उन्नीस जुलाई 2022

सत्यप्रकाश अंबानी का घर किसी मैरिज हॉल की तरह खूब सजा धजा दिखाई दे रहा था। मानसिकता उसकी चाहे जैसी भी रही हो, मगर दिखावे में पूरा पूरा यकीन रखता था, इसलिए ऐसे किसी सेलिब्रेशन पर जी खोलकर खर्च करने से पीछे नहीं हटता था।

कुल जमा चालीस लोगों को सपरिवार पार्टी में आमंत्रित किया गया था, जिसमें से पच्चीस के करीब फेमिलीज रात नौ बजे तक वहाँ अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी थीं, जिनकी कुल जमा संख्या सत्तर से कहीं ज्यादा थी, जबकि बाकी के लोगों का वहाँ पहुँचना अभी बाकी था।

बारिश का मौसम होने के कारण पार्टी का इंतजाम इमारत के कंपाउंड में न कर के बेसमेंट में किया गया था, जो कि पूरा का पूरा खाली पड़ा था, यानि वहाँ कोई कमरा बनाने की कोशिश नहीं की गयी थी, जैसा कि बेसमेंट का इस्तेमाल अगर पॉर्किंग के लिए न किया जा रहा हो तो आम देखने को मिल जाता है।

बाईं दीवार के साथ एक खूब बड़ा किंतु टेम्परेरी बार काउंटर बनाया गया था, उसके आगे क्रमशः कोल्ड ड्रिंक, जूस, आईसक्रीम, गोलगप्पे, और स्वीट्स का इंतजाम था, जबकि सामने वाली दीवार के साथ दोनों सिरों पर डिनर का अरेंजमेंट किया गया दिखाई दे रहा था। दो जगहों पर इसलिए क्योंकि वहाँ पहुँचने वाले मेहमानों में वेजीटेरियन और नॉन वेजीटेरियन दोनों तरह के लोगों का नाम शुमार था।

हॉल में ही एक तरफ बैंड का अरेंजमेंट था, जहाँ अस्थाई तौर पर तैयार किये गये एक फुट भर ऊंचे प्लेट फॉर्म पर नौजवान लड़के-लड़कियां डांस कर रहे थे। अलबत्ता धुन ज्यादा लाउड नहीं थी इसलिए किसी को नाच गाना अगर नहीं भी पसंद था तो उसे कोई खास परेशानी नहीं होने वाली थी।

अंबानी उस वक्त आइवरी कलर की शेरवानी पहने हुए था, जबकि शीतल सुर्ख लाल रंग के गाउन में बिजली सी कौंधाती जान पड़ती थी। खूबसूरत तो वह थी ही, मगर आज उसकी खूबसूरती निखर कर सामने आ रही थी। उन्हें देखकर यूँ प्रतीत होता था जैसे पार्टी उनकी मैरिज एनिवर्सरी की न होकर शादी की थी।

हस्बैंड-वाइफ दोनों मेहमानों के बीच विचरते हुए उनकी शुभकामनायें इकट्ठी कर रहे थे, धन्यवाद अदा कर रहे थे, जबकि आकाश अंबानी एक कोने में अपने तीन दोस्तों के साथ खड़ा ड्रिंक का आनंद ले रहा था।

अनंत गोयल भी वहाँ पहुँच चुका था, मगर हैरानी की बात थी कि वह अकेला नहीं था, काव्या अग्रवाल उसके साथ थी और इस वक्त दोनों बीयर चुसकते हुए घुट-घुटकर बातें कर रहे थे।

उस वक्त दस बजे थे, जब सत्यप्रकाश की निगाह विक्रम राणे पर पड़ी। उसे वहाँ देखकर वह हैरान ज्यादा हुआ या उसे गुस्सा ज्यादा आया, अंदाजा लगा पाना आसान काम नहीं था, मगर इस बात में कोई शक नहीं था कि राणे को देखकर उसके चेहरे के भाव एकदम से बदल गये।

शीतल उसकी बाहों में बाहें डाले खड़ी थी, जिसे जबरन छुड़ाकर उसने आगे बढ़ने की कोशिश की, मगर बढ़ नहीं सका क्योंकि शीतल वैसी किसी स्थिति के लिए पहले से तैयारी किये बैठी थी।

उसने लपककर पति का हाथ फिर से पकड़ लिया और थोड़ा तेज आवाज में, जिसे अंबानी वहाँ बज रहे म्युजिक के शोर में सुन लेता, बोली- “क्या हुआ, कहाँ जा रहे हो?”

“हाथ छोड़ो, अभी आता हूँ।”

“मत जाओ प्लीज।” वह पति के सामने खड़ी हो गयी और मद भरी निगाहों से उसकी आँखों में झांकती हुई बोली – “तुम गुस्से में लग रहे हो स्वीट हॉर्ट, और जब भी क्रोधित होते हो तो कुछ ना कुछ गड़बड़ कर के ही मानते हो। किसी और का नहीं तो कम से कम मेहमानों का ही ख्याल करो, क्या सोचेंगे ये लोग?”

“इस साले की मजाल कैसे हुई मेरे घर में कदम रखने की?”

“किस साले की डॉर्लिंग, मेरा तो कोई भाई भी नहीं है।”

“मैं विक्रम राणे की बात कर रहा हूँ।” शीतल के मजाक को नजरअंदाज कर के वह बोला – “कमीना कहीं का, जरा बेशर्मी तो देखो उसकी, मुफ्त की दावत उड़ाने पहुँच गया।”

“अब जाने भी दो, घर आये मेहमान को जलील करना क्या तुम्हें शोभा देता है?”

“कमाल है।” सत्यप्रकाश पहले से कहीं ज्यादा हैरानी से बोला – “यहाँ तो अजीत मजूमदार भी पहुँचा हुआ है। ये चल क्या रहा है? किसने बुलाया इन दोनों को?”

“हे भगवान्, अरे तुम समझते क्यों नहीं? क्यों अपना मूड खराब कर रहे हो? दो लोग अगर एक्स्ट्रा आ भी गये हैं तो कौन सी आफत आ गयी? खा पीकर चले जायेंगे।”

“आये ही क्यों, मैंने क्या इन्हें निमंत्रण भेजा था?” कहकर उसने संदेह भरी नजरों से बीवी को देखा – “मेहमानों की लिस्ट तो तुमने और आकाश ने मिलकर तैयार की थी, कहीं तुम दोनों ने ही तो इन्हें नहीं बुला लिया?”

“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, जबकि मुझे तो यही नहीं मालूम कि कौन विक्रम राणे है और कौन अजीत मजूमदार? और रही बात आकाश की तो वह भला ऐसे लोगों को पार्टी में क्यों बुलाने लगा, जिन्हें तुम नापसंद करते हो?”

“मैं अभी दोनों को निकाल बाहर करता हूँ।”

“अरे थोड़ा तो अक्ल से काम लो।” इस बार शीतल थोड़ा गुस्से से बोली – “तुम पार्टी खराब करना चाहते हो। अगर ऐसा है तो साफ बोलो, मैं अभी भीतर चली जाती हूँ, फिर जो मन में आये करना क्योंकि इतने मेहमानों के सामने मैं बेइज्जत नहीं होना चाहती।”

“तुम्हारी बेइज्जती कौन कर रहा है?” सत्य ने हैरानी से पूछा।

“तुम जब घर आये मेहमान को, भले ही वो लोग अनइन्वाइटेड गेस्ट ही क्यों न हों, बाहर का रास्ता दिखाओगे तो इसमें बेइज्जती नहीं होगी तो क्या हमारा मान बढ़ेगा? कल को हँसेंगे लोग तुम पर, बोलेंगे कि सत्यप्रकाश को दो मेहमानों खर्च इतना भारी पड़ गया कि उन्हें घर से निकाल बाहर किया। बोलो क्या तुम यही चाहते हो?”

इस बार सत्य ने कोई जवाब तो नहीं दिया, मगर अपने गुस्से को शांत करने कोशिशें जरूर शुरू कर दीं। फिर कुछ देर बाद शीतल की तरफ देखकर मुस्कराता हुआ बोला- “डोंट वरी, पार्टी खराब नहीं होने दूँगा।”

“थैंक यू, सो मच।” शीतल बोली – “अब मुझसे वादा करो कि वह दोनों या वैसा ही कोई तीसरा चौथा हमें विश करने के लिए करीब भी चला आया तो तुम भड़कोगे नहीं, मुस्कराकर उन्हें थैंक यू बोलोगे जैसा कि बाकी मेहमानों के साथ करते आये हो।”

“नहीं भड़कूंगा प्रॉमिस, मगर यह वादा सिर्फ आज रात के लिए है। कल मैं राणे और मजूमदार दोनों की खूब खबर लेने वाला हूँ।”

“मेरी तरफ से बेशक गोली मार देना, मगर अभी शांत रहना है तुम्हें।”

“अरे कहा तो नहीं भड़कूंगा, उड़ा लेने दो दावत सालों को, कल सारा खाया पिया बाहर नहीं निकाल दिया तो मेरा भी नाम सत्यप्रकाश अंबानी नहीं।” कहकर कुछ क्षण चुप रहने के बाद वह बोला – “जरा मेहता साहब के पास चलो, लगता है हमें ही ढूंढ रहे हैं।”

उसने शीतल का हाथ थामा और बाईं तरफ को बढ़ चला, जहाँ खड़े एक बुजुर्गवार इधर-उधर निगाहें दौड़ाकर उन्हें तलाशने की कोशिश कर रहे थे।

तभी सीढ़ियों के पास खड़ा निशांत मौर्या उसे दिखाई दिया।

“ये तो हद ही हो गयी।” सत्यप्रकाश बुरी तरह तिलमिला उठा।

“अब क्या हुआ?”

“निशांत मौर्या, बस इसी कमीने की शक्ल देखना बाकी रह गया था।”

“अब जाने भी दो यार।”

“लेकिन आया क्यों है ये मेरी पार्टी में?”

“अपनी माँ चु... आया है।” शीतल बुरी तरह झल्ला उठी।

“गुस्सा क्यों होती है, मैं कुछ कहने थोड़े ही जा रहा हूँ उनसे।”

“मगर भूल फिर भी नहीं सकते, जबकि अभी-अभी वादा कर के हटे हो कि...।”

“समझ लो भूल गया, मगर हैरानी है कि बिन बुलाये ये लोग कैसे बेशर्मों की तरह मुफ्त की दावत उड़ाने यहाँ पहुँच गये।”

“सत्य!” शीतल ने आँखें तरेरीं।

“अरे मैं उन्हें भगा थोड़े ही रहा हूँ। अब तुमसे वादा कर ही लिया है तो अभी के लिए हर किसी का स्वागत है, भले ही वह साला कोई भी क्यों न हो।”

“तुम्हें आज अपने सालों की बहुत याद आ रही है।”

“काश तुम्हारी माँ ने एक औलाद और पैदा की होती।”

“वो तो करना चाहती थीं, मगर डैड को कबूल नहीं हुआ।”

“कमाल है, जबकि लड़के की ख्वाहिश तो हर किसी को होती है।”

“उन्हें ऐसी कोई चाह नहीं थी।” कहकर उसने सामने की तरफ देखते हुए

अपने दोनों हाथ जोड़ दिये – “नमस्ते अंकल।”

“नमस्ते बेटी, शादी की सालगिरह बहुत-बहुत मुबारक हो तुम दोनों को। बहुत देर से तलाश रहा था, कहीं दिखाई ही नहीं दे रहे थे।”

“अब तो दिख गये न मेहता साहब।” सत्य हँसता हुआ बोला।

“हाँ भाई, अब तो एकदम साफ नजर आ रहे हो।” कहकर उसने अपने हाथ में थमा एक गिफ्ट पैकेट उनकी तरफ बढ़ा दिया – “इस बाप की तरफ से एक छोटा सा तोहफा है तुम दोनों के लिए।”

“थैंक यू अंकल।” शीतल ने यूँ मुस्करा कर दिखाया जैसे उसका तोहफा पाकर धन्य हो गयी हो।

दोनों यूँ ही मेहमानों के बीच विचरते रहे। उनकी शुभकामनाएं हासिल करते, धन्यवाद देते और किसी नये मेहमान की तरफ बढ़ जाते। उस दौरान सत्य की मुलाकात राणे, मजूमदार और मौर्या से भी हुई। तीनों ने उसे बधाई दी, जिसे अंबानी ने मशीनी अंदाज में, खुद को बामुश्किल जब्त कर के कबूल किया और फौरन उनके पास से हट गया क्योंकि उसे डर था कि अगर बातचीत शुरू हुई तो शीतल से किया वादा भूल जायेगा, फिर जो न कर बैठता वही कम होता।

पार्टी रात ग्यारह बजे तक उठान पर रही, फिर धीरे-धीरे मेहमान वहाँ से विदा होने लगे। और बारह बजते बजते बेसमेंट पूरी तरह खाली हो गया। तत्पश्चात नौकरों के खाना खाने की बारी आई, जिन्हें वहाँ छोड़कर सत्य और शीतल सीढ़ियों के रास्ते ऊपर बैठक में पहुँचे, जहाँ शीतल ने उसे जबरन सोफे पर धकेला और उसकी गोद में सिर रखकर लेट गयी।

सत्यप्रकाश अंबानी तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि पार्टी में मौजूद दो मेहमान ऐसे भी थे, जो वहाँ से निकलकर बाहर जाने की बजाय आकाश के कमरे में जा घुसे थे। उस काम में कोई अड़चन इसलिए भी नहीं आई क्योंकि बेसमेंट का रास्ता ड्राइंगरूम से होकर ही गुजरता था।

“एक-एक जाम और हो जाये स्वीट हॉर्ट?” शीतल ने पूछा।

“नहीं, मैं पहले ही बहुत पी चुका हूँ।”

“क्या फर्क पड़ता है, रात अपनी है, घर अपना है।”

“तुम तो एकदम बेवड़ी होती जा रही हो।” सत्य हँसता हुआ बोला।

“गलत कह रहे हो, जबकि अच्छी तरह से जानते हो कि मैं रोज-रोज ड्रिंक नहीं करती। हाँ, जब करती हूँ तो जमकर करती हूँ। आज हमारी लाइफ का सबसे बड़ा दिन है, फिर कंजूसी क्यों? ड्रिंक मंगाओ प्लीज।”

“सिर्फ एक-एक जाम।”

“ऑफ़कोर्स, उसके बाद हम बेडरूम में चलेंगे, जहाँ तुम होगे, मैं होऊंगी,

और हमारे साथ होगी आज की हसीन रात। देखना मैं तुम्हें कैसे कच्चा चबा जाती हूँ।”

“जबकि वेजिटेरियन हो।” सत्य हँसा।

“अब मंगाओ भी, क्यों बोर कर रहे हो?”

“ठीक है।” कहकर सत्यप्रकाश ने आवाज लगाई – “सुमन! ओ सुमन! अरे सुन भी रही है या नहीं?”

“बेसमेंट में होगी।”

“नहीं, वहाँ नहीं थी।”

तभी सुमन उनके सामने आ खड़ी हुई।

“आपने बुलाया सर?”

“हाँ बुलाया, मेरे और मैडम के लिए ड्रिंक लेकर आ नीचे से, चाहे तो अपने लिए भी ले आना।”

“मैं ड्रिंक नहीं करती सर।”

“वैसे ही जैसे कि मैं नहीं करता, है न?” सत्य हँसा।

“मैं सच में नहीं करती।”

“झूठ मत बोल, कम से कम मेरे आगे तो नहीं चलने वाला।”

“आपने मुझे ड्रिंक करते देखा है कभी?”

“हाँ कई बार।”

“हे भगवान्! फिर भी नौकरी से नहीं निकाला?”

“कैसे निकाल सकता हूँ सुमन? तू तो मेरी जान है।”

लड़की सकपकाई।

“ये तुम्हारी जान है डॉर्लिंग?” उसकी गोद में लेटी शीतल गुस्सा होने की बजाय हँसकर बोली – “तो मैं कौन हूँ?”

“सॉरी, मैं गलत बोल गया, अभी करेक्शन करता हूँ। हाँ तो मैं ये कह रहा था सुमन कि तू इस घर की जान है। तू होती है तो घर हरा-भरा दिखाई देता है। फिर अभी तो तेरे खेलने खाने की उम्र है, क्या फर्क पड़ता है अगर कभी कभार घूंट मार लेती है तो?”

“इसकी और मेरी उम्र बराबर है डॉर्लिंग।” शीतल तुनककर बोली – “मुझे तो कभी नहीं कहा कि ये मेरी खेलने खाने की उम्र है।”

“इसलिए नहीं कहा स्वीट हॉर्ट क्योंकि तू पहले से ही खेल रही है, और खा भी खूब रही है। अभी थोड़ी देर पहले प्लॉनिंग नहीं कर रही थी मुझे कच्चा चबा जाने की?”

उस बात पर शीतल ने जोर से ठहाका लगाया।

“अब खड़ी-खड़ी हमारा मुँह क्या देख रही है, लेकर आती क्यों नहीं?”

“अभी लायी।” कहकर वह सीढ़ियों की दिशा में आगे बढ़ गयी।

“तुमने माइंड तो नहीं किया?” सत्य ने पूछा।

“क्या?”

“वो ‘जान’ वाली बात?”

“क्या फर्क पड़ता है अंबानी साहब, सुमन अच्छी लड़की है, खूबसूरत और हॉट भी है। मेरी तरफ से तुम्हें खुली छूट है। जितना चाहे मजे कर सकते हो उसके साथ।”

“हाँ, खूबसूरत और हॉट तो बराबर है।”

“और मजे करने लायक भी है। तुम कहो तो मैं कंविंस करूं उसे तुम्हारे लिए?”

“पागल हो गयी है, भूल गयी कि तू मेरी बीवी है।”

“तभी तो तुम्हारा इतना ख्याल है मुझे।”

“नहीं, तुझे उस मामले में कुछ भी करने की जरूरत नहीं है।”

“यानि पहले से ही पटी पटाई है।”

“कैसी बात करती है, नशा उड़ जायेगा।”

“नहीं उड़ेगा, बताओ न। क्या सुमन के साथ मजे कर चुके हो? सच बोलना, मैं जरा भी बुरा नहीं मानूंगी।”

“अरे तू पागल तो नहीं हो गयी है।” कहकर वह जोर से हँसा।

तभी सुमन वापिस लौट आई।

“अब क्या ड्रिंक भी लेटकर ही करोगी?”

“नहीं लेटकर तो कुछ और करूंगी।” कहती हुई वह उठ बैठी, फिर सुमन की तरफ देखकर बोली – “दफा हो यहाँ से, या सेक्स करते देखकर ही जायेगी?”

“कैसी बात करती हैं मैडम?” वह हड़बड़ाकर बोली।

“तो फिर जाती क्यों नहीं?”

जवाब में एक शब्द मुँह से निकाले बिना वह अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी। उसके पीठ पीछे मियां-बीवी ड्रिंक करने में मशगूल हो गये। सही मायने में वह शीतल का पहला ड्रिंक था। उससे पहले पार्टी में तो वह बस गिलास को मुँह तक ले जाने का दिखावा भर करती आ रही थी, जबकि सत्यप्रकाश अंबानी टल्ली हो चुका था। ऐसे में व्हिस्की का नया डोज बेशक उसके होशो हवास गायब कर देने वाला था।

शीतल ने गिलास से दो तीन घूंट भरे फिर सोफे पर यूँ गिर गयी जैसे नशे में बेसुध हो गयी हो।

सत्यप्रकाश ने अगले पांच मिनटों में वह जाम खत्म किया फिर बीवी को आवाज लगाकर उठाने की कोशिश करने लगा, मगर शीतल टस से मस नहीं हुई। आखिरकार हार मानकर लड़खड़ाते कदमों से वह बेडरूम में पहुँचा और बिस्तर पर ढेर हो गया।

उसके जाने के काफी देर बाद तक शीतल ज्यों की त्यों सोफे पर पड़ी रही। उस दौरान उसने कैटरिंग सर्विस के लोगों को बाहर जाते देखा, मगर अपनी जगह से हिली तक नहीं।

फिर रात पौने एक बजे के करीब घर के नौकर ऊपर पहुँचे और ड्राइंगरूम से होकर बाहर निकल गये। वह सब के सब कंपाउंड में बने सर्वेंट क्वार्टर में रहते थे, सिवाये मेड के, जिसका मुकाम चौबीसों घंटे घर के भीतर ही हुआ करता था।

शीतल अधखुली आँखों से तमाम नजारा देखती रही। फिर उसे वह दिखाई दिया, जिसके इंतजार में सोफे पर पसरी हुई थी। सुमन अपने कमरे से बाहर निकली और सीढ़ियां उतरकर बेसमेंट में चली गयी। उसके पांच मिनट बाद वापिस लौटकर उसने घर का दरवाजा भीतर से बंद कर दिया, जिसका मतलब ये बनता था कि बेसमेंट में अब कोई नहीं था। तत्पश्चात वह शीतल के पास पहुँची और उसे जगाने की कोशिश करने लगी।

“क्यों परेशान कर रही है।” वह उनींदे स्वर में झुंझलाती हुई बोली – “जाकर सो जा।”

“आपको बेडरूम में छोड़ देती हूँ मैडम।”

“थोड़ी देर बाद मैं खुद चली जाऊंगी, दफा हो यहाँ से।”

“साहब गुस्सा करेंगे।”

“तो खुद जाकर सो जा उनके साथ।”

“कैसी बात करती हैं मैडम, मैं भला क्यों जाऊंगी?”

“तो अपने कमरे में जा, परेशान मत कर मुझे।”

“ठीक है जाती हूँ।” कहकर वह बुरी तरह भिन्नाती हुई आगे बढ़ गयी।

उसका कमरा किचन से सटा हुआ था, जिसका दरवाजा बंद होने की आवाज सुनने के करीब दस मिनट बाद शीतल उठ खड़ी हुई। इस वक्त वह ना तो नशे में थी ना ही नींद में। दबे पांव चलती हुई वह मेड के कमरे तक पहुँची और बिना आवाज किये बाहर से कुंडी लगा दी। फिर बेडरूम के दरवाजे पर पहुँचकर पति पर एक निगाह डाली और आकाश के कमरे में जा घुसी।

तीनों उसी का इंतजार कर रहे थे।

“सब ठीक है?” मौर्या ने पूछा।

“हाँ, अब ठीक है। वह नशे में धुत्त सो रहा है।”

“चलें?” पूछते हुए आकाश ने एक बोतल अपनी भाभी को थमा दिया।

“हाँ चलो।”

चारों मास्टर बेडरूम में पहुँचे।

कमरे में तेज रोशनी थी, जिसे नशे में धुत्त होने के कारण सत्यप्रकाश बंद नहीं कर सका था। वह गहरी नींद में भी पहुँच चुका था, क्योंकि उसके खर्राटों की तेज आवाज उन सबको स्पष्ट सुनाई दे रही थी।

चारों बेआवाज भीतर दाखिल हुए, फिर आकाश ने पलटकर अंदर से की चिटखनी चढ़ा दी।

अनंत गोयल के हाथों में साइलेंसर लगी पिस्टल थी, मौर्या नाइयों के काम आने वाला उस्तरा थामे हुए था, आकाश एक मीट काटने वाले छुरे के साथ वहाँ पहुँचा था, जबकि शीतल के हाथों में थमी बोतल गंधक से भरी हुई थी।

शीतल ने अनंत को गोली चलाने का इशारा किया तो उसने बुरी तरह कांपते हाथों से रिवाल्वर की नाल का रूख सत्यप्रकाश अंबानी की छाती की तरफ किया और दोनों आँखों को कस कर भींचने के बाद, बुरी तरह विचलित अवस्था में ट्रिगर खींच दिया।

उसकी हालत देखकर साफ पता लग जाता था कि इससे पहले उसने कभी पिस्तौल हैंडल नहीं की थी, गोली चलाकर किसी की जान ले लेना तो दूर की बात थी।

फायर की बेहद धीमी आवाज गूंजी, जिसे उन चारों के अलावा कोई और नहीं सुन सकता था। नींद में गोली खाने के बावजूद भी सत्य का मुँह चिल्लाने को एकदम से खुला, जिसे शीतल ने झपट कर हथेली से ढक लिया। उसी वक्त आकाश ने आगे बढ़कर हाथ में थमे छुरे को पूरी ताकत के साथ भाई की छाती में घुसेड़ दिया।

तब तक अंबानी के प्राण शायद निकल चुके थे क्योंकि दूसरे हमले के दौरान उसके शरीर में जरा भी हरकत नहीं हुई।

आकाश ने बड़ी बेरहमी से छाती में घुसा छुरा वापिस खींचा और बेडशीट पर रगड़-रगड़कर उस पर लगा खून साफ करने में जुट गया।

तीसरा हमला निशांत मौर्या ने किया।

हाथ में थमें उस्तरे को सत्य की गर्दन पर रखकर पूरी ताकत से उसका गला रेतता चला गया। उस वक्त उसके चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव दिखाई दिये, जैसे कोई बहुत बड़ा किला फतह कर लिया हो, जैसे सालों से अपने मन में दबी भड़ास को बाहर निकालने में कामयाब हो गया हो।

सबसे आखिर में शीतल की बारी आयी, जिसने बोतल का ढक्कन खोला

और उसमें भरा गंधक पति के चेहरे पर उड़ेलती चली गयी। इस सावधानी के साथ कि उसका कोई छींटा उसके खुद के शरीर पर न आ गिरे।

अपने काम को उसने बड़ी लग्न और हसरत के साथ अंजाम दिया। चेहरे पर किसी भी प्रकार के कोई भाव नहीं थे, दुखी दिखाई देने का तो कोई मतलब ही नहीं बनता था।

गंधक वहाँ फैलने के बाद बदबू का जो तेज भभका उठा, उसने चारों का सांस लेना दूभर कर दिया, मगर बोतल खाली होने तक सब जहाँ के तहाँ खड़े रहे। तत्पश्चात शीतल कमरे में मौजूद खिड़की के पास पहुँची, जिसमें कोई ग्रिल वगैरह नहीं लगी हुई थी। खिड़की का दरवाजा स्लाइड होकर खुलता था, जिसे उसने पूरा का पूरा खोल दिया। उसके बाद सब लोग बाहर निकले और बेडरूम का दरवाजा बंद कर के आकाश के कमरे की तरफ बढ़ गये।

“मर्डर वैपन्स ठिकाने लगाने होंगे।” अंदर पहुँचकर शीतल बोली।

“कहाँ?”

“कहीं किसी सेफ जगह पर, जहाँ से बरामद होने की उम्मीद न हो।”

“सबको एक ही जगह ठिकाने लगाने से अच्छा है...।” निशांत मौर्या बोला – “कि जिसने जो हथियार इस्तेमाल किया है, उसे खुद कहीं दफ्न कर के आये। मैं अपने उस्तरे की पूरी जिम्मेदारी लेता हूँ, तुम लोग अपने हथियारों की लो।”

“उसमें प्रॉब्लम है।” शीतल बोली – “मैं और आकाश इस वक्त यहाँ से बाहर नहीं जा सकते। और कोई नहीं तो सुमन ही किसी काम से बाहर आ सकती है। अभी उसका दरवाजा बाहर से बंद है, मगर जल्दी ही नहीं खोला गया, और उस बीच कहीं उसने ट्राई कर लिया तो हैरान होगी कि क्यों किसी ने रात के वक्त उसे कमरे में बंद कर दिया था।”

“वह भी तुम्हारी प्रॉब्लम है, मैं चलता हूँ अब।” मौर्या उठ खड़ा हुआ।

“जायेंगे कैसे मौर्या साहब?” शीतल का लहजा तिक्त हो उठा।

“मतलब?”

“मेन गेट का रूख कर नहीं सकते, वहाँ गार्ड होंगे।”

“क्या कहना चाहती हो?”

“यही कि तेजाब की बोतल और छुरा आपको अपने साथ ले जाना होगा, बदले में मैं आपकी यहाँ से सेफ निकासी का बंदोबस्त करूंगी। हाँ, रिवाल्वर को ठिकाने लगाने का काम अनंत खुद कर लेगा।”

“ज्यादा होशियार बनने की कोशिश मत कर लड़की, क्योंकि हम चारों एक ही किश्ती पर सवार हैं, डूबने की नौबत आयी तो हममें से एक भी नहीं बचने वाला।”

“इस बात पर खुद भी तो अमल कीजिए। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि छुरे और बोतल को ठिकाने लगाने का काम मैं या आकाश नहीं कर सकते, फिर हुज्जत क्यों कर रहे हैं? क्या हमारा नुकसान आपका नुकसान नहीं होगा? क्या हम दोनों पकड़े गये तो आप बच जायेंगे?”

“अनंत को क्यों नहीं कहती?”

“क्योंकि इसने कल सुबह भी बहुत कुछ करना है, जबकि आप अभी से फ्री हो जायेंगे। और पार्टनरशिप के काम में भागीदारी बराबर की होनी चाहिए। हाँ, अनंत की जगह आप सत्य को अस्पताल पहुँचाने को तैयार हैं तो मैं मर्डर वैपन्स इसे सौंप देती हूँ।”

“मैं कैसे कर सकता हूँ, मेरा इतनी सुबह यहाँ क्या काम होगा?”

“तो फिर बात मानिए, मैं जो कह रही हूँ उसे कर के दिखाइए।”

“ठीक है, दो।”

सुनकर आकाश अपने हाथ में थमा छुरा उसे थमाने ही लगा था कि शीतल ने रोक दिया- “उंगलियों के निशान साफ कर के दो, और किसी बैग में डालो इसे।”

लड़के को फौरन अपनी गलती का एहसास हुआ। अगले ही पल उसने टी शर्ट के निचले हिस्से से रगड़-रगड़कर छुरे का दस्ता साफ कर दिया, शीतल ने वही काम तेजाब की बोतल के साथ भी किया, फिर दोनों चीजों को एक पॉलीबैग में डालकर मौर्या के हवाले कर दिया गया।

तत्पश्चात शीतल अंबानी नाम की उस औरत ने अनंत गोयल और निशांत मौर्या को बंगले के पिछले दरवाजे से सकुशल बाहर निकाल दिया गया। और दरवाजा बंद कर के जब वापिस लौटी तो सबसे पहला काम उसने यही किया कि सुमन के कमरे की कुंडी हटा दी।

उसके बाद जाकर पहले वाले सोफे पर लेट गयी।

हैरानी की बात थी, इतना कुछ कर चुकने के बाद भी दस से पंद्रह मिनट के भीतर वह गहरी नींद में पहुँच चुकी थी।

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