देवराज चौहान स्तब्ध-सा सुने जा रहा था।

विलास डोगरा के शब्द उसके कानों में पिघले शीशे की तरह पड़ रहे थे।

“मजा आया सुनकर देवराज चौहान!" उधर से विलास डोगरा का स्वर कानों में पड़ा।

देवराज चौहान के दांत भिंच गये। कठोरता चेहरे पर नाच उठी।

जगमोहन की सवालिया निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर थी।

“मैं सोच भी नहीं सकता था कि तू मेरे साथ ऐसा करेगा। ये तो तूने बहुत बुरा किया डोगरा! बहुत ही बुरा। तू मेरे हाथों से बचने वाला नहीं। देवेन साठी और मोना चौधरी को मेरा दुश्मन बना दिया। बहुत बुरी मौत मारूंगा तुझे...ऐसी मौत...।”

"देवराज चौहान!" विलास डोगरा की हंसी से भरी आवाज कानों में पड़ी--- “विलास डोगरा के खेल विलास डोगरा ही जाने। तू अभी मुझे ठीक से जानता नहीं है। रही बात तेरी तो बच्चे, मैं तेरे जैसों की परवाह नहीं करता।”

“अब तू मेरी परवाह करेगा। क्योंकि मैं हूं देवराज चौहान।" देवराज चौहान गुर्रा उठा--- "तुझे कुत्ते की मौत मारने के लिए मुझे कठपुतली की जरूरत नहीं है। मैं तुझे...।"

"कठपुतली भी क्या कमाल की चीज है। मैं तो अभी तक हैरान हूं। साठी को मारकर तूने मेरा दिल ठण्डा कर दिया। मोना चौधरी भी साफ हो जाती तो बढ़िया रहता, पर कोई बात नहीं। उसका कोई दूसरा इलाज देखूंगा। लेकिन कठपुतली तेरे को देते वक्त मैंने एक गलती कर दी। मेरे को चाहिये था कि तेरे को तभी बता देता कि साठी किधर मिलेगा और मोना चौधरी कहां पर। इन्हें ढूंढने में तूने काफी वक्त गंवा दिया, मेरे प्लॉन की सबसे बड़ी कमजोरी ये ही रही। नहीं तो तूने...।”

“अपने दिन गिनने शुरू कर दे डोगरा !” देवराज चौहान ने गुस्से से कहा और फोन बन्द कर दिया।

"अब तक खामोश खड़ा जगमोहन व्याकुलता से कह उठा---

“मामला क्या है, विलास डोगरा क्या कहता है?"

जवाब में देवराज चौहान ने सारी बात जगमोहन को बताई।

सब कुछ सुनकर जगमोहन सन्न रह गया।

खुदे की हालत भी ज्यादा बेहतर नहीं थी।

"डोगरा पागल तो नहीं हो गया, जो उसने हमारे साथ ऐसा किया।” जगमोहन के होंठों से निकला।

"वो अपनी ताकत के नशे में चूर है जो उसने हमारी परवाह नहीं की।” दांत भींचे देवराज चौहान कह उठा।

“हम तो उसके बुलावे पर उसकी सहायता करने गये थे और उसने इतना खतरनाक खेल खेला हमारे साथ...।”

"ये 'कठपुतली' कहां मिलती है ?” हरीश खुदे ने पूछा।

“अब्दुल्ला ही बना सकता है इस खतरनाक नशे को और वो डोगरा के लिए काम करता है।” देवराज चौहान ने कहा।

“विलास डोगरा हमारे हाथों बुरी मौत मरेगा।" जगमोहन दांत किटकिटा उठा।

"इसे आसान ना समझो जगमोहन !"

“विलास डोगरा को मारना ही अब हमारा लक्ष्य...।"

"इन हालातों में ये सम्भव नहीं।" देवराज चौहान के चेहरे पर क्रोध नाच रहा था।

"क्या मतलब?"

“मोना चौधरी हमारे पीछे है। देवेन साठी हमारे पीछे है। वो हमें मार देना चाहते हैं। ऐसे में विलास डोगरा का निशाना लेना आसान नहीं होगा। हम खुद को बचायेंगे या डोगरा को उसके किए की सजा देंगे?"

तभी खुदे कह उठा---

"मेरे ख्याल में तुम दोनों को देवेन साठी और मोना चौधरी से बात करनी चाहिये। उन्हें बताना चाहिये कि तुम लोगों ने जो भी किया वो 'कठपुतली' नाम के नशे की शरारत थी। तुम दोनों का ऐसा कोई इरादा नहीं था। तुम लोगों को पता भी नहीं था क्या कर रहे हो। उस वक्त अपने होश में तो थे नहीं तुम लोग, जो इस बात का ध्यान रखते कि...।"

"और तुम सोचते हो खुदे कि ये बातें सुनकर देवेन साठी और मोना चौधरी पीछे हट जायेंगे। हमें नहीं मारेंगे।"

खुदे ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

"हमने देवेन साठी के भाई, पूरबनाथ साठी की हत्या की है। वो हमें छोड़ने वाला नहीं। मोना चौधरी अपनी समझदारी की वजह से खुद को बचाती रही, नहीं तो कुछ भी हो सकता था। अब वो पीछे नहीं हटेंगे। हमें मारे बिना वो चैन नहीं लेने वाले।"

"एक बार उनसे बात करके देख लेने में क्या हर्ज है?" खुदे ने कहा।

"कोई फायदा नहीं होगा।" देवराज चौहान ने इन्कार में सिर हिलाया--- “अब मैं हालातों को बाखूबी समझ चुका हूं।"

जगमोहन मुट्ठियां भींचे कमरे में टहलने लगा।

खुदे अपनी ही सोचों में घिरा खड़ा था।

"देवेन साठी और मोना चौधरी के मामले में सारी गलती मेरी और जगमोहन की है। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि 'कठपुतली' नाम के नशे ने हमें गिरफ्त में लिया हुआ था और सारा खेल विलास डोगरा ने खेला। हमारी डोर डोगरा के हाथ में थी। वो तो सिर्फ इतना जानते हैं कि हमने मोना चौधरी को मारने की चेष्टा की। महाजन और राधा के साथ ज्यादती की और देवेन साठी के भाई पूरबनाथ साठी को मारा। वो हमें मारे बिना चैन नहीं लेंगे।" देवराज चौहान गम्भीर हो गया।

"और ऐसी स्थिति में विलास डोगरा को मार पाना मुमकिन नहीं ।" जगमोहन गुर्राया ।

"सच में मुमकिन नहीं। ये ठीक है कि डोगरा का नाम, साठी ब्रदर्स के बाद आता है, परन्तु वो साठी से कम ताकत नही रखता। वो उनसे भी ज्यादा खतरनाक है। वो दिमाग से खेल खेलता है, जैसे कि हमारे साथ खेला। पूरबनाथ साठी अपनी पत्नी शिखा और अपने बेटे की वजह से हमारे काबू में आ गया। वरना वो आसान चीज नहीं थी।” देवराज चौहान ने जगमोहन को देखकर कहा--- “और हम ये बात उन्हें नहीं समझा सकते कि हमने जो किया, बेहोशी और पागलपन की हालत में किया। डोगरा ने हमारे होश छीन लिए थे। ऐसी बातें उनकी समझ में नहीं आयेंगी, वो सिर्फ...।"

"लेकिन हमें कुछ तो करना होगा।" जगमोहन बोला--- "वरना इस तरह हम जिन्दा कैसे रह सकते हैं।"

देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव छाये रहे।

"हमें विलास डोगरा से बदला लेना है। हमें देवेन साठी और मोना चौधरी से अपनी जान बख्शवानी है। नहीं तो बात बहुत ही ज्यादा बढ़ जायेगी। मोना चौधरी और देवेन साठी हमें मारना चाहेंगे और खुद को बचाने के लिए हम उन पर वार करेंगे। खून-खराबा बहुत होगा। जबकि हमने जो भी किया, अपनी रजामन्दी से नहीं किया।"

“इसके लिए हमें कोई खास ही तरकीब सोचनी पड़ेगी।"

"कैसी तरकीब ?"

"सीधे-सीधे तो मोना चौधरी और देवेन साठी हमारी बात नहीं समझने वाले। क्योंकि मामला ही ऐसा है कि वो हमें दोषी मानते हैं और हम उनके लिए दोषी हैं भी। हमें किसी खास ढंग से उन्हें समझाना होगा कि हमने जो किया, वो हमने नहीं किया, बल्कि 'कठपुतली' नाम के नशे में हमसे करवाया था और खेल का जन्मदाता डोगरा था। इसके लिए हमें उन्हें उलझा देना होगा कि उनका ध्यान हमारी तरफ से भटक जाये। तब हम विलास डोगरा से भी निपट सकें।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।

“मैं तुम्हारी बात समझा नहीं। क्या कहना चाहते हो तुम?"

“अभी मेरे दिमाग में भी कुछ स्पष्ट नहीं है। सोचने दो मुझे।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- “कठपुतली के नशे में हमने जो किया, उसमें हम भी मारे जा सकते थे परन्तु खैर रही कि हम बचे रहे, वरना...।"

"क्यों ना हम विलास डोगरा का वार, डोगरा पर ही करें। अब्दुल्ला से कठपुतली लेकर डोगरा को खिला दें और उसे देवेन साठी और मोना चौधरी के पीछे डलवा दें। ऐसी स्थिति में डोगरा ही जान से जायेगा।"

"हम इस काबिल हैं कि डोगरा से बदला ले सकें।" देवराज चौहान ने कहा--- "फिर ऐसा करने से हमारा कोई मकसद हल नहीं होता। देवेन साठी और मोना चौधरी को लेकर हालात वैसे के वैसे ही बने रहेंगे। मुझे सोचने दो कि ऐसे हालातों में हमें कौन-सा रास्ता पकड़ना चाहिये कि देवेन साठी और मोना चौधरी को समझा सकें कि हमसे डोगरा ने ये सब काम अपनी मर्जी से लिया जिसमें कि हमारी मर्जी तो दूर, हमें होश तक नहीं था कि हम क्या कर रहे हैं।"

"इन हालातों में हम उलझकर रह गये हैं।" जगमोहन कह उठा।

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

हरीश खुदे गम्भीर स्वर में बोला---

“अब मेरा क्या होगा।"

देवराज चौहान और जगमोहन ने उसे देखा।

"देवेन साठी मुझे भी अपने भाई का हत्यारा मानता है। मैं तुम लोगों के साथ था जब पूरबनाथ साठी को मारा गया। वो मुझे मारने के लिये मुझे ढूंढ रहा है। उधर मोना चौधरी भी मुझे नहीं छोड़ने वाली। क्योंकि जब महाजन और उसकी पत्नी को बंधक बनाया तो तब मैं तुम लोगों के साथ था। पारसनाथ के रेस्टोरेंट के ऊपर जब तुम दोनों को कैद किया तो मैंने ही वहां से तुम दोनों को आजाद करवाया था। मैं भी मुसीबत में फंस चुका हूं और मेरी जान की कोई गारण्टी नहीं बची।"

"तुम हमारे साथ ही रहो।" देवराज चौहान बोला।

"तुम लोगों के साथ रहकर तो मैं कभी भी फंस सकता हूं।" खुदे ने परेशान स्वर में कहा।

"तो क्या है तुम्हारे मन में?"

"मैं टुन्नी के साथ मुम्बई से दूर चले जाना चाहता हूँ। सोचा था तुम लोगों के साथ रहकर डकैती करूंगा और मोटा पैसा बनाकर...।"

"जैसा तुम्हारा मन कहता है वैसा ही करो। तुमने हमारा काफी साथ दिया है, आने वाले वक्त में हालात ठीक हो गये तो मैं तुम्हें मोटी रकम दूंगा। अगर तुम साथ रहते हो तो हम मिलकर जरूर डकैती करेंगे और तुम्हें तगड़ा पैसा दूंगा।”

"सच कहते हो?"

"हां। फैसला तुम पर है, अब तुम जो भी करना चाहते हो, वैसा कर लो।"

“टुन्नी के साथ मुम्बई से निकलना भी कौन-सा आसान है। देवेन साठी के आदमी जगह-जगह मुझे ढूंढ रहे हैं। उनकी नज़र में आ गया तो गया ।" खुदे ने गहरी सांस ली--- "हर तरफ लफड़ा-ही-लफड़ा है। पर मैंने सोच लिया है कि तुम दोनों के साथ ही रहूंगा। जो भगवान को मंजूर होगा, वो ही होगा। मरना है तो कहीं भी मर सकता हूं।"

“साथ डकैती करने का लालच तुम्हें हमारे साथ रखे हुए है।" जगमोहन कह उठा ।

"कुछ भी कहो, पर मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगा।” खुदे फोन निकालता कह उठा--- “बिल्ला अभी तक नहीं आया। कहीं वो टुन्नी के पास ना चला गया हो कमीना।” कहने के साथ ही खुदे, बिल्ले के फोन का नम्बर मिलाने लगा।

जल्दी ही बात हो गई।

“कहां है तू ?” खुदे ने पूछा ।

“बस, पहुंच गया।”

खुदे ने फोन बन्द करके जेब में रखा।

मिनट भर बाद ही बिल्ला ने भीतर प्रवेश किया हाथ में पैक खाने के लिफाफे थाम रखे थे।

“इतनी देर कहां लगा दी ?” खुदे ने माथे पर बल डालकर पूछा।

“बढ़िया खाना लाया हूं। दूर से लाया हूं। ऑटो पर गया था। पांच लोगों का खाना लाया हूं।” बिल्ला मुस्कराया।

“पांच का क्यों?” खुदे के माथे पर बल पड़े--- “हम तो चार हैं ।"

"पांचवां टुन्नी के लिए है। मैंने सोचा शायद शानदार खाना देखकर तू उसे भी बुला...।"

“फिर टुन्नी...!” खुदे गुस्से से भर उठा।

"ऐसे मौके पर मुझे तो टुन्नी याद आयेगी। हम इतना बढ़िया खाना खायें और वो बेचारी अकेली बैठी, पता नहीं खाना भी खा रही है या नहीं। तेरे को उसका भी ध्यान रखना...।”

"बिल्ले तू मरेगा मेरे हाथों से।" खुदे ने कठोर स्वर में कहा।

"मेरी मान तो टुन्नी को फोन करके यहीं बुला...।"

"तू टुन्नी को भूल क्यों नहीं जाता ?"

"मैं टुन्नी को नहीं भूल सकता। आखिर मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है। तू तो उसकी परवाह नहीं करता।"

"वो मेरी पत्नी है।” खुदे ने गुस्से से कहा--- "तू... ।”

"तभी तो कह रहा हूं कि उसे भी बुला ले। वो भी हमारे साथ बैठकर बढ़िया खाना खा...।"

"वो बढ़िया ही खाना खाती...।”

"मैं तन्दूर के पास खड़ा होकर बढ़िया परांठे बनवाकर लाया हूं। अमूल मक्खन की तीन टिकियां परांठों में लगवा दी। क्या स्वाद आयेगा खाने में टुन्नी को। तू कहे तो मैं टुन्नी को खाना दे आता हूँ।"

"तेरे में शर्म है कि नहीं?"

“इसमें शर्म की क्या बात है। खाना ही तो दे रहा हूं टुन्नी को। खुश हो जायेगी वो मुझे देखकर... ।”

"तुम्हें देखकर ?"

"मेरा मतलब कि खाना देखकर। खुशबू आ रही है ना परांठों की...।"

“शर्म कर। तू हर वक्त मेरे से मेरी पत्नी की बातें करता रहता है और मैं दोस्त होने के नाते तुझे सह रहा हूं। ऐसा वक्त क्यों लाता है कि मैं तुझे गोली मार दूं... ।” खुदे ने गुस्से से कहा।

“तू मेरा दोस्त है। मुझे नहीं मार सकता। टुन्नी बहुत दुखी होगी अगर मैं मर गया तो, बेचारी... ।”

“तू शादी क्यों नहीं कर लेता।"

"टुन्नी से ?” बिल्ले ने दांत फाड़े।

"तेरी मौत मेरे ही हाथों होगी बिल्ले ।” खुदे दांत भींचे कह उठा--- "और टुन्नी बहुत खुश होगी कि तू मर गया ।"

“क्यों मजाक करता है। चल खाना खाते हैं। बेचारी टुन्नी पता नहीं खाना खाया भी होगा या नहीं।"

"मुझे रहने को तेरे इस कमरे की जरूरत ना होती तो अब तक तेरा सिर फोड़ दिया होता। तुझे मार दिया...।”

"दोस्त होकर ऐसी बातें मत किया कर।” बिल्ले ने मुस्कुराकर कहा--- "मुझे टुन्नी की बहुत चिन्ता रहती है। तू कितने दिन से उसके पास नहीं गया। बेचारी की क्या हालत हो रही...।"

"मुझे तो तेरी हालत खराब होती दिख रही है।" खुदे गुर्रा उठा।

"मेरी हालत भी कहां ठीक है। टुन्नी यहां आ जाये तो कितना बढ़िया हो जाये। ये कमरा चमक उठेगा और मैं...।"

खुदे दांत भींचे आगे बढ़ा और जोरदार घूंसा बिल्ले के गाल पर दे मारा।

“टुन्नी...।" बिल्ले के होंठों से चीख निकली और वो पीछे को जा गिरा।

■■■

देवेन साठी के चेहरे पर कठोरता सिमटी हुई थी। हाथ उसने पीठ पीछे बांधे हुए थे और उसी होटल के हॉल में वो टहल रहा था। वहां पर पाटिल मौजूद था, जिसके चेहरे पर परेशानी नाच रही थी। अब कर्मा खत्री के पास ना होने की वजह से उसे अजीब-सा लग रहा था। ढाई घण्टे पहले वो मारा गया था। उसकी मौत ने पाटिल को और तड़पा दिया था।

जबकि देवेन साठी का हाल पागलों की तरह हो रहा था।

“पाटिल तुम्हें चाहिये था, जब देवराज चौहान को देखा तो उसी वक्त उसे गोली मार...।"

"मैं ऐसा ही करने जा रहा था, परन्तु कर्मा ने मुझे रोक दिया कि वो आपसे बात...।”

तभी साठी का फोन बजने लगा।

“हैलो ।” देवेन साठी ने बात की।

"साठी !” मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी--- "पता चला कि तुम्हारे आदमियों ने देवराज चौहान और जगमोहन को घेर लिया था।"

“हां।” देवेन साठी के दांत भिंच गये--- “मेरे आदमियों ने उन्हें एक होटल से ढूंढ निकाला था।"

“तो मुझे क्यों खबर नहीं दी?”

“उन्होंने समझा कि वो उन्हें सम्भाल लेंगे।”

“पर नहीं सम्भाल पाये। तुमने मुझे ना खबर करके गलती की। वो हाथों में आकर भी निकल गये।"

“इसमें मेरे आदमियों की कोई गलती नहीं थी। बस वो निकल गये।" देवेन साठी ने गुस्से से कहा--- “पर अब ऐसा नहीं होगा। अब वो मिल गये तो बचेंगे नहीं।"

"वो बार-बार हाथ लगने वाले नहीं।" उधर से मोना चौधरी की आवाज आई--- "तुमने बहुत बढ़िया मौका गंवा दिया।"

"वो कुत्ते बचने वाले नहीं।" देवेन साठी ने दांत भींचकर कहा और फोन बन्द कर दिया।

पाटिल की निगाह, देवेन साठी पर थी।

"हमारा कितना नुकसान हुआ ?"

"कर्मा गया। सिर्फ वो ही मरा।"

“और जैकी, वो वैन भगा रहा...।"

“उसे हमारे आदमियों ने शूट कर दिया। उसने बताया था कि उसे बेहोश करके वैन में छोड़ दिया गया था।"

"उसने वैन भगाई ही क्यों? ये उसकी गलती थी। अगर वो वैन ना भगाता तो देवराज चौहान और जगमोहन बच ना पाते। मेरे भाई को मारकर वो आजाद घूम रहे हैं, मेरे लिए ये बहुत बड़ी बात है। उन्हें अब तक मर जाना चाहिये था। कर्मा हमारा पुराना साथी था। उसके मरने से हमें नुकसान पहुंचा।"

"हमारे सारे आदमी मुम्बई में देवराज चौहान और जगमोहन को...।"

"ऐसे बात नहीं बनेगी पाटिल!” देवेन साठी ने दांत भींचकर कहा--- "हमें कुछ और भी करना चाहिये।"

“क्या कुछ और देवेन साहब?”

देवेन साठी ठिठका और पाटिल को देखते कह उठा---

"पूरे अण्डरवर्ल्ड में ये बात पहुंचा दो कि जो भी देवराज चौहान या जगमोहन की या दोनों की खबर देगा, उसे एक करोड़ रुपया दिया जायेगा। आज रात में ही ये खबर फैल जानी चाहिये। अपने आदमियों से भी कह दो कि जो देवराज चौहान व जगमोहन को मारेगा, उसे दो करोड़ रुपये दिए जायेंगे।”

"मैं अभी खबर को हर तरफ पहुंचाने के काम पर लग जाता हूं। इस तरह हमें वो दोनों जल्दी मिल जायेंगे ।"

“पैसा बीच में आ जाये तो फिर काम जल्दी होता है।" देवेन साठी खतरनाक स्वर में बोला।

पाटिल बाहर निकल गया।

चेहरे पर कठोरता समेटे देवेन साठी कुर्सी पर जा बैठा और सिगरेट सुलगा ली। चेहरे पर छाई सोचें बनती बिगड़ती रहीं। सिगरेट खत्म हो गई। वो उठने को हुआ कि उसका फोन बजा।

"हैलो।" देवेन साठी ने बात की।

"कैसे हो?" औरत की आवाज कानों में पड़ी।

"आरू।” देवेन साठी के होठों से निकला--- "अफगानिस्तान से कब पहुंची ?"

"आज शाम को।"

"बच्चे कैसे हैं?"

“सो रहे हैं।" दूसरी तरफ से आरू की आवाज आई--- "सफर में थक गये हैं। जरूरी सामान साथ लेती आई हूँ। बाकी वहीं छोड़ दिया। तुमने क्या किया अब तक। तुम्हारे भाई को किसने मारा?"

"डकैती मास्टर देवराज चौहान और जगमोहन ने।” देवेन साठी के दांत भिंच गये।

"क्यों?"

“ये नहीं पता और मुझे पता करने की जरूरत भी नहीं। उन दोनों को खत्म करना ही अब मेरा काम है।"

"अपना ख्याल रखना।”

"मेरी फिक्र मत करो। तुम्हारा पति हमेशा सतर्क रहता है। अब हम यहीं रहेंगे। तुम बच्चों के लिए कोई बढ़िया स्कूल देखो और उन्हें पढ़ना भेजना शुरू करो। अपनी जिन्दगी को मुम्बई में चलाओ अब... ।”

"शिखा और राहुल का क्या हाल है?"

"वो ठीक हैं। मैंने उन्हें खार वाले बंगले में भेज दिया है। उन्हें कोई खतरा नहीं ।"

“बन्द करती हूं फोन । मैंने भी आराम करना है।"

देवेन साठी ने फोन बन्द कर दिया। चेहरे पर गुस्सा नाच रहा था।

■■■

मोना चौधरी और पारसनाथ उस फ्लैट पर पहुंचे, जहां राधा और सोहनलाल थे। शाम के साढ़े आठ बज रहे थे। महाजन अभी नहीं आया था। मोना चौधरी बैडरूम में राधा के पास चली गई थी।

पारसनाथ, ड्राइंगरूम में बंधे पड़े सोहनलाल के पास पहुंचा और करीब ही कुर्सी पर बैठकर सिगरेट सुलगाई और कश लिया।

सोहनलाल की गम्भीर निगाह पारसनाथ पर ही थी।

"मुझे इस तरह बांधे रखने का क्या फायदा?" सोहनलाल ने कहा।

"तुम देवराज चौहान के बंगले के बारे में हमें बता दो और जाओ।" पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा।

"तुम जानते ही हो देवराज चौहान का बंगला ।”

"वो बंगला बेच दिया है। अब वो कहीं और रहता है। नया ठिकाना कहां बनाया है, वो बताओ।”

सोहनलाल चुप रहा।

"मैं तुम्हें एक और बात बताता हूं शायद तुम इस बात से अन्जान हो।"

"क्या ?"

"देवराज चौहान और जगमोहन ने अण्डरवर्ल्ड किंग पूरबनाथ साठी को मारा था। ये खबर सुनकर उसका भाई देवेन साठी अफगानिस्तान से वापस मुम्बई आ गया, जो कि वहां से अपने भाई को ड्रग्स भेजा करता था। देवेन साठी अब देवराज चौहान और जगमोहन की तलाश करवा रहा है, कि उन्हें मारकर अपने भाई की मौत का बदला ले सके। तीन घण्टे पहले वो दोनों साठी के आदमियों के हाथों में पड़ गये, परन्तु किस्मत अच्छी थी जो बच निकले। समझे सोहनलाल, देवराज चौहान और जगमोहन के पीछे हम ही नहीं, देवेन साठी भी है। वो बचने वाला नहीं।"

"तो?"

"तुम्हें बता देना चाहिये कि देवराज चौहान का ठिकाना कहां है।" पारसनाथ का स्वर गम्भीर था।

“मेरे मुंह से ये बात नहीं जान सकते तुम।” सोहनलाल ने कहा।

“तो इसी तरह बंधे-बंधे मर जाओगे।”

“मेरी चिन्ता मत करो। तुम लोग अभी तक मुझे नहीं बता सके कि मामला क्या है।"

"मामला तो हम भी नहीं जानते।" पारसनाथ ने कश लिया--- “इतना ही पता है कि देवराज चौहान ने किसी घटिया गुण्डे की तरह मोना चौधरी को खत्म कर देना चाहा। उसने मुझे परेशान किया और महाजन, राधा को परेशान किया। ऐसे में अब हम उसे छोड़ने वाले नहीं। हमारे हाथों बचा तो देवेन साठी के हाथों मरेगा। मरना तो उसने है ही...।"

"देवराज चौहान ने मोना चौधरी को क्यों मारना चाहा? कोई तो बात होगी।"

"तुम्हें कितनी बार कहा है कि कोई बात नहीं है। कम-से-कम हमारी तरफ से कोई बात नहीं है। रही बात देवराज चौहान और जगमोहन की तो उन्होंने महाजन से कहा था कि वो भूल गये कि मोना चौधरी को क्यों मारना चाहते हैं।"

“बकवास ।" सोहनलाल बोला--- “वो ऐसा नहीं कह सकते। स्पष्ट बताते कि क्यों...।"

"लेकिन उन्होंने ऐसा ही कहा।"

“मुझे यकीन नहीं आता तुम्हारी बात पर...।"

पारसनाथ कश लेकर कह उठा।

"तुम्हें हालातों से समझौता करके, देवराज चौहान के ठिकाने के बारे में बता देना चाहिये। वैसे वो दोनों अपने ठिकाने पर नहीं जा रहे कि वहां पर उन्हें खतरा हो सकता है। देवेन के लोगों ने उन्हें एक होटल से पकड़ा था।”

सोहनलाल चुप रहा ।

तभी कॉलबेल बजी। राधा तुरन्त वहां पहुंची उसने दरवाजा खोला।

महाजन आया था। राधा, महाजन को देखते ही कह उठी।

“अच्छा हुआ जो तुम आ गये। मैंने आलू-गोभी बनाई है। खाना बनाने जा रही थी।"

"हमें बाहर जाना है देवराज चौहान और जगमोहन को ढूंढने। रात यहां नहीं रहना।” महाजन बोला।

“चले जाना, खाना तो खा लो।” कहकर राधा किचन की तरफ चली गई।

मोना चौधरी वहां आ पहुंची थी।

महाजन ने पारसनाथ और नीचे बंधे पड़े सोहनलाल पर निगाह मारी।

"कोई नई खबर ?” पारसनाथ ने पूछा।

“देवेन साठी ने देवराज चौहान और जगमोहन पर इनाम घोषित कर दिया है। जो भी उसे देवराज चौहान या जगमोहन की खबर देगा, उसे एक करोड़ दिया जायेगा और उसके आदमी उन्हें शूट कर देते हैं तो उन्हें दो करोड़ देगा।"

“अब देवराज चौहान और जगमोहन के लिए खतरा और बढ़ गया।" मोना चौधरी गम्भीर स्वर में बोली--- “लगता है देवेन साठी के आदमियों के हाथों ही मरेंगे वो दोनों !”

"अण्डरवर्ल्ड का एक खबरी है रहमान अहमद। वो जानता है देवराज चौहान का ठिकाना। पांच लाख मांगता है।" महाजन बोला ।

"तो पता करो उससे।"

"मेरे पास पैसा नहीं था। पैसे लेने ही आया हूं।”

"मेरी कार की डिग्गी में पैसे पड़े हैं। वहां से निकाल लो।” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने चाबी निकालकर उसकी तरफ उछाल दी--- “तुम फोन करते तो मैं ही पैसा लेकर आ जाती।”

"अब मेरे साथ ही चलना। रहमना अहमद से पता करके, देवराज चौहान के ठिकाने पर चलेंगे। क्या पता वो वहीं हो।”

“सुना सोहनलाल !" पारसनाथ ने कहा--- “तुम्हारा मुंह बन्द रहना, काम नहीं आया।"

"तुम लोग गलत कर रहे हो।" सोहनलाल कह उठा ।

"गलत तो देवराज चौहान और जगमोहन ने किया था। हम तो अब सब कुछ ठीक करने की चेष्टा में लगे हैं।" कठोर स्वर में कहते हुए पारसनाथ कुर्सी से उठा और मोना चौधरी, महाजन से कह उठा--- " मैं भी साथ चलूंगा।"

■■■

रात के बारह बजे महाजन, रहमान अहमद के घर पहुंचा।

रहमान अहमद ने उसे भीतर आने दिया। बोला---

"पांच लाख ले आये?”

“हां। परन्तु तुम कीमत ज्यादा ले रहे हो।" महाजन हाथ में पकड़ा लिफाफा उसकी तरफ बढ़ाता कह उठा।

“खबर भी तो दे रहा हूं। दो महीने पहले देवराज चौहान ने बंगला बदला है। उसके ठिकाने के बारे में कोई नहीं जानता, तभी तो तुम भटकते-भटकते मेरे पास आये।” लिफाफा थामकर रहमान अहमद ने उसे खोलकर भीतर झांका। पांच के नोट की दस गड्डियां उसने गिनी फिर जेब से एक कागज निकालकर महाजन को दिया--- “इस पर देवराज चौहान के बंगले का पता लिखा है। पता याद करके, कागज फाड़ देना।"

महाजन ने कागज थामा और उस पर नज़र मारी।

"मेरा नाम कहीं भी नहीं आना चाहिये। देवराज चौहान को पता ना लगे कि मैंने, तुम्हें उसके बंगले का पता...।"

"ऐसा कुछ नहीं होने वाला।" महाजन ने कागज जेब में रखा।

"तुमने अपने बारे में कुछ नहीं बताया।" रहमान अहमद ने पूछा ।

"क्यों जानने चाहते हो?"

"यूं ही...।"

"तुमने मुझे जानकारी दी। मैंने तुम्हें पांच लाख दिया। काम खत्म हो गया।" महाजन ने कहा और बाहर निकला चला गया।

■■■

पारसनाथ ने कार को बंगले के गेट के बाहर ही रोक दिया।

बंगले के भीतर रोशनी हो रही थी। ये देखकर मोना चौधरी, पारसनाथ और महाजन सतर्क हो गये।

"देवराज चौहान बंगले में ही है।" महाजन खतरनाक स्वर में कह उठा।

मोना चौधरी की आंखों में चमक उभरी।

पारसनाथ के जबड़ों में कसाव आ गया।

“जगमोहन भी भीतर होगा। उन्हें खत्म करने का हमें बढ़िया मौका मिलने जा रहा है।” महाजन ने कहा और इंजन बन्द कर दिया।

तीनों कार से बाहर निकले। खतरनाक इरादे उनके चेहरों पर थे।

"दोनों में से कोई भी जिन्दा नहीं बचना चाहिये।” मोना चौधरी गुर्रा उठी--- "हर हाल में उन्हें खत्म करना है।”

“वो बचेंगे नहीं मोना चौधरी !” पारसनाथ ने कठोर स्वर में कहा।

महाजन आगे बढ़ा और गेट को थोड़ा-सा खोलकर भीतर प्रवेश कर गया। मोना चौधरी और पारसनाथ भी भीतर आये और तीनों मेन दरवाज़े की तरफ बढ़ने लगे। रिवाल्वरें उनके हाथों में आ गईं। पोर्च में लाइट जल रही थी और उस रोशनी में वहां लाल रंग की नई कार खड़ी चमक रही थी।

तीनों दरवाज़े पर आ पहुंचे। रात का डेढ़ बज रहा था। हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था।

दरवाजे को खोलना चाहा, परन्तु वो बन्द था।

तीनों की नज़रें मिलीं।

"मैं आस-पास की खिड़कियों को देखता हूं, शायद कोई खुली हो।" महाजन ने कहा और जाने लगा कि ठिठक गया। तभी भीतर से दरवाजा खोले जाने की आवाज कानों में पड़ी।

तीनों उसी पल सतर्क हो गये। चेहरों पर मौत के भाव उभरे।

दरवाजा खुला, सामने नगीना खड़ी दिखी। चेहरे पर शान्त भाव थे।

नगीना को सामने पाकर मोना चौधरी चौंकी।

"तुम?" मोना चौधरी के होंठों से निकला।

"मैंने तुम तीनों को आते देख लिया था।” नगीना बोली--- “मैं पहली मंजिल पर खड़ी थी, जब तुम लोग कार से बाहर निकले। आओ, भीतर आ जाओ। मैं तुमसे मिलना भी चाहती थी मिन्नो...!” नगीना पीछे हटती चली गई।

मोना चौधरी, महाजन, पारसनाथ ने भीतर प्रवेश किया।

"देवराज चौहान कहां है?" मोना चौधरी दांत भींचे कह उठी।

"वो बंगले पर नहीं हैं।" नगीना ने शान्त स्वर में कहा।

“तुम झूठ कह रही... ।"

"मैं झूठ नहीं बोलती। सारा बंगला देख लो।”

"और जगमोहन ?" महाजन ने कठोर स्वर में कहा।

"वो भी नहीं हैं मैं जब यहां आई तो कोई भी नहीं था।” नगीना ने महाजन को देखा।

"यहां की सारी जगह देखो।” मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा--- “वो यहां छिपे हो सकते हैं।"

तीनों बंगले के भीतरी हिस्से की तरफ बढ़ गये।

नगीना सोफे पर बैठी। चेहरे पर गम्भीरता थी।

दस मिनट बाद वो तीनों नगीना के पास पहुंचे।

"देवराज चौहान और जगमोहन कहां हैं बेला?" मोना चौधरी गुर्रा उठी।

“मैं नहीं जानती।” नगीना ने मोना चौधरी को देखा--- "लेकिन बात क्या है मिन्नो?"

"जैसे तू कुछ जानती नहीं।"

"जानती हूं, जितना सुना है, पर तेरे मुंह से जानना चाहती हूं।" नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा।

"देवराज चौहान और जगमोहन ने मेरी जान लेनी चाही। जबकि ऐसा करने की कोई वजह नहीं थी।" मोना चौधरी शब्दों को चबाती कह उठी--- "महाजन और राधा पर हाथ डाला। उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया कि उन्हें जिन्दा छोड़ा जाये। वो अब भी मेरी जान लेने के लिए मुझे ढूंढता फिर रहा है।"

"ऐसा क्यों कर रहा है देवराज चौहान ?"

"मैं नहीं जानती और जानना भी नहीं चाहती। उसने मुझे मार ही दिया होता, अगर मैं वहां से भाग ना जाती। महाजन और राधा भी किस्मत से बच निकले। पारसनाथ के यहां जाकर भी उन्होंने हंगामा किया। तेरी उससे बात तो हुई होगी।"

"नहीं मेरी कोई बात नहीं हुई। दो घण्टे पहले ही तो मैं यहां पहुंची...।"

"फोन पर तो बात हुई...?"

"मैंने अभी फोन नहीं किया। परन्तु मैं तेरे से कहना चाहती हूं कि अभी रुक जा। जल्दी मत कर।"

"तू कौन होती है मुझे रोकने वाली...।"

“मैं तेरी पूर्वजन्म की बहन हूं। इतना तो हक बनता है।"

"मैं तेरी बातों में नहीं आने वाली बेला। देवराज चौहान और जगमोहन ने मुझे मार देना चाहा। उस वक्त तूने उनका रूप नहीं देखा, वरना ऐसी बात कहने से पहले सोचती जरूर।" मोना चौधरी दांत भींचे कह उठी--- "जब तक मैं उन दोनों को मार ना दूं तब तक...।"

“मिन्नो!" नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा--- “एक बार मुझे जान तो लेने दे कि बात क्या...।”

"तेरे काम तू जाने, मुझे अपना काम करना है। चलो यहां से।" मोना चौधरी ने महाजन, पारसनाथ से कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ती चली गई। महाजन, पारसनाथ भी पलट गये।

देखते-ही-देखते वो बाहर निकल गये।

नगीना ने उन्हें नहीं रोका। गम्भीर-सी बैठी रही। कई मिनट बीत गये, फिर उसने मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगी। फोन कान से लगाया। दूसरी तरफ बेल जाने लगी थी।

लम्बी बेल जाने के बाद देवराज चौहान की नींद भरी आवाज कानों में पड़ी--- "हैलो।"

"कैसे हैं आप?” नगीना कह उठी ।

“ओह नगीना! इतनी रात को फोन कैसे किया? सब ठीक तो है?"

"सब ठीक है। मैं आपके वाले बंगले पर हूं।” नगीना ने बताया।

"क्यों?"

"आपके लिए चिन्तित हूं। बांके और रुस्तम ने सारी बातें मुझे बताई कि जगमोहन के साथ आप मिन्नो को मार देने पर लगे हैं। मिन्नो के साथ मेरा बहन का रिश्ता है, ये आप क्या कर रहे हैं?” नगीना का स्वर शान्त था।

उधर से देवराज चौहान के गहरी सांस लेने की आवाज आई।

"बांके ने आपको फोन किया, लेकिन उसका कहना है कि आपने ठीक से बात नहीं की। आप ये सब क्या कर रहे हैं, क्यों मिन्नो को मारने पर लगे हैं। क्या हो गया है आपको?"

"ऐसा कुछ नहीं है नगीना...!"

"ऐसा ही है। अभी मिन्नो, पारसनाथ और महाजन आपको ढूंढते यहां आये थे। वो गुस्से में थे और आपको मार देना चाहते हैं। ढूंढ रहे हैं आपको। ये सब क्या हो रहा है, आपको...।"

"मेरी बात सुनो नगीना! हालात बहुत खराब चल रहे हैं।” देवराज चौहान की आवाज आई।

"मैं समझी नहीं।"

“इसमें मोना चौधरी का भी कोई कसूर नहीं और मेरा भी कोई कसूर नहीं... मैं तो...।"

“पूरबनाथ साठी को आपने मारा?"

"तुम्हें कैसे पता चला ?”

“बांके ने बताया। बांके का कहना है कि सोहनलाल, मिन्नो के पास कैद है।"

"ओह...!"

“मुझे बताइये, ये सब आप क्यों कर... ।”

“मैं तुम्हें सब कुछ बताता हूं।" उधर से देवराज चौहान ने कहा और शुरू से लेकर सारी बातें बताने लगा।

विलास डोगरा और हरीश खुदे के बारे में भी बताया।

नगीना उलझन में पड़ी सब कुछ सुनती रही। जब देवराज चौहान की बात खत्म हुई तो नगीना सारे हालात समझ चुकी थी। सब कुछ उसके सामने स्पष्ट हो चुका था।

“तो ये बात है। सब कुछ विलास डोगरा का किया-धरा है।" नगीना कह उठी।

"हां। लेकिन मैं अब किसी को ये बात नहीं बता सकता। क्योंकि इस बात पर कोई भरोसा नहीं करेगा। देवेन साठी जिन्दा नहीं छोड़ना चाहता और मोना चौधरी भी मुझे मार देना चाहती है। मैं बुरे हालातों में घिर चुका हूं।"

"मुझे तो चक्कर आ गया आपकी बात सुनकर।” नगीना अजीब से स्वर में कह उठी--- “कठपुतली नाम का नशा तो हैरान कर देने वाले काम करता है। लेकिन अब आप क्या करेंगे। आप तो फंस चुके हैं बुरी तरह...।"

"कुछ तो करना ही होगा।"

“मुझे बताइये, मैं आपके लिए क्या करूं?" नगीना गम्भीर हो गई थी।

"अभी मैंने कुछ भी सोचा नहीं कि इस मुसीबत से कैसे निकलूं।” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी--- “विलास डोगरा को मैं सबक सिखाना चाहता हूं परन्तु जब तक देवेन साठी और मोना चौधरी मेरे पीछे हैं, मैं कुछ नहीं कर...।"

“विलास डोगरा को तो मैं छोड़ने वाली नहीं।” नगीना कठोर स्वर में कह उठी ।

“तुम डोगरा के बारे में कुछ नहीं करोगी। वो सिर्फ मेरा शिकार है। मेरे से पूछे बिना, उसके बारे में सोचना भी मत!"

नगीना के होंठ भिंचे रहे।

"तुम सोहनलाल का पता करो और उसे आजाद कराने की कोशिश करो। तुम... ।”

"आप बिल्ला के घर पर हैं?"

“हां, जगमोहन मेरे साथ है। यहां हम सुरक्षित हैं, परन्तु ज्यादा देर भी यहां नहीं रह सकते। मुझे बहुत कुछ सोचना...।"

“बिल्ले के घर का पता बताइये... ।”

“नहीं। तुम यहां नहीं आओगी। तुम सोहनलाल को...।"

“मैं सोहनलाल को ही तलाश करूंगी, परन्तु आप बिल्ले के घर का पता बता दीजिये। मैं वहां नहीं आऊंगी।” नगीना बोली।

उधर से देवराज चौहान ने बिल्ले के घर का पता बता दिया।

“अब आप इन हालातों से कैसे निकलेंगे?"

"अभी कुछ पता नहीं। एक दिन ही तो हुआ है होश आये। सोच रहा हूं कुछ कि...।"

नगीना के चेहरे पर सोच के भाव उभरे रहे।

"मैं आपको फिर फोन करूंगी। आपकी बातों ने तो मुझे चक्कर में डाल दिया है।"

"ठीक है, हम कल बात करेंगे।" उधर से देवराज चौहान ने कहा।

नगीना ने फोन बन्द किया। वहीं बैठी रही। सोचती रही। उठकर चहलकदमी भी की और बांके लाल राठौर को फोन किया।

फौरन ही बात हो गई।

"हैल्लो...।"

"बांके भैया!” नगीना गम्भीर स्वर में बोली--- “तुम दोनों ने अब तक क्या किया ?"

"नगीनो बहणो, छोरे के साथ अमं टांगे तुड़वाये हो। मोन्नो चौधरी को ढूंढो पर वो ना मिल्लो ओ अभ्भी।”

"इसी बात के लिए मैंने तुम्हें फोन किया है भैया! मैं इस वक्त देवराज चौहान के बंगले पर हूं। कल सुबह से तुम दोनों बंगले पर नज़र रखना। मोना चौधरी मेरे पास आयेगी बंगले पर। जब वो बाहर निकले तो उसे नज़र में रखना। उसके पीछे लग जाना। अगर उसे देवराज चौहान का पता चल जाता है तो तब सामने आकर, उसे रोकना, नहीं तो नज़र रखते रहो।"

“समझो गयो बहणो...! पर थारे को कैसो पतो हौवे कि मोन्नो चौधरी बंगलो पर आवे?"

“मैं उसे बुलाऊंगी और वो जरूर आयेगी।" नगीना गम्भीर थी।

“सोहनलालो भी उसो के कब्जो में हौवे...। उसो को छुड़ा लयो उधर से।"

“सोहनलाल को कुछ नहीं होने वाला। तुम लोगों ने मोना चौधरी पर हर वक्त नज़र रखनी है।"

"देवराज चौहानों से बातो हुओ क्या?" उधर से बांके ने पूछा।

“हां। देवराज चौहान बहुत बड़ी मुसीबत में फंस चुका है। हमें उसकी सहायता करनी चाहिये। वो...।”

"म्हारी और छोरे की तो जाणो भी हाजिर हौवे देवराज चौहानो के वास्ते...।”

“शुक्रिया भैया! कल सुबह से ही बंगले पर नज़र रखना।" नगीना ने कहा और फोन बन्द कर दिया।

■■■

अगले दिन देवराज चौहान की आंख नौ बजे खुली। जगमोहन पहले ही उठा हुआ था और नहा चुका था। कमरे के बाहर ही नहाना पड़ता था। बाथरूम कहीं नहीं था। टॉयलेट ही थी भीतर।

बिल्ला एक तरफ दीवार के साथ बैठा हुआ था कि उसे उठे पाकर बोला---

"चाय बनाऊं?"

"हां...।"

बिल्ला चाय बनाने में लग गया।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई तो जगमोहन पास बैठता कह उठा---

"हम कब तक यहां बैठे रहेंगे?"

“जब तक समझ नहीं आता कि हमें किस तरह काम करना चाहिये ।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

"मेरे ख्याल में खुद को बचाने के लिए हमारे सामने मजबूरी है कि मोना चौधरी और देवेन साठी को खत्म कर दें।"

“ये गलत होगा। उनकी कोई गलती नहीं है जो...।"

“गलती तो हमारी भी नहीं है। हम कठपुतली के असर में ये सब कर रहे थे।”

“उनकी निगाहों में तो हमने ही गलती की है। उन्हें कठपुतली का क्या पता। पता चल भी जाये तो वो यकीन नहीं करेंगे।" देवराज चौहान ने कहा--- “आधी रात को नगीना का फोन आया था। वो हमारे बंगले पर है। उसे सब कुछ पता चल गया है। मैंने भी वो सब उसे बता दिया जो हमारे साथ बीता। कल हमारी तलाश में मोना चौधरी, पारसनाथ और महाजन बंगले पर आये थे।"

"तो उन्हें बंगले का पता चल गया।”

“सोहनलाल, मोना चौधरी के पास है। नगीना ने बताया।"

“ओह, तो सोहनलाल से मालूम किया बंगले के बारे में...।"

“सोहनलाल उस बारे में नहीं बताने वाला। किसी और से पता लगा होगा।” देवराज चौहान ने कहा--- “इन हालातों में हमारा बाहर निकलना ठीक नहीं। मोना चौधरी सामने पड़ गई तो उसके या हमारे, किसी के लिए भी बुरा हो जायेगा। मैं सोच रहा हूं कि इन हालातों में हमें क्या करना चाहिये। लेकिन मैं अभी तक ठीक से समझ नहीं पा रहा कि क्या करें।”

"अब हमारे पास एक ही रास्ता है कि देवेन साठी और मोना चौधरी को खत्म कर दें।" जगमोहन बोला।

"ये करना ठीक नहीं है। वो निर्दोष हैं।"

"तो दोषी हम भी नहीं ।"

"उनकी निगाहों में तो हैं। हमने देवेन साठी के भाई की जान ली है। मोना चौधरी को मारना चाहा।”

जगमोहन होंठ भींचकर रह गया।

बिल्ला दो गिलासों में चाय ले आया।

"खुदे कहां है?" देवराज चौहान ने चाय का गिलास लेते कहा।

"नाश्ता लेने गया है। मैंने कहा आज पूरी-छोले खाने का मन है।" बिल्ला मुस्कराया।

जगमोहन ने भी चाय ले ली थी।

बिल्ला फिर दीवार से टेक लगाकर फर्श पर जा बैठा।

"तुम हमारी जो सेवा कर रहे हो, उसके बदले तुम्हें पैसा दूंगा।" देवराज चौहान ने बिल्ला से कहा।

"अच्छा।” बिल्ला खुश हो गया--- “कितना?"

"दस लाख...।"

"ओह, फिर तो मेरे मजे आ जायेंगे। मैं टुन्नी को खुश कर दूंगा।" बिल्ला कह उठा ।

"टुन्नी, खुदे की पत्नी है।” जगमोहन बोला।

"लेकिन वो मुझे अच्छी लगती है। बहुत अच्छी...।”

"ये गलत बात है बिल्ला!” जगमोहन ने कहा--- “दोस्त की पत्नी पर नज़र रखना तो और भी बुरी बात है।”

“क्या करूं, दिल नहीं मानता। हर वक्त टुन्नी का चेहरा ही आंखों के सामने घूमता रहता है।” बिल्ले ने गहरी सांस लेकर कहा--- "उसके अलावा मुझे कुछ सूझता ही नहीं ।"

“अपने दिल और दिमाग को कहीं और लगाओ।" जगमोहन बोला फिर देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान ने चाय का घूंट भरा।

“हम बहुत बड़ी मुसीबत में फंस चुके हैं।" जगमोहन ने कहा।

“हां।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- “ये ही सोच रहा हूं कि कैसे इस चक्रव्यूह से बाहर निकलें। खुले में गये तो देवेन साठी के आदमी हमें पहचानकर कहीं भी शूट कर सकते हैं जबकि हम उन्हें पहचानते नहीं।"

"दो तरफा मुसीबत है। परन्तु हम कब तक यहां बैठे रहेंगे।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- “सही सोच दिमाग में आते ही हम अपना काम शुरू कर देंगे। एक ही बात दिमाग में आ रही है बार-बार।"

"क्या?"

"देवेन साठी और मोना चौधरी को ऐसा उलझा दो कि हमारी तरफ से उनका ध्यान हट जाए।"

"ये कैसे होगा?"

"ये ही तो सोचना है। जितना वक्त बीतेगा, मामला उतना ही ठण्डा पड़ता चला जायेगा। शायद बाद में हमें मामले सम्भालने का मौका मिल जाये। हालांकि ये सब इतना आसान नहीं है।"

"तुम विलास डोगरा को भूल रहे हो।" जगमोहन के चेहरे पर गुस्सा नाच उठा--- “उसे बहुत बुरी मौत देनी है हमने ।"

"मैं उसे भूला नहीं हूं। मेरी लिस्ट में सबसे ऊपर अब विलास डोगरा का ही नाम है।" देवराज चौहान ने बेहद शान्त स्वर में कहा--- “लेकिन देवेन साठी और मोना चौधरी से फुर्सत मिले तो...।"

तभी हरीश खुदे ने भीतर प्रवेश किया। वो नाश्ता ले आया था।

“बुरी खबर है।” खुदे नाश्ते के लिफाफे बिल्ले को थमाता दोनों को देखकर बोला--- “देवेन साठी ने तुम दोनों पर इनाम लग दिया है। जो तुम लोगों को खबर देगा, उसे एक करोड़ मिलेगा।"

बिल्ले के कान खड़े हो गये ये सुनकर।

“एक करोड़... ।” देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।

“और उसका जो आदमी तुम लोगों को मारेगा, उसे दो करोड़ देगा।" खुदे ने चिन्तित स्वर में कहा।

"फिर तो हमारे लिए खतरा और बढ़ गया।" जगमोहन के होंठ भिंच गये।

“हां । इतना बड़ा इनाम लेने के लिए तो कोई भी, कुछ कर सकता है।” खुदे बोला।

बिल्ले के कान जैसे हिलने लगे हों। वो बन्दर की तरह बैठा, तीनों को देख रहा था।

"तो अभी हम लोगों का बाहर निकलना ठीक नहीं होगा।" जगमोहन बोला।

"खतरा बहुत है। तुम लोगों को यहीं टिके रहना होगा।" खुदे ने कहा।

एकाएक देवराज चौहान का चेहरा गुस्से से भर उठा। उसने फोन उठाया और नम्बर मिलाकर, फोन कान से लगा लिया। जगमोहन की नजरें देवराज चौहान के चेहरे पर जा टिकीं ।

"हैलो।” उधर से रीटा की आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ी।

"हरामजादी, डोगरा को फोन दे।" देवराज चौहान गुर्रा उठा ।

चन्द पलों बाद डोगरा की मीठी आवाज आई---

"बोल मेरे बच्चे, इतने गुस्से में क्यों...।"

"डोगरा !” देवराज चौहान गुर्रा उठा-- "मैं हर रोज तेरे को फोन करके तुझे तेरी आने वाली मौत के बारे में याद दिलाया करूंगा।”

“तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता देवराज चौहान!" वैसा ही मीठा स्वर था डोगरा का--- “तूने अभी मेरे को जाना ही कहाँ है। मैं तो वो हूं जो उड़ती चिड़िया के 'पर' भी काट देता हूं। विलास डोगरा है मेरा नाम ।"

“और मैं वो हूं जो तेरे जैसे शेरों को डण्डे से हांकता हूं।” देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा।

“खूब। बहुत खूब। मेरे जैसे शेर को डण्डे से हांकेगा ? हांक...जरूर हांक। डण्डा लेके तो तब आयेगा जब तुझे साठी और मोना चौधरी जिन्दा छोड़ेंगे। पहले उनसे तो बच के दिखा मेरे बच्चे ।" विलास डोगरा के हंसने की आवाज आई--- “मानना पड़ेगा कठपुतली भी क्या कमाल की चीज है। तू तो अब कहीं का भी नहीं रहा। मौत तेरे को मारने के लिए तड़प रही है। कब तक बचेगा तू...।”

"मैं कल फिर फोन करूंगा।" देवराज चौहान ने कहा और होंठ भींचे फोन बन्द करता जगमोहन से बोला--- “डोगरा जानता है कि साठी और मोना चौधरी से हम बचने वाले नहीं। वो निश्चिंत है कि हम उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।"

“हम उसे छोड़ने वाले नहीं।"

“देवराज चौहान, इस मुसीबत से निकलने के लिए कोई जुगाड़ लड़ाओ। यहां भी कब तक बैठे रह सकते... ।"

बिल्ले ने खुदे की बात को काटते हुए कहा---

“इसे अपना घर समझो। जब तक मर्जी रहो। मैं किसी को बाहर नहीं निकालूंगा।"

"तू चुप रह।" खुदे ने तीखी निगाहों से उसे देखा।

बिल्ला मुस्करा पड़ा।

"क्या हम देवेन और मोना चौधरी को समझा नहीं सकते कि हमने जो किया, वो हमसे 'कठपुतली' करा रही थी।"

"जो बात हो चुकी है वो दोहराओ मत जगमोहन!" देवराज चौहान बोला--- “इन हालातों में वो कुछ भी नहीं समझेंगे। हम उन्हें कुछ भी कहें, वो हमारी बात को झूठ समझेंगे ।"

खुदे ने बिल्ले से कहा ।

"तू अभी तक बैठा है। पूड़ी-छोले बर्तनों में डाल। जगमोह को दे। मुझे दे, खुद खा देवराज चौहान ने तो अभी नहाना है। सब कुछ ठण्डा हो रहा है।"

पूड़ी छोले के लिफाफे थामे बिल्ला बर्तनों की तरफ सरक गया और अपने काम में व्यस्त होते हुए उसने खुदे को पास बुलाया तो, खुदे पास आया।

"क्या है?"

"तू कैसा इन्सान है।" बिल्ले ने गहरी सांस लेकर कहा--- "यहां पूड़ी छोले खा रहा है और उधर टुन्नी पता नहीं खाना खा रही है या नहीं। तेरे को उसका ध्यान नहीं आता।"

"तो क्या करूं?" खुदे के चेहरे पर गुस्सा आ गया।

"उसे भी यहीं बुला...।"

"कल का थप्पड़ तू भूल गया क्या जो अब फिर... ।

“तेरे थप्पड़ का क्या बुरा मानना। फिर टुन्नी के लिए तो मैं गर्दन भी कटवा सकता हूं।”

“क्या कहा?" खुदे ने उसे घूरा।

"सच में...।"

“मुझे पता है तू सच कहता है।"

“पता है।" बिल्ले ने दांत दिखाये।

“हां। तेरी गर्दन मैं ही काटूंगा। तू सीधा हो जाने वाला बीज नहीं है। तेरे को जड़ से ही उखाड़ फेंकना होगा।"

“कभी पूड़ी छोले खिलाता है तो कभी गर्दन काटने को कहता है। टुन्नी को भी परेशान करता होगा। पर शर्म के मारे बेचारी ने ये बात कभी बताई नहीं। टुन्नी से मिलूंगा तो तेरी सब शिकायतें लगाऊंगा।” बिल्ला बोला।

“उल्लू का पट्ठा।" खुदे गुर्रा उठा--- "मरेगा मेरे हाथों।"

"तूने फोन करके एक बार भी टुन्नी का हाल नहीं पूछा।" बिल्ले ने शिकायत की--- "इसी से पता चल जाता है कि तू उससे कितना प्यार करता है। मैं होता तो हर वक्त टुन्नी से बात करता रहता। उसका कितना ख्याल रखता।”

"वो मेरी पत्नी है। मैं उसे फोन करूं या ना करूं, तुझे क्या ?" खुदे ने दांत पीसकर कहा।

"इसी का तो गम सताता है कि बेचारी तेरी पत्नी है। मैं होता तो उसका बहुत ध्यान रखता।"

उसी वक्त खुदे की दाईं टांग घूमी और नीचे बैठे बिल्ले के कन्धे पर पड़ी। बिल्ला वहीं लुढ़ककर पूड़ी छोले पर फैलता चला गया। पूरी तरह फ्लैट हो गया था।

"कुत्ते की औलाद टुन्नी को भूल जा वरना...।"

"नहीं भूलूंगा।" बिल्ला वैसे ही पड़े कह उठा--- “मार ले, टुन्नी को सब बताऊंगा।"

■■■

सुबह के दस बज रहे थे। नगीना ने मोना चौधरी को फोन किया।

"मिन्नो मैं बेला बोल... ।”

“तू मुझे फोन मत कर। देवराज चौहान नहीं बचेगा मेरे हाथों से। तेरे कहने पर भी मैं पीछे हटने वाली नहीं।" मोना चौधरी का गुस्से से भरा स्वर कानों में पड़ा---  "दोबारा फोन मत.. !”

"मैंने किसी और बात के लिए तुझे फोन किया है मिन्नो!" नगीना बोली।

"कह...।"

"तू जानना चाहती है ना कि देवराज चौहान ने तुझे मारने की क्यों चेष्टा की, क्यों पूरबनाथ साठी को...।"

"मुझे साठी से कोई मतलब नहीं... ।”

"दोनों बातें जुड़ी हुई हैं। तू मेरे पास पहुंचे तो वजह बता सकती हूं।” नगीना का स्वर शान्त था--- “मेरे ख्याल में तो तेरे को ये जरूर सुन लेना चाहिये कि मामला क्या है।"

"फोन पर बता...।"

"लम्बी बात है। मेरे पास आयेगी तो तभी बात हो सकेगी।"

"तेरे पास बताने को कुछ था तो रात को ही क्यों ना बता दिया?"

"तब मुझे भी नहीं पता था। तेरे जाने के बाद पता चला।" नगीना ने कहा।

"कहाँ पर है तू?"

"उसी बंगले पर ।"

"अगर तू मुझसे चाल खेल रही है तो मुझसे बुरा कोई न होगा बेला!"

"चाल कैसी?"

"बंगले पर तूने हमारे लिए कोई इन्तजाम कर रखा हो और वहां...।"

"ऐसा शक है तो फिर मत आना। तूने सोच भी कैसे लिया। कि मैं तेरा बुरा चाहूंगी।"

"ठीक है, आती हूँ मैं।" इतना कहकर उधर से मोना चौधरी ने फोन बन्द कर दिया था।

नगीना ने गहरी सांस ली। पुनः फोन किया।

"हैलो....।” बांकेलाल राठौर की आवाज कानों में पड़ी।

"बांके भैया, मोना चौधरी कुछ देर में बंगले पर पहुंचेगी। तुम कहां हो?"

"बंगले के बाहर ही टिको हो बहणा।"

"रुस्तम भी साथ है?"

"छोरा भी साथो हौवे...।"

"कहीं वे तुम्हें देख ना लें। सतर्कता से सब कुछ करना। जब वो बंगले से बाहर निकलें तो उस पर नजर रखना। लग जाना। अगर वो देवराज चौहान तक पहुंचे तो तब ही उसके सामने पड़ना ।"

"समझ गयो बहणो...।"

■■■

मोना चौधरी, पारसनाथ और महाजन के साथ बंगले पर पहुंची। तीनों सतर्क थे कि उनके लिए यहां कोई इन्तजाम कर रखा हो। नगीना से कोई बात करने से पहले उन्होंने हाथ में रिवाल्वरें थामें, पूरे बंगले पर नजर मारी। परन्तु सब ठीक था।

फिर वे नगीना के पास आ पहुंचे ।

"बहन पर इतना भी भरोसा नहीं मिन्नो!” नगीना ने शिकायती स्वर में कहा।

"हालात मुझे मजबूर कर रहे हैं कि मैं हर तरफ से सतर्क रहूँ।" मोना चौधरी की निगाह नगीना के चेहरे पर जा टिकी--- "बता, क्या कहना चाहती है तू?"

"तेरे को बताना है कि देवराज चौहान ने तेरी और साठी की जान...।"

"बता दे, देर मत लगा। बहुत काम करने हैं मुझे।" मोना चौधरी ने शुष्क स्वर में कहा।

"ये सब विलास डोगरा की वजह से हुआ।” नगीना बोली।

"विलास डोगरा ?" मोना चौधरी के होंठों से निकला। उसने पारसनाथ और महाजन को देखा।

पारसनाथ, महाजन चुप रहे।

"महीना भर पहले तू दुबई से किसी को उठवाकर मुम्बई लाना चाहती थी, इसके लिए तूने पहले विलास डोगरा से पचास करोड़ में बात की फिर ये काम पूरबनाथ साठी को दे दिया। इससे विलास डोगरा के अहम को चोट पहुंची, उसने बेइज्जती महसूस की और...।”

"तो इसमें देवराज चौहान और जगमोहन कहां से आ गये?" मोना चौधरी ने चुभते स्वर में कहा।

नगीना, वो सारी बात बताती चली गई जो देवराज चौहान ने उसे बताई थी।

मोना चौधरी, महाजन, पारसनाथ नगीना की बात सुनते रहे।

नगीना बात समाप्त करके खामोश हुई तो मोना चौधरी दांत भींचे बोली---

"तेरा क्या ख्याल है बेला कि मैं तेरी इस बकवास पर विश्वास कर...।"

"मैं गलत नहीं कह...।"

“ये बातें तेरे को किसने बताई?"

"देवराज चौहान ने...।"

"तू क्या सोचती है कि ऐसी बातें करके क्या देवराज चौहान खुद को बचा लेगा।"

"वो तेरे से डरता नहीं है मिन्नो, जो उसे इन बातों की आड़ लेनी पड़े। मैं तेरे को सच्चाई बता रही हूं जो उसे भी अब पता चली। उसे नहीं पता, उन तीन दिनों में उसने क्या-क्या किया। कठपुतली नाम के नशे ने उसका दिमाग खाली कर दिया था। वरना वो तेरे पीछे क्यों पड़ेगा। वो ये क्यों कहेगा कि क्यों मारना है, ये भूल गया।” नगीना बोली।

"मैं तेरी बातों में फंसने वाली नहीं। मैं जानती थी कि जो झगड़ा देवराज चौहान ने शुरू किया है, उसे तू रोकने की पूरी चेष्टा करेगी। परन्तु तेरी इन बातों का कोई आधार नहीं, जो...।"

"मेरी बात का विश्वास कर मिन्नो...!"

पारसनाथ कह उठा---

"तुम्हारी इस बात का कोई भी भरोसा नहीं करेगा।" स्वर गम्भीर था।

"एक बार मेरी बात पर सोचो तो पारसनाथ...!"

"मैं नहीं मानता कि कठपुतली नाम की कोई ऐसी दवा हो सकती है, जो इन्सान को... ।”

"तुम अब्दुल्ला से पूछ लो। उसका पता मैंने बता दिया...।" नगीना ने कहना चाहा।

"तुम अपनी बात से देवेन साठी को यकीन दिला सकते हो ?" महाजन बोला।

नगीना महाजन को देखने लगी।

"अगर तुम देवेन साठी को पीछे हटा सकी तो हम भी पीछे हट जायेंगे।" महाजन ने कहा।

"वो पीछे नहीं हटेगा। उसका भाई देवराज चौहान के हाथों मरा है। उसका मामला अलग है।” नगीना बोली।

"अगर बेबी भी इसी तरह मारी जाती तो...?"

“तो मुझे बहुत अफसोस होता। मिन्नो मेरी पूर्वजन्म की बहन है। इसे प्यार करती हूं मैं और... ।”

“रहने दे बेला !” मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी--- "हम बहनों में रिश्ता तब ठीक होगा, जब तूने मेरे दुश्मन से शादी नहीं की होती। देवराज चौहान की वजह से ही हम करीब नहीं आ पातीं ।"

"ऐसा नहीं है मिन्नो! तू अपने मन से दुश्मनी निकाल दे, वो ऐसे नहीं... ।”

“अभी देवराज चौहान ने मेरी जान लेने की चेष्टा की और तू कहती है वो ऐसा नहीं...।”

"वो सारा खेल विलास डोगरा का था। देवराज चौहान उसकी चाल में फंस...।"

"मैं तेरी इस बात पर विश्वास करने वाली नहीं...।" मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा।

"कोई भी कठपुतली वाली बात पर विश्वास नहीं करेगा।" महाजन गम्भीर स्वर में बोला।

"तो तुम लोग मुझे झूठा कह रहे हो।” नगीना थकी-सी कह उठी।

"चलो यहां से।" मोना चौधरी बोली--- “इसकी झूठी बातें सुनकर हम अपने इरादे से पीछे हटने वाले नहीं।”

"सोहनलाल तुम लोगों के पास है?"

"हां।" मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा।

“उसे छोड़ दो।”

मोना चौधरी पलटकर दरवाज़े की तरफ बढ़ गई।

“सोहनलाल को छोड़ते हुए, यहां पर, मेरे पास आने को कह देना।” नगीना पुनः बोली।

मोना चौधरी, महाजन, पारसनाथ बाहर निकले चले गये।

वही हुआ जिसकी आशा नगीना को पहले ही थी ।

कठपुतली वाली बात का कोई भरोसा नहीं करेगा और मोना चौधरी, पारसनाथ और महाजन ने भी नहीं किया। वो उसे झूठा समझ रहे थे। मोना चौधरी मानने को तैयार नहीं थी अब हालात और खतरनाक हो जाने थे।

नगीना सोफे पर जा बैठी। चेहरे पर गम्भीरता और सोचें उभरी पड़ी थीं। फिर उसने मोबाइल से बांकेलाल राठौर को फोन किया तो रुस्तम राव की आवाज कानों में पड़ी।

"हैलो...।"

“तुम लोग मोना चौधरी का पीछा कर रहे हो?" नगीना ने पूछा।

“हां दीदी, पीछा करेला। बाप कार चलाईला ।”

"मेरी बात फिर से सुन लो। उन लोगों पर नज़र रखनी है। अगर उनका सामना देवराज चौहान से हो जाता है तो तब सामने आकर मिन्नो को रोकना है। परन्तु इससे मिन्नो, महाजन, पारसनाथ को जिस्मानी नुकसान ना हो।"

"सब समझेला दीदी।”

नगीना ने फोन बन्द किया और सोचों में डूबी रही। चिन्ता थी चेहरे पर।

■■■

"कितना बड़ा झूठ कहा बेला ने।” महाजन कह उठा--- "कहती है इस सारे काम के पीछे विलास डोगरा है। कठपुतली नाम का नशा देवराज चौहान को दिया गया है और वो अपने होश में नहीं था।”

पारसनाथ कार ड्राईव कर रहा था।

"ये बात तो उसने सही कही है कि दुबई से एक बन्दे को उठवाकर मुम्बई लाना था। सौ करोड़ में ये काम मुझे किसी ने दिया था और मैंने पहले पचास करोड़ में विलास डोगरा को ये काम सौंपना चाहा। उससे बात भी हुई, परन्तु बाद में मुझे पूरबनाथ साठी ठीक लगा तो मैंने ये काम उससे करा लिया।” मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा।

“इसका मतलब बेला आधी बात ठीक कहती है।” महाजन ने कहा।

“ये बात बेला के मुंह से सुनना, तुम्हें अजीब नहीं लगता मोना चौधरी !” पारसनाथ कार चलाता कह उठा--- “जो बात तुमने डोगरा या साठी से की, वो नगीना ने बताया ।"

मोना चौधरी खामोश रही।

“वो सही कहती भी हो सकती है।” पारसनाथ ने सोच भरे स्वर में कहा।

“तुम्हारा मतलब कि कठपुतली नाम का नशा होता है जो इन्सान को इस तरह घुमा देता है।"

“सम्भव है, हो। पता करना पड़ेगा। बाजार में अजीब-अजीब तरह के नशे आ गये हैं। सबके बारे में मालूम भी तो नहीं रहता।" पारसनाथ ने शान्त स्वर में कहा--- “सोचने की बात तो ये है कि देवराज चौहान हमसे डरने वाला नहीं, ऐसे में वो अपनी सफाई क्यों देगा? अब हमें उसकी खबर भी नहीं मिल रही कि वो हमें ढूंढ रहा है।"

"तुम्हारा मतलब कि नगीना ने सही कहा ?"

“मैं सिर्फ सोच रहा हूं ये बातें।” पारसनाथ गम्भीर स्वर में बोला--- “तब देवराज चौहान और जगमोहन की दोनों आंखें लाल हुई पड़ी थीं, क्या पता वो कठपुतली नाम के नशे की वजह से लाल हों। अब वो नशे से बाहर निकला तो उस पता चला कि उसने क्या कर दिया है। ऐसे में वो बात सम्भालने में लग गया।"

“तुम बेला की बातों को सच मान रहे हो?"

"मैं अपनी सम्भावना व्यक्त कर रहा हूं। बेला या देवराज चौहान सफाई क्यों देने लगे। जो काम देवराज चौहान ने किया है तो किया है। उस पर सफाई दी जा रही है तो जरूर कोई बात है।" पारसनाथ ने कहा।

"मैं देवराज चौहान को छोड़ने वाली नहीं।" मोना चौधरी दांत पीसकर कह उठी--- “वो मेरे हाथों मरेगा।"

■■■

राधा कॉफी का प्याला थामे, सोहनलाल के पास पहुंची और कुर्सी पर बैठती कह उठी---

"बेचारा। कितनी तकलीफ उठा रहा है। कब से तेरे हाथ-पांव बंधे हैं। पर अब क्या फायदा मुंह बन्द रखने का। नीलू ने पता कर लिया है कि देवराज चौहान कहां रहता है। सब वहीं गये हैं। अब तक तो वो मर भी गया होगा।"

"बहुत खुश हो रही हो।" सोहनलाल बोला।

"क्यों ना होऊंगी। देवराज चौहान और जगमोहन, दोनों ही घटिया इन्सान हैं। मैंने अच्छी तरह देख लिया है उनको। पहले नहीं जानती थी करीब से। मेरे और नीलू के हाथ-पांव किस बुरी तरह बांध थे। वो तो हमें मारने जा रहे थे, ये तो अच्छा हुआ कि हम वहां से भाग निकले, नहीं तो जिन्दा ही ना होते। बहुत बुरा किया हमारे साथ।"

"कोई बात तो जरूर है जो देवराज चौहान ने ऐसा किया...।"

"बात क्या, अपने को पता नहीं क्या समझ रहा था। जैसे मुम्बई का 'सबसे बड़ा गुण्डा' वो ही हो। बात-बात पर गालियां दे रहा था। हाथ उठा रहा था। घटिया इन्सान है वो।"

“वो ऐसा नहीं है।"

"ऐसा ही है। मैंने देख लिया है। मोना चौधरी अब उसे नहीं छोड़ेगी।"

सोहनलाल गहरी सांस लेकर रह गया।

राधा कॉफी का घूंट भी भरती जा रही थी।

तभी बेल बजी। राधा ने फौरन उठकर दरवाजा खोला।

सामने महाजन खड़ा था।

"नीलू तू? मोना चौधरी और पारसनाथ कहां हैं?" राधा ने पूछा।

"वो देवराज चौहान को ढूंढ रहे हैं।" महाजन भीतर आता कह उठा--- “मुझे भी अभी जाना है।”

"तो क्या देवराज चौहान उस बंगले पर नहीं मिला?"

"नहीं। नगीना थी वहां।"

"उसके हाथ-पांव बांधकर, उससे पूछा नहीं कि उसने देवराज चौहान को कहां छिपा रखा है।"

महाजन, सोहनलाल के पास पहुंचकर ठिठका।

"देवराज चौहान के ठिकाने का तो पता चल गया। अब इस सोहनलाल का क्या करना है?” राधा पास आते बोली ।

"बेबी ने इसे छोड़ देने को कहा है।"

"कितना बड़ा दिल है मोना चौधरी का। सुन लिया सोहनलाल। देवराज चौहान ने तो हमें नहीं छोड़ा।”

"इसके बंधन काट दे राधा !”

राधा किचन की तरफ बढ़ गई।

"तो देवराज तुम्हें वहां नहीं मिला?" सोहनलाल बोला।

“मिल जायेगा।” महाजन कठोर स्वर में कह उठा--- "वो कभी हमारे हाथ लग सकता है।"

"मुझे देवराज चौहान से फोन पर बात करने देते तो अच्छा रहता।"

"तब क्या हो जाता?"

"कम-से-कम ये तो पता चलता कि वो ये सब क्यों कर रहा है।"

"इस बारे में नगीना ने हमें झूठी कहानी सुनाई है।" महाजन ने कड़वे स्वर में कहा।

“क्या?"

"खुद ही जाकर सुन लो। वो देवराज चौहान के बंगले पर म्हारा इन्तज़ार कर रही है।"

“तो नगीना भाभी के कहने पर मुझे छोड़ा जा रहा है।”

“मैं तुम्हें बेबी के कहने पर आजाद कर रहा हूं। परन्तु यहां से तुम्हें आंखों पर पट्टी बांधकर दूर छोडूंगा ताकि तुम देवराज चौहान को यहां के बारे में ना बता सको।” महाजन ने सख्त स्वर में कहा।

सोहनलाल चुप रहा।

राधा किचन से चाकू ले आई थी। उसने सोहनलाल के बंधन काट दिये।

“भूलना मत सोहनलाल! मैंने तुझे आजाद किया है। याद रखेगा ना ?" राधा कह उठी।

“मेहरबानी ।" सोहनलाल कड़वे स्वर में कह उठा ।

"राधा ! कोई कपड़ा दे। इसकी आंखों पर बांधकर दूर छोड़ना है इसे ।"

"समझ गई। लेकिन पहले चाय तो पी लो। ये बेचारा भी पी लेगा। कम-से-कम मेरे हाथों की इसे चाय तो नसीब होगी ।"

"मुझे जाना है। कपड़ा दे।"

दस मिनट बाद ही महाजन कार दौड़ा रहा था। बगल बैठे सोहनलाल की आंखों पर कपड़ा बंधा था।

■■■

अब्दुल्ला अपने ठिकाने पर, फोन से विलास डोगरा से बात कर रहा था।

"मैंने तो आपसे पहले ही कहा था डोगरा साहब, कठपुतली बढ़िया काम करेगी। अब आप कठपुतली की तारीफ करते थक नहीं रहे। कठपुतली को बनाने और परखने में मुझे चार साल लग गये, तब जाकर मैं एसी चीज बनाने में कामयाब हुआ। ये मैं हर किसी को नहीं देता। सिर्फ खास को ही कठपुतली देता हूं।"

“तुम्हारी कठपुतली से तो रीटा डार्लिंग भी बड़ी खुश है।" विलास डोगरा की मुस्कराती आवाज अब्दुल्ला के कानों में पड़ी--- "मुझे तो अभी तक यकीन नहीं हो रहा कि कठपुतली ऐसा बढ़िया काम करती है।"

"ये आपका बड़प्पन है जो आप इतनी तारीफ कर रहे हैं।” अब्दुल्ला भी खुश था।

"बोल तेरे को कितनी रकम भिजवाऊं?”

"जो आपकी इच्छा हो...।"

“ऐसे नहीं अब्दुल्ला। तूने मुझे खुश कर दिया। मैं भी तुझे खुश कर दूंगा। बोल कितनी रकम भेजूं?"

"पांच लाख दे दीजिये... ।”

"पांच लाख...? एक मिनट रुक, रीटा डार्लिंग कुछ कह रही है.... ।”

अब्दुल्ला फोन कान पर लगाये रहा।

आधे मिनट बाद विलास डोगरा की आवाज आई।

"रीटा डार्लिंग कहती है कि तुम्हें पचास लाख दूं। उसकी बात तो माननी ही पड़ेगी। ये मेरा बहुत ध्यान रखती है। ये ना होती तो मेरा जाने क्या होता। रात तक तेरे पास पचास लाख पहुंच जायेंगे।"

"बहुत-बहुत मेहरबानी डोगरा साहब...!"

परन्तु तब तक उधर से विलास डोगरा ने फोन बन्द कर दिया था।

“पचास लाख ।” अब्दुल्ला हंसकर बोला--- “जबकि मेरा उस पर पच्चीस हजार भी नहीं लगा था। भारी मुनाफे का सौदा है कठपुतली। काम भी तो बढ़िया करती है। खुश हो गया डोगरा !"

तभी कॉलबेल बजी।

अब्दुल्ला उठा। फोन जेब में डाला और आगे बढ़कर दरवाजा खोला।

सामने पारसनाथ और डिसूजा खड़े थे।

"कहिये?" अब्दुल्ला ने इन्हें पहले कभी नहीं देखा था।

“अब्दुल्ला हो ?” डिसूजा बोला ।

"हां...।"

“तो भीतर चलो। तुमसे बात करनी है। धन्धे की बात है। समझे क्या ?” डिसूजा मुस्करा पड़ा।

"आओ।”

अब्दुल्ला उन्हें भी ड्राइंगरूम में ले आया जहां डोगरा के साथ बैठा था उस रात ।

“यहां रहते हो?” डिसूजा बोला ।

“यहां से मैं काम चलाता हूं। परिवार मेरा दूसरी जगह पर रहता है। तुम लोग कौन हो?"

“मेरा नाम डिसूजा है। ये पारसनाथ सर हैं।” डिसूजा ने पारसनाथ की तरफ इशारा किया।

पीछे वाले कमरे से आवाजें उठ रही थीं।

"यहां कोई और भी है ?” डिसूजा ने पूछा।

“मेरे आदमी दूसरे कमरों में माल तैयार करते हैं। वो इधर नहीं आयेंगे। तुम कहो...।"

डिसूजा ने उसका ध्यान पारसनाथ की तरफ करते हुए कहा---

“सर, तुमसे बात करेंगे।"

अब्दुल्ला ने पारसनाथ को देखा।

“कठपुतली क्या चीज है?” पारसनाथ ने शान्त स्वर में पूछा।

अब्दुल्ला चौंका।

पारसनाथ और डिसूजा से उसका चौंकना छिपा नहीं।

"कठपुतली?" अब्दुल्ला सम्भलकर सतर्क हुआ--- "ये क्या है। मैं समझा नहीं।"

पारसनाथ ने रिवाल्वर निकाली और आगे बढ़कर उसकी गर्दन के घण्टे पर रख दी। अब्दुल्ला ये होते पाकर थम से खड़ा रह गया। चेहरा कुछ फक्क पड़ा।

"सर को बार-बार सवाल पूछने की आदत नहीं है।" डिसूजा ने कहा--- "दो बार पूछने के बाद गोली मार देते हैं। एक बार पूछ लिया है और दूसरी बार अब पूछेंगे। पूछिये सर !”

"कठपुतली क्या चीज है?" पारसनाथ ने कठोर स्वर में पूछा। "

ब... बताता हूं। य... ये रिवाल्वर हटा लो।”

"बता रहा है सर !” डिसूजा बोला--- “अब रिवाल्वर की जरूरत नहीं पड़ेगी।”

पारसनाथ ने रिवाल्वर हटा ली ।

अब्दुल्ला ने पारसनाथ को देखते, अपनी गर्दन मसली।

"सर को जल्दी बताओ कठपुतली के बारे में।” डिसूजा ने कहा।

अब्दुल्ला कठपुतली का ब्यौरा देने लगा कि वो क्या चीज है। कैसे काम करती है।

पारसनाथ और डिसूजा ने सब सुना।

अब्दुल्ला की बात खत्म हुई तो पारसनाथ बोला---

"पिछले पांच दिन के भीतर तूने कठपुतली किसको दी?" पारसनाथ के चेहरे पर कठोरता थी।

“क... किसी को भी नहीं...।"

उसी पल पारसनाथ ने रिवाल्वर वाला हाथ उठाया तो डिसूजा जल्दी से बोला---

“गोली मत मारिये सर ! ये कुछ और कह रहा है। कहता है दी, बता किसे दी, वरना सर तेरे को...।"

“वि... विलास डोगरा को।" अब्दुल्ला के होंठों से निकला।

पारसनाथ का रिवाल्वर वाला हाथ नीचे होता चला गया। चेहरे पर कठोरता आ ठहरी थी।

"कब दी ?"

“पांच... पांच दिन पहले। लेकिन बात क्या...।"

“चुप ।" डिसूजा ने कहा--- “सवाल मत पूछ...।"

“विलास डोगरा कठपुतली का इस्तेमाल किस पर करना चाहता था?" पारसनाथ ने पूछा।

"मेरे को नहीं पता। पर दो आदमियों के लिए कठपुतली ली थी।"

“दो के लिए?" पारसनाथ ने दोहराया।

"हां।"

"वो दोनों कौन थे ?"

"मैं सच में नहीं जानता कि वो कौन हैं जिन पर...।"

"तेरे सामने उनका नाम तो लिया होगा?"

"नहीं लिया।"

"विलास डोगरा ने कठपुतली का इस्तेमाल कर लिया या करना है?" पारसनाथ ने पूछा।

अब्दुल्ला हिचकिचाया।

पारसनाथ का रिवाल्वर वाला हाथ पुनः उठा तो अब्दुल्ला कह उठा---

“इस्तेमाल कर लिया है। अभी विलास डोगरा का फोन आया था।"

"क्या कह रहा था?"

"वो बहुत खुश था कि कठपुतली ने बहुत बढ़िया काम किया है। वो मेरे को इनाम देने को कह रहा था।"

पारसनाथ का रिवाल्वर वाला हाथ नीचे हो गया।

“दो पर इस्तेमाल किया कठपुतली को। उनमें से एक का नाम तो लिया ही होगा उसने।"

"नहीं लिया।”

“उसने कठपुतली को किस दिन इस्तेमाल किया तेरे को पता है?"

“हां। जब कठपुतली दी जा रही थी तो पूछने के लिए मेरे को रीटा डार्लिंग, म... मेरा मतलब कि रीटा का फोन... ।”

“रीटा कौन?"

“विलास डोगरा की चहेती। हर समय उसके साथ ही रहती है।" अब्दुल्ला ने बताया कि ये कौन से दिन की सुबह की बात है--- "तब कठपुतली उन दोनों को दी जा चुकी थी और मुझे बताया कि ये असर हुआ, उसने पूछा कि ठीक है। मैंने कहा कि बिल्कुल ठीक है। ये ही असर होना चाहिये।”

पारसनाथ के चेहरे पर सोच के भाव उभर आये।

“उसके बाद विलास डोगरा से कब बात हुई?"

"अभी ! अभी उसका फोन आया। वो खुश था कि कठपुतली ने काम बढ़िया किया है। तभी तुम लोग आ गये।"

"डोगरा को फोन करके पूछ कि उसने किन्हें कठपुतली दी....।"

"क्यों मेरे को मुसीबत में डाल रहे...।”

पारसनाथ का रिवाल्वर वाला हाथ उठ गया।

अब्दुल्ला ने व्याकुल भाव से फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा। पारसनाथ का रिवाल्वर वाला हाथ उठा और बोला---

"तेरे को हर हाल में ये जानना है कि...।"

“वो मुझे क्यों बतायेगा ?”

"अगर तू नहीं मालूम कर सका तो मरेगा।” पारसनाथ के होंठ भिंच गये।

अब्दुल्ला ने फोन कान से लगा लिया।

तभी विलास डोगरा की आवाज कानों में पड़ी।

"बोल अब्दुल्ला ।”

“ड...डोगरा साहब एक बात पूछना चाहता हूं अगर माफी पहले मिल जाये तो ।” अब्दुल्ला कह उठा।

"पूछ...।"

"कठपुतली किस पर आजमाई आपने?"

"तेरे को क्या...?"

“उत्सुकता के नाते पूछ रहा हूं। बता देंगे तो रात चैन से सो पाऊंगा।” अब्दुल्ला ने दांत फाड़कर कहा और सामने रिवाल्वर ताने पारसनाथ को खड़े देखा।

"डकैती मास्टर देवराज चौहान का नाम सुना है...?" उधर से डोगरा की आवाज आई।

“हां-हां सुना है, वो...।"

“उसी को कठपुतली ने नचाया। तू फिक्र मत कर। पचास लाख आज ही तेरे पास आ जायेगा।” कहने के साथ ही उधर से डोगरा ने फोन बन्द कर दिया।

अब्दुल्ला फोन कान से सटाता कह उठा।

“देवराज चौहान। डकैती मास्टर का नाम लिया है उसने ।”

पारसनाथ का रिवाल्वर वाला हाथ नीचे होता चला गया।

■■■

दोपहर के 3.30 बजे थे।

बिल्ला दीवार से टेक लगाये बैठा था। आंखें बन्द थी उसकी। जगमोहन और हरीश कुर्सियों पर बैठे थे। देवराज चौहान बैड पर लेटा था। लंच निपटा चुके थे। काफी देर से वहां खामोशी व्याप्त थी।

एकाएक देवराज चौहान उठ बैठा और खुदे से बोला।

"तुम साठी के लिए काम करते थे।"

"पूरे आठ साल किया है।" खुदे ने देवराज चौहान को देखा।

"देवेन साठी की कोई कमज़ोरी बता ।"

"कमजोरी ?"

“हां। मैं उसे इस कदर उलझाना चाहता हू कि उसका ध्यान मेरी तरफ से हट जाये। ताकि मैं विलास डोगरा से निपट सकूं। देवेन साठी की ऐसी कोई कमजोरी जिससे कि उसे भारी परेशानी हो, अगर मैं उस कमजोरी को दबाऊं तो...।"

खुदे के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।

"मोना चौधरी भी तो है ।" जगमोहन बोला--- “देवेन साठी को सम्भाल लिया तो मोना चौधरी से कैसे पीछा छुड़ाओगे?"

“उसके बारे में सोच लिया है मैंने।"

जगमोहन के होंठ सिकुड़े।

"देवेन साठी की तो मुझे कोई कमजोरी समझ में नहीं आ रही। आखिर तुम जानना क्या चाहते हो ?” खुदे ने कहा।

"जैसे कोई उसका परिवार हो, या... ।”

“परिवार ?” खुदे कह उठा--- "हां, उसका परिवार है।"

"कैसा परिवार ?"

“पत्नी, शायद बच्चे भी। बच्चों के साथ ही तो परिवार बनता है। पांच साल पहले देवेन साठी अफगानिस्तान गया था तो पूरबनाथ साठी के मुंह से एक बार निकला था कि वो परिवार के साथ वहीं रहेगा और ड्रग्स भेजेगा उधर से।"

"परिवार में कौन-कौन है उसके ?" देवराज चौहान ने पूछा।

“ये मैं नहीं जानता। जाहिर है पत्नी, बच्चे ही होंगे।"

“देवेन साठी तो यहां आ गया। अब परिवार अफगानिस्तान में है या...।"

“ये मैं कैसे बता सकता हूं?"

"तो कौन बता सकता है?”

"पाटिल या कर्मा खत्री को इस बारे में जानकारी होगी। परन्तु कर्मा खत्री को तो तुम लोग मार चुके हो।"

"पाटिल को पक्का पता होगा?"

"होना तो चाहिये।"

देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव दिखने लगे।

"तुम करना क्या चाहते हो?" जगमोहन ने पूछा।

"देवेन साठी के परिवार के बारे में पता करके, उसके परिवार को अपने काबू में करना होगा कि वो हमारी बात सुने और हमारा पीछा छोड़ दे। जब तक देवेन साठी की कोई कमजोरी हमारे हाथ में नहीं आती, तब तक वो हमारी बात नहीं सुनने वाला।”

खुदे गम्भीर दिखने लगा।

"ये खतरनाक रास्ता है। ऐसा होने पर देवेन साठी भड़क भी सकता है।" जगमोहन बोला।

"अगर वो अपने परिवार को चाहता होगा तो, हमारी बात जरूर मानेगा।"

"ना चाहता हुआ तो...।”

"जरूर चाहता होगा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "वो अफगानिस्तान गया तो अपने परिवार को साथ ले गया। इसी से पता चलता है कि उसे अपने परिवार से प्यार है।"

जगमोहन, देवराज चौहान को देखने लगा।

“पाटिल को पक्का पता होगा उसके परिवार के बारे में कि वो कहां पर होगा इस वक्त ?" देवराज चौहान ने पूछा।

"हां। पाटिल, पूरबनाथ साठी और देवेन साठी के करीब रहा है हमेशा...।" खुदे ने कहा।

"फिर तो हमें देवेन साठी के परिवार के बारे में पता लगाना...।"

“हम बाहर निकले तो बचेंगे नहीं।" देवराज चौहान के दांत भिंच गये।

"फिर कैसे ?"

“ये काम नगीना करेगी।"

“नगीना भाभी?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“हां। वो हमारे बंगले पर आ पहुंची है और सारे हालातों से वाकिफ है। नगीना अपने साथ बांके रुस्तम को भी ले लेगी। तीनों अपना रास्ता तैयार कर लेंगे कि कैसे पाटिल तक पहुंचना है।" देवराज चौहान गम्भीर था--- “इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है हमारे पास। जब तक उसके परिवार का पता नहीं चलता, हम बाहर नहीं जायेंगे।"

"पाटिल, साठी का आदमी है। उस पर हाथ डालना आसान नहीं होगा। भाभी को और लोगों की जरूरत पड़ सकती है।"

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

"सरबत सिंह का पता नगीना को दे दूंगा। सरबत के पास सब इन्तजाम हैं।"

"वो कमीना। जिसे तुमने काम के बाद काफी मोटी रकम दे दी थी।" जगमोहन कह उठा।

“उसे पैसे की जरूरत थी। उसने अपनी बहन की शादी करनी थी। अगर मैंने ऐसा ना किया होता तो वो आज मेरे काम नहीं आता। इन्सान के कर्म ही उसकी जिन्दगी को चलाते हैं। इसी तरह लेन-देन चलता है।"

"इन हालातों में वो साथ देगा हमारा ?"

"बात करनी पड़ेगी।”

"और मोना चौधरी के बारे में क्या सोचा तुमने?"

"इसके लिए पारसनाथ और महाजन को अपने काबू में करना होगा। वो दोनों हमारे कब्जे में होंगे तो मोना चौधरी के कदम रुक जायेंगे। उसे हमारे पीछे से हटना होगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"पर ये कब तक चलेगा? इसका अंत कहां पर होगा?"

"ये सब कुछ करने के बाद देवेन साठी और मोना चौधरी को समझाना होगा कि हमने जो भी किया, अपने होशो-हवाश में नहीं किया। ये सब करवाना विलास डोगरा की चाल थी। हमें कठपुतली नाम का नशा दिया था और...।"

“और तुम सोचते हो कि वो हमारी बात का यकीन लेंगे और पीछे हट जायेंगे।”

“ये बाद की बात है। पर हम उन्हें यकीन दिलाने की चेष्टा करेंगे। हो सका तो इस काम में विलास डोगरा का इस्तेमाल करेंगे।”

“विलास डोगरा बहुत खतरनाक इन्सान है।" खुदे बोला--- “वो इस्तेमाल नहीं होने वाला ।”

“साला हमारे हाथों बुरी मौत मरेगा।" जगमोहन के दांत भिंच गये।

"इस तरह तो मामला बहुत लम्बा खिंच जायेगा।" खुदे ने कहा।

“खुद को बचाना है तो...।"

"देवराज चौहान!" खुदे बेचैनी से कह उठा--- "तुम और जगमोहन खुद को बचाने की चेष्टा कर रहे हो। पता नहीं आने वाले वक्त में क्या होता है, परन्तु मैं कैसे बचूंगा। मैं तो उस वक्त कठपुतली के असर में नहीं था।"

"अगर हम बचे तो तुम भी बचोगे।” देवराज चौहान ने कहा--- "जो भी होगा, हम तीनों के लिए होगा।"

"सरबत सिंह को फोन करो।" जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला।

देवराज चौहान ने सरबत सिंह को फोन किया। खुदे और जगमोहन की निगाह देवराज चौहान पर ही थी। जल्दी ही सरबत सिंह की आवाज कानों में पड़ी।

“हैलो ।”

“मैं हूं देवराज चौहान!” देवराज चौहान ने कहा।

उधर से सरबत सिंह की गहरी सांस लेने की आवाज आई।

"ओह तुम।” सरबत सिंह ने उधर से कहा--- “तुमसे बात करने के लिए कल से ही मैं कितना परेशान हो रहा था। मेरा फोन कहीं गिर गया तो तुम्हारा नम्बर भी खो गया, अब वो ही नम्बर मैंने दोबारा इशू करवाया है। फिर मुझे याद आया कि तुम्हारा नम्बर मैंने एक कागज पर भी लिखा था तो उस कागज को ढूंढने पर लगा हूँ कल से कि तुम्हारा फोन आ गया। ये सब क्या हो रहा है। तुमने पूरबनाथ साठी को मार दिया और अब देवेन साठी तुम्हें मारना चाहता है। उसने तो मोटा इनाम भी तुम पर रख दिया...।"

“इसी बारे में तुम्हें फोन किया...।"

“तुम्हारे लिए तो हालात बहुत बुरे हो चुके हैं देवराज चौहान भाई, तुमने तो खुद को मुसीबत में डाल लिया।"

"किसी और ने मुझे और जगमोहन को मुसीबत में डाला है।" देवराज चौहान ने कहा।

“किसने?”

"विलास डोगरा ने।”

“वो भी इस मामले में है?" उधर से सरबत सिंह चौंका।

“मुझे मुसीबत में डालने वाला विलास डोगरा ही है।"

“तुमने पूरबनाथ साठी को नहीं मारा?"

"मारा। मैंने ही मारा। परन्तु वो सब विलास डोगरा की चाल थी और... ।”

"ये कैसे हो सकता है, पूरबनाथ साठी को मारा तो तुमने ही, फिर उसकी चाल कैसे...।"

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली फिर बोला---

"ये बातें तुम्हें पता चल जायेंगी, पहले मेरी बात का जवाब दो।"

"क्या?"

"तुम इस मामले में मेरे बारे में क्या सोचते हो?" देवराज चौहान ने पूछा।

"यही कि तुम भारी मुसीबत में हो। देवेन साठी को अपने भाई की मौत पसन्द नहीं आ रही। वो तुम्हें मार के रहेगा।"

"तुम इस मामले में मेरे लिए क्या कर सकते हो?"

"जो तुम कहो।"

"ये देवेन साठी का मामला है। सोच के जवाब दो सरबत सिंह। जान भी जा सकती है।"

"मैं अपनी बहन की शादी तुम्हारी वजह से कर सका। तुमने पैसा ना दिया होता तो...।"

“वो बात पुरानी हो गई। उसे बीच में मत लाओ। मैंने तुम पर कोई एहसान नहीं किया ये सोचकर कि कल को मेरे पर ऐसा वक्त आने वाला है। तुम मेरे काम आओगे। पहले की बातें भूल जाओ। देवेन साठी के खिलाफ मुझे तुम्हारी सहायता की जरूरत है। जरूरी नहीं कि तुम मेरी सहायता करो। तुम्हारे इन्कार पर भी मुझे नाराज़गी नहीं होगी और तुम...।"

"कैसी बातें करते हो देवराज चौहान भाई...!" सरबत सिंह की आवाज कानों में पड़ी--- “तुम बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या करूं। माना कि देवेन साठी अण्डरवर्ल्ड डॉन है, लेकिन तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं।"

“दिल से?"

“पक्का दिल से।"

"खतरा ज्यादा होगा।"

“तब भी मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहूंगा।” सरबत सिंह का दृढ़ स्वर कानों में पड़ा--- "बोलो क्या करूं?"

“इन्तज़ार करो। तुम्हें मेरी पत्नी नगीना का फोन आयेगा। उसके साथ काम करना होगा। काम के बारे में वो बतायेगी।"

"तुम्हारी पत्नी भी है?" उधर से सरबत सिंह ने हैरानी से कहा।

“इसमें हैरान होने की क्या बात है।"

"वो...कुछ नहीं... यूं ही।" उधर से सरबत सिंह ने कहा--- "भाभी को इस काम में क्यों लाते... ।”

"उसे इन कामों का अनुभव है। उसकी फिक्र मत करो।"

"समझ गया। मुझे पूरा मामला बताओ कि विलास डोगरा, इस चक्कर में कहां फिट होता है।"

"नगीना से पूछना। वो तुम्हें सब बता देगी। तुम्हें उसका फोन आयेगा।"

"कब?"

"जब वो ठीक समझेगी।”

"तुम और जगमोहन इस वक्त कहां हो?"

"सुरक्षित जगह पर। जरूरत पड़ी तो मैं तुम्हें फोन करूंगा।” कहकर देवराज चौहान ने फोन बन्द कर दिया।

"वो तैयार है?" जगमोहन ने पूछा।

"हां...।"

"तो अब भाभी को फोन करके अपनी प्लानिंग बताओ ।"

देवराज चौहान नगीना के नम्बर मिलाने लगा।

खुदे कुर्सी से उठा और बिल्ले से बोला---

"चाय तो पिला दे।"

बिल्ले ने आंखें खोली। खुदे को देखा और मुस्करा पड़ा ।

“क्या है?"

“आज शाम पीने का मन है।"

“तो पी ले।”

"मेरे पास पैसे कहां, वो तो तू ही देगा।” बिल्ला मुस्कराया।

“पव्वा ही चाहिये तुझे। तू हजम कहां कर पायेगा। पचास रुपये ले लेना।” खुदे बोला।

“तू मुझे पचास रुपये वाला पव्वा पिलायेगा। कुछ तो टुन्नी का ख्याल कर ले।”

“साले फिर टुन्नी... ।" खुदे ने झल्लाकर कहना चाहा।

“जब उसे पता चलेगा कि सस्ती शराब पीता हूं तो दुःख नहीं होगा ?"

"नहीं होगा।” खुदे ने दांत भींचे--- “तू नाले में छलांग लगा दे। वो खुश हो जायेगी। करेगा उसे खुश... ?"

"तू जलता क्यों है?"

"मैं जलता हूं।" खुदे के माथे पर बल पड़े--- "मैं क्यों जलूंगा।"

"मुझे मालूम है टुन्नी कैसे खुश होती है।"

"कैसे होती है?"

"जब मैं उसके सामने जाता हूं तो वो खुश हो जाती है। उसका चेहरा खिल जाता है कमल के फूल की तरह। गाल गुलाबी हो जाते हैं। उसकी आंखों में प्यार छलकने लगता है।" बिल्ला ने गहरी सांस ली--- "तुम्हें क्या बताऊं, वो....।"

“दूसरे की पत्नी पर नज़र रखने वाले कमीने, तू बोत जल्दी मेरे हाथों से मरने वाला है।"

"तू ना होता तो आज टुन्नी मेरी होती।”

"मैं ना होता।” खुदे ने मुंह बनाया--- “साले मैं ना होता तो टुन्नी भी ना होती।”

“वो होती। वो तो जरूर होती। वो तो मेरी जान है वो.....।

“तेरी जान है।” खुदे दांत भींचकर कह उठा--- “तू होश में तो है। वो मेरी पत्नी है और तू उसके बारे में...।"

“ये ही तो रोना है कि वो तेरी पत्नी है। अगर तू ना होता तो वो मेरी पत्नी होती, मैं उसे...।"

“बिल्ले, सच कह रहा हूं तू मेरे हाथों से मरेगा।” खुदे कठोर स्वर में कह उठा ।

“तू मुझे क्या मारेगा। टुन्नी के बिना तो वैसे ही मैं खुद को मरा पाता हूं। अभी आंखें बन्द करके ये ही सोच रहा था कि अगर तू बीच में से निकल जाये तो मेरा और टुन्नी का मिलन हो जायेगा !"

"तो अब तू यहां तक सोचने लगा।”

“क्यों ना सोचूं, आखिर टुन्नी को अपना बनाना है मैंने। हर वक्त मेरे ख्यालों में टुन्नी रहती है। हर वक्त ये ही सोचता हूं कि अब वो क्या कर रही होगी। फिर ये सोचता हूं कि मैं उसके पास होता तो क्या-क्या बातें करता। टुन्नी मेरी बातों पर हंसेगी। मुस्करायेगी। मैं उसे...।”

“बिल्ले ।” खुदे बड़े प्यार और कड़वे स्वर में कह उठा--- "तू पागल हो चुका है।"

“सच में! मैं पागल हो गया हूं टुन्नी के बारे में सोच-सोचकर। जब तक मुझे टुन्नी नहीं मिल जाती मैं पागल ही रहूंगा। जब तक तू है मुझे टुन्नी नहीं मिलेगी। टुन्नी मेरी जान है, मैं उसके बिना नहीं रह सकता।"

“ये बातें तू मेरे सामने कह रहा है।” खुदे के दांत भिंच गये।

"तू उसे क्यों नहीं बुला...।"

तभी खुदे का मोबाइल बज उठा।

"मैं तुझे छोडूंगा नहीं घटिया इन्सान।" खुदे ने बिल्ले को देखते खा जाने वाले स्वर में कहा। फिर फोन पर बात की--- "हैलो।"

"कहां हो?" टुन्नी का मीठा स्वर कानों में पड़ा।

"बिल्ले के यहां ही हूं।" खुदे बोला--- "देवराज चौहान और जगमोहन मेरे साथ ही हैं।"

बिल्ला फौरन दांत फाड़े उठा और पास आ गया।

"टुन्नी है।" बिल्ले का चेहरा चमक उठा था--- "यहीं बुला ले इसे...।"

"ये कमीना मेरे को क्यों बुला रहा है?" उधर से टुन्नी की आवाज आई।

खुदे ने बिल्ले को घूरा !

"ये हर वक्त तेरे बारे में ही बातें करता रहता है।" खुदे ने तीखे स्वर में कहा।

पास खड़े बिल्ले ने सहमति से सिर हिलाया। वो खुश था।

"जूतियां खायेगा मेरे से। जरा फोन तो देना इसे। अभी सीधा करती हूं।" उधर से गुस्से से टुन्नी ने कहा।

“रहने दे। तू क्यों इसके मुंह लगती है। मैं...।"

“मुझे दे फोन ।” बिल्ला कह उठा--- “टुन्नी मेरे से बात करना चाहती है।"

"पीछे हट हरामी के...।” खुदे गुर्रा उठा।

"टुन्नी मेरे से बात करना चाहती है। तू बीच में क्यों आता है।" बिल्ला पांव पटककर बोला।

खुदे ने बिल्ले को धक्का दिया और टुन्नी से बोला---

“इसे खुराक की जरूरत है फुर्सत मिलने पर इससे बात करूंगा।"

“कितने दिन हो गये तुम्हें देखे। जबसे देवराज चौहान, जगमोहन के साथ गये हो, वापस नहीं...।"

“अभी काम है टुन्नी ! कुछ दिन नहीं आ पाऊंगा।"

"ऐसा भी क्या काम जो...।"

"तुम्हें फोन पर नहीं बता सकता। कुछ दिन की तो बात...।"

"तुमने कहा था हम मुम्बई से बाहर निकल जायेंगे। वहीं कहीं रहेंगे। मैं तो कब से अपने सूट और तुम्हारे कपड़े तैयार किए बैठी हूँ... । कब चलना है ये तो बता दो।"

"अभी नहीं पता। दो-तीन दिन बाद बताऊंगा।"

"देवेन साठी के दोनों आदमी अभी भी गली के बाहर मंडराते रहते हैं।"

"उनकी परवाह मत करो। सब ठीक हो जायेगा।"

"तुमसे मिलने को दिल करता है।" टुन्नी ने उधर से नाराजगी से कहा।

"जल्दी मिलेंगे टुन्नी! बस कुछ दिन और। तुम अपना ख्याल रखना।” कहकर खुदे ने फोन बन्द कर दिया।

बिल्ला दो कदम दूर खड़ा खुदे को घूर रहा था।

"तू क्या देखता है।" खुदे ने कठोर स्वर में कहा--- "चाय बना।"

“टुन्नी मेरे से बात करना चाहती थी। उसका कितना मन है मेरे से बात करने का। कई दिन से उसने मुझे देखा जो नहीं और तुमने मेरी बात नहीं कराई। टुन्नी का दिल तोड़ दिया। दो बातें वो मेरे से कर लेती तो तेरा क्या जाता। दोनों तरफ आग लगी हुई है। टुन्नी को भी मुझसे मिले बिना चैन नहीं। बेचारी के दिल पर क्या बीत रही होगी मेरे से बात ना करके।"

“तू मेरे से टुन्नी की बात मत किया कर, नहीं तो तेरी गर्दन तोड़ दूंगा ।" खुदे ने आगे बढ़कर उसकी गर्दन पकड़ी।

"मैं टुन्नी की बात करूंगा, तुझे क्या... ।"

खुदे की लात घूमी और बिल्ले के कूल्हों से जा टकराई। बिल्ले के होंठों से चीख निकली और सामने की दीवार से जा टकराया। वो गहरी-गहरी सांसें लेने लगा फिर पांव पटकता रह उठा।

“मार ले। और मार ले। टुन्नी को सब बताऊंगा कि तू दोस्त होकर, मुझे मारता है। टुन्नी तेरे कान खींचेगी।”

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