे क्योंकि राजा साहब ब्लास्ट के लिये जिम्मेदार क्योंकि राजा साहब साला अन्डरवर्ल्ड से कोई पंगा लिया जिस का बदला अन्डरवर्ल्ड ने राजा साहब की पनाहगाह, राजा साहब की बादशाहत होटल सी-व्यू को ढेर करके उतारा । अभी राजा साहब एक सौ पच्चीस होटल स्टाफ की मौत के लिये जिम्मेदार । और उन एक सौ पच्चीस शहीदों के रिश्तेदार राजा साहब के खून के प्यासे । सबको राजा साहब को थामना मांगता था और उसका टुकड़ा टुकड़ा करके अक्खी मुम्बई में छितराना मांगता था ।’’
‘‘देवा रे !’’
‘‘राजा साहब को साला भनक लग गया कि वो मौत के कितना करीब था । साला न्यूज प्लांट किया कि नैरोबी भाग गया जिधर से कि आया था । असल में किधर भी न गया क्योंकि किधर से आया थाइच नहीं । वो तो इधरीच का भीड़ू ! सोहल ! साला मेकअप किया तो सिख बन गया, राजा गजेन्द्र सिंह एनआरआई फ्राम नैरोबी बन गया, साला मेकअप हटाया तो राजा साहब गायब । बोल दिया नैरोबी भाग गया ।’’
‘‘कम्माल !’’
‘‘अभी ये बात ब्लास्ट में मरे स्टाफ की फैमिलियों के कानों तक भी पहुंचा है, सब धीर-धीरे इधर जमा हो रहे हैं...’’
‘‘काहे वास्ते ?’’
‘‘अरे, सोच न भीड़ू ! मगज से काम ले न !’’
‘‘काहे वास्ते ?’’
‘‘अरे, वो राजा साहब को नैरोबी भाग गया समझ के शान्त हो गये थे, मन मार के बैठ गये थे । अभी जब उन को मालूम पड़ेगा कि राजा साहब नैरोबी गया हैइच नहीं, वो तो इधरीच बैठेला है तो क्या करेंगा वो लोग ?’’
‘‘क्या करेंगा !’’
‘‘फाड देंगा, साला । जो पहले न हो सका, वो साला अब होयेंगा...’’
‘‘तुम्हेरा मतलब है ये कैदी...ये कैदी...बोले तो फिनिश !’’
‘‘देखना !’’
यही डायलाग नियमित रूप से भीड़ में सर्कुलेट करता रहा ।
एएसआई दीपक भारकर चौकी इंचार्ज सब-इन्स्पेक्टर यशवन्तराव सावन्त के रूबरू पेश हुआ ।
‘‘बाहर मैदान में लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही है ।’’ — भारकर चिन्तित भाव से बोला ।
सब-इन्स्पेक्टर सावन्त की भवें उठीं ।
‘‘अफवाहों का बाजार पहले से कहीं ज्यादा गर्म है ।’’
‘‘फैला कौन रहा है ?’’
‘‘कोई एक भीड़ू पिनप्वायन्ट नहीं हो रहा । हमारा जो बेवर्दी सिपाही — भुजबल — उन लोगों में घूम फिर कर आया था, बोलता है कि अफवाहें फैलाने का काम कोई एक भीड़ू नहीं कर रहा है, बोलता है कई भीड़ू हैं, तीन-चार तो यकीनन, जो भीड़ में फिर रहे हैं और हमारे कैदी की बाबत अफवाहें फैला रहे हैं । अभी नयी प्राॅग्रेस ये है कि मैदान में कुछ ऐसे भीड़ू भी दिखाई देने लगे हैं जो कि पब्लिक पार्टी की टोपियां पहने हैं...’’
‘‘मैदान में साला पोलीटिकल रैली होता है !’’
‘‘वो टोपी वाले लोग बढ़ते गये तो ऐसा माहौल बन सकता है ।’’
‘‘बिना परमिशन रैली करना मना है ।’’
‘‘अभी सुनो तो, सावन्त साहब ।’’
‘‘ओह ! बोलो !’’
‘‘आप को होटल सी-व्यू की ट्रेजेडी की खबर है ?’’
‘‘है । क्यों ?’’
‘‘उधर हुए ब्लास्ट में होटल के स्टाफ के जो सवा सौ लोग मरे थे, उस के सगे सम्बन्धियों ने फोर्ट में पुलिस हैडक्वार्टर पर प्रदर्शन किया था और कहा था कि उस ट्रेजेडी के लिये होटल का मौजूदा लीज होल्डर राजा गजेन्द्र सिंह एनआरआई फ्राम नैरोबी जिम्मेदार था और मांग की थी कि राजा साहब को पकड़ कर उनके हवाले किया जाये ताकि वो लोग खुद उसे सजा दे सकें ।’’
‘‘खुद सजा दे सकें ! क्या करना मांगते थे वो लोग ?’’
‘‘राजा साहब के अपने हाथों से टुकड़े-टुकड़े कर देना चाहते थे ।’’
‘‘देवा !’’
‘‘तब वो बात खत्म हो गयी थी क्योंकि पुलिस कमिश्नर जुआरी साहब खुद उन के रूबरू हुए थे और जुआरी साहब ने उन्हें बताया था कि अपने वैसे ही किसी हौलनाक अंजाम से डर कर राजा साहब नैरोबी भाग गये थे । तब जाकर पब्लिक का गुस्सा शान्त हुआ था ।’’
‘‘ओह !’’
‘‘लेकिन अब बाहर अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि हमारा कैदी राजा गजेन्द्र सिंह है ।’’
‘‘माथा फिरेला है ! वो राजा साहब सिख था ।’’
‘‘मेकअप था । सोहल ही दाढ़ी मूंछ लगा के, पकड़ी बान्ध के राजा साहब बन जाता था ।’’
‘‘ये बात !’’
‘‘बात इससे भी आगे है । अपना प्राइवेट सैक्रेटी अरविन्द कौल भी वो खुद था । प्राइवेट सैक्रेट्री का पीए विमल भी वो खुद था ।’’
‘‘वाट नानसेंस !’’
‘‘बाहर यही फैलाया जा रहा है ।’’
‘‘तुमने बोला राजा साहब के पीएस का नाम अरविन्द कौल था ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘हमारा कैदी भी अपना नाम यही बताता है ।’’
‘‘मैं इस बात को भी प्वायन्ट आउट करना चाहता था ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘अब एक एक दो दो कर के होटल ब्लास्ट में मरे सवा सौ होटल स्टाफ के रिश्तेदार भी बाहर पहुंचने लग गये हैं जो कि कोई अच्छा सिग्नल नहीं है ।’’
‘‘तो क्या करना चाहिये ?’’
‘‘मैं बोले तो हमें अपने थाने — उस थाने, जिस के अन्डर में ये चौकी है — खबर करनी चाहिये और थाने से और आदमी इधर बुलवाने चाहियें ।’’
‘‘और आदमी !’’
‘‘इस चौकी में आप को, मुझे मिला कर हम कुल जमा सात भीड़ू हैं । सावन्त साहब, भीड़ भड़क गयी तो हम उस पर काबू नहीं पा सकेंगे ।’’
‘‘क्यों भड़क गयी ? भड़कने वाली कौन सी बात है ?’’
‘‘ऐसे तो जमा होने वाली ही कौन सी बात है !’’
‘‘वही तो ! साले नाकारे, निकम्मे, तमाशबीन लोग हैं, खुद ही छंट जायेंगे ।’’
‘‘सावन्त साहब, वो तो बढ़ रहे हैं !’’
‘‘वान्दा नहीं । तुम जा कर खुद उन को अड्रैस करो । उन्हें समझाओ कि यूं जमघट लगाना गैरकानूनी है । देखना, वो खुद ही चले जायेंगे ।’’
‘‘न गये तो ?’’
‘‘तो...देखेंगे ।’’
‘‘मेरे खयाल से हम हैल्प के लिये थाने फोन करते तो...’’
‘‘उस में बतौर चौकी इंचार्ज मेरी हेठी है । मेरे को इनएफीशेंट चौकी इंचार्ज करार दिया जायेगा जो एक मामूली हुजूम को काबू न कर सका, तितर बितर न कर सका । नहीं, भारकर, जब तक हालात बिल्कुल ही काबू से बाहर नहीं हो जानेवाले, मैं थाने फोन नहीं लगाने लगा ।’’
‘‘अच्छा !’’
‘‘हां ।’’
‘‘सुबह से ये सिलसिला जारी है, शाम के पांच बज गये हैं । मुझे तो ये अपने आप जाते दिखाई नहीं देते !’’
‘‘अब जायेंगे । अन्धेरा होते ही फूटने लगेंगे । तुम देखना ।’’
भारकर के चेहरे पर आश्वासन के भाव न आये ।
‘‘तुम जैसा मैंने कहा है, वैसा करो । जा कर भीड़ से बात करो । और हमारे कैदी को इधर मेरे पास भेजो ।’’
‘‘ठीक है ।’’
विमल को लॉक अप से निकाल कर चौकी इंचार्ज सब-इन्स्पेक्टर सावन्त के आफिस में पहुंचाया गया ।
सब-इन्स्पेक्टर ने अपलक उसे देखा ।
‘‘क्या है ?’’ — विमल तनिक नर्वस भाव से बोला ।
‘‘मालूम पड़ता है ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर बोला — ‘‘बैठो ।’’
विमल उसके सामने एक विजिटर्स चेयर पर बैठा ।
‘‘तो तुम एकाउन्ट्स आफिसर हो, दिल्ली की एक कम्पनी में मुलाजिम हो, यहां टूर पर हो ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘नाम अरविन्द कौल ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘कश्मीरी ?’’
‘‘विस्थापित कश्मीरी ब्राह्मण । असल में सोपोर का रहने वाला जहां कि मेरा टिम्बर का फैमिली बिजनेस था ।’’
‘‘वहां से क्यों छोड़ा ?’’
‘‘खुद न छोड़ा । उधर के हालात ने मजबूर किया तो छोड़ना पड़ा । उधर उग्रवादियों ने हमारा घर जला दिया, टिम्बर यार्ड जला दिया, परिवार के सारे मेम्बरान को मार डाला । मैं खुद भी जख्मी हुआ लेकिन किसी तरह से जान बचा कर बच निकलने में कामयाब हो गया । मैं अपने ही देश में शर्णार्थी बन गया । बड़ी मुश्किल से दिल्ली में गैलेक्सी की नौकरी पायी और फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो पाया ।’’
‘‘काफी दर्दनाक कहानी है तुम्हारी । तो तुम कश्मीरी शर्णार्थी अरविन्द कौल हो ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘सोहल नहीं हो ?’’
‘‘न !’’
‘‘राजा साहब ?’’
‘‘वो कौन है ?’’
‘‘राजा गजेन्द्र सिंह एनआरआई फ्राम नैरोबी !’’
‘‘मैंने ये नाम पहली बार सुना है ।’’
‘‘कुछ लोगों का दावा है कि तुम न सिर्फ सोहल हो, राजा गजेन्द्र सिंह भी तुम्हीं हो ।’’
‘‘उन लोगों का दिमाग खराब है ।’’
‘‘राजा साहब के प्राइवेट सैक्रेट्री का नाम अरविन्द कौल बताया जाता है ।’’
‘‘तो ?’’
‘‘तुम अपना नाम अरविन्द कौल बताते हो !’’
‘‘तो ?’’
‘‘तुम्हीं वो शख्स हो ।’’
‘‘कौन शख्स ? राजा साहब या उनका पीएस ।’’
‘‘दोनों ।’’
‘‘हा हा हा ।’’
‘‘ये बात जग जाहिर है कि राजा गजेन्द्र सिंह नाम के किसी शख्स का कोई वजूद नहीं था । ऐसा कोई शख्स नैरोबी से मुम्बई नहीं आया था । वो एक फर्जी शख्स था, उसका पीएस एक फर्जी शख्स था । असल में एक ही शख्स सिख का मेकअप करके राजा साहब बन जाता था और दाढ़ी मूंछ उतार के अपना पीएस बन जाता था । वो एक ही शख्स तुम थे ।’’
‘‘कौन कहता है ?’’
‘‘बाहर इस बाबत अफवाह गर्म है ।’’
‘‘जब खुद मानते हैं अफवाह है तो उसे मेरे पर क्यों थोप रहे हैं ?’’
‘‘ये इत्तफाक क्योंकर हुआ कि राजा साहब के पीएस का और तुम्हारा एक ही नाम है ?’’
‘‘इत्तफाक है इसलिये हुआ । इत्तफाक ऐसे ही होते हैं । अरविन्द एक कामन नाम है । कश्मीरी ब्राह्मणों में कौल एक कामन सरनेम है । क्या प्राब्लम है ?’’
‘‘हूं ।’’
कुछ क्षण खामोशी रही ।
‘‘मेरा दिल गवाही देता है’’ — फिर सब-इन्स्पेक्टर बोला — ‘‘कि कुछ तो भेद तुम में है !’’
‘‘क्या ?’’
‘‘यही तो समझ में नहीं आ रहा । दो कमिश्नरेट में उपबन्ध सोहल के फिंगरप्रिंट्स तुम्हारे से नहीं मिलते लेकिन आपस में भी नहीं मिलते । आपस में तो उन्हें मिलना चाहिये ! क्यों नहीं मिलते ?’’
विमल जानबूझ कर खामोश रहा ।
‘‘और कौन सा तरीका है ये स्थापित करने का कि तुम सोहल हो...या नहीं हो ?’’
‘‘पहले ये फैसला कर लीजिये कि मैं सोहल हूं या राजा साहब हूं या उन का पीएस अरविन्द कौल हूं ।’’
‘‘अगर सोहल हो तो सब हो ।’’
‘‘सब में कोई और भी शामिल है ?’’
‘‘है तो सही !’’
‘‘कौन ?’’
‘‘चैम्बूर का दाता !’’
‘‘वो कौन है ?’’
‘‘साबित करने पर तुले हो कि मुम्बई में नये हो !’’
‘‘कौन है ?’’
‘‘सखी हातिम ! दीनबन्धु दीनानाथ ! राबिन हुड ! अक्खी मुम्बई के गरीब गुरबा का आइडियल ! गरीबों का हमदर्द ! दोस्तों का दोस्त ! दुश्मनों का दुश्मन ! भूखे के मुंह में निवाला देने वाला ! नंगे के तन पर कपड़ा डालने वाला ! अन्धे की आंख ! लंगड़े की लाठी ! बेसहारे का सहारा ! अनाथ का नाथ ! मेहरबान ! गरीबनवाज !’’
‘‘ये सब एक आदमी ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘ये भी मैं ?’’
‘‘तुम बोलो तुम हो, मैं तुम्हें अभी रिहा करता हूं और अदब से दरवाजे तक छोड़ के आता हूं ।’’
‘‘तो ये तरकीब सोची अब चोर बहकाने की !’’
‘‘चैम्बूर का दाता मेरा भी आइडियल है, मैं उसके लिये कुछ भी कर सकता हूं ।’’
‘‘कभी गये उसके द्वारे ?’’
‘‘नहीं । लेकिन जरूरत पड़ी तो जरूर जाऊंगा । कहीं भी जाने से पहले चैम्बूर जाऊंगा ।’’
‘‘खुशकिस्मत है ये...जो कोई भी है...जिसके इतने अनुयायी हैं !’’
‘‘इतने से ज्यादा । तुम्हारी कल्पना से ज्यादा !’’
‘‘तो सोहल ही चैम्बूर का दाता है ?’’
‘‘बोलने वाले ऐसा बोलते हैं लेकिन...’’
‘‘क्या लेकिन ?’’
‘‘मुझे यकीन नहीं । कैसे कोई चैम्बूर का दाता जैसा पारस पत्थर भी हो सकता है और राजा गजेन्द्रसिंह जैसा मुनाफाखोर होटेलियर भी हो सकता है, कालिया एंथोनी जैसा नॉरकॉटिक्स डिस्ट्रीब्यूटर भी हो सकता है !’’
‘‘आप बताइये !’’
‘‘तो तुम साेहल नहीं हो ?’’
‘‘मैं कश्मीर से विस्थापित शरणार्थी ब्राह्मण अरविन्द कौल हूं ।’’
‘‘ठीक है ।’’
सब-इन्स्पेक्टर ने सिपाही के लिये घन्टी बजाई ।
एएसआई दीपक भारकर की अपील का हुजूम पर कोई असर न हुआ ।
मैदान में जमा लोगों ने तितर-बितर हो जाने की कोई मंशा जाहिर न की । उलटे उसे वहां ऐसा कुछ सुनाई दिया जो और भी दहशतनाक था ।
‘‘भाइयो !’’ — भीड़ में कहीं कोई बुलन्द आवाज में बोल रहा था — ‘‘इन लोगों से तुम्हें कोई इंसाफ हासिल नहीं होने वाला । सरकार से, सिस्टम से, पुलिस से इंसाफ हासिल होना होता तो राजा साहब सी-व्यू वाली वारदात के फौरन बाद गिरफ्तार हुआ होता, तब पुलिस ने उसकी दाढ़ी मूंछ नोची होती तो तभी उजागर हो जाता कि वो कोई एनआरआई फ्राम नैरोबी नहीं था, कोई पटियाला की रायल फैमिली का लास्ट बीकन नहीं था, वो सिर्फ और सिर्फ सोहल था जो कि खूनी था, डकैत था, जेल ब्रेकर था, इश्तिहारी मुजरिम था । भाईयो, यही मौका है सोहल को खत्म करने का और राजा साहब को खत्म करने का जो कि सोहल के अलावा और कोई नहीं । सोहल इस वक्त चौकी के लॉकअप में बन्द है । भाइयो, उठो, जागो, आगे बढ़ो और जा कर चौकी इंचार्ज से मांग करो कि होटल सी-व्यू ब्लास्ट में मरे तुम्हारे सवा सौ प्रियजनों की, और पिचहत्तर टूरिस्टों की मौत की वजह राजा साहब को तुम्हारे हवाले किया जाये । अगर चौकी इंचार्ज ऐसा नहीं करता तो तुम खुद इस काम को अंजाम दे सकते हो । चौकी में सिर्फ सात पुलिसिये हैं जो कि तुम सात सौ से ज्यादा जनों का मुकाबला नहीं कर सकते । भाइयो, आगे बढ़ो और अपने मुजरिम को खुद अपने कब्जे में करो । कब्जे में करो और किसी नजदीकी पेड़ पर सूली चढ़ा दो । आगे बढ़ो, भाइयो...’’
‘‘खबरदार !’’ — भारकर चिल्लाया — ‘‘सब गिरफ्तार कर लिये जाओगे ।’’
‘‘भाइयो, पहले इसी की खबर लो ।’’
भीड़ में एक शोर सा उठा, एक रेला सा भारकर की ओर बढ़ा ।
भारकर से भागते ही बनी ।
शोहाब और इरफान भीड़ में शामिल थे ।
‘‘तीन भीड़ू हैं जो तमाम गलाटा कर रहे हैं’’ — इरफान शोहाब के कान के पास मुंह ले जा कर बोला — ‘‘एक कश्मीरियों जैसा गोरा और खूबसूरत लड़का है, दूसरा एक लम्बा चौड़ा, राक्षसी साइज का क्लीनशेव्ड भीड़ू है और तीसरा भीड़ू मेरे को अनूप झेण्डे जान पड़ता है जिसका जिक्र वो कयूम नलवाला कर के भीड़ू किया । यहीच तीन भीड़ू पब्लिक में फिर रयेले हैं और अफवाहें फैला रयेले हैं । अभी तक ये भीड़ू लोग साला खुसर पुसर करता था, अभी लीडरान का माफिक लैक्चर देता है ।’’
‘‘भड़का रहे हैं पब्लिक को ।’’ — शोहाब संजीदगी से बोला ।
‘‘पब्लिक भड़क रयेला है । बोले तो ये लोग कामयाब हो रयेला है । देखा नहीं साला उस पुलिसिये को थामने लगा था जो पब्लिक को इधर से नक्की करने को बोलने को आया !’’
‘‘चौकी पर हमला कर देंगे ?’’
‘‘क्या मालूम पड़ता है ! पण बोले तो जो मालूम पडता है वो खराब ।’’
‘‘यानी सोहल की जान एक नये खतरे में !’’
‘‘बरोबर बोला, बिरादर ।’’
‘‘हमें कुछ करना चाहिये ।’’
‘‘अरे, इन घौंचू पुलिसियों को पहले करना चाहिये । साला ऊपर कहीं फोन काहे नहीं लगाते कि इधर एक्स्ट्रा करके फोर्स भेजने का खलकत को कन्ट्रोल करने का वास्ते !’’
‘‘हमारा उन पर जोर नहीं है । सवाल है हम क्या करें ?’’
‘‘हम कुछ नहीं कर सकते ।’’
‘‘क्या बोला ?’’
‘‘विक्टर कर सकता है ।’’
‘‘विक्टर ! ओह ! ओह !’’
‘‘सावन्त साहब’’ — भारकर ने चौकी पहुंच कर फरियाद लगाई — ‘‘थाने फोन लगाओ — बल्कि डिस्ट्रिक्ट के डीसीपी को फोन लगाओ — कि इधर इमीजियेट करके सशस्त्र पुलिस बल भेजा जाये ।’’
‘‘मैं पहले बात करता हूं न !’’ — सब-इन्स्पेक्टर सावन्त झुंझलाया सा बोला ।
‘‘जब उन्होंने मेरी नहीं सुनी तो...’’
‘‘तेरी और बात है, भारकर । मैं’’ — सब-इन्स्पेक्टर के स्वर में गर्व का पुट आया — ‘‘मैं चौकी इंचार्ज हूं । वो लोग मेरी बात सुनेंगे, उन को सुननी पड़ेगी, वर्ना पछतायेंगे ।’’
‘‘मेरे को तो लगता है कि हम पछतायेंगे ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘अगर देर की तो ! सावन्त साहब, बाहर हालात बिगड़ रहे हैं । हुजूम को भड़काया जा रहा है । भड़का हुआ हुजूम जो न कर गुजरे वो थोड़ा है...’’
‘‘कौन भड़का रहा है ? मैं थामता हूं साले को ।’’
‘‘कुछ पता चले तब न ! बाहर अन्धेरा हो गया है । भीड़ में से भड़काऊ आवाज ही उठती है, बोलने वाले की सूरत नहीं दिखाई देती । किस को थामोगे ?’’
‘‘मैं देखता हूं ।’’
‘‘देर भारी पड़ेगी, सावन्त साहब ।’’
‘‘अरे, देखता हूं न !’’
‘‘लेकिन...’’
‘‘मेरे को हालात उतने ही खराब लगे जितने तुम साबित करने की कोशिश कर रहे हो तो मैं बुलवाऊंगा न सशस्त्र पुलिस !’’
‘‘अच्छी बात है ।’’
चौकी के अहाते में एक ऊंचा चबूतरा था जिस पर सरकारी त्योहारों पर झण्डा फहराने के लिये एक पोल खड़ा था । चबूतरे की पांच गोल सीढ़ियां तय करके सब-इन्स्पेक्टर सावन्त उस पर जा खड़ा हुआ ।
भीड़ चौकी की चारदीवारी के करीब सरकती आ रही थी ।
‘‘सुनो सब लोग ! सुनो ! सुनो !’’ — सब-इन्स्पेक्टर बुलन्द आवाज में बोला — ‘‘मैं इस चौका का इंचार्ज सब-इन्स्पेक्टर यशवन्त राव सावन्त तुम लोगों से मुखातिब हूं । मैं तुम लोगों को वार्निंग देता हूं कि जो कुछ तुम लोग कर रहे हो वो गलत है, नाजायज है । यूं कहीं जमघट्टा लगाना गैरकानूनी है ! नारेबाजी गैरकानूनी है, गलाटा मचाना गैरकानूनी है । अगर तुम लोग कोई मीटिंग कर रहे हो तो तुम्हारे पास इस काम के लिये सरकारी इजाजत होनी चाहिये, जो कि मैं जानता हूं कि नहीं है । तुम लोग यहां से नहीं टलोगे तो पुलिस को मजबूर होकर तुम्हारे लीडरान को गिरफ्तार करना पड़ेगा और तुम लोगों को जबरदस्ती, बल प्रयोग कर के तितर बितर करना पड़ेगा...’’
तभी एक फायर होने की आवाज हुई ।
‘‘गोली चली ।’’ — कोई भीड़ में से गला फाड़ के चिल्लाया — ‘‘चौकी में से गोली चली । किसी ने चौकी के बरामदे के एक खम्बे के पीछे से गोली चलाई...’’
‘‘ये झूठ है !’’ — सब-इन्स्पेक्टर गुस्से से चिल्लाया — ‘‘बकवास है ! चौकी से किसी नहीं चलाई । कोई शरारती आदमी ये अफवाह खड़ी करके पब्लिक को भड़काने की कोशिश कर रहा है...’’
‘‘गोली चौकी से चली, भाइयो, यकीनी तौर पर चौकी से चली । क्यों चली, भाइयो ! क्योंकि इस कम्बख्त चौकी इंचार्ज ने बल प्रयोग शुरू कर भी दिया है । इस जालिम पुलिसिये ने अपनी धमकी पर खरा उतर कर दिखाना शुरू कर भी दिया है । भाईयो, आगे बढ़ो और पहले इसी को सबक सिखाओ ।’’
‘‘खबरदार ! अब किसी ने एक भी कदम आगे बढ़ाया तो जो काम पहले नहीं हुआ, वो अब होगा ।’’
‘‘क्या होगा ?’’ — भीड़ में से कोई गर्जा — ‘‘क्या होगा ?’’
‘‘तो गोली अब चलेगी ।’’
‘‘ठहर जा, साले हरामी पुलिस के दीने !’’
फिर एक फायर हुआ ।
इस बार साफ जान पड़ा कि किसी ने भीड़ में से गोली चलाई थी जो कि सब-इन्स्पेक्टर की बायीं बांह में लगी ।
सब-इन्स्पेक्टर ने दायें हाथ से अपनी बांह थामी और झपट कर सीढ़िया उतरा । वो बरामदे में जा कर वहां पड़ी एक कुर्सी पर ढ़ेर हुआ और हांफने लगा । एकाएक उसके हवास उड़ गये थे, उसे यकीन नहीं आ रहा था कि भीड़ में से किसी की उस पर गोली चलाने की मजाल हुई थी ।
‘‘अरे ! एसआई साहब को गोली लगी है ।’’ — एक सिपाही आतंकित भाव से बोला — ‘‘सम्भालो...सम्भालो इन्हें ।’’
सारे पुलिसिये सब-इन्स्पेक्टर के इर्द गिर्द जमा हो गये, हर किसी के चेहरे पर उत्कण्ठा और आतंक के भाव थे पर कोई नहीं जानता था कि उस घड़ी आखिर करना क्या था ।
तभी भीड़ अहाते में घुस आयी ।
पलक झपकते हुजूम ने सातों पुलिसियों को काबू में कर लिया, उन के मोबाइल छीन लिये और उन्हें आफिस के कमरे में धकेल दिया । किसी ने टेबल पर पड़ा लैंड लाइन का फोन उठाया और उसे दीवार पर दे मारा । फिर कमरे को बाहर से कुंडी लगा दी गयी ।
‘‘लाक अप ! लॉक अप कहां है !’’
‘‘उधर है ।’’
लॉक अप के सलाखों वाले दरवाजे को ताला नहीं लगा हुआ था, केवल उसका कुंडा बाहर से बन्द था । पलक झपकते वो दरवाजा खुला था और विमल कई हाथों की गिरफ्त में था ।
शोहाब इरफान तो तब तक अहाते में भी दाखिल नहीं हो सके थे, लिहाजा उन्हें नहीं मालूम था कि चौकी के भीतर क्या हो रहा था । हुजूम में धक्का मुक्की का ये आलम था कि अपनी भरपूर कोशिशों के बावजूद वो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पा रहे थे ।
‘‘बाहर ले के चलो ।’’
‘‘यही राजा साहब है । टांग दो ।’’
‘‘यही होटल सी-व्यू की ट्रेजेडी के लिये जिम्मेदार कसाई है । पुर्जा पुर्जा कर डालो ।’’
‘‘नहीं, भाइयो । फांसी लगाओ । उधर रस्सी तैयार है ।’’
मैदान में एक नीम का पेड़ था जिस की एक मजबूत डाल के साथ फांसी का फंदा किसी ने बांध भी दिया हुआ था ।
हुजूम विमल को घसीटता हुआ उधर से चला ।
तभी एकाएक सब को मैदान से परे ऊंची सड़क पर भारी हलचल का आभास हुआ । सब की निगाहें उधर उठीं । जो नजारा उन्हें दिखाई दिया, वो अभूतपूर्व था ।
बेशुमार टैक्सियां सड़क पर पहुंच रही थीं और ढलान उतर कर मैदान के सिरे पर जमा हो रही थीं । ऊपर सड़क पर टैक्सियों का तांता था कि टूट ही नहीं रहा था ।
‘‘ये क्या हो रहा है ?’’ — कोई बोला ।
किसी के पास जवाब नहीं था ।
फिर सैंकड़ों टैक्सियों में से ड्राइवर बाहर निकलने लगे और मैदान को घेरने लगे । किसी के हाथ में लोहे की छड़ थी, तो किसी के हाथ में साइकल की चेन थी । किसी के हाथ में लाठी थी तो किसी के हाथ में डंडा था । किसी के हाथ में लोहे का पाइप था तो किसी के हाथ में हाकी थी ।
बेशुमार टैक्सी वाले खामोशी से बड़े व्यवस्थित ढंग से मैदान को घेरने लगे ।
‘‘ये क्या हो रहा है ?’’
‘‘देवा रे ! इतनी टैक्सियां ! इतने डिरेवर !’’
‘‘बोले तो हमेरे से डबल !’’
‘‘फोड़ देंगे साले !’’
तत्काल लोगों का जुनून ठण्डा पड़ा और वो जिधर सींग समाया, उधर खिसकने लगे ।
‘‘दाता !’’ — गरेवाल ने मुंह से निकला — ‘‘ये क्या हो रहा है ?’’
‘‘ऐन वक्त पर काम बिगड़ा जा रहा है ।’’ — कौल चिन्तित भाव से बोला ।
‘‘माईंयवे हजारों हैं ।’’
‘‘और दो मिनट बाद आते तो सोहल सूली पर टंगा होता ।’’
‘‘अब क्या होगा ?’’
‘‘अब क्या होना है ! लोग तो डर के भागे जा रहे हैं !’’
‘‘हम क्या करें ?’’
‘‘वही जो लोग कर रहे हैं ।’’
‘‘निकल लें ?’’
‘‘इसी में समझदारी है ।’’
‘‘मैं सोहल को शूट करता हूं ।’’
‘‘अब नहीं कर पाओगे । उसके करीब भी नहीं पहुंच पाओगे । कोशिश करोगे तो इन नये लोगों के हत्थे चढ़ोगे और हड्डियां तुड़ाओगे ।’’
‘‘दाता ! ये कैसा आदमी है ! कैसे बच जाता है ?’’
‘‘अब चलो । हमने घिर जाने से पहले निकलना है ।’’
‘‘ठीक है ।’’
वे विपरीत दिशा में आगे बढ़े ।
तभी कौल के मोबाइल की घन्टी बजी ।
अनिच्छा से उसने काल रिसीव की ।
‘‘कौल !’’ — पूछा गया ।
‘‘हां ।’’
‘‘मैं माइकल हुआन ।’’
‘‘जल्दी बोलो, हुआन साहब क्या बोलना है !’’
‘‘क्यों, क्या हुआ ?’’
‘‘इधर सब खेल बिगड़ गया ।’’
‘‘क्या हुआ ?’’
‘‘सोहल हाथ आ के भी हाथ न आया । उस अंजाम तक न पहुंचा जिस तक कम्बख्त पहुंचने ही वाला था । पब्लिक सूली पर टांगने ही लगी थी कि उसके हजारों हिमायती यहां पहुंच गये ।’’
‘‘यू मीन बच गया ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘नो प्राब्लम ।’’
‘‘क्या बोला ?’’
‘‘उसकी बीबी और बेटा हमारे कब्जे में हैं ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘विखरोली में थे । अब सोहल को हम जहां बुलायेंगे, वहां दौड़ा आयेगा ।’’
‘‘ओह !’’
‘‘फौरन ओमवाडी पहुंचो ।’’
‘‘ओमवाडी कहां ?’’
हुआन समझाने लगा ।
भीड़ छंट चुकी थी ।
घेरे जाने से पहले ही तकरीबन लोग बाग वहां से खिसक गये थे ।
विमल अब सुरक्षित था और इरफान शोहाब और विक्टर के साथ था ।
खाली हो चुके मैदान में पेड़ की एक डाल से लटका, हौले हौले हवा में झूलता फांसी का फन्दा अब भी डरावना लग रहा था ।
‘‘थैंक्यू, विक्टर ।’’ — विमल कृतज्ञ भाव से बोला ।
‘‘गॉड आलमाइटी इज्जत रखा ।’’ — विक्टर बोला — ‘‘मैं टेम पर पहुंचा ।’’
‘‘इतने आदमी !’’
‘‘तेरे हजार हाथ, बाप ।’’
‘‘कमाल है !’’
‘‘मैं बोला तेरे को पिराब्लम । सिर के बल दौड़े आये ।’’
‘‘मैं मशकूर हूं ।’’
‘‘अभी शुकर कि कोई खून खराबा न हुआ । सारे हरामी लोग घेर लिये जाने से पहले ही खिसक गये । खाली पब्लिक पार्टी की टोपियों वाले भीड़ू ढ़ीठ निकले । साला न सिर्फ नक्की न किया, जानना मांगते थे कि इतने टैक्सी डिरेवर भीड़ू इधर क्या करते थे ! साला धमका के भगाया ।’’
‘‘ओह ! लेकिन ये तो पता न लगा न कि इस तमाम ड्रिल का आर्गेनाइजर कौन था ! कौन पब्लिक को मेरे खिलाफ उकसा रहा था और भड़का रहा था ।’’
‘‘शायद पता लगे !’’ — शोहाब बोला ।
‘‘कैसे ?’’
‘‘हमारा एक भीड़ू — आकरे — अपने मोबाइल के कैमरे से उस भीड़ू की क्लिप बनाने में कामयाब हुआ है जिसने कि गोली चलाई थी । वो क्लिप मैं तुम्हें दिखाता हूं ।’’
शोहाब ने जेब से मोबाइल निकालकर कैमरे को मूवी मोड पर किया और क्लिप चला कर कैमरा विमल को थमाया ।
‘‘ये’’ — विमल मूवी को फ्रीज करता भौंचक्का सा बोला — ‘‘ये तो कौल है !’’
‘‘कौल कौन ?’’
‘‘पंजाब के एक बड़े मवाली हरनाम सिंह गरेवाल का जोड़ीदार । अमृतसर में होटल राजमहल में इसी ने मुझे बेहोशी की दवा वाली काफी पिलाई थी और फिर मेरी बात और मेरे से हासिल हुई पैंसठ लाख की डकैती की स्टोरी की बाबत गरेवाल को खबर की थी । बाद में निजामुद्दीन में दोनों मेरी चलाई गोली के शिकार हुए थे । मैं उन्हें उनके हाथों मरे खन्ना की बीवी के हवाले कर के आया था । मुझे यकीन था मेरे पीठ फेरते ही खन्ना की बीवी ने दोनों को शूट कर देना था लेकिन अब जाहिर है कि किसी वजह से ऐसा न हुआ । तब दोनों घायल थे, खुद उठ के कहीं नहीं जा सकते थे, इस लिहाज से खन्ना की बीवी के हाथों नहीं मरे थे तो गिरफ्तार जरूर हुए होंगे ।’’
‘‘ओह !’’
‘‘ये कौल की बगल में जो दूसरा लम्बा चौड़ा, राक्षस जैसा क्लीनशेव्ड आदमी खड़ा है, कौल की वजह से ही मेरे को जान पड़ता है कि गरेवाल है जिस ने किसी वजह से वैसे ही दाढ़ी मूंछ, केश मुंडा दिये जैसे कौल ने मूंछ रख ली है । यकीनन ये शख्स गरेवाल है ।’’
‘‘बाप, तू बोला’’ — इरफान बोला — ‘‘कोई खन्ना करके भीड़ू इन के हाथों मरा !’’
‘‘गरेवाल के हाथों । गरेवाल खन्ना की बीवी के पीछे पड़ गया था । खन्ना ने ऐतराज किया था तो, खुद कौल ने मुझे बताया था, गरेवाल ने उसे पीट पीट के मार डाला था और फिर बीवी के साथ बलात्कार ही नहीं किया था, उसे एक वहशी दरिन्दे की तरह नोचा खंसोटा भी था ।’’
‘‘फिर तो’’ — शोहाब बोला — ‘‘गोरई के काटेज में जो हुआ...’’
‘‘बिल्कुल ! अब मुझे मुकम्मल यकीन है कि गरेवाल ने किया । तमाम वाकये पर सौ फी सदी गरेवाल की छाप है । उसी ने कल्याण अजमेरा को पीट पीट के मार डाला क्योंकि उसने रागिनी के बचाव की कोशिश की — ऐन वैसे ही जैसे पहले दिल्ली में खन्ना ने अपनी बीबी किरण के बचाव की कोशिश की थी — उसी ने अजमेरा की लाश को ले जा कर मेरी कार की डिकी में बन्द किया और फिर रागिनी के साथ वहशियाना बलात्कार किया ।’’
‘‘बोले तो’’ — इरफान बोला — ‘‘तेरे को फुल सैट ये दो भीड़ू लोग किया !’’
‘‘अब इस बात में शक की कतई कोई गुंजाइश नहीं । इन्होंने ही इधर मजमा लगाया और पब्लिक को मेरे खिलाफ भड़काया ।’’
‘‘आकरे कहता है’’ — शोहाब बोला — ‘‘कि पहली गोली भी इसी राक्षस जैसे भीड़ू ने चलाई थी जिसके हाथ में गन है ।’’
‘‘और पब्लिकसिटी की थी’’ — इरफान बोला — ‘‘कि पहली गोली अन्दर चौकी से चली थी ।’’
‘‘चौकी इंचार्ज को भी’’ — शोहाब बोला — ‘‘इसी ने शूट करने की कोशिश की थी लेकिन उसकी किस्मत थी कि गोली किसी जानलेवा जगह पर न लगी । बहरहाल मकसद ज्यादा से ज्यादा गलाटा करना था और पब्लिक को तेरे खिलाफ फौजदारी के लिये भड़काना था ।’’
‘‘बाल बाल बचा, बाप’’ — इरफान झुरझुरी लेता बोला — ‘‘विक्टर थोड़ा लेट हो जाता तो तू साला टंगा होता । नीम के पेड़ पर झूल रहा होता ।’’
‘‘जिसके सिर ऊपर तू स्वामी’’ — विमल धीरे से बोला — ‘‘वो दुख कैसे पावै ।’’
‘‘क्या बोला, बाप !’’
‘‘कुछ नहीं ।’’
‘‘ये दोनों भीड़ू आजाद कैसे घूम रहे हैं ?’’ — शोहाब बोला ।
‘‘असलियत तो यही जानें’’ — विमल बोला — ‘‘लेकिन एक अन्दाजा मेरा है ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘एक ही तरीके से ये खन्ना की बीवी के हाथों शूट किये जाने से बचे हो सकते हैं कि उसके ऐसा कर पाने से पहले एकाएक पुलिस वहां पहुंच गयी हो । इतनी गोलियां वहां चली थी, उन की रू में पुलिस का वहां पहुंच जाना कोई बड़ी बात नहीं थी । इसका साफ मतलब है कि खन्ना की बीवी के हाथों मरने की जगह दोनों गिरफ्तार हो गये थे ।’’
‘‘पण’’ — इरफान बोला — ‘‘ये तो आजाद !’’
‘‘जरूर किसी तरीके से जेल ब्रेक को अंजाम देने में कामयाब हो गये और फरार हो गये । तभी अपनी शिनाख्त छुपाने के लिये सरदार ने दाढ़ी मूंछ मुंडवाईं और केश कटवाये और कौल ने मोटी मूंछ रखी और निचले होंठ के नीचे बालों की तिकोन छोड़ी ।’’
‘‘मुम्बई तेरे पीछे लगने को आये ?’’
‘‘यही जान पड़ता है । मैंने दिल्ली में दोनों को गोली मारी थी और आगे इनकी मौत का सामान किया था । बदले की चाह ऐसे लोगों को दीवाना बना देती है और ऐसे कदम उठाने को उकसाती है जो कोई जुनूनी शख्स ही उठा सकता है ।’’
‘‘ये फिर कोशिश करेंगे !’’ — शोहाब चिन्तित भाव से बोला ।
‘‘हो सकता है ।’’
‘‘ये टेम नहीं ।’’ — इरफान जोश और गुस्से के मिश्रित स्वर में बोला — ‘‘मैं साला पहले ही इनकी तलाश कर के मुंडी हाथ में देंगा ।’’
‘‘देखेंगे ।’’
‘‘फ्रीज शॉट को कुछ फ्रेम आगे सरकाओ’’ — शोहाब बोला — ‘‘आगे एक भीड़ू और है गौर करने के लायक ।’’
विमल ने निर्देश का पालन किया ।
‘‘बस !’’ — शोहाब बोला ।
विमल ने हाथ रोक दिया ।
‘‘यहां ये जो गरेवाल करके भीड़ू की थोड़ी ओट में उसके पीछे खड़ा है, ये अनूप झेण्डे...हो सकता है ।’’
‘‘वो कौन हुआ ?’’
‘‘जो कयूम नलवाला को एंगेज किया था । नलवाला को तुम्हारे हुक्म के मुताबिक थामा था न ! तो वो इस अनूप झेण्डे की बाबत बका था । जो हुलिया नलवाला अनूप झेण्डे का बोला था, वो मोटे तौर पर इस भीड़ू से मिलता है । आगे तसदीक भी हो जायेगी ।’’
‘‘है कौन ?’’
‘‘इधर का एक बैड कैरेक्टर है । नोन बैड कैरेक्टर बोले तो । काफी अरसा पहले दिल्ली पुलिस पकड़ कर ले गयी थी और उधर इस को लम्बी सजा हुई थी ।’’
‘‘पर ये आजाद है !’’
‘‘जाहिर है ।’’
‘‘इस का मतलब है कौल और गरेवाल की जेल में इससे जुगलबन्दी हुई और ये तीनों इकट्ठे फरार हुए !’’
‘‘हो सकता है ।’’
‘‘साला देखेगा इस झेण्डे को भी’’ — इरफान बोला — ‘‘जो तेरे को फिनिश करने की साजिश में शामिल है ।’’
‘‘अभी मेरा एक सवाल है !’’
‘‘बोले तो ?’’
‘‘पुलिस वाले कहां हैं ?’’
‘‘चौकी में कहीं बन्द हैं ।’’ — जवाब शोहाब ने दिया ।
‘‘क्या मतलब ?’’
‘‘हुजूम की ही करतूत है । सबने तमाम के तमाम पुलिसियों को थाम लिया था और चौकी इंचार्ज के आफिस में बन्द कर दिया था ।’’
‘‘ओह ! हमें उन को वहां से आजाद करना चाहिये ।’’
‘‘काहे वास्ते !’’ — इरफान तमक कर बोला — ‘‘बाप, तू आजाद है न ! और क्या मांगता है ! अभी निकल ले ।’’
विमल ने मजबूती से इंकार में सिर हिलाया ।
‘‘बोले तो ?’’
‘‘मैं ऐसे निकल लिया तो पुलिस और पंजे झाड़ के मेरे पीछे पड़ेगी । अभी अपनी बेगुनाही जाहिर करने का जरिया मेरे सामने है ।’’
‘‘क्या जरिया ?’’
‘‘गरेवाल और कौल । वो काबू में आ गये तो खुद अपना गुनाह कबूल करेंगे ।’’
‘‘ऐसा पता नहीं कब होगा !’’
‘‘मेरे हजार हाथ मिल कर काम करेंगे तो बहुत जल्द होगा ।’’
‘‘सोच ले, बाप !’’
‘‘सोच लिया । भीतर चलो । बल्कि पहले विक्टर को बोलो अपने टैक्सी डिरेवर भाइयों को रुखसत करे ।’’
विक्टर ने वो सब इन्तजाम किया ।
विमल शोहाब और इरफान के साथ भीतर पहुंचा ।
फिर शोहाब ने चौकी इंचार्ज के आफिस का दरवाजा बाहर से खोला ।
‘‘तुम !’’ — सब-इन्स्पेक्टर सावन्त विमल को देखकर बोला — ‘‘सलामत हो !’’
‘‘जाहिर है ।’’ — मुस्कराता हुआ विमल बोला ।
‘‘यहां तक आवाजें साफ पहुंच रही थीं कि हुजूम तुम्हें फांसी पर टांग देना चाहता था ।’’
‘‘समझो टांग ही दिया था ।’’
‘‘कैसे बचे ?’’
‘‘लम्बी कहानी है ।’’
‘‘हमारा काम तुम्हारी हिफाजत करना था जो कि हम न कर सके । हम अपनी ही हिफाजत न कर सके ।’’
‘‘आपकी कोई गलती नहीं, एसआई साहब । मॉब फ्यूरी का मुकाबला कोई नहीं कर सकता ।’’
‘‘वो तो सच है, फिर भी...’’
‘‘जाने दीजिए । अपनी बात कीजिये । आप को गोली लगी थी ।’’
‘‘हां, लेकिन गणपति ने रक्षा की । बांह को छीलती हुई ही गुजरी । समझो खैरियत है ।’’
‘‘जानकर खुशी हुई । एसआई साहब, ये लोग मेरे दोस्त और खैरख्वाह हैं...’’
‘‘मालूम । सुबह तुम से मिलने आये थे ।’’
‘‘वही । इनके पास उस शख्स की मूवी क्लिप है जिसने आप पर गोली चलाई थी ।’’
‘‘ऐसा ?’’
‘‘जी हां । क्लिप में वो साफ पहचाना जाता है और अपने गैर ामूली कद काठ और विकराल शक्ल की वजह से सैंकड़ों हजारों में अलग पहचाना जाता है । मैं नहीं समझता कि मुम्बई पुलिस को उसकी गिरफ्तारी में कोई दिक्कत होगी ।’’
‘‘हूं ।’’
तभी एक वर्दीधारी हवलदार वहां पहुंचा ।
सकपकाये भाव से उसने जमा लोगों को देखा और फिर बोला — ‘‘फारेंसिक साईंस लैब से आया । शर्ट और नाखूनों की बाबत रिपोर्ट लाया ।’’
‘‘दो ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर बोला ।
हवलदार ने एक बन्द लिफाफा उसे सौंपा और सैल्यूट मार कर वहां से रुखसत हो गया ।
सब-इन्स्पेक्टर ने लिफाफा खोला और उसमें से रिपोर्ट बरामद कर के उसका मुआयना किया । फिर उसने रिपोर्ट को वापिस लिफाफे में धकेला और लिफाफे को मेज पर डाल दिया ।
‘‘तुम कुछ कह रहे थे !’’ — वो विमल से बोला ।
‘‘जी हां ।’’ — विमल बोला — ‘‘मैं उस शख्स की बाबत कह रहा था जिसने आप पर गोली चलाई थी । एसआई साहब, वही शख्स कत्ल और जबरजिना की उस वारदात के लिये जिम्मेदार है जिसकी वजह से मैं गिरफ्तार हूं ।’’
‘‘पकड़ा गया तो अपना गुनाह गा गा कर कुबूल करेगा ।’’
‘‘साथ में और भी कुछ गा गा के कहेगा ।’’
‘‘और क्या ?’’
‘‘वही जो आप साबित न कर सके ।’’
‘‘कहेगा तुम सोहल हो !’’
‘‘जी हां ।’’
‘‘हम उसकी बकवास पर कान नहीं देंगे ।’’
‘‘जी !’’
‘‘क्यों कि तुम बेगुनाह हो ।’’
‘‘जी !’’
‘‘अभी जो फॉरेंसिब लैब की रिपोर्ट यहां पहुंची, वो स्थापित करती है कि तुम्हारी शर्ट पर लगे खून के धब्बे तुम्हारे अपने ब्लड ग्रुप के हैं और तुम्हारे नाखूनों में चमड़ी के, खून के कोई अवशेष नहीं पाये गये हैं ।’’
‘‘ओह !’’
‘‘अब मुझे यकीन है कि तुम्हें सैट किया गया था और ऐसा करने वाला वही शख्स था जिसने बाहर मैदान में तुम्हारे खिलाफ हुजूम जमा किया, अफवाहें फैलाईं और मुझ पर गोली चलाई । बहुत जल्द वो गिरफ्तार होगा ।’’
‘‘बढ़िया ।’’
‘‘बाप’’ — शोहाब आशापूर्ण स्वर में बोला — ‘‘अभी ये जा सकता है !’’
‘‘अभी एक बात और बाकी है ।’’
‘‘और अभी भी !’’
‘‘हां ।’’
‘‘वो भी बोलो, बाप ।’’
‘‘वो मैं नहीं, कोई और बोलेगा ।’’
‘‘कौन ?’’
‘‘रामभाउ !’’
चालीस के करीब का एक सिपाही एक कदम आगे बढ़ा ।
‘‘ये सिपाही रामभाउ है ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर बोला — ‘‘ये मेरे को कुछ बोला । पर जो बोला देर से बोला क्योंकि सोचता या बोलना चाहिये था या नहीं । अभी जब हम सब इधर बन्द थे तो जो बोलना चाहिये था, ये मेरे को आखिर बोला । अभी आगे बोलता है । रामभाउ !’’
सिपाही ने सहमति में सिर हिलाया, वो झिझकता सा विमल के सामने जा खड़ा हुआ ।
‘‘मेरे को पहचाना, साहेब !’’ — वो दबे स्वर में बोला ।
विमल ने सहज भाव से इंकार में सिर हिलाया ।
‘‘मैं रामभाउ मेघे । फरियादी !’’
विमल की भवें उठीं ।
‘‘पिछले साल नवम्बर में फरियाद लेकर चैम्बूर पहुंचा ।’’
‘‘चैम्बूर !’’
‘‘तुकाराम चैरिटेबल ट्रस्ट के आफिस में । उधर खुद चैम्बूर का दाता मेरा फरियाद सुना !’’
‘‘अच्छा !’’
‘‘सब का तो वो खुद नहीं सुनता । पण मेरा गुड लक । मेरा खुद सुना ।’’
‘‘मेरे को क्यों बता रहे हो ?’’
‘‘आप को मालूम, साहेब ।’’
‘‘मेरे को कुछ नहीं मालूम ।’’
‘‘बोले तो याद नहीं । मैं याद दिलाता है न !’’
‘‘लेकिन...’’
‘‘साहेब, सुनने का । प्लीज कर के बोलता है ।’’
‘‘अच्छा, बोलो, भई ।’’
‘‘साहेब, मेरा एक बेटी । बीस साल की । कालेज में पड़ती थी । एक बार सायन से फोर्ट शेयर्ड टैक्सी में जाती थी । बैक सीट पर उसके साथ दो लड़कियों, फ्रंट सीट पर डिरेवर के साथ दो लड़के । बैक सीट की दोनों लड़कियां मजगांव में उतर गयीं तो आगे बैठे लड़के पीछे मेरी बेटी के आजू बाजू में आ बैठे । उसने ऐतराज किया तो न लड़कों ने सुना, न डिरेवर ने सुना । बल्कि डिरेवर ने टैक्सी की रफ्तार बढ़ा दी । तब दोनों लड़के मेरी बेटी के साथ बद्तमीजी करने लगे, हाथापायी करने लगे । बेटी ने चिल्लाने की कोशिश की तो एक ने उसका मुंह दबोच लिया और दोनों उसके साथ बुरी से बुरी हरकत करने लगे । बेटी बोलती थी कि डिरेवर कुछ करने की जगह रियरव्यू मिरर में तमाशा देखता था । साहेब, बोले तो बेटी की किस्मत अच्छी थी जो एक ट्रैफिक सिग्नल पर डिरेवर को टैक्सी की रफ्तार घटानी पड़ी और बेटी ने किसी तरह से टैक्सी का दरवाजा खोल कर बाहर छलांग लगा दी और यूं उन लड़कों के चंगुल से बची ।’’
‘‘फिर तो शुकर हुआ !’’
‘‘नहीं हुआ, साहबे ।’’
‘‘नहीं हुआ ?’’
‘‘नहीं हुआ, आप को मालूम ।’’
‘‘मेरे को मालूम !’’
‘‘साहेब, अभी सुनने का । प्लीज करके बोलता है ।’’
‘‘अच्छा !’’
‘‘मेरी बेटी दोनों में से एक लड़के को पहचानती थी जो कि एक बड़े लोकल बिल्डर का बेटा था । मैंने थाने रपट दर्ज करवाने की कोशिश की तो खुद थानेदार ने ही मेरे को बहला फुसला के चुप करा दिया कि कुछ हुआ तो था नहीं, मैं बात को उछालूंगा तो खामखाह लड़की की बदनामी होगी । साहेब, ये मेरे ही महकमे का अफसर अपने सिपाही को बोला । मैं खून का घूंट पी के रह गया ।’’
‘‘तुमने कहा शुकर नहीं हुआ !’’
‘‘नहीं हुआ, साहेब । दो दिन बाद जब मेरी बेटी कालेज जाने के लिये घर से निकली तो दोनों लड़के एक कार में पहुंचे और उन्होंने जबरन मेरी बेटी को कार में घसीट लिया और कार दौड़ा दी ।’’
‘‘अरे !’’
‘‘चलती कार में’’ — सिपाही रामभाउ का गला भर आया — ‘‘उन दोनों ने बारी बारी मेरी बेटी से मुंह काला किया, जब पूरी तरह से मनमानी कर चुके तो उसे कार से बाहर फेंक दिया । फटेहाल, रोती बिलखती, खौफ से अधमरी हुई मेरी बेटी घर पहुंची और रो रो कर मां को तमाम किस्सा बयान किया । मां ने फौरन मुझे घर बुलाया — तब मेरी ड्यूटी बान्द्रा थाने में थी — तो मुझे खबर लगी कि बेटी के साथ क्या जुल्म हुआ था । इस बार मैंने रपट दर्ज कराने की कोशिश की तो साहेब लोग मेरे को फिर समझाने लगे कि दूसरा लड़का रूलिंग पार्टी के एक बड़े नेता का बेटा था और बिल्डर की भी बड़ी पोलिटिकल पहुंच थी । मुझे उन से पंगा नहीं लेना चाहिये था । मैंने इस बार रपट लिखाने की जिद पकड़ ली तो मेरी बेटी की रपट दर्ज की गयी और उसकी निशानदेही पर पहले बिल्डर के बेटे को और फिर नेता जी के बेटे को हिरासत में लिया गया । साहेब, मिलीभगत का ये हाल था कि वो दोनों लड़के खाली एक रात हवालात में बन्द रहे, अगले रोज दोनों की जमानत हो गयी जो कि नहीं होनी चाहिये थी । फिर केस लगा तो दोनों ने गवाह पेश कर दिये कि वारदात के दिन वो दोनों महाबलेश्वर में थे । सबूतों की कमी के तहत केस डिसमिस हो गया । मेरी बेटी अपनी दुरगत पर रोती थी, मैं उसकी बदकिस्मती पर रोता था और वो दोनों लड़के अपने बड़े वकीलों के साथ अदालत में खड़े हम बाप बेटी की बेबसी पर हंसते थे, हमें हमारी औकात बता कर जलील करते थे, खिल्ली उड़ाते थे । मेरी बेटी को ऐसा सद्मा लगा कि उसने कालेज की पढ़ाई छोड़ दी, घर से निकलना बन्द कर दिया । सारा दिन न खाती थी, न पीती थी, बस, गुमसुम बैठी रहती थी, सारी रात जागती थी । उसकी हालत देखकर मेरा दिल रोता था, मां का कलेजा चाक होता था । ऐसे में किसी ने मेरे को बताया कि मैं चैम्बूर जाऊं, वहां इंसाफ मिलता था । मैं चैम्बूर गया, मेरे को इंसाफ मिला, वो इंसाफ मिला जो मेरे को मेरे महकमे ने न दिया, मुल्क के कायदे कानून ने न दिया, दिया तो चैम्बूर के दाता ने दिया । उसने क्या कैसे किया मेरे को नहीं मालूम पण ऐसे हालात पैदा किये कि दोनों लड़कों को अपनी जुबानी अपना गुनाह कुबूल करना पड़ा और उन्हें लम्बी सजायें हुई । तब कोर्ट ने झूठे गवाहों को भी न बख्शा, उन को भी सजा हुई, उस टैक्सी डिरेवर को भी तलाश किया गया जिस की टैक्सी में उन लड़कों की काली करतूत वाकया हुई थी और कोई उसको ऐसा ठोका कि दो हफ्ता बिस्तर से न उठ सका ।’’
‘‘यानी आखिर इंसाफ हुआ, तुम मियां बीबी ने, बेटी ने चैन पाया !’’
‘‘हां, साहेब ।’’
‘‘बढ़िया । लेकिन ये कहानी मुझे क्यों सुना रहे हो ?’’
‘‘क्योंकि, साहेब, आपने... आपने इंसाफ दिलाया ।’’
‘‘मैंने !’’
‘‘साहेब, आप चैम्बूर का दाता !’’
‘‘क्या बात करते हो ?’’
‘‘साहेब, जिस भगवान सरीखे साहेब के सामने बैठ कर मैंने आधा घन्टा अपना दुखड़ा रोया और वो तसल्ली पायी जो मुझे देने वाला कोई नहीं था, मैं उसे कैसे भूल जाऊंगा !’’
‘‘तुम्हें मुगालता है, रामभाउ, मैं वो शख्स कैसे हो सकता हूं ! मैं तो...’’
सब-इन्स्पेक्टर ने खंखार कर गला साफ किया ।
विमल ठिठका ।
‘‘कोई हां न कहने की जरूरत नहीं’’ — सब-इन्स्पेक्टर धीमे, सन्तुलित स्वर में बोला — ‘‘प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती । हम इस कमरे में बन्द थे लेकिन यहां की खिड़की से बाहर सब दिखाई देता था । हमने अपनी आंखों से देखा, सबने देखा, कि कैसे तुम्हारी हस्ती मिटाने पर तुले हुजूम से कहीं बड़ा टैक्सी ड्राइवरों का हुजूम इधर पहुंचा और कैसे बाजी पलटी । मैं कैसे मान लूं जिसके इतने हिमायती, इतने मुहाफिज इस शहर में हों, वो कोई मामूली आदमी हो सकता है ! वो कोई कातिल हो सकता है, ब्लात्कारी हो सकता है ! परमात्मा हर काम खुद नहीं करता, वो सद्कार्यों के लिये सद्जनों को अप्वायन्ट करता है । चैम्बूर का दाता ऐसा ही अप्वायन्टिड सद्जन है ।’’
सब-इन्स्पेक्टर एक क्षण ठिठका फिर बोला — ‘‘मैंने झूठ नहीं कहा था, कोई चोर बहकाने की कोशिश नहीं की थी । मैंने दिल से कहा था कि अगर चैम्बूर का दाता मेरे रूबरू है तो मैं अभी उसे रिहा करता हूं और अदब से दरवाजे तक छोड़ के आता हूं ।’’
कोई कुछ न बोला ।
‘‘बहरहाल मैं नहीं जानता तुम कौन हो ! मैं जानना भी नहीं चाहता । जो जानता हूं वो ये है कि तुम्हारे खिलाफ यहां कोई केस नहीं है । मैंने तुम्हें कभी गिरफ्तार नहीं किया । बाहर जो हंगामा बरपा वो क्यों बरपा, हम इस बात से बेखबर हैं । तुम यहां कभी नहीं थे इस बात में अकेले मेरी नहीं, चौकी के पूरे स्टाफ की हामी है ।’’
सारे पुलिस वालों के सिर मजबूती से सहमति में हिले ।
‘‘हम चैम्बूर के दाता की लम्बी उम्र की दुआ करते हैं । हम...’’
तभी कहीं फोन की घन्टी बजने लगी ।
‘‘यहां की लैंड लाइन का पैरेलल कनेक्शन मेरे कमरे में है’’ — एएसआई दीपक भारकर बोला — ‘‘वो बज रहा है । सुन कर आता हूं ।’’
सब-इन्स्पेक्टर ने सहमति में सिर हिलाया ।
एएसआई भारकर लम्बे डग भरता वहां से चला गया ।
लगभग उलटे पांव को वापिस लौटा ।
‘‘कोई कैदी से बात करना चाहता है ।’’ — वो सस्पेंसभरे स्वर में बोला ।
सब सकपकाये, सबकी निगाहें विमल की तरफ उठीं ।
विमल ने अनभिज्ञतापूर्ण भाव से कन्धे उचकाये ।
‘‘सुन लो ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर बोला — ‘‘गलियारे में तीसरा कमरा है ।’’
विमल ने सहमति में सिर हिलाया ।
वो निर्देशित कमरे में पहुंचा जो कि खाली था । मेज पर रिसीवर टेलीफोन से अलग पड़ा था । उसने रिसीवर उठाकर कान से लगाया और सावधान स्वर में बोला — ‘‘हल्लो ! कौन ?’’
‘‘सोहल !’’
कोई उसे उसके असली नाम से पुकार रहा था ।
‘‘हां । तुम कौन ?’’
‘‘पहचान अपने प्यो नूं, कुत्ती दे पुत्तर सोहल !’’
‘‘गरेवाल !’’
‘‘शावाशे ।’’
‘‘दिल्ली में जिन्दा बच गये !’’
‘‘कंजरदया, तूने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी ।’’
‘‘बोल भी !’’
‘‘ओये, तभी तो यहां हैं !’’
‘‘क्यों हो ?’’
‘‘क्यों कि तू यहां है ।’’
‘‘मेरे पीछे क्यों पड़े हो ?’’
‘‘पता है तेरे को । बकबक मत कर, माईंयवया । खन्ना की बीबी के हाथों मरने के लिए छोड़ के गया था न !’’
‘‘तुमने उसके पति को पीट पीट के मारा, उसके साथ बलात्कार किया, वहशी दरिन्दे की तरह पेश आये । उस घड़ी वो औरत तुम्हारे खून की प्यासी थी । उसके हाथों तुम दोनों की मौत निश्चित थी । मुझे जरा भी गुमान होता कि बच जाओगे तो...’’
‘‘तो क्या ?’’
‘‘और दो गोलियां ही तो और चलानी थी !’’
‘‘ठहर जा, कंजरीया !’’
‘‘जो हाल दिल्ली में खन्ना का किया, उसकी बीवी का किया, वही सब यहां कल्याण अजमेरा और उसकी गर्लफ्रेंड के साथ दोहरा दिया ! जानवर ही रहेगा तमाम जिन्दगी । कभी इंसान नहीं बनेगा ।’’
‘‘ठहर जा, भूतनीदया !’’
‘‘यहां क्यों फोन किया ?’’
‘‘क्योंकि तेरा कोई नम्बर हमें मालूम नहीं । अभी अपना मोबाइल नम्बर बताना, क्योंकि उसकी आगे भी जरूरत पड़ेगी ।’’
‘‘क्यों भला ?’’
‘‘तेरी जनानी, तेरा पिल्ला हमारे कब्जे में है ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘अपना मोबाइल नम्बर बोल और जो मैंने कहा है, उसकी तसदीक कर, पांच मिनट में फिर फोन करता हूं ।’’
लाइन कट गयी ।
विमल ने झपट कर कोमल का मोबाइल नम्बर पंच किया ।
कोई जवाब न मिला ।
उसने घर की लैण्ड लाइन बजाई ।
तुरन्त जवाब मिला ।
लाइन पर नीलम थी ।
‘‘नीलम !’’ — वो हकबकाया सा बोला ।
‘‘हां ।’’ — नीलम सकपकाई — ‘‘क्यों ?’’
‘‘सूरज कहां है ?’’
‘‘वहीं जहां हमेशा होता है । कोमल के पास ।’’
‘‘वो कहां है ?’’
‘‘पता नहीं । मैं तो कुछ खरीदारी के लिये शापिंग माल गयी थी, लौटी तो वो दोनों यहां नहीं थे । कहीं पड़ोस में ही होंगे, आते ही होंगे ।’’
‘‘ऐसा नहीं होने वाला ।’’
‘‘क्यों भला ?’’
‘‘उन का अगवा हो गया है ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘उन्होंने बच्चे को कोमल के पास देखा तो उसे तू समझ लिया । अपनी तरफ से उन्होंने तेरा और सूरज का अगवा किया है ।’’
‘‘हाय राम ! किन्होंने ?’’
‘‘हमारे कुछ पुराने दुश्मनों ने, जो कि कब्र से मुर्दों की तरह उठके खड़े हो गये हैं ।’’
‘‘अब...अब क्या होगा ?’’
‘‘सब ठीक हो जायेगा । नीलम, अब तेरा वहां टिके रहना ठीक नहीं । अगवा करने वालों को अपनी गलती का पता चला तो वो उसे दुरुस्त करने की कोशिश कर सकते हैं ।’’
‘‘तो क्या करूं !’’
‘‘फौरन एक टैक्सी पकड़ और चैम्बूर पहुंच ।’’
‘‘और तुम !’’
‘‘मेरा अभी कुछ पता नहीं ।’’
‘‘तुम हो कहां ?’’
‘‘सब बोलूंगा । आखिर तो चैम्बूर ही पहुंचूंगा । अभी हौसला रख । और जो कहा है, कर । बन्द करता हूं ।’’
उसने रिसीवर वापस क्रेडल पर रख दिया ।
दाता ! तेरे रंग न्यारे !
तभी एएसआई भारकर वहां पहुंचा ।
‘‘तुम्हारा मोबाइल ।’’ — वो फोन उसकी तरफ बढ़ाता बोला — ‘‘बज रहा है, इसलिये ले कर आया ।’’
विमल ने झपट कर फोन उसके हाथ से लिया ।
भारकर जानबूझ कर कमरे से बाहर चला गया ।
‘‘हल्लो !’’ — विमल व्यग्र भाव से बोला ।
‘‘हो गयी तसदीक ?’’ — उसके कान में गरेवाल का व्यंग्यपूर्ण स्वर पड़ा ।
‘‘क्या चाहते हो ?’’
‘‘ओये, तेरा खून पी जाना चाहते हैं, और क्या चाहते हैं !’’
‘‘अभी क्या चाहते हो ?’’
‘‘यहां आ जा । अकेला । बिना किसी को बताये । इसी में तेरी भलाई है । कोई चालाकी की, धोखा दिया, कोई चाल चलने की कोशिश की तो तुझे मालूम ही है तेरी सजा क्या होगी !’’
‘‘कहां आ जाऊं ?’’
‘‘मैं मुम्बई से वाकिफ नहीं । मेरा साथी बोलता है । होल्ड रख ।’’
विमल धीरज से मोबाइल कान से लगाये रहा ।
‘‘हल्लो !’’ — फिर एक नयी, मुम्बईया आवाज आयी — ‘‘सुनता है ?’’
‘‘सुनता है ।’’ — विमल बोला ।
‘‘मनोरी गोरई रोड पर ओमवाडी । बरोबर ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘उधर एक इसाईयों का कब्रिस्तान है जिसके बाजू में एक उजड़ा हुआ चर्च है । बरोबर !’’
‘‘हां ।’’
‘‘वो चर्च आजकल एक अन्डरटेकर के आफिस और ताबूतों के गोदाम के तौर पर इस्तेमाल होता है । तेरे को उधर अकेला आने का ।’’
‘‘मां-बच्चा उधर हैं ?’’
‘‘आ कर देखना ।’’
‘‘मैं आ जाऊंगा तो क्या होगा ?’’
‘‘आयेगा तो मालूम पड़ेगा । आगे तेरे को कुछ करने का । क्या करने का, आयेगा तो मालूम पड़ेगा ।’’
‘‘ठीक है । आता हूं ।’’
‘‘कोई पंगा नहीं । कोई चिल्लाकी नहीं । वर्ना मां बेटा खल्लास । क्या !’’
‘‘मैं कुछ नहीं करूंगा, चुपचाप अकेला वहां पहुंचूंगा ।’’
‘‘शाबाश !’’
लाइन कट गयी ।
दाता ! तेरा अन्त न जाई लखया ।
विमल सब इन्स्पेक्टर के कमरे में वापिस लौटा ।
‘‘क्या बात थी !’’ — शोहाब उत्सुक भाव से बोला — ‘‘किस का फोन था ?’’
‘‘बोलूंगा ।’’
‘‘बाप, लहजा गमगीन क्यों है ?’’ — इरफान बोला — ‘‘एकाएक बद्हवास क्यों लगने लगा है ?’’
‘‘वो भी बोलूंगा ।’’ — विमल चौकी इंचार्ज की तरफ घूमा — ‘‘एसआई साहब, मैं वाकेई जा सकता हूं ?’’
सब-इन्स्पेक्टर ने दृढ़ता से सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘कोई प्राब्लम ?’’ — फिर सशंक भाव से बोला ।
‘‘नहीं ।’’
‘‘हो तो बोलो । हम आउट आफ दि वे जा कर हैल्प करेंगे ।’’
‘‘हां ।’’ — बाकी पुलिसिये समवेत स्वर में बोले — ‘‘बरोबर !’’
‘‘कोई प्राब्लम नहीं ।’’ — विमल शान्ति से बोला — ‘‘मेरा थैंक्यू कबूल कीजिये और इजाजत दीजिये ।’’
‘‘ठीक है । ये तुम्हारा सामान, कार की चाबी के समेत, जो तुम्हारी जेबों से बरामद हुआ था । कार बाहर खड़ी है । भारकर फोन पहले ही लौटाया !’’
‘‘हां । थैंक्यू ।’’
विमल इरफान और शोहाब के साथ चौकी से बाहर निकला ।
बाहर विक्टर मौजूद था जो लपक कर उन के करीब आ गया ।
‘‘क्या हुआ ?’’ — शोहाब जिदभरे स्वर में बोला ।
‘‘छुपाने का नहीं, बाप !’’ — इरफान भी वैसे ही स्वर में बोला ।
‘‘सूरज का अगवा हो गया है । साथ में नीलम के धोखे में कोमल का ।’’
‘‘अल्लाह !’’
‘‘नीलम ?’’ — शोहाब ने पूछा ।
‘‘सेफ है । अभी चैम्बूर पहुंचेगी ।’’
‘‘पण’’ — इरफान बोला — ‘‘कौन किया ऐसा डेंजर, ऐसा कड़क काम ?’’
विमल ने बताया ।
‘‘ओह !’’ — इरफान बोला — ‘‘अभी क्या करेगा ?’’
‘‘वही, जो करने को बोला गया है ।’’
‘‘अकेला जायेगा ?’’
‘‘कोई चायस है मेरे पास ?’’
इरफान से जवाब देते न बना ।
‘‘वो उजाड़ सी जगह है ।’’ — शोहाब बोला — ‘‘दूर से ही मालूम पड़ जायेगा कि तुम अकेले नहीं आ रहे हो ।’’
‘‘अकेला ही जाऊंगा ।’’
‘‘आगे क्या होगा ?’’
‘‘जाकर पता लगेगा ।’’
‘‘हम क्या करें ?’’
‘‘चैम्बूर पहुंचो । नीलम की हिफाजत करो और मेरे से कान्टैक्ट होने का इन्तजार करो ।’’
‘‘हम कुछ नहीं कर सकते ?’’
‘‘क्या कर सकते हो ?’’
‘‘ऐसी मजबूरी ! ऐसी बेचारगी !’’
‘‘झेलनी पड़ेगी । अब जाओ और मुझे जाने दो ।’’
‘‘गन ले के जा, बाप’’ — इरफान व्यग्र भाव से बोला — ‘‘है मेरे पास ।’’
‘‘कोई फायदा नहीं होगा । वहां सबसे पहले मेरी जामा तलाशी ही होगी ।’’
‘‘फिर भी...’’
‘‘नो फिर भी । अब खत्म करो ।’’
इरफान खामोश हो गया ।
सफेद एम्बैसेडर कार चलाता विमल निर्देशित स्थल पर पहुंचा ।
रात के अन्धेरे में कब्रिस्तान भुतहा जान पड़ता था । चारों तरफ मरघट का सा सन्नाटा था । चर्च बहुत पुराना था, वक्त की मार के साथ जिसकी दीवारें काली पड़ चुकी हुई थीं जो कि अन्धेरे में और भी काली लग रही थीं । चर्च के मुख्य द्वार पर एक बीमार सा बल्ब टिमटिमा रहा था जो कि द्वार को ही ठीक से रौशन कर पाने के लिये नाकाफी था ।
उसने एक पल्ले को धक्का दिया ।
गनीमत थी कि भीतर बाहर से बेहतर रौशनी थी ।
उसने चौखट में कदम डाला, दो कदम आगे बढ़ा और ठिठका उसकी निगाह पैन होती हुई चारों तरफ घूमी ।
चर्च की सारी इमारत में हर शेप, साइज और हैसियत के ताबूत भरे हुए थे । दीवारों पर टू-टायर शैल्फ थे जिन पर ताबूत थे, बीच में मेजें थीं जिस पर ताबूत थे, यहां तक कि कई जगह फर्श पर भी एक दूसरे के ऊपर ताबूत रखे हुए थे ।
‘‘हल्लो !’’ — वो उच्च स्वर में बोला — ‘‘कोई है ?’’
दायें बाजू एक आफिसनुमा कमरा था जिसका बन्द दरवाजा खुला और चार व्यक्तियों ने बाहर कदम रखा जिनमें से केवल कौल को विमल ने तुरन्त पहचाना । दूसरे का, उसके बाजू के शख्स का, विशाल कदकाठ और चेहरे के राक्षसी भाव ही उसके गरेवाल होने की चुगली कर रहे थे । तीसरा कोई अधेड़ावस्था को अग्रसर मराठा था, चौथा विदेशी सा जान पड़ता था ।
‘‘आ भई, वड्डे सूरमा !’’ — गरेवाल व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला — ‘‘आ जा ।’’
विमल खामोश रहा ।
‘‘अकेला आया है ?’’
‘‘हां ।’’ — विमल बोला ।
‘‘हमें मालूम है । निगाह रखी तेरे पर । फिर भी पूछा ।’’
‘‘अब क्या हुक्म है ?’’
‘‘बोलते हैं । बोलते हैं । जल्दी क्या है ? तू हमारे कब्जे में है और कब्जे में ही रहेगा । क्या जल्दी है ?’’
‘‘गरेवाल ही हो न ?’’
‘‘आहो ।’’
‘‘दाढ़ी मूंछ मुंडवा ली ! केश कटवा लिये !’’
‘‘तेरे से सबक लिया । तू भी तो सुना है कभी सरदार था ! दो टाइम गुरुद्वारे जाने वाला ! नहीं ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘तू इलाहाबाद में जेल से भागा तो शक्ल छुपाने को मोना बन गया । मैं दिल्ली से वैसे ही भागा तो मोना बन गया ।’’
‘‘बच कैसे गये थे ?’’
‘‘लम्बी कहानी है । बोलेंगे । अभी असल काम कर लें । कौल !’’
‘‘हां ।’’
‘‘इस की तलाशी ले ।’’
कौल ने सहमति में सिर हिलाया, उसने खुद आगे बढ़ने की जगह विमल को करीब बुलाया और फिर बड़ी दक्षता से उसके जिस्म को टटोला ।
‘‘खाली है ।’’ — फिर बोला ।
‘‘वदिया ।’’ — गरेवाल बोला ।
‘‘ये लोग कौन हैं ?’’ — विमल ने पूछा ।
‘‘हमारे साथी हैं । नाम जानना चाहता है तो जान ले । ये अनूप झण्डे हैं...’’
‘‘झेण्डे !’’ — झेण्डे ने तत्काल संशोधन किया ।
‘‘वही । हमारा तिहाड़ जेल का साथी । और ये जेरी स्थिम है, इस गोदाम का मालिक । अपने हुआन भाई का जिगरी है, इसलिये हमारी मदद कर रहा है ।’’
‘‘हुआन ! माइकल हुआन !’’
‘‘ओहो ई ।’’
‘‘जिन्दा है ?’’
‘‘ऐन फिट कर के । रेस के घोड़े जैसा ।’’
‘‘हुआन से तुम्हारी जुगलबन्दी है ?’’
‘‘पक्की ।’’
‘‘कैसे हुई ?’’
‘‘वो भी लम्बी कहानी है । वक्त लगा तो करेंगे । अभी पहले हमने अपनी कहानी करनी है ।’’
‘‘करो ।’’
‘‘बहुत बढ़ बढ़ के बोल रहा है । लगता है अभी अहसास नहीं हुआ कि किस भारी मुसीबत में फंसा है ।’’
‘‘वैसे जाना नहीं हुआ ?’’
‘‘निडर दिखाई दे रहा है !’’
‘‘क्योंकि मैं गुरु का खालसा हूं । भै काहू को देत नहि, नहि भै मानत आनि । गुरु तेग बहादुर का खालसा न किसी को डराता है, न किसी से डरता है ।’’
‘‘बल्ले, भई !’’
‘‘हम वक्त जाया कर रहे हैं ।’’ — कौल व्यग्र भाव से बोला — ‘‘पहले जो करना है, उसको करके चुको ।’’
‘‘अच्छा !’’
‘‘हां । और आफिस में चलो । वहां बैठ कर आगे आने वाली इन्तजार की घडियां काटना आसान होगा ।’’
‘‘ठीक है ।’’
सब आफिस में पहुंचे जो कि एक काफी बड़ा कमरा निकला । वहां एक विशाल आफिस टेबल लगी हुई थी जिस के पीछे लगी एग्जीक्यूटिव चेयर पर गरेवाल जा बैठा । स्थिम ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला लेकिन फिर खयाल बदल दिया । वो एक विजिटर्स चेयर को घसीट पर एग्जीक्यूटिव चेयर के पहलू में ले गया और उस पर बैठ गया । विमल को एक बीच की विजिटर्स चेयर आफर की गयी । वो उस पर बैठ गया तो कौल और झेण्डे उसके बायें बैठ गये ।
‘‘मेरी तरफ देख ।’’ — गरेवाल ने आदेश दिया ।
विमल ने देखा ।
‘‘ट्रस्ट में कितना पैसा है ?’’
‘‘ये सवाल बाद में ।’’ — विमल सख्ती से बोला — ‘‘पहले साबित करके दिखाओ मां बच्चा तुम्हारे कब्जे में हैं ।’’
‘‘है न ! तभी तो दौड़ा आया !’’
‘‘साबित कर के दिखाओ ।’’
‘‘कैसे ?’’
‘‘और ये भी पक्की करो कि यहां उन दोनों के साथ कोई बद्सलूकी नहीं हो रही ।’’
‘‘कैसे ?’’
‘‘उन्हें यहां बुलाओ । मुझे खुद अपनी आंखों से देखने दो वो ठीक ठाक हैं ।’’
गरेवाल हिचकिचाया !
‘‘क्या वांदा है ?’’ — झेण्डे धीरे से बोला — ‘‘देखना ही तो चाहता है ! एक निगाह ही तो डालना चाहता है । क्या !’’
गरेवाल ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया, फिर कौल को इशारा किया ।
कौल उठकर वहां से चला गया ।
उसके लौटने तक पीछे खामोशी व्याप्त रही ।
थोड़ी देर बाद वो लौटा तो कोमल उसके साथ थी जो कि गोद में सूरज को उठाये थी । नन्हा सूरज उसके कन्धे से लगा सो रहा था ।
विमल पर निगाह पड़ते ही कोमल के नेत्र फैले । उसने कुछ कहने को मुंह खोला लेकिन विमल ने आंखों आंखों में उसे खामोश रहने की चेतावनी दी ।
कोमल के होंठ भिंच गये ।
‘‘खैरियत है ?’’ — विमल ने पूछा ।
कोमल ने सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘कोई बद्सलूकी ?’’
उसने इंकार में सिर हिलाया ।
‘‘बच्चे की भूख का कोई इन्तजाम ?’’
‘‘है ।’’
‘‘जो हुआ, बुरा हुआ ।’’
वो खामोश रही ।
‘‘लेकिन थोड़ी देर की जहमत है ।’’
‘‘कोई बात नहीं ।’’
‘‘डरना नहीं । हौसला रखना । सब ठीक हो जायेगा ।’’
उसने दृढ़ता से सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘वेखीं माईंयवे नूं !’’ — गरेवाल भड़का — ‘‘कहता है सब ठीक हो जायेगा ।’’
‘‘कहता ही तो है !’’ — झेण्डे बोला — ‘‘कहने दो । कह कर खुश हो लेने दो । बाई को भी खुश कर लेने दो ।’’
‘‘ठीक है, झण्डे भाई ।’’
विमल ने कौल की तरफ देखकर इशारा किया कि उसकी मीटिंग समाप्त थी ।
कौल जैसे कोमल को वहां लाया था, वैसे उसे वहां से ले चला ।
उसके दोबारा लौटने तक फिर खामोशी व्याप्त रही ।
‘‘अब जवाब दे ।’’ — गरेवाल बोला — ‘‘ट्रस्ट में कितना पैसा है ?’’
‘‘बैंक एकाउन्ट में कोई...’’
‘‘बैंक में नहीं । बैंक में नहीं । नकद बोल । नकद बोल कितना है ?’’
‘‘नकद !’’
‘‘हमें मालूम है उधर है । झण्डे भाई ने खुद पड़ताल की है, उधर चैम्बूर में फरियादियों को नकद रकमें भी सौंपी जाती हैं । ट्रस्ट में लाखों का चन्दा नकद में भी आता है । बीच रोड, गोरई पचास लाख लेने पहुंचा था या नहीं पहुंचा था ! मेरे से पूछे तो बैंक एकाउन्ट दिखावा है । सब रोकड़ा उधर नकद ही है । बोल कितना है ?’’
विमल हिचकिचाया ।
‘‘चुप रहने का कोई फायदा नहीं । झूठ बोलने का कोई फायदा नहीं । ये जानकारी हम तेरे हलक में बांह दे कर निकलवा सकते हैं । मैं अभी बच्चे को वापिस मंगवाता हूं और उसे तेरे सामने जमीन पर पटक के मारता हूं । करूं मैं ऐसा ?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘तो फिर जवाब दे ।’’
‘‘चार करोड़ के करीब !’’
‘‘पक्की बात ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘वाहे गुरु का खलासा है, खा कसम वाहे गुरु की ।’’
‘‘कसम वाहे गुरु की, इतनी ही कैश रकम उधर चैम्बूर में है ।’’
‘‘नकद ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘एकमुश्त ! एक जगह !’’
‘‘हां ।’’
‘‘चैम्बूर में ? ट्रस्ट के आफिस में ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘नोट कैसे ?’’
‘‘सब तरह के । ज्यादा हजार, पांच सौ के । डालर भी । पाउन्ड भी । यूरो भी ।’’
‘‘बल्ले ! मैंने विश्वास किया तेरी बात पर । वो रकम हमें चाहिये । तू उसे इधर मंगायेगा ।’’
‘‘इस जगह में और चैम्बूर में बहुत फासला है । रात के वक्त जगह जगह नाकेबन्दी होती है । चैकिंग में कहीं न कहीं रकम पकड़ी जायेगी ।’’
‘‘नहीं पकड़ी जायेगी ।’’
‘‘लेकिन...’’
‘‘न पकड़ी जाये, इसका इन्तजाम हम करेंगे ।’’
‘‘क्या करोगे ?’’
‘‘कौल, तू बता ।’’
‘‘जैरी स्थिम अन्डरटेकर है ।’’ — कौल बोला — ‘‘जे. स्थिम अन्डरटेकर्स की हर्स — मुर्दा ढोने वाली फैंसी वैन — सारी मुम्बई में दौड़ती हैं । उनकी अपनी शिनाख्त है क्यों कि दोनों पहलुओं में बड़ा-बड़ा ‘जे. स्मिथ अन्डरटेकर्स’ लिखा होता है सब जानते हैं भीतर ताबूत होता है जिस में मुर्दा लेटा होता है । उन गाडियों को कभी किसी नाकाबन्दी पर नहीं रोका जाता । ऐसी ही एक गाड़ी में — हर्स में — रुपया ढोया जायेगा ।’’
‘‘फिर भी’’ — झेण्डे बोला — ‘‘हर्स को कहीं चैकिंग के लिये रोका गया तो उसका इन्तजाम स्थिम ने किया हुआ होगा ।’’
‘‘क्या ?’’ — विमल बोला ।
‘‘ताबूत स्पेशल होगा ।’’ — स्थिम बोला — ‘‘जो कि तैयार कर लिया गया हुआ है । वो नार्मल ताबूत से हाइट में थोड़ा ज्यादा है, उसके मिडल में एक पार्टीशन है और वो दोनों तरफ से खुलता है । यानी उसके दोनों तरफ आजू बाजू दरवाजे की तरह खुलने वाले ढक्कन हैं । उस ताबूत के ऊपरले चैम्बर में सच में मुर्दा होगा और नीचे के चैम्बर में कैश बन्द होगा । कहीं किसी नाकाबन्दी पर ताबूत को खोल कर भीतर झांका गया तो झांकने वालों को भीतर साटन के शैल में लेटा सच में मुर्दा दिखाई देगा ।’’
‘‘मुर्दा कहां से आयेगा ?’’
‘‘इधर कोल्ड स्टोरेज है । रेफ्रीजरेटिड वाल्ट्स हैं जिन में वो मुर्दे रखे जाते हैं जिनके सगे सम्बन्धी उन का फौरन संस्कार नहीं करना चाहते । मसलन किसी के किसी करीबी ने अन्तिम संस्कार में शामिल होने अमेरिका से आना होता है, कैनेडा से आना होता है, आस्ट्रेलिया से आना होता है तो वेट करना पड़ता है न !’’
‘‘ओह !’’
‘‘ऐसा एक मुर्दा इधर है जो अभी दो दिन वाल्ट में ही रहेगा, वो कुछ घन्टों के लिये हमारे काम आयेगा ।’’
‘‘मतलब ये है’’ — गरेवाल बोला — ‘‘कि एक ताबूत, बमय मुर्दा, चैम्बूर भेजा जायेगा जिसके नीचे के चैम्बर में नोट भर कर ढक्कन बन्द करना होगा और ताबूत को यूं मुर्दागाड़ी में रखना होगा कि लाश वाला रुख ऊपर हो ।’’
‘‘ऐनी प्राब्लम !’’ — स्मिथ बोला ।
‘‘नहीं ।’’ — विमल बोला — ‘‘ऐसे तो नहीं !’’
‘‘वदिया ।’’ — गरेवाल बोला — ‘‘अब चैम्बूर फोन कर और उधर सब समझा ।’’
‘‘ठीक है ।’’
‘‘ये भी समझा किसी ने मुर्दागाड़ी के पीछे नहीं लगना है ।’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘हमारा एक आदमी तेरे तमाम चेलों, शागिर्दों को पहचानता है । चैम्बूर से मुर्दागाड़ी की रवानगी के वक्त उसे वहां उन में से एक भी कम दिखाई दिया तो मतलब होगा कि मुर्दागाड़ी के पीछे लगा या लगेगा । तब नतीजा गम्भीर होगा । तेरे लिये । तेरी जनानी के लिये । तेरे पिल्ले के लिये ।‘‘
‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा । जैसा तुम चाहते हो सब वैसा ही होगा ।’’
‘‘वदिया ।’’
दो घन्टे में ताबूत के साथ हर्स वहां पहुंच गयी ।
हर्स के स्टाफ तीन आदमियों ने मिल कर ताबूत को वैन में से निकाला और उसे भीतर गोदाम में पहुंचाया ।
सब लोग आफिस से निकल कर बाहर ताबूत के गिर्द जमा हुए ।
‘‘उल्टा करो ।’’ — स्मिथ ने हुक्म दिया — ‘‘नीचे वाला रुख ऊपर करो और खोलो ।’’
आदेश का पालन किया गया ।
ताबूत का ढक्कन उठाया गया तो भीतर नोट ही नोट दिखाई देने लगे ।
दर्शकों में — खासतौर से गरेवाल में — हर्ष की लहर दौड़ गयी ।
‘‘वदिया !’’ — खुशी के हाथ मलता गरेवाल बोला — ‘‘वदिया !’’
‘‘बन्द करो ।’’ — स्मिथ ने हुक्म दिया ।
ढक्कन मजबूती से बन्द कर दिया गया ।
‘‘इसको लेकर पिछले कमरे में जाओ और लाश को कोल्ड स्टोरेज में अपने ठिकाने पर पहुंचाओ । उसके बाद तुम जा सकते हो ।’’
सहमति में सिर हिलाते तीनों ने ताबूत उठा लिया और पिछवाड़े की तरफ चल दिये ।
‘‘अब ?’’ — पीछे विमल बोला ।
‘‘अब क्या ?’’ — गरेवाल बोला ।
‘‘जो चाहते थे वो हो गया है । अब आगे क्या हुक्म है ?’’
‘‘आगे हुक्म ?’’
‘‘हां ।’’
गरेवाल कुछ क्षण खामोश रहा — जैसे उस बात पर विचार कर रहो हो ।
‘‘मां-बच्चे को छोड़ देंगे ।’’ — फिर बोला — ‘‘उन से हमारी कोई अदावत नहीं ।’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘समझा, भई, मतलब ।’’ — गरेवाल कौल से बोला ।
‘‘तुम्हारा केस डिफ्रेंट है ।’’ — कौल बोला — ‘‘क्योंकि तुम्हारा एक और भी दावेदार है ।’’
‘‘कौन ?’’
‘‘अब बताने में क्या हर्ज है ! माइकल हुआन ।’’
‘‘वो जिन्दा है ?’’
‘‘हां । आता ही होगा ।’’
‘‘वो क्या चाहता है ?’’
‘‘बोलेगा । हम भी बोलेंगे । अभी बस करो ।’’
विमल खामोश हो गया ।
पिछवाड़े का कमरा भी छोटा मोटा स्टोर ही था जिसमें एमबामिंग में काम आने वाले रसायनों का स्टाक रखा जाता था ।
तीनों ने ताबूत वहां यूं फर्श पर रखा कि लाश वाले चैम्बर का रुख ऊपर होता ।
एक ने आगे बढ़कर ढक्कन उठाये और फिर चिहुंक कर पीछे हटा ।
ताबूत में से मुर्दा उठ कर खड़ा हो रहा था ।
माइकल हुआन चर्च में पहुंचा ।
उसने विमल को वहां बेबस खड़ा पाया तो उसके चेहरे पर हर्ष और संतोष के भाव आये ।
‘‘ऐट लास्ट !’’ — वो बोला — ‘‘एण्ड अगेन ! डियर ब्रदर्स, मेरी बधाई ।’’
सबने हंसते मुस्कराते बधाई कबूल की ।
‘‘हल्लो !’’ — हुआन विमल से बोला ।
‘‘जिन्दा हो ?’’ — विमल शान्ति से बोला ।
‘‘तुम्हें क्या दिखाई देता है ?’’
‘‘कैसे बच गये ?’’
‘‘गॉड इज काइन्ड । गॉड इज सेवियर । गॉड ने सेव किया । जैसे आइलैंड पर तुम्हारे गॉड ने तुम्हें सेव किया था । श्योर एण्ड सर्टेन मौत से सेव किया था । नो ?’’
‘‘यस । ये लोग कहते हैं तुम मेरे दावेदार हो ! क्या मतलब हुआ इसका ?’’
‘‘तुमने आर्गेनाइजेशन को बहुत नुकसान पहुंचाया है । दिल्ली के गुरबख्शलाल के टाइम से ही पहुंचाते चले आ रहे हो । कभी फंसे भी तो किस्मत देखो अपनी कि मछली की तरह फिसल कर निकल गये । आइलैंड पर तो हद ही कर दी । पूरी आर्गेनाइजेशन का समूल नाश कर दिया । करिश्मा हुआ कि मैं बच गया । अब मेरे पर टॉप बॉस, इन्टरनेशनल ड्रग लार्ड रीकियो फिगुएरा के कारोबार को सम्भालने और आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है और मेरी ट्रेजेडी ये है कि जब तक तुम जिन्दा हो, मैं एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकता ।’’
‘‘क्यों ?’’
‘‘जो बचे खुचे ड्रग डीलर्स मर चुके बड़े ड्रग लार्ड्स की जगह ले सकते हैं, उन के तुम्हारे खयाल से प्राण कांपते हैं । वो ड्रग्स के धन्धे में आना चाहते हैं लेकिन तुम्हारी मुखालफत में हरगिज हरगिज खड़ा नहीं होना चाहते । इसलिये धन्धे की डोर फिर से पकड़ने को तैयार होने में उन की शर्त है कि मैं सोहल का सिर काट कर उसके सामने पेश करूं । ये है तुम्हारे पर मेरी दावेदारी ।’’
‘‘तुम मुझे मार डालना चाहते हो ?’’
‘‘वो तो ये भी चाहते हैं । लेकिन ये अपना निजी बदला उतारने के लिये ऐसा करना चाहते हैं । ये तुम्हें इसलिये मरा देखना चाहते हैं क्योंकि कभी तुमने इन की मौत का सामान किया था । मेरा केस जुदा है ।’’
‘‘क्या जुदा है ?’’
‘‘नथिंग पर्सनल । ओनली बिजनेस ।’’
‘‘क्या कहने !’’
‘‘तुम मेरे बिजनेस के रास्ते में रुकावट हो । तुमने अन्डरवर्ल्ड में ऐलान किया हुआ है कि जो कोई भी ड्रग्स के धन्धे में हाथ डालेगा, तुम उस पर कहर बन कर टूटोगे । लोग बाग तुम्हारी इस धमकी को कितना सीरियसली लेते हैं, वो इसी से जाहिर है कि तुम्हारे होते ड्रग्स के धन्धे का खयाल भी करते हैं तो उन के प्राण कांपते हैं । धन्धे में लौट आने की उनकी एक ही शर्त है । फिनिश सोहल । जो अब होगा । सो आई रिपीट, नथिंग पर्सनल, ओनली बिजनेस ।’’
‘‘हुआन भाई’’ — गरेवाल उतावले स्वर में बोला — ‘‘ये मायावी मानस है, फिर कोई करतब कर दिखायेगा । इसलिये खत्म करो किस्सा या हमें करने दो, ताकि हमारी बदले की आग ठण्डी हो ।’’
हुआन ने सहमति में सिर हिलाया । उस के दायें हाथ में गन प्रकट हुई ।
‘‘सो लांग, फ्रेंड ।’’ — गन वाला हाथ ऊंचा करता वो बोला ।
विमल ने आंखें मूंद लीं ।
‘‘मे युअर सोल रॉट इन हैल !’’
ठाकुर तुम सरणाई आया ।
तभी एकाएक वहां की तमाम बत्तियां बुझ गयीं ।
तत्काल विमल ने एक ओर डुबकी लगायी ।
एक फायर हुआ ।
‘‘खबरदार !’’ — एक कड़क कठोर, क्रूर आवाज अन्धेरे में गूंजी — ‘‘कोई अपनी जगह से न हिले । तुम सब लोग मशीनगन के निशाने पर हो !’’
सन्नाटा छा गया ।
विमल के करीब कहीं कदमों की हल्की सी आहट हुई, फिर किसी ने जबरन उस के हाथों में कुछ धकेल दिया । विमल ने उसे टटोला तो पाया कि वो मशीनगन हो सकती थी ।
‘‘कौन है ?’’ — गरेवाल आतंकित भाव से चिल्लाया — ‘‘मेरे पास भी गन है । मार डालूँगा ।’’
अन्धेरे में एक फायर हुआ ।
नाल से निकली चिंगारी से किसी को अन्दाजा हुआ कि गन कहां थी । तत्काल गन वाली कलाई पर एक भरपूर वार हुआ ।
गन गरेवाल के हाथ से निकल गयी और अन्धेरे में न जाने कहां जा कर गिरी । दो सैकंड बाद वैसा ही अंजाम हुआन के हाथ में थमी गन का हुआ ।
फिर जैसे एकाएक रौशनी गयी थी , वैसे लौट आई ।
‘‘नीलम !’’ — विमल के मुंह से निकला ।
नीलम मुस्कराई । उसके हाथ में तेरह फायर करने वाली नाइन एम एम पिस्टल थी और वो उन चारों की पीठ पीछे उस दीवार के करीब खड़ी थी जिस पर मेन स्विच था ।
‘‘ओये तेरी भैन दी ओये !’’ — भैंसे की तरह डकराता गरेवाल उसकी तरफ लपका ।
विमल ने मशीनगन वाला हाथ सीधा किया और ट्रीगर दबाया ।
कई गोलियां गरेवाल के सामने उसके कदमों के करीब फर्श पर टकराईं ।
गरेवाल के प्राण कांप गये । वो पीछे हटा तो जहां खड़ा था उससे भी परे जा कर ठिठका ।
‘‘एक सैल्फलोडिंग आटोमैटिक गन’’ — विमल बोला — ‘‘आप साहबान के पीछे भी है, इसलिये अक्ल करें ।’’
हिचचिकाते हुए सब ने गर्दन घुमा कर पीछे निगाह दौड़ाई ।
नीलम ने मजबूती से पिस्टल उनकी तरफ तानी ।
‘‘मिस्टर हुआन’’ — विमल बोला — ‘‘आई एम सॉरी माई वाइफ स्पायल्ड युअर शो ।’’
‘‘वाइफ !’’ — हुआन के होंठों से बड़ी मुश्किल से निकला ।
‘‘नीलम ! मेरी बीवी ! जो तुम लोगों के पीछे खड़ी है ।’’
‘‘बीवी !’’ — कौल के मुंह से निकला — ‘‘ये ! तो फिर वो...’’
‘‘वो बच्चे की बुआ है ।’’
‘‘ये...ये’’ — गरेवाल भी तब बड़ी मुश्किल से बोल पाया — ‘‘ये यहां कैसे आ गयी ! कहां से आ गयी !’’
‘‘मेन डोर तो’’ — स्मिथ बोला — ‘‘भीतर से बन्द था !’’
‘‘क-कैसे हुआ ?’’ — गरेवाल फिर बोला ।
‘‘बाबे दी मेहर होई ।’’ — विमल बोला — ‘‘दाता की दात मिली । जिस के सिरे ऊपर तू स्वामी, वो दुख कैसे पावै ।’’
‘‘अब...तू...क-क्या करेगा ?’’
‘‘ये भी कोई पूछने की बात है, गुरमुखो ! बैरी बने हो तो बैर का मजा तो चखना पड़ेगा न !’’
‘‘क...क्या करेगा ?’’
‘‘जाके बैरी सन्मुख जीवै, ता के जीवन को धिक्कार ।’’
विमल ने मशीनगन वाला हाथ ऊंचा किया ।
‘‘नो !’’ — हुआन कातर भाव से बोला — ‘‘नो !’’
‘‘तुम में से कौन जीने का अधिकारी है ? किस के गुनाह बख्शे जाने के काबिल हैं ?’’
‘‘स-सजा देना तुम्हारा काम नहीं ।’’
‘‘अभी जो तुम करने जा रहे थे, वो तुम्हारा काम था ? सब मेरे खून के प्यासे ! सब मेरी जान के दावेदार ! अब बाजी पलट गयी तो मुझे सिखाते हैं मेरा क्या काम है !’’
कोई कुछ न बोला ।
‘‘तैयार हो जाओ ।’’ — विमल ने मशीनगन को मजबूती से थामा — ‘‘आखिरी बार अपने-अपने खुदा को याद कर लो ।’’
‘‘विमल !’’ — नीलम अधिकारपूर्ण स्वर में बोली — ‘‘नहीं !’’
विमल सकपकाया । उसने सिर उठा कर नीलम की तरफ देखा ।
‘‘इनके नापाक खून से हाथ रंगना जरूरी नहीं ।’’
‘‘तो क्या करें इन का ?’’
‘‘पुलिस...पुलिस के हवाले करो ।’’
‘‘अच्छा !’’
‘‘हां । अगर तुमने इन्हें खुद सजा दी...तो...’’
उसने दृढ़ता से होंठ भींचे और अपलक विमल की तरफ देखा ।
विमल कुछ क्षण अनिश्चित सा खामोश रहा, फिर एकाएक मुस्कराया और बोला — ‘‘जो तुम्हारा हुक्म होगा, वही होगा, सोहनयो !’’
नीलम ने चैन की लम्बी सांस ली ।
‘‘फर्श पर औंधे मुंह लेटो ।’’ — विमल ने आदेश दिया — ‘‘हाथ पीठ पीछे गर्दन पर ।’’
किसी ने हिलने का उपक्रम न किया ।
‘‘फौरन ! फौरन ! वर्ना मैं भूल जाऊंगा मैंने अपनी बीवी से अभी कोई वादा किया है ।’’
तसदीक के तौर पर विमल ने गोलियों की एक बौछार उन के सिरों के ऊपर से छोड़ी ।
तत्काल आदेश का पालन हुआ ।
पलक झपकते पांचों आदेशानुसार फर्श पर दिखाई देने लगे ।
‘‘गुड !’’ — विमल बोला, फिर नीलम से सम्बोधित हुआ — ‘‘मैं इन की निगरानी करता हूं ! तू कोमल को ढूंढ़ ।’’
नीलम ने सहमति में सिर हिलाया ।
दो मिनट बाद वो कोमल और सूरज के साथ वापिस लौटी ।
विमल ने बन्दियों से परे हट कर मशीनगन बगल में दबाई और सब इन्स्पेक्टर यशवन्तराव सावन्त का मोबाइल बजाया ।
‘‘एसआई साहब, मैं आप का कैदी बोल रहा हूं ।’’ — काल लगी तो वो बोला — ‘‘आपकी चौकी का केस है इसलिये मैं हत्या और बलात्कार के मुजरिमों को आप के हवाले करना चाहता हूं । आप अपने पूरे अमले के साथ फौरन यहां पहुंचिये ।’’
‘‘यहां कहां ?’’ — पूछा गया ।
विमल ने बताया ।
‘‘क्या किया था तूने !’’ — विमल ने नीलम से पूछा ।
‘‘खास कुछ नहीं ।’’ — नीलम लापरवाही से बोली — ‘‘तुका के घर में ताबूत मेरे सामने पहुंचा था जिसके लोअर चैम्बर में नोट भरे गये थे । फिर सब लोग हर्स वालों को बताने के लिए कि ताबूत तैयार था, बाहर चले गये थे । पीछे मैंने लाश को ताबूत से निकाला, उसको एक वार्डरोब में बन्द किया, उसी में हथियार थे जो काबू में किये और लाश की जगह ताबूत में खुद लेट गयी ।’’
‘‘तौबा ? क्या बला है तू !’’
नीलम शान से मुस्कराई ।
‘‘तूने एक बार फिर मेरी जान बचाई !’’
‘‘अपनी जान बचाई । तुम्हारी जान मेरी जान है ।’’
‘‘पर...पर...तू ने मुर्दा उठाया !’’
‘‘ज्यादा भारी नहीं था । दूसरे, मैं कोई कम शक्तिवर नहीं हूं ।’’
‘‘ताकतवर । शक्तिशाली होता है । दोनों की खिचड़ी बना दी मिडल फेल ने ।’’
‘‘पास ने ।’’
‘‘मुर्दा उठाते कुछ न हुआ तुझे ?’’
‘‘हुआ तो हुआ । जो काम सोचा था, वो तो मैंने कर के रहना था ।’’
‘‘इतना लम्बा सफर था ! ताबूत में तेरा दम घुट जाता तो ?’’
‘‘घुटा तो नहीं ! सांस ले रही हूं न तुम्हारे सामने !’’
‘‘हां...वो तो...वो तो है !’’
‘‘सरदार जी, मैं तुम्हें गर्म हवा नहीं लगने दे सकती, जान से कैसे चला जाने देती !’’
‘‘कमाल किया तूने !’’
‘‘अभी एक कमाल और करूंगी ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘तुम्हें घसीट कर इस पाप की नगरी से, इस जुल्म के डेरे से निकाल के लेकर जाऊंगा, भले ही पैदल न जाना पडे ! जितने मर्जी बहाने लगाना, जितने मर्जी जरूरी काम बताना, अब नहीं रुकने दूंगी यहां । अब किसी नये फसाद को गले लगाने का मौका मैं तुम्हें नहीं दूंगी ।’’
‘‘मैं ने तो न लगाया !’’
‘‘फसाद के खुद तुम्हारे गले आ लगने का मौका भी नहीं दूंगी ।’’
‘‘बहुत सख्त हाकिम है !’’
‘‘पहले नहीं थी, अब हूं ।’’
तभी मेन डोर बाहर से जोर जोर से भड़भड़ाया जाने लगा ।
‘‘ओपन अप !’’ — कोई उच्च स्वर में बोला — ‘‘पुलिस !’’
विमल ने नीलम को इशारा किया ।
नीलम ने जाकर दरवाजा खोला ।
तत्काल पुलिसिये भीतर घुस आये ।
सब-इन्स्पेक्टर सावन्त की सदारत में सारी गोरई चौकी वहां थी ।
उन के पीछे-पीछे ही शोहाब, इरफान, विक्टर, जार्ज, साटम, जैक, बुझेकर, पिचड, आकरे, परचुरे, मतकरी और हैदर वहां पहुंच गये ।
विमल ने हैरानी से उन की तरफ देखा ।
‘‘फासले पर ठिठके हुए थे ।’’ — शोहाब बोला — ‘‘चर्च के पास आने की हिम्मत नहीं हो रही थी कि कहीं कुछ उलटी न पड़ जाये । पुलिस को पहुंचते देखा तो उम्मीद जागी कि शायद पासा पलट गया था । तो चले आये ।’’
‘‘ओह !’’
‘‘बाहर चालीस भीड़ू और हैं ।’’ — विक्टर बोला ।
‘‘खलकत इकट्ठी करने में माहिर है अपना विक्टर ।’’
‘‘मैं क्या करता है, बाप ! मैं तो खाली एक वायस रेज करता है कि चैम्बूर का दाता को हैल्प मांगता है । साला पलक नहीं झपकता कि हैल्प का सैलाब बहता है ।’’
‘‘हूं । आये क्यों ? मेरी वजह से !’’
‘‘और भी वजह बन गयी ।’’ — शोहाब गम्भीरता से बोला — ‘‘ज्यादा अहम वजह बन गयी । तब रुका न गया ।’’
‘‘क्या हुआ ?’’
‘‘मुर्दागाड़ी के’’ — शोहाब यूं दबे स्वर में बोला कि सिर्फ विमल ही सुन पाता — ‘‘चैम्बूर से चले जाने के बाद हमें लाश की खबर लगी, वार्डरोब से गायब हाथियारों की खबर लगी, और ये खबर लगी कि नीलम वहां नहीं थी । तब जो हमें सूझा वो होश उड़ाने वाला था । बस, रुक न सके ।’’
‘‘ये जगह कैसे सूझी ?’’
‘‘मालूम किया तो पता लगा कि ये जे. स्मिथ अन्डरटेकर्स का आफिस था, हैडक्वार्टर था । अन्दाजन यहां चले आये । फिर गेट के करीब सफेद एम्बैसेडर खड़ी दिखाई दी तो तसल्ली हो गयी कि सही जगह पहुंचे थे ।’’
‘‘ओह !’’
‘‘अभी इधर सब चौकस ?’’ — इरफान ने पूछा ।
‘‘हां ।’’
‘‘पुलिस !’’
‘‘अपनी कार्यवाही करने के वास्ते आई । मुजरिमों को गिरफ्तार करने के वास्ते आयी ।’’
‘‘बोले तो बढ़िया ।’’
‘‘एसआई साहब, गिरफ्तार कर लीजिये इन पांचों को ।’’
पांचों के हाथों में हथकड़ियां दिखाई देने लगीं ।
‘‘तीन और हैं ।’’ — नीलम बोली — ‘‘पिछवाड़े के कैमिकल्स के स्टोर में बन्द हैं जहां कि ताबूत ले जाया गया था ।’’
उन तीनों को भी थामा गया ।
‘‘उस स्टोर में फर्श पर एक ताबूत पड़ा है ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर सावन्त बोला — ‘‘मेरे को लगता है उसकी कोई स्टोरी है ।’’
‘‘है तो सही !’’ — विमल सहज भाव से बोला — ‘‘उस ताबूत से एक लाश बिछुड़ गयी है, मिलाप हमारे भीड़ू लोग करवा देंगे, फिर लाश के साथ ताबूत यहां वापिस होगा । कोई ऐतराज !’’
‘‘कतई नहीं ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर इत्मीनान से बोला ।
‘‘उठाओ, भई ।’’ — विमल बोला — ‘‘ले के जाओ ।’’
‘‘एसआई साहब’’ — एकाएक स्मिथ चिल्लाया — ‘‘एसआई साहब !’’
‘‘क्या है ?’’ — एसआई घुड़क कर बोला ।
‘‘वो...वो ताबूत...इधर का है ।’’
‘‘तो ?’’
‘‘उसमें...उसमें चार करोड़ रुपया है ।’’
‘‘माथा फिरेला है ! कोई मरने वाला ऐसे रोकड़ा साथ ले के जा सकता है !’’
‘‘आप समझते नहीं हैं...’’
‘‘आप नहीं समझते । अभी सुना नहीं ये साहब क्या बोला...’’
‘‘साहब ! ये...ये...’’
‘‘...बोला कि नहीं बोला कि ताबूत से लाश बिछुड़ गयी, अभी मिलाप कराना माँगता है । अभी लाश के साथ ताबूत इधर वापिस होयेंगा या नहीं होयेंगा ?’’
‘‘वह...कैश...कैश...उस ताबूत में चार करोड़...’’
‘‘शट अप !’’ — सब-इन्स्पेक्टर गला फाड़ कर चिल्लाया ।
स्मिथ सहम कर चुप हो गया ।
‘‘साला बोम मारता है ! ताबूत में रोकड़ा बताता है ! मुर्दा साथ ले के जाता है ! कैसे होयेंगा ? फेंकता है साला ! क्या !’’
कोई कुछ न बोला ।
‘‘तुम भीड़ू लोग करो अपना काम ।’’
सहमति में सिर हिलाते शोहाब वगैरह पिछवाड़े के स्टोर की ओर बढ़े ।
‘‘मैं...मैं...’’ — स्मिथ ने फिर हिम्मत की — ‘‘मैं क्यों गिरफ्तार हूं ! मैंने क्या किया है ?‘‘
‘‘एसआई साहब’’ — विमल बोला — ‘‘इजाजत हो तो मैं अर्ज करूं ?’’
‘‘बोलिये ।’’
‘‘मुजरिम का साथ देना भी बराबर का जुर्म होता है । टु एड एण्ड अबैट ए क्रिमिनल इज आलसो ए ग्रेट क्राइम । नो ?’’
‘‘यस ।’’
‘‘मिस्टर स्मिथ के इस गोदाम में इनकी आंखों के सामने एक खून किया जाने वाला था, इन को कोई एतराज न हुआ । यहां अगवा की शिकार एक औरत और एक बच्चा गिरफ्तार थे, इन्हें कोई एतराज न हुआ । लिहाजा जो कुछ भी हुआ उसमें इनकी हामी थी, फिर ये मुजरिम क्यों न हुए ?’’
‘‘जवाब दीजिये ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर कड़क कर बोला ।
स्थिम बगलें झांकने लगा ।
‘‘लगे हाथ बाकियों की भी तारीफ सुन लीजिये ।’’ — विमल बोला — ‘‘ये इनमें से सब से बड़ा मगरमच्छ माइकल हुआन है । अभी हाल ही में इसके आवास रोडवुड एस्टेट पर, जो कि करीब गोरई बीच पर ही है, इतनी बड़ी रेड हुई है जिसमें एस्टेट पर बुलडोजर फिरवाने पड़े और नीचे छुपे तहखानों में नाॅरकॉटिक्स और हथियारों का बहुत बड़ा जखीरा बरामद हुआ...’’
‘‘ये’’ — सब-इन्स्पेक्टर भौंचक्का सा बोला — ‘‘वो माइकल हुआन है ?’’
‘‘ऐग्जैक्टली । जो कि अपने आकाओं के मर जाने के बाद ड्रग्स का बड़ा धन्धा फिर से इस शहर में खड़ा करने की फिराक में है ।‘‘
‘‘इतना बड़ा ड्रग लार्ड ! फायरआर्म्स डीलर ! एक मामूली सब-इन्स्पेक्टर के कब्जे में !’’
‘‘मीनिंग नेम, फेम, अक्लेम ! तरक्की और शौर्य पदक अभी मुबारक हों ।’’
सब-इन्स्पेक्टर की निगाह गरेवाल की तरफ उठी ।
‘‘ये पंजाब का नामी हिस्ट्रीशटर हरनाम सिंह गरेवाल है और ये इसका कश्मीरी जोड़ीदार कौल है...’’
‘‘झूठ ! बिल्कुल झूठ !’’ — गरेवाल एकाएक चिल्लाया — ‘‘जनाब जी, ये बन्दा जो हमें बता रहा है, वो हम नहीं हैं । न मैं सरदार हूं, न मेरा दोस्त कश्मीरी है ।’’
‘‘तो कौन हो ?’’ — सब-इन्स्पेक्टर धीरज से बोला ।
‘‘मेरा नाम परमेश्वर सिंह नरूला है और इस का नाम संतोष सरना है । हम दोनों दिल्ली के शकरपुर जमना पार के इलाके के रहने वाले हैं...’’
‘‘साबित कर सकते हो ?’’
‘‘हां, जनाब जी, हमारे पास हमारे वोटर आई-कार्ड हैं ।’’
‘‘दिखाओ ।’’
दोनों ने वोटर आई-कार्ड पेश किये ।
सब-इन्स्पेक्टर ने गौर से उन का मुआयना किया ।
‘‘शर्तिया जाली हैं !’’ — विमल धीरे से बोला — ‘‘दस बार ये मेरे सामने अपनी जुबानी कबूल कर चुका है कि ये गरेवाल है । ये गरेवाल है तो ये कौल के सिवाय दूसरा कोई हो ही नहीं सकता । अगर ये कोई स्ट्रेट भीड़ू हैं तो यहां क्या कर रहे हैं ? यहां अगवा की शिकार एक नौजवान लड़की और एक बच्चा क्यों मौजूद है ? खुद मैं क्यों मौजूद हूं । गरेवाल हथियारबन्द क्यों था ? इतने सवालों के जवाब ये दे तो...’’
‘‘पूछने की जरूरत नहीं ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर बोला — ‘‘मुझे इसके ताजे कटे नाखून दिखाई दे रहे हैं जो मुझे कुछ और ही सोचने पर मजबूर कर रहे हैं । अपना रामभाऊ बीड़ी पीता है । रामभाउ ।’’
‘‘बोलो, साहेब ।’’ — सिपाही रामभाउ तत्पर स्वर में बोला ।
‘‘बीड़ी कैसे सुलगाता है ? माचिस से या लाइटर से ?
‘‘लाइटर से, साहेब ।’’
‘‘देखें, बीड़ी सुलगाने वाला लाइटर कैसा होता है !’’
‘‘अभी, साहेब ।’’
रामभाउ ने लाइटर पेश किया ।
सब-इन्स्पेक्टर ने लाइटर ले कर आन किया और दोनों आई कार्ड जला कर राख कर दिये ।
‘‘ये’’ — गरेवाल चिल्लाया — ‘‘ये क्-क्या...क्या...’’
एक हवलदार ने उसके मुंह में बन्दूक की नाल ठूंस दी ।
गरेवाल तत्काल चुप हुआ ।
‘‘बढ़िया काम करता है तुम्हारा लाइटर ।’’ — आखिर सब-इन्स्पेक्टर सन्तुष्टिपूर्ण स्वर में बोला — ‘‘लो, थामो ।’’
रामभाउ ने अपनी तरफ उछाला गया लाइटर लपक लिया ।
‘‘हां तो’’ — सब-इन्स्पेक्टर विमल की तरफ घूमा — ‘‘तुम कह रहे थे ?’’
‘‘मैं यही कह रहा था’’ — विमल बोला — ‘‘कि ये गरेवाल है, ये कौल है और ये तीसरा मराठा...’’
‘‘साहब, मैं इसको पहचानता है’’ — एकाएक एक सिपाही बोला — ‘‘ये अनूप झेण्डे ! नोन बैड कैरेक्टर ! फैंसी दाढ़ी मूंछ उगा लिया, फैंसी चश्मा लगा लिया, फैंसी सूट पहन लिया पण मैं इस को पहचानता है बरोबर । इधर कई केस इस पर । एक में सजा भी काटी । आउट आफ दि स्टेट भी कोई गलाटा किया, कुछ साल हुए, दिल्ली पुलिस ने थामा और ट्रांजिट रिमांड पर इधर से ले गयी । दिल्ली में सुना है लम्बी लगी थी । ये आजाद है तो इसका एकीच मतलब !’’
‘‘क्या ?’’
‘‘उधर से जेल तोड़ के भागा ।’’
‘‘ये दोनों भी ।’’ — विमल बोला — ‘‘ये — हरनाम सिंह गरेवाल — दिल्ली में भी कत्ल और जबरजिना की एक वारदात को अंजाम दे चुका है । दिल्ली में इसने कैलाश कुमार खन्ना नाम के एक शख्स का वैसे ही पीट पीट कर कत्ल किया था जैसे यहां कल्याण अजमेरा का किया । दिल्ली में भी वैसे ही इसने मकतूल की बीवी का बड़े वहशियाना ढंग से रेप किया था जैसे कि यहां रागिनी का किया । दिल्ली के कैलाश कुमार खन्ना की बीवी किरण खन्ना इसकी करतूत की चश्मदीद गवाह है, उसकी आंखों के सामने उसके पति को इसने पीट पीट कर मार डाला था । कौल इसका जोड़ीदार है और इस के हर क्राइम में शरीक है । अनूप झेण्डे और कुछ नहीं तो जेल तोड़ के भागा मुजरिम तो है ही । दिल्ली पुलिस को इन तीनों से मिलकर बहुत खुशी होगी ।’’
‘‘हम ये खुशी उन तक जरूर पहुंचायेंगे ।’’ — सब-इन्स्पेक्टर दृढ़ता से बोला ।
‘‘इन की गिरफ्तारी की बाबत क्या बोलेंगे ?’’
सब-इन्स्पेक्टर कुछ क्षण सोचता रहा ।
‘‘हमें खुफिया टिप मिली थी’’ — फिर निश्चयात्मक स्वर में बोला — ‘‘कि इधर जे. स्मिथ अंडरटेकर्स के इस गोदाम में कुछ भीड़ू लोग मुम्बई में कोई टैरेरिस्ट्स अटैक्स की स्कीम बनाते थे । इधर दबिश की तो ये पकड़ाई में आये । फिर मैंने माइकल हुआन को पहचाना और मेरे एक सिपाही ने अनूप झेण्डे को पहचाना, बाकी दोनों की बाबत झेण्डे बका और जान स्मिथ अपने बारे में खुद बोला ।’’
‘‘बढ़िया । सब हैण्डल कर लेंगे जनाब ?’’
‘‘पर्फेक्ट कर के ।’’
‘‘गुड । हम अब जा सकते हैं ?’’
‘‘हां । और...’’
‘‘और क्या ?’’
‘‘चैम्बूर का दाता को नवजीवन की बधाई ।’’
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