पन्द्रह मिनट बीत गए । इंस्पेक्टर सुनील नेगी के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया मोना चौधरी ने ।

"कोई बात नहीं । कुछ आराम कर लो । मुझे जल्दी नहीं है । जवाब पाने में ।" कड़वा स्वर था नेगी का--- "जो मैं पूछ रहा हूं उसका जवाब तो तुम्हें देना ही पड़ेगा ।" फिर वो इंस्पेक्टर दौलतराम से बोला--- "तुम दोनों हवलदारों के साथ मोना चौधरी की पहरेदारी पर रहोगे । ये बहुत खतरनाक है । इसकी किसी बात पर विश्वास मत करना । ये बंधन खुद तो खोल नहीं सकती । किसी बहाने तुमसे खुलवाने की कोशिश करेगी । याद रखना, हम तुममें से किसी ने इसके करीब भी नहीं जाना है ।"

"यस सर ।" इंस्पेक्टर दौलतराम ने फौरन सिर हिलाकर कहा।

"मैं, इंस्पेक्टर मोदी के साथ, उस आश्रम को तलाश करता हूं । वहां होकर आता हूं ।"

दोनों हवलदारों ने भी सिर हिलाया ।

सुनील नेगी ने मोदी को देखा ।

"आओ ।"

मोदी ने कुछ नहीं कहा । सिर हिलाते हुए उसके साथ आगे बढ़ा, फिर मोना चौधरी के पास ठिठका । बंधे हाथ-पांवों से मोना चौधरी नीचे पड़ी थी ।

"कम से कम तुम इतना तो बता सकती हो कि आश्रम किस तरफ है ?" मोदी ने गम्भीर स्वर में कहा ।

मोना चौधरी मुस्कुराई और आंख से एक दिशा की तरफ इशारा करते हुए बोली ।

"सात-आठ  मिनट उस तरफ चलते रहो । आश्रम नजर आ जाएगा ।"

"तुमने उनको ड्रग्स बेची है, जो पचास लाख रुपया ले आई, वहां से ।" मोदी ने पूछा ।

"मैं ऐसे घटिया काम नहीं करती ।" मोना चौधरी ने तीखे स्वर में कहा ।

"तो फिर पचास लाख थैले में भरकर, आश्रम से कैसे ले आई ?"

"स्वामी ताराचंद से पूछ लेना । उसी ने थैले में भरकर पचास लाख दिए । बदले में मैंने कुछ नहीं दिया उसे ।"

"फिर तो वो पागल होगा जो तुम्हें पचास लाख यूं ही दे दिए ।" मोदी मुस्कुराया ।

"सच में, वो पागल ही है ।"

"आओ ।" नेगी ने उखड़े स्वर में कहा ।

मोदी, नेगी के साथ मोना चौधरी की बताई दिशा की तरफ बढ़ गया ।

दोनों ने अभी सौ-डेढ़ सौ कदम ही तय किए होंगे कि दोनों को पीछे से तीव्र वेग के साथ धक्का पड़ा । दोनों लड़खड़ाए, लाख कोशिश के बावजूद भी खुद को संभाल न पाए और नीचे जा गिरे । फौरन ही उन्होंने संभलने की चेष्टा की और पलटते हुए खड़े होने लगे कि ठिठक गए ।

पांच कदमों के फासले पर हाथों में रिवॉल्वर थामे महाजन और पारसनाथ खड़े थे ।

"तुम...।" मोदी के होंठों से निकला ।

सुनील नेगी के दांत भिंच गए ।

"हमें हाथ-पैर बांधने की आदत नहीं है ।" पारसनाथ सपाट कठोर स्वर में कह उठा--- "सीधा गोली मारते हैं ।"

"खड़े हो जाओ ।" महाजन शब्दों को चबाकर कह उठा--- "उसकी नजरें नेगी पर थी--- "तुम बार-बार हमारे रास्ते में आ रहे हो। बार-बार बेबी की तरफ हाथ बढ़ा रहे हो । अब दूसरी बार है । पहली बार बेबी किस्मत से बच गई । इस पर भी तुम्हें चैन नहीं मिला । दोबारा बेबी पर हाथ डाल दिया ।"

नेगी के दांत भिंच गए।

"तुम बार-बार कानून के रास्ते में रुकावट डाल रहे हो ।"

महाजन गुस्से से सुलग उठा। आगे बढ़ते हुए उसने रिवॉल्वर जेब मे डाली और पास पहुंचकर जोरदार घूंसा सुनील नेगी के चेहरे पर मारा । नेगी क्रोध से तड़प उठा । उसने उठना चाहा । तभी फुर्ती से महाजन ने उसकी जेब से रिवॉल्वर निकाली और उसके ही पेट से नाल सटा दी। नेगी बेबस-सा दांत भींचकर रह गया।

"तेरी शक्ल देखकर मुझे सच में गुस्सा आ जाता है । या तो तेरी शक्ल ही खराब है या मेरी आंखों की खराबी है ।" महाजन एक-एक शब्द चबाकर कह उठा--- "लेकिन ये सब ज्यादा लंबा नहीं है चलेगा । जल्दी ही मैं तुम्हारा किस्सा खत्म कर दूंगा । अब ये तुम्हारी समझ की बात है कि तुम अपना कोई दूसरा रास्ता चुनते हो या हमारे रास्ते पर ही टूटे-फूटे लड़खड़ाते रहोगे ।"

"मुझे तो लगता है तुमने कानून का स्वाद नहीं चखा जो वर्दी वालों से इस तरह बातें करते...।"

"बेटे ।" महाजन गुर्रा उठा--- "मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता है कि तेरा पाला कभी शेर से नहीं पढ़ा । चूहों को ही पकड़ता रहा तू ।"

दांत पीसते हुए सुनील नेगी ने इंस्पेक्टर मोदी को देखा ।

"बहुत ज्यादा बोलता है ये ।" नेगी दांत भींचकर गुर्राया ।

"इसके हाथ में है । इसलिए ये जो कहता है ठीक कहता है ।" मोदी ने शांत-स्थिर लहजे में कहा ।

तभी पारसनाथ बोला ।

"खड़े हो जाओ ।"

"जल्दी ।" कहते हुए महाजन ने रिवॉल्वर वाला हाथ हिलाया और दो-तीन कदम पीछे हटा ।

इंस्पेक्टर सुनील नेगी और मोदी खड़े हो गए।

"तुम दोनों हमारी रिवॉल्वरों के निशाने पर हो । वापस चलो ।" महाजन ने कहर भरे स्वर में कहा--- "जरा भी शरारत की तो उसी वक्त शूट कर देंगे । चलकर बेबी को आजाद करवाओ ।"

"कानून से मत खेलो ।" नेगी ने चेतावनी भरे स्वर में कहा ।

"मोना चौधरी हमारे हवाले कर । हम चले जाएंगे ।" पारसनाथ ने सपाट-कठोर स्वर में कहा ।

रिवॉल्वरों के साये में वो दोनों वापस पहुंचे ।

उन्हें देखकर इंस्पेक्टर दौलतराम और दोनों कांस्टेबल चौंके ।

"सर ।"  दौलतराम के होंठों से निकला ।

"ये दोनों कौन हैं?" पूरनचंद बोला।

"आश्रम वाले ही होंगे ।"

महाजन और पारसनाथ के चेहरे पर नजर पड़ते ही मोना चौधरी मुस्कुरा पड़ी ।

"इन्हें बोलो कि, बेबी को खोले ।"

सुनील नेगी ने खा जाने वाली नजरों से महाजन को देखा फिर पुलिस वालों से कह उठा ।

"मोना चौधरी को खोल दो ।"

"क्या ?" दौलतराम के होंठों से निकला ।

"खोल दो मोना चौधरी को ।" नेगी के दांत भिंच गए ।

पूरनचंद दौलतराम ने जल्दी से मोना चौधरी के बंधन खोल दिए । मोना चौधरी ने अपनी कलाइयां-पिंडलियां मसली और उठते हुए बोली ।

"इन पर से अपनी रिवॉल्वरें हटा लो ।"

"लेकिन बेबी...।" महाजन ने कहना चाहा ।

"शरारत करे तो बेहिचक इसे शूट कर देना ।" मोना चौधरी के स्वर में मौत भरे भाव आ गए ।

महाजन और पारसनाथ ने, नेगी और मोदी पर से रिवॉल्वरें हटा ली।

"नेगी ।" मोदी ने धीमे-गम्भीर स्वर में नेगी से कहा--- "किसी भी कीमत पर शरारत मत करना । अपने साथी पुलिस वालों से कह दो । अबकी बार कोई गड़बड़ की तो, ये लोग सच में शूट कर देंगे ।"

सुनील नेगी ने दांत भींच लिए ।

"कह दो । वरना...।"

"मोना चौधरी को कोई कुछ नहीं कहे ।" नेगी ने ऊंचे स्वर में कहा ।

तीनों पुलिस वाले कुछ नहीं बोले ।

मोना चौधरी चेहरे पर जहरीली मुस्कान समेटे सुनील नेगी के करीब पहुंची ।

"मेरे हाथ-पांव बांधकर तुमने सोचा कि बहुत बड़ा तीर मार लिया है ।"

"मार तो लिया ही था । वरना, तुम किसी के हाथों में आसानी से कहां आने वाली ।" नेगी ने शब्दों को चबाकर कहा ।

"जबकि तुम्हारा ख्याल था कि मेरे हाथ-पांव बांधकर, मनचाहे सवाल मेरे से पूछ लोगे। ऐसी गलती फिर मत करना । मेरे से वो बात तुम कभी नहीं जान सकते, जो मैं न बताना चाहूं ।"

"मैं जान लूंगा ।" सुनील नेगी ने शब्दों को चबाकर कहा--- "वक्त और माहौल ठीक मिले तो मैं तुम्हारा मुंह खुलवा लूंगा ।"

"ऐसा है तो कभी कोशिश अवश्य करना ।" मोना चौधरी का चेहरा व्यंग से भर आया था ।

"पक्का करूंगा ।" नेगी ने मोना चौधरी की आंखों में झांका ।

"तेरी हवा में उड़ने की आदत कुछ ज्यादा ही है ।" महाजन कड़वे स्वर में कह उठा ।

नेगी ने महाजन को घूरा । कहा कुछ नहीं ।

"अब बोलो । क्या सवाल पूछ रहे थे मुझसे ?" मोना चौधरी बोली ।

"क्या मतलब ?" नेगी की आंखे सिकुड़ी ।

"तुम मुझे कैद करके सवाल पूछ रहे थे । इस तरह मैं जवाब नहीं देती ।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा--- "अब मैं आजाद हूं और तुम्हारे सवालों का जवाब देने में मुझे कोई एतराज नहीं है । तुम पूछो । मैं बताऊंगी।"

नेगी कई पलों तक मोना चौधरी को देखता रहा ।

"हैरान हो रहा है ।" महाजन कड़वे स्वर में कह उठा--- "विश्वास नहीं आ रहा कि अब इसके सवालों का जवाब मिल सकता है ।"

"मोना चौधरी बताने को तैयार है तो पूछ लो ।" मोदी बोला--- "बाद में मूड बदल भी सकता है ।"

सुनील नेगी की निगाह नोटों से भरे थैले पर गई फिर बोला ।

"तुम इस आश्रम में क्या करने आई थी ? पचास लाख रुपया तुम्हें कहां से मिला ?"

"अजब सिंह को जानते हो । भून्तर के होटल वाला अजबसिंह ?"

"हां ।"

"कैसे जानते हो ?"

"इतना ही जानता हूं कि वो गलत काम करता है । परन्तु पुलिस की पकड़ में नहीं आ रहा ।"

"लता और बज्जू को जानते हो ?"

"ये दोनों नाम पुलिस की लिस्ट में हैं। दोनों ड्रग्स के धंधे में हैं । किसी खतरनाक संगठन से वास्ता रखते हैं । तुम इन दोनों को कैसे जानती हो ?" नेगी गम्भीर नजर आने लगा।

क्षणिक चुप्पी के बाद मोना चौधरी कह उठी ।

"मैं तुम्हें बताती हूं । सुनते जाओ। जो बातें तुम जानते हो, बढ़िया । जो नहीं जानते, साथ जोड़ते जाना । लता और बज्जू ने मुझे एक करोड़ रुपए दिए । अपने किसी काम के लिए । उस काम पर जाते समय, मेरी वैन का एक्सीडेंट हो गया । मेरे साथ बज्जू के दो साथी मारे गए । लेकिन मैं किसी तरह बचकर भून्तर पहुंची । रास्ते में अजबसिंह का बेटा, संजीव सिंह मिल गया । उसे बातों में फंसा लिया । ऐसे में भून्तर में अजबसिंह के होटल में घुसने और अजबसिंह तक पहुंचने में मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। तब तक अजबसिंह की तरफ मेरी बुरी आंख नही थी । अजबसिंह से मेरी एक छोटी-सी मुलाकात हुई । उस मुलाकात में मैंने महसूस किया कि वो किसी भी तरह से बुरा इंसान नहीं है । तभी वहां मुझे बज्जू मिला । जो, अजबसिंह का मेहमान था । वो झूठ-सच बोलकर अजबसिंह के होटल में जा टिका था । फिर भी सतर्कता के नाते बज्जू के साथ अजब सिंह का आदमी लगा हुआ था ।"

"अजबसिंह तो इन लोगों से तगड़ी दुश्मनी रखता है ।" सुनील नेगी कह उठा ।

"तो ?"

"ऐसे में अजबसिंह ने उसे अपने होटल में कैसे रख लिया ?"

"कोई तो पासा फेंका होगा । बज्जू ने कि, अजबसिंह ने उसे होटल में अपने पास रख लिया ।"

नेगी कुछ नहीं बोला ।

मोदी, तीनों पुलिस वाले, महाजन, पारसनाथ मोना चौधरी की बातों को ध्यान से सुन रहे थे।

"उसी होटल में इत्तेफाक से बज्जू से मेरी मुलाकात हो गई । वो मुझे मरा समझ रहा था । उसका एक करोड़ मेरी तरफ था । उसके बदले, उसने कहा कि मैं अजबसिंह को खत्म कर दूं। अजबसिंह को खत्म करने का मेरा मन नहीं था । बज्जू को मैंने इंकार नहीं किया । अजबसिंह कुछ दिन के लिए होटल से कहीं चला गया था । संजीव सिंह के द्वारा पता लगाया तो मालूम हुआ कि, अजबसिंह इस आश्रम में आया है । तब मैं संजीव सिंह के साथ इस आश्रम में आ गई । यहां आकर पता चला कि आश्रम का स्वामी ड्रग्स के धंधे के साथ-साथ मैडम नाम की औरत के लिए भी काम करता है । जो कि अमेरिका की जासूसी संस्था सी.आई.ए. के लिए हिन्दुस्तान में तोड़-फोड़ करवाती फिर रही है।"

"सी.आई.ए.?" नेगी चौंका--- "तोड़-फोड़ ?"

"हां ।"

"हैरानी है। सी.आई.ए. को हिन्दुस्तान से क्या लेना-देना ?"

"बहुत लेना-देना है ।" मोना चौधरी कड़वे स्वर में कह उठी--- "अमेरिका पूरी दुनिया में चौधरी बना घूम रहा है । एशिया में कदम रखने के लिए अमेरिका को कुछ चाहिए । ऐसे में हिन्दुस्तान, पाकिस्तान की तकरार का फायदा उठा रहा है । जब भी हिन्दुस्तान-पाकिस्तान का मामला ठंडा होने लगता है तो अमेरिका की जासूसी संस्था सी.आई.ए. मैडम को आदेश दे देती है कि कहीं कत्लेआम तो कहीं दंगा भड़का दे । मैडम का देश की सीमा पर ऐसा गिरोह सक्रिय है, जो मैडम के इशारे पर ऐसे उल्टे- पुल्टे काम करता है । बदले में मैडम उन्हें तगड़ा नोट देती है । जब कोई बड़ा हादसा इस तरह होता है तो अमेरिका बीच में कूद आता है । उसका कोई मंत्री हिन्दुस्तान के दौरे पर आकर, अपनी चौधराहट दिखाता है । पड़ोसी देश पाकिस्तान भी अमेरिका को अपनी सफाई देने लगता है । इस तरह अमेरिका का भाव बढ़ जाता है।"

"ओह ! तो दोनों देशों में खाइयां अमेरिका बढ़ा रहा है ।" मोदी के होंठों से सख्त-सा स्वर निकला ।

"थोड़ी-बहुत खाई तो जग-जाहिर है ।" मोना चौधरी का स्वर शांत था--- "जब दोनों देशों के प्रयासों से खाई को भरने की चेष्टा की जाती है तो उसी वक्त सी.आई.ए. के इशारे पर बड़ा कांड हो जाता है।  ऐसे में दोनों देश यही समझते हैं कि ये काम उस देश ने किया है तो खाई और बढ़ जाती है । जिसका फायदा अमेरिका उठाता है।"

नेगी होंठ भींचे, आंखे सिकोड़े मोना चौधरी को देखे जा रहा था ।

कुछ पलों की चुप्पी के बाद मोना चौधरी पुनः गम्भीर स्वर में कह उठी ।

"जब मुझे मालूम हुआ कि आश्रम का स्वामी ताराचंद और उसे हुक्म देने वाली मैडम इतने पहुंचे हुए हैं तो इन्हें खत्म कर देना ही ठीक समझा । परन्तु मैडम का पता मेरे पास नहीं था और जानती थी कि ताराचंद के पास भी नहीं होगा । मैडम इतनी बेवकूफ नहीं है कि, अपने बारे में किसी को बताकर रखे। ताराचंद कभी भी, किसी भी स्थिति में, मुझे नहीं बताएगा । ऐसे में मैंने मैडम के हाथों को काटने की सोची । मैडम के हाथ वो लोग हैं, जो उसके इशारे पर काम पूरा करते हैं । मैंने पहला निशाना ताराचंद को ही बनाने की सोची ।"

"मार दिया उस स्वामी को ?" सुनील नेगी के होंठों से निकला ।

"नहीं ।" मोना चौधरी ने इंकार में सिर हिलाया--- "मैं किसी तरह स्वामी ताराचंद तक पहुंच गई दाता । वो लता और बज्जू को जानता है। उस तक मैडम ने खबर पहुंचा दी थी कि मोना चौधरी उसके आश्रम के पास ही कहीं मौजूद है और वहीं-कहीं मौजूद अजबसिंह को खत्म करने पहुंची है । ऐसे में ताराचंद मुझे पहचान गया कि मैं मोना चौधरी हूं और उसने मुझे मैडम की ही साथी समझा कि मैं उसकी खास हूं । तब मैंने उसे अपनी बातों में लिया कि मैडम की रजामंदी पर लता ने मुझे बीस लाख दिए हैं कि उसे खत्म करुं । ये सुनकर ताराचंद भड़का । लेकिन मैंने उसे विश्वास दिला दिया कि, मैं सच कह रही हूं ।"

"फिर क्या हुआ ?" महाजन के होंठ सिकुड़े ।

"जब उसे लगा कि मैं सच में उसे खत्म करने जा रही हूं तो उसने अपनी तरफ से उसने पचास लाख में सौदा पटा लिया कि उसकी हत्या न करूं। पचास लाख आ रहे थे । ऐसे में वक्ती तौर पर उसे खत्म करने का मामला आगे सरका दिया कि पहले पचास लाख कहीं सुरक्षित जगह रख आऊं । अब इधर आए तो तुम लोग मिल गए ।"

मोना चौधरी कहते-कहते रुकी ।

सबकी निगाह मोना चौधरी पर थी ।

मोदी और सुनील नेगी के होंठ भिंचे हुए थे ।

"तुम्हारी सब बातें मानी ।" सुनील नेगी कठोर स्वर में कह उठा--- "लेकिन कानून सबूत मांगता है । बिना सबूतों के किसी को गिरफ्तार करा जाए तो ये सिर्फ बेवकूफी होती है ।"

"स्वामी ताराचंद की बात कर रहे हो ?" मोना चौधरी बोली ।

"हां।"

"आश्रम में तुम्हें ही सबूत मिलेंगे । वहां ड्रग्स मिलेगी । ताराचंद के चेले-चपाटे खुलेआम चरस रखते हैं । जहां स्वामी ताराचंद रहता है ,वहां वायरलैस सैट है । जिससे वो मैडम से बात करता है ।"

"वायरलैस सैट ?" इंस्पेक्टर दौलतराम के होंठों से निकला ।

"गुड ।" नेगी कह उठा ।

"आश्रम के स्वामी पर वायरलैस सैट की बिनाह पर हम आसानी से हाथ डाल सकते हैं । जमानत भी नहीं होंगी। लम्बा जाएगा ।" इंस्पेक्टर मोदी अपने शब्दों पर जोर देकर गम्भीर स्वर में कह उठा ।

"तुमने वायरलैस सैट देखा है ।" नेगी ने मोना चौधरी को देखा--- "या किसी से सुना है कि...।"

"मैंने वायरलैस सैट पर बात की है ।" मोना चौधरी मुस्कुराई ।

"बात-किससे ?"

"मैडम से ही समझो ।"

सुनील नेगी ने आंखे सिकोड़कर मोना चौधरी को देखा ।

"क्या बात की मैडम से ?"

"फालतू के सवाल मत करो ।"

"मैडम है कौन ?"

"कोई नहीं जानता ।" मोना चौधरी के चेहरे पर शांत मुस्कान थी--- "लेकिन मैं उसे पहचान चुकी हूं ।"

"क्या ?" नेगी चौंका--- "तुम जानती हो कि मैडम कौन है ?" महाजन और पारसनाथ की नजरें मिली ।

"मैडम कौन है मोना चौधरी ?" मोदी ने पूछा ।

"ताराचंद को संभालो । उसके बाद मैडम के बारे में बात करूंगी ।" मोना चौधरी ने लापरवाही से कहा ।

मोदी और सुनील नेगी की नजरें मिली ।

दौलतराम और दोनों हवलदार कभी नेगी को देखते तो कभी मोना चौधरी को ।

"सुरेशचंद ।" एक ने अपने साथी हवलदार से धीमे स्वर में कहा ।

"हां पूरनचंद ।" दूसरा बोला ।

"ये तो मोना चौधरी है । खतरनाक मुजरिम।"

"और हमारे साहब । घुट-घुट के खतरनाक अपराधी के साथ बातें कर रहे हैं ।"

"साहब तो अपराधियों से सीधे मुंह बात नहीं करते ।"

"लेकिन इस वक्त मामला दूसरा है ।"

"क्या ?"

"साहब की पूंछ फंसी हुई है ।"

"कहां ?"

"मोना चौधरी के पांव के नीचे ।"

पूरनचंद ने सुरेशचंद को देखा।

"सुरेशचंद । मैं पूंछ और पांव वाली बात बिल्कुल भी नहीं समझा ।"

"सीधी सी बात है। साहब इस समय मोना चौधरी की गर्दन नहीं पकड़ सकते । पकड़ी तो मोना चौधरी के भाइयों ने आकर उसे बचा लिया । अब मोना चौधरी, स्वामी ताराचंद जैसे अपराधी के बारे में खुलासा कर रही है । सबूतों के साथ तो साहब ने यही फैसला किया लगता है कि छोटे चोर को ही पकड़ लिया जाए।  खाली हाथ वापस लौटने से तो अच्छा है ।"

"वो स्वामी छोटा चोर कहां- वो तो मैडम नाम के बड़े चोर का पता जानता है।"

"मैडम का पता मिल गया तो साहब के तो मजे आ गए ।"

"कैसे मजे ?"

"तरक्की मिल जाएगी ।"

"पागलों वाली बातें मत कर । साहब को बड़े लोगों ने दो बार पहले तरक्की देने की कोशिश की । लेकिन साहब ने तरक्की नहीं ली। साहब को फील्ड में रहना अच्छा लगता है । लेकिन मैं तरक्की ले लूंगा ।"

"तुम ?"

"हां । मुझे तरक्की लेने में कोई एतराज नहीं ।"

"अपनी वर्दी संभाल । तरक्की का लालच, तेरे को पूरी तरह डूबो...।"

"चुप करो ।" पीछे खड़ा इंस्पेक्टर दौलतराम कह उठा--- "मैं सब सुन रहा हूं।"

दोनों इस तरह खड़े हो गए जैसे सुबह से उन्होंने बात ही न की हो ।

"मैडम के बारे में बताने में क्या हर्ज है मोना चौधरी ?" मोदी ने गम्भीर स्वर में कहा ।

"जरूरत क्या है । पहले तुमने ताराचंद पर हाथ डालना है । वो काम पूरा करो । ये बात बात तो है ।"

कुछ पलों के लिए वहां खामोशी रही ।

"इंस्पेक्टर मोदी ।" सुनील नेगी ने कहा--- "मैडम के बारे में जानने की कोई जल्दी नहीं । पहले ताराचंद पर हाथ डाल लें।"

मोदी सिर हिलाकर रह गया ।

महाजन ने घूंट भरा । चेहरे पर किसी तरह के भाव नहीं थे ।

"आश्रम का नक्शा बताओ मोना चौधरी।"

मोना चौधरी ने आश्रम के रास्तों के बारे में खुलासा तौर पर बताया ।

मोना चौधरी ने खामोश होते ही नेगी से कहा ।

"ताराचंद पर हम काबू पा लेंगे । हम आठों इस काम को अच्छी तरह अंजाम दे सकते हैं ।"

"आठ नहीं । पांच ।" मोना चौधरी ने टोका--- "मैं और मेरे साथी इस काम में दखल नहीं देंगे ।"

नेगी की निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी ।

"तुम तो कह रही थी कि पैसे को कहीं छिपाकर, ताराचंद को खत्म करने जाना है ।"

"हां । यही कहा था ।"

"इस काम के लिए तुम, हमारे साथ क्यों नहीं जा सकती ?"

"पुलिस वालों के साथ काम करने का मेरा मन नहीं है । ताराचंद और मैडम के बारे में तुम्हें बता दिया। यही बहुत है । हम तीनों यहीं रहेंगे । ताराचंद से निपटकर, यहां आ जाओ । तब मैडम के बारे में बात कर लेंगे।"

"इस मामले में मेरे साथ नहीं चलना चाहती तो मोना चौधरी तुम्हें दोबारा कहूंगा भी नहीं ।" इंस्पेक्टर सुनील नेगी ने अपने शब्दों पर जोर देकर गम्भीर स्वर में कहा--- "हम पांचों भी ये काम पूरा कर सकते हैं ।"

मोना चौधरी ने महाजन को देखा

"पचास लाख वाला थैला संभाल लो। इनके वापस लौटने तक हमें ही रहेंगे ।"

"अगर ये लौट के आ न सके तो ?" महाजन ने तीखी निगाहों से नेगी को देखा ।

"हममें से एक तो लौटेगा ही । वो बाकी चारों के मरने की खबर तुम लोगों को दे देगा ।" नेगी मुस्कुरा पड़ा--- "तब तुम तीनों का इंतजार खत्म हो जाएगा ।"

मोदी के चेहरे पर शांत-सी मुस्कान आ गई ।

पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा ।

पांचों चले गए तो पारसनाथ ने मोना चौधरी से पूछा ।

"तुमने उनके साथ जाने से इंकार क्यों कर दिया ?"

"जरूरत नहीं थी । वो लोग जिस काम के लिए गए हैं, उसे पूरा कर लेंगे। ताराचंद के चेले-चपाटे परेशानी अवश्य पैदा करेंगे, परन्तु आश्रम में मौजूद बाहरी लोगों का इन्हें सहयोग मिलेगा ।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा ।

"तुम जानती हो, मैडम कौन है ?" पारसनाथ ने पुनः पूछा ।

"हां। इत्तेफाक से इस बात का पता चल गया । इस बारे में बाद में बताऊंगी ।"

महाजन ने घूंट भरा और नीचे बैठता हुआ बोला।

"बेबी ! हम तो रात भर के जगे हुए हैं । कम से कम मुझे तो तब नींद से उठाना, जब जरूरी काम हो । इसके साथ ही महाजन ने बोतल एक तरफ खड़ी की और नीचे लेट गया--- "तुम भी आराम कर लो पारसनाथ ।" फिर वो मोना चौधरी से कह उठा--- "बेबी, हमारे यहां रुकने की जरूरत ही क्या है । पचास लाख फालतू का मिल गया है । पारसनाथ बता रहा था कि एक करोड़ पहले बना चुकी हो । चलते हैं । स्वामी ताराचंद को तो मोदी और सुनील नेगी संभाल लेंगे । उसके बाद तो...।"

"हमें ऐसा कोई काम नहीं कि यहां से चले जाएं । कुछ रुकने में क्या हर्ज है ।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "मैं मैडम जैसे खतरे को खत्म करवा देना चाहती हूं ।"

"ये काम तो हम आसानी से कर लेंगे । मैडम के बारे में तुम्हें पता चल चुका है कि...।"

"सवाल मैडम को खत्म करने का नहीं, उसका मुंह खुलवाने का है । मैडम का मुंह खुलने पर कई, नई बातों के बारे में पता चलेगा । कानून को इससे बहुत फायदा होगा । कई सबूत मिलेंगे ।"

महाजन के चेहरे पर सोच के भाव उभरे ।

"मैडम अपना मुंह नहीं खोलेगी । वो कुछ नहीं बताएगी कि...।"

"मैडम के आदमी बेशक मुंह बंद रखें । लेकिन मैडम मुंह बंद नहीं रख पाएगी । पुलिस उसका मुंह खुलवा लेगी ।"

"बेबी । बहुत विश्वास के साथ कह रही हो कि मैडम पुलिस के सामने मुंह खोल देगी ।"

"क्योंकि मैं मैडम को जानती हूं कि वो मुंह बंद नहीं रख पाएगी । उसका पति है । परिवार है । उनके सामने वो खामोश नहीं रहेगी । हालात ऐसे पैदा कर दूंगी कि उसे पुलिस के सामने सब कुछ बताना पड़ेगा ।"

महाजन गहरी सांस लेकर पारसनाथ से कह उठा ।

"बेबी हमें भी बताने को तैयार नहीं कि मैडम कौन है।"

पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा, फिर अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा । थोड़ा-सा मुस्कुराया ।

"मालूम हो जाएगा ।" पारसनाथ ने कहा--- "मैडम कौन-सी हमारे पास मौजूद है कि हम कहें, मोना चौधरी ने मुंह बंद रखा हुआ है ।"

"ठीक है भाई । थोड़ी सी नींद मार लें ।" महाजन आंखें बंद करते हुए बोला--- "उसके बाद आराम करने का वक्त नहीं मिलेगा । पुलिस पार्टी का कोई भरोसा नहीं, उल्टे पांव लौट आए।"

■■■

इंस्पेक्टर सुनील नेगी, मोदी दौलतराम और कॉन्स्टेबल सुरेशचंद-पूरनचंद जब आश्रम में पहुंचे तो वहां का माहौल ही दूसरा नजर आया । स्वामी ताराचंद के निवास स्थान, एक मंजिला मकान के गिर्द साधुओं और श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठी थी । कभी वहां शांति होती तो कभी शोर- सा उठ जाता ।

मकान के बाहर खुले में एक तख्त पर स्वामी ताराचंद का मृत शरीर रखा हुआ था । गर्दन तक चादर से ढका हुआ था। चेहरा स्पष्ट नजर आ रहा था । शरीर पर फूल और फूलों की पंखुड़ियां बिखरी हुई थी । नजर आ रहे चेहरे के माथे पर चंदन का तिलक लगाया हुआ था।

एक तरफ दरी बिछी थी । जहां चंद साधुओं के साथ मुनीराम मौजूद था और हाथ में छोटा सा माइक पकड़े शांत गम्भीर स्वर में कह रहा था ।

"स्वामी जी ने बहुत दुखी मन से शरीर त्यागा । मुझे कहने लगे-मुनि घोर कलयुग का वक्त निकल रहा है । इंसान को अपने अलावा कुछ भी प्यारा नहीं । मरते इंसान के मुंह में पानी की दो बूंदें डालने को तैयार नहीं । संसार स्वार्थी हो गया है । रात भगवान ने मुझे सपने में दर्शन दिए और कहा कि ताराचंद, हमने तो तेरे को दुनिया का भला करने और सही रास्ते पर लाने को भेजा था । परन्तु तूने क्या किया । स्वामी जी ने कहा, भगवान मैं तो आपकी इच्छा के अनुसार ही कार्य करता हूं । कहो, मुझसे कहां, भूल हुई । मैं सुधार लूंगा तो भगवान ने कहा, भूल तेरे से नहीं, हमसे हुई है, जो ये दुनिया बना दी । सोचा था इंसान प्यार से रहेंगे । एक-दूसरे के सुख-दुख बांटेंगे। परन्तु यहां प्यार तो बचा ही नहीं । हर कोई पैसे के पीछे भाग रहा है, जिसने अगले एक घंटे में प्राण दे देने हैं, वो भी पैसे को संभालकर रख रहा है, जैसे अपने जीवन के सौ बरस का सामान इकट्ठा कर रहा हो । दुख-दर्द बांटना तो दूर । इंसान दूसरे को सुखी देखकर उसका सुख छीन लेता है । उसे दुखी देखकर प्रसन्न होता है ।"

मुनीराम खामोश हुआ तो पास मौजूद साधू कह उठा ।

"फिर क्या कहा स्वामी जी ने ?"

"स्वामी जी ने आगे बताया कि संसार की हालत देखकर भगवान बहुत दुखी थे । भगवान संसार का कल्याण करना चाहते हैं, परन्तु मानव तो अपने लोभ में भागा फिर रहा है । किसका कल्याण करें । कोई उनकी सुने तो तब । अंत में भगवान ने स्वामी जी से कहा कि धरती पर तू जो कर्म कर रहा है, वो तो तेरा कोई बुद्धिमान शिष्य भी कर लेगा । तू मेरे पास आ-जा । तेरी यहां जरूरत है ।"

"भगवान के पास ?" एक श्रद्धालु ने पूछा 

"हां ।"

"वहां स्वामी जी क्या करेंगे ?"

"धरती पर आने से पहले स्वामी जी भगवान के पास, नए जन्म लेने वाले मानव के भीतर इच्छाएं और मस्तिष्क डालते थे । स्वामी जी बहुत सोच-समझकर इंसान में इच्छाएं और मस्तिष्क डालते थे कि धरती पर आकर, इंसान सब्र के साथ रहे । ऐसा होता ही रहा । परन्तु भगवान ने स्वामी जी को मनुष्य का शरीर देकर, मनुष्यों का भला करने पृथ्वी पर भेज दिया और स्वामी जी के कार्य जिस पवित्र आत्मा को सौंपे गए वो बेहद कोमल विचारों वाली थी । उस आत्मा ने उदारता दिखाई और जन्म लेने वाले मनुष्यों में इच्छाएं और मस्तिष्क से ज्यादा डालना शुरू कर दिया । जिसका फल ये हुआ कि धरती पर मनुष्यों की इच्छाएं भारी पड़ने लगी। प्यार खत्म होने लगा । इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य ही मनुष्य को खाने लगा । ज्यादा मस्तिष्क की वजह से, इंसान ने अपना चैन गंवाकर दूसरे ग्रहों पर पांव रख दिया । इससे इंसान की परेशानियां बढ़ती ही चली गई और आज इंसान को ये भी नहीं मालूम कि उसका कौन-सा कर्म क्या फल दे रहा है । मनुष्य तो भागा जा रहा है । निरर्थक भागा जा रहा है । कोई वजह नहीं । कोई कारण नहीं । भागने वाले से पूछो कि तू क्यों भाग रहा है तो जवाब मिलता है, दूसरा भाग रहा है।  इसलिए मैं भाग रहा हूं । यानी कि किसी को अपनी मंजिल का ज्ञान नहीं । परन्तु व्यर्थ की भागदौड़ जारी है । यही बात मनुष्य जाति के विनाश का कारण बनती जा रही है।"

मुनीराम खामोश हुआ ।

सबका ध्यान पूरी तरह मुनीराम की बातों पर था ।

तभी एक अन्य श्रद्धालु उत्सुकता से कह उठा ।

"लेकिन भगवान, स्वामी जी को वापस क्यों जाने के लिए...।"

"ये सवाल वास्तव में उत्सुकता से भरा है ।" मुनीराम ने गम्भीर स्वर में कहा--- "स्वामी जी को तो ये बातें याद भी नहीं थी । भगवान के बताने पर ही उन्हें याद आ रहा था । स्वामी जी ने मुझे बताया कि, भगवान ने अपने कई शिष्यों से जन्म से पूर्व मनुष्य में इच्छाएं और मस्तिष्क डालने का काम लिया। परन्तु कोई भी ये दोनों चीजें उचित मात्रा में मनुष्यों में डालने में कामयाब नहीं हो सका तो भगवान ने यही फैसला किया कि स्वामी जी को धरती से बुलाकर, ये काम उन्हें ही सौंपा जाए । जब से स्वामी जी ने ये काम छोड़ा है, मनुष्य ने धरती पर अन्याय फैला दिया है ।"

"ओह ।"

"यही वजह रही कि स्वामीजी शरीर त्यागकर, भगवान के पास चले गए । श्रद्धालुओं ये दुख की बात नहीं है । खुशी की बात है कि स्वामी जी की देख-रेख में अब जो भी मनुष्य धरती पर जन्म लेगा । उसकी इच्छाएं और मस्तिष्क सीमित होगा । वो दूसरे ग्रहों को जीतने की इच्छा मन में नहीं रखेगा । पैसा बनाने के लिए दूसरों की गर्दन नहीं काटेगा । ईमानदारी से जो भी मिलेगा, पेट में डालकर रात बिता लेगा। धरती के बिगड़े लोग धीरे-धीरे सुधरते जाएंगे । स्वामी जी के बिछोह से मन तो अवश्य खराब हुआ । लेकिन जो होता है भले के लिए ही होता है, फिर ये सब तो दुनिया के भले के लिए हुआ । विदाई के वक्त स्वामी जी ने कहा कि मुनी आश्रम तेरे हवाले हैं । यहां आने वाले श्रद्धालुओं को अच्छे कर्म अच्छे रास्ते पर लगाना। स्वामी जी के आदेश को चाहकर भी इंकार न कर सका । ये भी न कह सका कि ये कार्य किसी दूसरे शिष्य के हवाले कर दीजिए । जो हुक्म मुझे मिला वो बिना किसी एतराज के सिर आंखों पर रख लिया । तब श्रद्धानंद मेरे साथ था ।"

उसी पल श्रद्धानंद उठा और माईक उसने पकड़ लिया ।

मुनीराम नीचे बैठ गया ।

"मुझे तो सब कुछ सपने की भांति लग रहा था ।" श्रद्धानंद कह उठा--- "मेरे देखते ही देखते स्वामी जी पीठ के बल नीचे लेटे और प्राण त्याग दिए। स्वामी जी के मुख से जलती हुई ज्योति निकली और धीरे-धीरे खिड़की के रास्ते कमरे से बाहर निकल गई । वो ज्योति स्वामी जी की पवित्र आत्मा थी । मैं तो...।"

श्रद्धानंद बोलता रहा ।

हर कोई दिलचस्पी से उसकी बातों को सुन रहा था।

सुनील नेगी और मोदी की नजरें मिली ।

"बकवास कह रहे हैं ये दोनों, लोगों को लुभा रहे हैं, ऐसी बातें करके । कोई भी इस तरह शरीर नहीं त्याग सकता । साला ड्रग्स का स्मगलर था । इस मामले में भारी गड़बड़ हो चुकी है ।" मोदी ने कड़वे स्वर में कहा--- "ताराचंद की हत्या इन दोनों हरामियों ने ही की है । चैक करो-ताराचंद के शरीर पर जख्म या गोलियों के निशान अवश्य मिलेंगे।"

"मुझे भी इस बात का पूरा विश्वास है ।" नेगी ने दांत भींचकर कहा--- "लेकिन यहां पर सवाल श्रद्धा का है । ताराचंद के चेले हर तरफ बिखरे हुए हैं । श्रद्धा से भरे लोग हैं यहां । ऐसे में ताराचंद के शरीर को चैक करने का मतलब है, इन सबको गुस्सा दिलाना । ये जंगल है । यहां हमारी सहायता को भी नहीं कोई आएगा।"

श्रद्धानंद बोल रहा था ।

तभी एक अन्य साधू उठा और श्रद्धानंद के हाथ से माईक लेकर कह उठा।

"हमें खुशी होनी चाहिए कि हमारे स्वामी इतनी महान आत्मा थे कि भगवान स्वयं उन्हें लेने आए । इस खुशी में हम आश्रम में यज्ञ करेंगे। अड़तालीस घंटे लगातार भगवान का कीर्तन होगा । स्वामी जी शरीर त्यागते समय हमें नई दिशा दे गए हैं । हम सबको मिलकर उसी दिशा की तरफ चलना है ।"

"स्वामी जी की जय हो ।"

"जय हो ।"

"नहीं श्रद्धालुओं । ये स्वामी जी की माया नहीं । माया तो भगवान की है ।" वो साधु पुनः कह उठा ।

तभी श्रद्धानंद बोला ।

"आप विश्राम कर लीजिए चेतनानंद जी । थक गए होंगे ।"

"श्रद्धानंद जी । अभी तो मेरे शरीर में इतनी जान है कि इस आश्रम का बोझ उठा सकूं । चंद शब्द कहने से मुझे थकन अनुभव नहीं होती ।" चेतनानंद ने मुस्कुरा कर कहा । फिर सबको देखते हुए माईक में बोले--- "जैसा कि मुनीराम जी ने कहा कि वो इस आश्रम को संभालने की जिम्मेवारी नहीं लेना चाहते । परन्तु स्वामी जी का कहा, नहीं टाल सकते । ये उनकी महानता है कि उन्होंने स्वामी जी के शब्दों की इज्जत रखी । ऐसे में हमारा भी फर्ज बनता है कि हम मुनीराम जी की सेहत का ख्याल रखें।  कल ही मुझसे कह रहे थे कि उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती ।"

मुनीराम ने हड़बड़ाकर पास बैठे साधू साथियों को देखा ।

श्रद्धानंद भी चोर निगाहों से मुनीराम को देखने लगा ।

चेतनानंद ने कहना जारी रखा।

"ऐसे में आश्रम संभालने की जिम्मेदारी मैं अपने सिर पर ले लेता हूं । जरूरत पड़ने पर मुनीराम जी मुझे समय-समय पर सलाह देते रहेंगे । यूं समझिए कि कार्य मैं करूंगा परन्तु उसमें मुनीराम जी की रजामंदी होगी । मुझे पूरा विश्वास है कि अपना बोझ हल्का हो जाने से, मुनीराम जी खुद को हल्का महसूस करने लगे होंगे । इस पर भी किसी को मेरी बात पर एतराज है तो कह सकता है । उचित कारण हो तो, मैं ये जिम्मेवारी किसी दूसरे को सौंप दूंगा।"

"मुझे कोई एतराज नहीं ।" एक साधू ने कहा ।

"इस आश्रम की जिम्मेदारियां हम चेतनानंद जी के हवाले करते हैं ।"

धीरे-धीरे सभी साधुओं की आवाजें एक होने लगी ।

मुनीराम और श्रद्धानंद के चेहरे देखने लायक थे ।

चेतनानंद दोनों हाथ उठाकर, हिलाते हुए सबको शांत रहने का इशारा करने लगा ।

तभी इंस्पेक्टर मोदी आगे बढ़ा और चेतनानंद के पास जा पहुंचा।

"मैं स्वामी जी का बहुत पुराना भगत था ।" मोदी ने कुछ ऊंची आवाज में कहा ताकि माईक के जरिए लोग उनके शब्दों को सुन सकें--  "मैं कुछ कहना चाहता हूं ।"

"अवश्य कहो ।" चेतनानंद ने मुस्कुराकर कहा--- "दो शब्द कहने पर किसी को रोक नहीं ।"

मोदी ने माईक पकड़ लिया ।

भीड़ में खड़ा सुनील नेगी आंखें सिकोड़े मोदी को उलझन भरी निगाहों से देख रहा था।

"आश्रम वालों को मेरा प्रणाम और यहां आने वाले भाई-बहनों को मेरा नमस्कार । मैं स्वामी जी की बहुत पुरानी पहचान वाला हूं । बहुत अच्छे संबंध रहे स्वामी जी से मेरे । यहां से ही नहीं, बहुत पहले से जानता हूं स्वामी जी को । कभी-कभी स्वामी जी मुझसे मन की बात कर लिया करते थे। ये बात तो वे अक्सर करते थे कि जब वे शरीर त्यागें तो कमर से ऊपर उनके शरीर पर कपड़ा न दिया जाए ।"

"ऐसा क्यों ?" पास खड़े चेतनानंद ने कहा ।

"ये तो स्वामीजी जानें । उनकी सोचों तक मैं नहीं पहुंच सकता । लेकिन स्वामी जी की अंतिम इच्छा मैं अवश्य पूरी करना चाहूंगा । स्वामी जी का शरीर तब तक कमर तक नग्न रखा जाए, जब तक उन्हें मुखाग्नि नहीं दी जाती ।"

मोदी के शब्दों के साथ ही वहां चुप्पी-सी छा गई ।

मुनीराम के चेहरे पर घबराहट उभरी । उसने श्रद्धानंद को देखा । श्रद्धानंद पहले ही उसे देख रहा था । दोनों ने आंखों ही आंखों में बातें की कि अगर कमर तक कपड़ा हटाया गया तो गर्दन पर चाकू का जख्म सबको नजर आ जाएगा। फिर सब समझ जाएंगे कि स्वामी जी को उन्होंने ही मारा है ।

तभी मोदी पुनः बोला ।

"अगर मेरी बात पर एतराज हो तो...।"

"ये ऐसी बात नहीं की इंकार किया जाए ।" चेतनानंद ने कहा--- "मैं खुद ये काम कर देता हूं ।"

"हां-हां ।" चार कदमों पर बैठा साधू कह उठा--- "इस बात में भला क्या एतराज हो सकता है । बुरा ही क्या है, हम लोग अच्छी तरह स्वामी जी के दर्शन कर लेंगे ।"

"स्वामी जी की आत्मा भी खुश होगी कि उनकी इच्छा के मुताबिक उनके शरीर को रखा गया ।" मोदी कह उठा।

चेतनानंद तख्त पर पड़े, स्वामी ताराचंद के शरीर की तरफ बढ़ा ।

मुनीराम और श्रद्धानंद की घबराई नजरें मिली । आंखों में इशारे हुए । दोनों जल्दी से उठे और बैठे साधुओं को पार करते हुए तेजी से एक तरफ बढ़ गए ।

चेतनानंद ने ताराचंद की गर्दन पर लिपटा कपड़ा हटाया और कमर तक खींच दिया । उसी पल ही वो चौंका । आंखें हैरानी से फैल गई । नेगी करीब आ गया था । कुछ और लोग भी ।

गर्दन पर लगे कपड़े पर खून लगा था । गर्दन के पास भी खून नजर आ रहा था ।

"ये खून है ।" सुनील नेगी कह उठा।

"खून कहां से आ गया ?" चेतनानंद के होंठों से निकला ।

नेगी ने जल्दी से ताराचंद की गर्दन चैक की । गर्दन के पीछे वाले हिस्से पर चाकू का बड़ा निशान स्पष्ट दिखा । चेतनानंद की आंखें और भी फैल गई ।

"ओह ! किसी ने स्वामी जी की गर्दन काटी है ।"

"स्वामी जी की चाकू मारकर हत्या की गई है ।" सुनील नेगी ऊंचे स्वर में कह उठा ।

नेगी के शब्दों के साथ ही वहां हलचल मच गई ।

"स्वामी जी की हत्या ?"

"हे भगवान ।"

"ये तो अनर्थ हो गया ।

"ये महापाप किसने किया । बहुत बड़ा पापी है वो ।"

तभी दीनापाल यानी कि कैप्टन कालिया साधुओं की भीड़ से निकला ।

"ये काम मुनीराम और श्रद्धानंद ने किया है । वो दोनों ही स्वामी जी के अंतिम समय में साथ थे । उनके सामने ही स्वामी जी ने प्राण त्यागे । स्पष्ट है कि उन दोनों ने ही स्वामी जी को कष्ट देकर, उन्हें मौत दी और सबको झूठी कहानी सुना दी कि स्वामी जी ने स्वयं प्राण त्यागे । मुनीराम स्वयं स्वामी जी का स्थान पाना चाहता था ।"

"मुनीराम पापी है ।" एक साधू चिल्ला उठा ।

"घोर पापी है वो ।"

"मुनीराम को पकड़ो।"

"कहां है, यहीं था ।"

"यहां नहीं है । भाग गया । श्रद्धानंद भी नजर नहीं आ रहा ।"

"वो पास ही होंगे । ढूंढो उन्हें ।"

इसके बाद तो वो सब और वहां मौजूद श्रद्धालु उनकी तलाश में लग गए ।

मोदी और नेगी मिलें । दौलतराम, सुरेशचंद, पूरनचंद साथ ही थे।

"दोनों आश्रम से भाग गए लगते हैं ।" नेगी ने कहा ।

"हां । आजपास जंगल है। उन्हें ढूंढना आसान भी नहीं ।"

मोदी ने वहां मची भगदड़ को देखते हुए कहा--- "अच्छा यही होगा कि हम वक्त न खराब करके, उस मकान को देखें, जहां ताराचंद रहता था।"

दोनों दौलतराम और हवलदारों को लेकर उस मकान में पहुंचे जहां ताराचंद रहता था । इधर किसी का भी ध्यान नहीं था । कमरे में रखी पेटी में से उन्हें जल्दी ही वायरलैस सैट मिल गया ।

उसके बाद उन्होंने आश्रम में मौजूद ड्रग्स की तलाश शुरू की । इसके लिए उन्होंने तीन-चार साधुओं की सहायता ली । चार घंटे लगे, ड्रग्स को ढूंढ पाने में । ड्रग्स एक झोपड़े में मिली । झोपड़े के फर्श पर घास-फूस फैला रखी थी और नीचे काफी बड़ा गड्ढा था। जो कि ड्रग्स से भरा हुआ था । एक सालों से पता चला कि प्यारेलाल नाम का आदमी, जो की अक्सर स्वामी जी के बरसों से आ रहा था । वो ही यहां पर ड्रग्स छोड़ जाता था । डेढ़ दिन पहले वो ये सारी ड्रग्स छोड़ गया था ।

मोदी और नेगी ने फौरन सारे आश्रम को घेरे में ले लिया । आपने परिचय पत्र दिखाकर सबको बता दिया कि वे पुलिस वाले हैं। कुछ साधुओं ने उनका साथ दिया तो बाकी का साथ वहां आए लोगों ने दिया। वहां पर पूरी घेराबंदी कर ली गई । कुछ साधू और कुछ लोग अभी भी मुनीराम और श्रद्धानंद को तलाश करने गए थे ।

चंद घंटों में ही आश्रम का माहौल एकाएक बदल गया था ।

पहले जहां स्वामी जी-स्वामी जी होता था । उपदेश और आरती होती थी । वहां अब कानों में खुसर-फुसर हो रही थी, ताराचंद के बारे में कि वो गैर कानूनी काम करता था, आश्रम की आड़ में ड्रग्स का बहुत बड़ा व्यापारी था । जिसकी पुलिस को लंबे वक्त से तलाश थी ।

"अब क्या किया जाए सर ?" दौलतराम नेगी और मोदी के पास पहुंचा।

"हम जो कर सकते हैं वो कर रहे हैं ।" नेगी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "हमें मुनीराम की जरूरत है । उसके साथी श्रद्धानंद की जरूरत है।  उन्हें इस घने जंगल में ढूंढ पाना आसान नहीं । जबकि वो यहां के सारे रास्तों से वाकिफ है।

"वो दोनों जंगल से निकल भी सकते हैं ।" मोदी कह उठा--- "ये भी हो सकता है वो कभी भी हमारे हाथ न आए ।"

"उन्हें तलाशने के लिए बहुत लोग गए थे ।" दौलत राम ने कहा--  "लेकिन अब वो वापस लौटने लगे हैं उनके चेहरे पर मायूसी है। होंठों पर यही है कि वो दोनों गहरे जंगल में कहीं दूर निकल गए हैं ।"

मोदी और सुनील नेगी की नजरें मिली।

"उन दोनों का ख्याल छोड़ो ।" मोदी ने सोच भरे स्वर में कहा, फिर दौलतराम से बोला--- "तुम दोनों हवलदारों को और यहां के लोगों के साथ आश्रम को सख्त घेरे में रखो । हम मोना चौधरी के पास होकर, फिर करीब के शहर में पुलिस को यहां के बारे में खबर करते हैं । यहां के मामले को संभालने के लिए ज्यादा पुलिस चाहिए ।"

"ठीक है सर । हम यहां पर सब ठीक से संभाल लेंगे ।"

"ड्रग्स की अच्छी पहरेदारी रखना ।"

"ड्रग्स के पास आश्रम में आने वाले आठ लोग पहरा दे रहे है ।" इंस्पेक्टर दौलतराम ने कहा ।

"गुड ।" सुनील नेगी ने कहा--- "हो सकता है हमें आने में दस-बारह घंटे लग जाएं । करीब के शहर में जाना है।"

सुनील नेगी और मोदी आश्रम से निकले तो सावधानी से कैप्टन कालिया उनके पीछे लग गया ।

■■■

मुनीराम और श्रद्धानंद आश्रम से निकलकर घबराए से जंगल में एक तरफ भाग खड़े हुए थे । दोनों के चेहरे फक्क थे । बदहवास से नजर आ रहे थे दोनों ।

"मुनी ।" भागते-हांफते श्रद्धानंद कह उठा--- "बहुत बुरे फंस गए थे।"

"ठीक कहते हो । अगर भागते नहीं तो उन लोगों ने क्रोध में हमारे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देने थे ।" मुनीराम बोला ।

"वो कौन था, जिसने स्वामी जी के शरीर से कपड़ा हटाने को कहा ।

"वो कोई ढोंगी रहा होगा । यकीनन उसे शक रहा होगा कि ताराचंद के शरीर के साथ कोई गड़बड़ हुई है ।"

"अब क्या करें ?"

दोनों भागते हुए बातें कर रहे थे ।

"सबसे पहले तो हमें यहां से दूर भाग जाना है । आश्रम में मौजूद लोग हमें तलाश कर रहे होंगे । उनके हाथ नहीं आना । वो हमें मार डालेंगे । यहां से हमारा दाना-पानी उठ चुका है ।" मुनीराम कह उठा--- "लेकिन हमें चिंता करने की आवश्यकता नहीं । स्वामी ताराचंद की बातों का पूरा अनुभव है मुझे । मैं जान चुका हूं कि आश्रम को कैसे चलाया जाता है । लोगों को कैसे बेवकूफ बनाकर, उनसे पैसा ऐंठा जाता है। हम नया आश्रम खोलेंगे । तुम मेरे चेले बनना।"

"लेकिन इसके लिए अच्छी जगह-जमीन चाहिए । तभी तो आश्रम चलेगा ।"

"इस बात की तुम फिक्र मत करो । एक शहर के पास ही छोटा-सा गांव है । वहां मेरे बाग की बहुत बड़ी जमीन है । दो साल पहले ही उस जमीन पर हल चला-चलाकर मेरा बाप मर गया । वहां आश्रम बना लेंगे । धंधा चल निकलेगा।"

"ये बढ़िया कही। वहां स्वामी जी की तरह औरतों को बरगलाना । मन बहलाना रहेगा।

तभी मुनीराम ठिठका ।

श्रद्धानंद भी रुका ।

"क्या हुआ ?"

"वो देखो । मोना चौधरी है वो । स्वामी जी की हत्या करने आई थी । लेकिन स्वामी जी ने उसे पचास लाख देकर वापस भेज दिया । उसके बाद ही मैंने स्वामी जी का काम तमाम किया ।" मुनीराम गहरी-गहरी सांसे ले रहा था।

श्रद्धानंद ने कुछ दूर नजर मारी ।

दो व्यक्ति नीचे लेटे नजर आए । मोना चौधरी उनके पास ही बैठी थी । इधर ही देख रही थी ।

"मुनी । ये तो वो ही है, जिसने अपने साथी के साथ, नदी किनारे मुझे पकड़ लिया था और...।"

"जो भी हो । ये मोना चौधरी है ।" मुनीराम उखड़ी सांसो पर संयत पाने लगा था--- "हमें ही देख रही है ।"

दो पलों की चुप्पी के बाद श्रद्धानंद बोला ।

"मुनी, तुमने बताया कि ये पचास लाख लेकर चली गई थी ।"

"हां ।"

"कहां है पचास लाख ?"

मुनीराम ने नजर मारी ।

"उसके पास ही थैला भरा नजर आ रहा है । वो पचास लाख के नोटों से भरा हुआ ।" मुनीराम ने श्रद्धानंद को देखा ।

"ये तो बढ़िया हो गया ।"

"क्या मतलब ?"

"उस समय पर आश्रम बनाने के लिए हमें पचास लाख मिल जाए तो इससे बढ़िया क्या हो सकता है । वरना चार साल उस खाली जमीन पर तंबू लगाकर बैठना पड़ेगा । धूप-छांव सहनी पड़ेगी । थोड़ा-थोड़ा करके चंदा इकट्ठा होगा । उससे पहले एक कमरा बनेगा । इस तरह तो आश्रम को बनाने में दस साल लग जाएंगे।"

मुनीराम के होंठ और आंखें सिकुड़ गई ।

"इसमें सोचने की क्या बात है ?"

"मोना चौधरी खतरनाक है ।" मुनीराम बोला ।

"मालूम है मुझे ! मैं उसे भुगत चुका हूं ।"

"उसके दो साथी भी नजर आ रहे हैं।"

"पचास लाख पाने के लिए खतरा तो उठाना ही पड़ेगा । सोचो आश्रम चल गया और गड्डियों की बरसात होने लगी तो हमारे पास बेहिसाब दौलत हो जाएगी । तब हम मुंबई में बंगला बना लेंगे और फिल्में फाइनेंस करने का काम भी शुरू कर देंगे । इंडस्ट्री की सारी हीरोइनें हमारे गिर्द घूमा करेंगी । फिल्मी कलाकार हमारे आश्रम में आएंगे तो, पब्लिक भी हमारे आश्रम की तरफ दौड़ेगी । तब हमारे आश्रम में नोटों की बरसात होने लगेगी । हम फिल्में बनाना शुरु कर देंगे।  मौज ही मौज होगी ।"

मुनीराम ने श्रद्धानंद को देखा । कहा कुछ नहीं ।

"अब क्या हुआ ?"

"तू जो कह रहा है, वो तभी होगा, जब पचास लाख हमारे हाथ आएगा । आश्रम बनेगा और...।"

"धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा । आ-पहले पचास लाख पर हाथ साफ करें । तेरे पास चाकू है ?"

"हां।"

"चल । मोना चौधरी को पहले शीशे में उतारेंगे फिर उसका गला उतारेंगे ।"

दोनों मोना चौधरी की तरफ बढ़ गए । पास पहुंचे ।

"श्रद्धालु, आप यहां क्या कर रही हैं ?" मुनीराम कह उठा ।

"आराम कर रही हूं ।" मोना चौधरी मुस्कुराई--- "पचास लाख का बोझ उठाकर एक साथ ज्यादा दूर तक नहीं चला जाता ।"

मुनीराम बैठता हुआ बोला ।

"बैठ श्रद्धानंद । कुछ पल आराम कर ले ।"

श्रद्धानंद मोना चौधरी को देखकर हाथ जोड़कर कह उठा ।

"मैं उनकी इजाजत के बिना नहीं बैठ सकता । ये श्रद्धालु बहुत जल्दी नाराज हो जाती हैं ।"

"स्वामी जी की खास पहचान वाली हैं ये श्रद्धालु । इनका नाम मोना चौधरी है । बैठ जाओ।"

श्रद्धानंद बैठ गया ।

"मोना चौधरी । तुम्हारे जाने के बाद स्वामी जी ने सब बातें मुझे बता दी थी ।"

"कैसी बातें ?"

"पचास लाख वाली ।"

मोना चौधरी मुस्कुराकर रह गई ।"

मैं तुम्हें बुरी खबर से अवगत करा देना चाहता हूं कि किसी ने स्वामी जी के प्राण ले लिए ।

मोना चौधरी सामान्य ही रही ।

"मैंने कहा, स्वामी जी के प्राण...।"

"मालूम है मुझे । कुछ लोग जंगल में भटकते हुए इधर आए थे । वो तब गुस्से में थे और मुनीराम-श्रद्धानंद को तलाश कर रहे थे कि उन्होंने स्वामी जी के प्राण, भगवान की आज्ञा के बिना ले लिए ।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।

मुनीराम और श्रद्धानंद हड़बड़ा उठे । एक दूसरे को देखा ।

"घबराओ मत । इस बात को एक घंटा हो गया । वो वापस भी पहुंच गए हैं और अब इधर नहीं आएंगे ।"

मुनीराम ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

श्रद्धानंद ने दूर-दूर तक जंगल में नजर मारी ।

"ये तो हमारे हक में बात कर रही है ।" श्रद्धानंद कह उठा--- "मैं तो खामख्वाह इससे भय खा रहा था ।"

"भय की कोई बात नहीं ।" मुनीराम ने नोटों से भरे थैले पर नजर मारकर मोना चौधरी को देखा--- "श्रद्धालु क्यों न इसे भी आश्रम के धंधे में अपनी पार्टनर बना लें ।"

"पार्टनर ?" श्रद्धानंद के होंठों से निकला ।

"क्या हर्ज है ।" मुनीराम कह उठा--- "हमारे आश्रम ने इतना ज्यादा चल निकलना है कि दो-चार और भी हो जाएं तो फर्क नहीं पड़ेगा । मिल-जुलकर खाने का मजा ही दूसरा है।" मुनीराम समझाने वाले ढंग से कह उठा।

"कहां मेरी हिस्सेदारी रखी जा रही है । मुझे भी तो पता चले ।" मोना चौधरी कह उठी ।

मुनीराम हौले से हंसा फिर कह उठा ।

"हम आश्रम खोल रहे हैं । बहुत चलेगा वो ।  हमने फैसला किया है कि तुम्हें भी उस आश्रम में हिस्सेदार बना लें ।"

मोना चौधरी मुस्कुराई।

"इन दोनों को भी आश्रम के कामों में लगा देंगे ।" मुनीराम बोला । उसने महाजन-पारसनाथ पर नजर मारी--- "ये है कौन ?"

"मेरे साथी हैं ।" मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान थी--- "ताराचंद को क्यों मारा ?"

मुनीराम और श्रद्धानंद ने एक-दूसरे को देखा ।

"सच बात तो ये है कि ताराचंद मैडम के लिए काम करता था । मैडम ने मुझे भी ट्रांसमीटर दे रखा था कि ताराचंद की हरकतों की खबर खामोशी से उसे देता रहूं । मैडम ने ट्रांसमीटर पर मुझसे कहा कि ताराचंद बगावत पर उतर आया है । उसे खत्म कर दूं ।  मैंने फौरन ताराचंद को खत्म किया और खुद स्वामी बनने की चेष्टा करने लगा । परन्तु गड़बड़ हो गई । उधर किसी को शक हो गया कि ताराचंद के साथ गड़बड़ हुई है । शक हम पर गया । हमें आश्रम से भागना पड़ा।"

"समझी। अब फिक्र मत करो । मेरे साथी आ रहे हैं, हमारे साथ ही चलना ।"

"ये तो अच्छी बात है । क्यों श्रद्धानंद ।"

"बिल्कुल । बिल्कुल ।" श्रद्धानंद ने सिर हिलाया ।

"वो ट्रांसमीटर कहां है, जिससे मैडम से बात करते हो ।" मोना चौधरी लापरवाही से बोली ।

"आश्रम में रह गया । उठा लाने का वक्त ही नहीं मिला ।"

"फिर तो तुम ये भी जानते होंगे कि मैडम है कौन ?" मोना चौधरी ने पूछा ।

"नहीं मालूम ।"

"ट्रांसमीटर किससे लिया ?"

"कोई आदमी दे गया था । बोला, मैडम ने भिजवाया है ।" मुनीराम कह उठा ।

मोना चौधरी कुछ नहीं बोली ।

दोनों वहीं बैठे रहे । कुछ देर बाद श्रद्धानंद कह उठा ।

"कब तक तुम्हारे साथी आएंगे ?"

"आ जाएंगे । उसके बाद कोई दिक्कत नहीं । कुछ दूर कारें खड़ी हैं । आराम से यहां से निकल जाएंगे।"

मुनीराम ने छिपी निगाहों से नोटों से भरे थैले को देखा । फिर पलक झपकते ही कपड़ों से दांतेदार चाकू निकाला और उछलकर खड़ा हो गया । चेहरे पर दरिंदगी उभर आई थी ।

श्रद्धानंद भी फौरन खड़ा हुआ ।

"खबरदार ।" मुनीराम मोना चौधरी की तरफ चाकू लहराकर कह उठा--- "हिलना मत, मैं बहुत खतरनाक हूं । काट डालूंगा ।"

"मालूम है मुझे ।" मोना चौधरी मुस्कुराई--- "तुम बहुत खतरनाक हो ।"

"श्रद्धानंद ।" मुनीराम चाकू हिलाता हुआ बोला--- "थैला उठाकर सिर पर रखो । पचास लाख से हमारा आश्रम बन जाएगा ।"

श्रद्धानंद फौरन आगे बढ़ा और थैला उठाने लगा ।

मोना चौधरी आराम से उसी मुद्रा में बैठी थी ।

तभी पारसनाथ ने करवट ली और श्रद्धानंद की टांग पकड़ ली। श्रद्धानंद हड़बड़ाया ।

"मुनीराम । हमें बचाओ ।"

श्रद्धानंद की टांग पकड़ी देखकर मुनीराम भड़क उठा ।

"छोड़ दे इसे । वरना...।" मुनीराम ने चाकू हिलाया ।

पारसनाथ ने श्रद्धानंद की टांग को झटका दिया तो वो लड़खड़ाकर जोरों से नीचे गिर गया।

महाजन भी उठ बैठा ।

"यूं ही बैठे रहना ।" पारसनाथ ने सपाट-कठोर स्वर में कहा--- "वरना टांग तोड़ दूंगा ।"

श्रद्धानंद उसके लहजे पर मन ही मन कांप उठा ।

मुनीराम ने दांत किटकिटाते हुए आगे बढ़ना चाहती मोना चौधरी के हाथ में रिवॉल्वर पकड़ी देखकर ठिठका।

"हिलना मत । चाकू फेंको और नीचे बैठ जाओ ।"

मुनीराम ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

रिवॉल्वर सीधी होते पाकर मुनीराम ने जल्दी से चाकू फेंका और नीचे बैठ गया । चेहरा फक्क था ।

"तो पचास लाख पर हाथ साफ करने का इरादा था ।" मोना चौधरी जहर भरे ढंग से मुस्कुराई ।

"वो-वो मजबूरी थी हमारी।" मुनीराम घबराए स्वर में कह उठा--- "आश्रम बनाने के लिए पैसा चाहिए था ।"

"मैंने तो पहले ही कहा था कि मोना चौधरी से पैसा मत छीनो । लेकिन तुम नहीं माने ।" श्रद्धानंद ने गुस्से से मुनीराम को देखकर कहा फिर मोना चौधरी से बोला--- "मेरा कोई कसूर नहीं । मैं मुनीराम के बहकावे में आ गया था । मुझे जाने दो । इसे बेशक गोली मार दो ।"

"श्रद्धानंद ।" मुनीराम तीखे स्वर में कह उठा--  "ये क्या कह रहा है तू?"

"ठीक कह रहा हूं । मैं अभी मरना नहीं चाहता ।"

"तू तो फिल्मों में पैसा लगाने की बात कर रहा था ।"

"वो मेरा पागलपन था । अब मैंने फैसला किया है कि मैं हरिद्वार चला जाऊंगा । वहां किसी बढ़िया आश्रम की सदस्यता ले लूंगा । तेरे साथ काम करने में मुसीबत ही मुसीबत है। अभी मरने की उम्र नहीं है मेरी । तू तो हर काम ही उल्टा करता है।"

मुनीराम दांत किटकिटा कर रह गया ।

"अपनी पूंछ दबी तो दूसरों को गालियां देने लगा । तू आश्रम नहीं चला सकता।  वहां सिर्फ झाड़ू-सफाई ही कर सकता है ।" मुनीराम गुस्से से कह उठा--  "देखूंगा तुझे । अपने आश्रम के पास फटकने भी नहीं दूंगा ।" फिर मोना चौधरी को देखते हुए मुंह लटकाकर कह उठा--- "मुझे माफ कर दो । ताराचंद की हत्या करने के बाद मैं परेशान हो गया था । उसी परेशानी में तुम्हारा पैसा छीनने की सोच बैठा । मुझे जाने दो । फिर कभी तुम्हारे रास्ते में नहीं आऊंगा।"

"मैं जानती हूं तुम जुबान वाले हो ।" मोना चौधरी ने व्यंग से कहा--- "मेरे अन्य साथी आश्रम में गए हैं । उन्हें अपने काम में तुम्हारी जरूरत हो सकती है । नहीं जरूरत होगी, तो तुम दोनों ही चले जाना।"

■■■

ढाई घंटे बाद मोदी और सुनील नेगी वहां पहुंचे ।

मुनीराम और श्रद्धानंद को वहां देखकर चौंके ।

"ये दोनों यहां ?" मोदी के होंठों से निकला ।

"भाग रहे थे, मैंने पकड़ लिया । पता चला कि इन्हीं ने ताराचंद को मारा है तो बिठा लिया ।" मोना चौधरी ने कहा ।

"वहां तो तुम दोनों ताराचंद की मौत को लेकर बहुत ड्रामा कर रहे थे ।" नेगी कड़वे स्वर में कहकर आगे बढ़ा और मुनीराम को सिर के बालों को पकड़कर उठाया--- "मामला खुलते देखा तो, भाग लिया ।"

"सब इसी की गड़बड़ है ।" श्रद्धानंद कह उठा--- "इसने मेरे को भी अपनी बातों में फंसाकर पीछे लगा लिया ।"

करीब पहुंचकर मोदी ने जोरदार ठोकर, उसके कूल्हों पर मारी ।

श्रद्धालु के होंठों से पीड़ा भरी चीख निकली।

"साले । तू बच्चा है जो दूसरे की बातों में आ गया ।"

तभी मोना चौधरी कह उठी ।

"इस मुनीराम के पास मैडम का दिया ट्रांसमीटर है । जो कि इसने आश्रम में ही कहीं रखा है । वो ट्रांसमीटर मैडम ने इसे दिया था कि ये गुप्त रूप से ताराचंद की खबरें उसे देता रहे । मैडम ने ही इसे कहा था ताराचंद को खत्म करने के लिए।  हो सकता है मैडम की और ताराचंद की हरकतों के बारे में बताए । या उन लोगों के बारे में बताए, जो ताराचंद से ड्रग्स बिजनेस के सिलसिले में वास्ता रखते थे । इस तरह कई लोग हाथ लग सकते हैं ।"

"मैं-मैं कुछ नहीं जानता ।" मुनीराम हड़बड़ाकर कह उठा ।

सुनील नेगी उसके सिर के बालों को खींचता हुआ दांत भींचे कह उठा ।

"तू सब जानता है । सब बताएगा । मैं तेरे को याद दिला दूंगा जो तू भूलने की कोशिश करेगा ।"

तभी महाजन कह उठा।

"बेबी । इन पुलिस वालों का तो मामला लंबा हो गया । हम इनके साथ कब तक बने रहेंगे ।"

"बंधने की कोई जरूरत नहीं । ये अपना काम करते रहेंगे । हम चलते हैं ।" मोना चौधरी बोली ।

"ऐसा कैसे हो सकता है । सुनील नेगी फौरन कह उठा--  "तुमने तो अभी हमें मैडम के बारे में बताना है ।"

"क्या तुम अभी हमारे साथ चल सकते हो ?"

"नहीं, अभी हमें काम है । आश्रम को पूरी तरह खंगालना है । और अभी और भी कई गिरफ्तार होंगे । कई चीजों का पता लगेगा । यहां से अभी निकल पाना हमारे लिए आसान नहीं होगा ।" नेगी ने गम्भीर स्वर में कहा ।

"तब तक हम तुम्हारे साथ नहीं रुक सकते ।" मोना चौधरी बोली--- "तुम्हें वक्त लग सकता है ।"

"तो फिर मैडम के बारे में...।" सुनील नेगी ने कहना चाहा ।

"अपने कामों को निपटाकर तुम्हें कहां पहुंचना है बता देती हूं । वहां आ जाना । मैं वहीं मिलूंगी और मैडम के बारे में...।"

"पहुंचना कहां है ?"

"अजब सिंह के होटल भून्तर में ।"

"वहां ।" नेगी चौंका ।

मोदी की भी आंखें सिकुड़ी।

वहां अजबसिंह हो सकता है । उधर भला क्या काम ?" मोदी कह उठा ।

"उधर पहुंचो । मालूम हो जाएगा ।" मोना चौधरी शांत स्वर में बोली--- "वहीं मैडम तुम्हारे हवाले करूंगी ।"

सुनील नेगी कह उठा ।

"अगर तुम पहले बता दो तो...।"

तभी कुछ फासले पर मौजूद भीड़ के पीछे से कैप्टन कालिया निकला और पास आ पहुंचा । उसके शरीर पर अभी साधुओं वाले कपड़े थे । चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी । उसे देखते ही मुनीराम जल्दी से कह उठा ।

"दीनापाल । तुम सही वक्त पर आए । देखो हम कैसी मुसीबत में फंसे हुए हैं । ये भले लोग कहते हैं, मैंने स्वामी जी को कष्ट पहुंचाकर, उनके प्राणों को खींच लिया । इन्हें समझाओ कि मुनीराम ऐसा काम नहीं कर...।"

वो अपने शब्द पूरे नहीं कर सका । नेगी ने जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर जड़ा ।

सिर से पांव तक उसका शरीर झनझना उठा ।

"देखा दीनापाल ।" मुनीराम की आंखों में आंसू चमक उठे--- "ये हमारा क्या हाल कर रहे हैं ।"

मोना चौधरी की निगाह कैप्टन कालिया पर टिक चुकी थी ।

कैप्टन कालिया पास आया और एक-एक शब्द पर जोर देता, गम्भीर स्वर में कह उठा । मोना चौधरी मैडम के बारे में तुम मुझे बताओगी । उसे मेरे हवाले करोगी ।"

मोना चौधरी के कुछ कहने से पहले ही नेगी सख्त स्वर में कह उठा ।

"आश्रम के साधू होकर तुम मैडम के बारे में कैसे जानते हो । पहले मुझसे बात करो।"

महाजन और पारसनाथ कैप्टन कालिया को वहां देखकर चौंके । खास तौर से उसका साधू का वेश देखकर । दोनों फौरन उठ खड़े हुए थे । महाजन हाथ जोड़े पास आया और मुस्कुराकर कह उठा ।

"कालिया साहब को नई जीवनशैली की बधाई हो ।"

कालिया ने महाजन को देखा और मुस्कुराकर रह गया ।

सुनील नेगी की आंखें सिकुड़ी । वो धीमे से मोदी की तरफ सरका।

मोदी की हालत भी जुदा नहीं थी ।

"कौन है ये साधु ?" नेगी ने धीमे से पूछा ।

"मालूम नहीं ।"

"इनकी बातों से साफ लग रहा है कि ये साधु को पुराना जानते हैं ।"

"महाजन, साधू को कालिया कहकर बुला रहा था ।" मोदी बोला--- "मुझे तो ये साधू लगता नहीं ।"

"ये कह रहा है, मैडम को मेरे हवाले करो ।"

"देखते रहो ।" मोदी दबे स्वर में बोला--- "मोना चौधरी बेवकूफ नहीं है । वो जानती है कि किसे, किसको सौंपना है ।"

पारसनाथ ने सिगरेट सुलगा ली । वहीं खड़ा रहा था ।

कालिया ने पारसनाथ को देखा और मुस्कुराकर सिर हिलाया ।

"ये तीनों तो इस कालिया साधू की पुरानी पहचान वाले लगते हैं ।" कहा नेगी ने।

मोदी बारी-बारी उन्हें देखे जा रहा था ।

"तुम्हारा मैडम से क्या लेना-देना ?" महाजन ने पूछा ।

"मोना चौधरी जानती है इस बात का जवाब ।"

"मतलब कि पहले मुलाकात हो चुकी है ।" महाजन ने सिर हिलाया ।

"कल रात आश्रम में मिले थे ।" कालिया ने शांत स्वर में कहा ।

"अकेले हो यहां ?"

"हां ।"

"आश्रम में कैसे ?"

"मोना चौधरी से पूछ लेना।  इस वक्त मैं मैडम के बारे में बात करना चाहता हूं ।" कालिया ने गम्भीर स्वर में कहा।

महाजन ने बोतल निकालकर घूंट भरा और मोना चौधरी से बोला ।

"बेबी । कालिया कहता है मैडम को मेरे हवाले करो । उधर नेगी मैडम को पाने की फिराक में है ।"

"मैडम पर कालिया का हक बनता है।"

"कैसे ?" महाजन के होंठ सिकुड़े ।

"मोना चौधरी ।" नेगी एकाएक तेज और उखड़े स्वर में कह उठा--- "मैडम की पुलिस को सख्त जरूरत है । उसे हर हाल में कानून की गिरफ्त में पहुंचना चाहिए । तुम...।"

"कालिया, मैडम के पीछे, पन्द्रह बरस से है । उसे तलाश कर रहा है ।"

"मैडम पर कानून का हक बनता है । इसका नहीं ।"

"ये कानून का बाप है हिमाचली शेर ।"

सुनील नेगी के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे ।

मोदी के होंठ सिकुड़ गए ।

"मैं समझा नहीं ।" सुनील नेगी उलझन से बोला--- "क्या कहना चाहते हो ?"

"बेबी चाहेगी तो कालिया के बारे में बताएगी । मैं नहीं बता सकता ।" महाजन ने शांत स्वर में कहते हुए मोना चौधरी को देखा ।

मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी।

"मैडम को मैं तुम्हारे हवाले ही करूंगी कालिया ।"

"ये नहीं हो सकता ।" सुनील नेगी एकाएक उखड़े स्वर में कह उठा ।

"नेगी साहब ।" मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी--- "कालिया हकीकत में, मिलिट्री सीक्रेट सर्विस का कैप्टन कालिया है । दस-पन्द्रह सालों से मैडम की तलाश में है । अगर मैडम को मैंने इसके हवाले न किया तो ये अभी अपने ऑफिसर को खबर करेगा और तुम किसी कोने में बैठे नजर आओगे ।"

"मिलिट्री सीक्रेट सर्विस ।" नेगी के होंठों से निकला ।

मोदी ने गहरी सांस ली ।

"लेकिन तुम मिलिट्री सीक्रेट सर्विस वालों को कैसे जानती हो । जबकि तुम...।"

"जैसे तुम्हें जानती हूं वैसे ही इसे जानती हूं । तुम आश्रम के मामले को संभालो । ताराचंद की लाश वहां पड़ी है । आश्रम की अच्छी तरह तलाशी लो और कई चीजें मिलेंगी । ढंग से रिपोर्ट तैयार करना । क्योंकि तुम्हारी रिपोर्ट मिलिट्री सीक्रेट सर्विस तक जाएगी । वो लोग भी तुमसे इस मामले में सवाल-जवाब कर सकते हैं।"

सुनील नेगी बार-बार कैप्टन कालिया को देखने लगा ।

"मैडम कहां है ?" कैप्टन कालिया ने मोना चौधरी से पूछा ।

"वो जहां है, हम तुम्हें वहीं ले चलते हैं ।" मोना चौधरी ने कहा ।

"तुम्हें पूरा विश्वास है कि तुम मैडम को जानती हो । कहीं धोखा तो नहीं हुआ तुम्हें ।" कालिया कह उठा ।

मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान उभरी ।

"वो खुद इस बात को कबूल करेगी कि, वो ही मैडम है ।"

कालिया ने जवाब में कुछ नहीं कहा ।

सुनील नेगी पास खड़े मोदी से बोला ।

"तुम मेरे साथ रहोगे या इनके साथ जाओगे।"

"इनके साथ मेरा क्या काम ।" मोदी मुस्करा पड़ा--- "एक मिलिट्री का जासूस । दूसरे की कानून को जरूरत है । पुलिस वाला हूं तो पुलिस वाले के साथ ही रहूंगा। मैं तुम्हारे साथ यहां के सारे काम निपटाऊंगा । पहले इनके हाथ बांधो, जो ताराचंद की हत्या करके आए हैं । इन्हें लेकर आश्रम चलते हैं । वहां अभी हमें कई काम करने हैं ।"

"लेकिन हमें पुलिस की जरूरत है । पास के शहर में पुलिस को खबर करने...।"

"ये काम मोना चौधरी कर देगी ।" मोदी ने मोना चौधरी को देखा ।

"हां ।" मोना चौधरी बोली--- "हम यहां से चल रहे हैं । पास के शहर से पुलिस को पूरी खबर कालिया देगा और उन्हें इधर भेज देगा ।"

"ठीक कहा ।" कालिया कह उठा--- "ये काम कुछ ही घंटों में हो जाएगा । अंधेरा होने तक पुलिस आश्रम में पहुंच जाएगी।"

■■■

स्वामी ताराचंद की हत्या होते ही अजबसिंह ने आश्रम में रुकना ठीक नहीं समझा और संजीव सिंह के साथ वो वापस भून्तर आ पहुंचा था । वो ताराचंद को नहीं खत्म कर सका । किसी दूसरे ने खत्म कर दिया । उसके लिए एक ही बात थी । मतलब तो ताराचंद के मरने से था ।

रास्ते में उसने संजीव सिंह को समझा दिया था कि आश्रम में जो कुछ भी हुआ । उसके बारे में अपनी मां कमलेश को कुछ न बताए । संजीव सिंह इस बात पर जोर दे रहा था कि वो खतरे वाले काम छोड़कर आराम की जिंदगी बिताए । परन्तु अजबसिंह ने स्पष्ट कह दिया कि वो जिसके लिए काम करता है, उसे नहीं छोड़ सकता।

संजीव सिंह ने मन ही मन तय किया धीरे-धीरे अपने पापा को ठीक रास्ते पर ले आएगा । होटल पहुंचने पर कमलेश ने उससे पूछा कि सुधा कहां है। वो उसे अच्छी लगी है । संजीव सिंह ने कमलेश को ये कहकर टाल दिया कि उसे कुछ काम था । वो बाद में आएगी और अगले दिन मोना चौधरी वहां आ पहुंची।

दरवाजा खोलकर मोना चौधरी ने ऑफिस में प्रवेश किया तो उसे सामने पाकर अजबसिंह की आंखे सिकुड़ी ।

"तुम ?" उसके होंठों से निकला ।

मोना चौधरी आगे बढ़ी और कुर्सी पर बैठती हुई बोली ।

"काम से आई हूं ।"

"मेरा-तुम्हारा क्या काम ?"

"कभी-कभी दूर के लोगों से भी काम पड़ जाता है । तुम्हें मैडम की तलाश है अजबसिंह ?"

"हां । मैं जिनके लिए काम करता हूं, वो मैडम को ढूंढ निकालना चाहते हैं ।" अजबसिंह ने मोना चौधरी को देखा--- "मैडम की वजह से ही, बरसों से मेरी भागदौड़ जारी है । मैं आज तक नहीं जान पाया कि मैडम है कौन । जो भी है, बेहद तेज दिमाग की खतरनाक औरत है । मेरे ख्याल में वो कभी भी हाथ नहीं आएगी।"

"मैडम को तुम्हारे सामने खड़ा कर सकती हूं ।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा ।

अजबसिंह की आंखे सिकुड़ी ।

"तुम जानती हो मैडम को ?"

"हां ।"

"कौन है वो ?"

"इस तरह नहीं बता सकती । सामने खड़ा करूंगी तुम्हारे ।" मोना चौधरी ने उसकी आंखों में देखा ।

"तुम जो भी करो । मुझसे क्यों इस तरह की बातें कर रही हो ।" अजबसिंह ने उलझन भरे स्वर में कहा ।

"इसलिए कि मैडम पर हाथ डालने के लिए, मेरा इस होटल में रहना जरूरी है । यहां पर मैं, पहले की ही तरह रहूंगी । तुम्हारे बेटे की होने वाली बीवी बनकर । इन बातों को तुम जानोगे या संजीव । तीसरे किसी को इस बात की खबर नहीं होनी चाहिए । यहां तक कि तुम्हारी पत्नी को भी नहीं। एक-दो दिन ये सब चलेगा ।"

"तुम जो भी करो, लेकिन मैं तुम्हारे किसी मामले में, साथ नहीं दे सकता ।"

"क्यों ?"

"मैं जिसके लिए काम करता हूं सिर्फ उसी की बात मानूंगा ।" अजबसिंह के स्वर में दृढ़ता थी।

मोना चौधरी ने हौले से सिर हिलाया फिर शांत स्वर में बोली ।

"रिसेप्शन पर फोन करो । वहां कालिया-महाजन और पारसनाथ खड़े हैं । वहां बोलो कि कालिया को तुम्हारे पास भेज दें।"

"कालिया, यहां होटल में ?" अजबसिंह के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे ।

"इंटरकॉम करो रिसेप्शन पर।"

अजबसिंह ने इंटरकॉम पर बात की । मोना चौधरी ने जैसा कहा । उसने वैसा ही बोला ।

तीसरे मिनट कैप्टन कालिया वहीं था ।

"मेरी बात मानने से इंकार कर रहा है । कहता है, तुम जो कहोगे, वो ही करेगा ।"

"अजबसिंह ।" कैप्टन कालिया इस वक्त सादी कमीज-पैंट में था--- "मोना चौधरी जो कहती है । वही करो ।"

"अच्छी बात है ।" अजबसिंह ने गम्भीरता से सिर हिलाया--- "ये कहती है, मैडम को जानती है ।"

"जो सच है, वो सामने आ ही जाएगा ।"

"हम लोगों के बाल सफेद हो गए, लेकिन मैडम का पता नहीं लगा सके कि वो कौन है । फिर ये कैसे...?"

"अजबसिंह ।" कैप्टन कालिया ने गम्भीर स्वर में कहा--- "मोना चौधरी जो कहती है, वो करो । बातें बाद में ।"

अजबसिंह ने गहरी सांस लेकर मोना चौधरी को देखा ।

"कहो-क्या करूं मैं ?"

"संजीव सिंह को बुलाओ । उसे सब समझा कर, मेरे साथ कर दो । पहले की तरह मैं संजीव की होने वाली पत्नी बनकर होटल में रहूंगी । मुझे पूरा विश्वास है कि चौबीस घंटे के भीतर मैं मैडम को सामने ला खड़ा करूंगी ।"

चेहरे पर गम्भीरता समेटे अजबसिंह ने इंटरकॉम पर राकेश जोगिया से कहा कि संजीव सिंह को उसके पास भेजे ।

"बज्जू तुम्हारी कैद में है ?"

"कैद में था ।" अजबसिंह बोला--- "अब नहीं है । पीछे से किसी ने आकर उसकी हत्या कर दी।"

"जहां वो कैद था, वहां बाहरी आदमी आसानी से पहुंच सकता है क्या ?" मोना चौधरी बरबस ही मुस्कुरा पड़ी ।

"नहीं । बाहरी आदमी को तो पता भी नहीं चल सकता कि उधर कोई कैदखाना है ।" अजब सिंह के होंठ भिंच गए--- "खुद मेरी समझ में नहीं आ रहा कि कौन बज्जू की हत्या कर गया ।"

"राकेश जोगिया तब कहां था ? वो बज्जू पर नजर रख रहा था ।" मोना चौधरी ने पूछा ।

"वो किसी काम के लिए तो होटल से बाहर गया हुआ था । वापस आने पर उसने बज्जू की लाश देखी।"

"तब तुम्हारे दिमाग में ये नहीं आया कि बज्जू की हत्या होटल में रहने वाले ही किसी इंसान ने की है । जिसे बज्जू के बारे में सब मालूम था ।" मोना चौधरी ने उसकी आंखों में झांका ।

अजबसिंह ने बेचैनी से पहलू बदला ।

"तुम्हारा मतलब कि मैडम के किसी आदमी ने बज्जू की हत्या...।"

तभी दरवाजा खुला और राकेश जोगिया के साथ संजीव सिंह भीतर आया । मोना चौधरी को देखकर वो चौंका । फिर अपने पर काबू पाकर, उसने अजबसिंह को देखा ।

"यस पापा ।"

"तुम जाओ राकेश।"

राकेश जोगिया बाहर निकल गया ।

"समझा दो इसे, सब कुछ ।" मोना चौधरी ने कहा ।

अगले पांच मिनट में ही अजब सिंह ने, संजीव सिंह को मोना चौधरी की बात समझा दी थी ।

■■■

"मां ।" भीतर प्रवेश करते हुए संजीव सिंह खुशी भरे स्वर में बोला--- "देखो तो कौन आया है ?"

कुर्सी पर बैठी कमलेश, अखबार पर नजरें मार रही थी कि आवाज सुनकर पीछे देखा । दूसरे ही पल उसके चेहरे पर मधुर मुस्कान नाच उठी।

संजीव सिंह के साथ मोना चौधरी भी थी ।

"ओह सुधा बेटी ।" कमलेश कह उठी--- "मैं तुझे याद कर रही थी कि मेरी बहू कहां चली गई ?"

"नमस्ते मां जी।" पास पहुंचती  हुई मोना चौधरी कह उठी--- "मुझे कुछ काम था । रास्ते में रुक गई।"

उसके पास आने पर कमलेश ने उसके सिर पर हाथ फेरा ।

"कितनी किस्मत वाली है मेरी बहू और हम भी । स्वर्ग बना देगी हमारे घर को ।"

"स्वर्ग बनाने ही तो आई हो मां जी ।"

"बैठ-बैठ । खड़ी क्यों हो सुधा ।"

मोना चौधरी पास ही मौजूद कुर्सी पर बैठ गई ।

"मां ।" संजीव सिंह बोला--- "अब तो पापा भी हैं । सब हैं । फिर देर किस बात की ।"

"समझ गई । समझ गई । कमलेश मुस्कुराकर बोली--- "बात करूंगी आज तेरे पापा से । जल्दी ही कोई शुभ दिन देखकर ब्याह कर दूंगी, तुम दोनों का । मैं तो खुद चाहती हूं कि तेरा ब्याह करके मैं फुर्सत पा लूं ।"

"थैंक्यू मां।" संजीव सिंह के चेहरे पर खुशी नजर आ रही थी--- "तुम दोनों बातें करो । मुझे कुछ काम है । घंटे बाद ही वापस आ पाऊंगा । पापा से आज बात जरूर करना मां।" संजीव सिंह बाहर निकल गया ।

कमलेश ने मोना चौधरी को देखा ।

"मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि मुझे तुझ जैसी सुंदर बहू मिलेगी ।" कमलेश बोली ।

"ये कहकर आप मुझे क्यों शर्मिंदा कर रही हैं मां जी ।" मोना चौधरी ने कमलेश की आंखों में झांका--- "आपके बेटे के साथ मैं मध्य प्रदेश के जंगल में स्थित एक आश्रम में गई थी।"

"अच्छा किया । संसार के कामों से वक्त निकालकर इस तरफ भी ध्यान देना चाहिए ।"

"आश्रम का मुख्य स्वामी ताराचंद था । अब तो किसी ने उसकी जान ले ली।"

कमलेश एकदक मोना चौधरी को देखने लगी ।

मोना चौधरी भी सीधे कमलेश की आंखों में देख रही थी।

"स्वामी ताराचंद के पास, पेटी में वायरलैस सैट था । उससे वो दूसरों से बातें करता था । विदेशी सैट था वो । वायरलैस सैट पर मैंने भी बात की । बहुत मजा आया ।" मोना चौधरी मुस्कुरा पड़ी ।

"तुमने बात की ?" कमलेश का चेहरा कठोर होने लगा।

"हां । ताराचंद ने वायरलैसस सैट पर मेरी बात कराई । उधर से मैडम की आवाज आती रही ।" मोना चौधरी जहरीले ढंग से मुस्कुरा पड़ी।

कमलेश के दांत भिंच गए ।

"और मोना चौधरी तुमने बात नहीं की । क्योंकि तुम आवाज सुनकर मैडम को पहचान गई कि वो कौन है ।"

"हां । मैं तो उसी वक्त समझ गई कि मैडम और कोई नहीं, मेरी सासू मां है । मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि मेरी सासू मां इतनी खतरनाक ग्रुप के कर्ता-धर्ता हैं। बहू हिन्दुस्तान में इश्तहारी मुजरिम है तो सासू का ओहदा भी बड़ा होना चाहिए ।"

कमलेश का चेहरा बेहद कठोर हो गया।

"उस वक्त जब मेरे से बात नहीं की गई तो मैं समझ गई थी कि कोई गड़बड़ है । लेकिन तब समझ नहीं पाई कि दूसरी तरफ कौन हो सकता है, जो मेरी आवाज सुनकर बोला नहीं ।" कमलेश के चेहरे पर दरिंदगी के भाव नाचने लगे थे--- "जब हिमाचल पुलिस ने तुम्हें चुड़ैल का नाम दिया । चुड़ैल एक्सप्रेस कहा तो मैं समझी, तुम्हें चुड़ैल यूं ही हवा में बिठाया जा रहा है । लेकिन अब महसूस हो रहा है कि हिमाचल पुलिस ने तुम्हें ठीक नाम ही दिया है । तुम सच में चुड़ैल हो । एक्सप्रेस ट्रेन की तरह हर जगह पहुंच जाती हो । तुम्हारी वजह से ही मेरे खास आदमी ताराचंद को मरना पड़ा । अब तुम मेरे बारे में जान गई हो । मुझे बर्बाद करने की कोशिश करोगी ।"

"ऐसी तो बात नहीं।"

"तुम्हारे बारे में सब जान चुकी हूं मोना चौधरी । तुम्हारी कार्यशैली भी मालूम कर चुकी हूं । तुम्हारी-मेरी कभी भी नहीं बन सकती । तुम मुझे सिर्फ बर्बाद कर सकती हो ।" कमलेश गुर्रा उठी--- "मेरे बारे में आज तक कोई नहीं जान सका । तुम जान गई तो अब तुम भी जिंदा नहीं रहोगी ।" कहने के साथ ही कमलेश कुर्सी से उठी। हाथ में रिवॉल्वर नजर आने लगी ।

मोना चौधरी खतरनाक अंदाज में मुस्कुरा पड़ी ।

"तुम तो अपने पति के खिलाफ काम करती हो । उसे खतरे में डालती रही ।"

"वो किसी दूसरे के लिए काम करता है और मेरा काम दूसरा है। तुम...।"

"अमेरिका की जासूसी संस्था सी.आई.ए. से तुम्हें बहुत अच्छा पैसा मिलता है, देश में तोड़-फोड़ के लिए...।"

"हां. उस पैसे से ही तो मैंने हिन्दुस्तान में अपना जाल फैला रखा है । मैं बहुत ताकतवर हूं । तुम्हें मेरी ताकत का अंदाजा नहीं है मोना चौधरी । मालूम होता तो मेरे सामने पड़ने की अपेक्षा खामोशी से अपने रास्ते पर निकल जाती । तुम...।"

"मालूम है, तुम्हारा पति किसके लिए काम करता है ?"

"मुझे जानने की जरूरत नहीं।"

"अजबसिंह हिन्दुस्तान के मिलिट्री सीक्रेट सर्विस के लिए काम करता है ।"

"क्या ?" कमलेश अचकचा उठी ।

"तुम्हारे पीछे देश की मिलिट्री सीक्रेट सर्विस है । ये बात तुम्हें मालूम होती तो, तुम अवश्य सोचती कि ऐसे में मिलिट्री के जासूसों से कब तक बची रहोगी । तुम तो अजबसिंह के बारे में सोचती रही कि वो किसी खतरनाक संगठन के लिए काम करता है । बल्कि वो देश की सेवा कर रहा है और तुम देश की जड़े काट रही हो।"

कमलेश ने खुद को संभाला । दांत भींचकर हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर सीधी की ।

"अच्छा हुआ तुमने ये मुझे बता दी । अब मैं सतर्क रहूंगी ।"

"इसकी जरूरत नहीं ।"

"क्या मतलब ?"

"उस बंद दरवाजे के बाहर मिलिट्री का जासूस, तुम्हारा पति, तुम्हारा बेटा खड़ा सब सुन रहे हैं। सब पाशे हार चुके हैं मैडम । अब तुम्हारा असली चेहरा सामने आ चुका है । मेरे को मारकर तुम खुद को छुपा नहीं सकोगी ।"

कमलेश का कठोर चेहरा दरवाजे की तरफ घूमा।

मोना चौधरी ने बैठे ही बैठे फुर्ती से जोरदार ठोकर कमलेश के हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर पर मारी । उसके हाथ से रिवॉल्वर छूटकर दीवार से जा टकराई । कमलेश ने दांत किटकिटाकर मोना चौधरी को देखा, परन्तु दूसरे ही पल ठिठक गई । मोना चौधरी के हाथ में रिवॉल्वर दबी हुई थी । रुख उसकी तरफ था।

"पागल मत बनो मोना चौधरी ।" कमलेश भिंचे स्वर में कह उठी--- "मुझसे दुश्मनी करके तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा । दोस्ती करोगी तो मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगी । मेरे पास बेहिसाब दौलत है । सारी जिंदगी रानी बनकर रहोगी । मेरी मानो तो संजीव के साथ शादी कर लो और मजे से रहो । खतरों में पड़कर क्यों अपनी उम्र और जवानी खराब करती हो।"

हौले से हंसी मोना चौधरी ।

"अभी भी वक्त है । चुपचाप मेरे साथ मिल जाओ । मुझे भी ऐसा चाहिए जो मेरे काम को संभाल सके । इसके लिए मुझे तुमसे अच्छा कोई नहीं मिल सकता । मेरा संगठन बहुत ताकत वाला है । शानदार जिंदगी रहेगी तुम्हारी ।"

तभी दरवाजा खुला ।

"पहले अपनी शानदार जिंदगी का अंत तो देख लो ।" मोना चौधरी कहर भरे स्वर में कह उठी ।

भीतर आने वाले अजबसिंह, कैप्टन कालिया और संजीव सिंह थे । कैप्टन कालिया के हाथ में रिवॉल्वर दबी नजर आ रही थी । जबकि अजबसिंह का चेहरा दुनिया भर के क्रोध से भरा पड़ा था।

उन्हें सामने देख कमलेश का चेहरा फक्क पड़ने लगा ।

"हरामजादी ।" अजबसिंह मुठ्ठियां भींचते हुए दरिंदगी भरे स्वर में कह उठा--- "मुझे सिर्फ इतना बता दे कि तू मैडम कब बनी । कबसे मुझे इतने बड़े धोखे में रखकर, मेरी बगल में बैठी फुंफकार रही है।"

कमलेश ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । आंखों में घबराहट थी ।

अजबसिंह आगे बढ़ा और जोरदार चांटा कमलेश के गाल पर मारा ।

कमलेश लड़खड़ाकर कुर्सी से टकराई फिर संभल गई 

"तो मैडम है तू । बोल-कब से मैडम है तू ?"

"प-पन्द्रह साल हो गए ।" कमलेश के होंठों से थका-सा स्वर निकला ।

"कैसे बनी मैडम । मैं जानता हूं, पहले ऐसी कोई भी बात नहीं थी ।" अजबसिंह गुस्से से पागल हो रहा था ।

कुछ पलों की खामोशी के बाद कमलेश धीमे स्वर में कह उठी।

"पन्द्रह साल पहले मेरे संगठन वालों ने आपका अपहरण कर लिया था । याद होगा आपको । पन्द्रह दिन आप उन लोगों की कैद में रहे थे । वो आपको जान से खत्म करने वाले थे । तभी ये सोचकर कि, कुछ पैसा बना लिया जाए । उस संगठन के बड़े ने मुझे फोन किया और दस लाख की फिरौती मांगी, आपको छोड़ने के लिए । मैं दस लाख लेकर, उसकी बताई जगह पर फौरन पहुंची । वहां संगठन का कर्ता-धर्ता अकेला ही आया था । उसे देखते ही मैं पहचान गई । वो मेरे कॉलेज के दिनों का प्रेमी था । हम शादी कर लेते, परन्तु हमारे घर वाले नहीं मान रहे थे । उस दिन हम दोनों आमने-सामने थे । पुराने प्यार ने उछाल मारी । टूटा हुआ प्यार पुनः जुड़ गया पुराना सिलसिला फिर शुरू हो गया ।"

"कमीनी । तब तेरे को शर्म नहीं आई कि तू ब्याहता है । तेरा बच्चा भी है ।" अजबसिंह गुर्राया ।

"नहीं । शर्म कैसी । तुम्हारे साथ तो मैंने घर वालों के कहने, मजबूर करने पर शादी की थी । उसके साथ तो कॉलेज के वक्त में, दिल के कहने से प्यार किया था । सच बात तो ये थी कि दिल से अपने शरीर का मालिक उसे ही माना था ।"

"उफ ।" संजीव सिंह ने मुंह फेर लिया--- "तुम्हारा मेरा रिश्ता ऐसा है कि तुम्हें नीच भी नहीं कह सकता।"

संजीव सिंह को देखते, कमलेश की आंखों में पानी चमक उठा ।

"आगे बोल ।"

"साल भर हम खुश रहे । बराबर मिलते रहे । मेरे कहने पर, उसने तुम्हें छोड़ दिया था । तब एक दिन उसे उसके साथी ने गोली मार दी । वो बचता हुआ मेरे पास आ पहुंचा । मैंने बहुत कोशिश की कि वो बच जाए, परन्तु उसकी तबीयत संभली नहीं । जब उसे लगा कि वो नहीं बचेगा तो अपने संगठन की सारी बातें मुझे बता दी।  सब कुछ मुझे संभालने को कहा । वो मर गया और इस तरह मैं मैडम बन गई । शुरू में मुझे ये काम अच्छा नहीं लगता था । लेकिन इस काम को आगे बढ़ाना मेरा फर्ज था । क्योंकि इसकी शुरुआत उस इंसान ने की थी । जिसे दुनिया में मैं सबसे ज्यादा चाहती थी।"

"कुत्तिया ।" अजब सिंह की आंखें गुस्से से लाल हो गई थी ।

तभी कैप्टन कालिया गम्भीर-कठोर स्वर में कह उठा ।

"अब तो मिलिट्री खुफिया विभाग के कब्जे में हो । तुमसे बड़े ऑफिसर पूछताछ करेंगे कि हिन्दुस्तान में बैठे सी.आई.ए. के कौन-कौन लोग हैं, जिनसे तुम्हारी बातचीत होती रहती थी । तुम्हारा संगठन कहां-कहां बिखरा है । क्या क्या कर रहा है । तुम्हें अब हर वो बात बतानी होगी, जो तुम जानती हो ।"

कमलेश ने बुझी निगाहों से कालिया को देखा।

"और उसके बाद मेरा क्या होगा ?"

"जो देश के गद्दारों का होता है ।" कैप्टन कालिया ने कठोर स्वर में कहते हुए रिवॉल्वर निकाल ली--- "जब हमें लगेगा कि तुम्हारे पास काम की जानकारी नहीं रही तो खामोशी से तुम्हें गोली मार दी जाएगी।"

"इसे हाथ से ले जाइए कालिया साहब । अगर आपने मेरे हाथों को मजबूर न कर रखा होता तो ये हरामजादी अब तक जिंदा न रहती।  मुझे तो घिन आ रही है कि ये औरत मेरी पत्नी बनकर रही । जबकि ये तो आत्मा और शरीर से, किसी भी तरह से इस काबिल नहीं थी कि मेरी पत्नी बन पाती।  ले जाइए इसे।"

कमलेश ने अजबसिंह को देखा फिर पीठ मोड़े खड़े संजीव सिंह को देखा ।

"संजीव ।" कमलेश के होंठों से भारी-सा स्वर निकला ।

संजीव ने पलटकर देखने की कोशिश नहीं की ।

"संजीव । मेरे बेटे-देख तो-तेरी मां बुला रही है । अपनी मां की आवाज नहीं सुनेगा ।" कमलेश का स्वर कांप उठा।

संजीव ने कमलेश की तरफ देखने की चेष्टा नहीं की । उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे । वो आगे बढ़ा और तेज-तेज कदम उठाता हुआ कमरे से बाहर निकलता चला गया ।

"संजीव-मेरे बेटे---।" कमलेश चिल्लाई । आंखों से आंसू बहकर, गालों पर आ गए। वो दरवाजे की तरफ दौड़ी । परन्तु कालिया ने हाथ में दबी रिवॉल्वर उसके पेट से लगा दी 

"यहीं तक तुम्हारा अस्तित्व था ।" कालिया ने दांत भींचकर कहा--- "तुम्हारी बाकी की सांसें अब हमारी हैं । हिसाब हम लेंगे ।"

कमलेश फफककर पीछे हट गई ।

अजबसिंह गुस्से से भरे खूंखार निगाहों से कमलेश को देखे जा रहा था।

"इसका ध्यान रखो अजबसिंह । इसे यहां से ले जाने का भी इंतजाम करता हूं ।" दांत भींचे कालिया फोन की तरफ बढ़ गया ।

कमलेश आंसुओं भरी सूनी नजरों से कभी अजबसिंह को देखती तो कभी मोना चौधरी को या फिर फोन पर व्यस्त कालिया को देखने लगती।

"सच में ।" कमलेश बड़बड़ा उठी--- "ये वक्त मेरे लिए बहुत तकलीफ से भरा है । ये सब मुझसे सहन नहीं होगा । कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन, इस तरह खाली हाथ खड़ी होऊंगी।  मैं किसी को अच्छी नहीं लगूंगी । मेरा बेटा मुझसे इतनी नफरत करने लगेगा कि मेरा चेहरा देखना भी उसे पसन्द नहीं होगा । और...।" इसी पल कमलेश पागलों की तरह, मोना चौधरी पर झपट पड़ी ।

मोना चौधरी को उससे ऐसी हरकत की आशा नहीं थी । उसने दोनों हाथों से रिवॉल्वर और हाथ को अपने कब्जे में कर लिया था। मोना चौधरी समझ गई कि वो उसकी रिवॉल्वर छीनना चाहती है तो उसने रिवॉल्वर पर और भी सख्ती से उंगलियां टिका दी । तभी उसे महसूस हुआ कि कमलेश रिवॉल्वर छीनने की अपेक्षा उसकी उंगलियों पर दबाव बढ़ा रही है । वो चौंकी । तुरन्त समझ गई कि कमलेश क्या करना चाहती है । परन्तु संभल न सकी । कमलेश के द्वारा उसके हाथ दबाने पर, ट्रेगर पर रखी उंगली पर दबाव बढ़ा और तेज आवाज के साथ गोली चल गई। नाल का रुख कमलेश की तरफ था । गोली कमलेश के पेट में धंसी और छाती पार करती हुई गले में जा धंसी ।

"नहीं ।" अजबसिंह चीखा।

कालिया फोन का रिसीवर छोड़कर भागा । करीब आया ।

दरवाजे पर कदमों की आहट उभरी और महाजन-पारसनाथ नजर आए।

हर कोई अपनी जगह पर खड़ा का खड़ा रह गया था, कमलेश को देख रहा था ।

कमलेश की दोनों बांहें पंखों की तरफ फैली थी । जैसे वो उड़ जाने की चेष्टा में हो । उसकी आंसुओ भरी आंखें फैल चुकी थी । मुंह खुला हुआ था । वो कमान की तरह झुकी हुई थी कि एकाएक उसे ऐसा झटका लगा, वो कमान से तीर छूट गया हो । फिर वो उसी मुद्रा में पीठ के बल नीचे जा गिरी । मर चुकी थी वो ।

मोना चौधरी ने गहरी सांस लेकर अपने हाथ में दबी रिवॉल्वर को देखा । कमलेश ने वास्तव में फुर्ती दिखाई थी। उसे संभलने का मौका नहीं दिया था।  उसके कष्ट का वक्त तो अब शुरू होना था । इस बात का एहसास हो गया था उसे । तभी तो अपनी मौत की जिम्मेदार बनकर, सब कष्टों से दूर चली गई थी ।

मोना चौधरी ने रिवॉल्वर जेब में रख ली।

समाप्त