दीना पलंग पर लेटा था । उसका पीला चेहरा अभी भी सूजा हुआ था । आँखों की कमीनगीभरी चमक से जाहिर था कि वह 'फिक्स' ले चुका था । वही शर्ट और पैंट पहने था और उसकी उंगलियाँ हिल रही थीं मानों वे छुरी के दस्ते को सहला रही थीं और वह सामने बैठे पीटर और जलीस को यूँ देख रहा था मानों सोच रहा था कि पहले उनमें से किसको मारना चाहता था ।
"मैं तुमसे बातें करने आया हूँ ।" जलीस बोला ।
"जानता हूँ ।" दीना ने कहा–"लेकिन मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी ।"
"यह तुम्हारा आखिरी फैसला है ?"
"हाँ ।"
"तो फिर मेरा फैसला भी सुन लो । मैं तुम्हारे मुँह में कपड़ा ठूँसकर तुम्हें टायलेट में फ्लश टैंक के पाइप के साथ बाँध दूँगा । अगर तुम समझते हो, मैं ऐसा नहीं करूँगा तो जुबान बंद रख सकते हो । मुझे पूरा यकीन है, कल तक बगैर मेरे पूछे तुम खुद ही चीख चीखकर सब कुछ बकना शुरु कर दोगे ।"
दीना के होंठ कांपने लगे और माथे पर पसीना फूट निकला ।
"तुम्हें कितनी देर बाद 'फिक्स' की जरुरत पड़ती है, दीना ?" जलीस ने पूछा–"तुम्हारी बाँहों पर सुईयाँ चुभने से बने अनगिनत निशानों से जाहिर है कि तीन–चार घंटे से ज्यादा तुम फिक्स लिए बगैर नहीं रह सकते । इसका सीधा सा मतलब है, सुबह होने से पहले ही तुम टूट जाओगे ।"
दीना असहाय सा नजर आने लगा ।
"म...मैं कुछ नहीं जानता, जलीस ।"
"कुछ तो जरुर जानते हो ।"
"किस बारे में ?"
"मैं रनधीर की बात कर रहा हूँ ।"
"अगर तुम समझते हो, उसकी हत्या मैने की थी तो तुम पागल हो । पुलिस ने मुझसे तगड़ी पूछताछ की थी । मुझ पर इल्जाम लगाने की कोशिश भी की थी मगर महाजन ने उनके सामने मुझे बेगुनाह साबित कर दिया ।"
"मेरे सामने तो नहीं किया ।"
दीना एकदम उठकर बैठ गया । पैर नीचे लटका लिए ।
"देखो, जलीस मैं...।"
"बको मत । तुम सिर्फ मेरे सवालों के जवाब दोगे ।"
"पूछो ।"
"जिस रात रनधीर की हत्या की गई थी तुम वाइन शॉप से विस्की लेने गए थे । ठीक है ?"
"हाँ ।"
"क्यों ? रनधीर सिर्फ दो–तीन पैग ही पिया करता था । फिर दो पेटी स्कॉच उसने किसलिए मँगाई थी ?"
"वह एक पार्टी देने वाला था ।"
"कब ?"
"यह उसने मुझे नहीं बताया । मैं सिर्फ इतना जानता हूँ, किसी वजह से वह बेहद खुश और बहुत ही ज्यादा जोश में था ।"
"खैर, तुम वाइन शॉप चले गए । आगे बोलो ।"
दीना ने नर्वस भाव से पहले पीटर को फिर उसे देखा ।
"रनधीर ने फोन करके एक पेटी ब्राँडी लाने का आर्डर भी दे दिया था ।"
"फिर जब तुम तीनों पेटियाँ लेकर वापस पहुंचे तो उसे मरा पड़ा पाया ।"
"म...मैंने उसकी हत्या नहीं की थी ।" दीना कराहता सा बोला–"मैं पूरा वक्त वाइन शॉप में रहा था । शॉप के मालिक...।"
"मुझे मालूम है, उसने क्या कहा था । उसने तुम्हारी बात की पुष्टि की थी । इस तरह तुम्हें तगड़ी एलीबी मिल गई । वह क्योंकि एक शरीफ और इज्जतदार शहरी है इसलिए तु म शक के दायरे से निकल गए ।"
"तुम कहना क्या चाहते हो ? मैने...।"
"अगर तुमने रनधीर की हत्या की होती तो तुम्हारी शक्ल और हालत से यह साफ नजर आना था । जिससे मुझे ही नहीं सबको पता चल जाना था ।"
अब दीना के चेहरे पर भय झलकने लगा । जलीस असल में क्या पूछना चाहता था । यह तो वह नहीं समझ सका लेकिन इतना जरुर जान गया कि कोई अहम बात सामने आने वाली थी ।
"तुम वाइन शॉप में कितनी देर ठहरे थे ।"
"दो घंटे । मैं पूरा वक्त वहीं रहा था । तुम खुद शॉप के मालिक से पूछ सकते हो । हम टी. वी. देखते हुए गपशप करते रहे थे । मैं बेकसूर हूँ, जलीस...।"
"तीन पेटियाँ शराब लाने के लिए दो घंटे बहुत ज्यादा हैं, दीना और वाइन शॉप तक टैक्सी में करीब दस मिनट लगते हैं...इसका मतलब है, तुम करीब ढाई घंटे तक रनधीर और उसकी इमारत से दूर रहे थे । एक मामूली काम के लिए इतना वक्त बहुत ज्यादा है । जबकि इस किस्म की सुस्ती या लापरवाही रनधीर को कतई पसंद नहीं थी । उसके काम बताने का मतलब होता था–काम फौरन होना चाहिए ।"
दीना के सूजे होंठ खुश्क हो गए ।
"तुम क्या कहना चाह रहे हो ?"
"बात एकदम सीधी है । तुम किसी साजिश का हिस्सा रहे हो सकते हो । तुमसे कहा गया होगा कि खास वक्त पर दो घंटे के वक्फे के लिए तुमने रनधीर के निवास स्थान से दूर रहना है...या हो सकता है, उन दो घंटों के दौरान तुमने ही किसी को फोन करके बता दिया था कि लाइन क्लियर थी । उस 'किसी' ने रनधीर को ठिकाने लगा दिया और मौका–ए–वारदात से दूर रहने की वजह से तुम भी साफ बच गए । लगभग ।"
आखिरी शब्द ने दीना को हिला दिया ।
"अगर पुलिस भी यह नतीजा निकाल लेती है तो तुम्हें पकड़कर सीधा थाने ले जाया जाएगा और वहाँ वे लोग अपने खास तरीकों से एक ही बात तुमसे कबूलवाएँगे कि तुम किसके साथ साजिश में शामिल थे । क्या तुम वो सब बर्दाश्त कर सकोगे ?"
दीना सर से पाँव तक कांप रहा था ।
"नहीं । जलीस...हे भगवान । तुम जानते हो मैं ऐसा नहीं कर सकता था...रनधीर और मैं दोस्त थे...पक्के दोस्त ।"
"तुम इतनी देर तक उससे दूर क्यों रहे ?"
दीना जानता था, उसका झूठ नहीं चल पाएगा । इसलिए झूठ बोलने की कोशिश भी उसने नहीं की ।
"देर लगने की वजह थी–मेरी फिक्स की जरुरत । तुम जानते हो रनधीर को ड्रग्स से कितनी नफरत थी । ड्रग्स साथ लिए घूमने वाले किसी शख्स को अपने पास भी वह नहीं फटकने देता था । उसकी इमारत में कहीं छुपाकर भी मैं नहीं रख सकता था । एक बार मैने ऐसी कोशिश की थी मगर उस गूंगे बहरे नौकर ने उसे बता दिया । फिर रनधीर ने मेरी वो गत बनाई कि मैं कभी नहीं भूल सकता । उस रात उसने इतनी देर तक मुझे वहाँ रखा कि 'फिक्स' की जरूरत महसूस होने की वजह से मेरी हालत खराब होने लगी । इसलिए जब उसने शराब लाने के लिए कहा तो मैं फौरन दौड़ गया । उस वक्त मेरे पास माल भी नहीं था । वाइन शॉप पहुँचते ही मैंने अपने सोर्स को फोन किया । लेकिन जो आदमी माल लेकर वहाँ आया उसने बहुत ज्यादा देर लगा दी । तब तक मेरी हालत इतनी खस्ता हो गई थी कि मुझे मौत नजर आने लगी । इसलिए मजबूरन मुझे वहाँ टी.वी. के सामने बैठना पड़ा । शॉप के मालिक ने मेरी आँखों और नाक से पानी बहता और मुझे पसीने से तर, हाँफता–काँपता देखकर कॉफी के साथ एस्प्रीन की दो गोलियाँ खिला दी और मेरी हालत सुधरने तक जबरन मुझे वहीं रोके रखा । जब वह आदमी 'माल' सिरिंज वगैरा लेकर पहुँचा मेरी हालत ऐसी हो गई थी कि मैं टायलेट तक भी मुश्किल से ही पहुँच पाया । मैंने फिक्स लेकर सिरिंज, स्पून वगैरा उसी आदमी को लौटा दिए और वह चला गया । फिर मेरी हालत तेजी से सामान्य हो गई तो शॉप के मालिक ने समझा कि वो एस्प्रीन के असर का कमाल था । फिर उसने दुकान बंद करायी और मेरे साथ अपार्टमेंट तक गया ।"
"बस ?"
"हाँ । पुलिस आयी और मेरी तगड़ी खिंचाई शुरु कर दी लेकिन तब तक मैं महाजन को फोन कर चुका था । तब पुलिस को भी मुझे बेकसूर मानना पड़ा ।"
"अजीब बात है, तुम्हारे पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए भी तुम्हारे साथ सख्ती नहीं की ।"
"मेरी किस्मत तेज थी । महाजन जल्दी ही वहाँ पहुँच गया । शायद उसने कहीं से किसी बड़े पुलिस ऑफिसर पर दबाव डलवाया था । वो सब इतनी तेजी से हुआ कि मैं खुद हैरान रह गया था । मेरी किस्मत वाकई अच्छी थी ।"
"किस्मत हर बार साथ नहीं देती ।"
"क्या मतलब ?"
"एक और बात मेरी समझ में नहीं आ रही है ।"
"क्या ?"
"उस रात जब मैं क्लब में पहुँचा तुम और जैकी वहाँ मौजूद थे । जैकी 'सिंहासन' पर बैठने के लिए तैयार था । लेकिन तुम उस तस्वीर में कहाँ फिट हो रहे थे ।"
दीना ने सिहरन सी ली फिर गहरी साँस लेकर पलंग पर पसर गया ।
"मैं उसे बैक कर रहा था ।"
"उसे बैकिंग की जरुरत थी ?"
"जैकी रिस्क लेना नहीं चाहता था ।"
"इसलिए तुम अपनी छुरी सहित उसके साथ थे । क्या तुम्हारा और जैकी का साथ भी वैसा ही था जैसे तुम्हारा और रनधीर का था ?"
"बिल्कुल ।"
"जैकी ने बॉस बनने का फैसला कैसे कर लिया ।"
"यह उसने नहीं बताया और न ही मैंने पूछा । मुझे तो सिर्फ पैसे से मतलब था । जैकी का साथ देने से वो मुझे मिलता रहना था । इसलिए मैं तैयार हो गया ।"
जलीस ने पीछे बैठे पीटर की ओर देखा ।
"तुम्हारा क्या खयाल है ?"
"यही है ।"
"जैकी ने कभी तुमसे कुछ कहा था ?"
"मुझे कोई कुछ क्यों बताएगा ?" पीटर के लहजे में तल्खी थी–"मैं सिर्फ बारिश से बचने के लिए उस रात क्लब में चला गया था । अगर मेरी कलाई पर 'प्रिंसेज' पैलेस का पुराना गुदना नहीं होता तो नए आदमियों ने मुझे अंदर घुसने भी नहीं देना था ।"
जलीस उठकर खड़ा हो गया ।
मन ही मन आशंकित दीना ने गौर से उसे देखा ।
"कुछ और पूछना चाहते हो ?"
"हाँ । विक्टर की बार में मैने दो आदमियों को शूट किया था । उन्हें डॉक्टरी उपचार की जरुरत थी । वे किस डॉक्टर के पास गए
"डॉक्टर ब्रजेश सहाय के पास । सहाय स्ट्रीट पर उसका अपना क्लिनिक है ।"
"मैं भी उसे जानता हूँ ।" पीटर ने कहा–"वह इस तरह के ही केस लेता है ।"
"ओ.के., दीना ।" जलीस बोला–"अपनी जुबान बंद रखना और अगर तुम्हें कोई खास बात याद आती है या पता चलती है तो सबसे पहले तुम मुझे बताओगे ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि मैं रनधीर के हत्यारे का पता लगाना चाहता हूँ ।"
दीना कुछ नहीं बोला ।
जलीस, पीटर और सोनिया सहित बाहर निकल गया ।
* * * * * *
वे तीनों टैक्सी का इंतजार कर रहे थे ।
"तुम अजीब ढंग से सवाल करते हो, जलीस ।" सोनिया ने अपनी लंबी खामोशी तोड़ते हुए कहा ।
"यह सारा सिलसिला ही अजीब है ।"
"अब क्या करना है ?" पीटर ने पूछा–"रात के साढ़े बारह बज रहे हैं ।"
"फिलहाल कुछ और नहीं किया जा सकता ।" जलीस ने कहा–"सोनिया को ड्रॉप करके हम भी अपने ठिकाने पर लौट जाएंगे । तुम घर जाना चाहती हो ?"
"हाँ ।"
"कल का क्या प्रोग्राम है ?"
"सुबह माला के अंतिम संस्कार का इंतजाम कराऊंगी ।" सोनिया की ऊंगलियाँ जलीस की बाँह पर कस गई और अचानक अपना चेहरा उसके कंधे से सटा लिया–"कमीनों ने उस बेचारी की जान ले ली ।"
"फिक्र मत करो, सोनिया । मैं माला के हत्यारे का पता लगाऊंगा ।"
सोनिया अपने चेहरे से बाल हटाकर सीधी उसकी आँखों में देखती हुई बोली–"नहीं, जलीस ।" उसके स्वर में कंपन था–"किसी का पता मत लगाओ । किसी नए बखेड़े में मत पड़ो ।"
"सब ठीक हो जाएगा, सोनिया ।" जलीस उसका कंधा थपथपाकर बोला–"मुझ पर भरोसा करो । यह सिलसिला जल्दी ही खत्म हो जाएगा ।"
सोनिया ने अपने हैंड बैग से कागज और पैन निकालकर एक नंबर नोट करके कागज उसे दे दिया ।
"कल मुझे फोन कर लेना ।"
"ठीक है ।"
जलीस एक खाली जाती टैक्सी रोक चुका था ।
सोनिया उसके होठों पर चुंबन अंकित करके टैक्सी में सवार होकर चली गई ।
"मुबारक हो, जलीस ।" पीटर चटखारा सा लेकर बोला–"सोनिया तुम्हें दिल दे बैठी है । ऐसी लड़की का प्यार किसी खुशनसीब को ही मिलता है ।"
जलीस मुस्कुरा दिया ।
"यह सारा सिलसिला पुराने वक़्तों जैसा ही होता जा रहा है ।" पीटर ने कहा ।
जलीस ने एक पल के लिए पुराने वक़्तों के बारे में सोचा फिर सर हिला दिया ।
"नहीं दोस्त, वैसा नहीं होगा । आओ, टैक्सी पकड़ते हैं ।"
* * * * * *
टैक्सी से उतरते ही जलीस गड़बड़ का आभास पा गया ।
किशोरावस्था में बरसों तक छतों और अंधेरी गलियों में दौड़ते रहने और चाकुओं तथा गोलियों से आए दिन सामना होता रहने की वजह से उसकी छठी इन्द्री इतनी विकसित हो चुकी थी कि खतरे की पूर्व सूचना उसे दे दिया करती थी ।
वह महसूस कर रहा था सामने इमारत में जरूर कोई भारी गड़बड़ थी और उसका पता लगाने के लिए ज्यादा वक्त उसके पास नहीं था ।
पीटर भी इसे भांप चुका था । इसीलिए टैक्सी से उतरते ही पंजो के बल चलकर वह सड़क पर दोनों ओर निगाहें दौड़ाने लगा ।
जलीस ने टैक्सी का भाड़ा चुकाया और ड्राइवर द्वारा लौटाए गए बकाया पैसे वापस जेब में रखने का दिखावा करते हुए सफाई से अडतीस बोर की रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली ।
ड्राइवर ने इस ओर ध्यान नहीं दिया । वह टैक्सी लेकर चला गया ।
जलीस और पीटर को एक–दूसरे के लिए संकेत करने की जरूरत नहीं थी । मुद्दत पहले अक्सर ऐसी स्थिति से दो–चार होते रहे होने की वजह से वे जानते थे कि क्या करना था ।
पीटर फूँक फूँककर कदम रखता हुआ सा जलीस से दूर रहकर बायीं ओर से इमारत की ओर बढ़ रहा था ताकि दोनों को एक ही व्यक्ति द्वारा एक साथ निशाना न बनाया जा सके । वह जानता था, जलीस के हाथ में रिवॉल्वर थी इसलिए उसे सीधा इमारत की ओर जाने से नहीं रोका ।
जलीस ने प्रवेश द्वार खोला और अंदर कदम रखते ही समझ गया कि क्या होने वाला था ।
"बचो, पीटर ।" स्वयं को फर्श पर गिराता हुआ वह चिल्लाया ।
तभी बगल वाले दरवाजे से एक शोला लपका और गोली उसके सर के ऊपर दीवार में आ घुसी ।
दूसरी ओर से दोबारा गोली चलायी गई लेकिन उससे पहले ही जलीस का रिवॉल्वर दो बार आग उगल चुका था । इस दफा विपक्षी फायरकर्ता की गोली फर्श में आ घुसी । तभी घुटी सी चीख के साथ किसी के नीचे गिरने की आवाज़ सुनाई दी ।
चंदेक सैकेंड पश्चात कमरे में फायरों की गूँज कम होते ही अंदर भागते कदमों की आहट फिर खिड़की का कांच तोडा जाने की आवाज़ सुनाई दी तो जलीस चिल्लाया–"पीटर, पिछवाडे पहुंचो...दूसरा उधर ही भाग रहा है ।"
हालांकि इसमें खतरा था लेकिन जलीस का अनुमान था कि वे दो आदमियों से ज्यादा नहीं थे । फर्श पर निश्चल पड़े आदमी के ऊपर से कूदकर वह स्वयं को यथा संभव नीचे झुकाए अंदर दौड़ा । कमरों के भूगोल को याद करता और वहाँ मौजूद फर्नीचर से बचता हुआ वह इमारत के पृष्ठ भाग में पहुँचा तो काँच की टूटी खिड़की नजर आ गई ।
बाहर गली में अंधेरा था ।
पीटर के लिए यह मुमकिन नहीं था कि वह बाहर जाने वाले रास्ते को कवर कर सके । इसके लिए उसे वापस कार्नर तक दौड़ना पड़ता और उसके फेफड़ों में इतनी भाग–दौड़ करने लायक दम नहीं था ।
ज्यादा सोच–विचार में पड़े बगैर जलीस खिड़की से गुजरकर करीब आठ फुट नीचे गली में कूद गया ।
अंधेरी गली में उसने दोनों ओर निगाहें दौड़ाते हुए देखने की कोशिश की ।
तभी दूर दाँयी ओर कोई चीज लुढ़कने की आवाज़ यूं सुनाई दी मानों वहाँ पड़े रोड़े को किसी की ठोकर लग गई थी ।
जलीस दीवार के साथ–साथ दबे पाँव मगर तेजी से उधर ही बढ़ गया ।
जल्दी ही उसे दूसरा आदमी नजर आने लगा । पीठ के बल झुका आड़े–तिरछे ढंग से वह तेजी से गली के उस तरफ वाले सिरे की ओर बढ़ रहा था । उसका दायाँ हाथ जिस ढंग से सामने तना था, उससे जाहिर था कि उसमें गन थी ।
जलीस उसी तरह उसके पीछे लगा रहा । वह आगे जा रहे आदमी को गली के सिरे पर लगी स्ट्रीट लाइट की रोशनी के दायरे में पहुँच जाने देना चाहता था ।
अचानक उस आदमी की चाल धीमी हो गई और जलीस को जल्दी ही इसकी वजह भी नजर आ गई ।
सामने से कांस्टेबल बलराम सिंह आ रहा था । दाएँ हाथ में सर्विस रिवॉल्वर ताने और बाएँ से जेब से टार्च निकालने की कोशिश करता हुआ । वह किसी भी क्षण उस आदमी की गोली का शिकार हो सकता था ।
"डाउन बलराम ।" जलीस चिल्लाया ।
बलराम ने फौरन स्वयं को नीचे गिरा दिया ।
उस आदमी ने पलटकर अपनी साइलेंसर युक्त गन से जलीस पर फायर कर दिया । लेकिन जलीस पहले ही खुद को नीचे गिरा चुका था । जलीस अपने स्थान से लुढ़का तो उसने दूसरा फायर कर दिया ।
इस बीच बलराम घुटनों के बल पोजीशन ले चुका था । उसकी सर्विस रिवॉल्वर ने आग उगली और गोली उस आदमी की खोपड़ी में जा घुसी ।
उसका शरीर एक पल के लिए हवा में लहराया । फिर उसके घुटने मुड़े और वह नीचे गिरकर पीठ के बल पर फैल गया ।
तभी गली के दहाने पर पीटर प्रकट हुआ और वह हांफता हुआ धीरे–धीरे वहाँ आ पहुँचा । नीचे पड़े आदमी को देखकर वह दीवार से सटकर अपनी साँसों पर काबू पाने की कोशिश करने लगा ।
जलीस भी उठकर वहाँ आ पहुंचा ।
"तुमने निशाना बढ़िया लगाया था, बलराम सिंह ।"
अब तक गली में खुलने वाली खिड़कियाँ खुलनी शुरु हो गई थी । 'क्या हुआ ?' की आवाजें सुनाई देने लगी थी । कोई चिल्ला रहा था–'पुलिस को फोन करो ।'
"पुलिस को फोन कर दो ।" बलराम सिंह ने भी ऊंची आवाज़ में कहा, फिर जलीस की ओर देखा–"वार्निंग के लिए शुक्रिया ।"
"इसकी जरुरत नहीं है । तुम्हें बेमौत मारा जाता देखना मैं नहीं चाहता था ।"
"अब मेरी फिक्र छोड़ो और बताओ यह क्या किस्सा था ?"
"मुझ पर हमला किया गया था । इसका दूसरा साथी इमारत के प्रवेश हाल में पड़ा है ।" जलीस ने जवाब देकर पूछा–"लेकिन तुम गली में कैसे आ पहुँचे ।"
"मैं पास ही गश्त पर था । तुम्हारे दोस्त को गली की ओर इशारा करके चिल्लाते सुना तो दौड़ा चला आया ।"
"सही वक्त पर पहुँचने के लिए धन्यवाद ।" जलीस बोला–"पीटर को यहीं इसके पास छोड़कर हम इमारत में चलते हैं ।" फिर बुरी तरह हाँफते पीटर से पूछा–"तुम्हारी तबीयत ठीक है न ?"
"ठीक तो नहीं है...लेकिन...मरूँगा भी नहीं । तुम जाओ ।"
"पुलिस यहाँ पहुँचने वाली ही होगी ।" बलराम सिंह बोला–"उन्हें भी इमारत में भेज देना ।"
"ठीक है...ठीक है । सुनो, जलीस...।"
"क्या ?"
"सावधान रहना ।"
"मेरी फिक्र मत करो । आओ, बलराम ।" दोनों गली से निकलकर तेजी से इमारत की ओर चल दिए ।
कुछेक सैकेंड पश्चात ही पुलिस साइरन की आवाजें सुनाई देने लगीं ।
इमारत का प्रवेश द्वार पूर्ववत खुला पड़ा था । अंदर अंधेरा था । जलीस को एक ओर धकेलकर बलराम सिंह एक हाथ में रिवॉल्वर और दूसरे में टार्च थामे भीतर दाखिल हुआ ।
टार्च की सहायता से लाइट स्विच ढूँढ़कर उसने ऑन कर दिया ।
जलीस पूर्णतया सतर्क था । लेकिन कमरे में किसी को न पाकर वह और बलराम सिंह एक–दूसरे का मुँह ताकने लगे ।
जलीस की गोली लगने के बाद जहाँ वो आदमी गिरा था वहाँ अब कोई नहीं था । अलबत्ता फर्श पर बना खून का बड़ा दाग उसकी वहाँ मौजूदगी के सबूत के तौर पर नजर आ रहा था । दीवार पर जगह–जगह खून से सनी उंगलियों के प्रवेश द्वार से बाहर तक बने निशानों से स्पष्ट था कि असल में हुआ क्या था ।
वह गंभीर रुप से जख्मी नहीं हुआ था और जब जलीस उसके साथी के पीछे भागा तो वह उठकर जा चुका था ।
"आओ, अंदर देखते हैं ।" जलीस ने कहा ।
तभी इंस्पैक्टर जगतवीर सिंह भीतर दाखिल हुआ ।
जलीस ने दूसरे कमरे में जाकर लाइट ऑन की तो तीनों की निगाहें फर्श पर पड़ी लाश पर जमकर रह गई । मृतक के सर में कम से कम तीन गोलियाँ लगी थी और कुछेक छाती में भी लगी नजर आ रही थी । उनमें से कोई भी एक ही गोली उसकी जान लेने के लिए काफी थी । लेकिन हत्यारे पेशेवर थे । उन्होंने चांस नहीं लिया इसीलिए इतनी गोलियाँ उसे मारी थीं ।
"यह अमोलक राय है न ?" बलराम सिंह ने पूछा ।
"हाँ ।" जलीस गहरी साँस लेकर बोला ।
"हालात तेजी से बदल रहे हैं ।" पीछे खड़ा इंस्पैक्टर जगतवीर सिंह बोला ।
"मुझे तो नहीं लगता ।" जलीस ने कहा ।
"तुम अभी भी खुद को ऊंची चीज समझ रहे हो ?"
"हाँ ।"
एक पुलिसमैन पीटर को सहारा दिए अंदर ले आया ।
पीटर का चेहरा पीला पड़ा हुआ था । गाल और ज्यादा अंदर धंसे नजर आ रहे थे । चेहरे पर पीड़ा भरे भाव थे और एक हाथ से उसने अपनी छाती को दबा रखा था । वह फर्श पर बैठकर अर्थपूर्ण निगाहों से जलीस को देखने लगा ।
जगतवीर सिंह नीचे झुका लाश का मुआयना कर रहा था ।
"सही बात तो डॉक्टरी जाँच और पोस्टमार्टम के बाद ही पता चलेगी ।" वह सीधा खड़ा होकर बोला–"मोटे तौर पर मेरा अनुमान है कि इसे मरे दो घंटे से ज्यादा समय नहीं हुआ है ।" और जलीस से पूछा–"तुम्हें कुछ कहना है ?"
जलीस ने बता दिया कि वह, पीटर और सोनिया सहित सुलेमान पाशा से मिलने गया था ।
पीटर ने उसके कथन की पुष्टि करते हुए उस टैक्सी का नंबर भी बता दिया जिसके द्वारा वे दोनो वहाँ पहुँचे थे ।
जगतवीर सिंह ने फोन पर सोनिया और पाशा से संबंध स्थापित करके इस बारे पूछताछ की ।
"तुम्हारे विचार से अमोलक की हत्या क्यों की गई थी ?" अंत में उसने जलीस से पूछा ।
"शायद हत्यारे चोरी की नीयत से यहाँ आए थे ।" जलीस ने जवाब दिया–"उन्होंने सोचा होगा कि रनधीर का कुछ माल उनके हाथ लग सकता था । लेकिन जब वे यहाँ तलाशी ले रहे थे तो यहाँ मौजूद अमोलक से अचानक उनका सामना हो गया और उन्होंने उसे मार डाला ।"
इंस्पैक्टर इससे सहमत नहीं था लेकिन उसने ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया ।
"तुम दोनों सुबह पुलिस स्टेशन आकर अपना लिखित बयान दे जाना ।" वह बोला–"और बगैर मुझसे पूछे शहर से बाहर जाने की कोशिश मत करना ।"
पीटर ने अपना पता बताकर कहा कि फिलहाल वे दोनों वहीं रहेंगे ।
ज्यों ही वे दोनों जाने लगे, इंस्पैक्टर ने टोका–"जलीस...।"
जलीस पलट गया ।
"हाँ ।"
"मैने उस नंबर पर फोन किया था ।"
"तुम्हारी तसल्ली हो गई ? अब तो मानते हो कि मैं वाकई ऊंची चीज हूँ ?"
इंस्पैक्टर ने उसे घूरा ।
"संभलकर ही रहो तो बेहतर होगा ।"
"सलाह के लिए धन्यवाद ।"
पीटर को साथ लिए जलीस इमारत से बाहर आ गया ।
पीटर की वजह से उसे भी धीरे–धीरे चलना पड़ रहा था ।
दोनों चुपचाप चलते रहे ।
पीटर एक पुरानी चाल की दड़बेनुमा खोली में रहता था । सामान के नाम पर वहाँ तीन जोड़ी कपड़े, पाँच–छ: बर्तन, गहरे लाल रंग का एक पुराना खस्ताहाल सौफा और दो टूटी कुर्सियाँ ही थे ।
छत से लटकते बल्ब की रोशनी में जलीस को चारों ओर निगाहें घुमाता देखकर पीटर ने कहा–"यही है मेरा दौलत खाना ।" और सोफे पर पसर गया ।
"पीटर...।"
"मैं समझ गया, दोस्त । तुम गली में मारे गए आदमी के बारे में जानना चाहते हो । वह फरमान अली था ।"
"यह भी जानते हो, हुआ क्या था ?"
"हाँ । तुम्हारे धोखे में उन्होंने अमोलक को मार डाला । उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि तुम्हारी जगह कोई और वहाँ मिलेगा । फिर जब उन्हें अपनी गलती का पता चला तो वे तुम्हारा इंतजार करने लगे ।" पीटर हँसा–"लेकिन तुमने दरवाजे में कदम रखते ही उन्हें बौखला दिया । नतीजा यह हुआ कि एक के जख्मी होते ही दूसरा भाग खड़ा हुआ । मगर उसकी भी किस्मत दगा दे गई ।" अचानक वह पूरी तरह गंभीर हो गया और गौर से जलीस को देखा–"एक बात मेरी समझ में नहीं आई, दोस्त ।"
"क्या ?"
"पुलिस ने तुम्हारी तलाशी नहीं ली जबकि साफ जाहिर था कि तुम्हारे पास गन है । कड़ी पूछताछ भी तुमसे नहीं की गई । इंस्पैक्टर तुम्हारे साथ सख्ती से पेश भी नहीं आया । लगता है, जिस टेलीफोन काल का जिक्र उसने किया था उसका बड़ा पूरा असर उस पर हुआ था ।"
"अच्छा ?"
"बनो मत, दोस्त । मैने सुना और देखा भी है कि 'बडी हस्तियाँ' एक ही फोन से इंस्पैक्टर तो क्या पूरे पुलिस विभाग तक को हिला देती है । पुराने वक़्तों में जब हम लोग गुंडा–गर्दी, मार–पीट वगैरा किया करते थे तब सफेद पोश 'बड़े दादा' लोग सारे स्थानीय प्रशासन तक को अपने इशारों पर चलाया करते थे । इसीलिए, अपनी बिरादरी के 'बड़े आदमी' को पहचानने और समझने की तमीज मुझे भी है । लेकिन उन 'बड़े आदमियों' के साथ दिक्कत यह होती है कि खुदाबाप जल्दी ही उन्हें अपने पास बुला लेता है और मैं नहीं चाहता कि तुम्हारा भी यही अंजाम हो–कम से कम मेरे सामने । क्योंकि मुद्दत बाद मुझे तुम जैसा दोस्त मिला है ।"
"बेफिक्र रहो, पीटर । ऐसा नहीं होगा ।"
"अच्छा, यह बताओ कि तुम इतने बरसों तक कहाँ रहे ?"
जलीस मुस्कुराया ।
"अभी नहीं, फिर कभी बताऊंगा ।"
"ठीक है ।" पीटर उठकर बैठ गया और सोफे को थपथपाकर बोला–"तो फिर आओ, इसे खोलकर इस पर सो जाते हैं ।"
"नहीं, मैं फर्श पर सो जाऊँगा ।"
"तकल्लुफ मत करो । तुम पहले भी इस पर सो चुके हो ।"
जलीस ने असमंजरता पूर्वक उसे देखा ।
पीटर ने कहकहा लगाया ।
"रनधीर के अपार्टमेंट में जो सोफा है यह उसका ओरिजिनल है । पुराने प्रिंसेज पैलेस क्लब के बेसमेंट में यही हुआ करता था । भूल गए...यह वही सोफा–कम–बैड है जिसे हमने सरदारी लाल कबाड़ी की दुकान से चुराया था । इसे मैं और तुम ही उठाकर लाए थे ।
जलीस को वो पुराना वाक़या याद आया तो वह भी हँस पड़ा ।
"खोलो इसे ।" वह बोला–"तुम लोग इतने जज्बाती हो कि पुराने दिनों से ही चिपके रहना चाहते हो ।"
"नहीं, दोस्त ।" पीटर आह सी भरकर बोला–"हम चाहकर भी खुद को पुराने दिनों से अलग नहीं कर सकते । हम पुराने लोगों के हमेशा वही पुराने तौर–तरीके ही रहेंगे ।"
जलीस को लगा, पीटर ने अनायास ही बड़ी भारी पते की बात कह डाली थी ।
सोफा–कम–बैड पर लेटने के बाद भी यही बात उसके दिमाग में घुमड़ती रही ।
* * * * * *
अचानक जलीस जाग गया । लेकिन उठने की बजाय चुपचाप अंधेरे में पड़ा रहा । जागने की वजह नींद में उसके दिमाग में उभरा एक नया विचार था जिसने उसे बुरी तरह चौंका दिया था ।
मगर अब वो उसे याद नहीं आ रहा था ।
उसने आँखें बंद करके सोचने की कोशिश की पर कोई फायदा नहीं हुआ । जबकि नींद में उसे लगा था कि इस सारे सिलसिले के रहस्य और तथ्यों की चाबी का पता उसे लग गया था ।
अंत में वह निराश मन से करवट बदलकर पुनः सोने की कोशिश करने लगा और जल्दी ही नींद की आगोश में समा गया ।
दोबारा जागने पर उसने पाया कि पीटर उसका हाथ पकड़कर हिला रहा था ।
"बस करो ।" वह बोला–"मैं जाग गया हूँ ।" और उठकर बैठ गया ।
पीटर ने एक मुड़ा हुआ अखबार उसके हाथ में थमा दिया और दो कॉलम में फैले लेख पर उंगली फिराकर बोला–"जयपाल यादव फिर तुम्हारे पीछे पड़ गया है तुम्हें उस बेवकूफ़ को सबक सिखाना चाहिए ।"
जलीस ने आँखें मलकर 'नगर की बात' पर निगाहें दौड़ाई ।
सही सूचनाओं पर आधारित लेख दिलचस्प था । यादव ने बड़े ही प्रभावपूर्ण ढंग से उसे निशाना बनाने की कोशिश की थी ।
संक्षेप में उसका आशय था–भूतपूर्व 'शहंशाह' रनधीर मलिक के साम्राज्य पर एक बार फिर खून खराबे और मौत ने हमला बोल दिया था । नतीजे के तौर पर दो आदमी मारे गए । पुलिस इस मामले में जानबूझकर ढील बरतती प्रतीत होती है । हालात को देखते हुए लगता है कि खून खराबे का यह सिलसिला लंबा चलेगा । और मरने वालों की सूची में अगला नाम होगा–"रनधीर' के एक पुराने पार्टनर का । जिसे रनधीर की 'हुक़ूमत' विरासत में मिली है और जो इसे अपनी मर्जी के मुताबिक चलाना चाहता है ।"
जलीस ने अखबार से लेख फाड़कर अपनी जेब में रखा और सोफे से उठकर कपड़े पहनने लगा ।
पीटर बार–बार एक ही बात दोहरा रहा था कि यादव का दिमाग दुरुस्त करना चाहिए ।
"नहीं । तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे ।" जलीस ने कहा ।
"क्यों ?"
"इसलिए कि यादव वही कर रहा है जोकि बरसों से करता आ रहा है ।" जलीस उसे समझाने की कोशिश करता हुआ बोला–"असलियत यह है कि सुराग लगाने के मामले में, रिपोर्टर होने के नाते, वह बेहतर पोजीशन में है । अगर वह मुझे बदनाम करने या मुझ पर कीचड़ उछालने का अभियान चलाना चाहता हूँ तो इससे कोई परेशानी मुझे नहीं है । उल्टे फायदा ही है । क्योंकि इस धंधे में इस तरह की पब्लिसिटी मेरी खिलाफत करने वालों की नींद हराम कर देगी और मेरा रुतबा अपने आप ऊंचा हो जाएगा खास तौर पर उस सूरत में जबकि मैं आर्गेनाइजेशन के खास लोगों से भी निपटना चाहता हूँ ।"
"तुम्हारे इस नजरिए से मैं सहमत नहीं हूँ, जलीस ।"
"क्यों ?"
"यादव को वक्त रहते न रोकने की अपनी गलती का पता तुम्हें तब चलेगा जब मौत ठीक तुम्हारे सर पर आकर नाचने लगेगी ।"
"कैसे ? "
"यह ठीक है कि गोविंदपुरी का हमारा यह इलाका काफी बड़ा है । लेकिन हमारा पूरा शहर इससे सैकड़ों गुना ज्यादा बड़ा है । यहाँ और भी इलाके हैं । दर्जनों पॉश एरिये भी हैं । जिनमें वे खास लोग भी रहते हैं जिनका जिक्र तुमने किया है और वे अभी चुपचाप हैं । ज्यादा कुछ उन्होंने नहीं कहा है । क्योंकि वे यह जानने के इंतजार में है कि ऊंट किस करवट बैठता है । अगर उन्हें यकीन हो गया कि तुम वाकई इतनी बड़ी चीज हो कि उन सब पर भी भारी पड़ सकते हो तो वे तुम्हें रास्ते से हटा देंगे ।"
"तुम भूल रहे हो कि यह कोशिश कोई पहले ही कर चुका है ।
"नहीं, मुझे सब याद है । तुम्हीं भूल रहे लगते हो कि तुम्हारी हत्या करने का कांट्रेक्ट दिया गया था और कांट्रेक्ट किलर्स को बकाया पैसा तभी मिलता है जब वे अपने शिकार को खत्म कर देते हैं । इसका मतलब है–अब अरमान अली या तो अकेला ही कांट्रेक्ट को पूरा करेगा या फिर अपने किसी और साथी को बुलाएगा ।"
"मुझे नहीं लगता कि अरमान अली ऐसा कुछ कर पाने की हालत में होगा । फिलहाल वह अपने जख्म का इलाज करा रहा और आराम कर रहा होना चाहिए ।" जलीस ने कहा फिर तनिक सोचकर बोला–"उससे मिलना होगा ।"
"क्यों ?"
"उससे बातें करनी हैं । कहाँ मिलेगा ?"
"पता लगाना पड़ेगा ।"
"कैसे ?"
"इस मामले में सिर्फ एक ही आदमी मदद कर सकता है ।"
"कौन ?"
"सोहन लाल । वह शहर के उन तमाम होटलों, गैस्ट हाउसों वगैरा की पूरी जानकारी रखता है जिन्हें जरायम पेशा लोग अपने ठिकानों के तौर पर इस्तेमाल किया करते हैं । अरमान अली के बारे में भी उसे जरुर पता होना चाहिए ।" पीटर ने विश्वासपूर्वक कहा–"वैसे अरमान अली के बारे में जो कुछ मैंने सुना है उससे लगता है उसकी ज़ुबान आसानी से खुलवायी जा सकती है ।" वह मुस्कुराया–"पुराने दिनों की बेसमेंट की कोई तरकीब इस्तेमाल करोगे तो उसका रिकॉर्ड चालू हो जाएगा ।"
भयानक बीमारी और कमज़ोरी के बावजूद पीटर का उत्साह प्रशंसनीय था ।
"तुम खुद भी सावधान रहना ।" जलीस बोला ।
"तुमने कभी मुझे लापरवाह पाया है ?"
"बात लापरवाही की नहीं, खतरे की है । अब तक सबको पता लग चुका होगा कि तुम मेरा साथ दे रहे हो ।"
पीटर हँसा ।
"यह तो मेरे हक में और भी अच्छा है । इस नामुराद बीमारी से तिल–तिल करके मरने की बजाय एक ही बार में किस्सा खत्म हो जाएगा और दम तोड़ते वक्त फ़ख्र रहेगा कि दोस्ती में दोस्त के लिए जान दे रहा हूँ ।"
"ठीक है । मैं सिर्फ इस शर्त पर तुम्हें कोशिश करने की इजाज़त दे सकता हूँ कि तुम जानबूझकर कोई खतरा मोल नहीं लोगे । अगर खतरा नजर आए तो सोहन लाल को उससे निपटने देना या फिर सीधा मुझे कांटेक्ट कर लेना, मंजूर है ?"
"इसके जवाब में तो 'हाँ' ही कहना पड़ेगा वरना तुम मुझे जाने नहीं दोगे ।" पीटर ने कहा, फिर कुछ याद करता हुआ सा बोला–"तुम भूल रहे हो कि सबसे पहले हमें एक और जरूरी काम करना है । हमें...।"
"पुलिस स्टेशन जाकर जगतवीर को लिखित बयान देना है ।" जलीस ने मुस्कुराते हुए उसका वाक्य पूरा किया ।"
पीटर ने खोजपूर्ण निगाहों से उसे देखा ।
"तुम्हें समझ पाना असंभव है, जलीस ।"
"तो फिर कोशिश ही मत करो ।"
"तुम अपने आप में एक अजूबा हो, दोस्त । इंस्पैक्टर जगतवीर ने पहले कभी किसी को ब्रेक नहीं दिया । तुम पहले शख्स हो जिसके साथ उसने इतना अच्छा सलूक किया है । वो भी उस हालत में जबकि वह तुमसे बेहद नफरत करता है । तुमने उसे एक मज़ाक बनाकर रख दिया है । लेकिन मुझे यकीन है कि वह अपनी तौहीन का बदला तुमसे जरुर लेगा ।"
"कैसे ? क्या करेगा मेरा ?"
"वह इंतजार कर रहा है । तुम अपने बचाव का जितना चाहो पुख्ता इंतजाम कर लो । मगर किसी दिन जगतवीर तुम्हें तुम्हारी इसी रिवॉल्वर सहित रंगे हाथ जरुर पकड़ लेगा । फिर दुनिया की कोई ताकत तुम्हें नहीं बचा सकेगी ।"
"तुम कहते हो तो मान लेता हूँ ।"
"तो फिर मेरी सलाह भी मान लो ।"
"क्या ?"
"अभी से अहतियात बरतना शुरु कर दो ।"
"मतलब ?"
"अपनी इस रिवॉल्वर को यहीं छोड़ दो । ज़बरदस्ती मुसीबत को गले लगाना समझदारी नहीं है ।"
जलीस ने रिवॉल्वर सहित होल्सटर निकालकर उसे दे दिया । पीटर ने उसे छुपाकर रख दिया ।
"आओ ।"
दोनों बाहर निकल गए ।
* * * * * *
पुलिस स्टेशन की इमारत के बाहर जयपाल यादव सादा लिबास वाले एक पुलिसमैन से बातें कर रहा था । जिससे जलीस भी पिछली रात मिल चुका था ।
यादव ने उन दोनों को देखा तो अपनी बातें खत्म करके उनके पास आ गया ।
"गुड मार्निंग ।" जलीस बोला ।
"तुम बड़े ही घटिया आदमी हो ।" यादव उसे घूरता हुआ बोला–"आखिरकार तुमने सोनिया को इस बखेड़े में फंसा ही दिया ।"
"तुम बेकार ताव खा रहे हो । उस पर कोई चार्ज नहीं लगाया गया । उसका कुछ नहीं बिगडेगा ।"
"पुलिस के बखेड़े में फँसने वाले का सुधरता भी कुछ नहीं है ।"
"मेरा सुधरा है और सोनिया ने सुधारा है । वह मेरी एलीबी थी ।"
"यह तो मैं भी सुन चुका हूँ ।"
"तो और क्या सुनना चाहते हो ?"
"उसे अपनी साथिन कब बना रहे हो ?"
"उसी से पूछ लो । वह आ गई है ।" जलीस ने ऊंची आवाज़ में कहकर मुस्कुराते हुए आँख मारकर उसके पीछे की ओर इशारा कर दिया । जहाँ सोनिया टैक्सी से उतरकर भाड़ा चुका रही थी ।
यादव मुँह बनाता हुआ उधर ही पलट गया ।
सोनिया मुस्कुराती हुई उनके पास आई और जलीस की ओर एक फ्लाइंग किस उछाल दिया ।
"क्या पूछना है मुझसे ?" वह बोली ।
उसे देखते ही यादव के चेहरे पर अजीब से भाव उत्पन्न हुए–जैसे कि उन माँ–बाप के चेहरों पर नजर आते हैं जिनके बच्चे उनके काबू से बाहर हो जाते हैं और वे बच्चे इतने बड़े होते हैं कि उन्हें संभाल पाना उनके वश में नहीं रहता । फिर उस विवशता और अंसहायता का स्थान हैरानी ने ले लिया और अंत में बेहद फिक्रमंदी के सिर्फ ऐसे चिंह शेष रह गए मानों उसका कोई अत्यंत प्रिय व्यक्ति भटक गया था ।
"सोनिया...।"
"कैसे हो, जयपाल ?" सोनिया ने स्नेहपूर्वक उसका हाथ पकड़कर पूछा–"मेरा जिक्र किस वजह से किया जा रहा था ?"
"वजह तुम जानती हो ।" यादव ने कहा, फिर अर्थपूर्ण निगाहों से जलीस को देखकर बोला–"तुमसे कुछ जरुरी बातें करनी है, सोनिया ।"
"ठीक है ।" वह बोली–"लेकिन हमें पहले इंस्पैक्टर से मिलना है । उसने दस बजे बुलाया था और अब दस बजने वाले हैं । इंस्पैक्टर से मिलने के बाद इत्मिनान से कहीं बैठकर बातें करेंगे ।"
यादव ने मुँह बिसूरते हुए सर हिलाया और इमारत की ओर चला गया ।
सोनिया ने जलीस का हाथ थामा और वे दोनों भी उधर ही बढ़ गए ।
पीटर ने भी उनका अनुकरण किया ।
इंस्पैक्टर जगतवीर सिंह अपने ऑफिस में उन्हीं का इंतजार कर रहा था । उसने बताया कि सुलेमान पाशा, जैकी और वह टैक्सी ड्राइवर, जिसने जलीस और पीटर को पिछली रात रनधीर की इमारत के संमुख ड्रॉप किया था, अपने दस्तख़त शुदा लिखित बयान देकर जा चुके थे ।
जलीस, पीटर और सोनिया ने भी अपने लिखित बयान दे दिए ।
इस पूरे दौर में इंस्पैक्टर नाखुशी भरी निगाहों से जलीस को घूरता रहा था ।
"बलराम ने जिस आदमी को शूट किया था ।" जलीस ने पूछा–"उसके बारे में कुछ पता चला ?"
"वह दिल्ली का रहने वाला एक पेशेवर हत्यारा था । दिल्ली पुलिस के मुताबिक वह हत्याओं के करीब एक दर्जन मामलों में इनवाल्व रहा था । मोटी रकम देकर कोई भी उसकी सेवाएं प्राप्त कर सकता था । उसके पास से जो गन मिली थी उससे चलाई गई कुछ गोलियाँ तुम्हारे दोस्त अमोलक की लाश में भी पायी गई थीं । मानना पड़ेगा कि काफी अच्छे लोग तुम्हारी तलाश में हैं ।"
"लेकिन अखबार में तो इस बारे में कुछ नहीं छपा है ।" जलीस बोला ।
"दिल्ली पुलिस से करीब घंटा भर पहले ही यह जानकारी हमें मिली है ।"
"उस आदमी का नाम फरमान अली था ।"
इंस्पैक्टर ने सर्द निगाहों से उसे घूरा । पीटर ने अपने होंठ काटते हुए सर हिलाकर जलीस को वहाँ से निकल चलने का संकेत किया ।
सोनिया कुछ नहीं बोली लेकिन पीटर की अचानक घबराहट को वह भी भाँप गई थी ।
"तुम बहुत ज्यादा चालाक बनते हो ।" इंस्पैक्टर बोला–"पिछली रात भी तुम्हें यह मालूम था ?"
"हाँ," जलीस ने जवाब दिया ।
"तो फिर तुमने बताया क्यों नहीं ?"
"इसलिए कि तब तक मुझे यकीनी तौर पर पता नहीं था ।"
"तुम काफी कुछ जानते हो । उसका एक साथी और भी था । उसने भी अमोलक को तीन गोलियाँ मारी थीं और भाग गया था । वह कौन था ?"
"अरमान अली ।" जलीस मुस्कुराया–"वे दोनों होटल शालीमार में रोशन और जगन के नामों से ठहरे हुए थे ।" इंस्पैक्टर को कुछ कहने का मौका दिए बगैर वह बोला–"मैं पूरा सहयोग करने की कोशिश कर रहा हूँ, इंस्पैक्टर । मेरी पोजीशन को तुम अच्छी तरह जान चुके हो । इसलिए बताने की जरुरत नहीं है कि जानकारी हासिल करने के मेरे अपने सोर्सेज हैं । अपने अलग तरीके हैं । अगर मुझे कोई नई बात पता चलती है तो तुम्हें बताकर मुझे खुशी होगी ।"
इंस्पैक्टर ने आगे झुककर अपने डेस्क पर हाथ रख लिए ।
"तुम वाकई चालाक आदमी हो, जलीस । अपने बचाव का पेशगी और पुख्ता इंतजाम करना भी तुम्हें बखूबी आता है । इसलिए तुम जैसे आदमी के काम करने के ढंग पर निगाह रखना फायदेमंद साबित होता है । क्योंकि इस तरह काफी कुछ नया सीखने को मिलता है । इसीलिए तुम्हारे दोस्त रनधीर मलिक को भी मैं वाच किया करता था । वह बहुत चालाक आदमी था । सही और ऊंची जगहों पर अच्छे रसूख भी उसने कायम किए हुए थे । उस जैसी बड़ी हैसियत वाले लोग आम तौर पर जो ग़लतियाँ करते हैं वैसी कोई गलती उसने कभी नहीं की । इसीलिए पुलिस विभाग सहित कोई भी सरकारी विभाग कभी उस पर हाथ नहीं डाल सका । स्थानीय अपराध जगत का 'बादशाह' होते हुए भी वह एकदम 'क्लीन' था । लेकिन किसी बदमाश छोकरे ने उसे शूट कर दिया और उसका किस्सा खत्म हो गया ।"
जलीस चौंका ।
"बदमाश छोकरे ने ?"
"हाँ । तुम्हारे दोस्त रनधीर की हत्या किसी बदमाश छोकरे ने जिसे मामूली गुंडा या अनाड़ी अपराधी भी कहा जा सकता की थी । सुनने में यह अजीब जरुर लगता है कि रनधीर जैसा 'अंडर वर्ल्ड का किंग', जो बड़े–बड़े गिरोहबंद अपराधियों, राजनीतिबाजों, सरकारी अफसरों वगैरा को अपनी उंगलियों पर बरसों तक जब चाहे और जैसे चाहे नचाता रहा था, किसी बदमाश छोकरे द्वारा मार डाला गया । लेकिन यह असलियत है ।" उसकी पैनी निगाहें जलीस के चेहरे पर जमी थी–"एक 'बिग शॉट' की इससे ज्यादा शर्मनाक मौत नहीं हो सकती । ठीक है न ?" जलीस को जवाब देता न पाकर वह बोला–"रनधीर की हत्या बाईस कैलिबर की गोली से की गई थी । लेकिन वो गोली किसी पिस्तौल या रिवॉल्वर से नहीं चलाई गई थी । सही मायने में कोई भी हैंडगन इस काम के लिए इस्तेमाल नहीं की गई थी । वो गोली जुगाड करके बनाई गई 'पाइप गन', जिसे तुम लोग 'जिप गन' कहा करते थे, से चलाई गई थी । याद आया ? तुमने तो खुद ऐसी काफी गनें बनाई थी ।" अचानक वह यूँ रुका मानों कुछ याद आ गया था, फिर कड़वाहट भरे लहजे में बोला–"मैं तो भूल ही गया था...तुम जिप गन इस्तेमाल नहीं करते थे । तुम्हारे पास तो एक पुलिसमैन से छीनी गई अड़तीस कैलीबर की रिवॉल्वर थी । अभी भी उसे अपने साथ रखते हो ?"
जलीस ने कुर्सी से उठकर बड़ी मासूमियत से अपने कोट के बटन खोलकर दिखा दिया ।
पीटर गहरी सांस लेकर रह गया ।
"खैर, वो 'जिप गन' थी, जलीस ।" इंस्पैक्टर ने कहा–"जिससे सिर्फ एक ही गोली एक बार में डालकर चलाई जा सकती है और वो भी सिर्फ बाईस कैलिबर की । यह मैं बैलास्टिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार बता रहा हूँ । वे लोग यह भी जानते हैं कि वो कैसे बनाई जाती है । बढ़िया क्वालिटी के कार रेडियो एरियल के निचले टुकड़े को बैरल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है । छोटी लेकिन बारीक और मजबूत कील को फायरिंग पिन बनाकर बढ़िया किस्म के मजबूत रबर बैंड की सहायता से बैरल के सिरे पर फसायी गोली को ठीक सेंटर में स्टाइक किया जाता है । गोली चल जाती है । हालांकि न तो उससे निशाना लगाया जा सकता है और न ही इस तरह चलाई गई गोली उतनी असरदार होती है जितनी कि बाईस कैलिबर की हैडगन से चलायी गई गोली होती है...फिर भी नज़दीक से चलायी जाने पर काफी असरदार साबित होती है ।"
"कोई टॉप सीक्रेट इनफारमेशन यह नहीं है, इंस्पैक्टर ।" जलीस बोला–"यह साइंस की करामात और खुराफाती दिमाग की उपज है ।"
"सायंकालीन अखबारों में इसके बारे में सब पढ लेना ।"
"पढ लूँगा ।" जलीस बोला–"अब हम जा सकते है ?"
"हाँ, लेकिन जाने से पहले तुम कोई जानकारी मुझे नहीं दोगे ?"
"जरुर दूँगा । सुनो, मज़हबी जुनून फैलाकर शहर में दंगे कराए जाने की तैयारियाँ की जा चुकी है ।"
इंस्पैक्टर ने विचारपूर्वक उसे देखा ।
"यह अफ़वाह तो मैंने भी सुनी है । लेकिन इसमें हाथ किसका है ?"
"अभी तक सिर्फ दो नाम सुनने में आए है–सुलेमान पाशा और करीम भाई दारुवाला ।"
"सबूत ?"
"फिलहाल कोई नहीं है ।"
"उन दोनों से अपनी दुश्मनी की वजह से तो तुम उनके नाम नहीं ले रहे हो ?"
"मेरी कोई जाती दुश्मनी उनसे नहीं है ।"
"देखो, जलीस ।" संक्षिप्त मौन के पश्चात इंस्पैक्टर बोला–"न तो मुझे तुम पसंद हो और न ही तुम्हारी हरकतें । फिर भी अपने एरिये में मैं तुम्हें बर्दाश्त कर रहा हूँ । जानते हो, क्यों ?"
"नहीं ।"
"इसलिए कि रनधीर की मौत के बाद उसकी हुक़ूमत पर कब्ज़ा करने के लिए बड़ी भारी गैंगबार छिड़ने के पूरे आसार नजर आने लगे थे । इतना भयानक खून–ख़राबा होना था कि सड़कों, गलियों, शराबख़ानों, होटलों वगैरा में लाशों के ढेर लग जाने थे । शहर में दहशत और बदअमनी का माहौल बन जाना था । लेकिन तुम्हारे आने से वो सब टल गया नजर आने लगा है ।"
जलीस मुस्कुराया ।
"तारीफ के लिए शुक्रिया ।"
इंस्पैक्टर कुछ नहीं बोला ।
सोनिया और पीटर सहित जलीस ऑफिस से बाहर आ गया ।
पीटर उसकी बाँह पकड़कर एक ओर ले गया ।
"मैं जा रहा हूँ ।" वह धीमे स्वर में बोला–"पहले सोहन लाल को पकडूँगा फिर अरमान अली को तलाश करूँगा ।"
जलीस ने पाँच सौ रुपए के दो नोट खर्चे के लिए उसे दे दिए ।
"अगर मेरी जरुरत पड़े तो विनोद महाजन के पास मैसेज छोड़ देना । वरना बाद में फ्रेंड्स विला में मुलाकात होगी । और सुनो, पीटर, तुमने सावधान रहना है । किसी भी हालत में अपनी गरदन नहीं फँसानी है ।"
"मत भूलो कि मैं तुम्हारा बिलाव हूँ । विलाब हमेशा सावधान रहता है । उसे फँसा पाना आसान नहीं है ।" पीटर ने कहा और हँसता हुआ चला गया ।
पुलिस स्टेशन की इमारत के बाहर जलीस और सोनिया को यादव मिल गया ।
तीनों फ्रांसिस के कैफे की ओर चले गए ।
* * * * * *
फ्रांसिस के कैफे में ।
हालांकि यादव को जलीस की मौजूदगी नागवा र गुजर रही थी । फिर भी उसे बर्दाश्त करने के लिए वह मजबूर था । इसकी एक वजह उसका रिपोर्टर होना भी थी । उसे उम्मीद थी, जलीस से कोई नई मालूमात हासिल हो सकेगी ।
"सोनिया ।" कॉफी की चुस्कियों के बीच वह सपाट स्वर में बोला–"तुम जानती हो, खुद को किस मुसीबत में फंसा रही हो ?"
"हाँ ।"
"और इसकी कोई फिक्र तुम्हें नहीं है ?"
"नहीं ।"
"लेकिन मुझे है ।"
सोनिया ने मेज पर झुककर उसका हाथ थपथपाया ।
"मैं अब बच्ची नहीं हूँ ।"
"तुम इस गुंडे के बहकावे में आ रही हो, सोनिया । तुम्हें हमेशा मारा–मारी की कहानियाँ और घटिया आदमियों की सोहबत पसंद रही है ।"
"ताव मत खाओ, जयपाल ।" जलीस बोला ।
यादव ने उसे घूरा ।
"ताव क्यों न खाऊं ? तुम भी इस बात को जानते हों । गोविंदपुरी के इस इलाके में तुम अजनबी तो नहीं हो । जरा स्कूल के दिनों के बारे में सोचो । उन दिनों यह सबसे घटिया लड़की विमला सक्सेना के साथ चिपकी रहती थी ।"
"वह मेरी सहेली थी ।" सोनिया ने सहज ढंग से कहा ।
"सहेली ? घटिया परिवार की एक ऐसा बदनाम लड़की थी जिसे पुलिस ने दर्जनों बार अरेस्ट किया था ? सिर्फ पंद्रह साल की उम्र से ही जिसने जिस्म फरोशी का धंधा शुरु करा था, वह तुम्हारी सहेली थी ।"
"यह उस बेचारी की मजबूरी थी, जयपाल । तुम भी जानते हो, इस तरह जो पैसा वह कमाती थी, वो कहाँ जाता था । उसकी बदकिस्मती थी कि उसने निकम्में और नाकारा बाप के घर में जन्म लिया । उसका परिवार उसकी कमाई पर ही पलता था ।
"मेरा बाप भी निकम्मा और शराबी था ।" यादव बोला–"लेकिन हर तरह की कमी भुगतने के बावजूद अपना सम्मान हमने नहीं खोया । मैने अपने नाकारा बाप को घर से निकाल दिया तो सब ठीक हो गया । मेरे यहाँ किसी को वेश्यावृत्ति नहीं करनी पड़ी ।
"लेकिन विमला का तुम जैसा कोई भाई नहीं था जो उसके बाप को घर से निकालता ।" सोनिया ने कहा ।
"अगर कोई होता तो भी फर्क नहीं पड़ना था । उस लड़की ने फिर भी यही करना था । वह रनधीर के साथ रहने लगी थी और तब तक उसके साथ रही जब तक कि छत से कूदकर मर नहीं गई । वह हेरोइन एडिक्ट थी और पैसे के बदले में हर एक आदमी के नीचे बिछने को तैयार रहती थी । ऐसी बाजारु लड़की को तुम अपनी सहेली कहती हो ?"
सहसा जलीस को कुछ याद आ गया ।
"मैने सुना है ।" वह बोला–"रनधीर को यह कतई पसंद नहीं था उसकी 'फ्रेंडस विला' में कोई हेरोइन ले ।"
"तुमने ठीक सुना है । इस तरह वह मक्कार खुद को इस मामले में पाक दामन जाहिर करना चाहता था ।" यादव हिकारत भरे लहजे में बोला–"लेकिन असलियत यह थी कि विमला की ख़ुदकुशी ने उसके छक्के छुड़ा दिए थे । वह ऐसा कुछ नहीं करना चाहता था जिससे उसका निवास स्थान बदनाम हो या उसके नाम पर कीचड़ उछाला जाए । खास तौर पर ऐसा कोई काम जो डिपार्टमेंट ऑफ रिवेन्यु इंटेलीजेंस का ध्यान उसकी ओर आकर्षित कर सके । सभी सरकारी एजेंसियों की निगाहें उसकी गतिविधियों पर थी अगर वह ऐसी पाबंदी नहीं लगाता और इस पर कड़ाई से अमल नहीं करता तो पुलिस या नारकोटिक्स डिपार्टमेंट वाले आसानी से ड्रग्स ट्रेड से उसका रिश्ता जोड़ सकते थे और फिर बुरी तरह उसके पीछे पड़कर उन्होंने उसे फँसा ही लेना था । रनधीर क्योंकि बेहद चालाक था इसलिए विमला की मौत के बाद उसने खुद को इस तरह के हर एक लफड़े से दूर कर लिया । मगर सोनिया ऐसा नहीं कर सकती । इसे अभी भी स्कूल टाइम के पुराने साथियों से लगाव है । और उन गुंडे बदमाशों से दोस्ताना ताल्लुकात हैं जिनसे बहुत पहले ही इसे किनारा कर लेना चाहिए था ।" क्रोध वश यादव की मुठ्ठियाँ भींच गईं–"अब तुम आ पहुँचे तो इसने तुम्हारा साथ पकड़ लिया । जबकि तुम रनधीर या दारुवाला या वैसे ही किसी दूसरे आदमी से भी कहीं ज्यादा बुरे हो ।"
"इसकी फिक्र तुम मत करो ।" जलीस बोला ।
यादव के होंठों पर कड़वी मुस्कुराहट उभर आई ।
"मैं फिक्र नहीं कर रहा । बस चुपचाप बैठा इंतजार कर रहा हूँ । क्योंकि तुम जैसे लोगों का हमेशा एक ही अंजाम होता है–अचानक मौत ।"
"और तुम हमेशा की तरह आज भी नफरत के ढेर पर ही बैठे हुए हो ।"
"नहीं ।" संक्षिप्त मौन के पश्चात वह सर हिलाकर बोला–"ऐसा बिल्कुल नहीं है । नफरत एक तरह की लग्जरी हैं जिसे मैं अफोर्ड नहीं कर सकता । अगर मैं नफरत करूँगा तो असलियत को समाज के सामने नहीं ला सकूँगा और अगर असलियत को सामने नहीं ला सकूँगा तो रिपोर्टर बना नहीं रह सकता । लेकिन यह सही है कि मैं थोड़ा सनकी हूँ और मेरे स्वभाव में थोड़ी कड़वाहट है । जो कि स्वाभाविक ही है । बरसों इस स्लम एरिये में गुज़ारने और हर तरह की बुराई को नज़दीक से देखते रहने के बाद किसी के भी मिज़ाज में तल्खी आ सकती है ।"
"लेकिन इस एरिये में और भी तो बहुत लोग रहते रहे हैं । वे तो ऐसे नहीं हैं ।"
"इसकी बड़ी वजह है–धीरज और सब्र । तुममें से ज्यादातर लोगों में धैर्य था या तुमने धैर्य से रहना सीख लिया था । दरअसल वाकयात की अपनी एक राह होती है जिसे आसानी से बदला नहीं जा सकता और अगर इंतजार किया जाए तो वे वाकयात एक अंजाम पर पहुँच जाते हैं । मोटे तौर पर यह सिलसिला इलेक्ट्रिक ट्रेन में सवार लोगों को देखने जैसा है । ट्रेन इधर–उधर घूमती और जगह–जगह दौड़ती रहती है मगर चलती सिर्फ अपने ट्रैक पर ही है और आखिर में मंज़िल पर जा रुकती है । तुम भी ऐसी ही एक ट्रेन में सवार हो जलीस । तुम बचपन में ही उस पर सवार हो गए थे । तुमने अपनी दिशा चुनी, भाड़ा चुकाया और अब उस पर सवार होकर रह गए हो । ट्रेन दौड़ रही है । अब तुम चाहकर उसे नहीं रोक सकते क्योंकि ब्रेक फेल हो चुके हैं । इसलिए एक्सीडेंट होना निश्चित है । एक ऐसा एक्सीडेंट जो तुम्हारे वजूद को मिटा देगा ।"
"दिलचस्प थ्यौरी है ।"
"रनधीर और तुम जैसे सभी लोग ऐसी ही ट्रेन पर सवार होकर रह जाते हैं । रनधीर का सफर खत्म हो चुका है लेकिन तुम्हारा सफर जारी है, जलीस ।" यादव तनिक रुककर मुस्कुराया फिर बोला–"और मेरी निगाहें तुम्हारे सफर पर लगी है । मैं अभी तुम्हारी 'आबिच्युरी' लिखकर रख सकता हूँ ताकि वक्त आने पर इस्तेमाल की जा सके । क्योंकि मैं जानता हूँ, तुम्हारा यह सफर कहाँ खत्म होगा ।" फिर उसकी मुस्कुराहट गायब हो गई और आँखें सिकुड़ गई–"इस सिलसिले का अफसोसनाक पहलू यह है कि इस सफर में कोई और भी तुम्हारे साथ है । और सबसे बुरी बात है कि उसने जान बूझकर सिर्फ मौज–मस्ती के लिए तुम्हारा साथ पकड़ा हैं ।"
सोनिया समझ गई कि उसका इशारा उसी की ओर था ।
"मेरी फिक्र मत करो ।" वह बोली–"मैं जानती हूँ, क्या कर रही हूँ ।"
"तुम जानती हो ? जब तुमने करीम भाई दारुवाला को अपने साथ चिपक जाने दिया तब भी जानती थी कि क्या कर रही हो ? वह पेशेवर गिरोहबंद बदमाश उम्र में तुमसे करीब पच्चीस साल बड़ा है । तुम उस वक्त भी जानती थी जब रनधीर किसी सजावटी चीज की तरह तुम्हें साथ चिपकाए घूमता था ?"
"हाँ ।"
"और तुम अब भी जानती हो । इस घटिया आदमी के आते ही तुम एक बार फिर इसके लिए जज्बाती हो गई क्योंकि बरसों पहले भी तुम्हें इससे लगाव था ।"
सोनिया, जलीस की ओर मुस्कुराई ।
"सुन रहे हो ? मेरा बड़ा भाई क्या कह रहा है ?"
"इस बेचारे को अपनी राय जाहिर करने दो । बड़े पापड़ पीटने के बाद यह इस काबिल हुआ है ।" कहकर जलीस ने यादव की ओर देखा–"तुम्हारी मिसालनुमा थ्यौरी में दिलचस्प होते हुए भी एक बड़ी कमी है ।"
"अच्छा ?"
जलीस ने कॉफी खत्म करके बिल चुकाने के बाद कहा–"वो तुम्हें भी नजर आ जानी चाहिए थी ।"
"मुझे तो कोई कमी नजर नहीं आती । तुम्ही बता दो ।"
जलीस खड़ा हो गया ।
"चल रही हो, सोनिया ?"
"अभी नहीं । बाद में मिलेंगे । आधा घंटे बाद मुझे एक स्टेज शो की स्क्रिप्ट लानी है । शाम को फ्री रहूँगी ।"
"ठीक है, मैं फोन कर लूँगा । अच्छा जयपाल, फिर मिलेंगे ।"
"जलीस...।"
"अब क्या हुआ ?"
"मेरी थ्यौरी की कमी तो बता दो ।"
"ब्रेक फेल हो जाने के बाद भी इलेक्ट्रिक ट्रेन से सही सलामत उतरा जा सकता है ।"
"कैसे ?"
"स्पीड कम करके मुनासिब जगह पर कूदकर ।" जलीस ने उत्तर दिया और सोनिया को आँख मार दी ।
जवाब में सोनिया ने एक फ्लाइंग किस उसकी ओर उछाल दिया ।
जलीस मुस्कुराता हुआ कैफे से निकला और मुश्किल से एक किलोमीटर दूर फ्रेंडस विला की ओर बढ़ गया ।
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