वसीम राणा के चेहरे पर परेशानी झलक रही थी। इस वक्त वो कार की पिछली सीट पर बैठा था और ड्राइवर कार चला रहा था। शाम के आठ बज चुके थे। इस्लामाबाद की सड़कों पर भीड़ थी। जगमोहन की दो कमीजें और दो पैंटें, मिलिट्री के कपड़े में सिल गई थी। लिफाफा पास ही सीट पर रखा था। उसकी परेशानी की वजह थी पत्नी का फोन आना था। उसने बताया कि मिलिट्री इंटेलीजेंस के दो लोग घर पर बैठे उसका इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने, उसकी पत्नी से थोड़ी-बहुत पूछताछ भी की थी, जैसे कि भुल्ले खां पिछली बार कब आया था तो उसकी पत्नी ने कह दिया था कि वो किसी भुल्ले खान को नहीं जानती। फिर जगमोहन के बारे में पूछा, जो कि हिन्दुस्तान से सीमा पार करके आया था, इस पर उसकी पत्नी ने कह दिया कि जगमोहन उसकी ननद की शादी में आया था और अब वापस जा चुका है। जबकि जगमोहन भीतर ही पहली मंजिल के कमरे में मौजूद था। उसकी पत्नी ने फोन पर ही ये सब बातें उसे बता दी थी।
वसीम राणा उलझन में था कि मिलिट्री इंटेलिजेंस के लोग भुल्ले और जगमोहन के बारे में पूछताछ क्यों कर रहे हैं? इनसे उनका क्या मतलब है?
जरूर कोई बात है।
लाख सोचने पर भी वसीम राणा नहीं समझ सका कि क्या बात हो सकती है।
पौने नौ बजे वो घर पर पहुंचा बंगले के बाहर एक कार खड़ी दिखी। जगमोहन के कपड़ों का लिफाफा कार में ही रहने दिया और घर के भीतर पहुंचा। ड्राइंग रूम में दोनों एजेंट बैठे मिले।
वसीम राणा मुस्कुराकर उनसे मिला।
"हमें बता दिया गया था कि आप रास्ते में हैं। आ रहे हैं तो इंतजार कर लेना ठीक समझा।" एक ने कहा।
"आपसे मिलकर मुझे खुशी हुई।" वसीम राणा बैठता हुआ बोला--- "मैं आपके किस काम आ सकता हूं।"
"भुल्ले खान को तो आप जानते ही होंगे।" दूसरा व्यक्ति बोला।
"कौन भुल्ले खान?"
"जो सीमा पार कराने का काम करता है।"
"जी हां। बहुत अच्छी तरह से जानता हूं।" वसीम राणा मुस्कुराया--- "क्या मैंने कुछ गलत कर दिया?"
"ऐसी बात नहीं। हम भुल्ले खान की तलाश कर रहे हैं, परंतु वो मिल नहीं रहा। सोचा आपको पता हो।"
"मुझे नहीं पता वो कहां है। मैं अभी उसके मोबाइल पर फोन करता...।" वसीम राणा ने कहते हुए फोन निकालना चाहा।
"उसका फोन बंद है।"
"ओह! पर आप लोगों को भुल्ले खान की क्या जरूरत पड़ गई?" वसीम राणा ने पूछा।
"कभी-कभी हम भी उससे काम ले लेते हैं।"
"समझा। आपकी सहायता करके मुझे खुशी होती, परंतु मैं नहीं जानता, वो कहां मिलेगा।"
"जगमोहन कहां है?"
"जगमोहन?"
"आपका दोस्त जो सीमा पार करके आपकी बहन की शादी में आया। साथ में देवराज चौहान भी था---।"
"वो दोनों तो वापस चले गए।"
"वापस कहां---हिन्दुस्तान?"
"सही कहा आपने। भुल्ले खान ही उन्हें लाया था, वही उन्हें सीमापार छोड़ आया था।"
"वो फिर नहीं लौटे?"
"आपका मतलब दोबारा?"
"जी हां---।"
"वो दोबारा क्यों लौटेंगे।" वसीम राणा मुस्कुरा पड़ा--- "यहां उन्हें कोई काम होता तो वो जाते ही क्यों?"
"मतलब कि उन दोनों के जाने के बाद, उनसे आपकी मुलाकात नहीं हुई?"
"वो तो हिन्दुस्तान में हैं। मुलाकात कैसे होगी। परंतु ये पूछताछ आप क्यों कर रहे हैं?"
"हमारे पास खबर है कि जगमोहन इस्लामाबाद में है। शायद आपके पास हो।"
"नहीं। वो जा चुका है। अगर वो किसी काम से लौट आया है तो उसकी मुझे खबर नहीं है।" वसीम राणा ने कहा।
"हमारे चीफ ने कहा है कि अगर जगमोहन आपके पास है और आप इस बात को छिपा रहे हैं तो बात खुल जाने पर आपका बिजनेस चौपट हो सकता है।" उसने धमकी भरे, किंतु शांत स्वर में कहा।
"मुझे जगमोहन के बारे में कुछ नहीं पता।"
"हमारे पास ये भी खबर है कि भुल्ले खान दो दिन पहले जगमोहन से मिला था।"
वसीम राणा ने कठिनता से अपने पर काबू बनाए रखा। ये खतरनाक बात कह रहा था। मिलिट्री इंटेलिजेंस को कैसे पता चल गया कि भुल्ले खान, जगमोहन से मिला था। क्या भुल्ले सच में मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट है?
मैं भुल्ले खान और जगमोहन के बारे में कुछ नहीं जानता। भुल्ले से आखिरी बार मैं तब मिला था, जब वो जगमोहन और देवराज चौहान को सीमा पार छोड़ने गया था।" वसीम राणा ने शांत स्वर में कहा।
वो दोनों एजेंट चले गए।
लेकिन वसीम राणा बेहद व्याकुल हो उठा था कि मामला कुछ गड़बड़ है।
वो जगमोहन के पास, ऊपर कमरे में पहुंचा।
"क्या हुआ?" जगमोहन उसका चेहरा देखकर कह उठा।
"कुछ गड़बड़ है। हम दोनों के लिए ही खतरा बढ़ने लगा है।" वसीम राणा बैठता कह उठा।
"बात क्या है?"
वसीम राणा ने सारी बात बताई।
सुनकर जगमोहन भी व्याकुल-सा हुआ और बोला।
"मिलिट्री इंटेलिजेंस को भुल्ले खान में कोई खास दिलचस्पी है। महज इसके लिए वो भुल्ले को ढूंढते यहां तक नहीं आ सकते कि उन्होंने कुछ को सीमा पार करानी है, इस काम के लिए और भी बहुत-से लोग होते हैं। वो मुझे भी पूछ रहे थे और उन्हें मालूम था कि परसों भुल्ले मुझसे मिला था।" जगमोहन के होंठ भिंच गए--- "राणा, भुल्ले खान मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट है। भुल्ले ने ही परसों उन्हें बताया होगा कि वो जगमोहन से मिलने जा रहा है।"
वसीम राणा, जगमोहन को देख रहा था। वो परेशान था।
"तुमने भुल्ले खान को छोड़ा तो नहीं?" जगमोहन ने पूछा।
"नहीं, अभी वो कैद में ही है।"
"अब उसे छोड़ना मत।" जगमोहन के दांत भिंच गए--- "उसे खत्म करना ही ठीक रहेगा। हमारे और भुल्ले के अलावा कोई नहीं जानता कि वो, मेरे से परसों मिला था। अब दो दिन से भुल्ले गायब है तो मिलिट्री इंटेलिजेंस के एजेंट उसे ढूंढने पर लग गए। ये बात शीशे की तरह साफ हो गई।"
"तुम्हारा मतलब कि देवराज चौहान को भी भुल्ले ने फंसाया?" वसीम राणा का स्वर कठोर हो गया।
"हां। भुल्ले सीमा पार कराने वाला बनकर हर तरफ नजर रखता था और ये इत्तेफाक ही था कि तुमने हमें लाने और ले जाने का काम उसी के हवाले कर दिया, इस तरह हम उनकी नजरों में आ गए। जब मेजर कमलजीत सिंह ने हमें पकड़ा और देवराज चौहान को, गोरिल्ला को छुड़ाने वापस पाकिस्तान भेजा तो भुल्ले देवराज चौहान के साथ ही था और भुल्ले के लिए बहुत आसान था देवराज चौहान को फंसा देना।"
"और अब तुम्हें फंसाने की फिराक में था हरामजादा। वो कार्ड हाथ ना लगता तो तुम भी फंस गए थे।"
जगमोहन के चेहरे पर सख्ती नाच रही थी।
"उन्हें शक था कि तुम मेरे पास हो सकते हो।" वसीम राणा बोला।
"तुम भी उनके शक के घेरे में आ गए हो। तुम्हें सतर्क रहना होगा।" जगमोहन ने कहा।
"मेरी परवाह मत करो। अपने बारे में सोचो कि अब कल तुम कैसे काम करोगे मिलिट्री हैडक्वार्टर जाकर।"
"सब प्लान तो हमने बना रखा है।"
"लेकिन अब खतरा बढ़ गया है। मिलिट्री इंटेलिजेंस मुझे भी शक से देखने लगी है। ऐसे में कल मैं नाप लेने के लिए तुम्हें हैडक्वार्टर में सैट हूं तो तुम पहचाने जा सकते हो।"
"भुल्ले खान के अलावा मुझे कोई और नहीं पहचानता।" जगमोहन ने कहा।
"और भुल्ले खान मेरी कैद में है। मौका मिलते ही मैं उसे खत्म कर दूंगा। परंतु कल का कुछ प्रोग्राम बदलना होगा। मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगा। मेरा जो मास्टर वहां है, उसे फोन कर दूंगा। वही तुम्हें हैडक्वार्टर के बाहर गेट पर मिल जाएगा। वही भीतर तुम्हारा परिचय कराएगा। वही तुम्हें कार्ड बनवा देगा।"
"ऐसा करना ही ठीक रहेगा।"
"तुम्हें वहां सावधान रहना होगा और पहचाने जाने की तलवार हर वक्त तुम पर लटकी रहेगी।" वसीम राणा ने कहा।
"अब वहां मुझे और ज्यादा खतरा उठाना होगा।"
"कुछ दिन मैं मिलिट्री हैडक्वार्टर नहीं जाऊंगा। ताकि तुमसे मेरा सामना ना हो। तुम अपना काम करो वहां।"
"मिलिट्री इंटेलिजेंस का ऑफिस वहीं है?" जगमोहन ने पूछा।
"नहीं। इंटेलिजेंस का ऑफिस दूसरी जगह है वहां से कुछ किलोमीटर दूर। परंतु वे अक्सर हैडक्वार्टर आते रहते हैं। तुम्हारे कपड़े मैं ले आया हूं। मेरे बंगले में तुम्हारा रहना ठीक नहीं। ये भी संभव है कि कहीं वो बंगले पर नजर ना रख रहे हों। तुम कार की पीछे वाली सीट पर लेट जाओ। कार मैं खुद ड्राइव करके फैक्ट्री ले जाऊंगा और तुम्हें वहां छोड़ दूंगा। वहां काफी लोग मौजूद रहते हैं। तुम पर इंटेलिजेंस के लोगों की नजर पड़ना आसान नहीं होगा। मैं चाहता हूं कल से तुम, देवराज चौहान को छुड़ाने के लिए अपने काम पर लग जाओ।"
"तुम्हारी फैक्ट्री मैं खुद ही पहुंच जाऊंगा। तुम यहीं पर रहो।"
"मुझे भी वहां जाना है।" वसीम राणा के दांत भिंच गए--- "भुल्ले खान से मिलना है।"
■■■
जगमोहन और वसीम राणा फैक्ट्री पहुंचे। नाइट शिफ्ट शुरू हो चुकी थी। फैक्ट्री में दिन की तरह हलचल थी। दोनों वहां पहुंचे जहां भुल्ले खान कैद था। बाहर गार्ड बैठा था स्टूल पर। उन्होंने दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश कर गए। मध्यम-सा बल्ब जल रहा था। भुल्ले खान फर्श पर लेटा था कि उठ बैठा।
"कैसे हो भुल्ले?" जगमोहन कड़वे स्वर में कह उठा।
"बुरे हाल में हूं। मैं इसी तरह बंद रहा तो मर जाऊंगा।" भुल्ले खान बोला।
"नसीम चौधरी, मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट नंबर 540 इतना भी कमजोर नहीं कि, इतने से मर जाए।"
भुल्ले खान की निगाह जगमोहन के चेहरे पर जा टिकी, जो कि मध्यम सा नजर आ रहा था।
"मैं भुल्ले खान हूं।" उसके होंठों से निकला--- "तुम---।"
वसीम राणा ने उसका आई कार्ड जेब से निकालकर उस पर फेंका और कठोर स्वर में बोला।
"तुम ये ही हो, कार्ड वाले। एजेंट नंबर 540, हमने पता कर लिया है।"
"पता कर लिया है? क्या पता किया, गलत पता किया, मैं भुल्ले खान...।"
"जुबान बंद रखो।" वसीम राणा गुर्रा उठा--- "तुम्हारे साथी, कुछ देर पहले तुम्हें ढूंढते मेरे पास आए थे। वो मिलिट्री इंटेलिजेंस के लोग थे। उन्होंने सोचा कि तुम मेरे पास हो सकते हो। वो ये भी जानते थे कि परसों तुम जगमोहन से मिले थे। तुमने जगमोहन के पास आने से पहले, उन्हें ये बात बता दी होगी, तभी तो वो जगमोहन के बारे में जानते हैं कि ये इस्लामाबाद में है। परंतु तुमने एक भूल कर दी, ये नहीं बताया उन्हें कि जगमोहन मेरे पास है। वो शक अवश्य कर रहे हैं कि जगमोहन मेरे पास हो सकता है। तुम्हारी पोल खुल चुकी है नसीम चौधरी।"
"मैं नहीं जानता मिलिट्री इंटेलिजेंस के लोग मुझे क्यों ढूंढ रहे...।"
"नसीम चौधरी।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा--- "हम अदालत वाले नहीं हैं, जो सबूत पर सबूत मांगते हैं। हम हालातों को समझना जानते हैं। हम जान चुके हैं कि तुम मिलिट्री इंटेलिजेंस के एजेंट 540 हो।" जगमोहन ने झूठ कहा--- "वसीम राणा ने तुम्हारे बारे में जानकारी प्राप्त की है। तुम ही एजेंट नंबर 540 हो। राणा तुम्हारी फाइल देखकर आया है मिलिट्री के पास। ये तो तुम बाखूबी जानते हो कि राणा की पहुंच मिलिट्री में भीतर तक है।"
भुल्ले खान गंभीर निगाहों से दोनों को देखने लगा।
"भुल्ले के रूप में तुमने हमें खूब धोखा दिया। देवराज चौहान को फंसा दिया। अगर मेरे हाथ तुम्हारा कार्ड नहीं लगता तो तुम मुझे भी फंसा देते। परंतु तुम पकड़े गए।"
भुल्ले खान खामोश रहा।
"अब तुम कहीं मिल नहीं रहे। तुम्हारी खबर नहीं आ रही तो मिलिट्री इंटेलिजेंस तुम्हें तलाश करने पर लग गई। स्पष्ट है कि तुम अपने विभाग के लिए महत्व रखते हो। अब तुम्हारा असली चेहरा सामने आ चुका है।" जगमोहन गुर्राया।
"तो तुम लोगों ने जान लिया कि मैं मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट हूं।" भुल्ले खान गंभीर सा कह उठा।
तभी जगमोहन, भुल्ले खान पर झपटा और उसके चेहरे पर जोरदार घूंसा मारा।
भुल्ले खान कराह के साथ फर्श पर जा लुढ़का।
फिर तुरंत ही उठ बैठा।
"बहुत बुरा किया तुमने देवराज चौहान को फंसाकर।" जगमोहन दांत भींचकर गुर्राया।
"चिंता मत करो। देवराज चौहान को वहां कोई तकलीफ नहीं हो रही होगी।" भुल्ले ने कहा।
"क्या मतलब?"
"देवराज चौहान को पाकिस्तान की मिलिट्री इंटेलिजेंस अपना साथी बनाने जा रही है कि वो हिन्दुस्तान में हमारे लिए काम करे। अब तक तो चीफ ने उससे बात भी कर ली होगी। उसे प्यार से रखा जा रहा होगा। यही प्लानिंग थी हमारी।" भुल्ले बोला।
"तुमने कैसे सोच लिया कि देवराज चौहान तुम लोगों के लिए काम करेगा?"
"उसे नोट मिलेंगे। पाकिस्तान में भरपूर जिंदगी मिलेगी। उसे मिलिट्री का बड़ा ऑफिसर भी बनाया जा सकता है। यही सब तुम्हारे लिए भी सोचा जा रहा है।" भुल्ले ने गंभीर स्वर में कहा--- "देवराज चौहान को पकड़ने के हमारे पास मौके ही मौके थे परंतु मैं उसके साथ लगा रहा, उसके कहने पर हर काम करता रहा, क्योंकि मैं देखना चाहता था कि देवराज चौहान मिलिट्री हैडक्वार्टर में घुसने और गोरिल्ला को आजाद कराने के लिए कैसी प्लानिंग करता है। उसने बढ़िया प्लानिंग की। वो सच में शानदार ढंग से काम करता है और हौसले वाला इंसान है। हमें ऐसे लोगों की सख्त जरूरत रहती है और फिर तुम दोनों तो हिन्दुस्तान के हो, वहां की हर जगह से वाकिफ हो, ऐसे में बेहतर ढंग से हमारे काम आ सकते हो। हमारे आतंकवादियों को बता सकते हो कि हिन्दुस्तान में कहां और कैसी जगहों पर ब्लास्ट करने हैं। कहां लोगों को बंदी बनाकर सरकार को नचाना है। अब मैं तुम्हें देखना चाहता था कि देवराज चौहान को मिलिट्री हैडक्वार्टर से निकालने के लिए, किस तरह का रास्ता अपनाते हो, क्या प्लान करते हो। देवराज चौहान के साथी हो तो जरूर उसकी तरह काबिल भी होगे। उसके बाद तुम्हें भी मिलिट्री हैडक्वार्टर में फंसा देना था, देवराज चौहान की तरह। परंतु मेरा इरादा जरा भी बुरा नहीं है तुम दोनों के लिए। तुम दोनों को अपने लोगों में शामिल करना है, बस---।"
"तुम तो हमें सीमा पार वापस छोड़ने गए थे।" जगमोहन ने कहा।
"तब मैं तुम लोगों को ठीक तरह से नहीं जानता था। परंतु जब मेजर कमलजीत सिंह ने देवराज चौहान को, गोरिल्ला को मिलिट्री हैडक्वार्टर से निकालने का काम सौंपा तो तब मेरा माथा ठनका। मेजर यूं ही नहीं करने को देगा देवराज चौहान को इतना बड़ा काम। तब मेरे मन में आया कि देवराज चौहान जरूर खास दम रखता होगा, अगर ऐसा है तो क्यों ना, इसे अपने लोगों में शामिल कर लें। यही सोचकर देवराज चौहान का दम देखने के लिए मैं उसके साथ रहा और अंत में इस नतीजे पर पहुंचा कि देवराज चौहान हमारे बहुत काम आ सकता है।"
"आतंकवादी हमले करने के काम?" जगमोहन कड़वे स्वर में बोला।
"हां। आतंकवादियों को हिन्दुस्तान में रास्ता दिखाने और कहां हमला करना है, ये काम देवराज चौहान बहुत बढ़िया कर सकता है। पाकिस्तान से हिन्दुस्तान पहुंचने वाले आतंकवादियों को सही रास्ते पर लगाना बहुत बड़ा काम है। वरना काफी तो यूं ही पुलिस या सुरक्षा बलों से मुठभेड़ करके जान गंवा बैठते हैं।"
"खूब। तो तुमने सोच लिया कि देवराज चौहान ये काम करेगा।" जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा।
"क्यों नहीं करेगा। उसे बहुत तगड़े नोट दिए जाएंगे। मिलिट्री इंटेलिजेंस में बड़ा ओहदा दिया जाएगा। पाकिस्तान में महल जैसा बंगला दिया जाएगा। तुम ही सोचो कि तुम्हें ये सब मिले तो क्या इंकार कर पाओगे।"
"मेरा इंकार तो तुम पहले ही सुन लो।" जगमोहन ने गुस्से से कहा।
"ये तो तुम अब कह रहे हो। जब सब कुछ तुम्हारे सामने रखा जाएगा और तुम शांत होकर हमारी बात पर विचार करोगे तो, कभी भी मैं इंकार नहीं कर सकोगे।" भुल्ले खान मुस्कुराकर बोला।
"मिलिट्री इंटेलिजेंस का आतंकवादियों से क्या रिश्ता है।"
"कुछ खास नहीं। पाकिस्तान के संगठन आतंकवादी तैयार करते हैं इसके लिए उन्हें अपने आकाओं से पैसा मिलता है और वो कहते हैं हिन्दुस्तान में तबाही मचाओ। यदा-कदा हम भी आतंकवादियों की सहायता करते हैं, क्योंकि वे हिन्दुस्तान को कमजोर करने सीमा पार जाते हैं। ऐसे युवकों को कभी हम भी ट्रेनिंग दे देते हैं। मुझे ही देखो, मैं मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट हूं और मेरे हवाले ये काम है कि मैं आम लोगों में मिलकर रहूं। आतंकी संगठनों के टच में रहूं और ज्यादा से ज्यादा आतंकवादियों को सीमा पार कराऊं। हमें भी ऊपर से आर्डर मिलते हैं। सरकार की पॉलिसी है कि हिन्दुस्तान में धमाके होते रहने चाहिए।"
"बहुत घटिया सोच है पाकिस्तान सरकार की।"
"सब चलता है। ये दो देशों का मामला है। हमें क्या हमारा काम तो चल रहा है। आतंकवादियों को सीमा पार कराने के चक्कर में मुझे ऊपर से मोटी कमाई हो जाती है। सरकार से अलग तनख्वाह मिलती है। बहुत जल्दी मेरी तरक्की भी हो जाएगी। लेकिन मैंने जो भी काम किया अपने देश के लिए किया। नौकरी की और...।"
"सुना तुमने।" जगमोहन ने वसीम राणा को देखकर कड़वे स्वर में कहा।
"ये सच कह रहा है। मैं जानता हूं कि ये सब मिलिट्री की शह पर होता है।" वसीम राणा बोला।
"अब इसका क्या करना है?"
"जो तुम कहो।"
जगमोहन ने खा जाने वाली नजरों से भुल्ले खान को देखा।
"देवराज चौहान और तुम भी, हमारे आदमी बनोगे और सारी जिंदगी मजे करोगे। इतना पैसा मिलेगा कि...।"
"तो पाकिस्तान देवराज चौहान और जगमोहन को पैसा देगा?" जगमोहन कहर से मुस्कुराया।
"हां।"
"और जो पैसा हिन्दुस्तान में बिखरा पड़ा है उसका क्या होगा। वो भी तो हमने समेटना है।"
"कोई जरूरत नहीं। अब तुम लोग ऐश के साथ जिंदगी...।"
"उल्लू के पट्ठे मेरी बात सुन।" जगमोहन खंजर भरी निगाहों से बोला--- "तेरे को पता है, हमारे पास कितना पैसा है।"
भुल्ले खान जगमोहन को देखने लगा।
"हमारे पास इतनी दौलत है कि तेरे इस्लामाबाद जैसा शहर बसा कर खड़ा कर दें।"
भुल्ले खान मुस्कुरा कर बोला।
"1165 किलोमीटर का एरिया है इस्लामाबाद का। जरा सोचकर बोलो।"
"ठीक है बेटे, पर पांच किलोमीटर जितना शहर तो बता ही सकते हैं।"
"मजाक मत करो। तुम...।"
"अब तेरे को मैं अपनी दौलत दिखाने से रहा। अब तो संभालना भी कठिन हो रहा है। ये फालतू की बातें छोड़ और ये बता कि देवराज चौहान को मिलिट्री हैडक्वार्टर से कैसे निकाला जा सकता है?" जगमोहन ने पूछा।
"वो फंसा ही कहां है जो उसे निकालना पड़े। हम तो तुम्हें अपना साथी---।"
"तेरी ऑफर मंजूर नहीं हमें।"
"क्या? मंजूर नहीं?"
"नहीं।"
"तुम लोगों को इतना पैसा मिलेगा कि---।"
"पाकिस्तान का एक शहर भी हमारे नाम कर दो तो, तब भी हम ये काम ना करें।" जगमोहन कठोर स्वर में बोला।
"तुम पागल तो नहीं हो।" भुल्ले अजीब से स्वर में बोला।
"तू अपने देश के लिए काम करता है ना?"
"हां।"
"इसी तरह हमारा देश भी है। हिन्दुस्तान नाम है उसका। वहां की सरकार हमें तनख्वाह नहीं देती और हमें चाहिए भी नहीं। वहां सिर्फ डकैतियां करते हैं, परंतु हिन्दुस्तान को बर्बाद करने वाला कभी हाथ लग जाए तो उसे छोड़ते नहीं। अली के बारे में तो तुमने सुन ही रखा होगा कि पाकिस्तान में आकर उसे मारा था क्योंकि उसने दिल्ली पर हमला कराया था। अपने आतंकवादी भेजे थे। उसमें हमारे खास लोग भी फंस गए थे और इस तरह अली, हमारे गुस्से के राडार पर आ गया। ऐसे और भी बहुत मामले हैं कि जानकारी मिलने पर हमें आतंकवादियों को नहीं छोड़ा।" जगमोहन सुलगते स्वर में कह रहा था--- "कुछ वक्त पहले अली का भाई हामिद अली अपने भाई की मौत का बदला हमसे लेने हिन्दुस्तान पहुंचा था। बहुत कुछ हुआ और फिर वो भागकर पाकिस्तान पहुंच गया। समझे, ऐसे लोगों का हम क्या हाल करते हैं और तुम कह रहे हो कि हम भी ऐसा बन जाएं--- हम---।"
"हिन्दुस्तान की पुलिस तुम दोनों के पीछे है, तुम लोग चैन से नहीं रह सकते। जबकि पाकिस्तान में---।"
"ये पुलिस का प्यार है कि वो हमारी ताक में रहती है। तू क्यों चिंता करता है ये हमारा और उनका मामला है। इस वक्त तो तू मुझे ये बता कि देवराज चौहान को वहां से कैसे निकाला जाए?"
"तुम सच में पागल हो। इतनी बढ़िया ऑफर को लात मार रहे हो।"
"तेरे को हमारे बारे में ये भी पता कर लेना चाहिए था कि हम कितने बड़े पागल हैं।"
"अगर तुम लोगों ने हमारी बात नहीं मानी तो देवराज चौहान नहीं बचेगा। उसे मार दिया जाएगा।"
"तू भी मरेगा भुल्ले।" जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा।
भुल्ले होंठ भींचकर रह गया।
"बता, वहां से देवराज चौहान को कैसे निकालें? तू हमारी क्या सहायता करेगा?" जगमोहन कठोर स्वर में बोला।
"मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता।" भुल्ले ने होंठ खोले।
"सोच लो।"
"सच में मैं कुछ नहीं कर सकता। देवराज चौहान इस वक्त जहां पर है, वहां से उसे निकाला नहीं जा सकता।"
"तेरा जवाब तुझे मौत के मुंह में ले जा सकता है।"
"मैं सच में कुछ नहीं कर सकता।" भुल्ले ने गंभीर स्वर में कहा--- "मेरी सलाह मानो तो फालतू कुछ भी ना सोचो। मेरे साथ चलो और हमारे लिए काम करना शुरू कर दो। हो सकता है देवराज चौहान अब तक ये बात मान भी गया हो।"
"वो कभी नहीं मानेगा।" जगमोहन का स्वर सुलग उठा।
"तुम्हें क्या पता कि---।"
"जितना मैं उसे जानता हूं, दुनिया में उतना कोई भी इंसान उसे नहीं जानता। एक बात और सुन ले कि अगर उसने हां कह दी तो तुम लोगों की मुसीबतें बढ़ जाएगी। उसकी हां में तुम लोगों की मौत भरी होगी।" जगमोहन शब्दों को चबाता कह उठा--- "तुम लोग अभी हमारे बारे में कुछ नहीं जानते।"
"तुम पूरी तरह पागल हो।"
"राणा।" जगमोहन दरिंदगी से बोला--- "ये कहता है कि ये हमारी कोई सहायता नहीं कर सकता।"
"फिर तो ये हमारे लिए बेकार है।" वसीम राणा ने चुभते स्वर में कहा।
"तू ठीक कहता है। कुछ दिन इसे यहीं कैद रख, शायद ये हमारे कुछ काम आ जाए। तब भी ये हमारे काम नहीं आ सका तो इसे शूट कर देना, कहीं ले जाकर। जिंदा ना बचे ये हरामजादा।"
वसीम राणा ने अपना सख्त चेहरा सहमति से हिला दिया।
■■■
अगले दिन सुबह दस बजे जगमोहन को शौकत मियां, मिलिट्री हैडक्वार्टर के गेट के बाहर मिला। शौकत मियां को वसीम राणा ने फोन करके बता दिया था कि वो बशीर नाम के युवक को भेज रहा है, जोकि उसकी जगह काम करेगा। वो फैक्ट्री में आकर काम करें, परंतु बशीर का कार्ड बनवा दे और उसे वहां के कुछ लोगों से मिला दे।
जगमोहन ही बशीर बनकर गया था। नियम के मुताबिक उसने मिलिट्री के कपड़ों की सादी कमीज-पैंट पहनी हुई थी। शौकत मियां ने उसका काम पूरा किया। कार्ड बनवा दिया। चंद खास लोगों से जगमोहन को बशीर कहकर मुलाकात करवा दी। शौकत मियां तो उसे बशीर के नाम से ही जानता था। उसे क्या मालूम कि क्या हो रहा है और बीच की बात क्या है। शौकत मियां ने उसे अपना मोबाइल दे दिया जो कि राणा ने ही दे रखा था। उसी नंबर पर फोन आता था कि फलां मंजिल पर, फलां जगह आकर नाप ले लो।
शौकत मियां तीन बजे तक जगमोहन को सैट करके चला गया। अब जगमोहन की कमीज पर बशीर के नाम से कार्ड लगा था और उस पर उसका काम लिखा था।
जगमोहन को जो कमरा मिला ग्राउंड फ्लोर पर, वो नाम का ही कमरा था। स्टोर से बड़ी जगह नहीं थी। लकड़ी का एक टेबल और एक ही कुर्सी मौजूद थी। दीवार पर पंखा लगा था, हवा के लिए। कुल मिलाकर वो छः फीट चौड़ी और सात फीट लंबी जगह थी। लेकिन जगमोहन यहां अपनी दुनिया बसाने नहीं आया था। वो तो देवराज चौहान को निकालने आया था जो कि चौथी मंजिल पर उन्तीस नंबर कमरे में बंद था। वो जानता था कि खतरे में कदम रख चुका है। उसे जो भी करना होगा, तेजी से करना होगा। यहां पर ज्यादा वक्त बिताना भी खतरे से खाली नहीं। अगर किसी के द्वारा पहचाना गया तो खेल खत्म हो जाएगा।
चौथी मंजिल को चैक करना था। वहां जाना था। परंतु बिना वजह वहां पहुंच गया और किसी ने पूछ लिया कि वहां क्या कर रहा है तो उसके लिए मुसीबत बढ़ जाएगी। जगमोहन ने आज का दिन, हैडक्वार्टर के रास्तों की पहचान करना बेहतर समझा। उसे जो कमरा दिया गया था, वो प्रवेश द्वार से बाईं तरफ जाती चार फीट की गैलरी में था। आसपास और कमरे भी थे जो कि बड़े थे, परंतु उनमें सामान रखने का काम होता था। एक कमरा अवश्य सिक्योरिटी गार्ड्स के लिए था कि वे वहां आकर आराम कर सकते थे। उसके कमरे के बाहर से सिक्योरिटी गार्डों का बराबर आना-जाना हो रहा था जो कि अच्छी बात भी थी कि इसी बहाने गार्ड उसे पहचान लेंगे और कहीं भी आने-जाने पर उसे रोकेंगे नहीं। तभी शौकत मियां वाला फोन बजा, जो शौकत उसे दे गया था।
"हैलो।" जगमोहन ने बात की।
"पहली मंजिल के तीन नंबर कमरे में पहुंचकर वर्दी का नाप लो।" उधर से कहकर फोन रख दिया गया।
जगमोहन ने फोन जेब में रखा और फीता उठाकर गले में डाला और बाहर निकल गया।
पहली मंजिल पर तीन नंबर कमरे में पहुंचा।
वहां दो जवान और एक कैप्टन मौजूद था। उसके गले में फीता देखकर कैप्टन ने पूछा।
"नए आए हो? शौकत कहां गया?"
"शौकत साहब की जगह मुझे भेजा गया है जनाब।" जगमोहन स्थानीय लहजे में बोला--- "आज ही आया हूं।"
"ठीक है। इन दोनों जवानों की वर्दी का नाप लो। ये मोस्ट अर्जेंट है। शाम तक इनकी दो-दो वर्दियां तैयार हो जाएं।"
"जी जनाब।"
जगमोहन ने उन दोनों जवानों का नाप लिया। जेब से छोटी डायरी निकालकर लिखा और वहां से वापस अपने कमरे में पहुंचा और फोन पर ही फैक्ट्री के मास्टर को जवानों की वर्दी का नाप लिखवा दिया। इसके आधे घंटे के बाद उसे फोन आया कि तीसरी मंजिल के पन्द्रह नंबर कमरे में पहुंचकर नाप ले तो वो तीसरी मंजिल की तरफ बढ़ गया।
मेजर बख्तावर अली चौथी मंजिल पर, एक अन्य मेजर के साथ कमरे में बातचीत में व्यस्त था कि उसका मोबाइल बजने लगा। बख्तावर अली ने बात की।
"जनाब।" उधर से रहमान अहमद का स्वर कानों में पड़ा--- "फुर्सत है थोड़ी सी?"
"जी हुजूर। हुक्म दीजिए।" बख्तावर अली ने तुरंत अदब से कहा।
"कल मेरे दो एजेंट पूछताछ के लिए वसीम राणा के पास गए थे, परंतु उसने इस बात से साफ इंकार कर दिया कि जगमोहन उसके पास है या भुल्ले खान की वो कोई खबर रखता है।"
"जी---।"
"मुझे खबर मिली है कि आज उसने हैडक्वार्टर में नए मास्टर को भेज दिया है। बशीर नाम है उसका। उसका कार्ड बन गया है और वो ड्यूटी पर है। मैं सोचता हूं कि वो कहीं जगमोहन ना हो, देवराज चौहान का साथी।"
"समझ गया जनाब।"
"अब ये बात आप मालूम करें कि ये वसीम राणा की कोई चाल तो नहीं। क्या वो वास्तव में बशीर है।"
"क्या कोई जगमोहन को पहचानता है?" मेजर बख्तावर अली ने पूछा।
"जीतसिंह उसे पहचानता है, परंतु कल शाम किसी काम से वो बाहर गया है। एक-दो दिन में लौटेगा।"
"ठीक है, मैं अपने तौर पर बशीर को चैक करता हूं।"
"मुझे पूरा विश्वास कि जगमोहन के पास दो जगह ही है जाने को, मेजर कमलजीत सिंह के, यहां के एजेंट या वसीम राणा के पास। वो एजेंटों के पास नहीं गया, ये तो पक्की खबर है तो वसीम राणा के ही पास गया होगा।"
"मैं जगमोहन को चैक करके आपको रिपोर्ट देता हूं।"
मेजर बख्तावर अली वहां से निकलकर लिफ्ट द्वारा ग्राउंड फ्लोर पर बने कंट्रोल रूम में पहुंचा। ये तीन कमरों जितना बड़ा हॉल था। दीवारों पर हर तरफ छोटी-छोटी टी•वी• स्क्रीन के सामने कुर्सी पर एक आदमी बैठा था। मेजर के वहां पहुंचते ही कंट्रोल रूम का ऑफिस पहुंचकर सैल्यूट मारता बोला।
"हुक्म सर।"
"नाप लेने वाला नया मास्टर आया है आज?" मेजर बख्तावर अली कह उठा।
"यस सर।"
"मैं उसे देखना चाहता हूं। क्यों वो किसी स्क्रीन पर नजर आ रहा है?"
ऑफिसर स्क्रीनों के सामने बैठे दो-तीन अलग-अलग लोगों के पास गया। बातें करने लगा।
मेजर बख्तावर अली के चेहरे पर सोचों के भाव नजर आ रहे थे।
"जनाब।" ऑफिसर पास आकर बोला--- "वो मास्टर अभी तीसरी मंजिल से लौटा है और अपने कमरे में है। उसका कमरा पास ही में है। आप कहे तो मैं उसे यहीं हाजिर कर दूं?"
"नहीं।" मेजर ने सोच भरे स्वर में कहा--- "उसे दस मिनट बाद नाप लेने मेरे ऑफिस में भेजो।"
"जी जनाब।"
मेजर बख्तावर अली वहां से निकलकर दूसरी मंजिल पर अपने ऑफिस में पहुंचा और कुर्सी पर जा बैठा। वो सोच रहा था कि बशीर को कैसे चैक करे? क्या वो देवराज चौहान का साथी जगमोहन है, या पाकिस्तान का नागरिक बशीर ही है। इन्हीं सोचों में डूबा था कि जगमोहन ने दरवाजा खटखटा कर भीतर प्रवेश किया।
मेजर बख्तावर अली ने उसे गहरी निगाहों से देखा।
जगमोहन के गले में फीता लटक रहा था।
"जनाब। मैं नाप लेने आया हूं।" जगमोहन ने मुस्कुराकर कहा।
"तुम्हें पहले कभी नहीं देखा?"
"मैं आज ही यहां ड्यूटी पर आया हूं। पहले राणा साहब की फैक्ट्री में मास्टरी करता था। कल दोपहर में ही उन्होंने कहा कि कल से तुम यहां पर नाप लेने का काम करोगे। नौकर हूं मालिक का हुक्म तो मानना ही पड़ता है।"
"क्या नाम है तुम्हारा?"
"बशीर कहते हैं गुलाम को। नाप...।"
"अपना लाइसेंस दिखाओ।"
"लाइसेंस?" जगमोहन शांत-सामान्य स्वर में बोला--- "किस चीज का लाइसेंस जनाब?"
"स्कूटर-कार चलाने का।"
"माफ कीजिएगा जनाब। ना स्कूटर है, ना कार और ना ही लाइसेंस। कभी-कभी साइकिल चला लेता हूं। गरीब बंदा हूं, पेट भर जाए इतना ही बहुत है। बूढ़े मां-बाप हैं। किसी तरह काम चला रहा हूं।"
मेजर बख्तावर अली उठा और कमरे के बीच पहुंचकर बोला।
"नाप लो।"
उसके बाद जगमोहन ने नाप लिया। जगमोहन नहीं चाहता था कि ये मिलिट्री वाला उसके नाप लेने के अंदाज़ पर शक करे। पहले ही उल्टे सवाल पूछ रहा था। जगमोहन ने एक्सपर्ट मास्टर की तरह नाप लिया।
तीन मिनट में ही उसने नाप लेकर नोट बुक में लिख लिया।
"कहां रहते हो?"
"आगाह खां रोड पर जनाब। पर घर जाना कम ही नसीब होता है। चार-चार दिन तो फैक्ट्री में ही रहता हूं। ओवरटाइम लगाकर काम करना पड़ता है। सप्ताह में एक रात के लिए ही घर जा पाता हूं।" जगमोहन ने मायूसी से कहा।
"जाओ। कल तक मुझे वर्दी तैयार होकर मिल जानी चाहिए।" मेजर बख्तावर अली बोला।
जगमोहन बाहर निकल गया।
बख्तावर अली ने रहमान अहमद को फोन किया और बात हो गई।
"जनाब। मुझे तो उसमें शक वाली कोई बात नहीं दिखी। मैंने नाप लेने के लिए बुलाया था। बातचीत की।"
"ठीक है। एक बार जीतसिंह उसे उसे देखकर तसल्ली कर लेगा। मैंने सोचा वो जगमोहन हो सकता है।"
"कल के बाद अभी तक देवराज चौहान से बात नहीं की गई। कहें तो बात छेड़ूँ?"
"उसे सोचने दो। जितना अकेला रहेगा, उतना ही ठीक से फैसला ले सकेगा। वो जानता है कि हमसे बच कर नहीं जा सकता। अगर हमारी बात ना मानी तो उसे जान गंवानी पड़ेगी।" रहमान अहमद की आवाज कानों में पड़ी।
"परंतु हमारी ऑफर पर उसे इतना सोचने की क्या जरूरत है जनाब।"
"जिस बात का मैं इंतजार कर रहा हूं, उसी बात का वो इंतजार कर रहा है।"
"किस बात का?"
"जगमोहन का। देवराज चौहान सोच रहा होगा कि शायद जगमोहन उसे छुड़ा ले जाए और मैं सोचता हूं कि जगमोहन एक बार हाथ आ जाए तो फिर देवराज चौहान से सीधी बात की जाए।"
"जगमोहन जरूर आएगा यहां जनाब?"
"वो जहां भी है, देवराज चौहान को छुड़ाने हैडक्वार्टर जरूर पहुंचेगा।"
"आपको इतना भरोसा है इस बात का तो जीतसिंह को यहीं रखते। कोई तो होता जगमोहन को पहचानने वाला।"
"जीत सिंह जरूरी काम के लिए लाहौर गया है।"
"भुल्ले खान का कुछ पता चला?"
"अभी नहीं। हम उसे ढूंढ रहे हैं। 540 बहुत होशियार है। अगर थोड़ी-बहुत मुसीबत में फंसा होगा तो बचा आएगा या किसी तरह हमें खबर कर देगा। मुझे विश्वास है कि जगमोहन के हाथ आते ही 540 का भी पता चल जाएगा।"
"आपका मतलब कि उसे जगमोहन ने कैद किया है?"
"इस बात का पक्का यकीन है। वो जगमोहन के पास गया और उसके बाद उसकी कोई खबर नहीं आई। उसका फोन भी बंद हो गया। संभव है किसी वजह से जगमोहन उसकी असलियत भांप गया हो।"
"फिर तो ये भी खतरा है कि 540 को मार दिया हो।" बख्तावर सिंह ने गंभीर स्वर में कहा।
"ऐसी बुरी बातें मत कहो। वो जरूर जिंदा होगा। वो मेरा बेहतरीन एजेंट है।"
"वो जरूर जिंदा होगा।"
"देवराज चौहान की क्या पोजीशन है। उसे वैसे ही रखा गया है जैसे मैंने कहा था?"
"जी जनाब। वो कमरे में अकेला है। बाहर दरवाजे पर हर वक्त दो जवान रहते हैं और कैप्टन अशफाक हर दो-तीन घंटों में उसके पास चक्कर लगा आता है। देवराज चौहान ने अब तक कमरे का दरवाजा खोलने की कोशिश नहीं की।"
"वो जानता है कि यहां से फरार नहीं हो सकता। एक बार कोशिश की तो मुंह की खानी पड़ी। गोरिल्ला उसकी बात पर यकीन करने को तैयार नहीं हुआ कि वो हिन्दुस्तान से उसे छुड़ाने आया है। वो देवराज चौहान को हमारा आदमी समझ रहा था कि ये सब हमारी चाल है।" रहमान अहमद ने उधर से हंसकर कहा।
"परंतु जनाब। गोरिल्ला मुंह नहीं खोल रहा। वो बहुत पक्का है।"
"कोई फर्क नहीं पड़ता। वो हमारी कैद में है और कागज भी इस्लामाबाद में कहीं हैं। एक दिन वो खुद ही मुंह खोलेगा या कुर्सी पर बंधे-बंधे मर जाएगा। हमने अपना ध्यान देवराज चौहान और जगमोहन पर देना है। अगर ये दोनों हमारा साथ देने को तैयार हो गए तो हम हिन्दुस्तान में कहर बरपा देंगे।"
■■■
जगमोहन फैक्ट्री में पहुंचा तो वसीम राणा को अपना इंतजार करते पाया।
"आज का दिन कैसा बीता?" राणा ने पूछा।
"ठीक रहा। कोई समस्या नहीं आई। चौथी मंजिल पर जाने का मौका नहीं मिला। आशा है कि कल-परसों में मौका जरूर मिलेगा और तब मैं शायद देवराज चौहान तक पहुंच जाऊं---।" जगमोहन ने कहा।
"अकेले कैसे काम करोगे ये काम?" वसीम राणा चिंतित दिखा।
"अभी पता नहीं। हालातों के हिसाब से काम करूंगा। भुल्ले का क्या रहा?" जगमोहन ने पूछा।
"वो उसी कोठरी में कैद है।"
"उसे खत्म कर दो। उसका जिंदा रहना हमारे लिए ठीक नहीं।"
"कल शायद भुल्ले का इंतजाम हो जाए। मैंने दो आदमियों को बुलाया है, वो भुल्ले को यहां से ले जाकर खत्म कर देंगे। वो दोनों मेरे भरोसे के हैं।" वसीम राणा ने कहा।
"भरोसे का तो भुल्ले भी था। किसी पर भरोसा मत करो। साथ जाना और भुल्ले की मौत अपनी आंखों से देखना।"
"बढ़िया। मैं साथ जाऊंगा।"
"मैं भुल्ले को देखना चाहता हूं।"
जगमोहन और वसीम राणा भुल्ले के पास कोठरी में पहुंचे।
भुल्ले खान उसी हाल में था।
"आज मैंने सारा दिन मिलिट्री हैडक्वार्टर में बिताया भुल्ले।" जगमोहन मुस्कुराया।
"ये कैसे हो सकता है।" भुल्ले खान के होंठों से निकला।
"हो गया।"
भुल्ले ने वसीम राणा को देखकर कहा।
"तुमने ही इसे मिलिट्री हैडक्वार्टर में सैट किया होगा।"
"अब मेरे बाकी के दिन भी वहीं बीतेंगे और कभी भी मैं देवराज चौहान को लेकर निकल जाऊंगा।"
"देवराज चौहान को ले जाना आसान नहीं, असंभव है।"
"पता चल जाएगा।"
"तुम खामखाह की भागदौड़ कर रहे हो। तुम और देवराज चौहान हमारे साथी बन सकते---।"
"अपने बारे में सोचो।"
"क्या?"
"बुरी खबर है तुम्हारे लिए। कल तुम मरने जा रहे हो। इस मामले का अंजाम तुम नहीं देख सकोगे।"
भुल्ले ने उस मध्यम रोशनी में जगमोहन को देखा फिर राणा को।
"तो मुझे मारने जा रहे हो।"
"तुम्हारा जिंदा रहना, मेरे काम के लिए खतरनाक हो सकता है।" जगमोहन बोला।
"मैं तो यहां कैद हूं। तुम अपना काम करो। बाद में मुझे छोड़ देना।" भुल्ले ने कहा।
"तब तुम वसीम राणा का जीना हराम कर दोगे।"
"नहीं। मैं इसे---।"
"तुम्हारा मर जाना ही ठीक रहेगा।" जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा।
दो पल खामोश होकर भुल्ले बोला।
"हैडक्वार्टर में तुमने अपने को कैसे जमाया?"
"कल तुम मरने जा रहे हो। तुम्हें अब सवालों की जरूरत नहीं रही।" जगमोहन बोला--- "मैं जब तुम्हारी पत्नी से मिला तो उसने कहा कि ये भुल्ले खान का घर है, नसीम चौधरी का नहीं। तुम्हारी पत्नी को कैसे पता चला कि मैं तुम्हारी टोह में हूं।"
"मैंने उसे सब बता रखा है।" भुल्ले ने गंभीर स्वर में कहा--- "मैंने उसे कह रखा है कि नसीम चौधरी को जो भी आकर पूछे तो समझ जाना गड़बड़ है और तुमने मुझे भुल्ले ही कहना है। तभी उसने...।"
"तुम्हारे ऑफिस वाले तो...।"
"वो भी मुझे भुल्ले के नाम से बुलाते हैं। इस बात का उन्हें चीफ ने आर्डर दे रखा है। मैं भुल्ले खान बनकर आतंकी गिरोह से संबंध बनाए हुए था और उन्हें सीमा पार कराता था। किसी को नहीं पता कि मैं मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट हूं।"
"मेरी किस्मत अच्छी थी जो वक्त रहते तुम्हारा राज मेरे सामने खुल गया।" जगमोहन कहर भरे स्वर में बोला।
भुल्ले खान ने वसीम राणा से कहा।
"मेरी जान मत लो। मैं बाद में आजाद होकर तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा।"
"इसमें मेरा फैसला नहीं है। जगमोहन जो कहेगा, मैंने वही करना है। उसने जगमोहन से कहा--- "चलो।"
दोनों कोठरी से बाहर निकल गए और दरवाजा बंद हो गया।
■■■
अगले दिन जगमोहन मिलिट्री हैडक्वार्टर में मास्टर की ड्यूटी पर था। वो चौथी मंजिल से किसी के बुलावे का इंतजार कर रहा था और सोच रहा था कि चार बजे तक बुलावा नहीं आया तो किसी बहाने वो खुद चौथी मंजिल पर जाएगा। पर उसे आशा थी कि नाप लेने के लिए चौथी मंजिल से किसी का बुलावा आ जाएगा।
उस वक्त दोपहर का एक बज रहा था कि पहली मंजिल से नाप के लिए बुलावा आया तो वो पहली मंजिल पर जा पहुंचा। वहां एक कैप्टन की वर्दी का नाप लिया, नोट किया, बाहर आया तो उसका मोबाइल बजा। ये मोबाइल नाप वाला मोबाइल नहीं, दूसरा था। उसने बात की।
"हैलो।"
"जगमोहन।" उधर से वसीम राणा का घबराया स्वर कानों में पड़ा--- "भुल्ले यहां से भाग गया।"
जगमोहन का जिस्म कांपा। पांवों तले से जैसे जमीन खिसकती लगी।
"क्या?" जगमोहन हक्का-बक्का रह गया।
"पता नहीं ये कैसे हुआ। फैक्ट्री के एक कर्मचारी ने गार्ड के बेहोश पड़े होने की खबर दी। मैंने आकर देखा तो कोठरी खुली थी और भुल्ले खां का कुछ पता नहीं था। गार्ड बेहोश पड़ा था। दरवाजा खुला था।"
"सत्यानाश, वो सीधा मिलिट्री हैडक्वार्टर ही पहुंचेगा।" जगमोहन व्याकुल स्वर में कह उठा।
"तुम वहां से निकल आओ।" वसीम राणा का व्याकुल स्वर कानों में पड़ा।
"तुम्हें पता है मैं नहीं निकल सकता। देवराज चौहान को...।"
"इस वक्त तुम अपनी सोचो। तुम खतरे में हो।"
"मैं कब से कह रहा था कि भुल्ले को खत्म कर दो।" जगमोहन के दांत भिंच गए।
"आज उसे खत्म कर दिया जाता, परंतु---।"
"तुम अपनी सोचो वह तुम्हें नहीं छोड़ेगा---।"
"मेरी परवाह मत करो। तुम वहां से निकलो।" राणा का तेज स्वर कानों में पड़ा।
"मैं अभी फैसला नहीं ले पा रहा। बाद में फोन करना।" जगमोहन ने कहा।
"जगमोहन तुम...।"
जगमोहन ने फोन बंद करके जेब में रखा और आगे बढ़ गया।
ये बहुत परेशान करने वाली बात थी कि भुल्ले खान कैद से भाग से निकला है। वो जानता है कि मैं हैडक्वार्टर में हूं। कल उसी ने ही बताया था। भुल्ले यहां पहुंचकर आसानी से उसे तलाश कर लेगा और खेल खत्म। हालात नाजुक थे। जगमोहन सिर से पांव तक बेचैन हो उठा था। परंतु वो उस जगह को छोड़ने को तैयार नहीं था। देवराज चौहान को यहां से निकालना था। वो मुसीबत में है। लेकिन भुल्ले ने यहां पहुंचकर उसे ढूंढ निकाला तो वो भी मुसीबत में पड़ जाएगा। भुल्ले ने कैद से फरार होकर, उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। पता नहीं वहां पर क्या हुआ होगा। कैसे भुल्ले को मौका मिला भागने का। वो मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट था और बाहर मात्र एक साधारण कार्ड था उसकी निगरानी के लिए। भुल्ले ने किसी प्रकार दरवाजा खुलवा लिया होगा। गार्ड पर काबू पाना उसके लिए कठिन नहीं रहा होगा।
जगमोहन ग्राउंड फ्लोर पर अपने ऑफिस में पहुंचा और कुर्सी पर जा बैठा। चेहरे पर चिंता की लकीरें दिख रही थी कि अब क्या होगा? क्या भुल्ले उसे यहां ढूंढ लेगा? जगमोहन के पास इस बात का जवाब नहीं था। वो देवराज चौहान को निकालने का रास्ता सोचने लगा, परंतु शीघ्र ही उसे एहसास हो गया कि ये काम जल्दबाजी में नहीं हो सकता। देवराज चौहान को निकाल ले जाना जल्दबाजी का काम नहीं है। ऐसा किया तो सब कुछ खराब हो जाएगा। परंतु गड़बड़ तो होने जा रही थी। भुल्ले खां यहां पहुंचता ही होगा तो क्या वो यहां से निकल जाए?
जगमोहन का दिल नहीं मान रहा था, यहां से जाने को। दोबारा उसे मौका मिलता है या नहीं, देवराज चौहान को बचाने का। आखिरकार जगमोहन ने अभी देवराज चौहान तक पहुंचने का फैसला किया।
जो करना है अभी करना होगा।
जगमोहन जानता था कि ये जल्दबाजी होगी, परंतु अब उसके पास कोई और रास्ता नहीं था। उसने सोचा भी नहीं था कि हालात इतनी जल्दी बदल जाएंगे। उसे कुछ प्लान करने का भी मौका नहीं मिलेगा।
जगमोहन कुर्सी से उठा और कमरे से बाहर निकलकर लिफ्ट की तरफ बढ़ता चला गया। गले में फीता लटका था। जेब से नोटबुक और पेन लेकर हाथ में पकड़ लिया था। उसका अंदाज ऐसा था जैसे किसी का नाप लेने जा रहा हो।लिफ्ट से वो चौथी मंजिल पर पहुंचा। किसी ने उसे रोका-टोका नहीं। अलग-अलग दिशाओं में चार गैलरियां जा रही थी। राणा उसे बता चुका था कि देवराज चौहान उन्तीस नंबर कमरे में है। ऐसे में उसने वहां के मौजूदा रिसेप्शन से तीस नंबर कमरे के बारे में पूछा तो उसे बता दिया गया कि वो सामने वाली गैलरी में है।
जगमोहन उसी गैलरी में बढ़ गया।
गैलरी के दोनों तरफ कमरे थे। बंद दरवाजों पर नंबर लिखे थे। वो आगे बढ़ता गया और उसकी नजरें एक कमरे के बाहर खड़े दो जवानों पर जा टिकी। उनके कंधों पर गनें थीं। दरवाजों पर लिखे नंबर पढ़ते जगमोहन ने हिसाब लगाया कि वही कमरा उन्तीस नंबर है।
जगमोहन जवानों के पास पहुंचता कह उठा।
"दरवाजा खोलो।"
"क्यों?" एक जवान ने उसे देखा।
"नाप लेना है वर्दी का।"
"किसकी वर्दी का?" जवान ने उसे घूरा।
"जो भी भीतर है।" जगमोहन को लगा वो कुछ गलत कर बैठा है--- "मुझे फोन आया था कि उन्तीस नंबर कमरे में जाकर नाप लूं।"
"कमरा नंबर तुमने सही सुना था?"
"हां।" जगमोहन पूरे विश्वास के साथ बात कर रहा था।
"यहां भीतर कैदी है और कैदी को वर्दी की जरूरत महसूस नहीं होती।" दूसरे ने कहा।
जगमोहन को अपनी कोशिश बेकार जाती लगी।
"देखो।" जगमोहन समझाने वाले स्वर में बोला--- "मुझे फोन पर उन्तीस नंबर कमरे में ही बुलाया गया है।"
"भीतर सिर्फ कैदी है। जाओ यहां से।" कमरा नंबर सुनने में तुम्हें गलती लगी है।
जगमोहन को अब यहां से आगे बढ़ जाना ही ठीक लगा। कंधों को झटका देता वो वापस चल पड़ा। मन ही मन झल्ला रहा था कि कामयाब नहीं हो सका भीतर जाने को।
उधर कंट्रोल रूम से जगमोहन को वॉच किया जा रहा था। वहां से जब जगमोहन को उन्तीस नंबर कमरे के सामने जवानों के पास रुकते देखा और उसके हाव-भाव से लगा कि वो भीतर जाने की चेष्टा में है, तो ये बात उस व्यक्ति ने कंट्रोल ऑफिसर को बताई। ऑफिसर ने तुरंत मेजर बख्तावर अली को फोन किया।
"जनाब। वसीम राणा के मास्टर ने उन्तीस नंबर, चौथी मंजिल में जाने की कोशिश की है। परंतु वहां खड़े दोनों जवानों ने उसे भीतर जाने से रोक दिया। उस कमरे में हिन्दुस्तानी जासूस बंद है।"
"थैंक्यू ऑफिसर।" बख्तावर अली ने कहा और फोन बंद करके कैप्टन अशफाक को फोन किया।
"हुक्म जनाब।" अशफाक की आवाज कानों में पड़ी।
"राणा के आदमी, बशीर नाम के मास्टर के बारे में जानकारी है?" बख्तावर अली ने पूछा।
"जी जनाब।"
"उसे गिरफ्तार कर लो। वो शायद देवराज चौहान का साथी जगमोहन है और उसने अभी देवराज चौहान वाले कमरे में जाने की चेष्टा की है। सावधानी से ये काम करना उसके पास हथियार भी हो सकता है।"
जगमोहन ग्राउंड फ्लोर पर अपने स्टोर जैसे रूम में पहुंचकर कुर्सी पर बैठ गया। उसका दिमाग तेजी से काम कर रहा था। अब कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था देवराज चौहान के पास पहुंचने का। खतरा सिर पर मंडरा रहा था। भुल्ले खान कभी भी हैडक्वार्टर पहुंच सकता था और सबसे पहले उसे ही ढूंढेगा। वसीम राणा के मास्टर को तो वो सबसे पहले देखेगा। ये सारी कोशिश बेकार हो गई थी। अब उसे प्लान बदलना होगा। यहां से निकलकर, देवराज चौहान को छुड़ाने का कोई नया रास्ता तलाश करना होगा। यहां रुके रहने का मतलब था खुद ही फंस जाना।
जगमोहन उठा जाने के लिए। यहां सामान के नाम पर कुछ नहीं था। उसने गले में लटका फीता उतारा। टेबल पर रखा और कमरे से बाहर निकला। परंतु अगले ही पल ठिठक गया।
आठ जवान गनें थामें सतर्क मुद्रा में इधर ही आ रहे थे।
सबसे आगे कैप्टन अशफाक था।
जगमोहन को लगा वो किसी और काम के लिए आगे कहीं जा रहे होंगे। वो रुक गया।
"हिलना मत।" अशफाक के हाथ में रिवाल्वर थी--- "तुम्हें गिरफ्तार किया जा रहा है।"
जगमोहन का जिस्म कांपा। होंठ भिंच गए। जो आशंका थी, वही हुआ।
जगमोहन शांत खड़ा रहा।
अशफाक करीब आ पहुंचा। जवानों ने उसे गैलरी में घेर लिया।
"हथियार है?" अशफाक ने कठोर स्वर में पूछा।
"नहीं।"
कैप्टन अशफाक ने तलाशी ली। कोई हथियार नहीं मिला।
जगमोहन को अभी तक भुल्ले खान नजर नहीं आया तो उसने पूछा।
"किस कसूर में मुझे रफ्तार किया जा रहा है?"
"तुमने चौथी मंजिल पर, उन्तीस नंबर कमरे में जाने की कोशिश की।"
"तो इतनी सी बात पर मुझे गिरफ्तार किया जा रहा...।"
"नाम क्या है तुम्हारा?"
"बशीर।" जगमोहन ने कहा।
"परंतु हमें शक है कि तुम हिन्दुस्तानी हो। देवराज चौहान के साथी जगमोहन हो।" अशफाक ने कठोर स्वर में कहा।
जगमोहन कुछ नहीं कह सका। भुल्ले खान अभी पता नहीं आता कि नहीं आता, लेकिन वो अपने ही गलती से फंस गया। जगमोहन समझ गया था कि उस पर नजर रखी जा रही थी।
"ले चलो इसे।" अशफाक बोला।
वे आगे बढ़ने लगे कि उसी पल ठिठक गए।
जगमोहन एकटक भुल्ले खान को देखता रह गया।
वो गैलरी के किनारे पर खड़ा इधर ही देख रहा था। उसके कपड़े वही थे, उसने कैद में पहने हुए थे। कमीज चिथड़े जैसी हो रही थी और जख्मी शरीर झांक रहा था। उसके चेहरे पर भी अच्छे-खासे ठुकाई के निशान थे।
आ पहुंचा भुल्ले। जगमोहन ने एकाएक गहरी सांस ली।
भुल्ले के चेहरे पर मुस्कान उभरी और वो पास आने लगा।
"भुल्ले।" कैप्टन अशफाक के होंठों से निकला--- "तुम- तुम्हारी ये हालत किसने की?"
"दोस्तों ने---।" पास पहुंचता भुल्ले मुस्कुराकर कह उठा।
जगमोहन की निगाह एकटक भुल्ले खान पर थी।
"परंतु भुल्ले...।"
"नसीम चौधरी कहो। जगमोहन जानता है कि मैं मिलिट्री इंटेलीजेंस का एजेंट नसीम चौधरी, नंबर 540 हूं।"
"सर।" अशफाक ने फौरन सैल्यूट दिया--- "आप दो-तीन दिन से गायब थे और सामने आए तो, वो भी इस हाल में।"
भुल्ले ने मुस्कुराकर जगमोहन से कहा।
"कैसे हो दोस्त?"
जगमोहन चुप रहा।
"मैं दोस्त हूं, दुश्मन नहीं। देखने की नजर बदल लो। तुम गलतफहमी में चल रहे हो।"
"मैं जानता था कि तुम यहां कभी भी पहुंच सकते हो।" जगमोहन ने कहा।
"मैं भी जानता था कि वसीम राणा ने तुम्हें यहां मास्टर के तौर पर टिका दिया होगा। पर चिंता मत करो। मेरे से ना तो तुम्हें कोई दिक्कत होगा, ना राणा को। क्योंकि मेरा मन साफ है। मैं तुम्हारा दोस्त हूं।"
जगमोहन के होंठ भिंच गए।
"ये देवराज चौहान के कमरे में जाने की कोशिश कर रहा था।" अशफाक ने बताया।
"इतनी सी बात।" भुल्ले बोला--- "इस पर तुम इसे गिरफ्तार करने आ गए।"
"जनाब बख्तावर अली साहब का हुक्म था।"
"उनसे कह दो कि अब ये मामला नसीम चौधरी ने संभाल लिया है।" भुल्ले बोला--- "जाओ।"
कैप्टन अशफाक हिचकिचाया।
"ओहदा मेरा तुम्हारे बराबर है। मैं भी कैप्टन हूं। परंतु तुमसे सीनियर हूं।" भुल्ले खान ने कहा--- "इसलिए मेरी बात मानो।"
"ठीक है।" अशफाक ने कहा और जवानों को लेकर चला गया।
भुल्ले खान ने मुस्कुराकर जगमोहन को देखा।
जगमोहन के चेहरे पर गंभीरता थी।
"उस कोठरी से भागना मेरे लिए मामूली काम था। परंतु मैं वहीं कैद रहा। देखना चाहता था कि तुम आखिर काम कैसे करोगे। कैसे देवराज चौहान को आजाद कराओगे। लेकिन कल तुमने बताया कि मुझे मारने की प्लानिंग कर रहे हो तो मैंने वहां से निकल जाना ही ठीक समझा। मैंने तो सोचा था कि मेरी फरारी की खबर पाकर, तुम यहां से गायब हो जाओगे।"
"क्या चाहते हो?" जगमोहन के दांत भिंच गए।
"कुछ नहीं जगमोहन। तनाव में मत आओ। हम दोस्त हैं।" भुल्ले ने जगमोहन के कंधे पर हाथ रखा--- "तुम देवराज चौहान के पास जाना चाहते हो, उससे मिलना चाहते हो, आओ हम, देवराज चौहान के पास चलते हैं।"
जगमोहन उसे देखता रहा।
"धीरे-धीरे तुम्हें मेरी बात का भरोसा हो जाएगा कि हम दोस्त हैं। तुम्हारे सारे शक-वक दूर हो जाएंगे।" कंधे पर हाथ रखेजगमोहन को साथ लिए भुल्ले गैलरी के बाहरी तरफ चल पड़ा--- "वसीम राणा तो बहुत परेशान हो रहा होगा कि मैं भाग निकला। उसे फोन कर देना। बता देना कि सब ठीक है। चिंता की कोई बात नहीं।"
■■■
दरवाजा खुला भुल्ले खान के साथ जगमोहन को भीतर प्रवेश करते देख देवराज चौहान चौंका और नजरें भुल्ले के जख्मी चेहरे पर जा टिकी। जगमोहन को उसने गंभीर पाया। देवराज चौहान कमरे के फर्श पर चादर बिछाये उस पर बैठा, तब सोचों में डूबा सिगरेट के कश ले रहा था कि अब वो उठ खड़ा हुआ।
"तुम यहां कैसे?" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में जगमोहन से पूछा।
"तुम्हें यहां से निकालने आया था।" भुल्ले खान मुस्कुराकर बोला--- "लेकिन फंस गया।
देवराज चौहान ने भुल्ले को गहरी निगाहों से देखा।
"तुमने मुझे बहुत बड़ा धोखा दिया।" देवराज चौहान ने कहा।
"पर मेरा इरादा बुरा नहीं था। मैं तुम्हें पाकिस्तान का दोस्त बनाना चाहता हूं। यहां तुम्हें आराम से रखा है। कोई तकलीफ नहीं होने दी जा रही। ये मेरा ही आइडिया था कि तुम पूरी तरह हमारे दोस्त बनने के काबिल हो।"
"मुझे तुम्हारा धोखा देना पसंद नहीं आया। मैंने तुम पर पूरा भरोसा किया था।" देवराज चौहान के होंठ भिंच गए--- "मैं नहीं जानता था कि तुम मिलिट्री इंटेलीजेंस के एजेंट हो। पता होता तो तुम अब तक जिंदा ना होते।"
"मेरी किसी हरकत का बुरा लगा तो मैं माफी चाहूंगा देवराज चौहान। पर मेरा इरादा बुरा नहीं था।"
"तुम्हारे धोखे ने मुझे फंसा दिया।"
"फंसे कहां हो, तुम तो दोस्तों में हो।" भुल्ले खुलकर मुस्कुराया।
"गोरिल्लाओं ने जब फाइल लेने के लिए मिलिट्री कैम्प पर हमला किया तो वो खबर भी तुम्हारे द्वारा मिलिट्री तक पहुंची थी कि उस रात ऐसा होने वाला है।" देवराज चौहान ने कहा।
"बिल्कुल। जीत सिंह ने मुझे फोन पर खबर दे दी थी कि आज रात ऐसा होगा। मीतसिंह तब अपने गांव में अमृतसर के पास मौजूद था। ऐसे में जीत सिंह ने मुझे खबर दी थी।" भुल्ले खान बोला।
"इसका मतलब मेजर का कोई एजेंट, डबल एजेंट नहीं है।"
"सही कहा।" भुल्ले खान मुस्कुरा रहा था।
"सारी गड़बड़ जीत सिंह और मीत सिंह ही करते रहे। जुड़वा होने, एक जैसे होने का भरपूर फायदा उठाते रहे।"
भुल्ले खान के चेहरे पर मुस्कान छाई रही।
"तुमने मुझे यहां ही फंसाना था तो तुम्हारे पास ढेरों मौके थे मुझे फंसाने के। फिर इतनी देर बाद क्यों...।"
"मैं तुम्हारी कार्यशैली देखना चाहता था। तुम्हारी काबिलियत देखना चाहता था कि तुम कैसे अपने काम को अंजाम देते हो। तुम सच में बहादुर और हिम्मती हो। तेज दिमाग है तुम्हारा। तुम्हें अपना बनाना मेरा ही फैसला था। मैंने ही चीफ को अपनी योजना बताई थी जो कि उन्हें पसंद आई। मैं जान चुका हूं कि तुम और जगमोहन हमेशा साथ रहकर ही काम करते हो। जब तुम यहां आ गए तो मेरे मन में इच्छा थी कि जगमोहन भी तुम्हारे साथ होता तो, बहुत बेहतर होता। इस कारण जब मैंने सरहद पार जीत सिंह से फोन पर संबंध बनाया तो पता चला कि देवराज चौहान के फंसते ही, मेजर ने जगमोहन को आजाद कर दिया है और जगमोहन, देवराज चौहान को छुड़ाने के लिए इस्लामाबाद गया है तो मुझे बहुत खुशी हुई कि मेरा ख्याल पूरा हो गया। परंतु मैं सोच रहा था कि जगमोहन, मेजर के एजेंटों के पास जाएगा या वसीम राणा के पास। अगले ही दिन जगमोहन का फोन आ गया और इसके पास जा पहुंचा मैं।" भुल्ले खान खुश दिख रहा था।
जगमोहन शांत खड़ा था।
देवराज चौहान की नजरें भुल्ले पर थी।
"परंतु जगमोहन के हाथ मेरा मिलिट्री इंटेलिजेंस वाला कार्ड लग गया और आगे बढ़ता मेरा खेल रुक गया। जगमोहन और राणा ने मुझे कैद कर लिया। मैंने इन्हें बहुत विश्वास दिलाने की चेष्टा की कि ये कार्ड नकली है, परन्तु राणा कार्ड को असली मानता रहा। क्योंकि ऐसे कार्ड पहले भी उसकी निगाहों से गुजरे थे। जो भी हो, इस वक्त मेरी जख्मों भरी जो हालत देख रहे हो, वो जगमोहन और राणा ने ही बनाई है। ये लोग आज मुझे मारने वाले थे कि मैं कैद से निकल भागा और सीधा यहां आ गया। जगमोहन से मिला और इसे लेकर, तुम्हारे पास आ गया। ये है सब मामला। परंतु मेरे मन में तुम दोनों के प्रति कोई नाराजगी नहीं है। हो भी नहीं सकती, क्योंकि मैंने तुम दोनों को अपना दोस्त माना है। मैं तो कब से तुम दोनों को अपने कामों में लेना चाहता था। चीफ ने जरूर बात की होगी तुमसे।"
देवराज चौहान चुप सा उसे देखता रहा।
"जो हुआ उसे भूल जाओ। अब पाकिस्तान के साथ मिलकर एक नई जिंदगी की शुरुआत करो। तुम लोगों का हिन्दुस्तान में जो पैसा है, वो धीरे-धीरे पाकिस्तान में ले आना। हिन्दुस्तान में तुम दोनों आजाद, खुले नहीं घूम सकते, जबकि पाकिस्तान तुम दोनों को भरपूर आजादी, पैसा और मौज देगा। तुम लोगों की दुनिया बदल जाएगी। जो भी पाकिस्तान का दोस्त बना, पछताया नहीं, उसने खुद को नसीब वाला माना।"
इसी पल जगमोहन का फोन बज उठा। बात की। दूसरी तरफ राणा था।
"तुम कहां हो?" वसीम राणा का लहजा चिंता से भरा हुआ था।
"हैडक्वार्टर में।" जगमोहन ने गहरी सांस ली।
"मैंने कहा था वहां से निकल जाओ।" राणा के लहजे में गुस्सा भर आया--- "भुल्ले वहां पहुंचता ही होगा।"
"पहुंच चुका है। मेरे पास है।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा--- "बात करो।" फोन भुल्ले की तरफ बढ़ाया--- "राणा है।"
भुल्ले खान ने फोन पर वसीम राणा से बात की।
"चिंता मत करो राणा, जगमोहन मेरे पास ठीक-ठाक है और देवराज चौहान भी सामने है। तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। हम सब दोस्त हैं। देवराज चौहान और जगमोहन पाकिस्तान के दोस्त हैं।"
"तुम---तुम क्या कह रहे हो?" उधर से वसीम राणा का उलझन भरा स्वर कानों में पड़ा।
"तुम शायद सोच रहे हो कि तुमने मुझे कैद में रखा। यातना दी और मारने का भी प्लान कर रहे थे। ऐसे में मैं तुमसे प्यार से क्यों बात कर रहा हूं। सब ठीक है राणा, देवराज चौहान और जगमोहन का दोस्त, पाकिस्तान का दोस्त है और तुमने तो कुछ भी गलत नहीं किया। जब भी इनसे मिलना चाहो, हैडक्वार्टर आ जाना।"
"मैं अभी भी कुछ नहीं समझ पा रहा।" उधर से राणा और भी परेशान हो उठा था।
"लो, जगमोहन तुम्हें समझा देगा।" भुल्ले ने फोन जगमोहन को थमा दिया।
जगमोहन फोन पर वसीम राणा से बात करने लगा।
"तुम जगमोहन से बातें करो, मैं भी जरा नहा-धोकर दूसरे कपड़े पहन लूं।" भुल्ले खान मुस्कुराकर बोला--- "कैद में जगमोहन और वसीम राणा ने तो मेरा बुरा हाल कर दिया था।"
"अगर मैं तुम्हें मिलिट्री इंटेलिजेंस के जासूस के रूप में पकड़ लेता तो, जिंदा नहीं छोड़ता।" देवराज चौहान का स्वर कठोर था।
"इन्होंने ने भी कोई कसर थोड़े ना छोड़ी है।" भुल्ले खां हंसा--- "मुझे ठीक होने में कई दिन लग जाएंगे।"
"तुम्हारी किस्मत बहुत अच्छी चल रही है जो अभी तक तुम बचे हुए हो। इतना लंबा खेल खेलने के बाद किसी का बचते रहना आसान काम नहीं है।" देवराज चौहान ने बेहद शांत स्वर में कहा।
"मैं जल्दी आऊंगा तुम्हारे पास। खाने-पीने का सामान भेजता हूं। मजे करो।" कहने के साथ ही भुल्ले खां दरवाजे की तरफ बढ़ा और दरवाजा खोलते बाहर निकला- दरवाजा बंद किया और वहां खड़े जवानों से धीमे से बोला--- "ये दोनों कैदी हैं और किसी भी हालत में कमरे से बाहर ना निकले। अगर ऐसा कुछ करना चाहें तो प्यार से संभाल लेना। ज्यादा सख्ती नहीं करनी है। ये हमारे काम के हैं।"
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भुल्ले खान दरवाजा धकेलकर बख्तावर अली के ऑफिस में प्रवेश हुआ और सैल्यूट दिया।
बख्तावर अली किसी फाइल में व्यस्त था। नजरें उठाने पर भुल्ले को देखा तो चौंका।
"भुल्ले खान?" उसके होंठों से निकला।
"कैप्टन नसीम चौधरी जनाब। अब भुल्ले बने रहने की जरूरत नहीं।"
"ये तुम्हें क्या हुआ। तुम तो इस प्रकार घायल हो जैसे तुम्हें यातना दी गई हो। तुम तीन दिन से कहां गायब थे। ब्रिगेडियर साहब को तुम्हारी चिंता हो रही थी। कई एजेंट तुम्हें ढूंढने पर लगे हैं।" बख्तावर अली ने कहा।
"मुझे जगमोहन और वसीम राणा ने कैद कर लिया था। उनके हाथ मेरा आई कार्ड लग गया था। वो जान गए थे कि मैं मिलिट्री इंटेलिजेंस का जासूस हूं। पर अब मैं उनकी कैद भाग आया हूं। जगमोहन पकड़ लिया गया है जनाब। वो राणा के मास्टर के तौर पर कल से यहीं हैडक्वार्टर में तैनात था।" भुल्ले खान ने कहा।
"तो मेरा शक सही निकला, वो...।"
"जब मैं यहां पहुंचा तो कैप्टन अशफाक ने तब उसे गिरफ्तार ही किया। अब देवराज चौहान और जगमोहन उन्तीस नंबर कमरे में बैठे बातें कर रहे हैं। मैं उन दोनों को इकट्ठे छोड़ आया हूं कि वे दोनों आपस में फैसला कर लें कि क्या करना है। मुझे पूरा भरोसा है कि वो हमारे साथ मिल जाएंगे। इसके अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा।"
ब्रिगेडियर साहब ने देवराज चौहान से बात की थी तो उसने सोचने का समय मांगा। हम भी जगमोहन के हाथ में आ जाने का इंतजार कर रहे थे कि हमारा पलड़ा भारी हो जाए। अब सब ठीक है। अशफाक मुझे बता चुका है कि तुमने, जगमोहन को उससे ले लिया है। अब तुम ये मामला संभाल रहे हो। वसीम राणा को पकड़ने किसी को भेजा?"
"जरूरत नहीं सर। उसे आजाद रहने दिया जाए। उसे हम कभी भी पकड़ सकते हैं। वो देवराज चौहान और जगमोहन का दोस्त है और उनके लिए सब कुछ करने को तैयार रहता है। अगर देवराज चौहान हमारे लिए काम करता है तो राणा को आजाद रहने दिया जाएगा। नहीं तो देवराज चौहान पर दबाव बनाने के लिए उसे भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा। आप उन्तीस नंबर कमरे में खाने-पीने का सामान भिजवा दें। दो और जवान दरवाजे के बाहर तैनात कर दें और कंट्रोल रूम में कह दें कि C.C.T.V. कैमरे के सहारे उन्तीस नम्बर कमरे के भीतर सख्त नजर रखें। मैं ब्रिगेडियर साहब के पास जा रहा हूं।"
"देवराज चौहान और जगमोहन से बात की?"
"अभी नहीं जनाब। पहले उन्हें आपस में बात कर लेने देते हैं। वो इसी मुद्दे पर बातचीत कर रहे होंगे। हमारा बात करने का फायदा तब ही है जब वो किसी नतीजे पर पहुंच जाएं। उन्हें थोड़ा वक्त देना चाहिए।"
"तुम्हें क्या लगता है कि वो मान जाएंगे।"
"उन्हें मानना पड़ेगा सर। वो जानते हैं कि ना मानने पर उन्हें गोली मार दी जाएगी।" भुल्ले खान बोला--- "मैंने इन दोनों को प्यार से यहां तक लाने में बहुत मेहनत की है। मेरी मेहनत जरुर रंग लाएगी।"
भुल्ले खान इसी मिलिट्री एरिये में चार किलोमीटर दूर एक इमारत में प्रवेश कर गया। ये इमारत मिलिट्री इंटेलिजेंस का हैडक्वार्टर थी। भुल्ले थकान महसूस कर रहा था और सबसे पहले नहाकर कपड़े बदलना चाहता था। रास्ते में मिलने वाले, पहचान के लोगों ने उसकी हालत की वजह पूछनी चाही, परंतु भुल्ले सीधा एक कमरे में पहुंचा। वहां कई अलमारियां खड़ी थी। एक जवान वहां ड्यूटी पर तैनात था।
"मेरी अलमारी की चाबी दो मसूद।" भुल्ले ने कहा।
जवान ने तुरंत टेबल के ड्राज से चाबी निकालकर भुल्ले को देते हुए कहा।
"आपकी हालत तो काफी बुरी लग रही है।"
"खास बुरी भी नहीं। छोटे-छोटे जख्म हैं, ठीक हो जाएंगे।" भुल्ले ने अलमारी खोली और भीतर से कमीज-पैंट निकालने के बाद मसूद से कहा--- "अलमारी बंद कर दो और कैंटीन से मेरे लिए कुछ खाने को ले आओ। मैं नहा कर आता हूं।"
"जी जनाब।"
भुल्ले खान आधे घंटे बाद, पास ही के बाथरूम से नहाकर लौटा। नई कमीज-पैंट पहन ली थी। अब वो पहले से बेहतर लग रहा था। चेहरे पर गंभीरता थी। मसूद ने खाने का सामान टेबल पर ला रखा था। भुल्ले ने बिना किसी जल्दी के खाना खाया। इस दौरान मसूद से एक शब्द भी नहीं बोला था। उसका दिमाग देवराज चौहान और जगमोहन पर लगा हुआ था। बीते हुए और आने वाले हालातों पर गौर कर रहा था।
खाना खाकर उठते हुए मसूद से बोला।
"शुक्रिया मसूद।"
मसूद जवाब में सिर हिलाकर रह गया।
भुल्ले खान उस कमरे से निकला और सीढ़िया तय करके दूसरी मंजिल पर पहुंचा और एक रास्ते पर आगे बढ़ गया। इस रास्ते पर यहां-वहां जवान पहरे पर खड़े थे। क्योंकि आगे मिलिट्री इंटेलीजेंस के चीफ ब्रिगेडियर रहमान अहमद का ऑफिस था। रास्ते की शुरुआत में डेस्क रूपी रिसेप्शन भी था कि आने-जाने वाले एंट्री वहां दर्ज करें। जिसे ब्रिगेडियर साहब के पास जाने से रोकना होता तो उसे रोक लिया जाता। सख्त इंतजाम थे।
भुल्ले खान सीधा रहमान अहमद के ऑफिस के दरवाजे पर पहुंचा तो दरवाजे पर खड़े जवान ने सैल्यूट देकर दरवाजा खोल दिया। भुल्ले जानता था कि डेस्क वालों ने इंटरकॉम पर उसके आने की खबर दे दी होगी।
भुल्ले खान ने जब भीतर प्रवेश किया तो रहमान अहमद को दरवाजे की तरफ ही देखते पाया। भुल्ले पर नजर पड़ते ही उनके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। भुल्ले भी मुस्कुराया और सैल्यूट दिया।
"आओ भुल्ले।" रहमान अहमद ने कहा--- "मैं जानता था कि तुम जहां भी होंगे, निकल आओगे। मुझे तुम पर हमेशा ही भरोसा रहा है। तुम्हारे चेहरे के निशान बता रहे हैं कि तुम्हारे साथ क्या हुआ होगा।"
"जगमोहन और राणा ने...।" भुल्ले ने ने कहा।
"बख्तावर अली ने मुझे फोन पर सब बता दिया है। मैं तुम्हारे आने का ही इंतजार कर रहा था। बेहतर होगा कि पहले घर पर फोन करके अपनी पत्नी से बात कर लो। उसका कई बार फोन आ चुका है। वो चिंता में है।"
भुल्ले कुर्सी पर बैठा।
रहमान अहमद ने फोन उसकी तरफ सरका दिया।
भुल्ले ने घर फोन करके, दो मिनट अपनी पत्नी से बात की और रिसीवर रख दिया। वो बहुत चिंता में थी परंतु उसे ठीक-ठाक पाकर वो ठीक हो गई थी।
भुल्ले खान ने रहमान अहमद को देखा।
"जगमोहन भी हाथ लग गया जनाब---।" भुल्ले खान बोला।
"पूरी खबर है मेरे पास। अब क्या करना है। ये प्लान तुम्हारा है। तुम शुरू से ही देवराज चौहान के साथ हो। तुमने काफी वक्त लिया, दोनों को यहां लाने में। जबकि ये काम आसानी से भी हो सकता था।"
"मैं देवराज चौहान की काबिलियत देखना चाहता था।"
"तो क्या देखा?"
"दोनों ही बेहतरीन हैं। मेरी आशा अनुसार खरे उतरे हैं।"
"तुम्हारा मतलब कि इनके कंधे पर बंदूक रखकर हिन्दुस्तान के सिर का निशाना लिया जा सकता है।" रहमान अहमद मुस्कुराया।
"बहुत बेहतर ढंग से जनाब। देवराज चौहान हिन्दुस्तान का माना हुआ डकैती मास्टर है। ऐसे में हमारे भेजे आतंकवादियों को देवराज चौहान राह दिखाए तो, फिर क्या नहीं हो सकता। हम यहां बैठकर जितना करते हैं, उतना ही कर सकते हैं परंतु देवराज चौहान की अगुवाई में बहुत ज्यादा काम किए जा सकते हैं।"
"वो तैयार होंगे?"
"तैयार तो उन्हें होना ही पड़ेगा। वो फंसे पड़े हैं। तैयार होने के अलावा उनके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं है हम इन्हें भरपूर दौलत देंगे। इतनी दौलत कि ये अपने बन जाएं। इनकी कमजोरी औरत है तो वो भी देंगे। अपने डिपार्टमेंट में महत्वपूर्ण कुर्सी देंगे। बंगला, नौकर, गाड़ी के अलावा और जो भी हमसे हो सकेगा। वो सब इनके सामने करके इन्हें इस तरह मोहजाल में फंसा लेंगे कि ये खुद-ब-खुद ही बेहतरीन ढंग से हमारे काम आना चाहेंगे।" भुल्ले बोला।
"तो कब बात करनी है इनसे।" रहमान अहमद ने सोच भरे स्वर में कहा।
"शाम को बात करेंगे जनाब।"
"इन दोनों का परिवार है हिन्दुस्तान में?"
"खबर नहीं जनाब।"
"अगर परिवार है तो उसे भी पाकिस्तान ले आएंगे। इससे ये दोनों सीधे रहेंगे।"
"परिवार के बारे में वसीम राणा से पूछना होगा।"
"शाम को इनसे भी पूछेंगे ।जब जगमोहन पकड़ा गया तो उसकी क्या हालत थी?"
"वो शांत था। उसे जब देवराज चौहान के पास ले गया तो देवराज चौहान हक्का-बक्का रह गया था।"
"उसने सोचा नहीं होगा कि जगमोहन को हम पकड़ लेंगे।" रहमान अहमद ने गंभीर स्वर में कहा।
"हमने उन दोनों से बहुत समझदारी से बात करनी है। उनको ये न लगे कि हम उन्हें इस्तेमाल करना चाहते हैं। ये ही लगे कि उन्हें अपना साथी बनाना चाहते हैं। वो हमारे अपने हैं।" भुल्ले बोला।
"मान लो कि अगर वो हमारी बात नहीं मानते तो?" रहमान अहमद ने उसे देखा।
"वो मानेंगे।"
"नहीं माने तो?" रहमान अहमद ने अपने शब्द पुनः कहे।
"तो वसीम राणा को गिरफ्तार करके उनके सामने लाएंगे। उसे यातना देंगे। जैसे भी हो उन्हें तैयार करना ही होगा जनाब। वो हमारे कामों को, हिन्दुस्तान में बेहतर ढंग से अंजाम दे सकते हैं। उन्हें ट्रेनिंग की जरूरत नहीं। समझाने की जरूरत नहीं। वो दोनों हमारे कामों के लिए फिट हैं। एक तरह से वो हमारी जरूरत है। हिन्दुस्तान जाने वाले आतंकवादियों को वो हिन्दुस्तान में संभालें और उन्हें कमांड करें। हमारे लिए इससे बेहतर बात और क्या हो सकती है। वरना हिन्दुस्तान में यहां से भेजे आतंकवादियों की बांह थामने वाला कोई नहीं होता और वो यूं ही दो-चार को मारकर अपनी जान गंवा देते हैं। देवराज चौहान और जगमोहन सहारा देंगे तो बड़े से बड़े काम को कर सकेंगे। इस तरह कि हिन्दुस्तान रो पड़ेगा।"
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शाम के 6:30 बजे थे।
मिलिट्री हैडक्वार्टर की चौथी मंजिल के उन्तीस नम्बर के कमरे में बाहर चार हथियारबंद जवान मौजूद थे। दरवाजा बंद था। भीतर मौजूद देवराज चौहान और जगमोहन ने एक बार भी बाहर आने की चेष्टा नहीं की थी। उनकी खूब खातिरदारी की जा रही थी। बढ़िया से बढ़िया खाना दिया जा रहा था। चाय-कॉफी बिना मांगे दे दी जाती। साथ में गर्म समोसे भी खाने को दिए जाते। केक-पेस्ट्री के अलावा कई तरह का सामान दिन भर में दिया गया था। वो कुछ खाते तो कुछ नहीं। इसी से सारा दिन बीत गया था। कमरे के भीतर लगे सी•सी•टी•वी• कैमरे द्वारा, कंट्रोल रूम से उन पर नजर रखी जा रही थी। इस बात का उन्हें पूरी तरह एहसास था।
साढ़े छः बजे ब्रिगेडियर रहमान अहमद, भुल्ले खान और मेजर बख्तावर अली ने भीतर प्रवेश किया। बाहर मौजूद जवानों ने दरवाजा बंद कर लिया था।
देवराज चौहान चादर पर बैठा था। जगमोहन कुर्सी पर था।
"कैसे हो दोस्तों?" मेजर बख्तावर अली ने कहा--- "आज दिन भर खूब आराम किया। खूब बातें की होंगी।"
भुल्ले खान ने बाहर खड़े जवानों से कहकर कुर्सियां और मंगवा ली।
वो कुर्सियों पर बैठे।
जबकि देवराज चौहान नीचे ही बैठा रहा। वो शांत दिख रहा था।
"हम अपने मेहमानों और दोस्तों का बहुत ख्याल रखते हैं।" रहमान अहमद मुस्कुरा कर बोला--- "फिर भी कोई कमी रह गई हो ख्याल रखने में तो वो भी पूरी कर दी जाएगी। कैदियों के इस कमरे में हम जो सेवा कर सकते थे। हमने की। मैं तो चाहता हूं कि तुम लोग मेरे बराबर की कुर्सी पर, मेजर की वर्दी पहनकर बैठो। हम आपस में खुशियां बांटे। ठहाके लगाए और साथ-साथ मजे करें। भुल्ले की तो बहुत इच्छा है कि तुम लोग हमारे साथ मिल जाओ। भुल्ले ने तुम दोनों पर बहुत मेहनत की है। तुम्हें यहां लाना कोई आसान काम तो था नहीं।"
"और मैंने इन्हें कोई तकलीफ भी नहीं होने दी, यहां तक लाने में।" भुल्ले खान मुस्कुराया--- "पर जगमोहन और राणा ने मेरा बुरा हाल कर दिया मार-मार के। ये तो मुझे कत्ल करने का प्लान कर रहे थे। अपनी जगह पर तब ये भी ठीक भी थे। पर मैंने वसीम राणा को गिरफ्तार नहीं किया। वो अभी आजादी की सांस ले रहा है।"
देवराज चौहान और जगमोहन की गंभीर निगाह इन तीनों पर टिकी थी।
"हम तुम दोनों को अपना साथी बनाना चाहते हैं। इसके पीछे वजह ये है कि हिन्दुस्तान को तुम दोनों हमसे बेहतर जानते हो। हमारे भेजे लोगों की आंखें बन सकते हो हिन्दुस्तान में। बेशक पाकिस्तान में ही रहो। परंतु हमारे लोगों को बेहतर राह तो दिखा ही सकते हो कि वो किधर जाकर किस तरह काम करें।' रहमान अहमद कह रहा था--- "तुम डकैती मास्टर हो। प्लान बनाने में तुम कमाल करते हो। हिन्दुस्तान से तुम्हारे बारे में पता कर चुका हूं। तुम हमारे लोगों के लिए प्लान बनाओगे और वो हिन्दुस्तान जाकर, अच्छे ढंग से काम करेंगे। काबिल लोगों की हम बहुत कद्र करते हैं। हम तुम्हें इन कामों की भरपूर कीमत देंगे। इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट में मेजर का ओहदा देंगे।"
"अब देखो ना।" मेजर बख्तावर अली बोला--- "मान लो, अगर तुम इंकार कर देते हो तो तुम दोनों को उससे नुकसान ही होगा। आखिरकार मौत ही मिलेगी। क्योंकि तुमने मिलिट्री हैडक्वार्टर पर हमला करके, हमारे बंदी को आजाद कराने की कोशिश की। सात लोग मारे गए। ये संगीन जुर्म है। तुम्हें देश का दुश्मन करार दिया जाएगा और---।"
"ये बातें रहने दो मेजर।" रहमान अहमद ने कहा--- "बात यहां तक पहुंचेगी ही नहीं। ये समझदार लोग हैं और इन्हें पता है कि हमारा साथ देने में इन्हें कितना बड़ा फायदा हो सकता है ये पाकिस्तान में रौब से रह सकते हैं। हिन्दुस्तान में तो पुलिस से छुपकर रहना पड़ता है। जब इसे मेजर देवराज चौहान कहकर बुलाया जाएगा तो इसे भी अच्छा लगेगा। जगमोहन भी मेजर जगमोहन बनेगा। शानदार जिंदगी जिएंगे पाकिस्तान में, बस इनकी हां की जरूरत है।"
तीनों की निगाह देवराज चौहान और जगमोहन पर थी।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
"हम बेहतरीन ऑफर तुम दोनों के सामने रख रहे हैं।" भुल्ले बोला--- "ऐसी ऑफर पहले हमने कभी किसी को नहीं दी। तुम दोनों की हां, तुम्हारी जिंदगी बदल देगी और इंकार तुम लोगों को मौत की तरफ धकेल...।"
"तो तुम चाहते हो कि जो आतंकवादी हिन्दुस्तान भेजे जाते हैं उन्हें हम कमांड करें।" देवराज चौहान बोला।
"ये ही बात।" रहमान अहमद ने कहा--- "आतंकवादी हम भी भेजते हैं और दूसरे संगठन भी आतंकवादी भेजते हैं। उन संगठनों से हमारे बढ़िया संबंध हैं सारा काम मिल-जुल कर ही होता है। हमारी सरकार संगठनों को आर्थिक सहायता भी देती है।"
"लेकिन इन कामों को चलाते हुए हम ज्यादा देर हिन्दुस्तान में टिके नहीं रह सकते। बात खुल ही जाएगी कि इसके पीछे हम हैं और पुलिस हमारे पीछे पड़ जाएगी। देर-सवेर में पुलिस हमें मार देगी।" देवराज चौहान बोला।
"हम ऐसी नौबत नहीं आने देंगे।" रहमान अहमद मुस्कुराया--- "ऐसा वक्त आने पर तुम पाकिस्तान चले आओगे। यहां हमारे साथ काम करते हुए मजे से रहोगे। यहीं से तुम आतंकवादियों को संभाला करोगे।"
"ये आतंकवादी आते कहां से हैं?"
"कहीं से भी नहीं। ये हम तुम जैसे लोग हैं। गरीब तबकों से युवकों को ले लिया जाता है, या मजबूर लोगों को। उनके परिवार को बीस-पच्चीस हजार, किसी को पचास तो किसी को लाख, जैसी सौदेबाजी से हो जाए, उसके बाद इन्हें ट्रेनिंग दी जाती है कि हथियार कैसे चलाए जाते हैं। हमारे कई एजेंट ऐसे गरीब या मजदूर लोगों को इकट्ठा करते रहते हैं, इसी प्रकार संगठन अपने तौर पर ऐसे युवकों को तलाश करते हैं और इन्हें आतंकवादी बनाकर, सीमा पर भेज दिया जाता है। इन्हें पाठ पढ़ाया जाता है कि सीमा पार हिन्दुस्तान, हमारा खास दुश्मन है। वहां पर लोग हमारे दुश्मन हैं, जो हमें तबाह कर देना चाहते हैं। इसलिए जाकर उन्हें पहले ही तबाह कर दो।"
"इससे तो बेहतर है कि हिन्दुस्तान पर सीधा ही आक्रमण कर दो।"
"कोई फायदा नहीं।" रहमान अहमद ने गंभीर स्वर में कहा--- "कई बार ऐसा करके देखा जा चुका है, हर बार हिन्दुस्तान ही जीतता है। उसके पास ज्यादा ताकत है बहुत सोच समझकर ही हमने आतंकवादियों को सरहद पार भेजने का सिस्टम शुरू किया है कि इस तरह हिन्दुस्तान को कमजोर किया जा सके।"
"तुम हमारे साथ काम करने को तैयार हो?" भुल्ले खान बोला।
"हां। मैं भी तैयार हूं और जगमोहन भी---।" देवराज चौहान ने कश लिया--- "बाकी बात जगमोहन से करो।"
"कैसी बात?" रहमान अहमद की निगाह जगमोहन की तरफ उठी।
"नोटों की बात।" जगमोहन शांत स्वर में बोला--- "हमें मिलेगा क्या?"
"तुम कहो, क्या चाहते हो?"
"हिन्दुस्तान में हम बड़ी-बड़ी डकैतियां करते हैं। नोट ही नोट होते हैं हमारे पास।"
"पाकिस्तान में डकैती करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।" रहमान अहमद मुस्कुराकर बोला--- "हम तुम दोनों को इतना पैसा देंगे कि संभालना कठिन हो जाएगा। परन्तु पहले दो बार बढ़िया काम करके दिखाओ।"
"वो तो हम कर ही देंगे।"
"तुम नहीं, पहले दो काम देवराज चौहान करेगा। तब तक तुम हमारी निगाहों में हमारे पास रहोगे। तुम दोनों को एक साथ आजादी देना ठीक नहीं होगा। विश्वास तो धीरे-धीरे ही जमेगा। क्योंकि ये बातें तुम दोनों को कैद करके की जा रही है। सीधा सौदा नहीं हो रहा। क्या पता तुम दोनों कोई चाल खेल जाओ। एक बार में एक को ही आजाद किया जाएगा। वो देवराज चौहान होगा। देवराज चौहान हमारे भेजे लड़कों के साथ हिन्दुस्तान में दो काम जबरदस्त ढंग से कर देगा तो हमारा विश्वास जम जाएगा। फिर तुम भी देवराज चौहान के साथ काम करने लगोगे। हम देवराज चौहान को मिलिट्री इंटेलिजेंस में मेजर की कुर्सी देंगे। कुर्सी पहले ही दे दी जाएगी। ताकि देवराज चौहान इस बात का एहसास पा सके कि मेजर की वर्दी में कितनी ताकत होती है। कितनी इज्जत मिलती है।"
"तो तुम्हें हम पर भरोसा नहीं।" जगमोहन बोला।
"भरोसा है। परंतु मैं जरा सतर्क रहने वाला इंसान हूं।इसमें तुम्हें क्या एतराज है। पहले मैं देवराज चौहान को आजमाना चाहता हूं कि क्या ये हमारी पसंद के हिसाब से काम करता है।"
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा। कहा।
"ये तो इनकी गलत बात है।"
"मेरी नजरों में नहीं।" देवराज चौहान सोच भरे स्वर में बोला।
"वो कैसे?"
"इनका सोचना सही है कि इनके चंगुल से बचने के लिए, हम कोई चाल खेल सकते हैं ये धीरे-धीरे हमारा भरोसा करेंगे। इनकी जगह मैं होता तो शायद मैं भी इसी तरह सतर्क होकर चलता। परंतु हमारा मन साफ है ऐसे में हमें इनकी बात मानने में कोई एतराज नहीं है। तुम्हें ज्यादा देर इस तरह नहीं रहना होगा। कुछ ही दिनों में मैं दो बड़े काम करके इन्हें दिखा दूंगा। इनकी तसल्ली करवा दूंगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम तो इनकी तसल्ली करवा दोगे, क्या पता ये हमारी तसल्ली ना करा सकें।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।
देवराज चौहान रहमान अहमद बोला।
"जगमोहन नोटों की बात कर रहा है।"
"दौलत की फिक्र मत करो। तुम्हारी आशा से ज्यादा मिलेगी। बस एक बार हमें महसूस हो जाए कि तुम दोनों हमारे काम के हो। उसके बाद तो दुनिया का हर आराम तुम दोनों के कदमों में होगा। हिन्दुस्तान में तुम लोगों का परिवार है?"
"क्यों?"
"है तो उन्हें पाकिस्तान में ले आना। यहां तुम दोनों को एक-एक शानदार बंगला...।"
"मैंने शादी नहीं की।" जगमोहन ने कहा--- "देवराज चौहान ने भी नहीं की।"
"ये तो और भी अच्छी बात है। पाकिस्तान की खूबसूरत लड़कियों से तुम्हारी शादी कराई जाएगी।" रहमान अहमद ने मुस्कुराकर कहा--- "एक तो मेरी रिश्तेदार लड़की है, वो देख लेना। हम तुम लोगों से मजबूत रिश्ते बनाना चाहते हैं। तुम देखना, पाकिस्तान में रहने का जो मजा है, वो हिन्दुस्तान में कहां। यहां की सुगंध, यहां के लाजवाब खाने और यहां के गलियां-कूचे, सब तुम लोगों को अपने लगेंगे।"
"मुझे इंटेलिजेंस में मेजर कब से बनाया जाएगा?" देवराज चौहान ने पूछा।
"कल से ही। आज तुम्हारी वर्दी का नाप ले लिया जाएगा।" रहमान अहमद ने भुल्ले से कहा--- "वसीम राणा को फोन पर कहो कि किसी को नाप लेने के लिए भेजे। उसे बता देना कि इंटेलिजेंस में देवराज चौहान मेजर बन गया है।"
भुल्ले खान ने मोबाइल निकाला और चार कदम दूर जाकर नंबर मिलाने लगा।
"जगमोहन को कहां रखा जाएगा?" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में पूछा।
"जहां तुम कहो।"
"इसी कमरे में रहे जगमोहन।"
"हमें क्या एतराज हो सकता है। जैसा तुम कहोगे, वैसा ही होगा।" रहमान अहमद ने कहा।
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा, कहा कुछ नहीं।
"गोरिल्ला का क्या होगा?" देवराज चौहान ने पूछा।
"उसमें तुम्हें दिलचस्पी क्यों। वो हमारा कैदी है। उसके पास हमारी महत्वपूर्ण फाइल है जब वो इस कैद से तंग आ जाएगा तो फाइल के बारे में बता देगा। तब उसे खत्म कर दिया जाएगा।"
"मैंने यूं ही पूछा था।" देवराज चौहान ने कहा।
भुल्ले खान की वसीम राणा से बातें करने की आवाज आने लगी।
"हिन्दुस्तान में कहां-कहां हमले कराने हैं, ये अब तुमने ही सोचना है।" रहमान अहमद ने कहा--- "भुल्ले तुम्हारे आसपास ही रहेगा। उससे अपनी समस्याएं डिस्कस कर सकते हो।"
"मेरी कोई समस्या नहीं है।" देवराज चौहान ने कहा--- "हिन्दुस्तान में जबरदस्त हमले करा देना, मेरे लिए मामूली बात है। परंतु ऐसा ना हो कि बाद में तुम अपने वादों से पीछे हट जाओ। हमें दौलत की बहुत जरूरत रहती है और---।"
"शक-वहम मत करो। हम तुम दोनों को सिर-आंखों पर बिठा कर रखेंगे। एक बार साबित तो करो कि तुम हमारे हो। तुम हमारे लिए खतरा उठाओगे तो हम पूरे पाकिस्तान को तुम्हारे कदमों में रख देंगे। हमारा दिल बहुत बड़ा है। अभी तो हम तुम्हें आजमा रहे हैं, बाद में तुम भी हमें आजमा कर देखना। निराशा नहीं होगी। हम तुम दोनों को हैरान कर देंगे।"
भुल्ले खान पास आता कह उठा।
"वसीम राणा, देवराज चौहान के नाप के लिए मास्टर को अभी भेज रहा है वो मेरी बात का विश्वास नहीं कर रहा था कि देवराज चौहान हमारे साथ मिल गया है कठिनता से उसे विश्वास दिला पाया।" भुल्ले खान मुस्कुरा रहा था।
"ये तुम्हारी बारी है।" रहमान अहमद, देवराज चौहान से बोला--- "एक बार हमें भी दिखा दो कि देवराज चौहान, पाकिस्तान की खातिर हिन्दुस्तान में कितना बड़ा तहलका मचा सकता है। हैरान कर दो हमें। ऐसा कि हम कुछ कहने के काबिल ना रहें। बस, खुशी से नाचने लगें।"
"ऐसा ही होगा।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा--- "मैं कुछ ऐसा करूंगा कि तुम लोग देखते रह जाओगे।"
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देवराज चौहान को मिलिट्री इंटेलिजेंस की इमारत से मात्र दो किलोमीटर दूर, मिलिट्री एरिये में ही एक बंगला दे दिया गया। सजा-सजाया बंगला था। नौकर और दो कारों के अलावा, एक ड्राइवर, जो कि सेना का ही जवान था। वहां मौजूद था। भुल्ले खान उसे वहां छोड़ गया था। नौकर फौरन उसकी सेवा में लग गए। देवराज चौहान ने नहा-धोकर कपड़े बदले। एक अलमारी में कपड़े भरे पड़े थे, उसमें से उसने अपने साइज के छांट लिए थे। सामने ही एक छोटा-सा बार बना हुआ था। उसने अपने लिए एक पैग तैयार किया और कुर्सी पर बैठकर सोच भरे अंदाज में घूंट भरने लगा। बीस मिनट में ही नौकर ने तंदूरी मसाला चिकन तैयार करके उसके सामने हाजिर कर दिया।
दो पैग लेने तक वो उसी कमरे में रहा। इस दौरान उसने किसी से बात नहीं की।
नौकर अवश्य हाजिर होते रहे, कोई नई सेवा पूछने के लिए।
रात ग्यारह बजे उसने खाना खाया। उसे अकेले के लिए डिनर में कई व्यंजन मौजूद थे। कम से कम दस लोगों का खाना था वो। उसकी सेवा-सत्कार में कोई कमी नहीं रखी जा रही थी। इस शानदार डिनर को देखकर देवराज चौहान मुस्कुरा कर रह गया था। खाना स्वादिष्ट था। उसे जगमोहन की याद आ गई।
उसके बाद नींद में जा डूबा। अगले दिन सुबह आठ बजे तो नौकर ने बैड टी देते हुए कहा कि कैप्टन साहब का फोन आया था कि वो दस बजे वर्दी के साथ पहुंच रहे हैं। चाय का घूंट लेते देवराज चौहान ने सोचा कि आज उसे पाकिस्तान मेजर की कुर्सी दी जा रही है वो पाकिस्तान की मिलिट्री इंटेलिजेंस में काम करेगा?
साढ़े दस बजे देवराज चौहान नाश्ता करके हटा तो भुल्ले खान वहां आ गया वो सादे कपड़ों में था और उनके लिए दो वर्दियां लाया था। राणा का आदमी शाम को हैडक्वार्टर में आकर उसका नाप ले गया था।
"रात कैसी कटी?" भुल्ले खान ने मुस्कुराकर पूछा--- "मेहमान नवाजी में कोई कमी रह गई हो तो वो भी पूरी कर दी जाएगी।"
"सब ठीक रहा।"
"आज तुमने मेजर बनकर इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट में अपना ऑफिस संभालना है। मैं तुम्हारा असिस्टेंट रहूंगा।"
देवराज चौहान ने मेजर की वर्दी पहनी।
भुल्ले खान ने वर्दी को शरीर पर सैट करने में पूरी सहायता की। सिर पर कैप डाली।
"जंच रहे हो।" भुल्ले खान हंसकर बोला--- "अल्लाह करे, ये वर्दी हमेशा तुम पर इसी तरह जंचती रहे।"
"नौकरी जैसे काम करने की मुझे आदत नहीं है। मैं नहीं जानता कि ये काम कैसे होते हैं।" देवराज चौहान बोला।
"किसी बात की फिक्र मत करो। कुछ ही दिन में तुम सब सीख जाओगे। मैं तुम्हारे सहायता के लिए पास में रहूंगा। तुमने बस इतना ही करना है कि, योजना बनाते रहना है कि हिन्दुस्तान में कहां हमला करना है। कितने आदमी और कैसे-कैसे हथियार और गोला बारूद चाहिए। काम कब करना है। कैसे करना है। ये सब बातें तुमने प्लान करनी है।"
"मामूली काम है मेरे लिए।"
"मैं जानता हूं कि ऐसे काम तुम आसानी से, बढ़िया ढंग से संभाल लोगे।"
फिर दोनों मिलिट्री की चमचमाती कार में दो किलोमीटर का सफर तय करके, मिलिट्री इंटेलिजेंस की इमारत में जा पहुंचे। कार ड्राइवर चला रहा था। भुल्ले उसकी बगल में बैठा था। पीछे वाली सीट पर देवराज चौहान अकेला बैठा था। देवराज चौहान को उसके बड़े होने का एहसास दिलाया जा रहा था। इंटेलिजेंट की इमारत के मुख्य गेट के सामने जब कार रुकी तो भुल्ले खान ने फौरन नीचे उतरकर दरवाजा खोलकर, खड़ा हो गया था।
देवराज चौहान बाहर निकला।
भुल्ले ने कार का दरवाजा बंद किया तो कार आगे बढ़ गई।
"आओ मेजर।" भुल्ले ने सामान्य स्वर में कहा--- "आज ड्यूटी पर तुम्हारा पहला दिन है हमारे साथ।"
देवराज चौहान, भुल्ले के साथ भीतर प्रवेश कर गया।
"इधर आओ।" भुल्ले ने बाईं तरफ जाते रास्ते पर इशारा किया--- "वो सामने हाजिरी रूम है। हर रोज सुबह पहले हाजिरी रजिस्टर पर साइन करने होते हैं। चीफ भी जब आते हैं तो ऐसा ही करते हैं।"
वो हाजिरी रूम में पहुंचे।
वहां एक जवान मौजूद था। टेबल पर रजिस्टर रखा था। जवान ने उन्हें सैल्यूट दिया। भुल्ले के कहने पर देवराज चौहान ने रजिस्टर पर एंट्री की। भुल्ले ने भी एंट्री की।
"आओ, अब तुम्हें तुम्हारा ऑफिस दिखाता हूं।"
दोनों पहली मंजिल पर स्थित एक ऑफिस में पहुंचे। दरवाजे पर एक जवान मौजूद था। वे भीतर जाने लगे कि सामने से आते एक आदमी को देखकर भुल्ले ठिठक गया। देवराज चौहान भी रुका।
"आदाब कैप्टन साहब।" वो आदमी पास आता मुस्कुराकर बोला--- "कैसे मिजाज हैं हजूर के---?"
फिर उसने देवराज चौहान को सलाम किया।
"तुम यहां कैसे?" भुल्ले खान ने पूछा।
"बड़े साहब से छोटा सा काम था। वरना आप तो जानते ही हैं कि शहर में आना मेरा हो ही नहीं पाता। आधी जिंदगी सीमा पर ही बीती है और कान में हर पल फोन लगा रहता है।"
"मेजर साहब।" भुल्ले ने देवराज चौहान से कहा--- "ये गफूर अली है। आज तक जितने आतंकवादी हिन्दुस्तान में गए हैं उसमें से आधों को इसी ने सीमा पार कराई है। ये सीमा पार कराने में बहुत एक्सपर्ट है। हिन्दुस्तानी मिलिट्री से भी इसकी दुआ-सलाम रहती है। हमारी मिलिट्री भी इसका लोहा मानती है।"
देवराज चौहान ने गहरी निगाहों से गफूर अली को देखते हुए कहा।
"तुम जितनी तारीफ कर रहे हो। उस तारीफ के काबिल लगता तो नहीं ये।"
गफूर अली मुस्कुराता रहा।
"मैंने तो कम तारीफ की है मेजर साहब।" भुल्ले बोला--- "एक बार इसका काम देखेंगे तो...।"
"मुझे अपने कामों के लिए एक ऐसे ही इंसान की जरूरत थी।" देवराज चौहान ने भुल्ले से कहा।
"तो गफूर अली हाजिर है।" भुल्ले बोला--- "इसे काम बताइए।"
"मैं बहुत कम लोगों पर भरोसा करता हूं।" देवराज चौहान ने पुनः गफूर अली को देखा--- "अपने काम में शामिल करने से पहले मैं इसका टेस्ट लूंगा। अगर मेरे टेस्ट में ये पास हो गया तो इसे काम भी मिलेगा और तगड़ा इनाम भी---।"
"जनाब जी।" गफूर अली थोड़ा सा हंसा--- "समझिए टेस्ट में पास हो गया गफूर।"
"अपना फोन नंबर मुझे दे दो।"
"गफूर का नंबर तो सबके पास है किसी से भी कहें, वो दे देगा।"
"भीतर तुम्हारी टेबल पर डायरी पड़ी है।" भुल्ले बोला--- "हर खास आदमी का नंबर उस डायरी में लिखा है और साथ में उसका काम भी लिखा है। तुम जाओ गफूर। मेजर साहब का फोन तुम्हें जल्दी ही आएगा।"
गफूर सलाम करके चला गया।
दोनों ऑफिस में पहुंचे और भुल्ले खान ने कहा।
"रातों-रात तुम्हारे लिए ऑफिस तैयार करवाया है। सुबह तक यहां काम होता रहा। तुम्हें जिस-जिस चीज की जरूरत पड़ने वाली है, वो सब यहां रखने की कोशिश की गई है। जो चीज कम लगे, कह देना।"
देवराज चौहान की निगाह पूरे कमरे में घूमी।
सजा हुआ, शानदार ऑफिस लग रहा था ये। फर्श पर वॉल-टू-वॉल कारपेट बिछा हुआ था और लग रहा था कि कुछ घंटे पहले ही उसे बिछाया गया है। कमरे के बीचो-बीच एक बड़ी सी टेबल थी। जिसके उस पार बेहद आरामदेह चेयर मौजूद थी और इस तरफ चार कुर्सियां रखी हुई थी। टेबल पर दो फोन और ग्लोव के अलावा, ऐश-ट्रे पैन, पैड, ऐसा ही जरूरत का सामान रखा था और छोटा-सा पाकिस्तान का झंडा लगा रखा था। दीवारों पर पाकिस्तान का नक्शा जड़ा था, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की सीमा के, कई तरफ के नक्शे लगे थे। कमरे में ए•सी• की ठंडक थी। एक तरफ अलमारी थी। जिसमें चाबी लटक रही थी। इसके अलावा दीवार के साथ एक रैक सटा रखा था, जिसमें ढेरों फाइलें लगी हुई थी। सब कुछ देखने के बाद देवराज चौहान टेबल के पीछे कुर्सी पर जा बैठा।
"कैसा लगा ऑफिस?" भुल्ले मुस्कुराया।
"बढ़िया। उन फाइलों में क्या है?"
"हमारे शेरों का ब्यौरा। हर खतरनाक आतंकवादी की फाइल बना रखी है। उसमें उसके कारनामे दर्ज हैं। आतंकवादी संगठनों से वास्ता रखती फाइलें भी हैं। तुम इन्हें देखो कि उसमें से कौन-से लोग तुम्हारे काम के हैं। उन्हें अपने काम के लिए चुन लो। अब तुम्हें ऐसे ही लोगों की जरूरत पड़ने वाली है।"
"मैं वक्त बर्बाद नहीं करता।" देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा ली।
"तो?"
"मुझे चौदह ऐसे आतंकवादियों की फाइल निकाल कर दो, जो सब कुछ करने का हौसला रखते हैं। मैं इनमें से किसी को नहीं जानता-पहचानता। जबकि ये काम तुम बखूबी कर सकते हो।"
"अभी लो।" भुल्ले खान रैक की तरफ बढ़ गया।
"मुझे कॉफी चाहिए।" देवराज चौहान बोला।
"लाल वाले फोन का रिसीवर उठाओ सात नंबर दबा दो। वो यहां की कैंटीन का है। मेरे लिए भी मंगवाना।"
देवराज चौहान ने इंटरकॉम पर दो कॉफी भेजने को कहा। इसके लिए उसे भुल्ले से पूछना पड़ा कि कमरा नंबर कितना है। भुल्ले ने बताया कि 22 नवंबर कमरा है ये।
देवराज चौहान ने सिग्रेट ऐश-ट्रे में मसली और टेबल पर रखी हरे रंग की डायरी उठाकर, उसे खोलकर पन्ने पलटता चैक करने लगा। हर पन्ने पर एक नाम, फोन नंबर और वो क्या काम करता है, वो लिखा हुआ था। कुछ पन्नों को पलटने के बाद उसने गफूर अली का भी नाम देखा। देवराज चौहान ने तसल्ली से गफूर अली का सारा ब्यौरा पढ़ा और सोचा कि ये आदमी उसके काम का है। वो, जो चाहता है, वो काम ये कर सकता है।
भुल्ले खान रैंक पर लगी फाइलों में व्यस्त था। बीस मिनट में उसने चार फाइलें निकालकर टेबल पर रख दी थी। तब तक एक जवान दो कॉफी रख गया था।
"कॉफी लो भुल्ले।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा और खुद प्याला उठा लिया।
भुल्ले कुर्सी पर आ बैठा और कॉफी पीने लगा।
"वर्दी पहनकर, ये काम करके तुम्हें अच्छा लग रहा है?" भुल्ले ने मुस्कुराकर पूछा।
"बहुत।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"लंच के लिए कैंटीन में इसी तरह इंटरकॉम कर देना, चाहो तो कैंटीन में जाकर भी लंच ले सकते हो।"
"मैं कैंटीन में लंच लूंगा।"
"ये ठीक रहेगा। बाकी लोगों से भी तुम्हारी पहचान हो जाएगी। मैं तब तक तुम्हारे साथ रहूंगा, जब तक तुम अपने काम खुद ना संभालने लगो। इसमें पांच-सात-दस दिन तो लग ही जाएंगे।"
"जैसा तुम ठीक समझो।"
"तुमने कुछ प्लान किया है कि काम कहां-कैसे करना है?"
"दिमाग में प्लानिंग चल रही है।" देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा--- "तीन-चार दिन में अपना काम शुरू कर दूंगा। चौदह आदमी तुम मुझे चुनकर दो। बाकी का काम मेरा है।"
"वैरी गुड। तुम तो काफी तेज चलने की कोशिश कर रहे हो।"
"मैं वक्त बर्बाद नहीं करता। मुझे मुंबई का नक्शा चाहिए।"
"मिल जाएगा। हमारे पास पूरे हिन्दुस्तान के, हिन्दुस्तान के जर्रे-जर्रे के नक्शे मौजूद हैं।"
कॉफी के बाद भुल्ले पुनः रैक में जाकर फाइलों में व्यस्त हो गया।
दोपहर ढाई बजे तक भुल्ले ने चौदह फाइलें निकालकर टेबल पर रख दी थी और देवराज चौहान उन फाइलों का अध्ययन करता जा रहा था।
"ये चौदह फाइलें बहुत ही खतरनाक चौदह लोगों की हैं। ये तबाही मचा देंगे, जिस तरह तुम इनसे काम लेना चाहो, वैसे ही इन्हें इस्तेमाल करना। अपने काम से पीछे नहीं हटने वाले।" भुल्ले ने कहा।
"ऐसे ही खतरनाक लोग इस वक्त हिन्दुस्तान ही पहुंचे होंगे। सीमा पार होंगे।"
"हां क्यों?"
"ऐसे खतरनाक लोग जो सीमा पार पहुंच चुके हैं पहले से ही, उनमें से दस लोगों को चुनो।"
"मैं दस और फाइलें निकाल देता...।"
"नहीं फाइलों वाले नहीं चाहिए। जो सीमा पर काम कर रहे हों वो चाहिए।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "इन सब लोगों को मुंबई पहुंचने को कहना है। ये सब मुंबई नहीं पहुंच सकते। रास्ते में कहीं भी पहचाने या पकड़े जा सकते हैं। जबकि मुझे मुंबई में चौदह लोगों की जरूरत है। पकड़े-मारे जाने पर चौदह तो वहां पहुंच ही जाएंगे।"
"समझ गया।" भुल्ले ने सिर हिलाया।
"इन चौदह लोगों को इकट्ठा करो। सीमा पार कराओ और मुंबई पहुंचने को कहो। इनके लिए मुंबई में ठिकाना है?"
"हां। हमारे कई ठिकाने हैं।"
"तो इन्हें वहां अलग-अलग ठहराना है। तीन-चार के ग्रुप में। जब ये वहां पहुंचकर, ठीक से टिक जाएंगे तो मैं यहां से मुंबई के लिए चलूंगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम मुंबई जाओगे?"
"हां। मैं खुद उनसे काम लूंगा। मैंने अपना काम ब्रिगेडियर साहब को दिखाना है। ये मेरा पहला काम है और तुम सबकी नजरें मुझ पर टिकी होंगी। इसलिए काम को जबरदस्त होना चाहिए भुल्ले।"
भुल्ले खान मुस्कुरा पड़ा। बोला।
"सही कहते हो।"
"एक के बाद मैं दूसरा काम भी मुंबई में ही करूंगा। जो लोग बच गए होंगे, उनसे काम लूंगा। उसके बाद ही वापस पाकिस्तान लौटूंगा और फिर जगमोहन भी मेरे साथ काम किया करेगा और ये भी देखना है मुझे कि पाकिस्तान इनाम में मुझे क्या देता है। क्या मेरी तसल्ली होती है या नहीं?" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"हमारी तसल्ली हो गई तो तुम्हारी भी तसल्ली हो जाएगी देवराज चौहान।"
"देखूंगा।"
"कैंटीन में लंच लिया जाए। तीन बजने वाले हैं।" भुल्ले ने कहा।
"उसके बाद वे ग्राउंड फ्लोर पर स्थित कैंटीन में पहुंचे। वहां लंच किया। इस दौरान भुल्ले ने देवराज चौहान को मिलिट्री के कई ऑफिसरों से मिलवाया जो कैंटीन में आए थे। लंच के बाद वापस ऑफिस में आकर देवराज चौहान उन बाकी की फाइलों को देखने लगा, जो भुल्ले ने रैक से निकाली थी। भुल्ले हर पल उसके साथ ही रहा। एक-दो बार वो कुछ देर के लिए कमरे से गया अवश्य, परंतु जल्दी ही लौट आता था।
साढ़े चार बजे रहमान अहमद साहब वहां पहुंचे।
"तुम्हें यहां देखकर मुझे खुशी हो रही है। भुल्ले ने बताया कि तुम गंभीरता के साथ काम में दिलचस्पी ले रहे हो। पहले ही दिन तुमने काम शुरू कर दिया। मैं तो सोचता था कि कुछ दिन अभी तुम रुकोगे।"
"मैं वक्त बर्बाद नहीं करता।" देवराज चौहान मुस्कुराया।
"सही मिलिट्रीमैन वो ही होता है जो फौरन अपना काम निपटाता है। मुझे पूरा यकीन है कि हम लोग मिलकर लम्बे समय तक काम करेंगे और हिन्दुस्तान को बहुत कमजोर कर देंगे। तब हिन्दुस्तान पर आक्रमण करेंगे।"
"आप लोग जैसे हमले हिन्दुस्तान पर कराते रहे, उससे हिन्दुस्तान का कुछ नहीं बिगड़ेगा। मैं बताऊंगा कि हमला किसे कहते हैं। एक हिन्दुस्तानी, हिन्दुस्तान को बेहतर जानता है।" देवराज चौहान बोला।
"आओ, मैं तुम्हें बताता हूं कि हम हिन्दुस्तान के बारे में क्या सोचते हैं।" रहमान अहमद ने कहा।
देवराज चौहान, भुल्ले और रहमान अहमद तीसरी मंजिल के एक कमरे में पहुंचे।
भीतर कदम रखते ही देवराज चौहान ठिठक-सा गया।
दस फीट लंबी और छः फीट चौड़ी टेबल दीवार के साथ लगी हुई खड़ी थी उस और उस पर लाल किला, इंडिया गेट, संसद भवन, कुतुबमीनार, कनॉट प्लेस, ऐसे ही कई चीजों के मॉडल सजा रखे थे।
"देखा तुमने।" रहमान अहमद मुस्कुराकर कह उठा--- "ये सब जगहें हिन्दुस्तान की निशानियां हैं, हम इन्हें मिटा देना चाहते हैं। दिल्ली का दिल है ये सब जगहें और इमारतें। इन्हें मिटाकर...।"
"अब मुझे समझ आया कि पाकिस्तान की ताकत खराब क्यों जा रही है।" देवराज चौहान मुस्कुरा कर बोला।
"क्या मतलब?" रहमान अहमद की आंखें सिकुड़ी।
"तुम क्या सोचते हो कि लाल किला तबाह करके, इंडिया गेट, कुतुबमीनार, कनॉट प्लेस तबाह करके हिन्दुस्तान को कमजोर कर दोगे। गलत सोचते हो, बल्कि इससे पाकिस्तान ही कमजोर होगा।"
"ये क्या कह रहे हो?"
"मैं ठीक कह रहा हूं। तुम पाकिस्तानी की तरह सोचते हो और मैं हिन्दुस्तानी की तरह सोच रहा हूं।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "लाल किला देखा है कभी तुमने?"
"नहीं।"
"तभी तो ऐसी बातें कर रहे हो। लाल किला कितना बड़ा है। उसकी दीवारें इतनी मोटी और ऊंची हैं कि दीवारों को ही नहीं उड़ाया जा सकता। इतनी दूर तक जाती हैं दीवारें और तुम्हारे सौ आतंकवादी ढेर सारा बारूद अपने साथ लाते हैं तो वो भी कम पड़ेगा और तब तक वो पुलिस के हाथों खत्म कर दिए जाएंगे। हासिल क्या हुआ, कुछ नहीं पाकिस्तान का ही नुकसान हुआ। आदमी मर गए और बारूद भी गया। मेहनत भी गई।" देवराज चौहान बोला--- "मान लो कि तुमने लाल किला उड़ा भी दिया, तो इससे क्या हिन्दुस्तान कमजोर हो जाएगा?"
रहमान अहमद की निगाहें, देवराज चौहान पर थी।
भुल्ले भी उसे ही देख रहा था।
"इन बातों से हिन्दुस्तान कमजोर नहीं होने वाला। उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। रही बात कनॉट प्लेस को उड़ाने की तो ये भी भूल जाओ। कनॉट प्लेस इतना बड़ा है कि चलते-चलते पांव थक जाते हैं और आप पूरा नहीं घूम सकते। कनॉट प्लेस को खत्म करने के लिए सौ आदमी भी किसी गिनती में नहीं आते। तुम्हारे ख्याल और निशाने ही गलत हैं तभी तो तुम लोगों को कामयाबी नहीं मिलती। इन चार-छः जगहों को बर्बाद करके तुम हिन्दुस्तान को कमजोर करने का ख्वाब देख रहे हो, जब हिन्दुस्तान की असली ताकत, वहां की जनता है।"
"वहां की जनता?"
"हां। वहां के लोग।" देवराज चौहान ने कहा--- "जो वार करने हैं लोगों पर करो। इस तरह करो कि उसे ज्यादा से ज्यादा लोग देख सकें। इस तरह करो कि ये काम आतंकवादियों का नहीं, स्थानीय लोगों का लगे।"
"तुम्हारी बातें कुछ-कुछ समझ आ रही हैं मुझे।" रहमान अहमद ने सिर हिलाया--- "आगे कहो।"
"मैं क्या कहूं, आने वाले वक्त में तुम खुद ही देख लोगे तो काम कैसे किया जाता है।"
"मुझे तुम पर पूरा भरोसा है देवराज चौहान।" रहमान अहमद ने गम्भीर स्वर में कहा--- "लगे रहो।"
जवाब में देवराज चौहान मुस्कुराकर रह गया।
"भुल्ले को पहले से ही यकीन था कि तुम हमारे काम के आदमी बन सकते हो।"
"अभी आपने मेरा काम देखा ही कहां है। शुरुआत भी नहीं हुई।" देवराज चौहान ने कहा--- "मुझे मोबाइल फोन चाहिए और एक जगमोहन को भी दे दिया जाए कि जब मैं उससे बात करना चाहूं तो कर सकूं।"
"भुल्ले से कह दिया करो। जो चाहिए हो। तुम अब हमारे हो। तुम्हारा हुक्म फौरन पूरा होगा।" रहमान अहमद ने कहा--- "हमने तुमसे बहुत आशाएं लगा रखी हैं देवराज चौहान।"
"देखते जाओ। आशाओं से बढ़कर काम करूंगा।"
"तुम्हारा क्या प्लान है? तुम क्या करने की सोच रहे हो?" रहमान अहमद ने पूछा।
"कुछ दिन इंतजार कीजिए। पूरा प्लान तैयार करने के बाद बताऊंगा।"
"ठीक है। अब एक बात मैं तुमसे कहना चाहूंगा कि फौज में गैर मुस्लिम व्यक्ति को अगर लेते हैं तो उस जवान को आगे नहीं बढ़ने देते, जबकि तुम्हें मेजर बना दिया गया है। मेरी राय है कि हमारी सहूलियत के लिए, हममें शामिल हो जाओ और अपना नाम बदल लो। सबको बहुत अच्छा लगेगा।"
"मुझे कोई एतराज नहीं, परंतु पहले मुझे हिन्दुस्तान में काम कर लेने दीजिए। वापस आने पर जैसा कहोगे वैसा कर लूंगा। काम पहले, बाकी बातें बाद में।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"मंजूर है।" कहकर रहमान अहमद चला गया।
देवराज चौहान, भुल्ले खान के साथ ऑफिस में पहुंचा और फाइलें देखने लगा।
शाम छः बजे उसने काम बंद किया और भुल्ले से कहा।
"मैं जगमोहन से मिलना चाहता हूं।"
"हां, चलो।" भुल्ले खान बोला--- "पहले बाजार से दो मोबाइल फोन खरीद लेते हैं। एक तुम्हारे और दूसरे जगमोहन के लिए। जगमोहन को खाने में कोई खास चीज पसंद हो तो वो भी ले लेंगे।"
दोनों वहां से निकले और सुबह वाली मिलिट्री कार में सवार हो गए। उनके कहने के मुताबिक ड्राइवर उन्हें मिलिट्री एरिए के बाहर एक मार्केट में ले गया। वहां से भुल्ले ने दो मोबाइल लिए। दोनों के नम्बर चालू कराए और एक फोन देवराज चौहान को दे दिया। बगल में कैमिस्ट शॉप थी। देवराज चौहान ये कहकर केमिस्ट शॉप की तरफ बढ़ गया कि वो सिर दर्द की गोली लेकर आता है। इस वक्त देवराज चौहान के शरीर पर मेजर की वर्दी थी। मेजर की वर्दी ने फौरन कमाल दिखाया, उसने कैमिस्ट को कम शब्दों में बताया कि उसे कैसी दवा चाहिए। कैमिस्ट ने फौरन दवा का एक पत्ता उसे दिया। पैसे देकर दवा जेब में डाली और कार की तरफ बढ़ गया।
वापस आकर कार में बैठा तो कार आगे बढ़ गई।
"सिर दर्द की दवा ली?" भुल्ले ने पूछा।
"हां! मेरी दवा खत्म हो चुकी है जो हिन्दुस्तान से लाया था।" देवराज चौहान ने कहा।
"मुझे बता देते जो चाहिए, मैं हिन्दुस्तान से मंगवा देता।"
"जरूरत पड़ी तो बताऊंगा। अब जो ली है, शायद उसी से काम चल जाए।"
वो मिलिट्री हैडक्वार्टर जगमोहन के पास पहुंचे।
दो जवान कमरे के बंद दरवाजे के बाहर मौजूद थे। वो दरवाजा खोलकर भीतर प्रवेश कर गए। जगमोहन पर बैठा कॉफी के घूंट ले रहा था। देवराज चौहान को देखते ही चौंक कर कहा।
"तुम तो इस वर्दी में काफी जंच रहे हो।"
"ये ही मैंने कहा था।" भुल्ले ने तुरंत सिर हिलाया।
देवराज चौहान मुस्कुराया और कुर्सी पर जा बैठा। भुल्ले भी बैठ गया और जगमोहन को फोन दिया। उसे देवराज चौहान के फोन का नंबर बता दिया। देवराज चौहान, जगमोहन के फोन का नंबर, पहले ही जान चुका था।
"मिलने आने का वक्त कम मिलेगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "फोन पर बात हो जाएगी हमारी।"
जगमोहन ने सिर हिलाया।
देवराज चौहान उठा और बाथरूम की तरफ बढ़ गया।
"कॉफी मंगवा लो।" जगमोहन ने भुल्ले से कहा।
"देवराज चौहान का मन होगा तो...।" आज दिन भर देवराज चौहान व्यस्त रहा।
"तो काम शुरू कर दिया?" जगमोहन सामान्य ढंग से बोला।
"हां।"
"मुझे खामख्वाह यहां बिठा रखा है। मैं भी देवराज चौहान के साथ काम करता।" जगमोहन ने गहरी सांस ली।
"वो वक्त भी जल्दी आएगा।" भुल्ले मुस्कुराया।
देवराज चौहान पांच मिनट बाद बाथरूम से लौटा और कुर्सी पर आ बैठा।
"कॉफी चलेगी?"
"नहीं।" देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई--- "तुम ठीक हो?"
"एकदम बढ़िया। रात बहुत अच्छा खाना खाया।" जगमोहन ने मुस्कुरा कर कहा--- "भुल्ले ने बताया कि तुम काम पर लग गए हो।"
"हां, जब काम करना है तो देर क्यों करनी।" देवराज चौहान ने कहा।
आधा घंटा वहां रहने के बाद देवराज चौहान और भुल्ले वहां से चल पड़े।
कार पर बंगले पहुंचे। भुल्ले खान सुबह आने को कहकर चला गया। देवराज चौहान ने नहा-धोकर कपड़े बदले और एक पैग तैयार करके कुर्सी पर आ बैठा, इस तरह कि कमरे के दरवाजे को देख सके। घूंट लेने के बाद गिलास टेबल पर रखा और नंबर मिलाकर मोबाइल कान से लगा लिया। बेल गई फिर कानों में वसीम राणा की आवाज पड़ी।
"हैलो।"
"राणा।" देवराज चौहान धीमे स्वर में बोला।
क्षण भर की चुप्पी के बाद वसीम राणा की आवाज कानों में पड़ी।
"देवराज चौहान?"
"हां, मैं ही हूं।"
"क्या सुन रहा हूं कि तुम पाकिस्तान मिलिट्री से मिल गए हो, क्या ये सच है?"
"अभी तक तो सच ही है।" आवाज बेहद मध्यम थी।
"क्या मतलब?"
"ये जरूरी हो गया था, अगर मैं ऐसा ना करता तो मुझे और जगमोहन को मार देते। तुम भी ना बचते।"
वसीम राणा के गहरी सांस लेने की आवाज आई।
"जगमोहन कहां है? मेरे भेजे मास्टर ने सिर्फ तुम्हारी वर्दी का ही नाप लिया था?"
"वो अभी कैद में है। पहले मिलिट्री वाले मुझे चैक कर लेना चाहते हैं कि मैं सच में उनसे मिल चुका हूं।"
"और तुम क्या सच में उनसे मिल चुके हो?"
"नहीं।"
"इसका मतलब अब कोई नई मुसीबत खड़ी होने वाली है।"
"जरूरी होगा ऐसा ही। तभी तो मैंने तुम्हें फोन किया है।" देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा।
"क्या कहना चाहते हो?"
"तुम मेरे और जगमोहन के बहुत काम आए राणा। तुम---।"
"ये कैसी बातें कर रहे हैं, मेरा सब कुछ तुम्हारा दिया ही तो है।" राणा की आवाज आई।
"वो तुम्हारी मेहनत थी। तुम डकैती में शामिल हुए और अपना हिस्सा ले गए। बीती बातों को छोड़ो और अब की बात सुनो। मैं जगमोहन के साथ वापस हिन्दुस्तान जाने वाला हूं।"
"ये-ये कैसे हो सकता है?"
"होने वाला है। शायद परसों तक हो भी जाए। ऐसा हो जाने के बाद, इंटेलिजेंस वाले तुम्हें नहीं छोड़ने वाले। तुम पूरी तरह खतरे में पड़ जाओगे। वो तुम्हें गिरफ्तार कर लेंगे। बर्बाद कर देंगे। ऐसा ही होगा राणा।"
दो पलों की खामोशी के बाद उधर से राणा ने कहा।
"मुझे पता लगा है कि भुल्ले खान सारा दिन तुम्हारे साथ रहा।"
"हां।"
"वो तुम्हारे साथ इसलिए है कि तुम पर नजर रख सके।"
"जानता हूं।"
"तो इस स्थिति में तुम जगमोहन के साथ कैसे फरार हो सकते हो। भुल्ले खान हर पल तुम्हारे साथ है उधर जगमोहन मिलिट्री हैडक्वार्टर में कैद है और वहां से किसी को निकालना असंभव है।"
"मेरी योजना बन रही है, तुमसे कहा तो है।"
"मुझे विश्वास नहीं होता कि तुम सफल रहोगे।"
"मेरी कोशिश है कि मैं सफल हो जाऊं। शायद हो भी जाऊंगा। मुझे अपनी योजना में कोई कमी नजर नहीं आ रही।"
वसीम राणा की आवाज नहीं आई।
"अब मेरी बात मानोगे तो बचे रह सकते हो।" देवराज चौहान बोला।
"कैसी बात?"
"अपना सामान पैक करो और अपने परिवार के साथ सरहद पार करके हिन्दुस्तान पहुंच जाओ।"
"वहां पहुंचकर मैं क्या करूंगा। मेरा सब कुछ तो यहां है।"
"जिंदगी रही तो तुम कुछ सालों बाद वापस लौट सकते हो। वरना पाकिस्तानी मिलिट्री के लोग तुम्हें मार देंगे। वहां पर मैं तुम्हें सैट कर दूंगा। तुम्हें बिजनेस करा दूंगा। अगर मेरी प्लानिंग फेल हो गई। मैं नहीं निकल सका तो सोहनलाल से मिल लेना। वो मुंबई में है। उसका फोन नंबर सुन लो।" देवराज चौहान ने सोहनलाल का नंबर बताया।
"ये वो ही सोहनलाल है ना, जो हमारे साथ तब डकैती में शामिल था?"
"वो ही है। तुम उसे पहचान लोगे। वो भी तुम्हें पहचान लेगा। उसे सब कुछ बता देना, वो तुम्हारी पूरी सहायता करेगा और तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होने देगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"और तुम जगमोहन के साथ यहां फंसे रह जाओगे।"
"मैं और जगमोहन निकल आएंगे। बहुत कम चांस है कि हम फंसें।"
वसीम राणा की आवाज नहीं आई।
"ये सोचने का वक्त नहीं है। तुम्हारे पास समय कम है। तैयारी शुरू कर दो। कोई ऐसा इंसान ढूंढो कि जो तुम्हें और तुम्हारे परिवार को सीमा पार करा दे। मिलिट्री वालों का अगला निशाना तुम बनने वाले हो। मैं परसों दिन में हरकत में आ जाऊंगा। तब तक तुम्हें सीमा पार कर जानी है।" देवराज चौहान के स्वर में गंभीरता थी--- "तुम पाकिस्तान में कहीं भी छिप सकते हो, लेकिन यहां तुम्हारे पकड़े जाने का खतरा है। वहां तुम आजाद जिंदगी जी सकते हो।"
"ठीक है।" वसीम राणा का सोच भरा स्वर कानों में पड़ा--- "तुमने जैसा कहा है, मैं वैसा ही करता हूं।"
"कल रात तक पाकिस्तान से निकल जाओ, वरना परसों तक वो लोग तुम्हें पकड़ लेंगे।"
"मैं कल परिवार के साथ दुबई के लिए फ्लाइट ले लूंगा। दुबई से मुंबई की फ्लाइट ले लूंगा। दुबई से इंडिया का वीजा लगवा दूंगा। वहां मेरी जान-पहचान है।"
"जैसे भी करो, पाकिस्तान से निकलना अब तुम्हारा काम है।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
सोचों में डूबे देवराज चौहान ने गिलास खाली किया।
तभी उसका मोबाईल बज उठा।
"हैलो।" देवराज चौहान ने बात की।
"तुमने बाथरूम में कोई पत्ता रखा था?" जगमोहन की धीमी आवाज कानों में पड़ी।
"उसे बाथरूम में ही रहने देना। कमरे में सी•सी•टी•वी• कैमरा लगा...।"
"वो बाथरूम में ही है। उसी बाल्टी के नीचे। तुम क्या करने वाले...।"
"मैं तुम्हें कुछ देर बाद फोन करता हूं।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।
सिग्रेट सुलगा ली।
तभी नौकर तंदूरी चिकन रख गया।
"कुछ और चाहिए जनाब जी?"
"ये भी ज्यादा है।" देवराज चौहान बोला।
"मैंने बहुत मेहनत से बनाया है। आपको जरूर बढ़िया लगेगा।" कहकर वो चला गया।
देवराज चौहान ने थोड़ा चिकन खाया वो वास्तव में बहुत बढ़िया बनाया गया था। उसके बाद फोन उठाकर गफूर अली के नंबर मिलाए। गफूर का नंबर उसने दिन में ही याद कर लिया था।
"हैलो।" उधर से गफूर की आवाज आई।
"कैसे मिजाज हैं गफूर अली?"
"ओह जनाब मेजर साहब। मैंने आपकी आवाज पहचान ली। हुक्म दीजिए।"
"मैंने तुम्हारा टेस्ट लेना है। अगर तुम टेस्ट में खरे उतरे तो, तुम्हें बहुत महत्वपूर्ण काम दूंगा और साथ में ढेर सारा पैसा भी। मेरे साथ काम करने से इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट में तुम्हारी इज्जत भी बढ़ जाएगी।"
"आप हुक्म तो दीजिए। कब मेरा टेस्ट लेना है?" गफूर अली की आवाज आई।
"परसों दिन में किसी भी वक्त तुम्हें फोन करूंगा। तुम्हें तैयार रहना है। टेस्ट तुम्हारा इस्लामाबाद से लेकर सरहद पार तक होगा। तुम्हें दो लोगों को सीमा पार पहुंचाना होगा बिना किसी खतरे में। जबकि पीछे मिलिट्री लगी होगी। सीमा पर भी चौकसी बढ़ा दी जाएगी। ऐसे में तुम उन दोनों को कैसे सीमा पार पहुंचाते हो, यही देखना है। वक्त की कोई पाबंदी नहीं है। काम सफलतापूर्वक हो जाना चाहिए। तभी तुम टेस्ट में पास माने जाओगे।"
"समझ गया जनाब। गफूर का काम हमेशा बढ़िया रहता है।"
"इस काम में सबसे खास बात है कि इस बात का तुमने किसी से जिक्र नहीं करना है। सारा काम गुपचुप होगा। पीछे लगे मिलिट्री वाले जानते हैं कि ये टेस्ट है परंतु वो पूरी कोशिश करेंगे कि तुम्हें रास्ते में ही पकड़ लें। तुम्हें फेल कर दें। तुमने अगर साबित कर दिया कि तुम उनसे तेज हो तो तुम्हें मेरे साथ काम करने का मौका और तगड़े नोट मिलेंगे।"
"समझ गया जनाब जी। आप मेरा कमाल देखना।"
"तुम अब किसी से भी जिक्र नहीं करोगे कि मैं परसों तुम्हारा टेस्ट लेने जा रहा हूं।"
"किसी से नहीं कहूंगा जनाब जी।"
"इस वक्त कहां हो?"
"अपने घर पर। वैसे कल सुबह मैंने सरहद पार जाने के लिए निकलना था, परंतु अब नहीं जाऊंगा।"
"ठीक है। अपना फोन का स्विच ऑफ कर दो। अब तुम किसी से भी बात नहीं करोगे। परसों सुबह छः बजे फोन को ऑन करोगे और मेरे फोन का इंतजार करोगे। ये जान लो कि ये टेस्ट, गुप्त मिशन की तरह है। अगर बात खुल गई तो फिर तुम इस मामले से बाहर कर दिए जाओगे। तुम्हारा चुप रहना भी, इस टेस्ट का हिस्सा है।"
"बिल्कुल समझ गया। लगता है इस टेस्ट के बाद कोई बड़ा काम होने वाला है।" उधर से गफूर अली की आवाज आई।
"सही कहा तुमने। बहुत बड़ा और बहुत ही महत्वपूर्ण। इसी से समझ लो कि तुम्हारी काबिलियत को जांचने के लिए, जो दो लोग तुम्हारे पास आएंगे, उनमें से एक मैं होऊंगा, दूसरा अन्य ऑफिसर्स होगा। हम दोनों को तुमने सबसे बचाकर सीमा पार करानी है।" देवराज चौहान बोला--- "तभी तुम 'पास' माने जाओगे। इसलिए जरूरी है कि रास्ते में पड़ने वाले अपने कॉंटेक्टों को पहले से ही तैयार रखो। सारा काम तेजी से होना चाहिए। ये तुम्हारा इम्तिहान है।"
"गफूर अली से बात करके फोन बंद किया और अपना गिलास उठाकर छोटे से बार के पास पहुंचा और नया पैग तैयार करने लगा। तभी उसी नौकर ने भीतर कदम रखा।
"चिकन कैसा लगा जनाब?"
"बहुत बढ़िया।" देवराज चौहान उसे देखकर मुस्कुराया--- "तुम मुझे खिला-खिलाकर मोटा कर दोगे।"
वो खुश होकर वापस चला गया।
देवराज चौहान ने घूंट भरा और वापस आ बैठा गिलास टेबल पर रखा और चिकन खाने लगा वो जानता था कि वो जो करने वाला है, वो मौत का खेल है। ऐसा खेल जिसमें जान जाना साधारण बात थी, परंतु इसके अलावा उसके पास कोई और रास्ता भी नहीं था। वो और जगमोहन बुरी तरह फंस चुके थे। बच निकलने की कोई भी गुंजाइश नजर नहीं आ रही थी। गोरिल्ला को बचाते-बचाते अपनी जान की पड़ गई थी। पाकिस्तानी मिलिट्री उसे हिन्दुस्तान में आतंक फैलाने के लिए इस्तेमाल करना चाहती थी, ये काम तो वो कभी भी नहीं कर सकता था। ऐसे में उसने जगमोहन के साथ बच निकलने का जो प्लान बनाया था, वो बेहद खतरनाक था। आर-पार का मामला होने वाला था अब सब कुछ गफूर अली पर निर्भर था कि वो अपना काम कैसे निभाता है। आधा खेल देवराज चौहान ने खेला था और बाकी का आधा गफूर अली ने पूरा करना था। मौत के खेल का अंजाम क्या होगा, देवराज चौहान नहीं जानता था।
देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन किया।
बात हो गई।
"मेरी सुनो।" देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा--- 'परसों सुबह ग्यारह-बारह के आसपास मैं तुम्हारे पास आऊंगा। मेरे वहां पहुंचने के पन्द्रह मिनट पहले, उस दवा के पत्ते की दो गोलियां एक साथ खा लेना। उससे तुम्हारी तबीयत बिगड़ जाएगी।"
"समझ गया--- फिर?"
"मैं यहां से निकल जाने का प्लॉन कर रहा हूं।" देवराज चौहान ने कहा।
"हम सफल होंगे?" जगमोहन ने उधर से चौंककर कहा।
"कह नहीं सकता। परंतु हम कोशिश करने जा रहे हैं। सफल भी हो सकते हैं और नहीं भी। परंतु परसों हम हरकत में आ रहे हैं। हम बुरी तरह फंसे पड़े हैं और परसों निकलने की कोशिश करनी है।"
"सतर्कता से काम करना। ये मिलिट्री हैडक्वार्टर...।"
"मेरे प्लॉन पर इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो मिलिट्री हैडक्वार्टर है। बल्कि इसका फायदा ही मिलेगा...।"
"तुम्हारा प्लान क्या है?"
देवराज चौहान धीमे स्वर में अपना प्लॉन बताने लगा।
सब कुछ सुनने के बाद जगमोहन का गंभीर स्वर कानों में पड़ा।
"प्लॉन तो मुझे पसंद आया "
"प्लॉन वो ही बढ़िया होता है, जो सफल हो जाए। नहीं तो वो बढ़िया नहीं होता।" देवराज चौहान ने कहा--- "देखना ये है कि हम परसों कितना सफल हो पाते हैं या पकड़े जाते हैं। इस बार पकड़े गए तो फिर बचने की गुंजाइश नहीं होगी। या तो बचेंगे, या पूरी तरह फंस चलेंगे। काम के वक्त हालात कैसे करवट लेते हैं, इस पर बहुत कुछ निर्भर होगा।"
""तुमने कहा कि तब भुल्ले खान तुम्हारे साथ होगा। वो मुसीबत खड़ी कर...।"
"तब भुल्ले खान का साथ होना, हमें फायदा देगा। उसी का तो फायदा उठाना है। तब वो मेरे प्लॉन पर काम कर रहा होगा और वो सोचेगा कि सामान्य सी घटना है, अपनी समझ से काम ले रहा है।"
"उसे समझ में तो नहीं आएगा कि हम चाल खेल रहे...।"
"सब कुछ उसकी आंखों के सामने होगा। ऐसे में उसे शक करने का वक्त नहीं मिलेगा। तुम परसों ग्यारह या सवा ग्यारह के बीच मुझे फोन करना कि तुम्हें घबराहट हो रही है। उसके बाद मैं यहां से चलूंगा। मेरे साथ भुल्ले खान भी होगा। तीन-चार किलोमीटर का रास्ता है हैडक्वार्टर का। यहां से निकलकर तुम तक पहुंचने में कठिनता से पन्द्रह मिनट लगेंगे। मतलब कि फोन करने के बाद तुमने दवा की दो गोलियां खा लेनी हैं और दवा का बाकी पत्ता बाथरूम में ऐसी जगह छुपा देना है, कि किसी की नजर उस पर ना पड़े। ये काम तुमने सावधानी से करना है। सी•सी•टी•वी• कैमरे की नजर से बचकर करना है।"
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