खुंबरी नहाकर आई तो उसने काला लबादा ओढ़ रखा था। सिर के गीले बाल बिखरे हुए थे। इस वक्त उसका रूप और भी निखरा नजर आ रहा था। चाल में मस्ती के भाव थे। उसके खूबसूरत चेहरे पर सोच के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। कमरे में प्रवेश किया तो जगमोहन को कुर्सी पर बैठे पाया।
“नहाकर कुछ आराम मिला है। सोमाथ तो मेरी जान ले लेना चाहता था।” खुंबरी ने मुस्कराकर कहा।
“वो ताकतवर था। तुमने बताया कि उसकी मशीन खराब हो गई।”
“हां।” खुंबरी गीले बालों को फैलाती कह उठी-“वो मुझे पकड़ने जा रहा था कि मैंने उसकी टांगें खींच लीं। वो कूल्हों के बल जमीन पर धड़ाम से गिरा। उसके बाद उठ नहीं सका। उसके कूल्हे का एक हिस्सा खुल गया। उसके भीतर जो बैटरी लगी थी, जो उसे चलाती थी। वो बाहर निकल आई थी।”
जगमोहन ने सिर हिलाया।
“वो बहुत तेज दौड़ा था मेरे पीछे। मैं भी तेज दौड़ रही थी, परंतु लगातार दौड़ते रहने की वजह से मैं थक गई थी। और वो नहीं थका था। कृत्रिम इंसान कैसे थकता, उसे तो मशीन चला रही थी। इसी कारण वो मेरे से जीत गया था।”
“तुमने हिम्मत करके अपने को बचा लिया।” जगमोहन मुस्कराया।
“मुझे तो विश्वास नहीं आता कि मैं बच गई। वो कृत्रिम इंसान मेरी जान ही ले लेता। इस बात का अफसोस है कि सोमाथ की वजह से डुमरा मेरे हाथों से बच गया। डुमरा का वार धरा को जा लगा था। उसके बाद वो वार करने की स्थिति में नहीं था। जबकि मेरे पास ताकतों वाली खास तलवार थी। मेरे एक वार से ही डुमरा मारा जाता, लेकिन तभी बीच में सोमाथ आ गया। तलवार मेरे हाथ से निकल गई और सोमाथ से बचने के लिए मुझे भागना पड़ा।”
“डुमरा ने तुम पर वार किया था।”
“हां वो। उस खास गुलाबी तलवार ने मुझ पर वार किया था।”
“तो धरा कैसे उस वार के सामने आ गई।”
“मैं तो खुद परेशान हूं कि धरा मेरे और उस गुलाबी तलवार के बीच कैसे आ गई? शायद मुझे बचाने के लिए वो बीच में आई हो। जो भी हो धरा की वजह से मेरी जान बची।” खुंबरी ने कहा।
“मुझे नहीं लगता कि तुम्हें बचाने के लिए धरा अपनी जान गंवा देगी।” जगमोहन बोला।
खुंबरी की नजर जगमोहन पर जा टिकी।
“मुझे बचाने के लिए धरा अपनी जान क्यों नहीं दे सकती।” खुंबरी ने कहा।
“दिल नहीं मानता कि धरा ने ऐसा किया होगा।” जगमोहन का स्वर शांत था।
खुंबरी की नजरों में चुभन के भाव आ गए। वो जगमोहन को ही देखे जा रही थी।
“धरा ने मुझे बचाने की खातिर ही, अपनी जान दे दी।” खुंबरी
दृढ़ स्वर में कहा।
जगमोहन ने खुंबरी को देखा। कह नहीं सका कि तुमने धरा को अपने सामने खींच लिया था।
जबकि खुंबरी ने स्पष्ट तौर पर जगमोहन के चेहरे पर अविश्वास के भाव देख लिए थे। एकाएक खुंबरी को लगा कि जगमोहन को सब पता है कि धरा किस तरह मरी।
“तुम दोलाम से नहीं मिले।” खुंबरी के होंठों से निकला।
खुंबरी जानती थी कि सिर्फ दोलाम ही ताकतों से बरी की मौत का सच पता कर सकता था।
“दोलाम से?” जगमोहन चौंका और तुरंत ही सामान्य हो गया-“मेरा दोलाम से क्या वास्ता।”
परंतु जगमोहन का चौंकना खुंबरी की निगाहों से छिप नहीं सका।
खुंबरी मुस्कराई। जगमोहन भी मुस्कराया।
“हमारी बातों में तुम दोलाम को क्यों बीच में लाई। वो मुझे जरा भी पसंद नहीं है।”
“यूं ही मेरे मुंह से निकल गया।” खुंबरी ने लापरवाही से कहा-“खोनम पीने का मन हो रहा है। दोलाम से कहना बेकार है। वो अब मेरी सेवा नहीं करेगा। मुझे खुद ही खोनम बनाना होगा।”
“तुम रहने दो। मैं खोनम बना लाता हूं।” जगमोहन कुर्सी से उठते हुए बोला।
“तुम बनाओगे?” खुंबरी हंसी।
“क्यों नहीं। तुम्हारे लिए खोनम बनाकर मुझे खुशी होगी।” जगमोहन भी हौले से हंसा। दरवाजे की तरफ बढ़ा।
“सुनो।” खुंबरी ने एकाएक शांत स्वर में कहा।
जगमोहन ठिठककर खुंबरी की तरफ पलटा।
“तुम्हारा विचार पक्का है न कि तुम रात को दोलाम को मार दोगे?”
“जरूर।” जगमोहन ने सिर हिलाया-“मेरी पूरी कोशिश होगी कि दोलाम खत्म हो जाए। दोलाम को मारकर मैं तुम्हें परेशानियों से मुक्त कर देना चाहता हूं। रात मैं दोलाम को मारने की पूरी चेष्टा करूंगा।”
जगमोहन बाहर निकल गया।
खुंबरी कुछ पल दरवाजे को देखती रही फिर बड़बड़ा उठी।
‘तुम्हारे मन में जरूर कुछ चल रहा है जगमोहन। परंतु मुझे तुम्हारी परवाह नहीं है। तुम दोलाम की जान लोगे और ताकतें तुम्हारी जान ले लेंगी। खुंबरी को मर्द के प्यार की कोई कमी नहीं होगी। सदूर पर एक से बढ़कर एक मर्द हैं सब मर्द एक जैसे होते हैं। जगमोहन में जो है, वो दूसरे मर्दों में भी है। किसी एक मर्द के लिए मुझे मुसीबतों में फंसना पसंद नहीं। मैं आजाद और खुश रहना चाहती हूं।’
qqq
रात हो चुकी थी। ठिकाने पर मशालें रोशन हो चुकी थीं।
खुंबरी, जगमोहन और बबूसा ने रोज की तरह खाना खाया। खाने के दौरान उनमें ज्यादा बातें नहीं हुईं। दोलाम तब पास ही टहलता रहा था।
खाने के बाद जगमोहन और खुंबरी अपने कमरे में चले गए। दोलाम ने बर्तन समेटकर, बगल के खाने वाले कमरे में रख दिए।
“तुम नहीं खाओगे?” बबूसा ने पूछा।
“आज भूख नहीं है।” दोलाम मुस्करा पड़ा।
बबूसा ने गहरी निगाहों से दोलाम को देखा।
दोलाम अभी भी मुस्करा रहा था।
“आज रात का तुम्हारा प्रोग्राम पक्का है?” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
दोलाम ने सहमति से सिर हिला दिया।
“तुम रानी ताशा को खतरे में डाल रहे हो।”
“ये रानी ताशा का फैसला है।”
“खुंबरी को मारने के लिए वो क्रोध में है। इस कारण ऐसा फैसला...”
“इन बातों को रहने दो।”
“अभी भी वक्त है, बेहतर होगा कि तुम राजा देव को इस्तेमाल करो इस काम में।”
“मेरा मतलब सिर्फ रानी ताशा से ही है।”
“मान लो रानी ताशा ने ख़ुबरी की जान ले ली। तब रानी ताशा का क्या होगा। ताकतें क्रोध में रानी ताशा की जान ले लेंगी।”
“ऐसा सम्भव है। परंतु मेरी कोशिश होगी कि मैं ऐसा न होने दूं।” दोलाम बोला-“रानी ताशा का जिंदा रहना मेरी जरूरत है, क्योंकि रानी ताशा ने कहे के मुताबिक सदूर का राज्य मेरे हवाले करना है। ऐसे में मेरी पूरी कोशिश होगी कि रानी ताशा को ताकतों से बचा लूं।”
“शायद तुम नहीं बचा सकोगे।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“शायद बचा भी लूं। क्योंकि खुंबरी के न रहने के बाद मैं ही ताकतों का मालिक बनूंगा। इसलिए ताकतें मेरी बात को जरूर मानेगी कि वो रानी ताशा को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए तब तक तो ना पहुंचाए जब तक वो सदूर का राज्य मेरे हवाले नहीं कर देती।” दोलाम ने सिर हिलाकर कहा।
“तुम्हें इस बात पर पूरा भरोसा है?”
“पूरा नहीं है।”
“मतलब कि ताकतें रानी ताशा की जान भी ले सकती हैं।”
“मैं इस बात को रोकने की चेष्टा करूंगा।” दोलाम बोला।
“रानी ताशा मेरे पास होती तो मैं उसे समझाता कि वो ऐसा न करे। मैं अभी रानी ताशा के पास होकर आता हूं।”
“अब वक्त नहीं रहा दोस्त।” दोलाम मुस्कराया-“अब मेरे काम का समय शुरू होने जा रहा है।”
बबूसा ने फौरन दोलाम को देखा।
“तुम अब शांत रहोगे। ऐसा कुछ नहीं करोगे कि मेरी योजना पर कोई फर्क पड़े। इस रात में मैं खुंबरी की जान ले लेना चाहता हूं, वो भी मेरी जान लेने के लिए तैयारी जरूर कर रही होगी। रानी ताशा की तुम फिक्र मत करो। तुमसे ज्यादा मुझे रानी ताशा की जरूरत है कि मैं सदूर का राजा बन सकूं रानी ताशा के माध्यम से।”
qqq
रात कुछ और गहरी हो चुकी थी। दोलाम मशालों के प्रकाश से आगे निकल आया था और उस रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ा जा रहा था। हाथ में रास्ता देखने के लिए छोटी-सी मशाल थाम रखी थी। उस मशाल की रोशनी में उसका चेहरा चमक रहा था, जहां गम्भीरता और कुछ-कुछ व्याकुलता दिखाई दे रही थी।
इसी प्रकार उसने पंद्रह मिनट तक लम्बा रास्ता तय किया और वहां जा पहुंचा जहां वो सब कैद थे। हाथ में दबी मशाल उसने बाहर ही दीवार में लगे कुंडे में फंसा दी थी। दोलाम कमरे में प्रवेश कर गया।
भीतर पर्याप्त रोशनी थी।
सोमारा के अलावा सब लेटे हुए थे। आहट पाकर सोमारा ने दोलाम को देखा।
दोलाम ठिठक गया।
“बबूसा कैसा है?” सोमारा ने तुरंत पूछा।
“अच्छा है। अभी उससे ही बात करके आ रहा हूं।” दोलाम ने कहा।
आवाजें सुनकर मोना चौधरी और नगीना उठ बैठे।
देवराज चौहान ने आंखें खोलकर दोलाम को देखा।
रानी ताशा की शायद आंख लग चुकी थी।
“जगमोहन कैसा है?” देवराज चौहान ने लेटे ही लेटे पूछा।
“बिल्कुल ठीक है। अब उसे अक्ल आ गई है और वो खुंबरी का अंत देखने की इच्छा रखता है।”
“क्या?” देवराज चौहान उठ बैठा-“ये बदलाव जगमोहन में कैसे आया?”
“खुंबरी के असली रूप का कुछ हिस्सा उसके सामने जरूर आया है जो उसने ऐसा सोचा।”
“तुम्हें ठीक से वजह नहीं मालूम।”
“मैं इन बातों में नहीं पड़ना चाहता।”
“क्या जगमोहन स्वयं खुंबरी को मारने की सोच रहा है?” मोना
चौधरी ने पूछा।
“अभी तक तो ऐसा नहीं लगता।” दोलाम ने रानी ताशा को सोये देखा-“मैं रानी ताशा के पास आया हूं।”
नगीना ने तुरंत रानी ताशा को नींद से उठाकर कहा।
“दोलाम तुमसे मिलने आया है।”
रानी ताशा फौरन उठ बैठी। दोलाम को देखा।
दोलाम मुस्कराया फिर कह उठा।
“मैं तुमसे बात करने आया हूं।”
रानी ताशा फौरन उठी और दोलाम के पास पहुंच गई।
“कहो।” रानी ताशा की खोज भरी निगाह दोलाम के चेहरे पर टिक चुकी थी।
दोलाम रानी ताशा को कमरे के कोने की तरफ, दूसरों से दूर ले गया और बोला।
“रानी ताशा।” दोलाम धीमे स्वर में बोला-“मैं तुम्हें मौका देने जा रहा हूं कि तुम खुंबरी की जान स्वयं ले सको।”
“अभी?” रानी ताशा के होंठ भिंच गए।
दोलाम ने सहमति से सिर हिलाया।
“तो चलो।” रानी ताशा के होंठों से दबी-दबी-सी गुर्राहट निकली-“मुझे अभी खुंबरी के पास ले चलो।”
“अपना वादा याद है?”
“कि तुम्हें सदूर का राजा बना दूं।” रानी ताशा ने दृढ़ स्वर में कहा-“मैं अपने वादे पर कायम हूं।”
“मुझे यकीन है कि बाद में भी तुम अपना वादा याद रखोगी।”
“वहम में मत पड़ो। मैंने जो वादा किया है, उसे पूरा करूंगी।” रानी ताशा ने शब्दों को चबाकर कहा।
“मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि तुम खुंबरी की जान लेने में सफल रहोगी।”
“जरूर सफल रहूंगी।” रानी ताशा गुर्रा उठी-“ढाई सौ साल पहले खुंबरी ने अपने लालच की खातिर मुझे मेरे राजा देव से अलग कर दिया था। कुछ इस तरह कि इल्जाम मेरे सिर पर आया कि मैंने राजा देव को ग्रह से बाहर फिंकवा दिया है। मैं एक ऐसे गुनाह के पश्चाताप की आग में जलती रही, जिसका मैं स्वयं शिकार हो चुकी थी। उसके बाद मैं देव को कभी भी वापस नहीं पा सकी। आज देव मेरे पास है परंतु वो अपनी
पृथ्वी ग्रह वाली पत्नी नगीना का है, मेरा नहीं। खुंबरी को अपने हाथों से मारूंगी तो कम-से-कम दिल में इतना तो चैन रहेगा कि अपने साथ हुई नाइंसाफी का कुछ तो बदला ले लिया खुंबरी से।”
“मेरी वजह से तुम्हारा बदला पूरा होगा।”
“अवश्य दोलाम और इसकी कीमत मैं तुम्हें सदूर का राज्य देकर चुकाऊंगी।”
“तुम्हें अभी मेरे साथ चलना होगा।”
“मैं इन सबसे इस बारे में कुछ बता सकती हूं?” रानी ताशा कुछ दूर बैठे सबकी तरफ देखकर कहा।
दोलाम के चेहरे पर सोच के भाव उभरे फिर बोला।
“कह दो। परंतु हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है। हमें जल्दी वहां
पहुंचना है।”
रानी ताशा सबके पास पहुंची।
सबकी निगाह रानी ताशा पर ही थी। चेहरे पर उभरे खतरनाक भावों को सब देख चुके थे।
“मैं खुंबरी को मारने जा रही हूं।” रानी ताशा शब्दों को चबाकर कह उठी।
“खुंबरी को?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।
“दोलाम मुझे ऐसा करने का मौका दे रहा है।”
“क्यों?”
“क्योंकि बदले में मैं इसे सदूर का राज्य दे दूंगी। ये राजा बन
जाएगा।”
“ये तुम क्या पागलपन कर रही हो।” नगीना ने तेज स्वर में कहा।
“पागलपन?” रानी ताशा ने नगीना को देखा-“तुम इसे जरूर
पागलपन जैसा काम कह सकती हो क्योंकि देव तेरे पास है। अगर देव इस वक्त मेरा होता तो, मैं ये पागलपन कभी भी नहीं करती। सब कुछ भुला देती।”
“लेकिन ताशा तुम सदूर का राज्य...” सोमारा ने कहना चाहा।
“खुंबरी मेरे हाथों मारी जाए, मेरे लिए इससे बड़ी और क्या बात होगी। सदूर पर राज करने का मुझे लालच नहीं है। ढाई सौ साल के बाद आज मुझे मौका मिला है खुंबरी से बदला लेने का।”
“खुंबरी कम नहीं है।” मोना चौधरी ने कहा-“हालात पलट सकते हैं।”
“मैं खुंबरी की जान ले लूंगी। मेरा पागलपन मुझे जीत देगा।”
“तुम अपने को भारी खतरे में डालने जा रही हो।” देवराज चौहान ने कहा।
“मैं अपने लिए ऐसा नहीं सोचती।”
देवराज चौहान ने दोलाम से कहा।
“मैं भी ताशा के साथ जाऊंगा।”
“सिर्फ रानी ताशा को ले जाऊंगा मैं और तुम लोग ज्यादा फिक्र मत करो। खुंबरी से मुकाबला करने वाले हालात पैदा नहीं होंगे, रानी ताशा के लिए। घात लगाकर खुंबरी पर हमला किया जाएगा और खुंबरी को आभास भी नहीं होगा और उसकी जान चली जाएगी। सब ठीक है। रानी ताशा जल्दी सबके पास लौट आएगी।” दोलाम बोला।
“हमले में तुम भी रानी ताशा का साथ दोगे?” मोना चौधरी ने पूछा।
“रानी ताशा चाहती है कि वो स्वयं खुंबरी की जान ले। इसलिए मैं इसमें रानी ताशा का साथ नहीं दे रहा।”
“रानी ताशा कहे तो तुम साथ दोगे?”
“जरूर दूंगा। क्योंकि खुंबरी से मेरी दुश्मनी भी शुरू हो चुकी है।”
“तुम्हें दोलाम का साथ ले लेना चाहिए ताशा।” सोमारा ने कहा।
रानी ताशा, दोलाम की तरफ पलटकर बोली।
“चलो दोलाम। मैं जल्दी से ये काम पूरा कर देना चाहती हूं।” स्वर में दृढ़ता थी।
“मेरा हाथ थामो।” दोलाम ने अपना हाथ बढ़ाकर कहा।
रानी ताशा ने दोलाम का हाथ थाम लिया।
“आओ।” रानी ताशा का हाथ थामे दोलाम, उस दरवाजे जैसे रास्ते की तरफ बढ़ गया।
सब देखते रहे।
देखते-ही-देखते दोनों दरवाजे जैसे रास्ते से बाहर निकल गए। कोई रुकावट नहीं आई। भीतर की रोशनी बाहर आ रही थी। दोलाम ने आगे बढ़कर कुंडे में फंसी मशाल निकालकर हाथ में ली और रानी ताशा से कह उठा।
“मेरे साथ-साथ चलो।”
दोनों उस रास्ते पर वापस, मशाल की रोशनी में चल पड़े।
“मुझे एक बेहतर तलवार की जरूरत पड़ेगी।” रानी ताशा ने सख्त स्वर में कहा।
“वो मैं दूंगा।”
“इस वक्त तो खुंबरी अपने कमरे में होगी। क्या मुझे उसके कमरे में प्रवेश करना होगा, उसकी जान लेने के लिए?”
“जगमोहन, जो कि खुंबरी का खास बना हुआ है, उसका मन खुंबरी से उखड़ गया...”
“वजह?” रानी ताशा के होंठों से निकला।
“जगमोहन कहता है कि उसने पहले खुंबरी से कहा कि वो दोलाम के मार देता है, तब खुंबरी ने कहा कि वो ऐसा न करे। उसने दोलाम को मारा तो ताकतें उसे मार देंगी, क्योंकि दोलाम ताकतों के परिवार का सदस्य बन चुका है। परंतु आज शाम खुंबरी ने स्वयं ही कहा जगमोहन से कि वो दोलाम को मार दे। वो उसे ताकतों से बचा लेगी। ये बात खुंबरी ने झूठ कही थी और जगमोहन इस बात को भांप गया कि अब खुंबरी को उसकी परवाह नहीं है। ये ही वजह रही कि खुंबरी से उसका मन खट्टा हो गया और वो खुंबरी को मारने के लिए मुझसे आ मिला।”
“तो खुंबरी ने जगमोहन से झूठ कहा था कि वो उसे ताकतों बचा लेगी।”
“हां। झूठ ही कहा था।”
“तो अब...?”
“अब जगमोहन रात को किसी पहर खुंबरी को किसी बहाने कमरे से बाहर निकालेगा और बाहर तुम तलवार के साथ घात लगाए मौजूद होगी और एक ही वार में खुंबरी की जान ले लोगी।”
“ऐसा ही होगा।” रानी ताशा सख्त स्वर में कह उठी।
दोनों मशाल की रोशनी में आगे बढ़ते जा रहे थे।
“क्या पता जगमोहन का मन बदल जाए और वो तुम्हारी चाल के बारे में खुंबरी को सब बता दे।” रानी ताशा ने कहा।
“मैंने बबूसा से इस बारे में बात की थी। बबूसा कहता है कि जगमोहन पर भरोसा किया जा सकता है।”
“पर मुझे जगमोहन पर भरोसा नहीं रहा। वो खुंबरी को मारने आया था और उसका बन बैठा।”
“अच्छा हुआ जो ऐसा हुआ। वरना मुझे खुंबरी के खिलाफ जाने का मौका नहीं मिलता।”
“तुम्हारा ध्येय क्या है?”
“ताकतों का मालिक बनना।”
“ये तुमने पहले ही सोच रखा था कि...”
“नहीं। मैंने कुछ नहीं सोचा था। मैं तो खुंबरी की सेवा में लगा
था। सब ठीक चल रहा था, लेकिन जब खुंबरी और जगमोहन से प्यार हुआ तो मेरा मन खुंबरी से खराब हो गया। पांच सौ सालों तक मैंने तरह-तरह की दवाएं लगाकर खुंबरी के शरीर को ताजा बनाए रखा। बहुत मेहनत की मैंने। और वापस आकर खुंबरी ने अपना शरीर प्राप्त कर लिया और जिस शरीर की मैं सेवा करता रहा, उस शरीर को जगमोहन के हवाले कर दिया। जबकि मेरा हक बनता था खुंबरी के शरीर को प्यार करने का। ठोरा ने भी ये ही कहा कि तुम्हारा हक बनता है। खुंबरी को चाहिए था कि मुझे प्यार करने का आमंत्रण देती। परंतु उसने पृथ्वी के मनुष्य को अपना शरीर सौंपना बेहतर समझा। ये ही गलती अब खुंबरी को ले डूब रही है। जब मेरे मन में ये सोचें दौड़ रही थीं और मैंने खुंबरी से विद्रोह करके उसका शरीर पाने की बात रख दी तो तभी मेरे मन में आया कि उसका शरीर पाने की इच्छा रखने से बेहतर है कि मैं ही ताकतों का मालिक बन जाऊं। बस यहीं से मैंने अपनी सोचों को कार्यरूप देना शुरू कर दिया। तभी तुमसे बात हो गई। जब मुझे ये पता लगा कि तुम स्वयं खुंबरी की जान लेने में दिलचस्पी रखती हो तो मैंने सदूर का राजा बनने की शर्त तुम्हारे सामने रख दी। तुम्हें अब जो मौका मिलने जा रहा है, वो कोई आसान मौका नहीं है खुंबरी को देख पाना भी तुम्हारे लिए कठिन है।”
“मैं जानती हूं और इसके बदले तुम्हें सदूर का राज्य दूंगी। परंतु मैं तुमसे खुश नहीं हूं।”
“क्यों?”
“तुम ताकतों के मालिक बनने के बाद खुंबरी की तरह सदूर के लोगों को तकलीफ दोगे और...”
“मैं ऐसा नहीं करूंगा। भरोसा रखो। मैं शांति से जीवन जीना चाहता हूं। सदूर पर राजा बनते ही मैं ताकतों को छोड़ दूंगा। मैं खुंबरी की तरह पवित्र शक्तियों से दुश्मनी नहीं लूंगा।” दोलाम ने सामान्य स्वर में कहा।
“ताकतें तुम्हें अपने से दूर जाने देंगी?” रानी ताशा ने पूछा।
“ताकतें इस बारे में कुछ नहीं कर सकतीं। एक खास मंत्र बोलना होता है कि ताकतों से पीछा छूट जाएगा। मैं उस मंत्र का पता लगा लूंगा। ताकतें ही मुझे उस मंत्र के बारे में बताएंगी, जब मैं उनका मालिक बन जाऊंगा।”
“बबूसा इन सब बातों के बारे में जानता है?”
“हां। वो मेरा दोस्त बन गया है और सब जानता है।”
दोनों के कदम उठ रहे थे।
“हम पहुंचने वाले हैं।” दोलाम धीमे स्वर में कह उठा।
“एक बात का जवाब मुझे और दे दो।” रानी ताशा बोली।
“कहो।”
“जगमोहन तुम्हें मारता है तो ताकतें उसे मार देंगी। परंतु अब मैं
खुंबरी की जान लेने जा रही हूं तो ताकतें मुझे मार देंगी। क्योंकि मैंने उनके मालिक को मारा। ये सच है न?”
“पूरी तरह सच है। लेकिन मैं तुम्हें बचाने की पूरी कोशिश करूंगा। अगर तुम मर गईं तो मैं सदूर का राजा नहीं बन पाऊंगा। मेरे पास एक रास्ता है तुम्हें बचाने का।” दोलाम ने गम्भीर स्वर में कहा-“खुंबरी की मौत के बाद ताकतों को यकीन है कि दोलाम उनका मालिक बन जाएगा। ये ही वजह है कि ताकतें खुंबरी की होने वाली मौत को लेकर परेशान नहीं हैं। ताकतों को मालिक की इच्छा होती है, तभी उनका वजूद कायम रहता है।”
“ताकतें जानती हैं कि इस वक्त क्या होने जा रहा है।”
“सब खबर रहती है ताकतों को। परंतु वो दखल नहीं देतीं। यूं भी ताकतों ने कह रखा है कि ये दोलाम और खुंबरी का व्यक्तिगत मामला है। अब वो इस मामले के बीच में नहीं आएंगी।”
“तुम बता रहे थे कि मुझे बाद में ताकतों से बचा पाओगे कि नहीं।”
रानी ताशा फिर उसी बात पर आ गई।
“हां। जब तुम खुंबरी की जान ले लोगी, तो तब मैं ताकतों से कहूंगा कि तुम्हें कुछ न कहे, तभी मैं उनका मालिक बनूंगा। मेरी ये बात ताकतें मान जाएंगी और तुम्हें कुछ नहीं कहेंगी। ताकतों को मालिक की जरूरत होती है। ऐसे में वो मजबूर हैं मेरी बात मानने के लिए। अब खामोश हो जाओ। हम आ पहुंचे हैं।” मशालों वाला रास्ता शुरू हो गया था। दोलाम ने हाथ में दबी मशाल दीवार के कुंडे में फंसा दी। वो दबे पांव आगे बढ़ते रहे।
“इस वक्त खुंबरी कहां है?” रानी ताशा ने दांत भींचे पूछा।
“अपने कमरे में। जगमोहन के साथ। तुम्हें घबराहट तो नहीं हो रही?”
दोलाम ने दबे स्वर में पूछा।
“देव ने जब मुझे युद्ध कला सिखाई थी तो उसके बाद मुझे डर लगना भी बंद हो गया था।” रानी ताशा ने उसी लहजे में कहा।
“अब दबे पांव मेरे पीछे आती रहो।” दोलाम बोला।
qqq
“तुम बहुत अच्छे हो जगमोहन।” खुंबरी खिलखिलाकर हंसी और जगमोहन के गले लग गई। उसके एक हाथ में कारू (शराब) का गिलास था। वो मदमस्त दिखाई दे रही थी। कारू पीने की वजह से उसका चेहरा गुलाबी हो गया था और आंखों की कशिश बढ़ गई। रात के इस वक्त वो और भी खूबसूरत लग रही थी शरीर पर वो ही काला गाऊन जैसा कपड़ा लपेट रखा था जिसमें वो और भी आकर्षक लग रही थी।
जगमोहन के साथ वो बेड पर बैठी थी। मशाल का प्रकाश वहां फैला था। माहौल बेहद रोमांटिक था अगर प्यार करने वालों का दिल साफ हो। परंतु यहां न तो जगमोहन का दिल साफ था न ही खुंबरी का। फिर भी दोनों मुस्करा रहे थे। एक-दूसरे को खुश दिखा रहे थे। देखने वाला तो इसे रोमांटिक माहौल ही कहता।
“मैंने कितनी अच्छी किस्मत पाई है कि मुझे तुम जैसा प्यारा इंसान मिला।” खुंबरी ने जगमोहन का गाल चूमा-“तुम्हारे बिना मेरा दिल नहीं लगता। हर समय तुम्हारे बारे में ही सोचती हूं।”
“मैं भी तुम्हारे ही ख्यालों में गुम रहता हूं।”
“ओह, हमारा प्यार कितना अच्छा है। जब तुम्हारे साथ बंद कमरे में होती हूं तो दुनिया भूल जाती हूं। मुझे कुछ भी याद नहीं रहता सिवाय तुम्हारे। मैं तुम्हें सदूर का राजा बना दूंगी।”
जगमोहन ने मुस्कराकर प्यार भरी निगाहों से खुंबरी को देखा।
“तुम कारू क्यों नहीं पीते?” खुंबरी ने गिलास से कारू का घूंट भरा।
“मैं शराब कभी भी नहीं पीता।”
“शराब?”
“पृथ्वी पर कारू को शराब ही कहते हैं।”
“तुम्हें पीना शुरू कर देनी चाहिए। हर राजा पीता है कारू। कारू तो राजा की शान होती है।”
“मैं कभी नहीं पी सकूंगा। मुझे इस तरह के नशे की आदत नहीं है।”
खुंबरी आगे सरकी और जगमोहन के आगोश में सिमट आई।
जगमोहन ने उसे बांहों में भर लिया।
“मैं अच्छी हूं न?” खुंबरी के स्वर से अब कारू का नशा झलकने लगा था।
“बहुत।” जगमोहन ने प्यार से उसके गाल पर हाथ फेरा-“तुम बहुत अच्छी हो खुंबरी।”
“मैं ताकतों को हुक्म देती हूं कि हमारा प्यार इसी तरह सलामत रहे।” खुंबरी ने पुनः उसका गाल चूमा।
जवाब में जगमोहन ने भी उसका गाल चूमा।
“आज रात तुम मेरी सारी समस्या खत्म कर दोगे।” खुंबरी बोली।
“समस्या?” समझते हुए भी जगमोहन ने कहा।
“मेरी समस्या दोलाम है।”
“इसी रात में मैं दोलाम को मार दूंगा।” जगमोहन बोला।
“मैं जानती हूं तुम मुझे किसी समस्या में फंसे नहीं देख सकते। हममें कितना ज्यादा प्यार है।”
“मैं अपनी खुंबरी के बिना नहीं रह सकता।”
“मैं भी। मैं तो तुम्हारे बिना मर ही जाऊंगी जगमोहन।” उससे लिपटती खुंबरी कह उठी।
“तुम्हारी कारू छलक जाएगी।” जगमोहन बोला।
खुंबरी ने एक ही सांस में कारू का गिलास खाली किया और एक तरफ लुढ़का दिया।
“आज तुम दोलाम को मार दोगे। उधर ओहारा कल डुमरा पर ऐसा जबर्दस्त वार करने वाला है कि वो बच नहीं सकेगा। मेरी सारी समस्याएं अब दूर हो जाएंगी। डुमरा को मौत देने के लिए ही मैं रुकी हुई थी, वरना अब तक तो मैंने सदूर की रानी बन जाना था। मैंने सोच रखा था कि पहला काम डुमरा को खत्म करने का करूंगी।”
“मैं तुम्हें खुश देखना चाहता हूं। तुम कहो तो डुमरा को मैं ही मार दूंगा।”
“सच जगमोहन।” खुंबरी जगमोहन से लिपट गई।
“पूरा सच। तुम्हारे लिए तो मैं कुछ भी कर सकता हूं।” जगमोहन के स्वर में प्यार के भाव थे।
“मेरी एक और बात मानोगे?” उसके आगोश में सिमटी खुंबरी बोली।
“कहकर तो देखो।”
“तुम्हारे साथी, जो कैद में हैं या बबूसा। ये सब अब मुझे अच्छे नहीं लगते। कभी-कभी तो सोचती हूं कि बेमतलब ही इन्हें कैद में रखा हुआ है।” खुंबरी ने कहा।
जगमोहन मन-ही-मन सतर्क हो गया।
“तो क्या इन्हें आजाद करने का विचार कर रही हो?” जगमोहन बोला।
“क्या तुम्हें इनसे प्यार है?”
“मुझे तो सिर्फ तुमसे प्यार है।” जगमोहन ने सतर्क भाव से खुंबरी का सिर चूमा।
“मैं इन सबकी जान ले लेना चाहती हूं।”
जगमोहन के चेहरे पर जहरीली मुस्कान उभरी। उसे पहले ही आभास था कि खुंबरी ऐसा ही कुछ कहेगी। चूंकि खुंबरी उसकी गोद में सिमटी थी, इसलिए उसके चेहरे के भाव नहीं देख सकी थी।
“मैं तुम्हें खुश देखना चाहता हूं। तुम जो भी करो, पर खुश रहो।”
उसी पल खुंबरी उसके आगोश से निकलकर सीधी हो बैठी।
“मैं उन सबकी जान ले लूं। तुम्हें कोई एतराज नहीं?” खुंबरी ने मदहोश भरी निगाहों से जगमोहन को देखा।
“मुझे क्यों एतराज होगा।” जगमोहन ने प्यार भरे स्वर में कहा-“तुम उन सबकी जान ले रही हो। मेरी तो नहीं। जबसे मुझे तुमसे प्यार हुआ उसके बाद तो मुझे उन सबका ख्याल ही नहीं आता।”
“ओह जगमोहन। मैं बयान नहीं कर सकती तुम कितने अच्छे हो।” खुंबरी फिर जगमोहन से लिपट गई-“मैं तुम्हें हर वक्त प्यार करते रहना चाहती हूं। अब तो एक पल भी तुमसे दूर नहीं जा पाऊंगी।”
“मुझे धरा की याद आ गई।” जगमोहन बोला-“वो न मरती तो
कितना अच्छा रहता।”
“सच में। वो जिंदा रहती तो मेरे कई काम आती। पर उसने मरना था। डुमरा का वार बड़ा जबर्दस्त था।”
“कैसे मरी धरा?”
“तुम्हें बता तो चुकी हूं।” खुंबरी ने पुनः सीधा होकर जगमोहन को देखा।
“जाने क्यों धरा की मौत का मुझे यकीन नहीं आ रहा।”
खुंबरी नशे भरी निगाहों से जगमोहन को देखने लगी।
“क्या देख रही हो?” जगमोहन बोला।
“तुम मेरे से बार-बार धरा की मौत का जिक्र क्यों करते हो?” खुंबरी बोली।
“धरा की मौत का मुझे दुख है।”
“मुझे भी दुख है। पर मैं प्यार के इस वक्त को, इन बातों की वजह से खराब नहीं करना चाहती। तुम्हें प्यार की जरूरत है। मुझे भी तुम्हारा प्यार चाहिए।” कहने के साथ ही खुंबरी ने अपने शरीर पर डाल रखा काला लबादा हटा दिया। उसका खूबसूरत संगमरमरी शरीर चमकने लगा। इन बातों में पड़ने का जगमोहन का कोई मन नहीं था। परंतु उसके बहाना बनाने से पहले ही खुंबरी उस पर आ बिछी।
qqq
रात गहरी होने लगी थी।
खुंबरी बेड पर टांगें और बांहें फैलाए पस्त-सी पड़ी थी। ऊपर वो ही काला लबादा ओढ़ रखा था जो कि आधे-अधूरे शरीर पर ही आ रहा था, बाकी का शरीर जैसे चमक रहा था मशाल के प्रकाश में। चेहरे पर राहत के भाव थे। देर तक उसने और जगमोहन ने प्यार किया था। तब वो जैसे एक-दूसरे में खो गए थे। सिर्फ प्यार करने का ही होश था। कारू का असर खुंबरी के चेहरे पर से काफी हद तक उतर चुका था। उसने मोटी और बड़ी आंखों से जगमोहन को देखा।
जगमोहन कपड़े पहन चुका था और सोचों में डूबा बेड पर ही बैठा था।
“जगमोहन।” खुंबरी ने प्यार से कहा और हाथ बढ़ाकर, जगमोहन का हाथ थाम लिया।
जगमोहन ने मुस्कराकर उसे देखा।
“मेरे से प्यार करना कैसा लगा?” खुंबरी ने मस्त स्वर में कहा।
“बहुत अच्छा।” जगमोहन ने भी अपने स्वर में मस्ती भर ली थी।
“जानते हो, आज ज्यादा अच्छा क्यों लगा?”
“क्यों?”
“आज मैंने बहुत ही ज्यादा मन से तुम्हें प्यार किया है। क्योंकि तुम अब दोलाम की जान लेने वाले हो।”
जगमोहन मन-ही-मन मुस्कराया कि खुंबरी का मतलब है, हमारा आखिरी प्यार था। अभी तुम दोलाम को मारोगे और ताकतें तुम्हें खत्म कर देंगी। कैसे जहरीले अंदाज में खुंबरी अपना मतलब निकाल लेना चाहती है।
“तुमसे प्यार करना तो मुझे हमेशा ही अच्छा लगा।” जगमोहन ने कहा।
“मैं बच्चा पैदा करूं तो तुम्हें कैसा लगेगा जगमोहन?” एकाएक खुंबरी ने कहा।
जगमोहन समझ गया कि खुंबरी उसे बातों के जाल में पूरी तरह फंसा लेना चाहती है।
“अगर बच्चा मेरा होगा तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।”
“क्यों नहीं। तुम ही तो बच्चे के पिता होगे। तुम्हारे अलावा मेरे करीब है ही कौन। कुछ ही दिनों में मैं सदूर की रानी बन जाऊंगा और तुम राजा। फिर हम अपना बच्चा तैयार करेंगे। कितना मजा आएगा।” खुंबरी खुश हो उठी।
जगमोहन ने प्यार से उसके हाथ को थपथपाया। बोला।
“इतने प्यार से भरी बातें तुमने कभी नहीं कीं।”
“आज का वक्त खास है। तुम मेरे लिए दोलाम की जान लेने वाले हो। मेरी समस्या दूर कर रहे हो। दोलाम बहुत चालबाजी से काम ले रहा है। उसे मेरे शरीर की चाहत नहीं है, वो मुझे मारकर ताकतों का अकेला मालिक बन जाना चाहता है।”
“दोलाम ने ऐसा कहा?”
“बेशक नहीं कहा, परंतु उसके मन की इतनी-सी बात तो मैं भी समझ सकती हूं। ताकतों ने उसे परिवार में शामिल कर लिया है। इस बात का फायदा वो खूब उठा रहा है। लेकिन आज रात सब ठीक हो जाएगा। खुंबरी ने गम्भीर स्वर में कहते एकाएक जगमोहन को देखा-“रात काफी बीत चुकी है। दोलाम गहरी नींद में होगा। उसे मारने के लिए ये वक्त अच्छा है जगमोहन। ये काम पूरा करके आओ। उसके बाद हम एक बार फिर प्यार करेंगे। दोलाम से पीछा छूट जाने की खुशी में मैं और कारू पीऊंगी। इतनी मस्त हो जाऊंगी कि मुझे कुछ होश ही न रहेगा। जाकर जल्दी से दोलाम की जान ले लो।”
जगमोहन ने अपने सामने लेटी खतरनाक शय को देखा।
“जाओ भी। जल्दी वापस आकर मुझे बताओ कि तुमने दोलाम जान ले ली।”
“तुम भी साथ चलो।” जगमोहन ने प्यार से कहा।
“मैं?”
“हां। मुझे बाहर का एक चक्कर लगाना होगा। बबूसा और दोलाम को देखना होगा कि वो किस स्थिति में हैं। ऐसा न हो कि बबूसा जाग रहा हो या फिर दोलाम ही जाग रहा हो। ये सब देखने के बाद ही मैं दोलाम को मार सकूँगा।”
“लेकिन मेरी क्या जरूरत है-तुम तो...”
“जब दोलाम को मारना होगा तो तुम वापस कमरे में आ जाना। मैं चाहता हूं चक्कर लगाने के लिए तुम मेरे साथ चलो। तुमने मुझे तलवार भी नहीं दी कि जिससे दोलाम की जान लूंगा।” जगमोहन ने कहा।
“तलवार मैं तुम्हें अभी दे...”
“अभी नहीं। चक्कर लगाते समय हाथ खाली होने चाहिए। अब उठो भी।”
“तो तुम मुझे जरूर तकलीफ दोगे साथ चलने की।” खुंबरी ने हंसकर कहा।
“तुम्हारे बिना मेरा दिल जो नहीं लगता।” जगमोहन हंसा।
खुंबरी बेड से नीचे उतरी और काले लबादे को सही से अपने शरीर के गिर्द लपेटकर बांधा और मस्त निगाहों से जगमोहन को देखा। जगमोहन उस पर फिदा होने वाले अंदाज में कह उठा।
“तुम बहुत अच्छी हो।”
“आओ। बाहर चलते हैं। तुम नजर मार लो कि दोलाम और बबूसा क्या कर रहे हैं।”
दोनों दरवाजे की तरफ बढ़े। एक-दूसरे का हाथ थाम लिया।
“दोलाम हमें हाथ थामे देखेगा तो और भी जल जाएगा।” खुंबरी कह उठी।
“उसकी जिंदगी कुछ ही देर में खत्म होने जा रही है।”
दरवाजा खोला और दोनों बाहर निकल आए।
हर तरफ गहरी खामोशी छाई हुई थी।
वे उस तरफ बढ़ गए जिधर खाने वाला कमरा था।
“दोलाम और बबूसा अपने-अपने कमरों में गहरी नींद में होंगे।” खुंबरी ने विश्वास भरे स्वर में कहा।
“तुम मेरे बच्चे की मां बनोगी न?” जगमोहन की आवाज में प्यार भरा था।
“जरूर। तुम्हारे बच्चे को जन्म देकर मुझे खुशी होगी। मैं सोच रही हूं कि क्यों न आज रात ही तुम्हारे उन कैदी साथियों को भी खत्म कर दूं। उन्हें कैद में रखने का मतलब ही क्या है।”
“जैसा तुम्हारा मन करे। दोलाम को खत्म करने के बाद, उन सबको भी खत्म कर दूंगा।”
“उन्हें खत्म करने के लिए तुम्हें कष्ट उठाने की जरूरत नहीं है, मेरे एक इशारे पर ताकतें उनकी जान ले लेंगी।”
“ये तो और भी अच्छी बात है।” जगमोहन ने कहा। उसके मन में बेचैनी घर बनाने लगी थी। दोलाम ने उसे कहा था कि रात को वो खुंबरी के कमरे से बाहर लाए। अब वो खुंबरी को ले आया था, परंतु उसे ऐसा कोई भी आभास नहीं मिल रहा था कि आस-पास या पीछे कोई है।
दोलाम ने कहा था कि वो रानी ताशा को छिपा देगा कि वो घात लगाकर खुंबरी पर हमला कर सके। परंतु ऐसा होता उसे नजर नहीं आ रहा था। इस वक्त वो मशालों वाले रास्ते से निकल रहे थे।
पूरे रास्ते पर मशालों का प्रकाश था। चलते-चलते जगमोहन ने पीछे निगाह मारी।
अगले ही पल उसका दिल जोरों से धड़का।
पीछे कोई था।
जो कि उसके पीछे देखते ही, तुरंत अंधेरे में दुबक गया था। वो कौन था, ये नहीं देख सका था जगमोहन। परंतु कोई था। उसके ख्याल से वो रानी ताशा हो सकती है या स्वयं दोलाम।
जगमोहन और खुंबरी एक-दूसरे का हाथ थामे खाने वाले कमरे में पहुंचे।
खाने का टेबल खाली था। कुर्सियों पर कोई भी नहीं बैठा था।
खुंबरी और जगमोहन की नजरें मिलीं।
“यहां कोई नहीं है।” खुंबरी धीमे स्वर में बोली-“दोलाम और बबूसा गहरी नींद में होंगे कमरों में।”
जगमोहन ने उस तरफ नजर मारी। जिस तरफ से वो आए थे। इस वक्त वहां कोई नहीं दिखा लेकिन जगमोहन जानता था कि उस तरफ कोई है। किसी के होने की झलक उसने स्वयं देखी थी।
“क्या सोच रहे हो?” खुंबरी फुसफुसाकर बोली।
जगमोहन सोच लिया कि अब क्या करना है।
“तलवार कमरे में रखी है?” जगमोहन ने पूछा।
“अभी लो।” खुंबरी ने कहा और बटाका थामकर कुछ बुदबुदाई।
उसी पल खुंबरी के हाथ में तलवार थमी दिखाई देने लगी। उसे जगमोहन की तरफ बढ़ाया।
“ओह। तुम्हें पलक झपकते ही तलवार मिल गई।” कहते हुए जगमोहन ने तलवार थामी।
“ताकतें मेरे हर हुक्म को फौरन पूरा करती हैं।”
“मैं दोलाम की जान लेने जा रहा हूं। तुम वापस कमरे में जाओ। मैं अभी आ जाऊंगा।” जगमोहन ने कहा।
“कहो तो मैं यहीं ठहर जाऊं?” खुंबरी कह उठी।
“नहीं। तुम जाओ कमरे में।” जगमोहन खुंबरी को उसी रास्ते परवापस भेजना चाहता था, जहां पर यकीनन खुंबरी की घात में कोई था और मौका मिलते ही उसने खुंबरी को मार देना था।
“दोलाम को छोड़ना मत।” खुंबरी ने जैसे जगमोहन को पकड़ लिया।
“अपने जगमोहन पर भरोसा रखो।”
खुंबरी ने जगमोहन का गाल चूमा और मुस्कराकर पलटते हुए वापस चल दी।
खुशी में खुंबरी जैसे चल न रही हो, उड़ी जा रही हो। कुछ ऐसा ही हाल था इस वक्त खुंबरी का। जगमोहन ने अभी दोलाम को मार देना था और इसकी सजा ताकतों ने जगमोहन की जान लेकर देनी थी। दोलाम और जगमोहन से पीछा छूट जाना था। डुमरा के वार के दौरान जब धरा की जान गई और खुंबरी को सोमाथ से जान बचाने के लिए जब भागना पड़ा था तो तब उसके मस्तिष्क में ये बात आई कि वो बुरे हालातों से घिर
चुकी है। एक तरफ डुमरा उसकी जान के पीछे है और दूसरी तरफ दोलाम उसका दुश्मन बन गया है। वजह था जगमोहन। जगमोहन की वजह से उसकी जिंदगी उलझकर रह गई है। समस्याएं बढ़ गईं। दुश्मन बढ़ गए दोलाम जैसा वफादार सेवक हाथ से गंवा दिया। खुंबरी ने इस बारे में गम्भीरता से सोचा कि क्या उसे प्यार की या जगमोहन की जरूरत है?
जवाब ये ही मिला खुद से कि प्यार की जरूरत है परंतु जगमोहन के न रहने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। प्यार किसी भी मर्द से किया जा सकता है। सब एक जैसे होते हैं। जगमोहन का मन पृथ्वी ग्रह पर वापस जाने का है। ये बात जगमोहन कई बार कह चुका था। खुंबरी को महसूस हो रहा था कि जगमोहन के साथ उसकी ज्यादा नहीं चलनेवाली फिर वो जगमोहन के संग क्यों रह रही है। वो तो सिर्फ ताकतों के लिए जीती है। ताकतें उसका जीवन हैं। जगमोहन को साथ-साथ रखने की कोई जरूरत नहीं है। यूं भी खुंबरी के मन में था कि जगमोहन अपने कैदी साथियों की परवाह कर रहा है और उन्हें बचाने की भी चेष्टा करेगा। जो भी हो जगमोहन से एकाएक उसका मन उखड़ गया था और ताकतों के प्रति उसका प्रेम एकाएक बढ़ गया। तभी उसने फैसला कर लिया था कि जगमोहन के हाथों दोलाम की जान लेकर, ताकतों द्वारा जगमोहन भी खत्म हो जाएगा। उधर ओहारा, डुमरा को कल खत्म कर देगा। उसके बाद वो ताकतों के दम पर सदूर की रानी बनेगी और शान से बाकी का जीवन व्यतीत करेगी।
खुंबरी को अब अपने जीवन की आगे की राह बहुत आसान और सीधी लग रही थी। इस बात को जानती थी कि दोलाम को मारकर जगमोहन उसके पास नहीं पहुंच सकेगा। ताकतों के परिवार के सदस्य को मारने का लिए उसमें खड़ा हुआ जा सके। उसी तरह एक गड्ढे में तलवार सहित रानी ताशा दुबकी हुई थी। रानी ताशा जान चुकी थी कि खुंबरी वापस आ रही है। उसके कदमों की आहटें रानी ताशा सुन रही थी।
और खुंबरी को उस वक्त आश्चर्य का तीव्र झटका लगा, जब रानी ताशा अचानक ही गड्ढे से उछलकर बाहर उसके सामने खड़ी हो गई और तलवार की नोंक उसकी गर्दन पर आ लगी।
खुंबरी चंद पलों के लिए स्तब्ध रह गई। मशाल की सिंदूरी रोशनी में दोनों के चेहरे चमक रहे थे। रानी ताशा के चेहरे पर दुनिया भर के खतरनाक भाव उमड़े पड़े थे। आंखें शोले बरसा रही थीं।
खुंबरी ने अपने को संभाल लेने का भरसक प्रयत्न किया।
“तुम? रानी ताशा-यहां?” खुंबरी के होंठों से निकला।
“तुमने क्या सोचा था कि हमारा सामना होगा ही नहीं?” रानी ताशा गुर्रा उठी।
खुंबरी की आंखें सिकुड़ीं।
“ओह।” खुंबरी के होंठों से सोच भरा स्वर निकला-“तुम्हें दोलाम ने कैद से निकाला है, शर्त ये होगी कि तुम मुझे मार दो। ये ही बात है न?” खुंबरी घायल शेरनी की तरह दिखने लगी-“दोलाम ने तुम्हें कैद से निकाला है।”
“एक शर्त और भी रखी दोलाम ने।” रानी ताशा गुर्राई।
“वो भी बता।” खुंबरी के दांत भिंच गए।
तलवार की नोंक गर्दन में धंसने से खून बह निकला था। परंतु खुंबरी को इस मामूली बात की इस वक्त परवाह नहीं थी।
“दोलाम ने मुझे मौका दिया है कि मैं तुम्हें अपने हाथों से मार सकूं बदले में दोलाम को मैं सदूर का राज्य दूंगी। अब समझी कुछ।”
“खूब। तो तेरे को भरोसा है कि तू मुझे मार देगी और दोलाम सदूर का राजा बन जाएगा।” खुंबरी ने कठोर स्वर में कहा।
“तेरी मौत तो अब मेरे हाथ में है।” रानी ताशा गुर्राई-“ढाई सौ
बरस पहले तूने अपने स्वार्थ की खातिर मुझे मेरे देव से जुदा ही नहीं किया बल्कि मुझ पर ये इल्जाम भी लगवा दिया कि मैंने राजा देव को ग्रह से बाहर फिंकवा दिया है। मैं देव के बिना किस कदर तड़पती रही, ये मैं ही जानती हूं। महापंडित ने मेरे कई जन्म कराए और हर बार ये बात मेरे जेहन में ताजा रखी कि मुझे मेरे देव का इंतजार है। मैंने देव को ढूंढा। पृथ्वी ग्रह पर मेरा देव मुझे मिला भी परंतु वो अब मेरा नहीं, अपनी पृथ्वी की पत्नी नगीना का है। मुझे मेरे देव से ऐसा जुदा किया कि मैं उसे पाकर भी पा नहीं सकी। तू मेरी सबसे बड़ी गुनहगार है। मैं तेरी जान ले सकी तो मेरे लिए इससे ज्यादा खुशी की क्या बात होगी। अब तू मर खुंबरी और...”
उसी पल खुंबरी ने अपनी गर्दन जरा-सी पीछे की और फुर्ती से हाथ उठाकर तलवार पर मारा। रानी ताशा के हाथ में दबी तलवार चंद पल के लिए, दाईं तरफ झूल गई कि इसी बीच खुंबरी ने रानी ताशा पर छलांग लगा दी। खुंबरी रानी ताशा से टकराई और रानी ताशा के लिए पीछे को जा गिरी।
रानी ताशा नीचे, खुंबरी ऊपर, ऐसे में रानी ताशा की पीठ जमीन से टकराई। रानी ताशा के होंठों से तेज चीख निकली।
इसी पीड़ा भरे पलों का फायदा उठाकर खुंबरी उसके हाथ में दबी तलवार पर झपट उठी और अगले ही पल तलवार खुंबरी के हाथों में थी और वो उछलकर खड़ी हो गई। रानी ताशा को जब होश आया तो बाजी हाथ से निकल चुकी थी। वो जल्दी से खड़ी हुई कि तभी खुंबरी के हाथ में दबी तलवार उसकी गर्दन में आर-पार धंसती चली गई।
रानी ताशा की आंखें फैल गईं। दोनों हाथ गले में फंसी तलवार पर जा पहुंचे। कई पलों तक वो स्थिर-सी ऐसे ही खड़ी रही फिर पीठ के बल पीछे को जा गिरी। खुंबरी के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी। वो आगे बढ़ी और रानी ताशा के मृत शरीर के गले में फंसी तलवार बाहर खींची और पलटकर तेज-तेज कदमों से वापस चल पड़ी। राह में आने वाली मशालों की रोशनी में खुंबरी का खूबसूरत चेहरा, दरिंदगी के भावों के साथ भी खूबसूरत लग रही थी। उसकी आंखें आग उगल रही थी। दोलाम ने रानी ताशा को कैद से निकालकर, उसकी ताकत को ललकारा था। उसके हुक्म में दखल दिया था। उसकी मौत का इंतजाम किया था और ये बात खुंबरी कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी।
शीघ्र ही वो खाने की टेबल वाले कमरे में पहुंची।
जगमोहन तलवार थामे वहीं मौजूद था।खुंबरी का रूप देखते ही चौंका। उसके हाथ में दबी खून सनी तलवार देखते ही जगमोहन सन्न रह गया।
समझते देर न लगी कि रानी ताशा मारी जा चुकी है।
“दोलाम कहां है?” खुंबरी जगमोहन को देखकर गुर्राई।
“वो कमरे में होगा। मैं उसकी तरफ जा ही रहा...”
खुंबरी तेजी से आगे बढ़ गई।
जगमोहन समझ गया कि एकाएक हालात बदल गए हैं। खुंबरी बेकाबू हो चुकी है। उसने रानी ताशा को मार दिया है। अब दोलाम को मारने गई है। यकीनन उसके बाद वो उसके साथियों को मारेगी। ये बात वो कह भी चुकी है। अब जो भी करना होगा, फौरन करना होगा। खुंबरी का इस तरह दोलाम की तरफ जाना स्पष्ट करता है कि वो समझ चुकी है कि दोलाम ही रानी ताशा को वहां तक, उसे मारने लाया।
तलवार थामे जगमोहन उसी पल उधर दौड़ा, जिधर खुंबरी गई थी। उसने छोटी-सी राहदारी को पार किया और एक कमरे में दरवाजे वाले रास्ते से भीतर प्रवेश कर गया।
अगले ही पल थम से ठिठक गया। आंखें कुछ फैल-सी गईं।
खुंबरी के साथ में दबी तलवार सामने खड़े दोलाम की छाती में
धंसी और पीठ से नोंक बाहर निकली हुई थी। दोलाम फटी आंखों से हैरानी से खुंबरी को देख रहा था। तलवार की मूठ अभी भी खुंबरी के हाथ में थी। खुंबरी के चेहरे पर वहशी भाव नाच रहे थे। आंखों में क्रूरता बसी हुई थी। इस रूप में भी उसकी खूबसूरती कम नहीं हुई थी। गुलाबी होंठ इस कदर भिंचे हुए थे कि कानों के पास से गालों की हड्डियां बाहर को उमड़-सी रही थीं। अगले ही पल खुंबरी ने तलवार को, दोलाम की छाती से वापस खींच लिया ऐसा होते ही दोलाम के शरीर को जबर्दस्त झटका लगा और उसकी जान निकल गई। आंखें पलट गईं। बेजान-सा वो खुंबरी के ऊपर गिरने लगा कि खुंबरी तुरंत सामने से हट गई। दोलाम का शरीर छाती के बल नीचे गिरा और शांत पड़ा रहा। खुंबरी के होंठों से गुर्राहट निकली। खून से सनी तलवार उसके हाथ में थी।
जगमोहन की एकटक निगाह खुंबरी पर थी।
“ये सब मिले हुए हैं।” खुंबरी ने दांत पीसते हुए गुर्राकर कहा-“दोलाम ने रानी ताशा को कैद से बाहर निकाल दिया कि वो मेरे को मार सके। परंतु मैं रानी ताशा से बच गई और मैंने उसे मार दिया। ये बात बबूसा भी जानता होगा कि दोलाम क्या कर रहा है। परंतु उसने मुझे नहीं बताया। तुम्हें बताया?”
“नहीं।” जगमोहन के होंठों से निकला।
“मैं सबको मार दूंगी।” खुंबरी ने दांत पीसते हुए कहा और तेजी से कमरे से निकलकर, आगे बढ़ गई। खून सनी तलवार हाथ में थी।
“खुंबरी।” जगमोहन उसके पीछे लपका। वो समझ चुका था कि खुंबरी अब बबूसा की जान लेने जा रही है।
लेकिन खुंबरी के कदम तेजी से उठे और कुछ आगे जाकर एक कमरे में प्रवेश कर गई।
सामने ही कुर्सी पर बबूसा बैठा था। खुंबरी के चेहरे का हाल देखा तो सतर्क भाव में उठने लगा कि तभी खुंबरी का तलवार वाला हाथ उठा... खुंबरी अब किसी को बचाव का मौका ही नहीं देना चाहती थी। परंतु तलवार वाला हाथ नीचे आने से पहले ही, खच के साथ उसकी गर्दन पर, पीछे से तलवार का वार हुआ और खुंबरी की गर्दन कटकर लटकने लगी। कटे गले से खून बाहर को उबलने लगा। खुंबरी के शरीर के घुटने मुड़े, तलवार वाला हाथ नीचे आ गया। उसी पल खुंबरी का शरीर बैठने के अंदाज में नीचे लुढ़कता चला गया।
गर्दन कटते ही खुंबरी की जान निकल गई थी।
सब कुछ एकाएक शांत पड़ गया था।
बबूसा हैरानी से खुंबरी के मृत शरीर को देख रहा था फिर नजरें उठाकर जगमोहन को देखा जिसके हाथ में खून से सनी तलवार थी। चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी।
“तुमने-तुमने-खुंबरी से मेरी-जान बचाई।” बबूसा के होंठों से निकला।
“ये पागल हो गई थी। सबको मार देना चाहती थी। दोलाम को मार दिया। रानी ताशा ने भी खुंबरी के हाथों अपनी जान गंवा दी। तुम्हें मारने के बाद इसने बाकी सबको मार देना था। मुझे भी जिंदा न छोड़ती।” जगमोहन ने एक-एक शब्द चबाकर कहा-“खुंबरी का व्यवहार एकाएक बहुत बदल गया था। ये सिर्फ अपने बारे में ही सोच रही थी। डुमरा ने सही कहा था कि खुंबरी बुरी है। खुंबरी के करीब रहकर मैंने भी ये बात महसूस कर...”
जगमोहन शब्द पूरे न कर सका।
तभी उसके कानों मे ठोरा का धीमा स्वर पड़ा।
“तुमने ताकतों की मालिक, महान खुंबरी की जान ली है। दोलाम भी मारा गया। हमारा मालिक अब कोई नहीं रहा। तुम्हारी सजा मौत है, परंतु तुम्हें जीने का मौका मिल सकता है जगमोहन।”
कानों के पास ये शब्द सुनते ही जगमोहन स्तब्ध रह गया। वो फौरन घूमा परंतु कोई नहीं दिखा। जगमोहन की आंखें सिकुड़ गईं। सामने खड़ा बबूसा उसे ही देख रहा था।
“क्या बात है?” बबूसा ने पूछा।
“मेरे कानों के पास कोई बोल रहा है। खुंबरी भी किसी से धीमे स्वर में बातें किया करती...”
“मैं ठोरा हूं जगमोहन।” उसी अंदाज में शब्द कानों में पड़े।
“ठोरा-कौन ठोरा?”
बबूसा ठोरा का नाम सुनते ही फौरन कह उठा।
“ये सबसे बड़ी ताकत का नाम है। दोलाम इससे बात किया करता था।”
जगमोहन के होंठ भिंच गए फिर बोला।
“क्या कहना चाहते हो ठोरा?”
“तुमने खुंबरी की जान ली है। वो हमारी मालिक थी। ताकतों का वजूद तभी रह सकता है, जब हमारा कोई मालिक हो और हमारी जरूरतों का ख्याल रखता रहे। तुम्हारी सजा अब मौत है। परंतु तुम्हें जीने का एक मौका मिल सकता है।”
“कैसे?” जगमोहन के कठोर चेहरे पर गम्भीरता दिखने लगी। वो जानता था कि ठोरा सही कह रहा है।
बबूसा, जगमोहन के शब्दों को स्पष्ट सुन रहा था।
“तुम्हें हम ताकतों का मालिक बनना होगा।” ठोरा की आवाज कानों में पड़ी।
“ताकतों का मालिक-मैं?” जगमोहन चौंका।
“अगर तुम ताकतों का मालिक बनना स्वीकार करते हो तो हम तुम्हारी जान नहीं लेंगे। इंकार करते हो तो अभी तुम्हारी जान ले ली जाएगी। ताकतें इस वक्त बहुत क्रोध में हैं कि तुमने खुंबरी की जान ले ली। उधर दोलाम भी नहीं रहा। अगर तुम ताकतों के मालिक बन जाते हो तो ताकतों का क्रोध खत्म हो जाएगा। ताकतों को अपना मालिक चाहिए।”
जगमोहन का चेहरा सख्त था दिमाग तेजी से दौड़ रहा था।
“जवाब दो। ताकतें तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रही हैं।”
“अगर मैं ताकतों का मालिक बनता हूं तो मेरी हर बात मानी जाएगी?”
“क्यों नहीं। हम अपने मालिक का हर हुक्म पूरा करते हैं।” ठोरा का स्वर कानों में पड़ा।
“तो मैं ताकतों का मालिक बनना स्वीकार करता हूं।” जगमोहन एकाएक शांत स्वर में बोला।
“तुम्हारा जवाब सुनकर सारी ताकतों को खुशी हुई।”
“मेरे सब साथी कैदियों को आजाद कर दो।” जगमोहन ने कहा।
“आजाद कर दिया।”
“कल ओहारा डुमरा पर हमला करेगा। मैं चाहता हूं डुमरा को कुछ न कहा जाए।”
“ये भी हो गया महान जगमोहन। ठोरा अपने मालिक के हर हुक्म का आदर करता है।”
“मैं तुम ताकतों के बारे में ज्यादा नहीं जानता। मुझे वो सब जानकारी चाहिए, जो खुंबरी के पास थीं।”
“ये काम अभी हो जाएगा। मैं अभी सब जानकारी तुम्हारे दिमाग में डाल दूंगा। अब तुम हमारे मालिक हो। तुम्हें हमारे पास ही रहना होगा। वापस पृथ्वी ग्रह पर जाने की नहीं सोचोगे। तुम ताकतों का भला करोगे, ताकतें तुम्हारा भला करेंगी।”
“मैं ऐसा ही करूंगा। परंतु मुझे तुम्हारे बारे में कुछ भी जानकारी नहीं...”
“मैं सारी जानकारी तुम्हारे दिमाग में डालने जा रहा हूं। कुछ पलों का इंतजार करो।” ठोरा की आवाज आई।
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
“तुम ताकतों के मालिक बनने जा रहे हो?” बबूसा ने गम्भीर स्वर में पूछा।
“मैं ताकतों का मालिक बन गया हूं।” जगमोहन शांत भाव में मुस्कराया।
“तुमने ऐसा क्यों किया?” बबूसा कह उठा।
“ताकतों का मालिक बनना स्वीकार नहीं करता तो खुंबरी की जान लेने की वजह से, ताकतें मेरी जान ले लेतीं।”
“ओह।”
तभी जगमोहन के सिर में सनसनाहट-सी दौड़ी।
कुछ पल ऐसा ही होता रहा फिर सब कुछ शांत हो गया।
परंतु जगमोहन के मस्तिष्क में हर वो जानकारी आ गई थी जो खुंबरी ताकतों के बारे में जानती थी। वो मंत्र भी उसके जेहन में था जिससे ताकतों से छुटकारा पाया जा सकता था। ये ठिकाना उसे ऐसा लगने लगा। जैसे वो बरसों से यहां रहा हो। ताकतों के बारे में सब कुछ अब उसके दिमाग में डाला जा चुका था।
जगमोहन मुस्करा पड़ा।
“अब तो तुम्हें सब पता है महान जगमोहन।” ठोरा के शब्द कानों में पड़े।
“हां। अब मेरे पास ताकतों के बारे में हर जानकारी है।” जगमोहन ने कहा।
“याद रखना महान जगमोहन। तुमने ताकतों के भले की सोचनी है और ताकतें तुम्हारे भले का काम करेंगी।”
“शुक्रिया ठोरा।”
“खुंबरी सदूर की रानी बनना चाहती थी ताकतों के प्रयत्न से वो आसानी से बन जाती। क्या तुम सदूर का राजा बनना चाहोगे। ताकतें तुम्हारी राह की हर मुसीबत को दूर कर देंगी।” ठोरा का स्वर कानों में पड़ा।
“इसका जवाब मैं तुम्हें जल्दी ही दूंगा।” जगमोहन ने मुस्कराकर कहा और तलवार एक तरफ फेंक दी।
“महान जगमोहन। अब तुम हम ताकतों के मालिक हो। जब भी हमें पुकारोगे, हम आ जाएंगे। मैं जल्दी ही तुम्हें बटाका तैयार करके दूंगा ताकि ताकतों से जब तुम बात करना चाहो तो फौरन कर सको।”
“तुमसे बात करके मुझे अच्छा लगा।”
“अब मैं जाता हूं। ताकतें अपने नए मालिक को पाकर खुश हैं। वो नाच रही हैं-झूम रही हैं। मैं उन्हें देख रहा हूं।”
“हमारा साथ खुंबरी से भी लम्बा रहेगा।” जगमोहन बोला।
ठोरा चला गया। जगमोहन, बबूसा से मुस्कराकर बोला।
“अब हम आजाद हैं बबूसा आओ सबको वहां से लेकर आएं।”
“ले-लेकिन तुम तो ताकतों के मालिक बन गए हो।” बबूसा कुछ परेशान था।
“उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।”
qqq
देवराज चौहान, नगीना, मोना चौधरी और सोमारा को कैद से निकालकर, जगमोहन और बबूसा वापस आ गए। जाते वक्त रानी ताशा का मृत शरीर रास्ते में पड़ा मिला था। रानी ताशा को मरा पाकर उन्हें बहुत दुख हुआ था। रानी ताशा के शरीर को उन्होंने रास्ते के बगल में पड़ने वाले गड्ढे में डाल दिया था। इस वक्त इससे ज्यादा वो कुछ न कर सकते थे। अन्यों को जब रानी ताशा की जान चली जाने का पता चला तो वो बहुत दुखी हुए। सोमारा और देवराज चौहान की आंखें गीली हो गईं। मन बोझिल हो गया। जब उन्हें ये पता लगा कि जगमोहन ताकतों का मालिक बन गया है तो उनका दिमाग जगमोहन की तरफ भटक गया। सबके मन में ये ही बात थी कि अब क्या होगा?
जबकि जगमोहन ने इतना ही कहा कि सब ठीक हो जाएगा।
बाकी बची रात में वे सो गए। नींद आई नहीं आई। सब ऐसे ही रहा।
दिन निकला तो जगमोहन ने ठोरा को पुकारा।
“हुक्म महान जगमोहन।” कानों के पास ठोरा की आवाज उभरी।
“मुझे डुमरा के पास जाना है।” जगमोहन ने कहा।
“डुमरा ताकतों का दुश्मन है। उसे जब पता चलेगा कि तुम ताकतों के नए मालिक हो तो, वो तुम्हें मारने का प्रयत्न करेगा।”
“ऐसा वक्त आते ही मैं डुमरा को मार दूंगा।”
“मैं अभी दोती को भेजता हूं। वो तुम्हें डुमरा के पास पहुंचा देगी।”
फिर ठोरा की आवाज नहीं आई।
“ये तुम डुमरा को मारने की क्या बात कह रहे थे?” देवराज चौहान ने पूछा।
जगमोहन ने देवराज चौहान को चुप रहने का इशारा किया।
तभी वहां दोती का अक्स नजर आने लगा।
“महान जगमोहन की सेवा में दोती हाजिर है। तुम्हें मालिक के रूप में पाकर, ताकतों को खुशी हुई।”
“मुझे डुमरा से मिलना है।”
“आओ महान जगमोहन। मैं तुम्हें डुमरा के पास ले चलती हूं।” दोती बोली।
“तुम सब भी मेरे साथ चलो।” जगमोहन ने सबसे कहा।
सब उस ठिकाने से बाहर आ गए।
आगे-आगे दोती एक दिशा में चल पड़ी।
देवराज चौहान, जगमोहन के पास आकर फुसफुसाया।
“तुम क्या करने वाले हो?”
“ताकतों से छुटकारा पाना है।” जगमोहन का स्वर धीमा था।
“कैसे?”
“बड़ी ताकत ठोरा ने सारी जानकारी मेरे दिमाग में डाल दी है। उस जानकारी में एक ऐसा भी मंत्र है जो ताकतों से छुटकारा पाने के लिए बोला जाए तो ताकतें दूर हो जाती हैं। सदूर आते वक्त धरा ने बताया था कि डुमरा, खुंबरी से चाहता था कि वो उस मंत्र को पढ़कर ताकतों को उसके हवाले कर दे कि डुमरा हमेशा के लिए ताकतों को खत्म कर दे। अब मैं ऐसा ही करने की सोच रहा हूं।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।
qqq
डुमरा को होकाक ने खुंबरी के ठिकाने के सारे हालात बता दिए थे कि वहां पर क्या-क्या हुआ। दोलाम मारा गया। खुंबरी मारी गई। रानी ताशा नहीं रही। खुंबरी और दोलाम के मरने की खबर सुनकर डुमरा खुश हो गया था। परंतु रानी ताशा की मौत के बारे में सुनकर उसका मन खराब हुआ। होकाक ने ये भी बता दिया कि वो सब उसके पास ही आ रहे हैं।
डुमरा ने सोच भरे अंदाज में सिर हिलाया।
“जगमोहन ताकतों का मालिक बन गया है।” डुमरा बोला-“पर वो मेरे से क्या बात करना चाहता है?”
“उसके मन में कोई खोट नहीं है। उसके आने की वजह मैं नहीं जानता।” होकाक ने कहा।
“वो मेरे पास कब तक पहुंच जाएंगे?”
“जल्दी ही। वे पास में ही हैं।”
“सोमाथ के बारे में तुम्हें कुछ पता है। कल वो खुंबरी की जान लेने उसके पीछे गया था।”
“कृत्रिम इंसान की मेरे पास खबर नहीं। वो खुंबरी के ठिकाने पर नहीं पहुंचा।”
होकाक चला गया।
फिर तोखा की आवाज डुमरा के कानों में पड़ी।
“जगमोहन ताकतों का मालिक बनने के बाद तुम्हारे पास क्यों आ रहा है?”
“जगमोहन को ताकतों का मालिक बनने में कोई दिलचस्पी नहीं है।”
“पर तुम्हारे पास ही क्यों आ रहा है?”
“इसका जवाब जगमोहन ही देगा कि उसके मन में क्या है।” डुमरा ने सोच भरे स्वर में कहा-“खुंबरी और दोलाम के मर जाने से मेरी परेशानियों का अंत हो गया। मेरी समस्या हल हो गई।”
qqq
जगमोहन, देवराज चौहान, बबूसा, नगीना, मोना चौधरी और सोमारा डुमरा के पास आ पहुंचे। डुमरा तो कब से वहीं पर बैठा उनके आने का इंतजार कर रहा था। उनके पास आते ही बोला।
“मैं जानता था कि तुम लोग मेरे पास ही आ रहे हो।” डुमरा कहा-“खुंबरी के ठिकाने के ताजा हालातों के बारे में मुझे पूरी जानकारी है। खुंबरी और दोलाम के अंत से मैं खुश हुआ, परंतु रानी ताशा की मौत का मुझे दुख है।”
जगमोहन ने दोती के अक्स को देखकर कहा।
“तुम जाओ।”
उसी पल दोती का अक्स गायब हो गया।
जगमोहन आगे बढ़ा और डुमरा के पास आकर बोला।
“मैं ताकतों का मालिक बन गया हूं।”
“जानता हूं।” डुमरा ने शांत निगाहों से जगमोहन को देखा।
“ताकतों का मालिक बनना मेरी मजबूरी थी, नहीं तो ठोरा, खुंबरी की जान लेने के जुर्म में मेरी जान ले लेता। अब मैं ताकतों को अपने से अलग करना चाहता हूं। क्या तुम ताकतों को अपने पास रखना पसंद करोगे।”
“मैं उन्हें नष्ट कर दूंगा। परंतु इसके लिए तुम्हें एक खास मंत्र की जरूरत...”
“वो मेरे पास है।”
“मेरा हाथ थामो और मंत्र बोलना शुरू करो।” डुमरा ने फौरन उसकी तरफ हाथ बढ़ाया।
“उससे क्या होगा।”
“मेरा हाथ थामकर मंत्र बोलोगे तो ताकतों से तुम्हारा पीछा छूट जाएगा और वो मेरे अधिकार में आ जाएंगी। तब मैं उन्हें आसानी से नष्ट कर सकूंगा। मेरा हाथ पकड़ो।” डुमरा ने कहा-“अगर तुमने मेरा हाथ थामे बिना मंत्र पढ़ा तो ताकतों से तुम्हारा पीछा छूट जाएगा लेकिन ताकतें अपने नए मालिक की तलाश में जुट जाएंगी।”
जगमोहन ने डुमरा का हाथ थाम लिया।
उसी पल ठोरा की आवाज जगमोहन के कानों में पड़ी।
“महान जगमोहन। ये क्या कर रहे हो।” ठोरा के स्वर में बेचैनी थी-“तुमने कहा था कि तुम ताकतों का ख्याल रखोगे परंतु तुम तो हमें डुमरा के हवाले कर रहे हो कि वो हमें नष्ट कर दे।”
जगमोहन ने मंत्र बोलना शुरू कर दिया।
“ऐसा मत करो महान जगमोहन। अगर तुम हमसे दूर होना चाहते हो तो हो जाओ, पर हमें डुमरा के हाथों नष्ट मत करवाओ।”
जगमोहन मंत्र पढ़ता रहा।
“महान जगमोहन, हमारे साथ ऐसा अन्याय मत करो।” ठोरा, जगमोहन के कान में गुस्से से चीखा-“हमें आजाद रहने दो। हम ताकतें जीना चाहती हैं। हमारी अपनी दुनिया है। हमारा साथ तुम्हें मिला रहेगा तो तुम शिखर पर पहुंच जाओगे। हर तरफ तुम्हारे नाम का डंका बजेगा। तुमने अभी हमें समझा नहीं...”
जगमोहन मंत्र को पूरा बोलकर थम गया।
ठोरा की आवाज आनी भी बंद हो गई।
डुमरा के चेहरे पर तीव्र चमक उभरी हुई थी। उसने जगमोहन का हाथ अभी थामा हुआ था।
जगमोहन की निगाह डुमरा पर थी।
अन्य सब इन दोनों को ही देख रहे थे।
लम्बे पलों के बाद डुमरा ने जगमोहन का हाथ छोड़ा और खुशी भरे स्वर में कह उठा।
“सब ताकतें शक्तियों के पवित्र रास्ते पर कदम रखते ही नष्ट हो गईं। ठोरा ने थोड़ा-सा जरूर परेशान किया। ठोरा उस पवित्र रास्ते पर कदम नहीं रख रहा था। लेकिन शक्तियों ने उसे घेरकर, उस पवित्र रास्ते पर पटक दिया।”
qqq
तीसरे दिन ही बबूसा और सोमारा का ब्याह हो गया। रानी ताशा के न होने से मन में कुछ उदासी थी, परंतु आगे के सब कामों को पूरा करना था। बबूसा चाहता था कि देवराज चौहान सदूर का राजा बनकर रहे और खुद पहले की ही तरह उसकी सेवा करे। संग रहे। पहले वाला वक्त वापस आ जाए। परंतु देवराज चौहान ने बबूसा से स्पष्ट कहा कि उसे वापस अपने ग्रह पृथ्वी पर जाना है उसकी दुनिया वही है। वो रुक नहीं सकता। बबूसा अब क्या कहता। चुप रह गया।
छठे दिन देवराज चौहान ने बबूसा से कहा कि वो सदूर का राजा बनेगा और सोमारा सदूर की रानी बनेगी। बबूसा और सोमारा इस बात के लिए तैयार नहीं थे परंतु वे देवराज चौहान की बात को टाल भी नहीं सकते थे। दो दिन का वक्त जरूर लगा परंतु दोनों को माननी पड़ी देवराज चौहान की बात। जगमोहन, नगीना और मोना चौधरी इस नए ग्रह, सदूर को देखने में व्यस्त रहे। फिर वो दिन भी आ गया, जब बबूसा के सदूर के राजा बनने का ऐलान कर दिया गया। सदूर वाले जानते थे कि राजा देव सदूर पर आए हुए हैं। देवराज चौहान लोगों से, बाजारों इलाकों में घूम-घूमकर मिलता रहता था।
राजा देव खुद बबूसा को सदूर का राजा बना रहे हैं तो सदूर के लोग एतराज क्यों करते? इस फैसले से सब खुश थे। पंद्रह दिन बबूसा को सदूर का राजा बनाया गया और सोमारा रानी बनी। इसके लिए महाआयोजन हुआ था। महापंडित भी आया। डुमरा भी आया और जम्बरा के अलावा, सेनापति मोमाथ और सदूर के कई महत्वपूर्ण व्यक्ति आयोजन में शामिल हुए। सदूर के लोगों के लिए खाना खोल दिया गया था, जो कि पांच दिन तक लगातार चलता रहा। किले को रंगीन लाइटों से सजाया गया था कि उसकी खूबसूरती देखते ही बनती थी। ये पांच दिन बहुत चहल-पहल में बीते। फिर दस दिन बाद देवराज चौहान ने बबूसा से पृथ्वी पर जाने की बात कही तो बबूसा की आंखों से आंसू निकल गए। परंतु देवराज चौहान को तो वापस पृथ्वी पर जाना ही था। दिल पर बोझ जरूर था कि रानी ताशा अपने प्यार को ढूंढ़ते, जन्मों गंवाकर, जान भी गंवा चुकी है। रानी ताशा की मौजूदगी की कमी उसे हर वक्त परेशान-सी करती रही थी।
आखिरकार बबूसा ने कहा कि पोपा (अंतरिक्ष यान) में वो खुद उन्हें छोड़ने पृथ्वी पर जाएगा, परंतु देवराज चौहान ने ये कहकर मना कर दिया कि सदूर को संभालने के लिए उसका यहां रहना जरूरी है। वो नया-नया सदूर का राजा बना है। किलोरा उसे पृथ्वी पर छोड़ आएगा। बबूसा का मन नहीं कर रहा था कि राजा देव सदूर से जाए। वो सदूर का राजा क्या बना, पांवों में जैसे बेड़ियां पड़ गई थीं। वरना वो भी देवराज चौहान के साथ पृथ्वी पर ही चला जाता। बबूसा ने जब अपनी ये इच्छा सामने रखी तो देवराज चौहान ने सदूर की देखभाल करने की बात कहकर, बबूसा को रोक दिया। फिर वो दिन भी आ गया जब देवराज चौहान, नगीना, मोना चौधरी और जगमोहन ने पोपा में बैठकर पृथ्वी के लिए रवाना होना था। बबूसा की हालत बुरी थी। बीती रात वो जरा भी सो नहीं पाया था और जब सब पोपा में सवार हो रहे थे तो फफक पड़ा था बबूसा। पास खड़ी सोमारा के गले लगकर रो पड़ा। राजा देव का इस तरह सदूर से जाना उसे सहन नहीं हो रहा था। वो रोता ही रहा और पोपा ने अंतरिक्ष की उड़ान भरी और देखते ही देखते वो नजरों से ओझल हो गया। पोपा को किलोरा चला रहा था और मंजिल थी पृथ्वी ग्रह।
समाप्त
0 Comments