जावेद खान के घर से किलोमीटर के फासले पर स्थित एस० टी०डी० बूथ से पारसनाथ ने जम्मू स्थित होटल में, मोना चौधरी से बात की।

जावेद खान बाहर ही रहा और बूथ वाला व्यक्ति भी।

“जावेद खान से बात हुई है, ना चौधरी ।” मोना चौधरी की आवाज सुनते ही पारसनाथ बोला।

“श्वेता के बारे में कोई खबर पाने के लिए, वो तुम्हारी सहायता कर सकता है?” मोना चौधरी का स्वर कानों में पड़ा।

“जावेद खान को श्वेता के बारे में पूरी जानकारी है कि उसे कहां पर कैद रखा गया है और किसने कैद किया है।”

“और। पूरी बात बताओ।”

पारसनाथ ने कम शब्दों में फोन पर मोना चौधरी को सारा मामला बताया।

दो पल तो मोना चौधरी की तरफ से कोई आवाज नहीं आई। “मोना चौधरी।”

“हां” मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी- “तुम बहुत खतरनाक बात बता रहे हो पारसनाथ।”

ये सब कुछ मैंने नहीं, जावेद खान ने मुझे बताया है।

“हो सकता है मेजर बख्शी के बारे में जावेद खान को गलती लगी....”

“मुझे नहीं लगता कि जावेद खान ने अन्जाने में भी कोई बात गलत कही हो।” पारसनाथ बोला- “ये बातें बताते हुए, वो पूरी तरह विश्वास से भरा पड़ा था।”

“अगर ये सब सच है तो मुझे श्रीनगर आना पड़ेगा।” मोना चौधरी के स्वर में गम्भीरता आ गई थी।

“तुम कहना क्या चाहती हो?”

“मिलने पर ही अब इस बारे में बात होगी।”

“कब आओगी?”

“मुझे महाजन का इन्तजार है।” मोना चौधरी की आवाज आई- “रात के साढ़े ग्यारह बज चुके हैं लेकिन गुलशन वर्मा था महाजन की तरफ से मुझे कोई मैसेज नहीं मिला। हो सकता है, वर्मा का आदमी मुझ पर नजर न रख पाया हो। फिर भी मैं सुबह तक उनका इन्तजार करूंगी। सुबह के बाद जैसी भी स्थिति हो, मैं श्रीनगर के लिये चल दूंगी।”

“विमान से आओगी?”

“नहीं। विमान में मुझे पहचाने जाने का खतरा उठ सकता है। सड़क द्वारा ही आऊंगी। तुम सुबह आठ-नौ बजे मुझे फोन कर लेना।”

“ठीक है।” पारसनाथ ने रिसीवर रखा और बूथ से बाहर आ गया। जावेद खान ने कॉल के पैसे दिये, फिर दोनों तीखी सर्दी में आगे बढ़ने लगे।

“क्या कहा मोना चौधरी ने?” जावेद खान ने पूछा।

“कल वो श्रीनगर पहुंच रही है।”

“यहां।” जावेद खान के होंठों से गहरी आवाज निकली- “क्या करेगी, यहां आकर?”

“मालूम नहीं। यहां आकर ही बतायेगी वो।”

जावेद खान ने कुछ नहीं कहा।

“रात में तुम्हारे यहां ही रहूंगा।” पारसनाथ ने कहा- “तुम्हें कोई परेशानी हो तो बता दो।”

“मुझे भला क्या परेशानी होगी। जगह है। बेड है। रजाई है। मजे से रहो।” जावेद खान कह उठा- “वैसे मैं नाश्तें के पराठे जबर्दस्त बनाता हूं, तुम जैसा कोई साथ हो तो बना लेता हूं। नहीं तो ब्रेड से ही काम चल जाता है।”

“मतलब कि कल सुबह नाश्ते में जबर्दस्त पराठे खाने को तैयार रहूं।” पारसनाथ के चेहरे पर मुस्कान उभर आई।

“वही तो मैं कह रहा हूं। मेहमान पराठा खायेगा तो बचा-खुचा माल खाने को मुझे भी मिल जायेगा।” कहने साथ ही जावेद खान हौले से हंस पड़ा।

☐☐☐

रात के दस बजे जम्मू पहुंचकर महाजन, गुलशन वर्मा, कृष्णपाल, गौरव शर्मा, अजीत सिंह, बलविन्दर सिंह और वजीर सिंह एक होटल में रुके। वर्मा ने चार कमरे बुक कराये। एक में कृष्ण पाल और गौरव शर्मा ठहरे। दूसरे में बलविन्दर सिंह और वजीर सिंह। तीसरा महाजन और अजीत सिंह के लिये था। चौथा गुलशन वर्मा ने अपने लिये, परन्तु अजीत सिंह महाजन के पास नहीं रुका और अपना बैग उठाये वर्मा के पास आ गया।

वर्मा ने अजीत सिंह को भीतर प्रवेश करते देखा।

अजीत सिंह दांत फाड़ते हुए आगे बढ़ा और छोटा-सा बैग कुर्सी पर रखकर बगल में बैठ गया।

“मैंने सोचा अपने वर्मा साहव अकेले बोर होंगे। कोई तो यहां होना ही चाहिये, गप-शप मारने के लिये।”

“मुझे अकेला ही अच्छा लगता है।” वर्मा ने शांत स्वर में कहा।

“मेरे होते हुए ये कैसे हो सकता है भला! वैसे भी फेवीकोल का जोड़ है। जो अलग होना आसान नहीं है। साथ में डिनर करेंगे। बातें करेंगे। साथ में सोचेंगे। फिक्र मत करना। रात बढिया कटेगी। दिल का मरीज होने का ये मतलब तो नहीं कि रात को हार्ट अटैक होगा ही होगा।”

गुलशन वर्मा ने तीखी निगाहों से अजीत सिंह को देखा।

“ऐसे मत देखो यार। दिल जोरों से धड़कने लगता है।”

“दूसरे कमरे में जाओ।” वर्मा की आवाज में सख्ती-सी आ गई।

“गुस्सा दिखा या फिर दहाड़ना शुरू कर दे। मैं हिलने वाला नहीं। डिनर के लिये बोला या नहीं?”

उसी पल वर्मा ने रिवाल्वर निकाल कर अजीत सिंह की तरफ कर दी।

अजीत सिंह की आंखें सिकुड़ीं।

अजीत सिंह खड़ा हुआ और कमर पर हाथ रखकर माथे पर बल डालते कह उठा।

“मैं इसलिये नहीं जा सकता कि तू हमसे धोखेबाजी करके, हमारी मौत का सामान इकट्ठा न कर ले। महाजन तेरे बारे में कुछ नहीं जानता और तू बख्तावर सिंह वाले सारे मामले को जानता है। ऐसे में तुझे अकेला छोड़ना ठीक नहीं। खासतौर से अब, जबकि हम तेरा हाथ पकड़े चल रहे हैं। तू हमें गहरे नाले में भी धकेल सकता है। या तो सीधे-सीधे बता दे कि बख्तावर सिंह से कितने में सौदा तय किया है महाजन-मोना चौधरी को साफ करने या उस तक पहुंचने के लिये। कहीं न कहीं तो तू गड़बड़ कर ही रहा है।” इसके साथ ही अजीत सिंह, वर्मा की तरफ बढ़ने लगा- “एक बात तेरे को बताना जरूरी समझता हूं कि रिवाल्वर निकालने के मामले में तू अंजान है। तेरे को इतना भी नहीं पता कि किस के सामने रिवाल्वर निकाली जाती है। दिल के मरीज के सामने तूने रिवाल्वर निकाल ली। क्या फायदा, मेरा क्या है मैं तो अब मरा कि तब। हो सकता है रिवाल्वर देखकर ही मर जाऊं।” कहते हुए अजीत सिंह पास पहुंचकर ठिटका और हाथ बढ़ाकर वर्मा के हाथ में दबी रिवाल्वर पर हाथ रखा और सख्ती से पकड़ लिया। आंखें वर्मा की आंखों में डाल दीं- “मैं भी तो देखू कि अपने वर्मा साहब को गोली भी चलानी आती है या नहीं।” आंखें सिकोड़े वर्मा सख्त चेहरे से अजीत सिंह को देखे जा रहा था।

“देख वर्मा!” अजीत सिंह के होंठों पर अजीब सी मुस्कान उभरी- “या तो गोली चलाया फिर रिवाल्वर छोड़ दे। इसके अलावा तीसरी कोई बात नहीं होगी।”

“मर जायेगा।” वर्मा के होंठ मौत भरा स्वर निकला।

“मैं अपने को कभी जिन्दा नहीं समझता।” अजीत सिंह उसी मुस्कान के साथ कह उठा।

तभी महाजन ने भीतर प्रवेश किया कि ठिठक गया।

“ये क्या हो रहा है?” महाजन के होंठों से निकला। हाथ में थमी बोतल से घूँट भरा।

“कुछ नहीं।” अजीत सिंह होले से हंसा- “अपना वर्मा दिल के मरीज के साथ मजाक कर रहा है।”

तभी फोन की घंटी बजने लगी।

वर्मा ने होंठ भींचे।

“छोड़ दे रिवाल्वर या फिर चला गोली।” अजीत सिंह की आंखों में खतरनाक भाव नजर आने लगे।

वर्मा ने गहरी सांस ली और रिवाल्वर छोड़कर फोन की तरफ बढ़ गया।

रिवाल्वर अजीत सिंह के हाथ में आई तो वो खिल उठा।

“वाह! दिल के मरीज के हाथ में रिवाल्वर आ गयी। अब तो गोली भी चला सकता हूं।”

तब तक गुलशन वर्मा रिसीवर उठा चुका था।

“हैलो-हां-भेज दो।” कहने के साथ ही उसने रिसीवर रख दिया। कोई कुछ नहीं बोला।

गुलशन वर्मा कुर्सी पर बैठ चुका था। महाजन जाने किस काम से आया था, परन्तु उसने वहीं बैठ जाना ठीक समझा। अजीत सिंह खड़ा हुआ हथेली पर रिवाल्वर रखे हौले-हौले उसे उछाल रहा था।

तभी एक व्यक्ति ने भीतर प्रवेश किया।

वो चालीस बरस का छोटे कद का व्यक्ति था। भीतर प्रवेश करते ही उसने ठिठक कर महाजन और अजीत सिंह को देखा। उसके बाद नजरें गुलशन वर्मा पर टिक गईं।

“कहो!” वार्म ने उसे देखा।

“मोना चौधरी को हमने जम्मू में प्रवेश करते ही देख लिया था। वो अकेली नहीं, उसके साथ एक अन्य व्यक्ति भी था।” उस आदमी ने कहा।

“कौन है उसके साथ? उसका हुलिया बताओ।”

उसने हुलिया बताया तो महाजन के होंठों से निकला।

“पारसनाथ....”

“हूं।” वर्मा ने सिर हिलाया- “इस वक्त मोना चौधरी कहां है?”

“होटल में।” उसने होटल का नाम बताया- “लेकिन उसके साथ वाला आदमी शाम की फ्लाईट से श्रीनगर चला गया है। हमने उसके पीछे जाने की जरूरत नहीं समझी।”

“मोना चौधरी से बात करने के लिए, उसका फोन नम्बर बोलो।”

वर्मा ने कहा।

उसने फोन नम्बर बता दिया।

“ठीक है। तुम जाओ।”

“मोना चौधरी पर अभी नजर रखनी है?” उसने पूछा।

“नहीं। अब कोई जरूरत नहीं। बाकी की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं?” गुलशन वर्मा ने पूछा।

“जी! लगभग सारी तैयारी पूरी हैं।”

वो आदमी चला गया तो महाजन बोला।

“यहां पूरी तरह अपने आदमी फैला रखे हैं।”

उसके शब्दों पर व्यान न देकर वर्मा फोन के पास पहुंचा और रिसीवर उठाकर, मोना चौधरी से बात करने के लिये नम्बर मिलाने लगा।

एक ही बार में लाईन मिल गई।

“हैलो।” मोना चौधरी का स्वर, वर्मा के कानों में पड़ा।

“मोना चौधरी...”

“ओह! वर्मा...”

“हां। हम कुछ देर पहले ही जम्मू पहुंचे हैं। मेरे ख्याल से सुबह मुलाकात की जाये। तब तुम्हें ये भी पता चल जायेगा कि बख्तावर सिंह क्या करने जा रहा है और......”

“अपने बारे में नहीं बताओगे?” मीना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी।

“जब वक्त आयेगा तो मेरे बारे में भी जान जाओगी।”

“महाजन से बात कराओ।”

“मेरी बात का जवाब नहीं दिया तुमने?”

“महाजन देगा। मेरी बात हो लेने दो उससे।’

वर्मा ने कान से रिसीवर हटाकर महाजन से कहा।

“मोना चौधरी से बात करो।”

महाजन उठा। आगे बढ़कर उसके हाथ से रिसीवर लिया।

“कैसी हो बेबी?”

“महाजन!” मोना चौधरी का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा- मैं कल सुबह श्रीनगर के लिये चल रही हूं और तुम्हें भी मेरे साथ चलना है। बेशक अभी मेरे पास आ जाओ। या दिन निकलते ही वक्त घर आ जाना।”

“लेकिन बख्तावर सिंह का क्या....?”

“हम बख्तावर सिंह के काम के लिये ही श्रीनगर जा रहे हैं। सब बात सुनोगे तो समझ जाओगे।”

“पारसनाथ इसी काम के वास्ते श्रीनगर गया है?”

“हां। वो जावेद खान से बात करने.....”

“जावेद खान?” महाजन के माथे पर बल पड़े- “मैं कुछ भी समझ नहीं पर रहा हूं?”

“समझ जाओगे। बख्तावर सिंह वाला मामला इतना ज्यादा गम्भीर है कि तुम्हें फोन पर नहीं बता सकती।”

“ओह....!” महाजन ने हाथ में पकड़ी बोतल से घूँट भरा- “अभी आऊं क्या?”

“जैसे तुम ठीक समझो?”

“मेरे साथ वो लोग भी हैं, जो कभी अबोटाबाद गये थे।”

“यानि कि वो लोग। उन्हें वर्मा के साथ छोड़।”

“नहीं। उन्हें साथ ले आओ। उनका साथ होना, बहुत अच्छा रहा। मुझे विश्वसनीय आदमियों की जरूरत थी और उनसे ज्यादा विश्वास के काबिल दूसरे नहीं हो सकते ।” मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी।

“वर्मा का क्या करना है?”

“वर्मा को साथ रखना ठीक नहीं।” हम नहीं जानते कि वो कौन है और क्यों इस मामले में दखल दिए हुए है। अगर मामला सिर्फ बख्तावर सिंह का ही होता तो एक बारगी साथ रखने में कोई हर्ज नहीं था। लेकिन अब जो हालात सामने आये हैं उन्हें देखते हुए वर्मा को दूर रखना ही ठीक है।” मोना चौधरी का स्वर कानों में पड़ा।

“ओ. के. बेबी। मैं अभी सबके साथ पहुंचा।” कहने के साथ ही महाजन ने रिसीवर रखा।

“क्या हुआ?” वर्मा ने पूछा।

“हमारा साथ शायद यहीं तक था। किस्मत ने चाहा तो दोबारा अवश्य मुलाकात होगी।” महाजन ने लापरवाही से कहा।

“क्या मतलब?” वर्मा की आंखें सिकुड़ीं।

“असल बात तो मैं भी नहीं जानता। बेबी ने कहा है कि तुम्हें छोड़कर, उसके पास आ जाऊं। बख्तावर सिंह का काम वर्मा संभाल लेगा। हमें कोई और काम आ पड़ा है।” महाजन ने वर्मा को देखा।

“ये तो तुम धोखेबाजी कर रहे हो। मैंने तुम्हें विक्रम दहिया की कैद से इसलिये ही छुड़ाया था कि तुम बख्तावर सिंह के खिलाफ मेरा साथ दोगे और अब जाने की बात कह रहे हो।”

“तेरे साथ जम्मू तक तो आ गया। अब क्या मेरी जान लेगा?” महाजन कहते हुए मुस्करा पड़ा।

गुलशन वर्मा के चेहरे पर गुस्सा सा झलक उठा।

“वैसे भी तुम्हारे पास आदमियों की कमी नहीं लगती। लपेट देना बख्तावर सिंह को और...”

“बात आदमियों की नहीं है।” बर्मा एक-एक शब्द पर जोर देकर कह उठा- “मुझे तुम दोनों का साथ इसलिये चाहिये कि तुम लोग कई बार बख्तावर सिंह से टकरा चुके हो। जानते हो कि कैसे उसकी गर्दन तोड़ी..”

“मैं तुम्हारे साथ ही था। मोना चौधरी भी साथ ही थी। अब इससे भी जरूरी कोई बात हो गई है तो कुछ नहीं किया जा सकता। बेबी ने कहा, पहले दूसरा काम करना है तो काम दूसरा ही होगा वर्मा....।”

वर्मा होंठ भींचे महाजन को देखता रहा।

महाजन ने अजीत सिंह से कहा।

“सबको यहां से निकलने की कहो। पास ही के होटल में जाना है। मोना चौधरी वहीं मौजूद है। डिनर भी वहीं होगा और नींद भी वहीं लेंगे।”

“मोना चौधरी! वाह भई, मजा ही आ गया। बिगड़े दिल की हालत में सुधार आ गया।” अजीत सिंह, वर्मा वाली रिवाल्वर जेब में डालते हुए बाहर निकल गया।

“ये ठीक नहीं हो रहा महाजन।” वर्मा ने शब्दों को चबाकर कहा।

“बेबी से बात कर लो। मैं इस मामले में तुमसे इससे ज्यादा बात नहीं कर सकता।” महाजन बोला- अगर अपने बारे में बताकर, मेरी तसल्ली कराते हो तो, आगे के लिए कुछ सोचा जा सकता।”

गुलशन वर्मा होंठ भींचे महाजन को देखता रहा। बोला कुछ नहीं। महाजन बाहर निकल गया।

☐☐☐

“ये बात तो गले से नीचे उतरती नहीं।” गौरव शर्मा गम्भीर स्वर में कह उठा- “मिल्ट्री की जगह में रहकर मेजर रैंक का व्यक्ति इतने बड़े गैरकानूनी काम कर रहा हो और किसी को खबर न हो। माना कि कुछ मिल्ट्री वाले इस काम में उसके साथी हैं, लेकिन मेजर का ऐसा काम ज्यादा लम्बा नहीं चल सकता।”

“ये सब फिल्मों में तो चल सकता है। लेकिन हकीकत में....”

कृष्णपाल ने कहना चाहा।

“हकीकत को ही फिल्मों में उतारा जाता है।” महाजन कह उठा- “मेजर बख्शी ये सब कर रहा है तो इसी से उसके दबदबे का अन्दाजा लगाया जा सकता है कि उसके डिपार्टमैंट में किसी को उसकी हरकत की खबर भी है तो वो चुप है। क्योंकि जिसने भी उसके खिलाफ मुंह खोलने की कोशिश की वो मारा गया। किसी बहाने मेजर ने उसे खत्म कर दिया या करवा दिया। इन बातों को हम झूठा नहीं कह सकते।”

वो सब गम्भीर निगाहों से एक-दूसरे को देखने लगे।

शाम के आठ बज रहे थे और वे सब बड़गाम में जावेद खान के घर में मौजूद थे। घंटा भर पहले ही यहां पहुंच गये थे। वे सब, मेजर बख्शी के बारे में सब जान चुके थे।

“जो भी हो।” वजीर सिंह कह उठा- “मेजर बख्शी की ये बात तो गलत है कि अपना काम निकालने के लिये किसी की बेटी को उठा ले। बहुत घटिया काम किया है उसने।”

तभी जावेद खान की नजर अजीत सिंह पर पड़ी, जिसका चेहरा सुलग रहा था।

“तेरे को क्या हुआ?” जावेद खान के होंठों से निकला।

“मेरे को क्या होना है।” अजीत सिंह फट पड़ा- “दिल का मरीज कहकर मुझे मिल्ट्री में भर्ती करने से मना कर दिया और वो हरामी मेजर, जिसका दिल ठीक है, मेजर बन गया। देख लिया क्या सेवा कर रहा है देश की। इससे बड़ा गद्दार तो मैंने जिन्दगी में नहीं देखा। देश की सेवा करने की अपेक्षा, खा रहा है देश को। मैं क्या बुरा था जो वो मेरे को पहनने को वर्दी दे देते। तुम लोगों को भी मिल्ट्री में नहीं लिया। कोई न कोई नुक्स निकाल दिया। इन लोगों को समझ ही नहीं कि मिल्ट्री में किसे लेना है। समझ होती तो उस मेजर को भरती न किया होता। उसे तरक्कियां न दी होतीं बल्कि हमें भर्ती किया होता। हम वर्दी को तरस रहे हैं और वो हरामी वर्दी पहनकर देश को खा रहा है। छोडूंगा नहीं। मार दूंगा उसे।”

सब अजीत सिंह के सुलगते चेहरे को देख रहे थे।

“मेजर बख्शी जैसे कई लोग हैं मिल्ट्री में, जो देश के दुश्मनों की सहायता करते हैं। मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- ऐसे लोगों को वर्दी की भीड़ से तलाश कर पाना आसान नहीं है। लेकिन जो हमारी नजरों में आ गया है। कम से कम उसे तो उसके हक की सजा दे ही सकते हैं।’

जावेद खान ने गम्भीर निगाहों से मोना चौधरी को देखा।

“ये आसान काम नहीं। हजारों की जिन्दगी दांव पर लग जायेगी। मैं तुम्हें बता ही चुका हूं कि किस तरह उसने छोटी-सी कालोनी में डाइनामाईट बिछा रखा है। उसने मौके पर डाइनामाईट बलास्ट कर दिया

तो....!”

“देखा जायेगा।” मोना चौधरी के दांत भिंच गये- “मेरी पूरी कोशिश होगी कि वो सतर्क न हो सके। उसे ऐसे पकड़ा जाये कि वो समझ ही न सके कि ये क्या हो गया है।”

“मुझे, ऐसा होना सम्भव नहीं लगता।” जावेद खान ने समझाने वाले स्वर में कहा- “वो मिल्ट्री एरिया है। वहां बाहरी व्यक्ति का प्रवेश मना है। चोरी-छिपे तुम भीतर प्रवेश कर भी गईं तो, जल्द ही नजर में आ जाओगी।

उधर, मेजर बख्शी के बंगले पर सुरक्षा का सख्त पहरा रहता है।”

मोना चौधरी का चेहरा कठोरता से भर उठा।

“ऐसा है तो फिर वहां तक पहुंच पाना असम्भव।” बलविन्दर सिंह कह उठा।

“खासतौर से तब जबकि उसने फोन केबल्स के साथ डाइनामाईट

बिछा रखा हो।” गौरव शर्मा ने गम्भीर स्वर में कहा- “खतरा भांप कर वो मेजर हमें तो क्या, सबको ही डाइनामाईट से कालोनी उड़ाने की धमकी दे सकता है और तब उसकी बात न मानी गई तो वो ऐसा कर भी देगा। जाने कितने लोग मरेंगे। ये कोई छोटा मामला नहीं है। सबसे पहली समस्या तो मिल्ट्री की उस कालोनी में प्रवेश करके, मनमाने ढंग से वहां घूमना होगा। तभी कुछ किया जा सकता है। चोरी-छिपे वहां प्रवेश करके हम कुछ नहीं कर सकते।”

“तुम लोगों की किसी हरकत से उखड़ कर मेजर बख्शी ने अगर डाइनामाईट ब्लास्ट कर दिया तो वहां तबाही ही तबाही होगी।” जावेद खान ने शब्दों पर जोर देकर कहा- “और तब कितने लोगों की मौत तुम सब के सिर होगी। माफ कर सकोगे खुद को उस हालत में?”

पारसनाथ ने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरकर मोना चौधरी को देखा।

“मोना चौधरी!” पारसनाथ का स्वर गम्भीर था- “जावेद खान की बात वास्तव में परेशान करने वाली है।”

“हां।” मोना चौधरी दांत भींचे कह उठी- “मैं इन सब बातों से इत्तफाक रखती हूं। लेकिन साथ में ये भी सोचती हूं कि मेजर बख्शी है तो इन्सान ही और हर इन्सान की एक हद होती है। उस हद पर पहुंचकर उस पर काबू पाया जा सकता है। उसने डाइनामाईट अवश्य बिछा रखा है। दूसरों के लिये, परन्तु उसके लिये डउइनामाईट मैं बनूंगी। इस डाइनामाईट से वो नहीं बच सकेगा।”

सबकी निगाह मोना चौधरी पर टिक चुकी थी।

“मुझे तुम पर पूरा भरोसा है बेबी....।” महाजन के गम्भीर स्वर में विश्वास के भाव थे- “लेकिन सबसे बड़ा सवाल हमारे सामने ये है कि हम कैसे वहां प्रवेश करेंगे। कैसे उस मेजर तक पहुंचेंगे? वो अकेला तो बैठा नहीं होगा। कई तरह की दिक्कते हमारे सामने आयेंगी। और वहां मौजूद मिल्ट्री वालों को हम पर जरा भी शक हुआ तो, वो हमें दुश्मन समझकर गोलियों से भून देंगे। गिरफ्तार भी कर लिया तो हम अपनी सफाई में कुछ नहीं कह सकेंगे कि.....।”

“सब ठीक हो जायेगा महाजन।” मोना चौधरी का स्वर कठोर था- “हम बहुत सोच-समझ कर आगे बढ़ेंगे।”

“वो हरामी मेजर वहां से बाहर भी तो निकलता होगा।” अजीत सिह कह उठा- “भून देंगे खुली सड़क पर और.....।”

“उसे मारने से हमारा काम पूरा नहीं होता।” मोना चौधरी कह उठी- “श्वेता उसके बंगले पर कैद है। उसे हर हाल में वहां से निकाल लाना है। मेजर बख्शी के बारे में यही कोशिश करनी है कि उसकी जान न लेकर, उसे जिन्दा गिरफ्तार कराया जाये ताकि वो मिल्ट्री के अन्य गद्दारों के बारे में बता सके। देश के खिलाफ काम करने वाले लोगों के बारे में बता सके, जिनके लिये वो काम करता रहता है। ये तो स्पष्ट है कि बाहरी लोगों की मेजर को पूरी सहायता मिलती है। तभी तो वो देश से गद्दारी करने पर उतरा हुआ है। जावेद खान....।”

“हां....।” जावेद खान ने मोना चौधरी को देखा।

“मिल्ट्री की जिस कालोनी में मेजर बख्शी रहता है, वहां कैसे मकान बने हुए हैं?” मोना चौधरी ने पूछा।

“वहां चार मंजिला फ्लैट भी हैं। दो मंजिला फ्लैट भी हैं। छोटे-छोटे मकान भी हैं। बड़े बंगले भी हैं। वो जगह कुछ हद तक पहाड़ी जगह जैसी है। जहां जैसी जगह मिली, वैसा ही निर्माण कर लिया गया। इसके अलावा अन्य खाली जगहों पर मिल्ट्री के टैंट भी लगे नजर आ जाते हैं। टैंटों में दिन में तो मिल्ट्री वाले आते-जाते दिखाई दे जाते हैं लेकिन रात को सर्दी ज्यादा होने की वजह से अधिकतर टैंट खाली हो जाते हैं।”

“तुमने वो जगह, वो कालोनी देखी हुई है?”

“हां। दो बार उस कालोनी में जा चुका हूं। एक बार तो पूरी कालोनी देखी थी। ऐसा करने के लिए एक जवान के साथ यारी गांठ ली थी।” जावेद खान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मतलब कि तुम उस कालोनी का नक्शा आसानी से बना सकते हो।”

“तुम अभी नक्शा बनाओ।” मोना चौधरी बोली- “उसके बाद ही सोचा जायेगा कि आगे कैसे बढ़ना है।”

“कुछ देर बाद नक्शा बनाऊंगा। रात हो चुकी है। अब के लिये खाना....”

“तू बैठ यहां।” अजीत सिंह उसकी बात काट कर उठ खड़ा हुआ- “नक्शा बना।आज तेरे को हम अपने हाथ का बना खाना खिलाते हैं। किचन का रास्ता बता दे, किधर को है। उसके बाद जब तेरे को दिखेंगे तो खुशबूदार सब्जी और चौंदे-चौदे पराठों के साथ....!”

“प्याज मैं कांटू।” बलविन्दर सिंह भी खड़ा हो गया।

“दाल-सब्जी तो मैं बना लूंगा।” गौरव शर्मा भी उठा।

“किचन का काम मेरे से बढ़िया कोई दूसरा नहीं कर सकता।” वजीर सिंह बोला।

“बल्ले-बल्ले!” अजीत सिंह दांत फाड़ उठा- “तुम सब काम करो। मैं तुम्हारा सुपरवाईजर।”

☐☐☐

आधी रात हो रही थी।

सब नींद में थे।

पारसनाथ को मोना चौधरी ने ही भेजा था कि वो जाकर नींद ले ले। मोना चौधरी इस वक्त कमरे में जावेद खान के बनाये नक्शे द्वारा मिल्ट्री की उस कालोनी के रास्तों को समझने की चेष्टा कर रही थी। नक्शे में, जावेद खान ने ये भी दर्शाया था कि मेजर बख्शी का बंगला कहां है और चौबीसों घंटे जिन जगहों पर मिल्ट्री के जवानों का पहरा रहता है, उन जगहों पर भी निशान लगाये गये थे। मोना चौधरी के कहने पर हर उस जगह पर जावेद खान ने लाल पैन से लकीरें डाली थीं, जहां फोन केबल्स और डाइनामईट बिछा था। तभी आहट हुई। मोना चौधरी ने नक्शे से निगाह हटाई।

जावेद खान भीतर आया था।

“सोच नहीं.....?” कहते हुए मोना चौधरी ने पुनः नक्शे पर नजरें टिका दीं।

“नींद नहीं आई। सोचा, नक्शा देखते हुए शायद तुम्हें कुछ पूछने की जरूरत पड़े।” आगे बढ़कर जावेद खान कुर्सी पर जा बैठा। कुछ पल नजरें नक्शे पर ही रहीं फिर सीधी होकर बैठते हुए बोली।

“मेजर बख्शी के और कौन-कौन साथी हैं मिल्ट्री में?”

“लम्बी लिस्ट है। उनके बारे में बताना वक्त की बरबादी होगी। हासिल कुछ नहीं होगा।” जावेद खान ने कहा।

“वहां कोई ऐसा मिल्ट्री वाला, जिस पर भरोसा किया जा सके?” जावेद खान के होंठों पर शांत सी मुस्कान उभरी।

“कुछ नहीं कहा जा सकता कि कौन मेजर बख्शी के रंग में रंगा है। जो कल नहीं रंगा था हो सकता है आज वो रंग गया हो। ऐसे में किसी पर भी विश्वास करना खतरनाक ही होगा।”

मोना चौधरी के होंठों में कसाव आ गया।

“सबसे पहली समस्या वहां भीतर प्रवेश करने की है। तुम वहां अकेले जाओगी?”

“नहीं। मैं अकेले शायद सब कुछ शायद न संभाल पाऊं।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- “तुम्हारे मुंह से अब तक वहां के हालातों के बारे में जो सुना है, उससे वहां पैदा होने वाली मुसीबतों के बारे में अनुमान नहीं लगाया जा सकता। मैं इस मामले में चूकना नहीं चाहती। मेजर को जरा सा भी मौका गया तो वो जाने क्या कर जाये। मैं उसे किसी भी तरह का मौका नहीं देना चाहती। ऐसे में मेरे साथ सब का होना बहुत जरूरी है। इस बारे में बहुत सोचना है। मुझे...”

“लेकिन सब कुछ करोगी कैसे?”

“कुछ-कुछ दिमाग में आया है। बाकी सोचना है अभी। कल तक ही तय कर पाऊंगी कि कैसे मेजर बख्शी का मल खत्म किया जा सकता है? श्वेता को वहां से निकाला जा सकता है?” मोना चौधरी ने जावेद खान को देखा- “तुम क्या हम सबके लिए मिल्ट्री की वर्दियों का इन्तजाम कर सकते हो?”

“हां।”

“आई० कार्ड?”

“उसका इन्तजाम भी हो जायेगा।” जावेद खान गम्भीर था।

“मेजर ने डाइनामाईट एक ही कड़ी में वहां बिछाया है या अलग-अलग हिस्सों में”

“अलग-अलग हिस्सों में। जहां उसे मौका मिलता चला गया। वहां डाइनामाईट और तारें बिछा दीं।”

होंठ भींचे मोना चौधरी ने सिर हिलाया और नजरें नक्शे पर लगा दीं। कालोनी के नक्शे पर नजर आ रहे उन निशानों पर लगा दी, जहां-जहां डाइनामाईट बिछा था।

☐☐☐

अगले दिन मोना चौधरी दस बजे नींद से उठी। बाकी सब नाश्ता कर चुके थे। मोना चौधरी नहा-धोकर तैयार हुई तो जावेद खान उसे नाश्ता दे गया। मोना चौधरी ने नाश्ता समाप्त किया ही था कि महाजन और पारसनाथ ने भीतर प्रवेश किया। दोनों के चेहरों पर गम्भीरता थी। महाजन ने हाथ में खत्म हो रही बोतल धाम रखी थी।

“तुम लोग कुछ उलझन में लग रहे हो?” मोना चौधरी बोली। दोनों कुर्सियों पर बैठ गये।

“हां।” पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरता कह उठा- “जावेद खान के बनाये नक्शे को हमने अच्छी तरह देखा और समझा है। सुबह से इसी काम पर व्यस्त थे। आखिरकार हम इसी नतीजे पर पहुंचे हैं कि ये काम बेहद कठिन है। हमें बहुत सोच-समझ कर आगे बढ़ना होगा।”

“मेरे ख्याल में तो मिल्ट्री की उस कालोनी में प्रवेश करके अपनी मनमानी से काम करना सम्भव नहीं।” महाजन ने कहा- “यूं कि उस कालोनी में बड़े-बड़े ऑफिसर भी रहते हैं। इसलिये वहां सख्त पहरा रहता है। सख्त चैंकिंग की जाती है। जवान हमें फौरन पहचान जायेंगे कि.....”

“तुम लोगों की बात से पूरी तरह सहमत हूं।” मोना चौधरी वात काट कर कह उठी- “लेकिन हम सोच-समझ कर, योजना बनाकर कदम उठायेंगे तो बहुत कम खतरे का हमें सामना करना पड़ेगा।”

महाजन ने घूँट भरा।

पारसनाथ खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा।

“तुमने क्या सोचा मोना चौधरी कि हम अपना काम कैसे करेंगे?” पारसनाथ ने पूछा।

“इस बारे में बात करने से पहले मैं मिस्टर पहाड़िया से बात करूंगी। ताकि मालूम हो सके कि वो हमारी क्या सहायता कर सकते हैं।” मोना चौधरी ने कहा- “जावेद खान कहां है?”

“वो तो हम सब के नाप लेकर सुबह ही कहीं चला गया है।” महाजन ने कहा।

“यहां एस०टी०डी० बूथ कहां होगा?”

“मैं तुम्हें वहां ले चलता हूं।” पारसनाथ बोला- “परसों रात वहीं से मैंने तुमसे बात की थी।”

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मोना चौधरी ने फोन पर मिस्टर पहाड़िया को मेजर बख्शी की हरकतों के बारे में सब कुछ बताया। नहीं बताया तो ये नहीं बताया की उस शख्स का नाम मेजर सुदेश बख्शी है। मोना चौधरी के खामोश होते ही, लाईन पर खामोशी छा गई। मिस्टर पहाड़िया की आवाज नहीं आई।

रिसीवर कान से लगाये मोना चौधरी ने बाहर देखा। हल्की सी धूप खिली थी। गुनगुनी सी ठण्डक थी। कुछ दूर धूप में, जेबों में हाथ डाले खड़ा पारसनाथ इधर-उधर दख रहा था।

तभी मिस्टर पहाड़िया का स्वर कानों में पड़ा।

“तुम मेजर सुदेश बख्शी की बात कर रही हो बेटी?”

दो पल के लिये मोना चौधरी ठगी सी रह गई फिर बोली।

“आपको कैसे मालूम?”

“मैं मिल्ट्री सीक्रेट सर्विस का चीफ हूं। इसलिये ये मत पूछो कि मुझे ये बातें कैसे मालूम ।” मिस्टर पहाड़िया का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा- “लेकिन इस मामले में इतना अवश्य हुआ कि मेजर बख्शी बहुत देर से हमारी नजरों में आया। शायद इसलिये कि उसका काम करने का ढंग बहुत ही सतर्कता से भरा है।”

“तो आपने इस मामले में क्या किया?”

“मिल्ट्री के कुछ जासूस गुप्त रूप से मेजर बख्शी की पूरी तरह छानबीन कर रहे हैं। यूं तो छानबीन कब की पूरी हो चुकी है लेकिन बख्सी पर अभी इसलिये हाथ नहीं डाला गया कि हम पूरे उस तंत्र को ही खत्म कर देना चाहते हैं जो मेजर बख्शी के साथ जुड़ा हुआ है। मेजर बख्शी की गिरफ्तारी के बाद, बाहरी लोग किसी और को, देश से गद्दारी करने के लिये तैयार करेंगे। फिर वैसा ही सिलसिला शुरू हो जायेगा।”

“आप ठीक कह रहे हैं।

“फोन केबल्स के साथ बिछे डाइनामाईट की पूरी खबर है हमें।” मिस्टर पहाड़िया का गम्भीर स्वर कानों में पड़ रहा था- “तुम मुझे अपने सारे हालात बता चुकी हो। लेकिन मैं चाहता हूं कि अभी मेजर बख्शी पर हाथ मत डालो। वरना बाहरी तंत्र हमारे हाथ से निकल जायेगा।”

“आप की तरह इन्तजार नहीं कर सकती।” मोना चौधरी कह उठी

“एक मेजर की वजह इतनी बड़ी गड़बड़ हो रही है। पहले भी उसने जाने क्या क्या किया। और आप अभी भी मुनासिब वक्त का इन्तजार कर रहे हैं। उसके हाथ इतने बड़े हो चुके हैं कि वो बख्तावर सिंह की भांजी श्वेता का अपहरण करवाकर उसे श्रीनगर मंगवा सकता है। मिल्ट्री में इतने खतरनाक अपराधी भी हैं, मुझे तो यकीन नहीं आता। लेकिन करना पड़ता है मिस्टर पहाड़िया। मेजर बख्शी पॉवरफुल हो चुका है। भविष्य में कभी भी वो विद्रोह करके मिल्ट्री से फरार हो गया तो अपना तगड़ा संगठन खड़ा कर लेगा। जिसे फिर कभी आप पकड़ नहीं पायेंगे। क्योंकि वो आप लोगों के और पुलिस के हत्कण्डे जानता है कि किसी को पकड़ने के लिये आप लोग क्या करते.....”

“जल्दबाजी मत करो, वरना हमारी सारी मेहनत पर पानी फिर....।”

“मैं नहीं रुक सकती। मेजर बख्शी का मामला निपटाकर, श्वेता को वहां से पाकर ठीक रही तो बख्तावर सिंह को निपटाना है। बख्शी के पीछे कौन लोग हैं वो लोग बाद में भी फील्ड में रहे तो बच नहीं सकेंगे। मैं इन हालातों को ठीक करना चाहती हूं।”

“तुम हमारी सारी मेहनत पर पानी फेर कर रहोगी।” मिस्टर पहाड़िया का उलझा सा स्वर कानों में पड़ा।

“मैंने आपको इसलिये फोन किया कि, इस मामले में आप जो मेरी सहायता कर सकते हैं, वो करें। ये मिल्ट्री वालों का यानि कि आपके डिपार्टमेंट से वास्ता रखता मामला है।” मोना चौधरी ने शब्दों पर जोर देकर कहा।

“सॉरी। मेजर बख्शी के मामले में मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता।”

मोना चौधरी के होंठ भिंच गये।

“मिस्टर पहाड़िया! मैंने हर मुनासिब वक्त पर आपकी सहायता की। आपकी बात मानी..”

“मैं इस बात से इन्कार नहीं करता।”

“और आप मेरी सहायता करने के लिये, इन्कार कर रहे हैं।”

“हां। क्योंकि मैं अपने डिपार्टमेंट से गद्दारी नहीं कर सकता, तुम्हारी सहायता करके।” मिस्टर पहाड़िया का गम्भीर स्वर सुनाई दिया- “इधर मैंने अपने डिपार्टमैंट के कई लोगों को मेजर बख्शी के बारे में ज्यादा से ज्यादा सबूत इकट्ठे करने पर लगा रखा है। दूसरे उन लोगों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा रही है, जिनका हाथ मेजर बख्शी की पीठ पर है। जिनके लिये वो काम करता है। बख्शी की गिरफ्तारी मैंने रोक रखी है-और तुम्हें बख्शी तक पहुंचने में मदद करूं। ये तो डिपार्टमैंट से सरासर धोखेबाजी हुई.....।”

“कोई बात नहीं मिस्टर पहाड़िया।” मोना चौधरी के चेहरे पर सख्त सी मुसकान नाच उठी- “मैं आपकी मजबूरी समझ गई हूं-और आपकी सहायता के बिना भी, जो करना चाहती हूं, वो कर लूंगी।”

“तुम हमारी सारी मेहनत मिट्टी में मिला दोगी।”

“इस मामले में मैं चुप नहीं बैठ सकती।”

“उस कालोनी में मिल्ट्री वालों के अलावा, दूसरे का प्रवेश करना आसान नहीं। सख्त पहरा.....।”

“कोई बात नहीं।” मोना चौधरी के दांत भींच गये- “वर्दी पहन कर तो भीतर जाया जा सकता है।”

दो पलों की खामोशी के बाद मिस्टर पहाड़िया का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा।

“वर्दी की कमीज के कॉलर के नीचे, सुई-धागे से छोटा सा सफेद त्रिशूल बना लेना । मुसीबत में पड़ने से बच जाओगी।”

“क्या मतलब?”

“इन दिनों कमीज के कॉलर के नीचे, सुई धागे से बना त्रिशूल हमारा कोड है। किसी के सामने पड़ने पर कॉलर के नीचे बना वो त्रिशूल दिखाने पर तुम बच, निकल सकती हो।”

“समझी।”

“इससे ज्यादा, इस मामले में मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता।” इसके साथ ही मिस्टर पहाड़िया ने लाईन काट दी।

मोना चौधरी ने रिसीवर रखा और होंठ सिकोड़े बूथ से बाहर आ गई।

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शाम के आठ बज रहे थे।

जावेद खान सुबह उन सब का नाप लेकर गया था और दोपहर तक सबके लिये मिल्ट्री की वर्दियां ले आया था। पारसनाथ के लिये कैप्टन की वर्दी थी। बाकी सब वर्दियां नीचले ओहदे वालों की थीं। मोना चौधरी के कहने पर, जावेद खान ने सब कमीजों के कॉलरों के नीचे सफेद धागे से त्रिशूल के निशान बना दिए थे। इन सब कामों से फारिग होकर जावेद खान ने मोना चौधरी को देखा।

“तुमने बताया नहीं कि कैसे-क्या करना चाहती हो?”

“अभी मालूम हो जायेगा।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- “तुम्हें ये मालूम करना है कि मेजर बख्शी कहां है?”

“दोपहर जब गया तो मालूम किया था। वो श्रीनगर की उसी कालोनी में, अपने बंगले पर है।”

“उसके बंगले पर जितने भी मिल्ट्री वाले मौजूद होंगे। जाहिर है कि वो बख्शी के ही साथी होंगे, ताकि बंगले पर होने वाली हरकतों की खबर बाहर न जा सके।” मोना चौधरी ने जावेद खान को देखा।

“ठीक कह रही हो।”

“मेजर बख्शी के परिवार वाले भी बंगले पर रहते हैं?”

“सिर्फ उसकी पत्नी। बच्चे मुम्बई में पढ़ते हैं और उसकी पत्नी, उसका पूरा साथ देती है गैर कानूनी कामों में।”

सब उनकी बातों को सुन रहे थे।

“तो हम ये मानकर चलें कि वहां कई मिल्ट्री वाले, मेजर बख्शी के दोस्त हो सकते हैं।”

“हां।” जावेद खान ने पक्के स्वर में कहा।

कुछ पलों की खामोशी के बाद, मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी।

“मिल्ट्री की उस कालोनी में, जहां जगह-जगह पहरा रहता है, वहां हम कोई ठोस योजना बनाकर नहीं जा सकते क्योंकि वहां के हालात हमारे लिये कभी भी बदल सकते हैं। ऐसे में हम योजना बनाकर तो चलेंगे, परन्तु जरूरत पड़ने पर, योजना को छोड़कर दूसरा रास्ता इस्तेमाल करने पर पूरी छूट होगी। सबसे पहली बात तो ये है कि हम लोग वहां रात के अंधेरे में नहीं, दिन के उजाले में जायेंगे। रात को तो वहां, दोस्त भी दुश्मन नजर आयेगा, जब कि दिन में उनकी निगाहों के शक के दायरे से, कुछ हद तक तो बाहर रह सकेंगे। कमीज के कॉलर के नीचे बना त्रिशूल का निशान हमारे लिए कितना सहायक हो सकता है, ये मैं तुम लोगों को बता ही चुकी हूं।”

मोना चौधरी कहते-कहते रुकी।

सबकी निगाह मोना चौधरी पर थी।

“जावेद खान ! हम सातों को ऐसे हथियारों की जरूरत है, जैसे हथियार मिल्ट्री वालों के पास होते हैं।”

“मिल्ट्री वालों के ही हथियार मिल जायेंगे।” कहते जावेद खान के होंठों पर मुस्कान उभर आई।

“सुबह होने से पहले मिल जाने चाहियें।”

“मैं दो घंटे में इन्तजाम कर देता हूं।” पुनः मुस्कराया जावेद खान।

“बलविन्दर....!” अजीत सिंह गहरी सांस लेकर कह उठा- “अच्छा हुआ जो हम मिल्ट्री में नहीं गये। वरना वर्दी पहन कर हम भी कहीं गलत रास्ते पर न चल पड़ते।”

“बकवास मत कर । एक मछली गन्दी हुई तो क्या बाकी की नौ सौ निनयानवें भी गंदी हो गईं।” बलविन्दर सिंह उखड़े स्वर में कह उठा- “इन्हीं जवानों के दम पर हमारा देश टिका है। ये न हों तो दूसरे देशों के लोग हमें चील-कौओं की तरह नोच-नोच कर खा जायें। हमारा हिन्दुस्तान एक किलोमीटर के दायरे में सिमट जायेगा।”

“बलविन्दर ठीक कहता है।” गौरव शर्मा कह उठा- “परिवार का एक सदस्य खराब हो तो, बाकी के सारे खराब नहीं हो जाते। दुनिया में ये सब तो चलता ही रहता है।”

“इतने सालों से उस मेजर का बचा रहना हैरानी की बात है।” वजीर सिंह होंठ सिकोड़कर कह उठा।

“उसका वास्ता कभी दिल के मरीज से नहीं पड़ा होगा।” अजीत सिंह ने छाती पर ठीक दिलवाले हिस्से पर हाथ मारा- “अब नहीं बचेगा। उसकी रगड़ाई हो गई समझो।”

“इतना आसान नहीं है प्यारे।” महाजन मुस्कराकर बोला- “वहां पर हमारे लिये बहुत मुसीबतें हैं। वहां हर तरफ मिल्ट्री वाले हैं। जबकि हम सिर्फ सात हैं। कुछ हुआ तो हमें मिनटों में भून दिया जायेगा। हमें अपनी सफाई देने का भी मौका नहीं मिलेगा। और हमारी लाशों को उठाकर कचरे की तरह किसी गाड़ी में डाल दिया जायेगा।”

“तू मेरे साथ रहना।” अजीत सिंह ने महाजन से कहा।

“तेरे साथ?”

“हां। मैं तेरा पूरा ध्यान रखूगा। तेरे को मरने नहीं दूंगा। वायदा रहा। पहले मैं मरूंगा। फिर तू......”

महाजन मुस्करा पड़ा।

“तेरे को तो जीवनरक्षक घोल मिल गया, अजीत सिंह के रूप में।” गौरव शर्मा मुस्करा पड़ा।

“तेरे को भी थोड़ा सा दे देता हूं।” अजीत सिंह ने उसे देखा।

“मेहरबानी । मैं सिर्फ मुगली घुट्टी पांच सौ पचपन लेता हूं।”

“हथियारों के अलावा हमें रिवाल्वरों की भी जरूरत पड़ सकती है।” वजीर सिंह ने कहा।

उसकी बात पर मोना चौधरी ने जावेद खान को देखा।

“रिवाल्वरों का भी इन्तजाम हो जायेगा।”

“मेरे लिये मत लाना। मैंने तो वर्मा की रिवाल्वर मार रखी है।”

कहते हुए अजीत सिंह ने जेब पर हाथ मारा।

“मिल्ट्री की जीप।” मोना चौधरी ने कहा- “क्या जीप असली मिल सकती है?”

“जीप के बारे में यकीन से नहीं कह सकता।” जावेद खान बोला- “कोशिश करूंगा।”

कृष्णपाल ने वहां बिखरी वर्दियों को देखा और गहरी सांस लेकर कह उठा।

“असली नहीं तो नकली वर्दी ही सही। दिल को समझाकर तसल्ली दे लेंगे।”

“ये तो असली वर्दी से भी कीमती है।” वजीर सिंह ने गम्भीर स्वर में कहा- “इस वर्दी को पहनने के पीछे हमारी भावना को देखो कि हम देश के एक बड़े गद्दार को खत्म करने जा रहे हैं जो कि....”

“मेरे ख्याल में हमें अब ये बात करनी चाहिये कि सुबह हमने मिल्ट्री वालों की उस कालोनी में जाकर क्या-क्या करना है। इस वक्त ये ही बात हमारे लिये महत्वपूर्ण है।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी- “हमारी जरा सी लापरवाही से मेजर बख्शी डाइनामाईट ब्लास्ट करके उस कालोनी को तबाह कर सकता है। ऐसा हो गया तो सैकड़ों की जानें जा सकती हैं। ऐसा न हो, हमें यह सोचकर अपने काम के लिये आगे बढ़ना है। और मेजर बख्शी तक पहुंच पाना आसान काम नहीं होगा। बीच रास्ते में ही हमारे साथ बहुत कुछ हो सकता है। ऐसे में कोशिश यही करनी है कि मेजर बख्शी न समझ सके कि उसके खिलाफ कुछ हो रहा है।”

सब की निगाह मोना चौधरी के गम्भीर चेहरे पर जा टिकी।

मोना चौधरी ने अगले दिन की कार्यवाही के बारे में अपनी बात शुरू कर दी।

☐☐☐

लोहे के विशाल चौड़े फाटक के साथ-साथ दस फीट ऊंची दीवार जा रही थी। फाटक के बीच छोटा-सा दरवाजा लगा था आने-जाने वालों के लिये। किसी वाहन ने आना-जाना होता तो फाटक खोल दिया जाता था, नहीं तो बंद ही रहता था।

फाटक के बाहरी तरफ दो जवान गनों को थामें सतर्कता से पहरा दे रहे थे। सुबह के साढ़े छः बज रहे थे। दो सौ फीट की दूरी पर पन्द्रह फीट चौड़ी सड़क थी, जिसके दोनों तरफ घने पेड़ लगे बहुत ही अच्छे लग रहे थे। सड़क शान्त थी। कोई वाहन आता-जाता नजर नहीं आ रहा था। सुबह के वक्त तीखी सर्दी का एहसास हो रहा था। दिन की रोशनी में कुछ देर पहले ही खुलापन आया था। तभी वहां इंजन की आवाज गूंजी और सड़क पर एक जीप नजर आई। जो देखते ही देखते मुड़ी और फाटक के करीब आकर रुक गई।

दोनों जवानों की नजर जीप पर गई।

तभी एक जवान आगे बढ़ा और जीप के पास पहुंच कर सैल्यूट दिया।

“आप लोगों को मैंने पहले कभी नहीं देखा।” जवान ने शांत स्वर में कहा।

जीप की ड्राईविंग सीट पर मोना चौधरी मौजूद थी। जिसने जवान की वर्दी पहन रखी थी। होंठों पर मूंछे थीं। सिर पर कैप थी। छातियों को ऐसे बांध रखा था कि देखने पर उसने औरत होने का एहसास न हो।

मोना चौधरी के साथ कैप्टन की वर्दी में पारसनाथ बैठा था।

“इधर आओ।” पारसनाथ ने रोबीले स्वर में कहा।

जवान तुरन्त वहां से हटा और दूसरी तरफ पारसनाथ के पास जा पहुंचा।

“सर....!” उसने अटैंशन मुद्रा में कहा।

पारसनाथ ने अपना कार्ड निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा।

“कैप्टन पारसनाथ फ्रॉम जम्मू। फाटक खोलो।”

जवान ने कार्ड देखकर पारसनाथ को वापस लौटाया।

“सर मैं, जीप में मौजूद बाकी लोगों को चैक कर सकता हूं। ये मेरी ड्यूटी है।”

“जल्दी करो।”

जवान ने सब के आईकार्ड देखे। चेहरे देखे, उनकी गिनती की। फिर पारसनाथ के पास पहुंचा।

“तुम बहुत देर लगा रहे हो जवान। हम लोगों का एक-एक मिनट कीमती है। पारसनाथ ने उसे देखा।

“आप लोग पूरे आठ हैं। यही गिनती मुझे बताई गई थी।” वो धीमे स्वर में बोला- “आप में मोना चौधरी कौन है?”

पारसनाथ की आंखें सिकुड़ीं।

मोना चौधरी चौंकी।

बाकी भी सतर्क नजर आने लगे।

“क्या कह रहे हो? होश में तो हो कि.....”

“प्लीज सर! धीमे बात कीजिये। अभी-अभी मिल्ट्री सीक्रेट सर्विस के कैप्टल कालिया यहां पहुंचे हैं और उन्होंने बताया था कि आठ लोग किसी भी मिल्ट्री वाहन में यहां, कभी भी आ सकते हैं। मैं भी सीक्रेट सर्विस का एजेन्ट हूं। आप में एक युवती है। जिसका नाम मोना चौधरी है। लेकिन उसे मैं पहचान नहीं पर रहा।”

मोना चौधरी और पारसनाथ की निगाहें मिलीं।

“तुम कैसे कह सकते हो कि हम वही हैं, जिनके बारे में कैप्टेन कालिया....।” पारसनाथ ने कहना चाहा।

“सर! एक तो आप लोगों की संख्या आठ है कैप्टन कालिया ने यही बताया था। दूसरे आप सब के आई० कार्ड बिल्कुल नये हैं। किसी का भी कार्ड पुराना नहीं है। मतलब कि सारे कार्ड अभी बनाये गये हैं। नकली हैं और.....।”

“इधर आओ।” मोना चौधरी भिचे स्वर में कह उठी।

वो मोना चौधरी के पास पहुंचा।

“मैं हूँ मोना चौधरी । कैप्टन कालिया ने क्या कहा है, हमारे बारे में?” मोना चौधरी का स्वर कठोर था।

“आप लोग जब आये तो अपनी तसल्ली करने के बाद, सब को उन तक पहुंचा दूं। सुबह चार बजे से मैं यहां ड्यूटी पर हूं। आपकी तसल्ली के लिये बता दूं कि यहाँ मैं जवान के तौर पर तैनात रहता हूँ, लेकिन असल में मैं सीक्रेट सर्विस का एजेन्ट हूं और अपनी मिल्ट्री की भीतरी हलचलों की खबरें पाकर मिस्टर पहाड़िया को भेजता हूं। कैप्टन कालिया दो घंटे पहले ही दिल्ली से यहां पहुंचे हैं।”

मोना चौधरी होंठ भींचे उसे देखती रही।

“प्लीज। शंका से मत देखिये। आप लोगों का इस तरह इतनी देर यहां खड़े रहना भी ठीक नहीं।” वो बोला।

“तुम्हें मालूम है हम किस काम के लिये यहां आये हैं?” मोना चौधरी के होंठ खुले।

जवान के चेहरे पर हिचकिचाहट उभरी।

“जवाब दो ताकि हमें लगे कि यहां पर हमें फंसाने की तैयारी नहीं हो रही।”

“मेजर बख्शी।” वो धीमे स्वर में कह उठा।

दो पलों की खामोशी के बाद मोना चौधरी सबसे बोली।

“ये वक्त ऐसा है कि हमें इस पर विश्वास करना पड़ेगा। हो सकता है हम किसी धोखेबाजी में फंस रहे हो, परन्तु ये खतरा तो अब हमें उठाना ही पड़ेगा।”

“ओये।” अजीत सिंह कह उठा- “वर्दी की कसम खाकर कहता हूं कि जो कहा है, सच कहा है।”

“कसम से।”

“वर्दी की?”

“हां-हां, वर्दी की....।” उसने तुरन्त कहा।

“कहीं तेरी भी वर्दी, मेजर बख्शी की तरह धब्बों वाली तो नहीं

“मेजर बख्शी की वर्दी में कोई धब्या नहीं है। एकाएक वो सख्त से स्वर में कह उठा- “धब्बा है तो उसके चरित्र में। उसके दिलो-दिमाग में। उसके ईमान में......”

“बात तो तेरी ठीक है।”

तभी वो ऊंचे स्वर में कुछ कदमों की दूरी पर खड़े जवान से बोला।

“फाटक खोलो।”

दूसरा जवान आगे बढ़ा और फाटक का छोटा-सा दरवाजा खोल कर भीतर किसी से बोला।

“फाटक खोलो।”

तभी मोना चौधरी ने पूछा।

“कैप्टन कालिया कहां मिलेगा?”

“सीधी सड़क नजर आयेगी अभी। फाटक खुल रहा है देख लो। कुछ-कुछ फासले पर एक-के-बाद-एक तीन गोल चक्कर आयेंगे। तीसरे गोल चक्कर पर बाईं तरफ मुड़ जाना। वहीं घास पर बड़ा-सा टैंट लगा नजर आयेगा। वहां दो-चार जवान पहरा भी दे रहे होंगे। उसी में कैप्टन कालिया मौजूद है।”

तब तक फाटक खुल चुका था।

मोना चौधरी ने जीप आगे बढ़ाई और वो फाटक से भीतर प्रवेश करते चले गये।

बीस फीट चौड़ी बहुत साफ-सुथरी सड़क थी। सड़क के दोनों तरफ चूने की लम्बी लाईनें वहां का आकर्षण बढ़ा रही थीं। उसके साथ ही छोटे-छोटे फूलों के पौधे लगे हुए थे। उस पार घास का प्लेन बाग था। मन को मोह रहा था वहां का माहौल । उसके बाद दूरी-दूरी पर, कहीं फ्लैट, तो कहीं छोटे मकान और दूर-दूर बड़े बंगले बने नजर आ रहे थे। इतनी सुबह भी वहां पर चहल-पहल कायम थी। जवान खुली जगह में परेड करते नजर आ रहे थे तो कुछ सादी वर्दी में, अपने कामों में व्यस्त थे। मिल्ट्री की जी, गाड़ियां आ-जा रही थीं। घोड़ों पर भी जवान नजर आ रहे थे।

बहुत ही सुखमय और शांत माहौल का एहसास हो रहा था।

“शेर के जबड़े में हमने गर्दन दे दी है।” महाजन बोला- “कोई भी लापरवाही न करे।”

“वजीर.....।” गौरव शर्मा गहरी सांस लेकर कह उठा- “अगर मिल्ट्री की ट्रेनिंग के दौरान गिरकर मेरा कंधा नहीं टूटता, अगर टूटा तो बाद में ठीक हो जाता। पहले की तरह बांह को आसानी से पूरा घुमा लेता तो शायद मिल्ट्रीमैन बनकर, आज मैं यहीं पर ड्यूटी दे रहा होता।”

“ये भी हो सकता था कि ड्यूटी ज्वॉईन करने के अगले दिन ही दुश्मनों ने तेरे सिर पर बम फोड़ दिया होता।” अजीत सिंह गहरी सांस लकर कह उठा।

“तू हमेशा सड़ी बातें ही क्यों करता है?” बलविन्दर सिंह उखड़े स्वर में अजीत सिंह से कह उठा- “कभी तो अच्छा बोला कर। दिल का मरीज़ है तू। तेरे को तो वैसे भी कम बोलना चाहिये।”

“क्यों कम बोलूं। दिल के मरीज के मुंह में क्या जुबान नहीं होती, या वो दिल से बोलते हैं।” अजीत सिंह हाथ हिलाकर कह उठा- “वैसे भी कान खोल कर सुन ले । मैं अपने को दिल का मरीज कहूं या जो भी कहूं। तेरे मुंह से ये शब्द सुनना मुझे अच्छा नहीं लगता। मेरा दिल तो लाखों में एक है।”

“तेरे दिल में क्या हीरे जड़े....”

“चुप रहो।” मोना चौधरी सख्त स्वर में कह उठा।

बलविन्दर सिंह खामोश हो गया।

जीप मध्यम

रफ्तार से साफ-सुथरी सड़क से गुजर रही थी।

पहला छोटा सा गोल चक्कर पार हो गया था। छोटा सा खूबसूरत गोल चक्कर चूने और काले पेंट से चमक रहा था। उसके बीचो-बीच छोटी सी तोप पड़ी थी। सड़क पर से मिल्ट्री के अन्य वाहन भी निकल रहे थे।

“कोई नहीं कह सकता कि देश का सबसे बड़ा दुश्मन, इतनी सुरक्षित जगह पर मौजूद है।” वजीर सिंह बोला।

“उसकी यही सुरक्षित जगह उसकी मौत की वजह भी बनने जा रही है।” पारसनाथ सपाट स्वर में कह उठा- “अगर वो कहीं और खुले में होता तो उसकी जिन्दगी ज्यादा सुरक्षित होती।”

“मतलब कि इस वक्त शिकारी पिंजरे में हैं।” कृष्णपाल कह उठा।

“हां।” गौरव शर्मा बोला- “और पिंजरे का दरवाजा बंद है। उड़ निकलने की कोई गुंजाइश नहीं है।”

तीसरा गोल चक्कर आते ही मोना चौधरी ने जीप बाईं तरफ रोक दी। अभी तक किसी ने उन्हें रोकने-टोकने की कोशिश नहीं की थी। वो मिल्ट्री की जीप में थे। मिल्ट्री की वर्दी में थे। ऐसे में कोई सोच भी नहीं सकता था कि ये बाहरी लोग हो सकते हैं।

बाईं तरफ मोड़ते ही मोना चौधरी ने आहिस्ता से सड़क जीप रोक दी। पास ही पार्क जैसी खाली जगह में मिल्ट्री का टैंट लगा हुआ था, जो कि सामान्य टैंटों से बड़ा था। उसके बाहर तीन जवान सतर्कता से पहरा दे रहे थे। मोना चौधरी ने तसल्ली से वहां का जायजा लिया।

“पारसनाथ! हमें इसी टैंट के बारे में बताया गया है कि कैप्टन कालिया यहीं है। मालूम करो।”

उसी पल पारसनाथ जीप से निकला और मिल्ट्री वालों की चाल में उस तरफ बढ़ गया। बदन पर कैप्टन की वर्दी। लम्बा-चौड़ा शरीर। कोई भी उस पर शक नहीं खा सकता था। यो एक जवान तक पहुंचा तो जवान ने फौरन अटैंशन होकर सैल्यूट दिया और सीधा खड़ा हो गया।

“कैप्टन कालिया यहीं हैं?” पारसनाथ ने रौबीले स्वर में पूछा।

“यस सर। वो भीतर हैं।”

पारसनाथ तुरन्त जागे बढ़ा और टैंट का पर्दा उठाकर भीतर प्रवेश कर गया।

भीतर कैप्टन कालिया वर्दी में बैठा, नाश्ता कर रहा था। उस बड़े, टैंट में उसके अलावा कोई दूसरा नहीं था। उसकी नजरें इस तरफ थीं। यकीनन उसने पारसनाथ की आवाज सुन ली थी।

पारसनाथ पर निगाह पड़ते ही कैप्टन कालिया के चेहरे पर गम्भीर मुस्कान उभर आई।

“आओ पारसनाथ। बाकी लोग कहां हैं?”

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“हमारे डिपार्टमैंट में, मेजर बख्शी के खिलाफ दो-तीन सप्ताह बाद हरकत में आना था।” सब पर निगाह मारते हुए कैप्टन कालिया धीमे किन्तु गम्भीर स्वर में कह रहा था- “लेकिन रात तुमसे बात होने के बाद मिस्टर पहाड़िया ने अपना प्रोग्राम बदल दिया।”

“वो कैसे?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

वे सब टैंट के भीतर कुर्सियों पर बैठे थे और बाहर मौजूद जवानों को कैप्टन कालिया ने सख्त आदेश दे दिया था कि, बेशक कोई भी हो, टैंट के पास न आने पाये।

“मिस्टर पहाड़िया समझ चुक थे कि तुम आज, मेजर बख्शी के लिये, यहां पर एक्शन में आओगी। ऐसे में हो सकता है कि बख्शी हाथों से निकल जाये। क्योंकि ये मिल्ट्री एरिया है। यहां बख्शी की चलती है और उसके हिमायती भी बहुत हैं। और तुम लोग यहां के लिये अंजान हो।

मेजर बख्शी को हम आसानी से गिरफ्तार कर सकते हैं। वो महसूस भी नहीं कर पायेगा कि उसे गिरफ्तार किया जा रहा है। ऐसे में तुम लोगों के बीच में आ जाने से मामला बिगड़ सकता है।”

“कहना क्या चाहते हो लिया?” मोना चौधरी कह उठी।

“यही कि यहां पर सुबह से ही हमारे आदमियों का जाल बिछ चुका है मेजर बख्शी को गिरफ्तार करने के लिये। तुम लोगों का ही इन्तजार था कि मौके पर आकर तुम लोग कोई गड़बड़ न कर दो।”

कैप्टन कालिया ने गम्भीर स्वर में कहा- “मिल्ट्री सीक्रेट सर्विस के डिपार्टमैंट के लोग, बख्शी को गिरफ्तार करने के लिये हरकत में आ रहे हैं तुम लोगों को आगे आने की जरूरत नहीं। जब तक काम खत्म नहीं हो जाता। तुम लोग यहीं रहोगे। यहां से बाहर नहीं निकलोगे। बाहर खड़े जवान भी इस बात का ध्यान रखेंगे।”

“ये कैसे हो सकता है।” कृष्णपाल कह उठा- “हम इतनी दूर से आये हैं और दो-दो हाथ किए बिना वापस लौट जायें। नहीं, इस काम में हम तुम लोगों के साथ रहेंगे।”

“मैंने दुश्मन का थोबड़ा न तोड़ा तो मेरा दिल जोरों से धड़केगा और अटैक हो जायेगा।” अजीत सिंह के स्वर में सख्ती आ गई- “कृष्णपाल ठीक कहता है कि...”

“मेरी बात समझने की कोशिश....”

“हम सिर्फ अपनी बात समझने की कोशिश करते हैं।” बलविन्दर सिंह उखड़े स्वर में कह उठा- “ये भी कोई बात है कि पानी पिलाकर सूखे-सूखे टरका रहे हो। इतनी दूर से आये हैं खाने के बिना हम....”

“मुझे सख्ती करने पर मजबूर मत करो....।” कैप्टन कालिया के स्वर में सख्ती झलक उठी।

महाजन की नजरें मोना चौधरी से मिलीं।

तभी पारसनाथ बोला।

“मोना चौधरी! हमारे सामने इस वक्त दो अहम बातें हैं। एक तो बख्तावर सिंह की भांजी श्वेता को हासिल करना और दूसरे मेजर बख्शी को गिरफ्तार कराना या उसे खत्म करना।”

“श्वेता को तुम लोगों के हवाले कर दिया जायेगा।” कैप्टन कालिया कह उठा- “लेकिन तुम लोगों को इस बारे में विश्वास दिलाना होगा कि श्वेता को कोई नुकसान नहीं होगा और वो ठीक जगह पहुंच जायेगी।”

“इस बात का विश्वास तो तुम्हें खुद ही हो जाना चाहिये कालिया ।” मोना चौधरी ने कहा।

कैप्टन कालिया ने मोना चौधरी को देखा फिर सिर हिलाकर कह उठा।

“मुझे विश्वास है तुम पर। इसके साथ ही मेजर बख्शी की गिरफ्तारी भी हो जायेगी। और इन सब कामों में तुम लोगों के आगे आने की जरूरत नहीं। ये हमारी जगह है, हम लोग ये मामला निपटा लेंगे। तुम लोगों की वजह से हमें जल्दी करनी पड़ रही है। वरना, हमारा डिपार्टमेंट दो सप्ताह बाद ही बख्शी पर हाथ डालता।”

महाजन ने होंठ सिकोड़ कर सोच भरे स्वर में कहा।

“बेबी! ऐसा है तो हमें आराम करना चाहिये। कया जरूरत है, दौड़-भाग करने की।”

“मुझे कोई एतराज नहीं।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।

“ये भी कोई बात हुई, सुना तुम लोगों  ने ये लोग अपने आप ही फैसला किए जा रहे हैं। हमसे पूछा ही नहीं कि जैसे हम फालतू के हैं । मैं नहीं मानता इस बात को दो-चार दुश्मनों को नहीं मारा तो हमारे यहां आने का क्या फायदा। सैर करने तो आये नहीं हैं हम...”

“बात तो ठीक है अजीत सिंह की।” गौरव शर्मा कह उठा- “क्या हर्ज है कि इस काम में हम साथ हो जाये।”

“बहुत हर्ज है।” कैप्टन कालिया ने उन्हें तीखी निगाहों से देखा- “तुम लोग बाहरी हो। यहां काम कैसे करना है? कैसे बख्शी को गिरफ्तार करना है? हम बेहतर जानते हैं। तुम लोगों की वजह से गड़बड़ हो सकती है।”

वजीर सिंह एकाएक मुस्करा कह उठा।

“पिछली बार, साल भर पहले जब तुम सीमा पर, अबोटाबाद में मिले थे तो, हमें ऐसे शब्द कहने की तुम्हारी हिम्मत नहीं थी और अब बहुत तीखा बोल रहे हो...”

कालिया ने होंठ भींच लिए।

“तब की बात और थी। सीमा पार की बात थी। पाकिस्तान का इलाका था। दुश्मन सामने था। तब आवाज कहां से निकलती।”

बलविन्दर सिंह व्यंग्य से कह उठा – “अब तो कैप्टन साहब शेर बने बैठे हैं। वर्दी में हैं और अपने मिल्ट्री एरिये में है। गर्ज कर नहीं बोलेंगे तो पता कैसे चलेगा कि ये कैप्टन साहब हैं।”

“अबोटाबाद में डण्डा बना हमारे पीछे था।” अजीत सिंह बोला- “अब तो रंग ही और है।”

“बेवकूफों वाली बातें मत करो।” कालिया उन्हें खा जाने वाली निगाहों से देखता कह उठा- “अबोटाबाद में अगर तुम लोग हमारे साथ न होते तो हम किसी भी हाल में वहां का मोर्चा नहीं संभाल सकते थे। तुम सब के कारण उस जगह पर हम कब्जा पा सके थे।”

“हवा देता है।” गौरव शर्मा कह उठा।

“ये तुम कह रहे हो।” कालिया ने गौरव शर्मा को देखा- “याद करो, तब तुम ही उस जगह के पीछे की तरफ मेरे साथ थे। छाती ताने खतरे के सामने खड़े थे। मैं तो अपनी ड्यूटी पूरी करने के लिये जान पर खेलने सीमा पार पहुंच गया था। लेकिन तुम लोग तो किसी के अधीन नहीं थे। सिर्फ देश की सेवा करने का जज्बा मन में लिए, मौत को गले लगाने को तैयार थे और।”

“अब भी तो वो ही जज्बा है मन में।” गौरव शर्मा कह उठा- “और तुम हमें आगे बढ़ने से रोक रहे हो। हम तो सिर्फ ये कह रहे हैं कि मेजर बख्शी पर हाथ डालने के लिये हमें भी साथ-...”

“गौरव।’ कालिया के होंठों पर मुस्कान उभर आई- “अगर सुई से काम होता नजर आये तो कभी भी तलवार को म्यान से नहीं निकालना चाहिये। बख्शी को गिरपतार करना, इस वक्त हमारे लिये मामूली काम है। ये हमें कर लेने दो। जिन्दगी में अभी कितने मौके आयेंगे, देश के दुश्मनों को सबक सिखाने के लिये आज हम लोग तुम लोगों की वजह से ही हरकत में आ रहे हैं कहीं, बख्शी हाथ से न निकल...”

“लेकिन।” कृष्णपाल ने कहना चाहा।

तभी पारसनाथ ने टोका।

“बहस करने का कोई फायदा नहीं। कैप्टन कालिया नहीं मानेगा। वैसे भी इस काम में अकेला नहीं है कि जोर डालकर हम अपनी बात मनवा लें। इस वक्त इसके साथ, इसके डिपार्टमेंट के और लोग भी हैं। यानि कि स्पष्ट रूप से मिल्ट्री इन्टैलीजैन्ट्स इस मामले में हरकत में आ चुकी है। और चौ लोग कभी भी पसन्द नहीं करेंगे कि इस मामले में हम जैसे बाहरी लोग दखल दें।”

“कोई कुछ न बोला।

कालिया ने बाहर खड़े जवान को बुलाकर कहा।

“ये लोग मेरे खास मेहमान हैं। मिल्ट्री वाले नहीं। इनकी वर्दियों से धोखा मत खा जाना।” कालिया की आवाज में गाम्भीरता थी- “जब तक मैं वापस न लौटूं, तब तक ये टैंट से बाहर न निकल पायें। अगर ये निकलने की कोशिश करें तो तुम लोग इन पर सख्ती कर सकते हो। सख्ती में बदसलूकी नहीं होनी चाहिये।”

“यस सर ।” जवान ने सैल्यूट दिया।

“कालिया!” मोना चौधरी का स्वर शांत था- “जब वापस आओ तो साथ में श्वेता होनी चाहिये।”

कालिया ने सहमति से सिर हिलाया और बाहर निकल गया।

जवान भी बाहर निकल गया।

सबने एक-दूसरे को देखा।

“चलो आराम का तो मौका मिला। किसी को ये तो कह सकते हैं कि मिल्ट्री एरिये में ही हमने इज्जत से आराम किया है। मिल्ट्री में नहीं गये तो क्या हुआ।” बलविन्दर सिंह गहरी सांस लेकर कह उठा।

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मेजर सुदेश बख्शी

पचास बरस की उन । दरम्याना जिस्म। सिर के बाल काले-सफेद। लम्बा कद । क्रूरता से भरी आंखें और अपनी लम्बी नाक की चोंच आदतन मसलने का आदी।

मेजर बख्शी ने रिसीवर रखा और पलट कर सिग्रेट सुलगा ली। चेहरे पर व्याकुलता नजर आ रही थी। होंठ गुस्से से भरी कठोरता से भिंच चुके थे। इस वक्त वो तैयार था। कहीं जाने वाला था कि फोन आया और फोन सुनकर उसकी ये हातत हो गई थी।

तभी पैंतालिस बरस की खूबसूरत औरत ने भीतर प्रवेश किया। बहुत ही बढ़िया ढंग से साड़ी बांध रखी थी। स्लीव लैस और लो कट का ब्लाउज इस वक्त उसका खास आकर्षण था। उसके कटे बाल पीठ तक जाते लहरा रहे थे। बख्शी का चेहरा देखते ही बोली।

“क्या हुआ? अभी तो ठीक थे।”

“सुधा!” मेजर बख्शी दांत भींच कर कह उठा- “भारी गड़बड़ हो गई है। अभी-अभी दिल्ली से मेरे खास आदमी का फोन आया था। उसने बताया कि मेरे कारनामे मिल्ट्री इन्टैलीजेन्ट्स तक पहुंच चुके हैं और आज मुझे गिरफ्तार किया जाना है। उसका कहना है कि इस वक्त ये जगह घेरी जा चुकी है। दिल्ली से मिल्ट्री खुफिया विभाग वालों ने यहां आकर घेरा डाल लिया है।

“ओह!” सुधा का रंग फक्क पड़ गया- “ये तो बहुत बुरा हुआ। अब क्या होगा?”

“मेरे ख्याल में ज्यादा बुरा नहीं हुआ।अच्छा तो ये हुआ कि मैंने अपना सारा पैसा स्विस बैंक में कुछ दिन पहले ही जमा कराया है। वरना करोड़ों की दौलत जो आज तक कमाई थी, हाथ से निकल जाती।”

“उसका क्या फायदा। हम तो पकड़े जायेंगे।”

“इतना आसान नहीं है सुदेश बख्शी को पकड़ना।” वो कहर भरे स्वर में कह उठा- “आसान नहीं है।”

“वो जो तुमने डाईनामाईट बिछा रखा है। उसे....”

“नहीं। डाईनामाईट को छेड़ना भी नहीं है। ये ठीक है कि इस वक्त में डाईनामाईट के दम पर यहां से निकल जाऊंगा। लेकिन दिल्ली से आये जासूस मेरा पीछा नहीं छोड़ेंगे। वो कहीं न कहीं हमें पकड़ ही लेंगे।”

“चुपचाप यहां से निकल जाना ही ठीक रहेगा। निकलने का रास्ता बना रखा है मैंने?”

“लेकिन जायेंगे कहां-?” सुधा सूखे होंठों पर जीभ फेर कर बोली- “फिर पकड़े जायेंगे।”

“नहीं पकड़े जायेंगे।” सुदेश बख्शी विश्वास भरे स्वर कह उठा- “सीमा पास में ही है। यहां से पाकिस्तान निकल जायेंगे। वहां मेरे दोस्त हैं। सब ठीक हो जायेगा। बच्चे मुम्बई में पढ़ रहे हैं। उन्हें वहीं रहने दो। बाद में उनसे बात हो जायेगी। बच्चे हमारे लिये कोई समस्या पैदा नहीं करेंगे। वो हमें समझते हैं। बख्तावर सिंह की भांजी श्वेता हमारी कैद में, इसी बंगले में है। उसकी कोई फिक्र नहीं। उसे वहीं रहने दो। वो नहीं जानती कि उसे किसने कैद किया है। वो कहां कैद है। मैं जब भी उसके सामने गया चेहरा द कर गया। बख्तावर सिंह कभी भी नहीं जान पायेगा कि उसकी भांजी को किसने कैद किया। जाते-जाते बस आखिरी काम करना है।”

“क्या?”

“हथियारों के वो दो ट्रक और ड्रग्स से भरा एक ट्रक। उन्हें बेचकर अरबों की दौलत हासिल की जा सकती है। बख्तावर सिंह, श्वेता को वापस पाने के लिये वास्तव में उन ट्रकों पर हाथ डालने में कामयाब हो जाता है तो इस आखिरी काम को भी सफलतापूर्वक पूरा कर लेंगे डार्लिंग। इसके लिये कुछ देर हमें छिपकर रहना होगा। ट्रकों पर कब्जा पाकर, अपने आदमियों के हवाले कर जाऊंगा कि धीरे-धीरे माल ठिकाने लगाते रहें। बाद में दौलत वो मुझे पाकिस्तान में दे देंगे। चिन्ता की कोई बात नहीं।”

“लेकिन हमें क्या मालूम कि बरलावर सिंह कहां है। वो।”

“जब ट्रक चलेंगे, तो बजावर सिंह रास्ते में कहीं पर अवश्य ट्रकों पर हाथ डालेगा। मैं ट्रकों पर नजर रखूगा और आसानी से बख्तावर सिंह तक पहुंच जाऊंगा।” मेजर बख्शी दांत भींचे शब्दों को चबाते कह रहा था- “तुम कहीं आराम करना। मैं सब मामला संभाल लूंगा। आखिरी दांव लग गया तो मजा आ जायेगा।”

“तुम तो कह रहे थे कि ट्रकों की रवानगी का दिन आगे बढ़ा दिया गया है।” सुधा कह उठी।

“हां। एक-दो दिन का वक्त आगे बढ़ा है। कोई वजह होगी। मैं इन्तजार कर लूंगा।”

“मेरी मानों तो ये ट्रकों वाला मामला छोड़ो। हम चुपके से पाकिस्तान निकल जाते।”

“बेवकूफों वाली बात मत करो। स्विस बैंक में दो-चार अरब और बढ़ लेने दो। उसके बाद तो पाकिस्तान में भी हमने नहीं रहना । योरोप में बढ़िया जगह रहेंगे। पूरी दुनिया घूमेंगे।” मेजर सुदेश बख्शी के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान नाच रही थी- “आओ, चलते हैं यहां से।”

“पूजा वाले कमरे से?” सुधा ने पूछा।

“हां-वहां से...”

तभी कदमों की आवाज गूंजी। और एक सूबेदार ने भीतर प्रवेश किया।

“मेजर साहब!” वो घबराया हुआ था- “बाहर मिल्ट्री इन्टैलीजेन्ट्स वाले आये हैं। कहते हैं जरूरी काम के सिलसिले में आप से मिलना है। लेकिन मुझे तो लगता है जैसे बंगले के बाहर घेराबंदी हो चुकी है। मैंने कुछ लोगों को हथियारों के साथ इधर-उधर छिपते देखा है।”

“ये कैसे हो सकता है?” मेजर बख्शी ने नकली हैरानी जाहिर की।

“मैं सच कह रहा हूं।” सूबेदार ने घबराये स्वर में कहा- “कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें हमारी हरकतों की खबर लग गई हो और वो हमें गिरफ्तार- “होश की बात करो। ऐसी बातें मुंह से नहीं निकालते।” मेजर बख्शी ने धीमे स्वर में कहा- “तुम तो जानते ही हो कि हम कैसे गुप्त ढंग से काम करते हैं कि किसी को कानोंकान खबर नहीं हो सकती अभी तक कोई गड़बड़ हुई है क्या? तुम अपना चेहरा ठीक करो। नहीं तो यूं ही उन्हें शक हो जायेगा। वो लोग कहां हैं?”

“बाहर गेट पर...”

“ठीक है। तुम उन्हें पांच मिनट इन्तजार करवाओ। उसके बाद भीतर ले आना।”

“ठीक है सर...” कहने के साथ ही सूबेदार बाहर निकल गया।

“आ सुधा, बख्शी धीमे स्वर में कह उठा- “अब हमारा यहां रुकना, बहुत खतरनाक है। कहने के साथ ही वो बंगले के भीतरी हिस्से की तरफ बढ़ गया। सुधा उसके पीछे थी।

“दोनों मन्दिर वाले कमरे में पहुंचे और दरवाजा भीतर से बंद करके वो जल्दी से कमरे में मौजूद अलमारी के पास पहुंचे और चाबी लगाकर अलमारी को खोला। अलमारी में रखे कपड़े हटाये। बख्शी ने कपड़ों को एक तरफ किया, तो एक जगह पर छोटा सा स्विच नजर आया। बख्शी ने स्विच दबा दिया।

दूसरे ही पल अलमारी के साथ की एक फीट की दीवार बे-आवाज एक तरफ सरक गई। बख्शी ने अलमारी बंद की और सुधा का हाथ पकड़े, उस तंग जगह से किसी तरह भीतर प्रवेश कर गया। फिर जेब से लाईटर निकाल कर रोशनी की ओर दीवार पर हाथ मार कर, वहां लगा स्विच दबाया तो वो दीवार वापस अपनी जगह सरक आई। उसके बाद वे लाईटर की रोशनी में, तंग रास्ते से आगे लगे।”

पांच मिनट बाद ही मेजर बख्शी और सुधा ने खुद को खुले में ये पाया। ये कालोनी का हिस्सा था और बंगला अब काफी दूर नजर आ रहा था। वो जिस जगह से निकले थे। वहां लकड़ी का फट्टा रखा था और उसके ऊपर गमले रखे थे। बख्शी ने नीचे से जोर लगाकर, उन्हें उलटा कर, निकलने का रास्ता बना लिया था।

मेजर बख्शी ने कहर भरी निगाहों से दूर नजर आ रहे, मिल्ट्री वालों पर निगाह मारी। जो कि अपने काम में व्यस्त थे। उसके बाद मुस्कराकर सुधा को देखा।

“बेवकूफ लोग हैं।” मेजर बख्सी कड़वे स्वर में कह उठा- “मुझे गिरफ्तार करने आये हैं। किसी के हाथ इतने लम्बे नहीं हुए कि मेरी गर्दन तक पहुंच सके। आओ वो, मकान के सामने जीप खड़ी है। हम आसानी से जीप से, यहां से निकल जायगे। अभी यहाँ से खबर लीक हुई नही लगती कि मुझे गिरफ्तार किया जा रहा है। सब कुछ सामान्य लग रहा है।”

दो घटे बाद कैप्टेन कालिया, उन सब के पास में पहुंचा। साथ में उन्नीस बरस की बेहद खूबसूरत युवती मौजूद थी। जो कि डरी सहमी थी।

“ये श्वेता है।” कैप्टन कालिया ने गागीर स्वर में कहा “बख्तावर सिंह की भांजी।”

श्वेता के चेहरे पर और भी घबराहट नाच उठी।

सबकी निगाह श्वेता पर गई।

“घबराओ नहीं।” मोना चौधरी के होठों पर मुस्कान उभरी- “अब तुम कैद में नहीं हो।”

“मैं घर जाना चाहती हूं।” उसने हड़बड़ाकर कहा।

“जरूर। तुम घर पहुंच जाओगी। कहां रहती हो?”

“लाहौर।”

“बख्तावर सिंह तुम्हारी तलाश में यहां आया हुआ है। बहुत जल्द तुम उससे मिलोगी।”

“मामा यहां हैं?”

“तुम जानती हो, किसी कैद में भी तुम-?”

“नहीं। वो जब भी मेरे सामने आता था, चेहरे पर कपड़ा बांध कर ही आता था। मैं नहीं देख सकी उसे। लेकिन उसके चलने का अंदाज फोजियों जैसा था।” श्वेता ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“हां। देश स गद्दारी करने वाला वो फौजी ही था।” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने कालिया को देखा- “बहुत जल्दी सारा मामला निपटा आये। मैं तो सोच रही थी कि अभी कुछ घंटे और लगाओगे।”

बेचैन से कालिया ने सिग्रेट सुलगाकर कश लिया।

“मेजर बख्शी हाथ से निकल गया है मोना चौधरी- “ कालिया का स्वर गम्भीर था।

सब चोंके।

“हां।” कालिया के होंठ भिंचते चले गये- “बख्शी चुपचाप खिसक गया। हम उसे देख भी नहीं सके। मुझे पूरा यकीन है कि वो जान गया था कि उसे गिरफ्तार किया जा रहा है। वरना ऐसे मौके पर वो निकल नहीं सकता था।”

मोना चौधरी अजीब-सी निगाहों से कालिया को देखती रही। महाजन ने घूँट भरा।

पारसनाथ सख्ती भरे ढंग से अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा।

“ये तो मजा ही आ गया। क्या बढ़िया खबर सुनाई है कालिया ने। अटैक वाला दिलखुश हो गया।” अजीत सिंह का चेहरा खुशी से दमक उठा- “मज्जा ही आ गया।”

सबकी निगाह अजीत सिंह की तरफ घूमी।

“क्यों भाई!” वजीर सिंह ने आंखें सिकोड़कर उसे देखा- “इसमें खुशी की क्या बात हो गई।”

“खुशी ही खुशी है।” अजीत सिंह बोला- “मेजर बख्शी हाथ नहीं आया। भाग गया। अब साले को हम पकड़ेंगे। यहां तक आये और कुछ किया भी नहीं तो मरीज के दिल पर क्या बीतती। अब पड़ी है दिल को ठण्डक-?”

पारसनाथ के खुरदरे चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान उभरी और गायब हो गई।

“अजीत ठीक कह रहा है।” बलविन्दर सिंह भी मुस्कराया- “हम बेकारों को काम मिल गया, बख्शी के भाग जाने से।”

“हम भी उसे न पकड़ सके तो?” गौरव शर्मा न होंठ सिकोड़े।

“कैसे नहीं पकड़ सकेंगे।” वजीर सिंह ने हाथ में पकड़ी गन की नाल में उंगली ठूंसी- “वो बच नहीं सकता। अब नही तो दो-चार साल में ही सही, कभी तो वो हाथ आयेगा। हमारे पास काम करने की फुर्सत ही फुर्सत है।”

“ये तो मैं भूल ही गया था कि इन कामों के लिये हमारी ड्यूटी खत्म नहीं होती कभी...”

“क्यों भला?” अजीत सिंह ने मुंह बनाया- “आगे से मत भूलना। नहीं तो गोली मार दूंगा।” फिर उसने कालिया को देखकर कहा- “मेहरबानी तेरी जो तूने इतनी बढ़िया खबर सुनाई-।”

“दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा- “ कालिया दांत भींचे कह उठा।

“तो, सुन लो। कहता है दिमाग खराब हो गया है। पागल हैं हम। हमसे तो बचकर ही रहना चाहिये। कल को हमें पागलखाने में भर्ती करा दिया तो, मेजर बख्शी तो बाहर मौज करता फिरेगा।”

“तुम तो बहुत विश्वास के साथ गये थे कालिया कि मेजर बख्शी को हर हाल में गिरफ्तार कर लोगे।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी- उसका बच निकलना तुम लोगों के लिये शर्म की बात “मैंने पहले ही कहा है कि बख्शी को खबर मिल गई थी कि उसकी गिरफ्तारी की तैयारी हो रही है। जब हम उसके बंगले पर पहुंचे तो, वो भीतर था। फिर भीतर ही भतर जाने कैसे, किस रास्ते से खिसक गया। इस बात को चैक किया जा रहा है कि वो कैसे भाग गया। अवश्य बंगले में कोई खुफिया रास्ता है।”

“मिस्टर पहाड़िया को कहा था कि मेजर बख्शी के हाथ बहुत लम्बे हैं। उसके लोग मिल्ट्री में कहां-कहां फिट हैं, कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन मेरी बात को शायद गम्भीरता से नहीं लिया गया।”

“ऐसी बात नहीं है। तुमने जो कहा, वो हम पहले ही जानते थे और यहां हमने जो घेराबंदी की, वो सिर्फ ऊपर से आये आदमियों को ही पता थी। इस पर भी बख्शी को खबर मिल...”

“ऊपर से आये आदमियों के साथ, बख्शी का दोस्ताना नहीं हो सकता क्या?”

कालिया की सोच भरी निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी। हो सकता है। कालिया ने गहरी सांस ली।

“बेबी!” महाजन कह उठा- “छोड़ो इन बातों को और।”

“अगर हम तुम्हारे साथ होते।” गौरव शर्मा कह उठा- “तुम अपनी मूंछ कुछ देर के लिए नीचे करके हमें साथ ले लेते तो बख्शी इस तरह आसानी से फरार नहीं हो सकता था।”

“ ये जगह मिल्ट्री की है और यहां पर मुझे कानून-कायदे को देखकर चलना है। यहां सिर्फ मेरी मर्जी नहीं चल सकती। मेरा ओहदा सिर्फ कैप्टन का है। इस जगह पर मैं बाहरी लोगों के साथ काम नहीं कर सकता।”

“तभी तो इस वक्त मजे ले रहे हो। बलविन्दर सिंह कड़वे स्वर में कह उठा।

“और मत बोल हमें।” अजीत सिंह बोला- “इसका चेहरा तो पहले ही उतरा हुआ है। मरे को क्या मारना।”

कालिया ने कठोर निगाहों से अजीत सिंह को देखा।

“ऐसे मत देख- “ अजीत सिंह ने दांत फाड़े- “दिल का दौरा पड़ गया तो बख्शी की गर्दन कौन पकड़ेगा।”

“फिक्र मत कर।” कृष्णपाल ने व्यंग्य से कहा- “मैं गर्दन पकड़ लूंगा। तू चैन से मर । पीछे की चिन्ता मत कर।”

“तेरे को किसने कहा बीच में बोलने को?”

मोना चौधरी ने श्वेता को देखा।

“तुमने नाश्ता किया?”

“न-नहीं?” श्वेता ने धीमे स्वर में कहा- “दिन में एक बार दोपहर को मुझे खाना दिया जाता था।”

“इसके नाश्ते का इन्तजाम यहां से बाहर निकल कर भी हो सकता है बेबी।” महाजन ने मोना चौधरी से कहा।

मोना चौधरी सिर हिलाकर कैप्टन कालिया से बोली।

“बख्शी के साथी पकड़े गये या...”

“कुछ पकड़े गये। बाकी पकड़े जायेंगे। हमारे पास उसके साथियों की लिस्ट है जा मिल्ट्री में हैं।” कालिया ने कठोर स्वर में कहा- “उसके बंगले से पकड़े गये मिल्ट्री वालों का कहना है कि वो नहीं जानते बख्शी कहां गया। किस रास्ते से गया।”

तभी अजीत सिंह उठा। गन उनके हाथ में थी।

“चलो भाई। अब हमारा यहां क्या काम।”

बाकी भी धीरे-धीरे खड़े होने लगे।

“कालिया!” महाजन बोला- “बोतल खाली हो गई है। दूसरी का इन्तजाम कर।

कालिया ने बाहर मौजूद जवान से बोतल लाने को कहा।

“मिस्टर पहाड़िया से कहना कि कल सुबह तीनों ट्रक जम्मू के लिये रवाना कर दे।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।

कालिया की निगाह मोना चौधरी पर गई।

“और उन ट्रकों में कोई भी जवान नहीं होगा। सिर्फ हम होंगे।”

मोना चौधरी पर खतरनाक भाव नाच उठे- “ट्रकों में कोई सामान नहीं होगा, लेकिन उन्हें ऐसे ढांपा होगा कि जैसे वो भरे पड़े हैं। मैं तुम्हें शाम को फोन करूंगी। अपना नम्बर मुझे दे दो। तब बता देना कि ट्रकों में सवार होने के लिए, हम कल सुबह कहां पहुंचे।”

“तुम लोग सिर्फ आठ हो और उन लोगों की संख्या पचास से ऊपर हो सकती है। बख्तावर सिंह हर हाल में उन ट्रकों पर कब्जा जमाना चाहेगा।” कालिया ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा- “तुम लोग उनका मुकाबला शायद न कर पाओ।”

“मुकाबला करने का हमारा कोई खास इरादा नहीं है।” मोना चौधरी खतरनाक स्वर में कह उठी- “बेहतर होगा कि तुम इस मामले में न आओ। जो हम कर रहे हैं, कर लेने दो...”

कालिया, मोना चौधरी को देखता रहा, बोला कुछ नहीं।

महाजन की बोतल आ गई।

“हमें बाहर तक छोड़ दो।”

उसके बाद सब मिल्ट्री की जीप में बैठे। कालिया साथ था।

जीप वापस गेट की तरफ बढ़ गई। अब शयाद यहां बख्शी का मामला आम होता जा रहा था। तभी तो मिल्ट्री वालों को इधर-उधर भागते देखा जा रहा था।

एकाएक श्वेता कैप्टन कालिया से कह उठी।

“क्या मुझे इन लोगों के साथ जाना होगा?”

“हां।”

“लेकिन तुम लोगों की बातों से लगता है कि ये मिल्ट्री वाले नहीं

हैं। मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती।”

“हम मिल्ट्री वालों से ज्यादा मिल्ट्री वाले हैं बहन।” वजीर सिंह कह उठा- “हम अपनी जान दें देंगे, लेकिन तुम्हें कोई नुकसान नहीं होने देंगे। तुम हमें भगवान के बंदे कह सकती हो।”

श्वेता ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए कालिया को देखा।

“हां” कालिया ने मुस्कराकर सिर हिलाया- “तुम इन पर पूरा भरोसा कर सकते हो। सच तो ये है कि इन्हीं की वजह से तुम इस वक्त आजाद हो। ये यहां पर तुम्हें ही लेने आये थे।”

श्वेता कुछ नहीं बोली। बेचैनी उनके चेहरे पर रही।

कालिया ने उन्हें गेट के बाहर छोड़ा। अपना फोन नम्बर बता दिया।

“मैं शाम को फोन करूंगी? ये जानने के लिये सुबह तीनों ट्रक कहां से चलेंगे। कितने बजे हम वहां पहुंचे।”

जीप आगे बढ़ गई। ड्राईविंग सीट पर पारसनाथ था।

“कल हमें बख्तावर सिंह से तगड़ा खतरा हो सकता है।” पारसनाथ सपाट स्वर में बोला- “उसने ट्रकों का रास्ता रोकने के लिये जबर्दस्त तैयारी कर रखी होगी। हमें भी कल...”

“परवाह क्यों करते हो।” कृष्णपाल कह उठा- “हम साथ में हैं? तुम लोग मस्त रहना।”

“तुम लोगों को खून-खराबे के अलावा कुछ और भी आता है।” महाजन ने कृष्णपाल को देखा।

“हां। देश की सेवा करनी आती है।” गौरव शर्मा कह उठा- “और जो हम कर रहे हैं, देश की सेवा ही कहते हैं इसे।”

उलझन में फंसी श्वेता कह उठी।

“मैं तुम लोगों की बातें समझ नहीं पा रही। एक तरफ मेरे साथ अपनापन दिखाते हो और दूसरी तरफ मेरे मामा बख्तावर सिंह से झगड़े की बात कर रहे हो। आखिर तुम लोग चाहते क्या हो?”

“हमारे कामों में तुम दखल न ही दो तो बेहतर होगा।” मोना चौधरी ने उसे देखे हुए कठोर स्वर में कहा- “तुम्हें कुछ नहीं होगा। तुम्हारी जिम्मेवारी हम पर है। इस बारे में हम इतना ही कह सकते हैं।“

अब श्वेता क्या करती?

“बेबी।” महाजन बोला- “वर्मा के बारे में क्या ख्याल है? वो वापस चला गया होगा या?”

“वर्मा वापस नहीं जा सकता।” मोना चौधरी के होंठों से निकला- “वो शुरू से ही, जाने कैसे इस मामले में फंसा हुआ था। मेरी हर हरकत पर नजर रख रहा था वो। तुम सबको लेकर जम्मू तक आया कि, बख्तावर सिंह को सफल न होने दिया जाये।

“उसे खत्म करना चाहात था वो। ऐसे में वो वापस नहीं जायेगा।”

“मतलब कि वर्मा भी वहां मिल सकता है, जहां बख्तावर सिंह ट्रकों पर हाथ डालेगा।”

“हां। वहां वर्मा से अवश्य मुलाकात होगी।”

“मोना चौधरी!” पारसनाथ कह उठा- “ये भी तो हो सकता है कि बख्तावर सिंह को, मेजर बख्शी के फरार होने के बारे में पता चल गया हो और वो अब ट्रकों पर हाथ न डाले।”

“बख्तावर सिंह ऐसा अवश्य करता। अगर उसे मालूम होता कि श्वेता को, बख्शी ने कैद कर रखा है।” मोना चौधरी कह उठी- “वो नहीं जानता कि श्वेता किसकी कैद में है। कौन उसे मजबूर कर रहा है, ये काम करने के लिये-।”

तभी सामने सड़क के किनारे कार के पास जावेद खान खड़ा नजर आया।

पारसनाथ ने जीप की रफ्तार धीमी की और कार के पास ले जा रोका। उसके बाद उन्होंने जीप छोड़ी और सारे के सारे जैसे-तैसे कार में जा बैठे। जावेद खान ने कार आगे बढ़ा दी।

“मैं जानता हूं कि मेजर बख्शी वहां से फरार हो गया है।” जावेद खान बोला- “मुझे पहले ही इस बात की आशंका थी कि बख्शी पर हाथ डालना आसान नहीं। वो खतरनाक और सतर्क रहने वाला इन्सान है।”

“इतनी जल्दी तुम्हें कैसे मालूम हो गया?” महाजन ने पूछा।

“वो अपनी बीवी सुधा के साथ जीप में, यहां से निकला था। मैंने उसे देखा था।” जावेद खान गम्भीर था।

“तब तो तुम्हें उसके पीछे जाना चाहिये था।” वजीर सिंह कह उठा।

“मैं बेवकूफ नहीं हूं कि मेजर बख्शी का पीछा करता। कम से कम मैं तो उस पर काबू नहीं पा सकता।”

“तो मुझे बुला लेता।” अजीत सिंह का चेहरा गुस्से से भर उठा- “हरामी को डण्डा बना देता।”

“भगवान ही जाने कि तुम उसे डण्डा बनाते या वो तुम्हें डण्डा बनाता।” जावेद खान ने गहरी सांस ली- “अब कहां चलना है?”

“हमारे पास शाम के बाद तक का वक्त खाली है। शाम को कालिया को फोन करना है।” मोना चौधरी ने कहा- “बेहतर है कि ये लम्बा वक्त बड़गाम में तुम्हारे घर पर बितायें। वहां सुरक्षित रही।

“वहीं चलते हैं।” जावेद खान ने कार की रफ्तार बढ़ा दी।

“इसका मतलब मेजर बडी अब हाथ नहीं आयेगा?” वजीर सिंह कह उठा।

किसी ने कुछ नहीं कहा।

मोना चौधरी के दांत सख्ती से भिंच गये थे।

“साले को गोलियों से भूने विना में वापस नहीं आऊंगा।” अजीत सिंह के होंठों से खतरनाक स्वर निकला। गन पर उसकी पकड़ सख्त हो गई।

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