जगमोहन ने साधारण पैंट-कमीज पहन रखी थी । वह क्लीन शेव्ड था । कलाम ने उसे जब्बार से मिलवाया ।

“ये जब्बार साहब हैं ।”

जगमोहन जब्बार के गले मिला ।

“कई बार तुम्हारा नाम सुना । आज तुमसे मिलना भी हो गया ।” जगमोहन बोला ।

“तुम तो किसी भी तरफ से कश्मीरी नहीं लगते ।” जब्बार मुस्कुराकर बोला ।

“उसी का तो मुझे भरपूर फायदा मिलता है ।” जगमोहन ने कहा, “कश्मीर की आजादी के सिलसिले में मुझे अक्सर कश्मीर से बाहर रहना पड़ता है । मेरा कश्मीरी चेहरा तो कब का गायब हो चुका है । मुझे इस बात का भी बहुत फायदा मिलता है । कश्मीर में ये लोग मुझे बाहर का समझते हैं । मैं अपने संगठन के कामों को बहुत अच्छी तरह निभा रहा हूँ । कलाम, अब्बा कहाँ हैं ?”

“वह कुछ देर पहले ही गए हैं ।”

जगमोहन और जब्बार दो कुर्सियों पर आमने-सामने बैठ गए ।

“कॉफी के लिए कहो ।” जगमोहन बोला ।

कलाम ने आवाज लगाकर कॉफी लाने को कहा ।

“तुम आजकल बुरी स्थिति से गुजर रहे हो जब्बार ।” जगमोहन बोला ।

“हाँ, मेरा वक्त खराब चल रहा है ।” जब्बार ने गहरी साँस ली ।

“बड़ा खान का फोन अब्बा को आया था । परन्तु न तो अब्बा ने इस बात पर भरोसा किया, न मैंने । हम जानते हैं कि जब्बार गद्दार नहीं हो सकता ।”

“मुझ पर भरोसा करने का शुक्रिया ।” जब्बार ने उखड़े स्वर में कहा, “बड़ा खान ने मुझे बदनाम कर दिया है सब जगह ।”

“चिंता मत करो । अब तुम हमारे साथ हो । सब ठीक हो जायेगा । ये भी सुना है कि तुम शहीद होने जा रहे हो ।”

“ये भी बड़ा खान की बकवास है ।”

“मैंने तुम्हारी तलाश में आदमी लगा दिए थे । उन्होंने तुम्हें ढूँढ निकाला । अब तुम सही हाथों में आ गए हो ।”

“बड़ा खान जानता है कि मैं तुम लोगों के पास हूँ ?”

“अभी वह कुछ नहीं जानता । हमें उसकी परवाह भी नहीं है । हमें सिर्फ अब अपने कामों से मतलब रखना है ।” जगमोहन ने सिर हिलाकर कहा, “क्या मैं तुम पर भरोसा कर सकता हूँ ?”

“पूरी तरह ।” जब्बार ने दृढ़ स्वर में कहा ।

“हमारे संगठन में कोई छोटा-बड़ा नहीं है । सब बराबर हैं और दिल लगाकर काम करते हैं । मैं चाहता हूँ कि तुम भी वैसा ही बन जाओ । तुम हम पर भरोसा करो और हम तुम पर ।” जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा ।

तभी कॉफी आ गई । दोनों ने एक-एक प्याला थाम लिया ।

कलाम पास ही खड़ा था ।

“मुझे क्या काम करना होगा ?” जब्बार ने कॉफी का घूँट भरकर कहा ।

“तुम कश्मीर को आजाद देश देखना चाहते हो ?”

“हाँ !”

“हमारा भी ये ही इरादा है परन्तु ये बात हमें किसी भी कीमत पर भूलनी नहीं चाहिए कि कश्मीर, हिन्दुस्तान का हिस्सा है । हम किसी देश का एक टुकड़ा अलग करने के ख्वाब देखेंगे तो, सफर कठिन हो जायेगा । बात यहीं तक होती तो अब तक हमारे संगठन ने कोई रास्ता निकाल लेना था, परन्तु पाकिस्तान ने कश्मीर में गंदगी डाल दी है ।”

“कैसे ?”

“कभी वक्त था कि एक या दो संगठन होते थे । वे अपनी कहते और सरकार उनकी सुनती थी । बातचीत होती थी । परन्तु जब से पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ कराकर आतंकवादियों को भेजना शुरू किया है । तब से ही परेशानी आ गई है और हम सही मुद्दे से भटक गए हैं । पाकिस्तान से आने वाले लोगों ने अपने-अपने संगठन खड़े कर लिए हैं । हर रोज ही कहीं न कहीं खून-खराबा होता है । ऐसे में हिन्दुस्तान ने असल मुद्दे पर बातचीत बन्द करके कश्मीर में सेना लगा दी कि यहाँ के हालातों को संभाला जा सके । यानी कि जो असली मुद्दा था, वह धमाकों में ही गुम होकर रह गया है ।”

जब्बार कॉफी के घूंट भरता, जगमोहन को देखता रहा ।

“संगठनों की ज्यादा संख्या ने कश्मीर के हालात खराब कर दिए हैं और सच बात तो ये है कि हकीकत में कोई भी संगठन कश्मीर का भला नहीं चाहता । वह जानते ही नहीं कि मुद्दा क्या है । उन्हें सिर्फ खून-खराबा करना है, क्योंकि इसी बात के लिए पाकिस्तान से पैसा मिलता है उन्हें । अगर वे खून-खराबा बन्द कर देंगे तो उन्हें पैसा नहीं मिलेगा । तुम ही कहो, मैंने ठीक कहा या गलत ?”

“ठीक कहा ।” जब्बार ने सिर हिला दिया ।

“अब बड़ा खान को ही लो । उसने आतंकवाद की दुकान खोल रखी है । पैसा दो और बम विस्फोट करा लो । संगठन उसे पैसा देते हैं और अपने नाम पर विस्फोट करा लेते हैं । संगठन भी खुश और बड़ा खान भी खुश ।” जगमोहन बोला, “इसलिए अब हम कश्मीर की आजादी के सारे काम रोककर इन खामख्वाह के संगठनों को खत्म कर देना चाहते हैं ।”

“ये खतरनाक काम है ।” जब्बार के होंठों से निकला, “उन्हें इस तरह खत्म नहीं किया जा सकता । वह ताकत रखते हैं ।”

“ताकत तो हम भी रखते हैं ।” जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा ।

“लेकिन ये करना सच में खतरनाक है ।”

“परन्तु हमारा ये ही कहना है कि हम इन संगठनों को खत्म करेंगे । खत्म न कर सके तो कमजोर करेंगे । हम चाहते हैं कि एक वक्त ऐसा आये कि सबसे ऊपर हमारा ही संगठन हो और सरकार तब हमसे बात करे । 

“इन संगठनों से भी खतरनाक है अपनी दुकान खोले बैठा बड़ा खान । कई संगठन उसी के भरोसे कश्मीर में, देश में, आतंकवाद फैला रहे हैं । खुद संगठनों में मक्खी मारने का दम नहीं और बड़ा खान को पैसे देकर, आतंक अपने नाम पर फैला देते हैं । तीन महीने पहले दिल्ली में विस्फोट हुए, याद है ?”

“तब मैं जेल में था, परन्तु उन विस्फोटों का पता चल गया था ।”

“वह विस्फोट एक ऐसे संगठन ने, बड़ा खान के दम पर कराये, जिनकी संख्या ही मात्र बीस-पच्चीस है और दुकान के साइज का एक ठिकाना है, जहाँ वे इकट्ठा होते हैं और बातें करते हैं । पैसे दिए और बड़ा खान से विस्फोट कराकर, ऊपर अपनी मुहर लगा दी । यानी कि बड़ा खान न हो तो कश्मीर की आधी मुसीबत हल हो जाये ।”

जब्बार गंभीर निगाहों से जगमोहन को देख रहा था ।

“हम सबसे पहले बड़ा खान से ही अपना काम शुरू करेंगे ।” जगमोहन बोला ।

“बड़ा खान से ?” जब्बार के होंठों से निकला ।

“हाँ, पहले उसे और उसके संगठन को खत्म करेंगे ।”

“वह बहुत खतरनाक है । मैं उसके साथ काम कर चुका हूँ । वह आसान नहीं है ।”

“इसी बात का तो हमें फायदा मिलेगा कि तुम उसके साथ काम कर चुके हो ।” जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा, “तुम उसके आदमी रह चुके हो और उसके बारे में बहुत कुछ जानते हो । ये सब हमें फायदा देगा ।”

जब्बार के होंठ भिंच गए ।

“क्या बड़ा खान के लिए तुम्हारे दिल में नरमी है ?”

“ऐसा तो कुछ नहीं है अब ।”

“मत भूलो कि बड़ा खान ने तुम्हें हर जगह गद्दार करार करवा दिया है । कोई भी संगठन तुम्हें अपने पास बैठाने को तैयार नहीं, जबकि वही संगठन हमेशा ये चाह रखते थे कि तुम उनके लिए काम करो ।”

जब्बार का चेहरा सख्त हो गया ।

“बड़ा खान ने तुम्हारे लिए भी मौत चुन ली । वह तुम्हें आत्मघाती बम बनाकर मार देना चाहता था । ये हम ही थे जो तुम्हें यहाँ ले आये । हमारे संगठन से जुड़ने का सबसे पहला मंत्र है वफादारी ।”

“मैं वफादार हूँ तुम्हारे संगठन का ।”

“ये बात तुम्हें साबित करनी होगी । हमारे साथ कदम से कदम मिलाकर बड़ा खान के खिलाफ चलना होगा कि उसे खत्म कर सके । अगर तुम्हें बड़ा खान का खौफ है तो बेशक हमसे अलग हो सकते हो । अलग होने का वक्त अभी भी तुम्हारे पास है ।”

“ये इरादा नहीं है मेरा ।” जब्बार के चेहरे पर कठोरता थी ।

“तो आज से हम मिलकर बड़ा खान के खिलाफ काम करेंगे । उसे कश्मीर से उखाड़ फेंकेंगे ।” जगमोहन तेज स्वर में बोला ।

“अल्लाह जो करेगा, ठीक ही करेगा ।” कलाम कह उठा ।

“तैयार हो तुम जब्बार मलिक ?” जगमोहन ने पूछा ।

“हाँ !”

“ये खुशी की बात है कि अब तुम हमारे संगठन में आ गए हो ।” जगमोहन गर्व भरे अंदाज में मुस्कुराया ।

जब्बार भी मुस्कुरा पड़ा ।

“तुम बड़ा खान के बारे में सब कुछ मुझे बताओगे । उसके बाद हम ये फैसला करेंगे कि हम कैसे काम करें । कलाम !”

“जी !”

“हमारे लिए लंच का इंतजाम करो । मैं और जब्बार एक साथ दोपहर का खाना खायेंगे ।”

“ये तो बहुत खुशी की बात है ।” कलाम ने कहने के बाद अपने आदमियों से लंच का इंतजाम करने को कहा ।

“लंच लेने तक तुम बड़ा खान के बारे में वह सारी जानकारियाँ तैयार कर लो, जो मुझे बतानी है । मुझे पता है कि तुम उसके काफी खास थे ।”

“हाँ !”

“फिर तो बड़ा खान को खत्म करना और भी आसान होगा । तुम्हारा क्या ख्याल है ।”

“ये काम इतना आसान नहीं, परन्तु नामुमकिन भी नहीं कहा जा सकता ।” जब्बार ने सोच भरे स्वर में कहा ।

“बड़ा खान को जानते हो ?”

“नहीं ! परन्तु मैं इतना जानता हूँ जो कि बड़ा खान को जान लेने के ही बराबर है ।” जब्बार गंभीर स्वर में बोला ।

“इस बारे में लंच के बाद बात करेंगे ।” जगमोहन ने सिर हिलाकर कहा ।

☐☐☐

लंच उन दोनों ने अलग कमरे में किया । कलाम उस दौरान पास ही मौजूद रहा और दो आदमी खाने के दौरान उनकी जरूरतें पूरी करते रहे । इस बीच उनमें खास बात नहीं हुई । खाना समाप्त हो गया । बर्तन उठा लिये गए । कलाम इस दौरान कमरे में ही रहा । जगमोहन बोला ।

“अब कहो जब्बार । बड़ा खान के बारे में मुझे बताओ ।”

“बड़ा खान की उम्र 50-52 के करीब है ।” “जब्बार गंभीर स्वर में कह उठा ।

“तुमने देखा है उसे ?”

“शायद, परन्तु यकीन के साथ कुछ नहीं कह सकता ।”

“वह कैसे ?”

“एक दिन मैं सात-आठ लोगों से मिला था । सब लगभग इसी उम्र के थे । बाद में मुझे बड़ा खान ने फोन पर बताया कि वह उन्हीं लोगों में से कोई एक था । हमारी बात फोन पर ही होती थी ।” जब्बार ने बताया ।

“फिर तो हम आसानी से बड़ा खान को तलाश कर सकते हैं उन सात-आठ आदमियों में से ।”

“ये मतलब नहीं । जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि किसी काम के सिलसिले में मैं कहीं पर उन लोगों से मिला था । एक ही बार मिला उनसे । मुझे नहीं मालूम था कि वह कहाँ से आये और कहाँ चले गए ।”

“हिन्दुस्तानी है बड़ा खान ?”

“पाकिस्तान से आया है । वह यहाँ आतंक पैदा करने ही आया था । कश्मीर में वह आतंक फैलाने का ठेकेदार बन गया और संगठनों से पैसा ले-लेकर हिन्दुस्तान में आतंक फैलाने लगा ।” जब्बार ने बताया, “तीन साल की जब मैं पाकिस्तान में ट्रेनिंग ले रहा था तो वहाँ भी मैंने बड़ा खान का नाम सुना था कि वह बहुत शातिर इंसान है वहाँ का ।”

“हूं ! तुमने अगर बड़ा खान तक पहुँचना हो तो कैसे पहुँचोगे ?” जगमोहन ने पूछा ।

“मैंने ऐसा कभी सोचा नहीं ।”

“सोचो कि अगर तुम ऐसा करना चाहो तो कैसे करोगे ?”

जब्बार खामोश रहा । सोच में डूबा लगा ।

“उसका कोई खास ठिकाना ?”

“मैं एक बार वहाँ गया था जो कि उसका खास ठिकाना माना जाता है । परन्तु वहाँ मुझे रात को काले शीशों वाली कार में ले जाया गया और मेरे आसपास आदमी बैठे थे । वह रात कोहरे की रात थी और मैं रास्ता नहीं देख पाया । सफर लम्बा था ।”

“बड़ा खान तुम पर भरोसा नहीं करता था ?”

“करता था ।”

“तो फिर तुम्हें उसने अपने ठिकाने के बारे में क्यों नहीं बताया ।”

“कुछ चीजें वह सबसे छिपाकर रखता था । एक बार उसके ठिकाने की खबर बाहर चली गई थी । जो कि उसके उन दस आदमियों में से किसी एक ने खबर बाहर लीक की थी जो उसके करीब ही रहते थे तब बड़ा खान ने उन दसों को ही शूट कर दिया था ।”

“तुम बड़ा खान के किन ठिकानों के बारे में जानते हो ?” जगमोहन ने पूछा ।

“मैं उसके कई ठिकानों से वाकिफ हूँ । जैसे कि हथियार रखने का ठिकाना । वह ठिकाना जहाँ उसके आदमी मौजूद रहते हैं या फिर वह ठिकाना जहाँ आत्मघाती दस्ते के लोग रहते... ।”

“आत्मघाती दस्ते के लोग ?”

“हाँ ! उन्हें वह तीन-चार लाख में पाकिस्तान से खरीद कर लाया जाता है । सीमा पार करया जाता है और जब भी उसे कोई संगठन आत्मघाती विस्फोट का ऑर्डर देता है तो उनमें से किसी का इस्तेमाल करता है । ये वह लोग हैं जो पाकिस्तान में बहुत गरीब हैं और खाने को रोटी नसीब नहीं होती । दो-चार लाख के लालच में वह अपने परिवार के किसी सदस्य को बेच देते हैं । कई बार तो ये सौदा महज पच्चीस हजार में हो जाता है । बड़ा खान के लोग पाकिस्तान में भी हैं और ऐसे लोगों की तलाश में लगे रहते हैं जो कि अपने परिवार के किसी सदस्य को बेचना चाहते हैं । ऐसे लोग जब चार-पाँच हो जाते हैं तो वहाँ के लोग सीमा पार कराकर ले आते हैं । इधर बड़ा खान आत्मघाती हमला कराने के लिए संगठनों से पचास लाख की कीमत लेता है ।”

जगमोहन ने सिर हिलाया । नजरें जब्बार पर थीं ।

“बड़ा खान हर काम बहुत पक्के तरीके से करता है । प्लानिंग बनाकर करता है । दो लोग उसके बेहद खास हैं, जो कि पाकिस्तान से ही उसके साथ आये हैं । एक का नाम रशीद है, दूसरा मस्तान है । बड़ा खान के कामों को ये दोनों ही सँभालते हैं ।”

“क्या इन दोनों तक पहुँचा जा सकता है ?”

“कोशिश की जाये तो पहुँचा जा सकता है ।” जब्बार ने सिर हिलाया, “मैं बड़ा खान के आठ-दस ठिकाने जानता हूँ और मस्तान, रशीद के चक्कर इन ठिकानों पर मौजूद लोगों से बात करने के लिए लगते ही रहते हैं ।”

“इन दोनों के मरने से बड़ा खान को नुकसान होगा ?”

“हाँ ! उसे इन दोनों पर भरोसा है ।”

“तुम बड़ा खान की आठ-दस जगह जानते हो ।”

जब्बार ने सहमति से सिर हिलाया ।

“रशीद और मस्तान पर हाथ डालने के लिए अभी उन जगहों को सलामत रखना होगा ।”

“जैसा तुम ठीक समझो ।”

“रशीद और मस्तान कहाँ रहते हैं, ये तुम नहीं जानते ?”

“नहीं ! बड़ा खान मेरे से फोन पर बात करके ही मुझे बता देता था कि कहाँ पर, क्या काम करना है । जरूरत के मुताबिक हथियार, आदमी और पैसा पहुँच जाते थे । रशीद और मस्तान से मेरा कभी वास्ता नहीं पड़ा ।”

“रशीद और मस्तान जानते हैं कि बड़ा खान कौन है और कहाँ रहता है ?”

“कह नहीं सकता । ख्याल है कि जानते होंगे । क्योंकि वह भी पाकिस्तान के हैं ।”

“संगठन, बड़ा खान से कैसे सम्बन्ध बनाते हैं ?”

“तुम्हें नहीं मालूम ?” जब्बार ने जगमोहन को देखा ।

“मालूम है !” जगमोहन मुस्कुराया, “मेरा अपना संगठन है । तुमसे इसलिए पूछा कि शायद तुम कोई नई बात बताओ ।”

“जिस संगठन ने भी बड़ा खान से आतंकवादी कार्यवाही करानी होती है, वह रशीद या मस्तान से फोन पर बात करता है । वे इस खबर को बड़ा खान तक पहुँचा देते हैं और बड़ा खान बात कर लेता है संगठन से ।”

“यानी कि रशीद और मस्तान, बड़ा खान के लिए जरूरी लोग हैं ।”

“हाँ ! मैंने पहले ही कहा है कि सारा काम इन दोनों ने संभाल रखा है ।”

“काम की कीमत भी ये दोनों ही लेते हैं ?”

“ये बात तुम्हें पता होनी चाहिए ।”

“पता है, लेकिन हमारे संगठन ने बड़ा खान से कोई काम नहीं लिया । तुमसे पूछकर बात पक्की कर रहा हूँ ।”

“बड़ा खान सामने नहीं आता । ये दोनों ही सब कुछ करते हैं ।”

“बड़ा खान की नजरों में तुम्हारी क्या कीमत थी ?”

“बहुत कीमत थी । मुझसे बिगाड़कर वह पछता रहा होगा । मैं उन बड़े कामों को पूरा करता था, जो कि कोई दूसरा नहीं कर पाता था । वह मेरे हवाले काम करके निश्चिन्त हो जाता था और उसे पता होता था कि काम ठीक से पूरा हो जायेगा । उसे इस बात का बेसब्री से इंतजार था कि मैं जेल से कब बाहर आता हूँ । करने वाले कई काम मेरे जेल में चले जाने की वजह से अधूरे पड़े थे । परन्तु मेरे जेल से बाहर आते ही उसे इस बात का शक हो गया कि मैं पुलिस से मिल गया हूँ । वह मुझे खत्म कर देना चाहता था कि मैं उसके बारे में कुछ भी किसी को न बता सकूँ । वह मुझे इज्जत की मौत देना चाहता था, तभी उसने मेरे को शहीद बनाने का विचार किया । वरना वह सीधे-सीधे मुझे आसानी से मार सकता था ।”

“बड़ा खान को यकीन था कि तुम गद्दार हो या... ।”

“उसे इस बात का शक रहा । यकीन होता तो वह मुझे कब का मार देता ।”

“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव कौन है ?” जगमोहन ने पूछा ।

“मैं उसे पुलिस वाले के तौर पर जानता था जो दिल्ली से आया है मेरे लिए । बाद में पता चला कि वह पुलिस वाला नहीं है ।”

“सुना तो यही है कि वह पुलिस वाला नहीं है । उसने तुम्हें बाहर क्यों निकाला ?”

“ये उसकी मर्जी ।” जब्बार ने गंभीर स्वर में कहा, “लेकिन वह जो भी है शातिर इंसान है । उसने ये सब इसलिए किया कि बड़ा खान मुझे शक भरी नजरों से देखे और ऐसा ही हो गया ।”

“वह है कौन ?”

“मैं नहीं जानता । मैं उसकी चाल में फँसकर बदनाम हो गया ।”

“रशीद और मस्तान के हुलिये क्या हैं ?”

“दोनों 40-45 की उम्र के हैं । मस्तान सामान्य कद-काठी का है । और रशीद थोड़ा मोटा । दोनों खतरनाक हैं । काम की बातें करते हैं । फालतू नहीं बोलते । रौब से रहते हैं । रौब से काम लेते हैं । अक्सर दोनों साथ ही आते-जाते हैं । कम ही ऐसा होता है कि कोई अकेला दिखे ।”

“पक्की जोड़ी है !”

“ऐसा ही समझ लो ।”

जगमोहन के चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे । जब्बार गंभीर था ।

“मैं बड़ा खान के बारे में सब कुछ जानने को उत्सुक हूँ ।” जगमोहन कह उठा ।

“उसके बारे में तो रशीद या मस्तान ही सब कुछ बता सकते हैं ।”

“कभी कुछ सुना हो बड़ा खान के बारे में ?”

“वह श्रीनगर रहता है । यही सुना है ।”

“और रशीद व मस्तान ?”

“ये भी कश्मीर में ही हैं । जम्मू में तीन-चार ठिकाने हैं बड़ा खान के ।”

“तुम्हारा मतलब कि हमें कश्मीर जाना होगा ।”

“हाँ ! क्या वहाँ पर तुम्हारे लोग हैं ?”

“बहुत !” जगमोहन ने शांत स्वर में कहा, “हमारे लोग हर जगह हैं । तुम जम्मू के उन ठिकानों के बारे में बताओ जो बड़ा खान के हैं ।”

जब्बार ने तीन-चार जगहों के बारे में बताया । जगमोहन ने पास खड़े कलाम से कहा-

“तुमने इन जगहों के बारे में सुना है ?”

“जी जनाब !”

“अपने आदमी इन चारों ठिकानों पर लगा दो जब जरूरत पड़ेगी हम ठिकानों को तबाह कर देंगे ।”

कलाम ने सिर हिला दिया ।

“छः महीने पहले पुलिस ने मुझे पकड़ा था । तब मैं कश्मीर से ही जम्मू काम के लिए आया था ।” जब्बार बोला ।

“कलाम !” जगमोहन बोला, “हमें कश्मीर जाना होगा । बड़ा खान की जड़ें वहीं पर हैं ।”

“जब भी आप जाना चाहें ?”

“शाम को कश्मीर के लिए चलेंगे ।” जगमोहन उठता हुआ बोला, “तुम शाम तक आराम कर लो जब्बार ।”

“ठीक है ! अगर बड़ा खान को पता चल गया कि हम उस तक पहुँचने के चक्कर में हैं तो वह और भी खतरनाक होकर हम पर हमला करेगा ।”

“हम पर यकीन रखो जब्बार । हमारे यहाँ बातें बाहर नहीं निकलती ।” जगमोहन बोला ।

“कमजोरी हर संगठन में होती है ।”

“हमारे संगठन में ऐसा कुछ नहीं है । धीरे-धीरे तुम्हें ये बात समझ में आ जायेगी ।”

जब्बार को उसी कमरे में छोड़कर जगमोहन और कलाम बाहर निकले ।

“कश्मीर में राठी का कोई ठिकाना नहीं है क्या ?” जगमोहन ने पूछा ।

“दो-तीन जगहें हैं । आदमी भी इकट्ठे हो जायेंगे ।” कलाम बोला ।

“उन आदमियों को ये पता न चले कि हम किस फेर में हैं । जो लोग यहाँ हमारे साथ हैं, वह ही वहाँ साथ रहेंगे ।”

“ऐसा ही होगा ।”

“राठी को बता दो कि हमारा क्या प्रोग्राम है और कश्मीर में जिस जगह पर हमें जाना है । वहाँ पंद्रह-बीस आदमी पहले से ही हों ।”

“राठी साहब से कह देता हूँ ।”

“हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं रशीद और मस्तान । वह हमें बड़ा खान के बारे में बता सकते हैं ।”

“मुझे भी ऐसा ही लगता है कि वह जानते होंगे बड़ा खान को ।”

“ये हमारे हाथ में बढ़िया मौका है बड़ा खान तक पहुँचने का । मैं ये मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहता । जम्मू में बड़ा खान के चारों ठिकानों पर गुप्त तौर पर आदमी लगा दो कि वह वहाँ की सारी खबर हम तक पहुँचाते रहें ।”

“जी ! लेकिन बड़ा खान भी तो अपने ठिकानों का दौरा करता होगा ।”

“जरूर ! ये मैं पहले ही सोच चुका हूँ । परन्तु बड़ा खान को चेहरे से कोई जानता नहीं । वह किसी काम के बहाने से आता होगा और नजर मारकर वापस चला जाता होगा । वह हर तरफ पैनी नजर रखने वाला इंसान है ।”

“ये बात हमारे लिए खतरनाक भी हो सकती है ।”

“कैसे ?”

“हम बड़ा खान को पहचानते नहीं और बड़ा खान कभी भी हमारे बीच आकर खड़ा हो सकता है ।”

“इतना खतरा तो हमें उठाना ही होगा ।” जगमोहन ने सोच भरे स्वर में कहा ।

“जब्बार पर आपको पूरा भरोसा है कि वह सब सच बता रहा है ।”

“भरोसा है और इसके अलावा हम कुछ भी नहीं कर सकते । ये तो आने वाला वक्त बताएगा कि वह हमें कितना सच बता रहा है ।”

“उसके पास मोबाइल है । अगर वह हमारे खिलाफ कोई चाल चलना चाहे तो आसानी से चल सकता है । बड़ा खान से संपर्क बना सकता है ।” कलाम बोला ।

“हम उससे मोबाइल ले भी नहीं सकते । ऐसा किया तो वह उखड़ जायेगा । क्या पता वह सच में हमारा साथ दे रहा हो ।”

कलाम वहाँ से चला गया । जगमोहन ने मोबाइल निकाला और देवराज चौहान से बात की ।

देवराज चौहान को सब कुछ बताकर कहा कि वह जब्बार के साथ श्रीनगर जा रहा है ।

तो देवराज चौहान ने कहा कि वह उन्हें श्रीनगर में ही मिलेगा ।

☐☐☐

उसी दिन श्रीनगर में ।

दोपहर के तीन बज रहे थे । सर्दी थी, परन्तु धूप खिली हुई थी जो कि हल्की थी ।

सड़क किनारे से ही ऊँची दीवार के साथ सीढ़ियाँ ऊपर जा रही थी । वाहन से लोग नीचे भी आ रहे थे और ऊपर भी जा रहे थे । ऊपर जहाँ सीढ़ियाँ समाप्त होती थी, वहाँ सामने का नजारा स्पष्ट दिखाई दे रहा था । वह गरीबों की कॉलोनी थी और अधिकतर वहाँ पक्की जैसी झोंपड़ियाँ बनी दिख रही थीं । जैसे बनाने वाले को जहाँ भी जगह ठीक लगी, वहीं झोंपड़ी बना ली । यही वजह थी कि झोंपड़ियाँ इधर-उधर बिखरी लग रही थी । उन्हीं में से एक झोंपड़ी थी जो कि कुछ हटकर थी, उसके भीतर का नजारा ही और था ।

एक आदमी के हाथ बांधकर उसे झोंपड़ी में बैठा रखा था । उसकी उम्र चालीस के करीब थी । चेहरे पर दाढ़ी थी । उसने गर्म कमीज-पायजामे के ऊपर गर्म जैकिट डाल रखी थी । वह घबराया सा लग रहा था । उसके साथ झोंपड़ी में दो लोग और थे । । जिनमें से एक रिवॉल्वर थामे कुर्सी पर बैठा था । दूसरा चारपाई पर टाँगे लटकाये बैठा था । दोनों ही खतरनाक लग रहे थे ।

“मुझे जाने दो ।” बंधा हुआ कह उठा, “मैं तुम लोगों को पैसा दूँगा ।”

“तू पैसा देगा हमें ?”

“हाँ ! पाँच-पाँच लाख तुम लोगों को दूँगा । अभी चलो मेरे साथ ।” वह जल्दी से बोला ।

रिवॉल्वर वाले ने मुस्कुराकर अपने साथी से कहा ।

“सुना तुमने । ये हम दोनों को पाँच-पाँच लाख देगा ।”

“गफ्फार ।” चारपाई पर बैठा व्यक्ति व्यंग्य से कह उठा , “अपनी जान की कीमत तुमने बहुत कम लगाई है ।”

“मैं… मैं तुम दोनों को दस-दस लाख दूँगा । मुझे यहाँ से निकल जाने दो ।”

“ये भी कम है ।”

गफ्फार नाम का बंधा व्यक्ति और भी परेशान हो उठा ।

“आखिर तुम लोग कितनी रकम चाहते हो ?” वह बोला ।

“पैसा है तुम्हारे पास ?”

“बहुत !”

“तो बड़ा खान को पैसा क्यों नहीं दिया ।”

“तुम इन बातों में क्यों पड़ते हो । अपनी जेब भरने के बारे में सोचो ।” गफ्फार बेचैनी से बोला ।

“तू हमें गद्दारी सिखा रहा है ।”

“मैं तुम दोनों को तुम्हारे फायदे की बात बता रहा हूँ । ठीक है मैं 15-15 लाख दोनों को दूँगा ।”

रशीद और मस्तान कभी भी यहाँ पहुँच सकते हैं ।” रिवॉल्वर वाला बोला ।

“तभी तो कह रहा हूँ कि जल्दी से मुझे खोल दो और मेरे साथ चलकर पैसा ले लो ।”

“बहुत प्यारी है तुझे अपनी जान ।” चारपाई पर बैठा आदमी कड़वे स्वर में कह उठा ।

“जान किसे प्यारी नहीं होती । इन बातों को छोड़ो और मुझे खोल दो । मैं... ।”

“जान से इतना प्यार था तो बड़ा खान का पैसा क्यों दबा लिया । तूने क्या सोचा कि बड़ा खान तुझे छोड़ देगा या फिर तू कभी बड़ा खान की पकड़ में नहीं आएगा । तूने भी श्रीनगर में रहना है । हम भी यहीं के हैं । फिर तूने कैसे सोचा कि पैसा दबा लेगा बड़ा खान का । तब तुझे मौत का डर नहीं लगा जब पैसे दबाने की सोची ।”

“अब इन बातों का वक्त नहीं रहा । मुझे खोलो और... ।”

“हम गद्दार नहीं हैं । वफादार हैं बड़ा खान के ।”

“तुम भी कश्मीरी । मैं भी कश्मीरी । हम लोग भाई हैं । बड़ा खान तो पाकिस्तानी है वह... ।”

“हम अपने काम के प्रति ईमानदार हैं गफ्फार ।” चारपाई पर बैठे व्यक्ति ने कड़वे-तीखे स्वर में कहा, “हमें गद्दारी सिखाने की चेष्टा मत कर । तूने जो किया है, उसकी सजा तेरे को जरूर मिलेगी ।”

गफ्फार का चेहरा सफेद पड़ गया ।

तभी बाहर कदमों की आहटें गूंजी ।

“मस्तान और रशीद आ गए शायद ।”

कुर्सी और चारपाई छोड़कर वे दोनों उठ बैठे ।

तभी झोपड़ी का पर्दा उठाकर तीन लोगों ने प्रवेश किया । उनमें से दो मस्तान और रशीद थे ।

मस्तान चोंचदार नाक वाला पतला, फुर्तीला इंसान था । रशीद थोड़ा सा मोटा था परन्तु चेहरे से ही वह खतरनाक दिखता था । उसकी नाक मोटी थी और सिर पर गर्म टोपी रखी हुई थी जबकि मस्तान ने साफा बांध रखा था ।

उन्हें देखकर गफ्फार की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई । परन्तु तीसरे आदमी को देखकर उसके चेहरे पर राहत के भाव आ गए । वह उसका भाई मोती खान था ।

“मोती !” गफ्फार बोला, “मुझे बचा लो । ये सब नहीं होना चाहिए ।”

मोती खान ने गंभीर नजरों से रशीद और मस्तान को देखा ।

“कहाँ से पकड़ा इसे ?” रशीद की खतरनाक निगाह गफ्फार के चेहरे पर टिक गई ।

“आजाद स्वीट्स के यहाँ पूड़ी आलू खा रहा था कि हम वहाँ पहुँच गए । हमें देखकर भागने लगा । पर हमने पकड़ लिया ।”

“मुझे छोड़ दो । मैं तुम्हारे सारे पैसे दे दूँगा ।” गफ्फार कह उठा ।

मस्तान ने जेब से रिवॉल्वर निकाली और दूसरी जेब से साइलेंसर निकालकर नाल पर चढ़ाने लगा ।

“मुझे मत मारो ।” गफ्फार काँप उठा ।

“इसे माफ कर दो ।” मोती खान बेचैन स्वर में कह उठा, “ये तुम्हारा पैसा दे देगा ।”

“हाँ-हाँ मोती ठीक कहता है । मैं सारा पैसा देने को तैयार हूँ ।”

रशीद कुर्सी पर बैठता कह उठा- “तू हमारे धंधे में दलाल का काम करता है गफ्फार ।”

“ह… हाँ !”

“दलाल अपनी जुबान का पक्का होता है । दलाल की जुबान पर ही दोनों पार्टियों के बीच बड़े-बड़े सौदे तय हो जाते हैं । तूने दो महीने पहले हमें कहा कि बरकत की तरफ से पहलगाम में, विदेशी लोगों पर हमला करना है । उस हमले में कम से कम चार विदेशी जरूर मरने चाहिए और इस काम के साठ लाख रुपये, सप्ताह बाद देगा । ये ही बात थी न ?”

“ह... हाँ , मैं... ।”

“हमने वैसा ही काम किया जैसा कि बरकत चाहता था, जैसा कि तूने हमें कहा । किया कि नहीं ?”

“किया ।” गफ्फार ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

“अब तेरे को चाहिए था कि तू सप्ताह बाद हमें साठ लाख दे देता । आठवें दिन फोन करने पर तूने कहा कि अभी बरकत कहता है पाँच दिन और लगेंगे । इसी तरह तूने महीना निकाल दिया । आखिरकार हमने बरकत को फोन किया तो उसने बताया कि उसने तो हाथों हाथ गफ्फार को साठ लाख दे दिए थे । हमें समझते देर न लगी कि तेरे मन में बेईमानी आ गई है । तू हमारा साठ लाख हड़प लेना चाहता है । इधर बरकत ने तुझे फोन करके साठ लाख के लिए पूछा कि तूने वह पैसा बड़ा खान के हवाले क्यों नहीं किया तो तू समझ गया कि बात खुल गई है । उसके बाद हमारे आदमियों ने तुझे ढूँढा तो तू कहीं छिप गया । और महीने बाद अब तू हमारी पकड़ में आया ।”

“मुझसे भूल हो गई ।” गफ्फार डरे स्वर में कह उठा, “सारा पैसा मैंने संभाल के रखा है, मैं तुम्हें दे दूँगा ।”

“दलाल इस तरह की गद्दारी नहीं करते गफ्फार ।” रशीद के दाँत भिंचे हुए थे ।

“मुझे माफ कर दो । मोती मुझे बचा ले । मैं... ।”

“मोती !” रशीद कठोर स्वर में बोला, “जानता है कि तुझे हमने क्यों बुलाकर साथ लिया ?”

“नहीं जानता ।”

“ताकि तू अपने भाई की लाश को यहाँ से ले जा सके ।”

उसी पल मस्तान ने रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा किया और ट्रेगर दबा दिया ।

गोली मध्यम सी आवाज के साथ गफ्फार के सिर पर जा लगी । मोती खान ने आँखें बन्द कर लीं ।

गफ्फार तड़पा और धीरे-धीरे शांत पड़ता चला गया । मोती खान ने आँखें खोली । उसके चेहरे पर गफ्फार की मौत का दुःख नजर आ रहा था ।

“साठ लाख तुम्हें मिल जाएँ तो वह हमारे हवाले कर देना मोती ।” रशीद कहने के साथ ही उठ खड़ा हुआ ।

“हाँ !” रुपया मिला तो जरूर दूँगा ।” मोती खान ने रशीद को देखा, “तुम इसे चेतावनी देकर छोड़ सकते थे ।”

मस्तान ने नाल पर लगा साइलेंसर घुमा-घुमाकर उतारना शुरू कर दिया था ।

“दलालों की नियत बेईमान नहीं होनी चाहिए । वरना हमारा धंधा भी बेईमान हो जायेगा । इसे पैसे की जरूरत थी तो हमसे कहता, शायद हम ही इसे दे देते । परन्तु दलाल को हेराफेरी नहीं करनी चाहिए ।”

मोती खान ने फिर कुछ नहीं कहा ।

“चलो !” रशीद बोला और झोंपड़ी से बाहर निकल गया ।

मस्तान ने रिवॉल्वर और साइलेंसर जेब में रखे और बाहर आ गया । वे दोनों आदमी भी बाहर निकले और रशीद-मस्तान से विदा लेकर चले गए ।

रशीद-मस्तान सीढ़ियों वाले रास्ते पर पहुँचे और सीढ़ियाँ उतरकर सड़क पर पहुँचे जहाँ एक कार खड़ी थी । स्टेयरिंग पर एक आदमी बैठा था । उन्हें आता देखकर उसने कार स्टार्ट कर दी ।

मस्तान-रशीद भीतर बैठे तो कार आगे बढ़ गई ।

“सर्किट हॉउस चलो ।” रशीद ने कहा । ड्राइवर ने सिर हिला दिया । 

इसी पल मस्तान का फोन बजा ।

“हैलो !” मस्तान ने मोबाइल निकालकर बात की ।

“मस्तान मैं गाजी बोल रहा हूँ ।”

“तेरे ही काम पे जा रहे हैं ।” मस्तान कह उठा ।

“चार बज रहे हैं । छः बजे जलसा है । काम वक्त पर हो जायेगा कि नहीं ?”

“तूने चालीस लाख दिए काम के ?”

“हाँ ! कल ही दे दिए थे । तुझे ही तो दिए थे ।”

“फिर काम वक्त पर क्यों नहीं होगा । !” मस्तान मुस्कुरा पड़ा ।

“ओह ! मैंने सोचा कि एक बार तेरे को याद दिला दूँ कि... ।”

“काम की कीमत हमें मिल जाये तो फिर हमें याद दिलाने की जरूरत नहीं होती ।”

“समझ गया । समझ गया ।”

मस्तान ने फोन बन्द कर दिया ।

कार दौड़ी जा रही थी । रशीद कार से बाहर देख रहा था ।

“मोती खान हमें साठ लाख दे देगा ?” मस्तान ने पूछा ।

“गफ्फार का हाल देख लिया है उसने । वह जरूर देगा । गफ्फार ने कहा था कि पैसा उसने रखा हुआ है । मोती उस पैसे को ढूँढ लेगा ।”

“गफ्फार की मौत से दूसरे दलाल सबक लेंगे कि उन्हें बेईमानी नहीं करनी है ।” मस्तान बोला ।

“कभी-कभी कोई बेईमानी कर जाता है । पैसा चीज ही ऐसी है ।” रशीद मुस्कुरा पड़ा ।

“लेकिन हमारे साथ कोई बेईमानी न करे । हम ये ही चाहते हैं । अपना दबदबा हमें बनाये रखना है ।”

“हाँआ जब तक हमारा दबदबा कायम है, तभी तक हम हैं, हमारी हुकूमत है । हम जब भी यहाँ धमाका करते हैं, उसके बाद जितने लोग मरते हैं पाकिस्तान वाले उतने ही लाख रुपया हमारे बैंक खाते में डाल देते हैं । यानी कि एक काम की कीमत हमें दो तरफ से मिलती है । यहाँ से भी और पाकिस्तान से भी । बड़ा खान के हाथ बहुत लम्बे हैं । देश के हर कोने में अपने आदमी फैला रखे हैं । उन्हें भी तो पैसा भेजना होता है । जितना आता है, उतना चला जाता है । बचता भी बहुत है । सब कुछ बढ़िया चल रहा है ।” मस्तान हँस पड़ा, “हिन्दुस्तान में हमने दहशत फैला रखी है । सरकार डरती रहती है कि अब जाने कहाँ विस्फोट हो जाये । जाने कितने लोग मरेंगे । जब ऐसा होता है तो हो-हल्ला मचता है फिर सब कुछ शांत पड़ जाता है ।”

“हिन्दुस्तान के सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार का फायदा हमारे साथियों को मिलता है । हमारे आदमियों को जब अपनी पहचान के लिए राशनकार्ड, वोटरकार्ड यहाँ तक आयकर कार्ड भी बनवाना होता है तो पैसे देकर बन जाता है । इन चीजों का उन्हें बहुत फायदा मिलता है । वह आसानी से आम भारतीयों में शामिल हो जाते हैं । उन पर कोई शक नहीं कर पाता । पाकिस्तान से आये लोगों ने हिन्दुस्तान में कितनी जगह अपने ठिकाने बना रखे हैं । कइयों ने तो स्थानीय युवतियों से निकाह भी कर लिया है । ऐसे में उन पर शक कौन करेगा ।”

कार दौड़े जा रही थी ।

“गाजी को उस नेता से समस्या है । क्या नाम है उसका ? हाँ जमाल से ।”

“क्योंकि जमाल पाकिस्तान की शह पर चलने वाले संगठनों के बारे में बहुत बोलता है । पंद्रह दिन पहले उसने कुपवाड़ा में जो जलसा किया था उसमें वह बड़ा खान के बारे में बहुत बोला था । मैंने तो तब बड़ा खान से कहा कि उसे खत्म कर देते हैं । परन्तु बड़ा खान ने ये कहकर मना कर दिया कि हम किसी को मुफ्त में क्यों मारें । कोई न कोई जल्दी ही बड़ा खान को मार देना चाहेगा और बड़ा खान की ये बात सही साबित हुई । दूसरे ही दिन गाजी का फोन आ गया कि जमाल को खत्म करना है, वह बोलता बहुत है ।”

“हम सिर्फ पैसे लेकर काम करते हैं । हमारी व्यक्तिगत दुश्मनी किसी से नहीं है ।” रशीद मुस्कुराकर बोला, “पाकिस्तान ने हमें भेजा है आतंकवाद फैलाने को और वह हम फैला रहे हैं । हर धमाके के साथ हिन्दुस्तान कमजोर होता जा रहा है ।”

“कमजोर ही तो करना है हिन्दुस्तान को । दोनों देश एक साथ ही अलग हुए थे । पाकिस्तान वहीं का वहीं है और हिन्दुस्तान तरक्की कर गया है । हमें हिन्दुस्तान की तरक्की हर हाल में रोकनी है ।”

“हम इसी तरह काम करते रहें तो एक दिन हिन्दुस्तान कमजोर होकर ही रहेगा ।”

कुछ ही देर में कार एक मंजिला इमारत के भीतर जाकर रुक गई । इस इमारत को सर्किट हॉउस का नाम दे रखा था । यहाँ बड़ा खान के ही काम होते थे । दोनों कार से उतरकर भीतर प्रवेश कर गए । वहाँ आदमी अपने काम में व्यस्त आ जा रहे थे । वे इन दोनों को सलाम करने लगे । जवाब में सिर हिलाते दोनों ऊपरी मंजिल के एक कमरे में जा पहुँचे ।

वहाँ तीन आदमी मौजूद थे । बड़ी सी टेबिल पर एक जैकिट फैलाकर रखी हुई थी । जिसके भीतर जगह-जगह पर बारूद लगा चमक रहा था । वह काफी ज्यादा मात्रा में बारूद था जिसे जैकिट के भीतर फिट किया गया था । लाल-पीली तारें वहाँ नजर आ रही थीं ।

उन तीनों में से एक व्यक्ति की टाँग नहीं थी । वहाँ नकली टाँग लगी हुई थी ।

वह पैंतीस बरस का पतला सा था । बमों का विशेषज्ञ माना जाता था वह । बाकी दो उसके सहायक थे । रशीद और मस्तान को आया पाकर नकली टाँग वाला मुस्कुराया ।

“मुझे मालूम था कि तुम दोनों आने वाले हो ।”

“कैसे हो नकवी ?” रशीद मुस्कुराकर कह उठा ।

“ऊपर वाले की मेहरबानी है । पाकिस्तान जाने का मन हो रहा है । पूरा एक साल हो गया है वहाँ से आये ।”

“तुम चले गए तो हमारा काम कौन करेगा ?” मस्तान हँस पड़ा ।

“किसी के जाने से काम नहीं रुकते हैं मस्तान भाई । फिर मैंने तो महीने भर के लिए जाना है । निकाह है भाई का ।”

“कब ?”

“अगले महीने ।”

“चले जाना । बड़ा खान से कह दूँगा मैं ।”

“शुक्रिया ! तुम्हारा दिल बहुत नर्म है । तुम अपने साथियों की मजबूरी समझते हो ।” नकवी मुस्कुराया ।

“लड़के की जैकिट तैयार हो गई ?”

“उसी में लगा हूँ । बस, दस मिनट और दे दो मुझे ।”

“बारूद ज्यादा से ज्यादा लगाना जैकिट में ।” रशीद बोला ।

“ज्यादा ही लगाया है । जब फटेगा तो पंद्रह फुट के घेरे में तबाही मच जायेगी ।”

“लड़का कौन सा चुना ?”

“जैकिट के साइज के हिसाब से लड़का चुना है । 15 बरस का है । जैकिट उसे पूरी आती है ।” नकवी ने कहा ।

नकवी अपने दोनों सहायकों के साथ पुनः जैकिट में व्यस्त हो गया ।

मस्तान और रशीद एक तरफ कुर्सियों पर जा बैठे ।

“जमाल के मरने से खुशी होगी मुझे ।” मस्तान ने कहा, “साला बड़ा खान के खिलाफ बोलता था ।”

रशीद हँस पड़ा ।

तभी मस्तान का फोन बजा । दूसरी तरफ बड़ा खान था । मस्तान ने बात की ।

“सलाम हुजूर !”

“कैसे हो मस्तान ?” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“आपके हाथ के नीचे बढ़िया कट रही है । लाल चौक के पास जमाल आज मंच पर भाषण देने जा रहा है । परन्तु ये उसका अंतिम भाषण होगा । यहाँ तैयारी हो रही है ।” मस्तान ने कहा ।

“मैंने तुम्हें पहले ही कह दिया था कि जमाल जैसे इंसान ज्यादा देर जिन्दा नहीं रहते । गाजी को उस पर गुस्सा आ ही गया ।”

“आज वह मर जायेगा ।”

“मेरठ में हमारे साथी हमारे हुक्म के इंतजार में बैठे हैं ।”

“मेरठ के लिए अभी हमारे पास कोई काम नहीं है । मैं उन्हें समझा दूँगा । जब्बार के बारे में पूछना चाहता हूँ ।”

“क्या ?”

“उसकी कोई खबर मिली कि वह... ।”

“आजादी-ए-कश्मीर नाम का संगठन उसे ले गया । उसके बाद उसकी कोई खबर नहीं आई ।”

“आजादी-ए-कश्मीर नाम का कोई संगठन नहीं है । कभी ये नाम नहीं सुना जनाब ।”

“शायद कोई नया संगठन हो ।” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“ये सम्भव हो सकता है । मेरे ख्याल में जब्बार को वक्त रहते ही खत्म कर देते तो बेहतर रहता । वह हमारे बीच में कई बातें जानता है । मुँह खोला तो हम पर भी मुसीबत आ सकती है ।”

“अगर वह किसी संगठन के सामने मुँह खोलता है तो उसकी हमें परवाह नहीं । परन्तु ये तो पक्का है कि जम्मू पुलिस के सामने उसने मुँह नहीं खोला है । खोला होता तो हमारे ठिकानों पर पुलिस की कार्यवाही हो गई होती ।”

“उस नकली पुलिस वाले ने उसे जेल से बाहर निकाला क्यों ? वह है कौन ?”

“नहीं पता । हम खुद भी इन बातों से अंजान हैं ।”

“वह नकली पुलिस वाला अभी तक पकड़ा भी नहीं गया ।”

“हमारे आदमी जम्मू में उसे ढूंढ रहे हैं । वह पकड़ा जायेगा । तुम जमाल का काम खत्म करो और मुम्बई में अपने लोगों से रात में बात करना । वहाँ पर उन्होंने बम विस्फोट की पूरी तैयारी कर ली है । हमारे इशारे की देर है उन्हें ।”

“मुम्बई में अभी काम नहीं करना है जनाब ।”

“क्यों ?”

“पाजा खान से चार करोड़ में सौदा हुआ था मुम्बई ब्लास्ट करने का और अभी उसने ढाई करोड़ ही दिया है । बाकी का डेढ़ करोड़ उसने बीत गए परसो तक देना था । दो दिन ऊपर हो गए परन्तु उसकी कोई खबर नहीं आई ।”

“जैसा तुम ठीक समझो, वैसा ही करो । मुम्बई में हमारे आदमी तैयार हैं । जब कहोगे, वह काम कर देंगे । दिल्ली में मुस्तफा को हथियारों की जरूरत है । उससे भी बात कर लेना ।”

“दिल्ली में हमारा हथियार-बारूदों का जखीरा पड़ा है । उसे जो चाहिए मैं दे दूँगा जनाब ।”

“ठीक है ! दिल्ली मुस्तफा को फोन करके बता देना कि उसे कहाँ से हथियार मिलेंगे ।”

इसके साथ ही बातचीत बन्द हो गई । मस्तान ने मोबाइल जेब में रखकर नकवी और उसके सहायकों को देखा । वे तीनों जैकिट पर झुके अपना काम पूरा कर रहे थे । रशीद मस्तान से कह उठा ।

“जब्बार को ढूंढकर हमें ही मारना पड़ेगा ।”

“वह ज्यादा देर गुम नहीं रह सकता । वह चुप बैठने वालों में से भी नहीं है ।”

“हाँ ! परन्तु उस नकली पुलिस वाले से उसकी कोई बात तय हुई ही है तभी उसने जब्बार को जेल से बाहर निकाला ।”

“उसकी असलियत जाने क्या है ।”

“पता चल जायेगा । जब्बार एक बार हमारे हाथ आ जाये तो सब बताएगा ।”

तभी नकवी की आवाज उनके कानों में पड़ी ।

“मेरा काम पूरा हो गया ।”

☐☐☐

वह पंद्रह बरस का युवक था ।

मस्तान और रशीद जब उस कमरे में पहुँचे तो वह खाना खा रहा था । एक आदमी उसे खाना खिलाने में व्यस्त था । उन दोनों को देखकर फौरन खड़ा हुआ और सलाम किया ।

“बैठो ! खाना खाते रहो ।” मस्तान ने मुस्कान के साथ कहा ।

वह बैठ गया और खाने लगा ।

“नाम क्या है तुम्हारा ?” रशीद ने पूछा ।

“वसीम ।”

“तुम जानते हो कि आज तुम्हारा शहीद दिन है ।” रशीद का स्वर मीठा था ।

“हाँ ! जनाब नकवी साहब ने बताया मुझे ।”

“तुम बहुत किस्मत वाले हो जो तुम्हें शहीद होने का सुनहरा मौका मिल रहा है । बहुत कम नसीब वाले होते हैं जो शहीद होते हैं । मौत तो सबको आती है, परन्तु शहीद की मौत मरना गर्व की बात है ।”

वह युवक खाना खाता रहा ।

“तुम्हें घबराहट तो नहीं हो रही ?”

“नहीं ! बस इतना है मन में कि आज मैं मर जाऊँगा ।” वसीम कह उठा ।

“मन में डर मत रखो मौत का । फिर तुम ये मत भूलो कि तुम शहीद होकर हमारे कई दुश्मनों को मार दोगे । तुम्हारा नाम कश्मीर में, पाकिस्तान में जिन्दा रहेगा । तुम मरकर भी हमारे दिलों में राज करोगे । ऊपर वाला तुम्हें जन्नत में बैठायेगा ।”

“ऐसा होता है ?”

“हाँ ! ऐसा ही होता है । शहीदों को तो ऊपर वाला भी खास इज्जत देता है । अपने पहलू में बैठाता है । वह दोबारा फिर तुम्हें पाकिस्तान में ही पैदा करेगा कि बड़े होकर तुम फिर हिन्दुस्तान पहुँचो और दुश्मनों की जान ले सको ।”

“अगले जन्म में मैं तुम जैसा बनूँगा ।” वसीम खाते-खाते कह उठा, “तब मुझे मरना नहीं पड़ेगा ।”

“हाँ ! अगली बार तुम हम जैसा ही बनना । तुम्हारे अब्बा ने तुम्हें दो लाख रुपये के बदले हमारे हवाले किया था कि हम तुम्हें शहीद बना दें । इस बारे में तुम्हारे अब्बा ने तुम्हें कुछ नहीं बताया ?”

“बताया था । कहा था कि मैं सबका कहना मानूँ और ये लोग जैसा कहें वैसा ही करना । तभी तो मैंने शहीद बनने से इंकार नहीं किया ।”

“शाबाश ! तुम बहुत समझदार हो । पाकिस्तान में क्या करते थे ?”

“मजदूरी करता था ।”

“लेकिन हमने तुमसे मजदूरी नहीं कराई । तुम्हें रोज खाना देते हैं । अच्छे-अच्छे कपड़े देते हैं । नर्म बिस्तर पर नींद लेते हो । क्योंकि वक्त आने पर हम तुम्हें शहीद बनाना चाहते थे और आज वह मुबारक दिन आ गया वसीम बेटे ।”

वसीम खाना खाकर उठ खड़ा हुआ । हाथ-मुँह साफ करके कमरे में पुनः आ पहुँचा ।

तभी नकवी ने जैकिट उठाये भीतर प्रवेश किया । उसने सावधानी से जैकिट उठा रखी थी । नकली टाँग होने की वजह से वह लंगड़ाकर चल रहा था ।

“लो ।” मस्तान वसीम से कह उठा, “तुम्हारी जैकिट भी आ गई ।”

“आओ वसीम !” नकवी मुस्कुराकर बोला, “मेरे पास आओ और जैकिट पहनो ।”

वसीम नकवी के पास पहुँचा ।

नकवी ने सावधानी से उसे जैकिट पहनाई और आगे की जिप बन्द की । वसीम जैकिट को पहनकर सेहतमंद दिखने लगा था ।

जैकिट के पीछे की तरफ तारों में बंधा एक नन्हा सा स्विच लटक रहा था । नकवी ने सावधानी से उस स्विच को थामा और वसीम को दिखाता कह उठा ।

“ये देखो । ये स्विच है । जब तुम उस नेता के पास पहुँच जाओ तो इस स्विच को पूरी ताकत से दबा देना । बटन दबाने के मामले में ये स्विच कुछ सख्त होते हैं । इसलिए कि जरा सा दबाव पड़ते ही गलती से न दब जाये स्विच । तुम्हें ताकत लगाकर स्विच दबाना होगा और उसके बाद खेल खत्म ।” नकवी मुस्कुराकर कह उठा ।

वसीम ने गंभीरता से सिर हिलाया । नकवी बाहर निकल गया ।

वसीम ने वह स्विच जैकिट की जेब ने डाल लिया था । पीछे से थोड़ी सी तार निकली दिखाई दे रही थी, परन्तु उस पर फौरन किसी की निगाह नहीं पड़ सकती थी ।

रशीद और मस्तान के चेहरों पर मुस्कान फैली थी ।

“तुम अपने माँ-बाप से कुछ कहना चाहते हो तो हमें बता दो । हम कह देंगे ।” मस्तान बोला

“अब्बा से ये ही कहना कि मैंने तुम लोगों की सारी बातें मानी हैं ।” वसीम गंभीर स्वर में कह उठा ।

“कह देंगे । परन्तु क्या इतना ही कहना चाहते हो ?”

“हाँ ! क्योंकि अब्बा मेरे से परेशान रहते थे कि मैं उनकी बात नहीं मानता ।”

“ओह ! ये बात है तो कह देंगे ।”

“वक्त निकला जा रहा है । इसे यहाँ से भेज देना चाहिए ।” रशीद बोला ।

“तो तुम अब चलने को तैयार हो ?” मस्तान मुस्कुराया ।

“हाँ !”

“तुम यहाँ से अकेले ही जाओगे । परन्तु तुम्हारे आसपास हमारे आदमी होंगे । इसलिए कि अगर तुम पर रास्ते में कोई मुश्किल आये तो उसे वह संभाल सकें । लाल चौक के पास सभा होनी है आज । एक घण्टे में वहाँ सब नेता पहुँच जायेंगे । जमाल नेता की तस्वीर तो तुम्हें दिखा ही दी है । तुम उसे पहचान जाओगे । वह मंच पर बोलेगा । उसके बोलने के बीच ही तुम माला लेकर मंच पर चढ़ जाओगे । ऐसा दिखावा करोगे कि तुम उसे माला पहनाना चाहते हो । उसके पास पहुँचकर हाथ की उँगलियों की पूरी ताकत लगाकर उस स्विच के बटन को दबा देना, जो कि इस वक्त तुम्हारी जेब में है ।”

“मैं समझ गया ।”

“ऐसा ही करना । वक्त पर कहीं तुम घबरा तो नहीं जाओगे ?” मस्तान ने पूछा ।

“नहीं ! मैं अपना काम पूरा करके दिखाऊँगा ।”

“वाह ! तुममें तो बहुत हिम्मत है । आओ मेरे साथ । मैं तुम्हें उन लोगों के हवाले कर दूँ जो तुम्हें आगे का रास्ता बतायेंगे ।”

रशीद और मस्तान, वसीम के साथ कमरे से बाहर निकले और नीचे जाने वाली सीढ़ियों की तरफ बढ़ गए ।

वे नीचे पहुँचे तो वहाँ पाँच आदमी उन्हीं के इंतजार में खड़े मिले ।

“इसका नाम वसीम है ।” मस्तान ने एक से कहा, “इसे हिफाजत से नेताओं के सभा स्थल तक पहुँचा दो ।”

“जी जनाब !”

“तुम्हें सब कुछ याद है न कि वहाँ पर कैसे काम करना है ?” रशीद ने पूछा, “भूल तो नहीं जाओगे ?”

“मेरा दिमाग बहुत तेज है । मैं कुछ भी नहीं भूलता ।” वसीम ने मासूम स्वर में कहा ।

☐☐☐

लाल चौक के पास ही एक सड़क बन्द करके वहाँ टेबलों का मंच बना रखा था । जिस पर दरियाँ बिछी थीं । एक तरफ सीढ़ियों जैसा रास्ता था मंच के ऊपर जाने का । सामने कुर्सियाँ और दरियाँ लगी थीं । शाम के साढ़े पाँच से ऊपर का वक्त हो रहा था । सूर्य कब का छिप चुका था और अब अँधेरा हो रहा था । मंच के आसपास लगी रौशनी जलने लगी थी । मंच पर रखे माइक के सामने बारी-बारी से नेता और कार्यकर्ता आकर अपने विचार जाहिर कर रहे थे ।

फिर बारी आई जमाल की ।

जमाल जो कि पार्टी का मुख्य नेता था । काफी लोगों की भीड़ थी वहाँ और वे लोग जमाल को सुनने ही यहाँ आये थे । आसपास पुलिस भी मौजूद थी । गर्मा-गर्मी का जोश था ।

जमाल के कुर्सी से उठते ही लोगों ने तालियाँ बजानी शुरू कर दीं । जमाल दोनों हाथ ऊपर करके उन्हें हिलाते मंच पर जा पहुँचा और माइक पर बोला-

“मैंने कभी भी अपनी चिंता नहीं की । चिंता की तो सिर्फ कश्मीर की । ये हमारा स्वर्ग है । कभी वह भी वक्त था जब कश्मीर में चैन और अमन था । हर तरफ खुशियाँ थीं । पूरे हिन्दुस्तान से लोग कश्मीर घूमने आया करते थे । जिससे कि यहाँ के कश्मीरी भाइयों को भरपूर आमदनी होती थी । और वे अपनी जरूरतें पूरी करते थे । हमारी खुशहाली देखकर पाकिस्तान को बहुत तकलीफ होती थी कि हमारा कश्मीर खुश क्यों है और इसी कारण उसने आतंकवादियों की घुसपैठ करानी शुरू कर दी । जहाँ फूलों की खुशबू महकती थी, वहाँ लाशें गिराने लगे आतंकवादी । धीरे-धीरे वह हम लोगों में घुस गए और खुद को कश्मीरी कहने लगे ।

“पहले उन्होंने छोटे-छोटे दल बनाये फिर बड़े संगठन बना लिए । मकसद था कश्मीर के चैन को खत्म करना और हिन्दुस्तान को तंग करना और मुझे दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि वह आतंकी अपने मकसद में कामयाब भी रहे ।” जमाल की आवाज तेज हो गई, “हमारे कश्मीर का अमन-चैन छीन लिया पाकिस्तान से आये लोगों ने । आज वह खुद को कश्मीरी कहकर कश्मीर में जमे हुए हैं, जबकि वह कश्मीरी नहीं हैं । कश्मीर के दुश्मन हैं ।”

इस पर लोगों ने तालियाँ बजानी शुरू कर दी । जमाल ने माइक पर बोलना जारी रखा-

“ऐसे लोगों में एक है गाजी । गाजी जो कि खुद को कश्मीर का सिपाही बताता है । हकीकत में वह पाकिस्तान के मुल्तान शहर का रहने वाला है । उसकी बीवी और बच्चे वहाँ बसते हैं । दो बेटियों की तो शादी भी हो चुकी है और वह पाकिस्तान आता-जाता रहता है । मैं ये बात यूँ ही नहीं कह रहा । मेरे पास पाकिस्तान से दो दिनों में सबूत आ रहे हैं इस बात के और मैं उन्हें अपने अखबार में छपवा कर गाजी का चेहरा बेनकाब करूँगा कश्मीर के लोगों के सामने ।”

तालियाँ फिर बजने लगीं ।

ठीक इसी समय वसीम भीड़ में से आगे आया और हार थामे मंच की सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा ।

जमाल ने बोलना जारी रखा-

“इसी तरह मैं बड़ा खान का नाम लूँगा जो कि अपने हत्यारे संगठन का मालिक है । बड़ा खान कौन है, कोई नहीं जानता । सिर्फ उसके नाम का ही सिक्का चलता है । हकीकत में बड़ा खान पाकिस्तान की सरकार का भेजा आदमी है । वह कश्मीर में तबाही मचाने आया है और मचा भी रहा है । हिन्दुस्तान के कई हिस्सों में बड़ा खान ने आतंक पैदा कर रखा है । संगठन अपना खतरनाक रुतबा कायम रखने के लिए बड़ा खान को पैसे देकर आतंकी कार्यवाही कराते हैं और... ।”

तब तक वसीम, हार थामे जमाल के पास पहुँच चुका था ।

भाषण देते-देते जमाल ठिठका और बच्चे से हार डलवाने के लिए सिर थोड़ा नीचे किया । अगला पल जैसे कायनात से भरा था । वसीम ने हाथ में दबे स्विच के बटन को पूरी ताकत से दबा दिया था ।

☐☐☐

रात के दस बज रहे थे । तेज सर्दी और शरीर को हिला देने वाली सर्द हवाएँ चल रही थीं । रशीद और मस्तान इस वक्त अपने घर में मौजूद थे । बोतल खुली हुई थी और चेहरे खुशी से चमक रहे थे । एक गिलास समाप्त करने के बाद दूसरा गिलास तैयार कर रहे थे ।

अभी-अभी मस्तान बड़ा खान से बात करके हटा था । बड़ा खान ने शाम की सफलता के लिए उन्हें शाबाशी दी थी ।

मस्तान गिलास उठाता हँसकर कह उठा ।

“जमाल खत्म । उसके सारे साथी भी बम की चपेट में आकर मारे गए । अब जमाल का संगठन सिर नहीं उठाएगा कभी और जमाल जैसे दूसरे लोगों को भी अक्ल आएगी जो कश्मीर से पाकिस्तान को निकाल देना चाहते हैं ।”

“कश्मीर पाकिस्तान का है ।” नशे में झूमता रशीद कह उठा ।

“बिल्कुल पाकिस्तान का है । हिन्दुस्तान से हम कश्मीर छीन के रहेंगे ।” मस्तान ठठाकर हँस पड़ा ।

“बड़ा खान हिन्दुस्तान के लिए दहशत बन जायेगा । बहुत जल्द वह वक्त आएगा जब हिन्दुस्तान की सरकार हमसे रजामंदी के लिए बातचीत करेगी और तब हम कश्मीर को माँगेंगे । हिन्दुस्तान को हमारी बात माननी ही पड़ेगी ।”

“हम जिंदाबाद !” मस्तान शराब का गिलास हवा में ऊँचा करके कह उठा ।

“हम जिंदाबाद तो पाकिस्तान भी जिंदाबाद । बड़ा खान भी जिंदाबाद । कहर बरपा देंगे हिन्दुस्तान में ।”

एक तो शराब का नशा । ऊपर से शाम के विस्फोट में सफल हो जाने की खुशी । 

दोनों एक साथ ही इस मकान में रहते थे । बड़ा खान के अलावा कोई नहीं जानता था इस ठिकाने के बारे में । किसी को उनके ठिकाने के बारे में पता न चले, इस बारे में वे खास सावधानी बरतते थे ।

“मस्तान !” रशीद घूंट भरकर कह उठा, “मैंने आज पाकिस्तान घर पर फोन किया । मेरा बेटा 16 साल का हो गया है और उसने अभी से ही हाजी के संगठन में प्रवेश पा लिया है ।”

“तरक्की करेगा तेरा बेटा ।” मस्तान हँसा ।

“मेरे बेटे की बचपन से ही इच्छा है कि वह कश्मीर में आकर काम करे । अपने अब्बा के साथ काम करे ।”

“अभी से ऊँचे ख्याल हैं उसके ।”

“वह भी मेरी तरह ये ही चाहता है कि कश्मीर को हिन्दुस्तान से छीनकर पाकिस्तान में मिला दिया जाये ।” रशीद ने पुनः घूँट भरकर कहा “मैंने आज हाजी को फोन करके बोल दिया है कि वह जल्दी से जल्दी मेरे बेटे को तैयार कर दे ।”

“वह क्या बोला ?”

“उसने कहा कि दो साल लगेंगे । दो साल में उसे पूरा ट्रेंड कर देगा ।”

“दो साल अभी बीत जायेंगे ।” मस्तान बोला, “रशीद, मैं कोई बड़ा काम करना चाहता हूँ ।”

“बड़ा काम ?”

“हाँ ! जैसे कि हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री पर हमला । राष्ट्रपति पर हमला या फिर ऐसा ही कोई बड़ा काम ।”

रशीद के चेहरे पर गंभीरता नजर आने लगी ।

“किस सोच में पड़ गया तू ?”

“ऐसे काम के लिये लम्बी तैयारी चाहिए होगी । आसान नहीं होगा ये काम ।”

“दिल्ली में हमारे लड़के बैठे हैं । बैठे-बैठे खा रहे हैं । वह भला कब काम आयेंगे ?”

“बड़ा खान से इस बारे में बात करें ?”

“बड़ा खान तो ये ही कहेगा कि हम मुफ्त में कोई काम क्यों करें ।”

“मेरे ख्याल में हमें दिल्ली में तैयारी शुरू करवा देनी चाहिए इस काम की और बड़ा खान से कहते हैं कि हम इस काम के लिये संगठनों से बात करें । कोई न कोई संगठन इस काम को करवाने के लिये तैयार हो जायेगा ।”

“ये ठीक रहेगा ।”

“दिल्ली में चुनाव आने वाले हैं । प्रधानमंत्री के चुनावी भाषण के दौरे अवश्य होंगे ।”

“हाँ ! होंगे । तब हम मौके का फायदा उठा सकते हैं । तू जरा दिल्ली फोन लगा आसिफ को । उससे बात करते हैं । लड़कों को वह ही संभालता है । उसे इस बारे में तैयारी शुरू करने को कह देते हैं ।”

“ये काम बच्चों का खेल नहीं है जो उसे कह देते हैं ।”

“तो ?”

“इस बारे में बड़ा खान की सलाह लेना जरूरी है । वरना बड़ा खान हमें उल्टा लटका देगा ।”

“ठीक है !” मस्तान ने सिर हिलाया, “बड़ा खान से बात कर लेंगे ।”

“काफी वक्त हो गया बड़ा खान से मिले ।”

“दो-ढाई महीने हो गए ।”

“मैं बड़ा खान से बात करूँगा कि हमें मिलना चाहिए ।”

“वह मना कर देगा ।” मस्तान बोला, “बिना वजह मिलते रहना बड़ा खान को पसन्द नहीं ।”

“बड़ा खान की हिम्मत है जो उसने पूरे हिन्दुस्तान में दो सालों में ही अपना नेटवर्क फैला लिया । किस तेजी से काम किया है उसने । पुलिस का ऐसा कोई डिपार्टमेंट नहीं, ऐसा कोई शहर नहीं, जहाँ उसकी पहुँच न हो ।”

हम पाकिस्तान से ही जानते थे कि वह काबिल इंसान है । तभी तो उसके साथ काम करना गंवारा किया ।”

“हम भी काबिल हैं ।” रशीद ने हँसकर कहा, “तभी तो बड़ा खान ने हमें अपने साथ लिया ।”

“एक बात मुझे खटक रही है रशीद ।”

“वह क्या ?”

“हमने गफ्फार को मोती के सामने मारा । मोती खान को अपने भाई की मौत का दुःख तो होगा ।”

“जरूर होगा ।”

“दोनों भाई ही हमारे लिए दलाल का काम करते थे । मोती खान की इच्छा तो जरूर होगी अपने भाई की मौत का बदला लेने की ।”

“मोती खान ऐसा सोच भी नहीं सकता । वह अपनी जान नहीं गंवाना चाहेगा ।”

“मोती खान कम खतरनाक नहीं ।” मस्तान बोला ।

“लेकिन हमसे पंगा नहीं लेगा ।” रशीद गिलास खाली करके बोला, “आज सर्दी ज्यादा है । एक-एक पैग और हो जाये ।”

☐☐☐

अगले दिन दोपहर के बाद शाम चार बजे एक बड़ी सी वैन और धूल से अटी दो कारें एक बंगले में प्रवेश करके लम्बे पोर्च में जा रुकी । वैन और कार के दरवाजे खुलने लगे । उसमें से जगमोहन, कलाम, जब्बार और पंद्रह बाकी लोग बाहर निकले । सबके चेहरे थके हुए लग रहे थे । बारह घण्टे का पहाड़ी सफर तय करके वह यहाँ पहुँचे थे ।

बंगले के भीतर से भी पाँच-सात आदमी वहाँ पहुँचे जो कि सामान उतारने लगे ।

“ये मेरा कश्मीर है ।” जब्बार खुशी भरे अंदाज में कलाम को देखता कह उठा, “छः महीने बाद अपने कश्मीर में लौटा हूँ ।”

“तुम्हें यहाँ आना अच्छा लग रहा है ?” जगमोहन मुस्कुराकर बोला ।

“बहुत । घर वापसी की खुशी किसे नहीं होती ।” जब्बार हँस पड़ा ।

एक घण्टे बाद, बन्द कमरे में जगमोहन, जब्बार और कलाम मौजूद थे ।

“जब्बार !” जगमोहन बोला, “मैं चाहता हूँ कि हम वक्त बर्बाद न करें और काम शुरू कर दें ।”

“बोलो, मैं क्या करूँ अब्दुल्ला !” जब्बार बोला ।

“हमें उन ठिकानों के बारे में बताओ, जहाँ रशीद और मस्तान अक्सर आते-जाते रहते हैं ।”

“सर्किट हॉउस, संसद भवन, पार्लियामेंट, ऊँचा भवन, जहाँआरा, दीवान-ए-खास, मुबारक गली । ऐसी कई जगहें हैं जहाँ वह दोनों कभी भी पहुँच जाते हैं ।” जब्बार कह उठा ।

“ये किन जगहों के नाम लिए तुमने ?”

“बड़ा खान ने अपने ठिकानों के नाम रखे हुए हैं ।” जब्बार ने बताया ।

“तो ये बात है ।” जगमोहन ने सिर हिलाया, “बड़ा खान कश्मीर में ही होता है ?”

“अक्सर । बहुत कम वह कश्मीर से बाहर जाता है । जाने की जरूरत नहीं पड़ती । आदमी जो हैं, सब काम पूरा करने के लिए । हर शहर में उसके लोग हैं । फोन पर ही काम पूरा हो जाता है ।”

“और तुम्हें अंदाजा भी नहीं कि कश्मीर में वह कहाँ पर होता है ?”

“मुझे नहीं पता । रशीद और मस्तान को शायद इस बात की जानकारी हो ।”

“ठीक है ! तुम इन सब ठिकानों के बारे में बताओ कि ये कहाँ-कहाँ पर हैं ?” जगमोहन ने कहा ।

जब्बार बताने लगा । दस मिनट में उसने करीब दस ठिकानों के नाम पते बताये । जगमोहन ने कलाम को देखकर कहा-

“सब पते सुने तुमने ?”

“जी जनाब !” कलाम बोला ।

“हर जगह पर अपने दो-दो आदमी लगा दो । हमें रशीद और मस्तान की तलाश है । ये कहीं मिले तो सावधानी से इनका पीछा किया जाये और उस दौरान हमें फोन पर खबर दे दी जाये ।”

कलाम ने सिर हिलाया और बाहर निकल गया ।

“तुम्हें यकीन है कि तुम बड़ा खान तक पहुँचकर उसे मार दोगे ?” जब्बार बोला ।

“पूरा यकीन है ।” जगमोहन के होंठ भिंच गए ।

“परन्तु मुझे यकीन नहीं ।” जब्बार ने गहरी साँस ली ।

“हमारे साथ रहो और देखते रहो । क्या तुम पहली गोली बड़ा खान के सिर में मारना चाहोगे ?”

“मैं ?”

“हाँ ! ये मौका तुम्हें दिया जा सकता है अगर तुम चाहो तो ।” जगमोहन मुस्कुरा पड़ा ।

“मुझे नहीं लगता कि ऐसा मौका आएगा ।”

“तो तय रहा कि बड़ा खान के सिर में पहली गोली तुम ही मारोगे ।”

“बहुत आसानी से तुम ये बात कह रहे हो ।”

“जब्बार अभी तुम आजादी-ए-कश्मीर की ताकत नहीं जानते । बहुत जल्दी हमारे बारे में जान जाओगे ।”

“मुझे अभी तक तुमसे कोई पैसा नहीं मिला ?” जब्बार कह उठा ।

“तुमने कहा नहीं । अब कहा है । कहो कितना पैसा चाहिए ?” जगमोहन बोला ।

कुछ देर चुप रहकर जब्बार ने कहा ।

“कुछ दिन बाद ले लूँगा ।”

“जब भी लेना चाहो कह देना । अपने साथियों के लिए हमारे पास पैसे की कमी नहीं है । अब तुम आराम कर लो तो बेहतर होगा ।”

“मैं जरा बाहर घूमने जाना चाहता हूँ । मेरा बचपन भी इन्हीं सड़कों पर बीता है ।”

“अभी तुम्हारा बाहर जाना ठीक नहीं । बड़ा खान का कोई भी आदमी तुम्हें पहचान सकता है । इससे बड़ा खान सतर्क हो जायेगा कि तुम कश्मीर में हो । जबकि हम बड़ा खान तक खामोशी से पहुँचना चाहते हैं ।”

“तो मैं यहाँ कैदी की तरह रहूँ ?”

“ऐसा मत कहो । तुम्हारे सामने ही सारे हालात हैं । अभी तुम आराम करो । बहुत जल्दी ये मामला खत्म हो जायेगा ।”

☐☐☐

मोती खान अपने भाई गफ्फार की मौत से बहुत दुखी था । वह मंजर बार-बार उसकी आँखों के सामने आ रहा था, जब मस्तान ने गफ्फार को गोली मारी थी । बात यहीं तक होती तो वह सह लेता परन्तु गफ्फार की पत्नी गफ्फार की मौत का उसे ही दोषी मान रही थी, क्योंकि तब वह वहाँ मौजूद था । 

शाम हो रही थी । उदास सा मोती खान अपने घर के एक कमरे में बैठा था कि उसकी पत्नी शबनम ने भीतर प्रवेश किया और लाइट ऑन करते कह उठी-

“इस तरह अँधेरे में क्यों बैठे हो ?”

मोती खान ने गहरी साँस लेकर शबनम को देखा ।

“गफ्फार की मौत से दुखी हो ।” शबनम कह उठी ।

“हाँ ! कल वह मेरी आँखों के सामने मारा गया । मैं उसे बचा नहीं सका ।” मोती खान ने दुखी स्वर में कहा ।

पास आकर शबनम ने उसके कन्धे पर हाथ रखा ।

“नसीमा कहती है कि मेरी वजह से ही गफ्फार मरा । मुझे उसको बचाना चाहिए था । परन्तु उस वक्त मैं कुछ नहीं कर सकता था । ज्यादा एतराज करता तो वह मुझे भी गोली मार देते ।”

“नसीमा दुखी है अपने शौहर की मौत से । बाद में वह ठीक हो जायेगी ।”

“मैं भी गफ्फार की मौत सहन नहीं कर पा रहा हूँ । परन्तु सारी गलती गफ्फार की ही थी । अपनी मौत के रास्ते पर उसने ही कदम बढ़ाये थे । मैंने उसे कितना समझाया था कि हमारे धंधे में गद्दारी नहीं चलती । परन्तु उसने मेरी एक बात न मानी ।”

“मैं तो कब से आपसे कह रही हूँ कि ये बुरा काम है । छोड़ दीजिये इसे । आपने काफी पैसा कमा लिया है । कोई दुकान वगैरह खोलकर जिंदगी आराम से बसर कर सकते हैं ।” शबनम ने कहा ।

“अब तो गफ्फार के परिवार का खर्चा भी मुझे ही उठाना पड़ेगा ।”

“वह तो है ।” शबनम ने कहा, “नसीमा और उसके दो बच्चे... ।”

“लालच ले डूबा गफ्फार को । किसी की अमानत को इस तरह हजम नहीं किया जा सकता जबकि आसपास खतरनाक लोग मौजूद हों । परन्तु गफ्फार सोचता था कि बड़ा खान देर-सवेर में उसकी गद्दारी को भूल जायेगा । वह कितने खतरनाक हैं, इसी से सोचो कि गफ्फार को मारने जा रहे रशीद और मस्तान ने मुझे फोन करके बुला लिया कि उसकी लाश को मैं संभाल सकूँ ।” मोती खान ने गुस्से से कहा, “दिल तो करता है कि उन दोनों पर जाकर गोलियाँ चला दूँ ।”

“उससे क्या होगा । क्या इस तरह आप बच पायेंगे ?” शबनम बोली, “गफ्फार ने गलती की तो वह मारा गया । अब आप ऐसी कोई गलती न करें कि वह आपकी भी जान ले ले ।”

मोती खान ने आँखें बन्द कर लीं ।

“हौसला रखिये । जो होना था, वह तो हो ही गया ।”

“नसीमा बहुत दुखी है ।”

“मैं उसे भी समझाऊँगी कुछ दिनों के लिए उसे अपने पास ले आऊँगी । उसने पैसा आपको दे दिया ?”

“हाँ ! पूरा साठ लाख है । गफ्फार ने पैसा घर पर ही रखा था । पैसे कल उनके हवाले करूँगा ।”

“सच में गफ्फार ने खामख्वाह ही जान गँवा दी ।”

“बच्चे कब आयेंगे नसीमा के यहाँ से ?”

“आज रात वह वहीं रहेंगे । नसीमा का दिल बहल जायेगा । आप कहें तो मैं भी वहीं चली जाऊँ ?”

“हाँ ! तुम्हारा नसीमा के पास चले जाना ही ठीक होगा । गली ही में तो रहती है वह ।”

“खाना बना रखा है । खा लीजियेगा । मैं नसीमा के पास जा रही हूँ । किसी चीज की जरूरत पड़े तो फोन कर दीजियेगा ।” उसके बाद शबनम नसीमा के यहाँ जाने के लिए घर से बाहर निकल गई ।

मोती खान ने बोतल निकाली और गिलास तैयार करने लगा । फिर घूँट भरा और सिगरेट सुलगाकर खिड़की पर आया और खिड़की खोली ।

सर्द हवा का झोंका शरीर से आ टकराया । मोती खान खिड़की बन्द करने लगा कि ठिठक गया ।

सामने सड़क खाली थी । इतनी सर्दी में किसी के बाहर निकलने की हिम्मत कम ही होती थी । परन्तु सड़क के उस पार एक आदमी को खड़े देखा जो कि इधर ही देख रहा था । उसने जैकिट पहन रखी थी । मोती के मस्तिष्क में ये ही आया कि वह बड़ा खान का आदमी होगा । उस पर नजर रख रहा होगा कि 60 लाख के साथ वह भी भागने की न सोचे । अँधेरा होने की वजह से वह उसका चेहरा नहीं देख पाया था ।

हाथ में पकड़े गिलास से उसने घूंट भरा कि तभी उस आदमी को सड़क पार करके इस तरफ आते देखा । मोती खान की आँखें सिकुड़ गईं । नजर उस पर ही रही । वह पास आया । खिड़की के नीचे पहुँचा और नजर उठाकर खिड़की पर खड़े उसे देखा । फिर सामने की सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया जो कि ऊपर उसके घर पर आकर ही खत्म होती थी । मोती चौंका । उसके होंठ भिंच गए । उसने फौरन खिड़की बन्द की और गिलास एक तरफ रखकर टेबल की दराज से रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली । कुछ भी हो सकता था ।

तभी बाहर आहट गूंजी । वह जो भी था । घर के भीतर आ गया था । उसे याद आया कि शबनम के जाने के बाद उसने घर का दरवाजा बन्द नहीं किया था । मोती रिवॉल्वर थामे कमरे में खड़ा कह उठा-

“इधर आ जाओ । मैं यहाँ हूँ ।”

वह कमरे के दरवाजे पर आ खड़ा हुआ ।

रौशनी उसके चेहरे पर पड़ी । वह देवराज चौहान था ।

मोती खान रिवॉल्वर थामे खड़ा कह उठा ।

“कौन हो तुम ?”

“देवराज चौहान नाम है मेरा ।”

“देवराज चौहान, तो हिन्दू हो ।”

“हाँ !” देवराज चौहान ने दो कदम और भीतर प्रवेश किया तो नजर टेबल पर रखी बोतल पर पड़ी, “मैं काफी देर से सर्दी में खड़ा था । मैंने तुम्हारी पत्नी, शायद वह तुम्हारी पत्नी ही थी, उसे घर से निकलकर चार घर दूर एक घर के भीतर जाते देखा । रिवॉल्वर जेब में रख लो और मेरे लिए भी एक गिलास तैयार कर दो ।”

आँखें सिकोड़े मोती खान देवराज चौहान को देखता रहा ।

“रिवॉल्वर जेब में रख लो । मैं बड़ा खान की तरफ से नहीं आया मोती खान । निश्चिन्त रहो ।”

“कौन हो तुम ?”

“रिवॉल्वर जेब में रखकर, मुझे पैग तैयार करके दोगे तो हम आराम से बात कर लेंगे । मेरे से तुम्हें कोई खतरा नहीं है ।”

“और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी बात मान लूँ ?” मोती खान कड़वे स्वर में बोला ।

“तुम्हारी इच्छा है कि तुम मानो या न मानो ।”

“मुझे कैसे जानते हो ?”

देवराज चौहान ने आगे बढ़कर शीशे की अलमारी से गिलास निकाला । उसे हाथों से साफ किया और टेबल के पास पहुँचकर अपना गिलास तैयार करता कह उठा-

“कश्मीर अच्छी जगह है, परन्तु यहाँ सर्दी बहुत होती है ।”

“यहाँ बारूद की गर्मी भी बहुत है ।”

“हाँ !” देवराज चौहान ने घूंट भरा और मुस्कुराकर बोला, “बारूद की गर्मी भी है ।”

“क्या चाहते हो मुझसे ?”

“मैं तुम्हारे भाई गफ्फार की मौत का अफसोस करने आया हूँ ।” देवराज चौहान ने कहा ।

मोती खान के होंठ भिंच गए ।

“रशीद और मस्तान ने उसे तुम्हारे सामने मारा और तुम अपने भाई को बचा भी न सके ।” देवराज चौहान कुर्सी पर जा बैठा, “ये बात तो तुम्हें तकलीफ दे रही होगी । क्या तुमने अपने भाई को बचाने की कोशिश नहीं की ?”

“की ।” मोती खान के होंठों से निकल गया ।

“परन्तु रशीद और मस्तान ने तुम्हारी बात की परवाह नहीं की और गफ्फार को मार दिया । बुरा हुआ ।”

“तुम कौन हो ?”

“देवराज चौहान ।”

मोती खान फुर्ती से आगे बढ़ा और रिवॉल्वर की नाल उसकी छाती पर रख दी ।

देवराज चौहान ने घूंट भरकर चेहरा ऊपर उठाया और मोती खान से कह उठा ।

“जब तुम्हें कुछ करना चाहिए था, तब तो तुमने कुछ किया नहीं और अब बेकार की कोशिश में... ।”

“अपने बारे में बताओ ।” मोती खान का चेहरा खतरनाक हो गया था ।

“देवराज चौहान नाम है मेरा । बड़ा खान का दुश्मन हूँ मैं ।”

“बकवास कर रहे हो तुम ।”

“जब्बार मलिक के बारे में खबर है तुम्हें ?” देवराज चौहान बोला ।

“जब्बार ? वह तो जम्मू जेल से फरार हुआ है हाल ही में ।”

“हाँ ! उसे मैंने ही जेल से फरार करवाया था ।”

मोती खान चौंका ।

“ओह, तुम पुलिस वाले हो ।”

“मैं पुलिस वाला नहीं हूँ । पुलिस वाला होता तो किसी भी कीमत पर जब्बार को जेल से बाहर नहीं निकालता । मैं बड़ा खान का दुश्मन हूँ इसलिए जब्बार को जेल से फरार करवाया । बड़ा खान मुझे पैंतीस करोड़ दे रहा था जब्बार को जेल से फरार करवाने के, परन्तु मैंने उसे मुफ्त में भगा दिया । इसी कारण जब्बार और बड़ा खान के रिश्ते खराब हो गए । बड़ा खान सोचता है कि जब्बार के और मेरे बीच जरूर कुछ समझौता हुआ है तभी तो मैंने उसे जेल से फरार करवाया ।”

“हाँ ! ऐसा ही सुना है मैंने ।” मोती खान के होंठों से निकला, “परन्तु मैं कैसे यकीन करूँ कि तुम वही हो ।”

“ये यकीन तो तुम्हें करना ही पड़ेगा कि मैं वही हूँ । मेरी तस्वीर लेकर जम्मू जेल के कर्मचारियों से पूछ लो कि मैं वही हूँ या नहीं । वह मैं ही हूँ मोती खान और तुम्हारे भाई का अफसोस करने आया हूँ ।”

दाँत भिंच गए मोती खान के । उसने रिवॉल्वर देवराज चौहान की छाती से हटाई और वापस जेब में रखकर सामने वाला गिलास उठाकर कुर्सी पर जा बैठा । वह बेचैन दिख रहा था ।

“मैं आज सुबह ही कश्मीर पहुँचा । बड़ा खान के बारे में जानकारी पानी शुरू कर दी तो पता चला किसी से कि कल रशीद और मस्तान ने मोती खान के सामने उसके भाई गफ्फार को मार दिया । ये भी पता चला कि तुम बड़ा खान को वह साठ लाख रुपया लौटाओगे जिसकी हेराफेरी करने की चेष्टा गफ्फार ने की थी ।”

मोती खान ने एक ही साँस में गिलास खाली कर दिया ।

“तुम क्या वह साठ लाख मुझसे लेने आये हो ?” मोती खान ने पूछा ।

“नहीं ! मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता । मैं तो चाहता हूँ कि अगर तुम अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहते हो तो मेरे साथ मिल जाओ । हम दोनों का दुश्मन एक ही है ।”

“तुम्हारी क्या दुश्मनी है बड़ा खान से ?”

“कुछ तो होगी ही, जो मैं उसके पीछे हूँ ।”

“मैं बड़ा खान के खिलाफ नहीं जा सकता ।” मोती खान ने कठोर स्वर में कहा ।

“क्यों ?”

“वह ताकतवर है । उसे पता भी चल गया कि मैं उसके खिलाफ सोचता हूँ तो वह मुझे मार देगा ।”

“मैं भी ताकतवर हूँ ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“तुम्हारी ताकत मैंने नहीं देखी, परन्तु बड़ा खान की देखी है । उसके सामने मेरी हैसियत कुछ भी नहीं है ।”

“तुमने साठ लाख देना है बड़ा खान को, कैसे दोगे ?”

“रशीद-मस्तान ही पैसा सँभालते हैं । उन्हें दूँगा ।”

“ये दोनों कहाँ रहते हैं ?”

“मैं नहीं जानता ।”

“तुम मेरा इतना साथ दे सकते हो कि जब उन्हें पैसा दो, तो वह जगह-वक्त मुझे बता दो ।”

“क्यों ?”

“मैं उन पर नजर रखूँगा ।”

“इससे क्या हो जायेगा ?”

“ऐसा करके मैं बड़ा खान तक पहुँच जाऊँगा ।”

“बचकानी बात मत करो । इस तरह कोई भी बड़ा खान तक नहीं पहुँच सकता ।”

“मैं पहुँच जाऊँगा ।”

“ऐसी घटिया बात पर मैं यकीन नहीं कर सकता । बेहतर होगा कि तुम यहाँ से चले जाओ । मैं नहीं चाहता कि तुम ऐसा कुछ करो कि बड़ा खान मेरी जान ले ले ।” मोती खान ने गंभीर स्वर में कहा और दोबारा गिलास बनाने लगा ।

“कम से कम तुम मुझे वह वक्त और जगह बता सकते हो जहाँ तुम 60 लाख उन्हें दोगे ।”

“मैं खतरा नहीं उठाना चाहता ।”

“अपने भाई की मौत का कुछ तो बदला लो । कहीं तो मेरी सहायता करो मोती ।” देवराज चौहान ने कहा ।

मोती खान बेचैन दिखने लगा ।

“मैं तुम्हारा दोस्त हूँ ।”

“जब्बार कहाँ है ?”

“यहीं, श्रीनगर में । आज ही पहुँचा है ।”

“तुम्हारे साथ ?”

“नहीं । मैंने उसे जेल से निकालकर भगा दिया था । उसके बाद मैं उससे नहीं मिला । परन्तु उसके बारे में मुझे खबर रहती है कि वह क्या कर रहा है । कम से कम वह बड़ा खान के साथ नहीं है । दोनों में दूरियाँ बन गई हैं मेरी वजह से । यही मैं चाहता था । बड़ा खान ने संगठनों से कहा कि जब्बार गद्दार है, पुलिस के साथ मिल गया है । बड़ा खान का इरादा जब्बार को शहीद कर देने का था । इस बात से जब्बार नाराज हो गया । अब वह कश्मीर-ए-आजादी नाम के संगठन के साथ है ।”

“मैंने इस संगठन का नाम नहीं सुना कभी ।”

“परन्तु वह इसी संगठन के साथ है ।”

“तुम्हारे साथ कितने लोग हैं ?” मोती खान ने पूछा ।

“बहुत ।”

“बहुत कितने ?”

“तुम सोच भी नहीं सकते । बड़ा खान को खत्म करने निकला हूँ तो खाली हाथ नहीं हूँ ।”

मोती खान ने नया गिलास भरकर घूँट भरा ।

“मुझे बताओ कि कब तुम 60 लाख रशीद-मस्तान को दोगे ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“मैं तुम्हारा साथ देकर फँस न जाऊँ ।” मोती खान ने गहरी साँस ली ।

“मेरा विश्वास करो कि ऐसा कभी नहीं होगा ।”

“तुम हकीकत में हो कौन ?”

“तुमने कभी डकैती मास्टर देवराज चौहान का नाम सुना है ?”

“शायद, शायद सुना है । सुना है, हाँ... ।”

“वह मैं ही हूँ ।”

“ओह !” मोती खान अब कुछ संभला सा दिखा, “तुम आतंकवाद की दुनिया में कैसे आ गए ?”

“मैं बड़ा खान को मारने इधर आया हूँ, उसके बाद वापस चला जाऊँगा ।”

“तुम जो सोच रहे हो, वह शायद हो न सके । बड़ा खान को शायद कोई नहीं मार सकता । क्योंकि कोई जानता ही नहीं कि वह कौन है । कहाँ रहता है । कोई भी उसके बारे में नहीं जानता ।”

“रशीद-मस्तान उसके बारे में जानते हैं ?”

“कुछ कह नहीं सकता ।” मोती खान बेचैन दिखा ।

“तुम देवराज चौहान पर पूरा भरोसा कर सकते हो मोती खान । मैं तुम्हारे भाई की मौत का बदला लूँगा ।”

मोती खान व्याकुलता भरे अंदाज में कुछ देर चुप रहा फिर कह उठा-

“कल मैं रशीद और मस्तान को 60 लाख दूँगा ।”

“कहाँ ?”

“अभी कुछ तय नहीं है । कल सुबह ही उन्हें इस बारे में फोन करूँगा ।”

“ठीक है, तुम मुझे अपना फोन नम्बर दे दो और मेरा ले लो । जो भी बात तय हो फोन पर मुझे बता देना ।”

दोनों ने एक-दूसरे के नम्बर लिए ।

“मैं जानता हूँ कि तुम सफल नहीं होगे । बड़ा खान का कोई मुकाबला नहीं कर सकता ।”

देवराज चौहान मुस्कुराया फिर बोला-

“तुमने गफ्फार को बचाने की चेष्टा तो की होगी ?”

“हाँ ! परन्तु ज्यादा न कर सका । वरना वह मुझे भी मार देते ।”

“तुम गलत धंधे में हो । अभी भी वक्त है कि इस काम से दूर हो जाओ । वरना कल को कोई और आएगा तुम्हें ढूंढता हुआ कि तुम्हें मार सके । इस काम का अंत मौत पर आकर ही खत्म होता है ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“मुझे इस बात का एहसास हो चला है ।”

देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ ।

“तुम्हें गफ्फार की मौत और मेरे बारे में जानकारी किसने दी ?”

“पता चल जाता है । कहीं भी कोई भी बात छिपी नहीं रहती । फिर ये तो गफ्फार की मौत की बात थी ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा, “कल मुझे फोन जरूर करना, जब तुम 60 लाख देने जाओ । मैं भी फोन करके तुमसे पूछता रहूँगा ।”

मोती खान ने आहिस्ता से सिर हिला दिया ।

देवराज चौहान बाहर निकल गया ।

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अगले दिन सुबह देवराज चौहान होटल के कमरे में गहरी नींद में था । सुबह के साढ़े आठ बज रहे थे । तभी उसका मोबाइल बजने लगा । देवराज चौहान ने आँखें खोलीं । हाथ बढ़ाकर मोबाइल उठा लिया ।

“हैलो !” देवराज चौहान ने बात की ।

“देवराज चौहान ?” मोती खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“कहो मोती खान ।”

“अभी मेरी रशीद से बात हुई । मैंने उसे पैसे देने को कहा तो उसने कहा बारह बजे तक मुबारक गली पहुँचा दूँ ।”

“मुबारक गली कहाँ है ?”

“ये बड़ा खान के एक ठिकाने का नाम है । उसने अपने हर ठिकाने को कोई नाम दे रखा है ।”

“समझा । ये कहाँ पर है ?”

मोती खान ने मुबारक गली के बारे में बताया ।

“तो तुम बारह बजे तक पैसा वहाँ पहुँचा दोगे ?”

“हाँ ! अब तुम जो भी करो । लेकिन मेरा नाम बीच में न आये । मैंने तुम पर विश्वास किया है ।”

“भरोसा रखो । तुम इस मामले में हो ही नहीं ।”

देवराज चौहान ने फोन बन्द करके, जगमोहन को फोन किया ।

“तुम कब आये श्रीनगर ?” जगमोहन ने पूछा ।

“कल ही पहुँचा था । काम कैसा चल रहा है ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“कल शाम को ही काम शुरू कर दिया था । मेरे आदमी बड़ा खान के ठिकानों पर नजर रखे हैं कि रशीद-मस्तान वहाँ आयें तो उन पर हाथ डाला जा सके ।” जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।

“जब्बार कैसा चल रहा है ?”

“सहयोग कर रहा है ।”

“अब मेरी बात सुनो । बड़ा खान के एक ठिकाने का नाम मुबारक गली है ।” देवराज चौहान ने कहा, “मोती खान नाम का आदमी दिन के बारह बजे तक वहाँ साठ लाख पहुँचा देगा । उसके बाद उस ठिकाने का आदमी साठ लाख को रशीद-मस्तान को देने जायेगा या रशीद-मस्तान उस पैसे को लेने आयेंगे ।”

“समझ गया ।”

“मुबारक गली के नाम के ठिकाने पर नजर रखो । शायद हम रशीद-मस्तान तक पहुँच सकें ।”

“ठीक है ! लगता है तुमने श्रीनगर पहुँचते ही अपना काम शुरू कर दिया है ।”

“हाँ ! अब तुम्हें बताता हूँ कि मुबारक गली कहाँ पर... ।”

“मेरे ख्याल में इस ठिकाने के बारे में जब्बार जानता है । मैं उससे पूछ लूँगा ।”

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