सुमित जोशी ने पुलिस को आसानी से संभाल लिया था । वहां कोई लाश नहीं मिली थी, इसलिए पुलिस को सब कुछ सामान्य लगा । जोशी ने बताया कि तीन दिन पहले भी उसकी कार पर गोलियां बरसाई गई थी । पुलिस ने खानापूर्ति की और रिपोर्ट लिखकर, वहां से चली गई।
लंच का तो अब सवाल ही पैदा नहीं होता था ।
मंगल लंच पैक करा लाया और कार पर वापस, "जोशी एंड जोशी एसोसिएट्स" के ऑफिस में जा पहुंचे । रास्ते में जोशी कुछ डरा हुआ था । बार-बार कार के बाहर नजर दौड़ाने लगा कि कहीं कोई उस पर गोली तो चलाने नहीं जा रहा । देवराज चौहान उसे तसल्ली देता रहा कि आप सब ठीक हैं।
ऑफिस पहुंचकर वो अपने वाले केबिन में जा बैठा । सच बात तो ये थी कि जोशी के अभी भी पसीने छूट रहे थे । शाम के चार बज रहे थे । जोशी ने जूही को बुलाकर, पैक खाना खोलने और बर्तन लाने को कहा ।
"ओह, आप भी मेरे साथ खायेंगे सर ?" जूही चहककर बोली ।
"सुरेंद्र पाल भी खायेगा ।" सुमित जोशी ने कहा ।
"नहीं ।" देवराज चौहान बोला--- "इस वक्त खाने को मेरा मन नहीं है ।"
"इसे रहने दीजिये सर । हम दोनों ही खायेंगे ।"
जूही खाना खोलने और बर्तनों में डालने की तैयारियों में लग गई ।
जोशी ने देवराज चौहान को देखा और मुस्कुराकर कहा---
"आज तो तुमने खुद को खतरे में डालकर मेरे को बचाया ।"
"मेरे लिए वो सब करना मामूली बात थी ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।
"लेकिन जो कुछ भी हुआ, वो मेरे लिए बड़ी बात थी । इस तरह मुझे लड़ना नहीं आता । कोर्ट में ही लड़ता हूं । मुंह से...।"
"क्या हुआ सर ?" जूही अपने काम में व्यस्त बोली ।
"मुझ पर जानलेवा हमला किया गया ।"
"मरजाने ।" जूही कह उठी--- "किसी की हिम्मत कैसे हुई, आपको मारने की ? फिर क्या हुआ सर ?"
"सुरेंद्र पाल ने मुझे बचा लिया ।"
"इसने ।" जूही ने देवराज चौहान को देखा--- "इतना काबिल ये लगता तो नहीं है ।"
"ये बहुत काबिल है जूही ।"
"पर मुझे तो बेकार ही लगा ।" जूही ने मुंह बनाकर कहा ।
उसके बाद जूही और सुमित जोशी खाना खाने लगे ।
देवराज चौहान सैटी पर जा बैठा ।
"ये तो बहुत खतरे वाली बात हो गई ।" जोशी बोला--- "रतनपुरी तो हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ गया है।"
"मैंने तो पहले ही कहा है कि वो तेरे को मार के ही चैन लेगा ।"
"आखिर तू मुझे कब तक बचाता रहेगा ।"
"मैंने तो पहले ही कहा है कि कोई किसी को मारना चाहता है तो मार के ही रहेगा । कभी तो उसे स्पष्ट मौका मिलेगा । मैं तुम्हें लंबे समय तक नहीं बचा सकता ।"
"ये तो समस्या वाली बात हो गई ।" सुमित जोशी चिंतित स्वर में बोला ।
बातों के दौरान खाना खाता जा रहा था।
तभी जोशी का मोबाइल बजा । हाथ साफ करके उसने फोन निकाला और बात की ।
"हैलो...।"
"साले-कुत्ते आज फिर बच गया तू ।" खतरनाक स्वर कानों में पड़ा--- "कब तक बचेगा तू--- बोल ?"
सुमित जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और देवराज चौहान को देखा ।
"रतनपुरी ।" जोशी ने अपने को संभाल कर कहा--- "तू इतना नाराज क्यों है मेरे से ?"
"तूने मेरे बेटे मक्खन को फांसी की सजा दिलाई...वो...।"
"ये सब उस कमीने जज ने किया है । तू उसे क्यों नहीं मारता ?"
"जज की नहीं, तेरी गलती है। तू मक्खन का केस ठीक से नहीं लड़ा कोर्ट में और...।"
"पागल है तू । कौन कहता है कि मैंने ठीक से केस नहीं लड़ा ? वो जज भी मक्खन से खुन्दक खा रहा था । हर पेशी में मैंने ये बात नोट की थी । वो साला पहले ही सोचे बैठा था कि उसे फांसी की सजा देगा।"
"उसे तो मैं फांसी नहीं होने दूंगा ।" रतनपुरी की आवाज में कठोरता थी--- "पर तेरे को ऊपर पहुंचाकर रहूंगा ।"
"ऐसा मत कह ।" सुमित जोशी मरे स्वर में बोला--- "तूने मेरे को साढ़े चार करोड़ दिए थे । मैं तेरे को डबल, नौ करोड़ दे देता हूं ।"
"पैसा मत दिखा । बहुत है मेरे पास कुत्ते...।"
"मुझे छोड़ दो । मैं हाथ जोड़कर तेरे से माफी मांग लेता हूं । तू मुझे...।"
"तू नहीं बचेगा । बचने वाला कोई काम भी नहीं किया तूने । वो तेरा बॉडीगार्ड कहां है ।"
"सुरेंद्र पाल...।"
"जो भी नाम हो उसका, पास में है तेरे ?"
"ह...हां ।" जोशी ने देवराज चौहान को देखा ।
"बात करा उससे...।"
"लेकिन...।"
"सुना नहीं तूने, बात करा ।"
सुमित जोशी ने मोबाइल देवराज चौहान की तरफ बढ़ाते हुए कहा ।
"रतनपुरी तुमसे बात करना चाहता है ।"
देवराज चौहान ने फोन लेकर बात की ।
"कहो...।"
"तू ही है इसका बॉडीगार्ड, जिसने मेरे दो आदमियों को आज गोली से उड़ा दिया ?"
"हां...।"
"भूतनी के, क्यों मरना चाहता है ? भाग जा यहां से । छोड़ दे वकील को ।" उधर से रतनपुरी गुर्राया ।
"चला जाऊंगा ।" देवराज चौहान को इस बात का ध्यान था कि वहां माइक्रोफोन लगा है और बाहर मौजूद सी०बी०आई० वाले बातों को सुन रहे हैं । इसलिए वो संभलकर बात कर रहा था ।
"अभी निकल जा ।"
"हां, अभी चला जाऊंगा ।"
"वकील नहीं बचने वाला । ये तो कुत्ता है । इसके साथ रहकर क्यों अपनी जान गंवाता है ।"
"मैं छोड़ दूंगा वकील को ।"
उधर से रतनपुरी ने फोन बंद कर दिया ।
देवराज चौहान ने फोन टेबल पर रखा।
"तू मुझे छोड़ के चला जायेगा देवराज चौहान ?"
देवराज चौहान ने होंठ भींच लिए । जोशी ने उसका नाम ले लिया था । और जोशी का चेहरा बता रहा था कि अभी तक उसे अपनी गलती का एहसास नहीं हुआ था ।
"मैं कहीं नहीं जा रहा । तुम्हारे साथ ही हूं ।" देवराज चौहान ने कहा । और वहां से निकलकर, रिसेप्शन पर बिछे सोफे पर जा बैठा । वो इसलिए बाहर आ गया था कि जोशी कोई ऐसी बात न कह दे कि सी०बी०आई० वाले सतर्क हों। सिगरेट सुलगा ली । सोचों में डूबा कश लेता रहा । भीतर खाना समाप्त हो गया था । जूही बर्तनों को किचन तक पहुंचाने के लिए दो-तीन चक्कर लगा चुकी थी ।
"सुरेंद्र पाल ।" जूही उसके पास से निकलते वक्त ठिठकी--- "खाना बहुत ही अच्छा था । कहां से लाये ?"
"गोलार्ड से...।"
"ओह, फिर तो महंगा भी बहुत होगा । मैंने पहली बार गोलार्ड रैस्टोरेंट का खाना खाया है । नाम बहुत सुना है गोलार्ड का ।"
देवराज चौहान ने मुंह फेर लिया और कश लिया।
"जब देखो सड़ा ही रहता है ।" जूही ने मुंह बनाकर कहा और किचन की तरफ बढ़ गई । देवराज चौहान ने सिगरेट समाप्त की और वापस केबिन में जोशी के पास पहुंचा ।
"तुम पास नहीं होते तो मैं खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करता ।" सुमित जोशी ने उसे देखते ही कहा ।
देवराज चौहान चुप रहा ।
"आज के हमले के बाद तो मैं डर गया हूं । अब खामखाह बाहर नहीं निकलूंगा।"
"कब तक ?" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "रतनपुरी तुम्हें मौत देकर ही दम लेगा ।"
"मुझे अपने भाई प्रदीप की बहुत याद आ रही है । मैं कुछ देर उसके केबिन में बैठना चाहता हूं ।"
दोनों वहां से बाहर निकले और प्रदीप वाले केबिन में पहुंचे ।
देवराज चौहान ने कहा ।
"तुमने वहां, उस केबिन में मुझे देवराज चौहान कहकर पुकारा ।"
"अच्छा । मुझे याद नहीं । मैं परेशान हूं बहुत । आज मुझे सच में डर लग रहा है ।" सुमित जोशी कुर्सी पर बैठते हुए कह उठा--- " तुम बताओ कि इन हालातों में मुझे क्या करना चाहिये ?"
"चुपचाप कहीं खिसक जाओ ।"
"और जगमोहन ?"
"कमिश्नर का नम्बर मुझे दे दो । उससे मैं बात कर लूंगा ।"
सुमित जोशी के चेहरे पर गंभीरता के भरे सोच के भाव थे ।
"तुम ठीक कहते हो । मुझे सच में कहीं खिसक जाना चाहिये । यहां रहा तो बचूंगा नहीं ।"
"मुझे बता देना कि तुम कब खिसकना चाहते हो । मैं इंतजाम कर दूंगा ।"
"पता भी बताऊंगा । पहले एक दो जरूरी काम हैं । आज-कल में वो पूरे कर लूं ।"
"कामों को भूल जाओ । अपनी जान बचाने की सोचो...।"
"हर तरफ सोचना पड़ता है । मुझे थोड़ा वक्त दो ।" सोच भरे ढंग से वो उठा--- "मैं अपने केबिन में जा रहा हूं । वहां जूही मेरे साथ होगी । तुम कुछ देर रिसेप्शन पर बैठ जाना।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।
सुमित जोशी केबिन से बाहर निकल गया ।
कुछ मिनटों बाद देवराज चौहान रिसेप्शन पर पहुंचा तो जूही वहां नहीं थी ।
देवराज चौहान सोफे पर जा बैठा ।
तभी उसका फोन बजने लगा ।
"हैलो...।" देवराज चौहान ने बात की ।
"वो हरामी वकील, केबिन में रिसेप्शनिस्ट के साथ है ।" रमेश सिंह का जला-भुना स्वर कानों में पड़ा।
"तुम्हें क्यों तकलीफ हो रही है ?" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।
"तुम कोई खबर नहीं दे रहे ।"
"अभी कोई खबर नहीं है ।"
"ठीक है । लेकिन मेरी एक उलझन दूर करो । कुछ देर पहले उसने केबिन में तुम्हें देवराज चौहान कहकर पुकारा था।"
"देवराज चौहान ? वो मुझे देवराज चौहान क्यों कहेगा ?"
"उसने कहा, हमने उसकी आवाज को स्पष्ट सुना है । रिकॉर्डिंग है हमारे पास । सुन लो आकर ।"
"ऐसी बात है तो हैरानी है । मैं तो सुरेंद्र पाल हूं । आज वकील पर हमला हुआ ।"
"थोड़ी देर पहले बातों में ये बात जानी । रतनपुरी के आदमी थे हमला करने वाले ?"
"हां ।"
"रतनपुरी का फोन भी आया था । हमने बातें सुनी सब । वो तेरे को वकील को छोड़कर जाने को कह रहा था ।"
"हां । लेकिन मैं नहीं जाने वाला ।"
"मुझे समझ नहीं आता कि तू खतरे को भांप कर भी, जोशी के साथ क्यों चिपका हुआ है ?"
"मैंने बताया था कि मेरी एक पहचान वाला पुलिस के हाथों में है । वकील कहता है कि उसे पुलिस से बचा लेगा । अपने मतलब को मैं वकील के साथ हूं ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"वो तू जान ।" रमेश ने परेशानी से कहा--- "बारह बजे तो उसने रिसेप्शनिस्ट के साथ सब कुछ किया था । अब फिर लग गया । उसे चैन नहीं है क्या ?"
"ये बात तुम ही आकर उससे क्यों नहीं पूछ लेते ।" देवराज चौहान ने तीखे लहजे में कहा ।
"जल्दी कोई बढ़िया-सी खबर देना...।"
"हां...।"
उधर से रमेश सिंह ने फोन बंद कर दिया।
देवराज चौहान ने फोन जेब में रखा और सिगरेट सुलगा ली ।
करीब आधे घंटे बाद जूही रिसेप्शन पर आ पहुंची । वो खुश थी । आंखों में चमक थी ।
"तुम यहां हो ?" जूही उसे देखते ही कह उठी--- "मैंने सोचा बाहर गये हो...।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।
"मैं सर का सिर दबा रही थी । उनके सिर में दर्द है ।" जूही ने खुद ही कहा ।
"अब सिर कैसा है ?" देवराज चौहान ने शांत स्वर में पूछा ।
"ठीक है । आराम कर रहे हैं सर ।"
देवराज चौहान उठा और केबिन में, जोशी के पास जा पहुंचा ।
"तुम्हें कहीं छिप जाना चाहिये, अगला हमला कभी भी फिर तुम पर हो सकता है । शायद शाम को वापस जाते वक्त ही हो जाये ।"
सुमित जोशी ने उसे देखते हुए व्याकुल स्वर में कहा ।
"तुम जब भी आते हो, मुझे परेशान कर देते हो । खामोश हो जाओ।"
देवराज चौहान गहरी सांस लेकर रह गया ।
"समझा करो ।" सुमित जोशी कह उठा--- "मुझे एक-दो जरूरी काम हैं। मैं कहीं छिप नहीं सकता । एक-दो दिन बाद में इस बारे में सोचूंगा । मैं जानता हूं कि तुमने मुझे सही सलाह दी है ।"
देवराज चौहान केबिन से निकला हो रिसेप्शन के सोफे पर आ बैठा ।
तभी कोर्ट से असिस्टेंट वकीलों का आना शुरू हो गया । जोशी उनमें व्यस्त हो गया।
■■■
शाम के 6:30 बजे ।
सब वकील चले गये थे । ऑफिस खाली हो गया था । जूही सुमित जोशी और देवराज चौहान के अलावा ऑफिस में काम करने वाला लड़का ही वहां था । उस वक्त जूही रिसेप्शन पर बाल खोले कंघी कर रही थी । जोशी अपने केबिन में ही बैठा था । देवराज चौहान रिसेप्शन के सोफे पर बैठा था ।
जोशी ने देवराज चौहान से कहा था कि वो सात बजे घर के लिये चलेगा । अभी आधा घंटा बाकी था ।
तभी शीशे का दरवाजा धकेलकर तीन आदमियों ने भीतर प्रवेश किया । तीनों ही खतरनाक लग रहे थे । जूही अभी भी बालों में कंघी कर रही थी । देवराज चौहान उन्हें देखते ही उठ खड़ा हुआ ।
"ऐ छोकरी ।" एक ने जूही से कहा--- "वकील कहां है ?"
"आपकी अपॉइंटमेंट है ?" जूही कह उठी।
"भाड़ में गई अपॉइंटमेंट ।" वो खा जाने वाले स्वर में बोला--- "कहां है वो कमीना ?"
"इधर बैठता है वो दूसरे ने कहा और जोशी के केबिन जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ा--- "आ...।"
तीनों उस तरफ बढ़े ।
"उधर कहां जा रहे हो ?" देवराज चौहान फौरन उस तरफ लपका
वे ठिठके । देवराज चौहान को घूरा ।
"तू कौन है ?"
"वकील साहब का बॉडीगार्ड...।"
"इसे भी साथ ले चल ।"
एक ने देवराज चौहान की कमीज का कॉलर पकड़ा और उसे साथ लेकर चले पड़े।
देवराज चौहान समझ नहीं पा रहा था कि आखिर ये लोग कौन हैं और क्या चाहते हैं ।
देवराज चौहान को साथ लिए तीनों ने जोशी के केबिन में प्रवेश किया ।
सुमित जोशी ये सब देखकर बुरी तरह चौंका ।
एक ने देवराज चौहान को एक तरफ धकेलते हुए कहा---
"वहां खड़ा हो जा...।"
देवराज चौहान खड़ा होकर तीनों को देखने लगा ।
"क...कौन हो तुम लोग ?" सुमित जोशी हर बढ़ाकर कुर्सी से उठ खड़ा हुआ ।
"चल वकील ।" तीनों में से एक कठोर स्वर में बोला--- "बांटू और गोवर्धन तेरा इंतजार कर रहे हैं।"
जोशी के शरीर में ठंडी लहर सरसरा गई ।
"बांटू...गोवर्धन...क्यों ?" जोशी के होंठों से निकला ।
"वो वही बतायेंगे । जल्दी चल...।"
"मैं क्यों चलू ? मैंने ऐसा क्या कर दिया जो तुम लोग मेरे को लेने आ गये ?" जोशी घबराकर बोला ।
"चलता है या सिर के बाल पकड़कर खींचूं...।"
"तुम...तुम इस बदतमीजी से, मेरे से बात नहीं कर सकते ।" जोशी घबराहट में था ।
दूसरा आगे बढ़ा और गर्दन से उसने सुमित जोशी को पकड़ लिया।
"ये क्या कर रहे...।"
"चल...।" उन्होंने जोशी को दरवाजे की तरफ धकेला ।
"तुम्हारी इतनी हिम्मत कि, मुझसे ऐसे बात करो ?" सुमित जोशी ने भड़कने की चेष्टा की ।
"नाच मत ज्यादा ।" एक ने उसकी गर्दन पर हाथ मारा ।
"चल साले...।" तीसरे ने उसकी बांह पकड़ी और दरवाजे की तरफ किया।
सुमित जोशी समझ गया कि मुसीबत टलने वाली नहीं ।
"ठहरो, मैं बात करता...।" जोशी ने कहना चाहा ।
"तेरी बात कराने ही ले जा रहे हैं साले ।"
दरवाजा खोल के जोशी की बांह पकड़े तीनों बाहर निकले ।
देवराज चौहान भी उनके पीछे, बाहर निकला ।
"मुझे छोड़ो । मैं चल रहा हूं...।" जोशी ने अपनी बांह छुड़ाई ।
"तेरा बाप भी चलेगा ।"
"मेरा बॉडीगार्ड मेरे साथ चलेगा ।" आखिरकार जोशी ने कहा।
एक ने पलटकर देवराज चौहान को देखा और बोला---
"अपनी जान की खैर चाहता है तो, यहीं पर टिका रह । साथ आने की कोशिश भी मत करना ।"
देवराज चौहान ने शराफत से सिर हिला दिया।
"ये क्या कह रहे हो ? मेरा बॉडीगार्ड...।"
"चल...चल, हमें देर हो रही है ।" उन्होंने जोशी को बाहर की तरफ धकेला ।
"वे तीनों जोशी को लेकर बाहर निकल गये ।
देवराज चौहान रिसेप्शन में ही रह गया ।
जूही बाल संवार चुकी थी। वो कह उठी---
"ये सब क्या हो रहा है ? ये लोग कौन थे जो सर को ले गये ?"
"बांटू और गोवर्धन के आदमी थे ।"
"वो कौन हैं ?"
"प्रभाकर के चचेरे भाई ।"
"प्रभाकर कौन ?"
"नहीं जानती ?"
"नहीं...।"
"तो जानने की जरूरत भी नहीं...।"
"वो सर को क्यों ले गये हैं ?"
"जोशी को अपने कर्मों का हिसाब देना होगा ।"
"कैसे कर्म ?"
"जो वो करता रहता है और सोचता है कि किसी को पता नहीं चलेगा ।"
"पता नहीं तुम क्या कर रहे हो । सर वापस कब आयेंगे ?"
"वापस की कोई गारंटी नहीं...।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।
"कोई गारंटी नहीं ?" जूही ने हैरानी से कहा--- "क्या मतलब ?"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली ।
"मेरी किस्मत ही खराब है ।"
"क्या मतलब ?"
"इतनी मुश्किल से मैं सर को आज समझ सकी थी...कि ये सब हो गया ।"
"तीन महीने बाद तुम्हारी शादी होने वाली...।"
"तुम्हारा बस चले तो तुम आज ही मेरी शादी करा दो ।"
देवराज चौहान ने सोचों में डूबे कश लिया ।
"मैं घर जाऊं सुरेंद्र पाल ? आज मैं लेट हो गई...।"
"जाओ...।"
"लेकिन सर...।"
"उस तरफ ध्यान मत दो । तुम जाओ । कल वक्त पर आकर देख लेना कि ऑफिस खुला या बंद है ।"
"सच में मेरी किस्मत ही खराब है । आज मेरी तनख्वाह डबल हो गई थी । दस हजार रुपये अलग से सर मुझे देने जा रहे थे कि नये कपड़े खरीद लूं...। परन्तु अब तो ऑफिस भी बंद होने जा रहा है...।"
"पक्का नहीं है, कल पता चलेगा ।"
जूही अपना बैग उठाये चली गई।
देवराज चौहान वहीं रहा । वक्त बिताने के लिये उसने चाय बना ली । उसे यकीन नहीं था कि सुमित जोशी लौट पायेगा । परन्तु दो-चार घंटे तो उसका इंतजार करना जरूरी था । शायद फोन ही आ जाये । देवराज चौहान चाहता तो उन तीनों से निपट सकता था, परन्तु जोशी के खातिर उसे बांटू और गोवर्धन से दुश्मनी लेना गंवारा नहीं था । क्योंकि जोशी उसे किसी भी तरह से ठीक नहीं लगता था । कदम-कदम पर जाने कितने गलत काम कर रखे थे उसने।
देवराज चौहान, सुमित जोशी के इंतजार में या उसके फोन के इंतजार में, वहीं रहा ।
बारह बजे बांटू और गोवर्धन के आदमी, सुमित जोशी को ऑफिस के बाहर छोड़ गये थे ।
जोशी ने भीतर प्रवेश किया । बुरा हाल था उसका । वो रिसेप्शन के सोफे पर बैठ कर गहरी-गहरी सांसे लेने लगा । उसका होंठ सूजा हुआ था । एक आंख के पास भी काला धब्बा दिखाई दे रहा था । बाल बिखरे हुए थे । बांटू और गोवर्धन ने उसके अच्छी खासी सेवा थी । वो देवराज चौहान से कह उठा---
"पानी...पानी दो मुझे...।"
देवराज चौहान ने उसे पानी पिलाया । हालत तनिक सुधरी ।
"क्या बात हुई ?" जबकि देवराज चौहान जानता था कि क्या हुआ होगा ।
"साले-कुत्ते । बांटू और गोवर्धन मेरे से जिम्मी और प्रभाकर के बारे में पूछ रहे थे ।" जोशी गुस्से से भुनभुनाया ।
"फिर ?"
"कह रहे थे कि मैंने कोई गड़बड़ की होगी । तभी वो दोनों नहीं मिल रहे ।"
"देख लो, तुम लोगों में कितने बदनाम हो ।"
"मुझे क्या पता वो कहां गये ?" कड़वे स्वर में सुमित जोशी ने कहा--- "मैंने तो प्रभाकर को जेल से निकालकर जिम्मी के हवाले कर दिया था । खतरा भांपकर वो कहीं छिप गये होंगे ।"
"उन्होंने तुम्हारी बात पर भरोसा किया ?"
"करे न करे, मुझे क्या ?"
"उन दोनों की लाशें मिलने पर वो तेरे पे चढ़ दौड़ेंगे।"
"मुम्बई की सीमा पर, ऐसी सुनसान जगह उन्हें मारा है कि उनकी लाशें मिलेंगी ही नहीं । जब मिलेंगी, उनके कंकाल मिलेंगे जो कि पहचाने नहीं जायेंगे ।" सुमित जोशी ने जहरीले स्वर में कहा ।
"तुमने अपने को बहुत खतरे में डाल रखा है ।"
"उन्हें न मारता तो वे मुझे मार देते ।"
"बचे हुए तुम अब भी नहीं हो ।"
"बचा हुआ हूं । ये थोड़ा-बहुत तो चलेगा ही । सब कमीने हैं साले।"
देवराज चौहान मुस्कुराया ।
"तुम...तुम एक बात बताओ । वो तीनों मुझे ले जा रहे थे तो तुमने कुछ नहीं किया--- जबकि तुम उनसे निपट सकते थे ?"
"मेरा बीच में आना ठीक नहीं था । बात बिगड़ जाती...।"
"कैसे ?" जोशी ने उसे घूरा ।
"मैं तीनों को ठिकाने लगा देता तो बांटू-गोवर्धन दस आदमी और भेज देते ।"
जोशी उसे देखता रहा।
"ये अच्छा रहा कि मामला आसानी से निपट गया और तू वापस आ गया ।"
"अजीब बॉडीगार्ड है तू । मेरे को दूसरों के हाथों में जाने देता है। वो मेरी ठुकाई करके मुझे वापस छोड़ जाते हैं और तू कहता है कि मामला आसानी से निपट गया । मेरे प्रति तेरे विचार ज्यादा अच्छे नहीं है देवराज चौहान ।"
"वहम मत कर ।"
"वकील हूं । तू बातों से मुझे बेवकूफ नहीं बना सकता । तू ठीक से मेरा ध्यान नहीं रख रहा।"
सुमित जोशी देवराज चौहान को देखता रहा ।
"घर नहीं चलना तूने ?" देवराज चौहान बोला ।
"मैं तेरे बारे में सोच रहा हूं कि मुझे तेरा कोई खास फायदा नहीं है ।" जोशी सिर पटककर बोला।
"तू भूल गया कि मैंने तीन बार तेरी जान बचाई है । तीसरी बार तो आज दोपहर में ही बचाई जान ।"
"हां ।" सुमित जोशी ने अपना सूखा होंठ टटोला--- "चल, घर चल कर दो पैग मारुं और आराम करुं।"
"तेरे को बांटू-गोवर्धन ने आने दिया, ये ही बड़ी बात है । तेरे को खुश होना चाहिये कि...।"
"छोड़ । चल यहां से...।" सुमित जोशी उठ खड़ा हुआ ।
■■■
अगले दिन सुमित जोशी ने भारी गलती कर दी ।
जोशी दोपहर एक बजे ऑफिस पहुंचा था । चेहरे पर अभी भी पिटाई के निशान थे । परन्तु रात से बेहतर था । वो सीधा अपने केबिन में पहुंचा और बैठ गया । कुछ चुप-चुप था और सोचों में डूबा लग रहा था । देवराज चौहान से वो ज्यादा बात न कर रहा था । जूही पीछे-पीछे केबिन में आ गई।
"ये आपके चेहरे को क्या हो गया सर ?" उसने अपनेपन से पूछा ।
"रात जो बदमाश मुझे ले गये थे, उन्होंने मुझे पीटा और लूट लिया ।"
"ओह । बहुत बुरे थे वो । मैं क्या आपके लिए जूस लाऊं ?"
"नहीं। चाय बना लो ।"
"सर, तब इस सुरेंद्र पाल को चाहिये था कि आपको बचाता ।" जूही ने देवराज चौहान पर निगाह मारी ।
देवराज चौहान ने मुंह घुमा लिया ।
"आप इसे तनख्वाह इसी बात की तो देते हैं ।" जूही ने पुनः आग लगाई ।
"हां, इतने अपना काम ठीक से नहीं किया । मैं इसे जल्दी ही नौकरी से निकाल दूंगा ।" जोशी बोला।
"ये ठीक रहेगा । मैं आपके लिये चाय बनाकर लाती हूं ।" वो चली गई ।
"सुना । जूही को भी इस बात का एहसास है कि कल तुमने अपना काम ठीक से नहीं किया ।"
"मेरा बीच में न आना ही ठीक था । वरना बात और बिगड़ जाती । तुम नहीं समझोगे ।"
"ये ही समझाते रहना । तब तक मेरी लाश किसी नाले में पड़ी होगी ।" सुमित जोशी ने कड़वे स्वर में कहा ।
"तुम कल से मुझसे ठीक तरह बात नहीं कर रहे...।"
"क्योंकि तुमने मुझे बताया नहीं । तुम उन तीनों को रोक सकते...।"
तभी टेबल पर पड़ा फोन बजने लगा ।
"हैलो ।" सुमित जोशी ने रिसीवर उठाया ।
"तुम्हारा मोबाइल बंद है क्या ?" उधर से कमिश्नर भूरेलाल की आवाज कानों में पड़ी ।
"बैटरी की चार्जिंग खत्म हो गई होगी । अभी चार्ज करता हूं । तुम कहो । जगमोहन कैसा है ?"
"ठीक है । अभी मुझे मौका नहीं मिला ।"
"जल्दी कर यार । उसे बाहर कर।"
"कोशिश कर रहा हूं, तू हर बार मत कहा कर । मैंने तेरे से पूछने को फोन किया कि तू क्या खबर मेरे को देना चाहता था ?"
जोशी की नजर देवराज चौहान पर गई । फिर उसने बोला---
"तुम जरा बाहर जाओ । मुझे कमिश्नर से कोई बात करनी है ।
देवराज चौहान बाहर आ गया ।
जूही रिसेप्शन पर नहीं थी । वो किचन में चाय बनाने में लगी हुई थी ।
देवराज चौहान रिसेप्शन पर बैठ गया ।
जूही चाय भीतर जोशी को दे आई और बाहर आकर बोली---
"सुरेंद्र पाल । तुम मेरी बात का बुरा मत मानना ।"
देवराज चौहान ने उसे देखा ।
"कभी-कभी सर को मक्खन लगाने के लिए ऐसी-वैसी बात कहनी पड़ती है ।" तुम फिक्र मत करो । मैं तुम्हारी नौकरी नहीं जाने दूंगी।
"अच्छा ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा--- "कैसे ?"
"मैं सर को समझा दूंगी कि तुम अच्छे इंसान हो ।"
"तुम समझा दोगी--- कब ?"
"जब सर के सिर की मसाज करूंगी...।"
देवराज चौहान गहरी सांस लेकर रह गया ।
जूही किचन में गई और चाय के दो कप और उठा लाई ।
"लो, तुम भी चाय पियो ।"
देवराज चौहान ने प्याला थाम लिया । एक घूंट भरा कि उसी पल चिहुंक उठा । उसने चाय का प्याला जल्दी से सामने की टेबल पर रखा और भीतर की तरफ दौड़ा ।
"क्या हुआ सुरेंद्र पाल...।" पीछे से जूही बोली ।
देवराज चौहान ने तेजी से सुमित जोशी के केबिन में प्रवेश किया ।
जोशी को तब उसने रिसीवर रखते देखा और हैरानी से देवराज चौहान से पूछा---
"क्या हुआ ?"
"जूही बुला रही है ।" कहकर देवराज चौहान पलटा और रिसेप्शन में आ पहुंचा ।
"सब ठीक तो है सुरेंद्र पाल ?" जूही ने पूछा।
जबकि देवराज चौहान के चेहरे पर बेचैनी के भाव थे ।
सुमित जोशी वहां पहुंचा ।
"क्या बात...।" जोशी ने जूही को देखकर कहना चाहा कि देवराज चौहान ने उसकी कलाई पकड़ी और खींचता हुआ उसे प्रदीप वाले केबिन में ले गया ।
सुमित जोशी हैरान-परेशान था ।
"क्या हो गया है तुम्हें देवराज चौहान ?" जोशी कह उठा ।
"तुमने बहुत बड़ी गलती कर दी है ।" देवराज चौहान तीव्र स्वर में बोला ।
"क्या ?"
"उस केबिन में बैठकर तुमने कमिश्नर से जगमोहन को, वहां से निकालने को कहा ।
सुमित जोशी का चेहरा सफेद पड़ गया।
"वहां माइक्रोफोन लगा है । बाहर सी०बी०आई० वाले बातें सुन नहीं रहे, रिकॉर्ड भी हो रही हैं बातचीत ।"
जोशी का चेहरा फक्क । सूखे होंठों पर उसने जीभ फेरी ।
"तुम वहां लगे माइक्रोफोन को भूल गये थे क्या ?"
"या... या... द... न... हीं...रहा...।" जोशी के होंठों से कंपकंपाता स्वर निकला ।
"मुझे बाहर भेजकर तुमने कमिश्नर से क्या बात की ?"
जोशी ने बेचैनी से, देवराज चौहान को देखा।
"बोलो...।"
परन्तु जोशी चुप ।
"कोई मुसीबत वाली बात तो नहीं की कमिश्नर से ?"
"प...प...ता नहीं....।"
"मैं कहता हूं...मुझे बता ।" देवराज चौहान तीखे स्वर में बोला ।
"कोई बात नहीं...।"
"तू कुछ छिपा रहा है ? तूने सी०बी०आई० वालों को बातचीत में कोई सबूत तो नहीं दे दिया कि वो तेरा बिस्तरा गोल कर दे ?"
सुमित जोशी के होंठ तो हिल रहे थे--- परन्तु बोल नहीं फूट रहा था ।
तभी जूही केबिन के दरवाजे पर पहुंची। दोनों को देखकर बोली---
"सब ठीक तो है न ?"
"सब ठीक है । तुम जाओ न...।" देवराज चौहान बोला ।
"सर ।" जूही ने कहा--- "सुरेंद्र पाल को नौकरी से मत निकालना । इसे आपकी बहुत चिंता...।"
"तुम जाओ ।" जोशी ने खरखराते स्वर में कहा ।
जूही बाहर निकल गई ।
देवराज चौहान जोशी को देख रहा था।
सुमित जोशी बार-बार सूखे होंठों पर जीभ फेर रहा था ।
"तो तुम मुझे...मुझे नहीं बताओगे कि मुझे बाहर भेजकर तुमने कमिश्नर से क्या बात की ?"
जोशी चुप ।
"तुम्हारी हालत से स्पष्ट है कि तुमने सी०बी०आई० वालों को कोई कमाल दिखा दिया है ।"
"मैं...मैं तो भूल गया था माइक्रोफोन को ।" जोशी खरखराते स्वर में बोला--- "तुमने...तुमने मुझे क्यों न याद दिलाया था कि...।"
"मैं भी तब भूल गया था । चूक हो गई मुझसे । ये बात तुम्हें याद रखनी चाहिये थी । ये तुम्हारा ऑफिस है । तुम्हारा फोन है । तुम्हें पता होना चाहिए कि मैंने कब, कहां बात करनी है । परन्तु तुमने कमिश्नर से क्या बात की ?"
"मैं नहीं बता सकता ।"
"मुझे भी नहीं ?"
"नहीं...।"
"फंसने वाली बात थी वो ?"
"प...प...ता...न...हीं...।" सुमित जोशी का गला सूख रहा था ।
"मतलब कि तुमने गड़बड़ी वाली बात की उससे । तुम्हें अब कोई नहीं बचा सकता ।"
देवराज चौहान, जोशी को वहीं छोड़कर रिसेप्शन के सोफे पर जा बैठा ।
"आखिर हुआ क्या सुरेंद्र पाल ?" जूही नहीं होते देखकर कहा ।
देवराज चौहान खामोश रहा ।
तभी देवराज चौहान का फोन बजा ।
"हैलो...।"
"मैं रमेश सिंह...सी०बी०आई०...।" कानों में आवाज पड़ी ।
देवराज चौहान ने गहरी सांस ली । फिर बोला ।
"कहो...।"
"आओगे ?"
"क्यों ?"
"कुछ बात करनी है ।"
"आता हूं...।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद करके जेब में रखा । वो सोच रहा था कि सी०बी०आई० वालों से पता चल जायेगा कि जोशी ने कमिश्नर से क्या बात की थी । इसी वास्ते उसे बुला रहे होंगे कि उसी बातचीत के बारे में उससे कुछ बात करना चाहेंगे होंगे ?
देवराज चौहान वापस केबिन में सुमित जोशी के पास पहुंचा ।
जोशी का चेहरा उतरा हुआ था ।
"अभी भी बता दो कि तुमने कमिश्नर से क्या बात की है ? सी०बी०आई० वालों ने क्या सुना है ?"
"सब ठीक है ।" जोशी ने फीके स्वर में कहा--- "तुम नाहक की चिंता कर रहे हो ।"
"तेरा चेहरा बता रहा है कि तुमने कुछ गड़बड़ कर दी है ?"
जोशी उसे देखता रहा ।
"अब समझा...।" देवराज चौहान ने तीखे स्वर में कहा ।
"क्या ?"
"जुर्म करने के बाद अपराधी कैसे कानून के शिकंजे में आ फंसता है । हर अपराधी बहुत सावधान होता है, परन्तु अंजाने में वो कहीं-न-कहीं गलती कर ही देता है, जो कि उसे फंसाने के लिये काफी होती है । कानून या पुलिस बेवकूफ नहीं है । अपराधियों को पकड़ने के लिए वो हमेशा चौकन्नी बनी रहती है और इस ताक में रहती है कि अपराधी गलती करें ।"
सुमित जोशी ने गहरी सांस ली ।
"और तुमने भी गलती कर दी।"
"मुझे...मुझे कुछ नहीं होगा । क्या पता सी०बी०आई० वालों ने ये बात सुनी ही ना हो ? वो कहीं और व्यस्त हों। उनका वो यंत्र खराब हो गया हो, जिस पर बातें सुन रहे थे । या फिर...।"
"वे मर गए हों ।" देवराज चौहान ने कड़वे स्वर में कहा ।
जोशी ने मुंह फेर लिया ।
"मैं कब तक तेरे को कुछ बचाता रहूंगा ? तूने खुद ही फंसने का काम कर दिया है ।" देवराज चौहान ने कहा और केबिन से बाहर आकर रिसेप्शन में पहुंचा तो यूं ही उसे देखते ही कह उठी---
"क्या बात है--- तुम और सर, दोनों ही अचानक इतने परेशान क्यों हो गये हो ?"
"मैं सिगरेट लेने जा रहा हूं...।" कहते हुए देवराज चौहान आगे बढ़ा और शीशे का दरवाजा धकेलकर बाहर निकल गया।
■■■
सी०बी०आई० वालों ने देवराज चौहान को आता पाकर, कार का दरवाजा पहले ही खोल दिया था । वो भीतर जा बैठा । दरवाजा बंद कर लिया । पहले की तरह दयाल पीछे और रमेश आगे वाली सीट पर था ।
देवराज चौहान ने महसूस किया कि वे दोनों उसे खास निगाहों से देख रहे हैं ।
"क्या है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"हमने, सुमित जोशी के केबिन में लगी बातचीत अभी सुनी...।" रमेश सिंह बोला ।
"अच्छा...।" देवराज चौहान का स्वर शांत था ।
"उसने तुम्हें बाहर जाने को कह दिया था । उसके बाद उसने, पुलिस कमिश्नर भूरेलाल से बात की ।"
"मालूम है मेरे को...।"
"ये जगमोहन कौन है ?"
"जगमोहन ?"
"जिसे वकील आजाद करवाने के लिए कमिश्नर को कह रहा था ?"
"मैं नहीं जानता ।" देवराज चौहान ने रमेश सिंह को देखा ।
तभी दयाल ने रमेश सिंह से कहा ।
"मेरे ख्याल में इसे सारी बातचीत सुना देनी चाहिये । तभी ये हमारी बात समझेगा ।"
देवराज चौहान ने दयाल को देखा ।
दयाल मुस्कुराया ।
देवराज चौहान को दयाल की मुस्कान अजीब-सी लगी । मन-ही-मन वो चौंका ।
"रात क्या हुआ था ? बातें सुनने से पता चला कि किसी ने वकील की ठुकाई की थी ?" दयाल ने पूछा।
"वो बांटू और गोवर्धन के आदमी थे । जो कल शाम उसे ले गये थे ऑफिस से । बाद में उसे मारपीट कर रात बारह बजे यहीं छोड़ गये थे ।" देवराज चौहान ने बताया ।
"ये सब करने की वजह ?"
"मैं नहीं जानता...।"
"सुरेंद्र पाल । जब भी कुछ बताने का वक्त आता है तुम कहते हो, मैं नहीं जानता ।"
"नहीं जानता, तो नहीं जानता ।"
"तुम मजेदार बातें नहीं करते ।" फिर दयाल ने रमेश सिंह से कहा--- "देर क्यों लग रही है ?"
"बस, एक मिनट...।"
"आखिर बात क्या है ?" देवराज चौहान ने दोनों को देखकर, दयाल से पूछा ।
"सुन लेना, टेप चालू होने वाला है ।" दयाल ने कहा और कुर्ती के साथ रिवाल्वर निकालकर देवराज चौहान की कमर में लगा दी । ऐसा होते पाकर देवराज चौहान चौंका।
"ये क्या ?"
"ये इसलिए कि बातें सुनने के दौरान तुम शांत रहो । कुछ कहने की, भागने की मत सोचो ।"
"मैं...मैं क्यों भागूंगा...।"
"वो तो तुम बातें सुनते ही समझ जाओगे कि मैंने रिवाल्वर निकालकर कुछ भी गलत नहीं किया ।"
देवराज चौहान समझ गया कि सुमित जोशी ने कोई भारी गड़बड़ कर दी है ।
तभी टेप चालू हो गई । जोशी की आवाज वहां गूंजी---
"तुम जरा बाहर जाओ । मुझे कमिश्नर से कोई बात खास बात करनी है ।"
फिर रिकॉर्डर से मध्यम-सी आवाजें उभरीं, देवराज चौहान के बाहर जाते ही ।
"कौन था पास में ?" कमिश्नर की आवाज सुनाई दी ।
"रोको जरा...।" देवराज चौहान के होंठों से निकला ।
रमेश सिंह ने टेप रोका ।
"कमिश्नर की आवाज कैसे रिकॉर्ड हो गई ? माइक्रोफोन तो केबिन में...।"
"शायद तुम्हें हमने बताया नहीं कि वकील का फोन भी हमने टेपिंग पर लगा रखा है ।"
"ओह...।"
"अब शांति से सुनो टेप...।" कहकर रमेश सिंह ने टेप का बटन दबाया ।
देवराज चौहान का पूरा ध्यान टेप से निकलती बातों पर लग गया।
"मेरा बॉडीगार्ड था ।"
"हूं । बोलो तुम कोई खास बात बताने को कह रहे थे ।"
"मैं तेरी वर्दी पर एक और स्टार लगा देना चाहता हूं ।"
"तो ये बात है।" उधर से कमिश्नर हंसा--- "फड़कती खबर है तेरे पास--- ठीक कहा मैंने ?"
"ठीक कह रहा है । तेरी वर्दी पर एक स्टार पहले भी मेरे कारण बड़ा था ।"
"हां, कई बार तू काम की खबरें देता है । अब क्या खबर है ?"
"डकैती मास्टर देवराज चौहान का नाम सुना है ?"
"देवराज चौहान हां...।" कमिश्नर का चौंका स्वर सुनाई दिया--- "उसके बारे में खबर है ?"
"बता।"
"मैं तेरे को बता दूं कि वो किधर है तो तू उसे पकड़ेगा या मारेगा ?"
"क्षणिक खामोशी के बाद कमिश्नर की आवाज आई ।
"जैसा जो चाहेगा, वैसा ही करूंगा ।"
"मेरे ख्याल में उसे मार देना ही ठीक रहेगा ।"
"पकड़ा जाये तो ज्यादा ठीक नहीं क्या ?"
"उसके पास मेरी कुछ बातें हैं । उन बातों को उसने खोला तो मैं मुसीबत में पड़ जाऊंगा ।"
"समझ गया । ठीक है, उसे एनकाउंटर करके मार दिया जायेगा । बता किधर मिलेगा देवराज चौहान ?"
"सब्र रख ।"
"क्या मतलब ?"
"इतना बड़ा डकैती मास्टर है--- और उसे तू आसानी से पा लेना चाहता है ।" सुमित जोशी ने हंसकर कहा ।
"तो कैसे मिलेगा वो मुझे ?"
"शाम तक बता दूंगा तेरे को कि वो किधर होगा । तू तैयार रह ।"
"समझ गया । परन्तु तेरा क्या वास्ता देवराज चौहान से ?"
"पड़ गया वास्ता । मेरा कुछ काम कर रहा था ।"
"तो ?"
"मेरा काम वो ठीक से नहीं कर रहा । मैंने कहा कि रतनपुरी को खत्म करना है, परन्तु वो नहीं माना । जबकि मैं उसे करोड़ों की रकम दे रहा हूं । किसी और काम में भी वो ठीक से नहीं चल रहा मेरे साथ ।"
"ठीक है । एनकाउंटर में उसे खत्म कर दिया जायेगा ।"
"शाम तक तेरे को बता दूंगा कि वो कहां मिलेगा ।"
"ठीक है ।"
बात-चीत खत्म हो गई।
रमेश सिंह ने रिकॉर्डर ऑफ कर दिया ।
देवराज चौहान ने जो सुना--- कम-से-कम इसकी तो कल्पना नहीं की थी उसने ।
सुमित जोशी उससे इतनी बड़ी गद्दारी करेगा ।
उसे खत्म करा देने के लिए पुलिस की मुखबिरी कर रहा है । क्योंकि उसने, उसके कहने पर रतनपुरी को नहीं मारा । रात उसने बांटू और गोवर्धन के आदमियों का मुकाबला नहीं किया।
जोशी को अपने दुश्मन बनाकर शायद खुशी मिलती थी ।
उसे भी अपना दुश्मन बना लिया ।
देवराज चौहान के होंठों पर शांत-सी मुस्कान बिखरती चली गई ।
"सुना तूने...।" दयाल कह उठा ।
"सुना ।" देवराज चौहान के दोनों को देखा--- "तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं...।"
दयाल ने अभी तक उसकी कमर से रिवॉल्वर लगा रखी थी ।
"सोच ले, शायद कुछ कर सकता हो । रमेश सिंह ने कड़वे स्वर में कहा । और उसने भी रिवाल्वर निकाल ली ।
देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़कर रिवाल्वर को देखा ।
"तुम क्या कहना चाहते हो ?"
"तुम डकैती मास्टर देवराज चौहान हो ।" कहकर रमेश सिंह ने रिवाल्वर की नाल उसकी छाती पर रख दी।
देवराज चौहान चौंका ।
"बेटे । हम सी०बी०आई० वाले हैं । घास खोदने वाले नहीं । जितनी देर तू हमें बेवकूफ बना सकता था, बनाया । अब हम और बेवकूफ नहीं बनने वाले । बोल, तू ही डकैती मास्टर देवराज चौहान है ना ?"
देवराज चौहान रमेश सिंह को देखता रहा ।
"पूछ, हमें कैसे पता चला कि तू ही देवराज चौहान है ?"
"मैं क्यों पूछूं ? मैं देवराज चौहान हूं ही नहीं । सुरेंद्र पाल हूं मैं...।"
"कल वकील ने तेरे को देवराज चौहान कहकर पुकारा था । तब हम इस नाम का मतलब समझ नहीं पाये थे । परन्तु आज समझ गये, जब उसने कमिश्नर से तुम्हारे बारे में बात की ।" रमेश सिंह ने कड़वे स्वर में कहा ।
देवराज चौहान समझ गया कि ये अंधेरे में तीर नहीं चला रहे ।
"या तो तू कबूल कि तू देवराज चौहान है, नहीं तो कार को अभी सी०बी०आई० हैडक्वार्टर ले चलते हैं।"
देवराज चौहान ने गहरी सांस ली और कह उठा---
"मेरी हां कह देने पर तुम लोग सी०बी०आई० हैड क्वार्टर नहीं चलोगे ?"
"शायद न चलें...।"
"वो क्यों ?"
"हम तेरे से कुछ बात करेंगे ।" दयाल ने शांत स्वर में कहा ।
"ठीक है, मैं ही देवराज चौहान हूं...।" देवराज चौहान को मान लेने में ही भलाई लगी ।
"डकैती मास्टर देवराज चौहान ?"
"हां, वो ही...।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया ।
"सुन लिया दयाल...।"
"मैंने भी तेरे को कहा था कि ये ही डकैती मास्टर देवराज चौहान है ।" दयाल बोला।
"मेरे से दो-दो रिवाल्वरें क्यों लगा रखी हैं ? जो भी बात करनी है, इन्हें हटाकर करो ।"
"तेरे पास कितनी रिवाल्वर हैं, एक या ज्यादा ?"
"दो...।"
"निकालकर हमें दे ।"
"देवराज चौहान ने शराफत से दोनों रिवाल्वरें निकालकर, रमेश सिंह को दे दी।
उन रिवाल्वरों को रमेश सिंह ने आगे वाली सीट के पैरों की तरफ गिरा दिया । अपनी रिवॉल्वर देवराज चौहान की छाती से हटाकर गोद में रख ली । दयाल उसकी कमर से रिवाल्वर हटाता कह उठा---
"अगर तूने कार का दरवाजा खोलकर भागने की कोशिश की तो...।"
"मैं ऐसा कुछ नहीं करुंगा ।" देवराज चौहान बोला ।
"किया तो गोली मार दूंगा ।"
"मार देना । कहकर देवराज चौहान ने दोनों को देखा--- "कहो, क्या कहना चाहते हो ?"
"पहले ये बताओ कि तुम इस वकील के चक्कर में कैसे आ फंसे ?"
"मेरे साथी जगमोहन को पुलिस ने पकड़ लिया है । वकील कहता है कि वो उसे छुड़ा देगा । रिमांड के दौरान पुलिस कस्टडी में जगमोहन से मेरी बात भी कराई फोन पर ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"वो कमिश्नर जगमोहन को वहां से भगा देगा ?"
"वकील तो ये ही कहता है ।"
"अब तो ऐसा नहीं हो सकेगा । क्योंकि हम बीच में आ गये हैं ।"
देवराज चौहान उन्हें देखता रहा ।
"तेरे को पता है कि वकील बहुत हरामी चीज है ?"
"मालूम है ।"
"वो तो तेरे को भी साफ करवाने में लग गया और तू उसे बचाता फिर रहा है ?"
"अब तो नहीं बचा रहा उसे ।"
"तेरी आंखें जो हमने खोल दी हैं ।" दयाल ने कड़वे स्वर में कहा।
"तुम दोनों मुझसे इतने प्यार से क्यों बातें कर रहे हो ?" देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़कर कहा ।
"तू बता दयाल...।"
"देख देवराज चौहान । सब कुछ जानने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि डकैती मास्टर देवराज चौहान इतना खतरनाक नहीं जितना की जनता के लिए सुमित जोशी खतरनाक है । वैसे भी हमने तेरे को पकड़ लिया तो हमें वाह-वाह के अलावा कुछ भी नहीं हासिल होगा । हमने अपना रिकॉर्ड बढ़िया रखना है । जो केस हमें मिला है, हमें वो हल करना है । हमें मालूम है कि सुमित जोशी जुर्मी है, परन्तु हमें सबूत नहीं मिल रहे...।"
"तो तुम दोनों की मुझमें कोई दिलचस्पी नहीं ?"
"शर्त ये है कि वकील के खिलाफ सबूत जुटाने में हमारी सहायता कर।"
"जरूर सहायता करूंगा । क्योंकि सुमित जोशी मेरा काम तमाम करवाने की चेष्टा कर रहा है । उसके खिलाफ सबूत भी इकठ्ठे करवा दूंगा । परन्तु मेरा काम करना होगा बदले में ।"
"कौन सा ?"
"जगमोहन को आजाद कराओ ।"
"वो तो पुलिस में, रिमांड पर है । तुमने बताया...।"
"हां ।" देवराज चौहान ने दोनों को देखा--- "तुम लोगों के लिये उसे निकालना मामूली काम है ।"
"देख, तू हमारी सहायता करेगा, तो हम तेरे को आजाद कर रहे हैं । गिरफ्तार नहीं कर रहे । जगमोहन के चक्कर में...।"
"ठीक है, मैं यहीं बैठा हूं " देवराज चौहान ने कहा--- "गिरफ्तार कर लो मुझे।"
रमेश सिंह और दयाल की नजरें मिलीं।
"तेरे को गिरफ्तार कर लें ?" दयाल ने अजीब से स्वर में कहा।
"हां...।"
"लेकिन तेरे को पकड़कर हमारा क्या फायदा होगा ?"
"हमारा फायदा तो तब होगा जब तू वकील के खिलाफ हमें सबूत मुहैया करा देगा ।"
"इसके लिए तुम लोगों को जगमोहन को आजाद करवाना होगा ।"
"ये तो लफड़े वाली बात है।"
"तो मुझे भी गिरफ्तार कर लो । अब तुम लोग कार से निकलने को कहोगे तो मैं तब भी नहीं निकलूंगा ।" देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कहा और उस सीट पर ही पसर गया ।
दयाल, रमेश सिंह की नजरें मिलीं ।
"ये साला तो चौड़ा हो गया है ।" रमेश सिंह बोला ।
"अगर तेरा यही हाल रहा तो हम सच में तुझे गिरफ्तार कर लेंगे ।" दयाल कह उठा ।
"कर लो । मैं भी तो यही कर रहा हूं...।"
दयाल ने गहरी सांस ली ।
रमेश सिंह अपने कान को रगड़ता कह उठा---
"ठीक है, तू हमें सबूत ला के दे । हम जगमोहन को...।"
"पहले जगमोहन को आजाद कराओ, फिर...।"
"तू हमें बेवकूफ समझता है ? तू जगमोहन के साथ फुर्र हो जायेगा और हम...।"
"फुर्र नहीं होऊंगा । तुम्हारा पूरा काम करके, तुमसे इज्जत लेकर ही जाऊंगा ।"
"तेरा क्या भरोसा...।"
"मैं कभी धोखा नहीं देता ।"
"अभी-अभी तो तू उस वकील को धोखा देने को तैयार हुआ पड़ा है ।
"मैंने ये काम बाद में किया । पहले धोखा उसने दिया । वो पुलिस से मेरा एनकाउंटर कराने के फेर में है ।
"देख, तू सयाना न बन । तू हमारा काम कर दे । हम तेरा काम...।"
"मेरे से काम लेना है तो जगमोहन...।"
"फिर वो ही बात...।"
"मुझे तुम्हारा भरोसा नहीं...।"
"इसी तरह हमें भी तेरा भरोसा नही...।"
"यार, किसी को तो भरोसा करना ही पड़ेगा ।" रमेश सिंह कह उठा।
"तुम मेरा भरोसा करो ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"मतलब कि तू हमारा भरोसा नहीं करेगा ?"
"नहीं...।" देवराज चौहान ने स्पष्ट तौर से इंकार किया ।
"सुना तूने...।" रमेश सिंह ने जले भुने स्वर में दयाल से कहा--- "ये जानकर कि तू डकैती मास्टर देवराज चौहान है, हम तेरे को गिरफ्तार नहीं कर रहे । क्योंकि हम तेरे को इतना खतरनाक नहीं समझ रहे, जितना कि वो वकील है । हमने वकील को कानून की गिरफ्त में लेना है ।"
"ले लो ।"
"इसके लिये हमें तेरी सहायता चाहिये।"
"मेरा काम करोगे तो मैं तुम्हारे काम आऊंगा । जुबान देता हूं । एक बार आजमाकर देख लो।
"एक बार आजमाने से ही हमारा काम हो जायेगा ।"
"यकीन करो । मैं अंत तक तुम्हारे काम आऊंगा । बाद में तुम्हारी इजाजत लेकर ही जाऊंगा ।"
रमेश सिंह और दयाल की नजरे मिलीं ।
"ये नहीं मानने वाला ।" रमेश सिंह ने कड़वे स्वर में कहा ।
देवराज चौहान खामोशी से बैठा रहा ।
कुछ पर शांति के बाद, दयाल ने देवराज चौहान से कहा---
"तुम वकील के बारे में जानते क्या हो ?"
"उसने ही तीनों वकीलों की हत्या की है । उसने ही तीनों बॉडीगार्ड का एक्सीडेंट कराकर उन्हें खत्म किया है ।"
"वकील ये बात तुम्हारे सामने माना ?"
"माना ।"
"और कुछ ?"
"मैंने कस्तूरबा गांधी मार्ग वाली खबर झूठ बताई थी तुम्हें...।" देवराज चौहान ने कहा ।
दयाल और रमेश सिंह की नजरें मिलीं ।
"हमें तो पहले ही शक था ।"
"सच क्या है...।"
"वकील जानता है कि तुम लोगों ने उसके केबिन में, टेबल के नीचे माइक्रोफोन लगा रखा है ।" देवराज चौहान ने कहा
"कैसे जानता है ?" दयाल के होंठों से निकला ।
"तूने बताया होगा ।"
"वो कैसे जानता है, इस फेर में न पड़ो। ये जान लो कि माइक्रोफोन के बारे में वो जानता है । उस केबिन में वो, वो ही बातें करता है जो तुम लोगों को सुनानी होती है ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"तूने ये बात पहले क्यों नहीं बताई ?"
"क्योंकि पहले उसने मेरे से गद्दारी नहीं की थी ।"
"तू भी कम नहीं है ।"
"मैं तो अपना फायदा सोचूंगा । तुम लोगों और वकील के बीच में खामखाह आ फंसा हूं ।"
"तो उस दिन तूने हमें कस्तूरबा गांधी मार्ग पर क्यों भेजा ?"
"सुमित जोशी की प्लानिंग थी ये । तुम लोगों को उस दिन सुबह अपने पीछे से हटाना चाहता था ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि उसने ही प्रभाकर को जेल से फरार करवाया है ।"
दयाल और रमेश सिंह के चेहरों पर हैरानी फैल गई ।
"जोशी ने प्रभाकर को जेल से छुड़ाया है ?"
"हां । उसे अपने साथ जेल से लेकर बाहर निकला ।"
"ये कैसे हो सकता है ? तब कोई भी प्रभाकर को पहचान...।"
"प्रभाकर ने हुलिया बदला था । चेहरे पर दाढ़ी-मूंछे। बाल संवारे हुए थे । आंखों पर काला चश्मा था और वकीलों वाला काला कोट पहन रखा था । साथ में जोशी था तो देखने वालों ने उसे भी एक नजर में वकील ही समझा ।"
रमेश सिंह ने दयाल को देखकर कहा ।
"मैंने तो तेरे को पहले ही कहा था कि सुमित जोशी क्रिमिनल वकील नहीं, खुद भी जबरदस्त क्रिमिनल है ।
"अब मुझे पूरा विश्वास हो गया ।"
"प्रभाकर को जब बाहर निकाला तो तू कहां था ?" रमेश ने पूछा ।
"जेल के बाहर कार में...।"
"तूने ये सब बातें हमसे छिपाई ? हमें बेवकूफ बनाता रहा ?" रमेश सिंह तीखे स्वर में बोला ।
"अब बेबकूफ बना रहा ।"
"रमेश, काम की बात कर...।" दयाल ने टोका ।
"फिर वो प्रभाकर को कहां ले गया ?"
देवराज चौहान ने आगे की सारी बात बताई ।
दयाल और रमेश सिंह सबकुछ सुनकर सकते में रह गये।
"इतना हौसला ?" रमेश सिंह बोला--- "उसने प्रभाकर और जिम्मी को शूट कर दिया ?"
"मेरे सामने । उससे पहले मैं नहीं जानता था कि जोशी के मन में क्या है ?" देवराज चौहान ने कहा ।
रमेश सिंह ने गहरी सांस ली ।
"अब आगे सुना...।"
"और भी है ?"
"हां, अपने भाई प्रदीप और उसके परिवार को एक्सीडेंट में जो मौत हुई थी । वो एक्सीडेंट, सुमित जोशी के कहने पर ही हुआ ।"
"साला-कुत्ता...।" रमेश सिंह के होंठों से निकला ।
"इस वकील ने तो बहुत कांड कर रखे हैं ।" दयाल ने अपना सिर खुजलाया।
"एक बार हत्थे चढ़ जाये तो सब कबूलेगा ।"
"ठीक है देवराज चौहान ।" दयाल बोला--- "हम जगमोहन को पुलिस के हाथों से निकाल देते हैं ।"
"जब निकाल दोगे तो, मैं तुम लोगों के लिए काम शुरू कर दूंगा ।"
"अगले तीन घंटों में जगमोहन बाहर होगा ।"
"बाहर आकर जब जगमोहन मुझे फोन करेगा, तो मैं तुम लोगों के लिए काम शुरू कर दूंगा ।"
"तेरे को जल्दी ही उसका फोन आयेगा । तू निकल, हमें जाकर, जगमोहन को आजाद करवाना होगा।"
"तो उस कमिश्नर भूरेलाल का क्या होगा ? वो मेरा एनकाउंटर न कर दे ? पुलिस वालों को न भेज दे ?"
"उसकी फिक्र मत कर ।" रमेश सिंह ने कड़वे स्वर में कहा---"समझ कमिश्नर तो गया ।"
"यानी मुझे उसका कोई खतरा नहीं ?"
"नहीं ।"
देवराज चौहान ने चैन की सांस ली।
"अब तू एक काम कर ।" दयाल ने जेब से छोटा-सा माइक्रोफोन निकाला-- "ये भी उसी माइक्रोफोन का जुड़वा भाई है, जो सुमित जोशी के केबिन में लगा है । इस माइक्रोफोन को वहां लगा दे, जहां अब वो बैठता है ।"
"अपने भाई के केबिन में...।"
"वहीं लगा दे ।"
देवराज चौहान ने माइक्रोफोन लेकर अपनी जेब में रखा ।
"हम जगमोहन को आजाद करा देंगे ।" दयाल बोला--- "ये पक्का है न कि तू हमारा काम करेगा ? भागेगा नहीं...?"
"नहीं भागूंगा । तुम लोगों का काम ही...।"
तभी रिकॉर्डर पर सुमित जोशी की आवाज आई---
"सुरेंद्र पाल कहां गया है ?"
"सिगरेट लेने गया है ।" जूही ने जवाब दिया--- "सर, मैं आपके वहां बैठ जाऊं...।"
"यहां ?"
"हां, सर । आपकी टांगों पर बैठकर मुझे अच्छा लगता है।"
"आ जा...।"
उसके बाद जूही के खिलखिलाने की आवाज उभरी ।
फिर जो आवाज सुनाई दी, उन्हें सुनकर रमेश सिंह झल्ला उठा ।
"साला-कमीना । शुरू हो गया । मुफ्त के माल पर हाथ साफ करता रहता है ।"
देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी ।
"बचेगा नहीं अब ये...।"
"हो सकता है, तुम लोगों से पहले ही कोई दूसरा बाजी मार ले जाये ।"
"क्या मतलब...।"
"रतनपुरी । बांटू-गोवर्धन...फिर कोई और, कोई भी सुमित जोशी का शिकार कर सकता है।"
"तू जल्दी से सबूत जुटाकर हमें दें, ताकि हम उसे गिरफ्तार कर सकें ।"
"देखता हूं कि किसकी किस्मत तेज है ।"
"बाहर निकलो । हमें कमिश्नर भूरेलाल से समेटने जाना है । जगमोहन को वहां से निकालना है ।"
"जगमोहन को वहां से बाहर निकाल लोगे ?"
"हम सी•बी•आई• वाले हैं । हमारे पास सब रास्ते होते हैं । वकील की खातिर, जगमोहन को आजाद करा देंगे ।"
"मेरे रिवाल्वर वापस दो ।" रमेश सिंह ने उसे दोनों रिवाल्वर दीं । जिन्हें देवराज चौहान ने वापस कपड़ों में रख लिया ।
देवराज चौहान बाहर निकल गया और जोशी एंड जोशी एसोसिएट्स की तरफ बढ़ गया ।
शीशे का दरवाजा धकेलकर भीतर प्रवेश किया तो जूही को रिसेप्शन से गायब पाया । देवराज चौहान ने गहरी सांस ली और प्रदीप जोशी वाले केबिन में जा पहुंचा । वहां उसने टेबल के नीचे माइक्रोफोन लगाया और वापस रिसेप्शन पर, सोफे पर आ बैठा । वो जनता था कि जूही केबिन में, सुमित जोशी के साथ है।
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जूही जोशी के केबीन से बाहर निकलकर रिसेप्शन पर पहुंची । वो इस वक्त उस बिल्ली की तरह लग रही थी जिसे ढेर सारी मलाई पड़ी मिल गई हो और चट करके आ रही हो । तरोताजा थी वो । देवराज चौहान को देखते ही सकपका उठी ।
"तुम...? कब आये ?"
"अभी-अभी आया हूं--- आराम करने बैठ गया ।" देवराज चौहान का स्वर सपाट था ।
"मैं सर का सिर दबा रही थी ।"
"दब गया ?"
"ह...हां । तुम चाय पिओगे ?"
देवराज चौहान उठा और केबिन में सुमित जोशी के पास जा पहुंचा ।
"तुम कहां चले गये थे ?" जोशी उसे देखते ही बोला।
"C.B.I. वालों से मिलने...।" देवराज चौहान बैठता हुआ बोला ।
जोशी चौंका । उसका चेहरा सफेद पड़ गया ।
"मेरे ख्याल से तुम बच गये हो ।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।
"क्या मतलब ?"
"तुमने कोई गड़बड़ वाली बात, इस केबिन में बैठकर, कमिश्नर गोरेलाल से की थी। मैं पता करने गया था कि वो सब सुनकर C.B.I. वालों पर क्या असर हुआ । क्योंकि तुम तो बता नहीं रहे थे कि क्या कमिश्नर से...।"
सुमित जोशी ने उसे ही देखते हुए सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
"फिर ?" उसके होंठों से सूखा-सा स्वर निकला ।
"तब उनका रिकॉर्डर खराब था । वो सुन ही नहीं सके कि तुम्हारी और भूरेलाल की क्या बात हुई ?"
"ओह ।" जोशी ने राहत की सांस ली--- "अब तुम इस केबिन में ऐसी बातें क्यों कर रहे हो ?"
"मैंने यहां से माइक्रोफोन हटा दिया है ।"
"ऐसा क्यों ?"
"मैं ये खतरा नहीं लेना चाहता हूं कि तुम फिर कोई बात कर दो और C.B.I. वाले सुन लें।
सुमित जोशी ने सिर हिलाया । मुस्कुराया । फिर बोला---
"तुमने तो पहले मुझे डरा ही दिया था ।"
"मैंने क्या गलत कहा था। कुछ भी नहीं...।"
"तब मैं माइक्रोफोन के बारे में बिल्कुल ही भूल गया था।"
"सी•बी•आई• वालों को पूरा यकीन है कि तुमने ही अपनी तीनों वकीलों और तीनों गनमैन की हत्या करवाई है ।"
"वो इस बात को कभी भी साबित नहीं कर सकते । मैंने सारा काम बहुत सावधानी किया था ।"
"C.B.I. वालों को कम नहीं समझो । कहीं उन्हें ये शक न हो जाये कि तुमने ही प्रभाकर को जेल से निकाला और बाद में जिम्मी और प्रभाकर की हत्या कर दी । बहुत तेज हैं C.B.I. वाले...।"
"उन्हें शक नहीं हो सकता देवराज चौहान । इस बारे में तो वो कुछ भी नहीं सोच सकते कि मैंने ये काम किया होगा ।"
देवराज चौहान ने सिगरेट ली ।
"मैं तो प्रदीप और उसके परिवार की गारंटी दे सकता हूं कि उनके एक्सीडेंट के बारे में कोई नहीं सोच सकता कि उनकी मौत के पीछे तुम्हारा ही हाथ है। बहुत सफाई से तुमने उन्हें मारा।"
"वो कमीना मेरे को मुसीबत में छोड़कर इंग्लैंड भाग रहा था ।" सुमित जोशी ने गहरी सांस ली--- "वरना मैं उसे मारना नहीं चाहता था ।"
देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।
"तुम न तो खुद चैन से बैठते हो और न ही दूसरों को चैन से बैठने देते हो ।"
"मैं सोच रहा हूं कि अपनी जान बचाने के लिए मुझे यहां से खिसक जाना चाहिये ।" सुमित जोशी ने कहा।
"ये बात तो मैंने तुम्हें कभी भी समझाई थी ।" देवराज चौहान बोला--- "प्रभाकर और जिम्मी की लाशें मिलने की देर है कि बांटू और गोवर्धन ने तेरी खोपड़ी खोल देनी हैं । तेरे को उनसे डरना चाहिये...।"
सुमित जोशी का हाथ अपने सूजे होंठों और आंख पर पहुंच गया ।
देवराज चौहान ने कश लिया, फिर कहा---
"रतनपुरी तो हाथ धोकर तेरे पीछे है । आज तो लंच का प्रोग्राम नहीं है बाहर का ?"
सुमित जोशी चुप रहा ।
देवराज चौहान ही खामोश रहा ।
"एक काम है । शायद आज ही निपट जाये । उसके बाद जाऊंगा ।" जोशी कह उठा ।
देवराज चौहान जानता था कि जोशी को कौन-सा काम है ।
उसका एनकाउंटर कराना ।
"जब खिसकना हो मुझे बता देना । जहां कहोगे, मैं तुम्हें वहीं पहुंचा दूंगा ।"
सुमित जोशी ने देवराज चौहान को देखा, फिर कह उठा---
"जगमोहन का क्या होगा ?"
"उसे मैं अपने ढंग से पुलिस के हाथों से निकाल लूंगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"मुझे अफसोस रहेगा कि मैं तुम्हारा काम नहीं कर सका ।" मुस्कुरा पड़ा जोशी ।
"कोई बात नहीं । तुम तो काम करना चाहते हो, परन्तु हालात तुम्हें नहीं करने दे रहे । सब देख तो रहा हूं मैं।"
"मेरे पास रहकर तुम्हारा वक्त खराब हुआ ।"
"नहीं । मैंने बहुत कुछ सीखा है । ये समझा है कि मैं तो खास कुछ भी गैरकानूनी काम नहीं करता । सफेदपोश सरकार को टैक्स देने वाले तुम जैसे जाने कितने लोग, मुझसे भी बड़े गैरकानूनी काम करते हैं और बचे रहते हैं ।"
"मुझे खींच रहे हो ?"
"नहीं । सच्चाई बता रहा हूं । तुम ही कहो, अगर झूठ बोला हो तो...।"
सुमित जोशी गहरी सांस लेकर रह गया ।
"वैसे कहां पर खिसकने की सोची है तुमने ?"
"अभी तय नहीं किया...।"
"परिवार के साथ ले जाओगे ?"
"सोचता हूं साथ ही ले जाऊं ?"
"तुम्हारी पत्नी तुम्हें पसंद नहीं करती ।"
"खूबी की परवाह मत करो । वो अभी नादान है । धीरे-धीरे समझ जायेगी।"
"कोई ऐसा इंसान बताओ जो तुम्हें जिंदा देखना चाहता हो ?" देवराज चौहान मुस्कुराया ।
"तुम हो न ।"
"सबसे पंगा ले रखा है तुमने ।" देवराज चौहान ने सिगरेट ऐश ट्रे में डाली और उठ खड़ा हुआ--- "रिसेप्शन पर हूं, जरूरत पड़े तो मुझे बुला लेना।"
देवराज चौहान रिसेप्शन पर पहुंचा ।
जूही वहां नहीं थी । परन्तु किचन की तरफ से आवाजें आ रही थीं ।
देवराज चौहान सोफे पर बैठ गया ।
पांच मिनट में ही जूही ट्रे में तीन चाय के प्याले रखे आई ।
"लो सुरेंद्र पाल...।"
देवराज चौहान ने एक प्याला उठाकर, टेबल पर रखा ।
"मैं भीतर सर के साथ चाय पी रही हूं...।" कहकर ट्रे थामें वो भीतर चली गई।
सोचों में डूबे देवराज चौहान ने चाय का घूंट भरा ।
तभी उसका मोबाइल बजा । देवराज चौहान ने बात की ।
दूसरी तरफ से रमेश सिंह था । वो बहुत खुश था ।
"तुमने तो कमाल कर दिया देवराज चौहान...।"
देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।
"उसके मुंह से तुमने सारे जुर्म को उगलवा लिए ।"
"ये सब तुम्हारे लिए किया है ।"
"जानता हूं...।"
"जुर्म कबूलने की रिकॉर्डिंग काम आयेगी तुम्हारे ?"
"बहुत काम आयेगी । साले को डंडा बना देंगे । लेकिन ठोस सबूत की भी जरूरत है।"
"उसका भी कोई इंतजाम कर...।"
"जल्द कर दे । मैं साले की गर्दन नाप लेना चाहता हूं। रगड़ दूंगा कमीने को ।"
"तुम तो कह रहे थे कि जगमोहन के लिए जाना है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"दयाल साहब गये हैं काम निपटाने ।"
"कमिश्नर को भी हटाना है रास्ते से...कि सुमित जोशी उससे बात न कर सके ।"
"दयाल बहुत समझदार है, वो हर काम फिट करके आयेगा ।"
"दयाल को बता दो कि वकील के गुनाहों की रिकॉर्डिंग हो गई है । सुनने के बाद वो जगमोहन वाला काम मन से करेगा ।"
"अभी बता देता हूं । तुमने माइक्रोफोन लगा दिया ?"
"हां ।"
"वो कमीनी रिसेप्शनिस्ट वकील के साथ बैठकर चाय पी रही है और मीठी-मीठी बातें कर रही है ।"
"तुम्हें क्या... ?"
जवाब में रमेश सिंह ने गहरी सांस लेने की आवाज आई ।
"प्रभाकर और जिम्मी की लाशों का क्या करोगे ?"
"पुलिस को खबर कर दी है । एक घंटे में बरामद हो जायेंगी लाशें।"
"फिर तो वकील की खैर नहीं...।" देवराज चौहान ने कहा।
"हां । बांटू और गोवर्धन वकील के पीछे पड़ जायेंगे । उन्हें तो पता भी नहीं होगा कि वे दोनों मर चुके हैं ।"
"लाशें मिलते ही पुलिस वाले, फौरन उसे खबर दे देंगे । मुझे नहीं लगता कि वकील तुम्हारे हाथ लग पायेगा ।"
"तू तेजी दिखा देवराज चौहान । जल्दी से सबूत हमें दे।"
"कोशिश तो कर रहा हूं...।"
बात खत्म करके देवराज चौहान ने फोन जेब में रखा और चाय के घूंट लेने लगा ।
तभी भीतर से मोबाइल थामें, हड़बड़ाया-सा सुमित जोशी वहां पहुंचा।
देवराज चौहान ने उसके चेहरे पर नजर मारकर कहा---
"अब क्या हुआ ?"
"रतनपुरी ।" जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर फोन उसकी तरफ बढ़ाया--- "तुमसे बात करना चाहता है ।"
देवराज चौहान ने फोन लेकर रतनपुरी से बात की ।
"तू गया नहीं अभी तक ?"
"जाऊंगा । दूसरी नौकरी तलाश कर रहा हूं, मिलते ही चला जाऊंगा ।"
"अबकी बार के हमले में तू भी मारा जायेगा उल्लू के पट्ठे भाग जा।"
"अगला हमला कब कर रहे हो ।" देवराज चौहान ने मुस्कुराकर पूछा ।
"तुम बाहर तो निकलो अपने ऑफिस से । तब पता चलेगा हमले के बारे में ।"
"मतलब कि इंतजाम पूरे कर रखे हैं ।"
सुमित जोशी सूखी जान के साथ खड़ा, देवराज चौहान को देख रहा था।
"तुम हो कहां, मुम्बई में या पूना में ?"
"क्यों, तूने मेरा क्या उखाड़ना है ? मैं कहीं भी होऊं, वकील की मौत तो वकील के सिर पर ही नाचती रहेगी । साले तू भी मरेगा भाग जा वकील के पास से । नौकरी चाहिये तो मेरे पास आ जा मैं...।"
"मैं तेरी नौकरी नहीं करना चाहता ।"
"तू मुझे कोई बड़ा कमीना लगता है ।"
देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया ।
सुमित जोशी व्याकुल-सा परेशान स्वर में कहा उठा---
"तू उसे समझाता कि मेरे को छोड़ दे ।
"वो समझने वालों में से नहीं है।"
"एक बार उसे कहता तो...।"
"वो तो मुझे धमकी दे रहा था कि तुझे छोड़कर चला जाऊं...।"
"तू नहीं जाना । मेरे पास ही रहना ।"
"चिंता मत कर । तेरा तो संस्कार करके ही जाऊंगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"संस्कार ?" जोशी खरखराते स्वर में बोला ।
"मेरा मतलब कि कोई न कोई तुझे मार देगा । उसके बाद ही मैं जाऊंगा ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।
"मैं इतनी आसानी से मरने वाला नहीं ।" जोशी की आवाज में दम नहीं था।
"रतनपुरी कह रहा था कि जरा यहां से बाहर तो निकलो । यानी कि उसने इस बार बढ़िया इंतजाम कर रखा है तेरे लिये ।"
सुमित जोशी का चेहरा फक्क पड़ गया ।
"जो कर्म किए हैं तूने, वो ही रूप बदलकर सामने आ रहे हैं तेरे ।"
"तू...तू मुझे बचाना देवराज चौहान...।"
"जरूर बचाऊंगा । तेरे को बचाने के लिए ही तो मैं तेरे पास हूं ।"
तभी भीतर से जूही आ गई वहां ।
"क्या बात है सर ? आप परेशान क्यों हैं ?"
"कुछ नहीं ।"
"सिर दबा दूं?"
"चुप रहो ।" जोशी ने खा जाने वाले स्वर में कहा और अपने केबिन की तरफ बढ़ गया।
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